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अयोध्या के राम मंदिर का काम तेजी से चल रहा है. रामलला की प्रतिमा को लेकर भी लोगों में बहुत ही ज्यादा उत्साह दिख रहा है. अयोध्या के इस भव्य मंदिर में रामलला की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से तैयार की जाएगी. ये शालिग्राम पत्थर नेपाल की गंडकी नदी से लाए जा रहे हैं. जानकारों के मुताबिक, ये पत्थर दो टुकड़ों में है और इन दोनों शिलाखंडों का कुल वजन 127 क्विंटल है. इन शिलाखंडों को 02 फरवरी तक अयोध्या लाया जाएगा.
अयोध्या में राम जन्मभूमि का काम बहुत ही तेजी से चल रहा है. 2024 में जनवरी तक राम जन्मभूमि का ग्राउंड फ्लोर तैयार कर दिया जाएगा. जानकारों के मुताबिक, अभी इन शिलाखंडों को नेपाल के जनकपुर लाया गया है. जनकपुर के मुख्य मंदिर में पूजा-अर्चना की गई. साथ ही इन शिलाखंडों की पूजा भी शुरू हो गई है. विशेष पूजा के बाद इन शिलाखंडों को भारत लाया जाएगा और 31 जनवरी तक ये शिलाखंड गोरखपुर के गोरक्षपुर लाए जाएंगे.
क्या है शालिग्राम पत्थरों की मान्यता
शास्त्रों के मुताबिक, शालिग्राम में भगवान विष्णु का वास माना जाता है. पौराणिक ग्रंथों में माता तुलसी और भगवान शालिग्राम का जिक्र भी किया गया है. इसलिए इन शिलाखंडों को बहुत ही खास माना जा रहा है. लोगों के मुताबिक, इन शिलाखंडों का धार्मिक महत्व है. क्योंकि इनका संबंध भगवान विष्णु से है.
इन पत्थरों की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ये शिलाखंड ज्यादातर गंडकी नदी में ही पाए जाते हैं. हिमालय के रास्ते में पानी चट्टान से टकराकर इस पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है और नेपाल के लोग इन पत्थरों को खोज कर निकालते हैं और उसकी पूजा करते हैं.
मान्यता के अनुसार, 33 तरीके के शालिग्राम होते हैं. शालिग्राम का पत्थर भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है. मान्यता है कि जिस घर में शालिग्राम का पत्थर होता है, वहां घर में सुख-शांति बनी रहती है और आपसी प्रेम बना रहता है. साथ ही माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है.
गंडकी नदी से निकली शालिग्राम शिला को देखेंगे विशेषज्ञ
शालिग्राम शिला का विशेष महत्व है. हालांकि अभी तकनीकी विशेषज्ञों का पैनल परीक्षण कर भव्य मूर्ति के लिए उसकी अनुकूलता और क्षरण जैसी बातों पर मंथन करेगा. जानकारी के अनुसार, प्रख्यात चित्रकार वासुदेव कामथ के अलावा रामलला की मूर्ति बनाने में पद्मभूषण शिल्पकार राम वनजी सुथार को जिम्मेदारी दी गई है. राम सुथार ने स्टैचू ऑफ़ यूनिटी का भी शिल्प तैयार किया है. हाल ही में अयोध्या में लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि स्वरूप वीणा को स्थापित किया गया है. उस वीणा को राम सुथार और उनके बेटे अनिल राम सुथार ने तैयार किया है.
वहीं मूर्ति बनाने के पहले चरण की ज़िम्मेदारी संभालने वाले चित्रकार वासुदेव कामथ अंतर्रराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार हैं जिन्हें स्केच और पोर्ट्रेट बनाने में विशेष ख्याति प्राप्त है. इसके अलावा मूर्तिकार पद्मविभूषण सुदर्शन साहू, पुरातत्ववेत्ता मनइया वाडीगेर तकनीकी विशेषज्ञ और मंदिर बनाने वाले वास्तुकार भी मूर्ति के निर्धारण में भूमिका निभाएंगे. रामलला की मूर्ति ऐसी होगी जिसमें मंदिर के वास्तु की दृष्टि से समन्वय होगा. रामनवमी के दिन रामलला के ललाट पर सूर्य की किरणें पड़ेंगी.
शिलाओं से बनेगी रामलला की मूर्ति
रामलला की मूर्ति तैयार करने के लिए जिन मूर्तिकारों और कलाकारों का चयन किया गया है. रामलला की मूर्ति 5 से साढ़े 5 फीट की बाल स्वरूप की होगी. मूर्ति की ऊंचाई इस तरह तय की जा रही है कि रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें सीधे रामलला के माथे पर पड़ें. -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
होली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन यानी चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि के दिन होली खेली जाती है. होली के 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं. होलाष्टक का समापन होलिका दहन के साथ ही होता है. इस अवधि में शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं. आइए जानते हैं कि इस साल होलाष्टक कब से लग रहे हैं और इस दौरान कौन से कार्य नहीं करने चाहिए.
होलाष्टक कब से शुरू?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल होलिका दहन 7 मार्च 2023 को होगा. जबकि 8 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी. होली के आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं. इसलिए इस वर्ष 28 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे और 7 मार्च तक रहेंगे.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है?
होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है. पंचांग के अनुसार, इस साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट से लेकर अगले दिन 07 मार्च को शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगी. होलिका दहन 07 मार्च को किया जाएगा. जबकि 08 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी.
होलाष्टक में न करें ये 5 काम
1. होलाष्टक में शादी-विवाह और सगाई जैसे मांगलिक कार्यों के अलावा मुंडन और नामकरण जैसे संस्कार नहीं करने चाहिए.
2. होलाष्टक में भवन निर्माण, वाहन, प्लॉट या किसी प्रॉपर्टी को खरीदना या बेचना वर्जित है.
3. होलाष्टक में भूलकर भी यज्ञ और हवन जैसे कार्य ना करें.
4. होलाष्टक में शुभ कार्यों की शुरुआत बिल्कुल न करें. अगर आप किसी नई दुकान का शुभारंभ करने वाले हैं तो होलाष्टक से पहले या बाद में करें.
5. होलाष्टक में सोने या चांदी के आभूषण खरीदने से बचें. आप होलाष्टक से पहले या बाद में इन्हें खरीद सकते हैं.
होलाष्टक में क्यों नहीं करते शुभ काम?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार प्रेम के देवता कामदेव ने भोलेनाथ की तपस्या भंग कर दी थी. इससे नाराज होकर भगवान शिव ने कामदेव को फाल्गुन अष्टमी के दिन भस्म कर दिया था. जब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी की उपासना की और कामदेव को फिर से जीवित करने की प्रार्थना की, तब शिवजी को उस पर दया आई. इसके बाद शिवजी ने कामदेव में फिर से प्राण भर दिए. कहते हैं कि तभी से होलाष्टक मनाने की परंपरा चली आ रही है. होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का अंत हो जाता है. -
ये लोग बहुत सावधानी से पार करें समय
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
मेष: अपने उत्साह को बनाए रखें और हर काम को उत्साह के साथ निपटाएं। आपके पिछले निवेश इस महीने शानदार मुनाफा देंगे। क्योंकि अब आपके पास निवेश करने के लिए अतिरिक्त पैसा होगा, इसलिए आपको इसे अपने कर्तव्यों को चुकाने में लगाना चाहिए। अब समय आ गया है कि आप अपने साथी पर अधिक ध्यान दें और उनके साथ समय बिताएं। अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं और स्वतंत्र रूप से व्यक्त करें।
वृषभ: बेवजह जोखिम उठाने के बजाय अपने पेशे में जो सफल रहा है, उसी पर टिके रहें। यदि आप अपने करियर को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं, लेकिन आपको ऐसी स्थिति नहीं लेनी चाहिए जो आपके कंफर्ट जोन से पूरी तरह बाहर हो। आपका रोमांटिक जीवन थोड़ा उतार-चढ़ाव भरा रहेगा क्योंकि आपका साथी संवेदनशील मामलों पर आपके विचारों की सराहना नहीं कर सकता है।
मिथुन: तुरंत निर्णय लेने की क्षमता सफलता के लिए अहम होगी। इस महीने कॉर्पोरेट जगत में आगे बढ़ने के कई मौके आएंगे। सौदे हो सकते हैं जो व्यवसायियों के लिए फायदेमंद हैं। आपके व्यक्तिगत जीवन और पेशेवर जीवन दोनों में आपके बहुत समय और ध्यान की आवश्यकता होगी, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप दोनों के बीच संतुलन बनाएं। अपनी बुद्धि पर विश्वास करें।
