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- रविन्द्र चौधरी/ डॉ. ओम डहरियारायपुर। नैसर्गिक सुंदरता के लिए विख्यात जशपुर के मयाली और मधेश्वर पहाड़ की देश-दुनिया में बनी अलग पहचाननैसर्गिक सुंदरता के लिए विख्यात जशपुर जिले के पर्यटन स्थल मयाली की देश-दुनिया मे एक अलग पहचान बनते जा रही है। वहीं हाल ही में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपनी जगह बनाने वाले यहां के मधेश्वर पहाड़ ”लार्जेस्ट नेचुरल शिवलिंग” के रूप में जिले का नाम रोशन हो रहा है। जशपुर के बदलती हुई तस्वीर, आज और कल फिल्म का यह मशहूर गाना ये वदियां ये फिजाएं बुला रही हैं तुम्हें......ऐसा प्रतीत हो रहा है कि किसी खूबसूरत जगह को निहारने के लिए प्राकृतिक खुबसूरती समेटें हुए यह पहाड़, यह नदियां और वादियों की प्राकृतिक खूबसूरती समेटे जशपुर की खूबसूरत वादियों की पुकारती आवाज अब छत्तीसगढ सहित देश-दुनिया के पर्यटकों को सुनाई दे रही है।वैसे तो सुरमयी वातावरण, प्राकृतिक छटा से घिरे जशपुर में प्रकृति की खूबसूरती दिखाते अनेकों पर्यटन स्थल है। इसी प्राकृतिक नैसर्गिक सुंदरता के लिए विख्यात मयाली में 22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में आयोजित सरगुजा क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक ने इसे पुनः चर्चा के केंद्रबिंदु में ले आया। वहीं छत्तीसगढ़ प्रवास पर आई राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु के साथ नवा रायपुर स्थित मुख्यमंत्री निवास में मुख्यमंत्री श्री साय और उनके परिवारजनों व अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ हुई एक ग्रुप फोटो जिसके बैकड्रॉप में जशपुर का खूबसूरत मधेश्वर पहाड़ प्रदर्शित था। पूरी दुनिया में फैली इस छायाचित्र ने लोगों को जशपुर की प्राकृतिक सुंदरता की ओर ध्यान खींचा है।मधेश्वर पहाड़ ”लार्जेस्ट नेचुरल शिवलिंग’ के रूप में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआमुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के प्रयासों से मधेश्वर पहाड़ को शिवलिंग की विश्व की सबसे बड़ी प्राकृतिक प्रतिकृति के रूप में मान्यता मिली है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान मिला है। रिकॉर्ड बुक में ’लार्जेस्ट नेचुरल फैक्सिमिली ऑफ शिवलिंग’ के रूप में मधेश्वर पहाड़ को दर्ज किया गया है। जशपुर की पर्यटन स्थलों की जानकारी के लिए पर्यटन वेबसाइटhttps://www.easemytrip.comमें जगह दी गई है। जशपुर इस पर्यटन वेबसाइट में शामिल होने वाला प्रदेश का पहला जिला बन गया है। इस बेबसाइट के माध्यम से जशपुर की नैसर्गिक खूबसूरती की जानकारी पर्यटकों को आसानी से मिल रही है।कुनकुरी ब्लॉक में स्थित मयाली जिला मुख्यालय से लगभग 32 किलोमीटर दूरी पर है। जिला मुख्यालय से एनएच-43 सड़कमार्ग से जाते समय चरईडांड चौक पड़ता है। यहां से बगीचा रोड में कुछ ही दूरी पर मयाली नेचर कैंप स्थित है। यहां से सामने दिखाई देती मधेश्वर महादेव पहाड़ को विश्व का प्राकृतिक तौर पर निर्मित विशालतम शिवलिंग की मान्यता मिली है। इस शिवलिंग पर लोगों की बड़ी आस्था है। यहाँ सैलानी दूर-दूर से आते हैं और प्रकृति से अपने आप को जोड़ते हैं। मधेश्वर पहाड़ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पर्वतारोहण और एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए भी लोकप्रिय होता जा रहा है।मयाली स्वदेश दर्शन योजना में शामिल, 10 करोड़ से होगा पर्यटन के रूप में विकसितमयाली नेचर कैंप से एक ओर डैम की खूबसूरती तो दूसरी ओर विशालतम प्राकृतिक शिवलिंग मधेश्वर पहाड़ का विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है। चारों ओर फैली हरियाली से इसकी सुंदरता और बढ़ जाती है। मयाली डेम में बोटिंग की भी सुविधा है। भारी संख्या में लोग यहां की खूबसूरती को निहारने के साथ ही बोटिंग का आनंद लेने के लिए भी आते हैं। यहां पर्यटकों के रात्रि विश्राम की सुविधा के लिए रिसॉर्ट बनाएं गए हैं। नेचर कैंप में बटरफलाई पार्क के बाद यहां कैक्टस पार्क बनाने की योजना तैयार की गई है। मयाली नेचर कैंप को स्वदेश दर्शन योजना में शामिल करने के साथ ही पर्यटन विभाग ने मयाली के विकास के लिए 10 करोड़ रूपये की स्वीकृति प्रदान की गई है।
- लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)काम परनिर्माणाधीन इमारत में मजदूरी करती इमरती आज अपने चार वर्षीय बेटे दीनू को भी साथ ले आई थी । उसकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी तो घर पर अकेले छोड़ने का मन नहीं हुआ । बाकी दिन तो उसके घर पहुँचने तक मुहल्ले में बच्चों के साथ खेलता रहता था । सिर पर ईंट उठाते वक्त थोड़ा दीनू की तरफ देखकर आश्वस्त हो जाती और अपने काम पर लग जाती । बच्चे की बालसुलभ क्रीड़ाएँ माँ के ममतामयी हृदय को आनंद से विलोडित कर देतीं और उसकी सारी थकान दूर हो जातीं । जहाँ दीनू और दो-एक बच्चे खेल रहे थे जाने कैसे कहाँ से एक लकड़ी का पट्टा जोर से गिरा.. और इमरती की दुनिया वीरान कर गया । इमरती अपनी आँखों के आगे उजड़ती कोख देखकर पथरा गई थी । जिसके लिए काम पर आई थी , काम उसे ही निगल गया था ।--एक मिनट की जिंदगीअभी - अभी स्वर्ग पहुँची रितेश की आत्मा से धर्मराज ने प्रश्न पूछा - " यदि तुम्हें एक मिनट की जिंदगी दी जायेगी तो तुम अपनी किस भूल को सुधारना चाहोगे ?" रितेश ने एक गहरी साँस भरते हुए उत्तर दिया - " उस पल को जब मैंने सिग्नल रेड होते हुए देखकर भी अपनी बाइक दौड़ा दी थी और एक कार से टकरा गया था । मेरी लापरवाही की वजह से उस कार वाले की भी मौत हो गई थी और दो घरों के चिराग एक साथ बुझ गये थे । काश! मैं एक मिनट रुक गया होता…..--स्टेटस ( लघुकथा )रेल के स्लीपर क्लास में वह अभी आकर बैठी थी । सबकी नजरें बरबस ही उधर चलीं गईं , वह लग ही रही थीं संभ्रांत उच्च वर्ग की महिला । अपनी सीट पर बैठते वक्त नाक-भौं सिकोड़ कर ,सैनीटाइजर छिड़क कर दर्शा ही दिया था कि मजबूरी में यह यात्रा कर रहीं हैं । ऊपर से किसी से फोन पर बात करके स्पष्ट कर दिया कि ए. सी. में आरक्षण नहीं मिलने के कारण जो भी मिला उसमें जाना पड़ रहा है , वरना स्लीपर क्लास में चढ़ना उनके स्टेटस के अनुकूल नहीं है । कुछ समय पश्चात अगले स्टेशन में एक अपाहिज चढ़ा और उसने अपनी कातर दृष्टि… मदद की उम्मीद में डिब्बे की ओर घुमाई । स्लीपर क्लास के दिलदार यात्रियों ने तुरंत उसे कुछ न कुछ धनराशि देकर उससे सहानुभूति दर्शाई । वह महिला चुपचाप बैठी रही….सामान्य जीवन-शैली जीने वाले उन दिलदारों का स्टेटस उनसे कहीं अधिक ऊँचा हो गया था ।
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)भीड़ है पर सूना नगर लगता है।बिना तुम्हारे दिन दोपहर लगता है।सुस्वादु लगे रूखी रोटी संग तुम्हारे।तुम नहीं छप्पन भोग जहर लगता है।।प्रीति बुहारे जीवन पथ सुरभित कर दे।चलें अकेले कंटकित डगर लगता है।।धरती सूरज चांद सितारे सृष्टि भली।आकंठ प्रेम में डूबे अपना ही घर लगता है।।जहां मिले हम तीर्थ धाम गंगा यमुना।पहिया वक्त का जाए अब ठहर लगता है।।
- -राजकपूर की सौंवी जयंती पर विशेषआलेख- प्रशांत शर्माभारतीय फिल्में आम आदमी का व्यक्तिगत गीत है। भारतीय सिनेमा और अभिनेता राजकपूर उसके श्रेष्ठतम गायकों में एक हैं। जब भी भारतीय फिल्मों के इतिहास का जिक्र होगा, तब राजकपूर की फिल्में और उनका कालखंड इसके खास पन्नों में दर्ज रहेगा। आजाद भारत के साथ राजकपूर की सृजन यात्रा भी शुरू होती है। उनकी पहली फिल्म आग 1948 में रिलीज हुई थी। वहीं उनकी आखिरी फिल्म राम तेरी गंगा मैली, 15 अगस्त 1985 को प्रदर्शित हुई।अपनी पहली फिल्म आग के नायक की तरह राजकपूर जीवन में कुछ असाधारण कर गुजरना चाहते थे। जलती हुई महत्वाकांक्षा उनका र्ईंधन बनी। उनके पिता पृथ्वीराज उनकी प्रेरणा के तीसरे स्रोत थे। राजकपूर की अपने पिता के प्रति असीम श्रद्धा थी और वे हमेशा ऐसा काम करना चाहते थे जिससे उनके पिता का गौरव बढ़े। ऐसा हुआ भी।राजकपूर को सफेद रंग से काफी प्रेम था और उनकी पत्नी कृष्णा हो या फिर फिल्मों में उनकी नायिका ज्यादातर सफेद लिबास में ही नजर आती थीं। यह राजकपूर का कृष्णा के प्रति पहली नजर का प्रेम ही था, जो ताउम्र बना रहा। दरअसल राजकपूर ने जब पहली बार रीवा में कृष्णा को देखा तो वे सफेद साड़ी में काफी खूबसूरत नजर आ रही थीं। राजकपूर उन्हें दिल दे बैठे और फिर उनकी शादी भी हो गई। बताते हैं कि राज कपूर की शाही शादी हुई थी। मुंबई से बॉम्बे-हावड़ा ट्रेन से पहले बारात मध्य प्रदेश के सतना पहुंची। सतना से बारात को रीवा तक लाने के लिए रीवा रियासत के राजा और आईजी करतार नाथ ने वीवीआईपी गाडिय़ों का काफिले भेजा था। हजारों लोग इस शादी के साक्षी बने थे। कृष्णा रीवा के आईजी करतारनाथ मल्होत्रा की बेटी थीं। रीवा में एक नाटक के मंचन के दौरान करतार नाथ और राजकपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर की गहरी दोस्ती हो गई थी। उस वक्त राजकपूर मात्र 22 साल के थे। पृथ्वीराज कपूर ने आईजी करतार नाथ के साथ अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का फैसला कर चुके थे। उसी दौरान राजकपूर ने कृष्णा को पहली बार देखा और दिल हार बैठे। पिता से प्रस्ताव आने के बाद राजकपूर ने तुरंत ही शादी के लिए हां कह दिया। 12 मई 1946 को जब दोनों शादी के बंधन में बंधे, तो यह रीवा की ऐतिहासिक शादियों में से एक साबित हुई। कृष्णा और राज कूपर की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी गई।कहा जाता है कि कृष्णा मल्होत्रा से विवाह के बाद तो जैसे राज कपूर की किस्मत ही चमक गई। एक-एक कर राज कपूर की फिल्में सुपरहिट होने लगीं। धीरे-धीरे पूरी दुनिया में राज कपूर प्रसिद्ध होते गए और उनको बॉलीवुड का शोमैन कहा जाने लगा। शो मैन क्योंकि वे अपनी फिल्मों में सपने बुनते थे और उसे काफी भव्यता के साथ प्रदर्शित करते थे।राजकपूर ने काफी नाम कमाया, लेकिन इस सफलता के बीच उनका असली नाम कहीं खो गया। पिता पृथ्वीराज ने अपने पहले बेटे का नाम रणबीर राज रखने का फैसला किया था। 14 दिसंबर 1924 को जब उनकी पहली संतान ने इस दुनिया में कदम रखा तो किसी कारण से यह नाम बदलकर सृष्टि नाथ कपूर हो गया, लेकिन फिल्मों में इस बेटे ने राजकपूर के नाम से कदम रखा और अपने अभिनय, जुनून, शैली से एक अलग ही इतिहास रच दिया। उन्हीं सृष्टि नाथ कपूर को पूरी दुनिया आज शोमैन राज कपूर के नाम से जानती है।
- राजकपूर की जन्म शताब्दी पर विशेषआलेख- प्रशांत शर्माभारतीय सिनेमा जगत के शो मैन कहे जाने वाले राजकपूर की 14 दिसंबर को सौंवी बर्थ एनिवर्सरी है। उनके सम्मान में उनका परिवार 13 से 15 दिसंबर तक फिल्म फेस्टिवल का आयोजन कर रहा है। जिसमें दिग्गज एक्टर की 100 फिल्मों को 40 शहरों में दिखाया जाएगा।खैर जन्म शताब्दी पर राजकपूर से जुड़ी बहुत सी बातें एक बार फिर पढऩे और सुनने को मिलती रहेंगी। जब उनका निधन हुआ वे 63 साल के थे। अभिनय से उन्होंने दूरी बना ली थी और निर्देशन में जोर दे रहे थे। बतौर निर्देशक उनकी अंतिम फिल्म राम तेरी गंगा मैली थी। यह फिल्म उन्होंने बेटे राजीव कपूर को लांच करने के लिए बनाई थी। फिल्म अपने कुछ दृश्यों के कारण काफी विवादों में रही। हालांकि 1985 में यह साल की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म साबित हुई। इसके बाद उन्होंने हिना फिल्म की कल्पना को साकार किया, लेकिन उनकी मौत के बाद यह फिल्म उनके बेटे रणधीर ने पूरी की।राजकपूर की निजी जिंदगीे से बात करें, तो पांच बच्चों का उनका परिवार आज काफी बड़ा हो चुका है। पत्नी कृष्णा से उनकी पांच संतानें हुर्ई। उनके परिवार में बेटियों रितु नंदा और रीमा जैन के अलावा तीन बेटेें रणधीर, ऋषि और राजीव कपूर हुए। तीनों बेटों ने अभिनय जगत को अपनाया। रणधीर की दोनों बेटियों करिश्मा और करीना ने भी अभिनय जगत में खूब नाम कमाया। रणधीर ने अभिनेत्री बबीता से शादी की। आज रणधीर 77 साल के हो चुके हैं, लेकिन बरसों से वे बबीता से अलग रह रहे हैं।ऋषि कपूर ने अपने परिवार की परंपरा को कायम रखते हुए अपनी बेटी रिद्धिमा को सुनहरे परदे से दूर रखा, लेकिन बेटे रणबीर कपूर को अभिनय जगत में काफी लोकप्रियता हासिल हुई है। ऋषि ने अपनी को -स्टार नीतू सिंह से विवाह किया। ऋषि कैंसर से पीडि़त थे और वर्ष 2000 में 67 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।वहीं तीसरे और सबसे छोटे बेटे राजीव कपूर अपने अभिनय कॅरिअर में सफल नहीं हो पाए और गुमनामी में खो गए। वर्ष 2001 में, उन्होंने आर्किटेक्ट आरती सभरवाल से शादी की, जो कनाडा के वॉन में एक लॉ फर्म में पैरालीगल के रूप में काम कर रही थीं। 2003 में उनका तलाक हो गया। फिर वे भाई रणबीर के साथ रहने लगे। 2021 को उनका दिल का दौरा पडऩे के कारण 58 साल की उम्र में निधन हो गया।राजकपूर की बड़ी बेटी रितु नंदा एक एंटरप्रेन्योर थीं। उनकी शादी एस्कॉट्र्स लिमिटेड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर राजन नंदा से हुई थी। राजकपूर को घर की बेटियों का फिल्मों में काम करना पसंद नहीं था। इसलिए रितु ने बिजनेस में किस्मत आजमाया। अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता बच्चन की शादी रितु के बेटे निखिल से हुई है। उनके दो बच्चे अगस्त्य नंदा और नव्या नवेली नंदा हैं, जो आज काफी लोकप्रिय हैं। रितु लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन से जुड़ी हुई थीं। बेहद टैलेंटेड रितु के नाम एक दिन में 17 हजार पेंशन पॉलिसी बेचने का भी रिकॉर्ड है, जो गिनीज बुक रिकॉर्ड में भी दर्ज है। रितु को कैंसर था और 71 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।रही बात रीमा की तो राजकपूर उनकी शादी अभिनेता कुमार गौरव से करना चाहते थे। कुमार गौरव के पिता राजेन्द्र कुमार और राजकपूर अच्छे दोस्त थे। सगाई भी हो गई थी, लेकिन एक दिन कुमार गौरव ने यह सगाई तोड़ दी और सुनील दत्त- नरगिस की बेटी नम्रता से शादी कर ली। बाद में रीमा की शादी बिजनेसमैन मनोज जैन से हुई और उनके दो बेटे हैं- अरमान और आदर जैन। अरमान ने कुछ फिल्में की हैं, पर अब तक सफल नहीं हो पाए हैं। रीमा 72 साल की हो चुकी हैं, लेकिन आज भी उनकी खूबसूरती और उनका स्टाइलिश लुक लोगों को आकर्षित करता है।हाल में पूरा परिवार उस वक्त साथ नजर आया, जब वे राजकपूर की जन्म शताब्दी पर होने वाले समारोह का निमंत्रण देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने पहुंचे। पूरे परिवार ने प्रधानमंत्री के साथ फोटो क्लिक की। सोशल मीडिया यह काफी वायरल भी हुआ।
