जय 'जन' जोहार...नई उम्मीदें, नई सरकार...
--लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद्
देवभूमि भारत का छब्बीसवां राज्य छत्तीसगढ़ जहाँ इंद्रधनुषी सांस्कृतिक विविधताएँ और बहुलताएँ तो हैं, लेकिन आंतरिक एकता भी है; जो वास्तव में छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति और उसकी पहचान भी है। इस आंतरिक एकता को समझने के लिए पैनी दृष्टि चाहिए और सूक्ष्म विश्लेषण। यहाँ की आंतरिक एकता हर पाँच साल के विधानसभा चुनाव में ‘साइलेंट किलर’ अथवा दूसरे शब्दों में कहें, ‘मूक बहुमत’ के रूप में जब अभिव्यक्त होती है तो आश्चचयर्जनक परिणाम और परिवर्तन दृष्टिगत होने लगते हैं। तब सारे एक्जिट पोल और पूर्वानुमान की सत्यता पर संदेह के बादल मंडराने तो लगते ही हैं, परिणाम आने पर वे अंततः असत्य प्रमाणित होकर छँटते चले जाते हैं। विधानसभा चुनाव-2023 के परिणाम इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जिसके अप्रत्याशित परिणामों की चर्चा पूरे देश की मीडिया और राजनीति में थी।
छत्तीसगढ़ में जनता का मूक बहुमत ही निर्णयकारी होता है, जो तमाम सर्वेक्षण और दावों को पटलकर रख देता है। वास्तव में छत्तीसगढ़ की जनता की नब्ज को समझ पाना इतना आसान भी नहीं है, जितना समझा जाता है। कब जन-समर्थन सारे कयासों और अनुमानों को सिरे से दरकिनार कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता और परिणाम उम्मीदों के विपरीत ही आते हैं। फिर हमें याद आते हैं राष्ट्रकवि दिनकर, जिनकी लोकतंत्र का अलख जगाने वाली रचनाएँ आज भी प्रासंगिक प्रतीत होती हैं। एक बानगी देखिये-
हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
लोकतांत्रिक गणराज्य में जनता की ताकत का अहसास कराती ये पंक्तियाँ भी प्रासंगिक हैं-
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
3 दिसंबर, 2023, रविवार को छत्तीसगढ़ के राजनीतिक सरोवर में उदित होते सूर्य-रश्मियों के स्वर्णिम प्रकाश में कमल की पंखुड़ियाँ खिलकर जनता के फैसले का विजयी-उद्घोष करेंगी, यह कोई नहीं जानता था। इस सत्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अनेक महानुभवों को सहसा इन परिणामों के पूर्वानुमान पर शत-प्रतिशत भरोसा नहीं था। हाँ, कयास और दावे जरूर थे। यह कोई नहीं जानता था कि जनता ने अपने मन में मतदान के दिन ही कमल की पंखुड़ियाँ खिलाकर रखी हैं और संकेत दे रखा है परिणाम के दिनों तक इंतजार का। इन अप्रत्याशित परिणामों से जाहिर है कि आम जनता, विशेषकर मातृ-शक्ति, युवा वर्ग और आम गरीब-मानस भी देश के प्रधानमंत्री के सूत्र वाक्य- ‘मोदी की गारंटी’ का तहे-दिल से स्वागत कर रहा है। इस सूत्र वाक्य की सार्थकता लोकसभा चुनाव-2024 के पूर्वानुमानों की सशक्त आधारभूमि तैयार कर रही है। भाजपा ने यह चुनाव साइलेंट किलर जनता के रुख को समझते हुए मोदी की गारंटी पर लड़ा और अंतिम समय में विनम्र-भाव के हथियार के साथ एकजुट होकर कड़ा परिश्रम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रसिद्ध कविता ‘कदम मिलाकर चलना होगा' की पंक्तियाँ स्मरण हो उठती हैं-
उजियारे में, अंधकार में,
कल कछार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।
इन पंक्तियों का केंद्रीय भाव आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। फिर वह जीवन का सामाजिक, आर्थिक या फिर राजनीतिक क्षेत्र ही क्यों न हो। कोई भी संकट क्यों न आ जाए, हिम्मत न हाकर उसका सामना प्यार से करना चाहिए। आगे वे लिखते हैं -
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अथ,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते
पावस बनकर ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा।
राज्य की जनता ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार को पाँच साल के विश्राम के बाद पुनः अवसर प्रदान किया है तो उन अऩेक नई उम्मीदों के साथ, जिन्हे पूर्ण करने के वादे घोषणा पत्र में किये गये है। महिला, युवा, गरीब जनता और हर वर्ग को इंतजार है....सभी विजयी प्रत्याशियों को छत्तीसगढ़ आज डॉट-कॉम की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जय 'जन' जोहार...
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