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- अभिवादन में ज्यादा आत्मीय है राम-राम कहनाहमारी भारतीय संस्कृति में सदियों से अभिवादन और प्रतियुत्तर का यही तरीका विद्यमान रहा है-राम-राम दाऊ....राम-राम....राम-राम ताऊ...राम-राम भाई...
जय श्रीराम...जय-जय श्रीराम...कितना सहज और अलौकिक आनंद है इस अभिवादन में जो हमारी सांस्कृतिक विरासत का महान प्रतीक रहा है। क्या इस आत्मीय आनंद की अनुभूति ‘गुड मॉर्निंग’, ‘गुड इवनिंग’ या ‘हाय’ जैसे शब्दों के साथ अभिवादन में मिल सकती है? स्वभाविक तौर पर जवाब होगा-कदापि नहीं। राम सदियों से हमारी लोक-संस्कृति में रचे-बसे हैं। राम हमारी एकता, अखण्डता, आस्था और अस्मिता के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक हैं। जय-जय श्रीराम के अलावा अभिवादन के समय राम-राम कहा जाता रहा है और प्रत्युत्तर में भी दो बार राम-राम या कोटि-कोटि राम-राम कहा जाता है। दो व्यक्ति जब मिलने के बाद इस तरह अभिवादन करते हैं तो उनके बीच अधिक स्थायी और आत्मीय संबंध बनते हैं।राम शब्द सनातन धर्म की पहचान है और जब हम दो बार राम-राम कहते हैं तो 108 बार राम नाम का जाप हो जाता है। यह अलौकिक रहस्य है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि अंकशास्त्र के दृष्टिकोण से देखें तो हिंदी वर्णमाला में र = 27वां अक्षर है और 27 का योग 2 + 7 = 9 होता है। अंग्रेजी वर्णमाला में राम (RAM) शब्द का पहला अक्षर R 18वें स्थान पर रहता है और उसका योग भी 1 + 8 = 9 होता है। र में 'आ' की मात्रा दूसरा अक्षर और 'म' 25वां अक्षर, सब मिलाकर जो योग बनता है वो है 27 + 2 + 25 = 54, वस्तुतः राम का योग 54 हुआ और दो बार राम राम कहने से 108 हो जाता है जो पूर्ण ब्रह्म का प्रतीक है। कितना वैज्ञानिक और सुखद है राम-राम का अभिवादन और प्रतित्युत्तर में राम–राम कहना।महान संत कबीर दास जी का बीज मंत्र है राम। कबीर का प्रसिद्ध दोहा है- सहस्र इक्कीस छह सै धागा, निहचल नाकै पोवै। बड़ा गहरा अर्थ और भाव छिपा है इस पंक्ति में जिसका अर्थ है कि मनुष्य 21600 धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है और प्रत्येक श्वास- प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता रहता है। आशय यह है कि हम पूरे दिन के 24 घंटे में 21 हजार 600 बार सांस लेते हैं और हर सांस में राम (अजपा) हैं। अब 21600 का योग भी 9 हो होता है।जाहिर है कि सदियों से यह कहा जाता रहा है कि राम का नाम प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है तो इसका भी वैज्ञानिक आधार है। राम विराट ब्रह्म है, राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। महादेव के हृदय में राम सदैव विराजित रहते हैं। वास्तव में राम भारतीय लोक जीवन के कण-कण में समाहित हैं और जो कण-कण में है वह पूरे ब्रह्माण्ड में भी हैं। कहा भी गया है- रमंति इति रामः अर्थात जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है। राम रक्षा स्त्रोत का मंत्र है-राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने।।भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं कि हे पार्वती मैं भी इन्हीं मनोरम राम में रमता हूँ। यह राम नाम विष्णु के सहस्रनाम के तुल्य है। इसे राम तारक मंत्र भी कहा गया है।यदि भारतीय मानस के दैनिक जीवन की बात करें तो यहां के लोक-जीवन के कितने ही क्रियाकलापों को भगवान राम की मर्जी पर छोड़कर निश्चिंतता व्यक्त की जाती रही है। जैसी राम की मर्जी... इतना कहने के बाद संकट अथवा दुख के समय का सारा तनाव ही खत्म हो जाता है। तुलसीदासकृत रामचरित मानस के बालकाण्ड के प्रसिद्ध छंद की पंक्ति भी है- होइहि सोइ जो राम रचि राखा। लोक जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक को भगवान राम की मर्जी पर छोड़ने की परंपरा सदियों प्राचीन है।22 जनवरी, 2024- राम जन्मभूमि अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का यह दिन देश की सांस्कृतिक-राष्ट्रीय एकता ही नही, वैश्विक-एकता की स्थापना का भी दिन है। पूरे विश्व में पौने दो सौ से भी ज्यादा देश भगवान राम को मानते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के लिए अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका सहित विश्व के तमाम देशों से उपहार आना, ब्रिटेन के संसद में श्रीराम का जयकारा, अमेरिका की सड़कों पर भगवान राम के बिलबोर्ड....अऩेक प्रमाण हैं भगवान राम के रूप में वैश्विक-एकता के प्रतीक के।विविधताओं से परिपूर्ण भारतीय इतिहास में 500 साल के लम्बे संघर्ष और आहूतियों-बलिदानों के बीच कितनी ही पीढ़ियां बीत गईं, राम आज भी सबके रोम-रोम में बसे हैं। भविष्य में भी सदियों तक राम मंदिर राष्ट्रीय एकता और सनातन आस्था का प्रतीक बनकर भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहेगा। राजनीतिक चश्मे को उतारकर देखें तो हर भारतीय के लिए यह गौरव का अद्भुत प्रतीक है। भारत सहित विश्व के अऩेक देशों में प्रज्जवलित रामज्योति की जगमगाहट ने पारंपरिक दीपोत्सव से भी ब़ड़े दीपोत्सव के आगाज की नई लोक संस्कृति की स्थापना कर दी है। अब रामज्योति के रूप में भी दीपोत्सव मनाया जाएगा जो हमारी सांस्कृतिक एकता का प्रतीक होगा। प्रभु श्री राम सदैव हम सभी के जीवन को प्रगति के पथ पर अग्रसर करें और वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय बीज मंत्र को साकार कर पूरे विश्व को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करें, यही कामना है।जय श्री राम...रामलला के प्राण प्रतिष्ठा और रामज्योति महोत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया , वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् -
गीत -डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
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मंदिर में आ गए राम तुम , अंतस में कब आओगे ।जीवन में तम-तोम बढ़ रहा , उजियारा कब लाओगे ।
शुचिता को ही निगल रहे हैं, जग के व्यभिचारी दानव ।कलुषित भावों में पगे हुए ,कलयुग के दंभी मानव ।अंधकारमय पथ में जग के , जीवन-ज्योति जलाओगे ।।मंदिर में….
मन का दर्पण टूट रहा है , धोखे के पाषाणों से ।आहत बहुत हुआ अंतर्मन , तीक्ष्ण प्रवंचित बाणों से ।पीड़ित वंचित सुग्रीव कई , कब मित्रता निभाओगे ।।मंदिर में…..
सब लेने को ही आतुर हैं , त्याग नहीं करता कोई ।मार रहे हैं निज परिजन को ,जनहित कब मरता कोई ।मर्यादित आचरण शिष्टता , कब सभ्यता सिखाओगे ।।मंदिर में…..
- आलेख-कमलज्योति-राममय हुए माहौल में सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा रामनामी मेला-अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा पर इन्हें भी हैं खुशी-रामनामी समाज चाहते हैं कि आपस में भाईचारा बढ़े, समाज में भेदभाव दूर होरायपुर, / सुबह का सूरज आज बादलो में कही गुम था...रात बारिश हुई थी और भीगी-भीगी मौसम के बीच हजारों लोगों का हुजूम जिस ओर आकर्षित हो रही थीं... वह शायद उनकी श्रद्धा और विश्वास ही था...जो इस धरती के ऐसे राम को देखने आए जा रहे थे... जो किसी मंदिर में नहीं... अपितु इनके जीवन में सदैव समाहित है। बेशक यह रामनामी है और न सिर्फ इनका चोला..शरीर का हर हिस्सा राम...राम...राम...के अक्षरों से नस-नस में विद्यमान है।शरीर पर श्वेत परिधानों के साथ मोह, माया, लोभ, काम, क्रोध और व्यसनों को त्याग कर सबको भाई-चारे के साथ बिना किसी भेदभाव के शांतिपूर्ण तरीके से जीवनयापन का संदेश भी देते हैं। छत्तीसगढ़ के नवगठित जिले सक्ती के जैजैपुर विकासखंड में रामनामी समुदाय का तीन दिवसीय बड़े भजन का मेला नई पीढ़ी और पहली बार देखने वालों के लिए जहाँ कौतूहल का केंद्र बना है, वहीं इसके विषय में पहले से जानने और समझने वालों के लिए यह सम्मान और गौरव से कम नहीं...। अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा से राममय हुए माहौल के बीच रामनामी समुदाय का बड़े भजन का यह मेला भी सद्भावना और मानवता का संदेश दे रहा है।अपने राम के प्रति अगाध,अथाह प्रेम और अटूट आस्था की यह गाथा हकीकत में कही विराजमान है तो वह छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय ही हैं। भगवान राम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में रामनामी समुदाय का पादुर्भाव कई उपेक्षाओं, तिरस्कारो और संघर्षों की दास्तान है, जो 160 वर्ष से अधिक समय पहले अपनी आस्था पर पहुँची चोट के साथ इस रूप में जन्मी कि आने वाले काल में इन्हें अपनाने और मानने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। वह दौर भी आया जब रामनामी समुदाय अपनी तपस्या और सादगी को अपनी उपासना के बलबूते साबित करने में सफल हुए।इनका मानना है कि उनका राम तो हर जगह मौजूद है, वे अपने राम को कही ढूंढते भी नहीं.. न ही अपने शरीर पर राम... राम लिखवाने से परहेज करते हैं। रामनामी समाज के गुलाराम रामनामी बताते हैं कि उनका यह आयोजन सन 1910 से होता आ रहा है। जैजैपुर का आयोजन 115वां वर्ष है। साल में एक बार यह आयोजन बड़े भजन मेला के रूप में निरंतर किया जाता है। उन्होंने बताया कि रामनामी को कोई भी समाज और धर्म के लोग अपना सकते हैं,लेकिन उन्हें सदाचारी, शाकाहारी और नशे आदि से दूर रहते हुए मानवता के प्रति प्रेम को अपनाना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि रामनामी अपने शरीर पर राम...राम लिखवाने के साथ ही कभी सिर पर केश नहीं रखते, महिला हाथों में चूड़ी या गले में माला भी नहीं पहनती। शरीर पर राम ही राम धारण होता है और यह प्राण त्यागने के पश्चात भी मिट्टी में दफन होते तक आत्मसात रहता है।82 साल के रामनामी तिहारु राम ने बताया कि उनकी पत्नी फिरतीन बाई और उन्होंने चार दशक पहले ही राम को अपने जीवन और शरीर में आत्मसात किया है। एक साल पहले वे अयोध्या भी गए थे, इस बार रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रण आया था। यहाँ से रामनामी गए हैं और खुशी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि सभी की कामना है कि जाति-पाति, ऊंच-नीच खत्म हो तथा समाज में भाईचारे के साथ सद्भावना का विकास हो। रामनामी समाज में महिला और पुरूष में कोई भेदभाव नहीं होने की बात कहते हुए तिहारु राम बताते हैं कि वे लोग मूर्तिपूजा नहीं करते, रामायण का पाठ करते हैं और अपने राम का जाप करते हुए मानवता का संदेश देते हैं। लगभग 80 साल के रामभगत, 75 साल की सेतबाई ने भी शरीर पर राम..राम गुदवाया है। वे कहते हैं कि यहीं राम उनकी आस्था है और प्रेरणा भी...। यह अमिट लिखावट उन्हें कभी भी किसी के प्रति दुराचार या गलत आचरण की ओर नहीं ले जाती।कलश यात्रा के साथ श्वेत ध्वज चढ़ाकर मेले का किया गया शुभारंभऐतिहासिक और गौरवान्वित करने वाला रामनामी मेला,बड़े भजन का मेला किसी पहचान का मोहताज नहीं है। आज 115वां मेला का शुभारंभ सक्ती जिले के जैजैपुर ब्लॉक मुख्यालय में हुआ। इस दौरान आसपास सहित दूरदराज गांवों से बड़ी संख्या में रामनामी समाज के लोग और ग्रामीण पहुँचे। गाँव के मदन खांडे के निवास से पूजा अर्चना के पश्चात धान से राम..