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- छत्तीसगढ़ की नवीन औद्योगिक नीति 2019-2024 में फूड, एथेनॉल, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिफेंस, दवा, सोलर जैसे नए उद्योगों को प्राथमिकता दी गई हैं। सेवा क्षेत्र को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कृषि, लघु वनोपज, वनौषधियों, उद्यानिकी फसलों पर आधारित उद्योगोें को प्राथमिकता दी जा रही हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में उद्योग और व्यापार जगत के लोगों से विस्तृत विचार विर्मश के बाद तैयार की गई नई औद्योगिक नीति में किए गए इन प्रावधानों से छत्तीसगढ़ औद्योगिक नवाचार की संभावनाओं से भरपूर राज्य के रूप में तेजी से उभर रहा है।छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक नीति के अंतर्गत स्टार्टअप इकाईयों को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य स्टार्टअप पैकेज लागू किया गया है। मान्यता प्राप्त 688 स्टार्टअप इकाईयों में से 508 इकाईयों को बीते चार वर्षो में पंजीकृत कर विशेष प्रोत्साहन पैकेज का लाभ दिया जा रहा है। एम.एस.एम.ई सेवा श्रेणी उद्यमों में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिग स्टेशन, सेवा केन्द्र, बी.पी.ओ. 3-डी प्रिंटिंग, बीज ग्रेडिंग इत्यादि 16 सेवाओं को सामान्य श्रेणी के उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन दिए जाने का प्रावधान किया गया है। मेडिकल उपकरण तथा अन्य सामग्री निर्माण के लिए उद्योगों की भांति औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन देने का प्रावधान भी किया गया है। राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में 10 नवीन फूड पार्क की स्थापना की स्वीकृति दी गई है। सुकमा में 5.9 हेक्टेयर भूमि पर फूड पार्क की स्थापना के लिए आवश्यक अधोसंरचना निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है। राज्य में 200 फूड पार्क की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। प्रदेश के 146 विकासखण्डों में से 112 विकासखण्डों में फूड पार्क के लिए जमीन चिन्हांकित कर ली गई है। इसमें से 52 विकासखण्डों में 620 हेक्टेयर भूमि का अधिपत्य उद्योग विभाग को दिया गया है।उद्योगों को दी जा रही अनेक रियायतेंअनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिला वर्ग के उद्यमियों द्वारा 5 करोड़ के पूंजी लागत तक के नवीन उद्योग की स्थापना पर 25 प्रतिशत अधिकतम सीमा 50 लाख मार्जिन मनी अनुदान देने का प्रावधान। औधोगिक नीति 2019-24 में वनांचल उद्योग पैकेज के अंतर्गत स्थापित होने वाली इकाईयों को कुल निवेश का 50 प्रतिशत, 5 वर्षो में अधिकतम 50 लाख प्रति वर्ष अनुदान देने का प्रावधान। औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन नियमों का सरलीकरण किया गया था, जिसके अनुसार औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि आबंटन भू-प्रब्याजी में 30 प्रतिशत की कमी की गई है। औद्योगिक क्षेत्रों में भू-भाटक में 33 प्रतिशत की कमी की गई है। राज्य सरकार द्वारा औद्योगिक इकाईयों को 423 करोड़ रूपए स्थाई पूंजी निवेश अनुदान और 141 करोड़ ब्याज अनुदान दिया गया है। ऐसे अनेकों प्रयासों के कारण छत्तीसगढ़ में नये उद्योगों की स्थापना हो रही है। राज्य में 10 साल या उससे अधिक समय से उत्पादनरत् औधोगिक इकाईयों को लीज पर आबंटित भूमि को फ्री-होल्ड कर निवेशकों को मालिकाना हक दिया जा रहा है, ऐसा करने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य है। उद्योग विभाग द्वारा एकल खिड़की प्रणाली से 56 सेवाएं ऑनलाइन दी जा रही हैं। ई-डिस्ट्रिक्ट के अंतर्गत 82 सेवाएं ऑनलाइन की गई हैं, जिसमें दुकान पंजीयन से लेकर कारोबार के लायसंेस तक शामिल हैं।छत्तीसगढ़ सरकार की नई औद्योगिक नीति में उद्योगों की स्थापना के नियमों का सरलीकरण किया गया है। उद्यमियों को अनेक रियायतें दी जा रही है। स्वीकृति की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया गया है, इससे प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है और पूंजी निवेश को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार द्वारा नई औद्योगिक नीति में ऐसे अनेक प्रावधान किये गए हैं, जिनसे नवीन उद्योगों की स्थापना के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहन मिल रहा है और नए उद्योग स्थापित हो रहे हैं। इससे प्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ रही है।इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में छत्तीसगढ़ देश के प्रथम 6 राज्यों में शामिल है। राज्य सरकार ने नई औद्योगिक नीति 2021-2024 में उद्योगों की स्थापना से जुड़े नियमों को सरल बनाया है। पहले उद्योगों को स्थापना से पूर्व की प्रक्रियाओं में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। विभागीय स्वीकृति, कागजी कार्यवाही एवं अन्य कठिनाईयों के कारण उद्योग की स्थापना की प्रक्रिया में विलंब होता था। नई औद्योगिक नीति में इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए उद्योगों को विभिन्न स्वीकृतियां प्रदान करने के लिए एकल खिड़की प्रणाली लागू की गई है एवं कठिन प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया है।प्रदेश में 21 हजार करोड़ रूपए से अधिक का पूंजी निवेश, 2218 नए उद्योग स्थापितछत्तीसगढ़ सरकार द्वारा औद्योगिक विकास को गति देने के लिए गए निर्णय के परिणाम स्वरूप राज्य में पिछले 4 वर्षो में 2218 नए उद्योग स्थापित हुए, जिसमें 21 हजार 457 करोड़ रूपए से अधिक का निवेश हुआ तथा 40 हजार 324 लोगों को रोजगार मिला है। प्रदेश में नए उद्योगों की स्थापना के लिए 167 एमओयू किये गए हैं। जिसमें 78 हजार करोड़ रूपए का पूंजी निवेश प्रस्तावित हैं। इससे 90 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। इन्हे मिलाकर वर्तमान स्थिति में उद्योगों की स्थापना के लिए 177 एम.ओ.यू. प्रभावशील हैं, जिसमें 89 हजार 597 करोड़ रूपए का पूंजी निवेश और 1 लाख 9 हजार 910 लोगों को रोजगार दिया जाना प्रस्तावित है। 90 से अधिक इकाईयों द्वारा उद्योग स्थापना की प्रक्रिया में 4 हजार 126 करोड़ से अधिक का पूंजी निवेश पर 11 इकाईयों ने व्यवसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है।कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण आधारित 486 इकाइयां स्थापितराज्य में साढ़े 3 सालों में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण पर आधारित 486 इकाइयां स्थापित हुई हैं जिसमें 9 सौ 31 करोड़ रूपए का पूंजी का निवेश हुआ है। इसी तरह से छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश में नई औद्योगिक नीति के क्रियान्वयन से रोजगार, स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। बीते चार सालों में राज्य के निर्यात में तीन गुना वृद्धि आई है। वर्ष 2019-20 में 9067.29 करोड़, वर्ष 2020-21 में 17199.97 करोड़ तथा वर्ष 20121-22 में 25241.13 करोड़ रूपए का चावल, आयरन एवं स्टील एल्यूमिनियम एवं एल्यूमिनियम उत्पादों का निर्यात हुआ है।उद्योगों की स्थापना के नियमों के सरलीकरण और उद्यमियों को दी जा रही रियायतों से प्रदेश में उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बना है।आलेख- मनराखन मरकाम, आनंद सोलंकी
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विशेष लेख- नितिन शर्मा, सहायक संचालक
प्रत्येक माता-पिता की ख्वाइश होती है कि उनके बच्चे स्वस्थ्य रहें। लेकिन उनकी चिंता तब बढ़ जाती है जब बच्चे खाने-पीने में आनाकानी करते हैं। इससे बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। इसके साथ कुछ बच्चे जन्म से ही कुपोषित होते हैं। बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य और सुपोषण स्तर बना रहे इसके लिये मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर मध्याह्न भोजन में फोर्टिफाइड चावल का वितरण शुरू किया गया है। फोर्टिफाइड चावल वितरण की शुरूआत कोण्डागांव जिले से हुई थी। फोर्टिफाईड चावल क्या होता है..ये कैसे बनाया जाता है और बच्चों के लिये ये कैसे उपयोगी है..इस लेख में आपको बताते हैं।
फूड या खाद्य पदार्थों के फोर्टीफिकेशन का क्या मतलब होता है...?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फूड फोर्टीफिकेशन का मतलब होता है टेक्नोलॉजी के माध्यम से खाने में विटामिन और मिनरल के स्तर को बढ़ाना। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आहार में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके और इससे लोगों के स्वास्थ्य को भी लाभ मिले।
चावल में पहले से ही पोषक तत्व होते है फिर उसके फोर्टीफिकेशन की क्या जरूरत है?
आम तौर पर चावल की मिलिंग और पॉलिशिंग के समय फैट और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर चोकर की परतें हट जाती है। चावल की पॉलिश करने से 75-90 प्रतिशत विटामिन भी निकल जाते है जिसके वजह से चावल के अपने पोषक तत्व खत्म हो जाते है। इसलिए चावल को फोर्टिफाई करने से उनमें सूक्ष्म पोषक तत्व न सिर्फ फिर से जुड़ जाते है बल्कि और ज्यादा मात्रा में मिलाये जाते है जिससे चावल और ज्यादा पौष्टिक बन जाता है।
कुपोषण से लड़ने के लिए जरूरी है चावल का फोर्टीफिकेशन
छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख चावल उत्पादक राज्य है। विश्व में 22 प्रतिशत चावल का उत्पादन भारत करता है और हमारे देश में 65 प्रतिशत आबादी रोज़ चावल का सेवन करती है। इतना ही नहीं, भारत में प्रति व्यक्ति चावल की खपत प्रति माह 6.8 किलोग्राम है। भारत में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में चावल का वितरण भी बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। इसलिए देश की ज्यादातर आबादी के लिए चावल ऊर्जा और पोषण का एक बड़ा स्रोत है और कुपोषण से लड़ने के लिए चावल का फोर्टीफिकेशन एक कारगर रणनीति है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कई देश चावल के फोर्टीफिकेशन की रणनीति को लागू कर रहे है।
चावल को ऐसे करते हैं फोर्टीफाई ...
चावल को फोर्टीफाई करने के लिए सबसे पहले सामान्य चावल का पाउडर बनाया जाता है और उसमे सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन B 12, फोलिक एसिड और आयरन, FSSAI के मानकों के अनुसार मिलाये जाते है। चावल के पाउडर और विटामिन/मिनरल के मिश्रण को मशीनों द्वारा गूंथा जाता है और एक्सट्रूजन नामक मशीन से चावल के दानों फोर्टिफाइड राइस कर्नेल FRK को निकाला जाता है। इस FRK के एक दाने (ग्राम) को सामान्य चावल के 100 दानों (ग्राम) के अनुपात में मिलाया जाता है जिसे फोर्टीफाइड चावल कहते है।
फोर्टीफाइड चावल खाने के फायदे...
फोर्टीफाइड चावल में कई पोषक गुण है क्यूंकि इसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन B 12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व या माइक्रोन्युट्रिएंट्स मिलाये जाते है। ये पोषक तत्व अनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बचाता है।
आयरन अनीमिया से बचाव करता है, फोलिक एसिड खून बनाने में सहायक होता है और विटामिन B 12 नर्वस सिस्टम के सामान्य कामकाज में सहायक होता है। फोर्टीफाइड चावल के नियमित सेवन से बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है।
ऐसे पकाया जाता है फोर्टीफाइड चावल
अधिकतम पौष्टिक लाभ के लिए फोर्टीफाइड चावल को पर्याप्त पानी में पकाना चाहिए और बचे हुए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। अगर चावल को बनाने से पहले पानी में भिगोया गया हो तो चावल को उसी पानी में पकाना चाहिए। फोर्टीफाइड चावल को हर बार इस्तेमाल करने के बाद साफ और सूखे हवा-बंद डब्बे में रखना चाहिए।
फोर्टीफाइड चावल कहाँ मिलता है?
फोर्टीफाइड चावल सरकारी राशन की दुकानों पर मिलता है। यह चावल आंगनवाड़ी केंद्रों पर दिए जाने वाले पूरक पोषण आहार और स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में भी दिया जाता है।
फोर्टीफाइड चावल से संबंधित कुछ भ्रांतियां और तथ्य
भ्रान्ति: फोर्टीफाइड चावल प्लास्टिक चावल है ।
तथ्यः चावल को थ्त्ज्ञ के साथ 100ः1 के अनुपात में मिलाकर फोर्टीफाइड चावल तैयार किया जाता है। थ्त्ज्ञ को चावल के आटे और प्रीमिक्स से तैयार किया जाता है जिसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी 12 होता है जिसे एक साथ मिश्रित किया जाता है। इसमें प्लास्टिक जैसा कुछ भी नहीं होता और यह उपभोग करने के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक है।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल के स्वाद, सुगंध और पकाने की विधि में परिवर्तन होता है।
तथ्यः स्वाद, सुगंध और दिखने में फोर्टीफाइड चावल सामान्य चावल के जैसा ही होता है। इसे सामान्य चावल की तरह ही पकाकर सेवन करना चाहिए।
भ्रान्तिः फोर्टीफाइड चावल में पोषक तत्व खाना पकाने के दौरान नष्ट हो जाते हैं।
तथ्यः फोर्टीफाइड चावल पकाने के दौरान अपने पोषक तत्वों को बरकरार रखता है। अत्यधिक पानी में धोने और पकाने के दौरान भी पोषक तत्व अवशेष बरकरार रहते हैं। -
रायपुर/ छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ी संस्कृति सभ्यता और लोक कला को बढ़ावा देने के साथ ही आदिम संस्कृति एवं कला को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास निरंतर जारी है। इसी कड़ी का हिस्सा छत्तीसगढ़ में आयोजित होने वाला राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव भी है। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का यह तीसरा आयोजन है, जिसमें छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों से भी आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पारंपरिक कला और संस्कृति की छटा बिखेरने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जुटते हैं। इस बार यह आयोजन राज्योत्सव के साथ ही 1 से 3 नवंबर तक राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में किया जा रहा है। इस बार भी अनेक आदिवासी समूह अपनी पहचान के पर्याय और विशेष अवसरों पर प्रदर्शित किए जाने वाले आदिवासी लोक नृत्यों को लेकर पहुंचेंगे। आयोजन के दौरान होने वाले कुछ खास नृत्यों से जुड़ी जानकारी यहां दे रहे हैं:-
दंडामी माड़िया नृत्य - छत्तीसगढ़: बस्तर के दंडामी माड़िया नृत्य को गौर माड़िया नृत्य के नाम से जाना जाता है। इस नृत्य में युवक अपने सिर पर गौर नामक पशु के सींग से बना मुकुट, कोकोटा पहनते हैं, जो कौड़ियों और कलगी से सजा रहता है। युवकों के साथ नृत्य करने वाली युवतियां अपने सिर पर पीतल का मुकुट (टिगे) पहनती हैं और हाथ में लोहे की सरिया से बनी एक छड़ी, गूजरी बड़गी रखती हैं, जिसके ऊपर घुंघरू लगे रहते हैं, जिसे जमीन पर पटकते हुए आकर्षक ध्वनि उत्पन्न करती है।
माओ पाटा नृत्य - छत्तीसगढ़: बस्तर के मुरिया जनजाति में अनेक प्रदर्शनकारी कलाएं प्रचलित हैं, जो अत्यंत मनोरम तथा लयात्मकता से परिपूर्ण हैं। माओ पाटा मुरिया जनजाति का एक ऐसा ही नृत्य है, जिसमें नाटक के भी लगभग सभी तत्व विद्यमान हैं। इस नृत्य को गौर मार नृत्य भी कहा जाता है। माओ पाटा का आयोजन घोटुल के प्रांगण में किया जाता है, जिसमें युवक और युवतियां सम्मिलित होते हैं। नर्तक विशाल आकार के ढोल बजाते हुए घोटुल में प्रवेश करते हैं। इस नृत्य में गौर पशु है तथा पाटा का अभिप्राय कहानी है, जिसमें गौर के पारंपरिक शिकार को प्रदर्शित किया जाता है। पोत से बनी सुंदर माला, कौड़ी और भृंगराज पक्षी के पंख की कलगी जिसे जेलिंग कहा जाता है, युवक अपने सिर पर सजाए रहते हैं और युवतियां पोत और धातुई आभूषण कंघियां और कौड़ी से श्रृंगार किए हुए रहती हैं। एक व्यक्ति गौर पशु का स्वांग लिए रहता है, जिसका नृत्य के दौरान शिकार किया जाता है।
हुलकी नृत्य - छत्तीसगढ़: हुलकी नृत्य बस्तर के कोंडागांव और नारायणपुर जिले में निवास करने वाली मुरिया जनजाति का पारंपरिक नृत्य है। इसमें स्त्री-पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं। हुलकी नृत्य के बारे में यह मान्यता है कि यह नृत्य आदि देवता लिंगोपेन को समर्पित है। इस नृत्य में सवाल-जवाब की शैली में गीत गाये जाते हैं, जिसमें दैवीय मान्यताओं, किंवदतियों एवं नृत्य की अवधारणाओं से संबंधित प्रसंग पर सवाल-जवाब होते हैं। इस नृत्य का मुख्य वाद्य यंत्र डहकी पर्राय है, जिसका वादन पुरूष नर्तक करते हैं और महिलाएं चिटकुलिंग का वादन करती है। इस नृत्य में इसके अलावा कोई और वाद्य यंत्र निषिद्ध है। पारंपरिक रूप से हुलकी नृत्य का आरंभ हरियाली त्यौहार के बाद युवागृह से प्रारंभ होता है जो क्वांर महीने तक चलता है।
छाऊ नृत्य - झारखण्ड: छाऊ नृत्य भारत के तीन पूर्वी राज्यों में लोक और जनजातीय कलाकारों द्वारा किया जाने वाला एक लोकप्रिय नृत्य रूप है, जिसमें मार्शल आर्ट और करतबों की भरमार रहा करती है। छाऊ नृत्य का नामकरण संबंधित क्षेत्र के आधार पर किया जाता है। पश्चिम बंगाल में पुरूलिया छाऊ, झारखंड में सराइकेला छाऊ और ओडिशा में मयूरभंज छाऊ। इसमें से पहले दो प्रकार के छाऊ नृत्यों में प्रस्तुति के अवसर पर मुखौटों का उपयोग किया जाता है, जबकि तीसरे प्रकार के मयूरभंज छाऊ में मुखौटे का प्रयोग नहीं होता है। इस नृत्य में रामायण, महाभारत और पुराण की कथाओं को कलाकारों द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। इसमें गायन और संगीत का प्रमुख स्थ्ज्ञान है, किन्तु प्रस्तुति के समय लगातार चल रही वाद्य संगीत की विशेषता प्रधान रहती है। नृत्य में प्रत्येक विषय की शुरूआत नृत्य एक छोटे से गीत से होती है, जिसमें उस विषय वस्तु का परिचय होता है। छाऊ नृत्य केवल पुरूष कलाकारों द्वारा ही किया जाता है। छाऊ ने अपने कथावस्तु, कलाकारों की ओजस्विता, चपलता और संगीत के आधार पर न सिर्फ भारतवर्ष वरन विदेश में भी अपनी खास पहचान बनाई है।
पाइका नृत्य - झारखण्ड: मुंडा झारखंड की एक प्रमुख जनजाति है। मुंडा जनजाति झारखंड के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा और असम में भी निवास करती है। वर्तमान में मुख्यतः कृषि पर आधारित जीविकोपार्जन करने वाले मुण्डा लोगों को प्रदर्शनकारी कलाओं में पाइका नृत्य का विशेष स्थान है। पाइका युद्ध कला से संबंधित नृत्य है जिसे मुण्डा, उरांव, खड़िया आदि आदिवासी समाजों के नर्तकों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में केवल पुरूष ही हिस्सा लेते हैं। नर्तक योद्धाओं के पोषाक धारण करते हैं और अपने हाथों में ढाल, तलवार आदि अस्त्र लिए रहते हैं। नृत्य के अवसर पर प्रयोग होने वाले वाद्य ढाक, नगाड़ा, शहनाई, मदनभैरी आदि है। पाइका नृत्य विवाह उत्सवों के साथ ही अतिथि सत्कार के लिए सामान्यतः किया जाता है।
दमकच नृत्य - झारखण्ड: दमकच झारखंड राज्य के आदिवासी और लोक समाजों का एक लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य मुख्यतः विवाह के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है जिसमें महिलाएं और पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं। पुरूष वर्ग इस नृत्य में गायक वादक और नर्तक के रूप में महिलाओं का साथ देते हैं। इस नृत्य में कन्या और वर को भी पारंपरिक रूप से सम्मिलित किया जाता है। दमकच नृत्य में उपयोग किए जाने वाले वाद्य में ढोल, नगाड़ा, ढाक, मांदर, बांसुरी, शहनाई और झांझ आदि सम्मिलित है। यह नृत्य कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के देवउठनी एकादशी से शुरू होकर आषाढ़ मास के रथयात्रा तक किया जाता है।
बाघरूम्बा नृत्य - असम: बाघरूम्बा असम की बोडो जनजाति का एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय नृत्य है। बोडो असम का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है, जो वहां की कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग 40 प्रतिशत है। बोडो जनजाति की ज्ञान परंपराओं में अनेक सर्जनात्मक और प्रस्तुतिकारी कलाएं सम्मिलित हैं, जिनमें बाघरूम्बा नृत्य का उल्लेखनीय स्थान है। बाघरूम्बा नृत्य महिलाओं द्वारा त्यौहारों के परिधान धारण करती है। इस नृत्य में ढोल जिसे स्थानीय भाषा में खाम कहा जाता है, प्रमुख वाद्य है, जिसे सिफुंग अर्थात् बांसुरी और बांस में बने गोंगवना और थरका आदि वाद्यों के साथ बजाया जाता है। बोडो लोगों का प्रकृति प्रेम इस नृत्य में भी मुखरित होता है, जिसे इस नृत्य में पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, तितली, बहती हुई नदी की धारा, वायु आदि को दर्शाती नृत्य रचनाओं में देखा जा सकता है।
मरयूराट्टम नृत्य - केरल: मरयूराट्टम केरल की माविलन जनजाति का एक नृत्य है, जिसे केरल और तमिलनाडू के सीमा क्षेत्र में स्थित मरायूर नामक स्थान में निवास करने वाली माविलन जनजाति के लोगों के द्वारा किया जाता है। मरायूर केरल के पल्ल्ककाड़ जिले में स्थित है, जहां इस नृत्य को मुख्यतः विवाह समारोहों और उत्सवों के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य में स्त्री और पुरूष दोनों ही सम्मिलित होते हैं। -
डॉ. दिनेश मिश्र
*दीपावली का दूसरा दिनकल सुबह से मैसेज तो बहुत आये ,लेकिन मेहमान कोई नहीं आया.* कभी सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं.. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं..
