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- उत्तरी इटली में पार्मा शहर के पास एक भूलभुलैया है। कहते हैं कि यह यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया है। एक प्रसिद्ध भूलभुलैया लखनऊ में भी है, लेकिन पार्मा वाले से अलग वह इमारत में बनी है और उससे अलग तो है ही।यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया बांसों की भूलभुलैया है। यूं तो हर कहीं जगह जगह पर मक्के के खेतों में भूलभुलैया बने मिल जाते हैं, लेकिन यूरोप की सबसे बड़ी भुलभुलैया के रास्ते तीन किलोमीटर में फैले हैं और इसका क्षेत्रफल है 70 हजार वर्ग मीटर। इस लिहाज से "लाबिरिंतो डेला मासोने" यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया है। पेशे से प्रकाशक रहे फ्रांको मारियो रिची ने इस भूलभुलैया का सपना तब देखा था जब वे नौजवान थे, तीस साल पहले। दरअसल पार्मा शहर के बाहर उनका एक वीकएंड हाउस हुआ करता था। वहां उनके दोस्त और उनके प्रकाशन गृह से जुड़े लेखक अर्जेंटीना के खॉर्गे लुइस बोर्गेस भी आकर रहा करते थे।बोर्गेस की रचनाओं का एक विषय लेवरिंथ भी था। 1899 में जन्मे बोर्गेस की 55 साल के होते होते आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई थी। फोंटानेलाटो में अपने वीकएंड हाउस में उनका हाथ पकड़ इधर उधर ले जाते रिची को इस बात का अहसास हुआ कि जीवन में अनिश्चितताएं कितनी महत्वपूर्ण होती हैं, जब आप चीजों को देख न सकें या उनका आभास न कर सकें। और इसी अहसास से फ्रांको मारियो रिची के उस सपने का जन्म हुआ जिसे उन्होंने बाद में अपनी निजी जमीन पर साकार किया।फ्रांको मारियो रिची अपने अनुभवों को दुनिया के बहुत से दूसरे लोगों के साथ साझा करना चाहते थे, उन्हें जिंदगी की भूलभुलैया की याद दिलाने के लिए एक कृत्रिम भूलभुलैया में ले जाना चाहते थे। तो अपनी जमीन पर उन्होंने बांस के लगभग दो लाख पेड़ लगाए। जो लोग गांवों में रहते हैं और जिनके पास बांस के बगीचे हैं उन्हें पता है कि बांस के पेड़ बहुत तेजी से बढ़ते हैं, हमेशा हरे भरे रहते हैं और 15 मीटर तक बढ़ सकते हैं। और बांस के पेड़ अगर बड़े इलाके में फैले हों तो उनके झुरमुट में कोई भी रास्ता भूल सकता है।फ्रांको मारियो रिची की भूलभुलैया में घुसने का एक रास्ता है और निकलने का भी, लेकिन उनके बीच इतने सारे रास्ते हैं कि आदमी उनमें खो ही जाता है। सारे रास्ते एक जैसे लगते हैं और लोगों को लगता है कि उन्हें तो यह रास्ता पता है और फिर लगता है कि यह तो बिल्कुल ही अलग जगह है बिल्कुल अलग। पता ही नहीं चलता कि वे कहां हैं और वहां से बाहर कैसे निकलें। "लाबिरिंतो डेला मासोने" एक ज्यामिति डिजाइन पर आधारित है और रोमन दौर की याद दिलाता है। सीधे सीधे रास्ते हैं जो 90 डिग्री के कोण पर मुड़ते है इसीलिए उन्हें याद रखना और मुश्किल हो जाता है। लेकिन ये भूलभुलैया इतनी भी बड़ी नहीं कि उससे बाहर न निकला जा सके और लोग घबड़ाने लगें. लोग यहां जितने कन्फ्यूज होते हैं, उतने ही मंत्रमुग्ध भी। इमरजेंसी की स्थिति में वे मदद मांग सकते हैं।भूलभुलैया में जगह-जगह पर पहचान के लिए पोजिशन मार्क लगे हैं। खोए हुए लोग फोन करके अपनी पोजिशन बताते हैं और उसके बाद भूलभुलैया के डायरेक्टर एदुआर्दो पेपीनो उन्हें खुद लेने पहुंचते हैं और बाहर लेकर आते हैं। वे बताते हैं, "इस भूलभुलैया का मूल अर्थ बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण है। यह हमारे जीवन का प्रतीक है, ऐसी ही मुश्किल चीजों से हमारा वास्ता अपने जीवन में पड़ता है और ऐसे ही मुश्किल रास्तों से हम गुजरते हैं और आखिर में हमें अपनी मुक्ति का रास्ता मिल ही जाता है। "
- आपने ये बात, तो जरूर सुनी होगी कि शहर में रहने वाले लगभग हर इंसान के पास अपनी गाड़ी होती है। लेकिन क्या आपने कभी ऐसे शहर के बारे में सुना है, जहां रहने वाले हर आदमी के पास अपना हवाई जहाज है। इतना ही नहीं इस शहर के लोग दफ्तर या अपने काम पर जाने के लिए भी लोग अपने एयरक्राफ्ट का ही इस्तेमाल करते हैं। आपको ये बात थोड़ी अजीब जरूर लग रही होगी, लेकिन यह सच है।दरअसल, ये हवाई शहर अमेरिका के कैलिफोर्निया में है। इस शहर में रहने वाले अधिकतर लोग पायलट हैं। ऐसे में प्लेन रखना आम बात है। इसके अलावा इस शहर में डॉक्टर्स, वकील आदि भी हैं, लेकिन ये लोग भी प्लेन रखने के शौकीन हैं। इस शहर में रहने वाले लोगों को हवाई जहाज का इतना शौक है कि हर शनिवार सुबह सभी लोग इक_ा होते हैं और लोकल एयरपोर्ट तक जाते हैं।हवाई शहर में प्लेन का मालिक होना एकदम वैसा ही है जैसे कार का मालिक होना। यहां के कॉलोनी की गलियों और लोगों के घरों के सामने बने हैंगर में विमानों को देखा जा सकता है। हैंगर वो जगह होती है, जहां एयरप्लेन वगैरह खड़े किए जाते हैं। इस शहर की सड़कें भी काफी चौड़ी हैं, ताकि पायलट इसे रनवे के तौर पर इस्तेमाल कर सकें।बता दें कि इस शहर में हवाई जहाजों के पंखों को नुकसान ना पहुंचे इसके लिए सड़क के संकेतों और लेटरबॉक्स को सामान्य से कम उंचाई पर लगाया गया है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इस शहर में सड़क के नाम भी विमानों के साथ जुड़े हुए हैं जैसे कि बोइंग रोड।द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने हवाई जहाजों के परिचालन को खूब बढ़ावा दिया और इसके लिए देश में कई हवाई अड्डे बनाए गए। वहां पायलटों की संख्या 1939 में 34 हजार थी, जो 1946 तक बढ़कर 4 लाख से भी अधिक हो गई। ऐसे में अमेरिकी नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने देश में आवासीय हवाई अड्डों के निर्माण का प्रस्ताव रखा था, जिसका उद्देश्य सेवानिवृत्त सैन्य पायलटों को समायोजित करना भी था।
- ऐसे कई उदाहरण हैं जब कभी-कभी हम अपने फोन को घर में रखकर भूल जाते हैं और हमें याद नहीं रहता है कि हमने उसे कहां रखा दिया है। तो कभी-कभी जब हम घर से बाहर होते हैं तो फोन चोरी या गुम हो जाता है। पहली वाली स्थिति में हम पेयर्ड स्मार्टवॉच पर फाइंड माई फोन फीचर का उपयोग करके अपने एंड्रॉयड फोन को आसानी से ढूंढ सकते हैं, इसके लिए हमें किसी से उस पर कॉल करने के लिए कहना होगा। लेकिन अगर फोन घर से बाहर कहीं चोरी हो गया है, तो हमें थोड़ी अधिक मदद की जरूरत होगी।फाइंड माय फोन फीचर का करना होगा इस्तेमालअच्छी बात यह है कि गूगल यूजर को एक आसान तरीका उपलब्ध करवाता है, जिससे वे खो चुके एंड्रॉयड फोन को ढूंढा सके, उसे लॉक कर सके या उसका डेटा मिटा सके। इसके लिए फाइंड माय डिवाइस फीचर का उपयोग करना होगा, जो अनजान लोगों से बचाने के लिए उसमें रिमोटली पिन, पासवर्ड या पैटर्न सेट करने की सुविधा देता है।साथ ही यूजर खो चुके फोन की लॉक स्क्रीन पर एक मैसेज भी दिखा सकता है कि जिसमें वे खोजकर्ता से कॉल करने के लिए भी कह सकता है। यह फीचर एंड्रॉयड फोन से डेटा डिलीट करने की भी सुविधा देता है ताकि खोजकर्ता इसका उपयोग न कर सके और इससे डिवाइस की सिक्योरिटी को भी ट्रिगर किया जा सकता है, ताकि फोन दूसरे के लिए किसी काम का न रहे।