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भारत में सिर्फ एक ही जगह ऐसी है जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है. उत्तराखंड राज्य में ऊंचें-ऊंचे बर्फ से ढके पहाड़, और हरियाली को लेकर मान्यता है कि देवाधिदेव महादेव इसी स्थान पर निवास करते हैं. कहते हैं कि यहां की भूमि इतनी पवित्र है कि पांडवों से लेकर कई बड़े राजाओं ने तप के लिए इस स्थान का चयन किया. कहते हैं कि उत्तराखंड की भूमि में एक ऐसा झरना है जिसके पानी को कोई पापी व्यक्ति हाथ नहीं लगा सकता है. आइए जानते हैं इस बारे में.
पांडवों ने स्वर्ग के लिए किया था प्रस्थान
धार्मिक ग्रंथों में कई स्थानों पर जिक्र है कि देवभूमि उत्तराखंड में भगवान शिव का निवास है. यहां केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री आदि तमाम तीर्थस्थल मौजूद हैं. कहते हैं कि पांडवों ने स्वर्ग के लिए भी इसी स्थान से प्रस्थान किया था. इसके अलावा गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का उद्गम स्थान भी उत्तराखंड ही है.
पापियों को स्पर्श भी नहीं करता इसका पानी
वसुंधरा झरना बद्रीनाथ धाम से 8 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है. यह झरना 400 फीट की ऊंचाई से गिरता है और गिरते हुए इसका पानी मोतियों की तरह नजर आता है. कहते हैं कि उंचाई से गिरने के कारण इसका पानी दूर-दूर तक पहुंचता है. परंतु अगर कोई पापी इसके नीचे खड़ा हो जाए तो झरने का पानी उस पापी के शरीर से स्पर्श तक नहीं करता. बद्रीनाथ धाम जाने वाले श्रद्धालु इस झरने का दर्शन जरूर करते हैं. इसे बहुत पवित्र झरना कहा जाता है.
झरने के पानी में है औषधीय तत्व
मान्यता है कि इस झरने के पानी में कई तरह के औषधीय गुण मौजूद हैं. दरअसल इस झरने का पानी कई कई जड़ी-बूटियों वाले पौधों को स्पर्श करते हुए गिरता है. मान्यता यह भी है कि इस झरने का पानी जिस व्यक्ति के शरीर पर गिरता है, उसके रोग दूर हो जाते हैं. - हिमालय की गोद में बसा कश्मीर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है। यहाँ पर हर समय पर्यटकों का ताँता लगा रहता रहता है। हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग यहाँ घूमने आते हैं। कश्मीर में कई पर्यटन स्थल हैं जिनकी सुंदरता देखते ही बनती है। कश्मीर अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ अपने प्राचीन इतिहास और संस्कृति के लिए भी जाना है। कश्मीर भारत के सबसे प्राचीन राज्यों में से एक है। पौराणिक कथाओं में कश्मीर के इतिहास का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि इसका इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल से पहले कश्मीर के हिस्से भारत के 16 महाजनपदों में से तीन - गांधार, कंबोज और कुरु महाजनपद के अंतर्गत आते थे।पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में प्रियव्रत के पुत्र प्रथम मनु ने इस भारतवर्ष को बसाया था। उस समय इसका नाम कुछ और था। उनके शासन काल के दौरान कश्मीर एक जनपद था। माना जाता है कि पहले यहाँ पर इंद्र का राज हुआ करता था। कुछ कथाओं के अनुसार इस क्षेत्र पर जम्बूद्वीप के राजा अग्निघ्र राज करते थे। हालांकि, सतयुग में यहाँ कश्यप ऋषि का राज हो गया।पौराणिक कथाओं के मुताबिक कश्मीर का प्राचीन नाम कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) था और यह नाम कश्यप ऋषि के नाम पर ही है। शोधकर्ताओं का मानना है कि कश्यप सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का शासन हुआ करता था। कश्यप ऋषि का इतिहास कई हज़ार वर्ष पुराना है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही राजा दक्ष का भी साम्राज्य था।ऐसा माना जाता है कि ऋषि कश्यप कश्मीर के पहले राजा थे। कश्यप ऋषि की एक पत्नी कद्रू ने अपने गर्भ से कई नागों को जन्म दिया था। जिनमें से प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं नागों से नागवंश की स्थापना हुई। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी थी। आज भी कश्मीर में कई स्थानों के नाम इन्हीं नागों के नाम पर हैं।राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण की कथा में भी कश्मीर का उल्लेख है। राजतरंगिणी 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर 1129 ईसवी के राजा विजय सिम्हा तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं का प्रमाणिक दस्तावेज है। इस कथा के अनुसार पहले कश्?मीर की घाटी एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। बाद में कश्यप ऋषि यहाँ आए और झील से पानी निकालकर उसे एक प्राकृतिक स्?थल में बदल दिया।आज भी कश्मीर में स्थानों के नाम नागवंश के कुछ प्रमुख नागों के नाम पर हैं। इनमें से अनंतनाग, कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि नागों के नाम पर कश्मीर में स्थानों का नाम है। इसी तरह कश्मीर के बारामूला का प्राचीन नाम वराह मूल था। प्राचीनकाल में यह स्थान वराह अवतार की उपासना का केंद्र था। वराहमूल का अर्थ होता है - सूअर की दाढ़ या दांत। पौराणिक कथाओं के अनुसार वराह भगवान ने अपने दांत से ही धरती उठा ली थी।इसी तरह कश्मीर के बडग़ाम, पुलवामा, कुपवाड़ा, शोपियां, गंदरबल, बांडीपुरा, श्रीनगर और कुलगाम जिले का भी अपना अगल प्राचीन और पौराणिक इतिहास रहा है। यह इतिहास कश्मीरी पंडितों से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि कश्मीरी पंडित ही कश्मीर के मूल निवासी हैं और उनकी संस्कृति लगभग 6000 साल से भी ज्यादा पुरानी है। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर को प्राचीन काल में प्रवर पुर नाम से जाना जाता था। श्रीनगर के एक ओर हरि पर्वत और दूसरी और शंकराचार्य पर्वत है। प्राचीन कथाओं के अनुसार शंकराचार्य ने शंकराचार्य पर्वत पर एक भव्य शिवलिंग, मंदिर और नीचे मठ की स्थापना की थी।यह भी माना जाता है कि कश्मीर को कभी 'सती 'या 'सतीसर' भी कहा जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवती सती यहां सरोवर में नौका विहार कर रही थीं। इसी बीच यहाँ पर कश्यप ऋषि जलोद्भव नामक राक्षस को मारना चाहते थे। राक्षस को मारने के लिए कश्यप ऋषि तपस्या करने लगे। देवताओँ के आग्रह पर भगवती सती ने सारिका पक्षी का रूप धारण किया और अपनी चोंच में पत्थर रखकर राक्षस को मार दिया। वह राक्षस मर कर पत्थर हो गया। इसी को आज हरि पर्वत के नाम से जाना जाता है।
- बीते दशकों में विज्ञान ने अभूतपूर्व सफलता हासिल कर ली है। कभी असंभव लगने वाली चीजें भी अब आसान लगती हैं। पहले भाप से ट्रेन चलती थी जिसके बाद डीजल से दौड़ने लगी। अब बिजली से चलने वाली ट्रेन दौड़ती है। इसके अलावा ट्रेन सोलर एनर्जी से भी चल रही हैं, लेकिन अब कुछ सालों में गाड़ियां भी बिना ईंधन के चलने लगेंगी। अब इस बीच एक ट्रेन आने वाली है जो बिना ईंधन के रफ्तार भरेगी। इस ट्रेन को चलने के लिए ईंधन की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि ये ट्रेन बिना डीजल और कोयला के चलेगी। यह सुनकर आपको शायद यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन यह पूरी तरह सच है। यह विशेष ट्रेन गुरुत्वाकर्षण के दम पर चलेगी। ऑस्ट्रेलिया की एक खनन कंपनी इस गुरुत्वाकर्षण से चलने वाली ट्रेन का निर्माण कर रही है। आइए जानते हैं कि आखिर गुरुत्वाकर्षण से यह ट्रेन कैसे चलेगी और इसकी क्या खासियत है?गुरुत्वाकर्षण से दौड़ने वाली इस ट्रेन को इनफिनिटी ट्रेन (Infinity Train) कहा जा रहा है। इस ट्रेन के चलने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि प्रदूषण कम होगा। इसके अलावा ट्रेन की रीफ्यूलिंग की कोई जरूरत नहीं होगी।इस ट्रेन से एमिशन शून्य हो जाएगा। इसके साथ ही कम समय और लागत में लौह अयस्क को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जा सकता है। ट्रेन का निर्माण करने वाली कंपनी फोर्टेस्क्यू ने विलियम्स एडवांस्ड इंजीनियरिंग को खरीदा है और काम की शुरुआत की है। यह ट्रेन एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते समय अपने आप चार्ज हो जाएगी और इसकी ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होगी।इस ट्रेन में 244 बोगी होगी जिसमें 34,404 टन लौह अयस्क रखा जाएगा। इसकी वजह से ट्रेन भारी हो जाएगी और खाली होने के बाद जब चलेगी, तो ग्रैविटेशनल फोर्स से चार्ज होगी। फोर्टेस्क्यू की सीईओ एलिजाबेथ गेन्स ने इस ट्रेन को दुनिया की सबसे बेहतरीन ट्रेन बताया है।-file photo
