- Home
- धर्म-अध्यात्म
- हिन्दू धर्मग्रंथों के लिए पेड़ पौधे बहुत आवश्यक होते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी पेड़ों का बहुत महत्व माना जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार कई ऐसे पेड़ पौधे बताए गए हैं जिन्हें घर में लगाने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है, तो वही कई पौधे ऐसे भी है जिन्हें घर में लगाने से नकारात्मकता बढ़ती है। इन पौधों को घर में लगाने से आपके घर में अशांति, और दरिद्रता का वास होने लगता है। कहा जाता है कि कुछ पौधों को कभी घर में नहीं लगाना चाहिए अन्यथा आपका सौभाग्य भी दुर्भाग्य में बदल सकता है।इमली का पौधावास्तुशास्त्र के अनुसार घर के अंदर कभी भी इमली का पौधा नहीं लगाना चाहिए। घर के आस-पास भी इमली का पौधा होना शुभ नहीं माना जाता है। जिन घरों के पास या घर में इमली का पौधा होता है, वहां रहने वाले लोगों के जीवन में विभिन्न समस्याएं आने लगती हैं, परिवार के सदस्यों को बीमारियों का सामना करना पड़ता है। परिवार के सदस्यों की तरक्की में भी रूकावट आने लगती हैं।खजूर का पेड़वैसे तो खजूर का पौधा लोग घरों में नहीं लगाते हैं। यदि किसी का घर बड़ा या बगीचा बना हुआ है तो लोग घर में यह पेड़ लगा लेते हैं। वास्तु के अनुसार खजूर का पेड़ लगाने से धन का अत्याधिक व्यय होने लगता है। घर में पैसा नहीं टिकता और धन की आवक में रूकावट आने लगती है।बेरी का पौधाघर में या आस-पास बेरी का पेड़ होना बिलकुल भी शुभ नहीं माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार बेरी के पौधे को सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव देने वाला माना गया है। यदि घर के आसपास बेर का पेड़ लगा हो तो हटवा देना चाहिए अन्यथा यह आपके घर में दरिद्रता आने लगती है। इसके माना जाता है कि इस पेड़ में नकारात्मक शक्तियों का वास भी होता है।दूध निकलने वाले पौधेवास्तु के अनुसार कभी भी ऐसे पेड़ पौधे घर में नहीं लगाने चाहिए जिनसे दूध जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता हो। इन पौधो को घर में लगाने से नकारात्मकता आती है और घर में अशांति का वातावरण बनता है। इसके अलावा संतान बाधा भी हो सकती है।कांटेदार वृक्षवास्तु के अनुसार घर में कभी भी कांटेदार वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। बबूल का वृक्ष घर में या आसा-पास होना शुभ नहीं माना जाता है। माना जाता है कांटेदार पौधे लगाने से घर में अशांति के साथ दरिद्रता भी आने लगती हैं मां लक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 186
(गौरांग महाप्रभु जी के शिक्षाष्टक में दीनता और सहनशीलता साधक के दो महत्वपूर्ण गुण बताये गये। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इन्हीं दो गुणों के संबंध में साधक समुदाय को संबोधित कर रहे हैं...)
तृण से भी दीन अरु गोविंद राधे।तरु से सहिष्णु निज मन को बना दे।।(स्वरचित दोहा)
तृण से बढ़कर दीन बनो। वृक्ष से बढ़कर सहिष्णु बनो, देखो घास के ऊपर पैर रख दो, दूब वगैरह तो वो नीचे हो जाती है और जब पैर हटा लो तो फिर अपना बेचारी नॉर्मल बन जाती है। पेड़ के ऊपर फल लगे हैं आप पत्थर मारते हैं तो फल नीचे गिरता है। पेड़ गुस्सा नहीं करता आपको फल देता है। आपके पत्थर का जवाब फल से, इतना सहनशील है वृक्ष।
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
वो स्वयं फल नहीं खाता अपना। आपको खिलाता है। ये सबक हम लोग याद नहीं करते। कुछ परवाह नहीं करते, वन पर्सेन्ट भी नहीं करते। सब के सब। अहंकार से भरे हम लोग। गुरु भी कोई बात कह दे अगर तुमने ऐसी गलती की। नहीं महाराज जी। तुरन्त जवाब तड़ाक से। जैसे चपत मार दो किसी को, ऐसे। गुरु को भी जवाब दे देते हो। तुम बेवकूफ हो जो हमको बता रहे हो दोषी। गलत। मैंने गलत काम कभी नहीं किया। मैं महापुरुषों से भी आगे हूँ।
इतना बिगड़ा हुआ है मन। एक वाक्य नहीं सह सकते गुरु का। तुरन्त जवाब। और फिर आप लोग जब ये अभ्यास ही नहीं करेंगे, तो कृपालु क्या करेंगे? पता नहीं किस बात का अहंकार है। शरीर गन्दा, मन पापात्मा से युक्त, क्या चीज है आप लोगों के पास, जिसका अहंकार हो। अरे अगर सरस्वती अहंकार करें बुद्धि देवी की, रावण अहंकार करे, इन्द्र अहंकार करे, कुबेर अहंकार करे, अग्नि, वायु अहंकार करे, तो चलो ठीक है। उनके पास इतनी बड़ी पॉवर है। तुम्हारे पास क्या है? ऐ हमको ऐसा कह दिया। ओह कह दिया। बना दिया तुमको क्या खराब?? कौन सी खराबी किसमें नहीं है। अकेले में सोचो कमरा बन्द करके। जब तक माया के अण्डर में है जीव तब तक कौन सी खराबी उसमें नहीं है। कामनायें नहीं है कि क्रोध नहीं है, कि लोभ नहीं है, कि मोह नहीं है, कौन सा दोष नहीं है? अनन्त दोष भरे हैं उसमें से एक दोष कोई कह दे, क्यों फीलिंग होती है? अपना सर्वनाश क्यों करता है साधक? क्योंकि फील करोगे तो मन गन्दा होगा। उससे हानि होगी शरीर को भी। क्रोध से। ये साइंस कहती है। तुम आत्मा हो।
रूप गोस्वामी ने एक ग्रन्थ लिखा 'भक्तिरसामृत सिन्धु' । जब जीव गोस्वामी गये उनसे मिलने तो एक काशी के विद्वान आये थे उन्होंने रूप गोस्वामी के एक श्लोक में गलती निकाली। तो जीव गोस्वामी को बड़ा क्रोध आया। और उन्होंने यमुना के किनारे चैलेंज करके, उसको बिठा कर दिन भर शास्त्रार्थ करके उसको हरा दिया कि हमारे गुरु जी के श्लोक में तुम गलती निकालोगे? और आकर रूप गोस्वामी से कहते हैं गुरुजी! एक ऐसा विद्वान आया था काशी का, आपके श्लोक में गलती निकाला। उससे आज बिना खाये पिये दिन भर भिड़ गया मैं और उसको परास्त करके तब आ रहा हूँ।
रूप गोस्वामी ने कहा जीव तुम भाग जाओ ब्रज के बाहर, तुम ब्रज में रहने लायक नहीं हो। तुमको क्रोध के ऊपर क्रोध करना चाहिये था, उसके ऊपर क्रोध क्यों किया? उसमें तो तुम्हारे श्रीकृष्ण बैठे हैं। उसको दु:ख दिया और हमसे आकर प्रशंसा कर रहे हो अपनी। तुम्हारा अहंकार बढ़ गया। ये और नुकसान हुआ तुम्हारा। हम रोज पढ़ाते हैं दीन बनो, दीन बनो। और तुम ये कमाई करके आये हो और गुरु जी के आगे अपनी प्रशंसा कर रहे हो कि आप बधाई दें । अरे श्लोक गलत है होने दे।
तो ये दीनता और सहनशीलता ये भक्ति का आधार है। इसको सोचो रियलाइज करो, बार बार सोचो, बार बार रियलाइज करो और अभ्यास करो रोज, आज मैंने कहाँ कहाँ क्रोध किया? चार जगह किया, कल नहीं होने देंगे। यही सोचेंगे कि सारे दोष तो हैं मेरे अन्दर। कौन सा दोष नहीं है। ये अगर हमको कहता है तुम चार सौ बीस हो, बिल्कुल ठीक कहता है। हम दिन भर क्या कर रहे हैं। चार सौ बीस तो कर रहे हैं कि भगवान हमारा है। उनको छोड़ करके संसार को अपना मान करके हम संसार में सुख ढूँढ रहे हैं। ये क्या नहीं है, क्या पाप नहीं है, ये सोचना चाहिये। सोचो, सोचो मानव देह बीता जा रहा है कब सोचोगे, कब करोगे?? और आप लोगों में से तो बहुत से लोग घर छोड़ कर आये हो, परमार्थ बनाने को और यहाँ भी वही हाल।
