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- 20 नवंबर की रात को 11:15 बजे गुरु ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे. गुरु 13 अप्रैल 2022 तक कुंभ राशि में रहेंगे. गुरु ग्रह को ज्योतिष में देवगुरु का दर्जा दिया गया है. गुरु का राशि परिवर्तन सभी राशियों के जातकों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाता है. इस बार का परिवर्तन 5 राशियों के लिए शुभ रहेगा.गुरु का राशि परिवर्तन मेष राशि के जातकों के लिए शुभ रहेगा. इस राशि के जातकों की आय बढ़ेगी. इससे आर्थिक स्थिति में मजबूती आएगी. रुके हुए काम अब बनने लगेंगे. घर में खुशियां आएंगी. कारोबारियों को भी लाभ होगा. अविवाहितों की शादी हो सकती है.वृषभ राशि के जातकों के गुरु का कुंभ में प्रवेश करियर में फायदा देगा. वर्कप्लेस पर स्थितियां अनुकूल रहेंगी. मेहनत का पूरा फल मिलेगा, बॉस तारीफ करेंगे. प्रमोशन भी हो सकता है. अप्रत्याशित पैसा मिलेगा.सिंह राशि के जातकों के लिए यह समय विशेष तौर पर फैमिली लाइफ के लिए बहुत अच्छा रहेगा. लाइफ पार्टनर से अच्छी निभेगी. आय बढ़ेगी. लेकिन निवेश करने से बचना इस समय ठीक रहेगा.धनु राशि के जातकों के लिए यह समय भाग्य बढ़ाने वाला साबित होगा. हर काम में सफलता मिलेगी. शादी हो सकती है. लाभदायक यात्रा के प्रबल योग हैं. बेरोजगार लोगों को पसंद की नौकरी मिल सकती है. कुल मिलाकर यह समय हर लिहाज से अनुकूल है.मकर राशि के जातकों को यह राशि परिवर्तन धन लाभ कराएगा. भौतिक सुख का आनंद लेंगे. करियर में बेहतरी आएगी. लेकिन इस दौरान जोखिम लेने से बचें.-
- देवों में प्रथम पूजनीय माने जाने वाले भगवान गणेश की पूजा सभी प्रकार से फलदायी है. गणपति की विधि-विधान से पूजा करने पर जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है और घर में सुख-समृद्धि यानी रिद्धि-सिद्धि का आगमन होता है. गणपति की कृपा से घर-परिवार में शुभ-लाभ बना रहता है. जिस तहर भगवान शिव की पूजा के लिए द्वादश ज्योतिर्लिंग और शक्ति की साधना के लिए 51 शक्तिपीठ हैं, उसी तरह गणपति के आठ पावन धाम हैं, जिसे अष्टविनायक कहा जाता है. गणपति के ये सभी आठों पावन धाम महाराष्ट में स्थित हैं. आइए आज बुधवार के दिन गणपति की कृपा दिलाने वाले इन आठ मंदिरों के बारे में जानते हैं.मयूरेश्वर मंदिर, पुणेगणपति का यह पावन धाम पुणे शहर से तकरीबन 75 किमी की दूरी पर स्थित है. मान्यता है कि भगवान गणेश ने इसी स्थान पर सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध मोर पर सवार होकर किया था, इसीलिए इस मंदिर को मयूरेश्वर कहते हैं. गणपति के इस सिद्ध मंदिर में दर्शन एवं पूजन का विशेष महत्व है.सिद्धिविनायक मंदिर, अहमदनगरगणपति का यह पावन धाम महाराष्ट्र के अहमदनगर में भीम नदी के किनारे स्थित है. पहाड़ की चोटी पर बने गणपति के इस सिद्ध मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी इसी पावन स्थल पर भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थीं. गणपति के इस मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पहाड़ की यात्रा करनी पड़ती है.बल्लालेश्वर मंदिर, पालीगणपति का यह सिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के कुलाबा जिले के पाली नामक स्थान पर है. गणपति के इस मंदिर का नाम उनके अनन्य भक्त बल्लाल के नाम पर रखा गया है. बल्लालेश्वर गणपति मंदिर में प्रात:काल भगवान सूर्य की किरणें सीधे उनकी मूर्ति पर पड़ती है.वरदविनायक मंदिर, रायगढ़भगवान गणेश का वरदविनायक मंदिर रायगढ़ के कोल्हापुर नामक स्थान पर है. मान्यता है कि गणपति के इस मंदिर में दर्शन करने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरे होने का वरदान मिलता है.चिंतामणी मंदिर, पुणेअपने भक्तों की सभी चिंताओं को हरने वाले भगवान गणेश का यह मंदिर महाराष्ट्र के पुणे शहर से 25 किमी की दूरी पर थेऊर गांव में स्थित है. इस मंदिर की स्थापना उनके परम भक्त मोरया गोसावी ने की थी.गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर, पुणेभगवान श्री गणेश का यह सिद्ध मंदिर पूना से तकरीबन 100 किमी की दूरी पर लेण्याद्रि गांव में स्थित है. गिरिजात्मज मंदिर को पर्वत की खुदाई करके बनाया गया है.विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर, ओझरभगवान विघ्नेश्वर का मंदिर पुणे से तकरीबन 85 किमी दूर ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में स्थित है. मान्यता है कि गणपति ने विघनासुर नाम के राक्षस का वध करके इस क्षेत्र के लोगों को सुख-चैन से रहने का कभी आशीर्वाद दिया था. भगवान गणपति की इस मूर्ति के दर्शन से सभी बाधाएं दूर होती हैं.महागणपति मंदिर, राजणगांवमहागणपति मंदिर पुणे से 55 किमी की दूरी पर राजणगांव में स्थित है. गणपति का यह मंदिर काफी प्राचीन है, जिसे नौवीं से दसवीं सदी के बीच माना जाता है. यहां गणपति को महोत्कट के नाम से भी जाना जाता है.
- वास्तुशास्त्र में घर को लेकर कई खास चीजों का उल्लेख किया गया था. वास्तु टिप्स में जहां घर के दिशा, से लेकर कहां पर कौन सी चीज रखी जानी चाहिए हर एक के बारे में बताया गया है. वास्तु में साफ किया गया है कि हर एक घर की बनावट से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की ऊर्जाएं प्राप्त होती हैं. जहां सकारात्मक ऊर्जा से जीवन में प्रसन्न आती है और वहीं नकारात्मक ऊर्जा से आर्थिक परेशानियां और बीमारियां आती हैं. घर में वास्तुदोष होने से जीवन में बस परेशानियां ही आती हैं, जीवन में भी केवल असफलता प्राप्त होती है और मानसिक पीड़ा भी जीवन में आ जाती है. ऐसे में वास्तुशास्त्र में कुछ उपाय बताए गए हैं जिनको अपनाकर हम घर के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं और घर पर समृद्धि ला सकते हैं. वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि घर में हम किन चीजों की तस्वीर लगाकार सुख समृद्धि आदि को बढ़ा सकते हैं.धन लाभ के लिएअगर आपके जीवन में तमाम प्रयासों के बाद भी आर्थिक तंगी बनी रहती है तो अपने घर में मां लक्ष्मी और कुबेर की प्रतिमा वाली फोटो जरूर रखें. लेकिन इसको रखते हुए ध्यान रखें आप इन तस्वीरों को घर के उत्तर दिशा में लगा रहे हैं. कहते हैं कि धन प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा वास्तु शास्त्र में अच्छी मानी गई है. अगर आप इन तस्वीरों को लगाते हैं तो धन की प्रात्ति होगी.