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- भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष चलता है जिसे पितृपक्ष भी कहते हैं। यदि आप इस दौरान अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करने जा रहे हैं तो यह भी जान लें कि शास्त्रों के अनुसार किस स्थान पर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए और किस जगह पर श्राद्ध करना शुभ माना जाता है।वर्जित है इन 4 जगहों पर श्राद्ध कर्म करनादेव स्थान: किसी मंदिर के भीतर या परिसर में या किसी भी अन्य देवस्थान श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि यह देवभूमि होती है। पंडित या विद्वान की सलाह पर ही स्थान का चयन करें।अपवित्र भूमि: किसी भी प्रकार से अपवित्र हो रही भूमि पर भी श्राद्ध नहीं करते हैं। कांटेदार भूमि या बंजर भूमि पर भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। जहां लोग खुले में मल-मूत्र त्यागने जाते हैं वहां भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए भले ही उस भूमि को शुद्ध कर लिया गया हो।दूसरों की भूमि : किसी दूसरे की व्यक्तिगत भूमि पर भी श्राद्ध नहीं करना चहिए। यदि दूसरे के घर या भूमि पर श्राद्ध करना पड़े तो किराया या दक्षिणा भूस्वामी को दे देना चाहिए।शमशान : किसी ऐसे शमशान में श्राद्ध नहीं कर सकते हैं जिसे तीर्थ नहीं माना जाता। देश में कुछ ऐसे श्मशान हैं जिन्हें तीर्थ माना जाता है। जैसे उज्जैन का चक्रतीर्थ शमशान घाट को तीर्थ का दर्जा प्राप्त है। हालांकि ऐसी जगहों पर श्राद्ध करना मजबूरी हो तो ही करें। वैसे तीर्थ शमशान में श्राद्ध करने के पहले किसी विद्वान से सलाह जरूर लें।
- पितृ पक्ष 7 सितंबर, रविवार से है और इनका समापन 21 सितंबर, रविवार के दिन ही सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा. पितृ पक्ष के दिन पितरों का तर्पण, श्राद्ध और तर्पण करने का विधान बताया गया है.पंचांग के मुताबिक, पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर समाप्त होते हैं. मान्यताओं के अनुसार, इन दिनों के लिए पितर धरती पर आते हैं और अपने लोगों को आशीर्वाद देकर जाते हैं.ज्योतिषियों के मुताबिक, पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों का पिंडदान या श्राद्ध कर्म करने के लिए कई तीर्थस्थलों जैसे गया, वाराणसी, इलाहाबाद, हरिद्वार आदि जगहों पर जाते हैं जिससे पितरों की आत्मा को शांति प्रदान होती है. लेकिन कई बार तीर्थस्थलों पर जाकर श्राद्ध कर्म करना संभव नहीं हो पाता है, जिसके कारण लोग अपने घरों पर ही ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध कर्म या पिंडदान की प्रक्रिया पूरी कर लेते हैं. तो चलिए जानते हैं कि घर पर पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने की पूरी विधि क्या है.पितृ पक्ष में घर पर श्राद्ध करने की विधिघर पर श्राद्ध करने से लिए सबसे पहले जल्दी उठकर स्नान करें और सफेद रंग के साफ सुथरे वस्त्र पहनें. उसके बाद घर की किसी शांत या खुली जगह पर आसन बिछाएं. फिर, उस पर कपड़ा डालकर अपने पितर की तस्वीर रखें और उनकी तस्वीर के आगे तांबे का लोटा रखें. उस लोटे में जल, काले तिल और कुश डालें.उसके बाद, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके हाथ में जल, तिल और कुश लें और पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण करें. इसके बाद पितरों को जल अर्पित करते हुए 'ऊं पितृदेवाय नम: मंत्र का जाप करें.याद रखें कि पितरों का तर्पण कुतप वेला यानी दोपहर में ही करें क्योंकि इस वेला में तर्पण का विशेष महत्व होता है. कुतुप वेला दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक होती है.फिर, पितरों को सात्विक भोजन अर्पित करें जैसे खिचड़ी, खीर, चावल, मूंग आदि और यह सात्विक भोजन केले के पत्ते पर ही रखें. उसके बाद संभव हो तो घर पर बुलाए ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन या दान दें.
- भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृपक्ष प्रारंभ होते हैं। इनका समापन आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर होता है। इस बार 7 सितंबर रविवार को पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है, जो 21 सितंबर रविवार तक रहेगा। यह अवधि मुख्य रूप से पूर्वजों की आत्मशांति के लिए श्राद्ध कर्म के लिए जानी जाती है। पितृपक्ष का सनातन धर्म में बहुत ही विशेष महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार, इन दिनों पितृ अपने परिवार को आशीर्वाद देने का लिए धरती पर आते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण आदि कार्य किए जाते हैं। कहा जाता है कि विधि विधान से पितरों के नाम से तर्पण आदि करने से वंश की वृद्धि होती है और पितरों के आशीर्वाद से व्यक्ति को सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। वरना पितृ नाराज हो जाते हैं। अगर आप इन नियमों की अनदेखी करते हैं तो पितर नाराज हो जाते हैं।ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पक्ष में विधि-विधान से पितर संबंधित कार्य करा जाए तो पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है।श्राद्ध पक्ष के दौरान श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए। इस पाठ का फल आत्मा को समर्पित होता है। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।पंचमी तिथिपंचमी जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।नवमी तिथिनवमी सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।एकादशी और द्वादशीएकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।नवमी तिथिचतुर्दशी इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।सर्वपितृमोक्ष अमावस्याकिसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए।प्रत्येक व्यक्ति के लिए श्राद्धकर्म अनिवार्य है, वह करना ही चाहिए लेकिन उससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है जीवित अवस्था में अपने माता-पिता की सेवा करना। जिसने जीवित अवस्था में ही अपने माता-पिता को अपनी सेवा से संतुष्ट कर दिया हो उसे अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता ही है।
- पंचांग के मुताबिक, 7 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत होने वाली है और साल का आखिरी चंद्रग्रहण भी पड़ेगा. ज्योतिषियों के मुताबिक, दोनों घटनाओं का एक ही दिन में होना बहुत ही खतरनाक संयोग माना जा रहा है. दरअसल, पितृ पक्ष वह समय है जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं, उनके नाम का तर्पण और पूजा करते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे. ये दिन हमारे और पितरों के बीच जुड़ाव का एक पवित्र समय होता है. वहीं, चंद्र ग्रहण का दिन भी बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है. इस दौरान की गई प्रार्थना और साधना का असर कई गुना ज्यादा होता है. यानी छोटी-सी साधना या दान भी बड़ा फल दे सकती है.अब सोचिए, जब पितृ पक्ष की शुरुआत और चंद्र ग्रहण एक साथ हों, तो इस समय की ताकत कितनी बढ़ जाएगी. यही वजह है कि इसे बेहद दुर्लभ और खास योग कहा जा रहा है. इस दिन अगर आप सच्चे मन से अपने पितरों को याद करेंगे, उनका श्राद्ध करेंगे, तो उसका असर कई गुना होगा.यह दिन क्यों खास है?पितृ पक्ष और चंद्रग्रहण का संयोग एक साथ बहुत ही कम देखने को मिलता है. साल 2025 में ये घटना ओर भी खास इसलिए है क्योंकि ये घटना पितृ पक्ष के पहले ही दिन हो रही है.आध्यात्मिक नजरिए से माना जा रहा है कि इस समय पितरों की पूजा, दान या तर्पण करते हैं, तो उसका फल सामान्य दिनों से कहीं ज्यादा फल प्राप्त होगा.पितृ पक्ष के दिन जरूर करें ये कार्यइस खास दिन पितरों को याद करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए बहुत सारे अनुष्ठान किए जाते हैं. जिनमें से कुछ विशेष हैं-1. इस दिन एक लोटे में जल लें और उसमें काले तिल डालें. फिर, पितरों का नाम लेकर और मंत्रों का जाप करते हुए उनका तर्पण करें. अगर संभव हो तो गंगा, यमुना या नर्मदा जैसी पवित्र नदी के किनारे बैठकर पितरों का तर्पण करें.2. इसके अलावा, ग्रहण के समय घर की दक्षिण दिशा में एक दिया जलाएं. उसके सामने थोड़ी देर आंखें बंद करके शांति से बैठें और अपने पूर्वजों को याद करें.3. ग्रहण के दौरान अगर आप 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' जैसे मंत्रों का जाप जरूर करें.4. इसके अलावा, इस दिन पितरों के नाम का नाम दान जरूर करें. साथ ही इस दिन गाय, कुत्ते, पक्षियों को खाना खिलाना और पानी पिलाना बहुत ही पुण्यकारी माना जाता है.ग्रहण लगने के समय करें ये काम7 सितंबर को जब चंद्र ग्रहण की शुरुआत हो तो उस समय भूल से भी खाना खाने से बचें और सोने से बचें. बल्कि, इस दिन भगवान ध्यान करें या भगवद् गीता, विष्णु सहस्रनाम या रामचरितमानस जैसे पवित्र ग्रंथ पढ़ें. मान्यतानुसार, ग्रहण का समय भगवान से प्रार्थना के लिए बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है.चंद्र ग्रहण की अवधि7 सितंबर को लगने जा रहा चंद्र ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा और यह ब्लड मून भी रहेगा. इस चंद्र ग्रहण की शुरुआत रात 9 बजकर 57 मिनट से होगी और इसका समापन अर्धरात्रि 1 बजकर 26 मिनट पर होगा. इस ग्रहण का पीक टाइम रात 11 बजकर 42 मिनट रहेगा.
