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- नेपाल दुनिया के खूबसूरत देशों में से एक है.ये भारतीयों के बीच भी घूमने के लिए काफी पसंद किया जाता है. इस देश को पर्यटकों के बीच ‘दुनिया की छत’ के रूप में भी जाना जाता है. खूबसूरती से भरा नेपाल एक हिमालयी देश है, जहां हर कोई घूमना पसंद करता है. अगर आप भी भारत के पड़ोसी इस देश में घूमने का प्लान कर रहे हैं तो फिर यहां के पर्यटन स्थल के बारे में जानिए-काठमांडू घाटी में स्थित भक्तपुर नेपाल में घूमने वालों को अपनी तरफ खींचने का काम करता है. आपको बता दें कि भक्तपुर को भक्तों का शहर भी कहा जाता है. यह शहर भीड़भाड़ से दूर शांति और सुकून को देने वाला है. इस शहर में 15 वीं शताब्दी की संरचना दरबार स्क्वायर या 55-विंडो पैले यहां का आकर्षण है. अगर आप नेपाल जाएं तो यहां का रुख जरूर करिए.पशुपतिनाथ मंदिर भले नेपाल में बसा हो लेकर भारतीयों के बीच ये काफी फेमस है. ये मंदिर काठमांडू शहर से 3 किलोमीटर दूर पूर्व में सुंदर और पवित्र बागमती नदी के किनारे पर बसा हुआ है. खूबसूरत नजारों से घिरा ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. आपको बता दें कि साल 1979 में पशुपतिनाथ मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था.नगरकोट नेपाल में घूमने वाली जगह में से एक है. अगर आप हिमालय के पर्वतों को उनकी खूबसूरती को देखना चाहते हैं तो नागरकोट का रूख जरूर करिए. नागरकोट, नेपाल की सबसे ज्यादा घूमी जाने वाली जगहों में से एक हैं. कहते हैं यहां से हिमालय के 13 में से 8 हिमालय पर्वतमाला को देख सकते हैं.पोखरा नेपाल की खूबसूरती को खास रूप से पेश करता है. ये एक बहुत ही बेहतरीन प्लेस है.हिमालय पर्वत की तलहटी में फैला पोखरा हर किसी के घूमने के लिए बहुत की खास है. इस जगह को घूमना हर कोई खास रूप से पसंद करता है. आप नेपाल जाएं तो यहां जरूर जाएं.काठमांडू नेपाल की सांस्कृतिक राजधानी है, जो घूमने का बेस्ट ऑप्शन कहा जाता है. नेपाल घूमना खुद में काफी खास है. यहां घूमने आने वाले यात्रियों को आनंदमय वातावरण मंत्रमुग्ध कर देता है. ये कई खूबसूरत नजारों से भरा है. काठमांडू, अपने मठों, मंदिरों और आध्यात्मिकता के साथ एक शांति वाली जगह है.
- सांपों की दुनिया लोगों के लिए डरावनी ही नहीं, बल्कि रहस्मयी भी रही है. सांपों को लेकर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. सांपों के बारे में कई ऐसी बातें फेमस हैं, जो सिर्फ फिल्मी ही हैं, लेकिन लोग उसे सच मान लेते हैं. आइए आपको सांपों से जुड़े एक ऐसे तथ्यों के बारे में समझते हैं जिन्हें लेकर आम धारणा थोड़ी अलग है.नाचते नहीं हैं सांपआपको बता दें कि सांप पूरी तरह बहरा होता है. आपने देखा भी होगा कि सांप (Snake) के शरीर पर कहीं कान नहीं होते हैं. दरअसल सांप कभी सपेरे की बीन की धुन पर नाचता नहीं है. बल्कि वह सपेरे द्वारा बीन की आवाज से अपने शरीर को हिलाता है, जो कि देखने में ऐसा लगता है कि वह नाच रहा है, लेकिन ऐसा नहीं होता है. वह सांप के शरीर की सामान्य हरकत है.फन फैलाना सांप की सामान्य हरकतआपने अक्सर देखा होगा कि सपेरे की बीन के ऊपर बहुत सारे कांच के टुकड़े लगे हुए होते हैं, उन्हें लगाए जाने का एक कारण होता है, क्योंकि जब उन टुकड़ों के ऊपर धूप या रोशनी पड़ती है तो उनसे चमक निकलती है, जिससे कि सांप हरकत में आ जाता है.बीन की धुन नहीं सुन पाते सांपइसी कारण जब सपेरा बीन को बजा कर हिलाते हुए आवाज निकाल रहा होता है, तो इस प्रकाश की चमक के कारण सांप का ध्यान उस ओर आकर्षित होता है और सांप उसकी चाल का अनुसरण करता है और हमें यह भ्रम होता है कि सांप नाच रहा है. उन्हें धरती होने वाली तरंगे खतरे की तरह लगती हैं. इन्हीं तरंगों से बचने के लिए वह फन फैला लेते हैं.त्वचा से लेते हैं हालात का जायजादरअसल सांप कानों के स्थान पर अपनी त्वचा का इस्तेमाल करता है, वह अपने आसपास के वातावरण में हो रही किसी भी गतिविधि का जायजा अपनी त्वचा पर पड़ रही तरंगों के माध्यम से लेता है.
- वाशिंगटन। कोविड-19 या किसी फ्लू से बचने के लिए टीकाकरण कराने के बाद 90 मिनट तक हल्की या मध्यम स्तर की कसरत करके शरीर में एंटीबॉडी की मात्रा बढ़ाई जा सकती हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष ‘ब्रेन, बिहेवियर एंड इम्युनिटी' पत्रिका में प्रकाशित किए गए है।अध्ययन में शामिल जिन लोगों ने टीकाकरण कराने के बाद डेढ़ घंटे तक साइकिल चलाई या सैर की, उनमें आगामी चार सप्ताह में उन लोगों की तुलना में अधिक एंटीबॉडी बनीं, जिन्होंने टीकाकरण के बाद किसी प्रकार का व्यायाम नहीं किया था। अमेरिका स्थित ‘आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी' के अनुसंधानकर्ताओं ने भी चूहों और ट्रेडमिल का इस्तेमाल करके इसी प्रकार का प्रयोग किया, जिसका निष्कर्ष भी समान निकला। आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मरियन कोहुट ने कहा कि इस बात के कई कारण हो सकते हैं कि लंबे समय तक हल्की या मध्यम स्तर की कसरत करने से शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता में सुधार क्यों होता है। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, व्यायाम करने से रक्त प्रवाह बढ़ता है, जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं के संचार में मदद करता है और जब ये कोशिकाएं शरीर में प्रवाहित होती हैं, तो किसी बाहरी तत्व को बेहतर तरीके से उनके द्वारा पहचान लेने की संभावना अधिक होती है। कोहुट ने कहा, ‘‘लेकिन इसका कारण जानने के लिए और अनुसंधान की आवश्यकता है। जब हम कसरत करते हैं, तो शरीर में चयापचय, जैव रासायनिक, न्यूरोएंडोक्राइन और (रक्त एवं कोशिका के) संचार स्तर पर कई बदलाव होते हैं।'' उन्होंने कहा कि संभवत: इन कारकों के संयोजन के कारण एंडीबॉडी की मात्रा बढ़ती है।
- जनरल ऑफ स्लीप रिसर्च में एक स्टडी छपी है, जो कह रही है कि यदि सोने से पहले आप काफी देर तक टीवी देखते हैं, मोबाइल स्क्रीन देखते हैं, लैपटॉप, आईपैड या किसी भी अन्य प्रकार के डिजिटल स्क्रीन के सामने वक्त बिताते हैं तो आपकी नींद की क्वालिटी अच्छी नहीं होगी.हालांकि डिजिटल गैजेट्स आपकी नींद और स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं, यह बताने वाली यह पहली स्टडी नहीं है. इस तरह के और भी लंबे सैंपल साइज वाले और ज्यादा गंभीरता से डिजिटल कंजम्पशन के सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल करते और बहुत से अध्ययन पहले हो चुके हैं. ये स्टडी हमें वही बात बता रही है, जो शायद हम अपने अनुभव से भी पहले से जानते हैं.इस स्टडी में शामिल लोगों को एक तरह के सेल्फ इक्जामिनेशन की प्रक्रिया में डालनेकी कोशिश की गई. प्रत्येक व्यक्ति को एक स्लीप जनरल मेंटेन करना था और सोने से पहले उसने कितना वक्त किस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर और क्या देखते हुए बिताया, इस बात की पूरी डीटेल नोट करनी थी.शोधकर्ताओं ने उनके नींद के पैटर्न, नींद की अवधि आदि को वैज्ञानिक यंत्रों के जरिए मापने की कोशिश की. उन्होंने पाया कि जिस भी रात सोने से पहले उन्होंने ज्यादा वक्त डिजिटल स्क्रीन के सामने बिताया था, उस रात नींद की क्वालिटी, हार्ट रेट डिस्टर्ब रहीं. इसके ठीक उलट डिजिटल स्क्रीन पर वक्त न बिताने वाले लोगों की नींद की क्वालिटी ज्यादा बेहतर पाई गई.शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कोई ऐसा अध्ययन नहीं है, जो आपको वैज्ञानिक यंत्रों से ही मापने की जरूरत हो. आप खुद भी अपने ऊपर यह प्रयोग करके देख सकते हैं. एक हफ्ते तक सोने से पहले देर रात तक टीवी देखना, मोबाइल पर वक्त बिताना या किसी भी तरह के डिजिटल स्क्रीन के सामने बैठना बंद कर दें. उसके बजाय किताबें पढ़ें, बातें करें या कुछ भी ऐसी गतिविधि में शामिल हों, जो डिजिटल नहीं है.आप खुद अपनी नींद की क्वालिटी में फर्क पाएंगे. शोधकर्ताओं का कहना है कि डिजिटल स्क्रीन से एक खास तरह की रेज निकलती है, जो मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को उद्वेलित करने का काम करती है. मस्तिष्क शांत नहीं रहता. साथ ही हमारी आंखों पर भी उसका नकारात्मक असर पड़ता है. यही कारण है कि डिजिटल स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने के कारण हमारी नींद प्रभावित होती है क्योंकि मस्तिष्क की तंत्रिकाएं डिस्टर्ब हो जाती हैं.
