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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 297
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने प्रस्तुत उद्धरण में यह समझाया है कि साधना, पूजा अथवा किसी भी प्रकार के आध्यात्मिक कर्म में कौन सी बात सर्वप्रमुख है? इस उद्धरण को पढ़कर हम यह समझेंगे कि किस प्रकार सभी साधनाओं में इस एक 'सावधानी' को जोड़ देने से हम उन साधनाओं के फल को प्राप्त कर लेते हैं, अन्यथा चूक जाते हैं...)
..वेद से लेकर रामायण तक सभी ग्रन्थ एक स्वर से कहते हैं कि भगवान् का ध्यान करना चाहिये। भगवान् के ध्यान से भगवान् मिलते हैं। वेदव्यास ने कहा;
आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुन:।इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरिः॥(महाभारत, नरसिंह पुराण)
मैंने छहों शास्त्रों को और पुराणों को बार-बार मथा और बार-बार चिन्तन किया तो एक निर्णय निकला - 'ध्येयो नारायणो हरिः', भगवान् का ध्यान करना चाहिये।
स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित्।(पद्म पुराण, उत्तर खण्ड 71.100)
भगवान् का निरन्तर स्मरण करो, उनको भूलो मत।
यहुर्लभं यदप्राप्यं मनसो यत्र गोचरम् ।तदप्यप्रार्थितो ध्यातो ददाति मधुसूदन:॥(गरुड़ पुराण)
ध्यान करने से जो अप्राप्य है वो भी भगवान् दे देते हैं।
भगवान् ब्रह्म कार्त्स्न्येन त्रिरन्वीक्ष्य मनीषया।तदध्यवस्यत् कूटस्थो रतिरात्मन् यतो भवेत्॥(भागवत 2.2.34)
तीन बार ब्रह्मा ने वेदों को मथा और मथकर एक निष्कर्ष निकला - भगवान् का ध्यान करना चाहिये। ध्यान, स्मरण। 'मनेर स्मरण प्राण'। समस्त साधनाओं में 'स्मरण' प्राण है और सब शरीरेन्द्रियाँ हैं। प्राण निकल गया तो ये शरीर शव हो जाता है, मुर्दा, मिट्टी। मिट्टी भी अच्छी होती है, उसमें खुशबू होती है। और इस मिट्टी में तो बदबू हो जाती है 24 घण्टे में। तो भगवान् का ध्यान करना चाहिये। ये सब शास्त्र वेद कह रहे हैं।
गीता में भरा पड़ा है। भगवान् बड़े सुलभ हैं, लेकिन कैसे? 'अनन्यचेता:', चित्त को भगवान् में ही लगाये रहो। 'ही'; अनन्य। फिर 'यो मां स्मरति'। 'स्मरण।'
अनन्याश्चिन्तयंतो मां ये जना: पर्युपासते।
चिन्तन, ध्यान।
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते॥(गीता 12.6)
'ध्यायन्त' मेरा ध्यान करे निरन्तर। यानी मन मुझमें लगा दे।
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।(गीता 12.8)
ध्यान करना है, ध्यान। ये ध्यान का काम कौन करता है? आँख, कान, नाक, त्वचा, रसना - ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ ध्यान नहीं कर सकती। आँख देखने का काम करती है, कान सुनने का, नासिका सूँघने का, रसना रस लेने का, त्वचा स्पर्श करने का। ध्यान करने का काम कौन करता है? मन, अन्त:करण, चित्त अनेक नाम हैं उसके।
तो ध्यान करना चाहिये भगवान् का, उसी का नाम भक्ति, उपासना, पूजा, पाठ जो कुछ शब्द बोलो। वो सब मन को करना है, इन्द्रियों को नहीं। तो भगवान् का ध्यान करना है, बस एक बात। दूसरी कोई बात न सुनो, न पढ़ो, न सोचो, न करो। ध्यान करना है और अगर कोई और बात पढ़ो, सुनो, करो, तो ध्यान नम्बर एक, बाद में और सब कुछ जैसे कीर्तन, भगवान् का नाम, रूप, गुण, लीला धाम ये गाते हैं। ये रसना का काम है बोलना। लेकिन नम्बर एक ध्यान, फिर गान। यानी इन्द्रियों को अगर साथ लेते हो तो कोई एतराज नहीं है, लेकिन अगर मन साथ में नहीं है तो जीरो में गुणा हो जायेगा। जीरो गुणा जीरो बराबर जीरो, जीरो गुणा लाख बराबर जीरो, जीरो गुणा करोड़ बराबर जीरो। उसका कोई परिणाम नहीं होगा। इसलिये ध्यान ही साधना है, उपासना है, भक्ति है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'रूपध्यान विज्ञान' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 296
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निम्न उद्धरण में 'अहंकार' के विषय में प्रकाश डाला गया है कि जैसे जीव यानी कि हम मायाधीन मनुष्य छोटी सी बुद्धि और थोड़ा सा संसार पाकर ही अहंकार के वश में हो जाते हैं और फिर कैसे भगवान की शक्ति माया हमें अनेक प्रकार से दण्ड देकर याद दिलाती है कि हमें भगवान की ओर ही चलना है, उन्मुख होना है......)
..मनुष्य गुरु की नहीं सुनता, सुनकर अनसुनी कर देता है, उधार कर देता है। वो प्यार से समझाता है, अपनेपन से ज्ञान देता है; लेकिन जीव अहंकार के कारण नहीं समझता। बहुत से अहंकार होते हैं - ज्ञान का अहंकार कि हम बहुत समझते हैं। लोग ऐसी ऐसी बातें करते हैं गीता की पुस्तक नहीं देखा कभी और हमसे ये जानते हुए कि इनको जगद्गुरु की उपाधि मिली है ज्ञान के बल पर। फिर भी महाराज जी! गीता में तो कर्म लिखा है, हम तो कर्म करते हैं गृहस्थ का। लो हम ही को उपदेश दे रहे हैं कि गीता में कर्म लिखा है इतना अहंकार है ज्ञान का! अरे! अगर गीता पढ़ा होता तो भी चलो मान लेते। तुमने गीता पढ़ा है? नहीं। पुस्तक देखी है? नहीं। तो गीता में क्या लिखा है तुम्हें कैसे मालूम?
लोग कहते हैं कि गीता में तो कर्म लिखा है, अर्जुन से कहा है कर्म करो। तो हम कर्म करते हैं, आप कहते हैं माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति से प्यार न करो और गीता तो कहती है कि कर्म करो। लो, हम ही को उपदेश देने लगे। ये बुद्धि का अहंकार है। देखो! हमारे देश में अनपढ़ गँवार करोड़ों है। गाँवों में तो चार-छः गाँव के गँवार बैठते हैं जब, तो आपस में बात करते हैं, ये सरकार को अकल नहीं है, इतनी गरीबी है, एक-एक करोड़ के नोट छाप दे खूब। अरे, जरा-सा कागज दो पैसे का उसमें लिख दे एक करोड़ और पैसा ही पैसा हो जाय हमारे देश में। सोचो! इतने मूर्ख होने पर भी इतना अहंकार है। वो पूरी सरकार को बेवकूफ बता रहे हैं कि नोट छापने से देश धनी हो जायगा। सबको अहंकार है। जब लेक्चर सुनते हैं लोग वो चाहे पढ़ा लिखा हो, चाहे घोर मूर्ख हो, रास्ते में कमेंट्री करते हुए जाते हैं, उन्होंने ऐसा कहा । लेकिन ऐसा है कि......
हमने एक बार सुना है अपने कान से। जबलपुर में हमारी स्पीच हो रही थी, पच्चीस हजार आदमी थे। तो लेक्चर देने के बाद मैं कार से चला और एक किलोमीटर के बाद ही मैंने कार छोड़ दी और एक काला कम्बल ओढ़ लिया और रोड पर खड़ा हो गया। अब पब्लिक आई, कार वाले से मैंने कहा कि तुम चले जाओ आगे और पब्लिक के साथ हम चले कम्बल ओढ़े हुए सिर से ऐसे। अब कौन क्या कहता है, दोनों तरफ सुनते जा रहे हैं। बड़ी बड़ी तारीफ भी करते थे और कुछ कमेंट्री हमारे खिलाफ भी करते थे। तो वो इतना बुद्धि का अहंकार है मनुष्य को, भगवान् ने ऐसा क्यों किया? भगवान् ने दुनिया बनाया क्यों? भगवान् ने माया लगाया क्यों? लो भगवान् पर भी अटैक हो रहा है। भगवान् गलती तो नहीं करता, फिर क्यों गलती किया? तो ये अहंकार। कभी और कुछ नहीं, शरीर का ही अहंकार!!
