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मांसपेशियों, जोड़ों की पीड़ा में कारगर है अग्निकर्म, 13 हजार से अधिक मरीजों का किया गया उपचार
 - अग्निकर्म द्वारा 40 रोगियों, स्नेहन द्वारा 2030, स्वेदन द्वारा 1532 और पंचकर्म द्वारा 554 मरीजों का किया गया इलाज
 राजनांदगांव। जिले के शासकीय आयुष पॉली क्लीनिक में आयुर्वेद पद्धति से जनसामान्य बड़ी संख्या में उपचार का लाभ ले रहे हैं। शासकीय आयुष पॉली क्लीनिक राजनांदगांव की आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रज्ञा सक्सेना ने भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में वर्णित अग्निकर्म चिकित्सा के संबंध में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में औषधि, पंचकर्म सहित विभिन्न चिकित्सा कर्मों का वर्णन है। अग्निकर्म को थर्मल माइक्रोकॉटरी भी कह सकते हैं। यह एक प्राचीन चिकित्सा तकनीक है। आयुर्वेद में इसका व्यापक उल्लेख है। महर्षि सुश्रुत जिन्हें आधुनिक सर्जरी का जनक कहा जाता है, उन्होंने लगभग 2000 वर्ष पूर्व सुश्रुत संहिता में मांसपेशियों, स्नायु, संधि एवं अस्थियों या मस्कुलोस्केलेटल रोगों से सम्बंधित पीड़ा में अग्निकर्म के संबंध में बताया है। मांसपेशियों, जोड़ों की पीड़ा, एड़ी की पीड़ा, कदर रोगों में पीड़ा का स्तर जीवन की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। अग्निकर्म इन व्याधियों की पीड़ा में बिना किसी दुष्प्रभाव के राहत पहुँचाता है । कदर पैरों के तलवे में होने वाली मामूली सी तकलीफ इतनी पीड़ादायक होती है कि रोगी का चलना भी मुश्किल कर देती है। ऐसे में आयुर्वेद के अग्निकर्म चिकित्सा के उत्तम परिणाम मिलते हैं। रोगी को चिकित्सा कर्म के दौरान किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है।
डॉ. प्रज्ञा सक्सेना ने बताया कि अग्निकर्म वैज्ञानिक एवं शास्त्रोक्त है, अग्निकर्म कई स्तरों पर कार्य करता है। इसके लिए कई  सिद्धांत दिए गए हैं। आयुर्वेद के अनुसार अग्निकर्म अग्नि के उष्ण गुण के कारण वात एवं कफ दोषों का शमन, तीक्ष्ण, सूक्ष्म, व्यवायी, विकासी गुण वात और कफ के कारण उत्पन्न स्रोतों अवरोध को दूर कर स्थानिक पीड़ा व सूजन को कम कर देता है । अग्निकर्म से प्रभावित स्थान का रक्त संचार बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त पैरों के तलवे की नर्व एन्डिंग्स को प्रभावित करता है। जिससे पीड़ा कम हो जाती है। अग्निकर्म में एक विशेष अग्निकर्म शलाका धातु उपकरण द्वारा उस स्थान के मर्म स्थानों को ध्यान में रखते हुए बिंदुओं को चिन्हित किया जाता है। तत्पश्चात शलाका द्वारा सिंकाई के पश्चात वहाँ आयुर्वेद औषधियों का स्थानिक प्रयोग किया जाता है। प्रथम बार में ही अधिकांश रोगी को पीड़ा में 40 से 50 प्रतिशत तक का आराम हो जाता है एवं 3 से 4 सिटिंग्स की आवश्यकता होती है । कुछ में रोग एवं रोगी के अनुसार पूर्णत: आराम मिल जाता है। अग्निकर्म प्रक्रिया यदि अनुचित रूप से की जाती है तो जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। इसलिए प्रशिक्षित चिकित्सक के द्वारा ही इसका उपयोग किया जाना चाहिए।
शासकीय आयुष पॉली क्लिनिक की आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रज्ञा सक्सेना ने बताया कि शासकीय आयुष पॉली क्लीनिक में अग्निकर्म द्वारा रोगी लाभान्वित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2022-23 में  आयुर्वेद चिकित्सा के द्वारा ओपीडी स्तर पर 13490 रोगियों को उपचार दिया गया। अप्रैल 2022 से सितंबर 2022 के मध्य, वर्ष में स्नेहन द्वारा 2030, स्वेदन द्वारा 1532 और पंचकर्म द्वारा 554 रोगियों को लाभ प्राप्त हुआ। वर्ष 2022-23 में वृद्धावस्था रोगियों की संख्या आयुर्वेद पद्धति से 2842 रही। अग्निकर्म द्वारा लगभग 40 रोगियों को लाभ प्राप्त हुआ। अर्श एवं गुद रोगियों की संख्या लगभग 1150 रही जिन्हें आयुर्वेद औषधि के अतिरिक्त मात्रा वस्ति एवं अन्य उपचारों के द्वारा उपचारित किया गया।

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