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 मैं ना भुलूंगा........ देश कभी नहीं भूलेगा मनोज कुमार को

 
 
आलेख -प्रशांत शर्मा
 आज सुबह -सुबह एक बड़ी मनहूस खबर मिली... दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार नहीं रहे।  आज तडक़े उन्होंने मुंबइ के अस्पताल में इलाज के दौरान अंतिम सांस ली। पता नहीं क्यों कल रात से ही मैं उनकी फिल्म रोटी कपड़ा और मकान का गाना - मैं ना भूलूंगा ...गुनगुना रहा था....यह गाना मुझे काफी पसंद है। मुकेश और लता मंगेशकर की खूबसूरत आवाज से सजा यह गाना आज भी लोगों की जुबान पर है। 
 आज पूरा देश अपने पसंदीदा नायक को श्रद्धाजंलि अर्पित कर रहा है। उन्हीं के सम्मान में आज इस गाने के बारे में जिक्र कर रहा हूं।  मनोज कुमार की फिल्म रोटी कपड़ा और मकान 1974 में रिलीज हुई थी। फिल्म में मनोज कुमार के साथ जीनत अमान और मौसमी चटर्जी नजर आई। वहीं शशि कपूर और अमिताभ बच्चन भी इस फिल्म का हिस्सा थे।  फिल्म में यह भावुक गाना दो वर्जन में है- एक सामान्य और दूसरा सेड माहौल में रचा - बसा है।  गाने को कंपोज किया था लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल की जोड़ी ने और लिखा संतोष आनंद ने। 
 यह फि़ल्म सन 1974 की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली भारतीय फि़ल्म बन गई, और इसे ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर घोषित किया गया। फि़ल्म को तीन फि़ल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले, साथ ही ग्यारह अन्य पुरस्कारों के लिए नामांकित भी किया गया।  
फिल्म में छह गाने थेे और सभी 4 से 6 मिनट वाले थे।  "मेहंगाई मार गई" कव्वाली जो लता मंगेशकर, नरेंद्र चंचल , मुकेश, जानी बाबू कव्वाल की आवाज में थी  8 मिनट 51 सेकंड लंबी थी। सभी गानों की एक खास बात ये थी कि लंबे होने के बाद भी वे कभी बोझिल नहीं लगे।  फिल्म को लिखा मनोज कुमार ने और निर्देशित भी किया । फिल्म के निर्माता भी वहीं थे। फिल्म के लिए मनोज कुमार को सर्वेश्रे्ठ निर्देशक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। वहीं गायक महेन्द्र कपूर ने -और नहीं बस और नहीं...  गाने के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार जीता। इसी तरह गीतकार संतोष आनंद को भी यह सम्मान मिला। फिल्म की झोली में एक और फिल्म फेयर अवार्ड गया जो सर्वश्रेष्ठ फिल्म का था। 
अब इस गाने के बारे में .....
मैं ना भूलूंगा, मैं ना भूलूंगी....गीत मोहब्बत का एक हसीं वादा प्रस्तुत करता है। यह गाना मुझे इसलिए भी पसंद है क्योंकि इससे निश्छल प्रेम-बंधन की भीनी-भीनी खूशबू महसूस होती है। इस पूरे गाने में  प्रेमी और प्रेमिका अपने-अपने हिस्से के वादों में खोए हुए हैं। इसमें रस्मों और कसमों का बंधन दोनों को अपने मोहपाश में जैसे समेट लेता है। 
जैसे कि- मैं ना भूलूँगा, मैं ना भूलूँगी
इन रस्मों को इन क़समों को इन रिश्ते नातों को
मैं ना भूलूँगा, मैं ना भूलूँगी

चलो जग को भूलें, खयालों में झूलें
बहारों में डोलें, सितारों को छूलें
आ तेरी मैं माँग संवारूँ तू दुल्हन बन जाये
माँग से जो दुल्हन का रिश्ता मैं ना भूलूँगी
गाने के फिल्मांकन में उस समय के कैमरे की उम्दां तकनीक की झलक देखने को मिलती है। ऐसी ही तकनीक मनोज कुमार ने फिल्म शोर के गाने - एक प्यार का नगमा है... में इस्तेमाल की थी। यह गाना भी कालजयी है। 
मैं ना भुलूंगा.. गीत में एक पंक्ति आती है -  'इन रस्मों को, इन क़समों को'..तब कैमरा नायिका जीनत अमान की उंगली पर पहनी अंगूठी पर फोकस होता है जैसे नायिका कह रही हो- हां यही प्रेम- भाव है जो उसने पहन रखा है। गाने की अगली पंक्ति में जग को भूलने.... सितारों को छूने जैसी कल्पनाओं के बाद नायक का मांग भरने की बात कहना , उनके प्रेम को आजीवन निभाने का वादा है और नायिका कहती है कि मांग से दुल्हन का रिश्ता मैं ना भुलूंगी। 
इसी तरह से गीत की आगे की पंक्तियों में नायक- नायिका जीवन-सांसों के गठजोड़ के साथ कभी भी साथ न छोडऩे का वादा करते हैं। वहीं मंदिर से पूजा तक के पवित्र रिश्ते की बात करते नजर आते हैं। किसी ने सही कहा है कि यदि प्रिय साथी हमसफर हो तो जमाने की क्या चिंता करना। जहां कहीं बस जाएंगे और दिन कट जाएंगे। मोहब्बत की शिद्धत ही कुछ ऐसे होती है। 
गीतकार संतोष आनंद ने सच में इस पूरे गाने में ऐसा अनोखा भाव. प्रेम रस, वादा पिरोया है, जिसे निर्माता-निर्देशक , अभिनेता मनोज कुमार ने जीवंत किया है। ऐसे महान कलाकार को देश कभी नहीं भूलेगा। 
महान कलाकार , निर्देशक मनोज कुमार को शत शत नमन।
 

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