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-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
साथी बनकर रहें हमेशा , बातें क्यों जीत-हार के ।
जाओ न मुझे छोड़ पिया जी , तोड़ो मत तार प्यार के ।
मेरे मन में बसे हुए हो , मुझसे कैसी दूरी है ।
आसमान में छिटक रहे क्यों , जानूँ क्या मजबूरी है ।
बिना तेल के जले न बाती , स्याही बिन क्या करे कलम ।
भूल हुई क्या ऐसी मुझसे , जरा बता दो मुझे बलम ।
बढ़ा न मेरी मुश्किल प्रियतम , दुख छोड़िए तकरार के ।।
तुम्हीं चाँद मेरे आँगन के , गायब हुए अमावस -से ।
अंतर्मन की धरा सूखती , झूमो बरसो पावस-से ।
कली भ्रमर की बाट जोहती , बेचैनी है खिलने की ।
कैद पंखुड़ी बीच कमलिनी , आकुल रवि से मिलने की ।
नीलांबर में मेघ पधारे , आओ प्रिय हास् धार के ।।
नयन बंद कर तुझे निहारूँ , बसे सीप में मोती से ।
भासित हो अंतस में ऐसे , जलती हूँ दीपज्योति से ।
नहीं पास तू मन उदास है , पुष्पहार मुरझाए हों ।
फैला कजरा बिखरा गजरा ,आया पतझर मधुवन ज्यों ।
रूखी अलकें सूनी पलकें , वन हुए बिना बहार के ।। - -संभाग के नक्सल प्रभावित जिलों में भी लोगों की पहुंच में हैं स्वास्थ्य सुविधाएं-चिकित्सक स्टाफ की नियुक्ति से बस्तर संभाग में मजबूत हुई है व्यवस्था-बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की दिशा में ठोस प्रयास लगातार जारीः स्वास्थ्य मंत्री श्री श्याम बिहारी जायसवालविशेष लेख, मनोज कुमार सिंह, सहायक संचालकरायपुर / मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में सुशासन और स्वास्थ्य योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से न केवल सामान्य क्षेत्रों में, बल्कि नक्सल प्रभावित जिलों में भी स्वास्थ्य सुविधाएं लोगों की पहुंच में आ रही हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिल रहा है। राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (NQAS), राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन अभियान और मलेरिया मुक्त अभियान जैसे कार्यक्रमों ने इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को नया आयाम दिया है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने कहा कि बस्तर में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हमारी सरकार की जन-केंद्रित सोच और समर्पित प्रयासों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि बस्तर जैसे क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों, मितानिनों तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मेहनत से बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।स्वास्थ्य मंत्री श्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा कि सरकार का लक्ष्य पूरे छत्तीसगढ़ में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना है और इस दिशा में ठोस प्रयास लगातार जारी हैं। बस्तर में घर-घर जाकर जांच, त्वरित उपचार और जागरूकता गतिविधियों के माध्यम से मलेरिया के प्रसार को नियंत्रित किया गया है। राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (NQAS) के तहत बस्तर सहित पूरे छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य संस्थानों ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं।राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक (NQAS) के तहत उल्लेखनीय उपलब्धि1 जनवरी 2024 से 16 जून 2025 तक बस्तर संभाग में कुल 130 स्वास्थ्य संस्थाओं को क्वालिटी सर्टिफिकेशन प्राप्त हुआ है। इनमें 1 जिला अस्पताल, 16 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 113 उप स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं। इसके अलावा, 65 अन्य संस्थाओं का सर्टिफिकेशन कार्य प्रक्रियाधीन है। विशेष रूप से नक्सल प्रभावित जिलों—कांकेर (8), बीजापुर (2), सुकमा (3) और दंतेवाड़ा (1)—में 14 संस्थानों को गुणवत्ता प्रमाणपत्र प्रदान किया गया है, जो क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार का प्रमाण है।नियद नेल्लानार योजना के अंतर्गत बस्तर संभाग में 62,466 राशन कार्ड बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि एक वर्ष में ही 36,231 आयुष्मान कार्ड पंजीकृत किए जा चुके हैं। इसके अंतर्गत अब तक 52.6 प्रतिशत आयुष्मान कार्ड का कवरेज इन पांच जिलों में हो चुका है, जिसमें 6,816 लोगों को लाभ मिला है और इन पर 8 करोड़ 22 लाख रुपये की राशि क्लेम की गई है।चिकित्सक स्टाफ की नियुक्ति से मजबूत हुई व्यवस्थापिछले डेढ़ वर्षों में बस्तर संभाग में स्वास्थ्य सेवाओं को और सुदृढ़ करने के लिए 33 मेडिकल स्पेशलिस्ट, 117 मेडिकल ऑफिसर और 1 डेंटल सर्जन की नियुक्ति की गई है। इसके साथ ही राज्य स्तर से 75 तथा जिला स्तर से 307 स्टाफ एवं प्रबंधकीय पदों पर भर्ती की गई है, जबकि 291 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। यह कदम क्षेत्र में चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंचनक्सल प्रभावित जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार सरकार की प्राथमिकता रहा है। कांकेर, बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा जैसे क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ अब आम लोगों तक पहुंच रहा है। यह विष्णु देव साय के सुशासन का परिणाम है, जिसने बस्तर संभाग में स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर को पूरी तरह बदल दिया है।बस्तर संभाग में स्वास्थ्य क्षेत्र में हो रहे ये सुधार न केवल स्थानीय निवासियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठा रहे हैं, बल्कि यह भी साबित कर रहे हैं कि सुशासन और समर्पित प्रयासों से सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में भी सकारात्मक बदलाव संभव है।
- कहानी-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)आज संडे को कहाँ जा रही हो ? शिवी को आलमारी से कपड़े निकालते देख प्रतीति ने पूछा ।हताशा और गुस्से में सिर हिलाते हुए शिवी ने जवाब दिया , "क्या मॉम , संडे तो एक दिन होता है मजे से घूमने का ।"वही एक संडे हमारे लिए भी तो होता है न बेटा कि हम अपने बच्चे से दो बातें करें , उसके साथ लंच करें…प्रतीति यही कहना चाहती थी , लेकिन शिवी का तड़ाकेदार जवाब और उपेक्षा भरा चेहरा देखकर उसने कहा , ' हाँ तो कुछ कैम्पस के लिए तैयारी ही कर लो । ढंग की जॉब मिल जाएगी । पूरे दिन अपने फालतू दोस्तों के साथ बिताने से वो तैयारी तो होने से रही । 'शिवी तमककर बोली , ' मॉम, मेरे दोस्त फालतू नहीं हैं और मुझे पता है कैसी तैयारी करनी है ।' पंद्रह मिनट बाद शिवी अपनी गाड़ी उठा कर जा चुकी थी और दरवाजे पर प्रतीति 'कहाँ जा रही, कब तक आएगी ' के अपने सवाल लिए खड़ी रह गई ।घर से भुनभुनाती निकली शिवी आधे घंटे बाद अपने दोस्तों के साथ खिलखिला रही थी । पूरे दिन अपने दोस्तों के संग हँसी-ठट्ठा करते, बाजार में घूमती रही । इस बीच तीन बार आया माँ का फोन शिवी काट चुकी थी । रात होते-होते यश ने सुझाया, - “'चलो आज बाइक रेसिंग करेंगे । नए शहर के बाहर एक बिल्डिंग बन रही है, वहाँ रात को बहुत कम ट्रैफिक होता है, वहाँ से शुरू करेंगे ।' सारे दोस्तों ने हे..ए…..की टेर लगा दी । शिवी सोच में पड़ गई थी.. ' मॉम को काॅल करके बताऊँ कि नहीं ? पर वह फिर टोकेंगी और हो सकता है तुरंत घर आने को कह दें। उसका मन कल्पनाओं में झूम गया था..बाइक रेस में हर बाइक पर एक कपल । अहा! कितना रोमांचक होगा ।'अब एक तरफ लगातार माँ का फोन आ रहा था और दूसरी तरफ सारे दोस्त अपनी-अपनी बाइक की तरफ बढ़ रहे थे । मन की सारी उलझनों को एक तरफ झटक कर शिवी उनकी ओर बढ़ ही रही थी कि अचानक सौरभ के पैर से वहीं सोए एक कुत्ते के पिल्ले को पैर लग गया । उसके बाद न जाने कहाँ से आकर उसकी मरियल-सी माँ आक्रामक हो उठी । अपने बच्चे को खतरे में जानकर भौंक-भौंक कर उसने आसमान सिर पर उठा लिया ।शुभम चिल्लाया - " अबे ! सौरभ…चुपचाप वहीं खड़ा हो जा , वह माँ है यार, अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित होगी ही…वह निश्चिंत हो जाए कि उसके बच्चों को हमसे कोई खतरा नहीं है, फिर वह चुपचाप चली जाएगी । थोड़ी देर बाद सचमुच वह शांत होकर अपने पिल्लों को साथ लिए चली गई । " वह माँ है यार…" ये शब्द शिवी के सिर पर मानो हथौड़े की तरह बजने लगे । वह भी तो माँ है जो सदैव अपनी बेटी को सुरक्षित और आगे बढ़ते देखना चाहती है और इसीलिए रोक-टोक करती है , सावधान रहना सिखाती है कि उसकी बेटी को कोई चोट मत लगे । कहाँ जा रही है , कब तक घर आएगी जैसे प्रश्न जो उसे बेकार लगते थे , आज उसके मायने समझ में आ रहे हैं ।ओह ! वह कितने रूखे ढंग से पेश आई आज माँ के साथ । मालूम है वह अब भी दरवाजे पर चिंतित खड़ी होगी , उसकी राह देखते । अचानक शिवी ने अपने कदम पीछे किए और दोस्तों के साथ रेस लगाने की बात छोड़ कर घर जाने का फैसला कर लिया ।
- आलेख - जी.एस केशरवानीभारत के मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में छत्तीसगढ़ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। नवा रायपुर अटल नगर में 1100 करोड़ रुपये की लागत से छत्तीसगढ़ की पहली सेमीकंडक्टर यूनिट का भूमिपूजन किया जा चुका है। देश की प्रसिद्ध सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनी पोलीमैटेक इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के प्लांट की आधारशिला रखकर विकसित छत्तीसगढ़ की तरक्की को नई गति दी गई है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में नई उद्योग नीति और इज ऑफ डुईंग बिसनेस के तहत् राज्य द्वारा दी जा रही सुविधाओं और सहुलियतों से राज्य में निवेश का नया वातावरण तैयार हुआ है। सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी पॉलीमैटेक ने भी दिल्ली में आयोजित इन्वेस्टमेंट समिट में छत्तीसगढ़ में निवेश की इच्छा जताई थी और मात्र तीन महीने के भीतर ही भूमिपूजन का कार्य संपन्न हुआ। यह छत्तीसगढ़ में ईज ऑफ डूईंग बिजनेस की सफलता को दर्शाती है।छत्तीसगढ़ में सेमीकंडक्टर प्लांट की स्थापना से जहां एक ओर बड़े पैमाने पर चिप्स का निर्माण होगा, वहीं तकनीकि शिक्षा प्राप्त युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी सुलभ होंगे। राज्य सरकार द्वारा न केवल सेमीकंडक्टर निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है बल्कि सेमीकंडक्टर के लिए पूरे इको सिस्टम तैयार करने की भी योजना पर भी काम किया जा रहा है, जिसमें चिप डिजाईन से लेकर मेनुफेक्चरिंग और पैकेजिंग की पूरी व्यवस्था होगी। राज्य सरकार द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डाटा सेंटर जैसे नए और तकनीकि उद्योगों को बढ़ावा देने से राज्य में तकनीकि शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा साथ ही रोजगार के नए-नए अवसर भी बढ़ेंगे।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने यह मंत्र दिया है कि दुनिया के कम्प्यूटर में लगने वाले चिप में कम से कम एक चिप भारत में बना हो। उन्होंने वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार में वर्ष 2030 तक 10 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सेमिकंडक्टर मिशन की शुरूआत की है। सेमीकंडक्टर की महत्ता और उपयोगिता को सरल शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है। वाहनों का जिस प्रकार ईंधन पेट्रोल है, ठीक उसी प्रकार सेमीकंडक्टर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का मस्तिष्क और संचालक है। मोबाइल, लैपटॉप, ऑटोमोबाइल, रक्षा उपकरण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, ड्रोन और स्मार्ट डिवाइस इन सभी में सेमीकंडक्टर की केंद्रीय भूमिका होती है।छत्तीसगढ़ सरकार ने कुछ महीने पहले ही नई औद्योगिक नीति लागू की है, जिसके परिणामस्वरूप महानगरों में आयोजित इन्वेस्टर समिट से अब तक साढ़े 5 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। राज्य सरकार निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष अनुदान के साथ ही कई प्रकार की सुविधाएं दे रही है। सिर्फ सेमीकंडक्टर ही नहीं, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आईटी सेक्टर में भी राज्य सरकार निवेश को प्रोत्साहन दे रही है। देश का पहला एआई डेटा सेंटर पार्क नवा रायपुर में बनाया जा रहा है, जिससे छत्तीसगढ़ एक प्रमुख तकनीकी हब के रूप में उभरेगा।( प्रतीकात्मक फोटो)
- आलेख- हीरा देवांगन, संयुक्त संचालकमुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ डिजिटल इंडिया के सपने को साकार कर रहा है। राज्य सरकार की दूरदर्शी नीतियों और तकनीकी नवाचारों के बल पर छत्तीसगढ़ डिजिटल सेवाओं के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। मंत्रालय से लेकर ग्राम पंचायतों तक डिजिटल तकनीक ने शासकीय कामकाज को आसान एवं प्रभावी बनाया है। प्रदेश के 1460 ग्राम पंचायतों में अटल डिजिटल सेवा केंद्र के माध्यम से बुजुर्ग पेंशनरों, महतारी वंदन योजना की लाभार्थी महिलाओं को नगद आहरण की सुविधा दी जा रही है। विभिन्न योजनाओं की डीबीटी की राशि का ग्राम पंचायतों में ही नगद भुगतान की सुविधा होने से ग्रामीणों को बैंक शाखाओं तक नहीं जाना पड़ रहा है।छत्तीसगढ़ सरकार ने मंत्रालय और संचालनालयों में ई-ऑफिस प्रणाली को सफलतापूर्वक संचालित करने के बाद अब जिलों में भी ई-ऑफिस का क्रियान्वयन किया जा रहा है। कार्यालयीन कामकाज में कागजी कार्यवाही को न्यूनतम करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। इससे कार्यालयीन कामकाज में तेजी आई है एवं प्रक्रिया और पारदर्शी हुई है। इस पहल से फाईलों के निपटारे में अनावश्यक लेटलतीफी दूर हुई है त्वरित निर्णय हो रहे हैं। 10 डिजिटल सेवाओं की शुरुआत से जमीन की रजिस्ट्री आसान और पारदर्शी हो रही है। आधार प्रमाणीकरण से अपाईमेंट लेकर घर बैठे जमीन एवं मकान की रजिस्ट्री कराई जा रही है। रजिस्ट्री के बाद नामांतरण की प्रक्रिया स्वतः पूरी हो जाती है।राजस्व प्रशासन को दुरूस्त करने छत्तीसगढ़ के 14 हजार 490 गांवों का जियो रिफ्रेंसिंग का महत्वाकांक्षी कार्य पूरा हो चुका है। इस तकनीक से भूमि संबंधी विवाद दूर होंगे। खरीफ वर्ष 2025-26 में डिजिटल फसल सर्वेक्षण हेतु 14 हजार से अधिक गांवों का चयन किया गया है। ई-कोर्ट के माध्यम से राज्य में राजस्व प्रकरणों का समयबद्ध एवं त्वरित निराकरण किया जा रहा है। साथ ही, अटल मॉनिटरिंग पोर्टल के माध्यम से शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों की रीयल-टाइम निगरानी की जा रही है। शासकीय खरीदी में पारदर्शिता के लिए जेम पोर्टल को अनिवार्य किया गया है, जिससे शासकीय खरीद प्रक्रिया में निष्पक्षता और जवाबदेही बढ़ी है।प्रदेश के पेंशनरों के लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल और सुलभ बनाया गया है। पेंशनरों और कर्मचारियों के लिए डिजीलॉकर के माध्यम से महत्वपूर्ण दस्तावेज जैसे ई-पीपीओ, जीपीएफ स्टेटमेंट, अंतिम भुगतान आदेश और पेंशन प्रमाण पत्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं। एम्प्लाई कॉर्नर मोबाइल ऐप और वेब पोर्टल के माध्यम से शासकीय कर्मचारियों की सेवा जानकारी को अद्यतन करने की प्रक्रिया को डिजिटल बनाया गया है।छत्तीसगढ़ एआई के क्षेत्र में दुनिया से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। नवा रायपुर में देश का पहला एआई डेटा सेंटर पार्क स्थापित होने से प्रदेश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। इससे आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस आधारित सेवाओं के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ की नई पहचान बनेगी। छत्तीसगढ़ सरकार हर वर्ग तक डिजिटल सुविधाओं का लाभ पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। सीजीएमएससीएल द्वारा ऐप के माध्यम से राज्य की दवा आपूर्ति श्रृंखला को रीयल-टाइम में ट्रैक किया जा रहा है। विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में समय पर दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कर यह ऐप स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक प्रभावी बना रहा है।खनिज विभाग द्वारा ऑनलाइन ट्रांजिट पास की सुविधा ने खनिजों के परिवहन को और अधिक व्यवस्थित और पारदर्शी बनाया है। सीएमओ पोर्टल की शुरुआत ने नागरिकों और सरकार के बीच संवाद को और मजबूत किया है। छत्तीसगढ़ सरकार की ये डिजिटल सेवाएं प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाने के साथ ही नागरिकों के जीवन को भी आसान बना रही हैं। इससे गांवों से लेकर शहरों तक हर वर्ग को डिजिटल क्रांति का लाभ मिल रहा है।
