- Home
- धर्म-अध्यात्म
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायरसोईघर किसी भी मकान का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। रसोईघर के वास्तु में की गई गलती घर में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ाती है और इसका बुरा असर पूरे परिवार पर पड़ता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए वास्तु शास्त्र में कुछ चीजों को रसोईघर में रखने की सख्त मनाही की गई है।रसोई में न रखें ये चीजें-रसोई में टूटे हुए या चटके हुए बर्तनों का ना तो कभी इस्तेमाल करें और ना ही उसव वहां रखें। टूटे-फूटे बर्तन आर्थिक तंगी का कारण बनते हैं।-सुरक्षा की दृष्टि से घर में फस्र्ट एड किट का होना जरूरी है, लेकिन इसे किचन में रखने की गलती न करें। वास्तु के मुताबिक रसोई में दवाइयां रखने से घर का मुखिया हमेशा बीमार बना रहता है। वहीं अन्य सदस्यों को भी कोई न कोई बीमारी हो जाती है।-सही जगह पर आइना लगाना घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा देता है लेकिन रसोईघर में आईना का इस्तेमाल घर में क्लेश का कारण बन सकता है।-रसोई में हमेशा उपयोगी और अच्छी चीजें ही रखना चाहिए और रसोई को हमेशा साफ रखना चाहिए। रसोई में रात भर छोड़े जूठे बर्तन छोडऩे से मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं और यह आर्थिक तंगी का कारण बनते हैं। इसलिए यदि आप इन्हें साफ नहीं कर पाते हैं, तो पानी से अच्छी तरह से धोकर रखें।-रात भर रखा रहने वाला गुथा हुआ आटा घर पर शनि और राहु का नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसीलिए कभी भी बासी आटे की रोटी नहीं बनानी चाहिए।----
-
-पं. प्रकाश उपाध्याय
हर व्यक्ति अपने जीवन में धन को लेकर सुरक्षित रहना चाहता है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसे कभी भी जीवन में किसी के आगे धन के मामले में हाथ ना फैलाना पड़े। जिसके लिए वह दिन-रात परिश्रम करके धन कमाता है और उसे बुरे वक्त के लिए जोड़कर रखता है, लेकिन कई बार व्यक्ति के लाख प्रयास करने के बावजूद उसे अपनी मेहनत का फल प्राप्त नहीं होता।
जिस वजह से कई बार वह हताश और निराश सा हो जाता है। इसी वजह से रत्न शास्त्र में कई सारे ऐसे चमत्कारी रत्नों के बारे में बताया गया है, जिसे पहनने मात्र से व्यक्ति को जीवन में धन से जुड़े मामलों में सफलता प्राप्त होती है। ऐसे ही कुछ रत्नों के बारे में हम आपको बताने वाले हैं। उपरोक्त रत्न यदि आप धारण करते हैं, तो अवश्य ही इससे आपको जीवन में धन के विषय में अत्यधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं रहती है।
ग्रीन एवेंच्युरिन
रत्न शास्त्र के मुताबिक,उपरोक्त रत्न यदि कोई व्यापारी व्यक्ति पहनता है, तो उसके व्यापार में पैसों की आवक बनी रहती है। यह रत्न धन के मामले में काफी लकी माना गया है, जो भी व्यक्ति इस रत्न को धारण करता है, वह जीवन में कभी भी धन को लेकर चिंतित नहीं रहता।
सुनहला रत्न
धन के मामले में यह रत्न भी बेहद चमत्कारी माना गया है। यदि आपका कोई काम नहीं बन रहा है, तो सुनहला रत्न पहनने मात्र से आपके जीवन में आपको तरक्की प्राप्त होती है और आपके काम बिना रुके पूर्ण हो जाते हैं। इस रत्न को पहनने से आपको अपने निर्धारित लक्ष्य की भी प्राप्ति अवश्य हो जाती है।
गारनेट रत्न
रत्न शास्त्र में इस रत्न को भी बेहद उपयोगी बताया गया है। इस रत्न को धारण करने से आपको अपने कर्जों से जल्द छुटकारा मिलता है, इसके साथ ही यह रत्न आपको आपके प्रत्येक काम में धन का फायदा कराता है।
मैलाकाईट
यह रत्न भी धन के मामले में बेहद लकी माना जाता है। कहा जाता है जो भी व्यक्ति इस रत्न को अपने पर्स में रखता है, उसके धन में वृद्धि अवश्य होती है। इस रत्न को ऊर्जा चुंबकीय भी कहा जाता है, जिस कारण इसे अपने पास रखने मात्र से व्यक्ति के धन में बढ़ोतरी होती है।
पाइराइट
यह रत्न व्यक्ति के धन में वृद्धि के साथ-साथ उसके भाग्य को भी चमकाता है। इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति के जीवन में धन का आवागमन बढ़ जाता है, और उससे अपने प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त होने लगती है।
ग्रीन जेड
यह रत्न व्यक्ति की वित्तीय क्षमताओं को पूर्ण करने में सहायता प्रदान करता है। इसके साथ ही इसके प्रयोग से व्यक्ति को निर्णय लेने में आसानी रहती हैं। यह रत्न व्यक्ति को धन का लाभ भी कराता है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण-पूर्व दिशा में पीला रंग से पेंट कराया जाना सही नहीं माना जाता है। ऐसा करने पर कई परेशानियां भी हो सकती हैं। इसके अलावा, घर के कई सदस्य बीमारी के चपेट में भी आ सकते हैं। घर के दक्षिण-पूर्व दिशा में पीला रंग कराने से कोई विशेष लाभ नहीं होता है। आइए जानते हैं ऐसा करने से क्या-क्या हानि हो सकती है।
1.पीले रंग का प्रयोग करने से इस रंग से जुड़ी दिशाओं के तत्व निश्चित रूप से परिवार के मुखिया और माता के स्वास्थ्य को हानि पहुंचाती है।
2. पीला रंग दक्षिण-पूर्व दिशा, घर के मध्य और कुछ हद तक घर के उत्तर-पूर्व से जुड़ा होता है। इसलिए अग्नि कोण में पीला रंग होने से इन दिशाओं से जुड़े तत्वों को नुकसान होना तय है।
3. खनिजों और विटामिनों की कमी, परिवार के मुखिया को पेट संबंधी समस्या, हाथों में दर्द, छोटे बेटे को परेशानी और जीवन में बार-बार रुकावटें आने लगती हैं। इसलिए कोशिश करें कि आग्नेय दिशा में पीले रंग का प्रयोग न करें। -
पं. प्रकाश उपाध्याय
ज्योतिष शास्त्र में हस्त रेखा को बहुत बड़ा महत्व दिया गया है। माना जाता है कि हस्तरेखा की सहायता से किसी व्यक्ति के भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। हस्तरेखा ज्योतिष में किसी व्यक्ति के हाथ के आकार, हथेली की लकीर आदि का अध्ययन करके उस व्यक्ति के भविष्य की जानकारी का पता लगाया जाता है। आइए जानते उन रेखाओं के बारे में जिनसे जिंदगी की महत्वपूर्ण बातों का पता लगाया जा सकता है।1.विवाह रेखायह रेखा छोटी वाली उंगली के नीचे समानांतर पाई जाती है। ये रेखा जितनी साफ होगी वैवाहिक जीवन उतना ही अच्छा होगा। इस रेखा के ऊपर या नीचे की तरफ जाने से विवाह समस्या का कारण बनता है। इस रेखा का टूटा होना विवाह विच्छेद का कारण बनता है।2.प्रेम रेखाचंद्रमा या शुक्र पर्वत पर छोटी रेखाओं का होना प्रेम की सूचना देता है। अगर यह खासकर गुलाबी हो तो प्रेम संबंध की शुरुआत मानी जाती है। वहीं जब यह अत्यंत उभरा हुआ हो तो प्रेम विवाह के योग बनते हैं। अगर दोनों पर्वतों पर जाल हो तो प्रेम विवाह में सफलता नहीं मिलती है।3.संतान रेखाविवाह रेखा के ऊपर और शुक्र पर्वत की जड़ में संतान रेखा की स्थितियां होती हैं। यहां पाए जाने वाले क्रॉस, तिल, शाखा संतानोत्पत्ति में परेशानी खड़ी करते हैं।4.रोजगार रेखाशनि पर्वत पर पाई जाने वाली रेखा और हाथ में ऊपर उठने वाली रेखा रोजगार के क्षेत्र को निर्धारित करती है। अगर पर्वतों का उभार कम और हाथ की रंगत कम हो तो इससे रोजगार में समस्या आती है।5.स्वास्थ्य रेखाजीवन रेखा से बुध पर्वत की ओर जाने वाली रेखा से स्वास्थ्य के बारे में जाना जा सकता है। इस रेखा पर अगर वर्ग हो तो बहुत उत्तम होता है। लेकिन अगर क्रॉस, स्टार जैसे चिन्ह रेखाओं पर हो तो इसे अच्छा नहीं मानी जाता है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
सनातन परंपरा के अनुसार प्रतिदिन की जाने वाली ईश्वर की पूजा साधक को शुभ फल देने वाली मानी गई है. हिंदू मान्यता के अनुसार तमाम तरह की देवी-देवताओं की पूजा करने से न सिर्फ घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, बल्कि साधक के जीवन से दु:ख-दरिद्रता भी दूर होती है. हिंदू धर्म में प्रत्येक देवी-देवता की पूजा करने का अलग-अलग विधान बताया गया है. उनके पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री भी अलग होती है. ईश्वर से जुड़ी हर पूजा या फिर अनुष्ठान में फूल का प्रयोग किया जाता है. बगैर फूल के किसी भी भगवान की पूजा अधूरी मानी जाती है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक देवी-देवता को अलग-अलग प्रकार के फूल पसंद होते हैं. पूजा करते समय यदि आप उनके पसंद का फूल अर्पित करते हैं तो आपको अधिक फल प्राप्त होते हैं. आपकी मनचाही इच्छाएं भी पूर्ण हो जाती हैं और भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है. आइए जानते हैं कौन से देवी-देवता को किस तरह के फूल अर्पित करने से प्राप्त होते हैं शुभ फल.
