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- ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार नीलम रत्न व्यक्ति को रंक से राजा बना सकता है। यह रत्न शनिदेव को समर्पित होता है। इस रत्न को हर कोई धारण नहीं कर सकता है। जहां ये रत्न रंक से राजा बना देता है वहीं अशुभ होने पर ये रत्न राजा को भी रंक बना सकता है। ज्योतिष गणनाओं के अनुसार नीलम रत्न को धारण करने से पहले कुंडली का विचार करना जरूरी होता है।नीलम रत्न के फायदेजिन लोगों के लिए नीलम शुभ होता है उन्हें इसका तुरंत फायदा दिखने लगता है।स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।धन- लाभ होने लगता है।नौकरी और व्यापार में तरक्की होने लगती है।नीलम रत्न के अशुभ होने पर इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैनीलम हर किसी को शुभ फल नहीं देता है। जिन लोगों के लिए ये शुभ नहीं है, उन्हें स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।धन- हानि हो सकती है।कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है।ऐसे करें पहचान नीलम आपके लिए शुभ है या नहींनीलम रत्न को धारण करने से पहले उसको तकीया के नीचे रखकर सोएं। अगर आपको रात में कोई भी बुरा स्वप्न नहीं आता है और अच्छी गहरी नींद आती है तो इसका मतलब है ये रत्न आपके लिए शुभ है। अगर आपको अच्छी और गहरी नींद नहीं आती है तो इस रत्न को धारण न करें।रत्न धारण करने के बाद अशुभ घटना होने पर इस रत्न को तुरंत उतार दें।
- वास्तु शास्त्र में घर में बरकत लाने, खर्चों पर काबू पाने, आय बढ़ाने आदि के लिए कई उपाय बताए गए हैं. साथ ही कुछ चीजों को लेकर आगाह भी किया गया है. इनमें से एक है सोने की दिशा. रात में सोते समय आपका सिर किस दिशा में है, इसका असर आपके जीवन में धन के आगमन, आपके मान-सम्मान, सेहत-रिश्तों आदि सभी पर पड़ता है. लिहाजा अपने सोने की दिशा को लेकर बहुत सजग रहना जरूरी है.सोते समय इन बातों का रखें ध्यान- वास्तु शास्त्र के अनुसार कभी भी उत्तर दिशा की ओर सिर करके न सोएं. ऐसा करने से चुम्बकीय प्रवाह अवरुद्ध होकर बिगड़ जाता है. इससे नींद अच्छे से नहीं आती है. यह स्थिति सिर दर्द, मानसिक बीमारियों का कारण बन सकती है.- दक्षिण दिशा की ओर सिर और उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना सबसे अच्छा माना जाता है. ऐसा करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है. उसकी आयु बढ़ती है. उसे अपने जीवन में खूब रुपया-पैसा, सुख, सम्मान मिलता है.- वहीं पूर्व दिशा में सिर करके सोने से व्यक्ति की याददाश्त, एकाग्रता बढ़ती है. उसका स्वास्थ्य बेहतर होता है. विद्यार्थियों और ऐसे लोग जिनका झुकाव अध्यात्म की ओर है उन्हें पूर्व में सिर करके सोना चाहिए.- पश्चिम दिशा में सिर करके सोना भी ठीक माना जाता है. यह दिशा जल के देवता वरुण की दिशा है. इस दिशा में सिर करके सोने से व्यक्ति को प्रसिद्धि, मिलती है. उसका सम्मान बढ़ता है. उसके जीवन में समृद्धि आती है.
- इंसानी शरीर पर तिल का होना एक सामान्य सी बात है। लेकिन समुद्र शास्त्र के अनुसार शरीर पर तिल होने के कई अर्थ होते हैं। शरीर पर मौजूद इन तिलों से भी व्यक्ति के भविष्य के बारे में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। तिल विभिन्न आकार और रूप-रंग के होते हैं। शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर मौजूद तिलों का मतलब भी अलग-अलग होता है। कुछ तिल शुभ होते हैं, तो कुछ अशुभ। लेकिन इसमें ये ध्यान देने की बात होती है कि तिल का निशान बहुत छोटा नहीं हो। अगर तिल बड़ा है तब ये प्रभाव डालता अन्यथा नहीं। तो चलिए आज जानते हैं शरीर पर स्थित तिलों के बारे में....गाल पर तिलअगर किसी के दायें गाल पर तिल हो, तो ऐसा व्यक्ति तर्कवादी होता है। साथ ही धन कमाने में अग्रणी होता है।माथे पर तिलमाथे के बीच में तिल का मतलब होता है कि व्यक्ति शांत, बुद्धिमान, मेहनती और दिल का साफ है। वहीं माथे में दाहिनी तरफ तिल होने का मतलब है कि व्यक्ति धनवान है।भौंह पर तिलजिस किसी भी व्यक्ति के भौंह के बीच में तिल होता है, तो इसका मतलब कि वो व्यक्ति एक अच्छा लीडर बनता है। उसके जीवन में आर्थिक संपन्नता हमेशा बनी रहती है। यदि भौंह पर दाहिनी ओर तिल है तो व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में खुशियां प्राप्त होती हैं। वहीं बायीं भौंह पर तिल होना अच्छा नहीं माना जाता।नाक पर तिलसमुद्रशास्त्र में बताया गया है कि यदि किसी की नाक की दाहिनी तरफ तिल है, तो वह व्यक्ति कम मेहनत के बल पर ही अधिक धनवान बन जाता है।कान पर तिलअगर किसी व्यक्ति के कान पर तिल हो तो उसका जीवन भौतिक सुखों से भरा रहता है। वहीं कान के ठीक ऊपर तिल हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है।गर्दन पर तिलमान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति की गर्दन पर ठीक सामने तिल हो, तो वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली और कला से निपुण होता है।पीठ पर तिलयदि किसी की पीठ पर रीढ़ की हड्डी के आसपास तिल हो, तो व्यक्ति सक्सेस और फेम पाता है। वहीं किसी व्यक्ति के कंधों के ऊपर तिल है, तो इसका मतलब वह व्यक्ति साहस के साथ चुनौतियों का सामना करता है।
- माता पार्वती एवं माता लक्ष्मी की भांति माता सरस्वती के भी अनेक रूप हैं, हालांकि उनके अवतारों की संख्या उतनी नहीं है।माता सरस्वती के प्रमुख रूप हैं:महा सरस्वती: ये माता सरस्वती का सर्वोच्च रूप माना जाता है। इनका वर्णन देवी माहात्म्य में विशेष रूप से दिया गया है। महाकाली एवं महालक्ष्मी के साथ महासरस्वती त्रिदेवों के सर्वोच्च रूपों, क्रमश: महादेव, महाविष्णु एवं महाब्रह्मा को परिपूर्ण करती हैं। इस रूप में इनके 8 हाथ हैं, ये वीणा को धारण करती हैं और उजले कमल पर विराजती हैं।विद्या सरस्वती: अपने इस रूप में माता सरस्वती संसार के समस्त ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। कहा जाता है कि संसार में जो भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष ज्ञान फैला है, वो सभी माता के इसी रूप के कारण है।शारदम्बा: माता सरस्वती का ये रूप श्रृंगेरी शारदापीठ का मूल है। इनका मंदिर कर्णाटक के श्रृंगेरी नामक स्थान पर है जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने पर त्रिदेवों के साथ माता पार्वती और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद स्वत: ही प्राप्त हो जाता है।माता सावित्री: अपने इस रूप में माता सरस्वती परमपिता ब्रह्मा की पत्नी के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं। ये संसार की पवित्रता का प्रतीक है। संसार में जो कुछ भी शुद्ध एवं पवित्र है, वो इन्हीं की कृपा से है।माता गायत्री: माता सरस्वती का ये रूप संसार के सभी यज्ञों एवं कर्मकांडों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजित है। हालाँकि इनका मूल भी माता सावित्री को ही माना जाता है किन्तु कई स्थानों पर इन्हें भी ब्रह्मदेव की पत्नी का स्थान प्राप्त है। गायत्री मंत्र को संसार का सबसे शक्तिशाली मंत्र माना गया है जिसके विषय में स्वयं श्रीकृष्ण की विभूतियों में कहा गया है कि "मंत्रों में मैं गायत्री हूँ।"नील सरस्वती: माता का ये रूप भारत के पूर्वात्तर राज्यों में सबसे प्रसिद्ध है। इनके इस रूप को महाविद्याओं में से एक माता तारा का रूप भी माना जाता है। आम तौर पर माता सरस्वती के सभी रूप सौम्य और शांत होते हैं किन्तु नील सरस्वती इनका उग्र स्वरुप है। तंत्र ग्रंथों में इनका विशेष महत्त्व बताया गया है और इनके 100 नामों का उल्लेख है।