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- सर्वार्थसिद्धि योग के साथ ही इस दिन अमृतसिद्धि योग का भी रहेगा संयोगहिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है। इससे एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। वहीं जिस दिन रंग खेला जाता है, उसे कहीं कहीं धुलेंडी भी कहा जाता है। ऐसे में इस बार हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार होली 29 मार्च 2021 को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पड़ रही है।इस दिन ध्रुव योग का भी निर्माण हो रहा है। इसके अलावा 03 मार्च, सन् 1521 के बाद यानि 499 साल बाद, इस बार एक विशेष दुलर्भ योग भी पड़ रहा है। आइए जानते हैं इस बार होली व होलाकाष्टक से जुड़ी खास बातों के साथ ही इस बार के पड़ रहे दुर्लभ योग के अलावा होली का समय, होलिका दहन तिथि, होली 2021 डेट व शुभ मुहूर्तइस बार दो दुलर्भ योगइस बार बन रहे दुलर्भ योगों में से पहले के अनुसार 29 मार्च को होली में चंद्रमा, कन्या राशि में विराजमान रहेंगे, जबकि गुरु और शनि ग्रह अपनी ही राशियों में रहेंगे। इन दोनों ग्रहों का ऐसा संयोग इससे पहले 3 मार्च, सन् 1521 में बना था। वहीं दूसरा योग भी दुर्लभ योग है जो दशकों बाद पड़ रहा है, इसके अनुसार इस बार होली पर सूर्य, ब्रह्मा और अर्यमा की साक्षी भी रहेगी।ऐसे समझें होलाष्टकहोली से 8 दिन पहले हिंदू धर्म के अनुसार होलाष्टक लग जाता है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को वर्जित माना गया है। इसी कारण इस समय शादी, गृह प्रवेश समेत अन्य मांगलिक कार्य इस दौरान नहीं किए जाते हैं।होलाष्टक की तिथिहोलाष्टक आरंभ तिथि: 22 मार्च से लगेगाहोलाष्टक समाप्ति तिथि: 28 मार्च तकहोलिका दहन : जानें इसकी कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु भक्त प्रहलाद को राक्षस हिरण्यकश्यप की आज्ञा पर जब उसकी बहन और प्रहलाद की बुआ होलिका आग पर बिठाकर मारने की कोशिश करती है तो वह खुद जल जाती है और प्रहलाद बच जाता है। इसके नाम पर ही होलिका दहन की परंपरा है। जानकारों की मानें तो होलिका का अर्थ समाज के बुराई को जलाने के प्रतिक के तौर पर मनाया जा जाता है।होलिका दहन रविवार, 28 मार्च 2021होलिका दहन मुहूर्त – 18:36:38 से 20:56:23 तककुल अवधि – 02 घंटे 19 मिनट 45 सैकेंडहोली 2021 की तिथि और शुभ मुहूर्तपूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: मार्च 28, 2021 को 03:27 बजेपूर्णिमा तिथि समाप्त: मार्च 29, 2021 को 00:17 बजे
- भारतीय संस्कृति की पहचान बने स्वस्तिक चिह्न को दरअसल गूढ़ रहस्यों से जुड़ा हुआ माना जाता है। ‘स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिक:’ अर्थात कल्याण करने वाला प्रतीक है स्वस्तिक। हिंदु धर्म की हर पूजा-अर्चना में पवित्र स्वस्तिक जरूर उपस्थित होता है। ऋग्वेद में इसे सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धांत सार ग्रंथ में इसे विश्व ब्रह्मांड का प्रतीक चित्र माना गया है। इसकी चार भुजाएं ब्रह्मांड की ऊर्जा के फैलाव की दिशा बताती हैं। सिद्धांत सार ग्रंथ में स्वस्तिक को ब्रह्मांड का प्रतीक चित्र माना गया है। इसकी चार भुजाएं ब्रह्मांड की ऊर्जा के फैलाव की दिशा बताती हैं। अन्य ग्रन्थों में चार युगों से भी इसे जोड़ा गया है। इसे गणपति का चिह्न कहा जाता है।अन्य ग्रन्थों में चार युगों से भी इसे जोड़ा गया है। इसे गणपति का चिह्न कहा जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश जी की शक्ति का स्थान माना जाता है, जिसका बीज मन्त्र ‘गं’ होता है। इसमें जो चार बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास बताया जाता है। इसे बनाते समय भी विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि दो सीधी रेखाएं एक-दूसरे को काटते हुए आगे चलकर जब अपने दायीं ओर मुड़ें तो ही इसका स्वरूप कल्याणकारी बनता है। इसे बायीं ओर मोड़ कर बनाना कार्य-अनुष्ठान के लिए अशुभ हो जाता है।आजकल भले ही यह सजावटी चीजों में भी बनाया जाने लगा हो, लेकिन यह अति पवित्र और कल्याणकारी ऊर्जा लिए मंगल चिह्न है, जो घर, कार्यालय या किसी भी महत्व की चीज में देवों के पूजन के प्रतीक रूप में बनाया जाना चाहिए। वास्तु में भी माना जाता है कि किसी भी स्थान की नकारात्मकता दूर करने के लिए स्वस्तिक बना देना उस स्थल की ऊर्जा के लिए कल्याणकारी होता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, जिस मनुष्य के शरीर में रेखाएं स्वस्तिक का चिह्न बनाती हैं, वह परम भाग्यशाली माना जाता है। माना जाता है कि ऐसा मनुष्य जहां भी जाता है, उसका अनुकूल प्रभाव दूसरों पर पड़ता है, जिससे दूसरे लाभान्वित होते हैं। हिंदू धर्म में ही नहीं, कई अन्य धर्मों में भी इसका उल्लेख मिलता है। बौद्ध मान्यता में इसे वानस्पतिक संपदा का प्रतीक माना गया है। इसे बनाने का भी विधान है। धार्मिक कार्यों में सदैव रोली, हल्दी या सिंदूर से स्वस्तिक बनाना चाहिए
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गायत्री शक्ति पीठ के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के प्रवचनों की कड़ी में आज;
'संकल्प शक्ति जगायें और अपना उत्थान करें'सृष्टि का कुछ ऐसा विलक्षण नियम है, कि पतन स्वाभाविक है और उत्थान कष्टसाध्य बनाया गया है। पानी को आप छोड़ दीजिए, नीचे बहता हुआ चला जायेगा। इसके लिये और आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। नीचे गिरने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है और कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है। ऐसा ही संसार का कुछ विलक्षण नियम है। पतन के लिये, बुरे कर्मों के लिये आपको ढेरों के ढेरों साधन मिल जायेंगे, सहकारी मिल जायेंगे, किताबें मिल जायेंगी और कोई नहीं मिलेगा तो आपके पिछले जन्म- जन्मांतरों के संग्रह किये हुए कुसंस्कार ही इस मामले में आपकी बहुत मदद करेंगे। वो आपको गिराने के लिये बराबर प्रोत्साहित करते रहेंगे। पाप- पंक में घसीटने के लिये बराबर आपका मन चलता रहेगा। इसके लिये न किसी अध्यापक की जरूरत है, न किसी और की कोई सहायता की जरूरत है। ये तो अपनी नेचर जैसी हो गई है, पीछे की तरफ गिराने वाली कोशिश इस संसार में इतनी भरी हुई पड़ी है, जिससे बचाव अगर आप न करें, उसका विरोध आप न करें, उसका मुकाबला आप न करें तो आप विश्वास रखिए, आप निरन्तर गिरेंगे, पतन की ओर गिरेंगे। सारा समाज इसी तरफ चल रहा है।आप निगाह उठा के देखिए। आपको कहाँ ऐसे आदमी मिलेंगे जो सिद्धान्तों को ग्रहण करते हों और आदर्शों को अपनाते हों। आप जिन्हें भी देखिए। अधिकांश लोगों में से कई बुराई की ओर चलते हुए दिखाई पड़ेंगे आपको। पाप और पतन के रास्ते पर उनका चिंतन और मनन काम कर रहा हुआ होगा। उनका चरित्र भी गिरावट की ओर और उनका चिंतन भी गिरावट की ओर। फिर आपको क्या करना चाहिए? अगर आपको ऊँचा उठना है तो आपको भीतर से हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। क्या हिम्मत करें? ये हिम्मत करें कि ऊँचे उठने वाले जिस तरीके से संकल्प बल का सहारा लेते रहे और हिम्मत से काम लेते रहे, व्रतशील बनते रहे, आपको उस तरीके से व्रतशील बनना चाहिए। देखा है न आपने। जब जमीन पे से ऊपर की तरफ चढ़ना होता है तो जीने का इन्तजाम करते हैं, सीढ़ी का इन्तजाम करते हैं। तब मुश्किल से धीरे- धीरे चढ़ते हैं। गिरने में क्या देर लगेगी? अंतरिक्ष में उल्काएँ अपने आप गिरती रहती हैं। जब जमीन से रॉकेट अन्तरिक्ष की ओर उछालने पड़ते हैं, तब करोड़ों-अरबों रुपया खर्च करते हैं, तब एक रॉकेट का ऊपर अंतरिक्ष में उछालना सम्भव होता है। तो क्या करना चाहिए? आपको यही करना पड़ेगा कि चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए जो कुसंस्कार ढेरों के ढेरों इकट्ठे कर लिये हैं, अब इन कुसंस्कारों के खिलाफ बगावत शुरू कर दीजिए। कैसे करें? अपने को मजबूत बनाइये। मजबूत नहीं बनायेंगे तब। तब फिर आपके पुराने कुसंस्कार फिर आ जायेंगे। मन को समझायें। जरा सी देर में समझ जायेगा, फिर उसी रास्ते पर आ जायेगा। क्या करना चाहिए?‘संकल्प शक्ति’ का विकास करना चाहिए। ‘संकल्प शक्ति’ किसे कहते हैं? ‘संकल्प शक्ति’ उसे कहते हैं, जिसमें कि ये फैसला कर लिया जाता है कि हमको ये तो करना ही है। ये हर हाल में करना है। करेंगे या मरेंगे। इस तरीके से संकल्प अगर आप किसी बात का कर लें तो आप विश्वास रखिए, फिर आपका जो मानसिक निश्चय है, वो आपको आगे बढ़ा देगा। अगर आपका मनोबल नहीं है और निश्चय बल नहीं है, ऐसे ही ख्वाब देखते रहते हैं कि ‘ये करेंगे’, विद्या पढ़ेंगे, व्यायाम करना शुरू करेंगे, फलाना काम करेंगे। आप कल्पना करते रहिए। कभी कुछ नहीं कर सकते। कल्पनाएँ आज तक किसी की सफल नहीं हुईं और संकल्प किसी के असफल नहीं हुए।इसीलिये आपको संकल्प शक्ति का सहारा लेने के लिये व्रतशील बनना चाहिए। आप व्रतशील बनिए। श्रेष्ठ काम करने के लिये, उन्नति की दिशा में आगे बढ़ने के लिये आपको कोई न कोई संकल्प मन में लेना चाहिए कि ये काम करेंगे।