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गोवर्धन पूजा या अन्नकूट दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन यह पूजा होती है। इस साल गोवर्धन पूजा मंगलवार 25 अक्टूबर, 2022 को है। लेकिन इसी दिन सूर्य ग्रहण भी लगेगा, जिस कारण इस साल गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन नहीं बल्कि बुधवार 26 अक्टूबर 2022 को मनाई जाएगी। यह त्योहार विशेष रूप से श्रीकृष्ण, गौ माता और गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए समर्पित होता है। गोवर्धन पूजा में अन्नकूट बनाए जाते हैं और गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है। लेकिन परिक्रमा के बिना गोवर्धन पूजा अधूरी मानी जाती है। जानते हैं गोवर्धन पूजा में परिक्रमा का क्या है महत्व। इस बार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 29 मिनट से सुबह 8 बजकर 43 मिनट तक है।
गोवर्धन पर्वत का महत्व---
पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने जब ब्रजवासियों से गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने के लिए कहा तो इंद्र देव नाराज हो गए। उन्होंने क्रोध में आकर ऐसी वर्षा कराई जिससे कि ब्रजवासियों की जान खतरे में आ गई। तब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और इस पर्वत के नीचे पूरे 7 दिनों तक ब्रजवासियों और पशुओं ने शरण ली। इसलिए गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से इस पर्वत की आकृति बनाकर लोग पूजा करते हैं और पूरे सात बार इसकी परिक्रमा की जाती है।
गोवर्धन पूजा में इसलिए जरूरी है परिक्रमा---
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में गोवर्धन पर्वत स्थित है, जिसकी ऊंचाई 62 फीट है। गिरिराज पर्वत की परिक्रमा 21 किलोमीटर की है इसकी परिक्रमा करने में 7-8 घंटे का समय लग जाता है। मान्यता है जो लोग चार धाम की यात्रा नहीं कर पाते हैं उन्हें एक बार इस पर्वत की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।
गोवर्धन पूजा के नियम----
गोवर्धन पूजा अकेले न करें। अपने घर-परिवार, पड़ोसी या रिश्तेदार के साथ ही गोवर्धन पूजा करनी चाहिए।
घर के आंगन या छत पर गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर पूजा करनी चाहिए।
गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
परिक्रमा को बीच में अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए।
परिक्रमा के दौरान खील बताशे पर्वत पर अर्पित करने चाहिए। -
हिंदू पंचाग के अनुसार भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. भाई दूज को यम द्वितीया (Yam Dwitiya) या भ्रातृ द्वितीया भी कहा जाता है. भाई दूज (Bhai Dooj 2022) दीपावली के दो दिन बाद और गोवर्धन पूजा के ठीक अगले दिन मनाया जाता है. इस पर्व के साथ ही पांच दिन के दीपोत्सव का समापन हो जाता है. इस साल भाई दूज की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन है. कुछ लोग 26 अक्टूबर को तो कुछ लोग 27 अक्टूबर को भाई दूज मनाने की बात कह रहे हैं. फिलहाल आइये जानते हैं कि भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे की मान्यता क्या है?
क्यों मनाया जाता है भाई दूज?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संताने थीं, यमराज और यमुना. दोनों में बहुत प्रेम था. बहन यमुना हमेशा चाहती थीं कि यमराज उनके घर भोजन करने आया करें. लेकिन यमराज उनकी विनती को टाल देते थे. एक बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर दोपहर में यमराज उनके घर पहुंचे. यमुना अपने घर के दरवाजे पर भाई को देखकर बहुत खुश हुईं. इसके बाद यमुना ने मन से भाई यमराज को भोजन करवाया. बहन का स्नेह देखकर यमदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा.
इसपर उन्होंने यमराज से वचन मांगा कि वो हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भोजन करने आएं. साथ ही मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का आदर-सत्कार के साथ टीका करें, उनमें यमराज का भय न हो. तब यमराज ने बहन को यह वरदान देते हुआ कहा कि आगे से ऐसा ही होगा. तब से यही परंपरा चली आ रही है. इसलिए भैयादूज वाले दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है.
पूजा सामग्री
कुमकुम, पान, सुपारी, फूल, कलावा, मिठाई, सूखा नारियल और अक्षत आदि. तिलक करते वक्त इन चीजों को पूजा की थाली में रखना ना भूलें.
ऐसे करें पूजा
व्रत रखने वाली बहनें पहले सूर्य को अर्घ्य देकर अपना व्रत शुरू करें. इसके बाद आटे का चौक तैयार कर लें. शुभ मुहूर्त आने पर भाई को चौक पर बिठाएं और उसके हाथों की पूजा करें. सबसे पहले भाई की हथेली में सिंदूर और चावल का लेप लगाएं फिर उममें पान, सुपारी और फूल इत्यादि रखें. उसके बाद हाथ पर कलावा बांधकर जल डालते हुए भाई की लंबी उम्र के लिए मंत्रजाप करें और भाई की आरती उतारे. इसके बाद भाई का मुंह मीठा कराएं और खुद भी करें.
तिलक का महत्व
प्राचीन काल से यह परंपरा चली आ रही है कि भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि के लिए तिलक लगाती हैं. कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन जो बहन अपने भाई के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती हैं, उनके भाई को सभी सुखों की प्राप्ति होती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाता है और भोजन करता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती. -
भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि का आरंभ 26 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से शुरू हो रही है. वहीं द्वितीया तिथि की समाप्ति 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगी. ऐसे में ज्योतिष शास्त्र के जानकारों का कहना है कि भाई दूज (Bhai Dooj Date 2022) 27 अक्टूबर, गुरुवार को मनाई जाएगी. वहीं कई लोग 26 अक्टूबर को भी भाई दूज मनाएंगे. भाई दूज (Bhai Dooj 2022) के दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं. साथ ही वे ऐसा करने के बाद भगवान से उनकी लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं. इस दिन भाई भी अपनी बहन को खास उपहार देते हैं. भाई दूज को भैय्या दूज, भातृ द्ववितीया, भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं कि भाई दूज के दिन तिलक लगाते वक्त मुंह किस ओर होना चाहिए और भाई दूज के लिए शुभ मुहूर्त और खास नियम क्या-क्या हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भाई दूज के दिन बहनों को अपने भाई के माथे पर रोली-चंदन का तिलक लगाना चाहिए. भाई दूज पर तिलक लगाते वक्त दिशा का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसे में इस दिन भाई का मुंह पूरब, उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए. वहीं तिलक लगाते वक्त बहन का मुंह पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए. भाई दूज पर तिलक लगाने से पहले अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है. ऐसे में भाई दूज पर इन बातों का खास ख्याल रखें.
