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-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
वास्तु शास्त्र, भारतीय वास्तुकला की एक प्राचीन परंपरा है जिसके जरिए हमें दिशाओं का सही ज्ञान प्राप्त होता है। आज हम आपको कुछ आसान से वास्तु टिप्स बताएंगे जिसकी मदद से धन को आकर्षित किया जा सकता है। इन टिप्स को अपनाकर घर में वित्तीय प्रवाह को अधिक सुचारू बनाया जा सकता है।
कुबेर यंत्र- धन के स्वामी भगवान कुबेर को प्रसन्न करने के लिए घर के ईशान कोण में कुबेर यंत्र लगाएं। इससे भगवान कुबेर प्रसन्न होते हैं और परिवार में संपन्नता और समृद्धि आती है। इस दिशा में रखा कोई भी भारी फर्नीचर उस जगह से हटा दें।
स्टोर रूम- वास्तु शास्त्र साफ- सफाई पर बहुत जोर देता है। इसके अनुसार घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए अव्यवस्थित चीजों को व्यवस्थित करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए घर में एक स्टोर रूप होना बेहद आवश्यक है। उपयोग में नहीं आने वाली चीजें स्टोर रूम में रख देनी चाहिए। ताकि घर को आसानी से व्यवस्थित किया जा सकें।
पानी की टंकी- घर में लगी पानी की टंकी को कभी भी दक्षिण-पूर्व या उत्तर -पूर्व दिशा में नहीं लगाना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से भारी वित्तीय हानि होती है। वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ जाता है।
स्नान घर- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के उत्तर- पूर्व या उत्तर- पश्चिम दिशा में स्नान घर बनाना चाहिए। ऐसा करने से परिवार में धन- लाभ का योग बनता है। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार, शाम के समय कुछ कार्यों को करने की मनाही है। मान्यता है कि इन कार्यों को शाम के वक्त करने से मां लक्ष्मी रूठ सकती हैं। कहते हैं कि ये कार्य घर में नकारात्मक ऊर्जा को लाते हैं। जिससे घर की बरकत व सुख-समृद्धि कम होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूरज डूबते समय और उसके बाद नेगेटिव शक्तियां एक्टिव हो जाती हैं। जानें सूर्यास्त के समय किन कामों को नहीं करना चाहिए।
1. शाम के वक्त तुलसी के पौधे के नीचे दीपक लगाना बहुत शुभ माना गया है। हालांकि सूर्यास्त के बाद तुलसी के पौधे को न छुएं। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं।
2. शाम के समय किसी गरीब या जरूरतमंद को खाली हाथ न लौटाएं। अपनी सामथ्र्यनुसार कुछ न कुछ जरूर दान करें।
3. सूर्यास्त के समय व उसके बाद कभी झगड़ा नहीं करना चाहिए। शाम के समय लड़ाई-झगड़ा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में गरीबी व कंगाली आती है।
4. वास्तु के अनुसार, शाम के वक्त किसी को पैसे उधार नहीं देने चाहिए। मान्यता है कि शाम के वक्त उधार दिए गए पैसे वापस नहीं आते हैं।
5. वास्तु शास्त्र के मुताबिक, शाम के समय घर के मुख्य द्वार को थोड़ी देर के लिए खुला रखना चाहिए। सूर्यास्त के समय दरवाजा बंद नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि इस समय ही मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं। घर का मुख्य द्वार बंद रखने से मां लक्ष्मी का आगमन नहीं होता है। -
आचार्य चाणक्य के अनुसार,धन उन्हीं लोगों को फलता-फूलता है, जो संयम से इसे सुरक्षित रखते हैं. लेकिन जो इसकी कदर नहीं करता है, वह अर्श से फर्श पर आ जाते हैं.
पैसों के बिना जीवन जीना नामुमकिन है. पैसा एक ऐसी चीज है, जो हमें हर अच्छे और बुरे की पहचान करवा देता है. चाणक्य नीति के अनुसार, जो धन का मूल्य समझता है, वह संपन्न और समृद्ध रहता है. लेकिन जो इसकी कदर नहीं करता है, वह अर्श से फर्श पर आ जाते हैं. आचार्य चाणक्य के अनुसार,धन उन्हीं लोगों को फलता-फूलता है, जो संयम से इसे सुरक्षित रखते हैं. आचार्य चाणक्य ने धन के इस्तेमाल के कुछ तरीके बताएं इनका पालन करने वाले संकट के दौर में भी सुखी रहते हैं.
सुरक्षा से करें इस्तेमाल
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति धन का इस्तेमाल सुरक्षा, दान और निवेश के तौर पर करता है, वह संकट के दौर में भी हंसकर जीवन गुजारता है. धन का इस्तेमाल सही जगह और समय के अनुसार ही करना चाहिए. कहते हैं न जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए. धन का अनावश्यक खर्च करने वालों को आपदाओं में दुख और दरिद्रता का ही सामना करना पड़ता है.
बेवजह न करें खर्च
आचार्य चाणक्य के अनुसार, धन की बचत का सबसे अच्छा तरीका है बेवजह खर्चों पर रोक लगाना. चाणक्य के अनुसार कब, कितना पैसा और कहां खर्च करना है- इसका हिसाब रखने वाले दूसरों की नजर में जरूर कंजूस कहलाएं लेकिन ऐसे लोग बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी अपना जीवन सामन्य तरीके से जी लेते हैं.
दान करें
आचार्य चाणक्य का मानना है कि कमाई का कुछ हिस्सा दान और पुण्य के कामों में लगाने से इसमें दोगुनी वृद्धि होती है. दान से बड़ा कोई धन नहीं और किसी जरूरतमंद व्यक्ति कि सामथ्र्य अनुसार मदद करने से मां लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है.
जरूरतों को रखें सीमित
जिस तरह संतुलित आहार हमारे शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ रखता है, उसी प्रकार धन खर्च का संतुलन मनुष्य को विपत्तिकाल में भी दुख नहीं पहुंचाता. धन को बहुत सर्तकता के साथ खर्च करें, इसके लिए जरूरी है अपनी जरूरतें सीमित रखें. जितनी जरूरत है, उतना ही खर्च करें.
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-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
अगर कोई व्यक्ति सपने में सूर्य, इंद्रधनुष और चंद्रमा को देखे तो उसने जीवन में कई प्रकार सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए विस्तार से जानते हैं कौन-कौन से सपना शुभ माना जाता है।
हर एक व्यक्ति को रात में सपना जरूर आता है। सपने में व्यक्ति कई चीजों को देखता है, जिसमें कुछ सपने अच्छे तो कुछ बहुत ही डरावने किस्म के होते हैं. स्वप्न शास्त्र के अनुसार, सपने व्यक्ति के भविष्य के बारे में कुछ संकेत देने की बात करते हैं। स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपनों का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर गहरा होता है। भविष्य पुराण के अनुसार सपनों का संबंध सूर्य उपासना से गहरा होता है, अगर कोई व्यक्ति सपने में सूर्य, इंद्रधनुष और चंद्रमा को देखे तो उसने जीवन में कई प्रकार सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
आइए विस्तार से जानते हैं कौन-कौन से सपना शुभ माना जाता है।
इन चीजों के सपनों में देखना शुभ---
किसी नदी या समुद्र का जल पीना
पहाड़ का गिरना
रथ की सवारी करना
सोने के आभूषण देखना
पेड़ लगाना
बालों का झडऩा
दर्पण में देखकर श्रृंगार करना
पानी में रहने वाले जानवारों का देखना
कमल का देखना
जुआ खेलने का सपना
मलत्याग का सपना
सपने में अगर दिखे ये चीजें तो मिलता है राजसुख----
बंधी हुई गाय
भैंस को देखने
शेर का देखना
किसी मनुष्य के कई सिर अथवा हाथ का दिखाई देना
सपनों में इनका हमेशा कहना माने
सपने में अगर कोई देवगण, देवी-देवता, महापुरुष, वृद्ध व्यक्ति, पितर देव और गुरु दिखाई दे और वे कुछ करने के लिए बोलें तो हमेशा उनकी बात का पालन करना चाहिए।
सपने में मोर देखना
स्वप्न शास्त्र के अनुसार अगर कोई व्यक्ति सपने में मोर को देखता है तो वह बहुत शुभ सपना होता है. मोर भगवान को बहुत ही प्रिय होता है. साथ मोरपंख से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। इसलिए जब सपने में मोर नाचते हुए दिखाई दे तो समझ जाना चाहिए कि आपके ऊपर दैवीय कृपा बरसने वाली है.