- - सुभाष घई, भारतीय फिल्मकार एवं निर्माताइस साल का भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) पिछले हफ्ते, 28 नवंबर 2024 को संपन्न हुआ। फिल्मों और इससे संबद्ध उद्योग से जुड़ी सभी चीजों के इस भव्य समारोह में, मुख्य आकर्षण भारतीय सिनेमा की चार महान हस्तियों -बहुमुखी अभिनेता अक्किनेनी नागेश्वर राव, महान शोमैन राज कपूर, शाश्वत आवाज मोहम्मद रफी और प्रतिभाशाली कहानीकार तपन सिन्हा - के कार्यों का एक ऐतिहासिक उत्सव था। इन महान दिग्गजों ने अपनी असाधारण प्रतिभा एवं दृष्टिकोण से फिल्म उद्योग को गौरवान्वित किया और एक ऐसा अमिट जादू बिखेरा जिसने फिल्म निर्माताओं, संगीतकारों और दर्शकों की कई पीढ़ियों को समान रूप से प्रेरित किया है। उनकी विरासतें युगों-युगों तक गूंजती रहेंगी।भारतीय सिनेमा के दिग्गज कलाकार राज कपूरएक अभिनेता, निर्देशक, स्टूडियो मालिक और निर्माता के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाने जाते थे। उनकी फिल्में अक्सर सामाजिक मुद्दों को हास्य एवं संवेदना के साथ चित्रित करती थीं, जिससे वे आम आदमी की आवाज बन गए। अपनी मार्मिक कथाओं और गहरी सामाजिक अंतर्दृष्टि के लिए जाने जाने वाले तपन सिन्हा बंगाल के एक निपुण फिल्मकार थे, जिनका काम अक्सर आम लोगों के संघर्षों को उजागर करता था। कलात्मकता को सामाजिक टिप्पणी के साथ मिश्रित करने की उनकी क्षमता ने उनकी फिल्मों को कालजयी बना दिया है। अक्किनेनी नागेश्वर राव, जिन्हें एएनआर के नाम से जाना जाता है, तेलुगु सिनेमा की एक महान हस्ती थे। उन्हें उनकी उल्लेखनीय अनुकूलनशीलता एवंसशक्त अभिनय के लिए जाना जाता है। छह दशकों से अधिक के अपने शानदार करियर में उन्होंने अनगिनत अविस्मरणीय भूमिकाएं निभाईं। सबसे लोकप्रिय भारतीय पार्श्व गायकों में से एक, मोहम्मद रफी अपनी असाधारण आवाज और अभिव्यंजक गायन शैली के लिए प्रसिद्ध रहे। उनके सदाबहार गीतों ने विभिन्न पीढ़ियों और भाषाओं के श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है।एक फिल्म महोत्सव सही अर्थों में तभी सार्थक बन जाता है, जब वह अपने इतिहास पर गौर करता है और इसकी शुरुआत को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। आईएफएफआई के 55वें संस्करण ने न केवल इन हस्तियों की सिनेमाई उपलब्धियों का उत्सव मनाया, बल्कि फिल्म प्रेमियों की नई पीढ़ी को उनकी विरासत से परिचित कराने के लिए एक मंच के रूप में भी काम किया। उनकी उल्लेखनीय विरासतों के शताब्दी वर्ष को मनाते हुए, इस फिल्म महोत्सव ने सावधानीपूर्वक आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों, स्क्रीनिंग और प्रदर्शनों के माध्यम से उनके अद्वितीय योगदानों को सामने रखा।रंगारंग उद्घाटन समारोह के मंच से, शताब्दी मनाने वाले इस महोत्सव ने पहले दिन से ही अपना रंग बिखेरना शुरू कर दिया। एक शक्तिशाली ऑडियो-विज़ुअल प्रस्तुति में एएनआर, राज कपूर, मोहम्मद रफी और तपन सिन्हा की यात्रा का वर्णन किया गया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उस यादगार शाम को काव्यात्मक स्पर्श देते हुए, अभिनेता बोमन ईरानी ने प्रत्येक सम्मानित व्यक्ति को समर्पित भावपूर्ण कविताएं सुनाईं, जो भारतीय सिनेमा पर उनके गहरे प्रभाव को रेखांकित करती हैं। इस समारोह का एक अनूठा आकर्षण इन हस्तियों को समर्पित एक विशेष डाक टिकट संग्रह का विमोचन था। इन चार दिग्गजों की प्रतिष्ठित छवियों को प्रदर्शित करने वाले, इस स्मारक डाक टिकट संग्रह ने सिनेमा और संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदानों को अमर बना दिया।बेहद सराहनीय बात यह रही कि इस महोत्सव में इन महान हस्तियों के परिवार के सदस्यों, सहयोगियों और फिल्म उद्योग के दिग्गजों के साथ पैनल चर्चा व बातचीत के सत्र की एक श्रृंखला पेश की गई। इन बातचीतों ने इन दिग्गजों के व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन से जुड़ी अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की। प्रसिद्ध अभिनेत्री खुशबू सुंदर और अक्किनेनी नागेश्वर राव के बेटे एवं अभिनेता नागार्जुन अक्किनेनी ने तेलुगु सिनेमा को आकार देने में इस बहुमुखी कलाकार की अग्रणी भूमिका पर प्रकाश डाला। महान शोमैन के पोते एवं अभिनेता रणबीर कपूर और फिल्म निर्देशक राहुल रवैल ने राज कपूर की विरासत की पड़ताल की तथा भारतीय सिनेमा में उनके प्रेरक कार्यों और कला को सामाजिक प्रभाव के साथ जोड़ने की उनकी क्षमता का विश्लेषण किया। मुझे भारतीय संगीत में रफी के कालातीत योगदान पर विचार करने के लिए प्रसिद्ध पार्श्व कलाकारों अनुराधा पौडवाल एवं सोनू निगम और प्रसिद्ध गायक शाहिद रफी के साथ एक गहनपरिचर्चा में भाग लेने का सौभाग्य मिला। करिश्माई अभिनेत्री शर्मिला टैगोर, अभिनेता अर्जुन चक्रवर्ती और फिल्मों के विद्वान एन मनु चक्रवर्ती ने तपन सिन्हा की कहानी कहने की उत्कृष्ट शैली और बांग्लाव भारतीय सिनेमा पर उनके प्रभाव के बारे में अपने विचार पेश किए।आईएफएफआई टीम ने इन दिग्गज कलाकारों की कलात्मक उत्कृष्टता का उत्सव मनाने के लिए डिजिटल रूप से पुनर्स्थापित फिल्मों की एक विशेष लाइनअप भी खूबसूरती से तैयार की थी। चयनित फिल्मों में देवदासु (अक्किनेनी नागेश्वर राव), आवारा (राज कपूर), हम दोनों (मोहम्मद रफी का संगीत), और हारमोनियम (तपन सिन्हा) शामिल थी। इन फिल्मों के प्रदर्शन ने पुरानी यादों को ताजा कर दिया और पीढ़ियों से चली आ रही उनकी शाश्वत अपील का उत्सव मनाया। ‘कारवां ऑफ सॉन्ग्स’ नाम की एक संगीतमय यात्रा में राज कपूर और मोहम्मद रफी के 150 गीतों के साथ-साथ एएनआर और तपन सिन्हा के 75 गाने प्रदर्शित किए गए। इस संगीतमय श्रद्धांजलि ने भारतीय सिनेमा के समृद्ध साउंडस्केप में उनके बेजोड़ योगदानों पर प्रकाश डाला।इस महोत्सव में ‘सफरनामा’नाम की एक प्रभावशाली प्रदर्शनी में इन चारों दिग्गजों के जीवन एवं करियर से जुड़ी दुर्लभ तस्वीरें, यादगार वस्तुएं और कलाकृतियां प्रदर्शित की गईं। एनएफडीसी और केंद्रीय संचार ब्यूरो ने अतीत एवं वर्तमान के बीच के अंतर को पाटते हुए, इन हस्तियों की व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपलब्धियों को जनता के सामने लाने का अच्छा काम किया। मनोरंजन के क्षेत्र में क्विज़, डिजिटल शोकेस और इंटरैक्टिव डिस्प्ले जैसी विषयगत गतिविधियां भी आयोजित की गईं।आईएफएफआई ने अपनी उपलब्धियों को रेखांकितकरने वाली द्विभाषी स्मारिका भी तैयार की। यह दुनिया भर से आने वाले प्रतिनिधियों के माध्यम से इन महान हस्तियों की विरासतों को दुनिया भर के दर्शकों तक पहुंचाने की दिशा में एक अच्छा प्रयास है।मीरामार समुद्र तट पर पद्मश्री पुरस्कार विजेता सुदर्शन पटनायक द्वारा बनाया गया एक आकर्षक रेत कला चित्रण इन महान सिनेमाई दिग्गजों के सांस्कृतिक प्रभाव का प्रतीक है। पद्मश्री पुरस्कार विजेता की मनमोहक रेत कला ने समुद्र तट पर जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया और इन चारोंहस्तियों के कालातीत प्रभाव के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।उनके उल्लेखनीय योगदानों को भव्य एवं बेहद सार्थक तरीके से सम्मानित करने और उनके स्थायी प्रभाव को गरिमाएवं श्रद्धा के साथ श्रद्धांजलि देने के सराहनीय प्रयास किए गए हैं। यह समारोहने न केवल उनकी उपलब्धियों का उत्सव मनाया बल्कि भारतीय सिनेमा की उस स्थायी भावना को भी मजबूत किया जिसे इन दिग्गजों ने आकार देने में मदद की। आईएफएफआई ने यह सुनिश्चित किया कि इन सिनेमाई हस्तियों की विरासत भावी कहानीकारों और दूरदर्शी लोगों का मार्ग प्रशस्त करती रहे।
- -श्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्री."परिवर्तन ही संसार का नियम है"- परिवर्तन ब्रह्मांड का नियम है। इस सशक्त संदेश के अनुरूप, भारत की वस्त्र विरासत बदलती दुनिया की आवश्यकताओंको पूरा करने के लिए बदल रही है। तकनीकी वस्त्रों के बारे में हमारी यात्रा सिर्फ़ वस्त्र के संदर्भ में नहीं है, अपितु यह सपने बुनने, भविष्य को सुरक्षित करने और 1.4 बिलियन भारतीयों के लिए एक दीर्घकालिक कल तैयार करने के बारे में है। आज, मैं यह साझा करने में गर्व का अनुभव करता हूं कि कैसे भारत का तकनीकी वस्त्र क्षेत्र हमारे पूरे देश के जीवन में क्रांति ला रहा है। पैकटेक, इंडुटेक, मोबिलटेक, क्लॉथटेक, होमटेक, मेडिटेक, एग्रोटेक, बिल्डटेक, प्रोटेक, जियोटेक, स्पोर्टेक और ओकोटेक जैसे 12 विशेष खंडों के साथ यह हर तरह के उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। दुनिया के पांचवें सबसे बड़े तकनीकी वस्त्र बाजार के रूप में, जिसका मूल्य 25 बिलियन डॉलर है और 2030 तक इसके 40 बिलियन डॉलर को पार करने का अनुमान है, भारत ने उल्लेखनीय निर्यात वृद्धि देखी है। यह 2014 में शून्य से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 3 बिलियन डॉलर हो चुकी है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 10 बिलियन डॉलर है। पैकटेक, इंडुटेक और मोबिलटेक का निर्यात में 70 प्रतिशत की सहभागिता है, जो भारत की विनिर्माण क्षमता को उजागर करता है, जबकि बिल्डटेक क्षेत्र में 229 प्रतिशत की वृद्धि विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञता को दर्शाती है। इसके अलावा भारत ने अनुसंधान और विकास, उद्यमिता और स्थायी कार्य प्रणालियों के माध्यम से घरेलू मांग को प्रोत्साहित करते हुए बिल्डटेक, मेडिटेक, एग्रोटेक और अन्य उभरते क्षेत्रों सहित अन्य तकनीकी वस्त्र क्षेत्रों में निर्यात का विस्तार करने की योजना बनाई है।अपने देश के आत्मनिर्भरता लक्ष्य का समर्थन करने के लिए, हम नायलॉन, कार्बन फाइबर, हाई-स्पेशलिटी फाइबर और अल्ट्रा-हाई-मॉलिक्यूलर-वेटपॉलीइथिलीन (यूएचएमडब्यू पीई) जैसे महत्वपूर्ण कच्चे माल पर आयात निर्भरता को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जिस तरह भारत अपने रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए सेमीकंडक्टर में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कार्य कर रहा है, उसी तरह हम तकनीकी वस्त्रों के क्षेत्र में भी ऐसा ही करने की आकांक्षा रखते हैं। इसे हासिल करने के लिए, मोदी सरकार ने 1,480 करोड़ रुपए के समर्थन से राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (एनटीटीएम)का शुभारंभ किया। इस पहल ने पहले ही 509 करोड़ रुपए की 168 परियोजनाओं को स्वीकृति दे दी है और 5.79 करोड़ रुपए के साथ 12 स्टार्टअप को वित्त पोषित किया है। हम केवल वैश्विक प्रगति में योगदान नहीं दे रहे हैं, अपितु इसे आकार भी दे रहे हैं। हमारा विजन संख्याओं से परे है, जिसका लक्ष्य एक आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है जो अपनी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करते हुए नवाचार के माध्यम से आगे बढ़ता है। 2.5 वर्षों के भीतर टी 100 कार्बन फाइबर के घरेलू उत्पादन के साथ एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हमारी प्रतीक्षा कर रही है, जो महत्वपूर्ण रक्षा और एयरोस्पेस अनुप्रयोगों में हमारी आयात निर्भरता को काफी हद तक कम कर देगा। जबकि हम आयातित गैर-बुने हुए पदार्थों, कार्बन फाइबर, उच्च-विशिष्ट फाइबर, नायलॉन और यूएचएमडब्ल्यूपीई पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि भारत वित्त वर्ष 2025-26 तक घरेलू कार्बन फाइबर उत्पादन का शुभारंभ कर देगा, जो आत्मनिर्भरता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम होगा। हमारा कृषि क्षेत्र तकनीकी वस्त्रों की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित करता है। नवोन्मेषी एग्रो टेक्सटाइल्स पिछले छह वर्षों में 5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के साथ 567 मिलियन डॉलर से अधिक के निर्यात को बढ़ावा दे रहे है। ग्रामीण भारत में एक किसान की कल्पना करें जो छाया के लिए जाल और गीली घास की चटाई का उपयोग कर रहा है और 40 प्रतिशत कम पानी का उपयोग करते हुए फसल की पैदावार में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि का साक्षी बन रहा है। एनटीटीएम के अंतर्गत ग्यारह अभूतपूर्व परियोजनाओं के माध्यम से, जिसमें उत्तरी भारत वस्त्र अनुसंधान संघ (एनआईटीआरए) द्वारा सन हेम्प फसल कवर और दक्षिण भारत वस्त्र अनुसंधान संघ (एसआईटीआरए) द्वारा हर्बल-लेपित बीज बैग शामिल हैं, हम किसानों की आय में महत्वपूर्ण रूप से 67-75 प्रतिशत की वृद्धि देख रहे हैं। यह सही मायने में सतत विकास है।