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लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे*
घर के आँगन-द्वार सजे हैं,
सिंदूरी रंगोली से ।
साँझ उतरती धीरे-धीरे,
आसमान की डोली से ।।पुरवाई शीतलता लाती,क्लांत-शांत है जग सारा।
शीघ्र पहुँच विश्राम चाहता , दिनकर पथिक थका हारा।
नीड़ों पर हलचल आवाजें, बाट जोहते दाने की ।
प्रातकाल से माँ निकली है, जुगत लगाने खाने की।
मुस्कानें खिलतीं आने पर,
निकले क्या-क्या झोली से।।
साँझ उतरती धीरे-धीरे,
आसमान की डोली से ।।दिन भर का सब हाल सुनाते,खुली पोटली अनुभव की।
मित्रों से अनबन सुलझ गई, बात तोतली शैशव की ।
सदा अभावों से उलझी माँ, ढकती कमियों की पेटी ।
मात-पिता के हालातों को, समझ रहे बेटा-बेटी ।
सुख का सांध्य-दीप जल जाता,
सबकी हँसी-ठिठोली से।
साँझ उतरती धीरे-धीरे,
आसमान की डोली से ।।संध्या के परिदृश्य कई हैं,खुशी कहीं पसरा मातम।
कहीं विरह में आँसू बहते,कहीं हो रहा है संगम।
मुश्किल पल में आगे बढ़ते,पलते नैनों में सपने ।
अपना-अपना युद्ध लड़ें सब,संग चले हैं जो अपने ।
सुख की तितली जहाँ थिरकती,
खुशी छलकती बोली से।।
साँझ उतरती धीरे-धीरे,
आसमान की डोली से ।। -
पुण्यतिथि पर विशेष
साहिर लुधियानवी हिंदी सिनेमा के बड़े नग़्मा-निगारों में से एक थे। जिस समय उनका गीत लेखन के क्षेत्र में आगमन हुआ वह दौर भारी हंगामाखेज था, चारों तरफ तक़्सीम की त्रासदी पसरी हुई थी। इंसानियत को शर्मसार करने की कोई कोर-कसर नहीं बची थी। साथ ही आलमी सतह पर दूसरी जंग-ए-अज़ीम (विश्वयुद्ध) की विभीषिका भी दुनिया के सामने थी। तबाही का ऐसा मंज़र दुनिया ने इससे पहले कभी नहीं देखा था। उस दौर की त्रासदी, साहिर की ज़ाती पीड़ा यानी ग़म-ए-हयात में पैवस्त होकर उनके गीतों में हमेशा नमूदार होती रही।साहिर ने खुद कहा भी – दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं ।साहिर अकेले ऐसे गीतकार हुए जिनके गीत उस पूरे माशरे की तर्जुमानी करते हैं। साहिर के गीतों में एक इंसान के अंदर की कशमकश, उसके अंदर की आग, बग़ावत और फिर वही मामूली आदमी की बेबसी कहीं न कहीं दिख ही जाती है। हालांकि उस समय कई बडे शायर फ़िल्मी गीत लेखन के क्षेत्र में आए, फ़िल्मों में आने से पहले उनकी शायरी में भी वही कैफ़ियत, जज़्बात की तपिश, तरक़्क़ीपसंदी थी। लेकिन कुछेक मौकों को छोड़कर उनके फ़िल्मी गीतों में वह कैफ़ियत नहीं दिखी जो ताउम्र साहिर के गीतों में रही। कई शायरों को तो सिनेमा की दुनिया रास ही नहीं आई।रूमानियत का रंगफ़िल्मी गीतकारों में साहिर की रूमानियत का रंग औरों से जुदा था। उनके यहां रूमानियत थी – कभी न ठंडी पड़ने वाली मद्धिम आंच की तरह। उनकी रूमानियत के तेवर बग़ावती तो थे ही, उसमें अजीब सी नीम-उदासी, नॉस्टैल्जिया का रंग भी था, साथ ही उसमें कुदरती नीरवता, स्वप्नशीलता और विह्वलता थी। मिसाल के तौर पर साहिर के फ़िल्म धर्मपुत्र (1962) के इस गीत को देखिए :मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते होऔर झाँक के मेरी आँखों में बीते दिन याद दिलाते हो …..उदासी का कैनवाससाहिर के फ़िल्मी गीतों में पसरी उदासी का कैनवास इतना बड़ा है कि ज़ाती उदासी आलमी उदासी में तब्दील होती दिखाई देती है। हिन्दी फ़िल्मों में शायद ही ऐसा रंग किसी और के यहां मिले। फ़िल्मों से इतर यह रंग सबसे ज्यादा फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के यहां है। उदासी के ये रंग आप फ़िल्म प्यासा (1957) के गीतों में देख सकते हैं। मसलन- ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है…, जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं…,जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला…, तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम… ।बोल सरल लेकिन महज तुकबंदी नहींसिचुएशन और कैरेक्टर के हिसाब से इनके गीतों के बोल कहीं सरल हैं लेकिन वहां भी महज तुकबंदी, सपाटबयानी नहीं है। सरलता और मायने दोनों देखना हो तो, बानगी के तौर पर फ़िल्म फिर सुबह होगी (1958) का यह गीत देखिए:दो बूँदे सावन की…इक सागर की सीप में टपके और मोती बन जायेदूजी गंदे जल में गिरकर अपना आप गंवायेकिसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष लगाये
दो कलियां गुलशन कीइक सेहरे के बीच गुँधे और मन ही मन इतरायेएक अर्थी के भेंट चढ़े और धूलि मे मिल जायेकिसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष लगाये
दो सखियाँ बचपन कीइक सिंहासन पर बैठे और रूपमती कहलायेदूजी अपने रूप के कारण गलियों मे बिक जायेकिसको मुजरिम समझे कोई किसको दोष लगाये…इसके अलावा और भी कुछ गीतों को देखिए। इन गीतों के बोल में न सिर्फ देसी लालित्य है बल्कि इनके मा’नी भी काफी गहरे हैं। मिसाल के तौर पर फ़िल्म चित्रलेखा (1964) का गीत –मन रे तू काहे ना धीर धरेवो निर्मोही मोह ना जाने, जिनका मोह करेमन रे …इस जीवन की चढ़ती ढलतीधूप को किसने बांधारंग पे किसने पहरे डालेरूप को किसने बांधाकाहे ये जतन करेमन रे …
उतना ही उपकार समझ कोईजितना साथ निभा देजनम मरण का मेल है सपनाये सपना बिसरा देकोई न संग मरेमन रे …इस गीत के पहले बंद में साहिर जीवन की नश्वरता को कितने आसान अंदाज में बयां करते हैं। यही रंग मिर्ज़ा ग़ालिब के यहां कुछ इस तरह से है – मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती।फ़िल्म हम दोनों (1961) का गीत- अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम … भी देख सकते हैं।अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नामसबको सन्मति दे भगवान
इस धरती का रूप ना उजड़ेप्यार की ठंडी धूप ना उजड़ेसबको मिले सुख का वरदान….
मांगों का सिन्दूर ना छूटेमाँ बहनों की आस ना टूटेदेह बिना दाता, भटके ना प्राण…
ओ सारे जग के रखवालेनिर्बल को बल देने वालेबलवानों को दे दे ज्ञान ….इस गीत के अंतिम बंद को देखिए जिसमें साहिर कहते हैं – बलवानों को दे दे ज्ञान…। यहां साहिर एक तरह से सर्वसत्तावादी (Totalitarianism) सोच, सत्ता की निरंकुशता पर गांधीवादी तरीके से ही सही प्रश्न उठाते हैं।सियासी सोच का फ़लकसाहिर की अपने माशरे (दौर) पर हमेशा पैनी नजर रही। जब तक एक गीतकार को अपने माशरे की व्यापक समझ नहीं होगी तब तक वह एक साथ अलग अलग सिचुएशन और कैरेक्टर के लिए गीत नहीं लिख सकता। मतलब वह एक सफल गीतकार नहीं हो सकता।उनकी सियासी सोच का फ़लक भी काफी बड़ा था, जिसमें हर तरह के मौज़ूआत शामिल थे। वे घोषित मार्क्सवादी तो थे ही, साथ साथ एक गांधीवादी भी थे। जिसकी सबसे बड़ी मिसाल उनके गीत हैं। फिल्म नया दौर (1957) के गीत को लीजिए, जो पूरी तरह से गांधी की सोच की तर्जुमानी करते हैं। मसलन, साथी हाथ बढाना…, ये देश है वीर जवानों का …।जंग को लेकर जो उनकी सोच रही उस पर भी आप गांधी के असर को देख सकते हैं। उदाहरण के लिए फ़िल्म ताजमहल का उनका लिखा गीत, … ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है …सुनिए।ज़मीं भी तेरी है हम भी तेरे ये मिलकियत का सवाल क्या हैये क़त्ल-ओ-ख़ूँ का रिवाज क्यूँ है ये रस्म-ए-जंग-ओ-जिदाल क्या हैलेकिन ग़ालिब के रंग ‘जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद, फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है’ – में मिलकियत को लेकर जो उनका सवाल है। वह यह दिखाता है कि उन पर मार्क्सवाद का कितना असर था।साहिर एक हद तक आदर्शवादी भी थे। जिसे आप उनकी मानवतावादी सोच से भी जोड़ सकते हैं। उन्हें हिंदोस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब की गहरी समझ थी। तभी तो बच्चे की मासूमियत के जरिए फिरकों में बंटी इस दुनिया पर जैसा तंज़ फ़िल्म ‘धूल का फूल’ के गीत …. तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा….में है, शायद ही इसकी कोई दूसरी मिसाल हो। इस गीत के अंतरे यानी बंद को देखिए, किस तरह से मज़हबी सियासत के नापाक मंसूबों को बेनक़ाब करती है।अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं हैतुझको किसी मज़हब से कोई काम नहीं हैजिस इल्म ने इंसान को तक़सीम किया हैउस इल्म का तुझ पर कोई इलज़ाम नहीं है………दुख का रंग भी साहिर के यहां यकसां नहीं था। उनके अंदर इंसानी तकलीफ और बेचैनी को पढने का गजब शऊर था। व्यवस्था और समाज के दोहरेपन, विसंगतियों और खोखलेपन पर साहिर ने अपने फ़िल्मी गीतों के जरिए जमकर प्रहार किया, जिसकी सबसे बडी मिसाल उनकी फ़िल्म प्यासा है। कहें तो हर एहसास/मानवीय संवेदना को उन्होंने पढ़ने की, बुनने की भरपूर कोशिश की। इतने बडे/विविध एहसासात को गीतों में उतारने के लिए उनके पास लफ़्ज़ों का ज़ख़ीरा भी था।उनके गीत एक ही साथ क्लास और आम लोग दोनों के बीच लोकप्रिय हुए। जबरदस्त राजनीतिक व सामाजिक चेतना और व्यापक मानवतावादी सोच की वजह से एक तरफ जहां उनकी स्वीकार्यता पढे लिखे मध्यम वर्ग में भी रही। वहीं आम लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह थी – आम हिंदुस्तानी की ज़िंदगी को लेकर उनकी बडी बारीक समझ। उनके बहुत सारे गीत बहुत सरल भी है और आजतक आम लोगों की ज़बान पर हैं मसलन… तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले …, बाबुल की दुआएं लेती जा…, मेरे दिल में आज क्या है…, अभी न जाओ छोड़कर…, मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया…, चलो इक बार फिर से अजनबी……, वगैरह।प्यासा के बाद उन्होंने सचिन देव बर्मन के साथ कभी काम नहीं किया। प्यासा और नया दौर के बाद शायद ही कोई अन्य क्लासिक फ़िल्म के लिए उन्होंने गीत रचे। अन्य बड़े निर्माता निर्देशकों के साथ भी उनकी इक्का-दुक्का फ़िल्में ही आई। उनकी बहुत सारी फ़िल्में सार्थक थी लेकिन उन्हें ग्रेट क्लासिक फ़िल्मों की कतार में नहीं रखा जा सकता।साहिर ने दो तरह की फ़िल्मों के लिए गीत लिखा। एक तरफ तो गुरुदत्त और बीआर चोपड़ा जैसे निर्माता-निर्देशकों के लिए, जिन्होंने अपनी फ़िल्मों के जरिए हमेशा कोई न कोई सामाजिक संदेश देने की कोशिश की। ऐसी फ़िल्मों में साहिर के शायर होने का रंग उरूज पर दिखा। इन फ़िल्मों में तो यह लगता ही नहीं है कि यह किसी गीतकार की रचना है। शायरी भी यहां आला दर्जे की लगती है। वैसे इन फ़िल्मों में साहिर की कई पुरानी रचनाओं को हूबहू भी ले लिया गया। वहीं दूसरी तरफ साहिर की बहुत सारी फ़िल्में ऐसी भी हैं जिसे आप मसाला या आम फार्मूला वाली फ़िल्में कह सकते हैं लेकिन इन फ़िल्मों में भी साहिर के गीतों की स्तरीयता/मेयार में कोई कमी नहीं आई, चाहे सिचुएशन व कैरेक्टर जैसे भी हों। इन गीतों में भी साहिर मा’नी पैदा कर ही गए हैं। जिससे आप बतौर गीतकार उनकी रेंज/वर्सेटिलिटी का अंदाजा लगा सकते हैं।साहिर की शायरी उनके गीतों से कभी जुदा नहीं हुई और यही सबसे अलग बात थी साहिर लुधियानवी की। साहिर के कई गीत सुनेंगे तो आपको लगेगा कि कैरेक्टर और सिचुएशन के जितने रंग/आयाम हो सकते हैं वहां तक उन्होंने इन गीतों में जाने का प्रयास किया है। फ़िल्म मुझे जीने दो का गीत …तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ ….या फ़िल्म त्रिशूल का गीत…तू मेरे साथ रहेगा मुन्ने …सुनिए ।तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ (फ़िल्म मुझे जीने दो)और दुआ देके परेशान सी हो जाती हूँ ।
मेरे मुन्ने मेरे गुलज़ार के नन्हे पौधेतुझको हालात की आंधी से बचाने के लियेआज मैं प्यार के आंचल में छुपा लेती हूँकल ये कमज़ोर सहारा भी न हासिल होगाकल तुझे कांटों भरी राहों पे चलना होगाज़िंदगानी की कड़ी धूप में जलना होगातेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ |तेरे माथे पे शराफत की कोई मोहर नहींचंद बोसें हैं मुहब्बत के, सो भी क्या हैंमुझ सी माओं की मुहब्बत का कोई मोल नहींमेरे मासूम फ़रिश्ते तू अभी क्या जानेतुझको किस किसके गुनाहों की सजा मिलनी हैदीन और धर्म के मारे हुए इंसानों कीजो नज़र मिलनी है तुझको वो खफा मिलनी हैतेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँऔर दुआ देके परेशान सी हो जाती हूँ | …….________________________________तू मेरे साथ रहेगा मुन्ने! (फिल्म त्रिशूल)ताकि तू जान सकेतुझको परवान चढ़ाने के लिएकितनी संगीन मराहिल से तेरी माँ गुज़रीतू मेरे साथ रहेगा मुन्ने !
ताकि तू देख सकेकितने पाँव मेरी ममता के कलेजे पे पड़ेकितने ख़ंजर मेरी आँखों, मेरे कानों में गड़ेतू मेरे साथ रहेगा मुन्ने !
मैं तुझे रहम के साये में न पलने दूँगीजिन्दगानी की कड़ी धूप में जलने दूँगीताकि तप- तप के तू फ़ौलाद बनेमाँ की औलाद बनेतू मेरे साथ रहेगा मुन्ने
जब तलक होगा तेरा साथ निभाऊँगी मैंफिर चली जाऊँगी उस पार के सन्नाटे मेंऔर तारों से तुझे झाँकूँगीज़ख़्म सीने में लिए फूल निगाहों में लिएतेरा कोई भी नहीं मेरे सिवामेरा कोई भी नहीं तेरे सिवातू मेरे साथ रहेगा मुन्ने ! ……………अपने गीतों में साहिर ने एक औरत के एहसास, दास्तां को जितनी बारीकी से बुना किसी और दूसरे गीतकार ने नहीं। ऐसे सिचुएशन और भी फ़िल्मों में आए लेकिन इस तरह के गीत आपको नहीं मिलेंगे। कभी कभी लगता है साहिर अपने हर गीत में सोच और जज़्बात की तपिश से खेलना चाहते थे। वे अपने गीतों में कैरेक्टर और सिचुएशन को कितनी बारीकी से बुनते थे। इसका अंदाज़ा आप उनके ऐसे ही गीतों से लगा सकते हैं। - -अद्भुत आदित्य की अद्भुत बातें-2-लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् (प्रोफेसर, मैट्स यूनिवर्सिटी, रायपुर)बचपन में मैग्नीफाइंग ग्लास (आवर्धक लैंस) पर सूर्य की बिखरी रोशनी को एक जगह केंद्रित कर कागज पर आग लगाने का खेल खूब खेल करते थे। लेकिन इसके छिपी आगे बढ़ने की प्रेरणा का संकेत बाद में समझ आया। सूर्य की रोशनी की तरह बिखरे हमारे विचारों को भी किसी एक लक्ष्य पर केंद्रित करने से सफलता मिलना तय है। अब बात करते हैं सूर्य के अलौकिक पक्ष की।हममें से अधिकांशतः ने बालीवुड की बेहतरीन माने जाने वाली फिल्म थ्री इडियट (2009) देखी है जिसके अनेक दृश्य रोमांचकारी हैं। इस फिल्म में डिलीवरी का सीन भी सबसे ज्यादा संवेदनशील है। एक बच्चे को जन्म देने की पूरी प्रक्रिया के बीच वह दृश्य याद कीजिए जब जन्म के बाद नाभि से जुड़े गर्भनाल को क्लीप लगाकर नवजात शिशु के शरीर के पास से काट दिया जाता है। गर्भनाल का एक सिरा गर्भाशय से जुड़ा होता है और दूसरा शिशु की नाभि से। हम सब जन्म के पूर्व गर्भ में नाभि के माध्यम से ही ईश्वरस्वरूपा माँ से जुड़े थे और अपने शरीर के विकास के लिए नाभि से ही सारी वस्तुएँ प्राप्त की थीं।पका हुआ आहार माता के रक्त के माध्यम से निरंतर प्राप्त कर अपनी विकास यात्रा प्रारंभ की थी। नौ माह की पूरी अवधि में सारी जरूरतो की पूर्ति नाभि मार्ग से ही की थी। जन्म के बाद नाल काटकर सम्बन्ध विच्छेद किया गया और फिर नाभि की भूमिका और उपयोगिता यहाँ समाप्त मान ली गई। विज्ञान में नाभि को लगभग महत्वहीन ही समझा गया है, लेकिन अध्यात्म के दृष्टिकोण से देखें तो इसका महत्व पूरे शरीर में है। वेदों में और भारतीय योगशास्त्र में इसका विशेष महत्व है।पौराणिक आख्यानों में भगवान विष्णु की नाभि से कमल के उत्पन्न होने वाले चित्र सिर्फ अध्यात्मिक नहीं, इसके पीछे विज्ञान भी छिपा है। एक आध्यात्मिक विज्ञान में प्रेमयोगी वज्र लिखते हैं कि सृष्टि रचना पुराणों में शरीर रचना के माध्यम से समझाई गई है। माँ को आप विष्णु मान सकते हो। उसका शरीर एक शेषनाग की तरह ही केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के रूप में है, जो मेरुदंड में स्थित है। वह नाग हमेशा ही सेरेब्रोस्पाइनल फ्लुइड रूपक समुद्र में डूबा रहता है। उस नाग में जो कुंडलिनी या माँ की संवेदनाएं चलती हैं, वे ही भगवान विष्णु का स्वरूप है, क्योंकि शक्ति और शक्तिमान भगवान में तत्वतः कोई अंतर नहीं। गर्भावस्था के दौरान जो नाभि क्षेत्र में माँ का पेट बाहर से उभरा होता है, वही भगवान विष्णु की नाभि से कमल का प्रकट होना है। विकसित गर्भाशय को भी माँ के शरीर की नसें-नाड़ियाँ माँ के नाभी क्षेत्र के आसपास से ही प्रविष्ट होती हैं। खिले हुए कमल की पंखुड़ियों की तरह ही गर्भाशय में प्लेसेंटोमस और कोटीलीडनस उऩ नसों के रूप में स्थित कमल की डंडी से जुड़े होते हैं। वे संरचनाएं फिर इसी तरह शिशु की नाभि से कमल की डंडी जैसी नेवल कोर्ड से जुड़ी होती हैं। ये संरचनाएं शिशु को पोषण उपलब्ध कराती हैं। शिशु ही ब्रह्मा है, जो उस खिले हुए कमल पर विकसित होता है।योगशास्त्र में नाभि को सूर्य चक्र कहा गया है। वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रणेता पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अध्यात्म -मर्मज्ञों के हवाले से लिखते हैं, सबसे पहले मानवीय प्राण नाभि केन्द्र से स्पन्दित होकर ह्रदय से टकराता है। ह्रदय और फेफड़ों में रक्त शोधन करके सारे शरीर में संचार करने में सहायता करता है। नाभि के पीछे स्थित सूर्यचक्र (सोलर प्लक्सेज) वह केन्द्र बिन्दु है जहाँ से सारी प्रमुख धाराएँ विभिन्न अंगों में जाती है। एक प्रकार से इसे जंकशन स्टेशन की उपमा दी जा सकती है जहाँ से अनेक रेलवे लाइन विभिन्न दिशाओं में जाती हैं। सारे शरीर की स्फूर्ति इसी केन्द्र की सशक्तता पर निर्भर करती है। साधारणतया यह महत्वपूर्ण केन्द्र प्रायः लुप्त अवस्था में पड़ा रहता है। अतः इसकी शक्ति का न तो कुछ ज्ञान होता है और न इससे कुछ लाभ ही उठा पाते हैं। (30 वर्ष पूर्व-1997, अखण्ड ज्योति)आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर अपनी कृति सच्चे साधक के लिए एक अंतरंग वार्ता (नित्यदिन के ज्ञानसूत्र) में लिखते हैं कि सूर्य चक्र अत्यंत प्रभावशाली है- केन्द्रीय स्नायु प्रणाली, नेत्र तंतुओं व उदर पर। होने वाली घटना के संबंध में सजग करने की अनुभूति भी सूर्य-चक्र द्वारा प्रभावित है। सूर्य चक्र शरीर का दूसरा मस्तिष्क भी कहलाता है। सूर्य चक्र के संकुचित होने पर दुख और उदासीनता आ जाती है, मन नकारात्मक भावों से भर जाता है। सूर्य चक्र के विस्तृत होने पर आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है, मन स्वच्छ और केन्द्रित होता है।यह सारी गथा लिखने का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि नाभि एक सक्रिय केंद्र है जिसे सूर्यचक्र कहा गया है और धरती पर जीवन का आधार भी सूर्य है। पृथ्वी और चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है, वे सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशवान हैं। विज्ञान ने सूर्य के भौतिक स्वरूप से सम्पर्क कर प्रकाश, ऊर्जा से लेकर काल-ज्ञान तक प्राप्त किया लेकिन हमारा भारतीय दर्शन यह मानता है कि इसके आध्यात्मिक सम्पर्क कहीं ज्यादा सशक्त होने के साथ ही रहस्यमय भी है। भारतीय योगशास्त्रो में सूर्य का ध्यान करने का महत्व इसिलए प्रतिपादित किया जाता रहा है। सूर्य तो हर व्यक्ति के भीतर नाभि में बसा है, जरूरत उसे उदय करने की है। सूर्य के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष के अनेक प्रसंग हैं और हर प्रसंग अलौलिकताओं व संभावनाओं से भरा हुआ है।
- -लघुकथा-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)उमा नवरात्रि का व्रत रखती है और नौ कन्याओं को आमंत्रित कर भोजन कराती है । हर बार वह अपनी कामवाली बाई को बोल देती है ,वही अपने मोहल्ले की लड़कियों को ले आती है । ये बच्चियाँ बड़े शौक से सभी व्यंजन खातीं हैं यह देखकर उमा का मन तृप्त हो जाता है वरना उसकी सहेलियों के बच्चों के तो खाने में सौ नखरे । यह सब्जी नहीं खाएँगे ,वह नहीं खाएँगे पूरी थाली भरी रह जाती और वे आधी-अधूरी चीजें खाकर उठ जातीं..कहीं और भी जाना है । उन्हें पेंसिल बॉक्स,रबर बैंड,पिन इत्यादि उपहार देकर विदा ही किया था कि कुछ दूर जाकर एक नन्हीं वापस आई और कहने लगी -" आंटी खाना बहुत अच्छा था। अब नवरात्रि कब आएगी, अगली बार भी बुलाओगी न मुझे ?" उसकी इस मनुहार ने झकझोर दिया था उसे -" जरूर बेटा " कहते हुए उमा की आँखें नम हो आईं थीं और मन ने कुछ संकल्प लिया था । अब कन्या-भोजन कराने के लिए सिर्फ नवरात्रि का इंतजार नहीं करेगी वह ।
- लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् (प्रोफेसर, मैट्स यूनिवर्सिटी, रायपुर)हर भारतीय के लिए यह गर्व की बात है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-3 ने सफलता के मुकाम हासिल किए। चंद्रयान की सफलता के बाद सूर्य पर अध्ययन के दृष्टिकोण से लॉन्च किया गया आदित्य एल-1 मिशन भी सफलता की राह पर अग्रसर है। निःसंदेह यह मिशन सूरज की रोशनी, प्लाज्मा और चुंबकिय क्षेत्र का महत्वपूर्ण अध्ययन करने में कामयाब होगा और दुनिया को अनेक नये सूत्र मिलेंगे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह भारत का पहला सौर मिशन है। लेकिन हमारे महान ऋषि-मनीषी सदियों पूर्व आदित्य पर अनुसंधानरत रहकर अनेक महत्वूर्ण जानकारियाँ और नये-नये रहस्य उद्घाटित करने में सफल होते रहे हैं। आदित्य अर्थात सूर्य जिसके अऩेक नाम हैं, जैसे- रवि, दिनकर, सूरज, भास्कर, मार्तंड, मरीची, प्रभाकर, सविता, पतंग, दिवाकर, हंस, भानु, अंशुमाली आदि।यदि सूर्य के आध्यात्मिक पक्ष की बात की जाए तो हमारा पूरा भारतीय वैदिक साहित्य सूर्य की स्तुति, उसके अनेक वैज्ञानिक तथ्यों और महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा पड़ा है। यजुर्वेद में सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः स्वाहा (3-9) से लेकर प्रश्नोपनिषद (1-8) में प्राणः प्रजानामुत्दयत्येष सूर्यः के माध्यम से सूर्य की महिमा और स्तुति का स्थान-स्थान पर हुआ है। आदित्य ह्रदय का रहस्य जानकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। प्राचीन भारतीय साहित्य में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्य का कुष्ठ रोग भी सूर्य चिकित्सा से ही दूर हुआ था।दो वर्ष पहले का एक वाकया है, हमारे पड़ोसी को पुत्री-रत्न की प्राप्ति हुई। उल्लास का वातावरण निर्मित हुआ, किन्तु परिजनों के माथे पर चिंता की लकीरें भी उमड़ पड़ी थीं, क्योंकि नवजात बालिका को पीलिया हो गया था। चिकित्सकों ने दवाइयों के साथ कुछ देर सुबह उदित होते सूर्य की किरणों में रखने की भी बात कही। जो कहा गया उसका वैसा ही पालन हुआ, बालिका जल्द ही स्वस्थ हो गई। पीलिया जैसे रोगों में उदित होते सूर्य की किरणों से मिलने वाले लाभ के संबंध में हमारे वेदों में भी उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद (अर्थव-1-22) में सूर्य चिकित्सा के माध्यम से ह्रदय रोग और पीलिया को दूर करने के संदर्भ में उल्लेख मिलता है कि-अनु सूर्य मुदयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते।गो रोहितस्य वर्णेन तेन त्वा परिदध्यसि।।इसका अर्थ यह है कि तुम्हारा पीलापन (पीलिया) तथा ह्रदय की जलन सूर्य की अनुकूलता से उड़ जाए। रश्मियों के तथा उस प्रकाश के लाल रंग को तुझे सब ओर से धारण करना है। भाव यह है कि पीलिया और ह्रदय रोगों में सूर्योदय के समय सूर्य की लाल रश्मियों के प्रकाश में खुले शरीर बैठना तथा लाल रंग की गौ के दूध का सेवन करना बहुत ही लाभदायक होता है। सूर्य को आदि देव कहा गया है और सूर्य के संबंध में अनेक अद्भुत प्रसंग हमें मिलते हैं। सूर्य विज्ञान में सिद्धहस्त परमहंस स्वामी विशुद्धानंद जी के संबंध में तीस वर्ष पूर्व प्रकाशित पत्रिका अखण्ड ज्योति (1993) में यह उल्लेख मिलता है कि स्वामी विशुद्धानंद जी ने एकाकी गहन शोध कर सूर्य विज्ञान विधा को तिब्बत की दुर्गम गुफाओं से लाकर वाराणसी में प्रतिष्ठित किया। इन्हें सुगंधी बाबा भी कहा जाता था क्योंकि वे सूर्य विज्ञान और स्फटिक से तरह-तरह की सुगंध पैदा कर देते थे। सूर्य के माध्यम से शून्य से ताजी चीजें प्रकट करना, मुरझाए फूल को ताजा करने का भी जिक्र मिलता है। इन बातों का उल्लेख प्रसिद्ध इण्डोलाजिस्ट और प्राच्यविद् पाल ब्रंटन ने अपनी शोध पुस्तिका ‘ए सर्च इन सीक्रेट इंडिया’ में सूर्य विज्ञान को समर्पित एक निबंध में भी किया है। भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान-विज्ञान सदियो से पूरे विश्व को आकर्षित करता रहा है और भारत का गुप्त-ज्ञान पूरे विश्व में अध्ययन का केंद्र बिंदु भी रहा है। पाल ब्रंटन का भारतव्यापी शोध का उद्देश्य भी यही रहा होगा।कहते हैं कि परमहंस स्वामी विशुद्धानंद मात्र सुपात्र और पवित्र अंतःकरण वाले व्यक्तियों के सामने ही सूर्य विज्ञान का प्रदर्शन, सविता देवता की साधना, गायत्री अनुष्ठान व योग साधना की प्रेरणा देते थे। कभी भी उनका प्रदर्शन कथित चमत्कार दिखाने या ख्याति प्राप्त करने के लिए नहीं किया गया। यहां दो बातें सामने आती हैं सुपात्र और पवित्र अंतःकरण, संकेत साफ है कि सूर्य विज्ञान में पारंगत होने के लिए प्रबल इच्छाशक्ति के साथ अच्छी नियत की शर्त है। परमहंस स्वामी विशुद्धानंद सूर्य विज्ञान और आत्मबल से दृश्य वस्तु की मूल प्रकृति में परिवर्तन कर देते थे। उनके शिष्य पंडित गोपीनाथ कविराज सूर्य विज्ञान के संबंध में लिखते हैं कि यह विधा विशुद्धतः सूर्य रश्मियों के ज्ञान पर निर्भर है। इनके विभिन्न प्रकार के संयोग व वियोग होने पर विभिन्न प्रकार के पदार्थों की अभिव्यक्ति होती है। विभिन्न रश्मियों का परस्पर सुनियोजित संगठन ही सूर्य विज्ञान है। इसके लिए सही विधा की जनकारी जरूरी है। अद्भुत-सी प्रतीत होने वाली इन बातों पर सहसा विश्वास नहीं किया होगा। लेकिन सूर्य विज्ञान के ही माध्यम से सौर ऊर्जा का लाभ आज पूरा विश्व उठा रहा है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। सौर ऊर्जा से आज लोगों के घर से लेकर कार्यालय तक रोशन हो रहे हैं। भारत के चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में सौर प्रौद्योगिकी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।जब सूर्य विज्ञान की बात की जाती है तो वाराह मिहिर का भी उल्लेख आता है। वाराह मिहिर ने सदियों पूर्व खगोल गणनाएँ कर दी थीं। ये गणनाएँ आज भी सटीक प्रमाणित होती हैं। यह बात सदैव वैज्ञानिकों को हतप्रभ करती रही है कि वाराह मिहिर ने जब ये खगोल गणनाएं तब न तो कोई यंत्र-उपकरण थे और न ही कोई प्रयोगशाला। कहा जाता है कि उनकी बचपन से अंतरिक्ष के रहस्य जानने की प्रबल इच्छा रहती थी जिससे माता-पिता परेशान रहा करते थे और पड़ोसी भी मजाक बनाया करते थे। लेकिन प्रबल इच्छाशक्ति, प्रगाण प्रार्थना, सच्ची लगन के आगे कोई बाधा आड़े नहीं आ सकी। प्रथम बार सूर्य (मिहिर) बालक की निष्ठा, निर्भयता और साहस की परीक्षा लेने वाराह के रूप में आए थे।यह उल्लेख भी मिलता है कि शूद्र इतरा का पुत्र सूर्य की उपासना से ही ब्रह्मर्षि ऐतरेय हो गया और ऐतरेय उपनिषद अस्तित्व में आया। जाहिर है कि भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक पक्ष का आधार सूर्य की उपासना है। प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देने से लेकर सूर्य नमस्कार और सूर्यभेदन प्राणायाम के फलस्वरूप मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ से आज पूरा विश्व अवगत है। वैदिक काल से चली आ रही यह परंपरा हमारे ऋषियों के सूर्य विज्ञान के आधार पर किये गये गहन शोध और अध्ययन का ही परिणाम है। पृथ्वी पर जीवन का आधार ही सूर्य है जिसे सृष्टि का प्राण कहा गया है। पूरी सृष्टि में आदित्य अद्भुत है जिसमें अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। वैदिक काल से लेकर आज तक इन रहस्यों पर से पर्दा उठाने के प्रयास जारी हैं और आगे भी जारी रहेंगे। फिलहाल पूरी दुनिया की नजरें इस समय आदित्य एल-1 पर टिकी हैं जिससे भविष्य में और भी नये रहस्य उजागर होने वाले हैं।क्रमशः जारी....
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गीत
लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
देवी माता , के चरणों में , नमन करो ।सेवा श्रद्धा , से माता का , भजन करो ।
बड़ी कृपा है , माँ धरती पर , चरण धरी ।सफल हुई है , सभी साधना , शरण पड़ी ।शुद्ध भावना , शुचि राहों पर , गमन करो ।।देवी माता , के चरणों में , नमन करो ।।
पाप कलुष से , दूर रहें सब , कुपित न हों ।प्रेम भाव से , गले मिले मन , भ्रमित न हों ।छाँट खार को , जगत पुष्प से , चमन करो ।।देवी माता , के चरणों में , नमन करो ।।
नारी देवी , का स्वरूप है , ध्यान रखो ।आदर करके , घर में ऊँचा , स्थान रखो ।देव धरा के , मात- पिता हैं , मनन करो ।।देवी माता , के चरणों में , नमन करो ।। - स्कूल के दिनों में सबसे कठिन विषय हुआ करता था गणित, सबसे कम नंबर भी इसी विषय में मिला करते थे। ट्यूशन भी इसी विषय की लगवाई जाती थी। गणित शब्द बेचैन किया करता था। परीक्षा के दिन सबसे ज्यादा गणित का पर्चा ही दिल की धड़कने बढ़ाया करता था। लेकिन व्यवहारिक जीवन में जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ने पर यह गणित समझ में आने लग जाता है कि बिना संख्याओं के जीवन ही नहीं है। ऑनलाइन शापिंग करने से लेकर रोजमर्रा के जीवन की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, क्रिकेट, राजनीति और स्कूल से लेकर कॉलेज तक बिना संख्याओं के कुछ भी नहीं...आदिकाल से गणित का संबंध मानव से है। वास्तव में गणित के बिना जीवन ही नहीं है। हमारे चारों ओर का वातावरण देख लें, या दिन-प्रतिदिन का व्यवहार, दैनिक जीवन में घर हो या बाहर, क्रय-विक्रय, बाजार, आय-व्यय, गणित के ज्ञान के बिना जीवन व्यर्थ है। जोड़ना-घटाना, गिनना, गुणा और भाग हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। वैदिक साहित्य में गणित शब्द का प्रयोग अऩेक बार हुआ है। डॉ. महेंद्र मिश्रा ‘वैदिक गणित’ में लिखते हैं, ‘’गणित शब्द बुहत प्राचीन है। इसका शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है- वह शास्त्र जिसमें गणना की प्रधानता है। मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि गणित, अंक, आधार, चिह्न आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विधान है जिसकी सहायता से परिणाम, दिशा तथा स्थान का बोध होता है। गणित विषय का प्रारंभ गिनती से ही हुआ और संख्या पद्धति इसका विशेष क्षेत्र है जिसकी सहायता से गणित की अन्य शाखाओँ का विकास हुआ।‘’ सच तो यह भी है कि यदि गणित न हो तो आज हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति तक व्हाट्सएप, मेल, इंस्टाग्राम या सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म में पलक झपकते ही संदेश भेजने में भी सक्षम नहीं हो पाते। न तो कम्प्यूटर का अविष्कार ही संभव हो पाता और न तो वेबसाइट्स की कल्पना को साकार किया जा सकता था। दुनिया की समस्त विधाओं में गणित का महत्व एक स्वर से स्वीकार किया गया है। भारतीय संस्कृति में गणित के महत्व से पूरी दुनिया अवगत है। यही कारण है कि अरब में एक से नौ तक की संख्या को ‘हिन्दसां’ कहते हैं।खैर, अऩेक बातें हैं गणित की, मूल मुद्दा है गणित की कुछ विशेष संख्याओं के महत्व का और यह संख्या है नौ (9)। मान्यता है कि यह बड़ा ही अद्भुत अंक है जो सभी अंकों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली है। कहीं-कहीं इसे ईश्वरीय अंक भी माना गया है। ईश्वरस्वरूपा माँ के गर्भधारण करने से लेकर संतान को जन्म देने तक की पूरी प्रक्रिया 9 माह तक चलती है। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में अंक 9 के महत्व से भला कौन अवगत नहीं है। 15 अक्टूबर 2023 से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। नवरात्रि के भी नौ दिन होते हैं जिसमें माँ नवदुर्गा के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। ग्रहों की संख्या भी 9 मानी गई है। उपासना में जप के दौरान 108 मनकों की माला से ही जप किये जाने का विधान है। 108 का योग भी 9 ही होता है।अब सवाल यह है कि मनकों की संख्या 108 ही क्यों ? खोजबीन करने पर वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रणेता पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के संपादन में 66 साल पूर्व सन् 1957 के मार्च माह में प्रकाशित अखंड ज्योति में प्रो. अवधूत गोरेगाँव के आलेख में एक सटीक जवाब मिला। वे लिखते हैं, ‘’प्रकृति विज्ञान की दृष्टि से विश्व में प्रमुख रूप से कुल 27 नक्षत्रों को मान्यता दी गई है। तथा प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण ज्योतिष-शास्त्र में प्रसिद्ध हैं। 27 को चार से गुणा करने पर 108 संख्या होती है। अतः 108 संख्या समस्त विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाली सिद्ध होती है। इसके अलावा दिन और रात हमारे श्वासों की संख्या गिनी जाए तो 24 घंटे में 21 हजार 6 सौ होती है। इस हिसाब से दिन भर के श्वासों की संख्या 10800 और रात भर के श्वासों की संख्या भी 10800 हुई। इसका योग भी 9 ही होता है। कहा जाता है कि यह सूर्य की 21600 कलाओं का प्रतीक भी है। माला के एक-एक दाने को सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक भी माना गया है। इस प्रकार 108 की संख्या ब्रह्मांड की ब्रह्मांडीय संरचना का प्रतिनिधित्व करती है। वेदों में इसका उल्लेख इस प्रकार मिलता है-षट् शतानि दिवारात्रौ सहस्त्राण्येक विंशतिः।एतत्संख्यात्मकं मंन्त्रं जीवो जपति सर्वदा।(चूड़ामणि उपनिषद 32-33)जाहिर है कि वैदिक काल से संख्याओं का महत्व बना हुआ है। यह भी माना जाता है कि 12 राशियों और 9 ग्रह का गुणा करने पर 108 का योग प्राप्त होता है। भगवान शिव के 108 नाम माने गये हैं। 9 के अद्भुत संयोग की तरफ और आगे बढ़ते हैं। औसतन एक सामान्य मानव का दिल एक मिनट में 72 बार धड़कता है जिसका योग 9 होता है। प्रतिदिन का हिसाब लगाएं तो 115,200 बार और प्रतिवर्ष 42,048,000 बार। इनका योग करके भी देख लीजिए, उत्तर 9 ही आएगा। महाभारत का पूरा युद्ध भी 18 दिन चला था जिसका योग 9 होता है। श्रीमद भगवत् गीता में भी 18 अध्याय हैं जिसका योग 9 होता है। ध्यान करने की 108 प्रकार की विधियां मानी गई हैं। मनुष्य में 9 प्रकार की भावनाएं प्रेम, मस्ती, दुःख, क्रोध, शौर्य, भय, घृणा, आश्चर्य और शांती मानी गई हैं। नाट्शास्त्र में इसे नवरस कहा गया है। मूल्यवान रत्न 9 माने गये हैं जिन्हें नवरत्न कहा गया है- माणिक, हीरा, नीलम, पुखराज, पन्ना, लाल मूंगा, मोती, वैदूर्य, गोमेद।एक पूर्ण कोण 360 अंश का और एक सीधा कोण 180 अंश का होता है। एक सर्किल 360 डिग्री का होता है। दिशासूचक यंत्र पर भी 360 अंश के कोण बने होते हैं। 45 अंश ईशान दिशा, 90 अंश पूर्व दिशा, 135 अंश आग्नेय दिशा, 180 अंश दक्षिण दिशा, 225 अंश नैऋत्य दिशा, 270 अंश पश्चिम दिशा, 315 अंश वायव्य दिशा और 360 अंश से उत्तर दिशा की जानकारी मिलती है।स्वर्गीय मानवगुरु श्री चंद्रशेखर गुरुजी का एक आलेख manavguru.org में मिला- ‘विश्व शक्ति की गोपनीय चाबी है अंक ‘9’ इसमें नौ अंक से संबंधित अनेक प्रमाणित बातों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाया गया है। वे लिखते हैं कि विश्व में जितने भी आकार बने हुए है वे 9 अंक से बने हुए हैं। इनमें चौरस, आयात, त्रिकोण, पंचकोण, षटकोण का जिक्र है। वे बताते हैं कि बौद्ध धर्म में पाली भाषा में भगवान बुद्ध के 9 गुणों का वर्णन दिया हैः अरहम, सम्मासबुद्धों, विज्जाचरणसंपन्नो, सुगतो– उदात्त, लोकविदू, अनुत्तरोपुरीसधम्मसारथी, सत्ता देवमनुसान्न, बुद्धों, भगवा। ईसाई धर्म में पवित्र आत्मा के 9 फल होते हैं- प्रेम, आनंद, शांति, संयम, दया, अच्छाई, विश्वास, सभ्यता और आत्म–संयम। हमारी धरती 1674 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से घूमती है। इसका योग (1+6+7+4=18= 1+8 =9) भी नौ ही आता है।इस संख्या की मुख्य विशेषता यह है कि इसे किसी भी संख्या से गुणा करने पर उसका योग 9 ही आता है। फिर, वह संख्या कितनी भी छोटी हो या कितनी भी बड़ी। उदाहरण के दौर पर 9 X 2 =18 = 1+8= 9। नौ का पूरा पहाड़ा ही देख लें, योग नौ ही आएगा। वस्तुतः अध्यात्म से लेकर विज्ञान तक में अंक 9 का विशेष महत्व है जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। पूरे विश्व में भारतीय वैदिक साहित्य की महत्ता आज भी कम नहीं है। हमें सदैव गौरवान्वित होना चाहिए हमारे महान वैदिक साहित्य पर।
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कहानी
लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
बाहर यह क्या कोलाहल हो रहा है , शेविंग करते हुए राज ने अपनी पत्नी पूजा से पूछा । कॉलेज जाने के लिए वह तैयार हो रहा था ,अभी नहाकर आया था । अरे ! वही मिश्रा सर के घर की लड़ाई है , आज तो यह सड़क तक आ पहुँची । अच्छा नहीं लगता तमाशबीन बनकर वहाँ खड़े होना लेकिन देखो लोगों की भीड़ ; उन्हें तो बहुत मजा आता है किसी की इज्ज़त का मजाक उड़ते देख । उनकी पारिवारिक समस्या उनको सुलझाने देना चाहिए लेकिन हर जगह जज बनकर खड़े हो जाते हैं । बात शायद बहुत बढ़ गई है तभी बाहर तक आई है , जरा देखो पूजा । अब तुम मुझे भी वही करने बोल रहे हो जो अन्य पड़ोसी कर रहे हैं । मैं उन्हें और शर्मिंदा नही करना चाहती , वैसे भी उनकी छोटी बहू कुछ ज्यादा ही तेज है , कब पड़ोसियों पर ही बिगड़ जाए कुछ कह नहीं सकते ।हमारे घर के दो घरों के बाद मिश्रा सर का घर है । यहाँ के एक स्वशासी महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य ईश्वरीप्रसाद मिश्रा सर को कौन नहीं जानता । मैंने भी उसी महाविद्यालय से पढ़ाई की है । मिश्रा सर बहुत अच्छे स्वभाव के थे पर बहुत अनुशासनप्रिय । सदैव छात्रों के हित में निर्णय लेने वाले , एक बार फीस नहीं बढ़ाने को लेकर कॉलेज प्रबंधन से भी भिड़ गए थे । छात्र , शिक्षक , पालक सभी उनका सम्मान करते थे और उनसे थोड़ा डरते भी थे । उनके सख्त होने के कारण ही महाविद्यालय का बहुत नाम हो गया था । वहाँ बहुत अच्छी पढ़ाई होती थी और शासकीय महाविद्यालय की तुलना में अधिक प्रतिभाएँ निकलती थीं । न सिर्फ पढ़ाई बल्कि खेल , एन. सी.सी. , राष्ट्रीय सेवा योजना , शोधकार्य इत्यादि क्षेत्रों में भी हमारा महाविद्यालय अग्रणी हो गया था ,यह सब उनके परिश्रम का कमाल था । अपने कार्यकाल में उन्होंने महाविद्यालय को विकास के चरम पर पहुँचा दिया था । किसी भवन की बुनियाद यदि मजबूत हो तो वह अपने-आप सुरक्षित हो जाती है उसी प्रकार मिश्रा सर ने उस कॉलेज की बुनियाद सुदृढ बना दी थी जिसका लाभ उनके सेवानिवृत्त होने के बाद भी कॉलेज को मिलता रहा और उस पर सफलता की कई मंजिलें बनती गईं ।मेरी तरह न जाने कितने छात्र वहाँ से पढ़कर अपना सुखद भविष्य गढ़ रहे हैं और मिश्रा सर जैसे कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक के प्रति श्रद्धा भाव से पूरित हैं । परंतु दीपक तले अँधेरा की उक्ति के अनुसार उनके अपने घर में असंतोष और कलह छाया हुआ है । यह सब देखकर मेरा मन बहुत दुखी होता है । बहुत इच्छा होती है कि सर के लिए कुछ करूँ परंतुप्रत्येक संबंध की अपनी एक मर्यादा होती है ,उसी के चलते अपने-आपको रोक लेता हूँ ।