- -लेखक : श्री गिरिराज सिंह, वस्त्र मंत्री, भारत सरकारएक राष्ट्र की प्रगति केवल उसके आर्थिक सूचकांकों से नहीं मापी जाती, बल्कि इस बात से तय होती है कि उस विकास से आम जनजीवन में कितनी गरिमा, अवसर और आत्मबल का संचार हुआ है। जब हम आज भारत की ओर देखते हैं, तो यह केवल एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक जाग्रत समाज की तस्वीर है, जो आगे बढ़ना जानता है, जो अपने अतीत से सीखता है और अपने भविष्य को स्वयं गढ़ रहा है।मेरे लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर, जो वित्त वर्ष 2024-25 की अंतिम तिमाही में 7.4% रही, एक आकंड़ा मात्र नहीं है। यह उस किसान की मेहनत का सम्मान है, जिसने आधुनिक तकनीक को अपनाकर पैदावार बढ़ाई। यह उस महिला उद्यमी की कहानी है, जिसने स्वयं सहायता समूह से यात्रा शुरू कर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पाद दुनिया तक पहुंचाए। यह उस युवा इंजीनियर का आत्मविश्वास है, जिसने मेक इन इंडिया के अंतर्गत नौकरी ढूंढ़ने के बजाय नौकरी देने वाला बना।आज भारत की औसत विकास दर 6.5% है, और नॉमिनल जीडीपी 330 ट्रिलियन को पार कर चुकी है। GST संग्रह लगातार दो महीने 2 लाख करोड़ से ऊपर रहा है। यह आर्थिक आत्मबल अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह गाँवों, छोटे कस्बों और दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुँचा है।डिजिटल क्रांति ने भारत के सामाजिक ताने-बाने में एक ऐतिहासिक परिवर्तन लाया है। गाँव का एक युवा अब मोबाइल से भुगतान करता है, सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे खाते में प्राप्त करता है और ऑनलाइन पढ़ाई के माध्यम से अपने सपनों को साकार करता है। आज UPI के जरिए 25 ट्रिलियन से अधिक ट्रांजैक्शन हो चुके हैं। यह डिजिटल समावेशन केवल तकनीकी परिवर्तन नहीं है, यह सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण का नया अध्याय है।भारत ने वैश्विक व्यापार में भी अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज की है। केवल अप्रैल 2025 में ही भारत से 3 मिलियन आईफोन iPhone एक्सपोर्ट हुए, चीन से तीन गुना ज़्यादा। यह दर्शाता है कि भारत अब केवल बाज़ार नहीं, ग्लोबल वैल्यू चेन का प्रमुख स्तंभ बन चुका है। बीते दशक में भारत में 500 बिलियन से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आया है, जो इनोवेशन, रोज़गार और आत्मनिर्भरता के नए द्वार खोल रहा है।हमारे किसान भी इस बदलाव के सशक्त भागीदार बने हैं। आज 51 मिलियन किसानों के पास डिजिटल किसान ID है, जिससे उन्हें उनकी भूमि, फसल और योजनाओं का सीधा लाभ मिलता है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, डिजिटल मंडियाँ, और आत्मनिर्भर कृषि मिशन जैसे प्रयासों ने उन्हें सहयोगी नहीं, सहभागी बनाया है।भारत में गरीबी दर 2011-12 के 29.5% से घटकर आज 9.4% रह गई है। यह केवल आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का विस्तार है। विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि अत्यंत गरीबी अब मात्र 5.3% रह गई है। इस परिवर्तन में उस ग्रामीण परिवार की कहानी छिपी है, जिसके बच्चे पहली बार स्कूल गए, जिसने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को नज़दीक पाया, और जिसने आत्मनिर्भरता को अपनी पहचान बनाया।इंफ्रास्ट्रक्चर में भी भारत ने नई ऊँचाइयाँ छुई हैं। आज भारत एक साल में 1,600 इंजन बनाकर विश्व का सबसे बड़ा लोकोमोटिव निर्माता है। ऊर्जा क्षेत्र में 49% क्षमता अब नवीकरणीय स्रोतों से है। भारत अब सस्टेनेबल विकास की राह पर तेज़ी से अग्रसर है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे क्षेत्रों में भी भारत की क्षमता को वैश्विक मान्यता मिल रही है। OpenAI जैसी संस्थाओं ने भारत में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय AI अकादमी शुरू की है, यह हमारे युवाओं की प्रतिभा और संभावनाओं में भरोसे का प्रमाण है।नए भारत की विकास यात्रा में टेक्सटाइल सेक्टर भी एक मजबूत स्तंभ बनकर उभरा है। तकनीकी वस्त्रों को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए नेशनल टेक्निकल टेक्सटाइल मिशन (NTTM) और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना एक-दूसरे के पूरक बनकर कार्य कर रही हैं। NTTM के तहत ₹510 करोड़ की सहायता से 168 नवाचार आधारित प्रोजेक्ट्स को मंज़ूरी दी गई है। वहीं, टेक्सटाइल इंफ्रास्ट्रक्चर को वैश्विक मानकों पर लाने के लिए देशभर में 7 पीएम मित्रा पार्क स्थापित किए जा रहे हैं, जहां पूरी वैल्यू चेन को ‘प्लग-एंड-प्ले’ मॉडल पर काम करने की सुविधा मिलेगी। यह क्षेत्र अब केवल परंपरा नहीं, बल्कि तकनीक, नवाचार और निर्यात का नया प्रतीक बन चुका है।आज भारत को WTO और WEF जैसे वैश्विक संस्थान केवल एक उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि ग्रोथ इंजन के रूप में देख रहे हैं। यह उस समर्पित प्रयास का परिणाम है, जो आदरणीय प्रधानमंत्री जी की नीतियों, योजनाओं और नागरिकों की सहभागिता से संभव हुआ है।मैं दृढ़ता से मानता हूँ कि यह यात्रा केवल सरकार की नहीं, हर भारतीय की है। हमारे सामने आज जो उपलब्धियाँ हैं, वे उस संकल्प का परिणाम हैं जिसने हर गाँव, हर परिवार और हर नागरिक को जोड़ा। भारत आज एक विकल्प नहीं, एक प्रेरणा है, आत्मनिर्भरता की, समावेशिता की और वैश्विक नेतृत्व की। जब हम अमृतकाल में विकसित भारत @2047 की परिकल्पना करते हैं, तो वह केवल एक सपना नहीं, एक साझा संकल्प है और मुझे विश्वास है इस संकल्प की सिद्धि का समय अब दूर नहीं।
- आलेख- गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री, भारत सरकारपिछले दशक में, भारत की पवित्र भूमि को सिर्फ़ देखा ही नहीं गया है - बल्कि इसे फिर से खोजा गया है। पहाड़ अब सिर्फ़ परिदृश्य नहीं रह गए हैं; वे जीवित अभयारण्य हैं। केदारनाथ और बद्रीनाथ के बर्फ से ढके मंदिरों से लेकर बोधगया की ध्यानपूर्ण शांति और सारनाथ की सुनहरी नीरवता तक, भारत की आध्यात्मिक आत्मा ने एक-एक तीर्थयात्री की भावना को उद्वेलित किया है। इस युग में पर्यटन, विवरण पुस्तिका (ब्रोशर) के ज़रिए नहीं, बल्कि भक्ति, स्मृति और फिर से जुड़ने की सभ्यतागत प्रेरणा के ज़रिए तैयार किया गया था।2014 और 2024 के बीच, इस आध्यात्मिक जागृति ने देश के सांस्कृतिक मानचित्र को नया स्वरुप दिया। केदारनाथ, जो कभी त्रासदी का प्रतीक था, फ़ीनिक्स की तरह उभरा - 2024 में यहां 16 लाख से ज़्यादा तीर्थयात्री आये, जबकि एक दशक पहले यह संख्या केवल 40,000 थी। उज्जैन को महाकाल के शहर के रूप में पुनर्जीवित किया गया, इसने 2024 में 7.32 करोड़ आगंतुकों का स्वागत किया। प्रकाश और पवित्रता में पुनर्जन्म लेने वाली काशी ने 11 करोड़ लोगों को अपनी पवित्र गलियों में भ्रमण करते देखा। बोधगया और सारनाथ की गूंज कई महाद्वीपों में सुनायी दी, दोनों तीर्थस्थलों ने 2023 में 30 लाख से ज़्यादा साधकों को आकर्षित किया।और फिर एक ऐसा क्षण आया, जो आंकड़ों से पार चला गया —जनवरी 2024 में अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा। यह कोई उद्घाटन नहीं था; यह सभ्यता की धड़कन का जीर्णोद्धार था। महज छह महीनों में, 11 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं का आगमन हुआ —न सिर्फ देखने के लिए, बल्कि इससे जुड़ने के लिए। लगभग इतना ही ऐतिहासिक था, महाकुंभ 2025, जो दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम था, जिसमें 65 करोड़ से ज्यादा तीर्थयात्री आस्था और उत्कृष्टता के संगम पर पहुंचे। अयोध्या और प्रयागराज, साथ मिलकर, भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण के दो प्रकाश स्तंभ बन गए।यह पर्यटन नहीं था—यह घर वापसी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में इस वापसी को आकार, अवसंरचना और आत्मा दी गई। अब पर्यटन एक जांच सूची (चेकलिस्ट)-संचालित उद्योग नहीं रहा, बल्कि पवित्र ‘स्व’ को फिर से खोजने का एक राष्ट्रीय मिशन बन गया। प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी मंत्र - "भारत में विवाह करें, भारत की यात्रा करें, भारत में निवेश करें" - ने पर्यटन को एक सांस्कृतिक आह्वान में बदल दिया।मोदी सरकार ने प्रारंभ से ही पर्यटन को राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ताकत के रूप में देखा है। स्वदेश दर्शन और इसके उन्नत रूप, स्वदेश दर्शन 2.0 के माध्यम से, पर्यटन मंत्रालय ने रामायण, बौद्ध, तटीय और आदिवासी जैसे विषयगत सर्किट के तहत 110 परियोजनाएँ विकसित कीं। 2014-15 में शुरू की गई मूल योजना में कुल 5,287.90 करोड़ रूपये की लागत से 76 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी। स्वदेश दर्शन 2.0 में, स्थाई गंतव्यों को विकसित करने के लिए 2,106.44 करोड़ रूपये के साथ 52 परियोजनाएँ जोड़ीं गईं।चुनौती आधारित गंतव्य विकास (सीबीडीडी) उप-योजना के तहत, 623.13 करोड़ रूपये की 36 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जबकि एसएएससीआई योजना के अंतर्गत राज्य के नेतृत्व में पर्यटन अवसंरचना के विस्तार के लिए 3,295.76 करोड़ रूपये की 40 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गयी।इसके साथ ही, प्रसाद योजना के जरिये उन्नत सुविधाओं, प्रकाश व्यवस्था और स्वच्छता के साथ 100 तीर्थ शहरों को पुनर्जीवित किया गया। इन प्रयासों से भारत में 2023 में 250 करोड़ से अधिक घरेलू पर्यटकों की यात्रा दर्ज की गयी - जो अब तक का सबसे अधिक है।2024-25 के केंद्रीय बजट में एक ऐतिहासिक घोषणा के तहत 50 पर्यटन स्थलों को विकसित करने का प्रस्ताव रखा गया, उन्हें निवेश और वित्तपोषण को आसान बनाने के लिए अवसंरचना सामंजस्य मास्टर सूची (आईएचएमएल) में जोड़ा गया।पुनरुद्धार केवल पवित्र स्थानों तक सीमित नहीं था। 2018 में अनावरण की गई स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, देश के सबसे अधिक देखे जाने वाले स्मारकों में से एक बन गई, जिसे 2023 में 50 लाख से अधिक आगंतुक देखने आये। इसके चारों ओर इको-टूरिज्म पार्क, टेंट सिटी और आदिवासी संग्रहालय विकसित हुए हैं - जो सम्मान को अवसर में बदल रहे हैं।भारत का सभ्यतागत आत्मविश्वास इसकी कूटनीति में परिलक्षित होने लगा। फ्रांस, जापान, यूएई, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के राजनेताओं का, न केवल दिल्ली में, बल्कि वाराणसी, उदयपुर, अयोध्या और महाबलीपुरम में भी स्वागत हुआ। सॉफ्ट पावर अब सॉफ्ट नहीं रही - यह 3डी अनुभव हो गयी। रिवर क्रूज़, दीपोत्सव, आध्यात्मिक भ्रमण और सांस्कृतिक प्रदर्शन ने राजकौशल को आत्मा के शिल्प में बदल दिया।इस बीच, अतुल्य भारत 2.0 ने देश को स्मारकों की भूमि से बदलकर बदलाव की भूमि बना दिया। ऋषिकेश में योग, केरल में आयुर्वेद, पूर्वोत्तर में जनजातीय त्योहार और कच्छ में शिल्प ने पर्यटन इकोसिस्टम को जीवंत व विशिष्ट स्थान प्रदान किया। विपणन को अब स्मृति से अलग करना मुश्किल था।इस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति भी बहुत प्रभावशाली रही। अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 के बीच, भारत ने पर्यटन में 18 बिलियन डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया। प्रमुख आतिथ्य अवसंरचना परियोजनाओं में 2014-22 के दौरान 9 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ। केवल 2023 में, भारत ने 9.52 मिलियन विदेशी पर्यटकों के साथ 2.31 लाख करोड़ रूपये (28.7 बिलियन डॉलर) की विदेशी मुद्रा अर्जित की, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 47.9% की वृद्धि दर्ज की गयी। इस क्षेत्र ने 2023-24 में 84.63 मिलियन नौकरियों का सृजन किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8.46 मिलियन अधिक थीं – इस प्रकार पर्यटन क्षेत्र भारत के विकास और रोज़गार की आधारशिला के रूप में उभरा।पर्यटन एक संपूर्ण आयाम वाले मिशन के रूप में विकसित हुआ। ‘एक विरासत अपनाएँ’ योजना के तहत प्रमुख स्थलों का कॉर्पोरेट प्रबंधन शुरू हुआ, जबकि उड़ान योजना ने शिरडी, जीरो और मिनिकॉय जैसे दूर-दराज के स्थानों को हवाई मार्ग से जोड़ा। राष्ट्रीय डिजिटल पर्यटन मिशन ने टिकट बुकिंग, डेटा और यात्रा कार्यक्रमों का एक एकीकृत प्लेटफ़ॉर्म में एकीकरण करना शुरू किया।पूर्वोत्तर- जो कभी उपेक्षित था- मुकुट के एक रत्न के रूप में उभरा। एक्ट ईस्ट नीति और अवसंरचना पर विशेष ध्यान की वजह से अरुणाचल, सिक्किम और मेघालय जैसे राज्यों में पर्यटकों का आगमन 2014 और 2022 के बीच दोगुना हो गया। जीवंत गांव कार्यक्रम ने किबिथु और माना जैसे दूरदराज के इलाकों को ऐसे गंतव्यों में बदल दिया, जहाँ देशभक्ति का मिलन प्रकृति और विरासत से होता है।पर्यटन का विचार भी आकांक्षापूर्ण हो गया। “भारत में विवाह”, राजस्थान और गोवा जैसे विवाह केंद्रों के लिए प्रोत्साहन, अभियान और अवसंरचना के समर्थन में तब्दील हो गया। इस बीच, चिकित्सा और कल्याण पर्यटन के लिए 2022 में 6 लाख से अधिक विदेशी मरीज आये, जिससे भारत दुनिया के अग्रणी उपचार स्थलों में से एक बन गया।2023 में भारत की जी-20 अध्यक्षता, सांस्कृतिक कूटनीति का एक उत्कृष्ट प्रदर्शन था। दिल्ली तक सीमित रहने के बजाय, खजुराहो से कुमारकोम तक 60 से अधिक गंतव्यों में वैश्विक कार्यक्रमों की मेजबानी हुई, जिनमें से प्रत्येक को स्थानीय कला, खान-पान और विरासत के साथ तैयार किया गया था। दुनिया भारत के साथ सिर्फ़ संवाद नहीं कर रही थी - बल्कि इसे अनुभव भी कर रही थी।लेकिन आंकड़ों के पीछे, असली परिवर्तन आध्यात्मिक था। भारत ने दुनिया से अपने स्मारकों को देखने के लिए अनुरोध करना बंद कर दिया। देश ने अपनी यादों को महसूस करने, अपनी शांति में स्वस्थ होने और अपनी विविधता का जश्न मनाने के लिए पूरी दुनिया को आमंत्रित किया।इस नए भारत में, पर्यटन मौसमी नहीं है - यह सभ्यतागत है। यह वह स्थल है, जहाँ दर्शन का विकास से, जहाँ तीर्थयात्रा का प्रगति से और जहाँ त्योहार का अवसंरचना से मिलन होता है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने दुनिया का सिर्फ़ स्वागत नहीं किया – बल्कि उसे गले लगाया।जैसे भिक्षु बोधि वृक्ष की परिक्रमा करते हैं, जैसे तीर्थयात्री केदारनाथ की ठंडी हवा में मंत्रोच्चार करते हैं, जैसे दुल्हनें महलनुमा गुंबदों के नीचे विवाह करती हैं और जैसे सीमावर्ती गाँव उत्सुक यात्रियों की मेजबानी करते हैं, एक सच्चाई हर पवित्र मार्ग और शांत गलियारे में गूंजती है: भारत केवल एक गंतव्य नहीं है, जहाँ की आप यात्रा करते हैं - यह एक ऐसा देश है, जहाँ आप कुछ शाश्वत की तलाश में बार-बार वापस आते हैं।**
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सावन गीत
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
सावन में झूलों का उत्सव ,खुशियाँ लेकर आया है ।
