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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 243
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! क्या ये भी आवश्यक है कि एक ही इष्टदेव, गुरु हो?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ! ये अत्यावश्यक है कि एक ही इष्टदेव हो, एक ही गुरु हो। एक ही इष्टदेव की भक्ति करना है, बाकी को उन्हीं का रूप मान लेना है। रूपध्यान करना होगा न। तो रूपध्यान में एक इष्टदेव बनाओ, एक गुरु बनाओ और उसके अनुसार चलो; क्योंकि अगर कई महात्माओं के पास जाओगे, तो वो कुछ बतायेगा, वो कुछ बतायेगा तो कन्फ्यूजन पैदा होगा। इसी प्रकार कई इष्टदेव का ध्यान करोगे तो इसका ध्यान बनाओगे तो वो कम बना, फिर उसका शुरू किया। तमाम प्रैक्टिस करनी पड़ती है न। इसलिये एक ही इष्टदेव हो, एक ही गुरु हो तो जल्दी सफलता मिलती है। बाकी फिर चाहे चार दिन राम राम करो, चार दिन श्याम श्याम करो सब बराबर। इसमें कोई फरक नहीं है। लेकिन अगर तुम 'राम' का ध्यान बनाती हो, फिर 'नृसिंह' भगवान् का ध्यान बनाती हो, फिर तुम 'कच्छप' भगवान् का बनाती हो; एक ही ध्यान बनाना मुश्किल पड़ता है, इतना खराब मन है और फिर तमाम ध्यान कैसे बनेगा।
एक इष्ट, एक गुरु, एक मार्ग - तीन बात। बस अपने इष्टदेव की ही बात सुनना, अपने गुरु की ही बात सुनना, उन्हीं का सत्संग करना और अपने मार्ग के अलावा किसी मार्ग की बात सुनना भी नहीं, पढ़ना भी नहीं। नहीं तो कन्फ्यूज़न होगा। क्योंकि बात तो सब सही है लेकिन अधिकारी भेद का फरक है। जैसे भक्त कहता है मैं दास हूँ, अधम हूँ, पतित हूँ, गुनहगार हूँ, नाचीज़ हूँ, अनन्त पाप किये बैठा हूँ। अब इसका उलटा है ज्ञानमार्ग। मैं शुद्ध हूँ, बुद्ध हूँ, ब्रह्म हूँ और बिल्कुल उलटा बोल रहा है वो और केवल आत्मा के लिये बोल रहा है। और हम बोल रहे हैं शरीरेन्द्रिय, मन, बुद्धि जो माया के अण्डर में हम हैं, वो मिलाकर के बोल रहे हैं। अब वो क्यों बोल रहा है वैसा? उसका अन्तःकरण शुद्ध हो गया है, वो चार साधनों से सम्पन्न हो चुका है, इसलिए बोल रहा है। इसलिये वो ठीक है।
हम वहाँ पहुँच जायेंगे तब हम भी वैसे ही बोलेंगे।अभी कैसे बोलेंगे? ये फरक है। देखो! छोटे बच्चे इतना बड़ा बस्ता ले जाते हैं बाँध कर अपनी पीठ पर और यूनिवर्सिटी में जाते हैं बच्चे पढ़ने, एक कॉपी ले जाते हैं। खाली नोट्स लिख लिया, हो गया बस। तो शुरू शुरू में साधक के लिये सब प्रॉब्लम्स हैं फिर बाद में सब सुविधा हो जाती है।
अब एक कर्मकाण्ड में बैठो संध्या करने, कोई कर्म करने, तो कहाँ बैठो, ये सोचो पहले? शुद्ध जगह होनी चाहिये, गंदी जगह न बैठना, ये लेट्रीन है यहाँ नहीं बैठना। बैठने के बाद किधर को मुँह करें? दक्षिण तरफ मुँह न करना, पूरब की तरफ करना। फिर आचमन करो, कवच, अर्गला, तिलक, दिशाओं की शुद्धि। तमाम नाटक करो, तब जाकर तुम जप शुरू करो। मृत्युंजय का जाप करने जा रहे हो। इतने नियम हैं। और भक्ति मार्ग में तुम चाहे घोर गन्दगी में बैठे हो, हजार दिन से नहीं नहाये हो, किसी भी गन्दगी की हालत में हो 'राधे' 'राधे' बोलो, भगवान् से प्यार करो।
गौरांग महाप्रभु के जमाने में एक आदमी 'हरे राम हरे राम' मंत्र का जप दिन रात करे, आदत डाल लिया उसने। तो जब लघुशंका के लिये जाय तो मुँह पर हाथ धर ले क्योंकि लोगों ने बताया था कि पाखाना, पेशाब करते समय भगवान् का नाम या कोई ऐसी चीज़ नहीं करनी चाहिये, तो किसी ने देख लिया। उसने महाप्रभु जी से कहा कि स्वामी जी! ये ऐसा करता है। उन्होंने उसे हँस कर बुलाया इधर आओ, क्या करते हो तुम?