एक व्यक्ति को दोष बताया जाता है। तो वो सफाई देने आता है। नहीं, बात ये है कि... झूठ। और अनेक पाप एक पाप को बचाने के लिये करता है। भगवान के धाम में, गुरु के धाम में भी ऐसे पाप करना, ये क्यों? अरे फैक्ट को मान लो न। और तुम्हारे न मानने से तुमको कोई महापुरुष तो मान नहीं लेगा। अगर तुम जिद करके बहस करते हो अपना नुकसान तो करोगे ही और दूसरे का भी करोगे। उसने ऐसा किया। हर एक का यही लक्ष्य उसकी गलती है, मेरी नहीं है। मैं गलती नहीं कर सकता, गुरुजी आप बेवकूफ हैं। भगवान अन्दर बैठा है, वो भी बेवकूफ है। सब बेवकूफ हैं मैं बिल्कुल ठीक हूँ। अरे कहाँ चले जा रहे हो? ये दिन रात तुमको भगवान की कृपा से इतना तत्त्वज्ञान कराया जाता है और तुम तुले हो सर्वनाश करने में कि मरने के बाद तो हमको कुत्ते बिल्ली गधे की योनियों में जाना ही है। अनन्त कोटि जगद्गुरु मिलें, भगवान मिलें, हम नहीं सुनेंगे किसी की, अपना सुधार नहीं करेंगे। अभ्यास नहीं करेंगे ये जिद्द है हम लोगों की। इसको रियलाइज करो, सोचो, बार बार सोचो और अभ्यास करो, दस दिन में तुम अपने को शान्त महसूस करोगे, जब इन दोषों को छोड़ोगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - नई दिल्ली। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार मिथुन व कन्या राशि के स्वामी बुध को ज्योतिष शास्त्र में शुभ ग्रह माना जाता है। बुध ग्रह 4 फरवरी 2021 को वक्री होकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। बुध का राशि परिवर्तन रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगा। बुध ग्रह को बुद्धि, संचार, भाषण, शिक्षा और स्वभाव आदि का कारक माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, हर ग्रह समयानुसार अपनी राशि बदलते रहते हैं। कुछ सीधे तो कुछ विपरीत अवस्था में चलते हैं। ज्योतिष शास्त्र में विपरीत दिशा में ग्रहों के चलने को वक्री व सीधे अवस्था को मार्गी कहा जाता है।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, बुध जिस भी ग्रह के साथ युति करता है, उस ग्रह के अनुसार ही व्यवहार करने लगता है। बुध, सूर्य का सबसे करीबी ग्रह है और अपनी मार्गी गति में यह 28 दिनों के बाद एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।जानिए ज्योतिषार्यों के अनुसार मानव जीवन पर क्या असर होगा...ज्योतिष के अनुसार, बुध के कुंडली में कमजोर होने पर अशुभ व विपरीत परिणामों की प्राप्ति होती है। इससे जातक को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वाणी कठोर हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नौ ग्रह में बुध, शनि, शुक्र और गुरू समय-समय पर वक्री अवस्था में गोचर करते हैं। राहु और केतु ऐसे दो ग्रह हैं जो लगभग वक्री ही रहते हैं। सूर्य और चंद्रमा वक्री नहीं होते हैं। जबकि बुध भाव के हिसाब से जातक को वक्री होने पर परिणाम देता है।1. ज्योतिष शास्त्र में पहले भाव में वक्री बुध का विराजमान होना शुभ नहीं माना जाता है। ज्योतिषों की मानें तो इस दौरान जातक गलत फैसले ले लेता है, जिससे नुकसान उठाना पड़ता है।2. दूसरे भाव में बुध का वक्री होना जातक को बुद्धिमान बनाता है। जातक हर फैसला सोच-समझकर लेता है।3. कुंडली के तीसरे भाव में वक्री बुध का होना जातक को साहसी बनाता है। आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। जोखिम भरे कार्यों में जातक रूचि दिखाता है।4. बुध का वक्री होकर कुंडली के चौथे भाव भाव में विराजमान होना जातक को धन लाभ कराता है।5. पांचवें भाव में वक्री बुध का विराजना शुभ माना जाता है। परिवार में खुशहाली आती है और जीवनसाथी संग रिश्ता मजबूत होता है।6. छठवें भाव में अगर वक्री बुध बैठा हो तो जातक को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। जातक जल्दी किसी पर भरोसा नहीं कर पाता है।7. सातवें भाव में बुध का वक्री होना जीवनसाथी का साथ दिलाता है। ऐसे जातक को खूबसूरत जीवनसाथी मिलता है।8. आठवें भाव में वक्री बुध का होना जातक को धर्म के प्रति उदार बनाता है। जातक आध्यात्म के क्षेत्र में रूचि लेता है।9. नवम भाव में वक्री बुध का बैठना जातक को तर्क संपन्न बनाता है। जातक विवेकवान होते हैं।10. दशम भाव में बुध का वक्री होना जातक को पैतृक संपत्ति में लाभ दिलवाता है।11. एकादश भाव में बुध के वक्री अवस्था में बैठना जातक को लंबी उम्र देता है। जातक जीवन को सुखमय बिताता है।12. द्वादश भाव में वक्री बुध का विराजना जातकों निर्भिक बनाता है। जातक के अंदर किसी का भी भय नहीं रहता है।
- फरवरी माह में कई ऐसे व्रत एवं त्योहार हैं जो श्रद्धा पूर्वक मनाए जाते हैं। पंडित जोखन पांडेय शास्त्री के अनुसार फरवरी माह में वसंत पंचमी, मौनी अमावस्या, माघ पूर्णिमा, भौम प्रदोष व्रत, कुंभ संक्रांति, जया एकादशी सहित कई व्रत एवं त्योहार मनाए जाएंगे। आइए जानते हैं फरवरी माह में कौन-कौन से व्रत एवं त्यौहार मनाए जाएंगे।07 फरवरीषटतिला एकादशी- षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।09 फरवरीभौम प्रदोष व्रत- इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है।10 फरवरीमासिक शिवरात्रि - मासिक शिवरात्रि के दिन व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा की जाती है।11 फरवरीमौनी अमावस्या- माघ माह की अमावस्या तिथि को मोनी अमावस्या मनाई जाती है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।12 फरवरीमाघ गुप्त नवरात्रि- माघ गुप्त नवरात्रि का आरंभ 12 फरवरी को होगा। सनातन पंचांग के अनुसार कुंभ संक्रांति 11वें महीने की शुरुआत है।15 फरवरीगणेश जयंती - 15 फरवरी को विनायक चतुर्थी है। इस दिन श्री गणेश का पूजन किया जाता है।16 फरवरीवसंत पंचमी- एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। इस दिन सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन विशेषकर पीले वस्त्र धारण करते हैं।19 फरवरीअचला सप्तमी, शिवाजी जयंती- माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यह पर्व मनाए जाते हैं।20 फरवरीभीष्म अष्टमी- भीष्म अष्टमी का पर्व महाभारत के महान पात्र भीष्म पितामह की याद में मनाया जाता है। इस दिन भीष्म अष्टमी का व्रत रखते हैं।21 फरवरीमाघ गुप्त नवरात्रि समापन- माघ गुप्त नवरात्रि का समापन 21 फरवरी को होगा।23 फरवरीजया एकादशी- माघ मास की शुक्लपक्ष एकादशी को जया एकादशी कहा गया है।24 फरवरीप्रदोष व्रत- प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है।27 फरवरीमाघ पूर्णिमा व गुरु रविदास जयंती- इस दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व होता है। पूर्णिमा के दिन दान, पुण्य शुभ फलकारी माना जाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 185
(मृत्यु अटल है और सबसे खतरे की बात यह कि यह कब आ जायेगी, कोई नहीं जानता! अतः साधक को सावधान करते हुये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज शीघ्र ही अपने परमार्थ के लिये जुट जाने के लिये आग्रह कर रहे हैं...)