हमारे तकनीकी वस्त्रों की यात्रा में राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। हमारे सुरक्षा कर्मियों को अपने साहसपूर्ण कर्तव्य को पूर्ण करने में स्वदेशी ढाल का लाभ मिलता है। एनआईटीआरएके शोध के माध्यम से विकसित उन्नत सुरक्षात्मक वस्त्र 449 डिग्री तक के तापमान को झेल सकता है। यह उपलब्धि केवल तकनीकी उन्नति के बारे में नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की सुरक्षा के बारे में है जो हमारी रक्षा करते हैं। भारत का ऑटोमोटिव क्षेत्र फल-फूल रहा है, वित्त वर्ष 2023-24 में वाहनों की बिक्री 40 लाख यूनिट को पार कर गई है, जिससे एयरबैग की मांग बढ़ रही है और ऑटोलिव, जेडएफ और जॉयसन जैसे वैश्विक प्रमुखों को स्थानीय स्तर पर परिचालन का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। ऑटोकॉप और मारुति सुजुकी द्वारा समर्थित 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ सीट बेल्ट वेबिंग के लिए सबसे तेजी से बढ़ते बाजार के रूप में, भारत सुरक्षा और नवाचार में आगे बढ़ रहा है। पैकेजिंग में, उदार इंटरमीडिएट बल्क कंटेनर (एफआईबीसी) कांच, धातु और कार्डबोर्ड कंटेनर जैसी पारंपरिक सामग्रियों की जगह ले रहे हैं, जो स्थायित्व, बहुआयामी और पुन: प्रयोज्यता प्रदान करते हैं। हल्के और अधिक पर्यावरण के अनुकूल एफआईबीसीबैग कम परिवहन लागत प्रदान करते हैं और संधारणीयकार्य प्रणालियों का समर्थन करते हैं। इसके अलावा, एआई और ब्लॉक चेन वस्त्र उत्पादन को अधिक स्मार्ट और पारदर्शी बनाने के लिए आवश्यक हैं। एआई प्रक्रियाओं को स्वचालित करके, त्रुटियों को कम करके और वास्तविक समय की निगरानी को सक्षम करके दक्षता में सुधार करता है और यह उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाता है। ब्लॉकचेन आपूर्ति श्रृंखला में प्रत्येक चरण को सुरक्षित रूप से रिकॉर्ड करके जवाबदेही भी रखती है, जिससे ग्राहकों और निर्माताओं को सामग्री के निर्माण, प्रामाणिकता और गुणवत्ता को सत्यापित करने की सुविधा मिलती है और इससे उद्योग में विश्वास और पारदर्शिता का निर्माण होता है।अमेरिका, जापान, इंग्लैंड, जर्मनी और इज़राइल जैसे वैश्विक प्रमुखों से प्रेरणा लेते हुए, हम अत्याधुनिक अनुसंधान और विकास एवं उच्च तकनीक समाधानों के माध्यम से तकनीकी वस्त्रों को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। प्रोटेक क्षेत्र में इज़राइल के नवाचार जैसे किट 300 और उन्नत जाल और थर्मो-रिफ्लेक्टिव स्क्रीन जैसे दीर्घकालिक समाधानों के साथ एग्रोटेक में इटली का नेतृत्व, प्रमुख मॉडल के रूप में कार्य करता है। एक राष्ट्रीय ज्ञान केंद्र की स्थापना और स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करके, हम सर्वश्रेष्ठ कार्य प्रणालियों को अपना रहे हैं। वैश्विक तकनीकी वस्त्र बाजार 2030 तक 250 बिलियन डॉलर से बढ़कर 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने के साथ, हमारा लक्ष्य 15 प्रतिशत बाजार की हिस्सेदारी हासिल करना है, जो इस तेजी से बढ़ते क्षेत्र में नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के लिए हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। जैसे-जैसे हम विज़न2047 की ओर बढ़ रहे हैं, तकनीकी वस्त्र भारत की समृद्ध वस्त्र विरासत और इसके तकनीकी भविष्य के बीच की कड़ी के रूप में उभर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में, हम न केवल बदलाव के अनुकूल हो रहे हैं बल्कि इसे आगे भी बढ़ा रहे हैं। हम ऐसे अभिनव फाइबर और दीर्घकालिक समाधान विकसित कर रहे हैं जो भारत के तकनीकी वस्त्रों को गुणवत्ता, नवाचार और स्थिरता का वैश्विक प्रतीक बनाएंगे। वस्त्रे क्षेत्र 2030 तक 100 बिलियन डॉलर के निर्यात के साथ 350 बिलियन डॉलर के व्यापक स्तर के बाजार तक पहुंचने के लिए तैयार है।
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- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
सूने - सूने थे रास्ते...
उजाड़ था मंजर ...
शहर भी उदास था..
मौसम हुआ पतझर...।
रातें अमावस सी..
दिन हुई दोपहर...
नदी सूखी - सूखी सी...
ठहरा हुआ समन्दर..।
चाह नहीं कुछ पाने की..
उमंगें भूलीं डगर..
चलते रहे कदम यूँ ही ..
अँधेरों का कहर...।
शाम बीतती नहीं...
इंतजार में रहबर...
लम्बी काली रातें...
चुभो रही नश्तर ...।
अब आ भी जाओ प्रिय...
राह तकती नजर...
वीरान इस चमन में...
गुलों का भी हो बसर..।
आना तेरा यूँ जीवन में...
लो बहारों को हो गई खबर..
कल तक थी निष्पत्र जो..
खिल गई डगर- डगर..।
हो गई मैं आज गुलमोहर...।।
- -— प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीभाइयों और बहनों,आज 3 दिसंबर का महत्वपूर्ण दिन है। पूरा विश्व इस दिन को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के रूप में मनाता है। आज का दिन दिव्यांगजनों के साहस, आत्मबल और उपलब्धियों को नमन करने का विशेष अवसर होता है।भारत के लिए ये अवसर एक पवित्र दिन जैसा है। दिव्यांगजनों का सम्मान भारत की वैचारिकी में निहित है। हमारे शास्त्रों और लोक ग्रंथों में दिव्यांग साथियों के लिए सम्मान का भाव देखने को मिलता है। रामायण में एक श्लोक है-उत्साहो बलवानार्य, नास्त्युत्साहात्परं बलम्।सोत्साहस्यास्ति लोकेऽस्मिन्, न किञ्चिदपि दुर्लभम्।श्लोक का मूल यही है कि जिस व्यक्ति के मन में उत्साह है, उसके लिए विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है।आज भारत में हमारे दिव्यांगजन इसी उत्साह से देश के सम्मान और स्वाभिमान की ऊर्जा बन रहे हैं।इस वर्ष ये दिन और भी विशेष है। इसी साल भारत के संविधान के 75 वर्ष पूर्ण हुए हैं। भारत का संविधान हमें समानता और अंत्योदय के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।संविधान की इसी प्रेरणा को लेकर बीते 10 वर्षों में हमने दिव्यांगजनों की उन्नति की मजबूत नींव रखी है। इन वर्षों में देश में दिव्यांगजनों के लिए अनेक नीतियां बनी हैं, अनेक निर्णय़ हुए हैं।ये निर्णय दिखाते है कि हमारी सरकार सर्वस्पर्शी है, संवेदनशील है और सर्वविकासकारी है। इसी क्रम में आज का दिन दिव्यांग भाई-बहनों के प्रति हमारे इसी समर्पण भाव को फिर से दोहराने का दिन भी बना है।मैं जब से सार्वजनिक जीवन में हूं, मैंने हर मौके पर दिव्यांगजनों का जीवन आसान बनाने के लिए प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद मैंने इस सेवा को राष्ट्र का संकल्प बनाया। 2014 में सरकार बनने के बाद हमने सबसे पहले ‘विक्लांग’ शब्द के स्थान पर ‘दिव्यांग’ शब्द को प्रचलित करने का फैसला लिया।ये सिर्फ शब्द का परिवर्तन नहीं था, इसने समाज में दिव्यांगजनों की गरिमा भी बढ़ाई और उनके योगदान को भी बड़ी स्वीकृति दी। इस निर्णय ने ये संदेश दिया कि सरकार एक ऐसा समावेशी वातावरण चाहती है, जहां किसी व्यक्ति के सामने उसकी शारीरिक चुनौतियां दीवार ना बनें औऱ उसे उसकी प्रतिभा के अनुसार पूरे सम्मान के साथ राष्ट्र निर्माण का अवसर मिले। दिव्यांग भाई-बहनों ने विभिन्न अवसरों पर मुझे इस निर्णय के लिए अपना आशीर्वाद दिया। ये आशीर्वाद ही, दिव्यांगजन के कल्याण के लिए मेरी सबसे बड़ी शक्ति बना।हर वर्ष देश भर में हम दिव्यांग दिवस पर अनेक कार्यक्रम करते हैं। मुझे आज भी याद है, 9 साल पहले हमने आज के ही दिन सुगम्य भारत अभियान का शुभारंभ किया था। 9 सालों में इस अभियान ने जिस तरह से दिव्यांगजनों को सशक्त किया, उससे मुझे बड़ा संतोष मिला है।140 करोड़ देशवासियों की संकल्प-शक्ति से ‘सुगम्य भारत’ ने ना सिर्फ दिव्यांगजनों के मार्ग से कई बाधाएं हटाई, बल्कि उन्हें सम्मान और समृद्धि का जीवन भी दिया।पहले की सरकारों के समय जो नीतियां थीं...उनकी वजह से दिव्यांगजन सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा के अवसरों से पीछे रह जाते हैं। हमने वो स्थितियां बदलीं। आरक्षण की व्यवस्था को नया रूप मिला। 10 वर्षों में दिव्यांगजन के कल्याण के लिए खर्च होने वाली राशि को भी तीन गुना किया गया। इन निर्णयों ने दिव्यांगजनों के लिए अवसरों और उन्नतियों के नए रास्ते बनाए। आज हमारे दिव्यांग साथी, भारत के निर्माण के समर्पित साथी बनकर हमें गौरवान्वित कर रहे हैं।मैंने स्वयं ये महसूस किया है कि भारत के युवा दिव्यांग साथियों में कितनी अपार संभावनाएं हैं। पैरालंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने देश को जो सम्मान दिलाया है, वो इसी ऊर्जा का प्रतीक है। ये ऊर्जा राष्ट्र ऊर्जा बने, इसके लिए हमने दिव्यांग साथियों को स्किल से जोड़ा है, ताकि उनकी ऊर्जा राष्ट्र की प्रगति की सहायक बन सके। ये प्रशिक्षण सिर्फ सरकारी कार्यक्रम भर नहीं है। इन प्रशिक्षणों ने दिव्यांग साथियों का आत्मविश्वास बढ़ाया है। उन्हें रोजगार तलाशने की आत्म शक्ति दी है।मेरे दिव्यांग भाई-बहनों का जीवन सरल, सहज और स्वाभिमानी हो, सरकार का मूल सिद्धांत यही है। हमने Persons with Disabilities Act को भी इसी भाव से लागू किया। इस ऐतिहासिक कानून में Disability के Definition की कैटेगरी को भी 7 से बढ़ाकर 21 किया गया। पहली बार हमारे एसिड अटैक सर्वाइवर्स भी इसमें शामिल किए गए। आज ये कानून दिव्यांगजनों के सशक्त जीवन का माध्यम बन रहा है।इन कानूनों ने दिव्यांगजनों के प्रति समाज की धारणा बदली है। आज हमारे दिव्यांग साथी भी विकसित भारत के निर्माण के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ काम कर रहे हैं।भारत का दर्शन हमें यही सिखाता है कि समाज के हर व्यक्ति में एक विशेष प्रतिभा जरूर है। हमें उसे बस सामने लाने की जरूरत है। मैंने हमेशा अपने दिव्यांग साथियों की उस अद्भुत प्रतिभा पर विश्वास किया है। और मैं पूरे गर्व से कहता हूं, कि हमारे दिव्यांग भाई-बहनों ने एक दशक में मेरे इस विश्वास को और प्रगाढ़ किया है। मुझे यह देखकर भी गर्व होता है कि उनकी उपलब्धियां कैसे हमारे समाज के संकल्पों को नया आकार दे रही हैं।आज जब पैरालंपिक का मेडल सीने पर लगाकर, मेरे देश के खिलाड़ी मेरे घर पर पधारते हैं, तो मेरा मन गौरव से भर जाता है। हर बार जब मन की बात में मैं अपने दिव्यांग भाई-बहनों की प्रेरक कहानियों को आपके साथ साझा करता हूं, तो मेरा हृदय गर्व से भर जाता है। शिक्षा हो, खेल या फिर स्टार्टअप, वे सभी बाधाओं को तोड़कर नई ऊंचाइयां छू रहे हैं और देश के विकास में भागीदार बन रहे हैं।मैं पूरे विश्वास से कहता हूं कि 2047 में जब हम स्वतंत्रता का 100वां उत्सव मनाएंगे, तो हमारे दिव्यांग साथी पूरे विश्व का प्रेरणा पुंज बने दिखाई देंगे। आज हमें इसी लक्ष्य के लिए संकल्पित होना है।आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जहां कोई भी सपना और लक्ष्य असंभव ना हो। तभी जाकर हम सही मायने में एक समावेशी और विकसित भारत का निर्माण कर पाएंगे।और निश्चित तौर पर मैं इसमें अपने दिव्यांग भाई-बहनों की बहुत बड़ी भूमिका देखता हूं। पुन: सभी दिव्यांग साथियों को आज के दिन की शुभकामनाएं।—- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
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- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
आँखें भर आती हैं सब की , बेटी की विदाई में ।
टूटे हों तटबंध नदी के , बारिश की ढिठाई में ।।
सीप में पले मोती जैसे , नाजों में पली बेटी ।
अंबर के तारों -सी झिलमिल , रस्मों में ढली बेटी ।
बढ़ी धान की बाली जैसी , नेह की सिंचाई में ।
आँखें भर आती हैं सबकी बेटी की विदाई में ।।
घर- आँगन की चिड़िया वह , सभी कोनों में चहकी ।
बगिया के सुंदर फूलों -सी , लगती वह सदा महकी ।
सूनेपन की पीर है छलकी , माता की रुलाई में ।।
आँखें भर आती हैं सबकी , बेटी की विदाई में ।।
सेतु बनी दो परिवारों की , शोभा आँगन की बनी ।
दो कुल की अभिमान बनी वह , प्यारी बनी साजन की ।
खुशहाली के फल लद जाएँ , प्रीति की अमराई में ।।
आँखें भर आती हैं सबकी , बेटी की विदाई में ।। -
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
आँखें भर आती हैं सब की , बेटी की विदाई में ।
टूटे हों तटबंध नदी के , बारिश की ढिठाई में ।।
सीप में पले मोती जैसे , नाजों में पली बेटी ।
अंबर के तारों -सी झिलमिल , रस्मों में ढली बेटी ।
बढ़ी धान की बाली जैसी , नेह की सिंचाई में ।
आँखें भर आती हैं सबकी बेटी की विदाई में ।।
घर- आँगन की चिड़िया वह , सभी कोनों में चहकी ।
बगिया के सुंदर फूलों -सी , लगती वह सदा महकी ।
सूनेपन की पीर है छलकी , माता की रुलाई में ।।
आँखें भर आती हैं सबकी , बेटी की विदाई में ।।
सेतु बनी दो परिवारों की , शोभा आँगन की बनी ।
दो कुल की अभिमान बनी वह , प्यारी बनी साजन की ।
खुशहाली के फल लद जाएँ , प्रीति की अमराई में ।।
