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विशेष लेख
अपने माटी के लाल को फूल और गुलदस्ता देकर किया अभिनन्दन, दी शुभकामनाएंजशपुर के बगिया को भला अब कौन नहीं जानता..? प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय का गाँव है यह...और इस गाँव को ही बगिया कहते हैं...। आज इस गाँव बगिया में खिले हुए फूलों का एक साथ मुस्कुराना हुआ। यह अवसर था मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के जन्म दिन उत्सव का। मुख्यमंत्री को बधाई और शुभकामनाएं देने बगिया ही नहीं जशपुर जिले के गांव-गांव से लोग बगिया पहुंचे थे। मुख्यमंत्री बड़े ही अपनत्व भाव से मुस्कुराते हुए लोगों से मुलाकात कर बधाई स्वीकार करते वक्त बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते और छोटो को दुलार करते नजर आए। इस मौके पर बगिया का माहौल बेहद खुशनुमा और प्रफुल्लित दिखाई दे रहा था।अपने जन्मदिन पर अपनी माटी को याद करते हुए गाँव पहुँचे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने शायद इसीलिए भी अपने गाँव बगिया के आश्रम विद्यालय को चुना होगा कि वे गाँव के फूल समान बच्चों के बीच जाएं, उनके साथ रहकर केक काटे,खाना खाएं और यहाँ से जाने से पहले उन्हें शिक्षा का महत्व बताते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें...। उन्होंने ऐसा ही किया। बगिया में आश्रम शाला में आकर बच्चों के साथ जन्मदिन को यादगार बनाते हुए सभी से अपील भी की है कि अपना जन्मदिन आश्रम, छात्रावास में जाकर बच्चों के बीच मनाएं और उन्हें प्रोत्साहित करें।अपने साठवें जन्मदिन पर मुख्यमंत्री श्री साय यहाँ पहुँचे तो उनके आने का सबको बेसब्री से इंतजार था। मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार अपना जन्मदिन मनाने बगिया आए श्री साय को अपने बीच पाकर बच्चों के मन में कई प्रेरणाएं भी जागी। बच्चों ने बातें भी की और दोबारा आने का न्योता भी दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि बगिया उनका भी गाँव है और आना जाना लगा रहेगा। कुछ बच्चों ने मार्मिक कविताओं से मुख्यमंत्री का अभिनन्दन किया। इस बीच बगिया के नन्हें फूलों को एक साथ मुस्कुराता देख सभी के मन में सुकून और खुशियां भी थी।मुख्यमंत्री श्री साय के जन्मदिन की खुशियां आज उनके गृहग्राम बगिया में एक अलग ही रूप में नजर आई। छोटे से गाँव से निकलकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने श्री विष्णु देव साय अपनी सादगी और संजीदगी से जाने पहचाने जाते हैं। अपनी 60वें जन्मदिन पर किसी तरह के तामझाम से दूर गांव के आश्रम शाला में नन्हें-मुन्ने बच्चों के साथ मनाया। उन्हें मिठाई खिलाई और उनके साथ बैठकर भोजन भी किया। इसके पश्चात वे घर में आकर माता श्रीमती जसमनी साय से आशीर्वाद लिया। धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हुए। पत्नी श्रीमती कौशल्या देवी साय ने उनकी आरती उतारी और दीर्घायु की कामना की।सहज और सरल स्वभाव के मुख्यमंत्री श्री साय ने अपने निवास स्थान में दूरदराज से आए ग्रामीणों से बड़ी आत्मीयता के साथ मुलाकात की और स्वागत, अभिनन्दन के लिए लाए फूलों को सहर्ष स्वीकार करते हुए साथ में फ़ोटो भी खिंचवाई। हाथ मिलाया और गले लगाते हुए बधाई और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद भी दिया। ग्राम बारो से आए खेमा सिंह,तुरंगा खार के गुलेश्वर सिंह,लोटापानी की सुकांति बाई, रजोटी की प्रमिला और विमला बाई सहित अन्य लोगों ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी हुई कि मुख्यमंत्री बनने के बाद श्री विष्णु देव साय हर बार की तरह अपना जन्मदिन मनाने आए हैं। वे घर पर ही सादगी के साथ अपना जन्म दिन मनाते हैं... आज भी वे आए हैं और हम लोग भी उनकी खुशी में शामिल होते हुए उन्हें बधाई और शुभकामनाएं देने आए थे। -
संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज को विनम्र श्रद्धांजलि
आलेख- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जीवन में हम बहुत कम ऐसे लोगों से मिलते हैं, जिनके निकट जाते ही मन-मस्तिष्क एक सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। ऐसे व्यक्तियों का स्नेह, उनका आशीर्वाद, हमारी बहुत बड़ी पूंजी होती है। संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज मेरे लिए ऐसे ही थे। उनके समीप अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता था। आचार्य विद्यासागर जी जैसे संतों को देखकर ये अनुभव होता था कैसे भारत में आध्यात्म किसी अमर और अजस्र जलधारा के समान अविरल प्रवाहित होकर समाज का मंगल करता रहता है।
आज मुझे, उनसे हुई मुलाकातें, उनसे हुआ संवाद, सब बार-बार याद आ रहा है। पिछले साल नवंबर में छत्तीसगढ़ में डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनके दर्शन करने जाना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात थी। तब मुझे जरा भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि आचार्य जी से मेरी यह आखिरी मुलाकात होगी। वह पल मेरे लिए अविस्मरणीय बन गया है। इस दौरान उन्होंने काफी देर तक मुझसे बातें कीं। उन्होंने पितातुल्य भाव से मेरा ख्याल रखा और देश सेवा में किए जा रहे प्रयासों के लिए मुझे आशीर्वाद भी दिया। देश के विकास और विश्व मंच पर भारत को मिल रहे सम्मान पर उन्होंने प्रसन्नता भी व्यक्त की थी। अपने कार्यों की चर्चा करते हुए वह काफी उत्साहित थे। इस दौरान उनकी सौम्य दृष्टि और दिव्य मुस्कान प्रेरित करने वाली थी। उनका आशीर्वाद आनंद से भर देने वाला था, जो हमारे अंतर्मन के साथ-साथ पूरे वातावरण में उनकी दिव्य उपस्थिति का अहसास करा रहा था। उनका जाना उस अद्भुत मार्गदर्शक को खोने के समान है, जिन्होंने मेरा और अनगिनत लोगों का मार्ग निरंतर प्रशस्त किया है।भारतवर्ष की ये विशेषता रही है कि यहां की पावन धरती ने निरंतर ऐसी महान विभूतियों को जन्म दिया है, जिन्होंने लोगों को दिशा दिखाने के साथ-साथ समाज को भी बेहतर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संतों और समाज सुधार की इसी महान परंपरा में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी का प्रमुख स्थान है। उन्होंने वर्तमान के साथ ही भविष्य के लिए भी एक नई राह दिखाई है। उनका संपूर्ण जीवन आध्यात्मिक प्रेरणा से भरा रहा। उनके जीवन का हर अध्याय, अद्भुत ज्ञान, असीम करुणा और मानवता के उत्थान के लिए अटूट प्रतिबद्धता से सुशोभित है।संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र की त्रिवेणी थे। उनके व्यक्तित्व की सबसे विशेष बात ये थी कि उनका सम्यक दर्शन जितना आत्मबोध के लिए था, उतना ही सशक्त उनका लोक बोध भी था। उनका सम्यक ज्ञान जितना धर्म को लेकर था, उतना ही उनका चिंतन लोक विज्ञान के लिए भी रहता था।करुणा, सेवा और तपस्या से परिपूर्ण आचार्य जी का जीवन भगवान महावीर के आदर्शों का प्रतीक रहा, उनका जीवन, जैन धर्म की मूल भावना का सबसे बड़ा उदाहरण रहा। उन्होंने जीवन भर अपने काम और अपनी दीक्षा से इन सिद्धांतों का संरक्षण किया। हर व्यक्ति के लिए उनका प्रेम, ये बताता है कि जैन धर्म में ‘जीवन’ का महत्व क्या है। उन्होंने सत्यनिष्ठा के साथ अपनी पूरी आयु तक ये सीख दी कि विचारों, शब्दों और कर्मों की पवित्रता कितनी बड़ी होती है। उन्होंने हमेशा जीवन के सरल होने पर जोर दिया। आचार्य जी जैसे व्यक्तित्वों के कारण ही, आज पूरी दुनिया को जैन धर्म और भगवान महावीर के जीवन से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है।वो जैन समुदाय के साथ ही अन्य विभिन्न समुदायों के भी बड़े प्रेरणास्रोत रहे। विभिन्न पंथों, परंपराओं और क्षेत्रों के लोगों को उनका सानिध्य मिला, विशेष रूप से युवाओं में आध्यात्मिक जागृति के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया।शिक्षा का क्षेत्र उनके हृदय के बहुत करीब रहा है। बचपन में सामान्य विद्याधर से लेकर आचार्य विद्यासागर जी बनने तक की उनकी यात्रा ज्ञान प्राप्ति और उस ज्ञान से पूरे समाज को प्रकाशित करने की उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दिखाती है। उनका दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा ही एक न्यायपूर्ण और प्रबुद्ध समाज का आधार है। उन्होंने लोगों को सशक्त बनाने और जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए ज्ञान को सर्वोपरि बताया। सच्चे ज्ञान के मार्ग के रूप में स्वाध्याय और आत्म-जागरूकता के महत्त्व पर उनका विशेष जोर था। इसके साथ ही उन्होंने अपने अनुयायियों से निरंतर सीखने और आध्यात्मिक विकास के लिए निरंतर प्रयास करने का भी आग्रह किया था।संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज की इच्छा थी कि हमारे युवाओं को ऐसी शिक्षा मिले, जो हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित हो। वह अक्सर कहा करते थे कि चूंकि हम अपने अतीत के ज्ञान से दूर हो गए हैं, इसलिए वर्तमान में हम अनेक बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अतीत के ज्ञान में वो आज की अनेक चुनौतियों का समाधान देखते थे। जैसे जल संकट को लेकर वो भारत के प्राचीन ज्ञान से अनेक समाधान सुझाते थे। उनका यह भी विश्वास था कि शिक्षा वही है, जो स्किल डवलपमेंट और इनोवेशन पर अपना ध्यान केंद्रित करे।आचार्य जी ने कैदियों की भलाई के लिए भी विभिन्न जेलों में काफी कार्य किया था। कितने ही कैदियों ने आचार्य जी के सहयोग से हथकरघा का प्रशिक्षण लिया। कैदियों में उनका इतना सम्मान था कि कई कैदी रिहाई के बाद अपने परिवार से भी पहले आचार्य विद्यासागर जी से मिलने जाते थे।संत शिरोमणि आचार्य जी को भारत देश की भाषायी विविधता पर बहुत गर्व था। इसलिए वह हमेशा युवाओं को स्थानीय भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने स्वयं भी संस्कृत, प्राकृत और हिंदी में कई सारी रचनाएं की हैं। एक संत के रूप में वे शिखर तक पहुंचने के बाद भी जिस प्रकार जमीन से जुड़े रहे, ये उनकी महान रचना ‘मूक माटी’ में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। इतना ही नहीं, वे अपने कार्यों से वंचितों की आवाज भी बने।संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी के योगदान से स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी बड़े परिवर्तन हुए हैं। उन्होंने उन क्षेत्रों में विशेष प्रयास किया, जहां उन्हें ज्यादा कमी दिखाई पड़ी। स्वास्थ्य को लेकर उनका दृष्टिकोण बहुत व्यापक था। उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य को आध्यात्मिक चेतना के साथ जोड़ने पर बल दिया, ताकि लोग शारीरिक और मानसिक रूप, दोनों से स्वस्थ रह सकें।मैं विशेष रूप से आने वाली पीढ़ियों से यह आग्रह करूंगा कि वे राष्ट्र निर्माण के प्रति संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रतिबद्धता के बारे में व्यापक अध्ययन करें। वे हमेशा लोगों से किसी भी पक्षपातपूर्ण विचार से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया करते थे। वे मतदान के प्रबल समर्थकों में से एक थे और मानते थे कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है। उन्होंने हमेशा स्वस्थ और स्वच्छ राजनीति की पैरवी की। उनका कहना था- ‘लोकनीति लोभसंग्रह नहीं, बल्कि लोकसंग्रह है।’, इसलिए नीतियों का निर्माण निजी स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि लोगों के कल्याण के लिए होना चाहिए।आचार्य जी का गहरा विश्वास था कि एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण उसके नागरिकों के कर्तव्य भाव के साथ ही अपने परिवार, अपने समाज और देश के प्रति गहरी प्रतिबद्धता की नींव पर होता है। उन्होंने लोगों को सदैव ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और आत्मनिर्भरता जैसे गुणों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया। ये गुण एक न्यायपूर्ण, करुणामयी और समृद्ध समाज के लिए आवश्यक हैं। आज जब हम विकसित भारत के निर्माण की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं कर्तव्यों की भावना और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है।ऐसे कालखंड में जब दुनियाभर में पर्यावरण पर कई तरह के संकट मंडरा रहे हैं, तब संत शिरोमणि आचार्य जी का मार्गदर्शन हमारे बहुत काम आने वाला है। उन्होंने एक ऐसी जीवनशैली अपनाने का आह्वान किया, जो प्रकृति को होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक हो। यही तो ‘मिशन लाइफ’ है जिसका आह्वान आज भारत ने वैश्विक मंच पर किया है। इसी तरह उन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि को सर्वोच्च महत्त्व दिया। उन्होंने कृषि में आधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाने पर भी बल दिया। मुझे विश्वास है कि वो नमो ड्रोन दीदी अभियान की सफलता से बहुत खुश होते।संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी, देशवासियों के हृदय और मन-मस्तिष्क में सदैव जीवंत रहेंगे। आचार्य जी के संदेश उन्हें सदैव प्रेरित और आलोकित करते रहेंगे। उनकी अविस्मरणीय स्मृति का सम्मान करते हुए हम उनके मूल्यों को मूर्त रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह ना सिर्फ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि होगी, बल्कि उनके बताए रास्ते पर चलकर राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होगा।(जैन धर्म में दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 17 फरवरी को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में समाधि ली। ) - 21 फरवरी मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के जन्म दिवस पर विशेषछगनलाल लोन्हारे,उप संचालकरायपुर /01 नवम्बर 2000 को भारतीय गणराज्य के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य का उदय हुआ। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने 13 दिसम्बर 2023 को प्रदेश की बागडोर संभाली। उनके बागडोर संभालते ही प्रदेश में सुशासन का सूर्याेदय होने लगा है। प्रदेश सरकार सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास ध्येय वाक्य को लेकर आगे बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में 02 माह की अल्पावधि में कई जनहितकारी फैसलों से समाज के हर वर्ग की तरक्की और खुशहाली के लिए अनेक कदम उठाए गए। सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण स्वच्छ प्रशासन और सरकारी काम-काज में पारदर्शिता लाना है। प्रदेश का हर नागरिक चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण प्रदेश सरकार की कल्याणकारी सोच से वाकिफ है। लोगों का सरकार के प्रति विश्वास बढ़ रहा है। अल्प अवधि में राज्य सरकार ने जनता से किए गए वादे पूर्ण करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं, जिसके कारण प्रदेश में न्याय, राहत और विकास का नया दौर शुरू हुआ है। सेवा, सुशासन, सुरक्षा एवं विकास के संकल्प को लेकर प्रदेश सरकार जनता की सेवा में दिन-रात लगी हुई है।मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय सरकार ने शपथ ग्रहण करते ही पहली कैबिनेट में 18 लाख हितग्राहियों को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत पक्के आवास बनाने का निर्णय लिया गया। प्रदेश में कृषक उन्नति योजना के तहत सरकार ने प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी का वादा भी निभाएगा और धान खरीदी की पारदर्शी और सुगम व्यवस्था भी की गई। इस वर्ष छत्तीसगढ़ में अब तक का सर्वाधिक धान खरीदी का कीर्तिमान स्थापित हुआ है। प्रदेश सरकार द्वारा धान उपार्जन के समय-सीमा 31 जनवरी से बढ़ाकर 04 फरवरी तक करने का एक बड़ा निर्णय लिया। सरकार के इस फैसले से प्रदेश के लाखों किसानों को इसका फायदा मिला। समर्थन मूल्य पर 144.92 लाख मीट्रिक टन धान की रिकॉर्ड खरीदी हुई है। राज्य सरकार ने युवाओं के हित में बड़ा फैसला लेते हुए पीएससी भर्ती परीक्षा वर्ष 2022 प्रकरण की सीबीआई जांच कराने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासियों को शासकीय सेवाओं में भर्ती हेतु अधिकतम आयु सीमा की छूट अवधि पांच वर्षों के लिए बढ़ा दी गई है। सरकार के इस फैसले से अनेक युवाओं को इसका लाभ मिलेगा और वे नए सिरे से हर क्षेत्र में प्रतियोगिताओं के लिए तैयार होंगे।भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस सुशासन दिवस 25 दिसम्बर को 12 लाख से अधिक किसानों के बैंक खाते में 2 साल के धान के बकाया बोनस 3 हजार 716 करोड़ रूपए की अंतर राशि अंतरित कर दी गई है।प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम जनमन) के द्वारा पीवीटीजी अर्थात् विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति समूहों (बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर एवं अबुझमाड़िया) को मूलभूत सुविधाओं जैसे पक्के आवास गृह, संपर्क सड़के, छात्रावास का निर्माण, शुद्ध पेयजल, विद्युतीकरण, बहुद्देशीय केन्द्रों, आंगनबाड़ी केन्द्रों तथा वनधन केन्द्रों का निर्माण, मोबाइल टॉवर की स्थापना, व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल से परिपूर्ण करने की दिशा में प्रदेश सरकार कृत संकल्पित है। तेन्दूपत्ता संग्रहण पारिश्रमिक 5500 रूपए प्रति मानक बोरा प्रदाय किए जाने राज्य सरकार ने निर्णय लिया है। तेन्दूपत्ता, महुआ, इमली सहित सभी लघुवनोपजों से आजीविका के साधनों को मजबूत बनाने के लिए प्रदेश सरकार सर्वाेच्च प्राथमिकता देगी। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए प्रदेश के 50 लाख ग्रामीण परिवारों को निःशुल्क शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए नल कनेक्शन हेतु 4,500 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान किया गया है। दीनदयाल उपाध्याय भूमिहीन कृषि मजदूरों को 10 हजार रूपए वार्षिक सहायता राशि प्रदान करने का बजट में प्रावधान किया गया है।मातृ शक्ति का सम्मान करते हुए माताओं और बहनों के सम्मान, स्वाभिमान, स्वावलंबन और सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाए जाएंगे। उनकी सेहत शिक्षा और पोषण के लिए राज्य सरकार ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महतारी वंदन योजना लागू की है। इसके अंतर्गत 12 हजार रूपए वार्षिक आर्थिक सहायता प्रदान करने का वादा निभाने की दिशा में पहल प्रारंभ कर दिया गया है। अयोध्या धाम में प्रभु राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के प्रति लोगों की जिज्ञासा और अगाध श्रद्धा भाव का सम्मान करते हुए प्रदेश सरकार ने रामलला दर्शन योजना प्रारंभ करने का निर्णय लिया है, इसके तहत प्रतिवर्ष हजारों लोगों को अयोध्या धाम तथा काशी विश्वनाथ धाम, प्रयाग राज की तीर्थयात्रा कराई जाएगी। सामान्य परिवारों के लिए प्रतिमाह 400 यूनिट तक आधे दाम पर बिजली प्रदान करने का निर्णय लिया गया है।प्रदेश सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्य योजना के अंतर्गत दिसम्बर 2028 तक निःशुल्क चावल प्रदाय करने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ में इस योजना से 67 लाख 94 हजार अंत्योदय, प्राथमिकता, एकल निराश्रित एवं निःशक्तजन राशन कार्डधारियों को मासिक पात्रता का चावल दिया जाएगा। महिलाओं का जीवन आसान बनाने में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की बड़ी भूमिका रही है। इसके अंतर्गत प्रदेश में अब तक 36 लाख से अधिक नवीन गैस कनेक्शन जारी किए गए हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख 5 शक्तिपीठों कुदरगढ़, चन्द्रपुर, रतनपुर, दंतेवाड़ा तथा डोंगरगढ़ को चारधाम की तर्ज पर विकसित करने की कार्ययोजना बनाई जा रही है। तीन नदियों की संगम राजिम मेले की राष्ट्रीय स्तर पर पुनः पहचान दिलाने के लिए राजिम कुंभ (कल्प) का आयोजन किया जाएगा। छत्तीसगढ़ के समन्वित विकास के लिए कटघोरा से डोगढ़गढ़ तक रेललाईन निर्माण के लिए 300 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान किया गया है।छत्तीसगढ़ के तीन करोड़ लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2024-25 के लिए 01 लाख 47 हजार 446 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। यह बजट सभी वर्गों के समावेशी विकास को सुनिश्चित करने वाले और विकसित छत्तीसगढ़ के सपने को साकार करने वाला बजट है। अमृत काल का छत्तीसगढ़ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के लक्ष्य को हासिल करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
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कहानी
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
आज दीदी के फोन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया
था ..ऐसी कौन सी बात हो गई कि दीदी मुझे फोन पर
बताना नहीं चाह रही हैं बल्कि घर आने को कह रही हैं ।
वह परेशान तो लग रही थीं ...हम दोनों बहनों में कोई दो वर्षों का ही अंतर होगा पर हम सहेली की तरह ही रहते थे । साथ सोना , उठना , पढ़ना , कहीं जाना हो तो
साथ - साथ । नहीं जाना है तो दोनों ही नहीं जाते , कई
बार किसी विवाह आयोजन में भेजने के लिए माँ हमें
बहुत मनातीं ।जिम्मेदारियों के बोझ तले लड़कपन कहाँ छुप जाता है पता ही नहीं चलता । शादी के बाद दीदी का व्यक्तित्व पूरा ही बदल गया , पहले की चंचल , हंसोड़ दीदी का स्थान धीर , गम्भीर ,समझदार रमा ने
ले लिया था । इसकी जिम्मेदार वह नहीं , जीवन के वे
उतार - चढ़ाव हैं जिन्होंने उन्हें बदल दिया ।
उनका कोई भी कार्य सरलतापूर्वक पूर्ण नहीं हुआ। बचपन में बार - बार बीमार पड़ती रही ...जीवन
से काफी संघर्ष किया । पीएच. डी. करते - करते अपने
निर्देशक से कुछ कहासुनी हो गई और उन्होंने दीदी की
रिसर्च पूरी होने में न जाने कितनी बाधाएं खड़ी कर दी..
पर ये दीदी की जीवटता ही थी कि उन्होंने काम पूरा
करके ही दम लिया ,उनकी जगह कोई और होता तो वह
काम पूरा ही नहीं कर पाता । बाधा - दौड़ के खिलाड़ी
के लिए बाधाओं से भरी हुई राह भी आसान हो जाती
है वैसी ही दीदी के लिये कठिनाइयों का सामना करना
आसान हो गया था ।कॉलेज में व्याख्याता हो जाने के बाद उनके विवाह में उतनी अड़चन नहीं आई क्योंकि
उनके ही कॉलेज के सहायक प्राध्यापक अनिरुद्ध त्रिपाठी ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था जिसे दीदी के साथ माँ - पिताजी ने भी सहर्ष स्वीकार
कर लिया था । अपनी बेटी नजर के सामने रहे , माता -
पिता को और क्या चाहिये । दीदी भी बहुत खुश थीं
क्योंकि लड़कियों के विवाह के बाद सबसे बड़ी समस्या
नौकरी बरकरार रखने की आती है ...पति कहीं बाहर हो तो नौकरी छोड़ो या नौकरी करनी हो तो पति से दूर
रहो । खुशियाँ उनके आँगन की रौनक बन गई थी पर
हमारे आँगन में सूनापन छा गया था । हम दोनों बहनें
माता - पिता के जीवन का आधार थीं , दीदी जब भी घर
आतीं तो ऐसा लगता मानो मरुस्थल में फूल खिल गये हों ...मैं तो पल भर के लिए भी उन्हें नही छोड़ती थी ।
दो वर्षों के बाद दीदी एक प्यारे से बेटे की माँ
बन गई थी ....पर कुछ समस्या होने के कारण उन्हें महीनों बेड रेस्ट करना पड़ा ...मातृत्व के दायित्व ने
दीदी को बहुत गम्भीर बना दिया था । बेटे के बड़े होने
के बाद एक दिन दीदी और जीजाजी रोज की तरह कॉलेज जा रहे थे कि उनकी मोटरसाइकिल एक बैलगाड़ी से टकरा गई.... मेरी गाड़ी मेरे इशारों पर चलती है कह कर अपनी ड्राइविंग पर नाज करने वाले
जीजाजी उसी के कारण इस दुनिया से चले गये ।दुर्घटना में उन्हें बहुत चोटें आई थी... लगभग दस दिन
आई. सी. यू. में जीवन से संघर्ष करते हुए आखिर उन्होंने हार मान ली । दीदी को इस सदमे ने आहत कर
दिया ....अभी उनका बेटा नीरज एक वर्ष का भी नहीं
हुआ था , जीजाजी कितनी बड़ी जिम्मेदारी के साथ उन्हें अकेला छोड़ गये थे । दुःखो के महासागर में डूब
गई थी दीदी.... हमें समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह उन्हें दिलासा दिया जाये ....उनके दर्द को बाँटना
किसी के लिए सम्भव न था ...घर के हर कोने में जीजाजी की यादें समायी हुई थी... उन दोनों के देखे
हुए सपने फूलों की खुशबू की तरह कमरों में बिखरे पड़े
थे ...माँ - पिताजी को लगा कि यदि दीदी हमारे साथ रहने लगे तो शायद बीते दिनों की बातों को वह भुला
सकें लेकिन वह तो उन्हें भुलाना ही नहीं चाहती थीं बल्कि उन्हें ही अपनी पूंजी मानकर उन्हीं के सहारे जीना चाहती थीं ।कम से कम नीरज तो था उनके पास
जिसकी परवरिश की जिम्मेदारी में वह व्यस्त हो सकीं।
वक्त गुजरने के साथ दीदी और गम्भीर और खामोश
होती गईं... माँ - पिताजी वृद्ध हो चले थे , उन्हें दीदी के
एकाकी जीवन की चिंता थी किन्तु उनकी गहरी खामोशी देखकर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनसे
पुनर्विवाह की बात करते । एक बार चाची जी ने उनके सामने विवाह की बात छेड़कर अपनी आफत ही
बुला ली...दीदी बहुत क्रोधित हुईं ...खूब चिल्लाई उन पर...फिर फूट - फूट कर रो पड़ी ...फिर किसी ने यह
राग नहीं छेड़ा । उन्होंने नीरज के पालन - पोषण को
ही अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बना लिया । इसी
बीच मेरी भी शादी हो गई और मै अपनी घर - गृहस्थी
में रम गई ।
कालचक्र चलता रहा.. वह कहाँ रुकता है किसी
के लिए चाहे कोई उससे सन्तुष्ट हो या न हो । पर यह अपना कर्म करते रहने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करता रहता है... परिस्थिति अपने अनुकूल हो या प्रतिकूल उसे तो चलते ही रहना है । यह तो अच्छा है कि जिम्मेदारियां मनुष्य को व्यस्त रखती हैं वरना हम अपने दुखों के बारे में सोचते ही रहते और जी नहीं पाते।
कुछ वर्षों बाद माँ बीमारी के कारण हमें छोड़कर चली
गई ...उनके जाने के बाद पिताजी अकेलेपन का दंश
झेलते रहे , पर दीदी के साथ बने रहे । दीदी ने बहुत ही
धैर्य के साथ नीरज को पाला ...कितना संघर्ष कर रही
थी वे अपने - आप से..किन तकलीफों से गुजर रही थीं,
उनसे मैं अनजान नहीं थी । पिताजी के भी चले जाने के
बाद वह बिल्कुल अकेली रह गई , पर मैं क्या करती जैसे विभिन्न ग्रहों की एक निश्चित धुरी , परिधि और
भ्रमण का पथ होता है उसी तरह पत्नी और माँ बनने
के बाद प्रत्येक स्त्री को एक निश्चित केंद्रबिंदु , पथ और
परिधि ( सीमायें ) मिल जाती हैं जिसमें उसे बंध जाना
होता है । सम्बन्धों का यह आकर्षण गुरुत्वाकर्षण बल
से क्या कम होगा ? मैं भी इस बन्धन में बंधकर उनके
लिए समय नहीं निकाल पाई ।
अब तो नीरज इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा है..... दीदी की परेशानी का क्या कारण होगा ...तभी
अचानक दरवाजे की घण्टी बजी और मैं अतीत की
यादों से बाहर आई । मेरे पति ही थे...उनसे दीदी के
फोन के बारे में बात कर मैं जाने की तैयारी करने लगी।
सफर के दौरान भी अनेक विचार मन को उद्वेलित करते रहे....कहीं नीरज को तो कुछ नहीं हो
गया...क्या दीदी की तबीयत खराब हो गई इत्यादि
अनेक सम्भावनाओ से जूझती मैं दीदी के घर पहुँची।
वह घर पर अकेली थी....नीरज कहीं बाहर था । बालों
की सफेदी और चेहरे पर अवसाद की लकीरें उन्हें उम्र
से अधिक कमजोर दिखा रही थी...दुःखों और संघर्षों
ने वैसे भी उनकी सहजता और सरलता को समय से
पहले ही गम्भीरता और परिपक्वता की चादर से ढक
दिया था ।
मेरी कुशलक्षेम पूछने के बाद दीदी ने कहा - " प्रिया , तुम सफर के कारण थक गई होगी... थोड़ा
आराम कर लो , फिर बातें करेंगे ।" किन्तु मेरे मन में तो
अनेक आशंकाएं बादलों की तरह उमड़ - घुमड़ रही थीं
इसलिये उनकी बात अनसुनी कर उन्हें सवालिया निगाहों से एकटक देखने लगी । मुझे अपनी ओर देखती
पाकर पहले तो उनकी आंखे नम हो आईं और अंततः
बरस पड़ीं ...शायद उनके सब्र का बाँध टूट गया था जिसे उन्होंने बहुत प्रयास करके रोक रखा था । मैंने
उन्हें रोने दिया.... बहुत दिनों से उन्होंने सारे दुःख , व्यथा अपने एकाकी मन के प्राँगण में जमा कर रखा
था , आज वे आँसुओ से धुल जाएं तो शायद वे हल्कापन महसूस कर सकें ।
कुछ संयत होने के बाद उन्होंने अपने मन की
सारी बातें मुझसे कह दी ...बात नीरज की ही थी ...
पितृहीन होने के कारण मिले अधिक लाड़ - प्यार और
कुछ संगति के असर ने उसे उद्दण्ड बना दिया था । देर
रात तक बाहर घूमना , समय - बेसमय पैसों की माँग
और माँ से बहस करना उसके लिए आम बात हो गई
थी । दीदी बोलते - बोलते रोने लगी थी....प्रिया... मैंने
जीवन में बहुत कुछ सहा , जमाने भर की बातें , ताने
सुनती रही लेकिन कभी हार नहीं मानी ...बस अपने
रास्ते चलती रही लेकिन अब मुझमें हिम्मत नहीं रही...
इतनी भी नहीं कि अपनों की बातें सुन सकूँ । मैंने
हमेशा यही चाहा कि वह पढ़ - लिखकर अपने पैरों पर
खड़ा हो जाये ,उसका भविष्य सुरक्षित हो...अपनी तरफ से पूरी कोशिश की....उसे कोई अभाव महसूस न
हो...लेकिन पता नहीं कहाँ कमी रह गई...आज वह
मुझसे पूछता है कि मैंने उसके लिए क्या किया ....न जाने किन लोगों की सोहबत में पड़कर मुझे, अपनी
पढ़ाई , अपने जीवन का उद्देश्य भूल गया है... डरती हूँ कहीं गलत रास्ते में चला गया तो उसे हमेशा के लिए खो न बैठूँ । ऐसा क्या करूँ कि वह सुधर जाये .. अपने भविष्य को गम्भीरता से ले ...।
दीदी की बातें सुनकर मेरी आँखे भर आईं और मन दुःखी हो गया लेकिन उससे भी अधिक गुस्सा आया उस नीरज पर ...जिसे पाकर दीदी अपने सारे दुःख - दर्द भूल गई थी....जिसके लिये उन्होंने अपने जीवन के दूसरे विकल्पों के बारे में सोचा तक नहीं उसने माँ के प्रति अपना दायित्व तो समझा नहीं उल्टे उसके दर्द का बोझ बढ़ा दिया ।
मैंने नीरज से बात करने का फैसला कर लिया था
इसलिए देर रात तक उसके लौटने का इंतजार करती रही । वह काफी देर से घर आया और आते ही अपने
कमरे में जाने लगा । मैंने ही उसे आवाज लगाई - सुनो नीरज ! " अरे मौसी , आप ....आप कब आई । वह मुझे देखकर चौक गया..
