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हाथ में शनि पर्वत बेहद महत्वपूर्ण है और इस पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। शनि पर्वत को ज्योतिष में भाग्य स्थान भी माना गया है। शनि पर्वत पर रेखाओं का पहुंचना जरुरी है। यदि शनि पर्वत पर कोई रेखा ना पहुंचे, लेकिन इस पर एक या दो खड़ी रेखाएं हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में भूखा नहीं मरता। ऐसे व्यक्ति को धन मिलता रहता है। जानिए शनि पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में फल।
-यदि शनि पर्वत पर केंद्र में मछली का निशान बने तो जीवन में धन की प्राप्ति होगी, लेकिन यह चिह्न शनि और गुरु पर्वत पर बने तो व्यक्ति धन और सम्मान दोनों पाता है।
-यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर सीधे शनि पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति को परिवार से संपत्ति मिलती है।
-यदि जीवन रेखा से कोई रेखा से उदय हो शनि पर्वत पर पहुंचे तो ऐसा व्यक्ति अपने दम पर संपत्ति खड़ी करता है। ऐसे लोगों को परिवार से कोई संपत्ति नहीं मिलती। यदि जीवन रेखा से उदय रेखा थोड़ा अंदर आकर मंगल पर्वत तक पहुंच जाए तो यह बहुत ही शुभ है।
-शनि पर्वत पर वी का चिह्न बने और इसमें पांच या इससे कम शाखाएं निकले तों व्यक्ति करोड़ों रुपये का मालिक होता है।
-यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति का भाग्योदय घर से दूर जाने पर ही होगा। - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायदिशाओं के विषय में सबको पता है। हमें मुख्यत: 4 दिशाओं के बारे में पता होता है जो हैं पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण। वैज्ञानिक और वास्तु की दृष्टि से 4 और दिशाएं है जो इन चारों दिशाओं के मिलान बिंदु पर होती हैं। ये हैं - उत्तरपूर्व (ईशान), दक्षिणपूर्व (आग्नेय), उत्तरपश्चिम (वायव्य) एवं दक्षिणपश्चिम (नैऋत्य)। तो इस प्रकार 8 होती हैं जो सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त उध्र्व (आकाश) एवं अधो (पाताल) को भी दो दिशाएं मानी जाती हैं। तो दिशाओं की संख्या 10 हुए। अंतत: जहां हमारी वर्तमान स्थिति होती है उसे मध्य दिशा कहते हैं। इस प्रकार दिशों की कुल संख्या 11 होती है। किन्तु 11 में से 10, उनमें से 8 एवं उनमें से भी 4 दिशाओं का विशेष महत्व है।पुराणों के अनुसार सृष्टि के आरम्भ से पहले जब ब्रह्मा तपस्या से उठे और उन्होंने सृष्टि की रचना का विचार किया तब उनके कर्णों से 10 कन्याओं की उत्पत्ति हुई। इनमें से 6 मुख्य एवं 4 गौण कन्याएं थीं। सभी कन्याएंं अलग-अलग स्थानों पर चली गयीं और उससे ही वे स्थान "दिशाएं" कहलाईं।वे 10 कन्यायें थीं:पूर्वा: जो पूर्व दिशा कहलाई।आग्नेयी: जो आग्नेय दिशा कहलाई।दक्षिणा: जो दक्षिण दिशा कहलाई।नैऋती: जो नैऋत्य दिशा कहलाई।पश्चिमा: जो पश्चिम दिशा कहलाई।वायवी: जो वायव्य दिशा कहलाई।उत्तरा: जो उत्तर दिशा कहलाई।ऐशानी: जो ईशान दिशा कहलाई।ऊध्र्वा: जो उध्र्व दिशा कहलाई।अधस्: जो अधो दिशा कहलाई।उसके पश्चात ब्रह्मदेव ने आठ दिशाओं के लिए 8 देवताओं का निर्माण किया और उन कन्याओं को पति के रूप में समर्पित किया। ब्रह्मदेव ने उन सभी को "दिग्पाल" (दिक्पाल) की संज्ञा दी जिसका अर्थ होता है दिशाओं के पालक। ये आठ दिक्पाल हैं:पूर्व के इंद्रआग्नेय के अग्निदक्षिण के यमनैऋत्य के सूर्यपश्चिम के वरुणवायव्य के वायुउत्तर के कुबेरईशान के सोमअन्य दो दिशाओं अर्थात उध्र्व (आकाश) में ब्रह्मदेव स्वयं चले गए और अधो (पाताल) में उन्होंने अनंत (शेषनाग) को प्रतिष्ठित किया। इस प्रकार सभी 10 दिशाओं को उनके दिक्पाल मिले।
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घर में लक्ष्मी नारायण पूजा....हर कमी पूरी करती हैं मां लक्ष्मी....
--बालोद से प्रकाश उपाध्यायमां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। इनके साथ भगवान विष्णु की पूजा तो और भी अधिक फलदायी है। एक तरफ मां लक्ष्मी की अराधना करने से धन, सुख समृद्धि आती है, वहीं भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा जीवन में हर कमी को पूरा करती है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग बिजनेस और नौकरी में धन की कमी महसूस कर रहे होते हैं, उन्हें लक्ष्मी नारायण पूजा करनी चाहिए। इनकी पूजा से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है।ऐसा कहा जाता है कि श्री लक्ष्मी नारायण पूजा से लंबी आयु, स्वास्थ्य, समृद्धि और सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि पूजा में सबसे पहले भगवान लक्ष्मी नारायण का विधि-विधान के साथ दूध, दही, शहद, बूरा व देशी घी के साथ अभिषेक किया जाता है। वैसे तो किसी भी शुभ दिन लक्ष्मी नारायण व्रत, पूजा और कथा की जाती है, लेकिन पूर्णिमा के दिन इनकी पूजा, व्रत और कथा कराने का विधान है।इस पूजा के लिए केलों के पत्तों से पूजा का मंडप सजाया जाता है। लक्ष्मी नारायण की तस्वीर लगाई जाती है और भगवान के शालीग्राम रूप को भी पूजा में शामिल किया जाता है। पंचामृत से स्नान कराकर किसी योग्य ब्राह्मण से पूजा और कथा करवाई जाती है। इनकी पूजा में पीले वस्त्र धारण किए जाते हैं। -
--बालोद से प्रकाश उपाध्याय
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। मोक्ष मिलने के कारण इसे बैकुंठ एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी पर व्रत रखने से मोक्ष मिलता है। यह भी मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रत करने से व्रती के पूर्वज जो नरक में चले गए हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मोक्षदा एकादशी के दिन महाभारत युद्ध से पूर्व भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी का व्रत सभी प्रकार के पापों को नष्ट करता है। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा कर सत्यनारायण की कथा की जाती है। इस साल यह व्रत 3 दिसंबर को मनाई जाएगी।
भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी की विशेष पूजा की जाती है। पूरे दिन व्रत करके अगले दिन ब्रह्माण को भोजन कराकर व्रत का पारण करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। गीता उपनिषदों की भी उपनिषद है। इसलिए अगर आपको जीवन की किसी समस्या का समाधन न मिल रहा हो तो वह गीता में मिल जाता है। गीता में मानव को अपनी समस्त समस्याओं का समाधान मिल जाता है। गीता के स्वाध्याय से श्रेय और प्रेय दोनों की प्राप्ति हो जाती है। इस एकादशी के दिन श्री गीता जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। गीता दिव्यतम ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्म पर्व में है। श्री वेदव्यास जी ने महाभारत में गीताजी के माहात्म्य को बताते हुए कहा है, ‘गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्र विस्तरै:। या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि: सृता।।’ अर्थात् गीता सुगीता करने योग्य है। गीताजी को भली-भांति पढ़ कर अर्थ व भाव सहित अन्त:करण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है। गीता स्वयं विष्णु भगवान् के मुखारविंद से निकली हुई है। -
--बालोद से प्रकाश उपाध्याय
व्यक्ति की दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। लेकिन जीवन में ऐसा भी समय आ जाता है जब व्यक्ति आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। कड़ी मेहनत के बाद भी जातक को असफलता हाथ लगती है। लेकिन इस बात से परेशान होने की जरूरत नहीं है। कई बार धन आगमन में बाधाएं वास्तु दोष भी डालता है। ऐसे में आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए आजमाएं ये आसान वास्तु टिप्स-
1. सही दिशा में रखें तिजोरी- वास्तु के अनुसार, तिजोरी को सही दिशा में रखना बहुत जरूरी होता है। इसलिए तिजोरी को हमेशा दक्षिण दिशा में ही रखें और उसका दरवाजा उत्तर दिशा में खुलता हो। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन आगमन होता है।
2. घर में रंगों का महत्व- वास्तु के अनुसार, घर की दीवारों पर सही रंगों का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी होता है। कई बार सही रंगों का घर में इस्तेमाल न करने पर जातक को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तु के मुताबिक, कमरे की पूर्व दिशा में सफेद रंग, पश्चिम में नीला, उत्तर में हरा और दक्षिण दिशा में लाल रंग लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