दो दिन से व्हाट्स एप, और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते-करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है.
* मेसेज पर मैसेज ,संदेशें आते जा रहे हैं.. बधाईयों का तांता लगा हुआ है.. लेकिन मेहमान नदारद है!
ये है आज के दौर की असली दीवाली..
मित्रों, घर के आसपास के पड़ोसियों को अगर छोड़ दें तो त्यौंहार पर मिलने-जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है..
कुछ दोस्त और रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते हैं, लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है.. वो खुद नही आते!
दरअसल, घर अब घर नहीं रहा.. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह हो चला है, घर एक स्लीप स्टेशन है.. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस.. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये.. घर अब सिर्फ घरवालों का है..
घर का समाज से कोई संपर्क नहीं है.. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं..
हमें स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नहीं रहा.जब शाम होते ही घर पर त्योहारों में मिलने जुलने वालों की लाइन लग जाती थी.त्योहारों के दिन सबेरे से नए कपड़े पहिन कर उत्साह से मेहमानों का इंतजार होने लगता था. एक दो दिन नही बल्कि सप्ताह भर लोग एक दूसरे के घर जाते मिलते थे और एक दूसरे के ,घरों में बने व्यंजनों का रसास्वादन करते थे.पिछले कुछ वर्षों से घर में बुजुर्ग तैयार होकर बैठते तो हैं ,पर कुछ घण्टो के बाद नए कपड़ों को उतार कर वापस रोजमर्रा के कपड़े पहिन लेते हैं कि अब ज्यादा कोई मिलने नहीं आता . मिलने जुलने साथ बैठ कर गप मारने, ठहाके लगा कर त्यौहार मनाने के दिन पता नहीं कब वापस आएंगे.
अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फा़सला सा बन गया है.किसी के पास समय नहीं है.हर आदमी आभासी दुनिया में मस्त हो चला है फेसबुक,, सोशल मीडिया में दोस्तों की कमी नहीं है ,पर घर पर मिलने जुलने आने वाला कोई नहीं है.
अब वैसे भी शादी घर के आंगन की बजाय मेरिज हाल में होती है., बर्थडे ,मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है.. बीमारी में नर्सिंग होम में उपस्थिति दर्ज करा खैरियत पूंछी जाती है.. और तो और अंतिम आयोजन के लिए लोग सीधे श्मशान घाट ही पहुँच जाते हैं..!
और यदि न जा पाए तो इन सब कामों के लिए व्हाट्सएप तो है ही.
इस जमाने में अब कैश तो जेब में नहीं है , एटीएम ,पे टी एम,गूगल पे ,कार्ड, है ही..होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है. सारी बातें,व्यवहार मशीन से,मोबाइल से होने लगे हैं
इस दीवाली जरा इस सवाल पर गौर करियेगा.. कुछ नहीं तो एक दोस्त के घर हो आइयेगा.. आपस में मिलना जुलना आना जाना शुरू करिए.
अगले साल से आपके घर भी कोई आने लगेगा ,हँसी, खुशी, ठहाके गूंजने लगेंगे -
*आलेख-आनंद सोलंकी, घनश्याम केशरवानी*
घटती हरियाली, धरती के बढ़ते तापमान और पर्यावरण प्रदूषण ने आज दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन की बड़ी समस्या पैदा कर दी है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान से जहां जलवायु और मानव जनजीवन प्रभावित हो रहा है, वहीं कृषि उत्पादन पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वनस्पतियों की कई प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। इस वैश्विक समस्या के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लम्बे समय से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इनका अपेक्षित प्रभाव नजर नहीं आ रहा है। हाल के वर्षाें में दुनिया के कई हिस्से हीट वेव से प्रभावित हो रहे हैं।
चवालिस प्रतिशत वनों से आच्छादित भूमि वाला छत्तीसगढ़ देश के आक्सीजोन के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यूं तो छत्तीसगढ़ में हर वर्ष बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इसी कड़ी में एक नई पहल करते हुए राज्य में क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को कम करने और हरियाली के प्रसार के साथ साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री वृ़क्षारोपण प्रोत्साहन योजना की शुरूआत की है। छत्तीसगढ़ में 1 जूून 2021 से लागू की गई इस योजना‘ से किसानों और अन्य भू-धारकों को जोड़ने के लिए कई व्यावहारिक कदम उठाए गए हैं। किसानों को जोड़ने और उनकी आय सुनिश्चित करने के लिए वृक्ष कटाई के नियम सरल किए गए हैं।
इस योजना से जहां वृक्षों से मिलने वाली बहुमूल्य लकड़ी और फलों से आय अर्जित करने का नया जरिया किसानों और भू-स्वामियों को मिलेगा, वहीं इससे काष्ठ के उत्पादन में वृद्धि होगी। इससे रोजगार के नए अवसर भी बढ़ेंगे। इस योजना से निजी भूमि, खाली पड़ी जमीन पर हरियाली बढेगी, आसपास का वातावरण स्वच्छ होगा, इमारती लकड़ी, गैर इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी के लिए जंगलों पर दवाब कम होगा और हमारे बहुमूल्य वनों का संरक्षण भी हो सकेगा। साथ ही भू-जल स्तर में भी वृद्धि होगी।
*मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना*निजी भूमि पर किसान, वन अधिकार मान्यता पत्र प्राप्त हितग्राही पट्टे की जमीन पर, गैर वनीय क्षेत्रों की खाली जमीन पर शासकीय विभागों एवं ग्राम पंचायतों, वन प्रबंधन समितियों द्वारा इमारती, गैर इमारती प्रजातियों के वृक्षों, फलदार वृक्ष, लघु वनोपज, और औषधिय प्रजातियों के वृ़क्षों का रोपण इस योजना में किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ के सभी नागरिक, सभी ग्राम पंचायतें एवं संयुक्त वन प्रबंधन समितियां इस योजना का लाभ ले सकती हैं। मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत किसानों के लिए यह प्रावधान किया गया है कि जिन किसानों ने पिछले खरीफ सीजन में धान की फसल ली है, यदि वे धान की फसल के बदले अपने खेतों में वृक्षारोपण करते हैं, तो उन्हें आगामी 3 वर्षों तक प्रतिवर्ष 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।
ग्राम पंचायतें यदि अपने पास भूमि एवं राशि से वाणिज्यिक वृक्षारोपण करती है, तो एक वर्ष बाद सफल वृक्षारोपण की दशा में संबंधित ग्राम पंचायतों को शासन की ओर से 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इससे भविष्य में पंचायतों की आय में वृद्धि हो सकेगी। इसी तरह संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के पास उपलब्ध राशि से यदि वाणिज्यिक आधार पर राजस्व भूमि पर वृक्षारोपण किया जाता है, तो पंचायत की तरह ही संबंधित समिति को एक वर्ष बाद वृक्षारोपण सफल होने पर 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। वृक्षों को काटने व विक्रय का अधिकार संबंधित समिति का होगा। वृक्षारोपण करने वाले किसानों, ग्राम पंचायतों और वन प्रबंधन समितियों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए सीधे उनके खातों में राशि देने का प्रावधान योेजना में किया है।
*निजी भूमि पर रोपित तथा पूर्व से खड़े वृक्षों की कटाई के नियम हुए आसान*
भू-स्वामियों द्वारा स्वयं के खाते में कृषि के रूप में रोपित वृक्षों और प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों के कटाई के नियमों का सरलीकरण किया गया है। अब स्वयं की भूमि पर रोपित किए गए वृक्षों की कटाई के लिए भू-स्वामी को एसडीएम को केवल सूचना देनी होगी। इसमें यह ध्यान रखा गया है कि किसानों और भू-स्वामियों को वृक्ष कटाई के लिए शासकीय कार्यालयों के चक्कर काटना नहीं पड़े इसलिए अनुमति देने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है। वृक्षों की कटाई से मिलने वाली लकड़ी की कीमत भी एक माह की अवधि में दिलाने के प्रावधान शामिल किए गए हैं।
वृक्ष प्राकृतिक रूप से उगे होने की स्थिति में वृक्षों की कटाई के लिए भू-स्वामी को एसडीएम से लिखित अनुमति प्राप्त करनी होगी। प्राकृतिक रूप से उगे वृक्ष की कटाई के लिए एसडीएम को आवेदन देने के बाद राजस्व तथा वन विभाग का अमला निरीक्षण कर 30 दिन में प्रतिवेदन देगा। एसडीएम आवेदन प्राप्ति के 45 दिन के भीतर अपनी अनुशंसा आवेदक तथा वन मंडलाधिकारी भेजेंगे, लिखित अनुशंसा नहीं मिलने पर स्मरण हेतु आवेदन दिया जाएगा, यदि अगले 30 कार्य दिवस में लिखित निर्णय प्राप्त नहीं होता है, इसे अनुशंसा मानकर आवेदक अपनी जमीन पर उपजे वृक्षों की कटाई के लिए स्वतंत्र होगा। एक कैलेण्डर वर्ष में एक खाते में प्राकृतिक रूप से उगे चार वृक्ष प्रति एकड़ के मान से अधिकतम 10 वृक्षों की कटाई के लिए एसडीएम अनुशंसा कर सकेंगे।
भू-स्वामी द्वारा अपने खाते में कृषि के रूप में रोपित वृक्षों की कटाई के लिए एसडीएम एवं वन परिक्षेत्र अधिकारी को कटाई से एक माह पूर्व निर्धारित प्रारूप में सूचना देना होगा। जिसका दस्तावेजी एवं भौतिक सत्यापन पटवारी एवं वनपाल के माध्यम से कराया जाएगा। भू-स्वामी द्वारा लिखित में इच्छा व्यक्त करने पर रोपित वृक्षों की कटाई वन विभाग द्वारा की जा सकेगी। वन मंडलाधिकारी द्वारा प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों के कटाई के संबंध में सक्षम अनुशंसा और भू-स्वामियों द्वारा स्वयं के खाते में कृषि के रूप में रोपित वृक्षों की कटाई के लिए लिखित रूप में इच्छा व्यक्त किए जाने पर आवेदन प्राप्ति के 30 कार्य दिवस के भीतर निर्धारित दर पर लकड़ी के मूल्य की गणना कर मूल्य का 90 प्रतिशत भू-स्वामी के बैंक खाते में और 10 प्रतिशत वन विभाग के खाते में जमा करेंगे। वन विभाग में जमा की जाने वाली राशि से प्रत्येक काटे जाने वाले वृक्ष के 10 गुना संख्या में वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण एवं उनका रख-रखाव किया जाएगा।
आने वाले समय में वाणिज्यिक, औद्योगिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहन मिलने के साथ, पर्यावरण में सुधार, जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों को कम करने तथा वृक्षारोपण के माध्यम से कृषकों की आय में वृद्धि करते हुये उनके आर्थिक सामाजिक स्तर में सुधार लाने में मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना मील का पत्थर साबित होगी।
- आलेख- प्रकाश उपाध्यायफिल्म इंडस्ट्री में जब भी खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों की चर्चा होती है, तो उसमें हेमामालिनी का नाम भी शामिल होता है। आज वे सांसद हैं, लोकप्रिय राजनेता हंै, बेहतरीन क्लासिकल डांसर और अभिनेत्री तो हैं ही। वे जब भी टीवी के रियलिटी शो में आती हैं, फिर वह चाहे डांस शो हो या फिर म्यूजिकल शो...अपना अलग ही रंग जमा जाती हैं। उनके नाम के साथ जुड़ा ड्रीमगर्ल शब्द आज भी उन पर चरितार्थ होता है। आज वे अपना 74 वां जन्मदिन मना रही हैं।हेमा ने फिल्मी दुनिया में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट कदम रख दिया था। वह मजह 14 साल की थीं जब फिल्मों में आईं और देखते ही देखते वे सिनेमा जगत की ड्रीम गर्ल बन गईं। फिल्मी दुनिया में शानदार काम करने के अलावा, हेमा धर्मेंद्र के साथ अपने रिश्ते की वजह से हमेशा चर्चा में रहीं। उनकी प्रेमकथा किसी परीकथा जैसी ही है।हेमा मालिनी और धर्मेंद्र की पहली मुलाकात के.ए अब्बास की फिल्म के प्रीमियर के दौरान हुई थी। इस मुलाकात के बारे में हेमा मालिनी ने अपनी बायोग्राफी 'हेमा मालिनी बियोंड द ड्रीम गर्ल' में बताया है। इसमें बताया गया है कि उन दिनों हेमा की एक फिल्म रिलीज होने वाली थी। इसी वजह से फिल्म के प्रीमियर के इंटरवल के दौरान हेमा को स्टेज पर बुलाया गया। यहां पर ही धर्मेंद्र ने हेमा को पहली बार देखा और उन पर अपना दिल हार बैठे। तब धर्मेंद्र ने हेमा को देखकर पंजाबी में कहा था, 'कुड़ी बड़ी चंगी है।' हालांकि, हेमा बस यह सुनकर आगे बढ़ गई थी। एक इंटरव्यू में हेमा मालिनी यह खुलासा कर चुकी हैं कि उन्हें फिल्म 'प्रतिज्ञाÓ की शूटिंग के दौरान धर्मेन्द्र से प्यार हुआ था। हालांकि 19 साल की उम्र में ही धर्मेन्द्र के घर वालों ने उनकी शादी प्रकाश कौर से करा दी थी। उस वक्त तक धर्मेन्द्र ने एक्टिंग की दुनिया में कदम भी नहीं रखा था। पहली शादी से धर्मेन्द्र के चार बच्चे भी हैं।हेमा और धर्मेन्द्र के रिश्ते के बारे में जैसे ही उनके घरवालों को पता चला, उन्होंने तुरंत हेमा की शादी दूसरे जगह तय करने का निर्णय कर लिया था। हेमा की शादी का पता चलते ही धर्मेन्द्र तुरंत हेमा मालिनी के घर पहुंच गए और उन्होंने हेमा को किसी दूसरे से शादी नहीं करने के लिए राजी कर लिया। बात यही खत्म नहीं हुई। प्रकाश कौर ने धर्मेन्द्र को तलाक देने से इंकार कर दिया। पर धर्मेन्द्र कहां मानने वाले थे। उन्होंने बीच का रास्ता निकाला और धर्म परिवर्तन कर हेमा से शादी कर ली। उनके दो बच्चे हैं ईशा और आहना और दोनों ही बेटियां कुशल क्लासिकल डांसर हैं। हालांकि इस शादी से हेमा के कॅरिअर पर बुरा असर पड़ा, पर समय बहुत बड़ा मरहम होता है और यही हुआ।इस तरह आई राजनीति मेंड्रीम गर्ल हेमा मालिनी का सिनेमा से सियासत का तक का सफर काफी दिलचस्प रहा है। वह इस समय उत्तर प्रदेश के मथुरा से सांसद हैं। हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि हेमा कभी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं। हेमा को राजनीति का रास्ता दिखाने वाले शख्स विनोद खन्ना थे। साल 2017 में जब विनोद खन्ना का निधन हुआ तो उनका जिक्र करते हुए हेमा मालिनी इमोशनल हो गई थीं। इसी वक्त उन्होंने बताया था कि वे किस तरह विनोद खन्ना की कर्जदार हैं। मशहूर लेखक रशीद किदवई ने अपनी किताब 'नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्सÓ में हेमा मालिनी के बारे में लिखा है, 'हेमा को राजनीति के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। यहां कैसे काम होता। एक दिन विनोद खन्ना का फोन आया। उन्होंने कहा- मैं गुरदासपुर से चुनाव लड़ रहा हूं। मैं चाहता हूं तुम मेरा चुनाव प्रचार करो। उन्होंने तुरंत मना कर दिया, क्योंकि उनको राजनीति के बारे में जरा भी जानकारी नहीं थी।Ó विनोद खन्ना से बातचीत के दौरान दोनों की दोस्ती हो गई और यहीं से हुई थी हेमा के राजनीतिक करियर की शुरुआत।--------
