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रामायण, महाभारत एवं अन्य पौराणिक कहानियों में योद्धाओं की कई पदवी देखने को मिलती है। योद्धाओं को उनके पराक्रम के हिसाब से पदवी दी जाती थी। आज हम इस लेख में उच्च कोटि के योद्धाओं की बात करेंगे।
प्राचीन काल के प्रमुख योद्धाओं को मुख्यत: 6 श्रेणियों में बांटा गया है:अर्धरथी: अर्धरथी एक प्रशिक्षित योद्धा होता था जो अस्त्र-शस्त्रों के संचालन में निपुण होता था। एक अर्धरथी अकेले 2500 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता था। रामायण और महाभारत की बात करें तो इन युद्धों में असंख्य अर्धरथियों ने हिस्सा लिया था। महाभारत युद्ध में योद्धाओं के बल का वर्णन करते हुए पितामह भीष्म ने कर्ण की गिनती एक अर्धरथी के रूप में कर दी थी। कई लोग मानते हैं कि इसी कारण कर्ण ने भीष्म के रहते युद्ध में भाग नहीं लिया था।रथी: एक ऐसा योद्धा जो सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र के संचालन में निपुण हो तथा 2 अर्धरथियों, अर्थात 5000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सके।रामायण: रामायण में कई रथियों ने हिस्सा लिया जिनका बहुत विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है। राक्षसों में खर, दूषण, तड़का, मारीच, सुबाहु, वातापि आदि रथी थे। वानरों में गंधमादन, मैन्द एवं द्विविन्द, हनुमान के पुत्र मकरध्वज, शरभ एवं सुषेण को रथी माना जाता था।महाभारत: सभी कौरव, युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव, शकुनि, उसका पुत्र उलूक, उपपांडव (प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक एवं श्रुतसेन), विराट, उत्तर, शिशुपाल पुत्र धृष्टकेतु, जयद्रथ, शिखंडी, सुदक्षिण, शंख, श्वेत, इरावान, कर्ण के सभी पुत्र, सुशर्मा, उत्तमौजा, युधामन्यु, जरासंध पुत्र सहदेव, बाह्लीक पुत्र सोमदत्त, कंस, अलम्बुष, अलायुध, बृहदबल आदि की गिनती रथी के रूप में होती थी। दुर्योधन को 8 रथियों के बराबर माना गया है।अतिरथी: एक ऐसा योद्धा जो सामान्य अस्त्रों के साथ अनेक दिव्यास्त्रों का भी ज्ञाता हो तथा युद्ध में 12 रथियों, अर्थात 60 हजार सशस्त्र योद्धाओं का सामना एक साथ कर सकता हो।रामायण: लव, कुश, अकम्पन्न, विभीषण, देवान्तक, नरान्तक, महिरावण, पुष्कल, काल में अंगद, नल, नील, प्रहस्त, अकम्पन, भरत पुत्र पुष्कल, विभीषण, त्रिशिरा, अक्षयकुमार, हनुमान के पिता केसरी अदि अतिरथी थे।महाभारत: भीम, जरासंध, धृष्टधुम्न, कृतवर्मा, शल्य, भूरिश्रवा, द्रुपद, घटोत्कच, सात्यिकी, कीचक, बाह्लीक, साम्ब, प्रद्युम्न, कृपाचार्य, शिशुपाल, रुक्मी, सात्यिकी, बाह्लीक, नरकासुर, प्रद्युम्न, कीचक आदि अतिरथी थे।महारथी: ये संभवत: सबसे प्रसिद्ध पदवी थी और जो भी योद्धा इस पदवी को प्राप्त करते थे वे पुरे विश्व में सम्मानित और प्रसिद्ध होते थे। महारथी एक ऐसा योद्धा होता था जो सभी ज्ञात अस्त्र शस्त्रों और कई दिव्यास्त्रों को चलने में समर्थ होता था। युद्ध में महारथी 12 अतिरथियों अथवा 720000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता था। इसके अतिरिक्त जिस भी योद्धा के पास ब्रह्मास्त्र का ज्ञान होता था (जो गिने चुने ही थे) वो सीधे महारथी की श्रेणी में आ जाते थे।रामायण: भरत, शत्रुघ्न, अंगद, सुग्रीव, अतिकाय, कुम्भकर्ण, प्रहस्त, जामवंत आदि महारथी की श्रेणी में आते हैं। रावण, बाली एवं कत्र्यवीर्य अर्जुन को एक से अधिक महारथियों के बराबर माना गया है।महाभारत: अभिमन्यु, बभ्रुवाहन, अश्वत्थामा, भगदत्त, बर्बरीक आदि महारथी थे। भीष्म, द्रोण, कर्ण, अर्जुन एवं बलराम को एक से अधिक महारथियों के बराबर माना गया है। कहीं-कहीं अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के कारण अतिमहारथी भी कहा जाता है किन्तु उसका कोई लिखित सन्दर्भ नहीं है।अतिमहारथी: इस श्रेणी के योद्धा दुर्लभ होते थे। अतिमहारथी उसे कहा जाता था जो 12 महारथी श्रेणी के योद्धाओं अर्थात 8640000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना अकेले कर सकता हो साथ ही सभी प्रकार के दैवीय शक्तियों का ज्ञाता हो।महाभारत: महाभारत काल में केवल भगवान श्रीकृष्ण को अतिमहारथी माना जाता है।रामायण: रामायण में भगवान श्रीराम अतिमहारथी थे। उनके अतिरिक्त मेघनाद को अतिमहारथी माना जाता है क्यूंकि केवल वही था जिसके पास तीनों महास्त्र - ब्रम्हास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र थे। पाशुपतास्त्र को छोड़ कर लक्ष्मण को भी समस्त दिव्यास्त्रों का ज्ञान था अत: कुछ जगह उन्हें भी इस श्रेणी में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान परशुराम और महावीर हनुमान का भी वर्णन कई स्थान पर अतिमहारथी के रूप में किया गया है।अन्य: भगवान विष्णु के अवतार विशेष कर वाराह एवं नृसिंह को भी अतिमहारथी की श्रेणी में रखा जाता है। कुछ देवताओं जैसे कार्तिकेय, गणेश तथा वैदिक युग के ग्रंथों में इंद्र, सूर्य एवं वरुण को भी अतिमहारथी माना जाता है। आदिशक्ति की दस महाविद्याओं, नवदुर्गा एवं रुद्रावतार, विशेषकर वीरभद्र और भैरव को भी अतिमहारथी माना जाता है।महामहारथी: ये किसी भी प्रकार के योद्धा का उच्चतम स्तर माना जाता है। महामहारथी उसे कहा जाता है जो 24 अतिमहारथियों अर्थात 207360000 सशस्त्र योद्धाओं का सामना कर सकता हो। इसके साथ ही समस्त प्रकार की दैवीय एवं महाशक्तियाँ उसके अधीन हो। इन्हे परास्त नहीं किया जा सकता। आज तक पृथ्वी पर कोई भी योद्धा अथवा अवतार इस स्तर पर नहीं पहुँचा है। इसका एक कारण ये भी है कि अभी तक 24 अतिमहारथी एक काल में तो क्या पूरे कल्प में भी नहीं हुए हैं। केवल त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र) एवं आदिशक्ति को ही इतना शक्तिशाली माना जाता है। -
जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान जगदीश के मंदिर का आखिर सपनों से क्या है कनेक्शन और क्या है इस पावन धाम से जुड़ी मान्यता, विस्तार से जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
भारत में आस्था से जुड़े कई ऐसे पावन धाम हैं, जो अपने भीतर तमाम तरह के रहस्य को समेटे हुए हैं. नित नए चमत्कार से भरा एक ऐसा मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर में स्थित है, जिसे लोग सपनों का मंदिर कहते हैं. मान्यता है कि जगत के पालनहार माने जाने वाले भगवान श्री विष्णु के दर्शन मात्र से लोगों के सभी दु:ख दूर हो जाते हैं. बेजोड़ वास्तु शैली का उदाहरण माने जाने वाले इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसे बनने में 25 साल लग गए थे. आइए राजस्थान के इस प्रसिद्ध मंदिर धार्मिक महत्व और इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं.