3. घर को रखें साफ-सुथरा- घर में गंदगी रखने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं। कहते हैं कि जिन घरों में साफ-सफाई नहीं होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। ऐसे में घरों में बरकत नहीं जाती है। इसलिए जातक को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। घर में साफ-सफाई करने से आर्थिक तंगी दूर होती है। - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायश्री मृतसंजीवनी स्तोत्र भगवान शिव को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार, श्री मृतसंजीवनी स्तोत्र का अर्थ है अकाल मृत्यु से उभारने का कवच। शिव के इस मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु, किसी अनहोनी या बड़ी दुर्घटना को रोका जा सकता है। इसे मृत संजीवनी स्तोत्रम के रूप में भी जाना जाता है। इसका जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इस मंत्र के उच्चारण से भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। परिवार में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि "मृतसंजीवनी स्त्रोत्र" को परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि वशिष्ठ ने लिखा था। 30 श्लोकों का ये स्त्रोत्र भगवान शिव के कई अनजाने पहलुओं पर प्रकाश डालता है। जो कोई भी इस स्त्रोत्र का पूर्ण चित्त से पाठ करता है, उसे जीवन में किसी भी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। आइये जानते हैं इस पूरे मंत्र को ....एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम्।मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा।।1।।अर्थात: गौरीपति मृत्युञ्जयेŸवर भगवान् शंकर की विधिपूर्वक आराधना करने के पश्चात भक्त को सदा मृतसञ्जीवन नामक कवच का सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये।सारात्सारतरं पुण्यं गुह्यात्गुह्यतरं शुभम्।महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम्।।2।।अर्थात: महादेव भगवान् शङ्कर का यह मृतसञ्जीवन नामक कवच तत्त्व का भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है, गुह्य और मङ्गल प्रदान करने वाला है।समाहितमना भूत्वा शृणुश्व कवचं शुभम्।शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा।।3।।अर्थात: अपने मन को एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवच को सुनो। यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है। इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना।वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवित:।मृत्युञ्जयो महादेव: प्राच्यां मां पातु सर्वदा।।4।।अर्थात: जरा से अभय करने वाले, निरन्तर यज्ञ करने वाले, सभी देवतओं से आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव! आप पूर्व-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें।दधान: शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु:।सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा।।5।।अर्थात: अभय प्रदान करनेवाली शक्ति को धारण करनेवाले, तीन मुखोंवाले तथा छ: भुजओंवाले, अग्रिरूपी प्रभु सदाशिव अग्रिकोणमें मेरी सदा रक्षा करें।अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभु:।यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु।।6।।अर्थात: 18 भुजाओं से युक्त, हाथ में दण्ड और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें।खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवित:।रक्षोरूपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदावतु।।7।।अर्थात: हाथ में खड्ग और अभयमुद्रा धारण करने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों से आराधित, रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।पाशाभयभुज: सर्वरत्नाकरनिषेवित:।वरूणात्मा महादेव: पश्चिमे मां सदावतु।।8।।अर्थात: हाथ में अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरोंसे सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशामें मेरी सदा रक्षा करें।गदाभयकर: प्राणनायक: सर्वदागति:।वायव्यां वारुतात्मा मां शङ्कर: पातु सर्वदा।।9।।अर्थात: हाथों में गदा और अभयमुद्रा धारण करने वाले, प्राणोम के रक्षक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।शङ्खाभयकरस्थो मां नायक: परमेश्वर:।सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्कर: प्रभु:।।10।।अर्थात: हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा), सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओं के मध्य में मेरी रक्षा करें।
शूलाभयकर: सर्वविद्यानामधिनायक:।ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वर:।।11।।अर्थात: हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशान स्वरूप भगवान् परमेश्वर शिव ईशान कोण में मेरी रक्षा करें।ऊध्र्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽध: सदावतु।शिरो मे शङ्कर: पातु ललाटं चन्द्रशेखर:।।12।।अर्थात: ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊध्र्वभाग में तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभाग में मेरी सदा रक्षा करें। शंकर मेरे सिर की और चन्द्रशेखर मेरे ललाट की रक्षा करें।भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु।।भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु कर्णौ पातु महेश्वर:।।13।।अर्थात: मेरे भौंहों के मध्य में सर्वलोकेश और दोनों नेत्रों की त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें। दोनों भौंहों की रक्षा गिरिश एवं दोनों कानों की रक्षा भगवान् महेश्वर करें।नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वज:।जिव्हां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु।।14।।अर्थात: महादेव मेरी नासीका की तथा वृषभध्वज मेरे दोनों अधरों की सदा रक्षा करें। दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वा की तथा गिरिश मेरे दन्तों की रक्षा करें।मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषण:।पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम।।15।।अर्थात: मृत्युञ्जय मेरे मुख की एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठ की रक्षा करें। पिनाकी मेरे दोनों हाथों की तथा त्रिशूलि मेरे हृदय की रक्षा करें।पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वर:।नाभिं पातु विरूपाक्ष: पाश्र्वो मे पार्वतिपति:।।16।।अर्थात: पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनो की और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें। विरूपाक्ष नाभि की और पार्वतीपति पाश्र्वभाग की रक्षा करें।कटद्वयं गिरिशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिप:।गुह्यं महेश्वर: पातु ममोरु पातु भैरव:।।17।।अर्थात: गिरीश मेरे दोनों कटिभाग की तथा प्रमथाधिप पृष्टभाग की रक्षा करें। महेश्वर मेरे गुह्यभाग की और भैरव मेरे दोनों ऊरुओं की रक्षा करें।जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्घे मे जगदंबिका।पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्य: सदाशिव:।।18।।अर्थात: जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघो की तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरों की रक्षा करें।गिरिश: पातु मे भार्या भव: पातु सुतान्मम।मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायक:।।19।।अर्थात: गिरीश मेरी भार्या की रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रों की रक्षा करें। मृत्युञ्जय मेरे आयु की गणनायक मेरे चित्त की रक्षा करें।सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकाल: सदाशिव:।एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानांच दुर्लभम्।।20।।अर्थात: कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अंगो की रक्षा करें। देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवच का वर्णन मैंने तुमसे किया है।मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम्।सहस्त्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम्।।21।।अर्थात: महादेव ने स्वयं मृतसञ्जीवन नामक इस कवच को कहा है। इस कवच की सहस्त्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है।य: पठेच्छृणुयानित्यं श्रावयेत्सु समाहित:।सकालमृत्यु निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते।।22।।अर्थात: जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्यु को जीतकर पूर्ण आयु का उपयोग करता है।हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ।आधयोव्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन।।23।।अर्थात: जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवच का पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है। फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं।कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा।अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तम:।।24।।अर्थात: यह मृतसञ्जीवन कवच काल के गाल में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर ?देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणों से युक्त ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम।युद्धमध्ये स्थित: शत्रु: सद्य: सर्वैर्न दृश्यते।।25।।अर्थात: युद्ध आरम्भ होने के पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवच का 28 बार पाठ करके रणभूमि में उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुओं अदृश्य रहता है।
