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सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सब कुछ महत्वपूर्ण है, जिसमें सोने की दिशा भी शामिल है। वास्तु के दृष्टिकोण से सोने की दिशा आपके जीवन को बदल सकती है।वास्तु के अनुसार जोड़ों के लिए सही सोने की दिशा भी सुरक्षा, प्यार और आपको और आपके जीवनसाथी से संबंधित होने की भावना प्रदान करती है। कपल्स के लिए बेडरूम का वास्तु ऐसा होना चाहिए कि माहौल रिश्ते को मजबूत करें। यदि दम्पति घर का स्वामी है तो शयन कक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यदि जोड़ा नवविवाहित है और बड़े भाई/कामकाजी माता-पिता के साथ रह रहा है, तो बेडरूम उत्तर-पश्चिम में होना चाहिए। विवाहित जोड़ों को उत्तर पूर्व के बेडरूम से बचना चाहिए, क्योंकि यह स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आइए जानते हैं विवाहित स्त्रियों का किस दिशा में सोना शुभ है।
सोते समय इस दिशा में न करें पैर-वास्तु शास्त्र के अनुसार विवाहित महिलाओं को सोते समय सर दक्षिण की ओर रखना चाहिए। महिलाएं गलती से भी दक्षिण दिशा में पैर करके न सोएं। दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है । ऐसा करने से शरीर की ऊर्जा का नाश होता है। महिलाएं घर की लक्ष्मी मानी जाती है और ऐसे में महिलाओं को सोने की अन्य दिशाओं का ज्ञान भी होना आवश्यक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा धन के स्वामी कुबेर की मानी जाती है। यदि महिलाएं इस दिशा में पैर करके सोएंगी तो आर्थिक जीवन भी प्रभावित होने की संभावना है। इतना ही आपके आय-व्यय का संतुलन भी बिगड़ सकता है।-विवाहित महिलाओं को सोते समय यह भी ध्यान देना चाहिए कि वह उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच में पैर करके न सोएं। उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान को वायव्य कोण कहते हैं। मान्यता है कि इस दिशा में सोने से महिलाएं अपने रिश्ते से अलग होने का विचार कर सकती हैं।-वास्तु शास्त्र के अनुसार, विवाहित ही नहीं अविवाहित कन्याओं को भी सोने की दिशा के बारे में ध्यान रखना चाहिए। अविवाहित कन्याओं को दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। कन्याओं को उत्तर दिशा में पैर करके सोने से शीघ्र विवाह योग्य वर मिलते हैं। -
नवरात्रि हिंदुओं के लिए बहुत बड़ा त्योहार है। जिसे हर जगह बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि को हिंदुओं में सबसे अधिक समय तक चलने वाले त्योहार के रूप में जाना जाता है। 9 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में देवी दुर्गा के अलग- अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा को शक्ति का स्वरूप माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहा है।
शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 26 सितंबर से हो रहा है। 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में देवी दुर्गा की उपासना की जाती है।
नवरात्र के पहले दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण करने वाली मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। सफेद रंग शांति का प्रतीक है। इस दिन सफेद कलर के कपड़े पहने से मन जे भीतर शांति और शीतलता का अनुभव करेंगे।
नवरात के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन लाल रंग पहनना काफी शुभ माना जाता है।
नवरात्र के तीसरे दिन नीले रंग के कपड़े पहन काफी शुभ होता है। इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
नवरात्र के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कुष्मांडा देवी यश और धन की वर्षा करती है। देवी को पीला रंग बेहद पसंद है इसीलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने से माता काफी प्रसन्न होती है।
नवरात्र के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की अर्चना की जाती है। इस दिन हरे रंग के कपड़े पहन कर माता को प्रसन्न किया जा सकता है।
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। इस दिन ग्रे कलर के कपड़े पहने से आपका मन बेहद प्रसन्न रहेगा।
नवरात्र के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस दिन ऑरेंज रंग के कपड़े पहनने से आप अपब भीतर एक अलग तरह के जोश और उत्साह का अनुभव करेंगे।
नवरात्र के आठवें दिन देवी महागौरी का आराधना की जाती है। इस दिन मोरपंख से हरे रंग के कपड़े पहनने से आप पूरा दिन आनंद का अनुभव करेंगे।
नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। पिंक कलर को प्यार और उदारता का उदारता का प्रतीक माना जाता है इस दिन पिंक कलर के कपड़े पहनने से आपको परिवार और दोस्तों से ढेर सारा मिलेगा। -
पितृपक्ष को श्राद्धपक्ष भी कहते हैं इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर को प्रारंभ हुआ जो 25 सितंबर तक चलेगा। पितृपक्ष में अपने पितरों का पिंडदान करने से उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। यदि आपको अपने पितृ की मृत्यु तिथि से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है तो ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या के दिन उनका पिंडदान कर अपना और अपने कुल का आप उद्धार कर सकते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद माह के पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। इस समय लोग अपने पितृ की आत्मा के शांति के लिए उनका पिंडदान करते हैं। इससे कुंडली की पितृ दोष जैसी समस्याओं से भी मुक्ति मिल जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या के दिन इन 5 बड़ी गलतियों को करने से बचना चाहिए। ताकि आप लगने वाले पितृ दोष से मुक्ति पा सके।
नई वस्तु न खरीदें-
पितृपक्ष के समय कोई भी नई वस्तु न खरीदे, पितरों के विदाई के दिन बाल और नाखून न कटवाएं। ऐसा करने से आपको पितृ दोष के गंभीर परिणाम का सामना करना पड़ सकता है।
सर्वपितृ अमावस्या को करे पिंडदान -
यदि आपको अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद है तो उस तिथि के अनुसार उनका पिंडदान करें। अगर आपको अपने पितरों की तिथि पता नहीं है तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन ही उनका पिंडदान करें।
सात्विक भोजन करे-
सर्वपितृ अमावस्या के दिन मांस , मछली, अंडा मदिरा आदि का सेवन करने से बचें इस दिन सिर्फ सात्विक या साधारण भोजन करे।
दान करे-
सर्वपितृ अमावस्या के दिन घर पर दान दक्षिणा लेने आये किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ विदा न करें ऐसा करने से पितृदोष के भयानक परिणाम हो सकते हैं।
पशु-
पक्षी का रखे विशेष ध्यान - पितृपक्ष के समय किसी भी गरीब या असहाय व्यक्ति को अपमानित न करें, सभी की मदद करे और उन्हें आदर और सम्मान दे। पितृपक्ष के समय किसी भी कौवे ,कुत्ते चींटी का किसी भी तरह का कोई नुकसान न पहुंचाए -
