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- पंडित प्रकाश उपाध्यायपौष पूर्णिमा कल 25 जनवरी को मनाई जाएगी। हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष माह की पूर्णिमा तिथि 24 जनवरी 2024 की रात 9:24 बजे से शुरू होकर 25 जनवरी 2024 की रात 11:30 बजे समाप्त होगी। इसलिए पूर्णिमा 25 जनवरी को मनाई जाएगी।पौष पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि पौष माह में पडऩे वाली पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी अपने आठों स्वरूप के साथ जागृत रहती हैं और पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं, इसलिए पौष माह की पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। इसके अलावा पौष माह की पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा मानते हैं कि पौष माह की पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा की जाए तो घर से नकारात्मकता दूर होती है। ज्योतिष शास्त्र में पीपल के पत्ते से जुड़े कुछ उपाय भी बताए गए हैं., जो पौष पूर्णिमा के दिन करने से आर्थिक समस्या दूर होती हैं। आज जानते हैं ये उपाय....- पौष माह की पूर्णिमा वाले दिन पीपल का एक पत्ता लेकर उसे गंगाजल या तुलसी के जल में भिगोकर रख दें। रात के वक़्त चंद्रमा की पूजा करने के बाद उस पत्ते को जल से निकाल लें। अब लाल चंदन से उस पर "श्रीं" लिखें, यह माता लक्ष्मी का बीज़ मंत्र है। अब पीपल के पत्ते को लाल कलावे से बांध दें और लाल कपड़े में लपेटकर अपने घर के धन स्थान पर रखें। आप इसे मंदिर में भी रख सकते हैं। अब माता लक्ष्मी का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जाप निरंतर करते रहें।-पौष माह की पूर्णिमा से लेकर आने वाले 5 शुक्रवार तक आपको पीपल का पत्ता सूखने से पहले बदलना होगा। अंतिम शुक्रवार के दिन पीपल के पत्ते को पवित्र नदी में बहा दें। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से कर्ज़ से मुक्ति मिलती है और घर की आर्थिक स्थिति मज़बूत होती है।
- पंडित प्रकाश उपाध्यायज्योतिष शास्त्र में कुछ पेड़ पौधों को बहुत चमत्कारिक माना गया है। इन पौधों को घर में होने से कई तरह की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। ये पेड़ पौधे ना केवल घर की हवा को साफ सुथरा रखते हैं बल्कि धन, ऐश्वर्य और सम्मान में भी काफी वृद्धि करते हैं। इसलिए इन पेड़ पौधों को चमत्कारिक भी माना गया है। जिन घरों में ये पेड़ पौधे होते हैं, वहां बरकत होती है और जीवन में शुभता और सकारात्मकता आती है। वास्तु शास्त्र में इन पेड़ पौधों के बारे में बताया गया है कि ये धन, सुख और समृद्धि को आकर्षित करते हैं। आइए जानते हैं इन चमत्कारिक पौधों के बारे में...तुलसी का पौधाहिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत पूजनीय माना गया है और इस पौधे को घर के उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में लगाएं और हर रोज पूजा करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, घर में तुलसी का पौधा होना से जीवन सुख-शांति बनी रहती है और कई तरह की परेशानियां दूर रहती हैं। तुलसी का संबंध भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से माना गया है। घर में तुलसी होने से सौभाग्य में वृद्धि होती है इसलिए इसे श्रीतुलसी कहा जाता है।शमी का पेड़शमी का पेड़ घर की दक्षिण दिशा में लगाना चाहिए। इस पेड़ को घर में लगाना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से शनि के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है और घर में सुख समृद्धि बढ़ती है। शमी का पेड़ होने से भगवान शिव का भी आशीर्वाद रहता है और नौकरी व व्यवसाय में काफी उन्नति होती है। घर में इस पेड़ के होने से पारिवारिक सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहता है और सभी सदस्यों की अच्छी तरक्की होती है।स्पाइडर प्लांटस्पाइडर प्लांट को घर में लगाने से कई फायदे मिलते हैं। इसे घर के उत्तर, उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में लगाना बहुत शुभ माना जाता है। इस पौधे के घर में होने से आसपास की हवा स्वच्छ रहती है और आरोग्य की भी प्राप्ति होती है। यह पौधा कई तरह की बीमारियों का अंत करता है और जीवन में नई सकारात्मक ऊर्जा लाता है। अगर कार्यक्षेत्र में कोई समस्या चल रही है तो स्पाइड प्लांट को पास में रखने से जीवन को नई दिशा मिलती है।क्रासुला का पौधाक्रासुला का पौधा होना बहुत शुभ माना जाता है और घर के वास्तु दोष को भी दूर करता है। इस पौधे को घर के मेन गेट के दाहिनी दिशा में रखना चाहिए। इस पौधे को होने से आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है और धन आगमन के नए स्रोत खुलने शुरू हो जाते हैं। इस पौधे के घर में होने से पारिवारिक सदस्यों के बीच स्नेह बना रहता है और रिश्तों में भी मजबूती आती है। साथ ही अगर आपकी तरक्की में कोई बाधा आ रही है तो वह भी दूर हो जाती है।मनी प्लांटमनी प्लांट घर में होना अच्छा माना जाता है। जैसे कि इसके नाम से पता चलता है कि यह पौधा धन संबंधित समस्याओं को खत्म करता है। जैसे जैसे यह पौधा बढ़ता है, वैसे वैसे धन और सम्मान भी बढऩे लगता है। ज्योतिष में इस पौधे का संबंध भौतिक सुख-सुविधाओं के स्वामी शुक्र ग्रह से माना गया है इसलिए मनी प्लांट घर में सौभाग्य को बढ़ाता है और जीवन में नई ऊर्जा का संचार करता है।अपराजिता का पौधाअपराजिता का पौधा तुलसी के समान बहुत पवित्र माना जाता है। इस पौधे की बेल का लाभ लेने के लिए इसे घर की पूर्व, उत्तर, उत्तर-पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इस बेल का संबंध माता लक्ष्मी से माना गया है। घर में इस पौधे के होने से मां लक्ष्मी स्वयं घर में विराजमान रहती है और नौकरी व व्यापार में काफी अच्छी तरक्की होती है। यह पौधा भगवान विष्णु और महादेव को भी बेहद प्रिय है। इस पौधे से धन धान्य की कमी दूर होती है और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
- -पं. प्रकाश उपाध्यायहस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, हथेली की लकीरों के अलावा अंगूठ के निशान और बनावट के माध्यम से भी व्यक्ति के जीवन से जुड़ी कई दिलचस्प बातों का पता लगाया जा सकता है। मान्यता है कि अंगूठे पर मौजूद कुछ रेखाएं व्यक्ति के सुख-सौभाग्य का प्रतीक होती हैं। वहीं, कुछ रेखाओं से जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आइए अंगूठे के बनावट, आकार, लकीरों और चिन्ह के जरिए व्यक्ति के बारे में खास बाते जानते हैं।अंगूठों के आकार से जानें व्यक्ति का स्वभाव---जिन व्यक्ति के दोनों अंगूठे लंबे और कठोर होते हैं। कहा जाता है कि ऐसे व्यक्ति समझदार, सतर्क, होशियार और कड़ी मेहनत स्वभाव के होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने विचारों को लेकर स्पष्ट होते हैं और जल्दी किसी के बहकावे में नहीं आते हैं।-हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों के अंगूठे लंबे, पतले और लचीले होते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत भावुक होते हैं। यह दूसरों के कष्ट को अपना समझकर हर किसी की मदद के लिए तैयार रहते हैं।-मान्यता है कि अगर हाथ खोलने पर अंगूठा पहली उंगली से 90 डिग्री का कोण बनाएं, तो ऐसे व्यक्ति बहुत समझदार और सुलझे हुए होते हैं। 90 डिग्री से ज्यादा कोण बनने पर एक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं। वहीं, कहा जाता है कि 45 डिग्री से कम होने पर व्यक्ति बहुत अपने हितों पर ज्यादा ध्यान देता है।-कहा जाता है कि अंगूठा जितना ज्यादा झुकने वाला होता है, व्यक्ति स्वभाव से उतना ही मिलनसार और खुशमिजाज होता है।अंगूठे के तीन भाग देते हैं कई संकेतअंगूठे का पहला भाग : व्यक्ति के हाथों की उंगलियों की तरह अगूंठे पर भी तीन रेखाएं मौजूद होते हैं। मान्यता है कि अगर अंगूठे का पहला भाग अगर बड़ा हो, तो ऐसा व्यक्ति आत्मनिर्भर और दृढ़ निश्चयी होता है। इन्हें जीवन में कभी धन की तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है।मध्य भाग : हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार, व्यक्ति के अंगूठे का मध्य भाग लंबा होता है, तो ऐसे लोग बहुत बुद्धिमान होते हैं। इन तर्क शक्ति भी शानदार होती है।अंतिम भाग : मान्यता है कि जिन व्यक्ति की अंगूठे का अंतिम भाग लंबा होता है, ऐसे लोगों को जीवन बहुत सुख-सुविधाओं में व्यतीत होता है और इन्हें जीवन में कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रहती है।
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-पं. प्रकाश उपाध्याय
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, हथेलियों पर मौजूद रेखाओं के माध्यम से व्यक्ति के जीवन से जुड़े कई खास बातों का पता लगाया जा सकता है। हथेली की कुछ रेखाएं सुख-सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि जिन व्यक्तियों की हथेली पर ये रेखाएं होती हैं, ऐसे लोग अकूत धन-संपत्ति के मालिक होते है। जीवन में कभी धन की तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है और लोगों को जीवन के हर क्षेत्र में अपार सफलता मिलती है। ऐसे ही हथेली पर मंगल रेखा भी बेहद शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि हथेली पर मंगल रेखा बनने से जीवन के हर मोड़ पर भाग्य साथ देता है और जीवन सुख-सुविधाओं मं व्यतीत होता है। आइए जानते हैं मंगल रेखा के बारे में...