ऐसे एंड्रॉयड स्मार्टफोन ढूंढे और डेटा डिलीट करेंअगर आप अपने फोन को ढूंढना चाहते हैं तो इसके लिए फोन का ऑन होना, गूगल अकाउंट में साइन इन होना, मोबाइल डेटा या नेटवर्क से कनेक्टेड होना, लोकेशन और फाइंड माय डिवाइस भी ऑन रहना जरूरी है। अगर ये सब कुछ आपने अपने स्मार्टफोन में पहले से किया हुआ है और फिर आपका फोन खोता है तो आप इन स्टेप्स को फॉलो कर सकते हैं...1. https://www.google.com/android/find सबसे पहले आपको इस लिंक पर क्लिक करना होगा और अपने गूगल अकाउंट में साइन इन करना होगा। एक बार साइन इन होने के बाद आप देखेंगे कि आपका फोन टॉप लेफ्ट कॉर्नर पर दिख रहा होगा। इसके बाद आपको फोन को चुनना होगा। ये आपको फोन के बैटरी की जानकारी और आखिरी बार ऑनलाइन की जानकारी देगा।2. इसके बाद गूगल आपको लोकेशन दिखाएगा कि आपका फोन कहां है। अगर आपको फोन नहीं मिलता है तो ये आपको लास्ट लोकेशन दिखाएगा।3. अगर फोन के लोकेशन को आप पहचानते हैं तो आप वहां जाकर अपने फोन को रिंग कर सकते हैं। ये 5 मिनट तक नॉन स्टॉप रिंग करता रहेगा जिससे आपको आवाज सुनाई देगी, भले ही आपने फोन को साइलेंट कर रखा हो।4. अगर किसी अनजान जगह पर फोन की लोकेशन दिखाई दे रही है, तो अकेले फोन ढूंढने की कोशिश न करें। पुलिस की मदद लें। इसके लिए आपको फोन का सीरियल नंबर और IMEI नंबर बताना होगा। https://support.google.com/store/answer/3333000?hl=en इस लिंक को क्लिक कर आप अपने फोन का सीरियल नंबर पा सकते हैं।5. अगर फोन लॉक करना चाहते हैं तो 'सिक्योर डिवाइस ऑप्शन' चुने। यह आपके फोन का लॉक कर देगा और गूगल अकाउंट भी साइन-आउट कर देगा। इसकी मदद से खो चुके फोन की लॉक स्क्रीन पर आप अपना फोन नंबर या कोई मैसेज भी छोड़ा जा सकता है, ताकि किसी को मिले तो वो आपके संपर्क कर सके। अगर आपने फोन लॉक नहीं किया है, तो इस फीचर की मदद से फोन लॉक भी किया जा सकता है।6. आप थर्ड पार्टी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं और इरेज डिवाइस कर सकते हैं। इससे फोन का पूरा डेटा हमेशा के लिए डिलीट हो जाएगा और कोई भी आपके फोन और डेटा के साथ खिलवाड़ नहीं कर पाएगा। अगर आपका फोन ऑफलाइन है तो आप तभी डेटा डिलीट कर पाएंगे जब कोई आपका फोन ऑन कर ऑनलाइन आएगा।(File Photo)
- अरुणाचल प्रदेश की जिरो घाटी में बसे अपातानी जनजाति की महिलाएं बाकी सबसे अलग दिखती आई हैं। कभी किसी और जनजाति के लोगों से अपनी महिलाओं को अपहरण से बचाने के लिए शुरु हुआ यह रिवाज कभी अपने चरम पर था। हालांकि इस पर सरकारी रोक लगने के कारण अब यह प्रचलन से गायब हो रहा है, लेकिन अभी भी गांव में बुजुर्ग महिलाएं अपनी नाक के दोनों ओर ठेपियां लगाए नजर आ जाती हैं।जिरो घाटी में अपातानी जनजाति के 37 हजार से भी अधिक सदस्य बसते हैं। ये लोग प्रक्रियाबद्ध तरीके से खेती की जमीन का इस्तेमाल करते हैं और अपने आसपास की पारिस्थितिकी के प्रबंधन और संरक्षण के बारे में गहरी समझ रखते हैं। यहां की महिलाएं अपनी नाक में दोनों ओर ठेपियों जैसा स्थानीय लकड़ी से बना एक प्लग सा पहनने के कारण अलग से पहचान में आती रही हैं, जिसे यापिंग हुलो कहते हैं। इस पर 1970 के दशक के शुरुआत में सरकार ने रोक लगा दी। कुछ का कहना है कि यह सुंदरता से जुड़ा मामला है। वहीं कुछ मानते हैं कि पहले के समय में किसी और जनजाति के लोगों से अपनी महिलाओं को अपहरण से बचाने के लिए अपनी एक अलग पहचान के तौर पर ऐसे करना शुरु किया गया। नाक में इस तरह लकड़ी की ठेपियां अजीबोगरीब तो लगती ही थीं, साथ ही स्वास्थ्यगत कारणों से भी ये ठीक नहीं था। इसका विरोध भी होने लगा। खासकर इस जनजाति के युवा लोग ही इसका विरोध करने लगे. इससे इस आदिवासी जनजाति की सुंदर महिलाएं भी बदसूरत लगने लगती थीं। वर्ष 1970 से ये परंपरा बंद हो गई. हालांकि गांव की वृद्ध महिलाएं अब भी इसके साथ नजर आ जाती हैं।यह सब बंद होने के बाद आजकल इस इलाके को यहां किवी के फल से बनी वाइन के लिए जाना जाता है। हाल के सालों तक अरुणाचल में किवी की खेती करने वाले बहुत किसान नहीं होते थे, लेकिन 2016 में कृषि इंजीनियरिंग पढऩे वाली इसी जनजाति की एक महिला ताखे रीता ने अपने गांव में वाइनरी का काम शुरु किया। 2017 में उन्होंने नारा-आबा नाम से शुद्ध ऑर्गेनिक किवी वाइन बनाना शुरु किया।किवी से वाइन बनाने की प्रक्रिया में फरमेंटेशन की प्रक्रिया काफी समय लेती है। इसमें 7 से 8 महीने लगते हैं। अरुणाचल के ऑर्गेनिक फलों से बनी यह वाइन पूर्वोत्तर भारत के दूसरे राज्यों जैसे असम और मेघालय में भी मिलती है। अब इन्हें भारत से बाहर निर्यात किए जाने की योजना पर काम चल रहा है। रीता के इस नए बिजनेस से इलाके के किवी किसानों को काफी बढ़ावा मिला है। वे उन्हें फलों को खरीदने का भरोसा देती हैं और उन्हें इसकी अच्छी खेती के लिए ट्रेनिंग भी देती हैं। किसान कहते हैं कि किवी से वाइन बनाने के कारोबार ने उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने और जीवनस्तर सुधारने की नई संभावना दी है। इस वाइन के कारण जिरो घाटी के कई किसान अब खेती किसानी के अपने मूल पेशे में लौटने लगे हैं। इस घाटी में मिलने वाली अच्छी धूप से यहां फल अच्छे उगते हैं। ऑर्गेनिक तरीक से किवी उगा कर उन्हें अपनी आय का एक स्थाई स्रोत मिल गया है।
- केप कैनावेरल (अमेरिका) । हाल में मंगल की सतह पर उतरे नासा के रोवर ने इस सप्ताह लाल ग्रह पर अपने पहले प्रायोगिक मुहिम में 21 फुट की दूरी तय की। मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना तलाशने की मुहिम के तहत पर्सेवियरेंस रोवर ग्रह की सतह पर उतरने के दो सप्ताह बाद अपने स्थान से कुछ दूर चला। रोवर शुक्रवार को आगे और पीछे चला। यह प्रक्रिया करीब 33 मिनट बेहद सुगमता से चली। कैलिफोर्निया के पासाडेना में नासा के जेट प्रणोदक प्रयोगशाला ने एक संवाददाता सम्म्मेलन में इस घटना की तस्वीरें साझा कीं। इंजीनियर अनास जराफियान ने कहा, रोवर के चलने और उसके पहियों के निशान देखकर मैं बहुत खुश हूं।''उन्होंने कहा, ‘‘अभियान में यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।'' जितनी जल्दी पर्सेवियरेंस पर सिस्टम का नियंत्रण पूरा होगा, रोवर एक प्राचीन नदी के डेल्टा के लिए आगे बढ़ेगा और धरती पर लौटने से पहले वहां से चट्टानें एकत्र करेगा।