गुरु जी क्या करें, निकल जाता है मुँह से, भगवन्नाम की आदत पड़ गई है, इसलिये मुँह बन्द कर लेता हूँ। उन्होंने कहा - नहीं नहीं, भगवान् का नाम गन्दगी को शुद्ध करता है। गन्दगी से भगवान् का नाम अशुद्ध नहीं होता है। तू हर समय लिया कर।
अब पूजा है मन्दिर की, ये है, वो है नहा कर जाओ, ये करो, रजस्वला है वो न जाय स्त्री मन्दिर में, ठाकुर जी की मूर्ति न छुए, सब कायदे कानून हैं। भक्ति में ये कुछ नहीं;
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोपि वा।यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥(पद्म पुराण, पाताल खण्ड 80-12)
वेदव्यास लिखते हैं चाहे पवित्र हो वो, परमपवित्र ब्रह्मा, शंकर हो, और चाहे घोर अपवित्र पापात्मा हो बाहर से भी भीतर से भी गन्दा हो, भगवान् का स्मरण कर ले, भीतर बाहर सब शुद्ध हो जाय।
इतनी रियायत है भक्ति मार्ग में। बस, भगवान् का स्मरण करना है और कुछ नहीं। नाम लो ठीक है, न लो तो भी चलेगा। मन से स्मरण करना आवश्यक है क्योंकि गन्दगी तो मन की शुद्ध करना है। शरीर की गन्दगी तो साबुन से हो जायेगी शुद्ध दो मिनट में, गड़बड़ तो वो मन कर रहा है। सारा संसार दु:खी है मन से। शरीर से चाहे कोई वो सारे संसार की सुन्दरी हो, लेकिन मन से सब दु:खी हैं, परेशान हैं इसी प्रकार। जैसे एक भिखारी वैसे ही एक अरबपति। तो मन ही को ठीक करना है।
चित्तमेव हि संसारः। (मैत्रेयी उपनिषद् 1-5)
वेदव्यास कहते हैं संसार की परिभाषा क्या है? बस, चित्त, मन। इसी का नाम संसार है। इसी संसार में संत महात्मा रहते हैं, आनन्दमय रहते हैं। उनके भी माँ है, बाप है, बेटा-बेटी हैं, वो भी कोई मरता है, कोई जीता है, कोई बीमार होता है। लेकिन उनके ऊपर असर नहीं। और इसी में मायाबद्ध रहता है, वो दिन रात हाय! हाय! आज बेटा मर गया, आज वो मर गया, आज वो धन लुट गया, आज ये हो गया, आज उसने हमारी बुराई कर दी, दिन रात टेन्शन। आज बीबी ने ये कह दिया, बाप ने ये कह दिया, पति ने ये कह दिया दिनभर यही गोबर गणेश खोपड़ी में घूमता रहता है। भगवान् का स्मरण कैसे करे?
गृह कारज नाना जंजाला।सोई अति दुर्गम शैल विशाला॥
आज कल का गृहस्थ बहुत गड़बड़ है। बेटा कहता है श्रीकृष्ण की भक्ति करो, बाप कहता है आर्यसमाजी बनो, बीबी कहती है राधास्वामी बनेंगे। इसी में लड़ाई हो रही है। तुम्हारे गुरु जी दो कौड़ी के हैं, उसने कहा तुम्हारे गुरु जी दो कौड़ी के हैं, इसी में लड़ाई हो रही है। वो ठाकुरजी की मूर्ति फेंकता है, वो उसकी फेंकता है। ये गृहस्थी है आजकल की।
जब तक पूरा गृहस्थ एक लक्ष्य का न हो, बहुत दुर्लभ है, माँ भी वैसी मिले, बाप भी वैसा मिले, बेटा भी वैसा मिले, बीबी भी वैसी मिले, पति भी वैसा मिले। सब एक इष्टदेव, एक गुरु, एक मार्ग के चलने वाले हों, तब तो कुछ हिसाब बैठ जाता है, वरना बहुत मुश्किल है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - मां शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस वर्ष यह पर्व 2 अप्रैल, शुक्रवार को मनाया जा रहा है। दैहिक, दैविक एवं भौतिक कष्टों से निवारण के लिए शास्त्रों में देवी-देवताओं की पूजा करने का विधान अनेक धर्मशास्त्रों में बताया गया है। ऐसा ही एक रूप है भगवती स्वरूपा मां शीतला देवी का जिनकी आराधना अनेक संक्रामक रोगों से मुक्ति प्रदान करती है। माना जाता है कि शरीर के निरोगी रहने के लिए भी शीतला अष्टमी का व्रत करना चाहिए।अर्पित किए जाते हैं बासी पकवान-मां शीतला को एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं। अष्टमी के दिन बासी पकवान ही देवी को नैवेद्ध के रूप में समर्पित किए जाते हैं। लोकमान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है,इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।