मंगल लाइन
मंगल रेखा जीवन रेखा के समानांतर होती है। मान्यता है कि जिन व्यक्ति की हथेलियों पर मंगल लाइन होती है। ऐसे लोगों की जीवन में कभी आर्थिक तंगी नहीं होती है। नौकरी-कारोबार में अपार सफलता मिलती है और सभी कार्य बिना किसी विघ्न-बाधा के पूरे होते हैं ।
मंगल लाइन क्या है?
मान्यता है कि जिन व्यक्तियों की हथेली पर एक से ज्यादा मंगल लाइन होती है। ऐसे लोग बहुत लकी होते हैं। मंगल रेखा जिस व्यक्ति की हथेली पर पायी जाती है। उन पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। इनके पास अचल धन-संपत्ति होती है। व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। नौकरी-कारोबार में धन लाभ होता है। जीवन में तरक्की के कई अवसर मिलते हैं और व्यक्ति ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरपूर रहता है। साथ ही ऐसे लोग मेंटली और फिजिकली बहुत स्ट्रॉन्ग होते हैं। - -पं. प्रकाश उपाध्यायघर में पॉजिटिविटी रहती है माहौल खुशनुमा हो जाता है। वहीं, नेगेटिव एनर्जी बढ़ने से परिवार और संबंधों में तनाव पैदा हो सकते हैं, जिससे घर की सुख-शांति छिन सकती है। घर में नेगेटिव एनर्जी के प्रभाव से आर्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए इस स्टोरी के माध्यम से हम आपको ऐसे इजी तरीके बताने वाले हैं, जो घर की पॉजिटिविटी तो बढ़ाएंगे ही साथ ही आपकी आर्थिक स्थिति को भी सुधार सकते हैं।वास्तु टिप्स-1. घर को साफ-सुथरा रखें: घर में मौजूद गंदगी निगेटिव एनर्जी अट्रैक्ट करती है। इसलिए हमेशा अपने घर को साफ-सुथरा रखने की कोशिश करें। वहीं, फालतू समान इकट्ठा करके न रखें। कबाड़ को आज ही घर से बाहर करें।2. दीपक जलाएं: घर के प्रवेशद्वार पर संध्या के समय रोज दीपक जलाएं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश कर सके। मान्यता है संध्या के समय मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से मां लक्ष्मी का आगमन होता है।3. तोरण लगाएं: घर से नेगेटिव एनर्जी को दूर भागने के लिए आम के पत्तों का तोरण बनाकर मुख द्वार पर लगाएं। ध्यान रखें की तोरण में इस्तेमाल किए गए पत्ते हरे-भरे होने चाहिए न की कटे-फटे।4. नमक: अगर आपके घर में हर रोज क्लेश का माहौल बना रहता है तो हो सकता है इसके पीछे निगेटिव एनर्जी हो। इसलिए पानी में नामक मिलाकर पोंछा लगाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो सकती है।5. सूर्य को जल दें: रोजाना सूर्य को जल देने से कुंडली में सूर्य ग्रह को मजबूत बनाया जा सकता है। सूर्य ग्रह का संबंध मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा से माना जाता है।6. तुलसी पूजन- तुलसी जी को रोजाना अर्घ्य दें और सुबह-शाम इनके समक्ष घी का दीपक जलाएं। तुलसी जी मां लक्ष्मी जी का रूप मानी जाती हैं। वहीं, शुक्रवार का व्रत रखने और लक्ष्मी सूक्तम का पाठ करने से भी आर्थिक दिक्कतों से राहत मिल सकती है।
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पं. प्रकाश उपाध्याय
हर किसी की चाहत होती हैं कि आने वाला साल सुख-सौभाग्य और समृद्धि लेकर आए। हिंदू धर्म में धन-दौलत और खुशहाल जीवन के लिए वास्तु के नियमों का पालन करना बेहद शुभ माना जाता है। साल 2024 के पहले दिन वास्तु की कुछ चीजों को घर ला सकते हैं। मान्यता है कि नए साल पर इन शुभ चीजों को घर लाने से परिवार के सदस्यों को सुख-सौभाग्य बढ़ता है। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और धन-संपदा में बरकत होती है।
आइए जानते हैं कि नए साल पर किन चीजों की खरीदारी शुभ मानी जाती है?
तांबे का सूर्य : नए साल के मौके पर घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए तांबे का सूर्य ला सकते हैं। मान्यता है कि घर में तांबे का सूर्य लगाने से जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती है और परिवार के सदस्यों को सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
दक्षिणावर्ती शंख : नए साल के मौके पर घर में दक्षिणावर्ती शंख ला सकते हैं। मान्यता है कि पूजा घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, जिससे जातक को कभी भी धन की तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है।
नारियल : साल 2024 के पहले दिन घर में नारियल जरूर लाएं और इसकी विधिवत पूजा करें। इसके बाद नारियल को अपनी तिजोरी में रख लें। मान्यता है कि ऐसा करने से पैसों की तिजोरी कभी खाली नहीं होती है।
गोमती चक्र : नए साल पर घर में गोमती चक्र भी ला सकते हैं। 11 गोमती चक्र को लाल या पीले कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रख लें। धार्मिक मान्यता है कि इससे मां लक्ष्मी की कृपा से धन का आवक बढ़ता है ।
मोर पंख : नए साल के पहले दिन घर में मोर पंख जरूर लाएं। कहा जाता है कि घर में मोर पंख लगाने से नेगेटिविटी दूर होती है और व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है।
धातु का कछुआ : वास्तु शास्त्र में, धातु के कछुए को सुख-समृद्धि का कारक माना गया है। कारोबार में बढ़ोत्तरी के लिए नए साल पर ऑफिस या घर में धातु का कछुआ स्थापित कर सकते हैं। इससे व्यापार में आ रही बाधाएं दूर होंगी और धन लाभ के योग बनेंगे। -
पं. प्रकाश उपाध्याय
"मृतसंजीवनी स्त्रोत्र" को लेकर ऐसा माना जाता है कि इस महान स्त्रोत्र को परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि वशिष्ठ ने लिखा था। 30 श्लोकों का ये स्त्रोत्र भगवान शिव को समर्पित है और उनके कई अनजाने पहलुओं पर प्रकाश डालता है। जो कोई भी इस स्त्रोत्र का पूर्ण चित्त से पाठ करता है, उसे जीवन में किसी भी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। इस लेख में हम आपको पूर्ण मृतसञ्जीवनी मन्त्र से अर्थ सहित परिचित करवाएंगे।
एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम्।मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा।।1।।अर्थात: गौरीपति मृत्युञ्जयेश्र्वर भगवान् शंकर की विधिपूर्वक आराधना करने के पश्चात भक्त को सदा मृतसञ्जीवन नामक कवच का सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये।सारात्सारतरं पुण्यं गुह्यात्गुह्यतरं शुभम्।महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम्।।2।।अर्थात: महादेव भगवान् शङ्कर का यह मृतसञ्जीवन नामक कवच तत्त्व का भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है, गुह्य और मङ्गल प्रदान करने वाला है।समाहितमना भूत्वा शृणुश्व कवचं शुभम्।शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा।।3।।अर्थात: अपने मन को एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवच को सुनो। यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है। इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना।वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवित:।मृत्युञ्जयो महादेव: प्राच्यां मां पातु सर्वदा।।4।।अर्थात: जरा से अभय करने वाले, निरन्तर यज्ञ करने वाले, सभी देवतओं से आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव! आप पूर्व-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें।दधान: शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु:।सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा।।5।।अर्थात: अभय प्रदान करनेवाली शक्ति को धारण करनेवाले, तीन मुखोंवाले तथा छ: भुजओंवाले, अग्रिरूपी प्रभु सदाशिव अग्रिकोणमें मेरी सदा रक्षा करें।अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभु:।यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु।।6।।अर्थात: अट्ठारह भुजाओं से युक्त, हाथ में दण्ड और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें।खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवित:।रक्षोरूपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदावतु।।7।।अर्थात: हाथ में खड्ग और अभयमुद्रा धारण करने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों से आराधित, रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।पाशाभयभुज: सर्वरत्नाकरनिषेवित:।वरूणात्मा महादेव: पश्चिमे मां सदावतु।।8।।अर्थात: हाथमें अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरोंसे सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशामें मेरी सदा रक्षा करें।गदाभयकर: प्राणनायक: सर्वदागति:।वायव्यां वारुतात्मा मां शङ्कर: पातु सर्वदा।।9।।अर्थात: हाथों में गदा और अभयमुद्रा धारण करने वाले, प्राणोम के रक्षक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।शङ्खाभयकरस्थो मां नायक: परमेश्वर:।सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्कर: प्रभु:।।10।।अर्थात: हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा), सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओं के मध्य में मेरी रक्षा करें।शूलाभयकर: सर्वविद्यानामधिनायक:।ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वर:।।11।।अर्थात: हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशान स्वरूप भगवान् परमेश्वर शिव ईशान कोण में मेरी रक्षा करें।ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽध: सदावतु।