कर्क: आप आराम कर सकते हैं क्योंकि आप अपने निजी और पेशेवर जीवन में जहां हैं उससे खुश हैं। आपके सीनियर अधिकारी आपको अपना समय खुद निर्धारित करने देंगे और ऑफिस में आप जो चाहते हैं वह करेंगे। नए कौशल प्राप्त करके इस समय का बेहतर उपयोग करें जो आपके पेशेवर जीवन में आपकी मदद करेगा। आपके प्रियजन आपको प्रोत्साहित करते रहेंगे और आपको बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करेंगे। अपने फिटनेस स्तर को बनाए रखने के लिए अच्छा खाएं।
सिंह: इस महीने आप जो भी वचन देते हैं, उससे सावधान रहें। आपका वर्तमान पेशा आपके कौशल को निखारने के लिए सही है। इसलिए इस समय इसे न छोड़ें और सही अवसर का इंतजार करें। हर कीमत पर वित्तीय जोखिम लेने से बचना चाहिए और लंबी अवधि के निवेश पोर्टफोलियो को बनाए रखना चाहिए। घर में सुख-समृद्धि वैसी ही रहेगी जैसी आपने उम्मीद की थी। ऐसे में आपको अपने प्रियजनों की सलाह लेनी चाहिए।
कन्या: उम्मीद न खोएं, क्योंकि इस महीने में आपको मनमुताबिक प्रतिफल मिलने की प्रबल संभावना है। एक सोची-समझी योजना बनाएं जो बिना देर किए आपको अपने पेशे में आगे बढ़ाएगी। किसी करीबी दोस्त या परिवार के सदस्य से बात करते समय शब्दों को बहुत सावधानी से चुनें। अपने शब्दों के चयन में सतर्क रहें, क्योंकि आपके साथी को यह पसंद नहीं आ सकता है कि आप कितने सीधे हैं।
तुला राशि: इस माह आपको कुछ सवालों के जवाब पाने की इच्छा होगी। जबकि आप अपनी वर्तमान भूमिका में सफल हो सकते हैं, प्रगति धीमी रही है। पता लगाएं कि आपको आगे बढ़ने से क्या रोक रहा है। इसी तरह अपने साथी को एक विवादास्पद विषय पर चीजों को अपने तरीके से देखने के लिए मजबूर करने की कोशिश करना आपको अड़ियल रूप में प्रस्तुत करेगा। खुले विचारों वाले रहें और दूसरों को विकसित होने में मददकर।
वृश्चिक राशि: इस माह परेशानियों को न बढ़ने दें और तुरंत कार्रवाई करें। समस्या को फिर से होने से रोकने के लिए यह निर्धारित करना महत्वपूर्ण है कि पहले इसका कारण क्या था। अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें और अपनी समय सीमा का सख्ती से पालन करें। कार्यस्थल पर प्रसन्नता का माहौल बनाए रखना महत्वपूर्ण है। अगर आपके पार्टनर को बिजनेस ट्रिप पर जाना है तो समझें और चिंता न करने की कोशिश करें। प्रसन्न स्वभाव रखें।
धनु: आपका करियर एक चौराहे पर है लेकिन आपकी एक्सपरटाइज और ज्ञान आखिरकार रंग लाएगा। वहां एक मौका आपको पदोन्नत किया जाएगा और काम पर अधिक जिम्मेदारी दी जाएगी। अगर आपका प्रेमी असुरक्षित महसूस करता है तो आपको उसे आश्वस्त करना चाहिए। आपने अनजाने में अपने साथी को चिंता का अनुभव कराया है और वे इसे आपसे व्यक्त करने में असमर्थ होंगे। आपका स्वास्थ्य खराब हो सकता है, इसलिए अपना ज्यादा ध्यान रखें।
मकर: अपने जीवनस्तर को उठाने और अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए अपना समय और ऊर्जा लगाएं। समय-समय पर अपनी वित्तीय होल्डिंग का आकंलन करना महत्वपूर्ण है। अगर आप अपने वर्तमान आय स्तर से खुश नहीं हैं, तो इसे बढ़ाने के तरीकों पर गौर करें। अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों और सपनों के बारे में अपने पार्टनर के साथ खुली चर्चा करने का यह एक अच्छा समय है।
कुंभ: पहचानें कि आप मुश्किल कार्यों को निपटाने में सक्षम हैं। काम पर मुश्किलों के बावजूद, आपका अपना अनुभव और ज्ञान इससे निपटने में मदद करेगा। अपने साथी से अपने प्यार का इजहार करने से पहले अपनी भावनाओं पर काबू पाएं। खुद को शांत रखने की पूरी कोशिश करें।
मीन राशि: परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए स्वयं को तैयार करें और यहां तक कि उसे गले लगाने के लिए भी। काम पर एक नई योजना शुरू करना एक अच्छा विचार नहीं है जब तक कि आप इसे चलाने की अपनी क्षमता में विश्वास न करें और आपके पास सभी आवश्यक संसाधन हों। कार्यों को पूरा करने में जल्दबाजी न करें, ऐसा करने से आपके काम की क्वालिटी खराब हो सकती है। अपने पार्टनर की भावनाओं के प्रति सचेत रहें और उन्हें हमेशा प्राथमिकता की तरह महसूस कराएं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहम अक्सर अपने घरों में हरियाली लाने के लिए बहुत से पेड़-पौधे लगाते हैं। पर वास्तु शास्त्र के अनुसार हर पौधे हर में तरक्की नहीं लाते हैं, बल्कि कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जिन्हें लगाने से घर में दुर्भाग्य आता है और जातक को कंगाली का सामना करना पड़ता है। ऐसे पौधे जीवन में परेशानियों का कारण बनते हैं। कहा जाता है कि यदि ऐसे पौधे आस पास लगे हों तो घर की शांति भंग हो जाती है और परिवार के सदस्यों की तरक्की रुक जाती है। ऐसे में चलिए जानते हैं उन पौधों के बारे में जो घर में नकारात्मकता बढ़ाते हैं...कांटेदार पौधेघर के आसपास किसी भी तरह के कांटेदार पौधे लगाने से बचना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस तरह के पौधे लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। साथ ही इस तरह के पौधे जिंदगी में कई तरह की परेशानियां पैदा कर देते हैं।बबूल का पेड़कभी भी घर के आसपास बबूल का पेड़ नहीं लगाना चाहिए। इस पौधे को लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बबूल के पेड़ में कांटे होते हैं, जो कार्य में बाधा के साथ नकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।बेर का पेड़वास्तु शास्त्र के अनुसार, बेर के पेड़ में कांटे होते हैं, जिसकी वजह से ये पौधा भी घर में नकारात्मकता लाता है। कहा जाता है कि जिस घर में बेर का पेड़ लगा होता है माता लक्ष्मी उस घर से अप्रसन्न होकर चली जाती हैं।नींबू और आंवले का पेड़अक्सर लोग अपने घर या घर के आस पास बगीचे में आंवला और नींबू का पेड़ लगाते हैं। जबकि वास्तु शास्त्र के अनुसार इन्हे भी शुभ नहीं माना गया है। यदि आपके घर में या फिर घर के बाहर नींबू या आंवले का पेड़ लगा है तो उसे हटा दें, क्योंकि इनके मौजूद रहने से घर में क्लेश बढ़ता है।----
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पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में शनि पर्वत बेहद महत्वपूर्ण है और इस पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। शनि पर्वत को ज्योतिष में भाग्य स्थान भी माना गया है। शनि पर्वत पर रेखाओं का पहुंचना जरुरी है। यदि शनि पर्वत पर कोई रेखा ना पहुंचे, लेकिन इस पर एक या दो खड़ी रेखाएं हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में भूखा नहीं मरता। ऐसे व्यक्ति को धन मिलता रहता है। जानिए शनि पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में फल।
-यदि शनि पर्वत पर केंद्र में मछली का निशान बने तो जीवन में धन की प्राप्ति होगी, लेकिन यह चिह्न शनि और गुरु पर्वत पर बने तो व्यक्ति धन और सम्मान दोनों पाता है।
-यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर सीधे शनि पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति को परिवार से संपत्ति मिलती है।
चोरी और रिश्वत से खूब धन बटोरते हैं ऐसे लोग
-यदि जीवन रेखा से कोई रेखा से उदय हो शनि पर्वत पर पहुंचे तो ऐसा व्यक्ति अपने दम पर संपत्ति खड़ी करता है। ऐसे लोगों को परिवार से कोई संपत्ति नहीं मिलती। यदि जीवन रेखा से उदय रेखा थोड़ा अंदर आकर मंगल पर्वत तक पहुंच जाए तो यह बहुत ही शुभ है।
-शनि पर्वत पर वी का चिह्न बने और इसमें पांच या इससे कम शाखाएं निकले तों व्यक्ति करोड़ों रुपये का मालिक होता है।
-यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति का भाग्योदय घर से दूर जाने पर ही होगा। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
बसंत पंचमी का शुभ त्योहार इस साल 26 जनवरी को मनाया जाएगा. यह माघ महीने के शुक्ल पक्ष पांचवें दिन आता है, जो वसंत ॠ तु के प्रवेश की शुरुआत है। वसंत पंचमी पर लोग विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। वैदिक ज्योतिष में, देवी सरस्वती को बुध द्वारा दर्शाया गया है, जबकि बृहस्पति हमारे ज्ञान और बुद्धि पर शासन करता है। इस वर्ष वसंत पंचमी के दिन बुध धनु राशि में रहेगा जिसका स्वामी गुरु शुभ है। आइए जानें कि इस वर्ष राशि के आधार पर इस शुभ दिन सितारों के संरेखण से छात्रों के सीखने और शैक्षणिक प्रदर्शन पर क्या प्रभाव पड़ेगा...
