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- श्री सचिन शर्मा, सहायक जनसंपर्क अधिकारीरायपुर। वैशाख शुक्ल तृतीया को पड़ने वाला ‘अक्षय तृतीया’ का त्योहार छत्तीसगढ़ में ‘अक्ती तिहार’ के रूप में अपनी पारंपरिक विशिष्टताओं के साथ मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन शुरू किया जाना वाला कोई भी शुभ कार्य व्यर्थ नहीं जाता, बल्कि उत्तम फलदायी होता है। कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में बहुसंख्य आबादी का प्रमुख कार्य खेती है, इसलिए यहां का खेतीहर समाज भी अच्छी फसल की कामना से इस दिन बीज बोहनी कर खेती कार्य की शुरुआत करता है। इसमें अपने आराध्य देवी-देवताओं को शामिल करते हुए गांव प्रमुख ठाकुर देवता व अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर खेत में ‘बीज बोहनी’ की रश्म की जाती है। ग्राम्य देवी-देवताओं और ‘खेत-बिजहा’ जोहार के साथ खेती के नए बरस की औपचारिक शुरूआत हो जाती है।जंगल, नदी, पहाड़, पठार, मैदान आदि भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों वाले छत्तीसगढ़ में अन्य त्योहारों की तरह अक्ती तिहार भी स्थानीय परंपराओं के हिसाब से कुछ अलग-अलग स्वरूपों में मनाया जाता है, किन्तु मूल में अच्छी फसल की कामना ही होती है। प्रदेश में मौसम की अनुकूलता, किसानों की मेहनत और सरकार की नीतियों से फसलोत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही फसलों की खरीदी की भी समुचित व्यवस्था छत्तीसगढ़ सरकार ने की है। खरीफ की प्रमुख फसल धान की ही बात करें तो विगत चार वर्षों में प्रदेश में धान खरीदी का ग्राफ निरंतर बढ़ते गया है। वर्ष 2017-18 में 12 लाख 6 हजार किसानों ने 19 लाख 36 हजार हेक्टेयर रकबे में उपजाया 56 लाख 89 हजार मीट्रिक टन धान बेचा था, वहीं इस वर्ष 2022 में 23 लाख 50 हजार किसानों ने 30 लाख 14 हजार हेक्टेयर रकबे में उपजाया 1 करोड़ 7 लाख 53 हजार मीट्रिक टन धान समर्थन मूल्य पर बेचा है। इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में फसल उत्पादन, खेती का रकबा और किसानों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।दरअसल मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार की किसान हितैषी नीतियों ने प्रदेश में खेती और खेतीहरों की दशा और दिशा दोनों बदल दी है। फसल खरीदी की सुव्यवस्थित व्यवस्था और न्याय योजनाओं ने प्रदेश में खेती को संजीवनी प्रदान की है। किसानों को समर्थन मूल्य के साथ इनपुट सब्सिडी के रूप में राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ दिया जा रहा है। इस योजना के तहत धान की फसल लेने वाले किसानों को 9000 रुपये और धान के अलावा खरीफ की अन्य फसल लेने वाले किसानों को 10,000 रुपये की इनपुट सब्सिडी दी जा रही है। ये पैसा सीधा किसानों के खाते में जा रहा है। किसानों को खेती किसानी के लिए ब्याज मुक्त ऋण दिया जा रहा है। सरकार के इन सार्थक प्रयासों के परिणाम यह निकला है कि जो किसान खेती से विमुख हो रहे थे या हो चुके थे, वे पुनः खेतों की ओर लौटे हैं और नए उत्साह के साथ खेती और अपनी जिंदगी को संवारने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आगामी खरीफ सत्र से धान खरीदी की लिमिट प्रति एकड़ 15 क्विंटल से बढ़ाकर 20 क्विंटल करने की घोषणा की है, जिससे किसानों में उत्साह कई गुणा और बढ़ गया है।गोधन न्याय योजना के तहत गोबर और गौमूत्र खरीदी कर जैविक खाद के साथ जैविक कीटनाशक ब्रम्हास्त्र और वृद्धिवर्धक जीवात्म का निर्माण कर किसानों को रियायती दर पर उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे धीरे-धीरे खेतों की मिटृी की सेहत सुधरेगी और रासायनिक जहर मुक्त खेती की दिशा में भी छत्तीसगढ़ मॉडल देश-दुनिया को राह दिखाएगा। छत्तीसगढ़ में किसानों की आय बढ़ी है तो खेती में निवेश भी बढ़ता जा रहा है। कृषि यांत्रिकीकरण की ओर बढ़ते हुए किसान बड़े पैमाने पर ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेसर आदि खरीद रहे हैं। खेती का दायरा भी बढ़ता जा रहा है, बढ़ते रकबे के साथ खेतीहर मजदूरों को भी भरपूर काम मिल रहा है। राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना के तहत सालाना 7000 रुपये भी खाते में आ रहे हैं। रोजी-रोजगार के लिए शहरों की ओर दौड़ की प्रवृत्ति में बदलाव नजर आ रहा है। इन सबका गहरा असर हो रहा है, छत्तीसगढ़ समृद्ध खेती और खुशहाल किसान-मजदूर वाले प्रदेश के रूप में पहचान स्थापित करते हुए उन्नति के पथ पर निरंतर अग्रसर हो रहा है। यही कारण है कि यहां अब तीज-त्योहारों में नया उत्साह, नई उमंग नजर आती है। अक्ती के अवसर पर बच्चे भी खुशियां बिखेरेंगे जब पांरपरिक रूप से गांव-गांव, गली-गली पुतरी-पुतरा बिहाव करेंगे। इस रूप में अक्ती नई पीढ़ी को अपनी सामाजिक परंपराओं से रूबरू कराते हुए अपनी जड़ों से जोड़े रखने का त्योहार भी है। file photo
- कौशल्या के राम से है छत्तीसगढ़ का गहरा नाताडॉ. ओम डहरियाभगवान श्री राम के ननिहाल और माता कौशल्या की नगरी चंदखुरी में आस्था और भक्ति से सराबोर नारी स्वावलंबन के उद्देश्य से माता कौशल्या महोत्सव का आगाज होने जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल 22 अप्रैल को महोत्सव का शुभारंभ करेंगे।गौरतलब है कि अयोेध्या की रानी एवं छत्तीसगढ़ की अस्मिता के प्रतीक माता कौशल्या के पुत्र भगवान श्री राम का भांजा के रूप में गहरा नाता हैै। इसका जीता-जागता उदाहरण है, छत्तीसगढ़ में सभी जाति समुदाय के लोग बहन के पुत्र को भगवान के प्रतिरूप अर्थात भांजा मानकर उनका चरण पखारते हैं। मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रभु श्रीराम से कामना करते हैं। यह और भी प्रबल तब होता है, जब गांव-शहर-कस्बा कहीं भी हो कोई भी जाति अथवा समुदाय के हो मामा-भांजा के बीच के रिश्ते को पूरी आत्मीयता के साथ निभाया जाता है। मामा के साथ किसी भांजे का यह रिश्ता कई बार माता-पिता के लिए पुत्र से भी ज्यादा घनिष्ठ स्वरूप में दिखाई पड़ता है।त्रेतायुग में जब छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कोसल व दण्डकारण्य के नाम से विख्यात था, तब कोसल नरेश भानुमंत थे। वाल्मिकी रामायण के अनुसार अयोध्यापति युवराज दशरथ के राज्याभिषेक के अवसर पर कोसल नरेश भानुमंत को भी अयोध्या आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर कोसल नरेश की पुत्री एवं राजकन्या भानुमति भी अयोघ्या गई हुई थी। युवराज दशरथ कोसल राजकन्या भानुमति के सुंदर और सौम्य रूप को देखकर मोहित हो गए और कोसल नरेश महाराज भानुमंत से विवाह का प्रस्वाव रखा। युवराज दशरथ और कोसल की राजकन्या भानुमति का वैवाहिक संबंध हुआ। शादी के बाद कोसल क्षेत्र की राजकुमारी होने की वजह से भानुमति को कौशल्या कहा जाने लगा। अयोध्या की रानी इसी कौशल्या की कोख से मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म हुआ। तभी ममतामयी माता कौशल्या को तत्कालीन कोसल राज्य के लोग बहन मानकर अपने बहन के पुत्र भगवान श्री राम को प्रतीक मानकर भांजा मानते है और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लेते है।कालांतर छत्तीसगढ में स्मृतिशेष आठवी-नौंवी सदी में निर्मित माता कौशल्या का भव्य मंदिर राजधानी रायपुर से 27 किलोमीटर दूर आरंग विेकासखण्ड के ग्राम चन्दखुरी में स्थित है। चंदखुरी भी रामायण से छत्तीसगढ़ को सीधे जोड़ता है। रामायण के बालकांड के सर्ग 13 श्लोक 26 में आरंग विकासखंड के तहत आने वाले गांव चंदखुरी का जिक्र मिलता है। माना जाता है कि चन्दखुरी सैकड़ों साल पहले चन्द्रपुरी अर्थात् देवताओं की नगरी के नाम से जानी जाती थी। समय के साथ चन्द्रपुरी, चन्द्रखुरी हो गया जो चन्द्रपुरी का अपभ्रंश है। पौराणिक दृष्टि से इस मंदिर का अवशेष सोमवंशी कालीन आठवी-नौंवी शताब्दी के माने जाते है। इसके अलावा छत्तीसगढी संस्कृति में राम का नाम रचे-बसे है। तभी तो जब एक दूसरे से मिलते समय चाहे रिश्ते-नाते हो अथवा अपरिचित राम-राम कका, राम-राम काकी, राम-राम भैइया जैसे उच्चारण से अभिवादन आम तौर पर देखने सुनने को मिल ही जाता है।छत्तीसगढ़ के ग्राम चन्दखुरी की पावन भूमि में प्रभु श्रीराम की जननी माता कौशल्या का दुर्लभ मंदिर देश और दुनिया में एक मात्र मंदिर है। यह छत्तीसगढ़ की गौरवपूर्ण अस्मिता का प्रतीक है। प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरते इस मंदिर के गर्भ गृह में माता कौशल्या की गोद में बालरूप में प्रभु श्रीराम जी की वात्सल्य प्रतिमा श्रद्धालुओं एवं भक्तों के मन को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। वहीं पूर्वी छत्तीसगढ़ के महानदी, जोंक नदी और शिवनाथ नदी के संगम स्थ्ल शिवरीनारायण क्षेत्र में रामनामी समुदाय में भगवान श्री राम के प्रति अकूत प्रेम एवं अराधना को परिलक्षित करता है।स्मरणीय तथ्य है कि छत्तीसगढ़ का प्राचीनतम नाम दक्षिण कोसल था। रामायण काल में छत्तीसगढ़ का अधिकांश भाग दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत आता था। यह क्षेत्र उन दिनों दक्षिणापथ कहलाता था। शोधकर्ताओं द्वारा वनवास काल में प्रभु श्री राम चन्द्र जी के यहां आने का प्रमाण मिलता है। शोधकर्ताओं के शोध किताबों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में व्यतीत किया था। छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में देवी सीता की व्यथा, दण्डकारण्य की भौगोलिकता और वनस्पतियों के वर्णन भी मिलते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने और यहां के विभिन्न स्थानों पर चौमासा व्यतीत करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया था। इसलिए छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है।भगवान श्री रामजी के इन्हीं स्मरणीय तथ्यों और आगमन को सहेजने के लिए छत्तीसगढ़ ने श्री राम के यात्रा पथ को एवं जहां-जहां भगवान श्री राम, भगवान श्री लक्ष्मण और माता सीता ने समय व्यतीत किया है, जिन-जिन स्थानों पर उन्होंने आाराम किया पूजा-अर्चना की उन यादों को सहेजकर मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने चन्दखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर से प्रारंभ कर राम-वन-गमन-पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित करने का बीड़ा उठाया है। इससे निश्चित ही देशवासियों की आस्था का सम्मान बढ़ेगा। यह श्री भूपेश सरकार का एक बड़ा उल्लेखनीय और ऐतिहासिक कदम हैं।राम-वन-गमन-पथ के निर्माण से निश्चित ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिलेगी। वहीं राम वन गमन परिपथ को एक पर्यटन सर्किट के तौर पर विकसित किए जाने का निर्णय रोजगार मुहैया कराने की दिशा में भी एक कारगर प्रयास होगा। विभिन्न शोध प्रकाशनों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया। जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं, जहां श्री राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय बिताया था। राम वन गमन पथ में आने वाले छत्तीसगढ़ के नौ महत्वपूर्ण स्थलों सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (अम्बिकापुर) , शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा-सप्त ऋषि आश्रम (धमतरी) और जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा) सहित उन इक्यांवन स्थलों को चिन्हाकिंत कर विकसित किया जा रहा है।
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असिस्टेंट डायरेक्टर स्पोर्ट्स राजेंद्र डेकाटे की कहानी
सर्वोदयी पत्रकारिता यानी सेवाभाव से प्रेरित पत्रकारिता की दिशा में एक और कदम उठाते हुए छत्तीसगढ़ आज डॉट कॉम "नई सोच" नामक विशेष वेब पृष्ठ के माध्यम से एक नई शुरुआत कर रहा है। यह स्थानीय से लेकर प्रदेश, देश और विदेश तक की शख्सियतों के जीवन-कर्म के उन सकारात्मक पहलुओं को सामने लाने का एक प्रयास है जिन्होंने जीवन में तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए एक मिसाल कायम की। शुरुआत करते हैं खेल एवं युवा कल्याण विभाग के सहायक संचालक राजेंद्र डेकाटे की कहानी से जिन्होंने बीते तीन साल में बस्तर के खेल जगत की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभाई।
“तबादले को प्रायः लोग सजा मानते हैं, शुरू-शुरू में मुझे भी यही लगता था। इसकी वजह थी वे परेशानियाँ जो तबादले के बाद प्रायः-प्रायः सभी के साथ होती है। किसी शहर में आप वर्षों तक रहकर अपने परिवार को सेट कर चुके होते हो, बच्चे भी स्कूल से कॉलेज तक पहुँच जाते हैं और पत्नी सहित परिवार के अन्य सभी सदस्य भी उस माहौल में अपने आप को ढाल चुके होते हैं, एकाएक जब तबादला होता है तो घर खाली करने से लेकर परिवार को फिर से दूसरे शहर में सेट करने तक अनेक परेशानियाँ आती हैं। एकल परिवार के साथ यह परेशानियाँ स्वभाविक ही है, लेकिन वास्तव में तबादला तो सरकारी नौकरी का एक अनिवार्य पहलू है जिससे गुजरना ही पड़ता है। मैं कहूँगा कि यह सेवा ही है और यदि आप इसे चुनौति के रूप में स्वीकार कर पूरी ईमानदारी से कर्तव्यनिष्ठ बने रहते हो तो इसमें कोई संदेह नहीं कि परिणाम काफी बेहतर मिलेगा।“
खेल एवं युवा कल्याण विभाग के सहायक संचालक राजेंद्र डेकाटे जब यह बात कहते हैं तो उनके चेहरे पर आत्मविश्वास के भाव उभर आते हैं जिसे हम आम तौर पर अंग्रेजी में कॉन्फिडेंस कहते हैं। 12 अप्रैल की बात है जब प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण मंत्री उमेश पटेल बस्तर प्रवास के दौरान जगदलपुर के इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम एवं क्रीडा परिसर की खेल सुविधाओं का जायदा लेने पहुँचे। बस्तर में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की विभिन्न खेलों की बुनियादी अधोसंरचनाओं को देखकर उन्होंने प्रसन्नता के साथ कहा, “काम बोलता है...काम हुआ है“ यह बात दिल को छूने वाली थी, बकौल राजेंद्र डेकाटे, “मुझे मेरे तीन साल के परिश्रम का फल मंत्री जी के यह शब्द सुनकर मिल गया।“
11 भाइयों से बन गई वॉलीबाल टीम
अविभाजित मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के पैतृक तहसील वारासिवनी में प्राथमिक शिक्षा के दौरान खेल जीवन की शुरुआत हुई। चौथी-पाँचवी तक हॉकी, छठवीं में एथलेटिक्स, सातवीं-आठवीं में वॉलीबाल और हॉकी खेलना होता था। स्कूल के दिनों में स्टेट की टीम का भी प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। मजेदार बात यह है कि हम लोग परिवार में चचेरे भाइयों को मिलाकर कुल 11 भाई थे और हमने वॉलीबाल की टीम ही बना ली थी और बहुत से मैच जीते थे। सन 1987 एवं 88 में कॉलेज के दिनों में सागर विश्वविद्यालय से ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी वॉलीबाल स्पर्धा जयपुर में खेलने का अवसर मिला। 1990 में कनिष्ठ खेल संगठक के पद पर राजनांदगांव में पहली पोस्टिंग मिली। तब खेल पुलिस विभाग के अंतर्गत हुआ करता था। राजनांगांव में खेल का बेहतर माहोल शुरू से रहा। सभी के सहयोग से ही खेलों का विकास हुआ। यह जिला हॉकी का गढ़ शुरू से रहा है। प्रदेश की पहली अंतरराष्ट्रीय महिला वॉलीबाल खिलाड़ी रेखा पदम राजनांदगांव की ही देन है। मुझे वे दिन याद आते हैं जब रेखा पदम को चयन ट्रायल के लिए मैं बेंगलूरू लेकर गया था। इंडिया टीम में सलेक्शन के लिए कड़ा अभ्यास कराया गया था। हमने पुलिस विभाग के साथ परियोजना समन्वयक के रूप में "शस्त्र से शास्त्र की ओर" नामक साक्षरता अभियान भी चलाया था। सन 1994 से 1995 तक यह पूरे अविभाजित मध्यप्रदेश में अभिनव प्रयास था।
राजनांदगांव से रायपुर
काफी लम्बा समय लगभग 13 वर्ष राजनांदगांव में बीता। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद वर्ष 2003 में रायपुर में वरिष्ठ खेल अधिकारी के पद पर नियुक्ति हुई। राज्य निर्माण के बाद खेलों का बेहतर माहोल यहाँ निर्मित हुआ। तब राज्य में 16 जिले थे। सबसे ज्यादा 15 विकासखंड रायपुर जिले में आते थे। सभी विकासखंडों में महिला खेलों और मैराथन का आयोजन खेल-वातावरण की नींव स्थापित करने का अहम माध्यम बना। नक्सल प्रभावित विकासखंडों में भी खेलों के सफल आयोजन हुए। उत्कृष्ट खिलाड़ी, पुरस्कार नियम, खेलवृत्ति, जिला ओलंपिक खेल, क्वींस बेटन रिले, वर्ल्ड हॉकी लीग, 20वां राष्ट्रीय उत्सव, सहित अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजन सफलतापूवर्क कराए गये। हाँ, यह सब कलेक्टर, जिला प्रशासन, खेल संघों और गणमान्य नागरिकों के सहयोग से ही संभव हो सका। वर्ष 2018 तक जीवन के 15 साल रायपुर में बीते। संघर्षों के साथ चुनौतियों के बीच काम करते हुए वरिष्ठ खेल अधिकारी से सहायक संचालक के पद तक पहुंचा।
अब जगदलपुर में...
जब आपके कार्यों से सभी संतुष्ट हों, एकाएक बिना किसी ठोस वजह के तबादला कर दिया जाए तो यह बात ’सजा’ ही प्रतीत होती है, किस बात की यह नहीं पता! लेकिन, इस अवसर को मैंने कभी निगेटिव नहीं लिया, यह तो हर शासकीय नौकरी का अनिवार्य पहलू ही है। सो इसे भी चुनौति और नए कार्यक्षेत्र के लिए कुछ नया करने का अवसर माना तो विचार आया, क्यों न इस आपदा को अवसर में परिवर्तित कर दें, बस्तर को खेलों की बुनियादी सुविधाओं से ’सजाकर’...! यदि आप अच्छी नियत के साथ एक कदम भी बढ़ाते हैं तो अनेक कदम और भी मिलते चले जाते हैं। सभी का सहयोग मिला। कलेक्टर साहब से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि, उच्च शिक्षा मंत्री श्री उमेश पटेल और मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी का भी।
दीर्घकालीन खेल परियोजना का पहला पढ़ाव पूरा
मैंने देखा, बस्तर में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कतई कमी नहीं, उन्हें अवसर भी मिलता है, लेकिन आर्थिक परिस्थितियाँ विवश कर देती हैं। आप ही सोचिए, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं के पूर्व राज्य स्तरीय स्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए एक खिलाड़ी को बस्तर से रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर आदि शहरों में आने के लिए दो से ढाई हजार रुपए तक का खर्च आता है। एसोसिएशन की भी एक सीमा रहती है। अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए भी खेलों के जो निर्धारित मापदंड हैं, उस पर खरा उतरना जरूरी है। चाहे खेल उपकरण हों या किट, इन्हीं उपकरणों से अभ्यास भी जरूरी है। ऐसे में हम बोलते रह जाते हैं प्रतिभाओं की कमी नहीं लेकिन उन्हें आगे बढ़ाने के लिए दीर्घकालीन खेल योजनाओं की जरूरत है। इसका पहला पढ़ाव हमने पूरा कर लिया है बुनियादी अधोसंरचनाओं का विकास कर।
इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम की बदल गई तस्वीर...