जगदीश मंदिर का सपने से क्या है संबंध
राजस्थान के इस प्रसिद्ध विष्णु मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी भगवान श्री विष्णु ने यहां के राजा जगत सिंह प्रथम को सपने में दर्शन देकर एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया था. मान्यता है कि स्वप्न में भगवान श्री विष्णु ने राजा से कहा कि अब वे यहीं पर आकर निवास करेंगे. इसके बाद उदयपुर के महाराणा जगत सिंह प्रथम ने भगवान श्री विष्णु के इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. जिसे बनाने में कुल 25 साल लग गये और यह 1652 में जाकर पूरा हुआ था.
बेजोड़ है जगदीश मंदिर की वास्तु कला
उदयपुर के जिस मंदिर में स्वयं जगदीश निवास करते हैं, वह नागर शैली में बना हुआ है. लगभग 125 फीट ऊंचाई पर बने इस मंदिर का शिखर भी भी 79 फीट ऊंचा है. मंदिर में भगवान श्री विष्णु की बहुत खूबसूरत काले रंग की प्रतिमा है. भगवान जगदीश के इस मंदिर की शानदार नक्काशी और उसके भीतर काले पत्थरों से बनी भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा का दर्शन करने वाला व्यक्ति खुद को धन्य मानता है.
दर्शन मात्र से दूर होते हैं लोगों के दु:ख-दर्द
उदयपुर के सबसे बड़े मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है कि यहां आने वाले भक्त की भगवान श्री विष्णु पलक झपकते सभी तन और मन की पीड़ा दूर कर देते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले हर शख्स का सपना जरूर पूरा होता है. -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में विवाह रेखा से ना केवल वैवाहिक जीवन का पता लगाया जा सकता है बल्कि विवाह किस उम्र में होगा और जीवनसाथी कैसा होगा, इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। हस्तरेखा में बुध पर्वत पर हृदय रेखा और कनिष्ठा उंगली के मूल के बीच की चौड़ाई को 50 माना गया है। इसे आप उम्र भी मान सकते हैं। इसी चौड़ाई वाले भाग पर एक या एक से अधिक खड़ी रेखाएं मिलती हैं जो विवाह रेखाएं कहलाती हैं। इनमें से सबसे लंबी रेखा को ही प्रमुख विवाह रेखा माना गया है और विवाह निर्धारण में इसी पर विचार किया जाता है। यदि आपके हाथ में दो रेखाएं हैं तो इसमें लंबी रेखा को मानेंगे। यदि हृदय रेखा के पास विवाह रेखा बन रही है तो आपकी शादी 20-25 साल की उम्र में हेागी, लेकिन यदि रेखा कनिष्ठा उंगली के पास है तो शादी 25 साल के बाद ही हेागी।
यह स्थिति विवाह में देरी को दर्शाती हैं। कई बार में कनिष्ठा उंगली और हृदय रेखा के पास भी खड़ी रेखाएं हैं तो इसका मतलब है कि रिश्ता तय होने के बाद टूट सकता है। हालांकि इस स्थिति में हृदय रेखा के पास रेखाएं छोटी होनी चाहिए। यदि विवाह रेखा हृदय रेखा की ओर झुके तो जीवनसाथी सपोर्ट और प्यार करने वाला होता है, लेकिन यदि विवाह रेखा का मुख उंगली की ओर तो जीवनसाथी से सपोर्ट एवं प्यार नहीं मिल पाता। हाथ में एक से अधिक रेखाएं एक से अधिक शादी का संकेत नहीं देती। इसमें से सबसे बड़ी रेखा विवाह की रेखा है। बाकी छोटी-छोटी रेखाएं रिश्ते होने के बावजूद शादी नहीं होने का संकेत देती हैं। हालांकि बुध पर्वत पर विवाह रेखा के आगे चलकर दोमुखी होना दूसरी शादी का संकेत देती है। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
जीवन में आर्थिक स्थिति का मजबूत होना बहुत जरुरी है। बहुत से लोग आर्थिक तंगी से परेशान रहते हैं। लोगों के मन में एक सवाल हमेशा बना रहता है कि उनके जीवन में अच्छा-खासा धन मिलेगा भी या नहीं। हस्तरेखा विज्ञान में हाथों में ऐसी रेखाओं पर विस्तार से चर्चा की गई है जिससे यह पता लगा सकते हैं कि जातक के जीवन में कितना धन आएगा। यदि मंगल पर्वत से कोई रेखा निकलकर कोई रेखा जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा को काटकर हृदय रेखा तक पहुंचे तो यह स्थिति जीवन में अच्छे धनलाभ का संकेत देती है।
यदि जीवन रेखा से कोई रेखा निकलकर मस्तिष्क रेखा तक पहुंचे और भाग्य रेखा जीवन रेखा से ही निकलकर शनि पर्वत तक पहुंचे तो इन रेखाओं से बनने वाला त्रिकोण जीवन में बड़े धनलाभ का योग बनाता है। यह मनी ट्राएंगल भी कहलाता है। यह त्रिभुज व्यक्ति को व्यापार में अपार सफलता दिलाता है। यदि हृदय रेखा से निकलकर मस्तिष्क रेखा तक पहुंचकर क्रॉस का निशान बनाए तो यह भी अच्छी किस्मत का संकेत है। यह निशान करोड़ों में धनलाभ का संकेत देता है। -
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में कुछ बहुत ही शुभ किस्म के निशान होते हैं। इनमें से कुछ निशान ऐसे भी होते हैं जो व्यक्ति की धार्मिकता और उसके धार्मिक कार्यों के प्रति रुचि को दर्शाते हैं। ऐसे लेाग अपने गृहस्थ जीवन में रहते हुए किसी मंदिर का निर्माण कराते हैं। गुरु पर्वत पर मत्स्य का निशान होना इसी में से एक है। यदि किसी व्यक्ति के गुरु पर्वत पर मत्स्य का निशान है तो वह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। ऐसे लोग धर्म के प्रकाण्ड विद्वान होते हैं। इन्हें धर्म का अत्यधिक ज्ञान होता है। हालांकि ऐसे लोग अपने जीवन में बहुत ही संकोची प्रवृत्ति के भी होते हैं।
ऐसे लोग अपना रुपया मांगने में भी संकोच करते हैं। ये लोग दूसरों का काम पहले करना पसंद करते हैं। जन्म से ही ऐसे लोगों का उठना-बैठना अच्छे लोगों में होता है। जीवन रेखा से निकलकर कोई रेखा शनि पर्वत पर पहुंचे तो यह देरी से भाग्योदय का संकेत देती है। ऐसे लोग गुप्त विद्याओं के बहुत जानकार होते हैं। यदि सूर्य पर्वत पर पताका का निशान है तो ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में मंदिर का निर्माण कराते हैं। यदि व्यक्ति के जीवन रेखा पर वर्ग का निशान बने तो यह रक्षा का संकेत है। ऐसे लोग धर्म-कर्म में बढ़ चढ़कर काम करते हैं और ईश्वर उनकी रक्षा करते हैं। -
-पंडित प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार 15-15 दिनों के दो पक्ष होते हैं. एक पक्ष में पूर्णिमा और दूसरे पक्ष में अमावस्या आती है. कृष्ण पक्ष के दौरान चंद्रमा का आकार धीरे-धीरे कम होता है और अमावस्या पर चांद आकाश से गायब हो जाता है. इस तरह से कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहा जाता है.
मौनी अमावस्या का महत्व
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि पर दान, दक्षिणा और पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व होता है. हर वर्ष माघ महीने के अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस अमावस्या में मौन रहते हुए पूजा-पाठ और जप-तप करने का विशेष महत्व होता है. माघ में मौन रहते हुए व्रत करना सबसे अच्छा माना जाता है. इस दिन मौन व्रत का पालन करते हुए भगवान से जाने-अनजाने में हुए पाप के लिए क्षमा प्रार्थना मांगना शुभ होता है. मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इसके अलावा इस दिन दान करने से ग्रह अनुकूल रहते हैं.
मौनी अमावस्या पर 30 साल बाद विशेष संयोग
इस वर्ष मौनी अमावस्या पर विशेष संयोग बनने जा रहा है. ऐसे संयोग 30 वर्षों के बाद दोबारा से बनेगा. हिंदू पंचांग की गणना के मुताबिक 21 जनवरी को मौनी अमावस्या पर 30 साल के बाद खप्पर योग बनेगा. इस योग में कुंडली में शनि के शुभ प्रभाव को बढ़ाने और धार्मिक कार्यों के लिए विशेष माना जाता है. इसके अलावा मौनी अमावस्या के पहले शनि का राशि परिवर्तन भी होने वाला है. अमावस्या तिथि शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए विशेष तिथि मानी जाती है. शनि सभी ग्रहों में सबसे मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं और यह न्याय और कर्मफलदाता है. शनि ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करते हैं. मौनी अमावस्या पर शनि कुंभ राशि में मौजूद रहेंगे. मकर राशि में सूर्य और शुक्र की युति से खप्पर योग का निर्माण होगा.