- घर में चूहे, कॉकरोच, मच्छर-मक्खी होना किसी को पसंद नहीं होता। परेशानी तब ज्यादा बढ़ जाती है, जब इनका आतंक घर में बढ़ जाता है और घर की चीजें नुकसान होने लग जाती हैं। ऐसे में कई तरह के उपाय करने के बाद भी कभी-कभी इनसे पीछा छुटाना बहुत मुश्किल हो जाता है। आज हम आपको ऐसे उपाय बता रहे हैं जिनसे चूहे, कॉकरोच, छिपकली आपके घर से चले जाएंगे।चूहों को भगाने के उपाययदि आप घर में चूहों से परेशान हो तो पिपरमिंट के कुछ टुकड़ों को घर और किचन के कोनों कोनों में रख दें। चूहे पिपरमिंट की गंध से भागते हैं। ऐसा करने से वे दोबारा किचन में नहीं दिखेंगे, यदि आपको लगता है कि चूहे फिर भी आ रहे हैं तो आप हफ्ते में 3-4 दिन लगातर करते रहें। ऐसा करने से चूहे हमेशा के लिए आपके घर को अलविदा कह देंगे।मक्खी भगाने के उपायमक्खी से छुटकारा पाने के लिए आप सबसे पहले इस बात का ध्यान जरूर दें कि घर के दरवाजे बंद रखें। और घर की साफ सफाई रखें। इसके अलावा आप किसी भी तरह के तेज गंध वाले तेल में रूई को भिगों लें और इसे दरवाजों के पास रख दें। क्योंकि मक्खियां तेज गंध से दूर भागती हैं।ऐसे भगाएं छिपकलियांघर में छिपकलियों को भगाने के लिए आप मोर के तीन से चार पंखों को दीवारों पर चिपका दें। मोर छिपकलियों को खा जाते हैं, इसलिए छिपकलियां मोर के पंखों से दूर भागती हैं। इन सरल और आसान घरेलू उपायों को अपनाने से आप इन समस्याओं से आसानी से मुक्ति पा सकते हो।
- वेलिंगटन। गहरे सागर में रहने वाले कई जीव अंधेरे में चमकने के लिए जाने जाते हैं। अब पहली बार मरीन वैज्ञानिकों को विशाल चमकीली शार्क मिली है। रिर्चर्स ने न्यूजीलैंड के पूर्वी तट पर एक काइटफन शार्क स्पॉट की थी जिसमें खुद चमकने की क्षमता है। यह शार्क छह फीट तक लंबी हो सकती है और समुद्र स्तर से 984 फीट नीचे रहती है।इसके बारे में नई खोज ने इसे चमकने वाला सबसे बड़ा वर्टिब्रेट ( यानी रीढ़ की हड्डी वाला जीव) बना दिया है। यह शार्क जहां रहती है उसे महासागर का ट्वाइलाइट जोन यानी गोधुलि क्षेत्र कहते हैं। यह समुद्र के 3 हजार 200 फीट नीचे तक जाता है और यहां रोशनी नहीं पहुंचती। स्टडी में पाया गया है कि क्योंकि ये ऐसी अंधेरी जगह पर रहती हैं, उनके छिपने के लिए कोई जगह नहीं होती।क्यों चमकती हैं ये शार्कवह अपने शरीर की चमक को दूसरे जीवों को धोखा देने के लिए इस्तेमाल करती हैं जो इनके लिए पानी की चमकीली सतह की तरह दिखकर खुद को छिपाने का तरीका होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि धीमी गति से तैरने वाली शार्क तेज गति से तैरने वाले अपने शिकार को पकडऩे के लिए इसका इस्तेमाल करती है ताकि छिपकर हमला कर सके।केमिकल की वजह से चमकफ्रंटियर्स इन मरीन साइंस जर्नल में छपी स्टडी बेल्जियम और न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने मिलकर की है जिन्होंने जनवरी 2020 में खोज की थी और 26 फरवरी को इसके नतीजे छपे हैं। इस प्रजाति को पहले से पहचाना गया है लेकिन चमकने की क्षमता पहली बार देखी गई है। इसे लिविंग लाइट या कोल्ड लाइट भी कहते हैं। मछली के अंदर मौजूद केमिकल लूसिफेरिन की वजह से चमक निकलती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह क्षमता हमारे ग्रह के सबसे बड़े ईकोसिस्टम में यकीनन एक बड़ी भूमिका निभाती है।
- रूस में अजीब भूवैज्ञानिक धारियों ने नासा के शोधकर्ताओं को हैरान कर दिया है। साइबेहरिया इलाके में मर्खा नदी के पास आकाश से ली गईं सैटेलाइट तस्वीरों में रहस्यममयी धारियां नजर आ रही हैं। इन धारियों ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया है। वैज्ञानिक यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इन धारियों के पीछे वजह क्या है।पैटर्न सबसे ज्यादा कब दिखाई देता हैनासा द्वारा कई सालों से लैंडसैट 8 से कैप्चर की गई इन फोटोज पर नजर डालें तो सिलवटदार जमीन नजर आ रही है। मर्खा नदी के दोनों ओर गहरी और हल्की, दोनों ही तरह की धारियां नजर आ रही हैं। ये रहस्यमयी धारियां सभी मौसमों में नजर आ रही है, लेकिन सर्दियों में बर्फ की वजह से ये एक-दूसरे से अलग ये धारियां बिल्कुंल साफ नजर आ रही हैं।बर्फ से जुड़ा है मामलासाइबेरिया में दिखीं इन रहस्यमयी धारियों को लेकर वैज्ञानिक आश्वस्त नहीं हैं, लेकिन वे मानते हैं कि इसका रहस्य बर्फ से है। रूस के इस इलाके में कुछ समय के लिए ही जमीन दिखाई देती है और साल के 90 प्रतिशत दिनों में बर्फ से ढंका रहता है।'बर्फ पिघलने के बाद बने निशान'कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कभी बर्फ के नीचे दबने और कभी बर्फ के पिघलने पर जमीन के बाहर आने से यह रहस्यमयी डिजाइन बना है। इस चक्र के दौरान, मिट्टी और पत्थर स्वाभाविक रूप से खुद को आकार देते हैं।नार्वे में भी देखी गई हैं धारियांकुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि करोड़ों सालों में जमीन के क्षरण की वजह से ये धारियां पड़ी हैं। इस तरह की धारियां नार्वे में भी देखी गई हैं, लेकिन साइबेरिया के मुकाबले यह बहुत छोटी हैं।मिट्टी-पत्थर के कटाव से बने निशानयूएस जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार, पैटर्न मिट्टी और पत्थर के कटाव का एक परिणाम हो सकता है और ये धारियां चट्टानों की तलछट है। हालांकि नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि यह धारियां अभी भी उनके लिए रहस्य बनी हुई हैं।कटाव से कैसे बने हैं पैटर्नजब पिघलती बर्फ या बारिश का पानी नीचे की ओर बहता है, तो चट्टानों के कटाव के कारण स्लाइस के समान परतें बन सकती हैं। यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के एक शोधकर्ता ने दावा किया कि गहरे रंग की धारियां खड़ी या अधिक ढलान वाले क्षेत्रों को दर्शाती हैं, जबकि हल्की धारियां सपाट क्षेत्रों को दिखाती हैं।
- - अमेरिका और रूस के दो टापू हैं 3 मील दूर- फिर भी दोनों के बीच 21 घंटे का है अंतर- बीच से गुजरती है इंटरनैशनल डेट लाइन- कोल्ड वॉर के बाद दोनों में 'बढ़ी दूरी'मॉस्को/वॉशिंगटन। बिग डायोमीड और लिटिल डायोमीड नाम के दो टापू एक-दूसरे से सिर्फ तीन मील दूर हैं लेकिन इनके बीच आती है प्रशांत महासागर से गुजरने वाली इंटरनैशनल डेट लाइन। इससे बड़ा टापू छोटे टापू से एक दिन आगे रहता है। इंटरनैशनल डेट लाइन एक काल्पनिक रेखा है जो उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक जाती है। यह कैलेंडर के एक दिन और दूसरे दिन के बीच की सीमा होती है।इसकी वजह से बिग डायोमीड को टू मारो और लिटिल डायोमीड को यस्टरडे आइसलैंड भी कहते हैं। ये दोनों इतने करीब हैं कि सर्दियों में बर्फ का पुल बनने पर इनके बीच पैदल जाया जा सकता है। हालांकि, कानूनी रूप से इसकी इजाजत नहीं है।रूस और अमेरिका के बीचदोनों टापू अलास्का और साइबेरिया के बीच बेरिंग स्ट्रेट पर हैं। बड़ा टापू रूस के हिस्से में है और छोटा अमेरिका के हिस्से में। इन्हें ग्रीक संत डायोमीडीस का नाम दिया गया है। इनकी खोज 16 अगस्त, 1728 को डैनिश-रूसी नैविगेटर वाइटस बेरिंग ने की थी। इसी दिन रूस की ऑर्थोडॉक्स चर्च संत की याद में मनाती है। बिग डायोमीड पूरी तरह सुनसान रहता है जबकि लिटिल डायोमीड पर 110 लोग रहते हैं।इनके बीच के रास्ते को बर्फ का पर्दा भी कहते हैं। हालांकि, ऐसा तापमान की वजह से नहीं बल्कि शीत युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच आए तनाव के कारण है। शीतयुद्ध के बाद रूस ने यहां से अपने लोगों को साइबेरिया भेज दिया था जबकि अमेरिका के लोग अभी भी इस टापू पर रहते हैं।