सोलह, अठारह साल की उमर में लड़के लड़की अपने शरीर को ही भगवान् मानने लगते हैं। चाहे कितना ही कोई मूर्ख हो, शरीर का अहंकार सबको होता है, सबको। इसी प्रकार धन हो किसी के पास तो फिर क्या बात है। यानी, संसार का कोई भी सामान हो तो उसका अहंकार होता है। बड़ा सामान नहीं, छोटे सामान में भी अहंकार। कैसे? आप क्या पढ़े-लिखे हैं? हाईस्कूल। अच्छा, आपके बगल में एक बैठा है तुमने कितना पढ़ा है? दर्जा चार। हम हाईस्कूल हैं, हो गया अहंकार और अब उसके बगल में आप कहाँ तक पढ़े हैं? डी.लिट. हैं । हाँ हाँ , डी. लिट. हैं!! पिचक गया। अब किसी न किसी के तो आगे होने की बात भी है और कोई न कोई हमसे पीछे भी है ज्ञान में, बल में, धन में, बुद्धि में सबमें। हमसे नीचे भी लोग हैं, हमसे आगे भी लोग हैं। तो नीचे वालों को देखकर अहंकार।
तो ये अहंकार जो है देहाभिमान कहते हैं इसको। देह का, देह सम्बन्धी विषय का अहंकार होना। इस अहंकार के कारण हम वेदशास्त्र की बात, सन्त की बात, भगवान् की बात नहीं मानते। अपनी बुद्धि के अनुसार काम करते हैं। तो ऐसे लोगों को जैसे संसार में कोई बेटा छोटा-सा माँ की बात नहीं मानता समझाने पर, प्यार से समझाती है बेटा! ऐसा नहीं बोलते, ऐसा नहीं करते और फिर भी करता है, तो दण्ड देती है माँ, सगी माँ। कहीं खाना बन्द कर देगी, कहीं हाथ पैर बाँध देगी, कहीं झापड़ लगा देगी। ये दण्ड क्यों देती है अपनी माँ? तो बेटा गुस्सा करता है, कैसी माँ है, हमको मार दिया। हमारा हाथ-पैर बाँध दिया, हमको खाना नहीं दे रही है। ये दुश्मन है हमारी। लेकिन ऐसा है नहीं। माँ तो उसके कल्याण के लिये ये सब कर रही है। ये हमारा बेटा अच्छा बेटा बने। अच्छे कैरक्टर का बने। डरा रही है।
तो ऐसे ही जब (भगवान् की, संत/गुरु की) नहीं सुनता मनुष्य तो दूसरी दासी वो भी दासी है भगवान् की, माया भी, वो कहती है बेटा ! तुमको हमारे भाई साहब ने समझाया था, गुरु ने? हाँ। नहीं माना? हाँ। अच्छा आओ हमारे पास, हम तुम्हारी पिटाई करते हैं। तो पिटाई करने पर जब वो धन गया, ये पिटाई हो गई। धन गया तो;
असतः श्री मदान्धस्य दारिद्र्यं परमञ्जनम्।(भागवत 10.10.13)
जब धनी का धन नष्ट होता है तो अहंकार गया।
त्वमेव सर्वं मम देव देव।
अब भगवान् की ओर देखने लगा। ऐसे ही बीमार हो गया, कैन्सर हो गया, शरीर का अहंकार करने वाला, मैं मर जाऊँगा, कैंसर हो गया, हे भगवान्......!! ये अहंकार शरीर का गया। जो भी चीज हमारे पास है वो गड़बड़ हुई कि हम भगवान् की ओर देखते हैं - भगवान् की शरण में जाते हैं। तो ये क्या मतलब है इसका? माया ने दण्ड दिया, तुलसीदास की बीबी ने डाँट लगाई, होश आ गया, सूरदास को होश आ गया। बड़े-बड़े सन्त हमारे यहाँ हुए हैं जो चपत खाने से सन्त हुए। माया ने मार लगाई, उसने कहा - हाँ ठीक है, अब मैं उधर जाऊँगा। इधर (माया) की मार खाने पर उधर (भगवान) गया है। हमारे संसार में बहुत से बच्चों को गाँव में झापड़ लगा देता है बाप अपराध पर तो वो तुनुक करके चल देता है परदेश। घर से निकल जाता है और बाईचांस बाहर जा करके कहीं नौकरी लग गई, मुनीम हो गया और फिर मुनीम होकर के चार सौ बीस सीखा और सेठ जी को कब्जे में लिया। अरे! करोड़ीमल सेठ बन गया, करोड़ों का। हमारे यहाँ बड़े-बड़े प्राइम मिनिस्टर तमाम देशों के ऐसे हुए हैं जो गाँव के गरीब घर के, बाप की पिटाई से भाग कर शहर में गये और वहाँ किसी पॉलीटिशियन के यहाँ नौकरी मिली फिर पॉलिटिक्स में आगे बढ़े और फिर प्राइम मिनिस्टर हो गये। तो देखो मार खाने का कितना बढ़िया परिणाम मिला उनको। तो माया नौकरानी है भगवान् की, वो दण्ड देकर के हमारा कल्याण करती है, इसकी बुराई नहीं करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अंक 2019०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - -जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 295
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! हम लोग लोगों को सिद्धान्त समझाते है कि भगवान् की ओर चलो। अच्छे-अच्छे हमारे रिश्तेदार, हमारे दोस्त; वो बात नहीं समझते और हम दुःखी हो जाते हैं। लेकिन महापुरुष पूरी लाइफ समझाता रहता है तो लोग कितने समझते हैं। तो क्या वो महापुरुष दुःखी होता है, उनको भी परेशानी होती है क्या?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: जैसी परेशानी मायाबद्ध को होती है, ऐसी परेशानी उनको नहीं होती। मायाबद्ध को तो ऐसा है कि उसने कुछ अपमानजनक बात जवाब में कह दिया बजाय मानने के और उल्टा भगवान् के खिलाफ ही बोल दिया कुछ तो दुःखी होता है गृहस्थी आदमी। फील करता है और द्वेष बुद्धि होने लगती है उसकी उसके प्रति। महापुरुष को ये सब कुछ नहीं। वो समझ लेता है कि संस्कार नहीं है इसके। ये यह नहीं समझ रहा है। हो सकता है भविष्य में समझे। वो उदासीन रहते हैं। उनका अपना जन (अनुयायी) जो शरणागत हो रहा है, फिफ्टी परसेन्ट शरणागत हो रहा है और वो गड़बड़ करता है तो दुःखी होते हैं। जैसे पड़ोसी का बेटा बीमार है तो पड़ोसी दुःखी नहीं होता। उसका अपना बेटा बीमार होता है तब दुःखी होता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 2)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - घर की दीवारों को खूबसूरत बनाने के लिए लोग कई तरह की कलाकृतियां, तस्वीरें आदि लगाते हैं. इन चीजों का मन-मस्तिष्क और सोच पर गहरा असर पड़ता है. लिहाजा इन चीजों का चुनाव करते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए. इसके अलावा धन-दौलत, सौभाग्य, संतान प्राप्ति जैसी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए भी तस्वीरें अहम हैं. आज जानते हैं कि किस मनोकामना को पूरी करने के लिए घर में कैसी तस्वीर लगानी चाहिए.धनलाभ के लिए लगाएं ये तस्वीरेंआर्थिक संपन्नता पाने के लिए घर में मंदिर या पूजा स्थान पर बैठी हुई लक्ष्मी जी का चित्र लगाना शुभ होता है. वहीं घर में प्रेम बढ़ाने के लिए ड्राइंग रूम या मुख्य द्वार के आस-पास फूलों या पानी का चित्र लगा सकते हैं. ख्याल रहे कि पानी की तस्वीर शांत जल वाली है. वहीं अच्छे स्वास्थ्य के लिए काम करने के स्थान पर उगते हुए सूरज का चित्र लगाएं.श्रीकृष्ण की तस्वीर करती है परेशानियां दूरभगवान शिव या भगवान श्रीकृष्ण की आर्शीवाद देती हुई तस्वीर लगाने से हर तरह के कष्ट दूर होते हैं और खुशहाली आती है.शिक्षा में सफलता के लिए भगवान गणेश का चित्रशिक्षा में सफलता पाने के लिए और एकाग्रता के लिए बुद्धि के देवता भगवान गणेश का चित्र लगाना बहुत लाभकारी होता है. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों को यह तस्वीर लगानी चाहिए. वे एकाग्रता पाने के लिए श्री यंत्र भी लगा सकते हैं. ख्याल रखें कि पढ़ने की जगह पर कार्टून आदि के चित्र कभी न लगाएं.खुशहाल दांपत्य के लिए लगाएं फैमिली फोटोखूबसूरत यादों को संजोने के अलावा आपस में प्यार बढ़ाने के लिए फैमिली फोटो बहुत काम की चीज है. घर में पूर्वी या उत्तरी दीवार पर पूरे परिवार का फोटो लगाने से घर में सुख-शांति रहती है. साथ वैवाहिक जीवन में भी खुशहाली आती है. याद रखें कि फैमिली फोटो को कभी भी दक्षिणी दीवार पर ना लगाएं.ड्राइंगरूम में लगाएं फूलों की तस्वीरेंअलग-अलग रंगों और फूलों की तस्वीरों के सेट लिविंग रूम या बैडरूम में लगाना शुभ माना जाता है.घर में भूलकर भी न लगाएं ये तस्वीरेंसौभाग्य, खुशहाली लाने वाली तस्वीरों के बाद अब जानते हैं कि घर में कौन सी तस्वीरें गलती से भी नहीं लगानी चाहिए. घर में कभी भी जंगली जानवर का चित्र, मूर्ति या प्रतीक न रखें. वहीं बेडरूम में भगवान के चित्र न लगाएं. आग और कांटों के चित्र भी नहीं लगाने चाहिए, यह रिश्तों में तल्खियां लाते हैं. ध्यान रखें कि तस्वीरों पर धूल न जमे, उन्हें समय-समय पर साफ जरूर करते रहें.
