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बसंत पंचमी से जुड़ी बातें

बसंत पंचमी  के दिन से शीत ऋतु समाप्त हो जाती है और बसंत ऋतु का आगाज होता है. इस दौरान प्रकृति स्वयं का सौंदर्यीकरण करती है. पुरानी चीजों को त्यागकर पेड़ों पर नई पत्तियां और नई कोपलें नजर आती हैं. पीले रंग की सरसों की फसल खेतों में लहलहाती है. माना जाता है कि इसी दिन माता सरस्वती भी प्रकट हुई थीं, इसलिए बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती  की विशेष रूप से पूजा होती है. उत्तर भारत में इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व है. लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और पीली ही चीजें भगवान को अर्पित करते हैं.
इस बार बसंत पंचमी आज 5 फरवरी 2022 को मनाई जा रही है. इस पावन अवसर पर यहां जानिए बसंत पंचमी से जुड़ी खास बातें.
– कहा जाता है कि माता सरस्वती के जन्म से पहले ये संसार मौन था. इसमें बहुत नीरसता थी. लेकिन बसंत पंचमी के दिन जब माता सरस्वती प्रकट हुई तो उनके वीणा का तार छेड़ते ही संसार के जीव जंतुओं में वाणी आ गई. वेद मंत्र गूंज उठे. तब भगवान श्रीकृष्ण ने माता सरस्वती को वरदान दिया कि आज का ये दिन आपको समर्पित होगा. इस दिन लोग आपकी पूजा करेंगे. आप ज्ञान, वाणी और संगीत की देवी कहलाएंगी.
– बसंत पंचमी के दिन तमाम घरों में कॉपी-किताबों की पूजा के बाद छोटे बच्चे को पहली बार लिखना सिखाया जाता है. मान्यता है कि इससे बच्चे कुशाग्र बुद्धि के होते हैं और उन पर माता सरस्वती की हमेशा कृपा बनी रहती है. ऐसे बच्चे खूब तरक्की करते हैं.
– बसंत पंचमी के दिन भारत में तमाम जगहों पर पतंग उड़ाई जाती है. कहा जाता है कि पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ था. इसके बाद फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुंचा.
– बसंत पंचमी के दिन देश के तमाम हिस्सों में अलग अलग मिष्ठान बनाकर दिन को सेलिब्रेट किया जाता है. बंगाल में बूंदी के लड्डू और मीठा भात चढ़ाया जाता है. बिहार में खीर, मालपुआ और बूंदी और पंजाब में मक्‍के की रोटी, सरसों का साग और मीठा चावल चढाया जाता है. उत्तर प्रदेश में भी पीले मीठे चावल प्रसाद के तौर पर बनाएं जाते हैं.
– बसंत पंचमी के दिन होलिका दहन के लिए लकड़ियों को इकट्ठा करके एक सार्वजनिक स्थान पर रख दिया जाता है. अगले 40 दिनों के बाद, होली से एक दिन पहले श्रद्धालु होलिका दहन करते हैं. इसके बाद होली खेली जाती है.
– कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन श्रीराम गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले दंडकारण्य इलाके में मां सीता को खोजते हुए आए थे और यहीं पर मां शबरी का आश्रम था. इस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, उनका मानना है कि श्रीराम उसी शिला पर आकर बैठे थे. वहां शबरी माता का मंदिर भी है
–  कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी का वध करके आत्मबलिदान दिया था.

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