काम करने तक के लिये कई आदमी ऐसा कर लेते हैं कि जब तक ये अच्छा काम न कर लेंगे, ये काम नहीं करेंगे। जैसे नमक नहीं खायेंगे, घी नहीं खायेंगे वगैरह- वगैरह। ये क्या है? इसको देखने में तो कोई खास बात नहीं है। आपको अमुक काम करने से नमक का क्या ताल्लुक और आपने घी खाना बन्द कर दिया तो कौन- सी ऐसी बड़ी बात हो गई जिससे कि आपको काम में सफलता मिल जायेगी। इन चीजों में तो नहीं है दम। लेकिन दम इस बात में है कि आपने इतना कठोर निश्चय कर लिया है और आपने सुनिश्चित योजना बना ली है कि हमको ये करना ही करना है। तब फिर आप विश्वास रखिये, आपका काम पूरा हो करके रहेगा। चाणक्य ने निश्चय कर लिया था कि जब तक मैं नन्द वंश का नाश न कर लूँगा, तब तक बाल नहीं बाधूँगा। ये अपना व्रत और प्रतिज्ञा को याद रखने का एक प्रतीक है, सिम्बल है। प्रतिज्ञाएँ तो भूल जाते हैं, लेकिन अगर कोई ऐसा बहिरंग अनुशासन भीतर लगा लें तो आदमी भूलता नहीं है।आदमी का संकल्प मजबूत होना चाहिए। अध्यात्म का प्राण ही वह संकल्प है। संकल्प बल न हो तब। हिम्मत न हो तब। तब फिर आदमी बेपेंदी के लोटे के तरीके से इधर- उधर भटकता रहता है। संकल्प कर लेने के बाद तो आदमी की आधी मंजिल पूरी हो जाती है।संकल्प बल एक लाठी के तरीके से है। जो आपको गिरने से बचा लेता है और आपको ऊँचा चलने के लिये, आगे बढ़ने के लिये हिम्मत प्रदान करता है। आपको भी अपने मनोबल की वृद्धि के लिये आत्मानुशासन स्थापित करना चाहिए। ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में, खान- पान के सम्बन्ध में, समयदान और अंशदान के सम्बन्ध में आपको कोई न कोई, कोई न कोई काम ऐसे जरूर करने चाहिए, जिसमें कि ये प्रतीत होता हो कि आपने छोटा- सा संकल्प लिया है, उसे पूरा करने में सफल रहे हैं। ये मनोबल बढ़ाने का तरीका है। संकल्प शक्ति, मनोबल से ज्यादा बढ़ कर के आदमी के व्यक्तित्व को उभारने वाली, प्रतिभा को उभारने वाली, उसके चरित्र को उभारने वाली और कोई वस्तु है ही नहीं और ये संकल्प बल की वृद्धि के लिये ये आवश्यक है कि आप छोटे- छोटे, छोटे- छोटे ऐसे कुछ नियम लिया कीजिए थोड़े समय के लिये। ये काम न कर लेंगे, तब तक हम ये नहीं करेंगे। मसलन शाम को इतने किताब के पन्ने न पढ़ लेंगे, सोयेंगे नहीं। मसलन हम सबेरे का भजन जब तक पूरा न कर लेंगे, खायेंगे नहीं। ये क्या है? ये व्रतशीलता के साथ में जुड़ा हुआ अनुशासन है।व्रत और संकल्प आदमी की जिन्दगी के लिये बहुत बड़ी कीमती वस्तु है। आप ऐसे ही किया कीजिए।(पं. श्रीराम शर्मा जी के विचार)० साभार - गायत्री शक्ति पीठ साहित्य० प्रस्तुति - अतुल कुमार 'श्रीधर' - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 223
साधक का प्रश्न ::: महापुरुष माया के कार्य करते हुए भी माया से दूर कैसे रहते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भगवान् और महापुरुष, योगमाया से कार्य करते हैं इसलिए माया का कार्य करते हुये भी माया से परे रहते हैं। एक, दो, चार नहीं, करोड़ों मर्डर किया अर्जुन ने, करोड़ों मर्डर किया हनुमानजी ने, ब्राह्मणों की हत्या की। और की कौन कहे। लेकिन उनका ओरिजिनल रूप क्या था ?
निज प्रभुमय देखहिं जगत, का सन करहिं विरोध।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। (गीता 8-7)
मन भगवान् में था और युद्ध हो रहा है। ये कैसे होता है जी! हाँ हाँ, जो उस क्लास में नहीं गया, वो नहीं समझ सकता। एक पाँच वर्ष का बच्चा कहता है कि मम्मी भी हमको बेटा कहती हैं और पापा भी बेटा कहते हैं, तो मैं दोनों का बेटा कैसे हूँ। सब बच्चे आपस में मीटिंग करते हैं पाँच वर्ष के क्योंजी...? हाँ जी! चलो हम लोग पूछेंगे आज मम्मी पापा से। मम्मी-पापा से पूछा तो उन्होंने कहा ऐसे ही है बेटा! बस याद कर ले, मम्मी के भी हम बेटे हैं, पापा के भी हैं। हूँ! कैसे याद कर लूँ? उनको आता ही नहीं जवाब, मम्मी-पापा को। हाँ। सबने मीटिंग करके, बच्चों ने, यही तय किया कि सबके मम्मी-पापा बेवकूफ हैं; वो जवाब ही नहीं देते सही-सही। हम दोनों के बेटे कैसे हैं? और अगर वो स्पष्ट रूप से कहें भी ये देखो, मम्मी का रज और डैडी का वीर्य मिल करके पेट में बच्चा बन जाता है। ये क्या है रज? क्या है वीर्य? क्या है पेट में बच्चा? ये क्या, ये तो हमको समझ में नहीं आता। अभी नहीं आएगा। जब वो कामयुक्त अवस्था तक उसकी उम्र होगी, वो प्रैक्टिकल उसको एक्सपीरियंस होगा, तब कहेगा, अरे! मम्मी-पापा ने ठीक बताया था। अब समझ में आया।
तो जैसे पाँच वर्ष के बच्चे को स्त्री-पति के मिलन का अनुभव न होने से बोध नहीं हो सकता ऐसे ही जब तक मायाबद्ध जीव है, वो माया के अंडर में है, तब तक वो ये नहीं मान सकता, समझ सकता कि काम का कार्य करते हुये, काम से परे हैं। क्रोध का कार्य करते हुये क्रोध से परे हैं। करोड़ों वर्ष राज्य करते हुये भी ध्रुव, प्रहलाद लोभ से परे हैं, मायातीत हैं। ये योगमाया का कार्य होता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - वास्तु में घर, कार्यस्थल हर जगह पर निर्माण और सामान रखने से संबंधित महत्वपूर्ण दिशा निर्देश दिए गए हैं। वास्तु के अनुसार घर में किसी भी चीज का निर्माण करते समय दिशाओं का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है अन्यथा आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह से सीढिय़ों को तरक्की से जोड़कर देखा जाता है। वास्तु के अनुसार यदि सीढिय़ों की दिशा सही नहीं है तो व्यापार में नुकसान, आर्थिक तंगी और तरक्की में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। गलत तरह और गलत दिशा में बनी हुआ सीढिय़ों का बुरा प्रभाव घर के मुखिया पर पड़ता है। सीढिय़ों का निर्माण यदि वास्तु की बातों को ध्यान में रखकर किया जाए तो तरक्की और आर्थिक समृद्धि पाई जा सकती है।सीढिय़ां बनाने की सही दिशावास्तु के अनुसार घर में सीढिय़ां हमेशा दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण में बनाना चाहिए। वास्तु के अनुसार सीढिय़ों का निर्माण करने के लिए यह दिशाएं बहुत अच्छी रहती है।इस दिशा में बनी सीढिय़ां बन सकती है तरक्की में बाधकवास्तु में सीढिय़ों के निर्माण के लिए उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण को बिलकुल भी उचित नहीं माना गया है। घर के ईशान कोण में सीढिय़ां भूलकर भी नहीं बनानी चाहिए। इस दिशा में सीढिय़ों का निर्माण होने से वास्तु दोष लगता है जिसके कारण आर्थिक तंगी, नौकरी और व्यवसाय में हानि का सामना करना पड़ सकता है और उन्नति में बाधाएं आती हैं।इस तरह करें सीढिय़ों का वास्तु दोष दूरसीढ़ी में यदि किसी प्रकार का दोष है तो पिरामिड या फिर सीढिय़ां ईशान, उत्तर दिशा में बनी हुई हैं तो पिरामिड के द्वारा उसे संतुलित किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए वास्तु विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।सीढिय़ां बनवाते समय रखें इन बातों का ध्यानसीढिय़ां बनवाते समय ध्यान रखें कि वे हमेशा विषम संख्या यानि 2,7,9,11 आदि इस तरह से होनी चाहिए।आप सीढिय़ों का निर्माण करवा रहे हैं तो एक सीढ़ी से दूसरी के बीच नौ इंच का अंतर होना बहुत शुभ रहता है। सीढिय़ों का घुमाव हमेशा दक्षिणावर्ती यानि बाएं से दाएं ओर को होना चाहिए।
- ज्योतिषशास्त्र में बारह राशियों और नवग्रहों को विशेष महत्व है। वहीं नवग्रहों में प्रत्येक ग्रह का अपना महत्व है, लेकिन इन सभी ग्रहों में सूर्य का विशेष महत्व है और उसे ग्रहों के राजा या पिता कहा गया है। सूर्य को आत्मा कारक माना गया है। जिस जातक की कुंडली में सूर्य की अच्छी स्थिति होती है वे लोग आत्मविश्वास से भरपूर होते है। वहीं सूर्य की शुभ प्रभाव होने पर जात का भाग्य हमेशा चमकता रहता है। सूर्य को य़श प्रदान करने वाला भी कहा गया है इसलिए जिस जातक की कुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में होता है इसे राजनीति और सरकारी विभागों में यश, मान- सम्मान और उच्च पद प्राप्त होता है। वहीं जिनकी कुंडली में सूर्य की दशा चल रही होती है, उन जातकों में आत्मविश्वास की कमी बनी रहती है और उन्हें अपयश और आक्षेपों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार कमजोर सूर्य को मजबूत बनाने के लिए सूर्य मंत्र सबसे प्रबल उपाय है। इसकी नियमित पूजा करने से जीवन में नये आयाम प्राप्त हो सकते हैं।सूर्य यंत्र लाभसूर्य यंत्र के प्रभाव से जातक को कभी भी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है।-सूर्य यंत्र को स्थापित करने से सरकारी कामकाज, नौकरी और व्यापार में भी विशेष लाभ प्राप्त होता है।-वहीं घर के पूजा स्थल में इस यंत्र को स्थापित करने से कोर्ट-कचहरी में चल रहे मामलों में जीत हासिल होती है।-जिन व्यक्तियों को सिरदर्द, बुखार, हृदय संबंधी समस्या और आंखों से जुड़ी समस्या आदि होती है उन्हें सूर्य यंत्र का पेंडेट धारण करना चाहिए।-जिन जातकों की अपने पिता से नहीं बनती है उन्हें सूर्य यंत्र को अपने घर में स्थापित करना चाहिए।-जिन जातकों को अपयश या अक्षेपों का सामना करना पड़ता है तो उनसे बचने के लिए उन्हें सूर्य यंत्र पेडेंट पहनना चाहिए।-यदि किसी की कुंडली में सूर्य खराब स्थिति में है तो बाकी सभी ग्रह भी अपन पूर्ण प्रभाव नहीं दिखा पाते हैं। ऐसे में सूर्य यंत्र लाभ प्रदान करता है।-इस यंत्र की मदद से आप अपने बॉस या उच्च अधिकारियों के साथ मधुर संबंध बनाने में सफल रहते हैं।-यदि आपको अत्यधिक गुस्सा आता है तो आपको सूर्य यंत्र पेडेंट अवश्य धारण करना चाहिए।-ध्यान रखने योग्य बातेंसूर्य यंत्र - को स्थापित करते वक्त इसके शुद्धिकरण और प्राण प्रतिष्ठा जैसे महत्वपूर्ण चरण सम्मिलित होने चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना सूर्य यंत्र विशेष लाभ प्रदान नहीं करता है। इसलिए इस यंत्र को स्थापित करने से पहले सुनिश्चित करें कि यह विधिवत बनाया गया हो और इसकी प्राण प्रतिष्ठा हुई हो। सूर्य यंत्र खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह लेकर उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए। अभ्यस्त और सक्रिय सूर्य यंत्र को रविवार के दिन स्थापित करना चाहिए।स्थापना विधिसूर्य यंत्र को स्थापित करने के लिए सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि के बाद इस यंत्र को सामने रखकर 11 या 21 बार सूर्य के बीज मंत्र "? ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:" का जाप करें। तत्पश्चात यंत्र पर गंगाजल या कच्चे दूध से शुद्ध करें और सूर्यदेव से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि वह अधिक से अधिक शुभ फल प्रदान करें। सूर्य यंत्र स्थापित करने के पश्चात इसे नियमित रूप से धोकर इसकी पूजा करें ताकि इसका प्रभाव कम ना हो। यदि आप इस यंत्र को बटुए या गले में धारण करते हैं तो स्नानादि के बाद अपने हाथ में यंत्र को लेकर उपरोक्त विधिपूर्वक इसका पूजन करें।सूर्य यंत्र मंत्र - ""ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:":"