- पर्थ (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया समेत दुनियाभर में कोरोना वायरस के ओमीक्रोन स्वरूप से लोगों के संक्रमित होने के साथ ही, उन लोगों के भी पुन: संक्रमित होने का खतरा है जो पहले कोविड से पीडि़त हो चुके हैं। यदि संक्रमण मुक्त होने के 30 दिन के भीतर आप पुन: संक्रमित होते हैं तो आपको दोबारा कोविड जांच करवाने या पृथक-वास में जाने की जरूरत नहीं है। कुछ देशों में आपको 90 दिन तक दोबारा जांच करवाने की जरूरत नहीं है जब तक कि आपके भीतर संक्रमण के कोई नए लक्षण नहीं हों। ऐसा क्यों होता है?शरीर में ओमीक्रोन के 'इन्क्यूबेशन' की अवधि क्या है?वायरस से संक्रमित होने और कोविड के लक्षण विकसित होने में एक से 14 दिन लगते हैं। इस समय को 'इन्क्यूबेशन' काल कहा जाता है। कुछ लोगों में संक्रमण के बाद पांचवें और छठे दिन से ही लक्षण दिखने लगते हैं। अध्ययन में सामने आया है कि ओमीक्रोन का 'मीडियन' (मध्य) इन्क्यूबेशन काल और भी कम है। अमेरिका और यूरोप में किये गए अध्ययन में पाया गया कि ओमीक्रोन का मीडियन इन्क्यूबेशन काल तीन दिन का है।ओमीक्रोन से पुन: संक्रमण में वृद्धिअनुसंधान में सामने आया है कि वायरस के पिछले स्वरूपों की तुलना में ओमीक्रोन उन लोगों को पुन: संक्रमित करने में अधिक सक्षम है जो पहले कोविड से पीडि़त हो चुके हैं। इम्पीरियल कॉलेज लंदन के एक दल ने अनुमान लगाया है कि डेल्टा की अपेक्षा ओमीक्रोन से, दोबारा संक्रमित होने का खतरा 5.4 गुना अधिक है। इसलिए जिन्हें ओमीक्रोन से पहले के स्वरूपों से कोविड हो चुका है उन्हें वायरस के डेल्टा स्वरूप की तुलना में ओमीक्रोन से पुन: संक्रमित होने का खतरा पांच गुना ज्यादा है।दोबारा जांच कराने से पहले कब तक इंतजार करना चाहिए?दुनियाभर में हुए अध्ययन से पता चला है कि एक बार संक्रमित होने के बाद 30-90 दिन तक आपको दोबारा जांच कराने की जरूरत नहीं है। वायरस से संक्रमित होकर ठीक होने के बाद ज्यादातर लोगों में कुछ प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है इसलिए उन्हें इतने कम समय में पुन: संक्रमित होने का खतरा कम होता है। इटली में संक्रमण फैलने का केंद्र रहे एक स्थान पर किये गए अध्ययन में सामने आया कि जिन लोगों को कोविड हो चुका है, उन्हें पुन: संक्रमण होने पर कम से कम चार सप्ताह बाद दोबारा जांच करानी चाहिए। अध्ययन में सामने आया कि संक्रमण की पहली बार पुष्टि होने के बाद वायरस को शरीर से निकलने में औसतन 30 दिन का समय लगता है और पहली बार लक्षण आने के लगभग 36 दिन बाद शरीर संक्रमण मुक्त होता है।
- काठमांडू। नेपाल में अनुसंधानकर्ताओं ने मंगलवार को चेतावनी दी कि माउंट एवरेस्ट पर स्थित सबसे बड़ा ग्लेशियर इस शताब्दी के मध्य तक गायब हो सकता है क्योंकि विश्व की सबसे ऊंची पर्वतीय चोटी पर स्थित दो हजार साल पुराना हिमखंड तेजी से पिघल रहा है। यहां स्थित ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट' (आईसीआईएमओडी) ने हाल में प्रकाशित एक शोधपत्र के हवाले से कहा कि एवेरेस्ट पर 1990 के दशक से लगातार बड़ी मात्रा में बर्फ पिघल रही है। आईसीआईएमओडी ने कहा कि एवरेस्ट पर किये गए सबसे व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन ‘द एवरेस्ट एक्सपेडिशन' के तहत ग्लेशियरों पर गहन अनुसंधान किया। ‘नेचर पोर्टफोलियो' में हाल में प्रकाशित एक आलेख में कहा गया कि एवरेस्ट पर बर्फ बेहद तेजी से पिघल रही है। इस अनुसंधान में आठ देशों से वैज्ञानिकों ने भाग लिया जिसमें से 17 नेपाल के हैं। अध्ययन में शामिल तीन सह लेखक आईसीआईएमओडी से सम्बद्ध हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसा अनुमान लगाया गया है कि 8,020 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साउथ कोल ग्लेशियर लगभग दो मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रहा है। अनुसंधानकर्ताओं ने ‘रेडियो कार्बन डेटिंग' के माध्यम से पता लगाया है कि ग्लेशियर दो हजार साल पुराना है। उन्होंने अंदेशा जताया है कि सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित यह ग्लेशियर इस सदी के मध्य तक पिघल जाएगा। अनुसंधान में कहा गया है कि इसका कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है।
- मेलबर्न। व्यापक रूप से उपलब्ध और रक्त को पतला करने वाली सस्ती एवं किफायती दवा हेपरिन संभवत: कोविड-19 का उपचार कर सकती है। यह बात एक अध्ययन के शुरुआती परिणामों में कही गई है। अध्ययन में यह भी कहा गया कि यह दवा सांस के जरिए लिए जाने पर फेफड़ों की क्षति को सीमित कर सकती है और कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण को भी रोक सकती है। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) के अनुसंधानकर्ता और उनके सहकर्मी 13 देशों में अस्पतालों में सार्स-कोव-2 से संक्रमित उन मरीजों पर नज़र रख रहे हैं, जिन्हें सांस के जरिए हेपरिन की खुराक दी गई। ब्रिटिश जर्नल ऑफ क्लिनिकल फार्माकोलॉजी में प्रकाशित 98 रोगियों के प्रारंभिक परिणामों में कहा गया है कि हेपरिन एक आशाजनक उपचार हो सकता है और यह वायरस के खिलाफ एक संभावित निवारक भी हो सकती है। अध्ययन में कहा गया है कि दवा कोरोना वायरस संक्रमण का उपचार करने के साथ ही संक्रमण को रोकने में भी मददगार हो सकती है।
- भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपतिश्रीमती प्रतिभा पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। वे 2007 से 2012 तक पांच वर्ष अपने पद पर रहीं। इससे पहले वे 1985 से 1990 तक राज्यसभा सांसद और1991 से 1996 तक लोकसभा सदस्य थीं। मूल रूप से महाराष्ट्र की रहने वाली प्रतिभा पाटिल 1962 से ही कांग्रेस से जुड़ी हुई थी। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास से संबंधित कई काम किए।भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्रीभारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। लाल बहादुर शास्त्री जी के निधन के बाद 11 जनवरी 1966 को वह देश के सबसे शक्तिशाली पद पर आसीन हुईं थीं। 1975 में देश में आपातकाल लगाने का फैसला हो या भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनकी कूटनीति रही हो, लोग इनके साहसिक फैसलों की वजह से 'आयरन लेडी' भी कहते हैं।भारत की प्रथम महिला आईपीएसकिरण बेदी 1972 में भारत की पहली महिला आईपीएस बनीं। मूल रुप से पंजाब की रहने वाली किरण बेदी ने संयुक्त राष्ट्र शांति प्रबंधन विभाग में पुलिस सलाहकार के रूप में भी काम किया है। तिहाड़ जेल के प्रमुख के रूप में उन्हें कैदियों के पुनर्वास के कदमों के लिए जाना जाता है। वर्तमान में किरण बेदी पांॅडिचेरी की उप राज्यपाल हैं।भारत की प्रथम महिला डीजीपीआईपीएस कंचन चौधरी भट्टाचार्य देश की पहली महिला पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बनीं थी। 1973 बैच की भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की यूपी कैडर की अधिकारी थीं। बाद में वे उत्तराखंड चली गईं. 2004 में कंचन चौधरी भट्टाचार्य को उत्तराखंड में जब पुलिस महानिदेशक बनाया गया था। वे देश की दूसरी महिला आईपीएस भी थीं।