ब्राह्मणी: अष्ट-मातृकाओं में वर्णित माता ब्राह्मणी माता सरस्वती का ही एक रूप है। ये परमपिता ब्रह्मा की शक्ति को प्रदर्शित करती हैं। ये पीत वर्ण की है तथा इनकी चार भुजाएँ हैं। ब्रह्मदेव की तरह इनका आसन कमल एवं वाहन हंस है।महाविद्या: माता सती के दस रूप, जो दस महाविद्या के नाम से जाने जाते हैं, उनमें से तीन माता सरस्वती का ही रूप मानी जाती हैं:काली (श्यामा): माता का उग्र रूप।मातंगी: माता का सौम्य रूप।तारा: माता का वैभवशाली रूप।अब बात करते हैं माता सरस्वती के अवतारों के विषय में। उनके अवतारों अवतार के बारे में हमें बहुत अधिक वर्णन नहीं मिलता, किन्तु उनके दो अवतार बहुत प्रसिद्ध हैं:सरस्वती नदी: ऋग्वेद में माता के इस रूप के विषय में प्रमुखता से लिखा गया है। गंगा की भांति ये भी संसार के कल्याण के लिए ही अवतरित हुई थी। ऐसी भी मान्यता है कि ये संसार की पहली नदी थी। ये सतयुग में अवतरित होकर द्वापर के अंत में लुप्त हो गयी थी। कलियुग में ये माँ गंगा एवं यमुना के साथ अदृश्य रूप में उपस्थित हैं। कलियुग के अंत में ये गंगा, यमुना, कावेरी एवं नर्मदा के साथ पृथ्वी को सदा के लिए छोड़ देंगी। कई लोग ये मानते हैं कि आज भी सरस्वती नदी पृथ्वी के गर्भ में प्रवाहित होती हैं।माँ शारदा: ये माता सरस्वती का मानव अवतार माना जाता है। कश्मीर के कश्मीरी पंडित एवं हरियाणा के मूल निवासियों में इनके प्रति बहुत श्रद्धा है। इनका भव्य मंदिर शारदा पीठ के नाम से स्थापित है जो लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है। अब वो स्थान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
- माता लक्ष्मी धन की देवी कहीं जाती हैं। माता लक्ष्मी के वैसे तो कई रूप हैं किन्तु उनमें से 8 सबसे प्रमुख माने जाते हैं जिन्हे हम अष्टलक्ष्मी कहते हैं। इन आठ रूपों में वे सृष्टि के विभिन्न भागों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आइये इनके विषय में कुछ जानते हैं।आदि लक्ष्मी: इन्हे मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी भी कहा जाता है। श्रीमद देवीभागवत पुराण के अनुसार इन्होने ही सृष्टि की रचना की थी। इन्हीं से त्रिदेव, महाकाली, लक्ष्मी एवं महासरस्वती प्रकट हुई। इस संसार के सञ्चालन और पालन हेतु इन्होने श्रीहरि से विवाह किया। ये जीवन उत्पन्न करती हैं एवं सुख समृद्धि देती हैं।धार्या लक्ष्मी: इन्हें वीर लक्ष्मी भी कहा जाता है। भौतिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने में जो भी बढ़ाएं आती हैं, उन्हें ये दूर करती हैं। ये अकाल मृत्यु से भी हमारी रक्षा करती हैं। इन्हे माँ कात्यायनी का रूप भी माना जाता है जिन्होंने महिषासुर का वध किया था। ये युद्ध में विजय दिलाती हैं और वीरों की रक्षा करती हैं। इन्हें माता पार्वती का रूप भी माना जाता है।संतान लक्ष्मी: इनकी पूजा स्कंदमाता के रूप में भी होती है। कुछ रूपों में इनके चार तो कुछ रूपों में आठ हाथ दिखाए गए हैं। इनमें से एक अभय और एक वरद मुद्रा में रहता है। ये गुणवान एवं लम्बी आयु वाले स्वस्थ संतान का आशीर्वाद देती है। ये बच्चों के लिए स्नेह का प्रतीक हैं एवं पिता को कर्तव्य एवं माँ को सुख प्रदान करती हैं।विद्या लक्ष्मी: ये शिक्षा, ज्ञान और विवेक की देवी हैं। बुद्धि और ज्ञान का बल भी हमें इनसे ही प्राप्त होता है। विद्या लक्ष्मी आत्म-संदेह एवं असुरक्षा का नाश करती हैं और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं। विद्यार्थियों को माता लक्ष्मी के इस रूप का ध्यान अवश्य करना चाहिए। ये आध्यात्मिक जीवन जीने में सहायता करती हैं एवं व्यक्ति की क्षमता और प्रतिभा को बाहर लाती हैं। इन्हें माता सरस्वती का दूसरा रूप भी माना जाता है।धान्य लक्ष्मी: ये प्रकृति एवं चमत्कारों की प्रतीक हैं। ये समानता का ज्ञान देती हैं क्यूंकि प्रकृति सबके लिए समान होती हैं। ये भोजन और कृषि का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इनके आठ हाथ हैं जिनमें कृषि उत्पाद भी होते हैं। इन्हें माता अन्नपूर्णा के रूप में भी पूजा जाता है। ये अनाज और पोषण की देवी हैं और इनकी कृपा से ही हमारा घर धन-धान्य से भरा रहता है।गज लक्ष्मी: ये भूमि को उर्वरता प्रदान करती हैं। इनके इस रूप में दोनों ओर से गज शुद्ध जल से इनका अभिषेक करते रहते हैं। कमल पर विराजित इन देवी के चार हाथ हैं जिनमें वे कमल का पुष्प, अमृत कलश, बेल और शंख धारण करती है। ये पशुधन को भी प्रदान करने वाली हैं। ये पशुधन में वृद्धि और हमारे जीवन में पशुओं के माध्यम से समृद्धि की प्रतीक हैं।विजय लक्ष्मी: इन्हें जय लक्ष्मी भी कहा जाता है। इनके आठ हाथ हैं जो अभय मुद्रा में होते हैं। इनकी पूजा कोर्ट-कचहरी की परेशानियों से बचने के लिए विशेष रूप से की जाती है। कठिन परिस्तिथियों में ये साहस बनाये रखने की प्रेरणा देती है। ये निडरता प्रदान करती हैं और हर कठिनाई में विजय दिलाती हैं।धन लक्ष्मी: इन्हें श्री लक्ष्मी भी कहते हैं जो धन और ऐश्वर्य का प्रतीक हैं। जब तिरुपति बालाजी के रूप में श्रीहरि ने कुबेर से ऋण लिया तो उन्हें उस ऋण से मुक्ति दिलाने के लिए माता ने यह रूप लिया। इस रूप की पूजा धन प्राप्ति और ऋण मुक्ति हेतु विशेष रूप से की जाती है। इनके छ: हाथ होते हैं। इस रूप में माता धन, संपत्ति, स्वर्ण, ऐश्वर्य इत्यादि तो देती ही है किन्तु इसके अतिरिक्त इच्छाशक्ति, साहस, दृढ संकल्प एवं उत्साह भी प्रदान करती हैं।
- वास्तु शास्त्र में दिशाओं के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। किस दिशा में क्या करना शुभ होता है और क्या अशुभ वास्तु में इन सब बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। वास्तु के अनुसार, भोजन करते समय भी दिशाओं का ध्यान रखना चाहिए। गलत दिशा में मुंह करके खाना खाने से व्यक्ति को काफी नुकसान झेलने पड़ सकते हैं। जानते हैं खाना खाते समय किस दिशा की ओर मुंह करके नहीं बैठना चाहिए...दक्षिण दिशावास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिशा की तरफ मुंह करके खाना खाने से दरिद्रता और कंगाली का सामना करना पड़ता है। माना जाता है कि ये दिशा पितरों की दिशा होती है, इसलिए इस दिशा में खाना बनाने या खाने की सलाह नहीं दी जाती है।पूर्व दिशापूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना जाता है। ऐसे में पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खाना खाने से सभी तरह की बीमारी दूर होती है। साथ ही इस तरफ मुंह करके खाने से देवताओं की कृपा और आरोग्य की प्राप्ति होती है और आयु बढ़ती है।उत्तर दिशाउत्तर दिशा को भी देव दिशा माना जाता है। ऐसे में इस दिशा की ओर मुंह करके भोजन करने से घर में रुपये पैसों की कमी नहीं होती है। घर के मुखिया और विद्यार्थियों को विशेष तौर पर उत्तर दिशा में ही मुंह करके भोजन करना चाहिए। इससे लाभ होता है।पश्चिम दिशावास्तु शास्त्र के अनुसार व्यापार या नौकरीपेशा से जुड़े लोगों को इस दिशा की ओर मुंह करके भोजन करना चाहिए। इसके अलावा अगर घर में कोई सदस्य बीमार हो तो उसे भी हमेशा पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके ही भोजन करना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से स्वास्थ्य बेहतर होता है।वास्तु शास्त्र के अनुसार, अगर डाइनिंग टेबल पर भोजन कर रहे हैं, तो डाइनिंग टेबल को दक्षिण या पश्चिम की दीवार की तरफ रखें। वहीं कभी भी बिस्तर पर बैठकर खाना न खाएं।वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि घर में मेहमान आए हों, तो उनको दक्षिण या पश्चिम दिशा में बिठाकर खाना खिलाएं और खुद पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके खाएं।