गणेश भगवान –
हिंदू धर्मिक मान्यता के अनुसार किसी भी मांगलिक या शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश की आराधना की जाती है. ऐसे में उनकी पूजा करते समय ध्यान न सिर्फ उनकी प्रिय दूर्वा बल्कि उनकी पसंद का फूल भी चढ़ाएं. हिंदू मान्यता के अनुसार गणपति को गुड़हल और गेंदा का पुष्प बहुत प्रिय है. ऐसे में उनकी पूजा में इसे जरूर रखें. भगवान गणेश की पूजा में कभी भूलवश भी तुलसीदल न चढ़ाएं.
शिव भगवान –
माना जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन पर एक लोटा जल चढ़ाना लाभकारी माना जाता है लेकिन यदि आप इसके साथ उन्हें बेलपत्र, धतूरा, सफेद आक का फूल, अक्षत, कुश आदि चीजें अर्पित करते हैं तो आपको पूजा के शुभ फल प्राप्त होते हैं।
भगवान विष्णु –
धार्मिक मान्यता के अनुसार श्री हरि को तुलसी जी अति प्रिय हैं. ऐसे में विष्णु पूजा करते समय तुलसी के पत्तों की इस्तेमाल अवश्य किया जाता है, लेकिन यदि पूजा करते समय उन्हें कमल, चमेली, वैजयंती का फूल चढ़ाया जाए तो वे शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं.
मां लक्ष्मी –
धन की देवी माने जाने वाली माता लक्ष्मी जिस भी भक्त पर प्रसन्न रहती हैं उनके जीवन में कभी आर्थिक परेशानियां नहीं आती है. उन्हें प्रसन्न करने के लिए- पूजा के दौरान- उन पर कमल के पुष्प अर्पित करें. यह बहुत लाभकारी माना जाता है.
हनुमान जी –
पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी कलयुग के देवता माने जाते हैं. उनको प्रसन्न करने के, हनुमान पूजा करते समय उन पर लाल रंग के पुष्प अर्पित करें, जैसे की लाल गेंदे का फूल, गुड़हल आदि. -
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के जीवन में रत्नों का काफी महत्व होता है। ज्योतिष के अनुसार रत्नों को धारण करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर किया जा सकता है। इसके अलावा, आपके रुके हुए काम में भी सफलता मिल सकती है। ऐसे ही एक रत्न पुखराज के बारे में आज जानेंगे जिसे येलो सफायर भी कहते हैं। इसे बृहस्पति ग्रह का रत्न माना जाता है और बृहस्पति- ज्ञान, भाग्य, समृद्धि और खुशी प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं।
अगर आप पुखराज नहीं खरीद सकते हैं तो इसका उपरत्न टोपाज भी धारण कर सकते हैं। यह भी काफी कारगर और लाभदायी होता है। लेकिन कहा जाता है कि वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुंभ और लग्न वाले लोगों को ये रत्न पहनने से बचना चाहिए। वहीं धनु और मीन वालों के लिए इस रत्न को धारण करना बेहद शुभ माना गया है। आइए जानते हैं इन दोनों राशि वालों को इस रत्न को कब और कैसे धारण करना चाहिए।
धनु राशि
धनु राशि का स्वामी बृहस्पति माना जाता है। इस राशि वाले जातक स्वभाव से मेहनती और साहसी होते हैं। इनमें किसी भी काम को करने के लिए गजब ऊर्जा होती है। ऐसा कहा जाता है कई बार इनके अधिक जोश की वजह से भी इनके कुछ काम बनते-बनते बिगड़ जाते हैं। ऐसे में इस राशि वाले जातकों को पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है। यह रत्न आपके अंदर धैर्य रखने के साथ मन को शांत रखने में भी मदद करता है।
मीन राशि
मीन राशि का भी स्वामी बृहस्पति माना जाता है। मीन राशि वाले लोग काफी आध्यामिक होते हैं। माना जाता है कि इस राशि के लोगों के लिए पुखराज तनाव कम करने में मदद करता है। साथ ही यह मीन राशि वाले लोगों के दिमाग और मन को भी शांत रखता है। अगर इस राशि के बिजनसमैन पुखराज धारण करते हैं तो उन्हें व्यापार को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। इसके अलावा, यह रत्न आपको बीमारियों से भी बचाता है।
कब और कैसे करें रत्न धारण
पुखराज धारण का सबसे शुभ दिन एकादशी या फिर गुरुवार होता है। पुखराज को सोने की अंगूठी में इस तरह से जड़वाएं कि पहनने के बाद यह पीछे से आपकी त्वचा को टच करें। गुरुवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद इस अंगूठी को दूध और गंगाजल में डालें। इसके बाद इसको शहद से स्नान करवाएं। उसके बाद इसे साफ पानी से धोने के बाद अपनी तर्जनी उंगली (Index Finger) में पहन लें। इसे पहनते समय 'ऊं ब्रह्म ब्र्हस्पतिये नम' मंत्र का जाप जरूर करें। -
ओडिशा के भुवनेश्वर को मंदिरों का शहर कहा जाता है। यहां न केवल देश से बल्कि दुनिया भर से बहुत सारे पर्यटकों को आकर्षित करता है। शहर में और उसके आसपास कई पुराने मंदिर हैं, जो बेहद प्राचीन हैं जहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। यहां भुवनेश्वर के कुछ फेमस मंदिरों के बारे में बता रहे हैं। जहां आप परिवार के साथ दर्शन के लिए जा सकते हैं।
भुवनेश्वर के फेमस मंदिर---
1) लिंगराज मंदिर
लिंगराज मंदिर शहर का सबसे बड़ा और पुराना मंदिर है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसे राजा जाजति केशरी ने बनवाया था। मंदिर को चार भाग में बांटा गया है, गर्भ गृह, यज्ञ शाला, भोग मंडप और नाट्यशाला। केवल मीनार ही नहीं, बल्कि भोग मंडप की दीवारों में भी मूर्तियां हैं।
2) राजरानी मंदिर
लिंगराज मंदिर के समान राजरानी मंदिर 11वीं शताब्दी की कलिंग वास्तुकला पर बना है। यहां की मूर्तियां भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह को दर्शाती हैं। इस मंदिर का एक और महत्व यह है कि इसका निर्माण उसी समय किया गया था जब पुरी में जगन्नाथ मंदिर था।
3) परशुरामेश्वर मंदिर
परशुरामेश्वर मंदिर 7वीं और 8वीं शताब्दी के बीच शैलोद्भव काल में बनाया गया है। इस मंदिर का रखरखाव और प्रशासन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है।
4) राम मंदिर
राम मंदिर भगवान राम, उनकी पत्नी, देवी सीता और उनके भाई भगवान लक्ष्मण को समर्पित है। गेरुए रंग से रंगे मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। रामनवमी, शिवरात्रि, जन्माष्टमी और दशहरा जैसे शुभ अवसरों के दौरान यहां का माहौल देखने लायक होता है। इसे भुवनेश्वर में सबसे फेमस मंदिरों में से एक माना जाता है।
5) ब्रह्मा मंदिर
ये मंदिर भगवान ब्रह्मा की ऐतिहासिक यात्रा का प्रतीक है। मंदिर में भगवान ब्रह्मा के शाश्वत ब्लैक क्लोराइट अवतार हैं, जो इस ऐतिहासिक मंदिर का सबसे अच्छा आकर्षण है। शाम के समय इस मंदिर में जाएं, क्योंकि इस दौरान यहां पंडित भगवान ब्रह्मा की पूरी महिमा के साथ पूजा करते हैं।
6) परशुरामेश्वर मंदिर
यह भुवनेश्वर के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण 7वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था। भगवान शिव को समर्पित, यह मंदिर अविश्वसनीय सार का दावा करता है जो आपके मन और आत्मा को शांत करेगा।
7) मुक्तेश्वर मंदिर
मुक्तेश्वर मंदिर भुवनेश्वर में स्थित दसवीं शताब्दी में बनाया गया था। मंदिर के शीर्ष पर मौजूद देवताओं की मूर्तियां भी बौद्ध प्रभाव की याद दिलाती हैं। इस मंदिर की प्रमुख विशेषता तोरण या मेहराब है जिसे विस्तृत रूप से महिलाओं के गहनें और अन्य जटिल डिजाइनों से सजाया गया है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
हम सभी ने कभी न कभी यह प्रश्न किया है कि द्वापर युग या सतयुग, त्रेता युग कब से प्रारंभ या समाप्त हुआ। दरअसल, इसका सटीक जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन इसके समय को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन एक युग का अंत हुआ और दो युगों की शुरुआत हुई। जानें अक्षय तृतीया से जुड़ी रोचक बातें-
1. पौराणिक मान्यताओं की बात करें तो कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन से दो पवित्र युगों की शुरुआत हुई थी। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन द्वापर युग का अंत हुआ था।
2. अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान बद्रीनाथ के कपाट खोले जाते हैं। इस दिन से भक्त भगवान नारायण के दर्शन और पूजा कर पाते हैं। आपको बता दें कि चार धाम की यात्रा में बद्रीनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
3. अक्षय तृतीया के दिन सोना-चांदी खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। वहीं इस दिन भूलकर भी एल्युमीनियम, स्टील या प्लास्टिक के बर्तन और सामान नहीं खरीदना चाहिए। इससे घर में दरिद्रता आ सकती है।
4. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है।
5. अक्षय तृतीया के दिन झाड़ू खरीदकर घर लाना शुभ माना जाता है। इससे घर में लक्ष्मी जी का वास होता है। वहीं अगर घर में टूटी हुई झाड़ू या चप्पल है तो उसे अक्षय तृतीया से पहले घर से बाहर फेंक दें क्योंकि ये चीजें दरिद्रता की निशानी होती हैं.