न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै।विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा।।26।।अर्थात: यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है।प्रातरूत्थाय सततं य: पठेत्कवचं शुभम्।अक्षय्यं लभते सौख्यमिहलोके परत्र च।।27।।अर्थात: जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच का सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय सुख प्राप्त होता है।सर्वव्याधिविनिर्मुक्त: सर्वरोगविवर्जित:।अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिक:।।28।।अर्थात: वह सम्पूर्ण व्याधियों से मुक्त हो जाता है, सब प्रकार के रोग उसके शरीर से भाग जाते हैं। वह अजर-अमर होकर सदा के लिये सोलह वर्ष वाला व्यक्ति बन जाता है।
विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान्।तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम्।।29।।अर्थात: इस लोक में दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकों में विचरण करता रहता है। इसलिये इस महागोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नाम से कहा है।मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम्।इति वसिष्ठकृतं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्।।30।।अर्थात: मृतसंजीवनी नामक यह स्त्रोत्र देवतओं के लिय भी दुर्लभ है। ये वशिष्ठ द्वारा रचित मृतसंजीवनी स्त्रोत्र है। - बालोद से पं. प्रकाश उपाध्यायहिन्दू धर्म में भक्ति को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। भक्त की भक्ति के कारण तो भगवान भी दौड़े चले आते हैं। भक्ति की व्याख्या अलग-अलग ग्रंथों में अलग प्रकार से की गयी है। विभिन्न मत और समुदाय भक्ति को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं किन्तु हमारे ग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति को बड़ा महत्व दिया गया है जिसे "नवधा भक्ति" कहा जाता है।नवधा भक्ति का उल्लेख हमारे ग्रंथों में 2 बार किया गया है। इसका पहला वर्णन विष्णु पुराण में आता है जो सतयुग में भगवान के नरसिंह अवतार से सम्बंधित है। इसमें हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद का एक वार्तालाप है जिसमें प्रह्लाद ने अपने पिता को प्रभु की नौ प्रकार की भक्ति के विषय में बताया है। जिसके विधिवत पालन से भगवान का साक्षात्कार किया जा सकता है। प्रह्लाद कहते हैं -श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम।अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥अर्थात: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन ये नौ प्रकार की भक्ति कहलाती है।श्रवण: भगवान की कथा और महत्व को पूरी श्रद्धा से सुनना।कीर्तन: भगवान के अनंत गुणों का अपने मुख से उच्चारण करते हुए कीर्तन करना।स्मरण: सदैव प्रभु का स्मरण करना।पाद-सेवन: प्रभु के चरणों में स्वयं को अर्पण कर देना।अर्चन: शास्त्रों में वर्णित पवित्र सामग्री से प्रभु का पूजन करना।वंदन: आठ प्रहर ईश्वर की वंदना करना।दास्य: भगवान को स्वामी और स्वयं को उनका दास समझना।सख्य: ईश्वर को ही अपना सर्वोच्च और प्रिय मित्र समझना।आत्मनिवेदन: अपनी स्वतंत्रता त्याग कर स्वयं को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित कर देना।इन नौ में भी प्रह्लाद ने श्रवण, कीर्तन और समरण को श्रेष्ठ बताया है और इन तीनों में भी श्रवण को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ कहा है।
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बालोद से प्रकाश उपाध्याय
पूजा पाठ ही नहीं वास्तु शास्त्र में भी तुलसी का काफी महत्व है। एक तरफ जहां तुलसी की पूजा की जाती है, वहीं वास्तुशास्त्र में तुलसी का पानी बहुत ही फायदेमंद माना गया है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि कार्तिक के महीने में तुलसी की पूजा और सेवा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इसी प्रकार वास्तु में भी तुलसी को सभी वास्तु दोष और नेगेटिव एनर्जी को दूर करने का उपाय माना गया है। वास्तु के अनुसार आप अपने घर में तुलसी के पानी से ये उपाय कई प्रकार के दोषों को मुक्त करने के लिए कर सकते हैं। यही नहीं इससे आपके जिंदगी की मुश्किलें कम होंगी और आपके तरक्की के रास्ते खुलेंगे।
अगर आपको तरक्की चाहिए तो आप इसके लिए तुलसी के पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आपको एक लौटे में जल लेकर तुलसी के पत्तों को डालकर रखना है। इन पत्तों को पानी में 2-3 दिन डालकर रखें। इसके बाद इस पानी ता छिड़काव अपने ऑफिस, घर और बिजनेस की जगह पर करें। इस पानी के छिड़काव से आपके घर की सभी परेशानियां दूर होंगी और आपके तरक्की के रास्ते खुल जाएंगे।
इसके अलावा तुलसी के पत्तों को जल में घोलकर बालगोपाल को स्नान कराना चाहिए और इसे चरणामृत मानकर ग्रहण करना चाहिए। कहते हैं बालगोपाल यानी भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय इन्हें तुलसी अर्पित करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी भी बहुत प्रसन्न होते हैं।
एक तांबे या पीतल के लोटे में जल में तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। ऐसा करने से जल पवित्र और शुद्ध बन जाता है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। इस बात का ध्यान रखें कि तुलसी के पत्तों को पानी में मिलाने के बाद इधर-उधर न फेंके। आप इन्हें वापस तुलसी के पौधे में डाल सकते हैं या फिर इन्हें ग्रहण भी कर सकते हैं।
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-प्रकाश उपाध्याय
हर व्यक्ति एक ऐसे जगह पर काम करना पसंद करता है। जहां का आपस में घुल मिल कर काम करना पसंद करते हों। एक कर्मचारी, दूसरे की मदद करने से कतराए नहीं और उन्हें किसी तरह की तकलीफ होने के बाद उनका साथ दें। उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें। ऐसे जगह पर काम करने से आप अंदर से शांति और संतुष्टि का अनुभव करते हों।
फेंगशुई एक चीनी परंपरा है जिसकी मदद से अलग -अलग जगहों पर शांतिपूर्ण माहौल और सफलता पाने में मदद मिलती है। इस तकनीक ने ऑफिस, घर और यहां तक की स्कूलों के वातावरण को भी खुशहाल बनाएं रखने में काफी मदद की है।
आज हम आपको उन फेंगशुई टिप्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप भी अपने ऑफिस का माहौल शांतिपूर्ण बना सकते हैं। जिससे आपकी कार्य करने की क्षमता में बढ़त देखने को मिलती है।
1. अपने टेबल को व्यवस्थित करें -
फेंगशुई के अनुसार यदि आपकी डेस्क पर चीजें बिखरी हुई है तो यह आपके परफॉर्मेंस पर नेगेटिव इंपैक्ट डालती है। जिससे आपकी प्रोडक्टिविटी बाधित होती है इसलिए किसी भी बिजनेस या कार्य करने की जगह पर अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए डेस्क पर बिखरी हुई चीजों को ठीक से व्यवस्थित कर लें और टेबल पर उन्हीं चीजों को रखें जिनका प्रयोग आप रोजाना करते हैं। रोजाना इस्तेमाल में न आने वाली चीजों को किसी अलमारी या कबर्ड में रख दें। फेंगशुई के अनुसार चीजें व्यवस्थित रखना बेहद आवश्यक है। यह बताता है कि आपका बिजनेस कितना सफल होने वाला है।
2. नीला रंग -
फेंगशुई के अनुसार नीला रंग भावनाओं को उजागर करने में काफी मदद करता है। इससे प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है। बिजनेस के लिए नीला रंग बेहद शुभ माना जाता है। यह आकाश और समुद्र का रंग है। जो मुक्त आत्मा का प्रतीक माना जाता है। यह बेहद आरामदायक रंग है जो शांति की भावना को पैदा करता है। यह अक्सर बिजनेस की दुनिया में वफादारी, जिम्मेदारी ,विश्वास की भावना को जागृत करने में सहायता करता है। -
-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है। सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत आता है, उसी के नाम पर प्रदोष व्रत का नाम रखा जाता है। सोमवार के दिन सोम प्रदोष व्रत किया जाता है। मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनकी आराधना करते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोम प्रदोष व्रत किया जाता है।
