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- भगवान शिव पर फूल चढ़ाने का विशेष महत्व है । बिल्व पत्र और धतूरा भगवान शिव को विशेष प्रिय हैं । माना जाता है कि बिल्व पत्र समर्पित करते ही शिव पूजा पूर्ण और सफल हो जाती है ।शिवजी के प्रिय पुष्प हैं—अगस्त्य, गुलाब (पाटला), मौलसिरी, कुशपुष्प, शंखपुष्पी, नागचम्पा, नागकेसर, जयन्ती, बेला, जपाकुसुम (अड़हुल), बंधूक, कनेर, निर्गुण्डी, हारसिंगार, आक, मन्दार, द्रोणपुष्प (गूमा), नीलकमल, कमल, शमी का फूल आदि । जो-जो पुष्प भगवान विष्णु को पसन्द है, उनमें केवल केतकी व केवड़े को छोड़कर सब शंकरजी पर भी चढ़ाए जाते हैं । भगवान शिव की पूजा में केतकी और केवड़े के पुष्पों का निषेध है। चम्पा के पुष्पों से शिव पूजन केवल भाद्रपदमास में किया जाता है ।शिव सहस्त्रनाम या शिव अष्टोत्तरशतनाम के एक-एक नाम को बोलते हुए शिवजी पर पुष्प या बेल पत्र चढ़ाये जाते हैं । शिव पुराण में मनोकामना सिद्धि के लिए एक लाख पुष्पों द्वारा शिव पूजा का विधान है किन्तु आज के युग में इतने पुष्प एक साथ न मिलने से 1008 या 108 पुष्पों द्वारा शिव पूजन किया जा सकता है ।माना जाता है कि कमल, बिल्वपत्र, शंखपुष्पों से शिवजी का पूजन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। यदि एक लाख पुष्पों से शिवजी का पूजन किया जाए तो सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । इतने पुष्प न हों तो एक सौ आठ पुष्प से भी पूजन किया जा सकता है ।भगवान शिव को कमल कितने प्रिय हैं इससे सम्बन्धित एक कथा पुराणों में मिलती है । देवताओं के कष्ट दूर करने के लिए भगवान विष्णु प्रतिदिन शिव सहस्त्रनाम के पाठ से शिवजी को एक सहस्त्र कमल चढ़ाते थे । एक दिन भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा करने के लिए एक कमल छुपा दिया । एक कमल कम होने पर भगवान विष्णु ने अपना एक कमल-नेत्र शिवजी के चरणों में अर्पित कर दिया । यह देखकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और दैत्यों के विनाश के लिए उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया ।-भाद्रपदमास में कदम्ब और चम्पा से शिव पूजा करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं ।-भगवान शिव पर बेला के फूल चढ़ाने से सुन्दर व सुशील पत्नी प्राप्त होती है ।-मुक्ति की कामना करने वाले मनुष्य को कुशा से शिवजी का पूजन करना चाहिए ।-पुत्र की इच्छा रखने वाले मनुष्य को लाल डंठल वाले धतूरे से शिवजी का पूजन करना चाहिए ।-यश प्राप्ति के लिए अगस्त्य के फूलों से शिव पूजन करना चाहिए।-मंजरियों से शिवजी की अर्चना करने से भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं ।-लाल और सफेद आक, अपामार्ग और श्वेत कमल के फूलों से शिवपूजन से मनुष्य भोग और मोक्ष प्राप्त करता है ।-काम-क्रोधादि के नाश के लिए मनुष्य को भगवान शिव की जपाकुसुम (अड़हुल) के पुष्पों से पूजा करनी चाहिए ।-रोग नाश और उच्चाटन आदि के लिए कनेर के फूलों से शिव पूजन करना चाहिए ।-बन्धूक (दुपहरिया) के पुष्पों से पूजा करने पर मनुष्य को आभूषणों की प्राप्ति होती है ।-चमेली के पुष्पों से शिव पूजन से वाहन की प्राप्ति होती है-अलसी के फूलों से महादेवजी का पूजन करने वाला मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है ।-शमी पत्रों से पूजन अनेक प्रकार के सुख व मोक्ष देने वाला है ।-जूही के फूलों से पूजा की जाए तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती ।-सुन्दर नए वस्त्र व सम्पत्ति की कामना पूर्ति के लिए कर्णिकार (कनेर) के फूलों से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए ।-निर्गुण्डी के पुष्पों से शिव पूजन करने से मन पवित्र व निर्मल हो जाता है ।-बिल्व पत्रों के पूजन करने से भगवान शिव समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं ।-हरसिंगार के पुष्पों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होती है ।-ऋतु अनुसार पुष्पों से शिवपूजन करने से संसार के आवागमन से मनुष्य मुक्त हो जाता है ।-राई के फूलों से शिवजी की पूजा से शत्रुओं का नाश होता है ।-आयु की इच्छावाला पुरुष एक लाख दूर्वाओं से शिवजी का पूजन करे ।भगवान शिव का पुष्पार्चन करते समय यह ध्यान रखें कि पुष्प स्वयं के पैसे से खरीदे गए हों, दूसरों के बगीचे से बगैर पूछे तोड़े गए पुष्पों से शिव पूजा सफल नहीं होती है । स्वयं भगवान शिव ने पुष्पदंत गंधर्व से कहा-Óअपने आराध्य की स्तुति अपने श्रम से प्राप्त पदार्थ से करनी चाहिए । चोरी के पुष्पों से की गयी मेरी अर्चना मुझे पसन्द नहीं आती है।Ó
- तुलसी के पवित्र पौधे का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है और शास्त्रों में भी इसका उल्लेख किया गया हैै। माना जाता है कि इसका संबंध भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी से हैै। ज्योतिष शास्त्र ही नहीं वास्तु शास्त्र में भी तुलसी के पौधे का महत्व बताया गया हैै। वास्तु के अनुसार इस पवित्र पौधे को घर में व्यवस्थित करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि आती हैै। घर की तरफ आने वाली नेगेटिव एनर्जी दूर रहती है और पॉजिटिव माहौल बना रहता हैै। वास्तु के अनुसार इसके साथ कई दूसरे पौधे लगाकर भी घर में सुख एवं शांतिपूर्ण माहौल बनाया जा सकता हैै। माना जाता है कि सावन माह में शिव-पार्वती के साथ तुलसी के पौधे की पूजा एवं पाठ का प्रावधान होता हैै।आप सावन में वास्तु के अनुसार कुछ उपाय करके धन की कमी समेत जीवन की कई समस्याओं को दूर कर सकते हैंै। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कि सावन में आप तुलसी के साथ किन अन्य पौधों को लगाकर घर की सुख-शांति को बनाए रख सकते हैंै। जानें इनके बारे में....तुलसी और शमी का पौधाआप घर में सावन के दौरान तुलसी के साथ शमी का पौधा भी रख सकते हैंै। सनातन धर्म में इन दोनों पौधों को बहुत पवित्र बताया गया है और इनकी पूजा करके जीवन की कई समस्याओं को दूर किया जा सकता हैै। कहते हैं कि शमी के पौधे क संबंध भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री राम से हैै। भगवान राम ने लंका पर आक्रमण से पहले इस पवित्र पौधे की पूजा की थीै। वहीं पांडवों ने अपने शस्त्र छुपाने के लिए इस पौधे की मदद ली थीै। सावन में इन दोनों पौधों को घर में लगाएं और नियमित रूप से पूजा पाठ करेंै। ध्यान रहे कि आपको इन्हें उत्तर दिशा में ही लगाना है.धतूरे और तुलसी का पौधाकहते हैं कि धतूरे के पौधे का संबंध भगवान शिव से होता है और तुलसी के पौधे के साथ इसे लगाकर उनकी कृपा हासिल करने में आपको बहुत मदद मिल सकती हैै। तुलसी के साथ धतूरे का पौधा लगाने से घर में बनी हुई नेगेटिव एनर्जी दूर होती हैै। साथ ही सुख एवं समृद्धि भरा माहौल बना रहता हैै। तुलसी के साथ अगर धतूरे का पौधा लगाना चाहते हैं, तो इसके लिए खास दिन को चुनें। भले ही तुलसी के लिए रविवार का दिन शुभ माना जाए, लेकिन आपको धतूरे का पौधा घर में सोमवार के दिन लगाना चाहिए।
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हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है. ये दिन भगवान विष्णु को समर्पित हैं. इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है. इस बार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 10 जुलाई को पड़ रही है. इसे देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी से भगवान विष्णु 4 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. ऐसे में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है. इस दौरान मुंडन, विवाह, सगाई और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. लेकिन 10 जुलाई को पड़ने वाली देवशयनी एकादशी से पहले विवाह के तीन शुभ मुहूर्त पड़ रहे हैं. आइए जानें कौन सी तारीख को पड़ रहें ये शुभ मुहूर्त.