इसलिए धोई जाती हैं आंखें-शीतला माता के पूजन के बाद उस जल से आँखें धोई जाती हैं। यह परंपरा गर्मियों में आँखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है। माता का पूजन करने के बाद हल्दी का तिलक लगाया जाता है,घरों के मुख्य द्वार पर सुख-शांति एवं मंगल कामना हेतु हल्दी के स्वास्तिक बनाए जाते हैं। हल्दी का पीला रंग मन को प्रसन्नता देकर सकारात्मकता को बढ़ाता है, भवन के वास्तु दोषों का निवारण होता है।शीतलाष्टक की महिमा-मां की अर्चना का स्त्रोत स्कंद पुराण में शीतलाष्टक के रूप में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्त्रोत की रचना स्वयं भगवान शंकर ने जनकल्याण में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा का गान करता है,साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। इस दिन माता को प्रसन्न करने के लिए शीतलाष्टक पढऩा चाहिए। मां का पौराणिक मंत्र 'हृं श्रीं शीतलायै नम:' भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाते हुए समाज में मान सम्मान दिलाता है। मां के वंदना मंत्र में भाव व्यक्त किया गया है।स्वच्छता की देवी हैं मां-शीतला स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि नेत्र रोग, ज्वर, चेचक, कुष्ठ रोग, फोड़े-फुंसियां तथा अन्य चर्म रोगों से आहत होने पर मां की आराधना रोगमुक्त कर देती है, यही नहीं माता की आराधना करने वाले भक्त के कुल में भी यदि कोई इन रोगों से पीडि़त हो तो ये रोग-दोष दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। मां का स्वरूप हाथों में कलश,सूप,मार्जन(झाड़ू) तथा नीम के पत्ते धारण किए हुए चित्रित किया गया है। हाथ में मार्जनी होने का अर्थ है कि हम सभी को सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए।सूप से स्वच्छ भोजन करने की प्रेरणा मिलती है ,क्योंकि ज्यादातर बीमारियां दूषित भोजन करने से ही होती हैं। कलश में सभी तैतीस कोटि देवताओं का वास रहता है । इसलिए इसके स्थापन-पूजन से घर -परिवार में समृद्धि आती है। इन्हीं की कृपा से मनुष्य अपना धर्माचरण कर पाता है बिना शीतला माता की कृपा के देहधर्म संभव नहीं है। इनकी उपासना से जीवन में सुख-शांति मिलती है।
- जीवन में पानी की अहमियत से तो हर कोई वाकिफ है, पानी जीवन प्रदाता है, इसके अलावा रोजमर्रा के ज्यादातर छोटे बड़े कामों के लिए पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन क्या आपको पता है कि केवल एक गिलास पानी के उपयोग से आप अपने जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं, जी हां पानी के कुछ ऐसे उपाय भी बताए गए हैं जिनको करने से आप अपने जीवन की परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं....1. रात को सोते समय 1 गिलास पानी लेकर उसमें थोड़ा सा नमक डालकर अपने पलंग के नीचे रखकर सो जाए। ऐसा करने से से आपके घर और आसपास की सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है, लेकिन ध्यान रहे कि सुबह उठते ही उस पानी अपने घर से नाली में फेंक दें।2. यदि आपको लगता है कि घर में नकारात्मक शक्ति का वास है जिसके कारण आपको समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो एक गिलास पानी और चार लाल मिर्च लेकर उसके बीज निकालकर अलग रख लें और इसके बाद इस पानी और मिर्ची को अपने ऊपर 21 बार उतार कर घर के बाहर सड़क पर या किसी सुनसान चौराहे पर जाकर फेंक दें, इसके बाद बिना पीछे देखें अपने घर वापस आ जाएं। मान्यता है कि इससे सभी नकारात्मक शक्ति खत्म हो जाती है, यह उपाय बहुत ही कारगर माना गया है3. कई बार जीवन में अजीब सी घटनाएं होने लगती हैं, जिसके कारण लोग मानते हैं कि यह किसी बुरी शक्ति के कारण हो रहा है। यदि आपको भी ऐसा महसूस हो रहा है हो तो एक कांच के गिलास में पानी भरकर उसमे एक चम्मच नमक मिला दें अब इस पानी को अपने घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में रख दें और इसके ऊपर लाल रंग का बल्ब लगा दें, इससे आपको कुछ ही समय में फर्क दिखाई देने लगता है।4. एक गिलास में पानी लेकर उसमें थोड़ा सा नमक और चार-पांच लौंग डालकर रख दें।. इस पानी का अपने घर में छिड़काव करें, इससे घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 242
