ब्रेकिंग न्यूज़

  एक अच्छे कोरियोग्राफर भी थे गुरुदत्त
जयंती पर विशेष
हिन्दी सिनेमा को  प्यासा,  कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम और  चौदहवीं का चांद जैसी क्लासिक फिल्में देने वाले फिल्मकार एवं अभिनेता गुरूदत्त को उनके प्रभावशाली निर्देशन के लिए जाना जाता है।
भारतीय फिल्मों के स्वर्णिम दौर में तीन फिल्मकार महबूब खान, राजकपूर और गुरूदत्त ऐसे नाम है जिन्होंने जोखिम लेकर व्यावसायिक सिनेमा में कलात्मक फिल्में बनाने का प्रयास किया। स्वर्ण काल की फिल्मों में कहानी, गीत, संगीत और अभिनय के साथ ही निर्देशन काफी प्रभावशाली होता था।
हालांकि गुरूदत्त को उम्दा अभिनेता के तौर फिल्मों के इतिहास में याद तो किया ही जायेगा, लेकिन बतौर निर्देशक उनका कोई सानी नहीं है। वे ऐसे निर्देशक थे, जिन्होंने सामाजिक संदेश के लिए फिल्मों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
गुरूदत्त के नाम से लोकप्रिय वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण का जन्म नौ जुलाई 1925 को बेंगलूर में हुआ था। टाइम पत्रिका द्वारा चुनी गयी  100 आल टाइम बेस्ट फिल्मों में गुरूदत्त की  प्यासा और  कागज के फूल  को शामिल किया गया। 
वर्ष 1944 में प्रभात फिल्म से फिल्म दुनिया में कदम रखने वाले गुरूदत्त ने शुरूआत में बतौर कोरियोग्राफर काम किया। इस दौरान ही रहमान एवं देवानंद उनके करीबी दोस्त बन गये। देवानंद के बैनर नवकेतन तले उनकी पहली फिल्म  बाजी,  1957 में आयी और उनकी आखिरी फिल्म  सांझ और सवेरा, मीनाकुमारी के साथ थी। गुरूदत्त को नृत्य की  बेहतर समझ रखते थे और उन्होंने उदयशंकर के आर्ट ग्रुप में भी काम किया था।
उनके बारे में देवानंद ने कहा कि फिल्मी दुनिया में उनके एकमात्र सच्चे दोस्त गुरूदत्त रहे। प्रभात फिल्म्स में काम करने के दौरान दोनों की दोस्ती गहरी हो गयी। गुरूदत्त को उन्होंने  बाजी में ब्रेक दिया तो गुरूदत्त ने उन्हें सीआईडी में कास्ट किया।
 वर्ष 1944 से 1964 के बीच गुरूदत्त सक्रिय रहे और 10 अक्टूबर 1964 में मुंबई के पेडर रोड स्थित अपार्टमेंट में अपने बिस्तर पर गुरूदत्त मृत पाये गये, उस वक्त उनकी उम्र केवल 39 वर्ष थी।  उनकी मौत के बारे में आज तक ठीक से कहना मुश्किल है कि वह सचमुच आत्महत्या ही था या कुछ और. गुरु दत्त की मौत शराब और नींद की गोलियों के अत्यधिक सेवन के कारण हुई थी। कहा नहीं जा सकता कि यह मात्रा जानबूझकर ली गई थी या इसके पीछे लापरवाही थी।  हालांकि इससे पहले भी वे दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके थे।
 गुरुदत्त की जिंदगी पर जब भी बात की जाए, अकेले की जानी असंभव है. एक प्रेम त्रिकोण सा इसमें आना ही आना है।  इस त्रिकोण के तीन सिरे गुरुदत्त, गीता दत्त और वहीदा रहमान से जुड़े थे। गुरुदत्त अपने आप में एक संपूर्ण कलाकार बनने की पूरी पात्रता रखते थे।  उनकी साहित्यिक रुचि और संगीत की समझ की झलक भी हमें उनकी सभी फिल्मों में दिखती है।  वे विश्वस्तरीय फि़ल्म निर्माता और निर्देशक थे।  उनकी जिद का ही परिणाम था कि फिल्म इंडस्ट्री को कई बेहतरीन फिल्में, पटकथाएं, एक बेहतरीन टीम और वहीदा रहमान जैसी एक सशक्त और शाश्वत अदाकारा मिली।  न सुनना तो गुरुदत्त को मंजूर ही नहीं था।  इसक एक अच्छे कोरियोग्राफर भी थे गुरुदत्त
जयंती पर विशेष
हिन्दी सिनेमा को  प्यासा,  कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम और  चौदहवीं का चांद जैसी क्लासिक फिल्में देने वाले फिल्मकार एवं अभिनेता गुरूदत्त को उनके प्रभावशाली निर्देशन के लिए जाना जाता है।