नई सोच के लिए श्री डेकाटे से साक्षात्कार के दौरान मुझे याद आया कि पहली बार मैं 20 साल पहले वर्ष 2003 में जगदलपुर में आयोजित हुए राष्ट्रीय महिला खेल उत्सव के दौरान उनसे मिला था। यह राज्य का पहला राष्ट्रीय महिला खेलों का आयोजन था जिसका कव्हरेज मैंने दैनिक भास्कर के खेल पत्रकार के रूप में किया था। तब यह मिट्टी का मैदान हुआ करता था और वे सारी सुविधाएँ नहीं थी जो खेलों के मापदंडों पर खरी उतरें। बावजूद इसके खेलों के सफल आयोजन हुए और बस्तर में इस उत्सव ने इतिहास रच दिया था। बिना किसी नक्सल घटनाओं के... आज इस स्टेडियम की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। 15 साल की दीर्घकालीन खेल योजना बनाई गई। पहले चार साल का लक्ष्य निर्धारित किया गया जिसे तीन साल में ही वर्ष 2023 में हासिल कर लिया गया है। श्री डेकाटे के मुताबिक, अब अगला लक्ष्य होगा आने वाले दस वर्षों के भीतर किस तरह खिलाड़ियों को बेहतर प्रशिक्षण, डाइट, मनोविशेषज्ञ, प्रशिक्षक, फिजियो, वीडियो एनालिसिस, रिसर्च आदि की श्रेष्ठ सुुविधाएं मुहैया कराई जाएं जिससे वे पदक हासिल कर बस्तर, राज्य और देश का नाम राष्ट्रीय-अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन कर सकें। यहां फुटबाल, तीरंदाजी, एथलेटिक्स हॉकी और पॉवर गेम में काफी संभावनाएं हैं।
ऐसी सुविधाएँ रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर में भी नहीं
खेलों की बुनियादी अधोसंचनाओं के मामले में जगदलपुर के इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम के साथ ही धरमपुरा और पंडरीपानी ने रायपुर, दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर को पीछे छोड़ दिया है। कभी इन्हीं शहरों तक खेलों की सुविधाएँ केंद्रित हुआ करती थीं। जोश, जज्बा और जुनून हो तो तीन साल में ही तस्वीर बदली जा सकती है, जैसा कि राजेंद्र डेकाटे बताते हैं। ये सुविधाएँ हैं-
क्रीड़ा परिसर धरमपुरा
1. वर्ल्ड एथलेटिक्स फेडरेशन से मान्य 400 मीटर सिंथेटिक ट्रेक एंड फील्ड विथ 200 मीटर वार्मअप ट्रैक। यह सुविधा अन्य जिलों में नहीं।
2. 130 मीटर लंबी और 50 मीटर चौड़ी आरचरी रेंज जिसमें एक साथ 50 खिलाड़ी अभ्यास कर सकते हैं। यह सुविधा भी अन्य जिलों में नहीं।
3. इनडोर में भी आरचरी की सुविधा।
4. प्रशासनिक भवन में प्रशिक्षकों, खिलाड़ियों के लिए कमरे, टेक्नीकल रूम, स्टोर रूम, कोचेस रूम, की व्यवस्था।
5. मल्टीपरपस हॉल 60 मीटर लंबा, 40 मीटर चौड़ा और 15 मीटर ऊंचा ।
हॉकी प्रशिक्षण केंद्र पंडरीपानी
1. भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना के तहत लघु खेल केंद्र घोषित।
2. हॉकी का चट ग्राउंड निर्माणाधीन।
3. एस्ट्रो टर्फ का प्रस्ताव भारत सरकार को प्रेषित जिसके वर्ष 2023 में स्वीकृति की संभावना।
4. 100 सीटर हॉस्टल तैयार।
इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम जगदलपुर
1. पूर्व में बने मड के एथलेटिक्स ट्रेक और फुटबाल मैदान का उन्नयन।
2. फीफा के मापदंडों के अनुसार फुटबाल ग्राउंड सिंथेटिक रनिंग ट्रैक (400 मीटर) का निर्माण।
3. पीपी टाइल बास्केटबाल कोर्ट।
4. नाइन लेयर रबर कोटेड अत्याधुनिक टर्फ टेनिस दो कोर्ट
5. हैंडबाल ग्राउंड
6. वॉलीबाल ग्राउंड
7. 175 फिट लंबा और 50 फिट चौड़ा अत्याधुनिक हॉल-रबर कोेटेड हॉल में कबड्डी कबड्डी, कराते, जूडो, बॉक्सिंग की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।
8. पैवेलियन में चार चेंजिंग रूम लैटबाथ अटैच, वीडियो एनालीसिस रूम, मीडिया रूम, रेफरी रूम, मंच और गैलरी।
9. इन खेल मैदानों और सुविधाओं को संबंधित खेलों के एसोसिएशन को सौंप दिया गया है।
10. इन सुविधाओं का लाभ लेने के लिए न्यूनतम शुल्क निर्धारित है, शुरू में जरूर विरोध हुआ था लेकिन व्यवस्थाओं और सुरक्षा को देखते हुए सभी ने सहयोग दिया। अब इसी शुल्क से मेंटेनेंस भी किया जाता है।
अन्य सुविधाएँ
1. हाता ग्राउंड ग्रासी ग्राउंड में तब्दील विथ फ्लड लाइट
2. सिटी ग्राउंड में फुटबाल का फ्लड लाइट ग्राउंड और वार्मअप ग्राउंड
3. माता रुकमणी सेवा संस्थान, डिमरापाल में महिलाओं के फुटबाल मैदान का निर्माण।
4. तीन सौ एकड़ में दो किलोमीटर लम्बा तालाब जहाँ क्याकिंग एंड कैनोइंग का ट्रेनिंग सेंटर स्थापित है। प्रतिदिन 30 से 40 खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। यहीं से पांच खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर हिस्सा लिया। क्याकिंग एंड कोनोइंग अकदमी के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने घोषणा की थी। इन घोषणा पर समय पर अमल हुआ।
5. अभ्यास और प्रतियोगिता के लिए अलग-अलग फ्लड लाइट ग्राउंड, फ्लड लाइट फुटबाल मैदान
भावी योजना
बुनियादी अधोसंरचनाओं के बाद अगला चरण है टेलेंट सर्च और अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण। इसके लिए जिलाधीश के माध्यम से पीपीपी मॉडल (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत एनएमडीसी को प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। यदि यह प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो निकट भविष्य में बस्तर के खिलाड़ी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश और देश का नाम रोशन करेंगे, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं। - डॉ. कमलेश गोगियाकहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है। "भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश" के लेखक रामविलास शर्मा ने एक मुद्दे की बात कही है, "जहाँ इतिहास अपने को दोहराता है, वहाँ चक्रगति की धारणा सार्थक होती है।" ब्रह्मांड से लेकर जीवन तक सभी चक्रीय गति का अनुसरण कर रहे हैं, आप और हम भी। यह भी उदाहरण दिया जाता है कि जन्म के बाद विकास, फिर किशोर, युवा, प्रौढ़, बुढ़ापा, बुढ़ापे में फिर बच्चों जैसी हरकतें, अतीत का स्मरण कराते मृत्यु के संकेत और फिर जन्म...। हालाँकि पुनर्वापसी का डिसिजन कर्म के हाथों है। विद्वानों ने कहा है. स्मृति से लेकर शरीर और योनि तक बदल सकती है, लेकिन संस्कार वही रहेंगे, जितने किसी जीवन में सीखकर गए थे। पुन: नया सीखते रहने का दौर फिर शुरू होगा। खैर, इतिहास स्वयं को पूरी तरह ज्यों का त्यों नहीं दोहराता, कुछ समानताएं रहती हैं और इसलिए कहा जाता है कि इतिहास अपने को दोहराता है।अब ठगी के मामलों को ही देख लें। समय बदलने के साथ तरीके जरूर बदल गये हैं, लेकिन कहानी लगभग सदियों पुरानी है। अनेक प्राचीन ग्रंथों में भी ठगी शब्द का उल्लेख मिलता है। "माया" को महाठगिनी कहा ही गया है। पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियों में भी ठगी के किस्से-कहानियाँ हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने भी ठगी पर भी कहानी लिखी है। गुरु हरिशंकर परसाई के भी ठगी पर व्यंग्य प्रसिद्ध रहे हैं। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भी ठगी के कारनामें हुआ करते थे। 18वीं सदी में ठगों के साम्राज्य का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि सन् 1728 में गर्वनर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक का शासनकाल उदारवादी सुधारों का काल था। उन्होंने उत्तर तथा मध्य भारत में ठगों का दमन कराया था। ठगों की अपनी सांकेतिक भाषा और प्रशिक्षण केंद्र थे। ये मार्ग में यात्रियों को धोखे से या मारकर धन लूटते थे। भारत के प्रसिद्ध ठग नटवरलाल की ठगी के किस्से भी मशहूर रहे हैं। ठगी के किस्सों से प्रेरित फिल्म "बंटी और बबली" अधिकांशत: ने देखी ही है। 'फिलिप मेडोव टेलरÓ का 1839 में लिखा 'कन्फेशंस ऑफ ए ठग" प्रसिद्ध उपन्यास रहा है। यह 19वीं सदी में ब्रिटेन में खूब बिका। इस पर आमिर खान और अमिताभ बच्चन अभिनित फिल्म "ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान" बनी थी।वैसे ठग पूरे विश्व में रहे हैं। इटली का चाल्र्स पोंजी दुनियाभर के निवेशकों को 45 दिनों में रकम डेढ़ गुनी और 90 दिन में दोगुनी का झांसा देता था। माना जाता है कि इन्हीं कारणों से इनवेस्ट स्कीम को "पोंजी स्कीम" कहा जाने लगा। चिटफंड कंपनी का उदाहरण प्रत्यक्ष है जिसके शिकार आज भी हर वर्ग के लोग हुआ करते हैं। चाल्र्स शोभराज विख्यात रहे हैं। जॉर्ज सी पार्कर ने अमेरिका की प्रसिद्ध इमारतों और चौराहों तक को बेच दिया था। अनेक भाषाओं के ज्ञाता विक्टर ने फ्रांस के विश्व प्रसिद्ध एफिल टॉवर को बेचा था। बैंकों को भी लोन लेकर ठगा जाता रहा है।ठगी के कारनामें तब भी थे जब संचार के माध्यमों ने उतना विकास नहीं किया था और न तो ग्लोबल विलेज की कोई धारणा थी। मोबाइल और इंटरनेट की सेवा के रूप में दुनिया मु_ी में भी नहीं थी। लेकिन ठगी के करानामें जरूर थे जो आज तक अबाध गति से चले आ रहे हैं। कह सकते हैं चक्रगति की तरह। बल्कि डिजिटल युग की ऑनलाइन जिंदगी में तो साल के पूरे 365 दिन सायबर ठगी हो रही है। ठगी के सच्चे किस्से तो आज भी देखने को मिल रहे है, बस ट्रेंड बदल गया है। लोग ऑफलाइन थे तो ऑफलाइन ठगी थी, लोग ऑनलाइन हुए तो ऑनलाइन ठगी। सिर्फ गूगल में ही सायबर ठगी लिख दीजिए, 6 लाख 35 हजार परिणाम निकल आएंगे। कोई लोभ में ठगा जा रहा है तो कोई पुरस्कार के लालच में, कोई अज्ञानता में ठगा जा रहा तो कोई ज्यादा ज्ञान और जीवन की आपाधापी में।सायबर ठगी का जाल हर तरफ बिछा हुआ है, एक जाल से निकले तो दूसरा नया जाल...जीवन शैली बदली तो ठगी का ट्रैंड भी बदला। अब "फिशिंग लिंक" का नया तरीका चल रहा है। किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक किया तो बैंक से पूरे पैसे गायब। टच स्क्रीन के दौर में इंसान के विचार उंगलियों में हैं, मुँह से शब्द नहीं निकलते, हममें से अधिकांशत: एक कोने में बैठकर सिर झुकाए मौन होकर मोबाइल में नजरे गड़ाए रहते हैं, लिंक पर क्लिक करते ही जब ठगे जाने का अहसास होता है तो लुट जाने की चीख के साथ मौनव्रत टूटता है, ''हे राम! मैं लुट गया...!" बदलते ट्रेंड के साथ सायबर ठगी भी हाईटेक हो गई है।बैंक से कॉल आया, ÓÓआपने क्रेडिट कार्ड तो रिसीव कर लिया है, लेकिन एक्टिवेट नहीं कराया है, अभी एक्टिवेट कराएं। पूरे अधिकार से बात की गई, ठीक बैंक के अधिकारियों की तरह। बैंकों में कामकाज के दौरान होने वाली ध्वनि का वातावरण भी क्रिएट था। ओटीपी भेजी गई, एक बार नहीं कई बार, इससे पहले की ओटीपी बताई जाती, क्रेडिट कार्ड से पहले 9 हजार 999 और फिर 49 हजार, 999 मसनल 60 हजार रुपए उधार लेने का संदेश आ गया। फोन में बात करते-करते बिना ओटीपी बताए क्रेडिट कार्ड से पैसे निकाल लिए गए। एटीएम ब्लॉक करवाया गया, बैंक से एटीएम ब्लॉक कराकर सायबर सेल में शिकायत की गई। 10 हजार तो वापस लौट आए, लेकिन 50 हजार नहीं। बैंक की वसूली का संदेश आज तक उपभोक्ता को आता है। यह बात समझ में नहीं आई कि सायबर ठगों को यह कैसे पता चलता है कि किसने क्रेडिट कार्ड रिसीव कर एक्टिवेट कराया है और किसने नहीं? जैसे कि ठग ही बैंक अधिकारी बनकर क्रेडिट कार्ड बनवाते हैं। क्रेडिट कार्ड की धोखाधड़ी के इस तरीके में सारा रहस्य है शायद। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वह अज्ञानी उपभोक्ता मैं ही था। तब मेरा भी मौनव्रत टूटा था, लेकिन मैं काम की आपाधापी में व्यस्त था। समय के साथ अब यह सोचकर कुंठा नहीं होती कि अच्छे-अच्छे लोगों को ठगा गया है, पुलिस के बड़े अधिकारियों से लेकर बैंकों के प्रबंधकों तक, हमारी क्या औकात है!मीडिया के हवाले से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि वर्ष 2019 में सिटीजन फाइनेंशियल साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम की स्थापना के बाद से अब तक सायबर अपराध की छह लाख शिकायतें दर्ज हुई हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट में सर्वाधिक सायबर अपराध धोखाधड़ी से संबंधित हैं। डिजिटल लेनदेन में वृद्धि से डिजिटल ठगी में भी वृद्धि हो रही है। बीते एक साल में लाखों शिकायतें हैं। हर बार तरीके बदल रहे हैं। नोएडा में घर बैठे फिल्मों की रेटिंग देकर पैसे कमाने का लालच देकर एक महिला से 12 लाख रुपए ठग लिए गये। लिंक भेजकर टच करने कहा गया और टच करते ही पूरा खाता "टच" के विपरित "चट" हो गया। बैंक अधिकारी बनकर ठगने के अनेक किस्से हैं। एक शख्स से बिजली बिल न पटाने और बिजली काटने का मैसेज भेजकर 12 लाख रुपए ठग लिए गये। वर्क फ्रॉम होम के जरिए ठगी के अनेक मामले हैं। अश्लील व्हाट्सएप कॉल के जाल में भी लोग फँसकर ठगी का शिकार होते रहे हैं। सायबर ठगी को रोकने के प्रयास भी हो रहे हैं। पुलिस लोगों को जागरुक कर भी रही है। समय-समय पर अभियान भी चलाए जा रहे हैं, लेकिन हर बार ठगी के नए तरीके भी इजाद हो रहे हैं। जितनी ज्यादा सहुलियतें उतनी ज्यादा मुफ्त की दिक्ततें भी हैं। फिर इतिहास में दर्ज है कि ठगों ने तत्कालीन राजा और प्रजा, सभी की नाक में दम कर रखा था। ठगों पर शिकंजा उस दौर में भी कसा जाता था। आज भी वही कहानी है, सायबर वल्र्ड में सायबर ठगों ने राज्यों से लेकर केंद्र सरकार को भी चुनौतियां दी हैं। केंद्र सरकार ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की स्थापना की है और देश के सभी राज्यों से प्रदेश स्तर पर क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने का अनुरोध किया है।अनेक मामले तो लालच से भी जुड़े हुए हैं। संत शिरोमणी कबीर दास जी का यह दोहा आज भी प्रासंगिक प्रतीत होता है,माखी गुड़ में गड़ी रही, पंख रही लपटाय।हाथ मलै और सिर धुनै, लालच बुरी बलाय।।मक्खी गुड़ के लालच में फँसकर पंख फडफ़ड़ाती रह जाती है, पर मुक्त नहीं हो पाती। लालच बुरी बला है। यह उन पर फिट होता है जो लालच में आकर सायबर जाल में फँस जाते हैं। कबीर दास ने ठगों के लिए भी कहा है,कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोयआप ठगा सुख होत है और ठगे दु:ख होयकबीर दास सरल शब्दों में समझाते हैं, यदि हम ठगे जाएं तो कोई बात नहीं है, इस बात का भय नहीं रहता कि आपने कोई अपराध किया है। वैसे भी प्रार्थी को भय नहीं रहता। दूसरों को ठगने का प्रयास मत करो। दूसरों को ठगने वाले दुखी जरूर रहते हैं। हर वक्त पकड़े जाने का डर अमन-चैन से रहने कहां देता है। हृदय में सदैव शूल की तरह चुभता है और जीवन हमेशा विचलित रहता है। फिर एक न एक दिन पकड़े ही जाते हैं, तब सिवाए दण्ड और दुख के कुछ नहीं रह जाता। ठगी करके अमीर बनने वाले सुखी जरूर दिखते हैं, लेकिन रोग, शोक और संताप उन्हें हमेशा दुखी ही करते रहते हैं। इतिहास साक्षी है। ठग सर्वत्र हैं, धर्म, कला, संस्कृति, साहित्य, राजनीति, व्यवसाय, शिक्षा...कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा। जरूरत है समय के साथ जागरुक होकर बदलने या कहें अपडेट होने की, क्योंकि हम बदलेंगे तो ही युग बदलेगा।
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- डॉ. कमलेश गोगिया
’कितना खूसट है मेरा बॉस, उसे कभी हँसते नहीं देखा, जीवन में कभी उसने मुस्काया भी होगा कि नहीं, हमेशा चेहरे पर तनाव और चिंता....!’’
“कुछ बॉस ऐसे ही होते हैं तिवारी जी, जिस दिन संतुष्टी का भाव लिए खुशी का इजहार करने लग गये न, तरक्की रुक जाएगी कंपनी की समझो...!’’
‘’नहीं मुस्कुराने का कंपनी की तरक्की से क्या संबंध है वर्मा जी...? ‘’
‘’देखिए तिवारी जी, धरती में अलग-अलग टाइप के लोगों ने जन्म लिया है। कुछ न चाहकर भी ऐसे लगते हैं जैसे हँस रहे हों, कुछ हँसते भी हैं तो लगता है रो रहे हैं, कुछ के चेहरे में हमेशा मुस्कान बिखरी रहती है, रोते वक्त भी वे मानो मुस्कुराते हुए प्रतीत होते हैं, कुछ के चेहरे समय और परिस्थितिवश भावनाओं के आवेग में अलग-अलग संवेदनाओं को मुस्कान के साथ प्रकट करते हैं, कुछ भीतर ही भीतर मुस्कराते हैं लेकिन प्रगट नहीं करते। ऐसे लोगों को डर रहता है, संतुष्टि का भाव दिखा दिया तो आगे का काम प्रभावित होगा। निर्दयी ’सास’ की तरह...! कुछ हर वक्त दुखी और गुस्से में रहते हैं और उनका गुस्सा मुस्कान के रूप में दिखता है, थ्री इडियट फिल्म के सख्त प्रींसिपल डॉ. वीरू सहस्त्रबुद्धे की तरह....!’’