मिश्रा सर के दो बेटे हैं , दोनों उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे । दोनों पढ़ाई में सामान्य ही थे , जैसे-तैसे पढ़ाई पूरी करके किसी प्रायवेट कम्पनी में नौकरी करने लगे थे । पर इससे उनके जीवन में विशेष फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मिश्रा सर ने अपने जीवन में इतनी प्रतिष्ठा कमाई थी जो उन्हें परिवार ,समाज में आदर और यश दिलाने के लिए पर्याप्त थी । अपने व्यवहार और क्रियाकलापों से बेटे उनके इस नाम को मिट्टी में मिलाने पर तुले हुए थे । आप क्या काम करते हैं से कहीं बढ़कर आप क्या व्यवहार करते हैं, यह मायने रखता है । जिस माता-पिता ने अपनी सारी जिंदगी अपने बच्चों के नाम कर दी उनको संतान यदि आदर और देखभाल न दे पाए तो बहुत दुख होता है । पूरी जिंदगी व्यर्थ हुई सी प्रतीत होती है । मैं उन्हें अपना आदर्श मानता था और उनकी प्रेरणा से मैंने शोध कार्य किया और मुझे शासकीय महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक का पद मिला । यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैंने भी उसी कॉलोनी में घर लिया जहाँ मिश्रा सर रहते थे । मेरे मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा और आदर की भावना थी और मेरे जैसे न जाने कितने छात्रों को उन्होंने आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी । आज वे सभी उनके प्रति श्रद्धावनत होंगे ,पर उनके अपने बच्चे आज उनसे दुर्व्यवहार कर रहे हैं ।अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा देखकर माता-पिता को अपार संतुष्टि मिलती है । वे चाहते हैं कि बच्चे सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करें । उनकी शादी कर उनका परिवार बढ़ते देख सुकून से वृद्धावस्था को जीना चाहते हैं । सुख-सुविधाओं के लिए मन नहीं भागता पर बच्चों की खुशी और उनके साथ में ही वे हर खुशी ढूँढते हैं । जीवन की आपाधापी बच्चों को समय कम देती है पर वे इस बात को समझते हैं । जब दोनों पीढ़ी में तालमेल का अभाव होता है तभी तनाव और झगड़े होते हैं । दोनों बेटों की शादी के बाद ही सर के घर में समस्याएँ उत्पन्न होने लगीं थीं । दोनों बहुओं के बीच मनमुटाव का समाधान उन्होंने यह निकाला कि घर के पास ही बड़े बेटे को किराए पर एक घर लेकर दे दिया और स्वयं छोटे बेटे के साथ रहने लगे । उनकी छोटी बहू स्वभाव की बहुत तेज थी और सासूमाँ के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रही थी । बड़े बेटे के अलग हो जाने के बाद भी गृहक्लेश बना रहा । कहाँ तो सर सेवानिवृत्त होने के बाद अपने छोटे से बगीचे की देखभाल करते हुए , स्वाध्याय करते हुए सुकून से जीवन बिताना चाहते थे पर सब कुछ अपने मन मुताबिक कहाँ होता है । इंसान न जाने कितनी योजनाएँ बनाता है पर भविष्य के अंक में क्या छुपा है कोई नहीं जानता । सिर्फ वर्तमान ही है जिसमें हम जो चाहें कर सकते हैं पर वर्तमान भविष्य की तैयारियों में बीत जाता है ।बहुत दिनों तक कोशिश करने के बाद भी वे सास-बहू में सामंजस्य स्थापित करने में सफल नहीं हुए । थक हार कर उन्होंने छोटे बेटे को एक नया घर देने और वहाँ शिफ्ट होने की सलाह दी परन्तु वह और उसकी पत्नी टस से मस नहीं हुए । इस विशाल घर पर अपना अधिकार खो देने का भय उन्हें आतंकित कर रहा था । आज तो उन्होंने अति कर दी थी सर और उनकी पत्नी को घर से बाहर निकाल कर उन्होंने द्वार बंद कर लिया था । कितने शौक से उन्होंने यह घर बनाया था । इतना बड़ा अपमान एक पिता के मन को आहत कर गया था । बड़ा बेटा उन्हें अपने घर ले गया था परंतु इस घटना से सर विषाद की अवस्था में चले गए थे । उस घटना के कुछ माह बाद उस दिन मैंने उनके छोटे बेटे और बहू को सामान लेकर कहीं और जाते देखा । उसके जाने के बाद पुलिस ने घर पर ताला लगा दिया था । आस-पड़ोस से जानकारी मिली कि मिश्रा सर ने कोर्ट में अपने बेटे के खिलाफ केस कर दिया है अपना घर वापस लेने के लिए । वह घर उन्होंने स्वयं अपनी मेहनत की कमाई से बनाया था इसलिए उनका अधिकार पाना तय था । बेटा कितनी भी बड़ी गलती करता तो वे माफ कर देते लेकिन वह घर उनके अतीत की खूबसूरत यादों का संग्रहालय था । उसकी हर ईंट में न जाने कितनी स्मृतियाँ साँस लेती थीं । घर के लालच में बेटे ने एक बेहद संवेदनशील और भावुक पिता का हृदय व्यथित कर दिया था । आज घर के साथ उसने माता-पिता की स्नेह-छाया भी खो दी थी । -
दीक्षा के दोहे
धुंध यह अविश्वास का , फैल रहा चहुँ ओर ।
निकले सूरज आस का , सुख की हो तब भोर ।।
पनघट यह नीला गगन, मेह-कुंभ हैं नीर ।सखियाँ भरती चाँदनी ,झिलमिल करता चीर ।।भोजन टटका ही करें , सेहत बने सुजान ।दूध दही फल खाइए, नित्य योग कर ध्यान ।।संचित कर गुल्लक सदा, सुख के पल अनमोल ।व्याकुल हो जब मन कभी, संग्रह स्मृति के खोल।।साध निशाना मारती , सुधियों भरी गुलेल ।झोली में कुछ पल गिरे, खुशियों से हो मेल ।।मिले कभी भाई-बहन, बचपन की तस्वीर ।यादों की गठरी खुली , बातों की रसखीर।।अम्मा लेती लाड़ से ,अजब-गजब से नाम ।ममता के मधु में पगी , गोदी थी सुखधाम ।।लेखिका -डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)M-9424132359- -
विशेष लेख : 2 अक्टूबर महात्मा गांधी जन्म दिवस
महात्मा गांधी महामानव के साथ एक जीवन मूल्य भी है
(एल.डी. मानिकपुरी, सहायक जनसम्पर्क अधिकारी)
सत्य और अहिंसा के पुजारी के रूप में विश्व विख्यात महात्मा गांधी की आज जयंती है। भारत सहित पूरी दुनिया उनके आदर्शों और विचारों को जानने, समझने और स्वीकार करने में लगे हुए हैं।किंतु आज की परिस्थिति में यह कैसे संभव था कि अहिंसा और सत्य के बल पर इस महान देश को स्वतंत्रता मिली होगी! लेकिन सत्य भी है व इतिहास साक्षी है कि मोहनदास करमचंद गांधी की जीजिविषा ने, उनके आत्मबल ने अंग्रेजों की तानाशाही, जुल्म और गुलामी के खिलाफ उन्होंने अहिंसाऔर सत्य की मन्त्र को ही चुना और इस तरह करोड़ों भारतवासियों के महात्मा बन गए।
महात्मा गांधी को जानने, समझने, पढ़ने और उनको आत्मसात करने के लिए बड़े दिल और दिमाम की जरूरत है। महात्मा गांधी ने जहां आदिवासियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़े तबकों की समस्याओं और जरूरत को न सिर्फ समझे बल्कि उन्होंने उस दौर में जीया भी। छुआछूत, ऊंचनीच, जाति-धर्म और रंग के खिलाफ मुखर होकर वैचारिक हथियार के दम पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले महात्मा की आज हम सबकी जरूरत है।
जब हम ग्राम स्वराज की बात करते हैं, तब परम्परागत व्यवसाय, लोक संस्कृति, पर्व, खान-पान, बोली-भाषा को उचित मान और नई पीढ़ी को उससे जोड़कर रखना भी है। विगत पौने पांच बरस से छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार है। सरकार बनाते ही उन्होंने किसानों, ग्रामीणों, श्रमिकों, आदिवासियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गाे, युवाओं, महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए ऐसी नीति तैयार की है, जो आने वाली पीढ़ियों को न्यायसंगत अधिकार भी दे रही है।
जब न्याय की बात होती है तो थाना, अदालत, कोर्ट-कचहरी आंखों के सामने दिखाई पड़ती है, इसके बावजूद मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने साफ और स्पष्ट करते हुए है कि हमारी सरकार किसी के हक को मारकर आगे नहीं बढ़ेगी। साथ ही जरूरतमंद लोगों और समाज के सभी वर्गों को सामाजिक, शैक्षणिक, राजनैतिक, आर्थिक न्याय मिले इसके लिए सरकार हर समय डटे रहेगी । सम्भवतः यही वह रीति- नीति है, जो बापू के पथ पर चलने में मददगार साबित हुई है।
जब हम नीति और न्याय की बात करते हैं, तब विगत पौने पांच बरसों के आंकड़े ढूंढने लगते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर जब यह देखने को मिलता है कि आदिवासियों का मुख्य आय का जरिया तेन्दूपत्ता, लघुवनोपज आदि उत्पाद का सही दाम और सही समय पर मिलने लगे हैं, वहां निवासरत रहने वाले लोगों के जीवनस्तर में बदलाव देखने को मिल रहा है तब यह सामाजिक न्याय बन जाता है और यह सरकार की उत्कृष्ट नीति, सार्थक निर्णय का ही परिणाम रहा है।
कभी सोचने में भी मुश्किल होता था कि एक गरीब व सामान्य परिवार के बच्चे भी प्रदेश के उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ेगा किंतु यह भी दूरदर्शी नीति और सकारात्मक निर्णय का ही परिणाम रहा है कि अब प्रदेश के लाखों बच्चे स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूल में पढ़ाई के साथ अच्छी अधोसंरचना के साथ खेलकूद में भी भाग ले रहे हैं।
जब कभी सर्दी-खांसी, बुखार परिवार के किसी सदस्य को हो जाए तो कुछ पल के लिए परेशानी बढ़ जाती है लेकिन यह भूपेश सरकार की नीति ही है जिन्होंने अस्पताल को चौखट तक ला दिया। परिवार के किसी भी सदस्य को कोई गंभीर बीमारी हो जाए तो आर्थिक स्थिति बुरी तरह से चरमरा जाती है, लेकिन एक संवेदनशील और लोक कल्याणकारी सरकार की अवधारणा पर चलने वाली भूपेश सरकार ने मुख्यमंत्री विशेष सहायता योजना के तहत पात्र व जरूरतमंद मरीजो के लिए 25 लाख रूपए तक मदद करने की जो नीति तैयार की है, वह भी एक न्याय है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी देश की आर्थिक स्थिति में अक्सर असर डालता है। किंतु छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार की ही नीति रही है, जिन्होंने कोरोना जैसे विपदा के समय भी आम लोगों को भरपेट भोजन, मनरेगा व अन्य रोजगार मुहैया कराने में सफल हुए। प्रदेश के लाखों युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है, उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है ताकि रोजगार व स्वरोजगार करने में मदद मिले। छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर लगातार कम रहना प्रदेश के लिए गौरव की बात है, तो गरीबी रेखा से जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या में कमी होना भी एक सुखद परिणाम है।
लोगों की बुनियादी जरूरतों, भोजन, आवास, सड़क, बिजली, अस्पताल, स्कूल, पीने की साफ पानी, रोजगार पर आंकलन करते हैं। तब हमें वह स्कूल की दीवार भी दिखाई देती है जो विगत 13 बरसों से बंद थीं। राज्य सरकार की संवेदनशील पहल के कारण अब स्कूल भी खुल गई और शिक्षा की रोशनी भी चमकने लगी है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक सड़क और पुल-पुलिया, 24 घंटे बिजली और हर परिवार को पक्का आवास देने जैसे कार्य योजना ने राज्य सरकार की नीति को ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ में बदल दी।
कौन सोच सकता था कि प्रदेश में गोबर व गौमूत्र की भी खरीदी होगी, लेकिन यही नीति ने तो ग्रामीणों और पशुपालकों के जीवन स्तर को संवारने का काम तो किया ही, उनकी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करने में भी बड़ा योगदान दिया है। सुराजी योजना, गोधन न्याय योजना ने तो देश के अन्य राज्यों को अपनी ओर खींचने को विवश किया। कई कार्यों के लिए भारत सरकार से सम्मान प्राप्त हुए और सराहना भी मिली। तब ऐसी नीति, निर्णय और न्याय से बापू के उस ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी सरकार ने जिस जुनून और परिश्रम के साथ जुटे हैं तब यहां के लोगों ने सहसा कहना शुरू कर दिए कि ‘भूपेश है तो भरोसा है।’ और इस तरह बापू के बताए मार्ग पर चलते हुए राज्य सरकार कुपोषण से छुटकारा पाने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान छेड़ा है तो अन्नदाताओं के उपज का सही दाम दिलाने के लिए राजीव गांधी किसान न्याय योजना और राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना के माध्यम से इन परिवारों को आर्थिक मदद भी की जा रही है।
महात्मा गांधी जी को याद करते व श्रद्धांजलि देते समय, हमें यह संकल्प भी लेना होगा कि मीठी जुबान, सद्व्यवहार, सहयोग, सद्भाव, संवेदनशीलता, सहानुभूति, सत्य और अहिंसा ही वह शस्त्र है, जिनके बल पर समाज, प्रदेश व देश के विकास में अपनी योगदान दे सकते हैं।
महामानव बापू निश्चित ही इस धरती में भौतिक रूप में नहीं है लेकिन उनके विचार, सिद्धांत युगों-युगों तक अमर रहेगा। नमन बापू..। - माइक्रोन का संयंत्र अन्य राज्यों के लिए बनेगा पथप्रदर्शक, खुलेंगे अवसर के नए द्वारलेखक- श्री राजीव चंद्रशेखर(लेखक केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता और इलेक्ट्राॅनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री हैं।)गुजरात स्थित साणंद में सेमीकंडक्टर संयंत्र का शिलान्यास कर भारत ने इस महीने एक और इतिहास रचा है। अरसे से सेमीकंडक्टर उद्योग लगाने का सपना अब साकार होने जा रहा है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सबल एवं निर्णायक नेतृत्व को जाता है। उनकी अगुवाई में केंद्र सरकार ने विगत करीब साढ़े नौ साल के दौरान अनेक ऐतिहासिक फैसले लिए हैं, जिनमें भारत को सेमीकंडक्टर राष्ट्र बनाने का निर्णय एक युगांतकारी कदम है। इससे देश में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अवसर के नए द्वार खुलेंगे और डिजिटल अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी।विश्व को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना से काम करने की नसीहत देने वाला भारत आज दुनिया की आर्थिक महाशक्तियों के लिए एक भरोसेमंद रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदार बनकर उभरा है। भारत की प्रौद्योगिकी समर्थित-प्रगति विकासशील देशों के लिए प्रेरक बन गई है। जबकि अत्याधुनिक व उन्नत प्रौद्योगिकी लैस विकसित देश भारत के साथ साझेदारी के अवसर तलाश रहे हैं। महज एक दशक पहले भारत से विदेशी निवेशक पलायन कर रहे थे आज यह देश उनके लिए निवेश का पसंदीदा ठिकाना बन गया है। कोविड की विषम परिस्थितियों से सक्षमतापूर्वक निपटने और आर्थिक गतिविधियों दोबारा पटरी पर लाने में भारत ने जो तत्परता दिखाई वह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन गई है।महामारी के बाद बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत के आर्थिक विकास की तीव्र रफ्तार सबसे बड़ी वजह है प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्थाई सरकार, जो साहसिक फैसले लेती है।गुजरात में सेमीकंडक्टर उद्योग के संयंत्र की स्थापना मोदी सरकार की इस महीने की एक और बड़ी उपलब्धि है। सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी अमेरिकी कंपनी माइक्रोन द्वारा गुजरात के साणंद में अपना पहला संयंत्र के लिए 23 सितंबर को भूमि-पूजन किये जाने साथ भारत ने सेमीकंडक्टर के अपने सफर का आगाज किया। इसके दो दिन पहले 21 सितंबर को संसद ने लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के प्रावधान वाले विधेयक पर मुहर लगाकर देश की आधी आबादी की दशकों से लंबित मांग पूरी की। नये भारत की नवीन परिकल्पना और अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नव निर्मित संसद भवन में प्रवेश हमारे लिए एक सुनहरा पल था। इस नये संसद भवन में विशेष सत्र के दौरान ंपहले विधेयक के रूप में नारी शक्ति वंदन अधिनियम को पारित करवाकर मोदी सरकार ने वाकई इतिहास रचा हैै।इससे पहले 17 सितंबर को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने शिल्पकारों के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर देश के कारीगरों व शिल्पकारों के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना का शुभारंभ किया, जिससे 18 पारंपरिक व्यवसायों को नया जीवन मिलेगा। यह संयोग है कि नये भारत के शिल्पकार आदरणीय मोदी जी का भी जन्म-दिन 17 सितंबर ही है। इस महीने के आरंभ में देश की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत की अध्यक्षता में सर्वसम्मति से स्वीकृत नई दिल्ली घोषणा-पत्र में अभूतपूर्व फैसले लिए गए। शिखर-सम्मेलन में हिस्सा लेने आए राष्ट्राध्यक्षों ने भारत के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करके शासन-व्यवस्था को सरल व पारदर्शी बनाने और नागरिकों को सशक्त करने की पहलों की खूब सराहना की।भारत ने 2025-26 तक देश की जीडीपी में डिजिटल अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी 20 फीसदी से अधिक करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें इलेक्ट्राॅनिक्स उत्पादों की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी होगी। इलेक्ट्राॅनिक्स इकोसिस्टम में सेमीकंडक्टर का अहम स्थान है। आज इलेक्ट्राॅनिक उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले चिप का भारत आयात करता है, लेकिन जब देश में चिप बनने लगेंगे तो आयात पर निर्भरता घटेगी। इस तरह सेमीकंडक्टर उद्योग के विकास से देश में इलेक्ट्राॅनिक्स मैन्युफैक्चरिंग को गति मिलेगी। हालांकि माइक्रोन के सेमीकंडक्टर संयंत्र का निर्माण अभी भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग की विकास यात्रा का महज आरंभ है। लेकिन यह शुरुआत भी जिस अंदाज के साथ हुई है उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत बहुत कम समय में सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन सकता है।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने करीब 22 महीने पहले दिसंबर 2021 में 10 अरब डॉलर की राशि के साथ भारत सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम) को मंजूरी दी थी, जो भारत के सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को प्रोत्साहन देने की दिशा में एक व्यापक दशकीय रोडमैप है। इस 10 साल में महज 10 अरब डाॅलर की राशि से हमने जितना हासिल करने का लक्ष्य रखा है उतना चीन 200 अरब डाॅलर खर्च करके 30 साल में भी नहीं कर पाया है।हमारा मकसद भारत को वैश्विक मानचित्र पर ऐसे सेमीकंडक्टर राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है जो न सिर्फ अपनी घरेलू जरूरतों की पूर्ति करेगा बल्कि दुनिया की आपूर्ति शृंखला में अहम योगदान करेगा।दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनी माइक्रोन ने भारत में अपनी विनिर्माण इकाई स्थापित करने की घोषणा के महज तीन महीने बाद यहां संयंत्र निर्माण का काम शुरू कर दिया है। साणंद में जीआईडीसी-2 औद्योगिक क्षेत्र स्थित करीब 93 एकड़ के क्षेत्र कंपनी अपनी असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग (एटीएमपी) केंद्र का निर्माण करेगी जिसे तैयार होने में करीब 18 महीने लग सकता है।बहरहाल, माइक्रोन पास में 10 एकड़ के परिसर स्थित एक फैक्टरी का अधिग्रहण करके पाइलट के तौर पर उसे अपनी एटीएमपी सुविधा के रूप में तैयार कर रही है।माइक्रोन ने अपने पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब 2.75 अरब रहने की घोषणा की थी जिसमें केंद्र सरकार की तरफ से 50 फीसदी प्रोत्साहन के साथ-साथ राज्य सरकारी की सब्सिडी भी शामिल है। निवेश की इस राशि से करीब 5000 नई प्रत्यक्ष और 15,000 सामुदायिक नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है।प्रधानमंत्री जी के गृह राज्य गुजरात में माइक्रोन का यह संयंत्र भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। इससे अन्य प्रांतों को भी ऐसी क्रिटिकल प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अनुकूल इकोसिस्टम तैयार करने की नसीहत मिलेगी। प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी जी करीब 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। उस दौरान उन्होंने राज्य के औद्योगिकी विकास के लिए अनुकूल पारिस्थितिक तंत्र और जरूरी बुनियादी सुविधाएं तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया। नतीजतन, विदेशी निवेशकों के लिए गुजरात निवेश का एक आकर्षक ठिकाना बन गया है।दुनिया के देश भारत को ग्लोबल इलेक्ट्राॅनिक्स सप्लाई चेन में एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में देख रहे हैं। विश्व की दिग्गज कंपनियां भारतीय युवाओं की मेधा शक्ति और कौशल के कायल हैं। सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्राॅनिक्स इकोसिस्टम के विकास से आने वाले दिनों में देश के युवाओं के लिए अवसर के अनेक दरवाजे खुलने वाले हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था का तेजी से विस्तार होगा और भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को जल्द ही हासिल करेगा।
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ढाई रूपए के ग्रंथ में अनमोल ज्ञान...!