- जहां एक तरफ कई देशों ने तरक्की कर ली है और लोग अपना जीवन बड़े शानदार अंदाज में बिता रहे हैं, तो वहीं दुनिया में कुछ ऐसे देश भी हैं, जहां लोग दिनभर खून पसीना बहा कर भी अपनी मूल सुविधाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि अफ्रीका में एक ऐसा देश भी है, जहां के लोग पिछले 40 सालों से पत्थर तोड़ने का काम कर रह रहे हैं। दरअसल, पश्चिमी अफ्रीकी देश बुरकीना फासो की राजधानी उआगेडूगू में ग्रेनाइट की खदान है जिसमें लोग पिछले 40 सालों से पसीना बहाते हुए नजर आते हैं। उनके पास कमाई के लिए केवल यही विकल्प है जिसके चलते खदान में पसीना बहाना उनकी मजबूरी है। आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं, तो आइए जानते हैं कि इसकी शुरुआत कैसे हुई।आपको जानकर हैरानी होगी कि ये सिलसिला 40 साल पहले शुरू हुआ था। दरअसल, 40 साल पहले सेंट्रल उआगेडूगू में पिसी जिले के बीचों-बीच एक बहुत बड़ा गड्ढा खोदा गया था। ये गड्ढा ग्रेनाइट की खदान का है। उस समय गरीबी से जूझ रहे क्षेत्र के लोगों के लिए ये खदान ही रोजी-रोटी का जरिया बनी थी, जो आज भी है।बीते 40 सालों से लोग इस खदान में ही खुदाई का काम करते नजर आ रहे हैं जिससे उनका पेट भरता है। वहीं हैरान करने वाली बात ये है कि इस खदान का कोई मालिक नहीं है। सभी लोग यहां खुदाई करके और ग्रेनाइट बेचकर पैसे कमाते हैं।एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यहां बच्चे, औरतें व आदमी रोजाना 10 मीटर गड्ढे में उतर कर ग्रेनाइट लेकर ऊपर आते हैं। सिर पर भारी बोझ लेकर इन्हें खदान की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। इस दौरान कई बार ये लोग फिसलकर नीचे भी गिर जाते हैं।इन लोगों द्वारा तोड़ा गया ग्रेनाइट सीधे बिक जाता है और इसका इस्तेमाल इमारतों को बनाने में किया जाता है। वहीं दुर्भाग्य ये है कि दिनभर की मेहनत के बाद भी यहां के लोगों की ज्यादा कमाई नहीं होती जिससे वे अपनी सभी मुलभूत सुविधाओं को पूरा सकें।इस खदान में काम करने वाली एक महिला के मुताबिक, सुबह से रात तक काम करने पर उसे करीब 130 रुपये ही मिलते हैं। इतने में घर चलाने से लेकर बच्चों की फीस भरना तक मुश्किल होता है। परेशानी वाली बात ये भी है कि इस खदान में टायर, कबाड़ और धातुओं को जलाया जाता है जिससे निकलने वाला धुआं इनकी सेहत पर बुरा प्रभाव डाल रहा है।
- वाशिंगटन। अमेरिकी अधिकारी पिछले कुछ हफ्तों से कई बार आगाह कर चुके हैं कि रूस ऐसी योजना बना रहा है कि उसकी सेना पर हमला होता दिखे और वह इसकी तस्वीरें दुनिया को दिखा सके। अमेरिकी अधिकारियों का आरोप है कि इस तरह का ''फॉल्स फ्लैग'' अभियान रूस को यूक्रेन पर हमला करने का बहाना प्रदान करेगा।''फॉल्स फ्लैग'' एक ऐसी सैन्य कार्रवाई होती है जहां पर एक देश छिपकर, जानबूझकर स्वयं की संपत्ति, इंसानी जान को नुकसान पहुंचाता है जबकि दुनिया के सामने वह यह बताता है कि उसके दुश्मन देश ने ऐसा किया है। इसकी आड़ में ऐसा करने वाला देश अपने शत्रु देश पर हमला कर देता है। इस योजना का भंडाफोड़ करते हुए बाइडन प्रशासन क्रेमलिन को युद्ध को जायज ठहराने वाले इस तरह का आधार बनाने से रोकना चाहता है। लेकिन इस तरह के ''फॉल्स फ्लैग'' हमले अब नहीं हो सकते, क्योंकि उपग्रह से ली गई तस्वीरें और मैदान के सजीव वीडियो व्यापक रूप से और तुरंत इंटरनेट पर साझा किए जाते हैं। ऐसे में आज फॉल्स फ्लैग हमले की जिम्मेदारी से बचना एक मश्किल काम है।''फॉल्स फ्लैग'' हमला और इसमें शामिल आरोपी देशों का एक लंबा इतिहास रहा है। इस शब्द की उत्पत्ति समुद्री लुटेरों के लिए हुई जो मैत्रीपूर्ण (और झूठे) झंडों को लगाकर व्यापारी जहाजों को पर्याप्त रूप से नजदीक आने के लिए आकर्षित करते थे ताकि उन पर हमला किया जा सके। बीसवीं शताब्दी में ''फॉल्स फ्लैग'' से जुड़े कई मामले हैं। वर्ष 1939 में नाजी जर्मनी के एजेंटों ने पोलैंड की सीमा के निकट एक जर्मन रेडियो स्टेशन से जर्मन-विरोधी संदेश प्रसारित किए। उन्होंने कई नागरिकों की भी हत्या कर दी, जिन्हें उन्होंने पोलैंड पर जर्मनी के नियोजित आक्रमण का बहाना बनाने के लिए पोलिश सैन्य वर्दी पहनाई थी। उसी वर्ष सोवियत संघ ने फिनलैंड की सीमा के पास से सोवियत क्षेत्र में गोले दागे और फिनलैंड को दोषी ठहराया। अमेरिका को भी इसी तरह की साजिशों में फंसाया गया है। 'ऑपरेशन नॉर्थवुड्स' का प्रस्ताव अमेरिकियों को मारने और कास्त्रो पर हमला करने का आरोप लगाने के लिए था, ताकि सेना को क्यूबा पर आक्रमण करने का बहाना मिल जाए। हालांकि कैनेडी प्रशासन ने अंतत: योजना को खारिज कर दिया। वर्ष 1898 में जहाज 'यूएसएस मेन' का डूबना और 1964 में टोंकिन की खाड़ी की घटना - जिनमें से प्रत्येक को युद्ध को जायज ठहराने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया था - को संभावित 'फॉल्स फ्लैग' हमलों में शामिल किया जाता है, लेकिन इन आरोपों का समर्थन करने वाले सबूत कमजोर हैं।हाल में आरोप लगाया गया था कि बुश प्रशासन ने नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों को सही ठहराने और इराक पर हमला करने की नींव रखने के लिए ट्विन टावरों को नष्ट करने की योजना बनाई थी। अगर लोग मानते हैं कि फॉल्स फ्लैग हमले होते हैं, तो इसका कारण यह नहीं कि ऐसा होना आम बात है। बल्कि लोग समझते हैं कि राजनेता भ्रष्ट होते हैं और संकटों का लाभ उठाते हैं। उदाहरण के लिए बुश प्रशासन ने 9/11 के हमलों का इस्तेमाल इराक पर अपने आक्रमण के लिए समर्थन जुटाने में किया था। विश्वसनीयता की चुनौतीयह मानने की इच्छा कि नेता इस तरह के अत्याचार करने में सक्षम हैं, दुनियाभर में सरकारों के प्रति बढ़ते अविश्वास को दर्शाता है। संयोगवश यह 'फॉल्स फ्लैग'' हमलों को अंजाम देने का इरादा रखने वाले नेताओं के लिए मामलों को जटिल बनाता है। इसके अलावा स्वतंत्र जांचकर्ता के कारण सरकारों के लिए कानूनों और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के गंभीर उल्लंघन से बचना मुश्किल हो जाता है।रूस के पास आक्रमण के लिए अन्य विकल्प हैं। वर्ष 2014 में क्रीमिया में अपनी घुसपैठ की शुरुआत में क्रेमलिन ने यूक्रेन के प्रतिरोध को रोकने और घरेलू सहमति हासिल करने के लिए जिस उपाय का इस्तेमाल किया उसमें दुष्प्रचार और धोखा शामिल था। इसके विपरीत फॉल्स फ्लैग अभियान जटिल है और शायद अधिक नाटकीय है, जो अवांछित जांच को आमंत्रित करता है। फॉल्स फ्लैग हमले जोखिम भरे होते हैं, जबकि जायज आधार बनाने के इच्छुक नेताओं के पास सूक्ष्म और कम खर्चीले वाले विकल्पों की भरमार है जिसमें से वह किसी का भी चयन कर सकते हैं।