आँखें भर आती हैं सबकी , बेटी की विदाई में ।। - - लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबेदुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)भीड़ है पर सूना नगर लगता है।बिना तुम्हारे दिन दोपहर लगता है।।सुस्वादु लगे रूखी रोटी संग तुम्हारे।तुम नहीं छप्पन भोग जहर लगता है।।प्रीति बुहारे जीवन पथ सुरभित कर दे।चलें अकेले कंटकित डगर लगता है।।धरती सूरज चांद सितारे सृष्टि भली।आकंठ प्रेम में डूबे अपना ही घर लगता है।।जहां मिले हम तीर्थ धाम गंगा यमुना।पहिया वक्त का जाए अब ठहर लगता है।।
- -श्री अमित शाह, केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्रीसहकारिता एक ऐसी व्यवस्था है, जो समाज में आर्थिक रूप से आकांक्षी लोगों को न सिर्फ समृद्ध बनाती है, बल्कि उन्हें अर्थव्यवस्था की व्यापक मुख्यधारा का हिस्सा भी बनाती है। सहकारिता बिना पूँजी या कम पूँजी वाले लोगों को समृद्ध बनाने का एक बहुत बड़ा साधन है। सहकारिता के माध्यम से भारत इन लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है।हमारे देश में सहकारिता की एक विस्तृत परंपरा तो रही है, लेकिन आजादी से पहले सहकारिता जिस प्रकार आर्थिक आंदोलन का माध्यम बनी, उसे और भी अधिक ऊर्जा और शक्ति के साथ आगे बढ़ाने का कार्य प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यकाल में शुरू हुआ। वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सहकारिता का स्वायत्त मंत्रालय स्थापित कर सहकारिता के लिए अवसरों के सारे बंद दरवाजे खोल दिए। महज तीन वर्षों में देश में सहकारिता को मजबूत बनाने के लिए जितने कदम उठाये हैं, उससे भारत अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ सहकारी क्षेत्र में भी ‘विश्वमित्र’ बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।अब भारत का सहकारिता आंदोलन एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने जा रहा है। देश 25-30 नवंबर, 2024 को दिल्ली में ‘अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) महासभा’ और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी करने को तैयार है। आईसीए के 130 वर्ष के इतिहास में यह पहला मौका है, जब भारत इसका आयोजक होगा। इस सम्मेलन से संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का भी शुभारंभ होगा। आईसीए महासभा और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी वैश्विक सहकारी आंदोलन में भारत के नेतृत्व की स्वीकार्यता का प्रतीक है।प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने के बाद से निरंतर समाज के पिछड़े, अति पिछड़े, गरीब और विकास की दौड़ में पीछे छूट चुके लोगों के उत्थान की दिशा में कदम उठाये जा रहे हैं। मोदी सरकार मानती है कि यह परिवर्तन सहकारिता आंदोलन को मजबूत किये बिना नहीं हो सकता। यह आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब भारत ने सहकारी आंदोलन के पुनरुत्थान की दिशा में बड़े कदम उठाये हैं। कमजोर पड़ रही सहकारी संस्थाओं के सशक्तीकरण से लेकर उनके व्यापार को सरल बनाना, समितियों में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए मजबूत प्रशासनिक, नीतिगत और कानूनी उपाय किये गए हैं।प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का मंत्र दिया है, जिसका उद्देश्य देश की सहकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाना है। देश में सहकारी तंत्र का विस्तार कर एक नया आर्थिक मॉडल खड़ा किया जा रहा है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को पाँच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक साबित होगा। दुनिया के अन्य देशों के लिए यह एक विकास मॉडल के रूप में सामने आएगा।भारत में प्राचीन काल से ही सहकारिता का एक समृद्ध इतिहास रहा है। इसके संकेत कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलते हैं। दक्षिण भारत में भी ‘निधियों’ का प्रचलन सहकारी वित्तीय व्यवस्था की झलक प्रदान करता है। पाश्चात्य विचारों से प्रभावित कई अर्थशास्त्रियों ने 21वीं सदी की शुरुआत में ही यह चर्चा प्रारंभ कर दी थी कि सहकारिता का विचार आधुनिक युग में कालबाह्य हो गया है। मेरा यह स्पष्ट मानना है कि भारत जैसे 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में किसी 3 करोड़, 5 करोड़ या 10 करोड़ जनसंख्या वाले देशों का आर्थिक मॉडल उपयुक्त नहीं हो सकता। देश को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए, आर्थिक विकास के सभी मानकों में वृद्धि के साथ-साथ यह आवश्यक है कि 140 करोड़ लोगों की समृद्धि हो, सभी व्यक्तियों को काम मिले और उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार भी प्राप्त हो, और यह केवल सहकारिता के माध्यम से ही संभव है। देश के इतिहास में इसके कई उदाहरण भी हैं। अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक ने पिछले 100 वर्ष में 100 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया है। बैंक न केवल अपने एनपीए को शून्य पर बनाये रखने में सफल रहा है बल्कि उसके पास 6,500 करोड़ रुपये से अधिक की जमाराशि भी है। अमूल भी सहकारी आंदोलन का उल्लेखनीय उदाहरण है। वर्तमान में, इससे 35 लाख परिवार सम्मान और रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, और इन परिवारों की महिलाएँ अग्रिम पंक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। परिणामस्वरूप, आज अमूल का वार्षिक कारोबार 80,000 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। दिलचस्प बात यह है कि इन महिलाओं में से किसी ने भी 100 रुपये से अधिक का प्रारंभिक निवेश नहीं किया था।सहकारिता आंदोलन को मजबूती प्रदान करने की दिशा में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में सरकार ने 60 से अधिक पहलों पर काम शुरू किया है। दशकों की उपेक्षा और प्रशासनिक कुरीतियों के परिणामस्वरूप अधिकांश प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पैक्स) आर्थिक रूप से कमजोर और निष्क्रिय हो गईं थी। सरकार ने पैक्स के कार्यक्षेत्र में विस्तार के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने का काम शुरू किया। इनके लिए नए बाय-लॉ अपनाने से अब पैक्स डेयरी, मत्स्य पालन, अन्न भंडारण, जन औषधि केंद्र आदि जैसे 30 से अधिक विविध क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने में सक्षम हुए हैं। तीन नई राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के गठन से सहकारिता का क्षितिज और व्यापक हुआ है। राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड ने विदेशी बाजारों तक सहकारी उत्पादों की पहुंच को सुगम बनाया तो राष्ट्रीय सहकारी जैविक लिमिटेड ने जैविक प्रमाणीकरण और बाजार का मंच तैयार किया। भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड ने उन्नत बीजों की सुलभता सुनिश्चित की है। वित्तीय सहायता, कर राहत और इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम से सहकारी चीनी मिलें समृद्ध हो रही हैं। सहकारी बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए सहकारी संस्थाओं के पैसे को सहकारी बैंकों में ही जमा करने पर बल दिया गया है। राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के माध्यम से सहकारी समितियों को पारदर्शी बनाने और प्रक्रिया को आसान बनाने से देश के सहकारी रूप से कम विकसित क्षेत्रों में सहकारी समितियों की पहुंच बनी है। इसके अतिरिक्त सरकार एक समग्र और व्यापक नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति पर भी काम कर रही है।आईसीए महासभा और वैश्विक सम्मेलन 2024 का मंच भारत के सहकारी आंदोलन द्वारा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने, आर्थिक सशक्तीकरण, लैंगिक समानता सुनिश्चित करने और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति हेतु भारत के अभूतपूर्व प्रयासों को रेखांकित करेगा। सम्मेलन का एक मुख्य एजेंडा एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण है, जो सहकारी समितियों को उभरती चुनौतियों का सामना करने और अवसरों के उपयोग के लिए सशक्त बनाए।आज जब हम इस ऐतिहासिक आयोजन की मेजबानी करने जा रहे हैं, मैं दुनिया भर के सहकारी नेताओं, नीति निर्माताओं और मानव विकास के पक्षधरों का आह्वान करता हूँ। आइए! हम वैश्विक सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए – सीखने, साझा करने और सहकार की भावना के साथ एकजुट हों। "सहकार से समृद्धि" के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सामूहिक समृद्धि, सातत्यता और साझा प्रगति जैसे मूल्यों पर आधारित उज्ज्वल भविष्य का संकल्प है।
- आलेख- अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री“आप पूरी दुनिया में भारत के डिजिटल एम्बेसडर/प्रतिनिधि हैं। आप वोकल फॉर लोकल के ब्रांड एंबेसडर हैं।” इस साल के शुरू में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रथम राष्ट्रीय सर्जक पुरस्कार (नेशनल क्रिएटर अवार्ड) प्रदान करते समय कहे गए ये प्रेरक शब्द भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था की परिवर्तनकारी भूमिका को उजागर करते हैं। आज, हमारे रचनाकार केवल कहानीकार नहीं हैं, वे राष्ट्र का निर्माण कर भारत की पहचान को आकार दे रहे हैं और वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र की गतिशीलता का प्रदर्शन कर रहे हैं।गोवा में आज 55वां भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) का आरंभ हो रहा है, जिसका मुख्य आकर्षण इसकी थीम ‘युवा फिल्म निर्माता - भविष्य अब है’। अगले आठ दिनों में, आईएफएफआई सैकड़ों फिल्मों का प्रदर्शन करेगा, फिल्म क्षेत्र के दिग्गजों के साथ संवाद भी आयोजित करेगा और इसमें वैश्विक सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाएगा। वैश्विक और भारतीय सिनेमाई उत्कृष्टता का यह संगम भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था को नवाचार, रोजगार और सांस्कृतिक कूटनीति के एक केंद्र के रूप में व्यक्त करता है।भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का प्रसारभारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था 30 बिलियन डॉलर के उद्योग के रूप में सामने आई है, जो सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2.5 प्रतिशत का योगदान देती है और 8 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार प्रदान करती है। सिनेमा, गेमिंग, एनीमेशन, संगीत, प्रभावशाली मार्केटिंग और अन्य गतिविधियों को समाहित करने वाला यह क्षेत्र भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य की जीवंतता को दर्शाता है।3,375 करोड़ रुपये मूल्य वाले एक प्रभावशाली मार्केटिंग क्षेत्र और 200,000 से अधिक पूर्णकालिक सामग्री निर्माताओं के साथ, यह उद्योग भारत की वैश्विक आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने वाली एक गतिशील शक्ति है। गुवाहाटी, कोच्चि और इंदौर और अधिक से अधिक शहर विशेष रूप से रचनात्मक केंद्र बन रहे हैं, जो विकेंद्रीकृत रचनात्मक क्रांति को बढ़ावा दे रहे हैं।भारत के 110 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता और 70 करोड़ सोशल मीडिया उपयोगकर्ता रचनात्मकता के इस लोकतंत्रीकरण को आगे बढ़ा रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और ओटीटी सेवाएं रचनाकारों को विश्व स्तर पर दर्शकों से सीधे जुड़ने में सक्षम बनाती हैं। क्षेत्रीय सामग्री और स्थानीय स्तर की कहानी कहने की लोगों की प्रतिभा ने कथा को और विविधता प्रदान की है, जिससे भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था वास्तव में समावेशी बन गई है।ये सभी कंटेंट क्रिएटर आर्थिक स्तर पर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर रहे हैं, जिनके दस लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स हैं और वे प्रति माह 20,000 से 2.5 लाख रुपये तक कमा रहे हैं। यह व्यवस्था आर्थिक रूप से लाभकारी है और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और सामाजिक प्रभाव के लिए एक मंच भी है।विभिन्न आयामों पर प्रभावरचनात्मक अर्थव्यवस्था का गहरा प्रभाव है जो सकल घरेलू उत्पाद के विकास से कहीं आगे तक विस्तारित है। यह पर्यटन, आतिथ्य और प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न क्षेत्रों के सहायक उद्योगों को काफी प्रभावित करता है। इसके अलावा, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म उपेक्षित लोगों की आवाज भी मजबूती से उठाता है। यह सामाजिक समावेशन, विविधता और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को भी समृद्ध करता है। कथ्य प्रस्तुत करने की अपनी कला द्वारा भारत ने बॉलीवुड से लेकर क्षेत्रीय सिनेमा तक अपनी वैश्विक सॉफ्ट पावर को मजबूती दी है, जो विश्व मंच पर प्रचुर सांस्कृतिक भाव प्रदर्शित करता है। यह क्षेत्र वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के साथ भी जुड़ा है, जिसमें पर्यावरण अनुकूल उत्पादन पद्धतियों और फैशन के क्षेत्र में टिकाऊ प्रक्रियाओं का दय शामिल है, जो पर्यावरण के प्रति जागरूकता की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।