सुंदर तस्वीरेंघर की दीवारों पर सुंदर तस्वीरें लगानी चाहिए. अगर आप ऐसा करते हैं तो जहां घर की खूबसूरती बढ़ जाती है वहीं यह धन दौलत में वृद्धि होती है. आपको बता दें कि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के दक्षिण और पूर्व दिशा की दीवारों में प्रकृति से जुड़ी हुई चीजों की तस्वीर ही लगानी चाहिए.हंसते हुए बच्चे की तस्वीरवास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर हंसते हुए छोटे बच्चों की तस्वीर लगाना बहुत अच्छा होता है. घर में हंसते हुए बच्चे की तस्वीर लगाने से घर पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती रहती है. इतना ही नहीं पूर्व और उत्तर की दिशा में बच्चे की तस्वीर लगाना शुभ रहता है.नदी और झरने की तस्वीरघर के उत्तर-पूर्वी दिशा में नदियों और झरनों की तस्वीर लगाने से भी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है. यदि आपने घर में पूजा घर बना रखा है याद रखें कि दक्षिण-पश्चिम की दिशा में निर्मित कमरे का प्रयोगपूजा-अर्चना के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
- हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को काफी शुभ माना जाता है, यहां तक कि कई घरों में इसकी पूजा तक की जाती है. लेकिन तुलसी के अलावा एक और पौधा है जिसे घर में लगाना काफी लाभकारी होता है, यह है शमी का पौधा. इस पौधे को घर में लगाने से न सिर्फ सुख-समृद्धि आती है बल्कि पैसे की तंगी भी दूर हो जाती है. साथ ही शमी का पौधा लगाने से शनि के प्रकोप से भी बचा जा सकता है.पैसों की तंगी होगी दूरशमी के पौधे को भगवान शिव का सबसे प्रिय माना जाता है और वास्तु के अनुसार इसे घर में लगाने से सुख-समृद्धि (Wealth) आती है साथ ही पैसे की तंगी दूर होती है. यह पौधा आपके घर की कलह को भी खत्म कर सकता है और मान्यता है कि इस पौधे को लगाने से शनि साढ़े साती (Sade Sati) और ढैय्या के बुरे असर से बचा जा सकता है. इसके अलावा विवाह संबंधी दिक्कते दूर करने में भी यह पौधा कारगर माना जाता है.इस पौधे को लगाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. सबसे पहले इस पौधे को शनिवार के दिन लगाना लाभकारी माना जाता है और खासतौर पर दशहरे के दिन इसे लगाना ज्यादा शुभ माना जाता है. पूजा योग्य इस पौधे को लगाने के लिए साफ मिट्टी का इस्तेमाल करना चाहिए.ऐसे करें पौधे की पूजाशमी का पौधा कभी भी घर के भीतर नहीं लगाना चाहिए. इसे हमेशा घर के मुख्य दरवाजे पर लगाएं और ऐसी दिशा में हो जो घर से निकलते हुए आपके दाएं तरफ पड़े. मतलब पौधे को मेन गेट के बाएं ओर लगाना शुभ होता है. अगर आप इस पौधे को मेन गेट पर नहीं लगाना चाहते या ऊपरी फ्लोर पर रहते हैं तो इसे छत पर दक्षिण दिशा में लगा सकते हैं. साथ ही धूप के लिए इसे छत की पूर्व दिशा में भी लगाया जा सकता है.पौधे की कृपा पाने के लिए शाम के वक्त घर के मंदिर में दीपक जलाने के बाद शमी के पौधे की भी पूजा करें. साथ ही एक दीया पौधे के सामने भी जरूर जलाएं. ऐसा माना जाता है कि इससे आर्थिक स्थिति में मजबूती आती है और फिजूलखर्च भी कम होता है.
- जीवन में हर कोई चाहता है कि उसे सुख समृद्धि और तरक्की मिले. इस चाहत को पूरा करने के लिए लोग भरपूर मेहनत भी करते हैं. इसके बावजूद हर किसी की यह ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाती.इसकी वजह प्लानिंग में कमी के साथ ही भाग्य और ग्रहों का साथ न मिलना भी होता है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक प्रत्येक राशि का कोई न कोई स्वामी ग्रह होता है. अगर वह ग्रह आप पर प्रसन्न हो जाए तो आपकी जिंदगी के वारे-न्यारे हो सकते हैं. वहीं उसके अप्रसन्न रहने पर उल्टा भी हो सकता है. ऐसे में ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय करने पड़ते हैं. आइए जानते हैं कि वे कौन से उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर आप अपनी किस्मत चमका सकते हैं.भगवान विष्णु की करें नियमित पूजा- अगर आपकी कुंडली में देवगुरु बृहस्पति शुभ फल न दे रहे हों तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए आप भगवान विष्णु की पूजा करें. इसके साथ ही प्रत्येक गुरुवार को पीली वस्तुओं का दान करना शुरू करें.- यदि आपको मंगल ग्रह का आशीर्वाद नहीं मिल रहा है तो तो प्रत्येक मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ करें. साथ ही लाल मसूर का दान करें और जरूरतमंद तबकों के बच्चों को मिष्ठान्न बांटें.प्रतिदिन हनुमान चालीसा का करें पाठ- अगर शनि देव आपसे रुष्ट बने हुए हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन हनुमान चालीसा और शनि चालीसा का पाठ करें. प्रत्येक शनिवार को नीले और काले रंग के वस्त्र धारण करने से बचें.- सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना जाता है. यदि आपने सूर्य देव को प्रसन्न कर लिया तो आपका भाग्य अपने आप चमक जाएगा. सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आप प्रतिदिन उगते हुए सूर्य को जल दें और गायत्री मंत्र का जाप करें.शुक्र देव को प्रसन्न करना है जरूरी- अगर आपसे शुक्र देव रुठे हुए हैं तो आप हमेशा कष्ट में रहेंगे. इसलिए उन्हें प्रसन्न करना अति आवश्यक होता है. इसके लिए आपको रोजाना स्फटिक की माला से ऊं शुं शुक्राय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए. ऐसा करने से शुक्र देव प्रसन्न होकर जातक को आशीर्वाद देते हैं.- यदि आपको बुध ग्रह शुभ फल नहीं दे रहे हैं तो आप कुछ खास उपाय करके उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं. इसके लिए लड़कियों को बायें हाथ और लड़कों को दाहिने हाथ में तांबे का कड़ा धारण करना चाहिए.
