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- कोई नारी डायन/टोनही नहींडायन या टोनही की धारणा हमारे देश में प्रमुख अंधविश्वासों में से एक है जिसमें किसी महिला को डायन (टोनही) घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बीमारी फैलाने, गाँव में विपत्तियाँ लाने का आरोप लगाकर उसे लांछित किया जाता है। डायन (टोनही) के रूप में आरोपित इन महिलाओं को न केवल सार्वजनिक रूप से बेइज्जत किया जाता है, बल्कि उन्हें शारीरिक प्रताडऩा दी जाती है तथा समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में शारीरिक प्रताडऩा इतनी अधिक होती है कि वे महिनों शारीरिक जख्मों का दर्द लिये कराहती रहती है तथा गाँव में उन्हें उपचार मिलना भी संभव नहीं होता। सार्वजनिक रूप से बेइज्जती व अपमान के जख्म तो आजीवन दुख देते हैं। इन स्थानों पर प्रभावशाली समूह का दबाव इतना अधिक रहता है कि प्रताडऩा की घटनाओं की जानकारी गाँव के बाहर नहीं जा पाती तथा प्रताडि़त महिला व उसका परिवार नारकीय जीवन जीता रहता है, ऐसे मामलों में कई बार महिलाएँ आत्महत्या तक कर लेती है।डायन (टोनही) के संदेह में प्रताडऩा के मामले में गाँवों के जनप्रतिनिधि व शासकीय कर्मचारी भी सामने आने का साहस नहीं कर पाते, ऐसे अधिकांश मामलों में जो जानकारी ही गाँवों से बाहर नहीं आ पाती, जिससे कथित बैगाओं का राज कायम हो जाता है। जो गाँव में सभी विपदाओं का कारण जादू-टोना व डायन (टोनही) बताकर, टोनही पकड़वाने, चिन्हित करने, गाँव बाँधने के नाम पर न केवल मनमानी राशि वसूलते हैं बल्कि किसी भी गरीब बेकसूर महिला को डायन (टोनही) घोषित कर हमेशा अभिशप्त जीवन जीने व प्रताडऩा सहने के लिये छोड़ देते हैं, इन बैगाओं द्वारा महिला को डायन (टोनही) न होने का प्रमाण देने के लिये ऐसी परीक्षाएँ ली जाती है जो किसी भी महिलाओं के लिये संभव नहीं है। ऐसे मामलों में खुद को निर्दोष साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है वह भी जब पूरा गाँव ही अंधविश्वास के कारण विरोध में खड़ा हो, जबकि वास्तविकता यह है कि डायन (टोनही) के रूप में घोषित की जाने वाली महिला में इतनी ताकत नहीं होती है कि आत्मरक्षा ही कर सके, दूसरों के नुकसान करना तो संभव ही नहीं है।हम पिछले 27 वर्षों से समाज में फैले अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन के लिए अभियान चला रहे हैं जिसका एक प्रमुख हिस्सा डायन (टोनही) की धारणा का निर्मूलन भी है, इसलिये व्याख्यान, चमत्कारिक घटनाओं की वैज्ञानिक धारणा, विभिन्न ग्रामों में दौरा कर समझाना, अंधविश्वास का पर्याय बनने वाले मामलों की जाँच व सत्य की जानकारी, गोष्ठियाँ, बैठकें की जाती है। वहीं सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के भी अनेक मामले लगातार सामने आते रहते हैं,जिससे हजारों परिवार परेशान है उन्हें समाज में वापस लौटाने के लिए भी निरंतर प्रयास किया जाता है.हमें कई बार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न स्थानों के बुद्धिजीवी साथियों, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाज-सुधार के संबंध में विचार पढऩे को मिलते हैं, मेरा यह मानना है कि अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों का समूल निर्मूलन किसी एक व्यक्ति, एक संगठन या प्रशासन के लिये संभव नहीं है। अलग-अलग स्थानों पर निवास व कार्य कर रहे सभी व्यक्ति यदि इस कार्य के लिये अपना थोड़ा समय व बहुमूल्य विचार हमें प्रदान करें, व सहयोग से कार्य करें तो ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि इन कुरीतियों व अंधविश्वासों का निर्मूलन न किया जा सके, नये वर्ष में सर्व सहयोग से यह काम बेहतर ढंग से किया जा सकता है। इच्छुक स्वयंसेवी व्यक्ति व उत्साही कार्यकर्ता मुझसे इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं।डॉ. दिनेश मिश्रवरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञअध्यक्षअंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
मोबाईल नं. 98274-00859 -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
सुहानी रात ढल चुकी, न जाने तुम कब आओगे, यह गाना मोहम्मद रफी साहब ने गाया है और आज उनकी जयंती के मौके पर इसी गाने और इस फिल्म तथा इसके कलाकारों की चर्चा हम यहां कर रहे हंै।
फिल्म थी दुलारी और इसका निर्माण 1949 में हुआ था। फि़ल्म के मुख्य कलाकार थे सुरेश, मधुबाला और गीता बाली। फि़ल्म का निर्देशन अब्दुल रशीद कारदार साहब ने किया था। 1949 का साल गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आया। 1949 में महबूब ख़ान की फि़ल्म अंदाज़ , ताजमहल पिक्चर्स की फि़ल्म चांदनी रात , तथा ए. आर. कारदार साहब की दो फि़ल्में दिल्लगी और दुलारी प्रदर्शित हुई थीं और ये सभी फि़ल्मों का गीत संगीत बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुआ था। फिल्म दुलारी 1 जनवरी 1949 को प्रदर्शित हुई थी। पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है।
आज जब दुलारी के इस गाने की चर्चा हो रही है, तो हम बता दें कि इसी फिल्म में लता मंगेशकर और रफ़ी साहब ने अपना पहला डुएट गीत गाया था और यह गीत था-मिल मिल के गाएंगे दो दिल यहां, एक तेरा एक मेरा । फिल्म में दोनों का गाया एक और युगल गीत था -रात रंगीली मस्त नज़ारे, गीत सुनाए चांद सितारे । लता और रफी की यह जोड़ी काफी पसंद की गई और उसके बाद तो उन्होंने ऐसे- ऐसे यादगार गाने दिए हैं कि यदि उनका जिक्र करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन गुजर जाएंगे, लेकिन बातें खत्म नहीं होंगी।
फिल्म में मोहम्मद रफ़ी की एकल आवाज़ में नौशाद साहब ने सुहानी रात ढल चुकी गीत.. -राग पहाड़ी पर बनाया । इसी फि़ल्म का गीत तोड़ दिया दिल मेरा.. भी इसी राग पर आधारित है। राग पहाड़ी नौशाद साहब का काफी लोकप्रिय शास्त्रीय राग रहा है और उन्होंने इस पर आधारित कई गाने तैयार किए हैं। इसमें से जो गाने रफी साहब की आवाज में हैं, वे हैं-
1.. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (फिल्म-राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
5. ओ दूर के मुसाफिऱ हम को भी साथ ले ले (उडऩ खटोला)
फिल्म दुलारी में कुल 12 गाने थे। 14 रील की इस फिल्म में ये गाने कहानी की तरह ही चलते हैं । नायिका मधुबाला के लिए लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी। वहीं गीता बाली के लिए शमशाद बेगम ने दो गाने गाए थे। जिसमें से शमशाद बेगम का गाया एक गाना - न बोल पी पी मोरे अंगना , पक्षी जा रे जा...काफी लोकप्रिय हुआ था। नायक सुरेश के लिए रफी साहब ने आवाज दी थी। इसमें से 9 गाने लता मंगेशकर ने गाए जिसमें रफी साहब के साथ उनका दो डुएट भी शामिल है। रफी साहब ने केवल एक गाना एकल गाया और वह है -सुहानी रात ढल चुकी जिसे आज भी रफी साहब के सबसे हिट गानों में शामिल किया जाता है।पूरा गाना इस प्रकार है-
सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
जहां की रुत बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
अंतरा-1. नज़ारे अपनी मस्तियां, दिखा-दिखा के सो गये
सितारे अपनी रोशनी, लुटा-लुटा के सो गये
हर एक शम्मा जल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल...
अंतरा- 2- तड़प रहे हैं हम यहां, तुम्हारे इंतज़ार में
खिजां का रंग, आ-चला है, मौसम-ए-बहार में
हवा भी रुख बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल......
गाने में नायक की नायिका से मिलने की बैचेनी और इंतजार का दर्द शकील साहब ने अपनी कलम से बखूबी उतारा है, तो रफी साहब ने अपनी आवाज से इस गाने को जीवंत बना दिया है। गाने में शब्दों का भारी भरकम जाल नहीं है बल्कि बोल काफी सिंपल हैं, जो बड़ी सहजता से लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं। गाने की यही खासियत इसे आज तक जिंदा रखे हुए है। गाने के शौकीन आज भी किसी कार्यक्रम में इसे गाना नहीं भूलते हैं। राग पहाड़ी के अनुरूप इसका फिल्मांकन भी हुआ है और दृश्य में नायक चांदनी रात में सुनसान जंगल में नायिका का इंतजार करते हुए यह गाना गाता है। दृश्य में एक टूटा फूटा खंडहर भी नजर आता है, तो नायक की विरान जिंदगी को दर्शाता है, जिसे बहार आने का इंतजार है।
दुलारी फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी-प्रेम शंकर एक धनी व्यावसायिक का बेटा होता है जिसकी शादी उसके माता-पिता रईस खानदान में करना चाहते हंै। प्रेम शंकर को एक बंजारन लड़की दुलारी से प्यार हो जाता है। यह लड़की बंजारन नहीं बल्कि एक रईस खानदान की बेटी शोभा रहती है, जिसे बंजारे लुटेरे बचपन में उठा लाए थे। यह रोल मधुबाला ने निभाया है। प्रेमशंकर इस लड़की को इस नरक से निकालने के लिए उससे शादी करने का फैसला लेता है। बंजारन की टोली में एक और लड़की रहती है कस्तूरी जिसका रोल गीता बाली ने निभाया है। वह इसी टोली के एक बंजारे लड़के से प्यार करती है, लेकिन उसकी नजर दुलारी पर होती है। प्रेमशंकर के पिता इस शादी के खिलाफ हैं। काफी जद्दोजहद के बाद प्रेमशंकर , दुलारी को इस नरक से निकालने में कामयाब हो जाता है और उनके पिता को भी इस बात का पता चल जाता है कि दुलारी और कोई नहीं उनके ही मित्र की खोई हुई बेटी है जिसे वे बचपन से ही अपनी बहू बनाने का फैसला कर चुके थे। फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और नायक को अपना सच्चा प्यार मिल जाता है। फिल्म में मधुबाला से ज्यादा खूबसूरत गीता बाली नजर आई हैं, लेकिन उनके हिस्से में सह नायिका की भूमिका ही थी। लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के एक साल बाद ही उन्हें फिल्म बावरे नैन में राजकपूर की नायिका बनने का मौका मिला और इसके कुछ 5 साल बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ शादी कर ली। दुलारी फिल्म मधुबाला की प्रारंभिक फिल्मों में से है। मधुबाला ने जब यह फिल्म की उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल की थी।
फिल्म की पूरी कहानी चंद पात्रों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। सुरेश के पिता के रोल में अभिनेता जयंत थे जिनका असली नाम जकारिया खान था, लेकिन उन्हें जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने जयंत नाम दिया था। विजय भट्ट आज की फिल्मों के निर्माता-निर्देशक विक्रम भट्ट के दादा थे। जयंत के बेटे अमजद खान हैं जिन्हें आज भी गब्बर सिंह के रूप में पहचाना जाता है। फिल्म दुलारी में नायक सुरेश की मां का रोल प्रतिमा देवी ने निभाया था, जो ज्यादातर फिल्मों में मां का रोल में ही नजर आईं। उनकी फिल्मों में अमर अकबर एंथोनी, पुकार प्रमुख हैं। आखिरी बार वे वर्ष 2000 में बनी फिल्म पलकों की छांव में दिखाई दी थीं। मधुबाला के पिता के रोल में अभिनेता अमर थे। अभिनेता श्याम कुमार ने खलनायक का रोल निभाया था, जो बाद में रोटी, जख्मी जैसी कई फिल्मों में खलनायक के रूप में नजर आए।
कभी फुरसत मिले तो इस फिल्म को जरूर देखिएगा, अपने दिलकश गानों की वजह से यह फिल्म दिल तो सुकून देती है। हालांकि अब इसके प्रिंट काफी धुंधले पड़ गए हैं। फिल्म की तकनीक और कहानी आज की पीढ़ी को भले ही पुरानी लगे, लेकिन अपने दौर की यह हिट और क्लासी फिल्म है। -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
महान गायक मोहम्मद रफी साहब की पुण्यतिथि के मौके पर हम आज उनके गाए एक गाने की चर्चा कर रहे हैं। गाने का मुखड़ा है- ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे, हम को भी साथ ले ले, हम रह गए अकेले। यह गाना फिल्म उडऩ खटोला में शामिल किया गया था। इसे सुरों से संवारा था नौशाद साहब ने और लिखा शकील बदायूनीं साहब ने ।
मोहम्मद रफी शुरुआत से ही नौशाद साहब के फेवरेट गायक थे। एक प्रकार से मोहम्मद रफी का फिल्मी दुनिया में प्रवेश नौशाद साहब की सिफारिशी चिट्ठी के बदौलत ही हुआ था। 1955 में जब फिल्म उडऩ खटोला के संगीत संयोजन की जिम्मेदारी नौशाद साहब को सौंपी गई, तो उन्होंने रफी और लता मंगेशकर की जोड़ी को लिया। फिल्म में उन्होंने शास्त्रीय रागों पर आधारित कई गाने तैयार किए जिसमें से एक गीत ओ दूर के मुसाफिर भी था, जो राग पहाड़ी पर आधारित है। इस फिल्म का निर्माण सनी आर्ट प्रोडक्शन ने किया था। शास्त्रीय संगीत के सरस रुपांतरण में बढ़ते रिद्म का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से नौशाद की इस फिल्म में नजर आता है। इस फिल्म में लता के गाए गीत मोरे सैंया जी उतरेंगे पार हो ,.. में राग पीलू के साथ लोकरंग की ताल सुनने को मिलती है। उडऩ खटोले वाले राही (लता और साथी) , हमारे दिल से न जाना धोखा न खाना ...गीतों में लता की मीठी लोच भरी आवाज सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है। दर्द के लिए भैरव राग के सुर लेकर नौशाद साहब ने इस फिल्म में -सितारों की महफिल सजी..., गीत तैयार किया और उदासी की गहराई लेकर -न रो ए दिल, राग भैरवी के साथ -न तूफां से खेलो , न साहिल से खेलो जैसे सहाबहार गीत पेश किए। नौशाद जी अपनी कम्पोजिशन हमेशा फिल्म की कहानी और सिचुएशन को ध्यान में रखकर बनाते थे। उडऩ खटोला फिल्म के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया।
पूरे गाने के बोल इस प्रकार हैं....
चले आज तुम जहां से, हुई जिंदगी परायी
तुम्हें मिल गया ठिकाना, हमें मौत भी ना आई।
ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे
हम को भी साथ ले ले, हम रह गये अकेले।
तू ने वो दे दिया गम, बेमौत मर गये हम
दिल उठ गया जहां से, ले चल हमें यहां से
किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले।
सूनी हैं दिल की राहें, खामोश हैं निगाहें
नाकाम हसरतों का, उठने को हैं जनाज़ा
चारों तरफ लगे हैं, बरबादियों के मेले रे..