मौनी अमावस्या पूजा विधि
मौनी अमावस्या तिथि पर सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें. अगर यह संभव न हो सके तो पानी में गंगाजल की कुछ बूदें मिलाकर स्नान करें. स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें. फिर मंत्रों का जाप करें. इसके बाद गरीबों को धन, भोजन औ वस्त्रों का दान करें.
मौनी अमावस्या 2023
मौनी अमावस्या तिथि: 21 जनवरी, 2023 तिथि की शुरुआत: सुबह 06 बजकर 19 मिनट से तिथि की समाप्ति: 22 जनवरी की रात 02 बजकर 25 मिनट तक - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायज्यादातर घरों में देखा गया है कि परिवार के सदस्य घर में प्रवेश करने से पहले कहीं भी जूते - चप्पल उतार देते हैं। किसी घर में द्वार पर जूते-चप्पलों का ढेर पड़ा रहता है। ऐसा करना वास्तु शास्त्र के हिसाब से गलत माना जाता है। इससे घर में बरकत नहीं होती है। वास्तु के अनुसार अगर घर पर रखी चीजें सही दिशा में होती है तो हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता रहता है। वास्तु शास्त्र में घर में हर एक सामान को रखने की सही दिशा के बारे में विस्तार से बताया गया है। वास्तु में जूते-चप्पलों को रखने के लिए कुछ नियम होते हैं जिसका पालने करने पर घर में हमेशा सुख-समृद्धि और संपन्नता आती है। आइए जानते हैं वास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर जूते-चप्पलों कहां और किस तरह से रखना सही माना गया है।-वास्तु शास्त्र के अुनसार घर पर जूते-चप्पल रखने के लिए दक्षिण या पश्चिम दिशा का चुनाव करें। इस दिशा में जूते-चप्पल रखना शुभ और वास्तु सम्मत माना जाता है।- वास्तु के अनुसार जिन घरों में जूते-चप्पल इधर-उधर फैले रहते हैं वहां पर घर के सदस्यों के बीच अक्सर लड़ाई-झगड़े और मनमुटाव होते हैं।-वास्तु के अनुसार अगर घर पर जूते-चप्पल कहीं पर भी उतार देने की आदत होती है या फिर बिखरे हुए होते हैं तो व्यक्ति के जीवन में शनि का दुष्प्रभाव बढ़ता है।-वास्तु शास्त्र में पूर्व और उत्तर दिशा को बहुत ही शुभ दिशा माना जाता है। इस दिशा में भगवान का वास होता है। ऐसे में भूलकर भी घर की इस दिशा में जूते-चप्पल नहीं रखना चाहिए। इस दिशा में जूते-चप्पल रखने पर व्यक्ति के जीवन में आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार पूर्व और उत्तर दिशा से सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। इस कारण से दिशा में जूते-चप्पल नहीं रखना चाहिए।- कई लोग अक्सर अपने बेडरूम में शू रैक बनाकर रख लेते हैं। वास्तु के अनुसार बेडरूम में शू रैक रखना शुभ नहीं माना जाता है। बेडरूम में जूते-चप्पल रखने से वैवाहिक जीवन में बुरा प्रभाव पड़ता है। घर के इस कमरे में जूते-चप्पल रखने से पति-पत्नी के बीच में अक्सर लड़ाई-झगड़े होते रहते है जिसकी वजह से रिश्तों में तनाव और खटास आ जाती है।- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का मुख्य द्वार सबसे खास जगह और महत्वपू्र्ण हिस्सा होता है। क्योंकि इस दिशा से ही सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। घर का मुख्य द्वार घर की शोभा होती है। लेकिन अक्सर देखने में मिलता है कि लोगों के घर के मुख्य द्वार पर जूते-चप्पलों का ढेर लगा होता है। वास्तु में मुख्य द्वार पर जूते-चप्पल रखना शुभ नहीं माना जाता है। वास्तु के अनुसार किसी घर में मां लक्ष्मी का आगमन मुख्य द्वार से होता है। इसलिए हमेशा मुख्य द्वार पर साफ-सफाई और सुंदरता बनाकर रखनी चाहिए।
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायभगवान शनि देव 17 जनवरी की सायं 6 बजकर 02 मिनट पर मकर राशि की यात्रा समाप्त करके अपनी स्वयं की ही राशि कुंभ में प्रवेश कर रहे हैं। इसी के साथ धनु राशि वालों की साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी और मीन राशि वालों की साढ़ेसाती शुरू होगी। जानें शनि के राशि परिवर्तन का किस राशि पर क्या प्रभाव पड़ेगा।मेष राशि-इस राशि के जातकों को शनिदेव बेहतरीन सफलता दिलाएंगे। सोची-समझी सभी रणनीतियां कारगर सिद्ध होंगी। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों और बड़े भाइयों से मतभेद को बढ़ावा ना दें। कार्य व्यापार में उन्नति होगी। ु प्रेम संबंधी मामलों में उदासीन रहेंगे विद्यार्थियों और प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए भी समय बेहतरीन रहेगा। अच्छे प्रभाव के लिए शनि के वैदिक मंत्र अथवा स्तोत्र का पाठ करें।वृषभ राशि-इस राशि के जातकों को शनिदेव कई तरह के अप्रत्याशित परिणामों का सामना करवाएंगे। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहना पड़ेगा। कार्यक्षेत्र में भी षड्यंत्र का शिकार होने से बचें। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में किसी भी तरह के बड़े टेंडर के लिए आवेदन करना हो तो उस दृष्टि से ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना हो अथवा किसी नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो तो भी ग्रह फल अति अनुकूल रहेगा। शनिदेव की कृपा हमेशा प्राप्त होती रहे इसके लिए शनि स्तोत्र का पाठ करें।मिथुन राशि-राशि से नवम भाग्य भाव में गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव जातक में साहस और पराक्रम की वृद्धि कराएगा किंतु कई बार कार्य बड़ी मंदगति से होगा जिससे निराशा भी हो सकते हैं किंतु इन सब चीजों को अपने ऊपर हावी ना होने दें , क्योंकि सफलता आपको ही मिलेगी। काफी दिनों का प्रतीक्षित परिणाम सकारात्मक मिलेगा। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए प्रयास करना हो तो ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। दूसरे देश की नागरिकता के लिए भी अवसर अनुकूल है शनि देव का और सुखद फल आपको मिलता रहे उसके लिए पीपल का वृक्ष लगाएं।कर्क राशि-राशि से अष्टम आयु भाव पर गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता विशेष करके स्वास्थ्य के प्रति आपको अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है। कार्यक्षेत्र में भी षड्यंत्र का शिकार होने से बचें, बेहतर रहेगा काम संपन्न करें और सीधे घर आएं। कोर्ट-कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लेना समझदारी रहेगी। पैतृक संपत्ति संबंधी विवाद हल होंगे। ससुराल पक्ष से मतभेद और दांपत्य जीवन में कटुता न आने दें। विवाह संबंधी वार्ता में थोड़ा और समय लग सकता है। शनिदेव की शांति करवाना सभी कार्य बाधाओं से मुक्ति देगा।सिंह राशि-राशि से सप्तम दांपत्य भाव में गोचर करते हुए शनिदेव कई तरह के अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव का सामना करवाएंगे। दांपत्य जीवन में शुभता आएगी। विवाह संबंधी वार्ता सफल रहेगी। साझा व्यापार करने से परहेज करें। कोई नया व्यापार आरम्भ करना हो तो भी समय अचछा रहेगा। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। चुनाव से संबंधित कोई निर्णय लेना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से भी इनका प्रभाव बेहतरीन रहेगा। अपने स्वभाव में उग्रता न आने दें। योजनाओं को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे। शनिस्तोत्र का पाठ करना और भी शुभ परिणाम दायक रहेगा।कन्या राशि-राशि से छठे शत्रु भाव में गोचर करते हुए शनिदेव बेहतरीन सफलता दिलाएंगे। काफी दिनों के प्रतीक्षित कार्य संपन्न होंगे। शत्रु परास्त होंगे । अदालती मामलों में भी निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। पैतृक संपत्ति संबंधी विवाद हल होगा। कोर्ट-कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। यात्रा देशाटन का लाभ मिलेगा। अत्यधिक खर्च के कारण आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ सकता है। सब कुछ सुखद रहेगा किंतु इस अवधि के मध्य किसी भी बड़े कर्ज के लेन देन से बचें। शनिदेव की और शुभता आपको प्राप्त होती रहे उसके लिए शनि स्तोत्र का पाठ करें।तुला राशि-राशि से पंचम विद्या भाव में गोचर करते हुए शनिदेव आपको जीवन के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाएंगे किंतु छल कपट और प्रपंचों से दूर रहना होगा अन्यथा नुकसान भी हो सकता है। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। प्रेम संबंधी मामलों में प्रगाढ़ता आएगी। प्रेम विवाह भी करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। आय के साधन बढ़ेंगे। उच्चाधिकारियों से मेलजोल बढ़ेगा, उनसे लाभ भी होगा। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। शनि देव के वैदिक मंत्र का जप करना शुभता में वृद्धि करेगा।