सरकार ने स्थानीय उत्पादों को वरीयता देने के लिए सार्वजनिक खरीद नियम में किये बदलाव
नई दिल्ली। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक खरीद में स्थानीय उत्पादों को अधिक से अधिक वरीयता देने के लिए सरकार ने अपने खरीद नियमों में अहम बदलाव किए हैं।
इससे उन कंपनियों को प्राथमिकता मिलेगी, जिनके माल और सेवाओं में ५० प्रतिशत से अधिक स्थानीय सामग्रियों का उपयोग होगा। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की कोशिश मेक इन इंडिया को आगे बढ़ाने की भी है। संशोधित सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को वरीयता) आदेश-२०१७ में श्रेणी-१, श्रेणी-२ और गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं का वर्गीकरण पेश किया गया है।
इसी के आधार पर उन्हें सरकार की ओर से माल एवं सेवाओं की खरीद में वरीयता दी जाएगी। श्रेणी-१ के स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं को सभी सरकारी खरीद में वरीयता दी जाएगी, क्योंकि उनके उत्पादों में स्थानीय सामग्री ५० प्रतिशत या उससे अधिक होगी। इसके बाद श्रेणी-२ के आपूर्तिकर्ता होंगे, जिनके उत्पादों में स्थानीय सामग्री का प्रतिशत २० से अधिक लेकिन ५० प्रतिशत से कम होगा। बीस प्रतिशत से कम स्थानीय सामग्री वाले सामान या सेवाएं पेश करने वाली कंपनियों को गैर-स्थानीय आपूर्तिकता की श्रेणी में रखा गया है। ये कंपनियां सरकारी खरीद की निविदाओं में भाग नहीं ले सकेंगी। हालांकि इन्हें सरकारी खरीद की वैश्विक निविदाओं में प्रतिभाग करने की अनुमति होगी। इससे पहले सरकार ने स्थानीय आपूर्तिकर्ता के तौर पर न्यूनतम ५० प्रतिशत स्थानीय सामग्री से माल एवं सेवा देने वाली कंपनियों को ही मान्यता दी थी। स्थानीय सामग्री से सरकार का आशय है कि किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन के लिए कितने प्रतिशत मूल्यवर्धन देश के भीतर किया गया है। इस मूल्यवर्धन में स्थानीय अप्रत्यक्ष कर का मूल्य शामिल नहीं होगा। इसी के साथ आदेश में कहा गया है कि २०० करोड़ रुपये से कम की खरीद में वैश्विक निविदा की अनुमति नहीं होगी।
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