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- हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि (Magh Month Panchami Tithi) को बसंत पंचमी (Basant Panchami) का त्योहार मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन ज्ञान और संगीत की देवी मां सरस्वती (Maa Saraswati) का उद्भव हुआ था. इसलिए ये दिन माता सरस्वती की आराधना का दिन माना जाता है. ज्ञान, वाणी और कला में रुचि वालों के लिए ये दिन बेहद खास होता है. ये भी कहा जाता है कि अगर किसी छोटे बच्चे को शिक्षा प्रारंभ करानी हो, तो इस दिन से शुरुआत कराएं, इससे बच्चे को माता सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वो बच्चा काफी कुशाग्र बुद्धि वाला और ज्ञानवान बनता है. इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 5 फरवरी को शनिवार के दिन मनाया जाएगा. जानें बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा के बारे में.बसंत पंचमी शुभ मुहूर्तहिंदू पंचाग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पंचमी 05 फरवरी सुबह 03 बजकर 47 मिनट से शुरू होगी और 06 फरवरी की सुबह 03 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी. इस तरह बसंत पंचमी का पर्व 5 फरवरी को मनाया जाएगा. पूजा के लिए शुभ समय सुबह 07 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 57 मिनट तक है. राहुकाल सुबह 09 बजकर 51 मिनट से दिन में 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगा. राहुकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है, इसलिए इस समय पर पूजन आदि न करें.बसंत पंचमी पूजा विधिसुबह स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें. चाहें तो दिन भर का व्रत रखें या पूजा करने तक व्रत रख सकते हैं. पूजा के स्थान की सफाई करके चौक लगाएं और इस चौक पर माता की चौकी रखें. उस पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं. माता सरस्वती की प्रतिमा रखें. उन्हें पीला चंदन, पीले पुष्प, पीले रंग के मीठे चावल, पीली बूंदी या लड्डू, पीले वस्त्र, हल्दी लगे पीले अक्षत अर्पित करें. धूप दीप जलाएं. इसके बाद बसंत पंचमी की कथा पढ़ें या सुनें. माता सरस्वती के मंत्रों का जाप करें. इसके बाद माता सरस्वती की आरती करें.बसंत पंचमी कथापौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, तो महसूस किया कि जीवों की सृजन के बाद भी चारों ओर मौन व्याप्त है. इसके बाद उन्होंंने विष्णुजी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुईं. अत्यंत तेजवान इस शक्ति स्वरूप के एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में पुष्प, वीणा, कमंडल और माला वगैरह थी. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, चारों ओर ज्ञान और उत्सव का वातावरण उत्पन्न हो गया. वेदमंत्र गूंजने लगे. जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी. तब से इस दिन को माता सरस्वती के जन्म दिन तौर पर मनाया जाने लगा.
- हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों का सिलसिला चलता ही रहता है. फरवरी का महीना इस मामले में बेहद खास है. अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से फरवरी साल का दूसरा महीना है. लेकिन हिंदू कैलेंडर (Hindu Calendar) में फरवरी में साल के आखिरी दो महीने शामिल हैं. 16 फरवरी को माघ मास समाप्त होगा और इसके बाद फाल्गुन की शुरुआत होगी. इस तरह फाल्गुन का आधा महीना भी फरवरी में ही शामिल रहेगा. माघ और फाल्गुन के महीने (Phalguna Month) में व्रत और त्योहारों की भरमार होती है. कुछ ही दिनों में फरवरी का महीना शुरू होने वाला है, ऐसे में यहां जानिए फरवरी माह में आने वाले व्रत और त्योहारों के बारे में.फरवरी माह के प्रमुख व्रत और त्योहार की लिस्टभौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या – मंगलवार, 1 फरवरीमाघ गुप्त नवरात्रि – बुधवार, 2 फरवरीचतुर्थी व्रत – शुक्रवार, 4 फरवरीबसंत पंचमी – शनिवार, 5 फरवरीरथ सप्तमी, अचला सप्तमी – सोमवार, 7 फरवरीदुर्गा अष्टमी व्रत, भीष्म अष्टमी – मंगलवार, 8 फरवरीमहानंदा नवमी – बुधवार, 9 फरवरीरोहिणी व्रत – गुरुवार, 10 फरवरीजया एकादशी – शनिवार, 12 फरवरीविश्वकर्मा जयंती, प्रदोष व्रत – सोमवार, 14 फरवरीमाघ पूर्णिमा, गुरु रविदास जयंती, माघ स्नान समाप्त – बुधवार, 16 फरवरीसंकष्टी चतुर्थी – रविवार, 20 फरवरीबुद्ध अष्टमी व्रत, कालाष्टमी – बुधवार, 23 फरवरीश्री रामदास नवमी – शुक्रवार, 25 फरवरीस्वामी दयानंद सरस्वती जयंती – शनिवार, 26 फरवरीविजया एकादशी – रविवार, 27 फरवरीसोम प्रदोष व्रत – सोमवार, 28 फरवरीइन त्योहारों का है विशेष महत्वमौनी अमावस्या : मौनी अमावस्या को शास्त्रों में विशेष मान्यता दी गई है. मान्यता है कि इस नदियों में देवताओं का वास होता है. इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है.बसंत पंचमी : ये दिन मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस है. इस दिन माता सरस्वती की विशेष पूजा करने का विधान है.अचला सप्तमी : माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी और रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि इस दिन नदियों में स्नान और सूर्य को अर्घ्य देने और दान पुण्य करने से व्यक्ति को आयु, आरोग्य और सुख समृद्धि प्राप्त होती है.माघी पूर्णिमा : माघी पूर्णिमा को लेकर शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु गंगा नदी में निवास करते हैं. इस दिन पवित्र नदियों के घाट पर उत्सव जैसा माहौल होता है.एकादशी : हर माह में दो एकादशी पड़ती हैं. सभी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित हैं. एकादशी को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. फरवरी के महीने में जया एकादशी और विजया एकादशी पड़ेंगी.प्रदोष : हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. ये व्रत भगवान शिव को समर्पित है और हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला माना गया है.
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हरे रंग में हरी सब्जियां, दालें, बिस्तर, पेड़-पौधे और कपड़े आदि शामिल हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, हरे रंग से संबंधित चीजों को पूर्व या फिर दक्षिण-पूर्व दिशा यानी आग्नेय कोण में रखना अच्छा होता है। साथ ही घर में हरी घास के छोटे-से बगीचे को इन्हीं में से एक दिशा में बनाना चाहिए।
वास्तु शास्त्र की मान्यता-
वास्तु शास्त्र के अनुसार, हरे रंग और इन दिशाओं का संबंध काष्ठ यानी लकड़ी से है। इसलिए हरे रंग की वस्तुओं को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना बेहद शुभ माना जाता है। पूर्व दिशा में हरे रंग की चीजें रखने से घर के बड़े बेटे को जीवन में तरक्की हासिल होती है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक, आग्नेय कोण में हरे रंग की चीजों को रखने से बड़ी बेटी को लाभ मिलता है। - एक सफल गृहस्थ जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच गुणों का मिलना बहुत जरुरी होता है, ये गुण कुंडली के द्वारा मिलाए जाते हैं। वैवाहिक दृष्टि से कुंडली मिलान इन पांच महत्वपूर्ण आधार पर किया जाता है - कुंडली अध्ययन,भाव मिलान, अष्टकूट मिलान, मंगल दोष विचार, दशा विचार। उत्तर भारत में गुण मिलान के लिए अष्टकूट मिलान प्रचलित है जबकि दक्षिण भारत में दसकूट मिलान की विधि अपनाई जाती है। आइए जानते हैं क्या है ये अष्टकूट मिलान-वर्ण -(1 अंक)वर्ण का निर्धारण चन्द्र राशि से निर्धारण किया जाता है जिसमें 4(कर्क) ,8 (वृश्चिक) , 12 (मीन) राशियां विप्र या ब्राह्मण हैं 1(मेष ), 5(सिंह) ,9(धनु) राशियां क्षत्रिय है 2(वृषभ) , 6(कन्या) ,10(मकर) राशियाँ वैश्य हैं जबकि 3(मिथुन) ,7(तुला),11(कुंभ) राशियां शूद्र मानी गयी हैं।वश्य- (2अंक)वश्य का संबंध मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- द्विपाद, चतुष्पाद, कीट, वनचर, और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है? द्विपदीय राशि के अंतर्गत मिथुन, कन्या, तुला और धनु राशि आती हैं। चतुष्पदी राशि के अंतर्गत मेष, वृषभ, मकर, जलचर राशि के अंतर्गत कर्क, मकर और मीन कीट राशि के अंतर्गत वृश्चिक राशि और वनचर राशि के अन्तर्गत सिंह राशि आती है।तारा (3 अंक)तारा का संबंध दोनों (वर-वधु )के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाए गए हैं- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं। वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गिने और प्राप्त संख्या को 9 से भाग करें यदि शेष फल 3 ,5 , 7 आता है तो अशुभ होता है ,जबकि अन्य स्थिति मे तारा शुभ होता है तारा शुभ होने पर 1-1/2 अंक प्रदान करते हैं। ऐसा ही कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिन जाता है। अत: इस प्रकार दोनों के नक्षत्र से गिनने पर शुभ तारा आता है पूर्णांक 3 दिए जाते हैं, यदि एक शुभ और दूसरा अशुभ तारा आता है तो 1 - 1/2 अंक दिए जाते हैं अन्य स्थिति में कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।योनि (4अंक)जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। जन्म नक्षत्र के आधार पर योनि निर्धारित होती हैं जिसका विवरण इस प्रकार से है - यदि योनियां एक ही है तो 4 अंक , यदि मित्र है तो 3 अंक , यदि सम है तो 2अंक , शत्रु है तो 1अंक , और यदि अति शत्रु है तो कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।