यह व्रत भगवान शिव को अति प्रिय है। मान्यता है कि इस शुभ दिन सच्चे मन से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से मनचाहा फल प्राप्त होता है। इस शुभ दिन पर कुछ उपाय करने से नौकरी, कारोबार से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत में सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन हल्के लाल या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करें। चांदी या तांबे के लोटे से शुद्ध शहद एक धारा के साथ शिवलिंग पर अर्पित करें। घर के पास किसी शिव मंदिर में जाएं और वहां जाकर शुद्ध जल में दूध और गंगाजल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करें। ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए शिवलिंग पर धतूरा अर्पित करें। दूध में थोड़ा-सा केसर और कुछ फूल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करें। जौ का आटा लेकर भगवान शिव के चरणों में स्पर्श कर, जौ के आटे की रोटियां बना लें और बछड़े या बैल को खिला दें। बेल पत्र से भगवान शिव का पूजन करें। इस शुभ दिन शिवलिंग पर कच्चे दूध में गुड़ मिलाकर अभिषेक करने से आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। जो लोग किसी बीमारी से पीड़ित हैं उन्हें इस शुभ दिन महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। इससे सेहत में सुधार होने के साथ जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें। इससे कुंडली में चंद्रमा से जुड़े सारे दोष दूर हो जाते हैं। शिव तांडव स्तोत्र और शिव चालीसा का पाठ करें। इस व्रत में पूरे दिन निराहार रहें और एक समय फलाहार कर सकते हैं। शाम को शिव परिवार की पूजा करें। -
-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
कुछ पौधें घर की साज-सज्जा को बढ़ाने, पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के अलावा ग्रह, नक्षत्रों को भी नियंत्रित करते हैं। आज हम आपके एक ऐसे ही पौधें के बारे में बताने जा रहे हैं। जो भगवान शिव को बेहद प्रिय है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार कुछ पौधों को बेहद चमत्कारिक माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन पौधों में देवताओं का वास होता है। कुछ पौधें घर की साज-सज्जा को बढ़ाने, पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के अलावा ग्रह, नक्षत्रों को भी नियंत्रित करते हैं। आज हम आपके एक ऐसे ही पौधें के बारे में बताने जा रहे हैं। जो भगवान शिव को बेहद प्रिय है और सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाला शनि ग्रह को भी नियंत्रित करने का कार्य करता है।
1. शनिवार के दिन सीधे जमीन व गमले में भी शमी का पौधा लगा सकते हैं। घर के मेन गेट के पास शमी का पौधा लगाना बेहद शुभ माना जाता है।
2. घर के ईशान कोण में शमी का पौधा लगाना चाहिए। इससे परिवार को कभी आर्थिक तंगी जैसी समस्या से नहीं गुजरना पड़ता है।
3. घर से बाहर जाते समय शमी के पौधें के दर्शन करके बाहर निकले, ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलने लगती है।
4. वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपकी कुंडली मे किसी तरह का शनि दोष है या आप शनि के दुष्प्रभाव से हमेशा दूर बने रहना चाहते हैं तो मेन गेट के बाई ओर शमी का पौधा लगाना चाहिए।
5. शमी के पौधें पर सूर्य की किरणें पड़नी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो पा रहा तो पौधें को दक्षिण दिशा की ओर लगा दें।
6. शमी के पौधें को विजयादशमी के दिन लगाना बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से फके शमी के पौधें की पूजा कर विजयी होने का आशीर्वाद मांगा था। - प्रकाश उपाध्यायकई बार परिवार के सदस्यों के बीच बिना बात तनाव रहता है। जिससे आपसी रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है और घर में उदासी छा जाती है। अगर आप अपने जीवन में खुशियां तलाश रहे हैं तो वास्तु शास्त्र में बताए गए कुछ आसान उपाय जान लें। मान्यता है कि इन उपायों को अपनाने से जीवन में खुशियां आती हैं और घर में पॉजिटिव ऊर्जा का वास होता है। पढ़ें वास्तु शास्त्र के आसान उपाय-1. सप्ताह में एक बार घर में गूगल का धुंआ करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार में खुशियों का आगमन होता है और नेगेटिव ऊर्जा बाहर होती है।2. घर में सरसों के तेल के दीये में लौंग डालकर जलाना शुभ माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है। मां लक्ष्मी को सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है।3. तवे पर रोटी सेंकने से पूर्व दूध के छींटें मारना शुभ माना गया है। मान्यता है कि दूध के छींटे से निकलने वाला धुंआ घर से नेगेटिव ऊर्जा को बाहर करता है और परिवार में खुशहाली आती है।4. पहली रोटी गाय के लिए निकालनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर में खुशहाली आती है।5. वास्तु के अनुसार, घर में तुलसी का पौधा पूर्व दिशा की गैलरी में या पूजा स्थान पर होना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।6. वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में टूटी-फूटी या बेकार की चीजों को नहीं रखना चाहिए। मान्यता है कि अनावश्यक चीजें दरिद्रता का प्रतीक होती हैं।7. घर में गोल किनारों के फर्नीचर ही शुभ माने गए हैं।
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हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार मार्गशीर्ष माह की शुरुआत हो चुकी है. जैसे अंग्रेजी कैलेंडर में साल के 12 महीने होते हैं वैसे ही हिन्दी कैलेंडर में भी साल के 12 महीने होते हैं. पंचाग के अनुसार हर महीनों को अलग नामों से जाना जाता है. साल के नवें महीने को अगहन के नाम से भी जानते हैं. ऐसी मान्यता है मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग की स्थापना हुई थी. यह माह भगवान कृष्ण को बहुत प्रीय होता है. इस माह में शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. अगर मार्गशीर्ष माह में आप शंख की विधि-विधान से पूजा करत हैं, तो इससे न सिर्फ भगवान कृष्ण बल्कि माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं. आइए जानें शंख से जुड़े कुछ कारगर उपाय.
यदि आप मां लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं तो मार्गशीर्ष माह में रोजाना शंख की पूजा करें. घर के मंदिर में या जहां भी आपकी पूजन स्थल हो वहां पर शंख की स्थापना करें और विधि-विधान से पूजा करें. मान्यता है कि शंख की पूजा से जीवन में धन-धान्य के साथ सुख-समृद्धि आती है.
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए दक्षिणावर्ती शंख में दूध भरें और फिर उससे विष्णु जी का अभिषेक करें. इससे न सिर्फ विष्णु जी बल्कि माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं.
अगर आप की कुंडली में दोष हो तो मार्गशीर्ष माह में शंख पूजा अवश्य करें. खास करके जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर स्थिति में हों उन्हें शंख पूजा अवश्य करनी चाहिए. इसके लिए एक सफेद कपड़े में शंख के साथ, चावल और बताशे लपेट कर उसे किसी नदी में प्रवाह कर दें.
इस माह के दौरान शंख दान करना बेहद लाभदायक साबित हो सकता है. यदि संभव हो तो श्री विष्णु के किसी मंदिर में जाकर शंख दान करें. इससे आपके सभी दोष दूर हो जाएंगे.
वैसे तो शंख कई प्रकार के होते हैं लेकिन मार्गशीर्ष माह में मोती शंख का विशेष महत्व होता है. इसको को अपनी अलमारी का तिजोरा में रखें. इसके साथ हल्दी और कच्चे चावल भी एक कपड़े में बांदकर रख दें. इससे आपके घर में बरकत होगी और धन-धान्य का लाभ होगा. -
वास्तु अनुसार घर में रखी हर एक चीज आप पर किसी न किसी रूप में प्रभाव डालती है. कहते हैं कि सही समय पर सही दिशा में किया गया कार्य हमेशा सफलता तक पहुंचात है. ऐसे में ये जरूरी है कि आप के घर में लगी घड़ी की दिशा भी सही हो. आइए जानें इससे जुड़े वास्तु नियम
व्यक्ति के जीवन में सबसे कीमती चीज समय होता है, एक बार अगर यह निकल गया तो कभी वापस नहीं लौट सकता. मान्यता है कि यदि आपके घर में सही दिशा में घड़ी लगी हो तो यह आपकी तरक्की का कारण बन सकता है. वास्तु अनुसार घड़ी का संबंध सिर्फ समय से नहीं बल्कि आप के सौभाग्य से भी होता है, ऐसे में घड़ी लगाते वक्त हमें ध्यान रखना चाहिए कि इससे जुड़ी वास्तु नियमों का पूरा ख्याल रखा गया हो. यदि घर के भीतर गलत दिशा में घड़ी लगी हो तो यह आपके जीवन में तमाम तरह के दु:ख और परेशानियों का कारण बन सकता है. तो आइए जानें इससे बचने से सही वास्तु उपाय
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की पूर्व दिशा में घड़ी लगाना सबसे शुभ माना गया है. मान्यता है कि इस दिशा में लगी घड़ी सुख-समृद्धि और सौभाग्य का कारक बनती है. ध्यान रखें कि कभी भी दरवाजे के ऊपर घड़ी न लगाएं. वास्तु अनुसार ऐसा करना एख दोष माना गया है, जिससे नकारात्मता आकर्षित होती है.
