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 देश में 2000 से 2017 तक शिशु मत्यु दर, बच्चों के विकास अवरोध के संकेतकों में सुधार आया

नई दिल्ली। भारत में 2000 से 2017 के बीच शिशु मृत्युदर और बच्चों के विकास अवरुद्ध होने के संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिला है लेकिन कई राज्यों में जिलों के बीच असमानता बढ़ गयी है। इंडिया स्टेट-लेवल डिसीज बर्डन इनीशियेटिव की मंगलवार को जारी रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है।
 द लांसेट एंड एक्लीनिकल मेडिसिन में प्रकाशित यह रिपोर्ट भारत में शिशुओं की मृत्युदर और उनके विकास अवरोध की जिला स्तरीय प्रवृत्तियों का पहला समग्र आकलन है। इसमें कहा गया है कि अगर 2017 तक के आंकड़ों की प्रवृत्ति ऐसी ही रही तो भारत पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर (यू5एमआर) के 2030 के टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त कर लेगा लेकिन नवजात मृत्यु दर (एनएमआर) के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकेगा। इसमें कहा गया है, भारत में 34 प्रतिशत जिलों में यू5एमआर में अधिक कमी लाने की जरूरत है वहीं 60 प्रतिशत जिलों में एनएमआर में अधिक कमी लाना जरूरी है ताकि एसडीजी के अलग-अलग दोनों लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।  भारत में पांच साल से कम आयु के बच्चों की मौत के 68 प्रतिशत कारणों में जच्चा-बच्चा का कुपोषित होना प्रमुख वजह है, वहीं नवजात बच्चों की मृत्यु के 83 प्रतिशत मामलों में शिशुओं का जन्म के समय कम वजन होना और समय पूर्व जन्म होना मुख्य कारण हैं। अध्ययन के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2017 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के सर्वाधिक मामले आए और इनकी संख्या 3 लाख 12 हजार 800 थी जिनमें 1 लाख 65 हजार 800 नवजात शामिल थे। इसके बाद दूसरे सर्वाधिक मामले बिहार में आए जहां उस साल पांच साल से कम उम्र के 1 लाख 41 हजार 500 बच्चों की मौत हो गयी जिनमें 75 हजार 300 नवजात शामिल थे। 

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