- ये तो हम सभी जानते हैं कि परमपिता ब्रह्मा से ही इस सारी सृष्टि का आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम ब्रह्मा ने पृथ्वी सहित सारी सृष्टि की रचना की। तत्पश्चात उन्होंने जीव रचना के विषय में सोचा और तब उन्होंने अपने शरीर से कुल 59 पुत्र उत्पन्न किये। इन 59 पुत्रों में उन्होंने सर्वप्रथम जो 16 पुत्र अपनी इच्छा से उत्पन्न किये वे सभी "मानस पुत्र" कहलाये। इन 16 मानस पुत्रों में 10 "प्रजापति" एवं उनमें से 7 "सप्तर्षि" के पद पर आसीन हुए। आइये इनके विषय में संक्षेप में जानते हैं:-मन से मरीचि - (सप्तर्षि एवं प्रजापति): इन्हे द्वितीय ब्रह्मा भी कहा जाता है। इनकी सम्भूति, कला एवं ऊर्णा नामक तीन पत्नियां थी। ऋषियों में श्रेष्ठ महर्षि कश्यप इन्ही के पुत्र हैं।-नेत्र से अत्रि - (सप्तर्षि एवं प्रजापति): उन्होंने अपनी पत्नी अनुसूया से त्रिदेवों को पुत्र के रूप में पाया। माता अनुसूया के गर्भ से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय एवं शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म हुआ। -मुख से अंगिरस - (सप्तर्षि एवं प्रजापति): परमपिता ब्रह्मा से वेदों की शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले सप्तर्षि महर्षि अंगिरा ही थे। उन्होंने ने ही सर्वप्रथम अग्नि को उत्पन्न किया था। इनकी सुरूपा, स्वराट, पथ्या एवं स्मृति नामक 4 पत्नियाँ हैं। देवगुरु बृहस्पति एवं महर्षि गौतम इन्हीं के पुत्र हैं। इन्होंने ही रानी चोलादेवी को देवी लक्ष्मी के श्राप से मुक्ति दिलवाई थी।-नाभि से पुलह - (सप्तर्षि एवं प्रजापति): उन्होंने ब्रह्माण्ड के विस्तार में अपने पिता को सहयोग दिया था। इनकी क्षमा एवं गति नामक दो पत्नियां थी। इसके अतिरिक्त किंपुरुष भी इन्हीं के पुत्र माने जाते हैं। काशी का पुहलेश्वर शिवलिंग इन्हीं के नाम पर पड़ा है।-हाथ से क्रतु - (सप्तर्षि एवं प्रजापति): उन्होंने ने ही सर्वप्रथम वेदों का विभाजन किया था। इनकी पत्नी का नाम सन्नति था जिनसे इन्हें 60 हजार पुत्रों की प्राप्ति हुई जो बालखिल्य कहलाये।-कान से पुलस्त्य - (सप्तर्षि एवं प्रजापति): ये रावण के पितामह एवं महर्षि विश्रवा के पिता थे। इनकी प्रीति एवं हविर्भुवा नामक पत्नियां थी और महान अगस्त्य इन्हंीं के पुत्र माने जाते हैं।-प्राण से वशिष्ठ - (सप्तर्षि एवं प्रजापति): ये श्रीराम के कुलगुरु थे और देवी अनुसूया की छोटी बहन अरुंधति इनकी पत्नी थी। गौ माता कामधेनु की पुत्री नंदिनी इन्ही के गौशाला में रहती थी।-त्वचा से भृगु - (प्रजापति): इनका वंश प्रसिद्ध भार्गव वंश कहलाया जिस कुल में आगे चल कर भगवान परशुराम ने जन्म लिया। इन्हीं के पुत्र शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु के पद पर आसीन हुए। माता लक्ष्मी भी इन्हीं की पुत्री मानी जाती हैं।-पांव के अंगूठे से दक्ष - (प्रजापति): ये प्रजापतियों में सबसे प्रसिद्ध माने जाते हैं। इनकी पुत्रियों से ही मानव वंश का अनंत विस्तार हुआ। इन्होंने अपनी पत्नियों प्रसूति एवं वीरणी से 74 कन्याओं को प्राप्त किया । इन्हीं की पुत्री सती महादेव की पहली पत्नी थी।-छाया से कर्दम - (प्रजापति): इन्होंने स्वयंभू मनु की पुत्री देवहुति से विवाह कर 9 पुत्रियों - कला, अनुसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती एवं शान्ति तथा एक पुत्र कपिल मुनि को प्राप्त किया।गोद से नारद: ये श्रीहरि के महान भक्त थे जिन्हें देवर्षि का पद प्राप्त है। इन्होंने सनत्कुमारों को दीक्षा देकर संन्यासी बना दिया जिससे क्रुद्ध होकर इनके पिता ब्रह्मा ने इन्हे एक जगह स्थिर ना होने का श्राप दे दिया।इच्छा से 4 सनत्कुमार: इन चारों को ब्रह्मा ने मैथुनी सृष्टि रचने के लिए उत्पन्न किया किन्तु देवर्षि नारद ने इन्हें दीक्षा देकर संन्यासी बना दिया। तब ब्रह्मा ने नारद को स्थिर ना रहने का और इन चारों को 5-5 वर्ष के बालक रूप में रहने का श्राप दिया। ये महादेव के अनन्य भक्त हैं।शरीर से मनु एवं शतरूपा: सनत्कुमारों के संन्यास ग्रहण करने के पश्चात ब्रह्मा ने अपने शरीर से स्वयंभू मनु एवं शतरूपा को प्रकट किया जिनसे अनंत पुत्र-पुत्रियों की उत्पत्ति हुई। मनु के नाम से ही हम मानव कहलाते हैं। ये ही प्रथम मन्वन्तर के अधिष्ठाता हैं ।वाम अंग से शतरूपा, दक्षिण अंग से स्वयंभू मनु।धयान से चित्रगुप्त: ये कायस्थ वंश के जनक हैं और यमराज के मंत्री के रूप में इनकी प्रतिष्ठा है। सभी इंसानों के कर्मों का लेखा-जोखा यही रखते हैं। इन्होंने दो कन्याओं - इरावती एवं नंदिनी से विवाह किया जिससे 12 पुत्र जन्में जिससे समस्त कायस्थ वंश चला।
- सनातन परंपरा में भगवान शिव और माता पार्वती के लिए रखे जाने वाले प्रदोष व्रत का बहुत महत्व है. प्रदोष सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल को कहा जाता है. 16 नवंबर को पड़ेगा भौम प्रदोष व्रत. प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहले प्रारम्भ होकर सूर्यास्त के बाद 45 मिनट तक रहता है. प्रत्येक मास के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन रखे जाने वाले इस व्रत से सुख-संपत्ति और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है. वैसे तो पूरी त्रयोदशी तिथि ही भगवान शिव के व्रत के लिए शुभ है लेकिन प्रदोषकाल में शिव जी की पूजा अत्यंत ही मंगलकारी मानी गई है.साल 2021 में कब-कब पड़ेगा प्रदोष व्रतइस साल के अंतिम दो बचे महीनों में यदि प्रदोष व्रत की बात जाए तो अगला प्रदोष व्रत जो कि मंगलवार के दिन पड़ने के कारण भौम प्रदोष कहलाएगा, वह कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी के दिन 16 नवंबर 2021 को पड़ेगा. इसके बाद दिसंबंर माह में कुल तीन प्रदोष व्रत पड़ेंगे. जिसमें से पहला मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी यानि 02 दिसंबर 2021 को और दूसरा मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की त्रयोदशी यानि 16 दिसंबर को और तीसरा और साल का आखिरी प्रदोष व्रत पौष कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी यानि कि 31 दिसंबर को पड़ेगा.भौम प्रदोष व्रत के लाभकिसी भी माह में पड़ने वाला प्रदोष व्रत जिस दिन को पड़ता है, उसे उसी नाम से जाना जाता है. जैसे सोमवार को आने वाले प्रदोष को सोम प्रदोष या फिर मंगलवार को होने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष आदि कहते हैं. यदि बात करें भौम प्रदोष व्रत की तो मंगलवार के दिन रखे जाने वाले इस पावन व्रत को रखने से जीवन के तमाम कष्टों से मुक्ति मिलती है. भौम प्रदोष के पुण्यफल से व्रती को जाने-अनजाने किए गए पाप से मुक्ति मिलती है.प्रदोष व्रत को करने के लाभमान्यता है कि प्रदोष व्रत को विधि-विधान से रखने पर सौ गायों के दान के बराबर पुण्य फल मिलता है. दिन विशेष पर पड़ने वाले प्रदोष व्रत की बात करें तो रवि प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि, आजीवन आरोग्यता और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है तो वहीं भौम प्रदोष व्रत से रोग-शोक दूर होते हैं, बुध प्रदोष व्रत से कार्य कार्य विशेष में सफलता प्राप्त होती है. गुरु प्रदोष व्रत से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में आ रही सभी अड़चनें दूर होती हैं. शुक्र प्रदोष व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. उसके परिवार में सुख और समृद्धि हमेशा कायम रहती है. शनि प्रदोष व्रत से संतान प्राप्ति और उसकी उन्नति होती है.