मेष: आपकी शैक्षणिक सफलता की कुंजी धैर्य और दृढ़ता है। असफलताओं पर ध्यान न दें और अपने लक्ष्यों की दिशा में काम करते रहें। अपने से अधिक अनुभवी लोगों की सलाह को सुनें और उस पर अमल करें। जब व्यापक अध्ययन रणनीतियों को विकसित करने की बात आती है, तो आप कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यह आपको विषयों में गहराई से जाने और उन्हें अधिक अच्छी तरह से समझने की अनुमति देगा।
वृष: अपने जीवन के सफर पर विचार करते रहें और अपनी अंतर्दृष्टि से सीखते रहें। यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो आपको स्कूल और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच संतुलन बनाना होगा। पता लगाएँ कि आप वास्तव में किसमें रुचि रखते हैं और आपके समय और ऊर्जा के लिए क्या मायने रखता है। अपने माता-पिता को अपने अपरंपरागत नौकरी पथ पर जीतने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करने पड़ सकते हैं, लेकिन अपनी दृष्टि लक्ष्य पर रखें।
मिथुन: यदि आप अपनी दिनचर्या में अधिक संगठित और अनुशासित बनने का प्रयास करते हैं, तो आप जहाँ जाना चाहते हैं, वहाँ जा सकते हैं। कुछ नवीन अध्ययन रणनीतियों के साथ आने का प्रयास करें। संबंधित जानकारी को पढ़कर उन विषयों के बारे में अपनी समझ बढ़ाएँ जो आपको सबसे अधिक आकर्षित करते हैं। आपके माता-पिता का प्रोत्साहन कुछ ऐसा है जो आपको प्रेरित करने में मदद कर सकता है।
कर्क: उत्साह के साथ अपने शैक्षणिक लक्ष्यों को हासिल करें। आप बौद्धिक विकास की इच्छा से प्रेरित होते रहेंगे। नई जानकारी की खोज करने और अपने क्षितिज का विस्तार करने के लिए आपके लिए कई संभावित रास्ते खुले हैं। आप जितना अधिक प्रशिक्षण लेंगे, आपको अपनी क्षमताओं पर उतना ही अधिक विश्वास होगा। आपके पास जो कुछ भी है वह समान रूप से आपके ध्यान के योग्य है।
सिंह: आप में जो आंतरिक उत्साह है, वह आपको अपने सभी कार्यों में सफलता दिलाएगा। आप में से जो लोग उच्च अध्ययन करने के इच्छुक हैं, उन्हें यह लग सकता है कि उनके प्रयासों का अच्छा परिणाम मिलेगा। आप अपना समय और ऊर्जा कैसे खर्च करते हैं, इसके बारे में गहरी जागरूकता बनाए रखें। अपनी पढ़ाई के रास्ते में किसी भी चीज़ को आड़े न आने दें, लेकिन अपने बाकी जीवन को भी नज़रअंदाज़ न करें।
कन्या: आपके पास यह आश्वासन होगा कि आपको अपनी पढ़ाई में सबसे पहले जाने की आवश्यकता है। अपनों के साथ बिताया गया समय यादगार रहेगा। आपके जीवन में माता-पिता, शिक्षक और अन्य वयस्क सलाह के लिए अच्छे संसाधन हो सकते हैं। यदि आप प्रमुख स्थान बदलने के बारे में सोच रहे हैं, तो जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें। आप में से कुछ लोगों को आपकी पसंद के संस्थान में आपके आवेदन के संबंध में सकारात्मक खबर सुनने को मिल सकती है।
तुला: उपलब्धि का भाव आपको गर्व से भर देगा। यदि आप शोध करने में रुचि रखते हैं, तो इसे करने का यह एक अच्छा समय है! यह संभव है कि आपने अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने के लिए तैयार होने के लिए पर्याप्त गहन अध्ययन किया हो। अति आत्मविश्वास और आकस्मिक रवैये से बचें अन्यथा आपको बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। अपनी बुद्धि से दूसरों की मदद करने से आपको शक्ति मिलेगी।
वृश्चिक: ध्यान लगाने की अपनी क्षमता को विकसित करने से आपको समय बचाने में मदद मिलेगी। एक ऐसा कोर्स खोजने की कोशिश करें जिसे आप ऑनलाइन ले सकते हैं जो आपको नई चीजें सीखने में मदद करेगा। जो प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं उन्हें अगले समय बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करना चाहिए। स्वास्थ्य के लिहाज से आप कैसा महसूस कर रहे हैं, इस पर नजर रखें। आप में से जो विदेश में कॉलेज जाना चाहते हैं, उनके पास ऐसा करने का अवसर है।
धनु: आपकी कड़ी मेहनत, प्रतिबद्धता और एकाग्रता के कारण सफलता आपकी पहुंच के भीतर है। अध्ययन करने और जो आपने सीखा है उसे व्यवहार में लाने के लिए आपकी प्रेरणा आपके लिए अच्छा है। व्यर्थ की खोज में अपना समय बर्बाद न करें, और अपने रास्ते में आने वाली संभावनाओं को जब्त करने की पूरी कोशिश करें। जब आप अपने भविष्य के विकल्पों के बारे में भ्रमित महसूस करें तो दूसरों से सलाह लें।
मकर: अगर आप पढ़ना और अधिक जानना चाहते हैं, तो आपको अपनी निर्णय लेने की क्षमता पर काम करने की ज़रूरत है। अपने पाठ्यक्रम में अच्छा करने के लिए, आपको अधिक समय और प्रयास करने की आवश्यकता है। यह संभव है कि कई विकर्षणों के कारण आप वह नहीं कर पाएंगे जो आपने निर्धारित किया था। चाहे कक्षा में हो या मैदान पर, आपको हमेशा अपना सब कुछ देना चाहिए। जल्द ही आपकी सारी मेहनत रंग लाएगी।
कुम्भ : यदि आप सफल होना चाहते हैं तो आपको अपने समय का बेहतर प्रबंधन करना होगा। कॉलेज या विश्वविद्यालय स्तर पर अंतिम परीक्षा देने वाले छात्र समय के साथ अध्ययन करके अपने ग्रेड बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं। यदि आप अपने ज्ञान का परीक्षण करना चाहते हैं, तो आप एक पेशेवर मॉक परीक्षा में भाग ले सकते हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने से आपके शैक्षिक और करियर क्षितिज का विस्तार हो सकता है
मीन : खुले दिमाग और चौकस नज़र से आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। जो लोग प्रबंधन का अध्ययन करना चाहते हैं, उनके पास नामांकित होने का अच्छा मौका है। परीक्षा की तैयारी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यदि नहीं, तो आपसे गलती होने की संभावना है। यदि आपके पास एक खुला दिमाग हो सकता है और जल्दी से नई चीजें सीख सकते हैं, तो आप अपने कौशल और समुदाय में प्रतिष्ठा बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं। -
पंडित प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में बसंत पंचमी के पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। भारत में इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत भी हो जाती है। इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी 2023, गुरुवार को मनाया जाएगा। बसंत पंचमी के दिन कुछ चीजों को खरीदना अति शुभ माना गया है। इसके साथ ही विवाह करने के लिए यह दिन उत्तम माना गया है। बसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त भी होता है।
बसंत पंचमी के दिन खरीदें ये चीजें-
1. पीली क्रिस्टल बॉल- बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का खास महत्व है। इस दिन पीली क्रिस्टल बॉल जरूर खरीदनी चाहिए। इसे मेनगेट पर लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चों की पढ़ाई में आने वाली दिक्कतें दूर होती हैं।
2. मोर पंख- बसंत पंचमी के दिन मोरपंख का खास महत्व है। इस दिन मोरपंखी का पौधा अपने घर की पूर्व दिशा में जोड़े में लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में मां सरस्वती व मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3. बांसुरी- बसंत पंचमी के दिन बांसुरी का विशेष महत्व है। इस दिन बांसुरी मां सरस्वती के चरणों में जरूर अर्पित करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मां सरस्वती की कृपा बनी रहेगी।
बसंत पंचमी 2023 शुभ मुहूर्त-
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, बसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त 26 जनवर 2023, गुरुवार को सुबह 07 बजकर 12 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। मां सरस्वती की पूजा के लिए यह समय सबसे उत्तम रहेगा। -
बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का मेन गेट एक ऐसा रास्ता है। जिसके जरिए हम बाहरी दुनिया में प्रवेश करते हैं। घर का मेन गेट से होकर धन, सुख-समृद्धि और तरह-तरह की ऊर्जा का घर के अंदर प्रवेश होता है। घर का मेन गेट से उस घर में रहने वाले लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वास्तु शास्त्र में घर के मेन गेट को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। आइए जानते हैं घर के मेन गेट से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण वास्तु टिप्स जिसके जरिए आप सुख-समृद्धि और पॉजिटिव एनर्जी को अपने घर की ओर आकर्षित कर सकते हैं।- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का मेन गेट उत्तर- पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए। घर के मेन गेट पर लकड़ी से बना एक नेमप्लेट जरुर लगाएं।- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मेन गेट किसी देवी का चिह् व स्वस्तिक का चिह् अवश्य लगाना चाहिए।- घर के मेन गेट पर भगवान गणेश की मूर्ति रखें। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करना धन और सौभाग्य को अपनी ओर आकर्षित करता है।- घर के मेन गेट के पास कांच के एक बर्तन में पानी भरकर उसमें फूलों की पंखुड़ियों से भर दें। घर के मेन गेट के आसपास अच्छी रोशनी आने दें।- घर में हमेशा लकड़ी और संगमरमर की दहलीज बनाएं। यह निगेटिव एनर्जी को अवशोषित कर पॉजिटिव एनर्जी के फ्लो को बढ़ाने में मदद करता है।- घर के मेन गेट पर डोरमैट लगाएं जो बाहर से आने वाली गंदगी को अंदर प्रवेश करने से रोक दें।- घर के मेन गेट के पास तुलसी या मनी प्लांट का पौधा लगाएं।- घर के मेन गेट के पास शू रैक, कूड़ेदान, पुराना फर्नीचर या टूटी हुई कुर्सी न रखें। -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
रत्न शास्त्र के अनुसार प्रत्येक रत्न किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति को मजबूत करने के लिए ज्योतिषी उस ग्रह से संबंधित रत्न धारण करने की सलाह देते हैं। ग्रहों के दुष्प्रभाव के कारण अक्सर बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। आज हम आपको कुछ विशेष रत्नों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्हें धन और वृद्धि के कारक के रूप में देखा जाता है।
नीलम-
नीलम शनिदेव से संबंधित रत्न है। यदि किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो तो उसे इस रत्न को धारण करने की सलाह दी जाती है। नीलम को बेहद शक्तिशाली रत्न माना जाता है। इसके शुभ प्रभाव से मनुष्य की सभी परेशानियां खत्म हो जाती है। इस रत्न की मदद से मनुष्य का सोता हुआ भाग्य भी जाग उठता है। ज्योतिषी परामर्श के बिना भूलकर भी नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए।
माणिक्य रत्न-
सूर्य से संबंधित इस रत्न को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। माणिक्य रत्न को धारण करने से जीवन में अपार सफलता मिलने लगती है। इस रत्न को धारण करने से पॉजिटिव एनर्जी का वास होता है। घर में सुख समृद्धि का बनी रहती है।
लहसुनिया रत्न-
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु की महादशा चल रही हो उसे जीवन में तरह-तरह की परेशनियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति का आर्थिक परेशानी के साथ ही साथ मानसिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। कुंडली में केतु की बुरे प्रभाव को शांत करने के लिए ज्योतिषी लहसुनिया रत्न धारण करने की सलाह देते हैं। इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है और वह अंदर से ऊर्जावान महसूस करता है।
पन्ना रत्न-
बुध ग्रह से संबंधित इस रत्न को धारण करने से मनुष्य के मनुष्य के वाक कौशल और बौद्धिक गुणों का विकास होता है। इस रत्न को धारण करने वाले व्यक्ति संचार के क्षेत्र में खूब नाम कमाते हैं। -
घर के अंदर प्रत्येक दिशा का अपना एक खास महत्व है। सभी दिशा की अपनी एक विशेष ऊर्जा होती है। खाना बनाने के लिए कौन सी दिशा सही रहेगी, किस दिशा में सोना चाहिए, कहां पढ़ना चाहिए। इन सभी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। दिशाएं हमारे जीवन को प्रभावित करती है और हम सभी के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। वास्तु शास्त्र की मदद से हमें दिशाओं का ज्ञान होता है।
जीवन में सफलता और तरक्की पाने के लिए आपकी मेहनत और कौशल का जितना योगदान होता है। ठीक उतना ही महत्व आपकी किस्मत का भी होता है। अपने जीवन का ज्यादातर समय लोग अपने घरों में बिताते हैं। ऐसे में घर और उसके आसपास का वातावरण हमारे जीवनशैली पर बहुत हद तक प्रभावित करता है।
आज हम आपको कुछ आसान से वास्तु टिप्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी मदद से आप अपने काम को सफलता पूर्वक करने के साथ ही साथ जीवन में सफलता और तरक्की को भी हासिल कर सकते हैं।
1. काम करते समय उत्तर दिशा में बैठे, वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा में धन के स्वामी कुबेर का वास होता है।
2. वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोगों को लैपटॉप, मोबाइल या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का इस्तेमाल करते समय उसका चार्जिंग पॉइंट हमेशा कमरे की दक्षिण- पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
3. अगर आप बिजनेस में बहुत अधिक सफलता हासिल करना चाहते हैं तो अपने बिजनेस प्रोडक्ट को कमरे की उत्तर पश्चिम दिशा में रखें।
4. जीवन में कई बार बहुत अहम फैसले लेने पड़ते हैं जो आपके जीवन की दशा और दिशा दोनों ही पूरी तरह से बदलकर रख देते हैं। ऐसे अहम फैसले लेने के लिए घर के पूर्व दक्षिण-पूर्व दिशा में बैठें।
5. दक्षिण दिशा की ओर भूलकर भी कोई खिड़की न बनाएं। -
प्रयागराज। माघ मेला के तृतीय स्नान पर्व मौनी अमावस्या पर शनिवार को 1.5 करोड़ लोगों ने गंगा और संगम में डुबकी लगाई। इस बीच, मेला प्रशासन ने हेलीकॉप्टर से साधु-संतों और श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा की। मौनी अमावस्या और शनि अमावस्या का महायोग होने के कारण भारी संख्या में श्रद्धालु शुक्रवार से ही मेला क्षेत्र में आने लगे थे।
प्रयागराज के मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत ने बताया कि शुक्रवार रात 12 बजे से शनिवार दोपहर 12 बजे तक डेढ़ करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा और संगम में स्नान किया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (माघ मेला) राजीव नारायण मिश्र ने बताया कि मेले की सुरक्षा में 5,000 से अधिक कर्मी तैनात किए गए हैं, जिसमें नागरिक पुलिस, महिला पुलिस, घुड़सवार पुलिस, एलआईयू की टीम, खुफिया विभाग के अधिकारी, राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), जल पुलिस आदि के कर्मी शामिल हैं।
मिश्र के मुताबिक, मेले में ‘रिवर एंबुलेंस' और ‘फ्लोटिंग' (पानी में तैरती) पुलिस चौकी की भी व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि सीसीटीवी कैमरों, शरीर पर धारण करने योग्य कैमरों और ड्रोन कैमरों से लोगों पर नजर रखी जा रही है। मौनी अमावस्या पर मेले में आए प्रमुख संतों-ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर स्वामी सदानंद, सुमेरू पीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानद सरस्वती, किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरि आदि शामिल हैं।
वहीं, उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी शनिवार सुबह संगम में डुबकी लगाई। शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद ने बताया कि प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर मौन रहकर संगम में स्नान करने से मन के पाप नष्ट हो जाते हैं और इस बार मौनी अमावस्या पर शनि अमावस्या का महायोग होने से गंगा स्नान विशेष फलदायी है। माघ मेले का अगला स्नान 26 जनवरी को बसंत पंचमी, पांच फरवरी को माघी पूर्णिमा और 18 फरवरी को महाशिवरात्रि पर पड़ेगा, जिसके साथ माघ मेला संपन्न हो जाएगा। - बालोद से पं. प्रकाश उपाध्यायमौनी अमावस्या 21 जनवरी को है। इस बार मौनी अमावस्या के दिन 30 वर्षों बाद एक अद्भुत संयोग का निर्माण हो रहा है। इस दिन खप्पर योग बन रहा है। माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को माघी अमावस्या या मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मौन रहकर दान और स्नान करने का विशेष महत्व है। मौनी अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान करने पर पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या के दिन पितृ संबंधित कार्य करने की परंपरा है। इस दिन पितृ संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।पितृ दोष क्या होता है?ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार कुंडली में दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और दसवें भाव में सूर्य राहु या सूर्य शनि की युति बनने पर पितृ दोष लग जाता है। सूर्य के तुला राशि में रहने पर या राहु या शनि के साथ युति होने पर पितृ दोष का प्रभाव बढ़ जाता है। इसके साथ ही लग्नेश का छठे, आठवें, बारहवें भाव में होने और लग्न में राहु के होने पर भी पितृ दोष लगता है। पितृ दोष की वजह से व्यक्ति का जीवन परेशानियों से भर जाता है।पितृ दोष दूर करने का उपायइस दोष से मुक्ति के लिए अमावस्या के दिन पितर संबंधित कार्य करने चाहिए। पितरों का स्मरण कर पिंड दान करना चाहिए और अपनी गलतियों के लिए माफी भी मांगनी चाहिए।गाय को भोजन कराएंइस दिन गाय को भोजन अवश्य कराएं। इस बात का ध्यान रखें कि आपको गाय को सात्विक भोजन ही करवाना है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय को भोजन कराने से पितृ दोष दूर हो जाता है।