हम रह गए अकेले.....।
इस गाने के अंत में रफी साहब के स्वर काफी ऊंचे हो जाते हैं। गाने में साजों का शोर नहीं है बल्कि कोरस की आवाज ही काफी अच्छी लगती है। गाने में दिखाया गया है कि प्रेमी अपनी प्रेमिका को मौत के मुंह में जाता देखकर दुखी है और अपने अकेले होने के अहसास को वह शब्दों में बयां कर रहा है साथ ही उसकी दुनिया से शिकायत भी है कि- किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले। इस गाने में दिलीप कुमार और निम्मी दोनों नजर आते हैं। गाने के अंत में निम्मी को पहाड़ी नदी में कूदते दिखाया गया है।
इस फिल्म के पूरे गाने शकील साहब ने ही लिखे थे। उस जमाने में ज्यादातर पूरी फिल्म के गाने लिखने का जिम्मा किसी एक गीतकार को ही दिया जाता था। उसे फिल्म की कहानी बता दी जाती थी और कई बार तो शूटिंग के दौरान सेट पर ही गीतकार को बुलाकर गाने तैयार करवा लिए जाते थे। स्टुडियो में एक तरफ गीतकार गाने लिखते थे और वहीं पर संगीतकार उनकी धुन तैयार कर गायकों से गाने भी गवा लिया करते थे। एक गाने के लिए गायक कलाकार कई बार पूरे दिन स्टुडियो पर रियाज कर किया करते थे। आज के जैसे नहीं कि एक गायक आया और अपना वर्जन गा कर चला गया। बाद में दूसरा आया और अपने हिस्से के बोल गाकर चला गया। बाकी काम कम्प्यूटर पर हो रहा है। उडऩ खटोला फिल्म में 9 गाने थे और सभी एक से बढ़कर एक। इस फिल्म के गानों में नौशाद ने राग जयजयवंती, पहाड़ी, भैरवी, राग पीलू जैसे शास्त्रीय रागों का बखूबी इस्तेमाल किया।
नौशाद साहब को राग पहाड़ी काफी पसंद था। उन्होंने मोहम्मद रफ़ी से इस राग पर आधारित कई गीत गवाए। रफी की एकल आवाज़ में गाया फिल्म दुलारी का गीत - सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे ......इसी राग पर आधारित है। इसी फि़ल्म के एक और गीत -तोड़ दिया दिल मेरा.. के लिए भी नौशाद साहब ने इसी राग पर आधारित बंदिशें तैयार कीं। यह राग जितना शास्त्रीय है, उससे भी ज़्यादा यह जुड़ा हुआ है पहाड़ों के लोक संगीत से। इसलिए इसमें लोक संगीत की झलक मिलती है। यह पहाड़ों का संगीत है, जिसमें प्रेम, शांति और वेदना के सुर सुनाई देते हैं। राग पहाड़ी पर असंख्य फि़ल्मी गानें बने हैं। जिनमें से नौशाद के स्वरबद्ध किए कुछ गीत हैं-
1. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. जवां है मोहब्बत हसीं है ज़माना (अनमोल घड़ी)
5. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
6. तोरा मन बड़ा पापी सांवरिया रे (गंगा जमुना)
अब फिल्म उडऩखटोला की कहानी के बारे में । इस फिल्म में दिलीप कुमार के अपोजिट निम्मी थीं। फिल्म को निर्देशित किया था एस. यू. सनी ने । फिल्म में जीवन और टुनटुन भी प्रमुख भूमिकाओं में थे। फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी- फिल्म का हीरो काशी यानी दिलीप कुमार एक अभिशप्त विमान से यात्रा कर रहा होता कि वह विमान क्रेश हो जाता है और एक नगर के बाहर जा गिरता है । इस नगर में एक रानी का शासन है। जिसकी देवी का नाम संगा है। काशी को सोनी नाम की एक लड़की बचाती है और उसे अपने घर ले आती है। जहां वह अपने पिता और भाई हीरा के साथ रहती है। सड़कें ब्लॉक होने की वजह से काशी अपने घर वापस लौटने में असमर्थ है। वहां पर रहने के लिए उसे रानी की अनुमति लेना अनिवार्य है। ऐसे में वह राजरानी से मिलता है, तो देखता है कि वह काफी खूबसूरत है। रानी भी काशी से प्रभावित होती है और उसे अपने महल में रहने और उसके लिए गाने के लिए कहती है। इस बीच काशी और सोनी एक दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं और वे छिपकर एक दूसरे से मिलते हैं। सोनी एक लड़के शिबु का भेष धरकर काशी से मिलती है। इधर राजरानी के प्यार को काशी ठुकरा देता है। फिल्म में राजरानी का रोल अभिनेत्री सूर्या कुमारी ने निभाया था। इस फिल्म का तमिल वर्जन भी बना जिसका नाम था वानारथम।
यह फिल्म चली तो एक प्रकार से नौशाद के गानों की वजह से । उस समय दिलीप कुमार और निम्मी की जोड़ी भी हिट हुई थी। इस जोड़ी ने आन (1952), दीदार, दाग और अमर (1954) फिल्म में भी काम किया। इनमें से उडऩखटोला इस जोड़ी की आखिरी फिल्म थी। -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
मोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं; गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब साठ दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं।
पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकल कर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिफऱ् संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र। किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।
मोहम्मद रफी साहब संघर्ष के दिनो में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। नौशाद साहब ने उन्हें गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला आईं हैं। न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया।
सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।
उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। एक तरफ किशोर कुमार अपने पारिश्रमिक को लेकर एकदम परफेक्ट थे। दूसरी तरफ रफी साहब संकोची इंसान। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया।
अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजि़क का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले। -
और मो. रफी की बात सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
मोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं;गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब कई दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं। आज उनकी जयंती पर कुछ उनकी बातें.....
पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकल कर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिफऱ् संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र और । किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।
मोहम्मद रफी साहब मुंबई में संघर्ष के दिनों में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। संगीतकार नौशाद साहब ने उन्हें कोरस में गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं। रफी साहब ने कहा- उन्हें लगा था रिकॉर्डिंग हो जाएगी तो उसके मेहताने से वो घर पहुंच जाएंगे। नौशाद ने तब रफी को 1 रुपये का सिक्का दिया था ताकि वो घर पहुंच जाएं। रफी ने नौशाद से वो सिक्का लिया और पैदल ही चल पड़े। इसके कई सालों बाद रफी शहंशाह-ए-तरन्नुम बन गए। उनके पास खूब दौलत और शोहरत हो गई। तब एक दिन नौशाद साहब मोहम्मद रफी के घर आए। उन्होंने देखा कि मोहम्मद रफी ने 1 रुपये का सिक्का फ्रेम कराकर दीवार पर टांग रखा है। नौशाद ने इसका कारण जानना चाहा। तब रफी साहब ने बताया कि सालों पहले नौशाद ने जिस लड़के को घर जाने के लिए 1 रुपये का सिक्का दिया था वो और कोई नहीं, बल्कि खुद रफी ही थे। रफी ने कहा, 'मैं उस दिन पैदल ही गया था। ये सिक्का मुझे मेरी सच्चाई याद दिलाता है और ये कि उन दिनों किस नेक इंसान ने मेरी मदद की थी।' मो. रफी साहब की बातें सुनकर एक बार फिर नौशाद की आंखें नम हो गई थीं।
न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया, ऐसे थे रफी साहब।
सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।
उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया। मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वभाव के कारण जाने जाते थे। मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ों गीत गाये थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी। लता मंगेशकर गानों पर रायल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की।
रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रायल्टी किस बात की मांगी जाए। दोनों के बीच विवाद इतना बढा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में ज्वैलथीफ का गीत...दिल पुकारे गीत गाया।
अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजि़क का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले।
मो. रफी साहब के गाए 10 लोकप्रिय गाने, जो आज भी पसंद किए जाते हैं....
1. तुम मुझे यूं भुला न पाओगे - फिल्म पगला कहीं का
2. मैंने पूछा चांद से - फिल्म अब्दुल्लाह
3. चौदहवीं का चांद हो.... फिल्म चौदहवीं का चांद
4. बहारों फूल बरसाओ.... फिल्म सूरज
5. बदन पे सितारे लपेटे हुए- फिल्म प्रिंस
6. गुलाबी आंखें... फिल्म द ट्रेन
7. ये चांद सा रोशन चेहरा... फिल्म कश्मीर की कली
8. सुहानी रात ढल चुकी....फिल्म - दुलारी
9. बाबुल की दुआएं लेती जा... फिल्म नीलकमल
10. आज कल तेरे मेर प्यार के चर्चे- फिल्म ब्रह्मचारी - -कोदो-कुटकी उगाने वाले किसान समृद्धि की ओर- किसानों को कोदो से होने लगी करोड़ों की आय- बीज विक्रय से आमदनी में चार गुना इजाफा- मिलेट को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ को मिल चुका है देश के सर्वश्रेष्ठ उदीयमान राज्य का सम्मानविशेष लेख- डॉ. दानेश्वरी संभाकर, सहायक संचालकरायपुर / छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की विशेष पहल के चलते राज्य में मिलेट्स की समर्थन मूल्य पर खरीदी होने से किसानों को करोड़ों रूपए की आय होने लगी है। बीते सीजन में किसानों ने समर्थन मूल्य पर 34298 क्विंटल मिलेट्स 10 करोड़ 45 लाख रूपए में बेचा था। छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य है, जहां कोदो, कुटकी और रागी की समर्थन मूल्य पर खरीदी और इसके वैल्यू एडिशन का काम भी किया जा रहा है। कोदो-कुटकी की समर्थन मूल्य पर 3000 प्रति क्विंटल की दर से तथा रागी की खरीदी 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की जा रही है।शासन की महत्वाकांक्षी योजना राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं मिलेट मिशन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा वर्ष 2021-22 में 5,273 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 16.03 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय किया गया है। वर्ष 2022-23 में 13,005 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 39.60 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय करने का लक्ष्य है।देश के कई आदिवासी इलाकों में मोटे अनाज का काफी समय से प्रयोग किया जाता रहा है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है, इसलिए अब दूसरे इलाकों में भी इन अनाज का काफी इस्तेमाल किया जा रहा हैै। एक्सपर्ट के मुताबिक कोदो कुटकी को प्रोटीन व विटामिन युक्त अनाज माना गया है। इसके सेवन से शुगर बीपी जैसे रोग में लाभ मिलता है. कोदो एक मोटा अनाज है, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। बस्तर के आदिवासी संस्कृति व खानपान में कोदो कुटकी रागी जैसे फसलों का महत्वपूर्ण स्थान है।छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था के सहयोग एवं मार्गदर्शन से किसान कोदो के प्रमाणित बीज का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित करने लगे हैं। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में राज्य के 11 जिलों के 171 कृषकों द्वारा 3089 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया, जिसे बीज निगम ने 4150 रूपए प्रति क्विंटल की दर से किसानों से क्रय कर उन्हें एक करोड़ 28 लाख 18 हजार रूपए से अधिक की राशि भुगतान किया है। राज्य के किसानों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज, सहकारी समितियों के माध्यम से बोआई के लिए प्रदाय किया जा रहा है।बीज प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2020-21 में राज्य में 7 जिलों के 36 किसानों द्वारा मात्र 716 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया था। इससे उत्पादक किसानों को 32 लाख 88 हजार रूपए की आमदनी हुई थी, जबकि 2021-22 में कोदो बीज उत्पादक किसानों की संख्या और बीज विक्रय से होने वाला लाभ कई गुना बढ़ गया है। बीते तीन वर्षो में कोदो प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों ने एक करोड़ 65 लाख 18 हजार 633 रूपए का बीज, छत्तीसगढ़ बीज एवं विकास निगम को विक्रय किया है।अधिकारियों ने बताया कि ऐसी कृषि भूमि जहां धान का उत्पादन नाममात्र उत्पादन होता है, वहां कोदो की खेती किया जाना ज्यादा लाभकारी है। कोदो की खेती की कम पानी और कम खाद की जरूरत पड़ती है। जिसके फलस्वरूप इसकी खेती में लागत बेहद कम आती है और उत्पादक कृषकों को लाभ ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में राज्य में मात्र 103 क्विंटल प्रमाणित बीज उत्पादन हुआ था। मिलेट्स मिशन लागू होने के बाद से छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अन्य शासकीय संस्थानों से समन्वय कर कोदो बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है, जिससे बीज उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। गौरतलब है कि मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। राज्य में मिलेट्स उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसको राजीव गांधी किसान न्याय योजना में शामिल किया गया है। मिलेट्स उत्पादक कृषकों को प्रोत्साहन स्वरूप प्रति एकड़ के मान से 9 हजार रूपए की आदान सहायता भी दी जा रही है।राज्य में कोदो, कुटकी और रागी की खेती को राज्य में लगातार विस्तारित किया जा रहा है, जिसके चलते राज्य में इसकी खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर हो गया है। मिलेट की खेती को प्रोत्साहन, किसानों को प्रशिक्षण, उच्च क्वालिटी के बीज की उपलब्धता तथा उत्पादकता में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए राज्य में मिलेट मिशन संचालित है। 14 जिलों ने आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को प्रति एकड़ 4.5 क्विंटल से बढ़ाकर 9 क्विंटल यानि दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है।
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*सहकारी शक्कर कारखानों इथेनॉल प्लांट की स्थापना*
*गन्ना किसानों के लिए न्याय योजना**प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का पुनर्गठन**सहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरण**नवगठित प्राथमिक साख सहकारी समितियों में गोदाम-सह-कार्यालय निर्माण**बस्तर एवं सरगुजा संभाग के दूरस्थ अंचलों में बैकिंग सुविधा का विस्तार*रायपुर /मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सरकार गठन के एक घंटे के भीतर प्रदेश के किसानों के ऋण माफी की घोषणा की। मुख्यमंत्री की घोषणा से ऐसे कृषक जो वर्षों से डिफाल्टर हो जाने के कारण ऋण नहीं ले पा रहे थे, उन्हें ऋण की पात्रता मिल गई। प्रदेश में सहकारी समितियों के माध्यम से 13 लाख 46 हजार 569 किसानों का 5261.43 करोड़ रूपए का ऋण माफ कर उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया।मुख्यमंत्री की पहल पर सहकारिता के क्षेत्र में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड से इथेनॉल प्लांट की स्थापना, सम्पूर्ण देश में प्रथम उदाहरण है। इसके लिए सभी प्रक्रिया लॉक डाउन अवधि में सम्पादित की गई। प्रदेश के सहकारी शक्कर कारखाना कवर्धा में प्रथम इथेनॉल प्लांट की स्थापना पीपीपी मोड में करने के लिए इन्वेस्टर्स मीट आयोजित कर इच्छुक निवेशकों के पक्ष को चुना गया। इसके बाद आरएफक्यू, आरएफपी की प्रक्रिया पूर्ण कर निवेशक का चयन किया गया। चयनित निवेशक द्वारा 80 किलो लीटर प्रति दिन क्षमता (केएलपीडी) की क्षमता से कारखाना लगाया जा रहा है, जिससे कारखाने को प्रतिवर्ष 9.22 करोड़ रूपए लायसेंस फीस के रूप में प्राप्त होगा। चयनित संस्था और कारखाने के मध्य 29 दिसम्बर 2022 को अनुबंध निष्पादित किया गया। पीपीपी मॉडल इथेनॉल प्लांट की स्थापना देश में पहला उदाहरण है। इथेनॉल संयंत्र की स्थापना से क्षेत्र में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि का आधार मजबूत होगा।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के कुशल नेतृत्व में राज्य बनने के बाद प्रदेश के चारों कारखानों से शक्कर के निर्यात के लिए प्रथम बार कार्रवाई की गई। चारों शक्कर कारखानों से 30.18 करोड़ रूपए की 14 हजार 302 मीट्रिक टन शक्कर का निर्यात भारत सरकार से प्राप्त निर्यात कोटे के अनुसार किया गया। इस निर्यात के फलस्वरूप भारत सरकार से राज्य को 10448 रूपए प्रति मीट्रिक टन की मान से 14.95 करोड़ रूपए की सब्सिडी स्वीकृत हुई।मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश में शुरू की गई किसान न्याय योजना से गन्ना किसानों को भी जोड़ा गया। प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए न्याय योजना के अंतर्गत 93.75 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 34,292 किसानों को 74.24 करोड़ रूपए भुगतान किया गया। इस प्रकार प्रदेश में गन्ना किसानों को गन्ना पेराई सीजन 2019-20 में 355 रूपए प्रति क्विंटल के मान से गन्ना का मूल्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2020-21 में 79.50 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 84.85 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान किया गया।राज्य गठन के समय कुल 1333 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित थी। राज्य में प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को ऋण वितरण, खाद-बीज, दवाईयां आदि का वितरण किया जाता है। इन सोसायटियों का गठन 1971-72 के मध्य हुआ था। इनके गठन के समय राज्य की जनसंख्या एवं भौगोलिक स्थिति भिन्न थी। राज्य बनने के 20 वर्षों के बाद जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ कृषि रकबे में वृद्धि होने से मांग एवं किसानों की सुलभता को देखते हुए सरकार ने इन समितियों के पुनर्गठन का निर्णय लिया। लॉक डाउन अवधि में जैसी विषम परिस्थितियों में 1333 समितियों का पुनर्गठन कर 725 नवीन समितियों का गठन, पंजीयन किया गया। नवगठित 725 प्राथमिक साख सहकारी समितियों के के माध्यम से किसानों को खाद, बीज एवं ऋण की उपलब्धता सुगमता से की जा रही है। वर्तमान में प्रदेश में 2058 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार द्वारा सहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरण किया गया है। सहकारी सदस्यों के हित में प्रावधान संशोधित किए गए हैं। सहकारी समितियों के पंजीयन के लिए न्यूनतम आवश्यक सदस्यों की संख्या 20 से घटाकर 10 की गई है। सहकारी समितियों के पंजीयन की अवधि 90 दिवस से घटाकर 45 दिवस किया गया है। सहकारी समितियों की उपविधियों में संशोधन की अवधि 60 दिवस से घटाकर 45 दिवस कर दिया गया है। न्यायालयीन प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिए संभागीय संयुक्त पंजीयकों को प्रथम अपील के अधिकार दिए गए हैं। अधिनियम संशोधन के पूर्व सम्पूर्ण राज्य के प्रथम अपील के प्रकरण पंजीयक द्वारा सुने जाते थे, जिससे दूरस्थ अंचल के संस्थाओं के जुड़े कृषक सदस्यों को कठिनाई होती थी। संशोधन से किसानों को उनके नजदीक सुलभ न्याय दिलाया जाना सुनिश्चित कराया गया है।छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अधोसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ) योजनांतर्गत नवगठित 725 नवीन समितियों में आधारभूत संरचना प्रदाय किए जाने के उद्देश्य से गोदाम सह कार्यालय निर्माण की योजना तैयार की गई। इस योजना में प्रत्येक सोसायटी में 25.56 लाख रूपए की दर से 725 समितियों में 185.31 करोड़ रूपए की लागत से गोदाम सह कार्यालय का निर्माण किया जाएगा। सभी समितियों के लिए जमीन आबंटन का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। टेण्डर आदि प्रक्रिया होने के बाद 514 समितियों में कार्यादेश जारी किया जा चुका है और 55 समितियों में कार्य प्रारंभ हो चुका है। माह मार्च 2023 तक सभी समितियों में गोदाम सह कार्यालय पूर्ण किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। गोदाम सह कार्यालय के निर्माण से नवगठित समितियों में सुचारू रूप से खाद, बीज, ऋण वितरण, धान खरीदी का कार्य सुगमता से किया जा सकेगा।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा बस्तर और सरगुजा संभाग में दूरस्थ अंचल के ग्रामीणों पर सुलभ बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से निर्देश दिए गए हैं। निर्देश के पालन में बस्तर और सरगुजा संभाग में कार्ययोजना बनाकर सहकारी बैंकिंग की सुविधा का विस्तार किया जा रहा है। बस्तर संभाग में 7 स्थानों- नानगुर, बजावण्ड, दहीकोंगा, धनोरा, बडे राजपुर, जेपरा-हल्बा, अमोड़ा और सरगुजा संभाग में तीन स्थानों-लुण्ड्रा, देवनगर एवं पटना में नवीन शाखा खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है। साथ ही बस्तर संभाग में प्रथम चरण में 6 स्थानों-बड़े किलेपाल, मर्दापाल, अमरावती, बड़े डोंगर, कोयलीबेड़ा एवं मद्देड़ में एटीएम और तीन स्थानों-नदीसागर, कुटरू एवं बेनूर में मोबाइल बेन लगाई जा रही है। इसी प्रकार सरगुजा संभाग के 5 स्थानों- राजापुर, गोविंदपुर, पोंड़ी, राजौली, केल्हारी में एटीएम लगाए जा रहे हैं। -