- ज्योतिषी/वास्तु शास्त्री विनीत शर्मा ने बताया कि सर्व प्राचीन वेदों में वर्तमान मास् को सहस मास बताया गया है।राक्षस संवत्सर के कार्तिक शुक्ल पक्ष को एकादशी पर्व को lतुलसी विवाह भी कहा जाता है इस पर्व के दिन माता तुलसी का शालिग्राम भगवान से विवाह किया जाता है गन्ने के शुभ मंडप के माध्यम से पूजा की जाती है गन्ना सबसे विशुद्ध फल माना गया है गन्ने से प्राप्त होने वाली मिश्री और गुड़ शरीर के लिए आयुष्य वर्धक होते है ।इसलिए इस पवित्र त्यौहार में गन्ने का उपयोग किया जाता है आज के दिन पांच-पांच सुंदर योग बन रहे हैं सर्वार्थ सिद्धि योग नीच भंग राजयोग शश योग वज्र योग रवि योग गद योग आदि योगों की बेला में इस पर्व को मनाया जाएगा ।आज से ही मांगलिक वैवाहिक गृह प्रवेश अन्नप्राशन जाति कर्म संस्कार अन्नप्राशन संस्कार चूड़ाकर्म नामकरण संस्कार विद्यारंभ संस्कार और समस्त संस्कार प्रारंभ हो जाएंगे।आज के शुभ दिन से ही चातुर्मास समाप्त हो जाएंगे और श्री हरि विष्णु का आज से जागरण हो जाएगा।फलस्वरूप मांगलिक व शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे।प्राकृतिक एयर प्यूरीफायर है यह भर अधिक मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ता है इससे प्रदूषण कम होता हैब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार आज के दिन सुबह तुलसी का दर्शन करने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
- होम डेकोर के लिए मनी प्लांट बहुत पसंद किया जाने वाला पौधा है. इन दिनों लोग मनी प्लांट को साज सज्जा के लिए अपने घर पर खास रूप से इस्तेमाल करने लगे हैं. मनी प्लांट एक बेल की तरह होता है. ये काफी हराभरा और आकर्षक होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके घर में मनी प्लांट लाने से आपके वित्तीय स्थिती पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है? मनी प्लांट लाने के बाद, आपको ये सुनिश्चित करना होगा कि आप इसकी सही देखभाल करें. वरना ये आपके जीवन में केवल तनाव और वित्तीय संकट ही लाएगा.वास्तु शास्त्र और फेंगशुई के अनुसार मनी प्लांट लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए आइए जानें.मनी प्लांट लगाते समय इन बातों का रखें ध्यानसही दिशावास्तु शास्त्र के अनुसार, मनी प्लांट आपके घर के दक्षिण-पूर्व कोने में स्थित होना चाहिए. ये समृद्धि को आकर्षित करने और नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखने में मदद करता है. वहीं, इसे ईशान कोण में रखने से आपके जीवन में तनाव ही आएगा.इसे पानी देंसुनिश्चित करें कि आप इसे रोजाना पानी दें ताकि ये बना रहे. क्योंकि एक सूखा और मुरझाया हुआ मनी प्लांट केवल आपके लिए दुर्भाग्य लाएगा. इसके अलावा, पौधे को फर्श से छूने न दें, क्योंकि इसका नकारात्मक प्रभाव होगा.इसे उत्तर प्रवेश द्वार पर रखेंकहा जाता है कि अपने मनी प्लांट को उत्तर प्रवेश द्वार पर रखने से आय के नए स्रोत और कई करियर के अवसर हासिल होते हैं. लेकिन सुनिश्चित करें कि मनी प्लांट के गमले का रंग नीला होना चाहिए.खरीदने से पहले पत्तियों के आकार की जांच करेंजब आप मनी प्लांट की खरीदारी कर रहे हों, तो सुनिश्चित करें कि पत्ते दिल के आकार के हों. ये धन, समृद्धि को आकर्षित करता है और स्वस्थ संबंधों को बढ़ावा देता है.बड़े गमले का इस्तेमाल करेंअपने मनी प्लांट के लिए एक बड़े गमले का इस्तेमाल करें क्योंकि इससे उन्हें तेजी से और अधिक हरियाली बढ़ने में मदद मिलेगी. वास्तु के अनुसार, पत्ते जितने हरे होंगे, आपकी आर्थिक स्थिति उतनी ही बेहतर होगी.दूसरों को इसे काटने न देंअपने मनी प्लांट को कभी भी किसी को छूने या काटने न दें. ऐसा माना जाता है कि इससे आपका धन आपसे छीन जाएगा और दूसरे व्यक्ति को मिल जाएगा.
- पूर्णिमा हर महीने के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पड़ती है. इस बार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 19 नवंबर 2021, शुक्रवार पड़ रही है. कार्तिक मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इतना ही नहीं इस दिन स्नान और दान आदि का विशेष महत्व है. पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन चंद्रमा के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है.पूर्णिमा तिथि कार्तिक मास की अंतिम तिथि होती है, जिसे कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस साल कार्तिक पूर्णिमा 19 नवंबर को पड़ रही है. मार्गशीर्ष का महीना 20 नवंबर से शुरू होगा. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा 2021 भी कहा जाता है. इस दिन भगवान भोलेनाथ ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था. इसी खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर खुशियां मनाई. इसे देव दिवाली के नाम से जाना जाता है. इतना ही नहीं इस दिन पवित्र नदी में स्नान और दान आदि करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, वहीं इस दिन श्री हरि आदि की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं तिथि, शुभ मुहूर्त और कार्तिक पूर्णिमा के महत्व के बारे में.कार्तिक पूर्णिमा तिथि 2021कार्तिक पूर्णिमा तिथि की शुरुआत – 18 नवम्बर 2021, दोपहर 12:00 बजेकार्तिक पूर्णिमा तिथि खत्म – नवम्बर 19, 2021, 02:26 बजेकार्तिक पूर्णिमा चंद्रमा निकलने का समय – 17:28:24कार्तिक पूर्णिमा पूजन विधिकार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. इसलिए इस दिन किसी भी सरोवर या धर्म स्थान पर दीपक का दान करना चाहिए. कहा जाता है कि इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में पवित्र स्नान करना चाहिए या घर में गंगा जल डालकर स्नान करना चाहिए. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के सम्मुख शुद्ध देसी घी का दीपक जलाना चाहिए. श्री हरि का तिलक करने के बाद धूप, दीपक, फल, फूल और नैवेद्य आदि से पूजा करें. शाम को फिर से भगवान विष्णु की पूजा करें. भगवान को देसी घी में भूनकर सूखे आटे का कसार और पंचामृत चढ़ाएं. इसमें तुलसी जरूर शामिल करें. इसके बाद विष्णु सहित मां लक्ष्मी की पूजा और आरती करें. रात को चांद निकलने के बाद अर्घ्य दें और फिर व्रत खोलें.कार्तिक पूर्णिमा का महत्वसभी पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इस दिन स्नान और दीप दान करना शुभ और पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है. यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन बड़ी संख्या में लोग पवित्र नदियों में स्नान कर पुण्य कार्य करते हैं. इस दिन पूजा, हवन, जप और तप का भी विशेष महत्व है.
- हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को जब श्री हरि विष्णु चार माह की निद्रा से जागते हैं तो उनके विग्रह स्वरूप शालीग्राम और देवी तुलसी का विवाह किया जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर तुलसी से क्यों किया जाता है शालीग्राम और तुलसी विवाह। आखिर क्यों विष्णु जी ने लिया पाषाण का रूप। यहां जानिए पूरी कथा।क्यों किया जाता है तुलसी-शालीग्राम का विवाह-तुलसी और शालिग्राम जी के विवाह के संबंध में मिलने वाली पौराणिक कथा के अनुसार, देवी वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। उनका विवाह जलंधर नामक राक्षस से हुआ था। सभी उस राक्षस के अत्याचारों से उद्वविग्न थे। जब देवों और जलंधर के बीच युद्ध हुआ तो वृंदा अपने पति की रक्षा हेतु अनुष्ठान करने बैठ गई और संकल्प लिया कि जब तक उनके पति युद्ध से वापस नहीं आ जाते अनुष्ठान नहीं छोड़ेंगी। देवी वृंदा के सतीत्व के कारण जलंधर को मारना असंभव हो गया था। तब सभी देव गण विष्णु जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी। इसके बाद विष्णु जी जलंधर का रुप धारण करके वृंदा के समक्ष गए।नारायण को अपना पति समझकर वृंदा पूजा से उठ गई, जिससे उनका व्रत टूट गया। परिणाम स्वरुप युद्ध में जलंधर की मृत्यु हो गई और जलंधर का सिर महल में जाकर गिरा। यह देख वृंदा ने कहा कि जब मेरे स्वामी की मृत्यु हो गई है, तो यहां मेरे समक्ष कौन है। इसके बाद विष्णु जी अपने वास्तविक रूप में आ गए।जब वृंदा को सारी बात ज्ञात हुई तो उन्होंने विष्णु जी से कहा कि 'हे नारायण मैंने जीवनभर आपकी भक्ति की है फिर आपने मेरे साथ ऐसा छल क्यों किया? विष्णु जी के पास वृंदा के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। वे चुपचाप खड़े होकर सुनते रहे और वृंदा की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। उत्तर प्राप्त न होने पर वृंदा ने क्रोधित होकर कहा कि आपने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया है, फिर भी आप पाषाण की भांति चुपचाप खड़े हैं। जिस प्रकार आप पाषाण की तरह व्यवहार कर रहे हैं, आप भी पाषाण के हो जाएं।वृंदा के द्वारा दिए गए श्राप के कारण नारायण पत्थर के बन गए। जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब सभी देवों ने वृंदा से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए वृंदा ने नारायण को क्षमा कर दिया और अपने पति के सिर को लेकर सती हो गई। उनकी राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ तो तुलसी कहलाया। विष्णु जी अपने द्वारा किए गए छल के कारण पश्चाताप में थे। जिसके कारण उन्होंने अपने एक स्वरुप को पत्थर का कर दिया। उसके बाद विष्णु जी ने कहा कि उनकी पूजा तुलसी दल के बिना अधूरी मानी जाएगी। वृंदा का मान रखते हुए सभी देवों ने उनका विवाह पत्थर स्वरुप विष्णु जी से करवा दिया। इसलिए तुलसी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है।
- सपने आने के पीछे कई कारण हैं और वे कई तरह के संकेत भी देते हैं. लिहाजा सपनों को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है. वहीं लगातार आने वाले एक जैसे सपने या डरावने सपने कई तरह के वहम भी पैदा कर देते हैं. कई बार हालत इस तरह बिगड़ जाती है कि दिन में जागने के बाद भी रात की नींद में देखे गए सपने पीछा नहीं छोड़ते हैं. ऐसे डरावने सपनों से पीछा छुड़ाने के लिए अग्नि पुराण में कुछ आसान उपाय (Easy Remedies) बताए गए हैं. यदि इनमें से एक उपाय भी कर लें तो आसानी से डरावने सपनों से पीछा छुड़ाया जा सकता है.ऐसे पाएं डरावने सपनों से निजात- यदि सपने में सांप बार-बार डराते हों तो चांदी के नाग-नागिन किसी शिव मंदिर में पूजा करके दान कर दें. सपने में सांप दिखना बंद हो जाएगा.- सपने ही नहीं बल्कि कई तरह की समस्याओं से निजात पाने के लिए महामत्युंजय पाठ बहुत प्रभावी है. यदि बार-बार डरावने सपने आएं तो कुछ दिन तक महामत्युंजय पाठ पढ़ें. जल्द ही राहत मिल जाएगी.- रोज शाम को तुलसी जी के पौधे के नीचे दीपक लगाएं. इससे भी आपका मन शांत और सकारात्मक रहेगा. इससे सपने आना बंद हो जाएंगे.- कोई अशुभ सपना देख लें तो सुबह जल्दी नहाकर किसी योग्य ब्राह्मण को अन्न या कपड़े दान कर दें.- अशुभ सपना आए तो मंदिर जाकर अपने ईष्ट देव के दर्शन कर लें.- सूर्य को सुबह जल चढ़ाएं. इससे व्यक्ति के मन और विचार सकारात्मक होते हैं. साथ ही उसे बुरे सपने आने भी बंद हो जाते हैं.
- वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण के रूप अनंत हैं और उनके द्वारा प्रदत्त गीता ज्ञान भी अनंत ही है, किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय विभूति योग के श्लोक २० से लेकर श्लोक ४० तक श्रीकृष्ण ने अपनी विभिन्न विभूतियों का वर्णन किया है। यदि केवल विभूतियों की बात की जाये तो श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं "मेरी विभूतियाँ असंख्य हैं, किन्तु यहां पर केवल संक्षेप में विभूतियों का वर्णन किया गया है।" आइये देखते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को किस विभूति में क्या कहा है:-सृष्टि में आदि, मध्य एवं अंत-भूतमात्र के हृदय में आत्मा-आदित्यों में विष्णु (वामन)-ज्योतियों में अंशुमान (सूर्य)-मरुतों में तेज (मरीचि)-नक्षत्रों में चन्द्रमा-वेदों में सामवेद-देवों में वासव (इंद्र)-इन्द्रियों में मन-भूतों (प्राणियों) में चेतना-रुद्रों में शंकर-यक्ष-राक्षसों में कुबेर-वसुओं में पावक (अग्नि)-शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु-पुरोहितों में बृहस्पति-सेनापतियों में स्कन्द (कार्तिकेय)-जलाशयों में सागर-महर्षियों में भृगु-शब्दों में ॐकार-यज्ञों में जपयज्ञ-स्थावरों (स्थिर रहने वालों) में हिमालय-वृक्षों में अश्वथ (पीपल)-देवर्षियों (दिव्य ऋषियों) में नारद-गंधर्वों में चित्ररथ-सिद्धों में कपिल मुनि-अश्वों (घोड़ों) में उच्चैःश्रवा-गजों (हाथियों) में ऐरावत-मनुष्यों में नृप (राजा)-आयुधों में वज्र-धेनुओं (गायों) में कामधेनु-प्रजनन करने वालों में कंदर्प (कामदेव)-सर्पों में वासुकि-नागों में शेषनाग-जलचर अधिपतियों में वरुण-पितरों में अयर्मा-शासकों में यमराज-दैत्यों में प्रह्लाद-गणना करने वालों में समय-पशुओं में सिंह-पक्षियों में गरुड़-पवित्र करने वालों में वायु-शस्त्रधारियों में राम-मछलियों में मकर-नदियों में गंगा-सर्गों में आदि, मध्य एवं अंत-विद्याओं में अध्यात्म विद्या-शास्त्रार्थ में वाद (तर्क)-अक्षरों में अकार-समासों में द्वन्द-कालों में महाकाल-विश्वोत्तमुख में धाता-भक्षकों में मृत्यु-उत्पत्ति में उद्भव-स्त्रियों के गुणों में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति एवं क्षमा-सामों (स्तोत्रों) में बृहत्साम-छंदों में गायत्री-महीनों में मार्गशीर्ष-ऋतुओं में वसंत-छल करने वालों में द्यूत (जुआ)-तेजस्वियों में तेज-जीतने वालों में विजय--व्यवसायों में उद्यम-सात्विक पुरुषों में सत्व-वृष्णिवंशों में वासुदेव (कृष्ण)-पांडवों में धनञ्जय (अर्जुन)-मुनियों में वेदव्यास-कवियों में उशना (शुक्राचार्य)-दमन करने वालों में दंड-विजय चाहने वालों में नीति-गुह्यों (गोपनीय भावों) में मौन-ज्ञानवानों में ज्ञान
- हमारे घर की सुख-समृद्धि का संबंध हमारी रसोई से भी होता है क्योंकि रसोई मां अन्नपूर्णा स्थान होता है। वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसी चीजों को बारे में बताया गया है, जिन्हें रसोई में कभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं होने देना चाहिए। माना जाता है कि इन चीजों के खत्म होने से नकारात्मकता बढ़ती है और मां लभ्मी रुष्ट होती हैं। इस कारण आपके घर में आर्थिक तंगी होने लगती है। तो चलिए जानते हैं कि किन चीजों को कभी पूरी तरह खत्म नहीं होने देना चाहिए।आटा-यह रसोई में सबसे महत्वपूर्ण चीज होती है। वैसे तो ज्यादातरर घरों में आटा रखा ही रहता है,लेकिन कभी-कभी आटा खत्म हो जाता है। वास्तु के अनुसार आटा खत्म होने से पहले ही लाकर रख देना चाहिए। आटे के बर्तन को कभी भी पूरी तरह से खाली नहीं होने देना चाहिए। माना जाता है कि इससे आपके घर में अन्न और धन की की होने लगती है व मान-सम्मान की हानि भी हो सकती है।हल्दी-हल्दी का उपयोग ज्यादातर खाने की चीजों को बनाने में किया जाता है। इसी के साथ हल्दी को शुभ कार्यों और देव पूजा में भी इस्तेमाल किया जाता है। हल्दी का संबंध गुरु ग्रह से माना गया है। रसोई में पूरी तरह से हल्दी की कमी होने से गुरु दोष लगता है और आपके घर में सुख-समृद्धि की कमी हो सकती व शुभ कार्यों में व्यवधान हो सकता है। इसलिए कभी भी हल्दी को पूरी तरह से समाप्त नहीं होने देना चाहिए।चावलअक्सर लोग कई बार कीड़े आदि लगने के डर से चावल पूरी तरह खत्म होने के बाद ही मंगाते हैं, लेकिन यह सही नहीं रहता है। चावल को शुक्र का पदार्थ माना गया है और शुक्र को भौतिक सुख सुविधा का कारक माना जाता है। यदि घर में चावल खत्म होने वाले हो तो उन्हें पहले ही मंगवाकर रख लेना चाहिए।नमक-वैसे तो नमक हर घर में रहता ही है क्योंकि नमक के बिना हर चीज का स्वाद अधूरा लगता है। फिर भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नमक का डिब्बा कभी भी पूरी तरह से खाली नहीं होना चाहिए। इससे आपको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही कभी भी दूसरे के घर से नमक नहीं मांगना चाहिए।