- हाथ में अंगूठे के नीचे का पूरा क्षेत्र जीवन रेखा अथवा आयु रेखा से घिरा रहता है। यह पूरा क्षेत्र शुक्र पर्वत है। हस्तरेखा में शुक्र क्षेत्र बहुत भी प्रभावशाली और जीवन को प्रभावित करने वाला माना गया है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार व्यक्ति के हाथों में शुक्र पर्वत जितना श्रेष्ठ होता है, व्यक्ति उतने ही सुंदर और सभ्य होते हैं। ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता है। ये लोग साहसी और बहुत ही हिम्मत वाले होते हैं। जिन लोगों के हाथों में शुक्र पर्वत नहीं होता अथवा बहुत अधिक दबा हुआ होता है वे लोग दब्बू और कायर स्वभाव के होते हैं।इसी तरह शुक्र पर्वत का अधिक उभरा हुआ होना भी हस्तरेखा विज्ञान में अच्छा संकेत नहीं है। जिन लोगों के हाथों में शुक्र पर्वत अत्यधिक उभरा हुआ होता है वे भोगी और विपरीत लिंग के प्रति बहुत अधिक लालायित रहते हैं। जिन लोगों के हाथों में शुक्र पर्वत बिल्कुल भी नहीं होता वे सांसारिक बंधनों से दूर, स्वयं में रमे रहने वाले साधु-सन्यासी जैसे जीवन को जीने वाले होते हैं। ऐसे लोगों को गृहस्थ जीवन में कोई रुचि नहीं होती। जिन लोगों का शुक्र पर्वत पूरी तरह से विकसित हो,लेकिन मस्तिष्क रेखा संतुलित ना हो तो ऐसे लोग प्यार एवं भोग में बदनामी पाते हैं। ऐसे लोगों के प्रेम में वासना अधिक होती है।व्यक्ति के हाथों में शुक्र पर्वत का उभार उसे तेजस्वी बनाता है। ऐसे लोगों के चेहरे के आकषर्ण से व्यक्ति आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाते। ऐसे लोग अपने काम और जिम्मेदारी को अच्छी से निभाते हैं और उसके प्रति सजग रहते है। ऐसे लोगों को सुंदर और कलात्मक चीजों से स्नेह रहता है। यदि व्यक्ति की हथेली खुरदरी होती है और शुक्र पर्वत अधिक विकसित हो तो व्यक्ति भी भोगी प्रवृत्ति का होता है।
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संत श्री कबीरदास जी के दोहे
(समझने के लिये भावार्थ दिये गये हैं..)मनुष जन्म दुर्लभ अहै, होय न बारम्बार।तरुवर से पत्ता झरैं, बहुरि न लागै डार।।1।।भावार्थ - यह मनुष्य जन्म तो अति ही दुर्लभ है और बार-बार नहीं मिला करता। जैसे पेड़ पर लगे हुये पत्ते जब झड़ जाते हैं तो उन्हें पुनः डाल पर नहीं लगाया जा सकता है ऐसे ही मनुष्य जन्म एक बार छिन जाय तो बड़ी हानि हो सकती है अर्थात अपने परमार्थ का अवसर हाथ से चला जायेगा।आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक।।2।।भावार्थ - जब कोई व्यक्ति किसी को गाली देता है और वह सामने वाला व्यक्ति भी गाली सुनकर आवेश में उसे गाली देने लगे तो इस प्रकार एक गाली अनेक गालियों में बदल जाती है। यदि गाली सुनकर सामने वाला व्यक्ति उसे सहन करके शान्त रहे तो फिर सामने वाले का भी क्रोध कुछ देर में शान्त हो जायेगा।माखी गुड़ में गड़ी रहै, पंख रह्यो लिपटाय।हाथ मलै और सिर धुने, लालच बुरी बलाय।।3।।भावार्थ - गुड़ के लालच में मक्खी का हाल इस प्रकार हो जाता है कि गुड़ में उसके दोनों पंख चिपक जाते हैं और वह बहुत कोशिश करने पर भी उससे छूट नहीं पाती है। तब उसके पास अपने हाथ मलने और सिर धुनने अर्थात पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। लालच कदापि नहीं करना चाहिये, इससे सदा हानि ही होती है।धीरे धीरे रे मना, धीरे से सब होय।माली सींचै सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।।4।।भावार्थ - मनुष्य को कभी भी हड़बड़ी नहीं करनी चाहिये। सदैव धैर्य धारण करना चाहिये। सब कार्य अपने समय पर ही होते हैं, अतः धीरजता से किसी भी कार्य को करना चाहिये। जिस प्रकार माली यदि जल्दी फल प्राप्त करने की आशा में पेड़ों में एक साथ सौ-सौ घड़े पानी डाला करे तो भी फल अनुकूल ऋतु आने पर ही लगेंगे।कबीर ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर।।5।।भावार्थ - वे मनुष्य विवेकहीन हैं जो गुरु को कोई दूसरा तत्व बतलाते हैं अर्थात हरि और गुरु में भेद मानते हैं। वस्तुतः दोनों एक हैं। इनमें भी गुरु का महत्व ऊँचा है। भगवान यदि रूठ जायँ तो गुरु के द्वार पर क्षमा मिल सकती है परन्तु गुरु यदि रूठ जायँ तो भगवान भी जीव को क्षमा नहीं कर सकते हैं।०० साभार - 'कल्याण' सन्तवाणी अंक(प्रस्तुति - अतुल कुमार 'श्रीधर') -
ब्रह्मा, विष्णु, महेश यानि कि 'त्रिदेव' में से भगवान विष्णु को सृष्टि के संचालन का कार्य सौंपा गया है। यही वजह है कि पृथ्वी पर आयोजित होने वाले किसी भी मांगलिक कार्य के लिए बृहस्पति देव, जो स्वयं विष्णु भगवान के एक रूप हैं, उनको याद किया जाता है। विशेष तौर पर शादी-विवाह जैसे बंधनों को मजबूत बनाने के लिए बृहस्पति देव की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।
शास्त्र हमें यह भी बताते हैं कि किसी के भाग्य में बृहस्पति का संयोग ठीक नहीं है, तो उसके वैवाहिक जीवन में क्या-क्या संकट आ सकते हैं। शास्त्रों में इस बात का भी वर्णन है कि अगर पति-पत्नी संयुक्त रूप से भगवान बृहस्पति की पूजा करते हैं, तो निश्चय ही उनके जीवन पर इसका सकारात्मक असर पड़ता है और उनका रिश्ता मधुर बना रहता है।बिगड़े बृहस्पति का ऐसा होता है आपके जीवन पर असरअगर भाग्य में बृहस्पति शुभ नहीं है या वृहस्पति ग्रह टेढ़ा है तो इसका सीधा असर आपके वैवाहिक जीवन पर पड़ता है और वैवाहिक जीवन में खलल पढऩा प्रारंभ हो जाता है। इतना ही नहीं, अगर जातक शादीशुदा नहीं हैं और भाग्य में बृहस्पति बाधित है, तो इसका असर यह होता है कि आपका विवाह संपन्न होने में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं।वहीं महिलाओं के संदर्भ में कहा जाता है कि अगर उनके भाग्य में बृहस्पति कमजोर है तो उनका चरित्र खराब होने की संभावना बनी रहती है।दांपत्य जीवन खुशहाल बनाने के लिए ऐसे करें बृहस्पति भगवान की पूजाअगर पति पत्नी के रिश्ते में उठापटक जारी है यानी कि पति पत्नी के बीच किसी भी बात को लेकर मनमुटाव चल रहा है तो ऐसे में ज्योतिष भगवान बृहस्पति की पूजा करने की सलाह देते हैं। ऐसा करने से रिश्ते का गतिरोध समाप्त होगा और जातक आनंद पूर्वक गृहस्थ जीवन का सुख भोग सकेंगे।-इसके लिए गुरुवार के दिन, अपने पूजा वाले स्थान पर बृहस्पति भगवान के लिए आसन लगाएं। इसके लिए पीले कपड़े का आसन बिछाना होगा और उस पर भगवान बृहस्पति यानी कि लक्ष्मी और विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित कर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करना होगा।- भगवान बृहस्पति की पूजा में यह बेहद आवश्यक है कि पति और पत्नी दोनों सम्मिलित हों और खुशी मन से भगवान की आराधना करें।-पूजा के दौरान पति पत्नी को पीले रंग के वस्त्र पहनना बहुत आवश्यक है। पीले रंग के वस्त्र पहनने से भगवान प्रसन्न होते हैं।-वृहस्पति भगवान की पूजा के दौरान सुहागन औरत को सुहाग की प्रतीक चुनरी अपने सर पर ओढऩा चाहिए, तो वहीं पति को कोई कपड़ा अपने कंधे पर अवश्य रखना चाहिए।-बृृहस्पति भगवान की पूजा के दौरान देसी घी का दीपक जलाना भी बहुत शुभ होता है। जहां तक संभव हो इस दिए में केसर का एक धागा अवश्य डालें।-अगर पति पत्नी के बीच अत्यधिक विवाद होते हैं, तो पूजा के दौरान लाल रंग के धागे या मौली को भगवान के सामने अर्पित करें और इस मौली को दोनों पति पत्नी अपने दाहिने कलाई पर बांध लें, इससे दोनों के बीच मनमुटाव कम होंगे और रिश्ते मधुर बनेंगे।-अगर पति पत्नी के बीच में कटुता एक सीमा से भी ज्यादा बढ़ गई है, तो गातार 11, 21 या 51 गुरुवार का व्रत रखकर भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहिए, जिससे रिश्ते सामान्य हो सकें।गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को भोग के रूप में भीगे हुए चने और मुनक्के चढ़ाने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं, और आपकी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं।बृहस्पतिवार के दिन अगर ब्राम्हण को पीले रंग का अन्न, दान के रूप में दिया जाए, तो भी यह बेहद कारगर माना जाता है दाम्पत्य की स्थिरता बनाये रखने में।इन उपायों को अपना कर आप अपना बिगड़ा हुआ बृहस्पति सुधार सकते हैं और सुखद वैवाहिक जीवन का आनंद ले सकते हैं। -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 222
(भगवदीय ज्ञान का प्रचार तो आवश्यक है, परन्तु अपने हृदय के भाव आदि का गोपन क्यों परमावश्यक है, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से समझने का प्रयास करें...)
