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- हस्तरेखा विज्ञान में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। हथेली में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत नौकरी और बिजनेस में सफलता या विफलता के बारे में बताता है। सूर्य रेखा रिंग फिंगर के नीचे एक खड़ी लाइन होती है। हस्तरेखा विज्ञान के मुताबिक तर्जनी उंगली यानी इंडेक्स फिंगर के नीचे वाला हथेली का हिस्सा गुरु पर्वत होता है। गुरु पर्वत पर शुभ निशान होने से तरक्की के योग बनते हैं और सूर्य रेखा की अच्छी स्थिति से नौकरी और बिजनेस में किस्मत का साथ मिलता है।यदि हाथ में गुरु यानी तर्जनी पर एक या एक से ज्यादा रेखाएं हो तो व्यकक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है। कोई रेखा जीवन रेखा से चन्द्र पर्वत की ओर जाए तो ऐसा व्यक्ति उच्च पद पाता है। गुरु पर्वत पर नक्षत्र, तारे का या त्रिभुज का निशान हो तो भी व्यक्ति उच्च पद पाने में सफल हो जाता है। हाथ में बड़ी सूर्य रेखा समाज में व्यक्ति को बड़ा पद दिलवाने का संकेत देती है। गुरु पर्वत पर त्रिभुज हो, सूर्य रेखा स्पष्ट हो और भाग्यरेखा की लंबाई ज्यादा हो तो ऐसे लोग कम उम्र में ही तरक्की करने लगते हैं।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव की शरण में जो भी आता है भगवान शिव उसके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार 12 राशियां होती हैं। इन राशियों के आधार पर भी व्यक्ति के बारे में बताया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनपर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है। इन राशियों के लोगों को भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है।मेष राशिमेष राशि के जातकों पर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है।ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार मेष राशि के लोगों को शिव की अराधना करनी चाहिए।मेष राशि के जातकों को नियमित शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए। शिवलिंग पर जल अर्पित करने से शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।मकर राशिमकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। मकर राशि के जातकों पर भगवान शिव और शनिदेव की विशेष कृपा रहती है।मकर राशि के जातकों को रोजाना भगवान शिव की पूजा- अर्चना करनी चाहिए।मकर राशि के जातक ऊॅं नम: शिवाय का जप करें।कुंभ राशिकुंभ राशि के स्वामी भी शनि देव हैं। कुंभ राशि के जातकों पर भी शनिदेव और भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है।कुंभ राशि के जातकों को शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए।कुंभ राशि के जातकों को क्षमता के अनुसार दान भी करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
- किसी - किसी मकान में वास्तुदोष की वजह से उसमें रहने वाले परिवारों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार कुछ उपाय करते काफी हद तक वास्तुदोष का निवारण हो जाता है। आज हम जानेंगे कि यदि मकान की पश्चिम दिशा में वास्तु दोष हो तो क्या उपाय करना चाहिए।इसके लिए पहले पश्चिम दिशा के दोष से सुरक्षा हेतु भवन में वरुण यंत्र स्थापित करे। भवन के पश्चिमी भाग की ओर शनि यन्त्र भी स्थापित कर सकते हैं। शनि स्त्रोत का पाठ कर भवन के स्वामी को हर शनिवार काले उडद और सरसों के तेल का दान करना चाहिए। शनिवार का व्रत करने से इस दोष का निवारण हो सकता है। हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें।----
- ग्रहों के राजा सूर्य देव आज रात करीब 11 बजकर 21 मिनट पर वृषभ राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। इस राशि में सूर्य देव 15 जून 2021 की सुबह 05 बजकर 58 मिनट तक स्थित रहेंगे। सूर्य के वृषभ राशि में गोचर से जहां कुछ राशियों को फायदा होगा तो वहीं ऐसी पांच राशियां हैं जिनपर गोचर का प्रभाव नकारात्मक रूप से पड़ सकता है। ऐसे में इन राशियों के जातकों को सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ये राशियां इस प्रकार हैं-वृषभ राशिइस गोचर के प्रभाव से वृष राशि के जातकों को शारीरिक कष्ट और स्वास्थ्य संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आपको अपनी सेहत पर विशेष ध्यान देना होगा। हालांकि अन्य मामलों में आपको लाभ की भी प्राप्ति होगी। समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा। संतान संबंधी चिंता दूर होगी। सामाजिक पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। रणनीतियों को गोपनीय रखें। शासनसत्ता का भी पूर्ण सहयोग मिलेगा। नए अनुबंध प्राप्ति के योग।मिथुन राशिगोचर के प्रभाव से आर्थिक हानि की संभावना है। इस अवधि में अधिक व्यय से आर्थिक तंगी भी आ सकती है। झगड़े विवाद से दूर रहें और कोर्ट कचहरी के मामले बाहर ही सुलझाएं संबंधी अथवा मित्र के द्वारा अप्रिय समाचार से मन अशांत रहेगा। पारिवारिक कलह बढ़ने न दें। आँख, कान, गले के रोग से बचें।तुला राशिगोचर का अशुभ प्रभाव आपकी सेहत पर पड़ सकता है। इसलिए इस अवधि में अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। झगड़े विवाद से दूर रहें और कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लेना समझदारी होगी। कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। अग्नि, विष और दवाओं के रिएक्शन से बचें।धनु राशिग्रह गोचर की अनुकूलता आपकी आने वाली समस्याओं का निदान करेगी। इस अवधि के मध्य किसी को भी अधिक धन उधार के रूप में न दें अन्यथा आर्थिक हानि की संभावना रहेगी। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। किसी संबंधी अथवा मित्र के द्वारा अप्रिय समाचार प्राप्ति हो सकती है।कुंभ राशिगोचर के प्रभाव से किसी न किसी कारण से पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। यात्रा सावधानीपूर्वक करें और अपने सामान को चोरी होने से बचाएं। जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। मित्रों अथवा संबंधियों से भी अप्रिय समाचार मिल सकता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 286
(भूमिका - साधना का संबंध किससे है? शरीर से अथवा मन से? आइये इस प्रश्नोत्तरी में हम समझने का प्रयास करें। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत इन शब्दों पर गहराई से कुछ देर विचार करें...)
साधक का प्रश्न ::: शरीर न चले, बीमारी हो तो निरंतर साधना कैसे होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: साधना माने क्या? आराम। साधना करते हो तो शरीर को आराम मिलता है। साधना मन को ही करनी होती है। बीमार आदमी शरीर को महत्त्व देता है तो वह सोचता है - मैं मर जाऊँगा तो क्या होगा? इसलिए घबराता है लेकिन जब वह अपने को जीवात्मा मानेगा तो सोचेगा - श्यामसुंदर अभी नहीं मिले, यह सोच कर वह श्यामसुन्दर के लिए रोयेगा। किन्तु अगर नींद आ गयी तो इसका मतलब है कि हमने मानव शरीर की इम्पोर्टेंस नहीं समझी इसलिये आलस्य आ गया। साधना माने मन को साधना। साधना मन को ही करनी है। कैंसर का मरीज़ सोचता है - मैं मर जाऊँगा तो मेरी गृहस्थी का क्या होगा आदि। इसमें शरीर नहीं थक रहा है, मन का वर्क हो रहा है। जब कोई शरीर के महत्त्व को सोचने के स्थान पर सोचेगा - मेरा (जीवात्मा का) क्या होगा? श्यामसुंदर मुझे नहीं मिले!!! यह सोचकर आंसू बहाता रहेगा। अगर नींद आ गयी तो समझो इम्पोर्टेंस ही नहीं समझा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 1०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 285
(भूमिका - गुरु द्वारा प्रदत्त तत्वज्ञान को समझकर हृदयंगम करना परमावश्यक है, इसके बिना ईश्वरीय-राज्य की अथवा पारमार्थिक चीजें सही-सही नहीं हो सकेंगी। गुरु-शरणागति, गुरु से तत्वज्ञान प्राप्ति और गुरु-सेवा के रहस्य पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीवचन आप सभी पठन करें....)
...कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम संसार से ही वैराग्य करो। कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम श्रीकृष्ण से ही अनुराग करो। यह विरोधाभास है। मेरी राय में इन दोनों से पूर्व गुरु का कार्य है। प्रथम गुरु द्वारा तत्वज्ञान प्राप्त करना होगा। उस तत्वज्ञान द्वारा गुरु, श्रीकृष्ण, वैराग्य, अनुरागादि का विज्ञान हृदयंगम करना होगा। हम जितना समझते हैं, उसे सही मान लेना सही नहीं है। हमने 'क' का ज्ञान भी स्वयं नहीं प्राप्त किया। फिर परोक्ष तत्त्व जीव, ब्रह्म, माया आदि का ज्ञान कैसे प्राप्त कर लेंगे।
जब तत्वज्ञान हो जायगा, तब हम जानेंगे कि एक जीव है एवं उसका एक मन है। वह मन ही बंधन एवं मोक्ष का कारण है। उस मन को मायिक जगत् से हटाकर दिव्य श्रीकृष्ण में लगाना है। क्योंकि श्रीकृष्ण ही हमारे माता, पिता, भ्राता, भर्ता, अंशी आदि सब कुछ हैं। उन श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के हेतु साधनों का भी ज्ञान प्राप्त करना होगा। और वह ज्ञान यही होगा कि केवल भक्ति के द्वारा ही श्रीकृष्ण की प्राप्ति होगी। अन्य कोई उपाय नहीं है। अपने गुरु द्वारा भक्ति का भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना होगा। गुरु से यही ज्ञान मिलेगा कि श्रीकृष्ण भक्ति में कोई भी नियम नहीं है। सभी जीव अधिकारी हैं। यद्यपि श्रद्धा की शर्त बताई गई है। यथा;
आदौ श्रद्धा ततः ........।
किंतु भागवत में इसकी भी आवश्यकता नहीं बताई गई। यथा;
सतां प्रसंगान्मम वीर्य संविदो .......।
अर्थात् गुरु की शरणागति में रहकर उन्हीं की सेवा करते हुये निरंतर सत्संग किया जाय, तो श्रद्धा भी स्वयं उत्पन्न हो जायगी। फिर श्रीकृष्ण में अनुराग भी स्वयं होने लगेगा। फिर उसी अनुराग की मात्रा से ही स्वयं वैराग्य भी होगा। सारांश यह कि प्रथम गुरु की शरणागति, फिर श्रीकृष्ण की नवधा भक्ति रूपी साधना, फिर संसार से वैराग्य। यही क्रम बढ़ते बढ़ते जब भक्ति परिपूर्ण हो जायगी तो संसार से पूर्ण सहज वैराग्य स्वयं हो जायगा। इतना ही नहीं अन्य ज्ञानादि सब कुछ अनचाहे ही मिल जायगा। यहाँ तक कि सभी प्राप्तव्य पुरुषार्थों का स्वामी श्रीकृष्ण भी उस भक्त के आधीन हो जायगा। फिर जीव कृतकृत्य हो जायगा। अतः उपर्युक्त क्रम से ही लक्ष्य की प्राप्ति के हेतु प्रयत्न करना चाहिये। शेष सब गुरु दे देगा।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ के 12-वें दोहे की व्याख्या०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 284
'शुभ अक्षय-नवमी'- आइये आज अपना समय हम अपने आराध्य व परम हितैषी भगवान के स्मरण में व्यतीत करें!!
★ 'अक्षय तृतीया' महात्म्य - भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस त्यौहार पर किये गये दान तथा साधना आदि का अनंत गुना फल प्राप्त होता है।
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' में वर्णित इस पद में वे जीवों को संबोधित करते हुये कह रहे हैं कि इस संसार की नश्वरता, असारता और अपने मानव-देह की क्षणभंगुरता पर गंभीर विचार करो, तथा तत्काल ही इसके स्वरूप को पहचान कर इससे विरक्त होकर अपने परमाराध्य परम हितैषी भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करो, गुणगान करो। यह पद नीचे इस प्रकार है...)
मन ! क्यों नहि हरि गुन गा रहा।यह जग है इक भूल भुलैया, क्यों तू धोखा खा रहा।भुक्ति मुक्ति है प्रबल पिशाचिनी, क्यों इनमे भरमा रहा।सुत वित नारिन त्रिविध तिजारिन, क्यों इनको अपना रहा।इन इंद्रिन विषयन-विष पी मन, क्यों इतनो हरषा रहा।नर तनु पाय 'कृपालु' भजन करू, यह जीवन अब जा रहा।।
भावार्थ - अरे मन ! तू श्यामसुंदर का गुणगान क्यों नही करता? इस भूल भुलैया के खेल वाले संसार में तू क्यों धोखा खा रहा है? मुक्ति एवं भुक्ति ये दोनों अत्यंत प्रबल चुडैलें हैं, तू इनके चक्कर में क्यों आ रहा है? स्त्री, पुत्र, धन, यह तीनों तिजारी के समान हैं। तू इनको क्यों अपना रहा है? 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मनुष्य का शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, यह चार दिन का जीवन जा रहा है, अतएव शीघ्र ही श्यामसुंदर का भजन कर...
०० ग्रन्थ संदर्भ ::: प्रेम रस मदिरा (सिद्धांत माधुरी, पद संख्या 73)०० रचयिता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - अक्षय तृतीया पावन पर्व है। हिंदू धर्म में इस तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि पर दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है। इस पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामानाएं पूरी हो जाती हैं। आइए जानते हैं इस दिन किन चीजों का दान करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है...जल पात्र का दान करना शुभ होता हैअक्षय तृतीया के पावन दिन जल पात्र का दान करना शुभ माना जाता है। इस पावन दिन गिलास, घड़ा, इत्यादि चीजों का दान करना चाहिए। इन चीजों का दान करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।मीठी चीजों का दान करेंअक्षय तृतीया के पावन दिन मीठी चीजों का दान भी किया जाता है। मीठी चीजों का दान करने से समस्याओं का निवारण होता है।जौ का दान करेंइस पावन दिन जौ दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जौ को सोने के समान माना गया है।अन्न दान करेंधार्मिक मान्यताओं के अनुसार अन्न दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। इस पावन दिन अन्न दान जरूर करें। जरूरतमंद लोगों की क्षमता के अनुसार मदद करें।
- अक्षय तृतीया को सोना खरीदने और मांगलिक कामों के लिए सबसे शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का बहुत अधिक महत्व है। इस बार अक्षय तृतीया 14 मई को पड़ रही हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे अच्छा समय होता है।अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती हैं। इसके साथ ही शास्त्रों में कुछ काम बताए गए है जिन्हें इस दिन करने की मनाही होती है। इन्हें करने से माता लक्ष्मी खुश होने के बजाय नाराज हो जाती हैं और कभी भी उनके घर नहीं ठहरती हैं। जानिए ऐसे कौन से काम है जो अक्षय तृतीया के दिन नहीं करना चाहिए।शुद्ध होकर तोड़े तुलसीहिंदू धर्म में तुलसी का बहुत अधिक महत्व है। इसके साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय होती हैं। इसलिए बिना स्नान किए तुलसी के पत्ती को नहीं तोड़ना चाहिए। इससे मां लक्ष्मी कभी भी स्वीकार नहीं करेगी।शुद्धता का रखें पूरा ध्यानइस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनें। क्योंकि इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए शुद्धता का पूरा ध्यान रखना चाहिए।क्रोध करने से बचेंमां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते है तो इस दिन गुस्सा न करें। साथ ही पूजा के समय अशांति न फैलाएं। नहीं तो मां लक्ष्मी रूठ जाएगी। मां की पूजा शांत मन और पूरे श्रद्धाभाव से करे।दूसरें का ना सोचे बुराकिसी का बुरा करने वाले, हमेशा दूसरों का अहित चाहने वालों के पास कभी माता लक्ष्मी नहीं टिकती है। अक्षय तृतीया पर माता लक्ष्मी की पूजा करने के बाद गरीबों को दान और भोजन करवाना चाहिए।मां लक्ष्मी-विष्णु जी की एक साथ करें पूजासौभाग्य और समृद्धि के लिए आज मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की अलग-अलग पूजा नहीं करना चाहिए, क्योंकि दोनों पति-पत्नी है। इस दिन दोनों की एक साथ पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
