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- वास्तु के लिहाज से सिंदूर का विशेष महत्व है। सिंदूर हर सुहागन स्त्री के शृंगार का अहम हिस्सा है। सुहागन स्त्री सिंदूर से अपनी मांग भरती है। शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री के सिंदूर लगाने से उसके पति की आयु लंबी होती है। रोगों से उसकी रक्षा होती है।हर रोज सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय थोड़ा सा सिंदूर जल में मिला लें। अपने घर के दरवाजे पर सिंदूर से स्वास्तिक के निशान बना दें। ऐसा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। जिन घर में पति-पत्नी में अक्सर झगड़ा होता है, उन्हें इस उपाय को अवश्य आजमाना चाहिए। माना जाता है कि घर के मुख्य दरवाजे पर तेल में सिंदूर मिलाकर लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता। ऐसा लगातार 40 दिन करने से घर में मौजूद वास्तुदोष दूर हो जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा भी बिना सिंदूर अधूरी होती है। धन की हानि हो रही है तो ऐसी समस्याओं को दूर करने के लिए पांच मंगलवार और शनिवार तक चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को चढ़ाएं। चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को अर्पित करें। ऐसा करने से कारोबार में उन्नति होगी और धन से संबंधित सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। सिंदूर को मरीज के ऊपर से उतारकर बहते हुए जल में प्रवाहित करने से बीमारी में तेजी से लाभ मिलता है। घर के मुख्य द्वार पर सिंदूर चढ़ी हुई भगवान श्रीगणेश की मूर्ति लगाने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। सुहागिन महिलाओं को बाल धोने के बाद सुबह गौरी मां को सिंदूर चढ़ाना चाहिए और कुछ सिंदूर अपने भी लगाना चाहिए। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन अच्छा व्यतीत होता है।
- चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां अंजनी के कोख से हनुमान जी का जन्म हुआ था। भक्त इस दिन को बड़े ही धूम- धाम से मनाते हैं। हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं। हनुमान जी का आर्शीवाद प्राप्त करने का सबसे आसान उपाय है नियमित रूप से तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा का पाठ। हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है। हनुमान चालीसा की हर चौपाई महामंत्र है। हनुमान चालीसा की कुछ चौपाइयां ऐसी हैं जिनका लगातार जप करने से व्यक्ति को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।भूत पिशाच निकट नहीं आवे।महाबीर जब नाम सुनावे।।जिस व्यक्ति को डर लगता है उसे नियमित रूप से इस चौपाई का जप करना चाहिए। आप माला से भी जप कर सकते हैं। इस चौपाई का जप करने से भय दूर हो जाता है।नासे रोग हरे सब पीरा।जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा।।बीमारियों से परेशान व्यक्ति को नियमित रूप से इस चौपाई का जप करना चाहिए। इस चौपाई का जप करने से बड़े से बड़ा रोग भी दूर हो जाता है।अष्ट-सिद्धि नौ निधि के दाता।अस बर दीन जानकी माता।।इस चौपाई का नियमित जप करने से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। हनुमान जी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।विद्यावान गुनी अति चातुर।रामकाज करीबे को आतुर।।हनुमान चालीसा की इस चौपाई का जप करने से शिक्षा के क्षेत्र में आ रही परेशानियां दूर होने लगती हैं। इस चौपाई का नियमित जप करने से आर्थिक समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।भीम रूप धरि असुर संहारे।रामचंद्रजी के काज संवारे।।हनुमान चालीसा की इस चौपाई का जप करने से शत्रुओं से मुक्ति मिल जाती है। हनुमान जी की कृपा से सभी तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं।
- गायत्री मंत्र अन्य कई मंत्रों से ज्यादा प्रभावशाली माना गया है। शास्त्रों में भी इस मंत्र को बहुत शक्तिशाली बताया गया है। इस मंत्र का जाप करने के लिए किसी विशेष समय की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी इस मंत्र का जाप एक समय और नियम के अनुसार किया जाए तो यह एक ऐसा मंत्र है जिसमें हर समस्या का निदान छुपा हुआ है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, के साथ जीवन में खुशियों का संचार होता है। यह अत्याधिक लाभकारी मंत्र है। तो चलिए जानते हैं गायत्री मंत्र जाप का सही समय, अर्थ और फायदे...गायत्री मंत्र का जप का पहला समयगायत्री मंत्र का जाप प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू करना चाहिए।गायत्री मंत्र का जप दोपहर के समय भी किया जा सकता है।संध्या के समय गायत्री मंत्र का जाप सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप आरंभ कर देना चाहिए और सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक जप करना चाहिए।गायत्री मंत्र और उसका अर्थगायत्री मंत्र:- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।अर्थात .. उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपने अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।विद्यार्थियों के लिए गायत्री मंत्र का जाप बहुत फायदेमंद होता है। इस मंत्र के जाप से मन एकाग्र होता है और ज्ञान में वृद्धि होती है। जो लोग शिक्षा में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 262
(भूमिका - शास्त्र में एक बात आती है; 'दानमेकं कलौयुगे'। कलियुग में 'दान' का बड़ा महत्व है। तथापि दान सम्बन्धी कुछ रहस्य की बातें हैं, जिसका ज्ञान होना मनुष्य के लिये बहुत आवश्यक है। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निम्नांकित प्रश्नोत्तरी में इसी से जुड़े एक प्रश्न का समाधान कर रहे हैं। आगे भी 'दान' सम्बन्धी अन्य प्रश्नोत्तरियाँ प्रकाशित होती रहेंगी...)
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! आमदनी का कितना परसेन्ट दान करना चाहिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर ::: परसेन्ट का सवाल नहीं है।
यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्।अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।।(भागवत 7-14-8)
वेदव्यास ने कहा है कि जितने पैसे से तुम्हारा शरीर चल जाये। चल जाये। 'भ्रियेत' पेट भर जाये 'तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्', ये भगवान की सृष्टि है, भगवान का संसार है। अगर जैसे बैंक में किसी को बना दिया गया कोषाध्यक्ष तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो रुपया लेकर चला जाये अपने घर। उसका रुपया कुछ नहीं है। उसको तो पे (वेतन) मिलेगी केवल।
वो रुपया जो है, कैश जो है बैंक का वो तो बाँटने के लिये है जिसका जितना-जितना जमा है, पब्लिक का, उसको दो। उसको छुओ मत। ऐसे ही वेदशास्त्र कहता है कि जितने में तुम्हारे शरीर का, तुम्हारे परिवार के शरीर का पालन हो जाये। इच्छाओं की पूर्ति नहीं, पालन। जैसे एक मकान है। हमने एक अपने रहने के लिये मकान लिया और एक दस अरब का मकान बनाया। हमने एक मामूली कपड़ा पहन लिया हमारा काम चल रहा है शरीर का और एक वो सबसे महँगा वाला कपड़ा लिया। वो इच्छा की बात है। वो इच्छा वाली बात नहीं कह रहा है।
शास्त्र वेद कह रहा है कि जितने में तुम्हारा काम चल जाये। रोटी, दाल, चावल, तरकारी जो कुछ खाने का सामान आवश्यक है शरीर को वो दो, जो कपड़ा पहनना जरूरी है वो कपड़ा पहनो, मकान में रहो। ये जो रोटी, कपड़ा, मकान आदि का विषय है शरीर का, इसके बाद जो भी बचे दान करो। वो तो तुम्हारा नहीं है। मरने के बाद भी नहीं रहेगा। मरने के पहले ही उसको तुम अपना मत मानो, उसको दान करो, तो तुम्हें भगवत्कृपा का जो फल है वो मिलेगा। भगवान के निमित्त करो। उसको किसी सांसारिक स्वार्थ के लिये दान न करो। हम वहाँ दान कर दें तो मिनिस्टर खुश हो जायेगा। तो हमारी आमदनी बढ़ जायेगी। आजकल ये होता है न टाटा, बिरला आदि बड़े बड़े उद्योगपतियों के यहाँ दान बिजनेस हो गया है।
जहाँ तुमसे दान करने की बात करता है कोई महात्मा तो कहते हो कि ये तो पैसे के लोभी हैं, तुरन्त खोपड़ी में आप लोगों के आता है ये। अरे वो पैसे के लोभी नहीं हैं। तुमसे पैसे की जो आसक्ति है तुम्हारी वो निकलवाना चाहते हैं, कृपा है उनकी। जब कोई फोड़ा हो जाता है बच्चे को तो माँ डॉक्टर के पास ले जाती है, जोर से पकड़ती है उसके हाथ को, पैर को, हाँ डॉक्टर साहब चीर दो। वो चिल्लाता है कैसी माँ है ये, मारता है छोटा बच्चा माँ को। वो कहती है मार ले कुछ कर ले, गाली दे ले लेकिन मैं तेरे इस रोग को समाप्त करवाऊंगी।