वृश्चिक राशि-राशि से चतुर्थ सुख भाव में गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव काफी उतार-चढ़ाव वाला रहेगा। सफलताओं के बावजूद कहीं न कहीं पारिवारिक कलह और मानसिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। मित्रों तथा संबंधियों से भी अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। मकान अथवा वाहन का क्रय करना चाह रहे हों तो उस दृष्टि से ग्रह गोचर अनुकूल रहेगा। कार्य व्यापार में उन्नति होगी। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। शनिदेव के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए इनकी शांति करवाना और पीपल वृक्ष का आरोपण करना सुखद रहेगा।धनु राशि-राशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए शनिदेव आपके लिए प्रतीक्षित परिणामों का सुखद अंत करवाएंगे। जैसी सफलता चाहेंगे हासिल करेंगे। अपने अदम्य साहस और पराक्रम के बलपर विषम परिस्थितियों पर भी आसानी से नियंत्रण पा लेंगे। लिए गए निर्णय और किए गए कार्यों की सराहना होगी। धर्म और अध्यात्म में रूचि बढ़ेगी। संतान संबंधी चिंता परेशान करेंगी उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखें। अपनी ऊर्जाशक्ति का सदुपयोग करते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे। शनिदेव का वैदिक मंत्र जप और सफलता देगा।मकर राशि-राशि से द्वितीय धनभाव में गोचर करते हुए शनिदेव आर्थिक पक्ष मजबूत करेंगे। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद है। पैतृक संपत्ति एवं वाहन सुख प्राप्ति के योग। जमीन-जायदाद अथवा मकान वाहन का क्रय करना चाह रहे हो तो उस दृष्टि से ग्रह फल अति अनुकूल रहेगा। स्वास्थ्य विशेष करके दाहिनी आंख से संबंधित समस्या से सावधान रहें। शरीर के जोड़ों में भी दर्द बढ़ सकता है उस पर भी ध्यान रखें। कार्यक्षेत्र में षड्यंत्र का शिकार होने से बचें। शनि स्तोत्र का पाठ करना अति उत्तम रहेगा।कुंभ राशि-आपकी राशि में गोचर करते हुए शनि देव का प्रभाव अच्छा ही कहा जाएगा यद्यपि ऐसा भी माना जा सकता है कि साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव भी मिल सकता है किंतु यह सब आपके चाल, चेहरा और चरित्र पर निर्भर करेगा। जैसा कार्य करेंगे वैसे ही शनि की कृपा मिलेगी। शासन सत्ता का पूर्ण सहयोग मिलेगा। अदालती मामलों में निर्णय आपके पक्ष आने के संकेत हैं। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए भी समय बेहतरीन रहेगा। शनिदेव का वैदिक मंत्र जाप सुख में वृद्धि करेगा।मीन राशि-राशि से बारहवें व्यय भाव में गोचर करते हुए शनिदेव का प्रभाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। अत्यधिक भागदौड़ और खर्च का सामना तो करना ही पड़ेगा आर्थिक तंगी बढ़ सकती है इसलिए अपव्यय से बचें। साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव से भी दो-चार होना पड़ेगा इसलिए बेहतर रहेगा कि अपने कार्य पर ध्यान दें और दूसरों को परेशान करने से बचें। शनिदेव की शांति करवाना, पीपल का वृक्ष लगाना सर्वोत्तम रहेगा।
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पंडित प्रकाश उपाध्याय
इस समय माघ मास चल रहा है। मासिक शिवरात्रि पर भगवान शंकर की पूजा- अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। मासिक शिवरात्रि का पर्व भगवान शंकर को समर्पित होता है। मासिक शिवरात्रि पर रात्रि में पूजा का विशेष महत्व होता है। मासिक शिवरात्रि पर विधि- विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा- अर्चना की जाती है।
आइए जानते हैं माघ मास की मासिक शिवरात्रि डेट, पूजा- विधि, शुभ मुहूर्त, और सामग्री की पूरी लिस्ट...
मासिक शिवरात्रि डेट- 20 जनवरी, 2023
मुहूर्त-
माघ, कृष्ण चतुर्दशी प्रारम्भ - 10:14 ए एम, जनवरी 20
माघ, कृष्ण चतुर्दशी समाप्त - 06:32 ए एम, जनवरी 21
पूजा का शुभ मुहूर्त- 11:53 पी एम से 12:47 ए एम, जनवरी 21
मासिक शिवरात्रि पूजा विधि--
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।
भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें।
भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा- अर्चना की जाती है।
भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें।
ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
भगवान भोलेनाथ को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान की आरती करना न भूलें।
मासिक शिवरात्रि पूजा सामग्री लिस्ट---
पुष्प, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि। -
माघ मास को बहुत पावन माह माना जाता है। इस माह में किए गए धार्मिक कार्यों से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और समस्त मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। इस माह भगवान श्रीहरि के साथ भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस माह अधिक से अधिक समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत करना चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इस माह वास्तु में बताए गए कुछ उपाय अवश्य करने चाहिए। आइए जानते हैं इनके बारे में।
माघ माह में अगर कुछ विशेष वस्तुओं का दान और पवित्र नदियों में स्नान किया जाए तो दीर्घायु, आरोग्य, सौंदर्य, सौभाग्य, धन-धान्य आदि की प्राप्ति होती है। माघ माह में प्रत्येक शनिवार काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करें। इस उपाय से आर्थिक समस्याएं दूर हो सकती हैं।
माघ मास में स्नान-दान का विशेष महत्व है। इस माह दान करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। माघ मास में प्रयागराज में माघ मेला आरंभ होता है। माघ मास में संगम में पूरे माह स्नान करने वाले को भगवान श्री हरि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सुख-सौभाग्य, धन और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि माघ मास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल कई जन्मों तक मिलता है। माघ माह में प्रतिदिन श्रीमद्भागवत गीता या रामायण का पाठ करना चाहिए। माघ मास में स्नान के पानी में तिल डालना चाहिए। माघ मास में रोजाना तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें। शाम को तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाएं। माघ माह में रोजाना स्नान करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करें।
उन्हें पंचामृत अर्पित करें। माघ माह में देर तक शयन करने से बचें। इस माह में भोजन में तिल और गुड़ का प्रयोग अधिक करना चाहिए। माघ माह में काले वस्त्र धारण करने से बचें। माघ मास में जरूरतमंद को गुड़, तिल और कंबल का दान शुभ फलदायी माना जाता है। माघ मास में भगवान सूर्य की उपासना अत्यंत लाभकारी है। प्रतिदिन सुबह सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करें।
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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- पंडित प्रकाश उपाध्याय
हाथ में शनि पर्वत बेहद महत्वपूर्ण है और इस पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाओं का जीवन में व्यापक असर पड़ता है। शनि पर्वत को ज्योतिष में भाग्य स्थान भी माना गया है। शनि पर्वत पर रेखाओं का पहुंचना जरुरी है। यदि शनि पर्वत पर कोई रेखा ना पहुंचे, लेकिन इस पर एक या दो खड़ी रेखाएं हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में भूखा नहीं मरता। ऐसे व्यक्ति को धन मिलता रहता है। यदि शनि पर्वत पर वी का चिह्न बने और इसमें पांच या इससे कम शाखाएं निकलें तो व्यक्ति जीवन में करोड़ों रुपये का मालिक होता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत पर पहुंच जाए तो ऐसा व्यक्ति का भाग्योदय घर से दूर जाने पर ही होगा।
यदि शनि पर्वत पर केंद्र में मछली का निशान बने तो जीवन में धन की प्राप्ति होगी, लेकिन यह चिह्न शनि और गुरु पर्वत पर बने तो व्यक्ति धन और सम्मान दोनों पाता है। इसी तरह यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर सीधे शनि पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति को परिवार से संपत्ति मिलती है। जीवन रेखा से कोई रेखा से उदय हो शनि पर्वत पर पहुंचे तो ऐसा व्यक्ति अपने दम पर संपत्ति खड़ी करता है। ऐसे लोगों को परिवार से कोई संपत्ति नहीं मिलती। यदि जीवन रेखा से उदय रेखा थोड़ा अंदर आकर मंगल पर्वत तक पहुंच जाए तो यह बहुत ही शुभ है।
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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हाथ में धन की कोठरी तो बहुत सुनी होगी। अनेक लोग पूछते भी रहते हैं कि धन की कोठरी कैसे होगी और यह कैसे खुलेगी। हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा प्रमुख होती हैं। जीवन रेखा से ही कोई रेखा निकलकर शनि पर्वत तक पहुंचने वाली रेखा धन रेखा या भाग्य रेखा कहलाती है। जीवन रेखा से ही एक रेखा निकलकर बुध पर्वत तक पहुंचने वाली रेखा व्यवसाय रेखा होती है। इन रेखाओं से ही बंद कोठरी बनती है।