शिरो मे शङ्कर: पातु ललाटं चन्द्रशेखर:।।12।।अर्थात: ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊर्ध्वभाग में तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभाग में मेरी सदा रक्षा करें। शंकर मेरे सिर की और चन्द्रशेखर मेरे ललाट की रक्षा करें।भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु।।भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु कर्णौ पातु महेश्वर:।।13।।अर्थात: मेरे भौंहों के मध्य में सर्वलोकेश और दोनों नेत्रों की त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें। दोनों भौंहों की रक्षा गिरिश एवं दोनों कानों की रक्षा भगवान् महेश्वर करें।नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वज:।जिव्हां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु।।14।।अर्थात: महादेव मेरी नासीका की तथा वृषभध्वज मेरे दोनों अधरों की सदा रक्षा करें। दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वा की तथा गिरिश मेरे दन्तों की रक्षा करें।मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषण:।पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम।।15।।अर्थात: मृत्युञ्जय मेरे मुख की एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठ की रक्षा करें। पिनाकी मेरे दोनों हाथों की तथा त्रिशूलि मेरे हृदय की रक्षा करें।पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वर:।नाभिं पातु विरूपाक्ष: पार्श्वो मे पार्वतिपति:।।16।।अर्थात: पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनो की और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें। विरूपाक्ष नाभि की और पार्वतीपति पार्श्वभाग की रक्षा करें।कटद्वयं गिरिशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिप:।गुह्यं महेश्वर: पातु ममोरु पातु भैरव:।।17।।अर्थात: गिरीश मेरे दोनों कटिभाग की तथा प्रमथाधिप पृष्टभाग की रक्षा करें। महेश्वर मेरे गुह्यभाग की और भैरव मेरे दोनों ऊरुओं की रक्षा करें।जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्घे मे जगदंबिका।पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्य: सदाशिव:।।18।।अर्थात: जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघो की तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरों की रक्षा करें।गिरिश: पातु मे भार्या भव: पातु सुतान्मम।मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायक:।।19।।अर्थात: गिरीश मेरी भार्या की रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रों की रक्षा करें। मृत्युञ्जय मेरे आयु की गणनायक मेरे चित्त की रक्षा करें।सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकाल: सदाशिव:।एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानांच दुर्लभम्।।20।।अर्थात: कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अंगो की रक्षा करें। देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवच का वर्णन मैंने तुमसे किया है।मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम्।सहस्त्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम्।।21।।अर्थात: महादेव ने स्वयं मृतसञ्जीवन नामक इस कवच को कहा है। इस कवच की सहस्त्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है।य: पठेच्छृणुयानित्यं श्रावयेत्सु समाहित:।सकालमृत्यु निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते।।22।।अर्थात: जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्यु को जीतकर पूर्ण आयु का उपयोग करता है।हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ।आधयोव्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन।।23।।अर्थात: जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवच का पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है। फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं।कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा।अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तम:।।24।।अर्थात: यह मृतसञ्जीवन कवच काल के गाल में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणों से युक्त ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम।युद्धमध्ये स्थित: शत्रु: सद्य: सर्वैर्न दृश्यते।।25।।अर्थात: युद्ध आरम्भ होने के पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवच का २८ बार पाठ करके रणभूमि में उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुओं अदृश्य रहता है।न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै।विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा।।26।।अर्थात: यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है।प्रातरूत्थाय सततं य: पठेत्कवचं शुभम्।अक्षय्यं लभते सौख्यमिहलोके परत्र च।।27।।अर्थात: जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच का सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय सुख प्राप्त होता है।सर्वव्याधिविनिर्मुक्त: सर्वरोगविवर्जित:।अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिक:।।28।।अर्थात: वह सम्पूर्ण व्याधियों से मुक्त हो जाता है, सब प्रकार के रोग उसके शरीर से भाग जाते हैं। वह अजर-अमर होकर सदा के लिये सोलह वर्ष वाला व्यक्ति बन जाता है।विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान्।तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम्।।29।।अर्थात: इस लोक में दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकों में विचरण करता रहता है। इसलिये इस महागोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नाम से कहा है।मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम्।इति वसिष्ठकृतं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्।।30।।अर्थात: मृतसंजीवनी नामक यह स्त्रोत्र देवतओं के लिय भी दुर्लभ है। ये वशिष्ठ द्वारा रचित मृतसंजीवनी स्त्रोत्र है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
28 दिसंबर को बुध देव चाल बदलने जा रहे हैं। इस दिन बुध देव वृश्चिक राशि में गोचर करने जा रहे हैं। ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की चाल बदलने को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रहों के चाल बदलने का सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष में बुध देव को विशेष स्थान प्राप्त है। बुध के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने से कुछ राशि वालों को जबरदस्त लाभ होगा। आइए जानते हैं, बुध के वृश्चिक राशि में प्रवेश से किन राशियों के शुरू होंगे अच्छे दिन-
मेष राशि-
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
माता से धन प्राप्ती के योग बन रहे हैं।
दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी।
किसी मित्र के सहयोग से रोजगार के अवसर मिल सकते हैं।
आय में वृद्धि होगी।
नौकरी में उच्चाधिकारियों का सहयोग मिलेगा।
तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे।
वृषभ राशि-
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
कुटुंब परिवार में धार्मिक कार्य होंगे।
संतान सुख में वृद्धि होगी।
उच्च शिक्षा एवं शोध आदि कार्यों के लिए विदेश प्रवास की संभावना बन रही है।
नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन के योग बन रहे हैं।
जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा।
नौकरी में स्थानांतरण की संभावना भी बन रही है।
मिथुन राशि-
शैक्षिक कार्य और मान-सम्मान में वृद्धि होगी।
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
कार्यों के प्रति जोश व उत्साह रहेगा।
नौकरी व कार्यक्षेत्र में विस्तार हो सकता है।
स्थान परिवर्तन की भी संभावना बन रही है।
अफसरों का सहयोग मिलेगा।
धार्मिक स्थान पर सत्संगआदि कार्यक्रम में जा सकते हैं।
मित्रों का सहयोग मिलेगा।
सिंह राशि-
संपत्ति से आय में वृद्धि होगी।
माता से धन की प्राप्ती हो सकती है।
कला व संगीत के प्रति रुझान बढ़ेगा।
नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन की संभावना बन रही है।
स्थान परिवर्तन भी संभव है।
आय में वृद्धि होगी।
संपत्ति से आय के स्रोत विकसित होंगे।
धनु राशि-
माता का सानिध्य व सहयोग मिलेगा।
प्रतियोगी परीक्षा व साक्षात्कार आदि कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे।
घर-परिवार में धार्मिक संगीत के कार्य होंगे।
वाहन सुख में वृद्धि होगी।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।
तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे, लेकिन दूसरे स्थान पर जाना पड़ सकता है।
आय में वृद्धि होगी।