शादी के तीन शुभ मुहूर्त
देवशयनी एकादशी से पहले शादी के केवल तीन शुभ मुहूर्त हैं. इनमें से एक 5 जुलाई, दूसरा 6 जुलाई और तीसरा 8 जुलाई को पड़ रहा है. ये दिन शादी के लिए बहुत ही शुभ है. इन 3 शुभ मुहूर्त के बाद 4 महीने तक शादी का कोई भी शुभ मुहूर्त नहीं है. इसके बाद देवउठनी एकादशी से शादी के शुभ मुहूर्त पड़ेंगे. देवउठनी एकादशी इस साल 4 नवंबर को पड़ रही है. 10 जुलाई के बाद तक शादी का कोई शुभ मुहूर्त नहीं है. ऐसे में जिन लोगों को शादी करनी है वे इन 10 जुलाई से पहले इन 3 शुभ मुहूर्त में भी कर सकते हैं.
क्यों नहीं होती हैं इन चार महीनों में शादी
हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी से 4 महीने के लिए विष्णु भगवान योग निद्रा में चले जाते हैं. इसे चातुर्मास भी कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार इन चार महीनों के लिए भगवान विष्णु सृष्टि का संचालन भगवान शिव को सौंप देते हैं. इस प्रकार 4 महीने तक भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं. विष्णु भगवान देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक योग निद्रा में रहते हैं. इन 4 महीनों में कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित माना जाता है. इसमें शादी, सगाई और मुंडन जैसे मांगलिक कार्य शामिल हैं. इसलिए इन चार महीनों में कोई भी मांगलिक कार्य करने से बचें. - प्राचीन तंत्र शास्त्र में 64 योगिनियां बताई गई हैं। कहा जाता है कि ये सभी आद्यशक्ति मां काली की ही अलग-अलग कला है। इनमें दस महाविद्याएं तथा सिद्ध विद्याएं भी शामिल हैं। तंत्र के अनुसार घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए मां आद्यशक्ति ने 64 रुप धारण किए थे, जो कालांतर में 64 योगिनी कहलाईं। तंत्र शास्त्र में किसी भी महाविद्या का पूजन आरंभ करने से पूर्व 64 योगिनियों को सिद्ध करने का विधान बताया गया है। माना जाता है कि इन्हें सिद्ध करने के बाद विश्व में ऐसा कोई काम नहीं जो साधक नहीं कर सकता, अर्थात् साधक स्वयं ही ईश्वरमय हो जाता है।64 योगिनियों साधना के द्वारा वास्तु दोष, पितृदोष, कालसर्प दोष तथा कुंडली के अन्य सभी दोष दूर हो जाते हैं। इनके अलावा दिव्य दृष्टि (किसी का भी भूत, भविष्य या वर्तमान जान लेना) जैसी कई सिद्धियां बहुत ही आसानी से साधक के पास आ जाती है। परन्तु इन सिद्धियों का भूल कर भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अन्यथा अनिष्ट होने की आशंका रहती है।चौसठ योगिनियों के नाम इस प्रकार है-(1) बहुरूपा (2) तारा (3) नर्मदा (4) यमुना (5) शांति (6) वारुणी (7) क्षेमकरी (8) ऐन्द्री (9) वाराही (10) रणवीरा (11) वानरमुखी (12) वैष्णवी (13) कालरात्रि (14) वैद्यरूपा (15) चर्चिका (16) बेताली (17) छिन्नमस्तिका (18) वृषवाहन (19) ज्वाला कामिनी (20) घटवारा (21) करकाली (22) सरस्वती (23) बिरूपा (24) कौवेरी (25) भालुका (26) नारसिंही (27) बिराजा (28) विकटानन (29) महालक्ष्मी (30) कौमारी (31) महामाया (32) रति (33) करकरी (34) सर्पश्या (35) यक्षिणी (36) विनायकी (37) विंध्यवासिनी (38) वीरकुमारी (39) माहेश्वरी (40) अम्बिका(41) कामायनी (42) घटाबरी (43) स्तुति (44) काली (45) उमा (46) नारायणी (47) समुद्रा (48) ब्राह्मी(49) ज्वालामुखी (50) आग्नेयी (51) अदिति (52) चन्द्रकान्ति (53) वायुवेगा (54) चामुण्डा (55) मूर्ति (56) गंगा (57) धूमावती (58) गांधारी (59) सर्व मंगला (60) अजिता (61) सूर्यपुत्री (62) वायु वीणा (63) अघोर (64) भद्रकालीतंत्र में 64 योगिनियों की साधना द्वारा मुख्यत: षटकर्मों सिद्ध किए जाते हैं। ये सभी अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न होने के कारण साधक को उसकी मनवांछित वरदान देने में सक्षम है। इन्हें सिद्ध कर लेने के बाद साधक जो भी चाहें कर सकता है। संक्षेप में इन्हीं को मातृका भी कहा जाता है और इनकी आराधना के द्वारा साधक विभिन्न प्रकार की दिव्य सिद्धियां प्राप्त कर चमत्कार दिखाने में सक्षम होते हैं।---
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हम सभी कहीं न कहीं जीवन को सुचारू रूप से चलाने की कोशिश करते हैं. कुछ लोग तो इसके लिए कड़ी मेहनत तक करते हैं, लेकिन फिर भी तरक्की उनसे दूरी बनाए रखती है. लोगों को लगने लगता है कि उनके काम या मेहनत में ही कोई कमी है. ज्योतिष या वास्तु ( Vastu ) शास्त्र की मानें तो इसके पीछे दोष भी हो सकते हैं. ये दोष आपको इस कदर प्रभावित करते हैं, जिसका असर लंबे समय तक नजर आता है. जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए लोग पूजा-पाठ, व्रत या इससे जुड़ी अन्य चीजें करते हैं. पूजा-पाठ के जरिए देवी-देवताओं को प्रसन्न करके जीवन में सुख एवं समृद्धि लाई जा सकती है. पूजा के लिए विशेष सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें नारियल, कलावा और पान के पत्ते भी शामिल होते हैं. क्या आप जानते हैं पान के पत्तों से कई समस्याओं का हल निकाला जा सकता है.
पूजा में विशेष महत्व रखने वाले पान के पत्तों के लिए ज्योतिष शास्त्र में कई उपाय या विशेष बातें बताई गई हैं, जिन्हें अपनाकर आप समस्याओं को दूर कर सकते हैं और सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं. जानें इनके बारे में…
घर की नेगेटिविटी को करें दूर
हिंदू धर्म में बताया गया है कि पान के पत्तों में देवी-देवताओं का वास होता है और इसी कारण पूजा में इसका इस्तेमाल बहुत शुभ माना जाता है. घर में नेगेटिव एनर्जी को दूर करना चाहते हैं, तो भगवानों के समक्ष पान के पत्तों को चढ़ाएं. इसे आपके घर ही नहीं जीवन में भी पॉजिटिव माहौल बनेगा और आपको आने वाली समस्याओं से लड़ने की हिम्मत भी मिलेगी. काम में बाधा आ रही है, तो इसके लिए रविवार के दिन अपने साथ पान का पत्ता लेकर जरूर निकलें.
पान के पत्ते से भगवान शिव की उपासना
मान्यता है कि भगवान शिव को पान के पत्ते चढ़ाने से वह जल्दी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा भी बनी रहती है. भगवान शिव की उपासना करते समय उन्हें पान के पत्ते ही नहीं सुपारी, गुलकंद, सौंफ और कत्था से बना हुआ पान चढ़ाएं. भगवान को इसका भोग लगाने से आपके जीवन में जारी कष्ट दूर हो पाएंगे. आप इस उपाय को करने के लिए हर सोमवार का दिन चुन सकते हैं और आने वाले सावन के महीने में ऐसा करना बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकता है.