हाथ में धन की कोठरी जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा और व्यवसाय रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा के साथ मिलने से बनत है। इन तीनों रेखाओं से हाथ में एक कोठरी या त्रिभुजनुमा रचन बनती है। हस्तरेखा विज्ञान में इसे ही धन की कोठरी के नाम से जाना जाता है। शनि पर्वत भाग्य, धन और गूढ विद्याओं का प्रतीक होता है। व्यवसाय रेखा व्यवसाय का प्रतीक होती है। मस्तिष्क रेखा बुद्धि का प्रतीक है। ऐसे लोग अपनी बुद्धि और व्यापार के दम पर अकूत धन कमाते हैं। हालांकि यह त्रिभुज कहीं से भी खुला हुआ नहीं हेाना चाहिए। यदि इस त्रिभुज पर क्रॉस का निशान बने तो कमाया हुआ सारा धन नष्ट हो जाता है।
- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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-पंडित प्रकाश उपाध्याय
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। पृथ्वी पर रहने वाले सभी धर्म व जाति के लोग बारह महीनों का साल मनाते हैं, चाहे वे कोई भी मान्यता के कैलेंडर को प्रयोग में लाएं। ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां व 12 घर का मूल सिद्धांत है। सूर्य 1 महीना हर राशि या हर घर में बिताते हैं अर्थात 30 दिन में सूर्य दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इसका मतलब जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उसे ‘संक्रांति’ कहते हैं। इसी प्रकार जब-जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो वेदों के अनुसार उस दिन को ‘मकर संक्रांति’ कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में होते हैं।
मकर संक्रांति के दिन सुबह स्नान करके दान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर आते हैं। अत शनि देव अपने पिता का स्वागत करते हैं। इस वर्ष 14 जनवरी, 2023 को रात्रि 08.44 के बाद सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे, अत मकर संक्रांति 15 जनवरी, 2023 को मनायी जाएगी।
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य देव, विष्णु जी व लक्ष्मी देवी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन उड़द की दाल की खिचड़ी व तिल के लड्डू का दान करना चाहिए। गरीबों को कंबल-वस्त्र बांटने चाहिए। रंग-बिरंगे वस्त्र, विशेषकर पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। पूरे भारत वर्ष में केवल महाराष्ट्र ऐसा प्रदेश है, जहां मकर संक्रांति के दिन काले वस्त्र धारण करने की परंपरा है। काली उड़द की दाल दान करने से शनि संबंधी दोष दूर होते हैं। दान करने से हमारे सभी पाप नष्ट होते हैं। इस अवसर पर सूर्य के प्राचीन मंत्र गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र बहुत शक्तिशाली व सबसे पुराने वेद ‘ऋग्वेद’ का सूर्य मंत्र है।
मकर संक्रांति के दिन मांस-मंदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करें। इस दिन चावल, चना, मूंगफली, गुड़, तिल, उड़द की दाल इत्यादि से बनी सामग्री का सेवन करना चाहिए। इस दिन किसी गरीब या भिखारी को अपने घर से खाली हाथ न लौटाएं। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य व शनि देव नीच के होकर बैठे हैं या मारक हैं अथवा शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है, तो वे शनि देव के सात रत्न अभिमंत्रित करके और ‘ओम् शं शनैश्चराय नम’ की सात माला पढ़कर बहते जल में प्रवाहित करें। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य देव नीच अथवा मारक हैं, उन्हें ‘ओम् घृणि सूर्याय नम’ की सात माला पढ़कर, सूर्य देव के सात अभिमंत्रित रत्न प्रवाहित करने चाहिए। इस दिन पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर परिवार के सभी लोग स्नान अवश्य करें।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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-पंडित प्रकाश उपाध्याय
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर दिशा का एक खास महत्व और अपनी एक निश्चित ऊर्जा होती है। प्रत्येक दिशा और उसकी ऊर्जा को ध्यान में रखकर उसकी साज- सज्जा करने से घर में पॉजिटिव एनर्जी आती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में मंदिर का सही दिशा में न होना कई परेशानियों की वजह बन सकता है। उचित दिशा में मंदिर का होना घर में सुख-शांति लाता है।
● वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के उत्तर-पूर्व दिशा में मंदिर का निर्माण करना चाहिए। इसे ईशान कोण भी कहते हैं। ऐसा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। ईशान कोण को देवताओं का कोना भी कहा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में ईश्वरीय शक्ति का प्रवेश उत्तर पूर्व दिशा से होता है। जो दक्षिण- पश्चिम से होकर बाहर निकलती है इसीलिए पूजा करते हुए व्यक्ति का मुंह हमेशा पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।
● पूजा घर के आसपास शौचालय नहीं होना चाहिए। यदि बॉथरूम पहले से मौजूद है तो उसके दरवाजे हमेशा बंद करके रखें।
● पूजा घर में दीपक या अगरबत्ती जलाकर रखें ऐसा करने से वास्तु दोष दूर होता है।
● अपनी सुविधा को ध्यान में रखकर ज्यादातर घरों में मंदिर को जमीन से बहुत कम ऊंचाई पर स्थापित कर दिया जाता है। ताकि बैठकर आसानी से पूजा की जा सके। लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से वास्तु दोष उत्पन्न होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में बने मंदिर की ऊंचाई कम से कम 10 इंच होनी चाहिए।
● भूलकर भी घर की दक्षिण दिशा में पूजा घर न बनाएं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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मोबाइल नंबर-9406363514 - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य देव धनु राशि को छोड़ते हुए अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर जाते हैं। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। सूर्य देव के मकर राशि में आने के साथ ही खरमास समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश आदि शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति को भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति भगवान सूर्य का प्रिय पर्व है। इस दिन सूर्य देव की उपासना से ज्ञान-विज्ञान, विद्वता, यश, सम्मान और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। सूर्य को सभी ग्रहों का सेनापति माना जाता है। ऐसे में सूर्य की उपासना करने से समस्त ग्रहों का दुष्प्रभाव कम हो जाता है। धर्म और ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ खाने और दान करने से कुंडली में शनि और सूर्य की अशुभ स्थिति से शांति मिलती है। शास्त्र में काले तिल का संबंध शनि और गुड़ का संबंध सूर्य से बताया गया है। मकर सक्रांति के दिन इन दोनों चीजों को खाने से शनि और सूर्य देव की कृपा बनी रहती है। इससे घर में सुख समृद्धि आती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।स्नान-दान की विशेष महत्तामकर संक्रांति के दिन स्नान और दान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य देव को लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, मसूर दाल, तांबा, सोना, सुपारी, लाल फूल, नारियल, दक्षिणा करने से सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है , पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान करने से घर में सुख-शांति आती है। इस दिन गुड़ और तिल दान करने से कुंडली में सूर्य और शनि की स्थिति से शांति मिलती है।इस दिन तांबे के बर्तन में काले तिल को भरकर किसी गरीब को दान करने से शनि की साढ़े साती में लाभ होता है। मकर संक्रांति के दिन नमक का दान करने से भी शुभ लाभ होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन गाय के दूध से बने घी का दान करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
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- पंडित प्रकाश उपाध्याय
घर का बेडरूम आराम करने का प्रमुख स्थान होता है. क्या आप जानते हैं कि यहां से घर की सुख-शांति को भी नियंत्रित किया जा सकता है. ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से घर के बेडरूम में शुक्र और चन्द्रमा का प्रभाव होता है. इस स्थान में गड़बड़ी होने से घर में अशांति होती है. पति-पत्नी के बीच अलगाव की नौबत आ जाती है. रिश्तों में दरार पड़ने लगती है. आइए जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में बेडरूम से जुड़ी किन बड़ी गलतियों के बारे में बताया गया है।
क्या होनी चाहिए बेडरूम की दिशा?