*आलेख-जी.एस.केशरवानी, ए.पी.एस. सोलंकी*
खनिज राजस्व से प्रदेश के खनन प्रभावित अंचलों में विकास की नई रोशनी पहंुच रही है। इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं, अधोसंरचना के विकास कार्यों के साथ-साथ लोगों के जीवन स्तर में बदलाव लाने के कार्य हो रहे हैं। लोगों को पहले छोटी-छोटी समस्याओं के लिए राजधानी की ओर देखना पड़ता था। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इन क्षेत्रों में डीएमएफ की राशि के व्यय करने की प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाते हुए, इसके लिए गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों, महिलाओं की भागीदारी तय की है, इससे लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के कार्य आसानी से हो रहे हैं।छत्तीसगढ़ को प्रकृति के वरदान के रुप में मिली खनिज सम्पदा की भागीदारी राज्य के विकास में लगातार बढ़ती जा रही है। नये खनिज भण्डारों की खोज, नये क्षेत्रों में खनन प्रारंभ होने, बेहतर प्रबंधन से राज्य को मिलने वाले खनिज राजस्व में जबरदस्त वृद्धि हुई है। राज्य का लगभग 27 प्रतिशत राजस्व खनिजों के दोहन और खनिज राजस्व से प्राप्त हो रहा है। खनिजों की रायल्टी सें मिलने वाली राशि में से 10 से 30 प्रतिशत राशि डीएमएफ में जमा होती है। इस मद का उपयोग खनिजधारित और आदिवासी अंचलों में लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि के लिए किया जा रहा है। पिछले 4 वर्षों में राज्य को मिलने वाला खनिज राजस्व 6000 करोड़ रुपए से बढ़कर 12 हजार 305 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। खनिज प्रशासन को सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से पारदर्शी बनाया गया है। खनिजपट्टों की आनलाइन स्वीकृति, ई-नीलामी जैसे कार्यो के लिए छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है।प्रदेश में खनिज आधारित उद्योगों के विस्तार से रोजगार के अवसर बढ़े हैं, वहीं सामाजिक -आर्थिक विकास की गतिविधयों में तेजी आयी हैै। राज्य के सुपोषण अभियान, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना, हाट बाजार और स्लम क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने, गौठानों के विकास और स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के संचालन में डीएमएफ फंड के माध्यम से खनिजों की रायल्टी से मिलने वाली अंशदान की राशि की महत्वपूर्ण भूमिका है। डीएमएफ मद का उपयोग खनिज प्रभावित क्षेत्रों के विकास और आजीविका के साधनों के विकास में किया जा रहा है। अपनी खनिज संपदा के बल पर छत्तीसगढ़ देश के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। राज्य में पंचायत प्रणाली को मजबूती देने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में रेत की खदानों का संचालन का अधिकार पंचायतों को दिया गया है। इसी प्रकार पंचायतों ओर नगरीय निकायों को पिछले 4 वर्षों में गौण खनिजों से प्राप्त राजस्व में से लगभग 434 करोड़ रूपए की राशि उपलब्ध करायी गई है।खानिज धारित क्षेत्रों के लोगों को जिला खनिज न्यास की गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों और महिलाओं की भागीदारी तय की गई है। नवीन प्रावधानों के अनुसार खनिज न्यास निधि के माध्यम से संसाधनों पर स्थानीय लोगों के अधिकार को सुनिश्चित करने के साथ शासी निकाय को लोकतांत्रिक बनाया गया है। डीएमएफ मद में प्राप्त राशि का न्यूनतम 50 प्रतिशत राशि प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों में व्यय करने का प्रावधान किया गया है। इस राशि से प्रभावित क्षेत्रों में कृृषि, लघु वनोपज, वनौषधि प्रसंस्करण, कृृषि की उन्नत तकनीकों के प्रयोग संबंधी कार्य, गौठान विकास से संबंधित कार्य, खनन प्रभावित क्षेत्र के वन अधिकार पट््टाधारकों के जीवन स्तर में सुधार एवं जीविकोपार्जन के उपाय किए जा रहे हैं।नए प्रावधानों के अनुसार ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदो कुटकी एवं दलहन-तिलहन के उत्पादन, इन फसलों का रकबा बढ़ाने के उपाय, जैविक कृषि को प्रोत्साहन, फलदार वृृक्षों का रोपण का प्रावधान किया गया है। इस राशि से शिक्षा सेक्टर अंतर्गत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों के परिवार के सदस्यों की शिक्षा तथा सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग क्लासेस, आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था, आत्मानंद इग्लिश मिडियम स्कूल के संचालन से संबंधित कार्यों का प्रावधान किया गया है। प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय के जीवन स्तर में सुधार हेतु सतत जीविकोपार्जन, सार्वजनिक परिवहन, सांस्कृृतिक मूल्यों के संरक्षण, मूलभूत सुविधाएं एवं युवा गतिविधियों को बढ़ावा जैसे संबंधित नए सेक्टर शामिल किए गए हैं। ऑनलाईन स्वीकृृति एवं भुगतान हेतु डीएमएफ पोर्टल का निर्माण एवं संचालन किया जा रहा है। जीआईएस टैंगिंग, मोबाईल एप एवं स्वीकृति, भुगतान संबंधी राइडर युक्त क्लाउड आधारित पोर्टल के नवीन वर्जन का कार्य अंतिम चरण पर है, इन प्रावधानों को करने वाला छत्तीसगढ़ देश का प्रथम राज्य है।डीएमएफ मद से अक्टूबर 2022 की स्थिति में राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजना नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना में 233.89 करोड़, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना में 19.16 करोड़, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना में 195.35 करोड़, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना में 0ण्63करोड़, मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना में 1.38 करोड़, स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना में 196.80 करोड़, गौठान विकास के लिए 170.14 करोड़ रूपए की राशि व्यय की गई है।डीएमएफ में मुख्य खनिज एवं गौण खनिज के खनिपट्टों, पूर्वेक्षण सह खनिपट्टों से राज्य शासन को प्राप्त रायल्टी की 10 से 30 प्रतिशत राशि जमा हो रही है। राज्य में बढ़ती खनिज क्षेत्र की गतिविधियों से डीएमएफ मद में प्राप्त होने वाली राशि में लगभग दो गुनी वृद्धि हुुई है। पूर्व में डीएमएफ मद में औसत वार्षिक प्राप्ति 1200 करोड़ रुपए थी, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 2199 करोड़ रूपये हो गई है। वर्ष 2022-23 में इस मद में *विशेष लेख**न्याय के चार वर्ष: खनन प्रभावित क्षेत्रों में पहुंच रही विकास की नई रोशनी**आलेख-जी.एस.केशरवानी, ए.पी.एस. सोलंकी*खनिज राजस्व से प्रदेश के खनन प्रभावित अंचलों में विकास की नई रोशनी पहंुच रही है। इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं, अधोसंरचना के विकास कार्यों के साथ-साथ लोगों के जीवन स्तर में बदलाव लाने के कार्य हो रहे हैं। लोगों को पहले छोटी-छोटी समस्याओं के लिए राजधानी की ओर देखना पड़ता था। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इन क्षेत्रों में डीएमएफ की राशि के व्यय करने की प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाते हुए, इसके लिए गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों, महिलाओं की भागीदारी तय की है, इससे लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के कार्य आसानी से हो रहे हैं।छत्तीसगढ़ को प्रकृति के वरदान के रुप में मिली खनिज सम्पदा की भागीदारी राज्य के विकास में लगातार बढ़ती जा रही है। नये खनिज भण्डारों की खोज, नये क्षेत्रों में खनन प्रारंभ होने, बेहतर प्रबंधन से राज्य को मिलने वाले खनिज राजस्व में जबरदस्त वृद्धि हुई है। राज्य का लगभग 27 प्रतिशत राजस्व खनिजों के दोहन और खनिज राजस्व से प्राप्त हो रहा है। खनिजों की रायल्टी सें मिलने वाली राशि में से 10 से 30 प्रतिशत राशि डीएमएफ में जमा होती है। इस मद का उपयोग खनिजधारित ⁷ और आदिवासी अंचलों में लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि के लिए किया जा रहा है। पिछले 4 वर्षों में राज्य को मिलने वाला खनिज राजस्व 6000 करोड़ रुपए से बढ़कर 12 हजार 305 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। खनिज प्रशासन को सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से पारदर्शी बनाया गया है। खनिजपट्टों की आनलाइन स्वीकृति, ई-नीलामी जैसे कार्यो के लिए छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है।प्रदेश में खनिज आधारित उद्योगों के विस्तार से रोजगार के अवसर बढ़े हैं, वहीं सामाजिक -आर्थिक विकास की गतिविधयों में तेजी आयी हैै। राज्य के सुपोषण अभियान, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना, हाट बाजार और स्लम क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने, गौठानों के विकास और स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के संचालन में डीएमएफ फंड के माध्यम से खनिजों की रायल्टी से मिलने वाली अंशदान की राशि की महत्वपूर्ण भूमिका है। डीएमएफ मद का उपयोग खनिज प्रभावित क्षेत्रों के विकास और आजीविका के साधनों के विकास में किया जा रहा है। अपनी खनिज संपदा के बल पर छत्तीसगढ़ देश के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। राज्य में पंचायत प्रणाली को मजबूती देने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में रेत की खदानों का संचालन का अधिकार पंचायतों को दिया गया है। इसी प्रकार पंचायतों ओर नगरीय निकायों को पिछले 4 वर्षों में गौण खनिजों से प्राप्त राजस्व में से लगभग 434 करोड़ रूपए की राशि उपलब्ध करायी गई है।खानिज धारित क्षेत्रों के लोगों को जिला खनिज न्यास की गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों और महिलाओं की भागीदारी तय की गई है। नवीन प्रावधानों के अनुसार खनिज न्यास निधि के माध्यम से संसाधनों पर स्थानीय लोगों के अधिकार को सुनिश्चित करने के साथ शासी निकाय को लोकतांत्रिक बनाया गया है। डीएमएफ मद में प्राप्त राशि का न्यूनतम 50 प्रतिशत राशि प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों में व्यय करने का प्रावधान किया गया है। इस राशि से प्रभावित क्षेत्रों में कृृषि, लघु वनोपज, वनौषधि प्रसंस्करण, कृृषि की उन्नत तकनीकों के प्रयोग संबंधी कार्य, गौठान विकास से संबंधित कार्य, खनन प्रभावित क्षेत्र के वन अधिकार पट््टाधारकों के जीवन स्तर में सुधार एवं जीविकोपार्जन के उपाय किए जा रहे हैं।नए प्रावधानों के अनुसार ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदो कुटकी एवं दलहन-तिलहन के उत्पादन, इन फसलों का रकबा बढ़ाने के उपाय, जैविक कृषि को प्रोत्साहन, फलदार वृृक्षों का रोपण का प्रावधान किया गया है। इस राशि से शिक्षा सेक्टर अंतर्गत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों के परिवार के सदस्यों की शिक्षा तथा सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग क्लासेस, आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था, आत्मानंद इग्लिश मिडियम स्कूल के संचालन से संबंधित कार्यों का प्रावधान किया गया है। प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय के जीवन स्तर में सुधार हेतु सतत जीविकोपार्जन, सार्वजनिक परिवहन, सांस्कृृतिक मूल्यों के संरक्षण, मूलभूत सुविधाएं एवं युवा गतिविधियों को बढ़ावा जैसे संबंधित नए सेक्टर शामिल किए गए हैं। ऑनलाईन स्वीकृृति एवं भुगतान हेतु डीएमएफ पोर्टल का निर्माण एवं संचालन किया जा रहा है। जीआईएस टैंगिंग, मोबाईल एप एवं स्वीकृति, भुगतान संबंधी राइडर युक्त क्लाउड आधारित पोर्टल के नवीन वर्जन का कार्य अंतिम चरण पर है, इन प्रावधानों को करने वाला छत्तीसगढ़ देश का प्रथम राज्य है।डीएमएफ मद से अक्टूबर 2022 की स्थिति में राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजना नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना में 233.89 करोड़, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना में 19.16 करोड़, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना में 195.35 करोड़, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना में 0ण्63करोड़, मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना में 1.38 करोड़, स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना में 196.80 करोड़, गौठान विकास के लिए 170.14 करोड़ रूपए की राशि व्यय की गई है।डीएमएफ में मुख्य खनिज एवं गौण खनिज के खनिपट्टों, पूर्वेक्षण सह खनिपट्टों से राज्य शासन को प्राप्त रायल्टी की 10 से 30 प्रतिशत राशि जमा हो रही है। राज्य में बढ़ती खनिज क्षेत्र की गतिविधियों से डीएमएफ मद में प्राप्त होने वाली राशि में लगभग दो गुनी वृद्धि हुुई है। पूर्व में डीएमएफ मद में औसत वार्षिक प्राप्ति 1200 करोड़ रुपए थी, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 2199 करोड़ रूपये हो गई है। वर्ष 2022-23 में इस मद में 2400 करोड़ रुपए प्राप्त होने का अनुमान है। न्यास में अब तक 10 हजार करोड़ रूपये से अधिक की राशि प्राप्त हो चुकी है। करोड़ रुपए प्राप्त होने का अनुमान है। न्यास में अब तक 10 हजार करोड़ रूपये से अधिक की राशि प्राप्त हो चुकी है। -
*आलेख-गोविंद पटेल, प्रबंधक (जनसम्पर्क), छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कम्पनी*
छत्तीसगढ़ में ऊर्जा उत्पादन के इतिहास में एक मील का पत्थर और स्थापित हो गया जब मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने 25 अगस्त को 1320 मेगावाट के नए पॉवर प्लांट लगाने का निर्णय लिया। वास्तव में यह छत्तीसगढ़ को बरसों बरस तक जीरो पॉवर कट स्टेट बनाए रखने की दिशा में ऐतिहासिक फैसला है। यह निर्णय इसलिये भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी का सबसे बड़ा और सबसे आधुनिक संयंत्र होगा। इसकी स्थापना से छत्तीसगढ़ स्टेट जनरेशन कंपनी के स्वयं की विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़कर 4300 मेगावाट हो जाएगी।छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसे जीरो पॉवर कट के रूप में जाना जाता है। यहां उपभोक्ताओं को 24ग7 बिजली आपूर्ति हो रही है। किसी भी प्रदेश की तरक्की का सबसे बड़ा सूचक वहां के ऊर्जा की खपत को माना जाता है। छत्तीसगढ़ में ऊर्जा की खपत तेजी से बढ़ रही है। राज्य स्थापना के समय जहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 300 यूनिट थी, वह आज बढ़कर 2044 यूनिट पहुंच चुकी है। भविष्य में ऊर्जा की मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने बड़े और ऐतिहासिक फैसले लिये हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद पॉवर जनरेशन कंपनी के कोरबा पश्चिम में 660-660 मेगावाट के दो सुपर क्रिटिकल नवीन विद्युत उत्पादन संयंत्र लगाने की कार्ययोजना बनाने पर कार्य प्रारंभ हो गया है। इस संयंत्र के निर्माण में 12915 करोड़ रुपए का व्यय अनुमानित है। इन दोनों इकाइयों को वित्तीय वर्ष 2029 और 2030 में पूर्ण करने का लक्ष्य है। राज्य स्थापना के बाद पहली बार इतनी क्षमता का विद्युत संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। यह मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की दूरदर्शिता को दर्शाता है।छत्तीसगढ़ की धरती में अकूत खनिज संसाधन हैं। कोयले के भंडार मामले में छत्तीसगढ़ देश में तीसरे नंबर पर है। इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग देशभर के पॉवर प्लांट में हो रहा है। परन्तु इसका लाभ इस धरती के निवासियों को नहीं मिल पाता है। अगर यहां के खनिज संसाधनों से संबंधित उद्योग यहीं स्थापित होते हैं तो यहीं के लोगों को इसका सीधा लाभ मिलता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की केबिनेट ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में दूसरा बड़ा फैसला पानी से बिजली बनाने के क्षेत्र में लिया है। केबिनेट में छत्तीसगढ़ राज्य जल विद्युत परियोजना (पंप स्टोरेज आधारित) स्थापना नीति 2022 को मंजूरी दी गई है। वर्तमान में जो जल विद्युत संयंत्र हैं, उनमें बांध में बारिश के पानी को एकत्रित किया जाता है और उसे टरबाइन में बहाकर बिजली पैदा की जाती है। इस पुराने तकनीक में पानी का इस्तेमाल केवल एकबार ही किया जाता है।वर्तमान में नई पंप स्टोरेज आधारित जल विद्युत परियोजना तैयार की गई है, जिसमें एक ही पानी का इस्तेमाल कई बार किया जा सकेगा। इस तकनीक में बांध के ऊपर एक और स्टोरेज टैंक बनाया जाता है। दिन के समय सौर ऊर्जा से मिली सस्ती बिजली से इस टैंक में पानी स्टोरेज किया जाएगा और रात में उसे टरबाइन में गिराकर बिजली पैदा की जाएगी। यह पानी फिर से बांध में एकत्रित कर लिया जाएगा। इस तरह एक ही पानी का बार-बार इस्तेमाल किया जा सकेगा।छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी ने प्रदेश में ऐसे पांच स्थानों पर पंप स्टोरेज जल विद्युत गृह की स्थापना के लिए विस्तृत कार्ययोजना बना रही है। इन पांच स्थानों पर 7700 मेगावाट बिजली पैदा हो सकेगी। डीपीआर बनाने के लिए केंद्र सरकार की एजेंसी वैपकास (वाटर एंड पॉवर कंसल्टेंसी सर्विसेस लिमिटेड) के साथ 29 नवंबर को एमओयू किया गया है। राज्य में पम्प स्टोरेज आधारित जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना हेतु निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 6 सितम्बर को आयोजित केबिनेट की बैठक में छत्तीसगढ़ राज्य जल विद्युत परियोजना (पंप स्टोरेज आधारित) स्थापना नीति 2022 का अनुमोदन किया गया।इन दोनों फैसलों से यहां के निवासियों के लिये रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। संयंत्र की स्थापना से लेकर उसके संचालन के लिये जहां हजारों लोगों को सीधा रोजगार मिलेगा। इस संयंत्र की स्थापना अत्याधुनिक तकनीक से की जाएगी, जिसमें बहुत कम प्रदूषण होगा। इससे भविष्य में ऊर्जा की बढ़ती मांग पूरी हो सकेगी। इस फैसले से प्रदेश में उद्योग से लेकर कृषि क्षेत्र में प्रगति के नए पंख लगेंगे और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को तीव्र गति मिलेगी। यह फैसला आने वाले बरसों में छत्तीसगढ़ के लिये मील का पत्थर होगा। -
विशेष लेख