- वास्तुशास्त्र का जीवन में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। वास्तुशास्त्र सही नहीं होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मान्यताओं के अनुसार जब वास्तु दोष लगता है तो व्यक्ति का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है। वास्तु के कुछ खास उपाय होते हैं, जिनको करने से वास्तु दोष खत्म हो जाता है और व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है। आइए जानते हैं,वास्तु के खास उपाय-काले रंग का प्रयोग न करेंवास्तुशास्त्र के अनुसार घर में काले, मटमैले, गहरे कत्थई रंगों का प्रयोग बिल्कुल न करें। इन रंगों का प्रयोग करने से वास्तु दोष लग सकता है। अगरये बर्तन हटा देंवास्तुशास्त्र के अनुसार घर में अगर कोई बर्तन लीक करता है तो उसे हटा दें। ऐसी व्यवस्था करें कि पानी बिल्कुल न बहे। पानी की बर्बादी करने से भी वास्तु दोष लग जाता है। इसकी साथ ही छत पर रखी हुई पानी की टंकी में भी यदि ओवर फ्लो के कारण पानी बहता है तो यह बहुत बड़ा दोष है।तुलसी का पत्ता मुंह में रखेंवास्तुशास्त्र के अनुसार घर से बाहर निकलते समय एक तुलसी का पत्ता मुंह में रखें। तुलसी के पत्ते को चबाना नहीं चाहिए।फूलदान या पॅाट को खाली न रखेंवास्तुशास्त्र के अनुसार घर में फूलदान या पॉट आदि रखते हैं तो उन्हें खाली न रखें। उसमें मेवा, चावल, गेहूं आदि कुछ डालकर रखें।दौड़ते घोड़ों की तस्वीर घर में लगाएंवास्तुशास्त्र के अनुसार घर या ऑफिस में दौड़ते हुए घोड़ों की तस्वीर या मूर्ति लगाएं। यह शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है और आलस्य दूर करती है।
- देशभर में भक्तों ने 27 अगस्त को बड़े धूमधाम से अपने घरों में बप्पा का स्वागत किया और अब उनकी विदाई का समय करीब आ रहा है. 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव के दौरान लोग गणेश जी की स्थापना कर विधिवत पूजा करते हैं.10 दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान पंडालों और घरों में बप्पा की विधिवत आराधना करते हैं, उनके प्रिय भोग लगाते हैं और फिर अंनत चतुर्दशी के दिन विधि-विधान से उनका विसर्जन करते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गणेश उत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी पर ही क्यों होता है?इस साल अनंत चतुर्दशी 6 सितंबर 2025 को मनाई जाएगी और इसी दिन गणेश उत्सव का समापन हो जाएगा. गणेश उत्सव में भक्त 3, 5, 7 और 10 दिनों के लिए बप्पा को घर लाते हैं. 10वें दिन का गणपति विसर्जन अनंत चतुर्दशी पर ही होता है.अनंत चतुर्दशी पर ही गणेश उत्सव क्यों समाप्त होता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा मिलती है. अनंत चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, गणेश जी ने लगातार 10 दिन तक महाभारत लिखा, जिससे उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया था.गणेश जी के शरीर के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए महर्षि वेदव्यास ने उन्हें जल में डुबकी लगाने को कहा. और जिस दिन यह हुआ वह अनंत चतुर्दशी का दिन था. इसी वजह से अनंत चतुर्दशी के इस शुभ अवसर पर गणेश जी को शीतल करने की परंपरा के रूप में विसर्जन किया जाता है.तब से लेकर आज तक गणेश जी की 10 दिनों के लिए स्थापना की जाती है और फिर 11वें यानी अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा को विसर्जित किया जाता है. इसी दिन गणेश उत्सव समाप्त हो जाता है. इसके बाद पितृ पक्ष की शुरुआत हो जाती है.