घर के बेडरूम के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके अलावा पश्चिम दिशा का भी प्रयोग किया जा सकता है. लेकिन बेडरूम की दिशा उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व में न हो तो अच्छा होगा. इससे दांपत्य जीवन में मुश्किलें आने की संभावना बढ़ जाती है. पति-पत्नी के बीच लड़ाई झगड़े बढ़ सकते हैं. उत्तर-पश्चिम का बेडरूम भी अक्सर जीवन में धन का नुकसान और तनाव लेकर आता है।
बेडरूम में पलंग रखने के नियम
बेडरूम में पलंग पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण की ओर होना चाहिए. इंसान का सिर सोते समय हमेशा पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर रहना चाहिए. हालांकि गेस्ट रूम के बेड का सिरहाना पश्चिम हो सकता है. बेडरूम का पलंग लकड़ी का हो तो सर्वोत्तम होगा. लोहे या धातु का पलंग बहुत अच्छा नहीं होता है. पलंग आयताकार या वर्गाकार होना चाहिए. गोल पलंग बिलकुल न रखें. पलंग के नीचे जूते चप्पल और सामान न रखें।
कैसा हो बेडरूम की दीवारों का रंग
बेडरूम की दीवारों पर डार्क कलर बिल्कुल न रखें. पिंक, क्रीम, हल्का हरा रंग सर्वोत्तम माना जाता है. बेड के सामने शीशा बिलकुल न हो. यहां तक कि बेडरूम में टीवी और इलेक्ट्रॉनिक के सामान भी न रखें. कूड़ा पात्र, मंदिर और पूर्वजों के चित्र भी बेडरूम में नहीं होने चाहिए. बेडरूम में हल्की सुगंध का प्रयोग भी लाभदायक होता है. बेडरूम में नमक का पोंछा जरूर लगाएं।
बेडरूम में वास्तु दोष के उपाय
अगर आपके बेडरूम की दिशा उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व है तो यहां समुद्री नमक या कपूर के क्रिस्टल का एक कटोरा जरूर रखें. उत्तर-पूर्व की ओर मुख वाले बेडरूम की दीवारों को सफेद या पीले रंग से रंगवाएं. यहां लैवेंडर की खुशबू आर्थिक मोर्चे पर लाभ और दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाती है. आप बेडरूम के उत्तर-पश्चिम कोने में चंद्र यंत्र को रखकर भी वास्तु दोष दूर कर सकते हैं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
संपर्क- सुबह 10 से शाम 7 बजे
मोबाइल नंबर-9406363514 - फेंगशुई प्राचीन चीनी पद्धति है। वास्तु शास्त्र की तरह ही फेंगशुई को भी भारत में काफी मान्यता प्राप्त है। फेंगशुई में फर्नीचर को ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करने वाला कारक माना जाता है। ऊर्जा के प्रवाह को सही दिशा में बनाएं रखने के लिए और रातों को अच्छी नींद पाने के लिए बेडरूम में कुछ खास चीजों का होना बेहद आवश्यक है। आइए जानते हैं बेडरूम में जुड़े कुछ आसान से फेंगशुई टिप्स।बड़ा किंग साइज बेडहर व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी और पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है। बेडरूम जीवन को संतुलित बनाएं रखने का सबसे अच्छा तरीका है। अगर आपके पास बड़ा बेडरूम है तो उसमें एक बड़ा किंग साइज का बेड होना चाहिए। बड़े और आरामदायक बेड पर अच्छी नींद आती है और सोते वक्त किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होती है।बेडरूम का कलर: अच्छी नींद के लिए कमरे में शांत और आंखों को सुकून देने वाले रंग का होना अनिवार्य है। फेंगशुई के अनुसार बेडरूम में हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए। जो मन में शांति प्रदान करें। बेडरूम के लिए पिंक, ग्रीन और पेस्टल टोन रंगों का इस्तेमाल किया जा सकता है।दरवाजे बंद कर देंफेंगशुई के अनुसार अच्छी और आरामदायक नींद के लिए सोने से पहले कमरे, दराज या अलमारी सभी के दरवाजे अच्छी तरह से बंद करके सोना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है बहुत थके हुए होने पर लोग सीधा बेड पर जाकर सोना पसंद करते हैं। लेकिन मस्तिष्क के साथ ही साथ अपनी सभी इन्द्रियों को आराम देने के लिए सोते ने पूर्व अलमारी और कमरे का दरवाजा अच्छी तरह से बंद करके सोएं।कम रोशनी:फेंगशुई के अनुसार बेडरूम में सोते समय हल्की लाइट या मूड लाइट का प्रयोग करें। यह बेडरूम को एक आरामदायक माहौल प्रदान करेगा। जिसकी मदद से रातों को आप को अच्छी और सुकून भरी नींद ले सकते हैं।
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहिंदू धर्म के अनुसार, सकट चौथ का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस साल सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी व्रत 10 जनवरी, मंगलवार को मनाई जा रही है। देश में अलग अलग स्थानों पर इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस व्रत को संकष्टी चतुर्थी, लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट चौथ, तिलकुट चतुर्थी, संकट चौथ, माघी चौथ, तिल चौथ आदि नामों से जाना जाता है।सकट चौथ पर बन रहे कई शुभ संयोग-सकट चौथ पर कई शुभ संयोग बन रहे है। सकट चौथ पर सर्वार्थ सिद्धि योग, प्रीति योग व आयुष्मान योग भी बन रहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगा। प्रीति योग सूर्योदय से ही सुबह 11 बजकर 20 मिनट मिनट तक रहेगा। आयुष्मान योग सुबह 11 बजकर 20 मिनट से पूरे दिन रहेगा।सकट चौथ पर भद्रा का साया-इस साल सकट चौथ पर भद्रा का साया भी है। भद्रा सुबह 07 बजकर 15 मिनट से दोपहर 12 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। भद्राकाल में शुभ कार्यों की मनाही होती है। सकट चौथ में भगवान गणेश जी को तिल के लड्डुओं का भोग लगाते हैं। इसे तिल संकटा चौथ भी कहते हैं।सकट चौथ 2023 पर चंद्रोदय का समय-सकट चौथ व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा माना जाता है। इस दिन में चंद्रदेव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा का उदय रात 08 बजकर 41 मिनट पर होगा। इसके बाद ही व्रत पारण किया जाएगा।सकट चौथ व्रत कथा-सकट व्रत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से एक भगवान शंकर व माता पार्वती से जुड़ी है-इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना। गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें। इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी. तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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नए साल में जनवरी का दूसरा सप्ताह 09 जनवरी से 15 जनवरी तक रहेगा. नया सप्ताह पांच राशि के जातकों को आर्थिक मोर्चे पर बहुत लाभ देने वाला है. ज्योतिषियों का कहना है कि नए सप्ताह में मेष, वृषभ, मिथुन, सिंह और कन्या राशि वालों को धन लाभ होगा. हालांकि कुछ राशि वालों को इस सप्ताह चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि नया सप्ताह सभी राशियों के लिए कैसा रहने वाला है।
मेष- सप्ताह की शुरुआत में मानसिक तनाव हो सकता है. मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य के कारण समस्या हो सकती है. सप्ताह में दौड़ भाग और काम का दबाव बढ़ेगा. हालांकि आप बुद्धिमानी से सारी समस्याओं को हल कर ले जाएंगे. सप्ताह के अंत में कोई शुभ सूचना और धन लाभ मिल सकता है. इस सप्ताह शनि मंत्र का जप करना आपके लिये लाभकारी होगा।
वृष- सप्ताह की शुरुआत में धन और उपहार की प्राप्ति होगी. काम का बोझ कम होगा, लाभदायक यात्रा हो सकती है. मध्य में व्यर्थ के तनाव और स्वास्थ्य का ध्यान रखें. सप्ताह में किसी धार्मिक कार्य या सेवा सहायता में व्यस्त रहेंगे. सप्ताह के अंत में बड़े धन लाभ और उपहार प्राप्ति के योग हैं. इस सप्ताह खाने की वस्तुओं का दान करते रहें।
मिथुन- सप्ताह की शुरुआत से समस्याओं में सुधार होता जाएगा. धन लाभ के उत्तम योग हैं. रुका हुआ धन प्राप्त होगा. संतान और पारिवारिक समस्याओं से भी मुक्ति मिलेगी. इस सप्ताह दूसरों के मामले में हस्तक्षेप न करें. सप्ताह के अंत में वाणी और स्वभाव पर नियंत्रण रक्खें. पूरे सप्ताह बृहस्पति देव के मंत्र का जप करें।
कर्क- सप्ताह की शुरुआत में ही रुके हुए काम बन जाएंगे. करियर और जीवन के मामले में बड़ा निर्णय लेंगे. किसी महत्वपूर्ण छोटी यात्रा के संकेत भी मिल रहे हैं. धन और स्वास्थ्य की स्थिति कुल मिलाकर ठीक रहेगी. इस सप्ताह समय का पूरा सदुपयोग करें. पूरे सप्ताह नित्य सायं शनि मंत्र का जप करें।
सिंह- सप्ताह की शुरुआत में स्वस्थ्य बिगड़ सकता है. व्यर्थ के वाद विवाद तथा चोट चपेट की नौबत आ सकती है. सप्ताह के मध्य से स्थितियों में धीरे धीरे सुधार होता जाएगा. संतान या किसी मित्र के सहयोग से लाभ होने के योग हैं. सप्ताह के अंत तक धन और संपत्ति लाभ के योग हैं. पूरे सप्ताह नित्य प्रातः सूर्य देव को जल अर्पित करें.