अरे मनुष्यो ! कल से भजूँगा, कल से भजूँगा मत कहो, मत सोचो। क्यों...? अरे! वह जो तुम्हारी खोपड़ी पर सवार है काल, यमराज। क्या पता कल के पहले ही टिकट कट जाये रात ही को। ऐसे रोज उदाहरण हमारे विश्व में हो रहे हैं, कि रात को एक आदमी सोया और सदा को सो गया। न दर्द हुआ, न चिल्लाया, न घर वालों को मालूम हुआ। घर वाले समझ रहे हैं सो रहा है, आज बड़ी देर तक सोता रहा, अरे भई जगा दो। जगाने गये तो मालूम हुआ सदा को सो गया, इसका टिकट कट गया।
एक माँ के पेट में ही मर गया, एक पैदा होते ही तुरंत मर गया, एक 25 साल का आई. ए. एस. करके फ्लाइट से घर आ रहा था, सब घर वाले खुश और पता चला रास्ते में ही प्लेन क्रैश में मर गया। बाप ले जा रहा है बेटे को जलाने, पर बाप को होश नहीं है कि मुझको भी जाना है। देख तो रहे हैं हम रोज़ आसपास कि क्या हो रहा है? लेकिन भगवान को याद करने का भजन करने का टाईम किसी के पास नहीं है। प्लानिंग बन रही हैं बड़ी-बड़ी, पल का भरोसा नहीं और कोई पंचवर्षीय योजना, कोई दस वर्षीय योजना बना रहा है।
अरे! बिगड़ी बना लो जिसके लिए ये मानव देह भगवान ने तुमको कृपावश दिया है। ये नाती-पोते, ये बेटा-बेटी कोई तुम्हारे नहीं है जिनमें तुम उलझे हुए हो रात दिन। ये सब तो स्वार्थ आधारित रिश्ते हैं, कोई किसी का नहीं है यहाँ। इसलिये कल से भजूँगा यह मत कहो, मत सोचो, तुरंत करो... उधार मत करो। उधार करने की आदत हमारी तमाम जन्मों से है और इसलिये हम अनादिकाल से अब तक चौरासी लाख में घूम रहें है एक कारण।
अनंत संत मिले समझाया हम समझे लेकिन उधार कर दिया। करेंगे... करेंगे। तन मन धन ये तीन का उपयोग करना था तीनों के लिये हमने उधार कर दिया। करेंगे, बुढ़ापे में कर लेंगे अभी इतनी जल्दी भी क्या है। मन तो और बिगड़ा हुआ है। धन से तो इतना प्यार है कि कोई भी परमार्थ के काम में खर्च करने में भी बुद्धि लगाते हैं - करें, कि न करें? कर दो भगवान के निमित्त। अरे! रहने दो... अरे! नहीं कर दो, अरे! नहीं क्यों निकालो जेब से, अरे! चलो अब कर ही देते हैं। नहीं अब कल करेंगे। ये हम लोगों का हाल है, सोचियेगा अकेले में। यही सब होता है।
तो उधार करना बन्द करना है। मानव देह क्यों मिला है, इस पर विचार करो, संभलो और अपनी बिगड़ी अभी भी बना लो, नहीं तो करोड़ों वर्षों तक यूँ ही 84 लाख में भटकते रहोगे। ये अवसर भी हाथ से चूक जाएगा। संसार में व्यवहार करो, मन भगवान को दे दो। अभी से भजन करो, भक्ति करो,संसार से मन हटाओ,भगवान में लगाओ। उधार करना बंद करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - घर में मौजूद ऊर्जा का असर हमारे सपनों पर भी पड़ता है। नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होने से सपने भी नकारात्मकता दर्शाते हुए नजर आते हैं। माना जाता है कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही अच्छे या बुरे स्वपन देखता है। अशुभ सपने अगर लगातार आ रहे हैं तो घर का वास्तु ठीक करना आवश्यक हो जाता है। वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाया जा सकता है और डरावने स्वपन से मुक्ति भी मिल सकती है।हनुमान जी सभी प्रकार का अनिष्ट दूर करने वाले हैं। अगर लगातार डरावने स्वपन आते हैं तो हनुमानजी को याद करें। घर में सुंदरकांड का पाठ करें। रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें। भयानक स्वप्न आए तो ? नम: शिवाय का जप करते हुए सो जाएं। लगातार बुरे स्वपन आएं तो प्रात: उठकर बिना किसी से कुछ बोले तुलसी के पौधे से पूरा स्वप्न कह डालें। बच्चों को अगर डरावने स्वप्न परेशान करते हैं तो उनके सिरहाने पर चाकू रख लें। यह भी माना जाता है कि बेड के सिरहाने पर जूते या चप्पल रखे हों तो भी डरावने स्वप्न आ सकते हैं। गहरे रंग की चादर न ओढ़ें। रात में झूठा मुंह कर सोने से भी डरावने सपने आते हैं। सपने में नदी, झरना या पानी दिखाई दे तो यह पितृ दोष की वजह से हो सकता है। घर में नियमित गंगाजल का छिड़काव करें। अगर बुरा स्वप्न देखकर नींद खुल जाए तो फिर से सो जाना चाहिए। घर में हवन करने के बाद इससे मुक्ति पाई जा सकती है। बुरे स्वप्न किसी को नहीं बताने चाहिए। नियमित रूप से अगर सूर्यदेव की आराधना की जाए तो भी बुरे स्वप्न से निजात पाई जा सकती है। बुरे स्वप्नों से मुक्ति पाने के लिए सुबह उठने के बाद गायत्री मंत्र का जाप करें। जरूरतमंद व्यक्ति को दान दें।
- वास्तु शास्त्र में कई चीजों के बारे में बताया गया है। वास्तु शास्त्र में नौकरी, बिजनेस के अलावा पूजा-पाठ की चीजों के बारे में जानकारी दी गई है। वास्तु शास्त्र में पूजा पाठ से जुड़े ऐसे कई नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना शुभ फलकारी होता है। वास्तु शास्त्र में पूजा-पाठ से जुड़ी ऐसी कई चीजों के बारे में बताया गया है, जिन्हें जमीन पर रखना अपशगुन माना गया है।1. शालिग्राम या शिवलिंग- शास्त्रों में शालिग्राम को भगवान विष्णु का और शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। इसलिए इन्हें कभी भी भूलकर जमीन में नहीं रखना चाहिए। मंदिर की साफ-सफाई के दौरान लोगों से ये गलती होने की आशंका रहती है। ऐसे में सफाई करते समय इन्हें किसी कपड़े में रखकर किसी स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए।2. धूप, दीप, शंख और पुष्प- भगवत गीता के अनुसार, शंख, दीप, धूप, यंत्र, पुष्प, तुलसीदल, कपूर, चंदन, जपमाला आदि जैसी पूजापाठ की चीजों को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। कहते हैं कि इन सभी चीजों का प्रयोग पूजा में किया जाता है, इसलिए इन्हें कभी जमीन पर सीधे नहीं रखना चाहिए।3. रत्न- शास्त्रों के अनुसार, मोती, हीरा और सोना जैसे बहुमूल्य रत्न को कभी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। कहते हैं कि धातु का संबंध किसी न किसी ग्रह से होता है। ऐसे में इन्हें सीधे जमीन पर रखना अपशगुन माना जाता है। अगर आपके पास इनसे जुड़ा कोई भी गहना है तो उसे सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए।4. सीप- कहते हैं कि सीप की उत्पत्ति समुद्र से होने के कारण इसका संबंध लक्ष्मी जी से माना जाता है। इस कारण इसे सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। मां लक्ष्मी की पूजा में सीप और कौड़ी का विशेष महत्व होता है। इसलिए इन्हें जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
- ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, ग्रहों की चाल का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन पर पड़ता है। यह प्रभाव ग्रहों की स्थिति के अनुसार, शुभ-अशुभ दोनों रूप में पड़ सकता है। फरवरी माह में तीन ग्रह अपनी राशि बदल रहे हैं। इन तीनों ग्रहों का प्रभाव आपके जीवन पर पड़ सकता है। ज्योतिष गणना के अनुसार फरवरी माह में सूर्य, शुक्र और मंगल ग्रह का राशि परिवर्तन होने जा रहा है।सूर्य का कुंभ राशि में गोचरइस महीने 12 फरवरी को सूर्य देव मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे और 14 मार्च 2021 तक इस राशि में स्थित रहेंगे। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों का प्रधान माना जाता है। यह आत्मा, पिता, यश, मान सम्मान और शीर्ष पद का कारक है। सूर्य देव कुंभ राशि के जातकों को मान-सम्मान के साथ धन लाभ भी करा सकते हैं। सूर्य ग्रह के गोचर से इस राशि के जातकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और सरकारी कामकाज में सफलता मिलेगी। इस अवधि में आपके रूके हुए कार्य पूर्ण होंगे। लेकिन आपको अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना होगा।शुक्र देव करेंगे कुंभ राशि में प्रवेशज्योतिष गणना के अनुसार, शुक्र ग्रह 21 फरवरी 2021 को मकर राशि से कुम्भ राशि में प्रवेश करेंगे और 17 मार्च 2021 तक यहां विराजमान होंगे। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह कला, सौंदर्यता, धन एवं समस्त प्रकार के भौतिक सुखों का कारक है। शुक्र का यह गोचर कुंभ राशि वालों के लिए शुभ फलकारी साबित हो सकता है। इस अवधि में आपको यह गोचर कई मामलों में शुभ फल प्रदान कर सकता है। इस दौरान धन के मामले में अच्छे अवसर प्राप्त हो सकते हैं। साथ ही जॉब और करियर के लिए भी यह गोचर अच्छा फल दे सकता है।वृष राशि में आएंगे मंगलफरवरी का माह मंगल ग्रह भी राशि परिवर्तन करेंगे। इस महीने की 22 तारीख को मंगल देव मेष राशि से वृष राशि में आएंगे। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को ग्रहों का सेनापति माना गया है। यह क्रोध, ऊर्जा, सैन्य शक्ति, युद्ध एवं रक्त वर्ण का कारक माना जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, वृष राशि में मंगल का यह गोचर कुछ मामलों में शुभ फल प्रदान कर सकता है तो कुछ मामलों में अशुभ फलकारी साबित हो सकता है। गोचर के कारण इस राशि के जातकों के साहस में वृद्धि होगी। जॉब और करियर के क्षेत्र में मंगल का प्रभाव अनुकूल होगा। धन लाभ भी प्राप्त होगा। भूमि संबंधी चीजों से लाभ हो सकता है। परंतु वैवाहिक जीवन में थोड़ी परेशानियां आ सकती हैं। अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें और जल्दबाजी करने से बचें।
- पेड़-पौधों हमारे जीवन का आधार हैं। पेड़ पौधों से प्राप्त होने वाली शुद्ध वायु से ही पृथ्वी पर जीवन है। पेड़ पौधे पर्यावरण को तो शुद्ध रखते ही हैं, साथ ही ये हमारे ऊपर सकारात्मक प्रभाव भी डालते हैं। ज्योतिष में ऐसे ही खास पौधों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में लगाने से रोग-शोक से मुक्ति तो मिलती है। ये पौधे आपके घर में धन-समृद्धि बढ़ाते हैं। इन पौधों को घर में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आप इन पौधों बगीचे या खाली स्थान में लगा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि कौन से हैं वे पेड़- पौधे...अशोक का पेड़अशोक के पेड़ के बारे में ज्यादातर लोगों को पता होगा। अशोक का पेड़ घर में लगाना बहुत शुभ माना जाता है। लोग दरवाजों के दोनों ओर भी अशोक के पेड़ लगाते हैं जो बहुत शुभ रहते हैं। यदि आपके घर में बगीचा है और पेड़ पौधे लगाने के पर्याप्त स्थान है तो थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अशोक के कई पौधे लगाना चाहिए। अशोक का पेड़ घर में लगाने से घर से शोक और दुख दूर रहता है। आपके घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इसके अलावा द्वार पर अशोक के पत्तों की तोरण लगाना भी बहुत शुभ रहता है।आंवले का पेड़स्वास्थ्य की दृष्टि से तो आवंला लाभकारी है ही, इसके अलावा हिंदू धर्म में आंवले के पौधे की पूजा भी की जाती है। आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विशेष प्रावधान माना गया है। मान्यता है कि आंवले के पौधे की जड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। यह पौधा बहुत ही शुभ माना गया है। मान्यता है कि इसे घर में लगाने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी आपके घर में हमेशा बनी रहती है। आंवले के पौधे की देखभाल नियमित रूप से करनी चाहिए। उसमें समय समय पर खाद, पानी देना चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि जिस तरह से ये पौधा फलता-फूलता हैं, आपके घर में सुख और धन बढ़ता जाता है।पारिजातपारिजात यानी हरसिंगार का पौधा, ये पौधा घर या आस-पास में लगाना अति शुभ माना गया है। मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए यह पौधा बहुत अच्छा माना गया है। मां लक्ष्मी की पूजा में परिजात के फूलों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि लक्ष्मी पूजा में केवल उन्हीं फूलों का प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं पेड़ से टूटे हो। परिजात के पौधे को देवतुल्य माना गया है माना जाता है कि समुद्र मंथन में 11 वां जो रत्न प्राप्त हुआ था, वो पारिजात वृक्ष ही है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और घर में समृद्धि आती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 184
(स्वरचित दो दोहे की व्याख्या के माध्यम से आचार्य श्री एक महत्वपूर्ण रहस्य को समझा रहे हैं...)
जैसे जलयान खग गोविंद राधे।उड़ि थकि जलयान आवे बता दे।।
जीव जग सुख नहिं गोविंद राधे।पावे तब आवे हरि शरण बता दे।।
समुद्र के जहाज पर कोई पक्षी बैठा था और जहाज़ चल पड़ा और वो पचासों सैकड़ों मील चला गया जहाज़, तो पक्षी सोच रहा है मैं खाऊँ पीऊँ क्या? ये तो पानी ही पानी है चारों ओर, और पानी में खड़ा भी नहीं हो सकता और समुद्र में कब तक बैठा रहूँगा, ऐसे जहाज़ पे से उड़ा और बहुत दूर तक चला गया। जब थक गया, उसने कहा अब क्या करें? खड़े होने तक की जगह नहीं हैं, फिर आ कर के जहाज़ पर बैठ गया और कोई गति नहीं बेचारे की, चारों ओर पानी ही पानी है, कहीं स्थल नहीं, पेड़ नहीं, खाने-पीने का सामान नहीं।
उसी प्रकार ये जीव भगवान से विमुख होकर उड़ा, 84 लाख योनियों में घूमा, थक गया, कहीं सुख नहीं मिला तो फिर भगवान की शरण में गया कि संसार में कहीं सुख नहीं है, हमको धोखा था, अब समझ में आ गया। पहले संसार में सुख ढूंढता है, युवावस्था आयी ब्याह किया, बीबी पति हुआ यहाँ सुख मिल जायेगा, वहाँ भी चप्पल-जूते मिले, कोई सुख नहीं मिला। आगे बाल बच्चे हुए, इनसे सुख मिल जायेगा, खूब लाड़ प्यार किया बच्चों को, बड़े होकर वो भी नमस्ते करके चले गए, किसी ने साथ नहीं दिया, अब भगवान की शरण में आया।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 183
(मन ही किसी भी कर्म का कर्ता कहा गया है। परन्तु यह मन चंचल है। मन के प्रति क्या दृष्टिकोण होने से क्या परिणाम होते हैं, जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज नीचे प्रवचन में समझा रहे हैं..)