अक्षय तृतीया 2023 कब है-
इस वर्ष अक्षय तृतीया 22 अप्रैल 2023 को मनाई जाएगी। इस दिन माता लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा का विधान है। अक्षय तृतीया के दिन देवी लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने से भक्तों को सुख, सौभाग्य और धन की प्राप्ति होती है। यह हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के हर कमरे का अलग महत्व होता है। अगर आपके घर में वास्तुदोष हो तो इसका जीवन पर बुरा असर पड़ता है। कई तरह की दिक्कतें भी बढ़ जाती हैं। आज हम आपको बेडरूम से संबंधित वास्तुदोष के बारे में बताने जा रहे हैं। लेकिन अगर आप समय रहते ही इन वास्तुदोषों का निपटारा करके इन्हें सही कर लेते हैं तो आप कई मुश्किलों से बच सकते हैं।
सबसे पहले बेडरूम से इन्हें हटाएं
अगर आपके बेडरूम में फ्रिज, इन्वर्टर या गैस सिलेंडर रखा है तो इसे तुरंत हटा दें। वास्तु के अनुसार ये चीजें आपकी नींद खराब कर सकती है। इसके अलावा, आपको नींद न आने की समस्या भी हो सकती है। इससे आपको मानसिक तनाव की दिक्कत भी झेलनी पड़ सकती है।
इन बातों का रखें ध्यान वरना होगा नुकसान
वास्तुशास्त्र के अनुसार आपका बेडरूम कभी भी घर की उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिशा में बेडरूम या बेडरूम का दरवाजा होने से दांपत्य जीवन में कलह मची रहती है। पति-पत्नी कभी भी एक बात पर सहमत नहीं होते हैं।
इसे न करें अवॉयड
कभी भी बेडरूम के दरवाजे को खोलते या बंद करते समय किसी तरह की आवाज नहीं आनी चाहिए। अगर ऐसा हो तो उसे तुरंत ठीक करवा लें। वास्तु के अनुसार दरवाजे की आवाज की ही तरह पति-पत्नी में भी हमेशा किसी न किसी बात पर खटर-पटर लगी होते रहती है।
बेडरूम में इसे रखने से करें परहेज
आप अपने बेडरूम में कभी भी कांटेदार या कोई भी नुकीला पौधा नहीं रखें। इसके अलावा, अगर बेडरूम का एयर कंडीशनर या पंखा खराब हो और उससे आवाज आती हो तो तुरंत ठीक करवा लें। ऐसी स्थितियां दांपत्य जीवन में दूरियां पैदा करती हैं।
बेडरूम में पानी की बोतल यहां मत रखें
वास्तुशास्त्र के अनुसार अपने बेडरूम में गलत दिशा में रखी गई पानी की बोतल से आपको दिक्कत हो सकती है। इसलिए अपने पानी की बोतल को बेड के अग्निकोण में न रखें। इससे आप रातभर नींद ना आने से परेशान रहेंगे। -
काले रंग का गोमेद रत्न बहुत प्रभावशाली होता है। इस रत्न पर मंगल और शनि का शासन है। यह सिंह राशि से संबंधित रत्न है। यह नकारात्मक को दूर रखने में मदद करता है। अपनी खास गुणवत्ता और चमक के कारण इस रत्न को पहचानना बेहद आसान होता है। प्रत्येक राशि पर एक विशेष ग्रह का शासन होता है। रत्न ग्रहों की स्थिति को मजबूत करने में काम आता है। कोई भी रत्न धारण करने से पहले ज्योतिषी सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए। आइए जानते हैं काले गोमेद रत्न के फायदें-
1. यह रत्न व्यक्ति को भावनात्मक और मानसिक रूप से ठीक रखने में मदद करता है।
2. यह डर को दूर करने और आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करता है।
3. नकारात्मक और बुरे विचारों को दूर रखता है।
4. गोमेद रत्न भावनात्मक तनाव को दूर करता है।
5. हार्ट और किडनी से जुड़ी बीमारियों को छुटकारा दिलाता है।
6. दृष्टि से जुड़ी समस्याओं को ठीक करता है।
7. जीवन में आने वाले बड़े से बड़े संघर्षों पर काबू पाने में मदद करता है।
8. काला गोमेद रत्न एकाग्रता और ध्यान बढ़ाता है।
9. मासिक धर्म के दौरान आने वाली परेशानी और कठिनाइयों को दूर करता है।
10. यह रत्न आध्यात्मिक प्रेरणा देने के साथ ही साथ अंतरात्मा से मिलाता है। -
-पं. प्रकाश उपाध्याय
ज्योतिषशास्त्र में केदार योग को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल 23 अप्रैल को 500 सालों बाद ये शुभ योग बनने जा रहा है। केदार योग का निर्माण तब होता है जब जन्म कुंडली के 4 भावों में 7 ग्रह मौजूद होते हैं। केदार योग का कुछ राशियों पर बेहद शुभ प्रभाव पड़ने जा रहा है। इन राशि वालों का सोया हुआ भाग्य भी जाग जाएगा। आइए जानते हैं, केदार योग किन राशि वालों के लिए शुभ रहने वाला है-
मेष राशि-
सफलता हासिल होगी।
धन संचय में सफल रहेंगे।
नए साल की शुरुआत अच्छी रहेगी।
मेहनत का पूरा फल मिलेगा।
पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
शुभ समाचार मिल सकते हैं।
यह समय शुभ साबित होगा।
इस दौरान आपको कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है।
परिवार के सदस्यों का सहयोग मिलेगा।
धन- लाभ होने के योग बन रहे हैं।
सिंह राशि-
आपके बिगड़े काम बनेंगे।
नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को शुभ समाचार मिलेगा।
सरकारी नौकरी करने वाले जातकों के लिए समय उत्तम है।
अचानक धन लाभ की प्राप्ति हो सकती है।
शुभ फल की प्राप्ति होगी।
इस दौरान आपको आर्थिक लाभ होने के योग बनेंगे।
वाणी में मधुरता रहेगी।
यह समय आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
धनु राशि-
इस दौरान आपकी वाणी में मधुरता रहेगी।
आप हर काम में सफलता हासिल करेंगे।
कार्यस्थल पर आपके काम की प्रशंसा होगी।
इस दौरान निवेश से लाभ हो सकता है।
भवन व वाहन सुख की प्राप्ति हो सकती है।
बुध का गोचर छात्रों के लिए उत्तम साबित होगा।
प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को सफलता हासिल हो सकती है।
वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।
प्रेमी के साथ जीवन व्यतीत करने का अवसर प्राप्त होगा। - -पं. प्रकाश उपाध्याय
वास्तु शास्त्र और फेंग शुई दोनों में ही बांस के पौधे को काफी प्रमुखता दी गई है। दोनों ही शास्त्रों में कहा गया है कि बांस के पौधे को घर में लगाने से व्यक्ति भाग्याशाली होता है। ऐसे व्यक्ति का दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है। हालांकि, इसके लिए आपको बांस के पौधे से जुड़े कुछ नियमों का भी ध्यान रखना जरूरी है। ऐसा नहीं करने पर अनर्थ भी हो सकता है।
1.ध्यान रखें, बांस के पौधे को गमेशा गमले में ही लगाएं। यदि इसे जमीन में लगा दिया गया तो यह बहुत बड़ा हो जाएगा। ऐसा होने पर यह शुभ की जगह अशुभ प्रभाव देने लगेगा।
2. घर में बांस का पौधा ज्यादा से ज्यादा 2 से 3 फीट तक की ऊंचाई का ही होना चाहिए। अगर पौधा इससे अधिक बड़ा हुआ तो यह नेगेटिव इफेक्ट देने लगता है।
3. बांस के पौधे को कभी भी घर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं लगाना चाहिए। इस दिशा में तुलसी, केला, बांस तथा अन्य शुभ पेड़-पौधे लगाने की मनाही है।
4. वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर और पूर्व दिशा में बांस का पौधा लगाने से सबसे अच्छा परिणाम मिलता है। इसके अलावा, आप उत्तर-पश्चिम दिशा में भी इस पौधे को लगा सकते हैं।
5. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में मौजूद बांस का पौधा कभी सूखना नहीं चाहिए। वरना यह घर में रहने वालों के लिए अशुभ परिणाम देता है।
6. जैसे ही बांस का पौधा सूखने लगे, उसपर तुरंत ध्यान देना चाहिए। अगर फिर भी यदि वह हरा-भरा न हो तो उसे हटा कर नया पौधा लगा देना चाहिए।
7. बांस के पौधे को किसी गंदे स्थान पर नहीं लगाना चाहिए। वरन इसे तुलसी और केले के पुष्प के साथ रखना चाहिए।
