वात, बुखार जैसे कई रोगों से राहत दिलाए कृष्णबीज...
कृष्णबीज नाम से शायद इस फूल को पहचानना मुश्किल हो सकता है ,अंग्रेजी में इसको ब्लू मॉर्निंग ग्लोरी कहते हैं। इसके सुन्दर नीले फूल सुबह में ही खिलते है; इसलिए इसे मार्निंग ग्लोरी कहा जाता है। यह एक प्रकार की औषधि भी है।
कृष्णबीज की दो प्रजातियां होती है, एक कालादान और दूसरा कृष्णबीज।
कालादान -यह प्रकृति से कड़वा होता है। इसके अलावा यह पाचक, कृमि को निकालने में सहायक, विरेचक, सूजन कम करने वाला, रक्त को शुद्ध करने वाला, बुखार के लक्षणों को दूर करने वाला, वेदना कम करने वाला, तथा मूत्र संबंधी रोगों के इलाज में सहायक होता है। इसके बीज सूजन, कब्ज, खुजली, पेट फूलने की बीमारी, सांस की बीमारी, खांसी, जलोदर, सिरदर्द, नासास्राव, रक्त में वात की समस्या, बुखार, वातविकार, प्लीहा या स्प्लीन , श्वित्र या ल्यूकोडर्मा, खुजली, कृमि, खाने की इच्छा में कमी, संधिविकार तथा जोड़ो के दर्द को कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा पूरा पौधा कैंसररोधी गुणों वाला होता है।
करपत्री कृष्णबीज- इसका प्रयोग अर्श या पाइल्स, रोमकूप के सूजन तथा फोड़ों की चिकित्सा में किया जाता है। इसके अलावा जड़ का प्रयोग विरेचनार्थ किया जाता है। और पत्तों को पीसकर पुटली की तरह बनाकर लगाने से व्रण या अल्सर, दद्रु या खाज-खुजली आदि त्वचा संबंधी रोगों में लाभप्रद होता है। 5 मिली ताजे पञ्चाङ्ग के रस को पिलाने से अलर्क या रैबीज़ रोग के इलाज में फायदेमंद होता है। करपत्री कृष्णबीज के सूखे पत्ते को धूम्रपान की तरह सेवन श्वासनलिका संबंधी समस्या में आराम मिलता है। बीजों को पीसकर नारियल तेल में मिलाकर त्वचा में लगाने से त्वचा के विकारों का शमन होता है तथा व्रण में लगाने से शीघ्र ही व्रण या घाव ठीक हो जाता है।
कृष्णबीज के फायदे और उपयोग
कालादान या कृष्णबीज देखने में जितना मनमोहक होता है उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद है।
- कालादाना का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक या गले के दर्द या मुँह संबंधी रोगों से निजात पाने में आसानी होती है।
- उदावर्त रोग में मल-मूत्र का निष्कासन सही तरह से नहीं हो पाता है। इसके लिए कालादान का सेवन इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिलता है।
- अगर कब्ज की समस्या से परेशान रहते हैं तो इससे राहत पाने के लिए कालादान का सेवन फायदेमंद हो सकता है।
- लीवर और स्प्लीन के सूजन को कम करने के इलाज में फायदेमंद होता है कालादान।
- -50 ग्राम कालादाना को 400 मिली जल में पकायें और जब आधा शेष बचे तो छानकर रख लें। इसे जल में मिलायें इससे स्नान कराने से कण्डु या खुजली, दद्रु आदि चर्मरोगों दूर होता है तथा सिर के जुंए भी नष्ट होते हैं।
- अगर बार-बार बुखार आता है तो 1 ग्राम कालादाना चूर्ण में 1 ग्राम काली मरिच चूर्ण तथा 500 मिग्रा अतीस चूर्ण मिलाकर सुबह शाम गुनगुने जल के साथ सेवन करने से ज्वर कम होता है।
(नोट- कोई भी उपाय चिकित्सक की सलाह पर ही करें)
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