सरकार की परिवर्तनकारी पहलभारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर उच्च स्थान पर पहुंचाने के लिए सरकार तीन प्रमुख स्तंभों पर प्राथमिकता से ध्यान दे रही है: प्रतिभा संकलन और उनकी क्षमता बढ़ाना, सृजनकारों के लिए बुनियादी ढांचा सुदृढ़ करना और फिल्म कथ्य शिल्प को सशक्त बनाने की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना। यह दृष्टिकोण भारतीय रचनात्मक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी) की स्थापना नवरचना और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दर्शाता है। आईआईसीटी का उद्देश्य भारतीय सृजनकार - चाहे वे सिनेमा, एनीमेशन, गेमिंग या डिजिटल कला क्षेत्र के हों, उन्हें घरेलू स्तर पर और एक एकीकृत सांस्कृतिक शक्ति के रूप में तथा वैश्विक मनोरंजन के क्षेत्र में अग्रणी बनाना सुनिश्चित करना है। फिल्म निर्माण में नवीनतम तकनीकों को अपनाकर, संवाददात्मक मनोरंजन और अपने सम्मोहन के साथ भारत मनोरंजन सामग्री निर्माण का भविष्य फिर से परिभाषित कर रहा है।विश्व ऑडियो विजुअल और मनोरंजन शिखर सम्मेलन (वेव्स) देश को कंटेंट निर्माण और अनूठे विचार के साथ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने की ऐतिहासिक पहल है। डब्ल्यूएवीईएस एक गतिशील मंच है जहां सृजनकार, इस उद्योग के अग्रणी और नीति निर्माता ऑडियोविजुअल और मनोरंजन क्षेत्रों के भविष्य को आकार देने के लिए साथ मिले हैं। प्रधानमंत्री की क्रिएट इन इंडिया भविष्य दृष्टि के अनुरूप, यह सम्मेलन इस क्षेत्र में आपसे सहयोग को बढ़ावा देता है, साथ ही भारत की रचनात्मक क्षमता का प्रदर्शन कर वैश्विक भागीदारों को अपने से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।क्रिएट इन इंडिया चैलेंज भारत की सृजनात्मक अर्थव्यवस्था (क्रिएटर इकोनॉमी) की अपार संभावनाओं को उजागर करने के लिए डिज़ाइन की गई एक अग्रणी पहल है। वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एंड एंटरटेनमेंट समिट (वेव्स) की तैयारी के हिस्से के रूप में शुरू की गई इन चुनौतियों का उद्देश्य एनिमेशन, गेमिंग, संगीत, ओटीटी कंटेंट और इमर्सिव स्टोरीटेलिंग जैसे प्रमुख क्षेत्रों में प्रतिभाओं को प्रेरित और सशक्त बनाना है। 14,000 से अधिक पंजीकरणों और स्टार्टअप्स, स्वतंत्र रचनाकारों और उद्योग के पेशेवरों की सक्रिय भागीदारी के साथ, यह पहल भारत की अभिनव भावना को प्रदर्शित करती है।आगे की राह: भारत को दुनिया तक ले जानाजब हम आईएफएफआई में सिनेमाई प्रतिभा के इस आठ दिवसीय उत्सव की शुरुआत कर रहे हैं, तो संदेश स्पष्ट है: भारत के रचनाकार वैश्विक रचनात्मक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। भारत सरकार नीतिगत सुधारों, बुनियादी ढांचे के विकास और नवाचार के लिए प्रोत्साहन के माध्यम से इस क्षेत्र का समर्थन करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।हमारे रचनाकारों के लिए, कार्रवाई का आह्वान सरल लेकिन गहरा है: 5G, वर्चुअल प्रोडक्शन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाएं। ऐसे प्लेटफ़ॉर्म का लाभ उठाएं जो भौगोलिक बाधाओं को पार करते हैं और ऐसी कहानियाँ बताते हैं जो भारत की अनूठी पहचान को दर्शाते हुए वैश्विक स्तर पर गूंजती हैं।भविष्य उन लोगों का है जो नवाचार करते हैं, सहयोग करते हैं और सहजता से सृजन करते हैं। आइए भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था प्रेरणा का प्रतीक बने, आर्थिक विकास, सांस्कृतिक कूटनीति और वैश्विक नेतृत्व को आगे बढ़ाए। आइए हम साथ मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर भारतीय रचनाकार एक वैश्विक कहानीकार बने और भविष्य को आकार देने वाली कहानियों के लिए पूरा विश्व भारत की ओर देखे।
- -गीत- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबेदुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)छद्म दंभ के दलदल में, सद्भाव पलता रहा।एक युद्ध अंतर्मन में , चुपचाप चलता रहा।।पीड़ा एक अबोली-सी, शूल बन चुभती रही।चिंताओं की अमरबेल, आप ही उगती रही।रंगीले ख़्वाब दिखा कर, मन सदा छलता रहा।।एक युद्ध……सुख-दुख के हिंडोले में, झूलता रहा जीवन।मानक में खरा उतरने, जूझता हुआ यौवन।नव सूरज उम्मीदों का, हार कर ढलता रहा ।।एक युद्ध…..लाभ-हानि का अंकगणित, रिश्तों को उलझाता ।सुलझ रहा जब एक सिरा, दूजा फँसता जाता ।उड़े नेह के सब पंछी, धन हाथ मलता रहा ।।एक युद्ध…….कौड़ी-कौड़ी जोड़ बना,स्वर्ण-महल सपनों का।चमके-दमके गलियारे, साथ नहीं अपनों का ।प्रेम की हल्की तपिश पा, मन-बर्फ गलता रहा ।।एक युद्ध…….
- - तकनीकी प्रगति के साथ पैदा होने वाले खतरों से नागरिकों को बचाने के लिए एक सुदृढ़ साइबर व्यवस्था से लैस भारत का निर्माण करना होगाआलेख -ज्योतिरादित्य एम.सिंधिया, केन्द्रीय संचार तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रीभारत में, दूरसंचार की उपयोगिता लोगों को जोड़ने से कहीं बढ़कर है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण उपकरण भी है, जो विकास के हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान का काम करता है। पिछले एक दशक में, देश में डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भारी विकास हुआ है। दुनिया में सबसे सस्ते डेटा दरों के साथ, भारत में अब 954.40 मिलियन से अधिक इंटरनेट ग्राहक हैं। इनमें से 398.35 मिलियन इंटरनेट ग्राहक ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। पिछले एक दशक में, ब्रॉडबैंड कनेक्शन 64 मिलियन से बढ़कर 924 मिलियन हो गए हैं। इस व्यापक कनेक्टिविटी ने एक डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, जो आज हमारे कुल आर्थिक परिदृश्य में 10 प्रतिशत का योगदान देता है। वर्ष 2026 तक इस योगदान के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पांचवें हिस्से या 20 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है। बैंकिंग सेवाएं, केवाईसी सत्यापन, डिजिटल भुगतान और मोबाइल-आधारित प्रमाणीकरण भारत की डिजिटल क्रांति की रीढ़ रहे हैं, जिससे जन धन, आधार, मोबाइल (जेएएम) की तिहरी सेवाओं को फलने-फूलने में मदद मिली है। अकेले अक्टूबर 2024 में, देश में आधार समर्थ भुगतान प्रणाली के माध्यम से 126 मिलियन डिजिटल लेनदेन दर्ज किए गए।हालांकि, यह डिजिटल क्रांति विकट चुनौतियां भी प्रस्तुत कर रही है। विशेष रूप से, तकनीकी प्रगति के साथ पैदा होने वाले खतरों से हमारे नागरिकों की सुरक्षा की चुनौती। हमारे हाथ में रखे जाने वाले सुविधा के ये उपकरण स्पैम कॉल, घोटाले वाले संदेश, टेलीमार्केटिंग के अनुचित कॉल, फ़िशिंग घोटाले, नकली निवेश एवं ऋण के अवसरों जैसे साइबर अपराधों के जाल से भी घिरे हैं।एक विशेष चुनौती सामने आई है: “डिजिटल अरेस्ट” के घोटाले आज चिंताजनक दर से बढ़ रहे हैं। इसकी कार्यप्रणाली के तहत – अपराधी सरकारी अधिकारियों के रूप में निर्दोष व्यक्तियों को डराने और जबरन वसूली का कार्य करते हैं। महज वित्तीय नुकसान से परे, ये दुर्भावनापूर्ण कार्यप्रणालियां आजीविका को बाधित करती हैं, विश्वास को खत्म करती हैं और उस आत्मविश्वास को कमजोर करती हैं जो नागरिकों में डिजिटल अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से शामिल होने के लिए आवश्यक है।हालांकि, इन उभरते खतरों के विरुद्ध त्वरित प्रतिक्रिया करते हुए हमारे अधिकारियों ने पूरी तत्परता दिखाई है। उन्होंने फर्जी तरीकों से हासिल किए गए मोबाइल कनेक्शनों को काट दिया है और 7.6 लाख शिकायतों के माध्यम से 2,400 करोड़ रूपये से अधिक की राशि की हानि को बचाया। यह महज आंकड़ों को ही नहीं, बल्कि जीवन की रक्षा और सपनों की सुरक्षा को भी दर्शाता है।अब जबकि हम डिजिटल स्पेस की रक्षा के लिए अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं, हमारे नागरिकों के सहयोग के बिना यह एक निरर्थक कवायद साबित होगी। प्रधानमंत्री (पीएम) नरेन्द्र मोदी का हाल ही में नागरिकों से “रुको, सोचो और एक्शन लो” का आह्वान इंटरनेट की छाया में बढ़ते खतरों को रेखांकित करते हुए तात्कालिकता और दूरदर्शिता को दर्शाता है। यह आह्वान केवल बढ़ते साइबर अपराधों के विरुद्ध प्रतिक्रिया भर नहीं है, बल्कि एक सतर्क और सक्रिय समाज के निर्माण की दिशा में एक अपील भी है। अपने हालिया ‘मन की बात’ संबोधन के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने समर्पित हेल्पलाइन 1930 और cybercrime.gov.in पोर्टल के माध्यम से संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करने की अनिवार्यता दोहराई। साइबर अपराधियों के विरुद्ध लड़ाई में नागरिकों की भागीदारी पर जोर बेहद अहम है।फिर भी, साइबर अपराधियों ने चालाकी बरतते हुए नई रणनीति विकसित कर ली है और अंतरराष्ट्रीय कॉलों को प्रच्छन्न तरीके से स्थानीय नंबरों (+91-xxxxxxxxxx) के रूप में दुरुपयोग कर रहे हैं। कॉलिंग लाइन आइडेंटिटी (सीएलआई) में किया जाने वाला चतुराई भरा यह हेरफेर इन कॉलों को वैध स्थानीय नंबर कॉल के रूप में छिपाना संभव बना देता है, जिससे धोखे का परिदृश्य और भी जटिल हो जाता है।दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करते हुए स्वदेशी रूप से विकसित अंतरराष्ट्रीय इनकमिंग स्पूफ्ड कॉल्स प्रिवेंशन सिस्टम लॉन्च किया है। यह उपकरण एक बड़ा बचाव साबित हो रहा है, जो 86 प्रतिशत नकली कॉलों– लगभग 1.35 करोड़ कॉल प्रतिदिन - को रोक रहा है।साइबर-सुरक्षित भारत के हमारे दृष्टिकोण के केन्द्र में नागरिकों का डिजिटल सशक्तिकरण है। ‘संचार साथी’ प्लेटफॉर्म इस मिशन का प्रतीक है, जिसमें चक्षु जैसे टूल हैं जो उपयोगकर्ताओं को संदिग्ध संदेशों, कॉल और व्हाट्सएप गतिविधियों की रिपोर्ट करने में समर्थ बनाते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शक्ति का लाभ उठाते हुए, डीओटी ने 2.5 करोड़ से अधिक धोखाधड़ी वाले मोबाइल कनेक्शनों का पता लगाया और उन्हें काट दिया, 2.29 लाख से अधिक मोबाइल हैंडसेटों को ब्लॉक कर दिया, 71,000 विक्रेताओं को ब्लैकलिस्ट कर दिया और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (टीएसपीएस) के माध्यम से 1,900 अपराधियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।युवा, तकनीक-प्रेमी आबादी के लाभ के साथ, हमने विद्यार्थियों को भी जमीनी स्तर की पहल में शामिल किया है। देश भर में कॉलेज के विद्यार्थियों ने संचार मित्र स्वयंसेवकों के रूप में कदम बढ़ाया है। ये स्वयंसेवक समुदायों तक पहुंच रहे हैं और ‘संचार साथी’ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं। ये युवा हिमायती नागरिकों को दूरसंचार धोखाधड़ी को रोकने के लिए उपलब्ध उपकरणों का उपयोग करने में मदद करते हैं। मई 2023 में अपनी स्थापना के बाद से, संचार साथी पोर्टल ने 7.7 करोड़ विजिट और प्रतिदिन औसतन दो लाख उपयोगकर्ताओं के साथ जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की है। इस पोर्टल ने 12.59 लाख चोरी और खोए हुए मोबाइल फोन का पता लगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस धारणा को मजबूत करते हुए कि साइबर रक्षा और सुरक्षा एक सामूहिक जिम्मेदारी है, यह पोर्टल अपने डिजिटल अनुभवों की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध नागरिकों के लिए एक आवश्यक संसाधन बन गया है।स्पैम कॉल, अनचाहे एसएमएस और टेलीमार्केटिंग के खतरे से निपटने के एक निर्णायक प्रयास के तहत, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने नागरिकों की सुरक्षा के लिए जवाबी उपायों की एक मजबूत श्रृंखला भी लागू की है। नियमों के उल्लंघन पर कठोर दंड लगाया जाएगा, जो डिजिटल विश्वास के उल्लंघन के प्रति शून्य-सहिष्णुता (जीरो-टोलेरेंस) की नीति का परिचायक है। अब तक, ट्राई ने असत्यापित प्रचारात्मक कॉल में संलग्न 800 से अधिक संस्थाओं और व्यक्तियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है, जबकि 1.8 मिलियन से अधिक नंबर काट दिए गए हैं। ऐसी सख्त कार्रवाई एसएमएस संबंधी धोखाधड़ी के मामले में भी की गई है, जिसके तहत 350,000 अप्रयुक्त और असत्यापित मैसेजिंग हेडर और 1.2 मिलियन कंटेंट टेम्पलेट को ब्लॉक कर दिया गया है।हमारी साइबर रक्षा रणनीति के केन्द्र में डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म (डीआईपी) है, जो 460 बैंकों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों सहित 520 से अधिक हितधारकों को एकजुट करता है। यह सहयोग वास्तविक समय में सूचना साझा करने और साइबर खतरों के विरुद्ध समन्वित कार्रवाई को संभव बनाता है।तेजी से विकसित हो रहे इस डिजिटल युग में, साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देना महज एक सावधानी भर नहीं है। बल्कि यह हमारे देश के डिजिटल भविष्य की सुरक्षा की दृष्टि से एक आवश्यक कदम है। एक मजबूत डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, तकनीक-प्रेमी युवा आबादी और मजबूत संस्थागत ढांचे के साथ, भारत ने खुद को डिजिटल इकोसिस्टम में एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित किया है। जैसे-जैसे हम इस जटिल परिदृश्य में आगे बढ़ रहे हैं, निरंतर सुधार और अनुकूलनशीलता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता दृढ़ बनी रहेगी। प्रधानमंत्री के आह्वान के अनुरूप कार्य करते हुए, हम एक सुदृढ़ साइबर व्यवस्था से लैस भारत का निर्माण करेंगे - जहां प्रत्येक नागरिक सुरक्षित, सशक्त और इस डिजिटल युग में फलने-फूलने के लिए तैयार हो।
