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- विश्व श्रवण दिवस 3 मार्च पर विशेष आलेखरायपुर । श्रवण हानि और बहरेपन की रोकथाम के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों में कान और सुनने की देखभाल को बढ़ावा देना है। हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व श्रवण दिवस की थीम तय करता है। 2023 में विश्व श्रवण दिवस की थीम है - कान और सुनने की देखभाल सभी के लिए! आइए इसे वास्तविकता बनायें ( Ear and hearing care for all! Let’s make it a reality )। बच्चों का समय पर टीकाकरण, पालन-पोषण की बेहतर तकनीक, सामान्य कान विकारों का समय पर निदान और उपचार के जरिये बहरेपन को रोका जा सकता है। बच्चों में जन्मजात बहरेपन की रोकथाम के लिए सुनाई की जांच (Neonatal Screening) जैसे - ओ. ए. ई. और बैरा इत्यादि जन्म के तुरंत बाद आवश्यक रूप से कराने चाहिए।पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय एवं संबद्ध डाॅ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय रायपुर में ई. एन. टी. (कान-नाक-गला) की एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. मान्या ठाकुर के अनुसार इस विश्व श्रवण दिवस पर स्वस्थ श्रवण के लिए कुछ टिप्स हैं जिन्हें अपनाकर हम अपने सुनने की क्षमता को ताउम्र बरकरार रख सकते हैं:-1. नियमित रूप से अपनी सुनने की क्षमता की जांच करवाएं।2. हियरिंग एड नियमित रूप से और सलाह के अनुसार पहनें।3. शोर वाले वातावरण में ईयर प्लग का उपयोग करें।4. यदि आवश्यक हो तो उचित आकार और अच्छी क़्वालिटी वाले ईयरबड्स अथवा ईयरफोन का उपयोग करें और लंबी अवधि के लिए उपयोग करने से बचें, यदि आवश्यक हो तो 1ः20 के नियम का पालन करें अर्थात 1 घंटे के बाद 20 मिनट का ब्रेक लें।5. ऑटो टॉक्सिक दवाओं से बचें और किसी भी ऑटो टॉक्सिक दवा को लेने से पहले अपने चिकित्सक को सूचित करें।6. ईयरफोन की जगह अच्छी क्वालिटी के हेडफोन को प्राथमिकता दें और संक्रमण से बचने के लिए नियमित रूप से साफ करें।7. कान में दर्द, डिस्चार्ज, वर्टिगो रिंगिंग सेंसेशन होने पर ईएनटी विशेषज्ञ से संपर्क करें।8. छोटी-मोटी ईएनटी बीमारियों के लिए काउंटर पर मिलने वाली दवाओं के सेवन से बचें।9. कान साफ़ करने वाले ईयर बड, पिन, की-रिंग आदि द्वारा खुजली या स्वयं सफाई कान से बचें।10. हवाई यात्रा के दौरान बैरोट्रॉमा से बचने के लिए च्युइंग गम का उपयोग करें, लोजेंज चूसें या नाक के अंदर डीकन्जेस्टेंट ड्राप डालें।
- गुजरे जमाने की अदाकारा नवाब बानो यानी निम्मी का जन्म आज ही के दिन 18 फरवरी 1933 में हुआ। अपने जमाने के नामी हीरो के साथ उन्होंने काम किया। उन्हें अपनी पहली ही फिल्म बरसात राजकपूर के साथ मिली जिसमें उन्होंने प्रेमनाथ की नायिका का किरदार निभाया था। पहली ही फिल्म में एक पहाड़ी लड़की के रोल में उन्हें लोगों ने बहुत पसंद किया और वे रातो रात स्टार बन गईं। उन्हें राजकपूर की खोज कहा जाता है।निम्मी का एक वाकया दुनिया भर में मशहूर है। निम्मी बड़ी खूबसूरत थी और उनकी बोलती आंखें लोगों पर जादू कर देती थीं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता के दौर में कभी हड़बड़ी में फिल्में साइन नहीं की, बल्कि काफी सोच समझकर ही वे फिल्मों का चयन किया करती थीं। एक प्रकार से उन्होंने अपनी शर्तों में फिल्मों में काम किया।50-60 के दशक में निम्मी फिल्मों की सफलता की गारंटी बन चुकी थीं। राज कपूर, दिलीप कुमार, सुनील दत्त जैसे दिग्गज एक्टर्स उनकी एक्टिंग के कायल थे। निम्मी ने एक बार कुछ ऐसा किया कि उनकी तस्वीर सुर्खियों में छा गई और हेडलाइन बनी 'द अनकिस्सड गर्ल ऑफ इंडियाÓ ।दरअसल, हिंदुस्तान की पहली रंगीन फिल्म आन में निम्मी और दिलीप कुमार की जोड़ी थी । आन फिल्म का भारत के अलावा लंदन के रिआल्टो थिएटर में भी प्रीमियर हुआ था । लंदन में प्रीमियर के मौके पर महबूब खान उनकी वाइफ और निम्मी मौजूद थीं । वहां कई विदेशी स्टार्स भी पहुंचे थे । इस मौके पर हॉलीवुड एक्टर एरल लेजली थॉमसन फ्लिन भी मौजूद थे। एरल ने बधाई देते हुए अपने रिवाज के मुताबिक निम्मी का हाथ चूमने की कोशिश की, लेकिन निम्मी पीछे हट गई और कहा कि-मैं एक हिंदुस्तानी लड़की हूं आप मेरे साथ ये सब नहीं कर सकते । अगले दिन न्यूजपेपर में निम्मी की तस्वीर के साथ हेडलाइन बनी -द अनकिस्ड गर्ल ऑफ इंडिया। निम्मी ने साल 2013 में एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें हॉलीवुड फिल्मों के ऑफर भी मिले ,लेकिन उन्होंने मना कर दिया।उन्होंने राज कपूर के साथ फिल्म बरसात के अलावा बावरा, और देव आनंद के साथ फिल्म सजा, आंधियां जैसी फिल्मों की थीं। इसके अलावा अभिनेत्री ने बॉलीवुड के बेहतरीन एक्टर रहे दिलीप कुमार के साथ दीदार, अमर, शमा, चार दिल चार रहन जैसी फिल्मों में काम किया था।निम्मी ने प्रसिद्ध लेखक सैयद अली रजा से शादी की थी। सैयद अली रजा ने ही मदर इंडिया फिल्म लिखी थी। निम्मी की शादीशुदा जिंदगी बहुत खुशहाल थी। इनकी कोई औलाद नहीं हुई तो निम्मी ने अपनी बहन के बेटे को गोद लिया था। 50-60 दशक की मशहूर एक्ट्रेस एक लंबा समय फिल्मी दुनिया में बिताया। 25 मार्च 2020 को निम्मी ने अंतिम सांस ली थी। हिंदी सिनेमा की दिग्गज एक्ट्रेस को दर्शक आज भी याद करते हैं। अपने अंतिम समय तक वे अपने दौर की अभिनेत्रियों के साथ जुड़ी रहीं।
- रीनू ठाकुर, सहा.जनसंपर्क अधिकारीकई पीढ़ियों से भारतीय खान-पान का अहम हिस्सा रहे मिलेट्स कब थाली से गायब हो गए पता ही नहीं चला। मिलेट्स की पौष्टिकता और उसके फायदों को देखते हुए फिर से उसका महत्व लोगों तक पहुंचाने की कोशिश सरकारों द्वारा की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। सामान्यतः मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड भी माना जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं।छत्तीसगढ़ की बात करें तो मिलेट्स यहां के आदिवासी समुदाय के दैनिक आहार का पारंपरिक रूप से अहम हिस्सा रहे हैं। आज भी बस्तर में रागी का माड़िया पेज बचे चाव से पिया जाता है। छत्तीसगढ़ के वनांचलों में मिलेट्स की खेती भी भरपूर होती है। इसे देखते हुए मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर मिलेट मिशन चलाया जा रहा है।छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जहां मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में मिलेट्स को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी और रागी का ना सिर्फ समर्थन मूल्य घोषित किया गया, अपितु समर्थन मूल्य पर खरीदी भी की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से प्रदेश में कोदो, कुटकी एंव रागी का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर उपार्जन किया जा रहा है। इस पहल से छत्तीसगढ़ में मिलेट्स का रकबा डेढ़ गुना बढ़ा है और उत्पादन भी बढ़ा है।छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नथिया-नवागांव में मिलेट्स का सबसे बड़ा प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित किया जा चुका है, जो कि एशिया की सबसे बड़ी मिलेट्स प्रसंस्करण इकाई है। अब तक राज्य के 10 जिलों में 12 लघु मिलेट प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैंै। गौठानों में विकसित किए जा रहे रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में मिलेट्स प्रोसेसिंग प्लांट लगाए जा रहे हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिलेट्स से बने व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए दोपहर भोज का भी आयोजन किया जा चुका है। रायगढ़ जिले के खरसिया में बीते दिनों प्रदेश के पहले मोबाईल मिलेट कैफे ’मिलेट ऑन व्हील्स का शुभारंभ भी किया है। मोबाइल कैफे का संचालन करने वाली महिला समूह ने महज 8 महीनों में कैफे की मासिक आमदनी 3 लाख रूपये को पार कर गयी है। इस चलते फिरते मिलेट कैफे में रागी का चीला, डोसा, मिलेट्स पराठा, इडली, मिलेट्स मंचूरियन, पिज्जा, कोदो की बिरयानी और कुकीज जैसे लजीज व्यंजन परोसे जा रहे हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों, फूड ब्लॉगर्स और युवाओं की यह पहली पसंद बन गए हैं।छत्तीसगढ़ में शुरू हुए मिलेट मिशन का मुख्य उद्देश्य जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रदेश में मिलेट (कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार इत्यादि) की खेती के साथ-साथ मिलेट के प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त दैनिक आहार में मिलेट्स के उपयोग को प्रोत्साहित कर कुपोषण दूर करना है। प्रदेश में आंगनबाड़ी और मिड-डे मील में भी मिलेट्स को शामिल किया गया है। स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में मिलेट्स से बनने वाले व्यंजन परोसे जा रहे है। इनमें मिलेट्स से बनी कुकीज, लड्डू और सोया चिक्की जैसे व्यंजनों को शामिल किया गया है।छत्तीसगढ़ में मिलेट्स की खेती के लिए राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है।प्रदेश में कोदो, कुटकी और रागी की खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। मिलेट उत्पादक किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ भी दिया जा रहा है। इस किसानों को भी 9000 रूपए प्रति एकड़ की मान से आदान सहायता दी जा रही है।आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है। सीएसआईडीसी ने मिलेट आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ चुंनिदा ब्लाॅक में भूमि, संयंत्र एवं उपकरण पर 50 प्रतिशत सब्सिडी की योजना पेश की है। उम्मीद है कि पीढ़ियों से हमारे स्वाद और सेहत का खजाना रहे मिलेट्स का स्वस्थ जीवन शैली के लिए महत्व को लोग समझेंगे और एक बार फिर यह हमारी दैनिक जीवन का हिस्सा होगा।
- हिंदी फिल्मों के सबसे खतरनाक खलनायकों में प्राण का नाम पहले लिया जाता है। हीरो से खलनायक और फिर चरित्र भूमिकाओं में प्राण ने खूब वाहवाही बटोरी। प्राण का जन्म 12 फरवरी साल 1920 में लाहौर में हुआ था।प्राण को अभिनय नहीं बल्कि फोटोग्राफी का शौक था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिल्ली की एक कंपनी 'ए दास एन्ड कंपनी' में प्रेक्टिस भी की थी। बॉलीवुड में कदम रखने से पहले प्राण ने आठ महीने तक मरीन ड्राइव के पास स्थित एक होटल में काम किया था। इन पैसों से वह अपना घर चलाते थे। साल 1940 में लेखक मोहम्मद वली ने जब पान की दुकान पर प्राण को खड़े देखा तो पहली नजर में ही उन्होंने अपनी पंजाबी फिल्म 'यमला जट' के लिए उन्हें बतौर हीरो साइन कर लिया। इसके बाद प्राण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।प्राण ने लाहौर में 1942 से 1946 तक काम किया। चार साल में 22 फिल्मों में काम किया। प्राण को हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक 1942 में आई फिल्म 'खानदान' में मिला। दलसुख पंचोली की इस फिल्म में उनकी अभिनेत्री नूरजहां थीं। इसके बाद विभाजन हुआ और वह भारत आ गए। विभाजन से फिल्म इंडस्ट्री काफी प्रभावित हुई थी। ऐसे में प्राण ने दोबारा अपना फिल्मी सफर शुरू करने की ठानी और साल 1948 में देवानंद की फिल्म 'जिद्दी' में काम किया। हिंदी फिल्मों में उन्हें बतौर विलेन पहचान मिली।फिल्म इंडस्ट्री में प्राण का लगभग छह दशक लंबा करियर रहा है और इस दौरान उन्होंने 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। 'मधुमति', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'उपकार', 'शहीद', 'पूरब और पश्चिम', 'राम और श्याम', 'जंजीर', 'डॉन', 'अमर अकबर एंथनी' जैसी सुपरहिट फिल्मों में प्राण ने शानदार काम किया। अपने समय के वह एक चर्चित विलेन थे। फिल्मों में वह अपने किरदारों को एक अलग रूप दे देते थे। प्राण अपने अभिनय के साथ-साथ डायलॉगबाजी के लिए भी बहुत मशहूर हुए।प्राण साहब ने साल 1972 में फ़िल्म 'बेइमान' के लिए बेस्ट सपोर्टिग का फ़िल्मफेयर अवॉर्ड लौटा दिया था, क्योंकि उस साल आई कमाल अमरोही की फ़िल्म 'पाकीजा' को एक भी पुरस्कार नहीं मिले थे। पुरस्कार लौटा कर प्राण ने अपना विरोध जताया कि 'पाकीजा' को अवॉर्ड न देकर फ़िल्मफेयर ने अवार्ड देने में चूक की है! ऐसे अभिनेता आज के समय में दुर्लभ हैं!अभिनेता और डायरेक्टर मनोज कुमार ने प्राण के अभिनय के कुछ और रंगों से हमें परिचित कराया! उन्होंने ही प्राण को विलेन के रोल से निकालकर पहली बार 'उपकार' में अलग तरह के किरदार निभाने का मौका दिया। उसके बाद प्राण कई फ़िल्मों में ज़बर्दस्त चरित्र या सहायक अभिनेता के रूप में उभर कर सामने आये!प्राण साहब यारों के यार कहे जाते थे! अभिनेता और निर्देशक राज कपूर की फ़िल्म 'बॉबी' में काम करने के लिए प्राण ने महज एक रुपये की फीस ही ली थी, क्योंकि उस दौरान राज कपूर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। दरअसल 'बॉबी' से पहले अपनी फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' बनाने के लिए राजकपूर अपना सारा पैसा लगा चुके थे। यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल रही जिसके बाद राजकपूर भयंकर आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। फिर 'बॉबी' से वो अपने नुकसान की भरपाई की उम्मीद कर रहे थे,जिसके लिए प्राण ने राजकपूर के लिए इस फ़िल्म में महज एक रूपये में काम करना स्वीकार किया!प्राण को हिंदी सिनेमा में उनके सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए साल 2001 में तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण और साल 2013 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और से नवाजा गया था। इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों ने दिवंगत अभिनेता प्राण को 'विलेन ऑफ द मिलेनियम' के नाम से नवाजा। 12 जुलाई 2013 में 93 साल की उम्र में प्राण ने इस दुनिया को अलविदा कहा ।