तो महात्मा लोग भी सब सह लेते हैं, इनके दुर्वचन, इनकी दुर्भावनायें, लेकिन पीछे लगे रहते हैं। अरे कुछ तो करेगा, चलो नथिंग से समथिंग अच्छा है। ये सब दान नहीं करेगा, थोड़ा तो करेगा। कुछ तो कल्याण हो। इतना तो हो जाय कि फिर ये मानव देह मिले।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'द द द' पुस्तक (दान-विज्ञान पर आधारित)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कामदा एकदाशी व्रत प्रति वर्ष चैत्र माह के शुक्ल की एकादशी के दिन रखा जाता है। इस साल यह व्रत 23 अप्रैल को रखा जाएगा। यह तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित है। इस दिन भगवान वासुदेव की आराधना विधि विधान से की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत करने वालों को भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जातकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें परेशानियों से छुटकार मिलता है। कामदा एकादशी के ये उपाय इस प्रकार हैं--कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा करें। मान्यता है कि इस दिन जगत के पालनहार की पूजा करने से जातकों को समस्त प्रकार के कष्टों और परेशानियों से छुटकारा मिलता है।कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में उन्हें पीले पुष्प अवश्य चढ़ाएं। यदि संभव हो तो उन्हें गेंदे अथवा केवड़ा के फूल अर्पित करें। मान्यता है कि ऐसा करने से जातकों को जीवन में खूब तरक्की मिलती है।कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी को खरबूजा, आम, तिल, दूध एवं पेड़े का भोग लगाना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन विष्णु जी को उपरोक्त चीजें अर्पित करने से वे जातकों को सफलता प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं।कार्य-व्यापार और नौकरी में सफलता पाने के लिए कामदा एकादशी के दिन जातकों को पूजा के समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र को 108 बार जपना चाहिए। यह उपाय बेहद कारगर माना जाता है।कामदा एकादशी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु जी की कृपा पाने के लिए ब्राह्मणों को पीले चावल अथवा पीला भोजन कराना चाहिए। साथ ही पीले वस्त्र, पीले रंग की मिष्ठान दान करना चाहिए। ऐसा करने से जातकों का भाग्य प्रबल होता है।यदि कोई जातक विवाह योग्य है परंतु विवाह में देरी या अन्य विवाह संबंधी परेशानियों का सामना कर रहा है तो उस जातक को कामदा एकादशी के दिन विष्णु जी को पूजा में हल्दी की गांठ अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से कामना पूरी होगी।
- पहले के समय में राजा महाराजाओं के महलों में कई तरह के ध्वज लगाए जाते थे। उस समय लगाई जाने वाली ध्वजाओं का अलग-अलग अर्थ होता था। कुछ ध्वजा विजय पताका के रूप में लगाई जाती थी तो कोई महत्वपूर्ण संदेश देने के लिए भी ध्वजा का प्रयोग किया जाता था। आज के समय में भी लोग अपने घरों की छत पर धार्मिक रूप से ध्वजा लगाते हैं लेकिन ज्योतिष में ध्वजा लगाने का विशेष महत्व माना जाता है, जिसके अनुसार ध्वजा लगाने से कई लाभ भी मिलते हैं इसलिए ध्वजा लगाते समय रंग और दिशा आदि का भी ध्यान रखना चाहिए।कैसे हो ध्वजा का रंगसनातन धर्म में भगवान और केसरिया रंग की ध्वजा लगाना बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए भगवा केसरिया या फिर पीले रंग में से किसी एक रंग की ध्वजा लगा सकते हैं। ये तीनों ही रंग ध्वजा के लिए सही रहते हैं।इस दिशा में लगाएं ध्वजाध्वजा को लगाने के लिए वायव्य कोण सही माना जाता है। यदि आपको अपने घर में ध्वजा लगानी है तो इसे घर की छत पर वायव्य कोण में लगाएं। यदि आपको दिशा की जानकारी सही प्रकार से न हो पा रही हो तो किसी वास्तु शास्त्री से सलाह लेकर ध्वजा लगा सकते हैं।इस तरह की होनी चाहिए ध्वजाआप त्रिभुजाकार या फिर दो त्रिभुजाकार ध्वज में से कोई एक लगा सकते हैं। इसके अलावा स्वास्तिक या फिर ॐ जैसे शुभ चिन्ह बने हुए ध्वज लगा सकते हैं। ये दोनों ही चिन्ह बहुत शुभ माने जाते हैं। इससे आपके घर में शुभता और सकारात्मकता आती है।घर पर ध्वजा लगाने के लाभमान्यता है कि ध्वजा लगाने से यश, कीर्ति और विजय प्राप्त होती है। परिवार के सदस्यों की तरक्की होती है, इसके साथ ही ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष से मुक्ति प्राप्ति होती और घर की सुख, समृद्धि आती है।-file photo
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मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी के प्राकट्योत्सव 'श्रीराम-नवमी' की अनंत-अनंत शुभकामनायें!!
'आजु अवध महँ प्रकटे राम,बोलो जय राम, जय राम जय जय राम।'- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज
अनंतकोटि ब्रम्हाण्डनायक दशरथ-कौशल्यानंदन सियावर प्रभु श्रीरामचन्द्र जी का आज प्राकट्योत्सव है। भगवान श्रीराम अनंत गुणों के समुद्र हैं, जिनकी महिमा अनंत संतों ने गाई है।
पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने भी अपने रस-साहित्यों व प्रवचनों में भगवान श्रीरामचंद्र जी के पवित्र नामों तथा उनके गुणों का गान करते हुये उनकी वन्दना की है। आइये उन्हीं के द्वारा प्रगटित साहित्यों में से कुछ आधार लेकर हम भी अपने परमाराध्य श्रीराम जी की स्तुति करें तथा उनके वास्तविक तत्व का परिचय प्राप्त करें :::
(1) स्तुति एवं कृपा की याचना :
नृप दशरथ नंदन श्रीराम, जनकनंदिनी सीता बाम..तुमहिं श्याम हो तुम ही राम, परम कृपालु कृपा करु राम..(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु विरचित)
(2) 'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रंथ, सिद्धान्त-माधुरी खंड के 27वें पद में श्रीराम-तत्व पर प्रकाश :
अवध के राम बने ब्रज श्याम।लखन बने बलराम जानकी, राधारानी नाम।त्रेता में बड़भ्रात राम भये, द्वापर में बलराम।मुकुट, ग्रीव, कटि, पद टेढ़ो करि, प्रकटे चंचल राम।योगारूढ़ जीव हित कीन्ही, लीला रास ललाम।पग पलुटावति सदा जानकी, रामहिं येहि ब्रजधाम।इनमें भेद 'कृपालु' मान जो, नरकहुँ नाहीं ठाम।।
भावार्थ ::: अयोध्या के भगवान राम ही ब्रज में श्याम (कृष्ण) बनकर प्रकट हुये। लक्ष्मण जी बलराम बन गये एवं श्री जानकी (सीता) जी राधारानी के नाम से प्रख्यात हुईं। त्रेता में बड़े भाई राम हुये एवं द्वापर में बड़े भाई बलराम हुये। भगवान राम ब्रज में मुकुट, गर्दन, कमर एवं पैरों को टेढ़ा करके चंचल स्वभाव से प्रकट हुये एवं मायातीत जीवों के लिये आदर्श स्थापित करते हुये दिव्य रासलीला का अभिनय किया। ब्रज में श्री जानकी जी ने भगवान राम से अपने चरण दबवाये। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि इन दोनों (राम-कृष्ण) में जो भेदभाव रखता है वह नामापराधी है, उसको नरक में भी स्थान नहीं मिल सकता।
(3) भगवान के सगुण साकार अवतार धारण करने का उद्देश्य :::
'..भगवान का जब सगुण साकार अवतार होता है तो अपना नाम, रूप, लीला, गुण, धाम - यह वह छोड़ जाते हैं जिसका अवलम्ब लेकर अनन्तानन्त जीव भगवान के प्रेमानन्द को प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ अगर श्रीकृष्ण का अवतार न होता तो शुकदेव श्रीकृष्ण के लिये व्याकुल न होते। जब उन्होंने भगवान के दयालुता के गुण को सुना कि पूतना जो उन्हें जहर पिलाने के लिये गई उसको भी अपना लोक दे दिया, वे तुरन्त व्याकुल हो गये। जीवन्मुक्त होने पर भी वे पहली कक्षा में पहुँच गये। भागवत को सुना और परीक्षित को सुनाया। बिना सगुण साकार अवतार लिये भगवान के सगुण साकार नाम, रूप, गुण, लीला, धाम का विस्तार हमको मिलता और बिना इसके प्राप्त हुये घोर मायाबद्ध जीव किस प्रकार भगवत्प्राप्ति करते, इसलिये जीव कल्याण के लिये ही भगवान का अवतार होता है...' (सन्दर्भ - साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2011 अंक, पृष्ठ 15)
(4) हम कलिमलग्रसित जीव क्या करें? श्रीराम कैसे मिलेंगे?
'...आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लोए कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दीन-हीन, पापात्मा रियलाइज करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे...' (सन्दर्भ - साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक, पृष्ठ 52)
(5) सनातन वैदिक धर्म के संवाहक वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त तत्वदर्शन (विशेषता) :::
पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने रस-साहित्यों तथा प्रवचनों में जहाँ श्रीराधाकृष्ण तथा ब्रजरसपरक पद-कीर्तन तथा दर्शन का विशद वर्णन किया है वहीं अनगिनत स्थानों पर रघुकुलशिरोमणि दीनबन्धु भगवान श्रीराम के गुणों का भी वर्णन करते हुये उनकी स्तुति की है तथा वेदादिक शास्त्रों में निरूपित श्रीराम-तत्व का भी विशद वर्णन किया है, जिसमें उन्होंने राम तथा कृष्ण - दोनों की एकता अथवा अभेदता का स्पष्ट प्रतिपादन किया है। आचार्य श्री ने श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट, अयोध्या, नासिक, रामेश्वरम सभी स्थानों पर भक्त मंडली के साथ जाकर श्रीराम-नाम, गुणादि का संकीर्तन कराया है। 'हरे राम' महामंत्र का तो उन्होंने नित्य प्रति ही संकीर्तन किया है। कई बार अखंड संकीर्तन भी हुआ इसी महामंत्र का। छः महीने की लंबी अवधि तक भी 'हरे राम' संकीर्तन हुआ है। अतः श्री कृपालु महाप्रभु जी ने राम-कृष्ण में अभेद माना है। श्रीवृन्दावन स्थित प्रेम-मन्दिर, बरसाना धाम स्थित कीर्ति-मन्दिर तथा भक्तिधाम मनगढ़ स्थित भक्ति-मन्दिर तीनों ही स्थानों पर उन्होंने श्रीसीताराम एवं श्रीराधाकृष्ण दोनों के ही दिव्य विग्रह स्थापित किये हैं। रामनवमी का पर्व भी उसी हर्षोल्लास के साथ मनाया जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और श्रीराधाष्टमी।
पुनः आप सभी सुधि तथा भगवत्प्रेमी पाठक जनों को 'श्रीराम नवमी' की अनन्तानन्त शुभकामनायें!!