साधक का प्रश्न ::: शयन करने वाले भगवान् (विष्णु) का ध्यान करने लगते हैं तो मन स्थिर नहीं होता है। तो कैसे स्वरूप का ध्यान करें? हम कन्फ्यूज्ड होते हैं, कैसे ध्यान करना चाहिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ हाँ भगवान् हृदय में भी रहते हैं। 'पुरुशयते' 'पुर' माने शरीर में, अन्त:करण में; 'शयते' माने सोने वाले। और क्षीरसागर में भी सोते हैं, सर्वत्र व्याप्त भी हैं और गोलोक में भी रहते हैं। तो हमको निराकार का ध्यान नहीं करना है। सगुण साकार का ध्यान करना है, राधाकृष्ण का। उनकी लीलायें हुई हैं। उन लीलाओं में हमारा मन जल्दी लगेगा। और जो पुरुष है अन्तःकरण में, परमात्मा रूप में, वो तो निराकार है उसका रूप नहीं हो सकता। ध्यान नहीं कर सकते हम। वो बड़े-बड़े योगी लोग नहीं कर पाते।
तो, हमको तो राधाकृष्ण का ध्यान करना चाहिये जो यहाँ ब्रज में अवतार लेकर आये थे। वही अन्दर वाले पुरुष यहाँ अवतार लेकर आये थे। उनका ध्यान करना है। भगवान् के तीन स्वरूप हैं; एक ब्रह्म, एक परमात्मा, एक भगवान्। तो ब्रह्म तो सर्वव्यापी, उसका ध्यान नहीं हो पाता जीव के लिये, और परमात्मा पुरुष है जो अन्दर रहता है, हमारे आइडियाज नोट करता है, सबके अन्तःकरण में रहता है। उसका भी रूपध्यान हम नहीं कर पाते क्योंकि वो निराकार है और महाविष्णु साकार हैं, लेकिन उनकी लीला नहीं है कोई। इसलिये राधाकृष्ण का रूपध्यान हमारे मन को जल्दी खींचेगा, जल्दी हमारे मन का अटैचमेन्ट होगा। भगवान् के सभी रूप हैं, लेकिन जिसमें हमारे मन का लगाव जल्दी हो जाय, वो हमारे लिये अच्छा है। अब मत्स्य अवतार भी है, कच्छप अवतार भी है, नरसिंह अवतार भी है। हमारा मन उसमें नहीं लगेगा क्योंकि हमारे लिये आकर्षक स्वरूप नहीं है उनका।
तो राधाकृष्ण के स्वरूप में, उनकी लीलाओं में जल्दी मन लग जायेगा। फिर चाहे हृदय में ध्यान करो, चाहे भौंहों के बीच में ध्यान करो, चाहे सामने ध्यान करो, कहीं करो, सब ठीक है। राधाकृष्ण का ध्यान। चाहे बालकृष्ण का करो, चाहे किशोर कृष्ण का करो, जो रूप पसन्द हो बदलते रहो। वो (भगवान) सब हैं।
त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उत वा कुमारी।त्वं जीर्णो दण्डेन वञ्चसि त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 4-3)
वेद कहता है भगवान् पुरुष भी हैं, स्त्री भी हैं, कुमार भी हैं, कुमारी भी हैं और बूढ़े बनकर डण्डा लेकर भी चलते हैं। सब प्रकार की उनकी लीलायें हैं। तुमको जो पसंद हो।
और जिसका हृदय जितना गन्दा होता है उतना ही उसको सत्संग से दूरी आती जाती है। जैसे ये चुम्बक है, बीच में रखा है और चारों ओर सुईयाँ हैं। कोई सुई प्योर लोहे की है, किसी में टेन पर्सेन्ट मिलावट, किसी में ट्वन्टी पर्सेन्ट, किसी में फिफ्टी पर्सेन्ट तो चुम्बक जो क्लीन है शुद्ध लोहे की है उसको जल्दी खींच लेगा। जिसमें टेन पर्सेन्ट है वो बाद में खिंचेगा और जितनी अधिक मिलावट है उतनी ही देर में खिंचेगा। ऐसे ही भगवान् और महापुरुष से जो जीव खिंचते हैं, आकर्षण होता है, वो उनके अन्तःकरण की शुद्धि पर डिपैण्ड करता है। जिसका जितना अन्तःकरण शुद्ध है वो उतना जल्दी खिंच जायेगा और जितने पाप हैं, गन्दगी है अन्तःकरण में, उतनी ही देर में खिंचेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 241
(भूमिका - साधक कैसे सब ओर से अपनी दृष्टि हटाकर स्वयं को पतन अथवा भटकाव से बचाये रखे और अपने परमार्थ के लक्ष्य पर अडिग, अविचल बना रहे - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इसी की ओर ध्यानाकृष्ट कर रहे हैं...)