- भारत के हर हिस्से में कई प्राचीन और अनोखे देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें से कई मंदिर का इतिहास हजारों साल से भी अधिक पुराना है। आज हम आपको एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो साल में केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में -यह मंदिर चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ साल में सिर्फ एक दिन ही भक्तों के लिए कपाट खोले जाते हैं। माना जाता है कि साल के बाकी 364 दिन यहाँ यहां देवर्षि नारद भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के कपाट रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं और उसी दिन सूर्यास्त से पहले बंद भी कर दिए जाते हैं। भगवान वंशीनारायण मंदिर समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवकाल में हुआ था। मंदिर कत्यूरी शैली में बना हुआ है और इसकी ऊँचाई 10 फीट है। इस मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और मंदिर में स्थापित प्रतिमा में भगवान विष्णु और भोलेनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं। इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक रोचक कथा है।एक पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार राजा बलि ने भगवान नारायण से आग्रह किया कि वे पाताल लोक की देखरेख संभालें। राजा बलि के कहने पर भगवान नारायण ने पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभाल ली। तब माता लक्ष्मी उन्हें ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा। तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को बताया कि भगवान पाताल लोक में द्वारपाल बने हुए हैं। यह सुनकर माता लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं। तब नारद जी ने उन्हें भगवान नारायण को मुक्त कराने का उपाय बताया।देवर्षि नारद ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को वापस मांग लें। तब माता लक्ष्मी ने नारद जी से कहा कि उन्हें पाताल लोक का रास्ता नहीं पता है और उनसे भी साथ चलने को कहा। तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए। मान्यता है कि सिर्फ यही दिन था जब देवर्षि नारद वंशीनारायण मंदिर में भगवान की पूजा नहीं कर पाए। उस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशी नारायण की पूजा की। तब से यह परंपरा चली आ रही है।रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है। इस दिन भगवान वंशीनारायण का फूलों से श्रृंगार किया जाता है और श्रद्धालु व स्थानीय ग्रामीण भगवान वंशीनारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं।
- भारत में कई प्राचीन देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें से कई मंदिर का इतिहास हजारों साल से भी अधिक पुराना है। आज हम एक बेहद चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। यहां स्थापित माता की मूर्ति तीन पहर में अलग-अलग स्वरुप बदलती है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में -लहर की देवी का यह मंदिर झांसी (मध्यप्रदेश) के सीपरी में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण बुंदेलखंड के चंदेल राज के समय किया गया था। यहां के राजा का नाम परमाल देव था। राजा के दो भाई थे, जिनका नाम आल्हा-उदल था। कहा जाता है कि आल्हा की पत्नी और महोबा की रानी मछला का पथरीगढ़ के राजा ज्वाला सिंह ने अपहरण कर लिया था। ऐसा कहा जाता है कि आल्हा ने ज्वाला सिंह को पराजित करने और ज्वाला सिंह से रानी को वापस लाने के लिए अपने भाई के सामने अपने पुत्र की बलि इसी मंदिर में चढ़ा दी थी। लेकिन देवी ने इस बलि को स्वीकर नहीं किया और उस बालक को जीवित कर दिया। मान्यताओं के अनुसार जिस पत्थर पर आल्हा ने अपने पुत्र की बलि दी थी, वह पत्थर आज भी इसी मंदिर में सुरक्षित है।लहर की देवी को मनिया देवी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि लहर की देवी, मां शारदा की बहन हैं। यह मंदिर 8 शीला स्तंभों पर खड़ा है। मंदिर के प्रत्येक स्तंभ पर आठ योगिनी अंकित हैं। इस प्रकार यहां 64 योगिनी मौजूद हैं। मंदिर परिसर में भगवान गणेश, शंकर, शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भगवान दत्तात्रेय, हनुमानजी और काल भैरव के भी मंदिर हैं।माना जाता है कि इस मंदिर में मौजूद लहर की देवी की मूर्ति दिन में तीन बार स्वरूप बदलती है। प्रात:काल में बाल्यावस्था में, दोपहर में युवावस्था में और सायंकाल में देवी मां प्रौढ़ा अवस्था में मां नजर आती हैं। हर पहर में देवी का अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है। प्रचलित कथाओं के अनुसार कालांतर में पहूज नदी का पानी पूरे क्षेत्र तक पहुंचा करता था। इस नदी की लहरें माता के चरणों को छूती थीं इसलिए मंदिर में स्थापित मां की मूर्ति को लहर की देवी कहा जाता है। माना जाता है कि मंदिर में विराजमान देवी तान्त्रिक हैं इसलिए यहां पर अनेक तान्त्रिक क्रियाएं भी होती हैं। नवरात्रों में माता के दर्शन के लिए यहां हज़ारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। नवरात्र में अष्टमी की रात को यहां भव्य आरती का आयोजन होता है।
- हिंदू धर्म, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष आदि में हर दिन और यहां तक कि दिन-रात के अलग-अलग समयों को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें बताई गईं हैं। इसके तहत किस काम को करने के लिए कौन सा समय उचित है और कौन सा नहीं, इस बारे में भी विस्तार से बताया गया है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक सूर्यास्त के समय कुछ काम नहीं करने चाहिए क्योंकि इन्हें करने से नकारात्मकता आती है। सूर्यास्त के समय किए गए ये काम जीवन में धन हानि, बीमारियों जैसी मुसीबतों का कारण बनते हैं।सक्रिय रहती हैं नकारात्मक शक्तियांशास्त्रों के मुताबिक सूर्यास्त के समय और इसके बाद नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं इसलिए इस दौरान कुछ काम नहीं करने चाहिए। साथ ही इस समय देवी-देवताओं की आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियों का असर नहीं पड़ता है। आइए जानते हैं शाम के समय कौन से काम नहीं करने चाहिए।- शाम के समय कभी भी घर का मुख्य दरवाजा बंद न रखें। इस समय हमेशा दरवाजा खुला रखें। मान्यता है कि इस समय ही मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं। ऐसे में दरवाजा बंद रखने से मां का आगमन नहीं होता और घर में गरीबी आती है।- शाम के समय तुलसी के पौधे के नीचे दीपक लगाना बहुत शुभ माना गया है, लेकिन इस समय गलती से भी तुलसी के पौधे का न छुएं। शाम को तुलसी जी को छूने से वे नाराज हो जाती हैं।- शाम के समय कभी भी किसी को लहसुन-प्याज, नमक, खट्टी चीजें और सुई नहीं देनी चाहिए। न ही ये चीजें लेनी चाहिए। बेहतर होगा कि जरूरत पडऩे पर ये चीजें या तो बाजार से खरीद लें या जरूरतमंद को इन्हें खरीदने के लिए पैसे दे दें।- शाम के समय किसी भिखारी को खाली हाथ न लौटाएं। उसे अपनी सामथ्र्यनुसार कुछ न कुछ दान दें।- शाम के समय पैसों का लेन-देन न करें। ना ही किसी को उधार दें और ना ही लें। मान्यता है कि इस समय उधार दिया गया पैसा वापस नहीं मिलता है।- शाम के समय घर में कभी न तो सोएं और ना ही झगड़ा करें। शाम के समय लक्ष्मी जी का आगमन होता है और इस समय झगड़ा करने से लक्ष्मी की बजाय उनकी बहन अलक्ष्मी का आगमन हो जाता है, जिससे घर में गरीबी आती है। ऐसी स्थिति आर्थिक हानि कराती है।--