भारतीय फिल्मों के स्वर्णिम दौर में तीन फिल्मकार महबूब खान, राजकपूर और गुरूदत्त ऐसे नाम है जिन्होंने जोखिम लेकर व्यावसायिक सिनेमा में कलात्मक फिल्में बनाने का प्रयास किया। स्वर्ण काल की फिल्मों में कहानी, गीत, संगीत और अभिनय के साथ ही निर्देशन काफी प्रभावशाली होता था।
हालांकि गुरूदत्त को उम्दा अभिनेता के तौर फिल्मों के इतिहास में याद तो किया ही जायेगा, लेकिन बतौर निर्देशक उनका कोई सानी नहीं है। वे ऐसे निर्देशक थे, जिन्होंने सामाजिक संदेश के लिए फिल्मों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
गुरूदत्त के नाम से लोकप्रिय वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण का जन्म नौ जुलाई 1925 को बेंगलूर में हुआ था। टाइम पत्रिका द्वारा चुनी गयी  100 आल टाइम बेस्ट फिल्मों में गुरूदत्त की  प्यासा और  कागज के फूल  को शामिल किया गया। 
वर्ष 1944 में प्रभात फिल्म से फिल्म दुनिया में कदम रखने वाले गुरूदत्त ने शुरूआत में बतौर कोरियोग्राफर काम किया। इस दौरान ही रहमान एवं देवानंद उनके करीबी दोस्त बन गये। देवानंद के बैनर नवकेतन तले उनकी पहली फिल्म  बाजी,  1957 में आयी और उनकी आखिरी फिल्म  सांझ और सवेरा, मीनाकुमारी के साथ थी। गुरूदत्त को नृत्य की  बेहतर समझ रखते थे और उन्होंने उदयशंकर के आर्ट ग्रुप में भी काम किया था।
उनके बारे में देवानंद ने कहा कि फिल्मी दुनिया में उनके एकमात्र सच्चे दोस्त गुरूदत्त रहे। प्रभात फिल्म्स में काम करने के दौरान दोनों की दोस्ती गहरी हो गयी। गुरूदत्त को उन्होंने  बाजी में ब्रेक दिया तो गुरूदत्त ने उन्हें सीआईडी में कास्ट किया।
 वर्ष 1944 से 1964 के बीच गुरूदत्त सक्रिय रहे और 10 अक्टूबर 1964 में मुंबई के पेडर रोड स्थित अपार्टमेंट में अपने बिस्तर पर गुरूदत्त मृत पाये गये, उस वक्त उनकी उम्र केवल 39 वर्ष थी।  उनकी मौत के बारे में आज तक ठीक से कहना मुश्किल है कि वह सचमुच आत्महत्या ही था या कुछ और. गुरु दत्त की मौत शराब और नींद की गोलियों के अत्यधिक सेवन के कारण हुई थी। कहा नहीं जा सकता कि यह मात्रा जानबूझकर ली गई थी या इसके पीछे लापरवाही थी।  हालांकि इससे पहले भी वे दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके थे।
 गुरुदत्त की जिंदगी पर जब भी बात की जाए, अकेले की जानी असंभव है. एक प्रेम त्रिकोण सा इसमें आना ही आना है।  इस त्रिकोण के तीन सिरे गुरुदत्त, गीता दत्त और वहीदा रहमान से जुड़े थे। गुरुदत्त अपने आप में एक संपूर्ण कलाकार बनने की पूरी पात्रता रखते थे।  उनकी साहित्यिक रुचि और संगीत की समझ की झलक भी हमें उनकी सभी फिल्मों में दिखती है।  वे विश्वस्तरीय फि़ल्म निर्माता और निर्देशक थे।  उनकी जिद का ही परिणाम था कि फिल्म इंडस्ट्री को कई बेहतरीन फिल्में, पटकथाएं, एक बेहतरीन टीम और वहीदा रहमान जैसी एक सशक्त और शाश्वत अदाकारा मिली।  न सुनना तो गुरुदत्त को मंजूर ही नहीं था।  इसका सबसे बड़ा उदाहरण है प्यासा के लिए दिलीप कुमार की ना के बाद गुरुदत्त का खुद उस भूमिका में उतरना। वे इस फिल्म की जान थे और लोग आजतक उन्हें इस भूमिका के लिए याद करते हैं। 
ा सबसे बड़ा उदाहरण है प्यासा के लिए दिलीप कुमार की ना के बाद गुरुदत्त का खुद उस भूमिका में उतरना। वे इस फिल्म की जान थे और लोग आजतक उन्हें इस भूमिका के लिए याद करते हैं। 
 

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english