राम लिखकर कलश यात्रा निकाली गई, जो कि गाँव के प्रमुख गलियों से होकर मेला स्थल बरछा में छतदार जैतखाम तक पहुँची। यहाँ ध्वज चढ़ाने के साथ ही भजन-आरती की गई। सिर पर मोरपंख के साथ मुकुट धारण किए रामनामी को अपने आराधना और आराध्य देव राम के भक्ति भावना में लीन होकर चलते हुए देखकर लोगों के मन में राम के प्रति श्रद्धा और विश्वास और भी कायम होता नजर आया।खींचे चले आते हैं मेले में और फिर आना चाहते हैं ग्रामीणरामनामी मेला हर साल किसी न किसी गाँव में होता आ रहा है। इस मेले में एक बार आने वाले समय मिलते ही दोबारा जरूर आते हैं। अब तक आठ बार रामनामी मेले में आ चुकी वृद्धा कचरा बाई कहती है कि मुझे यहां आकर बहुत ही खुशी की अनुभूति महसूस होती है। कौशल्या चौहान बताती है कि वह तीसरी बार इस मेले में आई है। दिल्ली से आये सरजू राम ने बताया कि वह कई मेले में शामिल हो चुका है। यह मेला सभी समाज को जोड़ने और मानवता को बढ़ावा देने के संदेश को विकसित करता है। मेला समिति के अध्यक्ष केदारनाथ खांडे ने बताया कि दूरदराज से आए ग्रामीण मेला में पूरे तीन दिन तक ठहरते भी हैं, यहाँ लगातार भंडारा भी चलता रहता है। इस दौरान राम...राम..राम की आस्था उन्हें दोबारा आने के लिए उत्सुक भी करती है।गाँव के ही दंपति द्वारा दान भूमि में बनाया गया है छतदार जैतखामभगवान राम के लिए अपनी जीवन समर्पित करने वाले रामनामी समुदाय का यह मेला वास्तव में समाज को जोड़ने और मानवता को विकसित करने वाला होता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि गाँव के अनेक लोग जो अन्य समाज के है उन्होंने अपनी कीमती भूमि छतदार जैतखाम के निर्माण के लिए दान की। गांव के पंचराम चंद्रा और श्रीमती लकेश्वरी चंद्रा ने मेला स्थल पर भूमि दान की है वहीं अन्य ग्रामीण भी है,जिन्होंने निःस्वार्थ अपनी कीमती जमीन दान की है।1910 में ग्राम पिरदा में आयोजित किया गया था पहली बार मेलारामनामी बड़े भजन का मेला,संत समागम का आयोजन वर्ष 1910 से लगातार आयोजित किया जा रहा है। पौष शुक्ल पक्ष एकादशी से त्रयोदशी तक 3 दिवस चलने वाले इस मेले में भजन और 24 घण्टे राम नाम जाप किया जाता है। पैरो में घुँघरू के साथ राम..राम लय में गाते हुए नृत्य करते है और मेले की शोभा को बढ़ाते हुए रामनाम के संदेश को सभी के मन में समाहित करने कामयाब भी होते हैं।
- गीत
स्वरचित- डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)-----------------------------------------------------------राम नाम जप ले रे मनवा , निशिदिन साँझ-सवेरे ।आशा का सूरज निकलेगा , मन से मिटे अँधेरे ।।
काम क्रोध मद मोहक माया ,मन को बहकाती है ।पाप- पंक में डूबी काया , जीवन भटकाती है ।पावन रखने मन की बगिया ,कर्म करें बहुतेरे ।राम नाम जप ले रे मनवा निशिदिन साँझ सवेरे ।।
सुरभित सुंदर दलपुंजों सम , सदाचार शुचि रखना ।झंकृत हो जाए हृदवीणा , बोले मधुरिम रसना ।सुरसरिता सम निश्छल निर्मल, चितवन कुंज घनेरे ।राम नाम जप ले रे मनवा निशिदिन साँझ सवेरे ।।
भवसागर में जीवन तरणी , डगमग - डगमग डोले ।मोह -भँवर में फँसी हुई यह , खाती है हिचकोले ।कुसुम-कंटकित पथ पर भटके , प्रेमिल पथिक चितेरे ।राम नाम जप ले रे मनवा निशिदिन साँझ सवेरे ।। - -आ रहा बड़ा बदलाव: पक्के आवास मिलने से घूमंतु प्रवृत्ति की विशेष पिछड़ी जनजाति कमार अब गांवों में करने लगी है स्थायी रूप से निवास-कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक के 13 ग्रामों में निवासरत हैं कमार जनजाति के 72 परिवार-शासन की योजनाओं की पहुंच अब सबसे निचले स्तर तक हुई आसानविशेष लेख-ताराशंकर सिन्हारायपुर / शासन की योजनाओं की वास्तविक सफलता तभी मानी जाती है जब उनकी पहुंच और क्रियान्वयन समाज के सबसे निचले तबके तक सुनिश्चित हो। प्रदेश में निवासरत पांच विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक कमार जनजाति भी है, जिसमें अभी भी शिक्षा और जागरूकता का अभाव है। अपनी लोक संस्कृति और पारम्परिक विरासत एवं मूल्यों के साथ जीवन-यापन करने वाली यह जनजाति कई मायनों में आज भी पिछड़ी हुई है। कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक के 13 ग्रामों में इस जनजाति के 72 परिवार निवासरत हैं, जिनकी जनसंख्या 283 है। इन्हीं में से एक ग्राम मावलीपारा में कमार जनजाति की बहुलता है, लेकिन शासन की योजनाओं का लाभ लेने के मामले में इनकी बात औरों से जुदा है। प्रधानमंत्री जनमन योजना से इनके जीवन में बड़ा बदलाव आ रहा है।प्रधानमंत्री आवास योजना से जीवन में आया स्थायित्वपेशे से बांस की टोकरी और दैनंदिनी के अन्य पारम्परिक सामान बनाकर बेचने वाली यह जनजाति भी अब शासन की योजनाओं का लाभ लेने में पीछे नहीं है। प्रायः कमार जनजाति के लोग घुमंतू और खानाबदोश प्रवृत्ति के होते हैं लेकिन यहां के कमारजन जो प्रायः घासफूस, खदर और मिट्टी से निर्मित अस्थायी घरों में रहते थे, उनको एक तरह से स्थायित्व मिल गया है, क्योंकि स्थायी ठौर के तौर पर अब उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के आवास मिल चुके हैं। विशेष पिछड़ी जनजाति के कमार लोगों को इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ। पक्के मकान मिलने से उन लोगों में स्थायी तौर पर निवास करने की रुचि पैदा हुई है। परिणामस्वरूप, ये अब घर छोड़कर कहीं जाने के मूड में नहीं हैं। एक तरह से उनकी घुमंतू व खानाबदोशी जीवन शैली पर विराम लग गया है।प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास देने के साथ ही उन्हें यह भी समझाइश दी गई कि स्थायी रूप से रहने पर उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड जैसी अनेक योजनाओं का लाभ आसानी से मिल सकेगा। यह बात उनकी समझ में आ गई। इस पर अमल करते हुए ग्राम मावलीपारा में निवासरत कमार जनजाति के सभी 16 परिवार यहां के स्थायी निवासी बन गए और जरूरी दस्तावेज बनवाकर अब वे विभिन्न योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। चाहे स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण हो, आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य कार्ड हो या प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजनांतर्गत रसोई गैस कनेक्शन हो अथवा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत् महिला स्वसहायता समूह का निर्माण हो।विकास की मुख्यधारा से हो रहा जुड़ावग्राम पंचायत मावलीपारा के कमारों के मुखिया श्री हीराराम नेताम ने बताया कि आज से लगभग 10-15 साल पहले उनकी जनजाति के ज्यादातर लोग गांवों के बाहर अस्थायी निवास बनाकर रहते थे। यानी घासफूस और लकड़ी के घर बनाकर कुछ दिनों तक रहते, फिर मौसम परिवर्तन के साथ ही रोजगार की तलाश में वे अक्सर अपना निवास बदल देते थे। श्री नेताम ने बताया कि उनका मुख्य व्यवसाय बांस की टोकरी व सूपा, बिजना जैसी घरेलू उपयोग की चीजें बनाने का रहा है। जब से कम कीमत पर प्लास्टिक और कृत्रिम उत्पाद बाजार में आए, तब से उनका यह धंधा भी मंदा हो चला है। आत्मविश्वास से लबरेज श्री नेताम ने बताया कि अब ऐसा नहीं है। यहां निवासरत ज्यादातर परिवारों के पास राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड, आधार कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड सहित प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर, स्वच्छ भारत मिशन से बने शौचालय हैं, जिसका वे नियमित उपयोग करते हैं।श्री नेताम ने बताया कि उनकी जनजाति के लोग स्थायी रूप से निवास करना फायदेमंद और बेहतर है। इसी तरह ग्रामीण श्री पनकूराम कमार (नेताम) ने बताया कि पहले आजीविका के तौर पर मछली का शिकार करके, शहद इकट्ठा करके बेचने सहित अन्य लघु वनोत्पादों को शहर जाकर बेचने का काम किया जाता था। उसी से परिवार का जीवनयापन होता था। अब पीडीएस से मुफ्त राशन के अलावा बीपीएल कार्ड व आधार आदि बनाए जा चुके हैं। घर पहुंच सेवाएं मुहैया कराने के लिए उन्होंने शासन को धन्यवाद दिया।इसी तरह कमार जनजाति की महिलाएं श्रीमती शांति बाई, अमिता नेताम व बृजबती मरकाम ने बताया कि उनके परिवारों को भी शासन की अधिकांश योजनाओं का लाभ मिल रहा है। छूटे हुए लोगों को दायरे में लाने के लिए गांव में कैम्प भी लगाया जा रहा है। इस प्रकार कमार जनजाति का जुड़ाव शनैः शनैः विकास की मुख्यधारा से हो रहा है। नरहरपुर ब्लॉक के 13 ग्राम मावलीपारा, बिहावापारा, बतबनी, भीमाडीह, सांईमुड़ा, मुसुरपुट्टा, दुधावा, बासनवाही, गंवरसिल्ली, भैंसमुण्डी, दलदली, बादल और ग्राम डोमपदर में कमार जनजाति के लोग वर्तमान में निवासरत हैं।पिछड़ी जनजाति के परिवारों को किया जा रहा है लाभान्वितस्वभाव से लजीले, शर्मीले और दुनियावी भागमभाग से दूर अपने आप में मस्त व मशगूल रहने वाले लोगों तक शासन की योजनाओं की पहुंच, उनके गांव और घर तक सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष पिछड़ी जनजातियों के विकास को दृष्टिगत करते हुए हाल ही में पीएम जनमन योजना प्रारंभ की। इसके तहत समाज की विशेष पिछड़ी जनजातियों को मुख्यधारा में शामिल कर आमजनों की तरह उन्हें शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ दिलाना है।इसी क्रम में जिला प्रशासन की पहल पर जिले के 13 ग्रामों में निवासरत 72 परिवारों के 283 कमार जनजाति के लोगों तक योजना की पहुंच सुनिश्चित करने स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा, समाज कल्याण, ग्रामीण विकास विभाग सहित विभिन्न विभागों के द्वारा गांवों में कैम्प लगाकर तथा उनके घर जाकर आवश्यक दस्तावेज तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा आधार अपडेशन जैसे कार्य भी गांव में कैम्प लगाकर युद्ध स्तर पर किए जा रहे हैं। कांकेर कलेक्टर श्री अभिजीत सिंह ने जल्द से जल्द विशेष पिछड़ी जनजाति के शत-प्रतिशत परिवारों को शासन की योजनाओं का लाभ दिलाने के निर्देश जिला अधिकारियों को दिए हैं।आधारभूत सुविधाओं का लाभ लेने में अब पीछे नहींशासन की योजनाओं से विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों की न सिर्फ जीवनचर्या में सकारात्मक बदलाव आ रहा है, अपितु वे अपने पारम्परिक मूल्यों को संरक्षित रखने के साथ शासन की योजनाओं का लाभ लेकर समाज की मुख्यधारा से भी जुड़ रहे हैं। मनुष्य की मौलिक आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान जैसी सुविधाएं अब उनसे दूर नहीं हैं। अपने बच्चों को बचपन से ही तीर-कमान से शिकार करना, मधुमक्खी के बर्रे से शहद निकालना और स्कूल के बजाय वनोत्पादों का संग्रहण करना सिखाने वाले कमार अब उन्हें रोजाना स्कूल भेज रहे हैं। यहां तक कि गांव के दो शिक्षित कमार युवक शासकीय नौकरी में सेवारत हैं। पक्के मकान से निवास का स्थायी जरिया मिलने के साथ-साथ राशन, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी अन्य आधारभूत सेवाओं का लाभ लेने में भी अब वे किसी से कमतर नहीं हैं। वास्तव में यह शासन के प्रयासों से सकारात्मक परिवर्तन की बयार है, जिसके आने वाले दिनों में और भी सुखद परिणाम आएंगे।