साधना से हिम्मत नहीं हारना चाहिये। ये मन दुश्मन है अनादिकाल का दुश्मन है। इससे दुश्मनी से ही पेश आओ दोस्ती न करो।
न कुर्यात् कर्हिचित्सख्यं मनसि ह्यनवस्थिते। (भाग. 5-6-3)
भगवान् ऋषभ ने कहा था मन से सख्य न करो, दोस्ती न करो। ये मन तुमको लाड़ में लाकर, दोस्त बनाकर चौरासी लाख में घुमा रहा है। यह देख लो, ये संसार, ये खा लो, ये आँख से देखो, ये कान से सुनो, ये नाक से, ये संसार का विषय दे देकर भगवान् से दूर कर रहा है। अब इसकी न सुनो। डट जाओ। हठ करो। पहले पहल हठ करना होगा। दुश्मन मन के साथ तुम भी दुश्मनी पर तुल जाओ। ये जो कहता है वो नहीं करेंगे। ये लापरवाही सिखाता है, संसार की ओर ले जाता है। वो नहीं होने देंगे। हमारी भी जिद्द है। अरे करके देख लो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है।
जाते कछु निज स्वारथ होई। तापर ममता करे सब कोई।
ये सिद्धान्त है। तो तुम्हारा माने आत्मा का स्वार्थ हरि गुरु से ही है, 'भी' नहीं। इसलिए मन का अटैचमेन्ट वहीं हो, संसार में ड्यूटी करो। इसलिए रूपध्यान बनाना है, बार-बार बनाना है। हारना नहीं है, हराना है मन को, कमर कस लो। अबकी बार आप लोग बस यही करें, ये हमारा बार-बार निवेदन है। फिर देखें, आप कितनी जल्दी भगवान् के पास पहुँचते है। और कितना आपको सुख मिलता है रूपध्यान में। फिर आपके आँसू आयेंगे, कम्प होगा, रोमांच होगा, आनन्द का आभास होगा। आभास भी होने लग जाये तो फिर तो आप जम्प करके चले जायेंगे आगे। फिर दूरी नहीं है, देरी नहीं है। ये देरी और दूरी इसलिए है, कि हम मन के गुलाम बने हुये हैं। बस इतना सा हमारा निवेदन हर समय ध्यान में रखियेगा, भूल न जाइयेगा। हाँ।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - शनिवार का दिन न्याय के देवता भगवान शनिदेव को समर्पित किया जाता है। शनि की शुभ दृष्टि से जहां व्यक्ति का जीवन सुखमय बनता है तो वहीं शनि की अशुभता होने के कारण जीवन में उठापटक लगी ही रहती है। यदि आपको भी ऐसा लग रहा है कि आपके जीवन में एक के बाद एक परेशानियां आ रही हैं तो इसके पीछे की वजह कुछ कार्य हो सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें शनिवार के दिन भूलकर भी घर में नहीं लाना चाहिए। यदि आप इन चीजों को घर में लाते हैं तो आपको शनिदेव के प्रकोप का सामना करना पड़ता है, जिससे आपके जीवन में दुख: तकलीफे बढऩे लगती हैं।-ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए शनिवार के दिन काले तिल का दान करना शुभ रहता है, लेकिन शनिवार को काले तिल नहीं खरीदना चाहिए। माना जाता है कि यदि शनिवार के दिन तिल खरीदने से शनिदेव कुपित होते हैं जिससे आपके कार्यों में विघ्न आने लगते हैं।- शनिवार के दिन शनिदेव को सरसों के तेल चढ़ाना चाहिए और सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए, लेकिन शनिवार के दिन भूलकर भी सरसों का तेल नहीं खरीदना चाहिए। इस दिन अन्य किसी तेल की भी खरीदी नहीं करनी चाहिए। माना जाता है कि शनिवार को तेल खरीदने से रोग बढऩे लगते हैं।-ज्योतिषशास्त्र के अनुसार लोहे को शनि की धातु माना गया है, इसलिए शनिवार के दिन लोहे का बना सामान नहीं खरीदना चाहिए। माना जाता है कि शनिवार दिन लोहा खरीदने से जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।- शनिवार के दिन नमक भी नहीं खरीदना चाहिए। यदि आपको नमक खरीदना है तो शनिवार से एक दिन पहले या फिर अन्य किसी दिन खरीद लें। माना जाता है कि शनिवार के दिन नमक खरीदने से आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। व्यक्ति पर कर्ज बढऩे लगता है, इसके साथ ही शरीर में रोग भी लगने लगते हैं।
- मां लक्ष्मी धन और ऐश्वर्य की देवी हैं। इन्हीं की कृपा से धरती पर संपन्नता है। जिन घरों में लक्ष्मी जी का वास होता है उस स्थान पर सकारात्मकता रहती बनी रहती है घर का वातावरण आनंदित और शांत रहता है। ज्योतिष और वास्तु में कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें यदि प्रतिदिन किया जाए तो माना जाता है कि मां महालक्ष्मी की कृपा बना रहती है। घर में हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है। जानिये ये कौन से ये उपाय जिससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं....- सनातन धर्म में घर की स्त्रियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, इसलिए मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए रात के समय महिला को घर के मंदिर में एक दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित करना चाहिए। माना जाता है कि जिस घर में नियमित रूप से रात में पूजा स्थान पर दीपक जलाया जाता है, उस घर पर मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है। घर के सदस्यों को कभी धन की कमी नहीं होती है।- रात को सोने से पहले घर के शयन कक्ष के साथ ही पूरे घर में कपूर जलाकर दिखाना चाहिए, इसके साथ ही उसमें दो लौंग भी डाल देना चाहिए। इससे आपके शयनकक्ष और पूरे घर की नकरात्मक ऊर्जा का नाश होता है। शयन कक्ष में कपूर जलाकर दिखाने से पति-पत्नी के बीच के झगड़े समाप्त होते हैं परिवार के सदस्यों को बीच प्रेमभाव बना रहता है। आपके घर में समृद्धि आती है।- जिन घरों में बुजुर्गों का सम्मान किया जाता है। वहां कभी किसी प्रकार से धन वैभव की कमी नहीं होती है। रात को सोने से पहले भलिभांति देख लेना चाहिए कि आपके घर के बड़ों को किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं है। सोने से पहले देख लें कि आपके माता-पिता या सास-ससुर ठीक प्रकार से आराम से सो गए हैं या नहीं। तत्पश्चात सोने जाएं। जिनके ऊपर माता पिता का आशीर्वाद रहता है, उनके किसी कार्य में बाधा नहीं आती है।-नियमित रूप से रात को सोने से ठीक पहले गृह स्वामिनी को दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा माना गया है। माना जाता है कि यदि रोज रात के समय इस दिशा में दीपक जलाया जाता है तो आपके पितर आपको सुख और संपन्न रहने का आशीर्वाद देते हैं। इसके अलावा इस दिशा में एक बल्व अवश्य लगाना चाहिए और संध्या होते ही रोशनी कर देनी चाहिए।
-
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 182
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 9) ::::::
(1) गुरु के आदेशों में उचित अनुचित का विचार करना ही भयंकर पाप है।
(2) प्रारब्ध उसी को कहते हैं जब दुःख की कल्पना की जाय किन्तु सुख प्राप्त हो अथवा सुख की कल्पना की जाय और दुःख प्राप्त हो।
(3) मन में क्या है, यह तो लोग नहीं देखते, ऊपरी परिवर्तन पर ध्यान देते हैं। अतएव बाहरी रूप में ऐसा परिवर्तन ला दो कि लोगों को आश्चर्य होने लगे और तुम्हारा परमार्थ भी बन जाय।
(4) जिसको स्प्रिचुअल शक्ति से पॉवर मिल रही है उसकी शक्ति का ह्रास नहीं होता लेकिन संसार वाले को भीतर से तो शक्ति मिल नहीं रही है, अतः उसकी शक्ति का ह्रास होता है। इसीलिये वह थक जाता है।
(5) संसार में अगर कोई प्यार करेगा तो उसकी अंतिम सीमा होगी मृत्यु। चिन्तन से प्रारंभ होकर मृत्यु में समाप्त होगा। ईश्वरीय प्रेम में भी दस अवस्थायें होती हैं किन्तु उसमें मूर्च्छा के पश्चात मृत्यु नहीं होती, भगवत्प्राप्ति होती है। उसी स्प्रिचुअल पॉवर की शक्ति से वह अमरत्व को प्राप्त होता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - शुक्र ग्रह पौष पूर्णिमा के दिन यानी 28 जनवरी 2021 (गुरुवार) को राशि परिवर्तन कर चुके हैं। शुक्र का राशि परिवर्तन सुबह 03 बजकर 18 मिनट पर हुआ है। शुक्र ग्रह अब धनु राशि से निकलकर मकर राशि में गोचर किया है। धन और वैभव का कारक माने जाने वाले शुक्र के राशि परिवर्तन का हर किसी के जीवन में कुछ न कुछ प्रभाव पड़ता है। शुक्र का राशि परिवर्तन कुछ राशि वालों के लिए लाभकारी साबित होगा तो कुछ राशियों के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा। जानिए आपके जीवन पर क्या पड़ेगा प्रभाव-1. मेष- किसी भी काम में लापरवाही न बरतें। क्रोध और अहंकार से बचें। गोचर काल में आपके गुस्से के कारण बने हुए कार्य बिगड़ सकते हैं। इस दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का ध्यान रखा होगा।2. वृषभ- वृषभ राशि का स्वामी शुक्र ग्रह होता है। ऐसे में इस गोचर का आपको विशेष लाभ मिलने वाला है। आपको मेहनत का अच्छा फल मिलेगा। अगर गोचर काल के दौरान आप मेहनत करेंगे तो आपको शुभ परिणामों की प्राप्ति होगी। यह समय आपके लिए अच्छा है, इसका लाभ उठाने की कोशिश करें।