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 भगवान बालाजी की मूल मूर्ति में वैदिक रीति से 48 कलाओं का आह्वान
 
-कृतज्ञता प्रकट करने दी विशेष पूर्णाहुति 
- कर्नाटक शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित 
टी सहदेव         
भिलाई नगर। बालाजी मंदर में शनिवार को आंध्र साहित्य समिति के तत्वावधान में किए गए धार्मिक अनुष्ठान अष्टबंधन महासंप्रोक्षण के अंतिम दिन वैदिक विधि-विधान से भगवान बालाजी की 48 कलाओं का उनकी मुख्य मूर्ति में आह्वान किया गया। इन कलाओं का आह्वान अनुष्ठान के पहले दिन यज्ञशाला में प्रतिष्ठित किए गए मुख्य कलश पुण्याहवचनम कलश में किया गया था। इस कलश की पूजा-अर्चना उसी तरह की गई, जिस प्रकार मूल मूर्ति की पूजा की जाती है। इस अनुष्ठान में श्री चक्र महा मेरुपीठम के पीठाधिपति सचिदानंद तीर्थ महा स्वामी तथा सांसद विजय बघेल अपनी धर्मपत्नी रजनी बघेल के साथ शामिल हुए। रविवार को चार दिनों तक होने वाला ब्रह्मोत्सव शुरू हो जाएगा।
 कृतज्ञता प्रकट करने दी विशेष पूर्णाहुति 
रोज की तरह सुबह अनुष्ठान की शुरुआत विष्वक्सेन और पुण्याहवचनम कलश की आराधना से हुई। उसके बाद अग्नि देव की उपासना करके हवन कुंडों में पहले अग्नि प्रज्वलित की गई, फिर उक्तहोम यानी नित्यहोम का संस्कार किया गया। उसके पश्चात भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए विशेष पूर्णाहुति दी गई। पूर्णाहुति के उपरांत महाआरती की गई, जिसमें भगवान की ओर से पंडितों द्वारा भक्तगणों को आशीर्वाद दिया गया।
 भक्तों ने पहले शीशे में देखी भगवान की छवि, फिर किए साक्षात दर्शन 
महाआरती के बाद शुरू हुआ सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान कुंभातबिंब कलावाहनम, जिसकी सभी को प्रतीक्षा थी। इस अनुष्ठान में प्रधान पंडित डी फणी कुमार ने मुख्य कलश और अन्य पंडितों ने दूसरे कलशों को शिरोधार्य किया था। कलशों को सिर पर रखे हुए प्रधान सहित अन्य पंडित पहले यज्ञशाला पहुंचे और उसके बाद उन्होंने मंदिर की परिक्रमा की। इस दौरान पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज अपने चरम पर थी। प्रदक्षिणा के बाद कुंभातबिंब कलावाहनम का संस्कार किया गया, जिसमें पहले मुख्य कलश को मंदिर के गर्भगृह में ले जाया गया और उसके बाद इस कलश से अष्टचत्वारिंशत् (48) कलाओं का भगवान बालाजी की मूल मूर्ति में आह्वान किया गया, जिसमें लगभग दो घंटे लगे। इस दौरान भक्तगणों द्वारा पूरे उत्साह से गोविंद नामावली का जाप किया गया। नामावली जाप के पश्चात पंडितों ने राम परिवार समेत आठ उत्सव विग्रहों को मंदिर में रखा। विग्रहों को रखने के बाद पंडितों ने शीशे में दिखे मंदिरों के प्रतिबिंबों पर पवित्र और अभिमंत्रित जल का छिड़काव भी किया। कुंभातबिंब कलावाहनम के दौरान मंदिर के कपाट बंद थे, भगवान की एक झलक पाने के लिए भक्तगण तत्पर थे। लेकिन वे सीधे भगवान के दर्शन नहीं कर सकते थे। मूल मूर्ति में कलाओं के आह्वान के उपरांत जैसे ही मंदिर के कपाट खुले, श्रद्धालुओं ने पहले शीशे में भगवान की छवि देखी, फिर बारी-बारी से साक्षात दर्शन किए।
 कर्नाटक शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित 
शाम को हुए अनुष्ठान के अगले चरण में विष्वक्सेन आराधना, पुण्याहवचनम संस्कारों को फिर से दोहराया गया। इन धार्मिक कृत्यों के बाद मेदिनी पूजा, मृत्तिका संग्रह, अंकुरार्पण एवं गरुड़ शय्याधिवासम प्रतिष्ठा की गई। प्रधान पंडित डी फणी कुमार ने गरुड़ ध्वजारोहण के बारे में रोचक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गरुड़ ध्वजारोहण इसलिए किया जाता है, ताकि आकाश मार्ग में विचरण कर रहे देवी-देवताओं का आह्वान किया जा सके। इस मौके पर कर्नाटक शास्त्रीय संगीत समारोह का आयोजन भी किया गया, जिसमें कलारत्न गायक एम सुधाकर, वॉयलिन वादक पी नागेश्वर राव, मृदंग वादक एम एडुकोंडलु तथा कंजरी वादक डॉ. एम रवि ने शानदार प्रस्तुति दी। उधर महिला कलाकार पूर्णिमा और नन्ही एस हिमाक्षी ने सेमी क्लासिकल डान्स पेश कर सबका दिल जीता।
 

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