भाई दूज पूजन विधि --
भाई दूज पर अपने भाई को तिलक लगाने से पहले स्नान करके घर में साफ स्थान पर आटा या चावल को पीसकर उसका घोल बना लें. इसके बाद उस घोल से शुद्ध स्थान पर अड़िपन बनाएं. इसके बाद उस पर लकड़ी का पाया या आसन रखें. इसके बाद उस आसन पर भाई को बिठाएं. इसके बाद चंदन लगाने की प्रक्रिया पूरी करें.
भाई दूज 2022 शुभ मुहूर्त---
कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 और 27 अक्टूबर दोनों ही दिन है. हिंदू पंचांग के अनुसार, 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से द्वितीया तिथि शुरू हो रही है. जो कि 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. ऐसे में 26 अक्टूबर को भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक है. वहीं कई जगहों पर उदया तिथि के अनुसार, भाई दूज का पर्व 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा. ऐसे में 27 अक्टूबर को भाईदूज का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक है. -
ज्योतिषाचार्य कामेश्वर चतुर्वेदी ने कहा है कि 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण पड़ेगा। उन्होंने कहा है कि यह सूर्य ग्रहण चार ग्रहों सूर्य, चंद्र, शुक्र और केतु की युति में पड़ेगा। मथुरा पुरी सहित संपूर्ण ब्रजभूमि में यह सूर्य ग्रहण शाम 04:32 बजे पर प्रारंभ होगा और शाम 05:42 बजे तक चलेगा किंतु सूर्यास्त शाम 05:39 पर ही हो जाएगा। मथुरा में इस ग्रहण का पर्व काल 1 घंटे 10 मिनट का है। सूर्य बिंब 44 प्रतिशत ग्रसित रहेगा। उन्होंने कहा है कि ज्योतिष शास्त्र के आधार पर सूर्य ग्रहण का कारण होता है चंद्रमा तथा चंद्रग्रहण का मुख्य कारण होता है पृथ्वी की काली छाया। पुराणों के अनुसार ग्रहण राहु और केतु द्वारा होते हैं। कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी के अनुसार भारत के पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा आदि के समीप यह सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा, इसके अलावा संपूर्ण देश में तथा विदेशों में भी यह दिखाई देगा।
सुबह 2:28 से लग जाएगा सूतक:ग्रहण का सूतक 25 अक्तूबर को सुबह 2:28 बजे से लग जाएगा। कार्तिक कृष्ण अमावस्या 25 अक्तूबर को ग्रहण का आरंभ दोपहर 2:29 पर होगा और समाप्ति शाम 06:32 पर होगी।
एक पखवाड़े में दो ग्रहण:कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि इस बार एक पखवाड़े में दो ग्रहण पड़ रहे हैं। 25 अक्तूबर एवं 8 नवंबर को 15 दिन के अंतराल से दो ग्रहण पड़ेंगे। जो अशुभ हो सकते हैं। द्वापर युग में महाभारत युद्ध से पूर्व कार्तिक मास में इसी तरह दो ग्रहण पड़े थे। -
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल दिवाली पर सूर्यग्रहण लगने के कारण लोगों के मन में तिथियों को लेकर कंफ्यूजन है। ऐसे में लोगों के बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर भाई दूज का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा। जानें 26 या 27 अक्टूबर किस दिन भाईदूज मनाना रहेगा सही-
दोपहर के समय होती है भाईदूज की पूजा-
शास्त्रों के अनुसार, यम द्वितीया यानी भाईदूज के दिन यमराज अपनी बहन के घर दोपहर के समय आए थे और बहन की पूजा स्वीकार करके उनके घर भोजन किया था। वरदान में यमराज ने यमुना को कहा था कि भाई दूज यानी यम द्वितीया के दिन जो भाई अपनी बहनों के घर आकर उनकी पूजा स्वीकार करेंगे और उनके घर भोजन करेंगे उनका अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
भाईदूज के दिन किसकी करें पूजा-
शास्त्रों के अनुसार, भाईदूज के दिन यमराज, यमदूज और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए। इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान करना चाहिए।
26 अक्टूबर को मनाएं भाईदूज का त्योहार-
इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 व 27 अक्टूबर दोनों दिन लग रही है। 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से भाईदूज का पर्व शुरू होगा, जो कि 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इस दिन भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
27 अक्टूबर को पूजन का यह है शुभ मुहूर्त-
कई जगहों पर उदया तिथि के हिसाब से भाईदूज का पर्व 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा। 27 अक्टूबर को भाईदूज का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
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दिवाली के अगले दिन तड़के ही इस बार सूर्य ग्रहण के सूतक लग जाएंगे। इसलिए इस त्योहार का असर दिवाली पूजा पर भी पड़ेगा। सूर्य ग्रहण के सूतक 25 अक्टूबर को सुबह 4 बजे लग जाएंगे, इसलिए इस तिथि में मंदिर पूजा से जुड़ा कोई भी काम नहीं किया जा सकेगा। 25 अक्टूबर का दिन खाली माना जाएगा। इस दिन पितरों का दान आदि किया जाएगा। ग्रहण के बाद ही स्नान और दान फलदायी रहेगा। मंगलवार 25 अक्टूबर को भौमवती अमावस्या है।
दरअसल इस बार दिवाली के दिन शाम को अमावस्या तिथि शुरू हो रही है, इसलिए ग्रहण वाले दिन ग्रहण काल खत्म होने पर ही अमावस्या तिथि का स्नान और दान किया जाएगा। अब बात आती है दिवाली पूजा की। दिवाली की पूजा के बाद अगली सुबह से ग्रहण का सूतक काल शुरू हो जाता है, जिसमें मंदिरों के पट बंद रहते हैं, इसलिए माता लक्ष्मी के पूजन की चौकी भी ग्रहण काल के समाप्त होने के बाद ही उठाई जाएगी। 25 अक्टूबर की शाम 4 बजे से सूर्य ग्रहण शुरू होगा। शाम 6.25 बजे ग्रहण खत्म होगा। सूर्य ग्रहण देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में आसानी से देखा जा सकेगा। देश के पूर्वी हिस्सों में ये ग्रहण दिख नहीं पाएगा। -
दिवाली के पावन पर्व पर आइए जानते हैं माता लक्ष्मी से जुड़े कुछ खास रहस्य।
. समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई
. लक्ष्मी जी भृगु ऋषि और ख्याति की संतान हैं।
. धाता और विधाता माता लक्ष्मी के दो भाई हैं।
. अलक्ष्मी माता लक्ष्मी की बहन हैं
. भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के पति हैं
. मान्यता हैं कि मां लक्ष्मी के 18 पुत्र हैं।
. वह क्षीरसागर में भगवान विष्णु संग निवास करती हैं।
. शुक्रवार,पूर्णिमा और दिवाली पर माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
. मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू और हाथी हैं।
. माता लक्ष्मी सुख-समृद्धि और वैभव की देवी मानी जाती हैं। -
जिस तरह मां दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है, उसी तरह मां लक्ष्मी के भी आठ रूप हैं जो इस प्रकार हैं।
धनलक्ष्मी
धान्यलक्ष्मी
आदिलक्ष्मी
गजलक्ष्मी
संतानलक्ष्मी
वीरलक्ष्मी
विजयलक्ष्मी
विद्यालक्ष्मी
माता लक्ष्मी के आठ अवतार---
लक्ष्मी जी के 8 अवतार इस प्रकार हैं-
महालक्ष्मी- जो वैकुंठलोक में वास करें
स्वर्गलक्ष्मी- जो स्वर्गलोक में वास करें
दक्षिणालक्ष्मी- जो यज्ञ में वास करें
गृहलक्ष्मी- जो गृह में वास करें
शोभालक्ष्मी- जो हर वस्तु में वास करें
रुक्मणी - जो गोलोक में वास करें
राधालक्ष्मी- जो गोलोक में वास करें
राजलक्ष्मी- जो पाताललोक में वास करे -
यदि मां लक्ष्मी आप पर प्रसन्न हैं और वह आपके घर में वास करना चाहती हैं तो मान्यता है कि आपको इससे जुड़े कई संकेत घर में देखने को मिलेंगे। जैसे-
अचानक काली चींटियां का आना
चिड़ियां का घोंसला बनाना
दिवाली पर छिपकली का दिखना
सपने में उल्लू,हाथी,झाड़ू और शंख देखना
सुबह गन्ना, शंख, उल्लू और झाड़ू को देखना
दिवाली लक्ष्मी पूजन सामग्री --
. शंख
. कमल का फूल
. गोमती चक्र
. धनिया के दाने
. कच्चा सिंघाड़ा
. मोती
. कमलगट्टे का माला
मां लक्ष्मी के प्रिय भोग
दिवाली पूजन के दौरान मां लक्ष्मी को भोग स्वरूप उनकी प्रिय चीजें अर्पित करें जो इस प्रकार हैं।
. मखाना
. सिंघाड़ा
. बताशा
. गन्ना
. खीर
. हलवा
. अनार
. पान
. केसर
. सफेद पीली मिठाई -
दिवाली के दिन घर में लक्ष्मी जी के आगमन हेतु ढेर सारे उपाय किए जाते हैं। घर की साफ सफाई करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। दिवाली पर घर में लक्ष्मी गणेश जी की स्थापना के साथ धन की देवी माता लक्ष्मी के यंत्र को भी स्थापित करना चाहिए। धनलक्ष्मी यंत्र धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी से संबंधित है। माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीयंत्र यह धन लक्ष्मी यंत्र को घर पर स्थापित करना शुभ माना गया है। मान्यता है कि श्री यंत्र से मां लक्ष्मी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह धन लक्ष्मी यंत्र धन, प्रसिद्धि और सफलता प्रदान करता है। आइए जानते हैं श्री यंत्र को घर पर कहां और किस विधि से स्थापित करना चाहिए।
धन लक्ष्मी यंत्र के लाभ---
इस यंत्र की महिमा के कारण आप पर हमेशा मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
घर में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है और सुख-शांति बनी रहती है।
आपको हर तरह की आर्थिक परेशानी से बचाने के लिए यह चमत्कारी यंत्र बहुत कारगर माना जाता है।
यदि परिवार का कोई व्यक्ति लंबे समय से किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो इस यंत्र की विधि विधान से पूजा करने से उस रोग में लाभ मिलता है।
इस यंत्र की महिमा से आप अपना पुराना रुका हुआ धन वापस पा सकते हैं और कर्ज से जल्द मुक्ति पा सकते हैं।
इस यंत्र की प्रतिदिन पूजा करने से धन प्राप्ति के नए-नए उपाय प्राप्त होते हैं।
ऐसे स्थापित करें धन लक्ष्मी यंत्र----
यदि आप सुख समृद्धि और यश पाना चाहते हैं तो श्री यंत्र को पूरे विधि विधान से स्थापित करना चाहिए। स्नान आदि से निवृत्त होकर श्री यंत्र को पंचामृत और गंगाजल से साफ करके ईशान कोण में एक लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। इस दौरान बीज मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं नम: या ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं का जाप करते रहें। श्री यंत्र को स्थापित करने समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
धन लक्ष्मी यंत्र की पूजा विधि---
धन लक्ष्मी यंत्र की पूजा विधि की शुरुआत सुबह से ही हो जाती है। इसके लिए प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
दूध और गंगाजल के मिश्रण से स्नान कर साफ सूती लाल कपड़े पर रखकर किसी पवित्र स्थान पर रख दें।
ध्यान रहे कि आप इसे तिजोरी, मंदिर, किचन या ऑफिस में रख सकते हैं।
पूजा से पहले इस यंत्र को पंचामृत में रखें और उस पर लाल चंदन छिड़कें। इसके बाद कुछ लाल गुलाब के फूल और चावल लेकर यंत्र पर रख दें और फिर उसके ऊपर लाल चुन्नी डाल दें।
धन लक्ष्मी यंत्र के सामने घी का दीपक जलाएं और मां धनलक्ष्मी यंत्र की आरती करें। आप चाहें तो दुर्गा सप्तमी का पाठ भी कर सकते हैं।
पूरी भक्ति के साथ आप हाथ जोड़कर धन लक्ष्मी यंत्र के सामने खड़े हो जाएं और मन ही मन इस मंत्र का जाप करें।
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद,
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
मान्यता है कि पूरे विधि विधान से पूजा करने से यह प्रभावशाली लक्ष्मी यंत्र आपको शीघ्र ही फल देगा। -
दीपावली रोशनी का पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार भगवान राम इस दिन 14 वर्ष के वनवास के साथ अयोध्या वापस लौटे थे और इसी खुशी में आयोध्यावासियों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऐसी मान्यता भी है कि दीपावली पर मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं इस कारण दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक माह की अमावस्या पर मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, वहीं वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु संग माता लक्ष्मी का विवाह हुआ था। इस वजह से हर साल दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का महत्व है। दिवाली आने से कई दिनों पहले से ही घरों की साफ-सफाई और सजावट होने लगती है। दिवाली की शाम को शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी-गणेश,कुबेर और माता सरस्वती की विशेष पूजा आराधना की जाती है। आइए जानते हैं इस दिवाली पर लक्ष्मी माता से जुड़ी सभी जानकारियां कैलेंडर के माध्यम से।
