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क्यों महादेव और माता पार्वती के संग खेली जाती है होली !
होली से कुछ दिनों पहले फाल्गुन के महीने (Phalguna Month) में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) कहा जाता है. आमतौर पर सभी एकादशी पर नारायण की पूजा होती है, लेकिन ये एकमात्र ऐसी एकादशी है, जिसमें नारायण के साथ महादेव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है. उन पर रंग और गुलाल डालकर होली खेली जाती है. इस दिन आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है, इसलिए इस एकादशी को आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi) और आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार रंगभरी एकादशी 14 मार्च को है. यहां जानिए रंगभरी एकादशी से महादेव और माता पार्वती का संबन्ध कैसे जुड़ा और क्यों उनके साथ होली खेलने की परंपरा शुरू हुई.
इस दिन हुआ था माता पार्वती का गौना
कहा जाता है कि महाशिवरात्रि पर माता पार्वती से विवाह करने के बाद महादेव ने रंगभरी एकादशी के दिन ही माता पार्वती का गौना करवाया था. मान्यता है कि इस दिन वो पहली बार उन्हें लेकर काशी विश्वनाथ होते हुए कैलाश पर्वत पर पहुंचे थे. उस समय बसंत का मौसम होने की वजह से चारों ओर से प्रकृति मुस्कुरा रही थी. महादेव के भक्तों ने माता पार्वती का स्वागत रंगों और गुलाल से किया था. साथ ही उन पर रंग बिरंगे फूलों की वर्षा की थी. तब से ये दिन अत्यंत शुभ हो गया और इस दिन महादेव और माता पार्वती की पूजा और उनके साथ होली खेलने का चलन शुरू हो गया.
काशी में निकलता है भव्य डोला
रंगभरी एकादशी के दिन आज भी वाराणसी में उत्सव का माहौल होता है. हर साल इस मौके पर बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का भव्य डोला निकाला जाता है. इस मौके पर बाबा विश्वनाथ माता गौरी के साथ नगर भ्रमण करते हैं और उनके भक्त रंग और गुलाल डालकर उनका स्वागत करते हैं. इसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर में उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
शोक समापन का दिन
हिंदू समाज में जब किसी की मृत्यु हो जाती है, तो शादीशुदा बेटी किसी बड़े त्योहार से पहले अपने मायके मिठाई लेकर त्योहार उठाने के लिए जाती है. इसके बाद मृत्यु के शोक को समाप्त करके फिर से परिवार में शुभ कार्य शुरू किए जा सकते हैं. होली से कुछ दिन पड़ने वाली रंगभरी एकादशी को शोक समापन के लिहाज से काफी शुभ दिन माना जाता है.

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