- लेखक- श्री. पीयूष गोयल, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग,उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और वस्त्र मंत्रीविनिर्माण क्षेत्र में 'जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट' के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के अनुरूप उच्चतम वैश्विक मानकों को पूरा करने वाले उच्च गुणवत्ता के उत्पाद उपलब्ध कराने में भारत दुनियाभर में अग्रणी बनने की दिशा में अग्रसर है।प्रतिस्पर्धी दरों पर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति 2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने के प्रधानमंत्री के मिशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठा रही है कि 'मेड इन इंडिया' ब्रांड गुणवत्ता की गारंटी हो, जो भारतीय और विदेशी उपभोक्ताओं के लिए आनंद का परिचायक बने।प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया है कि एक लाभदायक बाजार तभी कायम रह सकता है जब उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों में संतुलन हो। इस रणनीति का एक प्रमुख घटक गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) पर जोर देना है। इसके जरिये क्यूसीओ यह सुनिश्चित करता है कि सभी उत्पाद भारतीय मानक ब्यूरो के निर्धारित मानदंडों के अनुरूप हों।यह उन उपभोक्ताओं के लिए एक वरदान है, जिससे उपभोक्ताओं को उत्पादों तथा व्यवसायों के संबंध में विश्वसनीय, सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता का भरोसा प्राप्त होता है। इसके जरिये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बढ़ती मांग व उपभोक्ताओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद मिलती है।प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की डिजिटल इंडिया पहल ने 140 करोड़ भारतीयों के परिवार को दुनिया से जुड़ने और सर्वोत्तम उत्पादों व व्यवहारों के बारे में जानने में मदद की है। वे किसी उत्पाद को खरीदने से पहले नियमित रूप से प्रदर्शन, स्थायित्व और निर्भरता के लिए ग्राहक समीक्षाओं की जांच करते हैं। यदि वे उत्पाद से असंतुष्ट हैं, तो वे सार्वजनिक रूप से कमियों को उजागर करते हैं। इसलिए, उत्पाद की गुणवत्ता, कीमत और नवीनता के बीच संतुलन बनाना समय की मांग है।मोदी सरकार सुरक्षित, विश्वसनीय व बेहतर गुणवत्ता वाले सामान उपलब्ध कराने और भारतीय उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत गुणवत्ता इको-सिस्टम विकसित करने पर केंद्रित है। मई 2014 से पहले, 106 उत्पादों को कवर करने वाले केवल 14 क्यूसीओ जारी किए गए थे। सूची को अब 653 उत्पादों को कवर करते हुए 148 क्यूसीओ तक बढ़ा दिया गया है। इनमें एयर कंडीशनर, खिलौने और जूते जैसे घरेलू उत्पाद शामिल हैं।निर्यात पर गुणवत्ता नियंत्रणक्यूसीओ ने 'मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड' के मिशन को गति दी है। क्यूसीओ के तहत कई उत्पादों का निर्यात किया जा रहा है। कच्चा लोहा उत्पाद, सौर डीसी केबल, दरवाजे की फिटिंग, छत के पंखे, हेलमेट, स्मार्ट मीटर, हिंजेस, एयर कूलर और एयर फिल्टर गुणवत्ता-नियंत्रित उत्पाद हैं, जो आयात किए जाने की तुलना में कहीं अधिक निर्यात किए जाते हैं। क्यूसीओ द्वारा कवर किए गए कास्ट आयरन उत्पादों का पिछले साल 535 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात हुआ था, जबकि आयात मुश्किल से 68 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। लगभग 25 क्यूसीओ में ऐसे उत्पाद शामिल हैं, जहां आयात से अधिक निर्यात होता है।यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि क्यूसीओ भारत में मजबूत गुणवत्ता चेतना के निर्माण पर केंद्रित हैं। इससे देश में खराब गुणवत्ता वाले सामानों की डंपिंग को कम करने में भी मदद मिलती है। उल्लेखनीय है कि सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं तक पहुंच हमारे अमृत काल में प्रत्येक भारतीय नागरिक का अधिकार है।क्यूसीओ लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। सस्ते इलेक्ट्रॉनिक्स के कारण आग लगने, खिलौनों में जहरीले रसायनों के कारण बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने और बिजली के शॉर्ट-सर्किट जैसे जोखिमों के कारण घटिया उत्पाद घरों के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं।शानदार उदाहरणगुणवत्ता-नियंत्रण कैसे उपभोक्ताओं और निर्माताओं की मदद के लिए विनिर्माण को आमूल रूप से उन्नत कर सकता है, इसका एक शानदार उदाहरण खिलौना उद्योग है। इस क्यूसीओ के कार्यान्वयन से पहले, भारतीय खिलौना बाजार सस्ते, घटिया उत्पादों से भरा पड़ा था।वर्ष 2019 में भारतीय गुणवत्ता परिषद के एक सर्वेक्षण से पता चला कि मुश्किल से एक-तिहाई खिलौने प्रासंगिक बीआईएस मानकों का पालन करते हैं, और उनमें से अधिकांश बच्चों के लिए खतरनाक थे। यह मोदी सरकार के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य था, जिसने एक जनवरी, 2021 से इस क्षेत्र के लिए क्यूसीओ के साथ तेजी से हस्तक्षेप किया था।इससे भारत में खिलौनों की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ। एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय बाजार में 84 प्रतिशत खिलौने बीआईएस मानकों का पालन करते हैं। क्यूसीओ ने न केवल भारतीय बच्चों को सुरक्षित, उच्च गुणवत्ता वाले खिलौने उपलब्ध कराए हैं, बल्कि 2018-19 की तुलना में 2022-23 में उनके निर्यात में 60 प्रतिशत की वृद्धि भी हुई है।उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और घरों में उपयोग होने वाले अन्य उत्पादों पर कई गुणवत्ता मानदंड लागू किए गए हैं। इनमें स्मार्ट मीटर, बोल्ट, नट और फास्टनर, छत के पंखे, अग्निशामक यंत्र, कुकवेयर, बर्तन, पानी की बोतलें, पाइप्ड नेचुरल गैस के उपयोग के लिए घरेलू गैस स्टोव, लकड़ी आधारित बोर्ड, इंसुलेटेड फ्लास्क और इंसुलेटेड कंटेनर आदि शामिल हैं।सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए उद्योग प्रतिनिधियों सहित सभी हितधारकों से परामर्श करती है कि क्यूसीओ को लागू करने से पहले उनकी प्रतिक्रिया, तकनीकी इनपुट और व्यावहारिक सुझावों पर विचार किया जाए। यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान रखा जाता है कि सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों को लंबी अंतरण अवधि देकर उनके हितों की रक्षा की जाए। सरकार उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्धी बनने में मदद करने औरउन निर्माताओं का समर्थन करने के लिए हमेशा तैयार है, जो गुणवत्ता में सुधार करना चाहते हैं।गुणवत्ता अभिशासन, गुणवत्तापूर्ण उत्पादउत्पादों को वैश्विक मानकों के अनुरूप उन्नत करने का अभियान 140 करोड़ भारतीयों के अपने परिवार के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के प्रधानमंत्री के व्यापक दृष्टिकोण से जुड़ा है। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा और बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ-साथ रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी ज़रूरतें प्रदान करने के लिए कई निर्णायक कदम उठाकर उनकी आकांक्षाओं को पूरा किया है। उनके भावनात्मक, भ्रष्टाचार-मुक्त शासन ने विकास को गति दी है, मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया है और भारत को विश्व स्तर पर उज्ज्वल बनाया है। उल्लेखनीय है कि पांच साल में करीब 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।लोगों ने हाल के विधानसभा चुनावों में अपने मतदान से प्रधानमंत्री के उच्च गुणवत्ता वाले प्रशासन के प्रति विश्वास व्यक्त किया है। यह भारतीय निर्माताओं के लिए एक मजबूत संदेश है। जब लोग चयन करते हैं - अपने मत से या अपने बटुए से - तो वे सर्वोत्तम गुणवत्ता चुनते हैं। याद रहे कि 'क्वालिटी इज फ्री' के लेखक फिलिप क्रॉस्बी ने एक बार कहा था: "यदि आप गुणवत्ता से बाहर हैं, तो आप व्यवसाय से बाहर हैं।"
- प्रेरणा गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)भटक नहीं जाना राहों में , सच्चाई का भान रहे ।लक्ष्य सदा रखना नजरों में , और कहीं मत ध्यान रहे ।।
कंटकीर्ण मुश्किल राहों में , कदम सँभाले चलना है ।छँट जाएँगे स्याह अँधेरे, दीप ज्योति-सम जलना है ।राह सही चुन पाओगे यदि ,भले-बुरे का ज्ञान रहे ।।लक्ष्य सदा रखना नजरों में ,और कहीं मत ध्यान रहे ।।
एकलव्य-सम करो साधना ,सूक्ष्म दृष्टि अर्जुन जैसी ।अपनी कमियों को अपनाकर ,कर लें दूर झिझक कैसी ।पंख हौसलों के लग जाएँ , ऊँची सदा उड़ान रहे ।।लक्ष्य सदा रखना नजरों में , और कहीं मत ध्यान रहे ।।
खुली आँख से देखो सपने , निज जीवन में रंग भरो ।मन में नई उमंगें भरकर , स्वप्न सभी साकार करो ।आत्म-परीक्षण करते रहना , क्षमता का संज्ञान रहे ।।लक्ष्य सदा रखना नजरों में , और कहीं मत ध्यान रहे ।। -
- कविता
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
अंतस में स्नेह-दीप बालें नए साल में ।
खुशियों भरे गीत गा लें नए साल में ।।
मुश्किलों की गहरी रातों का अंतिम प्रहर ।
स्वर्ण किरण रवि मुख पर डालें नए साल में ।।
धरती के कण-कण में छुपी हुई खुशहाली ।
सच्ची खुशी संतोष पा लें नए साल में ।।
दुख पीड़ा की गठरी को शीश नहीं बाँधें ।
इत्र सुधियों की महका लें नए साल में ।।
नागफनी के बीज न बोना मन-मधुवन में ।
सद्भावों के फूल खिला लें नए साल में ।।
भूलें सारी कड़वी बातें द्वेष-दंभ तज दें ।
हृदय को गंगा जल बना लें नए साल में ।। - श्री पीयूष गोयल(लेखक वाणिज्य एवं उद्योग, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, उपभोक्ता मामले और वस्त्र मंत्री हैं)साल भर पहले लागू होने वाला भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता (इंडऑस ईसीटीए) इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कैसे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की प्रमुख पहलों को मद्देनजर रखते हुए सभी हितग्राहियों के साथ व्यापक परामर्श के बाद सूझ-बूझ के साथ योजना बनाई जाती है तथा आम आदमी समेत छोटे एवं मध्यम उद्योग के लाभ के लिए प्रभावी ढंग से उन्हें क्रियान्वित किया जाता है।इंडऑस ईसीटीए दो क्रिकेट-प्रेमी देशों के बीच पारस्परिक रूप से लाभप्रद समझौता है, जो हमारे अमृत काल में आत्मविश्वासी और आकांक्षी नए भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह दो संसदीय लोकतंत्रों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करता है, जो कानून के शासन का समर्थन करते हैं और समान कानूनी प्रणालियां रखते हैं। दोनों देश जापान और अमेरिका के साथ क्वाड का हिस्सा हैं। दोनों देश जापान के साथ त्रिपक्षीय आपूर्ति श्रृंखला अनुकूलन पहल (एससीआरआई) में शामिल हो गए हैं। दोनों देश 14-सदस्यीय इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के भी सदस्य हैं।मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) एक दशक से अधिक समय में किसी विकसित देश के साथ भारत की पहली व्यापार संधि है, जिसमें अपार क्षमता निहित है। भारत मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया से कच्चा माल और मध्यवर्ती सामान आयात करता है, जबकि इसका निर्यात मुख्य रूप से तैयार उत्पाद हैं। इसलिए, एफटीए भारतीय उद्यमियों की उत्पादन लागत को कम करेगा और उनके सामान को घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा। इससे भारतीय स्टार्ट-अप को आगे बढ़ने के बेहतरीन अवसर भी मिलते हैं।निर्यात में मजबूत वृद्धिआंकड़ों से स्पष्ट होता है कि इंडऑस ईसीटीए ने एक बहुत ही आशाजनक शुरुआत की है, जिसने मोदी सरकार के इस विश्वास को मजबूत किया है कि इससे श्रम-केंद्रित क्षेत्रों में लाखों नौकरियां पैदा करने में मदद मिलेगी, क्योंकि भारतीय उत्पादों को विशाल ऑस्ट्रेलियाई बाजार में शत-प्रतिशत शुल्क-मुक्त पहुंच मिलती है।अप्रैल-नवंबर 2023-24 में ऑस्ट्रेलिया को भारत का माल निर्यात 14 प्रतिशत बढ़ा है, जो चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल में बाकी दुनिया के साथ भारत के व्यापार की तुलना में निर्णायक रूप से बेहतर प्रदर्शन है। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मांग सिकुड़ गई है। ऑस्ट्रेलिया का कुल आयात चार प्रतिशत कम हो गया है, लेकिन भारत से इसकी खरीदारी जोरदार तरीके से बढ़ी है। ऑस्ट्रेलिया से भारत का आयात 19 प्रतिशत कम हो गया है, जिससे व्यापार घाटे में 39 प्रतिशत कमी आ गई है।रोजगार का सृजन करने वाले क्षेत्रों में प्रेफेंशियल लाइन्स के तहत ऑस्ट्रेलिया को निर्यात में जोरदार वृद्धि हुई। ऑस्ट्रेलिया को इंजीनियरिंग सामानों का निर्यात अप्रैल-अक्टूबर 2023-24 में 24 प्रतिशत बढ़ गया, जबकि कुल निर्यात में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि हुई। रेडीमेड कपड़ों में, ऑस्ट्रेलिया को शिपमेंट में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि कुल निर्यात में गिरावट आई। आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते (ईसीटीए) ने ऑस्ट्रेलिया को इलेक्ट्रॉनिक्स सामान और प्लास्टिक के शिपमेंट में इन क्षेत्रों में समग्र निर्यात से बेहतर प्रदर्शन करने में मदद की।इसके अलावा, भारत ऑस्ट्रेलिया को 700 से अधिक नई वस्तुओं का निर्यात कर रहा है। वर्ष 2023-24 के पहले 10 महीनों में ये निर्यात 335 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है, जिसमें 65 मिलियन डॉलर के स्मार्टफोन भी शामिल हैं। अन्य नए उत्पादों में रत्न और आभूषण क्षेत्र की कई वस्तुएं, लाइट ऑयल, गैर-औद्योगिक हीरे और साथ ही रेशम से बने स्कर्ट और कपड़े शामिल हैं।एफडीआई में बड़ा उछालहमारे व्यापार साझीदार मानते हैं कि प्रधानमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सराहनीय ढंग से आगे बढ़ाया है, जिससे इस उथल-पुथल भरी दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था आशा की किरण बन गई है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में, भारत 2027 तक एक विकसित देश बनने की राह पर है। हमारे व्यापारिक साझेदार इस ताकत को पहचानते हैं और कृषि व डेयरी जैसे हमारे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा के बारे में हमारी चिंताओं को समझते हैं।भारत के विकास पथ में विश्वास, निवेशक अनुकूल नीतियों और प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा किए गए परिवर्तनकारी सुधारों के साथ इंडऑस ईसीटीए ने भारत को ऑस्ट्रेलियाई व्यवसायों के लिए और भी अधिक आकर्षक बना दिया है।इस वर्ष जनवरी से सितंबर तक ऑस्ट्रेलिया से कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़कर 307.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो पूरे 2022 में प्राप्त 42.43 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सात गुना है। परामर्श सेवाओं में एफडीआई 2022 में 0.15 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मामूली स्तर से बढ़कर 248 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।सेवा क्षेत्र में काफी वृद्धि दर्ज की गई है। भारत के आईटी और व्यावसायिक सेवाओं के निर्यात ने अपनी मजबूत गति जारी रखी। शिक्षा, ऑडियो-विजुअल सेवाओं और मोबिलिटी के क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया के साथ अन्य द्विपक्षीय समझौतों से ईसीटीए की गति में इजाफा हुआ है। इसके कारण व्यापार गतिशीलता में 50 प्रतिशत से अधिक और भारतीय छात्रों के लिए अध्ययन के बाद के कामकाजी-वीजा में लगभग शत-प्रतिशत की मजबूत वृद्धि देखी गई। यह इस दिशा में उल्लेखनीय कदम है।ईसीटीए के बाद दोहरे कराधान से मुक्त भारतीय आईटी उद्योग अब समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रहा है। उद्योग जगत के कुछ अनुमानों के अनुसार, पिछले वर्ष इसने करोड़ों डॉलर की बचत की है। ईसीटीए की सफलता से उत्साहित होकर नैसकॉम, ऑस्ट्रेलिया में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए आईटी क्षेत्र में एसएमई को सुविधा प्रदान करने के संबंध में एक तंत्र स्थापित कर रहा है।व्यापार सौदों के लिए नया दृष्टिकोणइंडऑस ईसीटीए और पिछले साल संयुक्त अरब अमीरात के साथ इसी तरह के समझौते पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय वाणिज्य मंडलों, निर्यातकों, उद्योग-विशिष्ट समूहों, अर्थशास्त्रियों, व्यापार विशेषज्ञों, विभिन्न मंत्रालयों और विभाग सहित उद्योग के हर वर्ग के साथ व्यापक परामर्श के बाद हस्ताक्षर किए गए थे। उद्योग जगत के दिग्गजों ने दोनों एफटीए की काफी सराहना की। यह पिछले व्यापार समझौतों की तुलना में एक बड़ा कदम है, जिनमें इतना व्यापक परामर्श शामिल नहीं था।प्रधानमंत्री श्री मोदी इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट हैं कि हर नीति या समझौता राष्ट्रीय हित में होना चाहिए और देश के लिए लाभकारी होना चाहिए। इसी भावना से, हमने मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया और यूएई के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं तथा वही मार्गदर्शक सिद्धांत अन्य देशों के साथ बातचीत को आकार दे रहे हैं।हम निष्पक्ष, पारदर्शी और पारस्परिक रूप से लाभप्रद समझौतों की आकांक्षा रखते हैं, जो हमारे व्यवसायों को प्रतिस्पर्धी बनाते हैं, उनके लिए नए बाजार खोलते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये एफटीए व्यापार और वाणिज्य का विस्तार करते हैं तथा आर्थिक विकास को गति देते हैं। इससे रोजगार और व्यापार के अवसर पैदा होते हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए ने अपने पहले वर्ष में यह कर दिखाया है। file photo
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विशेष लेख-मनोज सिंह, सहायक संचालक
-गुरूपद संभवराम जी के मार्गदर्शन में 2010 में सोगड़ा के सर्वेश्वरी आश्रम में रोपे गए थे चाय के पौधे-धार्मिेक आस्था के साथ सामाजिक और पर्यावरण संरक्षण में भी आश्रम निभा रहा है महत्वपूर्ण भूमिकारायपुर / जशपुर के चाय उत्पादक जिला के रूप में पहचान दिलाने की शुरूआत वर्ष 2010 में जिले के मनोरा ब्लाक में स्थित अघोरेश्वर भगवान राम की तपोभूमि सोगडा से हुई थी। यहां चाय के पौधों का रोपण, अघोरेश्वर गुरूपद संभवराम जी के मार्गदर्शन में किया गया था। उनके मार्गदर्शन में चाय पत्ती की खुशबू जशपुर और भारत की सीमा से निकल कर चीन और जापान जैसे देशों तक पहुंचने लगी है।सोगड़ा में मई 2010 में चाय बगान लगाए जाने के बाद लगातार चाय पत्ती की तुड़ाई की जा रही है। इन पत्तियों से 22 प्रतिशत तक ग्रीन चाय प्राप्त हो रहा है। उत्पादित चाय के परीक्षण के लिए चीन व जापान के अंतराष्ट्रीय चाय विशेषज्ञों व राष्ट्रीय चाय विकास बोर्ड के पास भेजा गया था। विशेषज्ञों ने सोगड़ा की ग्रीन टी को असम व दार्जिलिंग से बेहतर होने की पुष्टि कर दी है। जापान व चीन, जहां विश्व में सबसे अधिक ग्रीन टी की खपत होती है,जशपुर की जलवायु चाय के उत्पादन के बेहद अनुकूल है।वर्तमान में सौगड़ा में असम में पाए जाने वाली चाय की प्रजाति टीवी 25, 26, 27, दार्जिलिंग की सीपी-1, पीके 78, टीवी और एवी का रोपण किया गया है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में रोपे गए इन पौधे की ग्रोथ 4 महीने में ही दो से ढाई फीट की ग्रोथ देखी जा रही है, जबकि असम व दार्जिलिंग में इन पौधों को इतना विकसित होने में ढाई साल लग जाते हैं। यहां उत्पादित चाय पत्ती की प्रोसेसिंग के लिए लगभग 40 लाख की लागत से टी प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित की गई है।हजारीबाग मे बाबा को मिली थी प्रेरणा -जिले में चाय उत्पादन की प्रेरणा गुरूपद संभव बाबा को हजारीबाग में मिली थी। गुरूपद संभव राम यहां अपने एक भक्त के घर आए हुए थे। भक्त के घर में चाय के लहलहाते पौधे को देख कर जशपुर में चाय उत्पादन की प्रेरणा उन्हें मिली थी। गुरूपद संभव राम, अपने साथ चाय के पौधे लेकर सोगड़ा आए और इन्हें विशेषज्ञों की देखरेख में रोपा गया था। प्रयोग सफल होने पर,शुरूआत में आश्रम के प्रांगड़ के 7 एकड़ में चाय बगान विकसित किया गया है। अब इसका रकबा 20 एकड़ से अधिक हो चुका है। वहीं, गुरूपद संभवराम जी की प्रेरणा ग्रहण करते हुए, छत्तीसगढ़ शासन जिले के जशपुर, मनोरा और बगीचा तहसील में 85 एकड़ से अधिक रकबा में चाय बगान विकसीत कर चुकी है। शासन ने चाय पत्ति की प्रोसेसिंग के लिए बालाछापर में प्रोसेसिंग यूनिट का संचालन भी कर रही है।निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन -सोगड़ा आश्रम,धार्मिक आस्था का केन्द्र होने के साथ,समाज सेवा की गतिविधियों का संचालन किया जाता है। यहां प्रतिवर्ष निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जाता है। इसमें देश के विभिन्न राज्यों से विशेषज्ञ चिकित्सक आ कर अपनी सेवाएं जरूरतमंद मरीजों को देते हैं। इन शिविरों में चिकित्सकीय परामर्श के साथ मरीजों को निःशुल्क दवाई का वितरण भी किया जाता है। सोगड़ा आश्रम पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता कार्यक्रम से भी जुड़ा हुआ है। -
लेख
