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उलझन

-कहानी
 माँ मैं कॉलेज जा रही हूँ... कहते हुए  विधि घर से बाहर निकली तो माँ ने अंदर से ही कई हिदायतें दे डालीं.
देर मत करना ...समय पर खा लेना आदि आदि । विधि बी. एस. सी. प्रथम वर्ष की छात्रा थी , अपनी सहेलियों के साथ वह सुबह नौ बजे घर से निकलती..उसकी क्लास चार बजे खत्म होती थी.. पहला साल होने के कारण सीनियर द्वारा उनका इंट्रोडक्शन  होता था और उनके लिए ढेर सारे नियम बनाये गए थे जैसे बिना चुनरी के सूट नहीं पहनना , स्लीवलेस कपड़े नहीं पहनना  , सीनियर्स को नाइंटी डिग्री झुककर विश करना आदि..तो उन्हें बहुत डर कर रहना पड़ता ताकि वे परेशान न करें । अंतिम वर्ष के सीनियर निनाद सर उसे बहुत अच्छे लगते थे.. उन्होंने कई बार उसकी मदद की थी और अपने साथियों की डाँट पड़ने से भी बचाया था । फिजिक्स का प्रैक्टिकल समझ न आने पर वह निनाद सर से समझने गई .. उन्होंने बहुत अच्छे से उसे समझाया था.. वह कॉलेज के ब्रिलिएंट स्टूडेंट्स में से एक थे । कहीं भी मिलते वे बहुत अच्छी  बातें करते व विधि को सृजनात्मक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते । वाद - विवाद प्रतियोगिता में पक्ष में विधि और विपक्ष में निनाद सर का चयन हुआ था और उन्हें यूनिवर्सिटी में भाग लेने के लिए जाना था । कॉलेज की मैडम भी  साथ गई थी , निनाद सर के साथ दो दिन रहकर उनके बीच  अच्छी दोस्ती हो गई थी , वैसे ही विधि उनके व्यक्तित्व और प्रतिभा से  बहुत प्रभावित थी । मासूमियत  लिए  उसकी  उम्र  भी थी सपने बुनने की..वह निनाद सर के लिए आदर के साथ कुछ और भी महसूस करने लगी थी.. शायद यह  एहसास प्यार ही है.. वह सोचने लगी थी । घर में रहती तो उनके बारे में ही सोचती..पढ़ते - पढ़ते किताबों के बीच बरबस उनका चेहरा आ जाता और वह कल्पनालोक में खो जाती । उसके हर क्रियाकलाप में निनाद सर उसके साथ होते..वह पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही थी.. कितना ही वक्त उनके बारे में सोचकर व्यतीत कर देती । परंतु बाद में पछतावा भी होता कि समय व्यर्थ बीता जा रहा है और वह पढ़ाई नहीं कर पा रही है । सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उसका प्यार व लगाव एकतरफा था । निनाद सर के प्रति उसका लगाव बढ़ता ही जा रहा था और वह भावनाओं के मकड़जाल में फँसती ही चली जा रही थी । पल्लवित हुए नये कोंपल की तरह उसकी भावनाएँ बहुत ही मासूम थीं पर यह उसके जीवन की उलझन बढ़ा रही थी । निनाद सर ने कभी अपना झुकाव उसकी तरफ नहीं दिखाया था.. वह तो सिर्फ उसकी मदद कर दिया करते थे... उसे आगे बढ़ने को प्रेरित करते थे । विधि के बदलते व्यवहार ने शायद उन्हें भी यह एहसास करा दिया था कि विधि क्या महसूस कर रही है । अचानक उन्हें अपने सामने पाकर उसका ठिठकना , अक्सर उसकी नजरों का निनाद को ढूँढना , उसका अधिक साथ पाने के बहाने बनाना...इस उम्र का प्यार महज शारीरिक आकर्षण  होता है.. समझदारी भरा निर्णय नहीं होता है वह जानते थे । लेकिन विधि को कैसे समझाया जाए वह सोच में पड़ गए थे । प्रैक्टिकल परीक्षा के बाद निनाद सर से उसकी मुलाकात हुई तो उन्होंने उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा और परीक्षा की ठीक ढंग से तैयारी करने के लिए विधि को कुछ टिप्स भी दिये । परीक्षा की तैयारी में वे दोनों ही व्यस्त हो गये थे । विधि का मन होता उन्हें फोन कर बात कर ले पर वे भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त होंगे  यह सोचकर नहीं कर पाई ।