आज दोपहर में आई , " नीरज मैं दीदी को अपने साथ ले जाने आई हूँ ..बिना कोई भूमिका बाँधे मैंने अपनी बात कह दी थी । "
क्यो ? अचानक उसके मुँह से फूट पड़ा था...ओ दो - चार दि...नों के लिए घूमने जाना चाहती हैं... इट्स ओके. उसने कंधे उचकाते हुए कहा था ।
दो - चार दिन के लिए नहीं बेटे....अब मैं उन्हें हमेशा के लिए अपने साथ ले जाना चाहती हूँ...तुम तो
अब बड़े और काफी समझदार हो गए हो...अपने पैरों पर खड़े होने वाले हो ...अब तुम्हें उनकी क्या जरूरत है ? " यह आप क्या कह रही हैं मौसी ? "
मैं ठीक कह रही हूँ नीरज...जिस माँ ने तुम्हें जन्म
दिया ...अपनी ममता और प्यार से सींचकर तुम्हें बड़ा किया ...तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सोचा... तुम्हें उन्होंने अपने जीने का मकसद बना लिया....उनसे तुम
पूछते हो कि तुमने मेरे लिए क्या किया । उन्होंने अपने जीवन में बहुत तकलीफ पाई है नीरज....मैं सोचती थी कि तुम इस बात को महसूस करोगे और उन्हें हमेशा खुश रखने का प्रयास करोगे....क्योंकि दुनिया के बाकी
लोग उनका दर्द महसूस नहीं कर सकते लेकिन तुम उनके हर दर्द में साझेदार रहे हो... पेड़ में लिपटी लता की तरह तुमने उनके मन के हर पहलू को देखा है,
जाना है...जीजाजी के जाने के बाद आने वाले सुख - दुख के सिर्फ तुम दोनों साझेदार रहे हो ...पर कब से तुमने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया नीरज...तुम तो उनका साया हो...तुमने अपने आपको उनसे अलग कैसे मान लिया ।
तुम जिन दोस्तों से अपनी तुलना करते हो वे ममता का मोल क्या जानेंगे जिन्होंने अपनी माँ के हाथों एक निवाला भी नहीं खाया । उनके माँ - बाप ने सिर्फ सुविधाएं देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली...उनके साथ रहकर तुम यह भूल गए कि तुम्हें दीदी ने माँ और पिता दोनों बनकर पाला है ....न जाने कितने
जतन करती रही कि तुम्हे किसी बात की कमी न रहे , कितनी मुश्किलें आई पर कभी खुद से तुम्हें जुदा नहीं किया । सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिये जीती आई है वो...
अब समय आया है कि तुम्हारी तरक्की और खुशहाली देखकर वह भी खुश होती....माली को अपने लगाये हुए पौधे की छाया मिले न मिले पर वह उसके फलने - फूलने की ही कामना करता है...उसी प्रकार तुम्हारी माँ
सिर्फ तुम्हारी खुशी देखकर ही जी लेगी , बस तुम सही राह पर चलो और खुश रहो , उसे और कुछ नहीं चाहिये । मैं इससे आगे कुछ न कह पाई और अपने कमरे में चली गई ।
दूसरे दिन सोकर उठी तो सूरज की किरणें पूरे घर में
उजाला फैला चुकी थीं.. नीरज दीदी की गोद में लेट कर हमेशा की तरह अपनी माँ से लाड़ जता रहा था...शायद
माँ - बेटे के बीच के गिले - शिकवे दूर हो गए थे । पश्चाताप के आंसुओं ने दिलों में जमी गर्द धो डाली थी... नीरज को कर्तव्यबोध हो गया था.. रिश्तों की मजबूती के लिए यह जरूरी था... मैंने आगे बढ़कर नीरज को गले लगा लिया था और दीदी की ओर देखकर राहत की सांस ली...अब इस पेड़ को कोई तूफान नहीं गिरा सकता क्योंकि उसने मिट्टी में जड़ें जमा ली हैं... दीदी के चेहरे पर मुस्कुराहट और पलकों में खुशियों की बूंदें झिलमिला उठी थीं । -
कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर लेख -
-प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी
हमारे जीवन पर कई लोगों के व्यक्तित्व का प्रभाव रहता है। जिन लोगों से हम मिलते हैं, हम जिनके संपर्क में रहते हैं, उनकी बातों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जिनके बारे में सुनकर ही आप उनसे प्रभावित हो जाते हैं। मेरे लिए ऐसे ही रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर।आज कर्पूरी बाबू की 100वीं जन्म-जयंती है। मुझे कर्पूरी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले कैलाशपति मिश्र जी से मैंने उनके बारे में बहुत कुछ सुना है। सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू ने जो प्रयास किए, उससे करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव आया। उनका संबंध नाई समाज, यानि समाज के अति पिछड़े वर्ग से था। अनेक चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने कई उपलब्धियों को हासिल किया और जीवनभर समाज के उत्थान के लिए काम करते रहे।जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का पूरा जीवन सादगी और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा। वे अपनी अंतिम सांस तक सरल जीवनशैली और विनम्र स्वभाव के चलते आम लोगों से गहराई से जुड़े रहे। उनसे जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो उनकी सादगी की मिसाल हैं।उनके साथ काम करने वाले लोग याद करते हैं कि कैसे वे इस बात पर जोर देते थे कि उनके किसी भी व्यक्तिगत कार्य में सरकार का एक पैसा भी इस्तेमाल ना हो। ऐसा ही एक वाकया बिहार में उनके सीएम रहने के दौरान हुआ। तब राज्य के नेताओं के लिए एक कॉलोनी बनाने का निर्णय हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने लिए कोई जमीन नहीं ली। जब भी उनसे पूछा जाता कि आप जमीन क्यों नहीं ले रहे हैं, तो वे बस विनम्रता से हाथ जोड़ लेते। 1988 में जब उनका निधन हुआ तो कई नेता श्रद्धांजलि देने उनके गांव गए। कर्पूरी जी के घर की हालत देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए कि इतने ऊंचे पद पर रहे व्यक्ति का घर इतना साधारण कैसे हो सकता है!कर्पूरी बाबू की सादगी का एक और लोकप्रिय किस्सा 1977 का है, जब वे बिहार के सीएम बने थे। तब केंद्र और बिहार में जनता सरकार सत्ता में थी। उस समय जनता पार्टी के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण यानि जेपी के जन्मदिन के लिए कई नेता पटना में इकट्ठा हुए। उसमें शामिल मुख्यमंत्री कर्पूरी बाबू का कुर्ता फटा हुआ था। ऐसे में चंद्रशेखर जी ने अपने अनूठे अंदाज में लोगों से कुछ पैसे दान करने की अपील की, ताकि कर्पूरी जी नया कुर्ता खरीद सकें। लेकिन कर्पूरी जी तो कर्पूरी जी थे। उन्होंने इसमें भी एक मिसाल कायम कर दी। उन्होंने पैसा तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में दान कर दिया।सामाजिक न्याय तो जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के मन में रचा-बसा था। उनके राजनीतिक जीवन को एक ऐसे समाज के निर्माण के प्रयासों के लिए जाना जाता है, जहां सभी लोगों तक संसाधनों का समान रूप से वितरण हो और सामाजिक हैसियत की परवाह किए बिना उन्हें अवसरों का लाभ मिले। उनके प्रयासों का उद्देश्य भारतीय समाज में पैठ बना चुकी कई असमानताओं को दूर करना भी था।अपने आदर्शों के लिए कर्पूरी ठाकुर जी की प्रतिबद्धता ऐसी थी कि उस कालखंड में भी जब सब ओर कांग्रेस का राज था, उन्होंने कांग्रेस विरोधी लाइन पर चलने का फैसला किया। क्योंकि उन्हें काफी पहले ही इस बात का अंदाजा हो गया था कि कांग्रेस अपने बुनियादी सिद्धांतों से भटक गई है।कर्पूरी ठाकुर जी की चुनावी यात्रा 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में शुरू हुई और यहीं से वे राज्य के सदन में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरे। वे श्रमिक वर्ग, मजदूर, छोटे किसानों और युवाओं के संघर्ष की सशक्त आवाज बने। शिक्षा एक ऐसा विषय था, जो कर्पूरी जी के हृदय के सबसे करीब था। उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में गरीबों को शिक्षा मुहैया कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वे स्थानीय भाषाओं में शिक्षा देने के बहुत बड़े पैरोकार थे, ताकि गांवों और छोटे शहरों के लोग भी अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और सफलता की सीढ़ियां चढ़ें। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने बुजुर्ग नागरिकों के कल्याण के लिए भी कई अहम कदम उठाए।Democracy, Debate और Discussion तो कर्पूरी जी के व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा था। लोकतंत्र के लिए उनका समर्पण भाव, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही दिख गया था, जिसमें उन्होंने अपने-आप को झोंक दिया। उन्होंने देश पर जबरन थोपे गए आपातकाल का भी पुरजोर विरोध किया था। जेपी, डॉ. लोहिया और चरण सिंह जी जैसी विभूतियां भी उनसे काफी प्रभावित हुई थीं।समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने एक ठोस कार्ययोजना बनाई थी। यह सही तरीके से आगे बढ़े, इसके लिए पूरा एक तंत्र तैयार किया था। यह उनके सबसे प्रमुख योगदानों में से एक है। उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन इन वर्गों को भी वो प्रतिनिधित्व और अवसर जरूर दिए जाएंगे, जिनके वे हकदार थे। हालांकि उनके इस कदम का काफी विरोध हुआ, लेकिन वे किसी भी दबाव के आगे झुके नहीं। उनके नेतृत्व में ऐसी नीतियों को लागू किया गया, जिनसे एक ऐसे समावेशी समाज की मजबूत नींव पड़ी, जहां किसी के जन्म से उसके भाग्य का निर्धारण नहीं होता हो। वे समाज के सबसे पिछड़े वर्ग से थे, लेकिन काम उन्होंने सभी वर्गों के लिए किया। उनमें किसी के प्रति रत्तीभर भी कड़वाहट नहीं थी और यही तो उन्हें महानता की श्रेणी में ले आता है।हमारी सरकार निरंतर जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से प्रेरणा लेते हुए काम कर रही है। यह हमारी नीतियों और योजनाओं में भी दिखाई देता है, जिससे देशभर में सकारात्मक बदलाव आया है। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही थी कि कर्पूरी जी जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर सामाजिक न्याय की बात बस एक राजनीतिक नारा बनकर रह गई थी। कर्पूरी जी के विजन से प्रेरित होकर हमने इसे एक प्रभावी गवर्नेंस मॉडल के रूप में लागू किया। मैं विश्वास और गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारत के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की उपलब्धि पर आज जननायक कर्पूरी जी जरूर गौरवान्वित होते। गरीबी से बाहर निकलने वालों में समाज के सबसे पिछड़े तबके के लोग सबसे ज्यादा हैं, जो आजादी के 70 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे।हम आज सैचुरेशन के लिए प्रयास कर रहे हैं, ताकि प्रत्येक योजना का लाभ, शत प्रतिशत लाभार्थियों को मिले। इस दिशा में हमारे प्रयास सामाजिक न्याय के प्रति सरकार के संकल्प को दिखाते हैं। आज जब मुद्रा लोन से OBC, SC और ST समुदाय के लोग उद्यमी बन रहे हैं, तो यह कर्पूरी ठाकुर जी के आर्थिक स्वतंत्रता के सपनों को पूरा कर रहा है। इसी तरह यह हमारी सरकार है, जिसने SC, ST और OBC Reservation का दायरा बढ़ाया है। हमें ओबीसी आयोग (दुख की बात है कि कांग्रेस ने इसका विरोध किया था) की स्थापना करने का भी अवसर प्राप्त हुआ, जो कि कर्पूरी जी के दिखाए रास्ते पर काम कर रहा है। कुछ समय पहले शुरू की गई पीएम-विश्वकर्मा योजना भी देश में ओबीसी समुदाय के करोड़ों लोगों के लिए समृद्धि के नए रास्ते बनाएगी।पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति के रूप में मुझे जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मेरे जैसे अनेकों लोगों के जीवन में कर्पूरी बाबू का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा है। इसके लिए मैं उनका सदैव आभारी रहूंगा। दुर्भाग्यवश, हमने कर्पूरी ठाकुर जी को 64 वर्ष की आयु में ही खो दिया। हमने उन्हें तब खोया, जब देश को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। आज भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जन-कल्याण के अपने कार्यों की वजह से करोड़ों देशवासियों के दिल और दिमाग में जीवित हैं। वे एक सच्चे जननायक थे। - अभिवादन में ज्यादा आत्मीय है राम-राम कहनाहमारी भारतीय संस्कृति में सदियों से अभिवादन और प्रतियुत्तर का यही तरीका विद्यमान रहा है-राम-राम दाऊ....राम-राम....राम-राम ताऊ...राम-राम भाई...
जय श्रीराम...जय-जय श्रीराम...कितना सहज और अलौकिक आनंद है इस अभिवादन में जो हमारी सांस्कृतिक विरासत का महान प्रतीक रहा है। क्या इस आत्मीय आनंद की अनुभूति ‘गुड मॉर्निंग’, ‘गुड इवनिंग’ या ‘हाय’ जैसे शब्दों के साथ अभिवादन में मिल सकती है? स्वभाविक तौर पर जवाब होगा-कदापि नहीं। राम सदियों से हमारी लोक-संस्कृति में रचे-बसे हैं। राम हमारी एकता, अखण्डता, आस्था और अस्मिता के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक हैं। जय-जय श्रीराम के अलावा अभिवादन के समय राम-राम कहा जाता रहा है और प्रत्युत्तर में भी दो बार राम-राम या कोटि-कोटि राम-राम कहा जाता है। दो व्यक्ति जब मिलने के बाद इस तरह अभिवादन करते हैं तो उनके बीच अधिक स्थायी और आत्मीय संबंध बनते हैं।राम शब्द सनातन धर्म की पहचान है और जब हम दो बार राम-राम कहते हैं तो 108 बार राम नाम का जाप हो जाता है। यह अलौकिक रहस्य है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि अंकशास्त्र के दृष्टिकोण से देखें तो हिंदी वर्णमाला में र = 27वां अक्षर है और 27 का योग 2 + 7 = 9 होता है। अंग्रेजी वर्णमाला में राम (RAM) शब्द का पहला अक्षर R 18वें स्थान पर रहता है और उसका योग भी 1 + 8 = 9 होता है। र में 'आ' की मात्रा दूसरा अक्षर और 'म' 25वां अक्षर, सब मिलाकर जो योग बनता है वो है 27 + 2 + 25 = 54, वस्तुतः राम का योग 54 हुआ और दो बार राम राम कहने से 108 हो जाता है जो पूर्ण ब्रह्म का प्रतीक है। कितना वैज्ञानिक और सुखद है राम-राम का अभिवादन और प्रतित्युत्तर में राम–राम कहना।महान संत कबीर दास जी का बीज मंत्र है राम। कबीर का प्रसिद्ध दोहा है- सहस्र इक्कीस छह सै धागा, निहचल नाकै पोवै। बड़ा गहरा अर्थ और भाव छिपा है इस पंक्ति में जिसका अर्थ है कि मनुष्य 21600 धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है और प्रत्येक श्वास- प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता रहता है। आशय यह है कि हम पूरे दिन के 24 घंटे में 21 हजार 600 बार सांस लेते हैं और हर सांस में राम (अजपा) हैं। अब 21600 का योग भी 9 हो होता है।जाहिर है कि सदियों से यह कहा जाता रहा है कि राम का नाम प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है तो इसका भी वैज्ञानिक आधार है। राम विराट ब्रह्म है, राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। महादेव के हृदय में राम सदैव विराजित रहते हैं। वास्तव में राम भारतीय लोक जीवन के कण-कण में समाहित हैं और जो कण-कण में है वह पूरे ब्रह्माण्ड में भी हैं। कहा भी गया है- रमंति इति रामः अर्थात जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है। राम रक्षा स्त्रोत का मंत्र है-राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने।।भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं कि हे पार्वती मैं भी इन्हीं मनोरम राम में रमता हूँ। यह राम नाम विष्णु के सहस्रनाम के तुल्य है। इसे राम तारक मंत्र भी कहा गया है।यदि भारतीय मानस के दैनिक जीवन की बात करें तो यहां के लोक-जीवन के कितने ही क्रियाकलापों को भगवान राम की मर्जी पर छोड़कर निश्चिंतता व्यक्त की जाती रही है। जैसी राम की मर्जी... इतना कहने के बाद संकट अथवा दुख के समय का सारा तनाव ही खत्म हो जाता है। तुलसीदासकृत रामचरित मानस के बालकाण्ड के प्रसिद्ध छंद की पंक्ति भी है- होइहि सोइ जो राम रचि राखा। लोक जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक को भगवान राम की मर्जी पर छोड़ने की परंपरा सदियों प्राचीन है।22 जनवरी, 2024- राम जन्मभूमि अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का यह दिन देश की सांस्कृतिक-राष्ट्रीय एकता ही नही, वैश्विक-एकता की स्थापना का भी दिन है। पूरे विश्व में पौने दो सौ से भी ज्यादा देश भगवान राम को मानते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के लिए अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका सहित विश्व के तमाम देशों से उपहार आना, ब्रिटेन के संसद में श्रीराम का जयकारा, अमेरिका की सड़कों पर भगवान राम के बिलबोर्ड....अऩेक प्रमाण हैं भगवान राम के रूप में वैश्विक-एकता के प्रतीक के।विविधताओं से परिपूर्ण भारतीय इतिहास में 500 साल के लम्बे संघर्ष और आहूतियों-बलिदानों के बीच कितनी ही पीढ़ियां बीत गईं, राम आज भी सबके रोम-रोम में बसे हैं। भविष्य में भी सदियों तक राम मंदिर राष्ट्रीय एकता और सनातन आस्था का प्रतीक बनकर भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहेगा। राजनीतिक चश्मे को उतारकर देखें तो हर भारतीय के लिए यह गौरव का अद्भुत प्रतीक है। भारत सहित विश्व के अऩेक देशों में प्रज्जवलित रामज्योति की जगमगाहट ने पारंपरिक दीपोत्सव से भी ब़ड़े दीपोत्सव के आगाज की नई लोक संस्कृति की स्थापना कर दी है। अब रामज्योति के रूप में भी दीपोत्सव मनाया जाएगा जो हमारी सांस्कृतिक एकता का प्रतीक होगा। प्रभु श्री राम सदैव हम सभी के जीवन को प्रगति के पथ पर अग्रसर करें और वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय बीज मंत्र को साकार कर पूरे विश्व को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करें, यही कामना है।जय श्री राम...रामलला के प्राण प्रतिष्ठा और रामज्योति महोत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया , वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् -
गीत -डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
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मंदिर में आ गए राम तुम , अंतस में कब आओगे ।जीवन में तम-तोम बढ़ रहा , उजियारा कब लाओगे ।
शुचिता को ही निगल रहे हैं, जग के व्यभिचारी दानव ।कलुषित भावों में पगे हुए ,कलयुग के दंभी मानव ।अंधकारमय पथ में जग के , जीवन-ज्योति जलाओगे ।।मंदिर में….