- घर पर कोई शुभ कार्य हो या तीज-त्योहार, हिंदू परिवारों में घर के प्रवेश द्वार पर आम के पत्तों का तोरण बांधकर लगाने की परंपरा सदियों पुरानी है। आम के पत्तों का तोरण सिर्फ उत्सव और शुभता का प्रतीक नहीं हैं बल्कि इनमें गहरा प्रतीकात्मक अर्थ भी छिपा हुआ है। आमतौर पर लोग मानते हैं कि घर के बाहर मुख्य द्वार पर आम का तोरण लगाने से घर से नकारात्मकता दूर रहती है। लेकिन क्या आप जानते हैं, आम के पत्ते नकारात्मक ऊर्जा को सोखने के साथ सेहत जुड़े कई फायदे भी देते हैं। आइए जानते हैं कैसे।आम के पत्तों का तोरण घर के बाहर लगाने से मिलते हैं ये 5 फायदेवायु और पर्यावरण को शुद्ध रखते हैंआम के पत्तों से बने तोरण का सिर्फ धार्मिक परंपरा से ही जुड़ाव नहीं बल्कि वैज्ञानिक आधार भी है। आम के हरे पत्ते, तने सहित, तोड़ने के बाद भी कुछ समय तक प्रकाश संश्लेषण करते रहते हैं। यह पत्ते ऑक्सीजन छोड़ते हैं और हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। ये पत्ते फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण को शुद्ध करते हैं। दरवाजे पर तोरण के रूप में लटकाए गए पत्ते हवा में ताजगी भरकर घर के प्रवेश द्वार पर स्वच्छ वातावरण बनाए रखते हैं।एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुणआम के पत्तों में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुण पाए जाते हैं। इनमें मौजूद प्राकृतिक रासायनिक यौगिक, जैसे कि मैंगीफेरिन हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करने में मदद करते हैं। आम के पत्तों को तोरण के रूप में दरवाजे पर जब लटकाया जाता है, तो ये हवा में मौजूद रोगाणुओं को कम करने में मदद करते हैं, जिससे घर में प्रवेश करने वाली हवा स्वच्छ और सुरक्षित बनी रहती है।सकारात्मक ऊर्जा और तनाव से राहतआम के पत्तों का हरा रंग मानसिक शांति और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है। वैज्ञानिक रूप से, हरा रंग आंखों को सुकून देकर तनाव कम करने में मदद करता है।कीड़ों को दूर भगाएंआम के पत्तों में जीवाणुरोधी, रोगाणुरोधी और कीट-विकर्षक गुण होते हैं। लोग आमतौर पर मक्खियों, मच्छरों और अन्य कीड़ों को घर में घुसने से रोकने के लिए इन्हें दरवाजे पर लटकाते हैं। बता दें, आम के पत्तों में एल्कलॉइड, सैपोनिन और फ्लेवोनोइड जैसे यौगिक होते हैं, जो विभिन्न हानिकारक जीवाणुओं के विकास को रोकते हैं।पर्यावरण के लिए सुरक्षितआम के पत्ते प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल होने की वजह से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। प्लास्टिक या कृत्रिम सजावटी सामग्री की तुलना में आम के पत्तों का उपयोग पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल है।
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--पंडित प्रकाश उपाध्याय
सितंबर 2025 में साल का दूसरा और आखिरी चंद्र ग्रहण लगेगा, जो भारत में भी दिखाई देगा। यह एक पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा । खगोलविद इसे ‘ब्लड मून’ (रक्त चंद्रमा) कहते हैं, क्योंकि इस दौरान चंद्रमा का रंग लाल दिखाई देता है। हालांकि, इस चंद्र ग्रहण की तारीख को लेकर लोग भ्रमित हैं, क्योंकि कुछ लोग इसे 7 सितंबर और कुछ 8 सितंबर को बता रहे हैं। आइए जानते हैं सही तारीख और समय के बारे में।चंद्र ग्रहण 2025: समय और तारीखतारीख: 7 सितंबर 2025समय: यह चंद्र ग्रहण रात 9:58 बजे से शुरू होगा और सुबह 1:26 बजे तक रहेगा। इसका कुल समय 3 घंटे 28 मिनट का होगा।सूतक काल का समय:चंद्र ग्रहण का सूतक काल 9 घंटे पहले शुरू होता है, यानी यह 7 सितंबर को दोपहर 12:57 बजे से प्रारंभ होगा।कब और कहां देखा जाएगा चंद्र ग्रहण:यह चंद्र ग्रहण भारत के अलावा एशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका, फिजी और अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों में भी दिखाई देगा।चंद्र ग्रहण और सूतक काल में क्या न करें:धार्मिक कार्य: चंद्र ग्रहण और सूतक काल के दौरान मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। पूजा और धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते।सावधानी: गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को घर से बाहर जाने से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को नुकीले औजारों का प्रयोग, सब्जी काटना, खाना पकाना, और तवे- कड़ाही पर छोंकने से बचना चाहिए।पितृपक्ष और चंद्र ग्रहण:यह चंद्र ग्रहण भाद्रपद मास की पूर्णिमा को लगेगा, जो पितृपक्ष की शुरुआत का संकेत है। 7 सितंबर को ही पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध किया जाएगा। ज्योतिषी सलाह देते हैं कि पितृपक्ष से जुड़े रिवाज और श्राद्ध कर्म सूतक काल शुरू होने से पहले ही कर लिए जाएं।चंद्र ग्रहण का वैज्ञानिक कारण:जब पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, तो सूर्य की रोशनी चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती, और चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ जाती है, जिससे चंद्रमा लाल या काले रंग में दिखाई देता है। इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है। - हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का खूब महत्व है। पूजा में कई चीजें लगती हैं जैसे- कुमकुम, अक्षत, गंगाजल और फूल। वहीं कपूर और लौंग भी जरूरी है। धार्मिक मान्यता है कि घर में नियमित रूप से कपूर जलाने से नेगेटिव एनर्जी धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। इसी के साथ घर में सुख-शांति बनी रहती है। सनातन धर्म में कपूर और लौंग को एक साथ जलाने की परंपरा काफी पुरानी है। कई लोग घरों में इसे इसलिए जलाते हैं ताकि कोई बुरी नजर हो तो वो टल जाए लेकिन क्या आपको इसे जलाने का सही समय पता है? नीचे जानें लौंग और कपूर को जलाने के सही समय के बारे में…कब जलाएं लौंग और कपूर?अगर आप अपने मन से कभी भी लौंग और कपूर जलाने लगते हैं तो आपको इसका सही समय पता होना चाहिए। मान्यता है कि शाम के समय घर में पूजा के बाद लौंग और कपूर जलाकर उसका धुंआ पूरे घर में दिखा देना चाहिए। इससे घर और घर के लोगों को लगने वाली हर बुरी नजर टल जाती है। वहीं पैसों की कभी भी कोई कमी नहीं होती है। कपूर और लौंग को जलाने के बाद दिए को कुछ देर के लिए घर के एक कोने में रख देना चाहिए।लौंग से कर सकते हैं आरतीआरती के दिए में लौंग डालना भी काफी शुभ होता है। इसके खूब लाभ मिलते हैं। अगर ये आरती सुबह की जाती है तो घर का हर एक कोना शुद्ध हो जाता है। हर ओर सिर्फ पॉजिटिव एनर्जी का ही एहसास होता है। यही आरती घर में अगर शाम को की जाए तो इससे सभी लोग हर तरह के रोग से दूर रहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से आरती के लिए लौंग की 6 से 8 कलियां ही काफी हैं। कई लोगों ने गणेश चतुर्थी के अवसर पर घर में बप्पा की मूर्ति की स्थापना की है। ऐसे में उनके भोग में पान के पत्ते के साथ लौंग, ,सुपारी और इलायची का रखना काफी शुभ माना जाता है। इस उपाय को विसर्जन के पहले कभी भी कर लेना बेहतर होगा। इस उपाय की वजह सारे बिगड़े हुए काम बनने लगेंगे।