ग्रह मैत्री (5 अंक)वर एवं कन्या के राशि स्वामी से ग्रह मैत्री देखी जाती है। राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है।गण ( 6 अंक )गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य। हम इसे यह भी कह सकते हैं कि सभी नक्षत्रों को तीन समूहों देव, मनुष्य और राक्षस में बांटा गया है। अनुराधा , पुनर्वसु , मृगशिरा , श्रवण , रेवती , स्वाति , हस्त ,अश्विनी और पुष्य इन नौ नक्षत्रों का देव गण होता है। पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, भरणी और आद्रा इन नौ नक्षत्रों का मनुष्य गण होता है। मघा ,आश्लेषा, धनिष्टा ,ज्येष्ठा , मूल , शतभिषा , विशाखा , कृतिका ,और चित्रा का राक्षस गण होता है । इस प्रकार यदि वर-कन्या दोनों के गण एक ही हो तो पूर्णांक 6 अंक, वर देव गण हो कन्या नर गण की हो तो भी 6 अंक, यदि कन्या का देव गण हो वर का नर हो तो 5 अंक यदि वर राक्षस गण का हो कन्या देव गण की हो तो 1 अंक और अन्य परिस्थितियों में कोई अंक नहीं दिया जाता है।भकूट (7 अंक)भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एक-दूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है। वर और कन्या की चंद्र राशि के आधार पर भकूट देखा जाता है। वृष और मीन, कन्या और वृश्चिक, धनु और सिंह हो तो शून्य अंक, तुला और तुला, कर्क और मकर, मिथुन और कुंभ हो तो सात अंक और समान राशि होने पर भी 7 अंक प्राप्त होंगे।नाड़ी ( 8 अंक)जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन प्रकार की नाडिय़ां होती हैं आदि, मध्य और अंत्या। इस कूट मिलान में वर -कन्या की एक नाड़ी नहीं होनी चाहिए , यदि दोनों की अलग-अलग नाड़ी हो तो पूर्णांक 8 अंक दिए जाते हैं जबकि अन्य स्थिति में ( जहां दोनों की एक ही नाड़ी होती है) कोई भी अंक नहीं दिया जाता है। जन्म राशि एक किन्तु नक्षत्र भिन्न अथवा नक्षत्र एक परन्तु राशि भिन्न अथवा चरण भिन्न होने पर दोष नहीं माना जाता है।कितने गुण मिलने से विवाह माना जाता है उत्तमकुंडली में ये सभी मिलकर 36 गुण होते हैं, जितने अधिक गुण वर-वधू के मिलते हैं, विवाह उतना ही सफल माना जाता है।18 से कम- विवाह योग्य नहीं अथवा असफल विवाह18 से 25- विवाह के लिए अच्छा मिलान25 से 32- विवाह के उत्तम मिलान, विवाह सफल होता है32 से 36- ये अतिउत्तम मिलान है, ये विवाह सफल रहता है
- हिंदू धर्म में पेड़ पौधों की विशेषता और इनके धार्मिक महत्व के बारे में बताया गया है। इस कड़ी में आज हम बात करेंगे आक के पेड़ की। इस पेड़ को आम भाषा में आकड़ा, अकउआ और मदार के नाम से जाना जाता है। ये पौधा आपको राह चलते आसानी से किसी भी बंजर भूमि में देखने को मिल जाएगा। इसमें सफेद और हल्के बैंगनी रंग के फूल आते हैं। माना जाता है कि आक के पेड़ में स्वयं विघ्नहर्ता गणेश का निवास होता है। इसके फूल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। कहा जाता है कि अगर शुभ मुहूर्त में इसे घर में लगाया जाए तो ये पौधा आपके बड़े बड़े काम बना सकता है। यहां जानिए इसके बारे में।गंभीर रोग भी पकड़ में आ जाताज्योतिषियों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की बीमारी पकड़ में न आ रही हो, तो आक की जड़ का उपाय मददगार हो सकता है। इसके लिए रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक की जड़ घर लेकर आएं और उसे गंगाजल से धो लें। इस जड़ पर सिंदूर लगाएं और गुग्गल की धूप दें। इसके बाद गणपति के 108 मंत्र का श्रद्धा के साथ जाप करें। इसके बाद जड़ को रोगी के सिर के ऊपर से 7 बार उतारें और शाम को किसी सुनसान जगह पर जाकर गाड़ दें। ऐसा करने के कुछ समय बाद ही आपको रोगी का रोग पकड़ में आ जाएगा।संतान सुख दिलाने में मददगारआक की जड़ को संतान सुख दिलाने वाला भी माना जाता है। जो महिला संतान सुख से वंचित हो वो पीरियड से निवृत्त होने के बाद आक की जड़ को अपनी कमर में बांध ले। इसे लगातार अगले पीरियड आने तक बांधे रहना है। माना जाता है कि ऐसा करने से महिला को सन्तान का सुख अवश्य मिलता है।टोने- टोटके को बेअसर करताअगर सफेद फूलों वाले आक के पौधे को रविपुष्य योग में घर के मुख्य दरवाजे के पास लगाया जाए तो ये ये पौधा घर को बुरी नजर, टोना-टोटका, तन्त्र-मन्त्र के दुष्प्रभाव से बचाता है। इसे लगाने से परिवार पर बुरी आत्माओं, दुर्भाग्य और दुष्ट-ग्रहों की वृद्धि का प्रभाव भी नहीं पड़ता। यदि किसी व्यक्ति पर तान्त्रिक अभिकर्म किया हुआ है तो आक का एक टुकड़ा अभिमन्त्रित करके कमर में बांधने से तान्त्रिक क्रिया निष्फल हो जाती है।सौभाग्य लाने वालाइस पेड़ को सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। अगर आपका भाग्य आपका साथ नहीं देता तो इसकी जड़ को अभिमंत्रित करके दायीं भुजा पर बांधें और गणेश जी का सौभाग्य वर्धक सकटनाशन स्तोत्र का पाठ करें।
- माघ के महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा के अलावा छह तरीके से तिल का प्रयोग करना अत्यंत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति को कन्यादान, हजारों सालों की तपस्या और स्वर्ण दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। वो इस जीवन के सारे सुख भोगकर अंत में परमधाम की ओर अग्रसर होता है। इस बार षटतिला एकादशी का व्रत 28 जनवरी 2022 को शुक्रवार के दिन रखा जाएगा। अगर आप भी ये व्रत रखने के बारे में सोच रहे हैं, तो यहां जानिए व्रत के नियमों के बारे में-षटतिला एकादशी व्रत के नियम- इस व्रत के नियम दशमी की रात से शुरू हो जाते हैं, जिनका पालन द्वादशी के दिन व्रत पारण के समय तक करना जरूरी होता है।- दशमी की शाम को सूर्यास्त से पहले बिना प्याज लहसुन का साधारण भोजन करें। रात में भगवान का मनन करते हुए सोएं। अगर जमीन पर बिस्तर लगाकर सो सकें तो बहुत ही उत्तम है।- सुबह उठने के बाद स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद भगवान के समक्ष एकादशी व्रत का संकल्प लें और उनका विधि विधान से पूजन करें। पूजन के दौरान षटतिला एकादशी व्रत कथा भी जरूर पढ़े।- संभव हो तो दिनभर निराहार रहें और शाम के समय फलाहार लें। ब्रह्मचर्य का पालन करें और किसी के बारे में गलत विचार न लाएं।, न ही किसी की चुगली करें. बस मन में प्रभु के नाम का जाप करें।- दूसरे दिन द्वादशी पर स्नान आदि के बाद भगवान का पूजन करें और किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और सामथ्र्य के अनुसार दान करें। इसके बाद व्रत का पारण करें।इन छह तरीकों से करें तिल का प्रयोगषटतिला एकादशी के दिन तिल का छह तरीके से प्रयोग करें। पहला तिल मिश्रित जल से स्नान करें, दूसरा तिल का उबटन लगाएं, तीसरा भगवान को तिल अर्पित करें, चौथा तिल मिश्रित जल का सेवन करें, पांचवां फलाहार के समय तिल का मिष्ठान ग्रहण करें और छठवां व्रत वाले दिन तिल से हवन करें या तिल का दान करें। जो लोग व्रत नहीं रह रहे हैं, वे भी तिल का छह तरीकों से प्रयोग कर इस दिन का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।षटतिला एकादशी का शुभ मुहूर्तषटतिला एकादशी तिथि प्रारंभ : 28 जनवरी शुक्रवार को 02 बजकर 16 मिनट परषटतिला एकादशी समाप्त : 28 जनवरी की रात 23 बजकर 35 मिनट परव्रत पारण का शुभ समय : शनिवार को सुबह 07 बजकर 11 मिनट से सुबह 09 बजकर 20 मिनट के बीच. इसके अलावा आप दिन में किसी भी समय पारण कर सकते हैं क्योंकि द्वादशी तिथि पूरे दिन रहेगी. द्वादशी तिथि का समापन 29 जनवरी की रात 08 बजकर 37 मिनट पर होगा।
- कई लोग जीवन में तरक्की हासिल करने के लिए कड़ी मेहतन करते हैं, पर फिर भी उनका संघर्ष जारी रहता है। इतनी मेहनत करने के बावजूद उन्हें मुकाम या सफलता हासिल करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं और उसमें से एक है ज्योतिष शास्त्र से जुड़े नियम। इन नियमों की अनदेखी करना शुभ नहीं माना जाता। कहते हैं कि इस वजह से करियर पर भी बुरी असर पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि ज्योतिष शास्त्र से जुड़े नियमों का पालन करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है। हम आपको चीनी से जुड़े कुछ ज्योतिष उपाय बताने जा रहे हैं। किचन में हर समय मौजूद रहने वाली चीनी कई तरह के दुखों का निवारण करने में कारगर मानी जाती है। जानें इससे जुड़े ज्योतिष उपाय-कुंडली में सूर्य को करें मजबूतकहते हैं कि चीनी का ग्रहों के साथ एक कनेक्शन होता है और इसलिए खास मौकों पर इसकी मिठास को शामिल करना बहुत शुभ माना जाता है। किसी की कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो वह भी इससे जुड़े उपाय कर सकता है। तांबे के पात्र में पानी में चीनी मिलाकर पीने से सूर्य की स्थिति मजबूत होती है।सफलता के लिएघर से निकलते वक्त अगर आप करियर से जुड़े किसी शुभ काम के लिए निकल रहे हैं, तो चीनी का उपाय करना न भूलें। तांबे के बर्तन में चीनी और पानी लें और इसे घोलकर थोड़ा सा पी जाएं। ये चीनी और दही वाले उपाय की तरह ही काम करता है और सफलता पाने में भी मददगार साबित होगा।राहु ग्रहकहते हैं कि राहु ग्रह पर भी चीनी असरदार मानी जाती है। इससे जुड़ा उपाय करने के लिए लाल कपड़े में चीनी बांधें और इसे रात में सोते समय अपने सिरहाने के नीचे रख लें। इससे कुंडली में चल रहे राहु की दिक्कत को दूर करने में मदद मिलेगी।पितृदोष से मुक्तिइसमें भी चीनी से जुड़ा उपाय कारगर साबित हो सकता है। इस उपाय को करने के लिए आप आटे की रोटी बनाएं और इसमें चीनी मिलाकर इसे कौवों को खिलाए। कहते हैं कि ऐसा करने वाले व्यक्ति की परेशानियां कम होती है। बता दें कि इस उपाय को कई दिनों तक करना अच्छा माना जाता है।