- भारत के लोगों का आस्था में अटूट विश्वास है यहीं कारण कि यहाँ के लोग मंदिरों में पूजा पाठ करने में विश्वास रखते हैं। वैसे तो भारत के सभी मंदिरों में भगवान की मूर्तियां पूजी जाती हैं पर एक ऐसा मंदिर भी भारत में मौजूद है जहाँ माना जाता है कि भगवान स्वयं विराजमान है। यह मंदिर है भगवान तिरुपति बालाजी का जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मन्दिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। तिरुमला की पहाडिय़ों पर बना श्री वैंकटेश्वर बालाजी मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित है और तिरुपति के सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र है। कहा जाता है जो भी व्यक्ति एक बार यहाँ दर्शन कर ले उसके भाग खुल जाते हैं। इस मंदिर की लोकप्रियता से हर कोई वाकिफ है पर क्या आप मंदिर के चमत्कारी रहस्यों के बारे में जानते हैं। आज हम आपको इन्हीं रहस्यों के बारे में बताने वाले हैं-1. मान्यता है कि जब भगवान की पूजा की जाती है तो उनकी मूर्ति मुस्कुराने लगती है। भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी की मूर्ति में माता लक्ष्मी भी समाहित है। मान्यता है कि भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर की मूर्ति इस मंदिर में स्वयं प्रकट हुई थीं।2. कहा जाता है भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी की मूर्ति पर लगे हैं बाल असली हैं। यह बाल कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं।3. जब आप मंदिर के गर्भ गृह के अंदर जायेंगे तो ऐसा लगेगा कि भगवान श्री वेंकेटेश्वर की मूर्ति गर्भ गृह के मध्य में स्थित है, पर जब आप गर्भ गृह से बाहर आकर मूर्ति को देखेंगे तो प्रतीत होगा कि भगवान की प्रतिमा दाहिनी तरफ स्थित है।4. तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित है लेकिन फिर भी भगवान की मूर्ति से समुद्र की आवाजें सुनाई देती हैं। यहाँ के लोगों का मानना है कि भगवान की यह मूर्ति समुद्र से प्रकट हुई थी इसलिए इससे समुद्र की आवाज सुनाई देती है।5. तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर के द्वार पर एक छड़ी रखी हुई है। इस छड़ी को लेकर अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु धरती पर माता लक्ष्मी को ढूंढऩे आये थे तो यह छड़ी उन्हें उनका पता बता रही थी।6. ऐसी मान्यता है कि यह वहीं छड़ी है जिससे बचपन में भगवान वेंकटेश्वर जी को चोट लगी थी। चोट का निशान आज भी उनकी मूर्ति के चेहरे पर है। इसलिए हर शुक्रवार उनके चेहरे पर चन्दन का लेप लगाया जाता है।7. श्री तिरुपति वेंकटेश्वर बालाजी मंदिर में श्रृंगार, प्रसाद के चढ़ाये जाने वाली सामग्री तिरुपति बालाजी के गांव से आती है। यह गांव मंदिर से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहाँ बाहरी व्यक्ति के प्रवेश पर प्रतिबंध है।8. श्री वेंकेटेश्वर बालाजी मंदिर में एक ऐसा दीया रखा हुआ है जो हमेशा जलता रहता है और चौंकाने वाली बात यह है कि इस दीपक में कभी भी तेल या घी नहीं डाला जाता। दीपक को सबसे पहले किसने और कब प्रज्ज्वलित किया था, यह बात अब तक रहस्य बनी हुई है।
- ज्योतिष शास्त्र में जिस प्रकार ग्रह-नक्षत्रों से भविष्य के बारे में जानकारी हासिल की जाती है। उसी तरह हस्तरेखा शास्त्र में हथेली की रेखाओं को देखकर भविष्यवाणी की जाती है। हस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक हथेली में मौजूद तिल के निशान भी भविष्य के बारे में बहुत कुछ संकेत देते हैं। ऐसे में जानते हैं कि हथेली में किन जगहों पर स्थित तिल धन-दौलत का संकेत देते हैं।तर्जनी अंगुली पर तिलहस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक जिन लोगों की हथेली की तर्जनी अंगुली पर तिल होता है, वे बेहद भाग्यशाली होते हैं। ऐसे लोगों पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है। साथ ही ऐसे लोग धनवान होने के साथ-साथ सभी सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण रहते हैं। इसके अलावा ये मेहनती स्वभाव के कारण काम करने से पीछे नहीं हटते हैं।मध्यमा अंगुली पर तिलमध्यमा अंगुली पर तिल शुभ संकेतक होता है। जिन लोगों की मध्यमा अंगुली पर तिल का निशान होता है वे तेज-तर्रार होते हैं। साथ ही ऐसे लोग महंगी चीजें खरीदने का शौक रखते हैं। इसके अलावा ऐसे लोग ऐशोआराम में जिंदगी बिताते हैं।कनिष्ठा अंगुली पर तिलहस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक जिन लोगों की सबसे छोटी यानी कनिष्ठा अंगुली पर तिल का निशान होता है वे मान-सम्मान के साथ-साथ खूब धन-दौलत अर्जित करते हैं। साथ ही ऐसे लोगों का व्यक्तित्व भी शानदार होता है।अंगूठे पर तिलहस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक अंगूठे पर तिल का होना शुभ संकेत देता है। जिस जातक के अंगूठे पर तिल होता है वो बहुत ही भाग्यशाली माने जाते हैं। ऐसा व्यक्ति साहित्य और कला का प्रेमी होता है। साथ ही ऐसे लोग व्यापार से अकूत धन अर्जित करने की क्षमता रखते है।
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हिंदू धर्म में शीघ्र ही प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाने वाले भगवान शिव की पूजा के लिए प्रदोष तिथि अत्यंत ही शुभ मानी गई. मान्यता है कि विधि-विधान से प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति से प्रसन्न होकर महादेव उस पर अपनी पूरी कृपा बरसाते हैं. पंचांग के अनुसार यह व्रत जिस दिन पड़ता है, इसका नाम उसी दिन के नाम पर तय हो जाता है. जैसे यदि सोमवार को प्रदोष व्रत पड़ता है तो उसे सोम प्रदोष और मंगलवार को पड़ता है तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं. आइए जानते हैं कि मार्च माह का आखिरी और चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत कब पड़ेगा और इस व्रत का महात्मय और विधि क्या है.
कब पड़ेगा प्रदोष व्रत
पंचांग के अनुसार भगवान शिव की कृपा दिलाने वाली त्रयोदशी तिथि या फिर कहें प्रदोष व्रत 29 मार्च 2022, मंगलवार को पड़ने जा रहा है. यह मार्च माह का आखिरी और चैत्र मास का पहला प्रदोष व्रत होगा. देश की राजधानी दिल्ली आधारित पंचांग के अनुसार पावन त्रयोदशी 29 मार्च को दोपहर 02:38 बजे से शुरु होकर 30 मार्च 2022, बुधवार की दोपहर 01:19 मिनट तक मान्य रहेगी. प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ समय सायंकाल 06:37 से रात्रि 08:57 बजे तक रहेगा.
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
मार्च माह का आखिरी और चैत्र माह का पहला प्रदोष व्रत भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) कहलाएगा क्योंकि यह मंगलवार के दिन पड़ रहा है. मान्यता है कि भौम प्रदोष व्रत को विधि-विधान से रखने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कर्ज दूर होते हैं और शिव की कृपा से उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत वाले दिन साधक को प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करके भगवान शिव के इस पावन व्रत का संकल्प करना चाहिए. इसके बाद विधि-विधान से शिव का पूजन एवं अर्चन करना चाहिए. फिर शाम के समय प्रदोष काल में एक बार फिर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से शिव का विशेष पूजन करते हुए प्रदोष व्रत की पावन कथा को कहना या सुनना चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन रुद्राक्ष की माला से शिव के मंत्र का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए.