भारत की प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्षराजनयिक से नेता बनने वाली कांग्रेस की मीरा कुमार लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। वर्ष 1980 के दशक के मध्य में राजनीति में शामिल होने वाली मीरा कुमार 2009 में लोकसभा अध्यक्ष पद पर चुनी गईं और 2014 तक आसीन रहीं। मीरा कुमार कांग्रेस के दिवंगत नेता जगजीवन राम की पुत्री हैं।भारत की प्रथम महिला मिस यूनीवर्ससुष्मिता सेन पहली ऐसी भारतीय महिला हैं, जिन्हें मिस यूनिवर्स का खिताब मिला था। सुिष्मता सेन ने 21 मई 1994 को इस खिताब को अपने नाम किया था। सुष्मिता सेन ने बॉलीवुड में काम किया है और कई हिट फिल्में उनके नाम है।माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वाली प्रथम भारतीय महिलाबछेन्द्री पाल हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली भारतीय महिला हैं। 23 मई 1984 का दिन भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया क्योंकि इसी दिन बछेंद्री पाल ने माउंट एवरेस्ट की चोटी को फतह किया था। यह उपलब्धि उन्होंने 29 साल की उम्र में अपने नाम की थी।अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली प्रथम अभिनेत्रीजानी-मानी फिल्म अभिनेत्री नरगिस दत्त हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक थीं। वे अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री थीं। वे पहली अभिनेत्री थीं, जिन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया और पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। वे एक ऐसी अदाकारा रहीं जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को नई ऊंचाईं पर पहुंचाया।भारतरत्न प्राप्त करने वाली प्रथम गायिकालता मंगेशकर पहली भारतीय गायिका हैं, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 13 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत करने वाली लता मंगेशकर ने 75 सालों तक अपनी आवाज की बदौलत लोगों की दिलों पर राज किया।. 36 भारतीय भाषाओं में गीत गाने वाली लता मंगेशकर को 2001 में भारत रत्न से नवाजा गया। इन्हें 'स्वर कोकिला' भी कहा गया।
- क्वींसलैंड। सार्स-कोव-2 के वेरिएंट ओमिक्रोन के मामले पिछले दो महीनों में वैश्विक स्तर पर बढ़े हैं और कई देशों में तो पिछले वेरिएंट की तुलना में कहीं ज्यादा मामले आए हैं। अब हम ओमिक्रोन के उप-संस्करण के मामले देख रहे हैं, जिसे बीए.2 का नाम दिया गया है और ऑस्ट्रेलिया सहित 50 से अधिक देशों में यह जोर पकड़ रहा है। इस नये उप संस्करण को ओमिक्रोन वेरिएंट बीए.1 (या बी.1.1.529) की बेटी कहने की बजाय, ओमिक्रोन की बहन कहना ज्यादा ठीक होगा।वायरस, और विशेष रूप से आरएनए वायरस जैसे सार्स-कोव-2, प्रजनन करते समय बहुत सारी गलतियां करते हैं। वे इन गलतियों को ठीक नहीं कर सकते हैं, इसलिए उनमें त्रुटियों, या उत्परिवर्तन की अपेक्षाकृत उच्च दर है, और वह लगातार विकसित हो रहे हैं। जब इन उत्परिवर्तन के परिणामस्वरूप किसी वायरस का आनुवंशिक कोड बदल जाता है, तो इसे मूल वायरस के एक वेरिएंट के रूप में संदर्भित किया जाता है। ओमिक्रोन एक बिलकुल अलग तरह का वेरिएंट है, जिसमें स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक उत्परिवर्तन समाहित होते हैं। इसने पूर्व संक्रमण और टीकाकरण दोनों से एंटीबॉडी की सुरक्षा को कम कर दिया है, और संचरण क्षमता में वृद्धि की है। स्वास्थ्य अधिकारी नए संस्करण के बारे में कब चिंता करते हैं? यदि आनुवंशिक कोड में होने वाले परिवर्तन के बारे में यह माना जाए कि वह वायरस को अधिक हानिकारक बनाने की क्षमता रखते हैं और कई देशों में इसका अधिक संचरण होता है, तो इसे ''ध्यान देने योग्य वेरिएंट'' माना जाएगा। यदि ध्यान देने योग्य यह वेरिएंट अधिक संक्रामक दिखे, टीकाकरण या पिछले संक्रमण से सुरक्षा से बचने, और/या परीक्षणों या उपचार की प्रक्रिया को प्रभावित करे, तो इसे ''चिंता का प्रकार'' का नाम दिया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 26 नवंबर को ओमिक्रोन को चिंता का एक प्रकार वर्गीकृत किया। इसकी उच्च पुनर्संक्रमण दर, बढ़ी हुई संप्रेषणीयता और कम टीका सुरक्षा के कारण ऐसा किए जाने की संभावना है। ओमिक्रोन की वंशावली क्या है?एक वंश, या उप-संस्करण, एक सामान्य पूर्वज से प्राप्त वायरस वेरिएंट का आनुवंशिक रूप से निकट से संबंधित समूह है। ओमिक्रोन संस्करण में तीन उप-वंश शामिल हैं: बी.1.1.529 या बीए.1, बीए.2 और बीए.3।डब्ल्यूएचओ ने हालांकि बीए.2 को एक अलग वर्गीकरण नहीं दिया है, यूनाइटेड किंगडम ने बीए.2 को ''जांच के तहत'' एक वेरिएंट की श्रेणी में रखा है। तो डब्ल्यूएचओ की परिभाषाओं के आधार पर अभी तक यह ध्यान देने लायक या चिंता का एक प्रकार नहीं है, लेकिन इसपर बारीकी से नजर रखी जा रही है। उप-वंशों वाला यह पहला संस्करण नहीं है। पिछले साल के अंत में, डेल्टा ''प्लस'' या एवाई.4.2 व्यापक रूप से सामने आया था, फिर ओमिक्रोन आया। बीए.2 के बारे में क्या अलग है?बीए.2 के शुरूआती उपक्रम फिलीपीन से मिले थे - और अब हमने इसके हजारों मामले देखे हैं, जो अमेरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया में देखे गए हैं, हालांकि इसकी उत्पत्ति अभी भी अज्ञात है। बीए.2 के सटीक गुणों की भी जांच की जा रही है। हालांकि अभी तक इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनता है, वैज्ञानिकों को कुछ विशेष चिंताएं हैं।1. अंतर करना कठिन हैएक मार्कर जिसने पीसीआर परीक्षणों के दौरान ओमिक्रोन (बीए.1) को अन्य सार्स-कोव-2 वेरिएंट से अलग करने में मदद की, वह है एस जीन की अनुपस्थिति, लेकिन बीए.2 के लिए ऐसा नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम पीसीआर परीक्षणों के साथ बीए.2 का निदान नहीं कर सकते। इसका सीधा सा मतलब है कि जब कोई सार्स-कोव-2 के लिए सकारात्मक परीक्षण करता है, तो हमें जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से यह जानने में थोड़ा अधिक समय लगेगा कि कौन सा संस्करण जिम्मेदार है। पिछले वेरिएंट के साथ भी ऐसा ही था। 2. यह अधिक संक्रामक हो सकता हैसबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस बात के सबूत उभर रहे हैं कि बीए.2 मूल ओमिक्रोन, बीए.1 की तुलना में अधिक संक्रामक हो सकता है। डेनमार्क से एक प्रारंभिक अध्ययन, जहां बीए.2 ने बड़े पैमाने पर बीए.1 की जगह ले ली है, यह सुझाव देता है कि बीए.1 की तुलना में बीए.2 बिना टीकाकरण वाले लोगों में संक्रमण की संवेदनशीलता को दो गुना बढ़ा देता है। अध्ययन ने बीए.2 के 2,000 से अधिक प्राथमिक मामलों की जांच की ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि सात दिनों की अनुवर्ती अवधि के दौरान कितने मामले सामने आए। शोधकर्ताओं ने बीए.1 से संक्रमित लोगों में द्वितीय हमले की दर (मूलत:, संभाव्यता संक्रमण) 29त्न होने का अनुमान लगाया है, जबकि बीए.2 से संक्रमित लोगों के लिए यह 39त्न है। यह डेनिश अध्ययन अभी भी एक प्री प्रिंट है, जिसका अर्थ है कि इसे स्वतंत्र वैज्ञानिकों द्वारा जांचा जाना बाकी है, इसलिए यह पुष्टि करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्या बीए.2 वास्तव में बीए.1 से अधिक संक्रामक है।