- भगवान गणेश की पूजा और उत्सव का दिन गणेश उत्सव पूरे धूमधाम से भारतभर में मनाया जाता है। इसके साथ ही लोग घरों में, मंदिरों में पूरे दस दिन के लिए भगवान की प्रतिमा की स्थापना करते हैं और उनकी विशेष पूजा इन दस दिनों में की जाती है। वैसे तो भारत में गणपति देव की महिमा वाले कई सारे मंदिर बने हैं और इन मंदिरों पर भक्तों की गहरी श्रद्धा और आस्था है। लेकिन केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भगवान गणेश को विशेष देवता के रूप में पूजा जाता है और इन देशों में सुंदर मंदिर की स्थापना की गई है। थाइलैंड से लेकर सेशेल जैसे देशों में भगवान के ये सुंदर मंदिर बनाए गए हैं जहां गणेश भक्त इनकी पूजा करते हैं।गणेश देवस्थान, थाईलैंडथाईलैंड में भगवान गणपति की पूजा के लिए विशाल मूर्तियों से सजे मंदिर की स्थापना की गई है। जिसे गणेश देवस्थान के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर बैंकॉक में बना है और यहां भक्त दर्शन के लिए जरूर जाते हैं।श्री महामरियम्मन टेंपलमलेशिया के क्वालालांपुर में साउथ इंडियन आर्किटेक्ट से प्रभावित होकर भव्य गणेश टेंपल स्थापित किया गया है। जिसे महामरियम्मन टेंपल के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में मलेशिया में रहने वाले इंडियन दर्शन के लिए जाते हैंसूर्यबिनायक टेंपलनेपाल के भक्तपुर में सूर्यबिनायक नाम से भगवान गणेश का मंदिर बना है। जो भक्तों के साथ ही टूरिस्ट लोगों का भी अट्रैक्शन है। नेपाल में लोग भगवान गणेश को सिद्धदाता और संकटमोचन के रूप में पूजते हैं और उन्हें मुश्किल परिस्थितियों से बचने वाले देवता के रूप में जाना जाता है।अरुलमिहू नवसक्ति विनायगर टेंपलसेशेल्स जैसे छोटे से सुंदर देश में भी भगवान गणेश मंदिर है। वैसे इस देश में ये एकमात्र हिंदू मंदिर है। जो साउथ इंडिया के मंदिरों के आर्किटेक्ट से इंस्पायर होकर बनाया गया है। ये मंदिर सेशेल्स की राजधानी विक्टोरिया में बना हुआ है।सबसे बड़े गणेश टेंपल में से एक है नीदरलैंड का ये मंदिरनीदरलैंड के डेनहेल्डर शहर में श्री वरथराज सेल्वाविनयगर मंदिर भगवान गणेश जी का मंदिर है। ये नीदरलैंड के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और इस मंदिर की गिनती दुनिया के कुछ सबसे बड़े मंदिरों में की जाती है।
- गणेश उत्सव की शुरुआत हो चुकी है। अब पूरे 11 दिनों तक यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इस समय पूरे देश में हर जगह 'गणपति बप्पा मोरया' का ही नाम गूंज रहा है। लोग अपने-अपने घरों और पंडालों में गणेश जी की प्रतिमाएं स्थापित कर पूरे भक्ति-भाव से उनकी पूजा कर रहे हैं। ढोल-ताशों की आवाज से माहौल गूंज रहा है और श्रद्धालु खुशी-खुशी गणपति बप्पा का स्वागत कर रहे हैं। इस पावन अवसर पर हर कोई गणेश जी से अपने जीवन की बाधाओं को दूर करने और सुख-समृद्धि प्रदान करने की प्रार्थना कर रहा है। गणेश जी का हर रूप, हर प्रतीक हमें जीवन के गहरे संदेश सिखाता है। आइए इस गणेश चतुर्थी पर जानते हैं गणपति बप्पा से जुड़े 5 खास तथ्य, जिनका महत्व बहुत ही गहरा है।शिव और पार्वती के पुत्र हैं विघ्नहर्ता गणेशभगवान गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। उन्हें धरती पर प्रथम देवता के रूप में पूजा जाता है। किसी भी नए कार्य की शुरुआत करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। किसी भी पूजा या अनुष्ठान में भी सबसे पहले गणेश जी का ही स्मरण किया जाताहै। गणेश जी को 'विघ्नहर्ता' और 'सिद्धि विनायक' के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले यदि गणेश जी की पूजा की जाती है तो इससे आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्य सफल होता है।गणेश जी के हाथी वाले सिर में छिपा है खास संदेशगणेश जी का हाथी जैसे सिर के पीछे एक गहरा संदेश छिपा हुआ है। उनका बड़ा सिर और कान हमें जीवन की एक बड़ी सीख देते हैं। इसका अर्थ है कि इंसान को किसी भी चीज को बुद्धिमानी और धैर्य से सुनना चाहिए। वहीं उनके छोटे नेत्र यह बता रहे हैं कि जीवन में ध्यान और एकाग्रता कितनी जरूरी है। इस अनोखे रूप के माध्यम से गणेश जी हमें सिखाते हैं कि धैर्य और ज्ञान से ही जीवन की कठिनाइयों को आसान किया जा सकता है।बुद्धि और ज्ञान के देवता है श्री गणेश जीगणेश जी केवल विघ्नहर्ता ही नहीं बल्कि ज्ञान के देवता भी माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने महाभारत जैसे महान ग्रंथ का लेखन किया था। जब महर्षि वेदव्यास महाभारत की रचना सुना रहे थे, तब गणेश जी उसे लिख रहे थे। इस घटना से यह साफ है कि गणेश जी ना केवल शक्ति बल्कि ज्ञान और बुद्धि के भी प्रतीक हैं। इसलिए जो श्रद्धालु सच्चे मन से गणेश जी की पूजा और अर्चना करते हैं, उनका ज्ञान, बुद्धि और विवेक बढ़ता है।गणेश जी के पेट का महत्वआपने देखा होगा कि गणेश जी का पेट काफी बड़ा है। दरअसल गणेश जी का बड़ा पेट भी एक खास संदेश देता है। ये हमें बताता है कि जीवन में आने वाले अच्छे और बुरे दोनों अनुभवों को हमें धैर्य और समझ के साथ स्वीकार करना चाहिए। गणेश जी बड़ा पेट संतुलन और सहनशीलता का प्रतीक है। यह हमें ये सिखाता है कि कठिन समय में भी हमें संयम बनाए रखना चाहिए।दांत से मिलती है ये सीखगणेश जी की प्रतिमा को अक्सर एक टूटे हुए दांत के साथ दिखाया जाता है। दरअसल इनका टूटा हुआ दांत त्याग और धैर्य का प्रतीक है। इसके पीछे की कथा के अनुसार जब गणेश जी महाभारत लिख रहे थे, उस दौरान उनकी कलम टूट गई थी तब उन्होंने अपने एक दांत को ही कलम बना लिया और बिना रुके लिखना जारी रखा। इस बात से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय से राह में आने वाली हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।
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भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि जगत की देवी राधा रानी को समर्पित है। इस शुभ अवसर पर श्रीजी की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर राधा रानी अवतरित हुई थीं। इसके लिए हर साल भाद्रपद महीने में राधा अष्टमी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राधा रानी के महज नाम जप से व्यक्ति विशेष का उद्धार हो जाता है। वह पुण्यकाल भागी बन जाता है। इसके लिए साधक श्रद्धा भाव से राधा अष्टमी के दिन श्रीजी और कृष्ण कन्हैया की पूजा करते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 30 अगस्त को देर रात 10 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगी। वहीं 31 अगस्त को देर रात 12 बजकर 57 मिनट पर अष्टमी तिथि का समापन होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए राधा अष्टमी का त्योहार 31 अगस्त को मनाया जाएगा।
राधा अष्टमी पर कई शुभ संयोग- राधा अष्टमी पर सिंह राशि में बुध और सूर्य ग्रह के होने से बुधादित्य योग बनेगा। साथ ही सिंह राशि में केतु, सूर्य और बुध के होने से त्रिग्रही योग का भी निर्माण भी हो रहा है।इस विधि से करें पूजा- प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें। कलश पर तांबे का पात्र रखें। अब इस पात्र पर वस्त्राभूषण से सुसज्जित राधाजी की सोने (संभव हो तो) की मूर्ति स्थापित करें।तत्पश्चात राधाजी का षोडशोपचार से पूजन करें। ध्यान रहे कि पूजा का समय ठीक मध्याह्न का होना चाहिए। पूजन पश्चात पूरा उपवास करें अथवा एक समय भोजन करें। दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं व उन्हें दक्षिणा दें।राधा अष्टमी का विशेष महत्व होता है-जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं संतान सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जो लोग राधा रानी जी को प्रसन्न कर लेते हैं। उनसे भगवान श्री कृष्णा अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि व्रत करने से घर में मां लक्ष्मी आती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। राधा रानी के बिना भगवान श्री कृष्ण की पूजा भी अधूरी मानी जाती है। इसलिए राधा अष्टमी का त्यौहार भी कृष्ण जन्माष्टमी की तरह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। - हमारे घरों में अक्सर आपने बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा कि थाली में कभी तीन रोटियां नहीं परोसनी चाहिए. मां अगर अपने बच्चों को थाली में तीन (3 Rotis In Thali) रोटियां लेते देख ले तो तुरंत हाथ झटक देती हैं और कहती हैं कि तीन नहीं लेते दो या चार ले लो. सिर्फ रोटियां ही नहीं बल्कि परांठे (Parathe Banane Ki Recipe), पूड़ी या चीला जैसी कोई भी चीज हो. उसे तीन की संख्या में एक साथ परोसने से मना किया जाता है. ये देखने वाले के मन में ये सवाल जरूर उठता होगा कि ऐसा क्यों. क्या ये कोई पुरानी रवायत है या फिर इसके पीछे कोई लॉजिक है.ज्योतिष और धार्मिक मान्यता क्या कहती है?अंक ज्योतिष के हिसाब से तीन का अंक धार्मिक कार्यों के लिहाज से अच्छा नहीं माना जाता. माना जाता है कि तीन का संबंध कुछ नकारात्मक ऊर्जा से होता है, इसलिए पूजा-पाठ या रोजमर्रा की जिंदगी में इससे दूरी बनाना ही ठीक होता है.