रायपुर / सिखों के दशम गुरु गोविंद सिंह के दो बालकों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के शहादत की स्मृति में वीर बाल दिवस मनाने की परंपरा का आरंभ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया है। कई मायनों में यह पहल ऐतिहासिक है। देश के भारत नाम के पीछे कही जाने वाली बहुत सी अनुश्रुतियों में से एक हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के संबंध में है। जब पहली बार दुष्यंत ने वन में इस बालक को देखा तो वो शेरों के दांत गिन रहा था। भारत के नामकरण के पीछे इस बालक भरत के शौर्य को बताया जाता है।बचपन से ही वीरता के भाव को जगाने का प्रयास हमारी भारतीय संस्कृति में मिलता है और उपनिषदों से इसकी कहानियां मिलनी आरंभ हो जाती है। उपनिषदों में नचिकेता, आरूणि और श्वेतकेतु जैसे जिज्ञासु बालकों का जिक्र है जिनमें सत्य की प्राप्ति के लिए अपना सब कुछ नष्ट करने का साहस था। रामायण और महाभारत में बालकों के पराक्रम की कहानियां भरी हुई हैं। राजर्षि विश्वामित्र जब राजा दशरथ के दरबार में आये और निर्विध्न यज्ञ से निबटने के लिए क्षत्रिय योद्धाओं को भेजने का आग्रह सामने रखा तो उन्होंने केवल श्रीराम और लक्ष्मण को साथ भेजने का आग्रह राजा दशरथ से किया।भारत में नेतृत्व का गुण बचपन से ही देखे जाने की परंपरा रही है। हिंदी में कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। जब चाणक्य ने देश से नंद वंश के समूलनाश का निर्णय लिया तो उन्होंने इसके क्रियान्वयन के लिए एक बालक चंद्रगुप्त को परखा और इसका जिम्मा सौंपा। भारत के सबसे चर्चित योद्धा पृथ्वीराज चौहान भी चौदह वर्ष की आयु में दिल्ली की गद्दी पर बैठे और विदेशी आक्रमणों का प्रतिरोध किया।भारतीय इतिहास के सबसे गौरवमयी क्षणों में वो रहा है जब गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों ने अपने प्रिय उद्देश्यों तथा स्वधर्म की रक्षा के लिए शहादत दी। साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ाई में जितना योगदान युवाओं का है उतना ही बालकों का भी। कोई खुदीराम बोस की शहीदी कैसे भूल सकता है। 14 साल की उम्र में खुदीराम बोस ने अंग्रेजी अत्याचार के विरुद्ध बिगूल फूंका और फांसी चढ़ गये। लाखों बच्चें अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़े और इसका विरोध किया।आज से छह सौ साल पहले फ्रांस पर हुए हमले को रोकने एक बच्ची जान आफ आर्क सामने आई और फ्रांस की जनता को एकजुट किया। फ्रांस और पूरी यूरोपीय जनता इस बालिका को वीरता का आदर्श मानती है। 26 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह के बालकों की शहादत की तिथि पर वीर बाल दिवस मनाने की परंपरा आरंभ कर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत में वीरता के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने की सार्थक पहल की है। वीर बाल दिवस के माध्यम से बच्चों को इस देश की महान विरासत को जानने और समझने का मौका मिलता है तथा साहस की परंपरा को निरंतर बढ़ाने की दिशा में यह सार्थक प्रयास होता है। - भारत रत्न युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस पर विशेषदेवभूमि भारत देवताओं, वीर योद्धाओं और महापुरुषों की भूमि है। यह पवित्र भूमि महान आत्माओं के अवतरण की साक्षी रही है। हर युग में मनीषियों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर समाज और राष्ट्र को नव-चेतना से परिपूर्ण नए युग के पथ पर अग्रसर किया है। इन श्रेष्ठ और महान व्यक्तियों को ही युग-ऋषि की उपाधि से अलंकृत किया जाता है। फिर विरले ही होते हैं वे युग ऋषि जिनका पूरा व्यक्तित्व और कृतित्व उनके न रहने पर भी हर दिलों में अविचल, अमर और ‘अटल’ रहता है।अटल...तीन अक्षरों का यह शब्द अपने में समाए हुए है एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने राष्ट्र निर्माण की नई मान्यताओं को स्थापित किया।अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी सिर्फ यशस्वी राजनेता ही नहीं थे, पत्रकार, संपादक, एक संवेदनशील कवि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, प्रखर वक्ता, उत्कृष्ट सांसद, लोकप्रिय प्रधानमंत्री, एक असाधारण लोकसेवक,....क्या-क्या नहीं थे बहुआयामी विराट व्यक्तित्व के धनी अटल जी! उनकी वाणी में माँ सरस्वती विराजमान थीं। ईश्वरप्रदत्त उनकी वाणी के ओज में हर शख्स बहने लगता था। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को सिर्फ लेखनी की सीमा में बाँधकर रखना अत्यंत दुष्कर है। उनकी संवेदनशील कविताओं और लेखों के माध्यम से ही नहीं, एंड टीवी पर प्रसारित हो रही उनकी अनसुनी बाल गाथा ‘अटल’ से भी जब उन्हें समझने का प्रयास किया जाता है तो हमें एक ऐसे विराट-पुरुष के दर्शन होते हैं जिनकी भाव-भूमि में व्याष्टि से लेकर समाष्टि तक के विचार समाहित हैं। विशेषकर उनकी कविताओं में, यह विधा उन्हें विरासत में मिली थी। जैसा कि अपने काव्य संग्रह ‘मेरी इंक्वायन कविताएँ’ की भूमिका 'कविता और मैं' में वे लिखते हैं, “मेरे पिता पं. कृष्ण बिहारी वाजपेयी, ग्वालियर रियासत के, अपने जमाने के, जाने-माने कवियों में थे। वह ब्रज भाषा और खड़ी बोली दोनों में लिखते थे। उनकी लिखी ईश्वर प्रार्थना विरासत के सभी विद्यालयों में सामूहिक रूप से गायी जाती थी।“ अटल जी कवि सम्मेलनों में पहले श्रोता के रूप में और फिर उदीयमान किशोर कवि के रूप में जाते थे। पहली कविता ताजमहल पर लिखी गई थी जिसमें ताज के सौंदर्य पक्ष का वर्णन न होकर उसका निर्माण कितने शोषण के बाद हुआ, इसका चित्रण था। वह कविता हाई स्कूल की पत्रिका में छपी थी। यह उनकी सत्यनिष्ठा का प्रत्यक्ष उदाहरण है।राजनीति में आने के बाद उनके लिए कविता और गद्य लेखन के लिए समय निकालना अवश्य कठिन कार्य हो गया, किन्तु उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह कालजयी है। अटल जी लिखते हैं, ‘’मैंने जो थोड़ी सी कविताएँ लिखी हैं, वे परिस्थिति सापेक्ष हैं और आसपास की दुनिया को प्रतिबिम्बित करती हैं। अपने कवि के प्रति ईमानदार रहने के लिए मुझे काफी कीमत चुकानी पड़ी है, किन्तु कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता के बीच मेल बिठाने का मैं निरन्तर प्रयास करता रहा हूँ।‘’ अटल जी की कविताओं में हमें राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र के पौरुष और गौरव के वर्णन के साथ ही अध्यात्म की सूक्ष्म विवेचनाओं और उनके संवेदनशील मन में छिपी आशाओं, आकांक्षाओं के दर्शन होते हैं। कहा भी गया है कि कवि का आसन बहुत ऊँचा है। राज-राजेश्वरों की भी पहुँच वहाँ तक नहीं है। पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय के शब्दों में, “कवि ईश्वरीय विभूति सम्पन्न होते हैं। इसीलिए लोग उन्हें पूज्य दृष्टि से देखते हैं और उनकी रचना संसार की स्थाई सम्पत्ति समझी जाती है। इन रचनाओं में सर्वत्र प्रतिभा की प्रभावशालिनी रश्मियों का समावेश रहता है। इस कारण वे मनुष्य की ह्रदय कलिका को खिलाकर उसके अंतर प्रदेश को प्रकाशित करने की शक्ति रखते हैं।“यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि युग-ऋषि अटल जी ईश्वरीय विभूति सम्पन्न थे। वे हमारे बीच नहीं है किन्तु उनकी रचनाएँ आज भी मानव की ह्रदय कलिका खिलाकर अंतर प्रदेश को प्रकाशित करने की शक्ति रखती है। उनकी कविताएँ निराशा के घोर अँधकार को चीरकर आशा के दीप इस तरह जलाती हैं-भरी दुपहरी में अँधियारासूरज परछाईं से हारा।अन्तरतम का नेह निचोड़ें,बुझी हुई बाती सुलगाएँ,आओ फिर से दिया जलाएँ।हम पड़ाव को समझे मंजिललक्ष्य हुआ आँखों से ओझल,वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ।अटल जी की कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं और सदैव प्रासिंगक रहेंगी। वर्तमान में विकसित भारत@2047 की परिकल्पना को पूरा देश साकार करने एकजुट हो रहा है। अटल जी ने एक नए भारत के निर्माण का स्वप्न काफी पहले ही देखा था जो उनकी कविताओं में भी अभिव्यक्त हुआ था। एक बनगी देखिए-स्वप्न देखा था कभी जो आज हर धड़कन में हैएक नया भारत बनाने का इरादा मन में हैएक नया भारत कि जिसमें एक नया विश्वास होजिसकी आँखों में एक चमक हो, एक नया उल्लास होहो जहाँ सम्मान हर एक जाति, हर एक धर्म कासब समर्पित हों जिसे, वह लक्ष्य जिसके पास होएक नया अभिमान अपने देश पर जन-जन में हैएक नया भारत बनाने का इरादा मन में है।अटल जी की कविताओं में दर्शन का सूक्ष्म विवेचन देखने को मिलता है। उनका विचार था कि मनुष्य कितनी भी ऊंचाइयों को स्पर्श कर ले, लेकिन उसे कभी अपना धरातल नहीं छोड़ना चाहिए। ‘पहचान’ नामक कविता की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-आदमी को चाहिए कि वह जूझे,परिस्थितयों से लड़े,एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।किंतु कितना भी ऊँचा उठे,मनुष्यता के स्तर से न गिरे,अपने धरातल को न छोड़े,अन्तर्यामी से मुँह न मोड़े।एक पाँव धरती पर रख कर हीवामन भगवान ने आकाश, पाताल को जीता था।धरती ही धारण करती है,कोई इस पर भार न बने,मिथ्या अभिमान से न तने।आदमी की पहचान,उसके धन या आसन से नहीं होती,उसके मन से होती है।मन की फकीरी परकुबेर की सम्पदा भी रोती है।विलक्षण कवि अटल जी की काव्य-धारा आज भी अपने ओजपूर्ण आगोश में समेटकर बहा ले जाने को आतुर प्रतीत होती है। अटल जी के विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता हमें अन्य किसी में दिखलाई नहीं देती। सन् 1992 में पद्मविभूषण सम्मान से अलंकृत होने पर आयोजित सम्मान समारोह में उन्होंने ‘ऊँचाई’ नामक कविता का पाठ किया था जिसकी अंतिम पंक्तियाँ हैं-हे प्रभुमुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देनगैरों को गले लगा न सकूँइतनी रुखाई कभी मत देना।पूरा जीवन भारत माता की सेवा करने में समर्पित करने वाले अटल जी की ‘मौत से ठन गई’ नामक कविता की यह पंक्ति भी देखिये-प्यार इतना परायों से मुझको मिला,न अपनों से बाकी है कोई गिला।उनके कोमल व संवेदनशील ह्रदय का परिचय कराती ‘हीरोशिमा की पीड़ा’ नामक कविता की पंक्तियाँ हैं-किसी रात कोमेरी नींद अचानक उचट जाती है,आँख खुल जाती है,मैं सोचने लगता हूँ किजिन वैज्ञानिकों ने अणु-अस्त्रों काअविष्कार किया थाःवे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण नरसंहार के समाचार सुनकर,रात को सोये कैसे होंगे?क्या उन् एक क्षण के लिए सही, यहअनुभूति हुई कि उनके हाथों जो कुछ हुआ, अच्छा नहीं हुआ यदि हुई, तो वक्त उन्हें कठघरे में खड़ा नहीं करेगा, किंतु यदि नहीं हुई, तो इतिहास उन्हें कभीमाफ नहीं करेगा।अटल जी ने अनेक किवताएँ लिखीं जिनकी मार्मिक अभिव्यक्ति उनके भाषणों में भी हुआ करती थी। उनकी काव्य-सृष्टि का अद्भुत संसार है जो राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर तक के हर पहलुओं को अपने भीतर समाए हुए है। डॉ. आशीष वशिष्ठ अपनी प्रसिद्ध कृति युग पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका में लिखते हैं, ‘’राजनीतिक जीवन में शुचिता के पक्षधर अटल जी की स्वीकार्यता का आलम यह था कि जब वे लोकसभा का चुनाव हारे तो सदन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कहा था कि अटल के बिना सदन सूना लगता है। उन्हें भारत रत्न तो बाद में मिला लेकिन, वाकई वे भारत रत्न थे।‘’ भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले सामावेशी व्यक्तित्व के धनी युग ऋषि अटल जी हर दिल में अविचल रहेंगे।और अंत में दिल की बात –मुझे इस बात पर सदैव गर्व की अनुभूति होती है कि वर्ष 2004 में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के हाथों पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए चंदुलाल चंद्राकर पत्रकारिता फेलोशिप से सम्मानित किया गया था। एक महान राजनीतिज्ञ और कवि ही नहीं, महान पत्रकार और संपादक अटल जी के हाथों यह सम्मान प्राप्त हुए 19 वर्ष हो चुके हैं, किन्तु वे पल मेरे ह्रदय में आज भी अविचल हैं जब उन्होंने पुरस्कार देते हुए अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा था और शुभकामनाएँ दी थीं। वह मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ पल था जिसकी यादें सदैव अमिट बनी हुई हैं...युग ऋषि अटल जी को शत-शत नमन....वंदे मातरम...