'हरि, गुरु और भक्ति' - इन तीनों में अनन्य भाव रखो। यानी इनके बाहर मत जाओ। बस राधाकृष्ण, हमारे इष्टदेव और अमुक गुरु हमारा गाइड, गार्जियन एक बस, और साधना - ये उपाय। स्मरण, कीर्तन, श्रवण। ये तीन, बस इसके बाहर नहीं जाना है। कुछ न सुनना है, न समझना है, न पढ़ना है। अगर कोई सुनावे, बस बस हमको मालूम है सब। निरर्थक बात नहीं सुनना है।
बहुत से लोगों का यही धंधा है कि इसको इस मार्ग (भक्ति/साधना) से हटाओ। तो अण्ड बण्ड, तर्क-कुतर्क, वितर्क-अतितर्क, ऐसी गन्दी गन्दी कल्पनाएँ करके आपके दिमाग में वो डाउट पैदा कर देंगे। तो सुनना नहीं है। बस अपने मतलब से मतलब। ये शरीर नश्वर है। पता नहीं कब छिन जाय। फालतू बातों में इसको न समाप्त करो, जल्दी जल्दी कमा लो (आध्यात्मिक कमाई/साधना)। जितना अधिक भगवान् का, गुरु का स्मरण हो सके, उतना स्मरण करके अंतःकरण शुद्धि का एक चौथाई कर लो। फिर अगले जन्म एक चौथाई कर लेना। तो चार जन्म में हो जायेगा शुद्ध। लेकिन जितना कर सको करो। उसमें लापरवाही नहीं करना है। और हरि गुरु को सदा अपने साथ मानो। अपने को अकेला कभी न मानो। इस बात पर बहुत ध्यान दो, इसका अभ्यास करना होगा थोड़ा। जैसे दस मिनट में आपने एक बार रियलाइज किया - हाँ श्यामसुन्दर बैठे हैं फिर अपना काम किया - तीन, चार, सात, पाँच , बारह, अठारह, चौबीस, फिर ऐसे आँख करके कि हाँ बैठे हैं। ये फीलिंग हो कि हम अकेले नहीं हैं, हमारे साथ हमारा बाप (भगवान) भी है और हमारे गुरु भी हैं। ये फीलिंग हो तो अपराध नहीं होगा। गलती नहीं करेंगे, भगवान् का विस्मरण नहीं होगा। वह बार-बार पिंच करेंगे आकर के। तो इस प्रकार सदा उनको अपने साथ मानो और उनके मिलन की परम व्याकुलता बढ़ाओ।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन -भाग 240
साधक का प्रश्न ::: साधक सिद्ध अवस्था तक पहुँचे इसकी क्या पहचान है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अरे! साधक तो मायाबद्ध है। उसको स्वयं अनुभव में आ रहा है मैं अल्पज्ञ हूँ। कामी, क्रोधी, लोभी, मोही संसार में आसक्त हूँ और दुःख मिल रहा है अनेक प्रकार का। जब उसको अनंत आनंद मिल जायेगा तो उसको पता नहीं चलेगा? अरे ! जब थोड़ा-सा फरक पड़ता है और पता चल जाता है आदमी को कि हाँ, अब बड़ा तेज बुखार था, अब तो आराम है। ऐसा बोलता है वह। टेम्परेचर डाउन हो गया। एक सौ चार (104) टेम्परेचर था। हंड्रेड (100) पे आ गया, या दो पर आ गया तब भी वह कहता है अब आराम है - अब आराम है। तो जहाँ अनंत आनंद मिलेगा वहाँ किसी से पूछना पड़ेगा क्या, देखो भाई! अब मेरा क्या हाल है?
वो तो थोड़ा-थोड़ा अंतर तो चलता जायेगा उसको पहचानने में थोड़ी मुश्किल होती है - कि कल से आज में क्या चेंज हुआ हमारे अन्दर। कल भी हम निंदा सुन के बुरा मानते थे, आज भी निंदा सुन के बुरा मानते हैं, लेकिन लिमिट में क्या अंतर हुआ ये जानना ज़रा मुश्किल है हर एक के लिए। लेकिन जब वो पूरा समाप्त हो जायेगा तो वो तो गधा भी जान लेगा उसमें क्या है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु शास्त्र का प्रयोग करके आप नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करके जीवन की कई परेशानियों को हल किया जा सकता है। वास्तु में दिशाओं का बहुत महत्व माना जाता है। इसलिए घर का निर्माण करना हो या कोई सामान रखना हो वास्तु में हर चीज को लेकर नियम बताए गए हैं। वास्तु दोष होने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ने लगती है जिसके कारण नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। नकारात्मक ऊर्जा आपके जीवन में कई तरह की परेशानियां ला सकती है। वास्तु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के क्रिस्टल बॉल को लगाना बहुत शुभ माना गया है। इसे घर में या ऑफिस में लगाने से आपका भाग्योदय होता है। पारिवारिक कलह दूर होती है और व्यापार में लाभ प्राप्त होता है। तो चलिए जानते हैं। वास्तु में क्रिस्टल को नेगेटिव एनर्जी को दूर करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। क्रिस्टल लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसे घर के मुख्य द्वार पर लगाना सबसे उचित माना गया है।
वहीं अगर आपके घर में बच्चे हैं और उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है तो क्रिस्टल बॉल को उनकी पढ़ाई करने के कमरे में लगा सकते हैं। इससे बच्चे का पढ़ाई के प्रति रूझान बढ़ेगा।