- लोगों को हाथों में अलग अलग तरह के रत्नों को पहने देखते हैं. नीलम से लेकर पन्ना तक लोग अपने भाग्योदय के लिए पहनते हैं. जी हां रत्न धारण करने से ग्रहों का अशुभ प्रभाव कम होता है. हर ग्रह को शांत करने का अपना एक रत्न होता है. हर किसी को अपनी कुंडली के हिसाब से ही किसी भी रत्न को धारण करना चाहिए. कुछ ऐसे रत्न होते हैं जिनको किसी और के साथ नहीं पहना जाता है. कहते हैं कि इन रत्नों को एक साथ पहनने से परेशानियां कम होने की जगह बढ़ सकती हैं. कहा जाता है कि कुछ ऐसे रत्न हैं जिनको अगर किसी ने साथ में धारण कर लिया तो जीवन में कई तरह की परेशानियों और उलझनों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में आइए जानते हैं किन रत्नों को साथ नहीं पहनना चाहिए.मोती के साथ हीरा, पन्ना, गोमेद, लहसुनिया और नीलम न पहनेअगर किसी जातक ने मोती धारण किया हुआ है तो उस व्यक्ति को हीरा, पन्ना, गोमेद, लहसुनिया और नीलम को कभी नहीं पहनना चाहिए. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चंद्रमा के अशुभ प्रभाव को को कम करने के लिए मोती धारण किया जाता है, लेकिन मोती के साथ हीरा, पन्ना, गोमेद, लहसुनिया और नीलम पहनने से कई तरह की मानसिक परेशानी झेलनी पड़ सकती हैं.पन्ना के साथ पुखराज, मूंगा और मोती न पहनेअगर आपने पन्ना पहना हुआ है तो पुखराज, मूंगा और मोती कभी नहीं पहनना चाहिए. ज्योतिषशास्त्र में उल्लेख है कि बुध ग्रह को शांत करने के लिए पन्ना पहना जाता है. लेकिन अगर आप पन्ना के साथ पुखराज, मूंगा और मोती धारण करते हैं तो जीवन में धन हानि का सामना करना पड़ सकता है.लहसुनिया के साथ माणिक्य, मूंगा, पुखराज और मोती न पहनेअगर किसी व्यक्ति ने लहसुनिया धारण कर रखा है तो उस व्यक्ति को माणिक्य, मूंगा, पुखराज और मोती नहीं पहनना चाहिए. अगर आर लहसुनिया के साथ इन रत्नों को पहने हैं तो जीवन में कई तरह की परेशानियों को झेलना पड़ सकता है.नीलम के साथ माणिक्य, मूंगा, मोती और पुखराज न पहनेनीलम रत्न शनि ग्रह का होता है. अक्सर शनि को शांत करने के लिए जातक नीलम को धारण करते हैं. ऐसे में अगर किसी व्यक्ति ने भी नीलम धारण कर रखा है तो उसे कभी भी माणिक्य, मूंगा, मोती और पुखराज साथ में नहीं पहनना चाहिए. अगर इन रत्नों को साथ में धारण किया जाता है तो कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.-
- चीन के वास्तु शास्त्र फेंगशुई को घर से निगेटिव एनर्जी को दूर करके पॉजिटिव एनर्जी लाने में बहुत कारगर माना जाता है। फेंगशुई में फेंग का अर्थ होता है वायु और शुई जल को कहते हैं। फेंगशुई के नियम इसी जल और वायु के आधार पर बने हुए हैं। वास्तुशास्त्र की तरह फेंगशुई में भी घर के सामानों को सही जगह पर रखने के तरीके बताए गए हैं। घर के इन सामान में आईना बेहद अहम है। कहा जाता है कि अगर आईना गलत जगह पर रखा हो तो घर की तरक्की रुक जाती है। वहीं आईना सही जगह पर हो तो समृद्धि मिलती है। साथ ही घर के लोगों की सेहत और आर्थिक स्थिति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। आईये जानते हैं घर में आईना रखने का सही तरीका--फेंगशुई के अनुसार घर में आईने को हमेशा जमीन से कुछ इंच ऊपर लगाना चाहिए। कहा जाता है कि जमीन से कुछ इंच ऊपर आईना लगाने से बिजनेस में बहुत लाभ होता है। इसके अलावा जिस अलमारी में आप पैसा और गहने रखते हैंं, उसमें आईना जरूर लगाएं। इससे घर में खूब धन-समृद्धि बढ़ती है।-अगर आपके बेडरूम में आईना लगा हो तो उसे तुरंत हटा दें। या फिर ऐसी जगह लगाएं जहां से सोने वालों को प्रतिबिंब न दिखे। इसके अलावा सीढ़ी के नीचे कभी भी आईना न रखें। ऐसा करने से घर के सदस्यों के बीच झगड़े-कलह होते हैं। सिर्फ यही नहीं अगर घर का आईना टूटा-फूटा हो तो उसे तुरंत हटा दें, क्योंकि यह बहुत ही अशुभ होता है। कहा जाता है कि टूटा हुआ आइना जिंदगी पर संकट लाता है और घर में नाकारात्मक उर्जा का वास होने लगता है।
- दीपावली के ठीक बाद देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है. देवउठनी एकादशी का हिंदू धर्म में एक खास महत्व है. इस साल 14 नवंबर 2021 को देवउठनी एकादशी है, जिसे देवोत्थान एकादशी, देव प्रभोदिनी एकादशी, देवउठनी ग्यारस ( dev uthani gyaras 2021 date ) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश, जातकर्म संस्कार आदि सभी कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी के लिए कहते हैं कि सोए हुए भगवान इसी दिन जागते हैं. इतना ही नहीं भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखा जाता है.इस एकादशी तिथि के साथ, चतुर्मास अवधि, जिसमें श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं, समाप्त हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सोते हैं और इस दिन जागते हैं. इस प्रकार, इसे देवउठना या प्रबोधिनी कहा जाता है.देव उठानी एकादशी शुभ मुहूर्तएकादशी तिथि 14 नवंबर 2021 – सुबह 05:48 बजे शुरू होगीएकादशी तिथि 15 नवंबर 2021 – सुबह 06:39 बजे खत्म होगीपाप हो जाते हैं नष्टकहते हैं जो भी लोग एकादशी के व्रत को श्रद्धा भाव से करता है उसके सभी अशुभ संस्कार नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है.तुलसी पूजासबसे अहम बात है कि इसी दिन भगवान शालीग्राम के साथ तुलसी मां का आध्यात्मिक विवाह भी होता है. लोग घरों में और मंदिरों में ये विवाह करते हैं.इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है. शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है.विष्णु पूजाइस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. अगर इस दिन कोई पूजा पाठ ना करके केवल “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः “मंत्र का जाप करते हैं तो भी लाभ मिलता है.चंद्र दोष दूर होता हैजिन भीलोगों की कुंडली में चंद्रमा की कमजोर होती है, उनको जल और फल खाकर या निर्जल एकादशी का उपवास जरूर रखना चाहिए. इससे चंद्र देव प्रसन्न होते हैं, और उसका चंद्र सही होकर मानसिक स्थिति भी सुधर जाती है.गन्ने का महत्वइस दिन रात में घरों में चावल के आटे का चौक बनाकर उसपर गन्ने से पूजा की जाती है. कहते हैं जिस घर में ये पूजा होती है उस पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है.