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दुनिया में सालों तक देखे जाने वाले एक आइलैंड को लेकर हैरान करने वाली खबर सामने आई है। अभी तक जिस आइलैंड को गूगल मैप पर भी देखा जा रहा था वो सच में था ही नहीं। जेम्स कुक नाम के एक शख्स ने साल 1774 में इस आइलैंड को खोजने का दावा किया था जिसके बाद इस द्वीप को 'सैंडी आइलैंड' नाम दिया गया। जेम्स ने प्रशांत महासागर में इस आइलैंड के होने बात कही थी।
इस आईलैंड के रहस्यमयी होने की वजह से प्रेत द्वीप भी कहा जाता था। हालांकि जब शोधकर्ताओं ने इस आईलैंड की सच्चाई बताई, तो लोगों के होश उड़ गए। एक समय इस आईलैंड को गूगल पर देखा जा सकता था, लेकिन जब शोधकर्ताओं ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा कि यह आईलैंड नहीं है, तो गूगल ने भी मैप से इसे हटा दिया। आइए जानतें हैं इसके बारे में रोचक बातें।
सैंडी आइसलैंड ऑस्ट्रेलिया में समुद्र तट पर स्थित था। दावे के मुताबिक, इस आईलैंड को सबसे पहले साल 1774 में जेम्स कुक ने खोजा था। जेम्स कुक ने संभावना जताई थी कि इस आइसलैंड की लंबाई 22 किलोमीटर और चौंड़ाई 5 किलोमीटर है। वेलोसिटी नाम के शिप ने भी साल 1876 में सैंडी आइलैंड के मौजूद होने का दावा किया गया था।
सबसे बड़ी बात यह है कि बिट्रेन और जर्मनी ने अपने 19वीं सदी के मानचित्रों में भी इस आईलैंड के होने का दावा किया था। हालांकि बाद में कई लोगों की तरफ से इस आईलैंड को लेकर आशंका भी जाहिर की गई थी। फ्रेंच हाइड्रोग्राफिक सर्विस की तरफ से इस आइलैंड को समुद्री मानचित्र से साल 1979 से हटा दिया गया।
ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च के दौरान नवंबर 2012 में पाया कि यह आईलैंड है ही नहीं। वैज्ञानिकों ने इस जगह समुद्र की गहराई नापी, तो पता चला कि गहराई 4,300 फीट से ज्यादा नहीं थी। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी की मुख्य भूविज्ञानी मारिया सेटन ने कहा था कि किसी तरह की गलती हुई होगी। एक पेपर भी प्रकाशित किया गया था जिसमें पुष्टि हुई है कि सैंडी आईलैंड नहीं था। -
भारत में सड़को का जाल बिछा हुआ है जिस पर साइकिल से लेकर ट्रकें तक चलती हैं। लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए सड़कों का इस्तेमाल करते हैं। अक्सर आप सफर के दौरान सड़कों के किनारे रंग-बिरंगे पत्थर लगे हुए देखते होंगे जो अलग-अलग रंग के होते हैं। इन पत्थरों का अपना अलग-अलग महत्व होता है, लेकिन क्या आप सड़क किनारे लगे इन रंग बिरंगे पत्थरों का मतलब जानते हैं? नहीं तो आइए हम आपको आज इसके महत्व के बारे में बताते हैं। सड़कों के किनारे लगे इन मील के पत्थरों का शहरों और जगहों की दूरी बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि बदलते समय के अनुसार, इन पत्थरों की जगह अब बड़े-बड़े साइन बोर्डों ने ले लिए हैं। लेकिन आज भी आपको पहले के समय के पत्थर दिख जाएंगे।
पीले रंग का पत्थर
अगर आपको सड़क पर चलते समय सड़क किनारे पीले रंग का पत्थर दिखाई दे जाए तो समझिए कि आप नेशनल हाइवे पर चल रहे हैं। नेशनल हाइवे सड़कों के रखरखाव का जिम्मा नेशनल हाईवे ऑफ अथॉरिटी का होता है। देश में NH-24, NH-8 जैसे कई नेशनल हाईवे हैं। नार्थ-साउथ-ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर और गोल्डन क्वाड्रीलैट्रल जैसी सड़कें नेशनल हाईवे ही हैं।
हरे रंग का पत्थर
अगर आपको सड़क किनारे हरे रंग की पट्टी वाला पत्थर दिखाई दे तो समझिए कि आप राज्य के हाईवे पर चल रहे हैं। यानी उसके रख रखाव का जिम्मा राज्य सरकार का है। आम तौर पर इन सड़कों का उपयोग एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए किया जाता है।
काले, नीले या सफेद पत्थर
अगर आपको सड़क किनारे काले, नीले या सफेद रंग का पत्थर दिखाई दे तो समझिए कि आप किसी बड़े शहर या किसी बड़े जिले में आ गए हैं। इन सड़कों का निमार्ण, उनकी मरम्मत का जिम्मा शहर के नगर निगम का होता है।
नारंगी रंग का पत्थर
अगर आप किसी गांव में जाते हैं तो आपको सड़क किनारे नारंगी रंग के पत्थर दिखाई देंगे। नारंगी रंग की पट्टियां प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से जुड़ी हुई होती हैं। -
आपने गली-मोहल्ले या सड़क पर गाड़ियां के गुजरते समय कुत्तों को भौंकते हुए जरूर देखा होगा। ऐसा देखकर लगता है कि गाड़ियों और कुत्तों की कोई पुरानी दुश्मनी हो। कुत्तों को अक्सर मोटरसाइकिल पर भौंकते और चलाने वाले शख्स को काटने के लिए दौड़ते हुए देखा जाता है। हो सकता है कि कई बार आपको भी मोटरसाइकिल चलाते समय कुत्तों ने दौड़ाया हो। कुत्तों के भौंकने की वजह से कई बार मोटरसाइकिल सवार दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
जब किसी इंसान को मोटरसाइकिल पर भौंकते हुए कुत्ते दौड़ाते हैं, तो उसके मन में एक सवाल जरूर आता होगा कि क्या इससे बचने का कोई उपाय है? जी हां बिल्कुल कुत्तों की इस हरकत से बचना का उपाय है। हम आपको एक आसान तरीका बताते हैं, जो आपको कुत्तों से बचाने में मदद कर सकता है। अगर आप ऐसी स्थित में फंसते हैं, तो आपको गाड़ी तेज नहीं भगानी चाहिए, क्योंकि हो सकता है कि आप हादसे का शिकार हो जाएं। इसलिए आराम से गाड़ी चलाएं।
इसके अलावा अगर आप मोटरसाइकिल को तेज भगाते हैं, तो फिर कुत्ते आपकी गाड़ी को दौड़ाते हैं। लोगों को मोटरसाइकिल तेज भगाता देख कुत्तें अधिक भौंकते हैं। अगर जहां कुत्ते हैं वहां तेज गाड़ी भगाएंगे, तो वह जरूर आपको काटने के लिए आपके पीछे दौड़ेंगे।
इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि जब आपके सामने ऐसी स्थिति हो तो गाड़ी को तेज न भगाएं। आपके गाड़ी तेज चलाने से कुत्ते भड़क सकते हैं। अगर आपकी मोटरसाइकिल के पीछे कुत्ते दौड़ें, तो आप अपनी गाड़ी को धीरे कर लीजिए या रोक दीजिए। ऐसे में कुत्ते भौंकना बंद कर सकते हैं।
इसके बाद आप धीरे-धीरे गाड़ी चलाकर वहां से जा सकते हैं। ऐसा करने से कुत्ते आपकी गाड़ी पर भौंकना बंद कर देंगे और आप आसानी और सुरक्षित तरीके से वहां चले जाएंगे। मोटरसाइकिल सवार पर कुत्तों की भौंकने की आदत है। इसलिए आप इन टिप्स को अपनाकर बच सकते हैं। -
ट्रेन की यात्रा हमेशा से ही लोगों के लिए रोमांच से भरी होती है। जब भी हमें ट्रेन से यात्रा करनी होती है हम रोमांचित हो जाते हैं। दरअसल, ट्रेन यात्रा के दौरान हमारा जो अनुभव होता है वो काफी यादगार होता है। हर वो व्यक्ति जिसने कभी न कभी ट्रेन यात्रा की है, उसका कोई न कोई अनुभव जरूर होता है। ट्रेन यात्रा करते समय हमें नदी, पहाड़, गांव, शहर और भी प्राकृतिक चीजों को देखने का मौका मिलता है। इन चीजों को देखने के बाद दिल आनंद से भर जाता है। इसी कड़ी में कुछ ऐसे ट्रेन रूट होते हैं जो अपने अजीबोगरीब कारणों से जाने जाते हैं। इनमें से कुछ रास्ते तो इतने सुंदर होते हैं जिन्हें देखना बहुत अच्छा लगता है। वहीं कई ट्रेन रूट तो इतने दुर्गम होते हैं जिन्हें देखते ही डर लगता है।
आइए ऐसे ही एक ट्रेन रूट के बारे में जानते हैं........