शयन कक्ष में क्रिस्टल बॉल को लगाने से दाम्प्त्य जीवन और भी मधुर बनता है। जिन पति पत्नी के बीच अक्सर झगड़े की स्थिति बनी रहती है, तो उन्हें अपने कमरे में क्रिस्टल बॉल जरूर लगानी चाहिए। इससे जल्दी ही आपको सुधार देखने का मिलेगा।
घर की बालकनी में क्रिस्टल बॉल इस तरह से लगानी चाहिए कि उसके ऊपर सूर्य की रोशनी पड़ती रहे। इससे आपके घर में कलह कम हो जाती है। घर के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम और सद्भावना की भावना भी बढ़ती है। यदि घर में सूरज की किरणें नहीं आती हैं तो क्रिस्टल बॉल को कुछ देर धूप में रखने के बाद लगाएं।
यदि आप अपने ऑफिस, व्यापार स्थल पर क्रिस्टल लगाते हैं तो आपके लिए व्यापार और नौकरी में उन्नति भी प्राप्ति होती है। व्यापार में लाभ पाने के लिए अपने कार्यस्थल पर क्रिस्टल बॉल लगानी चाहिए।
कैसे लगाएं क्रिस्टल बॉल
जब भी आपको घर या फिर कार्यस्थल पर क्रिस्टल को लगाना हो तो उसे कुछ दिनों तक नमक के पानी डुबों कर रखना चाहिए। बाद में उसे पानी से बाहर निकालकर साफ कर लें और सूर्य की रोशनी में रखें। इससे शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। -
बुध 31 मार्च की मध्यरात्रि मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं। ये इनकी नीचसंज्ञक राशि है। नीचराशि में प्रवेश के साथ ही इनके गुण दोषों में वृद्धि हो जाती है इसलिए इनसे संबंधित उपाय आवश्यकता अनुसार कर लेना चाहिए। ये जातक को बैंकिंग के क्षेत्र, बीमा, आईटी, लेखन, शल्यचिकित्सा, न्याय के क्षेत्र, शिक्षण, प्रकाशन, राजनीति, आर्थिक सलाहकार तथा इंश्योरेंस के सेक्टर में अच्छी सफलता दिलाते हैं। ये सूर्य के सबसे नजदीकी ग्रह हैं। जब भी इनकी सूर्य के साथ युति होती है तो बुधादित्य योग का निर्माण होता है। जन्मकुंडली में जब ये अपने घर में केंद्र अथवा त्रिकोण में होते हैं तो भद्रयोग का निर्माण करते हैं जिसके फलस्वरूप जातक कार्यक्षेत्र में अत्यधिक सफलता और समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार जन्मकुंडली के अलग-अलग भाव में बुध का फल-
प्रथम भाव-
जिनकी जन्मकुंडली में बुध प्रथम भाव में हों तो ऐसा जातक बुद्धिमान, सौम्य स्वभाव वाला, वाणी कुशल, शारीरिक सौंदर्य से परिपूर्ण, मिलनसार और समाज में लोकप्रिय होता है। उसकी तर्कशक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान के लोग कायल रहते हैं।
द्वितीय भाव
जन्मकुंडली के द्वितीय भाव में विराजमान बुध जातक को आर्थिक रूप से सफल बनाते हैं। आकस्मिक धन प्राप्ति का योग बनता है। अपनी वाणी कुशलता और कुशल नेतृत्व के बल पर ऐसा व्यक्ति सामाजिक पद प्रतिष्ठा हासिल करता है।
तृतीय भाव-
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक को भाई बहनों का विशेष स्नेह मिलता है। ऐसे लोग धार्मिक और सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वे दूसरों के लिए हमेशा समर्पित रहते हैं। अपने लिए ज्यादा कुछ नहीं करते।
चतुर्थ भाव
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक स्वयं के बल पर संपत्ति अर्जित करता है। अपने ही धन के द्वारा मकान-वाहन का सुख भोगता है। उसे किसी कारणवश पारिवारिक कलह और मानसिक अशांति का सामना भी करना पड़ता है।
पंचम भाव
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक प्रखर बुद्धि का स्वामी होता है। ऐसे लोग निति और शिक्षा के क्षेत्र में कई मील स्तंभ स्थापित करते हैं। इनकी संताने भी बुद्धिमान, विद्या में कुशल और कार्य-व्यापार में पूर्णरूप से सफल रहती हैं।
छठा भाव
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है उसके गुप्त शत्रुओं की अधिकता रहती है और उसे कोर्ट कचहरी के मामलों में भी जूझना पड़ता है। अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं।
सप्तम भाव
इस भाव में बुध अत्यंत शुभफल देते हैं। दांपत्य जीवन भी सुखद रहता है और अपने घर में बुध विराजमान हो तो ससुराल पक्ष से भी सहयोग मिलता है। जातक लंबी आयु वाला, जनप्रिय, प्रसिद्ध, कुशल व्यवसायी, वक्ता, लेखक और चिंतक होता है।
अष्टम भाव
इस भाव में बुध का फल काफी मिलाजुला रहता है। व्यक्ति को पूर्णरूप से भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। सामाजिक पद प्रतिष्ठा बनी रहती है किंतु स्वास्थ्य संबंधी चिंता रहती है। चर्म रोग, पेट तथा हड्डियों के रोग का भय बना रहता है।
नवम भाव