- मार्च का महीना साल का तीसरा महीना होता है। इस महीने कई लोगों का जन्मदिन आता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हमारे जन्म का महीना हमारे जीवन के कई रहस्यों को बताता है। मार्च के महीने में जिन लोगों का जन्मदिन होता है उन लोगों में कुछ खूबियां तो कुछ दोष भी पाए जाते हैं। आइए ज्योतिष शास्त्र के नजरिए से जानते हैं मार्च माह में जन्म लेने वाले जातकों के स्वभाव, गुण एवं दोषों के बारे में -मार्च माह में जन्म लेने वाले जातक हृदय से कोमल होते हैं। इस महीने जन्म लेने वाले जातक परोपकारी, दानी और धार्मिक स्वभाव वाले होते हैं। धर्म और समाज कल्याण के कार्यों में आप बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। मिलनसार होने के कारण आप आसानी से अंजान लोगों से अपनी मित्रता को स्थापित कर लेते हैं। इसलिए आपकी दोस्ती का दायरा विस्तृत होता है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जिन लोगों का जन्म मार्च के महीने में होता है वे वैचारिक रूप से अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं। भले आप दिखने में सामान्य दिखाई देते हों, लेकिन वैचारिक रूप से गंभीर होते हैं। आप जब तक उस विषय पर बात नहीं करते हैं तब तक आपको उसकी पूर्ण जानकारी न हो। आप परिस्थिति का पूर्वानुमान लगा लेते हैं जिसके चलते आपको लाभ मिलता है।मार्च माह में जन्मे जातकों को अपनी जिम्मेदारियों का पूरा अहसास होता है। आपको जो भी जिम्मेदारी दी जाती है उसमें आप खरा उतरते हैं। आप अपने कार्य का पूरा सम्मान करते हैं। आपकी यही बात आपको सक्सेसफुल बनाती हैं। वहीं समाज हित में बनाए गए नियमों का आप अच्छी तरह से पालन करते हैं और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देते हैं।अव्वल नंबर के बातूनीजिन लोगों का जन्म मार्च के महीने में होता है वे अव्वल नंबर के बातूनी होते हैं। अपनी बात करने की कला से आप महफिर में छा जाते हैं। लेकिन कभी-कभी लोग आपके बातूनी स्वभाव से नाराज भी हो जाते हैं। भले ही आप बातूनी क्यों ना हों, लेकिन कई मौकों पर आप निर्णय लेने में हिचकिचा भी जाते हैं। आपके दो-तरफा रवैया से लोग खफा हो जाते हैं।थोड़े अडिय़लइस महीने जन्में लोग अडिय़ल स्वभाव के होते है। इनके द्वारा कही गई बातों को ये लोग पत्थर की लकीर मानते है। हालांकि कई बार यही आदत इनके लिए रास्ते का रोड़ा बन जाता है। इसके साथ ही आप बातों को बढ़ाचढ़ाकर भी पेश करते हैं। जिससे लोग आपके सामने गुप्त बातों को साझा करने से कतराते हैं।इन चीजों के शौकीनजिन महिलाओं का मार्च के महीने में जन्म होता है वे सजने संवरने की शौकीन होती हैं। जीवन में एडवेंचर आपको पसंद आता है। रहस्यमयी चीजों को जानने में गहरी रूचि रखते हैं। धर्म और अध्यात्म के विषयों को जानने की तीव्र इच्छा होती है।उपायइस माह में जन्में लोगों को भगवान विष्णु की पूजा जरूर करनी चाहिए। इस माह में जन्में जातक को भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों का उच्चारण करना चाहिए ऐसा करने से व्यक्ति के रूके हुए कार्य जल्दी सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही प्रत्येक रविवार को तांबे के पात्र में जल लें और उसमें शहद मिलाकर प्रात:काल सूर्य देव को अध्र्य दें।शुभ अंक= 3, 7, 9शुभ रंग =हरा, पीला और गुलाबीशुभ दिन =रविवार, सोमवार और शनिवार
- मिर्च से जुड़ी दो बातें काफी प्रचलित हैं। पहला ये कि यह हमारे देश से कोई ताल्लुक नहीं रखती है यानी करीब 7 से 8 सौ साल पहले यह भारत आई थी और दूसरा ये कि दुनिया की सबसे तीखी मिर्च भी भारत में ही पाई जाती है। लेकिन एक मिर्च ऐसी भी है, जो बिल्कुल तीखी नहीं होती है। आप समझ ही गए होंगे कि हम शिमला मिर्च की बात कर रहे हैं।शिमला मिर्च वैसे तो भारत में पांच सौ साल पहले ही आई थी, लेकिन इसके साक्ष्य साढ़े सात हजार ईसा पूर्व के मिले हैं। नेटिव अमेरिकंस इतिहास में शिमला मिर्च का जिक्र आता है। ऐसा माना जाता है कि यह मिर्च दुनियाभर में यहीं से फैली है। इस मिर्च से क्रिसोफर कोलंबस का नाम भी जुड़ा है। जी वही कोलंबस, जिन्होंने अमेरिका की खोज की थी। माना जाता है कि कोलंबस ही इस मिर्च को यूरोप तक लेकर आए थे।भारत में पुर्तगाली अपने साथ कई सब्जियां और खाने का सामान लाए थे। उनमें से अधिकांश पूरे भारत में हर किचन में पाई जाती हैं। इनमें आलू, टमाटर, अनानास, पपीता और काजू शामिल हैं। इस सूची में शिमला मिर्च का भी नाम है। 1510 ई. में जब पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा किया, तो वे अपने साथ खास सब्जियां भी लेकर आएं। इसके बदले वे भारत से कई मसाले लेकर गए थे।हमारे देश में कैप्सिकम के आते ही उसे भारतीय नाम दे दिया गया 'शिमला मिर्च'। शिमला मिर्च अब भारत के लगभग सभी राज्यों में उगाया जा रहा है। देश में अब अलग-अलग रंग की शिमला मिर्च भी बहुतायक में उगाई जाने लगी है, जैसे कि पीली, नारंगी आदि।शिमला मिर्च में फाइबर, कार्ब, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन के और प्रोटीन जैसे जरूरी तत्व पाए जाते हैं। इसके साथ ही इसमें आयरन, मैग्निशियम, फास्फोरस, पोटैशियम, कॉपर, मैगनीज आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए अब यह सब्जी भारतीयों की खास पसंद बन चुकी है।
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इंसानों के ब्लड बैंक के बारे में आपने बहुत सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी जानवरों के ब्लड बैंक के बारे में सुना है। आपको सुनने में ये बात थोड़ी अजीब जरूर लग रही होगी, लेकिन यह सच है। दुनियाभर के कई देशों में 'पेट्स ब्लड बैंक' बनाए गए हैं। इन ब्लड बैंकों में अधिकांश बिल्लियों और कुत्तों का खून मिलता है। क्योंकि इन जानवरों को अधिकांश लोग पालते हैं। अगर कोई कुत्ता या बिल्ली को खून की जरूरत पड़ती है, तो यही ब्लड बैंक उनके काम आते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि कुत्ते और बिल्लियों में भी इंसानों की तरह अलग-अलग प्रकार के ब्लड ग्रुप होते हैं। जहां कुत्तों में 12 प्रकार के ब्लड ग्रुप होते हैं, तो वही बिल्लियों में तीन प्रकार के ब्लड ग्रुप पाए जाते हैं।
उत्तरी अमेरिका में स्थित पशु चिकित्सा ब्लड बैंक के प्रभारी डॉक्टर केसी मिल्स के मुताबिक, कैलिफोर्निया के डिक्सन और गार्डन ग्रोव शहरों के अलावा मिशिगन के स्टॉकब्रिज, वर्जीनिया, ब्रिस्टो और मैरीलैंड के अन्नापोलिस शहर समेत उत्तरी अमेरिका के कई शहरों में पशु ब्लड बैंक हैं। यहां लोग समय-समय पर अपने पालतू जानवरों को ले जाकर रक्तदान करवाते हैं। डॉक्टर मिल्स ने बताया कि पशुओं के रक्तदान की प्रक्रिया में लगभग आधे घंटे का समय लगता है। सबसे खास बात तो ये है कि उन्हें एनेस्थेसिया देने की भी जरूरत नहीं पड़ती है।