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विशेष लेख
रायपुर। देश के पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारतरत्न स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25 दिसंबर प्रतिवर्ष देशभर में सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह दिन छत्तीसगढ़ के लिए विशिष्ट होगा। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ की नई सरकार नई पहल करते हुए अपनी नीतियों और योजनाओं को धरातल पर उतार रही है। इसी दिन राज्य सरकार यहां के 13 लाख किसानों को धान के दो वर्ष के बकाया बोनस का उपहार देगी। अनेक जनहितैषी योजनाओं के रूप में भी जनता को सौगात मिलेगी।यह सुखद संयोग ही है कि नई राज्य सरकार के गठन की औपचारिक प्रक्रिया के पहले पखवाड़े का कामकाज सुशासन दिवस से शुरू होगा। पूरे छत्तीसगढ़वासियों के लिए यह गर्व और स्वाभिमान की बात है कि स्व. श्री अटल जी ने ही अपने प्रधानमंत्रित्व काल में छत्तीसगढ़ राज्य की संकल्पना को मूर्त रूप दिया था। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना अटल जी की ही देन है। उनके जन्मदिवस पर नई सरकार के कार्यक्रमों का शुभारंभ माननीय अटल जी के स्वप्नों को साकार करने की दिशा में एक सार्थक कदम है।सुशासन से आशय सक्षम, न्यायशील और पारदर्शी शासन व्यवस्था से है। अटल जी का जन्मदिन सेवा, त्याग व समर्पण के लिए याद किया जाता है। वर्ष 2014 से इसे देशभर में मनाया जाता है। सुशासन दिवस के दिन कर्तव्य के शुचितापूर्ण पालन की शपथ भी ली जाती है। अटल जी के पदचिन्हों पर चलकर छत्तीसगढ़ सरकार शासन-प्रशासन में शुचिता, पारदर्शिता, जवाबदेही का विकास करने की दिशा में अग्रसर है।छत्तीसगढ़ अपनी युवावस्था के दौर में है। इस ऊर्जा का उपयोग तीव्र गति से समन्वित विकास में किए जाने की आवश्यकता है। राज्य की नई सरकार ने यहां की जरूरतों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकास के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। किसानों से 3100 रुपए की दर पर धान की खरीदी, युवाओं को रोजगार, महिलाओं की आर्थिक उन्नति व स्वावलंबन के लिए महतारी वंदन योजना आदि ऐसे सोपान हैं जो समाज की तरक्की के पायदान तय करेंगे।अनुसूचित जनजााति बहुल प्रदेश को श्री विष्णुदेव साय के रूप में आदिवासी मुख्यमंत्री मिले हैं। उनके राज्य के मुखिया बनने से प्रदेश की पारंपरिक तथा सांस्कृतिक विरासत को नवीन आयाम मिलने की आशा की है। अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण की प्राथमिकता की भावना सरकार के कामकाज में प्रतिध्वनित हो रही है। सुशासन की अवधारणा यही है कि सभी वर्गों खासकर वंचित तबकों को न्याय तथा सम्मान दिलाने की पहल की जाए।सुशासन की स्थापना में सूचना प्रौद्योगिकी की अहम भूमिका रही है। प्रशासनिक व्यवस्था में इंटरनेट क्रांति से शुचिता और पारदर्शिता में वृद्धि, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सुदृढ़ीकरण, मजदूरों और कृषकों के बैंक खाते में सीधे राशि का भुगतान, राजस्व और अन्य विभागों के आनलाइन पोर्टल, जनोपयोगी सुविधाओं की आनलाइन व्यवस्था से न सिर्फ व्यवस्था में पारदर्शिता आई है बल्कि प्रशासन से जनता की दूरी भी घटी है।इस वर्ष सुशासन दिवस छत्तीसगढ़ की जनता को अनेक सौगातें देकर जाएगा। यह दिवस सबका साथ सबका विकास का मंत्र भी याद दिलाएगा। नई सरकार के कार्यकाल का यह दिवस राज्य में खुशहाली और विकास की ठोस बुनियाद रखेगा। -
कइसे तोला बचावव बेटी
कविता -लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
चारों कोती रावण - दुशासन , खींचत लुगरा तोर ।कइसे तोला बचावँव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
आज सुरक्षित नइहे बेटी , अपन घर अंगना म ।गिधवा नजर डारे बइठे , लाज बचावव किशना ।अत्याचार अमावस कस , मुंधियार हे घनघोर ।कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
भेस बदल के दानव घुमय , भेस बदलय शिकारी ।फंदा डारे बइठे हे सब , दुर्जन के नइहे चिन्हारी ।गली - गली म बइठे डाकू , घर- दुआर मा चोर ।कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
बेटी ल कोख म मारय , नारी ला सतावय ।इज्जत लूटत हे बेटी के , दुष्ट रूप देखावय ।बेटी पढावव आघु बढावव , ज्ञान के करव अंजोर ।कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।। -
- कविता
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ,
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।
सुख के पंछी उतरें ऑंगन ,
नित-नित कलरव-गान सुनाएँ ।।
मोह, लोभ, मद, काम-क्रोध को ,
विलुप्त कर दें भाव-भूमि से ।
क्षमा ,दया को रोपित कर दें ,
पौध प्यार की जन-मन सरसे ।।
नेह,प्रेम का नीर सींच कर ,
चलो शांति के बीज उगाएँ ।।
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ।
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।।
कलित ललित शीतल सुखदायी
मृदु मंद पवन मंथर-मंथर ।
शांत सलिल उर्मिल प्रवाह में ,
जीवन-नैया चलती सत्वर ।
आ बिखेरें प्यार की खुशबू ,
जीवन के सुख-साज सजाएँ ।।
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ।
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।।
सृजन करें नव गीतों का हम ,
जीवन में सुख-संगीत भरें ।
पावन हो जाए यह धरती ,
शुभ पुण्य कर्म हम सभी करें ।
महित मुदित मोहक हो दुनिया,
विषमताओं को हम मिटाएँ ।।
सुंदर मधुबन जगत बनाएँ ।
खुशियों के हम फूल खिलाएँ ।। - शीत के दोहे-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)----------मार्गशीर्ष सेहत भरा, मिले खूब फल शाक।योगासन व्यायाम कर, आलस रखना ताक ।।
आतप ने झुलसा दिया, ठिठुराता हेमंत ।बाट जोहती प्रेयसी, कब आओगे कंत ।।
पावन प्रीति पुनीत का,कर लोगे अनुभास ।अदरक वाली चाय ज्यों, महक बुलाती पास ।।
घूँट चाय की भर रहे, पुष्पित पाटल ओष्ठ।नैन-चषक ये भर रहे, प्रणयी हृदय-प्रकोष्ठ।।
विरही खग मन का उड़े, करने प्रिये मिलाप।प्रीति- रजाई से मिले, शिथिल देह को ताप ।।
शीत प्रभाती भोर में, डाले धुंध पड़ाव ।ठंड-ठिठुरते गात को, राहत सिर्फ अलाव।।
बदमिजाज मौसम हुआ,पल-पल बदले रूप।शीत-निठुर के सामने, बेबस होती धूप ।।
माह दिसंबर दे रहा, ठंडक का अनुभास ।ऊनी स्वेटर शॉल ने, जगह बनाई खास ।। -
तुम शिव हो जाना
------------------------कविता--लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)लोग तुम्हें बुरा बोलेंगे ,हँसेंगे तुम्हारे पहनावे पर ,तुम्हारी जीवन-शैली पर,जीर्ण-शीर्ण आवास पर ,इन सबसे विचलित मत होनापार्थिव हो जाना,तुम शिव हो जाना ।
आगे जाने नहीं देंगे विरोधी,बढ़ गए तो गिराने कीभरसक कोशिश होगी ,अपमानों के शूल चुभोकर,छीन लेंगे है तुम्हें जो प्रिय,पी जाना अपमानों का गरल,या क्रोध में तांडव कर जाना ,फिर शांतचित्त राजीव हो जाना ।तुम शिव हो जाना ।।
उच्च विचार, शक्ति-संपन्न ,धीर-वीर, सहनशील बन।छल-कपट से दूर सरल हो,भोलेनाथ जीत सके जग का मन ।रख हृदय में राम ही बस ,आशुतोष बन मुस्कुराना ,चिरंजीव हो जाना ।तुम शिव हो जाना ।। - पांचवा मौसम क्लाइमेट चेंज के वार का !साल 1987 में रीलिज हुई फिल्म सिंदूर का यह हिट गाना आज भी लोगों की जुबां पर रहता है, पतझड़ सावन बसंत बहार...एक बरस के मौसम चार, मौसम चार...पाँचवा मौसम प्यार का...लता मंगेशकर के गाये इस गीत में कोयल के कूकू करने और बुलबुल के गाने, फूलों के खिलने, बादल के बरसने की पंक्तियां संवेदनाओं को रोमांचित कर देती हैं। मौसम तो चार होते हैं, लेकिन आज पांचवा मौसम क्लाइमेट चेंज के वार का है जिससे हर आदमी जूझ रहा है। बुलबुल के गीत और कोयल की कूकू सुनने को कान तरसते हैं, एक बरस के मौसम चार की पूरी चाल बदल गई है।हम सभी जानते हैं परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है, लेकिन जो परिवर्तन पूरी पृथ्वी और मानव-समाज को संकट में ला दे, वह शाश्वत नियम न होकर मनुष्य की अप्राकृतिक क्रिया की अप्राकृतिक प्रतिक्रया है। सरल शब्दों में कहें तो ठंड के मौसम में बरसात और गर्मी झेलने की विवशता, घर के भीतर गर्मी तो बाहर ठंड, बेमौसम बारिश, बेमौसम गर्मी फलस्वरूप प्राकृतिक विपदाओं के साथ बीमारियों का तोहफा। कहने का आशय है क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) की इस जंग से हर आदमी जूझ रहा है। लगभग छह साल पहले वर्ष 2017 में महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने बीजिंग में टेनसेंट वी शिखर सम्मेलन में ऊर्जा की बढ़ती खपत और तेजी से बढ़ते धरती के तापमान को लेकर चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि यही हालात रहे तो आने वाले 600 वर्षों में पृथ्वी आग का गोला बन जाएगी और मानव को दूसरे ग्रह पर बस्ती बसानी होगी। धरती आग का गोला बनती जा रही है। हर साल बढ़ती गर्मी का रिकार्ड सिर्फ भारत में ही नहीं टूट रहा है, पूरे विश्व का तापमान बढ़ता जा रहा है।कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में बताया है कि बढ़ते तापमान की वजह से इंसान का दिमाग सिकुड़ रहा है और इंसान की लंबाई भी घट रही है। यानी तापमान का सीधा संबंध इंसान के आकार से भी है। जलवायु परिवर्तन से विश्व के अधिकांश देश परेशान हैं।हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान बढ़ने की संभावना व्यक्त की है। वर्ष 2023 से 2027 तक सबसे गर्म पांच साल रहेंगे। यह चिंता सिर्फ आज की नहीं है। यदि 26 साल पहले सन 1997 में जापान के क्योटों में विश्वभर के पर्यावरण वैज्ञानिकों की बैठक की तफ लौटें तो उस समय यह निर्णय लिया गया था कि सभी औद्योगिकृत देश अपने यहाँ ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन की मात्रा में कटौती करेंगे। इस पर पूरी ईमानदारी से अमल किया गया होता तो आज परिणाम कुछ और होते।वैश्विक तापमान में प्रतिदशक 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि नहीं होती। 