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायवास्तु दोष दूर करने के लिए बैम्बू प्लांट यानी बांस के पौधे को महत्वपूर्ण माना गया है। इसे घर या ऑफिस अथवा अपने कार्यस्थल पर लगाने से बरकत होती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर जाती है। लेकिन इस पौधे को लगाने में दिशा का ध्यान रखेंगे तो और ज्यादा फायदा होगा।तीन बांस के डंठल और टेड़े-मेढे बांसआपस में प्यार के लिए तीन बांस के बीच में एक टेढ़े बांस का इस्तेमाल शुभ होता है। बांस के पौधे को पूर्व और उत्तर दिशा में रखना शुभ माना गया है। इससे परिवार के सदस्यों में आपसी तालमेल ठीक रहता है। सकरात्मक ऊर्जा से भरपूर हरे-भरे बांस का पौधा घर या कार्यस्थल जहां भी रखा जाता है, वहां क्लेश नहीं होता है। बांस का पौधा वहां लगाना चाहिए जहां पर परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठते हों।सात या नौ डंठल के बांसअच्छे रिश्तों, सेहत और भाग्य के लिए सात या नौ बांस के डंठल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। फेंगशुई के अनुसार गुडलक बांस को घर या दफ्तर में रखने से समृद्धि, स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा आती है। बांस के पौधे को सुख-समृद्धि एवं दीर्घायु का प्रतीक माना हैं। इसे हमेशा पानी से भरे बाउल में रखना चाहिए।6 बांस के डंठलघर में आर्थिक सम्पन्नता और सुख-शांति के लिए बांस के पौधे को रखने की सबसे अच्छी दिशा पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा होती है। जीवन में धन की कभी कमी महसूस न हो इसके लिए 6 बांस के डंठल का प्रयोग आपको लाभ देगा। फेंगशुई के अनुसार बांस के छह डंठल धन को आकर्षित करते हैं।2 बांस के डंठलपति-पत्नी के बीच में मधुर संबंध बनाए रखने के लिए लाल रिबन में लपेट कर दो बांस के डंठल का प्रयोग शुभ माना गया है। ध्यान रहे कि ये दोनों पौधे एकदम स्वस्थ्य हों। इसे कांच के पात्र में जल भरकर कर पूर्व,पूर्वोत्तर या उत्तर दिशा में रखें। लेकिन ध्यान रखें कि ये सूखने न पाएं ,यदि ऐसा हो तो इन्हें हटाकर दूसरे रख लें।4 बांस के पौधे और बैम्बू बंचयदि किसी विद्यार्थी को अपने करियर में बार-बार असफलता या बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है और लगातार प्रयास करने के बावजूद सफलता प्राप्त नहीं हो रही है,तो अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए वह अपने स्टडी रूम में चार बांस के छोटे पौधों को लगाकर शुभ परिणाम प्राप्त कर सकता है। आप जो भी काम करते हैं,ये आपके फोकस को बढ़ाने में आपकी मदद करता है। करियर संबंधी दिक्क्तों को दूर करने में सहायता करता है। पढ़ाई में अच्छी उपलब्धि, रचनात्मकता और लेखन के लिए बांस के बंच का प्रयोग किया जाना शुभ होता है।
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-पं. प्रकाश उपाध्याय
ज्योतिष विद्या और वास्तु शास्त्र की तरह ही हस्तरेखा ज्ञान से भी व्यक्ति के भविष्य का आंकलन किया जाता है। हथेलियों में मौजूद कुछ रेखाएं बेहद शुभ मानी जाती है। मान्यता है की कुछ रेखाएं हाथों में व्यक्ति के जीवन में होने वाले बदलावों को भी दर्शाती हैं। वहीं, इन रेखाओं से कुछ योग भी बनते हैं। वहीं, जिन व्यक्तियों के हाथ में धन रेखा की स्थिति अच्छी होती है, उन्हें आर्थिक दिक्कतों का सामना ज्यादा नहीं करना पड़ता है और ऐसे व्यक्ति बेहद ही भाग्यशाली माने जाते हैं।
कहीं आपके हाथ में भी तो नहीं मौजूद है ये रेखा-
धन रेखा
हस्तरेखा विद्या के अनुसार, वित्त रेखा या धन रेखा आमतौर पर हथेली के बीचों-बीच पाई जाती है। यह रेखा हृदय रेखा और कलाई के बीच मौजूद होती है। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, पुरुषों के बाएं हाथ की वित्त रेखा पढ़ी जाती है और महिलाओं के दाएं हाथ की वित्त रेखा पढ़ी जाती है।
भाग्य योग
जब भाग्य रेखा गुरु पर्वत या चंद्र पर्वत से शुरू होती है और दिखने में लंबी, स्पष्ट और डार्क नजर आती है तब भाग्य योग बनता है। हथेली में भाग्य योग बनने पर व्यक्ति को सफलता हासिल करने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। वहीं, ऐसे व्यक्ति खूब धन-दौलत भी कमाते हैं।
कैसे पहचानें?
हाथ में वित्त रेखा की मदद से रुपए पैसों या लग्जरी-समृद्धि की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। अगर आपके हाथ की वित्त रेखा गाढ़ी है या उसका रंग डार्क है तो इसका मतलब यह है कि आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत और अच्छी रहने वाली है। वित्त रेखा का कलर डार्क हो तो व्यक्ति के जीवन में धन की कमी नहीं रहती है। अच्छी वित्त रेखा वाला व्यक्ति बेहद ही भाग्यशाली माना जाता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में ऐश्वर्य, यश और वैभव का सुख मिलता है। जरूरी नहीं हर व्यक्ति के हाथ में वित्त रेखा मौजूद हो। लेकिन जिन व्यक्तियों के हाथ में गाढी वित्त रेखा पाई जाती है, वे सुख और मजे की जिंदगी जीते हैं। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
कड़ी मेहनत करने के बाद भी व्यक्ति को सफलता हाथ नहीं लगती है। जीवन में आर्थिक तंगी के साथ ही खराब सेहत का भी सामना करना पड़ता है। परिवार के सदस्यों के बीच अनबन रहती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, घर में वास्तु दोष होने पर भी व्यक्ति आर्थिक, मानसिक व शारीरिक कष्टों का सामना करता है। वास्तु शास्त्र की मानें तो अगर आपको मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है, तो अपने घर की दक्षिण पश्चिम दिशा की जांच करें। वहां हरा, नीला या काला रंग या इस रंग के सोफे, पर्दे तो नहीं हैं। यदि हैं, तो तुरंत हटा दें और वहां पीला रंग कर दें।
जानें घर से वास्तु दोष दूर करने व जीवन में खुशहाली लाने के आसान उपाय-
● सीढ़ी बनाने के लिए उत्तम दिशाएं हैं-दक्षिण, पश्चिम व दक्षिण पश्चिम। उत्तर, पूर्व तथा उत्तर -पूर्व में कभी सीढ़ी नहीं बनानी चाहिए। यह सीढ़ी बहुत खराब फल देती है। परिवार की उन्नति को रोक देती है। घर के मुखिया पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है।
● सीढ़ी हमेशा क्लॅाकवाइज होनी चाहिए। सीढ़ी में स्टेप्स की संख्या हमेशा विषम होनी चाहिए। सीढ़ियों के नीचे कुछ नहीं बनाना चाहिए।
● सुबह उठकर अपना बिस्तर तह करके जरूर रखें।
● दरवाजे के पीछे कपड़े ना टांगें।
● बेडरूम में चप्पल ना उतारें। जूते-चप्पल फैलाकर ना रखें।
● टूटा हुआ शीशा बिलकुल नहीं रखें। गोल या अंडाकार शीशा लगाना नहीं चाहिए और साथ ही शीशे के सामने शीशा कभी नहीं लगाना चाहिए।
● आप अपने गल्ले को दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में कर लें।
● रात को किचन और बाथरूम में एक बर्तन में पानी भरकर रखें और सुबह उसे फेंक दें। गल्ले में केसर से स्वस्तिक बनाएं।
● एक नमक की डली भी गल्ले में रखें और इसको नियमित अंतराल पर बदलते रहें। गल्ले को नियमित रूप से धूप दिखाएं। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
सुख-संपदा व ऐश्वर्य आदि के कारक शुक्र ग्रह एक निश्चित अवधि में एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं। शुक्र राशि बदलने के साथ ही नक्षत्र परिवर्तन भी करते हैं। द्रिकपंचांग के अनुसार, 28 दिसंबर 2023, गुरुवार को शुक्र सुबह 01 बजकर 02 मिनट पर अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। शुक्र अनुराधा नक्षत्र में 17 फरवरी 2024 में रहेंगे और फिर अभिजीत नक्षत्र में गोचर करेंगे। अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि हैं। ज्योतिष शास्त्र में शनि को न्यायदेवता व कर्मफलदाता माना गया है। शुक्र के नक्षत्र परिवर्तन का प्रभाव मेष से लेकर मीन राशि तक पर पड़ेगा।
जानें शुक्र नक्षत्र परिवर्तन का किन राशियों को होगा सबसे ज्यादा फायदा-
वृषभ राशि-
शुक्र अनुराधा नक्षत्र में गोचर करके सातवें भाव में प्रवेश करेंगे। यह भाव पार्टनर, शादी-ब्याह और पार्टनरशिप में व्यापार के लिए जाना जाता है। शुक्र के नक्षत्र परिवर्तन से वृषभ राशि के जातकों को भाग्य का साथ मिलेगा, जिससे कई अटके काम बन सकते हैं। वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर हो जाएंगी। सिंगल जातकों को विवाह प्रस्ताव भी आ सकते हैं।
कर्क राशि-
कर्क राशि वालों के लिए शुक्र का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश करना बहुत ही लाभकारी रहने वाला है। इस अवधि में आपकी आय में वृद्धि के साथ कार्यों में सफलता हासिल होगी। आपको भूमि, भवन व वाहन सुख भी मिल सकता है। निवेश के लिए यह अवधि आपके लिए अनुकूल रहने वाली है।
सिंह राशि
सिंह राशि वालों के लिए शुक्र नक्षत्र परिवर्तन शुभ रहने वाला है। इस अवधि में आपके वैवाहिक जीवन की परेशानियां खत्म हो सकती हैं। करियर के लिए भी यह समय शुभ रहने वाला है। आप अपनों के साथ समय बिताएंगे। व्यापारियों को मुनाफा हो सकता है। आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। आप महत्वपूर्ण निर्णय लेने में भी सफल रहेंगे। आय के नवीन साधन सामने आएंगे। अपनों का साथ मिलेगा। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
कुंडली में ग्रहों की स्थिति काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर भी पड़ता है। सभी ग्रहों की अपनी विशेषताएं हैं। गुरु ग्रह का संबंध प्रेम, विवाह, सुख-समृद्धि और वैभव से होता है। ऐसे में गुरु की दशा बिगड़ने पर या कुंडली में गुरु कमजोर होने पर जीवन में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए गुरु की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए इन इजी टिप्स को अपनाएं।
गुरु को मजबूत कैसे बनाएं?