..भगवान के प्रति अपने मन के भाव और अपने भगवत अनुभवों को अपने तक सीमित रखो लोकरंजन न बनाओ जैसे आपकी सांसारिक पूंजी (धन) जो आपके अकाउंट में जमा है उसके बारे में आप किसी को नहीं बताते ठीक वैसे ही भगवान के प्रति आपके भाव और भक्ति से प्राप्त अनुभव आपकी असली पूंजी है उसके विषय में भी किसी को न बतायें। इसे भगवान की कृपा मानकर बार-बार इसका चिंतन करो, इससे भगवान में आपकी श्रद्धा दृढ़ होगी और आप तेजी और विश्वास से भगवान की तरफ बढ़ेंगे।
ज्ञान का आदान-प्रदान करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन भगवान के प्रति अपने भाव और भक्ति को लोगों के सामने उजागर करना अज्ञानता है।
संसार को भक्ति मार्ग पर लाने में सहायक बनो किंतु अपनी भक्ति और प्राप्त अनुभव को बचा कर रखो, यह भक्ति और अनुभव आपके और भगवान के बीच की बात है अत: गुप्त रखें नहीं तो सब कुछ यहीं बर्बाद हो जाएगा, कुछ साथ नहीं जाएगा...
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
०० संत श्री रामसुखदास जी महाराज के कल्याणकारी वचन (भाग - 1)
(1) भगवान याद करने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं, इतना सस्ता कोई नहीं।(2) भगवान के किसी मनचाहे रूप को मान लो और भगवान के मनचाहे आप बन जाओ।(3) आप भगवान के बिना नहीं रह सकें तो भगवान की ताकत नहीं कि आपके बिना रह जायें।(4) ज्ञानी भगवान को कुछ नहीं दे सकता पर भक्त भगवान को प्रेम देता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं, ज्ञान के नहीं।(5) मनुष्य खुद अपने कल्याण में लग जाये तो इसमें धर्म, ग्रंथ, महात्मा, संसार, भगवान सब सहायता करते हैं।(6) भगवान किसी को भी अपने से नीचा नहीं बनाते, जो भगवान की गरज करता है उसे भगवान अपने से ऊंचा बनाते हैं।(7) भगवान को याद करना ही उनकी सेवा करना है, पत्र-पुष्प-फल की भी आवश्यकता नहीं। द्रोपदी ने केवल याद किया था।(8) जैसे मां बालक का सब काम राजी होकर करती है, ऐसे ही जो भगवान की शरण हो जाते हैं, उनका सब काम भगवान करते हैं।(9) कलियुग उनके लिए खराब है जो भगवान का भजन-स्मरण नहीं करते, भगवदभजन करने वालों के लिए तो कलियुग भी अच्छा है।(नोट - स्वामी रामसुखदास जी महाराज के कल्याणकारी वचनों से संबंधित पोस्ट प्रति शुक्रवार प्रकाशित होंगे.)साभार - गीताप्रेसप्रस्तुति - अतुल कुमार 'श्रीधर -
सूर्यदेव 14 मार्च को सायं 6 बजकर 1 मिनट पर कुंभ राशि की यात्रा समाप्त करके मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर ये 13 अप्रैल की मध्य रात्रि बाद 4 बजकर 31 तक गोचर करेंगे उसके बाद मेष राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इनके मीन राशि पर यात्रा के समय शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। पुनः चैत्र नवरात्र से शुभ कार्य आरंभ होंगे। सिंह राशि के स्वामी सूर्य तुला राशि में नीचराशिगत संज्ञक तथा मेष राशि में उच्चराशि का संज्ञक माने गए हैं। इनके राशि परिवर्तन का सभी बारह राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका ज्योति विश्लेषण करते हैं।
मेष राशिराशि से हानिभाव में गोचर करते हुए सूर्य आपको अत्यधिक भागदौड़ और खर्च का सामना करवाएंगे। स्वास्थ्य विशेष करके बाईं आंख से संबंधित समस्या से सावधान रहना होगा। शरीर में भी कैल्शियम की कमी न होने पाए।झगड़े विवाद से दूर रहें और कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लें तो बेहतर रहेगा। संतान संबंधी चिंता परेशान कर सकती है। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों को परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए कठिन प्रयास करने होंगे।वृषभ राशिराशि से लाभभाव में गोचर करते हुए सूर्य विषम परिस्थितियों से तो मुक्ति प्रदान करेंगे किंतु परिवार के वरिष्ठ सदस्यों अथवा बड़े भाइयों से मतभेद गहरा सकता है ऐसे में अलगाववाद की स्थिति उत्पन्न न होने दें। पारिवारिक कलह के कारण मानसिक अशांति बढ़ सकती है जिसके परिणामस्वरूप आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। माता पिता के स्वास्थ्य के प्रति भी चिंतनशील रहें। मित्रों एवं संबंधियों से अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। कोर्ट कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत।मिथुन राशिराशि से कर्मभाव में गोचर करते हुए सूर्य कार्य-व्यापार में उन्नति तो देंगे ही किसी भी तरह के नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाह रहें हों तो अवसर अनुकूल रहेगा।उच्चाधिकारियों से मधुर संबंध बनेंगे।शासन सत्ता का पूर्ण सुख-सहयोग मिलेगा।चुनाव से संबंधित कोई भी निर्णय लेना चाह रहे हों तो परिणाम सुखद और चौंकाने वाले हो सकते हैं।विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया आवेदन सफल रहेगा।अपनी योजनाओं तथा रणनीतियों को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे।कर्क राशिराशि से भाग्यभाव में गोचर करते हुए सूर्य कई तरह के उतार चढ़ाव लाएंगे। धर्म एवं आध्यात्म के प्रति गहरी रूचि रहेगी। सामाजिक पद प्रतिष्ठा बढ़ेगी और दान पुण्य भी करेंगे। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए गोचर फल और अनुकूल रहेगा। आपके साहस और पराक्रम की वृद्धि होगी। लिए गए निर्णय तथा किए गए कार्यों की सराहना भी होगी। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। जमीन जायदाद से जुड़े कार्य संपन्न होंगे। इन सबके बावजूद भी झगड़े विवाद से दूर ही रहें।सिंह राशिराशि से अष्टमभाव में गोचर करते हुए सूर्य काफी मिलाजुला फल प्रदान करेंगे। स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। झगड़े विवाद और षड्यंत्रकारियों से भी सावधान रहना पड़ेगा। आपके अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे किंतु अपनी कुशल रणनीतियों एवं ऊर्जाशक्ति के बलपर आप ऐसी विषम परिस्थितियों को आसानी से नियंत्रित कर लेंगे। उधार के रूप में अधिक धन किसी को भी न दें अन्यथा आर्थिक हानि की संभावना रहेगी। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों को निपटाने में थोड़ा और समय लगेगा।कन्या राशिराशि से सप्तम भाव में गोचर करते हुए सूर्य शादी-विवाह से संबंधित वार्ता में थोड़ा विलंब लाएंगे। दांपत्य जीवन में भी कटुता आ सकती है, ससुराल पक्ष से रिश्ते बिगड़ने न दें। प्रेम संबंधी मामलों में आपसी मतभेद बढ़ने न दें। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें।अग्नि विष और दवाओं के रिएक्शन से बचें। व्यापारियों के लिए भी समय कठिन परीक्षा लेने वाला रहेगा विशेष करके इस अवधि में साझा व्यापार करने से तो दूर ही रहें। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों को अच्छे अंक के लिए और प्रयास करने होंगे।तुला राशिराशि से छठे शत्रुभाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है इसलिए कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना हो अथवा नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो तो उस दृष्टि से प्रभाव अनुकूल रहेगा। कोर्ट कचहरी के मामलों में भी निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिल सकता है परिवार के वरिष्ठ सदस्य एवं भाइयों से मतभेद बढ़ने न दें। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभाग में प्रतीक्षित पड़े कार्य संपन्न होंगे उच्चाधिकारियों से भी सहयोग मिलेगा।वृश्चिक राशिराशि से पंचम भाव में गोचर करते हुए सूर्य शोधपरक एवं आविष्कारक कार्यों में लगे हुए विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आपकी कल्पनाशीलता के शुभ प्रभाव के परिणाम स्वरूप नए नए विचारों का जन्म होगा रचनात्मक कार्यों में अच्छी सफलता हासिल करने के योग। व्यापारियों के लिए आय के साधनों में बढ़ोतरी होगी। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नव दंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग।धनु राशिराशि से चतुर्थ भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। किसी न किसी कारण से पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। कार्य क्षेत्र में भी झगड़े विवाद से दूर रहें। आपके अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश इससे भी करेंगे सावधान रहें। कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लेना समझदारी होगी। माता पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। जमीन जायदाद से जुड़े मामले कुछ उलझ सकते हैं। हर निर्णय बहुत सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है।