- आलेख- डॉ.दिनेश मिश्रपिछले अनेक वर्षों से अयोध्या के सम्बंध में ढेर सारे,लेख,रिपोर्ट, डॉक्युमेंट्री, आंदोलनों की खबरें देखते पढ़ते, जब इस बार के उत्तर प्रदेश प्रवास में मुझे अयोध्या प्रवास का अवसर मिला तो मैं क्षण भर में तैयार हो गया. क्योंकि मेरे मन में अनेक जिज्ञासाएँ थीं एक प्राचीन नगर,प्राचीन कोशल राज्य की राजधानी,उससे जुड़े अनेक किस्से कहानियाँ ,हिन्दू धर्मावलंबियों के आराध्य श्री राम की जन्मभूमि,पहले कैसी रही होगी और वर्तमान में कैसे बदलाव आ रहे होंगे आदि आदि.मेरे एक मित्र जो अयोध्या में ही शासकीय सेवा में है उनसे भी चर्चा हुई तो उन्होंने कहा आप अयोध्या जी बिलकुल आइये.मैं आपके साथ वहाँ हर जगह चलूँगा और साथ ही चर्चा भी करते रहेंगे.अयोध्या उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण धार्मिक शहर है जो सरयू नदी के किनारे बसा है .यह साकेत, अवधपुरी, कोशल जनपद के नाम से भी वर्णित है .यहाँ सूर्यवंशी/रघुवंशी राजाओं का राज्य था जिनके कुल में श्रीराम हुए थे.लखनऊ से अयोध्या करीब 140 किलोमीटर है, 28 जनवरी को सबेरे सबेरे हम सपरिवार कार से निकले , लखनऊ से बाराबंकी होते हुए अयोध्या जनपद में प्रवेश करने पर अयोध्या विकास प्राधिकरण का स्वागतम का बोर्ड नजर आने लगता है, सड़क अच्छी है,और अयोध्या जनपद में थोड़ा अंदर जाते ही सड़क के बीच डिवाइडरों में श्री राम,के बाल रूप की प्रतिमा,हनुमान,सहित एक के बाद एक प्रतिमाएं नजर आने लगती हैं .कुछ समय के बाद हम अयोध्या स्थित नयाघाट पहुंच गए.वहाँ से हम एक स्थानीय मित्र के साथ आगे निकले जिसने हमें वहाँ के दर्शनीय स्थानों के सम्बंध में बताना आरम्भ किया .अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर कहा जा सकता है .अयोध्या में सरयू नदी के तट पर एक बड़ा घाट नयाघाट है ,जिसका सौंदर्यीकरण किया गया है, जिसमें स्नान,नौका विहार की सुविधा है.यहीं शाम को सरयू नदी की आरती होती है जिसमे काफी जनसमूह उपस्थित रहता है.नयाघाट से राम की पैड़ी शुरू होती है राम की पैड़ी सरयू नदी पर बने घाटों की श्रृंखला है, जिसमे एक के बाद एक घाट बने हैं. वहीं पर श्री राम के पुत्र कुश द्वारा बनवाया नागेश्वर नाथ मंदिर, तथा पास ही त्रेता के ठाकुरका मंदिर ,जो कि बताया जाता है , श्री राम के अश्वमेध यज्ञ से सम्बंधित है , खूबसूरत रीवर फ्रंट तथा दूसरी तरफ़ उद्यान बना है . नया घाट पर ही लता मंगेशकर चौक है, जिसका लोकार्पण कुछ दिनों पूर्व हुआ है,विश्व विख्यात गायिका लता मंगेशकर की स्मृति में बने इस चौक में 40 फ़ीट ऊंची वीणा की खूबसूरत प्रतिमा है चौक के बीच में चारों ओर 92 कमल के आकार के पत्थर के फूल लगाए गए हैं जो दिवंगत लता मंगेशकर की उम्र को दर्शाते हैं.राम की पैड़ी से यहीं से अयोध्या के मंदिरों की श्रृंखला शुरू हो जाती है,श्री राम की पैड़ी से होते हुए मुख्य सड़क पर आप चलते जाइये उसी मार्ग पर अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें पुराने महल,भवन और अनेक मंदिरों की श्रृंखला है.अयोध्या में अभी राम पथ के लिए यहाँ सड़क चौड़ीकरण का काम भी जोरों से चल रहा है .कुछ दूर जाने पर गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति में बना तुलसी उद्यान नजर आता है जहाँ तुलसीदास की विशाल प्रतिमा लगी है.कुछ दूर पर अलग अलग दर्शनीय स्थल दिखते जाएंगे यही रास्ता पथ राम जन्मभूमि स्थल तक जाता है, जहाँ राम मंदिर निर्माण कार्य चल रहा है.राम की पैड़ी से कुछ दूरी पर एक टीले पर पर हनुमान गढ़ी है जो काफी ऊंचाई पर बनी है .वहॉ भी दर्शनार्थियों की भीड़ लगी थीसड़क के दोनों ओर मिठाई, पुष्प, माला,फ़ोटो, सिंदूर की दुकानें लगी हुई थीं. हनुमान गढ़ी से कुछकरीब सौ कदम की दूरी पर राजा दशरथ का विशाल महल बना हुआ है. जो दर्शनार्थियों के आकर्षण का एक केंद्र है,आगे चलते जाने पर पुरातन राजगद्दी भवन ,राम कचहरी भवन,भरत, लक्ष्मण ,के नाम पर प्राचीन भवन है .इसके पहले दाहिनी ओर कनक भवन नामक ऐतिहासिक महल है जो अपनी वास्तुकला के कारण दर्शनार्थियों के आकर्षण का एक और केंद्र है.इस भवन के पास हीनजदीक में सीता की रसोई भवन हैं.जहां रसोई बनाने के समान भी प्रतीकात्मक रूप से रखे हैंराम पथ पर ही कुछ दूर और आगे चलने पर सड़कों के किनारे लॉकर रखे हुए दिखाई देते है, जहाँ आगंतुकों से मोबाइल, पर्स, आदि समान रखवाया जाता है क्योंकि मंदिर निर्माण स्थल में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं ले जाई जा सकती.,सुरक्षा के लिए अनेक स्थानों पर चेकिंग होती है,सुरक्षा कर्मी मुस्तैदी से अपना काम करते दिखे, जो लाइन बना कर आगे भेज रहे थे जिनमें हिन्दू ,मुस्लिम दोनों ही थे.कुछ दूर आगे चलने पर एक स्थान पर श्री राम की प्रतिमा दर्शनार्थ रखी हुई है, अभी उन्ही का दर्शन कराया जाता है कुछ दूर आगे चलने पर एक स्थान पर खुदाई में निकले पुराने अवशेष दर्शनार्थ रखे हुए हैं, दर्शनार्थियों को लाइन से जाने दिया जा रहा था.हमने देखा अयोध्या में अनेक नेत्र चिकित्सालय है, जो चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित हैं जो निशुल्क शिविरों का संचालन करते हैं, अयोध्या पारम्परिक रूप से परस्पर सौहार्द की नगरी रही है .जब देश में छोटे छोटे मामलों को लेकर आपसी तनाव हो जाता है तब भी वहाँ आम तौर पर शांति रहती है . हमें अयोध्या के इतिहास वर्तमान के बारे में जानकारी देने वाला व्यक्ति संतोष कुमार थे,वहीं तो दर्शनार्थियों को राम जन्मभूमि में भेजने के लिए व्यवस्था बनाने वालों में पुलिस कर्मियों में जावेद खान भी ड्यूटी पर थे,जो तन्मयता से कार्यरत थे.मेरे साथ रहे मित्र ने बताया किसी अन्य धर्म के दर्जी का भगवान राम की मूर्तियों के लिए वस्त्र सिलना आभूषण बनाना वहीं दूसरी ओर किसी हिन्दू का दूसरे धर्म के कार्यक्रम में मदद करना आम बात है. आपसी सहयोग और सद्भाव यहाँ की विरासत है.जो सदैव कायम रहती है.इसके अतिरिक्त अमावा राममंदिर,अनेक छोटे बड़े मंदिर, मणि पर्वत, बड़ी देवकाली ,जैन श्वेतांबर मंदिर,गुलाब बाड़ी ,गुप्तार घाट नन्दी ग्राम भरतकुंड आदि दर्शनीय स्थल हैं.लगभग सभी जगह बंदरों की टोलियां उछल कूद करती नजर आयी.कुछ आगंतुक उन्हें खाद्य सामग्री भी देते दिखाई पड़े.धार्मिक नगरी होने के साथ ही अयोध्या में अनेक अस्पताल, होटल,स्कूल सहित आधुनिक आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध होने लगी है.मेरा बाद में वहाँ नेत्र चिकित्सालयों में भी जाना हुआ ,चिकित्सको ,शिक्षकों से भी मुलाकात ,चर्चा हुई,उन्हें वैज्ञानिक जागरूकता,अंधविश्वास निर्मूलन सम्बंधित किताबें भेंट,व चर्चा की.और वापस लौट आए.डॉ.दिनेश मिश्रनेत्र विशेषज्ञअध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति छत्तीसगढ़
- -ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान-उत्खनन में यहाँ पर पाए गए हैं प्राचीन बौद्ध मठ-सिरपुर महोत्सव में दिखती है कला व संस्कृति की अनोखी झलकमनोज सिंह, सहायक संचालकरायपुर । सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में महानदी के तट स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीपुर है यह एक विशाल नगर हुआ करता था तथा यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। सोमवंशी नरेशों ने यहाँ पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान है। उत्खनन में यहाँ पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाये गये हैं।अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। भारतीय इतिहास में सिरपुर अपने धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का केन्द्र था और वर्तमान में भी ये देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।सिरपुर महोत्सव का आयोजनसिरपुर के एतिहासिक महत्व को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन की तरफ से प्रत्येक वर्ष यहां पर सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल सिरपुर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का हर किसी को इंतजार रहता है। रविवार को खाद्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत ने तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव का शुभारंभ करते हुए सभी प्रदेश वासियों को माघी पूर्णिमा सिरपुर महोत्सव की शुभकामनाएं दी हैं।गंधेश्वर महादेव का मंदिरसिरपुर का एक अन्य मंदिर गंधेश्वर महादेव का है। यह महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। कहा जाता है कि चिमणाजी भौंसले ने इस मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया था। सिरपुर से बौद्धकालीन अनेक मूर्तियाँ भी मिली हैं। जिनमें तारा की मूर्ति सर्वाधिक सुन्दर है। सिरपुर का तीवरदेव के राजिम-ताम्रपट्ट लेख में उल्लेख है। 14वीं शती के प्रारम्भ में, यह नगर वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा पर स्थित था। 310 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल की ओर कूच करते समय सिरपुर पर भी धावा किया था, जिसका वृत्तान्त अमीर खुसरो ने लिखा है।आधुनिकता के दौर में बौद्ध विरासत, लोककला एवं संस्कृति का केंद्रसिरपुर महोत्सव आधुनिकता के दौर में भी अपनी प्राचीन संस्कृति और भव्यता को बनाये हुए है। युवा पीढ़ी को यहाँ की बौद्ध विरासत तथा लोककला एवं संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। सिरपुर लोगों की आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है जिसे देखने और महसूस करने के लिए देश विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य में हर तरफ विकास के काम हो रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्य के लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना बनायी है जिससे स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहन मिल रहा है।
- -हाफ बिजली बिल योजना : 42 लाख उपभोक्ता हो रहे लाभान्वित-कृषक जीवन ज्योति योजना : 6 लाख से ज्यादा किसानों को मिला 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान-बीपीएल के 16.82 लाख बिजली उपभोक्ताओं को हर महीने 30 यूनिट बिजली निःशुल्करायपुर /बिजली उत्पादन में अग्रणी छत्तीसगढ़ राज्य में 65 लाख से ज्यादा परिवारों को रियायती बिजली का लाभ मिल रहा है। इन परिवारों में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर लागू की गई हॉफ बिजली बिल योजना से लाभान्वित 41.94 घरेलू बिजली उपभोक्ता, 16.82 लाख बी.पी.एल बिजली उपभोक्ता, 6.26 लाख से ज्यादा किसान शामिल हैं। हाफ बिजली बिल योजना के अंतर्गत घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह की गई 400 यूनिट तक की बिजली की खपत पर प्रभावशील विद्युत की दर के आधार पर आधे बिल की राशि की छूट दी जा रही है। हाफ बिजली बिल योजना में चार वर्षां में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 3236.59 करोड़ रूपए की छूट दी जा चुकी है। इसी तरह कृषक जीवन ज्योति योजना के तहत किसानों को तीन अश्वशक्ति तक के कृषि पंप के बिजली बिल में 6000 यूनिट प्रतिवर्ष तथा 3 से 5 अश्वशक्ति के कृषि पंपों के बिजली बिल में 7500 यूनिट प्रतिवर्ष की छूट दी जा रही है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसानों द्वारा खेती में उपयोग की जा रही बिजली को निःशुल्क रखा गया है। बी.पी.एल. बिजली उपभोक्ताओं को प्रति माह 30 यूनिट बिजली निःशुल्क दी जा रही है।पिछले चार सालों में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं और बी.पी.एल.बिजली कनेक्शनधारी हितग्राहियों को 1973 करोड़ रूपए से ज्यादा की छूट मिल चुकी है। साथ ही कृषक जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत पिछले चार सालों में 6.26 लाख से ज्यादा किसानों को बिजली पर 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान दिया जा चुका है।हाफ बिजली बिल योजना से लगभग 42 लाख परिवार लाभान्वितप्रदेश में संचालित हाफ बिजली बिल योजना के अंतर्गत घरेलू उपभोक्ताओं को प्रति माह की गई 400 यूनिट तक की बिजली की खपत पर प्रभावशील विद्युत की दर के आधार पर आधे बिल की राशि की छूट दी जा रही है। हाफ बिजली बिल योजना में अब तक घरेलू बिजली उपभोक्ताओं को 3236.59 करोड़ रूपए की छूट दी जा चुकी है। पिछले चार सालों में हाफ बिजली बिल योजना के उपभोक्ताओं की संख्या 25.23 लाख से बढ़कर अब 41.94 लाख हो गई है। योजना का लाभ लेने की शर्त यह है कि हाफ बिजली बिल सुविधा का लाभ लेने के लिए उपभोक्ता के बिजली बिल की बकाया राशि शेष नहीं होनी चाहिए। लेकिन यदि ऐसे उपभोक्ता पूर्व की बिल की बकाया राशि का संपूर्ण भुगतान करते हैं, तो भुगतान की तारीख से वे योजना का लाभ लेने के लिए पात्र हो जायेंगे।बीपीएल परिवारों को निशुल्क विद्युत कनेक्शनगरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को दिए गए विद्युत कनेक्शनों में 30 यूनिट प्रति कनेक्शन प्रतिमाह की दर से निशुल्क विद्युत प्रदाय किया जा रहा है। योजना के तहत 4 वर्षां में बीपीएल विद्युत कनेक्शन धारकों को 1973 करोड़ रूपए की छूट दी गई है। राज्य में 16.82 लाख बीपीएल परिवार को एकलबत्ती योजना का लाभ मिल रहा है।किसानों को 10,400 करोड़ रुपए की छूटकृषक जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत स्थायी एवं अस्थायी बिजली कनेक्शन वाले किसानों को तीन अश्वशक्ति तक के कृषि पंप के बिजली बिल में 6000 यूनिट प्रतिवर्ष तथा 3 से 5 अश्वशक्ति के कृषि पंपों के बिजली बिल में 7500 यूनिट प्रतिवर्ष की छूट दी जा रही है। योजना में फ्लैट रेट का विकल्प चुनने वाले किसानों को उनके द्वारा की गई विद्युत खपत की कोई सीमा न रखते हुए मात्र 100 रूपए प्रति अश्वशक्ति की दर से बिजली बिल का भुगतान करना होगा। योजना में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए विद्युत खपत की कोई सीमा नहीं रखी गई है। योजना में कृषकों को 5 अश्वशक्ति द्वितीय पंप के लिए 200 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह, 5 अश्वशक्ति से अधिक प्रथम एवं द्वितीय पंप के लिए 200 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह, 5 अश्वशक्ति एवं 5 अश्वशक्ति से अधिक तृतीय एवं अन्य पंप के लिए 300 रूपए प्रति अश्वशक्ति प्रतिमाह की दर से बिल भुगतान के लिए सुविधा प्रदान की गई है। योजना में शासन की ओर से पिछले चार वर्षां में किसानों को 10,400 करोड़ रूपए का अनुदान दिया गया है। वर्तमान में 6.26 लाख पंप उपभोक्ताओं को छूट दी जा रही है।
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विशेष लेख : राजिम माघी पुन्नी मेला