ज्योतिष में शुक्र को महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। शुक्र ग्रह के शुभ होने पर मां लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। वहीं शुक्र देव के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शुक्र देव नवरात्रि से पहले राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। 24 सितंबर को शुक्र राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। इस दिन शुक्र देव कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। ग्रहों के राशि परिवर्तन का सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। शुक्र के राशि परिवर्तन करने से कुछ राशियों के अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे।
मेष राशि-
कारोबार के विस्तार की योजना साकार होगी।
भाइयों का सहयोग मिलेगा।
घर-परिवार में मांगलिक कार्य होंगे।
वस्त्रादि उपहार भी मिल सकते हैं।
नौकरी में परिवर्तन के साथ दूसरे स्थान पर भी जाना पड़ सकता है।
आयात-निर्यात कारोबार में लाभ के अवसर प्राप्त होंगे।
माता का सहयोग मिलेगा।
वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।
मिथुन राशि-
आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे।
घर-परिवार की सुख सुविधाओं का विस्तार होगा।
कार्यक्षेत्र में परिवर्तन संभव है।
माता का सहयोग मिलेगा।
लाभ में वृद्धि की संभावना है।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।
धन- लाभ होगा।
कन्या राशि-
वाणी में मधुरता रहेगी।
परिवार का साथ मिलेगा।
कारोबार की स्थिति में सुधार होगा।
घर-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं।
किसी मित्र के सहयोग से कारोबार विस्तार होगा।
लाभ के अवसर मिलेंगे।
पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।
परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं।
वृश्चिक राशि-
मन में प्रसन्नता का भाव रहेगा।
नौकरी में किसी दूसरे स्थान पर जाना हो सकता है।
आय में वृद्धि होगी।
अफसरों का सहयोग मिलेगा।
परिवार का भी सहयोग मिलेगा।
शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ रहेगा। -
शारदीय नवरात्रि को शुरू होने में अब कुछ दिन ही बाकी हैं। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना या घटस्थापना की जाती है। मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के त्योहार का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। इस साल नवरात्रि 26 सितंबर, सोमवार से शुरू हो रहे हैं, जो कि 4 अक्टूबर तक रहेंगे। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी 26 सितंबर को घटस्थापना की जाएगी। जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त व संपूर्ण विधि-
प्रतिपदा तिथि कब से कब तक-
प्रतिपदा तिथि सितम्बर 26, 2022 को 03:23 ए एम बजे से प्रारंभ होगी, जो कि सितम्बर 27, 2022 को 03:08 ए एम बजे समाप्त होगी।
घटस्थापना शुभ मुहूर्त 2022-
आश्विन घटस्थापना सोमवार, सितम्बर 26, 2022 को
घटस्थापना मुहूर्त - 06:11 ए एम से 07:51 ए एम
अवधि - 01 घंटा 40 मिनट
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:48 ए एम से 12:36 पी एम
अवधि - 48 मिनट
ऐसे करें कलश स्थापना:
कलश की स्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए और मां की चौकी लगा कर कलश को स्थापित करना चाहिए। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें। फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें। कलश में आम का पत्ता रखें और इसे जल या गंगाजल भर दें। साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ कलश में डालें। कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेट कर रखें। चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें। इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ा दें। कलश स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना भी की जाती है। कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके मंत्र जाप करें और फूल और चावल मां के चरणों में अर्पित करें। मां शैलपुत्री के लिए जो भोग बनाएं, गाय के घी से बने होने चाहिए। या सिर्फ गाय के घी चढ़ाने से भी बीमारी व संकट से छुटकारा मिलता है।
विशेष मंत्र : ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै। मंगल कामना के साथ इस मंत्र का जप करें। - शारदीय नवरात्र 26 सितंबर को प्रारंभ और चार अक्तूबर को नवमी तक रहेंगे। पांच अक्तूबर को विजय दशमी का पर्व मनेगा। हर दिन माता के अलग-अलग दिव्य स्वरूप की आराधना होगी। शारदीय नवरात्र में घर-घर कलश स्थापना कर आदि शक्ति माता भवानी की आराधना होगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने से पहले देवी शक्ति की अराधना की थी।ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि इस बार नवरात्र में नवरात्रि की तिथियों को लेकर को घटत बढ़त नहीं हो रही है। नवरात्रि की सभी तिथियां 26 सितंबर से 4 अक्टूबर तक एक सीधे क्रम में रहेंगी। 26 को प्रतिपदा प्रथम नवरात्र होगा। 27 को द्वितीय और इसी क्रम में तीन अक्टूबर को दुर्गा अष्टमी और चार अक्टूबर को महानवमी होगी। ज्योतिषों के अनुसार इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर पृथ्वी लोक आएंगी। जिस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ होता है उसी दिन के अनुसार माता अपने वाहन पर सवार होकर आती हैं। विजयदशमी को बुधवार के दिन नौका की सवारी से मां वापस जाएंगी। माता की नौका की सवारी को बहुत शुभ माना गया है। ऐसे में इस बार शारदीय नवरात्र आते हुए भी और जाते हुए भी बहुत शुभ फलों की वृद्धि करने वाले रहेंगे।घटस्थापना या कलश स्थापना शुभ मुहूर्त----प्रतिपदा तिथि आरंभ - 26 सितंबर सुबह 3 बजकर 23 मिनटप्रतिपदा तिथि का समापन - 27 सितम्बर सुबह 03 बजकर 08 मिनट परघटस्थापना या कलश स्थापना शुभ मुहूर्त - अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 48 मिनट से 12 बजकर 36 मिनट के बीच करना उत्तम होगा।--