- 26 मई को है साल का पहला चंद्रग्रहणरखें इन बातों का खास ख्यालसूतक काल नहीं होगा मान्यसाल 2021 का पहला चंद्रग्रहण 26 मई को लगने जा रहा है. वैशाख पूर्णिमा के दिन लगने वाला यह ग्रहण पूर्ण चंद्रग्रहण होगा. हालांकि यह उपछाया चंद्रग्रहण है, लिहाजा इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा. ज्योतिष के मुताबिक सिर्फ उन्हीं ग्रहणों का धार्मिक महत्व होता है, जिन्हें खुली आंखों से देखा जा सके. उपछाया चंद्रग्रहण को देखने के लिए खास सोलर फिल्टर वाले चश्मों की जरूरत होती है.चंद्रग्रहण के दौरान इन बातों का रखें खास ध्यानहिंदू धर्म में ग्रहण को बहुत अहम माना गया है. ग्रहण के दौरान क्या काम करने चाहिए और क्या नहीं, इसे लेकर विस्तार से बताया गया है. ग्रहण के दौरान शुभ कामों के अलावा कई अन्य कामों को भी वर्जित किया गया है. साथ ही ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए दान-पुण्य करने के लिए भी कहा गया है. जानते हैं ग्रहण के समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं.- वास्तविक ग्रहण के समय किसी भी तरह का शुभ काम नहीं करना चाहिए.- चंद्रग्रहण के समय ना तो भगवान की मूर्ति छूनी चाहिए और ना ही मंदिर के कपाट खुले रखने चाहिए.- ग्रहण के दौरान भोजन बनाने और खाने दोनों को ही वर्जित बताया गया है. ताकि सेहत पर ग्रहण का बुरा असर न पड़े. इसके अलावा पहले से बनाकर रखे हुए भोजन, दूध आदि में भी ग्रहण शुरू होने से पहले ही तुलसी के पत्ते डाल देने चाहिए.- ग्रहण के दौरान वाद-विवाद नहीं करना चाहिए. साथ ही पति-पत्नी को इस दौरान संयम रखने के लिए भी कहा गया है.- ग्रहण काल में गर्भवती स्त्रियों को बाहर नहीं निकलना चाहिए. हो सके तो इस दौरान उन्हें अपने पास एक नारियल रखना चाहिए.मटमैला दिखाई देगा चंद्रमाउपछाया चंद्रग्रहण में चंद्रमा पर कुछ देर के लिए पृथ्वी की छाया पड़ती है जिस कारण से चंद्रमा मटमैला दिखाई देता है. हालांकि भारत में यह ग्रहण दिन के समय होगा लिहाजा इसे यहां नहीं देखा जा सकेगा. यह चंद्रग्रहण 26 मई 2021, बुधवार को दोपहर में 2 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगा और शाम 7 बजकर 19 मिनट तक रहेगा. यह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर में दिखाई देगा.
- 26 मई, बुधवार को वैशाख पूर्णिमा पर पहला चंद्रग्रहण सायंकाल, पश्चिमी बंगाल, अरुणाचल, नागालैंड, आसाम, त्रिपुरा, मेघालय में बहुत कम समय के लिए दिखाई देगा। भारत के शेष भागों में यह नहीं दिखेगा। भारत के अलावा यह ग्रहण, जापान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, सिंगापुर, बर्मा, आस्ट्रे्लिया ,दक्षिणी अमरीका,प्रशांत व हिन्दमहासागर में भी दिखेगा। चंद्रमा पर आंशिक ग्रहण दोपहर में करीब सवा तीन बजे शुरू होगा और शाम को 7 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। पूरब में 26 मई की शाम आसमान पर पूर्ण चंद्रग्रहण के ठीक बाद एक दुर्लभ विशाल व सुर्ख चंद्रमा, सुपर ब्लड मून नजर आएगा। ज्योतिष में मान्यता है कि किसी भी ग्रहण से 41 दिन पहले और 41 दिन बाद तक ग्रहण का प्रभाव प्राकृतिक आपदाओं जैसे चक्रवात, भूकंप, भूस्ख्लन में दिखता रहता है। जैसे ताउते नामक समुद्री तूफान ग्रहण से एक हफ्ते पहले आ गया। चंद्रग्रहण का चंद्र राशि अनुसार कैसा रहेगा आपका आने वाला 41 दिन तक का समय ?मेष: चंद्र ग्रहण थोड़े परेशानियों वाले संकेत दे रहा हैं। अपनी परेशानियों की वजह से गुस्सा दिखाने की जगह शांत रहें। स्वास्थ्य के हिसाब से थोड़ा मुश्किल समय है, इसलिए सेहत का ध्यान रखना जरूरी है। धन लाभ के लिए ये समय शुभ संकेत दे रहा है। चंद्र ग्रहण के दौरान मंत्र जप करना शुभ रहता है। आप इस समय में ऊॅं हं हनुमंते नम: का जप करें।वृषभ: स्वास्थ्य में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है लेकिन साथ ही कुछ रुके हुए कार्य पूर्ण होने और मनोकामनाएं पूरी होने के संकेत मिल रहे हैं। वैवाहिक जीवन में अशांति हो सकती है लेकिन वित्तीय लाभ के लिए अच्छा समय है। संयम बनाए रखें और किसी को कठोर शब्द न बोलें। पार्टनर की सेहत का भी विशेष ध्यान रखें। जहां तक संभव हो अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और व्यर्थ के खर्चों से बचें।मिथुन: ग्रहण शुभ संकेत लेकर आएगा। इस राशि के लोगों के खर्चों में थोड़ी कटौती होगी। शत्रु पर विजय प्राप्त करेंगे और परिश्रम अधिक करना पड़ेगा किंतु सफलता मिलेगी। जहां तक हो सके तर्क-वितर्क से बचें। धन-लाभ होने के योग बन रहे हैं। कार्यों में सफलता हासिल करेंगे। वाद- विवाद से दूर रहना होगा।कर्क: इस समय में आप अधिक आध्यात्मिक हो जाएंगे। ईश्वर भक्ति की और ध्यान केंद्रित करेंगे और मानसिक तनाव से बचेंगे। नौकरी या व्यापार में अच्छे परिणाम मिलने के संकेत हैं। चिकित्सा मुद्दों के लिए सचेत होने की आवश्यकता है। धन लाभ होगा लेकिन समाज में अपयश की प्राप्ति हो सकती है। ऊॅं शब्द का उच्चारण करते रहने से मन शांत रहेगा।सिंह: रिश्तों के लिए अच्छा समय है। व्यापार में सफलता मिलने के संकेत हैं। मामूली आर्थिक नुकसान के साथ, वित्त और खर्च होने के संकेत हैं। नौकरी के लिए प्रयासरत हैं तो उसमें सफलता मिलेगी। परिवार से सहयोग मिलेगा, आर्थिक रूप से सफलता मिलेगी। ग्रहण अच्छे प्रभाव लेकर आएगा। व्यापार में लाभ होगा। परिवार के सदस्यों का ध्यान रखें। कार्यों में सफलता हासिल करेंगे। भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करने से लाभ मिलेगा।कन्या: नौकरी में वृद्धि और स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं। पेशे में भाग्य और आर्थिक लाभ मजबूत होगा। जल्दबाजी में लिए गए फैसलों से बचें और अपने आसपास के लोगों के साथ धैर्य रखें। इस राशि के लोगों को परिश्रम अधिक करना पड़ेगा किंतु आमदनी कम होगी। व्यर्थ के खर्चे करने से बचें। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। नौकरी और व्यापार में तरक्की के योग भी बन रहे हैं। कार्यों में सफलता मिलेगी।तुला: तुला राशि के लोगों को धन की प्राप्ति के संकेत मिल रहे हैं, इसलिए फिजूल खर्चों से बचें। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हल्के-फुल्के उतार-चढ़ाव संभव हैं किंतु कोई बड़ी बीमारी होने का कोई संकेत नहीं है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें और पार्टनर की सेहत के प्रति भी सचेत रहें।वृश्चिक: अपने स्वास्थ्य और मानसिक तनाव का ध्यान रखें। जीवनसाथी के साथ वाद-विवाद और मतभेद के संकेत है। आर्थिक नुकसान होने के भी संकेत मिल रहे हैं इसलिए फिजूल के खर्चों को नियंत्रित करें। ईश्वर की भक्ति में लीन होने की कोशिश करें सफलता अवश्य मिलेगी। इस दौरान आपके कार्यों में बाधाएं उत्पन्न होंगी। करियर में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। वाद विवाद में फंस सकते हैं। मातापिता की सेहत बिगड़ सकती है।धनु: वाद -विवाद से बचें और वाणी पर नियंत्रण रखें। खर्चों पर नियंत्रण रखने की भी आवश्यकता है आर्थिक नुकसान के संकेत दे रहा है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी और स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।मकर: अनपेक्षित प्रेम का संचार होगा। आर्थिक लाभ के लिए भी आपके लिए अच्छा समय है। पार्टनर के साथ संबंध अच्छे रहेंगे धैर्य रखें और ध्यान करें। संतान के सुख की प्राप्ति होगी, विद्या अध्ययन कर रहे लोगों को विद्या के क्षेत्र में सफलता मिलेगी। आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। नौकरी और व्यापार में सफलता हासिल करेंगे। स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां दूर होंगी। इस दौरान आर्थिक पक्ष मजबूत बनेगा। कार्यक्षेत्र में आपकी प्रशंसा होगी। व्यापार में तरक्की मिलेगी। नई योजनाएं बनाएंगे।