दो रुपए का नोट कहीं दिखता नहीं, नेट में सर्च करो तो यह अफवाह भी लिखी मिलती है कि गुलाबी रंग के इस पिछले हिस्से पर आपको एक बंगाल टाइगर की दहाड़ते हुए तस्वीर देखने को मिलती है। इसे बेचकर लाखों कमा सकते हैं। रहा सवाल अट्ठनी का तो वह चलती नहीं। खैर, कुल होते हैं ढाई रुपए जिसकी आज कोई वेल्यू नहीं, लेकिन जब इसका मोल था तब ढाई रुपए में अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ मिला करते थे, जिसका आज भी कोई मोल नहीं लगा सकता। सन् 1976, यानी आज से 49 वर्ष पूर्व रूनवाल प्रिंटिंग प्रेस, रतलाम से प्रकाशित ‘श्री सूर्य साहित्य भाग प्रथम’ नामक एक पुस्तक मिली जो दो भागों ‘श्री सूर्य दृष्टांत शतक’ एवं ‘श्री सूर्य उपदेश शतक’ में विभाजित है। इसके ग्रंथकार कविवर प्रवर्तक श्री सूर्यमुनिजी महाराज और संपादक उमेशमुनि ‘अणु’ हैं। यह एक प्रेरक ग्रंथ है जिसमें अनेक रोचक कथाएँ हैं जो मानव जीवन के विकास की राह प्रशस्त करती प्रतीत होती हैं। इसकी विशेषता है थोड़े शब्दों में पूरी कथा को समेट लेना। इस ग्रंथ में मालवी बोली के शब्दों का काफी प्रयोग किया गया है और ब्रजभाषा, गुर्जरगिरा, और मारवाड़ी भाषा का भी यथेष्ट प्रभाव है। कविताओं और उसके भावार्थ के माध्यम से सारी कथाएँ कही गई हैं।‘ सुखी दुख लेन गयो’ नामक कथा कुछ इस प्रकार है-पुण्यशाली परम सुखी था। उसे कभी दुख का अनुभव नहीं हुआ था। उसके किशोर-ह्रदय में दुख का स्वाद लेने की इच्छा उत्पन्न हुई। उसने अपनी माता से दुख पाने का उपाय पूछा। माँ ने कहा-बेटा ! ‘’तू पुण्यशाली है. तुझे जीवन के अन्तिम क्षण तक दुख आने का नहीं है।‘’बेटे के बहुत आग्रह करने पर माता ने कहा – ‘’दुख तुझे मिलने का नहीं है! परन्तु तू नहीं मानता है तो एक उपाय बताती हूँ। आज राजसभा में जाना और राजा के मुकुट को उसके मस्तक से नीचे पटक देना! फिर तुम्हें दुख मिलने का होगा तो मिल जाएगा।“पुण्यशाली दनदनाता हुआ राजा के समीप पहुँच गया। उसने राजा के मस्तक से मुकुट को दूर फेंक दिया! सभासदों में सन्नाटा छा गया! कुछ सैनिक छोकरे को पकड़ने दौड़े तो कुछ मुकुट उठाने गये। लोगों ने सोचा-‘छोकरे की मौत आ गई है!’ पुण्यशाली को पकड़ने से पहले ही मुकुट उठा लिया गया। मुकुट से निकलकर जमीन पर रेंगते हुए एक जहरीले छोटे सर्प को सबने आश्चर्य से देखा। राजा का क्रोध न जाने कहाँ चला गया। उसने पुण्यशाली को पुरस्कार दिया।जब उसने माँ से पूछा-‘’क्या दुख यही है ? ’’, तब वह हँस पड़ी। पुनः उसके आग्रह पर माता ने कहा -‘’अब लात मारकर राजा को ही सिंहासन से नीचे गिरा देना।‘’वह दौड़ता हुआ आया और उसने राजा को सिंहासन के नीचे गिरा दिया! राजा दूर जा पड़ा और वह भी गति की तीव्रता के कारण आगे निकल गया। सब ओर सन्नाटा छा गया। क्षण भर में सिंहासन के ऊपर की छत गिर पड़ी! इस बार भी पुण्यशाली की इच्छा पूरी नहीं हुई। उसे राजा ने हाथी पर बिठाकर, बड़े पुरस्कार के साथ उसके घर पहुँचाया। यह कथा यहीं समाप्त होती है, जो यह शिक्षा देती है कि पुण्योदय होने पर उलटे कार्य भी सीधे होते हैं। अतः पुण्यशाली से ईर्ष्या नहीं करना चाहिये और पुण्यवान को भी अभिमानी नहीं बनना चाहिए।‘मत आवन देव अधारो’ नामक कथा भी रोचक होने के साथ ही शिक्षाप्रद भी है-‘’सासु कहे-सुनरी वधू यो घर-मे मत आवन देय अँधारोसास सामयिक धार लही, तब-साँझ पड़ी तमकार पसारो।।दीप कियो न, लई लट हाथ मेफोड़त वासण, सर्व संहारो।सूर्य कहे जड़ सीखन मानतहारत है समझावनहारो।।‘’कवित्त में कही गई यह रोचक कथा इस प्रकार है-नई-नवेली बहू घर में आई। सासू ने सोचा कि अब इसे घर का काम सम्हला दूँ और मैं अपना समय धर्म-आराधना में अधिक लगाऊँ। अतः वह धीरे-धीरे घर के काम का बोझ बहू पर डालती जा रही थी। बहू की बुद्धि कुछ जड़ थी। वह किसी बात को जल्दी नहीं समझ पाती थी। एक दिन सांयकाल के समय सासू ने कहा-‘’बहू मैं सामयिक करने जा रही हूँ। साँझ हो रही है। घर में अंधेरे को मत आने देना।‘’ यह कहकर सासू चली गई।बहू सोचने लगी कि सासूजी ने कहा है- ‘’अन्धेरे को मत आने देना। तो अन्धेरा सासूजी की बात मानता होगा।‘’ सूर्यास्त हुआ। घर में अन्धेरा हुआ। बहू ने अन्धेरे से कहा- ‘’देखो जी, तुम घर में मत आओ!’’ पर अन्धेरा बढ़ रहा था।उसने डांट भरी आवाज में कहा- ‘’अरे अन्धेरे तुम सुनते नहीं हो मेरे सासूजी का हुक्म है- तुम घर में मत घुसो।‘’ जब उसे अपनी बात का कुछ प्रभाव होते हुए नहीं देखा, तब उसने अंधेरे से हाथ जोड़कर, नमस्कार किया और विविध भाँति प्रार्थना की, कि ‘’ हे अन्धेरे देव घर में मत आओ।’’पर अन्धेरे ने एक न सुनी, घर में अन्धेरा छा गया था। तब बहू को बहुत क्रोध आया। उसने सोचा कि यह दुष्ट मार खाये बिना घर से बाहर नहीं निकलेगा। उसने एक मजबूत लट्ठ लिया और वह अन्धेरे को मारने पील पड़ी। लेकिन अन्धेरे का कुछ नहीं बिगड़ा और घर में तोड़-फोड़ हो गई! वह पसीने में तर होकर हारकर बैठ गई।सासू घर आई। उसने घर में अन्धेरा देखा तो बहू को पुकार कर कहा-‘’बहू तुझे कहा था न, कि घर में अन्धेरे को मत घुसने देना!’’बहू ने कहा- ‘’मैं क्या करूं इसने मेरी एक न मानी। और उसने सारा इतिहास सुना दिया। सासू को बात सुनकर हँसी भी आई और दुख भी हुआ। उसने दियासलाई लेकर दिया जलाया और कहा- ‘’देख अन्धेरे को ऐसे भगाया जाता है।‘’बहू ने खिसायनी होकर कहा, ‘’तो, आपने पहले से ऐसा क्यों नहीं कहा ?’’यह कथा शिक्षा देती है कि जड़ बुद्धिवाले मनुष्यों को समझाना बहुत ही कठिन है। उन्हें स्पष्ट समझाना पड़ता है। और अज्ञान रूपी अऩ्धेरे को ह्रदय रूपी घर से भगाने के लिए सद्ज्ञान रूपी ज्योति जलाना चाहिये।इसी तरह ‘यों थी मेरे बकरे की दाढ़ी’ नामक कथा भी रोचकता के साथ मन पर नियंत्रण रखने की कला सिखाती है। यह कथा कुछ इस प्रकार है-एक कथावाचक पंण्डितजी एक गाँव में कथा करने आये। पण्डितजी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली था। वे बड़े लटके-झटके से कथा करते थे। जब वे जोश में आकर कथा करते थे, तब उनके हाथों की मुद्राएँ, आँखों की पुतलियों के हाव-भाव और चमकती हुई लम्बी, कुछ भूरी कुछ काली दाढ़ी का हिलना-ये सब मिलकर एक रोचक दृश्य खड़ा कर देते थे। उनके श्रोताओं की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही थी।भक्ति का एक प्रभावशाली उपदेश चल रहा था। श्रोता भावविभोर हो रहे थे। एक श्रोता पण्डितजी के ठीक सामने बैठा हुआ था। वह पण्डितजी की ओर एकटक देख रहा था। मानो वह आँख और कान दोनों ही इन्द्रियों से पण्डितजी का उपदेश सुन रहा था। वह अचानक ही रोने लगा। पहले धीमे-धीमे, फिर जोर-जोर से। पहले पास-पड़ोस के लोगों को पता लगा और फिर सभी लोगों को मालूम पड़ गया। उपदेश की धारा में बाधा उपस्थित हो गई। पण्डितजी और लोगों ने समझा की यह कोई भावुक श्रोता है। भक्ति के भावावेग में रुदन कर रहा है। उपदेश बंद हो गया, परन्तु उसका रोना बंद नहीं हुआ। लोग उसके आस-पास इकट्ठे हो गये। लोग उसे शान्त करने का प्रयत्न करने लगे।एक श्रोता ने उससे पूछा- ‘’भाई अब तो शान्त होओ। रोते क्यों हो ?’’वह रोता हुआ बोला- ‘’क्या करूँ पण्डितजी ने मेरा मर्म छू दिया!’’लोगों ने समझा कि इस पर पण्डितजी के उपदेश का बहुत गहरा असर हुआ है। श्रोता ने कहा- ‘’पण्डितजी का उपदेश ऐसा मर्मस्पर्शी ही है।‘’वह अपने आँसू पोछते हुए बोला-‘’नहीं जी, ऐसी बात नहीं है मुझे पण्डितजी की दाढ़ी को हिलती हुई देखकर एक बात याद आ गई!” लोग चौंक गये। पण्डितजी की हिलती हुई दाढ़ी और भक्ति-भावना में क्या सम्बन्ध है पण्डितजी को भी अपनी दाढ़ी की बात सुनकर, कुछ आश्चर्य हुआ। वह सबकी उत्सुकता का केन्द्र हो गया। वह कह रहा था-‘’मेरा एक बकरा था.........!’’लोगों का आश्चर्य और बढ़ गया। वे सुन रहे थे- ‘’जैसी पण्डितजी की दाढ़ी है वैसी ही मेरे बकरे की दाढ़ी थी। उसकी दाढ़ी भी वैसी ही हिला करती थी, जैसे उपदेश देते समय पण्डितजी की दाढ़ी हिला करती है। कुछ दिन हुए वह मर गया। आज पण्डितजी की दाढ़ी को हिलते हुए देखकर, मेरे उसी बकरे की मुझे याद आ गई। इसलिये रोना आ गया!’’पण्डितजी लज्जित हो गये। लोग भी मुसकाते हुए वहाँ से बिखर गये। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि अयोग्य श्रोता को उपदेश देने से कुछ भी लाभ नहीं होता है और उपदेश सुनते हुए मन को अन्यत्र नहीं भटकने देना चाहिए।सूर्य सिद्धांत दशक में 101 छोटी-छोटी कथाएँ हैं जो मन में अपने को रमा लेने के साथ-साथ मानव जीवन के विविध आयामों को उद्घाटित कर ज्ञान और दर्शन का विस्तार करती हैं। ये कथाएँ आज भी समाज में प्रासंगिक प्रतीत होती हैं। प्रेरक कथाओं के माध्यम से लोगों के जीवन में उच्च संस्कारों को अंकुरित करे वाले जैन मुनि संत कविवर्य प्रवर्तक पं.र. श्री सूर्यमुनिजी को शत-शत नमन। -
जितने दूर हुए तुम तन से
महकी यादों की पुरवाई ,मृदुल सुखद आभास हुए ।जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।मन में अंकित छवि प्रियतम की , जब चाहूँ तब दरस करूँ।प्रेम पगा है प्रिय का चितवन , नयनों को मैं सरस् करूँ ।अधर मौन हैं मुखरित नैना , आपस में संवाद करें ।पीड़ा सीमा पार कर गई ,मिलन-विरह अनुवाद करें ।इत्र पवन में घुला हुआ ज्यों, वो कोमल अहसास हुए ।।जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।।मधुर झरोखों से यादों के , झोंके प्यार भरे आएँ ।उठतीं लहरें मधुभावों की ,हृदय-पटल खिल-खिल जाएँ ।सरसिज सा मन हो जाता है ,सुरभित सारा चमन हुआ ।रिमझिम बारिश मधुर पलों की ,पुलकित सारा बदन हुआ ।रातें मादक पवन बसंती , दिन प्यारे मधुमास हुए ।।जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।।दीपक-बाती , चंदन-पानी , ऐसा अपना साथ रहे ।पावन पुष्पित धरा प्रेम की ,हृदय वृहद आकाश रहे ।शबनम सी पावन मनभावन ,प्रियता का आभास हो ।अंतर न रहे तुझमें मुझमें , मन में दृढ़ विश्वास हो ।चितवन जितना सरल हुआ है , उतने ही तुम खास हुए ।।जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।।लेखिका -डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद) - (छत्तीसगढ़ी कहिनी )लेखिका -डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)सावन के महीना म पानी गिरई कोनो नवा गोठ नोहय फेर ए दरी के पानी हर पराण ले के जाहि तैसनहे लागथे कइके फिरतू हर अपन माथा म चुचुआत पसीना प पोंछीस । झिटिर-झिटिर बरसात हर चार-पाँच दिन ले गिरतेच रिहिस । माटी के घर के भिथिया मन फूल गे रिहिन , ए बरसात हर निकलही धन नहि इही फिकर म न सुत सकत रहय न बने सही कउरा मुंह भीतर ले जा सकत रहय । छानी के खपरा ल लहुटाय के बेरा तरी म तिरपाल लगवा दे रिहिस त ए बरसात म छानही ले धार नई बोहाइस फेर भुइँया तरी ल भिथिया हर पानी ल पिहि त का करही मनखे हर ।सुराजपुर के फिरतू मिहनत मजूरी कर के अपन अउ दु ठिंन लइका के पेट ल भरत रिहिस । बड़ हँसमुख आदमी, जौन मेर रहय ओखर हांसी ठठ्ठा चलत रहय ।उंखर गांव म बी सी डी लाय रिहिस त अमिताभ बच्चन के फिलिम देखे राहय ।जबभे अब्बड़ खुसी होवय त एक ठन पंछा मुड़ म पागा सही बाँध लय अउ एक ठिंन अपन कनिहा म अउ पान खाय के एक्टिंग करके गाना चालू करय " हो खाई के पान बनारस वाला, खुल जाय बन्द अकल का ताला " ओखर ठुमका लगाई ल देख के पूरा मुहल्ला हांस-हांस के लोटपोट हो जाय ।ओखर गोसाईन रमौतीन घलो कुछु कहीं बुता कर के चाउर-दार के पुरती कमा लय । दुनो झन बड़ मेहनत करके माटी के दु ठन कुरिया अउ परछी ल उठाय रिहिन । रमौतीन हर बने गोबर अउ छुही म लीप के घर ल अब्बड़ सुघ्घर राखय । भले नानचुक रिहिसे फेर गोबर के छर्रा छींटा देवाय साफ सुथरा सुघ्घर रिहिस । बेटा गुरु हर लफंटूश निकरगे । पढ़े लिखे म ओखर मनेच नई लागिस । बेटी गौरी हर बड़ हुशियार रिहिस । पढ़ई गुनई , घर के काम बुता म हुशियार , बड़ मन लगा के घर के दुआरी म मोंगरा अउ गुलाल ,सदाबहार के पेड़ लगा दे रहिस तौन म बढ़िया फूल लगत रिहिस । पेड़-पौधा मन छोटे-बड़े थोरे देखथे ए दुर्गुण हर खाली मइनखे के आय जउन हर ओनहा कपड़ा लत्ता अउ घर-दुवार देखके ब्यवहार करथें । जीव जंतु अउ प्रकृति मइया हर भेदभाव नई करय फेर पांच दिन सरलग बरसात के होय ले पक्का सिरमिट वाले घर मन के काय बिगड़थे । फिरतू के मन हर कभू आज अउ कभू जुन्ना दिन म घुमत फिरत रहिथे ।"देख न बाबू ए गुरु हर मोर घरघुंदीया ल टोर के छितिर बितिर कर दिस" – रोवत आय रिहिस गौरी हर । ले मारहु मैं ओला , जा बेटी तैं नवा बना ले । तैं अन्नपूर्णा के अवतार अस बेटी , सिरजन करना तोर बर का मुस्किल हे । ए दरी जुन्ना घर ले अउ जबर अउ सुघ्घर घर बनाबे त जम्मो झन देखत रही अउ कइहिए होथे घर । ओला भुलवा के फिरतू हर चुप करा दिस फेर वो जानत रिहिस के घर हो के घरघुंदीया …बड़ मेहनत म बनथे । मुंह के कौरा नोहय के सान के गुप ले मुंह म डार दिस ।चार बछर होगे गौरी के बिहाव ल , बेटा गुरु हर अपन संगवारी मन संग कमाय खाय बर गांव ल का छोडिस दुबारा दाई ददा ल देखे तको नई आईस । फिरतू हर ओला खोजे बर शहर जाहूं कहय त रमौतीन हर " तन मा नइहे लत्ता अउ जाय बर कलकत्ता " कइके ओला चुप करा दय । दुनो झन के जिनगी हर जैसनहे तैसनहे निकलत रिहिस । मन मा सन्तोष राहय अउ कुछु हारी बीमारी झन आवय त मेहनत मजदूरी करके तको आदमी जिन्दा रही जथे । अउ अउ करके आदमी हर अपन आने वाले पीढ़ी बर जोरे लागथे तेने मन हाय हाय करके जीथें । लखपति ल नींद नई आवय काबर के ओखर मन म करोड़पति बने के उम्मीद जाग जाथे । भुईंया म सुतइया अउ दु ठन ओनहा म जिनगी पहइयाल का के फिकर । गरीब ल टोरथे बीमारी , बिहाव अउ क्रियाकरम के खर्चा । भइगे जिनगी के गाड़ी हर इही बइला म फंदागे । रमौतीन ल जर धरिस त आठ दिन होगे माढ़बे नई करिस । गांव के डागडर तीर सूजी देवाय म तको नई माढ़ीस त फिरतू हर शीतला माता म नरियर फोरीस , रतनपुर के महामाया ल मनउती मानिस " जय महामाई मोर सुवारी ल बने कर दे त तोर दुवारी म मुड़ी पटके बर आहूँ दाई… उम्मीद के दिया हर बुताय लागथे त भगवान हर सहारा देथे । गौरी हर अपन महतारी के बीमारी के गोठ सुनिस त दउड़त आईस अपन गोसइया संघरा । उही हिम्मत करिस - "चल बाबू अम्मा ल स हर के बड़े डॉक्टर ल देखाबो , घर म रही के बीमारी ल बढ़ा झन ।" बड़े अस्पताल म चार दिन भरती रिहिस रमौतीन अउ ए दुनिया के जंजाल ल छोड़ के देवता-धामी के लोक म रेंग दिस । फिरतू हर निचट अकेल्ला पर गे ।पानी गिरे के अतके फायदा हे गरीब दुखिया के आंसू संघरा मिल जाथे । ओहर चुप्पे-चुप रोके अपन जी के पीरा ल बरसात के पानी म बोहा देथे । करलई ए जी एकलौता पोसवा बेटा के मया अउ जनम बर संग देवइया घरवाली के बियोग एखर ले बड़े दुख अउ का देबे भगवान -लंबा सांस भरके फिरतू हर अपन घर घुंदीया म सुतीस । दूसर दिन बिहनिया गांव भर गोहार परे रिहिस। -" फिरतू के घर के भिथिया धंसक गे रिहिसअउ अपन जम्मो मया-पीरा के गठरी धरे फिरतू हर बड़ दिन बाद चैन के नींद सुते रिहिस अपन घरघुंदीया मा ।
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आलेखःछगन लोन्हारे
छत्तीसगढ़ सरकार नगरीय क्षेत्रों में नई सुविधाएं शुरू की हैं। राज्य में उद्यमीता और रोजगार के साथ-साथ लोगों को समय और श्रम की बचत के लिए कई नये और अभिनव योजनाएं संचालित की जा रही है। शहरी क्षेत्रों में उद्यमिता, स्वरोजगार एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश के 14 नगर निगमों और 44 नगर पालिका परिषदों में महात्मा गांधी अर्बन इंडस्ट्रियल पार्क निर्माण किया जा रहा है। इन पार्कों के माध्यम से शहरी क्षेत्र के उद्यमियों, स्व सहायता समूहों एवं रोजगार उन्मुख युवक-युवतियों को रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में नागरिकों को सरकारी कार्यालयों में बार-बार जाने की जरूरत ना पड़े इसके लिए ‘मुख्यमंत्री मितान योजना‘ की शुरुआत की गई है। इस योजना में मितान घर पहुंचकर शासकीय दस्तावेजों के लिए आवश्यक जानकारी लेते है। और दस्तावेज तैयार कर घर पहुंच सेवा प्रदान करते है। यह योजना राज्य के समस्त 14 नगर निगमों में की गई थी। अब इसका विस्तार समस्त नगर पालिका परिषदों एवं जिला मुख्यालय की 02 नगर पंचायतों में किया गया है। मुख्यमंत्री मितान योजना की शुरुआत 13 सेवाओं से की थी जिन्हें बढ़ाकर अब आधार, पैन, राशन कार्ड, राजस्व रिकार्ड, जन्म-मृत्यु, विवाह पंजीयन/सुधार, गुमास्ता लाईसेंस, श्रमिक कार्ड जैसी कुल 25 सेवाओं का लाभ मितान के जरिए आम नागरिकों को घर बैठे मिल रहा है। इस योजना की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस योजनांतर्गत 1 लाख 20 हजार से अधिक लोगों को मितान के माध्यम से घर पर प्रमाण पत्र उपलब्ध कराये गए हैं।
नागरिकों को मुख्यमंत्री मितान योजना से लाभान्वित होने के लिये योजना के टोल-फ्री नंबर 14545 पर कॉल करना होता है। इसके बाद अप्वाइंटमेंट बुक किया जाता है। तय समय और तारीख को मितान आवेदक के घर पहुंचकर आवश्यक दस्तावेज प्राप्त करते हैं और टैबलेट के माध्यम से दस्तावेजों को सत्यापित कर पोर्टल पर अपलोड करते हैं। इसके बाद सत्यापित दस्तावेजों को संबंधित विभागों को ऑनलाइन भेजे जाते हैं जो आवेदक से संबंधित दस्तावेज की समीक्षा के बाद प्रमाण पत्र जारी करते हैं। प्रमाण पत्र जारी होने के बाद मितान द्वारा प्रमाण पत्र आवेदक के घर पहुंचा दिया जाता है। मुख्यमंत्री की पहल पर इस योजना के लागू होने के बाद से नागरिकों को जरूरी प्रमाण पत्र और शासकीय दस्तावेज बनवाने के लिए नगर निगम, तहसील तथा अन्य सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने के आवश्यकता नहीं रह गई है। योजना के लागू होने से वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगजनों, मजदूरों, किसानों, महिलाओं और आम नागरिकों को काफी सहूलियत हो गई है।
शहरी क्षेत्र में निवासरत नागरिकों को उनके चौखट पर ही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना समस्त नगरीय निकायों में संचालित की जा रही हैइस योजना में आम नागरिकों को मोबाइल मेडिकल यूनिट द्वारा मेडिकल कैंप के माध्यम से एमबीबीएस डॉक्टर की टीम द्वारा मुफ्त में परामर्श, उपचार, दवाइयां एवं दैनंदिन होने वाले टेस्ट की सुविधा प्रदान की जा रही हैयोजना अंतर्गत 120 मोबाईल मेडिकल यूनिट के माध्यम से 70271 कैम्पों में 53 लाख से अधिक मरीजों को निःशुल्क जांच की गई है। लगभग 45लाख 93 हजार से अधिक मरीजों को निःशुल्क दवा वितरित की गई है तथा 14.32 लाख से अधिक मरीजों का लैब टेस्ट किया गया है। योजना के तृतीय चरण में अतिरिक्त 30 मोबाईल मेडिकल यूनिट का संचालन प्रारंभ किया गया है।