घर में भूलकर भी बंद या टूटी घड़ी नहीं रखनी चाहिए. माना जाता है कि यह दुर्भाग्य का कारण बनती है. यदि आप घड़ी नहीं ठीक करवा पाते तो बंद घड़ी को दिवाल पर न टंगा रहने दें. मान्यता है कि घर में टंगी बंद घड़ी आपके खुशियों के द्वार बंद कर देती हैं.
जो लोग हांथ में घड़ी पहनते हैं उनको हमेशा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि उनकी घड़ी बार-बार बंद न हो. मान्यता है कि वास्तु अनुसार उससे नकारात्मकता बढ़ती है और सकारात्मकता कम होती है. ऐसे में कोशिश करें कि आप या तो नई घड़ी खरीद लें या खराब घड़ी को बनवा लें.
वास्तु अनुसार घर में गलत दिशा में घड़ी लगाने से आपको आर्थिक हानि हो सकती है. इसके कारण आपके बनते हुए काम भी बिगड़ने लगते हैं. इसलिए कोशिश करें कि घर की दक्षिण दिशा में घड़ी न लगाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से घर के मुखिया बीमार रहते हैं. इसके अलावा दक्षिण दिशा में घड़ी लगाने से भी प्रगती रूकता है.
वास्तु अनुसार पेंडुलम वाली घड़ीयां शुभ मानी जाती हैं. मान्यता है कि इसे घर की उत्तर या पूर्व दिशा में लगाने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ती होती है. - मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव की जन्मतिथि के रूप में मनाया जाता है । इस साल यह पर्व 16 नवंबर को मनाया जाएगा। ऐसे में भगवान शिव के रौद्र अवतार यानी काल भैरव को खुश करने के लिए ये उपाय हैं कारगर----------भगवान काल भैरव को शिव जी का रौद्र रूप माना जाता है। सनातन परंपरा में भैरव की पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि काल भैरव की पूजा से व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता है। उनकी पूजा से इंसान के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। भैरव जयंती को काल भैरव अष्टमी, कालाष्टमी जैसे नामों से भी जाना जाता है। यदि आपके जीवन में शनि, राहु जैसे ग्रहों का प्रकोप है तो भैरव की पूजा अवश्य करें। माना जाता है कि उससे आप के सभी दोष दूर हो जाते हैं। आइए जानें भगवान भैरव की पूजा से जुड़े कुछ उपाय ..-काल भैरव जयंती के दिन भैरव जी के मंदिर जाकर विधि-विधान से पूजा अवश्य करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपको उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इस दिन भैरवनाथ जी के सामने दीप भी जलाना चाहिए। ऐसा करना से भगवान महाकाल अपने भक्तों की अकाल मृत्यु से सुरक्षा करते हैं।-भगवान भैरव जिन्हें काशी के कोतवाल के नाम से भी जाना जाता है, उनका आशीर्वाद पाने के लिए पूजा के वक्त उन्हें पुष्प, फल, नारियल, पान, सिंदूर आदि चढ़ाना चाहिए।-जो लोग दांपत्य जीवन में हैं उनको सुख-समृद्धि के लिए काल भैरव की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके लिए कोशिश करें कि भैरव जी की जन्मतिथि के दिन शाम के समय, शमी वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं। ऐसा करने से रिश्तों में प्रेम और बढ़ता है।-भगवान भैरव की कृपा पाने के लिए उनके मंत्र ओम काल भैरवाय नम: और ओम ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय, कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ओम फट स्वाहा का जाप करें। मान्यता है कि भगवान भैरव की पूजा में उनके यंत्र का भी बहुत महत्व है। ऐसे में विधि-विधान से श्री भैरव यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाएं।- काल भैरव देवों के देव महादेव के ही रूप हैं, इसलिए इस दिन शिवलिंग की पूजा करना भी शुभ माना गाया ह। ऐसे में भोलेनाथ की पूजा के वक्त 21 बेल पत्रों पर चंदन से 'ओम नम: शिवायÓ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं।मान्यता है कि ये उपाय करने से भगवान भैरव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में आने वाले दोष का निवारण होता है।--------
- 8 नवंबर , कार्तिक पूर्णिमा पर भारत में भी चंद्रग्रहण देखने को मिलेगा। 15 दिन के अंतराल पर यह दूसरा ग्रहण होगा। भारत में इस पूर्ण चंद्र ग्रहण को देखा जा सकेगा। भारत के कुछ हिस्सों में पूर्ण चंद्रग्रहण जबकि ज्यादातर हिस्सों में आंशिक चंद्रग्रहण देखने को मिलेगा। भारत में ग्रहण की शुरूआत 08 नवंबर को चंद्रोदय होने के साथ हो जाएगी।भारत में कितने बजे शुरू होगा चंद्र ग्रहण ?चंद्र ग्रहण की तिथि: 08 नवंबर, सोमवार 2022चंद्रग्रहण का समय : शाम 04 बजकर 23 मिनट से 06 बजकर 19 मिनट तकचंद्रोदय का समय- 08 नवंबर शाम 5 बजकर 28 मिनट परइस राशि और नक्षत्र में लगेगा चंद्र ग्रहणज्योतिष गणना के मुताबिक साल का यह चंद्र ग्रहण 08 नवंबर 2022 को मेष राशि और भरणी नक्षत्र में लगेगा। मेष राशि के स्वामी ग्रह मंगल होते हैं और इस दिन ये तीसरे भाव में वक्री अवस्था में रहेंगे। इसके अलावा चंद्रमा राहु के साथ मौजूद होंगे और सूर्य केतु,शुक्र और बुध के साथ स्थित होंगे। देवगुरु बृहस्पति अपनी स्वयं की राशि मीन और शनिदेव भी अपनी स्वयं की राशि मकर में विराजमान रहेंगे।चंद्र ग्रहण का सूतक कालवैदिक ज्योतिष गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण होने पर सूतक काल ग्रहण के शुरू होने से 12 घंटे पहले जबकि चंद्र ग्रहण होने पर 9 घंटे पहले से सूतक शुरू हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण पर सूतक काल को शुभ नहीं माना जाता है। सूतक काल के दौरान पूजा-पाठ और शुभ कार्य वर्जित होता है। 08 नवंबर को सुबह 6 बजकर 39 मिनट से सूतक काल आरंभ हो जाएगा जो ग्रहण की समाप्ति के साथ खत्म हो जाएगा।चंद्र ग्रहण में क्या करें और क्या न करें?08 नवंबर को साल का आखिरी ग्रहण होगा। कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा इस कारण से इसका सूतक काल मान्य होगा। ऐसे में ग्रहण के लगने के 09 घंटे पहले से सूतक काल लग जाएगा। शास्त्रों में सूतक काल को अशुभ माना गया है इसलिए सूतक लगने पर पूजा-पाठ,धार्मिक अनुष्ठान और शुभ काम नहीं किए जाते हैं। मंदिर के पट बंद दो जाते हैं। ग्रहण में न तो खाना पकाया जाता है और न ही खाना खाया जाता है। ग्रहण के दौरान मंत्रों का जाप और ग्रहण के बाद गंगाजल से स्नान और दान किया जाता है। ग्रहण की समाप्ति होने पर पूरे घर में गंगाजल से छिड़काव किया जाता है।चंद्र ग्रहण में क्या न करेंचंद्र ग्रहण के दौरान कभी भी कोई शुभ काम या देवी-देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए।चंद्र ग्रहण के दौरान न ही भोजन पकाना चाहिए और न ही कुछ खाना-पीना चाहिए।चंद्रग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं का ग्रहण नहीं देखना चाहिए और न ही घर से बाहर जाना चाहिए।चंद्रग्रहण के दौरान तुलसी समेत अन्य पेड़-पौधों नहीं छूना चाहिए।चंद्र ग्रहण में क्या करेंग्रहण शुरू होने से पहले यानी सूतक काल प्रभावी होने पर पहले से ही खाने-पीने की चीजों में पहले से तोड़े गए तुलसी के पत्ते को डालकर रखना चाहिए।ग्रहण के दौरान अपने इष्ट देवी-देवताओं के नाम का स्मरण करना चाहिए।ग्रहण के दौरान इसके असर को कम करने के लिए चंद्रमा से जुड़े हुए मंत्रों का जाप करना चाहिए।ग्रहण खत्म होने पर पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।