- -शिक्षण परिसरों को सुरक्षित खोलने, कोरोना का प्रसार रोकने में मदद करेगानयी दिल्ली। जोधपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के शोधकर्ताओं ने शैक्षणिक संस्थानों के लिए 'कैम्पस रक्षक' नामक प्रारूप तैयार किया है, जिसके तहत कोविड-19 के संभावित प्रसार को रोकने तथा शैक्षणिक परिसरों को समुचित तौर पर फिर से खोलने के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस प्रारूप में कई एप्लीकेशन्स और टूल्स समाहित होंगे। ाआईआईटी जोधपुर ने इस पहल के माध्यम से परिसरों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी खडग़पुर, आईआईआईटी हैदराबाद, आईआईटी बम्बई, एल्गोरिथम बायोलॉजिक्स प्राइवेट लिमिटेड, हीथबैज प्राइवेट लिमिटेड और पृथ्वी.एआई के साथ सहयोग किया है। यद्यपि कैंपस रक्षक के दो प्रोटोटाइप का आईआईटी जोधपुर और आईआईआईटी हैदराबाद में एक साथ परीक्षण किया गया है, लेकिन टीम देश भर के शैक्षणिक परिसरों तक पहुंचने के लिए किफायती और लचीले मूल्य निर्धारण मॉडल, उत्पाद, विपणन और बिक्री से संबंधित रणनीति तैयार करने के लिए बातचीत कर रही है। कैंपस रक्षक के चार घटक हैं- टेपेस्ट्री पूलिंग, गो कोरोना गो ऐप, सिमुलेटर और हेल्थबैज। ये एक एकल मंच बनाते हैं, जो कोविड-19 के खिलाफ शैक्षणिक परिसरों के लिए निगरानी, पूर्वानुमान और राहत रणनीतियों की सिफारिश करते हैं। आईहब दृष्टि के मुख्य तकनीकी अधिकारी मानस बैरागी ने कहा, ''टेपेस्ट्री पूलिंग विधि कई पूल को अलग-अलग नमूने देती है, जिससे स्क्रीनिंग की लागत एक-चौथाई हो जाती है। प्रत्येक पूल के परिणामों के आधार पर एल्गोरिदम कोविड-19 के पॉजिटिव नमूनों का पूर्वानुमान बताता है।''आईआईटी, जोधपुर में आईहब दृष्टि एक टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब है जो कंप्यूटर विजऩ, ऑगमेंटेड रियलिटी और वर्चुअल रियलिटी पर केंद्रित है। बैरागी ने कहा, '' 'गो कोरोना गो ऐप' आरोग्य सेतु के समान एक मोबाइल ऐप है, लेकिन कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने को लेकर सही निर्णय लेने के लिए प्रशासन को डेटा उपलब्ध कराता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य संपर्क की पहचान करना है। उपयोगकर्ता इससे फोन के ब्लूटूथ के माध्यम से कैंपस सर्वर से जुड़े रहेंगे।'' बैरागी ने कहा, ''भविष्य में परिसर सस्ती कीमत पर स्क्रीनिंग और पूलिंग रणनीतियों में स्वदेशी नवाचारों के साथ 'कैपस रक्षक' पर भरोसा करने में सक्षम होंगे। इस तकनीक का उपयोग करके, भविष्य की महामारियों को नियंत्रित किया जा सकता है और देश और दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों का मूल्यांकन किया जा सकता है।
- अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अब तक की सबसे सटीक घड़ी बनाई है। यह घड़ी मिलीमीटर के हिसाब से टाइम का फर्क बता सकती है और आइंस्टाइन का सिद्धांत एक बार फिर सबसे सटीकता से साबित हुआ।आइंस्टाइन का सापेक्षता सिद्धांत कहता है कि पृथ्वी जैसी विशाल वस्तु सीधे नहीं बल्कि घुमावदार रास्ते पर चलती है जिससे समय की गति भी बदलती है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति पहाड़ी की चोटी पर रहता है तो उसके लिए समय, समुद्र की गहराई पर रहने वाले व्यक्ति की तुलना में तेज चलता है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को अब तक के सबसे कम स्केल पर मापा है, और सही पाया है। उन्होंने अपने प्रयोग में पाया कि अलग-अलग जगहों पर ऊंचाई के साथ घडिय़ों की टिक-टिक मिलीमीटर के भी अंश के बराबर बदल जाती है।बीजिंग में अंग्रेजी ना जानने वाले दुकानदारों को विदेशी ग्राहकों से बात करने में कोई दिक्कत नहीं होती। यह फोन जैसी डिवाइस उनके काम आती है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडड्र्स एंड टेक्नोलॉजी और बोल्डर स्थित कॉलराडो यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले जुन ये कहते हैं कि उन्होंने जिस घड़ी पर यह प्रयोग किया है, वह अब तक की सबसे सटीक घड़ी है। जुन ये कहते हैं कि यह नई घड़ी क्वॉन्टम मकैनिक्स के लिए कई नई खोजों के रास्ते खोल सकती है। जुन ये और उनके साथियों का शोध प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर में छपा है। इस शोध में उन्होंने बताया है कि कैसे उन्होंने इस वक्त उपलब्ध एटोमिक क्लॉक से 50 गुना ज्यादा सटीक घड़ी बनाने में कामयाबी हासिल की। एटोमिक घडिय़ों की खोज के बाद ही 1915 में दिया गया आइंस्टाइन का सिद्धांत साबित हो पाया था। शुरुआती प्रयोग 1976 में हुआ था जब ग्रैविटी को मापने के जरिए सिद्धांत को साबित करने की कोशिश की गई।इसके लिए एक वायुयान को पृथ्वी के तल से 10 हजार किलोमीटर ऊंचाई पर उड़ाया गया और यह साबित किया गया कि विमान में मौजूद घड़ी पृथ्वी पर मौजूद घड़ी से तेज चल रही थी। दोनों घडिय़ों के बीच जो अंतर था, वह 73 वर्ष में एक सेकंड का हो जाता। इस प्रयोग के बाद घडिय़ां सटीकता के मामले में एक दूसरे से बेहतर होती चली गईं और वे सापेक्षता के सिद्धांत को और ज्यादा बारीकी से पकडऩे के भी काबिल बनीं। 2010 में वैज्ञानिकों ने सिर्फ 33 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर रखी घड़ी को तल पर रखी घड़ी से तेज चलते पाया।दरअसल, सटीकता का मसला इसलिए पैदा होता है क्योंकि अणु गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होते हैं, तो, सबसे बड़ी चुनौती होती है कि उन्हें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से मुक्त किया जाए ताकि वे अपनी गति ना छोड़ें। इसके लिए शोधकर्ताओं ने अणुओं को बांधने के लिए प्रकाश के जाल प्रयोग किए, जिन्हें ऑप्टिकल लेटिस कहते हैं। जुन ये की बनाई नई घड़ी में पीली धातु स्ट्रोन्टियम के एक लाख अणु एक के ऊपर एक करके परतों में रखे जाते हैं। इनकी कुल ऊंचाई लगभग एक मिलीमीटर होती है। यह घड़ी इतनी सटीक है कि जब वैज्ञानिकों ने अणुओं के इस ढेर को दो हिस्सों में बांटा तब भी वे दोनों के बीच समय का अंतर देख सकते थे।सटीकता के इस स्तर पर घडिय़ों सेंसर की तरह काम करती हैं। जुन ये बताते हैं, "स्पेस और टाइम आपस में जुड़े हुए हैं और जब समय को इतनी सटीकता से मापा जा सके, तो आप समय को वास्तविकता में बदलते हुए देख सकते हैं। "
- क्या आपने कभी सोचा है कि बेहोशी के पीछे की वजहें क्या हो सकती हैं? हम अपने आस पास अक्सर ऐसा देखते हैं कि कोई इंसान जो पूरी तरह से फिट और सेहतमंद दिख रहा है लेकिन अचानक बिना किसी कारण वो अपने बेहोश होने लगता है.अचानक बेहोशी के 4 बड़े कारणबेहोशी जो ब्रेन में ऑक्सीजन की कमी की वजह से होता है हालांकि बेहोशी के कारण पूरी तरह नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं जो इसके लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. हमें इनको जानना बेहद जरूरी है ताकी भविष्य में होने वाली परेशानियों से बचा जा सके.1. लो ब्लडप्रेशरबेहोशी का मेन कारण लो ब्लडप्रेशर बताया जाता है. ये खास तौर से उन लोगों को ज्यादा होता है जो 65 से ज्यादा एज ग्रुप के होते हैं.2. डिहाइड्रेशनजब आपके शरीर में डिहाइड्रेशन हो जाता है, आपके खून में तरल पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है और ब्लड प्रेशर में कमी होने के कारण बेहोशी का खतरा बढ़ जाता है.3. डायबिटीजअगर आप एक डायबिटीज के मरीज हैं तो आपके बेहोश होने के चांसेज ज्यादा हैं क्योंकि डायबेटिक होने पर आपको यूरिन ज्यादा आएगा जिससे आपको डिहाइड्रेशन होने का खतरा ज्यादा बना रहता है.4. दिल की बीमारीदिल की बीमारी भी बेहोश होने की एक अहम वजह मानी जाती है, क्योंकि ऐसा होने पर आपके दिमाग को होने वाली खून की सप्लाई पर असर पड़ता है. बेहोशी के इस प्रकार के लिए मेडिकल टर्मेनोलॉजी में कार्डियक सिंनकॉप कहा जाता है.
- अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने की कोशिश में वैज्ञानिक लगे हुए हैं। वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष के कुछ रहस्यों से पर्दा उठा दिया है, तो अभी भी कई रहस्यों के बारे में जानना बाकी है। अब इस बीच वैज्ञानिकों ने एक गैलेक्सी की खोज की है जो अब तक की सबसे बड़ी गैलेक्सी है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह मॉन्स्टर गैलेक्सी है। हमारी आकाशगंगा से इस गैलेक्सी की चौड़ाई 100 गुना अधिक है। यह गैलेक्सी हमारे सौर मंडल से 300 करोड़ प्रकाशवर्ष की दूरी पर है।अल्सियोनियस नाम की यह आकाशगंगा एक विशालकाय रेडियो गैलेक्सी है। 1.63 करोड़ प्रकाश वर्ष लंबी गैलेक्सी अंतरिक्ष में पांच मेगापारसेक्स में फैली हुई है। इसकी खोज करने के बाद वैज्ञानिकों का कहना है उन्हें लगता है कि वह अंतरिक्ष के बारे में बहुत कम जानते हैं, क्योंकि अतंरिक्ष रहस्यों से भरा हुआ है। वैज्ञानिक इसकी खोज रहे हैं कि आखिर अल्सियोनियस इतना बड़ा क्यों है?अंतरिक्ष में मिली इस बड़ी गैलेक्सी के अंदर कई बड़े ब्लैक होल्स पाए गए हैं। तेजी से चल रहे आवेषित कण रेडियो तरंगों को इंटरगैलेक्टिक मीडियम बनाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे हैं। अल्सियोनियस से निकलने वाले जेट स्ट्रीम को जायंट रेडियो गैलेक्सी कहा जाता है जो बहुत बड़े हैं। इस वजह की जानकारी नहीं है कि यह इतने बड़े क्यों हैं? लीडेन यूनिवर्सिटी में पीएचडी शोधार्थी मार्टिन ओई और उनके साथियों ने इस गैलेक्सी की खोज की है। वह इसकी संरचना के बारे में जानने की अभी कोशिश कर रहे हैं।जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में अल्सियोनियस के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। हालांकि, अभी तक इसकी समीक्षा नहीं की गई है। मार्टिन का कहना है कि किसी छोटी गैलेक्सी की वजह से इसका निर्माण हुआ होगा जो अभी भी इसके भीतर मौजूद होगी जिसकी वजह से इसका आकार बढ़ रहा है। हम उस छोटी गैलेक्सी को खोजने में लगे हुए हैं।एक ग्रीक शब्द है अल्सियोनियस जिसका मतलब होता है विशालकाय पुठ्ठा। हरक्यूलिस का अल्सियोनियस सबसे बड़ा दुश्मन था। इस खोजी गई आकाशगंगा में हमारे सूरज से अरबों गुना अधिक वजन वाले बहुत सारे तारे हैं। अल्सियोनियस के भीतर मौजूद दबाव क्षेत्र इसको दूसरों से अलग बनाता है।
- नेपाल दुनिया के खूबसूरत देशों में से एक है.ये भारतीयों के बीच भी घूमने के लिए काफी पसंद किया जाता है. इस देश को पर्यटकों के बीच ‘दुनिया की छत’ के रूप में भी जाना जाता है. खूबसूरती से भरा नेपाल एक हिमालयी देश है, जहां हर कोई घूमना पसंद करता है. अगर आप भी भारत के पड़ोसी इस देश में घूमने का प्लान कर रहे हैं तो फिर यहां के पर्यटन स्थल के बारे में जानिए-काठमांडू घाटी में स्थित भक्तपुर नेपाल में घूमने वालों को अपनी तरफ खींचने का काम करता है. आपको बता दें कि भक्तपुर को भक्तों का शहर भी कहा जाता है. यह शहर भीड़भाड़ से दूर शांति और सुकून को देने वाला है. इस शहर में 15 वीं शताब्दी की संरचना दरबार स्क्वायर या 55-विंडो पैले यहां का आकर्षण है. अगर आप नेपाल जाएं तो यहां का रुख जरूर करिए.पशुपतिनाथ मंदिर भले नेपाल में बसा हो लेकर भारतीयों के बीच ये काफी फेमस है. ये मंदिर काठमांडू शहर से 3 किलोमीटर दूर पूर्व में सुंदर और पवित्र बागमती नदी के किनारे पर बसा हुआ है. खूबसूरत नजारों से घिरा ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. आपको बता दें कि साल 1979 में पशुपतिनाथ मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था.नगरकोट नेपाल में घूमने वाली जगह में से एक है. अगर आप हिमालय के पर्वतों को उनकी खूबसूरती को देखना चाहते हैं तो नागरकोट का रूख जरूर करिए. नागरकोट, नेपाल की सबसे ज्यादा घूमी जाने वाली जगहों में से एक हैं. कहते हैं यहां से हिमालय के 13 में से 8 हिमालय पर्वतमाला को देख सकते हैं.पोखरा नेपाल की खूबसूरती को खास रूप से पेश करता है. ये एक बहुत ही बेहतरीन प्लेस है.हिमालय पर्वत की तलहटी में फैला पोखरा हर किसी के घूमने के लिए बहुत की खास है. इस जगह को घूमना हर कोई खास रूप से पसंद करता है. आप नेपाल जाएं तो यहां जरूर जाएं.काठमांडू नेपाल की सांस्कृतिक राजधानी है, जो घूमने का बेस्ट ऑप्शन कहा जाता है. नेपाल घूमना खुद में काफी खास है. यहां घूमने आने वाले यात्रियों को आनंदमय वातावरण मंत्रमुग्ध कर देता है. ये कई खूबसूरत नजारों से भरा है. काठमांडू, अपने मठों, मंदिरों और आध्यात्मिकता के साथ एक शांति वाली जगह है.
- सांपों की दुनिया लोगों के लिए डरावनी ही नहीं, बल्कि रहस्मयी भी रही है. सांपों को लेकर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. सांपों के बारे में कई ऐसी बातें फेमस हैं, जो सिर्फ फिल्मी ही हैं, लेकिन लोग उसे सच मान लेते हैं. आइए आपको सांपों से जुड़े एक ऐसे तथ्यों के बारे में समझते हैं जिन्हें लेकर आम धारणा थोड़ी अलग है.नाचते नहीं हैं सांपआपको बता दें कि सांप पूरी तरह बहरा होता है. आपने देखा भी होगा कि सांप (Snake) के शरीर पर कहीं कान नहीं होते हैं. दरअसल सांप कभी सपेरे की बीन की धुन पर नाचता नहीं है. बल्कि वह सपेरे द्वारा बीन की आवाज से अपने शरीर को हिलाता है, जो कि देखने में ऐसा लगता है कि वह नाच रहा है, लेकिन ऐसा नहीं होता है. वह सांप के शरीर की सामान्य हरकत है.फन फैलाना सांप की सामान्य हरकतआपने अक्सर देखा होगा कि सपेरे की बीन के ऊपर बहुत सारे कांच के टुकड़े लगे हुए होते हैं, उन्हें लगाए जाने का एक कारण होता है, क्योंकि जब उन टुकड़ों के ऊपर धूप या रोशनी पड़ती है तो उनसे चमक निकलती है, जिससे कि सांप हरकत में आ जाता है.बीन की धुन नहीं सुन पाते सांपइसी कारण जब सपेरा बीन को बजा कर हिलाते हुए आवाज निकाल रहा होता है, तो इस प्रकाश की चमक के कारण सांप का ध्यान उस ओर आकर्षित होता है और सांप उसकी चाल का अनुसरण करता है और हमें यह भ्रम होता है कि सांप नाच रहा है. उन्हें धरती होने वाली तरंगे खतरे की तरह लगती हैं. इन्हीं तरंगों से बचने के लिए वह फन फैला लेते हैं.त्वचा से लेते हैं हालात का जायजादरअसल सांप कानों के स्थान पर अपनी त्वचा का इस्तेमाल करता है, वह अपने आसपास के वातावरण में हो रही किसी भी गतिविधि का जायजा अपनी त्वचा पर पड़ रही तरंगों के माध्यम से लेता है.