- पितृ पक्ष में पितरों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दौरान पिंडदान और दान-कर्म करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितृ दोष दूर करने के लिए कुछ पेड़ों की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। आइए जानें कौन से ये पेड़।पितृ दोष से मुक्ति पाने और पितरों को प्रसन्न करने के लिए आप इस दौरान कुछ पेड़ों की पूजा करना बहुत ही अच्छा माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन पेड़ों की पूजा करने से कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इसमें बरगद का पेड़, पीपल का पेड़ और बेल का पेड़ आदि शामिल है। पितृ पक्ष में इन पेड़ों की पूजा करने का महत्व क्या है यहां जानें.--बरगद का पेड़बरगद को वट का वृक्ष भी कहा जाता है। पितृ पक्ष में इस पेड़ की पूजा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पितृ पक्ष में जल में काले तिल मिलाकर बरगद के पेड़ को अर्पित करें। ऐसा माना जाता कि इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है।पीपल का पेड़पितृ पक्ष में पीपल के पेड़ की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इस अवधि के दौरान नियमित रूप से दोपहर के समय जल में दूध मिलाकर पीपल के पेड़ को अर्पित करें। शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। पितृ सूक्त का पाठ करें।बेल का पेड़ऐसा माना जाता है कि बेल का पौधा लगाने और उसकी नियमित देखभाल करने से पितर प्रसन्न होते हैं। पितृ पक्ष में रोजाना सुबह के समय जल में गंगाजल मिलाकर बेल के पौधे को अर्पित करें। ऐसा करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
- शास्त्रों में कहा गया है कि एक 1 पेड़ 10 पुत्रों के समान होता है। फूलों वाले पौधे तनाव से मुक्ति दिलाते हैं। साथ ही इन्हें देखकर मानसिक शांति भी मिलती है। वास्तु शास्त्र में कई ऐसे पौधे बताए गए हैं, जिनको घर में लगाने से समृद्धि बनी रहती है। उन्हीं में से एक पौधा है पारिजात। पारिजात को आम सभी हरसिंगार के नाम से भी जानते हैं। जिस घर में पारिजात का वृक्ष लगा होता है उस घर में सुख समृद्धि आती है। आइए जानते हैं पारिजात वृक्ष के लाभ-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पारिजात का वृक्ष समुद्र मंथन से निकला है। कहते हैं जिस घर में हरसिंगार का पौधा लगा होता है उस घर में सदैव मां लक्ष्मी का वास होता है।-पारिजात का वृक्ष घर में लगाने से वास्तु दोष दूर होता है और घर में बरकत भी आती है। यदि वास्तु के अनुसार पारिजात का पौधा लगाते हैं तो घर में धन धान्य की कमी नहीं होती।-वास्तु शास्त्र के अनुसार पारिजात का वृक्ष उत्तर पूर्व दिशा में लगाना अच्छा माना जाता है। इससे मानसिक तनाव भी दूर हो जाता है।- पारिजात का पौधा अगर आप मंदिर के पास लगाते हैं तो ज्यादा फलदायी होगा।-इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पौधे को दक्षिण दिशा में लगाना शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा करने से फायदे की जगह नुकसान होने लग जाएगा।-हरसिंगार या पारिजात के फूलों की महक इतनी अच्छी होती है कि इससे तनाव और अनिद्रा जैसी चीजें दूर होती हैं। इन फूलों की खुशबू से मानसिक परेशानियां ठीक होती हैं और इसकी खुशबू मन को शांति भी देती है।-ऐसा माना जाता है कि पारिजात का पौधा घर में लगाने से घर के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है और दीर्घायु होने का वरदान भी मिलता है।-धार्मिक महत्व के अलावा पारिजात के पौधे का और फूलों का इस्तेमाल आयुर्वेद में भी किया जाता है। आयुर्वेद में पारिजात के फूलों से कई प्रकार की बीमारियों के रोकथाम की दवाइयां बनाई जाती हैं।- पारिजात के पौधे को घर में लगाने को लेकर वास्तुशास्त्र में दिशाओं के बारे में बताया गया है। वास्तु में बताया है कि घर में नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाने के लिए परिजात के पौधे को घर की उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए।
- हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत बड़ा महत्व है। नवरात्रि के इस समय में 9 दिनों के लिए मां दुर्गा की प्रतिमाओं को अपने घर और पंडालों में स्थापित किया जाता है। मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योति रखी जाती है। इस दौरान लोग मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा करते हैं । नवरात्रि के इस पर्व के दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शारदीय नवरात्रि का आरंभ होता है। इस बार नवरात्रि का त्योहार 26 सितंबर, सोमवार से शुरू होगा। नवरात्रि के पहले दिन में घटस्थापना की जाती है। तो आइए जानते हैं कि नवरात्रि घटस्थापना विधि क्या है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है.नवरात्रि घटस्थापना पूजा विधि--घट अर्थात मिट्टी का घड़ा। इसे नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त के हिसाब से स्थापित किया जाता है। घट को घर के ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए। घट में पहले थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर जौ डालें। फिर इसका पूजन करें। जहां घट स्थापित करना है, उस स्थान को साफ करके वहां पर एक बार गंगा जल छिड़ककर उस जगह को शुद्ध कर लें। उसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। फिर मां दुर्गा की तस्वीर स्थापित करें या प्रतिमा। अब एक तांबे के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग पर लाल मौली बांधें। उस कलश में सिक्का, अक्षत, सुपारी, लौंग का जोड़ा, दूर्वा घास डालें। अब कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और उस नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर रखें। कलश के आसपास फल, मिठाई और प्रसाद रख दें। फिर कलश स्थापना पूरी करने के बाद मां की पूजा करें।नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त--आश्विन घटस्थापना सोमवार, सितम्बर 26, 2022 कोघटस्थापना मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 01 मिनट तकअवधि - 01 घण्टा 33 मिनट्सघटस्थापना अभिजीत मुहूर्त- शाम 12 बजकर 06 मिनट से शाम 12 बजकर 54 मिनट तकनवरात्रि का शुभ योग मुहूर्त--आश्विन नवरात्रि सोमवार, सितम्बर 26, 2022प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 26, 2022 को सुबह 03 बजकर 23 मिनट से शुरूप्रतिपदा तिथि समाप्त - सितम्बर 27, 2022 को सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर खत्मनवरात्रि घटस्थापना सामग्री --हल्दी, कुमकुम, कपूर, जनेऊ, धूपबत्ती, निरांजन, आम के पत्ते, पूजा के पान, हार-फूल, पंचामृत, गुड़ खोपरा, खारीक, बादाम, सुपारी, सिक्के, नारियल, पांच प्रकार के फल, चौकी पाट, कुश का आसन, नैवेद्य आदि.नवरात्रि की तिथि --प्रतिपदा (मां शैलपुत्री): 26 सितम्बर 2022द्वितीया (मां ब्रह्मचारिणी): 27 सितम्बर 2022तृतीया (मां चंद्रघंटा): 28 सितम्बर 2022चतुर्थी (मां कुष्मांडा): 29 सितम्बर 2022पंचमी (मां स्कंदमाता): 30 सितम्बर 2022षष्ठी (मां कात्यायनी): 01 अक्टूबर 2022सप्तमी (मां कालरात्रि): 02 अक्टूबर 2022अष्टमी (मां महागौरी): 03 अक्टूबर 2022नवमी (मां सिद्धिदात्री): 04 अक्टूबर 2022दशमी (मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन): 5 अक्टूबर 2022
