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- हाथी को एक पवित्र जीव माना गया है। इसी प्रकार वास्तु और फेंगशुई विज्ञान में भी हाथी की मूर्ति, पेंटिंग या चित्र रखना बहुत शुभ बताया गया है। हिन्दू मान्यता के अनुसार हाथी धन की देवी लक्ष्मी के दोनों तरफ खड़े होकर उनकी सेवा में रहते हैं। यदि हम स्वर्ग के राजा इंद्र की बात करें, तो ऐरावत हाथी उनका वाहन है।वास्तु के अनुसार उत्तर और दक्षिण दिशा में लाल रंग का हाथी रखने से आपको समाज में मान-सम्मान और यश प्राप्त होता है। यदि आप अपने कार्यस्थल या व्यक्तिगत यश के लिए यह उपाय करना चाहते हैं तो आप दक्षिण दिशा में लाल हाथी रखें लाभ होगा लेकिन अगर आप अपनी फर्म की यश और प्रतिष्ठा को बढ़ाना चाहते हैं तो उसके लिए उत्तर दिशा को लाल हाथी लगाने के लिए चुनें,आपको अपने उद्देश्य में सफलता मिलेगी।चांदी से बना हाथी ज्योतिष एवं वास्तु की दृष्टि में बहुत ही शुभ माना गया है। वास्तु के अनुसार, चांदी और हाथी दोनों ही नकारात्मकता को खत्म कर सकारात्मकता बढ़ाने में मदद करते हैं। चांदी से बना हाथी घर या ऑफिस की टेबल पर रखने से रुके हुए कामों में गति आती है और प्रमोशन के योग भी बनते हैं। चांदी का हाथी उत्तर दिशा में रखना बहुत ही शुभ होता है। इसे लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी या गल्ले में रखने से आय के स्रोत बढ़ते हैं।यदि किसी विद्यार्थी को अपने करियर में बार-बार असफलता या बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है और लगातार प्रयास करने के वाबजूद सफलता प्राप्त नहीं हो रही है,तो अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए वह अपने स्टडीरूम में ऊपर की ओर सूंड किए हाथी की मूर्ति को लगाकर शुभ परिणाम प्राप्त कर सकता है।
- ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, राशियां हमारे स्वभाव और व्यक्तित्व के बारे में बहुत सी बातें बताती हैं। कुछ राशि के जातक बहुत भाग्यशाली माने जाते हैं। ये जातक अपने जीवन में उच्च पद, प्रतिष्ठा और बहुत सम्मान प्राप्त करते हैं। अन्य राशि के जातकों के मुकाबले इन्हें शीघ्र ही सफलता, धन-दौलत और शौहरत मिलती है। आइए जानते हैं कौनसी चार राशियों के जातक होते हैं बेहद भाग्यशाली।वृषयह राशि चक्र में दूसरी राशि है। इस राशि के स्वामी शुक्र हैं। स्वामी शुक्र का प्रभाव हमेशा इन राशि के जातकों पर रहता है। इस राशि के जातक सुंदर, आकर्षक और किसी कला के गुणी होते हैं। वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को सुख, धन, वैभव और ऐश्वर्य का कारक माना जाता है। इस राशि के स्वामी शुक्र के शुभ प्रभाव का असर इस राशि पर रहता है। वृष राशि के जातकों को हमेशा किस्मत का साथ मिलता है। इस राशि के लोग कभी भी धन की कमी महसूस नहीं करते हैं।सिंहसिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है, जिसे सौरमंडल का राजा भी कहा जाता है। स्वाभाविक है कि सूर्य के प्रभाव के कारण इस राशि वालों में भी नेतृत्व की अच्छी क्षमता देखी जाती है। इस राशि का तत्व अग्नि है इसलिए सिंह राशि वालों में गजब की ऊर्जा भी देखने को मिलती है। सूर्य को आत्मविश्वास प्रदान करने वाला ग्रह माना गया है, जिस व्यक्ति की सिंह राशि होती है, उसमें आत्मविश्वास की अधिकता होती है। सूर्य के प्रभाव में आने के कारण ऐसे जातक बेहद भाग्यशाली माने जाते हैं। ऐसे जातकों को जीवन धन-दौलत, अपार सफलता प्राप्त होती है।धनुधनु राशिचक्र की नवम राशि है। इस राशि के जातक ज्ञानी होते हैं। इस राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति इन्हें बहुमुखी प्रतिभा का धनी बनाता है, वहीं अग्नि तत्व के प्रभाव के कारण इस राशि वाले ऊर्जावान भी होते हैं। इस राशि के जातक जो ठान लेते हैं उसे करके दिखाने की क्षमता रखते हैं। इन्हें नेतृत्व करने में आनंद आता है और इसलिए शीर्ष पर पहुंचने के लिए यह कड़ी मेहनत भी करते हैं। यह समाज और अपने प्रति ईमानदार होते हैं जिसके कारण लोग इनकी ओर आकर्षित होते हैं। इस राशि से संबंधित लोग अच्छे सलाहकार भी होते हैं। इनका आशावादी रवैया, वाणी की मिठास, ईमानदारी, साहसी प्रवृति और ऊर्जा इन्हें जबरदस्त लीडर बनाती है।कुंभकुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि है। शनि को न्याय का देवता भी कहा जाता है। शनि के प्रभाव के कारण कुंभ राशि वाले जातक भी न्यायप्रिय होते हैं, इस राशि वाले कभी भी किसी के साथ गलत व्यवहार या धोखा नहीं करते हैं। इस राशि के लोगों में समाज कल्याण की भावना भी इस राशि के लोगों में देखने को मिलती है। संवेदनशीलता, आकर्षक स्वभाव, मजबूत इच्छाशक्ती, न्यायप्रियता, दूरर्दर्शिता और एक अच्छे मार्गदर्शक के गुण इन्हें श्रेष्ठ लीडर बनाते हैं। शनिदेव की कृपा होने के कारण इस राशि के जातकों को कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है।
- रंगों के त्योहार होली का इंतजार अब खत्म हो गया है और रविवार 28 मार्च को शाम के समय होलिका दहन होगा और उसके अगले दिन 29 मार्च सोमवार को रंगों वाली होली खेली जाएगी. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है. होली के मौके पर रंगों के साथ मौज-मस्ती करने के साथ ही धार्मिक दृष्टि से भी होली का त्योहार बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि होली के दिन हनुमान जी की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से छुटकारा मिलता है.होली की रात हनुमान जी की पूजा करना होगा शुभहोली से एक दिन पहले होलिका दहन की रात होलिका जलाने के साथ ही अगर कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो साल भर कष्टों से मुक्ति मिलती है. इन्हीं में से एक उपाय है होलिका दहन की रात हनुमान जी की पूजा करना. ज्योतिष एक्सपर्ट्स की मानें तो नए संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों ही मंगल हैं और मंगल के कारक देव हनुमान जी हैं. ऐसे में होली की रात हनुमान जी पूजा करना बेहद शुभ और कल्याणकारी होगा.ऐसे करें हनुमान जी की पूजा1. होलिका दहन की रात को स्नान करें और फिर हनुमान मंदिर जाकर या फिर घर में ही हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर उनकी पूजा करें.2. हनुमान जी को सिंदूर, चमेली का तेल, फूलों का हार, प्रसाद और चोला अर्पित करें.3. इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ हनुमान जी की पूजा करें.4. इसके बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें और आरती करें.5. होली की रात बजरंग बाण का जाप करना भी बेहद शुभ माना जाता है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 236
साधक का प्रश्न ::: साधना की जो स्पीड है हमारी उसे कैसे और तेज़ करें?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: वही उपाय है जो थोड़े से का होता है, वही अधिक का होता है। अधिक समय सावधान रहे, अधिक समय भगवद् चिंतन करे। अधिक समय दोषों से बचे। काम, क्रोध, लोभ, मोह से बचे। ये हर समय सावधान रहने से साधना बनती है। हर समय भगवान् हमारे साथ हैं इस रियलाइज़ेशन का अभ्यास कि कभी हम अकेले नहीं हैं, ये सबसे पहला और सबसे इम्पॉर्टेन्ट अभ्यास है।
हम तुरंत भूल जाते हैं कि हम अकेले नहीं हैं। जो सोच रहे हैं कोई नहीं जानता - ये बहुत बुरी आदत है। दो ('हमारे साथ हरि-गुरु सर्वदा हैं' की भावना) की फीलिंग सदा रहे। इसका जितना अधिक अभ्यास कर ले उतना ही शांत हो जायेगा, निश्चिन्त रहेगा हमेशा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
भगवान कृष्ण को कुछ लोग प्रेम के रूप में पूजते हैं तो कुछ उन्हें शिशु के रूप में पूजते हैं। भगवान कृष्ण के सभी रूप बहुत ही मनोहारी लगते हैं। इनके रूप को देखकर ही भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। लोग अपने घर में लड्डू गोपाल और राधारानी के संग कृष्ण जी की पूजा करते हैं। यदि आपने अपने घर में कृष्ण जी विराजमान किए हैं तो उनके श्रृंगार से लेकर उनके प्रिय खाद्य पदार्थ तक का ध्यान रखना चाहिए। कुछ चीजें हैं जिन्हें कृष्ण जी के साथ अवश्य रखना चाहिए। इन चीजों के बिना कान्हा का स्वरूप अधूरा माना जाता है।
बांसुरीभगवान कृष्ण सदैव बांस की बांसुरी धारण करते थे, इसलिए इन्हें वंशी बजैया भी कहा जाता है। बांसुरी के बिना इनका स्वरूप अधूरा रहता है। यदि आपके घर में कृष्ण जी की प्रतिमा हो तो उसके साथ बांसुरी अवश्य रखनी चाहिए। यदि बांस की बांसुरी रखते हैं तो और भी अच्छा रहता है। वास्तु के अनुसार भी घर में बांसुरी रखना बहुत शुभ माना जाता है। बांसुरी रखने से परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम भाव बना रहता है।मोर पंखमाथे पर मोरपंख लगे हुए श्याम सुंदर का स्वरूप बहुत ही मनोहारी प्रतीत होता है। माता यशोदा बालपन से ही भगवान कृष्ण के माथे पर मोरपंख लगाती थी। मोर पंख के बिना कृष्ण जी का श्रंगार अधूरा रहता है। इसलिए भगवान के साथ मोरपंख अवश्य रखना चाहिए। इसके अलावा घर में मोरपंख रखने से कीड़े मकौड़े और नकारात्मकता भी दूर रहती है।वैजयंती मालाकृष्ण जी अपने गले में वैजयंती माला धारण करते थे। इसका उल्लेख भगवान कृष्ण की आरती में भी मिलता है। वैजयंती के फूल और माला, कृष्ण जी के साथ भगवान विष्णु और लक्ष्मी को यह अति प्रिय है। घर में वैयजंती माला रखना बहुत शुभ माना जाता है। इसके अलावा माना जाता है कि वैजयंती माला धारण करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।गायभगवान कृष्ण को गायों और बछड़ों से अत्यधिक प्रेम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कृष्ण जी बचपन से ही गाय चराने जाया करते थे। यही कारण है कि उन्हें ग्वाला भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण की प्रतिमा के साथ एक छोटी सी गाय की प्रतिमा भी अवश्य रखनी चाहिए। हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पूजनीय माना गया है। माना जाता है कि गाय में 33 कोटि देवी-देवता वास करते हैं।माखन-मिश्री का लगाएं भोगयदि आपने अपने घर में कृष्ण जी को विराजमान किया है तो उन्हें प्रतिदिन माखन-मिश्री का भोग अवश्य लगाना चाहिए। भगवान कृष्ण को माखन अत्यंत प्रिय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बचपन में वे अपने सखाओं के साथ गोपियों की मटकियों से माखन चुराकर खाया करते थे। यदि माखन ताजा हो तो और भी अच्छा रहता है। प्रतिदिन माखन का भोग नहीं लगा सकते तो मिश्री का भोग लगाना चाहिए। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 235
( भूमिका : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज का निम्नांकित प्रवचन अंश उनके नारद-भक्ति-दर्शन पर दी गई प्रवचन श्रृंखला से है। यह प्रवचन श्रृंखला उन्होंने वर्ष 1990 में भक्तिधाम मनगढ़ (उ.प्र.) में दिया था। इस अंश में श्री कृपालु महाप्रभु जी संसार में छह प्रकार के लोगों के विषय में संक्षिप्त में बता रहे हैं। छठे प्रकार में महापुरुष, संत-महात्माओं के स्वभाव का निरुपण किया गया है। आइये इस संक्षिप्त अंश से हम अपने आत्मिक-लाभ का कुछ आधार प्राप्त करें..)