शहरी स्वास्थ्य व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण की दिशा में कदम बढ़ाते हुए, हमारी सरकार द्वारा आम नागरिकों को उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवाएं रियायती दरों पर उपलब्ध कराने हेतु श्री धनवंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर योजना प्रारंभ की गई हैयोजना अंतर्गत राज्य के नगरीय निकायों में 196 दुकानें संचालित हैं। इन दुकानों में 329 जेनेरिक दवाएं, 28 सर्जिकल आइटम आदि के साथ साथ छत्तीसगढ़ हर्बल्स के उत्पाद भी उपलब्ध हैं। अद्यतन इन दुकानों से राशि रू.204.74 करोड़ एमआरपी मूल्य की दवाओं का राशि रू. 80.17 करोड़ में विक्रय कर 71.47लाख हितग्राहियों को राशि रू. 124.57 करोड़ की बचत का लाभ दिया गया है। - जी20 की भारत की अध्यक्षता के तहत महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के एजेंडे को व्यापक प्रोत्साहन मिला है। अब समय आ गया है कि महिलाएं विकास की प्रक्रिया का नेतृत्व करने के लिए आगे आयेंआलेख- संगीता रेड्डी ( जी20 एम्पॉवर की अध्यक्ष और फिक्की की भूतपूर्व अध्यक्ष)जी20 एम्पॉवर वैश्विक स्तर की एक ऐसी पहल है, जो शिक्षा और आर्थिक भागीदारी के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने हेतु जी20 देशों की सरकारी संस्थाओं और निजी संगठनों को एक मंच पर लाती है।महिला सशक्तिकरण की कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ उस समय आया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास’ की अवधारणा पेश की। भारत के लिए खास यह अभिनव दृष्टिकोण अब जी20 एम्पॉवर के साझा शब्दकोष का हिस्सा बन गया है। इस दृष्टिकोण ने अपना ध्यान महिलाओं को मात्र सशक्त बनाने से हटाकर ऐसे माहौल को बढ़ावा देने पर केन्द्रित किया है, जहां महिलाएं केवल लाभार्थी हों भर न हों बल्कि विकास की अगुआ भी हों।जी20 एम्पॉवर की भारत की अध्यक्षता के तहत, हमने इस अवधारणा को पूरे दिल से अपनाया है और कथानक में इस परिवर्तन को दर्शाते हुए एक रोडमैप बनाने का प्रयास किया है। हमारा ध्यान तीन पहलुओं पर है: शिक्षा, महिला उद्यमिता और सभी स्तरों पर महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए साझेदारी बनाना। हमारा मानना है कि डिजिटल समावेशन इन सभी क्षेत्रों में एक साझा विषय है और हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि महिलाओं को सफल होने के लिए आवश्यक डिजिटल उपकरण और संसाधन उन्हें समान रूप से सुलभ हों।शिक्षा के क्षेत्र में, हम महिलाओं के लिए एसटीईएम शिक्षा और उच्च विकास वाली नौकरी के अवसरों को और अधिक सुलभ बनाने की हिमायत कर रहे हैं। हम विभिन्न बड़ी कंपनियों को प्रशिक्षुता कार्यक्रमों और भविष्योन्मुखी समावेशी पाठ्यक्रम में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। हम विभिन्न सरकारों से ऐसी स्पष्ट नीतियों और कानूनी ढांचे से लैस “संपूर्ण-सरकार” का दृष्टिकोण अपनाने का भी आग्रह कर रहे हैं, जो महिलाओं और लड़कियों को निरंतर सीखने के लिए प्रोत्साहित करे।महिला उद्यमिता के संदर्भ में, हमने महिला उद्यमियों, विशेषकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के उद्यमियों के उत्थान के लिए एक व्यापक रणनीति विकसित की है। हमारा मानना है कि महिला उद्यमियों को अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ बनने में समर्थ बनाना एक लाभकारी सौदा है – यानी व्यापक लैंगिक समानता के साथ एक समृद्ध अर्थव्यवस्था। हम निजी क्षेत्र को न केवल एक वित्तपोषक एवं खरीददार के रूप में, बल्कि एक मार्गदर्शक एवं विकास के उत्प्रेरक के रूप में भी आगे आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।हम सभी स्तरों पर महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। हम निर्णय लेने वाले स्तर पर महिलाओं के पहुंचने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम विकसित कर रहे हैं, समावेशी कार्यस्थल से जुड़ी नीतियां पेश कर रहे हैं, लैंगिक विविधता के आयामों की नियमित समीक्षा व उसके बारे में प्रकाशन कर रहे हैं और महिला कर्मचारियों की सुरक्षा एवं कल्याण सुनिश्चित कर रहे हैं। महिलाओं को वास्तव में सशक्त बनाने के लिए, हमें समाज के सभी स्तरों पर नेतृत्व और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भूमिका को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।हमें भारत की अध्यक्षता में इस पहल के तहत प्राप्त छह ठोस परिणामों को रेखांकित करने का विशेष रूप से गर्व है। सबसे पहले, हमने टेकइक्विटी प्लेटफॉर्म का शुभारंभ किया है, जो महिलाओं को ज्ञान के माध्यम से आगे रहने में मदद करने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया एक अनूठा डिजिटल प्लेटफॉर्म है। कुल 120 भाषाओं में उपलब्ध इस प्लेटफॉर्म के अगले छह महीनों में कम से कम दस लाख महिलाओं तक पहुंचने की उम्मीद है।दूसरा, हमने एक केपीआई डैशबोर्ड विकसित किया है जो महिला सशक्तिकरण एवं प्रतिनिधित्व के मामले में हुई प्रगति का पता लगाने के लिए एक मापने योग्य एवं व्यवस्थित तरीका प्रदान करता है। मजबूत कार्यप्रणाली का उपयोग करके इन आंकड़ों पर लगातार नज़र रखकर, हम सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने हेतु रुझानों, मूल कारणों और संभावित उपायों की पहचान कर सकते हैं।तीसरा, हमने एक ‘उत्कृष्ट कार्यप्रणाली प्लेबुक’ बनाई है। यह एक सर्वेक्षण-आधारित विश्लेषणात्मक उपकरण है, जो उत्कृष्ट कार्यप्रणालियों को संकलित करता है और इसे दुनिया भर की प्रभावी रणनीतियों एवं कार्यप्रणालियों को साझा करने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया है। इस प्लेबुक के 2023 संस्करण में जी20 के 19 सदस्य व अतिथि देशों की 149 उत्कृष्ट कार्यप्रणालियां संकलित हैं।चौथा, हमने जी20 देशों और अतिथि देशों की सफल महिलाओं की सफलता की कहानियों को सामने लाने के उद्देश्य से जी20 एम्पॉवर की वेबसाइट पर प्रेरणादायक कहानियों का एक विशेष खंड तैयार किया है। जी20 एम्पॉवर की वेबसाइट पर 10 देशों की 73 प्रेरणादायक कहानियां प्रदर्शित की गई हैं।पांचवां, हमारी अध्यक्षता के तहत, भारत ने हिमायत करने वालों के नेटवर्क का विस्तार करने और संकल्प को अपनाने के लिए जी20 एम्पॉवर पहल का समर्थन करना जारी रखा है। जी20 एम्पॉवर के हिमायत करने वालों के नेटवर्क, जिसमें लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध प्रभावशाली संगठन शामिल हैं, ने अपना विस्तार करना जारी रखा है और जी20 देशों में इसके समर्थकों की संख्या 500 से अधिक हो गई है।इन पहलों के अलावा, हमने ‘गांधीनगर घोषणा’ भी पेश की है। यह घोषणा निजी क्षेत्र की ओर से लैंगिक समानता के प्रति एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता है।इस घोषणा के तहत, कंपनियां यह सुनिश्चित करने का संकल्प लेती हैं कि उनकी श्रमशक्ति में कम से कम 30 प्रतिशत महिलाएं शामिल होंगी। उन क्षेत्रों में जहां श्रमशक्ति में पहले से ही 30 प्रतिशत महिलाएं मौजूद हैं, यह घोषणा इस बात को सुनिश्चित करने तक जाती है कि उक्त संगठन के सभी स्तरों पर 30 प्रतिशत महिलाएं मौजूद हों।30 गुणा 30 की यह शक्तिशाली घोषणा, जिसके लक्ष्य को 2030 तक पूरा कर लेना है, अपेक्षाकृत अधिक न्यायसंगत एवं समावेशी श्रमशक्ति के निर्माण की हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।(लेखिका जी20 एम्पॉवर की अध्यक्ष और फिक्की की भूतपूर्व अध्यक्ष हैं; ये उनके निजी विचार हैं)
- आलेख- लक्ष्मी पुरी (लेखिका भारत की पूर्व राजदूत और संयुक्त राष्ट्र की सहायक महासचिव हैं )प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 20 वर्षों में एक बार मिलने वाली जी20 की इंडिया यानी भारत की अध्यक्षता ऐतिहासिक मानी जाएगी। इस अध्यक्षता ने एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी है जिसकी अनदेखी करना घरेलू और विदेशी आलोचकों के लिए भी कठिन होगा। भारत की भौतिक, सांस्कृतिक, सभ्यतागत भव्यता और इसकी आर्थिक, वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति एवं गतिशीलता पूरी तरह से परिलक्षित हुई।भारत की कूटनीतिक व सर्वसम्मति निर्माण कौशल और सबसे अधिक आबादी वाले एवं युवाओं की संख्या के मामले में सबसे समृद्ध तथा सबसे पुराने, सबसे बड़े एवं सबसे अधिक विविधतापूर्ण लोकतांत्रिक देश की हैसियत ने इस ‘जनता के जी20’ में इसकी अध्यक्षता को एक विशेष गरिमा प्रदान की। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार की असाधारण प्रतिबद्धता ने भारत को ‘विश्वगुरु’ और ‘विश्वामित्र’ के रूप में वैश्विक मंच पर स्थापित कर दिया। भारत की यह छवि उच्चतम स्तर की भागीदारी और एक सार्थक दिल्ली घोषणा में दिखाई दी।यह परिधि से निकलकर वैश्विक आर्थिक निर्णय-प्रक्रिया के केन्द्र में पहुंचने की भारत की यात्रा का प्रतिनिधित्व करता है। भारत ने यह संकेत दिया कि वह उत्तर-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने और संवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसकी सामाजिक न्याय की विशाल परियोजनाएं ग्लोबल साउथ के देशों में प्रतिकृति और विस्तार की दृष्टि से मानक बनती हैं। तीव्र आर्थिक विकास, सतत विकास, जलवायु कार्रवाई और सभी के लिए मानवीय प्रतिक्रिया से लैस वैश्विक सार्वजनिक कल्याण सुनिश्चित करने के विकसित एवं विकासशील देशों के इस सबसे शक्तिशाली समूह को आगे बढ़ाने के जिम्मेदारियों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी का समावेशी एवं मानव-केन्द्रित दृष्टिकोण जी20 की भारत की सफल अध्यक्षता की पहचान बन गया।एक अभिजात्य बहुपक्षीय मंच के तौर पर, जी20 का जन्म 2008 के वैश्विक संकट के दौरान हुआ था। इसने वास्तविक सार्वभौमिक बहुपक्षीय मंच से वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय शासन के एजेंडे को अपहृत कर लेने की आलोचना को सहते हुए इस संकट से उबरने में काफी हद तक मदद की। पिछले कुछ वर्षों में, जी20 ने अपनी उपयोगिता साबित की है। लेकिन, अब इसे अब तक के गंभीरतम संकटों से निपटना है। अतिव्यापी और आपस में एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए ये संकट एक साथ उभरे हैं। इन संकटों में जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय क्षरण से लेकर कोविड-19 से उपजे व्यापक सामाजिक-आर्थिक विनाश, रूस-यूक्रेन युद्ध, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, भोजन, उर्वरक, ईंधन एवं वित्तीय संकट और आपूर्ति श्रृंखला की असुरक्षा शामिल है, जो ग्लोबल साउथ के देशों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। यह सब एक ऐसे समय में हो रहा है जब संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन जैसे बहुपक्षीय संस्थान संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटिरेज के शब्दों में “भारी शिथिलता के शिकार हो गए हैं”।18वें जी20 शिखर सम्मेलन में दक्षिणी दुनिया के देशों से किए गए प्रधानमंत्री श्री मोदी के वादे – “आपकी आवाज भारत की आवाज है, आपकी प्राथमिकताएं भारत की प्राथमिकताएं हैं" - को प्रभावशाली और ठोस तरीके से निभाया गया है। भारत ने 54 देशों वाले अफ्रीकी संघ - दूसरे सबसे बड़े संसाधन संपन्न महाद्वीप, जहां 1.466 बिलियन लोग सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पाने के लिए जूझ रहे हैं - को जी20 में शामिल करके वैश्विक शासन की समावेशिता एवं लोकतंत्रीकरण की राह में एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है।जी20 की अध्यक्षता के लिए भारत की सभी सात विषयगत प्राथमिकताओं का जहां तक प्रश्न है, इसने वास्तव में ग्लोबल साउथ के देशों के लिए “समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्योन्मुख और निर्णायक” परिणाम दिए हैं। इन परिणामों में एसडीजी को हासिल करने की दिशा में हुई प्रगति में तेजी लाना तथा जी20 कार्ययोजना एवं उच्चस्तरीय सिद्धांतों को लागू करना; वित्तपोषण के मामले में व्याप्त अंतर को पाटने तथा यूएनएसजी के एसडीजी संबंधी प्रोत्साहन का समर्थन करने हेतु सभी स्रोतों से किफायती, पर्याप्त एवं सुलभ वित्तपोषण जुटाना; जी20 रोडमैप के अनुरूप स्थायी वित्त को बढ़ाना; खाद्य सुरक्षा एवं पोषण से संबंधित दक्कन उच्चस्तरीय सिद्धांतों के अनुरूप वैश्विक खाद्य सुरक्षा को बढ़ाना, खाद्यान्नों एवं उर्वरकों की कीमतों में व्याप्त अस्थिरता से निपटना और आईएफएडी संसाधनों को बढ़ाना शामिल है। ‘एक स्वास्थ्य’ के दृष्टिकोण को अपनाते हुए, जी20 ने सहयोग का एक व्यापक पैकेज अपनाया, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व वाली महामारी से जुड़ी तैयारियों एवं निगरानी प्रणालियों को बढ़ाना और स्वास्थ्य सहयोग को वित्तपोषित करना शामिल है।सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पेरिस प्रतिबद्धताओं को लागू करने के मजबूत संकल्प के साथ ठोस हरित विकास समझौता थी। प्रधानमंत्री मोदी के लाइफ मिशन को सतत विकास के लिए जीवनशैली से संबंधित जी20 के उच्चस्तरीय सिद्धांतों में रूपांतरित कर दिया गया।इसने हरित जलवायु कोष (ग्रीन क्लाइमेट फंड) की महत्वाकांक्षी दूसरी पुनःपूर्ति और निजी वित्त और जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों के विकास, साझाकरण, तैनाती और वित्तपोषण और बहुवर्षीय तकनीकी सहायता योजना (टीएएपी) कार्यान्वयन पर मजबूत प्रतिबद्धता का आह्वान किया। इसने अपने एनडीसी को लागू करने के लिए 2030 से पहले ग्लोबल साउथ के देशों के लिए 5.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जरूरत और अकेले स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए चार ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जरूरत को रेखांकित किया। इसने विभिन्न पक्षों से 100 बिलियन की पेरिस प्रतिबद्धता को लागू करने और एक महत्वाकांक्षी, पता लगाने योग्य एवं पारदर्शी नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) को निर्धारित करने का आह्वान किया। न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन के संबंध में, ऊर्जा परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण खनिजों पर सहयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के उच्चस्तरीय सिद्धांतों द्वारा संचालित ग्रीन हाइड्रोजन इनोवेशन सेंटर शुभारंभ किया गया। जी20 ने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन के शुभारंभ के लिए भी संदर्भ प्रदान किया।प्रौद्योगिकी एवं डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के संबंध में, इसने जी20 2023 वित्तीय समावेशन कार्य योजना, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की प्रणालियों के लिए जी20 फ्रेमवर्क और एक वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे से संबंधित रिपॉजिटरी के निर्माण व रखरखाव की भारत की योजना का समर्थन किया। कम आय वाले देशों में डीपीआई के लिए क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता और वित्त पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने के वन फ्यूचर एलायंस (ओएफए) के भारत के प्रस्ताव का स्वागत किया गया। क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिए एक साझा एफएसबी एवं एसएसबी कार्ययोजना तथा एक व्यापक एवं समन्वित नीतियों एवं नियामक ढांचे के लिए एक रोडमैप निर्धारित किया गया।जी20 ने संयुक्त राष्ट्र एवं अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को फिर से सुदृढ़ करने एवं उनमें सुधार करने, बड़े, बेहतर एवं अधिक प्रभावी बहुपक्षीय विकास बैंक प्रदान करने, आईडीए की महत्वाकांक्षी 21 पुनःपूर्ति सहित विकास वित्त में बिलियन से ट्रिलियन तक की लंबी छलांग लगाने और आईएमएफ शासन कोटा में सुधार को दिसंबर 2023 तक पूरा करने का संकल्प व्यक्त किया। विकासशील देशों के अभूतपूर्व 9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण के मामले को संबोधित करते हुए, जी20 ने जी20 की ऋण निलंबन पहल के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन का आह्वान किया और इससे आगे जाने पर सहमति व्यक्त की। 21वीं सदी के लिए विश्व स्तर पर निष्पक्ष, टिकाऊ एवं आधुनिक अंतरराष्ट्रीय कराधान प्रणाली और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एवं धन शोधन के मामले में उल्लेखनीय प्रगति हुई।जी20 शिखर सम्मेलन ने यूक्रेन-रूस संघर्ष के मुद्दे पर आम सहमति का प्रतिनिधित्व किया और इस बात पर जोर दिया कि यह युद्ध का युग नहीं होना चाहिए। यह भरोसे के निर्माण की दृष्टि से एक बड़ी जीत है। इसने भारत को जी20 को सबसे अच्छे और सबसे बुरे समय में बेहद जरूरी वैश्विक आर्थिक सहयोग के एक 'प्रमुख मंच' के रूप में बहाल करने में समर्थ बनाया।
- आलेख- डॉ. एल मुरुगन, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी तथा सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री, भारत सरकारअब जबकि भारत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूरे आत्मविश्वास के साथ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, मत्स्यपालन क्षेत्र इस यात्रा में अपना दायित्व निभाने के लिए आगे आया है। प्रधानमंत्री की ‘सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण’ की बदौलत, पिछले नौ वर्षों में भारतीय मत्स्यपालन एक उभरते हुए क्षेत्र के रूप में सामने आया है और यह देश को अग्रणी नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकोनॉमी) बनने की राह पर मजबूती से आगे बढ़ा रहा है।कुल 8000 किलोमीटर से अधिक लंबे समुद्री तटों, विशाल विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, कुछ सबसे बड़ी नदियों व जलाशयों और महत्वपूर्ण रूप से मेहनती मानव पूंजी से समृद्ध भारत में हमेशा मत्स्यपालन के विकास की अपार संभावनाएं रही हैं। लेकिन शायद पिछली सरकारों की उपेक्षा, उदासीनता और नीतिगत निष्क्रियता ने इन संभावनाओं को कभी भी साकार होने ही नहीं दिया। विभिन्न रिपोर्टों से यह पता चलता है कि आजादी के बाद से 2014 तक, केन्द्र सरकार मत्स्यपालन के विकास के लिए 4000 करोड़ रुपये से भी कम की राशि जारी कर सकी।विभिन्न गीतों और कहानियों में ‘महासागर के राजा’ के रूप में प्रशंसित एक मछुआरा वास्तव में अपनी आजीविका कमाने के लिए हर दिन संघर्ष करता रहा। प्रसिद्ध तमिल अभिनेता एम. जी. रामचन्द्रन (एमजीआर) ने अपनी फिल्म 'पडागोटी' में मछुआरों की इस दुर्दशा को पूरी संवेदनशीलता के साथ दर्शाया था। मछुआरों की पीड़ा एवं उनके संघर्ष और असंवेदनशील व्यवस्था के हाथो उनके शोषण एवं बेबसी के इस दर्दनाक चित्रण ने दर्शकों के मन में एक अमिट छाप छोड़ी थी।यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ही थे जिन्होंने हमारे मछुआरे समुदाय के लिए इस नीली अर्थव्यवस्था की अपार संभावनाओं को समझा और इस क्षेत्र का प्रणालीगत विकास शुरू करने का निर्णय लिया। उनके नेतृत्व में, केन्द्र सरकार ने नीली क्रांति योजना (2015- 5000 करोड़ रूपये) और फिशरीज एंड एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (2017- 7522 करोड़ रूपये) के माध्यम से सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की। इन योजनाओं ने भारतीय मत्स्यपालन के क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों की एक श्रृंखला शुरू की, जमीनी स्तर पर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया और 2.8 करोड़ मछुआरों के जीवन को प्रभावित किया। जैसे-जैसे भारतीय मत्स्यपालन आगे बढ़ना शुरू हुआ, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 2019 में इसके केंद्रित विकास के लिए एक नया मत्स्यपालन मंत्रालय बनाया।जब भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र एक बड़ी छलांग लगाने की तैयारी कर रहा था, अचानक कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण दुनिया रुक गई। लेकिन, नेतृत्व ने इस संकट को एक अवसर में बदल दिया और सितंबर 2020 में 20050 करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) लाकर मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज की घोषणा की, जो भारतीय मत्स्यपालन के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है।इस नए निवेश और केन्द्रित ध्यान की बदौलत, पीएमएमएसवाई ने मछली के उत्पादन, उसकी उत्पादकता एवं गुणवत्ता से लेकर प्रौद्योगिकी, मछली पकड़ने के बाद की प्रक्रिया से जुड़े बुनियादी ढांचे और विपणन तक की मत्स्यपालन की मूल्य श्रृंखला में मौजूद महत्वपूर्ण अंतराल को पाटना शुरू कर दिया। इसने प्रमुख रणनीतिक प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की है: समुद्री मत्स्यपालन, अंतर्देशीय मत्स्यपालन, मछुआरों का कल्याण, बुनियादी ढांचा और मछली पकड़ने के बाद की प्रक्रिया का प्रबंधन, ठंडे पानी में मत्स्यपालन, सजावटी मत्स्यपालन, जलीय स्वास्थ्य प्रबंधन, समुद्री शैवाल की खेती आदि।पिछले नौ वर्षों के दौरान केन्द्र/राज्य सरकार की एजेंसियों और मछुआरों को शामिल करके केन्द्र सरकार द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों ने भारतीय मत्स्यपालन की स्थिति में नाटकीय रूप से परिवर्तन ला दिया है। कुल 107 से अधिक मछली पकड़ने से जुड़े बंदरगाह और मछली लैंडिंग केंद्र जैसे मुख्य बुनियादी ढांचे का निर्माण/आधुनिकीकरण किया गया है जो सुरक्षित लैंडिंग, बर्थिंग और लोडिंग-अनलोडिंग के लिए आवश्यक हैं। कोचीन, चेन्नई, मुंबई, विशाखापत्तनम और पारादीप में प्रमुख मछली पकड़ने के बंदरगाहों का आधुनिकीकरण किया गया है।मछुआरों की आय सीधे तौर पर मछली पकड़ने के बाद की प्रक्रिया के प्रबंधन से जुड़ी होती है। यानी मछुआरों की आय मछली के भंडारण, संरक्षण, परिवहन और बिक्री की व्यवस्था पर निर्भर करती है। कुल 25000 से अधिक मछली परिवहन सुविधाओं, 6700 मछली कियोस्क/बाजारों और 560 कोल्ड स्टोरेज को दी गई मंजूरी के साथ, जमीनी स्तर पर मत्स्यपालन का यह बुनियादी ढांचा तेजी से मजबूत हो रहा है।मछुआरों को खुले समुद्र में जोखिम और कामकाज की खतरनाक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। इन जोखिमों को कम करने के लिए, 1043 मौजूदा मछली पकड़ने वाले जहाजों के उन्नयन, 6468 नावों और 461 गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाजों के प्रतिस्थापन और उपग्रह आधारित संचार का उपयोग करके समुद्री मछली पकड़ने वाले जहाजों पर एक लाख ट्रांसपोंडरों की स्थापना को मंजूरी दी गई है।पीएमएमएसवाई ने अंतर्देशीय मत्स्यपालन को पारंपरिक तौर-तरीकों से बाहर निकाला और उसमें प्रौद्योगिकी का समावेश किया, जिससे कई प्रतिभाशाली एवं उद्यमशील युवाओं को मत्स्यपालन के उद्यम को अपनाने की प्रेरणा मिली। आज, कश्मीर घाटी की युवा महिला उद्यमी पुनर्चक्रण पर आधारित मत्स्यपालन प्रणाली (रीसर्क्युलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम) का उपयोग करके ठंडे पानी के रेनबो ट्राउट का कुशलतापूर्वक पालन कर रही हैं। बायोफ्लॉक द्वारा पाले गए झींगा की बदौलत नेल्लोर के मत्स्यपालन से जुड़े उद्यमी सफल निर्यातक बन गए हैं।