8. अगर आप चाहें तो इसे ड्राईंग रूम या बेडरूम में भी रख सकते हैं। ऐसा करने आपके घर और पारिवारिक रिश्तों में मधुरता लाएगा। - -पं. प्रकाश उपाध्यायलोग पैसा कमाने के लिए क्या नहीं करते हैं। कई बार कड़ी मेहनत करने बावजूद भी लोगों के पास पैसा नहीं टिक पाता है। जिसके पीछे का कारण वास्तु दोष भी हो सकता है। अक्सर लोग अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां कर जाते हैं जिससे घर में वास्तु दोष पैदा होता है और जातक को आर्थिक तंगी के साथ जीवन में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर आपके हाथ में भी नहीं टिकता है धन और परेशान हैं आर्थिक तंगी से, आजमाएं वास्तु शास्त्र में बताए गए ये आसान उपाय-1. कुबेर यंत्र करें स्थापित- भगवान कुबेर को धन व संपन्नता का प्रतीक माना गया है। यह आपके ईशान कोण के स्वामी माने गए हैं। इसलिए उत्तर-पूर्व दिशा में कुबेर यंत्र स्थापित करना शुभ माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, उत्तर-पूर्व दिशा से नकारात्मक ऊर्जा पैदा करने वाली चीजों को हटा देना चाहिए। जैसे भारी फर्नीचर और शू रैक आदि।2. घर करें व्यवस्थित- अक्सर घरों में लोग सामान यहां-वहां छोड़ देते हैं। जबकि वास्तु शास्त्र के अनुसार, ऐसा करने से घर में वास्तु दोष पैदा होता है। वास्तु दोष से छुटकारा पाने के लिए घर को व्यवस्थित करना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से घर की दरिद्रता दूर होती है।3. लॉकर को दक्षिण-पश्चिम कोने में रखें- वास्तु शास्त्र के अनुसार, धन लाभ व आर्थिक तंगी दूर करने के लिए लॉकर या तिजोरी को अपने घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में रखें। लॉकर कभी भी पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर नहीं खुलना चाहिए। इस चीज को नजरअंदाज करने से धन का नुकसान होता है।4- वास्तु के अनुसार, घर का मुख्य द्वार हमेशा साफ-सुथरा होना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है। और गृहकलह खत्म हो जाती है।5. कटीले पौधे न लगाएं- वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के आसपास हरियाली बनाए रखें और कटीले पौधे न लगाएं। कहते हैं कि घर के आसपास कटीले पौधे होने से परिवार के लोगों में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।
-
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
वास्तु के अनुसार घर की छत को साफ सुथरा रखना चाहिए। घर की छत पर कबाड़ सामान डालने से कई तरह के नेगेटिव इफेक्ट सामने आते हैं। वास्तु के अनुसार हमें घर की छत पर किसी भी तरह का कबाड़ा या टूटा फूटा सामान नहीं रखा चाहिए। इसके हेल्थ से लेकर परिवार के रिश्तों में कई उल्टे प्रभाव देखने को आते हैं। वास्तु के अनुसार घर की छत पर कबाड़ा रखने से परिवार के लोगों में कलह रहती है और ब्रैन और माइंट पर गलत प्रभाव पड़ता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की छत पर पड़ा फालतू सामान अगर न हटाया जाए तो इससे वास्तु दोष और पितृ दोष लगने लगता है। घर का माहौल खराब होने लगता है। परिवार के सदस्यों की तरक्की रुकती है। आर्थिक स्थिति पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।
ऐसे में टूटे-फूटे या काम में न आने वाले सामान को तुरंत घर से बाहर कर देना चाहिए। अगर कोई ऐसा सामान है, जिसे भविष्य में फिर से इस्तेमाल किया जा सके तो उसे छत पर न रखें, बल्कि किसी कपड़े आदि से ढंक कर व्यवस्थित रखें। - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायज्योतिष शास्त्र में उग्र और कुंडली मे नकारात्मक ग्रहों की शांति या ऊर्जा को बैलेंस करने के लिए "दान" उपायों का एक अभिन्न अंग है।क्या और कब दान करना है इसका निर्धारण व्यक्ति की कुंडली के अनुसार किया जाता है। दान की सामग्री का चयन भी ग्रह के कारक तत्वों और उसके प्रतिनिधित्व करने वाले समान और लोगों को, आवश्यकता के आधार पर किया जाता है।क्यों कहा जाता है दान ब्राह्मण/पुजारी को दें?पहले के समय ब्राह्मण का मुख्यत: कर्म कर्मकांड व शास्त्र अध्यन का था। ज्योतिष में दान हमेशा क्रूर ग्रहों की क्रूरता के निवारण के लिए किया जाता है जो कि आपसी संबंधों में तनाव, जॉब आदि में दिक्कत, स्वाथ्य समस्याएं, संतान संबंधी कष्ट आदि दे रहे हैं।जब इनके कारक तत्वों का दान आप अनिष्ट की शांति के लिए करते हैं तो उस नकारात्मक ऊर्जा का एक हिस्सा आप दान के साथ जाने का निवेदन/संकल्प करते हैं। तो प्रयास करना चाहिए कि दान कर्मकांडी ब्राह्मण, नित्य संध्या पूजा पाठ आदि करने वाले व्यक्ति या ऐसे परिवार को दें ताकि वे उस नकारात्मक ऊर्जा का सामना अपनी सकारात्मक ऊर्जा से कर सकें। इसलिए आपने ये भी देखा होगा कि विद्वान ब्राह्मण आदि दान नही स्वीकार करते हैं। क्योंकि दान के साथ व्यक्ति की समस्याओं का एक अंश वो भी प्राप्त करते हैं (याद रखें ग्रहों से प्राप्त हो रही ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती बस उसे जप, दान, लोककल्याणार्थ किये गए कार्यों से छोटे छोटे भागों में बांट दिया जाता है)इसी कारण कहा जाता है कि किसी भी समस्या या कष्ट का पूर्णत: कभी अंत नही होता चाहे आप कितने भी उपाय कर लें बल्कि नकारत्मकता काम करने के प्रयास से बड़ी दुर्घटना /चोट छोटा रूप ले लेगी। अगर मंगल आदि ग्रहों की उग्रता के कारण आपको बढ़ी दुर्घटना का सामना करने की स्थिति बन रही गई तो वो दुर्घटना अवश्य होगी चाहे चोट आप को ठोकर लगने या चाकू से हाथ काट जाने, या रेजर से कट लग जाने जैसी हो जाये।इसलिए दान लेने में थोड़ा संकोच करें, कुछ भी यूं ही कभी प्राप्त नही होता और ग्रहों की अशुभता के निवारण करने वाला दान किसी सुपात्र को ही दें।दान देते समय क्या करें--एक बात ध्यान रखें कि दान देने से पहले भगवान विष्णु जी का ध्यान अवश्य करना चाहिए. ऐसा करने से दान का पूर्ण फल प्राप्त होता है।-यदि कोई व्यक्ति दान कर रहा हो तो उसको कभी भी टोकना नहीं चाहिए, और सदैव ध्यान रखना चाहिए कि दान करने वाले को रोकना बहुत बड़ा पाप होता है। शास्त्रों में तो यहां तक लिखा है कि जो दान न करने की सलाह देते हैं उसको पक्षी योनि प्राप्त होती है। अन्न का दान बहुत बड़ा दान होता है। इस संसार का मूल अन्न है, प्राण का मूल अन्न है। यह अन्न अमृत बनकर मुक्ति देता है। सात धातुएं अन्न से ही पैदा होती हैं। इन्द्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं। वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। इस दान से उन्हें तार्किक और पारलौकिक सुख मिला। अन्न दान करने से यश कीर्ति और सुख की प्राप्ति होती है।-दान करने में कोई शर्त नहीं होनी चाहिए, जैसे एक अमीर ने किसीे गरीब को जीवन चलाने के लिए एक रिक्शा दान किया लेकिन दान करते समय एक शर्त लगा दी कि हमारे बच्चों को स्कूल नि:शुल्क छोडऩा अनिवार्य है तभी हम रिक्शा देंगे। तो इस दान का कोई मतलब नहीं। एक बात बहुत ध्यान रखने वाली है कि कभी भी दान देकर वह वस्तु वापस नहीं लेनी चाहिए अन्यथा पुण्य के बजाय पाप के भागी हो जाते हैं।ग्रहों के निमित्त दान वस्तुएं-सूर्य- क्रीम रंग वस्त्र, गुड़, मिठाई, सोना, गेहूं, करना चाहिए.चंद्र- सफेद वस्त्र, दही, मोती, चांदी, दूध पानीमंगल -गेहूं, लाल कपड़ा, गुड़, स्वर्ण, तांबा, मीठाबुध -हरा वस्त्र, मूंग की दाल, वनस्पति.गुरु - किताबें, चने की दाल, पीला कपड़ा, समिधा, गाय का दान,घीशुक्र- फैशन के हिसाब से नवीन कपड़ा, शक्कर, हीरा एवं जूसशनि- नीला वस्त्र, तिल, लोहे का सामान, रिक्शा, ट्राईसाईकिलराहु- हवन सामग्री, चंदन, विदेशी भाषा की पुस्तकें, गोमेदकेतु - कंबल, चप्पल, हेयरबैंड, जनेऊ, लहसुनिया का दान करना चाहिए.दान कब किया जाए?-सूर्य की 12 संक्रांतियां दान के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है.-अमावस्या-पूर्णमासी (पूर्णिमा)-ग्रहण काल