महापुरुष लोग अपना अनिष्ट करके हम लोगों का इष्ट करते हैं -
भुर्ज तरु सम सन्त कृपाला।
भोजपत्र का पेड़ होता है, उस पेड़ की छाल होती है तो एक के ऊपर एक, एक के ऊपर एक। सब निकाल लो तो पेड़ जीरो बटा सौ, वो छालों का लिपटा हुआ एक पुंज ही पेड़ होता है। देखिये! छः प्रकार के लोग होते हैं। हाँ, जल्दी समझियेगा ध्यान देकर, अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना। आप लोग सोचते तो हैं और बोलते भी हैं, अपने छोटों के आगे - हैं, हैं, हैं, मैं भी कुछ अकल रखता हूँ और छोटी सी बात जल्दी नहीं समझते, हमको डिटेल करना पड़ता है। अपना अनिष्ट करके भी दूसरे का अनिष्ट करना, ये सबसे निम्न क्लास के लोग होते हैं। हमारा नुकसान हो जाय तो हो जाय लेकिन उसका नुकसान जरुर करना है।
अरे! ये कौन सी समझदारी की बात है कि अपना नुकसान कर रहे हो, उसके नुकसान करने के चक्कर मे। लेकिन होते हैं ऐसे -
जे बिनु काज दाहिने बाएँ।
तो अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना, सबसे खराब, नम्बर एक। इससे अच्छा, अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट करना यानी अपने फायदे के लिये दूसरे का नुकसान कर देना। ये पहले वाले से कुछ अच्छे हैं, नम्बर दो और तीसरा अपने इष्ट के लिये दूसरे का इष्ट करना यानी अपना भी लाभ हो इसका भी हो, फिफ्टी-फिफ्टी, ये उससे भी अच्छा है, नम्बर तीन और नम्बर चार अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट न करना। नम्बर पाँच, दूसरे का ही इष्ट करना और नम्बर छः, अपना अनिष्ट करके दूसरे का इष्ट करना। अपना नुकसान भले ही हो जाय लेकिन इसका लाभ हो जाय। महाराज! हमको नरक में वास दे दो लेकिन इन जीवों का कल्याण करो, ये महापुरुषों का सिद्धान्त है। आप लोग इसको सोच नहीं सकते, समझ भी नहीं सकते।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नारद-भक्ति-दर्शन की 11-दिवसीय व्याख्या के 9 वें दिन के प्रवचन से (1990)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - मां लक्ष्मी धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी हैं। यही कारण है, हर व्यक्ति चाहता है कि उसके ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। कभी कभार देखने में आता है कि तमाम प्रयास करने के बाद भी कुछ लोगों के पास सदैव धन की कमी बनी रहती है। धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिष की मानी जाए तो इसके पीछे कई कारण होते हैं। जिसकी वजह से घर में पूजा-पाठ और हर तरह के प्रयास करने के बाद भी मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। तो चलिए जानते हैं कि किन कारणों की वजह से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है।-महिलाओं और बुजुर्गों का अपमान करने वालों के यहां कभी मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। सनातन धर्म में स्त्री को मां अन्नपूर्णा और लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। जो लोग अपने घर या बाहर की स्त्रियों का सम्मान नहीं करते हैं, उनके यहां दरिद्रता का वास होता है। जहां पर बुजुर्गों का सम्मान नहीं किया जाता है,वहां कभी देवी-देवताओं की कृपा नहीं होती है। जहां पर बुजुर्गों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है, वहां की सुख समृद्धि नष्ट हो जाती है।-जिस घर में सदैव शोर-शराबा और कलह का वातावरण रहता है। लोग एक दूसरे से चिल्लाकर और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए बात करते हैं। ऐसे घरों में कभी मां लक्ष्मी वास नहीं करती हैं। घर में हमेशा शांति पूर्ण और सकारात्मक वातावरण बनाकर रखना चाहिए। जो लोग मधुर वाणी बोलते हैं और सदैव दूसरों की मदद करने के तत्पर रहते हैं ऐसे लोगों पर मां लक्ष्मी अपनी कृपा बनाएं रखती हैं।-जिन घरों में साफ-सफाई नहीं रहती है। लोग देर तक सोते रहते हैं और सुबह के समय पूजा वंदन नहीं किया जाता है। ऐसे घरों में भी हमेशा पैसों की किल्लत बनी रहती हैं। इसके अलावा जो लोग आलस करते हैं वे कभी तरक्की नहीं कर पाते हैं। इसलिए मनुष्य को अपने अंदर के इन अवगुणों का त्याग कर देना चाहिए। रात को कभी भी रसोई में जूठे बर्तन छोड़कर नहीं सोना चाहिए। इससे भी आपके घर में धन संबंधित समस्याएं आने लगती हैं। जिस घर में साफ-सफाई रहती है, प्रतिदिन सुबह शाम पूजन वंदन किया जाता है वहां पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 234
(भूमिका - नीचे का उद्धरण अंश जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित 103-प्रवचनों की ऐतिहासिक श्रृंखला 'मैं कौन? मेरा कौन?' के 56-वें प्रवचन से है, जो कि उन्होंने 11 अगस्त सन 2010 को श्री बरसाना धाम में दी थी।)
...प्राचीनकाल में ऐसे अंजन बनाये जाते थे कि जो मोतियाबिंद के मरीजों को आँख में देने से उसी अंजन से धीरे धीरे मैल कटता था। आजकल उसे काटकर निकाल देते हैं, पहले वो अंजन से कटता था, धीरे धीरे। तो जैसे जैसे वो कटता था वैसे वैसे पहले मोटी चीज दिखाई पड़ने लगी फिर और पतली चीज फिर और पतली चीज फिर एकदम ठीक हो गई।
(भगवान कहते हैं) ऐसे ही जो मेरी भक्ति करता है तो ज्यों-ज्यों भक्ति करता जाता है त्यों-त्यों संसार से वैराग्य और मुझमें प्यार नैचुरल, नैचुरल स्वाभाविक प्यार, होने लगता है, रहा नहीं जाता। आज कुछ भगवान संबंधी बात नहीं हुई दिन भर, खराब हो गया, बेचैनी हो रही है। वो आ गया था, खोपड़ा खाता रहा, वो आ गई थी ए दिमाग खराब हुआ और सबसे अन्त में भगवान ने उद्धव से कहा कि देखो मैं सारांश बताता हूँ अब और सब ज्ञान भुला दो तो भी चलेगा। क्या सारांश?