‘’हॉ, तिवारी जी, पूरा वायरस है बॉस अपना...!’’
‘’इग्नोर करो इन बातों को, अपना काम ईमानदारी से करो और चेहरे पर मुस्कान बनाए रखो।‘’
‘’सो तो ठीक है, लेकिन....’’
‘’छोड़ो भी भाई साहब, कहाँ सुबह-सुबह अपने बॉस की मुस्कान को लेकर हमारा मूड खराब कर रहे हो! चलिए हम निकलते हैं, समय पर दूध घर न पहुँचाया तो हमारी मुस्कुराहट छीन ली जाएगी!”
दूध डेयरी में सुबह-सुबह दूध लेने के इंतजार में प्रायः स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के समसामयिक मुद्दों पर सज्जनों की बीच प्रायः चर्चा हुआ करती है। फिर मामला रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का ही क्यों न हो! जिज्ञासा और अभिव्यक्ति मानव को नैसर्गिक वरदान है। रविवार की सुबह ‘मुस्कान’ पर चर्चा छिड़ गई। इस चर्चा पर कुछ लोगों के चेहरे जरूर रहस्यमयी मुस्कान लिए हुए थे, मानो मन ही मन कह रहे हों, ‘’इन्हें भी कोई टॉपिक नहीं मिला, यह भी कोई बात हुई भला...! बॉस के चेहरे पर मुस्कान नहीं...हा...हा...हा....!’’ कुछ पल के लिए मुझे भी कुछ ऐसा ही लगा, लेकिन मुस्कान शब्द ने लगभग 500 साल पुरानी रहस्यमयी मुस्कान वाली मोनालीसा की पेंटिंग की याद दिला दी। कहते हैं कि यह दुनिया की वह बेमिसाल तस्वीर है जिसे देखकर लगेगा कि वह मुस्कुरा रही है, लेकिन फिर एकाएक मुस्कुराहट गायब हो जाती है। मोनालीसा की यह पेंटिंग इटली के महान अविष्कारक, वैज्ञानिक, संगीतकार और चित्रकार लियोनार्डो द विंची ने बनाई थी। इस रहस्यमयी मुस्कान के संबंध में अनेक खोजें हो चुकी हैं और काफी कुछ लिखा जा चुका है। वैसे मुस्कान तो सदैव से रहस्यमयी और अद्भुत ही मानी जाती रही है। यह हमें बिना किसी मोल चुकाए सहज ही प्रकृति से वरदानस्वरूप जो मिली है। हर माता-पिता का तनाव उस समय छूमंतर हो जाता है जब वे अपने बच्चों को मुस्कुराते देखते हैं। जन्म लेने के बाद पहली बार जब कोई शिशु मुस्कुराता है तो वह परिजनों के जीवन का सर्वश्रेष्ठ पल रहता है। भीतर दिल के गहरे जख्म हों या बाह्य शरीर के दर्द, अपने शिशु की मुस्कुराहट देख माता-पिता का बड़े से बड़ा दुख और तनाव भी मिट जाता है। स्वयं के चेहरे पर सहज मुस्कान की लकीरें उभर आती हैं। दर्पण में अपना चेहरे देखने पर स्वयं के सुंदर लगने का अहसास मुस्कान के रूप में प्रगट हो उठता है। प्रियतम की मुस्कान पर शेरों-शायरी और कविताओं से विशाल ग्रंथ भरा पड़ा है।
मुस्कान पर प्रयोगशालाओं में शोध भी किए गये हैं। इन अध्ययनों के परिणाम हमें यह बतलाते हैं कि सिर्फ एक मुस्कुराहट से जीवन को किस तरह आनंदपूर्ण बनाया जा सकता है। वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रणेता पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के संपादन में 46 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई अक्टूबर 1977 की अखण्ड ज्योति पढ़ रहा था, मुस्कान को लेकर अनेक रोचक जानकारियां मिलीं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक व चिकित्सक डॉक्टर पैस्किड चिन्ता, थकान, आवेग और शोकादि मनोविकारों का शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर रहे थे। इस अध्ययन के दौरान एक ऐसा व्यक्ति भी उनके परिक्षण में आया जो खुशमिजाज़ और सदाबहार था। उसके शरीर में मिलने वाली विचित्र क्षमताओं को देखकर डॉ. पैस्किड को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने इस तरह के अनेक व्यक्तियों पर प्रयोग किये। परिणाम मिला कि क्रोध और आवेशग्रस्त स्थिति में रहने वाले व्यक्तियों की माँस-पेशियों पर अनुचित तनाव पड़ता है और मुस्कान तथा हँसने से तनाव शीघ्र मिट जाता है। मुस्कान आन्तरिक अवयवों और माँस-पेशियों और मज्जा तन्तुओं को एक राहत देती है। एसए सूमेकर ने मुस्कान को थकान रोकने का अचूक उपाय माना है।
कैलिफोनिर्या यूनिवर्सिटी के जॉन डाल्टन का शोध कहता है कि मुस्कराने से चेहरे से लेकर गर्दन तक की मांसपेशियों का व्यायाम हो जाता है जिससे चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़तीं। विश्व के अनेक देशों में इंसान के चेहरे के भाव और उनकी अभिव्यक्तियों पर वैज्ञानिक शोध होते रहे हैं। शोध में यह भी पाया गया है कि सच्ची खुशी का अहसास मुस्कुराने पर ही होता है। ब्रिटेन में ब्रेडफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने तो असली और नकली मुस्कान को पकड़ने वाला सॉफ्टवेयर विकसित किया है। इनके अध्ययन में यह भी प्रकाश में आया है कि इंसान की वास्तविक मुस्कान का रहस्य उसकी आंखों में छिपा होता है। विश्वभर के दार्शनिकों और कवियों ने मुस्कान पर अनेक बातें कही हैं जिन्हें आज विज्ञान प्रमाणित कर रहा है। ’मुस्कराने की वजह तुम हो...’ मुस्कान पर बॉलीवुड में सैकड़ों गीतों की रचना हुई है।
मीना कुमारी नाज़ का प्रसिद्ध शेर है-
हँसी थमी है इन आँखों में यूँ नमी की तरह
चमक उठे हैं अँधेरे भी रौशनी की तरह
‘जे़न एण्ड द आर्ट ऑफ़ हेपीनेस’ क्रिस प्रेन्टिस द्वारा लिखित अंग्रेजी पुस्तक है। यह प्रसन्न रहने की कला के प्रति प्रेरित करती है और ध्येय वाक्य है ‘खुश रहिए।‘ हर क्षण विषम परिस्थितियों में भी प्रसन्नता का राज़ समझ में आने के बाद यह महसूस होगा कि यह प्रकृति कितनी आश्चर्यजनक और अनूठी है। हालाँकि यह बातें अनमोल अवश्य हैं, लेकिन सहज रूप से प्रसन्न रहना या मुस्कुराते रहना बड़ा आसान भी नहीं लगता। मानव शरीर की यह स्वभाविक प्रतिक्रिया जो ठहरी। तकनीकी दुनिया में जिंदगी की रफ्तार जितनी तेज होती जा रही है उतनी ही तेजी से मुस्कान की सहज प्रवृत्ति पर चिंता और तनाव डाका डाल रही है। कबीर दास के दोहे कितने प्रासंगिक हैं, -
चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए।
वैद्य बिचारा क्या करे, कहाँ तक दवा खवाय।
कविवर रहीम कहते हैं,
रहिमन कठिन चितान तै, चिंता को चित चैत।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत।।
विद्वान कहते हैं कि सद्भवानाओं की कमी से ही चिंता और तनाव का जन्म होता है। प्रसन्नता का जन्म सद्भावनाओं से होता है। मुस्कराहट व्यक्ति की प्रसन्नता को अभिव्यक्त करती है। आंतरिक पवित्रता, निर्मलता और स्वच्छता से प्रसन्नता सहज रूप में आती है। स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जैसे महापुरुषों की सतत प्रसन्नता का कारण उनकी आन्तरिक पवित्रता और शुद्धता ही थी। स्वामी विवेकानंद के मुस्कुरुहाट वाले चित्र अद्भुत आध्यात्मिक प्रसन्नता का परिचय देते हैं।
एक वास्तविकता यह भी है कि महापुरुषों की निर्मल हँसी और मुस्कान देखकर, दुखी और क्लेशयुक्त व्यक्ति प्रसन्न हुए बिना नहीं रहते। विरले ही मिलते हैं सभी से खुले दिल से मिलने वाले और सभी का स्वागत मुस्कान से करने वाले।
दशकों से अध्ययन यही प्रमाणित करते आ रहे हैं कि मुस्कान का सीधा संबंध सेहत और दीर्घायु से है। मुस्कान के इन रहस्यों को समझकर ही प्रतिवर्ष अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर अक्टूबर माह के प्रथम शुक्रवार को विश्व मुस्कान दिवस मनाया जाता है। लोग मुस्कुराहट के महत्व को समझ सकें, इ्न्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ‘वर्ल्ड स्माइल डे’ सन 1999 से मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत मैसाचुसेट के पेशेवेर कलाकार हार्वे बाल ने की थी। सन 1963 में वे स्माइलिंग फेस बनाने के लिए प्रसिद्ध हुए थे। खैर, एक मुस्कुराहट कठिन से कठिन परिस्थितियों में भीतर से मजबूत जरूर कर देती है। अचानक रोते-रोते बच्चों का मुस्करा देने वाले सहज गुणों को व्यक्त करने के लिए शब्दों की सामर्थ ही नहीं है। जरूरत है भीतर के स्वार्थ, अनुदारता, लोभ, ईर्ष्या और घृणा के आवरण को हटाने की। इस आवरण के हटते ही सच्ची खुशी का अहसास होने लगेगा। तब जागेगा सबके लिए प्रेम, सद्भाव और उदारता जो सनातन है। - डॉ. कमलेश गोगिया166 साल बीत चुके हैं, 8 अप्रैल सन 1857 को...! स्वाधीनता संग्राम की पहली गोली चलाकर आजादी का बिगुल फूंकने वाले शूरवीर मंगल पांडे को अंग्रेजी हुकूमत ने इस दिन फांसी दे दी थी। सत्तावनी क्रांति को अंग्रेजों ने ’गदर’ कहा था...तब मौत भी धन्य हो गई थी सैकड़ों क्रांतिकारी वीरों को गले लगाकर! नई और भावी पीढ़ियों को यह जानना बेहद आवश्यक जान पड़ता है कि आज जिस स्वतंत्र देवभूमि भारत में हम अमन-चैन की सांसें ले रहे हैं, वह उन वीरों की शहादत का परिणाम है जिन्होंने हँसते-हँसते मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहूतियां दी हैं। इस गदर में क्या बच्चे और क्या बूढ़े, आम जनता, स्त्री-पुरुष, हिन्दू-मुस्लिम, सिपाहियों, रानियों, बेगमों और वेश्याओं तक ने संगठित होकर सक्रिय भागीदारी निभाई थी। इसका मार्मिक उल्लेख हमें प्रख्यात रचनाकार अमृतलाल नागर की किताब ’गदर के फूल’ में मिलता है। यह सर्वेक्षण के आधार पर भारतीय दृष्टिकोण से लिखा गया इतिहास से ज्यादा प्रमाणिक दस्तावेज जान पड़ता है। यह बात सभी जानते हैं कि गूगल बुक्स हमें उपलब्ध किताबों के कुछ पन्नों की ही झलक दिखलाता है। इस किताब के नये संस्करण के कुछ पन्ने पढ़ने को मिलते हैं, लेकिन ई-पुस्तकालय से प्रथम संस्करण बिना कव्हर पेज के ’निःशुल्क’ डाउनलोड किया जा सकता है। इसका मूल्य साढ़े चार रुपए, प्रकाशन वर्ष-स्वतंत्रता संग्राम शताब्दी 1957 और प्रकाशन शाखा, सूचना विभाग, उत्तरप्रदेश अंकित है। नागर जी ने पुरानी अवध रियासत के गावों में जाकर आम लोगों के बीच गदर की स्मृतियों और दस्तावेजों को संग्रहित किया। वे प्रस्तावना में लिखते हैं, ’’सत्तावनी क्रान्ति सम्बन्धी अपने उपन्यास के लिए ऐतिहासिक सामग्री एकत्र करते हुए मुझे लगा कि अपने उपन्यास के क्षेत्र-अवध-में घूम-घूम कर गदर संबंधी स्मृतियाँ और किंवदतियां आदि एकत्र किए बिना मेरी गढ़ी हुई कहानी में झकोले रह जाएंगे। यों भी गदर की किंवदतियों या बातों को सुनानेवाले व्यक्ति अब छीजते जा रहे हैं। सत्तावनी क्रान्ति के संबंध में भारतीय दृष्टिकोण से लिखे गये इतिहास के अभाव में जनश्रुतियों के सहारे ही इतिहास की गैल पहचानी जा सकती है।’’प्रस्तावना में ही वे किताब के शीर्षक का भी स्पष्टीकरण कुछ इस तरह से देते हैं, ’’हमारे देश में स्वजनों की चिता के फूल चुने जाते हैं। सौ वर्ष बाद ही सही मैं भी गदर के फूल चुनने की निष्ठा लेकर अवध की यात्रा का आयोजन करने लगा।’’ नागर जी इस कृति का समर्पण इस तरह से करते हैं, ’’’सत्तावनी क्रान्ति के अठारह वर्षीय तरुण सेनानी अभिनव अभिमन्यु श्री बलभद्र सिंह (चलहारी के ठाकुर) और उनके स्वदेश की इंच-इंच भूमि के लिए अन्तिम बूंद तक रक्तदान करने वाले नवाबगंज बाराबाकी के युद्ध क्षेत्र के अभूतपूर्व रणबाँकुरे छह सौ हिन्दू-मुसलमान पुरखों को प्रतीक स्वरूप यह श्राद्ध आयोजन सविनय अर्पित।’ इस किताब को आज 66 साल हो रहे हैं। सहज और सरल भाषा में लिखी गई इस किताब को पढ़ने के बाद अन्तःकरण से सहसा यह स्वर निकल पड़े-"ज़मीने हिन्द के ज़र्रे-ज़र्रे मेंशहीदों का लहू मिला हुआ हैक्या हिन्दू और क्या मुसलमानआजाद भारत का गुलशन तोगदर के ’फूलों’ से ही खिला हुआ है"गदर के प्रथम शहीद मंगल पांडे सा़ढ़े नौ फुट ढाई इंच के थे! रचनाकार ने बिना किसी साहित्यिक रूप-रंग और कठिन शब्दावली का चोला पहनाए उसी अंदाज में बयां किया है जैसी उन्हें स्मृतियां और दस्तावेज प्राप्त हुए। यथा-’’श्री मंगल पांडे का जन्म फैजा़बाद ज़िले की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर नामक ग्राम में सन् 1827 के जुलाई की 19वीं तारीख को अर्थात् आषाढ़ शुक्ल द्वितीया शुक्रवार विक्रमीय संवत् 1884 को हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था, वस्तुतः फैज़ाबाद जिले की फैज़ाबाद तहसील के दुगवा रहीमपुर नामक ग्राम के रहने वाले थे और अपने ननिहाल की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी होकर सुरहुरपुर में जाकर बस गये थे। वहीं पर उनकी पत्नी अभयरानी देवी के गर्भ से मंगल पांडे का जन्म हुआ। इनकी लम्बाई 9 फुट 2।। इंच थी। 22 वर्ष की आयु में अर्थात 10 मई 1849 में आप ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भरती हुए। किसी काम से आप सुरहुरपुर से अकबरपुर आए हुए थे उसी समय कम्पनी की सेना बनारस से लखनऊ को ग्राड ट्रक रोड होती हुई जा रही थी। आप सेना का मार्च देखने के लिए कौतूहलवश सड़क किनारे आकर खड़े हो गये। सैनिक अधिकारी ने आपको हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ देख कर सेना में भरती हो जाने का आग्रह किया, आप राजी हो गये। बस यहीं से आपका सैनिक जीवन प्रारम्भ हुआ। (पृष्ठ-74-75)’’इसके बाद की घटनाओं से हम में से अधिकांशतः वाकिफ होंगे। मंगल पांडे पर फ़िल्म भी निर्मित हो चुकी है। मंगल पांडे को फांसी देने के बाद भारत की सैनिक छावनियों में जबर्दस्त विद्रोह प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने मंगल पांडे के पूरे खानदान से बदला लिया। नागर जी लिखते हैं, ’’मंगल पांडे के खानदान से जो भी मिला उसे तोप के मुँह पर धर कर अंग्रेजों ने उड़ा दिया। फिर भी मंगल पांडे के कई एक निकट संबंधी बच गये, जिनमें मंगल पांडे के सगे भतीजे बुझावन पांडे भी थे। वह अपनी जमात के सभी रिश्तेदारों, खान्दानियों और साथियों को साथ लेकर क्रान्तिकारी दल में मिल गये। 25 अगस्त को इन सबने मिल कर फैजा़बाद की सैनिक छावनी पर रात में धावा बोल दिया जिनके फलस्वरूप सभी हिन्दुस्तानी सैनिक उनसे मिल गये और छावनी के सभी अंग्रेज या तो मार डाले गये या बलवाइयों के हाथ बन्दी हो गये।’’ गदर में अंग्रेजों द्वारा किये गये कत्ले-आम के बर्बरतापूर्ण दृष्यों का रहस्य भी प्रकट होता है। लेखक इस बात के कायल थे कि सत्तावन का नायक फौज का सिपाही था।नागर जी ने अनेक मार्के की बात लिखी है और उनकी बातें आज आधा युग बीतने के बाद भी प्रासंगिक लगती हैं। वे लिखते हैं, ’’यह भी मार्के की बात है कि अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ने के लिए सबसे पहले सिपाही उठे। सामन्तगण सिहापियों के कारण ही संघबद्ध हुए थे। यह सिपाही संगठन ही देश में नये युग के आने का परिचय देता है। सिपाही आखिरकार हमारी आम जनता के ही प्रतिनिधि तो थे। और इसीलिये जब हमारे राजे-सामन्त हार गये तब भी जनसाधारण एकाएक चुप होकर न बैठ सका। (पृष्ठ-298).’’आगे और भी अहम बात उन्होंने लिखी है, ’’एक बात यह भी विचारणीय है कि क्या गदर होने का प्रमुखतम कारण धर्म-मजहब ही था? मैं तो समझता हूँ कि अंग्रेजों के खिलाफ हमारी शिकायतों का यह एक बहाना मात्र था। जिन चरबी के कारतूसों के कारण गदर होना बतलाया जाता है वे कारतूस ही भारतीयों के द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल किये गये। ब्राह्मण सिपाहियों तक ने आपद्धर्म कहकर चर्बी वाले कारतूस मुँह से काटे और शत्रु अंग्रेजों को मारा। मेरी दृष्टि में यह बड़ी बात है-बड़ा धर्म है।’’गदर में दूसरी मार्के की बात यह दिखलाई देती है कि उसके प्रमुख नेताओं में एक ओर जहाँ अस्सी वर्ष के कुँवर सिंह, साठ-पैंसठ के राणा वेणीमाघव, मौलवी साहब, बहादुरशाह जफर, तात्या आदि बड़े-बूढ़े थे वहां अठारह वर्ष के बलभद्र सिंह, बाईस वर्ष की लक्ष्मीबाई, छब्बीस-सत्ताइस वर्ष की हज़रत महल और तैंतीस वर्ष के नाना साहब आदि ताजे़ खून वाले नौजवान भी थे। गदर में इस प्रकार हम देखते हैं कि वे तमाम खूबियां जो किसी भी राष्ट्र को ऊँचा उठा सकती है, हमें भी बहुत बल दे रही थी। अस्सी वर्ष का वृद्ध हो अथवा अठारह वर्ष का नवयुवक, दोनों एक ही महाभाव से बंधे, एक ही उद्देश्य के लिये अपना सर्वस्व अर्पण कर रहे थे।’’पुरातत्व और इतिहास प्रेमी नागर जी ने यह भी लिखा है कि, ’’हमने भारतीय इतिहास की एक यह विशेषता भी पहचानी कि बाहरी शत्रु का दबाव पड़ने पर देश संगठित हो उठने का प्रयत्न बराबर करता है, परन्तु वह संगठन कभी पूरी तौर पर स्थायी नहीं पो पाता। सांस्कृतिक रूप से भारत सदा से सुसंगठित है। व्यापार की दृष्टि से भी देश की एकसूत्रता स्वयंसिद्ध है, राजनीतिक दृष्टि से हम आपस में कटे-कटे रहे।’’ कृति के अन्त में नागर जी देश के लिए मर मिटने वाले वीरों के संस्मरणों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं।इस समय भारत की आजादी को 75 वर्ष हो चुके हैं और पूरा देश 12 मार्च 2021 से आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। यह अमृत महोत्सव सबसे दीर्धकाल तक चलने वाले आजादी का उत्सव है, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं। 15 अगस्त 2023 तक चलने वाले इस उत्सव के तहत पूरे देश में विभिन्न रचनात्मक गतिविधयों के साथ ही वीर-शहीदों को भी स्मरण किया जा रहा है। उन्हें हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उन्हें कभी विस्मृत न करें और उनके लहू की हर एक बूंद का मान रखकर भावी पीढ़ी को भी उनके योगदान से अवगत कराते रहें।वस्तुतः प्रथम शहीद मंगल पांडे से लेकर स्वतंत्रता के पूर्व, पश्चात और वर्तमान में भी देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले सभी शहीदों को शत-शत नमन... आने वाले अनेक युगों तक महकते रहेंगे गदर के फूल...इसमें कोई सन्देह नहीं है।जय हिन्द...जय भारत...वंदे मातरम...।
- - युग-चेतना-3
-डॉ. कमलेश गोगिया
काफी दिनों बाद श्याम से मुलाकात हुई, जिसे हम लोग रेमटा कहा करते थे। उसे देखते ही 90 का दशक याद आ गया। उसकी स्क्रीन प्रिटिंग की छोटी सी दुकान हुआ करती थी। वह शादियों के कार्ड स्क्रीन प्रिंट करने में माहिर हुआ करता था। दिन-रात व्यस्त रहा करता था। कुछ लोग शादी-कार्ड का संग्रह करने के भी शौकीन हुआ करते थे। कार्ड की रूप-रंगत, कागज की मोटाई, कव्हर और आकार देखकर मेजबान की आर्थिक स्थिति और समारोह की भव्यता का भी अनुमान लगाया जाता। घर-घर जाकर कार्ड दिया जाता था। खास मित्रों, परिचितों और रिश्तेदारों के यहाँ कार्ड के साथ उपहार भी दिया जाता था।
सविनय निवेदन रहता,
’’आपके बिना तो शादी ही नहीं होगी, आपको आना ही होगा भाई साहब!’’