इन घरों में करती हैं माता लक्ष्मी वास ---
माता लक्ष्मी दिवाली पर उनके घरों में प्रवेश करती हैं
. जहां साफ-सफाई हो
. जहां प्रतिदिन पूजा-पाठ हो
. जहां महिलाओं का सम्मान हो
. जहां भगवान विष्णु,श्रीयंत्र और श्री सूक्त का पाठ हो
माता लक्ष्मी ऐसे घरों में कभी वास नहीं करती ----
माता लक्ष्मी स्वच्छता का प्रतीक मानी गई हैं तो कुछ ऐसे स्थान हैं जहां माता लक्ष्मी वास नहीं करती हैं।
. जहां गंदगी और सामान बिखरा हुआ हो
. जहां स्त्रियों का अनादर हो
. जहां प्रतिदिन पूजा न होती हो
. जहां वास्तुदोष हो
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दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली,रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।
क्या है इसकी कथा-
इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दुर्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।
तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
क्या है इसका महत्व-
इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं। -
दीपावली से एक दिन पूर्व छोटी दिवाली पर नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है. इस बार ये पर्व 23 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा. नरक चतुर्दशी नरक चौदस, नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है. नरक चतुर्दशी पर यमराज की विशेष उपासना की जाती है. मान्यता है कि नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है.
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि नरक चतुर्दशी पर तर्पण और दीपदान का बड़ा महत्व होता है. इससे नरक की यातनाओं से मुक्ति प्राप्त होती है.
तर्पण और दीपदान का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर तर्पण और दीपदान की प्रथा है. नरक चतुर्दशी पर सुबह स्नान करने के बाद यमराज की विधि विधान से पूजन करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति पाकर स्वर्ग को प्राप्त करता है. संध्या के समय यम का दीप जलाने का विधान है. इस दिन यम के नाम का दीपक जलाने से असमय मृत्यु से बचा जा सकता है. नरक चतुर्दशी पर तर्पण और दीपदान को लेकर एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है.
नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा--
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार रंति देव नामक राजा ने अज्ञातवश कोई पाप नहीं किया था. जब राजा की मृत्यु का समय निकट आया तो यमराज ने उनको दर्शन दिए. तब राजा ने यमराज ने पूछा कि मैंने कोई पाप नहीं किया तो आप मुझे लेने किसलिए आए हो, क्यों मुझे नरक जाना पड़ रहा है. तब यमदूत ने कहा कि हे राजन, एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था. उसी का कर्म का फल है. तब राजा ने यमराज से एक वर्ष और समय देने की विनती की.
यमराज ने उनकी बात स्वीकार ली. इसके बाद राजा ऋषियों के पास पहुंचे और इस पाप से मुक्ति के लिए समाधान पूछा. तब ऋषियों ने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की नरक चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करें. इसके बाद राजा ने नरक चतुर्दशी पर व्रत रखा और ब्रह्मणों को भोजन कराया. -
आज धनतेरस है। स्कंद पुराण में वर्णित है कि कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे, यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति... यानी कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन शाम को घर के बाहर यमदेव के लिए दीप रखने से अकाल मृत्यु का निवारण होता है। साथ में, आज ही के दिन धन्वंतरि जयंती और कामेश्वरी जयंती भी मनाई जाती है। पूरे वर्ष में एकमात्र यही वह दिन है जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा सिर्फ दीपदान करके होती है।
ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार, 22 अक्तूबर को धन त्रयोदशी के दिन यम को दीपदान प्रदोष काल में करना चाहिए। इस समय मीन लग्न में दीपदान करने से मन स्थिर रहता है और क्लेश दूर होगा। ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार यम को दीपदान के लिए आटे का एक बड़ा दीपक तैयार करें। इसके बाद साफ रुई लेकर दो लंबी बत्तियां बना लें। उन्हें दीपक में एक दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुंह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें। प्रदोष काल में दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें। घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी सी खील अथवा गेहूं से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक जलाकर रख लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए चार मुंह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें। इसके उपरांत यमदेवाय: नम: कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
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इस साल धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग बन रहा है। इस योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होने के साथ तीन गुना फल प्राप्त होने की मान्यता है।
राशि के अनुसार क्या करें खरीदारी
मेष- इस राशि वाले जातकों को सोने-चांदी के आभूषण खरीदने चाहिए। इसके साथ ही आपके लिए प्रॉपर्टी में निवेश करना भी शुभ रहेगा।