०० 'साधन साध्य' पत्रिका तथा 'प्रेम रस मदिरा' तथा 'ब्रज रस माधुरी' ग्रंथ से लिये गये उद्धरण ::: सर्वाधिकार सुरक्षित, © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं) - -21 अप्रैल बुधवार को है रामनवमी का त्योहार-श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनायी जाती है रामनवमीचैत्र नवरात्रि की शुरुआत 13 अप्रैल मंगलवार को हुई थी और उसका समापन 21 अप्रैल बुधवार को रामनवमी के साथ हो रहा है. शास्त्रों की मानें तो चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को ही दोपहर के समय प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था. इसलिए, चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को रामनवमी यानी भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. रामनवमी इस बार 21 अप्रैल को मनायी जा रही है. इस दिन बहुत से लोग व्रत भी रखते हैं. नवरात्रि के समापन की वजह से इस दिन कई जगहों पर हवन भी होता है. तो रामनवमी की पूजा करते वक्त कोई भूल चूक न हो जाए इसलिए पहले ही जान लें पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को हुआ था श्रीराम का जन्मधार्मिक मान्यताओं के मुताबिक त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धरती पर एक बार फिर धर्म की स्थापना करने के लिये भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था. मान्यताओं के अनुसार श्रीराम चन्द्र का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में राजा दशरथ के घर अयोध्या में हुआ था. रामनवमी का त्योहार राम जन्मोत्सव के तौर पर देशभर में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. वैसे तो रामनवमी के दिन देशभर के मंदिरों में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इस बार घर पर ही रामनवमी की पूजा करना बेहतर होगा.रामनवमी की पूजा का शुभ मुहूर्तनवमी तिथि प्रारंभ- 21 अप्रैल बुधवार को रात 12:43 बजे सेनवमी तिथि समाप्त- 22 अप्रैल रात 12:35 बजेपूजा का शुभ मुहूर्त- 21 अप्रैल को सुबह 11.02 बजे से दोपहर 01.38 बजे तकपूजा की कुल अवधि- 2 घंटे 36 मिनटरामनवमी मध्याह्न समय: दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पररामनवमी की पूजा विधिरामनवमी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और फिर स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें. पूजा स्थान पर पूजन सामग्री के साथ आसान लगाकर बैठें. भगवान श्रीराम की पूजा में तुलसी का पत्ता होना अनिवार्य है क्योंकि श्रीराम विष्णु जी के अवतार हैं और भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है. राम जी की पूजा में तुलसी के प्रयोग से प्रभु श्रीराम प्रसन्न होते हैं. उसके बाद रोली, चंदन, धूप और गंध से रामजी की पूजा करें. दीपक जलाएं, सभी देवी-देवताओं का ध्यान लगाएं और आरती करें. फिर श्रीराम को मिष्ठान, फल, फूल आदि अर्पित करें. इसके बाद मंत्रों का जाप करें और हवन भी करें. इस दिन रामनवमी की पूजा के बाद रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षास्तोत्र का पाठ जरूर करें. इसे पढ़ना बहुत शुभ माना जाता है.
- हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र महीने के पूर्णिमा तिथि को भगवान हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल जन्मोत्सव 27 अप्रैल मंगलवार को मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इसलिए सच्चे मन से उनकी पूजा करने वाले भक्तों के जीवन की सभी बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं।कलयुग के देवता और शिवजी के 11वें अवतार हैं हनुमान जीराम भक्त भगवान हनुमान जिन्हें बजरंगबली के नाम से भी जाना जाता है, को कलयुग का देवता माना गया है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी भगवान शिव के 11वें अवतार हैं और उन्हें चिरंजीवी होने का आशीर्वाद प्राप्त है। हनुमान जी की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने के लिहाज से हनुमान जन्मोत्सव का दिन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन भक्तों को रामायण, रामचरित मानस, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक आदि का पाठ करना चाहिए।हनुमान जन्मोत्सव के दिन बन रहे कई शुभ संयोगइस बार हनुमान जन्मोत्सव 27 अप्रैल मंगलवार को मनाया जा रहा है। मंगलवार का दिन हनुमान जी का ही दिन होता है और ऊपर से हनुमान जन्मोत्सव का दिन यानी भक्तों के पास बजरंगबली को खुश करने का दोहरा मौका है। इसके अलावा इस दिन रात में 8 बजे तक सिद्धि योग रहने वाला है और बेहद शुभ स्वाति नक्षत्र भी। किसी भी तरह की सिद्धि प्राप्त करने और ईश्वर का नाम जपने के लिए सिद्धि योग बेहद उत्तम माना जाता है। हनुमान जन्मोत्सव का महत्वऐसी मान्यता है कि हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से जीवन के सभी संकट और बाधाओं से छुटकारा मिलता है और सुख शांति की प्राप्ति होती है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि ग्रह का अशुभ प्रभाव हो तो उसे भी हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से शनि देव से जुड़ी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। साथ ही निगेटिव ऊर्जा से जुड़ी परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है।
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वास्तुशास्त्र में विशेष तौर पर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने में पेड़ पौधों का बहुत योगदान रहता है। कुछ ऐसे पेड़ बताए गए हैं जिनकी छाया में बैठने से आप सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं। जानते हैं कि कौन से हैं वे पेड़।
केले का वृक्षकेले के पेड़ को देव वृक्ष कहा गया है। बृहस्पतिदेव को प्रसन्न करने हेतु केले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। केले के पेड़ की छांव में बैठने से सकारात्मक ऊर्जा तो प्राप्त होती ही है साथ ही इस पेड़ की छांव में बैठना छात्रों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि केले के पेड़ की छांव में यदि विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं तो उन्हें अपना पाठ जल्दी याद हो जाता है। लोग केले का पेड़ घरों में भी लगाते हैं , लेकिन इस पेड़ को घर के अंदर लगाने की बजाय द्वार पर लगाना चाहिए।नीम का पेड़नीम का पेड़ औषधीय गुणों से तो भरपूर होता ही है साथ ही इसपर मां दुर्गा का वास भी माना जाता है। यदि आप इस पेड़ की जड़ में प्रतिदिन जल अर्पित करते हैं तो आपको मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। नीम की छाया में बैठने से सकारात्मक ऊर्जा भी प्राप्त होती है। घर में नीम का पेड़ लगा होने से नजर दोष से भी बचाव होता है।आंवला का पेड़आंवले के औषधीय गुणों से तो सभी परिचित हैं यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके साथ ही आंवले के वृक्ष का धार्मिक महत्व भी बताया गया है।पौराणिक मान्यता के अनुसार आंवले के पेड़ पर स्वयं भगवान श्रीहरि का वास होता है। इस पेड़ की छाया में बैठने से आपको सकारात्मक ऊर्जा तो प्राप्त होती ही है साथ ही इस वृक्ष के पूजन से आपको भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। आपकी धन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।---- -
मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णत: गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकि चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा गया है। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है।
पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी कारण से इनका शरीर काला पड़ गया, लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं। यह अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।एक और मान्यता के अनुसार एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती है। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह देवी के तपस्या से उठने का प्रतीक्षा करते हुए वहीं बैठ गया। इस प्रतीक्षा में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गई। उन्होंने दया भाव से उसे अपना वाहन बना लिया क्योंकि वह उनकी तपस्या पूरी होने के प्रतीक्षा में स्वयं भी तप कर बैठा। कहते है जो स्त्री मां की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वयं करती हैं।मंत्र- श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥अन्य नाम- इन्हें अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी भी कहा जाता है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 260
(भूमिका ::: विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अलौकिक दिव्य तत्वज्ञान से कलिमलग्रसित हम अबोध जीवात्माओं को भगवत-मार्ग पर आरुढ़ होने के लिये परमोज्जवल रोशनी प्रदान की है, जिसके प्रकाश में अंतर्मन का अज्ञानान्धकार सहज ही छटने लग जाता है! उनके श्रीमुख से निःसृत प्रवचन साधन-पथ के पाथेय हैं!!)