- आलेख- श्री लक्ष्मीकांत कोसरिया, उप संचालक, जनसम्पर्करायपुर / मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने देवगुड़ी को संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हुए उन स्थलों के संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष प्रयासों पर जोर दिया है। उन्होंने संबंधित विभागों को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने और स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए है। देवगुड़ी के संरक्षण से न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोने में मदद मिलेगी बल्कि इससे क्षेत्रीय पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।छत्तीसगढ़ में सैकड़ों देवगुड़ी वनसमृद्ध जनजातीय क्षेत्रों में स्थित हैं। ये स्थल जनजातीय समुदायों द्वारा पूजनीय हैं एवं राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और पारिस्थितिक संपदा का अभिन्न हिस्सा हैं। स्थानीय जनजातीय देवताओं के निवास स्थल होने के कारण ये पारंपरिक अनुष्ठानों और त्योहारों का केंद्र हैं, साथ ही ये जैव विविधता के अनूठे केंद्र भी माने जाते हैं।छत्तीसगढ़ की देवगुड़ी में भंगाराम, डोकरी माता गुड़ी, सेमरिया माता, लोहजारिन माता गुड़ी, मावली माता गुड़ी, माँ दंतेश्वरी गुड़ी और कंचन देवी गुड़ी जैसे नाम शामिल हैं। ये सभी देवगुड़ी स्थानीय जनजातीय समुदायों की आस्थाओं में विशेष स्थान रखती हैं और प्रत्येक का अपना विशिष्ट महत्व है।छत्तीसगढ़ वन विभाग संयुक्त वन प्रबंधन, कैंपा, छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड एवं राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से इन पवित्र देवगुड़ियों के संरक्षण में सक्रिय रूप से प्रयासरत है। अब तक विभाग द्वारा 1,200 से अधिक देवगुड़ी स्थलों का दस्तावेजीकरण और संरक्षण किया जा चुका है, ताकि इन पारिस्थितिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री व्ही. श्रीनिवास राव, आईएफएस ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और वन मंत्री श्री केदार कश्यप जी छत्तीसगढ़ के वनसमृद्ध जनजातीय क्षेत्रों से संबंध रखते हैं। उनके नेतृत्व में वन विभाग देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण के लिए समर्पित है। ये प्रयास राज्य में सतत् वन प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण के हमारे व्यापक मिशन के अनुरूप हैं।देवगुड़ी के उपवन पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये दुर्लभ, संकटग्रस्त, और स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का आश्रय स्थल हैं, जहाँ इनका संरक्षण भी सुनिश्चित होता है। ये स्थल मृदा अपरदन को रोकने में सहायक भी हैं। जनजातीय समुदायों का मानना है कि इन पवित्र स्थलों की रक्षा देवताओं द्वारा की जाती है, इसलिए यहाँ पेड़ काटना, शिकार करना या किसी जीव को हानि पहुँचाना वर्जित है। इन उपवनों से जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान गहराई से जुड़ी हुई है और ये उनकी पारंपरिक प्रथाओं को जीवित रखते हैं। मड़ई, हरेली, और दशहरा जैसे त्योहारों पर यहाँ विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, एवं नवविवाहित जोड़े यहाँ आकर स्थानीय देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।देवगुड़ी स्थलों की पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा यहाँ विशेष भूनिर्माण कार्य किए गए हैं, जिनमें पगडंडियों का निर्माण, बाड़बंदी, और पर्यावरण के अनुकूल संरचनाएँ शामिल हैं।छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष श्री राकेश चतुर्वेदी ने कहा कि वन विभाग स्थानीय जनजातीय के सहयोग से देवगुड़ी के संरक्षण एवं संवर्धन में सक्रिय रूप से प्रयासरत है। इस पहल के अंतर्गत बड़ी संख्या में स्थानीय वनस्पति प्रजातियों का रोपण किया जा रहा है और पारंपरिक त्योहारों का पुनर्जीवन किया जा रहा है।राज्य जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव श्री राजेश कुमार चंदेले आईएफएस ने बताया कि इन उपवनों की जैव विविधता को पुनर्जीवित करने के लिए वन विभाग द्वारा साल, सागौन, बांस, हल्दू, बहेड़ा, सल्फी, आंवला, बरगद, पीपल, कुसुम बेल, साजा, तेंदू, बीजा और कई औषधीय पौधों जैसी देशी प्रजातियाँ लगाई गई हैं। उन्होंने कहा कि ये स्थल सांप, मोर, जंगली सुअर और बंदरों जैसे विविध वन्यजीवों के लिए समृद्ध पारिस्थितिक आवास प्रदान करते हैं। साथ ही जनजातीय समुदायों के बीच गैर विनाशकारी कटाई प्रथाओें को प्रोत्साहित किया जा रहा है।राज्य जैव विविधता बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीतू हरमुख ने बताया कि छत्तीसगढ़ के देवगुड़ी स्थलों को राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के लोक जैव विविधता पंजिका में आधिकारिक रूप से पंजीकृत किया जा रहा है। साथ ही इन पवित्र उपवनों की जैव विविधता का दस्तावेजीकरण करने के लिए शोध कार्य किए जा रहे हैं। हालाँकि, शहरीकरण, परंपरागत विश्वासों में कमी, अतिक्रमण, खरपतवार, पशुओं की चराई, और जलाऊ लकड़ी का संग्रह जैसी चुनौतियाँ इन उपवनों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ वन विभाग इनकी जैव विविधता और सांस्कृतिक महत्ता को संरक्षित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
- चिंताओं से मुक्ति, आजीविका, घर के कार्यों और परिवार को मिला ज्यादा समयकमलेश साहूघर के आंगन में नल से गिर रही पानी की धार ने महिलाओं का जीवन ही बदल दिया है। जल जीवन मिशन महज हर घर तक पेयजल पहुंचाने की योजना नहीं है। यह दूरस्थ अंचलों और गांवों में महिलाओं की दिनचर्या और जीवन में बड़ा बदलाव ला रहा है। गांवों में परंपरागत रूप से घर में पेयजल और अन्य जरूरतों के लिए पानी के इंतजाम का जिम्मा महिलाओं पर ही है। घर तक पानी की पहुंच न होने के कारण उन्हें हैंडपंपो, सार्वजनिक नलों, कुंओं या अन्य स्रोतों से रोज पूरे परिवार के लिए जल संकलन करना पड़ता है। रोजाना का यह श्रमसाध्य और समयसाध्य काम बारिश तथा भीषण गर्मी के दिनों में दुष्कर हो जाता है। कई इलाकों में गर्मियों में जलस्रोतों के सूख जाने के कारण दूर-दूर से पानी लाने की मजबूरी रहती है। परिवार के लिए पानी की व्यवस्था हर दिन का संघर्ष बन जाता है। महिलाओं के दिन के कई घंटे इसी काम में निकल जाते हैं।प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के हर घर तक नल से जल पहुंचाने के सपने को पूरा करने का जल जीवन मिशन पेयजल के साथ ही महिलाओं को कई समस्याओं से निजात दिला रहा है। घर तक स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल पहुंचने से वे कई चिंताओं से मुक्त हो गई हैं। अब रोज-रोज पानी के लिए बहुत सारा श्रम और समय नहीं लगाना पड़ता। इससे उन्हें घर के दूसरे कामों, बच्चों की परवरिश, खेती-बाड़ी एवं आजीविका के अन्य कार्यों के लिए अधिक समय मिल रहा है और वे इन कार्यों पर अपना ज्यादा ध्यान व समय दे पा रही हैं। बारहों महीने घर पर ही जलापूर्ति से लगातार बारिश तथा गर्मी के दिनों में पेयजल का संकट जल जीवन मिशन ने दूर कर दिया है। गर्मियों में जलस्तर के नीचे चले जाने से तथा बरसात में लगातार बारिश से जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। गुणवत्ताहीन पेयजल से पेट तथा निस्तारी के लिए खराब जल के उपयोग से त्वचा संबंधी रोगों का खतरा रहता है। जल जीवन मिशन ने सेहत के इन खतरों को भी दूर कर दिया है।जल जीवन मिशन के माध्यम से हर घर में रोज प्रति व्यक्ति 55 लीटर जल की आपूर्ति की जा रही है। घर तक जल की सुलभ और पर्याप्त पहुंच से महिलाओं के ‘किचन गार्डन’ (बाड़ी) के लिए भी पानी मिल रहा है। इसके लिए उन्हें अब अतिरिक्त समय और श्रम नहीं लगाना पड़ रहा। इस्तेमाल किए हुए जल का सदुपयोग करते हुए इससे वे अपनी बाड़ी में लगाए सब्जी-भाजी की सिंचाई कर रही हैं। उनका यह काम परिवार के सुपोषण का द्वार भी खोल रहा है।छत्तीसगढ़ में हर घर में नल से जल पहुंचाने के जल जीवन मिशन का 79 प्रतिशत से अधिक काम पूरा हो गया है। राज्य के 39 लाख 63 हजार 700 घरों में पाइपलाइन से पेयजल पहुंच रहा है। मिशन की शुरूआत के बाद से अब तक करीब 36 लाख 44 हजार नए घरों में नल कनेक्शन दिए गए हैं। प्रदेश में 4142 ऐसे गांव हैं जहां के शत-प्रतिशत घरों में नल से पानी पहुंच रहा है। जल जीवन मिशन के अंतर्गत 19 जिलों में 77 प्रतिशत से अधिक काम पूरे कर लिए गए हैं। हर घर तक नल से जल पहुंचाने के लिए धमतरी जिले में मिशन का 98 प्रतिशत, रायपुर में 94 प्रतिशत, राजनांदगांव में 89 प्रतिशत, जांजगीर-चांपा में 88 प्रतिशत, दुर्ग और मुंगेली में 87 प्रतिशत, बालोद में 86 प्रतिशत तथा गरियाबंद और सक्ती में 85 प्रतिशत काम पूर्ण कर लिया गया है।मिशन के तहत बेमेतरा में 84 प्रतिशत, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई और बस्तर में 83 प्रतिशत, कबीरधाम और महासमुंद में 82 प्रतिशत, रायगढ़ में 81 प्रतिशत, कोंडागांव में 79 प्रतिशत, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में 78 प्रतिशत तथा दंतेवाड़ा और बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में 77 प्रतिशत से अधिक काम पूर्ण हो चुके हैं। खारे पानी, भू-जल में भारी तत्वों की मौजूदगी या जल स्तर के ज्यादा नीचे चले जाने की समस्या से जूझ रहे गांवों में स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति के लिए 71 मल्टी-विलेज योजनाओं का काम प्रगति पर है। इनके माध्यम से 3234 गांवों के दस लाख से अधिक घरों में पेयजल के लिए सतही (नदी) जल पहुंचाया जाएगा। जल जीवन मिशन के कार्यों के लिए राज्य शासन द्वारा चालू वित्तीय वर्ष के बजट में राज्यांश के रूप में 4500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
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विशेष आलेख- पवन गुप्ता, संयुक्त संचालक जनसंपर्क
छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां तय करते समय इन दोनांे की अनदेखी नहीं की जा सकती, दोनों को ही बराबर महत्व देना पड़ता है। हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ सहित देश में माओवादी आतंक के खात्मे के प्रति केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है। केन्द्र के इस फैसले ने राज्य को समृद्धि के रास्ते में आगे जाने के संकल्प को और मजबूती दी है।
छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार बनते ही यहां मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य सरकार ने विकसित भारत और विकसित छत्तीसगढ़ के संकल्प को लेकर काम करना शुरू कर दिया है। लगभग तीन करोड़ की आबादी वाला यह राज्य आत्मनिर्भर और विकसित भारत के निर्माण में योगदान दे रहा है। साय सरकार ने छत्तीसगढ़ की बागडोर संभालते ही राज्य के विकास की दिशा को तय करने वाले दो प्रमुख कारकों आदिवासी समुदाय और किसान दोनों पर शुरू से ही ध्यान दिया है। राज्य में लोगों को स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन के वायदे को लेकर आयी साय सरकार आई.टी. और ए.आई आधारित प्रणाली को पूरी प्रतिबद्धता के साथ अपनाना शुरू कर दिया है।
राज्य में कृषक उन्नति योजना खेती-किसानी के लिए एक नया संबल बनी है। इसके चलते कृषि समृद्ध और किसान खुशहाल हुए हैं। राज्य में खेती-किसानी को नई ऊर्जा मिली है। राज्य में उन्नत खेती को बढ़ावा मिल रहा है। राज्य सरकार के किसान हितैषी फसलों का असर अब खेती-किसानी में साफ दिखाई देने लगा है। उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग खेती-किसानी में बढ़ा है। बीते खरीफ विपणन वर्ष में किसानों से 145 लाख मीट्रिक टन धान समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है, जिसके एवज में 32 हजार करोड़ रूपए भुगतान किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने संकल्प के अनुरूप राज्य के किसानों को दो साल के धान की बकाया बोनस राशि 3716 करोड़ रूपए का भुगतान किया। कृषक उन्नति योजना के अंतर्गत किसानों को धान की मूल्य की अंतर राशि के रूप में 13 हजार 320 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया है। इस तरह किसानों को कुल मिलाकर 49 हजार करोड़ रूपए सीधे उनके बैंक खातों में अंतरित किए गए।
छत्तीसगढ़ में किसानों से धान खरीदी शुरू से ही चुनौतीपूर्ण रही है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की सरकार ने समर्थन मूल्य पर 14 नवम्बर से धान खरीदी करने जा रही है। धान उपार्जन केन्द्रों में छत्तीसगढ़ सरकार के दिशा-निर्देश के मुताबिक सभी तैयारियां की जा रही है। इस साल राज्य में बेहतर बारिश एवं अनुकूल मौसम के चलते धान के विपुल उत्पादन की उम्मीद है। इसको देखते हुए राज्य में समर्थन मूल्य पर 160 लाख मीटरिक टन धान उपार्जन अनुमानित है। राज्य में किसानों से 31 जनवरी 2025 तक धान की खरीदी की जाएगी।