- अक्षय तृतीया पर खरीदारी करना शुभ माना गया है. इस दिन जिन चीजों की खरीदारी की जाती है वे अपना शुभ प्रभाव लेकर घर आती हैं. इसलिए लोग सोना-चांदी खरीदते हैं.ऐसा नहीं है कि केवल सोना खरीदने से शुभता प्राप्त होती है, अगर आप इस दिन राशि अनुसार अन्य चीजें खरीदें तो भी शुभ फल मिलते हैं.जानें क्यों अक्षय हो जाते हैं इस दिन किए गए काम, इस तृतीया का इतना महत्व क्यों है?मेष राशिमसूर की दाल खरीदेंवृषभ राशिचावल और बाजरा खरीदें.मिथुन राशिमूंग, धनिया, कपड़े खरीदें.कर्क राशिदूध और चावल खरीदें.सिंह राशितांबा खरीदना शुभ है.कन्या राशिमूंग की दाल खरीदें.तुला राशिचीनी और चावल खरीदें.वृश्चिक राशिगुड़ खरीदकर घर लाएं.धनु राशिकेला और चावल खरीदें.मकर राशिकाली दाल और दही खरीदें.कुंभ राशिकाले तिल और कपड़े खरीदें.मीन राशिहल्दी और चने की दाल खरीदें.--
- अक्षय तृतीया के पावन दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल 14 मई, 2021 को भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। भगवान परशुराम का जन्म ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म अन्याय, अधर्म और पापकर्मों का विनाश करने के लिए हुआ था। आइए जानते हैं भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...अजर- अमर हैं भगवान परशुरामधार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम अजर- अमर हैं। कलयुग में भगवान परशुराम जीवित हैं।भगवान शिव और विष्णु के गुण प्राप्त थेधार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को संहारक का गुण भगवान शिव ने और पालनकर्ता का गुण विष्णु भगवान ने दिया था।भगवान शिव ने दिए अस्त्र- शस्त्रभगवान परशुराम ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव से कई तरह के अस्त्र- शस्त्र प्राप्त किए थे। भगवान शिव ने ही उन्हें फरसा यानी कि परशु भी दिया था।परशुराम नाम कैसे पड़ा?धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म का नाम सिर्फ राम था। परशु धारण करने की वजह से नाम पड़ा परशुराम।इन नामों से भी जाना जाता हैभगवान परशुराम को रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है।
- परशुराम जयंती हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है। इस साल परशुराम जयंती 14 मई 2021 को मनाई जाएगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम जगत के पालनहार विष्णुजी के अवतार हैं। वे भले ही ब्राह्मण कुल में जन्मे, लेकिन उनके कर्म क्षत्रियों के समान थे। भगवान परशुराम के जीवन से हमें कई अच्छी चीजों की प्रेरणा मिलती है।माता-पिता का सम्मानभगवान परशुराम ने हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान किया और उन्हें भगवान के समान ही माना। माता-पिता के हर आदेश का पालन भगवान परशुराम ने किया। हमें भी जीवन में हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान और उनकी हर आज्ञा का पालन करना चाहिए। जो व्यक्ति माता-पिता का सम्मान करते हैं, भगवान भी उनसे प्रसन्न रहते हैं।दान की भावनाधार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ कर पूरी दुनिया को जीत लिया था, लेकिन उन्होंने सबकुछ दान कर दिया। हमें भगवान परशुराम से दान करना सीखना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार भी दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि दान करने से उसका कई गुना फल मिलता है।न्याय सर्वोपरिभगवान परशुराम ने न्याय करने के लिए सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश कर दिया था। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का मानना था कि न्याय करना बहुत जरूरी है। इसलिए उन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में इस बात का वर्णन भी है कि भगवान परशुराम सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश नहीं करना चाहते थे, परंतु उन्होंने न्याय के लिए ऐसा किया। भगवान परशुराम के लिए न्याय सबसे ऊपर था। हमें भी जीवन में न्याय करना चाहिए।विवेकपूर्ण कार्यभगवान परशुराम ने गुस्से में आकर कभी भी अपना विवेक नहीं खोया। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का स्वभाव गुस्से वाला था, परंतु उन्होंने हर कार्य को संयम से ही किया। हमें भी जीवन में सदैव विवेक और संयम बना के रखना चाहिए।
- भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं येवैशाख महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि पर परशुराम का जन्म हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन ही इनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 14 मई, शुक्रवार को रहेगा। ये भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। अमर होकर कलियुग में मौजूद हनुमानजी समेत 8 देवता और महापुरुषों में परशुराम भी एक हैं। इनका जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था और इन्हें भगवान शिव ने आशीर्वाद में परशु (फरसा) दिया था। इसी कारण इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। इनकी पूजा से साहस बढ़ता है और हर तरह का डर खत्म हो जाता है।ब्राह्मण कुल में पैदा फिर भी क्षत्रियों जैसा व्यवहारभगवान राम और परशुराम दोनों ही विष्णु के अवतार हैं। भगवान राम क्षत्रिय कुल में पैदा हुए लेकिन उनका व्यवहार ब्राह्मण जैसा था। वहीं भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, लेकिन व्यवहार क्षत्रियों जैसा था। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं। इन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। यही नहीं इनके गुस्से से भगवान गणेश भी नहीं बच पाए थे।ब्रह्मवैवर्त पुराण: परशुराम ने तोड़ा था गणेशजी का दांतब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे, लेकिन प्रथम पूज्य शिव-पार्वती पुत्र भगवान गणेश ने उन्हें शिवजी से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने परशु से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ा डाला। इस कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।पूजा विधिइस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद एक चौकी पर परशुरामजी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।हाथ में फूल और अक्षत लेकर परशुराम जी के चरणों में छोड़ दें। इसके बाद अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं और नैवेद्य अर्पित करें फिर कथा पढ़ें या सुनें।कथा के बाद भगवान को मिठाई का भोग लगाएं और धूप-दीप से आरती उतारें।आखिरी में भगवान परशुराम से प्रार्थना करें कि वे साहस दें और हर तरह के भय व अन्य दोष से मुक्ति प्रदान करें।
- 'शुभ अक्षय-तृतीया' (14-मई)(आप सभी सुधी पाठक-जनों को अग्रिम रूप में हार्दिक शुभकामनायें!)