साधक का प्रश्न ::: सकाम-निष्काम का तात्पर्य क्या है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: 'सकाम' शब्द सुना होगा आप लोगों ने, और एक 'निष्काम' शब्द होता है। ये सकाम कई प्रकार का होता है। एक सकाम होता है जो भगवान से हम संसार माँगते हैं। खास तौर से संसार माँगना और भगवान से प्यार नहीं है। कम्पलीट सरेन्डर नहीं है। पूर्ण सम्बन्ध नहीं है। तो ये तो ऐसा मजाक है जैसे कोई गाड़ी जा रही है और हम लिफ्ट माँगें उससे बिना जान पहचान के। 'ऐ! जरा रोकना गाड़ी।' 'क्या बात है?' 'हमको जाना है जरा सेवा कुंज।' 'ऐं, हमारे पास समय नहीं है, और जगह नहीं है, हमको वहाँ नहीं जाना है....!!' क्योंकि उसका सम्बन्ध तो है नहीं। अगर सम्बन्ध हो, 'अरे श्रीवास्तव जी! आप भले आये। देखो, ऐसा है कि ये एक्सीडेन्ट हो गया है हमारे बेटे का, अस्पताल पहुँचाना है।' तो वो कहेंगे, 'ठीक है, आइये आइये, मैं पहुँचा देता हूँ' - क्योंकि सम्बन्ध है। अब जब सम्बन्ध ही नहीं है भगवान से, खाली मुसीबत पड़ी तो हमने कहा 'हे भगवान् ! दया करो, कृपा कर दो, हम को ये कर दो, वो कर दो।' प्रायः नाइन्टी नाइन परसेन्ट संसार में ऐसे ही सकाम हैं। मंदिरों में जाकर, बाबाओं के पास जाकर, मन्नत करते हैं, माँगते हैं, बिना सम्बन्ध के।
दूसरे होते हैं जिनकी पूर्ण शरणागति पूर्ण सम्बन्ध भगवान से है। जैसे ध्रुव वगैरह। ये संसार माँगते हैं। ध्रुव का अपमान हुआ था तो वो संसार माँगने लगे कि राज्य हमको मिले, भगवान के पास गये। तमाम ऐसे हैं। द्रौपदी ने पुकारा, गजराज ने पुकारा, तमाम सकाम भक्त ऐसे हुये हैं जो शरीर के लिये, संसार के सुख के लिये कामना किये और भगवान से माँगा और भगवान ने दिया। वो तो जो कुछ माँगोगे, देंगे। तुम्हारा नुकसान हो, फायदा हो, तुम जानो। जो अल्पज्ञ होते हैं ये दो प्रकार के होते हैं। एक तो घोर मूर्ख हैं जो बिना सम्बन्ध के माँगता है। उसको मिलता-विलता नहीं है। लेकिन जैसे बाईचान्स कोई पुत्र की कामना से वैष्णो देवी गया और उसके पुत्र हो गया। तो उसने कहा- 'जय हो! जय हो! माता जी ने सुन लिया हमारी।' दोबारा फिर वो पुत्र बड़ा सीरियस बीमार हुआ, तो फिर माता जी के पास गया कि माँ उसको बचा लो। वो मर गया। 'अरे! कुछ नहीं, कोई वैष्णो देवी नहीं।' वो नास्तिक हो जायेगा। तो ये तो घोर मूर्ख है, संसार में भी ऐसा कोई नहीं करता है कि अपरिचित से जाकर कहे कि हम को दस लाख दे दो, बेटी का ब्याह करना है। अरे भई! कौन दे देगा ऐसे भला। तो नम्बर दो वाला जो है भगवान से सम्बन्ध है, प्यार है, शरणागति है और संसार माँगता है उसको भगवान दे तो देंगे लेकिन वो मूर्ख है।
भागवत में कहा गया कि जो भगवान से संसार माँगता है वो घोर मूर्ख है। 'मनोग्राह्य' माने संसार। अरे! भगवान के पास तो अनन्त वस्तुयें हैं। अलौकिक, स्प्रिचुअल, दिव्यानन्द, दिव्यज्ञान, दिव्य लोक, सब चीज दिव्य-दिव्य, उसको छोड़कर संसार माँगता है। लेकिन भगवान देंगे उसको। बाद में भले वैराग्य हो जाय उसको संसार से। ध्रुव को भी हो गया था वैराग्य। फिर भगवान से उन्होंने कहा- 'महाराज ! हमसे गलती हो गई। संसार की कामना को लेकर मैंने आपकी भक्ति की। अब मुझे संसार नहीं चाहिये। तो भगवान ने कहा; 'भई देखो ! मेरी बदनामी होगी कि संसार माँगा और भगवान ने नहीं दिया। तो तुमको राज्य करना पड़ेगा। जाओ छत्तीस हजार वर्ष राज्य करो, उसके बाद फिर हम अपने यहाँ बुला लेंगे।' तो सकाम भक्त इस प्रकार का जो होता है, उसका भी कल्याण हो जाता है बाद में, लेकिन है वो मूर्ख।
और तीसरा होता है सकाम भक्त जो भगवान से ही भगवान का सामान माँगता है। जैसे आँख से भगवान का दर्शन, कान से, नासिका से, रसना से, त्वचा से, सब इन्द्रियों से भगवान को ही माँगता है। संसार नहीं माँगता। 'मनोग्राह्य' को नहीं माँगता, मायिक वस्तु नहीं माँगता। ये उच्चकोटि का है। है सकाम। लेकिन उच्च कोटि का है। ये क्यों माँगता है भगवान से? नम्बर एक इसलिये कि संसार का अटैचमेन्ट समाप्त हो, ये फायदा मिला पहला। नम्बर दो जब भगवान मिलेंगे उसको, मान लो, आँख से दर्शन चाहता है और भगवान का दर्शन हुआ। तो, 'क्यों बुलाया हमको भई तुमने? ' पूछेगे भगवान। 'खाली दर्शन के लिये बुलाया?' 'नहीं नहीं महाराज! हमारे गुरु जी ने कहा कि जब भगवान मिलें तो उनसे प्रेम माँगना। प्रेम, दिव्य प्रेम।' 'क्या करोगे ले के दिव्य प्रेम? और कुछ ले लो।' 'नहीं महाराज? दिव्य प्रेम दो तो फिर आपकी सेवा करेंगे। आपको सुख देंगे। अपने सुख के लिये नहीं माँग रहे हैं। आप से सामान माँग कर आपकी सेवा करेंगे।' ये निष्काम हो गया। यानी सकाम का प्रारंभ हुआ उनका दर्शन माँगा उसने, लेकिन दर्शन अन्तिम लक्ष्य नहीं है। अन्तिम लक्ष्य है निष्कामता। सेवा करना। तो वो प्रेम माँगने के लिये उनको बुलाया। तो ये सकाम वन्दनीय है, श्रेष्ठ है। क्योंकि इसका लक्ष्य निष्काम है । और ये करना पड़ेगा सबको।
भगवान का दर्शन होना ये हम अपने सुख के लिये नहीं कह रहे हैं। हम उनकी सेवा करेंगे, उनको सुख देंगे, इसलिये हम उनका दर्शन चाहते हैं। तो ये निष्काम को प्राप्त करने के लिये थोड़ा-सा सकाम है। ये सबको करना है और सब करते हैं, सब बड़े-बड़े महापुरुष। भगवान की कामना ही खतम हो जायेगी तो फिर प्रेम क्या हुआ? हम दर्शन नहीं चाहते उनको कष्ट होगा, ये तो नास्तिक भी कह देगा बैठे-बैठे। बड़ा अच्छा है भई! आप भक्ति-वक्ति नहीं करते? हाँ जी, देखो ऐसा है कि हम तो निष्काम हैं। हम भगवान की भक्ति करें, उनका दर्शन, उनको कष्ट हो बेचारों को, हम ये नहीं चाहते। ऐसा निष्काम पागल है। वो निष्काम नास्तिक है। भगवान के दर्शनादि की कामना तो होनी ही चाहिये। संसार या मोक्ष ये चीजें भगवान् से माँगना ये निन्दनीय है। यहाँ तक कि भगवान के लोक में रहने आदि की कामना भी बुरी नहीं है। अरे, वो तो अन्तिम क्लास की चीजें हैं। लेकिन फिर भी उससे भी आगे एक कदम निष्काम भक्त होता है जो उनकी इच्छा के अनुसार चाहता है। बस कुछ नहीं। आपकी इच्छा हो आपके पास रहें ,आपकी इच्छा है, नहीं तुम वहाँ जाओ प्रचार करो। हाँ जैसी आज्ञा। जाओ तुम ऐसा नहीं करो, ऐसा करो। बिल्कुल ऐसा ही करेंगे, जैसे आपको सुख मिले। एक एम (लक्ष्य)। ये सकाम - निष्काम का संक्षिप्त रहस्य है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 3)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 259
(भूमिका ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अवतारकाल में आध्यात्म जगत के हर छोटे-बड़े तथा गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाला है तथा शंकाओं के वैदिक समाधान भी प्रदान किये हैं, जो कि एक आध्यात्मिक जिज्ञासु जीव के लिये अति अनमोल हैं। ऐसे ही एक प्रश्न पर आज उनके द्वारा प्रदान किया गया उत्तर हम जानेंगे, आशा है कि आपको इससे किंचित लाभ तो अवश्य ही होगा...)
एक साधक द्वारा पूछा गया प्रश्न :::: अगर मनुष्य सारे जीवन ठीक-ठीक साधना करे और आखिरी कुछ क्षणों में नास्तिक हो जाये, ऐसा कुछ हो उसके साथ तो क्या उसको 84 लाख में भटकना पड़ेगा??
जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: हाँ ! अंतिम समय में जो उसकी स्थिति होगी वही फल मिलेगा। लेकिन पहले जो कर चुका भक्ति-साधना, वह भी उसके पास जमा रहेगी। तो ये जो आगे वाला है उसका फल, पहले भोग लेगा फिर पीछे वाले का फल देगा भगवान्। यानी पहले तो वह संसार में पैदा होगा, दुःखी होगा, नास्तिक होगा और फिर बाद में जब उसका ख़राब प्रारब्ध समाप्त हो जायेगा, भोग करके, तब वह भक्ति का जो उसका पार्ट है, जो जमा है, उसका फल दे दिया जायेगा। बेकार नहीं जायेगा कुछ. बेकार एक क्षण की भी भक्ति नहीं जाती। कर्म बेकार जाते हैं, योग बेकार जाते हैं, ज्ञान बेकार जाते हैं, लेकिन भक्ति बेकार नहीं जाती, वह सब अमिट है। इसने इतना भगवन्नाम लिया, इतनी गुरुसेवा की, ये सब चीजें भगवान् के पास एक-एक क्षण की दर्ज हैं, लिखी हुई हैं. उसका फल उसको मिलेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 1)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में किसी भी शुभ और मांगलिक कार्यों को करने से पहले शुभ मुहूर्त जरूर देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समय-समय पर ग्रहों और नक्षत्रों की चाल की गणना के आधार पर किसी मांगलिक कार्य को करने के लिए समय निर्धारित किया जाता है। इसी को शुभ और अशुभ मुहूर्त कहा जाता है। शुभ मुहूर्त में कार्य करने पर उस काम में सफलता की प्राप्ति होती है, जबकि अशुभ मुहूर्त में किया गया कार्य में कई तरह की बाधाएं उत्पन्न होती है। जब कभी अशुभ नक्षत्र का योग बनता है तब इस योग को पंचक कहा जाता है। ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है।कब बनता है पंचकमुहूर्त ज्योतिष के महानतम ग्रन्थ 'मुहूर्त चिंतामणि' के अनुसार घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती ये नक्षत्र पर जब चन्द्रमा गोचर करते हैं तो उस काल को पंचक काल कहा जाता है। इसे 'भदवा' भी कहते हैं। पंचक निर्माण तभी होता है जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर गोचर करते हैं।वर्ष 2021 में पंचक कब-कब04 मई 2021 से 09 मई 2021 तक01 जून 2021 से 05 जून 2021 तक28 जून 2021 से 03 जुलाई 2021 तक25 जुलाई 2021 से 30 जुलाई 2021 तक22 अगस्त 2021 से 26 अगस्त 2021 तक18 सितंबर 2021 से 23 सितंबर 2021 तक15 अक्टूबर 2021 से 20 अक्टूबर 2021 तक12 नवंबर 2021 से 16 नवंबर 2021 तक09 दिसंबर 2021 से 14 दिसंबर 2021 तकपंचक के प्रकाररोग पंचकरविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है, इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ कार्य आरंभ करने से बचना चाहिए। हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है।राज पंचकसोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है। इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।अग्नि पंचकमंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले, अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है।चोर पंचकशुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के लेन-देन से बचना चाहिए।बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक सभी तरह के कार्य कर सकते हैं यहां तक कि सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं।
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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 258
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज समन्वयवादी जगदगुरु हैं अर्थात उन्होंने अपना कोई पृथक वाद नहीं चलाया अपितु अपने पूर्ववर्ती समस्त मूल जगदगुरुओं के सिद्धांतों का समन्वय किया। उनकी समन्वयात्मक शैली उनके प्रवचनों व सिद्धान्तों में सर्वथा दृष्टिगोचर होती है। निम्नांकित प्रवचन-अंश में भी हम उनकी इसी विशेषता का दर्शन करते हुये मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे...)
