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  स्पाइक प्रोटीन क्या है? कोरोना वायरस इंफेक्शन के फैलने और वैक्सीन के असर में इसकी क्या भूमिका है?
 साल 2019 से कोरोना का कहर दुनिया भर में जारी है।  हाल के दिनों में खबरें आईं कि स्पाइक प्रोटीन की वजह से कोरोना वायरस शरीर में फैल रहा है।  इस विषय में बता रहे हैं राजकीय हृदय रोग संस्थान, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर में कार्यरत वरिष्ठ प्रोफेसर ऑफ कार्डियोलॉजी डॉ. अवधेश शर्मा से। 
  शरीर में कैसे फैलता है वायरस?
डॉ. अवधेश शर्मा का कहना है कि डीएनए और आरएनए दो तरह के वायरस होते हैं।  डीएनए वायरस प्रोटीन बनाते हैं और डीएनए से आरएनए बनता है। आरएनए वायरस भी प्रोटीन बनाते हैं। आरएनए से सीधा प्रोटीन बन जाता है। वायरस सजीव और निर्जीव दोनों कैटेगरी में आता है। कोई भी वायरस का कण जब हमारे शरीर में आता है तो बॉडी की कोशिकाओ में घुसता है। कोशिकाओं के डिविजन को कंट्रोल कर लेता है। वायरस कोशिकाओं को अनियंत्रित तरीके से बढ़ाता है। वायरस कोशिकाओं में जाकर अपनी कॉपी बनाने लग जाएगा। जिसे वायरल रेप्लीकेशन कहा जाता है। इस तरह से यह वायरस शरीर को नुकसान पहुंचाने लगता है। जिनकी इम्युनिटी स्ट्रांग होती है वह वायरस से लड़ लेती है जिनकी नहीं होती है, वे बीमार पड़ जाते हैं। 
 स्पाइक प्रोटीन क्या है?
कोरोना वायरस आरएनए वायरस है। आरएनए में भी ये सिंगल स्ट्रैंडिड वायरस है। आमतौर पर कोरोना वायरस सिंगल स्ट्रैंडिड आरएनए वायरस है। जबकि डीएनए वारयस डबल चेन होते हैं। आरएनए से प्रोटीन बनती हैं। प्रोटीन कई तरह के होते हैं।
 प्रोटीन के प्रकार 
एम प्रोटीन -एक वायरस के चारों ओर का प्रोटीन होता है जिसको एम प्रोटीन  कहा जाता है।  
 ई प्रोटीन - जेनेटिक मटेरियल के चारों तरफ दो घेरे होते हैं। इनर लेयर को इनवलेप प्रोटीन कहते हैं। आउटर लेयर को एम प्रोटीन प्रोटीन कहते हैं।
स्पाइक प्रोटीन - कोरोना ग्रीक शब्द है, जिसका अर्थ है क्राउन। क्राउन के चारों तरफ सूरज की रोशनी की तरह किरणें निकली होती हैं। ऐसी ही संरचना कोरोना वायरस की है। कोरोना वायरस की जो ये लाइन बाहर की तरफ निकली होती हैं, ये स्पाइक प्रोटीन होती हैं। इसी को एस प्रोटीन भी कहा जाता है। 
शरीर में स्पाइक प्रोटीन क्या करता है?
 स्पाइक प्रोटीन जीवित लोगों के अंदर वायरस का प्रवेश आसान बना देता है। वायरस में जो कांटे वाले स्ट्रक्चर होते हैं, ये स्पाइक प्रोटीन मनुष्य की बॉडी में एसीई2 रिसेप्टर होता है।  ये एसीई2 रिसेप्टर शरीर के अलग-अलग अंगों में पाए जाते हैं। हृदय की कोशिकाओं में, मासपेशियों की कोशिकाओं में, रक्त वाहिकाओं की कोशिकाओं आदि में पाए जाते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा फेफडो़ं की कोशिकाओं में होते हैं। स्पाइक प्रोटीन एसीई2 रिसेप्टर पर जाकर चिपक जाता है। इनसे चिपकर वायरस लिविंग सेल के अंदर एंट्री कर जाता है। शरीर में अंदर जाने के बाद वायरस अपनी कॉपी बनाने लग जाता है और तेजी से शरीर में फैलता है।
 कोरोना फेफड़ों को ज्यादा क्यों प्रभावित करता है?
डॉ. अवधेश शर्मा का कहना है कि फेफड़ों में एसीई2 रिसेप्टर सबसे ज्यादा होते हैं, इसलिए कोरोना वायरस फेफड़ों को ज्यादा प्रभावित करता है। इसके बाद हार्ट और ब्लड वेसेल और किडनी पर असर डालता है। छोटे बच्चों में एसीई2 रिसेप्टर का अमाउंट कम होता है। उम्र के साथ एस रिसेप्टर बढ़ते हैं। लेकिन छोटे बच्चों में यह कम होता है इसलिए बच्चों को कोरोना वायरस ज्यादा गंभीरता नहीं डालता है। जब एसीई रिसेप्टर कम होंगे तो वायरस शरीर में कम प्रवेश करेगा, इसलिए बच्चों में यह ज्यादा नुकसानदायक नहीं है। एडल्ट्स में एसीई रिसेप्टर ज्यादा होते हैं इसलिए एडल्ट्स में ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।
 

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