1. अपनी फाइनेंशियल सिचुएशन को सुधारने के लिए आपको हर बृहस्पतवार के दिन पीले कपड़े पहनने चाहिए और गुरु को मजबूत बनाए रखने के लिए पीली चीजों का दान भी करना चाहिए।
2. अपने घर की दरिद्रता दूर करना चाहते हैं तो हर गुरुवार प्रभु विष्णु और माता लक्ष्मी की पूरे विधि-विधान से पूजा करें। इससे गुरु दोष का बुरा प्रभाव भी कम होगा।
3. आर्थिक तंगी से निजात पाने और गुरु को मजबूत बनाने के लिए गुरुवार को विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
4. अगर आपकी कुंडली में गुरु दोष है, जिसके चलते आर्थिक और निजी जिंदगी में दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं तो गुरुवार के दिन पानी में एक-दो चुटकी हल्दी मिलाकर नहाएं।
5. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार रोजाना जाप करने से जीवन के कष्टों को दूर कर कुंडली में गुरु की स्थिति को सुधारा जा सकता है।
6. गुरु के बुरे प्रभाव से बचने के लिए और विवाह की रुकावटें दूर करने के लिए गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा करें। पेड़ की जड़ के समक्ष घी के पांच दीपक जलाएं। चने और गुड़ का भोग लगाएं। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की साथ में विधिवत पूजा करें। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
नकारात्मक ऊर्जा के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए घर के अलावा वाहन के वास्तु का भी खास ध्यान रखना चाहिए। इससे पॉजिटिविटी बढ़ती है। वास्तु के अनुसार, मान्यता है कि गाड़ी में गलत वास्तु के कारण नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति को जीवन में कई बार अप्रिय घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।
आइए जानते हैं वाहन की नेगेटिविटी से छुटकारा पाने के लिए वास्तु के विशेष नियम...
भगवान की प्रतिमा
वास्तु के अनुसार, सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए गाड़ी के डैशबोर्ड पर गणेशजी, दुर्गा माता या शिवजी की प्रतिमा जरूर रखें। मान्यता है कि इससे वास्तु दोष दूर होता है और देवी-देवताओं की कृपा से सभी दुख-संकट दूर होते हैं।
कछुआ
वास्तु के मुताबिक, नेगेटिविटी दूर करने के लिए गाड़ी में काला कछुआ रख सकते हैं। ऐसा करना बहुत मंगलकारी माना जाता है।
पानी की बोतल
वास्तु के अनुसार, गाड़ी में पानी की बोतल जरूर रखना चाहिए। मान्यता है कि इससे मन स्पष्ट और जागरूक रहता है और कार के अंदर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
मोर का पंख
कार में मोर का पंख, शिवजी का डमरू या मां दुर्गा की चुनरी रखना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन के सभी बाधाएं टल जाती हैं, लेकिन ध्यान रखें कि एल्कोहल का सेवन करके इन्हें फॉलो करने से किसी भी उपाय के पॉजिटिव रिजल्ट नहीं मिलते हैं।
क्रिस्टल स्टोन
गाड़ी में नेचुरल स्टोन या क्रिस्टल स्टोन रखना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे कार में सकारात्मक ऊर्जा बरकरार रहती है।
चाइनीज सिक्के
कार में गोल्डन कलर के चाइनीज सिक्कों को रखना भी बेहद शुभ माना गया है। मान्यता है कि यह गाड़ी के रंग, इंटीरियर और साइज के बीच संतुलन बनाए रखता है और वाहन का वास्तुदोष दूर होता है।
कार में ना रखें ये चीजें
वास्तु के मुताबिक, कार में कभी भी टूटी-फूटी चीजों को नहीं रखना चाहिए और ना ही गाड़ी में ज्यादा गंदगी फैली होनी चाहिए। इसके साथ ही कार के शीशों की साफ-सफाई का खास ध्यान रखें। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
कुंडली में ग्रहों की स्थिति का शुभ-अशुभ प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में अच्छे-बुरे परिणाम मिलते रहते हैं। ऐसे ही कुंडली में शनिदेव की अशुभ स्थिति सबसे कष्टकारी मानी जाती है। मान्यता है कि शनिदेव की बुरी दृष्टि से जातक का जीवन दुख और बाधाओं से घिरा रहता है। जीवन में खुशियां दूर-दूर तक नजर नहीं आती है और व्यक्ति को जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। रत्न शास्त्र में कई ऐसे रत्नों के बारे में बताया गया है, जिससे कुंडली के कमजोर ग्रहों को मजबूत बनाया जा सकता है। शनि के प्रकोप से बचने के लिए भी कई रत्न बहुत लाभकारी माने जाते हैं।
आइए जानते हैं कुंडली में शनि का दुष्प्रभाव कम करने के खास रत्न...
फिरोजा रत्न: कुंडली में शनि ग्रह को मजबूत करने के लिए फिरोजा रत्न धारण करना बेहद शुभ माना गया है। इस रत्न को पहनने से गुरु ग्रह भी मजबूत होता है। इस रत्न से कॉन्फिडेंस बढ़ता है। गृह-क्लेश से मुक्ति मिलती है। इसे शुक्रवार, गुरुवार और शनिवार को धारण किया जा सकता है। फिरोजा रत्न को चांदी या पंच धातु की अंगूठी में पहनने से ज्यादा लाभ होता है।
लाजवर्त रत्न
शनि के प्रकोप से बचने के लिए लाजवर्त रत्न भी पहनना मंगलकारी माना गया है। इस रत्न से कुंडली में शनि, राहु और केतु तीनों ग्रहों के अशुभ प्रभावों से छुटकारा मिलता है और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। मान्यता है कि इस रत्न को धारण करने से नौकरी-कारोबार में आ रही बाधाओं से मुक्ति मिलती है। लाजवर्त को शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी में पहनना शुभ माना गया है।
नीलम रत्न
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए नीलम रत्न धारण करना बहुत लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इससे स्वास्थ्य में आ रही दिक्कतें दूर होती हैं। मन की एकाग्रता बढ़ती है। इस रत्न को शनिवार के दिन धारण करना शुभ होता है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
हाथों पर मौजूद रेखाओं से करियर, लव लाइफ, विवाह और स्वास्थ्य जैसे कई टॉपिक्स के बारे में पता लगाया जा सकता है। हथेली पर मौजूद रेखाओं से कई योग भी बनते हैं। हथेली की रेखाओं से बने कुछ योग काफी शुभ माने जाते हैं। इन योग के निर्माण से व्यक्ति को जीवन में कामयाबी और धन लाभ के कई अवसर भी प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ योगों के बारे में-
गजलक्ष्मी योग
हाथों की लकीरों से बना गजलक्ष्मी योग बेहद ही शुभ माना जाता है। जब मणिबंध से शुरू भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाती है और सूर्य रेखा गाढ़ी और स्पष्ट दिखती है तब गजलक्ष्मी योग का निर्माण होता है। जिन लोगों के हाथ में गजलक्ष्मी योग पाया जाता है, वे बेहद ही भाग्यशाली माने जाते हैं। ऐसे लोगों को व्यापार में खूब कामयाबी मिलती है और इन्हें ज्यादा आर्थिक दिक्कतें नहीं झेलनी पड़ती है।
भाग्य योग
जब भाग्य रेखा गुरु पर्वत या चंद्र पर्वत से शुरू होती है और दिखने में लंबी, स्पष्ट और डार्क नजर आती है तब भाग्य योग बनता है। हथेली में भाग्य योग बनने पर व्यक्ति को सफलता हासिल करने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। वहीं, ऐसे व्यक्ति खूब धन-दौलत भी कमाते हैं।
शुभ कर्तरी योग
शुभ कर्तरी योग तब बनता है जब हथेली के बीच का हिस्सा बाकी हिस्सों के मुकाबले दबा हो और भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाती हो। साथ ही गुरु और सूर्य पर्वत भी अच्छी स्थिति में हो। जिन व्यक्तियों के हाथ में शुभ कर्तरी योग पाया जाता है वे आर्थिक रूप से समृद्ध रहते हैं और जीवन में खूब तरक्की भी करते हैं। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में कार्तिक माह का बहुत महत्व ज्यादा महत्व है। इस माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैं, उनके जागने के बाद ही सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से शुरू होते हैं। इसके साथ ही हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ही तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है। मान्यता है कि तुलसी विवाह संपन्न करवाने से कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है और मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। साथ ही तुलसी जी और शालिग्राम की कृपा से विवाह में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं। शादीशुदा जीवन में भी खुशियां बनी रहती हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं इस साल कब है तुलसी विवाह...