विषयान् ध्यायतश्चित्तम् विषयेषु विषज्जते।मामनुस्मरतश्चित्तम् मय्येव प्रविलीयते।।(भागवत 11-14-27)
जैसे संसारी पदार्थों में सुख मान मान करके तुमने उसमें अटैचमेंट किया था, मान मान करके, जबरदस्ती और मैं तो आनन्दसिन्धु हूँ फैक्ट में। जो मुझमें सुख मानकर के बार बार बार बार बार बार चिन्तन करेगा उसका मुझमें अटैचमेंट हो जायेगा। हो गई भक्ति, बस। बार बार चिन्तन से अटैचमेंट होता है। संसार में भी ऐसे ही होता है।
दो भाई बैठे थे, एक लड़की जा रही थी। दोनों ने देखा। एक ने कहा कि बड़ी सुन्दर लड़की है, दूसरे ने कहा, हाँ हाँ। दूसरा भाई चला गया अपना कहीं। इस भाई ने सोचा कि इससे मिलना चाहिये। कौन है? कहाँ रहती है? इसका बाप क्या करता है? लग गया पीछे। एक दिन हुआ, दो दिन हुआ, मौका नहीं लगा बात करने का। मिलना है, कैसे नहीं करेगी बात? कोई तरकीब कोई बहाना। एक दिन ऐसा चांस आ गया। आप कहाँ रहती हैं? बहन जी! पहले बहन जी कहता है और भावना है श्रीमती जी बनाने की। वो भी भोली भाली लड़की है। उसने कहा भाई साहब! मैं वहाँ रहती हूँ। तुम्हारे डैडी क्या करते हैं? हमारे डैडी इन्स्पेक्टर हैं। मैं यहाँ रहता हूँ। मेरे डैडी अरबपति हैं। झूठ बोला। अब लड़की को, सोचने को मजबूर कर दिया। अरबपति है, शकल वकल तो ठीक है। लेकिन अब इससे बात कैसे करें? हटाओ। फिर वो पीछे पड़ा।
अब वो चिन्तन चिन्तन चिन्तन चिन्तन, रात दिन। उसका भाई कहे कि तू कहाँ खोया रहता है, आजकल। कुछ नहीं भइया ऐसे ही। झूठ बोल रहा है ऐसे ही ऐसे ही। आखिरकार एक दिन ऐसा मौका आ ही गया कि साफ साफ उसने कह दिया, 'मुझसे शादी करोगी?' तो उसने एक झापड़ लगाया। लौट कर आया, उसने खरीदा पॉइज़न और खाकर सो गया, सदा को छुट्टी। ये क्यों हुआ? चिन्तन से, लगातार चिन्तन से।
ऐसे ही लगातार चिन्तन करने से तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, जगद्गुरु लोग, भगवान के पास पहुँचे थे। और कुछ नहीं। ये शास्त्र वेद तो केवल विश्वास के लिये और वैराग्य के लिये जरूरी है। यहाँ नफरत हो जाय इससे। ये संसार क्या है? फैक्ट इसका मालूम हो जाय कि ये धोखा देने वाला है। ये मन दुश्मन है, इसको हम दोस्त माने बैठे हैं। ये सब ज्ञान के लिये, गुरु की आवश्यकता है। भगवान को पाने के लिये मेहनत नहीं है। बस वो (भगवान) 'मेरा' है, वो 'मेरा' है, वो 'मेरा' है। ये संसार 'मेरा' है, ये एबाउट टर्न हो जाओ, वो 'मेरा' है, वो 'मेरा' है। ये चिन्तन जितना तेज होगा, उतने ही पास पहुँचते जायेंगे आप (भगवान के)।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ ::: 'मैं कौन? मेरा कौन?' प्रवचन श्रृंखला, 56-वाँ प्रवचन०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिंदु धर्म में होली के त्योहार का विशेष महत्व होता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन रंग वाली होली खेली जाती है। इस साल होलिका दहन 28 मार्च को किया जाएगा, जबकि रंग वाली होली 29 मार्च को खेली जाएगी। होलिका दहन के दिन लोग होली पूजा करने के साथ ही एक-दूसरे को गुलाल-अबीर लगाकर होली की बधाई देते हैं। इस साल होली पर ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र में ध्रुव योग को शुभ माना जाता है।होलिका दहन के दिन कब से कब तक रहेगी पूर्णिमा तिथि-पूर्णिमा तिथि 28 मार्च को सुबह 03 बजकर 30 मिनट से शुरू होगी जो कि 29 मार्च की रात 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। होली के दिन मकर व गुरु एक ही राशि मकर में विराजमान रहेंगे। शुक्र व सूर्य मीन राशि पर संचार करेंगे। चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करेगा।होलिका दहन पर करें ये 5 उपाय मिलेगी शनि-राहु-केतु और नजर दोष से मुक्ति-1. मान्यता है कि होलिकादहन करने या फिर उसके दर्शन मात्र से भी व्यक्ति को शनि-राहु-केतु के साथ नजर दोष से मुक्ति मिलती है।2. माना जाता है कि होली की भस्म का टीका लगाने से नजर दोष तथा प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है।3. धार्मिक मान्यता के अनुसार, किसी मनोकामना को पूरा करना चाहते हैं तो जलती होली में 3 गोमती चक्र हाथ में लेकर अपनी इच्छा को 21 बार मन में बोलकर तीनों गोमती चक्र को अग्नि में डालकर अग्नि को प्रणाम करके वापस आ जाएं।4. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि कोई व्यक्ति घर में भस्म चांदी की डिब्बी में रखता है तो उसकी कई बाधाएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं।5. अपने कार्यों में आने वाली बाधा को दूर करने के लिए आटे का चौमुखा दीपक सरसों के तेल से भरकर उसमें कुछ दाने काले तिल,एक बताशा, सिन्दूर और एक तांबे का सिक्का डालकर उसे होली की अग्नि से जलाएं। अब इस दीपक को घर के पीड़ित व्यक्ति के सिर से उतारकर किसी सुनसान चौराहे पर रखकर बगैर पीछे मुड़े वापस आकर अपने हाथ-पैर धोकर घर में प्रवेश कर लें।
- दहन के समय नहीं रहेगा भद्रा का सायाहिंदू धर्म में होली के त्योहार का बड़ा महत्व है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। वहीं अगले दिन रंगोत्सव मनाया जाता है। ज्योतिर्विद पं. कृष्ण कुमार शर्मा ने बताया होलिका दहन से पहले विधि-विधान से पूजा की जाती है। फिर शुभ मुहूर्त में ही होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन भद्रा काल में नहीं किया जाता। उन्होंने बताया कि इस बार होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा यानि 28 मार्च को किया जाएगा। वहीं 29 मार्च को धूल्हेंडी का पर्व मनाया जाएगा। शर्मा नांवा ने बताया कि भद्रा काल के पश्चात ही होलिका का पूजन व दहन करना श्रेष्ठ माना गया है। इस बार खास बात यह है कि होली दहन के समय भद्रा का साया नहीं है। क्योंकि इस बार भद्राकाल दोपहर 1:52 तक ही रहेगी। अत: भद्रा काल के पश्चात ही होलिका का पूजन करना व शाम के समय प्रदोषकाल की अवधि में होलिका दहन शुभ फल देने वाला माना गया है। इसके अलावा शुभ मुहूर्त पद्धति के अनुसार सांय 6:37 से रात्रि 9:02 बजे के मध्य होलिका दहन करना श्रेयकर रहेगा।पर्व पर बन रहे हैं कई खास और दुर्लभ योगपंडित शर्मा ने बताया कि इस बार होली पर शनि अपनी राशि में विराजमान रहेंगे जो शुभ संयोग है। वहीं इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग के साथ ही अमृत सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है। अर्थात इस बार होली सर्वार्थसिद्धि योग के साथ- साथ अमृत सिद्धियोग में मनाई जायेगी। होली पर चंद्रमा कन्या राशि में गोचर कर रहे हैं तो गुरु और शनि मकर राशि में है। वहीं इस दिन शुक्र और सूर्य मीन राशि में विराजमान होंगे। इसके अलावा अन्य ग्रहों की स्थिति मंगल और राहु वृषभ राशि में, बुध कुंभ राशि और मोक्ष के कारण केतु वृश्चिक राशि में विराजमान होंगे। उन्होंने बताया कि ग्रहों की इस तरह स्थिति के चलते ध्रुव योग का निर्माण होगा। इसके अलावा दशकों बाद होली पर सूर्य, ब्रह्मा और अर्यमा के साक्षी रहेंगे जो दूसरा दुर्लभ योग है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 233
(भूमिका - सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति से अलग है जीवात्मा के आनन्द की प्राप्ति का उपाय - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के संक्षिप्त प्रवचन अंश में इसी की ओर संकेत है। आइये उनके शब्दों पर हम गंभीरतापूर्वक मनन करें...)
संसार के सामान से जो क्षणिक शान्ति मिलती है वो शारीरिक होती है, मानसिक होती है, बौद्धिक होती है बस। ये सब माया के बने हैं - शरीर माया का बना है, मन माया का बना है, बुद्धि भी माया की बनी है; इसलिए इन तीनों की जो शान्ति होती है (संसार के पदार्थ पाने पर) ये क्षणिक है। ये कोई शान्ति नहीं, इसका परिणाम तो बहुत बड़ी अशान्ति है। और हम लोग जो शान्ति चाहते हैं वो केवल जीव की चाहते हैं। जब जीव की हम शान्ति चाहते हैं तो जीव और शरीर को अलग-अलग रखना है। अगर शरीर की शान्ति को हम जीव की शान्ति का अर्थ लगा लेंगे तो हमें कभी शान्ति नहीं मिल सकती। जीव की शान्ति भगवान् को प्राप्त करके हो सकती है क्योंकि जीव भगवान् का सनातन अंश है। अतः आध्यात्मिक उन्नति से ही शान्ति हो सकती है। ये जो आत्मा की शान्ति है, यह परमात्मा की प्राप्ति से ही होगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'विश्व-शान्ति' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - देवगुरु बृहस्पति अगलेे महीने 6 अप्रैल मंगलवार को मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। इस राशि में देवगुरु बृहस्पति 14 सितंबर तक रहने के बाद वक्री अवस्था में पुन: मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे, जहां 20 नवंबर 2021 तक रहेंगे। उसके बाद पुन: मार्गी अवस्था में कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सौरमंडल में बृहस्पति एक विशालकाय ग्रह है। शास्त्रों में इस ग्रह को देवताओं का गुरु माना जाता है। इसलिए इसे देवगुरु कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति ग्रह मीन और धनु राशि के राशि के स्वामी हैं। कुंभ राशि में बृहस्पति ग्रह की उपस्थिति कई राशि के जातकों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है। राशि अनुसार ये उपाय इस प्रकार हैं -मेष: संतान प्राप्ति के योग बनेंगेनव विवाहितों के लिए संतान प्राप्ति के योग बनेंगे। वरिष्ठों के लिए धार्मिक-मांगलिक कार्य का अवसर बनेगा। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। विद्यार्थियों को शिक्षा प्रतियोगिता में पूर्ण सफलता प्राप्ति के योग हैं।वृष: सामाजिक प्रतिष्ठा में होगी वृद्धिजमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का शीघ्र निपटारा होगा। सामाजिक कार्यों में अधिक व्यय होगा लेकिन आपकी प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। नौकरी में पदोन्नति होगी और नए अनुबंध प्राप्ति के योग हैं। कार्य-व्यापार में लाभ आय के साधन बढ़ेंगे।मिथुन: धर्म-कर्म के कार्य में बढ़ेगी रुचिधर्म-कर्म के मामलों में गहरी रूचि होगी। सोची समझी सभी रणनीतियां कारगर सिद्ध होंगी। भाईयों में असहमति-अविश्वास का माहौल न बनने दें। विदेश यात्रा के योग बनेंगे। बुजुर्गों को पौत्र सुख की प्राप्ति, आय के साधन बढेंग़े।कर्क: आकस्मिक धनलाभ के बनेंगे योगआकस्मिक धन लाभ के योग है। नौकरी में पदोन्नति के अवसर मिलेंगे। तीर्थाटन एवं सामाजिक कार्यों पर धन खर्च होगा। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। व्यावसायिक कार्यों में सफलता कुछ हद तक सफलता प्राप्त होगी।सिंह: नौकरी में बढ़ेगा मान-सम्माननौकरी में मान-सम्मान एवं प्रभाव की वृद्धि होगी। उच्चाधिकारियों से सहयोग मिलेगा। स्वास्थ्य के प्रति सजक रहें, अधिक खर्च से बचना होगा। मांगलिक कार्यों का सुअवसर आएगा। शादी-विवाह संबंधी वार्ता भी सफल रहेगी।कन्या: शादी-विवाह में होगा अधिक खर्चाशादी-विवाह में बजट से अधिक व्यय होगा। विदेशी कंपनियों में नौकरी अथवा नागरिकता के लिए आवेदन करना सफल रहेगा। गुप्त शत्रुओं से बचें, कोर्ट कचहरी के मामले भी बहार ही सुलझाएं। भाग-दौड़ की अधिकता से तनाव बढ़ेगा।तुला: परिजनों का मिलेगा पूर्ण सहयोगपरिवार के बड़ों से सहयोग प्राप्त होगा। संतान संबंधी चिंता से मुक्ति मिलेगी। नौकरी में पदोन्नति के योग बनेंगे। हर तरह से सफलताओं के अच्छे अवसर मिलेंगे। नए प्रेम प्रसंग की शुरुआत होगी। आय के भी अनेक साधन बनेंगे।वृश्चिक: नौकरी में हो सकता है प्रमोशनप्रमोशन एवं स्थान परिवर्तन का प्रयास भी सफल रहेगा। पैतृक संपत्ति का लाभ मिलेगा। भौतिक सुख मिलेगा। वाहन खरीदने की संभावना है। कुछ पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति रहेगी। नौकरी में भी नए अनुबंध की प्राप्ति के योग अवसर जाने न दें।धनु: कार्यक्षेत्र में बढ़ेगा प्रभावधर्म एवं आध्यात्म के प्रति गहरी रूचि रहेगी। कार्यक्षेत्र में भी प्रभाव बढ़ेगा। संतान संबंधी चिंता दूर होगी। विदेश यात्रा तथा विदेशी कंपनियों में नौकरी के बनेंगे। साहस पराक्रम में वृद्धि होगी। विद्यार्थियों को शिक्षा प्रतियोगिता में अच्छी सफलता मिलेगी।मकर: अपनी सेहत का ध्यान रखेंआपके द्वारा लिए गए निर्णय सराहनीय होंगे। षड्यंत्र का शिकार होने से बचें। स्वास्थ्य पर ध्यान दें। विवादित मामले आपस में हल करें। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। किसी महंगी वस्तु को खरीद सकते हैं। जमीन जायदाद के मामलों का भी निपटारा होगा।कुंभ: विद्यार्थियों को मिलेगी सफलताविद्यार्थियों को शिक्षा-प्रतियोगिता में अच्छी सफलता मिलेगी। संतान संबंधी चिंता से मुक्ति मिलेगी। सामजिक पद-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। अपनी योजनाओं और रणनीतियों को गोपनीय रखें। शादी-विवाह एवं व्यापार के क्षेत्र में आ रही रुकावटें दूर होंगी।मीन: लेन देन के मामले में रहें सावधानस्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। लेन-देन के मामलों में भी सावधान रहें। कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझाएं तो बेहतर रहेगा। अत्यधिक भागदौड़ और व्यर्थ व्यय का सामना करना पड़ेगा। बृहस्पति का गोचर प्रभाव अशांति एवं उलझनें देगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 232
(भूमिका - संसार में बाजीगर/मदारियों की कला का उदाहरण रखते हुये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज सरलतम रूप में समझा रहे हैं कि किस प्रकार मन की चंचलता को श्रीकृष्ण में स्थिर करना है...)
