सोनाक्षी सिन्हा और परेश रावल की 'निकिता रॉय' में है डर और रहस्य का ऐसा खेल जो सोचने पर कर दे मजबूर!
नई दिल्ली। : बॉलीवुड में हॉरर और थ्रिलर फिल्मों की अपनी एक खास ऑडियंस है, लेकिन ऐसी कहानियां कम ही बनती हैं जो डराने के साथ सोचने पर भी मजबूर कर दें. कुश सिन्हा ने बतौर डायरेक्टर अपने करियर की शुरुआत ‘निकिता रॉय’ से की है और उन्होंने इस सुपरनैचुरल थ्रिलर में डर और समाज के अंधविश्वास को बड़े दिलचस्प तरीके से मिलाया है. यह फिल्म ना तो सिर्फ डराती है, ना ही महज रहस्य बनाकर छोड़ती है, बल्कि दोनों के बीच एक ऐसी कहानी कहती है जो आपको आखिर तक बांधे रखती है.
फिल्म की कहानी अर्जुन रामपाल के किरदार से शुरू होती है, जो अपने घर में किसी अनजानी दहशत से घिरा है. यहां डर किसी चीख-चिल्लाहट या हॉरर क्लिच से नहीं आता, बल्कि आपके भीतर उतरता है. कुश सिन्हा ने डर और रहस्य को बेहद संयमित तरीके से गढ़ा है, जिससे हर सीन में आप बेचैनी और सस्पेंस को महसूस करते हैं.
सोनाक्षी सिन्हा इस फिल्म में निकिता रॉय के किरदार में ऐसी पत्रकार बनी हैं, जो फर्जी बाबाओं और झूठे धार्मिक दावों का पर्दाफाश करती है. लेकिन जब उसकी अपनी जिंदगी में दर्दनाक मोड़ आता है, तो वह उसी दलदल में फंस जाती है जिससे वह दूसरों को बचाने की कोशिश करती थी. सोनाक्षी ने अब तक का सबसे गंभीर और असरदार अभिनय इस फिल्म में किया है.
सुहैल नय्यर, जो फिल्म में सोनाक्षी के एक्स-पार्टनर बने हैं, उनके किरदार को देखकर लगता है कि वह कहानी में ज्यादा असर नहीं छोड़ेंगे, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, उनके और निकिता के बीच का इमोशनल कनेक्शन कहानी में गहराई जोड़ता है. यह रिश्ता फिल्म के ट्विस्ट को और ज्यादा असरदार बना देता है.
परेश रावल ने अमरदेव के रूप में एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु का किरदार निभाया है जिसकी मासूम मुस्कान के पीछे खतरनाक सच्चाई छुपी है. उनकी एक्टिंग में जो ठहराव और खामोशी है, वही दर्शकों के रोंगटे खड़े कर देती है. उनका हर सीन स्क्रीन पर डर और रहस्य का नया रंग भरता है.फिल्म में जहां एक ओर कहानी और प्रस्तुति तारीफ के काबिल है, वहीं कुछ खामियां भी नजर आती हैं. खासकर फर्स्ट हाफ थोड़ा खिंचा-खिंचा और धीमा लगता है, जिससे दर्शक पूरी तरह कहानी से जुड़ नहीं पाते. इसके अलावा, अर्जुन रामपाल जैसे दमदार अभिनेता को फिल्म में अपेक्षाकृत कम स्क्रीन स्पेस मिला है, जबकि उनके किरदार में और गहराई लाई जा सकती थी, जिससे कहानी और भी प्रभावशाली बन सकती थी.
कुश सिन्हा ने पहली ही फिल्म में यह साबित कर दिया कि वह हॉरर को सिर्फ डर दिखाने की विधा नहीं समझते. उन्होंने कहानी को परत-दर-परत खोलने का तरीका अपनाया है. इसके लिए उन्होंने घिसे-पिटे हॉरर एलिमेंट्स से बचते हुए कहानी और किरदारों की गहराई पर ध्यान दिया है.
'निकिता रॉय' का ट्रेलर:
पवन कृपलानी की स्क्रिप्ट और शानदार सिनेमेटोग्राफी मिलकर कहानी में ऐसा माहौल बनाते हैं जो डर को महसूस कराता है. हर सीन में प्रोडक्शन क्वालिटी दिखती है. निक्की विक्की भगनानी फिल्म्स और अन्य प्रोड्यूसर्स ने मिलकर इस फिल्म को टेक्निकली भी बेहद मजबूत बनाया है.
‘निकिता रॉय’ सिर्फ एक डरावनी फिल्म नहीं है. यह समाज में फैले अंधविश्वास, फर्जी गुरुओं और उनपर आंख मूंदकर विश्वास करने वालों पर सवाल उठाती है. सोनाक्षी का शानदार अभिनय, परेश रावल की खामोश पर डरावनी मौजूदगी और कुश सिन्हा की सोच से भरी डायरेक्शन इस फिल्म को अलग बनाते हैं. यह फिल्म डराने के साथ सोचने पर भी मजबूर करती है और यही इसकी मजबूत कड़ी है.
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