पोषण साहू, सहायक जनसंपर्क अधिकारीलोग उम्मीद और विश्वास से मुख्यमंत्री की तरफ टकटकी लगाए देख रहे है। मुख्यमंत्री से बातचीत मे इतनी ऊर्जा है कि लोग एक ही जगह पर दो घण्टे से बैठकर भी खुद को तरो-ताज़ा महसूस करते हैं। गाँव की महिलाएं हो, बुजुर्ग हो, युवा हो ,किसान हो सभी अपनी बात कहने को इस कदर आतुर रहते हैं कि बिना माइक के भी जोरदार तरीक़े से अपनी बात कह देते हैं।बातचीत का दौर शुरू होता है। योजनाओ की समीक्षा होती है, बारी-बारी से अपनी बात, योजनाओं की बात, विकास की बात, सुख-दुख की बात जुबां पर आ जाती है। लोग उत्साह के साथ अपनी बात साफ़गोई से करते हैं। मुख्यमंत्री भी पूरी गंभीरता व तन्मयता से लोगों की बात सुनते हैं और समाधान निकलते हैं। मंगलवार को गोपालपुर बसना विधानसभा में एक महिला ने अपनी समस्या रखते हुए वन अधिकार पत्र मैं आ रही दिक्कतों के बारे में मुख्यमंत्री को अवगत कराया। मुख्यमंत्री ने तत्काल इसकी जरूरत को समझते हुए ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित करने के लिए सरपंच को मंच से ही निर्देशित किये। इसी तरह एक बालिका ने अपने स्कूल की दो स्थानांतरित शिक्षिकाओं को रोकने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगाई। मुख्यमंत्री ने छात्रा की अपने शिक्षिकाओं के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान को देखते हुए ट्रांसफर को रोकने के निर्देश दिए। इसी तरह भेंट मुलाकात कार्यक्रमों में लोग अपनी बातों और समस्याओं को खुलकर रखते हैं।पिरदा भेंट मुलाकात कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री श्री बघेल लोगों से उनकी समस्याओं से संबंधित आवेदन लेने खुद पहुंचे तो आठ वर्षीय दृष्टिबाधित बालक हिमांशु पसायत के लिए उसके पिता ने मुख्यमंत्री से मदद मांगी। ग्राम-जगत के निवासी हिमांशु के पिता प्रमोद पसायत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, वे मजदूरी करते हैं, बेटे का इलाज कराना चाहते हैं। मंगलवार को ही बसना के पिरदा में पता चला कि नन्हें हिमांशु की आंखों में रोशनी नहीं है मगर उसके कंठ से सुरीले स्वर फूटते हैं। वह तीन भाषाओं हिंदी, छत्तीसगढ़ी और उड़िया में सुमधुर गायन करता है। हिमांशु पांच वर्ष की आयु से संगीतमयी प्रस्तुति देता है। मुख्यमंत्री ने हिमांशु के पिता की गुहार सुनी और हिमांशु की हर संभव सहायता के लिए आश्वस्त किया।बुधवार को खल्लारी के एम के बाहरा में एक दिव्यांग ने बताया कि वे अपनी दोनों आंखों को भालू के हमले में खो चुके हैं। अब उन्हें इलाज के लिए सहायता की जरूरत है। मुख्यमंत्री ने संवेदनशीलता दिखाते हुए इलाज के लिए 2 लाख रुपये देने की घोषणा की। ऐसे ही कई प्रकरण है, जिन्हें भेंट मुलाकात के मंच पर समाधान होते देखा जा सकता है।यहीं एक दिव्यांग नईम मोहम्मद खान ने अपनी घुटनो के इलाज के लिए गुहार लगाई तो मुख्यमंत्री ने 2 लाख रुपए देने की घोषणा की। आम जनता अपनी उम्मीदों और भरोसे के साथ भेंट- मुलाकात कार्यक्रम में आते हैं और हंसते-मुस्कुराते हुए उसी भरोसे के साथ लौट जाते हैं । वास्तव में भेंट- मुलाकात जनता के साथ सुख-दुख साझा करने का सार्थक मंच बन गया है, जो अब भी जारी है।ज्ञातव्य है कि इन दिनों मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भेंट मुलाकत कार्यक्रम के तहत लोगों से सीधे बात कर रहे हैं। उनके साथ सुख -ख की बातें साझा करते हुए योजनाओं की जानकारी भी ले रहें हैं। - आलेख: आनंद सोलंकी-जी.एस. केशरवानीकिसानों की आमदनी बढ़ाने में सौर ऊर्जा के उपयोग में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। कृषि के साथ अन्य क्षेत्रों में सोलर एनर्जी के इस्तेमाल का दायरा राज्य में लागतार बढ़ता जा रहा है। सौर ऊर्जा का उपयोग पेयजल और सुदूर अंचलों के गांवों, अस्पतालों, स्कूलों, छात्रावासों में विद्युत व्यवस्था में भी हो रहा है, इससे मूलभूत सुविधाओं को मजबूती मिल रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के प्रयासों के तहत किसानों की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से सोलर सिंचाई पम्प लगाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। इस दिशा में तेजी से काम हुआ और हाल ही में देश में सर्वाधिक सोलर पम्प स्थापित करने और ऊर्जा संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैै।छत्तीसगढ़ में ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए सुराजी गांव योजना के साथ सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए आधुनिक तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। नई उद्योग नीति में भी सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन से जुड़ी इकाईयों की स्थापना को प्राथमिकता की श्रेणी में रखा गया है। राज्य के सुदूर वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए सौर ऊर्जा खासी मददगार साबित हो रही है। राज्य में ऐसे कई हिस्से हैं जहां परम्परागत तरीके से विद्युत की व्यवस्था नहीं हो सकी है, उन क्षेत्रों के किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने में सोलर पम्प गेम चंेंजर साबित हो रहे हैं। सौर सुजला योजना के तहत प्रदेश में स्थापित किए गए सोलर सिंचाई पंप के उपयोग से पिछले पांच वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी का अनुमान है।छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सोलर एनर्जी से कृषि के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने के प्रयासों के साथ क्रेड़ा द्वारा सोलर विद्युत केन्द्र, सोलर लाइट, वनांचलों के गांवों में पेयजल उपलब्ध कराने में भी सोलर पम्पों का उपयोग किया जा रहा है, जल जीवन मिशन सहित राज्य शासन की योजना के तहत प्रदेश में 10 हजार 629 सोलर पम्प स्थापित कर 4 लाख 80 हजार से अधिक परिवारों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। राज्य के 1480 स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रकाश की व्यवस्था के लिए 4.70 मेगावाट के ऑफ ग्रिड सोलर पॉवर प्लांटों की स्थापना की गई है। जिससे शासकीय स्वास्थ्य केन्द्रों अस्पतालों में प्रकाश की व्यवस्था के साथ साथ जीवन रक्षक मशीनें और वैक्सिन को सुरक्षित रखने के लिए फ्रीजर के लिए विद्युत की आपूर्ति की जा रही है। इस उपलब्धि के लिए क्रेडा को अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।सौर सुजला योजना में 1.17 लाख से अधिक सोलर सिंचाई पंप स्थापितक्रेडा द्वारा राज्य में पिछले चार वर्षो में प्रदेश में 71 हजार 753 सोलर कृषि पम्पों की स्थापना की गई। सोलर सिंचाई पम्पों से लगभग 86,104 हेक्टयेर रकबा सिंचित हुआ है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 3 एवं 5 हार्स पॉवर के एक लाख 17 हजार से अधिक सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना हो चुकी है। जिससे लगभग एक लाख 17 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि सिंचित हुई हो रही है। इस योजना से 1 लाख 26 हजार से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं। लघु और सीमांत किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सौर सिंचाई सामुदायिक परियोजना सतही जल स्त्रोत के निकट बनायी जा रही है। सतही जल के उपयोग से भू-जल का दोहन में भी कमी आएगी। पिछले चार वर्षों में 16 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से लगभग 911 किसानों की 976.17 हेक्टेयर भूमि में सिचाई सुविधा का लाभ मिल रहा है। इन परियोजनाओं में 59 सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना की गई है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 228 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजना में 334 सोलर सिंचाई पम्प स्थापित किये गए हैं, इसके माध्यम से 2639 किसानों की 2749 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई हो रही है।सौर सुजला में अधिकतम 2 लाख रूपए का अनुदानसौर सुजला योजना में किसानों को तीन एवं पांच हॉर्स पावर क्षमता के सोलर सिंचाई पंपों की स्थापना के लिए राज्य शासन द्वारा अनुदान अधिकतम 2 लाख रूपए तक का अनुदान दिया जा रहा है। तीन एचपी के पंप की स्थापना के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए हितग्राहियों को 7 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 12 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 18 हजार रूपए अंशदान देना होता है। इसी तरह 5 हॉर्स पावर तक के सिंचाई पंप के स्थापना के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के हितग्राही को 10 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 15 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 20 हजार रूपए अंशदान देना होता है। शेष राशि राज्य शासन द्वारा अनुदान के रूप में दी जाती है। अकेले प्रदेश में स्थापित सोलर पंपों से पिछले 5 वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी हुई है। सौर समुदायिक सिंचाई योजना के लिए लघु एवं सीमांत किसानों के ऐसे समूह जिनके पास कम से कम 10 हेक्टेयर कृषि भूमि है। प्रति हेक्टेयर 1 लाख 80 हजार रूपए का अनुदान दिया जा रहा है। इसी तरह 4 किलोवॉट मॉड्यूल सहित 5 टन स्टोरेज क्षमता के सोलर कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के लिए 4 लाख रूपए प्रति यूनिट अनुदान दिया जा रहा है।चार हजार 970 गौठानों में सोलर सिंचाई पंप स्थापितपिछले चार वर्षों में सिंचाई सुविधा के विस्तार के लिए नदी नालों के निकट स्थित खेतोें को सिंचित करने के लिए 59 वृहद सोलर पम्प स्थापित किये गए हैं। जिनके माध्यम से 976 हेक्टेयर सामुदायिक कृषि रकबा सिंचित हो रहा है। इसके अलावा सुराजी गांव योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के तहत 4970 गौठानों में सोलर पम्प स्थापित कर पशुओं के लिए पेयजल और चारागाहों में सिंचाई सुविधा की व्यवस्था की गई है। सोलर पेयजल योजना के अंतर्गत पिछले चार वर्षों में पहुंच विहीन गांवों में 6093 सोलर ड्यूल पम्प स्थापित कर 3 लाख से अधिक परिवारों को 24 घंटे शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा जल जीवन मिशन के अंतर्गत 4536 ड्यूल पम्प स्थापित कर ग्रामीण अंचलों के घरों में नल कनेक्शन के माध्यम से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। इस योजना में 12 मीटर एवं 9 मीटर ऊंचाई पर 10 लीटर क्षमता की पानी टंकी स्थापित कर घरों में पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत एक लाख 80 हजार परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरणपिछले चार वर्षों में गांवों और कस्बों के चौक-चौराहों, हाट बाजारों में 3155 सोलर हाईमास्ट लाईट स्थापित की गई हैं। इन्हें मिलाकर राज्य में 3924 सोलर हाई मास्ट की स्थापना हो चुकी है। इसी तरह दूरस्थ पहुंच विहीन क्षेत्रों में जहां बिजली का तार खींचकर बिजली नहीं पहुंचाई जा सकती, वहां के गांवों और मजरे टोलों के 80 हजार 859 घरों में सोलर लाईट के माध्यम से प्रकाश की व्यस्था की गई है। इन्हें मिलाकर सोलर संयंत्रों के माध्यम से 920 गांवों के एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरण किया जा चुका है।भवनों की छत पर 2232 सौर संयंत्र स्थापितवर्ष 2022-23 में सोलर पंप के माध्यम से नदी, एनीकटों में उपलब्ध जल से तालाबों को भरने की योजना को इंदिरा गांव गंगा योजना के रुप में लागू किया गया है। इस योजना में चार वर्षों में 21 गांवों के 33 तालाबों को भरने का काम पूरा किया गया। प्रदेश में 326 सौर ऊर्जा आधारित जल शुद्धिकरण संयंत्र की स्थापना की गयी है। राज्य के शासकीय एवं निजी भवनों की छत में ग्रिड कनेक्टेड 196 तथा ऑफ ग्रिड कनेक्टेड 2232 सौर संयंत्रों की स्थापना की जा चुकी है। इनके अलावा 433 मेगावॉट क्षमता के 37 वृहद स्तर पर ग्रिड कनेक्टेड सोलर पावर प्लांट स्थापित किए गये हैं। राज्य के ऐसे स्थानों में जहां नियमित बिजली आपूर्ति संभव नहीं हो पाती या जहां वोल्टेज फ्ल्कचुएशन की स्थिति बनी रहती है, वहां सब्जियों, फल-फूलों के सुरक्षित भंडारण के लिए 270 किलोवॉट क्षमता के 65 सोलर कोल्ड स्टोरेज स्थापित किए गए हैं।राज्य शासन के प्रोत्साहन से प्रदेश में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ रहा है। सौर सुजला योजना किसानों के मध्य काफी लोकप्रिय हो रही है। सोलर ऊर्जा के उपयोग के लिए राज्य शासन द्वारा विभिन्न योजनाओं में अनुदान दिया जा रहा है। आने वाले समय में छत्तीसगढ़ इस क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करेगा।
- छत्तीसगढ़ की नवीन औद्योगिक नीति 2019-2024 में फूड, एथेनॉल, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस, दवा, सोलर जैसे नए उद्योगों को प्राथमिकता दी गई हैं। सेवा क्षेत्र को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कृषि, लघु वनोपज, वनौषधियों, उद्यानिकी फसलों पर आधारित उद्योगोें को प्राथमिकता दी जा रही हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में उद्योग और व्यापार जगत के लोगों से विस्तृत विचार विर्मश के बाद तैयार की गई नई औद्योगिक नीति में किए गए इन प्रावधानों से छत्तीसगढ़ औद्योगिक नवाचार की संभावनाओं से भरपूर राज्य के रूप में तेजी से उभर रहा है।छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक नीति के अंतर्गत स्टार्टअप इकाईयों को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य स्टार्टअप पैकेज लागू किया गया है। मान्यता प्राप्त 688 स्टार्टअप इकाईयों में से 508 इकाईयों को बीते चार वर्षो में पंजीकृत कर विशेष प्रोत्साहन पैकेज का लाभ दिया जा रहा है। एम.एस.एम.ई सेवा श्रेणी उद्यमों में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिग स्टेशन, सेवा केन्द्र, बी.पी.ओ. 3-डी प्रिंटिंग, बीज ग्रेडिंग इत्यादि 16 सेवाओं को सामान्य श्रेणी के उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन दिए जाने का प्रावधान किया गया है। मेडिकल उपकरण तथा अन्य सामग्री निर्माण के लिए उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन देने का प्रावधान भी किया गया है। राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में 10 नवीन फूड पार्क की स्थापना की स्वीकृति दी गई है। सुकमा में 5.9 हेक्टेयर भूमि पर फूड पार्क की स्थापना के लिए आवश्यक अधोसंरचना निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है। राज्य में 200 फूड पार्क की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। प्रदेश के 146 विकासखण्डों में से 112 विकासखण्डों में फूड पार्क के लिए जमीन चिन्हांकित कर ली गई है। इसमें से 52 विकासखण्डों में 620 हेक्टेयर भूमि का अधिपत्य उद्योग विभाग को दिया गया है।उद्योगों को दी जा रही अनेक रियायतेंअनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिला वर्ग के उद्यमियों द्वारा 5 करोड़ के पूंजी लागत तक के नवीन उद्योग की स्थापना पर 25 प्रतिशत अधिकतम सीमा 50 लाख मार्जिन मनी अनुदान देने का प्रावधान। औधोगिक नीति 2019-24 में वनांचल उद्योग पैकेज के अंतर्गत स्थापित होने वाली इकाईयों को कुल निवेश का 50 प्रतिशत, 5 वर्षो में अधिकतम 50 लाख प्रति वर्ष अनुदान देने का प्रावधान। औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन नियमों का सरलीकरण किया गया था, जिसके अनुसार औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन भू-प्रब्याजी में 30 प्रतिशत की कमी की गई है। औद्योगिक क्षेत्रों में भू-भाटक में 33 प्रतिशत की कमी की गई है। राज्य सरकार द्वारा औद्योगिक इकाईयों को 423 करोड़ रूपए स्थाई पूंजी निवेश अनुदान और 141 करोड़ ब्याज अनुदान दिया गया है। ऐसे अनेकों प्रयासों के कारण छत्तीसगढ़ में नये उद्योगों की स्थापना हो रही है। राज्य में 10 साल या उससे अधिक समय से उत्पादनरत् औधोगिक इकाईयों को लीज पर आबंटित भूमि को फ्री-होल्ड कर निवेशकों को मालिकाना हक दिया जा रहा है, ऐसा करने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य है। उद्योग विभाग द्वारा एकल खिड़की प्रणाली से 56 सेवाएं ऑनलाइन दी जा रही हैं। ई-डिस्ट्रिक्ट के अंतर्गत 82 सेवाएं ऑनलाइन की गई हैं, जिसमें दुकान पंजीयन से लेकर कारोबार के लायसंेस तक शामिल हैं।छत्तीसगढ़ सरकार की नई औद्योगिक नीति में उद्योगों की स्थापना के नियमों का सरलीकरण किया गया है। उद्यमियों को अनेक रियायतें दी जा रही है। स्वीकृति की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया गया है, इससे प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है और पूंजी निवेश को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार द्वारा नई औद्योगिक नीति में ऐसे अनेक प्रावधान किये गए हैं, जिनसे नवीन उद्योगों की स्थापना के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहन मिल रहा है और नए उद्योग स्थापित हो रहे हैं। इससे प्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ रही है।इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में छत्तीसगढ़ देश के प्रथम 6 राज्यों में शामिल है। राज्य सरकार ने नई औद्योगिक नीति 2021-2024 में उद्योगों की स्थापना से जुड़े नियमों को सरल बनाया है। पहले उद्योगों को स्थापना से पूर्व की प्रक्रियाओं में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। विभागीय स्वीकृति, कागजी कार्यवाही एवं अन्य कठिनाईयों के कारण उद्योग की स्थापना की प्रक्रिया में विलंब होता था। नई औद्योगिक नीति में इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए उद्योगों को विभिन्न स्वीकृतियां प्रदान करने के लिए एकल खिड़की प्रणाली लागू की गई है एवं कठिन प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया है।प्रदेश में 21 हजार करोड़ रूपए से अधिक का पूंजी निवेश, 2218 नए उद्योग स्थापितछत्तीसगढ़ सरकार द्वारा औद्योगिक विकास को गति देने के लिए गए निर्णय के परिणाम स्वरूप राज्य में पिछले 4 वर्षो में 2218 नए उद्योग स्थापित हुए, जिसमें 21 हजार 457 करोड़ रूपए से अधिक का निवेश हुआ तथा 40 हजार 324 लोगों को रोजगार मिला है। प्रदेश में नए उद्योगों की स्थापना के लिए 167 एमओयू किये गए हैं। जिसमें 78 हजार करोड़ रूपए का पूंजी निवेश प्रस्तावित हैं। इससे 90 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। इन्हे मिलाकर वर्तमान स्थिति में उद्योगों की स्थापना के लिए 177 एम.ओ.यू. प्रभावशील हैं, जिसमें 89 हजार 597 करोड़ रूपए का पूंजी निवेश और 1 लाख 9 हजार 910 लोगों को रोजगार दिया जाना प्रस्तावित है। 90 से अधिक इकाईयों द्वारा उद्योग स्थापना की प्रक्रिया में 4 हजार 126 करोड़ से अधिक का पूंजी निवेश पर 11 इकाईयों ने व्यवसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है।कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण आधारित 486 इकाइयां स्थापितराज्य में साढ़े 3 सालों में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण पर आधारित 486 इकाइयां स्थापित हुई हैं जिसमें 9 सौ 31 करोड़ रूपए का पूंजी का निवेश हुआ है। इसी तरह से छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश में नई औद्योगिक नीति के क्रियान्वयन से रोजगार, स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। बीते चार सालों में राज्य के निर्यात में तीन गुना वृद्धि आई है। वर्ष 2019-20 में 9067.29 करोड़, वर्ष 2020-21 में 17199.97 करोड़ तथा वर्ष 20121-22 में 25241.13 करोड़ रूपए का चावल, आयरन एवं स्टील एल्यूमिनियम एवं एल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात हुआ है।उद्योगों की स्थापना के नियमों के सरलीकरण और उद्यमियों को दी जा रही रियायतों से प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है।आलेख- मनराखन मरकाम, आनंद सोलंकी
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विशेष लेख- नितिन शर्मा, सहायक संचालक
प्रत्येक माता-पिता की ख्वाइश होती है कि उनके बच्चे स्वस्थ्य रहें। लेकिन उनकी चिंता तब बढ़ जाती है जब बच्चे खाने-पीने में आनाकानी करते हैं। इससे बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। इसके साथ कुछ बच्चे जन्म से ही कुपोषित होते हैं। बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य और सुपोषण स्तर बना रहे इसके लिये मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर मध्याह्न भोजन में फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू किया गया है। फोर्टिफाइड चावल वितरण की शुरूआत कोण्डागांव जिले से हुई थी। फोर्टिफाईड चावल क्या होता है..ये कैसे बनाया जाता है और बच्चों के लिये ये कैसे उपयोगी है..इस लेख में आपको बताते हैं।
फूड या खाद्य पदार्थों के फोर्टीफिकेशन का क्या मतलब होता है...?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फूड फोर्टीफिकेशन का मतलब होता है टेक्नोलॉजी के माध्यम से खाने में विटामिन और मिनरल के स्तर को बढ़ाना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आहार में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके और इससे लोगों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिले।
चावल में पहले से ही पोषक तत्व होते है फिर उसके फोर्टीफिकेशन की क्या जरूरत है?