एक और बड़ी मान्यता ये है कि जब किसी मृतक के नाम से भोजन की थाली लगाई जाती है. तो उसमें तीन रोटियां रखी जाती हैं. इसी वजह से लोग मानते हैं कि किसी जिंदा इंसान की थाली में तीन रोटियां परोसना अशुभ होता है. शायद इसीलिए बहुत से परिवारों में भले ही आप दो या चार रोटियां खा लें. लेकिन तीन कभी नहीं दी जातीं.सेहत से जुड़ा पहलूकुछ लोगों का ये भी मानना है कि तीन रोटियां एक साथ खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होता. हेल्थ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि बैलेंस्ड डाइट के हिसाब से एक इंसान के लिए दो रोटियां, एक कटोरी दाल, थोड़े चावल और सब्जी काफी होती है. इससे न सिर्फ पेट भरता है बल्कि शरीर का वजन भी कंट्रोल में रहता है. ऐसे में तीन रोटियों को छोड़ना एक हेल्दी आदत भी मानी जा सकती है.और भी हैं खाने से जुड़ी मान्यताएंभारतीय संस्कृति में खाने-पीने को लेकर कई मान्यताएं हैं. जैसे रात को दही नहीं खाना चाहिए, खाना बनाते वक्त चुटकी से नमक डालना चाहिए या खाने के बाद मीठा जरूर खाना चाहिए. ये सारी बातें हमने अपने बड़ों से सीखी हैं और अक्सर बिना सवाल किए मानते आ रहे हैं.क्या इन बातों में सच्चाई है?अब ये सोचने वाली बात है कि क्या इन सभी मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार है? सच तो ये है कि थाली में तीन रोटियां नहीं परोसना जैसी बातों का कोई ठोस वैज्ञानिक कारण नहीं है. इन्हें फॉलो सिर्फ इसलिए किया जाता है क्योंकि ये एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन में चली आ रही हैं. और, निभाई भी जा रही हैं. इसलिए भी लोग एक साथ तीन रोटी सर्व करने से या खाने से बचते हैं.
- भाद्रपदके शुक्लपक्ष की चतुर्थी को व्रत करने वाला शिवलोक को प्राप्त करता है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का पूजन करके मनुष्य सभी मनोकामनाओं को प्राप्त कर लेता है। चतुर्थी तिथि तीन प्रकार की होती है-शिवा, शान्ता और सुखा। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का नाम शिवा है। इस साल गणेश चतुर्थी 27 अगस्त को मनाई जा रही है। इस दिन जो स्नान, दान, उपवास, जप आदि सत्कर्म किया जाता है, वह गणपति के प्रसाद से सौ गुना हो जाता है। इस दिन पूजा करते समय आगच्छोल्काय कहकर गणेशजी का आवाहन करें । इस प्रकार गन्धादि उपचारों एवं लड्डुओं से गणपति का पूजन करें। तदनन्तर निम्नलिखित गणेश गायत्री मंत्र का जप करें।ॐ महोलकाय विद्दाहे वक्रतुण्डायधीमहि।तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥गणेश गायत्री मंत्र का जप करें। इस मंत्र का अर्थ है कि हम उस विशाल शरीर वाले भगवान गणेश का ध्यान करते हैं, जिनकी सूंड वक्र या मुड़ी हुई है, और वह दंतधारी हमें बुद्धि से प्रकाशित करते हैं। कहते हैं कि गणेश जी के इस मंत्र से पूजा करने से भगवान गणेश की सभी पर कृुा रहती है।गणेश चतुर्थी पर किस चीज का दान करना चाहिएपुराणों में लिखा है किइस दिन जो दान, उपवास, जप आदि सत्कर्म किया जाता है, वह गणपति के कई सौ गुना हो जाता है। इस चतुर्थी को गुड़, लवण ओर घी का दान करना चाहिए। यह शुभकर माना गया है और गुड़ के मालपूआ से ब्राह्यणों को भोजन कराना चाहिए । पति की कामना करने वाली कन्या विशेष रूप से इस चतुर्थी का व्रत करें और गणेशजी की पूजा करें।गणेश चतुर्थी मुहूर्तब्रह्म मुहूर्त सुबह 04 बजकर 28 मिनट से 05 बजकर 12 मिनट तकविजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 31 मिनट से 03 बजकर 22 मिनट तकगोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 48 मिनट से 07 बजकर 10 मिनट तकइस दिन निशिता मुहूर्त रात 12 बजे 12 बजकर 45 मिनट तक
- गणेश जी की मूर्ति को गलत दिशा में रखना पूजा के फल को कम करता है। वास्तु के अनुसार, मूर्ति को उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में रखें। दक्षिण दिशा में मूर्ति रखने से बचें, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है। सही दिशा से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।टूटी या खंडित मूर्ति की पूजा ना करेंगणेश चतुर्थी पर टूटी या खंडित मूर्ति की पूजा करना अशुभ माना जाता है। ऐसी मूर्ति नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है। हमेशा सही आकार और सुंदर मूर्ति चुनें। पूजा से पहले मूर्ति की जांच करें और सुनिश्चित करें कि वह पूरी तरह ठीक हो।चंद्र दर्शन से बचेंगणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना वर्जित है, क्योंकि इससे मिथ्या दोष लगता है। पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा ने गणेश जी का मजाक उड़ाया था, जिसके कारण यह नियम बना। यदि गलती से चंद्रमा दिख जाए, तो 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जप करें।गलत प्रसाद का भोगगणेश जी को तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली या लहसुन-प्याज युक्त भोजन का भोग ना लगाएं। गणपति को मोदक, लड्डू और फल प्रिय हैं। तुलसी पत्र का उपयोग भी न करें, क्योंकि यह गणेश जी को नहीं चढ़ाया जाता। सात्विक भोग से पूजा का फल बढ़ता है।साफ-सफाई नजरअंदाज ना करेंगणेश चतुर्थी पर पूजा स्थल की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। गंदा या अव्यवस्थित पूजा स्थान नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। मूर्ति स्थापना से पहले स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। फूल, दीपक और धूपबत्ती सही ढंग से सजाएं ताकि पूजा का प्रभाव बढ़े।शयनकक्ष में मूर्ति ना रखेंगणेश जी की मूर्ति को शयनकक्ष में रखना वास्तु दोष उत्पन्न करता है। इससे मानसिक तनाव और अशांति हो सकती है। मूर्ति को पूजा घर, ड्रॉइंग रूम या मुख्य द्वार के पास स्थापित करें। यह स्थान सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है और पूजा का शुभ फल देता है। शयनकक्ष में पूजा सामग्री रखने से बचें।गलत समय पर पूजा ना करेंगणेश चतुर्थी पर पूजा और मूर्ति स्थापना शुभ मुहूर्त में करें। सुबह का समय या पंचांग के अनुसार निर्धारित समय सबसे उत्तम है। रात में मूर्ति स्थापना या पूजा करने से बचें, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से गणपति की कृपा और कार्यों में सफलता मिलती है।सम्मान के साथ करें विसर्जनगणेश चतुर्थी के बाद मूर्ति का विसर्जन सम्मानपूर्वक करें। मूर्ति को गंदे पानी या कूड़ेदान में न फेंकें। इसे नदी या समुद्र में प्रवाहित करें या मंदिर में सौंप दें। विसर्जन के समय 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जप करें। सम्मानजनक विसर्जन से पूजा का पूरा फल मिलता है।
- हिंदू धर्म में गणेश चतुर्थी का त्योहार का बड़ा महत्व है। यह पर्व विघ्नहर्ता भगवान गणेश के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। किसी भी धार्मिक या शुभ कार्य में सबसे पहले गणपति जी की पूजा करने का विधान है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में गणपति की प्रतिमा स्थापित करते हैं और श्रद्धा भाव के साथ दस दिनों तक धूमधाम से उत्सव मनाते हैं। यदि आप पहली बार घर में गणेश जी की स्थापना करने जा रहे हैं, इसके लिए तो कुछ आवश्यक नियमों के बारे में जानना जरूरी है।गणेश चतुर्थी 2025 की तिथिदृक पंचांग के अनुसार इस वर्ष भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि 26 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 54 मिनट से आरंभ होगी और 27 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार गणेश चतुर्थी का पर्व 27 अगस्त को मनाया जाएगा और इसी दिन गणपति की स्थापना की जाएगी।गणेश जी की प्रतिमाघर में गणेश भगवान की स्थापना के लिए हमेशा ऐसी मूर्ति चुनें, जिसमें भगवान गणेश की सूंड बाईं ओर झुकी हो। इसे अत्यंत शुभ माना गया है।गणपति जी की बैठी हुई प्रतिमा को घर लाना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि इससे सुख और समृद्धि का वास होता है।मूर्ति का चेहरा प्रसन्न और हंसमुख होना चाहिए। साथ ही यह भी देखें कि उनके एक हाथ में आशीर्वाद की मुद्रा हो और दूसरे हाथ में मोदक होना चाहिए।गणपति स्थापना की विधिगणपति स्थापना के लिए प्रतिमा को हमेशा ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में ही रखें। ध्यान रहे उनका मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।मूर्ति को चौकी पर रखने से पहले चौकी को अच्छी तरह से साफ करें और गंगाजल से पवित्र करें।प्रतिमा के पास रिद्धि-सिद्धि का स्थान अवश्य दें। अगर मूर्तियां उपलब्ध न हों, तो उनकी जगह आप सुपारी रख सकते हैं।गणेश जी की दाईं ओर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। इसके बाद फूल और अक्षत हाथ में लेकर गणपति बप्पा का ध्यान करें।