वृषभ - धनतेरस के मौके पर इस राशि के जातक चांदी या हीरे का आभूषण ले सकते हैं। वाहन खरीदने का मन बना रहे हैं तो धनतेरस का दिन बहुत ही शुभ रहेगा।
मिथुन - इस राशि के जातक यदि लाभ पाना चाहते हैं तो सोने-चांदी की वस्तु अथवा इलेक्ट्रॉनिक आइटम की खरीदारी करें।
कर्क - इस राशि के जातक धनतेरस पर चांदी के गहनों की खरीदारी कर सकते हैं। शेयर बाजार में निवेश करना भी लाभप्रद रहेगा।
सिंह - सूर्य के स्वामित्व वाली इस राशि के जातक के लिए सोना अथवा चांदी की वस्तुओं की खरीदारी शुभ रहेगी।
कन्या - इस धनतेरस पर शुभता पाने के लिए इस राशि के जातक इलेक्ट्रॉनिक आइटम की खरीदारी कर सकते हैं। सोने-चांदी की वस्तुओं की खरीदारी से भी लाभ होगा।
तुला - इस राशि के जातक को चांदी के आभूषण अथवा कोई अन्य चीज खरीदने से लाभ मिल सकता है। शेयर मार्केट में निवेश से भी फायदा मिल सकता है।
वृश्चिक- इस राशि के जातक को प्रॉपर्टी में निवेश करने से अच्छा मुनाफा मिल सकता है। सोने-चांदी की खरीदारी भी फलदायी रह सकती है।
धनु - इस राशि के जातक को सोने के आभूषण खरीदने से फायदा हो सकता है। जमीन खरीदने का मन बना रहे हैं तो धनतेरस की तिथि आपके लिए शुभ रहेगी।
मकर- इस राशि के जातक को चांदी के आभूषण अथवा इलेक्ट्रॉनिक आइटम धनतेरस के दिन खरीदना चाहिए।
कुंभ - इस राशि के जातक चांदी के आभूषण की खरीदारी कर सकते हैं। शेयर बाजार में निवेश करके भी आप लाभ कमा सकते हैं।
मीन - इस राशि के जातक सोने अथवा चांदी के आभूषण इस धनतेरस पर खरीदने चाहिए। - दीपावली आने से पहले ही बाजारों में चहल पहल काफी बढ़ जाती है। इस साल दिवाली से एक दिन पहले 23 अक्तूबर के दिन धनतेरस पर्व को मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धनतेरस के दिन नई चीजों को खरीदना काफी शुभ माना गया है। इस दिन नई चीजों को खरीदने पर भगवान की विशेष कृपा बरसती है। ऐसे में लोग बड़े पैमाने पर सजावटी सामान, गाड़ी, सोना, चांदी आदि वस्तुओं की खरीदारी इस दिन करते हैं। अगर आप धनतेरस के दिन सोने की खरीदारी करने की योजना बना रहे हैं। ऐसे में आपको कुछ बातों के बारे में जानना बहुत जरूरी है।धनतेरस के दिन सोने की खरीदारी करते समय उस पर बने हॉलमार्क निशान को जरूर देखें। सोने पर बना हॉलमार्क का निशान उसकी शुद्धता के बारे में हमको बताता है। ऐसे में ज्वेलरी खरीदते समय उस पर बनें हॉलमार्क के निशान को जरूर चेक करें।-सोने को खरीदते समय उसके मेकिंग चार्ज को जानना आपके लिए बहुत जरूरी है। सोने के गहनों पर मेकिंग चार्ज 3 से 30 प्रतिशत तक हो सकता है। ऐसे में सोने को खरीदते समय मोल भाव जरूर करें।-सोना खरीदने के बाद आपको ज्वेलर्स से उसकी पक्की रसीद जरूर लेनी चाहिए। सोना काफी महंगा धातु है। ऐसे में इसको खरीदने के बाद ज्वैलर्स से बिल पर सोने के सही वजन को जरूर लिखवाएं। इसके अलावा बिल पर आपके आर्टिकल की सभी जरूरी जानकारी दर्ज होनी चाहिए।-अगर किसी महंगी गोल्ड ज्वेलरी को खरीदने के बाद उसकी शुद्धता को लेकर आपके मन में किसी प्रकार का संदेह है। इस स्थिति में आप होलमार्क जांच केंद्र पर विजिट करके उसकी प्योरिटी की जांच करा सकते हैं। इसके लिए आपसे टेस्टिंग चार्ज लिया जाएगा।
- दीपावली को हिंदुओं का सबसे बड़ा त्यौहार के रूप में सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार इस साल 24 अक्टूबर को दीपावली का त्यौहार मनाया जाएगा। इस दिन घर में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दीपावली के दिन लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने के लिए यदि हम वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखकर घर की साज-सज्जा करते हैं तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। 5 दिनों तक चलने वाली इस त्योहार की शुरुआत धनतेरस के दिन से हो जाती है जो गोवर्धन पूजा के बाद समाप्त होती है। दीपावली के करीब 1 महीने पहले से ही घर में घर घर में सभी लोग इसकी तैयारियों में लग जाते हैं।1. समय घर की साफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हर साल दिवाली के शुभ अवसर पर बहुत सारे लोग अपने घर की दीवारों को पेंट भी करवाते हैं। दीपावली के समय घर की साफ- सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। माना जाता है कि मां लक्ष्मी को साफ-सफाई बेहद पसंद है और वह ऐसे ही घर में जाना पसंद करती है जहां साफ -सफाई हो। ऐसे में दीपावली के समय घर की साफ- सफाई करते वक्त जमा कबाड़ को बाहर निकल देना चाहिए।2. दीपावली के समय घर की साफ -सफाई करते वक्त ईशान कोण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण में देवताओं का वास होता है। घर की सफाई करते वक्त ईशान कोण की अच्छे से साफ सफाई करनी चाहिए। उस कोण में कोई भी फालतू समान नहीं रखना चाहिए। ऐसा करने से माता लक्ष्मी नाराज हो जाती है।3. किसी भी घर में अंदर जाते वक्त सबसे पहले हमारा ध्यान उस घर के मेन गेट पर पड़ता है। ऐसे में यदि हम घर के मेन गेट को बहुत अच्छे से सजा कर रखें तो घर में आने वाले सभी लोगों को गेट की सजावट पसंद आ सकती है और अंदर आते वक्त उन्हें अंदर से खुशी का अनुभव होगा। वास्तु शास्त्र के अनुसार दीपावली के समय घर के मेन गेट पर मां लक्ष्मी की फोटो या चिन्ह लगाना चाहिए। घर के गेट पर स्वस्तिक का चिन्ह जरूर बनाएं ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।4. ईशान कोण को दीपावली के समय बिल्कुल खाली और साफ सुथरा होना बेहद जरूरी है। यदि आपके घर में कोई भारी सामान ईशान कोण में रखा हुआ है तो उसे तुरंत वहां से हटा दें और उस स्थान को देवताओं के लिए साफ -सुथरा बनाकर रखें।