आर्थिक तंगी
खूब पैसा आने के बाद अगर वह हाथों में न टिके, तो ये स्थिति चिंता का विषय मानी जा सकती है. हम मेहनत पैसा कमाने के लिए करते हैं, ताकि सुख-सुविधाओं में कमी न आए, लेकिन अगर पैसा ही हमारे पास न रुके, तो कठिनाइयां ज्यादा तंग करती हैं. अगर आप इस तरह की आर्थिक तंगी को झेल रहे हैं, तो इसके लिए पान के पत्ते का उपाय करें. इसके लिए 5 पान के पत्ते लें और उन्हें माता लक्ष्मी के समक्ष चढ़ाएं. इसके बाद इन्हें एक धागे में बांधकर घर की पूर्व दिशा में बांध दें. इससे व्यापार और नौकरी दोनों में फायदा होगा. -
ग्रहों के न्यायाधीश शनिदेव 12 जुलाई को अपनी राशि बदलने जा रहे हैं। शनि वर्तमान में कुंभ राशि में विराजमान हैं। कुंभ राशि में रहते हुए 5 जून को शनि वक्री हुए थे। शनि वक्री अवस्था में कुंभ से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। शनि की यह अवस्था कई राशि वालों के जीवन में शुभ प्रभाव डाल सकती है। शनि के मकर राशि में आते ही दो राशि वालों को शनि ढैय्या से कुछ समय के लिए मुक्ति मिल जाएगी।
इन दो राशि वालों की खत्म होगी शनि ढैय्या-
शनिदेव कुंभ राशि में विराजमान हैं। कर्क व वृश्चिक राशि वालों को शनि ढैय्या चल रही है। इन राशियों के जातक 29 अप्रैल से शनि की महादशा की चपेट में हैं। शनि राशि परिवर्तन के साथ ही मिथुन व तुला राशि वालों पर शनि ढैय्या खत्म हो गई थी। लेकिन शनि के मकर राशि में जाते ही फिर मिथुन और तुला राशि वालों पर शनि ढैय्या शुरू हो जाएगी। साथ ही कर्क व वृश्चिक राशि वालों को शनि ढैय्या से राहत मिलेगी।
मिलेगी अपार सफलता-
12 जुलाई को शनि के राशि बदलते ही कर्क व वृश्चिक राशि वालों की परेशानियां खत्म हो सकती है। इन्हें कामों में सफलता मिल सकती है। नौकरी पेशा करने वाले जातकों को नए अवसर मिल सकते हैं। लंबे समय से अटका धन वापस मिल सकता है। प्रमोशन व तरक्की के आसार रहेंगे। शारीरिक व मानसिक तनाव कम होगा। इस दौरान आप जिस काम में हाथ डालेंगे सफलता मिलेगी। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर पर पौधे लगाना बेहद शुभ होता है। हालांकि कई बार लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि किन पौधों को घर पर लगाने से सुख-समृद्धि आती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे पौधों के बारे में बताया है जिन्हें घर पर लगाने से धन का अभाव नहीं होता है।
इन पौधों के बारे में-
अनार का पौधा
अनार का पौधा सेहत व स्वाद दोनों के लिहाज से बेहतर होता है। यह पौधा व्यक्ति को सुख-समृद्धि भी प्रदान करता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के सामने अनार का पौधा लगाने से कर्जों से मुक्ति मिलती है। हालांकि अनार का पौधा लगाते समय ध्यान रखें कि इसे घर के आग्नेय कोण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में न लगाएं।
बांस का पौधा
घर के सामने बांस का पौधा होना बेहद शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार, अगर इसे ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व या फिर उत्तर दिशा में लगा दिया जाए तो घर में पैसों की दिक्कत नहीं रहती है। घर के सामने बांस का पेड़ होने से पैसों का कभी अभाव नहीं रहता है।
बेल का पौधा
वास्तु शास्त्र में बेल का पौधा बेहद शुभ माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बेल के पौधे में भगवान शंकर का वास होता है और जिस घर पर भगवान शंकर की दृष्टि हो वहां कभी धन का अभाव नहीं रह सकता है। बेल का पौधा लगाने से आर्थिक तंगी भी दूर होने की मान्यता है।
दूब का पौधा
अगर आप घर के सामने या बगीचे में दूब उगा लें तो जीवन में कभी धन का अभाव नहीं होगा। घर के सामने दूब लगाने के कई फायदे होते हैं। संतान प्राप्ति की कामना करने वालों को घर के सामने इस पौधे को लगाने से लाभ होता है।
मनी प्लांट
घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनी प्लांट का पौधा लगाया जाता है। यह पौधा जितना तेजी से बढ़ता है, उतनी ही तेजी से धन भी देता है। घर में मनी प्लांट हमेशा आग्नेय कोण यानी दक्षिण पूर्व दिशा में ही लगाना चाहिए। मनी प्लांट के पौधे को सीधे कभी जमीन पर नहीं रखना चाहिए। -
हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ मास साल का चौथा महीना है. आषाढ़ मास की अमावस्या तिथि को हलहारिणी अमावस्या या आषाढ़ी अमावस्या (Ashadhi Amavasya) के नाम से जाना जाता है. आषाढ़ी अमावस्या को पितरों के निमित्त कार्यों के लिए काफी शुभ माना गया है. माना जाता है कि इस दिन पितरों की शांति के लिए किए गए स्नान-दान और तर्पण से पूर्वज काफी प्रसन्न होते हैं. इससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है. अगर आपके घर में पितृ दोष है या आपकी कुंडली में काल सर्प दोष है, तो उसके निवारण के लिए भी आषाढ़ी अमावस्या का दिन काफी उत्तम है. इस बार आषाढ़ी अमावस्या 28 जून को पड़ रही है. इस मौके पर जानिए पितरों को तृप्त करने के लिए इस दिन क्या उपाय करने चाहिए.
आषाढ़ी अमावस्या पर पितरों को इस तरह करें प्रसन्न
1. इस दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए. अगर आप किसी नदी के तट पर न जा सकें तो घर में ही जल में गंगा जल डालकर स्नान करें. इसके बाद पितरों के निमित्त श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करें. साथ ही पशु पक्षियों को भी भोजन कराएं. इससे आपके पितर बहुत प्रसन्न होते हैं.
2. अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें. एक कलश में जल और दूध और मिश्री मिश्रित करके जल पेड़ में अर्पित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इससे भी आपको पितरों का आशीष प्राप्त होता है.
3. अगर आपके घर में पितृदोष लगा हुआ है, तो आपको अमावस्या के दिन पीपल का पौधा लगाना चाहिए और इसी सेवा करनी चाहिए. हर अमावस्या पर इस पौधे के नीचे दीपक जलाना चाहिए. इससे पितृ दोष का प्रभाव दूर होता है और आपके जीवन की तमाम समस्याओं का अंत होता है.
4. अमावस्या के दिन किसी ब्राह्मण को घर में बुलाकर उन्हें ससम्मान भोजन कराएं और सामर्थ्य के अनुसार दान देकर विदा करें. इसके अलावा गरीब और जरूरतमंदों को दान दें. इससे भी आपको पितरों का आशीष प्राप्त होता है.
5. पितरों की शांति के लिए आप अमावस्या के दिन रामचरितमानस या गीता का पाठ करें. इसके अलावा पितरों का आशीष प्राप्त करने के लिए उनके मंत्र का जाप करें. मंत्र हैं-
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि, शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च, नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:
--यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारितहैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. -
झाड़ू में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है क्योंकि ये घर के दरिद्र यानी गंदगी को बाहर निकालती है. घर को स्वच्छ बनाती है और घर में रहने वाले तमाम लोगों को बीमारियों से बचाती है. लेकिन अक्सर घर में जब झाड़ू पुरानी हो जाती है तो हम नई झाड़ू तो खरीदकर ले आते हैं, लेकिन पुरानी झाड़ू घर से नहीं हटाते हैं. माना जाता है कि पुरानी झाड़ू को घर में रखने से दरिद्रता आती है. वास्तु शास्त्र में झाड़ू को रखने, खरीदने और फेंकने आदि को लेकर तमाम नियम बताए गए हैं. इन नियमों का हर व्यक्ति का पालन करना चाहिए वरना घर में नकारात्मकता आती है.
यहां जानिए झाड़ू से जुड़े वास्तु नियमोंके बारे में----
पुरानी झाड़ू कभी घर में न रखें
कहा जाता है कि झाड़ू अगर पुरानी हो जाए तो इसे घर में नहीं रखना चाहिए, वरना घर में नकारात्मकता आती है. इसे शनिवार या अमावस्या घर से हटा देना चाहिए. माना जाता है कि जब हम पुरानी झाड़ू को घर से हटाते हैं तो इसके साथ घर का दरिद्र भी दूर हो जाता है और इससे घर में सकारात्मकता आती है.
कब फेंके और कहां फेंकें
शनिवार और अमावस्या के अलावा आप ग्रहण के बाद और होलिका दहन के बाद भी झाड़ू को हटा सकते हैं. लेकिन एकादशी, गुरुवार या शुक्रवार के दिन पुरानी झाड़ू को न फेंकें. एकादशी और गुरुवार के दिन नारायण को समर्पित हैं और शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी का दिन माना जाता है. मान्यता है कि इन दिनों में झाड़ू को हटाने से माता लक्ष्मी नाराज होती हैं. इसके अलावा झाड़ू को कभी किसी पेड़ या नाले के पास नहीं फेंकना चाहिए और न ही इसे जलाना चाहिए. इसे उस स्थान पर फेंकना चाहिए जहां झाड़ू पर किसी का पैर न पड़े.
नई झाड़ू के भी हैं वास्तु नियम
झाड़ू को खरीदने को लेकर भी वास्तु के कुछ नियम हैं. झाड़ू को हमेशा मंगलवार, शनिवार व अमावस्या के दिन खरीदना चाहिए और कृष्ण पक्ष में खरीदना शुभ माना गया है. घर में झाड़ू को रखने का स्थान ऐसा होना चाहिए, जहां सीधे तौर पर किसी की नजर न पड़े. जिस स्थान पर भी झाड़ू रखें वहां साफ सफाई का विशेष रूप से खयाल रखें. -
शिव जी का प्रिय सावन का महीना अब आने वाला है। आषाढ़ मास के बाद सावन का महीना शुरू हो जाएगा। इसे श्रावण मास के नाम से भी जाना जाता है। सावन का महीना काफी पवित्र और पुण्यदायी माना गया है।
मान्यता है कि इस दौरान नारायण योग निद्रा में होते हैं और महादेव पर सृष्टि के पालन का जिम्मा होता है। कहा जाता है कि सावन के महीने में शिव जी की पूजा करने से हर कामना पूरी होती है और बिगड़े काम भी बन जाते हैं। इस बार सावन का महीना 14 जुलाई से शुरू होगा और इसका समापन 12 अगस्त को होगा।
--आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्यों महादेव को प्रिय है ये महीना।
कहा जाता है कि दक्ष पुत्री सती ने जब अपने प्राणों को त्याग दिया था, तो महादेव दुख में इतने डूब गए थे कि घोर तप में लीन हो गए थे. तब माता सती से पर्वतराज हिमालय पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया. उनके तप से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें कामना पूर्ति का वरदान दिया. कहा जाता है कि वो सावन का ही महीना था, जब महादेव पार्वती के रूप में महादेव अपनी भार्या से फिर से मिले थे. इसलिए महादेव को ये महीना अत्यंत प्रिय हो गया.