...हम सुख चाहते हैं अपना। बाहर से मतलब नहीं है, अपना सुख चाहते हैं। सुख!! सुख चाहते हो? हाँ, सुख। सब सुख चाहते हैं। हाँ!! तो फिर सब आस्तिक हैं, सब भगवान के भक्त हैं। क्योंकि भगवान का तो नाम ही है सुख, आनन्द। (रसो वै सः - वेद)
इसलिये सब आस्तिक भी हैं, सब वैष्णव भी हैं, सब भगवान के हैं, यानी बस एक सम्प्रदाय है सारी दुनियाँ में। अगर कोई पूछे कि आप किस सम्प्रदाय के हैं? आनन्द सम्प्रदाय के, भगवत सम्प्रदाय के। क्यों? इसलिये कि हम केवल भगवान को चाहते हैं। केवल आनन्द चाहते हैं, हम दुःख नहीं चाहते। और अगर और डिटेल में जाओ, तो फिर ये कह सकते हो कि हम आनन्द चाहते हैं, लेकिन मिला नहीं है। तो भगवान में आनन्द मानने लगे। प्रयत्न कर रहे हैं कि हम आस्तिक बन जायें, वैष्णव बन जायें, शैव बन जायें।
तो विश्व में वर्तमान काल में जो मायाधीन हैं वो आस्तिक नहीं, वैष्णव नहीं बन सकता। जब माया चली जायेगी और भगवान गवर्न करेंगे हमको, तब हम आस्तिक हुये। हर समय रियलाइज करेंगे तब। अंदर बैठे हैं, अंदर बैठे हैं। अभी तो मुँह से बोलते हैं, सबके अंदर बैठे हैं। घट घट व्यापक राम। अरे घट घट है क्या? तुम्हारे घट (हृदय) में है, ये तुम महसूस करते हो? अगर करो तो न कोई गवर्नमेन्ट की जरुरत है, न कोर्ट की, न पुलिस की। हर समय यह फीलिंग रहे कि वो अंदर बैठे हैं।
अगर इसका प्रचार करे, हर दुनियाँ की, देश की गवर्नमेन्ट कि सबके अंदर भगवान बैठे हैं। इसका प्रचार करे, भरे लोगों के, बच्चों के दिमाग में। तो अपराध अपने आप कम हो जायें। सब डरेंगे कि हाँ! वो (भगवान) नोट कर लेंगे, फिर दण्ड देंगे भगवान, इसलिये गलत काम नहीं करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० संदर्भ/स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'मैं कौन? मेरा कौन? विषय पर दिये गये ऐतिहासिक 103 प्रवचनों की श्रृंखला के 67 वें प्रवचन का एक अंश।०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - रुद्राक्ष पेड़ का एक उत्पाद है जो, एक पवित्र मनके के रूप में जाना जाता है। यह ऋषियों, ज्योतिषियों और अन्य आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा पहने जाने वाले प्रसिद्ध रत्नों में से एक है। मनके का उपयोग ज्यादातर छोटे या बड़े धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। यह न केवल हिंदू धर्म बल्कि अन्य धर्मों द्वारा भी पूजा जाता है। माना जाता है कि इसे धारण करने से भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। इस मनके के वैज्ञानिक और ज्योतिषीय लाभ भी हैं। रुद्राक्ष कई प्रकार के होते हैं जैसे एक मुख से लेकर 21 मुखी तक। इनमें से एकमुखी रुद्राक्ष शुभ माना जाता है, लेकिन इसे धारण करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।एक मुखी रुद्राक्ष को हमेशा साफ स्थान पर रखना चाहिए। इसे गंदे हाथों से नहीं छुना चाहिए। इसके अलावा वॉशरूम जाने से पहले इसे उतार देना चाहिए। यह भी माना जाता है कि जो लोग एकमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं वे पापकर्मों में संलिप्त नहीं होते हैं क्योंकि यह आपको गलत रास्ते की ओर जाने से रोकता है। आमतौर पर रुद्राक्ष को विशेष लाभ के लिए पहना जाता है इसलिए एक अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श के बाद पहना जाना चाहिए।एक मुखी रुद्राक्ष में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। यह रुद्राक्ष मन को स्पष्टता देता है और आपको ईश्वर से जोड़ता है। इसमें सहस्त्र चक्र का ध्यान रखा गया है जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच की कड़ी का प्रतीक है। माना जाता है कि एक मुखी रुद्राक्ष पहनने वाले को आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्रदान करता है। यह पहनने वाले की इच्छा को पूरा करता है। यह रुद्राक्षधारी के पापों और पिछले कर्मों को नष्ट कर देता है। यह कुछ दिनों में माइग्रेन को ठीक करने में मदद करता है। यह अवसाद, चिंता और ओसीडी को ठीक करने में मदद करता है। यह न्यूरोटिक विकारों में मदद करता है। यह मन की शांति पाने में मदद करता है।यह आपको अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखने में मदद करता है। साथ ही रतौंधी को ठीक करने में मदद करता है। यह श्वसन रोगों को ठीक करने में मदद करता है। यह क्रूर ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में मदद करता है। विशेष रूप से जन्म कुंडली में सूर्य के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए पहना जाता है। यह पहनने वाले को महत्वाकांक्षी बनाता है। जब घर में रखा जाता है तो यह पूरे परिवार में शांति और सद्भावना को पैदा करता है। यह जीवन से जटिलताओं को दूर करता है। यह गुस्से को नियंत्रित करने में मदद करता है। रुद्राक्ष धारण करने वाले को नेतृत्व गुणों के साथ और तनाव को दूर करने में मदद मिलती है।एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने की विधिएक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने के लिए सोमवार का दिन शुभ माना जाता है। इसे धारण करने से पहले गंगाजल या दूध से शुद्ध करना चाहिए। सोमवार को सुबह स्नानादि करने के पश्चात रुद्राक्ष को पहनना उत्तम होता है। पूर्व दिशा में बैठकर इस रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए और ऊँ नम: शिवाय का 108 बार जाप करना चाहिए। यह भी सलाह दी जाती है कि एकमुखी रुद्राक्ष को सोने या चांदी की माला के साथ पहनना चाहिए या इसे काले या लाल धागे के साथ पहनना चाहिए।
- घर का निर्माण करते समय तो दिशा और स्थान का ज्यादातर लोग ध्यान देते हैं, लेकिन घर में समान का रख-रखाव और साज-सजावट करते समय लोग छोटी-छोटी चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं। वास्तु में दिशाओं और स्थान के अनुसार रंगों के बारे में भी बताया गया है। इसी विषय में पर्दों के रंग का चुनाव करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है। वास्तु के अनुसार विभिन्न रंग और डिजाइन के पर्दे न केवल घर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं, बल्कि ये घर में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने में भी सहायक होते हैं। पर्दो के रंग का सही प्रकार से चुनाव करके आप जीवन की समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। इसलिए परदों के चयन में निम्न बातों का अवश्य रखें ध्यान....- यदि आपके घर में लड़ाई-झगड़े की स्थिति बनी हुई रहती है, जिसके कारण तनाव का सामना करना पड़ता है। तो अपने घर की दक्षिण दिशा में लाल रंग के पर्दे लगाने चाहिए। इससे परिवार के सदस्यों में प्रेम की भावना बनी रहती है और घर में शांति आती है।- यदि आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर है या फिर आपके ऊपर कर्ज है, जिसे आप प्रयास करने पर भी चुकाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं तो घर की उत्तर दिशा में नीले रंग के पर्दे लगाने चाहिए। इससे कुछ ही समय में आपको सकारात्मक प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।- यदि आप बहुत मेहनत करते हैं फिर भी आपको उसके अनुरूप फल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है तो आपको अपने घर की पश्चिम दिशा में सफेद रंग के पर्दे लगाने चाहिए। इससे आपको समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होगी और लक्ष्य प्राप्ति की राह आसान होगी।- यदि आप एक अच्छी नौकरी की तलाश में है लेकिन कई प्रयास करने पर भी आपको सफलता प्राप्त नहीं हो रही है तो आपको घर की पूर्व दिशा में हरे रंग के पर्दे लगाने चाहिए। माना जाता है कि इससे आपकी तरक्की के रास्ते खुलते हैं।इसलिए अब की बार जब परदों का चयन करें, तो पूरी थान ना लाएं... बल्कि कमरों की दिशा के हिसाब से उसके रंगों का चयन करें और उसी परदे लगाएंगे, तो घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा और समस्याएं पास नहीं फटकेंगी।-----
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 257
(भूमिका ::: स्वरचित दोहा तथा उसकी व्याख्या में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साधक समुदाय को यह समझा रहे हैं कि साधना में किसका समर्पण करना है और क्या चीज भगवान से चाहनी है? भक्तिमार्गीय पथिक के लिये उनका यह महत्वपूर्ण मार्गदर्शन निम्नांकित पंक्तियों में है....)