संसार में जैसे हर काम अभ्यास से होता है ऐसे भगवत्विषय में भी अभ्यास से, शान्ति से काम बनेगा। कहीं मन जाय, परेशान न हो, गुस्सा न करो - अरे! फिर मन में आ गयी बीबी, फिर मन में आ गया बाप। नहीं-नहीं, आने दो। आने दो। आ गया? हाँ, आ गया। उसी के बीच में खड़ा करो तुम, श्यामसुन्दर को और खूब देखो तुम माँ की आँख, बीबी की आँख, बेटी की आँख। तो थक जायगा मन।
देखो ! जब बन्दर को सिखाते हैं ये लोग, बाजीगर लोग, तो पहले सौ फुट की रस्सी में बांध देते हैं। तो बन्दर सौ फुट के आगे जाना चाहता है तो रस्सी लगती है बार-बार। तो वो कहता है, बेकार है। सौ फुट में ही कूदो। तब वो (रस्सी) पचास फुट की कर देता है। फिर दस फुट की, फिर जब एक फुट की रस्सी कर देता है तो बन्दर बैठ जाता है। खामखाँ दर्द होगा, क्या फायदा। ऐसे ही ये मन है। ये जहाँ भी जाय वहीं पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो। बस, फिर तुम्हारा रूपध्यान पक्का हो जायगा। जहाँ भी जाओ, हर जगह ये फीलिंग रहेगी भीतर से कि श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं। तो इस प्रकार अभ्यास करके हम गुरु की शरणागति में अन्तःकरण शुद्ध करें और हरि-गुरु इनके प्रति नामापराध न करें, सावधान रहें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'जीव का लक्ष्य' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - मथुरा ।जिले के बरसाना कस्बे में मंगलवार को दुनिया भर में प्रसिद्ध ब्रज की लठामार होली खेली जाएगी और ऐसा ही आयोजन अगले दिन बुधवार को नंदगांव में होगा। दूर दूर से लोग लठामार होली को देखने के लिए बरसाना और नंदगांव आते हैं। इस बार भी उनका आगमन होने लगा है जिसके मद्देनजर प्रशासन ने सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए हैं। परंपरा के अनुसार, आयोजन से एक दिन पहले दोनों ही गांवों के लोग होली खेलने का निमंत्रण देने के लिए एक-दूसरे के गांवों में जाते हैं। बरसाना के गोस्वामी समाज के सदस्य कृष्णदयाल गौड़ उर्फ कोका पण्डित ने बताया, ‘‘सोमवार को बरसाना स्थित राधारानी के महल से राधारानी की सखियां गुलाल लेकर कान्हा के गांव नन्दगांव जाएंगी और होली खेलने का निमंत्रण देंगी। यह गुलाल नन्दगांव के गोस्वामी समाज में वितरित किया जाएगा। तब नन्दभवन में राधारानी की सखियों के साथ धूमधाम से फाग आमंत्रण महोत्सव मनाया जाएगा।'' उन्होंने बताया ‘‘फाग आमंत्रण महोत्सव में स्थानीय गोस्वामी समाज के सदस्य और राधारानी की सखियां होली गीतों पर लोकनृत्य करते हैं। इसके बाद सखियों को आदर के साथ विदा किया जाता है। सखियां बरसाना के श्रीजी महल (लाड़िलीजी यानि राधारानी के मंदिर) में होली निमंत्रण को स्वीकार किए जाने की सूचना देती हैं।'' कोका पंडित ने बताया कि दोपहर बाद नन्दगांव का एक हरकारा (प्रतिनिधि) राधारानी के निवास पर जा कर उन्हें निमंत्रण स्वीकार किए जाने की बधाई देने के साथ ही नन्दगांव में होली खेलने के लिए आने का निमंत्रण देता है। उन्होंने बताया कि इस दौरान लड्डुओं का वितरण होता है जिसे ‘लड्डू लीला' अथवा ‘पाण्डे लीला' भी कहा जाता है। कोका पण्डित ने बताया कि बरसाना में लठामार होली 23 मार्च को होगी और 24 मार्च को लठामार होली नन्दगांव में खेली जाएगी। उन्होंने लठामार होली के बारे में बताया,‘‘ इस दिन बरसाना की गोपियां नन्दगांव से आए पुरुषों पर लाठियां बरसाकर होली खेलती हैं। नन्दगांव के हुरियारे (होली खेलने वाले) बरसाना की हुरियारिनों (होली खेलने वालियां) की लाठियों की मार अपने हाथों में ली हुई चमड़े की या धातु से बनीं ढालों पर झेलते हैं।'' बरसाना के हुरियार एवं राधारानी मंदिर के सेवायतों में से एक डॉ. संजय गोस्वामी बताते हैं ‘‘बरसाना की लठामार होली देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। तब यहां अद्भुद माहौल रहता है।'' गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद, वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बरसाना और नन्दगांव को तीर्थस्थल तथा लठामार होली आयोजन को राजकीय मेला घोषित कर दिया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉ गौरव ग्रोवर ने बताया, ‘‘सुरक्षा की दृष्टि से पूरे बरसाना क्षेत्र को पांच जोन और 12 सेक्टरों में विभाजित कर सभी अधिकारियों सहित करीब एक हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। राधारानी के मंदिर में व्यवस्था संभालने के लिए तो कमाण्डो लगाए गए हैं जो हर गतिविधि पर नजर रखते हुए व्यवस्था बनाए रखेंगे।'' उन्होंने बताया, ‘‘बरसाना तथा उसके आसपास के मेला क्षेत्र में छोटे-बड़े सभी वाहनों का प्रवेश बंद कर है। वाहन पार्किंग स्थलों पर खड़े कराए गए हैं। मेले में पैदल घूमने की ही अनुमति है।'' एसएसपी ने बताया, ‘‘मेला क्षेत्र में पांच अपर पुलिस अधीक्षक, 12 उपाधीक्षक, इतने ही निरीक्षक, 50 उप निरीक्षक, 7 महिला उप निरीक्षक, 650 कांस्टेबल, 50 महिला कांस्टेबल, चार कंपनी पीएसी, 10 गुण्डा दमन दल, चार दमकल, 10 घुड़सवार, बम निरोधक दस्ता और श्वान दस्ता लगाया गया है। सादा वर्दी में भी जवान तैनात किए जा रहे हैं।'' एसपी (देहात) एवं मेलाधिकारी श्रीश चंद्र ने बताया, ‘‘रविवार से ही बरसाना की नाकाबंदी कर 35 स्थानों पर बैरियर लगाए गए हैं। (File Image)
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 231
(भूमिका - भगवान का नाम स्वयं ही भगवान है। भगवान अपने नाम के आधीन रहते हैं। निम्नांकित प्रवचन में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज हमें समझा रहे हैं कि हमारे हृदय की भावना/विश्वास कैसा होना चाहिये कि जिससे नामोच्चारण का हमें पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके....)
भगवन्नाम लेते समय यदि आँखों से आँसू न निकले, सात्त्विक भावों का उद्रेक नहीं हुआ तो तुमने भगवन्नाम ही नहीं लिया। तुमने यह नहीं माना कि नाम में भगवान् की सारी शक्तियाँ हैं। इसलिये ऐसे हृदय के लिये कहा - 'अश्मसारम्', वह वज्र का हृदय है। ऐसे हृदय के लिये तुलसीदास ने झुंझला कर कहा;
हिय फाटहु फूटहु नयन, जरहु सो तन केहि काम।द्रवइ स्रवइ पुलकइ नहीं, तुलसी सुमिरत राम।।गद्गद गिरा नयन बह नीरा।(रामायण)
यदि हम यह मान लें कि जिस भगवान् के नाम में भगवान् बैठा है, वह नाम मैं ले रहा हूँ। यदि हमको यह ज्ञात हो जाय कि हमारी अंगूठी एक करोड़ की है तो एक करोड़ रुपयों के नोटों को देखकर जितनी खुशी होगी, उतनी ही प्रसन्नता अँगूठी के देखने से होगी। सीधी सी बात। लेकिन हमको यदि यह विश्वास नहीं है कि एक करोड़ की अंगूठी है, एक हजार की है - ऐसा विश्वास है तो एक हजार रुपया पाने का जो सुख होगा वही अंगूठी पाने का होगा। और यदि किसी ने कह दिया कि यह नकली है तो हम भी उसके प्रति उसी प्रकार की भावना बना लेंगे। इसी प्रकार नाम लेने में भी बेगारी करेंगे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे...