सावन मास में शिव जी की होती है विशेष पूजा
सावन के महीने में शिव जी की विशेष पूजा की जाती है. इस माह में शिव जी पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि सावन के महीने में ही शिव जी अपनी ससुराल गए थे, वहां जलाभिषेक करके उनका स्वागत किया गया था. इसलिए पूरे सावन मास में शिव जी का जलाभिषेक करने के लिए उनके भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है. ये भी कहा जाता है कि इस महीने में यदि कुंवारी कन्याएं मनभावन पति की कामना के लिए श्रद्धापूर्वक व्रत करें, तो उनकी कामना जरूर पूरी होती है.
सावन के सोमवार का विशेष महत्व
सावन के महीने में सोमवार का विशेष महत्व है. इस माह में शिव जी का आशीर्वाद पाने के लिए कुछ लोग सावनभर शिव जी की उपासना करते हैं और पूरे सावन का व्रत रखते हैं. जो लोग सावनभर व्रत नहीं रख पाते वो सावन के सारे सोमवार का व्रत रखते हैं. कहा जाता है कि सावन के सोमवार का व्रत रखने से भी आपको पूरे सावन के व्रत का पुण्य प्राप्त हो जाता है. इस बार सावन के महीने में 4 सोमवार पड़ेंगे. पहला सोमवार 18 जुलाई, दूसरा सोमवार 25 जुलाई, तीसरा सोमवार 1 अगस्त, चौथा सोमवार 8 अगस्त को पड़ रहा है. - घर के माहौल को महकाने के लिए लोग अक्सर सुगंधित फूलों के पौधे लगाना पसंद करते हैं। ये पौधे न सिर्फ घर के वातावरण में खुशबू फैलाते हैं, बल्कि इनके रंगबिरंगे फूलों की छटा भी देखने लायक होती है। वास्तुशास्त्र में ऐसे भी कुछ सुगंधित पौधों के बारे में बताया गया है, जिन्हें घर में लगाने से जीवन में तरक्की, सुख-समृद्धि और सफलता मिलती है। रजनीगंधा उन फूलों में से एक है, जो बेहद सुगंधित होते हैं। यदि रजनीगंधा के पौधों को घर की सही दिशा में लगाया जाए तो इससे न सिर्फ लाभ प्राप्त होगा बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का भी प्रवेश होगा। आइए जानते हैं इसके बारे में...- पूजा-पाठ में भी रजनीगंधा के फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा रजनीगंधा के फूलों से तेल और इत्र भी बनता है। इसमें कई औषधीय गुण होते हैं और वास्तु शास्त्र में इसे धन, सुख-समृद्धि पाने के लिए बेहद शुभ माना गया है।-रजनीगंधा के फूलों की माला देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, रजनीगंधा का पौधा घर की पूर्व या उत्तर दिशा में लगाने से घर में बरकत होती है। साथ ही तरक्की के रास्ते भी खुलते हैं।-पति-पत्नी के बीच अनबन चल रही है तो घर के आंगन में रजनीगंधा का पौधा लगाएं या किसी गमले में लगा कर रखें। इससे पति-पत्नी के रिश्ते मजबूत होते हैं और दोनों के बीत प्यार बढ़ता है।-कहा जाता है कि रजनीगंधा का पौधा कई तरह के वास्तु दोष दूर करता है। इसे घर में लगाने से सकारात्मकता आती है। साथ ही धन प्राप्ति के रास्ते खुलते हैं।
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कर्मफलदाता शनिदेव बीते 5 जून को वक्री हुए थे। शनि की वक्री अवस्था का अर्थ है उनकी उल्टी चाल। शनि की वक्री चाल से सभी 12 राशियां प्रभावित हैं। शनि वक्री अवस्था में ज्यादा कष्टकारी होते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, शनि जब वक्री अवस्था में होते हैं तो इनकी चाल धीमी हो जाती है। शनि को सबसे धीमी गति का ग्रह माना गया है। यही कारण है कि शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने में ढाई साल का समय लगता है। वक्री शनि अब 141 दिन बाद मार्गी होंगे।
शनि कब होंगे मार्गी?
हिंदू पंचांग के अनुसार, शनि 23 अक्टूबर 2022, रविवार को सुबह 09 बजकर 37 मिनट पर मार्गी होंगे। यानी शनि फिर से अपनी सीधी चाल शुरू करेंगे।
मार्गी शनि का राशियों पर प्रभाव-
वर्तमान में कर्क व वृश्चिक राशियां शनि ढैय्या से पीड़ित हैं। मकर, कुंभ व मीन राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव है। ऐसे में इन राशियों के जातकों को शनि की वक्री अवस्था के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। शनिदेव वृषभ, कन्या और धनु राशि वालों के लिए शुभ साबित हो सकते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन शनि मंदिर में शनि संबंधित चीजों का दान करना चाहिए। शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए।
शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय-
-गरीबों की मदद और ऐसे लोग जो असहाय है, अपने लिए कमा नहीं सकते, ऐसे लोगों की मदद करने से शनि प्रसन्न होते हैं।
-शनिवार के दिन गाय की सेवा करना और उसे चारा खिलाने से भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
-शनिवार को खासतौर पर भोजन करते समय अपने भोजन में से पहला निवाला निकाल कर कौवों को खिलाना चाहिए।
-अगर आप उच्च पद पर बैठें हैं तो आप अपने से नीचे काम करने वालों से अच्छा बर्ताव करें। ऐसा करने से शनि प्रसन्न होते हैं।
-शनिवार के दिन काला तिल और गुड़ चीटों को खिलाएं। इससे भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं। -
हिंदू धर्म में तुलसी को बहुत ही पवित्र माना जाता है. तुलसी की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है जिस घर में तुलसी होती है वहां लक्ष्मी जी का वास होता है. हमेशा उस घर पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है. तुलसी में कई औषधीय गुण होते हैं. ये स्वास्थ्य के लिए भी कई तरह से फायदेमंद है. ये सामान्य सर्दी और जुकाम से छुटकारा दिलाने में मदद करती है. वास्तु शास्त्र में इस पौधे को विशेष महत्व दिया गया है. तुलसी को घर में लगाने और नियमित रूप से इसे पानी देने की परंपरा बहुत ही पुरानी है. हालांकि कुछ ऐसे दिन भी हैं जब तुलसी को पानी नहीं दिया जाता है. ये दिन रविवार और एकादशी के दिन हैं. इस दिन तुलसी में पानी देना अच्छा नहीं माना जाता है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि इन दिनों में तुलसी को पानी क्यों नहीं दिया जाता है आइए यहां जानें.
रविवार को क्यों तुलसी में पानी नहीं दिया जाता है
हिंदू धर्म में इस पौधे को बहुत ही शुभ माना जाता है. तुलसी को रोजाना पानी लगाना बहुत ही अच्छा होता है. लेकिन रविवार को तुलसी को पानी देने से बचाना चाहिए. ऐसे माना जाता है कि रविवार के दिन तुलसी भगवान विष्णु के लिए उपवास रखती हैं. इस दिन तुलसी में पानी देने से उनका व्रत टूट जाता है. ऐसा करने से नकारात्मकता फैलती है. जीवन से जुड़ी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. देवी लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं.
एकादशी के दिन क्यों तुलसी को पानी नहीं देना चाहिए
ऐसा माना जाता है कि देवी तुलसी का विवाह एकादशी के दिन विष्णु के एक रूप शालिग्राम से हुआ था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता कि देवउठानी एकादशी पर रीति-रिवाजों के साथ दोनों की शादी हुई थी. ऐसा भी माना जाता कि देवी लक्ष्मी एकादशी का व्रत रखती हैं. इस दिन तुलसी में जल चढ़ाने से उनका व्रत टूट जाता है. इस कारण तुलसी नाराज हो जाती हैं. पौधा इस कारण सूखने लगता है.
घर में समृद्धि के लिए तुलसी का पौधा इस तरह से लगाएं-------
तुलसी के पौधे को उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है.
सुनिश्चित करें कि तुलसी के पौधे को पर्याप्त धूप और हवा मिल रही है.
तुलसी के आसपास की जगह हमेशा साफ होनी चाहिए
तुलसी के पौधे के पास कूड़ेदान, जूते या झाड़ू न रखें.