हालांकि, ऐसी जगह जहां पर पशु ब्लड बैंक नहीं है, वहां लोगों को जागरूक करने के लिए रक्त और प्लाज्मा दान कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन और अमेरिका में लोग पशुओं के रक्तदान के प्रति जागरूक हैं, जबकि बाकी जगहों पर पशुओं के रक्तदान के प्रति अभी जागरूकता फैलाने की जरूरत है। - असम की मागूरी झील में मंदारिन डक नामक एक बत्तख को करीब 120 साल बाद देखा गया है। विश्व का सबसे सुंदर बत्तख कहे जाने वाले मंदारिन डक की तलाश सबसे पहले स्वीडन के जीव विज्ञानी कार्ल लीनेयस ने 1758 में की थी।यह बत्तख चीन, जापान, कोरिया और रूस के कुछ हिस्सों में भी पाया जाती है। फिलहाल विशेषज्ञ पता लगा रहे हैं कि यह पक्षी इतने लंबे अंतराल के बाद कैसे और क्यों असम तक पहुंचा है। असम ही नहीं बल्कि मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और पुणे जैसे दूरदराज के इलाकों से भी पक्षी प्रेमी इस बत्तख को देखने के लिए बीते एक सप्ताह के दौरान तिनसुकिया जिले का दौरा कर चुके हैं। इलाके में सर्वेक्षण करने वाली वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक टीम भी इस बत्तख को देख चुकी है।ऊपरी असम के तिनसुकिया जिले में स्थित डिब्रू-साईखोवा नेशनल पार्क के भीतर मागुरी झील में बीते एक सप्ताह से इस दुर्लभ व सुंदर बत्तख को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है। स्थानीय लोगों ने इसे जीवन में पहली बार देखा है। यह बत्तख पूर्वी एशिया में पाई जाती है। 18वीं सदी में इनको इंग्लैंड भी ले जाया गया था। पहले चीन बड़े पैमाने पर इस पक्षी का निर्यात करता था, लेकिन 1975 में इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी. वैसे, 1918 में इन बत्तखों को न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क में भी देखा जा चुका है। उस समय स्थानीय लोगों और पक्षी प्रेमियों को काफी हैरत हुई थी। हालांकि दुर्लभ होने के बावजूद इसको विलुप्तप्राय प्रजाति का जीव नहीं माना जाता।
- इंसानी कान एक सुई के गिरने की हल्की सी आवाज को भी पहचानता है और विस्फोट के बड़े शोर को भी। हम जो भी कुछ सुनते हैं, विज्ञान की दुनिया में उसे डेसीबल स्केल पर नापा जाता है। जानिए, आपके कान के लिए सही डेसीबल कितना है।0 डेसीबलसन्नाटे की भी एक आवाज होती है। डेसीबल स्केल पर इसे सबसे कम शोर के रूप में आंका जाता है। इसे शून्य डेसीबल कहते हैं। जब शोर इससे दस गुना होता है तो उसे 10 डेसीबल, सौ गुना होता है तो 20 डेसीबल, हजार गुना को 30 डेसीबल कहा जाता है।10 डेसीबलपत्तों के गिरने की आवाज दस डेसीबल की होती है। सांसों का शोर भी इतना ही होता है। 10 से 40 डेसीबल के बीच की आवाज पर हमारा बहुत ज्यादा ध्यान नहीं जाता है।20 डेसीबलघड़ी की टिक टिक बीस डेसीबल की होती है। यूं तो 40 डेसीबल तक की आवाज कानों को मधुर लगती है लेकिन घड़ी की टिक टिक उबाऊ भी हो सकती है।30 डेसीबलजब किसी के कान में हम धीरे से कोई बात कहते हैं, तो वो आवाज तीस डेसीबल की होती है।40 डेसीबलफ्रिज की आवाज चालीस डेसीबल की होती है। दिन रात फ्रिज चलता है और हमें इसे सुनने की ऐसी आदत हो जाती है कि इसकी ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता।50 डेसीबलबारिश का शोर पचास डेसीबल का होता है। पंखे की आवाज भी इतनी ही होती है।60 डेसीबलबातचीत का शोर साठ डेसीबल का होता है। 40 से 60 डेसीबल तक की आवाज इंसानी कानों के लिए मधुर होती है। इसे सुनने में ना कानों पर जोर पड़ता है और ना ही तनाव होता है।70 डेसीबलकार की आवाज 70 डेसीबल की होती है। सत्तर डेसीबल से ऊपर की हर आवाज को ऊंचे स्वर का माना जाता है।80 डेसीबलट्रक का शोर 80 डेसीबल का होता है। हेडफोन लगाए हों तो कोशिश कीजिए कि 85 डेसीबल से ऊपर ना सुनें। अधिकतर स्मार्टफोन भी इससे ऊपर चेतावनी देते हैं।90 डेसीबलहेयर ड्रायर की आवाज 90 डेसीबल की होती है। 90 से 110 डेसीबल बेहद ऊंचे स्वर की श्रेणी में आता है जिससे कान भी खराब हो सकते हैं।100 डेसीबलहेलीकॉप्टर जब हमारे सिर के ऊपर से गुजरता है, तब सौ डेसीबल की आवाज आती है। 15 मिनट से ज्यादा 100 डेसीबल पर हेडफोन लगाकर म्यूजिक सुनेंगे तो कान खराब होना तय है।110 डेसीबलडिस्कोथेक या नाइट क्लब में 110 डेसीबल की आवाज होती है। इसीलिए वहां एक दूसरे से बात करने के लिए जोर जोर से चिल्लाना पड़ता है।120 डेसीबलपुलिस का सायरन 120 डेसीबल का होता है ताकि दूर दूर तक सुनाई दे सके।130 डेसीबलजेट प्लेन जब टेक ऑफ करता है तब 130 डेसीबल की आवाज होती है। गोली चलने पर भी इतनी ही आवाज होती है।140 डेसीबलइतने ऊंचे स्वर की आवाज सुनने पर कान में दर्द होने लगता है।
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लंदन। वैज्ञानिकों ने डीएनए के छोटे वृत्तों को एक कोशिका के अंदर गतिविधियां करते हुए दर्शाने के लिए एक तकनीक विकसित की है। उन्हें पहली बार ऐसा करने में कामयाबी मिली है। लीड्स, शेफील्ड, यॉर्क और जॉन इंस सेंटर के अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने अत्याधुनिक आणविक बल सूक्ष्मदर्शी प्रौद्योगिकी और एक सुपर कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हुए इस बात का खुलासा किया है कि मुड़े हुए आकार में मौजूद डीएनए घुमावदार आकृति बनाते हैं।
अब से पहले वैज्ञानिक सूक्ष्मदर्शी का इस्तेमाल करते हुए डीनए की सिर्फ स्थिर तस्वीरें ही देख पाते थे। लेकिन अब यॉकशायर की टीम ने डीएनए के मुड़े हुए अणुओं का वीडियो बनाने के लिए अत्याधुनिक आणविक बल सूक्ष्मदर्शी को सुपर कंप्यूटर से जोड़ दिया। इस तकनीक के जरिए अनुसंधानकर्ता डीएनए में एक-एक अणु की स्थिति को और वह कैसे मुड़ता है, उसे देख सकते हैं। शेफील्ड विश्वविद्यालय में पॉलीमर एवं साफ्ट मैटर की डॉ एलिस पाइन ने यह वीडियो बनाई। उन्होंने कहा, ''डीएनए जैसी छोटी चीज को इस तरह से देखना बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। अब से पहले इतनी गहराई से इसे कभी नहीं देखा गया था। '' यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
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नई दिल्ली। भारतीय खगोलविदों ने एक विशाल ब्लैक होल बीएल लैकेर्टे से अत्यधिक रोशनी दिखाई देने का दावा किया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने शनिवार को यह जानकारी दी। इसके विश्लेषण से ब्लैक होल के द्रव्यमान (मास) और उत्सर्जन के स्रोत का पता लगाने में मदद मिलेगी। इस तरह का विश्लेषण ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विभिन्न चरणों के रहस्यों को सुलझाने और विभिन्न घटनाओं का पता लगाने में मदद कर सकता है। विभाग ने एक बयान में कहा है कि बीएल लैकेर्टे एक करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। यह सर्वाधिक प्रमुख 50 ब्लैक होल में शामिल है। यह उन तीन-चार ब्लैक होल में शामिल है, जिसके बारे में खगोलविदों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह, होल अर्थ ब्लेजर टेलीस्कोप (डब्ल्यूईबीटी) ने आग की लपटों से निकलते प्रकाश का पूर्वानुमान लगाया था। बयान में कहा गया है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाले आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के आलोक चंद्र गुप्ता के नेतृत्व में खगोलविदों का एक दल अंतरराष्ट्रीय अभियान के एक हिस्से के रूप में अक्टूबर, 2020 से ही इसका अध्ययन कर रहा था। उसने 16 जनवरी, 2021 को आग की लपटों से निकलने वाले इस प्रकाश का पता लगाया। बयान में कहा गया है कि इस कार्य में नैनीताल स्थित संपूर्णानंद टेलिस्कोप (एसटी) और 1.3 एम देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप की मदद ली गई है।