2030 तक धरती के तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाने का अनुमान है। वजह साफ है मशीनी युग में जंगलों की कटाई, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जैव ईंधनों का अंधाधुंध उपयोग और वायुमंडल में निरंतर बढ़ती कार्बन-डायआक्साईड की मात्रा। कार्बन डाई ऑक्साइड को मानव जनित ग्रीन हाउस गैस माना जाता है जो पिछले कुछ दशकों से धरती के तापमान को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार मानी जा रही है। परिणाम भी सामने है, पृथ्वी का गर्म होता वायुमंडल, ध्रुवीय क्षेत्र के पिघलते हिम, समुद्र का बढ़ता जल स्तर, कहीं सूखा, कही बाढ़, वन्य जीवन का संटक में अस्तित्व, अवसाद, बेचैनी, निराशा के बीच मनुष्य की कम होती जीवन-प्रत्याशा और बीमारियाँ।पूरी दुनिया के लिए इस समय जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी समस्या है। देशभर के लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से पिछले माह पृथ्वी दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली में ग्लोबल क्लाइमेट क्लॉक लॉन्च की गई। यह घड़ी इस बात की जानकारी देगी कि सिर्फ 6 साल 90 दिन और 22 घंटे में कैसे धरती का तापमान 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा। 2030 में तय समय के बाद यह घड़ी बंद हो जायेगी। संकेत यह है कि छह साल बाद जलवायु परिवर्तन का हम सबके जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इसकी उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य जन्म के साथ ही अनेक ऋण भी लेकर आता है। देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण आदि की बात कही जाती है। भावी सुख-सुविधाओं और संतुष्टि के लिए मनुष्य अनेक प्रकार के ऋण चुकाता भी है। लेकिन हम सभी पर सबसे बड़ा ऋण प्रकृति का भी होता है। बिना प्रकृति के मानव जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। हम जन्म लेते ही पहला दर्शन प्रकृति का करते हैं और उसकी गोद में सांस लेना शुरू करते हैं। इंडिया वाटर पोल में डॉ. ज्योती व्यास विश्व तापमान में वृद्धि के संबंध में अपने आलेख में समाधान के रास्ते बताते हुए लिखती हैं, ‘’जीवाश्म ईधनों के दहन में कमी लाने के साथ ही हमें वनों की ओर लौटना चाहिए, वन कटाई करके जो नुकसान हमने किया है, उसकी भरपाई भी हम करें।‘’ वे आगे और समाधान बताती हैं, ‘’जिस प्रकार आधुनिकता के नाम पर हम धरती का उपयोग कर रहे हैं, उसके घटकों का बेजा उपयोग कर रहे हैं, उस पर कानूनन रोक लगाई जाए। परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दे।‘’ वस्तुतः यह सारे कदम उठाना न सिर्फ समय की मांग है अपितु प्रकृति के प्रति ऋण उतारने का श्रेष्ठ कदम भी है। यदि इस तरह के कदम उठाये जाते हैं तो आने वाले छह सालों में मानव जीवन के सामने आऩे वाली चुनौतियों से निपटा जा सकता है। यही युग की मांग है जिससे धरती को आग का गोला बनाने से रोका जा सके।हमें इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माता माना गया है और हम सब प्रकृति की संतान हैं। महाकवि कालीदास कुमारसंभव महाकाव्य और रघुवंश महाकाव्य में प्रकृति के सौंदर्य के साथ उसके संरक्षण का भी संदेश देते हैं।जर्नल आफ एडवांस एंड स्कॉलरली इन एलाइड एजुकेशन में विनोद कुमार अपने शोध आलेख कालिदास के महाकाव्यों में प्रकृति संरक्षण का संदेश में अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं। वे लिखते हैं कि कालिदास पौधों के रोपण एवं वृक्षों के संरक्षण के प्रति इतने अधिक आग्रही है कि वे कहते हैं ‘’यदि कोई विष का वृक्ष स्वयं उग आए और बड़ा हो जाये तो उसे भी नहीं काटना चाहिए।‘विषवृक्षोपि संवध्र्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम्’, क्योंकि वह प्राणियों को हानि की अपेक्षा लाभ ही अधिक पहुंचाने वाला होगा। माँ पार्वती के द्वारा वृक्ष से स्वयं टूट कर गिरे हुए पत्तों को ही आहार के रूप में ग्रहण करने का वर्णन तो कालिदास के प्रकृति संरक्षण की पराकाष्ठा है।‘’प्राचीन ऋषिवर और महानवेत्ता प्रकृति के दोहन के दुष्परिणामों से अवगत थे। कहते हैं कि सम्राट अशोक ने लाखों वृक्ष लगवाए थे और काटने पर दण्ड का भी प्रावधान किया था। वृक्ष काटने पर दण्ड के प्रावधान तो आज भी हैं, लेकिन फिर भी जंगल के जंगल कट रहे हैं। भावी पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर सख्त कानून की जरूरत है। धऱती को आग का गोला बनने की स्टीफन हॉकिंग की चेतावनी पर हँसने की बजाए गंभीरता से लिया जाना चाहिए।भारत ने एक नवंबर 2022 को ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के सामने ’पंचामृत रणनीति’ का प्रस्ताव रखा। पाँच रणनीति में पहली-वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 मेगावाट तक करना, दूसरी-अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतें, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करना, तीसरी-2030 तक ही कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना, चौथी-कार्बन तीव्रता में 30 प्रतिशत तक की कमी करना और पांचवी-2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना शामिल है। नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की यह रणनीति असल में ’क्लाइमेट चेंज’ की जंग है जिसमें शामिल होने की जरूरत आज पूरे विश्व को है। इसके लिए पहला कदम होगा हम सभी को अपनी जीवन शैली में बदलाव करना। इस ’पंचामृत’ को हासिल करना चुनौती जरूर है,. लेकिन इससे पूरी दुनिया को पाँच बड़े लाभ भी होंगे, पूरे विश्व का बढ़ता तापमान थमने लगेगा, पृथ्वी की जीवसृष्टि का तनाव कम होगा, ध्रुवों और हिमालय पर्वत के तेजी से पिघल रहे हिम की समस्या के समाधान के रास्ते निकलेंगे, प्रकृति के साथ खिलवाड़ में कमी आएगी और मनुष्य में श्वसन और हृदय सहित अन्य रोगों की हो रही बढ़ोत्तरी में कमी आएगी। आवश्यकता है प्रकृति से प्रेम को पांचवां मौसम बनाने की और मानवीय गतिविधयों के पैटर्न में बदलाव की।
- --लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद्देवभूमि भारत का छब्बीसवां राज्य छत्तीसगढ़ जहाँ इंद्रधनुषी सांस्कृतिक विविधताएँ और बहुलताएँ तो हैं, लेकिन आंतरिक एकता भी है; जो वास्तव में छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति और उसकी पहचान भी है। इस आंतरिक एकता को समझने के लिए पैनी दृष्टि चाहिए और सूक्ष्म विश्लेषण। यहाँ की आंतरिक एकता हर पाँच साल के विधानसभा चुनाव में ‘साइलेंट किलर’ अथवा दूसरे शब्दों में कहें, ‘मूक बहुमत’ के रूप में जब अभिव्यक्त होती है तो आश्चचयर्जनक परिणाम और परिवर्तन दृष्टिगत होने लगते हैं। तब सारे एक्जिट पोल और पूर्वानुमान की सत्यता पर संदेह के बादल मंडराने तो लगते ही हैं, परिणाम आने पर वे अंततः असत्य प्रमाणित होकर छँटते चले जाते हैं। विधानसभा चुनाव-2023 के परिणाम इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जिसके अप्रत्याशित परिणामों की चर्चा पूरे देश की मीडिया और राजनीति में थी।छत्तीसगढ़ में जनता का मूक बहुमत ही निर्णयकारी होता है, जो तमाम सर्वेक्षण और दावों को पटलकर रख देता है। वास्तव में छत्तीसगढ़ की जनता की नब्ज को समझ पाना इतना आसान भी नहीं है, जितना समझा जाता है। कब जन-समर्थन सारे कयासों और अनुमानों को सिरे से दरकिनार कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता और परिणाम उम्मीदों के विपरीत ही आते हैं। फिर हमें याद आते हैं राष्ट्रकवि दिनकर, जिनकी लोकतंत्र का अलख जगाने वाली रचनाएँ आज भी प्रासंगिक प्रतीत होती हैं। एक बानगी देखिये-हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँवह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।लोकतांत्रिक गणराज्य में जनता की ताकत का अहसास कराती ये पंक्तियाँ भी प्रासंगिक हैं-अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का हैतैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।3 दिसंबर, 2023, रविवार को छत्तीसगढ़ के राजनीतिक सरोवर में उदित होते सूर्य-रश्मियों के स्वर्णिम प्रकाश में कमल की पंखुड़ियाँ खिलकर जनता के फैसले का विजयी-उद्घोष करेंगी, यह कोई नहीं जानता था। इस सत्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अनेक महानुभवों को सहसा इन परिणामों के पूर्वानुमान पर शत-प्रतिशत भरोसा नहीं था। हाँ, कयास और दावे जरूर थे। यह कोई नहीं जानता था कि जनता ने अपने मन में मतदान के दिन ही कमल की पंखुड़ियाँ खिलाकर रखी हैं और संकेत दे रखा है परिणाम के दिनों तक इंतजार का। इन अप्रत्याशित परिणामों से जाहिर है कि आम जनता, विशेषकर मातृ-शक्ति, युवा वर्ग और आम गरीब-मानस भी देश के प्रधानमंत्री के सूत्र वाक्य- ‘मोदी की गारंटी’ का तहे-दिल से स्वागत कर रहा है। इस सूत्र वाक्य की सार्थकता लोकसभा चुनाव-2024 के पूर्वानुमानों की सशक्त आधारभूमि तैयार कर रही है। भाजपा ने यह चुनाव साइलेंट किलर जनता के रुख को समझते हुए मोदी की गारंटी पर लड़ा और अंतिम समय में विनम्र-भाव के हथियार के साथ एकजुट होकर कड़ा परिश्रम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रसिद्ध कविता ‘कदम मिलाकर चलना होगा' की पंक्तियाँ स्मरण हो उठती हैं-उजियारे में, अंधकार में,कल कछार में, बीच धार में,घोर घृणा में, पूत प्यार में,क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,जीवन के शत-शत आकर्षक,अरमानों को ढलना होगा,कदम मिलाकर चलना होगा।इन पंक्तियों का केंद्रीय भाव आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। फिर वह जीवन का सामाजिक, आर्थिक या फिर राजनीतिक क्षेत्र ही क्यों न हो। कोई भी संकट क्यों न आ जाए, हिम्मत न हाकर उसका सामना प्यार से करना चाहिए। आगे वे लिखते हैं -सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,प्रगति चिरंतन कैसा इति अथ,सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,असफल, सफल समान मनोरथ,सब कुछ देकर कुछ न मांगतेपावस बनकर ढलना होगाकदम मिलाकर चलना होगा।राज्य की जनता ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार को पाँच साल के विश्राम के बाद पुनः अवसर प्रदान किया है तो उन अऩेक नई उम्मीदों के साथ, जिन्हे पूर्ण करने के वादे घोषणा पत्र में किये गये है। महिला, युवा, गरीब जनता और हर वर्ग को इंतजार है....सभी विजयी प्रत्याशियों को छत्तीसगढ़ आज डॉट-कॉम की हार्दिक शुभकामनाएँ...जय 'जन' जोहार...