कुंभ राशि: कुंभ राशि के लोगों के लिए यह चंद्र ग्रहण थोड़ा कष्टप्रद साबित हो सकता है। बिजनेस में हानि हो सकती है। कोई भी काम समझदारी से करें। वाहन को सावधानी से चलाएं। सिरदर्द से परेशान हो सकते हैं। माता को कष्ट मिलने के संकेत मिल रहे हैं, साथ ही थोड़े शुभ संकेत भी मिल सकते हैं जैसे भूमि, वाहन से लाभ मिल सकता है। व्यापार में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। यह समय आपके लिए बहुत अच्छा नहीं है इसलिए कार्यस्थल पर सामंजस्य बनाकर रखें। अपने और परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए हनुमान जी का ध्यान करें।मीन : बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अधिक देखभाल की आवश्यकता है। वाद-विवाद से बचें और गलतफहमी को दूर करने के लिए संवाद करने का प्रयास करें। कोर्ट कचहरी के मामलों में अगर फंसे हुए हैं तो विजय प्राप्त होने के संकेत हैं। भाग्य का साथ मिलेगा। धन -लाभ होने के योग भी बन रहे हैं। इस समय परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।
- व्यक्ति के हाथ की रेखाएं कई बातें बताती हैं। उसके स्वभाव से लेकर भविष्य के बारे में भी अहम इशारें देती हैं। हाथों की रेखाओं और आकृतियों से मिलने ऐसे ही कुछ संकेतों की बारे में आज जानते हैं। ऐसी रेखाओं का होना व्यक्ति के जीवन में कई संदेह लाता है। यह संदेह व्यक्ति को अपने विचारों पर दृढ़ नहीं रहने देते, इससे उसे कई बार कोशिशें करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती है।सूर्यरेखा का चंद्रक्षेत्र से शुरू होनायदि किसी व्यक्ति के हाथों में सूर्यरेखा चन्द्रक्षेत्र से शुरू तो उस व्यक्ति का भाग्य तो चमकेगा लेकिन उसकी यह तरक्की उसके परिश्रम बजाय दूसरों की इच्छा और सहायता पर ज्यादा निर्भर करती है। ऐसे में व्यक्ति को मित्रों से सहायता मिलने के योग बनते हैं। वहीं सूर्यरेखा चन्द्रक्षेत्र से शुरू होकर अनामिका तक पहुंचे और वह गहरी भी हो तो ऐसे व्यक्ति का जीवन अनेक घटनाओं से भरा और संदेहपूर्ण होता है। उसकी जिंदगी में अक्सर परिवर्तन होते रहते हैं। हालांकि, यदि रेखा चन्द्रस्थान से निकलकर भाग्य-रेखा के समानान्तर जा रही हो तो भविष्य सुखमय हो सकता है।विचारों में नहीं रहती स्थिरताव्यक्ति के विचारों में दृढ़ता हो और उसकी मस्तिष्क रेखा भी अपना फल शुभ दे रही हो तो ऐसा व्यक्ति तेजस्वी और प्रसन्नचित्त होता है। हालांकि ऐसे लोगों के साथ एक बड़ी समस्या यह रहती है कि उनके विचार कभी स्थिर नहीं रह पाते हैं। वे अनायास ही पूर्व में तय की गई योजना या विचारों को बदल देते हैं। अपने संकल्प पर दृढ़ न रहने के कारण उन्हें कई बार प्रयत्न करने पर भी ज्यादा सफलता नहीं मिल पाती है।--
- अक्सर शनिवार-रविवार की छुट्टियों के लिए कई काम पहले से तय होते हैं। हफ्ते के बाकी दिन ऑफिस-बिजनेस के कामों में लगे रहने के कारण लोग इन कामों के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, जैसे- घर की साफ-सफाई, नाखून काटना या हेयर कट कराना आदि। जबकि वीकेंड के इस समय में बाल कटवाना बहुत नुकसानदेह है।होता है धन-बुद्धि का नाशमहाभारत के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि रविवार का दिन सूर्य का दिन है। ऐसे में रविवार के दिन बाल कटवाने से धन, बुद्धि और धर्म का नाश होता है। लिहाजा कभी भी इस दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए, जबकि छुट्टी होने के कारण आमतौर पर लोग इसी दिन हेयर कट कराते हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि किस दिन बाल कटवाने के क्या नतीजे होते हैं और इस काम के लिए सबसे अच्छा दिन कौन सा है।- सोमवार के दिन भी बाल कटवाना अच्छा नहीं माना जाता है। इस दिन बाल कटवाने से मानसिक दुर्बलता आती है। साथ ही यह संतान के लिए भी ठीक नहीं है।- शास्त्रों के मुताबिक मंगलवार के दिन बाल कटवाना असामयिक मृत्यु का कारक बनता है।- बाल और नाखून काटने के लिए सबसे शुभ दिन बुधवार का होता है। इससे धन-दौलत भी बढ़ती है और खुशहाली बनी रहती है।- गुरुवार के दिन बाल कटवाने से धनहानि के साथ-साथ मान-सम्मान को भी ठेस पहुंचती है।- बुधवार के अलावा शुक्रवार का दिन भी इस काम के लिए अच्छा होता है। चूंकि यह शुक्र ग्रह से प्रभावित होता है और यह ग्रह सौन्दर्य का प्रतीक है। ऐसे में इस दिन बाल काटने से लाभ और यश में बढ़ोतरी होती है।- शनिवार के दिन बाल कटवाना भी अशुभ होता है। इसे भी असमय मृत्यु का कारण माना जाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 294
(भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 35-वें दोहे पर विचार करें, जो कि 'भक्ति' के महत्व पर प्रकाश डाल रही है...)
• भक्ति-शतक | दोहा संख्या 35
सत्य अहिंसा आदि मन!, बिन हरिभजन न पाय।जल ते घृत निकले नहीं, कोटिन करिय उपाय।।35।।
भावार्थ ::: सत्य, अहिंसादि दैवीगुण केवल श्री कृष्ण भक्ति से ही मिल सकते हैं। जैसे पानी मथने से घी नहीं निकल सकता। ऐसे ही अन्य करोड़ों उपायों से भी दैवीगुण नहीं मिलते।
व्याख्या ::: सत्य बोलना आदि दैवी गुण हैं। सभी व्यक्ति इन गुणों से प्यार भी करते हैं। क्योंकि दैवी गुणों के अध्यक्ष श्रीकृष्ण के अंश हैं। हम दूसरों से जो चाहते हैं वही हमारा स्वभाव है। किसी के झूठ बोलने आदि पर हम लोग एतराज़ करते हैं, भले ही स्वयं दिन में सैकड़ों झूठ बोलते हों। इससे सिद्ध हुआ कि दैवी गुण सत्य अहिंसादि भगवान् से ही संबंध रखते हैं एवं इसके विपरीत झूठ, हिंसादि, माया से संबंध रखते हैं। इसी से मायिक वस्तुओं के लोभ में हम लोग झूठ आदि का अवलंब (सहारा) लेते हैं। अतः जब तक भगवान् की भक्ति न की जायगी तब तक अंतःकरण शुद्ध ही न होगा। बिना अंतःकरण शुद्ध हुये हम सत्य आदि दैवीगुणों का प्रदर्शन मात्र कर सकते हैं किंतु वास्तव में दैवीगुण युक्त नहीं हो सकते। केवल मन से सोचने मात्र से हमारा मन शुद्ध न होगा। हां, यह हो सकता है कि बार-बार सोचने से, परलोक के भय से कुछ मात्रा में बहिरंग रूप से इन गुणों का दिखावा कर लें।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' (दोहा संख्या - 35)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
*+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -((1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - शनि वर्तमान में अपनी स्वराशि मकर में विराजमान हैं। शनि ने 24 जनवरी 2020 को मकर राशि में गोचर किया था। यह 29 अप्रैल 2022 तक इसी राशि में रहेंगे, इसके बाद कुंभ राशि में गोचर कर जाएंगे। मकर राशि में शनि के गोचर करने के कारण मकर समेत कुंभ और धनु राशि पर शनि की साढ़े साती महादशा चल रही है। शनि अन्य ग्रहों की तुलना में धीमी गति से चलता है, जिसके कारण शनि का प्रभाव एक राशि पर ज्यादा समय तक रहता है। शनि को राशि परिवर्तन करने में करीब ढाई साल का समय लगता है, जबकि एक चक्र पूरा करने में करीब 30 साल का समय लगता है। जानिए मकर राशि वालों को शनि की साढ़े साती से कब मिलेगी मुक्ति-मकर राशि पर शनि की साढ़ेसाती 29 मार्च 2025 तक चलेगी। मकर राशि पर शनि की साढ़े साती का दूसरा चरण चल रहा है। शनि की साढ़े साती महादशा के दौरान आपके कार्यों बाधाएं आएंगी लेकिन काम रुकेगा नहीं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस समय शनि सूर्य के नक्षत्र में हैं। शनि की साढ़े साती के दौरान कुछ बड़े फैसले लेने में परेशानी हो सकती है। विदेश यात्रा या विदेश संबंधित कार्यों में सफलता हासिल करेंगे।