रायपुर। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित पवित्र धार्मिक नगरी राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। राजिम में तीन नदियों का संगम है इसलिए इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है, यहाँ मुख्य रूप से तीन नदियां बहती हैं, जिनके नाम क्रमशः महानदी, पैरी नदी तथा सोंढूर है। संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव जी विराजमान है। राज्य शासन द्वारा वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, वर्ष 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था, और अब 2019 से राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया जा रहा है। यह आयोजन छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के तत्वाधान में होता है। मेला की शुरुआत कल्पवास से होती है। पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर तथा चम्पेश्वर नाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं तथा धुनी रमाते हैं। 101 कि॰मी॰ की यात्रा का समापन होता है और माघ पूर्णिमा से मेला का आगाज होता है। इस वर्ष 5 फरवरी माद्य पूर्णिमा से 18 फरवरी 2023 महाशिवरात्रि तक राजिम माद्यी पुन्नी मेला आयोजित किया गया है। राजिम माघी पुन्नी मेला में विभिन्न जगहों से हजारांे साधू संतों का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारो की संख्या में नागा साधू, संत आदि आते हैं, तथा विशेष पर्व स्नान तथा संत समागम में भाग लेते हैं, प्रतिवर्ष होने वाले इस माघी पुन्नी मेला में विभिन्न राज्यों से लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ महादेव जी के दर्शन करते हैं और अपना जीवन धन्य मानते हैं। लोगो में मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नही मानी जाती, जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का अंचल में अपना एक विशेष महत्व है। राजिम अपने आप में एक विशेष महत्व रखने वाला एक छोटा सा शहर है। राजिम गरियाबंद जिले का एक तहसील है। प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्वों और प्राचीन सभ्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। राजिम का यह मंदिर आठवीं शताब्दी का है। यहाँ कुलेश्वर महादेव जी का भी मंदिर है। जो संगम स्थल पर विराजमान है। राजिम माघी पुन्नी मेला प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक चलता है। इस दौरान प्रशासन द्वारा विविध सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन होते हैं।
- 31 जनवरी: पुण्यतिथि पर विशेषआलेख- मंजूषा शर्माजब भी भारतीय सिने जगत में खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों की बात होगी, तो इसमें एक नाम अभिनेत्री और गायिका सुरैया का भी टॉप पर रेहाग। उन्हें मल्लिका - ए- हुश्न कहा जाता था। उनको इस संसार से विदा हुए आज 19 साल हो गए हैं। 31 जनवरी 2004 को उन्होंने मुंबई में अंतिम सांस ली।सुरैया का जब भी जिक्र होता है, तो सदाबहार अभिनेता देवआनंद के साथ उनकी प्रेम कहानी की भी याद ताजा हो जाता है। अपने जमाने की यह बड़ी खूबसूरत जोड़ी थी। उन्होंने साथ में फिल्में की और उनके बीच प्यार भी हुआ। दोनों ने जीवन भर साथ रहने का सपना देखा पर सुरैया के परिवार वालों ने मजहब का वास्ता देकर सुरैया के कदम रोक लिए। सुरैया परिवार वालों के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी इसलिए उन्होंने भी अपने प्रेम को अपने दिल में सदा के लिए दफ्न कर दिया और देवसाहब से किनारा कर लिया। नाराज देवआनंद ने बेरुखी अपना ली और कल्पना कार्तिक से शादी कर जिंदगी में आगे बढ़ गए, लेकिन सुरैया वहीं खड़ी रह गईं। अपने प्रेम की याद में उन्होंने ताउम्र शादी नहीं की। सुरैया की जिंदगी जैसे उसी रिश्ते पर ठहर गई थी। जीवन के अंतिम दिनों में परिवार के नाम पर एक खालीपन उनकी जिंदगी का हिस्सा था। उन्होंने अपने अंतिम करीब छह महीने अपने वकील धीमंत ठक्कर के परिवार वालों के साथ गुजारे।ब्रेकअप के बाद देवआनंद ने फिर कभी सुरैया की खैरखबर नहीं ली। यहां तक कि सुरैया की अंतिम यात्रा में भी वे शामिल नहीं हुए। लोगों ने इसे एक बार फिर मोहब्बत की हार कहा।खूबसूरत एक्ट्रेस सुरैया उस दौर की सबसे महंगी हीरोइन भी थीं। वे काफी सुरीली थी और अपने गाने भी खुद गा रही थी, जो लोकप्रिय भी हो रहे थे। दिलीप कुमार जैसे एक्टर की भी ख्वाहिश थी कि वो सुरैया के साथ काम करें। दोनों को लेकर फिल्म शुरू भी हुई, लेकिन कहा जाता है कि पहले ही सीन की शूटिंग से सुरैया इतना नाराज हुईं कि फिर उन्होंने कभी दिलीप कुमार के साथ काम नहीं किया।सुरैया अपनी सुरीली आवाज के लिए जानी गईं। कई दिग्गज हस्तियां भी उनके प्रशंसकों की सूची में शुमार रहीं। इनमें एक नाम देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी था। पंडित नेहरू एक्ट्रेस-सिंगर सुरैया के बहुत बड़े प्रशंसक थे। रिपोट्र्स के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू ने खुद सुरैया के सामने इस बात का जिक्र किया था। कई रिपोट्र्स में यह दावा किया गया कि इसका खुलासा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक कार्यक्रम के दौरान खुद सुरैया के सामने किया था।सुरैया ने कई हिट फिल्में दी, लेकिन वर्ष 1954 में रिलीज हुई उनकी फिल्म 'मिर्जा गालिब' लोगों को बहुत पसंद आई। इस फिल्म में उन्होंने अपने सारे गाने खुद गाए। फिल्म में उनके हीरो भारत भूषण थे। यह फिल्म मशहूर शायर मिर्जा गालिब की जिंदगी पर आधारित थी, जिसे सोहराब मोदी ने निर्देशित किया था। इस फिल्म में सुरैया ने तवायफ मोती बेगम का किरदार निभाया और दिग्गज अभिनेता भारत भूषण मिर्जा गालिब की भूमिका में थे। कहा जाता है कि इस फिल्म में पंडित जवाहरलाल नेहरू को सुरैया की एक्टिंग खूब पसंद आई। उस समय वह देश के प्रधानमंत्री थे। सुरैया ने फिल्म 'मिर्जा गालिब' में करीब पांच गजलों को अपनी आवाज दी थी। इसमें सबसे ज्यादा पसंद की गई गजल - ये ना थी हमारी किस्मत ....।सुरैया ने अपनी गायकी की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से की थी और वे बच्चों के लिए गाती थी। एक बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया को गाते संगीतकार नौशाद ने सुना। सुरैया के गाने का अंदाज नौशाद साहब को बहुत पसंद आया। इसके बाद उन्होंने फिल्मकार कारदार साहब की फिल्म शारदा में सबसे पहले सुरैया को गाने का मौका दिया। 1936 से 1963 तक सुरैया ने फिल्मों में काम किया था। खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बना ली थी।
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-मेजर जनरल (रि.) अशीम कोहली
हमारी पृथ्वी अब8अरब लोगों का घर है। दिलचस्प बात यह है कि इसमें सबसे बड़ा योगदान भारत का है जो इस साल चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। इस बीच विश्व आर्थिक मंच से एक बुरी खबर आई है कि इसी साल पूरी दुनिया में मंदी अपना पांव पसार लेगी। प्राइसवाटर कूपरमैन की रिपोर्ट के अनुसार अगला एक साल बेहद कठिन रहेगा। इसके मुख्य कारणों में चीन समेत अनेक देशों में कोविड-19 महामारी नियंत्रित न हो पाना और रूस-यूक्रेन युद्ध है। इस मंदी का असर भारत पर भी पड़ेगा। लगभग 140 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी बचाने और विकास दर आगे बढ़ाने की चुनौती रहेगी तो देशवासियों की एकजुटता ही समाधान देगी, जो राष्ट्र के प्रति समर्पण एवं आपसी प्रेम और विश्वास से संभव है। हमने देखा है कि पाकिस्तान के खिलाफ 1965, 1971 और करगिल युद्ध हो या संसद और मुंबई में आतंकवादी हमला, पूरा देश एकजुट हो गया। देशवासियों ने तब तिरंगा अपने हाथ में लेकर राष्ट्र की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की शपथ ली थी।
मैंने किताबों में पढ़ा है कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का 18 महीने का कार्यकाल चुनौतियों से भरा था। उस समय भोजन का भारी संकट था, चीन से शिकस्त के बाद भारत का मनोबल उठाने की चुनौती थी लेकिन अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमला बोल दिया। गरीबी के कारण भारत एक और युद्ध का सामना करने की स्थिति में नहीं था लेकिन शास्त्री जी के“जय जवान – जय किसान”नारे को देशवासियों ने पूर्ण समर्थन दिया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान बुरी तरह हार गया। यहां तक कि भारतीय सेना लाहौर में प्रवेश कर गई। शास्त्री जी ने कब्जा किये हुए क्षेत्र को लौटाने से मना कर दिया तब विश्व की दोनों महाशक्तियां अमेरिका और रूस ने मिलकर ताशकंद समझौते का फॉर्मूला निकाला।
शास्त्री जी के समय ही आर्थिक मोर्चे पर भी भारत को अलग ताकत मिली। हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने गेहूं उत्पादन और डॉ. वर्गीज कुरियन ने श्वेत क्रांति के बीज बोए। उनसे पहले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने बांध, भवन और मूलभूत ढांचा निर्माण उद्योग को बढ़ावा देकर देश के विकास को स्थायी आधार दिया।
90 के दशक के बाद दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी का आगमन हुआ, आवासीय भवन निर्माण में तेजी आई, ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर देश बढ़ा और आज डिजिटल करेंसी के दौर में हम पहुंच गए हैं। भारत अब अक्षय ऊर्जा एवं बैटरी से चलने वाली गाड़ियों को मुख्यधारा में लाने के लिए गंभीर पहल कर रहा है। समय, काल और परिस्थितियां किसी भी राष्ट्र के विकास के महत्वपूर्ण कारक हैं। कोविड-19 आने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी पर भी ब्रेक लगा लेकिन महामारी पर नियंत्रण के बाद भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में शामिल हो गया। आज देश को एकजुट समर्थन की जरूरत है ताकि हमारे विकास की रफ्तार पर कोई ग्रहण न लगे। इसलिए अब हाथों में हाथ डालकर तिरंगे की प्रेरणा से राष्ट्रीय एकता को अपनी ढाल बनाने की आवश्यकता है। तिरंगा ही एकमात्र माध्यम है जो जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, बोली और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर एक-एक देशवासी को आपस में जोड़ता है। यही वजह है कि फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने देशवासियों को जोड़ने के लिए अपनी वेबसाइट के माध्यम से राष्ट्र के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करने के लिए शपथ अभियान चला रखा है। हमारा प्रयास है कि प्रत्येक देशवासी यह समझें कि भारत सबसे पहले है और हमें इसे मजबूत बनाना है। हम चाहे जिस भी जगह पर हों और जो भी काम कर रहे हों, हमें अपने व्यक्तिगत दायित्व को राष्ट्र के प्रति दायित्वों से जोड़कर अपने सपनों के भारत का निर्माण करना है।
पिछले वर्ष देश के प्रति प्रेम का भाव जगाने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव मनाया गया और अगले 25 साल अमृत काल के रूप में परिभाषित किये गए, जिसमें हमें भारत को अग्रणी राष्ट्र बनाना है। 23 जनवरी 2004 को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद देशवासियों को साल के 365 दिन पूरे सम्मान के साथ तिरंगा फहराने की जो आजादी मिली, वो राष्ट्र को मजबूत करने के एक दायित्व के रूप में मिली। मैं इसे शुभ संकेत मानता हूं कि हमारा तिरंगा आज सार्वजनिक अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम बन गया है।
हमारा देश विविधताओं में एकता का देश है तो इस एकता के पीछे हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है। देशवासियों से मेरी अपील है कि तिरंगे में निहित देशभक्ति की भावना को घर-घर पहुंचाने के लिए फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने राष्ट्र के प्रति समर्पण की शपथ का जो अभियान चलाया है, वे उसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। देश को आजादी दिलाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति यह एक सच्ची श्रद्धांजलि और देश को विकास पथ पर अग्रसर करने वाले महान वैज्ञानिकों, समाज सेवियों, नीति निर्माताओं के योगदान के प्रति आभार होगा। हम 74वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं तो आइये हम शपथ लें देश के लिए, अपने राष्ट्रीय ध्वज के लिए। जय हिन्द
(लेखक फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी हैं) - मेरा नाम जोकर, आवारा, श्री 420 जैसी फिल्मों से दर्शकों का मनोरंजन करने वाले राज कपूर साहब ने हिन्दी सिनेमा में एक नया अध्याय लिखा है। राज कपूर ने अभिनय के साथ-साथ डायरेक्शन, प्रोडक्शन और राइटिंग में हाथ आजमाया और वो इसमें कामयाब भी रहे। तीन राष्ट्रीय पुरस्कार...11 फिल्मफेयर पुरस्कार.. पद्मभूषण...दादा साहब फाल्के सम्मान..ऐसे ही राज कपूर को हिंदी सिनेमा का शोमैन नहीं कहा जाता है। हिंदी सिनेमा के लिए राज कपूर क्या थे, क्या हैं और क्या रहेंगे...इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। राज कपूर ऐसे शख्स थे जिनकी शोहरत के चर्चे सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी थे। दिलचस्प बात यह रही कि इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद वह ताउम्र सिर्फ जमीन पर सोए। तो चलिए जानते हैं कि आखिर इसके पीछे की क्या वजह रही।कभी पिता के स्टूडियो में झाड़ू लगाने वाले राज कपूर की सादगी के किस्से इंडस्ट्री में बहुत लोकप्रिया हैं। उनके बारे में कहा जाता था कि वह चाहे घर में हों या बाहर, कभी बेड पर नहीं सोते थे। उनका गद्दा हमेशा जमीन पर बिछता था। उन्हें वहीं नींद आती थी। इस बारे में राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा ने भी एक इंटरव्यू के दौरान बताया था। उन्होंने कहा था कि राज कपूर साहब जिस भी होटल में ठहरते थे। अपने कमरे में पलंग का गद्दा खींचकर जमीन पर बिछा लेते थे। इस कारण कई बार उन्हें मुसीबत भी उठानी पड़ी थी। दरअसल एक बार राज कपूर लंदन के एक होटल के कमरे में रुके थे। उन्होंने वहां जमीन में अपना बिस्तर लगा लिया, जिसके बाद होटल वालों ने उनको चेतावनी दी। अगले दिन फिर राज कपूर ने यही किया। उन्होंने दोबारा उसी तरह गद्दा नीचे उतराकर बिछा दिया, तो होटल मैनेजमेंट ने उन पर जुर्माना लगा दिया, जिसके बाद राज कपूर ने खुशी-खुशी जुर्माना भरा था।राज कपूर की गिनती उन महान कलाकारों में होती है, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को विदेशों तक पहुंचाया। राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर भले ही फिल्मों के सबसे बड़े हीरो थे, लेकिन राज कपूर को अपनी अलग पहचान बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी थी। राज कपूर ने पहली नौकरी अपने पिता के स्टूडियो में की। राज कपूर को 1 रुपए महीने सैलेरी मिला करती थी, तब वह अपने पिता के कपूर स्टूडियो में झाड़ू लगाने का काम करते थे।