सपने में कौवे को देखना
सपने में कौवे को देखना शुभ माना गया है. यह सपना धन प्राप्ति के संकेत देता है. इसके अलावा हंस का देखना भी शुभ सपना है। - --बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायजॉब या बिजनेस में यदि आपके आस -पास का वातावरण नकारात्मक है। आप अंदर से खुश महसूस नहीं करते हैं, तो ऐसा माहौल आपको काम करने में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ उपाय बताएं गए है। जिनकी मदद से आप अपने आसपास के माहौल को काम करने लायक बना सकते हैं। आइए जानते हैं उन आसान उपायों के बारे में-रोज क्वार्ट्ज-रोज क्वार्ट्ज स्टोन अपने वर्क टेबल पर रखने या उससे बनी ब्रेसलेट हाथों में पहने से 20-25 दिनों के भीतर आप अपने आसपास के वातावरण में बदलाव होता हुआ महसूस करेंगे। स्टोन को हाथ में लेकर अपनी सभी इच्छाएं बोले उसके बाद उसे नमक के पानी में धुल कर अपने बाएं हाथ मे धारण करें।नमक-नकारात्मक माहौल में रहने से नकारात्मक विचार आपके अंदर आने लगते हैं इसीलिए उन्हें बाहर निकालने के लिए सप्ताह में पानी में थोड़ा सा नमक डाल कर स्नान करें और ग्रीन तारा ॐ तारे तुत्तारे तुरे सोहा मंत्र का जाप करें। रात को सोने से पहले और सुबह उठकर 20 बार इस मंत्र का जाप करें। जिसके बाद आप अंदर से शांत और हल्का महसूस करेंगे।ईविल ऑय-यदि आप लगातार एक के बाद एक इंटरव्यू दें रहे हैं लेकिन सफलता फिर भी आपको नहीं मिल रही है। इसके पीछे शायद आपके नकारात्मक विचार भी हो सकते हैं। तो इन विचारों को दूर करने के लिए अपने प्रेजेंट को स्वीकार करते हुए यह सोचे कि आगे जो कुछ भी होगा मेरे लिए कुछ न कुछ बेहतर होगा। बुरी नजर को दूर करने के लिए काले मोती वाला ब्रेसलेट जिसमें ईविल ऑय जड़ा हुआ धारण करें।
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-पंडित प्रकाश उपाध्याय
साल में कुल 12 सक्रांति पड़ती है, जिसमें से धनु सक्रांति का विशेष बताया गया है. ग्रहों के राजा सूर्य जब धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो धनु संक्रांति होती है. धनु संक्रांति आते ही अगले 30 दिन के लिए मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है. इस अवधि को खरमास या मलमास भी कहा जाता है. इस साल सूर्य 16 दिसंबर 2022 को धनु राशि में प्रवेश करेंगे और इसी दिन से खरमास प्रारंभ हो जाएगा. आइए आपको खरमास का महत्व और इसमें बंद कार्यों के बारे में बताते हैं.
कैसे लगता है खरमास?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं. सूर्य जब धनु और मीन में प्रवेश करते हैं, तो इन्हें क्रमश: धनु संक्रांति और मीन संक्रांति कहा जाता है. सूर्य जब धनु व मीन राशि में रहते हैं, तो इस अवधि को मलमास या खरमास कहा जाता है. इसमें शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं.
क्यों बंद होते हैं शुभ कार्य
ज्योतिषियों की मानें तो गुरु देव बृहस्पति धनु राशि के स्वामी हैं. बृहस्पति का अपनी ही राशि में प्रवेश इंसान के लिए अच्छा नहीं होता है. ऐसा होने पर लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर पड़ जाता है. इस राशि में सूर्य के कमजोर होने कारण इसे मलमास कहते हैं. ऐसा कहा जाता है कि खरमास में सूर्य का स्वभाव उग्र हो जाता है. सूर्य के कमजोर स्थिति में होने की वजह से इस महीने शुभ कार्यों पर पाबंदी लग जाती है.
खरमास में नहीं करने चाहिए ये काम
1. खरमास में शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं. इस समय अगर विवाह किया जाए तो भावनात्मक और शारीरिक सुख दोनों नहीं मिलते हैं.
2. इस समय मकान का निर्माण या संपत्ति की खरीदारी वर्जित होती है. इस दौरान बनाए गए मकान आमतौर पर कमजोर होते हैं और उनसे निवास का सुख नहीं मिल पाता है.
3. खरमास में नया कार्य या व्यापार शुरू न करें. इससे व्यापार में शुभ फलों के प्राप्त होने की संभावना बहुत कम हो जाती है.
4. इस दौरान द्विरागमन, कर्णवेध और मुंडन जैसे कार्य भी वर्जित होते हैं, क्योंकि इस अवधि के किए गए कार्यों से रिश्तों के खराब होने की सम्भावना होती है.
5. इस महीने धार्मिक अनुष्ठान न करें. हर रोज किए जाने वाले अनुष्ठान कर सकते हैं. - वास्तु शास्त्र में धन वृद्धि के लिए वैसे तो मनी प्लांट को लगाने की बात कही जाती है, लेकिन बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि मनी प्लांट से भी ज्यादा चमत्कारी और प्रभावशाली होता है क्रासुला का पौधा। क्रासुला के पौधे को मनी ट्री, फ्रेंडशिप ट्री, लकी प्लांट, जेड प्लांट के नाम से भी जाना जाता है। इसके नाम से ही इसकी खासियत का पता लग जाता है। तो चलिए जानते हैं इस चमत्कारी पौधे के बारे में...शुभकारी है पौधावास्तु शास्त्र में क्रासुला के पौधे को बेहद शुभ और चमत्कारी माना गया है। कहते हैं ये पौधा चुंबक की तरह पैसों को अपनी ओर खींचता है। कहा जाता है कि इस पौधे को घर में लगाने से व्यक्ति की आर्थिक समस्याएं खत्म हो जाती हैं। साथ ही धन के नए रास्ते खुलते हैं।सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है ये पौधाक्रासुला के पौधे को घर या ऑफिस में इस पौधे को लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यदि आपके पास पैसा खूब आता है लेकिन टिकता नहीं, तो आप क्रासुला का पौधा लगा सकते हैं।घर में इस जगह लगाएं क्रासुलाइस पौधे के बारे में मान्यता है कि यह सकारात्मक ऊर्जा और धन को अपनी ओर खींचता है। इसे घर के मुख्य द्वार के दायीं तरफ लगाएं। फिर देखिए, कैसे आपके घर में धन की वर्षा होने लगेगी।क्रासुला के पौधे को लगाने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती। इसका पौधा खरीद के किसी गमले या जमीन में लगा दें, फिर ये अपने आप फैलता रहेगा। इसे धूप या छांव कहीं भी लगाया जा सकता है।---