- सुपारी का इस्तेमाल खाने के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता है। पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली सुपारी आकार में छोटी होती है। हालांकि ये केवल देखने में छोटी होती है, लेकिन इसके कई चमत्कारिक लाभ भी हैं। दरअसल सुपारी को गौरी और गणेश का स्वरूप माना जाता है। इसलिए इससे कई प्रकार के टोटके भी किए जाते हैं। मान्यता है कि सुपारी के टोटके से धन लाभ होता है। ऐसे में जानते हैं कि सुपारी के टोटके किस प्रकार किए जाते हैं।-सुपारी अखंडित होती है, इसलिए इसे गौरी-गणेश का स्वरुप मानकर पूजा के दौरान भगवान को चढ़ाया जाता है। शुक्रवार या किसी पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को सुपारी चढ़ाएं। इसके बाद इसके ऊपर लाल धागा लपेटकर तिजोरी में रखें ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। जिससे धन का नुकसान नहीं होता है।-अगर कोई काम नहीं बन रहा है या इसमें बाधा आ रही है तो ऐसे में किसी महीने की गणेश चौथ के दिन गणेशजी को सुपारी और लौंग अर्पित करें। जब भी काम पर जाएं इस सुपारी और लौंग को पास रखें। ऐसा करने से काम में सफलता मिलेगी।-सुबह स्नान के बाद घर या मंदिर में भगवान गणेश के सामने पान के पत्ते पर अक्षत, सिंदूर और घी मिलाकर स्वास्तिक बनाएं। अब इस पर सुपारी रखकर कलावे से लपेट दें। इसके बाद गणेश को अर्पित करने के बाद इसे धन वाले स्थान पर रखें। माना जाता है ति ऐसा करने के पैसों की तंगी नहीं रहती है।-शनिवार के दिन पीपल के नीचे एक सुपारी और एक सिक्का रख दें। अगले दिन वहां जाकर पीपल के प्रणाम करने के बाद इसका पत्ता लेकर उसमें सुपारी और सिक्का को लपेटकर तिजोरी या गल्ले में रख दें। इसके व्यापार में वृद्धि होगी। साथ ही तिजोरी भी खाली नहीं होगी।-जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र का योग बने उस दिन स्नान के बाद एक रुमाल में सुपारी, एक हल्दी की गांठ और नारियल का गोला बांध लें। इसके बाद इसे रोज धूप-दीप दिखाएं। ऐसा करने से धन लाभ का योग बनता है।
- कभी-कभी हमारा मन बड़ा अशांत रहता है। छोटी से छोटी बात भी हमें परेशान कर देती है और हम समझने लगते हैं कि हमारे साथ केवल बुरा हो रहा है। ऐसे में आप कुछ उपाय कर सकते हैं, जिससे आपके मन को शांति मिलेगी, लेकिन इसके लिए आपको मन से ये उपाय अपनाने होंगे।गायत्री मंत्र का जापअगर आप भी अशांत मन का सामना कर रहे हैं और इससे अक्सर परेशान रहते हैं, तो रोजाना गायत्री मंत्र 'ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात' का जाप करें। इससे पॉजिटिव एनर्जी आती है।सात्विक आहारमान्यता है कि अगर हम सात्विक आहार का सेवन करते हैं तो हमारे मन से बुरे ख्याल दूर रहते हैं और ध्यान भी केंद्रित रहता है। साथ ही ये स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा माना जाता है।एकादशी व्रतऐसा माना जाता है कि मन को शांत करने के लिए एकादशी का व्रत रखना भी अच्छा होता है। महीने में दो बार पडऩे वाले इस दिन पर अगर आप व्रत रखने में समर्थ नहीं हैं तो इस दिन भूल से भी चावल का सेवन न करें।सूर्य देव को जलज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव को जल अर्पित करना बहुत ही शुभ माना जाता है। कई लोग सुबह उठकर पूजा पाठ करने से पहले सूर्य देव को जल चढ़ाते हैं। आप भी सुबह-सुबह सूर्य देव को जल चढ़ाए, क्योंकि इससे आपको पॉजिटिव एनर्जी भी मिलेगी।भगवान का ध्यानशास्त्रों में कहा गया है कि भगवान का ध्यान रोजाना लगाना जीवन में सुख और समृद्धि लाने का अत्यंत शुभ जरिया है। मन को शांत करने के लिए सुबह या शाम को मंदिर जाएं और भगवान का ध्यान लगाएं। अगर आप मंदिर नहीं जा पाते हैं, तो घर में ही भगवान का ध्यान लगाएं।
- हर व्यक्ति चाहता है कि उसके घर में सुख, शांति और समृद्धि आए, लेकिन ऐसा हर घर में हो ये संभव नहीं है। हर घर की अपनी अलग समस्याएं होती हैं। अगर शांति है तो धन की कमी है और जहां धन है वहां परिवार में सुख नहीं है। घर में उत्पन्न होने वाली समस्याएं नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों के कारण होती हैं। ऐसे में घर में सकारात्मक ऊर्जा फैलाने के लिए कुछ खास उपाय करने की जरूरत होती है। इन्हीं उपायों में से एक है घर में सत्यनारायण की कथा करना।आप में से कई लोग समय-समय पर सत्यनारायण की कथा भी करते होंगे। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है और सुख-संपत्ति दोनों पा सकते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सत्यनारायण कथा के दौरान आपको कुछ खास बातों का ध्यान रखना होता है। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो ये एक बड़ी भूल साबित हो सकती है। आप इस पौराणिक कथा के लाभों से वंचित रह सकते हैं। आइए जानें सत्यनारायण कथा करते समय आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।घर को साफ रखेंसत्यनारायण कथा एक पवित्र कार्य है। इस क्रिया के माध्यम से आप देवी-देवताओं को अपने घर आने के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप अपने घर को पूरी तरह से साफ करें। आमतौर पर लोग उस जगह की सफाई करते हैं और घर के कोनों को गंदा रहने देते हैं। ये गंदगी घर में नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देती है। इससे देवी-देवता आपके घर नहीं आते हैं। इसलिए कथा का आयोजन करने से पहले घर को साफ रखें।अपने अतिथि का दिल से स्वागत करेंकथा के समय रिश्तेदार, पड़ोसी सहित कई लोग आते हैं। ऐसे में आप समय-समय पर उनसे पानी, चाय और नाश्ते के लिए पूछते रहें। साथ ही घर में किसी मेहमान को गाली न दें या अपशब्द न कहें। हमेशा से मेहमानों को भगवान का दर्जा दिया जाता रहा है। इसलिए अपने मेहमानों का सम्मान करें।सच्चे मन से करें पूजाजब घर में सत्यनारायण की कथा हो रही हो तो आपका मन बिल्कुल साफ होना चाहिए। इसमें कोई अशुद्ध या हीन भावना नहीं होनी चाहिए। अगर आप सच्चे दिल से भगवान की पूजा करते हैं, तो वह आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेंगे।-
- हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान चावल का इस्तेमाल जरूर होता है। चावल को अक्षत भी कहा जाता है। जब भी भगवान की पूजा की जाती है तो उन्हें रोली और चंदन लगाने के बाद अक्षत लगाया जाता है। पूजा सामग्री में अगर किसी चीज की कमी हो, तो उसे भी अक्षत से पूरा कर लिया जाता है। हवन सामग्री में भी कई बार अनाज के तौर पर अक्षत का इस्तेमाल कर लिया जाता है। वहीं किसी शुभ काम में भी अक्षत का इस्तेमाल जरूर होता है। ऐसे में मन में ये सवाल उठना लाजमी है कि धरती पर अनाज तो बहुत किस्म के हैं, फिर पूजा पाठ में अक्षत को ही सर्वश्रेष्ठ क्यों माना गया है। यहां जानिए अक्षत से जुड़ी खास बातें।अक्षत का अर्थ समझेंअक्षत का भाव पूर्णता से जुड़ा हुआ है। अक्षत यानी जिसकी क्षति न हुई हो। जब भी हम पूजा के दौरान अक्षत चढ़ाते हैं तो परमेश्वर से अक्षत की तरह ही अपनी पूजा को क्षतिहीन यानी पूर्ण बनाने की प्रार्थना करते हैं। उनसे अपने जीवन की कमी को दूर करने और जीवन में पूर्णता लाने के लिए प्रार्थना करते हैं। इसलिए पूजा में हमेशा साबुत चावल ही चढ़ाए जाने चाहिए। अक्षत का सफेद रंग शांति को दर्शाता है।ये भी है मान्यताकहा जाता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी। उस समय ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए लोग उन्हें चावल समर्पित करते थे। इसके अलावा अन्न के रूप में चावल को सबसे शुद्ध माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद रहता है। इसलिए पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाते। जैसा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मुझे अर्पित किए बिना जो कोई अन्न और धन का प्रयोग करता है, वो अन्न और धन चोरी का माना जाता है। इस तरह अन्न के रूप में भगवान को चावल अर्पित किया जाता है। ये भी माना जाता है कि अन्न और हवन ईश्वर को संतुष्ट कर देता है। इससे हमारे पूर्वज भी तृप्त हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- धर्म शास्त्रों में तुलसी के पौधे का काफी महत्व माना गया है। मान्यता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा लगा हो तो वहां पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु निवास करते हैं। अगर घर में तुलसी का पौधा न हो तो आप पारिजात यानी हरसिंगार का पौधा भी लगा सकते हैं। इसे लगाने से भी आपको तुलसी के बराबर पुण्य मिलता है।पारिजात के पौधे में माता लक्ष्मी का निवासधार्मिक मान्यता है कि पारिजात के पौधे में साक्षात माता लक्ष्मी का निवास होता है। घर के आंगन में यह पौधा लगाने से मकान का वास्तु दोष दूर होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है। इससे नकारात्मक शक्तियां घर से दूर रहती हैं और परिवार के सदस्यों में एकता बढ़ती है।परिवार में कलह हो जाती है दूरज्योतिष के मुताबिक घर में पारिजात का पौधा लगाने से परिवार में होने वाली कलह खत्म हो जाती है। इससे रोग दूर भागते हैं और परिवार के सदस्यों की उम्र लंबी होती है। इससे मानसिक तनाव दूर होता है और घर की आर्थिक स्थिति भी सुधर जाती है।