जबाव मिलता-’’हाँ क्यों नहीं, जरूर, कोई काम हमें भी बता दीजिए।’’
इस बहाने मेल-मुलाकात हो जाया करती थी। किसे कौन कार्ड देने जाएगा, यह मुद्दा भी प्रतिष्ठा का प्रश्न हुआ करता था।
’’खुद नहीं आ सकते थे, तुम्हें भेज दिया निमंत्रण देने...!’’
’’असल में पिताजी की तबीयत नासाज़़ है फूफा जी।’’
’’चलो ठीक है, कितने दिन पहले आना है?’’
’’जी...आपका घर है, जब आ जाएँ...!’’
पास-पड़ोस से लेकर दूर-दराज तक कार्ड वितरण बड़ा परिश्रम का काम हुआ करता था। शहर की गलियों से गुजरते हुए पता पूछते हुए जाना हो या गाँव की पगडंडी पार करते हुए रिश्तेदार के घर पहुँचना... इसका भी अपना आनंद था। इस बहाने मेल-मुलाकात हो जाया करती थी। हाल-चाल भी पता चल ही जाता था। पूरे कार्ड बंटने के बाद ही शांति मिलती। उबाऊ-सी लगने वाली इस तरह की फ़िजुल-सी बातों में ’प्रेम’ के छिपे ’भाव’ किसे बताएँ...? सो श्याम की तरफ लौट आया।
अरे, स्क्रिन प्रिटिंग से मोबाइल की दुकान में! कब से श्याम...? मैंने अचरज़ से पूछा।
श्याम ने कहा-’’जब से लोगों ने शादी का ई-कार्ड मोबाइल में भेजना शुरू कर दिया!
अच्छा....तो अब स्क्रिन प्रिटिंग में शादी के कार्ड नहीं छापते ?
कहाँ यार वो दौर गया, अब नई टेक्नोलॉजी से छपते हैं। आकर्षक ग्राफिक्स के साथ पीडीएफ, जेपीजी, एनिमेशन के साथ कार्ड भेज दिए जाते है। ऑडियो-वीडियो के साथ ई-कार्ड का भी चलन है। खुद ही बना लो एप से और कार्ड भेज दो। आने-जाने की जी-तोड़ मेहनत, कार्ड और छपाई का पैसा, सब कुछ बच गया। मोबाइल और इंटरनेट की टेक्नोलॉजी में कौन भटकता-फिरता है कार्ड बांटने! शादी-ब्याह, जन्मदिन, गृहप्रवेश, नामकरण, वर्षगांठ सबका निमंत्रण चुटकियों में रेडीमेड बनता है। व्हाट्सएएप कर दो और मोबाइल में बता दो। रिश्ते तो टेक्नोलॉजी से चलते हैं दोस्त आज। ऑनलाइन दोस्ती से लेकर विवाह तक।
हाँ, सो तो है...।
घर के एड्रेस और नंबरों के आदान-प्रदान के साथ विदाई ली। उसकी मोबाइल दुकान से विदा होते वक्त ख़्याल आया, अपनी शादी का कार्ड उसने खुद ही स्क्रिीन प्रिंट किया था और घर भी आया था देने। खूब बातें हुई थीं। कुछ दिनों बाद उसने अपनी मैरिज एनिवर्सरी का ई-कार्ड भेजा। समय के साथ वह अपडेट हो गया था। ई-कार्ड स्वीकार करने की विवशता के साथ जवाब में थम्ब्स-अप का इमोजी भेजकर मैं भी। यह विचार संतोष देता रहा कि कम से कम व्हाट्सएप में वर्षगांठ का कार्ड सेंड कर दिया। तेज भागती जिंदगी की आपाधापी में कई लोग .यह भी भूल जाते हैं। दूसरा पहलू यह भी है कि मोबाइल ने हमारे अनेक काम आसान कर दिए हैं जिसकी लंबी फेहरिस्त है। मोबाइल-कल्चर ने कितना बदल दिया है हम सबको। ऐसे में भला हम अमेरिका के महान इंजीनियर मार्टिन कूपर महोदय को कैसे न याद करें जिन्होंने 3 अप्रैल 1973 को मोबाइल का अविष्कार किया था। पूरा आधा युग बीत चुका है इस अविष्कार को। उनके इस अविष्कार ने हमारा पूरा जीवन बदल दिया है।
12 साल पहले की बीबीसी हिन्दी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र आया है कि तब मोबाइल का वजन पूरा दो किलो था और इसे बनाने में आज की कीमत के हिसाब से खर्च आए थे 10 लाख डॉलर। इस अविष्कार के बादं मोबाइल फोन की अपार सफलता और विश्व की आधी आबादी के पास मोबाइल देखकर वे भी दंग रहे गये थे। अब वे इस बात से परेशान हैं कि लोग बेतहाशा उपयोग कर रहे हैं। जैसा कि देश के नंबर वन अखबार होने का दावा करने वाले प्रतिष्ठित समाचार पत्र में प्रकाशित एक इंटरव्यू में मार्टिन कूपर ने कहा, ’’मैं तो दिन का सिर्फ पाँच प्रतिशत वक्त ही मोबाइल को देता हूँ, समस्या यह है कि लोग जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक है।’’ उनका यह कथन अनेक शोध-पत्रों में समय-समय पर प्रमाणित किया जा चुका है। चाणक्य नीति के चौथे अध्याय में ’अति सर्वत्र वर्जयेत’ की बात कही गई है।
समस्या सेहत की ही नहीं, रिश्तों की भी है। मोबाइल ने रिश्तों को बनाया भी है, लेकिन बिगाड़ने में भी कोई कमी नहीं की है। मीडिया रिपोर्ट बताती है कि स्मार्ट फोन के अत्याधिक इस्तेमाल से भारत में पति-पत्नी के रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं। मोबाइल के जरूरत से ज्यादा उपयोग के दुष्परिणामों और जोखिम पर अनेक शोध किये जाते रहे हैं। स्मार्ट उपकरण विनिर्माता ’वीवो’ के वर्ष 2022 में किये गए अध्ययन में 67 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि अपने जीवन साथी के साथ समय बिताने के दौरान भी वे अपना मोबाइल देखने में व्यस्त रहते हैं। मोबाइल टेक्नोलॉजी ने रिश्तों को तरह-तरह से प्रभावित किया है। स्मार्टफोन का दीवाना कौन नहीं है। अमेरिका के ऐरन शरवेनक को अपने स्मार्टफोन से इतना प्यार था कि उन्होंने अपने ही स्मार्टफोन से शादी कर ली थी। दमोह में मोबाइल से बात करने को लेकर पति ने अपनी पत्नी की चाकू से नाक काट दी। मोबाइल की वजह से पारिवारिक विवाद के अनगिनत मामले थाने पहुँचते हैं। सिक्के के दो पहलू के अनेक किस्से-कहानियाँ हैं। बात वही है, चाकू से सब्जी और फल भी काटे जाते हैं तो गला भी, मामला सदुपयोग और दुरुपयोग का है। सदुपयोग करने वालों ने भरोसा जीतकर कामयाबी भी हासिल की है और रिश्तों को बनाया भी है। -
बारहमासी अप्रैल फूल...!
डॉ. कमलेश गोगियाअंग्रेजों के जमाने की बात है। रासा ने काशी में घोषणा की, ’’सिद्ध-योगी महाराज पानी में चलकर गंगा नदी पार करेंगे।’’ इस चमत्कार को देखने पूरे काशी की जनता बड़ी संख्या में नियत समय पर एकत्र हो गई। अंग्रेज सरकार भी हैरत में थी, सिपाही भीड़ को नियंत्रित करने में जुटे हुए थे। रासा और योगी महाराज गंगा नदी पहुँचे। सभी को इंतजार था इस चमत्कार को देखने का। एकाएक रासा ने घोषणा कर दी कि योगी महाराज अस्वस्थ होने की वजह से नाव पर सवार होकर गंगा पार जाएँगे और वापसी में पानी में चलकर आएंगे। चमत्कार देखने की आशा, अब निराशा में बदलने लगी। योगी महाराज और रासा नाव में सवार हो गए। नदी के किनारे से दूर जाकर रासा ने एक झंडा निकालकर लहरा दिया। इस झंडे में लिखा था, ’मूर्ख दिवस...’ पूरे काशी को अप्रैल फूल बना दिया गया। ये ’रासा’ महाशय थे हिन्दी के महान साहित्यकार, कवि, नाटककार और आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिशचंद्र। उनका उपनाम ’रासा’ है। इस घटना का जिक्र यदा-कदा कई मौकों पर ऑनलाइन और ऑफलाइन होता रहता है। मूर्ख दिवस के बहाने ही सही, यह घटना इस बात के लिए भी प्रेरित करती है कि हमें कथित चमत्कारों के पीछे भागकर भाग्यवादी बनने की बजाए वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखकर कर्मवादी बनना चाहिए।अप्रैल माह की पहली तारीख आते ही, ’फूल’ शब्द दिमाग में कौंध जाता है। शरारती मुस्कान के साथ दिमाग में तरह-तरह के फितूर आने लगते हैं। मन कहता है, ’’संभलकर रहना है, कोई मूर्ख न बना दे..!’’ कुछ एक दिन पहले ’फूल’ बनाने की तैयारी करते हैं तो कुछ जानकर भी मूर्ख बनते हुए ’नहले पर दहला’ मारते हैं। इस दिन क्रोध नहीं आता, हँसी आती है। उम्र का कोई बंधन नहीं, बच्चे-बूढ़े सभी इसका आनंद लेते रहे हैं। बीच सड़क पर खाली पर्स और नकली नोट रखकर मूर्ख बनाने के भी मजे लिए जाते रहे हैं। कोई जूते की लेस बाँधने के बहाने तो कोई सीधे...जैसे ही नोट या पर्स उठाते, जोर से शोर होता, ’’अप्रैल फूल बनाया....!’’ रबर के नकली साँप, छिपकली, कॉकरोज से डराने से खूब मजे लिए गए हैं। 1964 में सुबोधमुखर्जी निर्देशित फिल्म ’अप्रैल फूल’ का यह गाना आज भी सुपरहिट है-’’अप्रैल फूल बनायातो उनको गुस्सा आयातो मेरा क्या कुसूरज़माने का कुसूरजिसने दस्तूर बनाया...’’अप्रैल फूल कब से और क्यों मनाया जाता है? एक अप्रैल का ही दिन क्यों चुना गया? इसके अनेक किस्से और कहानियाँ हैं। कहते हैं कि 1592 में फ्रांस मे चार्ल्स पोप ने नया रोमन कैलेंडर जारी किया था, लेकिन लोग पुराने कैलेंडर को ही मानते रहे। उसके बाद वहां भी इस दिन से अप्रैल फूल मनाया जाने लगा। एक किस्सा इंग्लैंड के राजा रिचर्ड का है जिन्होंने बहेमिया की रानी ऐनी के साथ 32 मार्च को सगाई करने ऐलान किया। सगाई के जश्न में डूबे लोगों को बाद में आभास हुआ कि 32 मार्च कोई तारीख ही नहीं होती। इसके बाद से अप्रैल फूल मनाया जाने लगा। अनेक कहानियाँ हैं।अलग-अलग देशों में अलग-अलग फूल बनाने के तरीके हैं। राजेश्वरी शांडिल्य ’भारतीय पर्व और त्यौहार’ के हिन्दू-इतर पर्व में लिखती हैं कि इस दिन इंग्लैंड़ की सड़कों पर बच्चों की अप्रैल फूल की आवाज अवश्य सुनाई देगी। अमेरिका में इस दिन डाक द्वारा बैरंग पार्सल भेजने की प्रथा है। कोई भूल से पार्सल छुड़ा लेता है तो उसमें सफेद बाल, फटे बल्ब, रद्दी अखबार या टूटे हुए खिलौने निकलते हैं। चीन में लोग अपने मित्रों की सायकल पंक्चर करके अप्रैल फूल मनाते हैं। ब्राजील में लोग अपने मरने का झूठा नाटक रचते हैं। भारत सहित अनेक देशों में ’फूल’ संस्कृति बीते कई सालों से प्रचलित है। इटली में इस दिन समानता का त्योहार मनाया जाता है। नौकर का मालिक और मालिक का नौकर बन जाने की प्रथा रही है। अनेक देशों के समाचार पत्र भी अप्रैल फूल बनाते हैं, हमारे यहाँ फाल्गुन माह में इस पंरपरा का निवर्हन होता है। अप्रैल माह की पहली तारीख को भी तरह-तरह से ’फूल’ बनाए जाते हैं। फूल अंग्रेजी का शब्द है जिसे हिन्दी में बेवकूफ, मूर्ख, उल्लू आदि भी कहते हैं। इस एक दिन के अलावा पूरे 364 दिन पूरी दुनिया में कोई न कोई ’फूल’ बन रहा होता है।हमारे गुरू व्यंग्यकार स्व. विनोद शंकर शुक्ल जी याद आ रहे हैं। डायमंड पॉकेट बुक्स से 2017 में प्रकाशित व्यंग्य संग्रह ’51 श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’ में उन्होंने लिखा है, ’’अप्रैल फूल अब एक दिन का श़गल नहीं रहा। बारहमासी हो गया है। मूर्ख बनाने की कला बहुत ऊँचाई पर जा पहुँची है। भ्रष्टाचार की कला के बराबर। सभी एक-दूसरे को मूर्ख बनाने में लगे हैं। बाजा़र इस मामले में नंबर एक है।वस्तुओं का रैपर जितना बढ़िया होता है, माल उतना ही घटिया। आज के विज्ञापनों पर तो कुर्बान होने को जी करता है। बड़ी सफाई से उपभोक्ताओं की जेब काट लेते हैं। जेबकतरों को हीनग्रंथि का शिकार होना पड़ता है। हमदम और दोस्त भी अप्रैल फ़ूल बनाने का कोई मौक़ा नहीं चूकते। उपयोग के बाद मुँह फेर लेते हैं, जैसे जवान होने पर बच्चे बूढ़े माँ-बाप से। हमारे आसपास बारहों महीने अप्रैल फू़ल बनाने वाले सज्जनों और संस्थाओं की भरमार है।’’ यह सारी बातें आज भी प्रासंगिक हैं।यदि हम इतिहास के पन्ने पलटें तो 1 अप्रैल का दिन भारत के लिए विशेष भी है। 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक स्थापित हुआ था, लेकिन ’अक्लमंदों’ ने बैंकों को भी ’फूल’ बनाने से नहीं बख्शा है! भारतीय रिजर्व बैंक के 2015 से 2021 तक के आँकड़े देख लीजिए, सात साल में धोखाधड़ी के ढाई लाख मामले, यानि देश में हुए कुल घोटालों का 83 प्रतिशत और हजारो करोड़ रुपए की सरकार को चपत। ’आम’ की गाढ़ी कमाई, चंद ’खास’ के खाते में...! फिर सिर्फ बैंक ही क्यों, इंसान ने प्रकृति को भी कहां ’फूल’ बनाने से छोड़ा है। इंसान सदियों से ’प्रगति’ के नाम पर प्रकृति को ’फूल’ बनाता आ रहा है, प्रकृति भी ’जैसे को तैसा’ की उक्ति चरितार्थ करती आ रही है। किसी भी मौसम में बरसात हो रही है तो ठंड के दिनों में गर्मी। एकाएक आँधी-तूफान..! अपनी पूरी आयु भोगने में पशु-पक्षी ही सक्षम रहे हैं, लेकिन इंसानों की हरकतों से वे भीे अपनी प्रजातियों के विलुप्त होने का दंश झेल रहे हैं। वरिष्ठजन कहा करते थे, ’’भगवान ने मनुष्य की आयु सौ साल निर्धारित की है!’’ वर्तमान में भारत में जीवन प्रत्याशा 69.7 वर्ष है। आज सौ बसंत देखने वाले विरले ही मिलते हैं। प्रकृति पर कब्जा कर उसे फूल बनाने की कोशिशें चरम पर है। प्रकृति ने भी वैश्विक तापमान बढ़ाकर फूल बनाना शुरू कर दिया। कूलर, पंखे, एसी भी पूल बनाने लग गए हैं। हर साल गर्मी के नए रिकॉर्ड बनते हैं।डिजिटल वर्ल्ड की आभासी दुनिया को ले लीजिए, सुविधाओं की भरमार तो मिली लेकिन लोगों ने दुरुपयोग करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। आम हो या खास, हर दिन लोग ’सायबर फूल’ बन रहे हैं। अब यह मसला वैश्विक चुनौति बन गया है। 1 अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष भी शुरू होता है। बीते वित्तीय वर्ष-2022 में एटीएम कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग से संबंधित धोखाधड़ी के 65 हजार 45 मामले सामने आए, मसलन प्रतिदिन सौ से भी ज्यादा मामले। अप्रैल के ’फूल’ तो बारहमासी खिल रहे हैं। - --युग-चेतना-1डॉ. कमलेश गोगियाएक कहावत है ’साँच को आँच नहीं’, ऊपर शीर्षक में ’साँच’ की बजाए ’पाँच’ लिखा गया है, असल में बात नंबर-’5’ की है। बड़ी भूमिका है इसकी हमारे जीवन में, लेकिन तेज भागती ज़िन्दगी की रफ़्तार में कोई खयाल ही नहीं आता इन नंबरों के रोल को समझने का।’’लगी पाँच-पाँच पैसे की....’’’’चल लगी यार...’’खूब शर्तें लगाई जाती रहीं थीं बचपन के दिनों में। शर्तें भी छोटी-छोटी बातों पर ही लगाई जाती थीं। तब छोटी सी बातें भी अहम होती थीं। आज कोई पाँच-पाँच पैसे की शर्त लगाए...हारे-जीते कोई भी...भुगतान करना आसान नहीं होगा। पाँच पैसे का सिक्का संग्रह के शौकीन बिरलों के पास ही मिलेगा। जिनके पास मिलेगा उन्हें भी याद होगा, कभी पाँच पैसे में ढेर सारी पीपरमेंट मिल जाया करती थी। इसे ’पंजी’ भी कहते थे। स्कूल जाने के लिए माँ अक्सर पाँच पैसे ही देती थी। तब पाँचवी बोर्ड हुआ करता था। बोर्ड परीक्षा का खतरनाक असर माँ पर ज्यादा देखने को मिलता था। पाँचवी में पास मतलब माध्यमिक में जाने का पहला पड़ाव पूरा। हाफ पेंट से छुटकारा और फुल पैंट पहनने की स्वतंत्रता।खैर...पाँच पैसे के सिक्के 1957 से 1994 के बीच ढाले जाते रहे और 2011 में इसे बंद कर दिया गया।बहुत से लोगों को याद होगा पाँच पैसे के सिक्कों पर सिल्वर पॉलिश कर जहाज बनाने का भी प्रचलन रहा है। कभी यह बेहतरीन शो पीस हुआ करता था।1938 में पाँच रुपए का नोट जारी हुआ। अब पाँच रुपए का नोट मुश्किल से मिलता है। 1992 में आए स्टील के पांच के सिक्के जो अलग-अलग रूप-रंग के साथ चल रहे हैं। पाँच रुपए का नोट हो या पांच का सिक्का, इससे खेल-खेल में गणित सीख जाया करते थे। यह नंबर है ही निराला। पूरे वैदिक गणित में यही नंबर ऐसा है जिसे भाग देने की सबसे तेज विधि माना जाता है। यदि कोई आपसे पूछे कि 18 गुणित पाँच कितना होता है, एकदम सरलता से 18 का आधा कर पीछे शून्य लगा दीजिए। उत्तर 90 बन जाएगा। केवल दो चरण का पालन करना सिखाया जाता था। पाँच गुणित 9 को ही देख लें, 9 का आधा 4.5 होता है, दशमलव हटा दीजिए, उत्तर होगा-45। पांच का गुणा बड़ी से बड़ी संख्या के साथ करके देख लीजिए, उस संख्या का आधा ही उत्तर होगा। यह तो सिर्फ एक पाँच नंबर की बात है, वैसे वैदिक गणित के 16 सूत्रों का जिन्हें भी अभ्यास हो गया, उनके लिए बिना केल्कुलेटर के बड़ी से बड़ी संख्या का गुणा करना पल भर का काम होगा। भारतीय वैदिक गणित का लोहा पूरा विश्व मानता है।हम पाँच के पथ पर आगे बढ़ते हैं। बात करते हैं ’पंचामृत’ की जिसका भोग देवी-देवताओं, विशेषकर श्री हरि भगवान श्री कृष्ण को समर्पित किया जाता है। पंचामृत पाँच पदार्थों दूध, दही, शक्कर, घी और शहद का मिश्रण है जिसके स्वास्थ्य लाभ को विज्ञान प्रमाणित कर चुका है।पाँच की अनेक खूबियाँ हैं। प्राचीन भारतीय हिन्दू कैलेंडर को पंचांग कहा जाता है। इसके पांच अंग होते हैं- तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण। इसलिए इसे पंचांग कहा जाता है। इसके भीतर प्रवेश करें तो पंचांग में भी पंचक पर प्रायः लोगों की नजर रहती है। किसी के अवसान पर अक्सर पूछा ही जाता है,’’ अरे भाई देख लो आज पंचक तो नहीं।’’’’महाराज जी ने देख लिया है, निश्चिंत रहो।’’इसका विशेष ज्ञान तो मुझे नहीं, डॉ. उमेशपुरी ’ज्ञानेश्वर’ की पुस्तक ’पंचक विचार कितना जरूरी’ में लिखा मिला, ’’पंचक के पांच नक्षत्र हैं-घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।’’कोरोना महामारी काल में लॉकडाउन के दौरान एक बार फिर से महाभारत देखने अवसर मिला था। महाभारत शब्द के भी पाँच अक्षर होते हैं और इसके नायक पाँच पांडव थे। पांडवों की पत्नी द्रौपदी को पांचाल की राजकुमारी होने की वजह से पांचाली कहा गया। पांचाल पांच प्राचीन कुलों के पांच सामूहिक कुलों का नाम भी माना जाता है।समाचार पत्रों में प्रेरक प्रसंग पढ़ने का भी अपना आनंद है। एक प्रेरक प्रसंग में जिक्र आया कि जीवन में पाँच दान महत्वपूर्ण माने गये हैं-अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान, अभयदान और अब अंगदान। हमारा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पाँच ज्ञानेंद्रियाँ होती हैं-आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा। फिर ध्यान आया, हाथ में भी पाँच उंगलियाँ होती हैं-तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा और अँगूठा। कुछ लोगों की एक हाथ में छह उंगलियाँ भी होती हैं। इनमें सुपर स्टार ऋतिक रोशन भी हैं जिनके दाएं हाथ में अंगूठे के पास एक अतिरिक्त उंगली है, हालाँकि यहां ’छह’ की चर्चा नहीं की जानी चाहिए, प्रसंगवश बात निकालनी पड़ी, आलेख को थोड़ा रोमांचक बनाने की चाह में। यह मेरा थोड़ा सा स्वार्थ है, चलिए पंच-पथ की अगली दिशा में। पौराणिक कथाओं में पाँच स्त्रियों को पंचकन्या का दर्जा दिए जाने का उल्लेख भी मिलता है। ये पाँच कन्याएँ हैं- अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी। भारतीय शास्त्रों में पाँच प्रकार के ऋण का उल्लेख माना जाता है- देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, लोक ऋण और भूत ऋण।