- सूर्य एक आत्मा कारक ग्रह हैं और हर महीने वो राशि परिवर्तन करते हैं। 16 दिसम्बर को सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे जिसे धनु संक्रांति भी कहा जाता है। देव गुरु बृहस्पति की राशि में आकर सूर्य देव बेहद शुभ हो जाते हैं। धनु राशि अग्नि तत्व की राशि है वहीं सूर्य ग्रहों के राजा है। सूर्य का धनु राशि में प्रवेश 3 राशियों के लिए बेहद शुभ रहने वाला है। आइये जानते है कि वो 3 राशियां कौन कौन सी है।मेष राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य पंचम भाव के स्वामी होते है। पंचम भाव से शिक्षा, प्रेम और संतान का विचार किया जाता है। सूर्य का गोचर अब आपके नवम भाव में होगा जो की भाग्य का स्थान है। सूर्य की दृष्टि आपके तीसरे स्थान में जा रही है जो की साहस और पराक्रम का भाव है। सूर्य के इस गोचर से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे जातकों को शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। इस समय आपको संतान पक्ष से शुभ समाचार प्राप्त होगा। इस समय की गई यात्राओं से आपको लाभ होगा। किसी धार्मिक यात्रा पर जाने के योग बन रहे है। इस समय अपने प्रेमी के द्वारा गुप्त मदद मिलेगी।तुला राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य लाभ स्थान यानी एकादश भाव के स्वामी होते है। इस समय सूर्य का गोचर आपके तीसरे भाव में होगा। तीसरे भाव से भाइयों, साहस और पराक्रम का विचार किया जाता है। सूर्य की दृष्टि इस समय आपके भाग्य स्थान पर होगी। सूर्य के इस गोचर के फलस्वरूप आपको काम के सिलसिले में की गई यात्राओं से लाभ होगा। इस समय आपके पिता से आपको बड़ी मदद मिल सकती है। आपके भाग्य का आपको पूरा साथ मिलने वाला है। आप अगर निवेश करने की सोच रहे है तो यह सही समय है। व्यापारी वर्ग को इस समय बढ़िया मुनाफा होगा।कुम्भ राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य सप्तम भाव के स्वामी होते है। सप्तम भाव से जीवनसाथी और साझेदारी का विचार किया जाता है। सूर्य का गोचर आपके लाभ स्थान में होने जा रहा है। सूर्य की दृष्टि आपके पंचम भाव यानी की संतान भाव पर होगी। सूर्य का यह गोचर छात्र वर्ग के लिए बेहद शुभ है। इस समय अगर साझेदारी में कोई काम शुरू करना चाह रहे है तो कर सकते है। आपकी पत्नी के माध्यम से आपको कोई बड़ा लाभ हो सकता है। शेयर मार्किट में निवेश करने वाले जातक इस समय सोच समझकर धन खर्च करे। संतान पक्ष की ओर से आपको कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है।
- हिन्दू धर्म में अग्नि की बड़ी महत्ता बताई गयी है। बिना अग्नि के मनुष्यों का जीवन संभव नहीं और इसीलिए हम अग्नि को देवता की भांति पूजते हैं। इसी अग्नि के अधिष्ठाता अग्निदेव बताये गए हैं जिनकी उत्पत्ति स्वयं परमपिता ब्रह्मा से हुई मानी गयी है। हिन्दू धर्म में पंचमहाभूतों की जो अवधारणा है उनमें से एक अग्नि हैं। अन्य चार पृथ्वी, जल (वरुण), वायु एवं आकाश हैं।हिन्दू धर्म के दस दिग्पाल भी माने गए हैं और अग्निदेव उनमें से एक हैं। वे आग्नेय दिशा के अधिष्ठाता हैं। वैदिक काल में अग्नि को त्रिदेवों में से एक माना गया है। वैदिक काल के त्रिदेवों में अन्य दो इंद्र और वरुण थे। पौराणिक काल में भी अग्नि का महत्व काफी रहा और 18 महापुराणों में से एक अग्नि पुराण उन्हें ही समर्पित है।विश्व साहित्य का सबसे प्रथम शब्द अग्नि ही है। इसका कारण ये है कि सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद का प्रथम सूक्त अग्नि शब्द से ही आरम्भ होता है। केवल ऋग्वेद में ही अग्नि से सम्बंधित 200 से भी अधिक सूक्त हैं। इसके अतिरिक्त ऐतरेय ब्राह्मण में भी बारम्बार अग्नि को ही प्रथम देव कहा गया है। इन्हे यज्ञ का प्रधान माना गया है। इन्हे देवताओं का मुख कहा गया है, क्योंकि यज्ञ में डाला गया हर हविष्य अग्नि के मुख द्वारा ही अन्य देवताओं तक पहुँचता है।अग्नि की कुल सात जिह्वाएँ बताई गयी हैं जिनसे वे हविष्य ग्रहण करते हैं। वे हैं - काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, धूम्रवर्णी, स्फुलिंगी तथा विश्वरुचि। ऐसी मान्यता है कि अग्नि देवताओं के रक्षक हैं और किसी भी युद्ध में वे देवताओं के आगे-आगे चलते हैं। कई स्थानों पर इन्हे देवताओं का सेनापति भी कहा गया है। सभी प्रकार के रत्न अग्नि से ही उत्पन्न हुए माने जाते हैं और अग्निदेव ही समस्त रत्नों को धारण करते हैं।अग्नि की पत्नी स्वाहा बताई गयी है जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। कहते हैं कि अग्नि देव अपनी पत्नी से इतना प्रेम करते हैं कि उनके बिना वे कोई भी हविष्य ग्रहण नहीं करते। यही कारण है कि अग्नि में समर्पित सभी चीजों के अंत में "स्वाहा" का उच्चारण करना आवश्यक है। इनके 4 पुत्र बताये गए हैं - पावक, पवमान, शुचि एवं स्वरोचिष। इनमें से स्वरोचिष ने ही द्वितीय मनु का पदभार संभाला था। इसके अतिरिक्त रामायण में वानर सेना के सेनापति नील भी अग्नि के ही पुत्र माने जाते हैं। इनके सभी पुत्र-पौत्रादियों की संख्या उनन्चास बताई गयी है।अग्निदेव बहुत जल्दी क्रुद्ध होने वाले देव हैं। साथ ही उनकी भूख भी अत्यंत तीव्र है। महाभारत में अग्निदेव की भूख शांत करने के लिए अर्जुन और श्रीकृष्ण ने उन्हें खांडव वन को खाने को कहा। उसी वन में तक्षक भी रहता था जिसकी रक्षा के लिए स्वयं इंद्र आये। तब श्रीकृष्ण और अर्जुन ने इंद्र को रोका जिससे अग्नि से समस्त वन को खा लिया। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने अर्जुन को "गांडीव" नामक अद्वितीय धनुष और एक दिव्य रथ प्रदान किया।वैदिक ग्रंथों में अग्निदेव को लाल रंग के शरीर के रूप में वर्णित किया गया है, जिसके तीन पैर, सात भुजाएं, सात जीभ और तेज सुनहरे दांत होते हैं। अग्नि देव दो चेहरे, काली आँखें और काले बाल के साथ घी के साथ घिरे होते हैं। अग्नि देव के दोनों चेहरे उनके फायदेमंद और विनाशकारी गुणों का संकेत करते हैं। उनकी सात जीभें उनके शरीर से विकिरित प्रकाश की सात किरणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनका वाहन भेड़ है। कुछ छवियों में अग्नि देव को एक रथ पर सवारी करते हुए भी दिखलाया गया है जिसे बकरियों और तोतों द्वारा खींचा जा रहा होता है।
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बालोद से प्रकाश उपाध्याय
28 नवंबर 2022 सोमवार को मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को राम जानकी-विवाह महोत्सव है। वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि भगवान राम का भूमि पुत्री सीता के साथ विवाह बंधन मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार विवाह केवल शारीरिक मिलन का ही आयोजन नहीं है बल्कि दो आत्माओं का मिलन है। वैवाहिक संबंधों की पुष्टि और सुदृढता, कुल वृद्धि और गृहस्थ जीवन में सुख-शांति और प्रेम के लिए राम-जानकी विवाह का उत्सव का किया जाता है। श्रीराम-जानकी विवाह पवित्रता, विश्वास की पराकाष्ठा और तन-मन के पवित्र मिलन का संकेतक है। श्रीराम-जानकी विवाह महोत्सव में साधक गण भगवान राम और सीता के विग्रह को सज्जित करते हैं। उन्हें सुंदर वस्त्रों और पुष्पमाला से सुसज्जित करके परस्पर वैवाहिक प्रतीक के रूप में उन्हें दूसरे को समर्पित कर देते हैं। इस अवसर पर रामायण अथवा रामचरितमानस में वर्णित राम विवाह प्रसंग के कथा सुनने से परिवार और गृहस्थ जीवन में सुख-शांति मिलती है। साथ-साथ विवाह योग्य युवक-युवतियों को भी श्रीराम-जानकी विवाह का प्रसंग अवश्य सुनना चाहिए। श्रीराम-जानकी विवाह के प्रसंग को सुनने से पारिवारिक एकता, पति-पत्नी का आपसी विश्वास, स्नेह और माधुर्य हमेशा बना रहता है।