- हिंदू धर्म में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि अत्यंत शुभ मानी गई है। इस दिन अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु और शेषनाग जी की विधिवत पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन पूजा के बाद अनंत रक्षा सूत्र बांधा जाता है। इस दिन को गणेश विसर्जन के नाम से भी जाना जाता है। जानें इस बार अनंत चतुर्दशी कब है, पूजन मुहूर्त व महत्व।अनंत चतुर्दशी कब है 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि 06 सितंबर को सुबह 03 बजकर 12 मिनट पर प्रारंभ होगी और 07 सितंबर को सुबह 01 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि में अनंत चतुर्दशी 06 सितंबर को मनाई जाएगी।अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त 2025: अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त सुबह 06 बजकर 02 मिनट से 07 सितंबर को देर रात 01 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। पूजन की कुल अवधि 19 घंटे 39 मिनट की है।अनंत चतुर्दशी पर बन रहे ये पूजन मुहू्र्त---ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:30 बजे से सुबह 05:16 बजे तक।अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:54 बजे से दोपहर 12:44 बजे तक।विजय मुहूर्त- दोपहर 02:25 बजे से दोपहर 03:15 बजे तक।गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:37 बजे से शाम 07:00 बजे तक।अमृत काल- दोपहर 12:50 बजे से दोपहर 02:23 बजे तक।रवि योग- सुबह 06:02 बजे से रात 10:55 बजे तक।इस दिन अनंत सूत्र बांधने की है परंपरा: अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु, माता यमुना व शेषनाग जी की पूजा की जाती है। इस दिन अनंत सूत्र बांधने की भी परंपरा है। मान्यता है कि अनंत सूत्र में भगवान विष्णु का वास होता है। पूजा के बाद इसे बांह में बांधा जाता है। अनंत सूत्र में 14 गांठें होनी चाहिए। इन गांठों को 14 लोकों से जोड़कर देखा जाता है।
- भगवान गणेश के जन्मदिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन बुद्धि, समृद्धि व सौभाग्य के देवता गणपति बप्पा की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करते हैं। गणेश चतुर्थी का उत्सव 10 दिन तक मनाया जाता है और अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है। भगवान गणेश की कृपा या आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग इस दिन कई तरह के उपाय करते हैं। मान्यता है कि इस दिन कुछ उपायों को करने से गणपति बप्पा की कृपा से जीवन में धन-संपदा आती है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। जानें गणेश चतुर्थी के दिन क्या करें उपाय।1. भगवान गणेश को मोदक और लड्डू अति प्रिय माने गए हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश को मोदक और लड्डू का भोग लगाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।2. गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को 21 दूर्वा (घास) के जोड़े और शुद्ध घी अर्पित करना अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की स्थिति में सुधार होता है और कर्ज से मुक्ति मिलती है।3. भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए गणेश चतुर्थी के दिन घर में पीले रंग की गणपति जी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से गणेश जी की कृपा से मनवांछित फल मिलता है और धन-धान्य बढ़ता है।4. अगर संभव हो सके हो तो, गणेश चतुर्थी के दिन हाथी को हरा चारा खिलाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्यों की विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।5. भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए गणेश चतुर्थी के दिन गणपति मंदिर जाकर उनके दर्शन करने चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज कहा जाता है. इस साल हरतालिका तीज का व्रत 27 अगस्त को रखा जाएगा. तीज हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है और यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में लोकप्रिय है. तीज के शुभ अवसर पर महिलाएं व्रत रखती हैं, माता पार्वती और भगवान शिव की संयुक्त पूजा करती हैं. अपने पति की समृद्धि और दीर्घायु के लिए भगवान से आशीर्वाद मांगती हैं.लेकिन क्या आप जानते हैं कि सालभर में कुल कितनी तीज मनाई जाती हैं और शास्त्रों में इनका क्या महत्व है. हिंदू कैलेंडर में अलग-अलग समय पर आने वाली तीन तीजों का वर्णन मिलता है- हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज. इन आज आपको तीज के त्योहारों के बारे में विस्तार से बताते हैं.हरियाली तीज--हरियाली तीज सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आती है. इस त्योहार सावन के महीने की हरियाली मौसम के कारण इसका नाम हरियाली तीज कहलाता है. इस तीज का व्रत नवविवाहित महिलाओं के लिए होता है. इसे शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक कथा के मुताबिक, इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या पूरी की थी.हरियाली तीज की पूजन विधिहरियाली तीज के दिन शादीशुदा महिलाएं हरे कपड़े, चूड़ियां और मेहंदी लगाती हैं. साथ ही, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं. भगवान को उनकी प्रिय चीजें अर्पित करती हैं. इसके अलावा, इस तीज पर झूला झुलाने की परंपरा होती है. इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और रात को कथा सुनकर व्रत का पारण करती हैं.कजरी तीज---कजरी तीज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को आती है. इसे कजली तीज भी कहते हैं और कुछ क्षेत्रों में इसे सातुड़ी तीज भी कहा जाता है. कजरी तीज का त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान में मनाया जाता है. इस दिन राजस्थान के बूंदी शहर में माता पार्वती की विशाल शोभयात्रा का आयोजन भी किया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से चंद्रमा, भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना की जाती है.कजरी तीज की पूजन विधिकजरी तीज पर भी महिलाएं सुबह स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प लेती हैं. पूरे दिन व्रत के नियमों का पालन करती हैं. फिर संध्याकाल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं. इसके बाद रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलती हैं. इस दिन विशेष रूप से कजरी गीत भी गाएं जाते है. कुछ जगहों पर इस दिन नीम की पूजा करने की भी परंपरा है.हरतालिका तीजहरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. इसे सबसे बड़ी और कठिन तीज माना जाता है. हरतालिका तीज के दिन महिलाएं बड़ी श्रद्धा से देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करते हैं और मनोवांछित फल के लिए प्रार्थना करते हैं. यह व्रत बहुत कठोर माना जाता है, क्योंकि इसे निर्जला रखा जाता है.हरतालिका तीज पूजन विधिइस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और पति की लंबी उम्र व सुख-संपन्नता के लिए प्रार्थना करती हैं. साथ ही, महिलाएं इस दिन 16 श्रृंगार करती हैं. लाल या हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं. माता पार्वती और भगवान शिव की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं. फिर पूरे दिन भजन-कीर्तन और कथा सुनाई जाती है.