सिक्ख धर्म में पाँच प्रतीक चिन्हों का विशेष महत्व है- केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण। जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का उल्लेख मिलता है। पाँच पापों-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह का त्याग करना पाँच महाव्रत है। पाँच महाव्रत हैं-अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और अपरिग्रह महाव्रत। नवरात्रि में भी पंचमी का विशेष महत्व रहता है।हिंदू धर्म में पंचदेव पूजा का विधान है जिनमें सूर्य, श्रीगणेश, माँ दुर्गा, शिव और भगवान विष्णु आते हैं। मान्यता है कि इन पंचदेवों की पूजा के बाद ही कोई कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। पंचोपचार पूजा पद्धति में पाँच तरह के पदार्थों को समर्पित करने का उल्लेख है। इनमें गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य शामिल है। पंचगव्य का भी विशेष महत्व हैं। इसमें पाँच प्रकार की गाय से जुड़ी पांच प्रकार की चीजें शामिल होती हैं-सफेद गाय का दूध, काली गाय के दूध से बनी दही, लाल गाय का गोबर, भूरी गाय का गोमूत्र और दो रंग की गाय का घी। पंच पल्लव का महत्व है जिसका आशय है पांच पवित्र व धार्मिक वृक्षों के पत्ते-पीपल, आम, अशोक, गूलर और वट वृक्ष।यदि राजनीतिक दृष्टिकोण से पाँच के बारे में सोचें तो भारत ने एक नवंबर 2021 को ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के सामने ’पंचामृत रणनीति’ का प्रस्ताव रखा। पाँच रणनीति में पहली-वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 मेगावाट तक करना, दूसरी-अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतें, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करना, तीसरी-2030 तक ही कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना, चौथी-कार्बन तीव्रता में 30 प्रतिशत तक की कमी करना और पांचवी-2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना शामिल है। नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की यह रणनीति असल में ’क्लाइमेट चेंज’ की जंग है जिसमें शामिल होने की जरूरत आज पूरे विश्व को है। इसके लिए पहला कदम होगा हम सभी को अपनी जीवन शैली में बदलाव करना। इस ’पंचामृत’ को हासिल करना चुनौती जरूर है; लेकिन इससे पूरी दुनिया को पाँच बड़े लाभ भी होंगे- पूरे विश्व का बढ़ता तापमान थमने लगेगा, पृथ्वी की जीवसृष्टि का तनाव कम होगा, ध्रुवों और हिमालय पर्वत के तेजी से पिघल रहे हिम की समस्या के समाधान के रास्ते निकलेंगे, प्रकृति के साथ खिलवाड़ में कमी आएगी और मनुष्य में श्वसन और हृदय सहित अन्य रोगों की हो रही बढ़ोत्तरी में कमी आएगी। 2070 तक हम रहें या न रहें, लेकिन पंचामृत रणनीति की सफलता पृथ्वी, जल, अग्नी, आकाश और वायु अर्थात ’पाँच को समय से पहले कोई आँच’ नहीं आने देगी। परिणाम भावी पीढ़ी के सुखी और स्वस्थ रहने के रूप में मिलेगा। यकीन नहीं तो लगी, ’पाँच-पाँच की....!’
- - मंदिर और पहाड़ी के साथ जुड़ी हैं कई कथाएं और किंवदंतियां-महाभारत काल से भी है जुड़ाव-आलेख -वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुरोहितछत्तीसगढ़ के प्राय: सभी क्षेत्र ऐतिहासिक और पौराणिक संपदा की दृष्टि से अत्यंत संपन्न हैं और श्रद्धा, भक्ति व समर्पण की पावन त्रिवेणी के अजस्र प्रवाह में समूचा लोकमानस अवगाहन करता है। राज्य के महासमुंद जिले के ही बागबाहरा तहसील मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दूर स्थित भीमखोज से लगे खल्लारी ग्राम की पहाड़ी पर मां खल्लारी का मंदिर ऐसा ही एक महत्वपूर्ण केंद्र है। दर्शनार्थी भक्तों की सुविधा की दृष्टि से पहाड़ी के नीचे भी एक मंदिर में मां खल्लारी की प्राण-प्रतिष्ठा की गई है। यहां आसपास का स्थान प्राकृतिक रूप से जंगल व पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। यहां के प्राकृतिक वातावरण और पौराणिक महत्व ने इसे पर्यटन की दृष्टि से भी उभारा है। इस मंदिर और पहाड़ी के साथ कई कथाएं, किंवदंतियां और घटनाएं जुड़ी हैं जिनके बारे में लोग कम ही जानते हैं।खल्लारी दो शब्दों से मिलकर बना नाम है- खल और अरि; जिसका तात्पर्य है : दुष्टों का नाश करने वाली! जानकार लोगों और उपलब्ध शिलालेखों से ज्ञात होता है कि यह मंदिर सन 1415-16 का है। यह भी कहा जाता है कि यह स्थान तत्कालीन हैहयवंशी राजा हरि ब्रह्मदेव की राजधानी था। इससे पहले यहां आदिवासियों का प्रभुत्व होने की बात जानकार लोग बताते हैं। जब राजा हरि ब्रह्मदेव ने खल्लारी को अपनी राजधानी बनाया तो उन्होंने इसकी रक्षा के लिए यहां मां खल्लारी की मूर्ति की स्थापना की। यहां मिले एक शिलालेख के नौवें श्लोक में मोची देवमाल की वंशावलि और 10वें श्लोक में उसके द्वारा मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख भी मिलता है। यहां चैत्र मास की पूर्णिमा पर पांच दिनों का मेला भरता है जिसमें इस क्षेत्र के अलावा विदर्भ और प. ओडि़शा तक से लोग शिरकत करने पहुंचते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद और पर्यटन व संस्कृति मंत्रालय द्वारा इस स्थान को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के बाद इस मेले का स्वरूप काफी व्यापक हुआ है। यहां के जानकार लोगों का दावा है कि दूर-दूर से मां खल्लारी के दर्शन के लिए यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु भक्तों में से किसी को भी माता के पाषाण रूप में परिवर्तित होने के बाद उनके शृंगारिक रूप में दर्शन नहीं हुए! अलबत्ते, माता के दर्शन अन्य रूपों, यथा वृद्धा अथवा श्वेतवस्त्रधारिणी, में यहां के भक्तों को होते रहने की बात कही जाती है।बेमचा से आईं हैं माताकिंवदंती के अनुसार, महासमुंद के पास के ग्राम बेमचा से माता का आगमन होना माना जाता है। उस समय खल्लारी ग्राम का बाजार पूरे अंचल में काफी प्रसिद्ध था। जनश्रुति यह है कि उन दिनों मां खल्लारी एक नवयुवती का रूप धारण कर यहां बाजार आया करती थीं। एक समय एक बंजारा गोंड़ युवक देवी के रूप-रंग को देखकर मुग्ध हो उनका पीछा करने लगा। देवी की चेतावनी के बाद भी उसने उनका पीछा करना नहीं छोड़ा। अंतत: पर्वत (पहाड़) तक पीछे-पीछे आने पर देवी ने उस युवक को श्राप दे दिया। वह युवक वहीं से कुछ नीचे गिरकर पत्थर के रूप में बदल गया। इस पत्थर को गोंड़ नायक पत्थर के नाम से जाना जाता है। इधर, मानव की बढ़ती पाशविक प्रवृत्ति से क्षुब्ध देवी ने इसी पहाड़ी के ऊपर पाषाण रूप धारण कर यहीं निवास करना शुरू कर दिया। कहा-सुना तो यह भी जाता है कि पहले देवी का रूप पहाड़ी पर स्थित मंदिर के पास के शिलाखंडों से साफ नजर आता था जो बाद में धीरे-धीरे दिखना बंद हो गया। देवी खल्लारी और आसपास के गांवों में आने वाली विपत्ति से आगाह करने पुजारी को आवाज देकर संदेश देती थीं। यहां भी श्रद्धालु यह मानते हैं कि तब एक प्रकाश-पुंज मंदिर से निकलता था! भक्तजन यहां पहाड़ी पर जाकर माता के दर्शन करते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए तब 481 सीढिय़ांं चढऩी होती थीं जिसे 13 खंडों में विभक्त कर भक्तों को सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। अब नागरिकों को सहयोग से यहां 710 नई सीढिय़ां बनाकर दोनों तरफ रेलिंग बना दी गईं हैं। पहाड़ी के नीचे स्थित मंदिर को नीचे वाली माता या राउर माता का मंदिर कहते हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां के पूर्व मालगुजार को देवी ने स्वप्न में आदेश दिया था कि उनकी (देवी की) फेंकी गई कटार नीचे जहां गिरी है, वहीं पर मूर्ति स्थापित कर पूजा शुरू की जाए। चूंकि वृद्ध और शारीरिक रूप से कमजोर भक्त पहाड़ी पर चढ़ नहीं पाएंगे, अत: उन्हें इस मंदिर का दर्शन करने पर भी उतना ही पुण्य मिलेगा जितना पहाड़ी पर दर्शन करने पर। कहते हैं, माता की फेंकी कटार आज भी इस मंदिर में है।पूजा पद्धतिमाता पूजा के ठीक पहले पहाड़ी पर स्थित सिद्धबाबा (भगवान शंकर) की पूजा क्षेत्र के आदिवासी बैगा करते हैं। आदिवासी शासकों के प्रभुत्व के कारण यहां शुरू से ही सिदार जाति के पुजारी मुख्य तौर पर पूजा आदि कराते आ रहे हैं। यहां पर कुछ समय पूर्व तक जारी बलि-प्रथा अब नागरिकों और समाजसेवी संस्थाओं के साथ ही शासन-प्रशासन की पहल पर बंद हो गई है।महाभारत काल से जुड़ावऊपर पहाड़ी पर प्रकृति से जुड़ाव का आनंद तो मिलता ही है, साथ ही यहां अनेक ऐसे स्थल भी हैं जिन्हें महाभारत काल से जोड़कर देखा, कहा-सुना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने वनवास की कुछ अवधि यहां बिताई थी। मां के दर्शन के बाद परिक्रमा करते समय पहले भीम चौरा नाम का विशाल पत्थर दिखता है। यहीं विशालकाय पत्थरों के बीच एक कंदरा है जहां झुकी दशा में मुश्किल से अंदर जाने के बाद दो पत्थरों के बीच लगभग आठ-नौ इंच के अंतर को पार करने वाला व्यक्ति खुद को सौभाग्यशाली मानता है। परिक्रमा के दौरान ही पैरों की आकृति के बड़े निशान दिखते हैं जिन्हें भीम पांव कहा जाता है। इसमें बारहों महीने पानी भरा रहता है। इसी पहाड़ी पर चूल्हे की एक आकृति है। यह है तो गड्ढानुमा, पर हर समय यह सूखा रहता है। कहते हैं, भीम इस चूल्हे पर भोजन पकाया करते थे।लाक्षागृहइधर, उत्तर दिशा की तरफ एक मूर्तिविहीन मंदिर दिखाई पड़ता है। इसे लखेश्वरी गुड़ी या लाखा महल कहा जाता है। किंवदंती है कि महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों को षड्यंत्रपूर्वक समाप्त करने के लिए जो लाक्षागृह बनवाया था, वह यही लखेश्वरी गुड़ी या लाखा महल है। ऐसा मानने की एक वजह यह भी है कि इस लखेश्वरी गुड़ी के अंदर से लगभग दो किलोमीटर लंबी एक सुरंग है जो गांव के बाहर जाकर खुलती है। इस इमारत के पास से गुजरने पर लाख की गंध महसूस की जाती थी, ऐसा लोग कहते हैं।कुछ और भी है खास...0 भीम पांव से दक्षिण-पश्चिम में कुछ दूर पहाड़ी से उतरने पर गज-आकृति की दो विशालकाय शिलाएं नजर आती हैं। इन्हें नायक राजा का हाथी बताया जाता है। खल्लारी में प्रवेश करते समय विद्युत मंडल कार्यालय और स्कूल के पास से देखने पर यह हाथी-हथिनी का जोड़ा नजर आता है।0 भीम चूल्हा के पास कुछ ऊपर की ओर सिद्धबाबा की गुफा है जहां उनकी मूर्ति स्थापित है। देवी के पूजा-विधान की शुरुआत यहां की पूजा के बाद ही होती है।0 भीम चूल्हा के पास ही जल की एक धारा सतत प्रवाहित होती है जो पहाड़ी के अंदर-ही-अंदर से बहकर पहाड़ी की पूर्व दिशा के मध्यभाग में नजर आती है।0 पश्चिम दिशा में नाव की आकृति का एक विशालकाय पत्थर है जिसका एक हिस्सा मैदान की तरफ तो दूसरा हिस्सा सैकड़ों फीट गहरी खाई की तरफ झुका हुआ है। एक छोटे-से पत्थर पर टिका नाव आकृति का यह पत्थर अपने संतुलन के कारण दृष्टव्य है। इसे भीम नाव भी कहते हैं।0 यहीं गस्ति वृक्ष के पास पत्थर मारने से पहाड़ी के आधा फुट व्यास क्षेत्र में अलग-अलग आवाज निकलती है जो दर्शनार्थियों के मनोरंजन का विषय होती है।विकास के काम चल रहेअपने गर्भ में समृद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक महत्ता को समेटे इस मंदिर परिसर में भी विकास के कई काम आकार ले चुके हैं वहीं और भी काम अभी कराए जाने प्रस्तावित हैं। नीचे और ऊपर के मंदिर के साथ ही सीढिय़ों तथा मेलास्थल पर 1986-87 में विद्युतीकरण का काम कराया गया था जिससे अब रात्रि में भी भक्तों को पहाड़ी पर चढऩे में असुविधा नहीं होती। पहाड़ी पर नल-जल योजना के तहत पेयजल आपूर्ति की सुविधा मुहैया कराई गई है। अभी राज्य शासन और नागरिकों के सहयोग से इस परिसर को और सुविधा-संपन्न बनाने की कवायद चल रही है। भक्तों के विश्राम के लिए भी भवन आदि अभी तो हैं, पर इनकी संख्या बढ़ाने की दिशा में भी पहल जारी है। आसपास के ग्रामवासियों द्वारा पिछले कुछ वर्षों से यहां भंडारा का आयोजन किया जा रहा है। इसके अलावा आदर्श विवाह और तीज-त्योहारों का भी धूमधाम से यहां आयोजन किया जाता है। मां खल्लारी मंदिर विकास समिति इस मंदिर परिसर के सर्वांगीण विकास की दिशा में सतत प्रयत्नशील है।
- लेख : सुनील त्रिपाठी, सहायक संचालकरायपुर। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 06 मार्च को अपने कार्यकाल का पांचवा बजट प्रस्तुत किया गया। बजट में विद्यार्थियों से लेकर खिलाड़ियों तक सभी का विशेष ध्यान रखा गया है, जिसमें मिनी स्टेडियम का निर्माण, महिला खेलकूद को प्रोत्साहन एवं विभिन्न खेल अकादमी की स्थापना का प्रावधान किया गया है। राज्य में पारंपरिक खेलों के बढ़ावा दिया जा रहा है। खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्राम स्तरीय खेल प्रतियोगिता से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल स्पर्धाओं के आयोजन के साथ-साथ खिलाड़ियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था के लिए 5 करोड़ रूपए की घोषणा की गई है।इस बजट में राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खेल यथा एडवेंचर स्पोर्ट्स, हॉकी, फुटबॉल, बैडमिंटन, टेनिस, एथलेटिक्स जैसे खेल अकादमी की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इसी तरह शहीद गुंडाधुर तीरंदाजी एवं कायाकिंग व केनोइंग खेल अकादमी की भी स्थापना की जाएगी।तीरंदाजी को राजकीय खेल के तौर पर प्रोत्साहित करने के लिए बस्तर और रायपुर में तीरंदाजी खेल अकादमी की स्थापना की जाएगी। नारायणपुर में मलखम्ब अकादमी और रायपुर में अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन खेल अकादमी की स्थापना का प्रावधान किया गया है।बस्तर जिले में एडवेंचर स्पोर्ट्स अकादमी की स्थापना और कुनकुरी के ग्राम सलियाटोली विकासखण्ड में एडवेंचर स्पोर्ट्स सुविधाओं के विकास के लिए नवीन मद में 3 करोड़ 70 लाख की घोषणा की गई है।प्रदेश के परंपरागत खेलों को बढ़ावा देने के लिए इस वर्ष से छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन की शुरूआत की गई है, जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी वर्ग के महिला एवं पुरूषों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के सफल आयोजन से इन खेलों के प्रति स्थानीय लोगों के रूझान और उत्साह को देखते हुए आगामी वर्ष में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के भव्य आयोजन के लिए इस बजट में 25 करोड़ रूपए का प्रावधान रखा गया है।मुख्यमंत्री द्वारा बजट में राजीव युवा मितान क्लब के लिए 100 करोड़ रूपए तथा राजीव युवा महोत्सव के आयोजन हेतु 08 करोड़ रूपए का प्रावधान रखा गया है।
- -इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में अध्ययनरत देश-विदेश के विद्यार्थियों के लिए ऑफ कैम्पस सेंटर की होगी स्थापना-स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के छात्रों को प्रोत्साहित करने वाला बजटलेख : सुनील त्रिपाठी, सहायक संचालकरायपुर। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने अपने कार्यकाल का पांचवां बजट पेश किया है। प्रदेश के सभी वर्गाें के लोगों को ध्यान में रखकर इस बजट को तैयार किया गया है। बजट में युवाओं से लेकर बुजुर्गाें और महिलाओं तक सभी के लिए विशेष प्रावधान किया है। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के छात्रों के लिए भी मुख्यमंत्री ने महत्वपूर्ण घोषणाएं की है।स्वामी आत्मानंद स्कूलों की संख्या को बढ़ाने के साथ कुछ चयनित महाविद्यालयों में भी आगामी सत्र से अंग्रेजी माध्यम में शिक्षण शुरू करने का निर्णय लिया गया है। साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को शोध कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिए राज्य रिसर्च फेलोशिप योजना प्रारंभ की गई है।बजट के माध्यम से स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों से कक्षा 12वीं उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों को अंग्रेजी माध्यम से ही उच्च शिक्षा निरंतर रखने की सुविधा प्रदान करने की दृष्टि से शिक्षा सत्र 2023-24 से प्रदेश के चयनित महाविद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश में 101 नए आत्मानंद अंग्रेजी विद्यालय खोलने की भी घोषणा की गई है।स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय के तर्ज पर महासमुंद, कोरबा, बिलासपुर और रायगढ़ जिले में अंग्रेजी माध्यम महाविद्यालय के लिए नए सेटअप और प्रति भवन 12 करोड़ की लागत से 4 महाविद्यालय भवन निर्माण किया जाएगा। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कांकेर, बस्तर और अंबिकापुर में पूर्व से स्वीकृत महाविद्यालयों को अंग्रेजी माध्यम में परिवर्तित करते हुए कुल 10 जिलों में अंग्रेजी माध्यम आदर्श महाविद्यालयों का संचालन प्रारंभ किया जाएगा।इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में देश-विदेश से अध्ययन के लिए आने वाले विद्यार्थियों की सुविधा के लिए नवा रायपुर, अटल नगर में ऑफ कैम्पस सेंटर की स्थापना की जाएगी। साथ ही 4 संभागीय मुख्यालयों पर संगीत महाविद्यालय और 6 कन्या महाविद्यालय सहित इस वर्ष कुल 23 नवीन महाविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। राज्य के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मेधावी विद्यार्थियों को शोध कार्य में सहयोग प्रदान करने के लिए राज्य रिसर्च फेलोशिप योजना प्रारंभ की गई।:
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विशेष लेख
सुश्री रीनू ठाकुर, सहायक जनसंपर्क अधिकारीरायपुर, / मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रस्तुत वर्ष 2023-24 के बजट में महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के कल्याण के लिए संवेदनशील पहल की गई है। इसके साथ ही उन्होंने निराश्रितों, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के साथ उभयलिंगी समुदाय का भी विशेष ध्यान रखा है।आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का बढ़ाया मानदेयआंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मांगों को पूरा करते हुए मुख्यमंत्री श्री बघेल ने महिलाओं तथा बच्चों के पोषण एवं टीकाकरण हेतु प्रदेश भर में संचालित 46 हजार 660 आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दी जाने वाली मासिक मानदेय की राशि 6 हजार 500 रूपए प्रति माह से बढ़ाकर 10 हजार रूपए की है। इसी तरह आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मानदेय 3 हजार 250 रूपए से बढ़ाकर 5 हजार और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 4 हजार 500 रूपए से बढ़ाकर 7 हजार 500 रूपए प्रति माह करने का प्रावधान बजट में किया है। बजट के इस प्रावधान से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं तथा मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का होली का उल्लास दोगुना हो गया है। प्रदेश भर की आंगनबाड़ी से जुड़ी महिलाओं में हर्ष की लहर है।मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की राशि बढ़ाकर 50 हजार की गईमुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने संवेदनशील पहल करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटियों के विवाह के लिए संचालित मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना अंतर्गत दी जाने वाली सहायता राशि को 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने की घोषणा बजट में की है। इसके लिए बजट में 38 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। महिलाओं के रोजगार उपलब्ध कराने शुरू होगी कौशल्या समृद्धि योजनाबजट में महिलाओं के आर्थिक समृद्धि और स्व-रोजगार के लिए नई योजनाओं का प्रावधान भी किया है। महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कौशल्या समृद्धि योजना प्रारंभ करने की घोषणा की है। इसके लिए नवीन मद में 25 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए शुरू होगी मुख्यमंत्री बाल उदय योजनाबजट में बाल संप्रेक्षण गृह से बाहर जाने की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की घोषणा करने के साथ ही वहां से बाहर जाने वाले युवक-युवतियों के पुनर्वास के लिए मुख्यमंत्री बाल उदय योजना शुरू करने का प्रावधान किया है। इसके लिए बजट में एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा यूनिफाईड डिजिटल एप्लीकेशन योजना शुरू करने के लिए 5 करोड़ का प्रावधान किया गया है।पोषण, बाल विकास के साथ अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधानबजट में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने पुनर्वास और रोजगार के साथ पोषण, बाल विकास और अधोसंरचना विकास के लिए प्रावधान किया गया है। नगरीय क्षेत्रों में 100 आंगनबाड़ियों के लिए 12 करोड़ रूपए, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के लिए 160 करोड़ रूपए, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के लिए 8 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के लिए 844 करोड़ रूपए, एकीकृत बाल संरक्षण योजना के लिए 124 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।सामाजिक सुरक्षा पेंशन राशि बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की गईमुख्यमंत्री श्री बघेल ने निराश्रितों, बुजुर्गाे, दिव्यांगों एवं विधवा तथा परित्यक्ता महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा करते हुए उनको सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के अंतर्गत दी जाने वाली मासिक पेंशन की राशि 350 रूपए से बढ़ाकर 500 रूपए प्रति माह की है। इससे इन वर्गों को जीवन-यापन के लिए सहारा मिल सकेगा।उभयलिंगी व्यक्तियों के लिए नवा पिल्हर योजना होगी शुरूमुख्यमंत्री ने बजट में उभयलिंगी व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए नई पहल करते हुए नवा पिल्हर योजना शुरू करने की घोषणा की है। इसके अंतर्गत उभयलिंगी व्यक्तियों के शिक्षण-प्रशिक्षण तथा रोजगार हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहायता की जायेगी। इसके लिए बजट में 25 लाख रूपए का प्रावधान किया गया है।सियान हेल्पलाईन सेंटर की स्थापना की जाएगीवरिष्ठ नागरिकों, उभयलिंगी व्यक्तियों, विधवा परित्यक्ता महिलाओं एवं दिव्यांगजनों की समस्याओं के ऑनलाईन समाधान हेतु सियान हेल्पलाईन सेंटर एवं टोल फ्री नंबर की स्थापना के लिए एक करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य केश शिल्पी कल्याण बोर्ड के संचालन हेतु नवीन सेटअप का प्रावधान भी बजट में किया गया है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इस ऐतिहासिक बजट में महिला एवं बाल विकास विभाग हेतु 2 हजार 675 करोड़ रूपए और समाज कल्याण विभाग हेतु 1 हजार 125 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। इसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों, महिलाओं सहित जरूरतमंद, कमजोर वर्गों के लिए भी मुख्यमंत्री श्री बघेल ने व्यापक प्रावधान किया है। मुख्यमंत्री ने इसके माध्यम से ’गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ की परिकल्पना को साकार रूप देने की ओर एक और बड़ा कदम बढ़ाया है और लोक आकांक्षाओं पर खरा उतरते हुए भरोसे का बजट प्रस्तुत किया है। - पुरानी फिल्मों में पुलिस इंसपेक्टर या फिर कमिश्नर का रोल हो, दो कलाकार सबसे ज्यादा फिट बैठे, एक तो अभिनेता जगदीश राज थे और दूसरे थे इफ्तेखार खान। आज हम बात कर रहे हैं अभिनेता इफ्तेखार खान की, जिनकी आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन वर्ष 1995 में इस अभिनेता ने इस संसार को हमेशा के लिए अलविदा कहा।इफ्तेखार खान ने 40 से 90 के दशक तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में खूब सारी फिल्मों में काम किया। वो राजेश खन्ना से लेकर अमिताभ बच्चन तक संग स्क्रीन शेयर करते नजर आए, लेकिन उन्हें 'द रियल पुलिस ऑफ बॉलीवुड' कहा गया। क्योंकि उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पुलिस ऑफिसर का दमदार किरदार निभाया और उनमें जान फूंक दी। एक्टर होने के साथ पेंटर और सिंगर भी थे।इफ्तेखार का जन्म 22 फरवरी 1924 को जालंधर में हुआ था। वो चार भाई और एक बहन में सबसे बड़े थे। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लखनऊ कॉलेज ऑफ आट्र्स से पेंटिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। यानी इफ्तेखार एक्टर होने के साथ-साथ पेटिंग की कला में भी माहिर थे। उन्हें गाने का शौक था और वो फेमस सिंगर कुंदनलाल सहगल से प्रभावित थे! यही वजह थी कि वो 20 साल की उम्र में संगीतकार कमल दासगुप्ता के ऑडिशन के लिए वो कोलकाता चले गए। कमल दासगुप्ता उस समय एचएमवी के लिए काम कर रहे थे। वो इफ्तेखार की पर्सनैलिटी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एमपी प्रोडक्शंस को एक्टर के लिए उनके नाम की सिफारिश की।इफ्तेखार ने साल 1944 में फिल्म 'तकरार' से करियर की शुरुआत की। ये मूवी आर्ट फिल्म्स-कोलकाता के बैनर तले बनी थी। दूसरी तरफ उनकी पर्सनल जिंदगी में उथल-पुथल मची थी। देश के विभाजन के दौरान उनके माता-पिता, भाई-बहन और कई करीबी रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए। इफ्तेखार को भारत में रहना पसंद था, लेकिन दंगों ने उन्हें कोलकाता छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया। वो बीवी और बेटियों संग बंबई (अब मुंबई) चले गए। इस दौरान आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी, लेकिन मुंबई में किस्मत उनका इंतजार कर रही थी।इफ्तेखार को कोलकाता में उनके समय के दौरान एक्टर अशोक कुमार से मिलवाया गया था। यही वजह रही कि मुंबई में बॉम्बे टॉकीज फिल्म मुकद्दर (1950) में एक किरदार के लिए उनसे संपर्क किया गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें ज्यादातर पुलिस के किरदार में देखा गया और पसंद किया गया। उन्होंने 1940 से 1990 के दशक की शुरुआत तक अपने करियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की।इफ्तेखार ने बतौर लीड एक्टर भी काम किया, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पिता, अंकल, ग्रेट-अंकल, दादाजी और पुलिस ऑफिसर, कमिश्नर, न्यायाधीश और डॉक्टर के किरदार निभाए और उन्हें काफी पसंद भी किया गया। उन्होंने 'बंदिनी', 'सावन भादो', 'खेल खेल में' और 'एजेंट विनोद' में निगेटिव रोल भी किया।इफ्तेखार खान फिल्मकार यश चोपड़ा की क्लासिक मूवी दीवार (1975) में अमिताभ बच्चन के करप्ट बिजनेस मेंटर का किरदार निभाया। उन्होंने 'जंजीर' में पुलिस इंस्पेक्टर का दमदार किरदार निभाया। भले ही उनका सीन ज्यादा नहीं था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक्टिंग की, वो बहुत प्रभावशाली थी। 1978 की हिट फिल्म 'डॉन' के लिए भी उन्हें याद किया जाता है। उन्होंने राजेश खन्ना संग भी भी खूब काम किया। वो 'जोरू का गुलाम', 'द ट्रेन', 'खामोशी', 'महबूब की मेहंदी', 'राजपूत' और 'आवाम' जैसी फिल्मों में नजर आए।इफ्तेखार ने कोलकाता की एक यहूदी महिला हन्ना जोसेफ से शादी की थी। हन्ना ने अपना धर्म और नाम बदलकर रेहाना अहमद रख लिया था। उनकी दो बेटियां थीं, सलमा और सईदा। सईदा की 7 फरवरी 1995 को कैंसर से मौत हो गई। बेटी की मौत ने इफ्तेखार को झकझोर दिया था। बेटी के गुजरने के बाद वो बुरी तरह बीमार पड़ गए। बेटी की मौत के एक महीने के अंदर ही 4 मार्च को इफ्तेखार ने भी 71 साल की उम्र में दम तोड़ दिया ।
- विश्व श्रवण दिवस 3 मार्च पर विशेष आलेखरायपुर । श्रवण हानि और बहरेपन की रोकथाम के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों में कान और सुनने की देखभाल को बढ़ावा देना है। हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व श्रवण दिवस की थीम तय करता है। 2023 में विश्व श्रवण दिवस की थीम है - कान और सुनने की देखभाल सभी के लिए! आइए इसे वास्तविकता बनायें ( Ear and hearing care for all! Let’s make it a reality )। बच्चों का समय पर टीकाकरण, पालन-पोषण की बेहतर तकनीक, सामान्य कान विकारों का समय पर निदान और उपचार के जरिये बहरेपन को रोका जा सकता है। बच्चों में जन्मजात बहरेपन की रोकथाम के लिए सुनाई की जांच (Neonatal Screening) जैसे - ओ. ए. ई. और बैरा इत्यादि जन्म के तुरंत बाद आवश्यक रूप से कराने चाहिए।पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं संबद्ध डाॅ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर में ई. एन. टी. (कान-नाक-गला) की एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. मान्या ठाकुर के अनुसार इस विश्व श्रवण दिवस पर स्वस्थ श्रवण के लिए कुछ टिप्स हैं जिन्हें अपनाकर हम अपने सुनने की क्षमता को ताउम्र बरकरार रख सकते हैं:-1. नियमित रूप से अपनी सुनने की क्षमता की जांच करवाएं।2. हियरिंग एड नियमित रूप से और सलाह के अनुसार पहनें।3. शोर वाले वातावरण में ईयर प्लग का उपयोग करें।4. यदि आवश्यक हो तो उचित आकार और अच्छी क़्वालिटी वाले ईयरबड्स अथवा ईयरफोन का उपयोग करें और लंबी अवधि के लिए उपयोग करने से बचें, यदि आवश्यक हो तो 1ः20 के नियम का पालन करें अर्थात 1 घंटे के बाद 20 मिनट का ब्रेक लें।5. ऑटो टॉक्सिक दवाओं से बचें और किसी भी ऑटो टॉक्सिक दवा को लेने से पहले अपने चिकित्सक को सूचित करें।6. ईयरफोन की जगह अच्छी क्वालिटी के हेडफोन को प्राथमिकता दें और संक्रमण से बचने के लिए नियमित रूप से साफ करें।7. कान में दर्द, डिस्चार्ज, वर्टिगो रिंगिंग सेंसेशन होने पर ईएनटी विशेषज्ञ से संपर्क करें।8. छोटी-मोटी ईएनटी बीमारियों के लिए काउंटर पर मिलने वाली दवाओं के सेवन से बचें।9. कान साफ़ करने वाले ईयर बड, पिन, की-रिंग आदि द्वारा खुजली या स्वयं सफाई कान से बचें।10. हवाई यात्रा के दौरान बैरोट्रॉमा से बचने के लिए च्युइंग गम का उपयोग करें, लोजेंज चूसें या नाक के अंदर डीकन्जेस्टेंट ड्राप डालें।
- गुजरे जमाने की अदाकारा नवाब बानो यानी निम्मी का जन्म आज ही के दिन 18 फरवरी 1933 में हुआ। अपने जमाने के नामी हीरो के साथ उन्होंने काम किया। उन्हें अपनी पहली ही फिल्म बरसात राजकपूर के साथ मिली जिसमें उन्होंने प्रेमनाथ की नायिका का किरदार निभाया था। पहली ही फिल्म में एक पहाड़ी लड़की के रोल में उन्हें लोगों ने बहुत पसंद किया और वे रातो रात स्टार बन गईं। उन्हें राजकपूर की खोज कहा जाता है।निम्मी का एक वाकया दुनिया भर में मशहूर है। निम्मी बड़ी खूबसूरत थी और उनकी बोलती आंखें लोगों पर जादू कर देती थीं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता के दौर में कभी हड़बड़ी में फिल्में साइन नहीं की, बल्कि काफी सोच समझकर ही वे फिल्मों का चयन किया करती थीं। एक प्रकार से उन्होंने अपनी शर्तों में फिल्मों में काम किया।50-60 के दशक में निम्मी फिल्मों की सफलता की गारंटी बन चुकी थीं। राज कपूर, दिलीप कुमार, सुनील दत्त जैसे दिग्गज एक्टर्स उनकी एक्टिंग के कायल थे। निम्मी ने एक बार कुछ ऐसा किया कि उनकी तस्वीर सुर्खियों में छा गई और हेडलाइन बनी 'द अनकिस्सड गर्ल ऑफ इंडियाÓ ।दरअसल, हिंदुस्तान की पहली रंगीन फिल्म आन में निम्मी और दिलीप कुमार की जोड़ी थी । आन फिल्म का भारत के अलावा लंदन के रिआल्टो थिएटर में भी प्रीमियर हुआ था । लंदन में प्रीमियर के मौके पर महबूब खान उनकी वाइफ और निम्मी मौजूद थीं । वहां कई विदेशी स्टार्स भी पहुंचे थे । इस मौके पर हॉलीवुड एक्टर एरल लेजली थॉमसन फ्लिन भी मौजूद थे। एरल ने बधाई देते हुए अपने रिवाज के मुताबिक निम्मी का हाथ चूमने की कोशिश की, लेकिन निम्मी पीछे हट गई और कहा कि-मैं एक हिंदुस्तानी लड़की हूं आप मेरे साथ ये सब नहीं कर सकते । अगले दिन न्यूजपेपर में निम्मी की तस्वीर के साथ हेडलाइन बनी -द अनकिस्ड गर्ल ऑफ इंडिया। निम्मी ने साल 2013 में एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें हॉलीवुड फिल्मों के ऑफर भी मिले ,लेकिन उन्होंने मना कर दिया।उन्होंने राज कपूर के साथ फिल्म बरसात के अलावा बावरा, और देव आनंद के साथ फिल्म सजा, आंधियां जैसी फिल्मों की थीं। इसके अलावा अभिनेत्री ने बॉलीवुड के बेहतरीन एक्टर रहे दिलीप कुमार के साथ दीदार, अमर, शमा, चार दिल चार रहन जैसी फिल्मों में काम किया था।निम्मी ने प्रसिद्ध लेखक सैयद अली रजा से शादी की थी। सैयद अली रजा ने ही मदर इंडिया फिल्म लिखी थी। निम्मी की शादीशुदा जिंदगी बहुत खुशहाल थी। इनकी कोई औलाद नहीं हुई तो निम्मी ने अपनी बहन के बेटे को गोद लिया था। 50-60 दशक की मशहूर एक्ट्रेस एक लंबा समय फिल्मी दुनिया में बिताया। 25 मार्च 2020 को निम्मी ने अंतिम सांस ली थी। हिंदी सिनेमा की दिग्गज एक्ट्रेस को दर्शक आज भी याद करते हैं। अपने अंतिम समय तक वे अपने दौर की अभिनेत्रियों के साथ जुड़ी रहीं।