अर्थात् इस तरह से बोलेंगे जैसे कोई बेगारी में पकड़ा गया हो। आजकल संकीर्तन भी इसी तरह से होते हैं रुपया देकर। हमारे देश में अखंड संकीर्तन भी इसी प्रकार से स्थान-स्थान पर होते हैं। रुपया दे-देकर लोगों को किराये पर बुलाया जाता है। ठीक है, बिल्कुल न करने से कुछ करना अच्छा है लेकिन सेठ जी को यह भ्रम है कि हम रुपये से संकीर्तन कराकर वैकुण्ठ पहुँच जायेंगे, यह धोखा है। उसके लिए तो स्वयं को ही साधना करनी होगी। अतएव भगवन्नाम, गुण, लीलादि का संकीर्तन यही रहस्य रखता है कि उसमें हम भगवान् का अध्याहार करें। राधा-कृष्ण उसमें व्याप्त हैं, ऐसी भावना दृढ़ करें। जब ऐसी भावना दृढ़ होती जायगी तो भगवन्नाम का माधुर्य हमको अनुभव में आयेगा, तब सात्त्विक भावों का उद्रेक होगा। उनके नाम को सुनने से, उनके नाम के लेने से, उनके नाम के पढ़ने से, हम उस अवस्था पर पहुँच जायेंगे जहाँ खड़े होकर भगवान् शंकर कह रहे हैं;
रकारादीनि नामानि श्रृण्वतो मम पार्वति।मनः प्रसन्नतां याति रामनामाभिशंकया॥
हे पार्वती ! यदि कोई 'रा' कहता है तो मैं विभोर हो जाता हूँ कि अब यह 'म' कहने वाला है। भले ही उसकी रावण कहने की इच्छा (मंशा) हो। मैं 'रा' के कहते ही विभोर हो जाता हूँ। जैसे द्वेषभाव से उपासना करने वाला कहता है;
रत्नानि च रथांश्चैव वित्रासं जनयंति मे।
रत्न, रथ आदि में 'र' का नाम सुनते ही मैं काँपने लगता हूँ कि 'राम' आ गये। मारीच इतना डर गया था।
तो भगवान् में मन का अनुराग शत प्रतिशत हो। 'मामेकं शरणं व्रज' - एक प्रतिशत की भी दूरी न रहे, हमको यहाँ पहुँचना है। वहाँ पहुँचने के लिए भगवान् तो हमारे पास नहीं हैं किंतु उन्होंने कृपा करके अपने नाम में, अपनी लीला में, अपने धाम में, अपने संत में अपने आपको शत प्रतिशत रख दिया है। अपनी सारी शक्तियाँ रख दी हैं कि भाई तुमको कहीं जाना भी नहीं है। कोई पैर रहित हो, वह वृन्दावन कैसे जायेगा? उन्होंने कहा, कहीं जाने की जरूरत नहीं है। मैंने तो अपने नाम में अपनी सारी शक्तियाँ रख दी हैं, तुम चाहे जहाँ रहो;
प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना।
अतएव नाम, गुण, लीलादि का अवलम्ब लेकर अर्थात् नाम में नामी को मानकर हमारा प्यार बढ़ेगा और यह प्यार बढ़ते-बढ़ते जब हम अनन्य अवस्था पर पहुँच जायेंगे तो,
मद्भक्तिं लभते पराम्। (गीता)
तब वह पराभक्ति मिलेगी।
भक्त्या मामभिजानाति यावान् यश्चास्मि तत्त्वतः।ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ॥(गीता)
तब हम परब्रह्म का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करेंगे। जब पूर्ण ज्ञान होगा तो पूर्ण प्रेम हो जायगा। जितना ज्ञान उतना प्रेम, जितना विश्वास उतना प्रेम । उतने ही प्रतिशत नपा तुला।
जैसे बाल्मीकि ने 'मरा' शब्द को भगवन्नाम मानकर विश्वास कर लिया। जैसे धन्नाजाट ने भांग घोटने वाले भंगघुटने को शालिग्राम भगवान् मानकर विश्वास कर लिया। ऐसे ही यदि हम भगवन्नाम में भगवान् हैं, यह विश्वास करके भगवन्नाम संकीर्तन, गुण संकीर्तन करें तो हमारे अन्तःकरण में सात्त्विक भावों का उद्रेक होगा। तब गुरु कृपा से दिव्य प्रेम मिलेगा। तब जीव वेद के अनुसार,
सदा पश्यंति सूरयः तद्विष्णोः परमं पदम् । (वेद)
भगवान् के लोक में भगवान् के नित्य ज्ञान और नित्य आनंद से युक्त होकर,
सोऽश्नुते सर्वान् कामान् सह ब्रह्मणा विपश्चिता। (वेद)
भगवान् की नित्य सेवा में, नित्य काल के लिये आनंदमय हो जायगा। यह नाम-संकीर्तन का संक्षिप्त रहस्य है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - इस साल होलिका दहन 28 मार्च को किया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में किया जाने का विधान है। होलिका दहन अच्छाई पर बुराई की जीत का प्रतीक पर्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलिका दहन में अपनी राशि के अनुसार कुछ विशेष उपाय करने से जातकों को लाभ प्राप्त होता है। आप शुभ मुहूर्त पर अपनी राशि के इन उपायों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।फाल्गुन पूर्णिमा 2021पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 बजेपूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 00:17 बजेहोलिका दहन 2021होलिका दहन मुहूर्त – 18:37 से 20:56अवधि – 02 घंटे 20 मिनटहोली 2021भद्रा पूंछ -10:13 से 11:16भद्रा मुख – 11:16 से 13:0---मेषइस राशि के लोग खैर या खादिर की लकड़ी अर्पित करें।वृषइस राशि के जातक गूलर की लकड़ी होलिका दहन में अर्पित करें।मिथुनइस राशि के जातक अपामार्ग की लकड़ी होलिका दहन में अर्पित करें।कर्ककर्क राशि के लोग पलाश की लकड़ी होलिका दहन में अर्पित करें।सिंहइस राशि के लोग मदार की लकड़ी होलिका में डालेंगे तो फायदा होगा।कन्याइस राशि के जातक अपामार्ग की लकड़ी को होलिका दहन में अर्पित करें।तुलाआपको गूलर की लकड़ी होलिका में डालने से लाभ होगा।वृश्चिकइस राशि के लोग खैर या खादिर की लकड़ी अर्पित करें।धनुइस राशि के लोगों के लिए पीपल की लकड़ी फलदाई रहेगी।मकरइस राशि वाले लोग होलिक दहन में शमी की लकड़ी अर्पित करें।कुंभइस राशि वाले लोग होलिक दहन में शमी की लकड़ी अर्पित करें।मीनइस राशि के लोगों के लिए पीपल की लकड़ी फलदाई रहेगी।__File photo
- होली रंगों और खुशियों का त्योहार है। इस त्योहार में गुलाल, मिठाई, फाल्गुन के गीत, प्रेम, समरसता इन सभी चीजों का समावेश देखने को मिलता है। इस साल होली 29 मार्च को मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन अपनी राशि के अनुसार रंग का प्रयोग करना बेहद ही लाभकारी माना जाता है। आप अपनी राशि के अनुसार इन रंगों का प्रयोग होली में जरूर करें।मेष राशिमेष राशि को लाल और पीले रंग से होली का त्योहार मनाना चाहिए। इन रंगों से होली खेलने से आपके जीवन में प्यार और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहेगा।वृषभ राशिवृषभ राशि के जातकों को होली के दिन सफेद कपड़े पहनकर नारंगी और बैंगनी रंग से होली खेलनी चाहिए। ऐसा करने से आपके सौभाग्य में वृद्धि होती है।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातकों को हरे रंग से होली खेलनी चाहिए। ऐसा करने से ना सिर्फ इनके मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी होगी बल्कि संबंधों में प्रगाढ़ता भी आएगी।कर्क राशिकर्क राशि के जातकों को सफेद कपड़े पहनकर होली खेलनी चाहिए। ऐसा करने से उन्हें धन, यश के साथ बेहद सुकून भी मिलेगा।सिंह राशिसिंह राशि के लोग गोल्डन, पीले, लाल और नारंगी रंग से होली खेल सकते हैं। ऐसा करने से न सिर्फ ये लोग ऊर्जावान बने रहेंगे बल्कि इनके साथ होली खेलने वाले लोग भी उत्साह से भर जाएंगे।कन्या राशिकन्या राशि के लोगों को हरे, भूरे और नारंगी रंग से होली खेलनी चाहिए। इन रंगों से होली खेलने से इस राशि के लोगों का आर्थिक संकट दूर होता है।तुला राशितुला राशि के जातक सफेद और हल्के गुलाबी रंग के कपड़े पहनकर होली खेलें। ऐसा करने से आपको अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे।वृश्चिक राशिवृश्चिक राशि के लोगों को लाल, मैरून और पीले रंग से होली खेलने जाना चाहिए। ऐसा करने से आपके आर्थिक संकट दूर होते हैं।धनु राशिधनु राशि के जातकों को होली खेलने के लिए लाल, और पीले रंग का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से आपका अपने परिजनों के साथ रिश्ता मजबूत बनेगा और गुरु ग्रह से जुड़ी कोई परेशानी भी आपके सामने नहीं आएगी।मकर राशिमकर राशि के लोगों को होली जरूर खेलनी चाहिए. इसके लिए इन्हें नीले, काले रंग का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से आपको शीध्र ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति होगी।कुंभ राशिकुंभ राशि के जातकों को होली खेलने के लिए काला, बैंगनी और लाल रंग के गुलाल का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से आप कठिन परिस्थितियों को भी अपने बस में कर पाएंगे।मीन राशिमीन राशि के लोगों को पीले रंग से होली खेलनी चाहिए। इस राशि के लोगों को होली के दिन पीला रंग शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद ही होली खेलने जाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से आपको धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 230
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी तीर्थ का क्या महत्व है? एक व्यक्ति तीर्थ करके लौट आया और एक तीर्थ करने गया नहीं, दोनों में क्या अंतर है? तीर्थ किसे कहते हैं?जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: जहाँ कभी भगवान या महापुरुष रहे हों उस स्थान को तीर्थ कहते हैं, मथुरा हो, वृंदावन हो, अयोध्या हो। ये भगवान के जहाँ-जहाँ अवतार हुए हैं या महापुरुष लोग जहाँ-जहाँ पैदा हुए या साधना की या कोई लीला की तो उन जगहों का नाम तीर्थ पड़ जाता है। हमारे भारत में तो इतने महापुरुष हुए कि पग-पग पर तीर्थ हैं। स्मारक नहीं बनवाया लोगों ने लेकिन ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ महापुरुष पैदा न पैदा हुआ हो।