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रामायण, महाभारत एवं अन्य पौराणिक कहानियों में योद्धाओं की कई पदवी देखने को मिलती है। योद्धाओं को उनके पराक्रम के हिसाब से पदवी दी जाती थी। आज हम इस लेख में उच्च कोटि के योद्धाओं की बात करेंगे।
प्राचीन काल के प्रमुख योद्धाओं को मुख्यत: 6 श्रेणियों में बांटा गया है:अर्धरथी: अर्धरथी एक प्रशिक्षित योद्धा होता था जो अस्त्र-शस्त्रों के संचालन में निपुण होता था। एक अर्धरथी अकेले 2500 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता था। रामायण और महाभारत की बात करें तो इन युद्धों में असंख्य अर्धरथियों ने हिस्सा लिया था। महाभारत युद्ध में योद्धाओं के बल का वर्णन करते हुए पितामह भीष्म ने कर्ण की गिनती एक अर्धरथी के रूप में कर दी थी। कई लोग मानते हैं कि इसी कारण कर्ण ने भीष्म के रहते युद्ध में भाग नहीं लिया था।रथी: एक ऐसा योद्धा जो सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र के संचालन में निपुण हो तथा 2 अर्धरथियों, अर्थात 5000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सके।रामायण: रामायण में कई रथियों ने हिस्सा लिया जिनका बहुत विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है। राक्षसों में खर, दूषण, तड़का, मारीच, सुबाहु, वातापि आदि रथी थे। वानरों में गंधमादन, मैन्द एवं द्विविन्द, हनुमान के पुत्र मकरध्वज, शरभ एवं सुषेण को रथी माना जाता था।महाभारत: सभी कौरव, युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव, शकुनि, उसका पुत्र उलूक, उपपांडव (प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक एवं श्रुतसेन), विराट, उत्तर, शिशुपाल पुत्र धृष्टकेतु, जयद्रथ, शिखंडी, सुदक्षिण, शंख, श्वेत, इरावान, कर्ण के सभी पुत्र, सुशर्मा, उत्तमौजा, युधामन्यु, जरासंध पुत्र सहदेव, बाह्लीक पुत्र सोमदत्त, कंस, अलम्बुष, अलायुध, बृहदबल आदि की गिनती रथी के रूप में होती थी। दुर्योधन को 8 रथियों के बराबर माना गया है।अतिरथी: एक ऐसा योद्धा जो सामान्य अस्त्रों के साथ अनेक दिव्यास्त्रों का भी ज्ञाता हो तथा युद्ध में 12 रथियों, अर्थात 60 हजार सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सकता हो।रामायण: लव, कुश, अकम्पन्न, विभीषण, देवान्तक, नरान्तक, महिरावण, पुष्कल, काल में अंगद, नल, नील, प्रहस्त, अकम्पन, भरत पुत्र पुष्कल, विभीषण, त्रिशिरा, अक्षयकुमार, हनुमान के पिता केसरी अदि अतिरथी थे।महाभारत: भीम, जरासंध, धृष्टधुम्न, कृतवर्मा, शल्य, भूरिश्रवा, द्रुपद, घटोत्कच, सात्यिकी, कीचक, बाह्लीक, साम्ब, प्रद्युम्न, कृपाचार्य, शिशुपाल, रुक्मी, सात्यिकी, बाह्लीक, नरकासुर, प्रद्युम्न, कीचक आदि अतिरथी थे।महारथी: ये संभवत: सबसे प्रसिद्ध पदवी थी और जो भी योद्धा इस पदवी को प्राप्त करते थे वे पुरे विश्व में सम्मानित और प्रसिद्ध होते थे। महारथी एक ऐसा योद्धा होता था जो सभी ज्ञात अस्त्र शस्त्रों और कई दिव्यास्त्रों को चलने में समर्थ होता था। युद्ध में महारथी 12 अतिरथियों अथवा 720000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता था। इसके अतिरिक्त जिस भी योद्धा के पास ब्रह्मास्त्र का ज्ञान होता था (जो गिने चुने ही थे) वो सीधे महारथी की श्रेणी में आ जाते थे।रामायण: भरत, शत्रुघ्न, अंगद, सुग्रीव, अतिकाय, कुम्भकर्ण, प्रहस्त, जामवंत आदि महारथी की श्रेणी में आते हैं। रावण, बाली एवं कत्र्यवीर्य अर्जुन को एक से अधिक महारथियों के बराबर माना गया है।महाभारत: अभिमन्यु, बभ्रुवाहन, अश्वत्थामा, भगदत्त, बर्बरीक आदि महारथी थे। भीष्म, द्रोण, कर्ण, अर्जुन एवं बलराम को एक से अधिक महारथियों के बराबर माना गया है। कहीं-कहीं अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के कारण अतिमहारथी भी कहा जाता है किन्तु उसका कोई लिखित सन्दर्भ नहीं है।अतिमहारथी: इस श्रेणी के योद्धा दुर्लभ होते थे। अतिमहारथी उसे कहा जाता था जो 12 महारथी श्रेणी के योद्धाओं अर्थात 8640000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना अकेले कर सकता हो साथ ही सभी प्रकार के दैवीय शक्तियों का ज्ञाता हो।महाभारत: महाभारत काल में केवल भगवान श्रीकृष्ण को अतिमहारथी माना जाता है।रामायण: रामायण में भगवान श्रीराम अतिमहारथी थे। उनके अतिरिक्त मेघनाद को अतिमहारथी माना जाता है क्यूंकि केवल वही था जिसके पास तीनों महास्त्र - ब्रम्हास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र थे। पाशुपतास्त्र को छोड़ कर लक्ष्मण को भी समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान था अत: कुछ जगह उन्हें भी इस श्रेणी में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान परशुराम और महावीर हनुमान का भी वर्णन कई स्थान पर अतिमहारथी के रूप में किया गया है।अन्य: भगवान विष्णु के अवतार विशेष कर वाराह एवं नृसिंह को भी अतिमहारथी की श्रेणी में रखा जाता है। कुछ देवताओं जैसे कार्तिकेय, गणेश तथा वैदिक युग के ग्रंथों में इंद्र, सूर्य एवं वरुण को भी अतिमहारथी माना जाता है। आदिशक्ति की दस महाविद्याओं, नवदुर्गा एवं रुद्रावतार, विशेषकर वीरभद्र और भैरव को भी अतिमहारथी माना जाता है।महामहारथी: ये किसी भी प्रकार के योद्धा का उच्चतम स्तर माना जाता है। महामहारथी उसे कहा जाता है जो 24 अतिमहारथियों अर्थात 207360000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता हो। इसके साथ ही समस्त प्रकार की दैवीय एवं महाशक्तियाँ उसके अधीन हो। इन्हे परास्त नहीं किया जा सकता। आज तक पृथ्वी पर कोई भी योद्धा अथवा अवतार इस स्तर पर नहीं पहुँचा है। इसका एक कारण ये भी है कि अभी तक 24 अतिमहारथी एक काल में तो क्या पूरे कल्प में भी नहीं हुए हैं। केवल त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र) एवं आदिशक्ति को ही इतना शक्तिशाली माना जाता है। -
जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान जगदीश के मंदिर का आखिर सपनों से क्या है कनेक्शन और क्या है इस पावन धाम से जुड़ी मान्यता, विस्तार से जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
भारत में आस्था से जुड़े कई ऐसे पावन धाम हैं, जो अपने भीतर तमाम तरह के रहस्य को समेटे हुए हैं. नित नए चमत्कार से भरा एक ऐसा मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर में स्थित है, जिसे लोग सपनों का मंदिर कहते हैं. मान्यता है कि जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान श्री विष्णु के दर्शन मात्र से लोगों के सभी दु:ख दूर हो जाते हैं. बेजोड़ वास्तु शैली का उदाहरण माने जाने वाले इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसे बनने में 25 साल लग गए थे. आइए राजस्थान के इस प्रसिद्ध मंदिर धार्मिक महत्व और इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं.
जगदीश मंदिर का सपने से क्या है संबंध
राजस्थान के इस प्रसिद्ध विष्णु मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी भगवान श्री विष्णु ने यहां के राजा जगत सिंह प्रथम को सपने में दर्शन देकर एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया था. मान्यता है कि स्वप्न में भगवान श्री विष्णु ने राजा से कहा कि अब वे यहीं पर आकर निवास करेंगे. इसके बाद उदयपुर के महाराणा जगत सिंह प्रथम ने भगवान श्री विष्णु के इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. जिसे बनाने में कुल 25 साल लग गये और यह 1652 में जाकर पूरा हुआ था.
बेजोड़ है जगदीश मंदिर की वास्तु कला
उदयपुर के जिस मंदिर में स्वयं जगदीश निवास करते हैं, वह नागर शैली में बना हुआ है. लगभग 125 फीट ऊंचाई पर बने इस मंदिर का शिखर भी भी 79 फीट ऊंचा है. मंदिर में भगवान श्री विष्णु की बहुत खूबसूरत काले रंग की प्रतिमा है. भगवान जगदीश के इस मंदिर की शानदार नक्काशी और उसके भीतर काले पत्थरों से बनी भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा का दर्शन करने वाला व्यक्ति खुद को धन्य मानता है.