बूँदें छेड़े भीगे तन को , पावस मन को भाया है ।।
मोती की लड़ियाँ मनभावन , याद दिलाती हैं प्रिय की।
हाथों में थामो जब इनको , प्यास बढ़ाती है हिय की।
विरहा के प्यासे अंबर में , सुख का बादल छाया है ।
लौट रहे घर साजन मेरे , यह संदेशा लाया है ।।
सुधियों की बारिश में भीगा , मन-मयूर मेरा झूमा ।
चुपके से उस छली भ्रमर ने , फूलों के मुख को चूमा ।
मदमस्त पवन के झोंकों ने , अलकों को सहलाया है ।
खुशियाँ पाकर नाच उठा तन , झूम-झूम मन गाया है ।।
मधुर मिलन की याद दिलाती , मुझको भाती यह बारिश।
बाँहों में प्रियतम के झूलूँ , बस इतनी-सी है ख्वाहिश ।
मन की इस महकी बगिया में , प्रेम-पुष्प मुस्काया है ।
बारिश की छम-छम बूँदों में , प्यार पिया का पाया है ।।
वसुधा का शृंगार कर रही , उमड़-घुमड़ वारिद माला ।
रंग-बिरंगे पुष्प मनोहर , मोती से सजती बाला ।
खुशबू आई प्रथम मिलन की , प्रिय की यादें लाया है ।
संग सजन के झूला झूलूँ , सोच जिया हरषाया है ।। - आलेख- डॉ. सुनिता जैन, योग चिकित्सक, आयुष योग वेलनेस सेंटर, शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय अस्पताल, रायपुरमानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है, जिसे अब गंभीरता से लेना समय की मांग है। योग एक ऐसा माध्यम है जो बिना किसी दुष्प्रभाव के व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। यदि हम रोज़ाना कुछ समय योग और ध्यान को दें, तो न केवल हम मानसिक बीमारियों से बच सकते हैं, बल्कि एक सकारात्मक, आनंदमय और संतुलित जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं।आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद जैसे मानसिक रोग आम होते जा रहे हैं। काम का दबाव, सामाजिक प्रतिस्पर्धा, रिश्तों में तनाव और अनियमित जीवनशैली हमारे मानसिक स्वास्थ्य को गहरे रूप से प्रभावित कर रही है। ऐसे समय में योग एक प्राकृतिक, सुलभ और प्रभावी उपाय के रूप में सामने आया है, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक संतुलन को भी मज़बूती प्रदान करता है।योग: केवल शारीरिक व्यायाम नहींबहुत से लोग योग को केवल शरीर को लचीला बनाने का साधन मानते हैं, परंतु वास्तव में योग एक सम्पूर्ण जीवनशैली है। पतंजलि योगसूत्र में योग को "चित्तवृत्ति निरोधः" कहा गया है, अर्थात योग मन की चंचलता को नियंत्रित करने का माध्यम है। योग के विभिन्न अंग — जैसे कि प्राणायाम, ध्यान (मेडिटेशन), और आसन — व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।तनाव को कम करने में योग की भूमिका -आज का मनुष्य हर पल किसी न किसी तनाव से घिरा रहता है। प्राणायाम जैसे गहरी सांस लेने की विधियाँ तंत्रिका तंत्र को शांत करती हैं और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन के अनुसार, नियमित योगाभ्यास से कॉर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर कम होता है।इससे मानसिक हल्कापन महसूस होता है और सोचने-समझने की शक्ति बेहतर होती हैचिंता और अवसाद से राहत -ध्यान (मेडिटेशन) और योग निद्रा जैसी विधियाँ मस्तिष्क में सकारात्मक न्यूरोट्रांसमीटर — जैसे कि सेरोटोनिन और डोपामिन — के स्राव को बढ़ावा देती हैं। ये रसायन मूड को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं और अवसाद व चिंता से लड़ने में मदद करते हैं। नियमित योगाभ्यास करने वालों में आत्मविश्वास, भावनात्मक स्थिरता और मानसिक स्पष्टता देखने को मिलती है।। Deep breathing (प्राणायाम) और mindfulness meditation से मस्तिष्क में GABA (Gamma Aminobutyric Acid) का स्तर बढ़ता है, जो चिंता और अवसाद को कम करता हैअनेक वैश्विक और भारतीय शोधों में यह सिद्ध हुआ है कि योग का नियमित अभ्यास मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि योग थेरेपी, मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के उपचार में दवाओं के साथ-साथ सहायक भूमिका निभा सकती है।. नींद की गुणवत्ता में सुधार - अनियमित नींद या अनिद्रा, मानसिक विकारों का बड़ा कारण है। योग निद्रा, शवासन, और ध्यान के माध्यम से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। AIIMS (नई दिल्ली) के एक अध्ययन में यह पाया गया कि नियमित योग से अनिद्रा से ग्रसित व्यक्तियों की नींद की अवधि और गहराई दोनों में सुधार हुआ।ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में वृद्धि - योगाभ्यास से मस्तिष्क के prefrontal cortex और hippocampus जैसे क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ती है, जो ध्यान और स्मृति से संबंधित हैं। यह विशेषकर छात्रों, प्रोफेशनलों और बुजुर्गों के लिए अत्यंत लाभकारी है।कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका - महामारी के दौरान जब मानसिक स्वास्थ्य एक वैश्विक चुनौती बन गया, तब WHO और आयुष मंत्रालय ने योग को मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने का एक प्रभावी उपाय माना। "Common Yoga Protocol" के माध्यम से लाखों लोगों ने मानसिक शांति पाई।सरकारी प्रयास और नीति - भारत सरकार ने ‘फिट इंडिया मूवमेंट’, ‘आयुष मंत्रालय’, और ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ जैसे अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से योग को जन-जन तक पहुँचाया है। wellness centers NCDs and life style clinic ke madhyam se abhi Chhattisgarh me nihsulk yogabhyas n roganusar yogparamarsh sabhi jilo me diya jar raha hai मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता में योग को एक प्रमुख घटक के रूप में शामिल किया गया है।निष्कर्षयोग मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में एक सरल, सुलभ और सशक्त उपाय है। वैज्ञानिक शोधों और अनुभवों से यह सिद्ध हो चुका है कि योग न केवल तनाव और चिंता को कम करता है, बल्कि संपूर्ण जीवन को संतुलन प्रदान करता है। आज के तनावग्रस्त समाज में योग को अपनाना केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता बन चुका है।
- लेखक - डॉ. जितेन्द्र सिंह, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान और प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्रीकेरल के थुंबा में मछली पकड़ने वाले शांत गाँव के चर्चयार्ड से साउंडिंग रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुई भारत की अंतरिक्ष यात्रा के बारे में शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि एक दिन देश कितनी ऊँचाईयों को छूएगा। यह समय दृढ़ संकल्प का था, जब सितारों तक पहुँचने का सपना सीमित साधनों, लेकिन असीम महत्वाकांक्षा के साथ परवान चढ़ा।आज, वह सपना विकसित होकर एक राष्ट्रीय मिशन का रूप अख्तियार कर चुका है, और जब हम नरेन्द्र मोदी सरकार के ग्यारह वर्षों को चिन्हित कर रहे हैं, तो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में आमूल-चूल बदलाव आ चुका है – यह साहसपूर्ण, समावेशी और आम नागरिकों के जीवन से गहराई से संबद्ध है।यह परिवर्तन केवल रॉकेट और उपग्रहों से ही संबंधित नहीं है, अपितु यह लोगों के बारे में है। यह दर्शाता है कि दूरदराज के गाँव के किसान से लेकर डिजिटल कक्षा के छात्र तक, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी किस प्रकार रोजमर्रा की जिंदगी की लय में खामोशी से शामिल हो चुकी है । प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और अंतरिक्ष विभाग के रणनीतिक नेतृत्व में, भारत ने विकास, सशक्तिकरण और अवसर के उपकरण के रूप में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की नए सिरे से परिकल्पदना की है।साल 2014 से शुरू किए गए सुधारों ने नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। 2020 में इन-स्पे स की स्थारपना ने निजी कंपनियों को अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने का अवसर प्रदान किया, जिससे नवाचार की लहर उठी। आज, 300 से अधिक अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप उपग्रह बना रहे हैं, प्रक्षेपण वाहन डिजाइन कर रहे हैं तथा कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और नेविगेशन के क्षेत्र में सेवाएं देने वाले अनुप्रयोग विकसित कर रहे हैं। ये स्टार्टअप केवल प्रौद्योगिकी ही सृजित नहीं कर रहे हैं - वे खासकर टियर 2 और टियर 3 शहरों में युवा इंजीनियरों और उद्यमियों के लिए रोजगार के अवसरों का भी सृजन कर रहे हैं। उदारीकृत अंतरिक्ष नीति ने अंतरिक्ष सेवाओं को अधिक किफायती और सुलभ बना दिया है, जिससे उन्नत प्रौद्योगिकी का लाभ जमीनी स्तर पर पहुंच रहा है।भारत के उपग्रह अब मौसम पूर्वानुमान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनकी बदौलत किसानों को अपनी बुवाई और कटाई के चक्रों की योजना अधिक सटीकता से बनाने में मदद मिलती है। बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में, उपग्रह डेटा प्रारंभिक चेतावनी और आपदा प्रतिक्रिया को सक्षम बनाता है, जिससे जीवन और आजीविका की रक्षा होती है। चक्रवातों और सूखे के दौरान रिमोट सेंसिंग के कारण अधिकारियों को तैयार रहने और नुकसान को कम करने में मदद मिलती है। ग्रामीण क्लीनिकों में, उपग्रह कनेक्टिविटी द्वारा संचालित टेलीमेडिसिन की बदौलत शहरी केंद्रों के डॉक्टरों द्वारा दूरदराज के क्षेत्रों में रोगियों को परामर्श मुमकिन हो पाता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा से संबंधित खाई पाटना संभव होता है। सैटेलाइट बैंडविड्थ द्वारा समर्थित ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म यह सुनिश्चित करते हुए कि भूगोल अब सीखने में बाधा नहीं रहा है, दूर-दराज के गाँवों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं।भारत के स्वदेशी जीपीएस नेटवर्क-नाविक प्रणाली का इस्तेमाल अब वाहनों में नेविगेशन, ट्रेनों और जहाजों पर नज़र रखने और मछुआरों को किनारे पर सुरक्षित वापस लाने के लिए किया जाता है। कृषि में, उपग्रह परामर्श से किसानों को मिट्टी की नमी, फसल की सेहत और कीटों के संक्रमण की निगरानी करने में मदद मिलती है, जिससे उचित निर्णय लेने और बेहतर पैदावार प्राप्त करने में मदद मिलती है। ये काल्पैनिक लाभ नहीं हैं, बल्कि - ये लाखों लोगों के जीवन में आया वास्तविक, उल्ले खनीय सुधार हैं।बीते दशक में शुरू किए गए मिशनों ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। मंगलयान भारत की इंजीनियरिंग उत्कृष्टता प्रदर्शित करते हुए अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुँच गया। चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट उतरा, ऐसा क्षेत्र जहां बर्फ होने का अनुमान है, और इसके रोवर ने ऐसे प्रयोग किए जो भविष्य के चंद्र मिशनों को जानकारी प्रदान करेंगे। आदित्य-एल1 अब सौर तूफानों का अध्ययन कर रहा है, जिससे वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के मौसम तथा संचार प्रणालियों और बिजली ग्रिड पर इसके प्रभाव को समझने में मदद मिल रही है।साल 2027 के लिए निर्धारित गगनयान मिशन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा। लेकिन चालक दल की उड़ान से पहले ही, यह मिशन नई पीढ़ी को प्रेरित कर रहा है। अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण, सुरक्षा प्रणालियों का विकास और चालक दल रहित परीक्षण उड़ानें व्याजपक प्रभाव उत्पन्ने कर रही हैं - अनुसंधान को बढ़ावा दे रही हैं, प्रतिभाओं को आकर्षित कर रही हं और राष्ट्रीय गौरव का निर्माण कर रही हैं।भविष्य पर गौर करते हुए, भारत 2035 तक अपना स्वायं का अंतरिक्ष स्टेशन- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन- बनाने की योजना बना रहा है। पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च होने की उम्मीद है, और अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग की हाल की सफलता ने इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए आवश्यक तकनीकों की पुष्टि की है। यह स्टेशन दीर्घकालिक निवास और अनुसंधान का अवसर देगा, जिससे गहन अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरग्रहीय मिशनों के लिए द्वार खुलेंगे।इन बढ़ती महत्वाकांक्षाओं में सहायता देने के लिए, भारत अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) का विकास कर रहा है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा में 30,000 किलोग्राम वजन ले जाने में सक्षम है। इसमें पुन: प्रयोज्य चरण और मॉड्यूलर प्रणोदन प्रणाली होगी, जिससे अंतरिक्ष तक पहुँच अधिक किफायती और टिकाऊ हो जाएगी। लॉन्च की बढ़ती बारंबारता को संभालने और वाणिज्यिक मिशनों की सहायता करने के लिए श्रीहरिकोटा में एक तीसरा लॉन्च पैड और तमिलनाडु में एक नया स्पेसपोर्ट बनाया जा रहा है।भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम बेहद सहयोगपूर्ण भी है। नासा के साथ निसार मिशन पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक खतरों की निगरानी करेगा। जापान के साथ लूपेक्सप मिशन भारी रोवर के साथ चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों का पता लगाएगा। ये साझेदारियां एक विश्वसनीय वैश्विक अंतरिक्ष भागीदार के रूप में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा को दर्शाती हैं।लेकिन अंतरिक्ष सिर्फ़ अन्वे षण के बारे में नहीं है - यह ज़िम्मेदारी के बारे में भी है। हज़ारों उपग्रहों के पृथ्वी की परिक्रमा करने के कारण अंतरिक्ष मलबा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। इसरो का अंतरिक्ष परिस्थिति जागरूकता कार्यक्रम मलबे की रियल-टाइम निगरानी करता है, टक्क र होने से बचने और अंतरिक्ष गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए रणनीति विकसित करता है।देश के कोने-कोने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का प्रभाव दिखाई दे रहा है। हिमालयी राज्यों में, उपग्रह डेटा भूस्खलन और हिमनदों की गतिविधियों की निगरानी में मदद करता है। तटीय क्षेत्रों में, यह समुद्री संरक्षण और आपदा की तैयारी में सहायता करता है। जनजातीय और दूरदराज के क्षेत्रों में, यह उपग्रह इंटरनेट के माध्यम से डिजिटल समावेशन को सक्षम बनाता है। खामोशी से हो रही ये क्रांतियाँ - परिवर्तन हैं, जो बिना किसी दिखावे के जीवन को प्रभावित करते हैं।हम अगले दशक पर गौर करें, तो लक्ष्य स्पष्ट हैं: 2040 तक चालक दल के साथ चंद्रमा पर उतरना, पूरी तरह से चालू अंतरिक्ष स्टेशन, और वैश्विक अंतरिक्ष नवाचार में नेतृत्व की भूमिका। ये केवल सपने नहीं हैं - ये ऐसे राष्ट्र के लिए रणनीतिक अनिवार्यताएँ हैं, जिसने हमेशा समाज को बदलने के लिए विज्ञान की शक्ति में विश्वास किया है।थुंबा के साइकिल शेड से लेकर कक्षा में डॉकिंग मेन्यु वर तक, भारत की अंतरिक्ष यात्रा दृढ़ता, कल्पनाशीलता और अथक प्रयास की दास्तायन है। यह एक ऐसी दास्ता्न है जिसका ताल्लुंक हर नागरिक, हर वैज्ञानिक, हर स्वतपनदृष्टा से है। और अब, जबकि हम परिवर्तनकारी शासन के ग्यारह वर्षों का जश्न मना रहे हैं, तो हम एक ऐसे राष्ट्र का भी कीर्तिगान कर रहे हैं जो वास्तव में सितारों तक जा पहुँचा है - और उनकी रोशनी को वापस घर ले आया है।