पीएमएमएसवाई ने मत्स्यपालन को गैर-पारंपरिक क्षेत्रों तक विस्तारित करने में मदद की है। लगभग 20000 हेक्टेयर के ताजा तालाब वाले क्षेत्र को अंतर्देशीय जलीय कृषि के अंतर्गत लाया जा रहा है। यहां तक कि चारों ओर भूमि से घिरे हरियाणा और राजस्थान के किसान भी जलीय कृषि के माध्यम से अपनी खारी बंजर भूमि को सफलतापूर्वक धन देने वाली भूमि में परिवर्तित कर रहे हैं।पीएमएमएसवाई ने मछुआरा समुदाय की महिलाओं को सजावटी मत्स्यपालन, मोती के उद्यम (पर्ल कल्चर) और समुद्री शैवाल की खेती जैसे लाभकारी विकल्प और वैकल्पिक आजीविका के माध्यम से सशक्त बनाया है। तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में हाल ही में शुरू किया गया 127 करोड़ रुपये का समुद्री शैवाल पार्क वास्तव में मोदी सरकार का एक अग्रणी कदम है।बीज, चारा और नस्ल मत्स्यपालन क्षेत्र के महत्वपूर्ण घटक हैं। पीएमएमएसवाई ने 900 मछली चारा संयंत्रो एवं 755 हैचरी को सक्रिय किया है और यह चेन्नई में भारतीय सफेद झींगा से जुड़े अनुसंधान एवं आनुवंशिक सुधार, विशिष्ट रोगजनक मुक्त ब्रूड स्टॉक के विकास और अंडमान में बाघ झींगा (टाइगर श्रिम्प) से जुड़ी परियोजनाओं को समर्थन प्रदान कर रहा है।नीली अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों के केंद्र में मछुआरों और मत्स्यपालन से जुड़े उद्यमियों का कल्याण एवं उनके जीवन की बेहतरी है। मंदी और प्रतिबंध की अवधि में मछुआरों को पोषण संबंधी सहायता, एकीकृत तटीय गांवों का विकास, मछुआरों की सहायता के लिए सैकड़ों युवा सागर मित्र, समूह दुर्घटना बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से संस्थागत वित्तीय सहायता जैसे कई उपाय भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र के व्यापक विकास के पूरक हैं।भारतीय मछुआरों के साथ मोदी सरकार की साझेदारी ने उन्हें सशक्त बनाया है, जिससे उनमें आत्मविश्वास और गर्व की भावना आई है। देशभर के मछुआरों को दिल्ली के लाल किला में स्वतंत्रता दिवस समारोह में आमंत्रित किया गया था। मत्स्यपालन मंत्री श्री परषोत्तम रूपाला की भारत के मछुआरों के साथ सीधी बातचीत, मछुआरों के गांवों का दौरा करने, मछुआरों से मिलने एवं उनसे बातचीत करने और विभिन्न नीतियों एवं परियोजनाओं का जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन का साक्षी बनने के लिए समुद्र और तटीय मार्ग से 8000 किलोमीटर की यात्रा की सागर परिक्रमा की एक अनूठी पहल के माध्यम से यह साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है। हाल ही में जब तटीय जलीय कृषि पर अनिश्चितता के काले बादल मंडराए, तो संवेदनशील मोदी सरकार ने तेजी से कार्रवाई की और तटीय जलीय कृषि गतिविधियों में शामिल लाखों लोगों की चिंताओं को दूर करते हुए, तटीय जलीय कृषि संशोधन अधिनियम 2023 लाया।इस सितंबर में जब हम पीएमएमएसवाई की तीसरी वर्षगांठ मना रहे हैं, तो कोई भी भारतीय मत्स्यपालन के बदले हुए परिदृश्य को देख सकता है। आज भारत की गिनती दुनिया के शीर्ष तीन अग्रणी मछली एवं जलीय कृषि उत्पादक देशों में होती है और वह दुनिया का सबसे बड़ा झींगा निर्यातक है। सरकार ने हाल ही में पीएमएमएसवाई के तहत एक उप-योजना के रूप में 6000 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की है, जिससे पिछले नौ वर्षों में मत्स्यपालन के क्षेत्र में कुल निवेश 38500 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।आज, भारतीय मत्स्य उत्पादन (2022-23 के अनंतिम आंकड़ों के अनुसार 174 लाख टन) और निर्यात आय अब तक के उच्चतम स्तर पर है। वर्ष 2014 के बाद से पिछले नौ वर्षों का संचयी मछली उत्पादन, पिछले तीस वर्षों (1984-2014) के कुल मछली उत्पादन से बहुत अधिक है। झींगा उत्पादन 2013-14 में 3.22 लाख टन से 267 प्रतिशत बढ़कर 2022-23 में 11.84 लाख टन हो गया। भारत का समुद्री खाद्य निर्यात 2013-14 में 30213 करोड़ रुपये से दोगुना होकर 2022-23 में 63969 करोड़ रुपये का हो गया।पिछले नौ वर्षों में विकसित हुआ मत्स्यपालन का इकोसिस्टम तेजी से परिपक्व हो रहा है, शानदार परिणाम दिखा रहा है, और हमारे मछुआरे समुदायों के लिए धन अर्जित कर रहा है। अब जबकि नीली अर्थव्यवस्था की असीम संभावनाओं का दोहन करने हेतु मछुआरों और सरकार के बीच विकासात्मक साझेदारी मजबूत हो रही है, मैं सोचता हूं कि काश! दिवंगत एमजीआर आज जीवित होते। उन्हें यह देखकर निश्चित रूप से खुशी हुई होती कि कैसे प्रधानमंत्री श्री मोदी अपने ईमानदार प्रयासों और स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ फिल्म 'पडागोटी' में दर्शाई गई मछुआरों की दुर्दशा को कुशलतापूर्वक दूर कर रहे हैं और ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के मंत्र के माध्यम से विकास के पथ पर उनका समर्थन कर रहे हैं।
- -डॉ. कमलेश गोगिया
’हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है।‘
आज से ठीक पूरे 130 वर्ष पूर्व 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमेरिका) विश्व धर्म सम्मेलन में ऐतिहासिक भाषण दिया था। पूरी दुनिया के कोने-कोने तक उन्होंने सार्वभौमिक सहिष्णुता के सिद्धांत को पहुँचाया था। उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म को पूरी दुनिया से परिचित कराया था। वास्तव में उनका वक्तव्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के ही बीज मंत्र का विवेचन था जिसमें एक धरती, एक परिवार और एक भविष्य का सार निहित है। यह थीम भारत की मेजबानी में सम्पन्न जी-20 शिखर सम्मेलन की भी थी। देखिये किस तरह इतिहास स्वयं को दोहराता है। एक बार पुनः भारत ने पूरी दुनिया को मानवता में ही निहित विश्व शांति का संदेश दिया है। महीना सितम्बर का ही है, तारीख है 9-10 और वर्ष है 2023।जी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता ने अनेक नए कीर्तिमान रचे हैं। भारतीय मेजबानी ने वसुधैव कुटुम्बकम के मंत्र के साथ विश्व को समावेशी विकास का एक नया दृष्टिकोण दिया है। भारत सदैव ही विश्व बंधुत्व को साकार करता रहा है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन की शुरुआत मोरक्को-भूकम्प में मृतकों के प्रति संवेदना, घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य की प्रार्थना और हरसंभव सहयोग प्रदान करने के साथ की तो दुनिया को एक बार पुनः स्मरण हो आया कि भारत सदियों से वसुधैव कुटुम्बकम का बीज मंत्र साकार करता आ रहा है। हर भारतीय के लिए यह गौरव की बात है कि भारत पूरी दुनिया की आर्थिक शक्तियों को वसुधैव कुटुम्बकम की माला में पिरोने में कामयाब रहा।वसुधैव कुटुम्बकम सिर्फ शब्द-मात्र नहीं, इसमें गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। महाउपनिषद में संस्कृत का श्लोक है -*अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।**उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥* इसका अर्थ है, यह अपना बंधु है और यह अपना बंधु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है। भारतीय संस्कृति की प्रारंभ से यही विशेषता रही है कि वह पूरे विश्व को परिवार मानती आ रही है। यह मानवतावादी दृष्टिकोण है। वसुधैव कुटुम्बकम की इस पवित्र भावना पर ही भारतीय शासन और नीतियाँ कार्यरत रही हैं। पूरी वसुधा को जब आप परिवार मानते हैं तो यह व्यापक रूप से वैश्विक भावना का रूप ग्रहण कर लेती है। फिर देश ही नहीं, विश्व का हर नागरिक वैश्विक परिवार का हिस्सा बन जाता है। तब विश्व के किसी भी नागरिक का दुख-दर्द और उसकी समस्याएँ पूरे विश्व का दुख-दर्द और समस्या बन जाता है। देवभूमि भारत की यही विशेषता उसे सदियों से विश्व गुरू के रूप में स्थापित करती रही है।स्वामी विवेकानंद का मानवतावादी दृष्टिकोण भी वसुधैव कुटुम्बकम पर ही आधारित है। कुँवर कनक सिंह ‘स्वामी विवेकानंद के सक्सेस सिद्धांत’ में लिखते हैं, ‘’हमारी गौरवशाली भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम का आदर्श है, जो सम्पूर्ण विश्व वसुधा को अपना परिवार मानती है। हमें जानना चाहिए कि हम ऋषियों की संतान हैं, हमारी संस्कृति संस्कार-प्रधान है। भारतीय संस्कृति में चेतना के विकास को महत्ता दी गई है। इसी मापदंड के आधार पर व्यक्तित्व का, जीवन का निर्माण हो, न कि व्यक्तिगत रूचि एवं भौतिक उपलब्धियों को व्यक्तित्व का मापदंड माना जाए।‘’ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पूरे विश्व में कोरोना महामारी काल के दौरान भारत का वैश्विक सहयोग है जिसने वैश्विक स्तर पर भारत की अहम भूमिका तय की और भारत की क्षमताओं से भी अवगत कराया। भारत ने सिर्फ महामारी काल में ही नहीं, समय-समय पर पूरी दुनिया के समक्ष मानवता की मिसाल पेश की है। यमन-संघर्ष, नेपाल-भूकम्प, अफगानिस्तान जैसे मामलों और तमाम विपरीत परिस्थितयों में प्रवासी भारतीयों सहित विदेशी नागरिकों को बचाने में भारत के प्रयासों की सराहना दुनिया के मंच पर की जाती रही है।जी-20 शिखर सम्मेलन वास्तव में भारत के लिए ‘वसुधैव कुटंबकम्’ के अपने विचार को साकार करने और पृथ्वी को सुरक्षित एवं हरित बनाने में अपने योगदान को विश्व में मान्यता दिलाने का अवसर था, जिसमें वह कामयाब रहा। पूरा विश्व वर्तमान में जलवायु परिवर्तन का संकट झेल रहा है जिससे पृथ्वी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। विश्व का लगभग हर देश गर्म हवाओं के थपेड़े झेलने को विवश है। इसके अलावा जैव-विविधता का संकट, प्रदुषित महासागर, अंतरराष्ट्रीय तनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकट जैसी अनेक वैश्विक समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं। इन वैश्विक समस्यओं का समाधान ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के भारतीय दर्शन में ही निहित है, इसे जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल विश्व की सभी प्रमुख आर्थिक शक्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुर से सुर मिलाकर स्वीकार किया है।भारत में फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनैन ‘मायगाव डॉट इन’ में अपने आलेख, ‘वैश्विक स्तर पर छाप छोड़ता भारत, साझा भविष्य के निर्माण की भारतीय राह बड़ी उपयोगी’ में लिखा था कि, ‘’इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर भारत के हाथों में जी-20 की कमान देखकर फ्रांस बहुत खुश है। यह वर्ष भारत के लिए अवसर लेकर आया है कि वह ‘वसुधैव कुटंबकम्’ के अपने विचार को साकार करे और पृथ्वी को सुरक्षित एवं हरित बनाने में अपने योगदान को विश्व में मान्यता दिलाए।” निःसंदेह भारत इसमें सफल रहा। जी-20 सममेलन घोषणा पत्र पर सभी देशों की सहमति ने भारत के वसुधैव कुटुम्बकम (एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य) के विचार को साकार कर पूरी दुनिया में शिखर पर खड़ा कर दिया। जी-20 के सभी साथी सदस्य प्रमुख रूप से मजबूत, दीर्घकालिक, संतुलित और समावेशी विकास, सतत विकास लक्ष्यों पर आगे बढ़ने, दीर्घकालीक भविष्य के लिए हरित विकास समझौता, 21वीं सदी के लिए बहुपक्षीय संस्थाओं और बहुपक्षवाद को पुर्नजीवित करने, युद्ध की बजाए शांति, संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों पर कार्य करने, राजनीतिक स्वतंत्रता पर आँच न आने, परमाणु हथियार की धमकी स्वीकार न करने, क्षेत्रीय अधिग्रहण के लिए बल प्रयोग से दूर रहने, सैन्य विनाश और हमलों को रोकने, महिला सशक्तिकरण, निजी उद्यमों को बढ़ावा देने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सिद्धांतों को बनाए रखने पर एकजुट हुए।इस सम्मेलन में सायबर सुरक्षा और क्रिप्टो करेंसी पर भी चिंता व्यक्त की गई है। जाहिर है कि सायबर और क्रिप्टो करेंसी पर से संबंधित वैश्विक स्तर पर कानून बनाए जा सकते हैं। घोषणा पत्र के सभी 83 बिंदुओं पर सभी देशों की शत-प्रतिशत सहमति ने दुनिया में भारत का कद बढ़ा दिया है, इसमें कोई संदेह नहीं है।*जय हिन्द....**जय भारत...* - -अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर विशेष लेखललित चतुर्वेदी, उप संचालकअंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस अक्षरों की अलख जगाने का दिन है, अक्षर ज्ञान की महत्ता बताने का दिन है। यह अक्षर ज्ञान के प्रकाश से समाज में सुख और समृद्धि फैलाने के संकल्प लेने का दिन है। अक्षर ज्ञान वह पहला द्वार है, जहां से ज्ञान के अनंत रास्ते खुलते हैं। साक्षरता से शिक्षा और शिक्षा से विकास का सीधा संबंध है।साक्षरता वह शक्ति है, जिससे हम बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। शिक्षा हमारे जीवन में बदलाव लाती है। शिक्षा की गुणवत्ता के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षकों के साथ पालक भी बच्चों की शिक्षा में योगदान दें। अशिक्षित पालकों को शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे अपने परिवार के सदस्यों को शिक्षित कर सकें। साक्षरता के लिए व्यक्तिगत रूचि और सामूहिक प्रयासों की बड़ी आवश्यकता है। व्यापक जनभागीदारी से यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। मानव के सम्पूर्ण विकास के लिए साक्षरता बहुत महत्वपूर्ण है। यह समग्र रूप से सशक्त समाज के निर्माण के लिए आवश्यक साधन है। साक्षर समाज समानता, शांति और विकास का मूल आधार है। इसे विश्व स्तर पर मान्यता दी गई है।प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा वर्ष 2020 में विधानसभा में ‘पढ़ना लिखना अभियान’ की घोषणा की गई। इस कार्यक्रम में 15 वर्ष से अधिक उम्र समूह के असाक्षरों को बुनियादी साक्षरता एवं अंक ज्ञान प्रदान करने के लिए निर्धारित लक्ष्य ढाई लाख में से 2 लाख 22 हजार 477 शिक्षार्थियों को साक्षर किया गया। 25 हजार स्वयंसेवी शिक्षकों को मुख्यमंत्री और स्कूल शिक्षा मंत्री द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। प्रदेश में कोरोना काल के दौरान असाक्षरों को निर्धारित समयावधि एवं आवश्यक पठन-पाठन कराकर शिक्षार्थियों के आंकलन हेतु महापरीक्षा अभियान का आयोजन किया गया। चिन्हांकित स्वयंसेवी शिक्षकों को प्रशिक्षण उपरांत उनके माध्यम से विधिवत मोहल्ला साक्षरता केन्द्रों का संचालन किया गया। इसके लिए सर्वप्रथम जिलों में सर्वे के माध्यम से ढाई लाख असाक्षर और उन्हें पढ़ाने वाले 25 हजार स्वयंसेवी शिक्षकों का चिन्हांकन किया गया। पढ़ना-लिखना अभियान के अंतर्गत 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करने लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 28 जिलों की 2 हजार 925 ग्राम पंचायतों और 121 नगरीय निकायों में इसका क्रियान्वयन किया गया।वर्ष 2019-20 में मुख्यमंत्री शहरी कार्यात्मक साक्षरता ‘गढ़बो डिजिटल छत्तीसगढ़’ कार्यक्रम के तहत शहरी क्षेत्र के 14 से 60 वर्ष आयु समूह के डिजिटल (ई-शिक्षा) से वंचित असाक्षर व्यक्तियों को दक्ष बनाते हुए छत्तीसगढ़ राज्य के 168 नगरीय निकायों में 55 ई-साक्षरता केन्द्र प्रारंभ किया गया था। इस कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग 10 हजार शिक्षार्थियों को डिजिटल साक्षर बनाया गया।गौरतलब है कि यूनेस्को ने सन् 1966 में 8 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस दुनिया भर में ’संक्रमण में दुनिया के लिए साक्षरता को बढ़ावा देना टिकाऊ और शांतिपूर्ण समाजों की नींव का निर्माण’ विषय के तहत मनाया जाएगा।साक्षरता कार्यक्रम का उद्देश्य असाक्षरों को साक्षर कर जीवन की मुख्य धारा से जोड़ना है। शिक्षा से वंचित 15 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के असाक्षरों को बुनियादी साक्षरता एवं अंक ज्ञान कराने के लिए नव भारत साक्षरता कार्यक्रम प्रारंभ किया गया है। बुनियादी साक्षरता प्राप्त करना, शिक्षा और जीविकोपार्जन का अवसर प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। इस कार्य के लिए नवाचारी उपायों, स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं पर आधारित साक्षरता कार्यक्रम के परिणाम स्वरूप न सिर्फ समुदाय के वयस्कजनों की साक्षरता में वृद्धि होती है, बल्कि समुदाय में भी सभी बच्चों की शिक्षा के लिए मांग बढ़ती है।राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रौढ़ शिक्षा एवं जीवन पर्यन्त शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान की गई है। देश में वर्ष 2022-27 के लिए न्यू इंडिया लिट्रेसी प्रोग्राम नामक एक नई योजना को मंजूरी दी गई है। अब देश में “प्रौढ़ शिक्षा“ शब्द को “सभी के लिए शिक्षा’’ के रूप में बदल दिया है। छत्तीसगढ़ में इस वर्ष से नवभारत साक्षर कार्यक्रम प्रारंभ किया जा रहा है, जो पांच वर्षों तक संचालित किया जाएगा। इसमें प्रदेश के एक चौथाई शेष बचे असाक्षरों को साक्षर किए जाने का लक्ष्य है। नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के अंतर्गत प्रथम वर्ष प्रदेश में 5 लाख असाक्षरों को साक्षर कर उन्हें बुनियादी साक्षरता और अंक ज्ञान प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा महत्वपूर्ण जीवन कौशल जैसे - डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता, विधिक साक्षरता, चुनावी साक्षरता, व्यावसायिक कौशल विकास, बुनियादी शिक्षा, जीवन पर्यन्त शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता आदि क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।राज्य में इस वर्ष 01 से 7 सितम्बर तक साक्षरता सप्ताह का आयोजन किया गया। इस सप्ताह में सभी वर्गों के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं में लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। साक्षरता सप्ताह के दौरान छत्तीसगढ़ी लोक गीत, लोक परंपरा एवं पारंपरिक खेलों के प्रति लोगों में अच्छा उत्साह दिखाई दिया।
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मनोज सिंह, सहायक संचालक
रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की परिकल्पना अब साकार हो रही है। प्रदेश की स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी और हिंदी माध्यम स्कूल से राज्य के लाखों बेटे, बेटियों की जिन्दगी संवर रही है। इसका लाभ सुदूर वनांचल हो या मैदानी इलाका, प्रत्येक जगह देखने को मिल रहा है और आधुनिक शिक्षा की उजली तस्वीर देखने को मिल रही है। प्रदेश में वर्तमान सत्र 2023-24 में 377 अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालय तथा 349 हिंदी माध्यम विद्यालय कुल 726 स्कूल संचालित किए जा रहे है। स्कूल में 1 लाख 70 हजार बच्चे अंग्रेजी माध्यम और 2 लाख 20 हजार बच्चे हिन्दी माध्यम में पढ़ाई कर रहे है। राज्य सरकार की पहल से आज सुदूर अंचल के बच्चों को भी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में खेलने के लिए बढ़िया मैदान, आधुनिक प्रयोगशाला, पुस्तकालय, जैसी सुविधाओं का लाभ मिल रहा है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशन में शुरू की गयी स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट शासकीय अंग्रेजी माध्यम स्कूलों ने पालकों के आर्थिक बोझ को कम कर दिया है और पालकों के मन की चिन्ताएं दूर हो गई हैं। आज अंग्रेजी माध्यम स्कूल मैं पढ़ाई करके बच्चे अपनी प्रतिभा को बेहतर रूप में निखार रहे हैं।
योजना ने आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के बच्चों का आत्मविश्वास और स्वाभिमान बढ़ाया है। अंग्रेजी विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थीयों ने बोर्ड परीक्षाओं में मेरिट में अपना स्थान बनाया है। इन विद्यालयों में स्मार्ट क्लास, सुंदर भवन मार्डन पुस्तकालय, खेल मैदान, उत्कृष्ट प्रयोगशाला लैब आदि का बेहतर संचालन किया जा रहा है। जिससे प्रदेश में शासकीय विद्यालयों के प्रति बच्चों और पालकों के मन में लोकप्रियता बढ़ी है। स्वामी आत्मानंद विद्यालयों के संचालन से निर्धन गरीब वर्ग के बच्चों को उच्च गुणवत्ता के अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा प्राप्त होने से पालकों में बहुत उत्साह है। जिसके कारण सभी जगह से और भी आत्मानंद स्कूल खोले जाने की मांग लगातार हो रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में निजी और सरकारी शालाओं के बीच के अंतर को कम करने और बच्चों को बराबरी के अवसर देने के लिए यह योजना शुरू की है। -