साल 2022 में आगामी प्रदोष व्रत
14 अप्रैल 2022, गुरुवार – गुरु प्रदोष व्रत
28 अप्रैल 2022, गुरुवार – गुरु प्रदोष व्रत
13 मई 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
27 मई 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
12 जून 2022, रविवार – रवि प्रदोष व्रत
26 जून 2022, रविवार – रवि प्रदोष व्रत
11 जुलाई 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
25 जुलाई 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
09 अगस्त 2022, मंगलवार – भौम प्रदोष व्रत
24 अगस्त 2022, बुधवार – बुध प्रदोष व्रत
08 सितंबर 2022, गुरुवार – गुरु प्रदोष व्रत
23 सितंबर 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
07 अक्टूबर 2022, शुक्रवार – शुक्र प्रदोष व्रत
22 अक्टूबर 2022, शनिवार – शनि प्रदोष व्रत
05 नवंबर 2022, शनिवार – शनि प्रदोष व्रत
21 नवंबर 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
05 दिसंबर 2022, सोमवार – सोम प्रदोष व्रत
21 दिसंबर 2022, बुधवार – बुध प्रदोष व्रत
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.) -
. आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो दिन में दो बार गायब हो जाता है। जी हाँ, गुजरात में स्थित स्तंभेश्वर मंदिर को 'गायब मंदिर' भी कहा जाता है। देश-विदेश से शिव भक्त अपनी मनोकमना पूर्ण होने की कामना के साथ इस मंदिर में आते हैं। आइए जानते हैं भगवान भोलेनाथ के इस अद्भुत मंदिर के बारे में
स्तंभेश्वर मंदिर गुजरात के जम्बूसार तहसील में कवि कंबोई गांव में स्थित है। यह मंदिर वडोदरा से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित होने के कारण वडोदरा के पास सबसे लोकप्रिय दार्शनिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर लगभग 150 साल पुराना है और इसे 'गायब मंदिर' भी कहा जाता है। सालभर मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। खासतौर पर सावन के महीने में इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से महादेव के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।स्कन्द पुराण में दिए गए उल्लेख के अनुसार स्तम्भेश्वर मंदिर को भगवान कार्तिकेय के ताड़कासुर नाम के राक्षस को नष्ट करने के बाद स्थापित किया था। कहा जाता है कि राक्षस ताड़कासुर भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने भगवान को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या कीऔर भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे एक वरदान मांगने को कहा। तब ताड़कासुर ने आशीर्वाद माँगा कि भगवान शिव के छह दिन के पुत्र के अलावा कोई भी उसे मार न सके। उसकी इच्छा पूरी होने के बाद, ताड़कासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। तब ताड़कासुर के अत्याचार को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भगवान कार्तिकेय की रचना की। ताड़कासुर को मारने वाले भगवान कार्तिकेय भी उसकी शिव भक्ति से प्रसन्न थे। इसलिए, प्रशंसा के संकेत के रूप में, उन्होंने उस स्थान पर एक शिवलिंग स्थापित किया जहां ताड़कासुर का वध किया गया था।एक अन्य संस्करण के अनुसार, ताड़कासुर को मारने के बाद भगवान कार्तिकेय खुद को दोषी महसूस कर रहे थे क्योंकि ताड़कासुर राक्षस होने के बाद भी भगवान शिव का भक्त था। तब भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को यह कहते हुए सांत्वना दी कि आम लोगों को परेशान करके रहने वाले राक्षस को मारना गलत नहीं है। हालाँकि, भगवान कार्तिकेय शिव के एक महान भक्त को मारने के अपने पाप से मुक्त होना चाहते थे। इसलिए, भगवान विष्णु ने उन्हें शिव लिंग स्थापित करने और क्षमा के लिए प्रार्थना करने की सलाह दी।मंदिर के गायब होने के पीछे है यह वजहस्तंभेश्वर मंदिर के गायब होने के पीछे की वजह प्राकृतिक है। दरअसल, यह मंदिर समुद्र के किनारे से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है। इसलिए दिन में समुद्र का स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर जलमग्न हो जाता है। फिर कुछ देर में जल का स्तर घट जाता है तो मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है। चूंकि समुद्र का स्तर दिन में दो बार बढ़ जाता है इसलिए मंदिर हमेशा सुबह और शाम के समय कुछ देर के लिए गायब हो जाता है। इस नज़ारे को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से इस मंदिर में आते हैं। -
हर व्यक्ति सुख-समृद्धि की चाहत करता है. कुछ लोग घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए कई तरह के उपाय भी करते हैं. परंतु कई बार इससे भी सफलता नहीं मिलती है. क्या आप जानते हैं कि फेंगशुई टिप्स के जरिए आप भी जीवन में सुख-शांति और समृद्धि ला सकते हैं. दरअसल फेंगशुई में कुछ टिप्स बताए गए हैं जिसके जरिए वास्तु दोष दूर साकारात्मक ऊर्जा ला सकते हैं. आइए जानते हैं फेंगशुई के कुछ खास टिप्स.
सुख-समृद्धि के लिए फेंगशुई के टिप्स
-फेंगशुई के मुताबिक सौभाग्य के लिए घर के फिट पॉट में 8 गोल्डन फिश और काले रंग की मछली रखनी चाहिए. एक्वेरियम को हमेशा ड्रॉइंग रूम में ही रखना चाहिए.
-फेंगशुई में ड्रैगन को समृद्धि का कारक माना गया है. माना जाता है कि इसे घर की पूरब दिशा में रखने से तरक्की के साथ-साथ धन की प्राप्ति होती है. इसके अलावा इससे घर की निगेटिविटी खत्म होती है.
-फेंगशुई के अनुसार, घर में कछुआ रखने से कामयाबी और खुशहाली आती है. माना जाता है कि कछुआ घर या ऑफिस की उत्तर दिशा में रखना शुभ है. कछुआ लोहे के अलावा अन्य किसी धातु का बना होना चाहिए.
-फेंगशुई में लाफिंग बुद्धा को आर्थिक सफलता का प्रतीक माना गया है. ऐसे में इसे घर या ऑफिस की उत्तर दिशा में रखने से आर्थिक स्थिति अच्छी होती है.
-फेंगशुई में तीन टांग वाला मेंढक बेहद बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि इसे घर या ऑफिस की उत्तर दिशा या मुख्य द्वार में लगाने से धन-वैभव में वृद्धि होती है. साथ ही तरक्की के रास्ते मिलते हैं. - होली के पांचवे दिन रंग पंचमी का पर्व मनाया जाता है. ये पर्व चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को सेलिब्रेट होता है.रंगपंचमी का पर्व वैसे तो महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर की रंगपंचमी पूरे देश में प्रसिद्ध है. इस दिन इंदौर में बहुत बड़ा जुलूस निकलता है. इस जुलूस में लाखों की तादाद में लोग शामिल होते हैं और आसमान में गुलाल उड़ाया जाता है. उड़ते रंग और गुलाल का ये दृश्य बहुत मनमोहक होता है. इस साल रंग पंचमी 2022 का पर्व 22 मार्च मंगलवार को मनाया जाएगा. ऐसे में यहां जानिए रंग पंचमी का महत्व और इस दिन से जुड़ी खास बातें.ये है रंग पंचमी का महत्वरंग पंचमी के दिन अबीर और गुलाल को आसमान की ओर फेंका जाता है. ये गुलाल उस दिन देवी देवताओं को अर्पित किए जाते हैं. मान्यता है कि रंग बिरंगे गुलाल की खूबसूरती देखकर देवता काफी प्रसन्न होते हैं और इससे पूरा वातावरण सकारात्मक हो जाता है. ऐसे में आसमान में फेंका गुलाल जब वापस लोगों पर गिरता है तो इससे व्यक्ति के तामसिक और राजसिक गुणों का नाश होता है, उसके भीतर की नकारात्मकता का अंत होता है और सात्विक गुणों में वृद्धि होती है.राधा कृष्ण के पूजन का दिनरंग पंचमी को राधा कृष्ण के पूजन का दिन माना जाता है और उन्हें अबीर और गुलाल अर्पित किया जाता है. कहा जाता है कि इससे व्यक्ति की कुंडली में मौजूद बड़े बड़े दोष भी समाप्त हो जाते हैं और जीवन प्यार से भर जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा का भी विधान है, इस कारण तमाम जगहों पर रंग पंचमी को श्रीपंचमी के नाम से भी जाना जाता है.ऐसे करें पूजनरंग पंचमी के दिन आप राधा कृष्ण या लक्ष्मी नारायण जिसकी भी पूजा करते हों, उनकी तस्वीर को उत्तर दिशा में एक चौकी पर रखें. चौकी पर तांबे का कलश पानी भरकर रखें. फिर रोली, चंदन, अक्षत, गुलाब के पुष्प, खीर, पंचामृत, गुड़ चना आदि का भोग लगाएं. भगवान को गुलाल अर्पित करें और आसन पर बैठकर ‘ॐ श्रीं श्रीये नमः’ मंत्र का जाप स्फटिक या कमलगट्टे की माला से करें. विधिवत पूजन के बाद आरती करें और क्षमा याचना करें और उनसे परिवार पर कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करें. कलश में रखे जल को घर के हर कोने में छिड़कें. जिस स्थान पर तिजोरी या धन रखने की व्यवस्था है, वहां जरूर छिड़कें. मान्यता है कि इससे घर में बरकत आती है.