खुशबू से महक उठता है घरपारिजात के पौधे में सफेद रंग का फूल उगता है, जिसकी खुशबू से पूरा घर महक उठता है। कहा जाता है कि माता लक्ष्मी को यह फूल बेहद प्रिय होता है। इसलिए पारिजात के फूल को घर के मंदिर में माता लक्ष्मी को समर्पित करना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं और श्रद्धालुओं को मुंहमांगा वरदान देती हैं.समुद्र मंथन से हुई पौधे की उत्पत्तिकहा जाता है कि पारिजात के पौधे की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। इसके बाद इंद्र देवता ने इस चमत्कारी पौधे को बाद में स्वर्ग वाटिका में लगा दिया। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान कृष्ण ने ये पौधे अपनी पत्नी रुक्मिणी को भेंट दिया था, जिसके चलते उन्हें चिरयौवन प्राप्त हुआ। इसी पौधे के चलते इंद्र और श्रीकृष्ण में युद्ध भी हुआ था, जिसके बाद इंद्र के शाप से इस पौधे पर कभी फल नहीं आए, हालांकि इसमें फूल लगते रहे।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी घर में बनी हुई खिड़कियां उस भवन के वास्तु को प्रभावित करती हैं। इनके सही दिशा में होने से जहां सुख-समृद्धि की खिड़कियां खुल जाती हैं वहीं इनके गलत दिशा में होने से भाग्य बंद भी हो सकता है। वास्तुविज्ञान के अनुसार भवन में यदि खिड़कियों की संख्या एवं दिशा सही हो तो,यह जीवन में उजाला ला सकती हैं यदि ये गलत दिशा में हैं तो इनके कारण आपको भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। वास्तुविद अनीता जैन आज आपको बता रही हैं कि घर में खिड़कियां बनवाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।-सबसे पहले तो इनकी संख्या सम होनी चाहिए-जैसे 2 ,4 ,6 ,8 ,10 इत्यादि। बिषम संख्या में खिड़कियों का होना वास्तु में शुभ नहीं माना गया है।-वास्तु में खिड़कियों के लिए दिशा भी निर्धारित की गई है । इसके अनुसार घर की पूर्व, पश्चिम एवं उत्तर दिशा में खिड़कियों का होना लाभकारी माना गया है। उत्तर,पूर्व एवं पश्चिम दिशा में खिड़की होने से घर में धन और समृद्धि के द्वारा खुल जाते हैं।-पूर्व दिशा सूर्यदेव की दिशा है अत: इस दिशा में खिड़कियां अधिक होनी चाहिए। इस दिशा में बनी हुई खिड़कियों से न केवल सूरज की पहली किरण प्रवेश करती है अपितु इस रौशनी के साथ घर में सौभाग्य भी प्रवेश करता है। इससे परिवार के सदस्यों को यश, तरक्की मिलती है।-उत्तर दिशा का संबंध धन के देवता कुबेर से है इस दिशा में खिड़कियां रखने से कुबेर देवता की कृपा बनी रहती है।-दक्षिण दिशा में खिड़की होने से रोग और शोक की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी गई है अत: इस दिशा में खिड़कियां बनवाने से बचना चाहिए। नैऋत्य कोण में भी खिड़की नहीं होना चाहिए। अगर इस दिशा में खिड़कियां बनाना जरूरी हों तो इन्हें कम से कम खोलें।-खिड़कियां दो पल्ले वाली होना चाहिए और इन्हें खोलने एवं बंद करने में आवाज नहीं होना चाहिए,ये नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती हैं। पल्ले अंदर की ओर खुलना चाहिए बाहर की ओर नहीं।-शुभ प्रभाव के लिए खिड़कियां हमेशा साफ़ और स्वच्छ रखें ।कोशिश करें कि घर के मुख्यद्वार के दोनों तरफ समान आकार की खिड़कियां हों, ऐसा करने से चुंबकीय चक्र पूरा होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह लगातार बना रहता है। हवा और रौशनी के लिए खिड़की का आकार जितना बड़ा हो उतना अच्छा माना गया है।अन्य वास्तु टिप्स1 अगर प्रवेश द्वार के पास खिड़कियां टूटी-फूटी या गंदी या पुरानी होंगी,तो परिवार के सदस्यों को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है ।2 नया घर बनाते समय पुरानी खिड़कियों को नहीं लगाना चाहिए ,अन्यथा परिवार के सदस्यों को धन से जुड़ी समस्याओं को झेलना पड़ सकता है।3 भवन निर्माण के समय खिड़कियों का आकार छोटा नहीं होना चाहिए वास्तु में यह अनुचित मानी गई हैं ।4 शुभ एवं सकारात्मक परिणामों के लिए खिड़की के बाहर की तरफ छोटे-छोटे पौधे गमलों में लगाकर रखें । सकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश के लिए सुबह के समय प्रतिदिन कुछ समय के लिए खिड़कियां जरूर खोल दें ।5 यदि खिड़की के सामने कोई बिजली का खम्बा ,टावर या डिश एंटीना लगा हो तो बच्चों के करियर में बाधाएं उत्पन्न होती हैं ।ऐसी अवस्था में खिड़कियों पर मोटे परदे डालकर रहें ,ताकि नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश न कर सके ।
- वास्तु शास्त्र में कई उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से रूपये-पैसों से संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिलता है। ऐसा ही एक उपाय तुलसी का पौधा लगाने से संबंधित है, लेकिन इस उपाय को करने के साथ ही कुछ बातों का भी ध्यान रखना होता है।यहां लगाएं तुलसी के पांच पौधेसभी हिन्दू घरों में तुलसी की पौधा अवश्य लगाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी का पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इसी के साथ वास्तु में भी तुलसी का बहुत महत्व माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि तुलसी को सही स्थान और सही दिशा में लगाया जाए तो घर में सकारात्मकता का वास होता है और वास्तु दोष दूर करने में भी तुलसी सहायक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की बालकनी की उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में तुलसी के पांच पौधे लगाने चाहिए। माना जाता है कि इससे आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। आज के समय में जगह की कमी होने के कारण लोग अपनी छत के सबसे ऊपर तुलसी लगा देते हैं, लेकिन वास्तु के अनुसार यह सही नहीं माना जाता है, इससे आपको धन हानि उठानी पड़ सकती है।इसके अलावा कुछ अन्य उपायों से भी घर में सुख समृद्धि लाई जा सकती है।-यदि आपके घर में कोई खराब नल है जिससे हर समय पानी टपकता रहता है तो उसे तुरंत ठीक करवाना चाहिए, क्योंकि उससे पानी की बर्बादी तो होती ही है इसी के साथ आपके घर में रूपये-पैसों की कमी भी होने लगती है।-वास्तु शास्त्र में हरे-भरे पौधे लगाना बहुत अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है, लेकिन घर में कांटेदार या फिर दूध निकलने वाले पौधे नहीं लगाने चाहिए। इसी के साथ नकली पौधे भी लगाने से बचें।-घर में हवा और सूर्य की रोशनी का उचित प्रबंध होना चाहिए, इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, साथ ही रोगों के पनपने की आशंका भी बहुत कम हो जाती है।
- हिंदी पंचांग के मुताबिक इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। मकर संक्रांति पर सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। इस दिन के सभी प्रकार के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति का खास जुड़ाव महाभारत युद्ध से है। कहते हैं कि भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर रहने के बावजूद भी अपने प्राण त्यागने के लिए भी सूर्य देव के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा की। आखिर इसके पीछे का कारण क्या है इसे पौराणिक कथा से जानते हैं।उत्तरायण की पौराणिक कथाअमूमन हर कोई जानता है कि महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला। जिसमें भीष्म पितामह ने 10 दिनों तक कौरवों की तरह से युद्ध लड़ा। भीष्म पितामह की युद्ध नीति से पांडव परेशान थे। शिखंडी की मदद से पांडवों ने भीष्म को धनुष छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया। जिसके बाद सेनापति अर्जुन ने उन्हें अपनी बाणों से धरती पर गिरा दिया। चूंकि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए अर्जुन द्वारा बाणों से बुरी तरह घायल किए जाने पर भी वे जीवित रहे। वहीं दूसरी ओर भीष्म का प्रण था कि जब तक हस्तिनापुर चारो ओर से सुरक्षित नहीं हो जाता, वे अपने प्राण का त्याग नहीं करेंगे। इसके अलावा उन्हें प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का भी इंतजार था, क्योंकि इस दिन प्राण त्यागने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।कृष्ण ने भी बताया था उत्तरायण का महत्वशास्त्रों के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण ने भी उत्तरायण के महत्व को बताया था। उत्तरायण में शरीर त्यागने से जीवन मरण के बंधन से छुटकारा मिल जाता है। व्यक्ति सीधा मोक्ष प्राप्त करता है। यही कारण है कि भीष्म पितामह प्राण का त्याग करने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की।---