- लेखक:- श्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय कपड़ा मंत्रीकुछ साल पहले, तकनीकी वस्त्रों को एक सीमित खंड के रूप में देखा जाता था। इसका दायरा सीमित था, इसमें कम निवेश किया जाता था और आयात पर यह बहुत अधिक निर्भर था लेकिन आज, यह भारत के औद्योगिक परिवर्तन के केंद्र में हैं। यह बदलाव आकस्मिक नहीं है। यह माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सशक्त नेतृत्व में आत्मनिर्भर भारत के अनुरूप अपनाई गई रणनीति, नीतिगत दूरदर्शिता और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का परिणाम है। चाहे कोविड-19 संकट के दौरान पीपीई उत्पादन को बढ़ाना हो, स्वदेशी सुरक्षात्मक गियर के साथ सशस्त्र बलों को सुसज्जित करना हो या ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई के लिए महत्वपूर्ण सामग्रियों की आपूर्ति करना हो, तकनीकी वस्त्रों ने राष्ट्रीय तैयारियों और औद्योगिक प्रगति के कारक के रूप में अपनी भूमिका का प्रदर्शन किया है।श्रेष्ठ से रणनीतिक तक: नीतिगत अनिवार्यताराष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (एनटीटीएम) की समीक्षा बैठक के दौरान एक महत्वपूर्ण क्षण तब आया, जब मुझे इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ से बातचीत करने का अवसर मिला। उन्होंने कार्बन फाइबर, अल्ट्रा-हाई मॉलिक्यूलर वेट पॉलीइथिलीन (UHMWPE) और नायलॉन 66 जैसे उच्च प्रदर्शन वाले एयरोस्पेस अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक सामग्री की बढ़ती आवश्यकता को रेखांकित किया। उनका संदेश स्पष्ट था: भारत को इस क्षेत्र में दूसरों पर निर्भरता को कम करने के लिए और हमारी वैज्ञानिक उन्नति के अगले स्तर के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए इन क्षेत्रों में स्वदेशी क्षमताओं का निर्माण करना चाहिए। इस बातचीत के दौरान प्रयोगशालाओं से लेकर लॉन्चपैड तक भारत की विकास गाथा में तकनीकी वस्त्रों के रणनीतिक महत्व को भी रेखांकित किया गया।लैब से लेकर लॉन्चपैड व युद्ध के मैदान तकरक्षा क्षेत्र ने भी इस परिवर्तन के रणनीतिक मूल्य को महसूस करना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए हाल ही में हमारे सशस्त्र बलों द्वारा संचालित ऑपरेशन सिंदूर को लें, जहां सुरक्षात्मक कपड़ों और बैलिस्टिक गियर से लेकर छलावरण वाले कपड़ों और रासायनिक-जैविक सुरक्षा सूट तक तकनीकी वस्त्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चूंकि हमने घरेलू क्षमता निर्माण में जल्दी निवेश करना शुरू कर दिया था, इसलिए आज हम अपने रक्षा क्षेत्र को न केवल जनशक्ति के साथ, बल्कि वैश्विक मानकों को पूरा करने वाली सामग्री के साथ मदद पहुंचाने में सक्षम हैं, जिसे भारतीय धरती पर विकसित और निर्मित किया गया है।तकनीकी वस्त्रों को समझेंतकनीकी वस्त्र वे विशेष प्रकार के कपड़े होते हैं, जो सौंदर्य की बजाय कार्यक्षमता के लिए बनाए जाते हैं जिन्हें अक्सर जीवन रक्षक या महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के तहत कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इनमें बुलेट-प्रतिरोधी जैकेट, अग्निरोधी वर्दी, सर्जिकल गाउन, किसानों के लिए एंटी-बैक्टीरियल शीट, सड़क-सुदृढ़ीकरण जियो-ग्रिड और बहुत कुछ शामिल हैं। यह क्षेत्र जियोटेक, मेडिटेक, प्रोटेक, एग्रोटेक और बिल्डटेक सहित 12 प्रमुख खंडों में फैला हुआ है। 2024 तक, भारत के तकनीकी वस्त्र बाजार का मूल्य 26 बिलियन अमरीकी डॉलर था। हम 2030 तक 40-45 बिलियन अमरीकी डॉलर को छूने की राह पर हैं, जो 10-12 प्रतिशत की आकर्षक वार्षिक दर से बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर तकनीकी वस्त्र, कुल कपड़ा उत्पादन का लगभग 27 प्रतिशत है जबकि भारत में यह आंकड़ा केवल 11 प्रतिशत है। हालांकि सही दिशा में प्रयास करने से हम इस अंतर को तेज़ी से कम कर रहे हैं।विकास को गति देने के लिए प्रमुख सरकारी पहलइस क्षेत्र की वास्तविक क्षमता को उजागर करने के लिए, भारत सरकार ने दो प्रमुख पहलों- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (एनटीटीएम) और वस्त्रों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के माध्यम से कुल 12,000 करोड़ रुपए का परिव्यय किया है। ये कार्यक्रम अलग-अलग काम करने के बजाय, साथ मिलकर, भारत को तकनीकी वस्त्रों के एक वैश्विक केंद्र के रूप में बदल रहे हैं। एनटीटीएम के तहत, हम अनुसंधान और नवाचार में केंद्रित निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं। 510 करोड़ रुपए की सरकारी मदद के साथ कुल 168 उच्च-प्रभाव वाली परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इनमें से कई पहले ही प्रयोगशाला से बाजार में आ चुकी हैं जिनमें फायर एंट्री सूट का विकास और भू-वस्त्रों के लिए परिपत्र बुनाई तकनीक शामिल हैं।एनटीटीएम: नवाचार को बढ़ावा देना और कौशल प्रदान करनाआत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण से प्रेरित, राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन नवाचार और कौशल विकास के लिए मजबूत नींव रख रहा है। वहीं 17 स्टार्टअप को ग्रेट (तकनीकी वस्त्रों में महत्वाकांक्षी नवप्रवर्तकों के लिए अनुसंधान और उद्यमिता के लिए अनुदान) योजना के तहत सहायता मिली है। 2,000 से अधिक छात्र 41 शीर्ष संस्थानों में तकनीकी वस्त्र पाठ्यक्रम कर रहे हैं जो 16 उद्योग-आधारित कौशल मॉड्यूल द्वारा समर्थित हैं और भविष्य के लिए तैयार कार्यबल को आकार दे रहे हैं।मांग पैदा करना, वैश्विक उपस्थिति को बढ़ावा देनामुख्य स्तंभ के रूप में बाजार विकास के साथ, एनटीटीएम घरेलू स्तर पर अपनाने के साथ-साथ वैश्विक पहुंच का भी विस्तार कर रहा है। स्वास्थ्य सेवा, कृषि, बुनियादी ढांचे और रक्षा जैसे क्षेत्रों में 73 तकनीकी वस्त्र सामग्रियों के अनिवार्य उपयोग ने उन्हें सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में एकीकृत किया है। भारत टेक्स 2025 सहित 30 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों ने भारत की स्थिति को मजबूती दी है। इस बीच, कुल मिलाकर मानव निर्मित कपड़ा निर्यात 2020-21 में 4.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 5.3 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। वहीं आयात में कमी से बढ़ती आत्मनिर्भरता और प्रतिस्पर्धात्मकता का संकेत मिलता है।प्रदर्शन को नीति से जोड़ना: पीएलआई ढांचानिजी क्षेत्र में, प्रदर्शन को पुरस्कृत किया जाता है। जो लोग लक्ष्य से अधिक प्रदर्शन करते हैं, उन्हें आगे बढ़ने और देश के रोजगार परिदृश्य को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यही सिद्धांत अब उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के माध्यम से हमारी औद्योगिक नीति को दर्शाता है। यानी प्रोत्साहन अब सब्सिडी नहीं, बल्कि प्रदर्शन से जुड़े पुरस्कार हैं। भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए, विनिर्माण को एक मिशन की तरह माना जाना चाहिए, जिसमें स्पष्ट मीट्रिक, वाणिज्यिक व्यवहार्यता और विकासोन्मुख मानसिकता हो।एनटीटीएम और पीएलआई साथ मिलकर एक दोहरे इंजन का काम करते हैं: जहां एनटीटीएम अनुसंधान, शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से नींव रखता है, पीएलआई योजना विकास को गति दे रही है। योजना के तहत चयनित 80 कंपनियों में से आधे से अधिक (ठीक 56.75 प्रतिशत) तकनीकी वस्त्र के क्षेत्र में काम कर रही हैं। यह उद्योग के आत्मविश्वास का एक मजबूत संकेतक है। इस समर्थन की बदौलत, हमने 7,343 करोड़ रुपए का नया निवेश देखा है जिससे 4,648 करोड़ रुपए का प्रभावशाली कारोबार और 538 करोड़ रुपए का निर्यात हुआ है। सुचारू कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, कपड़ा मंत्रालय ने सक्रिय कदम उठाए हैं। हमने तीन मौकों यानी जून 2023, अक्टूबर 2024 और फरवरी 2025 पर तकनीकी वस्त्रों के लिए एचएसएन कोड जारी किए और सीमा शुल्क और अनुपालन को स्पष्ट करने के लिए अक्सर पूछे जाने वाले सवाल भी जारी किए। फरवरी 2025 में हुए एक महत्वपूर्ण संशोधन के कारण कुल 54 करोड़ रुपए का प्रोत्साहन संवितरण समय से पहले संभव हुआ।हमारी महत्वाकांक्षाएं, घरेलू सीमाओं से कहीं आगे तक फैली हुई हैं। इन क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर, यह योजना भारत को चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे अग्रणी वैश्विक कपड़ा निर्यातकों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए रणनीतिक रूप से तैयार कर रही है।अब तक का प्रभावहमारी संयुक्त पहलों का असर पहले से ही दिखाई दे रहा है। तकनीकी वस्त्रों के लिए भारत का घरेलू बाजार 10 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में निर्यात 2.9 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। मार्च 2025 तक, हमने 5,218 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया है और 8,500 से अधिक लोगों के लिए रोजगार सृजित किया है। अकेले तकनीकी वस्त्रों ने 3,242 करोड़ रुपए का कारोबार किया है जिसमें 217 करोड़ रुपए का निर्यात शामिल है। ये आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं हैं, यह इस बात का प्रमाण है कि हमारी रणनीति काम कर रही है।सतत् और आत्मनिर्भर भविष्य की ओरस्थिरता और चक्रीयता भारत की तकनीकी वस्त्र रणनीति के केंद्र में हैं। जूट, भांग, रेमी, कपास, रेशम और यहां तक कि मिल्कवीड जैसे प्राकृतिक रेशों को उच्च-प्रदर्शन अनुप्रयोगों के लिए फिर से तैयार किया जा रहा है, जो पर्यावरण को लाभ पहुंचाते हुए हमारे किसानों और उद्योगों को सशक्त बना रहे हैं। प्रकृति-आधारित समाधान, शक्तिशाली उपाय के रूप में उभर रहे हैं जो पारंपरिक रेशों के साथ नवाचार को मिलाते हैं। उदाहरण के लिए, कश्मीरी पश्मीना से निकलने वाले कचरे का उपयोग अब इंसुलेशन बनाने में किया जाता है, कपास और रेशम का उपयोग घाव की ड्रेसिंग और ऊतक इंजीनियरिंग में किया जा रहा है और रेशम का उपयोग 3डी प्रिंटिंग में किया जा रहा है। जूट बायोडिग्रेडेबल मेडिकल इम्प्लांट, ऑटोमोबाइल के लिए हल्के कंपोजिट फाइबर, पर्यावरण के अनुकूल निर्माण सामग्री और टिकाऊ फर्नीचर बनाने में सक्षम है। साथ ही, हम घरेलू मशीनरी विनिर्माण को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिसके तहत 68,000 करोड़ रुपए मूल्य के सामान के उत्पादन के लिए 25 परियोजनाएं चल रही हैं। इनसे निर्यात में 6,700 करोड़ रुपए का योगदान मिलने की उम्मीद है जो वास्तव में आत्मनिर्भर और टिकाऊ औद्योगिक भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। केंद्रीय कपड़ा मंत्री के रूप में, मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि भारत न केवल वैश्विक तकनीकी वस्त्र आंदोलन में भाग ले रहा है, हम इसका नेतृत्व करने के लिए खुद को तैयार भी कर रहे हैं। एनटीटीएम और पीएलआई की संयुक्त शक्ति के साथ, हम नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं, रोजगार पैदा कर रहे हैं, निर्यात को मजबूत कर रहे हैं और राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती ला रहे हैं। हमारे रक्षा और कृषि क्षेत्रों को मदद देने से लेकर बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण तक, तकनीकी वस्त्र भारत के लिए एक नई औद्योगिक पहचान को आकार दे रहे हैं और यह केवल एक शुरुआत है।
- आलेख- डॉ. मनसुख मांडविया, केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री, युवा मामले और खेल मंत्रीवर्ष 2047 तक विकसित भारत बनने की दिशा में हमारी यात्रा अनवरत जारी है, और इस दृष्टि योजना के सबसे प्रभावकारी शक्तियों में भारतीय खेलों का उदय भी शामिल है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में भारतीय खेल, वैश्विक मंच पर नित नई ऊंचाईयां छू रहा है। जमीनी स्तर से लेकर विश्व विजेता मंच तक, प्रधानमंत्री की भविष्यदृष्टि ने खेलों के प्रति भारत के दृष्टिकोण को बदल कर रख दिया है। इससे विश्व स्तरीय सहायता, अत्या धुनिक सुविधाएं तथा प्रतिभा और कड़ी मेहनत को पुरस्कृत करने की पारदर्शी प्रणाली सुनिश्चित हुई है।हाल में, भारतीय एथलीटों ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर अपने असाधारण प्रदर्शनों से देश को गौरवान्वित किया है। दक्षिण कोरिया के गुमी में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2025 या मंगोलिया के उलानबटार में चौथी विश्व कुश्ती रैंकिंग श्रृंखला हो, हमारे खिलाडि़यों ने धैर्य और गौरव के साथ दमदार प्रदर्शन किया। एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में, भारतीय दल ने शानदार प्रदर्शन कर 24 पदक हासिल किए और इस दौरान कई राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी ध्वशस्तर कर दिए।इसी दौरान हमारी महिला पहलवानों ने इतिहास रच दिया। मंगोलिया से वे रिकॉर्ड 21 पदक जीतकर लौटीं जो विश्व कुश्ती रैंकिंग श्रृंखला में उनका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। पर यह सफलता रातोंरात नहीं मिली है। इससे पहले, भारत ने पूर्व के 23 आयोजनों (आजादी से पहले सहित) में केवल 26 ओलंपिक पदक जीते थे। जबकि 2016, 2020 और 2024 के पिछले तीन आयोजनों में ही भारत ने 15 पदक जीते हैं। पैरालिंपिक खेलों में प्रदर्शन और भी बेहतर रहा है। 1968 से 2012 के बीच कुल 8 पदक जीतने वाले भारत ने पिछले तीन आयोजनों में 52 पदक हासिल किए हैं, जिसमें पेरिस 2024 में जीते गए रिकॉर्ड 29 पदक शामिल हैं।ये उपलब्धियां कोई संयोग नहीं हैं। ये पिछले ग्यारह वर्षों में तैयार किए गए प्रदर्शन-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र का सुखद परिणाम हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्पष्ट और केंद्रित दृष्टिकोण है कि प्रत्येक एथलीट, चाहे उसकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो उसे विश्व स्तरीय प्रशिक्षण, ढांचागत सुविधा, वित्तीय सहायता, एथलीट-केंद्रित सुशासन और आगे बढ़ने के लिए पारदर्शी प्रणाली की पहुंच मिलनी चाहिए। वर्ष 2014 से मोदी सरकार ने परिवर्तनकारी बदलाव से मजबूत नींव रखकर भारतीय खेलों के परिदृश्य को नया रूप दे दिया है।इन सुधारों के केंद्र में शीर्ष एथलीटों की पहचान करने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए 2014 में आरंभ की गई टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना-टॉप्सक (टीओपीएस) शामिल है। 75 एथलीटों के साथ आरंभ हुई यह योजना अब लॉस एंजिल्स 2028 ओलंपिक आयोजन के लिए 213 खिलाड़ियों को सहयोग देने के साथ व्याीपक हो गई है। इसमें 52 पैरा-एथलीट और विकास श्रेणी के 112 एथलीट शामिल हैं। उन खेल संवर्गों में एथलीटों को मदद देने की नई योजनाएं भी आरंभ की गई हैं, जिन पर पारंपरिक रूप से कम ध्यान जाता है। इस वर्ष आरंभ किया गया लक्ष्य एशियाई खेल समूह (द टार्गेट एशियन गेम्सा ग्रुप-टीएजीजी) तलवारबाजी, साइकिलिंग, घुड़सवारी, नौकायन, कयाकिंग और कैनोइंग, जूडो, ताइक्वांडो, टेनिस, टेबल टेनिस और वुशू जैसे 10 खेलों में 40 पदक संभावनाएं बढ़ाता है।खिलाडि़यों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के प्रयासों में दूरदर्शिता के साथ-साथ वित्तीय प्रतिबद्धता भी महत्वापूर्ण है। युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय का बजट पिछले दशक में तीन गुना से अधिक हो गया है और यह 2013-14 के महज 1,219 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 3,794 करोड़ रुपये पहुंच गया है। जमीनी स्तर पर बुनियादी खेल ढांचा विकसित करने और वर्ष भर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के उद्देश्यख से 2017 में आरंभ की गई खेलो इंडिया योजना का बजट इस वर्ष बढ़कर 1,000 करोड़ रुपये हो गया है। इन निवेशों से खेल प्रतिभाएं पोषित हो रही हैं और युवा एथलीटों के लिए एक जीवंत प्रतिस्पर्धी पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित हो रहा है।राष्ट्रीय खेल महासंघों को भी अभूतपूर्व व्याजपक समर्थन मिला है। अंतर्राष्ट्रीय आयोजन और राष्ट्रीय चैंपियनशिप आयोजित करने के लिए उन्हेंर दी जाने वाली वित्तीय सहायता लगभग दोगुनी हो गई है। खेल प्रशिक्षकों-कोच को दी जाने वाली राशि में 50 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। उच्च प्रदर्शन प्रशिक्षण की बढ़ती आवश्यमकता को देखते हुए एथलीटों के खुराक भत्ते में बढ़ोतरी की गई है।