मकर राशि वालों की आर्थिक स्थिति-शनि की साढ़े साती दशा के दौरान आर्थिक मामलों में संयम बनाकर रखें। भविष्य के लिए रखे पैसे भी खर्च हो सकते है। लग्न राशि में शनि के विराजमान होने के कारण आपको मेहनत से सफलता हासिल होगी। आपके कार्य में भी परिवर्तन हो सकता है। नौकरी में बदलाव भी संभव है।स्वास्थ्य-साढ़े साती के दौरान सेहत को लेकर थोड़ा सजग करने की जरूरत है। अगर पहले से कोई शारीरिक कष्ट है तो थोड़ा ध्यान रखें। सहज स्थान पर शनि की दृष्टि होने के कारण आलस के कारण कुछ दिक्कतें आ सकती हैं।शनि की साढ़े साती से बचाव के उपाय-शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि हनुमान जी की पूजा करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा शनिवार के दिन हनुमान जी के मंदिर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। हालांकि कोरोना काल में घर के मंदिर में ही हनुमान चालीसा का पाठ किया जा सकता है। भगवान शिव की पूजा से भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं। शनि मंत्रों का जाप करने से लाभ होता है। शनिवार के दिन शनिदेव से जुड़ी चीजों का दान करना लाभकारी साबित होता है। पीपड़ के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 293
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! यदि कोई स्त्री कमाती नहीं है और पुरुष कमाता है, लेकिन स्त्री से पुरुष दान करवाता है, तो दान का फल किसे मिलेगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: वो जिस निमित्त दान कर रहा है, वो चाहे स्त्री से करवाये, चाहे नौकर से करावे, चाहे तुम से करावे, उससे क्या मतलब है? फल तो उसी को मिलेगा, जो करा रहा है। भगवान् के यहाँ स्त्री-पति नहीं चलता, स्वर्ग तक चलता है। यज्ञ हो रहा है, जो स्वर्ग सम्बन्धी काम है, उनमें स्त्री आधे की हकदार है और संसार में भी आधे की हकदार है ही है। लेकिन भगवान् के यहाँ नहीं।
अब किसी के द्वारा करावे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दान तो जितना गुप्त हो उतना अधिक फल मिलता है।
ऐसे भी हमारे सत्संग में चार-छः लोग हैं जो चुपचाप तकिया के नीचे रख जाते हैं। हल्ला मचाते रहो, किसका रुपया है? किसने रखा है? बोलते ही नहीं। कुछ लोग दूसरे से दिला देते हैं। ये तो अच्छी बात है।
लेकिन फल उसी को मिलेगा जिसने परिश्रम करके कमाया है, जिसका पैसा है। लेकिन जिसके पास पैसा नहीं है, तो कोई स्त्री निराश न हो कि हमारा क्या होगा? मन से ही स्मरण करे और मन से ही दान की भावना रखे। तन और मन ये दो चीज तो सबके पास है। धन नहीं है तो इसके लिये माफी है भगवान् के यहाँ। जिसके पास कम धन है, कम दान करो। बिल्कुल नहीं है, बिल्कुल मत करो। उसके लिये दण्ड नहीं है। जिसके पास है और नहीं दान करता, उसके लिये दण्ड है।
द्वावंभसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढ़ां शिलाम्। (महाभारत)
(अर्थात) ऐसे व्यक्ति को गले में चट्टान पत्थर बाँध के कुएँ में डाल दो जो पैसा हो और दान न करे (दान की महत्त्वता बतलाने के लिये 'महाभारत' में यह श्लोक आया है)। ये जानते हुए कि ये सब छोड़ कर जाना पड़ेगा। ये हम ले नहीं जायेंगे। और फिर भी दान नहीं करता।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'द द द' पुस्तक ('दान' विषयक प्रश्नोत्तरी)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 292
साधक का प्रश्न ::: क्या मीमांसा दर्शन पढ़ने से साधना में कुछ लाभ होगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: दो प्रकार का धर्म होता है; एक का नाम अपर धर्म, एक का नाम पर धर्म। एक का नाम शारीरिक धर्म, एक का नाम आध्यात्मिक धर्म। हमारे पास दो चीजें है; एक 'मैं' आत्मा और एक शरीर। शरीर के लिए धारण करने वाली चीज का नाम शारीरिक धर्म, आत्मा के लिए धारण करने वाली चीज का नाम आध्यात्मिक धर्म; बस दो ही धर्म होता है। तीसरा हो ही नहीं सकता।
तो शारीरिक धर्म जो है उसका दूसरा नाम है वर्णाश्रम धर्म। वेदों में, स्मृतियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र - ये चार वर्ण हैं और ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास - ये चार आश्रम हैं। तो इन वर्ण और आश्रम के लिए, जो कायदे कानून वेद में बताये हैं, उसको धर्म कहते हैं, शारीरिक। और आत्मा के कल्याण के लिए जो धर्म बताया गया है, भगवान् को धारण करना, वो है आध्यात्मिक धर्म, पर धर्म, दिव्य धर्म, स्वाभाविक धर्म। जो बदल न सके। ये (शारीरिक) धर्म तो बदलता रहता है न। ब्राह्मण का दूसरा, क्षत्रिय का दूसरा, वैश्य का दूसरा, शूद्र का दूसरा धर्म, और एक में भी पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचारी के लिए एक धर्म बताया गया फिर बदल गया वो। पच्चीस साल तक तो बताया गया कि लड़की की फोटो नहीं देखना। और पच्चीस साल बाद कहा गया कि लड़की से ब्याह कर लो, बदल गया धर्म। फिर बाल बच्चे-कच्चे नाती-पोते हुए तो वानप्रस्थ आया, तो ये हुआ कि देखो तुम स्त्री-पति खाली दो, अलग हो जाओ जंगल चले जाओ, बच्चों को छोड़ दो। अब वो चला पच्चीस साल तो संन्यास आया, तो उन्हें कहा ये स्त्री-विस्त्री कुछ नहीं होती, स्त्री को छोड़ो, तुम पति को छोड़ो अलग हो जाओ दोनों। जाओ अलग-अलग साधना करो। यानी बदल रहा है धर्म। लेकिन आत्मा का धर्म नहीं बदलता। ब्रह्मचारी के लिए भी आज्ञा है - भगवान् की भक्ति करो, गृहस्थी के लिए भी - भगवान् की भक्ति करो, वानप्रस्थी के लिए भी। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र, चाण्डाल कोई हो;
पुरुष नपुंसक नारि नर, जीव चराचर कोय।
सबको भक्ति करना है। तो मीमांसा दर्शन जो है वो शारीरिक धर्म बताता है। यज्ञादिक करना और देवी देवताओं को खुश करना - स्वर्ग के लिए। वो नश्वर है, मूर्ख लोग उनके चक्कर में पड़ते हैं। मीमांसा दर्शन का शंकराचार्य ने खंडन किया और वेदान्त दर्शन का सबको सिद्धांत बताया कि आत्मा का धर्म मानो, भगवान् की भक्ति करो तो मोक्ष होगा। स्वर्ग मिल भी जाय अगर, तो वो चार दिन के लिये मिलेगा उसके बाद फिर कुत्ते, बिल्ली, गधे बनो। और फिर ये मीमांसा दर्शन में, कर्मकांड में यानी शारीरिक धर्म में बड़े कड़े-कड़े कानून है। जैसे यज्ञ करना है, हवन करते हैं आप लोग। ये पंडित लोग कराते हैं, इसमें छः नियम हैं।
पहला नियम 'देश' - कहाँ पर यज्ञ किया जाय? हर जगह नहीं हो सकता, वो भी शास्त्र के द्वारा इन्क्वायरी करो कहाँ कौन-सा स्थान यज्ञ के लायक है। ये देश। फिर 'काल' - किस समय यज्ञ हो? हर समय नहीं हो सकता। उसका मुहूर्त होता है और फिर 'कर्ता' - जो यज्ञ करने वाला है वो इतना बड़ा श्रद्धालु हो, और अंतःकरण इतना उसका पवित्र हो कि देवताओं को बुला सके, ये नंबर तीन। नंबर चार जिससे यज्ञ हो रहा है वो जौ, तिल वगैरह वो सही कमाई का हो। ऐसा नहीं कि हम कहीं से किसी तरह से कमा के ले आवें। वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कमाया हुआ जो पैसा है, उससे वो द्रव्य आवे इत्यादि इतने कड़े-कड़े नियम हैं, जो कलियुग में असंभव हैं। तो मीमांसा दर्शन को जानना कठिन, करना असंभव और फल स्वर्ग। इसलिए इसकी बात बिलकुल मत सोचना।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 291
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त कुछ दिशा-निर्देश जो कि साधक-समुदाय सहित जनसाधारण के लिये भी पालनीय थे, कल के अंक में प्रकाशित किये गये थे। आज उसी के आगे का शेष भाग प्रकाशित किया जा रहा है। इन निर्देशों पर भली-भाँति विचार कर उन्हें व्यवहार में उतारने से अवश्य ही भौतिक जगत में भी लाभ प्राप्त होगा, आध्यात्मिक क्षेत्र में तो निश्चय लाभप्रद है ही। आइये इन बिन्दुओं को समझने का प्रयास करें....)