इस भाव में बुध के विराजमान होने से जातक देश-विदेश से सम्बंधित व्यापार करने वाला धर्मशास्त्रों का ज्ञाता, गणितज्ञ और प्रशासनिक कार्यों में ख्याति प्राप्त करता है। अपने साहस और पराक्रम के बल पर ऐसे लोग कामयाबियों के चरम तक पहुंचते हैं।
दशम भाव
इस भाव में बुध विराजमान हों तो व्यक्ति बहुमुखी प्रतिभा का धनी होता है। वह मिलनसार न्याय और कानून के मामलों में दक्ष, अर्थशास्त्री तथा कुशल प्रबंधन वाला होता है। ऐसे लोगों को माता-पिता का पूर्णसुख और अधिक संपत्ति मिलती है।
एकादश भाव
इस भाव में बुध विराजमान हों तो जातक व्यापार के क्षेत्र में अच्छी सफलता हासिल करता है। कुशल प्रबंधन, प्रकाशन के क्षेत्र और कानूनी सलाहकार के रूप में ऐसे लोग अधिक सफल रहते हैं। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों और भाइयों से भी सहयोग मिलता है।
द्वादश भाव
इस भाव में बुध विराजमान हों तो जातक अत्यधिक भागदौड़ करता है। वह कार्य कुशल होता है। विदेशी कंपनियों में नौकरी या विदेश से भाग्योदय की संभावना सर्वाधिक रहती है। स्वास्थ्य के प्रति ऐसे लोगों को निरंतर चिंतनशील रहना चाहिए।
बुध का मुख्य रत्न
इनके प्रभाव में सर्वाधिक वृद्धि करने वाला रत्न पन्ना है। यह हरे रंग का स्वच्छ, पारदर्शी, कोमल, चिकना व चमकदार होता है। विद्या बुद्धि धन एवं व्यापार के मामलों में इसे अत्यधिक लाभप्रद माना जाता है।
धारण विधि
पन्ना धारण करने के लिए शुक्ल पक्ष में बुध के नक्षत्र अश्लेषा, जेष्ठा, रेवती अथवा बुध की होरा में हाथ की सबसे छोटी अंगुली में सोने की धातु में ? ब्रां, ब्रीं, ब्रौं स: बुधाय नम: मंत्र का जप करते हुए धारण करना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 239
महापुरुष तथा भगवान के द्वारा किये जाने वाले कार्यों की अलौकिकता एवं दिव्यता के संबंध में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन ::::::
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है...)
...यदि महापुरुष अथवा भगवान के कार्य लौकिक बुद्धि के आधार पर ही तौले जा सकें, तब तो महापुरुष एवं भगवान् भी गुणातीत, लोकातीत, शुभाशुभ-कर्मातीत, बुद्धि-अतीत न रह जायगा। अतएव आस्तिक विचारशील व्यक्ति को उन लोकातीत अचिन्त्य महापुरुषों के कार्यों पर लौकिक बुद्धि से विचार न करना चाहिये, अन्यथा सब किया-कराया मटियामेट हो जायगा। साथ ही यह भी अत्यन्त विचारणीय बात है कि उनकी उपमा मायिक जीव को भूलकर भी अपने मिथ्याहंकार युक्त निकृष्ट कर्मों में न देनी चाहिये। महापुरुषों के कार्य, भगवान के संकल्पों से सम्बद्ध होने के कारण मंगलमय होते हैं, भले ही वे कार्य देखने में प्राकृत प्रतीत हों।
ईश्वराणां वचः सत्यं तेषामाचरितंक्वचित्।(भागवत 10-33-32)
अर्थात् महापुरुष के आदेश माननीय हैं उनका आचरण तो कहीं-कहीं ही मान्य होता है। महापुरुष एवं उसका कार्य सदा ही परम पवित्र है। महापुरुष के कार्य तो 'योगक्षेमं वहाम्यहम्' इस गीता के सिद्धांतानुसार भगवान के द्वारा ही होते हैं
मयि ते तेषु चाप्यहम् - इस गीता के सिद्धांतानुसार जब भगवान भक्त में रहता है, एवं भक्त भगवान में रहता है, तब फिर महापुरुषों का कार्य भगवत्कार्य ही तो है। यथा राजा तथा प्रजा के अनुसार भगवान एवं महापुरुष दोनों ही के कार्य अचिन्त्य हैं। अतएव हम लोकातीत, गुणातीत, मायातीत, भगवत्स्वरूप महापुरुषों के आचरणों पर अपनी सीमित, लौकिक, मायिक बुद्धि लगा कर अपने पागलपन का परिचय न दें। हम केवल उनके आदेशों का ही पालन करें। अन्यथा उनके खिलवाड़ में पड़कर हम नष्ट हो जायेंगे।
-- भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - कड़ाही और तवा रसोई घर का अहम हिस्सा होते हैं। रोटी, पराठे के लिए तवा और सब्जियों के लिए कड़ाही का इस्तेमाल किया जाता है। तवा जहां लोहे का होता है, तो कहाड़ी सीमेंट-मिश्रित लोहे, एल्युनियम और लोहे से बनी होती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार तवा और कहाड़ी का इस्तेमाल करते समय कुछ सावधानियां बरती जानी चाहिए। इससे कई समस्याओं का समाधान अपने आप ही हो जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार तवा और कढ़ाही का संबंध राहु से माना जाता है। यदि रसोई में काम करते समय तवा और कढ़ाही का प्रयोग करते समय सावधानी न बरती जाए तो कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए इनके इस्तेमाल के समय कुछ सावधानियां बरतें-हमेशा साफ करके रखेंकई बार रोटी या सब्जी बनाने के बाद कढ़ाही और तवे को ऐसे ही रखकर छोड़ देते हैं। ऐसा करना सही नहीं रहता है। इससे घर के मुखिया की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। रात के समय भूलकर भी तवे और कढ़ाही को कभी भी सिंक में रखकर नहीं छोडऩा चाहिए। अन्यथा जातक को राहु के प्रकोप के कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए तवा या कढ़ाही का प्रयोग करने के बाद उसे अच्छे से साफ करके सुखाकर रखना चाहिए।