मन का दर्पण टूट रहा है , धोखे के पाषाणों से ।आहत बहुत हुआ अंतर्मन , तीक्ष्ण प्रवंचित बाणों से ।पीड़ित वंचित सुग्रीव कई , कब मित्रता निभाओगे ।।मंदिर में…..
सब लेने को ही आतुर हैं , त्याग नहीं करता कोई ।मार रहे हैं निज परिजन को ,जनहित कब मरता कोई ।मर्यादित आचरण शिष्टता , कब सभ्यता सिखाओगे ।।मंदिर में…..
- आलेख-कमलज्योति-राममय हुए माहौल में सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा रामनामी मेला-अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा पर इन्हें भी हैं खुशी-रामनामी समाज चाहते हैं कि आपस में भाईचारा बढ़े, समाज में भेदभाव दूर होरायपुर, / सुबह का सूरज आज बादलो में कही गुम था...रात बारिश हुई थी और भीगी-भीगी मौसम के बीच हजारों लोगों का हुजूम जिस ओर आकर्षित हो रही थीं... वह शायद उनकी श्रद्धा और विश्वास ही था...जो इस धरती के ऐसे राम को देखने आए जा रहे थे... जो किसी मंदिर में नहीं... अपितु इनके जीवन में सदैव समाहित है। बेशक यह रामनामी है और न सिर्फ इनका चोला..शरीर का हर हिस्सा राम...राम...राम...के अक्षरों से नस-नस में विद्यमान है।शरीर पर श्वेत परिधानों के साथ मोह, माया, लोभ, काम, क्रोध और व्यसनों को त्याग कर सबको भाई-चारे के साथ बिना किसी भेदभाव के शांतिपूर्ण तरीके से जीवनयापन का संदेश भी देते हैं। छत्तीसगढ़ के नवगठित जिले सक्ती के जैजैपुर विकासखंड में रामनामी समुदाय का तीन दिवसीय बड़े भजन का मेला नई पीढ़ी और पहली बार देखने वालों के लिए जहाँ कौतूहल का केंद्र बना है, वहीं इसके विषय में पहले से जानने और समझने वालों के लिए यह सम्मान और गौरव से कम नहीं...। अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा से राममय हुए माहौल के बीच रामनामी समुदाय का बड़े भजन का यह मेला भी सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा है।अपने राम के प्रति अगाध,अथाह प्रेम और अटूट आस्था की यह गाथा हकीकत में कही विराजमान है तो वह छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय ही हैं। भगवान राम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में रामनामी समुदाय का पादुर्भाव कई उपेक्षाओं, तिरस्कारो और संघर्षों की दास्तान है, जो 160 वर्ष से अधिक समय पहले अपनी आस्था पर पहुँची चोट के साथ इस रूप में जन्मी कि आने वाले काल में इन्हें अपनाने और मानने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। वह दौर भी आया जब रामनामी समुदाय अपनी तपस्या और सादगी को अपनी उपासना के बलबूते साबित करने में सफल हुए।इनका मानना है कि उनका राम तो हर जगह मौजूद है, वे अपने राम को कही ढूंढते भी नहीं.. न ही अपने शरीर पर राम... राम लिखवाने से परहेज करते हैं। रामनामी समाज के गुलाराम रामनामी बताते हैं कि उनका यह आयोजन सन 1910 से होता आ रहा है। जैजैपुर का आयोजन 115वां वर्ष है। साल में एक बार यह आयोजन बड़े भजन मेला के रूप में निरंतर किया जाता है। उन्होंने बताया कि रामनामी को कोई भी समाज और धर्म के लोग अपना सकते हैं,लेकिन उन्हें सदाचारी, शाकाहारी और नशे आदि से दूर रहते हुए मानवता के प्रति प्रेम को अपनाना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि रामनामी अपने शरीर पर राम...राम लिखवाने के साथ ही कभी सिर पर केश नहीं रखते, महिला हाथों में चूड़ी या गले में माला भी नहीं पहनती। शरीर पर राम ही राम धारण होता है और यह प्राण त्यागने के पश्चात भी मिट्टी में दफन होते तक आत्मसात रहता है।82 साल के रामनामी तिहारु राम ने बताया कि उनकी पत्नी फिरतीन बाई और उन्होंने चार दशक पहले ही राम को अपने जीवन और शरीर में आत्मसात किया है। एक साल पहले वे अयोध्या भी गए थे, इस बार रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रण आया था। यहाँ से रामनामी गए हैं और खुशी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि सभी की कामना है कि जाति-पाति, ऊंच-नीच खत्म हो तथा समाज में भाईचारे के साथ सद्भावना का विकास हो। रामनामी समाज में महिला और पुरूष में कोई भेदभाव नहीं होने की बात कहते हुए तिहारु राम बताते हैं कि वे लोग मूर्तिपूजा नहीं करते, रामायण का पाठ करते हैं और अपने राम का जाप करते हुए मानवता का संदेश देते हैं। लगभग 80 साल के रामभगत, 75 साल की सेतबाई ने भी शरीर पर राम..राम गुदवाया है। वे कहते हैं कि यहीं राम उनकी आस्था है और प्रेरणा भी...। यह अमिट लिखावट उन्हें कभी भी किसी के प्रति दुराचार या गलत आचरण की ओर नहीं ले जाती।कलश यात्रा के साथ श्वेत ध्वज चढ़ाकर मेले का किया गया शुभारंभऐतिहासिक और गौरवान्वित करने वाला रामनामी मेला,बड़े भजन का मेला किसी पहचान का मोहताज नहीं है। आज 115वां मेला का शुभारंभ सक्ती जिले के जैजैपुर ब्लॉक मुख्यालय में हुआ। इस दौरान आसपास सहित दूरदराज गांवों से बड़ी संख्या में रामनामी समाज के लोग और ग्रामीण पहुँचे। गाँव के मदन खांडे के निवास से पूजा अर्चना के पश्चात धान से राम..राम लिखकर कलश यात्रा निकाली गई, जो कि गाँव के प्रमुख गलियों से होकर मेला स्थल बरछा में छतदार जैतखाम तक पहुँची। यहाँ ध्वज चढ़ाने के साथ ही भजन-आरती की गई। सिर पर मोरपंख के साथ मुकुट धारण किए रामनामी को अपने आराधना और आराध्य देव राम के भक्ति भावना में लीन होकर चलते हुए देखकर लोगों के मन में राम के प्रति श्रद्धा और विश्वास और भी कायम होता नजर आया।खींचे चले आते हैं मेले में और फिर आना चाहते हैं ग्रामीणरामनामी मेला हर साल किसी न किसी गाँव में होता आ रहा है। इस मेले में एक बार आने वाले समय मिलते ही दोबारा जरूर आते हैं। अब तक आठ बार रामनामी मेले में आ चुकी वृद्धा कचरा बाई कहती है कि मुझे यहां आकर बहुत ही खुशी की अनुभूति महसूस होती है। कौशल्या चौहान बताती है कि वह तीसरी बार इस मेले में आई है। दिल्ली से आये सरजू राम ने बताया कि वह कई मेले में शामिल हो चुका है। यह मेला सभी समाज को जोड़ने और मानवता को बढ़ावा देने के संदेश को विकसित करता है। मेला समिति के अध्यक्ष केदारनाथ खांडे ने बताया कि दूरदराज से आए ग्रामीण मेला में पूरे तीन दिन तक ठहरते भी हैं, यहाँ लगातार भंडारा भी चलता रहता है। इस दौरान राम...राम..राम की आस्था उन्हें दोबारा आने के लिए उत्सुक भी करती है।गाँव के ही दंपति द्वारा दान भूमि में बनाया गया है छतदार जैतखामभगवान राम के लिए अपनी जीवन समर्पित करने वाले रामनामी समुदाय का यह मेला वास्तव में समाज को जोड़ने और मानवता को विकसित करने वाला होता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि गाँव के अनेक लोग जो अन्य समाज के है उन्होंने अपनी कीमती भूमि छतदार जैतखाम के निर्माण के लिए दान की। गांव के पंचराम चंद्रा और श्रीमती लकेश्वरी चंद्रा ने मेला स्थल पर भूमि दान की है वहीं अन्य ग्रामीण भी है,जिन्होंने निःस्वार्थ अपनी कीमती जमीन दान की है।1910 में ग्राम पिरदा में आयोजित किया गया था पहली बार मेलारामनामी बड़े भजन का मेला,संत समागम का आयोजन वर्ष 1910 से लगातार आयोजित किया जा रहा है। पौष शुक्ल पक्ष एकादशी से त्रयोदशी तक 3 दिवस चलने वाले इस मेले में भजन और 24 घण्टे राम नाम जाप किया जाता है। पैरो में घुँघरू के साथ राम..राम लय में गाते हुए नृत्य करते है और मेले की शोभा को बढ़ाते हुए रामनाम के संदेश को सभी के मन में समाहित करने कामयाब भी होते हैं।
- गीत
स्वरचित- डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)-----------------------------------------------------------राम नाम जप ले रे मनवा , निशिदिन साँझ-सवेरे ।आशा का सूरज निकलेगा , मन से मिटे अँधेरे ।।
काम क्रोध मद मोहक माया ,मन को बहकाती है ।पाप- पंक में डूबी काया , जीवन भटकाती है ।पावन रखने मन की बगिया ,कर्म करें बहुतेरे ।राम नाम जप ले रे मनवा निशिदिन साँझ सवेरे ।।
सुरभित सुंदर दलपुंजों सम , सदाचार शुचि रखना ।झंकृत हो जाए हृदवीणा , बोले मधुरिम रसना ।सुरसरिता सम निश्छल निर्मल, चितवन कुंज घनेरे ।राम नाम जप ले रे मनवा निशिदिन साँझ सवेरे ।।
भवसागर में जीवन तरणी , डगमग - डगमग डोले ।मोह -भँवर में फँसी हुई यह , खाती है हिचकोले ।कुसुम-कंटकित पथ पर भटके , प्रेमिल पथिक चितेरे ।राम नाम जप ले रे मनवा निशिदिन साँझ सवेरे ।। - -आ रहा बड़ा बदलाव: पक्के आवास मिलने से घूमंतु प्रवृत्ति की विशेष पिछड़ी जनजाति कमार अब गांवों में करने लगी है स्थायी रूप से निवास-कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक के 13 ग्रामों में निवासरत हैं कमार जनजाति के 72 परिवार-शासन की योजनाओं की पहुंच अब सबसे निचले स्तर तक हुई आसानविशेष लेख-ताराशंकर सिन्हारायपुर / शासन की योजनाओं की वास्तविक सफलता तभी मानी जाती है जब उनकी पहुंच और क्रियान्वयन समाज के सबसे निचले तबके तक सुनिश्चित हो। प्रदेश में निवासरत पांच विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक कमार जनजाति भी है, जिसमें अभी भी शिक्षा और जागरूकता का अभाव है। अपनी लोक संस्कृति और पारम्परिक विरासत एवं मूल्यों के साथ जीवन-यापन करने वाली यह जनजाति कई मायनों में आज भी पिछड़ी हुई है। कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक के 13 ग्रामों में इस जनजाति के 72 परिवार निवासरत हैं, जिनकी जनसंख्या 283 है। इन्हीं में से एक ग्राम मावलीपारा में कमार जनजाति की बहुलता है, लेकिन शासन की योजनाओं का लाभ लेने के मामले में इनकी बात औरों से जुदा है। प्रधानमंत्री जनमन योजना से इनके जीवन में बड़ा बदलाव आ रहा है।प्रधानमंत्री आवास योजना से जीवन में आया स्थायित्वपेशे से बांस की टोकरी और दैनंदिनी के अन्य पारम्परिक सामान बनाकर बेचने वाली यह जनजाति भी अब शासन की योजनाओं का लाभ लेने में पीछे नहीं है। प्रायः कमार जनजाति के लोग घुमंतू और खानाबदोश प्रवृत्ति के होते हैं लेकिन यहां के कमारजन जो प्रायः घासफूस, खदर और मिट्टी से निर्मित अस्थायी घरों में रहते थे, उनको एक तरह से स्थायित्व मिल गया है, क्योंकि स्थायी ठौर के तौर पर अब उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के आवास मिल चुके हैं। विशेष पिछड़ी जनजाति के कमार लोगों को इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ। पक्के मकान मिलने से उन लोगों में स्थायी तौर पर निवास करने की रुचि पैदा हुई है। परिणामस्वरूप, ये अब घर छोड़कर कहीं जाने के मूड में नहीं हैं। एक तरह से उनकी घुमंतू व खानाबदोशी जीवन शैली पर विराम लग गया है।प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास देने के साथ ही उन्हें यह भी समझाइश दी गई कि स्थायी रूप से रहने पर उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड जैसी अनेक योजनाओं का लाभ आसानी से मिल सकेगा। यह बात उनकी समझ में आ गई। इस पर अमल करते हुए ग्राम मावलीपारा में निवासरत कमार जनजाति के सभी 16 परिवार यहां के स्थायी निवासी बन गए और जरूरी दस्तावेज बनवाकर अब वे विभिन्न योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। चाहे स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण हो, आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य कार्ड हो या प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजनांतर्गत रसोई गैस कनेक्शन हो अथवा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत् महिला स्वसहायता समूह का निर्माण हो।विकास की मुख्यधारा से हो रहा जुड़ावग्राम पंचायत मावलीपारा के कमारों के मुखिया श्री हीराराम नेताम ने बताया कि आज से लगभग 10-15 साल पहले उनकी जनजाति के ज्यादातर लोग गांवों के बाहर अस्थायी निवास बनाकर रहते थे। यानी घासफूस और लकड़ी के घर बनाकर कुछ दिनों तक रहते, फिर मौसम परिवर्तन के साथ ही रोजगार की तलाश में वे अक्सर अपना निवास बदल देते थे। श्री नेताम ने बताया कि उनका मुख्य व्यवसाय बांस की टोकरी व सूपा, बिजना जैसी घरेलू उपयोग की चीजें बनाने का रहा है। जब से कम कीमत पर प्लास्टिक और कृत्रिम उत्पाद बाजार में आए, तब से उनका यह धंधा भी मंदा हो चला है। आत्मविश्वास से लबरेज श्री नेताम ने बताया कि अब ऐसा नहीं है। यहां निवासरत ज्यादातर परिवारों के पास राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड, आधार कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड सहित प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर, स्वच्छ भारत मिशन से बने शौचालय हैं, जिसका वे नियमित उपयोग करते हैं।श्री नेताम ने बताया कि उनकी जनजाति के लोग स्थायी रूप से निवास करना फायदेमंद और बेहतर है। इसी तरह ग्रामीण श्री पनकूराम कमार (नेताम) ने बताया कि पहले आजीविका के तौर पर मछली का शिकार करके, शहद इकट्ठा करके बेचने सहित अन्य लघु वनोत्पादों को शहर जाकर बेचने का काम किया जाता था। उसी से परिवार का जीवनयापन होता था। अब पीडीएस से मुफ्त राशन के अलावा बीपीएल कार्ड व आधार आदि बनाए जा चुके हैं। घर पहुंच सेवाएं मुहैया कराने के लिए उन्होंने शासन को धन्यवाद दिया।इसी तरह कमार जनजाति की महिलाएं श्रीमती शांति बाई, अमिता नेताम व बृजबती मरकाम ने बताया कि उनके परिवारों को भी शासन की अधिकांश योजनाओं का लाभ मिल रहा है। छूटे हुए लोगों को दायरे में लाने के लिए गांव में कैम्प भी लगाया जा रहा है। इस प्रकार कमार जनजाति का जुड़ाव शनैः शनैः विकास की मुख्यधारा से हो रहा है। नरहरपुर ब्लॉक के 13 ग्राम मावलीपारा, बिहावापारा, बतबनी, भीमाडीह, सांईमुड़ा, मुसुरपुट्टा, दुधावा, बासनवाही, गंवरसिल्ली, भैंसमुण्डी, दलदली, बादल और ग्राम डोमपदर में कमार जनजाति के लोग वर्तमान में निवासरत हैं।पिछड़ी जनजाति के परिवारों को किया जा रहा है लाभान्वितस्वभाव से लजीले, शर्मीले और दुनियावी भागमभाग से दूर अपने आप में मस्त व मशगूल रहने वाले लोगों तक शासन की योजनाओं की पहुंच, उनके गांव और घर तक सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष पिछड़ी जनजातियों के विकास को दृष्टिगत करते हुए हाल ही में पीएम जनमन योजना प्रारंभ की। इसके तहत समाज की विशेष पिछड़ी जनजातियों को मुख्यधारा में शामिल कर आमजनों की तरह उन्हें शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ दिलाना है।इसी क्रम में जिला प्रशासन की पहल पर जिले के 13 ग्रामों में निवासरत 72 परिवारों के 283 कमार जनजाति के लोगों तक योजना की पहुंच सुनिश्चित करने स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा, समाज कल्याण, ग्रामीण विकास विभाग सहित विभिन्न विभागों के द्वारा गांवों में कैम्प लगाकर तथा उनके घर जाकर आवश्यक दस्तावेज तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा आधार अपडेशन जैसे कार्य भी गांव में कैम्प लगाकर युद्ध स्तर पर किए जा रहे हैं। कांकेर कलेक्टर श्री अभिजीत सिंह ने जल्द से जल्द विशेष पिछड़ी जनजाति के शत-प्रतिशत परिवारों को शासन की योजनाओं का लाभ दिलाने के निर्देश जिला अधिकारियों को दिए हैं।आधारभूत सुविधाओं का लाभ लेने में अब पीछे नहींशासन की योजनाओं से विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों की न सिर्फ जीवनचर्या में सकारात्मक बदलाव आ रहा है, अपितु वे अपने पारम्परिक मूल्यों को संरक्षित रखने के साथ शासन की योजनाओं का लाभ लेकर समाज की मुख्यधारा से भी जुड़ रहे हैं। मनुष्य की मौलिक आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान जैसी सुविधाएं अब उनसे दूर नहीं हैं। अपने बच्चों को बचपन से ही तीर-कमान से शिकार करना, मधुमक्खी के बर्रे से शहद निकालना और स्कूल के बजाय वनोत्पादों का संग्रहण करना सिखाने वाले कमार अब उन्हें रोजाना स्कूल भेज रहे हैं। यहां तक कि गांव के दो शिक्षित कमार युवक शासकीय नौकरी में सेवारत हैं। पक्के मकान से निवास का स्थायी जरिया मिलने के साथ-साथ राशन, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी अन्य आधारभूत सेवाओं का लाभ लेने में भी अब वे किसी से कमतर नहीं हैं। वास्तव में यह शासन के प्रयासों से सकारात्मक परिवर्तन की बयार है, जिसके आने वाले दिनों में और भी सुखद परिणाम आएंगे।