- इस समय पितृपक्ष चल रहा है। पितृपक्ष में ग्रहों की शांति के लिए दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं, ताकि पूर्वजों का आशीर्वाद बना रहे। श्राद्धपक्ष में पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य मिलता है ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में कुछ वस्तुओं का दान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है आइए आज आपको बताते हैं कि पितृपक्ष के वो सात दान कौन से हैं, जो इंसान का भाग्य चमका सकते हैं....चांदी का दानपितृ पक्ष के दौरान चांदी की किसी वस्तु का दान करना अच्छा होता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है । इसके साथ ही उनका आशीर्वाद आप पर हमेशा बना रहता है। चांदी का संबंध चंद्र ग्रह से होता है। इसी वजह से पितृ पक्ष में दूध और चावल के साथ-साथ चांदी का भी दान किया जाता है।काले तिल का दानश्राद्ध के दौरान काले तिल का दान जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि पितृपक्ष में अगर किसी और चीज का दान करना संभव ना हो तो काले तिल का दान जरूर करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि काला तिल संकट और विपदाओं से रक्षा करता है।गुड़ का दानपितृ पक्ष के दौरान गुड़ का दान भी किया जाता है। गुड़ का दान करने से पितरों को विशेष संतुष्टि प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि गुड़ का दान करने से घर का क्लेश भी दूर हो जाता है औैर पितृ भी शांत रहते हैं।अन्न का दानपितृपक्ष में अन्न का दान महादान माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि इससे पितरों को तृप्ति मिलती है। पितृ पक्ष में अगर आप अन्नदान करना चाहते हैं तो हमेशा गेहूं और चावल का दान करें। अगर ये दान किसी संकल्प के साथ किया जाता है तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।नमक का दानकहते हंै कि जिसका नमक खाओ, उसके प्रति सदैव ऋणी रहो। इसलिए कहा भी जाता है कि नमक का कर्ज कभी नहीं भूलना चाहिए। नमक का दान किए बिना कभी भी दान सम्पूर्ण नहीं होता है।जूते और चप्पल का दानजूते-चप्पल का दान करने से आने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है और कुंडली के दोषों का भी निवारण हो जाता है। इसलिए पितृपक्ष में जूते-चप्पल का दान करना चाहिए। ऐसे करने से घर में खुशहाली आती है और सुख शांति मिलती है।गाय के घी का दानहमारे धर्मग्रंथों में गाय को माता माना गया है। गाय के पूजन से स्वत: ही समस्त बाधाओं का अंत हो जाता है। पितृपक्ष में गाय के घी का दान करना भी फलदायी होता है। इसको दान करने से पितृ खुश हो जाते हैं और घर की सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर घर का वास्तु ठीक है तो हमेशा सकारात्मक ऊर्जा रहती है, लेकिन वहीं अगर वास्तु में कोई त्रुटि होती है तो घर में क्लेश, बाधा और बीमारियों का वास लगातार रहता है। वास्तु के अनुसार हर एक दिशा पर किसी न किसी देवता का आधिपत्य होता है। इस कारण से घर में रखी जाने वाली हर एक वस्तु का अपना महत्व होता है।कूड़ा एकत्रित होनामान्यता है कि जिन घरों में साफ-सफाई और चीजें सही दिशा में रखी हुई होती हैं वहां पर मां लक्ष्मी का वास होता है। कई लोग अपने घर के सामने कूड़ा को जमाकर रखते हैं। घर के द्वार के सामने कूड़ा दरिद्रता का सूचक होता है। ऐसे में जिन घरों के सामने कूड़ा एकत्रित होता है , वहां पर माता लक्ष्मी का वास नहीं होता है। इस आदत से घर में अशांति, बीमारियां और धन हानि की संभावना बनी रहती है।ऊंची सड़क का होनावास्तु के अनुसार घर का मुख्य द्वार हमेशा सामने वाली सड़क से ऊंचा रहना चाहिए। अगर जिन लोगों का घर उनके सामने बनी सड़क से नीचे होता है वहां पर नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। ऐसे घरों में हमेशा बीमारियां और लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।कांटेदार पौधेवास्तु शास्त्र के अनुसार भूलकर भी घर के मुख्य द्वार के सामने कांटेदार पौधे नहीं लगाना चाहिए। वास्तु में इसे वर्जित माना गया है। जिन घरों के सामने कांटेदार पौधे होते हैं वहां पर सुख-समृद्धि आने में बाधाएं आती हैं।पत्थरकई लोग अपने घरों को खूबसूरत बनाने के लिए घर के बाहर तरह-तरह के पत्थर और ईंटों को जमा करके रखते हैं। वास्तु के अनुसार घर के बाहर पड़े पत्थर जीवन में आगे बढऩे में बाधा बनते हैं। इसलिए अगर आपने भी घर के बाहर पत्थरों को एकत्रित करके रखा हुआ तो इसे फौरन ही हटा लेना चाहिए।गंदा पानीजिन लोगों के घर के बाहर गंदा पानी जमा होता है वहां पर लक्ष्मी का वास नहीं होता है। घर के सामने गंदा पानी जमा होने पर नकारात्मकता आती है। ऐसे में घर के बाहर गंदा पानी जमा न होने दें।बिजली का खंभावास्तु के अनुसार घर के ठीक सामने बिजली का खंभा नहीं होना चाहिए। घर के सामने बिजली का खंभा होने पर हमेशा घर के सदस्यों के बीच मनमुटाव और वाद-विवाद होते रहते हैं।
- भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक का पक्ष श्राद्ध पक्ष कहलाता है। मान्यता है कि इन दिनों पितर पृथ्वी लोक पर अपने परिजनों के यहां आते हैं और आशीर्वाद देते हैं। कहा जाता है कि पितरों को समर्पित श्राद्ध पक्ष में सर्वप्रथम अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। इससे देवता प्रसन्न होते हैं। कहा जाता है कि देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है।वास्तु के अनुसार श्राद्ध पक्ष के दौरान कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए---------वास्तु में दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी गई है। पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है। दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण किया जाता है। पितृ पूजन कक्ष को स्वच्छ रखें। इस कक्ष की दीवारें हल्के पीले, गुलाबी, हरे रंग की हो तो अच्छा है।तर्पण करते समय कर्ता का मुख दक्षिण में ही रहे। वास्तु के अनुसार, पितरों की तस्वीर लगाने के लिए दक्षिण दिशा को शुभ माना गया है। ऐसी जगह पर पितरों की तस्वीर न लगाएं, जहां लोगों की और आपकी आते जाते समय नजर इस पर पड़े। पितरों की तस्वीरों को कभी भी अपने बेडरूम, पूजा घर या किचन में नहीं लगाना चाहिए। पितृपक्ष के दौरान बाल नहीं कटवाने चाहिए, ऐसा करना वर्जित माना गया है।श्राद्ध पक्ष में कोई भी नया कार्य या घर में मंगल कार्य का आयोजन नहीं करना चाहिए। पितृपक्ष में रोजाना घर के मुख्य द्वार को जल से धोना चाहिए और सफेद फूल डालने चाहिए। शाम के समय दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाना चाहिए। कोई जरूरतमंद या गाय श्राद्ध पक्ष में आपके द्वार पर आए तो खाने को कुछ न कुछ अवश्य देना चाहिए।