राशियों पर इस चंद्र ग्रहण का प्रभावमेष- साल का यह आखिरी चंद्र ग्रहण आपकी राशि में लग रहा है। आपके लिए यह ग्रहण अशुभ और हानि पहुंचाने वाला रहेगा। सतर्क रहें।वृष-आपके लिए यह चंद्र ग्रहण अच्छा नहीं रहेगा। धन हानि और मेहनत ज्यादा करनी पड़ सकती है।मिथुन-आपके लिए यह चंद्र ग्रहण अच्छा रह सकता है। शुभ फल और करियर-कारोबार में अच्छा फायदा हो सकता है।कर्क- कार्यों में सफलताएं प्राप्ति होंगी। मेहनत का अच्छा फल मिलेगा।सिंह- आपको कोई शुभ समाचार मिल सकता है। नौकरी में अच्छे पद की प्राप्ति हो सकती है।कन्या- इस राशि के जातकों का इस चंद्र ग्रहण के कारण कष्ट सहने पड़ सकते हैं।तुला- परेशानियां आ सकती हैं। धन हानि होने से आपके काम बिगड़ सकते हैं। संभलकर चलें।वृश्चिक- आपको धैर्य बनाएं रखना होगा नहीं तो यह ग्रहण आपको काफी नुकसान देने वाला हो सकता है। सावधानी बरतें।धनु- आपको सेहत संबधित कुछ समस्याओं से जूझना पड़ सकता है।मकर- इस राशि के जातकों को धन की हानि, मुकदमों में हार का सामना करना पड़ सकता है।कुंभ- इस राशि के जातकों को लाभ और सौभाग्य में वृद्धि के योग हैं।मीन- ज्यादा नुकसान होने की संभावना है।
- साल 2022 का आखिरी चंद्र ग्रहण 8 नवंबर को लगने जा रहा है। आखिरी सूर्य ग्रहण दिवाली के अगले दिन लगा था। वहीं आखिरी चंद्र ग्रहण देव दीवाली के दिन लगने जा रहा है। 8 नवंबर को कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि भी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, देव दिवाली के दिन चंद्र ग्रहण लगने से इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं चंद्रग्रहण की तिथि, समय और सूतक काल...कहां-कहां नजर आएगा आखिरी चंद्र ग्रहणसाल 2022 का आखिरी चंद्र ग्रहण भारत के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा। चंद्र ग्रहण कई एशियाई द्वीपों, दक्षिण/ पूर्वी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी व दक्षिण अमेरिका, पेसिफिक अटलांटिक और हिंद महासागर में दिखाई दे सकता है।चंद्र ग्रहण 2022 का सूतक कालज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक काल का समय ग्रहण के शुरू होने के 9 घंटे पहले लग जाता है। चंद्र ग्रहण का सूतक काल सुबह आठ बजकर बीस मिनट से लग जाएगा। इस दौरान धार्मिक अथवा शुभ कार्य नहीं हो सकेंगे। चंद्र ग्रहण भारतीय समय के अनुसार दोपहर 2 बजकर 41 बजे शुरू होगा और सायं 6 बजकर 18 मिनट पर मोक्ष होगा। भारत में यह शाम 5 बजकर 32 मिनट से शाम 6 बजकर 18 मिनट तक ही नजर आएगा।इन राशियों पर पड़ेगा प्रभावकई राशि वालों पर चंद्रग्रहण का प्रभाव पडऩे की संभावना है। साल का आखिरी चंद्र ग्रहण मेष राशि में लगेगा। इसका वृष, मिथुन, कन्या, तुला और वृश्चिक राशि पर अधिक असर रहेगा। इन राशि वालों को संभल कर रहना होगा। इन्हें सेहत, आर्थिक, करियर और कारोबार पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है।चंद्र ग्रहण पर ग्रहों की चालचंद्र ग्रहण के दिन ग्रहों के सेना पति मंगल, शनि, सूर्य राहु आमने-सामने होंगे। ऐसे में भारत की कुंडली में तुला राशि पर सूर्य, चंद्रमा, बुध और शुक्र की युति बन रही है। इसके अलावा शनि कुंभ राशि में पंचम और मिथुन राशि में नवम भाव पर मंगल की युति विनाश कारी योग बना रही है।चंद्र ग्रहण में करें उपाय:-चंद्र ग्रहण के दौरान पूजा और भगवान का ध्यान करें,इस तरह देवताओं की पूजा को शुभ माना जाता है। चंद्र ग्रहण में कुछ भी खाने-पीने से बचना चाहिए। इस दौरान हमारे आसपास कई तरह के बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं जा हमारे शरीर मे जा सकते हैं। खास बात यह है कि चंद्र ग्रहण के दिन गंगा में स्नान कर दान करना अधिक शुभ माना गया है।चंद्र ग्रहण कब लगता है?जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है, तो चंद्र ग्रहण होता है। वैसे तो चंद्र और सूर्य ग्रहण एक भौगोलिक घटना है, लेकिन ज्योतिष में शास्त्र में भी इसका बहुत अधिक महत्व माना गया है।
- पेड़ पौधे घर में हरियाली लाते हैं। इन्हें लगाने से न सिर्फ हमें सुकून मिलता है बल्कि खुद को हम प्रकृति के करीब भी महसूस करते हैं। और इसी वजह से हम सभी बीमारियों से बचे रहते हैं। वास्तु में पेड़-पौधों का खास महत्व माना जाता है। अगर घर में शुभ पेड़-पौधे सही जगह लगाए जाएं तो यह सुख-समृद्धि लाते हैं। वहीं पौधे अगर वास्तु के अनुसार सही दिशा में ना हों तो इसके अशुभ परिणाम भुगतने पड़ते हैं। आइए जानते हैं कौन से हैं वो पौधे हैं जिन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।कैक्टसवास्तु शास्त्र के अनुसार कैक्टस का पौधा घर में नकारात्मक ऊर्जा ला सकता है। इस वजह से घर और जीवन में तनाव और परेशानियां आ सकती हैं।कपासवास्तु शास्त्र के अनुसार वैसे तो कपास का पौधा देखने में बहुत खूबसूरत होता है लेकिन इसे घर के अंदर नहीं लगाया जा सकता। दरअसल यह घर में धन आगमन में बाधा पैदा करता है।बोनसाईवास्तु शास्त्र के हिसाब से बोनसाई पौधा आपके जीवन चक्र को बाधित करता है। इस वजह से आपको अपने बिजनेस और करियर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।इमलीवास्तु शास्त्र के अनुसार इमली के पेड़ या पौधे घर के आसपास नहीं होने चाहिए। ये नकारात्मक ऊर्जाओं को खींचता है जिससे आपके घर की शांति भंग हो सकती है।मेहंदीमेहंदी की गंध तेज होती है। वास्तु के अनुसार मेहंदी से मानसिक शांति और वातावरण दोनों दूषित हो सकते है। इससे आपके घर में नकारात्मक शक्तियां जल्दी प्रवेश कर सकती हैं।
- आज कल "कांतारा" नामक एक फिल्म की बहुत चर्चा है और उससे भी अधिक उत्सुकता उस फिल्म में दिखाए गए देवता "पंजुरली देव" के बारे में जानने में है। पंजुरली देव की उपासना दक्षिण भारत, विशेषकर कर्णाटक और केरल के कुछ हिस्सों में की जाती है। वहां इनकी दंतकथाएं बड़ी प्रचलित हैं किन्तु देश के अन्य हिस्सों में उसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। तो आइये इस विषय में कुछ जानते हैं।पंजुरली शब्द वास्तव में एक तुलु शब्द "पंजीदा कुर्ले" का अपभ्रंश है। तुलु भाषा में इसका अर्थ होता है "युवा वाराह"। ये कुछ कुछ भगवान विष्णु के वाराह अवतार की ही तरह है। तुलु लोगों में, जिन्हें तुलुनाडु भी कहा जाता है, पंजुरली देव सबसे प्राचीन देवताओं में से एक हैं। ऐसी मान्यता है कि जब पहली बार पृथ्वी पर अन्न की उत्पत्ति हुई उसी समय पंजुरली देव पृथ्वी पर आये, अर्थात मानव सभ्यता के आरम्भ में।कुछ विद्वानों का ये भी मानना है कि जब मनुष्यों ने खेती करना सीखा तो उस समय जंगली सूअर (वाराह) अपने पेट भरने के लिए उनकी फसल को खा जाते थे। उन्होंने इसे कोई दैवीय शक्ति समझ लिया और वाराह रुपी पंजुरली देव की उपासना करना आरम्भ कर दिया ताकि वे उनकी फसलों की रक्षा करें। तब से ही पंजुरली देव की पूजा हो रही है। आज भी पंजुरली देव की पूजा करते समय लोग "बरने-कोरपुनि" नामक एक प्रथा करते हैं जहाँ वे देवता को अन्न अर्पण करते हैं। इसके बाद पंजुरली देव के समक्ष एक बेहद प्राचीन नृत्य किया जाता है जिसे "भूता कोला" कहते हैं। कोला का अर्थ तुलु भाषा में नृत्य होता है और भूता इस नृत्य का एक प्रकार है।