- मंजूषा शर्मागुजरे जमाने के संगीतकारों में ओंकार प्रसाद नैय्यर यानी ओ. पी. नैय्यर ने अपने अलहदा संगीत की वजह से फिल्म संगीत की दुनिया में एक अलग ही पहचान बनाई थी। 'इशारों इशारों में दिल लेने वाले...', 'जाने कहां मेरा जिगर गया जी...', 'लेके पहला पहला प्यार...' इन गानों की पंक्तियां पढऩे के बाद पूरा गाना सुनने का मन कर रहा है न? हो भी क्यों न? ये गाने दशकों से हमारे दिल और दिमाग पर छाए हुए हैं। इन्हें हम कहीं भी सुन लें तो बिना गुनगुनाए नहीं रह सकते। आज उनकी बर्थ एनिवसिरी पर हम उनके बारे में कुछ रोचक जानकारी लेकर आए हैं।ओपी नैय्यर का जन्म पाकिस्तान के लाहौर में 16 जनवरी साल 1926 को हुआ था। वे अपने जमाने के सबसे महंगे संगीतकार थे। उन्होंने सबसे ज्यादा मौका आशा भोंसले को दिया। उस वक्त लता मंगेशकर सबसे सफल गायिका मानी जाती थी, लेकिन ओ. पी. नैय्यर ने उनके साथ कभी काम नहीं किया। कहा जाता है कि ओ. पी. नैयर ने कसम खाई थी कि वे कभी भी लता मंगेशकर से अपने गाने नहीं गवाएंगे।दरअसल, ओपी नैय्यर 50 और 70 के दशक में अपनी ही शर्तों पर काम करने के लिए मशहूर थे। उन्हें जिद्दी किस्म का इंसान भी कहा जाता था। अपने काम को लेकर वह बहुत अडिग रहते थे और बहुत जल्दी ही गुस्सा हो जाते थे। बस यही वजह बन गई लता मंगेशकर से उनकी लड़ाई की। दरअसल, यह मामला है फिल्म 'आसमान' के समय का। 'आसमान' में सहनायिका के किरदार के लिए ओपी नैय्यर ने एक गाना लिखा और चाहते थे कि लता मंगेशकर इस गाने को अपनी आवाज दें। जब यह बात लता मंगेशकर के कानों तक पहुंची तो उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। उन्हें यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया, क्योंकि उस समय कि वह एक बड़ी गायिका थीं और यह नहीं चाहती थीं कि वह मुख्य नायिका की जगह किसी सहनायिका के लिए गाना गाए।कहा जाता है कि लता मंगेशकर ने वह गाना गाने से इनकार कर दिया। बस यही बात ओपी नैय्यर को चुभ गई। उन्होंने उसी वक्त एलान कर दिया कि वह लता मंगेशकर के साथ कोई गाना नहीं बनाएंगे और इस तरह एक महान गायक और संगीतकार की जोड़ी बनते बनते रह गई। हालांकि, मीडिया के सामने कभी उन दोनों ने अपने लड़ाई की बात को नहीं माना, लेकिन उनके बीच के मतभेद के किस्से बहुत मशहूर हुए। 1990 में जब ओपी नैय्यर को 'लता मंगेशकर अवॉर्ड' के लिए चुना गया तो उन्होंने इस अवॉर्ड को भी लेने से मना कर दिया था। खैर ओ. पी. नैयर ने आशा भोंसले को खूब मौका दिया और एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए।आर-पार, सी. आई. डी., तुमसा नहीं देखा आदि एक के बाद एक लगातार हिट फि़ल्में देते हुए ये सिने जगत् में सबसे महंगे संगीतकार बने। 1950 में एक फि़ल्म में संगीत देने के 1 लाख रुपये लेने वाले पहले संगीतकार थे। "नया दौर" इनकी सबसे लोकप्रिय फि़ल्म रही। इस फि़ल्म के लिए उन्हें 1957 में फि़ल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला। सिर्फ़ कुछ ही फि़ल्मों में अपनी कला का लोहा मनवा देने वाले ये संगीतकार एकांतप्रिय स्वभाव के कारण भी चर्चा में रहे। कुछ लोग इन्हें घमंडी, दबंग और निरंकुश स्वभाव के भी कहते थे, हालाँकि नये एवं जूझते हुए गायकों के साथ ये बहुत उदार रहे। पत्रकार हमेशा से ही इनके खिलाफ रहे और इनको हमेशा ही बागी संगीतकार के रूप में पेश किया गया। पचास के दशक के दौरान आल इंडिया रेडियो ने इनके संगीत को आधुनिक कहते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया और इनके गाने रेडियो पर काफ़ी लंबे समय तक नहीं बजाए गये। इस बात से उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि वे अपनी धुन बनाते रहे और वे सभी देश में बड़ी हिट रही। उस समय सिर्फ़ श्रीलंका के रेडियो पर ही इनके नये गाने सुने जा सकते थे। बहुत जल्दी ही अंग्रेज़ी अख़बारों में इनकी तारीफ के चर्चे शुरू हो गये और इन्हें हिन्दी संगीत में उस्ताद कहा जाने लगा, तब ये बहुत जवान थे।गीता दत्त, आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी के साथ इन्होंने सबसे ज़्यादा काम किया। मोहम्मद रफ़ी से अलग होने के बाद ओपी महेंद्र कपूर के साथ काम करने लगे। महेंद्र कपूर जी ओपी के लिए दिल से गाते थे। उनकी आवाज़ और एहसास की गहराई ने ओपी के गानों में भावनाओं को उभारा और लोगों के दिलों तक ओपी के विचारों की गहराई पहुँचाई। आशा भोंसले के साथ ओपी ने लगभग सत्तर फि़ल्मों में काम किया। सिने जगत् के लोगों ने आशा भोंसले को उनकी ही खोज बताया। ऐसा लगता था कि नैय्यर साहब आशा जी के लिए विशेष धुन बनाते हों, जिन्हें आशा बिना किसी मेहनत के गा लेती। वे ज़्यादातर पंजाबी धुन के साथ मस्ती भरे गाने बनाते थे। लेकिन मुकेश के द्वारा गाया हुआ बहुत गंभीर गाना 'चल अकेला, चल अकेला, चल अकेलाÓ ओ. पी नैय्यर की चहुँमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
- रायपुर । छतीसगढ़ में विशेष पिछड़ी जनजातियाँ दूरस्थ वनांचलों में रहती है। इन जनजातियों के लोग वनोपज इकट्ठा कर, खेती किसानी कर अपना जीवनयापन करती है।राज्य के ही आदिवासी अंचल सरगुज़ा और बस्तर संभाग में सरकारी नौकरियों में तीसरे वर्ग के पदों पर भर्ती में स्थानीय जनजातीय युवाओं को नियुक्त करने का नियम था। परंतु कोरबा ज़िले के जनजातीय बाहुल्य और विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरबा, बिरहोर का निवास स्थल होने के बाद भी यह नियम कोरबा ज़िले में लागू नहीं था।इस नियम के लागू नहीं होने से यहाँ के जनजातीय युवाओं को शिक्षित और योग्य होने के बाद भी सरकारी नौकरियों में आने का मौक़ा नहीं मिल पा रहा था।राज्य में श्री भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री का पद सम्भालते ही इस विसंगति को दूर कर स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों में भर्ती का रास्ता साफ़ कर दिया। मुख्यमंत्री ने ज़िला स्तर पर तृतीय श्रेणी के पदों पर भर्ती के लिए स्थानीय जनजातीय युवाओं को लेने के नियम को कोरबा ज़िले में लागू किया।इसका फ़ायदा लेकर अब तक क़रीब 29 पहाड़ी कोरबा और बिरहोर विशेष पिछड़ी जनजाति के युवक-युवतियों को सरकारी नौकरी मिल गई है।पाँचवी और आठवीं कक्षा पास यह युवा आदिवासी विकास विभाग और स्कूल शिक्षा विभाग में भृत्य के पदों पर काम कर रहे है।
- - डॉ. दानेश्वरी संभाकर, सहायक संचालकरायपुर । छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं।छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते चार वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें छेरछेरा (मां शाकंभरी जयंती) तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं वे हैं हरेली, तीजा, मां कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन की भी भागीदारी होती है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। छेरछेरा पुन्नी के दिन स्वयं मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भी परम्परा का निर्वाह करते हुए छेरछेरा मांगते हैं।छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा का पोषक रहा है। कृषि यहाँ का जीवनाधार है और धान मुख्य फसल। किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है। छेर छेरा के दिन शाकंभरी देवी की जयंती मनाई जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में सर्वत्र घोर अकाल पड़ने के कारण हाकाकार मच गया। लोग भूख और प्यास से अकाल मौत के मुँह में समाने लगे। काले बादल भी निष्ठुर हो गए। नभ मंडल में छाते जरूर पर बरसते नहीं। तब दुखीजनों की पूजा-प्रार्थना से प्रसन्न होकर अन्न, फूल-फल व औषधि की देवी शाकम्भरी प्रकट हुई और अकाल को सुकाल में बदल दिया। सर्वत्र खुशी का माहौल निर्मित हो गया। छेरछेरा पुन्नी के दिन इन्हीं शाकंभरी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती (अन्नपूर्णा) से अन्नदान प्राप्त किया था। छेरछेरा पर्व इतिहास की ओर भी इंगित करता है।छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक गृहस्वामिनी अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं।
- कोई नारी डायन/टोनही नहींडायन या टोनही की धारणा हमारे देश में प्रमुख अंधविश्वासों में से एक है जिसमें किसी महिला को डायन (टोनही) घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बीमारी फैलाने, गाँव में विपत्तियाँ लाने का आरोप लगाकर उसे लांछित किया जाता है। डायन (टोनही) के रूप में आरोपित इन महिलाओं को न केवल सार्वजनिक रूप से बेइज्जत किया जाता है, बल्कि उन्हें शारीरिक प्रताडऩा दी जाती है तथा समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में शारीरिक प्रताडऩा इतनी अधिक होती है कि वे महिनों शारीरिक जख्मों का दर्द लिये कराहती रहती है तथा गाँव में उन्हें उपचार मिलना भी संभव नहीं होता। सार्वजनिक रूप से बेइज्जती व अपमान के जख्म तो आजीवन दुख देते हैं। इन स्थानों पर प्रभावशाली समूह का दबाव इतना अधिक रहता है कि प्रताडऩा की घटनाओं की जानकारी गाँव के बाहर नहीं जा पाती तथा प्रताडि़त महिला व उसका परिवार नारकीय जीवन जीता रहता है, ऐसे मामलों में कई बार महिलाएँ आत्महत्या तक कर लेती है।डायन (टोनही) के संदेह में प्रताडऩा के मामले में गाँवों के जनप्रतिनिधि व शासकीय कर्मचारी भी सामने आने का साहस नहीं कर पाते, ऐसे अधिकांश मामलों में जो जानकारी ही गाँवों से बाहर नहीं आ पाती, जिससे कथित बैगाओं का राज कायम हो जाता है। जो गाँव में सभी विपदाओं का कारण जादू-टोना व डायन (टोनही) बताकर, टोनही पकड़वाने, चिन्हित करने, गाँव बाँधने के नाम पर न केवल मनमानी राशि वसूलते हैं बल्कि किसी भी गरीब बेकसूर महिला को डायन (टोनही) घोषित कर हमेशा अभिशप्त जीवन जीने व प्रताडऩा सहने के लिये छोड़ देते हैं, इन बैगाओं द्वारा महिला को डायन (टोनही) न होने का प्रमाण देने के लिये ऐसी परीक्षाएँ ली जाती है जो किसी भी महिलाओं के लिये संभव नहीं है। ऐसे मामलों में खुद को निर्दोष साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है वह भी जब पूरा गाँव ही अंधविश्वास के कारण विरोध में खड़ा हो, जबकि वास्तविकता यह है कि डायन (टोनही) के रूप में घोषित की जाने वाली महिला में इतनी ताकत नहीं होती है कि आत्मरक्षा ही कर सके, दूसरों के नुकसान करना तो संभव ही नहीं है।हम पिछले 27 वर्षों से समाज में फैले अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन के लिए अभियान चला रहे हैं जिसका एक प्रमुख हिस्सा डायन (टोनही) की धारणा का निर्मूलन भी है, इसलिये व्याख्यान, चमत्कारिक घटनाओं की वैज्ञानिक धारणा, विभिन्न ग्रामों में दौरा कर समझाना, अंधविश्वास का पर्याय बनने वाले मामलों की जाँच व सत्य की जानकारी, गोष्ठियाँ, बैठकें की जाती है। वहीं सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के भी अनेक मामले लगातार सामने आते रहते हैं,जिससे हजारों परिवार परेशान है उन्हें समाज में वापस लौटाने के लिए भी निरंतर प्रयास किया जाता है.हमें कई बार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न स्थानों के बुद्धिजीवी साथियों, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाज-सुधार के संबंध में विचार पढऩे को मिलते हैं, मेरा यह मानना है कि अंधविश्वासों एवं सामाजिक कुरीतियों का समूल निर्मूलन किसी एक व्यक्ति, एक संगठन या प्रशासन के लिये संभव नहीं है। अलग-अलग स्थानों पर निवास व कार्य कर रहे सभी व्यक्ति यदि इस कार्य के लिये अपना थोड़ा समय व बहुमूल्य विचार हमें प्रदान करें, व सहयोग से कार्य करें तो ऐसा कोई भी कारण नहीं है कि इन कुरीतियों व अंधविश्वासों का निर्मूलन न किया जा सके, नये वर्ष में सर्व सहयोग से यह काम बेहतर ढंग से किया जा सकता है। इच्छुक स्वयंसेवी व्यक्ति व उत्साही कार्यकर्ता मुझसे इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं।डॉ. दिनेश मिश्रवरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञअध्यक्षअंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
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जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
सुहानी रात ढल चुकी, न जाने तुम कब आओगे, यह गाना मोहम्मद रफी साहब ने गाया है और आज उनकी जयंती के मौके पर इसी गाने और इस फिल्म तथा इसके कलाकारों की चर्चा हम यहां कर रहे हंै।
फिल्म थी दुलारी और इसका निर्माण 1949 में हुआ था। फि़ल्म के मुख्य कलाकार थे सुरेश, मधुबाला और गीता बाली। फि़ल्म का निर्देशन अब्दुल रशीद कारदार साहब ने किया था। 1949 का साल गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आया। 1949 में महबूब ख़ान की फि़ल्म अंदाज़ , ताजमहल पिक्चर्स की फि़ल्म चांदनी रात , तथा ए. आर. कारदार साहब की दो फि़ल्में दिल्लगी और दुलारी प्रदर्शित हुई थीं और ये सभी फि़ल्मों का गीत संगीत बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुआ था। फिल्म दुलारी 1 जनवरी 1949 को प्रदर्शित हुई थी। पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है।
आज जब दुलारी के इस गाने की चर्चा हो रही है, तो हम बता दें कि इसी फिल्म में लता मंगेशकर और रफ़ी साहब ने अपना पहला डुएट गीत गाया था और यह गीत था-मिल मिल के गाएंगे दो दिल यहां, एक तेरा एक मेरा । फिल्म में दोनों का गाया एक और युगल गीत था -रात रंगीली मस्त नज़ारे, गीत सुनाए चांद सितारे । लता और रफी की यह जोड़ी काफी पसंद की गई और उसके बाद तो उन्होंने ऐसे- ऐसे यादगार गाने दिए हैं कि यदि उनका जिक्र करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन गुजर जाएंगे, लेकिन बातें खत्म नहीं होंगी।
फिल्म में मोहम्मद रफ़ी की एकल आवाज़ में नौशाद साहब ने सुहानी रात ढल चुकी गीत.. -राग पहाड़ी पर बनाया । इसी फि़ल्म का गीत तोड़ दिया दिल मेरा.. भी इसी राग पर आधारित है। राग पहाड़ी नौशाद साहब का काफी लोकप्रिय शास्त्रीय राग रहा है और उन्होंने इस पर आधारित कई गाने तैयार किए हैं। इसमें से जो गाने रफी साहब की आवाज में हैं, वे हैं-
1.. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (फिल्म-राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
5. ओ दूर के मुसाफिऱ हम को भी साथ ले ले (उडऩ खटोला)
फिल्म दुलारी में कुल 12 गाने थे। 14 रील की इस फिल्म में ये गाने कहानी की तरह ही चलते हैं । नायिका मधुबाला के लिए लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी। वहीं गीता बाली के लिए शमशाद बेगम ने दो गाने गाए थे। जिसमें से शमशाद बेगम का गाया एक गाना - न बोल पी पी मोरे अंगना , पक्षी जा रे जा...काफी लोकप्रिय हुआ था। नायक सुरेश के लिए रफी साहब ने आवाज दी थी। इसमें से 9 गाने लता मंगेशकर ने गाए जिसमें रफी साहब के साथ उनका दो डुएट भी शामिल है। रफी साहब ने केवल एक गाना एकल गाया और वह है -सुहानी रात ढल चुकी जिसे आज भी रफी साहब के सबसे हिट गानों में शामिल किया जाता है।पूरा गाना इस प्रकार है-
सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
जहां की रुत बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
अंतरा-1. नज़ारे अपनी मस्तियां, दिखा-दिखा के सो गये
सितारे अपनी रोशनी, लुटा-लुटा के सो गये
हर एक शम्मा जल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल...