श्रीराम-सीता के विग्रह को सज्जित करने के पश्चात भगवान राम-सीता के विग्रह को फल, फूल, द्रव्य, नैवेद्य, मिष्ठान का भोग लगाकर उनकी विशिष्ट पूजा करनी चाहिए। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान राम एक मर्यादा पुरुष हैं और सीता माता उनके जीवन की आदिशक्ति हैं। सीता माता के साथ रहते हुए ही भगवान राम रावण का वध कर सके। उन्हीं के साथ रहते हुए पृथ्वी को रावण सहित राक्षसों के अत्याचारों से मुक्त किया। श्रीराम जी का सीता माता के साथ का पाणिग्रहण संस्कार न होता तो पूरी पृथ्वी पर रावण का आतंक फैल जाता। जैसे मां पार्वती के बिना शिव अधूरे हैं, ऐसे ही मां सीता के बिना राम अधूरे हैं और सीता माता आद्या शक्ति है जो पल-पल पर भगवान राम को मर्यादित जीवन की याद कराती हैं। -
हस्तरेखा विज्ञान में विभिन्न तरह की रेखाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है, लेकिन इनमें जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा केा प्रमुख तीन रेखा माना गया है। इसके साथ ही भाग्य रेखा और मंगल रेखाएं भी हाथों में मिलती हैं। अनेक हाथों में रेखाएं दोमुखी होती हैं। दोमुखी रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। इन्हीं में से एक है जीवन रेखा।
-दोमुखी जीवन व्यक्ति के विवाह का संकेत भी देती है। बाहर की ओर जीवन रेखा से निकली रेखा व्यक्ति की दूर राज्य और बिल्कुल अलग संस्कृति में शादी का संकेत होती है। ऐसे लोगों की आजीविका भी घर से दूर होती है। इसी तरह यदि शाखा अंदर की ओर है तो शादी बिल्कुल नजदीक होती है और ये अपनी आजीविका भी घर के पास रहकर ही कमाते हैं।
-यदि जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा ऊपर से अलग-अलग हों तो ऐसे लोग अपना काम खुद करते हैं। इस तरह के लोग दूसरे का हस्तक्षेप बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होता। इनका स्वभाव भी क्रोधी होता है। इनका सामाजिक दायरा बहुत छोटा होता है।
-जीवन रेखा को नीचे की ओर काटने वाली रेखाएं व्यक्ति के स्वास्थ्य का संकेत देती है। ये रेखाएं जिस उम्र में जीवन रेखा काटती हैं उस उम्र में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
-हाथ में जीवन रेखा व्यक्ति के जीवन के बारे में बहुत से सवालों का जवाब देती है। यदि हाथ में जीवन रेखा दोमुखी है और दूसरी शाखा बाहर की ओर हो तो ऐसे लोग विदेश जाकर स्थायी रूप से बस जाते हैं, लेकिन यदि जीवन रेखा से निकली दूसरी शाखा अंदर की ओर हो तो ऐसे लोग विदेश तो जाते हैं, लेकिन निश्चित समय के बाद धन कमाकर लौट आते हैं। -
हाथ में शनि पर्वत बेहद महत्वपूर्ण है और इस पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। शनि पर्वत को ज्योतिष में भाग्य स्थान भी माना गया है। शनि पर्वत पर रेखाओं का पहुंचना जरुरी है। यदि शनि पर्वत पर कोई रेखा ना पहुंचे, लेकिन इस पर एक या दो खड़ी रेखाएं हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में भूखा नहीं मरता। ऐसे व्यक्ति को धन मिलता रहता है। जानिए शनि पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में फल।
-यदि शनि पर्वत पर केंद्र में मछली का निशान बने तो जीवन में धन की प्राप्ति होगी, लेकिन यह चिह्न शनि और गुरु पर्वत पर बने तो व्यक्ति धन और सम्मान दोनों पाता है।
-यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर सीधे शनि पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति को परिवार से संपत्ति मिलती है।
-यदि जीवन रेखा से कोई रेखा से उदय हो शनि पर्वत पर पहुंचे तो ऐसा व्यक्ति अपने दम पर संपत्ति खड़ी करता है। ऐसे लोगों को परिवार से कोई संपत्ति नहीं मिलती। यदि जीवन रेखा से उदय रेखा थोड़ा अंदर आकर मंगल पर्वत तक पहुंच जाए तो यह बहुत ही शुभ है।
-शनि पर्वत पर वी का चिह्न बने और इसमें पांच या इससे कम शाखाएं निकले तों व्यक्ति करोड़ों रुपये का मालिक होता है।
-यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति का भाग्योदय घर से दूर जाने पर ही होगा। - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायदिशाओं के विषय में सबको पता है। हमें मुख्यत: 4 दिशाओं के बारे में पता होता है जो हैं पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण। वैज्ञानिक और वास्तु की दृष्टि से 4 और दिशाएं है जो इन चारों दिशाओं के मिलान बिंदु पर होती हैं। ये हैं - उत्तरपूर्व (ईशान), दक्षिणपूर्व (आग्नेय), उत्तरपश्चिम (वायव्य) एवं दक्षिणपश्चिम (नैऋत्य)। तो इस प्रकार 8 होती हैं जो सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त उध्र्व (आकाश) एवं अधो (पाताल) को भी दो दिशाएं मानी जाती हैं। तो दिशाओं की संख्या 10 हुए। अंतत: जहां हमारी वर्तमान स्थिति होती है उसे मध्य दिशा कहते हैं। इस प्रकार दिशों की कुल संख्या 11 होती है। किन्तु 11 में से 10, उनमें से 8 एवं उनमें से भी 4 दिशाओं का विशेष महत्व है।पुराणों के अनुसार सृष्टि के आरम्भ से पहले जब ब्रह्मा तपस्या से उठे और उन्होंने सृष्टि की रचना का विचार किया तब उनके कर्णों से 10 कन्याओं की उत्पत्ति हुई। इनमें से 6 मुख्य एवं 4 गौण कन्याएं थीं। सभी कन्याएंं अलग-अलग स्थानों पर चली गयीं और उससे ही वे स्थान "दिशाएं" कहलाईं।वे 10 कन्यायें थीं:पूर्वा: जो पूर्व दिशा कहलाई।आग्नेयी: जो आग्नेय दिशा कहलाई।दक्षिणा: जो दक्षिण दिशा कहलाई।नैऋती: जो नैऋत्य दिशा कहलाई।पश्चिमा: जो पश्चिम दिशा कहलाई।वायवी: जो वायव्य दिशा कहलाई।उत्तरा: जो उत्तर दिशा कहलाई।ऐशानी: जो ईशान दिशा कहलाई।ऊध्र्वा: जो उध्र्व दिशा कहलाई।अधस्: जो अधो दिशा कहलाई।उसके पश्चात ब्रह्मदेव ने आठ दिशाओं के लिए 8 देवताओं का निर्माण किया और उन कन्याओं को पति के रूप में समर्पित किया। ब्रह्मदेव ने उन सभी को "दिग्पाल" (दिक्पाल) की संज्ञा दी जिसका अर्थ होता है दिशाओं के पालक। ये आठ दिक्पाल हैं:पूर्व के इंद्रआग्नेय के अग्निदक्षिण के यमनैऋत्य के सूर्यपश्चिम के वरुणवायव्य के वायुउत्तर के कुबेरईशान के सोमअन्य दो दिशाओं अर्थात उध्र्व (आकाश) में ब्रह्मदेव स्वयं चले गए और अधो (पाताल) में उन्होंने अनंत (शेषनाग) को प्रतिष्ठित किया। इस प्रकार सभी 10 दिशाओं को उनके दिक्पाल मिले।
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घर में लक्ष्मी नारायण पूजा....हर कमी पूरी करती हैं मां लक्ष्मी....