मकर राशिराशि से पराक्रमभाव में गोचर करते हुए सूर्य आपको अत्यधिक प्रभावशाली, ऊर्जावान और त्वरित निर्णय लेने वाला बनाएंगे। आप एक बार जो ठान लेंगे उसे पूरा करके ही छोड़ेंगे। यह समय इतना अनुकूल है कि कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना हो या अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो तो सफल रहेंगे अवसर जाने न दें। अपनी जिद्द एवं आवेश पर नियंत्रण रखते हुए परिवार के वरिष्ठ सदस्यों अथवा भाइयों से मतभेद न पैदा होने दें। धर्म एवं अध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ेगी।सामाजिक पद-प्रतिष्ठा और जिम्मेवारी भी बढ़ेगी।कुंभ राशिराशि से धन भाव में गोचर करते हुए सूर्य का फल काफी मिलाजुला रहेगा।अपनी योजनाओं को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तभी अधिक सफल रहेंगे। स्वास्थ्य विशेषकर के दाहिनी आंख पर पर तो विपरीत प्रभाव पड़ेगा किंतु कार्य व्यापार के लिए उतना नुकसानदेय नहीं रहेगा। आर्थिक पक्ष मजबूत बनेगा।आकस्मिक धन प्राप्ति के योग।दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। इस अवधि के मध्य जमीन जायदाद का सौदा करने से बचें।केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों से जुड़े कार्य संपन्न होंगे।मीन राशिराशि में गोचर करते हुए सूर्य प्रभा वृद्धि तो करेंगे ही सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।अपनी कुशल नेतृत्व तथा कार्य कुशलता के बल पर कठिन से कठिन परिस्थितियों पर भी आसानी से विजय प्राप्त कर लेंगे जिसके फलस्वरूप लिए गए निर्णय और किए गए कार्यों की सराहना भी होगी।इस अवधि के मध्य चुनाव लड़ने से संबंधित कोई निर्णय भी लेना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा।शादी विवाह से संबंधित वार्ता में थोड़ा और विलंब होगा।जहांतक संभव हो झगड़े विवाद तथा कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझाएं। - हमारी दिनचर्या सुबह जागने से प्रारम्भ होती है। इसलिए सुबह जल्दी उठना दिनचर्या का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यही कारण है कि हमारी प्राचीन परम्पराओं में सुबह उठने का समय भी तय किया गया है। यह है 'ब्रह्म मुहूर्त', यानि कि रात्रि का अंतिम प्रहर या सूर्योदय से डेढ़ घंटे पहले का समय। हमेशा से ही अच्छी सेहत पाने के लिए रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी जागने की बात कही जाती है। जल्दी उठने की आदत डालेंगे तो इम्यून सिस्टम मजबूत होगा, जिससे बीमार नहीं पड़ेंगे। सुबह जल्दी उठना किसी औषधि से कम नहीं है।हमारे शास्त्रों में भी ब्रह्म मुहूर्त में जागने को ही सही बताया गया है, तभी तो प्राचीन काल में ब्रह्म मुहूर्त में गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों को वेदों एवं शास्त्रों का अध्ययन करवाया जाता था। संसार के प्रसिद्ध साधक , बड़े-बड़े विद्वान और दीर्घजीवी मनुष्य सूर्योदय के पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ही दैनिक कार्यों की शुरुआत करते थे। ऋग्वेद में कहा गया हैं कि जो मनुष्य सुबह उठता हैं, उसकी आयु लंबी होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में तम एवं रजो गुण की मात्रा बहुत कम होती हैं तथा इस समय सत्वगुण का प्रभाव अधिक होता हैं इसलिए इस काल में बुरे मानसिक विचार भी सात्विक और शांत हो जाते हैं।क्या है धार्मिक महत्त्वआयुर्वेद के अनुसार इस समय में बहने वाली वायु चन्द्रमा से प्राप्त अमृत कणों से युक्त होने के कारण हमारे स्वास्थ्य के लिए अमृत तुल्य होती है। यह वीर वायु कहलाती हैं। इस समय भ्रमण करने से शरीर में शक्ति का संचार होता है और शरीर कांतियुक्त हो जाता है। हम प्रातः सोकर उठते हैं तो यही अमृतमयी वायु हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं। इसके स्पर्श से हमारे शरीर में तेज, बल शक्ति, स्फूर्ति एवं मेधा का संचार होता है जिससे मन प्रसन्न व शांत होता है। इसके विपरीत देर रात तक जागने से और देर सुबह सोने से हमें यह लाभकारी वायु प्राप्त नहीं हो पाती जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है।क्या है धार्मिक महत्त्वशास्त्रों के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त निद्रा त्यागने के लिए सर्वोत्तम है व इस समय उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस वक्त जागकर अपने इष्ट देव या भगवान की पूजा, ध्यान , अध्ययन और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है एवं इस काल में की गई ईश्वर की पूजा का फल भी शीघ्र प्राप्त होता है। मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार और पूजन भी इसी समय में किए जाने का विधान है। पुराणों के अनुसार इस समय की निद्रा ब्रह्म मुहूर्त के पुण्यों का नाश करने वाली होती है। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।ये है वैज्ञानिक कारणवैज्ञानिक शोधों के अनुसार प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त के समय हमारा वायुमंडल काफी हद तक प्रदूषण रहित होता है। इस समय दिन के मुकाबले वातावरण में हमारी प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा भी अधिक होती है। सुबह-सुबह की शुद्ध वायु हमारे तन-मन को स्फूर्ति और ऊर्जा से भर देती है। यही वजह है कि इस समय किए गए व्यायाम, योग व प्राणायाम शरीर को निरोगी रखते हैं। इसके अलावा पक्षियों की चहचाहट से सुबह का माहौल खुशनुमा हो जाता है जिससे हमारा तन-मन प्रफुल्लित हो जाता है।
- फाल्गुन माह की द्वितीया तिथि को फुलैरा दूज के रूप में मनाया जाता है। इस बार फुलैरा दूज 15 मार्च 2021 दिन सोमवार को मनायी जाएगी। यह दिन होली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से होली के पर्व की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं। इस दिन से उत्तर भारत के गांवो में जिस स्थान पर होली रखी जाती हैं वहां पर प्रतीकात्मक रूप में उपले या फिर लकड़ी रख दी जाती हैं। कई जगहों पर इस दिन को उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस दिन से लोग होली में चढ़ाने के लिए गोबर की गुलरियां भी बनाई जाती हैं।जानते हैं इस दिन का महत्वफाल्गुन माह में फुलैरा दूज का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी मानते हैं। फुलैरा दूज को मांगलिक कार्यों को करने के लिए बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। माना जाता है कि फुलैरा दूज के दिन किसी भी मुहूर्त में शादी संपन्न की जा सकती है। इस दिन उत्तर भारत में भगवान कृष्ण और राधा का फूलों से श्रंगार करके पूजन किया जाता है। इस दिन से लेकर लोग होली के दिन तक अपने घरों में शाम के समय प्रतिदिन गुलाल और आटे से रंगोली बनाते हैं।फुलैरा दूज तिथि आरंभ और समाप्त समयफाल्गुन द्वितीया आरंभ- 14 मार्च 2021 को शाम 05 बजकर 06 मिनट सेफाल्गुन द्वितीया समाप्त- 15 मार्च 2021 को शाम 06 बजकर 49 मिनट परक्या होती हैं गुलरियांगुलरियां गोबर से बनाई जाती हैं। इन्हें बनाने का कार्य फुलैरा दूज से ही शुरू कर दिया जाता है। इसमें महिलाएं गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर उसमें उंगली से बीच में सुराख बना देती हैं। सूख जाने के बाद इन गुलरियों की पांच सात मालाएं बना ली जाती हैं और होलिका दहन के दिन इन गुलरियों को होली की अग्नि में चढ़ा दिया जाता है।ब्रज और वृंदावन में होता है खास उत्सवफुलैरा दूज के दिन ब्रज और वृंदावन में बहुत ही धूम देखने को मिलती है। इस दिन मथुरा वृंदावन और ब्रज में मंदिरों को फूले से सजाया जाता है, इसके साथ ही फूलों की होली खेली जाती है। मंदिरों में भगवान कृष्ण के होली के भजन गाए जाते हैं। हर तरफ गुलाल और फूलों से वातावरण सराबोर हो जाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 221
(मनुष्य को, विशेषकर साधना-मार्ग में जो बढ़ना चाहते हैं, उनके जीवन में एक महापुरुष की क्या नितांत आवश्यकता है, इस संबंध में आचार्य श्री के उदबोधन पढ़ें..)