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पितृ पक्ष के बाद शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाती हैं। आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाते हैं। हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां के 9 रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। मां को प्रसन्न करने के लिए भक्त व्रत भी रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दौरान विधि- विधान से मां दुर्गा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
शारदीय नवरात्रि डेट-----
हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का पर्व गुरुवार, 26 सितंबर 2022 से प्रारंभ होगा। शारदीय नवरात्रि का पर्व 4 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगा।
नवरात्रि का पूरा कैलेंडर----
(पहला दिन) - 26 सितंबर- मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है
(दूसरा दिन) -27 सितंबर -मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है
(तीसरा दिन) -28 सितंबर - मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है
(चौथा दिन)-29 सितंबर-मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है
(पांचवा दिन)-30 सितंबर- मां स्कंदमाता की पूजा
(छठां दिन)- 1 अक्टूबर- मां कात्यायनी की पूजा
(सातवां दिन) -2 अक्टूबर- मां कालरात्रि की पूजा
(आठवां दिन) -3 अक्टूबर- मां महागौरी पूजा
(नौंवा दिन) -4 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री की पूजा
पूजा-विधि--------
सुबह उठकर जल्गी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
पूजा सामग्री की पूरी लिस्ट---------
लाल चुनरी
लाल वस्त्र
मौली
श्रृंगार का सामान
दीपक
घी/ तेल
धूप
नारियल
साफ चावल
कुमकुम
फूल
देवी की प्रतिमा या फोटो
पान
सुपारी
लौंग
इलायची
बताशे या मिसरी
कपूर
फल-मिठाई
कलावा - भारतीय संस्कृति में पूर्वजों के लिए निर्धारित विशेष समय पितृपक्ष का प्रारंभ शनिवार से हो गया है। इस अवधि में लोग अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इस अवधि में लोग नदी तट, सरोवर के अलावा घर में अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करते हैं।पंडित विवेक कुमार उपाध्याय के अनुसार इस बार कुल 16 दिनों का पूर्णकालिक श्राद्ध पक्ष की प्राप्ति होना भी शुभकर है। श्राद्ध में चार बातें तर्पण, भोजन व पिण्ड दान, वस्त्रदान व दक्षिणादान प्रमुख हैं। शास्त्रों में श्राद्ध कर्म में कुतप काल को विशेष महत्व दिया गया है। ये समय दिन का आठवां व नवां मुहूर्त होता है। यह 11:36 बजे से 12:24 मिनट व इसके बाद का 48 मिनट प्रमुख होता है। ये समय मनुष्य जीवन के समस्त पापों को सन्तप्त करने में समर्थ होता है। इस वर्ष 25 सितम्बर, रविवार को पितृ विसर्जन होगा।पंडित विवेक उपाध्याय ने बताया कि शास्त्रों में कहा गया है कि पुत्र वही है जो अपने पितरों की नरक से रक्षा करे। उसकी रक्षा का सबसे सहज उपाय श्राद्ध है। क्योंकि पितृ अगर तृप्त नहीं हंै तो मनुष्य के जीवन में पूर्णता सम्भव नहीं है। श्राद्ध करने में श्रद्धा का होना परम् आवश्यक बताया गया है। इस संसार में श्राद्ध से उत्तम कोई भी कल्याणप्रद उपाय नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरिक्ष में सूक्ष्म रूप में अवस्थित पितर श्राद्धकाल की बात सुनकर ही तृप्त हो जाते हैं। हमारे स्मरण मात्र से ही हमारे पितर उस श्राद्ध भूमि पर आ जाते हैं।श्राद्ध में निर्धनता कहीं से बाधक नही हैपद्मपुराण के अनुसार निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी पितरों को संतुष्ट करने में सक्षम है। धन के अभाव के विकल्प में शाग (शाक) से भी श्राद्ध करके पितरों को तृप्त कर सकते है। शाग खरीदने में असमर्थ व्यक्ति भी कुतप बेला में गाय को घास खिलाकर भी श्राद्ध कर्म को कर सकता है । भारतीय सनातनी परम्परा में सभी को समान समरूपता प्रदान किया गया है। यह स्वयं में एक समृद्ध परंपरा का प्रतीक है।
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मंगलसूत्र पहनते वक्त रखें इन बातों का ध्यान, वरना पति की जिंदगी पर पड़ेगा बुरा असर
हिंदू धर्म में मंगलसूत्र का बहुत महत्व है, शादी के समय वर अपने वधू के गले में ये मंगलसूत्र पहनाता है और फिर जब तक वो जीवित रहता है पत्नी उसके नाम का मंगलसूत्र अपने गले में डालती है। क्या आप जानते हैं कि मंगलसूत्र का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है।मंगलसूत्र के मोती का है शिवजी से संबंधमंगलसूत्र में काले मोती होना अनिवार्य है, बिना काले मोती के मंगलसूत्र पूर्ण नहीं माना जाता है। काले मोती को भगवान शिव का रूप माना जाता है, वहीं सोने का संबंध माता पार्वती से है। जब मंगलसूत्र में सोना और काले मोती मिलते हैं तो शिव और पार्वती दोनों का आशीर्वाद पति-पत्नी को मिलता है। ये शिव पार्वती के बंधन का प्रतीक है जो आपके रिश्ते को भी मजबूत करता है।बुरी नजर से बचाता है मंगलसूत्रमंगलसूत्र के काले मोती पति-पत्नी दोनों को बुरी नजर से बचाता है। मंगलसूत्र में 9 मनके होते हैं ये मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये मनके पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि तत्वों का भी प्रतीक है।मंगलसूत्र में काले मोती जरूर होने चाहिएमंगलसूत्र में काले मोती होना अनिवार्य है, बिना इसके मंगलसूत्र पूरा नहीं माना जाता है। काले मोती पति को बुरी नजर से बचाते हैं और उनकी उम्र लंबी करते हैं।क्यों पहनना चाहिए मंगलसूत्र?सुहागिन स्त्रियों को मंगलसूत्र अवश्य पहनना चाहिए, अगर मंगलसूत्र नहीं पहना है तो गले में कोई जंजीर भी डाल सकते हैं, लेकिन गला खाली रखना अशुभ माना जाता है।भूलकर भी न पहनें दूसरी स्त्री का मंगलसूत्रन ही कभी दूसरी स्त्री का मंगलसूत्र पहनना चाहिए, न ही अपना मंगलसूत्र कभी दूसरी स्त्री को पहनने को देना चाहिए। ऐसा करने से पति-पत्नी के रिश्ते में कलह होती है और जीवन में तनाव होता है।बृहस्पति होता है मजबूतमंगलसूत्र में जो सोना होता है उससे बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है। जब बृहस्पति मजबूत हो तो पति-पत्नी के बीच मधुरता होती है और पति की आय में भी वृद्धि होती है। -
वास्तु शास्त्र में भी कुछ पौधों को बेहद शुभ माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, हरे-भरे पौधे तरक्की, सुख-समृद्धि और खुशहाली के आगमन में सहायक होते हैं। घर में पौधे लगाने से अच्छी सेहत के साथ धन के आगमन का रास्ता भी खुलता है। इसके अलावा घर में कुछ पौधे लगाने से विवाह में आ रही बाधा दूर होती है। इन्हीं में से एक पौधा है पियोनिया। वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि शादी नहीं हो पा रही है या किसी कारण से टलती जा रही है, तो घर में पियोनिया के फूल का पौधा लगाना चाहिए। पियोनिया के फूल को फूलों की रानी कहा जाता है। ये फूल सौंदर्य, रोमांस के प्रतीक माने जाते हैं। तो चलिए जानते हैं इस पौधे के बारे में...