- जी.एस. केशरवानीआनंद सोलंकीछत्तीसगढ़िया ओलंपिक पूरे राज्य में शुरू हो गया है। त्यौहारों के इस खुशनुमा माहौल में युवा से लेकर बुजुर्ग इन खेलों में उत्साह से हिस्सा ले रहे हैं। एक तरफ प्रकृति की हरियाली वहीं दूसरी ओर फसल के रूप में प्रकृति का उपहार इस उत्साह को कई गुना बढ़ा रहा है। पहली बार छत्तीसगढ़ में आयोजित हो रहे इन खेलों में लोगों का जुड़ाव स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ में इन खेलों के प्रति रूचि इस बात से पता चल रही है कि इन खेलों में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को अपना बचपन और युवावस्था फिर से याद आने लगा है।हमारी संस्कृति में परम्परागत खेल रचे बसे हैं। यहां के लोक जीवन में ये खेल न केवल मनोरंजन का जरिया हैं बल्कि ये शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ही हमें ताजगी और स्फूर्ति भी देते हैं। पिट्टुल, गिल्ली -डंडा, खो-खो, कबडडी जैसे खेल यहां गांव-गांव खेले जाते हैं। इनमें खो-खो और कबड्डी के खेल में खिलाड़ियों की चुश्ती और फुर्ती देखते ही बनती है। वहीं बालिकाओं और महिलाओं में फुगड़ी का खेल अत्यंत लोकप्रिय है।छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में उन खेलों को शामिल किया गया है जो यहां परम्परागत रूप से गांवों-और शहरों में खेले जाते हैं। लोक रूचि के इन खेलों को नई पहचान दिलाने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर इस खेल प्रतियोगिता की रूप रेखा तैयार की गई। कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही इन खेलों के आयोजन का किया जा रहा है। इस आयोजन में लोक रूचि के 14 परंपरागत खेलों को शामिल किया गया है।पूरे तीन महीने यानी 6 अक्टूबर से 6 जनवरी 2023 तक गांव से लेकर शहर तक पूरा छत्तीसगढ़ खेल मय रहेगा। परम्परागत खेलों के आयोजन से यहां नई खेल संस्कृति भी विकसित होगी। इस आयोजन से जहां खेल के प्रति जगरूकता आएगी वहीं खेल के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को आगे आने का अवसर मिलेगा। लोक रूचि और लोक महत्व के इस आयोजन से छत्तीसगढ़ देश में एक नई खेल ताकत के रूप में उभर कर सामने आएगा।छत्तीसगढ़ में खेलों को बढ़ावा देने के लिए खेलबो-जीतबो गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का नारा भी दिया गया है। छत्तीसगढ़ नई खेल क्रांति की ओर बढ़ रहा है। आने वाले वर्षों में यह प्रदेश को खेल गढ़ के रूप में नई पहचान मिलेगी इसकी शुरूआत हो चुकी है। गुजरात में चल रहे 36वें नेशनल गेम में आकर्षी कश्यप गोल्ड मेडल जीत कर यहां के बेडमिंटन खिलाडियों को नई पहचान दी है। गुजरात में आयोजित 36 वीं राष्ट्रीय खेल में पहला गोल्ड मैडल स्केटिंग स्पर्धा में अमितेष मिश्रा ने जीता है। छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी अब तक 7 मेडल जीत चुके हैं। जिसमें दो गोल्ड, 3 सिल्वर और दो कांस्य पदक शामिल है।छः चरणों में होने जा रहा छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के हर चरण में उम्मीद है कि लोगों का जुनून देखने को मिलेगा। इस प्रतियोगिता का अंतिम चरण राज्य स्तरीय होगा। राजीव गांधी युवा मितान क्लब स्तर पर चल रही इस खेल प्रतियोगिता में हार-जीत से बढ़कर खेल भावना भी दिख रही है। कई वाकया ऐसे भी नजर आए कि दो सगे भाई और दो मितान एक दूसरे के खिलाफ खेले और खेल समाप्त होते ही गले मिल कर एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं।छत्तीसगढ़ में लगातार खेल सुविधाओं में इजाफा हो रहा है। नई-नई अकादमियां प्रारंभ हो रही हैं वहीं नई अधोसंरचना पर भी काम हो रहा है। तीरंदाजी, हॉकी, बेडमिटन की अकादमी सभी के लिए पहल की गई है। यहां न सिर्फ खेल सुविधाएं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जा रही है। हाल में ही बेडमिटन और शतरंज की प्रतियोगिताएं आयोजित की गई जिसमें देश के खिलाडियों के साथ ही अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने भी भाग लिया। इसके साथ यहां क्रिकेट की रोड सेफ्टी वर्ल्ड सीरीज प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया।
- *स्वर्गीय अनुपम मिश्र और छत्तीसगढ़ के तालाबों की सुंदर परंपरा पर उनका आख्यान*गांधीवादी विचारक स्व. श्री अनुपम मिश्र की स्मृति में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वाटर रिचार्जिंग में अच्छा कार्य करने पर सम्मानित करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्वर्गीय श्री मिश्र को यह सच्ची श्रद्धांजलि है। अपनी किताब ‘‘आज भी खरे हैं तालाब’’ के माध्यम से मिश्र जी ने देश भर के साथ ही छत्तीसगढ़ में तालाबों की सुंदर परंपरा का सुंदर आख्यान प्रस्तुत किया है। इससे हमारे पूर्वजों की दूरदृष्टि तथा परंपरा के प्रति उनके गहरे सम्मान की स्मृतियां उभर आती हैं।छत्तीसगढ़ में छह कोरी छह आगर के तालाबों की परंपरा रही है अर्थात 126 तालाब। श्री मिश्र ने अपनी किताब में आरंग, डीपाडीह, मल्हार आदि के तालाबों का जिक्र किया है जहां अब भी तालाब अक्षुण्ण हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद पूरे प्रदेश में इन तालाबों को सहेजने का कार्य किया जा रहा है। सरोवरों की नगरी कहे जाने वाले धमधा में तालाबों से अतिक्रमण हटाये जा रहे हैं। पूरे प्रदेश में सरोवरों को निखारा जा रहा है।सरोवरों को बचाने और सहेजने की यह पहल हमारी परंपरा का हिस्सा रही है। अनुपम मिश्र अपनी किताब में लिखते हैं कि छत्तीसगढ़ में ग्यारह पूर्णिमा तालाब खोदने श्रमदान कार्य के लिए हैं लेकिन पौष की पूर्णिमा इसे सहेजने के लिए दान करने का। छेरछेरा के दिन धान का दान लिया जाता था और इसे तालाबों तथा सार्वजनिक स्थलों को सहेजने के लिए उपयोग किया जाता था।तालाबों के ब्याह की परंपरा भी यहां थी और तालाबों में पानी भरे रहने की मंगल कामना के गीत भोजली गीत में हैं। एक जगह जिक्र आया है कि इतना पानी तालाब में हो कि भोजली विसर्जित हो पाए। छत्तीसगढ़ का रामनामी संप्रदाय तालाब निर्माता के रूप में प्रसिद्ध रहा। इन्होंने पूरे प्रदेश में घूमघूमकर तालाब बनवाये। परंपरा में इन तालाबों का सुंदर जिक्र है।शुभ कार्य के लिए उचित तिथि और नक्षत्र देखी जाती है। तालाबों के निर्माण के लिए भी इसका विधान था क्योंकि तालाब का निर्माण बहुत ही तकनीकी काम था जिसके लिए अच्छे सिविल इंजीनियर की दक्षता लगती थी। उदाहरण के लिए भोपाल में भोज ताल को देखें। इस सागर जैसे तालाब को बांधने के लिए मंडीद्वीप में विशेष लखेरा बनाया गया ताकि तालाब में उठने वाली विशाल लहरें तटबंध को क्षति न पहुंचाये। ऐसे लखेरा हर बड़े तालाब में हैं। रायपुर के बूढ़ा तालाब अथवा विवेकानंद सरोवर को देखें तो इसका लखेरा अब गार्डन के रूप में विकसित हो गया है। अनुपम मिश्र ने लिखा है कि तालाबों को स्वच्छ बनाये रखने इनमें खास तरह की वनस्पति लगाई जाती थी। उन्होंने लिखा कि इस किताब को लिखे जाने के पचास बरस पहले रायपुर में एक तालाब में सोने का नथ पहनाकर कछुये छोड़े गये ताकि पानी शुद्ध रह सके।रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में किरारी काष्ठ स्तंभ रखा है। आजादी के कुछ बरस पहले जब किरारी का हीराबंध तालाब पूरी तरह सूख गया तो तालाब के बीचों- बीच लकड़ी का यह स्तंभ उभर कर सामने आया। प्राकृत भाषा में लिखे इस अभिलेख को प्रख्यात इतिहासकार लोचन प्रसाद पांडे ने पढ़ा। जब यह तालाब बना होगा तब इसके लोकार्पण के मौके पर क्षेत्र का सातवाहन प्रशासनिक अमला आया था और यह लगभग दूसरी या तीसरी सदी में बनाया गया था। इस तरह से इस तालाब के माध्यम से प्रदेश का इतिहास भी सामने आया। तालाब में जो काष्ठ स्तंभ लगाया गया था वो साल की लकड़ी का था। साल की लकड़ी के बारे में कहावत है कि ‘‘हजार साल खड़ा, हजार साल पड़ा और हजार साल सड़ा’’। छत्तीसगढ़ के प्रायः हर तालाब में बीचोंबीच यह काष्ठ स्तंभ नजर आते हैं।तालाब के निर्माण के वक्त विशेष अनुष्ठान किये जाते थे। तालाब में अर्पित करने के लिए विद्यालय, मंदिर, घुड़साल आदि की मिट्टी लाई जाती थी। वरुण देवता की पूजा की जाती थी और प्रतीकात्मक रूप से सभी नदियों का जल डाला जाता था। जब प्रख्यात इतिहासकार अलबरूनी भारत आये तो उन्होंने तालाबों के निर्माण को पुण्य कार्य के रूप में बताया है। तालाब खुदवाना आरंभ करने का कार्य इतना महत्वपूर्ण होता था कि राजा-महाराजा भी इस पुण्य कार्य के लिए जुटते थे।छत्तीसगढ़ में तालाब निर्माण की परंपरा कमजोर होने के साथ ही इससे जुड़ा तकनीकी ज्ञान भी लुप्त होने लगा है। तालाबों में आगर ऐसा बनाया जाता है जिससे गर्मी के वक्त भी सूर्य की उष्मा से तालाबों का पानी क्षरित न हो। संस्कृत साहित्य में सूरज को अंबु तस्कर कहा गया है अर्थात जल चुरा लेने वाला। तकनीकी दृष्टिकोण से बने आगर में पानी काफी हद तक सुरक्षित रहता था।छत्तीसगढ़ में स्वर्गीय श्री मिश्र की स्मृति में शुरू किया जाने वाला सम्मान हमारे तालाब बनाने वाले और उन्हें सहेजने वाले पूर्वजों के वंशजों को प्रोत्साहित करने अनुपम पहल है जिससे प्रदेश में जल संरक्षण की परंपरा को बढ़ावा मिलेगा।*सौरभ शर्मा*
- ऋषिता दीवान, जगदलपुररायपुर। ग्राम स्वराज की परिभाषा गढ़ते वक्त गांधीजी यह जानते थे कि हमारा देश अपनी जड़ों को मजबूत करके ही अपनी पहचान को सुरक्षित रख सकता है और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इन्हीं विचारों को आत्मसात कर छत्तीसगढ़ राज्य आज निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। गांधी के इन विचारों का सटिक उदाहरण है छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वार चलाई जा रही सुराजी ग्राम योजना। जिसके अंतर्गत अंधाधुंध विकास की भेंट चढ़ते नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी को फिर से सहेजा गया और अब इसे नए तरह से विकसित किया जा रहा है। सुराजी गांव योजना में बनें गौठान आज ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका केन्द्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। यही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को मजबूती भी मिल रही है। छत्तीसगढ़ सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना को सृदृता मिली गोधन न्याय योजना की शुरूआत से। जिससे आज पशुपालक और ग्रामीण गोबर और गोमूत्र बेचकर अपनी जिविकोपार्जन को नया आधार दे रहे हैं।गांधीजी स्वच्छता के हिमायती थे वे चाहते थे कि सरल जीवन और स्वच्छ वातावरण हर किसी का आधार हो और यही वजह है कि स्वच्छता की दिशा में छत्तीसगढ़ लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर साल-दर-साल मिलने वाले स्वच्छता पुरस्कार यह साबित करते हैं कि छत्तीसगढ़ में गांधी के स्वराज की अलख जाग चुकी है।बापू चाहते थे कि भारत के अंतिम छोर पर बैठे हर व्यक्ति तक बुनियादी जरूरतें पहुंचे। उनके इन विचारों को धरातल पर उतारने की दृष्टि से ही छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर साल 2019 में 5 बड़ी योजनाओं की घोषणा की थी। ताकि राज्य के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक बुनियादी सुविधाएं पहुंच सके। इनमें कुपोषण से पीड़ित बच्चों और एनिमिया से लड़ रही महिलाओं के लिए सुपोषण अभियान, प्रदेश के दूरस्थ अंचलों में रहने वाले आदिवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिले इसके लिए हाट बाजार क्लिनिक योजना, गरीब और रोजी-मजदूरी करने वाले श्रमिक बस्तियों के लिए मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना, राज्य के सभी परिवारों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सार्वभौम पीडीएस और नागरिक सेवाओं के तत्काल उपलब्धता के लिए मुख्यमंत्री वार्ड कार्यालय योजना की शुरूआत की गई थी। इन योजनाओं का लाभ आज छत्तीसगढ़ के हर व्यक्ति तक पहुंच रही है। इनके अलावा राजीव गांधी किसान न्याय योजना से छत्तीसगढ़ के किसान अब खेती को नया आयाम दे रहे हैं। आर्थिक रूप से सश्क्त हो रहे किसान गांधी के ग्राम स्वराज को लाने में एक मजबूत कड़ी साबित होंगे। राजीव युवा मितान क्लब योजना से राज्य के कामों में युवाओं की सहभागिता से समाज को सकारात्मक गति मिलेगी। स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल से गरीब वर्ग के बच्चे बेहतर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। साथ ही राज्य में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए छत्तीसगढ़ शक्ति स्वरूपा योजना, महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए दाई-दीदी क्लिनिक योजना, महिलाओं की सुरक्षा के लिए हमर बेटी-हमर मान योजना का संचालन भी समाज में लिंग असामनता की खाई को पाट रहा है। गांधीजी ये चाहते थे कि हर वर्ग ऊपर उठे, समाज में समरसता आए, गरीब और अंतिम छोर के व्यक्ति की भी बुनियादी जरूरतें पूरी हो, शिक्षा की अलख जगे तभी असली स्वराज को हासिल किया जा सकता है। गांधी के इन विचारों पर चलते हुए आज छत्तीसगढ़ राज्य नए कल की ओर बढ़ते हुए गढ़ रहा है ‘नया छत्तीसगढ़’
- -धन्वंतरी मेडिकल स्टोर पर उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवा सस्ती दर पर उपलब्ध♦ एम.एल.चौधरी, (सहायक संचालक)रायपुर । मोबाईल मेडिकल यूनिट से घर के पास ही मिल रही निःशुल्क इलाज की सुविधाछत्तीसगढ़ में नागरिकों को आसानी से स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया कराने के छत्तीसगढ़ शासन के प्रयासों से अब नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधायें मिल रही हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशन में नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग द्वारा जहां मुख्यमंत्री स्वास्थ्य स्लम योजना के माध्यम से शहरी तंग बस्तियों में पहुंचकर मोबाईल मेडिकल यूनिट द्वारा लोगो का इलाज किया जा रहा है। वहीं श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर योजना के तहत आम नागरिकों को उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवाओं के क्रय करने पर 50 प्रतिशत से ज्यादा की भारी छूट दी जा रही है। इससे इलाज का खर्च कम हो गया है। अब ज्यादा संख्या में लोग ईलाज करा पा रहे है।धन्वंतरी मेडिकल स्टोर पर उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवा सस्ती दर पर उपलब्धशहरी क्षेत्र में निवासरत नागरिकों को उनके चौखट पर ही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए 01 नवम्बर 2020 से मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना प्रारंभ की गई। प्रथम चरण में सभी 14 नगर निगमों में 60 मोबाइल मेडिकल यूनिट एंबुलेंस के जरिए डॉक्टरों द्वारा सेवाएं प्रदान की गई। इसके तहत आम नागरिकों को मेडिकल कैंप के माध्यम से मुफ्त में परामर्श, उपचार, दवाइयां और टेस्ट की सुविधा प्रदान की जा रही है। मुख्यमंत्री दाई दीदी क्लीनिक भी इसी योजना की कड़ी है। इसमें संपूर्ण महिला स्टॉफ के साथ मोबाइल मेडिकल यूनिट गरीब बस्तियों की महिलाओं के इलाज हेतु उनकी बस्तियों में जा रही है।द्वितीय चरण में नगर पालिकाओं एवं नगर पंचायतों हेतु 60 मोबाईल मेडिकल यूनिट का संचालन 31 मार्च 2022 से प्रारंभ किया गया है। अब 120 मोबाईल मेडिकल यूनिट के माध्यम से शहरी ईलाकों की बस्तियों में निःशुल्क परामर्श, ईलाज, दवाईयों एवं पैथोलॉजी लैब की सुविधा समस्त नगरीय निकायों में उपलब्ध है। अब तक करीब 39 हजार शिविर आयोजित किये जा चुके हैं, करीब 27 लाख मरीजों का निःशुल्क ईलाज किया गया है। इसी तरह से दाई-दीदी क्लीनिक योजना के अंतर्गत रायपुर, बिलासपुर एवं भिलाई नगर निगमों में मोबाइल मेडिकल यूनिट द्वारा 1600 कैम्प लगाकर एक लाख 18 हजार से अधिक महिला मरीजों का निःशुल्क इलाज किया गया है।आम नागरिको को उच्च गुणवत्ता की रियायती दवा उपलब्ध कराने हेतु श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर योजना प्रारंभ की गई है। योजना अंतर्गत राज्य के समस्त 169 नगरीय निकायों में श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर खोले गए हैं। इस हेतु नगरीय निकायों द्वारा लगभग 194 दुकानों का चिन्हांकन किया गया, जिसमें से 190 दुकानंे प्रारंभ की जा चुकी हैं। इन दुकानों में 329 प्रकार की जेनेरिक दवाएं, 28 सर्जिकल आइटम रियायती दर पर उपलब्ध हैं। इससे अब आम नागरिकों को जेनेरिक दवाई आसानी से उपलब्ध होने लगी हैं। शासकीय चिकित्सकों हेतु पर्ची पर जेनेरिक दवाई लिखना अनिवार्य किया गया है। दवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु इन दुकानों में देश की ख्याति प्राप्त कंपनियों की जेनरिक दवाइयां उपलब्ध कराने की शर्त रखी गई है। उपलब्ध दवाइयों में सर्दी, खांसी, बुखार, ब्लड प्रेशर, इंसुलिन के साथ ही साथ गंभीर बीमारियों की दवा, एंटीबायोटिक, सर्जिकल आइटम भी न्यूनतम 50 प्रतिशत की भारी छूट के साथ उपलब्ध हैं। राज्य सरकार द्वारा श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर संचालक को 2 रू प्रति वर्गफुट की आकर्षक दर पर नगर पालिक निगम द्वारा किराये पर दुकानें उपलब्ध कराई गयी हैं साथ ही अन्य योजनाओं मे इन मेडिकल स्टोर्स से दवाई खरीदने हेतु प्रावधान किया गया। इस योजना का शुभारंभ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 20 अक्टूबर 2021 को किया गया था। इस दिन प्रदेश के निकायों में लगभग 87 दुकानों का शुभारंभ किया गया। अब 190 से ज्यादा धनवंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर संचालित किए जा रहे है। आगामी चरण में इन दुकानों से घर पहुंच दवा डिलीवरी की भी व्यवस्था की जाएगी।