दरअसल, थाईलैंड के बैंकॉक शहर में एक ऐसा ही ट्रेन रूट है जहां ट्रेन बाजार के बीचोंबीच से होकर जाती है। इस बाजार को फोल्डिंग अंब्रेला मार्केट के नाम से जाना जाता है। सुनने में ये नाम काफी अजीब लगता है। दरअसल, एक संकरे रास्ते से गुजरने वाली ट्रेन की पटरी के अगल-बगल सब्जी की दुकानें लगाई जाती है। जैसे ही ट्रेन यहां से गुजरती है, वैसे ही दुकानदार अपनी दुकान के पर्दे फोल्ड करके हटा लेते हैं जिससे ट्रेन आसानी से निकल जाती है। ट्रेन के गुजरने के बाद दोबारा ये बाजार सज जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि ये बाजार दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस बाजार को देखने ग्राहक से ज्यादा पर्यटक आते हैं। ग्राहक यहां अपनी जरूरत की चीजें लेने आते हैं तो पर्यटक यहां फोटोग्राफी करने और वीडियो बनाने आते हैं। ये फोल्डिंग मार्केट सुबह 6 बजे से शाम के 6 बजे तक लगता है।
इस मार्केट में सब्जियों के अलावा फल,मीट,सी फूड और राशन भी मिलता है। थाइलैंड टूरिज्म अथॉरिटी के अनुसार, इस मार्केट से ट्रेन एक दिन में 8 बार आती और जाती है। ट्रेन 4 बार महाचाई से माइकलॉन्ग जाती है और 4 बार माइकलॉन्ग से महाचाई वापस लौटती है।
एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार, माइकलॉन्ग स्टेशन बैंकॉक से करीब 80 किलोमीटर दूर है। अगर हम बिना ट्रेन से ये दूरी तय करते हैं तो हमें डेढ़ घंटे का समय लगता है, ऐसे में ट्रेन से सफर करने में ये समय कम लगता है। इस मार्केट के अलावा इस इलाके में एमफावा फ्लोटिंग मार्केट भी लगता है जो शुक्रवार से रविवार तक दिन के 2 बजे से रात के 3 बजे तक खुलता है। - दुनिया भर में अमीर इंसानों की कोई कमी नहीं है। अमीर होने के साथ-साथ इनके शौक भी बड़े-बड़े होते हैं। किसी को महंगी कार रखने का शौक होता है तो किसी को प्रॉपर्टी खरीदने का। आज हम आपको एक ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके पास इतनी दौलत है कि वो छोटे-मोटे देश तो बड़े आराम से खरीद सकते हैं। ये पीएम दुनिया भर की महंगी गाड़ियों का भी शौक रखते हैं। यही कारण है कि इनके पास जो कार कलेक्शन है उसकी चर्चा दुनिया भर में हो रही है। इनके पास एक, दो, तीन नहीं बल्कि 2000 कारों का कलेक्शन है। जी हां! ब्रुनेई के मौजूदा प्रधानमंत्री और सुल्तान हस्सनल बोल्किअह के पास बेहिसाब दौलत के साथ दुनिया की बेहतरीन कारों का कलेक्शन भी है। हस्सनल बोल्किअह मशहूर फुटबॉलर फैक बोल्किअह के रिश्तेदार हैं। फैक भी दुनिया के सबसे अमीर फुटबॉलर है।ब्रुनेई के प्रधानमंत्री हस्सनल बोल्किअह को महंगी कारों का बहुत शौक है। इन कारों की कीमत का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इन्हें बेचकर दुनिया के कई गरीब देश खरीदे जा सकते हैं। हस्सनल के पास चार खरब से ज्यादा कीमत की दो हजार कारें उनके गैराज में खड़ी हैं। ये कोई साधारण गाड़ियां नहीं है। गैराज में खड़ी एक गाड़ी को भी खरीदने के लिए आम इंसान को सौ बार सोचना पड़ेगा।हस्सनल बोल्किअह के पास 600 रॉल्स रॉयस, 570 मर्सिडीज बेंज, 450 फेरारी और करीब 380 बेंटलेस जैसी कारें हैं। इसके अलावा भी कई अन्य कार पीएम के कारों के कलेक्शन का हिस्सा हैं। बात अगर हस्सनल बोल्किअह के कुल संपत्ति की करें तो इनके पास 13 बिलियन यूरो यानी 13 खरब 12 अरब 13 करोड़ 97 लाख 5 हजार 5 सौ के करीब रुपए हैं। इस संपत्ति में 4 खरब रुपए इनकी कारों की कीमत है।वहीं इस पीएम के रिश्तेदार दुनिया के सबसे अमीर फुटबॉलर फैक बोल्किअह भी इनदिनों चर्चा में हैं। ब्रुनेई के पीएम फैक के रिश्ते में अंकल लगते हैं। फैक ने अपनी पढ़ाई इंग्लैंड से की है और अभी वो ब्रुनेई के अंडर 19 और अंडर 23 फुटबॉल टीम में हैं।एक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फैक के पिता एक प्लेब्वॉय के तौर पर जाने जाते हैं। ये दुनिया में सबसे ज्यादा कैश रखने वाले इंसान थे। अगर ये कहें कि ये पूरा खानदान ही पैसों से भरा हुआ है तो गलत नहीं होगा।
- आप धरती पर एक जगह से दूसरे जगह की यात्रा कर जा रहे हैं, तो क्या आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि बिना कोई नदी या जलस्त्रोत पार किए कितनी दूर जा सकते हैं। शायद आप इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। हालांकि दुनिया में एक ऐसे रास्ते की खोज हुई है जिस रास्ते से पैदल यात्रा करने में कोई नदी या जलस्त्रोत नहीं है। इस बात पर आपको यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन यह बिल्कुल सच है।एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश नाविक जॉर्ज मीगन अमेरिका के अर्जेंटीना से 30,608 किलोमीटर लंबी दूरी तय कर 1983 में अलास्का पहुंचे थे। उन्होंने यह लंबी यात्रा कुल 2425 दिनों में पूरी की थी। जबकि अमेरिकी आर्मी रेंजर होली हैरिसन ने इसी रास्ते पर साल 2018 में 530 दिनों में 23,305 किलोमीटर की दूरी तय कर ली थी। आइए बताते हैं किसने अब तक सबसे लंबी पैदल यात्रा की है।एक प्रतियोगी हैं जिन्होंने सबसे लंबी पैदल यात्रा की है। इन्होंने साल 2020 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन से यात्रा की शुरुआत थी। उन्होंने अपनी यात्रा पूरी करने के लिए गूगल मैप की मदद ली थी। इस प्रतियोगी ने रूस के मागाडान पहुंचने के लिए 22,104 किलोमीटर की दूरी तय की। लेकिन इनका नाम गोपनीय रखा गया है।इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर आप बिना कोई नदी या जलस्रोत पार किए सीधी रेखा में जाना चाहते हैं, तो चीन से पुर्तगाल तक की यात्रा कर सकते हैं। आयरलैंड के कॉर्क स्थित कोलिंस एयरोस्पेस एप्लाइड रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी के फिजिसिस्ट, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रोहन चाबुकश्वर और नई दिल्ली स्थित आईबीएम रिसर्च के इंजीनियर कुशल मुखर्जी ने साल 2018 में इस रास्ते को खोजा था। रोहन और कुशल की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सीधी रेखा से पैदल यात्रा करने पर करीब 11,240 किलोमीटर लंबी दूरी तय करनी होगी। इस रास्ते में आपको किसी भी नदी या जलस्रोत को पार नहीं करना होगा।दक्षिण-पूर्वी चीन से इस रास्ते की शुरुआत होती है। इस रास्ते में 13 देश पड़ते हैं जिनमें मंगोलिया, कजाकिस्तान, रूस, बेलारूस, यूक्रेन, पोलैंड, चेक गणराज्य, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, लींचस्टेनटीन के अलावा स्विट्जरलैंड, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल के सैगरेस का इलाका शामिल हैं। यह रिपोर्ट साल 2018 में arXiv प्रीप्रिंट डेटाबेस में प्रकाशित की गई थी।-
- भारत का संविधान संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है, जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार, केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है जिन्हें राज्यों की परिषद राज्यसभा तथा लोगों का सदन लोकसभा के नाम से जाना जाता है।प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है। जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधानपरिषद कहा जाता है। राज्यपाल राज्य का प्रमुख है। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होगी। मंत्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है।भारतीय संविधान की आधारभूत एवं विभेदकारी विशेषताएं-1. 11 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक में डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया, जो अंत तक इस पद पर बने रहें।2. संविधान सभा के सदस्य, भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे।3. भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।4. इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन मे कुल 114 दिन बैठक की, इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की पूर्ण स्वतंत्रता थी।5. भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 22 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं।6. भारत के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, पद, अवसर और कानूनों की समानता, विचार, भाषण, विश्वास, व्यवसाय, संघ निर्माण और कार्य की स्वतंत्रता, कानून तथा सार्वजनिक नैतिकता के अधीन प्राप्त होगी।7. भारत मे द्वैध नागरिकता नहीं है। केवल भारतीय नागरिकता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना, सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है।8. भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती हैं, दोनों सत्ताएं एक-दूसरे के अधीन नहीं होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं। यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है।9. राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनों पर लागू होता है। वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है।10. 'धर्मनिरपेक्षÓ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है।12. 'समाजवादीÓ शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है।