’’शिक्षक दिवस पर विशेष लेख’’
ललित चतुर्वेदी, उप संचालकरायपुर / शिक्षा मानव के सर्वांगीण विकास का एक सशक्त माध्यम है। शिक्षा विद्यार्थियों के लिए सिर्फ ज्ञानार्जन का ही साधन नही अपितु यह आर्ट ऑफ लिविंग अर्थात जीने की कला सिखाती है। आज के प्रतिस्पर्धी युग में बच्चों के सर्वागीण विकास पर बाल्य काल पर ही ध्यान देना होगा तभी बेहतर उपलब्धियां प्राप्त कर सकेगी। शिक्षकों को प्राथमिकता से बच्चों के नैतिक शिक्षा पर बल देना चाहिए। शिक्षक अपने विद्यार्थियों के लिए रोल मॉडल होता है। अतः बेहतर शिक्षक निश्चित तौर पर सुसंस्कारित बेहतर नायक तैयार करने में महती भूमिका निभाते हैं।शिक्षकों पर देश के भावी कर्णधारों के जीवन को गढ़ने और उनके चरित्र निर्माण करने का महत्वपूर्ण दायित्व होता है। शिक्षा ही ऐसा माध्यम है जिससे हम प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ सकते हैं। देश के राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब वे भारत के राष्ट्रपति थे तब कुछ पूर्व छात्रों और मित्रों ने उनसे अपना जन्मदिन मनाने का आग्रह किया। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि यह बेहतर होगा कि आप इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए। इसके बाद 5 सितम्बर को हमारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘‘जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सकेें, चरित्र का गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है‘‘। शिक्षक, शिक्षा और ज्ञान के जरिये बेहतर इंसान तैयार करते है, जो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देते है। हमारे देश की संस्कृति और संस्कार शिक्षकों को विशेष सम्मान और स्थान देती है। गुरू शिष्य के जीवन को बदलकर सार्थक बना देता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की स्थिति में सुधार के लिए शिक्षकों और छात्र-छात्राओं से किए गए वादे को न केवल निभाया है, बल्कि अमलीजामा पहनाना भी शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पहली बार बारहवीं कक्षा तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है। छत्तीसगढ़ में निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था के साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुक्रम में मातृभाषा को महत्व दिया जा रहा है।व्यक्ति अपनी मातृभाषा में शिक्षा को अधिक रूचि तथा सहजता के साथ ग्रहण करता है। अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है जिस कारण उसके शिक्षक को महत्व दिया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ की जनता की भावनाओं एवं अंग्रेजी भाषा की वैश्विक मान्यता को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्य के बच्चों के हित में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम विद्यालय प्रारंभ करने का निर्णय लिया। छत्तीसगढ़ सरकार चाहती है कि विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं में छत्तीसगढ़ के बच्चे भाग ले सके तथा सफलता प्राप्त कर सकें। प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के स्थायी उपाय किए गए हैं।राज्य गठन के बाद पहली बार शिक्षकों की सीधी भर्ती शुरू की गई। जिसके तहत पहले चरण में 14 हजार 580 पदों पर सीधी भर्ती हेतु विज्ञापन जारी किया गया था। इनमें से 10 हजार 834 अभ्यर्थियों को नियुक्ति प्रदान की जा चुकी है। वर्तमान में बस्तर एवं सरगुजा संभाग के लिए 12 हजार 489 व्याख्याता, शिक्षक एवं सहायक शिक्षक के पदों पर सीधी भर्ती की प्रक्रिया जारी है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 12 अगस्त 2023 को मुख्यमंत्री निवास में 232 अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र प्रदान किया गया। इसी प्रकार शिक्षकों के विज्ञापित 5 हजार 772 पदों में से 3 हजार 449 पदों के लिए अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी किया जा रहा है। इनमें से 2 हजार अभ्यर्थियों को 02 सितम्बर को आयोजित राजीव युवा मितान सम्मेलन में नियुक्ति प्रदान किया गया।स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय योजना से स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में एक नयी क्रांति आई है। विगत वर्ष 2020-21 में 51 स्कूलों से यह योजना प्रारंभ की गई थी, जो अब बढ़कर 727 स्कूलों तक पहुंच गई है। इनमें से 351 स्कूल हिन्दी माध्यम के है और 376 स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जा रही है। नवा रायपुर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बोर्डिंग स्कूल स्थापित करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी गई है।प्रदेश में लम्बे समय से राष्ट्र स्तर का अकादमिक एवं प्रशासनिक प्रशिक्षण की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में चल रहे अनुसंधान एवं प्रशिक्षण का लाभ शिक्षक उठा सके। राज्य सरकार ने इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए आगामी शिक्षा सत्र के लिए नवा रायपुर में राष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान के लिए 1 करोड़ रूपए का प्रावधान बजट में किया है।शिक्षकों को प्रोत्साहित करने एवं उनके कार्यक्षमता को प्रमाणित करने के उद्देश्य से शिक्षकों को राज्यपाल पुरस्कार एवं मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण पुरस्कार प्रदान किया जाता है। शिक्षक दिवस के अवसर पर राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह में प्रदेश की 4 महान साहित्यिक विभूतियों के नाम से चार शिक्षकों को डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी स्मृति पुरस्कार, डॉ. मुकुटधर पाण्डेय स्मृति पुरस्कार, डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र स्मृति पुरस्कार, श्री गजानंद माधव मुक्तिबोध स्मृति पुरस्कार प्रदान किया जाता है। शिक्षक दिवस समारोह में प्रदेश के महान विभूतियों की स्मृति में दिए जाने वाले पुरस्कार से सम्मानित होने वाले प्रत्येक शिक्षक को 50-50 हजार रूपए एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही समारोह में राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए चयनित शिक्षकों में से प्रत्येक शिक्षक को 21-21 हजार रूपए की राशि और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।प्रदेश में मातृ भाषा शिक्षण के संदर्भ में कक्षा पहली एवं दूसरी में बच्चों की मातृभाषा में स्पोर्टिक मटेरियल एवं कक्षा तीसरी से पांचवी तक की भाषा (हिन्दी) के पाठ्यपुस्तक में 25 प्रतिशत स्थानीय भाषा छत्तीसगढ़ी, गोंड़ी, हल्बी, सरगुजिहा व कुडुख में विषयवस्तु का समावेश किया गया है। कक्षा पहली और दूसरी में हिन्दी की पढ़ाई को बच्चों की मातृभाषा से जोड़ने के लिए हिन्दी के शब्दों का 06 क्षेत्रीय भाषाओं में पर्यायवाची शब्द दिये गये हैं। प्रदेश के 19 जिलों में 12 भाषाओं पर बहुभाषा शिक्षण का कार्य किया जा रहा है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने मृतक शासकीय कर्मचारियों के परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए अनुकम्पा नियुक्ति के लिए 10 प्रतिशत की सीमा को शिथिल किया। स्कूल शिक्षा विभाग ने 1722 लोगों को सहायक शिक्षक, सहायक ग्रेड और भृत्य के पदों पर अनुकम्पा नियुक्ति दी गई।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में शिक्षक पात्रता परीक्षा प्रमाण पत्र की वैधता की 7 वर्ष की अवधि को विलोपित करते हुए, इसे आजीवन कर दिया है। स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षाकर्मियों का पंचायत शिक्षक और शिक्षिका के रूप में संविलियन किया गया। सरकार ने अपने घोषणा पत्र के अनुसार दो वर्ष की सेवा पूर्ण करने वाले 35 हजार से अधिक शिक्षक संवर्ग (पंचायत एवं नगरीय निकाय) का भी शिक्षा विभाग ने संविलियन कर दिया है। राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सल गतिविधियों से ध्वस्त हुए शाला भवनों के स्थान पर 60 पोटा केबिन के माध्यम से 27 हजार 762 बच्चों के शिक्षा की व्यवस्था की गई है। स्कूल शिक्षा विभाग नित नये नवाचार पर अपने विद्यार्थियों को नये अवसर प्रदान कर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न अवार्ड छत्तीसगढ़ को प्राप्त हुए है। इनमें बच्चों के आकलन एवं अभ्यास कार्य को सरल बनाने एवं मूल्यांकन संबंधी विसंगतियों को दूर करने के लिए राष्ट्रीय सूचना केन्द्र (एनआईसी) के सहयोग से टेली प्रेक्टीज नामक कार्यक्रम लागू किया गया इसे कम्प्यूटर सोसायटी आफ इंडिया स्पेशल इंट्रेस्ट ग्रुप द्वारा ई-गर्वनेस पुरस्कार प्रदान किया गया।एनआईसी और शिक्षा विभाग के संयुक्त प्रयास द्वारा विकसित निकलर मोबाईल एप की नवाचारी मूल्यांकन संसाधन के अंतर्गत एम बिल्लिंथ अवार्ड प्राप्त हुआ। इसकी सहायता से एक मोबाईल के द्वारा सभी बच्चों का मौखिक मूल्यांकन, वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के आधार पर कर सकता है। निकलर एप को कम्प्यूटर सोसायटी आफ इंडिया द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में शिक्षा विभाग द्वारा चलाए जा रहे महिला शिक्षक समूह कार्यक्रम ’अंगना मा शिक्षा’ को स्कॉच अवार्ड-2022 से पुरस्कृत किया गया। इसमें 38 हजार 539 महिलाएं प्रशिक्षित होकर जुड़ी है।पढ़ाई तुंहर दुआर नवाचार में श्रेष्ठ कार्य करने के कारण आवार्ड ऑफ एक्सीलेंस प्राप्त हुआ और कोरोना काल के कठिन समय में शिक्षकों द्वारा किए गए कार्यों में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। प्रदेश के एनआईसी द्वारा विकसित एनक्लियर एण्ड टेली प्रेक्टिस एप को डिजिटल टेक्नोलॉजी सभा अवार्ड प्राप्त हुआ है। - अनुशंसित लेखक: डॉ. मनसुख मंडाविया , केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रीभारत नई दिल्ली में 18वें जी20 राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के शिखर सम्मेलन की मेजबानी की तैयारी कर रहा है। इस परिदृश्य में हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि वास्तव में समावेशी और समग्र सार्वभौमिक स्वास्थ्य संरचना के निर्माण के लिए ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ को जोड़ने वाले सेतु की आधारशिला रखी जा चुकी है, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांधीनगर में आयोजित स्वास्थ्य मंत्रिस्तरीय बैठक में कहा, "हमें अपने नवाचारों का जनकल्याण के लिए उपयोग करना चाहिए। हमें वित्तपोषण के दोहराव से बचना चाहिए। हमें प्रौद्योगिकी की न्यायसंगत उपलब्धता की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।”यह देखकर खुशी होती है कि शक्तिशाली अंतरराष्ट्रीय मंच के सदस्यों ने महामारी के वर्षों के दौरान और उसके बाद से अर्जित सामूहिक ज्ञान के आधार पर कार्य करने के लिए एक लंबा सफर तय किया है - वास्तविक स्वतंत्रता तभी शुरू होती है, जब पूरी मानवता के स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं किया जाता है। यदि कोई वायरस तबाही मचाने का फैसला करता है और हम इसका मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो समाज किसी भी स्तर की आर्थिक खुशहाली का आनंद नहीं ले सकता है। यह बात, भारत की जी20 अध्यक्षता के तहत महत्वपूर्ण स्वास्थ्य प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श की अंतर्निहित अवधारणा रही है।मंत्रियों, वरिष्ठ नीति निर्माताओं और बहुपक्षीय एजेंसियों ने स्पष्ट तौर पर भारत की जी20 स्वास्थ्य प्राथमिकताओं का समर्थन किया है, जो सभी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और उनकी क्षमताओं की जटिलताओं पर प्रकाश डालता है। इस प्रक्रिया में, हम बात पर एक व्यापक सहमति बनाने में सफल रहे हैं कि भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों को रोकने, इसके लिए तैयार रहने और इसका मुकाबला करने के लिए सामूहिक वैश्विक कार्रवाई ही आगे का रास्ता है और महामारी से उबरने की प्रक्रिया न्यायसंगत होनी चाहिए।स्वास्थ्य पर कुछ महत्वपूर्ण वैश्विक कार्रवाइयों में शामिल हैं, चिकित्सा उपाय प्लेटफार्म के सिद्धांतों और संरचना पर आम सहमति बनाना, जो टीकों, उपचार, निदान और अन्य समाधानों तक पहुंच से जुड़ी मौजूदा असमानताओं में कमी ला सकता है और जिन्हें स्वास्थ्य संकटों से निपटने में प्रभावी उपाय माना जाता है; डिजिटल स्वास्थ्य पर एक वैश्विक पहल, जो देशों की डिजिटल स्वास्थ्य पहल की प्रगति की इस प्रकार सहायता करे कि अपने विशिष्ट संदर्भ में अन्य देशों के लिए समाधान अपनाने में अंतर को कम किया जा सके; इस बारे में अपनी समझ विकसित करना कि जलवायु और स्वास्थ्य एक-दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं, ताकि विशिष्ट समाधानों को प्राथमिकता दी जा सके; और पारंपरिक औषधियों के हमारे भंडार से जानकारी प्राप्त करना, ताकि हमारे भविष्य का स्वास्थ्य हमारे अतीत के ज्ञान से लाभ उठा सके।प्रतिरोधी चिकित्सा उपाय प्लेटफ़ॉर्म की आवश्यकतादुनिया भर में कोविड-19 टीकाकरण और नैदानिक चिकित्सा ने हमारी निहित असमानताओं को उजागर किया है, जिन्हें हमें दूर करना होगा। आपस में अत्यधिक जुड़ी हुई दुनिया में, किसी देश में रोगाणुओं का खतरा, पूरी दुनिया के लिए खतरा है और हमें सिद्धांतों तथा एक वैश्विक संरचना पर सहमत होना चाहिए, जो टीकों, नैदानिक परीक्षणों, दवाओं और अन्य समाधानों तक न्यायसंगत और समय पर पहुंच में सभी देशों को सक्षम बना सके।ऐसा वैश्विक प्लेटफार्म समावेशी होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि यह उन देशों को ध्यान में रखता है, जो समाधान तक पहुंच में बाधाओं का सामना करते हैं; कुशल होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि यह मौजूदा क्षमताओं और नेटवर्क पर तेजी से आगे बढ़ता है; कार्यकुशल और अनुकूल होना चाहिए; जिसका अर्थ है कि इसमें बदलती जरूरतों और वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार तेजी से अनुकूलन करने के लिए अंतर्निहित लचीलापन है; और जवाबदेह होना चाहिए; जिसका अर्थ है कि एक पारदर्शी संरचना में स्पष्ट और साझा जिम्मेदारी है। इसे शीघ्रता से किफायती चिकित्सा समाधान उपलब्ध कराने चाहिए। जी20 के माध्यम से, हमने डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व में ऐसे प्लेटफार्म को लागू करने के परामर्श के लिए एक अंतरिम व्यवस्था के निर्माण पर बिना किसी देरी के अपनी प्रतिबद्धता जताई है, जहाँ निम्न और मध्यम आय वाले देशों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो, ताकि अगली स्वास्थ्य आपात स्थिति से मुकाबले के लिए हम पूरे तरह तैयार रहें।जी-20 देशों ने विशेष रूप से विकासशील देशों में टीकों, चिकित्सीय और नैदानिक उत्पादों की क्षेत्रीय विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के साथ-साथ सामूहिक रूप से अनुसंधान एवं विकास के एक इकोसिस्टम को विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि स्वास्थ्य-आपातकालीन स्थितियों में बाजार की विफलताओं से बचा जा सके।डिजिटल स्वास्थ्य पर वैश्विक पहल का शुभारंभसार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में, डिजिटल स्वास्थ्य सबसे शक्तिशाली उपायों में से एक के रूप में उभरा है। महामारी के दौरान हमने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य में डिजिटल उपकरणों की परिवर्तनकारी क्षमता का अनुभव किया है। कोविड-19 के दौरान, डिजिटल जनकल्याण उपायों के रूप में परिकल्पित को-विन और ई-संजीवनी जैसे प्लेटफॉर्म पूर्ण रूप से गेम-चेंजर साबित हुए, जिसने एक अरब से अधिक लोगों तक, जिनमें सबसे कमजोर समुदाय भी शामिल थे, टीकों और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के तरीके को पूरी तरह से लोकतांत्रिक बना दिया। भारत पहले से ही एक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्टम - आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) – तैयार कर रहा है, जो मरीजों को उनके मेडिकल रिकॉर्ड का संग्रह करने, मेडिकल रिकॉर्ड तक पहुँच प्राप्त करने और उचित उपचार व अनुवर्ती चिकित्सा सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ मेडिकल रिकॉर्ड साझा करने का अधिकार देता है।120 से अधिक देशों ने अपनी राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य नीतियां या रणनीतियां विकसित की हैं, जो कम आय वाले देशों सहित दुनिया भर में डिजिटल स्वास्थ्य उपकरणों की जरूरत को दर्शाती हैं। लेकिन कुछ समय पहले तक, देशों के पास डिजिटल स्वास्थ्य पहल पर ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए कोई आम प्लेटफार्म और भाषा नहीं थी, जबकि वे ऐसा करना चाहते थे। डिजिटल स्वास्थ्य में इस तरह से अलग-अलग से कार्य करने का मतलब है कि समान उत्पाद का कई रूपों में दोहराव होना है। भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत 19 अगस्त को डिजिटल स्वास्थ्य पर डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व वाली वैश्विक पहल (जीआईडीएच) के लॉन्च के बाद इस स्थिति में बदलाव होना निश्चित है। इस पहल पर जी-20 देशों के सर्वसम्मत समर्थन ने यह सुनिश्चित किया है कि दुनिया, निर्णायक रूप से देशों के बीच बढ़ते डिजिटल-विभाजन को पाटने के लिए, एक विभाजित डिजिटल स्वास्थ्य व्यवस्था से वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर आगे बढ़ेगी।इस पहल का उद्देश्य देशों को उच्च गुणवत्ता वाली डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में सहायता करना और मरीजों को गोपनीयता और नैतिकता के उच्चतम सम्मान के साथ जन-केंद्रित दृष्टिकोण के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की सुविधा प्राप्त करने में मदद करना है। इस तरह की संरचना को साधन प्रदान करने चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दुनिया भर में लोगों को दी जाने वाली डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता एक निश्चित मानक पूरा कर रहीं हैं; देशों की डिजिटल स्वास्थ्य यात्रा को समझने और साझा करने के लिए एक मंच बनाया जा रहा है तथा उनकी जरूरतों को इस तरह से उजागर किया जा रहा है कि एक देश दूसरे देश से सीख सकें और सभी के लिए स्वास्थ्य की इस यात्रा की दूरी कम की जा सके।जलवायु और स्वास्थ्य को प्राथमिकतासभी क्षेत्रों में जलवायु संबंधी जागरूकता होने के बावजूद, मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पौधों के स्वास्थ्य को कवर करने वाले वन-हेल्थ परिदृश्य में जलवायु, स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है तथा इनका आपसी संबंध क्या है, को अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। भारत की अध्यक्षता ने पहली बार जी-20 के माध्यम से इन अदृश्य कड़ियों को सुलझाने की आवश्यकता को स्वीकार किया है, ताकि हम समाधानों को प्राथमिकता दे सकें। जी-20 देशों ने निम्न कार्बन उत्सर्जन, उच्च-गुणवत्ता वाले स्थाई और जलवायु सहनीय स्वास्थ्य प्रणालियों को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्धता जताई है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारा स्वास्थ्य क्षेत्र ऐसे समय में पीछे न रह जाये, जब सभी क्षेत्र नेट-जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। हमारे परिणाम दस्तावेज़ में, जी-20 देशों ने वन-हेल्थ दृष्टिकोण के माध्यम से जीवाणु-रोधी प्रतिरोध (एएमआर) से निपटने का भी वादा किया गया है।पारंपरिक चिकित्सा की भूमिकाऐसे समय में जब दुनिया भर में समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाली एकीकृत चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति हो रही है, तो हमारा मानना है कि शक्तिशाली पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को पुनर्जीवित करना और जी-20 जैसे वैश्विक समूहों के माध्यम से मानवता को उनके अप्रयुक्त लाभों की पेशकश करना हमारी जिम्मेदारी है। पिछले साल, हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के जामनगर में पारंपरिक चिकित्सा के डब्ल्यूएचओ-वैश्विक केंद्र का उद्घाटन किया और दुनिया के लिए हमारे प्राचीन आरोग्य ज्ञान के दरवाजे खोले। स्वास्थ्य में साक्ष्य-आधारित पारंपरिक और पूरक चिकित्सा की संभावित भूमिका की पहचान करते हुए हम जी-20 में सदस्य देशों के साथ उस विरासत को आगे ले जा रहे हैं।एक कालातीत श्लोक के अनुसार, "आरोग्यम परमं भाग्यम्, स्वास्थ्य सर्वार्थ साधनम्", जिसका अर्थ है "निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं।", महामारी के अनुभव के बाद, जी-20 में हमने इस पर ध्यान दिया है और निर्णय लिया है कि अब कार्रवाई करने का समय आ गया है।