- कार्तिक महीने की अमावस्या पर दीप पर्व मनाते ही देवउठनी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा का इंतजार शुरू हो जाता है. कार्तिक पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा में सबसे ज्यादा पवित्र और अहम माना गया है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान किया जाता है. विष्णु पुराण के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. इसके अलावा भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है....इसलिए कहलाती है त्रिपुरारी पूर्णिमा ..कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन दान-पुण्य करना बेहद फलदायी माना जाता है. इस साल 19 नवंबर 2021 को कार्तिक पूर्णिमा है. कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने का शुभ मूहूर्त 19 नवंबर 2021, शुक्रवार को ब्रम्ह मुहूर्त से दोपहर 02:29 तक रहेगा.कार्तिक पूर्णिमा पर न करें ये गलतियां....धर्म और ज्योतिष के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करके उगते सूर्य को अर्ध्य देना बेहद फलदायी होता है. इसके अलावा इस दिन दान-पुण्य करना कई पापों का नाश करता है. यदि कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन चावल का दान करने से बहुत लाभ होता है. इसके अलावा इस दिन दीपदान और तुलसी पूजा जरूर करें. कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए यह जानने के साथ-साथ ये भी जानना जरूरी है कि इस दिन क्या नहीं करना चाहिए. इसके लिए भी धर्म और ज्योतिष में कुछ महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं.- कार्तिक पूर्णिमा जैसे पवित्र दिन किसी से बहस न करें. साथ ही किसी को अपशब्द कहने की गलती न करें.- इस दिन नॉनवेज और शराब का सेवन करना जीवन में संकटों का बुलावा देना है.-इस दिन किसी असहाय या गरीब व्यक्ति का अपमान करना पुण्यों को नष्ट करने के लिए काफी है.- इस दिन नाखून और बाल काटने से भी बचना चाहिए.-
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वास्तु शास्त्र में हर दिशा का अपना एक अलग महत्व और देवता बताए गए हैं, जिसके अनुसार, कुबेर देव को उत्तर दिशा का स्वामी बताया जाता है, इसलिए इसे धन दायक दिशा कहा गया है। वास्तु में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है जिन्हें उत्तर दिशा में रखने से धन लाभ होता है और धन संबंधित समस्याओं से निजात मिलती है।
उत्तर दिशा में आईनावास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की उत्तर दिशा में हमेशा हल्का नीला रंग करवाना चाहिए। इसके अलावा घर की उत्तर दिशा में आईना लगाना शुभ माना जाता है। इससे आपके घर में सुचारू रूप से धन का आगमन बना रहता है, और धन संबंधित समस्याओं से निजात मिलती है। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उत्तर दिशा का कोई कोना कटा हुआ नहीं होना चाहिए और न ही इस दिशा की दीवारों में किसी तरह की दरार होनी चाहिए। यदि इस दिशा में किसी तरह की कोई दरार आदि है तो उसे तुरंत ठीक करवाना चाहिए।उत्तर दिशा में तुलसीवास्तु के अनुसार घर की उत्तर दिशा में तुलसी लगाना शुभ रहता है। इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे आपके घर में समृद्धि और शांति बनी रहती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भी घर में तुलसी लगाने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है जिससे आपके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती है।उत्तर दिशा की ओर तिजोरी का मुखवास्तु के अनुसार, तिजोरी या फिर धन रखने की अलमारी को अपने घर में दक्षिण दिशा की दीवार से इस तरह लगाकर रखना चाहिए कि अलमारी की दरवाजा उत्तर दिशा की ओर खुले। इस तरह से तिजोरी रखने से आपके घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है लेकिन इस दिशा में और तिजोरी के आस-पास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।धातु का कछुआवास्तु के अनुसार, घर में समृद्धि के लिए उत्तर दिशा में धातु का कछुआ रखना चाहिए लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि कछुए का मुख घर के भीतर की ओर होना चाहिए। - रायपुर। चार माह बाद 14 जुलाई को देव एकादशी के दिन भगवान उठेंगे। इसी दिन से मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। कोविड के प्रभाव से दूर इस बार शादी-विवाह की धूम रहेगी। नवंबर में सात तो दिसंबर में 06 शादी के मुहूर्त हैं। अगले साल 37 दिनों तक शहनाई बजेगी। पिछले दो साल से कोविड के चलते शादी टाल रहे लोगों के लिए इस बार शादी की ढेरों मुहूर्त हैं। हर महीने शादी के शुभ मुहूर्त हैं।पंडित सुरेंद्र दुबे के मुताबिक 14 नवंबर को देव एकादशी है। मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीने के शयन के बाद कार्तिक माह की एकादशी के दिन जागते हैं। देव एकादशी के बाद से ही रुके हुए मांगलिक कार्य प्रारंभ होंगे। 15 नवंबर को शादी का पहला मुहूर्त है। 15 नवंबर से 14 जुलाई 2022 के बीच कुल 50 शादी के मुहूर्त हैं। सबसे कम मार्च में दो दिन तो सबसे अधिक जनवरी में 8 दिन शहनाई बजेगी।शादी के पंडित सुरेंद्र दुबे के मुताबिक 14 जुलाई तक 50 मुहूर्तनवंबर- 15, 16, 20, 21, 28, 29 व 30दिसंबर- 01, 02, 06, 07, 11 व 13जनवरी- 15, 20, 23, 24, 27, 27, 29 व 30फरवरी- 05, 06, 11, 12, 18, 19 व 22मार्च- 04 व 09अप्रैल- 14, 17, 21 व 22मई- 11, 12, 18, 20 व 25जून- 10, 12, 15 व 16जुलाई- 03, 06, 08, 10, 11 व 14--
- वास्तुशास्त्र के अनुसार घर पर रखी हुई कई चीजों और घर की बनावट से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की ऊर्जाएं प्राप्त होती हैं। जहां एक तरफ सकारात्मक ऊर्जा से हमारा मन प्रसन्न रहता है और घर में सुख समृद्धि का वास होता है, तो वहीं नकारात्मक ऊर्जा से आर्थिक परेशानियां और बीमारियां आती हैं। घर में वास्तुदोष होने पर काम में हमेशा असफलता प्राप्त होती है और मानसिक पीड़ा पीछा नहीं छोड़ती हैं। वास्तुशास्त्र में कुछ उपाय बताए गए हैं जिनको अपनाकर हम घर के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं और घर पर समृद्धि ला सकते हैं।धन लाभ के लिएअगर आपके घर में हमेशा आर्थिक तंगी बनी रहती है तो अपने घर में मां लक्ष्मी और कुबेर की प्रतिमा जरूर रखें। ध्यान रखें आप इन तस्वीरों को हमेशा घर के उत्तर दिशा में लगाएं। धन प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा वास्तु शास्त्र में अच्छी मानी गई है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा में इन तस्वीरों को लगाने पर आर्थिक तंगी से निजात मिल जाती है।सुंदर तस्वीरेंघर की दीवारों पर जहां सुंदर तस्वीरें लगाने पर घर की खूबसूरती बढ़ जाती है वहीं यह धन दौलत में वृद्धि होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के दक्षिण और पूर्व दिशा की दीवारों में प्रकृति से जुड़ी चीजें की तस्वीर लगानी चाहिए।हंसते हुए बच्चे की तस्वीरवास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर हंसते हुए छोटे बच्चों की तस्वीर लगाने से घर पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती रहती है। बच्चों की तस्वीरों को पूर्व और उत्तर की दिशा में लगाना शुभ रहता है।नदी और झरने की तस्वीरघर के उत्तर-पूर्वी दिशा में नदियों और झरनों की तस्वीर लगाने से घर पर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है। यदि आपने घर में पूजा घर बना रखा है तो शुभ फलों की प्राप्ति के लिए उसमें नियमित रूप से पूजा होनी चाहिए एवं दक्षिण-पश्चिम की दिशा में निर्मित कमरे का प्रयोगपूजा-अर्चना के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