- वाशिंगटन। कोविड-19 या किसी फ्लू से बचने के लिए टीकाकरण कराने के बाद 90 मिनट तक हल्की या मध्यम स्तर की कसरत करके शरीर में एंटीबॉडी की मात्रा बढ़ाई जा सकती हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष ‘ब्रेन, बिहेवियर एंड इम्युनिटी' पत्रिका में प्रकाशित किए गए है।अध्ययन में शामिल जिन लोगों ने टीकाकरण कराने के बाद डेढ़ घंटे तक साइकिल चलाई या सैर की, उनमें आगामी चार सप्ताह में उन लोगों की तुलना में अधिक एंटीबॉडी बनीं, जिन्होंने टीकाकरण के बाद किसी प्रकार का व्यायाम नहीं किया था। अमेरिका स्थित ‘आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी' के अनुसंधानकर्ताओं ने भी चूहों और ट्रेडमिल का इस्तेमाल करके इसी प्रकार का प्रयोग किया, जिसका निष्कर्ष भी समान निकला। आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मरियन कोहुट ने कहा कि इस बात के कई कारण हो सकते हैं कि लंबे समय तक हल्की या मध्यम स्तर की कसरत करने से शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता में सुधार क्यों होता है। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, व्यायाम करने से रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं के संचार में मदद करता है और जब ये कोशिकाएं शरीर में प्रवाहित होती हैं, तो किसी बाहरी तत्व को बेहतर तरीके से उनके द्वारा पहचान लेने की संभावना अधिक होती है। कोहुट ने कहा, ‘‘लेकिन इसका कारण जानने के लिए और अनुसंधान की आवश्यकता है। जब हम कसरत करते हैं, तो शरीर में चयापचय, जैव रासायनिक, न्यूरोएंडोक्राइन और (रक्त एवं कोशिका के) संचार स्तर पर कई बदलाव होते हैं।'' उन्होंने कहा कि संभवत: इन कारकों के संयोजन के कारण एंडीबॉडी की मात्रा बढ़ती है।
- जनरल ऑफ स्लीप रिसर्च में एक स्टडी छपी है, जो कह रही है कि यदि सोने से पहले आप काफी देर तक टीवी देखते हैं, मोबाइल स्क्रीन देखते हैं, लैपटॉप, आईपैड या किसी भी अन्य प्रकार के डिजिटल स्क्रीन के सामने वक्त बिताते हैं तो आपकी नींद की क्वालिटी अच्छी नहीं होगी.हालांकि डिजिटल गैजेट्स आपकी नींद और स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं, यह बताने वाली यह पहली स्टडी नहीं है. इस तरह के और भी लंबे सैंपल साइज वाले और ज्यादा गंभीरता से डिजिटल कंजम्पशन के सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल करते और बहुत से अध्ययन पहले हो चुके हैं. ये स्टडी हमें वही बात बता रही है, जो शायद हम अपने अनुभव से भी पहले से जानते हैं.इस स्टडी में शामिल लोगों को एक तरह के सेल्फ इक्जामिनेशन की प्रक्रिया में डालनेकी कोशिश की गई. प्रत्येक व्यक्ति को एक स्लीप जनरल मेंटेन करना था और सोने से पहले उसने कितना वक्त किस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर और क्या देखते हुए बिताया, इस बात की पूरी डीटेल नोट करनी थी.शोधकर्ताओं ने उनके नींद के पैटर्न, नींद की अवधि आदि को वैज्ञानिक यंत्रों के जरिए मापने की कोशिश की. उन्होंने पाया कि जिस भी रात सोने से पहले उन्होंने ज्यादा वक्त डिजिटल स्क्रीन के सामने बिताया था, उस रात नींद की क्वालिटी, हार्ट रेट डिस्टर्ब रहीं. इसके ठीक उलट डिजिटल स्क्रीन पर वक्त न बिताने वाले लोगों की नींद की क्वालिटी ज्यादा बेहतर पाई गई.शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कोई ऐसा अध्ययन नहीं है, जो आपको वैज्ञानिक यंत्रों से ही मापने की जरूरत हो. आप खुद भी अपने ऊपर यह प्रयोग करके देख सकते हैं. एक हफ्ते तक सोने से पहले देर रात तक टीवी देखना, मोबाइल पर वक्त बिताना या किसी भी तरह के डिजिटल स्क्रीन के सामने बैठना बंद कर दें. उसके बजाय किताबें पढ़ें, बातें करें या कुछ भी ऐसी गतिविधि में शामिल हों, जो डिजिटल नहीं है.आप खुद अपनी नींद की क्वालिटी में फर्क पाएंगे. शोधकर्ताओं का कहना है कि डिजिटल स्क्रीन से एक खास तरह की रेज निकलती है, जो मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को उद्वेलित करने का काम करती है. मस्तिष्क शांत नहीं रहता. साथ ही हमारी आंखों पर भी उसका नकारात्मक असर पड़ता है. यही कारण है कि डिजिटल स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने के कारण हमारी नींद प्रभावित होती है क्योंकि मस्तिष्क की तंत्रिकाएं डिस्टर्ब हो जाती हैं.
- पर्थ (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया समेत दुनियाभर में कोरोना वायरस के ओमीक्रोन स्वरूप से लोगों के संक्रमित होने के साथ ही, उन लोगों के भी पुन: संक्रमित होने का खतरा है जो पहले कोविड से पीडि़त हो चुके हैं। यदि संक्रमण मुक्त होने के 30 दिन के भीतर आप पुन: संक्रमित होते हैं तो आपको दोबारा कोविड जांच करवाने या पृथक-वास में जाने की जरूरत नहीं है। कुछ देशों में आपको 90 दिन तक दोबारा जांच करवाने की जरूरत नहीं है जब तक कि आपके भीतर संक्रमण के कोई नए लक्षण नहीं हों। ऐसा क्यों होता है?शरीर में ओमीक्रोन के 'इन्क्यूबेशन' की अवधि क्या है?वायरस से संक्रमित होने और कोविड के लक्षण विकसित होने में एक से 14 दिन लगते हैं। इस समय को 'इन्क्यूबेशन' काल कहा जाता है। कुछ लोगों में संक्रमण के बाद पांचवें और छठे दिन से ही लक्षण दिखने लगते हैं। अध्ययन में सामने आया है कि ओमीक्रोन का 'मीडियन' (मध्य) इन्क्यूबेशन काल और भी कम है। अमेरिका और यूरोप में किये गए अध्ययन में पाया गया कि ओमीक्रोन का मीडियन इन्क्यूबेशन काल तीन दिन का है।ओमीक्रोन से पुन: संक्रमण में वृद्धिअनुसंधान में सामने आया है कि वायरस के पिछले स्वरूपों की तुलना में ओमीक्रोन उन लोगों को पुन: संक्रमित करने में अधिक सक्षम है जो पहले कोविड से पीडि़त हो चुके हैं। इम्पीरियल कॉलेज लंदन के एक दल ने अनुमान लगाया है कि डेल्टा की अपेक्षा ओमीक्रोन से, दोबारा संक्रमित होने का खतरा 5.4 गुना अधिक है। इसलिए जिन्हें ओमीक्रोन से पहले के स्वरूपों से कोविड हो चुका है उन्हें वायरस के डेल्टा स्वरूप की तुलना में ओमीक्रोन से पुन: संक्रमित होने का खतरा पांच गुना ज्यादा है।दोबारा जांच कराने से पहले कब तक इंतजार करना चाहिए?दुनियाभर में हुए अध्ययन से पता चला है कि एक बार संक्रमित होने के बाद 30-90 दिन तक आपको दोबारा जांच कराने की जरूरत नहीं है। वायरस से संक्रमित होकर ठीक होने के बाद ज्यादातर लोगों में कुछ प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है इसलिए उन्हें इतने कम समय में पुन: संक्रमित होने का खतरा कम होता है। इटली में संक्रमण फैलने का केंद्र रहे एक स्थान पर किये गए अध्ययन में सामने आया कि जिन लोगों को कोविड हो चुका है, उन्हें पुन: संक्रमण होने पर कम से कम चार सप्ताह बाद दोबारा जांच करानी चाहिए। अध्ययन में सामने आया कि संक्रमण की पहली बार पुष्टि होने के बाद वायरस को शरीर से निकलने में औसतन 30 दिन का समय लगता है और पहली बार लक्षण आने के लगभग 36 दिन बाद शरीर संक्रमण मुक्त होता है।
- काठमांडू। नेपाल में अनुसंधानकर्ताओं ने मंगलवार को चेतावनी दी कि माउंट एवरेस्ट पर स्थित सबसे बड़ा ग्लेशियर इस शताब्दी के मध्य तक गायब हो सकता है क्योंकि विश्व की सबसे ऊंची पर्वतीय चोटी पर स्थित दो हजार साल पुराना हिमखंड तेजी से पिघल रहा है। यहां स्थित ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट' (आईसीआईएमओडी) ने हाल में प्रकाशित एक शोधपत्र के हवाले से कहा कि एवेरेस्ट पर 1990 के दशक से लगातार बड़ी मात्रा में बर्फ पिघल रही है। आईसीआईएमओडी ने कहा कि एवरेस्ट पर किये गए सबसे व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन ‘द एवरेस्ट एक्सपेडिशन' के तहत ग्लेशियरों पर गहन अनुसंधान किया। ‘नेचर पोर्टफोलियो' में हाल में प्रकाशित एक आलेख में कहा गया कि एवरेस्ट पर बर्फ बेहद तेजी से पिघल रही है। इस अनुसंधान में आठ देशों से वैज्ञानिकों ने भाग लिया जिसमें से 17 नेपाल के हैं। अध्ययन में शामिल तीन सह लेखक आईसीआईएमओडी से सम्बद्ध हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसा अनुमान लगाया गया है कि 8,020 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साउथ कोल ग्लेशियर लगभग दो मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है। अनुसंधानकर्ताओं ने ‘रेडियो कार्बन डेटिंग' के माध्यम से पता लगाया है कि ग्लेशियर दो हजार साल पुराना है। उन्होंने अंदेशा जताया है कि सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित यह ग्लेशियर इस सदी के मध्य तक पिघल जाएगा। अनुसंधान में कहा गया है कि इसका कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है।