- लेखक- श्री. पीयूष गोयल, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग,उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और वस्त्र मंत्रीविनिर्माण क्षेत्र में 'जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट' के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के अनुरूप उच्चतम वैश्विक मानकों को पूरा करने वाले उच्च गुणवत्ता के उत्पाद उपलब्ध कराने में भारत दुनियाभर में अग्रणी बनने की दिशा में अग्रसर है।प्रतिस्पर्धी दरों पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति 2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने के प्रधानमंत्री के मिशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठा रही है कि 'मेड इन इंडिया' ब्रांड गुणवत्ता की गारंटी हो, जो भारतीय और विदेशी उपभोक्ताओं के लिए आनंद का परिचायक बने।प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया है कि एक लाभदायक बाजार तभी कायम रह सकता है जब उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों में संतुलन हो। इस रणनीति का एक प्रमुख घटक गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) पर जोर देना है। इसके जरिये क्यूसीओ यह सुनिश्चित करता है कि सभी उत्पाद भारतीय मानक ब्यूरो के निर्धारित मानदंडों के अनुरूप हों।यह उन उपभोक्ताओं के लिए एक वरदान है, जिससे उपभोक्ताओं को उत्पादों तथा व्यवसायों के संबंध में विश्वसनीय, सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता का भरोसा प्राप्त होता है। इसके जरिये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बढ़ती मांग व उपभोक्ताओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद मिलती है।प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की डिजिटल इंडिया पहल ने 140 करोड़ भारतीयों के परिवार को दुनिया से जुड़ने और सर्वोत्तम उत्पादों व व्यवहारों के बारे में जानने में मदद की है। वे किसी उत्पाद को खरीदने से पहले नियमित रूप से प्रदर्शन, स्थायित्व और निर्भरता के लिए ग्राहक समीक्षाओं की जांच करते हैं। यदि वे उत्पाद से असंतुष्ट हैं, तो वे सार्वजनिक रूप से कमियों को उजागर करते हैं। इसलिए, उत्पाद की गुणवत्ता, कीमत और नवीनता के बीच संतुलन बनाना समय की मांग है।मोदी सरकार सुरक्षित, विश्वसनीय व बेहतर गुणवत्ता वाले सामान उपलब्ध कराने और भारतीय उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत गुणवत्ता इको-सिस्टम विकसित करने पर केंद्रित है। मई 2014 से पहले, 106 उत्पादों को कवर करने वाले केवल 14 क्यूसीओ जारी किए गए थे। सूची को अब 653 उत्पादों को कवर करते हुए 148 क्यूसीओ तक बढ़ा दिया गया है। इनमें एयर कंडीशनर, खिलौने और जूते जैसे घरेलू उत्पाद शामिल हैं।निर्यात पर गुणवत्ता नियंत्रणक्यूसीओ ने 'मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड' के मिशन को गति दी है। क्यूसीओ के तहत कई उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है। कच्चा लोहा उत्पाद, सौर डीसी केबल, दरवाजे की फिटिंग, छत के पंखे, हेलमेट, स्मार्ट मीटर, हिंजेस, एयर कूलर और एयर फिल्टर गुणवत्ता-नियंत्रित उत्पाद हैं, जो आयात किए जाने की तुलना में कहीं अधिक निर्यात किए जाते हैं। क्यूसीओ द्वारा कवर किए गए कास्ट आयरन उत्पादों का पिछले साल 535 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात हुआ था, जबकि आयात मुश्किल से 68 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। लगभग 25 क्यूसीओ में ऐसे उत्पाद शामिल हैं, जहां आयात से अधिक निर्यात होता है।यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि क्यूसीओ भारत में मजबूत गुणवत्ता चेतना के निर्माण पर केंद्रित हैं। इससे देश में खराब गुणवत्ता वाले सामानों की डंपिंग को कम करने में भी मदद मिलती है। उल्लेखनीय है कि सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं तक पहुंच हमारे अमृत काल में प्रत्येक भारतीय नागरिक का अधिकार है।क्यूसीओ लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स के कारण आग लगने, खिलौनों में जहरीले रसायनों के कारण बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने और बिजली के शॉर्ट-सर्किट जैसे जोखिमों के कारण घटिया उत्पाद घरों के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं।शानदार उदाहरणगुणवत्ता-नियंत्रण कैसे उपभोक्ताओं और निर्माताओं की मदद के लिए विनिर्माण को आमूल रूप से उन्नत कर सकता है, इसका एक शानदार उदाहरण खिलौना उद्योग है। इस क्यूसीओ के कार्यान्वयन से पहले, भारतीय खिलौना बाजार सस्ते, घटिया उत्पादों से भरा पड़ा था।वर्ष 2019 में भारतीय गुणवत्ता परिषद के एक सर्वेक्षण से पता चला कि मुश्किल से एक-तिहाई खिलौने प्रासंगिक बीआईएस मानकों का पालन करते हैं, और उनमें से अधिकांश बच्चों के लिए खतरनाक थे। यह मोदी सरकार के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य था, जिसने एक जनवरी, 2021 से इस क्षेत्र के लिए क्यूसीओ के साथ तेजी से हस्तक्षेप किया था।इससे भारत में खिलौनों की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ। एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय बाजार में 84 प्रतिशत खिलौने बीआईएस मानकों का पालन करते हैं। क्यूसीओ ने न केवल भारतीय बच्चों को सुरक्षित, उच्च गुणवत्ता वाले खिलौने उपलब्ध कराए हैं, बल्कि 2018-19 की तुलना में 2022-23 में उनके निर्यात में 60 प्रतिशत की वृद्धि भी हुई है।उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और घरों में उपयोग होने वाले अन्य उत्पादों पर कई गुणवत्ता मानदंड लागू किए गए हैं। इनमें स्मार्ट मीटर, बोल्ट, नट और फास्टनर, छत के पंखे, अग्निशामक यंत्र, कुकवेयर, बर्तन, पानी की बोतलें, पाइप्ड नेचुरल गैस के उपयोग के लिए घरेलू गैस स्टोव, लकड़ी आधारित बोर्ड, इंसुलेटेड फ्लास्क और इंसुलेटेड कंटेनर आदि शामिल हैं।सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए उद्योग प्रतिनिधियों सहित सभी हितधारकों से परामर्श करती है कि क्यूसीओ को लागू करने से पहले उनकी प्रतिक्रिया, तकनीकी इनपुट और व्यावहारिक सुझावों पर विचार किया जाए। यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान रखा जाता है कि सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों को लंबी अंतरण अवधि देकर उनके हितों की रक्षा की जाए। सरकार उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्धी बनने में मदद करने औरउन निर्माताओं का समर्थन करने के लिए हमेशा तैयार है, जो गुणवत्ता में सुधार करना चाहते हैं।गुणवत्ता अभिशासन, गुणवत्तापूर्ण उत्पादउत्पादों को वैश्विक मानकों के अनुरूप उन्नत करने का अभियान 140 करोड़ भारतीयों के अपने परिवार के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के प्रधानमंत्री के व्यापक दृष्टिकोण से जुड़ा है। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा और बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ-साथ रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी ज़रूरतें प्रदान करने के लिए कई निर्णायक कदम उठाकर उनकी आकांक्षाओं को पूरा किया है। उनके भावनात्मक, भ्रष्टाचार-मुक्त शासन ने विकास को गति दी है, मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया है और भारत को विश्व स्तर पर उज्ज्वल बनाया है। उल्लेखनीय है कि पांच साल में करीब 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।लोगों ने हाल के विधानसभा चुनावों में अपने मतदान से प्रधानमंत्री के उच्च गुणवत्ता वाले प्रशासन के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। यह भारतीय निर्माताओं के लिए एक मजबूत संदेश है। जब लोग चयन करते हैं - अपने मत से या अपने बटुए से - तो वे सर्वोत्तम गुणवत्ता चुनते हैं। याद रहे कि 'क्वालिटी इज फ्री' के लेखक फिलिप क्रॉस्बी ने एक बार कहा था: "यदि आप गुणवत्ता से बाहर हैं, तो आप व्यवसाय से बाहर हैं।"
- प्रेरणा गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)भटक नहीं जाना राहों में , सच्चाई का भान रहे ।लक्ष्य सदा रखना नजरों में , और कहीं मत ध्यान रहे ।।
कंटकीर्ण मुश्किल राहों में , कदम सँभाले चलना है ।छँट जाएँगे स्याह अँधेरे, दीप ज्योति-सम जलना है ।राह सही चुन पाओगे यदि ,भले-बुरे का ज्ञान रहे ।।लक्ष्य सदा रखना नजरों में ,और कहीं मत ध्यान रहे ।।
एकलव्य-सम करो साधना ,सूक्ष्म दृष्टि अर्जुन जैसी ।अपनी कमियों को अपनाकर ,कर लें दूर झिझक कैसी ।पंख हौसलों के लग जाएँ , ऊँची सदा उड़ान रहे ।।लक्ष्य सदा रखना नजरों में , और कहीं मत ध्यान रहे ।।
खुली आँख से देखो सपने , निज जीवन में रंग भरो ।मन में नई उमंगें भरकर , स्वप्न सभी साकार करो ।आत्म-परीक्षण करते रहना , क्षमता का संज्ञान रहे ।।लक्ष्य सदा रखना नजरों में , और कहीं मत ध्यान रहे ।। -
- कविता
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
अंतस में स्नेह-दीप बालें नए साल में ।
खुशियों भरे गीत गा लें नए साल में ।।
मुश्किलों की गहरी रातों का अंतिम प्रहर ।
स्वर्ण किरण रवि मुख पर डालें नए साल में ।।
धरती के कण-कण में छुपी हुई खुशहाली ।
सच्ची खुशी संतोष पा लें नए साल में ।।
दुख पीड़ा की गठरी को शीश नहीं बाँधें ।
इत्र सुधियों की महका लें नए साल में ।।
नागफनी के बीज न बोना मन-मधुवन में ।
सद्भावों के फूल खिला लें नए साल में ।।
भूलें सारी कड़वी बातें द्वेष-दंभ तज दें ।
हृदय को गंगा जल बना लें नए साल में ।। - श्री पीयूष गोयल(लेखक वाणिज्य एवं उद्योग, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, उपभोक्ता मामले और वस्त्र मंत्री हैं)साल भर पहले लागू होने वाला भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता (इंडऑस ईसीटीए) इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कैसे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की प्रमुख पहलों को मद्देनजर रखते हुए सभी हितग्राहियों के साथ व्यापक परामर्श के बाद सूझ-बूझ के साथ योजना बनाई जाती है तथा आम आदमी समेत छोटे एवं मध्यम उद्योग के लाभ के लिए प्रभावी ढंग से उन्हें क्रियान्वित किया जाता है।इंडऑस ईसीटीए दो क्रिकेट-प्रेमी देशों के बीच पारस्परिक रूप से लाभप्रद समझौता है, जो हमारे अमृत काल में आत्मविश्वासी और आकांक्षी नए भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह दो संसदीय लोकतंत्रों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करता है, जो कानून के शासन का समर्थन करते हैं और समान कानूनी प्रणालियां रखते हैं। दोनों देश जापान और अमेरिका के साथ क्वाड का हिस्सा हैं। दोनों देश जापान के साथ त्रिपक्षीय आपूर्ति श्रृंखला अनुकूलन पहल (एससीआरआई) में शामिल हो गए हैं। दोनों देश 14-सदस्यीय इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के भी सदस्य हैं।मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) एक दशक से अधिक समय में किसी विकसित देश के साथ भारत की पहली व्यापार संधि है, जिसमें अपार क्षमता निहित है। भारत मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया से कच्चा माल और मध्यवर्ती सामान आयात करता है, जबकि इसका निर्यात मुख्य रूप से तैयार उत्पाद हैं। इसलिए, एफटीए भारतीय उद्यमियों की उत्पादन लागत को कम करेगा और उनके सामान को घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा। इससे भारतीय स्टार्ट-अप को आगे बढ़ने के बेहतरीन अवसर भी मिलते हैं।निर्यात में मजबूत वृद्धिआंकड़ों से स्पष्ट होता है कि इंडऑस ईसीटीए ने एक बहुत ही आशाजनक शुरुआत की है, जिसने मोदी सरकार के इस विश्वास को मजबूत किया है कि इससे श्रम-केंद्रित क्षेत्रों में लाखों नौकरियां पैदा करने में मदद मिलेगी, क्योंकि भारतीय उत्पादों को विशाल ऑस्ट्रेलियाई बाजार में शत-प्रतिशत शुल्क-मुक्त पहुंच मिलती है।अप्रैल-नवंबर 2023-24 में ऑस्ट्रेलिया को भारत का माल निर्यात 14 प्रतिशत बढ़ा है, जो चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल में बाकी दुनिया के साथ भारत के व्यापार की तुलना में निर्णायक रूप से बेहतर प्रदर्शन है। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मांग सिकुड़ गई है। ऑस्ट्रेलिया का कुल आयात चार प्रतिशत कम हो गया है, लेकिन भारत से इसकी खरीदारी जोरदार तरीके से बढ़ी है। ऑस्ट्रेलिया से भारत का आयात 19 प्रतिशत कम हो गया है, जिससे व्यापार घाटे में 39 प्रतिशत कमी आ गई है।