दर्शन मात्र से दूर होते हैं लोगों के दु:ख-दर्द
उदयपुर के सबसे बड़े मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है कि यहां आने वाले भक्त की भगवान श्री विष्णु पलक झपकते सभी तन और मन की पीड़ा दूर कर देते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले हर शख्स का सपना जरूर पूरा होता है. -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में विवाह रेखा से ना केवल वैवाहिक जीवन का पता लगाया जा सकता है बल्कि विवाह किस उम्र में होगा और जीवनसाथी कैसा होगा, इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। हस्तरेखा में बुध पर्वत पर हृदय रेखा और कनिष्ठा उंगली के मूल के बीच की चौड़ाई को 50 माना गया है। इसे आप उम्र भी मान सकते हैं। इसी चौड़ाई वाले भाग पर एक या एक से अधिक खड़ी रेखाएं मिलती हैं जो विवाह रेखाएं कहलाती हैं। इनमें से सबसे लंबी रेखा को ही प्रमुख विवाह रेखा माना गया है और विवाह निर्धारण में इसी पर विचार किया जाता है। यदि आपके हाथ में दो रेखाएं हैं तो इसमें लंबी रेखा को मानेंगे। यदि हृदय रेखा के पास विवाह रेखा बन रही है तो आपकी शादी 20-25 साल की उम्र में हेागी, लेकिन यदि रेखा कनिष्ठा उंगली के पास है तो शादी 25 साल के बाद ही हेागी।
यह स्थिति विवाह में देरी को दर्शाती हैं। कई बार में कनिष्ठा उंगली और हृदय रेखा के पास भी खड़ी रेखाएं हैं तो इसका मतलब है कि रिश्ता तय होने के बाद टूट सकता है। हालांकि इस स्थिति में हृदय रेखा के पास रेखाएं छोटी होनी चाहिए। यदि विवाह रेखा हृदय रेखा की ओर झुके तो जीवनसाथी सपोर्ट और प्यार करने वाला होता है, लेकिन यदि विवाह रेखा का मुख उंगली की ओर तो जीवनसाथी से सपोर्ट एवं प्यार नहीं मिल पाता। हाथ में एक से अधिक रेखाएं एक से अधिक शादी का संकेत नहीं देती। इसमें से सबसे बड़ी रेखा विवाह की रेखा है। बाकी छोटी-छोटी रेखाएं रिश्ते होने के बावजूद शादी नहीं होने का संकेत देती हैं। हालांकि बुध पर्वत पर विवाह रेखा के आगे चलकर दोमुखी होना दूसरी शादी का संकेत देती है। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
जीवन में आर्थिक स्थिति का मजबूत होना बहुत जरुरी है। बहुत से लोग आर्थिक तंगी से परेशान रहते हैं। लोगों के मन में एक सवाल हमेशा बना रहता है कि उनके जीवन में अच्छा-खासा धन मिलेगा भी या नहीं। हस्तरेखा विज्ञान में हाथों में ऐसी रेखाओं पर विस्तार से चर्चा की गई है जिससे यह पता लगा सकते हैं कि जातक के जीवन में कितना धन आएगा। यदि मंगल पर्वत से कोई रेखा निकलकर कोई रेखा जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा को काटकर हृदय रेखा तक पहुंचे तो यह स्थिति जीवन में अच्छे धनलाभ का संकेत देती है।
यदि जीवन रेखा से कोई रेखा निकलकर मस्तिष्क रेखा तक पहुंचे और भाग्य रेखा जीवन रेखा से ही निकलकर शनि पर्वत तक पहुंचे तो इन रेखाओं से बनने वाला त्रिकोण जीवन में बड़े धनलाभ का योग बनाता है। यह मनी ट्राएंगल भी कहलाता है। यह त्रिभुज व्यक्ति को व्यापार में अपार सफलता दिलाता है। यदि हृदय रेखा से निकलकर मस्तिष्क रेखा तक पहुंचकर क्रॉस का निशान बनाए तो यह भी अच्छी किस्मत का संकेत है। यह निशान करोड़ों में धनलाभ का संकेत देता है। -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में कुछ बहुत ही शुभ किस्म के निशान होते हैं। इनमें से कुछ निशान ऐसे भी होते हैं जो व्यक्ति की धार्मिकता और उसके धार्मिक कार्यों के प्रति रुचि को दर्शाते हैं। ऐसे लेाग अपने गृहस्थ जीवन में रहते हुए किसी मंदिर का निर्माण कराते हैं। गुरु पर्वत पर मत्स्य का निशान होना इसी में से एक है। यदि किसी व्यक्ति के गुरु पर्वत पर मत्स्य का निशान है तो वह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। ऐसे लोग धर्म के प्रकाण्ड विद्वान होते हैं। इन्हें धर्म का अत्यधिक ज्ञान होता है। हालांकि ऐसे लोग अपने जीवन में बहुत ही संकोची प्रवृत्ति के भी होते हैं।
ऐसे लोग अपना रुपया मांगने में भी संकोच करते हैं। ये लोग दूसरों का काम पहले करना पसंद करते हैं। जन्म से ही ऐसे लोगों का उठना-बैठना अच्छे लोगों में होता है। जीवन रेखा से निकलकर कोई रेखा शनि पर्वत पर पहुंचे तो यह देरी से भाग्योदय का संकेत देती है। ऐसे लोग गुप्त विद्याओं के बहुत जानकार होते हैं। यदि सूर्य पर्वत पर पताका का निशान है तो ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में मंदिर का निर्माण कराते हैं। यदि व्यक्ति के जीवन रेखा पर वर्ग का निशान बने तो यह रक्षा का संकेत है। ऐसे लोग धर्म-कर्म में बढ़ चढ़कर काम करते हैं और ईश्वर उनकी रक्षा करते हैं। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार 15-15 दिनों के दो पक्ष होते हैं. एक पक्ष में पूर्णिमा और दूसरे पक्ष में अमावस्या आती है. कृष्ण पक्ष के दौरान चंद्रमा का आकार धीरे-धीरे कम होता है और अमावस्या पर चांद आकाश से गायब हो जाता है. इस तरह से कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है.
मौनी अमावस्या का महत्व
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि पर दान, दक्षिणा और पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व होता है. हर वर्ष माघ महीने के अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस अमावस्या में मौन रहते हुए पूजा-पाठ और जप-तप करने का विशेष महत्व होता है. माघ में मौन रहते हुए व्रत करना सबसे अच्छा माना जाता है. इस दिन मौन व्रत का पालन करते हुए भगवान से जाने-अनजाने में हुए पाप के लिए क्षमा प्रार्थना मांगना शुभ होता है. मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इसके अलावा इस दिन दान करने से ग्रह अनुकूल रहते हैं.
मौनी अमावस्या पर 30 साल बाद विशेष संयोग
इस वर्ष मौनी अमावस्या पर विशेष संयोग बनने जा रहा है. ऐसे संयोग 30 वर्षों के बाद दोबारा से बनेगा. हिंदू पंचांग की गणना के मुताबिक 21 जनवरी को मौनी अमावस्या पर 30 साल के बाद खप्पर योग बनेगा. इस योग में कुंडली में शनि के शुभ प्रभाव को बढ़ाने और धार्मिक कार्यों के लिए विशेष माना जाता है. इसके अलावा मौनी अमावस्या के पहले शनि का राशि परिवर्तन भी होने वाला है. अमावस्या तिथि शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए विशेष तिथि मानी जाती है. शनि सभी ग्रहों में सबसे मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं और यह न्याय और कर्मफलदाता है. शनि ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करते हैं. मौनी अमावस्या पर शनि कुंभ राशि में मौजूद रहेंगे. मकर राशि में सूर्य और शुक्र की युति से खप्पर योग का निर्माण होगा.
मौनी अमावस्या पूजा विधि
मौनी अमावस्या तिथि पर सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें. अगर यह संभव न हो सके तो पानी में गंगाजल की कुछ बूदें मिलाकर स्नान करें. स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें. फिर मंत्रों का जाप करें. इसके बाद गरीबों को धन, भोजन औ वस्त्रों का दान करें.