- मेलबर्न। व्यापक रूप से उपलब्ध और रक्त को पतला करने वाली सस्ती एवं किफायती दवा हेपरिन संभवत: कोविड-19 का उपचार कर सकती है। यह बात एक अध्ययन के शुरुआती परिणामों में कही गई है। अध्ययन में यह भी कहा गया कि यह दवा सांस के जरिए लिए जाने पर फेफड़ों की क्षति को सीमित कर सकती है और कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण को भी रोक सकती है। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) के अनुसंधानकर्ता और उनके सहकर्मी 13 देशों में अस्पतालों में सार्स-कोव-2 से संक्रमित उन मरीजों पर नज़र रख रहे हैं, जिन्हें सांस के जरिए हेपरिन की खुराक दी गई। ब्रिटिश जर्नल ऑफ क्लिनिकल फार्माकोलॉजी में प्रकाशित 98 रोगियों के प्रारंभिक परिणामों में कहा गया है कि हेपरिन एक आशाजनक उपचार हो सकता है और यह वायरस के खिलाफ एक संभावित निवारक भी हो सकती है। अध्ययन में कहा गया है कि दवा कोरोना वायरस संक्रमण का उपचार करने के साथ ही संक्रमण को रोकने में भी मददगार हो सकती है।
- भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपतिश्रीमती प्रतिभा पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। वे 2007 से 2012 तक पांच वर्ष अपने पद पर रहीं। इससे पहले वे 1985 से 1990 तक राज्यसभा सांसद और1991 से 1996 तक लोकसभा सदस्य थीं। मूल रूप से महाराष्ट्र की रहने वाली प्रतिभा पाटिल 1962 से ही कांग्रेस से जुड़ी हुई थी। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास से संबंधित कई काम किए।भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्रीभारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। लाल बहादुर शास्त्री जी के निधन के बाद 11 जनवरी 1966 को वह देश के सबसे शक्तिशाली पद पर आसीन हुईं थीं। 1975 में देश में आपातकाल लगाने का फैसला हो या भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनकी कूटनीति रही हो, लोग इनके साहसिक फैसलों की वजह से 'आयरन लेडी' भी कहते हैं।भारत की प्रथम महिला आईपीएसकिरण बेदी 1972 में भारत की पहली महिला आईपीएस बनीं। मूल रुप से पंजाब की रहने वाली किरण बेदी ने संयुक्त राष्ट्र शांति प्रबंधन विभाग में पुलिस सलाहकार के रूप में भी काम किया है। तिहाड़ जेल के प्रमुख के रूप में उन्हें कैदियों के पुनर्वास के कदमों के लिए जाना जाता है। वर्तमान में किरण बेदी पांॅडिचेरी की उप राज्यपाल हैं।भारत की प्रथम महिला डीजीपीआईपीएस कंचन चौधरी भट्टाचार्य देश की पहली महिला पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बनीं थी। 1973 बैच की भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की यूपी कैडर की अधिकारी थीं। बाद में वे उत्तराखंड चली गईं. 2004 में कंचन चौधरी भट्टाचार्य को उत्तराखंड में जब पुलिस महानिदेशक बनाया गया था। वे देश की दूसरी महिला आईपीएस भी थीं।भारत की प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्षराजनयिक से नेता बनने वाली कांग्रेस की मीरा कुमार लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। वर्ष 1980 के दशक के मध्य में राजनीति में शामिल होने वाली मीरा कुमार 2009 में लोकसभा अध्यक्ष पद पर चुनी गईं और 2014 तक आसीन रहीं। मीरा कुमार कांग्रेस के दिवंगत नेता जगजीवन राम की पुत्री हैं।भारत की प्रथम महिला मिस यूनीवर्ससुष्मिता सेन पहली ऐसी भारतीय महिला हैं, जिन्हें मिस यूनिवर्स का खिताब मिला था। सुिष्मता सेन ने 21 मई 1994 को इस खिताब को अपने नाम किया था। सुष्मिता सेन ने बॉलीवुड में काम किया है और कई हिट फिल्में उनके नाम है।माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वाली प्रथम भारतीय महिलाबछेन्द्री पाल हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली भारतीय महिला हैं। 23 मई 1984 का दिन भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया क्योंकि इसी दिन बछेंद्री पाल ने माउंट एवरेस्ट की चोटी को फतह किया था। यह उपलब्धि उन्होंने 29 साल की उम्र में अपने नाम की थी।अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली प्रथम अभिनेत्रीजानी-मानी फिल्म अभिनेत्री नरगिस दत्त हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक थीं। वे अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री थीं। वे पहली अभिनेत्री थीं, जिन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया और पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। वे एक ऐसी अदाकारा रहीं जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को नई ऊंचाईं पर पहुंचाया।भारतरत्न प्राप्त करने वाली प्रथम गायिकालता मंगेशकर पहली भारतीय गायिका हैं, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 13 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत करने वाली लता मंगेशकर ने 75 सालों तक अपनी आवाज की बदौलत लोगों की दिलों पर राज किया।. 36 भारतीय भाषाओं में गीत गाने वाली लता मंगेशकर को 2001 में भारत रत्न से नवाजा गया। इन्हें 'स्वर कोकिला' भी कहा गया।
- क्वींसलैंड। सार्स-कोव-2 के वेरिएंट ओमिक्रोन के मामले पिछले दो महीनों में वैश्विक स्तर पर बढ़े हैं और कई देशों में तो पिछले वेरिएंट की तुलना में कहीं ज्यादा मामले आए हैं। अब हम ओमिक्रोन के उप-संस्करण के मामले देख रहे हैं, जिसे बीए.2 का नाम दिया गया है और ऑस्ट्रेलिया सहित 50 से अधिक देशों में यह जोर पकड़ रहा है। इस नये उप संस्करण को ओमिक्रोन वेरिएंट बीए.1 (या बी.1.1.529) की बेटी कहने की बजाय, ओमिक्रोन की बहन कहना ज्यादा ठीक होगा।वायरस, और विशेष रूप से आरएनए वायरस जैसे सार्स-कोव-2, प्रजनन करते समय बहुत सारी गलतियां करते हैं। वे इन गलतियों को ठीक नहीं कर सकते हैं, इसलिए उनमें त्रुटियों, या उत्परिवर्तन की अपेक्षाकृत उच्च दर है, और वह लगातार विकसित हो रहे हैं। जब इन उत्परिवर्तन के परिणामस्वरूप किसी वायरस का आनुवंशिक कोड बदल जाता है, तो इसे मूल वायरस के एक वेरिएंट के रूप में संदर्भित किया जाता है। ओमिक्रोन एक बिलकुल अलग तरह का वेरिएंट है, जिसमें स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक उत्परिवर्तन समाहित होते हैं। इसने पूर्व संक्रमण और टीकाकरण दोनों से एंटीबॉडी की सुरक्षा को कम कर दिया है, और संचरण क्षमता में वृद्धि की है। स्वास्थ्य अधिकारी नए संस्करण के बारे में कब चिंता करते हैं? यदि आनुवंशिक कोड में होने वाले परिवर्तन के बारे में यह माना जाए कि वह वायरस को अधिक हानिकारक बनाने की क्षमता रखते हैं और कई देशों में इसका अधिक संचरण होता है, तो इसे ''ध्यान देने योग्य वेरिएंट'' माना जाएगा। यदि ध्यान देने योग्य यह वेरिएंट अधिक संक्रामक दिखे, टीकाकरण या पिछले संक्रमण से सुरक्षा से बचने, और/या परीक्षणों या उपचार की प्रक्रिया को प्रभावित करे, तो इसे ''चिंता का प्रकार'' का नाम दिया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 26 नवंबर को ओमिक्रोन को चिंता का एक प्रकार वर्गीकृत किया। इसकी उच्च पुनर्संक्रमण दर, बढ़ी हुई संप्रेषणीयता और कम टीका सुरक्षा के कारण ऐसा किए जाने की संभावना है। ओमिक्रोन की वंशावली क्या है?एक वंश, या उप-संस्करण, एक सामान्य पूर्वज से प्राप्त वायरस वेरिएंट का आनुवंशिक रूप से निकट से संबंधित समूह है। ओमिक्रोन संस्करण में तीन उप-वंश शामिल हैं: बी.1.1.529 या बीए.1, बीए.2 और बीए.3।डब्ल्यूएचओ ने हालांकि बीए.2 को एक अलग वर्गीकरण नहीं दिया है, यूनाइटेड किंगडम ने बीए.2 को ''जांच के तहत'' एक वेरिएंट की श्रेणी में रखा है। तो डब्ल्यूएचओ की परिभाषाओं के आधार पर अभी तक यह ध्यान देने लायक या चिंता का एक प्रकार नहीं है, लेकिन इसपर बारीकी से नजर रखी जा रही है। उप-वंशों वाला यह पहला संस्करण नहीं है। पिछले साल के अंत में, डेल्टा ''प्लस'' या एवाई.4.2 व्यापक रूप से सामने आया था, फिर ओमिक्रोन आया। बीए.2 के बारे में क्या अलग है?बीए.2 के शुरूआती उपक्रम फिलीपीन से मिले थे - और अब हमने इसके हजारों मामले देखे हैं, जो अमेरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया में देखे गए हैं, हालांकि इसकी उत्पत्ति अभी भी अज्ञात है। बीए.2 के सटीक गुणों की भी जांच की जा रही है। हालांकि अभी तक इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनता है, वैज्ञानिकों को कुछ विशेष चिंताएं हैं।