रोजगार का सृजन करने वाले क्षेत्रों में प्रेफेंशियल लाइन्स के तहत ऑस्ट्रेलिया को निर्यात में जोरदार वृद्धि हुई। ऑस्ट्रेलिया को इंजीनियरिंग सामानों का निर्यात अप्रैल-अक्टूबर 2023-24 में 24 प्रतिशत बढ़ गया, जबकि कुल निर्यात में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि हुई। रेडीमेड कपड़ों में, ऑस्ट्रेलिया को शिपमेंट में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि कुल निर्यात में गिरावट आई। आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते (ईसीटीए) ने ऑस्ट्रेलिया को इलेक्ट्रॉनिक्स सामान और प्लास्टिक के शिपमेंट में इन क्षेत्रों में समग्र निर्यात से बेहतर प्रदर्शन करने में मदद की।इसके अलावा, भारत ऑस्ट्रेलिया को 700 से अधिक नई वस्तुओं का निर्यात कर रहा है। वर्ष 2023-24 के पहले 10 महीनों में ये निर्यात 335 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है, जिसमें 65 मिलियन डॉलर के स्मार्टफोन भी शामिल हैं। अन्य नए उत्पादों में रत्न और आभूषण क्षेत्र की कई वस्तुएं, लाइट ऑयल, गैर-औद्योगिक हीरे और साथ ही रेशम से बने स्कर्ट और कपड़े शामिल हैं।एफडीआई में बड़ा उछालहमारे व्यापार साझीदार मानते हैं कि प्रधानमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सराहनीय ढंग से आगे बढ़ाया है, जिससे इस उथल-पुथल भरी दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था आशा की किरण बन गई है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में, भारत 2027 तक एक विकसित देश बनने की राह पर है। हमारे व्यापारिक साझेदार इस ताकत को पहचानते हैं और कृषि व डेयरी जैसे हमारे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा के बारे में हमारी चिंताओं को समझते हैं।भारत के विकास पथ में विश्वास, निवेशक अनुकूल नीतियों और प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा किए गए परिवर्तनकारी सुधारों के साथ इंडऑस ईसीटीए ने भारत को ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों के लिए और भी अधिक आकर्षक बना दिया है।इस वर्ष जनवरी से सितंबर तक ऑस्ट्रेलिया से कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़कर 307.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो पूरे 2022 में प्राप्त 42.43 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सात गुना है। परामर्श सेवाओं में एफडीआई 2022 में 0.15 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मामूली स्तर से बढ़कर 248 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।सेवा क्षेत्र में काफी वृद्धि दर्ज की गई है। भारत के आईटी और व्यावसायिक सेवाओं के निर्यात ने अपनी मजबूत गति जारी रखी। शिक्षा, ऑडियो-विजुअल सेवाओं और मोबिलिटी के क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया के साथ अन्य द्विपक्षीय समझौतों से ईसीटीए की गति में इजाफा हुआ है। इसके कारण व्यापार गतिशीलता में 50 प्रतिशत से अधिक और भारतीय छात्रों के लिए अध्ययन के बाद के कामकाजी-वीजा में लगभग शत-प्रतिशत की मजबूत वृद्धि देखी गई। यह इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है।ईसीटीए के बाद दोहरे कराधान से मुक्त भारतीय आईटी उद्योग अब समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रहा है। उद्योग जगत के कुछ अनुमानों के अनुसार, पिछले वर्ष इसने करोड़ों डॉलर की बचत की है। ईसीटीए की सफलता से उत्साहित होकर नैसकॉम, ऑस्ट्रेलिया में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए आईटी क्षेत्र में एसएमई को सुविधा प्रदान करने के संबंध में एक तंत्र स्थापित कर रहा है।व्यापार सौदों के लिए नया दृष्टिकोणइंडऑस ईसीटीए और पिछले साल संयुक्त अरब अमीरात के साथ इसी तरह के समझौते पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय वाणिज्य मंडलों, निर्यातकों, उद्योग-विशिष्ट समूहों, अर्थशास्त्रियों, व्यापार विशेषज्ञों, विभिन्न मंत्रालयों और विभाग सहित उद्योग के हर वर्ग के साथ व्यापक परामर्श के बाद हस्ताक्षर किए गए थे। उद्योग जगत के दिग्गजों ने दोनों एफटीए की काफी सराहना की। यह पिछले व्यापार समझौतों की तुलना में एक बड़ा कदम है, जिनमें इतना व्यापक परामर्श शामिल नहीं था।प्रधानमंत्री श्री मोदी इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट हैं कि हर नीति या समझौता राष्ट्रीय हित में होना चाहिए और देश के लिए लाभकारी होना चाहिए। इसी भावना से, हमने मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया और यूएई के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं तथा वही मार्गदर्शक सिद्धांत अन्य देशों के साथ बातचीत को आकार दे रहे हैं।हम निष्पक्ष, पारदर्शी और पारस्परिक रूप से लाभप्रद समझौतों की आकांक्षा रखते हैं, जो हमारे व्यवसायों को प्रतिस्पर्धी बनाते हैं, उनके लिए नए बाजार खोलते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये एफटीए व्यापार और वाणिज्य का विस्तार करते हैं तथा आर्थिक विकास को गति देते हैं। इससे रोजगार और व्यापार के अवसर पैदा होते हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए ने अपने पहले वर्ष में यह कर दिखाया है। file photo
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विशेष लेख-मनोज सिंह, सहायक संचालक
-गुरूपद संभवराम जी के मार्गदर्शन में 2010 में सोगड़ा के सर्वेश्वरी आश्रम में रोपे गए थे चाय के पौधे-धार्मिेक आस्था के साथ सामाजिक और पर्यावरण संरक्षण में भी आश्रम निभा रहा है महत्वपूर्ण भूमिकारायपुर / जशपुर के चाय उत्पादक जिला के रूप में पहचान दिलाने की शुरूआत वर्ष 2010 में जिले के मनोरा ब्लाक में स्थित अघोरेश्वर भगवान राम की तपोभूमि सोगडा से हुई थी। यहां चाय के पौधों का रोपण, अघोरेश्वर गुरूपद संभवराम जी के मार्गदर्शन में किया गया था। उनके मार्गदर्शन में चाय पत्ती की खुशबू जशपुर और भारत की सीमा से निकल कर चीन और जापान जैसे देशों तक पहुंचने लगी है।सोगड़ा में मई 2010 में चाय बगान लगाए जाने के बाद लगातार चाय पत्ती की तुड़ाई की जा रही है। इन पत्तियों से 22 प्रतिशत तक ग्रीन चाय प्राप्त हो रहा है। उत्पादित चाय के परीक्षण के लिए चीन व जापान के अंतराष्ट्रीय चाय विशेषज्ञों व राष्ट्रीय चाय विकास बोर्ड के पास भेजा गया था। विशेषज्ञों ने सोगड़ा की ग्रीन टी को असम व दार्जिलिंग से बेहतर होने की पुष्टि कर दी है। जापान व चीन, जहां विश्व में सबसे अधिक ग्रीन टी की खपत होती है,जशपुर की जलवायु चाय के उत्पादन के बेहद अनुकूल है।वर्तमान में सौगड़ा में असम में पाए जाने वाली चाय की प्रजाति टीवी 25, 26, 27, दार्जिलिंग की सीपी-1, पीके 78, टीवी और एवी का रोपण किया गया है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में रोपे गए इन पौधे की ग्रोथ 4 महीने में ही दो से ढाई फीट की ग्रोथ देखी जा रही है, जबकि असम व दार्जिलिंग में इन पौधों को इतना विकसित होने में ढाई साल लग जाते हैं। यहां उत्पादित चाय पत्ती की प्रोसेसिंग के लिए लगभग 40 लाख की लागत से टी प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित की गई है।हजारीबाग मे बाबा को मिली थी प्रेरणा -जिले में चाय उत्पादन की प्रेरणा गुरूपद संभव बाबा को हजारीबाग में मिली थी। गुरूपद संभव राम यहां अपने एक भक्त के घर आए हुए थे। भक्त के घर में चाय के लहलहाते पौधे को देख कर जशपुर में चाय उत्पादन की प्रेरणा उन्हें मिली थी। गुरूपद संभव राम, अपने साथ चाय के पौधे लेकर सोगड़ा आए और इन्हें विशेषज्ञों की देखरेख में रोपा गया था। प्रयोग सफल होने पर,शुरूआत में आश्रम के प्रांगड़ के 7 एकड़ में चाय बगान विकसित किया गया है। अब इसका रकबा 20 एकड़ से अधिक हो चुका है। वहीं, गुरूपद संभवराम जी की प्रेरणा ग्रहण करते हुए, छत्तीसगढ़ शासन जिले के जशपुर, मनोरा और बगीचा तहसील में 85 एकड़ से अधिक रकबा में चाय बगान विकसीत कर चुकी है। शासन ने चाय पत्ति की प्रोसेसिंग के लिए बालाछापर में प्रोसेसिंग यूनिट का संचालन भी कर रही है।निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन -सोगड़ा आश्रम,धार्मिक आस्था का केन्द्र होने के साथ,समाज सेवा की गतिविधियों का संचालन किया जाता है। यहां प्रतिवर्ष निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जाता है। इसमें देश के विभिन्न राज्यों से विशेषज्ञ चिकित्सक आ कर अपनी सेवाएं जरूरतमंद मरीजों को देते हैं। इन शिविरों में चिकित्सकीय परामर्श के साथ मरीजों को निःशुल्क दवाई का वितरण भी किया जाता है। सोगड़ा आश्रम पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता कार्यक्रम से भी जुड़ा हुआ है। -
लेख
रायपुर / सिखों के दशम गुरु गोविंद सिंह के दो बालकों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के शहादत की स्मृति में वीर बाल दिवस मनाने की परंपरा का आरंभ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया है। कई मायनों में यह पहल ऐतिहासिक है। देश के भारत नाम के पीछे कही जाने वाली बहुत सी अनुश्रुतियों में से एक हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के संबंध में है। जब पहली बार दुष्यंत ने वन में इस बालक को देखा तो वो शेरों के दांत गिन रहा था। भारत के नामकरण के पीछे इस बालक भरत के शौर्य को बताया जाता है।बचपन से ही वीरता के भाव को जगाने का प्रयास हमारी भारतीय संस्कृति में मिलता है और उपनिषदों से इसकी कहानियां मिलनी आरंभ हो जाती है। उपनिषदों में नचिकेता, आरूणि और श्वेतकेतु जैसे जिज्ञासु बालकों का जिक्र है जिनमें सत्य की प्राप्ति के लिए अपना सब कुछ नष्ट करने का साहस था। रामायण और महाभारत में बालकों के पराक्रम की कहानियां भरी हुई हैं। राजर्षि विश्वामित्र जब राजा दशरथ के दरबार में आये और निर्विध्न यज्ञ से निबटने के लिए क्षत्रिय योद्धाओं को भेजने का आग्रह सामने रखा तो उन्होंने केवल श्रीराम और लक्ष्मण को साथ भेजने का आग्रह राजा दशरथ से किया।भारत में नेतृत्व का गुण बचपन से ही देखे जाने की परंपरा रही है। हिंदी में कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। जब चाणक्य ने देश से नंद वंश के समूलनाश का निर्णय लिया तो उन्होंने इसके क्रियान्वयन के लिए एक बालक चंद्रगुप्त को परखा और इसका जिम्मा सौंपा। भारत के सबसे चर्चित योद्धा पृथ्वीराज चौहान भी चौदह वर्ष की आयु में दिल्ली की गद्दी पर बैठे और विदेशी आक्रमणों का प्रतिरोध किया।भारतीय इतिहास के सबसे गौरवमयी क्षणों में वो रहा है जब गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों ने अपने प्रिय उद्देश्यों तथा स्वधर्म की रक्षा के लिए शहादत दी। साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ाई में जितना योगदान युवाओं का है उतना ही बालकों का भी। कोई खुदीराम बोस की शहीदी कैसे भूल सकता है। 14 साल की उम्र में खुदीराम बोस ने अंग्रेजी अत्याचार के विरुद्ध बिगूल फूंका और फांसी चढ़ गये। लाखों बच्चें अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़े और इसका विरोध किया।आज से छह सौ साल पहले फ्रांस पर हुए हमले को रोकने एक बच्ची जान आफ आर्क सामने आई और फ्रांस की जनता को एकजुट किया। फ्रांस और पूरी यूरोपीय जनता इस बालिका को वीरता का आदर्श मानती है। 26 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह के बालकों की शहादत की तिथि पर वीर बाल दिवस मनाने की परंपरा आरंभ कर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत में वीरता के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने की सार्थक पहल की है। वीर बाल दिवस के माध्यम से बच्चों को इस देश की महान विरासत को जानने और समझने का मौका मिलता है तथा साहस की परंपरा को निरंतर बढ़ाने की दिशा में यह सार्थक प्रयास होता है। - भारत रत्न युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस पर विशेषदेवभूमि भारत देवताओं, वीर योद्धाओं और महापुरुषों की भूमि है। यह पवित्र भूमि महान आत्माओं के अवतरण की साक्षी रही है। हर युग में मनीषियों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर समाज और राष्ट्र को नव-चेतना से परिपूर्ण नए युग के पथ पर अग्रसर किया है। इन श्रेष्ठ और महान व्यक्तियों को ही युग-ऋषि की उपाधि से अलंकृत किया जाता है। फिर विरले ही होते हैं वे युग ऋषि जिनका पूरा व्यक्तित्व और कृतित्व उनके न रहने पर भी हर दिलों में अविचल, अमर और ‘अटल’ रहता है।अटल...तीन अक्षरों का यह शब्द अपने में समाए हुए है एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने राष्ट्र निर्माण की नई मान्यताओं को स्थापित किया।अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी सिर्फ यशस्वी राजनेता ही नहीं थे, पत्रकार, संपादक, एक संवेदनशील कवि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, प्रखर वक्ता, उत्कृष्ट सांसद, लोकप्रिय प्रधानमंत्री, एक असाधारण लोकसेवक,....क्या-क्या नहीं थे बहुआयामी विराट व्यक्तित्व के धनी अटल जी! उनकी वाणी में माँ सरस्वती विराजमान थीं। ईश्वरप्रदत्त उनकी वाणी के ओज में हर शख्स बहने लगता था। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को सिर्फ लेखनी की सीमा में बाँधकर रखना अत्यंत दुष्कर है। उनकी संवेदनशील कविताओं और लेखों के माध्यम से ही नहीं, एंड टीवी पर प्रसारित हो रही उनकी अनसुनी बाल गाथा ‘अटल’ से भी जब उन्हें समझने का प्रयास किया जाता है तो हमें एक ऐसे विराट-पुरुष के दर्शन होते हैं जिनकी भाव-भूमि में व्याष्टि से लेकर समाष्टि तक के विचार समाहित हैं। विशेषकर उनकी कविताओं में, यह विधा उन्हें विरासत में मिली थी। जैसा कि अपने काव्य संग्रह ‘मेरी इंक्वायन कविताएँ’ की भूमिका 'कविता और मैं' में वे लिखते हैं, “मेरे पिता पं. कृष्ण बिहारी वाजपेयी, ग्वालियर रियासत के, अपने जमाने के, जाने-माने कवियों में थे। वह ब्रज भाषा और खड़ी बोली दोनों में लिखते थे। उनकी लिखी ईश्वर प्रार्थना विरासत के सभी विद्यालयों में सामूहिक रूप से गायी जाती थी।“ अटल जी कवि सम्मेलनों में पहले श्रोता के रूप में और फिर उदीयमान किशोर कवि के रूप में जाते थे। पहली कविता ताजमहल पर लिखी गई थी जिसमें ताज के सौंदर्य पक्ष का वर्णन न होकर उसका निर्माण कितने शोषण के बाद हुआ, इसका चित्रण था। वह कविता हाई स्कूल की पत्रिका में छपी थी। यह उनकी सत्यनिष्ठा का प्रत्यक्ष उदाहरण है।