3. मिथुन- गोचर काल के दौरान आपको किसी ट्रेनिंग या सेमिनार में भी भाग ले सकते हैं। इसका आने वाले समय में आपको इसका फायदा मिलेगा। अपनी सेहत का ख्याल रखें।4. कर्क- कर्क राशि वालों को इस गोचर का लाभ उठाने की कोशिश करनी चाहिए। इस दौरान आपको आपकी मेहनत का पूरा फल मिलेगा। मानसिक तनाव से बचें।5. सिंह- सिंह राशि के जातक इस गोचर काल के दौरान अपनी सेहत का ख्याल रखें। शत्रु को लेकर मन में किसी तरह का भय न रखें। मेहनत का शुभ परिणाम मिल सकता है।6. कन्या- इस गोचर के दौरान आपको प्लानिंग करनी पड़ेगी। कार्यों में सफलता हासिल होगी। किसी भी तरह का मानसिक तनाव न लें। गोचर के दौरान जल्दबाजी में कोई भी फैसला न लें।7. तुला- इस गोचर के प्रभाव आपके घर में सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पहले से चले आ रहे विवाद कम होंगे। इस दौरान आपके बेवजह धन खर्च हो सकता है।8. वृश्चिक- गोचर काल के दौरान आलस्य से दूर रहें। शांति और धैर्य के साथ लोगों से बातचीत करें। पैसों के लेन-देन से बचें। गोचर काल के दौरान किसी भी तरह की डील न करें।9. धनु- गोचर काल के दौरान आपको अपने खर्च पर कंट्रोल रखना होगा। सेहत को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही न बरतें। बाहर जाकर पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए समय शुभ साबित होगा।10. मकर- गोचर के प्रभाव से आपको अच्छे फल मिलने वाले हैं। इस गोचर के प्रभाव से आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इस दौरान आपको धन लाभ होने वाला है।11. कुंभ- आपके खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। खर्चों को नियंत्रण में रखना होगा। सेहत का ख्याल रखें। गोचर काल के दौरान लड़ाई-झगड़े से बचें।12. मीन- मीन राशि वालों के लिए गोचर काल शुभ साबित हो सकता है। इस दौरान आपको आपके कार्यों में सफलता हासिल होगी। मान-सम्मान में वृद्धि हो सकती है।
- सकट चौथ का व्रत 31 जनवरी 2021 को रखा जाएगा। माघ महीने में पडऩे वाली सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इसे सकट चौथ, संकटा चौथ, तिलकुट चौथ या संकष्टी चतुर्थी नामों से भी जाना जाता है। सकट चौथ के दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए भगवान गणेश की उपासना करती हैं। भगवान गणेश को समर्पित यह व्रत चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है।सकट चौथ व्रत शुभ मुहूर्त----सकट चौथ व्रत तिथि- जनवरी 31, 2021 (रविवार)सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय - 20:40चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 31, 2021 को 20:24 बजेचतुर्थी तिथि समाप्त - फरवरी 01, 2021 को 18:24 बजे।सकट चौथ के दिन करें श्री गणेश की आरती-----जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जयज्एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥अंधन को आंख देत, कोढिऩ को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जयज्हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जयज्सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जयज्शुक्र ने आज तड़के 3:18 मिनट पर किया राशि परिवर्तन, जानें इसका आपके जीवन पर क्या पड़ेगा प्रभावये भी व्रत कथा है प्रचलित-किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढिय़ा के लड़के की बारी आई।बुढिय़ा के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढिय़ा सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढिय़ा सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढिय़ा का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 181
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 8 के दोहा संख्या 40 से आगे)
पट्टी न पढ़ाओ जानि भोरी भारी श्यामा।तेरी करतूत देखें बैठी उर धामा।।41।।
अर्थ ::: श्रीराधा अत्यंत भोली भाली हैं, ऐसा समझकर उन्हें बहकाने का प्रयत्न न करो। श्रीराधा तो हृदय में बैठकर तुम्हारे प्रत्येक क्षण के प्रत्येक संकल्प को देख रही हैं।
आपु को इकलो न मानो कह बामा।सदा सर्वत्र तेरे साथ रहें श्यामा।।42।।
अर्थ ::: कभी एक क्षण के लिये भी स्वयं को अकेला न मानो। सदा सब स्थानों पर श्रीराधा तुम्हारे साथ ही हैं।
प्रति जन्म नयी नयी मातु बनी बामा।बदली न तेरी कभु साँची मातु श्यामा।।43।।
अर्थ ::: जीव के कर्मानुसार शरीर का जन्म मरण होता रहता है। इस कारण हर जन्म में नयी नयी मातायें भी बनीं। आत्मा की माँ श्रीराधा तो सदा से एक ही थीं, एक ही रहेंगी।
बार बार जग ते हटाओ मन बामा।बार बार श्याम में लगाओ आठु यामा।।44।।
अर्थ ::: अपने मन को बार बार संसार से हटाकर श्यामसुन्दर में ही लगाने का अभ्यास करना है।
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध मन कामा।दूँगा दिव्य मन कहु चलु ढिग श्यामा।।45।।
अर्थ ::: अपने मन से कहो, तू शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध ही तो चाहता है, चल श्रीराधा के निकट चल, वहाँ तुझे दिव्य शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध प्राप्त होगा।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - गणेशजी ज्ञान और बुद्धि के देवता माने जाते हैं, साथ ही उनकी सभी देवताओं में सबसे पहले पूजा भी की जाती है। गणेशजी को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए दफ्तर या फिर घर में गणेशजी की मूर्ति की स्थापना करते समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है कि उनकी सूंड की दिशा क्या हो। कई धार्मिक रीतियों का पालन इन्हें स्थापित करने के दौरान ध्यान में रखना होता है। मूर्ति या तस्वीरों में सीधी सूंड वाले गणेशजी को दुर्लभ माना जाता है। एक तरफ सूंड के मुड़े होने के चलते ही उन्हें वक्रतुण्ड भी कहा जाता है। गणेशजी की दाई सूंड में सूर्य का प्रभाव और बाई में चंद्रमा का प्रभाव माना जाता है।दाईं ओर घूमी हुई सूंडगणेशजी की सूंड अगर दाईं तरह मुड़ी हुई हो तो हठी होते हैं, इस तरह की मूर्ति और तस्वीरें ज्यादातर ऑफिस और घर में नहीं रखी जाती है। जिस गणेशजी की सूंड दाईं तरफ मुड़ी हो उन्हें सिद्धिविनायक कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सफल हो जाता है और शुभ फल मिलता है।बाईं ओर घूमी सूंडगणेशजी की ऐसी प्रतिमा जिसमें वो सिंहासन पर बैठे रहते हैं और सूंड बाई तरह मुड़ी होती है, उसे पूजा घर में रखनी चाहिए। इस प्रतिमा की पूजा से घर में समृद्धि और सुख-शांति आ जाती है। बाईं तरफ जिस गणेशजी की सूंड घूमी होती है, उन्हें विघ्नविनाशक कहा जाता है। ऐसी प्रतिमा को घर के मुख्य द्वार पर लगाना चाहिए, इससे घर में किसी भी प्रकार की नेगेटिव एनर्जी प्रवेश नहीं कर पाती है और वास्तु दोष का भी नाश हो जाता है। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रुक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती। वास्तु विज्ञान के अनुसार गणेश जी को घर के ब्रह्म स्थान (केंद्र) में, पूर्व दिशा में एवं ईशान में विराजमान करना शुभ एवं मंगलकारी होता है। इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की सूंड उत्तर दिशा की ओर हो। गणेश जी को दक्षिण या नैऋत्य कोण में नहीं रखना चाहिए।सीधी सूंड वाले गणेशजीसंत समाज के लोग गणेशजी की सीधी सूंड वाली मूर्ति की आराधना करते हैं। इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण,मोक्ष, समाधि आदि के उत्तम बताई जाती है।जो लोग संतान सुख की कामना रखते हैं उन्हें अपने घर में बाल गणेश की प्रतिमा या तस्वीर लानी चाहिए। नियमित इनकी पूजा से संतान के मामले में आने वाली विघ्न बाधाएं दूर होती है।घर में आनंद उत्साह और उन्नति के लिए नृत्य मुद्रा वाली गणेश जी की प्रतिमा लानी चाहिए। इस प्रतिमा की पूजा से छात्रों और कला जगत से जुड़े लोगों को विशेष लाभ मिलता है। इससे घर में धन और आनंद की भी वृद्घि होती है। गणेश जी आसान पर विराजमान हों या लेटे हुए मुद्रा में हों तो ऐसी प्रतिमा को घर में लाना शुभ होता है। इससे घर में सुख और आनंद का स्थायित्व बना रहता है। सिंदूरी रंग वाले गणेश को समृद्घि दायक माना गया है, इसलिए इनकी पूजा गृहस्थों एवं व्यवसायियों के लिए शुभ माना गया है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 180
(एकान्त में बैठकर साधना सरल है, किन्तु संसार में कर्मरत रहते हुये साधना में कठिनाई आती है. इस कठिनाई को सरल कैसे करना है और कर्मयोग की साधना का अभ्यास कैसे करना है, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी समझा रहे हैं...)