इसे कैक्टस या कांटेदार पौधों के पास न रखें क्योंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा और दुर्भाग्य आकर्षित होगा.
तुलसी के पौधे को विषम संख्या में लगाएं जैसे एक, तीन, पांच आदि. -
आजकल महिलाएं खाना बनाते समय एक साथ ज्यादा आटा गूंथ लेती हैं और रोटी बनने के बाद बचे हुए आटे को फ्रिज में रख देती हैं. जरूरत पड़ने पर इस आटे से फिर से रोटी बनाती हैं. इससे उन्हें आटा गूंथने के लिए बार-बार मेहनत नहीं करनी पड़ती. आटा स्टोर करना सुविधाजनक तो है, लेकिन ज्योतिष के लिहाज से इसे अच्छा नहीं माना जाता. ज्योतिष में रोटियों का संबन्ध भी ग्रहों से बताया गया है और इसके बारे में तमाम नियमों का उल्लेख किया गया है. माना जाता है कि अगर इन नियमों का पालन न किया जाए तो परिवार में समस्याओं का सिलसिला खत्म नहीं होता और सुख समृद्धि चली जाती है. -----------------यहां जानिए रोटियों से जुड़े ज्योतिषीय नियम
परिवार में झगड़ा कराती हैं बासी आटे की रोटियां
ज्योतिष के मुताबिक रोटियों का संबन्ध सूर्य और मंगल ग्रह से माना गया है क्योंकि रोटी हमारे शरीर को एनर्जी देने का काम करती है. लेकिन जब हम आटा फ्रिज में रखने के बाद उपयोग करते हैं तो ये बासी हो जाता है. बासी आटे का संबन्ध राहु से माना गया है. राहु मानसिक स्थिति को संतुलित नहीं रहने देता. ऐसे में जब इस आटे से बनी रोटियां घर के सदस्य खाते हैं, उनके अंदर भ्रम और झगड़े की प्रवृत्ति पैदा होती है, उनकी आवाज तेज हो जाती है, सहन शक्ति कम हो जाती है. निर्णय क्षमता प्रभावित होती है. ऐसे में कई बार वे गलत निर्णय ले लेते हैं. इससे घर में क्लेश और झगड़ा पैदा होता है. अगर आप वाकई घर में शांति चाहते हैं तो रोजाना ताजा आटा गूंथकर ही रोटी बनाएं.
वैज्ञानिक कारण भी समझें
अगर बासी आटे के नुकसान का वैज्ञानिक पक्ष देखें तो बासी आटे में बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, जो हमारे शरीर को एनर्जी नहीं देते, बल्कि सुस्त कर देते हैं और बीमार बनाते हैं. ऐसे में हमारी कार्यक्षमता प्रभावित होती है. इसका असर हमारी आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है.
गिनकर न बनाएं रोटियां
आजकल लोगों के बीच गिनकर रोटियां बनाने का ट्रेंड चल गया है. लोगों का मानना है कि इससे बर्बादी नहीं होती है. लेकिन ज्योतिष की नजर से देखा जाए तो गिनकर रोटियां बनाना शुभ नहीं माना जाता. इससे परिवार की बरकत पर असर पड़ता है. ज्योतिष के अनुसार हर किसी को अपने परिवार की जरूरत के अनुसार जितनी रोटियां बनानी हैं, उससे 4 या 5 रोटियां ज्यादा बनानी चाहिए. पहले के समय में कई बार घर में मेहमान अचानक से आ जाते थे, ऐसे में उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ता था. आज के समय में बेशक मेहमानों का ये चलन कम हो गया है, लेकिन फिर भी बरकत के लिए कम से कम दो रोटी ज्यादा बनवाएं. अगले दिन इन्हें जानवरों और पक्षियों को खिला दें.
पहली गाय की और आखिरी रोटी कुत्ते की बनाएं
सनातन धर्म में गाय को पूज्यनीय माना गया है. माना जाता है कि गाय में सभी देवी देवताओं का वास होता है. इसलिए पहली रोटी गाय के लिए बनानी चाहिए. गाय के लिए बनाई रोटी के जरिए आप सभी देवी देवताओं को भोजन दे देते हैं. वहीं आखिरी रोटी कुत्ते की बनानी चाहिए. दोनों रोटियों को किसी अलग स्थान पर रख दें और जब भी गाय व कुत्ता दिखे तो उन्हें खिला दें. इससे परिवार में देवी देवताओं का आशीष बना रहता है और घर में किसी चीज की कमी नहीं होती. -
गंगा दशहरा का पर्व महापर्व माना जाता है. इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. माना जाता है कि गंगा स्नान मात्र से व्यक्ति के 10 तरह के पाप धुल जाते हैं. इसके अलावा भी ऐसी तमाम काम हैं जिन्हें 10 बार करने की बात कही गई है. जानिए गंगा दशहरा पर 10 अंक का क्या महत्व है !
हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि इसी दिन भागीरथ की तपस्या सफल हुई थी और मां गंगा शिव की जटाओं में से होकर जमीन पर उतरी थीं. इस दिन को गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) कहा जाता है. लोक भाषा में इसे ज्येष्ठ दशहरा या जेठ दशहरा भी कहा जाता है. इस बार गंगा दशहरा का पर्व 9 जून को गुरुवार के दिन है. गंगा दशहरा के दिन 10 अंक का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान से व्यक्ति के 10 तरह के पाप कटते हैं, वहीं 10 तरह की चीजों को दान करना शुभ माना गया है.
10 बार लगानी चाहिए गंगा जल में डुबकी
वैसे तो गंगा स्नान हमेशा ही शुभ माना गया है क्योंकि गंगा मैया को मोक्षदायिनी कहा जाता है. लेकिन गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान का खास महत्व माना गया है. इस दिन गंगा में 10 बार डुबकी लगाने की बात कही गई है. इसके अलावा गंगा मैया के मंत्र का कम से कम 10 बार जाप करना चाहिए. अगर आप गंगा स्तोत्र पढ़ रहे हैं तो इसे गंगा जल में खड़े होकर 10 बार पढ़ें. माना जाता है कि इससे आपके पाप तो कटते ही हैं, साथ ही व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इन 10 चीजों का करें दान
गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन के बाद 10 चीजों का दान करने की बात कही गई है. माना जाता है कि इस दिन दान करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके अलावा ग्रहों से जुड़ी तकलीफें दूर होती हैं. गंगा दशहरा के दिन 10 चीजों को दान करने की बात कही गई है. ये चीजें हैं- जल, अन्न, फल, वस्त्र, पूजन या सुहाग सामग्री, घी, नमक, तेल, शक्कर और स्वर्ण.
गंगा स्नान से धुलते हैं 10 तरह के पाप
गंगा मैय्या को बहुत ही पवित्र माना गया है. मान्यता है कि गंगा स्नान मात्र से व्यक्ति के तमाम पाप धुल जाते हैं. शास्त्रों में गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान का महत्व बताते हुए 10 तरह के पाप मिटने की बात कही गई हैं. इन 10 तरह के पापों को तीन तरह के वर्गों में बांटा गया है.
दैहिक पाप : किसी की वस्तु को बिना अनुमति के रखना, निषिद्ध हिंसा, परस्त्री संगम, इन तीन तरह के पापों को दैहिक पाप माना गया है.
वाणी पाप : किसी को कटु वचन कहना, झूठ बोलना, चुगली करना और वाणी द्वारा मन को दुखाना. ये चार तरह के पाप वाणी से होने वाले पाप हैं.