अंतरा- 2- तड़प रहे हैं हम यहां, तुम्हारे इंतज़ार में
खिजां का रंग, आ-चला है, मौसम-ए-बहार में
हवा भी रुख बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल......
गाने में नायक की नायिका से मिलने की बैचेनी और इंतजार का दर्द शकील साहब ने अपनी कलम से बखूबी उतारा है, तो रफी साहब ने अपनी आवाज से इस गाने को जीवंत बना दिया है। गाने में शब्दों का भारी भरकम जाल नहीं है बल्कि बोल काफी सिंपल हैं, जो बड़ी सहजता से लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं। गाने की यही खासियत इसे आज तक जिंदा रखे हुए है। गाने के शौकीन आज भी किसी कार्यक्रम में इसे गाना नहीं भूलते हैं। राग पहाड़ी के अनुरूप इसका फिल्मांकन भी हुआ है और दृश्य में नायक चांदनी रात में सुनसान जंगल में नायिका का इंतजार करते हुए यह गाना गाता है। दृश्य में एक टूटा फूटा खंडहर भी नजर आता है, तो नायक की विरान जिंदगी को दर्शाता है, जिसे बहार आने का इंतजार है।
दुलारी फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी-प्रेम शंकर एक धनी व्यावसायिक का बेटा होता है जिसकी शादी उसके माता-पिता रईस खानदान में करना चाहते हंै। प्रेम शंकर को एक बंजारन लड़की दुलारी से प्यार हो जाता है। यह लड़की बंजारन नहीं बल्कि एक रईस खानदान की बेटी शोभा रहती है, जिसे बंजारे लुटेरे बचपन में उठा लाए थे। यह रोल मधुबाला ने निभाया है। प्रेमशंकर इस लड़की को इस नरक से निकालने के लिए उससे शादी करने का फैसला लेता है। बंजारन की टोली में एक और लड़की रहती है कस्तूरी जिसका रोल गीता बाली ने निभाया है। वह इसी टोली के एक बंजारे लड़के से प्यार करती है, लेकिन उसकी नजर दुलारी पर होती है। प्रेमशंकर के पिता इस शादी के खिलाफ हैं। काफी जद्दोजहद के बाद प्रेमशंकर , दुलारी को इस नरक से निकालने में कामयाब हो जाता है और उनके पिता को भी इस बात का पता चल जाता है कि दुलारी और कोई नहीं उनके ही मित्र की खोई हुई बेटी है जिसे वे बचपन से ही अपनी बहू बनाने का फैसला कर चुके थे। फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और नायक को अपना सच्चा प्यार मिल जाता है। फिल्म में मधुबाला से ज्यादा खूबसूरत गीता बाली नजर आई हैं, लेकिन उनके हिस्से में सह नायिका की भूमिका ही थी। लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के एक साल बाद ही उन्हें फिल्म बावरे नैन में राजकपूर की नायिका बनने का मौका मिला और इसके कुछ 5 साल बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ शादी कर ली। दुलारी फिल्म मधुबाला की प्रारंभिक फिल्मों में से है। मधुबाला ने जब यह फिल्म की उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल की थी।
फिल्म की पूरी कहानी चंद पात्रों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। सुरेश के पिता के रोल में अभिनेता जयंत थे जिनका असली नाम जकारिया खान था, लेकिन उन्हें जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने जयंत नाम दिया था। विजय भट्ट आज की फिल्मों के निर्माता-निर्देशक विक्रम भट्ट के दादा थे। जयंत के बेटे अमजद खान हैं जिन्हें आज भी गब्बर सिंह के रूप में पहचाना जाता है। फिल्म दुलारी में नायक सुरेश की मां का रोल प्रतिमा देवी ने निभाया था, जो ज्यादातर फिल्मों में मां का रोल में ही नजर आईं। उनकी फिल्मों में अमर अकबर एंथोनी, पुकार प्रमुख हैं। आखिरी बार वे वर्ष 2000 में बनी फिल्म पलकों की छांव में दिखाई दी थीं। मधुबाला के पिता के रोल में अभिनेता अमर थे। अभिनेता श्याम कुमार ने खलनायक का रोल निभाया था, जो बाद में रोटी, जख्मी जैसी कई फिल्मों में खलनायक के रूप में नजर आए।
कभी फुरसत मिले तो इस फिल्म को जरूर देखिएगा, अपने दिलकश गानों की वजह से यह फिल्म दिल तो सुकून देती है। हालांकि अब इसके प्रिंट काफी धुंधले पड़ गए हैं। फिल्म की तकनीक और कहानी आज की पीढ़ी को भले ही पुरानी लगे, लेकिन अपने दौर की यह हिट और क्लासी फिल्म है। -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
महान गायक मोहम्मद रफी साहब की पुण्यतिथि के मौके पर हम आज उनके गाए एक गाने की चर्चा कर रहे हैं। गाने का मुखड़ा है- ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे, हम को भी साथ ले ले, हम रह गए अकेले। यह गाना फिल्म उडऩ खटोला में शामिल किया गया था। इसे सुरों से संवारा था नौशाद साहब ने और लिखा शकील बदायूनीं साहब ने ।
मोहम्मद रफी शुरुआत से ही नौशाद साहब के फेवरेट गायक थे। एक प्रकार से मोहम्मद रफी का फिल्मी दुनिया में प्रवेश नौशाद साहब की सिफारिशी चिट्ठी के बदौलत ही हुआ था। 1955 में जब फिल्म उडऩ खटोला के संगीत संयोजन की जिम्मेदारी नौशाद साहब को सौंपी गई, तो उन्होंने रफी और लता मंगेशकर की जोड़ी को लिया। फिल्म में उन्होंने शास्त्रीय रागों पर आधारित कई गाने तैयार किए जिसमें से एक गीत ओ दूर के मुसाफिर भी था, जो राग पहाड़ी पर आधारित है। इस फिल्म का निर्माण सनी आर्ट प्रोडक्शन ने किया था। शास्त्रीय संगीत के सरस रुपांतरण में बढ़ते रिद्म का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से नौशाद की इस फिल्म में नजर आता है। इस फिल्म में लता के गाए गीत मोरे सैंया जी उतरेंगे पार हो ,.. में राग पीलू के साथ लोकरंग की ताल सुनने को मिलती है। उडऩ खटोले वाले राही (लता और साथी) , हमारे दिल से न जाना धोखा न खाना ...गीतों में लता की मीठी लोच भरी आवाज सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है। दर्द के लिए भैरव राग के सुर लेकर नौशाद साहब ने इस फिल्म में -सितारों की महफिल सजी..., गीत तैयार किया और उदासी की गहराई लेकर -न रो ए दिल, राग भैरवी के साथ -न तूफां से खेलो , न साहिल से खेलो जैसे सहाबहार गीत पेश किए। नौशाद जी अपनी कम्पोजिशन हमेशा फिल्म की कहानी और सिचुएशन को ध्यान में रखकर बनाते थे। उडऩ खटोला फिल्म के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया।
पूरे गाने के बोल इस प्रकार हैं....
चले आज तुम जहां से, हुई जिंदगी परायी
तुम्हें मिल गया ठिकाना, हमें मौत भी ना आई।
ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे
हम को भी साथ ले ले, हम रह गये अकेले।
तू ने वो दे दिया गम, बेमौत मर गये हम
दिल उठ गया जहां से, ले चल हमें यहां से
किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले।
सूनी हैं दिल की राहें, खामोश हैं निगाहें
नाकाम हसरतों का, उठने को हैं जनाज़ा
चारों तरफ लगे हैं, बरबादियों के मेले रे..
हम रह गए अकेले.....।
इस गाने के अंत में रफी साहब के स्वर काफी ऊंचे हो जाते हैं। गाने में साजों का शोर नहीं है बल्कि कोरस की आवाज ही काफी अच्छी लगती है। गाने में दिखाया गया है कि प्रेमी अपनी प्रेमिका को मौत के मुंह में जाता देखकर दुखी है और अपने अकेले होने के अहसास को वह शब्दों में बयां कर रहा है साथ ही उसकी दुनिया से शिकायत भी है कि- किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले। इस गाने में दिलीप कुमार और निम्मी दोनों नजर आते हैं। गाने के अंत में निम्मी को पहाड़ी नदी में कूदते दिखाया गया है।
इस फिल्म के पूरे गाने शकील साहब ने ही लिखे थे। उस जमाने में ज्यादातर पूरी फिल्म के गाने लिखने का जिम्मा किसी एक गीतकार को ही दिया जाता था। उसे फिल्म की कहानी बता दी जाती थी और कई बार तो शूटिंग के दौरान सेट पर ही गीतकार को बुलाकर गाने तैयार करवा लिए जाते थे। स्टुडियो में एक तरफ गीतकार गाने लिखते थे और वहीं पर संगीतकार उनकी धुन तैयार कर गायकों से गाने भी गवा लिया करते थे। एक गाने के लिए गायक कलाकार कई बार पूरे दिन स्टुडियो पर रियाज कर किया करते थे। आज के जैसे नहीं कि एक गायक आया और अपना वर्जन गा कर चला गया। बाद में दूसरा आया और अपने हिस्से के बोल गाकर चला गया। बाकी काम कम्प्यूटर पर हो रहा है। उडऩ खटोला फिल्म में 9 गाने थे और सभी एक से बढ़कर एक। इस फिल्म के गानों में नौशाद ने राग जयजयवंती, पहाड़ी, भैरवी, राग पीलू जैसे शास्त्रीय रागों का बखूबी इस्तेमाल किया।
नौशाद साहब को राग पहाड़ी काफी पसंद था। उन्होंने मोहम्मद रफ़ी से इस राग पर आधारित कई गीत गवाए। रफी की एकल आवाज़ में गाया फिल्म दुलारी का गीत - सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे ......इसी राग पर आधारित है। इसी फि़ल्म के एक और गीत -तोड़ दिया दिल मेरा.. के लिए भी नौशाद साहब ने इसी राग पर आधारित बंदिशें तैयार कीं। यह राग जितना शास्त्रीय है, उससे भी ज़्यादा यह जुड़ा हुआ है पहाड़ों के लोक संगीत से। इसलिए इसमें लोक संगीत की झलक मिलती है। यह पहाड़ों का संगीत है, जिसमें प्रेम, शांति और वेदना के सुर सुनाई देते हैं। राग पहाड़ी पर असंख्य फि़ल्मी गानें बने हैं। जिनमें से नौशाद के स्वरबद्ध किए कुछ गीत हैं-
1. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. जवां है मोहब्बत हसीं है ज़माना (अनमोल घड़ी)
5. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
6. तोरा मन बड़ा पापी सांवरिया रे (गंगा जमुना)
अब फिल्म उडऩखटोला की कहानी के बारे में । इस फिल्म में दिलीप कुमार के अपोजिट निम्मी थीं। फिल्म को निर्देशित किया था एस. यू. सनी ने । फिल्म में जीवन और टुनटुन भी प्रमुख भूमिकाओं में थे। फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी- फिल्म का हीरो काशी यानी दिलीप कुमार एक अभिशप्त विमान से यात्रा कर रहा होता कि वह विमान क्रेश हो जाता है और एक नगर के बाहर जा गिरता है । इस नगर में एक रानी का शासन है। जिसकी देवी का नाम संगा है। काशी को सोनी नाम की एक लड़की बचाती है और उसे अपने घर ले आती है। जहां वह अपने पिता और भाई हीरा के साथ रहती है। सड़कें ब्लॉक होने की वजह से काशी अपने घर वापस लौटने में असमर्थ है। वहां पर रहने के लिए उसे रानी की अनुमति लेना अनिवार्य है। ऐसे में वह राजरानी से मिलता है, तो देखता है कि वह काफी खूबसूरत है। रानी भी काशी से प्रभावित होती है और उसे अपने महल में रहने और उसके लिए गाने के लिए कहती है। इस बीच काशी और सोनी एक दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं और वे छिपकर एक दूसरे से मिलते हैं। सोनी एक लड़के शिबु का भेष धरकर काशी से मिलती है। इधर राजरानी के प्यार को काशी ठुकरा देता है। फिल्म में राजरानी का रोल अभिनेत्री सूर्या कुमारी ने निभाया था। इस फिल्म का तमिल वर्जन भी बना जिसका नाम था वानारथम।
यह फिल्म चली तो एक प्रकार से नौशाद के गानों की वजह से । उस समय दिलीप कुमार और निम्मी की जोड़ी भी हिट हुई थी। इस जोड़ी ने आन (1952), दीदार, दाग और अमर (1954) फिल्म में भी काम किया। इनमें से उडऩखटोला इस जोड़ी की आखिरी फिल्म थी। -
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
मोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं; गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब साठ दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं।
पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकल कर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिफऱ् संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र। किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।
मोहम्मद रफी साहब संघर्ष के दिनो में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। नौशाद साहब ने उन्हें गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला आईं हैं। न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया।
सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।
उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। एक तरफ किशोर कुमार अपने पारिश्रमिक को लेकर एकदम परफेक्ट थे। दूसरी तरफ रफी साहब संकोची इंसान। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया।
अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजि़क का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले। -
और मो. रफी की बात सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
मोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं;गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब कई दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं। आज उनकी जयंती पर कुछ उनकी बातें.....
पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकल कर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिफऱ् संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र और । किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।
मोहम्मद रफी साहब मुंबई में संघर्ष के दिनों में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। संगीतकार नौशाद साहब ने उन्हें कोरस में गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं। रफी साहब ने कहा- उन्हें लगा था रिकॉर्डिंग हो जाएगी तो उसके मेहताने से वो घर पहुंच जाएंगे। नौशाद ने तब रफी को 1 रुपये का सिक्का दिया था ताकि वो घर पहुंच जाएं। रफी ने नौशाद से वो सिक्का लिया और पैदल ही चल पड़े। इसके कई सालों बाद रफी शहंशाह-ए-तरन्नुम बन गए। उनके पास खूब दौलत और शोहरत हो गई। तब एक दिन नौशाद साहब मोहम्मद रफी के घर आए। उन्होंने देखा कि मोहम्मद रफी ने 1 रुपये का सिक्का फ्रेम कराकर दीवार पर टांग रखा है। नौशाद ने इसका कारण जानना चाहा। तब रफी साहब ने बताया कि सालों पहले नौशाद ने जिस लड़के को घर जाने के लिए 1 रुपये का सिक्का दिया था वो और कोई नहीं, बल्कि खुद रफी ही थे। रफी ने कहा, 'मैं उस दिन पैदल ही गया था। ये सिक्का मुझे मेरी सच्चाई याद दिलाता है और ये कि उन दिनों किस नेक इंसान ने मेरी मदद की थी।' मो. रफी साहब की बातें सुनकर एक बार फिर नौशाद की आंखें नम हो गई थीं।
न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया, ऐसे थे रफी साहब।
सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।
उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया। मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वभाव के कारण जाने जाते थे। मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ों गीत गाये थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी। लता मंगेशकर गानों पर रायल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की।
रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रायल्टी किस बात की मांगी जाए। दोनों के बीच विवाद इतना बढा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में ज्वैलथीफ का गीत...दिल पुकारे गीत गाया।
अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजि़क का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले।
मो. रफी साहब के गाए 10 लोकप्रिय गाने, जो आज भी पसंद किए जाते हैं....