- हिन्दू धर्म में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र प्रसिद्ध हैं। सभी अस्त्र-शस्त्रों में जो सबसे अधिक उपयोग किया जाता था वो था धनुष और बाण। हमारे ग्रंथों में ऐसे कई दिव्य धनुषों का वर्णन है जो समय-समय पर अलग-अलग योद्धाओं के पास था। इनमें से दो धनुष बहुत शक्तिशाली माने गए हैं।पिनाक: महादेव का धनुष। इसे "अजगव" भी कहा जाता है।श्राङ्ग: भगवान विष्णु का धनुष। इसे "शर्ख" के नाम से भी जाना जाता है।कहा जाता है कि इन दोनों धनुषों का निर्माण स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने किया था। हालाँकि कुछ स्थानों पर कहा जाता है कि इन दोनों का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था तो कुछ ग्रंथों में देवराज इंद्र को इन दोनों का निर्माता बताया गया है। हालाँकि अधिकतर ग्रंथों में ऐसा ही लिखा है कि इन दोनों को परमपिता ब्रह्मा ने ही बनाया था और इनमें से एक धनुष (श्राङ्ग) उन्होंने नारायण को और दूसरा धनुष (पिनाक) महादेव को दिया। ये दोनो महान धनुष समान शक्तिशाली ही माने जाते हैं। अपने-अपने धनुषों को धारण करने के बाद भगवान शिव और भगवान विष्णु में इस बात पर वार्तालाप हुआ कि इन दोनों धनुषों में कौन सा श्रेष्ठ है? तब ब्रह्मदेव की मध्यस्थता में दोनों के बीच अपने अपने धनुष से युद्ध आरम्भ हुआ। बहुत देर युद्ध चलता रहा पर कोई निर्णय नही निकला। तब ब्रह्मा जी के अनुरोध पर दोनों ने युद्ध समाप्त किया और उनसे पूछा कि पिनाक और श्राङ्ग में कौन सा धनुष श्रेष्ठ है? तब परमपिता ने कहा - "इन दोनों धनुषों को मैंने अपने सर्वश्रेष्ठ कौशल से बनाया है और इसी कारण इन दोनों के बीच अंतर बता पाना संभव नही है। किंतु युद्ध के बीच मे भगवान शिव श्रीहरि का युद्ध कौशल देखने के लिए कुछ समय के लिए रुक गए थे, इसीलिए उस आधार पर मैं श्राङ्ग को पिनाक से श्रेष्ठ घोषित करता हूँ।"ये सुनकर महादेव रुष्ट हो गए और उन्होंने पिनाक को त्याग दिया। उन्होंने श्रीहरि से कहा कि अब आप ही इस धनुष को भंग कीजिये। तब भगवान विष्णु ने कहा कि समय आने पर मैं आपकी इच्छा अनुसार अवश्य इसका नाश करूँगा। तब महादेव की आज्ञा से वो धनुष पहले इंद्र ने लिया और बाद में उसे जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। आगे चलकर महादेव के वचन के अनुसार श्रीराम ने माता सीता के स्वयंवर में धनुष-भंग किया। यही वो धनुष था जिससे महादेव ने त्रिपुर संहार किया था।श्राङ्ग आगे चलकर श्रीकृष्ण को प्राप्त हुआ जिसे "शर्ख" के नाम से जाना गया। भगवान विष्णु ने इसे "गोवर्धन" नाम भी दिया। हालाँकि कई स्थानों पर श्राङ्ग और गोवर्धन को श्रीहरि का दो अलग धनुष बताया गया है। कहते हैं कि महाभारत में श्रीकृष्ण के धनुष को उनके अतिरिक्त केवल परशुराम, भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं अर्जुन ही संभाल सकते थे। श्रीकृष्ण ने कंस की सभा मे एक और महान धनुष को भंग किया था। मान्यता है कि वो धनुष भी भगवान शंकर का ही था। हालांकि उसे केवल "शिव धनुष" ही कहा गया है। उसी प्रकार श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए भगवान परशुराम ने उन्हें अपने धनुष पर प्रत्यञ्चा चढाने को कहा था जिसे रामायण में "वैष्णव धनुष" कहा गया है।---
- मंगल पौष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी 15, 16 जनवरी 2022 दिन शनिवार, रविवार की रात 12:55 बजे से देवगुरू बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करेंगे जहां-- फाल्गुन कृष्ण पक्ष नवमी 25 फरवरी दिन शुक्रवार को शाम 6 बजकर 45 मिनट तक रहेंगे। ग्रहों में मंगल को सेनापति का पद प्राप्त है। मंगल को भूमि, भवन, वाहन ,सेना ,सेनाध्यक्ष, पुलिस बल, सम्पूर्ण रक्षा तंत्र, आग, बल, पौरुष एवं ऊर्जा का कारक ग्रह माना गया है। ऐसे में इनके राशि परिवर्तन का सभी कारक तत्वों पर प्रभाव पड़ेगा। यहां जानें लग्न के अनुसार किन राशियों वालों के लिए नए साल में क्या लेकर आ रहा है मंगल का यह राशि परिवर्तन:मेष :- लग्नेश-अष्टमेश होकर नवम भाव में।*मनोबल,धार्मिकता एवं भाग्य में वृद्धि*पराक्रम एवं नेतृत्व क्षमता में*भाई बहनों मित्रों का सहयोग सानिध्य*अचानक व्यापारिक या धार्मिक यात्रा के संयोग*गृह एवं वाहन सुख एवं खर्च में वृद्धि*जमीन जायदाद से जुड़े कार्यो में लाभउपाय :- मूंगा रत्न धारण करना लाभदायक होगा।वृष :- सप्तमेश- व्ययेश होकर अष्टम भाव में।*आर्थिक गतिविधियों में अच्छी प्रगति*अचानक रुका धन मिलने का योग*पारिवारिक कार्यो पर खर्च, घर मे नया कार्य*भाई बहनों मित्रो पर भी खर्च की स्थिति*साझेदारी, प्रेम संबंधों को लेकर तनाव*जीवन साथी के स्वास्थ्य पर खर्च या चिन्ताउपाय :- श्री हनुमानजी महाराज का दर्शन लाभ प्रदायक होगा।मिथुन :- आयेश-रोगेश होकर सप्तम भाव में।*नयी साझेदारी से आर्थिक लाभ की स्थिति*क्रोध में तीव्रता अतः नियंत्रण रखें*परिश्रम एवं सम्मान को लेकर चिन्ता सम्भव*वाणी में अचानक तीव्रता ,घर मे नया कार्य*दाम्पत्य जीवन को लेकर थोड़ा उलझन संभव*स्वास्थ्य एवं मानसिक स्तर पर थोड़ी चिंता संभवउपाय :- लाल मसूर की दाल मंगलवार को गाय को खिलाएं।सिंह :- भाग्येश-सुखेश होकर पंचम भाव में।*आय एवं लाभ में वृद्धि की संभावना ठीक*व्यापारिक विस्तार पर खर्च के भी योग बनेंगे*स्वास्थ्य विशेषकर पेट का ध्यान रखें।*संतान एवं पिता के सहयोग ,सानिध्य में वृद्धि।*गृह एवं वाहन सुख के साथ घरेलू सुखों में वृद्धि*बौधिकता के आधार पर सम्मान की प्राप्तिउपाय :- मूंगा रत्न मूल कुंडली के अनुसार धारण करें।कन्या :- अष्टमेश-पराक्रमेश होकर चतुर्थ भाव में।*आय एवं लाभ के साधनों में वृद्धि के संयोग।*क्रोध में अधिकता अतः नियंत्रण रखें।*जमीन जायदाद,सम्पत्ति को लेकर तनाव*माता के स्वास्थ्य को लेकर चिंता की स्थिति*जीवनसाथी एवं प्रेम संबंधों को लेकर चिन्ता*परिश्रम में एवं सम्मान में सामान्य अवरोध संभवउपाय :- श्री हनुमानजी जी महाराज को सिंदूर मंगलवार को चढ़ाए।तुला :- सप्तमेश-धनेश होकर पराक्रम भाव में।*पराक्रम एवं सम्मान में वृद्धि*प्रतियोगिता में विजय, रोग एवं शत्रु पराजित*पिता एवं भाग्य का साथ प्राप्त होगा*दाम्पत्य जीवन एवं प्रेम संबंध के लिए समय ठीक*नयी साझेदारी एवं अचानक धन लाभ की स्थिति*अचानक क्रोध में वृद्धि अतः नियंत्रण रखें।उपाय :- श्री हनुमानजी का दर्शन करते रहें।वृश्चिक :- लग्नेश- रोगेश होकर धन भाव में।*धन एवं धनागम के साधनों में वृद्धि*संतान एवं पिता पक्ष से सुसमाचार की स्थिति*अध्ययन, अध्यापन एवं डिग्री के लिए समय ठीक*कार्यो एवं परिश्रम में भाग्य का साथ प्राप्त होगा*खान पान पर ध्यान रखना आवश्यक।*मनोबल अच्छा एवं घरेलू कार्यो में वृद्धिउपाय :- भगवान भोलेनाथ का दर्शन एवं पूजन करें।धनु :- पंचमेश- व्ययेश होकर लग्न भाव में।*संतान पक्ष से सुसमाचार मिल सकता है।*अचानक क्रोध में वृद्धि से कार्यो में अवरोध*जमीन,जायदाद,अचल संपत्ति को लेकर चिन्ता*दाम्पत्य जीवन एवं प्रेम संबंध में तनाव या विवाद*स्वास्थ्य विशेषकर पेट की समस्या से खर्च वृद्धि*रोजगार,साझेदारी एवं माता के स्वास्थ्य से चिंताउपाय :- श्री हनुमानजी महाराज को सिंदूर मंगलवार को चढ़ाये।मकर :- चतुर्थेश- लाभेश होकर व्यय भाव में।*गृह, वाहन एवं घरेलू कार्यो पर खर्च*व्यापारिक एवं अन्य यात्रा की भी संभावना*क्रोध, पराक्रम एवं सम्मान में वृद्धि*भाई , बन्धु एवं मित्रों के सहयोग सानिध्य में वृद्धि*प्रतियोगिता में विजय,पुराने रोग एवं शत्रु से मुक्ति*क्रोध के कारण जीवन साथ एवं प्रेम संबंध में तनावउपाय :- मंगलवार के दिन शहद शिवलिंग पर चढ़ाएं।कुम्भ :- पराक्रमेश- राज्येश होकर लाभ भाव में।*आय एवं आय के साधनों में वृद्धि सम्भव*अध्ययन, अध्यापन से जुड़े लोगों को होगा लाभ*आर्थिक गतिविधियों एवं वाणी व्यवसाय में प्रगति*रोग, कर्ज, शत्रुओं पर एवं प्रतियोगिता में विजय*पैतृक संपत्ति से जुड़े विवाद दूर होंगे*व्यापारिक विस्तार,पराक्रम, सम्मान में वृद्धिउपाय :- श्री हनुमानजी का दर्शन करते रहें।मीन :- धनेश- भाग्येश होकर राज्य भाव में।*राज्य से लाभ, सम्मान में वृद्धि*कार्यो में प्रगति एवं परिश्रम में वृद्धि*गृह एवं वाहन सहित घरेलू सुखों में प्रगति,*क्रोध में वृद्धि, कार्यो में भाग्य का साथ प्राप्त होगा*अध्ययन, अध्यापन से जुड़े लोगों को लाभ होगा*संतान एवं पिता पक्ष से सुसमाचार मिल सकताउपाय :- मूँगा रत्न मूल कुंडली के अनुसार धारण करें।
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धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक रुद्राक्ष भगवान शिव की आंसुओं से उत्पन्न हुआ है. पुराने समय से ही इसे आभूषण की तरह धारण किया जाता है. साथ ही रुद्राक्ष ही एक ऐसी चीज है जिसे ग्रहों के नियंत्रण और मंत्र जाप के लिए बेहतर माना जता है. इसके अलावा रुद्राक्ष के इस्तेमाल से शनि की पीड़ा को भी शांत किया जा सकता है. साथ ही साथ रुद्राक्ष के इस्तेमाल से शनिदेव की विशेष कृपा हासिल की जा सकती है. शास्त्रों में रुद्राक्ष को धारण करने के कुछ नियम बताए गए हैं. नियम के अनुसार धारण करने से निश्चिच तौर पर इसका लाभ मिल सकता है.
रुद्राक्ष का शनि से कनेक्शन
मान्यता है कि रुद्राक्ष की ताकत कि इसका सही से इस्तेमाल करने वाला हर प्रकार के संकटों को मात देता है. वहीं अगर कोई बिना नियम के इसे धारण करता है तो उल्टा प्रभाव पड़ता है. इसके अलावा अगर रुद्राक्ष का विधि-विधान से धारण किया जाए तो शनि की टेढ़ी नजर से मिलने वाले कष्टों से भी छुटकारा मिल जाता है.
शनि के लिए रुद्राक्ष का इस्तेमाल
शनि की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए रुद्राक्ष का नियम से इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसे में शनि की बाधाओं को दूर करने लिए अलग-अलग प्रकार के रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है. नौकरी-रोजगार की समस्या को दूर करने के लिए दस मुखी रुद्राक्ष धारण करना शुभ है. एक साथ 3 दस मुखी रुद्राक्ष धारण करना और भी लाभदायक होगा. इसे शनिवार के दिन लाल धागे में परोकर गले में धारण करें. वहीं अगर कुंडली में शनि का अशुभ प्रभाव है तो इससे बचने के लिए एक मुखी और ग्यारह मुखी रुद्राक्ष एक साथ धारण करना शुभ माना गया है. 1 एक मुखी और 2 ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को एकसाथ लाल धागे में पिरोकर धारण करें.