शुक्रवार, 14 मई 2021 को 'अक्षय-तृतीया' का पर्व है, छत्तीसगढ़ में इसे 'अक्ती' के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर दान-पुण्य तथा साधना आदि का अनंत गुना फल मिलता है। साथ ही श्रीगुरुचरणों तथा भगवान श्रीराधाकृष्ण के चरणों के पूजन-अर्चन का भी विशेष महत्व है। 'जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के आज के 283-वें अंक में इसी पर्व की महत्त्वता पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है।
★★ जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'अक्षय-तृतीया' महात्म्य पर सन्देश ::::
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने प्रत्येक त्यौहार तथा पर्व का एक ही उद्देश्य बतलाया है - 'संसार से मन को हटाकर भगवान और गुरु में लगाना'. ऋषि-मुनियों द्वारा निर्धारित परंपराओं, पर्वादिकों का यही महत्त्व है कि गृहस्थ में रहते हुये मनुष्य इन पर्वों के द्वारा अपने मन को संसार से निकालकर भगवान की ओर ले जाने का प्रयास करे। 'अक्षय-तृतीया' के स्वरूप तथा महत्व पर अपने उदबोधन में उन्होंने वर्णन किया है :::
"....ये श्रीकृष्ण सम्बन्धी त्यौहार है, और जितने भी त्यौहार श्रीकृष्ण सम्बन्धी होते हैं सबका अभिप्राय केवल यही है कि हम तन, मन, धन से श्रीकृष्ण को अर्पित हों और अपना कल्याण करें. 'अक्षय' शब्द का अर्थ तो आप लोग जानते ही हैं, अनंत होता है, अर्थात जो कुछ दान किया जाता है, उसका अनंत गुना फल होता है. विशेष फल होता है, भावार्थ ये. और प्रमुख रूप से स्वर्णदान का महत्व है. लेकिन लोग उसका उल्टा कर लिये हैं. स्वर्ण खरीदने का, स्वर्ण दान के बजाय लोगों ने उसका बिगाड़ करके उसको बना लिया अपने लिये, कि सोना खरीदना चाहिये.
तो सोने का दान समर्थ लोगों के लिये है और असमर्थ लोग भी दान अवश्य करें, अपनी हैसियत के अनुसार. ऐसा प्रमुख रूप से है और तन से सेवा, मन से सेवा तो करना ही है, वो तो सदा करना ही है गरीब को भी, अमीर को भी. और तन मन धन ये तीन ही तो हैं जिनसे हम उपासना करते हैं, भगवान की भक्ति करते हैं, सेवा करते हैं. तो केवल सेवा का लक्ष्य है हर त्यौहार का, उसी में एक अक्षय तृतीया भी है...."
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने 'दान' का महत्व इस दोहे में इंगित करते हुये कहा है;
हरि को जो दान करु गोविन्द राधे।हरि दे अनन्त गुना फल बता दे।।(राधा गोविन्द गीत, दोहा संख्या 2259)
शास्त्रों ने भी कलियुग में दान की प्रधान्यता प्रतिपादित की गई है। यथा - 'दानमेकं कलौयुगे'।
★★ हरि-गुरु चरणों का भी होता है पूजन, वृन्दावन में होते हैं श्री बाँकेबिहारी जी के चरण-दर्शन
'अक्षय-तृतीया' के पावन अवसर पर वृन्दावनधाम स्थित श्रीबाँकेबिहारी जी के चरण-दर्शन भक्तजनों को कराये जाते हैं, हालाँकि लगातार दूसरे वर्ष कोविड-19 के कारण यह परंपरा नहीं होगी। इसके अलावा हरि-गुरु चरणों के श्रीचरणों का भी पूजन इस पर्व पर किया जाता है, जिसका विशेष फल प्राप्त होता है। श्री गुरुदेव तथा भगवान एक ही तत्व हैं। श्रीगुरुचरणों की सेवा से, उन चरणों की स्मृति से अन्तःकरण के अज्ञान-अंधकार का नाश होता है, तथा भगवान के प्रति हृदय में प्रेम की उत्पत्ति होती है। श्रीराधाकृष्ण के चरणारविन्दों की शरण माया के भयंकर प्रभाव में भी जीव को निर्भय बनाने वाली, पतितजनों को पावन बना देने वाली तथा जीवों के दुःख-संतप्त हृदय में प्रेम, कृपा, करुणा तथा अनंतानंत आनन्द प्रदान करने वाली है।
पुनः आप सभी पाठक-समुदाय को 'अक्षय-तृतीया' के महान पर्व की बहुत बहुत शुभकामनायें!!
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 282
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'क्रोध' पर दिया गया संक्षिप्त प्रवचन...)
क्रोध आया कि सर्वनाश हुआ। बदतमीज कहने पर बदतमीज बन गये। आप इतने मूर्ख हैं कि एक मूर्ख ने 'मूर्ख' कहकर आपको मूर्ख बना दिया।
आपमें जो समझदारी थी वो छिन गई। देखिये संत और भगवान को लोग कितना भला-बुरा कहते हैं लेकिन वे उसको अंदर ही नहीं ले जाते। इसी का नाम समझदारी है। किसी में जो अच्छी चीज है उसको ले लीजिये और खराब चीज को छोड़ दीजिये। अंदर वाली गंदगी को निकाल दीजिये और बाहर वाली अच्छाई को ले लीजिये।
समझदार उसी को कहते हैं जो नासमझ की नासमझी से अपनी समझदारी को खो ना दे। नासमझ की नासमझी उस पर हावी न हो पाये। अगर समझदार ने भी नासमझी की, तो फिर वो भी नासमझ बन गया। किसी विद्वान को किसी ने 'मूर्ख' कह दिया और वे अगर उससे लड़ गये तो वे दोनों ही मूर्ख हैं। साथ में तमाशा देखने वाले भी मूर्ख हैं।
जो अंदर भरा होता है वही तो अच्छा भी लगता है और उसी को व्यक्ति स्वीकार करता है। इससे मालूम पड़ जाता है कि आपके अंदर क्या कूड़ा भरा है। अखबार पढ़ा तो पढ़ा कि कहाँ किसने चोरी की? कहाँ कत्ल हुआ? बस उसी को पढ़ा, अब उसी का चिंतन मनन और कीर्तन किया और वैसे ही बन गये।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2005 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में मौजूद 18 पुराणों में से एक है गरुड़ पुराण जिसके अधिष्ठाता देव भगवान विष्णु माने जाते हैं। इस पुराण में श्रीहरि नारायण और उनके वाहन गरुड़ पक्षी के बीच हुई बातचीत का वर्णन है। साथ ही इसमें मानव जाति के कल्याण के लिए नीति से जुड़ी बातों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है जिसे अगर अपने दैनिक जीवन में अपना लिया जाए तो कई तरह की मुसीबतों से बचा जा सकता है। गरुड़ पुराण के आचार कांड में बताया गया है कि किसी इंसान को किन 10 लोगों के घर भूल से भी भोजन नहीं करना चाहिए ,अगर कोई व्यक्ति इन दस लोगों के द्वारा दी गई कोई चीज खाता है तो वह पाप का भागीदार बनता है। इसका कारण ये भी है कि हमारे बड़े-बुजुर्ग भी यही कहते हैं कि जैसा खाओगे अन्न वैसे होगा मन। इसलिए किन लोगों के यहां भोजन नहीं करना चाहिए इस बारे में क्या कहता है गरुड़ पुराण, यहां पढ़ें.....इन लोगों के घर कभी न करें भोजन1. कोई चोर या अपराधी- कहा जाता है कि इस तरह के लोगों के घर भोजन करने से आप भी पाप के भागीदार बनते हैं और साथ ही आपके विचार भी उनकी ही तरह दूषित हो जाते हैं।2. सूदखोर व्यक्ति- गरुड़ पुराण के अनुसार गलत तरीके से कमाया गया धन हमेशा अशुभ फल ही देता है इसलिए दूसरी की मजबूरी का फायदा उठाकर कमाए गए पैसे वाले व्यक्ति के घर भी भोजन नहीं करना चाहिए।3. चरित्रहीन स्त्री- गरुड़ पुराण के अनुसार ऐसी स्त्री के घर भोजन करने से आप भी पाप के भागीदार बनते हैं।4. रोगी व्यक्ति- वैसे लोग जिन्हें कोई गंभीर बीमारी है या अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से बीमार है तो उसके यहां भी भोजन न करें वरना आप भी उस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।5. दूसरों की चुगली करने वाला- जिन लोगों का स्वभाव चुगली करना होता है उन लोगों के घर भी भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि बातों बातों में वे आपको परेशानी में डाल सकते हैं और बाद में खुश होते हैं। लिहाजा इन पर कभी विश्वास न करें।6. जिसे ज्यादा गुस्सा आता हो- अगर आप भी ऐसे लोगों के घर जाकर भोजन करेंगे जो हमेशा गुस्से में रहते हैं तो उनके क्रोध का गुण आपके अंदर भी आ सकता है।7. किन्नर- गरुड़ पुराण के अनुसार किन्नरों को दान देना चाहिए उनके यहां भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि किन्नरों को अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के लोग दान देते हैं।8. जो निर्दयी हो- गरुड़ पुराण के अनुसार ऐसा व्यक्ति जो दूसरों को कष्ट देता हो, ऐसे निर्दयी व्यक्ति के घर भोजन नहीं करना चाहिए। इसका कारण ये है कि ऐसे घर में बने भोजन की प्रकृति भी उसी के समान होती है।9. नशीली चीजें खाने या बेचने वाला- ऐसे लोगों के घर से भी हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए और नशीली चीजें बेचने या खुद उनका सेवन करने वालों के घर भी कभी भोजन नहीं करना चाहिए।10. प्रजा पर अत्याचार करने वाला राजा- प्रजा की रक्षा करना और उन्हें हर समस्या से निकालना ही राजा का कर्तव्य है, लेकिन अगर कोई राजा प्रजा पर ही अत्याचार करे तो ऐसे राजा के घर भी किसी को भोजन के लिए नहीं जाना चाहिए।