1. तुम मुझे यूं भुला न पाओगे - फिल्म पगला कहीं का
2. मैंने पूछा चांद से - फिल्म अब्दुल्लाह
3. चौदहवीं का चांद हो.... फिल्म चौदहवीं का चांद
4. बहारों फूल बरसाओ.... फिल्म सूरज
5. बदन पे सितारे लपेटे हुए- फिल्म प्रिंस
6. गुलाबी आंखें... फिल्म द ट्रेन
7. ये चांद सा रोशन चेहरा... फिल्म कश्मीर की कली
8. सुहानी रात ढल चुकी....फिल्म - दुलारी
9. बाबुल की दुआएं लेती जा... फिल्म नीलकमल
10. आज कल तेरे मेर प्यार के चर्चे- फिल्म ब्रह्मचारी - -कोदो-कुटकी उगाने वाले किसान समृद्धि की ओर- किसानों को कोदो से होने लगी करोड़ों की आय- बीज विक्रय से आमदनी में चार गुना इजाफा- मिलेट को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ को मिल चुका है देश के सर्वश्रेष्ठ उदीयमान राज्य का सम्मानविशेष लेख- डॉ. दानेश्वरी संभाकर, सहायक संचालकरायपुर / छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के चलते राज्य में कोदो, कुटकी और रागी (मिलेट्स) की खेती को लेकर किसानों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा है। पहले औने-पौने दाम में बिकने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में अच्छे दामों में बिकने लगा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की विशेष पहल के चलते राज्य में मिलेट्स की समर्थन मूल्य पर खरीदी होने से किसानों को करोड़ों रूपए की आय होने लगी है। बीते सीजन में किसानों ने समर्थन मूल्य पर 34298 क्विंटल मिलेट्स 10 करोड़ 45 लाख रूपए में बेचा था। छत्तीसगढ़ देश का इकलौता राज्य है, जहां कोदो, कुटकी और रागी की समर्थन मूल्य पर खरीदी और इसके वैल्यू एडिशन का काम भी किया जा रहा है। कोदो-कुटकी की समर्थन मूल्य पर 3000 प्रति क्विंटल की दर से तथा रागी की खरीदी 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की जा रही है।शासन की महत्वाकांक्षी योजना राजीव गांधी किसान न्याय योजना एवं मिलेट मिशन किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा वर्ष 2021-22 में 5,273 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 16.03 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय किया गया है। वर्ष 2022-23 में 13,005 टन मिलेट जिसका मूल्य रू. 39.60 करोड़ का समर्थन मूल्य पर क्रय करने का लक्ष्य है।देश के कई आदिवासी इलाकों में मोटे अनाज का काफी समय से प्रयोग किया जाता रहा है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फायदेमंद है, इसलिए अब दूसरे इलाकों में भी इन अनाज का काफी इस्तेमाल किया जा रहा हैै। एक्सपर्ट के मुताबिक कोदो कुटकी को प्रोटीन व विटामिन युक्त अनाज माना गया है। इसके सेवन से शुगर बीपी जैसे रोग में लाभ मिलता है. कोदो एक मोटा अनाज है, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। बस्तर के आदिवासी संस्कृति व खानपान में कोदो कुटकी रागी जैसे फसलों का महत्वपूर्ण स्थान है।छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था के सहयोग एवं मार्गदर्शन से किसान कोदो के प्रमाणित बीज का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा अर्जित करने लगे हैं। बीते एक सालों में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग 5 गुना और इससे होने वाली आय में चार गुना की वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में राज्य के 11 जिलों के 171 कृषकों द्वारा 3089 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया, जिसे बीज निगम ने 4150 रूपए प्रति क्विंटल की दर से किसानों से क्रय कर उन्हें एक करोड़ 28 लाख 18 हजार रूपए से अधिक की राशि भुगतान किया है। राज्य के किसानों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज, सहकारी समितियों के माध्यम से बोआई के लिए प्रदाय किया जा रहा है।बीज प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2020-21 में राज्य में 7 जिलों के 36 किसानों द्वारा मात्र 716 क्विंटल प्रमाणित बीज का उत्पादन किया गया था। इससे उत्पादक किसानों को 32 लाख 88 हजार रूपए की आमदनी हुई थी, जबकि 2021-22 में कोदो बीज उत्पादक किसानों की संख्या और बीज विक्रय से होने वाला लाभ कई गुना बढ़ गया है। बीते तीन वर्षो में कोदो प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों ने एक करोड़ 65 लाख 18 हजार 633 रूपए का बीज, छत्तीसगढ़ बीज एवं विकास निगम को विक्रय किया है।अधिकारियों ने बताया कि ऐसी कृषि भूमि जहां धान का उत्पादन नाममात्र उत्पादन होता है, वहां कोदो की खेती किया जाना ज्यादा लाभकारी है। कोदो की खेती की कम पानी और कम खाद की जरूरत पड़ती है। जिसके फलस्वरूप इसकी खेती में लागत बेहद कम आती है और उत्पादक कृषकों को लाभ ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019-20 में राज्य में मात्र 103 क्विंटल प्रमाणित बीज उत्पादन हुआ था। मिलेट्स मिशन लागू होने के बाद से छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अन्य शासकीय संस्थानों से समन्वय कर कोदो बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है, जिससे बीज उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। गौरतलब है कि मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड 2022 सम्मान भी मिल चुका है। राज्य में मिलेट्स उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसको राजीव गांधी किसान न्याय योजना में शामिल किया गया है। मिलेट्स उत्पादक कृषकों को प्रोत्साहन स्वरूप प्रति एकड़ के मान से 9 हजार रूपए की आदान सहायता भी दी जा रही है।राज्य में कोदो, कुटकी और रागी की खेती को राज्य में लगातार विस्तारित किया जा रहा है, जिसके चलते राज्य में इसकी खेती का रकबा 69 हजार हेक्टेयर से बढ़कर एक लाख 88 हजार हेक्टेयर हो गया है। मिलेट की खेती को प्रोत्साहन, किसानों को प्रशिक्षण, उच्च क्वालिटी के बीज की उपलब्धता तथा उत्पादकता में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए राज्य में मिलेट मिशन संचालित है। 14 जिलों ने आईआईएमआर हैदराबाद के साथ छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रयास से मिलेट मिशन के अंतर्गत त्रिपक्षीय एमओयू भी हो चुका है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन के तहत मिलेट की उत्पादकता को प्रति एकड़ 4.5 क्विंटल से बढ़ाकर 9 क्विंटल यानि दोगुना किए जाने का भी लक्ष्य रखा गया है।
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*सहकारी शक्कर कारखानों इथेनॉल प्लांट की स्थापना*
*गन्ना किसानों के लिए न्याय योजना**प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का पुनर्गठन**सहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरण**नवगठित प्राथमिक साख सहकारी समितियों में गोदाम-सह-कार्यालय निर्माण**बस्तर एवं सरगुजा संभाग के दूरस्थ अंचलों में बैकिंग सुविधा का विस्तार*रायपुर /मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सरकार गठन के एक घंटे के भीतर प्रदेश के किसानों के ऋण माफी की घोषणा की। मुख्यमंत्री की घोषणा से ऐसे कृषक जो वर्षों से डिफाल्टर हो जाने के कारण ऋण नहीं ले पा रहे थे, उन्हें ऋण की पात्रता मिल गई। प्रदेश में सहकारी समितियों के माध्यम से 13 लाख 46 हजार 569 किसानों का 5261.43 करोड़ रूपए का ऋण माफ कर उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया।मुख्यमंत्री की पहल पर सहकारिता के क्षेत्र में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड से इथेनॉल प्लांट की स्थापना, सम्पूर्ण देश में प्रथम उदाहरण है। इसके लिए सभी प्रक्रिया लॉक डाउन अवधि में सम्पादित की गई। प्रदेश के सहकारी शक्कर कारखाना कवर्धा में प्रथम इथेनॉल प्लांट की स्थापना पीपीपी मोड में करने के लिए इन्वेस्टर्स मीट आयोजित कर इच्छुक निवेशकों के पक्ष को चुना गया। इसके बाद आरएफक्यू, आरएफपी की प्रक्रिया पूर्ण कर निवेशक का चयन किया गया। चयनित निवेशक द्वारा 80 किलो लीटर प्रति दिन क्षमता (केएलपीडी) की क्षमता से कारखाना लगाया जा रहा है, जिससे कारखाने को प्रतिवर्ष 9.22 करोड़ रूपए लायसेंस फीस के रूप में प्राप्त होगा। चयनित संस्था और कारखाने के मध्य 29 दिसम्बर 2022 को अनुबंध निष्पादित किया गया। पीपीपी मॉडल इथेनॉल प्लांट की स्थापना देश में पहला उदाहरण है। इथेनॉल संयंत्र की स्थापना से क्षेत्र में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि का आधार मजबूत होगा।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के कुशल नेतृत्व में राज्य बनने के बाद प्रदेश के चारों कारखानों से शक्कर के निर्यात के लिए प्रथम बार कार्रवाई की गई। चारों शक्कर कारखानों से 30.18 करोड़ रूपए की 14 हजार 302 मीट्रिक टन शक्कर का निर्यात भारत सरकार से प्राप्त निर्यात कोटे के अनुसार किया गया। इस निर्यात के फलस्वरूप भारत सरकार से राज्य को 10448 रूपए प्रति मीट्रिक टन की मान से 14.95 करोड़ रूपए की सब्सिडी स्वीकृत हुई।मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेश में शुरू की गई किसान न्याय योजना से गन्ना किसानों को भी जोड़ा गया। प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए न्याय योजना के अंतर्गत 93.75 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 34,292 किसानों को 74.24 करोड़ रूपए भुगतान किया गया। इस प्रकार प्रदेश में गन्ना किसानों को गन्ना पेराई सीजन 2019-20 में 355 रूपए प्रति क्विंटल के मान से गन्ना का मूल्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2020-21 में 79.50 रूपए प्रति क्विंटल की मान से 84.85 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान किया गया।राज्य गठन के समय कुल 1333 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित थी। राज्य में प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को ऋण वितरण, खाद-बीज, दवाईयां आदि का वितरण किया जाता है। इन सोसायटियों का गठन 1971-72 के मध्य हुआ था। इनके गठन के समय राज्य की जनसंख्या एवं भौगोलिक स्थिति भिन्न थी। राज्य बनने के 20 वर्षों के बाद जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ कृषि रकबे में वृद्धि होने से मांग एवं किसानों की सुलभता को देखते हुए सरकार ने इन समितियों के पुनर्गठन का निर्णय लिया। लॉक डाउन अवधि में जैसी विषम परिस्थितियों में 1333 समितियों का पुनर्गठन कर 725 नवीन समितियों का गठन, पंजीयन किया गया। नवगठित 725 प्राथमिक साख सहकारी समितियों के के माध्यम से किसानों को खाद, बीज एवं ऋण की उपलब्धता सुगमता से की जा रही है। वर्तमान में प्रदेश में 2058 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार द्वारा सहकारी अधिनियम का संशोधन एवं सरलीकरण किया गया है। सहकारी सदस्यों के हित में प्रावधान संशोधित किए गए हैं। सहकारी समितियों के पंजीयन के लिए न्यूनतम आवश्यक सदस्यों की संख्या 20 से घटाकर 10 की गई है। सहकारी समितियों के पंजीयन की अवधि 90 दिवस से घटाकर 45 दिवस किया गया है। सहकारी समितियों की उपविधियों में संशोधन की अवधि 60 दिवस से घटाकर 45 दिवस कर दिया गया है। न्यायालयीन प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिए संभागीय संयुक्त पंजीयकों को प्रथम अपील के अधिकार दिए गए हैं। अधिनियम संशोधन के पूर्व सम्पूर्ण राज्य के प्रथम अपील के प्रकरण पंजीयक द्वारा सुने जाते थे, जिससे दूरस्थ अंचल के संस्थाओं के जुड़े कृषक सदस्यों को कठिनाई होती थी। संशोधन से किसानों को उनके नजदीक सुलभ न्याय दिलाया जाना सुनिश्चित कराया गया है।छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अधोसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ) योजनांतर्गत नवगठित 725 नवीन समितियों में आधारभूत संरचना प्रदाय किए जाने के उद्देश्य से गोदाम सह कार्यालय निर्माण की योजना तैयार की गई। इस योजना में प्रत्येक सोसायटी में 25.56 लाख रूपए की दर से 725 समितियों में 185.31 करोड़ रूपए की लागत से गोदाम सह कार्यालय का निर्माण किया जाएगा। सभी समितियों के लिए जमीन आबंटन का कार्य पूर्ण कर लिया गया है। टेण्डर आदि प्रक्रिया होने के बाद 514 समितियों में कार्यादेश जारी किया जा चुका है और 55 समितियों में कार्य प्रारंभ हो चुका है। माह मार्च 2023 तक सभी समितियों में गोदाम सह कार्यालय पूर्ण किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। गोदाम सह कार्यालय के निर्माण से नवगठित समितियों में सुचारू रूप से खाद, बीज, ऋण वितरण, धान खरीदी का कार्य सुगमता से किया जा सकेगा।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा बस्तर और सरगुजा संभाग में दूरस्थ अंचल के ग्रामीणों पर सुलभ बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से निर्देश दिए गए हैं। निर्देश के पालन में बस्तर और सरगुजा संभाग में कार्ययोजना बनाकर सहकारी बैंकिंग की सुविधा का विस्तार किया जा रहा है। बस्तर संभाग में 7 स्थानों- नानगुर, बजावण्ड, दहीकोंगा, धनोरा, बडे राजपुर, जेपरा-हल्बा, अमोड़ा और सरगुजा संभाग में तीन स्थानों-लुण्ड्रा, देवनगर एवं पटना में नवीन शाखा खोले जाने की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है। साथ ही बस्तर संभाग में प्रथम चरण में 6 स्थानों-बड़े किलेपाल, मर्दापाल, अमरावती, बड़े डोंगर, कोयलीबेड़ा एवं मद्देड़ में एटीएम और तीन स्थानों-नदीसागर, कुटरू एवं बेनूर में मोबाइल बेन लगाई जा रही है। इसी प्रकार सरगुजा संभाग के 5 स्थानों- राजापुर, गोविंदपुर, पोंड़ी, राजौली, केल्हारी में एटीएम लगाए जा रहे हैं। -
*आलेख-जी.एस.केशरवानी, ए.पी.एस. सोलंकी*