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-लघुकथा
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
उदय उस बहुमंजिला इमारत के चौथे माले पर रहता था , भागदौड़ भरी जिंदगी में कसरत , व्यायाम के लिए समय कहाँ. बस वह अपने फ्लैट लिफ्ट से न जाकर सीढ़ियों से जाया करता । चढ़ना - उतरना ही उसका व्यायाम था । सुबह ऑफिस जाते वक्त और शाम को लौटते वक्त तीसरे माले के एक फ्लैट में अक्सर उसे एक बुजुर्ग दिखतीं जो उदय को देखकर मुस्कुरा उठतीं और उदय उन्हें नमस्ते कर लेता , बस इतना ही रिश्ता था उनके बीच - मुस्कान और सलाम का । एक दिन शाम को उदय को वो आंटी जी नहीं दिखी तो उसे कुछ कमी सी महसूस हुई और हाथ - मुँह धोकर वह उनके फ्लैट की घण्टी बजा रहा था । अंकल जी ने दरवाजा खोला - ऑन्टी जी दिखाई नहीं दी आज , उनकी तबीयत तो ठीक है ना " उदय ने कुछ झिझकते हुए पूछा ।" नहीं बेटे रमा की तबीयत ठीक नहीं है , आओ अंदर बैठो । " अंकल ने उसे बड़े स्नेह से भीतर बुलाया । उदय के बराबर उनका बेटा विदेश में रहता था । उनकी पत्नी रमा उदय को देखकर इसलिए खुश हो जाती । उदय का यूँ घर आकर उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछना दोनों को भावाभिभूत कर गया था । उदय ने उनसे कहा -"अंकल जी कुछ सामान लाना हो या कोई भी काम हो , आप मुझे बोल दिया कीजिए । आपको बार - बार नीचे उतरने की जरूरत नहीं । " बुजुर्ग दम्पत्ति की आँखें खुशी से भर आईं थीं । रमा जी तो अपनी बीमारी भूलकर उसे खिलाने - पिलाने में व्यस्त हो गई थी । पराये शहर में उदय को परिवार मिल गया था और उन बुजुर्गों को जीने का सहारा । एक प्यारा सा रिश्ता बन गया था उनके बीच जिसने उनके जीवन के खालीपन को स्नेह से भर दिया था । -
-लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् (प्रोफेसर, मैट्स यूनिवर्सिटी, रायपुर)
क्रिकेट अनिश्चताओं का खेल है ! कौन सा ओवर मैच का पूरा पासा पलट दे या कौन बल्लेबाज या गेंदबाज मैच को निर्णायक मोड़ दे दे…! कुछ भी पहले से कहा नहीं जा सकता। कब उम्मीदों की किरण से अरमानों के पंख रोशन हो जाएँ और कब उम्मीदों पर पानी फिर जाए...कुछ भी निश्चित नहीं होता ! हाँ, निश्चित होती है हार या फिर जीत जो खेल के मैदान में किसी भी खेल की अंतिम परिणति होती है। रोमांच और ग्लैमर से भरे इस खेल में किसी टीम के संकट के क्षणों में हर शख्स को इंतजार रहता है किसी न किसी चमत्कार का! कोई करिश्मा हो जाए तो वह घटना अद्भुत बन जाती है। वर्ल्ड कप-2023 में भारतीय टीम का सपना पूरा नहीं हुआ, लेकिन इस पूरी यात्रा ने अनेक नये इतिहास जरूर रच दिये। हार-जीत का सूक्ष्म से सूक्ष्म विश्लेषण महीनों तक होता रहेगा, लेकिन इससे परे कुछ दूसरे भी पहलू हैं जो काफी अहम प्रतीत होते हैं। जाहिर है यह हार निराशाजनक है और सभी के दिल टूट गये, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने हर मैच में जोश, जज्बे और जुनून के साथ लगातार जीत हासिल कर फाइनल में प्रवेश किया था। वास्तव में इस वर्ल्ड कप में भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया में सबसे मजबूत टीम बनकर उभरी है। यह उसके फ़ाइनल तक प्रभावी प्रदर्शन से प्रमाणित होता है। इस हार से परे भी अनेक दूसरे महत्वपूर्ण पहलू हैं जिनका विश्लेषण भी आवश्यक जान पड़ता है।
पूरी दुनिया की नजरें वर्ल्ड कप फाइनल पर टिकी रहीं। अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में मैच शुरू होने के पहले भारतीय वायु सेना की सूर्यकिरण टीम ने आसमान में अद्भुत एयर शो का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन ने देश-दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया। भारत में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी क्रिकेट मैच और विशेष रूप से वर्ल्ड कप में टॉस के बाद और मैच शुरू होने से पहले इस तरह का अद्भुत प्रदर्शन किया गया हो। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 1996 में सूर्यकिरण एरोबैटिक टीम का गठन किया गया था। ये टीम इंडियन एयर फोर्स के 52वें स्क्वाड्रन का हिस्सा है। इस टीम के विमानों से ही भारतीय वायुसेना अपने फाइटर जेट के पायलटों को युद्धाभ्यास के लिए ट्रेनिंग देती है। विश्व कप-2023 में भारत के खेल प्रेम के साथ युद्ध कौशल का अभ्यास पूरी दुनिया ने देखा। वर्ल्ड कप में इस बात का भी अहसास हुआ कि खेल में अब प्रतिस्पर्धा का स्वरूप बदलता जा रहा है। विराट कोहली का टीम इंडिया की जर्सी पाकिस्तान के कप्तान बाबर को भेंट करना खेल भावना का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
निःसंदेह भारतीय क्रिकेट टीम अपने ही घर में दो बार विश्व कप का खिताब हासिल करने वाली दुनिया की पहली टीम बन सकती थी, लेकिन यह सम्भव न हो सका, लेकिन भारतीय टीम के प्रयासों को कतई कमतर नहीं आंका जा सकता। भारत 1983 और 2011 में दो बार वर्ल्ड कप का खिताब और 2007 का टी-20 का खिताब जीतने वाली विश्व में पहली टीम है। मसलन भारत ने 60 ओवर, 50 ओवर तथा 20 ओवर का वर्ल्ड कप जीता है। यह मुकाम हासिल करना किसी अन्य देश के लिए कभी भी संभव प्रतीत नहीं होता।
भारत को 20 साल बाद आस्ट्रेलिया से 2003 का बदला लेने का अवसर जरूर मिला था, जिस पर टीम इंडिया चूक गई, लेकिन अनेक नये इतिहास भी रचे। इस विश्व कप में भारत बिना कोई मैच हारे, लगातार जीत दर्ज कर फाइनल तक पहुँची। इस विश्व कप में सबसे ज्यादा 40 शतक लगे जो अब तक नहीं लगे थे। सभी टीमों के बल्लेबाजों ने शतक लगाए तो विराट कोहली ने शतकों का अर्धशतक लगाया। 2015 के वर्ल्ड कप में 38 शतक लगे थे। रोहित शर्मा वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले दुनिया के पहले कप्तान बने। ऐसी बहुत सी बातें हैं जो भारतीय क्रिकेट टीम को सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित करती हैं, क्या हमें इन तथ्यों का आंकलन नहीं करना चाहिए ? क्रिकेट पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोता है। कहीं पूजा तो कहीं हवन, मन्नतें...हर शख्स की चाहत होती है भारत विश्व का सिरमौर बने। यह भावना भारत की सांस्कृतिक विविधता में उसकी आधारभूत एकता से परिपूर्ण देवभूमि देश के दर्शन कराती है। इस वर्ल्ड कप में भारतीय टीम पहले मैच से अपनी श्रेष्ठ कोशिशें की बदौलत जीत हासिल करते हुए फाइनल तक पहुँची। फाइनल में भी उसकी कोशिशें जारी रहीं। यह कोशिशें आगे भी जारी रहनी चाहिए। गलतियाँ और कमियाँ सुधारने के लिए विश्लेषण को आवश्यक समझा जाता है, लेकिन यह समय अब तक के प्रदर्शन पर हौसला अफ़ज़ाई का भी है। हिन्दी कविता के अमिट हस्ताक्षर सोहनलाल द्विवेदी जी की यह सुप्रसिद्ध कालजयी रचना स्मरण हो आती है-
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। -
गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
जीवन कौशल सीखा मैंने, खेत और खलिहानों में ।
मोती बनते यहाँ स्वेद-कण, श्रमिकों के अवदानों में ।।
मिट्टी की सोंधी खुशबू है , दिल के भोले - भालों में ।
अहंकार छल दम्भ नहीं है , इनके सरल सवालों में ।
समरसता है मन में इनके , हों अपनों बेगानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।
मान एक - दूजे का करते , मिलजुल कर सब रहते हैं।
आपस में कोई भेद नहीं , सुख - दुख साझा करते हैं ।
बढ़ने वाली चाल न चलते , होड़ नहीं नादानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत औऱ खलिहानों में ।।
गाँव मुझे अब भी प्यारा है , शोभा यहाँ निराली है ।
मन में कोई भी खोट नहीं , जेब भले ही खाली है ।
मन का आँगन बहुत बड़ा है , ममता भरी मचानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।
छोटे - छोटे सपने पलते , इनके निश्छल नैनों में ।
मधुरस का सा स्वाद भरा है , इनके देशज बैनों में ।
संस्कारों को जीते हैं ये , परंपरा के गानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।
--Mobael No.-9424132359 -
-सुआ गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
पढ़ लिख के सुघ्घर आघु हम पढबो, आघु हम बढ़बो न रे सुआ न, भाग जाही हमरो जाग न रे सुआ न भाग जाहि हमरो जाग ।।
तरी हरी नाना मोर ना ना नहरी सुआ न भाग जाही हमरो जाग ।।
इस्कूल जाबो अपन गियान बढाबो , गियान बढाबो ना रे सुआ न । पढबो सुघर सुघ्घर किताब नारे सुआ न पढबो हम अब्बड़ किताब ।
तरी हरी नाना मोर ना नाहरी ना ना रे सुआ ना सिखबो करे बर हिसाब ना रे सुआ ना सिखबो करे बर हिसाब ।।
मेहनत करके अपन किस्मत बनाबो , अपन किस्मत बनाबो
रे सुआ ना समय ल करव झन खराब ना रे सुआ न समय ल करव झन खराब ।
तरी हरी नाना मोर ना नाहरी नाना रे सुआ ना दुनिया ल देबो जवाब ना रे सुआ ना दुनिया ला देबो जवाब ।।
जम्मो बेटी पढही , अउ आघु आघु बढ़ ही ना रे सुआ ना
पढ़ लिख के पाहीं रुआब ना रे सुआ ना पढ़ लिख के पाहीं रुआब ।।
तरी हरी नाना मोर ना नाहरी ना ना रे सुआ ना , कुरीति जाही जम्मो भाग ना रे सुआ ना कुरीति जाही जम्मो भाग ।।
तरी हरी नाना मोर ना नाहरी ना ना रे सुआ ना फूल जाहि खुशी के गुलाब ना रे सुआ हो फूल जाहि सुख के गुलाब ।।
--Mobael No.-9424132359 - - कविता-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)पाए और गँवाए कितने , इस बार दीवाली में ।रूठे मित्र मनाए कितने , इस बार दीवाली में ।।
बरसों जमा कबाड़ निकाला , स्वच्छ कर कोना-कोना ।भाई मतभेद मिटाए कितने , इस बार दीवाली में ।।
सतरंगी लड़ियों से रोशन , झिलमिल महल -चौबारे ।अंतस दीप जलाए कितने , इस बार दीवाली में ।।
द्वेष-बैर को मन में पाला , छुपकर मूल्य कुतर रहे ।मूषक-दंभ भगाए कितने , इस बार दीवाली में ।।
छप्पन भोग लगे लक्ष्मी को , वस्त्राभूषण भी चढ़े ।भूखे अन्न खिलाए कितने , इस बार दीवाली में ।।** - लघुकथा--लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)पिछले कई दिनों से दीपावली की तैयारी में जुटी प्रियल थककर चूर हो गई थी । सफाई है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती और हर बार कुछ न कुछ रह ही जाता है । इस बार प्रियल ने पूरे घर को जगमगाने की तैयारी की थी ...छुट्टियाँ लगने के बाद ही सही तरीके से काम हो पाता है , उसके पहले तो बस छोटे - मोटे काम होते रहते हैं । चलो इसी बहाने फालतू चीजें बाहर निकल जाती हैं और घर साफ - सुथरा लगता है । दीपावली के दिन सुबह से लक्ष्मी जी के पूजन की तैयारियाँ करते- करते प्रियल के हाथ - पैर जवाब देने लगे थे । रात को दिये जलाने के बाद बड़ी हसरत से अपनी नई साड़ी के साथ पहनने के लिए खूब ढूँढ-ढूँढ कर खरीदी गई चूड़ियों और आभूषणों की ओर देख रही थी पर थके हुए शरीर ने बिल्कुल साथ न दिया..और जैसे - तैसे तैयार होकर उसने पूजा की । कोई न कोई कसर रह जाती है हर बार....सारे काम तो हो जाते हैं पर उसका अपना ही कुछ छूट जाता है ..न पार्लर जा पाई... न कहीं और... अच्छे से तैयार होने की साध तो पूरी नहीं कर पाई ...पर अपने चमकते - दमकते आशियाने को देखकर उसने संतोष भरी राहत की साँस ली और दर्द भरी पिंडलियों में मालिश करने लगी ।