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  असुर, दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच और बेताल में  कौन थे ज्यादा शक्तिशाली....

 हिन्दू धार्मिक कथाओं को पढ़ते कई बार असुर, दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच और बेताल का वर्णन आता है। आम तौर पर हम इन सभी को एक ही मान लेते हैं और इसका उपयोग एक पर्यायवाची शब्द के रूप में करते हैं, किन्तु ये सभी अलग-अलग हैं। आइये इन सभी के बीच के अंतर को जानते हैं।
 इनमें से एक "असुर" तो एक प्रतीकात्मक शब्द है। "जो सुर नहीं है वो असुर है।" अर्थात - जो कोई भी देवता नहीं है वो सभी असुर कहलाते हैं। किंतु इस वाक्य में देवता का अर्थ बहुत व्यापक है। मूल रूप से देवता केवल 12 हैं जिन्हें हम आदित्य कहते हैं। महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री अदिति के गर्भ से उत्पन्न 12 पुत्र ही आदित्य अथवा देवता कहलाते हैं।  किन्तु यहाँ देवता का अर्थ सभी 33 कोटि देवता, उप-देवता, यक्ष, गन्धर्व इत्यादि है। ये सभी सम्मलित रूप से "सुर" कहलाते हैं। तो इस प्रकार दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच, बेताल इत्यादि को भी हम असुर कह सकते हैं।  महर्षि कश्यप ने ब्रह्मापुत्र प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियां उत्पन्न हुईं। ये सभी भी उन्हीं में से एक हैं।  
दैत्य: महर्षि कश्यप और दक्ष की पुत्री दिति के पुत्र दैत्य कहलाये। इस प्रकार ये देवताओं (आदित्यों) के छोटे भाई हुए। कश्यप और दिति के दो पुत्र - हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष हुए जहां से दैत्य जाति का आरम्भ हुआ। इन्हीं के गुरु भृगु पुत्र शुक्राचार्य थे। इन दोनों की होलिका नामक एक पुत्री भी हुई। हिरण्याक्ष का वध भगवान वाराह ने किया। हिरण्याक्ष का पुत्र ही कालनेमि था जिसने द्वापर तक श्रीहरि के सभी अवतारों से प्रतिशोध लिया और बार-बार उनके हाथों मारा गया। बड़े भाई हिरण्यकशिपु के सबसे छोटे पुत्र प्रह्लाद थे जो महान विष्णु भक्त हुए। उन्हीं को मारने के प्रयास में होलिका मारी गयी। होलिका का पुत्र स्वर्भानु था जिसे हम राहु-केतु के नाम से जानते हैं। अंत में अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नारायण ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। प्रह्लाद के पुत्र विरोचन हुए और विरोचन के पुत्र दैत्यराज बलि हुए। इन्हीं बलि को श्रीहरि ने वामन रूप लेकर पराभूत किया और पाताल का राज्य दे दिया। इन बलि के पुत्र महापराक्रमी बाण हुए जो महान शिवभक्त हुए। कालांतर में इन्हें श्रीकृष्ण ने परास्त किया और इनकी पुत्री उषा श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से ब्याही गयी। बलि की पुत्री वज्रज्वला रावण के भाई कुम्भकर्ण से ब्याही गयी। इनके कुल का भी अनंत विस्तर हुआ।
दानव: ये दैत्यों और आदित्यों के छोटे भाई थे जिनकी उत्पत्ति महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री दनु से हुई। दानवों के 114 कुल चले जिनमें से 64 मुख्य माने जाते हैं। ये आकार में बहुत बड़े होते थे और बहुत बर्बर माने जाते थे। ये दैत्य और राक्षसों की भांति उतने सुसंस्कृत नहीं होते थे। पहली पीढ़ी के दानवों में विप्रचित्ति प्रमुख है जो होलिका का पति था। मय दानव को तो सभी जानते हैं जो असुरों के शिल्पी थे। इन्हीं की पुत्री मंदोदरी रावण की पत्नी थी। इसके अतिरिक्त कालिकेय दानवों का वंश भी बहुत प्रसिद्ध था। कालिकेय कुल में जन्मा विद्युतजिव्ह ही रावण की बहन शूर्पणखा का पति था। बाद में रावण ने युद्ध में उसका वध कर दिया और शूर्पणखा को दंडकवन का राज्य प्रदान किया। दानवों में वृषपर्वा का नाम भी बहुत प्रसिद्ध है जो ययाति की दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा के पिता थे।