--बालोद से प्रकाश उपाध्यायमां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। इनके साथ भगवान विष्णु की पूजा तो और भी अधिक फलदायी है। एक तरफ मां लक्ष्मी की अराधना करने से धन, सुख समृद्धि आती है, वहीं भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा जीवन में हर कमी को पूरा करती है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग बिजनेस और नौकरी में धन की कमी महसूस कर रहे होते हैं, उन्हें लक्ष्मी नारायण पूजा करनी चाहिए। इनकी पूजा से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है।ऐसा कहा जाता है कि श्री लक्ष्मी नारायण पूजा से लंबी आयु, स्वास्थ्य, समृद्धि और सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि पूजा में सबसे पहले भगवान लक्ष्मी नारायण का विधि-विधान के साथ दूध, दही, शहद, बूरा व देशी घी के साथ अभिषेक किया जाता है। वैसे तो किसी भी शुभ दिन लक्ष्मी नारायण व्रत, पूजा और कथा की जाती है, लेकिन पूर्णिमा के दिन इनकी पूजा, व्रत और कथा कराने का विधान है।इस पूजा के लिए केलों के पत्तों से पूजा का मंडप सजाया जाता है। लक्ष्मी नारायण की तस्वीर लगाई जाती है और भगवान के शालीग्राम रूप को भी पूजा में शामिल किया जाता है। पंचामृत से स्नान कराकर किसी योग्य ब्राह्मण से पूजा और कथा करवाई जाती है। इनकी पूजा में पीले वस्त्र धारण किए जाते हैं। -
--बालोद से प्रकाश उपाध्याय
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। मोक्ष मिलने के कारण इसे बैकुंठ एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी पर व्रत रखने से मोक्ष मिलता है। यह भी मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रत करने से व्रती के पूर्वज जो नरक में चले गए हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मोक्षदा एकादशी के दिन महाभारत युद्ध से पूर्व भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी का व्रत सभी प्रकार के पापों को नष्ट करता है। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा कर सत्यनारायण की कथा की जाती है। इस साल यह व्रत 3 दिसंबर को मनाई जाएगी।
भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी की विशेष पूजा की जाती है। पूरे दिन व्रत करके अगले दिन ब्रह्माण को भोजन कराकर व्रत का पारण करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। गीता उपनिषदों की भी उपनिषद है। इसलिए अगर आपको जीवन की किसी समस्या का समाधन न मिल रहा हो तो वह गीता में मिल जाता है। गीता में मानव को अपनी समस्त समस्याओं का समाधान मिल जाता है। गीता के स्वाध्याय से श्रेय और प्रेय दोनों की प्राप्ति हो जाती है। इस एकादशी के दिन श्री गीता जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। गीता दिव्यतम ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्म पर्व में है। श्री वेदव्यास जी ने महाभारत में गीताजी के माहात्म्य को बताते हुए कहा है, ‘गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्र विस्तरै:। या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि: सृता।।’ अर्थात् गीता सुगीता करने योग्य है। गीताजी को भली-भांति पढ़ कर अर्थ व भाव सहित अन्त:करण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है। गीता स्वयं विष्णु भगवान् के मुखारविंद से निकली हुई है। -
--बालोद से प्रकाश उपाध्याय
व्यक्ति की दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। लेकिन जीवन में ऐसा भी समय आ जाता है जब व्यक्ति आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। कड़ी मेहनत के बाद भी जातक को असफलता हाथ लगती है। लेकिन इस बात से परेशान होने की जरूरत नहीं है। कई बार धन आगमन में बाधाएं वास्तु दोष भी डालता है। ऐसे में आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए आजमाएं ये आसान वास्तु टिप्स-
1. सही दिशा में रखें तिजोरी- वास्तु के अनुसार, तिजोरी को सही दिशा में रखना बहुत जरूरी होता है। इसलिए तिजोरी को हमेशा दक्षिण दिशा में ही रखें और उसका दरवाजा उत्तर दिशा में खुलता हो। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन आगमन होता है।
2. घर में रंगों का महत्व- वास्तु के अनुसार, घर की दीवारों पर सही रंगों का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी होता है। कई बार सही रंगों का घर में इस्तेमाल न करने पर जातक को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तु के मुताबिक, कमरे की पूर्व दिशा में सफेद रंग, पश्चिम में नीला, उत्तर में हरा और दक्षिण दिशा में लाल रंग लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
3. घर को रखें साफ-सुथरा- घर में गंदगी रखने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं। कहते हैं कि जिन घरों में साफ-सफाई नहीं होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। ऐसे में घरों में बरकत नहीं जाती है। इसलिए जातक को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। घर में साफ-सफाई करने से आर्थिक तंगी दूर होती है। - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायश्री मृतसंजीवनी स्तोत्र भगवान शिव को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार, श्री मृतसंजीवनी स्तोत्र का अर्थ है अकाल मृत्यु से उभारने का कवच। शिव के इस मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु, किसी अनहोनी या बड़ी दुर्घटना को रोका जा सकता है। इसे मृत संजीवनी स्तोत्रम के रूप में भी जाना जाता है। इसका जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इस मंत्र के उच्चारण से भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। परिवार में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि "मृतसंजीवनी स्त्रोत्र" को परमपिता ब्रह्मा के पुत्र महर्षि वशिष्ठ ने लिखा था। 30 श्लोकों का ये स्त्रोत्र भगवान शिव के कई अनजाने पहलुओं पर प्रकाश डालता है। जो कोई भी इस स्त्रोत्र का पूर्ण चित्त से पाठ करता है, उसे जीवन में किसी भी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। आइये जानते हैं इस पूरे मंत्र को ....एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम्।मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा।।1।।अर्थात: गौरीपति मृत्युञ्जयेŸवर भगवान् शंकर की विधिपूर्वक आराधना करने के पश्चात भक्त को सदा मृतसञ्जीवन नामक कवच का सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये।सारात्सारतरं पुण्यं गुह्यात्गुह्यतरं शुभम्।महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम्।।2।।अर्थात: महादेव भगवान् शङ्कर का यह मृतसञ्जीवन नामक कवच तत्त्व का भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है, गुह्य और मङ्गल प्रदान करने वाला है।समाहितमना भूत्वा शृणुश्व कवचं शुभम्।शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा।।3।।अर्थात: अपने मन को एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवच को सुनो। यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है। इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना।वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवित:।मृत्युञ्जयो महादेव: प्राच्यां मां पातु सर्वदा।।4।।अर्थात: जरा से अभय करने वाले, निरन्तर यज्ञ करने वाले, सभी देवतओं से आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव! आप पूर्व-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें।दधान: शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु:।सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा।।5।।अर्थात: अभय प्रदान करनेवाली शक्ति को धारण करनेवाले, तीन मुखोंवाले तथा छ: भुजओंवाले, अग्रिरूपी प्रभु सदाशिव अग्रिकोणमें मेरी सदा रक्षा करें।अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभु:।यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु।।6।।अर्थात: 18 भुजाओं से युक्त, हाथ में दण्ड और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशा में मेरी सदा रक्षा करें।खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवित:।रक्षोरूपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदावतु।।7।।अर्थात: हाथ में खड्ग और अभयमुद्रा धारण करने वाले, धैर्यशाली, दैत्यगणों से आराधित, रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।पाशाभयभुज: सर्वरत्नाकरनिषेवित:।वरूणात्मा महादेव: पश्चिमे मां सदावतु।।8।।अर्थात: हाथ में अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरोंसे सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशामें मेरी सदा रक्षा करें।गदाभयकर: प्राणनायक: सर्वदागति:।वायव्यां वारुतात्मा मां शङ्कर: पातु सर्वदा।।9।।अर्थात: हाथों में गदा और अभयमुद्रा धारण करने वाले, प्राणोम के रक्षक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्यकोण में मेरी सदा रक्षा करें।शङ्खाभयकरस्थो मां नायक: परमेश्वर:।सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्कर: प्रभु:।।10।।अर्थात: हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा), सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओं के मध्य में मेरी रक्षा करें।