तुलसी विवाह 2023 कब है ?
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। इस साल 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी को है, इसलिए 23 नवंबर को ही तुलसी विवाह मनाया जाएगा। इसी दिन भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह किया जाएगा।
तुलसी विवाह 2023 मुहूर्त
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को रात 11.03 बजे से शुरू हो रही है। इसका समापन 23 नवंबर की रात 09.01 बजे होगा। एकादशी तिथि पर रात्रि पूजा का मुहूर्त शाम 05.25 से रात 08.46 तक है। आप चाहें तो इस मुहूर्त में तुलसी विवाह संपन्न करा सकते हैं।
तुलसी विवाह की पूजा विधि
तुलसी विवाह के लिए सबसे पहले लकड़ी की एक साफ चौकी पर आसन बिछाएं।
गमले को गेरू से रंग दें और चौकी के ऊपर तुलसी जी को स्थापित करें।
दूसरी चौकी पर भी आसन बिछाएं और उस पर शालिग्राम को स्थापित करें।
दोनों चौकियों के ऊपर गन्ने से मंडप सजाएं।
अब एक कलश में जल भरकर रखें और उसमें पांच या फिर सात आम के पत्ते लगाकर पूजा स्थल पर स्थापित करें।
फिर शालिग्राम व तुलसी के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें और रोली या कुमकुम से तिलक करें।
तुलसी पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं, चूड़ी,बिंदी आदि चीजों से तुलसी का श्रृंगार करें।
इसके बाद सावधानी से चौकी समेत शालिग्राम को हाथों में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं।
पूजा संपन्न होने के बाद तुलसी व शालिग्राम की आरती करें और उनसे सुख सौभाग्य की कामना करें।
साथ ही प्रसाद सभी में वितरित करें।
तुलसी विवाह का महत्व
मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है, इसलिए यदि किसी व्यक्ति की कन्या न हो तो उसे तुलसी विवाह करके कन्या दान का पुण्य जरूर कमाना चाहिए। जो व्यक्ति विधि-विधान के साथ तुलसी विवाह संपन्न करता है उसके मोक्ष प्राप्ति के द्वार खुल जाते हैं। साथ ही तुलसी और भगवान शालिग्राम का विधिवत पूजन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
घर में पौधे लगाते समय दिशा का खास ध्यान रखना चाहिए। पेड़-पौध की हरियाली से घर की सुंदरता तो बढ़ती हैं, लेकिन कुछ बातों का ख्याल रखने से घर वास्तु दोषों से छुटकारा मिलता है और घर में सुख-समृद्धि औऱ खुशहाली आती है। पौधे लगाते समय दिशा पर जरूर ध्यान दें और कोई भी पौधा गलत दिशा में न लगाएं। वास्तु के मुताबिक, ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में आइए जानते हैं पेड़-पौधे से जुड़ी वास्तु के नियम...
पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में लगाएं ये पौधे
वास्तु के अनुसार, घर के पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में तुलसी, केला, आंवला, गेंदा,शमी, हरी दूब, मनी प्लांट, धनिया, हल्दी, लिली और पुदीना का पौधा लगाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इन पौधों को लगाने से घर का वास्तु दोष दूर होता है और घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।
उत्तर दिशा
वास्तु के मुताबिक, घर उत्तर दिशा में नीले रंग के फूल देने वाले पौधों को लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन मे सकारात्मकता बढ़ती हैं और घर में खुशहाली का माहौल रहता है और करियर में भी खूब सफलता मिलती है।
दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं ये पौधे
वास्तु शास्त्र के अनुसार,पीपल पेड़ को घर से कहीं दूर खुले स्थान पश्चिम दिशा की तरफ लगाना चाहिए। इस दिशा में मोगरा और चमेली का फूल लगाना भी बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में तरक्की के खूब अवसर मिलते हैं और जीवन सुख-सुविधाओं में व्यतीत होता है।
उत्तर-पश्चिम दिशा
वास्तु के अनुसार घर के उत्तर-पश्चिम दिशा में बेल का पेड़ लगाना बेहद शुभ होता है। मान्यता है कि इस दिशा में बेल का पौधा लगाने से घर की नेगेटिविटी दूर होती है। वास्तुदोष से छुटकारा मिलता है और सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।
दक्षिण-पूर्व दिशा
मान्यता है कि घर के दक्षिण-पूर्व दिशा में लाल रंग के फूल देने वाले पौधों को लगाना चाहिए। इन पौधों को घर में लगाने जातक का समाज में मान-सम्मान और यश, कीर्ति बढ़ती है।
-Mobael no-9406363514 -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
साल 2023 अब खत्म होने वाला है और नया साल 2024 का हर किसी को बेसब्री से इंतजार है। साल 2024 में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति में बड़े परिवर्तन देखने को मिलेंगे। गुरु वर्तमान में मेष राशि में वक्री अवस्था में विराजमान हैं और 31 दिसंबर 2023 को वक्री से मार्गी होंगे। गुरु की सीधी चाल का प्रभाव सभी 12 राशियों पर पड़ेगा। गुरु को ज्योतिष शास्त्र में सुख-संपदा, वैभव, धन व ऐश्वर्य आदि का कारक माना गया है। गुरु ग्रह की मार्गी स्थिति कुछ राशि वालों के जीवन में सुख-सुविधाओं में वृद्धि लेकर आएगी। जानें गुरु के मार्गी होने का किन राशियों पर पड़ेगा शुभ प्रभाव-
मेष राशि
मेष राशि वालों के लिए गुरु की मार्गी चाल अत्यंत लाभकारी रहने वाली है। साल 2024 में गुरु मेष राशि वालों को मान-सम्मान, धन व करियर में तरक्की प्रदान कर सकते हैं। गुरु ग्रह के प्रभाव से आपके अटके हुए काम संपन्न होंगे। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। भाग्य का पूरा साथ मिलेगा। कई महत्वपूर्ण फैसले लेने में भी सफल हो सकते हैं।
सिंह राशि
सिंह राशि वालों के लिए गुरु का मार्गी होना शुभ संकेत दे रहा है। गुरु के प्रभाव से आपको किस्मत का पूरा साथ मिलेगा। भाग्यवश कुछ काम बनेंगे। धन लाभ के नए अवसर सामने आएंगे। कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है। निवेश का लाभ मिल सकता है। गुरु ग्रह के मार्गी होने से आपको सुखद समाचार की प्राप्ति हो सकती है। कुल मिलाकर साल 2024 आपके लिए बहुत शुभ रहने वाला है।
धनु राशि
धनु राशि वालों के लिए गुरु ग्रह की सीधी चाल अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकती है। गुरु के मार्गी होने से आपको संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है। परिवार का माहौल सुख-शांति वाला रहेगा। साल 2024 में आपको नए साधनों से धन की प्राप्ति होगी। पुराने मार्ग से भी रुपए-पैसे आएंगे। करियर में नई उपलब्धि मिल सकती है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज मनाया जाता है। दिवाली का पंचदिवसीय पर्व धनतेरस से प्रारंभ होकर भाईदूज के दिन समाप्त होता है। लेकिन इस साल दो दिन अमावस्या तिथि होने के कारण दिवाली का पर्व छह दिन का पड़ा है। क्योंकि दिवाली व गोवर्धन पूजा के बीच में एक दिन का अंतर पड़ा था। आमतौर पर गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन ही की जाती है।
----जानें भाई दूज के दिन तिलक करने का शुभ मुहूर्त, डेट, इतिहास व महत्व-
भाई दूज कब है
द्वितीया तिथि 14 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट से प्रारंभ होगी और 15 नवंबर को दोपहर 01 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। इस साल भाई दूज 15 नवंबर 2023, बुधवार को मनाया जाएगा।
भाई दूज 2023 पर तिलक करने के शुभ मुहूर्त---
लाभ - उन्नति: 10:44 ए एम से 12:04 पी एम
अमृत - सर्वोत्तम: 12:04 पी एम से 01:25 पी एम
शुभ - उत्तम: 02:46 पी एम से 04:07 पी एम
लाभ - उन्नति: 07:07 पी एम से 08:46 पी एम
शुभ - उत्तम: 10:25 पी एम से 12:05 ए एम, नवम्बर 15
अमृत - सर्वोत्तम: 12:05 ए एम से 01:44 ए एम, नवम्बर 15
भाई दूज का इतिहास
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण नरकासुर को हराने के बाद अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गए थे। सुभद्रा ने मिठाइयों और फूलों से उनका स्वागत किया और उनके माथे पर तिलक लगाया। तभी से इस दिन भाई दूज मनाया जाने लगा। एक अन्य कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना से मिलने गए, जिन्होंने तिलक समारोह के साथ उनका स्वागत किया। तब यम ने निर्णय लिया कि इस दिन जो कोई भी अपनी बहन से तिलक और मिठाई ग्रहण करेगा उसे दीर्घायु का आशीर्वाद दिया जाएगा।
भाई दूज का महत्व
भाई का अर्थ है भाई और दूज का अर्थ है अमावस्या के बाद का दूसरा दिन। भाई दूज पर बहनें अपने भाइयों को टीका करके उनके लंबे और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार प्रदान करते हैं। भाई दूज को भाऊ बीज, भाई दूज, भात्र द्वितीया और भतरु द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में भाई दूज को भाई फोटा के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में, यम द्वितीया मनाई जाती है, जबकि महाराष्ट्र में उसी दिन भाऊ बीज मनाया जाता है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