(1) दीनता लाना और अभिमान का त्याग :::
अहंकार से बचना और अपमान फील न करना भक्ति की आधारशिला है। तृण से अधिक दीन भाव रहे, वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु भाव रहे, सबको सम्मान दो, स्वयं सम्मान न चाहो। मूड ऑफ होने पर बोलो मत। अन्दर जितनी देर तक गुस्सा आये उसको विवेक से काटते रहो। सोचो इससे हमारे शरण्य को कष्ट होगा। अपनी गलती मान लो। अगर कोई भला बुरा कहता है तो सोचो इसने कौन सी नई बात कह दी। भगवत्प्राप्ति से पहले हममें सब अवगुण ही तो भरे पड़े हैं।
(2) सहनशीलता का गुण धारण करना :::
द्वेष करने वाले के प्रति भी द्वेष न करो। दूसरों की गलती के प्रति सहनशील बनो। गलती प्रत्येक व्यक्ति करता है, अतः सबसे नम्रता व दीनता का व्यवहार करो।
(3) युवा लड़के-लड़कियों के लिये सावधानी :::
युवा लड़के-लड़कियाँ ध्यान रखें, किसी की वाणी और व्यवहार के चक्कर में न आयें। कोई भी लड़की किसी भी लड़के को किसी प्रकार के शारीरिक कॉन्टैक्ट की फ्रीडम न दे। जैसे आप दाँत काढ़ रहे हैं, मज़ाक कर रहे हैं, कंधे पर हाथ रख दिया। यह तो हमारा भैया, चाचा का लड़का, ताऊ का लड़का है। तुरंत संभल जाओ। शरीर से दूर और आँखों से संभल कर व्यवहार करो।
(4) कुसंग से अपनी साधना का बचाव :::
कुसंग से बचो। भक्ति विरोधी हर ज्ञान, वस्तु, व्यक्ति कुसंग है। अपने गुरु, मार्ग, इष्ट को छोड़कर अन्य का संग कुसंग है।
(5) दूसरों के दोष न देखना, अपने दोषों का सुधार करना :::
जब गुरु कोई बात पूछे तो भोले बच्चे की भाँति सीधा सा उत्तर दिया करो। उनसे कुछ भी छिपाना सर्वनाश का कारण है। जो दोष बताया जाय तो निरन्तर उसका चिन्तन करो और कोशिश करो कि भविष्य में वह न होने पाये। दूसरे के दोष न देखो, परनिंदा न करो। दूसरों को सुधारने के लिये भी उनके दोष न देखो। लोगों को दूसरों की तो बड़ी भारी फिक्र है लेकिन हमारा क्या होगा, इसकी फिक्र क्यों नहीं करते हो?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - यह तो सभी जानते हैं कि नींद का संबंध सीधे हमारी सेहत से होता है। जहां पूरी और सुकून भरी नींद लेने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है तो वहीं यदि सही प्रकार से न सो पाने के कारण कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। वास्तु और हमारे शास्त्रों में भी शयन (सोना) से संबंधित कुछ नियम बताए गए हैं। कई बार हम पूरे दिन के थके हुए होते हैं और ऐसे ही जाकर सो जाते हैं। जो कि स्वाथ्य के लिए तो नुकसानदायक होता ही है साथ ही में आपको कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। वास्तु कहता है कि व्यक्ति किस दिशा में सोता है, इस बात का प्रभाव उसकी सेहत और आर्थिक स्थिति दोनों पर पड़ता है इसलिए सही दिशा में सोना आवश्यक है। तो चलिए जानते हैं सोने के सही नियम और दिशा।-वास्तु के अनुसार पूर्व की दिशा की और सिर करके सोना शुभ रहता है। इस दिशा में सिर करके सोने से सकारात्मकता में बढ़ोत्तरी होती है। पूर्व दिशा की ओर सोने से पठन-पाठन में भी एकाग्रता बढ़ती है।-वास्तु के अनुसार पश्चिम दिशा की तरफ सिर करके सोना भी लाभप्रद रहता है। इस दिशा की ओर सिर करके सोने से यश कीर्ति में बढ़ोत्तरी होती है।-वास्तु में वैसे तो उत्तर दिशा को बहुत ही शुभ दिशा माना गया है लेकिन इस दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं रहता है। इस दिशा की ओर सिर करके सोने से शरीर में रोग पनपते हैं।-दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके सोना भी फायदेमंद रहता है। इस दिशा में सिर करके सोने से नकारात्मक विचार नहीं आते हैं साथ ही तनाव भी नहीं रहता है। इसके अलावा दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से सुख-समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है। किसी प्रकार से धन की कमी नहीं होती है।शास्त्रों के अनुसार सोने के नियम-कभी भी टूटी खाट, टूटे पलंग, मैले बिस्तर और जूठे मुंह नहीं सोना चाहिए।-कभी भी निर्वस्त्र होकर नहीं सोना चाहिए।-ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार दिन में तथा सूर्योदय के बाद तक एवं सूर्यास्त के समय नहीं सोना चाहिए। इससे शरीर में सोने से शरीर में रोग पनपते हैं और दरिद्रता आती है।-कभी भी सूने-निर्जन घर, श्मशान, मंदिर के गर्भगृह और अंधेरे कमरे में शयन नहीं करना चाहिए।-कभी भी बिस्तर पर बैठकर खाना नहीं चाहिए।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 290
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त निम्न तीन मार्गदर्शन न केवल साधक-समुदाय के लिये, अपितु जनसाधारण के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। शरीर और आत्मा - दो अलग-अलग चीजें हैं, परन्तु वे एक-दूसरे पर आश्रीत हैं। भक्ति-साधना के लिये भी शारीरिक स्वास्थ्य परमावश्यक है और भौतिक जगत के लिये तो है ही है। अतः आइये शरीर सहित व्यवहार आदि सम्बन्धी इन मार्गदर्शन पर विचार करें....)
(1) आहार-विहार के सम्बन्ध में :::
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है;
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥(गीता 6-17)
आहार विहार सब नियमित होना चाहिये। शरीर को जिन जिन तत्त्वों की आवश्यकता है वे सब आपके खाने में होने चाहिये, विटामिन ए , बी, सी, डी सब होने चाहिये। जबान के लिये मत खाओ। खाने के लिये ज़िन्दा न रहो, जिन्दा रहने के लिए खाओ। यह पहला आदेश है, जिस व्यक्ति की खाने पीने की कामना कम हो जाती है उसकी अन्य वासनायें या विषय भी निर्बल हो जाते हैं।
(2) संसार में व्यवहार के सम्बन्ध में :::
दूसरा आदेश है व्यवहार का। अपने व्यवहार को संसार के अनुकूल बनाओ। इसमें बहुत लोग भूल किया करते हैं। कहते हैं अजी हमसे किसी की खुशामद नहीं होती, किसी की गुलामी नहीं होती। यह गुलामी और खुशामद दो प्रकार की होती है - एक एक्टिंग में और एक फैक्ट में। हम फैक्ट में नहीं कह रहे हैं किसी के आगे झुक जाओ। फैक्ट में तो केवल हरि हरिजन के आगे झुकना है। संसार में तो केवल व्यवहार करना है। कम बोलो, मीठा बोलो। अपने व्यवहार को मधुर बनाओ।
(3) नींद के सम्बन्ध में :::
नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में भी हम सत्वगुण में जा सकते हैं, रजोगुण में भी जा सकते हैं, तमोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है वो प्योर तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओ तो भी शारीरिक हानि होती है। आपके शरीर के जो पार्टस हैं उनको खराब करेगा वो अधिक सोना भी। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाये या कोई बात हो जाये, या कोई तुम्हारा प्रिय मिले तब नींद नहीं आती। इसलिये कोई फिज़िकल रीज़न नहीं, कारण केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही, काम न होना नींद आने का कारण है। हर क्षण यही सोचो कि अगला क्षण मिले न मिले अतएव भगवद् विषय में उधार न करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - शनि अब कुछ ही दिनों के बाद वक्री चाल से चलने वाले हैं। वक्री चाल से मतलब उल्टी चाल से हैं। सभी ग्रहों में सबसे धीमी चाल से चलने वाले शनि ग्रह 24 जनवरी 2020 से मकर राशि में हैं। मकर राशि शनिदेव की स्वयं की राशि हैं। शनि जब भी किसी एक राशि को छोड़कर अगली राशि में प्रवेश करते हैं तब किसी राशि पर शनि की साढ़े साती सवार हो जाती है। शनि की साढ़े साती आरंभ होने पर कई तरह की परेशानियां, बीमारियां और कष्ट मिलने आरंभ हो जाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं साल 2021 में किन-किन राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है।धनु राशिधनु राशि के जातकों पर शनि की साढ़े साती का आखिरी चरण चल रहा है। शनि की साढ़े साती किसी राशि पर तीन चरणों में आती है। साढ़े साती का अंतिम चरण ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला नहीं होता, लेकिन जातक के जीवन में परेशानी बन रहती है। पूरी तरह से साल 2023 से धनु राशि पर से शनि साढ़े साती खत्म हो जाएगी।मकर राशिमकर राशि पर शनि की साढ़े साती का दूसरा चरण चल रहा है। दूसरा चरण चलने की वजह से सही समय पर आपके काम नहीं बन रहे होंगे। बीमारियां घेरे हुई हैं और लगातार आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। 2025 में मकर राशि से शनि की साढ़े साती खत्म होगी। शनि जब मीन राशि में गोचर करेंगे तब मकर राशि के जातकों को शनि की साढ़े साती के प्रभाव से मुक्ति मिलेगी।कुंभ राशिशनि के मकर राशि में गोचर करने के कारण कुंभ राशि पर शनि की साढ़े साती का पहला चरण चल रहा है। कुंभ राशि पर साढ़े साती होने की वजह से कई तरह की परेशानियां पीछा करती हैं। कुंभ राशि से पूरी तरह शनि की साढ़े साती 23 जनवरी 2028 को हटेगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 289
(भूमिका - महापुरुष का मिलन या किसी भी प्रकार से सान्निध्य प्राप्त होना; चाहे वह प्रत्यक्ष हो, टीवी, टेप, मोबाईल आदि किसी भी रूप में हो, तब कुछ विशेष सावधानियाँ रखकर हम उस सानिध्य से बहुत विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं, जो लापरवाहीपूर्ण सत्संग/सान्निध्य से नहीं प्राप्त हो सकेंगे. जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत इस प्रवचन अंश में इसी तत्व की ओर इंगित किया गया है...)