पौराणिक कथा के अनुसार एक वाराह के पांच पुत्र हुए किन्तु उनमें से एक नवजात बच्चा पीछे छूट गया। वो भूख प्यास से तड़पने लगा और मृत्यु के कगार पर आ खड़ा हुआ। उसी समय माता पार्वती वहां भ्रमण करते हुए आयी। जब उन्होंने एक नवजात वाराह शिशु को देखा तो उन्हें उस पर दया आ गयी और वे उसे लेकर कैलाश आ गयी। वहां वो अपने पुत्र की भांति ही उसका पालन करने लगी। समय बीता और उस बच्चे ने एक विकराल वाराह का रूप ले लिया। समय के साथ उसके दाढ़ (दांत) निकल आये जिससे उसे बड़ी परेशानी होने लगी। उस खुजलाहट से बचने के लिए वो पृथ्वी पर लगी सारी फसलों को नष्ट करने लगा। इससे संसार में भोजन की कमी हो गयी । जब भगवान शंकर ने ये देखा तो उन्होंने सृष्टि के कल्याण के लिए उस वाराह के वध का निश्चय किया।जब माता पार्वती को ये पता चला तो उन्होंने महादेव से उसके प्राण ना लेने की प्रार्थना की। माता की प्रार्थना पर महादेव ने उसका वध तो नहीं किया किन्तु उसे कैलाश से निष्काषित कर पृथ्वी पर जाने का श्राप दे दिया। भोलेनाथ ने उसे एक दिव्य शक्ति के रूप में पृथ्वी पर जाने और वहां पर मनुष्यों और उनकी फसलों की रक्षा करने का आदेश दिया।तब से वो वाराह पृथ्वी पर "पंजुरली" देव के रूप में निवास करने लगे और पृथ्वी पर फसलों की रक्षा करने लगे। इसी कारण लोगों ने इन्हें देवता की भांति पूजना आरम्भ कर दिया। दक्षिण भारत में अधिकतर स्थानों पर इन्हे वाराह के रूप में ही दिखाया जाता है किन्तु कुछ स्थानों पर इन्हे मुखौटा पहने हुए मनुष्य के रूप में भी दर्शाया जाता है।इनकी एक बहन भी मानी गयी हैं जिनका नाम "कल्लूर्ति" है। इन दोनों का एक प्रसिद्ध मंदिर मैंगलोर के बंतवाल तालुका में है। ऐसी मान्यता है कि वहीँ पर कल्लूर्ति पंजुरली देव से मिलती है और इन दोनों की पूजा भाई बहन के रूप में की जाती है जिन्हें एक साथ "कल्लूर्ति-पंजुरली" देव के नाम से पूजा जाता है। तुलुनाडु में शायद ही ऐसा कोई परिवार हो जो कल्लूर्ति पंजुरली देव की पूजा ना करता हो।कल्लूर्ति पंजुरली को सभी लोग अपने परिवार के मुखिया के रूप में मानते हैं। पंजुरली देव के साथ-साथ एक और देवता "गुलिगा" का भी वर्णन आता है जो देवता का उग्र रूप हैं। गुलिगा देव को शिवगणों में से एक भी माना जाता है और इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। आज भी पंजुरली देव और गुलिगा देव को एक साथ पूजा जाता है। जहाँ पंजुरली देव सौम्य स्वाभाव के हैं वही गुलिगा देव उग्र स्वभाव के किन्तु फिर भी ये दोनों शांति से एक साथ रहते हैं।अब बात करते हैं प्रसिद्ध "भूता कोला" की। तुलु भाषा में भूता का अर्थ होता है दैवीय शक्ति और कोला का अर्थ होता है नृत्य। इसे दैवा कोला भी कहा जाता है। भूता कोला के साथ "दैवा नेमा" शब्द का प्रयोग भी होता है। ऐसी मान्यता है कि जहाँ भूता कोला में उस नृत्य का प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति पर एक आत्मा (भूत) प्रवेश करती है वहीँ जब नृत्यकर्ता पर कई आत्माओं (देव) का प्रभाव होता है तो उसे दैवा नेमा कहा जाता है।
- -बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायशास्त्रों में देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का विधान है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी जी और शालीग्राम का विवाह कराया जाता है। इस दिन तुलसी पर कुछ चीजों को चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं इस दिन किन चीजों को अर्पित किया जा सकता है.तुलसी पर चुनरी चढ़ाएंइस दिन तुलसी के पौधे पर लाल रंग की चुनरी अर्पित करनी चाहिए। चुनरी अर्पित करते समय इस मंत्र का जाप करें- महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते। माना जाता है कि इस तरह तुलसी पर चुनरी अर्पित करने से तुलसी मां और भगवान शालीग्राम जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही, सुख-शांति और धन-वैभव की प्राप्ति होती है।दीपक जलाएंशास्त्रों में कहा गया है कि तुलसी में मां लक्ष्मी का वास होता है और लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए नियमित रूप से सुबह-शाम तुलसी के पास घी का दीपक जलाना चाहिए। देवउठनी एकादशी के दिन भी तुलसी पर घी का दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।अर्पित करें दूधज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुलसी में कच्चा दूध अर्पित करने का भी विधान है। तुलसी विवाह के दिन तुलसी में थोड़ा कच्चा दूध अर्पित करें और ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:' का उच्चारण करें। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं।पीला धागा करें अर्पिततुलसी विवाह के दिन पीले रंग का धागा लें और शरीर के बराबर लंबाई जितना काट लें. इसके बाद इस धागे में 108 गांठें लगाएं और तुलसी के पौधे के नीचे बांध दें। इस दौरान अपनी मनोकामना कहें। मनोकामना पूर्ण होने पर इस धागे को खोलकर जल में प्रवाहित कर दें।लाल धागा बांधेंदेव उठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में लाल रंग का कलावा बांधना शुभ माना जाता है। इससे भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।
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आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं। एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए आईं तो उनकी इच्छा हुई कि भगवान शंकर व भगवान विष्णु की पूजा एक साथ की जाए। विष्णु जी को तुलसी अति प्रिय हैं व शंकर जी को बेल पत्र। इन दोनों वृक्षों के सभी गुण आंवले के वृक्ष में मौजूद हैं। अत देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की, ताकि दोनों भगवान प्रसन्न हो जाएं। जिस दिन यह पूजा की गई, वह दिन कार्तिक की नवमी तिथि थी। तभी से हर वर्ष कार्तिक की नवमी को ये पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में विद्यमान रहते हैं। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।
आंवला नवमी के दिन ही आदि शंकराचार्य ने ‘कनकधारा स्रोत’ की रचना की थी। कहा जाता है कि एक बार शंकराचार्य भिक्षा मांगते हुए एक गांव में पहुंचे। एक झोपड़ी बाहर खड़े होकर उन्होंने कहा, ‘भिक्षां देहि।’ झोपड़ी के अंदर एक गरीब वृद्ध महिला ने जब यह पुकार सुनी तो वह सोच में पड़ गई। वह इतनी गरीब थी कि उस समय उसके पास इस संन्यासी को देने के लिए कुछ भी नहीं था। बस, एक सूखा आंवला था। किसी तरह संकोच करते हुए उस वृद्धा ने वही आंवला हाथ में लिया और दरवाजा खोलते हुए शंकराचार्य से कहा कि मेरे पास आपको भिक्षा में देने के लिए इस सूखे आंवले के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यह कहकर उसने शंकराचार्य की झोली में वह आंवला डाल दिया। शंकराचार्य से उस वृद्धा की यह हालत देखी नहीं गई। उन्होंने उसी क्षण ‘कनकधारा स्रोत’ की रचना करते हुए देवी लक्ष्मी की स्तुति की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर लक्ष्मी प्रकट हो गईं। उन्होंने लक्ष्मी जी से उस औरत की गरीबी दूर करने की प्रार्थना की। लक्ष्मी जी ने उसी क्षण वहां स्वर्ण आंवलों की वर्षा कर दी। और उस गरीब औरत की दरिद्रता दूर हो गई। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक की शुक्ल नवमी को श्री कृष्ण ने वृंदावन से मथुरा के लिए प्रस्थान किया था। -