- ♦ पंकज गुप्ता, संयुक्त संचालकरायपुर। उत्साह, आनंद और सृजनशीलता का पर्याय होते हैं लोक खेल। स्थानीय सामाग्रियों की आसानी से उपलब्धता, खेल के स्थानीय तौर तरीके, रोचकता और मनोरंजन जैसे गुणों के कारण लोक खेल जन-जन में बेहद लोकप्रिय होते हैं। एक ऐसे समय जब बच्चों, किशोरों और युवाओं सहित नागरिकों की सारी दुनिया सिमटकर मोबाइल में समाते जा रही है और उनका बचपन का नैसर्गिक उत्साह, मुस्कान और सृजनशीलता का दायरा भी छोटा होता जा रहा है। ऐसे में उनकी दुनिया और खेल के मैदान को एक बार फिर से व्यापक बनाने की आवश्यकता सभी ओर महसूस की जा रही है। निश्चय ही लोक खेल इस दिशा में एक सार्थक कदम बन सकता है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार जो लोककला, लोक संस्कृति और लोक खान-पान को लगातार बढ़ावा दे रही है, अब इसी दिशा में एक कदम और आगे बढ़कर लोक खेलों पर आधारित ’छत्तीसगढिया ओलम्पिक’ का आयोजन करने जा रही है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर बीते 6 सितम्बर को कैबिनेट में लिए गए निर्णय के बाद छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक का खाका तैयार कर लिया गया है। छह स्तरों में होने वाले ’छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक’ के आयोजन का दायित्व पंचायत एवं ग्रामीण विकास और नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग को सौंपा गया है। इन खेलों की शुरूआत आगामी 6 अक्टूबर 2022 से शुरू होगी, जिसका समापन राज्य स्तर पर 6 जनवरी 2023 को होगा।दो श्रेणी में 14 तरह के खेले होंगेदो श्रेणी में 14 तरह के खेले होंगेछत्तीसगढ़ के पारम्परिक खेल प्रतियोगिता दलीय एवं एकल श्रेणी में होगी। छत्तीसगढ़ ओलम्पिक 2022-23 में 14 प्रकार के पारम्परिक खेलों को शामिल किया गया है। इसमें दलीय श्रेणी गिल्ली डंडा, पिट्टूल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी और बांटी (कंचा) जैसे खेल शामिल किए गए हैं। वहीं एकल श्रेणी की खेल विधा में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मीटर दौड़ और लम्बी कूद शामिल है।गांव के क्लब से लेकर राज्य तक छह स्तरों पर होंगे आयोजन-छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक में छह स्तर निर्धारित किए गए हैं। इन स्तरों के अनुसार ही खेल प्रतियोगिता के चरण होंगे। इसमें गांव में सबसे पहला स्तर राजीव युवा मितान क्लब का होगा। वहीं दूसरा स्तर जोन है, जिसमें 8 राजीव युवा मितान क्लब को मिलाकर एक क्लब होगा। फिर विकासखंड/नगरीय क्लस्टर स्तर, जिला, संभाग और अंतिम में राज्य स्तर खेल प्रतियोगिताएं आयोजित होंगी। छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक में आयु वर्ग को तीन वर्गो में बांटा गया है। इसमें प्रथम वर्ग 18 वर्ष की आयु तक फिर 18-40 वर्ष आयु सीमा तक, वहीं तीसरा वर्ग 40 वर्ष से अधिक उम्र के लिए है।छत्तीसगढ़ के ये पारम्परिक खेल न केवल ऋतुओं पर आधारित होते है, बल्कि कई बार अपने साथ-साथ लोकसंगीत और लोकगायन को भी लिए होते हैं, जिसके कारण ये खेल अपार रोचकता के साथ तेज गति, तेज दृष्टि, संतुलन, स्फूर्ति को बढ़ाते हुए शारीरिक और मानसिक मनोरंजन देते हैं। ये खेल इतने अधिक रोचक होते हैं कि गांवों के बच्चे अपने सारे सुख-दुख, गम शिकवे भूल कर इन खेलों के अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति लेते हैं। तेजी से लुप्त होते जा रहे ऐसे खेल और बच्चों की मासूमियत एक बार फिर से लोक खेलों के माध्यम से वापस लौटाई जा सकती है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा एक अभिनव पहल करते हुए ’छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक’ की शुरूआत की जा रही है, आशा है इससे खेलों के प्रति एक उत्साह का वातावरण बनेगा और बच्चे एक बार फिर से खेलों के मैदान में दिखाई देंगे।
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- आलेख---ताराशंकर सिन्हा, सहा.जनसंपर्क अधिकारी
विद्यार्थियों एवं युवाओं की प्रतिभा को पंख देने मिली दिशाजिन विधाओं को सीखने और उनमें पारंगत होने के लिए नगर के युवाओं को बड़े शहरों की ओर रुख करना पड़ता था, अब वे सारी सुविधाएं युवाओं को स्थानीय स्तर पर सुलभ होगी। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज बालोद नगर के हृदय स्थल पर स्थित कला केंद्र का शुभांरभ किया और यहां विद्यार्थियों तथा युवाओं के साथ कुछ पल बिताया भी।
कला केन्द्र जैसी बहु उद्देशीय संस्था की यहां बहुत पहले की मांग थी, जो आज साकार हुआ। जिला प्रशासन ने युवाओं की मांग को दृष्टिगत करते हुए जिला खनिज न्यास निधि मद से 45 लाख 93 हजार रूपए की लागत से कला केन्द्र की कार्ययोजना बनाई और इसे अमलीजामा पहनाते हुए इसका निर्माण किया गया। नगर के तहसील चौक पर इसकी स्थापना की गई। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज भवन का शुभारम्भ किया तथा जिलावासियों को बधाई देते हुए उम्मीद जताई कि यहां के युवक-युवतियों और विद्यार्थियों को अपना भविष्य गढ़ने में बेहतर दिशा और प्लेटफॉर्म मिलेगा। कला केन्द्र के समन्वयक ने बताया कि वर्तमान परिवेश में रोजगार एवं व्यक्तित्व विकास वाली विभिन्न विधाओं पर आधारित पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे।
इस संबंध में बताया कि यहां स्थानीय लोक संस्कृति एवं परम्पराओं को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से प्रशिक्षुओं को लोक संगीत सिखाया जाएगा। इसके अलावा बच्चों में गैर शैक्षणिक एवं व्यवसायोन्मुखी प्रतिभाओं को उभारने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम के तौर पर मेहंदी, ड्राइंग, क्ले आर्ट एवं पेंटिंग की कक्षाएं संचालित की जाएंगी। इसी तरह व्यक्तित्व विकास पाठ्यक्रम के तहत बोलचाल में अंग्रेजी को शामिल करने के लिए स्पोकन इंग्लिश की शिक्षा दी जाएगी। साथ ही गिटार वादन, सेहत के लिए जुम्बा क्लासेस, सभी प्रकार के योगा, पाककला के लिए कुकिंग क्लासेस, संगीत में रूचि रखने वाले युवाओं के लिए ड्रम बीटिंग, गिटार एंड की बोर्ड क्लासेस एवं मिक्सिंग स्टूूडियो, भारतीय नृत्य विधाएं जैसे भरत नाट्यम, पाश्चात्य नृत्य में सालसा, हिपहॉप एवं बॉलीवुड डांस शैली का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा व्यक्तित्व विकास की कक्षाएं भी संचालित की जाएंगी। बताया गया है कि लोगों की मांग पर अन्य पाठ्यक्रमों को भी सम्मिलित किया जाएगा। इस प्रकार समन्वित विधाओं का समेकित रूप होगा कला केंद्र, जहां पर युवावर्ग अपने भीतर छिपी प्रतिभाओं को फर्श से अर्श तक पहुंचाने के लिए सही दिशा दे सकेंगे। -
-मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए की है विशेष पहल
-खिलाड़ियों को पर्याप्त सुविधा मुहैया कराने छत्तीसगढ़ सरकार उठा रही ठोस कदम-खेल अकादमियों का हो रहा निर्माण, बन रहा खेल के लिए माहौलरायपुर। छत्तीसगढ़ में साढ़े तीन साल पहले मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में गठित सरकार ने "गढ़बो नवा छत्तीसगढ़" का नारा दिया था और इसे राज्य का ध्येय वाक्य भी बनाया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने और खेलों को प्रोत्साहित के लिए "खेलबो, जीतबो, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़" का नारा भी दिया गया। इसी नारे के अनुरूप छत्तीसगढ़ में खेलों के लिए माहौल भी बनाने की कवायद भी तेज हो गई और निरंतर खेल व खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। इस कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार ने सबसे पहले छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया। वहीं राजधानी रायपुर से लेकर बिलासपुर और बस्तर के नारायणपुर तक में खेल अकादमी को लेकर काम शुरू हो गए।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सरकार में आते ही यह जाहिर कर दिया था कि वे छत्तीसगढ़ में हर वर्ग के लिए और हर क्षेत्र में काम करेंगे। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने की दिशा में काम करते हुए उन्होंने सबसे पहला निर्णय किसानों के हित में लिया। वहीं गोधन न्याय योजना और ग्रामीण आजीविका पार्क जैसे निर्णयों ने ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का काम किया। मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत सर्वाधिक दिवस रोजगार व राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना लागू की गई। माताओं, बच्चों से लेकर बुजुर्गों के लिए भी समय-समय पर विभिन्न योजनाएं लायी गईं। इन सबके बीच युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में केन्द्रीत करने के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार ने कवायद की।राजीव युवा मितान क्लब का गठन :छत्तीसगढ़ राज्य की युवा शक्ति को मुख्य धारा से जोड़कर, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को साकार करने के उद्देश्य से राजीव युवा मितान क्लब योजना प्रारंभ की गई। इसमें प्रदेश के प्रत्येक ग्राम पंचायत एवं नगरीय निकायों के वार्डों में कुल 13269 राजीव युवा मितान क्लब गठित किए जाने का लक्ष्य है। अब तक कुल 9917 युवा मितान क्लबों का गठन हो चुका है। प्रति क्लब 25 हजार रुपये प्रति तिमाही दिए जाने का प्रावधान है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 33.325 करोड़ रुपये जिलों को जारी कर दिए गए हैं। राजीव युवा मितान क्लब से जुड़कर युवा खेल, सांस्कृतिक, सामाजिक गतिविधियों एवं जन-जागरूकता बढ़ाने का काम कर रहे हैं।छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण :प्रदेश के सभी खेल अकादमियों के संचालन, खेल अधोसंरचनाओं का विकास एवं समुचित उपयोग तथा खेलों के समग्र विकास हेतु छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। खेलों को बढ़ावा देने समेत संबंधित अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए प्राधिकरण के गवर्निंग बॉडी और एक्जिक्यूटिव बॉडी की बैठकें भी हो चुकी हैं। इसके साथ ही खेल प्रशिक्षकों के 08 पदों पर संविदा भर्ती की कार्यवाही पूर्ण की जा चुकी है। वर्तमान में 15 खेल संघ विभाग से मान्यता प्राप्त हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 1.43 करोड़ रुपये अनुदान राशि भी जारी किया गया है। वहीं व्यायाम शाला निर्माण के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 में 40.17 लाख रुपये की राशि जारी की गई है।आवासीय खेल अकादमी का संचालन :छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् पहली बार खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आवासीय खेल अकादमी का संचालन प्रारंभ किया गया है। स्व. बी.आर. यादव राज्य खेल प्रशिक्षण केन्द्र बहतराई बिलासपुर में हॉकी, तीरंदाजी एवं एथलेटिक की आवासीय अकादमी की स्थापना की गई है, जिसे भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा खेलो इंडिया स्टेट सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की मान्यता दी गई है। एक्सीलेंस सेन्टर के लिए मैनपॉवर के हाई परफॉर्मेंस मैनेजर, हेड कोच हॉकी, स्ट्रैंथ एण्ड कंडिशनिंग एक्सपर्ट, फिजियोथेरेपिस्ट, यंग प्रोफेशनल एवं मसाजर (महिला) की नियुक्ति की जा चुकी है तथा शेष की नियुक्ति प्रक्रियाधीन है। गौरतलब है कि 1 जून 2022 से हॉकी की आवासीय अकादमी संचालित है, जिसमें 36 बालक एवं 24 बालिकाएं इस तरह कुल 60 खिलाड़ी प्रशिक्षणरत् हैं। तीरंदाजी तथा एथलेटिक खेल की अकादमी के लिए खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। आवासीय बालिका कबड्डी अकादमी में प्रवेश हेतु खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। इसके साथ ही रायपुर में एनएमडीसी लिमिटेड के सहयोग से आवासीय तीरंदाजी अकादमी की स्थापना की जा रही है।गैर आवासीय खेल अकादमी की भी स्थापना :छत्तीसगढ़ में खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा राज्य के खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि राज्य का खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर पदक जीत सकें। राज्य के प्रत्येक जिले में विभिन्न खेलों की गैर आवासीय खेल अकादमियां स्थापित करने का लक्ष्य है। वर्तमान में तीरंदाजी प्रशिक्षण उपकेन्द्र शिवतराई (बिलासपुर), गैर आवासीय हॉकी एवं तीरंदाजी अकादमी, सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम रायपुर, गैर आवासीय बालिका फुटबॉल अकादमी स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा रायपुर, गैर आवासीय बालक एवं बालिका एथलेटिक अकादमी स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा रायपुर का संचालन किया जा रहा है।खेलों के लिए बनेंगे सात लघु केन्द्र :मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा खेलों को बढ़ावा देने के लिए की जा पहल के बीच छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों से भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना अंतर्गत विभिन्न खेलों के लिए सात लघु केन्द्र स्वीकृत किए गए हैं। इसमें जशपुर में हॉकी, बीजापुर में तीरंदाजी, राजनांदगांव में हॉकी, गरियाबंद में व्हॉलीबॉल, नारायणपुर में मलखम्ब, सरगुजा में फुटबॉल एवं बिलासपुर में तीरंदाजी के लिए खेल लघु केन्द्र की स्वीकृति मिली है। प्रत्येक लघु केन्द्र के लिए सात लाख रुपये के मान से कुल राशि 49 लाख रुपये संबंधित जिला कलेक्टरों को जारी किए जा चुके हैं। खेलो इंडिया लघु केन्द्र के माध्यम से स्थानीय सीनियर खिलाड़ी को प्रशिक्षक के रूप में रोजगार भी उपलब्ध कराया जाएगा।सिंथेटिक टर्फ और ट्रैक का निर्माण :जब से छत्तीसगढ़ में खेल को लेकर राज्य सरकार ने प्रयास तेज किए हैं, केन्द्र की ओर से भी इसमें स्वीकृति दी जा रही है। भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना अंतर्गत जशपुर में सिंथेटिक टर्फ युक्त हॉकी मैदान के लिए 5.44 करोड़ रुपये, अम्बिकापुर में मल्टीपरपज इंडोर हॉल के लिए 4.50 करोड़ रुपये, जगदलपुर बस्तर में सिंथेटिक फुटबॉल ग्राउण्ड विथ रनिंग ट्रैक के लिए 05 करोड़ रुपये, महासमुंद में सिंथेटिक सतह युक्त एथलेटिक ट्रैक निर्माण के लिए 6.60 करोड़ की स्वीकृति प्राप्त हुई है। वहीं जगदलपुर बस्तर में निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। उल्लेखनीय है कि खेलो इंडिया यूथ गेम्स में छत्तीसगढ़ राज्य के खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन कर 2 स्वर्ण, 3 रजत और 6 कांस्य पदक, इस प्रकार कुल 11 पदक हासिल किये हैं। - मनोज सिंह, सहायक संचालकभारतीय संस्कृति में पशु पूजा की परम्परा रही है, इसके प्रमाण सिन्धु सभ्यता में भी मिलते हैं। खेती किसानी में पशुधन के महत्व को दर्शाने वाला पोला पर्व छत्तीसगढ़ के सभी अंचलों में परम्परागत रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। खेती किसानी में पशुधन का उपयोग के प्रमाण प्राचीन समय से मिलते हैं। पोला मुख्य रूप से खेती-किसानी से जुड़ा त्यौहार है। भादों माह में खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है। चूंकि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है अर्थात धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है। इसीलिए यह त्यौहार मनाया जाता है। पोला पर्व महिलाओं, पुरूषों और बच्चों के लिए भी विशेष महत्व रखता है।पोला पर्व के पीछे मान्यता है कि विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है, तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे, कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था। एक बार कंस ने पोलापुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था और सबको अचंभित कर दिया था। वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था। इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा, इस दिन को बच्चों का दिन कहा जाता है।पोला पर्व के पहले छत्तीसगढ़ में विवाहित बेटियों को ससुराल से मायका लाने की परंपरा है। पोला के बाद बेटियां तीज का त्यौहार मनाती है। तीज के पर्व के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सामान्य अवकाश की घोषणा की है। पोला त्यौहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। किसान इस दिन धान की फसल धान लक्ष्मी का प्रतीक मानकर, अच्छी और भरपूर फसल की कामना की कामना करते हैं। इस दिन सुबह से किसानों द्वारा बैलों को नहलाकर पूजा अर्चनाकर कृषि कार्य के लिए दुगने उत्साह से जुटने प्रण लेते हैं। बैलों की पूजा के बाद किसानों और ग्वालों के द्वारा बैल दौड़ का आयोजन जाता है। छोटे बच्चे भी मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। जहां उन्हें दक्षिणा मिलती हैं। गांवों में कबड्डी, फुगड़ी, खो-खो, पिट्टुल जैसे खेलकूद का आयोजन होता है। मिट्टी के बैलों को लेकर बच्चे घर-घर जाते हैं। यह त्योहार पशुधन संवर्धन और संरक्षण की आज भी प्रेरणा देता है।छत्तीसगढ़ धान की खेती सबसे ज्यादा होती है इसलिए यहां चावल और इससे बनने वाले छत्तीसगढ़ी पकवान विशेषरूप से बनाए जाते हैं। इस दिन चीला, अइरसा, सोंहारी, फरा, मुरखू, देहरौरी सहित कई अन्य पकवान जैसे ठेठरी, खुर्मी, बरा, बनाए जाते हैं। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तन, खिलौने में भरकर पूजा की जाती है, इसके पीछे मान्यता है कि घर धनधान्य से परिपूर्ण रहे। बालिकाएं इस दिन घरों में मिट्टी के बर्तनों से सगा-पहुना का खेल भी खेलती हैं। इससे सामाजिक रीति रिवाज और आपसी रिश्तों और संस्कृति को समझने का भी अवसर मिलता है। इस दिन छत्तीसगढ़ में गेड़ी का जुलूस निकाला जाता है। गड़ी, बांस से बनाया जाता है जिसमें एक लम्बा बांस में नीचे 1-2 फीट ऊपर आड़ा करके छोटा बांस लगाया जाता है। फिर इस पर बैलेंस करके, खड़े होकर चला जाता है।पोला पर्व में मिट्टी के खिलौनों की खूब बिक्री होती है। गांव में परंपरागत रूप से कार्य करने वाले हस्तशिल्पी, बढ़ई एवं कुम्हार समाज के लोग इसकी तैयारी काफी पहले से करना शुरू कर देते हैं। इस त्योहार से उन्हें रोजगार भी मिलता है, लोग मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हुए एक दूसरे के घरों में मिष्ठान पहुंचाते हैं। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में मितान बदने की भी परम्परा है। एक दूसरे के घरों में मेल मिलाप के लिए जाते हैं। यह पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी हमें मजूबत करता है।