आम तौर पर चावल की मिलिंग और पॉलिशिंग के समय फैट और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर चोकर की परतें हट जाती है। चावल की पॉलिश करने से 75-90 प्रतिशत विटामिन भी निकल जाते है जिसके वजह से चावल के अपने पोषक तत्व खत्म हो जाते है। इसलिए चावल को फोर्टिफाई करने से उनमें सूक्ष्म पोषक तत्व न सिर्फ फिर से जुड़ जाते है बल्कि और ज्यादा मात्रा में मिलाये जाते है जिससे चावल और ज्यादा पौष्टिक बन जाता है।
कुपोषण से लड़ने के लिए जरूरी है चावल का फोर्टीफिकेशन
छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख चावल उत्पादक राज्य है। विश्व में 22 प्रतिशत चावल का उत्पादन भारत करता है और हमारे देश में 65 प्रतिशत आबादी रोज़ चावल का सेवन करती है। इतना ही नहीं, भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत प्रति माह 6.8 किलोग्राम है। भारत में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में चावल का वितरण भी बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। इसलिए देश की ज्यादातर आबादी के लिए चावल ऊर्जा और पोषण का एक बड़ा स्रोत है और कुपोषण से लड़ने के लिए चावल का फोर्टीफिकेशन एक कारगर रणनीति है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देश चावल के फोर्टीफिकेशन की रणनीति को लागू कर रहे है।
चावल को ऐसे करते हैं फोर्टीफाई ...
चावल को फोर्टीफाई करने के लिए सबसे पहले सामान्य चावल का पाउडर बनाया जाता है और उसमे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन B 12, फोलिक एसिड और आयरन, FSSAI के मानकों के अनुसार मिलाये जाते है। चावल के पाउडर और विटामिन/मिनरल के मिश्रण को मशीनों द्वारा गूंथा जाता है और एक्सट्रूजन नामक मशीन से चावल के दानों फोर्टिफाइड राइस कर्नेल FRK को निकाला जाता है। इस FRK के एक दाने (ग्राम) को सामान्य चावल के 100 दानों (ग्राम) के अनुपात में मिलाया जाता है जिसे फोर्टीफाइड चावल कहते है।
फोर्टीफाइड चावल खाने के फायदे...
फोर्टीफाइड चावल में कई पोषक गुण है क्यूंकि इसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन B 12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व या माइक्रोन्युट्रिएंट्स मिलाये जाते है। ये पोषक तत्व अनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बचाता है।
आयरन अनीमिया से बचाव करता है, फोलिक एसिड खून बनाने में सहायक होता है और विटामिन B 12 नर्वस सिस्टम के सामान्य कामकाज में सहायक होता है। फोर्टीफाइड चावल के नियमित सेवन से बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है।
ऐसे पकाया जाता है फोर्टीफाइड चावल
अधिकतम पौष्टिक लाभ के लिए फोर्टीफाइड चावल को पर्याप्त पानी में पकाना चाहिए और बचे हुए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। अगर चावल को बनाने से पहले पानी में भिगोया गया हो तो चावल को उसी पानी में पकाना चाहिए। फोर्टीफाइड चावल को हर बार इस्तेमाल करने के बाद साफ और सूखे हवा-बंद डब्बे में रखना चाहिए।
फोर्टीफाइड चावल कहाँ मिलता है?
फोर्टीफाइड चावल सरकारी राशन की दुकानों पर मिलता है। यह चावल आंगनवाड़ी केंद्रों पर दिए जाने वाले पूरक पोषण आहार और स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में भी दिया जाता है।
फोर्टीफाइड चावल से संबंधित कुछ भ्रांतियां और तथ्य
भ्रान्ति: फोर्टीफाइड चावल प्लास्टिक चावल है ।
तथ्यः चावल को थ्त्ज्ञ के साथ 100ः1 के अनुपात में मिलाकर फोर्टीफाइड चावल तैयार किया जाता है। थ्त्ज्ञ को चावल के आटे और प्रीमिक्स से तैयार किया जाता है जिसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 होता है जिसे एक साथ मिश्रित किया जाता है। इसमें प्लास्टिक जैसा कुछ भी नहीं होता और यह उपभोग करने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक है।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल के स्वाद, सुगंध और पकाने की विधि में परिवर्तन होता है।
तथ्यः स्वाद, सुगंध और दिखने में फोर्टीफाइड चावल सामान्य चावल के जैसा ही होता है। इसे सामान्य चावल की तरह ही पकाकर सेवन करना चाहिए।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल में पोषक तत्व खाना पकाने के दौरान नष्ट हो जाते हैं।
तथ्यः फोर्टीफाइड चावल पकाने के दौरान अपने पोषक तत्वों को बरकरार रखता है। अत्यधिक पानी में धोने और पकाने के दौरान भी पोषक तत्व अवशेष बरकरार रहते हैं। -
रायपुर/ छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ी संस्कृति सभ्यता और लोक कला को बढ़ावा देने के साथ ही आदिम संस्कृति एवं कला को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास निरंतर जारी है। इसी कड़ी का हिस्सा छत्तीसगढ़ में आयोजित होने वाला राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव भी है। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का यह तीसरा आयोजन है, जिसमें छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों से भी आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पारंपरिक कला और संस्कृति की छटा बिखेरने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जुटते हैं। इस बार यह आयोजन राज्योत्सव के साथ ही 1 से 3 नवंबर तक राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में किया जा रहा है। इस बार भी अनेक आदिवासी समूह अपनी पहचान के पर्याय और विशेष अवसरों पर प्रदर्शित किए जाने वाले आदिवासी लोक नृत्यों को लेकर पहुंचेंगे। आयोजन के दौरान होने वाले कुछ खास नृत्यों से जुड़ी जानकारी यहां दे रहे हैं:-
दंडामी माड़िया नृत्य - छत्तीसगढ़: बस्तर के दंडामी माड़िया नृत्य को गौर माड़िया नृत्य के नाम से जाना जाता है। इस नृत्य में युवक अपने सिर पर गौर नामक पशु के सींग से बना मुकुट, कोकोटा पहनते हैं, जो कौड़ियों और कलगी से सजा रहता है। युवकों के साथ नृत्य करने वाली युवतियां अपने सिर पर पीतल का मुकुट (टिगे) पहनती हैं और हाथ में लोहे की सरिया से बनी एक छड़ी, गूजरी बड़गी रखती हैं, जिसके ऊपर घुंघरू लगे रहते हैं, जिसे जमीन पर पटकते हुए आकर्षक ध्वनि उत्पन्न करती है।
माओ पाटा नृत्य - छत्तीसगढ़: बस्तर के मुरिया जनजाति में अनेक प्रदर्शनकारी कलाएं प्रचलित हैं, जो अत्यंत मनोरम तथा लयात्मकता से परिपूर्ण हैं। माओ पाटा मुरिया जनजाति का एक ऐसा ही नृत्य है, जिसमें नाटक के भी लगभग सभी तत्व विद्यमान हैं। इस नृत्य को गौर मार नृत्य भी कहा जाता है। माओ पाटा का आयोजन घोटुल के प्रांगण में किया जाता है, जिसमें युवक और युवतियां सम्मिलित होते हैं। नर्तक विशाल आकार के ढोल बजाते हुए घोटुल में प्रवेश करते हैं। इस नृत्य में गौर पशु है तथा पाटा का अभिप्राय कहानी है, जिसमें गौर के पारंपरिक शिकार को प्रदर्शित किया जाता है। पोत से बनी सुंदर माला, कौड़ी और भृंगराज पक्षी के पंख की कलगी जिसे जेलिंग कहा जाता है, युवक अपने सिर पर सजाए रहते हैं और युवतियां पोत और धातुई आभूषण कंघियां और कौड़ी से श्रृंगार किए हुए रहती हैं। एक व्यक्ति गौर पशु का स्वांग लिए रहता है, जिसका नृत्य के दौरान शिकार किया जाता है।
हुलकी नृत्य - छत्तीसगढ़: हुलकी नृत्य बस्तर के कोंडागांव और नारायणपुर जिले में निवास करने वाली मुरिया जनजाति का पारंपरिक नृत्य है। इसमें स्त्री-पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं। हुलकी नृत्य के बारे में यह मान्यता है कि यह नृत्य आदि देवता लिंगोपेन को समर्पित है। इस नृत्य में सवाल-जवाब की शैली में गीत गाये जाते हैं, जिसमें दैवीय मान्यताओं, किंवदतियों एवं नृत्य की अवधारणाओं से संबंधित प्रसंग पर सवाल-जवाब होते हैं। इस नृत्य का मुख्य वाद्य यंत्र डहकी पर्राय है, जिसका वादन पुरूष नर्तक करते हैं और महिलाएं चिटकुलिंग का वादन करती है। इस नृत्य में इसके अलावा कोई और वाद्य यंत्र निषिद्ध है। पारंपरिक रूप से हुलकी नृत्य का आरंभ हरियाली त्यौहार के बाद युवागृह से प्रारंभ होता है जो क्वांर महीने तक चलता है।
छाऊ नृत्य - झारखण्ड: छाऊ नृत्य भारत के तीन पूर्वी राज्यों में लोक और जनजातीय कलाकारों द्वारा किया जाने वाला एक लोकप्रिय नृत्य रूप है, जिसमें मार्शल आर्ट और करतबों की भरमार रहा करती है। छाऊ नृत्य का नामकरण संबंधित क्षेत्र के आधार पर किया जाता है। पश्चिम बंगाल में पुरूलिया छाऊ, झारखंड में सराइकेला छाऊ और ओडिशा में मयूरभंज छाऊ। इसमें से पहले दो प्रकार के छाऊ नृत्यों में प्रस्तुति के अवसर पर मुखौटों का उपयोग किया जाता है, जबकि तीसरे प्रकार के मयूरभंज छाऊ में मुखौटे का प्रयोग नहीं होता है। इस नृत्य में रामायण, महाभारत और पुराण की कथाओं को कलाकारों द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। इसमें गायन और संगीत का प्रमुख स्थ्ज्ञान है, किन्तु प्रस्तुति के समय लगातार चल रही वाद्य संगीत की विशेषता प्रधान रहती है। नृत्य में प्रत्येक विषय की शुरूआत नृत्य एक छोटे से गीत से होती है, जिसमें उस विषय वस्तु का परिचय होता है। छाऊ नृत्य केवल पुरूष कलाकारों द्वारा ही किया जाता है। छाऊ ने अपने कथावस्तु, कलाकारों की ओजस्विता, चपलता और संगीत के आधार पर न सिर्फ भारतवर्ष वरन विदेश में भी अपनी खास पहचान बनाई है।
पाइका नृत्य - झारखण्ड: मुंडा झारखंड की एक प्रमुख जनजाति है। मुंडा जनजाति झारखंड के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा और असम में भी निवास करती है। वर्तमान में मुख्यतः कृषि पर आधारित जीविकोपार्जन करने वाले मुण्डा लोगों को प्रदर्शनकारी कलाओं में पाइका नृत्य का विशेष स्थान है। पाइका युद्ध कला से संबंधित नृत्य है जिसे मुण्डा, उरांव, खड़िया आदि आदिवासी समाजों के नर्तकों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में केवल पुरूष ही हिस्सा लेते हैं। नर्तक योद्धाओं के पोषाक धारण करते हैं और अपने हाथों में ढाल, तलवार आदि अस्त्र लिए रहते हैं। नृत्य के अवसर पर प्रयोग होने वाले वाद्य ढाक, नगाड़ा, शहनाई, मदनभैरी आदि है। पाइका नृत्य विवाह उत्सवों के साथ ही अतिथि सत्कार के लिए सामान्यतः किया जाता है।
दमकच नृत्य - झारखण्ड: दमकच झारखंड राज्य के आदिवासी और लोक समाजों का एक लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य मुख्यतः विवाह के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है जिसमें महिलाएं और पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं। पुरूष वर्ग इस नृत्य में गायक वादक और नर्तक के रूप में महिलाओं का साथ देते हैं। इस नृत्य में कन्या और वर को भी पारंपरिक रूप से सम्मिलित किया जाता है। दमकच नृत्य में उपयोग किए जाने वाले वाद्य में ढोल, नगाड़ा, ढाक, मांदर, बांसुरी, शहनाई और झांझ आदि सम्मिलित है। यह नृत्य कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के देवउठनी एकादशी से शुरू होकर आषाढ़ मास के रथयात्रा तक किया जाता है।
बाघरूम्बा नृत्य - असम: बाघरूम्बा असम की बोडो जनजाति का एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय नृत्य है। बोडो असम का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है, जो वहां की कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग 40 प्रतिशत है। बोडो जनजाति की ज्ञान परंपराओं में अनेक सर्जनात्मक और प्रस्तुतिकारी कलाएं सम्मिलित हैं, जिनमें बाघरूम्बा नृत्य का उल्लेखनीय स्थान है। बाघरूम्बा नृत्य महिलाओं द्वारा त्यौहारों के परिधान धारण करती है। इस नृत्य में ढोल जिसे स्थानीय भाषा में खाम कहा जाता है, प्रमुख वाद्य है, जिसे सिफुंग अर्थात् बांसुरी और बांस में बने गोंगवना और थरका आदि वाद्यों के साथ बजाया जाता है। बोडो लोगों का प्रकृति प्रेम इस नृत्य में भी मुखरित होता है, जिसे इस नृत्य में पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, तितली, बहती हुई नदी की धारा, वायु आदि को दर्शाती नृत्य रचनाओं में देखा जा सकता है।
मरयूराट्टम नृत्य - केरल: मरयूराट्टम केरल की माविलन जनजाति का एक नृत्य है, जिसे केरल और तमिलनाडू के सीमा क्षेत्र में स्थित मरायूर नामक स्थान में निवास करने वाली माविलन जनजाति के लोगों के द्वारा किया जाता है। मरायूर केरल के पल्ल्ककाड़ जिले में स्थित है, जहां इस नृत्य को मुख्यतः विवाह समारोहों और उत्सवों के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य में स्त्री और पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं। -
डॉ. दिनेश मिश्र
*दीपावली का दूसरा दिनकल सुबह से मैसेज तो बहुत आये ,लेकिन मेहमान कोई नहीं आया.* कभी सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं.. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं..
दो दिन से व्हाट्स एप, और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते-करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है.
* मेसेज पर मैसेज ,संदेशें आते जा रहे हैं.. बधाईयों का तांता लगा हुआ है.. लेकिन मेहमान नदारद है!
ये है आज के दौर की असली दीवाली..
मित्रों, घर के आसपास के पड़ोसियों को अगर छोड़ दें तो त्यौंहार पर मिलने-जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है..