आपसी प्रेम के लिएवास्तु दोष के कारण घर के सदस्यों के बीच मतभेद होते रहते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि आपके भी घर में हर छोटी बड़ी बात वाद विवाद तक पहुंच जाती हैं, तो पियोनिया की पेंटिंग या इसका पौधा घर पर लगाएं। इस पौधे को दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर लगाएं, क्योंकि इस दिशा का संबंध परिवार में रहने वाले लोगों के बीच के संबंध को दर्शाता है।विवाह में हो रही है देरी तो करें ये उपायवास्तु के अनुसार, यदि घर में किसी लड़के या फिर लड़की के विवाह में देरी हो रही है, तो ड्राइंग रूम में पियोनिया की पेंटिंग या फिर फूल लगाएं। वहीं जब शादी हो जाए, तो पौधे या पेंटिंग किसी को गिफ्ट कर दें।सुखी जीवन के लिए उपायसुखी जीवन के लिए पियोनिया के पौधे को घर में दक्षिण -पश्चिम दिशा के कोने में लगाएं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, ऐसा करने से घर में प्रसन्नता का वास होगा।बगीचे में इस दिशा में लगाएं पियोनियाइसके अलावा यदि आप बगीचे में पियोनिया का पौधा लगा रहे हैं, तो घर के प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर लगाएं। इससे आपके घर में सकारात्मकता का वास होगा। -
सनातन परंपरा में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है क्योंकि इसी दिन परिवर्तनी एकादशी या फिर कहें डोल ग्यारस का पर्व मनाया जाता है. यह पावन पर्व मुख्य रूप से मध्य प्रदेश एवं उत्तरी भारत में मनाया जाता है. इसी पावन तिथि को जलझूलनी एकादशी पर्व के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का श्रृंगार करके उनके लिए विशेष रूप से डोल तैयार किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की कृपा बरसाने वाला एकादशी व्रत पूरे विधि-विधान से रखा जाता है. डोल ग्यारस या फिर कहें जलझूलनी एकादशी का पर्व इस साल 06 सितंबर 2022 को मनाया जाएगा. आइए इस पावन पर्व के धार्मिक महत्व, पूजा विधि आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं.
डोल ग्यारस का शुभ मुहूर्त--
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी 06 सितंबर को प्रात:काल 05:54 बजे से प्रारंभ होकर 07 सितंबर 2022 को पूर्वाह्न 03:04 बजे तक रहेगी. जबकि व्रत के पारण का (व्रत तोड़ने का) समय प्रात:काल 08:19 से 08:33 बजे तक रहेगा.
डाेल ग्यारस अथवा जल झूलनी एकादशी की पूजा विधि--
श्री हरि की पूजा के लिए समर्पित इस पावन तिथि पर प्रात:काल स्नान ध्यान करने के बाद साधक को भगवान विष्णु या फिर उनके वामन अवतार अथवा भगवान श्री कृष्ण की धूप, दीप, पीले पुष्प, पीले फल, पीली मिठाई आदि से पूजा करनी चाहिए. डोल ग्यारस की पूजा के दिन सात तरह के अनाज भर कर सात कुंभ स्थापित किए जाते हैं और इसमें से एक कुंभ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रखकर विधि विधान से पूजा की जाती है. इन कुंभों को अगले दिन व्रत पूर्ण होने के बाद किसी ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है. इस व्रत में चावल का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए.
डोल ग्यारस अथवा परिवर्तनी एकादशी का धार्मिक महत्व--
डोल ग्यारस का पावन पर्व मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा, व्रत एवं उनके अवतार भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा के लिए मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन पहली बार माता यशोदा और नंद बाबा के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले थे. यही कारण है कि इस दिन कान्हा को नए वस्त्र आदि को पहना कर भव्य श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद गाजे-बाजे के साथ भगवान श्री कृष्ण को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है. इस दिन भक्तगण भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के बाद उनकी पालकी के नीचे से परिक्रमा लगाते है. इस पावन पर्व को जलझूनी एकादशी भी कहते हैं और इस दिन विधि-विधान से व्रत रखते हुए भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहते हैं. - वास्तु के अनुसार जहां घर में सही दिशा में सामान रखना बहुत आवश्यक हो जाता है। सही दिशा में अगर वास्तु का सामान नहीं रखा होता है, घर में वास्तु दोष आ जाता है और घर में सुख समृद्धि कम हो जाती है। यहां हम आपको बता रहे हैं, वास्तु के अनुसार कुछ मूर्तियों के बारे में, जिन्हें घर में रखकर आप धन में बरकत ला सकते हैं, इससे घर में आय के साधन तो बढ़ेंगे, साथ ही धन स्थायी होगा।यहां जानें इन मूर्तियों के बारे नें---हाथी को धन और एश्वर्य का प्रतीक माना जाता है। गजानन मां गजलक्ष्मी का वाहन माने जाते हैं। इन्हें घर में लगाने से वास्तु के अनुसार घर में लगाने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।कछुआकछुआ भी मां लक्ष्मी के लिए बहुत खास माना जाता है। दरअसल समुद्र की अधिकतर चीजों जैसे शंख, कौड़ी और कछुआ मां लक्ष्मी से जुड़े माने जाते हैं। कछुए को विष्णु जी रूप माना जाता है, इसे घर में उत्तर दिशा में रखना चहिए। इसे भी घर में या मंदिर में ऱखने से घर में धन की कमी नहीं होती है।मछली की आकृतिमछली को फेंगशुई और वास्तु में बहुत खास माना जाता है। इसके लिए फिश एक्वेरियम रख सकते हैं, लेकिन मछली की मूर्ति घर में रखना बहुत अच्छा होता है।
- वास्तु के अनुसार कई चीजों को घर में उपयुक्त जगह पर ऱखने से घर में सुखृसमृद्धि का वास होता है। घर में इसके अलावा दिशाओं और कोणों पर भी ध्यान दिया जाता है। वास्तु में कहा गया है कि घर में कुछ पौधे रखने से घर में सुख समृद्धि आती है। ऐसा ही एक पौधा है, विष्णुप्रिया। इस पौधे को वास्तु के अनुसार घऱ में रखने से बहुत लाभ होता है।पहले आपको बता दें कि अपराजिता का पौधा सफेद और नीले रंग में होता है। नीले रंग का पौधा घर में रखने से घर आर्थिक रूप से संपन्न हो जाता है। इसके अलावा इसकी एक बेल भी होती है, जिसे धन बेल कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जैसे-जैसे धन बेल बढ़ती घर में भी बरकत होती है।---इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं।