- गणतंत्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था।एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश के संक्रमण को पूरा करने के लिए, 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा इस संविधान को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। 26 जनवरी 1950 को डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। पहला गणतंत्र दिवस समारोह राजपथ पर नहीं मनाया गया था , इस दिन इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में झंडा फहराया गया था ।पहला गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो थे । पहला समारोह सवेरे के बजाय दोपहर बाद मनाया गया था। पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गवर्नमेंट हाउस (आज के राष्ट्रपति भवन) से छह घोड़ों वाली बग्घी से समारोह स्थल तक पहुंचे। पहले समारोह में राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी दी गई।राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी देने की परंपरा 70 के दशक तक चली। बाद में 31 तोपों के बजाय 21 तोपों की सलामी दिए जाने की परंपरा चलाई गई जो आज तक जारी है। 1952 से बीटिंग रिट्रीट की परंपरा भी शुरू हुई। पहली बार राजपथ पर परेड का आयोजन वर्ष 1955 में हुआ । राजपथ पर पहली परेड के पहले मुख्य अतिथी पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद थे। वर्ष 1955 में गणतंत्र दिवस पर मुशायरे की परंपरा लाल किले के दीवान-ए-आम में शुरू हुई। मुशायरा रात दस बजे शुरू होता था। अगले वर्ष 14 भाषाओं का कवि सम्मेलन रेडियो से प्रसारित हुआ।वर्ष 1957 के गणतंत्र दिवस से सरकार ने बच्चों के लिए राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार शुरू किया । वर्ष 1958 से 26 जनवरी के मौके पर सरकारी इमारतों पर रोशनी करने की परंपरा शुरू हुई।वर्ष 1960 के गणतंत्र दिवस समारोह को दिल्ली में 20 लाख लोगों ने देखा, इनमें से पांच लाख लोग तो राजपथ पर ही जमा थे। बाकी लोग दिल्ली के जिन इलाकों से परेड गुजरी वहां से इसे देखा। 1961 के गणतंत्र दिवस समारोह की मुख्य अतिथि ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ बनीं थी। वर्ष 1962 से परेड और बीटींग रिट्रीट समारोह के लिए टिकटों की बिक्री शुरू की गई। तब परेड की लंबाई छह मील हो गई थी यानी जब परेड की पहली टुकड़ी लाल किला पहुंच गई तब आखिरी टुकड़ी इंडिया गेट पर ही थी।वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण हुआ जिसके फलस्वरूप अगले वर्ष परेड का आकार कम कर दिया गया। 1965 के गणतंत्र दिवस के दिन हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया। 1968 के गणतंत्र दिवस समारोह में 136 विमानों ने फ्लाई पास्ट में भाग लिया। 1969 के गणतंत्र दिवस समारोह में 164 विमानों ने भाग लिया और मिग-21 ने पहली बार राजपथ पर उड़ान भरी।1972 के गणतंत्र दिवस समारोह राज पथ के बजाय विजय चौक पर आयोजित किया गया। क्योंकि इस वर्ष पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध शहीदों हुए वीर जवानो को नमन किया गया। 1972 के गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी दी गई और बांग्लादेश की आजादी और भारत की विजय का जश्न मनाया गया। 1973 में पहली बार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर श्रद्धांजलि अर्पित की। तब से यह परंपरा जारी है।वर्ष 2001 के गणतंत्र दिवस समारोह से पहली बार बीटींग रिट्रीट कार्यक्रम रद्द किया गया। क्योंकि इस साल गणतंत्र दिवस के दिन ही गुजरात व देश के अन्य भागों में आए भयानक भूकंप आया था, जिसके फलस्वरूप जान-माल की हानि हुई थी।---
- संगीत की दुनिया में तानसेन का नाम अजर अमर है। संगीत सम्राट की उपाधि प्राप्त तानसेन को लेकर अनेक किस्से मशहूर हैं। तानसेन के बारे में कहा जाता है कि जब वो अपना राग छेड़ते थे तो मौसम अपने आप बदल जाता था। उनकी गायकी से आसमान में बादल आ जाते और बरसने लगते थे। जब वो अपना राग दीपक गाते थे तो दीप अपने आप जल जाते थे। यही कारण है कि तानसेन को संगीत सम्राट भी कहा जाता है। तानसेन ने शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने में अमूल्य योगदान दिया। तानसेन गायक होने के साथ उच्च कोटि के वादक भी थे। जिन्होंने कई रागों का निर्माण किया।कहा जाता है कि तानसेन बचपन में बोल नहीं पाते थे। इसके लिए उन्हें इमली के पत्ते खिलाए गए। ऐसा कहा जाता है कि तानसेन की गायकी का राज एक इमली का पेड़ था। इसके बाद तानसेन संगीत की दुनिया का सम्राट बन गए। तानसेन संगीत का इतना रियाज करते थे कि उनकी इस साधना को देखकर उस समय के बादशाह अकबर ने उन्हें अपने नौरत्नों में शामिल किया था। उस दौर में बादशाह अकबर के नौरत्नों में शामिल होना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी।तानसेन का निधन आगरा में हुआ था। तानसेन की अंतिम अच्छा थी कि जब उनका निधन हो तो उन्हें उनके आध्यात्मिक गुरु मोहम्मद गौस के मकबरे के पास ही दफनाया जाए। इसके बाद ऐसा ही हुआ और उन्हें वहीं दफनाया गया। जिस जगह पर तानसेन को दफनाया गया था उसी जगह एक इमली का पेड़ उग आया। धीरे-धीरे ये मान्यता हो गई कि जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाएगा उसका गला सुरीला हो जाएगा।यही वजह है कि संगीत की साधना करने वाला हर इंसान यहां आता है और पेड़ की पत्तियां अपने साथ ले जाता है। माना जाता है कि ये पेड़ 600 साल पुराना है और दुनिया भर के संगीतकारों के लिए ये पेड़ किसी धरोहर से कम नहीं है। ऐसी मान्यता है कि इन पेड़ों की पत्तियों में मियां तानसेन की रूह बसती है जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाएगा उसकी आवाज सुरीली हो जाएगी।कहा जाता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के जाने-माने कलाकार पंडित जसराज जब यहां आए तो इस पेड़ की पत्तियों को खाने से खुद को रोक नहीं पाए। जब वो जाने लगे तो कुछ पत्तियां अपने साथ भी ले गए। संगीत की समझ रखने वाले और इतिहासकार मानते हैं कि जो पेड़ की पत्तियां खाता है उसे तानसेन का आशीर्वाद मिलता है।
- दुनियाभर के वैज्ञानिक मंगल ग्रह के रहस्यों के बारे में जानने की कोशिश में लगे हुए हैं। समय-समय पर वैज्ञानिक मंगल ग्रह के बारे में नए-नए खुलासे करते रहते हैं। आमतौर मंगल ग्रह लाल रंग का दिखाई देता है। अब इस बीच अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पर्सिवरेंस रोवर ने मंगल ग्रह पर बैंगनी रंग के पत्थर की खोज की है। दरअसल इन पत्थरों पर बैंगनी रंग की परत है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जेजेरो क्रेटर में हर तरफ ये बैंगनी रंग के छोटे और बड़े पत्थर मौजूद हैं।नासा के वैज्ञानिक अभी यह पता नहीं लगा पाए हैं कि रहस्यमयी बैंगनी पत्थरों का निर्माण कैसे हुआ? या इन पत्थरों पर वैगनी रंग कैसे चढ़ गया। जियोकेमिस्ट एन ओलिला का कहना है कि पर्सिवरेंस रोवर से जो डेटा प्राप्त हुए हैं उससे इन रहस्यमयी रंगों के पत्थरों के बारे में कोई स्पष्ट जनाकारी नहीं मिल पाई है। उन्होंने अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन (एजीयू) में नेशनल जियोग्राफिक को यह जानकारी दी है।मंगल ग्रह पर बैंगनी पत्थर मिलने से पहले हरे रंग के भी पत्थर मिल चुके हैं। साल 2016 में क्यूरियोसिटी रोवर ने माउंट शार्प के पास हरे रंग के पत्थरों की खोज की थी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने मंगल ग्रह पर अलग-अलग रंग के पत्थरों को खोजा है जिनमें कुछ न कुछ विभिन्नता है। एन ओलिला ने बताया है कि पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के ब्रैडली गार्सिन्की की टीम इन बैंगनी पर वला पत्थरों पर रिसर्च कर रही है।मंगल ग्रह पर बैंगनी पत्थरों की तस्वीरें पर्सिवरेंस रोवर के मास्टकैम-z कैमरा और eye कैम ने ली थी। अब इन तस्वीरों के माध्यम ब्रैडली गार्सिन्की की टीम रहस्यमयी पत्थरों की जांच करेगी। ब्रैडली का कहना है कि उन्होंने पहले कभी ऐसे पत्थरों को नहीं देखा है और ना ही पर्सिवरेंस रोवर ने ऐसे पत्थरो की जांच की थी। हम इन्हें देखकर हैरान हैं।तो वहीं जियोकेमिस्ट एन ओलिला की टीम पत्थरों के ऊपर की परत को पिघलाकर पत्थर और बैंगनी परत की जांच करेगी। टीम पत्थरों को पर्सिवरेंस सुपरकैम के माध्यम से लेजर शूट कर पिघलाएगी। शुरुआती जांच के बाद वैज्ञानिकों ने बताया है कि पत्थरों पर चढ़े बैंगनी परत मुलायम हैं और रासायनिक तौर पर अलग हैं। पत्थर की अंदरुनी परत दूसरी तरह की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि, हो सकता है कि हाइड्रोजन और मैग्नीशियम के मिश्रण से यह परत बन गई हो।वैज्ञानिक यह जांच कर रहे हैं कि लाल ग्रह पर बैंगनी रंग के परत वाले पत्थर कहां से आए। इन पत्थरों पर बैंगनी रंग कैसे चढ़ा? वैज्ञानिकों के मन में यह भी सवाल उठ रहा है कि कहीं ये कोई सुक्ष्मजीव तो नहीं है। इस जीव ने सूर्य की तीव्र रेडिएशन से बचाने के लिए अपने ऊपर कोटिंग चढ़ा ली हो। अब जांच के बाद ही इन रहस्यमयी पत्थरों के बारे में पता लग पाएगा।
- अमेरिका की एक एयरोस्पेस कंपनी ने स्पेसफ्लाइट को लेकर एक ऐसा स्पेसप्लेन (Spaceplane) बनाने का खुलासा किया है. ये स्पेसप्लेन एक रनवे से उड़ान भर सकता है और फिर जमीन पर लैंड कर सकता है. वाशिंगटन में मौजूद रेडियन एयरोस्पेस (Radian Aerospace) ने दावा किया है कि इसका स्पेसप्लेन यात्रा को अंतरिक्ष और दुनियाभर में पूरी तरह से बदल लेगा.अमेरिका की एक एयरोस्पेस कंपनी ने स्पेसफ्लाइट को लेकर एक ऐसा स्पेसप्लेन (Spaceplane) बनाने का खुलासा किया है. ये स्पेसप्लेन एक रनवे से उड़ान भर सकता है और फिर जमीन पर लैंड कर सकता है. वाशिंगटन में मौजूद रेडियन एयरोस्पेस (Radian Aerospace) ने दावा किया है कि इसका स्पेसप्लेन यात्रा को अंतरिक्ष और दुनियाभर में पूरी तरह से बदल लेगा.कंपनी ने दावा किया है कि ये टूरिज्म मार्केट पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगा. इसका फोकस रिसर्च, अंतरिक्ष में निर्माण और पृथ्वी के ऑब्जर्वेशन को आसान और सस्ता बनाने का एक तरीका ढूंढता है. रेडियन का कहना है कि उसने रेडियन वन एयरोस्पेस वाहन के डिजाइन और प्रारंभिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए 'स्टील्थ मोड में संचालित' किया है. कंपनी ने कहा कि ये स्पेसप्लेन पारंपरिक वर्टिकल रॉकेट्स की जगह लेगा.रेडियन एयरोस्पेस ने कहा, ये स्पेसप्लेन रिजूजेबल होगा और विमानों जैसे सिस्टम होने की वजह से कम इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत पड़ेगी. स्पेस्पेलन को एक उड़ान के 48 घंटे बाद फिर से उड़ाया जा सकता है. स्पेसप्लेन पृथ्वी की निचली कक्षा में उड़ान भर सकेगा. एक बार कक्षा में होने पर इसका मिशन पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए 90 मिनट तक से लेकर पांच दिनों तक का हो सकता है.स्पेस से पृथ्वी पर वापस आने के दौरान स्पेसप्लेन के पंख इसे किसी भी 10 हजार फीट लंबे रनवे पर सुरक्षित लैंड करने में मदद करेंगे. इस तरह ये विमान दुनिया के किसी भी बड़े एयरपोर्ट पर आराम से लैंड कर सकेगा. कंपनी का कहना है कि स्पेसप्लेन अंतरिक्ष में एक बार पहुंचने पर कई प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम होगा, जिसमें लोगों और हल्के कार्गो को पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जाना शामिल है.रेडियन के सीईओ और सह-संस्थापक रिचर्ड हम्फ्री ने कहा, हम मानते हैं कि अंतरिक्ष तक व्यापक पहुंच का मतलब मानव जाति के लिए असीमित अवसर हैं. उन्होंने कहा, समय के साथ हम अंतरिक्ष यात्रा को विमान यात्रा की तरह लगभग सरल और सुविधाजनक बनाने का इरादा रखते हैं. उन्होंने आगे कहा कि उनका फोकस भी स्पेस टूरिज्म पर नहीं है.
