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  स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बलिया के इतिहास पर फिल्म बनायी जाएगी: डॉ. जेनिस दरबारी

 बलिया (उप्र)। भारत में मोंटेनेग्रो की राजदूत डॉ. जेनिस दरबारी ने कहा है कि 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कुछ दिनों के लिए स्वतंत्र हुए बलिया के इतिहास पर वह फिल्म बनाएंगी, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया जाएगा। दक्षिण-पूर्वी यूरोप के देश मोंटेनेग्रो की राजदूत डॉ. दरबारी ने  यहां जिला मुख्यालय के लोक निर्माण विभाग के अतिथि गृह में पत्रकारों से कहा कि 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कुछ दिनों के लिए स्वतंत्र हुए बलिया के इतिहास पर वह अंतरराष्ट्रीय स्तर की फिल्म बनायेंगी। डॉ. जेनिस दरबारी 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बलिया में जिलाधिकारी रहे जे. निगम की नातिन हैं। दरबारी ने बताया कि उन्होंने अपने नाना जे. निगम पर केंद्रित किताब ‘द एडमिनिस्ट्रेटर' लिखी है। उन्होंने कहा, ‘‘बलिया का इतिहास क्रांतिकारी एवं महान रहा है। देश की आजादी से पांच वर्ष पहले ही 1942 में 19 अगस्त को बलिया ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हो गया था। यह पूरी दुनिया में सत्ता के शांतिपूर्वक हस्तांतरण की अनोखी मिसाल है। तब चालीस हजार की भीड़ के सामने बिना एक बूंद खून बहाए जे. निगम द्वारा सत्ता का हस्तांतरण किया गया था।'' दरबारी ने कहा कि बलिया में जो हुआ, उससे ब्रिटिश सरकार हिल गई थी। दरबारी ने कहा, ‘‘आज विश्व में शांति की जरूरत है। बलिया में वह शक्ति है, जो विश्व की शांति के लिए काम आ सकता है।'' उन्होंने कहा, ‘‘मैं बलिया के उस इतिहास को आगे लाने की कोशिश कर रही हूं, जो आज भी अनदेखा है। मैंने अपनी किताब में बहुत कुछ समेटने का प्रयास किया है। इसी को आधार बनाकर बलिया के इतिहास पर फीचर फिल्म बनाएंगे। यह फिल्म विश्व स्तर पर दिखाई जाएगी। इस फिल्म के माध्यम से दुनिया जानेगी कि बलिया के क्रांतिकारियों में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कैसा जुनून था।'' उन्होंने कहा, ‘‘बलिया से मेरा भावनात्मक लगाव है। मैं 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो का इतिहास जानती हूं। मेरे नाना बलिया के स्थानीय लोगों और ब्रिटिश सरकार के बीच माध्यम थे।'' उन्होंने कहा, ‘‘मेरे नाना जे. निगम ने बचपन से अंग्रेजों के अत्याचार देखे थे, क्योंकि उनके पिता अदालत में पेशकार थे। वे अदालत में देखते थे कि भारतीय लोगों के साथ किस प्रकार से भेदभाव होता था।'' उन्होंने कहा, ‘‘मेरे नाना ने अपनी पढ़ाई स्ट्रीट लाइट की रोशनी में की थी। बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। इसी दौरान उनकी महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। वह बाद में भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) अधिकारी बने। वह ब्रिटिश सरकार के दौरान होने वाले अत्याचार को खत्म करना चाहते थे।'' दरबारी ने कहा, ‘‘मेरे नाना ने बलिया में इसे बखूबी निभाया। इसी का परिणाम था कि उन्होंने शक्ति का शांतिपूर्ण हस्तांतरण किया। इससे ब्रिटिश सरकार भी हिल गई। ब्रिटिश सरकार को सूझ नहीं रहा था कि जे. निगम को कैसे बर्खास्त किया जाए, क्योंकि तब आईसीएस अधिकारियों को बर्खास्त करने का प्रावधान नहीं था। हालांकि, बाद में ब्रिटिश सरकार ने विशेष बैठक बुलाकर जे. निगम को बर्खास्त किया।''

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