राक्षस: ये सभी असुरों में सबसे सुसंस्कृत और विद्वान माने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति की दो कथा प्रसिद्ध है। एक कथा के अनुसार महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री सुरसा के पुत्र ही राक्षस कहलाये। हालांकि राक्षसों की उत्पत्ति की दूसरी कथा ही अधिक मान्य है जिसके अनुसार ब्रह्मा जी के क्रोध से हेति और प्रहेति नामक दो असुरों का जन्म हुआ और वहीं से राक्षस वंश की शुरुआत हुई। प्रहेति तपस्वी बन गया और हेति ने यमराज की बहन भया से विवाह किया जिससे उसे विद्युत्केश नामक पुत्र प्राप्त हुआ। विद्युत्केश की पत्नी सलकंटका थी जिससे उसे सुकेश नामक पुत्र हुआ, जिसे उसने त्याग दिया। तब माता पार्वती ने उसे गोद ले लिया और वो शिव पुत्र कहलाया। सुकेश ने देववती से विवाह किया जिससे उसे तीन पुत्र प्राप्त हुए - माल्यवान, सुमाली एवं माली। सुमाली के 10 पुत्र और 4 पुत्रियां हुई जिनमें से एक कैकसी थी। कैकसी ने ब्रह्मा के पौत्र और महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा से विवाह किया जिससे रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण पैदा हुए। रावण की दो पत्नियों - मंदोदरी और धन्यमालिनी से 7 पुत्र हुए जिनमें मेघनाद ज्येष्ठ था। कुम्भकर्ण के वज्रज्वला से कुम्भ एवं निकुम्भ नामक पुत्र हुए। उसने एक विवाह विराध राक्षस की विधवा कर्कटी से भी किया जिससे भीम नामक पुत्र हुआ। इसी पुत्र को मारकर भगवान शंकर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। विभीषण की पत्नी सरमा से एक पुत्री त्रिजटा हुई। कैकसी की एक पुत्री शूर्पणखा हुई जो विद्युतजिव्ह से ब्याही जिसका वध रावण ने कर दिया। दुर्भाग्य से विभीषण को छोड़ सभी राक्षसों का वध लंका युद्ध में हो गया।  
पिशाच: इनका वर्णन हिन्दू ग्रंथों में थोड़ा कम मिलता है किन्तु कुछ ग्रंथों के अनुसार पिशाच महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री क्रोधवर्षा के पुत्र माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त सर्पों और अन्य विषैले जीव की उत्पत्ति भी क्रोधवर्षा से ही हुई। पुराणों में इन्हें मांसभक्षी बताया गया है जो रक्त का पान करते हैं। अन्य सभी असुर भी निशाचर होते थे किन्तु पिशाचों को पूर्ण रूप से निशाचर ही माना गया है। ये इच्छाधारी होते थे और किसी भी रूप को धारण कर सकते थे। पश्चिमी संस्कृति में "वैम्पायर" का जो वर्णन किया जाता है वो वास्तव में हमारे पिशाच का ही स्वरुप है।
बेताल: पिशाचों में जो सर्वाधिक शक्तिशाली होते थे उन्हें ही बेताल कहा जाता है। कई स्थानों पर इन्हे पिशाचों का स्वामी भी बताया गया है। शैव धर्म में इन्हे भगवान शंकर का गण और कई स्थानों पर उनका वाहन भी कहा गया है। कुछ स्थानों पर इन्हे माँ शांतादुर्गा का भाई भी माना गया है। ये काल भैरव के भक्त और सेवक के रूप में नियुक्त होते थे। बेतालों में ही एक शाखा "अग्नि बेताल" की मानी गयी है जो माता काली के भक्त थे। गोवा के अमोना गांव में बेताल स्वामी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है।

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