शूलाभयकर: सर्वविद्यानामधिनायक:।ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वर:।।11।।अर्थात: हाथों में शंख और अभयमुद्रा धारण करने वाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशान स्वरूप भगवान् परमेश्वर शिव ईशान कोण में मेरी रक्षा करें।ऊध्र्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽध: सदावतु।शिरो मे शङ्कर: पातु ललाटं चन्द्रशेखर:।।12।।अर्थात: ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊध्र्वभाग में तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभाग में मेरी सदा रक्षा करें। शंकर मेरे सिर की और चन्द्रशेखर मेरे ललाट की रक्षा करें।भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु।।भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु कर्णौ पातु महेश्वर:।।13।।अर्थात: मेरे भौंहों के मध्य में सर्वलोकेश और दोनों नेत्रों की त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें। दोनों भौंहों की रक्षा गिरिश एवं दोनों कानों की रक्षा भगवान् महेश्वर करें।नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वज:।जिव्हां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु।।14।।अर्थात: महादेव मेरी नासीका की तथा वृषभध्वज मेरे दोनों अधरों की सदा रक्षा करें। दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वा की तथा गिरिश मेरे दन्तों की रक्षा करें।मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषण:।पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम।।15।।अर्थात: मृत्युञ्जय मेरे मुख की एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठ की रक्षा करें। पिनाकी मेरे दोनों हाथों की तथा त्रिशूलि मेरे हृदय की रक्षा करें।पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वर:।नाभिं पातु विरूपाक्ष: पाश्र्वो मे पार्वतिपति:।।16।।अर्थात: पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनो की और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें। विरूपाक्ष नाभि की और पार्वतीपति पाश्र्वभाग की रक्षा करें।कटद्वयं गिरिशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिप:।गुह्यं महेश्वर: पातु ममोरु पातु भैरव:।।17।।अर्थात: गिरीश मेरे दोनों कटिभाग की तथा प्रमथाधिप पृष्टभाग की रक्षा करें। महेश्वर मेरे गुह्यभाग की और भैरव मेरे दोनों ऊरुओं की रक्षा करें।जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्घे मे जगदंबिका।पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्य: सदाशिव:।।18।।अर्थात: जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनों की, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघो की तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरों की रक्षा करें।गिरिश: पातु मे भार्या भव: पातु सुतान्मम।मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायक:।।19।।अर्थात: गिरीश मेरी भार्या की रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रों की रक्षा करें। मृत्युञ्जय मेरे आयु की गणनायक मेरे चित्त की रक्षा करें।सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकाल: सदाशिव:।एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानांच दुर्लभम्।।20।।अर्थात: कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अंगो की रक्षा करें। देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवच का वर्णन मैंने तुमसे किया है।मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम्।सहस्त्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम्।।21।।अर्थात: महादेव ने स्वयं मृतसञ्जीवन नामक इस कवच को कहा है। इस कवच की सहस्त्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है।य: पठेच्छृणुयानित्यं श्रावयेत्सु समाहित:।सकालमृत्यु निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते।।22।।अर्थात: जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्यु को जीतकर पूर्ण आयु का उपयोग करता है।हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ।आधयोव्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन।।23।।अर्थात: जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवच का पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है। फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं।कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा।अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तम:।।24।।अर्थात: यह मृतसञ्जीवन कवच काल के गाल में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर ?देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणों से युक्त ऐश्वर्य को प्राप्त करता है।युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम।युद्धमध्ये स्थित: शत्रु: सद्य: सर्वैर्न दृश्यते।।25।।अर्थात: युद्ध आरम्भ होने के पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवच का 28 बार पाठ करके रणभूमि में उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुओं अदृश्य रहता है।
न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै।विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा।।26।।अर्थात: यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है।प्रातरूत्थाय सततं य: पठेत्कवचं शुभम्।अक्षय्यं लभते सौख्यमिहलोके परत्र च।।27।।अर्थात: जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच का सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय सुख प्राप्त होता है।सर्वव्याधिविनिर्मुक्त: सर्वरोगविवर्जित:।अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिक:।।28।।अर्थात: वह सम्पूर्ण व्याधियों से मुक्त हो जाता है, सब प्रकार के रोग उसके शरीर से भाग जाते हैं। वह अजर-अमर होकर सदा के लिये सोलह वर्ष वाला व्यक्ति बन जाता है।
विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान्।तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम्।।29।।अर्थात: इस लोक में दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकों में विचरण करता रहता है। इसलिये इस महागोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नाम से कहा है।मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम्।इति वसिष्ठकृतं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्।।30।।अर्थात: मृतसंजीवनी नामक यह स्त्रोत्र देवतओं के लिय भी दुर्लभ है। ये वशिष्ठ द्वारा रचित मृतसंजीवनी स्त्रोत्र है। - बालोद से पं. प्रकाश उपाध्यायहिन्दू धर्म में भक्ति को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। भक्त की भक्ति के कारण तो भगवान भी दौड़े चले आते हैं। भक्ति की व्याख्या अलग-अलग ग्रंथों में अलग प्रकार से की गयी है। विभिन्न मत और समुदाय भक्ति को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं किन्तु हमारे ग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति को बड़ा महत्व दिया गया है जिसे "नवधा भक्ति" कहा जाता है।नवधा भक्ति का उल्लेख हमारे ग्रंथों में 2 बार किया गया है। इसका पहला वर्णन विष्णु पुराण में आता है जो सतयुग में भगवान के नरसिंह अवतार से सम्बंधित है। इसमें हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद का एक वार्तालाप है जिसमें प्रह्लाद ने अपने पिता को प्रभु की नौ प्रकार की भक्ति के विषय में बताया है। जिसके विधिवत पालन से भगवान का साक्षात्कार किया जा सकता है। प्रह्लाद कहते हैं -श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम।अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥अर्थात: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन ये नौ प्रकार की भक्ति कहलाती है।श्रवण: भगवान की कथा और महत्व को पूरी श्रद्धा से सुनना।कीर्तन: भगवान के अनंत गुणों का अपने मुख से उच्चारण करते हुए कीर्तन करना।स्मरण: सदैव प्रभु का स्मरण करना।पाद-सेवन: प्रभु के चरणों में स्वयं को अर्पण कर देना।अर्चन: शास्त्रों में वर्णित पवित्र सामग्री से प्रभु का पूजन करना।वंदन: आठ प्रहर ईश्वर की वंदना करना।दास्य: भगवान को स्वामी और स्वयं को उनका दास समझना।सख्य: ईश्वर को ही अपना सर्वोच्च और प्रिय मित्र समझना।आत्मनिवेदन: अपनी स्वतंत्रता त्याग कर स्वयं को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित कर देना।इन नौ में भी प्रह्लाद ने श्रवण, कीर्तन और समरण को श्रेष्ठ बताया है और इन तीनों में भी श्रवण को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ कहा है।
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बालोद से प्रकाश उपाध्याय
पूजा पाठ ही नहीं वास्तु शास्त्र में भी तुलसी का काफी महत्व है। एक तरफ जहां तुलसी की पूजा की जाती है, वहीं वास्तुशास्त्र में तुलसी का पानी बहुत ही फायदेमंद माना गया है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि कार्तिक के महीने में तुलसी की पूजा और सेवा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इसी प्रकार वास्तु में भी तुलसी को सभी वास्तु दोष और नेगेटिव एनर्जी को दूर करने का उपाय माना गया है। वास्तु के अनुसार आप अपने घर में तुलसी के पानी से ये उपाय कई प्रकार के दोषों को मुक्त करने के लिए कर सकते हैं। यही नहीं इससे आपके जिंदगी की मुश्किलें कम होंगी और आपके तरक्की के रास्ते खुलेंगे।
अगर आपको तरक्की चाहिए तो आप इसके लिए तुलसी के पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आपको एक लौटे में जल लेकर तुलसी के पत्तों को डालकर रखना है। इन पत्तों को पानी में 2-3 दिन डालकर रखें। इसके बाद इस पानी ता छिड़काव अपने ऑफिस, घर और बिजनेस की जगह पर करें। इस पानी के छिड़काव से आपके घर की सभी परेशानियां दूर होंगी और आपके तरक्की के रास्ते खुल जाएंगे।
इसके अलावा तुलसी के पत्तों को जल में घोलकर बालगोपाल को स्नान कराना चाहिए और इसे चरणामृत मानकर ग्रहण करना चाहिए। कहते हैं बालगोपाल यानी भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय इन्हें तुलसी अर्पित करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी भी बहुत प्रसन्न होते हैं।
एक तांबे या पीतल के लोटे में जल में तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। ऐसा करने से जल पवित्र और शुद्ध बन जाता है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। इस बात का ध्यान रखें कि तुलसी के पत्तों को पानी में मिलाने के बाद इधर-उधर न फेंके। आप इन्हें वापस तुलसी के पौधे में डाल सकते हैं या फिर इन्हें ग्रहण भी कर सकते हैं।
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-प्रकाश उपाध्याय
हर व्यक्ति एक ऐसे जगह पर काम करना पसंद करता है। जहां का आपस में घुल मिल कर काम करना पसंद करते हों। एक कर्मचारी, दूसरे की मदद करने से कतराए नहीं और उन्हें किसी तरह की तकलीफ होने के बाद उनका साथ दें। उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें। ऐसे जगह पर काम करने से आप अंदर से शांति और संतुष्टि का अनुभव करते हों।
फेंगशुई एक चीनी परंपरा है जिसकी मदद से अलग -अलग जगहों पर शांतिपूर्ण माहौल और सफलता पाने में मदद मिलती है। इस तकनीक ने ऑफिस, घर और यहां तक की स्कूलों के वातावरण को भी खुशहाल बनाएं रखने में काफी मदद की है।
आज हम आपको उन फेंगशुई टिप्स के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप भी अपने ऑफिस का माहौल शांतिपूर्ण बना सकते हैं। जिससे आपकी कार्य करने की क्षमता में बढ़त देखने को मिलती है।
1. अपने टेबल को व्यवस्थित करें -
फेंगशुई के अनुसार यदि आपकी डेस्क पर चीजें बिखरी हुई है तो यह आपके परफॉर्मेंस पर नेगेटिव इंपैक्ट डालती है। जिससे आपकी प्रोडक्टिविटी बाधित होती है इसलिए किसी भी बिजनेस या कार्य करने की जगह पर अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए डेस्क पर बिखरी हुई चीजों को ठीक से व्यवस्थित कर लें और टेबल पर उन्हीं चीजों को रखें जिनका प्रयोग आप रोजाना करते हैं। रोजाना इस्तेमाल में न आने वाली चीजों को किसी अलमारी या कबर्ड में रख दें। फेंगशुई के अनुसार चीजें व्यवस्थित रखना बेहद आवश्यक है। यह बताता है कि आपका बिजनेस कितना सफल होने वाला है।
2. नीला रंग -
फेंगशुई के अनुसार नीला रंग भावनाओं को उजागर करने में काफी मदद करता है। इससे प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है। बिजनेस के लिए नीला रंग बेहद शुभ माना जाता है। यह आकाश और समुद्र का रंग है। जो मुक्त आत्मा का प्रतीक माना जाता है। यह बेहद आरामदायक रंग है जो शांति की भावना को पैदा करता है। यह अक्सर बिजनेस की दुनिया में वफादारी, जिम्मेदारी ,विश्वास की भावना को जागृत करने में सहायता करता है। -
-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है। सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत आता है, उसी के नाम पर प्रदोष व्रत का नाम रखा जाता है। सोमवार के दिन सोम प्रदोष व्रत किया जाता है। मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनकी आराधना करते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोम प्रदोष व्रत किया जाता है।
यह व्रत भगवान शिव को अति प्रिय है। मान्यता है कि इस शुभ दिन सच्चे मन से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से मनचाहा फल प्राप्त होता है। इस शुभ दिन पर कुछ उपाय करने से नौकरी, कारोबार से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत में सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन हल्के लाल या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करें। चांदी या तांबे के लोटे से शुद्ध शहद एक धारा के साथ शिवलिंग पर अर्पित करें। घर के पास किसी शिव मंदिर में जाएं और वहां जाकर शुद्ध जल में दूध और गंगाजल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करें। ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए शिवलिंग पर धतूरा अर्पित करें। दूध में थोड़ा-सा केसर और कुछ फूल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करें। जौ का आटा लेकर भगवान शिव के चरणों में स्पर्श कर, जौ के आटे की रोटियां बना लें और बछड़े या बैल को खिला दें। बेल पत्र से भगवान शिव का पूजन करें। इस शुभ दिन शिवलिंग पर कच्चे दूध में गुड़ मिलाकर अभिषेक करने से आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। जो लोग किसी बीमारी से पीड़ित हैं उन्हें इस शुभ दिन महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। इससे सेहत में सुधार होने के साथ जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें। इससे कुंडली में चंद्रमा से जुड़े सारे दोष दूर हो जाते हैं। शिव तांडव स्तोत्र और शिव चालीसा का पाठ करें। इस व्रत में पूरे दिन निराहार रहें और एक समय फलाहार कर सकते हैं। शाम को शिव परिवार की पूजा करें। -
-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