मन ते स्मरण करु गोविन्द राधे।ये ही भक्ति मन बुद्धि शुद्ध करा दे।।(स्वरचित दोहा)
...ये क्रम है। सब वेदों, शास्त्रों, पुराणों का सारांश है। नम्बर एक, मन से हरि गुरु का स्मरण, ये साधना भक्ति कहलाती है। यही आप लोग कर रहे हैं। मन से, केवल वाणी से नहीं। वाणी भी साथ में रहे तो ठीक, न रहे तो भी ठीक, किन्तु मन से स्मरण हो, उसका नाम साधना भक्ति। इससे क्या होगा? मन-बुद्धि शुद्ध होंगे। अनादिकाल से मन-बुद्धि में माया का काम, क्रोध, लोभ, मोह ये संसारी मल भरा हुआ है। ये गोबर, कचरा, कूड़ा, मल, पाप-पुण्य, ये गड़बड़ हरि गुरु स्मरण से निकल जायेगी। धीरे धीरे निकलेगी क्योंकि अनन्त जन्मों का मैल है।
अगर आप कपड़े को रोज धोते हैं तो हलका सा साबुन लगा दें बस, और अगर एक हफ्ते में धोते हैं तो ज्यादा साबुन लगाना पड़ेगा, और अगर महीने भर में धोते हैं तो पहले गरम पानी में साबुन डालकर उसको भिगो दें फिर धुलाई करें। जितना मैल होगा, उतना परिश्रम होगा धोने में।
तो अनन्त जन्मों के हमारे पाप-पुण्य हैं, संसारी अटैचमेन्ट है, इसलिये उसके निकालने में भी अभ्यास करना होगा, स्मरण का। जगत का विस्मरण, हरि गुरु का स्मरण मन से। स्मरण मन करता है, इन्द्रियाँ (हाथ-पैर आदि) नहीं करतीं। तो इससे मन-बुद्धि शुद्ध होगी। इसी को अंतःकरण शुद्धि कहते हैं। जब ये शुद्ध हो जायेगा तो भगवान की एक पॉवर है, उसका नाम है स्वरुप शक्ति वो आपके अंतःकरण में अपने आप भगवान दे देंगे तो वो अंतःकरण को दिव्य बना देगी। दिव्य माने भगवान संबंधी। ये स्वर्ग वाला दिव्य नहीं, स्वर्ग की वस्तु को भी दिव्य शब्द से बोला जाता है। वो देवता हैं, दिव्य हैं, दिव् धातु से देवता शब्द बनता है लेकिन ये मैटिरियल (मायिक) दिव्य हैं। ये नहीं, भगवान संबंधी दिव्यता, अलौकिकता, चित् स्वरूप वाली, वैसा हो जायेगा आपका अंतःकरण, इन्द्रियाँ।
अब बर्तन तैयार हो गया। बर्तन, पात्र। बस इतना काम हम लोगों का है, बर्तन तैयार करवा देना। यानी मन से स्मरण कर मन को शुद्ध किया फिर भगवान ने उसको दिव्य बनाया अब उस बर्तन में दिव्य वस्तु रखी जा सकती है। वो दिव्य वस्तु क्या है? सबसे बड़ी दिव्य वस्तु है, भगवान का दिव्य प्रेम। भगवान की जो अंतरंग स्वरूप शक्ति है उसका सत् चित् आनंद, उसमें सत् से भी इम्पोर्टेन्ट चित्, चित् से महत्वपूर्ण आनंद ब्रम्ह। उस आनंद ब्रम्ह की एक सारभूत स्वरुपा शक्ति होती है ह्लादिनी। उस ह्लादिनी के भी सारभूत तत्व का नाम प्रेम है, जिसके अण्डर में भगवान हो जाते हैं। वो प्रेम है। हम अभी जो प्रेम कर रहे हैं भगवान से, गुरु से, ये तो हमारे मन का अटैचमेन्ट है। इससे मन शुद्ध होगा, ये प्रेम नहीं है। प्रेम तो मिलेगा कृपा से। वो कमाई से नहीं मिलता। कोई भी साधना ऐसी नहीं है करोड़ों कल्प कोई तप करे, अँगूठे के बल पर खड़े होकर तो भी प्रेम उसका मूल्य नहीं बन सकता। उससे प्रेम नहीं मिल सकता।
साधनौघेरनासंगैरलभ्या सुचिरादपि।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
करोड़ों साधनाओं से भी, अनासंग साधनाओं से भी, निष्काम साधनाओं से भी ये प्रेम अलभ्य है, उससे नहीं मिला करता। और,
हरिणा चाश्वदेयेति द्विधा सा स्यात् सुदुर्लभा।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
भगवान भी जल्दी में नहीं देते, उसको छुपा के रखते हैं क्योंकि उनको अण्डर में रहना पड़ेगा। तो यदि वो मुक्ति भुक्ति ले के छुट्टी दे दे तो भगवान कहते हैं, अच्छा हुआ बेवकूफ बन गया। लेकिन जो परम सयाने होते हैं, जिनका गुरु दिव्य प्रेम, निष्काम प्रेम प्राप्त कर चुका होता है, उसका पढ़ाया हुआ जो शिष्य होता है वो भगवान की वाक-चातुरी में नहीं आता। वो कहता है हमें कुछ नहीं चाहिये। निष्काम प्रेम, तुम्हारे लिये प्रेम माँग रहे हैं, अपने लिये नहीं, तुमको सुख देने के लिये।
तो वो दिव्य मन बुद्धि में दिव्य प्रेम स्वयं नहीं देते भगवान, वो गुरु ही दिव्य प्रेम देगा। यानी साधना का ज्ञान कराना नम्बर एक, साधना कराना नम्बर दो, अंतःकरण शुद्ध कराना, फिर अन्तःकरण दिव्य कराना - ये सब काम गुरु करता है और दिव्य प्रेम देना अन्तिम काम। बस यही प्रयोजन है, यही लक्ष्य है, अन्तिम। तो इस क्रम के द्वारा ये लक्ष्य प्राप्त होता है। ये थियरी मस्तिष्क में सदा रखे रहो, भूले न।
०० प्रवचनकर्त्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - यदि भवन का निर्माण वास्तु नियमों के अनुसार किसी कारण वश नहीं हो पाता या किसी तरह की कोई कमी रह जाती है तो यह मकान में रहने वालों गंभीर प्रभाव डालता है। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कुछ उपाय सुझाएं गए हैं। इन उपायों को करने से वास्तु दोष से बचा जा सकता है। आम लोगों के मन में दक्षिण दिशा को लेकर कई भ्रांतियां होती हैं जैसे दक्षिणमुखी घर आर्थिक परेशानी लेकर आते हैं, लेकिन हर स्थिति में ऐसा नहीं होता। फिर भी भवन निर्माण के समय वास्तुशास्त्र का ध्यान रखें।-वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा मानी जाती है, इस दिशा के स्वामी स्वयं यम हैं। इस दिशा के शुभ-अशुभ परिणाम स्त्रियों पर सबसे ज्यादा पड़ते हैं। इसलिए दक्षिणमुखी मकान बनाते समय वास्तुशास्त्र के नियमों का विशेष रूप से ध्यान रखें।- भवन द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं कि जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। जिससे भवन में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ आने वाली नकारात्मक ऊर्जा पलटकर वापस चली जाती है।-मुख्य द्वार के ठीक सामने आशीर्वाद मुद्रा में हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना अथवा तस्वीर लगाने से भी दक्षिण दिशा का वास्तुदोष दूर होता है। साथ ही मुख्य द्वार के ऊपर पंचधातु का पिरामिड लगवाने से वास्तुदोष समाप्त होता है।-दक्षिणमुखी भूमि पर भवन बना रहे हैं तो ध्यान रखें कि दक्षिण भाग ऊंचा होना चाहिए। इससे उस भवन में रहने वाले स्वस्थ एवं सुखी होंगे। दक्षिणी हिस्से में कमरे ऊंचे बनवाने चाहिए इससे मकान का मालिक ऐश्वर्य संपन्न होता हैं। दक्षिण दिशा के घर का पानी उत्तरी दिशा से होकर बाहर की ओर प्रवाहित हो तो धन लाभ होता है।-यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने द्वार से दोगुनी दूरी पर स्थित नीम का हराभरा वृक्ष है तो दक्षिण दिशा का असर कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा।-. यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने मकान से दोगना बड़ा कोई दूसरा मकान है तो दक्षिण दिशा का असर कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा। आग्नेय कोण का मुख्यद्वार यदि लाल या मरून रंग का हो, तो श्रेष्ठ फल देता है। इसके अलावा हरा या भूरा रंग भी चुना जा सकता है। किसी भी परिस्थिति में मुख्यद्वार को नीला या काला रंग प्रदान न करें।-दक्षिण मुखी भूखण्ड का द्वार दक्षिण या दक्षिण-पूरब में कतई नहीं बनाना चाहिए। पश्चिम या अन्य किसी दिशा में मुख्य द्वार लाभकारी होता है।---
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 256
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत प्रवचन का छोटा सा अंश, आचार्य श्री की वाणी नीचे से है...)