पांच दिवसीय दिवाली पर्व के चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन घरों में गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद शाम के समय गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा होती है और उन्हें अन्नकूट और कढ़ी चावल का भोग लगाया जाता है। इस साल दिवाली 12 नवंबर की है, लेकिन गोवर्धन पूजा की तिथि को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। आइए आपको बताते हैं कि किस दिन गोवर्धन पूजा की जाएगी और पूजा का शुभ समय क्या है।
ये है सही डेट और शुभ मुहूर्त
इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर दिन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से हो रही है और समापन अगले दिन 14 नवंबर दिन मंगलवार को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर होगा। हिंदू धर्म में उदया तिथि को विशेष महत्व दिया जाता है। ऐसे में गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर को मनाया जाएगा। द्रिक पंचांग के अनुसार, शुभ गोवर्धन पूजा प्रात:काल मुहूर्त 14 नवंबर को सुबह 6:43 बजे से 08:52 बजे के बीच है। ऐसे में गोवर्धन पूजा के लिए दो घंटे नौ मिनट तक पूजा का मुहूर्त रहेगा। गोवर्धन पर घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा को प्रकृति की पूजा भी कहा जाता है, इसकी शुरुआत स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने की थी।
गोवर्धन पूजा पर बन रहे ये योग
इस बार गोवर्धन पूजा के दिन शुभ योग बन रहे हैं। गोवर्धन पूजा पर शोभन योग प्रात:काल से लेकर दोपहर 01 बजकर 57 मिनट तक है। उसके बाद से अतिगंड योग शुरू हो जाएगा। अतिगंड योग शुभ नहीं होता है। हालांकि शोभन योग को एक शुभ योग माना जाता है। इसके अलावा गोवर्धन पूजा के दिन सुबह से ही अनुराधा नक्षत्र होगी।
गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें। फिर शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानी गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनाएं। इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजा करें। भगवान कृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन करें। इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाएं।
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व है। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का घमंड तोड़ा था और गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की जान बचाई थी । लोगों को प्रकृति की सेवा और पूजा करने का संदेश दिया था। ये दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन था। तभी से इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और भगवान को सभी तरह की मौसमी सब्जियों से तैयार अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। -
दीवाली पर माँ लक्ष्मी, सरस्वती एवं गणेशजी की पूजा की जाती है। इन दिन इन तीनों देवी-देवताओं की विशेष पूजा-अर्चना कर उनसे सुख-समृद्धि, बुद्धि तथा घर में शांति, तरक्की का वरदान माँगा जाता है। दीवाली पर देवी-देवताओं की पूजा में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है जो निम्न प्रकार हैं-
पूजन सामग्रीदीवाली पूजा के सामान की लगभग सभी चीजें घर में ही मिल जाती हैं। कुछ अतिरिक्त चीजों को बाहर से लाया जा सकता है। ये वस्तुएं हैं- लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, रोली, कुमकुम, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी तथा तांबे के दीपक, रुई, कलावा (मौलि), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत (जनेऊ), श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, देवताओं के प्रसाद हेतु मिष्ठान्न (बिना वर्क का)पूजन विधिदीवाली की पूजा में सबसे पहले एक चौकी पर सफेद वस्त्र बिछा कर उस पर माँ लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा को विराजमान करें। इसके बाद हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए छिड़कें। बाद में इसी तरह से स्वयं को तथा अपने पूजा के आसन को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:॥इसके बाद माँ पृथ्वी को प्रणाम करके निम्न मंत्र बोलें तथा उनसे क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने आसन पर विराजमान हों।पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलंछन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।त्वं च धारय माँ देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमःइसके बाद "ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः" कहते हुए गंगाजल का आचमन करेंध्यान व संकल्पइस पूरी प्रक्रिया के बाद मन को शांत कर आँखें बंद करें तथा माँ को मन ही मन प्रणाम करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प और जल ले लीजिए। साथ में एक रूपए (या यथासंभव धन) का सिक्का भी ले लें। इन सब को हाथ में लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर माँ लक्ष्मी, सरस्वती तथा गणेशजी की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। तत्पश्चात कलश पूजन करें, फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए, और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। इन सभी के पूजन के बाद 16 मातृकाओं को गंध, अक्षत व पुष्प प्रदान करते हुए पूजन करें। पूरी प्रक्रिया मौलि लेकर गणपति, माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण कर और स्वयं के हाथ पर भी बंधवा लें। अब सभी देवी-देवताओं के तिलक लगाकर स्वयं को भी तिलक लगवाएं। इसके बाद माँ महालक्ष्मी की पूजा आरंभ करें।माँ को रिझाने के लिए करें श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ सबसे पहले भगवान गणेशजी, लक्ष्मीजी का पूजन करें। उनकी प्रतिमा के आगे 7, 11 अथवा 21 दीपक जलाएं तथा माँ को श्रृंगार सामग्री अर्पण करें। माँ को भोग लगा कर उनकी आरती करें। श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करें। इस तरह से आपकी पूजा पूर्ण होती है।क्षमा-प्रार्थनापूजा पूर्ण होने के बाद माँ से जाने-अनजाने हुए सभी भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। उन्हें कहें- माँ न मैं आह्वान करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे आप भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों। (सभी आध्यात्मिक जानकारियों के लिये हमारे फेसबुक पेज श्रीजी की चरण सेवा के साथ जुड़े रहें।)दीपावली की लक्ष्मीजी की कथाहमारी लोक संस्कृति में दीपावली त्योहार और माता लक्ष्मी की बड़ी सौंधी सी कथा प्रचलित है। एक बार कार्तिक मास की अमावस को लक्ष्मीजी भ्रमण पर निकलीं। चारों ओर अंधकार व्याप्त था। वे रास्ता भूल गईं। उन्होंने निश्चय किया कि रात्रि वे मृत्युलोक में गुजार लेंगी और सूर्योदय के पश्चात बैकुंठधाम लौट जाएंगी, किंतु उन्होंने पाया कि सभी लोग अपने-अपने घरों में द्वार बंद कर सो रहे हैं।तभी अंधकार के उस साम्राज्य में उन्हें एक द्वार खुला दिखा जिसमें एक दीपक की लौ टिमटिमा रही थी। वे उस प्रकाश की ओर चल दीं। वहां उन्होंने एक वृद्ध महिला को चरखा चलाते देखा। रात्रि विश्राम की अनुमति माँग कर वे उस बुढ़िया की कुटिया में रुकीं।वृद्ध महिला लक्ष्मीदेवी को बिस्तर प्रदान कर पुन: अपने कार्य में व्यस्त हो गई। चरखा चलाते-चलाते वृद्धा की आंख लग गई। दूसरे दिन उठने पर उसने पाया कि अतिथि महिला जा चुकी है किंतु कुटिया के स्थान पर महल खड़ा था। चारों ओर धन-धान्य, रत्न-जेवरात बिखरे हुए थे।कथा की फलश्रुति यह है कि माँ लक्ष्मीदेवी जैसी उस वृद्धा पर प्रसन्न हुईं वैसी सब पर हों। और तभी से कार्तिक अमावस की रात को दीप जलाने की प्रथा चल पड़ी। लोग द्वार खोलकर लक्ष्मीदेवी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।किंतु मानव समाज यह तथ्य नहीं समझ सका कि मात्र दीप जलाने और द्वार खोलने से महालक्ष्मी घर में प्रवेश नहीं करेंगी। बल्कि सारी रात परिश्रम करने वाली वृद्धा की तरह कर्म करने पर और अंधेरी राहों पर भटक जाने वाले पथिकों के लिए दीपकों का प्रकाश फैलाने पर घरों में लक्ष्मी विश्राम करेंगी। ध्यान दिया जाए कि वे विश्राम करेंगी, निवास नहीं। क्योंकि लक्ष्मी का दूसरा नाम ही चंचला है। अर्थात् अस्थिर रहना उनकी प्रकृति है।