मौनी अमावस्या 2023
मौनी अमावस्या तिथि: 21 जनवरी, 2023 तिथि की शुरुआत: सुबह 06 बजकर 19 मिनट से तिथि की समाप्ति: 22 जनवरी की रात 02 बजकर 25 मिनट तक - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायज्यादातर घरों में देखा गया है कि परिवार के सदस्य घर में प्रवेश करने से पहले कहीं भी जूते - चप्पल उतार देते हैं। किसी घर में द्वार पर जूते-चप्पलों का ढेर पड़ा रहता है। ऐसा करना वास्तु शास्त्र के हिसाब से गलत माना जाता है। इससे घर में बरकत नहीं होती है। वास्तु के अनुसार अगर घर पर रखी चीजें सही दिशा में होती है तो हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता रहता है। वास्तु शास्त्र में घर में हर एक सामान को रखने की सही दिशा के बारे में विस्तार से बताया गया है। वास्तु में जूते-चप्पलों को रखने के लिए कुछ नियम होते हैं जिसका पालने करने पर घर में हमेशा सुख-समृद्धि और संपन्नता आती है। आइए जानते हैं वास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर जूते-चप्पलों कहां और किस तरह से रखना सही माना गया है।-वास्तु शास्त्र के अुनसार घर पर जूते-चप्पल रखने के लिए दक्षिण या पश्चिम दिशा का चुनाव करें। इस दिशा में जूते-चप्पल रखना शुभ और वास्तु सम्मत माना जाता है।- वास्तु के अनुसार जिन घरों में जूते-चप्पल इधर-उधर फैले रहते हैं वहां पर घर के सदस्यों के बीच अक्सर लड़ाई-झगड़े और मनमुटाव होते हैं।-वास्तु के अनुसार अगर घर पर जूते-चप्पल कहीं पर भी उतार देने की आदत होती है या फिर बिखरे हुए होते हैं तो व्यक्ति के जीवन में शनि का दुष्प्रभाव बढ़ता है।-वास्तु शास्त्र में पूर्व और उत्तर दिशा को बहुत ही शुभ दिशा माना जाता है। इस दिशा में भगवान का वास होता है। ऐसे में भूलकर भी घर की इस दिशा में जूते-चप्पल नहीं रखना चाहिए। इस दिशा में जूते-चप्पल रखने पर व्यक्ति के जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार पूर्व और उत्तर दिशा से सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। इस कारण से दिशा में जूते-चप्पल नहीं रखना चाहिए।- कई लोग अक्सर अपने बेडरूम में शू रैक बनाकर रख लेते हैं। वास्तु के अनुसार बेडरूम में शू रैक रखना शुभ नहीं माना जाता है। बेडरूम में जूते-चप्पल रखने से वैवाहिक जीवन में बुरा प्रभाव पड़ता है। घर के इस कमरे में जूते-चप्पल रखने से पति-पत्नी के बीच में अक्सर लड़ाई-झगड़े होते रहते है जिसकी वजह से रिश्तों में तनाव और खटास आ जाती है।- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का मुख्य द्वार सबसे खास जगह और महत्वपू्र्ण हिस्सा होता है। क्योंकि इस दिशा से ही सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। घर का मुख्य द्वार घर की शोभा होती है। लेकिन अक्सर देखने में मिलता है कि लोगों के घर के मुख्य द्वार पर जूते-चप्पलों का ढेर लगा होता है। वास्तु में मुख्य द्वार पर जूते-चप्पल रखना शुभ नहीं माना जाता है। वास्तु के अनुसार किसी घर में मां लक्ष्मी का आगमन मुख्य द्वार से होता है। इसलिए हमेशा मुख्य द्वार पर साफ-सफाई और सुंदरता बनाकर रखनी चाहिए।
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायभगवान शनि देव 17 जनवरी की सायं 6 बजकर 02 मिनट पर मकर राशि की यात्रा समाप्त करके अपनी स्वयं की ही राशि कुंभ में प्रवेश कर रहे हैं। इसी के साथ धनु राशि वालों की साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी और मीन राशि वालों की साढ़ेसाती शुरू होगी। जानें शनि के राशि परिवर्तन का किस राशि पर क्या प्रभाव पड़ेगा।मेष राशि-इस राशि के जातकों को शनिदेव बेहतरीन सफलता दिलाएंगे। सोची-समझी सभी रणनीतियां कारगर सिद्ध होंगी। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों और बड़े भाइयों से मतभेद को बढ़ावा ना दें। कार्य व्यापार में उन्नति होगी। ु प्रेम संबंधी मामलों में उदासीन रहेंगे विद्यार्थियों और प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए भी समय बेहतरीन रहेगा। अच्छे प्रभाव के लिए शनि के वैदिक मंत्र अथवा स्तोत्र का पाठ करें।वृषभ राशि-इस राशि के जातकों को शनिदेव कई तरह के अप्रत्याशित परिणामों का सामना करवाएंगे। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहना पड़ेगा। कार्यक्षेत्र में भी षड्यंत्र का शिकार होने से बचें। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में किसी भी तरह के बड़े टेंडर के लिए आवेदन करना हो तो उस दृष्टि से ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना हो अथवा किसी नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो तो भी ग्रह फल अति अनुकूल रहेगा। शनिदेव की कृपा हमेशा प्राप्त होती रहे इसके लिए शनि स्तोत्र का पाठ करें।मिथुन राशि-राशि से नवम भाग्य भाव में गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव जातक में साहस और पराक्रम की वृद्धि कराएगा किंतु कई बार कार्य बड़ी मंदगति से होगा जिससे निराशा भी हो सकते हैं किंतु इन सब चीजों को अपने ऊपर हावी ना होने दें , क्योंकि सफलता आपको ही मिलेगी। काफी दिनों का प्रतीक्षित परिणाम सकारात्मक मिलेगा। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए प्रयास करना हो तो ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। दूसरे देश की नागरिकता के लिए भी अवसर अनुकूल है शनि देव का और सुखद फल आपको मिलता रहे उसके लिए पीपल का वृक्ष लगाएं।कर्क राशि-राशि से अष्टम आयु भाव पर गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता विशेष करके स्वास्थ्य के प्रति आपको अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है। कार्यक्षेत्र में भी षड्यंत्र का शिकार होने से बचें, बेहतर रहेगा काम संपन्न करें और सीधे घर आएं। कोर्ट-कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लेना समझदारी रहेगी। पैतृक संपत्ति संबंधी विवाद हल होंगे। ससुराल पक्ष से मतभेद और दांपत्य जीवन में कटुता न आने दें। विवाह संबंधी वार्ता में थोड़ा और समय लग सकता है। शनिदेव की शांति करवाना सभी कार्य बाधाओं से मुक्ति देगा।सिंह राशि-राशि से सप्तम दांपत्य भाव में गोचर करते हुए शनिदेव कई तरह के अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव का सामना करवाएंगे। दांपत्य जीवन में शुभता आएगी। विवाह संबंधी वार्ता सफल रहेगी। साझा व्यापार करने से परहेज करें। कोई नया व्यापार आरम्भ करना हो तो भी समय अचछा रहेगा। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। चुनाव से संबंधित कोई निर्णय लेना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से भी इनका प्रभाव बेहतरीन रहेगा। अपने स्वभाव में उग्रता न आने दें। योजनाओं को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे। शनिस्तोत्र का पाठ करना और भी शुभ परिणाम दायक रहेगा।कन्या राशि-राशि से छठे शत्रु भाव में गोचर करते हुए शनिदेव बेहतरीन सफलता दिलाएंगे। काफी दिनों के प्रतीक्षित कार्य संपन्न होंगे। शत्रु परास्त होंगे । अदालती मामलों में भी निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। पैतृक संपत्ति संबंधी विवाद हल होगा। कोर्ट-कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। यात्रा देशाटन का लाभ मिलेगा। अत्यधिक खर्च के कारण आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ सकता है। सब कुछ सुखद रहेगा किंतु इस अवधि के मध्य किसी भी बड़े कर्ज के लेन देन से बचें। शनिदेव की और शुभता आपको प्राप्त होती रहे उसके लिए शनि स्तोत्र का पाठ करें।तुला राशि-राशि से पंचम विद्या भाव में गोचर करते हुए शनिदेव आपको जीवन के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाएंगे किंतु छल कपट और प्रपंचों से दूर रहना होगा अन्यथा नुकसान भी हो सकता है। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। प्रेम संबंधी मामलों में प्रगाढ़ता आएगी। प्रेम विवाह भी करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। आय के साधन बढ़ेंगे। उच्चाधिकारियों से मेलजोल बढ़ेगा, उनसे लाभ भी होगा। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। शनि देव के वैदिक मंत्र का जप करना शुभता में वृद्धि करेगा।वृश्चिक राशि-राशि से चतुर्थ सुख भाव में गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव काफी उतार-चढ़ाव वाला रहेगा। सफलताओं के बावजूद कहीं न कहीं पारिवारिक कलह और मानसिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। मित्रों तथा संबंधियों से भी अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। मकान अथवा वाहन का क्रय करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। कार्य व्यापार में उन्नति होगी। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। शनिदेव के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए इनकी शांति करवाना और पीपल वृक्ष का आरोपण करना सुखद रहेगा।धनु राशि-राशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए शनिदेव आपके लिए प्रतीक्षित परिणामों का सुखद अंत करवाएंगे। जैसी सफलता चाहेंगे हासिल करेंगे। अपने अदम्य साहस और पराक्रम के बलपर विषम परिस्थितियों पर भी आसानी से नियंत्रण पा लेंगे। लिए गए निर्णय और किए गए कार्यों की सराहना होगी। धर्म और अध्यात्म में रूचि बढ़ेगी। संतान संबंधी चिंता परेशान करेंगी उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखें। अपनी ऊर्जाशक्ति का सदुपयोग करते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे। शनिदेव का वैदिक मंत्र जप और सफलता देगा।मकर राशि-राशि से द्वितीय धनभाव में गोचर करते हुए शनिदेव आर्थिक पक्ष मजबूत करेंगे। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद है। पैतृक संपत्ति एवं वाहन सुख प्राप्ति के योग। जमीन-जायदाद अथवा मकान वाहन का क्रय करना चाह रहे हो तो उस दृष्टि से ग्रह फल अति अनुकूल रहेगा। स्वास्थ्य विशेष करके दाहिनी आंख से संबंधित समस्या से सावधान रहें। शरीर के जोड़ों में भी दर्द बढ़ सकता है उस पर भी ध्यान रखें। कार्यक्षेत्र में षड्यंत्र का शिकार होने से बचें। शनि स्तोत्र का पाठ करना अति उत्तम रहेगा।कुंभ राशि-आपकी राशि में गोचर करते हुए शनि देव का प्रभाव अच्छा ही कहा जाएगा यद्यपि ऐसा भी माना जा सकता है कि साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव भी मिल सकता है किंतु यह सब आपके चाल, चेहरा और चरित्र पर निर्भर करेगा। जैसा कार्य करेंगे वैसे ही शनि की कृपा मिलेगी। शासन सत्ता का पूर्ण सहयोग मिलेगा। अदालती मामलों में निर्णय आपके पक्ष आने के संकेत हैं। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए भी समय बेहतरीन रहेगा। शनिदेव का वैदिक मंत्र जाप सुख में वृद्धि करेगा।मीन राशि-राशि से बारहवें व्यय भाव में गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। अत्यधिक भागदौड़ और खर्च का सामना तो करना ही पड़ेगा आर्थिक तंगी बढ़ सकती है इसलिए अपव्यय से बचें। साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव से भी दो-चार होना पड़ेगा इसलिए बेहतर रहेगा कि अपने कार्य पर ध्यान दें और दूसरों को परेशान करने से बचें। शनिदेव की शांति करवाना, पीपल का वृक्ष लगाना सर्वोत्तम रहेगा।
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पंडित प्रकाश उपाध्याय
इस समय माघ मास चल रहा है। मासिक शिवरात्रि पर भगवान शंकर की पूजा- अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। मासिक शिवरात्रि का पर्व भगवान शंकर को समर्पित होता है। मासिक शिवरात्रि पर रात्रि में पूजा का विशेष महत्व होता है। मासिक शिवरात्रि पर विधि- विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा- अर्चना की जाती है।
आइए जानते हैं माघ मास की मासिक शिवरात्रि डेट, पूजा- विधि, शुभ मुहूर्त, और सामग्री की पूरी लिस्ट...