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- देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में बिजली उत्पादन की एक परियोजना चल रही है, जिसका नाम ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट पर 10 साल से अधिक वक्त से काम जारी था। यह कोई सरकारी नहीं बल्कि प्राइवेट सेक्टर की परियोजना है जो विवादों में रही है। पहले इस प्रोजेक्ट का जमकर विरोध हुआ था। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस प्रोजेक्ट को बंद कराने के लिए कोर्ट का दरवाजा तक खटखटाया था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका था।तमाम विवादों के बावजूद इस क्षेत्र में करीब एक दशक पहले शुरू हुई परियोजना के तहत यहां पर बिजली का उत्पादन शुरू हो गया था। यहां पर पानी से बिजली पैदा करने का काम चल रहा था। यह प्रोजेक्ट ऋषि गंगा नदी पर बनाया गया है और यह नदी धौली गंगा में मिलती है।ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के जरिए 63,520 एमडब्ल्यूएच बिजली बनाने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि फिलहाल कितना उत्पादन हो रहा था, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी मौजूद नहीं है। शुरुआती दावों की बात करें तो ये कहा गया था कि जब भी प्रोजेक्ट अपनी पूरी क्षमता पर काम करेगा तब यहां से बनने वाली बिजली दिल्ली, हरियाणा समेत कुछ अन्य राज्यों में सप्लाई की जाएगी।--
- माथे की रेखाओं से भी व्यक्ति के भूत और भविष्य को जाना जा सकता है। हाथों की तरह ही माथे की रेखाएं भी भूत, भविष्य और वर्तमान के बारे में बताती हैं। हालांकि माथे की इन रेखाओं का सटीक विश्लेषण बेहद जरुरी है। माथे की रेखाएं भी व्यक्ति के जीवन के बारे में बहुत कुछ बताती हैं। माथे की इन रेखाओं से व्यक्ति के भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए जरुरी है कि व्यक्ति के मस्तिष्क की स्थिति, उसके आकार-प्रकार, रंग और रेखाओं के बारे में अच्छी तरह से अध्ययन जरुरी है। जानिए मस्तक पर मौजूद रेखा और उनसे मिलने वाले संकेतों के बारे में।शनि रेखाशनि रेखा माथे में सबसे ऊपर होता है। यह रेखा अधिक लंबी नहीं होती और माथे के मध्य भाग में ही दिखाई देती है। समुद्र लक्षण विज्ञान के अनुसार इस रेखा के आसपास का हिस्सा भी शनि ग्रह से प्रभावित माना जाता है। जिन लोगों के माथे पर यह रेखा साफ दिखाई देती है, वह बेहद गंभीर स्वभाव का होता है। यदि उठे हुए माथे पर शनि रेखा हो तो ऐसे लोग रहस्यमयी, गंभीर और अहंकारी स्वभाव के होते हैं। ये अपने बातों का किसी दूसरे को भनक तक नहीं लगने देते। इस तरह के लोग जादूगर या तांत्रिक होते हैं।गुरु रेखाशनि रेखा के थोड़ा सा नीचे माथे पर गुरु रेखा होता है। यह रेखा शनि रेखा से थोड़ी लंबी होती है। यह रेखा पढ़ाई, आध्यात्म और इतिहास के बारे में महत्वाकांक्षा का सूचक होती है। जिन लोगों के माथे पर गुरु रेखा साफ और लंबी हो वह आत्मविश्वासी और अपनी बातों पर दृढ़ होता है। इन लोगों पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सकता है। इस रेखा वाले लोग शिक्षा के क्षेत्र में नाम कमाते हैं।मंगल रेखामाथे के बीच में कुछ ऊपर और गुरु रेखा के नीचे मंगल रेखा होती है। यदि सपाट या पूरी तरह से विकसित माथे पर मंगल रेखा शुभ गुणों के साथ हो और व्यक्ति के कनपटी से ऊपर के स्थान थोड़े उठे हुए हों तो ऐसा व्यक्ति स्वाभिमानी, साहसी, धार्मिक प्रवृत्ति वाला और क्रिएटिव होता है। ऐसे लोग सेना, पुलिस और प्रशासन में उच्च अधिकारी बनते हैं। लेकिन यदि बेहद छोटे माथे पर अशुभ गुणों वाली मंगल रेखा हो और कनपटी के ऊपर के भाग भी विकसित हों तो ऐसा व्यक्ति आपराधिक प्रवृत्ति का होता है। इन लोगों को बहुत जल्द गुस्सा आता है। गुस्से में वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।बुध रेखायह रेखा माथे के बीचोबीच होती है। बुध रेखा लंबी होती है और विशेष स्थितियों में व्यक्ति की दोनों कनपटियों के किनारों केा स्पर्श करती दिखती है। बुध रेखा मैमोरी, ज्ञान और ईमानदारी का संकेत देती है। यदि यह रेखा शुभ हो तो व्यक्ति कलात्मक प्रकृत्ति का होता है। ऐसे लोगों में दूसरों को पहचाने की क्षमता होती है।शुक्र रेखाबुध रेखा से ठीक नीचे केवल मध्य भाग में शुक्र रेखा का स्थान होता है। बुध रेखा छोटे आकार की होती है। शुक्र रेखा अच्छे स्वास्थ्य, भ्रमण को पसंद करने वाला, आकर्षक और सम्मोहक व्यक्तित्व का संकेत देती है। विकसित माथे पर यदि शुक्र रेखा साफ ढंग से दिखाई दे तो ऐसा व्यक्ति आशा, उत्साह और स्फूर्ति से भरा हुआ होता है। ऐसा व्यक्ति देश-विदेश में घूमने का बहुत शौकीन होता है।सूर्य रेखायह रेखा व्यक्ति की दाईं आंख की भौंह के ऊपर होती है। यह रेखा भी अधिक लंबी नहीं होती और सिर्फ आंख तक सीमित होती है। सूर्य रेखा प्रतिभा, सफलता, यश और सुख-समृद्धि का प्रतीक होती है। शुभ रेखा के साथ माथे वाला व्यक्ति बेहद सूझबूझ वाला होता है। ये लोग अनुशासन को सर्वोपरि रखते हैं। अच्छी सूर्य रेखा वाले लोग गणितज्ञ और अच्छे नेता होते हैं। इनमें दूसरों को प्रभावित करने की अदभुत क्षमता होती है।चंद्र रेखामाथे पर चंद्र रेखा बाईं आंख की भौंह के ऊपर रहती है। यदि चंद्र रेखा सरल, सीधी और साफ हो तो व्यक्ति कला प्रेमी, कुशाग्र बुद्धि वाला, कल्पनाशील और एकांत को पंसद करने वाला होता है। इस तरह की रेखा वाले लोग चित्रकला, संगीत और गायन में नाम कमाते हैं। चंद्र रेखा वाले लोग आध्यात्मिक भी होते हैं।(इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं तथा इन्हें अपनाने से अपेक्षित परिणाम मिलेगा। जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
- हाल ही में न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क में 130 साल में पहली बार दुर्लभ हिम उल्लू देखा गया। इसकी जानकारी न्यूयॉर्क सिटी डिपार्टमेंट ऑफ पाक्र्स एंड रिक्रिएशन सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए दी। पोस्ट में लिखा है, हिम उल्लू को अकेले रहना पसंद है। कृपया इससे दूरी बनाए रखें, ताकि हर कोई इस अनूठे पल का अनुभव कर सके।वैज्ञानिकों का कहना है, आमतौर पर दूसरे उल्लू दिन में सोते हैं और रात में शिकार के लिए जागते हैं। हिम उल्लू दिन में भी एक्टिव रहते हैं। इस प्रजाति का नर उल्लू पूरी तरह से सफेद होता है, लेकिन मादा के शरीर पर ब्राउन रंग के चकत्ते दिखते हैं।हिम उल्लू खासतौर पर उत्तरी गोलार्ध के आर्कटिक टुंड्रा में पाया जाता है। ये सर्दियों के दिनों में अपना शिकार ढूंढने के लिए आर्कटिक टुंड्रा पहुंचते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है, इसे अपने आसपास इंसानों का दखल बिल्कुल पसंद नहीं है।वैज्ञानिकों के मुताबिक, नॉर्थ अमेरिका में उल्लुओं की संख्या अधिक है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है। नतीजा, उल्लुओं की संख्या में कमी आ रही है। पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था ऑडुबॉन सोसायटी के डायरेक्टर ब्रुकी बैटमैन कहते हैं, हो सकता है हिम उल्लू न्यूयॉर्क में रहने की जगह तलाश रहा हो।