- वास्तु शास्त्र में घर के निर्माण से लेकर डिजाइन रंग हर चीज के बारे में विस्तार से बताया गया है। घर का निर्माण करते समय लोग वास्तु के अनुसार दिशाओं का ध्यान तो रखते हैं लेकिन कई और चीजों में वास्तु को लेकर इतने गंभीर नहीं रहते हैं, लेकिन वास्तु के अनुसार यदि आप घर में सुख-शांति और समृद्धि चाहते हैं तो कई बातों को ध्यान में रखना चाहिए। इसी तरह से वास्तु शास्त्र में फर्श में लगने वाले मार्बल के बारे में भी बताया गया है। यदि आप घर में सही जगह पर सही मार्बल लगवाते हैं तो आपके घर में सुख-शांति के साथ धन की आवक भी सही प्रकार से बनी रहती है। तो चलिए जानते हैं वास्तु के अनुसार फर्श पर कैसा मार्बल लगाना चाहिए।वास्तु शास्त्र के अनुसार घर या दुकान के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में हल्के रंगों जैसे पीले रंग का मार्बल लगाना बहुत अच्छा रहता है। यदि आप इस दिशा में पूरे हिस्से में पीले रंग का मार्बल नहीं लगवाना चाहते हैं तो थोड़े से हिस्से में लगवा सकते हैं। इस दिशा में पीले रंग का मार्बल लगाने से घर में पैसों की बरकत बनी रहती है। जिससे आपके घर में किसी तरह से धन की कोई कमी नहीं रहती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपके घर की दीवारे गहरे रंग की हैं तो फर्श पर सफेद मार्बल लगवाना चाहिए। सफेद मार्बल खरीदते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए। यदि आप सफेद रंग का उपयोग नहीं भी करना चाहते हैं तो फर्श में हल्के रंग के मार्बल का प्रयोग ही करना अच्छा रहता है। घर में रंगो का सही संतुलन घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है। आपके घर में सुख-शांति आती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण दिशा में लाल रंग का मार्बल या फिर लाल रंग से फर्श में डिजाइन बनवाना चाहिए। इससे आपका और परिवार का मान-सम्मान बढ़ता है, लेकिन पत्थर खरीदते समय यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि मार्बल सिंथेटिक नहीं होना चाहिए, प्राकृतिक रूप से मिलने वाले मार्बल का ही उपयोग करना उचित रहता है।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 281(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा लिखित सिद्धान्त पुस्तक 'प्रेम रस सिद्धान्त' के 'महापुरुष' अध्याय से लिया गया है। 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक आचार्यश्री के द्वारा लिखित प्रथम पुस्तक है, जिसमें उन्होंने समस्त प्रमुख आध्यात्मिक विषयों यथा; जीव तथा उसका लक्ष्य, भगवान, माया तथा संसार का स्वरूप, अनुराग-वैराग्य, महापुरुष, भगवत्प्राप्ति के प्रमुख तीन मार्ग कर्म, ज्ञान व भक्ति, साधना के क्रियात्मक स्वरूप तथा कुसंग आदि विषयों को शास्त्र-वेदों के प्रमाण सहित बड़ी सरल व बोधगम्य शैली में समझाया है। इस पुस्तक का प्रथम प्रकाशन वर्ष 1955 में हुआ था। भगवदीय जिज्ञासुओं के लिये यह पुस्तक-ग्रन्थ एक अमूल्य निधि के समान ही है...)...एक बात स्मरण रहे कि महापुरुष या गुरु-तत्त्व से यह अभिप्राय नहीं है कि जो केवल शास्त्र-वेद का विद्वान-मात्र हो अथवा केवल अनुभवीमात्र हो। आप्त ग्रंथों ने दोनों ही बातों को प्राधान्य दिया है। यद्यपि मेरी राय में यदि शास्त्र वेद का विद्वान नहीं भी है तो भी अनुभवी महापुरुष से काम बन सकता है क्योंकि उसके (भगवान/भगवत्तत्व) जान लेने पर सब कुछ स्वयंमेव ज्ञात हो जाता है।आप्त ग्रंथों एवं लोक में भी तीन शब्द पढ़ने सुनने में आते हैं; एक पुरुष, दूसरा महापुरुष एवं तीसरा परमपुरुष। दूसरे शब्दों में इन्हीं तीनों को जीवात्मा, महात्मा एवं परमात्मा शब्दों से पुकारा जाता है। हमें महापुरुष या महात्मा तत्त्व पर विचार-विनिमय करना है। वास्तव में जीवात्मा एवं परमात्मा अथवा पुरुष एवं परमपुरुष के मध्य की स्थिति का नाम ही महात्मा या महापुरुष है। अर्थात् जिस जीवात्मा या पुरुष ने परमात्मा या परम पुरुष को जान लिया हो, देख लिया हो, उसमें प्रविष्ट हो चुका हो, वही महात्मा या महापुरुष है। भावार्थ यह कि ईश्वर-प्राप्त जीव को ही महापुरुष कहते हैं।यदि आप विरक्त हों तभी श्रद्धायुक्त हो सकते हैं, तभी महापुरुष का मिलन काम का हो सकता है, अन्यथा तुलसी के कथनानुसार;मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं विरंचि सम।अर्थात् यदि ब्रह्मा सरीखा गुरु भी मिले और आप उससे न मिलें, तात्पर्य यह कि आप श्रद्धाहीन होने के कारण कुतर्क करें और कुतर्कों द्वारा उसे न पहिचानें तो महापुरुष का मिलन लाभदायक न हो सकेगा क्योंकि मरीज को, डॉक्टर को डॉक्टर मानने की तभी सूझेगी जब अपने आपको मरीज महसूस करेगा। आप कहेंगे, यह तो सभी जानते हैं कि हम काम, क्रोध, लोभादिक रोगों से ग्रस्त हैं। यह ठीक है सभी जानते हैं किन्तु सभी मानते नहीं हैं, जैसा कि तुलसीदास जी ने बताया है;हैं सबके लखि बिरलन्हि पाये।अर्थात् यह कामादि दोष यद्यपि सभी के अन्त:करण में नित्य विद्यमान रहते हैं किन्तु इनको इने-गिने बिरले ही महसूस करते हैं। अतएव वे ही इलाज कराने की सोचते हैं। वे ही डॉक्टर पर विश्वास करते हैं एवं औषधि सेवन करते हैं, अन्यथा यहाँ तक होता है कि महापुरुष को किसी सीमा तक लोग महापुरुष अर्थात् डॉक्टर (अंतःकरण/ईश्वरीय क्षेत्र के संदर्भ में) मान भी लेते हैं किन्तु दवा खाने अर्थात् साधना करने में लापरवाही करते हैं। अतएव वास्तविक परिणाम से वंचित रह जाते हैं। अतएव आप वास्तविक श्रद्धालु भी हों, एवं वास्तविक सन्त के शरणागत भी हों तभी समस्या हल हो सकती है। अतएव तुलसीदास जी के कथनानुसार;शठ सुधरहिं सत संगति पाई।अर्थात् शठ का भी सुधार हो सकता है यदि वह श्रद्धायुक्त होकर महापुरुष के आदेश का पालन करे। जैसे, लोहा भी पारस के संग से सुवर्ण बन जाता है। यहाँ तो सन्त-संग से सोना ही नहीं, पारस ही बना जा सकता है किन्तु यदि लोहे एवं पारस के मिलन में गड़बड़ी है अथवा लोहा ही गलत है या पारस गलत है या दोनों ही गलत हैं तो परम लक्ष्य की प्राप्ति सर्वथा असंभव है।अब आप एक बार पुन: क्रम समझ लीजिये। आपको परमानन्द प्राप्त करना है। परमानन्द एकमात्र ईश्वर में ही है, अतएव ईश्वर को प्राप्त करना है। ईश्वर इन्द्रिय, मन, बुद्धि से अप्राप्य है किन्तु वह जिस पर कृपा कर देता है, वह उसे प्राप्त कर लेता है। उसकी कृपा शरणागत पर ही होती है। शरणागति मन की करनी है। मन अनादिकाल से संसार में ही सुख मानता आया है अतएव संसार का स्वरूप गंभीरतापूर्वक समझना है। संसार का स्वरूप समझकर उस पर बार-बार विचार करना है यानी मनन करना है। तब संसार से वैराग्य होगा। अर्थात् मन राग-द्वेष-रहित होगा।यह ध्यान रहे कि जब तक मन ईश्वर के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी राग या द्वेषयुक्त (आसक्त) रहेगा, तब तक ईश्वर-शरणागति असम्भव है और जब तक संसार में, 'न तो यहाँ हमारा आध्यात्मिक सुख है और न यहाँ हमें बरबस अशान्त करने वाला दुःख ही है', ऐसा ज्ञान परिपक्व न होगा, तब तक वैराग्य भी असम्भव है।इस परिपक्वता के लिये संसार स्वरूप पर गम्भीर विचार एवं बार-बार विचार करना होगा, बार-बार विचार से ही दृढ़ता आयेगी। एक बार विचार करने मात्र से काम नहीं बनेगा क्योंकि अनन्तानन्त जन्मों का विपरीत विचार संगृहीत है। उसे काटने के लिए;जन्म मृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्। (गीता)अर्थात् बार-बार विचार करना होगा तब मन खाली होगा। बस, वही दिन आपका सौभाग्य का होगा जिस दिन मन खाली हो जायगा। उस विरक्त मन को ईश्वर के शरणागत करना है, जिस शरणागति के परिणामस्वरूप, ईश्वर-कृपा के परिणामस्वरूप ईश्वरीय ज्ञान एवं ईश्वरीय दिव्यानन्द की प्राप्ति होनी है।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त' (अध्याय - महापुरुष)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