विधि जानना चाहती थी कि निनाद सर के दिल में उसके लिए कोई जगह है या नहीं । न भी हो तो उसे फ़र्क नहीं
पड़ता क्योंकि चकोर का काम चाँद को चाहते रहना है ..चाँद को यह खबर भी नहीं तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता..वह तो अपने प्रेम के मधुर एहसास में डूबा रहता है । प्रेम कभी प्रतिदान नहीं चाहता.. विधि प्रेम की मधुरता से सराबोर थी...यथार्थ के ठोस धरातल पर उसने कदम ही नहीं रखा था ।
      निनाद बेहद समझदार व सुलझे व्यक्तित्व का लड़का था.. वह नहीं चाहता था कि विधि के साथ कभी कुछ गलत हो..इस उम्र में सही दिशा निर्देश मिलना अत्यंत आवश्यक होता है नहीं तो कदम भटकने की पूरी गुंजाइश रहती है । कम उम्र में ही मोहब्बत में नाकाम युवा मौत को गले लगा लेते हैं.. अति भावुकता सोचने - समझने की क्षमता को खत्म कर देती है । निनाद ने विधि को परीक्षा के बाद उससे बात करने का निश्चय किया और उसे मिलने के लिए बुलाया । विधि बेहद प्रसन्न थी उसके लिए तो "अंधा क्या चाहे दो आँखें" वाली कहावत सार्थक हो रही थी । उसका दिल जोरों से धड़क रहा था पता नहीं क्या कहने बुला रहे हैं निनाद सर...कहीं उन्हें भी तो...इससे आगे सोचने में भी उसे शर्म आ रही थी । खैर , हल्के गुलाबी सूट में तैयार होकर वह निनाद सर से मिलने लायब्रेरी गई । पेपर के बारे में बात करने के बाद निनाद ने उससे कहा..विधि , मैं आगे की पढ़ाई करने के लिए बाहर जा रहा हूँ... मैं चाहता था उससे पहले तुमसे बात करूँ । तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो..पढ़ाई में भी अच्छी हो । अभी का समय बहुत महत्वपूर्ण रहता है  , इधर -  उधर ध्यान दोगी तो अपने करियर पर  फोकस नहीं कर पाओगी ।
प्रेम और श्रद्धा में थोड़ा सा ही अंतर होता है... कई बार किसी के प्रति हमारे मन में श्रद्धा या आदर भाव प्रेम का एहसास कराता है... पर वह प्रेम नहीं होता है ।श्रद्धा में कोई बुराई नहीं है ,हम ईश्वर के प्रति भी श्रद्धा रखते हैं पर उन्हें सिर्फ अपना कहकर अधिकार नहीं जताते । प्रेम एकाधिकार चाहता है.. कई ख्वाहिशें जगाता है.. और उन ख्वाहिशों के पूरे न होने पर मन में निराशा घर कर लेती है और हम जिंदगी में बहुत पीछे रह जाते हैं ।
मैं यह सब तुम्हें इसीलिए बताना चाहता हूँ कि कुछ वर्ष पहले मेरी एक कजिन ने प्रेम में निराश होकर खुदकुशी कर ली थी । शायद उसे कोई समझा नहीं पाया कि जीवन में और भी राहें हैं.. जीने के हजार तरीके हैं । निराशा और तनाव ये दो बातें हमारे मन को कुंठाग्रस्त कर देती हैं और हमें कुछ भी सोचने नहीं देती..हम अच्छे - बुरे का फर्क नहीं कर पाते । मैं एक बड़े और दोस्त के रूप में तुम्हें समझा रहा हूँ इसे अन्यथा मत लेना और बहुत सोच समझ कर जीवन की राहें तय करना । मैं यहाँ नहीं रहूँगा पर फोन के जरिये तुम अपनी बातें मुझसे शेयर कर सकती हो..एक सीनियर , दोस्त के रूप में मैं हमेशा तुम्हारी मदद करूँगा ।
विधि समझ गई थी निनाद सर क्या कहना चाह रहे थे.. नहीं सर मैं भावुकता में कभी भी कोई गलत कदम नहीं उठाउँगी.. क्योंकि मुझे आप जैसे समझदार और दूसरों का भला सोचने वाले सर मिले हैं । आप बिलकुल सच कह रहे हैं , अभी अपने करियर के बारे में सोचने का वक्त है.. मैं इस पर पूरा ध्यान दूँगी । शुक्रिया  ! आपने मुझे जीवन की एक  बहुत बड़ी उलझन से बाहर निकाला.. अब मैं किसी बात से बहकने वाली नहीं । पर आप मुझसे बात करने व मुझे दिशा निर्देश देने के लिए समय जरूर निकलेंगे, वादा कीजिये । निनाद सर के मुस्कुराते हुए हाँ  सुनकर विधि की आँखें खुशी से नम हो गई थीं ।

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