राजनीति में आने के बाद उनके लिए कविता और गद्य लेखन के लिए समय निकालना अवश्य कठिन कार्य हो गया, किन्तु उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह कालजयी है। अटल जी लिखते हैं, ‘’मैंने जो थोड़ी सी कविताएँ लिखी हैं, वे परिस्थिति सापेक्ष हैं और आसपास की दुनिया को प्रतिबिम्बित करती हैं। अपने कवि के प्रति ईमानदार रहने के लिए मुझे काफी कीमत चुकानी पड़ी है, किन्तु कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता के बीच मेल बिठाने का मैं निरन्तर प्रयास करता रहा हूँ।‘’ अटल जी की कविताओं में हमें राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र के पौरुष और गौरव के वर्णन के साथ ही अध्यात्म की सूक्ष्म विवेचनाओं और उनके संवेदनशील मन में छिपी आशाओं, आकांक्षाओं के दर्शन होते हैं। कहा भी गया है कि कवि का आसन बहुत ऊँचा है। राज-राजेश्वरों की भी पहुँच वहाँ तक नहीं है। पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय के शब्दों में, “कवि ईश्वरीय विभूति सम्पन्न होते हैं। इसीलिए लोग उन्हें पूज्य दृष्टि से देखते हैं और उनकी रचना संसार की स्थाई सम्पत्ति समझी जाती है। इन रचनाओं में सर्वत्र प्रतिभा की प्रभावशालिनी रश्मियों का समावेश रहता है। इस कारण वे मनुष्य की ह्रदय कलिका को खिलाकर उसके अंतर प्रदेश को प्रकाशित करने की शक्ति रखते हैं।“यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि युग-ऋषि अटल जी ईश्वरीय विभूति सम्पन्न थे। वे हमारे बीच नहीं है किन्तु उनकी रचनाएँ आज भी मानव की ह्रदय कलिका खिलाकर अंतर प्रदेश को प्रकाशित करने की शक्ति रखती है। उनकी कविताएँ निराशा के घोर अँधकार को चीरकर आशा के दीप इस तरह जलाती हैं-भरी दुपहरी में अँधियारासूरज परछाईं से हारा।अन्तरतम का नेह निचोड़ें,बुझी हुई बाती सुलगाएँ,आओ फिर से दिया जलाएँ।हम पड़ाव को समझे मंजिललक्ष्य हुआ आँखों से ओझल,वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ।अटल जी की कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं और सदैव प्रासिंगक रहेंगी। वर्तमान में विकसित भारत@2047 की परिकल्पना को पूरा देश साकार करने एकजुट हो रहा है। अटल जी ने एक नए भारत के निर्माण का स्वप्न काफी पहले ही देखा था जो उनकी कविताओं में भी अभिव्यक्त हुआ था। एक बनगी देखिए-स्वप्न देखा था कभी जो आज हर धड़कन में हैएक नया भारत बनाने का इरादा मन में हैएक नया भारत कि जिसमें एक नया विश्वास होजिसकी आँखों में एक चमक हो, एक नया उल्लास होहो जहाँ सम्मान हर एक जाति, हर एक धर्म कासब समर्पित हों जिसे, वह लक्ष्य जिसके पास होएक नया अभिमान अपने देश पर जन-जन में हैएक नया भारत बनाने का इरादा मन में है।अटल जी की कविताओं में दर्शन का सूक्ष्म विवेचन देखने को मिलता है। उनका विचार था कि मनुष्य कितनी भी ऊंचाइयों को स्पर्श कर ले, लेकिन उसे कभी अपना धरातल नहीं छोड़ना चाहिए। ‘पहचान’ नामक कविता की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-आदमी को चाहिए कि वह जूझे,परिस्थितयों से लड़े,एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।किंतु कितना भी ऊँचा उठे,मनुष्यता के स्तर से न गिरे,अपने धरातल को न छोड़े,अन्तर्यामी से मुँह न मोड़े।एक पाँव धरती पर रख कर हीवामन भगवान ने आकाश, पाताल को जीता था।धरती ही धारण करती है,कोई इस पर भार न बने,मिथ्या अभिमान से न तने।आदमी की पहचान,उसके धन या आसन से नहीं होती,उसके मन से होती है।मन की फकीरी परकुबेर की सम्पदा भी रोती है।विलक्षण कवि अटल जी की काव्य-धारा आज भी अपने ओजपूर्ण आगोश में समेटकर बहा ले जाने को आतुर प्रतीत होती है। अटल जी के विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता हमें अन्य किसी में दिखलाई नहीं देती। सन् 1992 में पद्मविभूषण सम्मान से अलंकृत होने पर आयोजित सम्मान समारोह में उन्होंने ‘ऊँचाई’ नामक कविता का पाठ किया था जिसकी अंतिम पंक्तियाँ हैं-हे प्रभुमुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देनगैरों को गले लगा न सकूँइतनी रुखाई कभी मत देना।पूरा जीवन भारत माता की सेवा करने में समर्पित करने वाले अटल जी की ‘मौत से ठन गई’ नामक कविता की यह पंक्ति भी देखिये-प्यार इतना परायों से मुझको मिला,न अपनों से बाकी है कोई गिला।उनके कोमल व संवेदनशील ह्रदय का परिचय कराती ‘हीरोशिमा की पीड़ा’ नामक कविता की पंक्तियाँ हैं-किसी रात कोमेरी नींद अचानक उचट जाती है,आँख खुल जाती है,मैं सोचने लगता हूँ किजिन वैज्ञानिकों ने अणु-अस्त्रों काअविष्कार किया थाःवे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण नरसंहार के समाचार सुनकर,रात को सोये कैसे होंगे?क्या उन् एक क्षण के लिए सही, यहअनुभूति हुई कि उनके हाथों जो कुछ हुआ, अच्छा नहीं हुआ यदि हुई, तो वक्त उन्हें कठघरे में खड़ा नहीं करेगा, किंतु यदि नहीं हुई, तो इतिहास उन्हें कभीमाफ नहीं करेगा।अटल जी ने अनेक किवताएँ लिखीं जिनकी मार्मिक अभिव्यक्ति उनके भाषणों में भी हुआ करती थी। उनकी काव्य-सृष्टि का अद्भुत संसार है जो राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर तक के हर पहलुओं को अपने भीतर समाए हुए है। डॉ. आशीष वशिष्ठ अपनी प्रसिद्ध कृति युग पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका में लिखते हैं, ‘’राजनीतिक जीवन में शुचिता के पक्षधर अटल जी की स्वीकार्यता का आलम यह था कि जब वे लोकसभा का चुनाव हारे तो सदन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कहा था कि अटल के बिना सदन सूना लगता है। उन्हें भारत रत्न तो बाद में मिला लेकिन, वाकई वे भारत रत्न थे।‘’ भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले सामावेशी व्यक्तित्व के धनी युग ऋषि अटल जी हर दिल में अविचल रहेंगे।और अंत में दिल की बात –मुझे इस बात पर सदैव गर्व की अनुभूति होती है कि वर्ष 2004 में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के हाथों पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए चंदुलाल चंद्राकर पत्रकारिता फेलोशिप से सम्मानित किया गया था। एक महान राजनीतिज्ञ और कवि ही नहीं, महान पत्रकार और संपादक अटल जी के हाथों यह सम्मान प्राप्त हुए 19 वर्ष हो चुके हैं, किन्तु वे पल मेरे ह्रदय में आज भी अविचल हैं जब उन्होंने पुरस्कार देते हुए अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा था और शुभकामनाएँ दी थीं। वह मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ पल था जिसकी यादें सदैव अमिट बनी हुई हैं...युग ऋषि अटल जी को शत-शत नमन....वंदे मातरम...
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विशेष लेख
रायपुर। देश के पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारतरत्न स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर प्रतिवर्ष देशभर में सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिन छत्तीसगढ़ के लिए विशिष्ट होगा। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ की नई सरकार नई पहल करते हुए अपनी नीतियों और योजनाओं को धरातल पर उतार रही है। इसी दिन राज्य सरकार यहां के 13 लाख किसानों को धान के दो वर्ष के बकाया बोनस का उपहार देगी। अनेक जनहितैषी योजनाओं के रूप में भी जनता को सौगात मिलेगी।यह सुखद संयोग ही है कि नई राज्य सरकार के गठन की औपचारिक प्रक्रिया के पहले पखवाड़े का कामकाज सुशासन दिवस से शुरू होगा। पूरे छत्तीसगढ़वासियों के लिए यह गर्व और स्वाभिमान की बात है कि स्व. श्री अटल जी ने ही अपने प्रधानमंत्रित्व काल में छत्तीसगढ़ राज्य की संकल्पना को मूर्त रूप दिया था। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना अटल जी की ही देन है। उनके जन्मदिवस पर नई सरकार के कार्यक्रमों का शुभारंभ माननीय अटल जी के स्वप्नों को साकार करने की दिशा में एक सार्थक कदम है।सुशासन से आशय सक्षम, न्यायशील और पारदर्शी शासन व्यवस्था से है। अटल जी का जन्मदिन सेवा, त्याग व समर्पण के लिए याद किया जाता है। वर्ष 2014 से इसे देशभर में मनाया जाता है। सुशासन दिवस के दिन कर्तव्य के शुचितापूर्ण पालन की शपथ भी ली जाती है। अटल जी के पदचिन्हों पर चलकर छत्तीसगढ़ सरकार शासन-प्रशासन में शुचिता, पारदर्शिता, जवाबदेही का विकास करने की दिशा में अग्रसर है।छत्तीसगढ़ अपनी युवावस्था के दौर में है। इस ऊर्जा का उपयोग तीव्र गति से समन्वित विकास में किए जाने की आवश्यकता है। राज्य की नई सरकार ने यहां की जरूरतों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकास के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। किसानों से 3100 रुपए की दर पर धान की खरीदी, युवाओं को रोजगार, महिलाओं की आर्थिक उन्नति व स्वावलंबन के लिए महतारी वंदन योजना आदि ऐसे सोपान हैं जो समाज की तरक्की के पायदान तय करेंगे।अनुसूचित जनजााति बहुल प्रदेश को श्री विष्णुदेव साय के रूप में आदिवासी मुख्यमंत्री मिले हैं। उनके राज्य के मुखिया बनने से प्रदेश की पारंपरिक तथा सांस्कृतिक विरासत को नवीन आयाम मिलने की आशा की है। अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण की प्राथमिकता की भावना सरकार के कामकाज में प्रतिध्वनित हो रही है। सुशासन की अवधारणा यही है कि सभी वर्गों खासकर वंचित तबकों को न्याय तथा सम्मान दिलाने की पहल की जाए।सुशासन की स्थापना में सूचना प्रौद्योगिकी की अहम भूमिका रही है। प्रशासनिक व्यवस्था में इंटरनेट क्रांति से शुचिता और पारदर्शिता में वृद्धि, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सुदृढ़ीकरण, मजदूरों और कृषकों के बैंक खाते में सीधे राशि का भुगतान, राजस्व और अन्य विभागों के आनलाइन पोर्टल, जनोपयोगी सुविधाओं की आनलाइन व्यवस्था से न सिर्फ व्यवस्था में पारदर्शिता आई है बल्कि प्रशासन से जनता की दूरी भी घटी है।इस वर्ष सुशासन दिवस छत्तीसगढ़ की जनता को अनेक सौगातें देकर जाएगा। यह दिवस सबका साथ सबका विकास का मंत्र भी याद दिलाएगा। नई सरकार के कार्यकाल का यह दिवस राज्य में खुशहाली और विकास की ठोस बुनियाद रखेगा। -
कइसे तोला बचावव बेटी
कविता -लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
चारों कोती रावण - दुशासन , खींचत लुगरा तोर ।कइसे तोला बचावँव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
आज सुरक्षित नइहे बेटी , अपन घर अंगना म ।गिधवा नजर डारे बइठे , लाज बचावव किशना ।अत्याचार अमावस कस , मुंधियार हे घनघोर ।कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
भेस बदल के दानव घुमय , भेस बदलय शिकारी ।फंदा डारे बइठे हे सब , दुर्जन के नइहे चिन्हारी ।गली - गली म बइठे डाकू , घर- दुआर मा चोर ।कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
बेटी ल कोख म मारय , नारी ला सतावय ।इज्जत लूटत हे बेटी के , दुष्ट रूप देखावय ।बेटी पढावव आघु बढावव , ज्ञान के करव अंजोर ।कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।। -
- कविता
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ,
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।
सुख के पंछी उतरें ऑंगन ,
नित-नित कलरव-गान सुनाएँ ।।
मोह, लोभ, मद, काम-क्रोध को ,
विलुप्त कर दें भाव-भूमि से ।
क्षमा ,दया को रोपित कर दें ,
पौध प्यार की जन-मन सरसे ।।
नेह,प्रेम का नीर सींच कर ,
चलो शांति के बीज उगाएँ ।।
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ।
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।।
कलित ललित शीतल सुखदायी
मृदु मंद पवन मंथर-मंथर ।
शांत सलिल उर्मिल प्रवाह में ,
जीवन-नैया चलती सत्वर ।
आ बिखेरें प्यार की खुशबू ,
जीवन के सुख-साज सजाएँ ।।
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ।
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।।
सृजन करें नव गीतों का हम ,
जीवन में सुख-संगीत भरें ।
पावन हो जाए यह धरती ,
शुभ पुण्य कर्म हम सभी करें ।
महित मुदित मोहक हो दुनिया,
विषमताओं को हम मिटाएँ ।।
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ।
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।। - शीत के दोहे-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)----------मार्गशीर्ष सेहत भरा, मिले खूब फल शाक।योगासन व्यायाम कर, आलस रखना ताक ।।
आतप ने झुलसा दिया, ठिठुराता हेमंत ।बाट जोहती प्रेयसी, कब आओगे कंत ।।
पावन प्रीति पुनीत का,कर लोगे अनुभास ।अदरक वाली चाय ज्यों, महक बुलाती पास ।।
घूँट चाय की भर रहे, पुष्पित पाटल ओष्ठ।नैन-चषक ये भर रहे, प्रणयी हृदय-प्रकोष्ठ।।
विरही खग मन का उड़े, करने प्रिये मिलाप।प्रीति- रजाई से मिले, शिथिल देह को ताप ।।
शीत प्रभाती भोर में, डाले धुंध पड़ाव ।ठंड-ठिठुरते गात को, राहत सिर्फ अलाव।।
बदमिजाज मौसम हुआ,पल-पल बदले रूप।शीत-निठुर के सामने, बेबस होती धूप ।।
माह दिसंबर दे रहा, ठंडक का अनुभास ।ऊनी स्वेटर शॉल ने, जगह बनाई खास ।। -
तुम शिव हो जाना
------------------------कविता--लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)लोग तुम्हें बुरा बोलेंगे ,हँसेंगे तुम्हारे पहनावे पर ,तुम्हारी जीवन-शैली पर,जीर्ण-शीर्ण आवास पर ,इन सबसे विचलित मत होनापार्थिव हो जाना,तुम शिव हो जाना ।
आगे जाने नहीं देंगे विरोधी,बढ़ गए तो गिराने कीभरसक कोशिश होगी ,अपमानों के शूल चुभोकर,छीन लेंगे है तुम्हें जो प्रिय,पी जाना अपमानों का गरल,या क्रोध में तांडव कर जाना ,फिर शांतचित्त राजीव हो जाना ।तुम शिव हो जाना ।।