1. अंतर करना कठिन हैएक मार्कर जिसने पीसीआर परीक्षणों के दौरान ओमिक्रोन (बीए.1) को अन्य सार्स-कोव-2 वेरिएंट से अलग करने में मदद की, वह है एस जीन की अनुपस्थिति, लेकिन बीए.2 के लिए ऐसा नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम पीसीआर परीक्षणों के साथ बीए.2 का निदान नहीं कर सकते। इसका सीधा सा मतलब है कि जब कोई सार्स-कोव-2 के लिए सकारात्मक परीक्षण करता है, तो हमें जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से यह जानने में थोड़ा अधिक समय लगेगा कि कौन सा संस्करण जिम्मेदार है। पिछले वेरिएंट के साथ भी ऐसा ही था। 2. यह अधिक संक्रामक हो सकता हैसबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस बात के सबूत उभर रहे हैं कि बीए.2 मूल ओमिक्रोन, बीए.1 की तुलना में अधिक संक्रामक हो सकता है। डेनमार्क से एक प्रारंभिक अध्ययन, जहां बीए.2 ने बड़े पैमाने पर बीए.1 की जगह ले ली है, यह सुझाव देता है कि बीए.1 की तुलना में बीए.2 बिना टीकाकरण वाले लोगों में संक्रमण की संवेदनशीलता को दो गुना बढ़ा देता है। अध्ययन ने बीए.2 के 2,000 से अधिक प्राथमिक मामलों की जांच की ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि सात दिनों की अनुवर्ती अवधि के दौरान कितने मामले सामने आए। शोधकर्ताओं ने बीए.1 से संक्रमित लोगों में द्वितीय हमले की दर (मूलत:, संभाव्यता संक्रमण) 29त्न होने का अनुमान लगाया है, जबकि बीए.2 से संक्रमित लोगों के लिए यह 39त्न है। यह डेनिश अध्ययन अभी भी एक प्री प्रिंट है, जिसका अर्थ है कि इसे स्वतंत्र वैज्ञानिकों द्वारा जांचा जाना बाकी है, इसलिए यह पुष्टि करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्या बीए.2 वास्तव में बीए.1 से अधिक संक्रामक है।
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दुनिया में सालों तक देखे जाने वाले एक आइलैंड को लेकर हैरान करने वाली खबर सामने आई है। अभी तक जिस आइलैंड को गूगल मैप पर भी देखा जा रहा था वो सच में था ही नहीं। जेम्स कुक नाम के एक शख्स ने साल 1774 में इस आइलैंड को खोजने का दावा किया था जिसके बाद इस द्वीप को 'सैंडी आइलैंड' नाम दिया गया। जेम्स ने प्रशांत महासागर में इस आइलैंड के होने बात कही थी।
इस आईलैंड के रहस्यमयी होने की वजह से प्रेत द्वीप भी कहा जाता था। हालांकि जब शोधकर्ताओं ने इस आईलैंड की सच्चाई बताई, तो लोगों के होश उड़ गए। एक समय इस आईलैंड को गूगल पर देखा जा सकता था, लेकिन जब शोधकर्ताओं ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा कि यह आईलैंड नहीं है, तो गूगल ने भी मैप से इसे हटा दिया। आइए जानतें हैं इसके बारे में रोचक बातें।
सैंडी आइसलैंड ऑस्ट्रेलिया में समुद्र तट पर स्थित था। दावे के मुताबिक, इस आईलैंड को सबसे पहले साल 1774 में जेम्स कुक ने खोजा था। जेम्स कुक ने संभावना जताई थी कि इस आइसलैंड की लंबाई 22 किलोमीटर और चौंड़ाई 5 किलोमीटर है। वेलोसिटी नाम के शिप ने भी साल 1876 में सैंडी आइलैंड के मौजूद होने का दावा किया गया था।
सबसे बड़ी बात यह है कि बिट्रेन और जर्मनी ने अपने 19वीं सदी के मानचित्रों में भी इस आईलैंड के होने का दावा किया था। हालांकि बाद में कई लोगों की तरफ से इस आईलैंड को लेकर आशंका भी जाहिर की गई थी। फ्रेंच हाइड्रोग्राफिक सर्विस की तरफ से इस आइलैंड को समुद्री मानचित्र से साल 1979 से हटा दिया गया।
ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च के दौरान नवंबर 2012 में पाया कि यह आईलैंड है ही नहीं। वैज्ञानिकों ने इस जगह समुद्र की गहराई नापी, तो पता चला कि गहराई 4,300 फीट से ज्यादा नहीं थी। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी की मुख्य भूविज्ञानी मारिया सेटन ने कहा था कि किसी तरह की गलती हुई होगी। एक पेपर भी प्रकाशित किया गया था जिसमें पुष्टि हुई है कि सैंडी आईलैंड नहीं था। -
भारत में सड़को का जाल बिछा हुआ है जिस पर साइकिल से लेकर ट्रकें तक चलती हैं। लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए सड़कों का इस्तेमाल करते हैं। अक्सर आप सफर के दौरान सड़कों के किनारे रंग-बिरंगे पत्थर लगे हुए देखते होंगे जो अलग-अलग रंग के होते हैं। इन पत्थरों का अपना अलग-अलग महत्व होता है, लेकिन क्या आप सड़क किनारे लगे इन रंग बिरंगे पत्थरों का मतलब जानते हैं? नहीं तो आइए हम आपको आज इसके महत्व के बारे में बताते हैं। सड़कों के किनारे लगे इन मील के पत्थरों का शहरों और जगहों की दूरी बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि बदलते समय के अनुसार, इन पत्थरों की जगह अब बड़े-बड़े साइन बोर्डों ने ले लिए हैं। लेकिन आज भी आपको पहले के समय के पत्थर दिख जाएंगे।
पीले रंग का पत्थर
अगर आपको सड़क पर चलते समय सड़क किनारे पीले रंग का पत्थर दिखाई दे जाए तो समझिए कि आप नेशनल हाइवे पर चल रहे हैं। नेशनल हाइवे सड़कों के रखरखाव का जिम्मा नेशनल हाईवे ऑफ अथॉरिटी का होता है। देश में NH-24, NH-8 जैसे कई नेशनल हाईवे हैं। नार्थ-साउथ-ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर और गोल्डन क्वाड्रीलैट्रल जैसी सड़कें नेशनल हाईवे ही हैं।
हरे रंग का पत्थर
अगर आपको सड़क किनारे हरे रंग की पट्टी वाला पत्थर दिखाई दे तो समझिए कि आप राज्य के हाईवे पर चल रहे हैं। यानी उसके रख रखाव का जिम्मा राज्य सरकार का है। आम तौर पर इन सड़कों का उपयोग एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए किया जाता है।
काले, नीले या सफेद पत्थर
अगर आपको सड़क किनारे काले, नीले या सफेद रंग का पत्थर दिखाई दे तो समझिए कि आप किसी बड़े शहर या किसी बड़े जिले में आ गए हैं। इन सड़कों का निमार्ण, उनकी मरम्मत का जिम्मा शहर के नगर निगम का होता है।
नारंगी रंग का पत्थर
अगर आप किसी गांव में जाते हैं तो आपको सड़क किनारे नारंगी रंग के पत्थर दिखाई देंगे। नारंगी रंग की पट्टियां प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से जुड़ी हुई होती हैं। -
आपने गली-मोहल्ले या सड़क पर गाड़ियां के गुजरते समय कुत्तों को भौंकते हुए जरूर देखा होगा। ऐसा देखकर लगता है कि गाड़ियों और कुत्तों की कोई पुरानी दुश्मनी हो। कुत्तों को अक्सर मोटरसाइकिल पर भौंकते और चलाने वाले शख्स को काटने के लिए दौड़ते हुए देखा जाता है। हो सकता है कि कई बार आपको भी मोटरसाइकिल चलाते समय कुत्तों ने दौड़ाया हो। कुत्तों के भौंकने की वजह से कई बार मोटरसाइकिल सवार दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
जब किसी इंसान को मोटरसाइकिल पर भौंकते हुए कुत्ते दौड़ाते हैं, तो उसके मन में एक सवाल जरूर आता होगा कि क्या इससे बचने का कोई उपाय है? जी हां बिल्कुल कुत्तों की इस हरकत से बचना का उपाय है। हम आपको एक आसान तरीका बताते हैं, जो आपको कुत्तों से बचाने में मदद कर सकता है। अगर आप ऐसी स्थित में फंसते हैं, तो आपको गाड़ी तेज नहीं भगानी चाहिए, क्योंकि हो सकता है कि आप हादसे का शिकार हो जाएं। इसलिए आराम से गाड़ी चलाएं।
इसके अलावा अगर आप मोटरसाइकिल को तेज भगाते हैं, तो फिर कुत्ते आपकी गाड़ी को दौड़ाते हैं। लोगों को मोटरसाइकिल तेज भगाता देख कुत्तें अधिक भौंकते हैं। अगर जहां कुत्ते हैं वहां तेज गाड़ी भगाएंगे, तो वह जरूर आपको काटने के लिए आपके पीछे दौड़ेंगे।
इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि जब आपके सामने ऐसी स्थिति हो तो गाड़ी को तेज न भगाएं। आपके गाड़ी तेज चलाने से कुत्ते भड़क सकते हैं। अगर आपकी मोटरसाइकिल के पीछे कुत्ते दौड़ें, तो आप अपनी गाड़ी को धीरे कर लीजिए या रोक दीजिए। ऐसे में कुत्ते भौंकना बंद कर सकते हैं।
इसके बाद आप धीरे-धीरे गाड़ी चलाकर वहां से जा सकते हैं। ऐसा करने से कुत्ते आपकी गाड़ी पर भौंकना बंद कर देंगे और आप आसानी और सुरक्षित तरीके से वहां चले जाएंगे। मोटरसाइकिल सवार पर कुत्तों की भौंकने की आदत है। इसलिए आप इन टिप्स को अपनाकर बच सकते हैं। -
ट्रेन की यात्रा हमेशा से ही लोगों के लिए रोमांच से भरी होती है। जब भी हमें ट्रेन से यात्रा करनी होती है हम रोमांचित हो जाते हैं। दरअसल, ट्रेन यात्रा के दौरान हमारा जो अनुभव होता है वो काफी यादगार होता है। हर वो व्यक्ति जिसने कभी न कभी ट्रेन यात्रा की है, उसका कोई न कोई अनुभव जरूर होता है। ट्रेन यात्रा करते समय हमें नदी, पहाड़, गांव, शहर और भी प्राकृतिक चीजों को देखने का मौका मिलता है। इन चीजों को देखने के बाद दिल आनंद से भर जाता है। इसी कड़ी में कुछ ऐसे ट्रेन रूट होते हैं जो अपने अजीबोगरीब कारणों से जाने जाते हैं। इनमें से कुछ रास्ते तो इतने सुंदर होते हैं जिन्हें देखना बहुत अच्छा लगता है। वहीं कई ट्रेन रूट तो इतने दुर्गम होते हैं जिन्हें देखते ही डर लगता है।
आइए ऐसे ही एक ट्रेन रूट के बारे में जानते हैं........