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(मिनीमाता पुण्यतिथि-विशेष लेख)
ललित चतुर्वेदी, उप संचालकरायपुर। छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद मिनीमाता बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी थी। अपने प्रखर नेतृत्व क्षमता की बदौलत राष्ट्रीय नेताओं के बीच उनकी अलग पहचान थी। दलित शोषित समाज ही नहीं सभी वर्गो ने उनके नेतृत्व को मान्य किया था। उन्होंने संसद में अस्पृश्यता निवारण अधिनियम पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मिनीमाता समाज हितैषी कार्यो की वजह से लोकप्रियता के शीर्ष पर पहंुची।मिनीमाता ने समाजसुधार सहित सभी वर्गों की उन्नति और बेहतरी के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने जन सेवा को ही जीवन का उद्ेश्य मानकर कार्य किया। उन्होंने नारी उत्थान, किसान, मजदूर, छूआ-छूत निवारण कानून, बाल विवाह, दहेज प्रथा, निःशक्त व अनाथों के लिए आश्रम, महिला शिक्षा और जनहित के अनेक फैसलों और समाज हितैषी कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मिनीमाता की राजनीतिक सक्रियता और समर्पण से पीड़ितों के अधिकार हेतु संसद में अनेक कानून बने।मिनीमाता का मूल नाम मीनाक्षी देवी था। उनका जन्म 13 मार्च 1913 को असम राज्य के दौलगांव में हुआ। उन्हें असमिया, अंग्रेजी, बांगला, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषा का अच्छा ज्ञान था। वह सत्य, अहिंसा एवं प्रेम की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं। उनका विवाह गुरूबाबा घासीदास जी के चौथे वंशज गुरू अगमदास से हुआ। विवाह के बाद वे छत्तीसगढ़ आई, तब से उन्होंने इस क्षेत्र के विकास के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। गुरू अगमदास जी की प्रेरणा से स्वाधीनता के आंदोलन, समाजसुधार और मानव उत्थान कार्यों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्वतंत्रता पश्चात लोकसभा का प्रथम चुनाव 1951-52 में सम्पन्न हुआ। मिनीमाता सन् 1951 से 1971 तक सांसद के रूप में लोकसभा की सदस्य रहीं। छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद के रूप में दलितों एवं महिलाओं के उत्थान के लिए किए गए कार्यों के लिए उन्हें सदा याद किया जाएगा। अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर आरक्षित सीट से लोकसभा की प्रथम महिला सांसद चुनी गईं। इसके बाद परिसीमन में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से चार बार चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंची।मिनीमाता की स्मृति में छत्तीसगढ़ सरकार ने असंगठित क्षेत्रों के कमज़ोर आय वर्ग की श्रमिक महिलाओं को प्रसूति के लिये आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाली भगिनी प्रसूति सहायता योजना का नाम बदलकर ‘मिनीमाता महतारी जतन योजना’ कर दिया है। मिनीमाता के योगदान को चिरस्थाई बनाने के लिए तत्कालीन मध्यप्रदेश में हसदेव बांगो बांध को मिनीमाता के नाम पर रखकर किसानों के हित में किए गए उनके कार्यो के प्रति श्रद्धांजलि दी गई। आज बिलासपुर और जांजगीर जिले के हजारों किसानों को सिंचाई की सुविधा मिल रही है। मिनीमाता ने उद्योगों में हमेशा स्थानीय लोगों को रोजगार दिए जाने की वकालत की। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद छत्तीसगढ़ शासन द्वारा मिनीमाता की स्मृति में समाज एवं महिलाओं के उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिनीमाता सम्मान की स्थापना की गई। -
संस्कृत दिवस पर विशेष लेख:
ललित चतुर्वेदी ( उप संचालक)रायपुर। संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् द्वारा राज्य स्तर पर सप्ताह का आयोजन रक्षाबंधन के 3 दिन पूर्व और 3 दिवस बाद तक किया जाता है। विभिन्न जयंतियों - वाल्मिकि जयंती, कालीदास जयंती, गीता जयंती, गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के विद्यालयों की सक्रिय सहभागिता रहती है। संस्कृत दिवस के दिन वेद शास्त्रों की पूजा एवं महत्ता पर चर्चा एवं विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है।भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत में भारत का सर्वस्व संन्निहित है। देश के गौरवमय अतीत को हम संस्कृत के द्वारा ही जान सकते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार विपुल है। यह भारत ही नहीं अपितु विश्व की समृद्ध एवं सम्पन्न भाषा है। भारत का समूचा इतिहास संस्कृत वाड्मय से भरा पड़ा है। आज प्रत्येक भारतवासी के लिए विशेषकर भावी पीढ़ी के लिए संस्कृत का ज्ञान बहुत ही आवश्यक है।संस्कृत भाषा ने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिकता के कारण भारतीय विरासत को सहेजकर रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है। संस्कृत ऐसी विलक्षण भाषा है जो श्रुति एवं स्मृति में सदैव अविस्मरणीय है। अतिप्राचीन काल में संरक्षित-संग्रहित भारत की यह विपुल ग्रंथ सम्पदा संस्कृत के कारण ही सुरक्षित रही है। संस्कृत की महत्ता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है। संस्कृत को भारतीय शिक्षा में अनिवार्य करना आवश्यक है। शिक्षा में इसकी अनिवार्यता को लेकर केन्द्रीय संस्कृत आयोग ने 1959 में - माध्यमिक स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य शिक्षा करने के साथ मातृभाषा तथा क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई जाने की अनुसंशा की। संस्कृत शाला एवं संस्कृत महाविद्यालय प्रारंभ करने के लिए शासन द्वारा 90 प्रतिशत की छूट भी प्रदान की गई है।संस्कृत परिष्कृत, संस्कारित एवं वैज्ञानिक भाषा है। आदिकाल से वेद, रामायण, महाभारत सहित विशिष्ट विषयों को भारतीय मस्तिष्क में संस्कृत के संबल पर सहेज कर रखा है। वेद, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ श्रुति एवं स्मृति परिचारों में सुरक्षित रखते हुए आज लिपिबद्ध रूप में गोचर हो रहे हैं। इससे बड़ा प्रमाण कोई नहीं हो सकता।संस्कृत भाषा का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। प्राचीन भारत में बोल-चाल की भाषा में संस्कृत का ही उपयोग किया जाता था। इससे नागरिक अधिक और मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहा करते थे। संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते समय मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मंत्रोच्चार के समय वाइब्रेशन से शरीर के चक्र जागृत होते हैं और मानव का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। बहुत सी विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से जन्मी हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी के मूल में संस्कृत निहित है। संस्कृत में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘ऊँ’ अस्तित्व की आवाज और आंतरिक चेतना एवं ब्रम्हाण्ड का स्वर है। प्राचीन धरोहर की खोज करने का मुख्य मापदण्ड संस्कृत है। संस्कृत की महत्ता को देखते हुए जर्मनी में 14 से अधिक विश्व विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है कि हमारे वेद पुराण और गीता आदि संस्कृत में लिखे गए हैं। हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए राज्य शासन द्वारा हर संभव सहयोग दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के प्रयास से संस्कृत शिक्षा की प्रगति हो रही है। संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन राशि संस्कृत शालाओं में पढ़ने वाले उत्तर मध्यमा स्कूल प्रथम वर्ष कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों को दी गई। इससे कक्षा पहली, छठवीं और 9वीं को दी गई थी। गैर अनुदान प्राप्त संस्कृत शालाओं को स्तरवार वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस वर्ष से गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों को उनके प्रत्येक स्तर को जोड़ते हुए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। प्रवेशिका प्राथमिक स्तर को 10 हजार रूपए प्रतिवर्ष, प्रथमा मिडिल स्तर को 20 हजार रूपए प्रतिवर्ष, पूर्व मध्यमा प्रथम एवं उत्तर मध्यमा प्रथम (हाईस्कूल और हायर सेकेण्डरी) को 40 हजार रूपए प्रतिवर्ष की दर से राशि प्रदान की जाती है। केन्द्रीय जेल रायपुर में संस्कृत पाठशाला संचालित की जा रही है और विगत तीन वर्षों से अम्बिकापुर में भी संस्कृत पाठशाला संचालित हो रही है। पन्द्रह वर्ष बाद संस्कृत उत्तर मध्यमा कक्षा को छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा कक्षा 12वीं के समकक्ष मान्यता प्रदान की गई।भारतीय विरासत के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के दिग्दर्शन में आयुर्वेद, योग, प्रवचन, वेद, ज्योतिष जैसे संस्कृत के वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत पाठशालाओं में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को संस्कृत में शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, वाणिज्य आदि का समन्वित ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। प्रदेश में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी किसी भी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ हैं।प्रदेश में संस्कृत का अतीत समृद्ध है। यहां बलौदाबाजार में तुरतुरिया महर्षि वाल्मीकि और सरगुजा जिले के उदयपुर में रामगढ़ की पहाड़ियां महाकवि कालीदास का क्षेत्र माना जाता है। प्रदेश रामायणकालीन एवं महाभारतकालीन धरमकर्मों से जुड़ा हुआ है। यहां का बड़ा भू-भाग दण्डकारण्य क्षेत्र में आता है, जो ऋषियों का क्षेत्र कहा गया है। छत्तीसगढ़ वासियों का आचार-विचार, व्यवहार और संस्कार संस्कृत से पुरित हैं।प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री एवं अध्यक्ष छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम संस्कृत के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत् है। राज्य के पांच जिलों में संचालित आठ शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों को शासन के द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इनमें रायपुर के गोलबाजार में संचालित श्रीराम चन्द्र संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बिलासपुर में श्री निवास संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ जिले के लैलुंगा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ के गहिरा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय और गहिरा में ही श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जशपुर जिले दुर्गापारा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सामरबार और श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय सामरबार, बलरामपुर जिले के जवाहर नगर में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय श्रीकोट शामिल हैं। प्रदेश में एक शासकीय संस्कृत विद्यालय गरियाबंद जिले के राजिम में संचालित है। -
9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष
- उप संचालक, ललित चतुर्वेदीछत्तीसगढ़ और आदिवासी एक-दूसरे के पर्याय हैं। छत्तीसगढ़ के वन और यहां सदियों से निवासरत आदिवासी राज्य की पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग में जंगल है, जहां छत्तीसगढ़ की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती रही है। आज से साढ़े तीन साल पहले नवा छत्तीसगढ़ के निर्माण का संकल्प लेते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों को उनके सभी अधिकार पहुंचाने की जो पहल शुरू की जिससे आज वनों के साथ आदिवासियों का रिश्ता एक बार फिर से मजबूत हुआ है और उनके जीवन में नई सुबह आई है। राज्य में 42 अधिसूचित जनजातियों और उनके उप समूहों का वास है। प्रदेश की सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति गोंड़ है जो सम्पूर्ण प्रदेश में फैली है। राज्य के उत्तरी अंचल में जहां उरांव, कंवर, पंडो जनजातियों का निवास हैं वहीं दक्षिण बस्तर अंचल में माडिया, मुरिया, धुरवा, हल्बा, अबुझमाडिया, दोरला जैसी जनजातियों की बहुलता है।छत्तीसगढ़ में निवासरत जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत रही है, जो उनके दैनिक जीवन तीज-त्यौहार एवं धार्मिक रीति-रिवाज एवं परंपराओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। बस्तर के जनजातियों की घोटुल प्रथा प्रसिद्ध है। जनजातियों के प्रमुख नृत्य गौर, कर्मा, काकसार, शैला, सरहुल और परब जन-जन में लोकप्रिय हैं। जनजातियों के पारंपरिक गीत-संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र, कला एवं संस्कृति को बीते साढ़े तीन सालों में सहेजने-संवारने के साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने विश्व पटल पर लाने का सराहनीय प्रयास किया है। अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भव्य आयोजन इसी प्रयास की एक कड़ी है। प्रदेश सरकार द्वारा आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर में संग्रहालय की स्थापना वास्तव में आदिवासियों की समृद्ध कला एवं संस्कृति और उनके जीवन से सदियों से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का प्रयत्न है। छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद श्री वीरनारायण सिंह की स्मृति में लगभग 25 करोड़ 66 लाख रूपए की लागत से 10 एकड़ भूमि में स्मारक-सह-संग्राहलय का निर्माण नवा रायपुर अटल नगर में पुरखौती मुक्तांगन में किया जा रहा है। इसमें प्रदेश के जनजातीय वर्ग के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जीवंत परिचय प्रदेश और देश के शोध छात्र और आम जनों को हो सकेगा।