ऐसे केंद्रित प्रयास भारत को अपनी पदक क्षमता में विविधता लाने और विभिन्नह खेलों में उत्कृरष्टकता हासिल करने में सहायक बन रहे हैं।पारदर्शिता पर जोर इस दिशा में किए गए सबसे प्रभावशाली सुधारों में एक है। सभी महासंघों को अब चयन प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग और प्रमुख आयोजनों के लिए चयन मानदंड दो साल पहले ही निर्धारित करना आवश्य क बनाया गया है। इससे निष्पक्षता के साथ ही एथलीटों में विश्वास बढ़ता है और यह व्यावस्थाण को योग्यता आधारित बनाती है। एथलीट-केंद्रित सुधार निश्चित रूप से हाल की खेल नीति निर्माण में उल्ले।खनीय रहे हैं। खेल प्रमाणपत्र अब डिजिलॉकर द्वारा जारी किए जाते हैं जो राष्ट्रीय खेल रिपोजिटरी प्रणाली से जुड़े होते हैं। इससे एथलीटों को सुरक्षित और हेराफेरी से मुक्ता डेटा रिकॉर्ड सुनिश्चित होता है। राष्ट्री य खेल नीति 2024 और राष्ट्रीेय खेल प्रशासन विधेयक के मसौदे का कार्य अभी अपने अंतिम चरण में है। इनका उद्देश्य खेल पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करना और खिलाडि़यों के कल्याण को नीति निर्धारण के केंद्र में लाना है। आयु संबंधी धोखाधड़ी से अब नई मेडिकल जांच और सख्त दंड के प्रावधानों द्वारा निपटा जा रहा है। इनके बेहतर अनुपालन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए खेल संघों को सत्यनिष्ठा अधिकारी नियुक्त करने की भी आवश्यकता है।ओलंपिक खेलों के अलावा, मल्लखंब, कलारीपयट्टू, योगासन, गतका और थांग-ता जैसे पारंपरिक भारतीय खेलों को खेलो इंडिया गेम्स द्वारा पुनर्जीवित और बढ़ावा दिया जा रहा है। कबड्डी और खो-खो जैसे स्वदेशी खेलों को अब अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल रही है, जो भारत की समृद्ध खेल विरासत को दर्शाते हैं।खेल के क्षेत्र में लैंगिक समानता के प्रयास भी उल्लेेखनीय हैं। खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए आरंभ की गई एएसएमआईटीए-अस्मियता लीग (महिलाओं को प्रेरित कर खेल उपलब्धि हासिल करना) को तेजी से विस्तारित किया गया है। वर्ष 2021-22 में जहां केवल 840 महिला एथलीट खेलों में सक्रिय थीं वहीं, 2024-25 में 26 खेल संवर्गों में 60,000 से अधिक महिला खिलाडि़यों ने भाग लिया। अस्मिता लीग इन एथलीटों को खेलो इंडिया से जोड़कर प्रदर्शन और प्रतिस्पर्धा के अवसर प्रदान करती है।पिछले 11 वर्षों में भारत के खेल बुनियादी ढांचे में अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। वर्ष 2014 के 38 खेल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से व्यातपक होकर अब यह संख्या बढ़कर 350 पहुंच गई है। भारतीय खेल प्राधिकरण अभी 23 राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र संचालित कर रहा है जिनमें टॉप्स और खेलो इंडिया के तहत शीर्ष एथलीटों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा, 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 34 राज्य स्त रीय उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए हैं। साथ ही 757 जिलों में 1,048 खेलो इंडिया केंद्र भी स्थापित किए गए हैं जो खेल प्रतिभाओं को जमीनी स्तर पर खोजने और उन्हेंक पोषित-प्रशिक्षित करते हैं।खेलो इंडिया गेम्स अब एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है। अब तक इसके उन्नीस संस्करण आयोजित हुए हैं - जिनमें युवा, विश्वविद्यालय, पैरा, शीतकालीन और बीच गेम्स शामिल हैं - जिनमें 56,000 से अधिक एथलीट भाग लेते हैं। विशेष रूप से, खेलो इंडिया पैरा गेम्स परिवर्तनकारी रहे हैं जिनके कई एथलीट पैरालिंपिक में पदक जीत चुके हैं। भारत, भविष्य में 2030 राष्ट्रमंडल खेलों और 2036 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी की दावेदारी की तैयारी कर रहा है। इसके लिए खेलो इंडिया के तहत स्कूल गेम्स, ट्राइबल गेम्स, नॉर्थईस्ट गेम्स, वाटर गेम्स, मार्शल आर्ट्स गेम्स और स्वदेशी गेम्स जैसे नए क्षेत्रों में खेल आरंभ किए जा रहे हैं ताकि साल भर प्रतिस्पर्धा और प्रतिभा की खोज सुनिश्चित हो सके। आगामी खेलो इंडिया स्कूल गेम्स कम आयु में ही एथलीटों की पहचान और उन्हें प्रशिक्षित कर खेल पारिस्थितिकी तंत्र में नई प्रतिभा को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।सिर्फ खेल ही नहीं, फिटनेस के प्रति सामुदायिक भागीदारी के उद्देश्यह से दिसंबर 2024 में आरंभ किए गए फिट इंडिया संडे ऑन साइकिल अभियान ने भी गति पकड़ ली है। सिर्फ 150 प्रतिभागियों के साथ आरंभ हुआ यह अभियान अब 10,000 स्था नों पर विस्तागरित हो गया है जिसमें साढ़े तीन लाख से अधिक लोग सक्रियता से भाग ले रहे हैं। एक जून को आयोजित 25वें संस्करण में इसे सशस्त्र बलों को श्रद्धांजलि देने और विश्व साइकिल दिवस के अवसर पर तिरंगा रैली के रूप में मनाया गया। रैली में जम्मू-कश्मीर के दूरदराज के जिलों सहित 5,000 स्थानों से 75,000 से अधिक लोग शामिल हुए।इन साप्ताहिक कार्यक्रमों में फिटनेस का संदेश प्रचारित करने के लिए डॉक्टर, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक सहित विभिन्न समूह शामिल होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को सही सिद्ध करते हुए फिट इंडिया मूवमेंट देश के हर घर तक फिटनेस का संदेश पहुंचा रहा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भविष्यस दृष्टि योजना है कि जब हम 2036 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी करें तो भारत खेलों में शीर्ष 10 देशों में शामिल हो और 2047 में आजादी के सौ वर्ष पूरे होने तक शीर्ष 5 देशों में शामिल हो जाए। इस दृष्टि योजना को पूरा करने के लिए काफी कुछ किया गया है, लेकिन अभी भी बहुत हासिल करना बाकी है। मजबूत आधार के लिए, शासन में प्रमुख सुधार लागू किए गए हैं, जो देश में खेलों के विकास के लिए अहम हैं। आज भारत की खेल क्रांति दृष्टि, संकल्प और समावेशी विकास की गाथा है। इस परिवर्तन के केंद्र में हमारे युवा हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गतिशील नेतृत्व में भारत एक वैश्विक खेल महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। पदकों की लगातार बढ़ती संख्या् से लेकर जीतने की मानसिकता तक में भारी बदलाव दिख रहा है। विकसित भारत की ओर दृढ़ता से बढ़ते हमारे कदम - खेल भावना से संचालित हैं।
- -लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)पिता...जो कभी न थकते हैं,बच्चों की खुशी में सुख पाते,अपनी तकलीफें भूल जाते,दिन -रात मेहनत करते हैं ।परिवार के लिये खटते ,सारा सुख दूसरों के लिये ,अपने बारे में कब सोचते हैं ।कब से देख रही हूँ ...पिता की फ़टी बनियान..चप्पल भी घिसते तक पहनते हैं ।पर ,अभी तो यह चलेगी ,बच्चों की फीस भरनी है ,मकान की छत सुधरवानी है ,भाई का ऑपरेशन है ,सब की जरूरतें पहले,कहकर अपने खर्च टालते हैं ।वो कभी नहीं कहते ,उन्हें क्या खाना पसंद है ,वो कभी बताते ही नहीं कि,उन्हें दिलीप कुमार की फिल्मेंअच्छी लगती थी कभी ...गाने सुनना कितना पसन्द था,पर कभी समय ही नहीं मिला किबैठकर सुनें कभी इत्मीनान से ।वो अपनी खुशी ...सबके चेहरों में तलाश करते हैं ।बीत गया उनका जीवन ..सबकी ख्वाहिशें पूरी करते ,कभी फुर्सत ही नही मिली ..कि सोचें उनकी भी कोई चाहत है।जिम्मेदारियों के निर्वहन में ही,सच्ची राहत महसूस करते हैं ।क्या सारे पिता ऐसे ही होते हैं ।
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15 जून फादर्स डे पर विशेष
हर बच्चे की जिंदगी में माता-पिता का बहुत ही गहरा महत्व होता है। जहां मां अपने प्यार और दुलार से बच्चे को संवारती हैं तो वहीं पिता भी अपनी संतान की अच्छी परवरिश के लिए टायरलेस एफ्फोर्ट्स करते हैं और कई चीजों का त्याग करते हैं। क्या कभी हमने पिता होने के उस इनर एक्सपीरियंस पर गहराई से गौर किया है?
वो फीलिंग्स, वो स्ट्रगल और वो अनटोल्ड स्टोरीज जो एक पुरुष के पिता बनने के सफर को डिफाइन करती हैं। तो ऐसे में फादर्स डे एक ऐसा विशेष अवसर है जब हम अपने पिता के इन बलिदानों और योगदानों को तहे दिल से थैंक यू कहते हैं।
यह दिन हमें उन अनमोल पलों को याद करने और सम्मान देने का मौका देता है जो पिता अपने बच्चों के लिए जीते हैं। इस साल फादर्स डे 15 जून, 2025 को मनाया जाएगा। तो आइए, इस फादर्स डे पर सिर्फ पिता पर केंद्रित होकर कुछ ऐसे ही पहलुओं पर बात करें, जो शायद ही कभी चर्चा में आते हैं।
कैसे शुरू हुआ फादर्स डे का प्रचलन--
पिता को सम्मान देने और उनके दिल से शुक्रिया कहने के लिए फादर्स डे जैसे खास दिन की शुरुआत अमेरिका से हुई। 1909 में एक अमेरिकी महिला, सोनोरा स्मार्ट डोड ने यह सुझाव दिया कि जैसे मां के लिए मदर्स डे मनाया जाता है, ठीक उसी तरह पिता के लिए भी फादर्स डे मनाया जाना चाहिए।
सोनोरा के पिता एक अमेरिकी सैनिक थे जो सिविल वॉर का हिस्सा रहे थे। उनकी पत्नी की दुखद मृत्यु के बाद, उन्होंने अकेले ही अपने 6 बच्चों की परवरिश की। सोनोरा अपने पिता के इस असाधारण समर्पण और बलिदान के लिए उन्हें सम्मान देना चाहती थीं। उन्होंने इस विचार को रियलिटी में बदलने के लिए अथक प्रयास किए और लोगों का समर्थन जुटाया।
यह उनके लिए किसी जंग से कम नहीं था, लेकिन उनकी स्ट्रांग विल और लव ने उन्हें सफलता दिलाई। आखिरकार, वाशिंगटन में 19 जून, 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया।
इस दिन को ऑफिसियल मान्यता मिलने में कई साल लगे और फाइनली 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इसे ऑफिसियल तौर पर नेशनल हॉली डे घोषित किया। भारत में भी फादर्स डे जून के तीसरे रविवार को ही मनाया जाता है।
एक पुरुष से पिता तक का सफर--
एक पुरुष का पिता बनना सिर्फ बायोलॉजिकल प्रोसेस नहीं है, बल्कि यह एक गहरा इमोशनल और मेन्टल ट्रांसफॉर्मेशन है। जिस पल एक पिता को पता चलता है कि वह पिता बनने वाला है, उसके जीवन में एक इनविजिबल चेंज शुरू हो जाता है। अचानक, उसके भविष्य की कल्पनाओं में एक नया चेहरा शामिल हो जाता है और उसकी प्रिऑरिटीज का ऑर्डर बदल जाता है।
यह परिवर्तन अक्सर धीरे-धीरे होता है जैसे बच्चे के पहले अल्ट्रासाउंड से लेकर उसकी पहली किलकारी सुनने तक। इस समय वह अपनी खुशियों, चिंताओं और नई जिम्मेदारियों को अंदर ही अंदर महसूस करता है।
वह खुद को एक गार्डियन के रूप में देखना शुरू करता है, जिसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी अब अपने बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करना है। यह एक पुरुष से पिता बनने का आंतरिक सफर है, जो बाहरी दुनिया को अक्सर दिखाई नहीं देता।
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-नसीम अहमद खान, जनसंपर्क
छत्तीसगढ़ राज्य अब केवल खनिज और कृषि प्रधान राज्य नहीं रह गया है, बल्कि तकनीकी नवाचार और रणनीतिक उद्योगों का नया गढ़ बनकर उभरने की दिशा में अग्रसर है। इस परिवर्तन की आधारशिला मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में रखी गई है, जिन्होंने न केवल राज्य की औद्योगिक नीतियों को समकालीन और रोजगारोन्मुख बनाया, बल्कि रक्षा, एयरोस्पेस और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करने के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं।मुख्यमंत्री श्री साय की अध्यक्षता में हाल ही में आयोजित मंत्रिपरिषद की बैठक में इन उन्नत प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के लिए पृथक औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई। यह पैकेज न केवल इन क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करेगा, बल्कि राज्य के युवाओं के लिए सेवा और रोजगार के अवसरों के नए द्वार भी खोलेगा।छत्तीसगढ़ औद्योगिक विकास नीति 2024-30 के अंतर्गत तैयार किया गया यह विशेष पैकेज अत्याधुनिक उद्योगों की स्थापना और विस्तार को प्रोत्साहन देने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। रक्षा, एयरोस्पेस और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से जुड़े उद्यमों को स्थायी पूंजी निवेश के आधार पर 100 प्रतिशत तक की एसजीएसटी प्रतिपूर्ति या वैकल्पिक रूप से पूंजी अनुदान की सुविधा दी जाएगी। 50 करोड़ से लेकर 500 करोड़ से अधिक के निवेश करने वाली इकाइयों के लिए 35 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाएगी, जिसकी अधिकतम सीमा 300 करोड़ रुपये तक तय की गई है। इसके साथ ही, निवेशकों को ब्याज अनुदान, विद्युत शुल्क में छूट, स्टाम्प और पंजीयन शुल्क में रियायतें, भूमि उपयोग परिवर्तन शुल्क में छूट, रोजगार सृजन पर आधारित प्रोत्साहन, ईपीएफ प्रतिपूर्ति और प्रशिक्षण अनुदान जैसी सुविधाएं भी दी जाएंगी।इस नीति का सबसे प्रभावशाली पहलू यह है कि इसमें स्थानीय युवाओं के लिए स्थायी रोजगार सृजन को प्राथमिकता दी गई है। जो उद्योग छत्तीसगढ़ के निवासियों को पहली बार रोजगार देंगे, उन्हें दिए गए वेतन का 20 प्रतिशत तक अनुदान भी मिलेगा। यह राज्य सरकार की उस सोच का परिणाम है, जिसमें ‘विकास’ केवल आंकड़ों तक सीमित न रहकर आम जनता के जीवनस्तर में वास्तविक सुधार का माध्यम बने।रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की स्थापना पर व्यय का 20 प्रतिशत तक अनुदान, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना पर पूंजी निवेश अनुदान तथा ड्रोन प्रशिक्षण केंद्रों के लिए विशेष सहायता जैसी व्यवस्थाएं राज्य को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर और अग्रणी बनाएंगी। जो इकाइयां 1000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करेंगी या 1000 से अधिक लोगों को रोजगार देंगी, उन्हें अतिरिक्त औद्योगिक प्रोत्साहन भी मिलेगा। इससे वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर की बड़ी कंपनियों को राज्य में निवेश हेतु प्रोत्साहन मिलेगा।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय का मानना है कि छत्तीसगढ़ में औद्योगिक निवेश के नए अवसरों के साथ ही रोजगार, तकनीकी शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार का एक समेकित पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया जाए। छत्तीसगढ़ का युवा केवल नौकरी खोजने वाला न बने, बल्कि नौकरी देने वाला भी बने। यह औद्योगिक नीति मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे राष्ट्रीय अभियानों के अनुरूप राज्य को नई पहचान दिलाने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। छत्तीसगढ़ अब पारंपरिक उद्योगों से आगे बढ़ते हुए रक्षा और एयरोस्पेस जैसे उच्च तकनीक क्षेत्रों में निवेश का गंतव्य बनता जा रहा है। यह न केवल राज्य की आर्थिक समृद्धि को गति देगा, बल्कि छत्तीसगढ़ के युवाओं को सपनों की नई ऊंचाई तक ले जाने का मार्ग भी खोलेगा। - सुश्री सावित्री ठाकुर : राज्य मंत्री, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय2012 में क्रूर निर्भया कांड ने देश की अन्तरात्मा को झकझोर कर रख दिया था। इस घटना ने महिलाओं की सुरक्षा में भारत के कानूनी और प्रशासनिक ढांचे की गहरी कमियों को भी उजागर कर दिया था। अपर्याप्त पुलिस व्यवस्था, धीमी न्यायिक प्रक्रिया, पुराने पड़ चुके कानून और पीड़ितों के ना-काफी सहायता इंतजाम निराशाजनक तस्वीरें पेश कर रहे थे।2014 तक, भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा था। जनता में जबरदस्त आक्रोश था। लेकिन कानूनी तंत्र सुस्त पड़ा था। फास्ट ट्रैक कोर्ट महज एक अवधारणा थी, वास्तविकता नहीं। कोई एकल समाधान और केंद्र नहीं थे, कोई राष्ट्रीय महिला हेल्पलाइन नहीं थी, जांच तेज़ करने के लिए कोई फोरेंसिक (न्यायालयिक विज्ञान जांच) सहायता नहीं थी और इन उपायों के संचालन के लिए कोई समर्पित निधि भी नहीं थी। महिलाओं के मुद्दों को सामाजिक सरोकारों के तौर पर देखा जाता था-राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के रूप में नहीं।