जीव में जब तक देहाभिमान है, तब तक वह आसानी के साथ स्वयं अपने आपको कभी भी गिरा हुआ नहीं मानता। अतएव, नित्य होश में रहने वाले एक महापुरुष की आवश्यकता होती है जो उस बेहोश साधक की त्रुटियों को बता-बताकर उसे होश में लाता रहता है अन्यथा जीव तो सदा ही अपने को अच्छा समझता है। वह भले ही पराकाष्ठा का मूर्ख क्यों न हो, उसे यह कथन बिल्कुल ही प्रिय नहीं कि ‘तुम मूर्ख हो।’
तात्पर्य यह कि तीनों गुणों से अभियुक्त बुद्धि प्रतिक्षण स्वतः परिवर्तनशील है, उसका नियामक गुणातीत महापुरुष अवश्य होना चाहिये ।
कुसंग का बीज प्रत्येक देहाभिमानी जीव के अंतःकरण में नित्य निहित रहता है एवं वह अपने अनुकूल बाह्य गुण-विषय को पाकर अत्यन्त बढ़ जाता है। तुम अनुभव करते होगे, दिन में कई बार ऐसा होता है कि तुमको जैसा भी वातावरण मिलता है, वैसी ही तुम्हारी मनोवृत्तियाँ भी बदलती जाती हैं। कभी तो यह विचार होता है कि ‘अरे ! पता नहीं कब टिकट कट जाय, शीघ्र से शीघ्र कुछ साधना कर लेनी चाहिये। संसार तो अपने आप छोड़ देगा नहीं। फिर संसार ने पकड़ भी तो नहीं रखा है, मैं स्वयं ही जा-जाकर उसमें (संसार में) पिस रहा हूँ।’ कभी यह बिचार उत्पन्न होता है, ‘अरे ! कर लेंगे, कल कर लेंगे, जल्दी क्या है? समय बहुत पड़ा है, ऐसी भी क्या जल्दी है। फिर अभी अमुक-अमुक संसार का काम (ड्यूटी) भी तो करना है। रात तक कर लेंगे, कल कर लेंगे,’ इत्यादि। कभी-कभी यह विचार पैदा होता है, ‘अरे यार खाओ, पियो , मौज उड़ाओ, चार दिन की जिन्दगी है, आगे किसने देखा है क्या होगा, भगवान् वगवान् तो बिगड़े हुए दिमाग की उपज है।’ पता नहीं वह मौज उड़ाने का क्या अर्थ समझता है। अरे मौज ही तो महापुरुष भी चाहता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
जीवन के लिये बोधकथायें - भाग 1
'कर्मशीलता से ही शान्ति सम्भव है!'एक राजा राजकाज से मुक्ति चाहते थे। एक दिन उन्होंने राजसिंहासन अपने उत्तराधिकारी को सौंपा और राजमहल छोड़ कर चल पड़े। उन्होंने विद्वानों के साथ सत्संग किया, तपस्या की, पर उनके मन में अतृप्ति बनी रही। मन में खिन्नता का भाव लिये वे तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।एक दिन चलते-चलते वे काफी थक गये और भूख के कारण निढाल होने लगे। राजा पगडण्डी से उतरकर एक खेत में रुके और एक पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। खेत में आये पथिक को देखकर एक किसान उनके पास जा पहुँचा। वह उनका चेहरा देखकर समझ गया कि यह व्यक्ति थका होने के साथ ही भूखा भी है।किसान में हाँडी में उबालने के लिये चावल डाले फिर राजा से कहा - 'उठो, चावल पकाओ। जब चावल पक जाय, तब मुझे आवाज दे देना। हम दोनों इससे पेट भर लेंगे।'राजा मंत्रमुग्ध होकर किसान की बात सुनते रहे। किसान के जाने के बाद उन्होंने चावल पकाने शुरू कर दिये। जब चावल पक गये, तो उन्होंने किसान को बुलाया और दोनों ने भरपेट चावल खाये। फिर किसान काम में लग गया और राजा को ठण्डी छाँव में गहरी नींद आ गई। सपने में उन्होंने देखा कि एक दिव्य पुरुष खड़ा होकर कह रहा है - 'मैं कर्म हूँ और मेरा आश्रय पाये बगैर किसी को शान्ति नहीं मिल सकती। तुम्हें सब कुछ बिना कर्म किये प्राप्त हो गया है। तुम एक बनी-बनाई प्रणाली का संचालन कर रहे हो। इसलिये तुम्हें जीवन से विरक्ति हो रही है। तुम कर्म करो। कर्म करने का एक अलग ही सुख है। इससे तुम्हारे भीतर जीवन के प्रति लगाव पैदा होगा।'राजा की आँखें खुल गईं। उन्हें लगा कि उन्हें रास्ता मिल गया।०० साभार : 'कल्याण' बोधकथा विशेषांक(प्रस्तुति : अतुल कुमार 'श्रीधर') -
दैनिक जीवन में बहुत सी प्रचलित बाते होती हैं जिनके आधार पर कुछ कार्यों और घटनाओं को शगुन या अपशगुन माना जाता है। इसी तरह से प्रतिदिन रोजमर्रा के कार्य करते समय कई चीजें अक्सर हाथ से छूटकर गिर या बिखर जाती हैं। हम इन्हें उठाकर रखे देते हैं या समेट देते हैं, लेकिन इनपर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। कई बार कुछ चीजें बार-बार हाथ से छूटकर गिरने लगती हैं। इन चीजों का गिरना शुभ संकेत नहीं माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यदि कुछ चीजें अक्सर हाथ से छूटकर गिरने लगे तो यह आने वाले जीवन में परेशानी का संकेत देती हैं। तो चलिए जानते हैं कि वे कौन सी चीजें हैं जिनका गिरना शुभ नहीं माना जाता है।
दूध का गिरना या उबलते हुए बार-बार निकल जानामाना जाता है कि यदि दूध का बर्तन हाथ से छूटकर गिर जाए या फिर पूरा ध्यान देने के बाद भी अक्सर दूध उबलकर बर्तन से बाहर गिरने लगे तो इसे शुभ संकेत नहीं माना जाता है। दूध का संबंध चंद्रमा से माना जाता है। ऐसे में अगर गैस पर रखा दूध उबलकर गिरने लगे या हाथ से दूध का बर्तन छूटकर गिर जाए तो ये मानसिक और आर्थिक परेशानियों का आने सा सूचक माना जाता है।अन्न, भोजन का गिरनायदि आप खाना परोसते हुए गिर जाए तो माना जाता है कि घर में अतिथि का आगमन होने वाला है, लेकिन खाना परोसते वक्त अक्सर भोजन प्लेट से बाहर गिरने लगे तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। मान्यता है कि इससे घर में दरिद्रता आने लगती है, या फिर ऐसा रसोई में किसी वास्तु दोष कारण भी हो सकता है।तेल का गिरनाहर घर में तेल का प्रयोग रसोई घर में खाना बनाने से लेकर भगवान के समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित करने तक में किया जाता है। इसके साथ ही तेल को शनि का कारक भी माना गया है। यदि आपके घर में बार-बार तेल गिरने लगे तो यह शुभ संकेत नहीं माना जाता है। इससे कार्यों में बाधाएं आने के साथ धन की हानि होने की आशंका भी बनी रहती है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 220
(आप सभी को 'महाशिवरात्रि' की बहुत सारी शुभकामनायें. आइये इस पावन अवसर पर जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत प्रवचन का भावपूर्वक पठन करें. आचार्यश्री की वाणी यहाँ से है....)
.....'कृष्ण प्रेम दो भोलेनाथ,लहु रास रस तेरे साथ...'
वेद में बताया गया है,
एको हि रुद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्य ईमॉल्लोकानीशत इशनीभिः । (श्वेताश्वतरोपनिषद 3-2)
सुप्रीम पॉवर हैं भगवान् शिव, उनकी अनंत शक्तियाँ हैं. विश्व का प्राकट्य, विश्व की रक्षा, विश्व का प्रलय उन सब शक्तियों से वे करते हैं. एक अवतार काल में ऐसा भी हुआ है कि शंकर जी श्री राधा बने हैं और पार्वती जी श्रीकृष्ण बनी हैं. कभी वो श्रीकृष्ण की भक्ति करते हैं, कभी श्रीराम, श्रीकृष्ण उनकी भक्ति करते हैं. तो ये तो लीलाक्षेत्र के नाटक हैं. स्वयं दो बन जाते हैं.
स इममेवात्मानं द्वेधापातयत् । ततः पतिश्च पत्नी चाभवताम् ।
अपने आपको दो बना देते हैं शंकर पार्वती. और फिर विवाह की एक्टिंग करते हैं. शंकर पार्वती का ब्याह होता है. तो अपने आपसे ब्याह करते हैं. महाशिवरात्रि शंकर पार्वती के विवाह का ही दिन है.
तो वे भगवान् शंकर जो सबसे बड़ा भगवान् जा रस है, महारास में भी गए. और लीला की दृष्टि से पार्वती तो पहले ही पहुँच गईं थी रास में क्योंकि वो तो स्त्री शरीर है. महारास में तो सब स्त्री शरीर वाले गए थे. जो पुरुष थे पूर्व जन्म के अग्नि के पुत्र, दण्डकारण्य के परमहंस वगैरह वो सब स्त्री बन कर गए थे.
शंकर जी पुरुष बनकर गए तो गोपी ने रोक दिया. कौन हो तुम? मैं शंकर हूँ. कौन शंकर? कहाँ का शंकर? शंकर जी चौंक गए. ये गोपी डाँट रही है हमको. बता दिया कि उन्होंने कि मैं चतुर्मुखी ब्रम्हा के ब्रम्हांड का मैं गवर्नर हूँ शंकर. उन्होंने कहा अंदर कोई पुरुष नहीं जा सकता. एक पुरुष रहेगा श्रीकृष्ण. उन्होंने कहा ठीक है स्त्री बन जाता हूँ. स्त्री बनकर गए. गोपी बन करके. तो पार्वती जी को हँसी आ गई. बड़े पुरुष बनते थे, आज तक दाल नहीं गली. स्त्री बनना पड़ा. भागवत् में तीन चार बातों में एक श्लोक कहा गया है -
निम्नगानां यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा ।वैष्णवानां यथा शंभुः पुराणानामिदं तथा ।।(भागवत् 12-13-16)
जैसे समस्त भक्तों में श्रीकृष्ण के भक्तों में शंकर जी टॉप करते हैं. 'पुराणानामिदं तथा' ऐसे सब पुराणों में भागवत टॉप करती है. तो सब वैष्णवों में टॉप करने वाले भगवान शंकर हैं. महारास में गोपी बने थे. तो शंकर जी गोपी प्रेम पाये हुये हैं महारास में. उनसे यही प्रार्थना करना है कि हमको भी श्रीकृष्ण प्रेम दिला दो तो तुम्हारे साथ हम भी रास रस लें. श्रीकृष्ण के रास में जैसे तुम गोपी बनते हो ऐसे ही तुम्हारे बगल में हम भी खड़े हो जायें. ऐसी कृपा कर दो, भोलेनाथ !!!
ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय ।।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सनातन धर्म में तुलसी को बहुत ही पूजनीय पौधा माना गया है। शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां पर तुलसी का पौधा न लगा हो। तुलसी के पौधे को धार्मिक, ज्योतिष, वास्तु यहां तक की चिकित्सा में भी तुलसी महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जिस घर में तुलसी लगी होती है औऱ रोज तुलसी में दीपक जलाया जाता है वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। ऐसे घर में हमेशा समृद्धि बनी रहती है।वहीं वास्तु के हिसाब से घर में तुलसी लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। तुलसी भगवान श्री हरि की प्रिय हैं। जहां तुलसी लगी होती है, वहां भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है, लेकिन यह पौधा लगाने से पहले महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। यदि इसे सही स्थान और सही दिशा में न लगाया जाए तो घर में आर्थिक समस्याएं हो सकती हैं।आज के समय में घरों के आकार और बनावट में बहुत ज्यादा अंतर आ गया है। इसलिए ज्यादातर लोग छोटा घर होने के कारण बालकनी ना होने पर या फिर अच्छी धूप के लिए तुलसी का पौधा अपनी छतों पर रखते हैं, लेकिन वास्तु के अनुसार, तुलसी का पौधा छत पर रखने से दोष लगता है। यदि घर की छत पर तुलसी का पौधा लगाया जाए तो आमतौर पर उनकी कुंडली में प्राकृत दोष लगता है। इसका संबंध बुध ग्रह से माना जाता है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है। इसलिए जितना हो सके तुलसी को छत पर लगाने से बचना चाहिए।वास्तु के अनुसार जहां सही दिशा में लगाई गई तुलसी से आपके घर में सुख समृद्धि, शांति और सकारात्मकता आती है तो वहीं गलत दिशा में लगी हुई तुलसी के कारण आपको आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। घर में तुलसी कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं लगानी चाहिए। दक्षिण में तुलसी लगाने से आपको अशुभ फल की प्राप्ति होती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार तुलसी लगाने के लिए सबसे उत्तम दिशा उत्तर-पूर्व मानी गई है। यह दिशा धन के देवता कुबेर की मानी गई है। इस दिशा में तुलसी लगाने से घर में धन वृद्धि होती है। इसके अलावा पश्चिम दिशा में भी तुलसी लगाई जा सकती है।
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महाशिवरात्रि 2021 वह पावन दिन है जिस दिन शिव भक्त अपने भोलेनाथ और देवी पार्वती की प्रसन्नता और उनका आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखकर इनकी पूजा करेंगे। पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि पूर्वजन्म में कुबेर ने अनजाने में ही महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की उपासना कर ली थी जिससे उन्हें अगले जन्म में शिव भक्ति की प्राप्ति हुई और वह देवताओं के कोषाध्यक्ष बने।
महाशिवरात्रि क्यों होगी विशेष?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरंभ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को क्यों कहते हैं?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि महाशिवरात्रि महाशिवरात्रि के पावन दिन के बारे में कहा जाता है कि यूं तो साल में हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि आती है जिसे मास शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और गुजरात, महाराष्ट्र के पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी सबसे श्रेष्ठ है इसलिए इसे शिवरात्रि नहीं महाशिवरात्रि कहते हैं। इसकी वजह यह है कि इसी दिन प्रकृति को धारण करने वाली देवी पार्वती और पुरुष रूपी महादेव का गठबंधन यानी विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि पर रात का महत्व क्यों?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि हिंदू धर्म में रात्रि कालीन विवाह मुहूर्त को उत्तम माना गया है इसी कारण भगवान शिव का विवाह भी देवी पार्वती से रात्रि के समय ही हुआ था। इसलिए उत्तर भारती पंचांग के अनुसार जिस दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि मध्य रात्रि यानी निशीथ काल में होती है उसी दिन को महाशिवरात्रि का दिन माना जाता है।
12 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने पर भी 11 मार्च को ही महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाएगी?
इस वर्ष 11 मार्च को दिन में 2 बजकर 40 मिनट से चतुर्दशी तिथि लगेगी जो मध्यरात्रि में भी रहेगी और 12 तारीख को दिन में 3 बजकर 3 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसलिए 12 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने पर भी 11 मार्च को ही महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।चूँकि रात्रिकाल में 11 मार्च को ही चतुर्दशी है इस लिए निशीथ व्यापनी चतुर्दशी होने से 11 को ही शिवरात्रि मनाई जाएगी
महाशिवरात्रि पर शिवयोग कब तक ?
11 मार्च महाशिवरात्रि के दिन का पंचांग देखने से मालूम होता है कि इस दिन का आरंभ शिवयोग में होता है जिसे शिव आराधना के लिए शुभ माना गया है। शिवयोग में गुरुमंत्र और पूजन का संकल्प लेना भी शुभ कहा गया है। लेकिन शिवयोग 11 मार्च को अधिक समय तक नहीं रहेगा सुबह 9 बजकर 24 मिनट पर ही यह समाप्त हो जाएगा और सिद्ध योग आरंभ हो जाएगा।
महाशिवरात्रि पर सिद्ध योग का क्या लाभ ?
सिद्ध योग को मंत्र साधना, जप, ध्यान के लिए शुभ फलदायी माना जाता है। इस योग में किसी नई चीज को सीखने या काम को आरंभ करने के लिए श्रेष्ठ कहा गया है। ऐसे में सिद्ध योग में मध्य रात्रि में शिवजी के मंत्रों का जप उत्तम फलदायी होगा।
महाशिवरात्रि मुहूर्त की जानकारी
चतुर्दशी आरंभ 11 मार्च- 2 बजकर 40 मिनट
चतुर्दशी समाप्त 12 मार्च -3 बजकर 3 मिनट
निशीथ काल 11 मार्च मध्य रात्रि के बाद 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक।
शिवयोग 11 मार्च सुबह 9 बजकर 24 मिनट तक
सिद्ध योग 9 बजकर 25 मिनट से अगले दिन 8 बजकर 25 मिनट तक
धनिष्ठा नक्षत्र रात 9 बजकर 45 मिनट तक उपरांत शतभिषा नक्षत्र
पंचक आरंभ 11 मार्च सुबह 9 बजकर 21 मिनट से
पर महाशिवरात्रि में पंचक का कोई प्रभाव नहीं
महाशिवरात्रि पर पूजा का समय गृहस्थ और साधकों के लिए
महाशिवरात्रि के अवसर पर तंत्र, मंत्र साधना, तांत्रिक पूजा, रुद्राभिषेक करने के लिए 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक का समय श्रेष्ठ रहेगा।
सामान्य गृहस्थ को शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए सुबह और संध्या काल में शिव की आराधना करनी चाहिए। 2 बजककर 40 मिनट से चतुर्दशी लग जाने से दोपहर बाद शिवजी की पूजा का विशेष महत्व रहेगा।
महाशिवरात्रि पर पूजा का समय गृहस्थ और साधकों के लिए महाशिवरात्रि के अवसर पर तंत्र, मंत्र साधना, तांत्रिक पूजा, रुद्राभिषेक करने के लिए 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक का समय श्रेष्ठ रहेगा। सामान्य गृहस्थ को शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए सुबह और संध्या काल में शिव की आराधना करनी चाहिए। 2 बजककर 40 मिनट से चतुर्दशी लग जाने से दोपहर बाद शिवजी की पूजा का विशेष महत्व रहेगा।
पूजा में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
अगर आपने महाशिवरात्रि का व्रत रखा है तो इस बात का ध्यान रखें कि शिवजी की पूजा काले वस्?त्र पहनकर न करें। ऐसी मान्?यता है कि शिवरात्रि के नीले या फिर सफेद वस्?त्र पहनकर शिवजी की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
अक्षत बिल्कुल भी टूटे हुए नहीं होने चाहिए। मान्यता के अनुसार टूटा हुआ चावल अशुद्ध माना जाता है और इसे पूजा में अर्पित करना अशुभ होता है। अगर आपके घर में ऐसा चावल नहीं है तो बाजार से दूसरा चावल लाकर अर्पित करें और ऐसा न हो पाए तो टूटा हुआ चावल शिवजी को अर्पित न करें।
भगवान शिव की पूजा में एक बात का ध्यान रखें कि भूलकर भी नारियल के पानी के अभिषेक न करें। मान्यता है कि नारियल को मां लक्ष्?मी की प्रिय वस्तु माना गया है, इसलिए शिवजी की पूजा में नारियल का प्रयोग नहीं किया जाता है।
भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी शंख का प्रयोग न करें। इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक असुर का वध किया था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु जी की पूजा में शंख का इस्तेमाल किया जाता है जबकि शिवपूजन में शंख प्रयोग नहीं किया जाता है।
भगवान शिव की पूजा में चंदन का प्रयोग जरूर करना चाहिए। पूजा के वक्त मुख्य रूप ये शिवलिंग पर तीन उंगलियों से चंदन लगाया जाता है। उसके बाद शिवजी की पूजा करके अपने माथ पर भी त्रिपुंड बनाना चाहिए। ऐसा करने से माना जाता है कि शिवजी का आशीर्वाद प्राप्?त होता है। शिव पूजन में कुमकुम या सिन्दूर नहीं लगाना चाहिए। माता पार्वती को आप यह अर्पित कर सकते हैं।
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महाशिवरात्रि पर शिव अराधना से प्रत्येक क्षेत्र में विजय, रोग मुक्ति, अकाल मृत्यु से मुक्ति, गृहस्थ जीवन सुखमय, धन की प्राप्ति, विवाह बाधा निवारण, संतान सुख, शत्रु नाश, मोक्ष प्राप्ति और सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। महाशिवरात्रि कालसर्प दोष, पितृदोष शांति का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। जिन व्यक्तियों को कालसर्प दोष है, उन्हें इस दोष की शांति इस दिन करनी चाहिए। यह जानकारी पंडित एवं ज्योतिष प्रियाशरण त्रिपाठी ने दी।
4 प्रहर के 4 मंत्र-
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके शिवलिंग को दूध से स्नान करवाकर- हीं ईशानाय नम: का जाप करना चाहिए।
द्वितीय प्रहर में शिवलिंग को दधि (दही) से स्नान करवाकर- हीं अधोराय नम: का जाप करें।
तृतीय प्रहर में शिवलिंग को घृत से स्नान करवाकर- हीं वामदेवाय नम: का जाप करें।
चतुर्थ प्रहर में शिवलिंग को मधु (शहद) से स्नान करवाकर- हीं सद्योजाताय नम: मंत्र का जाप करना करें।
किस तरह से करें पूजा एवं मंत्र जाप-
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि मंत्र जाप में शुद्ध शब्दों के बोलने का विशेष ध्यान रखें कि जिन अक्षरों से शब्द बनते हैं, उनके उच्चारण स्थान 5 हैं, जो पंच तत्व से संबंधित हैं। 1- होंठ पृथ्वी तत्व 2- जीभ जल तत्व 3- दांत अग्नि तत्व 4- तालू वायु तत्व 5- कंठ आकाश तत्व मंत्र जाप से पंच तत्वों से बना यह शरीर प्रभावित होता है।
शरीर का प्रधान अंग सिर है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार सिर में 2 शक्तियां कार्य करती हैं- पहली विचार शक्ति व दूसरी कार्य शक्ति। इन दोनों का मूल स्थान मस्तिष्क है। इसे मस्तुलिंग भी कहते हैं। मस्तुलिंग का स्थान चोटी के नीचे गोखुर के बराबर होता है। यह गोखुर वाला मस्तिष्क का भाग जितना गर्म रहेगा, उतनी ही कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है।