कुछ दोस्त और रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते हैं, लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है.. वो खुद नही आते!
दरअसल, घर अब घर नहीं रहा.. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह हो चला है, घर एक स्लीप स्टेशन है.. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस.. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये.. घर अब सिर्फ घरवालों का है..
घर का समाज से कोई संपर्क नहीं है.. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं..
हमें स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नहीं रहा.जब शाम होते ही घर पर त्योहारों में मिलने जुलने वालों की लाइन लग जाती थी.त्योहारों के दिन सबेरे से नए कपड़े पहिन कर उत्साह से मेहमानों का इंतजार होने लगता था. एक दो दिन नही बल्कि सप्ताह भर लोग एक दूसरे के घर जाते मिलते थे और एक दूसरे के ,घरों में बने व्यंजनों का रसास्वादन करते थे.पिछले कुछ वर्षों से घर में बुजुर्ग तैयार होकर बैठते तो हैं ,पर कुछ घण्टो के बाद नए कपड़ों को उतार कर वापस रोजमर्रा के कपड़े पहिन लेते हैं कि अब ज्यादा कोई मिलने नहीं आता . मिलने जुलने साथ बैठ कर गप मारने, ठहाके लगा कर त्यौहार मनाने के दिन पता नहीं कब वापस आएंगे.
अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फा़सला सा बन गया है.किसी के पास समय नहीं है.हर आदमी आभासी दुनिया में मस्त हो चला है फेसबुक,, सोशल मीडिया में दोस्तों की कमी नहीं है ,पर घर पर मिलने जुलने आने वाला कोई नहीं है.
अब वैसे भी शादी घर के आंगन की बजाय मेरिज हाल में होती है., बर्थडे ,मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है.. बीमारी में नर्सिंग होम में उपस्थिति दर्ज करा खैरियत पूंछी जाती है.. और तो और अंतिम आयोजन के लिए लोग सीधे श्मशान घाट ही पहुँच जाते हैं..!
और यदि न जा पाए तो इन सब कामों के लिए व्हाट्सएप तो है ही.
इस जमाने में अब कैश तो जेब में नहीं है , एटीएम ,पे टी एम,गूगल पे ,कार्ड, है ही..होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है. सारी बातें,व्यवहार मशीन से,मोबाइल से होने लगे हैं
इस दीवाली जरा इस सवाल पर गौर करियेगा.. कुछ नहीं तो एक दोस्त के घर हो आइयेगा.. आपस में मिलना जुलना आना जाना शुरू करिए.
अगले साल से आपके घर भी कोई आने लगेगा ,हँसी, खुशी, ठहाके गूंजने लगेंगे -
*आलेख-आनंद सोलंकी, घनश्याम केशरवानी*
घटती हरियाली, धरती के बढ़ते तापमान और पर्यावरण प्रदूषण ने आज दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन की बड़ी समस्या पैदा कर दी है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान से जहां जलवायु और मानव जनजीवन प्रभावित हो रहा है, वहीं कृषि उत्पादन पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वनस्पतियों की कई प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। इस वैश्विक समस्या के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लम्बे समय से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इनका अपेक्षित प्रभाव नजर नहीं आ रहा है। हाल के वर्षाें में दुनिया के कई हिस्से हीट वेव से प्रभावित हो रहे हैं।
चवालिस प्रतिशत वनों से आच्छादित भूमि वाला छत्तीसगढ़ देश के आक्सीजोन के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यूं तो छत्तीसगढ़ में हर वर्ष बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इसी कड़ी में एक नई पहल करते हुए राज्य में क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को कम करने और हरियाली के प्रसार के साथ साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री वृ़क्षारोपण प्रोत्साहन योजना की शुरूआत की है। छत्तीसगढ़ में 1 जूून 2021 से लागू की गई इस योजना‘ से किसानों और अन्य भू-धारकों को जोड़ने के लिए कई व्यावहारिक कदम उठाए गए हैं। किसानों को जोड़ने और उनकी आय सुनिश्चित करने के लिए वृक्ष कटाई के नियम सरल किए गए हैं।
इस योजना से जहां वृक्षों से मिलने वाली बहुमूल्य लकड़ी और फलों से आय अर्जित करने का नया जरिया किसानों और भू-स्वामियों को मिलेगा, वहीं इससे काष्ठ के उत्पादन में वृद्धि होगी। इससे रोजगार के नए अवसर भी बढ़ेंगे। इस योजना से निजी भूमि, खाली पड़ी जमीन पर हरियाली बढेगी, आसपास का वातावरण स्वच्छ होगा, इमारती लकड़ी, गैर इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी के लिए जंगलों पर दवाब कम होगा और हमारे बहुमूल्य वनों का संरक्षण भी हो सकेगा। साथ ही भू-जल स्तर में भी वृद्धि होगी।
*मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना*निजी भूमि पर किसान, वन अधिकार मान्यता पत्र प्राप्त हितग्राही पट्टे की जमीन पर, गैर वनीय क्षेत्रों की खाली जमीन पर शासकीय विभागों एवं ग्राम पंचायतों, वन प्रबंधन समितियों द्वारा इमारती, गैर इमारती प्रजातियों के वृक्षों, फलदार वृक्ष, लघु वनोपज, और औषधिय प्रजातियों के वृ़क्षों का रोपण इस योजना में किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ के सभी नागरिक, सभी ग्राम पंचायतें एवं संयुक्त वन प्रबंधन समितियां इस योजना का लाभ ले सकती हैं। मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत किसानों के लिए यह प्रावधान किया गया है कि जिन किसानों ने पिछले खरीफ सीजन में धान की फसल ली है, यदि वे धान की फसल के बदले अपने खेतों में वृक्षारोपण करते हैं, तो उन्हें आगामी 3 वर्षों तक प्रतिवर्ष 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।
ग्राम पंचायतें यदि अपने पास भूमि एवं राशि से वाणिज्यिक वृक्षारोपण करती है, तो एक वर्ष बाद सफल वृक्षारोपण की दशा में संबंधित ग्राम पंचायतों को शासन की ओर से 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इससे भविष्य में पंचायतों की आय में वृद्धि हो सकेगी। इसी तरह संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के पास उपलब्ध राशि से यदि वाणिज्यिक आधार पर राजस्व भूमि पर वृक्षारोपण किया जाता है, तो पंचायत की तरह ही संबंधित समिति को एक वर्ष बाद वृक्षारोपण सफल होने पर 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। वृक्षों को काटने व विक्रय का अधिकार संबंधित समिति का होगा। वृक्षारोपण करने वाले किसानों, ग्राम पंचायतों और वन प्रबंधन समितियों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए सीधे उनके खातों में राशि देने का प्रावधान योेजना में किया है।
*निजी भूमि पर रोपित तथा पूर्व से खड़े वृक्षों की कटाई के नियम हुए आसान*
भू-स्वामियों द्वारा स्वयं के खाते में कृषि के रूप में रोपित वृक्षों और प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों के कटाई के नियमों का सरलीकरण किया गया है। अब स्वयं की भूमि पर रोपित किए गए वृक्षों की कटाई के लिए भू-स्वामी को एसडीएम को केवल सूचना देनी होगी। इसमें यह ध्यान रखा गया है कि किसानों और भू-स्वामियों को वृक्ष कटाई के लिए शासकीय कार्यालयों के चक्कर काटना नहीं पड़े इसलिए अनुमति देने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है। वृक्षों की कटाई से मिलने वाली लकड़ी की कीमत भी एक माह की अवधि में दिलाने के प्रावधान शामिल किए गए हैं।
वृक्ष प्राकृतिक रूप से उगे होने की स्थिति में वृक्षों की कटाई के लिए भू-स्वामी को एसडीएम से लिखित अनुमति प्राप्त करनी होगी। प्राकृतिक रूप से उगे वृक्ष की कटाई के लिए एसडीएम को आवेदन देने के बाद राजस्व तथा वन विभाग का अमला निरीक्षण कर 30 दिन में प्रतिवेदन देगा। एसडीएम आवेदन प्राप्ति के 45 दिन के भीतर अपनी अनुशंसा आवेदक तथा वन मंडलाधिकारी भेजेंगे, लिखित अनुशंसा नहीं मिलने पर स्मरण हेतु आवेदन दिया जाएगा, यदि अगले 30 कार्य दिवस में लिखित निर्णय प्राप्त नहीं होता है, इसे अनुशंसा मानकर आवेदक अपनी जमीन पर उपजे वृक्षों की कटाई के लिए स्वतंत्र होगा। एक कैलेण्डर वर्ष में एक खाते में प्राकृतिक रूप से उगे चार वृक्ष प्रति एकड़ के मान से अधिकतम 10 वृक्षों की कटाई के लिए एसडीएम अनुशंसा कर सकेंगे।
भू-स्वामी द्वारा अपने खाते में कृषि के रूप में रोपित वृक्षों की कटाई के लिए एसडीएम एवं वन परिक्षेत्र अधिकारी को कटाई से एक माह पूर्व निर्धारित प्रारूप में सूचना देना होगा। जिसका दस्तावेजी एवं भौतिक सत्यापन पटवारी एवं वनपाल के माध्यम से कराया जाएगा। भू-स्वामी द्वारा लिखित में इच्छा व्यक्त करने पर रोपित वृक्षों की कटाई वन विभाग द्वारा की जा सकेगी। वन मंडलाधिकारी द्वारा प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों के कटाई के संबंध में सक्षम अनुशंसा और भू-स्वामियों द्वारा स्वयं के खाते में कृषि के रूप में रोपित वृक्षों की कटाई के लिए लिखित रूप में इच्छा व्यक्त किए जाने पर आवेदन प्राप्ति के 30 कार्य दिवस के भीतर निर्धारित दर पर लकड़ी के मूल्य की गणना कर मूल्य का 90 प्रतिशत भू-स्वामी के बैंक खाते में और 10 प्रतिशत वन विभाग के खाते में जमा करेंगे। वन विभाग में जमा की जाने वाली राशि से प्रत्येक काटे जाने वाले वृक्ष के 10 गुना संख्या में वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण एवं उनका रख-रखाव किया जाएगा।
आने वाले समय में वाणिज्यिक, औद्योगिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहन मिलने के साथ, पर्यावरण में सुधार, जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों को कम करने तथा वृक्षारोपण के माध्यम से कृषकों की आय में वृद्धि करते हुये उनके आर्थिक सामाजिक स्तर में सुधार लाने में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना मील का पत्थर साबित होगी।
- आलेख- प्रकाश उपाध्यायफिल्म इंडस्ट्री में जब भी खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों की चर्चा होती है, तो उसमें हेमामालिनी का नाम भी शामिल होता है। आज वे सांसद हैं, लोकप्रिय राजनेता हंै, बेहतरीन क्लासिकल डांसर और अभिनेत्री तो हैं ही। वे जब भी टीवी के रियलिटी शो में आती हैं, फिर वह चाहे डांस शो हो या फिर म्यूजिकल शो...अपना अलग ही रंग जमा जाती हैं। उनके नाम के साथ जुड़ा ड्रीमगर्ल शब्द आज भी उन पर चरितार्थ होता है। आज वे अपना 74 वां जन्मदिन मना रही हैं।हेमा ने फिल्मी दुनिया में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट कदम रख दिया था। वह मजह 14 साल की थीं जब फिल्मों में आईं और देखते ही देखते वे सिनेमा जगत की ड्रीम गर्ल बन गईं। फिल्मी दुनिया में शानदार काम करने के अलावा, हेमा धर्मेंद्र के साथ अपने रिश्ते की वजह से हमेशा चर्चा में रहीं। उनकी प्रेमकथा किसी परीकथा जैसी ही है।हेमा मालिनी और धर्मेंद्र की पहली मुलाकात के.ए अब्बास की फिल्म के प्रीमियर के दौरान हुई थी। इस मुलाकात के बारे में हेमा मालिनी ने अपनी बायोग्राफी 'हेमा मालिनी बियोंड द ड्रीम गर्ल' में बताया है। इसमें बताया गया है कि उन दिनों हेमा की एक फिल्म रिलीज होने वाली थी। इसी वजह से फिल्म के प्रीमियर के इंटरवल के दौरान हेमा को स्टेज पर बुलाया गया। यहां पर ही धर्मेंद्र ने हेमा को पहली बार देखा और उन पर अपना दिल हार बैठे। तब धर्मेंद्र ने हेमा को देखकर पंजाबी में कहा था, 'कुड़ी बड़ी चंगी है।' हालांकि, हेमा बस यह सुनकर आगे बढ़ गई थी। एक इंटरव्यू में हेमा मालिनी यह खुलासा कर चुकी हैं कि उन्हें फिल्म 'प्रतिज्ञाÓ की शूटिंग के दौरान धर्मेन्द्र से प्यार हुआ था। हालांकि 19 साल की उम्र में ही धर्मेन्द्र के घर वालों ने उनकी शादी प्रकाश कौर से करा दी थी। उस वक्त तक धर्मेन्द्र ने एक्टिंग की दुनिया में कदम भी नहीं रखा था। पहली शादी से धर्मेन्द्र के चार बच्चे भी हैं।हेमा और धर्मेन्द्र के रिश्ते के बारे में जैसे ही उनके घरवालों को पता चला, उन्होंने तुरंत हेमा की शादी दूसरे जगह तय करने का निर्णय कर लिया था। हेमा की शादी का पता चलते ही धर्मेन्द्र तुरंत हेमा मालिनी के घर पहुंच गए और उन्होंने हेमा को किसी दूसरे से शादी नहीं करने के लिए राजी कर लिया। बात यही खत्म नहीं हुई। प्रकाश कौर ने धर्मेन्द्र को तलाक देने से इंकार कर दिया। पर धर्मेन्द्र कहां मानने वाले थे। उन्होंने बीच का रास्ता निकाला और धर्म परिवर्तन कर हेमा से शादी कर ली। उनके दो बच्चे हैं ईशा और आहना और दोनों ही बेटियां कुशल क्लासिकल डांसर हैं। हालांकि इस शादी से हेमा के कॅरिअर पर बुरा असर पड़ा, पर समय बहुत बड़ा मरहम होता है और यही हुआ।इस तरह आई राजनीति मेंड्रीम गर्ल हेमा मालिनी का सिनेमा से सियासत का तक का सफर काफी दिलचस्प रहा है। वह इस समय उत्तर प्रदेश के मथुरा से सांसद हैं। हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि हेमा कभी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं। हेमा को राजनीति का रास्ता दिखाने वाले शख्स विनोद खन्ना थे। साल 2017 में जब विनोद खन्ना का निधन हुआ तो उनका जिक्र करते हुए हेमा मालिनी इमोशनल हो गई थीं। इसी वक्त उन्होंने बताया था कि वे किस तरह विनोद खन्ना की कर्जदार हैं। मशहूर लेखक रशीद किदवई ने अपनी किताब 'नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्सÓ में हेमा मालिनी के बारे में लिखा है, 'हेमा को राजनीति के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। यहां कैसे काम होता। एक दिन विनोद खन्ना का फोन आया। उन्होंने कहा- मैं गुरदासपुर से चुनाव लड़ रहा हूं। मैं चाहता हूं तुम मेरा चुनाव प्रचार करो। उन्होंने तुरंत मना कर दिया, क्योंकि उनको राजनीति के बारे में जरा भी जानकारी नहीं थी।Ó विनोद खन्ना से बातचीत के दौरान दोनों की दोस्ती हो गई और यहीं से हुई थी हेमा के राजनीतिक करियर की शुरुआत।--------
- जी.एस. केशरवानीआनंद सोलंकीछत्तीसगढ़िया ओलंपिक पूरे राज्य में शुरू हो गया है। त्यौहारों के इस खुशनुमा माहौल में युवा से लेकर बुजुर्ग इन खेलों में उत्साह से हिस्सा ले रहे हैं। एक तरफ प्रकृति की हरियाली वहीं दूसरी ओर फसल के रूप में प्रकृति का उपहार इस उत्साह को कई गुना बढ़ा रहा है। पहली बार छत्तीसगढ़ में आयोजित हो रहे इन खेलों में लोगों का जुड़ाव स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ में इन खेलों के प्रति रूचि इस बात से पता चल रही है कि इन खेलों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को अपना बचपन और युवावस्था फिर से याद आने लगा है।हमारी संस्कृति में परम्परागत खेल रचे बसे हैं। यहां के लोक जीवन में ये खेल न केवल मनोरंजन का जरिया हैं बल्कि ये शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ही हमें ताजगी और स्फूर्ति भी देते हैं। पिट्टुल, गिल्ली -डंडा, खो-खो, कबडडी जैसे खेल यहां गांव-गांव खेले जाते हैं। इनमें खो-खो और कबड्डी के खेल में खिलाड़ियों की चुश्ती और फुर्ती देखते ही बनती है। वहीं बालिकाओं और महिलाओं में फुगड़ी का खेल अत्यंत लोकप्रिय है।छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में उन खेलों को शामिल किया गया है जो यहां परम्परागत रूप से गांवों-और शहरों में खेले जाते हैं। लोक रूचि के इन खेलों को नई पहचान दिलाने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर इस खेल प्रतियोगिता की रूप रेखा तैयार की गई। कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही इन खेलों के आयोजन का किया जा रहा है। इस आयोजन में लोक रूचि के 14 परंपरागत खेलों को शामिल किया गया है।पूरे तीन महीने यानी 6 अक्टूबर से 6 जनवरी 2023 तक गांव से लेकर शहर तक पूरा छत्तीसगढ़ खेल मय रहेगा। परम्परागत खेलों के आयोजन से यहां नई खेल संस्कृति भी विकसित होगी। इस आयोजन से जहां खेल के प्रति जगरूकता आएगी वहीं खेल के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को आगे आने का अवसर मिलेगा। लोक रूचि और लोक महत्व के इस आयोजन से छत्तीसगढ़ देश में एक नई खेल ताकत के रूप में उभर कर सामने आएगा।छत्तीसगढ़ में खेलों को बढ़ावा देने के लिए खेलबो-जीतबो गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का नारा भी दिया गया है। छत्तीसगढ़ नई खेल क्रांति की ओर बढ़ रहा है। आने वाले वर्षों में यह प्रदेश को खेल गढ़ के रूप में नई पहचान मिलेगी इसकी शुरूआत हो चुकी है। गुजरात में चल रहे 36वें नेशनल गेम में आकर्षी कश्यप गोल्ड मेडल जीत कर यहां के बेडमिंटन खिलाडियों को नई पहचान दी है। गुजरात में आयोजित 36 वीं राष्ट्रीय खेल में पहला गोल्ड मैडल स्केटिंग स्पर्धा में अमितेष मिश्रा ने जीता है। छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी अब तक 7 मेडल जीत चुके हैं। जिसमें दो गोल्ड, 3 सिल्वर और दो कांस्य पदक शामिल है।छः चरणों में होने जा रहा छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के हर चरण में उम्मीद है कि लोगों का जुनून देखने को मिलेगा। इस प्रतियोगिता का अंतिम चरण राज्य स्तरीय होगा। राजीव गांधी युवा मितान क्लब स्तर पर चल रही इस खेल प्रतियोगिता में हार-जीत से बढ़कर खेल भावना भी दिख रही है। कई वाकया ऐसे भी नजर आए कि दो सगे भाई और दो मितान एक दूसरे के खिलाफ खेले और खेल समाप्त होते ही गले मिल कर एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं।छत्तीसगढ़ में लगातार खेल सुविधाओं में इजाफा हो रहा है। नई-नई अकादमियां प्रारंभ हो रही हैं वहीं नई अधोसंरचना पर भी काम हो रहा है। तीरंदाजी, हॉकी, बेडमिटन की अकादमी सभी के लिए पहल की गई है। यहां न सिर्फ खेल सुविधाएं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जा रही है। हाल में ही बेडमिटन और शतरंज की प्रतियोगिताएं आयोजित की गई जिसमें देश के खिलाडियों के साथ ही अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने भी भाग लिया। इसके साथ यहां क्रिकेट की रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया।