..एक बार संसार में कोई नौकर चोरी में पकड़ा जाये रंगे हाथों तो फिर वो नौकर चाहे कितनी ही ईमानदारी करे, घर में कोई चोरी होगी, ऐ! वो कहाँ है? बुलाओ उसको, वही चोर है। अरे चोर तो सब नौकर हैं जी! नहीं-नहीं और किसी नौकर ने हमारा कुछ नहीं चुराया। तुम्हारा नहीं चुराया और जगह चोरी किया है। या आज तक चोरी की मंशा और नौकरों की नहीं हुई, आज हो गई हो। अरे भई! कोई गलत काम करने की मंशा हमेशा थोड़े ही रहती है किसी की। कब हो जाय क्या ठिकाना। लेकिन साहब उसी को सदा आँख में रखेगा जिसको चोरी में पकड़ा गया।
लेकिन अनन्त बार चोरी पकड़ता हुआ भी भगवान और महापुरुष, जीव जब सच्चे हृदय से फिर क्षमा माँग करके शरणागत होना चाहता है तो वो कहते हैं ठीक है, ठीक है हो गया, हटाओ, बच्चे हैं होता रहता है। छोटे बच्चों की बातें माँ-बाप क्यों फील नहीं करते? लात भी मार दे रहे हैं माँ के मुँह में बाप के मुँह में। हाँ हाँ चूम लेती है माँ। बच्चा है। बड़ा होकर अगर वो लात मारने की बात भी कर दे, मम्मी! मैं वो मारूँगा। ये लो मम्मी का मूड ऑफ इतना हो गया कि निकल जा मेरे घर से। क्यों मम्मी! पहले तो मैं लात प्रैक्टीकल मारता था तो तू मेरी लात को चूम लेती थी और आज तो हमने खाली मुँह से कहा है एक लात मारूँगा और तू मुझे घर से निकाले दे रही है।
अरे बेटा! वो बात और थी, अब बात और है। अब तू पच्चीस साल का जवान धींगड़ा हो गया है और तेरी दुर्भावना नहीं थी, तू जानता ही नहीं था मुँह क्या है, मम्मी क्या है? बेटा क्या होता है? लात मारना क्या पाप होता है? इसलिये वो सब प्रिय था, हर व्यवहार प्रिय था। तो महापुरुष की कृपा को न तो भगवान बता सकता है पूरा पूरा, न महापुरुष बता सकता है। और जीव तो बेचारा क्या समझेगा उसकी तो हैसियत ही नहीं है। हाँ, स्पेशल केस जो है उनमें महापुरुष प्रारब्ध में भी कुछ हैल्प करता है, पूरा प्रारब्ध नहीं काटता, कुछ हैल्प कर देता है। लेकिन वह हैल्प बताता नहीं। वो सब चोरी चोरी करता है। जो कुछ अपने प्रिय के प्रति करता है महापुरुष। कभी भी स्वप्न में भी, किसी भी प्रकार से वो आउट नहीं कर सकता। वो कानून है उसके यहाँ, वो कॉन्फिडेंशियल फाइल है वो आउट नहीं हो सकती। लेकिन उसकी कृपा के विषय में कुछ भी कहना समुद्र की एक बूँद है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कभी-कभी हमारे शरीर का कोई अंग अचानक से फड़कने लगता है। यह कोई विकार नहीं है, बल्कि अपने आप ठीक भी हो जाता है। सामुद्रिक शास्त्र में इसके कई अर्थ होते हैं। सामुद्रिक शास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसमें व्यक्ति के अंगों के आकार, चेहरे की बनावट, शरीर के निशान आदि का आकलन करके उसके व्यक्तित्व और मानसिकता के बारे में बताया जा सकता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के अंगों के फड़कने का भी मतलब होता है। तो चलिए जानते हैं कि किस अंग के फड़कने का क्या मतलब होता है।सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के शरीर का दांया अंग और स्त्री के शरीर का बायां भाग फड़कना शुभ माना जाता है। यदि किसी पुरूष का बांया अंग फड़कता है तो माना जाता है कि उसे भविष्य में किसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह से यदि किसी स्त्री का दांया अंग फड़कता है। तो यह किसी दुखद घटना का संकेत माना जाता है।माथायदि किसी व्यक्ति को अपने माथे पर हलचल महसूस होती है यानि उसका माथा फड़कता है तो इसका मतलब होता है कि उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होने वाली है।कनपटीकनपटी का फड़कना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। किसी भी व्यक्ति की कनपटी के फडऩे का मतलब होता है कि उसे धन लाभ होने वाला है।आंखयदि किसी व्यक्ति की दांयी आंख फड़कती है तो उसकी इच्छा पूर्ति का संकेत होता है। लेकिन बहुत ज्यादा दिनों तक आंख का फड़कना सही नहीं माना जाता है। यह किसी लंबी बीमारी होने का संकेत माना जाता है।गालों का फड़कनावैसे तो बहुत ही कम होता है कि किसी के दोनों गालों में एक साथ हलचल महसूस हो, लेकिन जब किसी व्यक्ति के दोनों गाल एक साथ फड़कते हैं तो यह धन लाभ की ओर संकेत देता है।होठों में हलचल महसूस होनायदि किसी के होंठ फड़कते हैं तो इसका मतलब है कि कोई बहुत अच्छा दोस्त उसके जीवन में आने वाला है।कंधेयदि किसी व्यक्ति का दायां कंधा फड़कता है तो यह अत्यधिक धन लाभ होने का संकेत माना जाता है। बाएं कंधे का फड़कना सफलता का सूचक माना जाता है। जब किसी को दोनों कंधे एक साथ फड़के तो यह किसी से बड़ा झगड़ा होने का संकेत है।हथेलियांयदि किसी की हथेलियां फड़कती हैं तो यह किसी समस्या का संकेत है। तो वहीं उंगलियों में हलचल पुराने दोस्त से मुलाकात होने की सूचक हैं।कोहनीकिसी की दांयी ओर यानि सीधी तरफ की कोहनी के फड़कने का मतलब होता है कि उसका किसी के साथ झगड़ा होने वाला है। बांई कोहनी का फड़कना आपको समाज में प्रतिष्ठा दिला सकता है।पीठयदि किसी की पीठ में हलचल महसूस हो तो यह शुभ नहीं माना जाता है। पीठ फड़कने का मतलब होता है कि आने वाले समय में व्यक्ति को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।दांयी जांघयदि किसी की दांयी जांघ फड़कती है तो यह माना जाता है कि उसे किसी बात को लेकर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है। वहीं बांयी ओर की जांघ के फड़कने पर व्यक्ति को धन लाभ हो सकता है।पैर के तलवेयदि किसी के दाएं पैर के तलवे में फड़कन महसूस होती है तो यह समाजिक सम्मान में हानि का संकेत माना जाता है। तो वहीं बांए पैर को तलवे में यदि किसी को हलचल होती है तो माना जाता है कि भविष्य में यात्रा करनी पड़ सकती है।दोनों भौहों के बीचों-बीच में फड़कनाअगर आपके माथे का केंद्र बिंदु यानि भौहों के मध्य में यदि हलचल महसूस होती है समझिए कि आपके आने वाले जीवन में खुशियां और सुख के दिन आने वाले हैं। आपके कारोबार में तरक्की होने वाली है। जिससे आप्रत्याशित लाभ हो सकता है।गले में फड़कन महसूस होनायदि किसी के गले में फड़कन महसूस होती है तो ये भी एक अच्छा संकेत माना जाता है। गले के फड़कने का मतलब होता है कि आपको समाज में सम्मान की प्राप्ति होने वाली है और आपके जीवन में खुशहाली एवं आराम के दिन आने वाले हैं।कमर का दांया हिस्सा फड़कनायदि किसी की कमर का दांया भाग फड़कता है तो यह माना जाता है कि उसे भविष्य में धन लाभ हो सकता है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 255
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ के एक दोहे की व्याख्या का एक अंश....)
..भक्ति में अनन्यता पर भी प्रमुख ध्यान देना है। केवल श्रीकृष्ण एवं उनके नाम, रूप, गुण, लीला, धाम तथा गुरु में ही मन का लगाव रहे। अन्य देव, दानव, मानव या मायिक पदार्थों में मन का लगाव न हो। इसका तात्पर्य यह न समझ लो कि संसार से भागना है। वास्तव में संसार का सेवन करते समय उसमें सुख नहीं मानना है। श्रीकृष्ण का प्रसाद मानकर खाना पीना एवं व्यवहार करना है।
उपर्युक्त समस्त ज्ञान सदा साथ रखकर सावधान होकर साधना भक्ति करने पर शीघ्र ही मन अपने स्वामी से मिलने को अत्यन्त व्याकुल हो उठेगा। बस वही व्याकुलता ही भक्ति का वास्तविक स्वरूप है। यथा चैतन्य ने कहा -
युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम....।
अर्थात उनसे मिले बिना रहा न जाय। एक क्षण ही युग लगे, सारा संसार शून्य सा लगे।
एक बात और ध्यान में रखना है कि साधनाभक्ति करते करते जब अश्रुपात आदि भाव प्रकट होने लगे तो लोकरंजन का रोग न लगने पाये। अन्यथा लोगों से सम्मान पाने की लालच में भक्तिभाव से ही हाथ धोना पड़ जायेगा। आपको तो अपमान का शौक बढ़ाना होगा। गौरांग महाप्रभु ने कहा है -
तृणादपि सुनीचेन......।
अर्थात साधक अपने आपको तृण से भी निम्न समझे। वृक्ष से भी अधिक सहनशील बने। सबको मान दे किन्तु स्वयं मान को विष माने। सच तो यह है कि जब तक साक्षात्कार या दिव्य प्रेम न मिल जाय, तब तक सभी नास्तिक या आस्तिक समान ही हैं क्योंकि अभी तो माया के ही दास हैं। फिर अहंकार क्यों?
