दर्दनाशक युक्त औषधीय पौधा भटकटैया
कटेली या भटकटैया एक कांटेदार पौधा होता है , जो जमीन पर फैलता है। इसके पत्ते हरे होते और उसके साथ में लंबे-लंबे कांटे होता हंै। इसके फूल बैंगनी और सफेद रंग के होते हैं। आयुर्वेद में इस कांटेदार पौधे के अनेक गुण बताए हैं। इसकी प्रकृति गर्म होती और शरीर में पसीना पैदा करती है। संस्कृत में कटेरी, कंटकारी, छोटी कटाई, भटकटैया आदि नामों से जाना जाता है।
कटेरी अक्सर जंगलों और झाडिय़ों में बहुतायत रूप से पाया जाता है। आमतौर पर कटेरी की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी और श्वेत कंटकारी। जिनका प्रयोग रोगों को दूर करने के लिए औषधि के तौर पर किया जाता है। कटेरी का प्रयोग पथरी, लिवर का बढऩा और माइग्रेन जैसे गंभीर रोगों में किया जाता है। इसके और भी कई लाभ हैं। माइग्रेन, और सिरदर्द में कंटकरी का प्रयोग काफी फायदेमंद है। इसके अलावा अस्थमा में , गठिया में दर्द और सूजन को कम करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके तने, फूल और फल, कड़वे होने के कारण, पैरों में होने वाली जलन से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
भटकटैया के कच्चे फल हरित रंग के, लेकिन पकने के बाद पीले रंग के हो जाते हैं। बीज छोटे और चिकने होते हैं। भटकटैया की जड़ औषधि के रूप में काम आती है। यह तीखी, पाचनशक्तिवद्र्धक और सूजननाशक होती है और पेट के रोगों को दूर करने में मदद करती है।
भटकटैया का पौधा ब्रेन ट्यूमर के उपचार में सहायक होता है। वैज्ञानिक के अनुसार पौधे का सार तत्व मस्तिष्क में ट्यूमर द्वारा होने वाले कुशिंग बीमारी के लक्षणों से राहत दिलाता है। मस्तिष्क में पिट्युटरी ग्रंथि में ट्यूमर की वजह से कुशिंग बीमारी होती है। कांटेदार पौधे भटकटैया के दुग्ध युक्त बीज में सिलिबिनिन नामक प्रमुख एक्टिव पदार्थ पाया जाता है, जिसका इसका उपयोग ट्यूमर के उपचार में किया जाता हैं। भटकटैया अस्थमा रोगियों के लिए फायदेमंद होता है।
भटकटैया की जड़ के साथ गुडूचू का काढ़ा बनाकर पीना खांसी में लाभकारी सिद्ध होता है। भटकटैया दर्दनाशक गुण से युक्त औषधि है। साथ ही यह अर्थराइटिस में होने वाले दर्द में भी लाभकारी होता है। इसके अलावा सिर में दर्द होने पर भटकटैया के फलों का रस माथे पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता है।
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