- वास्तु शास्त्र में जानिए रोगों से मुक्ति दिलाने में नमक के फायदे के बारे में।जब घर में कोई भी सदस्य बीमार पड़ता है तो घर का पूरा माहौल अशांत हो जाता है। यदि आपके घर में भी कोई सदस्य बीमार है तो रोगी के सोने के कमरे में सिरहाने पर एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रख दें, परंतु ध्यान दें कि रोगी का सिरहाना पूर्व दिशा की ओर हो।रोगी के खाने में भी सेंधा नमक का ही इस्तेमाल करना चाहिए, जबकि साधारण नमक का उपयोग कम से कम करना चाहिए।ऐसा करने से रोगी की सेहत में जल्द ही सुधार होने लगता है। इस तरह से घर का अशांत माहौल भी शांत होने लगेगा।
- भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। परशुरामजी की जयंती वैशाख मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। भगवान परशुराम भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शास्त्रों में उन्हें अमर माना गया है। शिवजी से उन्होंने संहार लिया और विष्णुजी से उन्होंने पालक के गुण प्राप्त किए। सहस्त्रार्जुन जैसे मदांध का वध करने के लिये ही परशुराम अवतरित हुए।राम से ऐसे बने परशुराममहर्षि जमदग्रि के चार पुत्र हुए, उनमें से परशुराम चौथे थे। परशुराम के जन्म का नाम राम माना जाता है, वहीं रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि पापियों के संहार के लिए इन्होंने भगवान शिव की कड़ी तपस्या कर उनसे युद्ध कला में निपुणता के गुर वरदान स्वरूप पाये। भगवान शिव ने उन्हें असुरों का नाश करने के लिए कहा। राम ने बिना किसी अस्त्र से असुरों का नाश कर दिया। भगवान शिव से उन्हें कई अद्वितीय शस्त्र भी प्राप्त हुए इन्हीं में से एक था भगवान शिव का परशु जिसे फरसा या कुल्हाड़ी भी कहते हैं। यह इन्हें बहुत प्रिय था वे इसे हमेशा साथ रखते थे। परशु धारण करने के कारण ही इन्हें परशुराम कहा गया। कहा जाता है कि भारतवर्ष के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाए गए। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चलाकर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। उन्हें भार्गव नाम से भी जाना जाता है।21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का किया विनाशपरशुरामजी को भगवान विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में इन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध किया और उनका समूल नाश किया। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और संपूर्ण पृथ्वी को महर्षि कश्यप को दान कर दिया। महाभारत युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। उन्होंने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था। परशुराम का उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक मिलता है। इतना ही नहीं इनकी गिनती तो महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है।अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्वइस पर्व से अनेकों पौराणिक बातें जुड़ी हुई हैं। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन समाप्त हुआ था। भविष्यपुराण के अनुसार वैशाख पक्ष की तृतीया के दिन ही सतयुग तथा त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। उत्तराखंड के प्रसिद्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट भी आज ही के दिन पुनः खुलते हैं और इसी दिन से चारों धामों की पावन यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बाकी पूरे वर्ष चरण वस्त्रों से ही ढके रहते हैं।
- देवी लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है. लिहाजा हर व्यक्ति यही प्रयास करता है कि वह माता लक्ष्मी को हमेशा प्रसन्न रख पाए ताकि उस पर माता की कृपा और आशीर्वाद हमेशा बना रहे. लेकिन देवी लक्ष्मी चंचल होती हैं और एक जगह पर अधिक देर तक रुकती नहीं हैं. लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसी बातें भी बतायी गई हैं जो मां लक्ष्मी को बिल्कुल पसंद नहीं है। अगर आप भी जाने-अनजाने वो गलतियां करते हैं तो सावधान हो जाइए वरना अगर मां लक्ष्मी आपके रूठ गईं तो आपको राजा से रंक बना सकती हैं जिसकी वजह से आपको पैसों की तंगी का सामना करना पड़ सकता है.भूल से भी न करें ये गलतियांसुबह देर तक सोते रहनाइन दिनों लोगों की लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि वे रात में देर तक जागते रहते हैं और सुबह देर तक सोते रहते हैं. वेद और पुराणों में सूर्योदय से पहले जगना सर्वश्रेष्ठ माना गया है और सुबह देर तक सोने वालों (Sleeping till late in morning) से मां लक्ष्मी कभी खुश नहीं होती. साथ ही सूर्यास्त के समय गोधूलि बेला का समय पूजा पाठ का और मां लक्ष्मी के घर में आगमन का माना जाता है. ऐसे समय में सोना भी ठीक नहीं है और इससे भी मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं.रात के समय नाखून काटनाकई लोग अपने व्यस्त दिनचर्या की वजह से दिन या रात किसी भी समय कोई भी काम कर लेते हैं बिना ये सोचे कि इसका उनके जीवन पर क्या प्रभाव हो सकता है. इन्हीं में से एक काम है रात के समय नाखून काटना जो बिल्कुल नहीं करना चाहिए. रात के समय नाखून काटना अशुभ माना जाता है और साथ ही में ऐसा करने से देवी लक्ष्मी भी नाराज हो जाती हैं जिस कारण जीवन में धन संबंधी परेशानियाों होने लगती हैं.भोजन के बीच में उठनाशास्त्रों में कहा गया है कि भोजन करते समय बीच में नहीं उठना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करना देवी अन्नपूर्णा का अपमान माना जाता है. देवी अन्नपूर्णा देवी लक्ष्मी का ही एक रूप हैं. भोजन को बीच में ही छोड़कर उठने की आदत जिन लोगों को होती है उनके घर में कभी बरकत नहीं आती और मां लक्ष्मी भी उनसे नाराज हो जाती हैं.शाम के वक्त न दें नमकभले ही कोई अपना कितना भी अच्छा मित्र क्यों न हो, अगर वह शाम के समय आपके नमक मांगने आए तो उसे भूलकर भी उस समय नमक न दें क्योंकि नमक उधार देने से घर की बरकत चली जाती है और जीवन में पैसों की तंगी का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही हाथ में नमक देने या लेने से भी मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं.रसोई में झूठे बर्तन रखनारात में सोने से पहले झूठे बर्तनों को जरूर साफ करें वरना इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो सकता है और मां लक्ष्मी भी नाराज हो जाती हैं जिससे धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. झूठे बर्तनों को रसोई में लंबे समय तक न छोड़ें और रात में उन्हें धो लेना ही बेहतर होता है.
- हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है गरुड़ पुराण जिसे मृत्यु के बाद सुनने का प्रावधान है. गरुड़ पुराण में कुल 19 हजार श्लोक हैं जिसमें मनुष्य के कर्म के अनुसार उसे कैसे फल मिलते हैं इस बारे में विस्तार से चर्चा की गई है. यहां तक की व्यक्ति का जीवन कैसे खुशहाल हो इन नीतियों के बारे में भी गरुड़ पुराण में बताया गया है. इसी क्रम में गरुड़ पुराण में एक श्लोक मिलता है जिसमें बताया गया है कि उन सात बेहद पवित्र चीजों के बारे में जिन्हें देख लेने भर से मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती हैक्या कहता है गरुड़ पुराण का श्लोक?गोमूत्रं गोमयं दुग्धं गोधूलिं गोष्ठगोष्पदम्।पक्कसस्यान्वितं क्षेत्रं द्ष्टा पुण्यं लभेद् ध्रुवम्।।अर्थात: गोमूत्र, गोबर, गाय का दूध, गोधूलि, गौशाला, गोखुर और पकी हुई फसल से भरपूर खेत देख लेने मात्र से ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है.1. गोमूत्र- हिंदू धर्म में गाय को माता और दैवीय पशु माना जाता है इसलिए गोमूत्र को भी शास्त्रों में बेहद पवित्र माना गया है. ऐसी मान्यता है कि गोमूत्र में मां गंगा का वास होता है. आयुर्वेद में गोमूत्र का प्रयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है. इसलिए गरुड़ पुराण के अनुसार गोमूत्र को देख लेने मात्र से पुण्य की प्राप्ति होती है.2. गोबर- गोमूत्र की ही तरह गोबर को भी सनातन धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है. पूजा घर को गोबर से लीपकर पवित्र बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. पूजा में भी गौरी और गणेश की प्रतिमा गाय के गोबर से ही बनायी जाती है. ऐसे में गरुड़ पुराण का कहना है कि अगर आप गोबर को देख लें तो इससे भी आपको शुभ फल और पुण्य मिलता है.3. गाय का दूध- गाय के दूध को सदियों से अमृत समान माना जाता है. पूजा में बनने वाले पंचामृत में भी गाय के दूध का ही इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेदिक इलाज में भी गाय के दूध का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में गरुड़ पुराण की मानें तो गाय का दूध देखने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है.4. गोधूलि- गोधूलि का अर्थ है गाय के पैरों की धूल. साथ ही शाम और रात के बीच के समय को भी गोधूलि बेला कहा जाता है. सनातन धर्म में गाय के पैरों की धूल को भी पुण्य देने वाला माना गया है. इसलिए गरुड़ पुराण में गोधूलि को देखने से भी पुण्य प्राप्त होने की बात कही जा रही है.5. गौशाला- गौशाला यानी वह जगह जहां गायें रहती हैं इसलिए गौशाला को भी पवित्र माना जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार गौशाला के दर्शन भर से ही आप पुण्य के भागीदार बन सकते हैं.6. गोखुर- गोखुर यानी गाय के पांव. जिस तरह बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने से पुण्य की प्राप्ति होती है, और गाय के पैरों की धूल को पुण्य देने वाला माना गया है, ठीक उसी तरह गाय के पैर यानी खुर को देखना भी पुण्य देने के बराबर है.7. पकी हुई फसल का खेत- गरुड़ पुराण के अनुसार पकी हुई फसल का खेत (Field with crop) देखने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है. इसका कारण ये है कि पकी हुई फसल से भरा खेत किसान की मेहनत और समृद्धि का सूचक है.--
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घर में जरूर लगाएं ये तीन पौधे, मिलते हैं कई लाभ
हरा-भरा आंगन या बगिया हमारे घर को प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करती है, शुद्ध वायु देती है जिससे हमारी सेहत अच्छी रहती है। वास्तुशास्त्र में ऐसे अनेक पेड़-पौधे हैं जिनको घर में लगाना बहुत ही शुभ और लाभकारी माना गया है। इन्हें लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। तीन तरह के पौधों को आप ऑफिस में भी लगा सकते हैं। इससे एक तरफ जहां आपको व्यापार में फायदा होगा वहीं घर में सुख-समृद्धि और खुशियां आएंगी।आइए जानते हैं कौन से हैं वह पेड़-पौधे-अशोक का पेड़यह पेड़ सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। इसे घर के बाहर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का घर में प्रवेश नहीं होता। वास्तु के अनुसार अशोक का पेड़ घर की उत्तर दिशा में लगाना चाहिए ऐसा करने से आपके घर में हर वक्त सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अशोक का पेड़ लगाने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। इस पेड़ को शोकनाशक माना गया है इसलिए घर में इसे लगाने से किसी को अकाल मृत्यु का शिकार नहीं होना पड़ता। अशोक का पेड़ लगाने से घर के प्रत्येक सदस्यों की शारीरिक और मानसिक ऊर्जा में भी वृद्धि होती है। इससे परिवार के लोगों को मानसिक तनाव के कारण पैदा होने वाली मुसीबतें परेशान नहीं करती हैं और लाभ पहुँचता है।घर की महिलाओं द्वारा नियमित रूप से अशोक के पेड़ को पानी दिया जाना चाहिए इससे उनका वैवाहिक जीवन अच्छा बना रहता है। इस पेड़ को लगाने से परिवार के सदस्यों के सामाजिक मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है। इसके पत्तों को धागे में पिरोकर घर के मुख्य गेट पर लगाने से नेगेटिव एनर्जी घर में प्रवेश नहीं करती है। पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए अशोक का पेड़ लाभकारी माना जाता है। थोड़ी देर इसके नीचे बैठकर पढऩे से बच्चों का दिमाग तेज होता है। अशोक का पेड़ घर के बाहर लगाने से उत्पन्न होने वाली सकारात्मक ऊर्जा के कारण धन प्राप्ति का मार्ग भी प्रबल होता है अर्थात आपको धन आगमन के नए अवसर प्राप्त होते हैं।