खनिज राजस्व से प्रदेश के खनन प्रभावित अंचलों में विकास की नई रोशनी पहंुच रही है। इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं, अधोसंरचना के विकास कार्यों के साथ-साथ लोगों के जीवन स्तर में बदलाव लाने के कार्य हो रहे हैं। लोगों को पहले छोटी-छोटी समस्याओं के लिए राजधानी की ओर देखना पड़ता था। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इन क्षेत्रों में डीएमएफ की राशि के व्यय करने की प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाते हुए, इसके लिए गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों, महिलाओं की भागीदारी तय की है, इससे लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के कार्य आसानी से हो रहे हैं।छत्तीसगढ़ को प्रकृति के वरदान के रुप में मिली खनिज सम्पदा की भागीदारी राज्य के विकास में लगातार बढ़ती जा रही है। नये खनिज भण्डारों की खोज, नये क्षेत्रों में खनन प्रारंभ होने, बेहतर प्रबंधन से राज्य को मिलने वाले खनिज राजस्व में जबरदस्त वृद्धि हुई है। राज्य का लगभग 27 प्रतिशत राजस्व खनिजों के दोहन और खनिज राजस्व से प्राप्त हो रहा है। खनिजों की रायल्टी सें मिलने वाली राशि में से 10 से 30 प्रतिशत राशि डीएमएफ में जमा होती है। इस मद का उपयोग खनिजधारित और आदिवासी अंचलों में लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि के लिए किया जा रहा है। पिछले 4 वर्षों में राज्य को मिलने वाला खनिज राजस्व 6000 करोड़ रुपए से बढ़कर 12 हजार 305 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। खनिज प्रशासन को सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से पारदर्शी बनाया गया है। खनिजपट्टों की आनलाइन स्वीकृति, ई-नीलामी जैसे कार्यो के लिए छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है।प्रदेश में खनिज आधारित उद्योगों के विस्तार से रोजगार के अवसर बढ़े हैं, वहीं सामाजिक -आर्थिक विकास की गतिविधयों में तेजी आयी हैै। राज्य के सुपोषण अभियान, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना, हाट बाजार और स्लम क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने, गौठानों के विकास और स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के संचालन में डीएमएफ फंड के माध्यम से खनिजों की रायल्टी से मिलने वाली अंशदान की राशि की महत्वपूर्ण भूमिका है। डीएमएफ मद का उपयोग खनिज प्रभावित क्षेत्रों के विकास और आजीविका के साधनों के विकास में किया जा रहा है। अपनी खनिज संपदा के बल पर छत्तीसगढ़ देश के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। राज्य में पंचायत प्रणाली को मजबूती देने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में रेत की खदानों का संचालन का अधिकार पंचायतों को दिया गया है। इसी प्रकार पंचायतों ओर नगरीय निकायों को पिछले 4 वर्षों में गौण खनिजों से प्राप्त राजस्व में से लगभग 434 करोड़ रूपए की राशि उपलब्ध करायी गई है।खानिज धारित क्षेत्रों के लोगों को जिला खनिज न्यास की गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों और महिलाओं की भागीदारी तय की गई है। नवीन प्रावधानों के अनुसार खनिज न्यास निधि के माध्यम से संसाधनों पर स्थानीय लोगों के अधिकार को सुनिश्चित करने के साथ शासी निकाय को लोकतांत्रिक बनाया गया है। डीएमएफ मद में प्राप्त राशि का न्यूनतम 50 प्रतिशत राशि प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों में व्यय करने का प्रावधान किया गया है। इस राशि से प्रभावित क्षेत्रों में कृृषि, लघु वनोपज, वनौषधि प्रसंस्करण, कृृषि की उन्नत तकनीकों के प्रयोग संबंधी कार्य, गौठान विकास से संबंधित कार्य, खनन प्रभावित क्षेत्र के वन अधिकार पट््टाधारकों के जीवन स्तर में सुधार एवं जीविकोपार्जन के उपाय किए जा रहे हैं।नए प्रावधानों के अनुसार ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदो कुटकी एवं दलहन-तिलहन के उत्पादन, इन फसलों का रकबा बढ़ाने के उपाय, जैविक कृषि को प्रोत्साहन, फलदार वृृक्षों का रोपण का प्रावधान किया गया है। इस राशि से शिक्षा सेक्टर अंतर्गत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों के परिवार के सदस्यों की शिक्षा तथा सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग क्लासेस, आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था, आत्मानंद इग्लिश मिडियम स्कूल के संचालन से संबंधित कार्यों का प्रावधान किया गया है। प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय के जीवन स्तर में सुधार हेतु सतत जीविकोपार्जन, सार्वजनिक परिवहन, सांस्कृृतिक मूल्यों के संरक्षण, मूलभूत सुविधाएं एवं युवा गतिविधियों को बढ़ावा जैसे संबंधित नए सेक्टर शामिल किए गए हैं। ऑनलाईन स्वीकृृति एवं भुगतान हेतु डीएमएफ पोर्टल का निर्माण एवं संचालन किया जा रहा है। जीआईएस टैंगिंग, मोबाईल एप एवं स्वीकृति, भुगतान संबंधी राइडर युक्त क्लाउड आधारित पोर्टल के नवीन वर्जन का कार्य अंतिम चरण पर है, इन प्रावधानों को करने वाला छत्तीसगढ़ देश का प्रथम राज्य है।डीएमएफ मद से अक्टूबर 2022 की स्थिति में राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजना नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना में 233.89 करोड़, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना में 19.16 करोड़, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना में 195.35 करोड़, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना में 0ण्63करोड़, मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना में 1.38 करोड़, स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना में 196.80 करोड़, गौठान विकास के लिए 170.14 करोड़ रूपए की राशि व्यय की गई है।डीएमएफ में मुख्य खनिज एवं गौण खनिज के खनिपट्टों, पूर्वेक्षण सह खनिपट्टों से राज्य शासन को प्राप्त रायल्टी की 10 से 30 प्रतिशत राशि जमा हो रही है। राज्य में बढ़ती खनिज क्षेत्र की गतिविधियों से डीएमएफ मद में प्राप्त होने वाली राशि में लगभग दो गुनी वृद्धि हुुई है। पूर्व में डीएमएफ मद में औसत वार्षिक प्राप्ति 1200 करोड़ रुपए थी, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 2199 करोड़ रूपये हो गई है। वर्ष 2022-23 में इस मद में *विशेष लेख**न्याय के चार वर्ष: खनन प्रभावित क्षेत्रों में पहुंच रही विकास की नई रोशनी**आलेख-जी.एस.केशरवानी, ए.पी.एस. सोलंकी*खनिज राजस्व से प्रदेश के खनन प्रभावित अंचलों में विकास की नई रोशनी पहंुच रही है। इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं, अधोसंरचना के विकास कार्यों के साथ-साथ लोगों के जीवन स्तर में बदलाव लाने के कार्य हो रहे हैं। लोगों को पहले छोटी-छोटी समस्याओं के लिए राजधानी की ओर देखना पड़ता था। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इन क्षेत्रों में डीएमएफ की राशि के व्यय करने की प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाते हुए, इसके लिए गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों, महिलाओं की भागीदारी तय की है, इससे लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के कार्य आसानी से हो रहे हैं।छत्तीसगढ़ को प्रकृति के वरदान के रुप में मिली खनिज सम्पदा की भागीदारी राज्य के विकास में लगातार बढ़ती जा रही है। नये खनिज भण्डारों की खोज, नये क्षेत्रों में खनन प्रारंभ होने, बेहतर प्रबंधन से राज्य को मिलने वाले खनिज राजस्व में जबरदस्त वृद्धि हुई है। राज्य का लगभग 27 प्रतिशत राजस्व खनिजों के दोहन और खनिज राजस्व से प्राप्त हो रहा है। खनिजों की रायल्टी सें मिलने वाली राशि में से 10 से 30 प्रतिशत राशि डीएमएफ में जमा होती है। इस मद का उपयोग खनिजधारित ⁷ और आदिवासी अंचलों में लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि के लिए किया जा रहा है। पिछले 4 वर्षों में राज्य को मिलने वाला खनिज राजस्व 6000 करोड़ रुपए से बढ़कर 12 हजार 305 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। खनिज प्रशासन को सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से पारदर्शी बनाया गया है। खनिजपट्टों की आनलाइन स्वीकृति, ई-नीलामी जैसे कार्यो के लिए छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है।प्रदेश में खनिज आधारित उद्योगों के विस्तार से रोजगार के अवसर बढ़े हैं, वहीं सामाजिक -आर्थिक विकास की गतिविधयों में तेजी आयी हैै। राज्य के सुपोषण अभियान, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना, हाट बाजार और स्लम क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने, गौठानों के विकास और स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के संचालन में डीएमएफ फंड के माध्यम से खनिजों की रायल्टी से मिलने वाली अंशदान की राशि की महत्वपूर्ण भूमिका है। डीएमएफ मद का उपयोग खनिज प्रभावित क्षेत्रों के विकास और आजीविका के साधनों के विकास में किया जा रहा है। अपनी खनिज संपदा के बल पर छत्तीसगढ़ देश के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। राज्य में पंचायत प्रणाली को मजबूती देने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में रेत की खदानों का संचालन का अधिकार पंचायतों को दिया गया है। इसी प्रकार पंचायतों ओर नगरीय निकायों को पिछले 4 वर्षों में गौण खनिजों से प्राप्त राजस्व में से लगभग 434 करोड़ रूपए की राशि उपलब्ध करायी गई है।खानिज धारित क्षेत्रों के लोगों को जिला खनिज न्यास की गवर्निंग बाडी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ प्रभावित क्षेत्र के लोगों और महिलाओं की भागीदारी तय की गई है। नवीन प्रावधानों के अनुसार खनिज न्यास निधि के माध्यम से संसाधनों पर स्थानीय लोगों के अधिकार को सुनिश्चित करने के साथ शासी निकाय को लोकतांत्रिक बनाया गया है। डीएमएफ मद में प्राप्त राशि का न्यूनतम 50 प्रतिशत राशि प्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों में व्यय करने का प्रावधान किया गया है। इस राशि से प्रभावित क्षेत्रों में कृृषि, लघु वनोपज, वनौषधि प्रसंस्करण, कृृषि की उन्नत तकनीकों के प्रयोग संबंधी कार्य, गौठान विकास से संबंधित कार्य, खनन प्रभावित क्षेत्र के वन अधिकार पट््टाधारकों के जीवन स्तर में सुधार एवं जीविकोपार्जन के उपाय किए जा रहे हैं।नए प्रावधानों के अनुसार ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदो कुटकी एवं दलहन-तिलहन के उत्पादन, इन फसलों का रकबा बढ़ाने के उपाय, जैविक कृषि को प्रोत्साहन, फलदार वृृक्षों का रोपण का प्रावधान किया गया है। इस राशि से शिक्षा सेक्टर अंतर्गत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावित क्षेत्रों के परिवार के सदस्यों की शिक्षा तथा सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग क्लासेस, आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था, आत्मानंद इग्लिश मिडियम स्कूल के संचालन से संबंधित कार्यों का प्रावधान किया गया है। प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय के जीवन स्तर में सुधार हेतु सतत जीविकोपार्जन, सार्वजनिक परिवहन, सांस्कृृतिक मूल्यों के संरक्षण, मूलभूत सुविधाएं एवं युवा गतिविधियों को बढ़ावा जैसे संबंधित नए सेक्टर शामिल किए गए हैं। ऑनलाईन स्वीकृृति एवं भुगतान हेतु डीएमएफ पोर्टल का निर्माण एवं संचालन किया जा रहा है। जीआईएस टैंगिंग, मोबाईल एप एवं स्वीकृति, भुगतान संबंधी राइडर युक्त क्लाउड आधारित पोर्टल के नवीन वर्जन का कार्य अंतिम चरण पर है, इन प्रावधानों को करने वाला छत्तीसगढ़ देश का प्रथम राज्य है।डीएमएफ मद से अक्टूबर 2022 की स्थिति में राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजना नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना में 233.89 करोड़, मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लीनिक योजना में 19.16 करोड़, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना में 195.35 करोड़, मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना में 0ण्63करोड़, मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना में 1.38 करोड़, स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना में 196.80 करोड़, गौठान विकास के लिए 170.14 करोड़ रूपए की राशि व्यय की गई है।डीएमएफ में मुख्य खनिज एवं गौण खनिज के खनिपट्टों, पूर्वेक्षण सह खनिपट्टों से राज्य शासन को प्राप्त रायल्टी की 10 से 30 प्रतिशत राशि जमा हो रही है। राज्य में बढ़ती खनिज क्षेत्र की गतिविधियों से डीएमएफ मद में प्राप्त होने वाली राशि में लगभग दो गुनी वृद्धि हुुई है। पूर्व में डीएमएफ मद में औसत वार्षिक प्राप्ति 1200 करोड़ रुपए थी, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 2199 करोड़ रूपये हो गई है। वर्ष 2022-23 में इस मद में 2400 करोड़ रुपए प्राप्त होने का अनुमान है। न्यास में अब तक 10 हजार करोड़ रूपये से अधिक की राशि प्राप्त हो चुकी है। करोड़ रुपए प्राप्त होने का अनुमान है। न्यास में अब तक 10 हजार करोड़ रूपये से अधिक की राशि प्राप्त हो चुकी है। -
*आलेख-गोविंद पटेल, प्रबंधक (जनसम्पर्क), छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कम्पनी*
छत्तीसगढ़ में ऊर्जा उत्पादन के इतिहास में एक मील का पत्थर और स्थापित हो गया जब मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने 25 अगस्त को 1320 मेगावाट के नए पॉवर प्लांट लगाने का निर्णय लिया। वास्तव में यह छत्तीसगढ़ को बरसों बरस तक जीरो पॉवर कट स्टेट बनाए रखने की दिशा में ऐतिहासिक फैसला है। यह निर्णय इसलिये भी ऐतिहासिक है क्योंकि यह छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी का सबसे बड़ा और सबसे आधुनिक संयंत्र होगा। इसकी स्थापना से छत्तीसगढ़ स्टेट जनरेशन कंपनी के स्वयं की विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़कर 4300 मेगावाट हो जाएगी।छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसे जीरो पॉवर कट के रूप में जाना जाता है। यहां उपभोक्ताओं को 24ग7 बिजली आपूर्ति हो रही है। किसी भी प्रदेश की तरक्की का सबसे बड़ा सूचक वहां के ऊर्जा की खपत को माना जाता है। छत्तीसगढ़ में ऊर्जा की खपत तेजी से बढ़ रही है। राज्य स्थापना के समय जहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 300 यूनिट थी, वह आज बढ़कर 2044 यूनिट पहुंच चुकी है। भविष्य में ऊर्जा की मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने बड़े और ऐतिहासिक फैसले लिये हैं।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद पॉवर जनरेशन कंपनी के कोरबा पश्चिम में 660-660 मेगावाट के दो सुपर क्रिटिकल नवीन विद्युत उत्पादन संयंत्र लगाने की कार्ययोजना बनाने पर कार्य प्रारंभ हो गया है। इस संयंत्र के निर्माण में 12915 करोड़ रुपए का व्यय अनुमानित है। इन दोनों इकाइयों को वित्तीय वर्ष 2029 और 2030 में पूर्ण करने का लक्ष्य है। राज्य स्थापना के बाद पहली बार इतनी क्षमता का विद्युत संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। यह मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की दूरदर्शिता को दर्शाता है।छत्तीसगढ़ की धरती में अकूत खनिज संसाधन हैं। कोयले के भंडार मामले में छत्तीसगढ़ देश में तीसरे नंबर पर है। इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग देशभर के पॉवर प्लांट में हो रहा है। परन्तु इसका लाभ इस धरती के निवासियों को नहीं मिल पाता है। अगर यहां के खनिज संसाधनों से संबंधित उद्योग यहीं स्थापित होते हैं तो यहीं के लोगों को इसका सीधा लाभ मिलता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की केबिनेट ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में दूसरा बड़ा फैसला पानी से बिजली बनाने के क्षेत्र में लिया है। केबिनेट में छत्तीसगढ़ राज्य जल विद्युत परियोजना (पंप स्टोरेज आधारित) स्थापना नीति 2022 को मंजूरी दी गई है। वर्तमान में जो जल विद्युत संयंत्र हैं, उनमें बांध में बारिश के पानी को एकत्रित किया जाता है और उसे टरबाइन में बहाकर बिजली पैदा की जाती है। इस पुराने तकनीक में पानी का इस्तेमाल केवल एकबार ही किया जाता है।