- भारत कई रहस्यमयी मंदिरों का घर है। रहस्य भी ऐसे जो सदियों से अनसुलझे हैं। इसके अलावा कई मंदिर अपने साथ जुड़ी अजीब मान्यताओं, भौगोलिक स्थितियों आदि के कारण भी प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक है बिहार के दरभंगा में चिता पर बना मां काली का मंदिर। श्यामा माई के नाम से मशहूर यह काली मंदिर श्मशान घाट में है। इतना ही नहीं यह मंदिर चिता के ऊपर बना है। मान्यता है कि इस मंदिर में मां श्यामा काली के दर्शन मात्र से सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं।किसकी है चिता?श्यामा माई का यह मंदिर महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर बनाया गया है। यह बेहद ही अजीब बात है कि किसी मंदिर का निर्माण किसी व्यक्ति की चिता पर किया गया हो। हालांकि इसके पीछे की एक खास वजह है। महाराजा रामेश्वर सिंह दरभंगा राज परिवार के साधक राजाओं में से एक थे। देवी के प्रति उनकी साधना मशहूर है। यहां तक कि अब इस मंदिर को रामेश्वरी श्यामा माई के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1933 में महाराजा रामेश्वर सिंह के वंशज दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने की थी।आरती में शामिल होने भक्त करते हैं घंटों इंतजारइस मंदिर में मां काली के गले में मुंडों की माला है और इसमें मुंड की संख्या हिंदी के वर्णमाला के अक्षरों जितनी यानी कि 52 है। मान्यता है कि हिंदी वर्णमाला सृष्टि की प्रतीक है। इस मंदिर की एक और खास बात यहां कि आरती है। इस मंदिर की आरती इतनी मशहूर है कि इसमें शामिल होने के लिए भक्त घंटों तक इंतजार करते हैं। खासतौर पर नवरात्रि में तो यहां भारी भीड़ होती है।तंत्र-मंत्र दोनों से होती है पूजाइस मंदिर में मां काली की पूजा वैदिक और तांत्रिक दोनों विधियों से की जाती है। वैसे हिंदू धर्म में शादी के एक साल बाद तक दूल्हा-दुल्हन को श्मशान घाट में नहीं जाने के लिए कहा गया है, लेकिन इस मंदिर में दर्शन करने के लिए नवविवाहित दूर-दूर से आते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनका दांपत्य जीवन सुखी रहता है।
- भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल 23 जनवरी को मनाई जाती है। इस साल भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस का पर्व 24 जनवरी के बजाए 23 जनवरी से मनाने का फैसला लिया है। अब से हर साल सुभाष चंद्र बोस की जयंती से गणतंत्र दिवस पर्व का आगाज होगा। भारत सरकार का यह निर्णय नेताजी के सम्मान और देश की स्वतंत्रता में उनके संघर्षों को याद रखने के लिए लिया गया है। इस साल भारत सुभाष चंद्र बोस की 124वीं जयंती मना रहा है।सुभाष चंद्र बोस एक वीर सैनिक, योद्धा, महान सेनापति और कुशल राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए आजाद हिंद फौज के गठन से लेकर हर भारतीय को आजादी का महत्व समझाने तक हर काम को किया। वह केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लिए प्रेरणा हैं। 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' ये वह नारा है जिसने हर भारतवासी के खून को गरम कर दिया। अंग्रेजों से लडऩे के लिए एक ऐसी ताकत दी, जिसे हम देशभक्ति का नाम दे सकते हैं। लेकिन भारत के इस महान नेता के बारे में आप कितना जानते हैं? सुभाष चंद्र बोस के बारे में कई ऐसी बातें हैं, जिसे जानकर आप हर भारतीय गर्व करेगा। चलिए जानते हैं सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर उनसे जुड़ी रोचक बातें।सुभाष चंद्र बोस का बचपन और शिक्षासुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा राज्य के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस के 7 भाई और 6 बहनें थीं। अपने माता-पिता के 14 बच्चों में वह 9 वीं संतान थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी शुरुआती शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए 1913 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से साल 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। उनके माता-पिता चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाएं। सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेजा गया था।प्रशासनिक सेवा में नेताजी का चौथा स्थानये किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं था कि अंग्रेजों के शासन में जब भारतीयों के लिए किसी परीक्षा में पास होना तक मुश्किल होता था, तब नेताजी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया। उन्होंने पद संभाला, लेकिन भारत की स्थिति और आजादी के लिए सब छोड़कर स्वदेश वापसी की और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी दल का नेतृत्व कर रहे थे।सुभाष चंद्र बोस का परिवार और बच्चेनेताजी ने अपनी सेक्रेटरी एमिली से शादी की थी जो कि ऑस्ट्रियन मूल की थीं। उनकी अनीता नाम की एक बेटी भी हैं, जो जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं।नेताजी और द्वितीय विश्व युद्धसाल 1938 में सुभाष चंद्र बोस को राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भी निर्वाचित किया गया। उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। एक साल बाद 1939 के कांग्रेस अधिवेशन में पट्टाभि सीतारमैया को नेताजी ने हरा दिया। इसके बाद नेताजी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। उन दिनों दूसरा विश्व युद्ध हो रहा था। नेताजी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी। जिसके कारण उन्हे घर पर ही नजरबंद कर दिया गया, लेकिन नेताजी किसी तरह जर्मनी चले गए। यहां से उन्होंने विश्व युद्ध को काफी करीब से देखा।आजाद हिंद फौज का गठनदेश की आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना की और आजाद हिंद फौज का गठन किया। साथ ही उन्होंने आजाद हिंद बैंक की भी स्थापना की। दुनिया के दस देशों ने उनकी सरकार, फौज और बैंक को अपना समर्थन दिया था। इन दस देशों में बर्मा, क्रोसिया, जर्मनी, नानकिंग (वर्तमान चीन), इटली, थाईलैंड, मंचूको, फिलीपींस और आयरलैंड का नाम शामिल हैं। इन देशों ने आजाद हिंद बैंक की करेंसी को भी मान्यता दी थी। फौज के गठन के बाद नेताजी सबसे पहले बर्मा पहुंचे, जो अब म्यांमार हो चुका है। यहां पर उन्होंने नारा दिया था, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'। यह वह दौर था जब भारत देश आजादी की ओर अग्रसर था।सुभाष चंद्र बोस की मौत का रहस्यनेताजी की ताकत बढ़ रही थी, लेकिन अचानक 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस का निधन हो गया। कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस का हवाई जहाज मंचुरिया जा रहा था, जो रास्ते में लापता हो गया। आज तक ये नहीं पता चल सका कि सुभाष चंद्र बोस के हवाई जहाज का क्या हुआ, वह कहां गया?