हमारा देश ऐसा है, कि तीर्थ ही तीर्थ हैं सब। और सबसे प्रमुख बात एक समझ लेनी चाहिए कि भगवान सबके हृदय में रहता है, नोट करो सब लोग। भगवान् सबके हृदय में बैठा उसके प्रतिक्षण के आइडिया नोट करता है। वही भगवान् वृन्दावन में श्रीकृष्ण बनकर लीला करता है, वही भगवान् अयोध्या में राम बनता है, वही भगवान् गौरांग बनकर आये, वही भगवान् जगन्नाथ जी हैं। दो चार प्रकार के भगवान् नहीं हुआ करते। एक ही सुप्रीम पॉवर है वह जो सबके दिल में रहता है। वही, कभी कहीं अवतार लेकर आई थी और सर्वव्यापक भी है।
प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना।
वह समान रूप से व्याप्त है। हिरण्यकशिपु को ये दिमाग में बीमारी थी कि हम तो राक्षस हैं, हमारे घर में तो भगवान् आयेगा नहीं। तो जब प्रहलाद ने कहा भगवान् सर्वत्र है, तो उसने कहा इस खम्भे में भी है? हाँ। तो खम्भे को उसने जो मारा और खम्भा टूटा तो नृसिंह भगवान् प्रकट हो गए। प्रहलाद ठीक कहता है, देख ले मैं सब जगह रहता हूँ।
तो सब जगह रहते हैं भगवान्, इसलिए हम किसी मन्दिर में जा रहे हैं इतनी दूर मेहनत करके, रास्ते में तकलीफ होगी और कहीं जेब कट गयी या कोई लफंगा मिल गया तो उसका चिन्तन होगा। सबसे प्यारा पैसा है, वह भी खर्च करेगा तो तीर्थ में लाभ के बजाय और हानि कमाकर आ गया, क्या मिला? प्राचीन काल में तीर्थों में सन्त ही रहते थे और कोई गृहस्थ वहां नहीं रहता था। महात्मा लोग रहते थे तो हम जब वहाँ जाते थे तो महात्माओं का प्रवचन सुनकर, सिद्धान्त समझकर अपना कल्याण करते थे। अब वो सब है नहीं, गड़बड़ है। अब तो मन्दिरों में जेबकतरे खड़े रहते हैं चारों तरफ, जरा मौका लगे तो अपना हिसाब बैठावें और पंडा- पुजारी तो इतना तंग करते हैं कि लोग कान पकड़ते हैं, मैं अब आउंगा नहीं कभी। दान करने के लिए कोई जाता है, पिंड दान है, बाप वगैरह के मरने पर, और बेचारा गरीब है, वह कहता है बस दस रुपया देंगे, नहीं सौ रुपये से कम नहीं लेंगे। तो तीर्थों में अब वह सन्त नहीं रहा, वह लाभ नहीं रहा और गड़बड़ बहुत हो गयी तो नुकसान हो गया हमारा।
तो भगवान् जब हमारे अंदर बैठा है, भगवान् तो इतना दयालु है, उसने कहा, भई कोई पंगुला हो तो वो कहेगा कि भई हमारे पैर नहीं हैं, हम कैसे जायँ मथुरा, वृन्दावन, द्वारिका, जगन्नाथ जी, हमको तो भगवत्प्राप्ति फ्री में कराई जाय। तो भगवान कहते हैं गधे मैं तो तेरे हृदय में रहता हूँ, कहीं जाने की जरूरत क्या है? और अगर नहीं जानते तुम कि मेरे दिल में वही भगवान् हैं जो जगन्नाथ जी में, मन्दिर में हैं तो फिर तुम नास्तिक हो तुम्हारा ज्ञान बुद्धि ही अभी ठीक नहीं हुआ है कि भगवान् वही हैं भगवान् का सही बटा नहीं होता है, 1/4 भगवान, 1/6 भगवान, ऐसा नहीं होता। वेदव्यास ने बड़ा सुन्दर निरूपण किया है उन्होंने कहा है एक तराजू लो और एक पलड़े में;
गो कोटि दानं ग्रहणेषु काशी प्रयागगंगायुतकल्पवासः।यज्ञायुतं मेरुसुवर्णदानं गोविंदनाम्ना न कदापि तुल्यम्।।(पाण्डव-गीता)
चन्द्रग्रहण के समय काशी में दान का बड़ा फल है। एक करोड़ गाय का दान करे कोई काशी में चन्द्रग्रहण के समय, इसका जो पुण्य हो, इतना बड़ा वो तराजू के एक पलड़े में रख दो; गो कोटि दानं ग्रहणेषुु काशी। और प्रयाग गंगायुतकल्पवास:, प्रयाग में कल्पवास करते हैं लोग माघ में, दस हजार वर्ष तक कोई कल्पवास करे, उसका जो पुण्य हो, वो भी तराजू के पलड़े में रख दो और यज्ञायुतुम मेरु सुवर्णदानम् , सुमेरु गिरि पहाड़ को कोई दान कर दे, सोने का पहाड़ पूरा यज्ञ में, जो पुण्य हो वो भी तराजू के एक पलड़े में रख दो और एक तरफ 'गोविन्द' नाम रख दो तो वो सब उसकी बराबरी नहीं कर सकता। गोविंदनाम्ना न कदापि तुल्यम्।
तो भगवान् सर्वत्र है और सबसे बड़ी बात हमारे हृदय में है। ये बात मान लो, मान लो, गाँठ बाँध लो। हजार बार वेद कह रहा हैं, शास्त्र कह रहे हैं, पुराण कह रहे हैं, सन्त कह रहे हैं और कृपालु ने भी हजार बार कहा आप लोगों को। नहीं मानते, भूल जाते हैं। जो मैं सोच रहा हूँ कोई नहीं जानता, ये प्राइवेसी नहीं हो सकती है। वो अंदर बैठा नोट कर रहा हैं, ये बात रियालज़ करो। बार-बार अभ्यास करो इसको तो इतना सुख मिलेगा तुमको जैसे कोई कंगाल खरबपति हो जाय एक सेकण्ड में ऐसे। हमारे दिल में वो बैठे हैं, महसूस करो, इसको रियलाइज़ करो। फिर बाहर भागना बन्द हो जाय। और अगर तीर्थ में जाओ तो किसी महापुरुष के साथ जाओ तो लाभ मिलेगा। वो उस महापुरुष के साथ सत्संग भी मिलेगा, इसलिए लाभ मिलेगा। पत्थर की और लक्कड़ की और सोने चांदी की मूर्ति में क्या है? उसमें भी ईश्वर व्याप्त है, वह तुम्हारे अंदर भी व्याप्त है, इसमें कोई अन्तर नहीं है।
तीर्थ में महापुरुष जाते हैं इसलिए वो तीर्थ हैं, महापुरुष न जायें तो तीर्थ का कुछ नहीं। सब एक-सी पृथ्वी है, एक-सा जल है, एक-सी वायु है, एक-सा सब कुछ है। आप लोगों ने पढ़ा होगा इतिहास में, हमारे इसी भारतवर्ष के सब मन्दिर तोड़ दिए गए थे एक जमाने में, सोमनाथ वगैरह के बड़े-बड़े। मन्दिर में पत्थर की मूर्ति ने क्या कमाल दिखाया?
वेदव्यास कहते हैं कि वह तो भावना बनाने से आपको लाभ मिलता है, किसी मूर्ति में कोई विशेष बात नहीं होती है। लेकिन हम लोग चूँकि शास्त्र-वेद नहीं जानते, इसलिए ऊँचाई पर, पहाड़ पर, एक मन्दिर बनवा के छोटा-सा, इसमें एक दुर्गा जी की मूर्ति रख दो। ऐ बहुत बड़ा महत्व है, वो दुर्गा जी का। अरे! वो दुर्गा जी हों, चाहे वैष्णो देवी हों, चाहे आपकी बगल के मन्दिर वाली देवी जी हों और आपके हृदय में तो आपकी देवी जी राधा बैठी हैं, काहे को परेशान हो रहे हैं, यहाँ-वहाँ दौड़ने में। देख आवें। क्या देखोगे? क्या चीज़ देखकर विभोर होओगे तुम? जितने लोग जगन्नाथ जी के दर्शन करने गए, सच-सच बतावें कि जितना सुख उन्हें अपनी बीबी, अपने बेटे, अपनी माँ, बाप, अपने दोस्तों को देखने में मिलता है, उतनी खुशी मिली? देखा, जय हो, जय हो, एबाउट टर्न। ये तो आपने भगवान् का अपमान किया कि अपने बेटे, माँ-बाप, स्त्री-पति के बराबर भी भगवान् का स्थान नहीं माना और दर्शन करके एबाउट टर्न और तुरन्त जल्दी चलो।
तो तीर्थ का महत्व कुछ नहीं होता, उसके भीतर भगवद् भावना करने का महत्व होता है। भीतर भगवत् भावना जितनी करोगे, उतना ही लाभ मिलेगा। जितने लोग गए जगन्नाथ जी, जो वहां खड़े होकर मूर्ति के सामने आँसू बहाया, बस वो गया तीर्थ करने, बाकी कुछ नहीं। तो भगवान् के धाम, भगवान् के नाम, भगवान् के सन्त, ये सब एक हैं लेकिन भावना हो, बस ये शर्त है। उसी सन्त के प्रति नामपराध भी कमा लो और उसी सन्त के प्रति शरणागत होकर भगवत्प्राप्ति भी कर लो। इसी प्रकार भगवान् के अवतार काल में भी उन्हीं भगवान् को देखा, सब अलग-अलग लोगों ने, अलग-अलग प्रकार से देखा। जो सन्त थे उन्होंने भगवान् के रूप में देखा और सबने नहीं देखा, उन्हें वह फल नहीं मिला। तो हमको हमारी भावना का फल मिलेगा। अगर कोई तीर्थ में जाता है, जाय लेकिन वो किसलिए जाय ये सोच ले।
हमारा लक्ष्य है राधाकृष्ण का प्रेम पाना। ये वहां हुआ? नहीं हुआ। तो आप व्यर्थ में चले गए, तन को कष्ट पहुंचाया, मन को कष्ट पहुंचाया, धन को बिगाड़ा, कोई लाभ नहीं, नुकसान हुआ अलग। और अगर हमारी भक्ति बढ़ी राधा-कृष्ण में तो जहाँ चाहो, वहाँ जाओ। जिस मन्दिर में, जिस मयखाने में, जहाँ भी तुम्हारा मन लग जाए भगवान् में, वहाँ जाओ।
जप तप नियम योग निज धर्मा।श्रुति सम्भव नाना शुभ कर्मा ।।ज्ञान दया दम तीरथ मज्जन।जहँ लगि धर्म कहे श्रुति सज्जन।।आगम निगम पुरान अनेका।पढ़े सुने कर फल प्रभु एका।।
एक फल;
तव पद पंकज प्रीति निरंतर।
बस भगवान् में हमारा प्रेम बढ़ा, ठीक-ठीक तीर्थ आपने किया। प्रेम नहीं बढ़ा तो बेकार गया। प्रेम कम हो गया, वहाँ के लोगों के व्यवहार से और नुकसान हो गया और अपराध अर्जित हो गया। क्या करें, वहाँ का पुजारी ऐसा हमको तंग कर रहा था, वहाँ का वो। अरे! आप तो भगवान् के दर्शन करने गए थे? हाँ, गए तो थे, लेकिन वो ऐसे लोग मिल गए हमको वहाँ। तो हमारा मन, हमारे राधाकृष्ण और हमारे गुरु बस इतने के अंदर रहे। जहां कहीं भी इतने में लाभ मिले वहां जाओ। जहाँ वह लाभ नहीं मिला उसको नमस्ते।
तज्यो पिता प्रहलाद विभीषण बंधु भरत महतारी।