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायज्योतिष उपायों में पेड़ पौधों के साथ कई उपाय किये जाते हैं जिनमें इन पौधों को घर/मन्दिर आदि में लगाना, उनकी जड़ों का रत्नों की तरह प्रयोग, पौधों का दैनिक स्वास्थ समस्याओं में आयुर्वेदिक प्रयोग आदि शामिल है। बुजुर्गों द्वारा कहा गया है-"पीछे केला , आगे बेलफिर देखो पैंसे का खेल"मतलब घर के पीछे की जगह/बालकनी में केले का पौधा और आगे की जगह/बालकनी में बेल का पौधा/गमला लगाइए। गुरुवार को केले के पौधे पर सुबह "बृहस्पति" की "होरा" में तथा रविवार को बेल पर "सूर्य" की "होरा" में शुद्ध घी का दीपक लगाइए।ये लोकभाषा मे चले आ रहे उपाय हैं जो पीढिय़ों से आगे बढ़ाए जा रहे हैं।इस दिशा में लगाएं केलाज्योतिष शास्त्र के अनुसार केले के पेड़ को उत्तर पूर्व अथवा ईशान कोण में लगाना चाहिए, क्योंकि इस दिशा में देवगुरु बृहस्पति का आधिप्तय है। इसलिए इस दिशा में केले का पेड़ लगाने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। केले के पेड़ को भूल से भी घर के मुख्य द्वारके सामने, पूर्व-दक्षिण के मध्य या पश्चिम दिशा में नहीं लगाना चाहिए। वहीं केले के पेड़ के साथ काटेदार पेड़ को लगाने से बचना चाहिए।इस विधि से करें केले के पेड़ की पूजाहिंदू धर्म में केले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। गुरुवार के दिन सुबह स्नान करने के पश्चात पीले वस्त्र पहनकर केले के पेड़ में जल अर्पित कर। साथ ही केले के पेड़ की 9 बार परिक्रमा करें। पौधे के नीचे चने और गुड़ का भोग लगाएं। फिर यहां बैठकर भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करें। इसके बाद प्रसाद को एक दूसरे में बांटे और खुद भी ग्रहण करें।केले के पेड़ की पूजा करने के लाभज्योतिष शास्त्र के अनुसार केले का पेड़ लगाने से आपको गुरु दोष से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही वैवाहिक जीवन में आ रही समस्या से मुक्ति मिलती है और संतान सुख की भी प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं जिस अवैवाहिक कन्या का यदि विवाह नहीं तय हो रहा है और घर वाले परेशान हैं, वे यदि हर गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा करती हैं तो कुछ ही दिन में शादी का रिश्ता तय हो जाएगा।बेल का पौधा इस दिशा में लगाएंज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर घर की उत्तर-पश्चिम दिशा में बेल का पौधा लगाया जाए तो घर में रहने वाले सदस्य तेज और ऊर्जावान बनते हैं। अगर यह वृक्ष घर के आंगन में हो तो बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करेंगी। यह परिवार के सदस्यों की रक्षा करती है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।गरीबी से मुक्तिदरिद्रता दूर करने के लिए घर में बेलपत्र लगाएं। इससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है। आप अपने धन क्षेत्र में बेलपत्र के पत्ते रख सकते हैं। यह घर में खुशियां और आशीर्वाद लेकर आता है। वित्तीय समृद्धि के लिए उत्तर-दक्षिण दिशा में पौधा लगाएं।उर्जावान होनामाना जाता है कि बेलपत्र के वृक्ष की जड़ों में गिरिजा माता का वास होता है। तने में माहेश्वर, शाखाओं में माता दक्षिणी, पत्तों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में देवी कात्यायनी का वास होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर घर की उत्तर-पश्चिम दिशा में बेल का पौधा लगाया जाए तो घर में रहने वाले सदस्य तेज और ऊर्जावान बनते हैं।जादू टोना का प्रभाव नहींअगर यह वृक्ष घर के आंगन में हो तो बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करेंगी। यह परिवार के सदस्यों की रक्षा करती है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।चंद्र दोष दूरघर के अंदर बेला का पौधा लगाने से आपको कभी चंद्रदोष और अन्य प्रकार के दोषों का दुष्प्रभाव नहीं झेलना पड़ेगा।
- पौराणिक आख्यानों के अनुसार इला, भगवान बुध की पत्नी हैं। इला ऋग्वेद में 'अन्न' की अधिष्ठातृ' मानी गई हैं, यद्यपि सायण के अनुसार उन्हें पृथ्वी की अधिष्ठातृ मानना अधिक उपयुक्त है। वैदिक साहित्य में इला को मनु को मार्ग दिखलाने वाली एवं पृथ्वी पर यज्ञ का विधिवत् नियमन करनेवाली कहा गया है। इला के नाम पर ही जम्बूद्वीप के नवखंडों में एक खंड इलावृत वर्ष कहलाता है। महाभारत तथा पुराणों की परंपरा में इला को बुध की पत्नी एवं पुरूरवा की माता कहा गया है।पौराणिक आख्यानों के अनुसार इला, भगवान बुध की पत्नी हैं। वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए। उनके एक पुत्री भी थी इला, जो बाद में पुरुष बन गई। वैवस्वत मनु ने पुत्र की कामना से मित्रावरुण यज्ञ किया। उनको पुत्री की प्राप्ति भी हुई जिसका नाम इला रखा गया। उन्होंने इला को अपने साथ चलने के लिए कहा किन्तु इला ने कहा कि क्योंकि उसका जन्म मित्रावरुण के अंश से हुआ था, अत: उन दोनों की आज्ञा लेनी आवश्यक थी। इला की इस क्रिया से प्रसन्न होकर मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या तथा मनु का पुत्र होने का वरदान दिया।कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया। उसके बाद वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृद्धि की जिनके नाम इस प्रकार हैं- उत्कल, गय तथा विनताश्व।
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायचैत्र पूर्णिमा को हर वर्ष हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस बार 6 अप्रैल को हनुमान जयंती है। माना जाता है कि हनुमान भक्तों पर सदैव शनि देव की कृपा बनी रहती है। अगर आप शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया या शनि दोष से पीडि़त हैं तो ज्योतिष शास्त्र में हनुमान जयंती के दिन किए जाने वाले कुछ उपाय बताए गए हैं, जिससे शनि की महादशा में लाभ होगा। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में...1. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की महादशा से मुक्ति के लिए हनुमान जयंती के दिन व्रत रखें और लाल कपड़े पहनकर हनुमान मंदिर में जाएं। इसके बाद बजरंगबली के सामने कुश के आसन पर बैठकर चमेली के तेल का दीपक जलाएं। फिर 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें।2. हनुमानजी को चने व बूंदी का भोग बेहद प्रिय है। हनुमान जयंती के दिन व्रत रखें और मंदिर में जाकर बूंदी व चने का भोग लगाएं और सुंदरकांड का पाठ करें, फिर प्रसाद को लोगों को बांट दें। ऐसा करने से बजरंगबली प्रसन्न होते हैं और शनि दोष से जुड़ी परेशानियों को भी दूर रखते हैं। साथ ही आरोग्य की भी प्राप्ति होती है।3. शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति के लिए हनुमानजी को सिंदूर, चोला और चमेली का तेल अर्पित करें। इसके अलावा बरगद के आठ पत्तों को काले धागे में पिरो लें और उन पर सिंदूर से राम-राम लिखें। फिर हनुमानजी की मूर्ति पर चढ़ा दें। ऐसा करने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति मिलेगी।.4. शनि की बुरी दशा से टालने के लिए एक पानी वाला नारियल हनुमान मंदिर लेकर जाएं और बजरंगबली के सामने ही अपने सिर से लेकर पैर तक सात बार वार लें और फिर उसे वहीं तोड़ दें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर '? हं हनुमते नम::' मंत्र का 108 बार जप करें और फिर सुंदरकांड का पाठ करें।5. बजरंगबली को लौंग वाला पान का बीड़ा के साथ कागजी बादाम भी अर्पित करें। इसके बाद काले कपड़े में आधे बादाम को बांध दें। फिर उसे घर की दक्षिण दिशा में छिपाकर रख दें, ध्यान रहे कि कोई उसे देखे ना। इसके बाद अगले दिन इसे किसी शनि मंदिर में जाकर रख दें। ऐसा करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है और सभी कार्य बनने लग जाते हैं।6. हनुमान जयंती पर हनुमानजी के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं और उसमें दो लौंग रख दें। इसके बाद दीपक से हनुमानजी की आरती उतारें और हनुमानाष्टक का पाठ करें। साथ ही बजरंगबली को गुलाब की माला, लाल फूल, लाल चंदन आदि चीजें अर्पित करें। ऐसा करने से हनुमानजी की कृपा बनी रहेगी और शनि की साढ़ेसाती और अशुभ छाया से मुक्ति मिलेगी।शुभ मुहूर्तगुरुवार सुबह 6.06 से 7.40 के बीच में पूजा कर सकते हैं। उसके बाद आप दोपहर 12.24 से 1.58 के बीच भी पूजा कर सकते हैं। जो लोग शाम को पूजा करना चाहते हैं, वे शाम 5.07 से 8.07 के बीच विधान से पूजा कर सकते हैं।हनुमान जयंती के दिन अभिजित मुहूर्त सुबह 11.59 से दोपहर 12.49 तक है। .
-
-पं. प्रकाश उपाध्याय
हनुमान जन्मोत्सव का पर्व चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल हनुमान जन्मोत्सव 6 अप्रैल 2023 को है। हनुमान जन्मोत्सव के दिन शुक्र राशि परिवर्तन कर रहे हैं। इसके अलावा शनि 30 साल में पहली बार अपनी राशि कुंभ में हैं, इसके अलावा गुरु भी स्वराशि मीन में विराजमान हैं।
वहीं गुरु भी कुछ दिनों में मेष राशि में जा रहे हैं। इसके अलावा राहु मेष राशि में विराजमान हैं। ऐसे में हनुमान जन्मोत्सव की आरंभ सर्वाथसिद्धि योग में हो रहा है और इस दिन हस्त और चित्रा योग भी हैं। नजर लगने से बचाने के लिए इस दिन हनुमान जी के विभिन्न उपाय किए जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अगर हनुमान जी के विभिन्न उपाय किए जाए तो हनुमान जी का विशेष आशीर्वाद मिलता है। इस दिन हो सकें, तो सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए, हनुमान जी को सिंदुर, चोला, चमेली के फूल की माला और लड्डू अर्पित करने चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि अगर बच्चे को नजर दोष लगी हो तो मंदिर में जाएं और हनुमान जी के कंधे से सिंदूर लेकर इसका छाती पर तिलक लगाएं, ऐसा करने से नजर दोष समाप्त हो जाता है। -
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
हस्तरेखा विज्ञान में विभिन्न तरह की रेखाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है, लेकिन इनमें जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा प्रमुख तीन रेखाएं मानी गयी हैं। इसके साथ ही भाग्य रेखा और मंगल रेखाएं भी हाथों में मिलती हैं। अनेक हाथों में रेखाएं दोमुखी होती हैं। दोमुखी रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। इन्हीं में से एक है जीवन रेखा।
-हाथ में जीवन रेखा व्यक्ति के जीवन के बारे में बहुत से सवालों का जवाब देती है। यदि हाथ में जीवन रेखा दोमुखी है और दूसरी शाखा बाहर की ओर हो तो ऐसे लोग विदेश जाकर स्थायी रूप से बस जाते हैं, लेकिन यदि जीवन रेखा से निकली दूसरी शाखा अंदर की ओर हो तो ऐसे लोग विदेश तो जाते हैं, लेकिन निश्चित समय के बाद धन कमाकर लौट आते हैं।
-जीवन रेखा को नीचे की ओर काटने वाली रेखाएं व्यक्ति के स्वास्थ्य का संकेत देती है। ये रेखाएं जिस उम्र में जीवन रेखा काटती हैं उस उम्र में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
-दोमुखी जीवन व्यक्ति के विवाह का संकेत भी देती है। बाहर की ओर जीवन रेखा से निकली रेखा व्यक्ति की दूर राज्य और बिल्कुल अलग संस्कृति में शादी का संकेत होती है। ऐसे लोगों की आजीविका भी घर से दूर होती है। इसी तरह यदि शाखा अंदर की ओर है तो शादी बिल्कुल नजदीक होती है और ये अपनी आजीविका भी घर के पास रहकर ही कमाते हैं।
-यदि जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा ऊपर से अलग-अलग हों तो ऐसे लोग अपना काम खुद करते हैं। इस तरह के लोग दूसरे का हस्तक्षेप बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होता। इनका स्वभाव भी क्रोधी होता है। इनका सामाजिक दायरा बहुत छोटा होता है। -
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
हथेली में सूर्य पर्वत शनि की ओर झुक जाए तो व्यक्ति जज एवं सफल अधिवक्ता होता है। यदि सूर्य पर्वत दूषित हो जाए तो व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति का हो जाता है। यदि सूर्य एवं शुक्र पर्वत उभार वाले है तो व्यक्ति विपरीत लिंग के प्रति शीघ्र एवं स्थायी प्रभाव डालने वाला, धनवान, परोपकारी, सफल प्रशासक, सौंदर्य और विलासिताप्रिय होता है। सूर्य पर्वत पर जाली हो तो गर्व करने वाला, लेकिन कुटिल स्वभाव का होता है। ऐसा व्यक्ति किसी पर विश्वास नहीं करता। तारे का चिह्न होने पर धनहानि होती है, लेकिन प्रसिद्धि अप्रत्याशित रूप से मिलती है। गुणा का चिन्ह हो तो सट्टा या शयेर में धन का नाश हो सकता है। सूर्य पर्वत पर त्रिभुज हो तो उच्च पद की प्राप्ति, प्रतिष्ठा तथा प्रशासनिक लाभ होते हैं। सूर्य पर्वत पर चौकड़ी हो तो लाभ तथा सफलता की प्राप्ति होती है।
सूर्य पर्वत एवं बुध पर्वत के संयुक्त उभार की स्थिति में व्यक्ति में योग्यता, चतुराई तथा निर्णय शक्ति अधिक होती है। ऐसा व्यक्ति श्रेष्ठ वक्ता, सफल व्यापारी या उच्च स्थानों का प्रबंधक होता है। ऐसे व्यक्तियों में धन पाने की असीमित महत्वाकांक्षा होती है। हथेली में सूर्य पर्वत के साथ यदि बृहस्पति का पर्वत भी उन्नत हो तो व्यक्ति विद्वान, मेधावी और धार्मिक विचारों वाला होता है। अनामिका उंगली के मूल में सूर्य का स्थान होता है। सूर्य का उभार जितना अधिक होगा, प्रभाव भी उतना ही अधिक मिलेगा। सूर्य पर्वत का उभार अच्छा, स्पष्ट होने के साथ सरल सूर्य रेखा हो तो व्यक्ति श्रेष्ठ प्रशासक, पुलिसकर्मी, सफल उद्यागेपति होता है। यदि पर्वत अधिक उभार वाला हो और रेखा कटी या टूटी हो तो व्यक्ति अभिमानी, स्वार्थी, क्रूर, कंजूस और अविवेकी होता है। -
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। सूर्य एक निश्चित अवधि में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के राशि परिवर्तन का सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। जिन राशि के जातकों की सूर्य की स्थिति कुंडली में उच्च व शुभ होती है उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होती है। सूर्य 14 अप्रैल को मंगल ग्रह की राशि मेष में प्रवेश करने जा रहे हैं। सूर्य के मेष राशि में आने से कई राशि के जातकों को लाभ होगा। जानें सूर्य गोचर से किन राशि के जातकों को होगा लाभ-