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सौंवी जयंती पर विशेष
मुंबई। महान गीतकार शैलेंद्र की एक बड़ी पहचान जनवादी गीतों के लेखक की है। शैलेंद्र फ़िल्मी दुनिया में भी अपने उन तेवरों के साथ आए और छा गए। 30 अगस्त 1923 को जन्मे शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र की आज 100वीं जयंती है।पचास के दशक में बनी राज कपूर की फ़िल्मों में एक ख़ास ट्रेंड महसूस किया जा सकता है। ये फ़िल्में एक ऐसे नायक की कहानी कहती हैं जो मुफलिसी से जूझता गरीब है, दुनियावी मायनों में हाशिये का आदमी है लेकिन उसके पास सच्चाई और ईमानदारी की पूंजी है। वह ऐसे समाज का दूधिया स्वप्न देखता है जिसमें इंसानी मूल्यों की कद्र हो, जहां तरक्कीपसंदी को तरज़ीह दी जाती हो। परंतु हक़ीक़त में ऐसी दुनिया होती नहीं है। यहां नायक के सपनों की दुनिया हक़ीक़त से टकराती है। सपने टूटते हैं, लेकिन इस टूटन से कोई शोर नहीं होता। यह टूटन कुछ सुरीले नग़मों को आवाज़ देती है:दिल का हाल सुने दिल वालासीधी सी बात न मिर्च मसालाकहके रहेगा कहने वालादिल का हाल सुने दिल वाला…
या फिर
सब कुछ सीखा हमनेन सीखी होशियारीसच है दुनिया वालोंकि हम हैं अनाड़ी…ऐसे ही नग़मे लिखने वाले शख्स थे जनकवि शैलेंद्र।शैलेंद्र के गीतों में जनवाद तो है ही, फ़िल्म की सिचुएशन के मुताबिक लिखे गए उनके जो प्यार भरे गीत हैं वे एक ख़ास किस्म की बेफ़िक्री और मासूमियत को अपने साथ लिए चलते हैं। मोहब्बत की बातें तो हैं लेकिन उनमें परंपरागत उबाऊपन नहीं बल्कि एक ख़ास किस्म का नयापन और रूमानियत है। इन गीतों में भारत के आध्यात्मिक दर्शन की भी झलकी है। उनके लिखे ज़्यादातर गीत इतने सरल, सुरीले और सांगीतिक (रिदम में बंधे हुए) हैं कि यह समझ पाना लगभग असंभव है कि इन गीतों को फ़िल्म की सिचुएशन पर लिखा गया या ये अलग से लिखे गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शैलेंद्र की जितनी पहचान फिल्मी नग़मों के लिए रही उतना ही नाम जनता के कवि के तौर पर भी रहा। तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी के गीत में यक़ीन कर …, हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में.., क्रांति के लिए उठे कदम… आदि जन गीतों के माध्यम से उन्होंने समाज के संघर्षशील तबके के दिलोदिमाग़ में अपनी अमिट छाप छोड़ी।फ़िल्मी गीतों के बारे में आम तौर माना यही जाता है कि गीतकार ने इसे फ़िल्म की सिचुएशन पर रचा होगा। बहरहाल जब गीतकार शैलेंद्र (Shailendra) जैसे क़द के हों तो यह संभव ही नहीं है कि उन गीतों में उनकी वैचारिक छाप नज़र न आए। शैलेंद्र की सोच, उनकी वैचारिकी, उनके अंदर की कशमकश उनके गीतों में हमेशा नज़र आती है। फिर भले ही गीत फ़िल्म की मांग पर लिखे गए हों।शैलेंद्र नई आज़ादी की सुबह अंगड़ाई ले रहे हिंदुस्तानी फ़िल्म संगीत की दुनिया में ताज़ी हवा के झोंके की तरह आए और छा गए। इन गीतों ने बतौर गीतकार उन्हें देश-विदेश में प्रतिष्ठित कर दिया। फ़िल्मों में गीत लेखन की स्थापित परिपाटी के बरअक्स यह एक नए प्रयोग की शुरुआत थी। हालांकि छिटपुट तौर पर ही सही शैलेंद्र से पहले दीनानाथ मधोक, पंडित नरेंद्र शर्मा और गोपाल सिंह नेपाली… के यहां मिलते जुलते रंग हैं लेकिन बतौर गीतकार इन तीनों की यात्रा ज्यादा परवान न चढ़ सकी।शैलेंद्र की कलम से निकले देसज और लालित्य से भरे नग़मों ने हिंदी सिनेमा के गीतों को एक नई ख़ुशबू बख्शी। गीत लेखन का यह नया अंदाज फिल्म माध्यम के भी ज्यादा माफिक था। तभी तो विस्तृत और विविधता से भरे कैनवास पर रचे गए उनके नग़मों ने बहुत जल्दी सुनने वालों को अपना मुरीद बना लिया।शैलेंद्र की बतौर गीतकार ऐसी महत्वपूर्ण फ़िल्में हैं, आवारा, श्री 420, अनाड़ी, जिस देश में गंगा बहती है …. वगैरह। याद रखना होगा कि इन फ़िल्मों ने परदे पर अभिनेता राज कपूर (Raj Kapoor) को एक ख़ास किस्म की छवि प्रदान की जो ताज़िंदगी उनके साथ चस्पां रही और आज भी है। इस इमेज को बनाने में इन फ़िल्मों के गीतों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। जानकार तो यहां तक मानते हैं कि इन फ़िल्मों की सफलता में कहानी से अधिक योगदान गीत और संगीत का था। इन गीतों में नई-नई आज़ादी की अंगड़ाई भी है और आम भारतीयों के सपनों का सतरंगी धुनक भी है। इस बहुरंगी धुनक में न सिर्फ़ निपट भारतीयता का रंग है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान और रुझान की झलक भी है। इन गीतों की अपनी मास अपील है। तभी तो इंटरनैशनल ऑडियंस इन फ़िल्मों और इनके गीतों से आज भी कनेक्ट करते हैं। दूसरी जंग ए अज़ीम (दूसरा विश्व युद्ध) की विभीषिका के बाद उपजे माहौल में इन फिल्मों और इनके गीतों ने इंटरनैशनल ऑडियंस को एक सुखद अहसास कराया।बानगी के तौर पर फ़िल्म आवारा का गीत – आवारा हूं या गर्दिश में हूं…, श्री 420 – मेरा जूता है जापानी…, अनाड़ी – सब कुछ सीखा हमने …, जिस देश में गंगा बहती है – हम उस देश के वासी हैं… को देखिए।ये सारे गीत टाइटल गीत हैं। हिंदी फ़िल्मों में टाइटल गीत लिखने की शुरुआत शैलेंद्र ने ही फ़िल्म बरसात के टाइटल गीत – बरसात में हमसे मिले तुम ….. से की। आगे चलकर उन्होंने एक से बढ़कर एक टाइटल गीत लिखे। इन टाइटल गीतों में पूरी फ़िल्म की थीम झलकती है। एक तरह से कहें तो शैलेंद्र के ये टाइटल गीत शंकर-जयकिशन की संगीत रचना में महज़ गीत नहीं बल्कि एक आख्यान बन गए।शैलेंद्र का एक और रूप है जहां वे कबीर, रैदास, मीराबाई, नज़ीर अकबराबादी…. की परंपरा की अगली कड़ी लगते हैं। अपने इस अवतार में शैलेंद्र जीवन की निर्मम सच्चाई यानी कॉस्मिक ट्रुथ को अपने गीतों में बड़े आसान बिंबों, प्रतीकों और देसी मुहावरों के ज़रिये दिखाते हैं। ये सभी बिंब और प्रतीक जनमानस की स्मृतियों में रचे बसे हैं। मसलन तीसरी कसम – सजन रे झूठ मत बोलो … काला बाज़ार – ना मैं धन चाहूं … दाग़ – देखो आया ये कैसा ज़माना … आवारा – जुलम सहे भारी … नई दिल्ली – अरे भाई निकलके आ घर से … लव मैरिज – टीन-कनस्तर पीट-पीटकर, गला फाड़कर चिल्लाना … बादल – अनमोल प्यार बिन मोल बिके, इस दुनिया के बाज़ार में … आह – छोटी-सी ये ज़िंदगानी रे … दो बीघा ज़मीन – अजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामा … धरती कहे पुकार के … गाइड – वहां कौन है तेरा … जिस देश में गंगा बहती है – मेरा नाम राजू, घराना अनाम … ।अपनी सामाजिक व राजनीतिक चेतना को गीतों में पिरोने का उनका अंदाज़ भी संत काव्य-परंपरा के कवियों जैसा ही है। यहां भी बिंब सीधे-सादे हैं लेकिन बात लोगों के दिल में सीधे उतरती है। शैलेंद्र के गीत सुनने वालों पर बौद्धिक आतंक डालने की कोशिश नहीं करते। यही बात तो उन्हें हिंदी फ़िल्मों का अकेला जनगीतकार भी बनाती है। जो जनता की भाषा में जनता की बातें कहता है: मिसाल के तौर पर फ़िल्म उजाला का गीतसूरज ज़रा आ पास आआज सपनों की रोटी पकाएंगे हमऐ आसमां तू बड़ा मेहरबांआज तुझको भी दावत खिलाएंगे हमसूरज ज़रा आ पास आचूल्हा है ठण्डा पड़ा, और पेट में आग हैगरमा-गरम रोटियां, कितना हसीं ख़्वाब हैसूरज ज़रा आ पास आ …फ़िल्मी गीत लिखते हुए भी वह सामाजिक सरोकारों के स्तर पर कितने सजग थे इसकी बानगी उनके कुछ और गीतों में देखिए –दो बीघा ज़मीनअजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामापर्बत काटे, सागर पाटे, महल बनाए हमनेपत्थर पे बगिया लहराई, फूल खिलाए हमनेहोके हमारी हुई ना हमारीहोके हमारी हुई ना हमारी, अलग तोरी दुनियाहो मोरे रामा, अजब तोरी दुनिया, हो मोरे रामाचोरी चोरीतुम अरबों का हेर-फेर करनेवालेऐसी कड़की में ये बोझा दो जनों काआधा साझा हुआ थोड़े-से चनों काकभी आया ना वो दिन सपनों कातुम अरबों का हेर-फेर करनेवाले …वगैरह।अपने जनवादी तेवर के लिए प्रख्यात शैलेंद्र के गीतों का एक रंग निराशा, पलायन और जीवन के बजाय मृत्यु की फैंटसी का भी है। कई लोग इस निराशा को उनकी दलित पृष्ठभूमि से जोड़कर देखते हैं। दुनियावी मानकों पर वह एक सफल गीतकार थे फिर वह निराशा कहां से आती थी? शायद उनके भीतर कोई अव्यक्त पीड़ा समांतर चलती थी। सफलता की चमकदमक के बीच वह नितांत अकेले थे। इस अकेलेपन को एक कलाकार के नैसर्गिक विरोध से जोड़कर भी देखा जा सकता है। विन्सेट वॉन गॉग जैसे प्रतिभाशाली चित्रकारों का उदाहरण हमारे सामने है, जिनका जीवन नैराश्य और जटिलताओं से भरा रहा। बहरहाल, शैलेंद्र के यहां यह विरोध जब जीवन से पलायन और निराशा तथा मृत्य की ओर जाने लगा तो लोगों ने इसे उनकी दलित पहचान से भी जोड़ा।शैलेंद्र की लेखन यात्रा पर ध्यान दें तो बतौर गीतकार अपनी पारी शुरू करने से पहले उन्होंने जो भी लिखा उसमें निराशा नहीं बल्कि बेहतर भविष्य का सपना और कामना नज़र आते हैं: उनकी बहुत प्रसिद्ध ग़ैर फ़िल्मी रचना – तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी के गीत में यकीन कर .. को लीजिए। शैलेंद्र की इस रचना में पलायन, निराशा की जगह दुख और तकलीफ़ की मौजूदा दुनिया के आगे एक बेहतर दुनिया का सपना है। वह अपनी इस रचना का अंत भी ऐसे ही थीम पर करते हैं …हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार परमगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार करनई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमरअगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन परतू ज़िंदा है तो…लेकिन मृत्यु को लेकर जो रोमांस शैलेंद्र के यहां है उसकी झलक यहां भी है जब वह कहते हैं हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर …। परंतु शैलेंद्र इस निराशा को पार करते नज़र आते हैं। शायद इस निराशा से निकलने में उनकी राजनीतिक चेतना का गहरा असर रहा हो क्योंकि यही शैलेंद्र की राजनीतिक चेतना के बुनाव का दौर था। एक नए भारत को रचने का रूमानी स्वप्न भी इसमें शामिल हो सकता है।लेकिन जैसे ही शैलेंद्र फ़िल्मों के लिए गीत लेखन के क्षेत्र में आए उनका यह सपना मानो हक़ीक़त के धरातल पर आकर धीरे-धीरे दम तोड़ने लगा। एक आज़ाद भारत को लेकर जो सपना उनकी आंखों में था उसके भी टूटने की चुभन उनके फ़िल्मी गीतों में पसरने लगी। आशावाद की जगह पलायन और नैराश्य का रंग गहराने लगा।आप उनकी फ़िल्म रचनाओं में इस तिरती उदासी, निराशा को देख सकते हैं। मिसाल के तौर पर –फ़िल्म बरसातबरसात में हमसे मिले तुम …देर न करना कहीं ये आस टूट जाए सांस छूट जाएतुम न आओ दिल की लगी मुझको ही जलाए ख़ाक में मिलाए…बादलदो दिन के लिए मेहमान यहां …जलता है जिगर उठता है धुआंआंखों से मेरी आंसू हैं रवांजो मरने से हो जाए आसांऐसी ये मेरी मुश्किल है कहां…दाग़ऐ मेरे दिल कहीं और चल…चल जहाँ ग़म के मारे न हों, झूठी आशा के तारे न होंउन बहारों से क्या फ़ायदाजिस में दिल की कली जल गई, ज़ख़्म फिर से हरा हो गया …***प्रीत ये कैसी बोल री दुनिया …डूब गया दिन शाम हो गईजैसे उमर तमाम हो गईमेरी मौत खड़ी है देखोअपना घूँघट खोल रे …
सीमातू प्यार का सागर है…इधर झूम के गाए जिंदगीउधर है मौत खड़ीकोई क्या जाने कहां है सीमाउलझन आन पड़ी …
यहूदीये मेरा दीवानापन है…ऐसे वीराने में एक दिन घुट के मर जाएंगे हमजितना जी चाहे पुकारो फिर नहीं आएंगे हम …
मधुमतीटूटे हुए ख्बाबों ने…लौट आई सदा मेरी टकरा के सितारों सेउजड़ी हुई दुनिया के सुनसान किनारों सेपर अब ये तड़पना भी कुछ काम न आया हैदिल ने जिसे पाया था, आंखों ने गंवाया है…
मेरी सूरत तेरी आंखेंपूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई …ना कहीं चंदा ना कहीं तारेज्योत के प्यासे मेरे नैन बिचारेभोर भी आस की किरन ना लाई…..जग में रहा मैं, जग से परायासाया भी मेरा मेरे पास ना आयाहँसने के दिन भी रोके गुज़ारे …
अनाड़ीकिसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार …कि मर के भी किसी को याद आएंगेकिसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगेकहेगा फूल हर कली से बार बार…
छोटी छोटी बातेंकुछ और ज़माना कहता है …दुनिया ने हमें बे-रहमी से ठुकरा जो दिया अच्छा ही कियानादां हम समझे बैठे थे निभती है यहां दिल से दिल की…
पूनमदो दिन की ज़िंदगी में दुखड़े हैं बेशुमार …मरने के सौ बहाने, जीने को सिर्फ़ एकउम्मीद के सुरों में, बजते हैं दिल के तार…
पतितामिट्टी से खेलते हो बार-बार …ज़मीन ग़ैर हो गई, ये आसमां बदल गयाहवा के रुख़ बदल गए, हर एक फूल जल गयाबजते हैं अब ये साँसों के तार किसलिए …***अंधे जहान के अंधे रास्ते …हमको न कोई बुलाए, ना कोई पलकें बिछाएऐ ग़म के मारो, मंज़िल वहीं है, दम ये टूटे जहां….आग़ाज़ के दिन तेरा अंज़ाम तय हो चुकाजलते रहे हैं जलते रहेंगे ये ज़मीं-आसमाँ …
हरियाली और रास्तालाखों तारे आसमान में …मौत है बेहतर इस हालत से नाम है जिसका मजबूरीकौन मुसाफ़िर तय कर पाया दिल से दिल की ये दूरीकांटों ही कांटों से गुज़रा, जो राही इस राह चला … - उप संचालक, ललित चतुर्वेदीरायपुर / संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् द्वारा राज्य स्तर पर सप्ताह का आयोजन रक्षाबंधन के 3 दिन पूर्व और 3 दिवस बाद तक किया जाता है। विभिन्न जयंतियों - वाल्मिकि जयंती, कालीदास जयंती, गीता जयंती, गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के विद्यालयों की सक्रिय सहभागिता रहती है। संस्कृत दिवस के दिन वेद शास्त्रों की पूजा एवं महत्ता पर चर्चा एवं विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है।भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत में भारत का सर्वस्व संन्निहित है। देश के गौरवमय अतीत को हम संस्कृत के द्वारा ही जान सकते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार विपुल है। यह भारत ही नहीं अपितु विश्व की समृद्ध एवं सम्पन्न भाषा है। भारत का समूचा इतिहास संस्कृत वाड्मय से भरा पड़ा है। आज प्रत्येक भारतवासी के लिए विशेषकर भावी पीढ़ी के लिए संस्कृत का ज्ञान बहुत ही आवश्यक है।संस्कृत भाषा ने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिकता के कारण भारतीय विरासत को सहेजकर रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है। संस्कृत ऐसी विलक्षण भाषा है जो श्रुति एवं स्मृति में सदैव अविस्मरणीय है। अतिप्राचीन काल में संरक्षित-संग्रहित भारत की यह विपुल ग्रंथ सम्पदा संस्कृत के कारण ही सुरक्षित रही है। संस्कृत की महत्ता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है। संस्कृत को भारतीय शिक्षा में अनिवार्य करना आवश्यक है। शिक्षा में इसकी अनिवार्यता को लेकर केन्द्रीय संस्कृत आयोग ने 1959 में - माध्यमिक स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य शिक्षा करने के साथ मातृभाषा तथा क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई जाने की अनुसंशा की। संस्कृत शाला एवं संस्कृत महाविद्यालय प्रारंभ करने के लिए शासन द्वारा 90 प्रतिशत की छूट भी प्रदान की गई है।संस्कृत परिष्कृत, संस्कारित एवं वैज्ञानिक भाषा है। आदिकाल से वेद, रामायण, महाभारत सहित विशिष्ट विषयों को भारतीय मस्तिष्क में संस्कृत के संबल पर सहेज कर रखा है। वेद, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ श्रुति एवं स्मृति परिचारों में सुरक्षित रखते हुए आज लिपिबद्ध रूप में गोचर हो रहे हैं। इससे बड़ा प्रमाण कोई नहीं हो सकता।संस्कृत भाषा का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। प्राचीन भारत में बोल-चाल की भाषा में संस्कृत का ही उपयोग किया जाता था। इससे नागरिक अधिक और मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहा करते थे। संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते समय मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मंत्रोच्चार के समय वाइब्रेशन से शरीर के चक्र जागृत होते हैं और मानव का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। बहुत सी विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से जन्मी हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी के मूल में संस्कृत निहित है। संस्कृत में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘ऊँ’ अस्तित्व की आवाज और आंतरिक चेतना एवं ब्रम्हाण्ड का स्वर है। प्राचीन धरोहर की खोज करने का मुख्य मापदण्ड संस्कृत है। संस्कृत की महत्ता को देखते हुए जर्मनी में 14 से अधिक विश्व विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है कि हमारे वेद पुराण और गीता आदि संस्कृत में लिखे गए हैं। हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए राज्य शासन द्वारा हरसंभव सहयोग दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के प्रयास से संस्कृत शिक्षा की प्रगति हो रही है। संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन राशि संस्कृत शालाओं में पढ़ने वाले उत्तर मध्यमा स्कूल प्रथम वर्ष कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों को दी गई। इससे कक्षा पहली, छठवीं और 9वीं को दी गई थी। गैर अनुदान प्राप्त संस्कृत शालाओं को स्तरवार वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस वर्ष से गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों को उनके प्रत्येक स्तर को जोड़ते हुए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। प्रवेशिका प्राथमिक स्तर को 10 हजार रूपए प्रतिवर्ष, प्रथमा मिडिल स्तर को 20 हजार रूपए प्रतिवर्ष, पूर्व मध्यमा प्रथम एवं उत्तर मध्यमा प्रथम (हाईस्कूल और हायर सेकेण्डरी) को 40 हजार रूपए प्रतिवर्ष की दर से राशि प्रदान की जाती है। केन्द्रीय जेल रायपुर और अम्बिकापुर में संस्कृत पाठशाला संचालित की जा रही है। प्रदेश में संस्कृत उत्तर मध्यमा कक्षा को छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा कक्षा 12वीं के समकक्ष मान्यता प्रदान की गई है। राज्य में कक्षा तीसरी से 12वीं तक संस्कृत की शिक्षा स्कूलों में दी जा रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भी संस्कृत की शिक्षा देने के लिए शिक्षक नियुक्त किए गए है।भारतीय विरासत के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के मार्गदर्शन में आयुर्वेद, योग, प्रवचन, वेद, ज्योतिष जैसे संस्कृत के वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत पाठशालाओं में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को संस्कृत में शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, वाणिज्य आदि का समन्वित ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। प्रदेश में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी किसी भी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ हैं।प्रदेश में संस्कृत का अतीत समृद्ध है। यहां बलौदाबाजार में तुरतुरिया महर्षि वाल्मीकि और सरगुजा जिले के उदयपुर में रामगढ़ की पहाड़ियां महाकवि कालीदास का क्षेत्र माना जाता है। प्रदेश रामायणकालीन एवं महाभारतकालीन धरमकर्मों से जुड़ा हुआ है। यहां का बड़ा भू-भाग दण्डकारण्य क्षेत्र में आता है, जो ऋषियों का क्षेत्र कहा गया है। छत्तीसगढ़ वासियों का आचार-विचार, व्यवहार और संस्कार संस्कृत से पुरित हैं।प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री श्री रविन्द्र चौबे एवं अध्यक्ष छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् डॉ. सुरेश कुमार शर्मा संस्कृत के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत् है। राज्य के पांच जिलों में संचालित आठ शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों को शासन के द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इनमें रायपुर के गोलबाजार में संचालित श्रीराम चन्द्र संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बिलासपुर में श्री निवास संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ जिले के लैलुंगा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ के गहिरा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय और गहिरा में ही श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जशपुर जिले दुर्गापारा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सामरबार और श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय सामरबार, बलरामपुर जिले के जवाहर नगर में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय श्रीकोट शामिल हैं। प्रदेश में एक शासकीय संस्कृत विद्यालय गरियाबंद जिले के राजिम में संचालित है।