राज्य के किसानों को खेती-किसानी के लिए वर्तमान खरीफ सीजन में 6500 करोड़ रूपए के अल्पकालीन ऋण बिना ब्याज के दिए जा चुके हैं। अधिक से अधिक किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। यहां के किसान अब ई-नाम पोर्टल (कृषि बाजार) के माध्यम से अपने उपज का अधिकतम मूल्य प्राप्त कर सकेंगे। किसानों के हित में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन किया है। इसके तहत अन्य प्रदेश के मंडी बोर्ड अथवा समिति के एकल पंजीयन अथवा अनुज्ञप्तिधारी व्यापारी एवं प्रसंस्करणकर्ता, राज्य के किसानों से उनकी उपज खरीद सकेंगे, इससे उत्पादक किसानों को लाभ होगा। किसानों को उन्हें पंजीयन की जरूरत नहीं होगी।
राज्य के बस्तर और अन्य हिस्सों में माओवादी आतंक को समाप्त करने के लिए सख्ती से कदम उठाए गए हैं। इसमें केन्द्र और राज्य सरकार आपसी तालमेल बनाए हुए हैं। माओवादी आतंक भी अब कुछ ही क्षेत्रों में सिमट कर रह गया है। यहां नियद नेल्लानार जैसी नवाचारी योजना से लोगों का सरकार के प्रति फिर से विश्वास लौट रहा है।
माओवादी आतंक से प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा कैम्प के आस-पास के दायरे में लोगों की मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ केन्द्र और राज्य सरकार के शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाया जा रहा हैं। माओवादी आतंक से प्रभावित जिलों में युवाओं को तकनीकी व्यवासायिक पाठ्यक्रम में पढ़ाई के लिए ब्याज मुक्त ऋण की सुविधा दी जा रही हैं। इस पहल से आदिवासी समुदाय की युवाओं को आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा।
वनवासियों की आय बढ़ाने के लिए वनोपज के संग्रहण और प्रसंस्करण पर सरकार विशेष ध्यान दे रही हैं। लघु वनोपज की खरीदी समर्थन मूल्य पर हो रही है। इन लघु वनोपजों का वनधन केन्द्रों में प्रसंस्करण भी किया जा रहा है। वनवासियों को तेन्दूपत्ता पारिश्रमिक भी बढ़ाकर 5500 रूपए प्रति मानक बोरा किया गया है। महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए महतारी वंदन योजना में 70 लाख महिलाओं को हर महीने एक-एक हजार रूपए की राशि उनके बैंक खाते में सीधे अंतरित की जा रही है। अब तक इसकी नौ किस्त जारी की जा चुकी है।
प्रदेश में नई शिक्षा नीति भी लागू कर दी गई है। राज्य में मातृभाषा में बच्चों को शिक्षा देने के लिए नए पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं। जनजातीय समुदाय के बच्चों के लिए बेेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 75 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। माओवादी प्रभावित क्षेत्र के बच्चों के लिए 15 प्रयास आवासीय विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। इन विद्यालयों में मेधावी विद्यार्थियों को अखिल भारतीय मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराई जा रही हैं। नई दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी के लिए संचालित यूथ हॉस्टल में सीटों की संख्या 50 से बढ़ाकर 185 कर दी गई है। - - लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबेदुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)रश्मिरथी का हुआ आक्रमण, तम ने राजपाठ सब हारा।विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।करते स्वच्छ कंटकित पथ को, मानें सबके दुख को अपना।जग-कल्याणी भाव हृदय में, देखें हरदम जन-हित सपना।राष्ट्रधर्म सर्वोपरि समझें, न्यौछावर तन-मन-धन कर दें।धरती माता के आँचल को, प्रियता के पुष्पों से भर दें।दिल में दीप जलाने वाले , कर जाते हैं जग उजियारा ।विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।अंतस के कलुष-कुतर्कों को, ज्ञानदीप आलोकित करता।स्त्रोत जहाँ हो पावन प्रेमिल, शुचि स्नेह-नीर अविरल झरता।द्वेष-दंभ की बढ़ती खाई, दूरी लाती संबंधों में।टूटी कड़ियाँ परिवारों की, चलती केवल अनुबंधों में।जागृत जीवन-मूल्य करें तो, बचा सकेंगे भाईचारा।।विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।संकल्पों की शक्ति संपदा, दृढ़ करती है आधारों को।स्त्रोतस्विनी उद्दाम वेग से, देती ज्यों बहा किनारों को।भारत-भू के अनमोल रत्न, प्रेरित करते जनमानस को।संतों गुरुओं की वाणी से, ज्योतित कर लेना अंतस को।प्यास बुझाती और तारती, सुरसरिता की निर्मल धारा।।विजयमाल हो कंठ उसी के, जिसने जीवन जग पर वारा।।
- - कहानी- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबेदुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)प्रशांत के फोन आते ही रवि की नजर घड़ी पर चली गई । रात के एक बजे उसे क्या काम आ गया । रवि समझ नहीं पा रहा था कि प्रशांत ने उसे तुरंत अपने घर आने के लिए क्यों कहा । शायद उसकी तबीयत ठीक नहीं, ऐसा लगता है । वैसे भी वह मम्मास बॉय ही रहा शुरू से , वो तो नौकरी के कारण उसे घर से दूर रायपुर आना पड़ा.. नहीं तो वह मम्मी पापा को छोड़कर कभी नहीं आता । शुक्र है यहाँ उसके बचपन का दोस्त रवि था, उसके घर कुछ दिन रहकर वह एक किराये के घर में शिफ़्ट हो गया था । रवि और उसकी पत्नी तो यही चाहते थे कि वह उनके साथ रहे, पर कितने दिन कोई किसी के साथ रहे .. दो- चार दिन की बात तो थी नहीं ।उन दोनों ने न जाने कितने सारे घर देखे पर कोई पसन्द ही नहीं आ रहा था । रवि का एक दोस्त था सुमित जो न्यूयार्क में रहता था । उसका बंगला खाली पड़ा था और उसने रवि को यह जिम्मेदारी दी थी कि वह उसके लिए किरायेदार ढूँढे ताकि बंगले की उचित देखभाल होती रहे । हालांकि प्रशांत का बजट इतने बड़े बंगले के लायक नहीं था , लेकिन रवि के कहने पर बंगले के आधे हिस्से को बंद करके आधे हिस्से में प्रशांत को रहने की अनुमति सुमित ने दे दी थी ।रवि तुरंत प्रशांत के घर जाने के लिए निकल पड़ा । रात्रि की नीरवता और अंधेरे में पूरा शहर किसी बच्चे की भाँति निश्चिंत सो रहा था । प्रशांत घर के बाहर ही रवि की प्रतीक्षा कर रहा था । वह बहुत घबराया सा दिख रहा था, इस कड़ाके की ठंड में भी वह पसीने से तरबतर था । हाथ - पैर कांप रहे थे और वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था । रवि प्रशांत को साथ लेकर अपने घर आ गया था और उसे दवा देकर सुला दिया था ।दूसरे दिन सुबह प्रशांत की हालत सामान्य हुई तब रवि ने उससे रात की घटना पर प्रश्न किया - "आखिर वह कौन सी घटना हुई जिसने तुम्हें स्तब्ध कर दिया प्रशांत ?प्रशांत ने बताया - जब से मैं वहाँ रहने गया था मुझे कुछ न कुछ अजीबोगरीब घटनाएँ होते दिखाई दी पर मैंने उन्हें उतनी गम्भीरता से नहीं लिया । रात को अजीब सी आवाजें सुनाई देतीं पर कल पहली बार मैंने बंगले के बन्द वाले हिस्से की खिड़की में किसी को बैठे देखा । वह एक औरत थी जिसका चेहरा बहुत डरावना था, उसके बाल लंबे व बिखरे हुए थे ।आँखें बड़ी - बड़ी और लाल दिखाई दे रही थी मानो उनमें अंगारे भरे हों । मैं वह सब देखकर बहुत डर गया था, बड़ी मुश्किल से तुझे फोन कर पाया । आगे का हाल तो तू जानता ही है ।मुझे तो बहुत अचरज हो रहा है ऐसा सुनकर क्योंकि मैंने उस बंगले के बारे में कोई बात नहीं सुनी । हो सकता है यह तुम्हारा भरम हो । उस घर को जब सुमित ने लिया तब भी उसके बारे में हमें कुछ गलत नहीं कहा किसी ने । सुमित के विदेश जाने के बाद उसकी मम्मी वहाँ अकेली बहुत वर्षों तक रही । उनके निधन के बाद कई लोग वहाँ रहे तो भी किसी ने कुछ नहीं कहा । यदि तुम्हारे मन में कोई शंका है तो तुम अब वहाँ मत जाओ । अभी यहीं हमारे साथ रहो, फिर कोई दूसरा मकान देख लेते हैं ।अरे नहीं यार ! ऐसी भी कोई बात नहीं, रहकर देखते हैं.. वैसे कोई भूत हो तो भी रह लेंगे... एक से भले दो - प्रशांत ने हँसते हुए कहा । अच्छा बच्चू , कल की हालत भूल गया क्या, अभी इतनी हिम्मत आ गई कि भूत के साथ रहने की इच्छा हो रही है । चल देख लेते हैं , यह किसी की बदमाशी भी हो सकती है, ध्यान रखना । उस घर पर बहुत लोगों की नजर थी खरीदने के लिए , पर सुमित की ढेर सारी यादें जुड़ी हैं उस घर से इसलिए वह बेचना नहीं चाहता । परदेश में आखिर कब तक रहेगा हो सकता है कभी लौट भी आये ।उस दिन के बाद प्रशांत पुनः अपनी दिनचर्या में सामान्य हो गया । पर कभी - कभी कई घटनाएं उसे चौंका देती थीं, मानो कोई उसका बहुत ध्यान रख रहा हो । प्रशांत को कई बार माँ की याद आ जाती थी और वह वीडियो कॉल करके उनसे मिलने की अपनी इच्छा पूरी कर लेता । पिताजी का स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह उसके साथ नहीं आ सकती थी । प्रशांत सुबह कुछ नाश्ता कर ड्यूटी चला जाता और वहीं कुछ खा लेता , शाम को फल , दूध लेकर घर आता और रात का खाना स्वयं बना लेता । अकेले टी वी देखकर कितना टाईम पास करता तो इसी बहाने थोड़ा व्यस्त भी रहता , वैसे वह मम्मी का लाडला था तो किचन में चक्कर लगाता रहता । कभी - कभी मम्मी की मदद भी कर देता । यहाँ घर की सफाई व अन्य कार्यों के लिए उसे एक नौकर शिव भी मिल गया था । कई बार रात का खाना बनाते हुए उसका आधा -अधूरा छोड़ा हुआ काम उसे सुबह खत्म हुआ मिलता , उसे घर में किसी की उपस्थिति महसूस होती थी एक छाया सी ,....पर उसने प्रशांत को कभी कोई चोट नहीं पहुंचाई । कुछ दिन पहले शिव काम पर नहीं आया था तो उस दिन ऑफिस जाने में प्रशांत को देर हो गई और हड़बड़ी में वह दूध गैस पर चढ़ाकर बन्द करना भूल गया । ऑफिस में अचानक याद आने पर दौड़ा - भागा वापस आया तब तक तीन - चार घण्टे बीत चुके थे । दूध के जलने से अधिक उसे गैस के खुले रहने का डर था कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाये , पर जब वह घर पहुँचा तो उसने गैस बंद पाया मानो किसी ने बंद किया हो । एक - दो बार ऐसी कई दुर्घटनाएं होते - होते बचीं । भूत प्रेत तो नहीं पर यहाँ उसकी सहायक कोई दिव्य - शक्ति जरूर है , उसने सोचा ।उस रात की तरह खिड़की पर उस औरत की परछाई उसे कई बार दिखी पर अब उसे डर नहीं लगता था हाँ वह सच जरूर जानना चाहता था । वह परछाई अक्सर उसे रात के वक्त दिखती थी खिड़की पर कोहनी टिकाये मानो उसे किसी के आने का इंतजार हो । एक दिन शिव को सफाई करते हुए एक डायरी मिली जिसे वह प्रशांत को देकर गया । यह प्रशांत की डायरी नहीं थी पर उसे पढ़ने का मोह वह छोड़ नहीं पाया ।दिव्याभा ...हाँ यही नाम लिखा था उस पर । पढ़ना शुरू किया तो पढता ही चला गया । उसने अपनी पूरी जिंदगी उन पन्नों में उतार दी थी । एक स्त्री जीवन के विभन्न पक्षों का सजीव चित्रण था । उसके मन की गहराइयों में डूबी पीड़ा शब्दों में उभर आई थी । उन पन्नों से लगाव हो गया था प्रशांत को , इतना अधिक कि उसे न खाने की सुध रही न पीने की । वीकेंड कैसे बीता पता ही नहीं चला । वह एक प्यारी व अपने माता - पिता की चिंता करती बेटी थी तो एक आज्ञाकारी जिम्मेदार पत्नी भी । फिर बेटे के जन्म के बाद डायरी के पन्ने खाली छूट गए थे जो उसका अपने बच्चे की देखभाल की व्यस्तता बता रहा था । कुछ वर्षों के बाद पुनः डायरी लिखना प्रारंभ हुआ शायद बेटे के बड़े होने के बाद उसने फिर से लिखा हो । उसके बाद बेटे के विदेश जाने के बाद के पन्ने एक माँ के दर्द से लिखे हुए थे । कितनी करुणा थी उन शब्दों में , मानो वे स्याही से नहीं आँसुओं से लिखे गए हों । इंतजार का हर पल कितना लम्बा होता है, दिव्याभा ने हर पल अपने बेटे का इंतजार किया था, उसकी शादी, बच्चे के जन्म पर मिलने की इच्छा बड़ी शिद्दत से व्यक्त की थी । बेटा बहाने ही बनाते रहा, काम की व्यस्तता क्या मनुष्य को अपने प्रियजनों से अधिक प्रिय हो सकता है । लोग क्यों भूल जाते हैं कि सुख - सुविधाएं इंसान के लिए है पर इंसान उसके लिए अपना सब कुछ भूल जाता है । जिंदगी क्या इंतजार करती है मनुष्य के सफल होने का, वह तो अपना कार्य करती रहती है । कहाँ कितनी देर रुकना है... यह तो मनुष्य को ही तय करना रहता है।प्राथमिकता किसे देनी है यह तो उसके हाथ में है, मनुष्य अपनी मुट्ठी में वक्त को भर कर रख लेना चाहता है और कल के लिए अपनी खुशियों को स्थगित करते रहता है जो कभी आता ही नहीं । अपने बेटे और उसके परिवार का इंतजार करते एक माँ की आँखें पथरा गई, काया हड्डी के ढाँचे में बदल गई और वह उन अस्थियों के विसर्जन के लिए भी नहीं आ पाया । माँ का शरीर तो चला गया पर आत्मा यहीं रह गई ।प्रशांत की आँखों से आँसू अनवरत बह रहे थे ...तो वह एक माँ है । माँ तो माँ होती है चाहे वह सदेह हो, भूत - प्रेत हो या उसकी रूह ..वात्सल्य से भरी । प्रशांत की नजरें उस खिड़की पर लगी थी...आँसुओं के धुंधलके के पार आज वह उस माँ को देखना व नमन करना चाहता था ।
- स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबेबढ़े देश का मान, तीज- त्यौहार से सदा ।भारत की पहचान , भाँति - भाँति के पर्व से ।। 1निर्जला निराहार , तीजा पर्व मना रहीं ।खुशियाँ मिले अपार , गौरी के आशीष से ।। 2पावन यह त्यौहार, रंग भरे संसार में ।सिखलाता व्यवहार, शिक्षा दे तप त्याग की ।। 3जग में भरे उजास, शुभ दीपावली से सदा ।भरे मन में प्रकाश, उर का अँधियारा मिटा ।। 4मिले सबको रोजगार, भूखे को रोटी मिले ।हो जाये त्यौहार, घर में जब चूल्हा जले ।। 5देना यह वरदान , गौरी माता तुम मुझे ।रखना मेरा मान , सदा सुहागन मैं रहूँ ।। 6लेकर पूजन थाल , गौरी अर्चन को चली ।तृतीय तिथि हर साल , शुक्ल पक्ष यह भाद्र का ।। 7जीवन भर का साथ , अमर सुहाग मेरा रहे ।रखना सिर पर हाथ , कृपा करो माँ पार्वती ।। 8जीवन का क्या मोल , पति परमेश्वर के बिना ।रिश्ता यह अनमोल प्रेम के बंधन बंधा ।। 9कहीं मने त्यौहार , कोई उदास है कहीं ।सुखी रहे संसार , सीखें जब हम बाँटना ।। 10