उच्च विचार, शक्ति-संपन्न ,धीर-वीर, सहनशील बन।छल-कपट से दूर सरल हो,भोलेनाथ जीत सके जग का मन ।रख हृदय में राम ही बस ,आशुतोष बन मुस्कुराना ,चिरंजीव हो जाना ।तुम शिव हो जाना ।। - पांचवा मौसम क्लाइमेट चेंज के वार का !साल 1987 में रीलिज हुई फिल्म सिंदूर का यह हिट गाना आज भी लोगों की जुबां पर रहता है, पतझड़ सावन बसंत बहार...एक बरस के मौसम चार, मौसम चार...पाँचवा मौसम प्यार का...लता मंगेशकर के गाये इस गीत में कोयल के कूकू करने और बुलबुल के गाने, फूलों के खिलने, बादल के बरसने की पंक्तियां संवेदनाओं को रोमांचित कर देती हैं। मौसम तो चार होते हैं, लेकिन आज पांचवा मौसम क्लाइमेट चेंज के वार का है जिससे हर आदमी जूझ रहा है। बुलबुल के गीत और कोयल की कूकू सुनने को कान तरसते हैं, एक बरस के मौसम चार की पूरी चाल बदल गई है।हम सभी जानते हैं परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है, लेकिन जो परिवर्तन पूरी पृथ्वी और मानव-समाज को संकट में ला दे, वह शाश्वत नियम न होकर मनुष्य की अप्राकृतिक क्रिया की अप्राकृतिक प्रतिक्रया है। सरल शब्दों में कहें तो ठंड के मौसम में बरसात और गर्मी झेलने की विवशता, घर के भीतर गर्मी तो बाहर ठंड, बेमौसम बारिश, बेमौसम गर्मी फलस्वरूप प्राकृतिक विपदाओं के साथ बीमारियों का तोहफा। कहने का आशय है क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) की इस जंग से हर आदमी जूझ रहा है। लगभग छह साल पहले वर्ष 2017 में महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने बीजिंग में टेनसेंट वी शिखर सम्मेलन में ऊर्जा की बढ़ती खपत और तेजी से बढ़ते धरती के तापमान को लेकर चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि यही हालात रहे तो आने वाले 600 वर्षों में पृथ्वी आग का गोला बन जाएगी और मानव को दूसरे ग्रह पर बस्ती बसानी होगी। धरती आग का गोला बनती जा रही है। हर साल बढ़ती गर्मी का रिकार्ड सिर्फ भारत में ही नहीं टूट रहा है, पूरे विश्व का तापमान बढ़ता जा रहा है।कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में बताया है कि बढ़ते तापमान की वजह से इंसान का दिमाग सिकुड़ रहा है और इंसान की लंबाई भी घट रही है। यानी तापमान का सीधा संबंध इंसान के आकार से भी है। जलवायु परिवर्तन से विश्व के अधिकांश देश परेशान हैं।हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान बढ़ने की संभावना व्यक्त की है। वर्ष 2023 से 2027 तक सबसे गर्म पांच साल रहेंगे। यह चिंता सिर्फ आज की नहीं है। यदि 26 साल पहले सन 1997 में जापान के क्योटों में विश्वभर के पर्यावरण वैज्ञानिकों की बैठक की तफ लौटें तो उस समय यह निर्णय लिया गया था कि सभी औद्योगिकृत देश अपने यहाँ ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन की मात्रा में कटौती करेंगे। इस पर पूरी ईमानदारी से अमल किया गया होता तो आज परिणाम कुछ और होते।वैश्विक तापमान में प्रतिदशक 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि नहीं होती। 2030 तक धरती के तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाने का अनुमान है। वजह साफ है मशीनी युग में जंगलों की कटाई, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जैव ईंधनों का अंधाधुंध उपयोग और वायुमंडल में निरंतर बढ़ती कार्बन-डायआक्साईड की मात्रा। कार्बन डाई ऑक्साइड को मानव जनित ग्रीन हाउस गैस माना जाता है जो पिछले कुछ दशकों से धरती के तापमान को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार मानी जा रही है। परिणाम भी सामने है, पृथ्वी का गर्म होता वायुमंडल, ध्रुवीय क्षेत्र के पिघलते हिम, समुद्र का बढ़ता जल स्तर, कहीं सूखा, कही बाढ़, वन्य जीवन का संटक में अस्तित्व, अवसाद, बेचैनी, निराशा के बीच मनुष्य की कम होती जीवन-प्रत्याशा और बीमारियाँ।पूरी दुनिया के लिए इस समय जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी समस्या है। देशभर के लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से पिछले माह पृथ्वी दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली में ग्लोबल क्लाइमेट क्लॉक लॉन्च की गई। यह घड़ी इस बात की जानकारी देगी कि सिर्फ 6 साल 90 दिन और 22 घंटे में कैसे धरती का तापमान 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा। 2030 में तय समय के बाद यह घड़ी बंद हो जायेगी। संकेत यह है कि छह साल बाद जलवायु परिवर्तन का हम सबके जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इसकी उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य जन्म के साथ ही अनेक ऋण भी लेकर आता है। देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण आदि की बात कही जाती है। भावी सुख-सुविधाओं और संतुष्टि के लिए मनुष्य अनेक प्रकार के ऋण चुकाता भी है। लेकिन हम सभी पर सबसे बड़ा ऋण प्रकृति का भी होता है। बिना प्रकृति के मानव जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। हम जन्म लेते ही पहला दर्शन प्रकृति का करते हैं और उसकी गोद में सांस लेना शुरू करते हैं। इंडिया वाटर पोल में डॉ. ज्योती व्यास विश्व तापमान में वृद्धि के संबंध में अपने आलेख में समाधान के रास्ते बताते हुए लिखती हैं, ‘’जीवाश्म ईधनों के दहन में कमी लाने के साथ ही हमें वनों की ओर लौटना चाहिए, वन कटाई करके जो नुकसान हमने किया है, उसकी भरपाई भी हम करें।‘’ वे आगे और समाधान बताती हैं, ‘’जिस प्रकार आधुनिकता के नाम पर हम धरती का उपयोग कर रहे हैं, उसके घटकों का बेजा उपयोग कर रहे हैं, उस पर कानूनन रोक लगाई जाए। परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दे।‘’ वस्तुतः यह सारे कदम उठाना न सिर्फ समय की मांग है अपितु प्रकृति के प्रति ऋण उतारने का श्रेष्ठ कदम भी है। यदि इस तरह के कदम उठाये जाते हैं तो आने वाले छह सालों में मानव जीवन के सामने आऩे वाली चुनौतियों से निपटा जा सकता है। यही युग की मांग है जिससे धरती को आग का गोला बनाने से रोका जा सके।हमें इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माता माना गया है और हम सब प्रकृति की संतान हैं। महाकवि कालीदास कुमारसंभव महाकाव्य और रघुवंश महाकाव्य में प्रकृति के सौंदर्य के साथ उसके संरक्षण का भी संदेश देते हैं।जर्नल आफ एडवांस एंड स्कॉलरली इन एलाइड एजुकेशन में विनोद कुमार अपने शोध आलेख कालिदास के महाकाव्यों में प्रकृति संरक्षण का संदेश में अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं। वे लिखते हैं कि कालिदास पौधों के रोपण एवं वृक्षों के संरक्षण के प्रति इतने अधिक आग्रही है कि वे कहते हैं ‘’यदि कोई विष का वृक्ष स्वयं उग आए और बड़ा हो जाये तो उसे भी नहीं काटना चाहिए।‘विषवृक्षोपि संवध्र्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम्’, क्योंकि वह प्राणियों को हानि की अपेक्षा लाभ ही अधिक पहुंचाने वाला होगा। माँ पार्वती के द्वारा वृक्ष से स्वयं टूट कर गिरे हुए पत्तों को ही आहार के रूप में ग्रहण करने का वर्णन तो कालिदास के प्रकृति संरक्षण की पराकाष्ठा है।‘’प्राचीन ऋषिवर और महानवेत्ता प्रकृति के दोहन के दुष्परिणामों से अवगत थे। कहते हैं कि सम्राट अशोक ने लाखों वृक्ष लगवाए थे और काटने पर दण्ड का भी प्रावधान किया था। वृक्ष काटने पर दण्ड के प्रावधान तो आज भी हैं, लेकिन फिर भी जंगल के जंगल कट रहे हैं। भावी पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर सख्त कानून की जरूरत है। धऱती को आग का गोला बनने की स्टीफन हॉकिंग की चेतावनी पर हँसने की बजाए गंभीरता से लिया जाना चाहिए।भारत ने एक नवंबर 2022 को ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के सामने ’पंचामृत रणनीति’ का प्रस्ताव रखा। पाँच रणनीति में पहली-वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 मेगावाट तक करना, दूसरी-अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतें, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करना, तीसरी-2030 तक ही कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना, चौथी-कार्बन तीव्रता में 30 प्रतिशत तक की कमी करना और पांचवी-2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना शामिल है। नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की यह रणनीति असल में ’क्लाइमेट चेंज’ की जंग है जिसमें शामिल होने की जरूरत आज पूरे विश्व को है। इसके लिए पहला कदम होगा हम सभी को अपनी जीवन शैली में बदलाव करना। इस ’पंचामृत’ को हासिल करना चुनौती जरूर है,. लेकिन इससे पूरी दुनिया को पाँच बड़े लाभ भी होंगे, पूरे विश्व का बढ़ता तापमान थमने लगेगा, पृथ्वी की जीवसृष्टि का तनाव कम होगा, ध्रुवों और हिमालय पर्वत के तेजी से पिघल रहे हिम की समस्या के समाधान के रास्ते निकलेंगे, प्रकृति के साथ खिलवाड़ में कमी आएगी और मनुष्य में श्वसन और हृदय सहित अन्य रोगों की हो रही बढ़ोत्तरी में कमी आएगी। आवश्यकता है प्रकृति से प्रेम को पांचवां मौसम बनाने की और मानवीय गतिविधयों के पैटर्न में बदलाव की।
- --लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद्देवभूमि भारत का छब्बीसवां राज्य छत्तीसगढ़ जहाँ इंद्रधनुषी सांस्कृतिक विविधताएँ और बहुलताएँ तो हैं, लेकिन आंतरिक एकता भी है; जो वास्तव में छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति और उसकी पहचान भी है। इस आंतरिक एकता को समझने के लिए पैनी दृष्टि चाहिए और सूक्ष्म विश्लेषण। यहाँ की आंतरिक एकता हर पाँच साल के विधानसभा चुनाव में ‘साइलेंट किलर’ अथवा दूसरे शब्दों में कहें, ‘मूक बहुमत’ के रूप में जब अभिव्यक्त होती है तो आश्चचयर्जनक परिणाम और परिवर्तन दृष्टिगत होने लगते हैं। तब सारे एक्जिट पोल और पूर्वानुमान की सत्यता पर संदेह के बादल मंडराने तो लगते ही हैं, परिणाम आने पर वे अंततः असत्य प्रमाणित होकर छँटते चले जाते हैं। विधानसभा चुनाव-2023 के परिणाम इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जिसके अप्रत्याशित परिणामों की चर्चा पूरे देश की मीडिया और राजनीति में थी।छत्तीसगढ़ में जनता का मूक बहुमत ही निर्णयकारी होता है, जो तमाम सर्वेक्षण और दावों को पटलकर रख देता है। वास्तव में छत्तीसगढ़ की जनता की नब्ज को समझ पाना इतना आसान भी नहीं है, जितना समझा जाता है। कब जन-समर्थन सारे कयासों और अनुमानों को सिरे से दरकिनार कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता और परिणाम उम्मीदों के विपरीत ही आते हैं। फिर हमें याद आते हैं राष्ट्रकवि दिनकर, जिनकी लोकतंत्र का अलख जगाने वाली रचनाएँ आज भी प्रासंगिक प्रतीत होती हैं। एक बानगी देखिये-हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँवह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।लोकतांत्रिक गणराज्य में जनता की ताकत का अहसास कराती ये पंक्तियाँ भी प्रासंगिक हैं-अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का हैतैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।3 दिसंबर, 2023, रविवार को छत्तीसगढ़ के राजनीतिक सरोवर में उदित होते सूर्य-रश्मियों के स्वर्णिम प्रकाश में कमल की पंखुड़ियाँ खिलकर जनता के फैसले का विजयी-उद्घोष करेंगी, यह कोई नहीं जानता था। इस सत्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अनेक महानुभवों को सहसा इन परिणामों के पूर्वानुमान पर शत-प्रतिशत भरोसा नहीं था। हाँ, कयास और दावे जरूर थे। यह कोई नहीं जानता था कि जनता ने अपने मन में मतदान के दिन ही कमल की पंखुड़ियाँ खिलाकर रखी हैं और संकेत दे रखा है परिणाम के दिनों तक इंतजार का। इन अप्रत्याशित परिणामों से जाहिर है कि आम जनता, विशेषकर मातृ-शक्ति, युवा वर्ग और आम गरीब-मानस भी देश के प्रधानमंत्री के सूत्र वाक्य- ‘मोदी की गारंटी’ का तहे-दिल से स्वागत कर रहा है। इस सूत्र वाक्य की सार्थकता लोकसभा चुनाव-2024 के पूर्वानुमानों की सशक्त आधारभूमि तैयार कर रही है। भाजपा ने यह चुनाव साइलेंट किलर जनता के रुख को समझते हुए मोदी की गारंटी पर लड़ा और अंतिम समय में विनम्र-भाव के हथियार के साथ एकजुट होकर कड़ा परिश्रम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रसिद्ध कविता ‘कदम मिलाकर चलना होगा' की पंक्तियाँ स्मरण हो उठती हैं-उजियारे में, अंधकार में,कल कछार में, बीच धार में,घोर घृणा में, पूत प्यार में,क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,जीवन के शत-शत आकर्षक,अरमानों को ढलना होगा,कदम मिलाकर चलना होगा।इन पंक्तियों का केंद्रीय भाव आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। फिर वह जीवन का सामाजिक, आर्थिक या फिर राजनीतिक क्षेत्र ही क्यों न हो। कोई भी संकट क्यों न आ जाए, हिम्मत न हाकर उसका सामना प्यार से करना चाहिए। आगे वे लिखते हैं -सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,प्रगति चिरंतन कैसा इति अथ,सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,असफल, सफल समान मनोरथ,सब कुछ देकर कुछ न मांगतेपावस बनकर ढलना होगाकदम मिलाकर चलना होगा।राज्य की जनता ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार को पाँच साल के विश्राम के बाद पुनः अवसर प्रदान किया है तो उन अऩेक नई उम्मीदों के साथ, जिन्हे पूर्ण करने के वादे घोषणा पत्र में किये गये है। महिला, युवा, गरीब जनता और हर वर्ग को इंतजार है....सभी विजयी प्रत्याशियों को छत्तीसगढ़ आज डॉट-कॉम की हार्दिक शुभकामनाएँ...जय 'जन' जोहार...
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-लघुकथा
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
उदय उस बहुमंजिला इमारत के चौथे माले पर रहता था , भागदौड़ भरी जिंदगी में कसरत , व्यायाम के लिए समय कहाँ. बस वह अपने फ्लैट लिफ्ट से न जाकर सीढ़ियों से जाया करता । चढ़ना - उतरना ही उसका व्यायाम था । सुबह ऑफिस जाते वक्त और शाम को लौटते वक्त तीसरे माले के एक फ्लैट में अक्सर उसे एक बुजुर्ग दिखतीं जो उदय को देखकर मुस्कुरा उठतीं और उदय उन्हें नमस्ते कर लेता , बस इतना ही रिश्ता था उनके बीच - मुस्कान और सलाम का । एक दिन शाम को उदय को वो आंटी जी नहीं दिखी तो उसे कुछ कमी सी महसूस हुई और हाथ - मुँह धोकर वह उनके फ्लैट की घण्टी बजा रहा था । अंकल जी ने दरवाजा खोला - ऑन्टी जी दिखाई नहीं दी आज , उनकी तबीयत तो ठीक है ना " उदय ने कुछ झिझकते हुए पूछा ।" नहीं बेटे रमा की तबीयत ठीक नहीं है , आओ अंदर बैठो । " अंकल ने उसे बड़े स्नेह से भीतर बुलाया । उदय के बराबर उनका बेटा विदेश में रहता था । उनकी पत्नी रमा उदय को देखकर इसलिए खुश हो जाती । उदय का यूँ घर आकर उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछना दोनों को भावाभिभूत कर गया था । उदय ने उनसे कहा -"अंकल जी कुछ सामान लाना हो या कोई भी काम हो , आप मुझे बोल दिया कीजिए । आपको बार - बार नीचे उतरने की जरूरत नहीं । " बुजुर्ग दम्पत्ति की आँखें खुशी से भर आईं थीं । रमा जी तो अपनी बीमारी भूलकर उसे खिलाने - पिलाने में व्यस्त हो गई थी । पराये शहर में उदय को परिवार मिल गया था और उन बुजुर्गों को जीने का सहारा । एक प्यारा सा रिश्ता बन गया था उनके बीच जिसने उनके जीवन के खालीपन को स्नेह से भर दिया था ।