..अगर आपको कभी जीवन में कोई महापुरुष मिल जाये, कोई रसिक मिल जाये एक क्षण को एक घण्टे, दो घण्टे को, यद्यपि ऐसा अवसर मिलना अनन्त जन्मों के पुण्य से भी असम्भव है। अनंत साधनाओं से भी ऐसा सौभाग्य नहीं मिलता। वो तो केवल भगवत्कृपा, गुरु-कृपा से ही मिलता है। तो भगवत्कृपा से ऐसा अवसर कभी मिले तो आप लोग इस लूट से कभी न चूकिये। वो कौन सी लूट है?
जैसे वो संकीर्तन में कुछ भी बोलते हैं, पद बोलते हैं, भगवन्नाम बोलते हैं, तो उनकी आवाज को बहुत ध्यानपूर्वक सुनिये। यदि आप न भी बोलिये तो भी आप भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं, उनके आवाज सुनकर के समाधिस्थ हो सकते हैं। लेकिन इतना ध्यान रखिये की जब वो महापुरुष बोल रहा हो तो बहुत ध्यान से प्रत्येक क्षण समाहितचित्त (मन को एकाग्र कर) होकर के उसकी आवाज को सुनिये। उसकी आवाज में अलौकिकता होती है। जितना ध्यान से आप सुनेंगे उतना ही आप शीघ्र अन्तःकरण में प्रेम का अंकुर उत्पन्न कर सकेंगे।
इसलिये जरा भी लापरवाही न कर के उनके प्रत्येक क्षण की प्रत्येक आवाज को ध्यान से सुनकर फिर उसके बाद बोलिये। तो आप के हृदय में वो आवाज जाकर, छू जायेगी। जब आपके अन्तः करण में महापुरुष की आवाज छू जायेगी तो फिर आपके हृदय में एक विलक्षण सी गुद्गुदी और विलक्षण सा दर्द, और अजीब आनन्द जिसे आप ने कभी नहीं पाया, उसका अनुभव होगा। इसलिये इस लाभ को भी सदा मस्तिष्क में रखें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'रूपध्यान' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन देवी के अपराजिता रूप की पूजा करने से सभी परेशानियां दूर होती हैं. इसी दिन मां बगलामुखी की जयंती भी होती है. इस बार वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि का व्रत कुछ जगह बुधवार को और कुछ जगह गुरुवार को किया जाएगा. दरअसल, यह तिथि 19 मई से शुरू होकर 20 मई को भी जारी रहेगी. यह तिथि देवी दुर्गा की खास पूजा करने के लिहाज से खास है. देवी पुराण में बताया गया है कि इस तिथि पर अपराजिता रूप में देवी की पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं. साथ ही इस दिन देवी की पूजा करने से बीमारियों से भी छुटकारा मिलने लगता है.यह रहेगा अष्टमी तिथि का समयवैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 19 मई, बुधवार को दोपहर 1 बजे शुरू होगी और 20 मई, गुरुवार को दोपहर में खत्म होगी. 20 मई को सूर्योदय से करीब आधे दिन तक अष्टमी तिथि होने के कारण इसी दिन यह व्रत रखना चाहिए और पूजा करनी चाहिए.इस दिन मां दुर्गा के अपराजिता रूप की प्रतिमा को कपूर और जटामासी से युक्त जल से स्नान कराते हैं. साथ ही स्वयं को आम के रस मिले पानी से नहाना चाहिए. नहाने के इस पानी में थोड़ा सा गंगाजल भी मिला लेना चाहिए.बगलामुखी जयंती भी है अष्टमी कोवैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी बगलामुखी के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. लिहाजा इस दिन बगलामुखी जयंती भी होती है. देवी बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से एक हैं. माना जाता है कि इनकी उत्पत्ति सौराष्ट्र के हरिद्रा नाम के सरोवर से हुई थी. मां बगलामुखी को शत्रुओं का नाश करने वाली देवी भी कहा जाता है. मां बगलामुखी की पूजा करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है, इसके अलावा कोर्ट-कचहरी से संबंधित कार्यों में अपनी जीत सुनिश्चित करने में भी यह पूजा फलदायी है.
- हस्तरेखा विज्ञान में रेखाओं के अलावा, उनसे बनने वाले निशान, हथेली की बनावट, उसका रंग, कोमलता जैसी चीजें भी बहुत अहम होती हैं. इतना ही नहीं ये चीजें भविष्य में होने वाले धन लाभ का भी इशारा देती हैं. साथ ही इनसे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में होने वाले अच्छे-बुरे बदलाव की भी जानकारी मिलती है. आज जानते हैं, उन 3 लक्षणों के बारे में जो जिंदगी (Life) में बार-बार अचानक पैसा दिलाते हैं.सही जीवन रेखा-मस्तिष्क रेखा और त्रिकोणयदि किसी व्यक्ति की हथेली में जीवन रेखा सही गोलाई में हो, साथ ही मस्तिष्क रेखा 2 भागों में बंटी हो और हथेली में त्रिकोण बना हो तो ऐसे व्यक्ति को धन लाभ होता है. इतना ही नहीं ऐसे लोगों को अपनी जिंदगी में बार-बार अचानक पैसा मिलता है.ये लक्षण भी कराते हैं फायदायदि भाग्यरेखा हथेली के अंतिम स्थान से यानी मणिबंध से शुरू हो रही हो और यह शनि पर्वत तक पंहुच रही हो. साथ ही भाग्य रेखा पर किसी प्रकार का अशुभ निशान न हो तो व्यक्ति को व्यवसाय में सफलता मिलती है.इसी तरह यदि किसी व्यक्ति की हथेली भारी और फैली हुई हो, उंगलियां कोमल और नरम हों तो यह भी व्यक्ति के धनवान होने का इशारा देता है. हथेली में शनि पर्वत यानी मध्यमा उंगली के पास से 2 या इससे अधिक खड़ी रेखाएं हों तो व्यक्ति को धन के साथ सुख भी मिलता है. वहीं शनि पर्वत में उठाव हो और जीवन रेखा सही तरीके से घुमावदार हो तो यह योग भी काफी शुभ होता है. इससे व्यक्ति जीवन में सभी तरह के सुख मिलते हैं.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 288
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने वर्ष 1990 में अपनी जन्मस्थली भक्तिधाम मनगढ़ (उ.प्र.) में श्री नारद मुनि द्वारा प्रगटित 'नारद भक्ति सूत्र' पर 11-दिवसीय प्रवचन दिया था। नारद भक्ति सूत्र अथवा दर्शन, भक्ति-तत्व की सरलतम रुप में व्याख्या करने वाला 84 सूत्रों का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है तथा भक्ति-साहित्यों में अग्रगण्य स्थान रखती है। श्री कृपालु महाप्रभु जी ने इसी ग्रन्थ के 84 सूत्रों की विशद व्याख्या कर सरलतम को भी और अधिक सरल रुप प्रदान कर प्रेमपिपासु जीवों को आत्मिक-कल्याण का मजबूत आधार दिया था। इसी प्रवचन श्रृंखला में कामना-तत्व पर कही गई उनकी कुछ वाणियाँ यहाँ दी जा रही हैं। सुधि पाठकजनों के लाभ की अपेक्षा है....)