छत्तीसगढ़ राज्य के 28 जिलों में से 14 जिले संविधान की 5वीं अनुसूची में पूर्ण रूप से और छह जिले आंशिक रूप से शामिल हैं। राज्य के आदिवासी समुदाय का लिंगानुपात सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन् देश के लिए अनुकरणीय है। इस समुदाय में एक हजार पुरूष पर 1013 महिलाओं की स्थिति लिंगानुपात को लेकर सुखद एहसास है। छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी क्षेत्रों और वहां के जनजीवन को खुशहाल और समृद्ध बनाने के लिए प्रयासरत है। यही वजह है कि आदिवासियों का भरोसा व्यवस्था में कायम हुआ है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है लोहण्ड़ीगुड़ा में किसानों की जमीन की वापसी, तेंदूपत्ता संग्रहण दर को 2500 रूपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4 हजार रूपए प्रति मानक बोरा करके, 65 प्रकार के लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी एवं वेल्यू एडीशन करके हमने न सिर्फ वनवासियों की आय में बढ़ोत्तरी की है, बल्कि रोजगार के अवसरों का भी निर्माण किया है। छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी समुदाय के जुड़े हर मसले को पूरी संदेवनशीलता और तत्परता से निराकृत करने के साथ ही उनकी बेहतरी के लिए कदम उठा रही है। वनवासियों को वन भूमि का अधिकार पट्टा देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश का अग्रणी राज्य है। अब तक राज्य में 4 लाख 54 हजार से अधिक व्यक्तिगत वनाधिकार पत्र, 45,847 सामुदायिक वन तथा 3731 ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र वितरित कर 38 लाख 85 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि आवंटित की गई है, जो 5 लाख से अधिक वनवासियों के जीवन-यापन का आधार बनी है।वन अधिकार पट्टाधारी वनवासियों के जीवन को आसान बनाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उनके पट्टे की भूमि का समतलीकरण, मेड़बंधान, सिंचाई की सुविधा के साथ-साथ खाद-बीज एवं कृषि उपकरण भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वन भूमि पर खेती करने वाले वनवासियों को आम किसानों की तरह शासन की योजनाओं का लाभ मिलने लगा है। वनांचल में कोदो-कुटकी, रागी की बहुलता से खेती करने वाले आदिवासियों को उत्पादन के लिए प्रति एकड़ 9 हजार रूपए की इनपुट सब्सिडी देने का प्रावधान राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत किया गया है। राज्य में पहली बार कोदो-कुटकी की तीन हजार तथा रागी की 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से कुल 16 करोड़ 58 लाख रूपए की खरीदी की गई। कोदो-कुटकी, रागी जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने और वैल्यु एडिशन के माध्यम से किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए मिशन मिलेट शुरू किया गया है। वनोपज का आदिवासियों के जीवन से बड़ा ही गहरा ताल्लुक रहा है। बिचौलियों से सरकार ने अब वनवासियों को मुक्ति दिला दी है।बस्तर अंचल के तेजी से विकास के लिए नियमित हवाई सेवा शुरू की गई है। जगदलपुर एयरपोर्ट आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करायी गई हैं। इस एयरपोर्ट का नामकरण बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के नाम पर किया गया है। अंबिकापुर में शीघ्र हवाई सेवा शुरू करने के लिए दरिमा स्थित मां महामाया एयरपोर्ट में हवाई पट्टी का विस्तार शुरू कर दिया गया है। बीजापुर से बलरामपुर तक सभी अस्पतालों में अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। इन अस्पतालों में प्रसुति सुविधा, जच्चा बच्चा देखभाल सहित पैथालाजी लेब और दंतचिकित्सा सहित विभिन्न रोगों के उपचार और परीक्षण की सुविधाएं उपलब्ध करायी गई है। हाट-बाजारों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना में मेडिकल एम्बुलेंस के जरिए दुर्गम गांवों तक निःशुल्क जांच और उपचार की सुविधा के साथ दवाईयों का वितरण किया जा रहा है। मलेरिया के प्रकोप से बचाने के लिए बस्तर संभाग में विशेष अभियान चलाया गया, जिससे बस्तर अंचल में अब मलेरिया का प्रकोप थम सा गया है।सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र जगरगुण्डा सहित 14 गांवों की एक पूरी पीढ़ी 13 वर्षों से शिक्षा से वंचित थी अब यहां स्कूल भवनों की मरम्मत कर दी गई है। बीजापुर और बस्तर संभाग के जिलों में भी सैकड़ों बंद स्कूलों को फिर से प्रारंभ किया गया है। वर्तमान में प्रदेश में 9 प्रयास आवासीय विद्यालय संचालित हैं, जहां से शिक्षा प्राप्त 97 विद्यार्थी आईआईटी, 261 विद्यार्थी एनआईटी एवं ट्रिपल आईटी, 44 विद्यार्थी एमबीबीएस तथा 833 विद्यार्थी इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन प्राप्त कर तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। राज्य में 73 एकलव्य आवासीय विद्यालय संचालित हैं। शैक्षणिक सत्र 2022-23 में एकलव्य विद्यालयों में 18 हजार 984 विद्यार्थी अध्ययनरत है।बस्तर अंचल के लोहांडीगुड़ा के 1707 किसानों की 4200 हेक्टेयर जमीन जो एक निजी इस्पात संयंत्र के लिए अधिगृहित की गई थी। यह भूमि किसानों को लौटा दी गई है। बस्तर संभाग के जिलों में नारंगी वन क्षेत्र में से 30 हजार 429 हेक्टेयर भूमि राजस्व मद में वापस दर्ज की गई है। इससे बस्तर अंचल में कृषि, उद्योग, अधोसंरचना के निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध हो सकेगी। आजादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ क्षेत्र के 2500 किसानों को मसाहती पट्टा प्रदान किया गया है। अबूझमाड़ के 18 गांवों का सर्वे पूरा कर लिया गया है, दो गांवों का सर्वे जारी है। -
जयंती पर विशेष
आलेख- मंजूषा शर्मा
महान गायक, संगीतकार, फिल्मकार और अभिनेता किशोर कुमार ने एक से बढ़कर एक गाने दिए हैं। कलाकारों की कई पीढिय़ों के लिए उन्होंने गाना गाया है। उनकी आवाज यदि सुनील दत्त पर अच्छी लगी तो उनके बेटे संजय दत्त के लिए भी उन्होंने गाने गाए। यदि वे आज जीवित होते तो नए युवा कलाकारों के लिए भी गा रहे होते, क्योंकि उन्होंने तो जैसे सिर्फ फिल्मों में गाने और अभिनय करने के लिए ही जन्म लिया था।
आज उनके जन्मदिन के मौके पर उनके गाए कुछ हिट गाने हम यहां पेश कर रहे हैं-
रूप तेरा मस्ताना- किशोर कुमार की आवाज अपने दौर के हर नायक के ऊपर अच्छी लगती है। रूप तेरा मस्ताना गाना राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर पर फिल्माया गया है। यह फिल्म थी आराधना, जो 1969 में प्रदर्शित हुई था। यह अपने दौर की सुपर हिट फिल्म थी। आज भी यह गाना बॉलीवुड का सबसे रोमांटिक गानों में शुमार किया जाता है। राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की शानदार केमेस्ट्री से सजी इस फिल्म में किशोर कुमार की आवाज राजेश खन्ना पर एकदम फिट बैठती है।
जाने जां ढूंढता फिर रहा- फिल्म जवानी दीवानी में यह गाना शामिल किया गया था। इस गाने में किशोर कुमार का साथ दिया था आशा भोंसले ने और यह गाना फिल्म के नायक रणधीर कपूर और नायिका जया बच्चन पर फिल्माया गया था। 1972 में आई इस फिल्म में आर. डी. बर्मन ने संगीत दिया था। फिल्म में जया भादुड़ी ग्लैमरस अवतार में नजर आई थीं। यह एक रोमांटिक फिल्म थी और यह पहला मौका था जब किसी फिल्म में रणबीर और जया की जोड़ी बनी थी। गाने का पिक्चराइजेशन भी काफी खूबसूरत है। नायिका, नायक के साथ लुका छिपी का खेल खेलती है और नायक उसे यह गाना गाकर ढूंढता फिर रहा है। गाने में आशा भोंसले ने भी अपनी आवाज के साथ कमाल का मॉड्यूलेशन किया है, जो पंचम दा की खास स्टाइल रही है।
फूलों के रंग से- किशोर कुमार ने देवआनंद के लिए भी काफी हिट गाने गाए हैं। हालांकि देव साहब की प्रारंभिक फिल्मों में उनके लिए प्लेबैक सिंगिग का काम हेमंत कुमार और रफी साहब ने किया था। लेकिन बाद की फिल्मों में तो किशोर कुमार जैसे देव साहब की ही आवाज बन गए थे। फूलों से रंग से ... गाना फिल्म प्रेम पुजारी का है जिसका निर्माण देव साहब ने अपनी ही फिल्म कंपनी नवकेतन के बैनर तले किया था। यह वह आखिरी फिल्म है जिसका निर्देशन उनके छोटे भाई विजय आनंद ने किया था। इसके बाद वे इस बैनर से हमेशा के लिए अलग हो गए थे। फूलों से रंग से ,,, गाने में देव साहब के साथ नायिका वहीदा रहमान की एक झलक मिलती है, साथ ही सह नायिका नादिया भी नजर आती हैं। गाने के बोल भी दिल को छू लेने वाले हैं। गाने का संगीत सचिन देव बर्मन ने तैयार किया था और यह फिल्म 1970 में रिलीज हुई थी।
मेरे सामने वाली खिड़की में- यह गाना इसलिए भी लोगों खास तौर से पसंद आता है, क्योंकि इसमें किशोर दा भी अपने खास अंदाज में नजर आते हैं। पड़ोसन फिल्म में नायक सुनील दत्त नायिका सायरा बानो को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन वे बेहद बेसुरे हैं। इसलिए गायक किशोर कुमार उनकी मदद के लिए सामने आते हैं और खिड़की के पीछे खड़े वे यह गाना गाते हैं और सुनील दत्त साहब केवल होंठ हिलाते हैं। साथ ही अभिनेता मुकरी, केस्ट्रो मुखर्जी और राजकिशोर टीपा, झाडू लिए म्यूजिक देते हैं। 1968 की इस फिल्म में भी पंचम दा का संगीत था। कॉमेडी से भरपूर इस फिल्म में किशोर कुमार, सुनील दत्त और मेहमूद ने लोगों को काफी हंसाया था। मेरे सामने वाली खिड़की गाने के अलावा फिल्म में कहना है... गीत भी हिट हुआ था।
ईना मीना डीका- यह गाना किशोर कुमार साहब पर ही फिल्माया गया है और यह फिल्म थी आस्था। इस फिल्म में किशोर कुमार की नायिका का रोल वैजयंतीमाला ने निभाया था। गाने में किशोर दा की हुडदंगी स्टाइल साफ झलकती है। गाने में काफी रोमांच है और एक ही सांस में इसे किशोर दा के जैसे इसे गाना किसी आम कलाकार के लिए सहज बात नहीं है। गाने के बोल काफी उटपटांग हैं, लेकिन इसका अपना मजा है। फिल्म में किशोर कुमार मुख्य भूमिका में थे। यह गाना आशा भोंसले की आवाज में भी है, लेकिन किशोर दा वाला वर्जन ज्यादा लोकप्रिय हुआ था। फिल्म का प्रदर्शन 1957 में हुआ था। फिल्म के गीतों को सुरों से सजाया था-सी. रामचंद्र ने।
कुछ तो लोग कहेंगे- राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म अमर प्रेम का यह गाना किशोर दा ने इतनी खूबी से गाया है कि आज भी इसे सुनकर सुकून मिलता है। फिल्म का प्रदर्शन 1972 में हुआ था। आर. डी. बर्मन साहब ने आनंद बख्शी के दिल को छू लेने वाले बोलों को इतने सुंदर ढंग से सुरों में पिरोया है कि आज भी इस फिल्म के गाने लोगों की जुबां पर हैं। इस गाने का फिल्मांकन कोलकाता में हुगली नदी पर बड़े ही पारंपरिक अंदाज में छोटी नाव यानी डोंगी पर हुआ है। इस गाने में किशोर कुमार की आवाज का जादू आज भी बरकरार है। गाने में रोमांस भी है और नायक, नायिका को उसके दुख से निकालने का प्रयास बड़ी ही सरलता से दुनियादारी का आईना दिखाते हुए करता है।
ये जो मोहब्बत है- 70 के दशक में राजेश खन्ना के साथ किशोर दा की आवाज की ऐसी स्पेशल बांडिंग हो गई थी कि हर निर्माता, इस जोड़ी को फिल्म में लेना पसंद कर रहा था। यदि इसमें पंचम दा यानी आर. डी हर्मन साहब भी जुड़े जाते थे, तो गाने तो शानदार बनने ही थे। ये जो मोहब्बत है, इसी तिकड़ी का एक हिट गाना है। यह गाना फिल्म फिल्म कटी पतंग में शामिल किया गया था। 1971 में प्रदर्शित इस फिल्म में राजेश खन्ना के अपोजिट आशा पारेख थीं। इस बार भी पंचम दा का संगीत लोगों के सिर चढ़कर बोला। फिल्म में हर मूड के गाने थे खासकर ये जो मोहब्बत है, में नायक राजेश खन्ना अपने टूटे हुए दिल का दुख बड़े ही बेफिक्री से झटकते हुए नजर आते हैं और प्यार करने से तौबा करते हैं। गाने में राजेश खन्ना की देवदास स्टाइल भी काफी पसंद की गई थी।
मेरे सपनों की रानी - किशोर कुमार और राजेश खन्ना के गानों की बात हो और मेरे सपनों की रानी... गाने का जिक्र न हो तो, बात अधूरी सी लगती है। यह गाना फिल्म आराधना का है। गाने में राजेश खन्ना के साथ अभिनेता सुजीत कुमार भी नजर आते हैं। फिल्म में सुजीत कुमार ने राजेश खन्ना के अच्छे दोस्त का रोल निभाया था। गाने में बॉलीवुड का टिपिकल मसाला एक्शन देखने को मिलता है। राजेश खन्ना खुली जीप में बैठे यह रोमांटिक गाना गाते हैं और सुजीत कुमार माउथऑर्गन पर उनका साथ देते हैं। गाने में नायिका शर्मिला टैगोर की एक झलक मिलती है जो ट्रेन में बैठी हुई है। गाने में खूबसूरत वादियां और पहाड़ों पर खासतौर से चलने वाली छोटी ट्रेन के दर्शन होते हैं। सचिन देव बर्मन साहब ने गाने में ऐसे- वाद्यों का प्रयोग किया है कि गाने के साथ- साथ चलती ट्रेन की आवाज भी संगीत में शामिल हो गई है।
किशोर दा के गाए और भी कई बेहतरीन गाने हैं, जिनकी चर्चा यदि करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन बीत जाएं, लेकिन बात खत्म नहीं होगी। फिर कभी इन गानों से जुड़ी यादों को हम ताजा करेंगे। -
मोहम्मद रफी- पुण्यतिथि पर विशेष
आलेख -मंजूषा शर्मा
सुहानी रात ढल चुकी , न जाने तुम कब आओगे, यह गाना मोहम्मद रफी साहब ने गाया है और आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर इसी गाने और इस फिल्म तथा इसके कलाकारों की चर्चा हम यहां कर रहे हैं।
फिल्म थी दुलारी और इसका निर्माण 1949 में हुआ था। फि़ल्म के मुख्य कलाकार थे सुरेश, मधुबाला और गीता बाली। फि़ल्म का निर्देशन अब्दुल रशीद कारदार साहब ने किया था। 1949 का साल गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आया। 1949 में महबूब ख़ान की फि़ल्म अंदाज़ , ताजमहल पिक्चर्स की फि़ल्म चांदनी रात , तथा ए. आर. कारदार साहब की दो फि़ल्में दिल्लगी और दुलारी प्रदर्शित हुई थीं और ये सभी फि़ल्मों का गीत संगीत बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुआ था। फिल्म दुलारी 1 जनवरी 1949 को प्रदर्शित हुई थी। पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है।
आज जब दुलारी के इस गाने की चर्चा हो रही है, तो हम बता दें कि इसी फिल्म में लता मंगेशकर और रफ़ी साहब ने अपना पहला डुएट गीत गाया था और यह गीत था-मिल मिल के गाएंगे दो दिल यहां, एक तेरा एक मेरा । फिल्म में दोनों का गाया एक और युगल गीत था -रात रंगीली मस्त नज़ारे, गीत सुनाए चांद सितारे । लता और रफी की यह जोड़ी काफी पसंद की गई और उसके बाद तो उन्होंने ऐसे- ऐसे यादगार गाने दिए हैं कि यदि उनका जिक्र करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन गुजर जाएंगे, लेकिन बातें खत्म नहीं होंगी।
फिल्म में मोहम्मद रफ़ी की एकल आवाज़ में नौशाद साहब ने सुहानी रात ढल चुकी गीत.. -राग पहाड़ी पर बनाया । इसी फि़ल्म का गीत तोड़ दिया दिल मेरा.. भी इसी राग पर आधारित है। राग पहाड़ी नौशाद साहब का काफी लोकप्रिय शास्त्रीय राग रहा है और उन्होंने इस पर आधारित कई गाने तैयार किए हैं। इसमें से जो गाने रफी साहब की आवाज में हैं, वे हैं-
1.. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (फिल्म-राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
5. ओ दूर के मुसाफिऱ हम को भी साथ ले ले (उडऩ खटोला)
फिल्म दुलारी में कुल 12 गाने थे। 14 रील की इस फिल्म में ये गाने कहानी की तरह ही चलते हैं । नायिका मधुबाला के लिए लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी। वहीं गीता बाली के लिए शमशाद बेगम ने दो गाने गाए थे। जिसमें से शमशाद बेगम का गाया एक गाना - न बोल पी पी मोरे अंगना , पक्षी जा रे जा...काफी लोकप्रिय हुआ था। नायक सुरेश के लिए रफी साहब ने आवाज दी थी। इसमें से 9 गाने लता मंगेशकर ने गाए जिसमें रफी साहब के साथ उनका दो डुएट भी शामिल है। रफी साहब ने केवल एक गाना एकल गाया और वह है -सुहानी रात ढल चुकी जिसे आज भी रफी साहब के सबसे हिट गानों में शामिल किया जाता है। पूरा गाना इस प्रकार है-
सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
जहां की रुत बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
अंतरा-1. नज़ारे अपनी मस्तियां, दिखा-दिखा के सो गये
सितारे अपनी रोशनी, लुटा-लुटा के सो गये
हर एक शम्मा जल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल...
अंतरा- 2- तड़प रहे हैं हम यहां, तुम्हारे इंतज़ार में
खिजां का रंग, आ-चला है, मौसम-ए-बहार में
हवा भी रुख बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल......