- दिवाली की शुरुआत धनतेरस के पर्व से होती है। धनतेरस के दिन सोना, चांदी और खास तौर पर बर्तन खरीदने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। धनतेरस के खास मौके पर आज हम आपको बताना जा रहे हैं उन 5 धातुओं के बर्तन के बारे में, जो सेहत के लिए फायदेमंद हंै।चांदी के बर्तन में खाने के फायदेचांदी के बर्तन खरीदना और उसमें खाना खाना आज के जमाने में थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन इन बर्तनों में खाना खाए तो शरीर को संक्रमण से बचाने में मदद मिल सकती है। चांदी का एक खास गुण ये है कि इसमें बैक्टीरिया नहीं जमते है, जिसकी वजह से पेट दर्द और प्यास को लंबे समय तक कंट्रोल करने में मदद मिलती है।पीतल के बर्तन में खाने के फायदेपीतल के बर्तन में खाना पकाने और खिलाने की परंपरा राजा-महाराजाओं के जमाने से चली आ रही है। आयुर्वेद के अनुसार पीतल के बर्तन में खाना पकाने और खाने से पाचन क्रिया दुरुस्त होती है। इसके साथ ही ये कफ और कृमि रोगों की समस्याओं से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। नियमित तौर पर पीतल के बर्तन में खाना खाने से दिमागी शक्ति तेज होती है।तांबे के बर्तन में खाने के फायदेतांबे में जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं। ये पेट की सूजन को कम करने और पेट में मौजूद खराब बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद कर सकता है। नियमित तौर पर तांबे के बर्तन में पकाया हुआ खाना खाने से अल्सर, अपच और संक्रमण जैसी बीमारियां दूर रहती हैं।मिट्टी के बर्तन में खाना के फायदेमिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से ये उसकी सुगंध और स्वाद को बढ़ाने का काम करते हैं। मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। आयुर्वेद के अनुसार मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से शरीर को 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। साथ ही ये पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकता है।स्टील के बर्तन में खाने के फायदेकिसी भी अन्य धातु के मुकाबले स्टील के बर्तन में खाना पकाना काफी आसान होता है। स्टील के बर्तनों को धोने में ज्यादा वक्त भी नहीं लगता है, इसलिए आज घरों में स्टील का इस्तेमाल बढ़ गया है। स्टील के बर्तन नुकसानदायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते हैं और ना ही ठंडे इसलिए ये किसी भी रूप में हानि नहीं पहुंचाते हैं।
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कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन पीतल या चांदी के बर्तन खरीदने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन जो भी खरीदता है, वह लाभकारी होता है। साथ ही धन-संपदा में भी वृद्धि होती है।धनतेरस पर खरीदारी के साथ शुभ कार्य भी किए जाते हैं। इस दिन विशेष रूप से सोने और चांदी के आभूषण खरीदना शुभ होता है। जानिए धनतेरस के दिन किन चीजों की खरीदारी करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है....
कुबेर यंत्र और महालक्ष्मी यंत्र-
कहते हैं कि धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की कृपा पाने के लिए कुबेर यंत्र और महालक्ष्मी यंत्र खरीदना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि के साथ वैभव आता है। श्रीयंत्र को घर को घर या दुकान की तिजोरी में स्थापित करें।
लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति-
धनतेरस पर लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति स्थापित करना शुभ है। कहते हैं कि दिवाली के पहले धनतेरस पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति लाना शुभ होता है।
सोने-चांदी के सिक्के खरीदना होता है शुभ-
धनतेरस पर सोने या चांदी के सिक्के खरीदना शुभ होता है। इसके अलावा चांदी के बर्तन भी खरीदे जाते हैं। ज्योतिषाचार्यों आशुतोष झा के अनुसार,धनतेरस के दिन खरीदे जाने वाले गहने, सिक्कों, बर्तनों की भी दिवाली के दिन गणेश-लक्ष्मी पूजन के दौरान पूजा करनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने धन की देवी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
धनिए के बीज-
धनतेरस पर धनिए के बीज की खरीदारी को शुभ माना जाता है। कहते हैं कि धनिए के बीज का इस्तेमाल गणेश-लक्ष्मी पूजन में करना चाहिए। साथ ही धनिया का बीज तिजोरी में भी रखना शुभ होता है।
धनतेरस पर झाड़ू खरीदने का है महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, झाड़ू को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। धनतेरस पर झाड़ू खरीदने से घर में सुख-समृद्धि और धन में वृद्धि होती है। झाड़ू घर में पसरी दरिद्रता को दूर करती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ाती है। साफ-सफाई से धन की देवी लक्ष्मी आकर्षित होकर वहां वास करती है।
धनतेरस पर इन चीजों की न करें खरीदारी-
धनतेरस पर लोहे की वस्तुओं की खरीदारी नहीं करनी चाहिए। लोहा शनि का कारक माना गया है। मान्यता है कि धनतेरस पर लोहे की चीजों को खरीदने से दुर्भाग्य आता है। इसके अलावा धनतेरस के दिन चीनी मिट्टी की बनी हुई चीजों को भी नहीं खरीदना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में बरकत कम होती है। - कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल 21 अक्टूबर (शुक्रवार) को रमा एकादशी व्रत रखा जाएगा। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है। एकादशी व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। एकादशी के दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रमा एकादशी का व्रत रखने वाले को अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। मान्यता है कि रमा एकादशी के दिन व्रत कथा सुनने या पढ़ने से श्रीहरि सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसलिए रमा एकादशी के दिन व्रत कथा के पाठ करने या सुनने का विशेष महत्व होता है।