उपर्युक्त तत्वज्ञान सदा काम में लाना चाहिये। प्रायः साधक कुछ निर्धारित साधना काल में ही तत्वज्ञान साथ रखते हैं। यह समीचीन नहीं है। क्षण-क्षण अपने मन की जाँच करते रहना है। नामापराध से प्रमुख रूप से बचना है। यदि मन को सदा अपने शरण्य में ही लगाने का अभ्यास किया जाय, तभी गड़बड़ी से बचा जा सकता है। अन्यथा मन पुराने स्थान पर पहुँच जायेगा। साधना भक्ति के पश्चात भाव-भक्ति का स्वयं उदय होता है। इन दोनों की यह पहिचान है कि साधना भक्ति में मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाने का अभ्यास करना होता है। जबकि भावभक्ति में स्वयं मन भगवान में लगने लगता है। संसार के दर्शनादि से वितृष्णा होने लगती है। अर्थात पहले मन लगाना, पश्चात मन लगना।
जैसे संसार में कोई भी व्यक्ति जन्मजात शराबी नहीं होता। पहले बेमनी के बार-बार पीता है। फिर धीरे धीरे शराब उसे दास बना लेती है। वह शराबी समस्त लोक एवं परलोक पर लात मार देता है। जब जड़ शराब के नशे का यह प्रत्यक्ष हाल है तो हम भी जब भक्ति करते करते दिव्य मस्ती का अनुभव करने लगेंगे तब हम भी भुक्ति मुक्ति बैकुण्ठ को लात मार देंगे। एवं युगल सुख के हेतु युगल सेवा की ही कामना करेंगे।
रुपध्यान करते समय मन अपने पूर्व-प्रिय पात्रों के पास जायेगा। उस समय आप अशान्त न हों। मन जहाँ भी जाय, जाने दीजिये। बस उसी जगह उसी वस्तु में अपने शरण्य को खड़ा कर दीजिये। जैसे स्त्री की आँख के सौन्दर्य में मन गया तो उसी आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो। बस कुछ दिन में मन थक जायेगा। सर्वत्र सर्वदा अपने श्याम के ही ध्यान का अभ्यास करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: भक्ति-शतक एवं अध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 1997 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 254
(भूमिका ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा भक्तिधाम मनगढ़ में 15 अक्टूबर सन 1966 को दिये गये प्रवचन का एक अंश, इसमें बड़ी महत्वपूर्ण बात समझाई गई है कि साधक जब गुरुवचनों को भूल जाता है, तो किस संकट में फँस जाता है!!...)
..माया के अधीन जितने भी जीव हैं उनमें सब दोष हैं, क्योंकि सब दोषों की जननी माया है। जिस प्रकार एक बीज में अंकुर भी रहता है और डाल भी रहती है, पत्ते और फल भी रहते हैं। किन्तु सब सूक्ष्म रुप में रहने के कारण दिखाई नहीं देते। जब कोई बीज खेत में डाला जाता है तो सारी चीजें समय पर मिल जाती हैं। इसी प्रकार से इस मायारूपी बीज में उसकी शाखायें आदि काम क्रोधादि सूक्ष्म रूप से सब विद्यमान रहते हैं।
जब भगवत्प्राप्ति पर माया समाप्त होती है तब ही ये सब के सब दोष इकट्ठे समाप्त होते हैं। एक-एक नहीं। कोई कहे कि एक चला जायेगा, दूसरा वहीं रहेगा। यह नहीं हो सकता है। एक कभी नहीं जायेगा। जब ईश्वर भक्ति करते हैं तब भी यह दोष रहते हैं लेकिन लोगों को आश्चर्य होता है जब किसी साधक का पतन होता है। भगवत्प्राप्ति के एक सेकंड पहले तक भी, इतनी ऊँची अवस्था पर पहुँचने पर भी, महापुरुषत्व के पास पहुँचने पर भी, वह एक क्षण में राक्षस तक बन सकता है। इसके लिये इतना बड़ा प्रकरण अजामिल का है। अजामिल के लिये भागवत में लिखा है - सत्यवादी, जितेन्द्रिय, संयमात्मा। सभी गुण उसके पास थे जो महापुरुष में होते हैं। अर्थात महापुरुष के पास की क्लास में वह पहुँच चुका था। मन पर उसका पूर्ण कंट्रोल था। जिस क्षण में मन से कहा गुस्सा करो, गुस्सा कर दिया। जिस क्षण में कहा हँस दो, हँस दिया। उसका अन्तःकरण उसका सर्वेन्ट बनकर रहता था।
वह जब कोई कामना बनाना चाहता है तभी बन सकती है, वह कामना के अधीन नहीं रहता। किसी कामना को बनाकर जिस क्षण में चाहे कामना से अलग हो जाय। इतनी शक्ति जिसके पास हो वह जितेन्द्रिय कहलाता है। जो अभी मन के अण्डर में है, वह अभी साधक ही है। ऐसी स्थिति में पहुँचने पर भी अजामिल गिर गया और एक क्षण में गिरा, एक मिनट उसको नहीं लगा। स्त्री-पुरुष के मिलन का एक दृश्य देखा और उसके देखते ही एक क्षण में उसका इतना बड़ा पतन हुआ कि उसको पापियों का शिरोमणि कहा गया लेकिन आप लोगों को छोटे मोटे साधकों के गिरने में आश्चर्य हो जाता है। अरे इसका क्या आश्चर्य है? आश्चर्य तो इसका है कि कोई जीव थोड़ा ऊँचा किस प्रकार से उठ गया, एक आँसू श्यामसुन्दर के लिये कैसे निकल गया? अनंतकाल से संसार को अपना मानने वाला, संत या भगवान से प्यार कैसे करने लगा?
उस पर आप आश्चर्य नहीं करते, उसे तो नेचुरल समझते हैं। (टॉर्च हाथ से उठाकर) यह टॉर्च पृथ्वी की बनी हुई, इसलिये पृथ्वी की ओर जाने में इसको कोई परिश्रम थोड़े ही करना है। केवल इसको छोड़ दीजिये। चली गई। मन ने जरा लापरवाही की कि पतन हुआ। पतन करने के लिये कुछ करना नहीं पड़ता। जरा संत और भगवान के वाक्यों को भुला लीजिये। संत और भगवान को खोपड़ी से निकाल दीजिये, बस पतन हो जायेगा। उसके लिये कोई साधन मनन नहीं करना पड़ेगा। वह तो नीचे की ओर स्वतः ही भागता है, संसार की ओर भागने की तो उसकी नेचुरल प्रवृत्ति है, सजातीय धर्म है (मन भी माया का बना है, अतः वह माया के सजातीय है)। इसलिये यह आश्चर्य कभी नहीं होना चाहिये कि अमुक साधक का पतन कैसे हो गया? अपने आप को सँभालने का प्रयत्न करते रहना चाहिये। अपनी-अपनी फिक्र करो, दूसरे के बारे में न सोचो, न बोलो, न देखो, न गन्दी भावनायें करो। नहीं तो सारी गन्दगी तुम्हारे अन्दर आ जायेगी, तुम्हारे अन्तःकरण में भर जायेगी और थोड़ा बहुत शुद्ध हुआ अन्तःकरण पुनः खत्म हो जायेगा। यह भयंकर कुसंग है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2001 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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. नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥कथा- पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।पूजा विधि- देवी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, अर्पित करें। देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं। इसके अलावा कमल या गुड़हल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं। मिश्री या सफ़ेद मिठाई से मां का भोग लगाएं आरती करें एवं हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें।1. या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलुदेवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मामां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठतपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥"मां ब्रह्मचारिणी का कवच"त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।स्वरूपमाता अपने इस स्वरूप में बिना किसी वाहन के नजर आती हैं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है।महत्त्वमाता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है। -
चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ हो चुका है। नवरात्रि पर माता को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशी का पाठ अवश्य किया जाता है। माना जाता है कि नवरात्रि पर जो भी दुर्गा सप्तशी का विधिवत पाठ करता है उसकी हर मनोकामना जरूर पूरी होती है। दुर्गा सप्तशी में देवी को प्रसन्न करने के कई सिद्धि मंत्र है जिसका जाप करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। जानिए ऐसे ही 10 चमत्कारिक मंत्र....
1. स्वास्थ्य और धन के साथ ऐश्वर्य से भरपूर जीवन पाना चाहते हैं तो देवी के इस सिद्ध मंत्र का जप करें-ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पद:।शत्रु हानि परो मोक्ष: स्तुयते सान किं जनै।।2. मृत्यु के भय को दूर करने और मोक्ष प्राप्ति के लिए नियमित देवी के इस मंत्र का जप करें-सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते।वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।3. सिद्धि प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जप करें-
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।4. धन प्राप्ति के साथ संतान सुख भी पाना चाहते हैं तो नियमित इस मंत्र का जप करें-
सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वित:।मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥5. धन संबंधी परेशानियों से बुरी तरह परेशान हैं तो पैसों की तंगी को दूर करने के लिए नियमित माता के इस सिद्धि मंत्र का जप करें।दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:।सवस्र्ध: स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।।6. इन दिनों आपका बुरा समय चल रहा है और बार-बार संकट में फंस जा रहे हैं तो देवी के इस मंत्र का जप करें-शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।7. देवी के इस सिद्ध मंत्र से व्यक्ति में आकर्षण क्षमता और व्यक्तित्व में निखार आता है।ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ह्री सा।बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति।।8. देवी के इस सिद्ध मंत्र से सुंदर और सुयोग्य जीवनसाथी पाने की चाहत पूरी होती है।पत्नीं मनोरमां देहि नोवृत्तानुसारिणीम।तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम॥9. इस मंत्र का नियमित जप व्यक्ति को गुणवान और शक्तिशाली बनाता है।सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते।।10. जीवन में प्रसन्नता और आनंद चाहते हैं तो नियमित इस सिद्ध मंत्र का जप करें-प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव।।