कन्या- सप्ताह की शुरुआत में पारिवारिक कार्यों में व्यस्तता रहेगी. करियर की बाधा दूर होगी, धन का लाभ होगा. अभी भी स्वास्थ्य पर ध्यान बनाये रखना जरूरी होगा. कार्यक्षेत्र में कोई छोटा परिवर्तन हो सकता है. सप्ताह के अंत में कोई उपहार सम्मान का लाभ मिल सकता है. मंगलवार का दिन आपके लिये इस सप्ताह उत्तम रहेगा।
तुला- सप्ताह की शुरुआत में नए कार्य का आरम्भ हो सकता है. नौकरी या व्यवसाय में नई शुरुआत और लाभ की स्थितियां हैं. संतान पक्ष की उन्नति होगी, आपसी तालमेल भी बेहतर होगा. दवाई खाने और चिकित्सक की बात मानने का प्रयास करें. सप्ताह के अंत में कोई पुरानी समस्या परेशान कर सकती है. पूरे सप्ताह निर्धनों को केले का दान करें।
वृश्चिक- सप्ताह में मानसिक चिन्ता और तनाव दूर होते जाएंगे. करियर के मामले में अच्छी सफलता का समय है. नई चीजों की शुरुआत होगी, बड़े परिवर्तन होंगे. नई संपत्ति या नए वाहन का क्रय कर सकते हैं. इस सप्ताह में अपने अवसरों और समय का पूर्ण प्रयोग करें. बृहस्पतिवार का दिन इस सप्ताह में आपके लिए अनुकूल होगा।
धनु- सप्ताह की शुरुआत में स्वास्थ्य की समस्याएं हो सकती हैं. वाहन चलाने और खान पान में सावधानी रखनी होगी. सप्ताह मध्य से स्वास्थ्य और करियर में सुधार होगा. आर्थिक स्थिति कुल मिलाकर ठीक बनी रहेगी. सप्ताह के अंत में करियर की कोई शुभ सूचना मिल सकती है।
मकर- सप्ताह की शुरुआत में कोई रुका हुआ काम बन जाएगा. करियर की स्थितियां मजबूत होंगी, पद लाभ होगा. सप्ताह के मध्य में स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा. खान पान और वाहन चलाने में विशेष सावधानी रखें. हालांकि पारिवारिक और धन की स्थितियां उत्तम बनी रहेंगी. पूरे सप्ताह शिवलिंग पर जल अर्पित करना लाभकारी होगा।
कुम्भ- सप्ताह की शुरुआत से ही धन की स्थिति में सुधार होता जाएगा. काम का दबाव और तनाव कम होगा. मन ठीक होता जाएगा. करियर में बड़ा दायित्व इस समय मिल सकता है. शिक्षा प्रतियोगिता के मामले में सफलता मिलेगी. सप्ताह के अंत में स्वास्थ्य और वाद विवाद का विशेष ध्यान रक्खें. पूरे सप्ताह निर्धनों को भोजन का दान करें.
मीन- सप्ताह की शुरुआत में करियर में कुछ परिवर्तन हो सकता है. इस समय स्थान परिवर्तन की स्थितियां भी बन रही हैं. किसी व्यवसाय या स्वतंत्र कार्य का विचार कर सकते हैं. प्रेम और विवाह के मामलों में सफलता मिल सकती है. सप्ताह के अंत में परिवार में कोई मंगल कार्य हो सकता है. पूरे सप्ताह हनुमान जी की उपासना लाभकारी होगी। - हिंदू धर्म में हर महीने कई व्रत-त्योहार आते हैं। हर महीने एकादशी व्रत व प्रदोष व्रत समेत कई व्रत रखे जाते हैं। हर व्रत किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित माना गया है। जानें जनवरी महीने में आएंगे कौन-से व्रत व त्योहार-एकादशी भगवान विष्णु व प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित-हिंदू धर्म में एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। जबकि प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित माना गया है। मान्यता है कि इन व्रतों को रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वहीं इस साल जनवरी में बसंत पंचमी का त्योहार भी पड़ रहा है।जनवरी 2023 में पडऩे वाले व्रत-त्योहार-10 जनवरी : विश्व हिन्दी दिवस12 जनवरी : (स्वामी विवेकानन्द का जन्म दिवस) राष्ट्रीय युवा दिवस14 जनवरी, शनिवार- मकर संक्रांति14 जनवरी, शनिवार - लोहड़ी पर्व15 जनवरी : थल सेना दिवस15 जनवरी, रविवार- पोंगल18 जनवरी, बुधवार- षटतिला एकादशी19 जनवरी 2023, गुरुवार माघ प्रदोष व्रत (कृष्ण) - गुरु प्रदोष व्रत26 जनवरी गुरुवार -गणतंत्र दिवस26 जनवरी गुरुवार -वसंत पंचमी।26 जनवरी : गणतन्त्र दिवस
- बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायसूर्यदेव 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करने वाले हैं। मकर शनि के स्वामित्व वाली राशि है और सूर्य शनि देव के पिता हैं, इसलिए मकर राशि में पिता-पुत्र का यह दुर्लभ संयोग कई राशि के जातकों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सूर्य के इस गोचर से देवताओं का दिन शुरू होगा और मलमास खत्म हो जाएगा। सूर्य देव की कृपा से ऐसी 3 राशियां है जिनकी किस्मत का ताला इस गोचर से खुलने वाला है। आइए जानते हैं कौन सी हैं ये तीन राशियां-वृषभ राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य देव चौथे भाव मेंं होते है। इस भाव से जातक के मानसिक सुख, भौतिक सुख और मां का विचार किया जाता है। सूर्य देव अब वृष राशि के जातकों के लिए भाग्य स्थान में गोचर करेंगे। इस भाव में विराजमान सूर्य की दृष्टि आपके तीसरे भाव पर होगी। सूर्य के इस गोचर से आपको भाग्य का पूरा साथ मिलने वाला है और आपके करियर में आपको तरक्की मिलने के योग भी दिखाई दे रहे है। सूर्य की कृपा से धार्मिक स्थल की यात्रा के साथ ही गुरुओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। इस समय आपका साहस और पराक्रम भी बढ़ा हुआ रहने वाला है।सिंह राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य लग्नेश होते है। इस भाव से जातक के व्यक्तित्व का बोध होता है। सूर्य सिंह राशि के जातकों के लिए छठे भाव में गोचर करेंगे। इस भाव से जातक के रोग, ऋण और शत्रु का विचार किया जाता है। इस भाव में विराजमान सूर्य की दृष्टि अब आपके बारहवें भाव पर होगी। छठे भाव में सूर्य को शत्रुहंता कहा गया है। इस गोचर के कारण आपके सभी शत्रु खत्म हो जाएंगे। सिंह राशि के जातकों को नौकरी में अच्छे अवसर प्राप्त होने वाले है। इस समय आयात निर्यात से जुड़े जातकों को बढिय़ा मुनाफा प्राप्त होगा। सरकार के साथ काम कर रहे जातकों को बढिय़ा अवसर मिलेंगे।वृश्चिक राशिइस राशि के जातकों के लिए सूर्य दशम भाव के स्वामी होते है। इस भाव से जातक के कर्म स्थल और लीडरशिप का पता चलता है। वृश्चिक राशि के जातकों के लिए सूर्य अब तीसरे भाव में गोचर करने वाले है। इस भाव से साहस का विचार होता है। सूर्य की दृष्टि अब आपके नवम भाव पर होगी। इस गोचर के कारण आपको यात्राओं से लाभ होता हुआ दिखाई दे रहा है। इस समय आपको अपने पिता और भाग्य का सहयोग मिलने वाला है। अगर आप अपना कोई नया काम शुरू करना चाह रहे है तो इसमें आपको मदद मिल सकती है। सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे जातकों को इस समय कोई अच्छी खबर मिल सकती है।- पंडित प्रकाश उपाध्याय
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अक्सर बड़े-बुजुर्ग ऐसी चीजों का जिक्र करते हैं, जिन पर युवा पीढ़ी का ध्यान कम ही जाता है। बड़ों की नसीहत भले ही न मानें कि सुबह उठकर क्या करें और क्या नहीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तु में कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं जो आपका भाग्य चमका सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। वास्तु शास्त्र में सुबह उठकर कुछ चीजों को देखना अशुभ माना गया है।