- चाक्षुषोपनिषद अपने नाम की सार्थकता को व्यक्त करता है जिसमें नेत्रों के महत्व तथा उनके रोगों को दूर करने के अनेक उपाए बताए गए हैं जो हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा व्यक्त किए गए हैं। चाक्षुषोपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अंतर्गत आता है। इसमें सूर्य देव से प्रार्थना की गई है कि वह सभी प्राणियों के नेत्रों को ज्योति प्रदान करें उन्हें नेत्रों के रोगों से मुक्त करें।सभी चक्षुओं की ज्योति से संसार को देख पाएं सृष्टि की महत्ता को जान सकें। चाक्षुषोपनिषद उपनिषद में चक्षु रोगों को दूर करने की प्रभावकारी उपायों का उल्लेख किया गया है। चक्षुओं की शक्ति का आधार सूर्य देव को माना गया है जिमें सूर्य देव की स्तुति का वर्णन मिलता है। सूर्य देव को नेत्रों का रक्षक माना गया है उनकी आराधना से नेत्रों के कष्ट से बचा जा सकता है। सूर्य देव जिस प्रकार संसार में अपने तेज को फैला कर अंधकार का नाश करते हैं और जिस कारण से पृथ्वी में जीवन व्याप्त है उसी प्रकार सूर्य देव नेत्रों की ज्योति को उत्पन्न करते हैं। उनकी प्रदान कि गई रोशनी से ही व्यक्ति सुखों का भोग कर पाता है सूर्य देव के सामथ्र्य का वर्णन करते हुए चक्षुओं के सभी रोगों को दूर करने के लिए उनसे प्रार्थना की गयी है।चाक्षुषोपनिषद में भगवान सूर्य देव को जिन्हें भासकर, आदित्य, दिनकर और रवि नामों से जाना जाता है उनके रूप गुणों की महिमा को दर्शाया है। सूर्य भगवान से हाथ जोड़ कर प्रार्थना की गई है कि सूर्य देव सभी जन में अज्ञान रूपी अंधकार के बंधन दूर करें उन्हें इन समस्त बन्धनों से मुक्त करके दिव्य तेज़ प्रदान करें जिससे सभी प्राणी जगत का महत्व जान पाएं उसकी दार्शनिकता को समझ सकें। चाक्षुषोपनिषद में तीन मुख्य मन्त्रों का उल्लेख किया गया है जिनके उच्चारण से चक्षु विद्या का वर्णन हो पाया है। इस ज्ञान को प्राप्त करके ही नेत्रों को बल मिलता है।
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कर्नाटक की कावेरी वैली में एक डैम बनाने का प्रस्ताव आया है। इस डैम के निर्माण हो जाने से बेंगलुरु शहर में पानी की किल्लत और बाढ़ की समस्या दोनों से छुटकारा मिल जाएगा। लेकिन इस प्रोजेक्ट के वजह से चार प्रजातियों के जीवों को खतरा भी है। इन्हीं जीवों में से एक सबसे प्यारा जीव इंद्रधनुषी रंगों वाली गिलहरी है। दक्षिण भारत के जंगलों में दिखाई देने वाली इस गिलहरी को कई नामों से बुलाया जाता है।
कई रंगों वाली इस गिलहरी का नाम है मालाबार जायंट गिलहरी है। कुछ लोग इसे इंडियन जायंट गिलहरी या इंद्रधनुषी गिलहरी भी कहते हैं। हालांकि, इसका बायोलॉजिकल नाम 'राटुफा इंडिका' है। सिर से लेकर पूंछ तक इश गिलहरी की कुल लंबाई करीब 3 फीट तक होती है। इसके शरीर पर काला, भूरा, पीला, नीला, लाल, नारंगी समेत कई रंग दिखाई देते हैं।इंद्रधनुषी गिलहरी अक्सर एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच लंबी-लंबी छलांग लगाकर भागती है। कई बार तो ये गिलहरी 20 फीट से भी अधिक दूरी तक छलांग लगा देती है। इंद्रधनुषी गिलहरी पूरी तरह से शाकाहारी होती है। फल, फूल नट्स और पेड़ों की छाल इस गिलहरी का मुख्य भोजन है। हालांकि, इन गिलहरियों से कुछ उप-प्रजातियां शाकाहार के साथ-साथ कीड़े और चिड़ियों के अंडे भी खाती हैं। इंद्रधनुषी गिलहरी आमतौर पर सुबह-शाम सक्रिय रहती है और दिन में सोती है। इस प्रजाति के गिलहरियों में सबसे खास बात ये है कि इनके नर और मादा आपस में सिर्फ संभोग करने के लिए ही मिलते हैं। इसके अलावा ये एकसाथ नहीं रहते हैं। भारत में राटुफा इंडिका की चार उप-प्रजातियां भी हैं। पहली राटुफा इंडिका, दूसरी राटुफा इंडिका सेंट्रालिस, तीसरी राटुफा इंडिका डीलबाटा और चौथी राटुफा इंडिका मैक्सिमा। - दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए आज ही के दिन भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना हुई थी।25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन हुआ था। चुनाव आयोग एक स्वायत्त, अर्द्ध न्यायिक, संवैधानिक निकाय है। चुनाव आयोग के काम काज में कार्यपालिका का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। चुनाव आयोग के प्रमुख काम हैं- निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करना, मतदाता सूची तैयार करना, राजनीतिक दलों को मान्यता और चुनाव चिह्न देना, उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जांच करना, उम्मीदवारों के चुनाव खर्च की जांच करना और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना।भारत के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे, जिन्होंने 21 मार्च 1950 से 19 दिसंबर 1958 तक कार्यभार संभाला। अक्टूबर 1989 तक सिर्फ एक ही चुनाव आयुक्त हुआ करते थे। फिर 16 अक्टूबर 1989 से लेकर 1 जनवरी 1990 के बीच यह तीन सदस्यीय निकाय बन गया। उसके बाद इसे फिर एक सदस्यीय निकाय बना दिया गया, लेकिन 1 अक्टूबर 1993 को इसे तीन सदस्यीय निकाय बना दिया गया। वक्त गुजरने के साथ चुनाव आयोग ने भारतीय चुनाव व्यवस्था के सुधार के लिए सराहनीय कदम उठाए है। भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त बने टी.एन. शेषन ने अपने कार्यकाल में बहुत से सुधार किए थे। चुनाव आयोग की सख्ती का असर चुनावों में दिखने लगा और चुनावों में बेतहाशा पैसों की बर्बादी पर भी एक हद तक रोक लगी। श्री शेषन ने चुनाव आचार संहिता को कड़ाई से लागू कराया था।इस समय सुनील अरोड़ा मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं। वहीं सुशील चंद्रा निर्वाचन आयुक्त और राजीव कुमार निर्वाचन आयुक्त का पद संभाल रहे हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता हैं। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता हैं।भारत निर्वाचन आयोग के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति आदि चुनाव से सम्बंधित सत्ता होती है जबकि ग्रामपंचायत, नगरपालिका, महानगर परिषद् और तहसील एवं जिला परिषद् के चुनाव की सत्ता सम्बंधित राज्य निर्वाचन आयोग के पास होती है।