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विशेष आलेख= एल.डी. मानिकपुरी, सहायक जनसंपर्क अधिकारी
आज जब पूरी दुनिया डिजिटल क्रांति की ओर बढ़ रही है, भारत भी इस बदलाव की अगुवाई कर रहा है। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ राज्य भी ’’डिजिटल युग’’ में कदम से कदम मिलाते हुए अपने विकास की कहानी लिख रहा है। बीते कुछ महीनों में, छत्तीसगढ़ ने डिजिटल प्रगति और सुशासन की दिशा में जो उल्लेखनीय कदम उठाए हैं, वे न सिर्फ राज्य को विकास की ओर ले जा रहे हैं, बल्कि प्रदेश के नागरिकों के जीवन को भी सरल और सुविधाजनक बना रहे हैं। यह विकास प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की गारंटी और मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के कुशल नेतृत्व का प्रमाण है।डिजिटल क्रांति की ओर बढ़ता छत्तीसगढ़छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ’’ई-ऑफिस’’ प्रणाली लागू की है, जिसके माध्यम से सरकारी दस्तावेजों का प्रबंधन, सुरक्षा और फाइलों का निपटारा तेजी से किया जा रहा है। इस कदम से न केवल सरकारी प्रक्रिया की गति बढ़ी है, बल्कि कामकाज में पारदर्शिता भी आई है। इसी तरह मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ मुख्यमंत्री कार्यालय छत्तीसगढ़ शासन) में भी डिजिटल रूपांतरण की दिशा में कदम उठाए गए हैं। ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से नागरिकों को मुख्यमंत्री के रोजमर्रा के कार्यक्रम, राज्य की योजनाओं और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के साथ विभिन्न जिलों की जानकारी उपलब्ध होने से आम लोगों को भी सहूलियत होगी। यह डिजिटल पहल न केवल सरकारी कार्यप्रणाली को सरल बना रही है, बल्कि नागरिकों को भी राज्य के विकास में भागीदार बना रही है।’स्वागतम’ पोर्टल: समय और सुविधा का संगमछत्तीसगढ़ सरकार ने आम नागरिकों के लिए मंत्रालय में प्रवेश को सुगम बनाने के लिए ’स्वागतम’ पोर्टल की शुरुआत की है। इस पोर्टल के माध्यम से बड़े शहर हो या सुदूर क्षेत्र के लोग ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं और उन्हें एसएमएस और ई-मेल के जरिए प्रवेश पास प्राप्त होगा। इससे समय की बचत होगी और कतारों में लगने की आवश्यकता नहीं होगी। यह पहल न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बना रही है, बल्कि आम जनता के लिए सरकार के द्वार खोल रही है।दस महीनों में सुशासन की ओर कदममुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ ने करीब दस महीनों में ’’सुशासन’’ की एक नई परिभाषा गढ़ी है। सरकार ने विकास के साथ-साथ आम जनता का विश्वास वापस पाने में भी सफलता हासिल की है। ’मोदी की गारंटी’ को पूरा करने के लिए विष्णु सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। इन दस महीनों में सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान दिया गया, जिससे जनता को सीधे लाभ मिल रहा है।डिजिटल छत्तीसगढ़ : भविष्य की ओर बढ़ता राज्यछत्तीसगढ़ का डिजिटल सफर न केवल राज्य को प्रगति के पथ पर ले जाएगा, बल्कि यह भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी राज्य को तैयार कर रहा है। डिजिटल माध्यमों का प्रभावी उपयोग जहां सरकारी प्रक्रियाओं को तेज और पारदर्शी बना रहा है, वहीं यह नागरिकों के लिए भी एक आसान और त्वरित सेवा का माध्यम बन रहा है। ’’मोदी की गारंटी’’ और ’’विष्णु के सुशासन’’ में छत्तीसगढ़ जिस तेजी से डिजिटल युग की ओर कदम बढ़ा रहा है, वह न केवल राज्य के वर्तमान को समृद्ध बना रहा है, बल्कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ को एक मॉडल राज्य के रूप में स्थापित करेगा। यह डिजिटल क्रांति प्रदेश के विकास की कहानी का नया अध्याय लिख रही है और छत्तीसगढ़ को एक नई दिशा में ले जा रही है। - - लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबेदुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)मात शैलपुत्री सदा , करना जग-उत्थान ।मिटे आसुरी वृत्तियाँ , मूल्यों का हो गान ।।ब्रह्मचारिणी मातु को , करते कोटि प्रणाम ।योग-क्षेम गृहवास हो , सफल रहे हर काम ।।मात सिद्धिदात्री नमन , श्रद्धा कर स्वीकार ।रोग शोक संताप को , दूर करें हर बार ।।जीवन-सुख संतोष हो , उपजे मन में शांति ।द्वेष क्लेश फटकें नहीं , यश वैभव की कांति ।।शांत रूप है आठवां , करती शिव अनुराग ।मात महागौरी कृपा , रक्षित करे सुहाग ।।श्वेत वृषभ वाहन बना , गौर वर्ण है मात ।पूर्ण मनोरथ माँ करें , भक्ति शक्ति निष्णात ।।कालरात्रि माँ सुन विनय , भक्त करें मनुहार ।बुरी शक्तियों को मिटा , देना जगत सँवार ।।दूर करें संकट सभी , दुख का करें विलोप ।दीर्घ आयु जीवन मिले , निष्फल काल-प्रकोप ।।सदाशयी माता करें , कृपा जगत अविलंब ।शक्ति मिले संकट हटे , गिरे रोध के खंब ।।षष्ठी को कात्यायिनी , आतीं अपने द्वार ।कलुष रूप हर दैत्य का , कर देती संहार ।।पंचम दिन नवरात्रि का , सिद्धि प्रदात्री स्कंद ।कार्तिकेय की मात श्री, काटे भव-भय फंद ।।अष्टभुजी तेजोमयी , सूर्यप्रभा भी नाम ।कूष्मांडा देवी तुम्हें , करते कोटि प्रणाम ।।दिव्य कांति है सूर्य सम , रच डाला ब्रह्मांड ।चंड-मुंड संहारिका , भोग लगे कूष्मांड ।।मात चन्द्रघंटा करें , सभी बुराई नष्ट ।अर्द्ध चंद्र ले भाल पर , हरतीं सारे कष्ट ।।सिंह-सवारी पर चलीं , करने जग-भयमुक्त ।मूरत संबल साहसी , धी धृति बल से युक्त ।।शक्ति बनी शिव की सदा , मुख-मंडल में ज्योति ।शुचिता शुभता से भरें , पग धरतीं जिस धाम ।।अब के इस नवरात्र में , खा लें हम सौगंध ।निर्भय घूमें बेटियाँ , रक्षा करें प्रबंध ।।
- - अगली सदी की गाथा और अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व के लिए भारत की कुंजी
-आलेख- अनुराग सक्सेना, नीतिगत मामलों के विशेषज्ञ और ऑपएड स्तंभकार हैं।पश्चिमी देशों ने नवाचार, बौद्धिक संपदा (आईपी) और तकनीकी प्रगति पर सदियों से अपना फोकस निरंतर बनाए रखने का लाभ उठाया है। अक्सर विनिर्माण और सेवा की तुलना में सृजन को महिमामंडित करके, इन देशों ने न केवल अपने आविष्कारों का आर्थिक लाभ प्राप्त किया है, बल्कि अपनी अवधारणाओं को वैश्विक स्तर पर निर्यात भी किया है। इन उपायों से वे आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित हुए हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने इंटरनेट, फार्मास्यूटिकल और एयरोस्पेस जैसी विघटनकारी तकनीकों के माध्यम से उद्योग जगत को बदल दिया। इसके परिणामस्वरूप, उनके उत्पादों और सेवाओं की वैश्विक मांग पैदा हुई। इसी तरह, यूरोपीय देशों ने इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे- रेलमार्गों के आर्थिक लाभ), ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग और लक्जरी सामान जैसे क्षेत्रों में नेतृत्व किया है, जहां नवाचार और बौद्धिक संपदा (आईपी) उनके वैश्विक प्रभुत्व के मूल में हैं।इसके विपरीत, भारत और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं ने ऐतिहासिक रूप से विनिर्माण और सेवाओं पर अपने विकास को टिकाया है। यह दोनों ही क्षेत्र मूल्य-संवर्धन के परिदृश्य में निचले स्थान पर हैं। यह दृष्टिकोण, औद्योगिकीकरण और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी होने के बावजूद, नवाचार या आईपी सृजन को प्राथमिकता नहीं देता है। वास्तव में बौद्धिक संपदा आर्थिक लाभ उठाने योग्य है। यही कारण है कि ये देश उन्नत प्रौद्योगिकियों के निर्माता बनने के बजाय उपभोक्ता बन गए हैं।हालांकि, चीन ने हाल के वर्षों में इस मॉडल को तोड़ दिया है। इसने नवाचार, बौद्धिक संपदा और तकनीकी प्लेटफार्मों में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। देश ने दूरसंचार, सोशल मीडिया और गेमिंग जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीकों का विकास किया है। हुआवेई, टिकटोक और टेंसेंट जैसी वैश्विक दिग्गज कंपनियां इसके उदाहरण हैं। इन प्रयासों ने चीन की घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है। इतना ही नहीं, इसे एक मजबूत वैश्विक निर्यातक के रूप में स्थापित किया है, और इसे दुनिया भर के अमूल्य डेटा तक पहुंच प्रदान की है।दूसरी ओर, भारत ने एक अलग तीव्र प्रगति का अनुसरण किया। उत्पादीकरण और प्रौद्योगिकी निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, भारत संपर्क केंद्रों, वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) और आईटी सेवाओं का पर्याय बन गया। इस स्थिति ने भारत को "दुनिया का बैकरूम" का नाम दिया। यह एक ऐसी भूमिका है, जिसने आर्थिक रूप से लाभकारी होने के बावजूद, नवाचार और उच्च-मूल्य प्रौद्योगिकी निर्माण के मामले में देश को पिछड़ा बना दिया। जबकि भारत ने सेवाएं प्रदान करने में उत्कृष्टता हासिल की, इसने अक्सर अन्य देशों के नवाचार और उत्पाद विकास से जुड़े प्रयासों का नेतृत्व करने के बजाय उनका समर्थन किया।हालांकि, पिछले दशक में भारत के वैश्विक रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है। भारत एक भू-राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा है और इसने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी ताकत दिखाई है। कूटनीतिक रूप से, भारत ने वैश्विक मंच पर एक अधिक मुखर स्थिति अपनाई है, अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी स्वायत्तता बनाए रखते हुए प्रमुख शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी भी कायम की है। भू-राजनीतिक क्षेत्र में, भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया है और क्वाड जैसी पहलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, ताकि भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला किया जा सके। व्यापार के मोर्चे पर, भारत ने व्यापार सौदों पर फिर से बातचीत की है और इसे खासकर कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक व्यवधानों के मद्देनजर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण हस्ती के रूप में देखा जा रहा है।यह नई मुखरता इस बात को निहित करती है कि भारत का “क्रिएट इन इंडिया” पर वर्तमान ध्यान समयोचित और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्यों है। नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने और स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास का समर्थन करके, भारत आर्थिक रूप से और सॉफ्ट पावर के मामले में, अगली सदी पर प्रभुत्व कायम करने के लिए खुद को तैयार कर रहा है। आर्थिक रूप से, सृजन पर ध्यान केंद्रित करने से भारत मूल्य श्रृंखला में ऊपर उठ सकेगा, अपनी बौद्धिक संपदा पर अधिक लाभ अर्जित कर सकेगा और विदेशी प्रौद्योगिकियों पर अपनी निर्भरता कम कर सकेगा। सॉफ्ट पावर के मामले में, मीडिया और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों में अग्रणी होने से भारत को विकृत पश्चिमी कथानकों पर लगातार प्रतिक्रिया करने के बजाय अपने खुद के कथानकों को आकार देने की सुविधा मिलेगी।जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आह्वान किया, "आइए हम सब मिलकर 'क्रिएट इन इंडिया’ यानी ‘भारत में सृजन करें' आंदोलन शुरू करें।" ऐसे में हर कोई इसके दूसरे और तीसरे क्रम के प्रभावों, खासकर कथानक-सुधार और हमारे सभ्यतागत विचारों को वैश्विक स्तर पर निर्यात करने पर पड़ने वाले प्रभाव को नहीं समझ पाया। ईस्टमैन कलर और विनाइल रिकॉर्ड की "प्रौद्योगिकियों" ने अमेरिका को अपने नायकों और रॉकस्टार को आगे बढ़ाने में मदद की। एक्सआर और गेमिंग का युग भारत को अपने नायकों और रॉकस्टार को आगे बढ़ाने में मदद करेगा।सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एंड एंटरटेनमेंट समिट (वेव्स) 2025 के तत्वावधान में 'क्रिएट इन इंडिया' चैलेंज की घोषणा की। यह एक अनूठा आयोजन है, जो दुनिया के सामने हमारे एवीजीसी सेक्टर के भविष्य को दर्शाता है। यह ब्रॉड स्पेक्ट्रम चैलेंज 25 प्रकार के कंटेंट और गेम में हमारी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को प्रदर्शित करती है। भारत को ऐसे और भी दृश्यमान समारोहों की आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि दुनिया हमारी रचनात्मकता और हमारी महत्वाकांक्षा को देखे।हालांकि, इस क्षमता के द्वार को पूरी तरह से खोलने के लिए, भारत को भी भारी निवेश करना होगा। एवीजीसी सेक्टर डिजिटल इंटरैक्शन और मनोरंजन के भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है। भविष्य के इस द्वार को खोलने के लिए कौशल-विकास, निवेश पाइपलाइन, ऐसे प्लेटफॉर्म हैं, जो मायने रखते हैं। इसके लिए एक प्रगतिशील नियामक प्रणाली के साथ-साथ और भी कई आवश्यकताएं हैं। यह वास्तव में एक कठिन काम है। लेकिन यहां गंगोत्री स्थापित करके, भारत आने वाले वर्षों के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था और कथानक में अपना नेतृत्व सुनिश्चित कर सकता है।