मां बाप का सबका त्याग कर देते हैं जहाँ भगवतप्रेम मे वृद्धि न हो तो तीर्थ का महत्व तभी है जब हमारा मन राधा कृष्ण मे अधिक लग जाय। ये ध्यान रखकर तीर्थ में जाना चाहिए।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हर साल होली का त्योहार फाल्गुन माह की शुक्लपक्ष में मनाया जाता है। होली के आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाते हैं। ये फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर होलिका दहन के दिन तक चलते हैं। होलाष्टक के 8 दिनों में शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। हालांकि फाल्गुन माह भगवान कृष्ण और शिव जी को समर्पित होता है, इसलिए होलाष्टक की अवधि में इनकी पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। पंडित विवेक गैरोला के मुताबिक, फाल्गुन माह में शंकर जी और कृष्ण जी की पूजा विशेष महत्व रखती है। विधिविधान से पूजा अर्चना करने पर मनोकामना पूरी होती है।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार यद्यपि होलाष्टक 8 दिन के होते हैं, किंतु इस बार त्रयोदशी तिथि का क्षय हो रहा है अर्थात त्रयोदशी तिथि घट रही है। इसलिए होलाष्टक सात दिन के ही होंगे। होलाष्टक शुभ क्यों नहीं होता है? इसके संबंध में दो पौराणिक कथाएं हैं, जो भक्त प्रह्लाद और कामदेव से जुड़ी हुई हैं।होलाष्टक अशुभ क्यों माना जाता है?1. भक्त प्रहलाद- पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को भगवान श्रीहरि की भक्ति से दूर करने के लिए आठ दिनों तक कठिन यातनाएं दी थीं। आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे वरदान प्राप्त था, वो भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर बैठी और जल गई थी लेकिन भक्त प्रहलाद बच गए थे।2. रति पति कामदेव- कहते हैं कि देवताओं के कहने पर कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने के लिए कई दिनों में कई तरह के प्रयास किए थे। तब भगवान शिव ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को कामदेव को भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उनके अपराध के लिए शिवजी से क्षमा मांगी, तब भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवन देने का आश्वासन दिया।ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक होली के दिन 28 मार्च को कन्या राशि में चंद्रमा का गोचर होगा। गुरु और शनि मकर राशि में होंगे। इसे शनि-गुरु की युति को विशेष योग माना जाता है। बृहस्पति की गणना नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह में होती है तो शनि को क्रूर ग्रहों में प्रमुख माना जाता है।
- फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाने वाला होली का त्योहार खुशियां और उत्साह लेकर आता है। रंगों के इस उत्सव के बारे में माना जाता है कि इस त्योहार पर सभी मनमुटाव दूर हो जाते हैं। वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि इस त्योहार से जुड़ी छोटी-छोटी बातों का ध्यान में रखा जाए तो अपने जीवन में खुशियों के नए रंग बिखेर सकते हैं।होली पर अपने घर या प्रतिष्ठान की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। होली के दिन घर के मुख्य द्वार पर भगवान श्रीगणेश की मूर्ति लगाएं और घर की पूर्व दिशा में उगते हुए सूरज का चित्र लगाएं। घर की दक्षिण दिशा में दौड़ते हुए घोड़ों का चित्र लगाएं। होली के अवसर पर घर में श्रीयंत्र लाएं और इसे अपने घर या दुकान में स्थापित करें। होली पर मोती शंख को घर में लाएं। अपने घर के मुख्य द्वार पर द्विमुखी दीपक जलाएं। होली पर किसी विरोधी द्वारा दी गई, लौंग या इलायची का सेवन न करें। अगर घर में लगी ध्वजा पुरानी हो गई है या उसका रंग फीका हो गया है तो होली पर इस ध्वजा को बदल दें। होलिका दहन घर के भीतर नहीं करना चाहिए। होलिका की राख को घर के चारों ओर छिड़कने से घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश नहीं होता है।होली पर काले रंग का प्रयोग न करें। होली के दिन गहरे रंग के कपड़े न पहनें। सफेद रंग सबसे अच्छा माना जाता है। यह रंग चंद्रमा का प्रतीक है और विन्रमता दर्शाता है। होली का रंग सबसे पहले अपने इष्टदेव और पितृगणों को लगाएं। त्योहार के दिन अपने घर के दरवाजे को अशोक की पत्तियों से बने तोरण से सजाएं। होली के दिन अपने घर के मुख्य द्वार पर गुलाल अवश्य छिड़कें। वास्तु के अनुसार होली पर रंग खेलने से स्वास्थ्य और यश में वृद्धि होती है।होली पर श्रीराधा-कृष्ण की सुंदर तस्वीर लाकर घर के मुख्य द्वार पर लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर रखें। होली खेलने से पहले गुलाबी रंग का गुलाल लेकर सबसे पहले राधा-कृष्ण को अर्पित करें। गुलाल के पैकेट में चांदी का सिक्का रखें, फिर उसे लाल कपड़े में रखकर कलावे से बांध दें। इससे धन लाभ होगा और रुका हुआ धन भी प्राप्त हो सकेगा। होली पर घर में आने वाले सभी मेहमानों को कुछ ना कुछ अवश्य ही खिलाकर वापस भेजें। ऐसा करने से भाग्य प्रबल होता है। होली के दिन हनुमान जी को चोला चढ़ाएं। शाम के समय हनुमान जी को केवड़े का इत्र एवं गुलाब की माला अर्पित करें।
- जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और तरक्की पाने के लिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार होना बहुत ही आवश्यक होता है। वास्तु में घर के निर्माण के बारे में तो विस्तृत जानकारी दी ही गई है। इसके साथ ही दैनिक जीवन में प्रयोग की जानें वाली वस्तुओं को किस प्रकार से रखा जाए इस बारे में भी नियम बताए गए हैं। वास्तु शास्त्र में सुख-समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार कुछ चीजों को जमीन पर रखने के लिए मना किया गया है। यदि आप इन चीजों को जमीन पर ऐसे ही रख देते हैं तो आपको अपने जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।शालिग्राम या शिवलिंगमंदिर आदि की सफाई करते समय कभी-कभी हम कुछ चीजों को जमीन पर रख देते हैं, लेकिन जानें-अनजानें की गई ये भूल जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। यदि मंदिर की साफ-सफाई कर रहे हैं तो कभी भूलवश भी शालीग्राम और शिवलिंग को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इन्हें किसी कपड़े में रखकर सही प्रकार से उचित स्थान पर रख दें।शंख, तुलसीदल, कपूर, चंदनवास्तु में पूजा-पाठ से जुड़ी चीजों का बहुत महत्व माना जाता है। कई बार हम पूजा करते समय ध्यान नहीं देते हैं और पूजा से जुड़े सामान को ऐसे ही जमीन पर रख देते हैं परंतु वास्तु के अनुसार शंख, दीप, धूप, यंत्र, पुष्प, तुलसीदल, कपूर, चंदन, जपमाला आदि किसी भी पूजा की चीज को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए।बहुमूल्य रत्नवास्तु के अनुसार कभी भी बहूमूल्य रत्न और धातु मोती, हीरा और सोना जैसी चीजों को कभी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। धातुओं और रत्नों का संबंध ग्रहों से होता है, यदि आप सीधे इन्हें जमीन पर रखते हैं तो आपको समस्याएं हो सकती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी आभूषण आदि को जमीन पर रखना शुभ नहीं माना जाता है।सीप और कौडिय़ांमां लक्ष्मी की पूजा में सीप और कौडिय़ों का विशेष महत्व माना गया है। यदि घर में ये दोनों चीजें हैं तो इन्हें कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए। माना जाता है कि इससे धन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
- भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना जाता है। 64 कलाओं में दक्ष श्रीकृष्ण ने हर क्षेत्र में अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी है। वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण के सैकड़ों रूप और रंग हैं, लेकिन आज हम उनके 13 रूपों की की चर्चा कर रहे हैं।1. बाल कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं पर हजारों किताबें लिखी जा चुकी हैं। श्रीमद्भागवत पुराण में उनकी बाल लीलाओं का वर्णन मिलता है। श्रीकृष्ण का बचपन गोकुल और वृंदावन में बीता। श्रीकृष्ण ने ताड़का, पूतना, शकटासुर आदि का बचपन में ही वध कर डाला था। बाल कृष्ण को 'माखन चोर' , बाल गोपाल, लड्डू गोपाल भी कहा जाता है।2. गोपाल कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण एक ग्वाले थे और वे गाय चराने जाते थे इसीलिए उन्हें 'गोपाल' भी कहा जाता है। ग्वाले को गोप और गवालन को गोपी कहा जाता है। हालांकि यह शब्द अनेकार्थी है। पुराणों में गोपी-कृष्ण लीला का वर्णन मिलता है। इसमें श्रीकृष्ण और गोपिकाओं के महारास का अद्भुत चित्रण है।3. रक्षक कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण ने किशोरावस्था में ही चाणूर और मुष्टिक जैसे खतरनाक मल्लों का वध किया था। उन्होंने इंद्र के प्रकोप से वृंदावन आदि ब्रज क्षेत्र के वासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत अपनी अंगुली पर उठाया और सभी ग्रामवासियों की रक्षा की थी।4. शिष्य कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण के गुरु सांदीपनी थे। उनका आश्रम अवंतिका (उज्जैन) में था। श्रीकृष्ण गुरु दीक्षा में सांदीपनी के मृत पुत्र को यमराज से मुक्त कराकर ले आए थे।5. सखा कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण के हजारों सखा थे। श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सुदामा, श्रीदामा, मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश, अर्जुन आदि का वर्णन मिलता है। श्रीकृष्ण की सखियां भी हजारों थीं। इनमें राधा, ललिता आदि 8 सखियोंं का वर्णन ज्यादा मिलता है।ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इन 8 सखियों के नाम इस प्रकार हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गईं सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। पंचाली यानी द्रौपदी भी श्रीकृष्ण की सखी थीं।6. पुराणों में गोपी-कृष्ण- : कृष्ण को चाहने वाली अनेक गोपियां और प्रेमिकाएं थीं। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और अति श्रांगारिक रूप दिया गया है। महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता, लेकिन पुराणों में मिलता है। उनकी प्रेमिका राधा, रुक्मिणी और ललिता की ज्यादा चर्चा होती है।