मानसिक पाप : दूसरे के धन को लेने का विचार करना, मन से किसी का बुरा सोचना और असत्य वस्तुओं में आग्रह रखना. ये तीन गलत विचार मानसिक पाप माने गए हैं. मान्यता है कि गंगा स्नान से सभी तरह के पाप धुल जाते हैं. - वास्तु शास्त्र में मिट्टी के बर्तनों को बहुत शुभ माना गया है। इसके मुताबिक घर में मिट्टी के बर्तन, मटके, सुराही हों तो वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उन्हें सही जगह पर रखा जाए। साथ ही सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। यदि इन सबका पालन किया जाए धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा से घर में खूब धन-वैभव होता है और किसी चीज की कमी नहीं रहती है। आइए जानते हैं घर में वास्तु के अनुसार सुराही रखने से क्या फायदे होते हैं और इसे घर में किस दिशा में किस तरह से रखना चाहिए।माता लक्ष्मी का वासवास्तु शास्त्र के अनुसार मिट्टी की सुराही घर में रखने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है। ऐसा माना जाता है कि घर की उत्तर दिशा में सुराही में पानी भर कर रखना बहुत शुभ होता है। वास्तु के अनुसार घर की उत्तर दिशा में देवताओं का वास होता है इसीलिए पानी से भरी सुराही को उत्तर दिशा में रखने से देवी देवता प्रसन्न होते हैं।ग्रहों को करता है नियंत्रितघर में रखा मिट्टी का घड़ा बुध और चंद्रमा की स्थिति को नियंत्रित करता है और उसके अशुभ प्रभावों से बचाता है। इसके साथ ही यदि मिट्टी के घड़े का पानी पिया जाए तो पानी पीने से कुंडली की स्थिति मजबूत रहती है। घड़े को हमेशा पानी से भरा रखना चाहिए, खाली घड़े से धन की हानि होती है।नौकरी में उन्नतियदि आपकी नौकरी में पदोन्नति नहीं हो रही तो नियमानुसार रोज सायंकाल के समय मिट्टी के घड़े के पास दीपक व कपूर जलाएं। ऐसा करने से करियर और व्यापार में उन्नति होती है।मंगल की स्थिति करता है मजबूतज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में मंगल की स्थिति को मजबूत करने के लिए मिट्टी के कुल्हड़ में पानी पीना चाहिए। यदि आप शनिदेव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए आप मिट्टी के बर्तन या फिर कुल्हड़ में पानी भरकर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। ऐसा करने से शनि से संबंधित कष्ट दूर होते हैं और कुंडली में भी शनि की स्थिति मजबूत होती है।चूल्हे से रखें दूरयदि मटका रसोई में रखा है तो उसे गैस या चूल्हे से दूर रखना चाहिए। अग्नि और जल को पास-पास नहीं रखना चाहिए। इससे पैसे की तंगी दूर होगी।
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वास्तु के नियमों का पालन करके जीवन में सुख एवं समृद्धि तो लाई जा सकती है, साथ ही परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य भी ठीक रखा जा सकता है. आपने घर में चीजों को व्यवस्थित करने के लिए या फिर कमरों की दिशाओं को लेकर वास्तु से जुड़े कई टिप्स के बारे में सुना होगा. लेकिन घर की में कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं, जिनको लेकर अक्सर लोग वास्तु ( Vastu dosh ) संबंधी गलतियां कर देते हैं. इन्हीं में से है घर का फर्श, जिसके लिए बहुत कम लोग वास्तु से जुड़े नियमों का पालन करते हैं. फर्श के लिए बनाए गए वास्तु ( Vastu tips ) के नियमों या जरूरी बातों की अनदेखी घर में कलह या दरिद्रता का कारण बनती है.
आजकल लोग घर को स्टाइलिश बनाने के लिए टाइल्स या मार्बल जैसी फ्लोरिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस लेख में हम आपको फर्श से जुड़ी उन जरूरी बातों के बारे में बताएंगे, जिनका ध्यान रखकर आप घर-परिवार ही नहीं जीवन में सुख की प्राप्ति कर सकते हैं.
जानें इन अहम बातों के बारे मे---------
1. वास्तु के मुताबिक घर में फ्लोरिंग को लगाना शुभ नहीं माना जाता है, लेकिन फिर भी लोग इस अहम जानकारी की अनदेखी करते हैं. वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि ऐसा करने पर घर के मुखिया को मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. इतना ही नहीं उसे स्वास्थ्य संबंधी बुरे प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है.
2. अगर आप घर में टाइल्स या मार्बल लगवाना चाहते हैं, तो इसके रंग का आपको खास ध्यान रखना चाहिए. वास्तु के एक्सपर्ट्स के मुताबिक घर में एक ही रंग की फ्लोरिंग लगानी चाहिए. इतना ही नहीं हल्के रंग की फ्लोरिंग आपको आर्थिक संकट से बचा सकती है. कहा जाता है कि हल्का रंग घर में शुभता का प्रतीक होता है.
3. घर की दक्षिण दिशा में किस तरह का पत्थर लगाना चाहिए, इसकी जानकारी भी आपको होनी चाहिए. वास्तु के मुताबिक इस दिशा में फ्लोरिंग को लगवाते समय इसका रंग हमेशा लाल रखना चाहिए.
4. अगर आप घर में सिंथेटिक मार्बल का प्रयोग करने जा रहे हैं, तो इस गलती को करने की भूल बिल्कुल न करें. ऐसा मार्बल आपके घर में दरिद्रता ला सकता है. आप इसकी जगह प्राकृतिक रूप से मिलने वाले मार्बल को घर में लगवा सकते हैं.
5. घर में मार्बल या टाइल्स लगवाते समय ध्यान रहे कि मिस्त्री फ्लोरिंग में ऐसे किसी भी हिस्से को न लगाएं, जिसका कोना टूटा हुआ है. माना जाता है कि ये घर के लिए अच्छा नहीं होता. -
ऐसा माना जाता है कि शंख की उत्पत्ति सुमद्र मंथन के दौरान हुई थी. पूजा के दौरान शंख बजाना शुभ माना जाता है. शंख बजाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है.
जानें शंख बजाने के फायदे--------------------------
हिंदू धर्म में पूजा के दौरान शंख बजाना बहुत ही शुभ माना जाता है. शंख बजाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. नकारात्मकता दूर होती है. आइए जानें शंख के चमत्कारी फायदे.
ऐसा माना जाता है कि जिस घर में शंख होता है वहां हमेशा भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा रहती है. इसे बजाने से घर में सुख-समृद्धि आती है. शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा के बाद शंख बजाना बहुत ही शुभ माना जाता है.
शंख बजाने से नकारात्मकता दूर होती है. सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. शंख में जल भरकर पूरे घर में छिड़कना भी बहुत अच्छा माना जाता है. शंख बजाने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं. शंख बजाने से सुख में वृद्धि होती है.
वैज्ञानिकों के अनुसार शंख बजाने से वातावरण भी शुद्ध होता है. शंख की आवाज से आसपास मौजूद जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश होता है. इसलिए नियमित रूप से शंख बजाना वातावरण साफ और शुद्ध रखने का काम भी करता है.
अस्थमा के मरीज के लिए शंख बजाना बहुत फायदेमंद है. अस्थमा के मरीज नियमित रूप से शंख बजा सकते हैं. शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं. शंख में रखा हुआ पानी पीने से हड्डियों संबंधी समस्या दूर होती हैं. इस पानी में कैल्शियम और फास्फोरस होता है. - ऐसा माना जाता है कि कुछ विशेष पौधों को घर के भीतर या फिर गार्डन में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और घर में खुशहाली आती है। ऐसी ही पौधों में से एक है स्नेक प्लांट। दरअसल इस पौधे को घर की सजावट के लिए इस्तेमाल तो किया ही जाता है और यह वास्तु के अनुसार भी घर में समृद्धि का कारण बनता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस पौधे को घर में लगाने की एक सही दिशा है और घर के कुछ ऐसे हिस्से हैं जहां ये पौधा लगाना अत्यंत लाभकारी होता है।वास्तु शास्त्र की मानें तो घर की सुख समृद्धि के लिए स्नेक प्लांट को घर के अंदर और बाहर दोनों जगह उगाया जा सकता है और घर के सही क्षेत्र में रखने पर इसके कई फायदे होते हैं। इस पौधे का वास्तु में बाथरूम और बेडरूम के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे लिविंग रूम और हॉल में कुछ नुकीले कोनों में भी रखा जा सकता है। इसे हमेशा लिविंग रूम के उस हिस्से में रखा जाना चाहिए जो कि घर में आने जाने वाले लोगों की नजर में पड़े। कभी भी इस पौधे को दूसरों से छिपाकर नहीं रखना चाहिए। दरअसल ये घर के लोगों को किसी भी बुरी दृष्टि से बचाता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।स्नेक प्लांट के वास्तु लाभवास्तु के अनुसार, स्नेक प्लांट के कई फायदे हैं क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है। इसके अलावा यह पौधा ऐसा पौधा है जिसके एक पौधे से कई अन्य पौधे निकल आते हैं इसलिए इसे समृद्धि और आर्थिक लाभ का प्रतीक भी माना जाता है।स्नेक प्लांट के लिए वास्तु दिशास्नेक प्लांट को घर में रखने के लिए वास्तु की दिशा बहुत ज्यादा मायने रखती है। ऐसा माना जाता है कि वास्तु की सही दिशा के अनुसार रखा स्नेक प्लांट घर को कई समस्याओं से बचाता है। वास्तु के अनुसार, स्नेक प्लांट को घर के पूर्वी, दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी कोनों में सबसे अच्छी स्थिति में रखा जा सकता है। इन दिशाओं में रखे हुए स्नेक प्लांट घर के लाभ के लिए बहुत ही शुभ माने जाते हैं। यदि आप घर में वास्तु के अनुसार स्नेक प्लांट लगाना चाहते हैं तो आपको इसकी सही दिशा को ध्यान में जरूर रखना चाहिए।