(1) हर ग्रन्थ कामनाओं के त्याग करने का आदेश देता है। ये कामनायें हमने क्यों बनाई है? इसका रीजन है अज्ञान। अज्ञान यह कि हमने अपने आपको देह मान लिया है। इसलिये देह के सुख के लिये कामनायें बनने लगीं।
(2) जिस वस्तु में हम आनंद की कल्पना करते हैं, उसमें हमारा अटैचमेन्ट हो जाता है।
(3) अंधकार और प्रकाश में जितना अन्तर है, उतना ही विरोध कामनाओं और भक्ति में है।
(4) संसारी कामनाओं का कारण है अज्ञान, अज्ञान का कारण है माया और माया का कारण है भगवत-बहिर्मुखता।
(5) शरीर को ठीक रखने के लिये प्रकृति की और आत्मा को ठीक रखने के लिये आवश्यकता है भगवान की। हम संसार का उपयोग करने के स्थान पर उसका उपभोग करते हैं, किन्तु भगवान को पाने का प्रयत्न नहीं करते।
(6) स्वामी की सेवा चाहना कामना नहीं है। जीव भगवान का नित्य दास है अतः यह उसकी नेचुरैलिटी है, फिर हम स्वामी के सुख के लिये स्वामी की सेवा चाहते हैं, अपने सुख के लिये नहीं।
(7) भगवान सम्बन्धी कामना से हमारा संसार निवृत्त होगा, जबकि संसार सम्बन्धी कामना हमारा सर्वनाश करेगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नारद भक्ति दर्शन' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 287
(भूमिका - 'काल' अर्थात 'मृत्यु' अनिश्चित है, कब आयेगी पता नहीं। इसलिये मनुष्य के लिये शास्त्रों की आज्ञा है कि अपने परमार्थ के लिये अति शीघ्रता करनी होगी। आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत इन शब्दों के द्वारा 'काल/मृत्यु' की अनिश्चितता के सम्बन्ध में विचार करें....)
कालि कालि जनि कहु गोविंद राधे।जाने काल कालि को ही आवन न दे।।(स्वरचित दोहा)
कल से भजन करेंगे , कल से यही करेंगे। हाँ वेद कहता है;
न श्वः श्वः उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद।(वेद)
कल करेंगे, कल करेंगे, कल भजेंगे, कल से यही करेंगे - ये बकवास बन्द करो। यही करते-करते तो अनन्त जन्म बीत गये; उधार, उधार।
को हि जानाति कस्याद्य मृत्युकालोभविष्यति।(महाभारत)
अरे एक सेकण्ड लगता है प्राण निकलने में। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, योगी, तपस्वी जो नया स्वर्ग बना सकते हैं, ऐसे विश्वामित्र वगैरह कहाँ हैं? सबको जाना पड़ा। भगवान् को छोड़कर, किसी की हिम्मत नहीं है जो काल को चैलेन्ज कर सके और भगवान् को भी तो जाना पड़ता है। लेकिन वो काल के आधीन होकर नहीं जाते, काल की प्रार्थना से जाते हैं। जब ग्यारह हजार वर्ष पूरे हो गये राम के, तो यमराज आया और आकर के चरणों में प्रणाम करके कहता है - महाराज! याद दिलाने आया हूँ। आपने कहा था कि ग्यारह हजार वर्ष रहूँगा, तो मैं याद दिलाने आया हूँ और प्रणाम करके चला गया। अरे! महापुरुष के पास भी यमराज आता है, आकर के बैठ जाता है तो महापुरुष उसके सिर पर पैर रखता है, तब आगे विमान में बैठता है। तो ये काल किसी को नहीं छोड़ता। सीधे नहीं टेढ़े, सबको जाना होगा। जाना नहीं चाहता कोई संसार से, अटैचमेन्ट है न, इसलिये मम्मी, पापा, बेटा, बेटी, नाती, पोता जो भी होते हैं उनको छोड़ के नहीं जाना चाहता। जानता है, सब छूटेंगे, फिर भी पहले नहीं छोड़ता अटैचमेन्ट।
अन्तहुँ तोहि तजेंगे पामर तू न तजै अबही ते।
अरे ! ये सब छोड़ेंगे तेरा साथ। किसी का आज तक इतिहास में ऐसा नाम नहीं है जो सब साथ गये हों और अगर एक साथ चलें भी तो रास्ता सबका अलग-अलग होगा। आप कह सकते हैं सारी दुनियाँ में छः अरब आदमी हैं और एक सेकेण्ड में दस मरे हैं, हाँ, एक साथ मरे दस, ठीक है, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? सब अलग-अलग गये ।
पुण्येन पुण्यं लोकं नयति पापेन पापमुभाभ्यामेव मनुष्यलोकम्।।(प्रश्नोपनिषद 3-7)
सब अपने-अपने कर्म के अनुसार गये। इसलिये उधार नहीं करना॥
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: 'हरि-गुरु स्मरण - दैनिक चिन्तन' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - वैदिक काल से ही सूर्यदेव की उपासना की जाती है। सूर्यदेव की पूजा साक्षात रूप में की जाती है। पहले सूर्यदेव की उपासना मंत्रों से की जाती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ। सूर्यदेव की ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है। उनकी कृपा से हर रोग से मुक्ति पाई जा सकती है। रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है। आइए जानते हैं सूर्यदेव से जुड़े कुछ आसान से वास्तु उपायों के बारे में।सूर्योदय के समय की किरणें स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम मानी जाती हैं। ब्रह्ममुहूर्त का समय असीम ऊर्जा का भंडार है। इस समय का सदुपयोग करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है, इस दिन पूरे परिवार के साथ सूर्यदेव की उपासना करें। भगवान सूर्य को तांबे के लोटे में जल, चावल, फूल डालकर अर्घ्य दें। रविवार के दिन लाल-पीले रंग के कपड़े, गुड़ और लाल चंदन का प्रयोग करें। रविवार के दिन फलाहार व्रत रखें। रविवार को सूर्य अस्त से पहले नमक का उपयोग न करें। तांबे की चीजों का क्रय-विक्रय न करें। रविवार के दिन घर के सभी सदस्यों के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। रविवार के दिन पैसों से संबंधित कोई कार्य नहीं करना चाहिए। इस दिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। घर में कृत्रिम रोशनी के बजाए सूर्यदेव का प्रकाश आने दें। उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण नाम से जाना जाता है। इस दिशा का आधिपत्य सूर्यदेव के पास है। इस दिशा में बुद्धि और विवेक से जुड़े कार्य करें।
- हस्तरेखा विज्ञान में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। हथेली में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत नौकरी और बिजनेस में सफलता या विफलता के बारे में बताता है। सूर्य रेखा रिंग फिंगर के नीचे एक खड़ी लाइन होती है। हस्तरेखा विज्ञान के मुताबिक तर्जनी उंगली यानी इंडेक्स फिंगर के नीचे वाला हथेली का हिस्सा गुरु पर्वत होता है। गुरु पर्वत पर शुभ निशान होने से तरक्की के योग बनते हैं और सूर्य रेखा की अच्छी स्थिति से नौकरी और बिजनेस में किस्मत का साथ मिलता है।यदि हाथ में गुरु यानी तर्जनी पर एक या एक से ज्यादा रेखाएं हो तो व्यकक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है। कोई रेखा जीवन रेखा से चन्द्र पर्वत की ओर जाए तो ऐसा व्यक्ति उच्च पद पाता है। गुरु पर्वत पर नक्षत्र, तारे का या त्रिभुज का निशान हो तो भी व्यक्ति उच्च पद पाने में सफल हो जाता है। हाथ में बड़ी सूर्य रेखा समाज में व्यक्ति को बड़ा पद दिलवाने का संकेत देती है। गुरु पर्वत पर त्रिभुज हो, सूर्य रेखा स्पष्ट हो और भाग्यरेखा की लंबाई ज्यादा हो तो ऐसे लोग कम उम्र में ही तरक्की करने लगते हैं।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव की शरण में जो भी आता है भगवान शिव उसके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार 12 राशियां होती हैं। इन राशियों के आधार पर भी व्यक्ति के बारे में बताया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनपर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है। इन राशियों के लोगों को भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है।मेष राशिमेष राशि के जातकों पर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है।ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार मेष राशि के लोगों को शिव की अराधना करनी चाहिए।मेष राशि के जातकों को नियमित शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए। शिवलिंग पर जल अर्पित करने से शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।मकर राशिमकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। मकर राशि के जातकों पर भगवान शिव और शनिदेव की विशेष कृपा रहती है।मकर राशि के जातकों को रोजाना भगवान शिव की पूजा- अर्चना करनी चाहिए।मकर राशि के जातक ऊॅं नम: शिवाय का जप करें।कुंभ राशिकुंभ राशि के स्वामी भी शनि देव हैं। कुंभ राशि के जातकों पर भी शनिदेव और भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है।कुंभ राशि के जातकों को शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए।कुंभ राशि के जातकों को क्षमता के अनुसार दान भी करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
- किसी - किसी मकान में वास्तुदोष की वजह से उसमें रहने वाले परिवारों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार कुछ उपाय करते काफी हद तक वास्तुदोष का निवारण हो जाता है। आज हम जानेंगे कि यदि मकान की पश्चिम दिशा में वास्तु दोष हो तो क्या उपाय करना चाहिए।इसके लिए पहले पश्चिम दिशा के दोष से सुरक्षा हेतु भवन में वरुण यंत्र स्थापित करे। भवन के पश्चिमी भाग की ओर शनि यन्त्र भी स्थापित कर सकते हैं। शनि स्त्रोत का पाठ कर भवन के स्वामी को हर शनिवार काले उडद और सरसों के तेल का दान करना चाहिए। शनिवार का व्रत करने से इस दोष का निवारण हो सकता है। हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें।----