- *स्वर्गीय अनुपम मिश्र और छत्तीसगढ़ के तालाबों की सुंदर परंपरा पर उनका आख्यान*गांधीवादी विचारक स्व. श्री अनुपम मिश्र की स्मृति में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वाटर रिचार्जिंग में अच्छा कार्य करने पर सम्मानित करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्वर्गीय श्री मिश्र को यह सच्ची श्रद्धांजलि है। अपनी किताब ‘‘आज भी खरे हैं तालाब’’ के माध्यम से मिश्र जी ने देश भर के साथ ही छत्तीसगढ़ में तालाबों की सुंदर परंपरा का सुंदर आख्यान प्रस्तुत किया है। इससे हमारे पूर्वजों की दूरदृष्टि तथा परंपरा के प्रति उनके गहरे सम्मान की स्मृतियां उभर आती हैं।छत्तीसगढ़ में छह कोरी छह आगर के तालाबों की परंपरा रही है अर्थात 126 तालाब। श्री मिश्र ने अपनी किताब में आरंग, डीपाडीह, मल्हार आदि के तालाबों का जिक्र किया है जहां अब भी तालाब अक्षुण्ण हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद पूरे प्रदेश में इन तालाबों को सहेजने का कार्य किया जा रहा है। सरोवरों की नगरी कहे जाने वाले धमधा में तालाबों से अतिक्रमण हटाये जा रहे हैं। पूरे प्रदेश में सरोवरों को निखारा जा रहा है।सरोवरों को बचाने और सहेजने की यह पहल हमारी परंपरा का हिस्सा रही है। अनुपम मिश्र अपनी किताब में लिखते हैं कि छत्तीसगढ़ में ग्यारह पूर्णिमा तालाब खोदने श्रमदान कार्य के लिए हैं लेकिन पौष की पूर्णिमा इसे सहेजने के लिए दान करने का। छेरछेरा के दिन धान का दान लिया जाता था और इसे तालाबों तथा सार्वजनिक स्थलों को सहेजने के लिए उपयोग किया जाता था।तालाबों के ब्याह की परंपरा भी यहां थी और तालाबों में पानी भरे रहने की मंगल कामना के गीत भोजली गीत में हैं। एक जगह जिक्र आया है कि इतना पानी तालाब में हो कि भोजली विसर्जित हो पाए। छत्तीसगढ़ का रामनामी संप्रदाय तालाब निर्माता के रूप में प्रसिद्ध रहा। इन्होंने पूरे प्रदेश में घूमघूमकर तालाब बनवाये। परंपरा में इन तालाबों का सुंदर जिक्र है।शुभ कार्य के लिए उचित तिथि और नक्षत्र देखी जाती है। तालाबों के निर्माण के लिए भी इसका विधान था क्योंकि तालाब का निर्माण बहुत ही तकनीकी काम था जिसके लिए अच्छे सिविल इंजीनियर की दक्षता लगती थी। उदाहरण के लिए भोपाल में भोज ताल को देखें। इस सागर जैसे तालाब को बांधने के लिए मंडीद्वीप में विशेष लखेरा बनाया गया ताकि तालाब में उठने वाली विशाल लहरें तटबंध को क्षति न पहुंचाये। ऐसे लखेरा हर बड़े तालाब में हैं। रायपुर के बूढ़ा तालाब अथवा विवेकानंद सरोवर को देखें तो इसका लखेरा अब गार्डन के रूप में विकसित हो गया है। अनुपम मिश्र ने लिखा है कि तालाबों को स्वच्छ बनाये रखने इनमें खास तरह की वनस्पति लगाई जाती थी। उन्होंने लिखा कि इस किताब को लिखे जाने के पचास बरस पहले रायपुर में एक तालाब में सोने का नथ पहनाकर कछुये छोड़े गये ताकि पानी शुद्ध रह सके।रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में किरारी काष्ठ स्तंभ रखा है। आजादी के कुछ बरस पहले जब किरारी का हीराबंध तालाब पूरी तरह सूख गया तो तालाब के बीचों- बीच लकड़ी का यह स्तंभ उभर कर सामने आया। प्राकृत भाषा में लिखे इस अभिलेख को प्रख्यात इतिहासकार लोचन प्रसाद पांडे ने पढ़ा। जब यह तालाब बना होगा तब इसके लोकार्पण के मौके पर क्षेत्र का सातवाहन प्रशासनिक अमला आया था और यह लगभग दूसरी या तीसरी सदी में बनाया गया था। इस तरह से इस तालाब के माध्यम से प्रदेश का इतिहास भी सामने आया। तालाब में जो काष्ठ स्तंभ लगाया गया था वो साल की लकड़ी का था। साल की लकड़ी के बारे में कहावत है कि ‘‘हजार साल खड़ा, हजार साल पड़ा और हजार साल सड़ा’’। छत्तीसगढ़ के प्रायः हर तालाब में बीचोंबीच यह काष्ठ स्तंभ नजर आते हैं।तालाब के निर्माण के वक्त विशेष अनुष्ठान किये जाते थे। तालाब में अर्पित करने के लिए विद्यालय, मंदिर, घुड़साल आदि की मिट्टी लाई जाती थी। वरुण देवता की पूजा की जाती थी और प्रतीकात्मक रूप से सभी नदियों का जल डाला जाता था। जब प्रख्यात इतिहासकार अलबरूनी भारत आये तो उन्होंने तालाबों के निर्माण को पुण्य कार्य के रूप में बताया है। तालाब खुदवाना आरंभ करने का कार्य इतना महत्वपूर्ण होता था कि राजा-महाराजा भी इस पुण्य कार्य के लिए जुटते थे।छत्तीसगढ़ में तालाब निर्माण की परंपरा कमजोर होने के साथ ही इससे जुड़ा तकनीकी ज्ञान भी लुप्त होने लगा है। तालाबों में आगर ऐसा बनाया जाता है जिससे गर्मी के वक्त भी सूर्य की उष्मा से तालाबों का पानी क्षरित न हो। संस्कृत साहित्य में सूरज को अंबु तस्कर कहा गया है अर्थात जल चुरा लेने वाला। तकनीकी दृष्टिकोण से बने आगर में पानी काफी हद तक सुरक्षित रहता था।छत्तीसगढ़ में स्वर्गीय श्री मिश्र की स्मृति में शुरू किया जाने वाला सम्मान हमारे तालाब बनाने वाले और उन्हें सहेजने वाले पूर्वजों के वंशजों को प्रोत्साहित करने अनुपम पहल है जिससे प्रदेश में जल संरक्षण की परंपरा को बढ़ावा मिलेगा।*सौरभ शर्मा*
- ऋषिता दीवान, जगदलपुररायपुर। ग्राम स्वराज की परिभाषा गढ़ते वक्त गांधीजी यह जानते थे कि हमारा देश अपनी जड़ों को मजबूत करके ही अपनी पहचान को सुरक्षित रख सकता है और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इन्हीं विचारों को आत्मसात कर छत्तीसगढ़ राज्य आज निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। गांधी के इन विचारों का सटिक उदाहरण है छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वार चलाई जा रही सुराजी ग्राम योजना। जिसके अंतर्गत अंधाधुंध विकास की भेंट चढ़ते नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी को फिर से सहेजा गया और अब इसे नए तरह से विकसित किया जा रहा है। सुराजी गांव योजना में बनें गौठान आज ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका केन्द्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। यही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को मजबूती भी मिल रही है। छत्तीसगढ़ सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना को सृदृता मिली गोधन न्याय योजना की शुरूआत से। जिससे आज पशुपालक और ग्रामीण गोबर और गोमूत्र बेचकर अपनी जिविकोपार्जन को नया आधार दे रहे हैं।गांधीजी स्वच्छता के हिमायती थे वे चाहते थे कि सरल जीवन और स्वच्छ वातावरण हर किसी का आधार हो और यही वजह है कि स्वच्छता की दिशा में छत्तीसगढ़ लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर साल-दर-साल मिलने वाले स्वच्छता पुरस्कार यह साबित करते हैं कि छत्तीसगढ़ में गांधी के स्वराज की अलख जाग चुकी है।बापू चाहते थे कि भारत के अंतिम छोर पर बैठे हर व्यक्ति तक बुनियादी जरूरतें पहुंचे। उनके इन विचारों को धरातल पर उतारने की दृष्टि से ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर साल 2019 में 5 बड़ी योजनाओं की घोषणा की थी। ताकि राज्य के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक बुनियादी सुविधाएं पहुंच सके। इनमें कुपोषण से पीड़ित बच्चों और एनिमिया से लड़ रही महिलाओं के लिए सुपोषण अभियान, प्रदेश के दूरस्थ अंचलों में रहने वाले आदिवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिले इसके लिए हाट बाजार क्लिनिक योजना, गरीब और रोजी-मजदूरी करने वाले श्रमिक बस्तियों के लिए मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना, राज्य के सभी परिवारों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सार्वभौम पीडीएस और नागरिक सेवाओं के तत्काल उपलब्धता के लिए मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना की शुरूआत की गई थी। इन योजनाओं का लाभ आज छत्तीसगढ़ के हर व्यक्ति तक पहुंच रही है। इनके अलावा राजीव गांधी किसान न्याय योजना से छत्तीसगढ़ के किसान अब खेती को नया आयाम दे रहे हैं। आर्थिक रूप से सश्क्त हो रहे किसान गांधी के ग्राम स्वराज को लाने में एक मजबूत कड़ी साबित होंगे। राजीव युवा मितान क्लब योजना से राज्य के कामों में युवाओं की सहभागिता से समाज को सकारात्मक गति मिलेगी। स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल से गरीब वर्ग के बच्चे बेहतर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। साथ ही राज्य में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए छत्तीसगढ़ शक्ति स्वरूपा योजना, महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए दाई-दीदी क्लिनिक योजना, महिलाओं की सुरक्षा के लिए हमर बेटी-हमर मान योजना का संचालन भी समाज में लिंग असामनता की खाई को पाट रहा है। गांधीजी ये चाहते थे कि हर वर्ग ऊपर उठे, समाज में समरसता आए, गरीब और अंतिम छोर के व्यक्ति की भी बुनियादी जरूरतें पूरी हो, शिक्षा की अलख जगे तभी असली स्वराज को हासिल किया जा सकता है। गांधी के इन विचारों पर चलते हुए आज छत्तीसगढ़ राज्य नए कल की ओर बढ़ते हुए गढ़ रहा है ‘नया छत्तीसगढ़’
- -धन्वंतरी मेडिकल स्टोर पर उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवा सस्ती दर पर उपलब्ध♦ एम.एल.चौधरी, (सहायक संचालक)रायपुर । मोबाईल मेडिकल यूनिट से घर के पास ही मिल रही निःशुल्क इलाज की सुविधाछत्तीसगढ़ में नागरिकों को आसानी से स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया कराने के छत्तीसगढ़ शासन के प्रयासों से अब नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधायें मिल रही हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशन में नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग द्वारा जहां मुख्यमंत्री स्वास्थ्य स्लम योजना के माध्यम से शहरी तंग बस्तियों में पहुंचकर मोबाईल मेडिकल यूनिट द्वारा लोगो का इलाज किया जा रहा है। वहीं श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर योजना के तहत आम नागरिकों को उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवाओं के क्रय करने पर 50 प्रतिशत से ज्यादा की भारी छूट दी जा रही है। इससे इलाज का खर्च कम हो गया है। अब ज्यादा संख्या में लोग ईलाज करा पा रहे है।धन्वंतरी मेडिकल स्टोर पर उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवा सस्ती दर पर उपलब्धशहरी क्षेत्र में निवासरत नागरिकों को उनके चौखट पर ही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए 01 नवम्बर 2020 से मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना प्रारंभ की गई। प्रथम चरण में सभी 14 नगर निगमों में 60 मोबाइल मेडिकल यूनिट एंबुलेंस के जरिए डॉक्टरों द्वारा सेवाएं प्रदान की गई। इसके तहत आम नागरिकों को मेडिकल कैंप के माध्यम से मुफ्त में परामर्श, उपचार, दवाइयां और टेस्ट की सुविधा प्रदान की जा रही है। मुख्यमंत्री दाई दीदी क्लीनिक भी इसी योजना की कड़ी है। इसमें संपूर्ण महिला स्टॉफ के साथ मोबाइल मेडिकल यूनिट गरीब बस्तियों की महिलाओं के इलाज हेतु उनकी बस्तियों में जा रही है।द्वितीय चरण में नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों हेतु 60 मोबाईल मेडिकल यूनिट का संचालन 31 मार्च 2022 से प्रारंभ किया गया है। अब 120 मोबाईल मेडिकल यूनिट के माध्यम से शहरी ईलाकों की बस्तियों में निःशुल्क परामर्श, ईलाज, दवाईयों एवं पैथोलॉजी लैब की सुविधा समस्त नगरीय निकायों में उपलब्ध है। अब तक करीब 39 हजार शिविर आयोजित किये जा चुके हैं, करीब 27 लाख मरीजों का निःशुल्क ईलाज किया गया है। इसी तरह से दाई-दीदी क्लीनिक योजना के अंतर्गत रायपुर, बिलासपुर एवं भिलाई नगर निगमों में मोबाइल मेडिकल यूनिट द्वारा 1600 कैम्प लगाकर एक लाख 18 हजार से अधिक महिला मरीजों का निःशुल्क इलाज किया गया है।आम नागरिको को उच्च गुणवत्ता की रियायती दवा उपलब्ध कराने हेतु श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर योजना प्रारंभ की गई है। योजना अंतर्गत राज्य के समस्त 169 नगरीय निकायों में श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर खोले गए हैं। इस हेतु नगरीय निकायों द्वारा लगभग 194 दुकानों का चिन्हांकन किया गया, जिसमें से 190 दुकानंे प्रारंभ की जा चुकी हैं। इन दुकानों में 329 प्रकार की जेनेरिक दवाएं, 28 सर्जिकल आइटम रियायती दर पर उपलब्ध हैं। इससे अब आम नागरिकों को जेनेरिक दवाई आसानी से उपलब्ध होने लगी हैं। शासकीय चिकित्सकों हेतु पर्ची पर जेनेरिक दवाई लिखना अनिवार्य किया गया है। दवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु इन दुकानों में देश की ख्याति प्राप्त कंपनियों की जेनरिक दवाइयां उपलब्ध कराने की शर्त रखी गई है। उपलब्ध दवाइयों में सर्दी, खांसी, बुखार, ब्लड प्रेशर, इंसुलिन के साथ ही साथ गंभीर बीमारियों की दवा, एंटीबायोटिक, सर्जिकल आइटम भी न्यूनतम 50 प्रतिशत की भारी छूट के साथ उपलब्ध हैं। राज्य सरकार द्वारा श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर संचालक को 2 रू प्रति वर्गफुट की आकर्षक दर पर नगर पालिक निगम द्वारा किराये पर दुकानें उपलब्ध कराई गयी हैं साथ ही अन्य योजनाओं मे इन मेडिकल स्टोर्स से दवाई खरीदने हेतु प्रावधान किया गया। इस योजना का शुभारंभ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 20 अक्टूबर 2021 को किया गया था। इस दिन प्रदेश के निकायों में लगभग 87 दुकानों का शुभारंभ किया गया। अब 190 से ज्यादा धनवंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर संचालित किए जा रहे है। आगामी चरण में इन दुकानों से घर पहुंच दवा डिलीवरी की भी व्यवस्था की जाएगी।