मासिक शिवरात्रि डेट- 20 जनवरी, 2023
मुहूर्त-
माघ, कृष्ण चतुर्दशी प्रारम्भ - 10:14 ए एम, जनवरी 20
माघ, कृष्ण चतुर्दशी समाप्त - 06:32 ए एम, जनवरी 21
पूजा का शुभ मुहूर्त- 11:53 पी एम से 12:47 ए एम, जनवरी 21
मासिक शिवरात्रि पूजा विधि--
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।
भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें।
भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा- अर्चना की जाती है।
भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें।
ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
भगवान भोलेनाथ को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान की आरती करना न भूलें।
मासिक शिवरात्रि पूजा सामग्री लिस्ट---
पुष्प, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि। -
माघ मास को बहुत पावन माह माना जाता है। इस माह में किए गए धार्मिक कार्यों से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और समस्त मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। इस माह भगवान श्रीहरि के साथ भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस माह अधिक से अधिक समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत करना चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इस माह वास्तु में बताए गए कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए। आइए जानते हैं इनके बारे में।
माघ माह में अगर कुछ विशेष वस्तुओं का दान और पवित्र नदियों में स्नान किया जाए तो दीर्घायु, आरोग्य, सौंदर्य, सौभाग्य, धन-धान्य आदि की प्राप्ति होती है। माघ माह में प्रत्येक शनिवार काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करें। इस उपाय से आर्थिक समस्याएं दूर हो सकती हैं।
माघ मास में स्नान-दान का विशेष महत्व है। इस माह दान करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। माघ मास में प्रयागराज में माघ मेला आरंभ होता है। माघ मास में संगम में पूरे माह स्नान करने वाले को भगवान श्री हरि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सुख-सौभाग्य, धन और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि माघ मास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल कई जन्मों तक मिलता है। माघ माह में प्रतिदिन श्रीमद्भागवत गीता या रामायण का पाठ करना चाहिए। माघ मास में स्नान के पानी में तिल डालना चाहिए। माघ मास में रोजाना तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें। शाम को तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाएं। माघ माह में रोजाना स्नान करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करें।
उन्हें पंचामृत अर्पित करें। माघ माह में देर तक शयन करने से बचें। इस माह में भोजन में तिल और गुड़ का प्रयोग अधिक करना चाहिए। माघ माह में काले वस्त्र धारण करने से बचें। माघ मास में जरूरतमंद को गुड़, तिल और कंबल का दान शुभ फलदायी माना जाता है। माघ मास में भगवान सूर्य की उपासना अत्यंत लाभकारी है। प्रतिदिन सुबह सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करें।
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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हाथ में शनि पर्वत बेहद महत्वपूर्ण है और इस पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। शनि पर्वत को ज्योतिष में भाग्य स्थान भी माना गया है। शनि पर्वत पर रेखाओं का पहुंचना जरुरी है। यदि शनि पर्वत पर कोई रेखा ना पहुंचे, लेकिन इस पर एक या दो खड़ी रेखाएं हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में भूखा नहीं मरता। ऐसे व्यक्ति को धन मिलता रहता है। यदि शनि पर्वत पर वी का चिह्न बने और इसमें पांच या इससे कम शाखाएं निकलें तो व्यक्ति जीवन में करोड़ों रुपये का मालिक होता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति का भाग्योदय घर से दूर जाने पर ही होगा।
यदि शनि पर्वत पर केंद्र में मछली का निशान बने तो जीवन में धन की प्राप्ति होगी, लेकिन यह चिह्न शनि और गुरु पर्वत पर बने तो व्यक्ति धन और सम्मान दोनों पाता है। इसी तरह यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर सीधे शनि पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति को परिवार से संपत्ति मिलती है। जीवन रेखा से कोई रेखा से उदय हो शनि पर्वत पर पहुंचे तो ऐसा व्यक्ति अपने दम पर संपत्ति खड़ी करता है। ऐसे लोगों को परिवार से कोई संपत्ति नहीं मिलती। यदि जीवन रेखा से उदय रेखा थोड़ा अंदर आकर मंगल पर्वत तक पहुंच जाए तो यह बहुत ही शुभ है।
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हाथ में धन की कोठरी तो बहुत सुनी होगी। अनेक लोग पूछते भी रहते हैं कि धन की कोठरी कैसे होगी और यह कैसे खुलेगी। हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा प्रमुख होती हैं। जीवन रेखा से ही कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत तक पहुंचने वाली रेखा धन रेखा या भाग्य रेखा कहलाती है। जीवन रेखा से ही एक रेखा निकलकर बुध पर्वत तक पहुंचने वाली रेखा व्यवसाय रेखा होती है। इन रेखाओं से ही बंद कोठरी बनती है।
हाथ में धन की कोठरी जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा और व्यवसाय रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा के साथ मिलने से बनत है। इन तीनों रेखाओं से हाथ में एक कोठरी या त्रिभुजनुमा रचन बनती है। हस्तरेखा विज्ञान में इसे ही धन की कोठरी के नाम से जाना जाता है। शनि पर्वत भाग्य, धन और गूढ विद्याओं का प्रतीक होता है। व्यवसाय रेखा व्यवसाय का प्रतीक होती है। मस्तिष्क रेखा बुद्धि का प्रतीक है। ऐसे लोग अपनी बुद्धि और व्यापार के दम पर अकूत धन कमाते हैं। हालांकि यह त्रिभुज कहीं से भी खुला हुआ नहीं हेाना चाहिए। यदि इस त्रिभुज पर क्रॉस का निशान बने तो कमाया हुआ सारा धन नष्ट हो जाता है।
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ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। पृथ्वी पर रहने वाले सभी धर्म व जाति के लोग बारह महीनों का साल मनाते हैं, चाहे वे कोई भी मान्यता के कैलेंडर को प्रयोग में लाएं। ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां व 12 घर का मूल सिद्धांत है। सूर्य 1 महीना हर राशि या हर घर में बिताते हैं अर्थात 30 दिन में सूर्य दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इसका मतलब जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे ‘संक्रांति’ कहते हैं। इसी प्रकार जब-जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो वेदों के अनुसार उस दिन को ‘मकर संक्रांति’ कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में होते हैं।
मकर संक्रांति के दिन सुबह स्नान करके दान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर आते हैं। अत शनि देव अपने पिता का स्वागत करते हैं। इस वर्ष 14 जनवरी, 2023 को रात्रि 08.44 के बाद सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे, अत मकर संक्रांति 15 जनवरी, 2023 को मनायी जाएगी।
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य देव, विष्णु जी व लक्ष्मी देवी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी व तिल के लड्डू का दान करना चाहिए। गरीबों को कंबल-वस्त्र बांटने चाहिए। रंग-बिरंगे वस्त्र, विशेषकर पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। पूरे भारत वर्ष में केवल महाराष्ट्र ऐसा प्रदेश है, जहां मकर संक्रांति के दिन काले वस्त्र धारण करने की परंपरा है। काली उड़द की दाल दान करने से शनि संबंधी दोष दूर होते हैं। दान करने से हमारे सभी पाप नष्ट होते हैं। इस अवसर पर सूर्य के प्राचीन मंत्र गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र बहुत शक्तिशाली व सबसे पुराने वेद ‘ऋग्वेद’ का सूर्य मंत्र है।
मकर संक्रांति के दिन मांस-मंदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करें। इस दिन चावल, चना, मूंगफली, गुड़, तिल, उड़द की दाल इत्यादि से बनी सामग्री का सेवन करना चाहिए। इस दिन किसी गरीब या भिखारी को अपने घर से खाली हाथ न लौटाएं। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य व शनि देव नीच के होकर बैठे हैं या मारक हैं अथवा शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है, तो वे शनि देव के सात रत्न अभिमंत्रित करके और ‘ओम् शं शनैश्चराय नम’ की सात माला पढ़कर बहते जल में प्रवाहित करें। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य देव नीच अथवा मारक हैं, उन्हें ‘ओम् घृणि सूर्याय नम’ की सात माला पढ़कर, सूर्य देव के सात अभिमंत्रित रत्न प्रवाहित करने चाहिए। इस दिन पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर परिवार के सभी लोग स्नान अवश्य करें।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
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