शनि की साढ़ेसाती या ढैया से मुक्ति के लिए
सेहत की समस्या से निजात पाने के लिए शनिवार के दिन गले में 8 मुखी रुद्राक्ष पहनना शुभ है. केवल आठ मुखी रुद्राक्ष धरण करें या एकसाथ 54 आठ मुखी रुद्राक्ष पहनें. इसके अलावा शनि की साढ़ेसाती या ढैया से मुक्ति पाने के लिए पांच मुखी रुद्राक्ष की माला धारण करें. माला धारण करने से पहले इस पर शनि और शिव जी के मंत्रों का जाप करना शुभ होता है.
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पौधे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं. इससे न केवल घर का वातावरण अच्छा रहता है, बल्कि वास्तु दोष का भी निवारण होता है. यही कारण है कि घर में या आसपास ऐसे पौधे लगाए जाते हैं. कुछ पौधे ऐसे हैं जो कि घर में खुशहाली लाने के साथ साथ परिवार से सदस्यों की आर्थिक स्थिति भी सुधार करते हैं. साथ ही पितृ दोष से भी छुटकारा दिलाते हैं.
अगस्त्य का पौधा पितृदोष नाशक होता है. यह पौधा आसानी से नहीं मिलता है. यदि मुश्किल से भी यह पौधा मिल जाए तो इसे घर में जरूर लगाना चाहिए. सफेद और गुलाबी रंग वाले अगस्त्य के फूल न केवल देखने में अच्छे लगते हैं, बल्कि यह मां लक्ष्मी को भी प्रिय है.
मयूर शिखा का पौधा वास्तु के नजरिए से अच्छा माना गया है. यह पौधा आसानी से मिलने वाला है. इस पौधे के प्रभाव से घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है. इसके अलावा इस पौधे को दुष्ट आत्मा नाशक भी कहा गया है. इस पौधे के फूल मोर की शिखा के समान होते हैं. मयूर शिखा के पौधे को घर के अंदर और बाहर दोनो जगह लगाया जा सकता है.
ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष को बड़ा दोष माना गया है. पितृ दोष से पीड़ित जातकों की उन्नति में हर वक्त बाधाएं आती रहती हैं. इसके अलावा नौकरी और रोजगार में उन्नति के लिए भी तरसना पड़ता है. ऐसे में पितृ दोष से छुकारा पाने के लिए इन पौधों को घर के आसपास जरूर लगाना चाहिए.
शमी का पौधा वास्तु दोष को दूर करने के लिए बेहद खास है. इस पौधे से शनि देव का संबंध है. जिस घर में यह पौध लगा होता है, वहां किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है. शमी पौधे को घर के मुख्य दरवाजे की दाहिनी ओर लगाना शुभ होता है.
वास्तु के मुताबिक छोटे पौधों को घर के पूरब, उत्तर की दिशा में लगाना शुभ होता है. वहीं बड़े पौधों को हमेशा घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में ही लगाना अच्छा होता है. -
सनातन परंपरा में सुख-समृद्धि की प्राप्ति से लेकर जीवन से जुड़ी तमाम परेशानियों को दूर करने के लिए तमाम तरह की पूजा के उपाय बताए गये हैं. तंत्र-मंत्र और यंत्र के माध्यम से बड़े से बड़े काम आसानी से पूरे हो जाते हैं. मान्यता है कि यंत्रों के प्रयोग से भाग्योदय, कार्य करने की क्षमता में वृद्धि और सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है. यदि आपके कॅरिअर और कारोबार को किसी की नजर लग गई हो और बहुत प्रयासों के बावजूद मनचाही प्रगति नहीं मिल पा रही हो तो आपके लिए यंत्र पूजा एक अचूक उपाय साबित हो सकता है. आइए कुछ प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण यंत्रों के बारे में जानते हैं.
बगलामुखी यंत्र
मां बगलामुखी यंत्र सभी प्रकार की उन्नति और मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस यंत्र को नवरात्रि के नौ दिनों में से किसी एक दिन या फिर गुरुवार या फिर किसी शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठित किया जाता है. यदि इस यंत्र को सोने में बनवाकर पूजा की जाए तो उसका विशेष लाभ मिलता है. हालांकि आप चाहें तो इसे किसी दूसरी धातु में बनवाकर उसे सोने से पालिश भी करवा के पूज सकते हैं.
पितृदोष निवारण यंत्र
यदि आपकी कुंडली में पितृदोष हो और उसके कारण आपको जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हो तो आप उससे मुक्ति पाने के लिए पितृदोष निवारण यंत्र की विधि-विधान से स्थापना करवानी चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए. पितृदोष निवारण यंत्र की पूजा करें. पितृदोष निवारण यंत्र की पूजा करने से पितृ संतुष्ट होते है और उनका आशीर्वाद मिलता है.
नवग्रह यंत्र
ज्योतिष के अनुसार नवग्रहों में किसी भी ग्रह के दोष के कारण जीवन में अक्सर बनते हुए काम भी अक्सर न चाहते हुए भी बिगड़ जाते हैं. चलता हुआ कारोबार अचानक से ठप्प हो जाता है. नवग्रहों से जुड़ी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दिक्कतों को दूर करने के लिए यंत्र पूजा एक कारगर उपाय है. नवग्रहों की शुभता को पाने के लिए आपको नवग्रह यंत्र को विधि-विधान से स्थापित करवा करके प्रतिदिन पूजा करना चाहिए. नवग्रह यंत्र में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र शनि, राहु–केतु इन नौ ग्रहों के यंत्र एक साथ अपनी-अपनी दिशाओं में स्थापित होते हैं.
श्री यंत्र
यदि आपके जीवन में आर्थिक दिक्कतें और बहुत परिश्रम करने के बाद भी आपकी जरूरतें नहीं पूरी हो पा रही हैं या फिर आप तमाम तरह के सुखों से वंचित हैं तो आप धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए श्री यंत्र की पूजा करें. श्री महालक्ष्मी त्रिपुर सुंदरी का यह यंत्र आपको यश, कीर्ति, विद्या, धन और वैभव प्रदान करता है. प्रतिदिन श्रीयंत्र के दर्शन और पूजन से जीवन आर्थिक दिक्कतें दूर हो जाती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.
- - जीवन में जब भी कोई कष्ट हमको घेरता है, तो सबसे पहले हम ईश्वर को ही याद करते हैं। हर कोई अपने-अपने तरीके से प्रभु की पूरा आराधना करता है। जब भी हम पूजा करते हैं तो कई मंत्रों का जाप करते हैं। दरअसल हिंदू धर्म में मंत्रोच्चारण का एक विशेष महत्व है और सभी मन्त्रों का उच्चारण ऊॅं से ही शुरु होता है। सनातन धर्म की परंपराओं के अनुसार, ऊॅं एक शब्द नहीं है बल्कि इसमें पूरा संसार व्याप्त है।सदियों से हमारे ऋषि मुनि केवल ऊॅं का उच्चारण करके ही कठिन तप योग और साधना करके प्रभु की साक्षात दर्शन करते थे। ऊॅं किसी चमत्कारी शब्द से कम नहीं है, जिसमें कई तरह की शक्ति हैं। मान्यता है कि केवल ऊॅं के जाप से ही ईश्वर को पाया जा सकता है। तो आइए जानते हैं ऊॅं की कल्याणकारी शक्तियों के बारे में और 'ऊॅंÓ का उच्चारण कैसे करना चाहिए।ऊॅं का पौराणिक महत्वसनातन धर्म की मान्यता के अनुसार ऊॅं के उच्चारण में संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान छिपा हुआ है। केवल ऊॅं के जाप से ही परमपिता परमेश्वर प्रसन्न होते हैं और जीवन के हर एक कष्ट को दूर करते हैं। पैराणिक महत्व के अनुसार ऊॅं ईश्वर के सभी रूपों का संयुक्त रूप है। ऊॅं शब्द से ही पूरा ब्रह्मांड टिका हुआ है। ऊॅं के उच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। ये ध्वनि इंसान की सुनने की क्षमता से बहुत ऊपर है। माना जाता है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले जिस प्राकृतिक ध्वनि की गूंज हुई थी वह ऊॅं की ही थी। यही कारण है कि इसको ब्रह्मांड की आवाज भी कहा गया है।बता दें कि 'ऊॅंÓ का उच्चारण करते समय जब 'मÓ की ध्वनि मुख से निकलती है तो इससे हमारे मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है और इससे व्यक्ति की मानसिक शक्तियों का विकास होता है। ऊॅं के जाप से अशांत मन भी शांत और स्थिर होता है। केवल ऊॅं के पूरे दिन जाप करने से आप अपने ईष्ट देव की कृपा पा सकते हैं।ऊॅं का उच्चारण करते समय रखें इन बातों का ध्यानऊॅं का उच्चारण हमेशा ही आपको स्वच्छ और खुले वातावरण में ही करना चाहिए। ऊॅं का उच्चारण करने से सांसे तेज हो जाती हैं, ऐसे में खुले स्थान पर इसका उच्चारण करने सकारात्मकता प्राप्त होती है। ऊॅं का उच्चारण सुखासन, पद्मासन, वज्रासन आदि मुद्रा में बैठ कर कर सकते हैं। इसके अलावा 5,7,11 या 21 बार ऊॅं का उच्चारण करना उपयोगी माना गया है। आप पूजा के वक्त विशेष रूप से ऊॅं का जाप अपने हिसाब से करें और भगवान की कृपा पाएं।
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जीवन में सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहे हैं इसके लिए वास्तु शास्त्र में कुछ नियम बनाए गए हैं। इन नियमों का सही से पालन किया जाए तो लंबे समय तक आपको परेशानियां तंग कर सकती है या फिर बीमारियां अपनी चपेट में ले लेती हैं। देखा जाए वास्तु दोष के कारण खासतौर पर लोगों को धन हानि, मानसिक प्रताडऩा और अशांति का सामना करना पड़ता हैैं।
आज हम कॉर्नर वाले मकान से जुड़े वास्तु दोषों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। हालांकि इनसे जुड़े उपायों को करके इनसे काफी हद तक छुटकारा भी पाया जा सकता है।- कहा जाता है कि अगर मकान के दोनों कोने काटने वाली सड़क मकान की ओर आती है तो इस स्थिति में पैसा आता है, लेकिन उतनी ही तेजी से चला भी जाता है। वास्तु के मुताबिक अगर सड़क दाएं ओर से घर की तरफ आए तो महिलाओं को और बाएं तरफ से आए तो घर के पुरुषों को परेशानियां होती हैं।- अगर कोई मकान एल शेप में हो और सड़क के दाई और मोड़ पर मौजूद हो तो ये काफी अशुभ माना जाता हैैं। इस वजह से घर में रहने वाले लोगों को शारीरिक ही नहीं आर्थिक तंगीं का भी सामना करना पड़ता है।- घर का अर्धचंद्राकार घेरे में होना भी अशुभ माना जाता हैैं। ऐसे घर में रहने वाले सदस्यों को आर्थिक दिक्कतें और पारिवारिक झगड़ों का सामना करना पड़ता है।-वास्तु शास्त्र के मुताबिक अगर दो सड़कें वी शेप में मकान की तरफ आ रही हों, तो ये भी अशुभ माना जाता हैैं। इससे घर में रहने वाले पुरुष और महिलाएं अक्सर अस्वस्थ रहते हैं और करिअर में भी उतार-चढ़ाव रहता है। -
जनवरी 2022 में कई प्रमुख त्योहार पडऩे वाले हैं। जिसमें से एक लोहड़ी भी है। लोहड़ी का पर्व पौष कृष्ण एकादशी को पड़ता है, लेकिन तारीख के हिसाब से लोहड़ी 13 जनवरी को पडऩे वाली है। लोहड़ी पर्व को मुख्य रूप से किसानों द्वारा मनाया जाता है। इसके अलावा इस दिन को किसानों के नए साल रूप में भी मनाया जाता है। लोहड़ी पर अलाव जलाकर उसमें गेहूं की बालियां अर्पित की जाती हैं। साथ ही इस पर्व पर पंजाबी समुदाय के लोग भांगड़ा कर इस पर्व को मनाते हैं।