गाने में नायक की नायिका से मिलने की बैचेनी और इंतजार का दर्द शकील साहब ने अपनी कलम से बखूबी उतारा है, तो रफी साहब ने अपनी आवाज से इस गाने को जीवंत बना दिया है। गाने में शब्दों का भारी भरकम जाल नहीं है बल्कि बोल काफी सिंपल हैं, जो बड़ी सहजता से लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं। गाने की यही खासियत इसे आज तक जिंदा रखे हुए है। गाने के शौकीन आज भी किसी कार्यक्रम में इसे गाना नहीं भूलते हैं। राग पहाड़ी के अनुरूप इसका फिल्मांकन भी हुआ है और दृश्य में नायक चांदनी रात में सुनसान जंगल में नायिका का इंतजार करते हुए यह गाना गाता है। दृश्य में एक टूटा फूटा खंडहर भी नजर आता है, तो नायक की विरान जिंदगी को दर्शाता है, जिसे बहार आने का इंतजार है।
दुलारी फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी-प्रेम शंकर एक धनी व्यावसायिक का बेटा होता है जिसकी शादी उसके माता-पिता रईस खानदान में करना चाहते हैं। प्रेम शंकर को एक बंजारन लड़की दुलारी से प्यार हो जाता है। यह लड़की बंजारन नहीं बल्कि एक रईस खानदान की बेटी शोभा रहती है, जिसे बंजारे लुटेरे बचपन में उठा लाए थे। यह रोल मधुबाला ने निभाया है। प्रेमशंकर इस लड़की को इस नरक से निकालने के लिए उससे शादी करने का फैसला लेता है। बंजारन की टोली में एक और लड़की रहती है कस्तूरी जिसका रोल गीता बाली ने निभाया है। वह इसी टोली के एक बंजारे लड़के से प्यार करती है, लेकिन उसकी नजर दुलारी पर होती है। प्रेमशंकर के पिता इस शादी के खिलाफ हैं। काफी जद्दोजहद के बाद प्रेमशंकर , दुलारी को इस नरक से निकालने में कामयाब हो जाता है और उनके पिता को भी इस बात का पता चल जाता है कि दुलारी और कोई नहीं उनके ही मित्र की खोई हुई बेटी है जिसे वे बचपन से ही अपनी बहू बनाने का फैसला कर चुके थे। फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और नायक को अपना सच्चा प्यार मिल जाता है। फिल्म में मधुबाला से ज्यादा खूबसूरत गीता बाली नजर आई हैं, लेकिन उनके हिस्से में सह नायिका की भूमिका ही थी। लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के एक साल बाद ही उन्हें फिल्म बावरे नैन में राजकपूर की नायिका बनने का मौका मिला और इसके कुछ 5 साल बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ शादी कर ली। दुलारी फिल्म मधुबाला की प्रारंभिक फिल्मों में से है। मधुबाला ने जब यह फिल्म की उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल की थी।
फिल्म की पूरी कहानी चंद पात्रों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। सुरेश के पिता के रोल में अभिनेता जयंत थे जिनका असली नाम जकारिया खान था, लेकिन उन्हें जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने जयंत नाम दिया था। विजय भट्ट आज की फिल्मों के निर्माता-निर्देशक विक्रम भट्ट के दादा थे। जयंत के बेटे अमजद खान हैं जिन्हें आज भी गब्बर सिंह के रूप में पहचाना जाता है। फिल्म दुलारी में नायक सुरेश की मां का रोल प्रतिमा देवी ने निभाया था, जो ज्यादातर फिल्मों में मां का रोल में ही नजर आईं। उनकी फिल्मों में अमर अकबर एंथोनी, पुकार प्रमुख हैं। आखिरी बार वे वर्ष 2000 में बनी फिल्म पलकों की छांव में दिखाई दी थीं। मधुबाला के पिता के रोल में अभिनेता अमर थे। अभिनेता श्याम कुमार ने खलनायक का रोल निभाया था, जो बाद में रोटी, जख्मी जैसी कई फिल्मों में खलनायक के रूप में नजर आए।
कभी फुरसत मिले तो इस फिल्म को जरूर देखिएगा, अपने दिलकश गानों की वजह से यह फिल्म दिल तो सुकून देती है। हालांकि अब इसके प्रिंट काफी धुंधले पड़ गए हैं। फिल्म की तकनीक और कहानी आज की पीढ़ी को भले ही पुरानी लगे, लेकिन अपने दौर की यह हिट और क्लासी फिल्म है। - -सावधानी रखकर बीमारियों से बचे-अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने समिति सदस्यों के साथ हरेली में गांवों मे किया रात्रि भ्रमणअंधविश्वास, पाखंड व सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन के लिए कार्यरत संस्था अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा हरियाली के प्रतीक हरेली अमावस्या की रात को ग्रामीणजनों के मन से टोनही, भूत-प्रेत का खौफ हटाने के लिए समिति ने गांवों मे रात्रि भ्रमण कर ग्रामीणजनों से संपर्क किया,,समिति के दल ने रात्रि 10.00 बजे से रात्रि 3.00 बजे तक रायपुरा, अमलेश्वर, अमलेश्वरडीह, कोपेडीह, मोहदा झीठ भटगांव, मुजगहन, ,ग्रामों का दौरा किया। रात्रि में नदी तट ,तालाब,श्मशान घाट पर भी गए.कहीं कहीं ग्रामीणों ने जादू-टोना, झाडफ़ूंक पर विश्वास होने की बात स्वीकार की। लेकिन किसी ने भी कोई अविश्वसनीय चमत्कारिक घटना की जानकारी नहीं दी। समिति के दल में शामिल डॉ. दिनेश,मिश्र डॉ.शैलेश जाधव, ज्ञानचंद विश्वकर्मा, डॉ. प्रवीण देवांगन, प्रियांशु पांडे, डॉ.बंछोर ने अनेक ग्रामीणों से चर्चा की.डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा ग्रामीण अंचल में हरियाली अमावस्या (हरेली) के संबंध में काफी अलग अलग मान्यताएं हैं। अनेक स्थानों पर इसे जादू-टोने से जोड़कर भी देखा जाता है, कहीं-कहीं यह भी माना जाता है कि इस दिन, रात्रि में विशेष साधना से जादुई सिद्वियां प्राप्त की जाती है जबकि वास्तव में यह सब परिकल्पनाएं ही हैं, जादू - टोने का कोई अस्तित्व नहीं है तथा कोई महिला टोनही नहीं होती। पहले जब बीमारियों व प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में जानकारी नहीं थी तब यह विश्वास किया जाता था कि मानव व पशु को होने वाली बीमारियां जादू-टोने से होती है। बुरी नजर लगने से, देखने से लोग बीमार हो जाते हैं तथा इन्हें बचाव के लिए गांव, घर को तंत्र-मंत्र से बांध देना चाहिए तथा ऐसे में कई बार विशेष महिलाओं पर जादू-टोना करने का आरोप लग जाता है।वास्तव में सावन माह में बरसात होने से वातावरण का तापमान अनियमित रहता है। उमस, नमी के कारण बीमारियों को फैलाने वाले कारक बैक्टीरिया,फंगस वायरस अनुकूल वातावरण पाकर काफी बढ़ जाते हंै। इस समय विश्व में कोरोना के संक्रमण का प्रकोप है जिससे बचाव के लिए भी सावधानी रखना आवश्यक है ,मास्क पहनने ,बार बार हाथ धोने ,आपसी दूरी बनाए रखने सोशल डिस्टेन्स बनाये रखने से कोरोना से बचा जा सकता है वहीं दूसरी ओर गंदगी, प्रदूषित पीने के पानी, भोज्य पदार्थ के दूषित होने, मक्खियां, मच्छरों के बढऩे से बीमारियां एकदम से बढऩे लगती हैं जिससे गांव, गांव में आंत्रशोध, पीलिया, वायरल फिवर,डेंगू, मलेरिया के मरीज बढ़ जाते हंै तथा यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया हो तो पूरी बस्ती ही मौसमी संक्रामक रोगों की शिकार हो जाती है।वहीं हाल फसलों व पशुओं का भी होता है, इन मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए पीने का पानी साफ हो, भोज्य पदार्थ दूषित न हो, गंदगी न हो, मक्खिंया, मच्छर न बढ़े, जैसी बुनियादी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां रखने से लोग पशु कोरोना तथा अन्य संक्रमणों व बीमारियों से बचे रह सकते हैं। इसे लिए किसी भी प्रकार के तंत्र-मंत्र से घर, गांव बांधने की आवश्यकता नहीं है। साफ-सफाई अधिक आवश्यक है, इसके बाद यदि कोई व्यक्ति इन मौसमी बीमारियों से संक्रमित हो तो उसे फौरन चिकित्सकों के पास ले जाये, संर्प दंश व जहरीले कीड़े के काटने पर भी चिकित्सकों के पास पहुंचे। बीमारियों से बचने के लिए साफ-सफाई, पानी को छानकर, उबालकर पीने, प्रदूषित भोजन का उपयोग न करने तथा गंदगी न जमा होने देने जैसी बातों पर लोग ध्यान देंगे तथा स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहेंगे तो तंत्र-मंत्र से बांधनें की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बीमारियों खुद-ब-खुद नजदीक नहीं फटकेंगी, मक्खियां व मच्छर किसी भी कथित तंत्र-मंत्र से अधिक खतरनाक हैं।डॉ. मिश्र ने कहा ग्रामीणजनों से अपील है कि वे अपने गांव में अंधविश्वास न फैलने दें तथा ध्यान रखें कि गांव में कोई महिला को जादू-टोने के आरोप में प्रताडि़त न किया जाये। कोई भी नारी टोनही नही होती। ग्रामीणों ने आश्वस्त किया कि उनके गांव में कभी भी किसी महिला को टोनही के नाम पर प्रताडि़त नहीं किया जाएगा तथा ध्यान रखेंगे कि आसपास में ऐसी कोई घटना न हो। कुछ ग्रामीणों ने कहा कि यह माना जाता है कि हरेली की रात टोनही बरती (जलती हुई) दिखाई देती है। लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि यह सब सुनी सुनायी बातें हैंै। समिति को कोई भी ऐसा प्रत्यक्षदर्शी नहीं मिला जिसने ऐसी कोई चमत्कारिक घटना देखी हो। लेकिन रात्रि में लोग खौफजदा रहते हैं और घर से बाहर निकलने में डरते हैं। ग्रामीण टोनही के अस्तित्व पर या उसके कारगुजारियों पर चर्चा जरूर करते हैं पर यह नहीं बता पाते कि किसी ने हरेली के रात वास्तव में कुछ करते हुए देखा।डॉ. मिश्र ने कहा कि सुनी सुनायी बातों के आधार पर अफवाहें एवं भ्रम फैलता है, वास्तव में ऐसा कुछ भी चमत्कार न हुआ है और न संभव है। इसलिये किसी भी को ग्रामीण को कथित जादू-टोने अथवा टोनही भ्रम व भय में नहीं पडना चाहिए।डॉ. दिनेश मिश्रनेत्र विशेषज्ञअध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समितिनयापारा, फूल चौक, रायपुर (छत्तीसगढ़)फोन : 0771-4026101 मो. 98274-00859
- छत्तीसगढ़ में कहा जाता है त्योहारों का द्वार हरेली तिहार। हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का सबसे पहला त्यौहार है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचित कराता है। हरेली त्यौहार एक कृषि त्यौहार है। हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ राज्य में ग्रामीण किसानों द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों जैसे - हल, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं। हरेली में जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का आनंद लेते हैं।इस लोकप्रिय त्यौहार का नाम हरेली, हिंदी के शब्द हरियाली से आया है श्रावण माह में भारत में मॉनसून रहता है जिसके कारण बारिश होने से चारों तरफ हरियाली होती है इस समय किसान अपनी अच्छी फसल की कामना करते हुए कुल देवता एवं ग्राम देवता की पूजा करते हैं।हरेली त्यौहार के दौरान लोग अपने-अपने खेतों में भेलवा के पेड़ की डाली लगाते हैं इसी के साथ घरों के प्रवेश द्वार पर नीम के पेड़ की शाखाएं भी लगाई जाती हैं। नीम में औषधीय गुण होते हैं जो बीमारियों के साथ-साथ कीड़ों से भी बचाते हैं। लोहार जाति के लोग इस दिन घरांे को अनिष्ट शक्तियों से बचाने के लिए घर के हर दरवाजे पर पाती ठोंकते ह,ैं जोे लोहे का एक नोकीला कील होता है। हरेली तिहार के बाद अनेक त्यौहारांे का सिलसिला शुरू हो जाता हैं।बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर अमूस त्यौहार मनाया जाता है। बस्तर क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर दिन निर्धारित कर मनाया जाता है।छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते साढ़े तीन वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें हरेली तिहार भी शामिल है। इसके पीछे राज्य सरकार की मंशा छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी परंपरा और संस्कृति से जोड़ना है, ताकि लोग छत्तीसगढ़ की समृद्ध कला-संस्कृति, तीज-त्योहार और परंपराओं पर गर्व महसूस कर सकें।छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान होने के कारण हरेली का त्यौहार का और भी महत्व बढ़ जाता है। राज्य सरकार द्वारा कृषि के विकास, पशुधन और इनसे संबंधित अनेक योजनाआंें को लागू किये हैं जिसमें से नरवा-गरवा-घुरवा और बारी प्रमुख हैं। जिसके तहत ग्राम पंचायतों में गौठानों का निमार्ण, गोबर क्रय, जैविक खाद का निमार्ण, पारंपरिक घरेलू बाड़ियों में सब्जियों में फल-फूल उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।राज्य शासन द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए दो वर्ष पूर्व हरेली के दिन ही गोधन न्याय योजना की शुरुआत की गई थी जिसका प्रतिफल अब देखने को मिल रहा है इस योजना का उद्देश्य लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना भूमि की उर्वरता में सुधार और सुपोषण को बढ़ावा देना है इस योजना से पशुपालको को आमदनी का अतिरिक्त जरिया मिला है। गोबर से वर्मी कंपोस्ट उत्पादन और उपयोग से राज्य में एक नई क्रांति शुरू हुई हैे महिला स्व सहायता समूह में स्वावलंबन के प्रति एक नया आत्मविश्वास जगा है गोबर से विद्युत उत्पादन और प्राकृतिक पेंट बनाए जा रहे हैं।इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार इस साल हरेली तिहार से गौठानो में 4 रुपये प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदी की शुरुआत करने जा रही है गोमूत्र से महिला स्व सहायता समूह द्वारा जीवामृत और कीट नियंत्रण उत्पाद तैयार यह जाएंगे जिससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और कृषि लागत कम होगी गोमूत्र से बने कीट नियंत्रक उत्पाद का उपयोग किसान रासायनिक कीटनाशक के बदले कर सकेंगे।राज्य सरकार द्वारा प्रकृति से जुड़कर पर्यावरण अनुकूल विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए वृक्षारोपण प्रोत्साहन जैसी योजनाएं भी राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही है जिसके माध्यम से हरियाली बनाए रखने के लिए निजी भूमि पर नागरिकों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण के नए प्रयोगों से आत्मनिर्भर गांवों के रूप में राज्य शासन अपने आदर्श वाक्य गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ को साकार रूप दे रही है।
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श्रीमती दिव्या वैष्णव
श्रावण माह की अमावस्या एक ऐसा दिन जो विशेष भी है और महत्वपूर्ण भी। इस दिन से छत्तीसगढ़ महतारी के आंगन में त्यौहारों का आगमन शुरू हो गया है।
अगर आपका बचपन छत्तीसगढ़ की मिट्टी में गुजरा है तो आज के दिन का महत्व आपने जरूर देखा और समझा होगा लेकिन अगर आप आज के इस विशेष दिन के बारे में नहीं जानते हैं तो आज आपका परिचय छत्तीसगढ़ के पहले त्यौहार 'हरेली तिहार' से होगा।हरेली एक कृषि त्यौहार है और हरियाली शब्द से जुड़ा है।गौर कीजिए,आज आपने जगह जगह घर के दरवाजे पर नीम के पत्तों की डालियां खोंचते (लगाते) हुए बच्चों के झुंड को जरूर देखा होगा।जरा देखिए, आज कैसे हमारे सियान(बुजुर्ग) भी बच्चों और युवा साथियों के साथ बांस की गेड़ी चढ़कर बचपने का आनंद ले रहे हैं।आज घरों में चढ़ी तेलई से गुलगुला भजिये की खुशबू भी आ रही,तो कहीं गुरहा चीला के लिए तवा भी सिझाया जा रहा है।पतरी में अंगाकर रोटी,बरा-पूरी भी सजाई जा रही है।जरा गांव की ओर तो चलिए....हल,नागर,फावड़ा,कुल्हाड़ी,गेंती और भी कृषि उपकरण आज देव तुल्य विराजमान है और हमारे किसान-मितान अपने सभी कृषि औजारों की पूजा कर रहे हैं,सब मिलकर छत्तीसगढ़ राज्य की कृषि संस्कृति के पल्लवन और अच्छी पैदावार के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।दईहान में पशुधन की विशेष पूजा कर उन्हें आटे की लोंदियां खिलाई जा रही है।
हमारे लोहार साथी घरों के दरवाजे पर पाती(लोहे की नुकीली कील)ठोंक रहे हैं ताकि अनिष्ट शक्तियों से घर की रक्षा की जा सके।
घरों की दीवार पर गोबर से बनी ये जो आकृति और पाती आपको दिख रही है, माना जाता है कि ये आकृतियां श्रावण अमावस्या को सिद्ध होने वाली अनिष्ट और नकारात्मक शक्तियों के दुष्प्रभाव से सबकी रक्षा करती हैं।
स्थानीय परंपराएँ एवं लोकाचार उस स्थान विशेष की भौगोलिक और सामाजिक परिवेश पर आधारित होती है,पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कृति के पालन के साथ साथ इन परम्पराओं के पीछे वैज्ञानिक कारण भी अवश्य होता है।
हरेली त्यौहार मनाए जाने के तरीके को अगर गौर से अवलोकन किया जाए तो कुछ बातें व्यवहारिक रूप से हमें समझ आएंगी।जैसे-
मौसम परिवर्तन(ग्रीष्म से वर्षा) के दौरान घर के प्रवेश द्वार पर कड़वे नीम की पत्तियां एवं गोबर की आकृतियां वातावरण को कीटाणुरहित बनाती है।कड़वे नीम के फायदेमंद गुणों के बारे में तो हर कोई जानता है।
बड़ी फसल लेने के पूर्व आवश्यक उपकरणों, पशुधन आदि की पूजा करना कृषि संस्कृति का द्योतक है।
बांस की बनी गेड़ी चढ़ना जीवन मे संतुलन बनाने की सीख को प्रदर्शित करता है।बच्चे बार बार प्रयास करते हैं, गिरते हैं,सम्हलते हैं,फिर गेड़ी चढ़ते हैं और इस खेल का आनंद लेते हैं।जीवन का भी यही सार है-संतुलित रहते हुए जीवन रूपी गेड़ी का आनंद लेना।
गुड़ स्वास्थ्यवर्धक है,छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजनों में शक्कर की तुलना में गुड़ के प्रयोग का प्रचलन अधिक है।त्यौहारों में घर के भंडार(रसोई) में तेल चढ़ना अनिवार्य होता है ,गेहूं आटे और गुड़ को मिलाकर गुलगुला भजिया बनाया जाता है।गेंहूँ के साथ गुड़ मिलाकर बनाया गया गुरहा चीला हरेली त्यौहार का विशेष व्यंजन है।
हरेली त्यौहार के विशेष महत्व को समझते हुए वर्तमान छ.ग. सरकार द्वारा इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है ,ताकि हम सभी छत्तीसगढ़वासी पूरे हर्षोल्लास के साथ हरेली त्यौहार मना सकें।कृषि संस्कृति एवं गोधन के संरक्षण,संवर्द्धन एवं परिवर्द्धन को सर्वोच्च प्राथमिकता में लेते हुए छ.ग. सरकार विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है।वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक तीज-त्यौहार की प्रासंगिकता और जागरूकता को बढ़ाने के लिए छ. ग. सरकार द्वारा विभिन्न स्तर पर सार्थक एवं सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं।पिछले कुछ वर्षों से हरेली से सम्बंधित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा,ताकि आज की पीढ़ी भी हरेली त्यौहार के महत्व को समझ सके,लोक-परंपराओं को जीवित रख सके। आज आपने गौर किया...अखबारों,सोशल मीडिया के पोस्ट,चौक चौराहों में आयोजनों ,न्यूज़ चैनल प्रसारण आदि के माध्यम से हरेली त्यौहार की जानकारियां एवं विभिन्न गतिविधियां आप तक जरूर पहुंच रही होंगी।अब आप समझ चुके होंगे कि हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है।वर्षा ऋतु के दौरान प्रकृति स्वयं को साफ करती है,चारों ओर साफ सुथरी हरियाली दिखाई देती है,प्रकृति का नया संस्करण प्रस्तुत होता है....हर्षोल्लास और लोक-परम्परा के साथ प्रकृति की इस धुली हुई हरियाली का स्वागत करना ही हरेली है।
आप सभी को छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार-हरेली तिहार की गाड़ा गाड़ा बधई।
जय जोहार
जय छत्तीसगढ़
---श्रीमती दिव्या वैष्णव (रा.प्र.से.)
