नहीं रहे नत्थू दादा, राजकपूर ने कहा था-वाह मिल गया मेरा जोकर
राजकपूर ने नत्थू दादा को देखते ही कहा - वाह मिला गया मेरा जोकर
राजनांदगांव। बरसों पहले छत्तीसगढ़ से बॉलीवुड में एक ऐसे कलाकार ने कदम रखा, जिसने उस दौर के बड़े-बड़े दिग्गज अभिनेताओं के साथ काम किया। आज सुबह खबर आई कि राजनांदगांव जिले के दुलारे नत्थू दादा नहीं रहे। उनका पूरा नाम नत्थू रामटेके था। नत्थू दादा 70 साल के थे। नत्थू दादा ने लगभग 20 साल के अपने फिल्मी कॅरिअर में 150 फिल्मों में काम किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई। नत्थू दादा ने अपने सहज अभिनय से अभिनेताओं के साथ-साथ निर्माता-निर्देशकों को हमेशा प्रभावित किया। उन्होंने साबित किया कि कलाकार हमेशा बड़ा होता है, फिर उसकी शख्सियत चाहे कैसी भी हो।
नत्थू दादा राजनांदगांव जिले के रामपुर गांव के रहने वाले थे। 1970 में शो मैन राजकपूर अपनी फिल्म मेरा नाम जोकर फिल्म का निर्माण कर रहे थे। उस वक्त उन्हें फिल्म की कहानी के अनुरूप अलग-अलग तरह के किरदारों की जरूरत थी। नत्थू दादा राजकपूर के साथ अपनी मुलाकात को कभी भूल नहीं पाए। कुछ साल पहले अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि किस तरह से उन्हें देखते ही राज साहब ने कहा था-वाह.. मिल गया मेरा जोकर।
अपने फिल्मी कॅरिअर का श्रेय नत्थू दादा अभिनेता दारा सिंह को देते थे। दरअसल 1969 में भिलाई में फ्री स्टाइल कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित हुई थी। उस समय नत्थू दादा अपने साथी के कहने पर दारा सिंह को देखने आए थे। तब दारा सिंह ने भीड़ के बीच उन्हें अपने हाथों में उठा लिया था। तब नत्थू दादा काफी लोकप्रिय हुए थे। उस वक्त नत्थू दादा की उम्र 17 साल की थी। दारा सिंह ंने नत्थू दादा को देखते ही पूछा- फिल्मों में काम करोगे? इस तरह से नत्थू दादा, दारा सिंह के साथ हो लिए। नत्थू दारा की बचपन से ही फिल्मों में काम करने की इच्छा जो पूरी होने जा रही थी। नत्थू दादा ने मैट्रिक तक पढ़ाई की है। दारा सिंह ने ही उन्हें मुंबई में राज कपूर से मुलाकात करवाई थी। इस तरह से उनका फिल्मी कॅरिअर एक बड़ी फिल्म मेरा नाम जोकर से शुरु हुआ। नत्थू दादा ने राजकपूर, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, राजकुमार, प्रेमनाथ, दारा सिंह, अमजद खान, फिरोज खान, डैनी जैसे कई बड़े कलाकारों के साथ काम किया।
नत्थू दादा पर जब उम्र हावी होने लगी, तो वे वापस अपने गांव आ गए और मुफलिसी में जिंदगी बिता रहे थे। उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि उन जैसे बंधु पहचान को मोहताज रहते हैं। वे कहते थे कि अगर उनकी बिरादरी का कोई राजनीति में होता तो उनकी स्थिति कुछ और होती। उनकी इच्छा थी कि उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो। इसके लिए उन्होंने प्रयास भी किया, लेकिन उनका यह सपना कभी पूरा नहीं हो पाया। उन्हें छत्तीसगढ़ की कई फिल्मों में भी काम करने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उस वक्त तक शरीर उनका साथ नहीं दे रहा था। उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोककला मंच से जुड़कर चंदैनी गोंदा और मोर गंवई गांव जैसे मंच के साथ गांव-गांव में प्रस्तुति दी। इसके अलावा राजनांदगांव में चौपाटी में भी वे लोगों का मनोरंजन करते दिखे। इसके लिए उन्हें नगर निगम से तनख्वाह भी मिलती थी, लेकिन एक कलाकार को जब उसकी प्रतिभा के अनुरूप महत्व या सम्मान नहीं मिलता, तो उसका दिल मायूस हो जाता है। नत्थू दादा के साथ भी यही सब हुआ। वे मुफलिसी में राजनांदगांव की चौपाटी में लोगों का मुस्कुराकर मनोरंजन तो करते थे, लेकिन उनका दिल रोता था। आखिरकार आज नत्थू दादा जिंदगी की जद्दोजहद के सामने हार गए।
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