एक गाय, जानवर, दिन भर चारा चरती है। लेकिन अपने बछड़े को याद करती रहती है। ये कर्मयोग की साधना है उसकी, और जब शाम को लौटती हैं, चारा चरने के बाद, और गौशाला के पास आती है तो वो जो चोरी-चोरी प्यार कर रही थी थोड़ा-थोड़ा वह कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तो रम्भाती है। बड़े जोर से बोलती है, चिल्लाती है, अपने बच्चे को पुकारती है और बच्चा भी उसका माँ की आवाज पहचानता है तो खूँटे में बँधा हुआ, उसका बच्चा भी आवाज देता है, मम्मी जल्दी आ जाओ। ये देखो पशुओं मे भी इस प्रकार का विषय है। तो मनुष्य की कौन कहे। हाँ तो हमें इस प्रकार कर्मयोग की साधना करना है अर्थात हम कार्य करते हुए भी बार-बार एक बात का तो अभ्यास करें कि हम अकेले नहीं हैं कभी भी एक क्षण को भी। इसका आप लोग घण्टे-घण्टे भर में पहले अभ्यास कीजिये।
हम अधिक समय नहीं ले रहे हैं आपका। एक घण्टे में, एक सेकेण्ड बस, एक मिनट नहीं, जितनी देर में आप यों यों खुजला लेते हैं, यों यों कर लेते हैं। कोई भी वर्क आपका संसार में ऐसा नहीं है कि समाधि लग जाय।
अरे भाई हर काम करते समय ऑफिस वर्क करते समय भी आप देख लेतें है, कभी इधर को कभी उधर को, कभी कुछ सोच लेते हैं, कभी छींक आ गई, कभी खाँसी आ गई, ये होता ही रहता है आपको संसार में भी वर्क करते समय भी। तो आप घण्टे भर में एक सेकेण्ड को, जैसे मेज आपके सामने है, कुर्सी पर बैठे हैं, मेज के एक किनारे पर आप मन से श्यामसुन्दर को बैठा दीजिये, हाँ बैठ गये, अब तुम देखो मैं वर्क करता हूँ। एक घण्टा हो गया बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। एक-एक घण्टे पर रियलाइज किया कि श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं हमारे पास हैं, हम अकेले नही हैं। हाँ हमारी प्राइवेसी आज से खत्म। हम कोई बात प्राईवेट सोच नहीं सकते, हमें अधिकार नहीं सोचने का, क्योंकि वो हमारे अन्दर बैठे सब नोट कर रहे हैं। फिर आधे घण्टे पर किया एक सेकेण्ड को कि वो हमारे साथ हैं, फिर पन्द्रह मिनट पर किया।
जब आप यहां तक पहुँच जायेंगे तब आप अनुभव करेगें कि अब ऐसा लग रहा है कि वो हर समय हमारे साथ हैं हर समय वो साथ हैं। उनका रुप ध्यान नहीं लाना है, केवल फीलिंग लाना है कि मेरे प्राण वल्लभ मेरे साथ हैं मैं अकेला नहीं हूँ। हर समय इतना आत्मबल होगा आपको, कितनी खुशी होगी आपको, मेरे श्यामसुन्दर सदा हमारे साथ हैं, मेरे गुरु सदा मेरे साथ हैं, ये इन दोनों को हमको हर समय अपने साथ महसूस करने का अभ्यास करना है। फिर कुछ दिनों बाद आपको करना नहीं पड़ेगा, स्वत: होने लगेगा, यही कर्मयोग की साधना है जो आप अपने सांसारिक कार्य करते हुये साधना पथ पर बढ़ते-बढ़ते अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगें, दिव्यानन्द की प्राप्ति कर पायेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'कामना और उपासना' भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 179
साधक का प्रश्न ::: मन से भक्ति कैसे की जाये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: पहले सिद्धांत समझिये। भक्ति दो प्रकार की होती है - (1) वैधी और (2) रागानुगा। बुद्धि-प्रधान लोगों के लिए वैधी भक्ति, वे शास्त्र-वेदों में वर्णित वर्णाश्रम धर्म का पालन भी करें और भगवान की भक्ति भी करें । मन-प्रधान लोग भावुक होते हैं वे केवल भगवान् की भक्ति करते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - ओपल एक सफेद रंग का कीमती रत्न है जो सिलिकेट खनिज परिवार से आता है। यह अपने रंगों के अद्भुत संयोग के लिए पहचाना जाता है। ओपल की खोज ऑस्ट्रेलिया, इथियोपिया, मैक्सिको, ब्राजील, सूडान, हंगरी और अमेरिका के खदानों में की जाती है। सभी ओपल में ऑस्ट्रेलिया के ओपल अपने चमकीले रंग और समृद्ध बनावट के लिए व्यापक रूप से लोकप्रिय है। इथियोपियाई ओपल व मैक्सिकन ओपल को लोगों द्वारा पसंद किया जाता है, जो पारदर्शी नारंगी रंग का होता है।ज्योतिष शास्त्र में ओपलओपल का अर्थ उपल और संस्कृत में ओपला है जो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। इसे व्यक्ति के जन्म पत्रिका में कमजोर शुक्र के प्रभाव का मुकाबला करने और व शुक्र के प्रभाव को बढ़ाने के लिए पहनने का सुझाव ज्योतिषियों द्वारा दिया जाता है। ओपल वित्तीय समृद्धि, शारीरिक कल्याण और अच्छी सामाजिक स्थिति लाने के लिए पहना जाता है। कीमती हीरे का यह ज्योतिषीय विकल्प रचनात्मक गतिविधियों, शानदार जीवन शैली, उच्च सामाजिक स्थिति, वैवाहिक सद्भाव और अच्छे स्वास्थ्य में सफलता के लिए धारण किया जाता है।किस राशि के जातक ओपल धारण करें?भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ओपल तुला और वृष राशि के जातकों लिए उत्तम रत्न है। पश्चिमी ज्योतिष में तुला राशि के लिए ओपल को बर्थ-स्टोन के रूप में धारण करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा ज्योतिषीय परामर्श पर इस रत्न को मकर, कुंभ, मिथुन और कन्या राशि के जातक भी पहन सकते हैं।ओपल धारण करने के लाभओपल रत्न अपने ज्योतिषीय गुणों और सौंदर्य आकर्षण के लिए पहचाना जाता है। माना जाता है कि ओपल पहनने वाले को जीवन की कठिन परिस्थितियों से निपटने में मदद करता है।ओपल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ!वेदों के अनुसार, कुंडली में शुक्र की कमजोर स्थिति विवाहित जीवन में संघर्ष और असहमति का संकेत देती है जिससे अलगाव हो सकता है। मिल्की ओपल रत्न को पहनने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।ज्योतिष के अनुसार शुक्र विलासता और सांसारिक इच्छाओं से संबंधित है। इसलिए, ज्योतिषी न केवल वित्तीय परिस्थितियों को बढ़ाने के लिए, बल्कि सामाजिक स्थिति और शानदार जीवन शैली को बनाए रखने के लिए ओपल को धारण करने की सलाह देते हैं।माना जाता है कि काला ओपल और अग्नि ओपल पहनने से विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं और नींद संबंधी विकारों से छुटकारा मिलता है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि घर में कोई न कोई हरदम बीमार रहता है, घर में रोजाना लड़ाई हो रही है, आमदनी से ज्यादा खर्च हो रहा है। परिवार का मुखिया हर वक्त परेशान रहता है या फिर उसे रात के वक्त डरावने सपने आते हैं तो इसके लिए घर का वास्तु दोष कुछ हद तक जिम्मेदार होता है। कई बार भवन निर्माण के दौरान कई प्रकार के वास्तु दोष रह जाते हैं और उन्हें दूर करने के लिए आमतौर पर लोग इनको दूर करने के लिए कई तरह के उपाय भी करते हैं। वहीं वास्तुदोष को दूर करने के लिए वास्तु शास्त्र में कई चमत्कारी उपाय बताए गए हैं। इनमें से वास्तु दोष निवारण यंत्र सुरक्षा कवच का काम करता है। हिंदू धर्म में वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर में वास्तु निवारण यंत्र की स्थापना करनी चाहिए ताकि आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सकें और नकारात्मक शक्तियों का नाश किया जा सके।वास्तु दोष निवारण यंत्र लाभ-वास्तु दोष निवारण यंत्र को स्थापित करने से नवग्रहों का शुभ फल प्राप्त होता है।-इस यंत्र की स्थापना के बाद वास्तुदोष से जुड़ी सभी परेशानियों से राहत मिल सकती है।-घर के कलह-क्लेश को दूर करने के लिए भी इस यंत्र का प्रयोग किया जाता है।-यदि आपके घर में हमेशा तनाव की स्थिति बनी रहती है तो यह इसको भी दूर करता है।-वास्तुदोष निवारण यंत्र से रोग-पीडा़ और दरिद्रता का नाश होता है और धन-वैभव की इच्छा पूरी होती है।-इस यंत्र को स्थापित करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।-वास्तुदोष निवारण यंत्र को स्थापित करके आप अपने घर में बिना तोड़-फोड के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं।कहां करें स्थापनावास्तुदोष निवारण यंत्र को घर या ऑफिस में पश्चिम या पूर्व की दिशा में रखना शुभ माना गया है। इस यंत्र का प्रभाव सूर्य की बढ़ती किरणों के साथ ओर बढ़ता है। वास्तु दोष निवारण यंत्र को आप सादे कागज पर, भोजपत्र, तांबे और चांदी की धातु पर भी बनवा सकते हैं। इस यंत्र को स्थापित रखने के लिए किसी विशेष पूजा की आवश्यकता नहीं होती है। वास्तु दोष निवारण यंत्र को स्थापित करते वक्त इसके शुद्धिकरण और प्राण प्रतिष्ठा जैसे महत्वपूर्ण चरण सम्मिलित होने चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना इस यंत्र का विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। इसलिए इस यंत्र को स्थापित करने से पहले सुनिश्चित करें कि यह विधिवत बनाया गया हो और इसकी प्राण प्रतिष्ठा हुई हो। वास्तु दोष निवारण यंत्र खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह लेकर उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए।स्थापना विधिवास्तुदोष निवारण यंत्र को स्थापित करने के लिए सबसे पहले प्रात: काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर इस यंत्र को पूजन स्थल पर रखकर इस यंत्र के आगे दीपक जलाएं और इस पर फूल अर्पित करें। इसके बाद वास्तु दोष निवारण यंत्र को गौमूत्र, गंगाजल और कच्चे दूध से शुद्ध करें और 11 या 21 बार " ओम आकर्षय महादेवी राम राम प्रियं हे त्रिपुरे देवदेवेषि तुभ्यं दश्यमि यंचितम " बीज मंत्र का जाप करें।वास्तु दोष निवारण यंत्र का बीज मंत्र - "ओम आकर्षय महादेवी राम राम प्रियं हे त्रिपुरे देवदेवेषि तुभ्यं दश्यमि यंचितम "---
-
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 178
(विवाद से कभी कुछ हासिल नहीं होता, पुन: भक्तिमार्ग में विवाद तो महान हानि करने वाला है. जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से जानिये यह क्यों हानिकारक है...)