- वैज्ञानिकों को अमेरिका के ऊटा में तंबाकू के इस्तेमाल के 12 हजार 300 साल पुराने सबूत मिले हैं। इससे पहले मिले तंबाकू के सबसे पुराने अवशेष बस 3 हजार 300 साल पुराने थे।इस खोज को मानव संस्कृति के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जा रहा है। तंबाकू के ये पुराने अवशेष ऊटा के ग्रेट सॉल्ट लेक रेगिस्तान में एक सिगड़ी के अवशेषों में मिले हैं। शोधकर्ताओं को सिगड़ी के अंदर मौजूद चीजों में तंबाकू के एक जंगली पौधे के चार जले हुए बीज मिले। इनके साथ साथ पत्थर के कुछ औजार और खाने में से बची हुई बत्तख की हड्डियां मिलीं। अभी तक तंबाकू के इस्तेमाल के जो सबसे पुराने सबूत मिले थे वो अल्बामा में मिले 3 हजार 300 साल पुराने धूम्रपान के एक पाइप के अंदर निकोटीन के अवशेष थे।शोधकर्ताओं का मानना है कि ऊटा वाली जगह पर खानाबदोश लोगों ने इस तंबाकू से धूम्रपान किया होगा या तंबाकू के पौधे के रेशों के गुच्छों को चूसा होगा। संभव है उन्होंने उसका सेवन उसमें मौजूद उत्तेजित करने वाले गुणों के लिए किया हो। तंबाकू के इस्तेमाल की शुरुआत "नई दुनिया" के नाम से जाने जाने वाले उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के इलाकों में ही हुई। सबसे पहले वहां के मूल निवासियों ने इसका सेवन किया और फिर करीब 500 साल पहले यूरोपीय लोगों के वहां पहुंचने के बाद तंबाकू दुनिया भर में फैल गई। आज इसे एक वैश्विक संकट के रूप में देखा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि आज पूरी दुनिया में 1.3 अरब लोग तंबाकू का सेवन करते हैं और हर साल इसकी वजह से 80 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है।इस नई खोज के बारे में 'नेचर ह्यूमन बिहेवियर' पत्रिका में छपे लेख के मुख्य लेखक पुरातत्वविद डैरन ड्यूक कहते हैं, "वैश्विक स्तर पर तंबाकू मादक पौधों का राजा है और अब हम इसकी सांस्कृतिक जड़ों की पहुंच सीधे शीत युग तक पा सकते हैं।"ड्यूक नेवाडा के फार वेस्टर्न ऐंथ्रोपोलॉजिकल रिसर्च ग्रुप के सदस्य हैं. उन्होंने इन बीजों के बारे में बताया, "इस नस्ल के पौधे हमेशा से जंगली रहे लेकिन इस प्रांत के मूल निवासी आज भी इसका सेवन करते हैं।" यह बीज निकोटियाना आतेनुआता नाम के रेगिस्तानी तंबाकू की एक जंगली किस्म के पौधे के हैं। यह पौधा यहां आज भी पाया जाता है। ग्रेट सॉल्ट लेक रेगिस्तान उत्तरी ऊटा में स्थित एक विशाल सूखी हुई झील का इलाका है.। सिगड़ी के ये अवशेष जिस समय के हैं उस समय यह इलाका एक विशाल दलदली भूमि का हिस्सा था। शीत युग का अंत नजदीक था लेकिन तब भी यहां का मौसम ठंडा था। सिगड़ी में मिली हड्डियों के नाम पर इस जगह को विशबोन स्थल कहा जाता है। सिगड़ी के अवशेष वहां मौजूद मिट्टी के घरों से उड़ती धूल के नीचे मिले थे। यहां मौजूद दलदली भूमि करीब 9 हजार 500 साल पहले सूख गई थी और तब से हवा वहां की तलछट को परत दर परत हटा रही है।उन खानाबदोशों के बारे में बताते हुए ड्यूक कहते हैं, "हम उनकी संस्कृति के बारे में बहुत कम जानते हैं। मुझे इस खोज के बारे में सबसे दिलचस्प बात यही लगती है कि इसने इस सरल सी गतिविधि की सामाजिक अवधि को बढ़ा दिया है। मेरी कल्पना के घोड़ों ने दौडऩा शुरू कर दिया है। " ड्यूक आगे बताते हैं कि इस खोज के हजारों साल बाद इसी महाद्वीप पर दक्षिणपश्चिमी और दक्षिणपूर्वी अमेरिका और मेक्सिको में तंबाकू को उगाना शुरू किया गया। उन्होंने कहा, "हमें यह नहीं मालूम कि तंबाकू को उगाना ठीक ठीक कब शुरू किया गया, लेकिन पिछले 5 हजार सालों में उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में कृषि काफी फला-फूला था। तंबाकू के इस्तेमाल के सबूत इस समय में खाद्य फसलों की खेती के साथ बढ़ते जाते हैं।" कुछ वैज्ञानिकों ने तो यहां तक दावा किया है कि तंबाकू उत्तरी अमेरिका में उगाया जाने वाला पहला पौधा भी हो सकता है और ऐसा खाने की जगह सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों की वजह से किया गया होगा।
- लंबे समय से एस्टेरॉयड को धरती के लिए खतरा बताया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर एस्टेरॉयड धरती से टकराता है, तो बड़ी तबाही मच सकती है। आज यानी 18 जनवरी को विशालकाय एस्टेरॉयड पृथ्वी के पास से गुजरेगा। बताया जा रहा है यह अभी तक का सबसे बड़ा एस्टेरॉयड है जिसका नाम 7482 है। इस एस्टेरॉयड की लंबाई करीब 1 किलोमीटर यानी 3280 फीट है। यह धरती से 19.3 लाख किलोमीटर दूर से गुजरेगा। इसलिए इससे धरती को कम खतरा है। अगर इसके रास्ते में थोड़ा भी बदलाव होता है, तो धरती के लिए खतरनाक हो सकता है और तबाही मच सकती है।अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इसको खतरनाक घोषित किया हुआ है।नासा का कहना है कि अगर इतना बड़ा एस्टेरॉयड धरती से टकराता, तो है बहुत बड़ी तबाही मच सकती है। इसलिए ऐसे एस्टेरॉयड को नासा ने संभावित खतरों की सूची में रखा हुआ है। हालांकि नासा ने बताया है कि यह सुरक्षित तरीके से धरती से 19.3 लाख किमी की दूरी से गुजरेगा। पहली बार साल 1994 में इसकी खोज की गई थी।89 साल पहले 17 जनवरी 1933 को एस्टेरॉयड 7482 धरती के सबसे पास से गुजरा था। उस समय यह 11 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरा था। अब यह 18 जनवरी 2105 को इतने ही करीब से धरती के पास से गुजरेगा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी धरती से एस्टेरॉयड को टकराने से रोकने के लिए तकनीक खोजने में लगी हुई है। इसके लिए अमेरिकी अतंरिक्ष एजेंसी ने डार्ट मिशन को लांच किया है।
- दही जमाने के लिए जामन यानी दही की कम मात्रा की जरूरत पड़ती है। क्या कभी आपने कल्पना की है कि किसी पत्थर के संपर्क में आते ही दूध दही में बदल सकता है? ऐसा सच में है। ये पत्थर मिलती है राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक गांव में। आइए जानते हैं उस गांव के पास विशेष पत्थर के साथ दही बनाने की अनूठी विधि कौन सी है ? और उस पत्थर का रहस्य क्या है? ॉये है हाबूर गांव , जो जैसलमेर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है। इस गांव को स्वर्णगिरी के नाम से जाना जाता है। हाबूर गांव का वर्तमान नाम पूनमनगर है। हाबूर पत्थर को लोकल भाषा में हाबूरिया भाटा कहा जाता है। ये गांव देश-विदेश में अनोखे पत्थर की वजह से प्रसिद्ध है। यहां के पीले पत्थर दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। लेकिन हाबूर गांव का जादुई पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए हंै। हाबूर पत्थर दिखने में बहुत सुन्दर होता है। ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है। हाबूर पत्थर का चमत्कार ऐसा है कि इस पत्थर में दूध को दही बनाने की कला है। हाबूर पत्थर के संपर्क में आते ही दूध एक रात में दही बन जाता है। जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुशबू वाला होता है। इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है। इस गांव में मिलने वाले स्टोन से यहां के लोग बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाते हैं जो अपनी विशेष खूबी के चलते देश-विदेश में काफी लोकप्रिय है। इस पत्थर से गिलास, प्लेट, कटोरी, प्याले, ट्रे, मालाएं,फूलदान, कप, थाली और मूर्तियां निर्मित किये जाते हैं।अब सवाल उठता है कि एक पत्थर से कैसे दही जमाया जा सकता है। वो भी रात को दूध उस पत्थर से बने बर्तन में डाला और सुबह उठकर दही खा लो। जब ऐसा होने लगा तो रिसर्च भी होने लगी, जिसमें ये सामने आया है कि हाबूर पत्थर में दही जमाने वाले सारे केमिकल्स मौजूद है। इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं। ये केमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं। हाबूर गांव के भूगर्भ से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है जो इसे चमत्कारी बनाते हैं।कहा जाता है कि जैसलमेर में पहले समुद्र हुआ करता था। जिसका का नाम तेती सागर था। कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए और पहाड़ों का निर्माण हुआ। हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले पत्थर में कई खनिज और अन्य जीवाश्मों की भरमार है। जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी मांग है। अगर आपको हाबूर पत्थर से बनी एक प्याली खरीदनी है तो आपको 1500 से 2000 रुपये चुकाने होंगे। वहीं कटोरी की कीमत 2500 के आसपास हो सकती है। वहीं एक गिलास की कीमत 650 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक होती है।ऐसा कहा जाता है कि इस पत्थर से बने गिलास में रात को सोते समय पानी भरकर रख दो और सुबह खाली पेट पी लो। अगर आप एक से डेढ़ महीने तक लगातार इसका पानी पीते है, तो आपके शरीर में एक परिवर्तन नजर आएगा। आपके शरीर में होने वाला जोड़ों का दर्द कम होगा साथ ही पाइल्स की बीमारी कंट्रोल होगी।