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पंडित प्रकाश उपाध्याय
हरतालिका तीज पर कुंआरी कन्याएँ और सुहागिन स्त्रियां माँ गौरी व भगवान शंकर की पूजा एवं व्रत करती हैं। यह त्यौहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया यानी कल मनाया जाएगा। हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ क्रमश: हरत अर्थात अपहरण, आलिका का अर्थ स्त्रीमित्र (सहेली) तथा तीज-तृतीया तिथि से लिया गया है। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वतीजी की उनकी सहेलियां अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। जिससे कि पार्वतीजी के पिता उनका विवाह, उनकी ही इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें।
हरतालिका तीज व्रत विधि एवं नियम
हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एव रिद्धि सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं।विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओं को केले के पत्ते पर रखा जाता हैं। सर्वप्रथम शुद्ध घी का दीपक जलाएं। तत्पश्चात सीधे (दाहिने) हाथ में अक्षत रोली बेलपत्र, मूंग, फूल और पानी लेकर इस मंत्र से संकल्प करें:उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रत महं करिष्ये। इसके बाद कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बाँध कर पूजन किया जाता हैं कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता हैं। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं। उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं। इसके बाद अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है। इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं। इसके पश्चात आरती की जाती हैं जिसमें सर्वप्रथम गणेश जी की पुन: शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। प्रात: अंतिम पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोड़ा जाता हैं। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं।
भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलना चाहिए:
ॐ उमायै नम:
ॐ पार्वत्यै नम:
ॐ जगद्धात्र्यै नम:
ॐ जगत्प्रतिष्ठयै नम:
ॐ शांतिरूपिण्यै नम:
ॐ शिवायै नम:
भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए:
ॐ हराय नम:
ॐ महेश्वराय नम:
ॐ शम्भवे नम:
ॐ शूलपाणये नम:
ॐ पिनाकवृषे नम:
ॐ शिवाय नम:
ॐ पशुपतये नम:
ॐ महादेवाय नम:
हरतालिका व्रत पूजन की सामग्री
-फुलेरा विशेष प्रकार से फूलों से सजा होता है।
-गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत।
-केले का पत्ता।
- विविध प्रकार के फल एवं फूल पत्ते।
-बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, तुलसी मंजरी।
-जनेऊ, नाडा, वस्त्र,।
-माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामग्री, जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, महावर, मेहँदी आदि एकत्र की जाती हैं। इसके अलावा बाजारों में सुहाग पूड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं।
- घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, नारियल, कलश।
- पंचामृत: घी, दही, शक्कर, दूध, शहद।
- गणेश चतुर्थी का पर्व बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है। यह भगवान गणेश को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन (Ganesh Chaturthi 2025) लोग भगवान गणेश की पूजा करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में शुभता का आगमन होता है। ऐसे में सुबह उठें और स्नान करें। फिर बप्पा के सामने घी का दीपक जलाएं और उनका ध्यान करें। इसके बाद गणेश चालीसा का पाठ करें। अंत में आरती करें। ऐसा करने से सभी कामों में सफलता मिलती है।गणेश चालीसा॥दोहा॥जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥॥चौपाई॥जय जय जय गणपति गणराजू।मंगल भरण करण शुभः काजू॥जै गजबदन सदन सुखदाता।विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना।तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥राजत मणि मुक्तन उर माला।स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥सुन्दर पीताम्बर तन साजित।चरण पादुका मुनि मन राजित॥धनि शिव सुवन षडानन भ्राता।गौरी लालन विश्व-विख्याता॥ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे।मुषक वाहन सोहत द्वारे॥कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।अति शुची पावन मंगलकारी॥एक समय गिरिराज कुमारी।पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥अतिथि जानी के गौरी सुखारी।बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा।मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।बिना गर्भ धारण यहि काला॥गणनायक गुण ज्ञान निधाना।पूजित प्रथम रूप भगवाना॥अस कही अन्तर्धान रूप हवै।पालना पर बालक स्वरूप हवै॥बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं।सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥लखि अति आनन्द मंगल साजा।देखन भी आये शनि राजा॥निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।बालक, देखन चाहत नाहीं॥गिरिजा कछु मन भेद बढायो।उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥कहत लगे शनि, मन सकुचाई।का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।शनि सों बालक देखन कहयऊ॥पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी।सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥हाहाकार मच्यौ कैलाशा।शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।काटी चक्र सो गज सिर लाये॥बालक के धड़ ऊपर धारयो।प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥चले षडानन, भरमि भुलाई।रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥धनि गणेश कही शिव हिये हरषे।नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।शेष सहसमुख सके न गाई॥मैं मतिहीन मलीन दुखारी।करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥अब प्रभु दया दीना पर कीजै।अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥॥दोहा॥श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश॥
- भारत में सबसे धूमधाम से मनाए जाने वाले पर्वों में से एक है गणेश उत्सव। यह पर्व भक्ति, उल्लास और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह भगवान शिव के पुत्र गणेश जी को समर्पित है जो कि 10 दिन तक गणेश उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाते हैं, और इसी दिन से गणेश उत्सव की शुरुआत होतीहै। वहीं 10 दिन बार अनंत चतुर्दशी तक बप्पा का उत्सव मनाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गणेश उत्सव सिर्फ 10 दिनों का ही क्यों होता है? आइए जानें इसके पीछे की मान्यता और इस वर्ष की तिथि।गणेश चतुर्थी 2025 कब है?हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में गणेश चतुर्थी 27 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन गणपति बप्पा का आगमन होगा और 10 दिन तक घर-घर, पंडालों और मंदिरों में उनकी भव्य पूजा-अर्चना होगी। यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन आजकल पूरे भारत में इसका महत्व बढ़ता जा रहा है।गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं?मान्यता है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था। इस कारण इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।क्यों होता है गणेश उत्सव 10 दिनों का?शास्त्रीय मान्यता – गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक कुल 10 दिन का समय भगवान गणेश को समर्पित होता है।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की परंपरा – स्वतंत्रता आंदोलन के समय तिलक ने लोगों को एकजुट करने के लिए सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की, जिसे 10 दिनों तक मनाने का चलन शुरू हुआ।धार्मिक कारण – मान्यता है कि 10 दिनों तक गणपति जी अपने भक्तों के बीच विराजमान होकर उनकी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं और फिर अनंत चतुर्दशी पर वापस कैलाश लौट जाते हैं।सांस्कृतिक पहलू – यह पर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का भी केंद्र बनता है, इसलिए इसे लंबे समय तक मनाया जाता है।