मोदी युग: सुरक्षा से संरचनात्मक सशक्तिकरण तकप्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में केंद्र सरकार ने पिछले 11 वर्षों के शासन में सुस्त आंशिक प्रतिक्रिया की जगह अब कानूनी सुधार, संस्थानों के दायित्वपूर्ण रवैये और हर महिला के सम्मान से संबधित दृष्टिकोण को मिशन-मोड में अपनाते हुए व्यापक बदलाव किया है।कानूनी सुरक्षा, अब राष्ट्रीय प्रतिबद्धतासरकार ने देश भर में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (त्वरित न्याय प्रदान करने के लिए स्थापित विशेष न्यायालय) की स्थापना की शुरुआत की और आज ऐसी 745 अदालतें क्रियाशील हैं। इनमें 404 विशेष रूप से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत मामलों को निपटाती हैं। वर्ष 2014 की तुलना में जब वन स्टॉप सेंटर (शारीरिक, यौन, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक शोषण का सामना करने वाली महिलाओं की सहायता और निवारण संबंधी केंद्र) अस्तित्व में नहीं थे, अब 820 से अधिक जिलों में ये पूरी तरह कार्यान्वित हैं जो हिंसा से प्रभावित किसी भी महिला को एक ही स्थान पर कानूनी सहायता, पुलिस हस्तक्षेप, आश्रय और परामर्श प्रदान करते हैं। इस पारिस्थितिकी तंत्र के हिस्से के रूप में आरंभ की गई राष्ट्रीय महिला हेल्पलाइन 181 ने हर दिन चौबीसों घंटे 86 लाख से अधिक महिलाओं को आपातकालीन सहायता प्रदान की है। इसके अलावा, देश भर में 14,600 से अधिक पुलिस स्टेशनों (पुलिस थाने) में अब महिला हेल्प डेस्क स्थापित हैं, जिनमें महिला अधिकारी मौजूद हैं। यह महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराध की स्थिति में पहले बरते जाने वाली उदासीनता या यहां तक कि आक्रामकता के माहौल की अपेक्षा अधिक संवेदनशीलता और सहायता प्रदान करने के माहौल में बदल गए हैं। निर्भया कोष के ज़रिए सरकार ने वर्ष 2014 से पहले की ढुलमुल प्रतिक्रिया प्रणाली की तुलना में अब महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा पर केंद्रित 50 से ज़्यादा बड़ी परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की है।प्रगतिशील कानूनी संशोधनआपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 में कुछ आवश्यक सुधारों से शुरुआत के बाद अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और 2023 में संबंधित कानूनों के व्यापक संहिताबद्ध किए जाने से औपनिवेशिक युग के आपराधिक न्यायशास्त्र की जगह अब भारतीय संदर्भ में कानून परिभाषित किए गए हैं।नए कानूनों में महिलाओं के विरूद्ध सभी अपराधों को एक अध्याय में समेकित किया गया है। पीड़ित के बयानों को वीडियो-रिकॉर्ड किया जाना अनिवार्य बनाया गया है जिसमें संवेदनशीलता बरतने के लिए महिला मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में बयान दर्ज कराने को प्राथमिकता दी गई है। डिजिटल स्टॉकिंग (डिजिटल माध्यम से पीछा करना), वॉयरिज्म (रति क्रिया छुपकर देखना) और शादी के झूठे वादे कर शारीरिक शोषण जैसे अपराधों को पहली बार आपराधिक बनाया गया है। कानूनी प्रणाली में अब तेजाब हमलों, मानव तस्करी, सामूहिक बलात्कार और हिरासत में यौन हिंसा के विरूद्ध कठोर दंड की व्यवस्था की गई है। इसके अतिरिक्त, बलात्कार पीड़िता को प्राथमिकी दर्ज करने या आपातकालीन चिकित्सा देखभाल प्रदान न करना भी अपराध माना गया है। पुराने संरक्षणवादी प्रतिबंधों को हटाते हुए महिलाओं को अब कानूनी रूप से किसी भी क्षेत्र में और किसी भी समय काम करने की अनुमति है, जो उनके खुद निर्णय लेने की आजादी की पुष्टि करते हैं। महत्वपूर्ण प्रक्रियागत सुधार भी किए गए हैं जिनमें गवाहों की सुरक्षा और डिजिटल साक्ष्यों को मंजूरी देना शामिल है। यौन हिंसा के मामलों में पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया को यह पुनर्परिभाषित करता है।ये सभी केवल संशोधन भर नहीं हैं - ये पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रणाली को पुन:स्थापित करते हैं।कानून से परे भी सशक्तिकरणकानूनी सुरक्षा के दायरे से परे, महिलाओं के प्रति सरकार का दृष्टिकोण सामाजिक, वित्तीय और डिजिटल सशक्तिकरण के व्यापक पहलुओं में कानूनी सुधार लाना है। मातृत्व अवकाश को अब 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है, और 50 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों मंै अब क्रेच (बच्चों की देखभाल) की सुविधा प्रदान करना आवश्यक है। महिलाएं अब सशस्त्र बलों में युद्धक-भूमिकाओं में सक्रियता से भाग ले रही हैं। वे सैनिक स्कूलों में प्रवेश पा रही हैं, प्रतिष्ठित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला ले रही हैं, और स्थायी कमीशन प्राप्त कर रही हैं। ये ऐसे उल्लेखनीय बदलाव हैं जो पहले उनके लिए बहुत मुश्किल थे। तीन तलाक जैसी भेदभावपूर्ण प्रथाओं को कानूनी तौर पर समाप्त कर दिया गया है, साथ ही महिलाओं को अब पुरुष अभिभावक के बिना भी हज यात्रा करने की अनुमति है। न्याय प्रदान करने को अब समुदाय-आधारित नारी अदालतों और शी-बॉक्स 2.0 जैसे प्लेटफार्म के माध्यम से विकेंद्रीकृत और डिजिटीकृत किया गया है। इससे सीधे जमीनी स्तर पर समयबद्ध निवारण तंत्र सक्रिय हो गया है।सुरक्षित, मजबूत भारत की शुरुआत कानूनी गरिमा सेवर्ष 2014 से पहले, महिलाओं की सुरक्षा को अक्सर नीति नहीं बल्कि सुर्खियों से प्रेरित प्रतिक्रियात्मक मुद्दे के रूप में देखा जाता था लेकिन आज यह शासन की संरचना में अंतर्निहित है जो वित्त पोषित, फोरेंसिक उपकरणों, कानूनी सुधार और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं द्वारा सहायता प्रदत्त है।अमृत काल में प्रवेश करने के साथ ही अब स्पष्ट दृष्टि है कि इस नए भारत में कोई भी महिला अकेली नहीं है। अब उसकी सुरक्षा विशेषाधिकार नहीं बल्कि सरकार की क्षमता से समर्थित संवैधानिक गारंटी है।यह यात्रा अभी जारी है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा में हम अब तक एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक भागीदारी और कानूनी प्रतिबद्धता के साथ, भारत निश्चित रूप से एक महिला के रहने, काम करने और नेतृत्व करने का सबसे सुरक्षित स्थान बन सकता है।
- सजल-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)पहलगाम में चली दुनाली।स्वार्थ कपट चाल कुचाली।।आई थी मधुमास मनाने ।रो रही मेंहदी की लाली।।रक्त बहाते मासूमों का।खुशी कौन-सी तुमने पा ली।।शोकग्रस्त हो चीड़ सन्न है।जग की कैसी रीति निराली।।सुख-साधन से भरती दुनिया।मन की बगिया होती खाली।।साथ कौन देता विपदा में।पत्रहीन हो रोती डाली।।लूटपाट हिंसा करते हो।मानवता को देते गाली ।।
- -लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)हार कर तुम जिंदगी में थम न जाना।कष्ट सहकर आपदा में मुस्कुराना।।साहसी को मान मिलता है सदा ही।कायरों का है नहीं जग में ठिकाना।।क्लांत मन यह चाहता विश्राम हरदम।देखना कर दे नहीं कोई बहाना।।संशयों ने रूद्ध की राहें सभी की।थपकियाँ देकर भ्रमों को तुम सुलाना ।।स्वेद श्रम कर के अथक पाई सफलता।जीत का है स्वाद कैसा यह बताना।। -
रानी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर विशेष लेख- लक्ष्मी राजवाड़े , महिला एवं बाल विकास और समाज कल्याण मंत्री
भारत के इतिहास में कुछ महिलाएं ऐसी रही हैं जिनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श बन गया। उन्हीं में से एक हैं राजमाता अहिल्याबाई होलकर, जिनकी 300वीं जयंती पर हम श्रद्धा और गर्व के साथ उन्हें स्मरण कर रहे हैं।इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं उन्हें सादर नमन करती हूं और उनके आदर्शों को आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में दोहराते हुए छत्तीसगढ़ सरकार की नारी सशक्तिकरण योजनाओं की चर्चा करना चाहती हूं।अहिल्याबाई होलकर : त्याग, सेवा और न्याय की मूर्तिरानी अहिल्याबाई होलकर का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। एक युवा विधवा के रूप में उन्होंने न केवल स्वयं को संभाला, बल्कि संपूर्ण मालवा राज्य को कुशलता से चलाया। वे प्रशासन, धर्म, सामाजिक समरसता और दान की मिसाल थीं।उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, अयोध्या, बद्रीनाथ, द्वारका जैसे स्थानों पर पुनर्निर्माण कार्य कर भारतीय संस्कृति और आस्था की रक्षा की। उनके कार्य इस बात का प्रमाण हैं कि यदि नारी को अवसर और अधिकार मिले, तो वे समाज और राष्ट्र दोनों को दिशा दे सकती हैं।छत्तीसगढ़ सरकार का संकल्प : हर नारी बने समर्थछत्तीसगढ़ सरकार मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में, अहिल्याबाई होलकर के पदचिन्हों पर चलते हुए नारी सशक्तिकरण को सर्वाेच्च प्राथमिकता दे रही है।महतारी वंदन योजना - छत्तीसगढ़ सरकार ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण और सामाजिक सम्मान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महतारी वंदन योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत पात्र विवाहित, विधवा, तलाकशुदा और परित्यक्ता महिलाओं को प्रतिमाह 1,000 रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है, जिससे उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद मिल रही है। अबतक लगभग 70 लाख महिलाओं को 15 किश्तो में 9788.78 करोड़ रूपए सहायता राशि प्रदान की जा चुकी है।महिला स्वावलंबन योजनाए -ं राज्य सरकार ने महिला स्व-सहायता समूहों को मजबूत बनाने के उद्देश्य से स्वरोजगार योजनाएं प्रारंभ की और कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम की ठोस पहल की है। इन पहलों से लाखों महिलाएं अब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं।महिलाओं की सुरक्षा और न्याय के लिए महिला हेल्पलाइन 181, वन स्टॉप सेंटर, फास्ट ट्रैक कोर्ट, विधिक सहायता जैसे उपाय सुनिश्चित किए गए हैं ताकि हर महिला को न्याय मिले और वह भयमुक्त जीवन जी सके।हमारा लक्ष्य : सशक्त, सुरक्षित और सम्मानित नारी समाजरानी अहिल्याबाई होलकर जी ने जिस समाज की कल्पना की थी। उसे साकार करने के लिए हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और सम्मान के चार स्तंभों पर कार्य करना होगा। छत्तीसगढ़ सरकार इस दिशा में निरंतर प्रयासरत है, ताकि हर बालिका अपने सपने को साकार कर सके और हर महिला समाज में नेतृत्व की भूमिका निभा सके।अहिल्याबाई होलकर जी की जयंती केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि संकल्प का अवसर है। संकल्प इस बात का कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलकर एक सशक्त और समरस समाज का निर्माण करेंगे। मैं समस्त प्रदेशवासियों से अपील करती हूं कि वे इस अभियान में सहभागी बनें और नारी शक्ति को राष्ट्र शक्ति में बदलने की दिशा में योगदान दें। जब नारी सशक्त होगी तभी विकसित भारत और विकसित छत्तीसगढ़ का संकल्प साकार होगा। -
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)सूने - सूने थे रास्ते...
उजाड़ था मंजर ...
शहर भी उदास था..
मौसम हुआ पतझर...।
रातें अमावस सी..
दिन हुई दोपहर...
नदी सूखी - सूखी सी...
ठहरा हुआ समन्दर..।
चाह नहीं कुछ पाने की..
उमंगें भूली डगर..
चलते रहे कदम यूँ ही ..
अंधेरों का कहर...।
शाम बीतती नहीं...
इंतजार में रहबर...
लम्बी काली रातें...
चुभो रही नश्तर ...।
अब आ भी जाओ प्रिय...
राह तकती नजर...
वीरान इस चमन में...
गुलों का भी हो बसर..।
आना तेरा यूँ जीवन में...
लो बहारों को हो गई खबर..
कल तक थी निष्पत्र जो..
खिल गई डगर- डगर..।
हो गई मैं आज गुलमोहर...।। -
-आदरांजलि
-जन्म - सन् 1929 || निर्वाण 24 मई , 2025
छत्तीसगढ़ की राजधानी में अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर वर्तमान काल तक जिन-जिन व्यक्तित्वों को सामाजिक सफलता का प्रतीक माना गया उनमें आदर्श उदाहरण रहे- श्री रामजीलाल अग्रवाल। जीवन पर्यंत जिन्होंने पीड़ित मानवता के कल्याण की अपनी राह नहीं छोड़ी। टीबा बसाई झुंझनू , [ राजस्थान ] से आकर छत्तीसगढ़ के रायपुर में रच बस गए और इस माटी के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। आज 96 वें वर्ष उन्होंने अपनी सांसारिक यात्रा पूर्ण कर मोक्ष की यात्रा अंगीकार कर ली।
ऋषि तुल्य गौ साधक रामजीलालजी ने जितना जीवन जीया वह केवल अग्रवाल सभा के लिए ही नहीं, अन्य समाजों के लिए भी प्रेरक बना रहा। एक व्यक्ति अपने जीवन में परिवार सहित समाज के कल्याण की खातिर किस हद तक सोच सकता है वे इसका अतुलनीय उदाहरण थे। सही मायनों में अनथक कर्म योगी।
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान उन्हें वरिष्ठ समाजसेवी, गौसेवक के रूप में पहचानता था।
अग्रवाल समाज के राष्ट्रीय संरक्षक तो वे थे ही। इन सबके पहले एक विशाल कुटुम्ब को संभालने वाले आदर्श परिवार के मुखिया भी थे। श्रीमती सावित्री देवी अग्रवाल, गोपालकृष्ण अग्रवाल, राजधानी के सांसद एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ बृजमोहन अग्रवाल, विजय अग्रवाल, योगेश अग्रवाल, यशवंत अग्रवाल के वे पिता और श्री विष्णु अग्रवाल के बड़े भाई, पूरनलाल अग्रवाल, राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल, कैलाश अग्रवाल, अशोक अग्रवाल के चाचा, एवं देवेंद्र अग्रवाल, गणेश अग्रवाल के ताऊजी थे।
रामजीलाल अग्रवालजी से जो कोई एक बार मिल ले तो उन्हें भूलता नहीं था। ता-उम्र शुभ वस्त्रों में रहे। गांधी टोपी उनकी सुगठित कदकाठी को अधिक सम्मोहक बनाती थी। उनका जीवन संघर्षों की मिसाल था तो सफलता का भी सुंदर प्रतीक था। सक्रियता के दौर तक उन्होंने भरपूर जीवन जीया और दूसरों को प्रेरणा देते रहे। कैसी भी परिस्थितियाँ क्यों न रही हों, व्यक्ति को सदैव अपना आत्मविश्वास बनाये रखना चाहिए। जीवन में दुःख और निराशा को वे पानी का बुलबुला कहते थे जो टिकता नहीं।
प्रत्येक आगंतुकों के लिए सदैव मुस्कुराते हुए उपलब्ध रहना वैसा गुण आज के समय में दिखाई नहीं देता! अपनी सक्रियता के दिनों में वे हरेक के लिए उपलब्ध रहा करते थे। उनसे कोई कभी भी मिल सकता था। आगंतुकों की उम्मीदों को यथा संभव पूरा करने की सकारात्मकता ऐसी कि कोई भी मुग्ध हो जाए। स्वास्थगत समस्याओं से जूझने के दौरान भी व्हील चेयर पर बैठे रहते और स्वयं से मिलने वालों को इशारों से भोजन का आग्रह करते जाते थे - जिसके लिए उनका प्रायः सभी कौतुक करते थे।
इधर दो वर्षों से, जब से वे उम्र की चुनौतियों से जूझ रहे थे उसके पहले उन्हें खाली बैठे हुए कभी देखा नहीं जाता था। यदि कुछ न कर रहे हों, तब भी व्यस्त रहना उनकी जीवन शैली थी। दिनचर्या रात 11 बजे बिस्तर पर जाते समय तक निर्बाध चलती जाती। पहट के 4.30 बजे या 5.00 बजे तक किसी भी परिस्थितियों में बिस्तर छोड़ देने की आदत हमेशा बनाए रखीं। इसके बाद गौ-सेवा से दिन का आरंभ होता था।
आज अग्रवाल समाज यदि वृहद पैमाने पर सक्रिय और एकजुट है तो इसमें उनका योगदान और समर्पण एक बड़ा कारण है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय अनेक जिलों की भरपूर यात्राएँ वे किया करते थे। कारण होता था समाज के प्रत्येक आम-ओ-खास को अग्रसेन जयंती उत्सव हेतु प्रेरित करना। इसके पीछे उनका मानना था कि भागीदारी से ही समाज एकजुट होता है। कालांतर में वे इस बात से प्रसन्न होते थे कि जो बिरवा कभी अपने साथियों के साथ उस काल में रोपा था वह आज आदर्श और अनुकरणीय ऊंचाईयाँ छू रहा है। नए लोगों को यह तथ्य पता न होगा कि विवाह के तुरंत बाद पैतृक ग्राम टीबाबसई ( राजस्थान ) से उन्हें रायपुर आने का अवसर मिला। सन् 1951 का साल था वह और देश आजाद हुए 3 साल ही बीते थे। जब आए तो रामसागरपारा में ही अपने व्यवसायिक स्वप्न पूरा करने में जुट गए। सामाजिक गतिविधियों से उनका जुड़ाव शुरू हुआ सन् 1969 के दौरान।
"समाज बिखरा और बेतरतीब क्यों है?"