इस दीपोत्सव पर कामना करें कि राष्ट्रीय एकता का स्वर्णदीप युगों-युगों तक अखंड बना रहे। हम ग्रहण कर सकें नन्हे-से दीप की कोमल-सी बाती का गहरा-सा संदेश कि बस अंधकार को पराजित करना है और नैतिकता के सौम्य उजास से भर उठना है।न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो ना शुभामति:भवन्ति कृत पुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्॥अर्थात् लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती। वे सत्कर्मों की ओर प्रेरित होते हैं।गणेश जी की आरतीजय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा,माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥१॥एक दंत दयावंत चार भुजाधारी।माथे पर तिलक सोहे, मुसे की सवारी॥२॥पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।लड्डुवन का भोग लगे, संत करे सेवा॥३॥अंधन को आंख देत, कोढ़ियन को काया।बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥४॥सुर श्याम शरण आये सफल कीजे सेवा।जय गणेश देवा, जय गणेश जय गणेश॥५॥----------:::×:::----------लक्ष्मीजी की आरतीॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता।तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ॐ॥उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम जग की माता।सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ॐ॥दुर्गारूप निरंजन, सुख संपत्ति दाता।जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता॥ॐ॥तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता।कर्मप्रभाव प्रकाशनी, क्षभवनिधि की त्राता॥ॐ॥जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्गुण आता।सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ॐ॥तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता।खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ॐ॥शुभ गुण मंदिर, सुंदर क्षीरनिधि जाता।रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ॐ॥महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता।उर आंनद समाता, पाप उतर जाता॥ॐ॥----------:::×:::---------- -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
12 नवंबर को दिवाली या दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा। इस बार की दिवाली काफी खास और पुण्यदायक रहेगी। दिवाली पर लगभग 500 सालों के बाद पांच राज योग मिलकर अद्भुत महासंयोग बना रहे हैं। दिवाली पर गजकेसरी योग, सौभाग्य योग, आयुष्मान योग, बुधादित्य राजयोग और शश महापुरुष राजयोग का निर्माण होगा, जो शुक्र, शनि, चंद्रमा, गुरु और बुध की स्थिति के कारण बनेंगे। राजयोगों के निर्माण से दिवाली का दिन कुछ राशियों के लिए लाभदायक साबित होगी। इसलिए आइए जानते हैं दिवाली पर कौन सी राशियां लकी रहने वाली हैं-
मेष राशि
इस साल की दिवाली मेष राशि वालों के लिए बेहद ही लाभदायक मानी जा रही है। दिवाली पर बने राजयोग से आय में वृद्धि होने की संभावना है। जॉब कर रहे लोगों को अच्छा बोनस मिल सकता है। व्यापारियों के लिए दिन बेहद ही सुखद माना जा रहा है। सेहत और धन के मामले में भाग्यशाली रहने वाले हैं। पूरी श्रद्धा के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करें।
धनु राशि
दिवाली पर बना पांच राजयोग का अद्भुत संयोग धनु राशि के लोगों के लिए फायदेमंद माना जा रहा है। आपको कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है। मां लक्ष्मी की कृपा से सुख-समृद्धि का आगमन होगा। दिवाली से ही आपके अच्छे दिनों की शुरुआत होगी। व्यापारियों के लिए दिन समृद्धि वाला माना जा रहा है।
मिथुन राशि
मिथुन राशि के लोगों के लिए इस बार की दिवाली बेहद ही खास रहने वाली है। आपको अपने किसी प्रिय परिजन या दोस्त से कोई उपहार मिल सकता है। नौकरी करने वालों का भाग्य साथ देगा। सेहत अच्छी रहेगी। वहीं, व्यापारियों को कोई बड़ा मुनाफा हाथ लग सकता है। मां लक्ष्मी का अभिषेक कच्चे दूध से करें। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों को दिवाली के त्योहार का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस साल दिवाली या दीपावली 12 नवंबर 2023, रविवार को है। दिवाली के दौरान लोग अपने प्रियजनों को उपहार देते हैं और अपने घरों को रोशनी से सजाते हैं। दिवाली का त्योहार धनतेरस से प्रारंभ होकर भाईदूज के दिन समाप्त होता है। दिवाली के दिन शाम को शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी पूजा की जाती है। मां महालक्ष्मी, मां महाकाली और मां सरस्वती, मां लक्ष्मी के स्वरूप हैं जिनकी दिवाली के दौरान पूजा की जाती है। लक्ष्मी पूजा में कमल के फूल का बहुत महत्व है। जानें लक्ष्मी पूजा में कमल के फूल का महत्व-
लक्ष्मी पूजन में कमल के फूल का महत्व
अष्टकमल यानी आठ कमल के फूल मां लक्ष्मी को बहुत अतिप्रिय हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां लक्ष्मी का अवतार कमल के फूल से हुआ था। इसलिए लक्ष्मी पूजा के दौरान मां को आठ कमल के फूल चढ़ाए जाते हैं। अगर लक्ष्मी पूजा के दौरान कमल के फूल उपलब्ध नहीं हैं, तो भक्त मां लक्ष्मी को गुड़ भी चढ़ा सकते हैं।
लक्ष्मी पूजन मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद।
श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नमः॥
मां लक्ष्मी बीज मंत्र: लक्ष्मी बीज मंत्र एक शक्तिशाली मंत्र है जो जीवन से धन की कमी को दूर कर सकता है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी को 8 कमल के फूल चढ़ाने और लक्ष्मी बीज मंत्र का जाप करने से भक्तों को कर्ज से मुक्ति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि जब हम लक्ष्मी बीज मंत्र का जाप करते हैं तो बुद्धि तेज होती है और जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है।
दिवाली लक्ष्मी पूजन विधि:
1. सबसे पहले ईशान कोण या उत्तर दिशा में साफ-सफाई के बाद स्वास्तिक बनाएं। एक कटोरी चावल रखें। लकड़ी के पाट पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें। ध्यान रहे कि माता लक्ष्मी की तस्वीर में गणेश जी और कुबेर जी की भी तस्वीर रहे।
2. सभी मूर्तियों या तस्वीरों पर जल छिड़ककर पवित्र करें।
3. अब कुश के आसन पर बैठकर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर जी को वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत और अंत में दक्षिणा चढ़ाएं।
4. माता लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं के मस्तक पर हल्दी, रोली और चावल लगाएं।
5. पूजा करने के बाद भोग या प्रसाद चढ़ाएं।
6. अंत में खड़े होकर देवी-देवताओं की आरती उतारें। आरती करने के बाद उस पर जल फेर दें।
8. पूजा के बाद घर के आंगन और मेनगेट में दीये जलाएं। एक दीपक यम के नाम का भी जलाना चाहिए। - धनतेरस पर इस बार पांच विशेष महायोग पड़ने से यह त्योहार बेहद सुख समृद्धि भरा हैं। लगभग 59 वर्षों के बाद धनतेरस पर गजकेसरी योग, कतरी शश योग, हर्ष उभयचारी योग, दुर्धर योग, धनलक्ष्मी योग बन रहे हैं। जो कि त्योहार के हिसाब से बेहद उत्तम माने जा रहे हैं। 59 वर्ष बाद इस बार धनतेरस पर पांच विशेष योग बन रहे हैं। इसके अतिरिक्त शुक्रवार का दिन तथा चंद्रमा और शुक्र ग्रह के एक साथ गोचर करने से भी त्योहार पर अद्भुत संयोग बना रहे हैं।धनतेरस पर हस्त नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। इसमें महामुहूर्त पर जमकर खरीदारी होने की संभावना है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार का र्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी भगवान विष्णु के अंशावतार और देवताओं के वैद्य भगवान धन्वन्तरि का समुद्र से प्राकट्य पर्व है। इस दिन आयुर्वेद के जन्मदाता भगवान धन्वंतरि की पूजन कर यम दीप प्रज्ज्वलित कर दान किया जाता है। इस पूजन से असामायिक मृत्यु भय से मुक्त होकर व्यक्ति सुख समृद्धि आरोग्यता को प्राप्त करता है।यह पर्व शिव-पार्वती व्रत पूजन प्रदोष व्यापिनी कोषाध्यक्ष कुबेर के पूजन विधि अनुसार मनाने का विधान है। पंचांग के अनुसार धनतेरस का शुभ मुहूर्त इस साल 10 नवंबर को दोपहर 11बजकर48 मिनट से शुरू होकर 11 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 32 मिनट पर समापन होगा। इसलिए प्रदोष काल संध्या पूजन का विशेष महत्व है। 10 नवंबर को धनतेरस शुक्रवार को आ रहा है। इसे कामेश्वरी जयंती भी कहते हैं।कन्या राशि के चंद्रमा, धनतेरस पर्व पर सोना चांदी, इलेक्ट्रोनिक आयटम, वस्त्र, नौकरी-व्यावसायिक, वाहन, प्रापर्टी को इस दिन करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।