रमा एकादशी व्रत कथा-एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा थे। उनकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी। राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था। शोभन एक बार कार्तिक मास के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया, तभी रमा एकादशी व्रत पड़ा। चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे और ऐसा ही करने के लिए शोभन से भी कहा गया।शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा। वह इसी परेशानी के साथ पत्नी के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा। चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य के बाहर जाना पड़ेगा। क्योंकि राज्य में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो। यहां तक कि इस दिन राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं।आखिरकार शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, लेकिन पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी. चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे. उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया। ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ। तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई। चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी। वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची। चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची। अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया। तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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शुक्र ग्रह 18 अक्टूबर को तुला राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। इस राशि में सूर्य व केतु पहले से विराजमान हैं। तुला राशि में एक साथ ही ग्रह आने से त्रिग्रही योग बनेगा। दिवाली का त्योहार भी त्रिग्रही योग में मनाया जाएगा। तुला राशि में शुक्र के आने का असर कुछ राशियों पर सकारात्मक पड़ेगा।
जानें दिवाली का त्योहार मेष समेत इन राशियों के लिए साबित होगा लाभकारी-
मेष
मेष राशि वालों को शुक्र गोचर के प्रभाव से करियर में खूब तरक्की मिल सकती है। इस दौरान सीनियर्स आपके काम से प्रसन्न रहेंगे। व्यापारियों के लिए यह गोचर बेहद लाभकारी साबित हो सकता है। इस अवधि में आप कोई बड़ी डील फाइनल कर सकते हैं। वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा।
वृषभ-
शुक्र गोचर आपके लिए करियर में नए अवसर खोलेगा। इस दौरान आपको धन लाभ के प्रबल आसार हैं। नौकरी पेशा करने वाले जातकों को धन लाभ हो सकता है। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा।
कर्क-
कर्क राशि वालों के लिए शुक्र गोचर शुभ परिणाम ला सकता है। इस गोचर काल में आपको वाहन सुख की प्राप्ति हो सकती है। इस अवधि में आपको कम मेहनत का ज्यादा फल मिलेगा। कड़ी मेहनल का फल इस अवधि में आपको धन लाभ के रूप में मिलेगा।
कन्या-
कन्या राशि वालों के लिए यह गोचर सुख-सुविधाओं में वृद्धि कराने वाला माना जा रहा है। इस दौरान आप धन संचय कर सकते हैं। आर्थिक रूप से यह गोचर लाभकारी साबित हो सकता है। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। आय के नए साधन बनेंगे।
तुला-
तुला राशि वालों के लिए शुक्र गोचर लग्न भाव में शुभ माना जा रहा है। इस गोचर के बाद आपकी आर्थिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव हो सकता है। आपकी पर्सनल व प्रोफेशनल लाइफ में पॉजिटिव बदलाव होंगे। नौकरी पेशा करने वाले जातकों को नए अवसर मिल सकते हैं। लव लाइफ अच्छी रहेगी। -
इस बार 24 अक्टूबर को दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा। दिवाली पर मां लक्ष्मी का पूजन कर दिए जलाए जाते हैं। इस बार धनतेरस और छोटी दिवाली को लेकर भी कंफ्यूजन है। छोटी दिवाली जहां कई जगह 24 को और धनतेरस 23 को मनाई जा रही हैं, वहीं कई जगह 22 को धनतेरस, 23 को छोटी दिवाली और 24 को बड़ी दिवाली मनाई जा रही है। दिवाली पर दीप जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। दिवाली का त्योहार धनतेरस से शुरू हो जाता है। धनतेरस पर भी घर में मां लक्ष्मी और कुबेर का स्वागत किया जाता है, इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं, इस दिन धातु घर में लाने की परंपरा है।
धनतेरस की बात करें तो इस दिन घर के मुख्य द्वार पर 13 दीप जलाए जाते हैं, इसके अलावा घर के मुख्य द्वार पर यम का दीप जलाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यम का दीप आटे का बनाया जाता है और इसे नाली के पास रखा जाता है।
नरक चतुदर्शी के दिन 14 दीपक जलाए जाते हैं। वहीं दिवाली के दिन एक तेल का दीपक और एक घी का बड़ा दीपक जलाते हैं, ऐसा कहा जाता है कि यह दीपक रात भर जलना चाहिए। इसे मां लक्ष्मी के लिए खास तौर पर जलाया जाता है? इसके अलावा आपकी हर संपत्ति के पास एक दीपक जलाया जाता है। इसमें एक दीपक तुलसी पूजा, एक दीपक जल के स्थान की जगह, एक आपके वाहन के पास, एक दीपक वॉशरुप में, एक रसोई घर में, एक दीपक पितरों के नाम का और एक दीपक यम के नाम का जलाया जाता है। -
फेंगशुई चीन की एक 3000 साल पुरानी पद्धति है। फेंगशुई में बताए गए उपायों को अपनाने से घर में सुख समृद्धि आती है और साथ ही साथ सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है। फेंग शुई क्या है? फेंग शुई ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करने और आपको शांति से जीने में मदद करने के लिए प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन बनाने का काम करता है। फेंग शुई के साथ बैंलेस बनाने के लिए, आपको प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले इन पांच तत्वों- पृथ्वी, जल , अग्नि, धातु और लकड़ी के साथ संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए।