- रीनू ठाकुर, सहा.जनसंपर्क अधिकारीकई पीढ़ियों से भारतीय खान-पान का अहम हिस्सा रहे मिलेट्स कब थाली से गायब हो गए पता ही नहीं चला। मिलेट्स की पौष्टिकता और उसके फायदों को देखते हुए फिर से उसका महत्व लोगों तक पहुंचाने की कोशिश सरकारों द्वारा की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। सामान्यतः मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड भी माना जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं।छत्तीसगढ़ की बात करें तो मिलेट्स यहां के आदिवासी समुदाय के दैनिक आहार का पारंपरिक रूप से अहम हिस्सा रहे हैं। आज भी बस्तर में रागी का माड़िया पेज बचे चाव से पिया जाता है। छत्तीसगढ़ के वनांचलों में मिलेट्स की खेती भी भरपूर होती है। इसे देखते हुए मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर मिलेट मिशन चलाया जा रहा है।छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में मिलेट्स को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी और रागी का ना सिर्फ समर्थन मूल्य घोषित किया गया, अपितु समर्थन मूल्य पर खरीदी भी की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से प्रदेश में कोदो, कुटकी एंव रागी का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर उपार्जन किया जा रहा है। इस पहल से छत्तीसगढ़ में मिलेट्स का रकबा डेढ़ गुना बढ़ा है और उत्पादन भी बढ़ा है।छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नथिया-नवागांव में मिलेट्स का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित किया जा चुका है, जो कि एशिया की सबसे बड़ी मिलेट्स प्रसंस्करण इकाई है। अब तक राज्य के 10 जिलों में 12 लघु मिलेट प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैंै। गौठानों में विकसित किए जा रहे रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में मिलेट्स प्रोसेसिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिलेट्स से बने व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए दोपहर भोज का भी आयोजन किया जा चुका है। रायगढ़ जिले के खरसिया में बीते दिनों प्रदेश के पहले मोबाईल मिलेट कैफे ’मिलेट ऑन व्हील्स का शुभारंभ भी किया है। मोबाइल कैफे का संचालन करने वाली महिला समूह ने महज 8 महीनों में कैफे की मासिक आमदनी 3 लाख रूपये को पार कर गयी है। इस चलते फिरते मिलेट कैफे में रागी का चीला, डोसा, मिलेट्स पराठा, इडली, मिलेट्स मंचूरियन, पिज्जा, कोदो की बिरयानी और कुकीज जैसे लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों, फूड ब्लॉगर्स और युवाओं की यह पहली पसंद बन गए हैं।छत्तीसगढ़ में शुरू हुए मिलेट मिशन का मुख्य उद्देश्य जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रदेश में मिलेट (कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार इत्यादि) की खेती के साथ-साथ मिलेट के प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त दैनिक आहार में मिलेट्स के उपयोग को प्रोत्साहित कर कुपोषण दूर करना है। प्रदेश में आंगनबाड़ी और मिड-डे मील में भी मिलेट्स को शामिल किया गया है। स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में मिलेट्स से बनने वाले व्यंजन परोसे जा रहे है। इनमें मिलेट्स से बनी कुकीज, लड्डू और सोया चिक्की जैसे व्यंजनों को शामिल किया गया है।छत्तीसगढ़ में मिलेट्स की खेती के लिए राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है।प्रदेश में कोदो, कुटकी और रागी की खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। मिलेट उत्पादक किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ भी दिया जा रहा है। इस किसानों को भी 9000 रूपए प्रति एकड़ की मान से आदान सहायता दी जा रही है।आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है। सीएसआईडीसी ने मिलेट आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ चुंनिदा ब्लाॅक में भूमि, संयंत्र एवं उपकरण पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की योजना पेश की है। उम्मीद है कि पीढ़ियों से हमारे स्वाद और सेहत का खजाना रहे मिलेट्स का स्वस्थ जीवन शैली के लिए महत्व को लोग समझेंगे और एक बार फिर यह हमारी दैनिक जीवन का हिस्सा होगा।
- हिंदी फिल्मों के सबसे खतरनाक खलनायकों में प्राण का नाम पहले लिया जाता है। हीरो से खलनायक और फिर चरित्र भूमिकाओं में प्राण ने खूब वाहवाही बटोरी। प्राण का जन्म 12 फरवरी साल 1920 में लाहौर में हुआ था।प्राण को अभिनय नहीं बल्कि फोटोग्राफी का शौक था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी 'ए दास एन्ड कंपनी' में प्रेक्टिस भी की थी। बॉलीवुड में कदम रखने से पहले प्राण ने आठ महीने तक मरीन ड्राइव के पास स्थित एक होटल में काम किया था। इन पैसों से वह अपना घर चलाते थे। साल 1940 में लेखक मोहम्मद वली ने जब पान की दुकान पर प्राण को खड़े देखा तो पहली नजर में ही उन्होंने अपनी पंजाबी फिल्म 'यमला जट' के लिए उन्हें बतौर हीरो साइन कर लिया। इसके बाद प्राण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।प्राण ने लाहौर में 1942 से 1946 तक काम किया। चार साल में 22 फिल्मों में काम किया। प्राण को हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक 1942 में आई फिल्म 'खानदान' में मिला। दलसुख पंचोली की इस फिल्म में उनकी अभिनेत्री नूरजहां थीं। इसके बाद विभाजन हुआ और वह भारत आ गए। विभाजन से फिल्म इंडस्ट्री काफी प्रभावित हुई थी। ऐसे में प्राण ने दोबारा अपना फिल्मी सफर शुरू करने की ठानी और साल 1948 में देवानंद की फिल्म 'जिद्दी' में काम किया। हिंदी फिल्मों में उन्हें बतौर विलेन पहचान मिली।फिल्म इंडस्ट्री में प्राण का लगभग छह दशक लंबा करियर रहा है और इस दौरान उन्होंने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। 'मधुमति', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'उपकार', 'शहीद', 'पूरब और पश्चिम', 'राम और श्याम', 'जंजीर', 'डॉन', 'अमर अकबर एंथनी' जैसी सुपरहिट फिल्मों में प्राण ने शानदार काम किया। अपने समय के वह एक चर्चित विलेन थे। फिल्मों में वह अपने किरदारों को एक अलग रूप दे देते थे। प्राण अपने अभिनय के साथ-साथ डायलॉगबाजी के लिए भी बहुत मशहूर हुए।प्राण साहब ने साल 1972 में फ़िल्म 'बेइमान' के लिए बेस्ट सपोर्टिग का फ़िल्मफेयर अवॉर्ड लौटा दिया था, क्योंकि उस साल आई कमाल अमरोही की फ़िल्म 'पाकीजा' को एक भी पुरस्कार नहीं मिले थे। पुरस्कार लौटा कर प्राण ने अपना विरोध जताया कि 'पाकीजा' को अवॉर्ड न देकर फ़िल्मफेयर ने अवार्ड देने में चूक की है! ऐसे अभिनेता आज के समय में दुर्लभ हैं!अभिनेता और डायरेक्टर मनोज कुमार ने प्राण के अभिनय के कुछ और रंगों से हमें परिचित कराया! उन्होंने ही प्राण को विलेन के रोल से निकालकर पहली बार 'उपकार' में अलग तरह के किरदार निभाने का मौका दिया। उसके बाद प्राण कई फ़िल्मों में ज़बर्दस्त चरित्र या सहायक अभिनेता के रूप में उभर कर सामने आये!प्राण साहब यारों के यार कहे जाते थे! अभिनेता और निर्देशक राज कपूर की फ़िल्म 'बॉबी' में काम करने के लिए प्राण ने महज एक रुपये की फीस ही ली थी, क्योंकि उस दौरान राज कपूर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। दरअसल 'बॉबी' से पहले अपनी फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' बनाने के लिए राजकपूर अपना सारा पैसा लगा चुके थे। यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल रही जिसके बाद राजकपूर भयंकर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। फिर 'बॉबी' से वो अपने नुकसान की भरपाई की उम्मीद कर रहे थे,जिसके लिए प्राण ने राजकपूर के लिए इस फ़िल्म में महज एक रूपये में काम करना स्वीकार किया!प्राण को हिंदी सिनेमा में उनके सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए साल 2001 में तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण और साल 2013 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और से नवाजा गया था। इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों ने दिवंगत अभिनेता प्राण को 'विलेन ऑफ द मिलेनियम' के नाम से नवाजा। 12 जुलाई 2013 में 93 साल की उम्र में प्राण ने इस दुनिया को अलविदा कहा ।
- आलेख- डॉ.दिनेश मिश्रपिछले अनेक वर्षों से अयोध्या के सम्बंध में ढेर सारे,लेख,रिपोर्ट, डॉक्युमेंट्री, आंदोलनों की खबरें देखते पढ़ते, जब इस बार के उत्तर प्रदेश प्रवास में मुझे अयोध्या प्रवास का अवसर मिला तो मैं क्षण भर में तैयार हो गया. क्योंकि मेरे मन में अनेक जिज्ञासाएँ थीं एक प्राचीन नगर,प्राचीन कोशल राज्य की राजधानी,उससे जुड़े अनेक किस्से कहानियाँ ,हिन्दू धर्मावलंबियों के आराध्य श्री राम की जन्मभूमि,पहले कैसी रही होगी और वर्तमान में कैसे बदलाव आ रहे होंगे आदि आदि.मेरे एक मित्र जो अयोध्या में ही शासकीय सेवा में है उनसे भी चर्चा हुई तो उन्होंने कहा आप अयोध्या जी बिलकुल आइये.मैं आपके साथ वहाँ हर जगह चलूँगा और साथ ही चर्चा भी करते रहेंगे.अयोध्या उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण धार्मिक शहर है जो सरयू नदी के किनारे बसा है .यह साकेत, अवधपुरी, कोशल जनपद के नाम से भी वर्णित है .यहाँ सूर्यवंशी/रघुवंशी राजाओं का राज्य था जिनके कुल में श्रीराम हुए थे.लखनऊ से अयोध्या करीब 140 किलोमीटर है, 28 जनवरी को सबेरे सबेरे हम सपरिवार कार से निकले , लखनऊ से बाराबंकी होते हुए अयोध्या जनपद में प्रवेश करने पर अयोध्या विकास प्राधिकरण का स्वागतम का बोर्ड नजर आने लगता है, सड़क अच्छी है,और अयोध्या जनपद में थोड़ा अंदर जाते ही सड़क के बीच डिवाइडरों में श्री राम,के बाल रूप की प्रतिमा,हनुमान,सहित एक के बाद एक प्रतिमाएं नजर आने लगती हैं .कुछ समय के बाद हम अयोध्या स्थित नयाघाट पहुंच गए.वहाँ से हम एक स्थानीय मित्र के साथ आगे निकले जिसने हमें वहाँ के दर्शनीय स्थानों के सम्बंध में बताना आरम्भ किया .अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर कहा जा सकता है .अयोध्या में सरयू नदी के तट पर एक बड़ा घाट नयाघाट है ,जिसका सौंदर्यीकरण किया गया है, जिसमें स्नान,नौका विहार की सुविधा है.यहीं शाम को सरयू नदी की आरती होती है जिसमे काफी जनसमूह उपस्थित रहता है.नयाघाट से राम की पैड़ी शुरू होती है राम की पैड़ी सरयू नदी पर बने घाटों की श्रृंखला है, जिसमे एक के बाद एक घाट बने हैं. वहीं पर श्री राम के पुत्र कुश द्वारा बनवाया नागेश्वर नाथ मंदिर, तथा पास ही त्रेता के ठाकुरका मंदिर ,जो कि बताया जाता है , श्री राम के अश्वमेध यज्ञ से सम्बंधित है , खूबसूरत रीवर फ्रंट तथा दूसरी तरफ़ उद्यान बना है . नया घाट पर ही लता मंगेशकर चौक है, जिसका लोकार्पण कुछ दिनों पूर्व हुआ है,विश्व विख्यात गायिका लता मंगेशकर की स्मृति में बने इस चौक में 40 फ़ीट ऊंची वीणा की खूबसूरत प्रतिमा है चौक के बीच में चारों ओर 92 कमल के आकार के पत्थर के फूल लगाए गए हैं जो दिवंगत लता मंगेशकर की उम्र को दर्शाते हैं.राम की पैड़ी से यहीं से अयोध्या के मंदिरों की श्रृंखला शुरू हो जाती है,श्री राम की पैड़ी से होते हुए मुख्य सड़क पर आप चलते जाइये उसी मार्ग पर अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें पुराने महल,भवन और अनेक मंदिरों की श्रृंखला है.अयोध्या में अभी राम पथ के लिए यहाँ सड़क चौड़ीकरण का काम भी जोरों से चल रहा है .कुछ दूर जाने पर गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति में बना तुलसी उद्यान नजर आता है जहाँ तुलसीदास की विशाल प्रतिमा लगी है.कुछ दूर पर अलग अलग दर्शनीय स्थल दिखते जाएंगे यही रास्ता पथ राम जन्मभूमि स्थल तक जाता है, जहाँ राम मंदिर निर्माण कार्य चल रहा है.राम की पैड़ी से कुछ दूरी पर एक टीले पर पर हनुमान गढ़ी है जो काफी ऊंचाई पर बनी है .वहॉ भी दर्शनार्थियों की भीड़ लगी थीसड़क के दोनों ओर मिठाई, पुष्प, माला,फ़ोटो, सिंदूर की दुकानें लगी हुई थीं. हनुमान गढ़ी से कुछकरीब सौ कदम की दूरी पर राजा दशरथ का विशाल महल बना हुआ है. जो दर्शनार्थियों के आकर्षण का एक केंद्र है,आगे चलते जाने पर पुरातन राजगद्दी भवन ,राम कचहरी भवन,भरत, लक्ष्मण ,के नाम पर प्राचीन भवन है .इसके पहले दाहिनी ओर कनक भवन नामक ऐतिहासिक महल है जो अपनी वास्तुकला के कारण दर्शनार्थियों के आकर्षण का एक और केंद्र है.इस भवन के पास हीनजदीक में सीता की रसोई भवन हैं.जहां रसोई बनाने के समान भी प्रतीकात्मक रूप से रखे हैंराम पथ पर ही कुछ दूर और आगे चलने पर सड़कों के किनारे लॉकर रखे हुए दिखाई देते है, जहाँ आगंतुकों से मोबाइल, पर्स, आदि समान रखवाया जाता है क्योंकि मंदिर निर्माण स्थल में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं ले जाई जा सकती.,सुरक्षा के लिए अनेक स्थानों पर चेकिंग होती है,सुरक्षा कर्मी मुस्तैदी से अपना काम करते दिखे, जो लाइन बना कर आगे भेज रहे थे जिनमें हिन्दू ,मुस्लिम दोनों ही थे.कुछ दूर आगे चलने पर एक स्थान पर श्री राम की प्रतिमा दर्शनार्थ रखी हुई है, अभी उन्ही का दर्शन कराया जाता है कुछ दूर आगे चलने पर एक स्थान पर खुदाई में निकले पुराने अवशेष दर्शनार्थ रखे हुए हैं, दर्शनार्थियों को लाइन से जाने दिया जा रहा था.हमने देखा अयोध्या में अनेक नेत्र चिकित्सालय है, जो चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित हैं जो निशुल्क शिविरों का संचालन करते हैं, अयोध्या पारम्परिक रूप से परस्पर सौहार्द की नगरी रही है .जब देश में छोटे छोटे मामलों को लेकर आपसी तनाव हो जाता है तब भी वहाँ आम तौर पर शांति रहती है . हमें अयोध्या के इतिहास वर्तमान के बारे में जानकारी देने वाला व्यक्ति संतोष कुमार थे,वहीं तो दर्शनार्थियों को राम जन्मभूमि में भेजने के लिए व्यवस्था बनाने वालों में पुलिस कर्मियों में जावेद खान भी ड्यूटी पर थे,जो तन्मयता से कार्यरत थे.मेरे साथ रहे मित्र ने बताया किसी अन्य धर्म के दर्जी का भगवान राम की मूर्तियों के लिए वस्त्र सिलना आभूषण बनाना वहीं दूसरी ओर किसी हिन्दू का दूसरे धर्म के कार्यक्रम में मदद करना आम बात है. आपसी सहयोग और सद्भाव यहाँ की विरासत है.जो सदैव कायम रहती है.इसके अतिरिक्त अमावा राममंदिर,अनेक छोटे बड़े मंदिर, मणि पर्वत, बड़ी देवकाली ,जैन श्वेतांबर मंदिर,गुलाब बाड़ी ,गुप्तार घाट नन्दी ग्राम भरतकुंड आदि दर्शनीय स्थल हैं.लगभग सभी जगह बंदरों की टोलियां उछल कूद करती नजर आयी.कुछ आगंतुक उन्हें खाद्य सामग्री भी देते दिखाई पड़े.धार्मिक नगरी होने के साथ ही अयोध्या में अनेक अस्पताल, होटल,स्कूल सहित आधुनिक आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध होने लगी है.मेरा बाद में वहाँ नेत्र चिकित्सालयों में भी जाना हुआ ,चिकित्सको ,शिक्षकों से भी मुलाकात ,चर्चा हुई,उन्हें वैज्ञानिक जागरूकता,अंधविश्वास निर्मूलन सम्बंधित किताबें भेंट,व चर्चा की.और वापस लौट आए.डॉ.दिनेश मिश्रनेत्र विशेषज्ञअध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति छत्तीसगढ़
- -ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान-उत्खनन में यहाँ पर पाए गए हैं प्राचीन बौद्ध मठ-सिरपुर महोत्सव में दिखती है कला व संस्कृति की अनोखी झलकमनोज सिंह, सहायक संचालकरायपुर । सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में महानदी के तट स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीपुर है यह एक विशाल नगर हुआ करता था तथा यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। सोमवंशी नरेशों ने यहाँ पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान है। उत्खनन में यहाँ पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाये गये हैं।अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। भारतीय इतिहास में सिरपुर अपने धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का केन्द्र था और वर्तमान में भी ये देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।सिरपुर महोत्सव का आयोजनसिरपुर के एतिहासिक महत्व को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से प्रत्येक वर्ष यहां पर सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल सिरपुर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का हर किसी को इंतजार रहता है। रविवार को खाद्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का शुभारंभ करते हुए सभी प्रदेश वासियों को माघी पूर्णिमा सिरपुर महोत्सव की शुभकामनाएं दी हैं।गंधेश्वर महादेव का मंदिरसिरपुर का एक अन्य मंदिर गंधेश्वर महादेव का है। यह महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। कहा जाता है कि चिमणाजी भौंसले ने इस मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया था। सिरपुर से बौद्धकालीन अनेक मूर्तियाँ भी मिली हैं। जिनमें तारा की मूर्ति सर्वाधिक सुन्दर है। सिरपुर का तीवरदेव के राजिम-ताम्रपट्ट लेख में उल्लेख है। 14वीं शती के प्रारम्भ में, यह नगर वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा पर स्थित था। 310 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल की ओर कूच करते समय सिरपुर पर भी धावा किया था, जिसका वृत्तान्त अमीर खुसरो ने लिखा है।आधुनिकता के दौर में बौद्ध विरासत, लोककला एवं संस्कृति का केंद्रसिरपुर महोत्सव आधुनिकता के दौर में भी अपनी प्राचीन संस्कृति और भव्यता को बनाये हुए है। युवा पीढ़ी को यहाँ की बौद्ध विरासत तथा लोककला एवं संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। सिरपुर लोगों की आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है जिसे देखने और महसूस करने के लिए देश विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य में हर तरफ विकास के काम हो रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्य के लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना बनायी है जिससे स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहन मिल रहा है।