कुछ पौधें घर की साज-सज्जा को बढ़ाने, पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के अलावा ग्रह, नक्षत्रों को भी नियंत्रित करते हैं। आज हम आपके एक ऐसे ही पौधें के बारे में बताने जा रहे हैं। जो भगवान शिव को बेहद प्रिय है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार कुछ पौधों को बेहद चमत्कारिक माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन पौधों में देवताओं का वास होता है। कुछ पौधें घर की साज-सज्जा को बढ़ाने, पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के अलावा ग्रह, नक्षत्रों को भी नियंत्रित करते हैं। आज हम आपके एक ऐसे ही पौधें के बारे में बताने जा रहे हैं। जो भगवान शिव को बेहद प्रिय है और सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाला शनि ग्रह को भी नियंत्रित करने का कार्य करता है।
1. शनिवार के दिन सीधे जमीन व गमले में भी शमी का पौधा लगा सकते हैं। घर के मेन गेट के पास शमी का पौधा लगाना बेहद शुभ माना जाता है।
2. घर के ईशान कोण में शमी का पौधा लगाना चाहिए। इससे परिवार को कभी आर्थिक तंगी जैसी समस्या से नहीं गुजरना पड़ता है।
3. घर से बाहर जाते समय शमी के पौधें के दर्शन करके बाहर निकले, ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलने लगती है।
4. वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपकी कुंडली मे किसी तरह का शनि दोष है या आप शनि के दुष्प्रभाव से हमेशा दूर बने रहना चाहते हैं तो मेन गेट के बाई ओर शमी का पौधा लगाना चाहिए।
5. शमी के पौधें पर सूर्य की किरणें पड़नी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो पा रहा तो पौधें को दक्षिण दिशा की ओर लगा दें।
6. शमी के पौधें को विजयादशमी के दिन लगाना बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से फके शमी के पौधें की पूजा कर विजयी होने का आशीर्वाद मांगा था। - प्रकाश उपाध्यायकई बार परिवार के सदस्यों के बीच बिना बात तनाव रहता है। जिससे आपसी रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है और घर में उदासी छा जाती है। अगर आप अपने जीवन में खुशियां तलाश रहे हैं तो वास्तु शास्त्र में बताए गए कुछ आसान उपाय जान लें। मान्यता है कि इन उपायों को अपनाने से जीवन में खुशियां आती हैं और घर में पॉजिटिव ऊर्जा का वास होता है। पढ़ें वास्तु शास्त्र के आसान उपाय-1. सप्ताह में एक बार घर में गूगल का धुंआ करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार में खुशियों का आगमन होता है और नेगेटिव ऊर्जा बाहर होती है।2. घर में सरसों के तेल के दीये में लौंग डालकर जलाना शुभ माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है। मां लक्ष्मी को सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है।3. तवे पर रोटी सेंकने से पूर्व दूध के छींटें मारना शुभ माना गया है। मान्यता है कि दूध के छींटे से निकलने वाला धुंआ घर से नेगेटिव ऊर्जा को बाहर करता है और परिवार में खुशहाली आती है।4. पहली रोटी गाय के लिए निकालनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर में खुशहाली आती है।5. वास्तु के अनुसार, घर में तुलसी का पौधा पूर्व दिशा की गैलरी में या पूजा स्थान पर होना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।6. वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में टूटी-फूटी या बेकार की चीजों को नहीं रखना चाहिए। मान्यता है कि अनावश्यक चीजें दरिद्रता का प्रतीक होती हैं।7. घर में गोल किनारों के फर्नीचर ही शुभ माने गए हैं।
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हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार मार्गशीर्ष माह की शुरुआत हो चुकी है. जैसे अंग्रेजी कैलेंडर में साल के 12 महीने होते हैं वैसे ही हिन्दी कैलेंडर में भी साल के 12 महीने होते हैं. पंचाग के अनुसार हर महीनों को अलग नामों से जाना जाता है. साल के नवें महीने को अगहन के नाम से भी जानते हैं. ऐसी मान्यता है मार्गशीर्ष माह से ही सतयुग की स्थापना हुई थी. यह माह भगवान कृष्ण को बहुत प्रीय होता है. इस माह में शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. अगर मार्गशीर्ष माह में आप शंख की विधि-विधान से पूजा करत हैं, तो इससे न सिर्फ भगवान कृष्ण बल्कि माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं. आइए जानें शंख से जुड़े कुछ कारगर उपाय.
यदि आप मां लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं तो मार्गशीर्ष माह में रोजाना शंख की पूजा करें. घर के मंदिर में या जहां भी आपकी पूजन स्थल हो वहां पर शंख की स्थापना करें और विधि-विधान से पूजा करें. मान्यता है कि शंख की पूजा से जीवन में धन-धान्य के साथ सुख-समृद्धि आती है.
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए दक्षिणावर्ती शंख में दूध भरें और फिर उससे विष्णु जी का अभिषेक करें. इससे न सिर्फ विष्णु जी बल्कि माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं.
अगर आप की कुंडली में दोष हो तो मार्गशीर्ष माह में शंख पूजा अवश्य करें. खास करके जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर स्थिति में हों उन्हें शंख पूजा अवश्य करनी चाहिए. इसके लिए एक सफेद कपड़े में शंख के साथ, चावल और बताशे लपेट कर उसे किसी नदी में प्रवाह कर दें.
इस माह के दौरान शंख दान करना बेहद लाभदायक साबित हो सकता है. यदि संभव हो तो श्री विष्णु के किसी मंदिर में जाकर शंख दान करें. इससे आपके सभी दोष दूर हो जाएंगे.
वैसे तो शंख कई प्रकार के होते हैं लेकिन मार्गशीर्ष माह में मोती शंख का विशेष महत्व होता है. इसको को अपनी अलमारी का तिजोरा में रखें. इसके साथ हल्दी और कच्चे चावल भी एक कपड़े में बांदकर रख दें. इससे आपके घर में बरकत होगी और धन-धान्य का लाभ होगा. -
वास्तु अनुसार घर में रखी हर एक चीज आप पर किसी न किसी रूप में प्रभाव डालती है. कहते हैं कि सही समय पर सही दिशा में किया गया कार्य हमेशा सफलता तक पहुंचात है. ऐसे में ये जरूरी है कि आप के घर में लगी घड़ी की दिशा भी सही हो. आइए जानें इससे जुड़े वास्तु नियम
व्यक्ति के जीवन में सबसे कीमती चीज समय होता है, एक बार अगर यह निकल गया तो कभी वापस नहीं लौट सकता. मान्यता है कि यदि आपके घर में सही दिशा में घड़ी लगी हो तो यह आपकी तरक्की का कारण बन सकता है. वास्तु अनुसार घड़ी का संबंध सिर्फ समय से नहीं बल्कि आप के सौभाग्य से भी होता है, ऐसे में घड़ी लगाते वक्त हमें ध्यान रखना चाहिए कि इससे जुड़ी वास्तु नियमों का पूरा ख्याल रखा गया हो. यदि घर के भीतर गलत दिशा में घड़ी लगी हो तो यह आपके जीवन में तमाम तरह के दु:ख और परेशानियों का कारण बन सकता है. तो आइए जानें इससे बचने से सही वास्तु उपाय
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की पूर्व दिशा में घड़ी लगाना सबसे शुभ माना गया है. मान्यता है कि इस दिशा में लगी घड़ी सुख-समृद्धि और सौभाग्य का कारक बनती है. ध्यान रखें कि कभी भी दरवाजे के ऊपर घड़ी न लगाएं. वास्तु अनुसार ऐसा करना एख दोष माना गया है, जिससे नकारात्मता आकर्षित होती है.
घर में भूलकर भी बंद या टूटी घड़ी नहीं रखनी चाहिए. माना जाता है कि यह दुर्भाग्य का कारण बनती है. यदि आप घड़ी नहीं ठीक करवा पाते तो बंद घड़ी को दिवाल पर न टंगा रहने दें. मान्यता है कि घर में टंगी बंद घड़ी आपके खुशियों के द्वार बंद कर देती हैं.
जो लोग हांथ में घड़ी पहनते हैं उनको हमेशा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि उनकी घड़ी बार-बार बंद न हो. मान्यता है कि वास्तु अनुसार उससे नकारात्मकता बढ़ती है और सकारात्मकता कम होती है. ऐसे में कोशिश करें कि आप या तो नई घड़ी खरीद लें या खराब घड़ी को बनवा लें.
वास्तु अनुसार घर में गलत दिशा में घड़ी लगाने से आपको आर्थिक हानि हो सकती है. इसके कारण आपके बनते हुए काम भी बिगड़ने लगते हैं. इसलिए कोशिश करें कि घर की दक्षिण दिशा में घड़ी न लगाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से घर के मुखिया बीमार रहते हैं. इसके अलावा दक्षिण दिशा में घड़ी लगाने से भी प्रगती रूकता है.
वास्तु अनुसार पेंडुलम वाली घड़ीयां शुभ मानी जाती हैं. मान्यता है कि इसे घर की उत्तर या पूर्व दिशा में लगाने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ती होती है.