मस्तिष्क के तालू के ऊपर का भाग ठंडक चाहता है। यह भाग जितना ठंडा होगा उतनी ही ज्ञानेन्द्रिय सामथ्र्यवान होगी।
1- मानसिक जाप अधिक श्रेष्ठ होता है।
2- जाप, होम, दान, स्वाध्याय व पितृ कार्य के लिए स्वर्ण व कुशा की अंगूठी हाथ में धारण करें।
3- दूसरे के आसन पर बैठकर जाप न करें।
4- बिना आसन के जाप न करें।
5- भूमि पर बैठकर जाप करने से दुख, बांस के आसन पर जाप करने से दरिद्रता, पत्तों पर जाप करने से धन व यश का नाश व कपड़े के आसन पर बैठ जाप करने से रोग होता है। कुशा या लाल कंबल पर जाप करने से शीघ्र मनोकामना पूर्ण होती है।
6- जाप काल में आलस्य, जंभाई, निद्रा, थूकना, छींकना, भय, वार्तालाप करना, क्रोध करना आदि सब मना है।
7- लोभयुक्त आसन पर बैठते ही सारा अनुष्ठान नष्ट हो जाता है।
8- जाप के बाद आसन के नीचे जल छिड़ककर जल को मस्तक पर लगाएं, वरना जप फल को इंद्र स्वयं ले लेते हैं।
9- स्नान कर माथे पर तिलक लगाकर जाप करें।
10- पितृऋण, देवऋण की मुक्ति के लिए 5 यज्ञों को किया जाता है।
11- घंटे और शंखनाद का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। वैज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध हो गया है कि शंखनाद व घंटानाद से तपेदिक के रोगी, कान का बहना व बहरेपन का इलाज होता है। मास्को सैनिटोरियम में केवल घंटा बजाकर टीबी रोगी ठीक किए गए थे।
12- 1928 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में शंख ध्वनि से बैक्टीरिया नामक हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट किया गया था। शंखनाद से मिर्गी, मूर्छा, गर्दनतोड़ बुखार, हैजा, प्लेग व हकलापन दूर होता है।
13- पूर्व व उत्तर दिशा में ही देखकर जाप करें। -
करियर में सफलता और असफलता के लिए कुंडली में बुध ग्रह को जिम्मेदार माना गया है। नौकरी, बिजनेस और पढ़ाई में आने वाली बाधा को दूर करने के लिए इस महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर दूर्वा घास चढ़ाएं। इस उपाय से करियर संबंधी बाधा दूर हो जाती है। यह जानकारी देते हुए पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि कुंडली में ग्रह दोष होने से व्यक्ति की मानसिक परेशानी बढ़ जाती है। ज्योतिष में मानसिक परेशानी का संबंध चंद्रमा से संबंधित ग्रह दोष के कारण होता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर दूध अर्पित करना चाहिए।
मान-सम्मान में आई गिरावट को दूर करने के उपाय
पंडित त्रिपाठी ने बताया कि अगर किसी की कुंडली में सूर्य ग्रह से संबंधित कोई दोष हो तो व्यक्ति के मान-सम्मान में गिरावट होने लगती है और अपयश का सामना करना पड़ता है। मान-सम्मान को बढ़ाने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाएं और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
सेहत संबंधी परेशानियों से छुटकारा पाने के उपाय
पंडित त्रिपाठी ने बताया कि कुंडली में राहु-केतु के अशुभ घर में बैठने पर स्वस्थ्य संबंधी परेशानियां आने लगती है। सेहत को ठीक करने के लिए महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को धतूरा चढ़ाएं
विवाह संबंधी दोष को दूर करने के उपाय
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार कुंडली में बृहस्पति ग्रह के कमजोर और दोष होने से विवाह होने में तमाम तरह की परेशानियां आने लगती है। साथ ही पति-पत्नी में मनमुटाव भी बढऩे लगता है। कुंडली में इस दोष को दूर करने के लिए इस पवित्र महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं।
- आजकल घरों में लव बर्ड, लॉफिंग बुद्धा, क्रिस्टल, कछुआ, कैंडल, विंड चाइम आदि अनेक चीजों नजर आती हैं। कुछ लोग इन्हें सजावट के लिए ले आते हैं, लेकिन इसके पीछे किसी तरह का विश्वास या मान्यता भी होती हैं, इस बारे में शायद नहीं जानते। दरअसल ये सभी चीजें चीनी वास्तु शास्त्र फेंग शुई के अनुसार शुभ व सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करने वाली मानी जाती हैं। फेंगशुई के वास्तु उपाय आजकल लोकप्रिय होते जा रहे हैं। यहां हम कुछ ऐसे ही फेंगशुई के लव टिप्स बताने जा रहे हैं, जिससे प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी व घर में सकारात्मक ऊर्जा संचरित होगी।फेंगशुई के लव टिप्स-फेंगशुई के अनुसार यदि आप विवाहित हैं तो ध्यान रखिए, टी.वी या कंप्यूटर आपसी संवाद की प्रक्रिया में बाधक हो सकते हैं जो कि रिश्तों को संभालने के लिए बहुत जरुरी है। इसलिए बेहतर होगा आप टी.वी, कंप्यूटर आदि को अपने शयनकक्ष से बाहर रखें।-शयनकक्ष में किसी भी तरह का विभाजन चाहे वह छत को दो हिस्सों में दिखाती बीम हो या फिर आपके बिस्तर को दो हिस्सों में करते गद्दे। फेंगशुई आपको डबल बेड पर भी सिंगल गद्दे के इस्तेमाल की सलाह देता है। इससे आपसी प्यार और बढ़ेगा व नकारात्मकता की जो रेखा आपके बीच थी, मिट जाएगी। नदी, तालाब, झरना और जल संग्रह आदि की तस्वीरें भी शयनकक्ष में नहीं लगानी चाहिए।-बिस्तर के सामने टॉयलेट का दरवाजा न हो, यदि हो तो हमेशा बंद रखें। शयनकक्ष में लगे दर्पण में भी आपका बिस्तर नजर नहीं आना चाहिए, फेंगशुई के अनुसार इससे संबंधों में तकरार होने की संभावना बनी रहती है। यदि उसे हटाना संभव न हो तो इस पर पर्दा डालकर रखें। आपके बिस्तर का सिरा खिड़की या दीवार से सटा नहीं होना चाहिए। इससे भी नकारात्मक ऊर्जा आती है जो आपसी संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है। अपने शयनकक्ष में फूलदान या लव-बर्ड रख सकते हैं।-अविवाहितों को सलाह दी जाती है, अपने घर की सजावट पर थोड़ा समय लगाएं, इससे सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी। इसके साथ ही सिंगल कुर्सी, पक्षी या जानवरों की मूर्तियां जो अकेलेपन को दर्शाती हों, घर में न रखें। जोड़े वाले पक्षियों की तस्वीर या मूर्ति लगाएं।-घर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से को फेंगशुई में प्यार के लिए बहुत ही उपयुक्त स्थान माना जाता है। इसलिए इस हिस्से को जितना हो सके सजा कर रखें। दिवारों पर गुलाबी, हल्का नीला आदि रोमांटिक रंगों का इस्तेमाल करने से भी सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।कुल मिलाकर फेंगशुई आपको व्यवस्थित रुप से रहने की और इशारा करता है। आप जितने व्यवस्थित व साफ-सुथरे तरीके से रहते हैं, उसी आधार पर सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा आप पर प्रभाव डालती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 219
साधक का प्रश्न ::: साधना करते-करते ही मन दिव्य होने लगता है या थोड़ा शुद्ध होने के बाद गुरु से जब प्रेम मिलता है उसके बाद जा के दिव्य होता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: नहीं, शुद्ध होने लगता है उसी को दिव्य कहते है। शुद्ध होने लगता है कि गंदगी साफ होती गई , तो हमारे विचार अच्छे होने लगे नैचुरल, हमारा अटैचमेन्ट संसार से कम होने लगा नैचुरल। ये सब उसकी पहचान है। जैसे हमारा किसी ने अपमान किया तो कितना चिंतन हुआ था, आज अपमान किया तो थोड़ी देर में खतम कर दिया। हाँ, अब आगे बढ़ गये। कल हमारा सौ रुपया खो गया तो हम आधा घंटा परेशान रहे, आज सौ रुपया खो गया तो पाँच मिनट परेशान रहे, उसके बाद हमने कहा - ये हमारे लिए नहीं रहा होगा। हटाओ। ज्यों-ज्यों हम आगे बढ़ेंगे ईश्वर की ओर त्यों-त्यों ये कष्ट की फीलिंग कम होती जाएगी । ये माइलस्टोन असली है।
तो साधना में मन धीरे-धीरे, धीरे-धीरे शुद्ध होता है । लेकिन जब पूर्ण शुद्ध होगा तो अलौकिक शक्ति गुरु देगा, वह असली दिव्य है जिससे माया निवृत्ति होगी, भगवद्दर्शन होगा, सब समस्यायें हल होंगी। वह दिव्यता एक पॉवर है । और इधर की जो शुद्धता है इसको दिव्य बोलते हैं कि ये माया से रहित होने लगा। मायिक अटैचमेन्ट कम होने लगा, ईश्वरीय अटैचमेन्ट बढ़ने लगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - महाशिवरात्रि के पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव को समर्पित है। मान्यतानुसार शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था । इस दिन भगवान शिव की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और साथ ही व्रत उपवास करने का विधान है। इस साल महाशिवरात्रि का त्योहार 11 मार्च 2021 (गुरुवार) को मनाया जाएगा। इस दिन किए गए अनुष्ठानों, पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता है।कई शुभ संयोगों के साथ है महाशिवरात्रिइस बार महाशिवरात्रि कई शुभ संयोगों में आ रही है। इस दिन एक ही मकर राशि में 4 बड़े ग्रह शनि, गुरु, बुध तथा चंद्र, धनिष्ठा नक्षत्र में होंगे तथा आंशि काल सर्प योग भी रहेगा। ऐसे मौके पर जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग है, वे इसकी शांति करवा सकते हैं। इस योग में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होगा और जातक यदि अपनी अपनी राशि अनुसार भगवान की आराधना करेंगे तो इससे उनकी कई मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्तचतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 11 मार्च को दोपहर 02 बजकर 39 मिनट।चतुर्दशी तिथि समाप्त- 12 माच को दोपहर 03 बजकर 02 मिनट ।महाशिवरात्रि पर निशिता काल- 11 मार्च को प्रात: 12 बजकर 06 मिनट से प्रात: 12 बजकर 55 मिनट तक।महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त- 12 मार्च को प्रात: 06 बजकर 36 मिनट से दोपहर 3 बजकर 04 मिनट तक।रुद्राभिषेक करना शुभदायकइस दिन रुद्राभिषेक करना शुभदायक होगा। इस दुर्लभ योग में भगवान शिव की आराधना करने पर दोष भी दूर हो सकेंगे और कष्टों से मुक्ति मिलेगी। इस दिन कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान जैसे रूद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। इस मंत्र के जाप से कई कष्टों का निवारण होता है।महाशिवरात्रि की पूजा विधिशिव रात्रि को भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करा कराएं। केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं। पूरी रात को दीपक जलाकर रखें। चंदन का तिलक लगाएं, बेलपत्र, भांग,गन्ने का रस, धतूरा, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिठाई, मीठा पान इत्र और दक्षिणा चढ़ाए। इसके बाद खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें. ओम नमो भगवते रूद्राय, ओम नम: शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नम: मंत्र का जाप करें। इस दिन शिव पुराण का पाठ जरूर करें। अगर इस दिन जागरण हो तो अति उत्तम है।महाशिवरात्रि पूजा का महत्वइस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रखकर रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्नादि सहित बाह्मणों तथा शारीरिक रुप से असमर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा कल्याणकारी होता है और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है।