रक्त का संक्रमण सेप्सिस
सेप्सिस, रक्त में हुए संक्रमण को कहा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार सेप्सिस आम तौर पर बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है और यह जानलेवा हो सकता है। इसके शुरूआती लक्षण दिल की धड़कन बढ़ जाना, बुखार आना, तेजी से सांस चलना और रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं का अत्यधिक हो जाना आदि हैं। शुरूआत में इसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं और कोशिश की जाती है कि जिस अंग में भी संक्रमण हुआ है, वह संक्रमणमुक्त हो सके।
सेप्सिस और इससे होने वाली समस्याओं को रोकने का बेहतर तरीका शुरूआती अवस्था में इसका पता लगाना और संक्रमण को रोकना है। रक्त के संक्रमण से नवजात शिशु भी नहीं बच पाते। जीवन के शुरूआती 28 दिनों में यदि नवजात को रक्त का संक्रमण हो जाए तो उसे नियोनैटल सेप्सिस या सेप्सिस नियोनैटोरम कहा जाता है। यह संक्रमण फेफड़ों में हो तो न्यूमोनिया हो सकता है। शिशु में जन्म के पहले से होने वाले रक्त संक्रमण को इन्ट्रायूटेराइन सेप्सिस और जन्म के बाद होने वाले रक्त संक्रमण को एक्स्ट्रायूटेराइन सेप्सिस कहते हैं। रक्त संक्रमणका कारण हारपीज वायरस, रूबेला (जर्मन मीजल्स) बैक्टीरिया या कैंडिडा फफूंद हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान स्त्रीरोग विशेषज्ञ गर्भवती महिला और भ्रूण की लगातार जांच कर पता करती हैं कि कहीं सेप्सिस के लक्षण तो नहीं उभर रहे हैं। महिलाओं की एचआईवी, गोनोरिया, सिफिलिस, हारपीज, क्लैमाइडिया, हेपेटाइटिस बी, रूबेला आदि की जांच कर पता लगाया जाता है कि कहीं उन्हें कोई संक्रमण तो नहीं है।
यदि सेप्सिस अधिक फैल गया हो तो इलाज में बहुत मुश्किल होती है और मरीज की मौत भी हो सकती है। रक्त में किसी भी टॉक्सिक एजेंट की मौजूदगी प्रतिकूल प्रभाव डालती है और सेप्सिस का कारण बन सकती है। रक्त में टॉक्सिक एजेंट तब पहुंचते हैं जब उनका मूल स्रोत या बैक्टीरिया रक्त में पहुंच जाएं। बैक्टीरिया के अलावा अन्य कारणों से भी सेप्सिस हो सकता है। दांतों की अच्छी तरह सफाई और अच्छी तरह पका हुआ भोजन सेप्सिस से बचाव के लिए जरूरी है। बैक्टीरिया का संक्रमण दांतों से भी हो सकता है। इसके साथ ही सब्जियों के जरिए बैक्टीरिया आंतों में पहुंच सकते हैं। सब्जियों को अच्छी तरह पकाने से ये बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।
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