प्रबोधिनी अथवा देवोत्थान एकादशी इस बार चार नवंबर को होगी। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चार महीने से चला आ रहा चातुर्मास समाप्त हो जाता है। भगवान श्री हरि जागृत होकर के विश्व का कल्याण करना आरंभ कर देते हैं। इस दिन कुछ साधक तुलसी विवाह भी करते हैं। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत रखते हैं और उस का समापन अर्थात उद्यापन करना चाहें तो इस तिथि को किया जाता है। बीते चार माह से जो वर्षा काल चला आ रहा था, वह चार नवंबर को समाप्त हो जाएगा। शास्त्रों में चातुर्मास अर्थात वर्षा ऋतु का समय यात्रा एवं घूमने-फिरने के लिए वर्जित है।
इस दिन एकादशी व्रत करने वाले साधक तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ करते हैं और ब्राह्मण विद्वानों से कथा सुनकर उनको दान-दक्षिणा देते हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार पांच पर्व विवाह के लिए अनसूझ विवाह मुहूर्त होते हैं। ये हैं देवोत्थान एकादशी, बसंत पंचमी, फुलेरा दूज, अक्षय तृतीया और भड़रिया नवमी। इन स्वयं सिद्ध मुहुर्त यानी पांच दिनों में जिन युवक-युवती का विवाह नहीं सूझ पा रहा हो वह बिना किसी विद्वान या ब्राह्मण से पूछे विवाह कर सकते हैं। देवोत्थान एकादशी चार महीने के बाद आने वाला सबसे पहला वह अनसूझ अर्थात स्वयं सिद्धि विवाह मुहूर्त है।
देवोत्थान एकादशी के पश्चात सभी पूजा-पाठ संबंधी पाबंदियां हट जाती हैं। विवाह मुहूर्त, गृह प्रवेश मुहूर्त और वैवाहिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। इस बार नवंबर और दिसंबर में देवोत्थान एकादशी के विवाह मुहूर्त को छोड़कर मात्र सात विवाह मुहूर्त हैं। शुक्र अस्त के कारण नवंबर में विवाह मुहूर्त बहुत कम हैं। 24 नवंबर को शुक्र उदय हो जाएंगे। इसके बाद 28 नवंबर का केवल एक ही विवाह मुहूर्त नवंबर में है। दिसंबर में दो, तीन, चार, सात,आठ और नौ दिसंबर को ही विवाह मुहूर्त रहेंगे। उसके पश्चात 16 दिसंबर से 13 जनवरी तक सूर्य मीन सक्रांति में आकर मलमास का आरंभ करेंगे। इसके बाद फिर से वैवाहिक आदि शुभ कार्य बंद हो जाएंगे। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार दिशाओं को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है प्रत्येक दिशा को उसके महत्व के हिसाब से सजाया जाना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में दक्षिण दिशा को खाली रखना चाहिए और उत्तर पूर्व दिशा में सामान रखने से सुख समृद्धि बनी रहती है। इन सभी बातों को जानकारी मिलती है। वास्तु शास्त्र एक बहुत पुरानी बहुत प्राचीन भारतीय परंपरा है इससे दिशाओं का ज्ञान होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में एक आंगन जरूर होना चाहिए। घर में एक छोटा या बड़ा आंगन जरूर होना चाहिए आंगन में अनार, मीठी नीम, आंवला या किसी भी फूलदार पौधे का होना बेहद शुभ माना जाता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर पूर्व दिशा को ईशान कोण भी कहते हैं। इस दिशा जल या जल को संग्रहित करने वाली चीजें बनानी चाहिए। जैसे यदि आप अपने घर में उत्तर- पूर्व दिशा में एक स्विमिंग पूल बनाते हैं। तो इससे घर में हमेशा पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है।
घर के दक्षिण दिशा में कोई भी भारी समान नहीं रखना चाहिए। इस दिशा को किसी भी तरीके से खुला रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा में कोई गेट या खिड़की होने से घर में निगेटिव एनर्जी वास रहती है।
घर के दक्षिण -पश्चिम दिशा में किसी भी दरवाजे खिड़की का होना बेहद शुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुखिया का कमरा दक्षिण -पश्चिम दिशा की ओर बनाया जा सकता है।
पूर्व दिशा ,इस दिशा को आग्नेय कोण भी कहते हैं। इस दिशा का स्वामी अग्नि है इस दिशा में वास्तु दोष होने से घर का माहौल तनावपूर्ण और अशांत बना रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में अगर रसोई घर बनाए तो घर में शांति और खुशहाली बनी रहती है। -
रत्न शास्त्र में रत्नों को विशेष महत्व दिया गया है। रत्न, ग्रहों की दशा को ध्यान में रखकर धारण करना चाहिए। रत्न शास्त्र में कुछ रत्नों को बेहद खास माना गया है। आज हम एक ऐसे ही रखने की बात करने जा रहे हैं। जो रत्न शास्त्र में अपना एक खास स्थान रखता है। इस रत्न को धारण करने से राहु ग्रह के कारण आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती है और लोगों को बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है।
आइए जानते हैं, गोमेद रत्न और उसके फायदे
1. गोमेद रत्न को बेहद खूबसूरत रत्न माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु को पाप ग्रह माना जाता है। ज्योतिषाचार्य राहु ग्रह के दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए गोमेद रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है।
2. इस रत्न को धारण करने से रुके हुए कार्य पूर्ण होने लगते हैं अपनी चमक बेहद आकर्षक लगते हैं।
3. गोमेद रत्न को धारण करने से किसी भी व्यक्ति की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं राहु की महादशा से छुटकारा पाने के लिए गोमेद रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है।
4. इस रत्नों को धारण करने से मन में पॉजिटिव एनर्जी और कॉन्फिडेंस बढ़ता है।
5. गोमेद रत्न धारण करने से बिजनेस में भी काफी लाभ होता है गोमेद रत्न को शनिवार के दिन धारण नहीं करना चाहिए।
6.इस रत्नों को धारण करने से पूर्व इसे दूध, गंगाजल ,शहद और मिश्री के गोल में डालकर रात भर रहने दें, तत्पश्चात इसे कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।
7. गोमेद रत्न को 6 रत्ती से कम धारण नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि इस रत्न को धारण करने से आंख और जोड़ों के दर्द, ब्लड कैंसर जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इस रत्न को कभी भी मूंगा या पुखराज के साथ धारण नहीं करना चाहिए। -
-बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसकी लक्ष्मी स्वरूप में पूजा की, तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ऐसे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती। मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। विशेषकर कार्तिक माह में तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है।
कार्तिक के महीने में अगर आप महीने भर कार्तिक स्ना न कर रही हैं, तो आपको तुलसी जी का भी विशेष पूजन करना चाहिए। कहा जाता है कि तुलसी विवाह के दिन व्रत करने से जन्म और जन्म के पूर्व के पापों से मुक्ति मिल जाती है। कार्तिक मास की एकादशी को तुलसी विवाह का त्यौहार बेहद शुभ माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया नाम से भी जाना जाता है।
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त - तुलसी विवाह 5 नवंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा। कार्तिक द्वादशी तिथि 5 नवंबर 2022 को शाम 6:08 से प्रारंभ होकर 26 नवंबर 2022 शाम 5:06 पर समाप्त होगी।