7. कर्मयोगी कृष्ण : गीता में कर्मयोग का बहुत महत्व है। कृष्ण ने जो भी कार्य किया, उसे अपना कर्म समझा, अपने कार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग किया, क्योंकि वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण जीते थे और पूरी जिम्मेदारी के साथ उसका पालन करते थे।8. धर्मयोगी कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण ने ऋषि वेदव्यास के साथ मिलकर धर्म के लिए बहुत कार्य किया। भगवत गीता में उन्होंने कहा भी है कि जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं अवतार लूंगा।9. वीर कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में युद्ध नहीं लड़ा था। वे अर्जुन के सारथी थे। लेकिन उन्होंने कम से कम 10 युद्धों में भाग लिया था। उन्होंने चाणूर, मुष्टिक, कंस, जरासंध, कालयवन, अर्जुन, शंकर, नरकासुर, पौंड्रक और जाम्बवंत से भयंकर युद्ध किया था और विजयी हुए थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में वे अर्जुन के सारथी थे। हालांकि उन्हें 'रणछोड़ कृष्ण' भी कहा जाता है। इसलिए कि वे अपने सभी बंधु-बांधवों की रक्षा के लिए मथुरा छोड़कर द्वारिका चले गए थे। वे नहीं चाहते थे कि जरासंध से उनकी शत्रुता के कारण उनके कुल के लोग भी व्यर्थ का युद्ध करें।10. योगेश्वर कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण एक महायोगी थे। उनका शरीर बहुत ही लचीला था लेकिन वे अपनी इच्छानुसार उसे वज्र के समान बना लेते थे, साथ ही उनमें कई तरह की यौगिक शक्तियां थीं। कहा जाता है कि योग के बल पर ही उन्होंने मृत्युपर्यंत तक खुद को जवान बनाए रखा था।11. अवतारी कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार माने जाते हैं। उन्हें पूर्णावतार माना जाता है। महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को उन्होंने अपना विराट स्वरूप दिखाकर यह सिद्ध कर दिया था कि वे ही परमेश्वर हैं।12. राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण ने अपने संपूर्ण जीवन में कूटनीति के बल पर परिस्थितियों को अपने अनुसार ढालकर भविष्य का निर्माण किया था। उन्होंने महाभारत के युद्ध के दौरान वीर कर्ण के कवच और कुंडल दान में दिलवा दिए, वहीं उन्होंने दुर्योधन के संपूर्ण शरीर को वज्र के समान होने से रोक दिया। सबसे शक्तिशाली बर्बरीक का शीश मांग लिया तो दूसरी ओर उन्होंने घटोत्कच को सही समय पर युद्ध में उतारा। ऐसी सैकड़ों बातें हैं जिससे पता चलता है कि कूटनीति से उन्होंने संपूर्ण महाभारत की रचना की और पांडवों को जीत दिलाई।13. रिश्तों में खरे श्री कृष्ण : भगवान श्रीकृष्ण की प्रमुख 8 पत्नियां थीं- रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी। इसमें से उन्होंने रुक्मिणी को पटरानी का दर्जा दिया था। इन 8 पत्नियों से श्रीकृष्ण को लगभग 80 पुत्र हुए थे। कृष्ण की 3 बहनें थीं- एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं), सुभद्रा और द्रौपदी (मानस भगिनी)। कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। उसी तरह श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र साम्ब का विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से किया था।
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 229
साधक का प्रश्न ::: ये जो बड़े-बड़े महापुरुषों का इतिहास मिलता है, तुलसीदास हैं, सूरदास हैं, मीरा हैं, कि इतने आसक्त संसार में सूरदास, इतने आसक्त तुलसीदास, और एक सेकिण्ड में एबाउट टर्न हो गये। ये कैसे ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: ऐसा नहीं। तमाम जन्मों से साधना कर रखा था। थोड़ी सी कमी रह गई थी तो इस जन्म में वो पूरी हो गई। जिसकी पहले कमाई अधिक है उसका जल्दी आकर्षण हो जाता है भगवान् में, महापुरुष में। जिसका मन गन्दा है, पाप अधिक है वो देर में खिंचता है। बस इतना सा अन्तर है।
एक चुम्बक रख दो बीच में और चारों तरफ सुइयाँ खड़ी कर दो। एक सुई क्लीन, केवल लोहे की है। वो तुरन्त खिंच जाएगी। चुम्बक में आकर तुरन्त चिपक जायेगी। दूसरे में टेन पर्सेन्ट मिलावट है वो धीरे-धीरे चलेगी, एक में फिफ्टी पर्सेन्ट मिलावट है वो और धीरे-धीरे चलेगी। एक में नाइन्टी पर्सेन्ट मिलावट है वो अपनी जगह हिलेगी, चलेगी नहीं। ऐसे ही भगवान् और महापुरुष को देख कर, पाकर जो शुद्ध अन्तःकरण है, तुरन्त चिपक जाता है। शरणागत हो जाता है। जिसमें जितनी गन्दगी है वो उतनी ही देर में आकृष्ट होता है। लेकिन होना तो सबको है। अभ्यास करो। प्रैक्टिस करो। करना तो पड़ेगा। उसके बिना छुट्टी नहीं मिलना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 228
साधक का प्रश्न ::: क्या भक्तिमार्गी वर्णाश्रम-धर्म का त्याग कर सकता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भागवत कहती है,
आज्ञायैवं गुणान्दोषान्मयादिष्टानपि स्वकान्।धर्मान्सन्त्यज्य यः सर्वान्मां भजेत्स च सत्तमः।।(भागवत 11वाँ स्कंध)
अर्थात् भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि वर्णाश्रम व्यवस्था का विधि-निषेधात्मक विधान मेरा ही बनाया हुआ है, किन्तु जो उसे छोड़कर एकमात्र मेरा ही भजन करता है, उसे कार्यों के परित्याग का दोष नहीं लगता, एवं वह मेरा अत्यन्त प्रिय हो जाता है।
किन्तु यह स्मरण रहे कि यदि भगवदाराधना भी नहीं करता, एवं उन विधिनिषेधात्मक भगवद्विधान का भी परित्याग कर देता है, तो वह विधान के अनुसार ही दंडनीय होगा। यह नियम तो एक विशेष नियम है कि भगवान् के निमित्त उसने समस्त धर्मों का परित्याग किया है, अतएव यह सर्वथा क्षम्य एवं भगवत्प्रिय है। भागवत कहती है,
देवर्षिभूताप्तनृणां पितृणां न किङ्करो नायमृणी च राजन्।सर्वात्मनाः यः शरणं शरण्यं गतो मुकुन्दं परिहत्य कर्तम्।।(भागवत 11वाँ स्कंध)
अर्थात् जो विधिनिषेधात्मक धर्मों का परित्याग करके सर्वभाव से मेरी ही शरण हो जाता है, उसके लिए देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण, एवं अन्य भूतऋण, वेदऋण, मनुष्यऋणादि के बंधनों से छूटने का आवश्यक नियम लागू नहीं होता। वो इन ऋणों का दास नहीं माना जाता। यह भी एक विशेष नियम है किन्तु जो उच्छृंखलतावश शरणागत न होते हुये भी विधिनिषेधात्मक विधान का परित्याग करेगा, वह विधान के अनुसार ही दंडनीय होगा।
यदि साधक भक्त, जो एकमात्र श्रीकृष्ण के शरणागत है, कदाचित् कुछ पापकर्म कर भी जाता है तो अकारण करुण भगवान् श्रीकृष्ण उसके हृदय में प्रविष्ट होकर उस विकार को नष्ट कर देते हैं, एवं उसको फिर उठा लेते हैं।
किन्तु यदि सम्पूर्ण-भाव से शरणागत नहीं है, नाटकीय रूप से ही शरणागति का स्वांग रचता है, तब योगक्षेम वहन करने का विधान लागू नहीं होता।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - पेड़-पौधों का जीवन में बहुत महत्व है। पेड़ पौधों से ही पृथ्वी के समस्त जीवों को प्राणवायु प्राप्त होती है। वृक्ष के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। धार्मिक मान्यताओं और वास्तु में भी पेड़-पौधों को बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना गया है। सनातन धर्म में तुलसी और अन्य कई पेड़ों की पूजा भी की जाती है। वास्तु में कई ऐसे पौधों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में लगाना बहुत ही शुभ रहता है, लेकिन इन पौधों की भलि प्रकार से देखभाल करना बहुत आवश्यक होता है। तुलसी का पौधा मुरझाना या सूखना तो धन के लिए अच्छा नहीं ही माना जाता है। इसके अलावा भी कई पौधे हैं, जिनका सूखना भी हानि की ओर संकेत करता है।शमी का वृक्षशनि की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए शमी का पेड़ लगाना बहुत अच्छा माना जाता है। इसके साथ ही यह पेड़ भगवान शिव का भी प्रिय माना गया है। माना जाता है कि शमी का पेड़ सूखना या मुरझाना शनि की खराब स्थिति की ओर इशारा करता है। इससे आपको धन और कार्य संंबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यदि यह पौधा सूखने लगे तो इसे हटाकर दूसरा पौधा रोप देना चाहिए।मनीप्लांट का सूखनावास्तु में मनी प्लांट को धन वृद्धि करने वाला पौधा माना गया है। यह पौधा बेल की तरह बढ़ता है। माना जाता है कि यदि किसी के घर में मनीप्लांट खूब हरा-भरा रहता है तो उसके घर में धन, वैभव और समृद्धि बनी रहती है। मनीप्लांट की वृद्धि की तरह धन की भी वृद्धि होती है। मनी प्लांट का मुरझाना या सूखना धन के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। मान्यता है कि देखभाल करने पर भी यदि मनीप्लांट सूखने लगे तो यह आपके घर में धन की तंगी का संकेत देता है। इसके साथ ही मनी प्लांट लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की उसकी बेल हमेशा ऊपर की ओर बढऩी चाहिए।अशोक का पेड़वास्तु में अशोक के पेड़ को सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देने वाला माना गया है। अशोक का पेड़ घर के मुख्य दरवाजे पर लगाना बहुत शुभ रहता है। इसके अलावा इसके पत्ते मंदिर में रखना और तोरण बनाकर द्वार पर लगाना भी बहुत शुभ रहता है। अशोक का वृक्ष बहुत ही शुभ और मंगलकारी माना गया है। यदि अशोक का वृक्ष अचानक से सूखने लगे तो यह अच्छा नहीं माना जाता है। इससे आपके घर की सुख-शांति में बाधा आ सकती है।