1. मेष राशि- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य का गोचर मेष राशि के प्रथम भाव में होगा। इस दौरान आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। सेहत में सुधार होगा। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। कार्यों में सफलता हासिल होगी। हालांकि पारिवारिक जीवन से कुछ मानसिक तनाव हो सकता है।
2. कर्क राशि- सूर्य का गोचर कर्क राशि के जातकों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। सूर्य का गोचर आपकी राशि के दशम भाव में होगा। सूर्य के मेष राशि में आने से आपको करियर में जबरदस्त लाभ मिलेगा। व्यापारियों को मुनाफा होगा। नौकरी की तलाश कर रहे जातकों को शुभ समाचार मिल सकता है।
3. सिंह राशि- सिंह राशि वालों के लिए सूर्य का मेष राशि में गोचर लाभकारी साबित होगा। इस अवधि में आपके भाग्यवश कुछ काम बनेंगे। रुके हुए कार्य पूरे होंगे। जिस कार्य की शुरुआत करेंगे, उसमें सफलता हासिल करेंगे। मान-सम्मान में वृद्धि होगी। कारोबार में सफलता हासिल होगी। यात्रा में लाभ होगा।
4. मिथुन राशि- मिथुन राशि के जातकों के लिए सूर्य गोचर बेहद लाभकारी साबित होगा। सूर्य का गोचर आपके आय भाव में हो रहा है। इस दौरान आपकी आय में इजाफा हो सकता है। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। आपके अटके हुए काम पूरे होंगे। आमदनी के नए साधन बनेंगे। मन की इच्छा इस अवधि में पूरी हो सकती है। - राजधानी रायपुर में प्रमुख शक्तिपीठों में एक प्राचीन महामाया मंदिर भी है। साल भर यहां पर माता के भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माता का प्रताप ही कुछ ऐसा है कि एक बार वहां जाने वाले भक्त की इच्छा बार-बार माता के दर्शन करने की होती है। इस मंदिर की ऐतिहासिकता और प्रताप हर किसी को प्रभावित करता है। मां का दरबार सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। तांत्रिक पद्धति से बने इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त आते हैं। माना जाता है कि मंदिर में महामाया माता से सच्चे मन से की गई प्रार्थना हमेशा पूरी होती है।इतिहासमहामाया मंदिर का इतिहास करीब छह सौ साल पुराना है। इस मंदिर की स्थापना हैहयवंशी कलचुरिया वंश के राजा मोरध्वज ने करवाई थी । छत्तीसगढ़ में इस वंश का शासन काफी समय तक रहा। इस वंश के राजाओं ने इस क्षेत्र में छत्तीस किले यानी गढ़ बनवाए और इस वजह से इस राज्य का नाम छत्तीसगढ़ हुआ। इन गढ़ों में प्रमुख है रतनपुर और रायपुर। इन दोनों स्थानों में महामाया मंदिर का निर्माण किया गया। रायपुर के महामाया मंदिर की बात करें तो शुरू से ही यह हिस्सा आसपास के क्षेत्र से अधिक ऊंचाई पर था। आज भी कमोबेश यही स्थित है। एक ओर कंकाली तालाब, दूसरी ओर महाराज बंध तालाब और तीसरी ओर पुरानी बस्ती की तरफ ढलान है। भले की प्राचीन डबरियां पर लुप्तप्राय हो गई हैं, लेकिन ढलान आज भी कायम है ।जनश्रुति के अनुसार इस मंदिर की प्रतिष्ठा हैहयवंशी राजा मोरध्वज के हाथों किया गया था। बाद में भोंसला राजवंशीय सामन्तों व अंग्रेजी सल्तनत द्वारा भी इसकी देखरेख की गई है। किवदन्ती है कि एक बार राजा मोरध्वज अपनी रानी कुमुद्धती देवी (सहशीला देवी) के साथ राज्य के भ्रमण में निकले थे, जब वे वापस लौट रहे थे, तो प्रात: काल का समय था। राजा मोरध्वज के मन में खारुन नदी पार करते समय विचार आया कि प्रात: कालीन दिनचर्या से निवृत्त होकर ही आगे यात्रा की जाए। यह सोचकर नदी किनारे (वर्तमान महादेवघाट) पर उन्होंने पड़ाव डलवाया। दासियां कपड़े का पर्दा कर रानी को स्नान कराने नदी की ओर ले जाने लगीं। जैसे ही नदी के पास पहुंचीं तो रानी व उनकी दासियां देखती हैं कि बहुत बड़ी शीला पानी में है और तीन विशालकाय सर्प वहां मौजूद हैं। यह दृश्य देखकर वे सभी डर गईं और पड़ाव में लौट आईं। इसकी सूचना राजा को भेजी गई। राजा ने भी यह दृश्य देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। तत्काल अपने राज ज्योतिषी व राजपुरोहित को बुलवाया। उनकी बताई सलाह पर राजा मोरध्वज ने स्नान आदि के पश्चात विधिपूर्वक पूजन किया और शीला की ओर धीरे-धीरे बढऩे लगे। तीन विशालकाय सर्प वहां से एक-एक कर सरकने लगे। उनके हट जाने के बाद राजा ने उस शीला को स्पर्श कर प्रणाम किया और सीधा करवाया। सभी लोग यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि वह शीला नहीं महिषासुरमर्दिनी रूप में अष्टभुजी भगवती की मूर्ति है। यह देख सभी ने हाथ जोड़ कर प्रणाम किया।कहा जाता है कि उस समय मूर्ति से आवाज निकली। हे राजन! मैं तुम्हारी कुल देवी हूं। तुम मेरी पूजा कर प्रतिष्ठा करो, मैं स्वयं महामाया हूं। राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों व ज्योतिषियों से विचार विमर्श कर सलाह ली। सभी ने सलाह दी कि भगवती मां महामाया की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए। तभी जानकारी प्राप्त हुई कि वर्तमान पुरानी बस्ती क्षेत्र में एक नये मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। उसी मंदिर को देवी के आदेश के अनुसार ही कुछ संशोधित करते हुए निर्माण कार्य को पूरा करके पूर्णत: वैदिक व तांत्रिक विधि से आदिशक्ति मां महामाया की प्राण प्रतिष्ठा की गई। कहा जाता है कि माता ने राजा से कहा था कि वह उनकी प्रतिमा को अपने कंधे पर रखकर मंदिर तक ले जाएं। रास्ते में प्रतिमा को कहीं रखें नहीं। अगर प्रतिमा को कहीं रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी। राजा ने मंदिर पहुंचने तक प्रतिमा को कहीं नहीं रखा , लेकिन मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के बाद वे मां की बात भूल गए और जहां स्थापित किया जाना था, उसके पहले ही एक चबूतरे पर रख दिया। बस प्रतिमा वहीं स्थापित हो गई। राजा ने प्रतिमा को उठाकर निर्धारित जगह पर रखने की कोशिश की , लेकिन नाकाम रहे। प्रतिमा को रखने के लिए जो जगह बनाई गई थी वह कुछ ऊंचा स्थान थी। इसी वजह से आज भी मां की प्रतिमा चौखट से तिरछी दिखाई पड़ती है। जानकारों के मुताबिक मंदिर का निर्माण राजा मोरध्वज ने तांत्रिक विधि से करवाया था। इसकी बनावट से भी कई रहस्य जुड़े हुए हैं। मंदिर के गर्भगृह के बाहरी हिस्से में दो खिड़कियां एक सीध पर हैं। सामान्यत: दोनों खिड़कियों से मां की प्रतिमा की झलक नजर आनी चाहिए ,लेकिन ऐसा नहीं होता। दाईं तरफ की खिड़की से मां की प्रतिमा का कुछ हिस्सा नजर आता है परंतु बाईं तरफ नहीं। माता के मंदिर के बाहरी हिस्से में सम्लेश्वरी देवी का भी मंदिर है। सूर्योदय के समय किरणें सम्लेश्वरी माता के गर्भगृह तक पहुंचती हैं। सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें मां महामाया के गर्भगृह में उनके चरणों को स्पर्श करती हैं। मंदिर की डिजाइन से यह अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है कि प्रतिमा तक सूर्य की किरणें पहुंचती कैसे होंगी। पौराणिक मान्यता है कि मंदिर के साथ दिव्य शक्तियां जुड़ी हुई हैं।मंदिर के इतिहास पर सबसे पहले 1977 में महामाया महत्तम नामक किताब लिखी गई। इसके बाद मंदिर ट्रस्ट ने 1996 में इसका संशोधित अंक प्रकाशित करवाया। 2012 में मंदिर की ओर से प्रकाशित की गई रायपुर का वैभव श्री महामाया देवी मंदिर को इतिहासकारों ने प्रमाणिक किया है। सभी किवदंतियों और जनश्रुति का उल्लेख प्रमाणिक किताबों में मिलता है।