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सनातन परंपरा में प्रत्येक दिन किसी न किसी पर्व या व्रत को लिए होता है. सितंबर का महीना भी इस साल कई बड़े पर्वों को लिए हुए है. इस साल सितंबर के महीने की शुरुआत में जहां गणेश उत्सव की धूम रहेगी तो वहीं इसी महीने में पितरों की पूजा से जुड़ा पितृपक्ष भी रहेगा. इसी माह में भाद्रपद मास पूर्ण होगा तो वहीं आश्विनी मास की शुरुआत होगी. जिसके साथ ही शारदीय नवरात्र का महापर्व प्रारंभ हो जाएगा. कई महत्वपूर्ण जयंती, पुण्यदायी तिथियों को लिए सितंबर के महीने में कब कौन सा पर्व पड़ेगा, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
गणेश उत्सव 2022
31 अगस्त 2022 को प्रारंभ हुए गणेश पूजा का 10 दिनी उत्सव सितंबर माह में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाएगा और 09 सितंबर 2022 यानि अनंत चतुर्दशी के दिन इसका समापन होगा।
पितृपक्ष 2022
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का बहुत ज्यादा महत्व है क्योंकि इसमें पितरों का आशीर्वाद पाने और उनके मोक्ष की कामना लिए हुए विशेष रूप से श्राद्ध एवं तर्पण आदि किया जाता है। इस साल पितृपक्ष का प्रारंभ 0 सितंबर 2022 से होगा और यह 25 सितंबर 2022 को खत्म हो जाएगा।
नवरात्रि 2022
सनातन परंपरा में शक्ति की साधना के लिए साल में चार बार नवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है। इस साल शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर 2022 को प्रारंभ होगी और इसी दिन घट स्थापना भी की जाएगी।
सितंबर माह 2022 के व्रत – पर्व
1 सितंबर 2022, गुरुवार – ऋषि पंचमी, गुरु ग्रंथ साहिब प्रकाश दिवस
2 सितंबर 2022, शुक्रवार – संतान सप्तमी व्रत
3 सितंबर 2022, शनिवार – राधा अष्टमी, महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ
4 सितंबर 2022, रविवार – दधीचि जयंती
5 सितंबर 2022, सोमवार – शिक्षक दिवस, तेजा दशमी
6 सितंबर 2022, मंगलवार – डोल ग्यारस, जलझूलनी, परिवर्तनी एकादशी
8 सितंबर 2022, गुरुवार – ओणम, प्रदोष व्रत
9 सितंबर 2022, शुक्रवार – अनंत चतुर्दशी, गणेश मूर्ति विसर्जन, पूर्णिमा व्रत
10 सितंबर 2022, शनिवार – पितृपक्ष आरंभ
13 सितंबर 2022, मंगलवार – अंगारक चतुर्थी
14 सितंबर 2022, बुधवार – हिन्दी दिवस
17 सितंबर 2022, शनिवार – महालक्ष्मी व्रत समाप्त, विश्वकर्मा जयंती, रोहिणी व्रत, सूर्य कन्या संक्रांति
18 सितंबर 2022, रविवार – जिऊतिया व्रत
19 सितंबर 2022, सोमवार – मातृ नवमी, अविधवा श्राद्ध
20 सितंबर 2022, मंगलवार – गुरु नानकदेव पुण्यतिथि
21 सितंबर 2022, बुधवार – इंदिरा एकादशी
22 सितंबर 2022, गुरुवार – संन्यासी श्राद्ध
23 सितंबर 2022, शुक्रवार – प्रदोष व्रत
24 सितंबर 2022, शनिवार – चतुर्दशी श्राद्ध, शिव चतुर्दशी व्रत
25 सितंबर 2022, रविवार – पितृमोक्ष अमावस्या, महालय श्राद्घ पक्ष पूर्ण, स्नान-दान अमावस्या
26 सितंबर 2022, सोमवार – शारदीय नवरात्रि आरंभ, घट स्थापना, अग्रसेन जयंती
29 सितंबर 2022, गुरुवार – विनायकी चतुर्थी व्रत
= - घर की रसोई में रखी कुछ चीजों से हमारे भाग्य का सीधा कनेक्शन होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, रसोई में रखी कुछ खास चीजें किसी दूसरे को देने से बचना चाहिए। ऐसा करने से घर की बरकत खत्म होती है। आज हम जानते हैं कि रसोई की वो कौन सी चीजें हैं जिन्हें दान देकर आप खुद मुश्किल में पड़ सकते हैं।हल्दीएंटी एलेर्जिक प्रॉप्रटी की वजह से खाने में हल्दी का प्रयोग किया जाता है। वहीं, ज्योतिष शास्त्र के नजरिये से देखा जाए तो हल्दी का संबंध बृहस्पति ग्रह से होता है। घर में हल्दी खत्म होने को गुरु दोष से जोड़कर देखा जाता है। गुरु दोष लगने पर घर में धन की कमी होने लगती है। कॅरिअर के मोर्चे पर असफलता मिलने लगती है। रसोई की हल्दी ना तो किसी से उधार लेनी चाहिए और ना ही किसी को दान में देनी चाहिए।चावलचावल का संबंध शुक्र ग्रह से है। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को ऐश्वर्य और भौतिक सुखों का कारक माना गया है। ज्योतिषविद का कहना है कि घर में चावल का खत्म होना शुक्र दोष को दर्शाता है। घर में शुक्र दोष लगने से पति-पत्नी के बीच झगड़े शुरू हो जाते हैं। दांपत्य जीवन में कड़वाहट रहती है। इसलिए घर में चावल कभी खत्म नहीं होना चाहिए। चावल का दान करना तभी उचित है, जब आपके पास इसकी कमी ना हो।नमकरसोई में रखा नमक कभी खत्म नहीं होना चाहिए। नमक का डिब्बा खाली होने से पहले ही उसने पुन: भरने का इंतजाम कर लें। ज्योतिष में नमक को राहु का पदार्थ माना गया है। रसोई में नमक खत्म होने से राहु की दृष्टि आपके ऊपर पड़ती है। ये आपका जीवन मुश्किलों से भर सकता है। आप अचानक बहुत ज्यादा परेशान हो सकते हैं। नमक ना तो दान में देना चाहिए और ना ही ये कभी किसी से लेना चाहिए।सरसों का तेलघर में रखा सरसों का तेल शनि ग्रह से संबंध रखता है। ऐसा कहते हैं कि घर की रसोई में सरसों का तेल कभी खत्म नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से आप शनि के प्रकोप का शिकार हो सकते हैं। इसके खत्म होने से पहले ही डिब्बे में तेल भरने का इंतजाम कर लें। सरसों का तेल कभी भी मंगलवार और शनिवार को लेकर ना आएं और ना ही इस दिन इसे किसी को दान में देना चाहिए।