- चैत्र नवरात्रि हिंदू कैलेंडर के पहले महीने चैत्र मासमें मनाई जाती है. इस साल 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि शुरू होंगे. इन नौ दिनों का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी है. नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. क्योंकि ये नौ दिन ‘चैत्र’ के महीने में पड़ते हैं, इसलिए इसे चैत्र नवरात्रि (Navratri) कहा जाता है. पंचांग के अनुसार इस साल 2 अप्रैल से 11 अप्रैल तक चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. इस दौरान विधि-विधान से मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि में बहुत लोग व्रत भी करते हैं.चैत्र घटस्थापना का शुभ मुहूर्तचैत्र नवरात्रि में घटस्थापना 2 अप्रैल को होगी. हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रतिपदा 1 अप्रैल को सुबह 11:53 बजे से शुरू होकर 2 अप्रैल को 11:58 बजे समाप्त होगी.घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल को सुबह 6.10 बजे से 8.31 बजे तक रहेगा. घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त इसी दिन दोपहर 12 बजे से 12.50 बजे तक रहेगा.राहुकाल2 अप्रैल को सुबह 9.17 बजे से 10.51 बजे तक राहुकाल रहेगा. हिंदू शास्त्रों के अनुसार इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.कलश स्थापना की विधिकलश स्थापना के लिए आपको मिट्टी के बर्तन (कलश), पवित्र स्थान से लाई गई मिट्टी, गंगाजल, आम या अशोक के पत्ते, सुपारी, चावल, नारियल, लाल धागा, लाल कपड़ा और फूल की आवश्यकता होती है. नवरात्रि के पहले दिन कलश की स्थापना की जाती है. कलश स्थापना से पहले मंदिर को अच्छी तरह साफ कर लें और लाल कपड़ा बिछा दें. इसके बाद इस कपड़े पर कुछ चावल रख दें. जौ को मिट्टी के चौड़े बर्तन में बो दें. अब इस पर पानी से भरा कलश रखें. कलश पर कलावा बांधें. इसके अलावा कलश में सुपारी, एक सिक्का और अक्षत डालें. अब ऊपर लाल चुनरी में लपेटा हुआ नारियल रखें और अशोक या आम के पत्ते रखें. मां दुर्गा का ध्यान करें. इसके बाद दीप जलाकर पूजा शुरू करें.पूजा का पहला दिननवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा का प्रथम रूप मानी जाने वाली शैलपुत्री सौभाग्य और शांति की देवी हैं. कहा जाता है नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से सभी प्रकार के सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
- हर व्यक्ति की इंटेलिजेंस का स्तर अलग-अलग होता है. कुछ लोग बेहद बुद्धिमान होते हैं और कुछ लोग आसान सी बात भी बहुत देर में समझ पाते हैं. ज्योतिष की मानें तो इंटेलीजेंस का संबंध व्यक्ति की राशि से भी होता है. कुछ खास राशियां ऐसी होती हैं, जिनकी इंटेलीजेंस का स्तर बहुत ऊंचा होता है, यहां तक कि आम लोगों के लिए इसे समझ पाना भी मुश्किल होता है. हालांकि इंटेलीजेंस 2 तरह की होती है. पहली विश्लेषणात्क और दूसरी इमोशनल-प्रैक्टिकल इंटेलीजेंस.आइए जानते हैं कि ज्योतिष के अनुसार किन राशियों के जातक बेहद बुद्धिमान होते हैं.वृश्चिक : वृश्चिक राशि के जातक बेहद इंटेलिजेंट होते हैं. इनकी परसेप्शनल इंटेलीजेंस यानी कि इमोशनल और प्रैक्टिकल बुद्धिमत्ता जबरदस्त होती है. ये लोग जल्दी से दूसरों की भावनाओं को भांप लेते हैं और उसके मुताबिक तेजी से कदम उठाते हैं.कुंभ : कुंभ राशि के जातकों की भी परसेप्शनल इंटेलीजेंस तगड़ी होती है. वे सामने वाले के कदम को पहले ही भांप जाते हैं और जब तक वो कोई स्टेप लेता है या उसका तोड़ निकाल चुके होते हैं. इसीलिए इन लोगों को मात देना बहुत मुश्किल होता है. इतना ही नहीं इनका आईक्यू सबसे तेज होता है. लिहाजा वे हमेशा कुछ न कुछ नया ढूंढते रहते हैं और उसे तर्क सहित साबित करके ही दम लेते हैं.मेष : मेष राशि के जातकों की बात करें तो इनका इंट्यूशन बहुत तेज होता है. ये भविष्य में होने वाली घटनाओं का अंदाजा लगा लेते हैं. साथ ही इनमें गजब का आत्मविश्वास भी होता है. इस कारण वे खूब सफल होते हैं.वृषभ : वृषभ राशि के जातक जमीन से जुड़े, मेहनती और व्यवस्थित जीवन जीने के आदि होते हैं. आमतौर पर लोग इनकी दिमागी क्षमता का अंदाजा नहीं लगा पाते हैं, जबकि ये लोग न केवल बहुत ऊंचा सोचते हैं, बल्कि उसे पाकर ही दम लेते हैं.