आप भी जान लें किन सुबह उठते ही किन चीजों को देखने से परहेज करना चाहिए-
1. जंगली जानवर की तस्वीरें- कई लोग घरों में हिंसक पशु या जानवर की तस्वीरें रखते हैं, जिन पर सुबह उठते ही नजर पड़ती है। लेकिन सुबह उठते ही इन तस्वीरों को देखने से बचना चाहिए।
2. परछाई- सुबह उठकर या किसी अन्य की परछाई बिल्कुल नहीं देखनी चाहिए। पश्चिम दिशा की ओर परछाई देखना बहुत ही अशुभ माना जाता है।
3. झूठे बर्तन- वास्तु के अनुसार, सुबह उठते ही झूठे बर्तन नहीं देखने चाहिए। इसलिए कहा जाता है कि रात को ही सारे बर्तन साफ करके रखने चाहिए।
4. शीशा- सुबह उठते ही आइना सबसे पहले नहीं देखना चाहिए। कहते हैं कि सुबह शीशा देखने से रात भर की निगेटिविटी प्राप्त होती है।
सुबह उठते ही क्या करें-
वास्तु शास्त्र के अनुसार, सुबह उठते ही हथेलियों के दर्शन करें। मान्यता है कि हाथ की हथेलियों में सरस्वती व मां लक्ष्मी का वास होता है। भगवान का नाम लें और फिर चेहरे पर मल लें। इसके बाद सूर्यदेव के दर्शन करें। सूर्योदय से पूर्व उठने वाले लोग अगर चंद्रमा निकला हुआ है तो उसके भी दर्शन कर सकते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में धन का आगमन होता है और बिगड़े काम बन जाते हैं। -
आचार्य चाणक्य एक महान राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री थे. उनके द्वारा बताई गई नीतियों का लोग आज भी पालन करते हैं. ये नीतियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं. जितनी की पहले हुआ करती थीं. इन नीतियों के आधार पर आचार्य ने एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया था।
आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में व्यापार, धन, नौकरी, शिक्षा और रिश्तों से संबंधित कई बातों के बारे में उल्लेख किया है. आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में कुछ ऐसी चीजों के बारे में भी बताया है जिनका साथ व्यक्ति को बुढ़ापे तक नहीं छोड़नी चाहिए. इससे व्यक्ति हमेशा खुश रहता है. आइए जानें कौन सी हैं वो चीजें.
अनुशासन -
अनुशासन से आत्मविश्वास का जन्म होता है. इससे हर काम समय से होता है. जो लोग अनुशासन में रहते हैं वे जीवनभर किसी पर निर्भर नहीं होते हैं. ऐसे लोगों को हर कदम पर सफलता मिलती है. व्यक्ति को अपने काम को सही समय पर करने की आदत होनी चाहिए. इससे जीवनभर परेशानी नहीं होती है. इससे सेहत भी अच्छी रहती है. व्यक्ति को कभी भी अनुशासन का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
धन –
आचार्य चाणक्य के अनुसार हमेशा धन का सदुपयोग करें. इससे आपको बुढ़ापे तक परेशानी नहीं होती है. आपको बुढ़ापे में किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती है. ऐसा न करने वाले व्यक्ति हमेशा परेशान ही रहते हैं. इसलिए धन का सदुपयोग करें।
मदद –
आचार्य चाणक्य के अनुसार दूसरों की निस्वार्थ भावना से मदद करें. इससे आप जीवन में परेशान नहीं होते हैं. दान और दया को सबसे बड़ा धर्म माना जाता है. इसलिए हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करें. इससे आपका बुढ़ापा शांति से व्यतीत होता है. दूसरों की मदद के लिए हमेशा अपना हाथ खुला रखें. इससे आपको पुण्य की प्राप्ति होती है। - बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्यायहिंदू पंचांग के अनुसार पौष, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के बाद माघ महीने की शुरुआत होती है। माघ महीने को स्नान-दान, पूजा पाठ के लिए बेहद शुभ माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने की शुरुआत 7 जनवरी से हो रही है। जो 5 फरवरी तक चलेगा। माघ महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा मघा और अश्लेषा नक्षत्र में रहता है इसीलिए इसे माघ मास कहते हैं।माघ महीने का महत्व: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार गौतम ऋषि ने इंद्र देव से क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया था। बाद में इंद्रदेव की क्षमा याचना करने पर ऋषि गौतम ने उन्हें श्राप से मुक्ति का उपाय बताया। ऋषि गौतम ने इंद्र देव से कहा कि अगर वह श्राप से मुक्ति पाना चाहते हैं तो माघ मास में गंगा स्नान कर अपने पापों का प्रायश्चित कर इस श्राप से मुक्ति पा सकते हैं। इसके बाद से माघ मास में गंगा स्नान को बेहद पवित्र माना जाता है।किन बातों का रखें ख्याल-1. माघ महीने में तिल का दान करने से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है।2. माघ महीने में भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए।3. इस मास सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अघ्र्य दें।4. शाम के समय तुलसी की पूजा करनी चाहिए।5. भगवान विष्णु को तिल अर्पित करें।6. माघी पूर्णिमा और अमावस्या को पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।7. इस मास में हर गुरुवार के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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6 जनवरी को पौष मास की पूर्णिमा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को धन की देवी भी कहा जाता है। जिस व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की कृपा हो जाती है उसको जीवन में कभी भी आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मां लक्ष्मी के दिन कुछ खास उपाय किए जाते हैं। इन उपायों को करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
आइए जानते हैं मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें-
मां को लाल वस्त्र अर्पित करें--
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूर्णिमा के दिन मां को लाल वस्त्र अर्पित करने चाहिए। आप मां को सुहाग का सामान भी अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है और आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
मां लक्ष्मी को पुष्प अर्पित करें--
पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को पुष्प अर्पित करें। अगर संभव हो तो मां को लाल रंग के पुष्प अर्पित करने चाहिए।
विष्णु भगवान की पूजा करें--
पूर्णिमा के दिन धन- प्राप्ति के लिए विष्णु भगवान की पूजा भी करें। विष्णु भगवान की पूजा करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए हर शुक्रवार को माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करें।
खीर का भोग लगाएं---
पूर्णिमा के दिन श्री लक्ष्मीनारायण भगवान और मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। इस उपाय को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है और धन- लाभ होता है।