- -हाफ बिजली बिल योजना : 42 लाख उपभोक्ता हो रहे लाभान्वित-कृषक जीवन ज्योति योजना : 6 लाख से ज्यादा किसानों को मिला 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान-बीपीएल के 16.82 लाख बिजली उपभोक्ताओं को हर महीने 30 यूनिट बिजली निःशुल्करायपुर /बिजली उत्पादन में अग्रणी छत्तीसगढ़ राज्य में 65 लाख से ज्यादा परिवारों को रियायती बिजली का लाभ मिल रहा है। इन परिवारों में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर लागू की गई हॉफ बिजली बिल योजना से लाभान्वित 41.94 घरेलू बिजली उपभोक्ता, 16.82 लाख बी.पी.एल बिजली उपभोक्ता, 6.26 लाख से ज्यादा किसान शामिल हैं। हाफ बिजली बिल योजना के अंतर्गत घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह की गई 400 यूनिट तक की बिजली की खपत पर प्रभावशील विद्युत की दर के आधार पर आधे बिल की राशि की छूट दी जा रही है। हाफ बिजली बिल योजना में चार वर्षां में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 3236.59 करोड़ रूपए की छूट दी जा चुकी है। इसी तरह कृषक जीवन ज्योति योजना के तहत किसानों को तीन अश्वशक्ति तक के कृषि पंप के बिजली बिल में 6000 यूनिट प्रतिवर्ष तथा 3 से 5 अश्वशक्ति के कृषि पंपों के बिजली बिल में 7500 यूनिट प्रतिवर्ष की छूट दी जा रही है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसानों द्वारा खेती में उपयोग की जा रही बिजली को निःशुल्क रखा गया है। बी.पी.एल. बिजली उपभोक्ताओं को प्रति माह 30 यूनिट बिजली निःशुल्क दी जा रही है।पिछले चार सालों में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं और बी.पी.एल.बिजली कनेक्शनधारी हितग्राहियों को 1973 करोड़ रूपए से ज्यादा की छूट मिल चुकी है। साथ ही कृषक जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत पिछले चार सालों में 6.26 लाख से ज्यादा किसानों को बिजली पर 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान दिया जा चुका है।हाफ बिजली बिल योजना से लगभग 42 लाख परिवार लाभान्वितप्रदेश में संचालित हाफ बिजली बिल योजना के अंतर्गत घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह की गई 400 यूनिट तक की बिजली की खपत पर प्रभावशील विद्युत की दर के आधार पर आधे बिल की राशि की छूट दी जा रही है। हाफ बिजली बिल योजना में अब तक घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 3236.59 करोड़ रूपए की छूट दी जा चुकी है। पिछले चार सालों में हाफ बिजली बिल योजना के उपभोक्ताओं की संख्या 25.23 लाख से बढ़कर अब 41.94 लाख हो गई है। योजना का लाभ लेने की शर्त यह है कि हाफ बिजली बिल सुविधा का लाभ लेने के लिए उपभोक्ता के बिजली बिल की बकाया राशि शेष नहीं होनी चाहिए। लेकिन यदि ऐसे उपभोक्ता पूर्व की बिल की बकाया राशि का संपूर्ण भुगतान करते हैं, तो भुगतान की तारीख से वे योजना का लाभ लेने के लिए पात्र हो जायेंगे।बीपीएल परिवारों को निशुल्क विद्युत कनेक्शनगरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को दिए गए विद्युत कनेक्शनों में 30 यूनिट प्रति कनेक्शन प्रतिमाह की दर से निशुल्क विद्युत प्रदाय किया जा रहा है। योजना के तहत 4 वर्षां में बीपीएल विद्युत कनेक्शन धारकों को 1973 करोड़ रूपए की छूट दी गई है। राज्य में 16.82 लाख बीपीएल परिवार को एकलबत्ती योजना का लाभ मिल रहा है।किसानों को 10,400 करोड़ रुपए की छूटकृषक जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत स्थायी एवं अस्थायी बिजली कनेक्शन वाले किसानों को तीन अश्वशक्ति तक के कृषि पंप के बिजली बिल में 6000 यूनिट प्रतिवर्ष तथा 3 से 5 अश्वशक्ति के कृषि पंपों के बिजली बिल में 7500 यूनिट प्रतिवर्ष की छूट दी जा रही है। योजना में फ्लैट रेट का विकल्प चुनने वाले किसानों को उनके द्वारा की गई विद्युत खपत की कोई सीमा न रखते हुए मात्र 100 रूपए प्रति अश्वशक्ति की दर से बिजली बिल का भुगतान करना होगा। योजना में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए विद्युत खपत की कोई सीमा नहीं रखी गई है। योजना में कृषकों को 5 अश्वशक्ति द्वितीय पंप के लिए 200 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह, 5 अश्वशक्ति से अधिक प्रथम एवं द्वितीय पंप के लिए 200 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह, 5 अश्वशक्ति एवं 5 अश्वशक्ति से अधिक तृतीय एवं अन्य पंप के लिए 300 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह की दर से बिल भुगतान के लिए सुविधा प्रदान की गई है। योजना में शासन की ओर से पिछले चार वर्षां में किसानों को 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान दिया गया है। वर्तमान में 6.26 लाख पंप उपभोक्ताओं को छूट दी जा रही है।
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विशेष लेख : राजिम माघी पुन्नी मेला
रायपुर। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम में तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहाँ मुख्य रूप से तीन नदियां बहती हैं, जिनके नाम क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोंढूर है। संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है। राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, वर्ष 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया जा रहा है। यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के तत्वाधान में होता है। मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है। पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं तथा धुनी रमाते हैं। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। इस वर्ष 5 फरवरी माद्य पूर्णिमा से 18 फरवरी 2023 महाशिवरात्रि तक राजिम माद्यी पुन्नी मेला आयोजित किया गया है। राजिम माघी पुन्नी मेला में विभिन्न जगहों से हजारांे साधू संतों का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आदि आते हैं, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते हैं, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते हैं और अपना जीवन धन्य मानते हैं। लोगो में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती, जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है। राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है। राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है। प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। राजिम माघी पुन्नी मेला प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन होते हैं।
- 31 जनवरी: पुण्यतिथि पर विशेषआलेख- मंजूषा शर्माजब भी भारतीय सिने जगत में खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों की बात होगी, तो इसमें एक नाम अभिनेत्री और गायिका सुरैया का भी टॉप पर रेहाग। उन्हें मल्लिका - ए- हुश्न कहा जाता था। उनको इस संसार से विदा हुए आज 19 साल हो गए हैं। 31 जनवरी 2004 को उन्होंने मुंबई में अंतिम सांस ली।सुरैया का जब भी जिक्र होता है, तो सदाबहार अभिनेता देवआनंद के साथ उनकी प्रेम कहानी की भी याद ताजा हो जाता है। अपने जमाने की यह बड़ी खूबसूरत जोड़ी थी। उन्होंने साथ में फिल्में की और उनके बीच प्यार भी हुआ। दोनों ने जीवन भर साथ रहने का सपना देखा पर सुरैया के परिवार वालों ने मजहब का वास्ता देकर सुरैया के कदम रोक लिए। सुरैया परिवार वालों के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी इसलिए उन्होंने भी अपने प्रेम को अपने दिल में सदा के लिए दफ्न कर दिया और देवसाहब से किनारा कर लिया। नाराज देवआनंद ने बेरुखी अपना ली और कल्पना कार्तिक से शादी कर जिंदगी में आगे बढ़ गए, लेकिन सुरैया वहीं खड़ी रह गईं। अपने प्रेम की याद में उन्होंने ताउम्र शादी नहीं की। सुरैया की जिंदगी जैसे उसी रिश्ते पर ठहर गई थी। जीवन के अंतिम दिनों में परिवार के नाम पर एक खालीपन उनकी जिंदगी का हिस्सा था। उन्होंने अपने अंतिम करीब छह महीने अपने वकील धीमंत ठक्कर के परिवार वालों के साथ गुजारे।ब्रेकअप के बाद देवआनंद ने फिर कभी सुरैया की खैरखबर नहीं ली। यहां तक कि सुरैया की अंतिम यात्रा में भी वे शामिल नहीं हुए। लोगों ने इसे एक बार फिर मोहब्बत की हार कहा।खूबसूरत एक्ट्रेस सुरैया उस दौर की सबसे महंगी हीरोइन भी थीं। वे काफी सुरीली थी और अपने गाने भी खुद गा रही थी, जो लोकप्रिय भी हो रहे थे। दिलीप कुमार जैसे एक्टर की भी ख्वाहिश थी कि वो सुरैया के साथ काम करें। दोनों को लेकर फिल्म शुरू भी हुई, लेकिन कहा जाता है कि पहले ही सीन की शूटिंग से सुरैया इतना नाराज हुईं कि फिर उन्होंने कभी दिलीप कुमार के साथ काम नहीं किया।सुरैया अपनी सुरीली आवाज के लिए जानी गईं। कई दिग्गज हस्तियां भी उनके प्रशंसकों की सूची में शुमार रहीं। इनमें एक नाम देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी था। पंडित नेहरू एक्ट्रेस-सिंगर सुरैया के बहुत बड़े प्रशंसक थे। रिपोट्र्स के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू ने खुद सुरैया के सामने इस बात का जिक्र किया था। कई रिपोट्र्स में यह दावा किया गया कि इसका खुलासा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक कार्यक्रम के दौरान खुद सुरैया के सामने किया था।सुरैया ने कई हिट फिल्में दी, लेकिन वर्ष 1954 में रिलीज हुई उनकी फिल्म 'मिर्जा गालिब' लोगों को बहुत पसंद आई। इस फिल्म में उन्होंने अपने सारे गाने खुद गाए। फिल्म में उनके हीरो भारत भूषण थे। यह फिल्म मशहूर शायर मिर्जा गालिब की जिंदगी पर आधारित थी, जिसे सोहराब मोदी ने निर्देशित किया था। इस फिल्म में सुरैया ने तवायफ मोती बेगम का किरदार निभाया और दिग्गज अभिनेता भारत भूषण मिर्जा गालिब की भूमिका में थे। कहा जाता है कि इस फिल्म में पंडित जवाहरलाल नेहरू को सुरैया की एक्टिंग खूब पसंद आई। उस समय वह देश के प्रधानमंत्री थे। सुरैया ने फिल्म 'मिर्जा गालिब' में करीब पांच गजलों को अपनी आवाज दी थी। इसमें सबसे ज्यादा पसंद की गई गजल - ये ना थी हमारी किस्मत ....।सुरैया ने अपनी गायकी की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से की थी और वे बच्चों के लिए गाती थी। एक बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया को गाते संगीतकार नौशाद ने सुना। सुरैया के गाने का अंदाज नौशाद साहब को बहुत पसंद आया। इसके बाद उन्होंने फिल्मकार कारदार साहब की फिल्म शारदा में सबसे पहले सुरैया को गाने का मौका दिया। 1936 से 1963 तक सुरैया ने फिल्मों में काम किया था। खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बना ली थी।
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-मेजर जनरल (रि.) अशीम कोहली
हमारी पृथ्वी अब8अरब लोगों का घर है। दिलचस्प बात यह है कि इसमें सबसे बड़ा योगदान भारत का है जो इस साल चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। इस बीच विश्व आर्थिक मंच से एक बुरी खबर आई है कि इसी साल पूरी दुनिया में मंदी अपना पांव पसार लेगी। प्राइसवाटर कूपरमैन की रिपोर्ट के अनुसार अगला एक साल बेहद कठिन रहेगा। इसके मुख्य कारणों में चीन समेत अनेक देशों में कोविड-19 महामारी नियंत्रित न हो पाना और रूस-यूक्रेन युद्ध है। इस मंदी का असर भारत पर भी पड़ेगा। लगभग 140 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी बचाने और विकास दर आगे बढ़ाने की चुनौती रहेगी तो देशवासियों की एकजुटता ही समाधान देगी, जो राष्ट्र के प्रति समर्पण एवं आपसी प्रेम और विश्वास से संभव है। हमने देखा है कि पाकिस्तान के खिलाफ 1965, 1971 और करगिल युद्ध हो या संसद और मुंबई में आतंकवादी हमला, पूरा देश एकजुट हो गया। देशवासियों ने तब तिरंगा अपने हाथ में लेकर राष्ट्र की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की शपथ ली थी।
मैंने किताबों में पढ़ा है कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का 18 महीने का कार्यकाल चुनौतियों से भरा था। उस समय भोजन का भारी संकट था, चीन से शिकस्त के बाद भारत का मनोबल उठाने की चुनौती थी लेकिन अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमला बोल दिया। गरीबी के कारण भारत एक और युद्ध का सामना करने की स्थिति में नहीं था लेकिन शास्त्री जी के“जय जवान – जय किसान”नारे को देशवासियों ने पूर्ण समर्थन दिया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान बुरी तरह हार गया। यहां तक कि भारतीय सेना लाहौर में प्रवेश कर गई। शास्त्री जी ने कब्जा किये हुए क्षेत्र को लौटाने से मना कर दिया तब विश्व की दोनों महाशक्तियां अमेरिका और रूस ने मिलकर ताशकंद समझौते का फॉर्मूला निकाला।
शास्त्री जी के समय ही आर्थिक मोर्चे पर भी भारत को अलग ताकत मिली। हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने गेहूं उत्पादन और डॉ. वर्गीज कुरियन ने श्वेत क्रांति के बीज बोए। उनसे पहले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने बांध, भवन और मूलभूत ढांचा निर्माण उद्योग को बढ़ावा देकर देश के विकास को स्थायी आधार दिया।
90 के दशक के बाद दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी का आगमन हुआ, आवासीय भवन निर्माण में तेजी आई, ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर देश बढ़ा और आज डिजिटल करेंसी के दौर में हम पहुंच गए हैं। भारत अब अक्षय ऊर्जा एवं बैटरी से चलने वाली गाड़ियों को मुख्यधारा में लाने के लिए गंभीर पहल कर रहा है। समय, काल और परिस्थितियां किसी भी राष्ट्र के विकास के महत्वपूर्ण कारक हैं। कोविड-19 आने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी पर भी ब्रेक लगा लेकिन महामारी पर नियंत्रण के बाद भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में शामिल हो गया। आज देश को एकजुट समर्थन की जरूरत है ताकि हमारे विकास की रफ्तार पर कोई ग्रहण न लगे। इसलिए अब हाथों में हाथ डालकर तिरंगे की प्रेरणा से राष्ट्रीय एकता को अपनी ढाल बनाने की आवश्यकता है। तिरंगा ही एकमात्र माध्यम है जो जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, बोली और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर एक-एक देशवासी को आपस में जोड़ता है। यही वजह है कि फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने देशवासियों को जोड़ने के लिए अपनी वेबसाइट के माध्यम से राष्ट्र के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करने के लिए शपथ अभियान चला रखा है। हमारा प्रयास है कि प्रत्येक देशवासी यह समझें कि भारत सबसे पहले है और हमें इसे मजबूत बनाना है। हम चाहे जिस भी जगह पर हों और जो भी काम कर रहे हों, हमें अपने व्यक्तिगत दायित्व को राष्ट्र के प्रति दायित्वों से जोड़कर अपने सपनों के भारत का निर्माण करना है।
पिछले वर्ष देश के प्रति प्रेम का भाव जगाने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया और अगले 25 साल अमृत काल के रूप में परिभाषित किये गए, जिसमें हमें भारत को अग्रणी राष्ट्र बनाना है। 23 जनवरी 2004 को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद देशवासियों को साल के 365 दिन पूरे सम्मान के साथ तिरंगा फहराने की जो आजादी मिली, वो राष्ट्र को मजबूत करने के एक दायित्व के रूप में मिली। मैं इसे शुभ संकेत मानता हूं कि हमारा तिरंगा आज सार्वजनिक अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम बन गया है।
हमारा देश विविधताओं में एकता का देश है तो इस एकता के पीछे हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है। देशवासियों से मेरी अपील है कि तिरंगे में निहित देशभक्ति की भावना को घर-घर पहुंचाने के लिए फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने राष्ट्र के प्रति समर्पण की शपथ का जो अभियान चलाया है, वे उसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। देश को आजादी दिलाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति यह एक सच्ची श्रद्धांजलि और देश को विकास पथ पर अग्रसर करने वाले महान वैज्ञानिकों, समाज सेवियों, नीति निर्माताओं के योगदान के प्रति आभार होगा। हम 74वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं तो आइये हम शपथ लें देश के लिए, अपने राष्ट्रीय ध्वज के लिए। जय हिन्द
(लेखक फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी हैं) - मेरा नाम जोकर, आवारा, श्री 420 जैसी फिल्मों से दर्शकों का मनोरंजन करने वाले राज कपूर साहब ने हिन्दी सिनेमा में एक नया अध्याय लिखा है। राज कपूर ने अभिनय के साथ-साथ डायरेक्शन, प्रोडक्शन और राइटिंग में हाथ आजमाया और वो इसमें कामयाब भी रहे। तीन राष्ट्रीय पुरस्कार...11 फिल्मफेयर पुरस्कार.. पद्मभूषण...दादा साहब फाल्के सम्मान..ऐसे ही राज कपूर को हिंदी सिनेमा का शोमैन नहीं कहा जाता है। हिंदी सिनेमा के लिए राज कपूर क्या थे, क्या हैं और क्या रहेंगे...इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। राज कपूर ऐसे शख्स थे जिनकी शोहरत के चर्चे सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी थे। दिलचस्प बात यह रही कि इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद वह ताउम्र सिर्फ जमीन पर सोए। तो चलिए जानते हैं कि आखिर इसके पीछे की क्या वजह रही।कभी पिता के स्टूडियो में झाड़ू लगाने वाले राज कपूर की सादगी के किस्से इंडस्ट्री में बहुत लोकप्रिया हैं। उनके बारे में कहा जाता था कि वह चाहे घर में हों या बाहर, कभी बेड पर नहीं सोते थे। उनका गद्दा हमेशा जमीन पर बिछता था। उन्हें वहीं नींद आती थी। इस बारे में राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा ने भी एक इंटरव्यू के दौरान बताया था। उन्होंने कहा था कि राज कपूर साहब जिस भी होटल में ठहरते थे। अपने कमरे में पलंग का गद्दा खींचकर जमीन पर बिछा लेते थे। इस कारण कई बार उन्हें मुसीबत भी उठानी पड़ी थी। दरअसल एक बार राज कपूर लंदन के एक होटल के कमरे में रुके थे। उन्होंने वहां जमीन में अपना बिस्तर लगा लिया, जिसके बाद होटल वालों ने उनको चेतावनी दी। अगले दिन फिर राज कपूर ने यही किया। उन्होंने दोबारा उसी तरह गद्दा नीचे उतराकर बिछा दिया, तो होटल मैनेजमेंट ने उन पर जुर्माना लगा दिया, जिसके बाद राज कपूर ने खुशी-खुशी जुर्माना भरा था।राज कपूर की गिनती उन महान कलाकारों में होती है, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को विदेशों तक पहुंचाया। राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर भले ही फिल्मों के सबसे बड़े हीरो थे, लेकिन राज कपूर को अपनी अलग पहचान बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी थी। राज कपूर ने पहली नौकरी अपने पिता के स्टूडियो में की। राज कपूर को 1 रुपए महीने सैलेरी मिला करती थी, तब वह अपने पिता के कपूर स्टूडियो में झाड़ू लगाने का काम करते थे।