इस तरह रखें स्नेक प्लांटयदि वास्तु के अनुसार स्नेक प्लांट लगा रहे हैं तो ध्यान में रखें कि इसे कभी भी किसी मेज या किसी अन्य सतह में न रखें। इस पौधे को हमेशा जमीन में ही रखना अच्छा माना जाता है। इसके अलावा यह पौधा किसी अन्य इनडोर प्लांट से घिरा नहीं होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि किसी अन्य पौधे से घिरा स्नेक प्लांट नकारात्मक ऊर्जा लाता है। हालांकि कई लोगों का माना है कि स्नेक प्लांट घर में दरिद्रता लाता है और घर में अशांति का कारण बनता है , लेकिन वास्तुशास्त्र इस बात को नहीं मानता है बल्कि ऐसा माना जाता है कि जिस घर में स्नेक प्लांट लगा होता है वहां सुख समृद्धि का वास होता है।कॅरिअर में सफलता दिलाता है स्नेक प्लांटएक स्नेक प्लांट आपके घर में स्थित स्टडी रूम में रखने पर आपके ध्यान केंद्रित करने और ज्यादा अच्छे तरीके से काम करने की क्षमता में सुधार करने में मदद कर सकता है। आप अपने कार्यालय में कहीं भी, अपनी डेस्क पर, खिड़की पर, या बुकशेल्फ़ पर स्नेक प्लांट लगा सकते हैं।डाइनिंग एरिया में लगाएं स्नेक प्लांटवास्तु विशेषज्ञों का सुझाव है कि डाइनिंग रूम में यदि आप विभिन्न आकार के स्नेक प्लांट लगाते हैं तो यह पौधा आपसी प्रेम भाव बढ़ाने का काम करता है। एक छोटा सा स्नेक प्लांट आप डाइनिंग टेबल के बीचों बीच भी रख सकते हैं। ये सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
- हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस साल वट सावित्री व्रत 30 मई, सोमवार को रखा जाएगा। सुहागिन महिलाएं इस दिन विधि-विधान के भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुख-समृद्धि व अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आज जानते हैं इस पर्व का क्या है धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व-शास्त्रों के अनुसार, बरगद के वृक्ष के तने में भगवान विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव का वास है। इस वृक्ष में कई सारी शाखाएं नीचे की ओर रहती हैं, जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इसलिए मान्यता है कि इस वृक्ष की पूजा करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। संतान प्राप्ति के लिए इस वृक्ष की पूजा करना लाभकारी माना जाता है।मान्यता है कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन वट वृक्ष की छांव में देवी सावित्री ने अपने पति की पुन: जीवित किया था। इस दिन से ही वट वृक्ष की पूजा की जाने लगी। हिंदू धर्म में जिस तरह से पीपल के वृक्ष को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। उसी तरह बरगद के पेड़ को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। इस स्थान को प्रयाग में ऋषभदेव तपस्थली नाम से भी जाना जाता है।वटवृक्ष को क्यों कहा जाता है अक्षय वटवैदिक ग्रंथों से लेकर उपनिषद्, ब्राह्मण तथा पौराणिक ग्रंथों में मृत्यु को भी चुनौती देने वाले वट प्रजाति के वृक्षों में बरगद को अमूल्य बताया गया है। इसकी जड़, छाल, पत्ते, दूध, छाया और हवा को न सिर्फ मनुष्य बल्कि धरती, प्रकृति तथा समस्त जीव-जंतुओं के लिए जीवन-रक्षक कहा गया है। मनुष्य के शरीर में बीमारियों के रूप में यदि यमदूत प्रवेश कर गया हो और वह इस पेड़ की शरण में चला जाए, तो जैसे सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के हाथ से जीवित लौटाने में सफलता हासिल की थी, उसी तरह सामान्य व्यक्ति भी यमदूतों से मुक्ति पा सकता है। कारण यह है कि इसकी हवा से मन की शक्ति बढ़ती है। मन मजबूत हो तो काल भी परास्त हो जाता है।यही कारण है कि जब श्रीराम वनवास के लिए निकले और प्रयागराज में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में आए, तब ऋषि ने जिस पेड़ की पूजा करने को, वह बरगद ही था। यही 'अक्षयवटÓ बरगद का पेड़ है, जिसे आज भी आस्था का पेड़ माना जाता है। जब गोकुल में प्रकृति को प्रदूषित करने वाला कंस का दूत प्रलंबासुर आ गया था तथा प्रदूषित अग्नि से प्राकृतिक असंतुलन पैदा करने लगा था, तब कृष्ण ने बरगद के पेड़ पर चढ़कर उसका वध किया।हमारे ऋषियों ने ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट प्रजाति के वृक्षों में बरगद के पेड़ की पूजा का विधान इसीलिए किया, क्योंकि अन्य सभी वृक्षों में किसी एक देवता का निवास है, जबकि बरगद में त्रिदेवों का निवास है। इस पेड़ की छाल में साक्षात विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में देवाधिदेव महादेव का वास होता है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या से पहले त्रयोदशी तिथि से इस पेड़ के पूजन का आशय भी त्रिदेवों का पूजन माना जा सकता है।
- सुख, वैभव, खुशी, तरक्की और मानसिक शांति के लिए व्यक्ति के आसपास सकारात्मक ऊर्जा का होना बहुत आवश्यक है। आज हम आपको व्यक्ति के आर्थिक जीवन पर असर डालने वाले कुछ कारणों की चर्चा करेंगे, जिसका सबंध घर में मौजूद वास्तु से होता है।झाड़ूहिंदू धर्म शास्त्रों में झाड़ू को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है और माता लक्ष्मी सुख, संपदा, ऐशोआराम,वैभव और धन प्रदान करने वाली देवी होती है। इसी वजह से आर्थिक और वैभव के लिए झाड़ू को काफी महत्वपूर्ण चीज माना गया है। वास्तु शास्त्र में झाड़ू के रखने के बारे में विस्तार से बताया गया है। वास्तु के अनुसार झाड़ू को हमेशा ऐसी जगहों पर रखना चाहिए जहां पर किसी की नजर आसानी से न पहुंच सके। इसके अलावा कभी भी घर में झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। वास्तु के अनुसार झाड़ू के संबंध में एक चीज और भी बताई गई है जिसमें घर में शाम के समय झाड़ू भूलकर भी नहीं लगाना चाहिए। ऐसे में जिन घरों में झाड़ू से सबंधित इन नियमों का पालन किया जाता है वहां पर कभी भी आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है।कबूतरकबूतर का घोंसला : वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर किसी घर में कबूतर का घोंसला बना हुआ तो यह आर्थिक परेशानी का सूचक माना जाता है। ऐसी स्थिति में इस बात का ध्यान रखें कि आपके घर में कहीं भी कोई कबूतर अपना घोंसला न बना पाएं। ज्योतिष में कबूतर को राहु का प्रतीक माना गया है।कांटेदार पौधे :एक तरफ जहां घर पर फूल-पौधे होने से सुख और समृद्धि का वास माना जाता है तो वहीं घर में कांटेदार पौधे होने पर आर्थिक परेशानियों का ज्यादा प्रभाव होता है। वास्तु शास्त्र अनुसार घर या आंगन में ऐसा कोई भी पौधा नहीं लगाना चाहिए जिसमें कांटे हों। इससे उस घर के सदस्यों के जीवन में आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होती हैंजाले व कबाड़ :मान्यता है जिन घरों में हमेशा साफ-सफाई होती है वहां पर हमेशा माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर का आशीर्वाद रहता है। घर में जाले व कबाड़ नकारात्मक ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत माने जाते हैं। ऐसे में कभी भी घर में जाले न लगने दें। समय-समय पर इन जालों की हटाते रहना चाहिए। जालों और गंदगी रहने से आर्थिक स्थिति खराब होती है।सीलन भरा भवनजिन घरों की दीवारों और कोने में हमेशा सीलन बनी हुई होती है वहीं पर कभी मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। पानी को धन का सूचक माना गया है। ऐसे में अगर घर में नल से पानी टपकता रहता है या सीलन बनी हुई होती है तो व्यक्ति के जीवन में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- चीनी वास्तु शास्त्र फेंगशुई में हाथी की मूर्ति, पेंटिंग या चित्र रखना बहुत शुभ बताया गया है। वहीं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार हाथी धन की देवी लक्ष्मी के दोनों तरफ खड़े होकर उनकी सेवा में रहते हैं। घर में हाथी की प्रतिमा रखने से जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति की प्राप्ति होती है।1- हिंदू धर्म में हाथी को माता लक्ष्मी का वाहन और शुभता का प्रतीक जानवर माना जाता है। ऐसे में जिन घरों के मुख्य द्वार पर सूंड उठाए हुए हाथी की मूर्ति लगी होती है वहां पर हमेशा समृद्धि और सकारात्मकता का प्रवेश होता रहता है। फेंगशुई में घर के मुख्य दरवाजे पर हाथी की प्रतिमा या चित्र लगे होने पर व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति होती है।2- घर के मुख्य दरवाजे के दोनों छोर पर अगर हाथी की मूर्ति के जोड़े को रखा जाए तो इससे घर में सुख, सुरक्षा, सौभाग्य और संपत्ति का आवागमन होता रहता है। फेंगशुई में हाथी को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।3- फेंगशुई वास्तु शास्त्र के अनुसार हाथी की मूर्ति को अगर पढऩे की जगह पर रखा जाय तो इससे छात्रों के मन में एकाग्रता और करियर में सफलता प्राप्ति होती है। इस कारण से काम करने वाली जगह या स्टडी डेस्क का हाथी की मूर्ति को रखना शुभ माना जाता है।4- हाथी की मूर्ति को उसके छोटे बच्चे के साथ अगर बेडरूम में रखा जाए तो इससे संतान सुख की प्राप्ति होती है। बेडरूम में सफेद हाथी के बच्चे की मूर्ति रखने से संतान सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।5- चांदी के हाथी को उत्तर दिशा में रखना बहुत ही शुभ होता है। इसे लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी या गल्ले में रखने से आय के स्रोत बढ़ते हैं।
