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मां की ‘अनिच्छा' के बावजूद पिता जी ने जन्मदिन पर ‘केक' काटा था : अनिल शास्त्री

 लखनऊ। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनिल शास्त्री को अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री का आखिरी जन्मदिन आज भी जेहन में ताजा है, वह बताते हैं कि मां की इच्छा के बावजूद पैटन टैंक जैसा दिखने वाला केक पिताजी ने काटा था और उसके कुछ ही महीने बाद उनका निधन हो गया था। पैटन पाकिस्तानी टैंक था जिसका इस्तेमाल उसने भारत के खिलाफ 1965 के युद्ध में किया था ।
 कांग्रेस नेता अनिल शास्त्री ने दो अक्टूबर 1965 को याद करते हुए  बताया, ‘‘मेरे पिता को उनके जन्मदिन पर बधाई देने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के हजारों लोग 10 जनपथ (तब प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) पर एकत्र हुए थे। उस समय, कांग्रेस के एक नेता एक केक लेकर आये, जो पैटन टैंक जैसा दिखता था और मेरे पिता से इसे काटने का आग्रह किया।'' उन्होंने बताया, ‘‘मेरी मां ललिता शास्त्री ने यह कहते हुए अनिच्छा जाहिर की कि हमारे यहां केक काटना सहता नहीं है (शुभ नहीं माना जाता है)। हमारे परिवार में यह ठीक नहीं होता है।'' अनिल शास्त्री ने कहा, ‘‘लेकिन आगंतुकों ने जोर देकर कहा कि केक को यह कहते हुए काटा जाय कि यह केक नहीं है, बल्कि एक पैटन टैंक है और आखिरकार केक काटा गया।'' उन्होंने कहा कि जनवरी 1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री की मृत्यु हो गई और तब उनकी मां ने उन्हें बताया कि उन्होंने केक काटने के लिए मना किया था। पूर्व मंत्री ने कहा, "इससे पहले, मैंने अपनी एक बहन को खो दिया था, जिसने गलती से अपने जन्मदिन का केक काटा था ।'' उन्होंने यह भी कहा कि 1964 के जन्मदिन समारोह की तुलना में 1965 में मनाए गए जन्मदिन में लोग उन्हें बधाई देने के लिए उत्साहित थे, क्योंकि तब तक वह विशेष रूप से 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद नायक के तौर पर उभर चुके थे। अनिल शास्त्री ने अपने पिता से मिली डांट का एक प्रसंग भी साझा किया जब उन्‍होंने सरकारी कार शेवरोलेट इम्पाला चलाई तो लाल बहादुर शास्‍त्री क्रोधित हो गये और चालक से लॉग बुक ले ली। उन्होंने बताया कि उसे देख कर पिताजी ने चालक से कहा कि जितनी दूरी तय हुयी है उसके पैसा वह मेरी से मां से ले ले । उन्होंने बताया कि देश के सामने खाद्य संकट पैदा होने (जब अमेरिका ने गेहूं भेजने से इनकार कर दिया) के कारण लोगों से उपवास करने की अपील करने से पहले, उन्होंने पहले यह देखा कि परिवार के हम बच्चे उपवास कर सकते हैं कि नहीं । अनिल ने याद करते हुये कहा, ‘‘यह आश्वस्त होने के बाद कि परिवार में बच्चे उपवास कर सकते हैं, इसके बाद ही उन्होंने लोगों से उपवास करने की अपील की।" उन्होंने कहा, "इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ा और यही कारण था कि शास्त्री जी की विश्वसनीयता बहुत अधिक थी। लोगों को उन पर विश्वास था, क्योंकि उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था।" एक अन्य घटना का वर्णन करते हुए अनिल शास्त्री ने कहा, "मेरे पिता ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 1956 में रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया । उस वक्त मैं सात साल का था। मैंने 'बाबूजी' से पूछा था कि आपने इस्तीफा दे दिया है, लेकिन आप तो इंजन ड्राइवर नहीं थे (जिस ट्रेन का एक्सीडेंट हुआ था) तो उनका जवाब था 'बेटे' मैं अपने मंत्रालय का ड्राइवर हूं।'' पूर्व प्रधानमंत्री का जन्म दो अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था और 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में उनका निधन हो गया था।

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