- भगवान गणेश का पावन पर्व गणेश चतुर्थी को पूरे भारत में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. लेकिन भारत में कई ऐसी जगहें भी हैं, जहां इस पर्व की रौनक कुछ खास दिखाई देती है. आज हम आपको भारत की उन 5 जगहों के बारे में बता रहें हैं, जहां गणेश चतुर्थी को बहुत धूम मचा से मनाया जाता है.गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्यौहार को बहुत शानदार तरीके से लोग सेलिब्रेट करते हैं. वहीं अपने घर पर लोग भगवान गणेश की मूर्ति को भी लाते हैं और उनकी पूजा करते हैं. भारत में कुछ जगहें ऐसी हैं, जहां गणेश चतुर्थी की रौनक देखने लायक होती है. इन जगहों पर गणेशोत्सव का माहौल इतना भव्य और शानदार होता है कि देश-विदेश से लोग इसे देखने आते हैं. हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बता रहें हैं.मुंबईमहाराष्ट्र में स्थित मुंबई में गणेश चतुर्थी को बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. हर साल मुंबई में इस त्योहार की एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है. मुंबई में सबसे ज्यादा मशहूर लालबागचा राजा की मूर्ति को देखने के लिए लाखों लोग आते हैं. यह गणेश जी एक बहुत बड़ी मूर्ति है. मुंबई में गणेश चतुर्थी के दौरान हर गली, हर नुक्कड़ पर पंडाल सजाए जाते हैं. विसर्जन के दिन, गणपति की मूर्तियों को समुद्र में विसर्जित किया जाता है, और इस दौरान पूरा शहर उमड़ पड़ता है.पुणेमहाराष्ट्र में स्थित पुणे में भी गणेश चतुर्थी का त्योहार बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है. पुणे में सबसे ज्यादा फेमस हैं दगडूशेठ हलवाई गणपति का एक पुराना मंदिर है और यहां गणपति की मूर्ति सोने और चांदी से बनी हुई है. पुणे में गणेशोत्सव के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं भी होती हैं.हैदराबादहैदराबाद में भी गणेश चतुर्थी का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. यहां खैरताबाद गणपति की मूर्ति बहुत फेमस है. यह मूर्ति हर साल नए डिजाइन में बनाई जाती है. इसके साथ ही यहां के लोग अपने घरों में भी गणेश जी को स्थापित करते हैं. विसर्जन के दिन इस मूर्ति को हुसैन सागर झील में विसर्जित किया जाता है.चेन्नईचेन्नई में भी गणेश चतुर्थी का त्योहार बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. यहां गणेश चतुर्थी के दौरान, लोग अपने घरों और मंदिरों को फूलों और लाइट्स से सजाते हैं. चेन्नई में गणपति की मूर्तियों को मिट्टी और गोबर से बनाया जाता है. भगवान गणेश को लोग अपने घरों में भी स्थापित करते हैं और पूजा पाठ करते हैं.गोवागोवा सिर्फ अपने बीचेस और पार्टियों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने गणेश चतुर्थी के लिए भी जाना जाता है. गोवा में गणेशोत्सव बहुत ही पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. यहां लोग अपने घरों में गणपति की मूर्तियां स्थापित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं. गोवा में गणेश चतुर्थी के समय लोग नृत्य और संगीत का भी आयोजन करते हैं.
- सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का खास महत्व माना गया है. इस दिन लोग गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं. अमावस्या का दिन पितरों को भी समर्पित होता है. इस तिथि पर पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है. अगर अमावस्या शनिवार के दिन पड़े तो इसे शनि अमावस्या कहा जाता है.कब है शनि अमावस्या 2025?भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि 22 अगस्त को सुबह 11.55 बजे से लेकर 23 अगस्त को सुबह 11.35 बजे तक रहती है. उदया तिथि के अनुसार, मुख्य पर्व 23 अगस्त दिन शनिवार को मनाया जाएगा. अमावस्या जब शनिवार को आती है तो इसे शनि अमावस्या कहा जाता है. धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र में भी इस दिन का खास महत्व है. इस दिन शनि ग्रह से जुड़े उपाय करने से शनि दोष, साढ़ेसाती और ढैय्या के कारण मिलने वाले अशुभ प्रभावों से राहत मिल सकती है.शनि अमावस्या पर किए जाने वाले उपायशनि देव को तेल अर्पण करेंशनि अमावस्या के दिन शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाएं. यदि मूर्ति रूप में शनि देव की पूजा हो रही है, तो केवल उनके पैर के अंगूठे पर तेल अर्पित करें और अगर शनिदेव शिला रूप में विराजमान हैं, तो पूरी शिला पर तेल चढ़ाया जा सकता है.पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएंशनि अमावस्या के दिन सूर्यास्त के बाद पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि जीवन में सुख-संपत्ति का वास होता है.दान-पुण्य करेंइस दिन शनि से संबंधित वस्तुएं जैसे सरसों का तेल, काले तिल, उड़द की दाल और लोहे की वस्तुएं दान करें. साथ ही, गरीबों को भोजन कराएं और उन्हें कपड़े, जूते, छाता, धन आदि का दान करें.हनुमान जी की उपासना करेंशनि के कष्टों से मुक्ति पाने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है बजरंगबली की आराधना करना. मान्यता है कि हनुमान भक्तों को शनि देव कभी कष्ट नहीं देते.
- देशभर में गणेश महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में इस त्योहार की रौनक देखने लायक होती है. इस पर्व पर भक्त रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश की पूजा करते हैं. घरों, मंदिरों और पंडालों में 10 दिनों तक गणपति की स्थापना कर श्रद्धा-भाव से पूजा-अर्चना की जाती है. इस दौरान चारों ओर “गणपति बप्पा मोरिया” की गूंज सुनाई देती है.गणेश चतुर्थी 2025 की तिथिहिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि 26 अगस्त दोपहर 01 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 27 अगस्त दोपहर 03 बजकर 44 मिनट पर होगा. ऐसे में इस साल गणेश चतुर्थी का पर्व 27 अगस्त 2025, बुधवार को मनाया जाएगा और इसी दिन गणेश स्थापना की जाएगी. गणेश उत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी पर होता है, जो इस साल 6 सितंबर को पड़ रही है. 10 दिन पूजन के बाद भक्त गणपति से अगले वर्ष जल्दी आने की प्रार्थना करते हुए प्रतिमा का विसर्जन करते हैं.गणेश स्थापना का शुभ मुहूर्तगणेश जी की स्थापना के लिए मध्याह्न काल सबसे उत्तम माना गया है, क्योंकि मान्यता है कि इसी समय गणपति का जन्म हुआ था. 27 अगस्त 2025 को मध्याह्न काल में गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 05 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 40 मिनट तक रहेगा.गणेश चतुर्थी 2025 के शुभ योगइस बार गणेश चतुर्थी का दिन बेहद खास है. इस साल गणेश चतुर्थी की शुरुआत बुधवार से हो रही है, जिससे बहुत शुभ माना जा रहा है. साथ ही 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी पर चार शुभ योग का निर्माण हो रहा है- शुभ योग, शुक्ल योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का संयोग रहेगा. इसके अलावा हस्त नक्षत्र और चित्रा नक्षत्र भी रहेगा.गणेश स्थापना विधिसबसे पहले एक साफ चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं. हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें. इसे बाद'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जाप करते हुए गणेश जी का स्मरण करें. मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं. गणेश जी को मोदक, लड्डू, दूर्वा घास, लाल फूल और सिंदूर अर्पित करें. अंत में पूरे परिवार के साथ आरती करें और भक्तिभाव से पूजन संपन्न करें.