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जेठ का महीना गर्मी के हिसाब से सबसे ज्यादा कष्टकारी होता है। इस महीने में सबसे ज्यादा पानी की किल्लत रहती है। सूर्य के रौद्र रूप से धरती में मौजूद पानी का वाष्पीकरण सबसे तेज हो जाता है जिसके कारण से नदियां और तालाब सूख जाते हैं। हिन्दू मान्यता में इस महीने जल के संरक्षण का विशेष जोर दिया जाता है। ज्येष्ठ महीने में गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी जैसे व्रत रखे जाते हैं। ये व्रत प्रकृति में जल को बचाने का संदेश देते हैं। गंगा दशहरा में नदियों की पूजा और निर्जला एकादशी में बिना जल का व्रत रखा जाता है।
जल ही जीवन है। ज्येष्ठ मास में जल दान उपयुक्त माना गया है। पक्षियों के लिए घर की छत या बगीचे में जल का पात्र भर कर रखें। पशु-पक्षी भी प्रकृत्ति की अनमोल देन है और साथ-साथ ये ज्योतिष की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण हैं। आपने देखा होगा कि हर देवी-देवता का कोई ना कोई वाहन होता है जो पशु या पक्षी है,मान्यताओं के अनुसार इन वाहनों की पूजा करने से संबंधित देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कुछ ऐसा ही ज्योतिष के अंतर्गत भी है,ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सौरमंडल के हर ग्रह का संबंध किसी ना किसी पक्षी या पशु से होता है,अगर ग्रह को शांत या प्रसन्न करना है संबंधित पक्षियों या पशुओं की सेवा करनी चाहिए। ज्येष्ठ माह को आम बोलचाल की भाषा में जेठ का महीना भी कहा जाता है। इस महीने में भारत के उत्तरी भाग में भीषण गर्मी पड़ती है। महीने के शुरुआती दिनों में नौतपा के चलते तेज गर्म हवाएं चलती हैं। शास्त्रों में ज्येष्ठ के महीने का खास धार्मिक महत्व बताया गया है।
ज्येष्ठ माह नाम कैसे पड़ा
ज्येष्ठ या जेठ के महीने में गर्मी अपने चरम पर रहती है। इन दिनों सर्वाधिक बड़े दिन होते हैं इस कारण सूर्य की ज्येष्ठता के कारण इस महीने को ज्येष्ठ कहा जाता है,जेठ के महीने में धर्म का संबंध पानी से जोड़ा गया है,ताकि जल का संरक्षण किया जा सके। जेठ के महीने में पानी से जुड़े व्रत एवं त्योहार मनाए जाते हैं। जिसमें गंगा दशहरा और दूसरा निर्जला एकादशी प्रमुख है।
ज्येष्ठ माह का धार्मिक महत्व
1. ज्येष्ठ महीने में सूर्य अपने रौद्र रूप में होता है,जिसके चलते गर्मी बढ़ जाती है,साथ ही बढ़ जाता है पानी का महत्व। शास्त्रों में इस महीने में पानी के संरक्षण पर खास जोर दिया गया है।
2. ज्येष्ठ मास में जल के दान का बहुत बड़ा महत्व है। भीषण गर्मी में पानी की दिक्कत होने ही लगती है,जिसके चलते कई लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिल पाता, इसलिए इस महीने जल का दान करना अत्यंत लाभकारी बताया गया है।
3. जेठ माह में घर की किसी भी खुली जगह या छत पर चिड़ियों के लिए दाना और पानी रखना चाहिए। गर्मी के कारण नदी-तालाब सूखने लगते हैं,जिसके चलते पक्षियों को पानी नहीं मिल पाता,इसलिए घर के बाहर या छत पर पक्षियों के लिए दाना-पानी जरूर रखें। मान्यता है कि पक्षियों को दाना-पानी देना लाभकारी होता है।
4. ज्येष्ठ के महीने में भगवान राम से पवनपुत्र हनुमान की मुलाकात हुई थी,जिसके चलते ये महीना हनुमानजी की पूजा के लिए बहुत खास है। जेठ में श्री राम के साथ हनुमानजी की पूजा करना शुभ फलदायी होता है। इसी महीने बड़े मंगलवार का पर्व मनाया जाता है,जिसमें हनुमानजी की खास पूजा होती है।
ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है,मन के कारक चन्द्रमा को एक जल तत्व गृह के रूप में जाना जाता है। हमारे शरीर में मौजूद रक्त का 72% हिस्सा पानी ही है जिस पर चन्द्रमा का ही अधिकार है। इसलिए चन्द्र को मजबूत करने के लिए जल का संरक्षण करें। जल का दुरुपयोग चंद्रमा को दूषित करेगा। मन में कुंठाएं,चिंताए व्याप्त होगी,आर्थिक पक्ष डांवाडोल रहेगा। अपने चंद्र को मजबूत करें। जल का दुरुपयोग रोके। पक्षियों व प्राणियों के लिए पीने हेतु जल का दान करें। -
हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान दीपक या दीया जलाने का विशेष महत्व है। पौराणिक समय से ही हमेशा देवी-देवताओं की पूजा करते समय उनके सामने दीप प्रज्वलित किया जाता है। सिर्फ भगवान ही नहीं बल्कि कुछ धार्मिक पेड़-पौधे जैसे- तुलसी, बरगद आदि के नीचे भी दीया जलाया जाता है। मान्यता है कि घर में सुबह शाम दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पूजा के दौरान एक मुखी दीपक के अलावा पंचमुखी दीपक प्रज्वलित करने का विशेष महत्व होता है। पंचमुखी दीपक को बेहद ताकतवर और चमत्कारी माना गया है। कहा जाता है कि घर में पंचमुखी दीपक प्रज्वलित करने से भगवान जल्द ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों का जीवन खुशियों से भर देते हैं। इसके अलावा ज्योतिष में पंचमुखी दीपक से जुड़े कुछ उपाय भी बताए गए हैं, जो बेहद चमत्कारी माने गए हैं।
प्रत्येक मंगलवार को पूजा के समय घर में चिरंजीवी भगवान बजरंगबली के सामने पंचमुखी दीपक जलाने से घर में सुख शांति आती है। घर से सारी नकारात्मकता खत्म हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
कोशिश करें कि दीपक हमेशा गाय के घी में ही जलाएं। गाय के घी से पंचमुखी दीपक जलाना घर में बरकत लाता है। साथ ही ये उपाय सारे वास्तु दोष दूर करता है।
कोशिश करें कि रोजाना शाम को घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर घी के पंचमुखी दीपक जलाएं। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों का जीवन धन-दौलत से भर देती हैं।
प्रतिदिन सुबह नहा धोकर एक तांबे के बर्तन में ताजा जल लें, उसमें 7 तुलसी के पत्ते डालकर भगवान विष्णु की मूर्ति के पास रखें और 11 बार “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें। साथ ही घर के पूजा स्थान पर घी का पंचमुखी दीपक हर मंगलवार जलाएं।
इसके अलावा यदि आप पर कोई पुराना मुकदमा चल रहा हो तो रोजाना पंचमुखी दीपक जलाएं। ज्योतिष के अनुसार इससे आपको मुकदमे में जीत मिलेगी। साथ ही इससे कार्तिकेय भगवान भी खुश होते हैं। -
हिंदू धर्म में ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करके सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। धार्मिक मान्यताओं में वट सावित्री के व्रत का महत्व करवा चौथ जितना ही बताया गया है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं। पति के सुखमय जीवन और दीर्घायु के लिए वट वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करती हैं और वृक्ष के चारों और परिक्रमा करती हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से पति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि के साथ लंबी आयु की प्राप्ति होती है। हर साल ये व्रत ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। इस साल ये व्रत 30 मई 2022, दिन सोमवार को रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत का मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि प्रारंभ: 29 मई, 2022 दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर,
अमावस्या तिथि का समापन: 30 मई, 2022 को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर होगा।
वट पूर्णिमा व्रत विधि
वट सावित्री व्रत वाले दिन सुहागिन महिलाएं प्रात: जल्दी उठें और स्नान करें। स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। शृंगार जरूर करें। साथ ही इस दिन पीला सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें। बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं। सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें। बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं। वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें। वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद हाथ में काले चना लेकर इस व्रत का कथा सुनें। कथा सुनने के बाद पंडित जी को दान देना न भूलें। दान में आप वस्त्र, पैसे और चने दें। अगले दिन व्रत को तोड़ने से पहले बरगद के वृक्ष का कोपल खाकर उपवास समाप्त करें।
वट सावित्री व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। कहा जाता है कि इसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं। इस व्रत में महिलाएं सावित्री के समान अपने पति की दीर्घायु की कामना तीनों देवताओं से करती हैं, ताकि उनके पति को सुख-समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त हो सके।