दरअसल, थाईलैंड के बैंकॉक शहर में एक ऐसा ही ट्रेन रूट है जहां ट्रेन बाजार के बीचोंबीच से होकर जाती है। इस बाजार को फोल्डिंग अंब्रेला मार्केट के नाम से जाना जाता है। सुनने में ये नाम काफी अजीब लगता है। दरअसल, एक संकरे रास्ते से गुजरने वाली ट्रेन की पटरी के अगल-बगल सब्जी की दुकानें लगाई जाती है। जैसे ही ट्रेन यहां से गुजरती है, वैसे ही दुकानदार अपनी दुकान के पर्दे फोल्ड करके हटा लेते हैं जिससे ट्रेन आसानी से निकल जाती है। ट्रेन के गुजरने के बाद दोबारा ये बाजार सज जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि ये बाजार दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस बाजार को देखने ग्राहक से ज्यादा पर्यटक आते हैं। ग्राहक यहां अपनी जरूरत की चीजें लेने आते हैं तो पर्यटक यहां फोटोग्राफी करने और वीडियो बनाने आते हैं। ये फोल्डिंग मार्केट सुबह 6 बजे से शाम के 6 बजे तक लगता है।
इस मार्केट में सब्जियों के अलावा फल,मीट,सी फूड और राशन भी मिलता है। थाइलैंड टूरिज्म अथॉरिटी के अनुसार, इस मार्केट से ट्रेन एक दिन में 8 बार आती और जाती है। ट्रेन 4 बार महाचाई से माइकलॉन्ग जाती है और 4 बार माइकलॉन्ग से महाचाई वापस लौटती है।
एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार, माइकलॉन्ग स्टेशन बैंकॉक से करीब 80 किलोमीटर दूर है। अगर हम बिना ट्रेन से ये दूरी तय करते हैं तो हमें डेढ़ घंटे का समय लगता है, ऐसे में ट्रेन से सफर करने में ये समय कम लगता है। इस मार्केट के अलावा इस इलाके में एमफावा फ्लोटिंग मार्केट भी लगता है जो शुक्रवार से रविवार तक दिन के 2 बजे से रात के 3 बजे तक खुलता है। - दुनिया भर में अमीर इंसानों की कोई कमी नहीं है। अमीर होने के साथ-साथ इनके शौक भी बड़े-बड़े होते हैं। किसी को महंगी कार रखने का शौक होता है तो किसी को प्रॉपर्टी खरीदने का। आज हम आपको एक ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके पास इतनी दौलत है कि वो छोटे-मोटे देश तो बड़े आराम से खरीद सकते हैं। ये पीएम दुनिया भर की महंगी गाड़ियों का भी शौक रखते हैं। यही कारण है कि इनके पास जो कार कलेक्शन है उसकी चर्चा दुनिया भर में हो रही है। इनके पास एक, दो, तीन नहीं बल्कि 2000 कारों का कलेक्शन है। जी हां! ब्रुनेई के मौजूदा प्रधानमंत्री और सुल्तान हस्सनल बोल्किअह के पास बेहिसाब दौलत के साथ दुनिया की बेहतरीन कारों का कलेक्शन भी है। हस्सनल बोल्किअह मशहूर फुटबॉलर फैक बोल्किअह के रिश्तेदार हैं। फैक भी दुनिया के सबसे अमीर फुटबॉलर है।ब्रुनेई के प्रधानमंत्री हस्सनल बोल्किअह को महंगी कारों का बहुत शौक है। इन कारों की कीमत का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इन्हें बेचकर दुनिया के कई गरीब देश खरीदे जा सकते हैं। हस्सनल के पास चार खरब से ज्यादा कीमत की दो हजार कारें उनके गैराज में खड़ी हैं। ये कोई साधारण गाड़ियां नहीं है। गैराज में खड़ी एक गाड़ी को भी खरीदने के लिए आम इंसान को सौ बार सोचना पड़ेगा।हस्सनल बोल्किअह के पास 600 रॉल्स रॉयस, 570 मर्सिडीज बेंज, 450 फेरारी और करीब 380 बेंटलेस जैसी कारें हैं। इसके अलावा भी कई अन्य कार पीएम के कारों के कलेक्शन का हिस्सा हैं। बात अगर हस्सनल बोल्किअह के कुल संपत्ति की करें तो इनके पास 13 बिलियन यूरो यानी 13 खरब 12 अरब 13 करोड़ 97 लाख 5 हजार 5 सौ के करीब रुपए हैं। इस संपत्ति में 4 खरब रुपए इनकी कारों की कीमत है।वहीं इस पीएम के रिश्तेदार दुनिया के सबसे अमीर फुटबॉलर फैक बोल्किअह भी इनदिनों चर्चा में हैं। ब्रुनेई के पीएम फैक के रिश्ते में अंकल लगते हैं। फैक ने अपनी पढ़ाई इंग्लैंड से की है और अभी वो ब्रुनेई के अंडर 19 और अंडर 23 फुटबॉल टीम में हैं।एक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फैक के पिता एक प्लेब्वॉय के तौर पर जाने जाते हैं। ये दुनिया में सबसे ज्यादा कैश रखने वाले इंसान थे। अगर ये कहें कि ये पूरा खानदान ही पैसों से भरा हुआ है तो गलत नहीं होगा।
- आप धरती पर एक जगह से दूसरे जगह की यात्रा कर जा रहे हैं, तो क्या आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि बिना कोई नदी या जलस्त्रोत पार किए कितनी दूर जा सकते हैं। शायद आप इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। हालांकि दुनिया में एक ऐसे रास्ते की खोज हुई है जिस रास्ते से पैदल यात्रा करने में कोई नदी या जलस्त्रोत नहीं है। इस बात पर आपको यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन यह बिल्कुल सच है।एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश नाविक जॉर्ज मीगन अमेरिका के अर्जेंटीना से 30,608 किलोमीटर लंबी दूरी तय कर 1983 में अलास्का पहुंचे थे। उन्होंने यह लंबी यात्रा कुल 2425 दिनों में पूरी की थी। जबकि अमेरिकी आर्मी रेंजर होली हैरिसन ने इसी रास्ते पर साल 2018 में 530 दिनों में 23,305 किलोमीटर की दूरी तय कर ली थी। आइए बताते हैं किसने अब तक सबसे लंबी पैदल यात्रा की है।एक प्रतियोगी हैं जिन्होंने सबसे लंबी पैदल यात्रा की है। इन्होंने साल 2020 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन से यात्रा की शुरुआत थी। उन्होंने अपनी यात्रा पूरी करने के लिए गूगल मैप की मदद ली थी। इस प्रतियोगी ने रूस के मागाडान पहुंचने के लिए 22,104 किलोमीटर की दूरी तय की। लेकिन इनका नाम गोपनीय रखा गया है।इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर आप बिना कोई नदी या जलस्रोत पार किए सीधी रेखा में जाना चाहते हैं, तो चीन से पुर्तगाल तक की यात्रा कर सकते हैं। आयरलैंड के कॉर्क स्थित कोलिंस एयरोस्पेस एप्लाइड रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी के फिजिसिस्ट, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रोहन चाबुकश्वर और नई दिल्ली स्थित आईबीएम रिसर्च के इंजीनियर कुशल मुखर्जी ने साल 2018 में इस रास्ते को खोजा था। रोहन और कुशल की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सीधी रेखा से पैदल यात्रा करने पर करीब 11,240 किलोमीटर लंबी दूरी तय करनी होगी। इस रास्ते में आपको किसी भी नदी या जलस्रोत को पार नहीं करना होगा।दक्षिण-पूर्वी चीन से इस रास्ते की शुरुआत होती है। इस रास्ते में 13 देश पड़ते हैं जिनमें मंगोलिया, कजाकिस्तान, रूस, बेलारूस, यूक्रेन, पोलैंड, चेक गणराज्य, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, लींचस्टेनटीन के अलावा स्विट्जरलैंड, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल के सैगरेस का इलाका शामिल हैं। यह रिपोर्ट साल 2018 में arXiv प्रीप्रिंट डेटाबेस में प्रकाशित की गई थी।-
- भारत का संविधान संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है, जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार, केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है जिन्हें राज्यों की परिषद राज्यसभा तथा लोगों का सदन लोकसभा के नाम से जाना जाता है।प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है। जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधानपरिषद कहा जाता है। राज्यपाल राज्य का प्रमुख है। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होगी। मंत्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है।भारतीय संविधान की आधारभूत एवं विभेदकारी विशेषताएं-1. 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहें।2. संविधान सभा के सदस्य, भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे।3. भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।4. इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन मे कुल 114 दिन बैठक की, इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की पूर्ण स्वतंत्रता थी।5. भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं।6. भारत के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, पद, अवसर और कानूनों की समानता, विचार, भाषण, विश्वास, व्यवसाय, संघ निर्माण और कार्य की स्वतंत्रता, कानून तथा सार्वजनिक नैतिकता के अधीन प्राप्त होगी।7. भारत मे द्वैध नागरिकता नहीं है। केवल भारतीय नागरिकता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना, सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है।8. भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती हैं, दोनों सत्ताएं एक-दूसरे के अधीन नहीं होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं। यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है।9. राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनों पर लागू होता है। वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है।10. 'धर्मनिरपेक्षÓ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है।12. 'समाजवादीÓ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है।