- ♦ पंकज गुप्ता, संयुक्त संचालकरायपुर। उत्साह, आनंद और सृजनशीलता का पर्याय होते हैं लोक खेल। स्थानीय सामाग्रियों की आसानी से उपलब्धता, खेल के स्थानीय तौर तरीके, रोचकता और मनोरंजन जैसे गुणों के कारण लोक खेल जन-जन में बेहद लोकप्रिय होते हैं। एक ऐसे समय जब बच्चों, किशोरों और युवाओं सहित नागरिकों की सारी दुनिया सिमटकर मोबाइल में समाते जा रही है और उनका बचपन का नैसर्गिक उत्साह, मुस्कान और सृजनशीलता का दायरा भी छोटा होता जा रहा है। ऐसे में उनकी दुनिया और खेल के मैदान को एक बार फिर से व्यापक बनाने की आवश्यकता सभी ओर महसूस की जा रही है। निश्चय ही लोक खेल इस दिशा में एक सार्थक कदम बन सकता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार जो लोककला, लोक संस्कृति और लोक खान-पान को लगातार बढ़ावा दे रही है, अब इसी दिशा में एक कदम और आगे बढ़कर लोक खेलों पर आधारित ’छत्तीसगढिया ओलम्पिक’ का आयोजन करने जा रही है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर बीते 6 सितम्बर को कैबिनेट में लिए गए निर्णय के बाद छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक का खाका तैयार कर लिया गया है। छह स्तरों में होने वाले ’छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक’ के आयोजन का दायित्व पंचायत एवं ग्रामीण विकास और नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग को सौंपा गया है। इन खेलों की शुरूआत आगामी 6 अक्टूबर 2022 से शुरू होगी, जिसका समापन राज्य स्तर पर 6 जनवरी 2023 को होगा।दो श्रेणी में 14 तरह के खेले होंगेदो श्रेणी में 14 तरह के खेले होंगेछत्तीसगढ़ के पारम्परिक खेल प्रतियोगिता दलीय एवं एकल श्रेणी में होगी। छत्तीसगढ़ ओलम्पिक 2022-23 में 14 प्रकार के पारम्परिक खेलों को शामिल किया गया है। इसमें दलीय श्रेणी गिल्ली डंडा, पिट्टूल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी और बांटी (कंचा) जैसे खेल शामिल किए गए हैं। वहीं एकल श्रेणी की खेल विधा में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मीटर दौड़ और लम्बी कूद शामिल है।गांव के क्लब से लेकर राज्य तक छह स्तरों पर होंगे आयोजन-छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक में छह स्तर निर्धारित किए गए हैं। इन स्तरों के अनुसार ही खेल प्रतियोगिता के चरण होंगे। इसमें गांव में सबसे पहला स्तर राजीव युवा मितान क्लब का होगा। वहीं दूसरा स्तर जोन है, जिसमें 8 राजीव युवा मितान क्लब को मिलाकर एक क्लब होगा। फिर विकासखंड/नगरीय क्लस्टर स्तर, जिला, संभाग और अंतिम में राज्य स्तर खेल प्रतियोगिताएं आयोजित होंगी। छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक में आयु वर्ग को तीन वर्गो में बांटा गया है। इसमें प्रथम वर्ग 18 वर्ष की आयु तक फिर 18-40 वर्ष आयु सीमा तक, वहीं तीसरा वर्ग 40 वर्ष से अधिक उम्र के लिए है।छत्तीसगढ़ के ये पारम्परिक खेल न केवल ऋतुओं पर आधारित होते है, बल्कि कई बार अपने साथ-साथ लोकसंगीत और लोकगायन को भी लिए होते हैं, जिसके कारण ये खेल अपार रोचकता के साथ तेज गति, तेज दृष्टि, संतुलन, स्फूर्ति को बढ़ाते हुए शारीरिक और मानसिक मनोरंजन देते हैं। ये खेल इतने अधिक रोचक होते हैं कि गांवों के बच्चे अपने सारे सुख-दुख, गम शिकवे भूल कर इन खेलों के अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति लेते हैं। तेजी से लुप्त होते जा रहे ऐसे खेल और बच्चों की मासूमियत एक बार फिर से लोक खेलों के माध्यम से वापस लौटाई जा सकती है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा एक अभिनव पहल करते हुए ’छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक’ की शुरूआत की जा रही है, आशा है इससे खेलों के प्रति एक उत्साह का वातावरण बनेगा और बच्चे एक बार फिर से खेलों के मैदान में दिखाई देंगे।
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- आलेख---ताराशंकर सिन्हा, सहा.जनसंपर्क अधिकारी
विद्यार्थियों एवं युवाओं की प्रतिभा को पंख देने मिली दिशाजिन विधाओं को सीखने और उनमें पारंगत होने के लिए नगर के युवाओं को बड़े शहरों की ओर रुख करना पड़ता था, अब वे सारी सुविधाएं युवाओं को स्थानीय स्तर पर सुलभ होगी। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज बालोद नगर के हृदय स्थल पर स्थित कला केंद्र का शुभांरभ किया और यहां विद्यार्थियों तथा युवाओं के साथ कुछ पल बिताया भी।
कला केन्द्र जैसी बहु उद्देशीय संस्था की यहां बहुत पहले की मांग थी, जो आज साकार हुआ। जिला प्रशासन ने युवाओं की मांग को दृष्टिगत करते हुए जिला खनिज न्यास निधि मद से 45 लाख 93 हजार रूपए की लागत से कला केन्द्र की कार्ययोजना बनाई और इसे अमलीजामा पहनाते हुए इसका निर्माण किया गया। नगर के तहसील चौक पर इसकी स्थापना की गई। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज भवन का शुभारम्भ किया तथा जिलावासियों को बधाई देते हुए उम्मीद जताई कि यहां के युवक-युवतियों और विद्यार्थियों को अपना भविष्य गढ़ने में बेहतर दिशा और प्लेटफॉर्म मिलेगा। कला केन्द्र के समन्वयक ने बताया कि वर्तमान परिवेश में रोजगार एवं व्यक्तित्व विकास वाली विभिन्न विधाओं पर आधारित पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे।
इस संबंध में बताया कि यहां स्थानीय लोक संस्कृति एवं परम्पराओं को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से प्रशिक्षुओं को लोक संगीत सिखाया जाएगा। इसके अलावा बच्चों में गैर शैक्षणिक एवं व्यवसायोन्मुखी प्रतिभाओं को उभारने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम के तौर पर मेहंदी, ड्राइंग, क्ले आर्ट एवं पेंटिंग की कक्षाएं संचालित की जाएंगी। इसी तरह व्यक्तित्व विकास पाठ्यक्रम के तहत बोलचाल में अंग्रेजी को शामिल करने के लिए स्पोकन इंग्लिश की शिक्षा दी जाएगी। साथ ही गिटार वादन, सेहत के लिए जुम्बा क्लासेस, सभी प्रकार के योगा, पाककला के लिए कुकिंग क्लासेस, संगीत में रूचि रखने वाले युवाओं के लिए ड्रम बीटिंग, गिटार एंड की बोर्ड क्लासेस एवं मिक्सिंग स्टूूडियो, भारतीय नृत्य विधाएं जैसे भरत नाट्यम, पाश्चात्य नृत्य में सालसा, हिपहॉप एवं बॉलीवुड डांस शैली का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा व्यक्तित्व विकास की कक्षाएं भी संचालित की जाएंगी। बताया गया है कि लोगों की मांग पर अन्य पाठ्यक्रमों को भी सम्मिलित किया जाएगा। इस प्रकार समन्वित विधाओं का समेकित रूप होगा कला केंद्र, जहां पर युवावर्ग अपने भीतर छिपी प्रतिभाओं को फर्श से अर्श तक पहुंचाने के लिए सही दिशा दे सकेंगे। -
-मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए की है विशेष पहल
-खिलाड़ियों को पर्याप्त सुविधा मुहैया कराने छत्तीसगढ़ सरकार उठा रही ठोस कदम-खेल अकादमियों का हो रहा निर्माण, बन रहा खेल के लिए माहौलरायपुर। छत्तीसगढ़ में साढ़े तीन साल पहले मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में गठित सरकार ने "गढ़बो नवा छत्तीसगढ़" का नारा दिया था और इसे राज्य का ध्येय वाक्य भी बनाया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने और खेलों को प्रोत्साहित के लिए "खेलबो, जीतबो, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़" का नारा भी दिया गया। इसी नारे के अनुरूप छत्तीसगढ़ में खेलों के लिए माहौल भी बनाने की कवायद भी तेज हो गई और निरंतर खेल व खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। इस कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार ने सबसे पहले छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया। वहीं राजधानी रायपुर से लेकर बिलासपुर और बस्तर के नारायणपुर तक में खेल अकादमी को लेकर काम शुरू हो गए।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सरकार में आते ही यह जाहिर कर दिया था कि वे छत्तीसगढ़ में हर वर्ग के लिए और हर क्षेत्र में काम करेंगे। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने की दिशा में काम करते हुए उन्होंने सबसे पहला निर्णय किसानों के हित में लिया। वहीं गोधन न्याय योजना और ग्रामीण आजीविका पार्क जैसे निर्णयों ने ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का काम किया। मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत सर्वाधिक दिवस रोजगार व राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना लागू की गई। माताओं, बच्चों से लेकर बुजुर्गों के लिए भी समय-समय पर विभिन्न योजनाएं लायी गईं। इन सबके बीच युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में केन्द्रीत करने के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार ने कवायद की।राजीव युवा मितान क्लब का गठन :छत्तीसगढ़ राज्य की युवा शक्ति को मुख्य धारा से जोड़कर, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को साकार करने के उद्देश्य से राजीव युवा मितान क्लब योजना प्रारंभ की गई। इसमें प्रदेश के प्रत्येक ग्राम पंचायत एवं नगरीय निकायों के वार्डों में कुल 13269 राजीव युवा मितान क्लब गठित किए जाने का लक्ष्य है। अब तक कुल 9917 युवा मितान क्लबों का गठन हो चुका है। प्रति क्लब 25 हजार रुपये प्रति तिमाही दिए जाने का प्रावधान है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 33.325 करोड़ रुपये जिलों को जारी कर दिए गए हैं। राजीव युवा मितान क्लब से जुड़कर युवा खेल, सांस्कृतिक, सामाजिक गतिविधियों एवं जन-जागरूकता बढ़ाने का काम कर रहे हैं।छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण :प्रदेश के सभी खेल अकादमियों के संचालन, खेल अधोसंरचनाओं का विकास एवं समुचित उपयोग तथा खेलों के समग्र विकास हेतु छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। खेलों को बढ़ावा देने समेत संबंधित अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए प्राधिकरण के गवर्निंग बॉडी और एक्जिक्यूटिव बॉडी की बैठकें भी हो चुकी हैं। इसके साथ ही खेल प्रशिक्षकों के 08 पदों पर संविदा भर्ती की कार्यवाही पूर्ण की जा चुकी है। वर्तमान में 15 खेल संघ विभाग से मान्यता प्राप्त हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 1.43 करोड़ रुपये अनुदान राशि भी जारी किया गया है। वहीं व्यायाम शाला निर्माण के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 में 40.17 लाख रुपये की राशि जारी की गई है।आवासीय खेल अकादमी का संचालन :छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् पहली बार खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आवासीय खेल अकादमी का संचालन प्रारंभ किया गया है। स्व. बी.आर. यादव राज्य खेल प्रशिक्षण केन्द्र बहतराई बिलासपुर में हॉकी, तीरंदाजी एवं एथलेटिक की आवासीय अकादमी की स्थापना की गई है, जिसे भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा खेलो इंडिया स्टेट सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की मान्यता दी गई है। एक्सीलेंस सेन्टर के लिए मैनपॉवर के हाई परफॉर्मेंस मैनेजर, हेड कोच हॉकी, स्ट्रैंथ एण्ड कंडिशनिंग एक्सपर्ट, फिजियोथेरेपिस्ट, यंग प्रोफेशनल एवं मसाजर (महिला) की नियुक्ति की जा चुकी है तथा शेष की नियुक्ति प्रक्रियाधीन है। गौरतलब है कि 1 जून 2022 से हॉकी की आवासीय अकादमी संचालित है, जिसमें 36 बालक एवं 24 बालिकाएं इस तरह कुल 60 खिलाड़ी प्रशिक्षणरत् हैं। तीरंदाजी तथा एथलेटिक खेल की अकादमी के लिए खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। आवासीय बालिका कबड्डी अकादमी में प्रवेश हेतु खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। इसके साथ ही रायपुर में एनएमडीसी लिमिटेड के सहयोग से आवासीय तीरंदाजी अकादमी की स्थापना की जा रही है।गैर आवासीय खेल अकादमी की भी स्थापना :छत्तीसगढ़ में खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा राज्य के खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि राज्य का खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर पदक जीत सकें। राज्य के प्रत्येक जिले में विभिन्न खेलों की गैर आवासीय खेल अकादमियां स्थापित करने का लक्ष्य है। वर्तमान में तीरंदाजी प्रशिक्षण उपकेन्द्र शिवतराई (बिलासपुर), गैर आवासीय हॉकी एवं तीरंदाजी अकादमी, सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम रायपुर, गैर आवासीय बालिका फुटबॉल अकादमी स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा रायपुर, गैर आवासीय बालक एवं बालिका एथलेटिक अकादमी स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा रायपुर का संचालन किया जा रहा है।खेलों के लिए बनेंगे सात लघु केन्द्र :मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा खेलों को बढ़ावा देने के लिए की जा पहल के बीच छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों से भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना अंतर्गत विभिन्न खेलों के लिए सात लघु केन्द्र स्वीकृत किए गए हैं। इसमें जशपुर में हॉकी, बीजापुर में तीरंदाजी, राजनांदगांव में हॉकी, गरियाबंद में व्हॉलीबॉल, नारायणपुर में मलखम्ब, सरगुजा में फुटबॉल एवं बिलासपुर में तीरंदाजी के लिए खेल लघु केन्द्र की स्वीकृति मिली है। प्रत्येक लघु केन्द्र के लिए सात लाख रुपये के मान से कुल राशि 49 लाख रुपये संबंधित जिला कलेक्टरों को जारी किए जा चुके हैं। खेलो इंडिया लघु केन्द्र के माध्यम से स्थानीय सीनियर खिलाड़ी को प्रशिक्षक के रूप में रोजगार भी उपलब्ध कराया जाएगा।सिंथेटिक टर्फ और ट्रैक का निर्माण :जब से छत्तीसगढ़ में खेल को लेकर राज्य सरकार ने प्रयास तेज किए हैं, केन्द्र की ओर से भी इसमें स्वीकृति दी जा रही है। भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना अंतर्गत जशपुर में सिंथेटिक टर्फ युक्त हॉकी मैदान के लिए 5.44 करोड़ रुपये, अम्बिकापुर में मल्टीपरपज इंडोर हॉल के लिए 4.50 करोड़ रुपये, जगदलपुर बस्तर में सिंथेटिक फुटबॉल ग्राउण्ड विथ रनिंग ट्रैक के लिए 05 करोड़ रुपये, महासमुंद में सिंथेटिक सतह युक्त एथलेटिक ट्रैक निर्माण के लिए 6.60 करोड़ की स्वीकृति प्राप्त हुई है। वहीं जगदलपुर बस्तर में निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। उल्लेखनीय है कि खेलो इंडिया यूथ गेम्स में छत्तीसगढ़ राज्य के खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन कर 2 स्वर्ण, 3 रजत और 6 कांस्य पदक, इस प्रकार कुल 11 पदक हासिल किये हैं। - मनोज सिंह, सहायक संचालकभारतीय संस्कृति में पशु पूजा की परम्परा रही है, इसके प्रमाण सिन्धु सभ्यता में भी मिलते हैं। खेती किसानी में पशुधन के महत्व को दर्शाने वाला पोला पर्व छत्तीसगढ़ के सभी अंचलों में परम्परागत रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। खेती किसानी में पशुधन का उपयोग के प्रमाण प्राचीन समय से मिलते हैं। पोला मुख्य रूप से खेती-किसानी से जुड़ा त्यौहार है। भादों माह में खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है। चूंकि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है अर्थात धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है। इसीलिए यह त्यौहार मनाया जाता है। पोला पर्व महिलाओं, पुरूषों और बच्चों के लिए भी विशेष महत्व रखता है।पोला पर्व के पीछे मान्यता है कि विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है, तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे, कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था। एक बार कंस ने पोलापुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था और सबको अचंभित कर दिया था। वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था। इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा, इस दिन को बच्चों का दिन कहा जाता है।पोला पर्व के पहले छत्तीसगढ़ में विवाहित बेटियों को ससुराल से मायका लाने की परंपरा है। पोला के बाद बेटियां तीज का त्यौहार मनाती है। तीज के पर्व के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सामान्य अवकाश की घोषणा की है। पोला त्यौहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। किसान इस दिन धान की फसल धान लक्ष्मी का प्रतीक मानकर, अच्छी और भरपूर फसल की कामना की कामना करते हैं। इस दिन सुबह से किसानों द्वारा बैलों को नहलाकर पूजा अर्चनाकर कृषि कार्य के लिए दुगने उत्साह से जुटने प्रण लेते हैं। बैलों की पूजा के बाद किसानों और ग्वालों के द्वारा बैल दौड़ का आयोजन जाता है। छोटे बच्चे भी मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। जहां उन्हें दक्षिणा मिलती हैं। गांवों में कबड्डी, फुगड़ी, खो-खो, पिट्टुल जैसे खेलकूद का आयोजन होता है। मिट्टी के बैलों को लेकर बच्चे घर-घर जाते हैं। यह त्योहार पशुधन संवर्धन और संरक्षण की आज भी प्रेरणा देता है।छत्तीसगढ़ धान की खेती सबसे ज्यादा होती है इसलिए यहां चावल और इससे बनने वाले छत्तीसगढ़ी पकवान विशेषरूप से बनाए जाते हैं। इस दिन चीला, अइरसा, सोंहारी, फरा, मुरखू, देहरौरी सहित कई अन्य पकवान जैसे ठेठरी, खुर्मी, बरा, बनाए जाते हैं। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तन, खिलौने में भरकर पूजा की जाती है, इसके पीछे मान्यता है कि घर धनधान्य से परिपूर्ण रहे। बालिकाएं इस दिन घरों में मिट्टी के बर्तनों से सगा-पहुना का खेल भी खेलती हैं। इससे सामाजिक रीति रिवाज और आपसी रिश्तों और संस्कृति को समझने का भी अवसर मिलता है। इस दिन छत्तीसगढ़ में गेड़ी का जुलूस निकाला जाता है। गड़ी, बांस से बनाया जाता है जिसमें एक लम्बा बांस में नीचे 1-2 फीट ऊपर आड़ा करके छोटा बांस लगाया जाता है। फिर इस पर बैलेंस करके, खड़े होकर चला जाता है।पोला पर्व में मिट्टी के खिलौनों की खूब बिक्री होती है। गांव में परंपरागत रूप से कार्य करने वाले हस्तशिल्पी, बढ़ई एवं कुम्हार समाज के लोग इसकी तैयारी काफी पहले से करना शुरू कर देते हैं। इस त्योहार से उन्हें रोजगार भी मिलता है, लोग मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हुए एक दूसरे के घरों में मिष्ठान पहुंचाते हैं। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में मितान बदने की भी परम्परा है। एक दूसरे के घरों में मेल मिलाप के लिए जाते हैं। यह पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी हमें मजूबत करता है।