लोहड़ी 2022 का महत्व
पंजाबी परंपरा के मुताबिक लोहड़ी फसल की कटाई और बुआई से जुड़ा हुआ पर्व है। लोहड़ी के अवसर पर लोग जलाकर इसके आसपास नाचते और गाते हैं। आग में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक आदि डाले जाते हैं। तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मिठाई आदि बांटे जाते हैं। इस पर्व को पंजाब में फसल कटने के बाद मनाया जाता है।
दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी पर्व में दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने की परंपरा बहुत पुरानी है। इस दिन आग के चारो ओर लोग घेरकर बैठते हैं फिर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है। दरअसल इस कहानी को सुनने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि दुल्ला भट्टी नाम का एक व्यक्ति पंजाब में रहता था। उस जमाने में अमीर व्यापारी सामान से साथ-साथ शहर की लड़कियों को बेचा करते थे। उस समय दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई। मान्यता है कि उसी समय से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाई जाती है। - सभी लोग सेहतमंद जीवन जीने के लिए तरह-तरह की कोशिश करते हैं। उसके बाबजूद भी कई बार ऐसा होता है कि कोई न कोई रोग आपको या आपके परिवार के किसी सदस्य को घेरे ही रहता है और समस्या का हल नहीं समझ में आता। क्या आप जानते हैं कई बार आपके रोग का कारण आपके घर के वास्तु से होता है। घर में वास्तुदोष होने से वहां रहने वाले लोग बीमार पड़ सकते हैं। वास्तु के कुछ नियमों का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भवन में रहने वाले सभी लोग शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रह सकते हैं।अनिद्रा रोग का कारणवास्तुशास्त्र में पूर्व तथा उत्तर दिशा का हल्का और नीचा होना तथा दक्षिण व पश्चिम दिशा का भारी व ऊंचा होना अच्छा माना गया है। यदि पूर्व दिशा में भारी निर्माण हो तथा पश्चिम दिशा एकदम खाली व निर्माण रहित हो तो अनिद्रा का शिकार होना पड़ सकता है। उत्तर दिशा में भारी निर्माण हो परन्तु दक्षिण और पश्चिम दिशा निर्माण रहित हो तो भी ऐसी स्थिति उत्त्पन्न होती है।चक्कर, बेचैनी और सिरदर्द का कारणगृहस्वामी अग्निकोण या वायव्य कोण में शयन करें या उत्तर में सिर व दक्षिण में पैर करके सोए तब भी अनिद्रा या बेचैनी, सिरदर्द और चक्कर जैसी परेशानी हो सकती है, जिसके कारण दिन भर थकान की समस्या हो सकती है। धन आगमन और स्वास्थ्य की दृष्टि से दक्षिण या पूर्व की ओर पैर करना अच्छा माना गया है।हार्ट अटैक, लकवा, हड्डी और स्नायु रोग कारणदक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रवेश द्वार या हल्की चाहरदीवारी अथवा खाली जगह होना शुभ नहीं है। ऐसा होने से हार्ट अटैक, लकवा हड्डी एवं स्नायु रोग संभव हैं। अत: यहां प्रवेश द्वार या खाली जगह छोडऩे से बचना चाहिए।गृहणी के रोगी रहने का कारणरसोई घर में भोजन बनाते समय यदि गृहणी का मुख दक्षिण दिशा की ओर है तो त्वचा एवं हड्डी के रोग हो सकते हैं। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन पकाने से पैरों में दर्द की संभावना भी बनती है। इसी तरह पश्चिम की ओर मुख करके खाना पकने से आँख, नाक, कान एवं गले की समस्याएं हो सकती हैं। पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके रसोई में भोजन बनाना स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ माना गया है।वायु रोग,रक्त विकार आदिदीवारों पर रंग-रोगन भी ध्यान से करवाना चाहिए। काला या गहरा नीला रंग वायु रोग,पेट में गैस, हाथ-पैरों में दर्द,नारंगी या पीला रंग ब्लड प्रेशर, गहरा लाल रंग रक्त विकार या दुर्घटना का कारण बन सकता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए दीवारों पर दिशा के अनुरूप हल्के एवं सात्विक रंगों का प्रयोग करना चाहिए।जोड़ों का दर्द और गठिया आदिध्यान रहे कि आपके भवन की दीवारें एकदम सही सलामत हों,उनमें कहीं भी दरार या रंग रोगन उड़ा हुआ या फिर दाग-धब्बे आदि न हों वरना वहां रहने वालों में जोड़ों का दर्द, गठिया, कमर दर्द, सायटिका जैसे समस्याएं हो सकती हैं।
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नए वर्ष 2022 से सभी की उम्मीदें हैं कि यह साल सुख-शांति का तोहफा लेकर आए। साल 2021 की चुनौतियों की यादें आने वाले साल का हाल जानने को और उत्सुक बना रही हैं। इस जिज्ञासा के समाधान में हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ज्योतिष और अंक ज्योतिष के विशेषज्ञों की राय में आगामी वर्ष। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में कुल 12 राशियों का वर्णन किया गया है। हर राशि का स्वामी ग्रह होता है। ग्रह-नक्षत्रों की चाल से राशिफल का आकंलन किया जाता है। ग्रहों की चाल से साल 2022 कुछ राशि वालों के लिए शुभ तो कुछ राशि वालों के लिए अशुभ रहेगा। ग्रहों की चाल का सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं सभी राशियों के लिए कैसा रहेगा साल 2022। आगे पढ़ें मेष से लेकर मीन राशि तक का हाल...
मेष राशि
वर्ष के प्रथम पंद्रह दिन (15 जनवरी) तक मन परेशान हो सकता है। 16 जनवरी से मानसिक शांति मिलेगी। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। नौकरी के लिए किए गए प्रयासों के सार्थक परिणाम भी मिलेंगे। संतान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं। 12 अप्रैल को राहु के राशि परिवर्तन से व्यर्थ के भय से परेशान हो सकते हैं। कार्यों में अवांछित व्यवधान आ सकते हैं। 13 अप्रैल से शुभ कार्यों में खर्च बढ़ सकते हैं। घर-परिवार में मांगलिक कार्य हो सकते हैं। भवन के रखरखाव तथा सौंदर्यीकरण के कार्यों पर खर्च बढ़ सकते हैं। शैक्षिक कार्यों पर भी ध्यान देना चाहिए। 29 अप्रैल से मन में उतार-चढ़ाव रहेंगे। संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। आय में वृद्धि के साधन बन सकते हैं। आय संतोषजनक रहेगी। 3 जुलाई के उपरांत किसी भवन या संपत्ति में निवेश कर सकते हैं। दिनचर्या व्यवस्थित रहेगी। कारोबार में मित्रों का सहयोग भी मिल सकता है। शासन-सत्ता का सहयोग भी मिलेगा। स्वास्थ्य के मद्देनजर खानपान के प्रति सचेत रहें।
वृष राशि-
वर्ष के प्रारम्भ में मन अशांत रहेगा। 15 जनवरी से माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा। नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी भी मिल सकती है। परिश्रम भी अधिक रहेगा। वाणी में मधुरता बनाए रखने के प्रयास करें। 26 फरवरी के बाद कार्यों में कठिनाइयां आ सकती हैं। 27 मार्च से शैक्षिक कार्यों में सुधार होगा। 12 अप्रैल के बाद नौकरी में स्थान परिवर्तन की संभावना बन रही है। तरक्की के योग भी बन रहे हैं। आय में वृद्धि होगी। लेखनादि बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती है।
बौद्धिक कार्यों से आय के साधन भी बन सकते हैं। वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है। परिवार में सुख-शांति रहेगी। 29 अप्रैल से नौकरी में शासन-सत्ता का सहयोग मिलेगा। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। परिवार से अलग भी रहना पड़ सकता है। खर्चों में कमी आ सकती है। नौकरी में परिवर्तन के अवसर भी मिल सकते हैं, 13 जुलाई के बाद परिवर्तन की संभावना बन रही है। परिवार के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। चिकित्सीय खर्च बढ़ सकते हैं।
मिथुन राशि-
वर्ष के प्रारम्भ में मन परेशान रहेगा। धैर्यशीलता में कमी हो सकती है। स्वास्थ्य समस्या भी हो सकती है। 15 जनवरी के उपरांत नौकरी में कार्यक्षेत्र में कठिनाइयां आ सकती हैं। वाणी में मधुरता बनाए रखने के प्रयास करते रहें। अफसरों से व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। नौकरी में कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। 13 फरवरी से कार्यक्षेत्र में सुधार हो सकता है। कारोबार की स्थिति में भी सुधार होगा। 6 अप्रैल के बाद किसी मित्र के सहयोग से नौकरी के अवसर भी मिल सकते हैं। आय में वृद्धि होगी।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा। घर-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। 29 अप्रैल से कार्यक्षेत्र में परिवर्तन के योग बन रहे हैं। वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है। यात्रा में कमी आएगी। आय का कोई अन्य साधन भी बन सकता है। कुछ रुके हुए कार्य भी पूर्ण होंगे। स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत रहना चाहिए। परिवार की सुख-सुविधाओं की वृद्धि के लिए खर्च बढ़ सकते हैं। शैक्षिक कार्यों के सुखद परिणाम भी मिलेंगे।
कर्क राशि-
वर्ष के प्रारम्भ में मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। 15 जनवरी से धैर्यशीलता में कमी आएगी। संयत रहें। मीठे खानपान के प्रति रुझान बढ़ सकता है। 17 जनवरी से पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 27 फरवरी से स्वास्थ्य में सुधार होगा। वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है। कारोबार में आय की स्थिति में भी सुधार हो सकता है। 12 अप्रैल से राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति होगी, परंतु रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 13 अप्रैल से शैक्षिक कार्यों में सुधार होगा। धर्म के प्रति श्रद्धा भाव बढ़ेगा। बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती है। आय में वृद्धि होगी। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। मन प्रसन्न रहेगा। 29 अप्रैल के उपरांत शैक्षिक कार्यों या बौद्धिक कार्यों के लिए विदेश यात्रा के योग बन रहे हैं। यात्रा लाभप्रद रहेगी। नौकरी में यात्राएं अधिक रहेंगी। शनि की ढैया के कारण कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। संचित धन में कमी आ सकती है। स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें।