वर्तमान में नई पंप स्टोरेज आधारित जल विद्युत परियोजना तैयार की गई है, जिसमें एक ही पानी का इस्तेमाल कई बार किया जा सकेगा। इस तकनीक में बांध के ऊपर एक और स्टोरेज टैंक बनाया जाता है। दिन के समय सौर ऊर्जा से मिली सस्ती बिजली से इस टैंक में पानी स्टोरेज किया जाएगा और रात में उसे टरबाइन में गिराकर बिजली पैदा की जाएगी। यह पानी फिर से बांध में एकत्रित कर लिया जाएगा। इस तरह एक ही पानी का बार-बार इस्तेमाल किया जा सकेगा।छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर जनरेशन कंपनी ने प्रदेश में ऐसे पांच स्थानों पर पंप स्टोरेज जल विद्युत गृह की स्थापना के लिए विस्तृत कार्ययोजना बना रही है। इन पांच स्थानों पर 7700 मेगावाट बिजली पैदा हो सकेगी। डीपीआर बनाने के लिए केंद्र सरकार की एजेंसी वैपकास (वाटर एंड पॉवर कंसल्टेंसी सर्विसेस लिमिटेड) के साथ 29 नवंबर को एमओयू किया गया है। राज्य में पम्प स्टोरेज आधारित जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना हेतु निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 6 सितम्बर को आयोजित केबिनेट की बैठक में छत्तीसगढ़ राज्य जल विद्युत परियोजना (पंप स्टोरेज आधारित) स्थापना नीति 2022 का अनुमोदन किया गया।इन दोनों फैसलों से यहां के निवासियों के लिये रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। संयंत्र की स्थापना से लेकर उसके संचालन के लिये जहां हजारों लोगों को सीधा रोजगार मिलेगा। इस संयंत्र की स्थापना अत्याधुनिक तकनीक से की जाएगी, जिसमें बहुत कम प्रदूषण होगा। इससे भविष्य में ऊर्जा की बढ़ती मांग पूरी हो सकेगी। इस फैसले से प्रदेश में उद्योग से लेकर कृषि क्षेत्र में प्रगति के नए पंख लगेंगे और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को तीव्र गति मिलेगी। यह फैसला आने वाले बरसों में छत्तीसगढ़ के लिये मील का पत्थर होगा। -
विशेष लेख
पोषण साहू, सहायक जनसंपर्क अधिकारीलोग उम्मीद और विश्वास से मुख्यमंत्री की तरफ टकटकी लगाए देख रहे है। मुख्यमंत्री से बातचीत मे इतनी ऊर्जा है कि लोग एक ही जगह पर दो घण्टे से बैठकर भी खुद को तरो-ताज़ा महसूस करते हैं। गाँव की महिलाएं हो, बुजुर्ग हो, युवा हो ,किसान हो सभी अपनी बात कहने को इस कदर आतुर रहते हैं कि बिना माइक के भी जोरदार तरीक़े से अपनी बात कह देते हैं।बातचीत का दौर शुरू होता है। योजनाओ की समीक्षा होती है, बारी-बारी से अपनी बात, योजनाओं की बात, विकास की बात, सुख-दुख की बात जुबां पर आ जाती है। लोग उत्साह के साथ अपनी बात साफ़गोई से करते हैं। मुख्यमंत्री भी पूरी गंभीरता व तन्मयता से लोगों की बात सुनते हैं और समाधान निकलते हैं। मंगलवार को गोपालपुर बसना विधानसभा में एक महिला ने अपनी समस्या रखते हुए वन अधिकार पत्र मैं आ रही दिक्कतों के बारे में मुख्यमंत्री को अवगत कराया। मुख्यमंत्री ने तत्काल इसकी जरूरत को समझते हुए ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित करने के लिए सरपंच को मंच से ही निर्देशित किये। इसी तरह एक बालिका ने अपने स्कूल की दो स्थानांतरित शिक्षिकाओं को रोकने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगाई। मुख्यमंत्री ने छात्रा की अपने शिक्षिकाओं के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान को देखते हुए ट्रांसफर को रोकने के निर्देश दिए। इसी तरह भेंट मुलाकात कार्यक्रमों में लोग अपनी बातों और समस्याओं को खुलकर रखते हैं।पिरदा भेंट मुलाकात कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री श्री बघेल लोगों से उनकी समस्याओं से संबंधित आवेदन लेने खुद पहुंचे तो आठ वर्षीय दृष्टिबाधित बालक हिमांशु पसायत के लिए उसके पिता ने मुख्यमंत्री से मदद मांगी। ग्राम-जगत के निवासी हिमांशु के पिता प्रमोद पसायत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, वे मजदूरी करते हैं, बेटे का इलाज कराना चाहते हैं। मंगलवार को ही बसना के पिरदा में पता चला कि नन्हें हिमांशु की आंखों में रोशनी नहीं है मगर उसके कंठ से सुरीले स्वर फूटते हैं। वह तीन भाषाओं हिंदी, छत्तीसगढ़ी और उड़िया में सुमधुर गायन करता है। हिमांशु पांच वर्ष की आयु से संगीतमयी प्रस्तुति देता है। मुख्यमंत्री ने हिमांशु के पिता की गुहार सुनी और हिमांशु की हर संभव सहायता के लिए आश्वस्त किया।बुधवार को खल्लारी के एम के बाहरा में एक दिव्यांग ने बताया कि वे अपनी दोनों आंखों को भालू के हमले में खो चुके हैं। अब उन्हें इलाज के लिए सहायता की जरूरत है। मुख्यमंत्री ने संवेदनशीलता दिखाते हुए इलाज के लिए 2 लाख रुपये देने की घोषणा की। ऐसे ही कई प्रकरण है, जिन्हें भेंट मुलाकात के मंच पर समाधान होते देखा जा सकता है।यहीं एक दिव्यांग नईम मोहम्मद खान ने अपनी घुटनो के इलाज के लिए गुहार लगाई तो मुख्यमंत्री ने 2 लाख रुपए देने की घोषणा की। आम जनता अपनी उम्मीदों और भरोसे के साथ भेंट- मुलाकात कार्यक्रम में आते हैं और हंसते-मुस्कुराते हुए उसी भरोसे के साथ लौट जाते हैं । वास्तव में भेंट- मुलाकात जनता के साथ सुख-दुख साझा करने का सार्थक मंच बन गया है, जो अब भी जारी है।ज्ञातव्य है कि इन दिनों मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल भेंट मुलाकत कार्यक्रम के तहत लोगों से सीधे बात कर रहे हैं। उनके साथ सुख -ख की बातें साझा करते हुए योजनाओं की जानकारी भी ले रहें हैं। - आलेख: आनंद सोलंकी-जी.एस. केशरवानीकिसानों की आमदनी बढ़ाने में सौर ऊर्जा के उपयोग में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। कृषि के साथ अन्य क्षेत्रों में सोलर एनर्जी के इस्तेमाल का दायरा राज्य में लागतार बढ़ता जा रहा है। सौर ऊर्जा का उपयोग पेयजल और सुदूर अंचलों के गांवों, अस्पतालों, स्कूलों, छात्रावासों में विद्युत व्यवस्था में भी हो रहा है, इससे मूलभूत सुविधाओं को मजबूती मिल रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के प्रयासों के तहत किसानों की आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से सोलर सिंचाई पम्प लगाने के काम को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। इस दिशा में तेजी से काम हुआ और हाल ही में देश में सर्वाधिक सोलर पम्प स्थापित करने और ऊर्जा संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैै।छत्तीसगढ़ में ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए सुराजी गांव योजना के साथ सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए आधुनिक तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। नई उद्योग नीति में भी सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन से जुड़ी इकाईयों की स्थापना को प्राथमिकता की श्रेणी में रखा गया है। राज्य के सुदूर वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए सौर ऊर्जा खासी मददगार साबित हो रही है। राज्य में ऐसे कई हिस्से हैं जहां परम्परागत तरीके से विद्युत की व्यवस्था नहीं हो सकी है, उन क्षेत्रों के किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने में सोलर पम्प गेम चंेंजर साबित हो रहे हैं। सौर सुजला योजना के तहत प्रदेश में स्थापित किए गए सोलर सिंचाई पंप के उपयोग से पिछले पांच वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी का अनुमान है।छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सोलर एनर्जी से कृषि के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने के प्रयासों के साथ क्रेड़ा द्वारा सोलर विद्युत केन्द्र, सोलर लाइट, वनांचलों के गांवों में पेयजल उपलब्ध कराने में भी सोलर पम्पों का उपयोग किया जा रहा है, जल जीवन मिशन सहित राज्य शासन की योजना के तहत प्रदेश में 10 हजार 629 सोलर पम्प स्थापित कर 4 लाख 80 हजार से अधिक परिवारों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। राज्य के 1480 स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रकाश की व्यवस्था के लिए 4.70 मेगावाट के ऑफ ग्रिड सोलर पॉवर प्लांटों की स्थापना की गई है। जिससे शासकीय स्वास्थ्य केन्द्रों अस्पतालों में प्रकाश की व्यवस्था के साथ साथ जीवन रक्षक मशीनें और वैक्सिन को सुरक्षित रखने के लिए फ्रीजर के लिए विद्युत की आपूर्ति की जा रही है। इस उपलब्धि के लिए क्रेडा को अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।सौर सुजला योजना में 1.17 लाख से अधिक सोलर सिंचाई पंप स्थापितक्रेडा द्वारा राज्य में पिछले चार वर्षो में प्रदेश में 71 हजार 753 सोलर कृषि पम्पों की स्थापना की गई। सोलर सिंचाई पम्पों से लगभग 86,104 हेक्टयेर रकबा सिंचित हुआ है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 3 एवं 5 हार्स पॉवर के एक लाख 17 हजार से अधिक सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना हो चुकी है। जिससे लगभग एक लाख 17 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि सिंचित हुई हो रही है। इस योजना से 1 लाख 26 हजार से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं। लघु और सीमांत किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सौर सिंचाई सामुदायिक परियोजना सतही जल स्त्रोत के निकट बनायी जा रही है। सतही जल के उपयोग से भू-जल का दोहन में भी कमी आएगी। पिछले चार वर्षों में 16 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से लगभग 911 किसानों की 976.17 हेक्टेयर भूमि में सिचाई सुविधा का लाभ मिल रहा है। इन परियोजनाओं में 59 सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना की गई है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब तक 228 सौर सामुदायिक सिंचाई परियोजना में 334 सोलर सिंचाई पम्प स्थापित किये गए हैं, इसके माध्यम से 2639 किसानों की 2749 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई हो रही है।सौर सुजला में अधिकतम 2 लाख रूपए का अनुदानसौर सुजला योजना में किसानों को तीन एवं पांच हॉर्स पावर क्षमता के सोलर सिंचाई पंपों की स्थापना के लिए राज्य शासन द्वारा अनुदान अधिकतम 2 लाख रूपए तक का अनुदान दिया जा रहा है। तीन एचपी के पंप की स्थापना के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए हितग्राहियों को 7 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 12 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 18 हजार रूपए अंशदान देना होता है। इसी तरह 5 हॉर्स पावर तक के सिंचाई पंप के स्थापना के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के हितग्राही को 10 हजार रूपए, अन्य पिछड़ा वर्ग के हितग्राही को 15 हजार रूपए तथा सामान्य वर्ग के हितग्राही को 20 हजार रूपए अंशदान देना होता है। शेष राशि राज्य शासन द्वारा अनुदान के रूप में दी जाती है। अकेले प्रदेश में स्थापित सोलर पंपों से पिछले 5 वर्षों में 6.55 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी हुई है। सौर समुदायिक सिंचाई योजना के लिए लघु एवं सीमांत किसानों के ऐसे समूह जिनके पास कम से कम 10 हेक्टेयर कृषि भूमि है। प्रति हेक्टेयर 1 लाख 80 हजार रूपए का अनुदान दिया जा रहा है। इसी तरह 4 किलोवॉट मॉड्यूल सहित 5 टन स्टोरेज क्षमता के सोलर कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के लिए 4 लाख रूपए प्रति यूनिट अनुदान दिया जा रहा है।चार हजार 970 गौठानों में सोलर सिंचाई पंप स्थापितपिछले चार वर्षों में सिंचाई सुविधा के विस्तार के लिए नदी नालों के निकट स्थित खेतोें को सिंचित करने के लिए 59 वृहद सोलर पम्प स्थापित किये गए हैं। जिनके माध्यम से 976 हेक्टेयर सामुदायिक कृषि रकबा सिंचित हो रहा है। इसके अलावा सुराजी गांव योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के तहत 4970 गौठानों में सोलर पम्प स्थापित कर पशुओं के लिए पेयजल और चारागाहों में सिंचाई सुविधा की व्यवस्था की गई है। सोलर पेयजल योजना के अंतर्गत पिछले चार वर्षों में पहुंच विहीन गांवों में 6093 सोलर ड्यूल पम्प स्थापित कर 3 लाख से अधिक परिवारों को 24 घंटे शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा जल जीवन मिशन के अंतर्गत 4536 ड्यूल पम्प स्थापित कर ग्रामीण अंचलों के घरों में नल कनेक्शन के माध्यम से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। इस योजना में 12 मीटर एवं 9 मीटर ऊंचाई पर 10 लीटर क्षमता की पानी टंकी स्थापित कर घरों में पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत एक लाख 80 हजार परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरणपिछले चार वर्षों में गांवों और कस्बों के चौक-चौराहों, हाट बाजारों में 3155 सोलर हाईमास्ट लाईट स्थापित की गई हैं। इन्हें मिलाकर राज्य में 3924 सोलर हाई मास्ट की स्थापना हो चुकी है। इसी तरह दूरस्थ पहुंच विहीन क्षेत्रों में जहां बिजली का तार खींचकर बिजली नहीं पहुंचाई जा सकती, वहां के गांवों और मजरे टोलों के 80 हजार 859 घरों में सोलर लाईट के माध्यम से प्रकाश की व्यस्था की गई है। इन्हें मिलाकर सोलर संयंत्रों के माध्यम से 920 गांवों के एक लाख 38 हजार से अधिक घरों का सोलर विद्युतीकरण किया जा चुका है।भवनों की छत पर 2232 सौर संयंत्र स्थापितवर्ष 2022-23 में सोलर पंप के माध्यम से नदी, एनीकटों में उपलब्ध जल से तालाबों को भरने की योजना को इंदिरा गांव गंगा योजना के रुप में लागू किया गया है। इस योजना में चार वर्षों में 21 गांवों के 33 तालाबों को भरने का काम पूरा किया गया। प्रदेश में 326 सौर ऊर्जा आधारित जल शुद्धिकरण संयंत्र की स्थापना की गयी है। राज्य के शासकीय एवं निजी भवनों की छत में ग्रिड कनेक्टेड 196 तथा ऑफ ग्रिड कनेक्टेड 2232 सौर संयंत्रों की स्थापना की जा चुकी है। इनके अलावा 433 मेगावॉट क्षमता के 37 वृहद स्तर पर ग्रिड कनेक्टेड सोलर पावर प्लांट स्थापित किए गये हैं। राज्य के ऐसे स्थानों में जहां नियमित बिजली आपूर्ति संभव नहीं हो पाती या जहां वोल्टेज फ्ल्कचुएशन की स्थिति बनी रहती है, वहां सब्जियों, फल-फूलों के सुरक्षित भंडारण के लिए 270 किलोवॉट क्षमता के 65 सोलर कोल्ड स्टोरेज स्थापित किए गए हैं।राज्य शासन के प्रोत्साहन से प्रदेश में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ रहा है। सौर सुजला योजना किसानों के मध्य काफी लोकप्रिय हो रही है। सोलर ऊर्जा के उपयोग के लिए राज्य शासन द्वारा विभिन्न योजनाओं में अनुदान दिया जा रहा है। आने वाले समय में छत्तीसगढ़ इस क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करेगा।