अश्रद्धालु एवं अनधिकारी से अपने मार्ग अथवा साधनादि के विषय में वाद-विवाद करना भी कुसंग है। क्योंकि जब अनधिकारी को सर्वसमर्थ महापुरुष ही आसानी के साथ बोध नहीं करा पाता, तब वह साधक भला किस खेत की मूली है। यदि कोई परहित की भावना से भी समझाना चाहता है, तब भी उसे ऐसा न करना चाहिये, क्योंकि अश्रद्धालु होने के कारण उसका विपरीत ही परिणाम होता है, साथ ही उस अश्रद्धालु के न मानने पर साधक का चित्त अशांत हो जाता है। शास्त्रानुसार भी भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवाद करना घोर पाप है। भरत जी कहते हैं,
भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यत: तेन पापेन्।
अर्थात् भरत जी कहते हैं कि भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवादकर्म सरीखा महान पाप मुझे लग जाय यदि राम के वन जाने के विषय में मेरी राय रही हो।
अतएव न तो वाद-विवाद सुनना चाहिये, न तो स्वयं ही करना चाहिये। यदि अनधिकारी जीव, इन विषयों को नहीं समझता, तो इसमें आश्चर्य या दु:ख भी न होना चाहिये, क्योंकि कभी तुम भी तो नहीं समझते थे। यह तो परम सौभाग्य, महापुरुष एवं भगवान की कृपा से प्राप्त होता है कि जीव, भगवद्विषय को समझ कर उनकी ओर उन्मुख हो।
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज00 सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
महिलाओं के लिए ये नक्षत्र और भी विशेष प्रभावशाली माना गया है।
गुरुपुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं।
सभी मुहूर्तों में श्रेष्ठ गुरु पुष्ययोग 28 जनवरी बृहस्पतिवार को सूर्योदय से लेकर मध्यरात्रि तक विद्यमान रहेगा। नक्षत्र ज्योतिष के मुहूर्त शास्त्र में सभी 27 नक्षत्रों में 'पुष्य नक्षत्र' को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है।
पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है बृहस्पतिवार को गुरु पुष्य और रविवार को रविपुष्य योग बनता है, जो मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी। बृहस्पति भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, 'बृहस्पतिं प्रथमं जायमान: तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभफलदाई कहे गये हैं किन्तु माँ पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणामस्वरुप पाणिग्रहण संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है।
गुरुपुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं क्योंकि लक्षदोषं गुरुर्हन्ति की भांति हो ये अपनी उपस्थिति में लाखों दोषों का शमन कर देता है। इस प्रकार रविपुष्य योग में भी उपरोक्त सभी कर्म किए जा सकते हैं।
नारी जगत के लिए ये नक्षत्र और भी विशेष प्रभावशाली माना गया है। इनमें जन्मी कन्याएं अपने कुल-खानदान का यश चारों दिशाओं में फैलाती हैं और कई महिलाओं को तो महान तपश्विनी की संज्ञा मिली है जैसा की कहा भी गया है कि, देवधर्म धनैर्युक्त: पुत्रयुक्तो विचक्षण:। पुष्ये च जायते लोक: शांतात्मा शुभग: सुखी। अर्थात- जिस कन्या की उत्पत्ति पुष्य नक्षत्र में होती है वह सौभाग्य शालिनी, धर्म में रूचि रखने वाली, धन-धान्य एवं पुत्रों से युक्त सौन्दर्य शालिनी तथा पतिव्रता होती है। वैसे तो यह नक्षत्र हर सत्ताईसवें दिन आता है किन्तु हर बार गुरुवार या रविवार ही हो ये तो संभव नही हैं इसलिए इस नक्षत्र के दिन गुरु एवं सूर्य की होरा में कार्य आरंभ करके गुरुपुष्य और रविपुष्य जैसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता हैं। -
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी घटना का ज्योतिषीय गणना का मुख्य आधार सभी नौ ग्रहों की चाल, स्वभाव और प्रभाव पर निर्भर करता है। सभी नौ ग्रहों के अलग-अलग प्रभाव का जातकों पर प्रभाव पड़ता है। आज हम आपको बुध ग्रह के बारे में बताने जा रहे है। ज्योतिषशास्त्र में बुध ग्रह को एक तटस्थ ग्रह माना गया है। ज्योतिषशास्त्र में बुध को वाणी का कारक ग्रह माना गया है। जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होते हैं। वे स्वभाव से बहुत ही संकोची होते हैं। यह अपनी बात को सबके सामने नहीं रख पाते हैं। वाणी से ये अक्सर कटु वचन बोलेते हैं जिसकी वजह से अक्सर इनके कार्य बिगड़ जाते हैं।
बुध मकर राशि की यात्रा समाप्त करके 25 जनवरी की शाम 4 बजकर 53 मिनट पर कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं। बुध ग्रह के राशि परिवर्तन का सभी 12 राशियों पर प्रभाव....
मेष राशि- बुध का गोचर करना आपके लिए अनुकूल फल देने वाला सिद्ध होगा।
वृषभ राशि- बुध आपका आर्थिक पक्ष मजबूत करेंगे। कार्य व्यापार में उन्नति होगी।
मिथुन राशि- आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। पराक्रम की वृद्धि होगी।
कर्क राशि- कई तरह की चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है।
सिंह राशि- शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए समय अनुकूल रहेगा।
कन्या राशि- काम में बाधाएं आएंगी। समय पर कोई भी कार्य संपन्न नहीं हो पाएगा।
तुला राशि - बुध आपके लिए बेहतरीन सफलता दिलाएंगे। प्रेम संबंधी मामलों में प्रगाढ़ता आएगी।
वृश्चिक राशि- जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। मकान अथवा वाहन खरीदने का भी संकल्प पूरा होगा।
धनु राशि- आपके लिए बुध अनुकूल प्रभाव डालेंगे। जो जातक नौकरी में हैं उनके लिए समय अच्छा रहेगा।
मकर राशि- धन भाव में बुध का गोचर नौकरी में पदोन्नति और मान-सम्मान की वृद्धि होगी। शिक्षा प्रतियोगिता में भी अच्छी सफलता प्राप्त होगी।
कुंभ राशि- व्यापारियों के लिए बुध का गोचर अति अनुकूल रहेगा। शीर्ष अधिकारियों से मेलजोल बढ़ेगा और उनसे लाभ भी होगा।
मीन राशि- खर्चे अधिक होने की संभावना है।