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  प्रकृति का चमत्कार है ये बेल....
अमर बेल एक पराश्रयी (दूसरों पर निर्भर) लता है, जो प्रकृति का चमत्कार ही कहा जा सकता है। बिना जड़ की यह बेल जिस वृक्ष पर फैलती है, अपना आहार उससे रस चूसने वाले सूत्र के माध्यम से प्राप्त कर लेती है। अमर बेल का रंग पीला और पत्ते बहुत ही बारीक तथा नहीं के बराबर होते हैं। अमर बेल पर सर्द ऋतु में कर्णफूल की तरह गुच्छों में सफेद फूल लगते हैं। बीज राई के समान हल्के पीले रंग के होते हैं। अमर बेल बसन्त ऋतु (जनवरी-फरवरी) और ग्रीष्म ऋतु (मई-जून) में बहुत बढ़ती है और शीतकाल में सूख जाती है। जिस पेड़ का यह सहारा लेती है, उसे सुखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखती है।
इसका स्वाद चरपरा और कषैला होता है। अमर बेल (आकाश बेल) डोरे के समान पेड़ों पर फैलती है। इनमें जड़ नहीं होती तथा रंग पीला तथा फूल सफेद होते हैं। अमर बेल गर्म एवं रूखी प्रकृति की है। इस लता के सभी भागों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
अमरबेल के फायदे-
- यह वीर्य को बढ़ाने वाली रसायन और बलकारक है।
-अमर बेल को पीसकर बनाए गए लेप को शरीर के खुजली वाले अंगों पर लगाने से आराम मिलता है।
-अमर बेल और मुनक्कों को समान मात्रा में लेकर पानी में उबालकर काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े को छानकर 3 चम्मच रोजाना सोते समय देने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
-बालों के झडऩे से उत्पन्न गंजेपन को दूर करने के लिए गंजे हुए स्थान पर अमर बेल को पानी में घिसकर तैयार किया लेप धैर्य के साथ नियमित रूप से दिन में दो बार चार या पांच हफ्ते लगाएं, इससे अवश्य लाभ मिलता है।
-अमर बेल के बीजों को पानी में पीसकर बनाए गए लेप को पेट पर लगाकर कपड़े से बांधने से गैस की तकलीफ, डकारें आना, अपान वायु (गैस) न निकलना, पेट दर्द एवं मरोड़ जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं। अमर बेल का रस दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में इस रोग में पूर्ण आराम मिलता है। 
- यकृत (जिगर) की कठोरता, उसका आकार बढ़ जाना जैसी तकलीफों में अमर बेल का काढ़ा तीन चम्मच की मात्रा में दिन में, 3 बार कुछ हफ्ते तक पीना चाहिए।
-अमर बेल को तिल के तेल में पीसकर सिर में लगाने से  गंजेपन में लाभ होता है तथा बालों की जड़ें मजबूत होती हैं।  लगभग 50 ग्राम अमरबेल को कूटकर 1 लीटर पानी में पकाकर बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते है, बालों का झडऩा, रूसी में भी इससे लाभ होता है।
-बेल के लगभग 10 मिलीलीटर  रस में शक्कर मिलाकर आंखों में लेप करने से नेत्राभिश्यंद (मोतियाबिंद), आंखों की सूजन में लाभ होता है।
-इसके 10-20 मिलीलीटर स्वरस को प्रात: पानी के साथ सेवन करने से मस्तिष्क के विकार दूर होते हैं। 
- अमरबेल को उबालकर पेट पर बांधने से डकारें आदि दूर हो जाती हैं।
-अमर बेल का रस 500 मिलीलीटर या चूर्ण 1 ग्राम को मिश्री 1 किलोग्राम में मिलाकर धीमी आंच पर गर्म करके शर्बत तैयार कर लें। इसे सुबह-शाम करीब 2 ग्राम की मात्रा में उतना ही पानी मिलाकर सेवन करने से शीघ्र ही वातगुल्म (वायु का गोला) और उदरशूल (पेट के दर्द) का नाश होता है।  
-अमरबेल के 10 मिलीलीटर रस में पांच ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर खूब घोंटकर रोज सुबह ही पिला दें। 3 दिन में ही खूनी और वादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है। दस्त साफ होता है तथा अन्य अंगों की सूजन भी उतर जाती है। 
- अमर बेल का बफारा देने से गठिया वात की पीड़ा और सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है। बफारा देने के पश्चात इसे पानी से स्नान कर लें तथा मोटे कपड़े से शरीर को खूब पोंछ लें, तथा घी का अधिक सेवन करें। 
- 1 ाजी अमर बेल को कुचलकर स्वच्छ महीन कपड़े में पोटली बांधकर, 500 मिलीलीटर गाय के दूध में डालकर या लटकाकर धीमी आंच पर पकाये। जब एक चौथाई दूध शेष बचे तो इसे ठंडाकर मिश्री मिलाकर सेवन करें। इससे कमजोरी दूर होती है। इस प्रयोग के समय ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
(नोट- कोई भी प्रयोग योग्य चिकित्सक की सलाह पर ही करें)

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