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी
कार्यालय मंत्री गृह, जेल, लोक निर्माण, पर्यटन, धर्मस्व एवं धार्मिक न्यास -
--श्री मीर अली मीर
छत्तीसगढ़ में अपनी मेहनत से उपजी हरियाली को हरेली के रूप में मनाने का संस्कार है। कृषि युग की शुरूआत के बाद से हरियाली ने हमारे शरीर और दिमाग को ढक लिया है। प्रकृति चक्र जेठ-बसाख के तेज गर्मी, आषाढ़ की बूंद पर, मिट्टी की सुंगध और हरियाली कल्पना को याद करने के लिए सारा ज्ञान मन में समा जाता है। यह हमारे किसानेां और पौनी- पसारियों भाईयों, बैसाख की अक्ती, आषाढ़ की रथयात्रा और सावन की हरेली की तरह लगता है, जहां वे भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए मेहनत करते है। हर समय, कड़ी मेहनत के बाद किसान उत्साह की कामना करते है। मंगल का उत्साह समृद्धि लाता है। तन और मन में खुशहाली लाती हैं। खेती जीवन का सार है। जो मेहनतकश है, वह अपने मातृत्व में एक अलग स्थान का आनंद लेता है। खेती करते हुए किसान जीवन भर जमीन की जुताई करते रहेंगे। हरेली का दिन अमावस्या के अंधेरा मिटाकर प्रकाश में जाने का संदेश देता है। सब कुछ सबके मन में हरियाली लाता है। मवेशी हमारी कृषि संस्कृति का आधार हैं। हमें बुवाई के लिए धान रखने और खलिहान में सम्मान के साथ भंडारण करने की परंपरा को जीवित रखना है।
(1) हरेली में गौधन की पूजा करने की रस्म के साथ चावल आटे की लोंदी एवं जड़ी-बूटियों को मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाता है, ताकि बारिश के मौसम में मवेशियां बीमार न हो। अंडे के पौधे की पत्तियों में नमक रखकर मवेशियों को चटाई जाती है।
(2) जीवन का आधार है किसानी और पशुधन- कृषि और पशुधन जीवन का आधार है, जहाँ पृथ्वी है, वहाँ हवा है, वहाँ पानी है, वहाँ हरियाली है, तभी हरी मिट्टी में नए अंकुरों की पूजा एक रस्म बन गई।
(3) कृषि उपकरण- हल, रापा, कुदाल, कांटा को तालाब में धोते हैं, फिर तेल लगाकर तुलसी चौरा के सामने सजाकर रखा जाता है। पूजन के लिए चीला प्रसाद बनाया जाता है। पूजा में सादगी छत्तीसगढ़ की संस्कृति की पहचान है। चंदन का तिलक लगाते हैं और पूजा करते हैं।
(4) पांच पर्वों का महत्व- राउत, नाई, लोहार, धोबी और कोटवार का महत्व हरेली त्योहार में बढ़ जाता है। नीम पत्ते को घर के सामने लगाकर हरियाली का संदेश देते है। लोहार घर के मुख्य दरवाजे पर किला ठोककर घर में किसी प्रकार के विपदा न आए करके पूजा करते है।
(5) वर्षा ऋतु की बीमारी से बचाने के लिए घर और गौठान में गोबर से घेरे बनाए जाते है।
(6) हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला कार्यक्रम होता। गेड़ी के पीछे एक महत्वपूर्ण पक्ष है जिसका प्रचलन वर्षा ऋतु में होता है। वर्षा के कारण गांव के अनेक जगह कीचड़ भर जाती है, इस समय गाड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है।
(7) हरेली के दिन विभिन्न खेलकूद का आयोजन किया जाता है, जिसमें नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त स्वीकारते हैं, जितनी बात निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।
(8) हरियाली के दिन घरों में चीला चौंसेला, बोबरा जैसे पकवान तैयार किए जाते है।
(9) छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के बाद से प्रदेश सरकार हमारे संस्कृति और संस्कार को फैला रहे हैं, तभी गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ के कल्पना को सकार कर सकते है।----लेखकः छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कवि हैं।
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हरेली तिहार ले ‘गौमूत्र खरीदी’ के होही सुरूआत
’आत्मनिर्भरता अउ रोजगार बढ़ाए बर एक अउ प्रयास’
----लेखकः- तेजबहादुर सिंह भुवाल, सहायक सूचना अधिकारी
छत्तीसगढ़ के गांव-गवई के मनखे मन के जिन्दगी मा रचे-बसे हे खेती किसानी। अउ इही खेती किसानी से जुड़े हे हमर पहली तिहार हरेली। छत्तीसगढ़ मा लोक संस्स्कृति, परम्परा ले जुड़े अउ सहेजे बर ये तिहार ला सब्बो लोगन मन हंसी, खुसी, आस्था, प्रेम व्यवहार अउ धूमधाम से मनाथे। इही दिन ले तिहार के सुरूआत हो जथे। सावन के आये ले चारो मुड़ा हरियर-हरियर रूख, राही, पेड़, झाड़, खेत-खलियान हा मन ला मोह डारथे। ये तिहार ला किसान मन खेती के बोआई, बियासी के बाद मनाथे। जेमा जुड़ा, नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा ला चक उज्जर करके रखथे अउ गौधन के पूजा-पाठ करथे संग मा कुलदेवी-देवता, इन्द्र देवता, ठाकुर देव ला घलो सुमरथे। ये दिन किसान मन हवा, पानी अउ भुईयां ला सुघ्घर बनाये राखे बर और सुख-सांति बनाये रखे के प्रार्थना करथे। बैगा मन रात में गांव के सुरक्षा करे बर पूजा-पाठ करथे। धान के कटोरा छत्तीसगढ़ महतारी ला किसान मन खेती-किसानी के बढ़त और बिकास बर सुमरथे। येखर सेती तो हमर छत्तीसगढ़ के बात ही कुछ अलग हे-
‘‘अरपा पैरी के धार
महानदी हे अपार
इंद्रावती ह, पखारय तोर पईयां
महू पांवे परव तोरे भुइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईयां’
ऐसे लागथे जैसे कि हमर छत्तीसगढ़ महतारी हा हरियर लुगरा पहिन के रंग-बिरंगी फूल, माला में सजे, अंग-अंग मा नदिया-नरवा समाए, धन-धान्य ले धरे हवये, अउ आसीरबाद देवत हे।
छत्तीसगढ़ मं ये बखत हरेली तिहार म खुसहाली कई गुना बढ़ही। राज्य सासन हा अपन महत्वाकांक्षी योजना ‘‘गोधन न्याय योजना’’ के सुरूआत 2020 में करे रिहिस। इहीं योजना ला आगे बढ़ावत हरेली तिहार ले ‘‘गो-मूत्र खरीदी’’ करे के सुरूआत करत हवए। प्रदेस के मुख्यमंत्री हा ग्रामीण अर्थव्यवव्था का सुदृढ़ करे बर ‘‘सुराजी गांव योजना’’ चालू करके किसान मन बर उखर नदाये लोक संस्कृति अउ पारंपरिक चिन्हारी ला वापस लाए के प्रयास करत हे। सासन के प्रयास हे कि प्रदेस के लईका मन हा अपने भुईया, संस्कृति, आस्था, परम्परा ला जानय, समझये अउ बचा के राखे राहय।
सासन हा ‘‘गोधन न्याय योजना’’ ले किसान मन ला रोजगार के अवसर अउ आर्थिक रूप ले लाभ पहुचावत हे। सासन हा राज्यभर के गोठान म गोवंसीय पसु के पालक मन ले गोबर ला सासकीय दर 2 रूपया किलो में लेवत हे। इही गोबर ला बने सुघ्घर खातू बनाके 10 रूपया किलो में किसान मन ला बेचे जावत हे। गोबर ले गमला, पेंट अउ कतको सामान बना के बेचत हे। सासन हा हरेली तिहार ले योजना ला आगे बढ़ावत ‘‘गोमूत्र खरीदी’’ करे के निर्णय लेहे। गौठान मन में गौ-मूत्र ला 4 रूपया लीटर में खरीदे जाही। ये गौ-मूत्र ले जीवामृत अउ खेती-किसानी के बउरे बर दवई बनाए जाही। येखर ले किसान अउ मजदूर मन ला काम-बूता अउ ज्यादा कमाये के नफा घलो मिलही। येखर ले जैविक खेती ला बढ़ावा मिलही अउ किसान मन ला खेती-किसानी करे बर खरचा कम लगही। खेत में पैदावारी घलोक बढ़ही।
अवईया साल मा योजना ले अउ जैविक खेती ला बढ़ावा मिलही, सासन के प्रयास ले गांव अउ सहर म रोजगार बढ़त जाही। गौपालन अउ गौ-सुरक्षा ला प्रोत्साहन के संगे-संग पसुपालक मन ला आर्थिक लाभ घलोक होही। सासन के प्रयास से ऐसे लगथे कि हमर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम-स्वराज के सपना अब आत्मनिर्भर गांव के रूप मा छत्तीसगढ़ में साकार होवत दिखत हे।
सासन ह ‘‘गोधन न्याय योजना’’ लागू करके पसुपालक मन के आय म वृद्धि, पसुधन विचरण अउ खुल्ला चरई म रोक, जैविक खाद के उपयोग ला बढ़ावा अउ रासायनिक खातू के उपयोग म कमी, गांव-गांव म जैविक खाद के उपलब्धता बनाये बर, स्थानीय स्व सहायता समूह ला रोजगार दे बर, भुइंया ल अउ उपजाउ बनाए बर, जहर रहित अन्न उपजाए बर अउ सुपोषण ल बढ़ाए बर जोर देवत हे।
राज्य के महत्वाकांक्षी योजना ‘‘नरवा, गरूवा, घुरूवा व बाडी’’ के माध्यम से मनरेगा अउ स्व सहायता समूह में सबे झन ला जोड़ के काम करत हे। ऐखरे सगे-संग ‘‘गोधन न्याय योजना’’ से गोठान मा बड़े संख्या मा रोजगार उपलब्ध कराये जात हे। कोनो मजदूर, किसान ला गांव-सहर छोड़ के जाए के जरूरत नई पड़ये। सब्बो झन ला सुघ्घर काम-बूता मिलत हे।
त बताओ संगवारी हो ये सब खुसी मिलही त हमर पहिली हरेली तिहार ला बने मनाबो ना। तिहार ला खेती-किसानी के बोअई, बियासी के बाद बने सुघ्घर मनाबो। जेमा नागर, गैंती, कुदारी, फावड़ा ला चक उज्जर करके अउ गौधन के पूजा-पाठ करके संग मा कुलदेवी-देवता ला सुमरबो। धान के कटोरा छत्तीसगढ़ महतारी ला, हमर खेती-किसानी के उन्नति अउ विकास बर सुमरबो।
तिहार में गांव मा घरो-घर गुड़-चीला, फरा के संग गुलगुला भजिया, ठेठरी-खुरमी, करी लाडू, पपची, चौसेला, अउ बोबरा घलो बनही। जेखर ले हरेली तिहार के खुसी अउ बढ़ जाही। ये साल हरेली अमावस्या गुरूवार के पड़त हे। सब किसान भाई मन अपन किसानी औजार के पूजा-पाठ कर गाय-बैला ला दवई खवाही, ताकि वो हा सालभर स्वस्थ अउ सुघ्घर रहाय। ये दिन गाय-गरवा मन ला बीमारी ले बचाय बर बगरंडा, नमक खवाही अउ आटा मा दसमूल-बागगोंदली ला मिलाके घलो खवाये जाथे। ये दिन शहर के रहईयां मन घलो अपन-अपन गांव जाके तिहार ला मनाथे।
हरेली तिहार मा लोहार अउ राऊत मन घरो-घर दुआरी मा नीम के डारा अउ चौखट में खीला ठोंकही। ऐसे केहे जाथे कि अइसे करे ले घर के रहैय्या मन के संकट ले रक्षा होथे। ये दिन लईका मन बांस ले गेड़ी बनाथे। गेड़ी मा चढ़के लईका मन रंग-रंग के करतब घलो दिखाते। राज्य सासन हा गांव-गांव अउ स्कूल मा विसेस आयोजन करत हे, जेमा गांव मा लईका मन बर गेड़ी दउड़, खो-खो, कबड्डी, फुगड़ी, नरियल फेक अउ नाचा के आयोजन घलो करे जाथे। ये प्रयास के उद्देश्य हे कि प्रदेस के लईका मन ला हमर लोक संस्कृति, परम्परा ला जानये, समझये, जुड़ये अउ सहेज के राखये राहेय।
छत्तीसगढ़िया मन ल हरेली तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधई, जय छत्तीसगढ़ महतारी। -
हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का सबसे पहला त्यौहार है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचित कराता है। हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं। हरेली में जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते साढ़े तीन वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें हरेली तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते है - तीजा, मां कर्मा जयंती, मां शाकंभरी जयंती (छेरछेरा), विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन भी भागीदारी बनता है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। वर्ष 2020 में हरेली पर्व के ही दिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने गोधन न्याय योजना की शुरूआत की थी जो केवल 02 वर्षों में अपनी सफलता को लेकर अन्य राज्यों के लिए नजीर बन गई है। इस योजना का देश के अनेक राज्यों द्वारा अनुसरण किया जा रहा है। आगामी हरेली तिहार 28 जुलाई से इस योजना में और विस्तार करते हुए अब गोबर के साथ-साथ गोमूत्र खरीदी करने की भी निर्णय लिया गया है।
हरेली के दिन गांव में पशुपालन कार्य से जुड़े यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा का पत्ता खिलाते हैं। हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछपरख बढ़ जाती है। इस दिन गांव के लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है। इसके बदले में किसान उन्हे दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं। ग्रामीणों द्वारा घर के बाहर गोबर से बने चित्र बनाते हैं, जिससे वह उनकी रक्षा करे।
हरेली से तीजा तक होता है गेड़ी दौड़ का आयोजन
हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है उस दिन तक होता है। बच्चे तालाब जाते हैं स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं, फिर वर्षभर गेड़ी पर नहीं चढ़ते हरेली की प्रतीक्षा करते हैं। गेड़ी के पीछे एक महत्वपूर्ण पक्ष है जिसका प्रचलन वर्षा ऋतु में होता है। वर्षा के कारण गांव के अनेक जगह कीचड़ भर जाती है, इस समय गाड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है। वर्तमान में गांव में काफी सुधार हुआ है गली और रास्तों पर काम हुआ है। अब ना कीचड़ होती है ना गलियों में दलदल। फिर भी गेड़ी छत्तीसगढ़ में अपना महत्व आज भी रखती है। गेड़ी में बच्चे जब एक साथ चलते हैं तो उनमें आगे को जाने की इच्छा जागृत होती है और यही स्पर्धा बन जाती है। बच्चों की ऊंचाई के अनुसार दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाते हैं और बांस के टुकड़े को बीच में फाड़कर दो भाग कर लेते हैं, फिर एक सिरे को रस्सी से बांधकर पुनः जोड़ देते हैं इसे पउवा कहा जाता है। पउवा के खुले हुए भाग को बांस में कील के ऊपर फंसाते हैं पउवा के ठीक नीचे बांस से सटाकर 4-5 इंच लंबी लकड़ी को रस्सी से इस प्रकार बांधते है जिससे वह नीचे ना जा सके लकड़ी को घोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। गेड़ी में चलते समय जोरदार ध्वनि निकालने के लिए पैर पर दबाव डालते हैं जिसे मच कर चलना कहा जाता है।
नारियल फेंक प्रतियोगिता
नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त स्वीकारते हैं, जितनी बात निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।
बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर मनाया जाता है अमुस त्यौहार
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा हरियाली अमावस्या पर अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़ कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि इससे कृषि कार्य के दौरान लगे चोट-मोच से निजात मिल जाती है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम की सरहद के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर कोई दिन नियत कर मनाया जाता है।