- होली के त्योहार का एक खास महत्व है। होली का यह पावन पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अगले दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रंग खेलने से ठीक पहले फाल्गुन पूर्णिमा की रात में होलिका दहन किया जाता है। ऐसे में 2022 में होलिका दहन 17 मार्च को होगा जबकि रंग वाली होली 18 मार्च , शुक्रवार को मनाई जाएगी। वैसे भी भारत की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। ब्रज की होली तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। होली को राधा-कृष्ण का त्योहार कहा जाता है। फुलेरा दूज से होली की शुरुआत हो चुकी है । मथुरा-वृंदावन की होली देखने के लिए तो दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। यहाँ इस दौरान होली के कई रूप देखने को मिलते हैं। होली के दिन रंगों में सराबोर होने के साथ यदि आप अपनी सुख समृद्धि के लिए कुछ विशेष उपाय करेंगे तो आपके घर धन की बरसात होगी। आइए जानते हैं क्या है ये उपाय-00 घर के मुख्यद्वार पर होली के दिन लाल, हरे, गुलाबी और पीले रंग से रंगोली सजाएं। इससे परिवार में खुशियों का आगमन होगा।00 होली के दिन गणेश जी की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान गणेश को ठंडाई का भोग लगाएं और इसके बाद उसे प्रसाद के रूप में सबको बांट दें। ऐसा करने से भाग्योदय होता है और किस्मत साथ देने लगती है।00 होली को राधा कृष्ण का पर्व माना जाता है। इसलिए होली के दिन राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करें और उन्हें गुलाबी रंग का गुलाल अर्पित करें। ऐसा करने से आपका दंपती जीवन खुशनुमा बना रहेगा।00 यदि आपके घर में कोई झण्डा लगा है तो होली के दिन उस झंडे को जरूर बदलें, ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आएगी और मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।00 यदि आप चाहते हैं घर में धन की कमी न हो और आर्थिक रूप से उन्नति की चाह हो तो घर या दफ्तर की पूर्व दिशा में उगते हुए सूरज की तस्वीर लगाएं। इससे आपको लाभ की प्राप्ति होगी। इस उपाय से धन के साथ प्रतिष्ठा भी प्राप्त होगी।
- हिंदू पंचांग के अनुसार होलिका दहन के दूसरे दिन धुलंडी को पूरे हर्षोउल्लास के साथ लोग रंग खेलते हैं,लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर रंग का हमारे मन और शरीर से बहुत गहरा नाता है वहीं रंग हमारी भावनाओं को भी दर्शाते हैं। हमारे आस-पास मौजूद रंगों के अनुसार व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से प्रभावित होता है। ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो कई रंग हमारे लिए बहुत लकी होते हैं तो वहीं कई रंग हमारे लिए अशुभ भी रहते हैं। यदि होली खेलने के लिए आप अपनी राशि के अनुरूप रंग चुनेंगे तो यह आपके लिए शुभ रहेगा और जीवन में सुख-समृद्धि व सफलता के द्वार भी खुलेंगे।मेष एवं वृश्चिक राशि-इन दोनों राशियों के स्वामी मंगल हैं। अतः इन राशि के जातकों के लिए होली खेलने में लाल, पीले, गुलाबी और केसरिया रंग का इस्तेमाल करना अच्छा रहेगा। ऐसा करने से आपको मानसिक शांति मिलेगी एवं पति-पत्नी के बीच संबंध भी मधुर बनेंगे।वृषभ एवं तुला राशि-इन दोनों राशियों के स्वामी शुक्र हैं। जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की प्रसन्नता के लिए इस राशि के जातकों को क्रीम, गुलाबी, हरा, फिरोजी या सिल्वर रंग या इससे मिलते-जुलते रंगों से होली खेलना बहुत शुभ रहेगा। ऐसा करने से आपको अपने कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी।मिथुन एवं कन्या राशि-इन दोनों राशियों के स्वामी बुध है अतः जन्म कुंडली में बुध के अशुभ प्रभाव को कम करके शुभता में वृद्धि के लिए इन राशि वाले जातकों को हरा,नीला,जामुनी व सी ग्रीन कलर को होली के लिए चुनना लाभकारी होगा। ऐसा करने से आपके जीवन में नई ऊर्जा शक्ति एवं बौद्धिक क्षमता का विकास होगा। पति-पत्नी का दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।कर्क राशि-इस राशि के स्वामी चंद्रमा है। चंद्रदेव की प्रसन्नता के लिए कर्क राशि के जातकों को अपनी राशि के अनुसार सिल्वर, गुलाबी, क्रीम, लाल या सैफ्रॉन कलर की गुलाल एवं रंगों से होली खेलना श्रेष्ठ रहेगा। ऐसा करने से आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी एवं तरक्की के नए अवसर भी प्राप्त होंगे।सिंह राशि-इस राशि के स्वामी सूर्य देव है जो सभी ग्रहों और राशियों के भी स्वामी माने गए हैं। जन्म कुंडली में सूर्य जनित दोषों से मुक्ति तथा उनकी प्रसन्नता के लिए इस राशि के जातकों को लाल,केसरिया,गुलाबी,पीले या इससे मिलते हुए रंगो से होली खेलना बेहद शुभ रहेगा। इन रंगों का गुलाल उड़ाने से जहां आपके विचारों में सकारात्मक वृद्धि होगी वहीं आपका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।धनु एवं मीन राशि-इस राशि के स्वामी बृहस्पति हैं। इनकी अशुभता में कमी और शुभता में वृद्धि के लिए इस राशि के जातकों को पीले,लाल,गुलाबी या केसरिया रंग से होली खेलने से जन्म कुंडली में बृहस्पति जन्म दोष शांत होंगे। इन रंगों के प्रयोग से धर्म-कर्म के मामलों में आस्था बढ़ेगी परिवार का माहौल खुशनुमा रहेगा।
- क्या आप जानते हैं कि पान का पत्ता (Pann ka Patta) आपके सिर दर्द की दवा बन सकता है. जी हां, अगर आपके सिर में असहनीय दर्द हो रहा है तो आप भी पान के पत्ते का इस्तेमाल कर सकते हैं. माना जाता है कि अगर पान के पत्ते को बांधकर आप अपने सिर से बांध लेंगे तो आपको इस दर्द से छुटकारा मिलेगा. इसके अलावा खुजली और घाव में ये पत्ता काफी इस्तेमाल होता है.पान के पत्ते में होते हैं कई औषधीय गुणआपने देखा होगा कि अक्सर लोग खाने के बाद पान खाने का शौक रखते हैं साथ ही पूजा-पाठ में भी खूब पान के पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ये सेहत से संबंधित कई परेशानियों को दूर करने में भी उपयोगी है. दरअसल, इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए अच्छे होते हैं.पिंपल्स में भी कारगार है पान का पत्तादरअसल, पान में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो पिंपल्स को हटाने में असरदार होते हैं. इसके लिए आप कुछ पान के पत्ते लें और उसे पीसकर पेस्ट बना लें. अब इसमें 2 चुटकी हल्दी और एलोवेरा जेल मिक्स कर दें. इसके बाद इसको लगाएं और 20 मिलन बाद चेहरे को धो लें.पान के पत्ते से खुजली होगी दूरइसके अलावा अगर आपको किसी भी प्रकार की खुजली होती है तो इसमें भी पान का पत्ता काफी फायदेमंद है. माना जाता है कि खुजली दूर करने के लिए आप नहाने के पानी में पान के पत्ते का रस निकालकर डालें. इसमें मौजूद एंटीइंफ्लेमेटरी गुण खुजली से राहत दिलाने में असरदार साबित होंगे.
- वास्तु शास्त्र के मुताबिक घर या दफ्तर में पौधे लगाना शुभ माना जाता है. दरअसल पेड़-पौधों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा सुख-शांति और समृद्धि लाती है. वास्तु शास्त्र के जानकार मानते हैं कि घर या दफ्तर में पेड़-पौधे लगाने से भाग्य अच्छा होता है. इसके साथ ही जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है. बांस का पौधा चमत्कारी माना गया है. वास्तु के मुताबिक बांस का पौधा किस्मत को चमकाने के लिए खास माना जाता है. परंतु, अगर वास्तु के मुताबिक ये सही दिशा में नहीं है तो आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है. ऐसे में जानते हैं बांस से जुड़े खास वास्तु टिप्स.बांस का पौधा लगाते वक्त रखें खास बातों का ध्यान-वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर घर में बांस का पौधा लगाते हैं तो इसे खिड़की के पास या ऐसी जगह पर ना रखें जहां धूप आती हो, क्योंकि धूप में ये पौधा खराब हो जाएगा जिसका घर की आर्थिक स्थिति पर सीधा असर पड़ेगा.-बांस का पौधा लगाने के लिए सबसे अच्छी दिशा पूरब है. इस दिशा में बांस का पौधा लगाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है. साथ ही घर के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है.-वास्तु शास्त्र के अनुसार, 2-3 फीट की ऊचाई तक बढ़ने वाले बांस के पौधे शुभ होते हैं. दफ्तर में बांस का पौधा लगाने से वातावरण शुद्ध रहता है. साथ ही नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. इसके अलावा ऑफिस में लगाए गए बांस के पौधे का पानी सप्ताह में एक बार जरूर बदल दें. ऐसा करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.-बांस का पौधा लगाने से बीमारियां दूर होती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है. साथ ही बांस के पौधे को बेडरूम में भी रखा जा सकता है. ये दांपत्य जीवन में मधुरता आती है.-बांस के पौधे को कांच के गमले या बाउल में पानी डालकर उसे लाल रंग के रिबन से बांधकर रखना चाहिए. करियर में सफलता पाने के लिए स्टडी रूम में 4 बांस के पौधे लगाएं.-