- मां शक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र में व्रत और उपवास करने को शुभकारी माना गया है। इन नौ दिनों में भक्तगण यथाशक्ति माता की उपासना में लगे रहते हैं। नवरात्र में वैसे तो हर दिन का अपना अलग महत्व है, लेकिन अष्टमी और नवमीं तिथि को खास तौर से शुभ माना जाता है और इस दिन नौ कन्याओं का पूजन और उन्हें भोजन कराने की परंपरा रही है। हवन के पश्चात नौ कन्याओं को माता का प्रतीक स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है।नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दिन हवन और उसके बाद नवमी तिथि को कन्या पूजन करने के बाद माता रानी को विदा करके व्रत का पारण किया जाता है। कुछ लोग हवन के बाद अष्टमी तिथि को ही कन्या पूजन कराते हैं। अष्टमी तिथि को मां महागौरी और नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है। नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री के पूजन के साथ कन्या भोजन कराने विशेष महत्व है। नौ कन्याओं के साथ एक बालक को भी बटुक भैरव या लांगुर का रुप मानकर पूजन किया जाता है। 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन कराने का विशेष महत्व माना गया है।क्या खिलाएंवैसे तो कन्याओं को यथाशक्ति अनुसार भोजन कराना चाहिए। मां भगवती को खीर, मिठाई, फल, हलवा, चना, मालपुआ प्रिय है इसलिए कन्यापूजन के दिन कन्याओं को खाने के लिए पूरी, चना और हलवा दिया जाता है। कन्याओं को केसर युक्त खीर, हलवा, पूड़ी का खिलाना चाहिए। ध्यान रखें कि उनके लिए बनाए खाने में लहसुन, प्याज का इस्तेमाल न हो।उम्र के अनुसार देवी तक पहुंचेगा अंशदुर्गा शप्तशती में कन्या भोजन के लिए दो वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन करने की बात कही गयी है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार दो वर्ष की कन्या कुमारी होती, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा होती है। आप जिस उम्र की कन्या को भोजन करावाते हैं उससे सम्बन्धित देवी तक कन्या के माध्यम से उनका अंश पहुंच जाता है।भोजन कराने के साथ यह आवश्यक है कि आपके जरिए किसी भी कन्या का निरादर न हो। दस वर्ष तक की कन्या में मां का अंश मौजूद रहता और वह मां की तरह ही शुद्ध और निश्छल होती हैं। जो भक्त श्रद्धा भाव से कन्याओं में उनका अंश मानकर भोजन करवाता है उस भक्त पर सदा मां अनुकम्पा बनी रहती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति कन्याओं का निरादर करते हैं उसके घर वे कभी नहीं जाती हैं और वह व्यक्ति मां के क्रोध का भागी बनता है।किस उम्र की कन्या पूजन से क्या है लाभ-2 वर्ष की कन्या गरीबी दूर करती है।-3 वर्ष की कन्या धन प्रदान करती है।-4 वर्ष की कन्या अधूरी इच्छाएं पूरी करती है।-5 वर्ष की कन्या रोगों से मुक्ति दिलाती है।-6 वर्ष की कन्या विद्या, विजय और राजसी सुख प्रदान करती है।-7 वर्ष की कन्या ऐश्वर्य दिलाती है।-8 वर्ष की कन्या शांभवी स्वरूप से वाद-विवाद में विजय दिलाती है।-9 वर्ष की कन्या दुर्गा के रूप में शत्रुओं से रक्षा करती है।-10 वर्ष की कन्या सुभद्रा के रूप में आपकी सभी इच्छाएं पूरी करती है।
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायआज मां कालरात्रि, 29 मार्च को महागौरी और 30 मार्च को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाएगी। साथ ही इन तीन दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिससे इन तिथियों का भी महत्व बढ़ गया है। ज्योतिष शास्त्र में सप्तमी तिथि, अष्टमी तिथि और नवमी तिथि का महत्व बताते हुए कुछ उपाय बताए गए हैं। इन उपायों के करने से मां जातक की हर इच्छा पूरी करती है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, काले उबले चने, गुड़, सुपाड़ी, रुई और नए पान पर सिक्का रखकर को तीन दिन मां दुर्गा को अर्पित करें। इन पांचों चीजों को पूरी भक्तिभाव से मां दुर्गा को अर्पित करें और इस मंत्र का जप करें। ऐसा करने से मां दुर्गा बेहद प्रसन्न होती हैं और घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होगी। यह चीजें बहेद सस्ती हैं और आसानी से उपलब्ध भी हो जाएंगी।ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।इस उपाय से माता का मिलेगा आशीर्वादइस उपाय से माता का मिलेगा आशीर्वादमाता को प्रसन्न करने के लिए संधि आरती कर सकते हैं। संधि काल दो प्रहर, दो तिथि, दो दिन, दो पक्ष के मिलने के समय को संधि काल कहा जाता है। सप्तमी तिथि के समापन और अष्टमी तिथि की शुरुआत के काल में आप मां दुर्गा की संधि आरती कर सकते हैं। साथ ही संधि आरती में मां दुर्गा की आरती सुबह, दोपहर, शाम और रात में भी की जाती है। आरती से पहले मां को पांच सूखे मेवे और लाल चुनरी माता को अर्पित करें। यह आप तीनों दिन कर सकते हैं। ऐसा करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलेगा और आर्थिक समृद्धि होगी।इस जप से परेशानियों का होता है अंततंत्र शास्त्र में देवी के 32 नाम का जप करना बहुत शुभ और लाभकारी माना गया है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि की रात में माता के नाम का 108 बार जप करें। ऐसा करने से मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है और जो भी परेशानी चल रही होती है, उससे मुक्ति मिल जाएगी।इस उपाय से ग्रहों का मिलता है शुभ प्रभावग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए ये तीनों तिथियां बहुत उत्तम मानी जाती है। आप सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि की शाम को दुर्गा चालीसा, अर्गलास्तोत्र, कीलक स्तोत्र और दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं। पाठ खत्म होने के बाद छोटा सा हवन भी करें। हवन में आप जायफल, लौंग, इलायची, काले तिलस काली मिर्च, शहद, कमल गट्टा, सुपारी, घी, गूगल की आहुति दें और 108 बार 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' मंत्र का जप करें। ऐसा करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव जैसे राहु-केतु या शनि से मुक्ति मिलती है और पूरे परिवार की तरक्की होती है।कई लोगों का व्रत सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को समाप्त हो जाता है और कन्या पूजन करके अंतिम दिन हवन किया जाता है। ध्यान रखें कि हवन को ईशान कोण में करें और तीनों दिन मां दुर्गा की शास्त्रीय पद्धति से पूजा-अर्चना करें। ऐसा करने सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है और धन वैभव में वृद्धि होती है।यह उपाय छात्रों के लिए बेहद उत्तमनवरात्रि सभी के लिए कल्याणकारी मानी जाती है और मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए यह बेहद उत्तम दिन होते हैं। पढ़ाई में मन नहीं लगता या जो याद करते हैं, भूल जाते हैं, अगर इस तरह की समस्या का छात्र सामना कर रहे हैं तो सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि में से किसी एक दिन माता को ध्वजा अर्पित करें और हर दिन इस मंत्र का जप करें। ऐसा करने से ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि होती है और अपना मार्ग खुद चुनते हैं।'ॐ शारदा माता ईश्वरी मैं नित सुमरि तोय हाथ जोड़ अरजी करूं विद्या वर दे मोय।'