यह सवाल उन्हें चुभता जाता था। हालांकि सन् 1961 से ही उनकी दिलचस्पी सामाजिक मामलों को लेकर जाग गई थी। स्व. बिशम्भर दयाल अग्रवाल, स्व. महावीर प्रसाद अग्रवाल आदि उस दौर के वे बड़े नाम थे जिनके साथ काम करने का सिलसिला शुरू हुआ। नौजवान होते हुए भी उनके इरादों में छिपी समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तड़फ उभरने लगी थी। उस दौर में रायपुर शहर में आयोजित एक बड़ा परिचय सम्मेलन समाज सेवा की ओर खुलने वाला उनका पहला बड़ा क़दम था। तब समाज के भीतर इस बात को ठीक तरह से बिठाना कि "सामूहिक विवाह में ही भला है!" एक कठिन काम था। इसी प्रकार मितव्ययिता के लिए उस दौर में प्रेरित करना भी कितना मुश्किल रहा होगा समझना आसान है।
उनकी कामयाबी और सफलता का असर उनके समूचे खानदान और तीसरी , चौथी पीढ़ी तक फैला हुआ दिखाई देता है। लेकिन पीछे मुड़कर देखा जाए तो उनकी संघर्घ गाथा अपने आप में एक मिसाल बनकर सामने आती है।
वे समाज में अनेक अनेक पदों पर वे रहे। जैसे- मध्यप्रदेश अग्रवाल सभा का उपाध्यक्ष पद 1991 से 2003 तक और अग्रवाल सभा में अध्यक्ष दायित्व उन्होंने 4 बार उठाया। तीन मर्तबा तो सर्वसम्मति से उनका नाम तय हुआ और एक मर्तबा लोकतांत्रिक ढंग से यानी जीतकर आये। उस चुनाव को पुराने हमराही आज भी रामजीलाल अग्रवाल के जीवन के दुर्लभतम उदाहरणों में रखकर याद करते हैं। कारण था "हारा हुआ प्रतिद्धदी भी अपना ही भाई है!" यह सोचकर उसे तत्काल रामजीलाल जी ने गले से लगाकर संदेश दिया कि समाज को बिखरने से बचाये रखना है।
महावीर गौशाला के साथ तो उनका नाता रहा। सन् 1967 से गौशाला जाने का प्रारंभ किया। गौशाला का दायित्व अध्यक्ष के रूप में सन् 1988 से संभालना आरंभ किया। बाद में अनेक साल उन्हें यह जिम्मेदारी उठानी पड़ी। गौ सुरक्षा की दृष्टि से भी उनका कार्यकाल बहुतेरी योजनाओं के लिए लोकप्रिय रहा। मसलन शेड, पानी और हरा चारा की भरपूर व्यवस्था। गौशाला में आम भागीदारी बढ़े इस दिशा में सोचने वाले भी वे ही कहलाए। यदि सामाजिक जिम्मेदारियों की ही बात की जाए तो अग्रवाल सभा रायपुर में संरक्षक, छत्तीसगढ़ प्रदेश अग्रवाल महासभा में अध्यक्ष और छत्तीसगढ़ प्रदेश अग्रवाल सम्मेलन में सलाहकार की हैसियत से भी काम किया, करवाया। पदों को लेकर उनका अपना दृष्टिकोण भी उनकी खुली दृष्टि को बयान करता था जैसे कि प्रायः कहते थे कि "अध्यक्ष जैसे पद उनकी नजर में सिर्फ नाम के लिए होते हैं , वरना काम तो सभी को करना पड़ता है।"
उनकी लगन और क्षमता ने उन्हें और भी संस्थाओं, संस्थानों से जोड़ा। पं. र. वि. वि. शुक्ल विश्वविद्यालय , रायपुर ने उन्हें सन् 1991 में कार्यकारिणी के रूप में भी गौरवान्वित किया।
उनके जीवन का लंबा समय समाज के साथ गुजरा। लेकिन जैसे कल की बात हो। आँखों के सामने वह बीता दौर रह-रह कर घूमने लगता है। कैसे एक-एक ईंट जोड़कर समाज को मजबूत करने की कोशिश उन्होंने की थी। संगठन जैसा आधार उस समय विकसित नहीं था, लेकिन नजरें लक्ष्य पर थीं और पीछे हटना या परिस्थितियों से हार जाना मंजूर नहीं रहा। खुली आँखों से सपने देखें जो पूरे होते गये। इसे उनकी कार्यशैली ही कहें कि प्रतिष्ठा और सम्मान भी निरंतर पाया।
तत्कालीन उप राष्ट्रपति श्री भैरो सिंह शेखावत, हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री ओमप्रकाश चौटाला और गुजरात के राज्यपाल से भी सम्मानित हुए। बतौर गौ-सेवक छत्तीसगढ़ राज्य ने भी उन्हें ( राज्य अलंकरण ) सम्मानित किया।
उन्होंने अपने लम्बे अनुशासित जीवन के कुछ मूल मंत्र बना रखे थे। उस दौर में छोटे-मोटे मतभेद तो होते ही थे बावजूद मतभेदों को मनभेद नहीं बनने दिया और विरोधियों के प्रति भी स्नेह भाव रखा।
वास्तविक अर्थों में वे विशाल कुटुम्ब छोड़ गए हैं। सभी संतानें भी सफल सामाजिक, व्यवसायिक जीवन में भी व्यस्त हैं।
जीवन में अच्छा आहार, अच्छा ज्ञान, अच्छी संगत मिलें तो नौजवानों से बेहतर नजीता प्राप्त किया जा सकता है। इस ध्येय वाक्य के साथ अपने समस्त जीवनकाल में पथ प्रदर्शक की हैसियत से ऊर्जा देते रहे।
धूप-छांव से भरी हुई इस खूबसूरत, लेकिन ( उन्हीं के शब्दों को दोहराएं तो ) "श्रम से भरी हुई अपनी इस गहरी यात्रा को जब भी पीछे मुड़कर देखता था तो संतोष का यही धन मुझे अपनी जमा पूंजी नज़र आता रहा।"
- बिलासपुर जिले के ग्राम आमागोहन पहुंचकर मुख्यमंत्री ने किया ग्रामीणों से संवादसुशासन तिहार-2025 के अंतर्गत समाधान शिविर में सीएम ने लिया जायजारायपुर। छत्तीसगढ़ में विष्णु के सुशासन में संवाद और समाधान की कड़ी निरंतर रूप से चल रही है। इस सुशासन की सरकार में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित हर योजना का लाभ हितग्राही को सुनिश्चित कराने हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए प्रदेश के मुखिया श्री विष्णु देव साय की पहल पर सुशासन तिहार-2025 का आयोजन प्रदेशभर में किया जा रहा है।शासन की योजनाओं के क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत से रूबरू होने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय स्वयं लोगों के बीच पहुंच रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सुशासन तिहार-2025 के तहत आमागोहन समाधान शिविर में पहुंचे और ग्रामीणों से सीधा संवाद किया।गौरतलब है कि सुशासन तिहार-2025 के अंतर्गत तीसरे चरण में समाधान शिविर का आयोजन हो रहा है, जिसका उद्देश्य शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की योजनाओं के जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की जानकारी लेना और स्थानीय समस्याओं का त्वरित निवारण करना है। इस कड़ी में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय आज बिलासपुर के कोटा विकासखंड के आमागोहन गांव पहुंचे।मुख्यमंत्री श्री साय ने ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी सरकार सुशासन के माध्यम से हर गांव तक विकास की किरण पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। समाधान शिविर के जरिए हम ग्रामीणों की समस्याओं को सुन रहे हैं और उनका तुरंत समाधान करने का प्रयास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि हमने राज्य में सरकार बनते ही 18 लाख पीएम आवास स्वीकृत किए। हमने महतारी वंदन के तहत माताओं-बहन को आर्थिक सहायता देने का काम किया। प्रदेश में 70 लाख महिलाओं को महतारी वंदन योजना का लाभ मिल रहा है। आज महिला सशक्तीकरण का काम महतारी वंदन के माध्यम से हो रहा है। उन्होंने कहा कि श्रीरामलला दर्शन योजना के जरिए प्रदेश के 22 हजार से ज्यादा लोग श्रीरामलला के दर्शन का लाभ मिल रहा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री तीर्थयात्रा दर्शन योजना के तहत देशभर के धार्मिक स्थलों में दर्शन की व्यवस्था हमने शुरू की है।मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि जो सरकार अच्छा काम करती है, उसी की जनता के बीच जाने की हिम्मत होती है। हम अपने डेढ़ साल का रिपोर्ट कार्ड लेकर जा रहे हैं। अपने काम का फीडबैक ले रहे हैं। इस दौरान उन्होंने कई लाभार्थियों को योजनाओं के तहत प्रमाण पत्र और सहायता राशि वितरित की। इस अवसर पर स्थानीय जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी और बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।यह शिविर छत्तीसगढ़ सरकार की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसमें ग्रामीण विकास और सुशासन को प्राथमिकता दी जा रही है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे शिविरों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को नई गति मिलेगी और लोगों की समस्याओं का समाधान होगा।हितग्राहियों से सीएम श्री साय का सीधा संवाद :आमागोहन समाधान शिविर के दौरान सीएम श्री साय और हितग्राहियों के बीच सीधा संवाद हुआ। इस दौरान ग्रामीण महिला श्रीमती विमला साहू ने बताया कि उन्हें महतारी वंदन के तहत हर महीने एक हजार रुपए मिल रहे हैं, इस पैसे को वो अपने नातिन के नाम पर सुकन्या समृद्धि योजना में राशि बैंक में जमा करती हैं। ग्राम मोहली के श्री छोटेलाल बैगा ने बताया कि पहले उनका कच्चा था, जहां बारिश में पानी टपकने से लेकर जहरीले जीव जंतुओं का खतरा हमेशा बना रहता था, अब पीएम आवास बनने से जीवन आसान हुआ है, अब सिर पर छत सुनिश्चित हो गया है। श्रीमती दिलेश्वरी खुसरो ने बताया घर में दो लोगों का आयुष्मान कार्ड बनने से अब उन्हें बीमार होने की स्थिति में किसी तरह की चिंता नहीं रही।मुख्यमंत्री ने जनहित में घोषणाएं कीमुख्यमंत्री श्री साय ने आमागोहान में समाधान शिविर में बेलगहना में कॉलेज शुरू करने की घोषणा की। वहीं क्षेत्र की आवश्यकता को देखते हुए कहा कि आमागोहन में 32 केवी का विद्युत सब स्टेशन स्थापित किया जाएगा। जनसुविधा को ध्यान में रखते हुए आमागोहन में एक सामुदायिक भवन की घोषणा की गई।मुख्यमंत्री ने ग्रामीणों संग किया भोजन :मुख्यमंत्री ग्रामीणों के साथ बैठकर भोजन किया। मुख्यमंत्री ने स्वयं ग्रामीणों के साथ भोजन करने की मंशा जताई। मुख्यमंत्री के साथ अनीता ध्रुव, कलेशिया बाई, विमला पुरी, छोटेलाल बैगा, दिलेश्वरी खुसरो और अन्य ग्रामीणों के साथ भोजन किया।मुखिया को हाथों से बनाया स्कैच किया भेंट :एमएससी एग्रीकल्चर की पढ़ाई कर रहे 24 वर्षीय देव सिंह खुसरो ने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय को अपने हाथों से बनाया गया पेंसिल स्कैच भेंट किया और कहा कि प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय किसान कल्याण की दिशा में बहुत बेहतर काम कर रहे हैं, जिसके लिए उनके परिवार, गांव के लोगों समेत किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है।इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री अमिताभ जैन, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव श्री सुबोध सिंह, मुख्यमंत्री के सचिव श्री पी. दयानंद सहित अन्य अधिकारीगण उपस्थित थे।एक नज़र में आमागोहन :उल्लेखनीय है कि आमागोहन एक आदिवासी बाहुल्य गांव है। 2073 की आबादी वाले आमागोहन में 567 परिवार निवासरत हैं। चार आंगनबाड़ी के साथ ही गांव में दो प्राथमिक शाला, दो पूर्व माध्यमिक शाला, एक हाईस्कूल, एक हायर सेकेंडरी स्कूल और एक हॉस्टल संचालित है।आमागोहन ग्राम पंचायत में निवासरत परिवार विभिन्न शासकीय योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं। इसमें से सभी 567 निवासरत परिवार के पास राशनकार्ड हैं, जिनमें से 132 परिवार बीपीएल, 114 एपीएल एवं 321 परिवार अंत्योदय राशनकार्डधारी हैं। आवास योजना के कुल 134 हितग्राही परिवार हैं। वहीं उज्ज्वला योजना का लाभ लेने वाले 114 परिवार हैं। 185 हितग्राहियों को विभिन्न पेंशन योजनाओं का लाभ मिल रहा है। बिहान योजना से 20 लाभान्वित हैं। ग्राम पंचायत में स्वच्छ भारत मिशन से 210 स्वीकृत शौचालय हैं। महतारी वंदन योजना का 384 माता-बहनों को मिल रहा है। गांव में 1179 आयुष्मान कार्डधारी हैं।
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-लघु कथा
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
दादी हमेशा तारा की माँ को ताना मारती रहती ..पता नहीं इसकी गोद में बेटा कब खेलेगा और मैं भी अपने कुल दीपक को देख सकूँगी । दो-दो बेटियाँ हो गईं , बहू अब मुझे पोते का मुँह दिखा दे तो मेरा जीवन सफल हो जाए । बेटे के हाथ से अग्नि मिलती है तो सीधे परम धाम की प्राप्ति होती है , मोक्ष मिलता है मोक्ष । बेटियाँ तो पराया धन हैं ,अपने घर चली जायेगी बेटा ही तारेगा सारे कुल को । किसी वेदमंत्र की तरह उनकी बातें शुरू होतीं तो रुकने का नाम न लेतीं ।
तारा को दादी पर बहुत गुस्सा आता, माँ भी किस मिट्टी की बनीं थीं ,चुपचाप उनकी बातें सुनती रहतीं । कोई जवाब भी न देतीं ,पता नहीं वह उन्हें कुछ कहतीं क्यों नहीं । तारा कई बार उन्हें जीभ निकाल कर चिढ़ा भी दिया करती । उसकी छोटी बहन सलोनी तो उनकी शक्ल से नफरत करती थी । जब से पैदा हुए हैं ,यह तो हमें बस कोसा ही करतीं हैं । कभी प्यार भी नहीं करती । बेटा, बेटा ..मम्मी आज दादी की सब्जी में खूब सारी मिर्ची डाल दो वह कहती तो मम्मी पहले खूब हँसती फिर हमें बहुत प्यार से समझातीं--बेटा वह पहले जमाने की हैं ,जैसा उन्होंने सुना है वही बोलती हैं । मेरी तुम्हारी तरह पढ़ी-लिखी होतीं तो ऐसी बातें थोड़ी ही कहतीं । आजकल बेटा-बेटी दोनों को पढ़ने , आगे बढ़ने के समान अवसर मिलते हैं , यह वह नहीं जानतीं । तुम लोग बड़ी होकर उन्हें समझाना , तुम जब डॉक्टर बनकर उनका इलाज करोगी न तो वह जान जाएँगी कि वह कितना गलत सोचतीं थीं बेटियों के बारे में । माँ की यह समझाईश कुछ दिन ही उनके मस्तिष्क में रहती और दादी को माफ कर देते पर दो-चार दिनों के बाद फिर दादी पोती का खामोश युद्ध आरंभ हो जाता । उनके कपड़े छुपा देना , खाने-पीने की चीजों को खराब कर देना , पूजा करते समय उनका चश्मा गायब कर देना ये उनके विरोध जताने के तरीके थे । बरसों तक दादी मम्मी-पापा से बेटे के लिए मिन्नतें करती रहीं फिर पता नहीं इसी में ईश्वर की मर्जी सोचकर चुप्पी साध ली । मम्मी-पापा के लिए बेटियाँ सीप के मोती की तरह अनमोल थीं , उन्होंने उनके लिए सुख-साधन जुटाने में कोई कमी नहीं रखी और तारा ने डॉक्टर , सलोनी ने इंजीनियर बनकर उनका सपना पूरा किया । दादी के देखते -देखते ही जमाना बदला , उन्होंने यह बदलाव देखा कि बेटे वाले उनके होते हुए भी वृद्धाश्रम पहुँचे और जिनकी सिर्फ बेटियाँ थीं उन्होंने अपने माता-पिता की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी ली । भोली-भाली दादी के लिए यह एक अलग तरह की दुनिया थी जिसके बारे में उन्होंने न कहीं पढ़ा न सुना था ।