- होली का त्योहार आने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। हिंदू धर्म में होली और इससे पहले होलिका दहन का विशेष महत्व है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस साल होलिका दहन 17 मार्च 2022 को किया जाएगा। जबकि इसके अगले दिन यानी 18 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा। होली के दिन काली हल्दी के टोटके से जीवन की तमाम समस्या का निदान मिल सकता है। आइए जानते हैं कि होली के दिन काली हल्दी के टोटके किस प्रकार किए जाते हैं।होली के दिन काली हल्दी के टोटके-होली की रात को किसी चांदी के डब्बे में काली हल्दी, नागकेसर और सिंदूर को साथ में मिलाकर मां लक्ष्मी के चरणों का पास रख दें। कुछ देर के बाद इसे तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रख दें। इस टोटके से धन रुकन लगेगा। साथ ही रुपए-पैसों की किल्लत भी दूर होगी।-अगर किसी कारण से शनि या राहु-केतु जैसे ग्रहों से जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो ऐसे में होली की रात में काली हल्दी पीसकर उसमें रक्त चंदन मिलाकर टीका लगाएं। ऐसा करने से शनि, राहु और केतु की पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी।-अगर मानसिक तनाव बना रहता है तो इसे दूर करने के लिए होली की रात शुभ मुहूर्त में काली हल्दी को कटोरी में रखकर मां लक्ष्मी के सामने रखें। इसके बाद इसे धूप-दीप दिखाकर धागे में पिरोकर गले में धारण करें। ऐसा करने से मानसिक परेशानियों से छुटकारा मिलने लगेगा।-काली हल्दी की माला पहनने से नजर दोष दूर होते हैं। साथ ही ग्रहों का दुष्प्रभाव भी खत्म होने लगता है। इतना ही नहीं, अगर किसी प्रकार के टोने-टोटका का भी खतरा टल जाता है।-अगर बहुत कोशिश करने के बावजूद भी बिजनेस में आर्थिक उन्नति नहीं हो रही है तो ऐसे में होली कि दिन शुभ मुहूर्त में व्यापार वाले स्थान पर हल्दी को पीसकर उसमें केसर और गंगाजल मिलाकर व्यापार स्थल पर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। ऐसा करने से धीरे-धीरे व्यापार में आर्थिक प्रगति होने लगेगी।-होली की रात काली हल्दी को सिंदूर में रखकर उसे धूप दिखाकर कुछ सिक्के रखकर लाल कपड़े में लपेटकर धन वाले स्थान पर रख दें। काली हल्दी के इस टोटके से धन में वृद्धि होने लगती है।
- हर इंसान चाहता है कि उसके घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहे. साथ ही परिवार के सदस्य आपस में हंसते-खेलते हुए शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करें. कहते हैं कि जब परिवार में सुख-शांति रहती है तो सुकून मिलता है. इसके साथ ही शांत और खुशहाल घर में धन की देवी लक्ष्मी का भी वास होता है. वहीं जिस घर या परिवार में आपसी कलह-क्लेश और झगड़े होते हैं, वहां रहने वालों की मानसिक स्थिति बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है. ऐसे में इससे निजात पाने के लिए शास्त्रों अचूक और प्रभावी उपाय बताए गए हैं.पारिवारिक कलह को दूर करने के लिए खास हैं ये उपाय-अगल घर में बराबर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं और चाहकर उससे छुटकारा नहीं मिल रहा है तो ऐसे में केसर का उपाय लाभकारी हो सकता है. इसके लिए चुटकी भर केसर को पानी में डालकर स्नान करें. इसके अलावा केसर का दूध पीन से मानसिक शांति बनी रहती है.-लगातार 7 मंगलवार हनुमानजी के मंदिर में जाकर या घर में ही उनकी तस्वीर के सामने पांच मुखी दीपक जलाएं. इसके साथ अष्टगंध ही जलाएं. ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहेगी और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहेगा.-गृह क्लेश को दूर करने के लिए रात में सोने से पहले एक गाय के घी में एक टुकड़ा डूबोकर उसे जलाएं. कपूर को पीतल के बर्तन जलाने से अधिक लाभ मिलेगा. इसके अलावा सप्ताह में एक दिन घर में गुग्गुल भी जला सकते हैं. ऐसा करने से घर में शांति का माहौल बरकरार रहता है. साथ ही मानसिक शांति मिलती है.-घर में पोछा लगाते वस्त पानी में थोड़ा सा नमक मिला लें. ऐसा करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है और घर के सदस्य खुशहाल रहने लगते हैं. इसके अलावा जिस घर में अक्सर कलह होती है, वहां हर महीने सत्यनारायण भगवान की कथा कराना चाहिए. दरअसल ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और मन प्रसन्न रहता है.
- फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि को होलिका दहन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन होलिका दहन और पूजा के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए. होलिका दहन के अगले दिन रंग-अबीर वाली होली खेली जाती है. होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक मान्यता है को होलिका दहन से आस-पास की नाकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं. इस बार होलिका दहन 17 मार्च को है. वहीं रंगवाली होली 18 मार्च को खेली जाएगी. ऐसे में पंचांग के मुताबिक जानते हैं होलिका दहन की तारीख और 3 खास उपाय.होली पर बनेगा खास संयोगज्योतिष शास्त्र के मुताबिक इस बार होली का त्योहार खास रहने वाला है. दरअसल इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं. इस बार होली के दिन अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, वृद्धि योग और ध्रुव योग बनने वाला है. इसके साथ ही गुरु और बुध का आदित्य योग बनेगा. आदित्य योग में होली की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है.होलिका की राख के उपाय-अगर घर में बहुत ज्यादा लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं या घर की निगेटिव एनर्जी को दूर करना चाहते हैं तो होलिका की राख की पोटली बना लें. इसके बाद इसे शुभ मुहूर्त में घर के अलग-अलग हिस्से में रख दें. ऐसा करने से घर में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाएगी.-अगर घर के बच्चे या किसी सदस्य को बहुत जल्द नजर लग जाती है अथवा कोई व्यक्ति महेशा बीमार रहता है तो इसके लिए होलिका की राख को किसी कपड़े में बांधकर व्यक्ति के सिर से 7 बार घुमाएं. ऐसा करने के बाद उसे मिट्टी के अंदर गाड़ दें.-आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए होलिका की राख को लाल रंग के कपड़े में बांध लें. इसके बाद इसे तिजोरी या धन वाले स्थान पर रखें. इसके अलावा इसे पर्स की छोटी पॉकेट में भी रख सकते हैं. साथ ही कोई भी कार्य शुरू करने से पहले इस राख का टीका लगाएं. ऐसा करने से सारे काम पूरे होंगे और जीवन में धन की स्थिति अच्छी रहेगी.
- हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि (Phalguna Purnima) को होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन (Holika Dahan) को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इसके अगले दिन प्रतिपदा तिथि पर रंगों और गुलाल से होली (Holi with Colors) खेली जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली खेलने की ये परंपरा कैसे शुरू हुई. पौराणिक कथाओं में रंगों की होली का संबन्ध श्रीकृष्ण और राधारानी से संबन्धित बताया गया है. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने ही अपने ग्वालों के साथ इस प्रथा को शुरू किया था. यही वजह है कि होली के त्योहार (Holi Festivals) को आज भी ब्रज में अलग ढंग से ही मनाया जाता है. यहां लड्डू होली, फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंगों की होली आदि कई तरह की होली खेली जाती हैं और ये कार्यक्रम होली से कुछ दिनों पहले से शुरू हो जाता है. इस बार होली का पर्व 18 मार्च को मनाया जाएगा. यहां जानिए कि आखिर रंगों की होली खेलने का ये चलन कैसे शुरू हुआ.ये है कथारंगों की होली के पीछे श्रीकृष्ण की शरारत की एक कथा है. श्रीकृष्ण का रंग सांवला था और राधारानी बहुत गोरी थीं. इस बात की शिकायत वो अक्सर अपनी यशोदा मैया से करते थे और उनकी मैया इस बात पर जोर से हंस देती थीं. एक बार उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा वे राधा को जिस रंग में देखना चाहते हैं, वो रंग राधा के चेहरे पर लगा दें. नटखट कन्हैया को मैया का सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने ग्वालों के साथ मिलकर कई तरह के रंग तैयार किए और बरसाना पहुंच कर राधा और उनकी सखियों को इससे रंग दिया. नटखट कन्हैया की ये शरारत सभी को आनंद दे रही थी और सभी ब्रजवासी खूब हंस रहे थे. माना जाता है कि इसी दिन से होलिका दहन के बाद रंगों की होली खेलने का चलन शुरू हो गया. लोग रंग बिरंगे गुलाल से होली खेलकर इस उत्सव को सेलिब्रेट करते हैं.जीवन में उत्साह भरते हैं रंगआपके नीरस जीवन में ये रंग उत्साह भरने का काम करते हैं और लोगों के बीच सकारात्मकता का भाव लेकर आते हैं. लाल रंग प्रेम का प्रतीक माना जाता है और हरा रंग समृद्धि का सूचक है. पीला रंग शुभ माना गया है और नीला रंग श्रीकृष्ण का रंग माना गया है. इस तरह रंगों से होली खेलकर हमारा मन आनंदित हो जाता है. ये त्योहार लोगों के मन से कटुता को समाप्त कर प्रेम भर देता है. वैसे तो होली का ये पर्व भारत के अधिकांश हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन ब्रज की होली आज भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इसे राधाकृष्ण के सच्चे प्रेम के प्रतीक के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है.