- लोक आस्था के महापर्व की शुरुआत आज से हो गई है। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पूजा बिहार और झारखंड के निवासियों का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसका उत्सव पूरे उत्तर भारत में देखने को मिलता है। सूर्य देव की उपासना के छठ पूजा पर्व को प्रकृति प्रेम और प्रकृति पूजा का सबसे उदाहरण भी माना जाता है। छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाय के साथ शुरू होता है। आज व्रती नहाय-खाय के दौरान चावल, चने की दाल और लौकी (घीया) की सब्जी खा कर व्रत को शुरू करने के साथ दूसरे दिन खरना की तैयारी भी शुरू करेंगे। नहाय खाय के अगले दिन उपवास रख व्रती खरना पूजन करती हैं। इसके अगले दिन भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य शाम को दिया जाता है। छठ के अंतिम दिन प्रात:काल उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसके साथ ही चार दिवसीय अनुष्ठान पूरा हो जाता है।नहाए खाए के साथ शुरु होने वाला छठ पूजा का पहला दिन 8 नवंबर, 2021 को है। छठ का दूसरा दिन खरना 9 नवंबर को है। छठ पूजा में खरना का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और रात में खीर का प्रसाद ग्रहंण किया जाता है। छठ का तीसरा दिन छठ पूजा या संध्या अध्र्य 10 नवंबर 2021, दिन बुधवार को है। षष्ठी तिथि 9 नवंबर 2021 को शुरु होकर 10 नवंबर को 8:25 पर समाप्त होगी।छठ पूजा की विधिछठ पूजा की शुरुआत षष्ठी तिथि से दो दिन पूर्व चतुर्थी से हो जाती है जो आज है। आज चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय मनाई जा रही है। नहाय-खाय के दिन लोग घर की साफ-सफाई और पवित्र करके पूरे दिन सात्विक आहार लेते हैं। इसके बाद पंचमी तिथि को खरना शुरू होता है जिसमें व्रती को दिन में व्रत करके शाम को सात्विक आहार जैसे- गुड़ की खीर या कद्दू की खीर आदि लेना होता है। पंचमी को खरना के साथ लोहंडा भी होता है जो सात्विक आहार से जुड़ा है।छठ पूजा के दिन षष्ठी को व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है। ये व्रत खरना के दिन शाम से शुरू होता है। छठ यानी षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते सूर्य को अध्र्य देकर अगले दिन सप्तमी को सुबह उगते सूर्य का इंतजार करना होता है। सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही करीब 36 घंटे चलने वाला निर्जला व्रत समाप्त होता है। छठ पूजा का व्रत करने वालों का मानना है कि पूरी श्रद्धा के साथ छठी मइया की पूजा-उपासना करने वालों की मनोकामना पूरी होती है।छठ पूजा से जुड़ी मान्यताएंइस व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं। नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत काल से ही हो गई थी। एक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने चार दिनों के इस व्रत को किया था।इस पर्व पर भगवान सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था। इसके साथ ही एक और मान्यता प्रचलित है कि इस छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वे पानी में घंटो खड़े रहकर सूर्य की उपासना किया करते थे। जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें महान योद्धा बनने का आशीर्वाद दिया था।
- अगर आपकी लाइफ में प्रॉब्लम खत्म होने का नाम नहीं लेती तो हम आपको कुछ आसान टिप्स बता रहे हैं. ये टिप्स फेंगशुई से जुड़े हुए हैं. फेंगशुई में ऐसे कई टिप्स हैं जो आपकी प्रॉब्लम्स तो दूर करते ही हैं साथ में इन्हें करना काफी आसान भी होता है. जानिए कैसेजानें क्या होता है फेंगशुईआपको बता दें कि कि आजकल घर पर चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई के सामान रखने का चलन धीरे- धीरे बढ़ता ही जा रहा है. फेंगशुई दो शब्दों से मिलकर बना है. फेंग यानी वायु और शुई यानी जल. फेंगशुई शास्त्र जल और वायु पर आधारित है. फेंगशुई के उपाय करने पर घर से वास्तु दोष संबंधी तमाम तरह की परेशानियों का अंत हो जाता है. घर पर सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिए बाजार में इस समय कई तरह के फेंगशुई की वस्तुएं मिलती हैं जिसको घर पर लाने से शुभ फल की प्राप्ति होता है. आप फेगुशुई के इन टिप्स को फॉलो कर सकते हैं.अपनाइए ये टिप्स1.फेंगशुई के अनुसार अगर आपकी लाइफ में जॉब या बिजनेस से जुड़ी हुई कोई प्रॉब्लम हो तो आप घर में लाफिंग बुद्धा ले आइए. इस बात का ख्याल रखें कि ऐसा लाफिंग बुद्धा रखें जिसके हाथ ऊपर की ओर खड़े हुए हों.2.वहीं अगर आपकी किस्मत साथ न दे रही हो, ऑफिस और बिजनेस में केवल लॉस ही लॉस हो रहा हो या फिर क्लेश बढ़ रहा हो तो आप लाफिंग बुद्धा की लेटी हुई मुद्रा वाली मूर्ति ले आइए. इससे आपका बैड लक गुड लक में बदल जाएगा.3.अगर आपके घर-गृहस्थी में कोई दिक्कत हो या फिर अक्सर कोई बीमार रहता हो तो इसका सॉल्यूशन भी फेंगशुई में है. फेंगशुई के मुताबिक ऐसे जातकों को अपने घर पर नाव पर बैठे हुए लाफिंग बुद्धा की मूर्ति रखनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी सेहत अच्छी रहती है और घर में चल रही दिक्कतें भी दूर हो जाती हैं.
- दिवाली का त्योहार अभी-अभी बीता है. दिवाली को लोगों ने बहुत ही खुशी और सौहार्द से बिताया है. इस त्योहार का लोग पूरे वर्ष प्रतीक्षा करते हैं. रौशनी से जगमग पूरा देश बहुत ही सुंदर दिखाई देता है. इस दिन सबके घरों में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती है. परंपरा का ये अनोखा संगम भारत में ही नजर आ सकता है.इस दिन, भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा सुख और समृद्धि के लिए की जाती है.लाभ पंचमी का दिन हिंदुओं में एक शुभ दिन है जो लाभ और सौभाग्य से जुड़ा है. ये त्योहार गुजरात राज्य में लोकप्रिय है और दिवाली समारोह के अंतिम दिन का प्रतीक है. ये पारंपरिक गुजराती कैलेंडर के कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है.लाभ पंचमी 2021: तिथि और समयलाभ पंचमी मंगलवार, नवंबर 9,2021प्रथम कला लाभ पंचमी, पूजा मुहूर्त 06:39 से 10:16पंचमी तिथि 08 नवंबर, 2021 – 13:16 . से शुरू हो रही हैपंचमी तिथि 09 नवंबर, 2021 को समाप्त – 10:35लाभ पंचमी 2021: महत्वलाभ पंचमी को सौभाग्य पंचमी, ज्ञान पंचमी और सौभाग्य- लाभ पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. सौभाग्य का अर्थ है सौभाग्य और लाभ है, इसलिए ये दिन सौभाग्य और लाभ से जुड़ा है.इस दिन नए उद्यम शुरू करना अत्यधिक फायदेमंद माना जाता है. गुजरात में लाभ पंचमी नए साल का पहला कार्य दिवस है इसलिए व्यवसायी इस दिन नया खाता बही या ‘खाटू’ खोलते हैं. पृष्ठ के मध्य में वो बाईं ओर ‘साथिया’ बनाते हैं ‘शुभ’ और दाईं ओर ‘लाभ’ लिखा होता है.लाभ पंचमी 2021: अनुष्ठान– जो लोग दिवाली पर नहीं कर पाते हैं, वो लाभ पंचमी के दिन शारदा पूजन करते हैं.– व्यवसायी समुदाय के लोग अपने कार्य स्थल खोलकर अपनी नई खाता बही की पूजा करते हैं.– माता लक्ष्मी पूजा समृद्धि और दिव्य आशीर्वाद के लिए की जाती है.– कुछ लोग अपनी बुद्धि को बढ़ाने के लिए उनकी पुस्तकों की पूजा करते हैं.– लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाते हैं और बधाई और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं.– इस दिन दान और चैरिटी का काम बहुत फलदायी माना जाता है.– कुछ जगहों पर गणपति मंदिरों को सजाया जाता है और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है.
- 19 नवंबर को होगा ग्रहणइस साल का दूसरा और आखिरी चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को लगने जा रहा है. इस दिन कार्तिक पूर्णिमा भी होगी. कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है. ज्योतिष मुताबिक 19 नबंवर 2021 को लगने वाला चंद्र ग्रहण भारतीय समय के अनुसार दोपहर लगभग 11 बजकर 30 मिनट पर लगेगा. इस ग्रहण का समापन शाम 05 बजकर 33 मिनट पर होगा. कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला यह चंद्र ग्रहण आंशिक रहेगा. अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ हिस्सों को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में इस ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा.भारत में लगेगा आंशिक चंद्र ग्रहणआंशिक चंद्र ग्रहण होने की वजह से उस दौरान सूतक नहीं लगेगा. मान्यता है कि सूतक काल में शुभ कार्य नहीं किए जाते और गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है. हालांकि आंशिक ग्रहण होने की वजह से लोग सूतक काल के प्रभावों से मुक्त रहेंगे. ये चंद्र ग्रहण वृष राशि में लगेगा, जिस कारण वृष राशि वालों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है.ग्रहण के पीछे की ये है पौराणिक कथापौराणिक कथाओं के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान स्वर्भानु नामक एक दैत्य ने छल से अमृत पीने की कोशिश की थी. तभी चंद्रमा और सूर्य ने उसे देख लिया. उन्होंने इस बात की जानकारी भगवान विष्णु को दी तो अपने सुर्दशन चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया. हालांकि तब तक अमृत की कुछ बूंद गले से नीचे उतरने के कारण वह दैत्य दो दैत्यों में बंट गया. धड़ वाले हिस्से को केतु और सिर वाले हिस्से राहु कहा गया.सूर्य- चंद्रमा पर करते रहते हैं हमलामान्यता है कि इस घटना के बाद से बदला लेने के लिए राहु-केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा पर हमला करते रहते हैं. उनके प्रभाव की वजह से सूर्य और चंद्रमा कुछ देर के लिए अपनी शक्ति खो बैठते हैं. इसी घटना को ग्रहण कहा जाता है. चूंकि धर्म शास्त्रों में इस घटना को अशुभ घटना माना जाता है. इसलिए उस दौरान शुभ कार्य पूरी तरह वर्जित रहते हैं.