कोरोना की दूसरी लहर में हजारों ,लाखों मौतें हुईं । लॉक डाउन रहने के कारण लोग दूर-दूर फँसे रहे । कई पिताओं ने अस्पताल में दम तोड़ दिया ,उनके स्वजन उनके अंतिम दर्शन तक नहीं कर सके । बेटे के हाथों अग्नि-संस्कार की साध लिए दादी भी परम धाम को चली गईं । पापा को भी कोरोना हुआ था ,वे स्वयं आइसोलेशन में थे । पर हाँ ,जिस पोती को वे जीवन भर कोसती रहीं उसी ने पी.पी.ई.किट पहने उनकी सेवा की और उन्हे मुखाग्नि भी प्रदान की । पता नहीं दादी को मोक्ष मिला या नहीं पर जाने से पहले उनके मुख पर सन्तुष्टि भरी और शांत -सी मुस्कान की झलक तारा ने अवश्य देखी थी । - आलेख- सी.पी.एस बख्शी, संयुक्त सचिव, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय, भारत सरकारभारत सरकार ने हाल के वर्षों में समावेशी शासन पर अत्यधिक बल दिया है। एक ऐसा शासन, जो भूगोल, पृष्ठभूमि या विश्वास की परवाह किए बिना हर नागरिक तक पहुंचता हो। यह बात वार्षिक हज यात्रा के संचालन में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। एक नियमित प्रशासनिक क्रियाकलाप से दूर, यह एक विशाल मानवीय, कूटनीतिक और तार्किक संचालन है, जो अनेक राष्ट्रों और संस्कृतियों तक फैला हुआ है। सबका साथ, सबका विकास के लोकाचार से प्रेरित होकर सरकार ने हज प्रबंधन को 21वीं सदी की सेवा वितरण के मॉडल के रूप में परिणत कर दिया है।भारत से हर साल लगभग 1.75 लाख तीर्थयात्री पवित्र हज यात्रा पर जाते हैं। सऊदी अरब साम्राज्य (केएसए) के साथ घनिष्ठ समन्वय में, भारतीय हज समिति के माध्यम से चार महीने तक चलने वाले इतने व्यापक और संवेदनशील ऑपरेशन का प्रबंधन करना राष्ट्रीय समन्वय, कूटनीति और सेवा का एक महत्वपूर्ण नमूना है। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के माध्यम से भारत सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि यह आध्यात्मिक यात्रा निर्बाध होने के साथ-साथ गरिमापूर्ण, समावेशी और तकनीकी रूप से सशक्त भी हो। बिना किसी पक्षपात के सभी समुदायों की सेवा करने की अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ, सरकार हज के अनुभव को विदेशों में अब तक किए गए सबसे उन्नत सार्वजनिक सेवा संचालन में से एक के रूप में परिणत कर रही है।हज सुविधा ऐप को भारत सरकार ने 2024 में लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य तीर्थयात्रियों के अनुभव को सरल और बेहतर बनाना था। इसके माध्यम से प्रत्येक तीर्थयात्री से जुड़े राज्य हज निरीक्षकों के विवरण के साथ-साथ निकटतम स्वास्थ्य सेवा और परिवहन सुविधाओं सहित आवास, परिवहन और उड़ान संबंधी विवरण जैसी सूचनाओं तक तत्काल पहुंच कायम करना संभव हो रहा है। यह ऐप शिकायत प्रस्तुत करने, उसकी ट्रैकिंग करने, बैगेज ट्रैकिंग, आपातकालीन एसओएस सुविधाएं, आध्यात्मिक सामग्री और तत्काल सूचनाएं प्राप्त करने में भी सक्षम बनाता है। पिछले साल 67,000 से अधिक तीर्थयात्रियों ने ऐप इंस्टॉल किया था, जो स्वीकृति की उच्च दर का संकेत देता है। केएसए में भारत सरकार द्वारा हाजियों के लिए स्थापित प्रशासनिक ढांचे द्वारा 8000 से अधिक शिकायतें और 2000 से अधिक एसओएस उठाए गए और उनका जवाब दिया गया।ऐप की फीडबैक-संचालित डिजाइन तीर्थयात्रा की पूरी अवधि के दौरान निरंतर सुधार की सुविधा देती है। हज-2024 के दौरान ऐप से प्राप्त जानकारी ने 2025 के लिए हज नीति और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण इनपुट के रूप में काम किया। ये डेटा-समर्थित निर्णय भारत सरकार के अपने नागरिकों के लिए उत्तरदायी शासन के मॉडल का उदाहरण हैं। 2024 में इस सफलता को आगे बढ़ाते हुए, सरकार ने अब हज सुविधा ऐप 2.0 लॉन्च किया है। यह हज के पूरे दायरे को कवर करता है और तीर्थयात्रियों के लिए वास्तव में एंड-टू-एंड डिजिटल समाधान तैयार करता है।हज 2.0 में हज यात्रियों के डिजिटल आवेदन, चयन (कुर्रा), प्रतीक्षा सूची का प्रकाशन, भुगतान एकीकरण, अदाही कूपन जारी करने और रद्दीकरण तथा धन वापसी की प्रक्रियाओं से लेकर हज की पूरी प्रक्रिया शामिल है। अपडेट किया गया ऐप बैंकिंग नेटवर्क के साथ सहज एकीकरण प्रदान करता है, जिससे तीर्थयात्री यूपीआई, डेबिट/क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से भुगतान कर सकते हैं। यात्रा के दौरान सुविधा के लिए तत्काल उड़ान संबंधी सूची और इलेक्ट्रॉनिक बोर्डिंग पास भी प्रदान किए जाते हैं। ऐप को पेडोमीटर सुविधा के साथ संवर्धित किया गया है। इसका उद्देश्य तीर्थयात्रियों में पैदल चलने की आदत डालना है, ताकि उनमें आगे की कठिन यात्रा के लिए आवश्यक सहनशक्ति विकसित हो सके। तीर्थयात्रियों की सहायता के लिए तत्काल मौसम के अपडेट भी जोड़े गए हैं, ताकि तीर्थयात्रियों को जलवायु संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में मदद मिल सके और साथ ही उन्हें स्वस्थ और हाइड्रेटेड रखा जा सके।भारतीय हज चिकित्सा दल को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और यह मक्का एवं मदीना में हज के दौरान स्थापित क्षेत्रीय अस्पतालों तथा औषधालयों के नेटवर्क के माध्यम से तीर्थयात्रियों को विश्व स्तरीय चिकित्सा सेवाएं प्रदान करता है। एम्बुलेंस का एक नेटवर्क आपातकालीन चिकित्सा सहायता प्रदान करता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के ई-हेल्थ कार्ड और ई-हॉस्पिटल मॉड्यूल को इस वर्ष ऐप के साथ जोड़ दिया गया है। इसका लक्ष्य तीर्थयात्रियों के लिए निर्बाध प्रवेश और उपचार सुनिश्चित करना है। इससे डॉक्टरों को उपचार के लिए उपलब्ध डेटा की गुणवत्ता में भी वृद्धि होगी और हज 2025 के लिए तीर्थयात्रियों को समुचित चिकित्सा सेवा प्रदान की जाएगी। ऐप की बहुविध सराहनीय लगेज ट्रैकिंग प्रणाली को आरएफआईडी आधारित टैगिंग के साथ और उन्नत किया गया है। यह गुम हुए सामान को ट्रैक करने की प्रक्रिया को सरल बनाएगा और उच्चतम स्तर की सेवा सुनिश्चित करेगा।मीना, अराफात और मुजदलिफा सहित माशाएर क्षेत्र की डिजिटल मैपिंग द्वारा हज अनुष्ठानों के नेविगेशन को बदल दिया गया है। तीर्थयात्रियों को उनके गंतव्य तक मार्गदर्शन करने और रेगिस्तान की अत्यधिक गर्मी में खो जाने के जोखिम को कम करने के लिए शिविर स्थलों की पहचान की जाती है और मानचित्र पर ट्रैक किया जाता है। नमाज अलार्म, किबला कम्पास और अस्पतालों, बस स्टॉप, सेवा केंद्रों और भारतीय मिशन कार्यालयों की स्थान-आधारित मैपिंग जैसी सुविधाएं तीर्थयात्रियों के समग्र अनुभव और सुविधा को काफी समृद्ध करती हैं।एआई द्वारा संचालित एक चैटबॉट को डिजिटल पर्सनल असिस्टेंट के रूप में शामिल किया गया है। यह चैटबॉट संवादात्मक लहजे में नियमित प्रश्नों का उत्तर देने, तत्काल सहायता और सलाह प्रदान करने के लिए है। सुविधाओं का यह समग्र सेट सरकार की मंशा का संकेत है कि वह न केवल सेवा वितरण के साधन के रूप में प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना चाहती है, बल्कि एक ऐसे उपकरण के रूप में भी है जो आध्यात्मिक पथ पर चलने वालों सहित सभी के लिए सम्मान, सुविधा और सक्षमता को सशक्त बनाता है।हज सुविधा ऐप 2.0 भारत के डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर में अग्रणी है और यह भारत सरकार के इस दृष्टिकोण का प्रमाण है कि शासन प्रत्येक नागरिक तक सार्थक तरीके से पहुंचे। प्रौद्योगिकी की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, भारत तीर्थयात्रियों के प्रबंधन के लिए नए अंतरराष्ट्रीय मानक स्थापित कर रहा है, जिससे अपने नागरिकों को निर्बाध, सुरक्षित और आध्यात्मिक रूप से बेहतर अनुभव मिल रहा है।(लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)
- आलेख- श्री अश्विनी वैष्णव,केंद्रीय रेल, सूचना एवं प्रसारण और प्रौद्योगिकी तंत्रज्ञान मंत्रीपहलगाम में हुआ नरसंहार केवल निर्दोष लोगों के जीवन पर हमला नहीं था- यह भारत की अंतरात्मा पर भी किया गया आक्रमण था। इसके प्रत्युत्तर में भारत ने आतंकवाद-रोधी कार्रवाई की नियम पुस्तिका के पुनर्लेखन का निर्णय लिया। ऑपरेशन सिंदूर राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों की रक्षा के लिए मोदी सरकार की न बर्दाश्त करने और कोई समझौता नहीं करने की नीति यानी मोदी सिद्धांत की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति है।प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने टेलीविजन पर राष्ट्र के नाम संबोधन में आतंकवाद से निपटने के लिए अपने इस सिद्धांत की रूपरेखा प्रस्तुत की। हाल की घटनाओं के आधार पर निर्मित यह सिद्धांत आतंकवाद और बाहरी खतरों पर भारत की प्रतिक्रिया के लिए निर्णायक तौर-तरीके निर्धारित करता है।प्रधानमंत्री मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि सिंधु जल संधि को निलंबित करने से लेकर आतंकी शिविरों पर सैन्य प्रहार शुरू करने तक का हर कदम सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध और समयबद्ध तरीके से उठाया जाए और संचालित हो। इस संदर्भ में सरकार ने उत्तेजना में कार्रवाई करने के बजाय रणनीतिक रूप से कार्रवाई के रास्ते को चुना। इससे पाकिस्तान और आतंकी समूह भारत की प्रतिक्रिया का अनुमान नहीं लगा सके। साथ ही, ऑपरेशन सिंदूर को आश्चर्यजनक तरीके से, सटीकता और पूर्ण प्रभाव के साथ अंजाम देना भी सुनिश्चित हो सका।नई सामान्य स्थिति है ऑपरेशन सिंदूरप्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि "ऑपरेशन सिंदूर अब आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत की औपचारिक नीति को व्यक्त करता है। यह भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण में निर्णायक बदलाव का प्रतीक है।" उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन ने आतंकवाद-रोधी उपायों का नया मानक स्थापित किया है जो नई सामान्य स्थिति को प्रकट करता है।प्रधानमंत्री ने संबोधन में यह भी कहा कि, “ऑपरेशन सिंदूर केवल एक नाम नहीं है, बल्कि यह देश के लाखों लोगों की भावनाओं का प्रतिबिंब है।” इसके माध्यम से दुनिया को भारत की ओर से यह संदेश दिया गया है कि बर्बरता का सामना संतुलित और सटीक बल प्रयोग से किया जाएगा। आतंकवाद के साथ पड़ोसी देश की सांठ-गांठ अब कूटनीतिक आवरण या परमाणु हथियारों की धमकियों से जुड़ी बयानबाजी के पीछे नहीं छिप सकेगी।मोदी सिद्धांत के तीन स्तंभइस सिद्धांत के पहले प्रमुख स्तंभ में आतंकवादी घटनाओं का भारत की शर्तों पर निर्णायक उत्तर निहित है- भारत पर किसी भी आतंकवादी हमले का भारत की शर्तों पर ही करारा जवाब दिया जाएगा। देश आतंकवाद की जड़ों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि इसकी साजिश रचने वाले और प्रायोजक अपनी करनी का फल अवश्य भुगतें।इस सिद्धांत का दूसरा स्तंभ परमाणु हथियारों की धमकी देकर डराए जाने के प्रयासों के प्रति शून्य सहनशीलता है। इसका अर्थ है- भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकियों या दबाव के आगे बिल्कुल नहीं झुकेगा। इसमें इस बात पर भी बल दिया गया है कि परमाणु हथियारों को ढाल बनाकर आतंकवाद का बचाव करने के किसी भी प्रयास का सटीक और निर्णायक कार्रवाई से जवाब दिया जाएगा।इस सिद्धांत का तीसरा स्तंभ यह स्पष्ट करता है कि आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के बीच कोई अंतर नहीं है। ऐसी किसी भी घटना के संबंध में भारत न केवल आतंकवादियों को बल्कि उनके समर्थकों- दोनों को उत्तरदायी ठहराएगा। सिद्धांत में यह स्पष्ट किया गया है कि आतंकवादियों को शरण देने वालों, उन्हें धन देने या उनके लिए धन की व्यवस्था करने वालों या आतंकवाद का समर्थन करने वालों को भी उनके समान ही परिणाम भुगतने पड़ेंगे।प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को वैश्विक संदर्भ में प्रस्तुत किया है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि आतंकवाद का समर्थन करने और उनको बढ़ावा देने वाले राष्ट्र अंततः अपना विनाश स्वयं कर लेंगे। उन्होंने उनसे आग्रह किया है कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, वे अपने आतंकवादी ढांचे को नष्ट कर दें। श्री मोदी ने कहा कि नया सिद्धांत राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति भारत के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाता है और आतंकवाद के विरुद्ध ठोस एवं दृढ़ रुख की नज़ीर पेश करता है। उन्होंने कहा कि सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करेगी कि भारत की संप्रभुता से कोई समझौता न हो।आतंकवाद को लेकर अब रुख पहले जैसा नहीं होगायह पहली बार नहीं है जब भारत ने स्पष्ट रूप से साहस के साथ कार्रवाई की है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर बालाकोट और अब ऑपरेशन सिंदूर तक भारत की शर्तों पर आतंकवाद के विरुद्ध त्वरित और निर्णायक कार्रवाई का स्पष्ट सिद्धांत बनाया है। इसमें प्रत्येक कदम ने नया मानदंड निर्मित किया है और उकसाए जाने पर सटीकता के साथ कार्रवाई करने के भारत के संकल्प को प्रदर्शित किया है।इस बार भारत का संदेश स्पष्ट है - आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते। अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी गई है। द्विपक्षीय व्यापार निलंबित कर दिया गया है। वीजा रद्द कर दिए गए हैं। सिंधु जल संधि को रोक दिया गया है। प्रधानमंत्री के शब्दों में, "पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।" आतंकवाद का समर्थन करना आर्थिक और कूटनीतिक रूप से महंगा पड़ेगा, यह अब वास्तविकता है और इसमें वृद्धि हो रही है।इतिहास याद रखेगा, पहलगाम में भारत की प्रतिक्रिया संयमित और नियमानुकूल रही है। आतंकवाद के विरुद्ध हमारी प्रतिक्रिया याद रखी जाएगी। इसके विरुद्ध भारत ने मजबूती से खड़े होकर एक सुर में बात की और एकता की शक्ति से आक्रमण किया। ऑपरेशन सिंदूर अंत नहीं है - यह स्पष्टता, साहस और आतंकवाद से निपटने के लिए हमारे संकल्प के एक नए युग का आरंभ है।