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  क्या होते हैं विवाह के 36 गुण, शादी के लिए कितने गुणों का मिलान हैं जरूरी ?
 एक सफल गृहस्थ जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच गुणों का मिलना बहुत जरुरी होता है, ये गुण कुंडली के द्वारा मिलाए जाते हैं। वैवाहिक दृष्टि से  कुंडली मिलान इन पांच महत्वपूर्ण आधार पर किया जाता है - कुंडली अध्ययन,भाव मिलान, अष्टकूट मिलान, मंगल दोष विचार, दशा विचार। उत्तर भारत में गुण मिलान के लिए अष्टकूट मिलान प्रचलित है जबकि दक्षिण भारत में दसकूट मिलान की विधि अपनाई जाती है।  आइए जानते हैं  क्या है ये अष्टकूट मिलान- 
 वर्ण -(1 अंक)
वर्ण का निर्धारण चन्द्र राशि से निर्धारण किया जाता है जिसमें 4(कर्क) ,8 (वृश्चिक) , 12 (मीन) राशियां विप्र या ब्राह्मण हैं 1(मेष ), 5(सिंह) ,9(धनु) राशियां  क्षत्रिय है 2(वृषभ) , 6(कन्या) ,10(मकर) राशियाँ वैश्य हैं जबकि 3(मिथुन) ,7(तुला),11(कुंभ) राशियां शूद्र मानी गयी हैं।
 वश्य- (2अंक)
वश्य का संबंध मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- द्विपाद, चतुष्पाद, कीट, वनचर, और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है? द्विपदीय राशि के अंतर्गत मिथुन, कन्या, तुला और धनु राशि आती हैं। चतुष्पदी राशि के अंतर्गत मेष, वृषभ, मकर, जलचर राशि के अंतर्गत कर्क, मकर और मीन कीट राशि के अंतर्गत वृश्चिक राशि और वनचर राशि के अन्तर्गत सिंह राशि आती है। 
 तारा (3 अंक) 
तारा का संबंध दोनों (वर-वधु )के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाए गए हैं- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं। वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गिने और प्राप्त संख्या को 9 से भाग करें यदि शेष फल 3 ,5 , 7 आता है तो अशुभ होता है ,जबकि अन्य स्थिति मे तारा शुभ होता है तारा शुभ होने पर 1-1/2 अंक प्रदान करते हैं। ऐसा ही कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिन जाता है। अत: इस प्रकार दोनों के नक्षत्र से गिनने पर शुभ तारा आता है पूर्णांक 3 दिए जाते हैं, यदि एक शुभ और दूसरा अशुभ तारा आता है तो 1 - 1/2 अंक दिए जाते हैं अन्य स्थिति में कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।
 योनि (4अंक)
जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। जन्म नक्षत्र के आधार पर योनि निर्धारित होती हैं जिसका विवरण इस प्रकार से है - यदि योनियां एक ही है तो 4 अंक , यदि मित्र है तो 3 अंक , यदि सम है तो 2अंक , शत्रु है तो 1अंक , और यदि अति शत्रु है तो कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।  
 ग्रह मैत्री (5 अंक)  
वर एवं कन्या के राशि स्वामी से ग्रह मैत्री देखी जाती है। राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है। 
 गण ( 6 अंक )
गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य। हम इसे यह भी कह सकते हैं कि सभी नक्षत्रों को तीन समूहों देव, मनुष्य और राक्षस में बांटा गया है। अनुराधा , पुनर्वसु , मृगशिरा , श्रवण , रेवती , स्वाति , हस्त ,अश्विनी और पुष्य इन नौ नक्षत्रों का देव गण होता है। पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, भरणी और आद्रा इन नौ नक्षत्रों का मनुष्य गण होता है। मघा ,आश्लेषा, धनिष्टा ,ज्येष्ठा , मूल , शतभिषा , विशाखा , कृतिका ,और चित्रा का राक्षस गण होता है । इस प्रकार यदि वर-कन्या दोनों के गण एक ही हो तो पूर्णांक 6 अंक, वर देव गण हो कन्या नर गण की हो तो भी 6 अंक, यदि कन्या का देव गण हो वर का नर हो तो 5 अंक यदि वर राक्षस गण का हो कन्या देव गण की हो तो 1 अंक और अन्य परिस्थितियों में कोई अंक नहीं दिया जाता है।
 भकूट (7 अंक)
भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एक-दूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है। वर और कन्या की चंद्र राशि के आधार पर भकूट देखा जाता है। वृष और मीन, कन्या और वृश्चिक, धनु और सिंह हो तो शून्य अंक,  तुला और तुला, कर्क और मकर, मिथुन और कुंभ हो तो सात अंक और समान राशि होने पर भी 7 अंक प्राप्त होंगे।  
 नाड़ी ( 8 अंक)
 जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन प्रकार की नाडिय़ां होती हैं आदि, मध्य और अंत्या। इस कूट मिलान में वर -कन्या की एक नाड़ी नहीं होनी चाहिए , यदि दोनों की अलग-अलग नाड़ी हो तो पूर्णांक 8 अंक दिए जाते हैं जबकि अन्य स्थिति में ( जहां दोनों की एक ही नाड़ी होती है) कोई भी अंक नहीं दिया जाता है। जन्म राशि एक किन्तु नक्षत्र भिन्न अथवा नक्षत्र एक परन्तु राशि भिन्न अथवा चरण भिन्न होने पर दोष नहीं माना जाता है।
 कितने गुण मिलने से विवाह माना जाता है उत्तम 
कुंडली में ये सभी मिलकर  36 गुण होते हैं, जितने अधिक गुण वर-वधू के मिलते हैं, विवाह उतना ही सफल माना जाता है। 
18 से कम- विवाह योग्य नहीं अथवा असफल विवाह 
18 से 25- विवाह के लिए अच्छा मिलान 
25 से 32- विवाह के उत्तम मिलान, विवाह सफल होता है 
32 से 36- ये अतिउत्तम मिलान है, ये विवाह सफल रहता है

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