- फेंगशुई भी वास्तु शास्त्र की तरह जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आता है। मान्यता है कि फेंगशुई की चीजों को घर में रखने से जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। कई बार व्यक्ति को कड़ी मेहनत के बावजूद भी उसकी मेहनत के अनुरूप परिणाम हासिल नहीं होता है। ऐसे में फेंगशुई में कुछ ऐसी चीजें बताई गई हैं जिन्हें घर में रखने से मां लक्ष्मी का वास होता है। जानें इन चीजों के बारे में-तीन टांगों वाले मेढ़कफेंगशुई के जानकार कहते हैं कि घर में तीन टांगों वाले मेढ़क को रखना अति शुभ होता है। तीन टांगों वाला ऐसा मेढ़क घर में रखें जिसके मुंह में सिक्के लगे हों। इस मेढ़क को घर के मेनगेट के पासया फिर तिजोरी के पास रखना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से आर्थिक तंगी दूर होती है।लाफिंग बुद्धाफेंगशुई में लॉफिंग बुद्धा को भी विशेष स्थान प्राप्त है। कहते हैं कि लॉफिंग बुद्धा को घर में रखने से खुशहाली व समृद्धि आती है। कष्टों व तनाव से मुक्ति मिलने की मान्यता है।क्रिस्टलफेंगशुई के अनुसार, घर में उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में क्रिस्टल रखने से सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। कहते हैं कि ऑफिस में सफेद रंग का क्रिस्टल उत्तर-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए।तीन चीनी सिक्केमान्यता है कि तीन चीनी सिक्के घर में सुख-सपंदा लाते हैं। इन सिक्कों को लाल के धागे या रिबन में बांधकर रखने से घर में बरकत आती है। कहते हैं कि व्यक्ति की आर्थिक उन्नति होती है।कछुआफेंगशुई में कछुआ को अति शुभ माना गया है। हिंदू धर्म में कछुआ मां लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। घर या ऑफिस की उत्तर दिशा में रखना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति को जीवन में तरक्की और सफलता मिलती है।
- हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र का विशेष महत्व है। कई बार व्यक्ति को परेशानियों और मजबूरियों के कारण कर्ज लेना पड़ता है। कई बार हम कर्ज ले लेते हैं लेकिन उसे चुका नहीं पाते हैं। लाख कोशिशों के बाद भी कर्ज चुकाना बाकी रह जाता है। ऐसे में वास्तु शास्त्र में कुछ उपाय बताए गए हैं जिन्हें अपनाने से कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं।1. वास्तु शास्त्र के अनुसार, कर्ज की किस्त चुकाने के लिए मंगलवार का दिन चुनना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन पैसा लौटाने से कर्ज जल्दी उतर जाता है।2. घर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में बना बाथरूम भी व्यक्ति पर कर्ज का बोझ बढ़ता है। इसलिए घर की इस दिशा में बाथरूम नहीं बनवाना चाहिए।3. कर्ज मुक्ति के लिए घर या दुकान की उत्तर-पूर्व दिशा में कांच लगाना शुभ माना जाता है। लेकिन कांच लाल, सिंदूरी या मैरून रंग का नहीं होना चाहिए।4. वास्तु के अनुसार कर्ज से जल्द से जल्द मुक्ति पाने के लिए घर या दुकान की उत्तर दिशा में धन रखना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिलने के साथ ही धन लाभ भी होता है।5. वास्तु शास्त्र के अनुसार, कर्ज से मुक्ति पाने के लिए मुख्य द्वार के पास एक और छोटा-सा द्वार लगाना चाहिए।
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गणपति बप्पा को मोदक का भोग लगाया जाता है। वहीं हेल्थ कॉन्शियस लोग हर एक मीठाई को खाने से कतराते हैं। हालांकि, मीठा खाने से बचना भी चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मोदक हेल्थ के लिए भी फायदेमंद होता है? जी हां, मोदक आपके कब्ज से लेकर पीसीओडी तक में फायदेमंद होता है। सेलिब्रिटी कोच रुजुता दिवेकर भी इसके फायदों के बारे में बता चुकी हैं।
1) कब्ज- भांप से बने मोदक को घी के साथ खाया जाता है। घी आंतों की म्यूकस लाइनिंग को फिर से बनाता है और टॉक्सिन को आसानी से खत्म करने में मदद करता है।2) पीसीओडी- चावल का आटा ब्लड शुगर को स्थिर करने में मदद करता है और चावल में पाया जाने वाला विटामिन बी1 पीएमएस और शक्कर की लालसा को कम करने में मदद करता है।3) ब्लड प्रेशर- मोदक की स्टफिंग के लिए नारियल का इस्तेमाल होता है। नारियल में मीडियम चेन वाला ट्राई-ग्लिसराइड्स होता है, जो दिल की रक्ष करने और बीपी कम करने वाले इफेक्ट होते हैं।4) कोलेस्ट्रॉल- नारियल में पाए जाने वाले प्लांट स्टेरोल और सूखे मेवों की स्टफिंग एलडीएल को कम करने में मदद करते है और एचडीएल के लेवल में सुधार करते है।5) डायबिटीज- मोदक, चावल, नारियल, गुड़ को मिलाकर भाप में पकाए जाते हैं और घी के साथ खाए जाते हैं। रुजुता बताती हैं कि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स मीडियम से लो होता है और यह पूरी तरह से सुरक्षित है। स्थिर ब्लड शुगर के प्रोसेस के लिए ये फायदेमंद होता है।6) गठिया- घी में पाया जाने वाला ब्यूटिरिक एसिड शरीर के हर टिशू में विशेष रूप से जोड़ों में सूजन को कम करने के लिए एक पारंपरिक थेरेपी है।7) वजन कम करने की कोशिश- अगर आप वजन कम करने की कोशिश कर रहे हैं तो मोदक खा सकते हैं। मोदक अच्छे फैट और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं ऐसे में उकडीचे मोदक खा सकते हैं। ये बॉडी में एनर्जी और मन में स्थिरता दोनों के लिए फायदेमंद है। - -पूजागृह में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र या दो शालिग्राम का पूजन नहीं करना चाहिए।-घर में 9 इंच (22 सेंटीमीटर) या उससे छोटी प्रतिमा होनी चाहिए। इससे बड़ी प्रतिमा घर के लिए शुभ नहीं होती है। उसे मंदिर में ही स्थापित करना चाहिए।-देवी की 1 बार, सूर्य की 7 बार, गणेश की 3 बार, विष्णु की 4 बार तथा शिव की आधी परिक्रमा करनी चाहिए।-आरती करते समय भगवान विष्णु के समक्ष 12 बार, सूर्य के समक्ष 7 बार, दुर्गा के समक्ष 9 बार, शंकर के समक्ष 11 बार और गणेश के समक्ष 4 बार आरती घुमानी चाहिए।-पूजा करते समय बिना आसन के भूमि पर नहीं बैठना चाहिए।-पूजा-पाठ के लिए एक निश्चित समय का चुनाव कर प्रतिदिन उसी समय पर पूजा-पाठ करने का प्रयास करें।-पूजा के समय सर्वप्रथम गणेश जी के स्तुति मंत्र द्वारा गणेश जी का आव्हान करें।