सिंह राशि-
सिंह राशि वालों के जीवन में वर्ष 2022 के प्रारम्भ में मानसिक शांति रहेगी। आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहेंगे। 15 जनवरी के उपरांत मन परेशान हो सकता है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। क्रोध पर नियंत्रण रखें। खर्चों में वृद्धि हो सकती है। 26 फरवरी के बाद किसी भवन या संपत्ति के रखरखाव पर खर्च बढ़ सकते हैं। नौकरी में तरक्की के भी मार्ग प्रशस्त हो सकते हैं। कारोबार पर ध्यान दें। कुछ कठिनाइयां आ सकती हैं। मित्रों का सहयोग मिल सकता है। 1 अप्रैल से कारोबार में सुधार होगा। पिता के स्वास्थ्य में सुधार होगा। 12 अप्रैल से कोई नया कारोबार शुरू हो सकता है। 13 अप्रैल के बाद घर-परिवार में कोई धार्मिक/मांगलिक कार्य हो सकते हैं। भवन के सौंदर्यीकरण के कार्यों पर खर्च बढ़ सकते हैं। 29 अप्रैल से नौकरी में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। कार्यभार में वृद्धि हो सकती है। मानसिक परेशानियां भी बढ़ सकती हैं। भाई-बहनों से विवाद की स्थिति से बचें। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है।
कन्या राशि-
कन्या राशि वालों के लिए वर्ष के प्रारम्भ में आत्मविश्वास भरपूर रहेगा, परंतु पारिवारिक समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं। कार्यक्षेत्र में परिश्रम अधिक, लेकिन सफलता कम रहेगी। रहन-सहन कष्टमय हो सकता है। 15 जनवरी से मन में नकारात्मक विचारों से बचें। संयत रहें। व्यर्थ के क्रोध से बचें। 7 मार्च से पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कारोबार पर पूरा ध्यान दें। 12 अप्रैल से अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। आय में कठिनाइयां आ सकती हैं। खर्चों में वृद्धि होगी। 13 अप्रैल से कुछ मानसिक शांति मिल सकती है।
दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी। शैक्षिक कार्यों में सुधार होगा। लेखनादि बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ेगी। आय में सुधार होगा। 29 अप्रैल के बाद शैक्षिक कार्यों या बौद्धिक कार्यों के लिए विदेश यात्रा पर जा सकते हैं। 4 जून के पश्चात किसी कारोबार के सिलसिले में विदेश जा सकते हैं। विदेश यात्रा लाभप्रद रहेगी। कुछ पुराने मित्रों का भी सहयोग मिल सकता है। सुस्वादु खानपान के प्रति रुझान भी बढ़ सकता है।
तुला राशि
वर्ष के प्रारम्भ में मन में नकारात्मक विचारों से बचें। संयत रहें। व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। 15 जनवरी से रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। नौकरी में इच्छाविरुद्ध कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम अधिक रहेगा। 26 फरवरी के बाद भवन सुख में वृद्धि हो सकती है, परंतु पिता के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखें। कारोबार में वृद्धि होगी। 12 अप्रैल के बाद कार्यक्षेत्र में कठिनाई आ सकती है। मन अशांत रहेगा।
शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। सचेत रहें। खर्चों में वृद्धि होगी। कुटुंब/परिवार में धार्मिक कार्य होंगे। धन की प्राप्ति होगी। मित्रों का सहयोग भी मिलेगा। 29 अप्रैल से शैक्षिक और शोधादि कार्यों में सफलता मिलेगी। शैक्षिक कार्यों के लिए विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। परिवार से अलग रहना पड़ सकता है। आय में कमी आ सकती है। नौकरी में परिवर्तन के योग भी बन रहे हैं। कार्यक्षेत्र में परिवर्तन भी हो सकता है। किसी दूसरे स्थान पर भी जाना पड़ सकता है। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि
वर्ष के प्रारम्भ में आत्मविश्वास तो भरपूर रहेगा, परंतु मन परेशान भी हो सकता है। परिवार में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। 15 जनवरी के बाद नौकरी में कोई अतिरिक्त कार्य मिल सकता है। किसी मित्र का सहयोग मिलेगा। 13 फरवरी से माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। पिता का सान्निध्य मिल सकता है। 12 अप्रैल के बाद से किसी पुराने मित्र से भेंट हो सकती है। आय का नया साधन बन सकता है। भवन या संपत्ति सुख में वृद्धि भी हो सकती है।
शैक्षिक कार्यों में सफलता मिलेगी। नौकरी में तरक्की के अवसर भी मिल सकते हैं। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव भी रहेगा। आय में वृद्धि होगी। 29 अप्रैल से शनि की ढैया प्रारम्भ हो जाएगी। कार्यों में व्यवधान आएंगे। अनियोजित खर्चों में वृद्धि होगी। मित्रों से मतभेद बढ़ सकते हैं। पिता के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। नौकरी में यात्राएं भी अधिक रहेंगी। यात्रा खर्च भी अधिक रहेंगे। संतान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं।
धनु राशि
वर्ष के प्रारम्भ में मन अशांत हो सकता है। धैर्यशीलता बनाए रखने के प्रयास करें। 16 जनवरी से संतान के स्वास्थ्य में सुधार होगा। नौकरी में कार्यभार में वृद्धि हो सकती है। परिवार में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। 13 फरवरी के उपरांत नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। स्थान परिवर्तन भी संभव है। 7 मार्च से कारोबार की स्थिति में सुधार होना चाहिए। 12 अप्रैल से शैक्षिक कार्यों पर ध्यान दें। व्यवधान आ सकते हैं।
13 अप्रैल से माता के सुख में वृद्धि होगी। धार्मिक कार्यों में खर्च बढ़ सकते हैं। भवन के सौंदर्यीकरण के कार्यों में खर्च बढ़ सकते हैं। 29 अप्रैल से शनि की साढ़ेसाती की समाप्ति होगी। नौकरी में कार्यक्षेत्र की स्थिति में सुधार होगा। परिस्थितियां अनुकूल बनेंगी, परंतु संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की जरूरत है। नौकरी में यात्राएं बढ़ सकती हैं। परिवार का साथ रहेगा। अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। चिकित्सीय खर्च भी बढ़ सकते हैं।
मकर राशि
वर्ष के प्रारम्भ में आत्मविश्वास तो भरपूर रहेगा, परंतु कारोबार में व्यवधान से परेशान हो सकते हैं। 15 जनवरी से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। परिवार में शांति बनाए रखने के प्रयास करें। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। परिश्रम अधिक रहेगा। मित्रों से वाद-विवाद से बचें। किसी भवन या संपत्ति में निवेश भी कर सकते हैं। 28 फरवरी से संतान के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। वाहन सुख में वृद्धि होगी। माता-पिता का सान्निध्य मिलेगा।
7 मार्च के बाद किसी मित्र से कारोबार का प्रस्ताव मिल सकता है।धन-लाभ के अवसर मिलेंगे। 12 अप्रैल से माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। आय में व्यवधान आ सकते हैं। 13 अप्रैल से बृहस्पति अपनी स्वराशि में प्रवेश करके तृतीय भाव में आ जाएंगे। शिक्षा व बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती है। धर्म के प्रति श्रद्धा भाव बढ़ेगा। नौकरी में तरक्की के अवसर मिल सकते हैं। आय में वृद्धि हो सकती है। 29 अप्रैल को शनि के राशि परिवर्तन से उतरती साढ़ेसाती रहेगी। विदेश यात्रा के अवसर मिल सकते हैं।
कुंभ राशि
वर्ष के प्रारम्भ में मन अशांत रहेगा। लगती हुई साढ़ेसाती से खर्च की अधिकता रहेगी। कार्यों में व्यवधान और धैर्यशीलता में कमी रहेगी। 15 जनवरी से खर्चों में वृद्धि हो सकती है। अपने स्वास्थ्य और जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। नौकरी में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। 13 फरवरी से स्थिति में सुधार होगा। 27 फरवरी के बाद नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम रहेगा। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
12 अप्रैल के बाद कार्यक्षेत्र की स्थिति में सुधार होगा। नौकरी में तरक्की के अवसर मिलेंगे। आय में वृद्धि होगी। बंधु-बांधवों का सहयोग मिलेगा। विदेश यात्रा की योजना बन सकती है। 13 अप्रैल से वृहस्पति के राशि परिवर्तन से धन की स्थिति में सुधार होगा। मित्रों का सहयोग मिलेगा। कुटुंब/परिवार में धार्मिक कार्य होंगे। 29 अप्रैल से शनि आपकी राशि में प्रवेश करेंगे। साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा। नौकरी में परिवर्तन के योग हैं। कार्यक्षेत्र में भी परिवर्तन संभव। परिवार से दूर रहना पड़ सकता है।
मीन राशि
वर्ष के प्रारम्भ में आत्मविश्वास में कमी रहेगी। शैक्षिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। 15 जनवरी से धैर्यशीलता में कमी आ सकती है। स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। किसी मित्र के सहयोग से आय में वृद्धि हो सकती है। परिवार में व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 27 फरवरी से संतान के स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत रहें। किसी संपत्ति से धन लाभ हो सकता है। 7 मार्च के बाद किसी कारोबार में निवेश कर सकते हैं। व्यावसायिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती है।
रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। पारिवारिक जीवन कष्टमय हो सकता है। 12 अप्रैल के बाद से शैक्षिक कार्यों में सुधार होगा। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। 29 अप्रैल से शनि के राशि परिवर्तन से साढ़ेसाती की शुरुआत हो जाएगी। खर्चों में वृद्धि होगी। संचित धन में कमी आएगी। नौकरी में स्थान परिवर्तन हो सकता है। बनते कार्यों में कठिनाइयां आ सकती हैं। बंधु-बांधवों से विरोध भी हो सकता है। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें।
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