घर के लिए 5 जरूरी फेंगशुई टिप्स-
1. दरवाजे के सामने का रास्ता हमेशा साफ- सुथरा रखें। फेंग शुई में सामने के दरवाजा, एनर्जी के अंदर जाने का एक माध्यम होता है। इसके जरिए ही एनर्जी घर में प्रवेश करती है और सभी दिशाओं में बहती है। दरवाजे के सामने की जगह साफ होने से पॉजिटिव एनर्जी का अच्छे से स्वागत होता है।
2. कमांड पोजीशन आपको अपने जीवन पर कंट्रोल रखने की अनुमति देती है और आप तक पहुंचने वाली हर चुनौती के लिए आपको तैयार रखता है। फर्नीचर को दरवाजे से तिरछे करके रखें, ताकि आप देख सकें कि कौन या क्या घर के अंदर प्रवेश कर रहा है। यह आपके बिस्तर, सोफे और घर में बने ऑफिस पर लागू होता है।
3. एनर्जी हर दिशा में अच्छी तरह से बहती रहे इसके लिए कमरों में हर चीज का व्यवस्थित होना बेहद जरूरी है। फेंगशुई घर में रखे तत्वों के बीच संतुलन बनाए रखने के बारे में है। यदि आपके घर में ऐसी कोई भी चीज है जो एनर्जी के फ्लो को ठीक ढंग से बहने से रोक रही है तो उसे जल्द से जल्द दूर करने का उपाय करें। अधिक से अधिक रोशनी को कमरे में आने दें
4. एनर्जी के फ्लो को करें कंट्रोल। एक बार सारी अव्यवस्था दूर हो जाने के बाद आपके सामने अगली चुनौती एनर्जी के फ्लो को बैलेंस करना होगा। पॉजिटिव एनर्जी को घर के अंदर बनाये रखने के लिए एनर्जी को बरकरार रखना बेहद जरूरी है। जिसकी शुरुआत घर के रास्तों से करें। कभी भी दो दरवाजे एक- दूसरे के आमने -सामने न बनाए। ऐसा करने से आने वाली एनर्जी तुरंत दूसरे दरवाजे से बाहर चली जाएगी।
5. सोच -समझ कर चुने घर बनाने की जगह, ऐसा माना जाता है कि घर के पास गन्दा एरिया होने से निगेटिव एनर्जी इनवाइट होती है। कब्रिस्तानों के सामने, कचरा डंप साइटों और बिजली स्टेशनों के पास रहने से बचें। इसी तरह, टी-पॉइंट के सबसे ऊपर या कॉर्नर पर रहने से बचें, क्योंकि इससे आपके घर में बहुत सारी एनर्जी डायरेक्ट प्रवेश कर सकती है। आप अपने घर में किन चीजों को मदद से, किस तरह की एनर्जी को अंदर ला रहे हैं। इस बात का ज्ञान होना आपके लिए बेहद जरूरी है। -
दिवाली की खरीदारी राशि के अनुसार करने पर हितकर होगा। मान्यता है कि ऐसा करने से दीपावली पर देवी महालक्ष्मी की विशिष्ट कृपा मिलेगी। पं. वेदमूर्ति शास्त्री बता रहे हैं किस राशि के लिए कौन से रंग और रत्न विशेष रूप से शुभ होंगे।
● मेष लाल, सफेद, पीला रंग और मंगलवार का दिन शुभ। मूंगा, माणिक्य, मोती और पुखराज हितकारी होंगे।
● वृष हरे, सफेद और काले रंग की वस्तुएं क्रय करें। शुभ दिन बुधवार, शुक्रवार, शनिवार और शुभ रत्न हीरा, मोती,पन्ना, नीली हैं।
● मिथुन हरे, सफेद, बादामी रंग की वस्तुएं क्रय करें। रविवार, शुक्रवार और बुधवार का दिन शुभ है। रत्नों में माणिक्य, हीरा, मोती और पन्ना।
● कर्क सफेद, हरे, गुलाबी और पीले रंग की वस्तु। रविवार, सोमवार और बुधवार का दिन, रत्नों में पन्ना, मोती, हीरा और धातु में चांदी।
● सिंह सफेद, लाल और पीले रंग को प्रमुखता दें। सोमवार, मंगलवार, गुरुवार और रविवार शुभ दिन तथा मूंगा, मोती, माणिक्य, पुखराज।
● कन्या सफेद, हरा, गुलाबी और छीटदार रंग। बुधवार, शुक्रवार, रविवार का दिन और पन्ना, हीरा, मोती रत्न शुभकारी होंगे।
● तुला सफेद, हरा काला रंग अधिक शुभ होगा। बुधवार, शुक्रवार और शनिवार का दिन तथा हीरा, पन्ना, नीली रत्न तथा चांदी।
● वृश्चिक लाल, सफेद, पीले, रंग की वस्तुओं को प्रमुखता दें। रविवार, सोमवार, मंगलवार, गुरुवार का दिन और मूंगा, पुखराज, मोती लाभकारी।
● धनु पीले, सफेद, लाल रंग। दिन में रविवार, सोमवार, मंगलवार और गुरुवार को तथा रत्नों में पुखराज, मोती, माणिक्य को महत्व दें।
● मकर और कुंभ काला, हरा और सफेद रंग तथा बुधवार, शुक्रवार और शनिवार का दिन और रत्नों में नीली, हीरा और पन्ना अधिक शुभ होंगे।
● मीन पीले, सफेद, लाल रंग को महत्व दें। सोमवार, मंगलवार, गुरुवार और रविवार का दिन तथा पुखराज, माणिक्य, मूंगा और मोती क्रय करें। -
दीपावली पर खड़े हुए लक्ष्मी-गणेश जी का चित्र अथवा मूर्ति जबकि घरों में बैठे हुई लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति शुभ होती है। भारतीय फेंगशुई के आधार पर व्यापारिक संस्थानों में उत्तर-पूर्व दिशा में मंदिर का स्थान होना चाहिए। यदि वहां संभव नहीं है तो चेयरमैन या डायरेक्टर में कमरे या केबिन में उत्तर-पूर्व की ओर भगवान जी का मंदिर रखें। मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं होना चाहिए। लकड़ी का छोटा मन्दिर ही रखें जिसमें लक्ष्मी एवं गणेश-सरस्वती की मूर्ति आ सके। दिवाली पर लोग लक्ष्मी-गणेश जी की बैठी हुई मूर्ति घर में स्थापित करते हैं। घर के लिए तो बैठी हुई लक्ष्मी-गणेश जी की प्रतिमा बहुत अच्छी होती है, लेकिन व्यापारिक संस्थानों में लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति खड़ी हुई होनी चाहिए।
बैठे हुई लक्ष्मी जी की स्थापना से धन में स्थिरता आ जाती है जो घर के लिए तो अच्छा है, लेकिन व्यापार में स्थिरता अच्छी नहीं मानी जाती। व्यापार को निरंतर बढ़ाने के लिए मां लक्ष्मी एवं गणेश जी की मूर्ति खड़ी रखें, क्योंकि बल, बुद्धि, विवेक के स्वामी गणेश जी यदि बैठ गए तो हमारे मन में निर्णय क्षमता कम हो जाएगी। उल्टे-सीधे निर्णय लेने से हमारा व्यापार पर असर पड़ेगा जिससे परिणाम ठीक नहीं आएंगे। सोचने की शक्ति भरपूर मिलती रहे, इसके लिए गणेश जी की मूर्ति भी खड़ी हुई होनी चाहिए। जो व्यापारी लक्ष्मी और गणेश जी के साथ-साथ सरस्वती मां की मूर्ति रखते हैं तो वह भी खड़ी होनी चाहिए। सरस्वती ज्ञान का कारक है और हमारा ज्ञान एवं विवेक निरंतर बढ़ना चाहिए। यह स्थिर नहीं होना चाहिए। इसलिए लक्ष्मी-गणेश जी और मां सरस्वती की फोटो को अथवा चित्र को खड़ी अवस्था में रखने से व्यापार बढ़ता रहेगा। निर्णय क्षमता बढ़ेगी। विवेक का प्रयोग करके व्यापार बढ़ेगा और ज्ञान-बुद्धि का प्रयोग होता रहेगा।