मनी ट्री या क्रासुलाक्रासुला को मनीट्री या जेड प्लांट भी कहा जाता है। वास्तु के अनुसार छोटे-छोटे गोल पत्ते वाले पौधे को घर या ऑफिस में रखना बहुत शुभ होता है। धन लाभ और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसे दरवाज़े के पास प्रवेश द्वार पर अंदर की ओर लगाना चाहिए। कहते हैं यह पौधा चुंबक की तरह पैसों को अपनी ओर खींचता है। इसे लगाने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती, इसका पौधा खरीद के किसी गमले या जमीन में लगा दें, फिर यह अपने आप फैलता रहेगा। इसे धूप या छांव कहीं भी लगाया जा सकता है। इस पौधे के बारे में मान्यता है कि यह सकारात्मक ऊर्जा और धन को अपनी ओर खींचता है।बांस के पौधेघर में बांस के पौधे लगा सकते हैं। वास्तु के अनुसार बांस के पौधे सुख व समृद्धि के प्रतीक होते हैं। बांस के पौधे को शुभ, सौभाग्य और लम्बी आयु का प्रतीक माना गया है। वास्तुविज्ञान के अनुसार यदि बांस के पौधे को दिशाओं के अनुरूप सही स्थान दिया जाए तो ये चमत्कारिक लाभ प्रदान करता है। बांस का अद्भुत पौधा नकारात्मक ऊर्जा को ख़त्म करता है,वही यह अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध करता है अत: इसे घर में अवश्य लगाना चाहिए। इसे लाल रिबन से बांधकर और कांच के बाउल में पानी डालकर रखना चाहिए। कांच के जार में छोटे आकार के बांस के पौधों को लाल धागे में बांधकर दुकान, प्रतिष्ठान में ईशान या उत्तरी दिशा में रखने से आर्थिक प्रगति होने लगती है। जीवन में धन की कभी कमी महसूस न हो इसके लिए 6 बांस के डंठल का प्रयोग आपको लाभ देगा। वास्तु के अनुसार बांस के छह डंठल धन को आकर्षित करते हैं। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 280
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से गुरु उपदेशों के प्रति साधक के कर्तव्य तथा उसकी लापरवाही के सम्बन्ध के संबंध में कुछ मार्गदर्शन..)
....हमको जो सुख मिलता है, वो आत्मा का सुख नहीं है मन का है और लिमिटेड है और वो नश्वर है। तमाम गड़बड़ियाँ हैं उसमें। जो भी सुख हमको मिलता है संसार में वो सदा नहीं रहता। ये तो अनुभव करता है आदमी। भूख लगी है रसगुल्ला खाया सुख मिला। उसमें भी पहले रसगुल्ले में ज्यादा सुख मिला, दूसरे में उससे कम, तीसरे में उससे कम, चौथे में खतम। जिस वस्तु से सुख मिलता है उससे भी हमेशा एक सा नहीं मिलता। धीरे-धीरे घटता जाता है और फिर उसी से दुःख मिलने लगता है। ये भी होता है। स्वार्थ हानि हुई कि दुःख। उसी बीबी से प्यार और उसी बीबी की शकल देखने से नफरत हैं। उसी बेटे से प्यार है और उसी से झगड़ा हो गया या कोई अपमान कर दिया बाप का तो उससे बातचीत करना बन्द। तो संसार का सुख तो अगर थोड़ा है और सदा रहे तो भी कोई बात है। वो तो आया गया, धूप-छाँव की तरह।
तो ये सब बातें हमेशा बुद्धि में बैठी रहें। कभी बैठती हैं कभी गायब हो जाती हैं, फिर संसार में बह जाता है वो लापरवाही से।
तत्त्वविस्मरणात् भेकीवत्।
भूल गया। तो फिर क्या होगा? बहुत बचपन की बात है। एक व्यक्ति डायरी रखता था हमेशा। उसको भूलने की आदत थी, तो उसमें लिख ले। तो हमने कहा - एक बात बताओ, वो डायरी में लिख लेता है और अगर डायरी पढ़ना भूल जाय तो वो लिखा हुआ क्या करेगा? डायरी में कोई लिख ले क्यों लिख ले? भूल जायेगा। बढ़िया तरकीब है। अच्छा जी! ये तरकीब अगर बढ़िया है लेकिन वो पढ़ना भूल जाय तो? अरे! जब भूल जाय, तो सभी कुछ भूल सकता है। तो फिर तुम्हारा लिखना ये क्या काम करेगा?
तो हम तत्त्व को भूल जाते हैं। जिस समय गुरु का उपदेश होता रहता है तो समझ में सब बात आती है पढ़े लिखे आदमी को। वो मानता है, एडमिट करता है, सब सही है और फिर संसार के एटमाॅसफियर में गया और भूल गया। तो उसमें सावधान रहना चाहिये और बार-बार मन को पकड़ करके बुद्धि के द्वारा हरि गुरु के चरणों में लगाते रहना चाहिये। तो अभ्यास करने से पक्का हो जायेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० पुस्तक सन्दर्भ : प्रश्नोत्तरी, भाग - 3०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - यदि किसी व्यक्ति के हाथ में अंगूठा जमीन की तरफ झुका हो और उंगली एवं अंगूठे के बीच ज्यादा दूरी हो तो ऐसे व्यक्ति जीवन में ज्यादा बचत नहीं कर पाते। पैसे बचाने के लिए इन लोगों के सामने कुछ ना कुछ दिक्कतें बनी रहती हैं। यदि सभी उंगलियों को परस्पर जोडऩे से उनमें किसी तरह का खुला हुआ हिस्सा नहीं दिखे तो समझिए ऐसा व्यक्ति खर्च करने से पहले कई बार सोचता है। इस तरह के लोग बचत करने में बहुत ही कुशल होते हैं। व्यक्ति के हाथ में यदि शुक्र, गुरु और सूर्य पर्वत सही स्थिति और आकार में हैं तो ऐसे व्यक्ति को कोई भी धनवान होने से नहीं रोक सकता। लेकिन यदि बृहस्पति पर्वत नहीं है तो हमेशा पैसे की कमी बनी रहेगी।यदि सूर्य भी सही स्थिति में नहीं है तो पैसे और स्वास्थ्य की दिक्कत हमेशा बनी रहेगी। हस्तरेखा विज्ञान में लकीरों का एक साथ होना और जाल की तरह से दिखाई देना भी अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन यदि जाल में रेखाएं एक-दूसरे को काट नहीं रही तो यह शुभ संकेत है। ऐसे लोगों को निरंतर कोशिश करते रहनी चाहिए। सफलता अवश्य मिलेगी। शुक्र पर्वत पर क्षितिज रेखा होने के बावजूद यदि वे साफ नहीं है तो हमेशा पैसे की दिक्कत बनी रहेगी। यदि शुक्र पर्वत साफ है और रेखाओं का जाल नहीं है तो घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। यदि शुक्र पर्वत से एक रेखा निकलकर बृहस्पति पर्वत तक जाए तो ऐसे लोगों के जीवन में हमेशा लक्ष्मी जी का आशीर्वाद बना रहता है। अगर चंद्र पर्वत से क्षितित रेखा बृहस्पति पर्वत तक जाए तो यह भी शुभ संकेत है। इसका मतलब है कि आपके घर लक्ष्मी आने वाली हैं।