निर्वाचन आयोग का कार्य तथा कार्यप्रणाली1 निर्वाचन आयोग के पास यह उत्तरदायित्व है कि वह निर्वाचनॉ का पर्यवेक्षण, निर्देशन तथा आयोजन करवाये वह राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति, संसद, राज्यविधानसभा के चुनाव करता है2 निर्वाचक नामावली तैयार करवाता है3 राजनैतिक दलॉ का पंजीकरण करता है4. राजनैतिक दलॉ का राष्ट्रीय, राज्य स्तर के दलॉ के रूप मे वर्गीकरण, मान्यता देना, दलॉ-निर्दलीयॉ को चुनाव चिन्ह देना5. सांसद/विधायक की अयोग्यता (दल बदल को छोडकर) पर राष्ट्रपति/राज्यपाल को सलाह देना6. गलत निर्वाचन उपायों का उपयोग करने वाले व्यक्तियॉ को निर्वाचन के लिये अयोग्य घोषित करनानिर्वाचन आयोग की शक्तियाँसर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार अनु 324[1] मे निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं हो सकती उसकी शक्तियां केवल उन निर्वाचन संबंधी संवैधानिक उपायों तथा संसद निर्मित निर्वाचन विधि से नियंत्रित होती है निर्वाचन का पर्यवेक्षण, निर्देशन, नियंत्रण तथा आयोजन करवाने की शक्ति मे देश मे मुक्त तथा निष्पक्ष चुनाव आयोजित करवाना भी निहित है जहां कही संसद विधि निर्वाचन के संबंध मे मौन है वहां निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिये निर्वाचन आयोग असीमित शक्ति रखता है यधपि प्राकृतिक न्याय, विधि का शासन तथा उसके द्वारा शक्ति का सदुपयोग होना चाहिए।निर्वाचन आयोग विधायिका निर्मित विधि का उल्लघँन नहीं कर सकता है और न ही ये स्वेच्छापूर्ण कार्य कर सकता है उसके निर्णय न्यायिक पुनरीक्षण के पात्र होते है।निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ निर्वाचन विधियों की पूरक है न कि उन पर प्रभावी तथा वैध प्रक्रिया से बनी विधि के विरूद्ध प्रयोग नही की जा सकती है।यह आयोग चुनाव का कार्यक्रम निर्धारित कर सकता है चुनाव चिन्ह आवंटित करने तथा निष्पक्ष चुनाव करवाने के निर्देश देने की शक्ति रखता है।सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी शक्तियों की व्याख्या करते हुए कहा कि वह एकमात्र अधिकरण है जो चुनाव कार्यक्रम निर्धारित करे चुनाव करवाना केवल उसी का कार्य है।जनप्रतिनिधित्व एक्ट 1951 के अनु 14,15 भी राष्ट्रपति, राज्यपाल को निर्वाचन अधिसूचना जारी करने का अधिकार निर्वाचन आयोग की सलाह के अनुरूप ही जारी करने का अधिकार देते है।--
- जेब्रा के शरीर पर दिखने वाली काली-सफेद धारियां पिछले कुछ समय से बदल रही हैं। इनकी धारियों के पैटर्न में बदलाव के साथ गोल्डन बाल भी दिखाई दे रहे हैं। जेब्रा पर हुई कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की रिसर्च चौंकाने वाली है। रिसर्च कहती है, जेब्रा का जीन बदल रहा है, इसलिए ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए 133 सामान्य और 7 बदली हुई धारियों वाले जेब्रा के डीएनए की जांच की। ये सभी जेब्रा अफ्रीका के नेशनल पार्क के थे। रिसर्च के मुताबिक, ऐसा होने की वजह प्रजनन में क्रॉस कनेक्शन का होना है। जैसे मादा जेब्रा के साथ किसी दूसरे स्तनधारी जानवर ने प्रजनन किया हो। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक कहते हैं, इनके जीन में वैरायटी घटने या खत्म होने से कई तरह के खतरे बढ़ सकते हैं। जैसे- जीन में खराबी होना, बीमारियों का बढ़ना और प्रजनन की क्षमता का घट जाना। यही कारण है कि मैदानी क्षेत्रों में जेब्रा विलुप्त हो रहे हैं। नेशनल जियोग्राफिक के मुताबिक, जेब्रा के प्राकृतिक वासस्थल में इंसान कब्जा कर रहा है। यहां बिल्डिंग और सड़कें बनाई जा रही हैं। इसी वजह से अफ्रीका में 5 लाख जेब्रा प्रभावित हो चुके हैं।
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समय से पहले ही अटैक को रोका जा सकेगा
हार्ट अटैक होगा या नहीं, इसकी जानकारी कुछ साल पहले ही एक्स-रे की मदद से दी जा सकेगी। इस पर रिसर्च करने वाले ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों का कहना है, हार्ट से जुड़ी महाधमनी में जब कैल्शियम का लेवल अधिक बढ़ जाता है तो हार्ट अटैक पड़ने का खतरा 4 गुना तक बढ़ता है। रिसर्च के मुताबिक, दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें दिल की बीमारी के कारण हो रही हैं। लेकिन एक्स-रे की मदद से हर साल हजारों जिंदगी बचाई जा सकती हैं। रिसर्च करने वाली ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कोवन यूनिवर्सिटी के प्रो. जोश लेविस कहते हैं, कई लोगों को यह पता नहीं चल पाता कि वो दिल की बीमारी से जूझ रहे हैं। न ही उन्हें धमनी में कैल्शियम इकट्ठा होने का कोई लक्षण महसूस होता है। महाधमनी शरीर का वो हिस्सा है जहां हार्ट से पहले कैल्शियम जमा होता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे एओर्टिक कैल्शिफिकेशन कहते हैं। अगर समय पर इसका पता लगा लिया जाए तो दवाओं के जरिए बीमारी बढ़ने से रोका जा सकता है। महाधमनी का काम ब्लड को हार्ट तक पहुंचाना है, लेकिन जब इसमें जब कैल्शियम जमा होना शुरू होता है तो यह संकरी होती चली जाती है। कैल्शियम बढ़ने पर इसमें ब्लड का सर्कुलेशन ठीक से नहीं हो पाता। नतीजा, हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है। एक्सपर्ट कहते हैं, शरीर में ऐसी स्थिति खानपान में गड़बड़ी, स्मोकिंग और सिटिंग जॉब के कारण बनती है। कुछ मामलों में ऐसा अनुवंशिकतौर पर भी होता है। -
आपने कई लोगों की लव स्टोरी पढ़ी और सुनी होंगी, परंतु आज हम आपको जिस लवस्टोरी के बारे में बताने जा रहे हैं, वो सबसे अलग और अजीबोगरीब है। ये लवस्टोरी है रूस की 24 साल की एक महिला की। रूस की ये महिला इंसानों से नहीं बल्कि अलग- अलग निर्जीव चीजों से आकर्षित होती हैं। रेन गॅार्डन नाम की ये महिला एक ब्रीफेक्स के साथ शादी भी रचा चुकी हैं। रेन का कहना है कि वे इस ब्रीफकेस के साथ कनेक्शन महसूस करती हैं। आपको बता दें रेन एक नर्सरी टीचर हैं।
रेन का बचपन से ही मानना है कि सजीव से लेकर निर्जीव चीजों में भी आत्मा होती है। रेन एनिमिस्म के कॉन्सेप्ट में विश्वास करती हैं, जिसके अनुसार हर चीज में जिंदगी होती है। रेन ने इस ब्रीफकेस को साल 2015 में एक हार्डवेयर शॅाप से खरीदा था। रेन कहती हैं कि शुरुआत से ही उन्हें इस ब्रीफकेस को निहारना अच्छा लगता था और वो शाम और रात का वक्त रेन ब्रीफेक्स के साथ ही व्यतीत करती थीं। रेन कहती हैं कि वो ब्रीफकेस के साथ फिलोसॅाफी से जुड़ी बातें भी करती थीं। रेन को धीरे- धीरे ये एहसास होने लगा कि वो ब्रीफेक्स को चाहने लगी हैं। रेन कहती हैं कि ब्रीफकेस सिर्फ उनका पार्टनर नहीं है, बल्कि दोस्त और एक अच्छा मेंटॅार भी है।आध्यात्मिक कनेक्शन और कम्युनिकेशन टेलीपैथी के द्वारा मुमकिन हो पाता है
रेन कहती हैं कि वो ब्रीफेकस को सुनती हैं और ब्रीफेकस भी उसकी बातों को सुनता है, लेकिन आम लोगों को सिर्फ मेरी बात ही सुनाई देती है। रेन का कहना है कि उनका आध्यात्मिक कनेक्शन और कम्युनिकेशन टेलीपैथी के द्वारा मुमकिन हो पाता है। रेन अपने रिलेशनशिप के बारे में अपने परिवार को बता चुकी हैं और परिवार भी इस रिश्ते को स्वीकार कर चुका है। रेन इससे पहले एक शख्स को डेट कर चुकी हैं, परंतु वो रिश्ता ज्यादा समय तक चल नहीं पाया।