तवा और कढ़ाई भूलकर भी न रखें ऐसेअक्सर देखने में आता है कि ज्यादातर लोग तवे और कढ़ाही को उल्टा करके रखते हैं, लेकिन वास्तुशास्त्र कहता है कि तवे या कढ़ाही को कभी भी उल्टा नहीं रखना चाहिए। इसके साथ ही कभी भी तवे या कढ़ाही को चूल्हे के ऊपर रखकर नहीं छोडऩा चाहिए। इसलिए सब्जी या फिर रोटी बनाने के बाद कढ़ाही और तवे को चूल्हे से उतारकर साफ करके रख देना चाहिए। जहां पर आप खाना बनाते हैं, ये दोनों चीजें वहां पर दांयी ओर रखें।नुकीली चीजों से न खुरचे तवा और कढ़ाहीकभी-कभी खाना बनाते समय कढ़ाही और तवा में चिकनाई और मसाले आदि जम जाते हैं जिसे लोग नुकीली चीजों से खुरचकर साफ करते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार यह सही नहीं रहता है। इससे घर में नकारात्मकता बढ़ती है।स्वास्थ्य के लिहाज से सब्जियां बनाते समय लोहे या फिर सीमेंट मिश्रित कहाड़ी का ही इस्तेमाल करना चाहिए। एल्युमिनियम की कहाड़ी का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। एल्युमिनियम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसके बर्तनों में खाना पकाने से बचना चाहिए।
- 'होली महामहोत्सव 2021'पर समस्त भगवत्प्रेमी जनों को हार्दिक शुभकामना!!
भूमिका ::: आज होली का महापर्व है। 'जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के आज के 238 वें भाग में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली' के सम्बन्ध में रचित दोहा तथा इसके माहात्म्य पर उनके द्वारा निःसृत प्रवचन के कुछ अंशों द्वारा वास्तविक होली मनाने के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे। 'होली' पर श्री कृपालु जी महाराज ने अनगिनत दोहों व पदों की रचना की है, उन सबका वर्णन यहाँ संभव नहीं है, अतः सबके आत्मिक लाभार्थ कुछ अंश प्रस्तुत किये गये हैं :::
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली' के संबंध में रचित दोहा तथा उसका सरलार्थ :::
सब पर्व लक्ष्य एक गोविंद राधे,जग ते हटा के मन हरि में लगा दे..(सभी पर्वों का एकमात्र लक्ष्य यही होता है कि हम अपना मन संसार से हटाकर भगवान में लगाने का अभ्यास करें.)
ऐसा रंग डारो श्याम गोविंद राधे,तनु ही न मन श्याम रंग में डुबा दे..(जीवात्मा भगवान श्रीकृष्ण से कहती है कि हे श्यामसुन्दर! मुझे सांसारिक रंगों की चाह नहीं है, मेरी तो कामना यही है कि आप मुझ पर अपने प्रेम का ऐसा रंग डालें जिसमें मेरा तन ही नहीं, अपितु सर्वस्व ही आपके प्रेम-रंग में रँग जाय.)
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली-माहात्म्य' या 'होली के उद्देश्य' के संबंध में दिये गये प्रवचन का एक भाग :::
'..होली और भक्ति पर्यायवाची ही मानना चाहिए. होली का पर्व निष्काम प्रेम का पर्व है। भक्ति की विजय का द्योतक है। भक्त शिरोमणि प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु राक्षस का संहार किया जो केवल राक्षस ही नहीं था, इतना बड़ा तपस्वी था कि उसके तप से स्वर्गलोक भी जलने लगा था। किन्तु इतना बड़ा तपस्वी भी भक्ति से हार मान गया। अतः प्रह्लाद चरित्र यह सिद्ध करता है कि समस्त ज्ञान-योग आदि से भी अनंत गुना उच्च स्थान है भक्ति का। इसी खुशी में यह उत्सव मनाया जाता है। उत्सव मनाने का ढंग लोगों ने अनेक प्रकार से अपना लिया। होली मनाने का सर्वश्रेष्ठ ढंग यही है कि रूपध्यान युक्त श्री राधा कृष्ण नाम, रुप, लीला, गुण, धाम, जन का गुणगान करुणक्रन्दन करते हुए किया जाय...'
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली-माहात्म्य' या 'होली के उद्देश्य' के संबंध में दिये गये प्रवचन का दूसरा भाग :::
'..अधिकतर लोग यही समझते हैं कि रंग, गुलाल से खेलना, हुड़दंगबाजी करना, तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन खाना यही होली मनाने से तात्पर्य है। वास्तव में होली का पावन पर्व श्रीकृष्ण की निष्काम अनन्य भक्ति का पर्व है। होली मनाने का अभिप्राय ही है प्रह्लाद चरित्र को समझते हुए उनके भक्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों का अनुसरण करना। अत: होली मनाने का सर्वश्रेष्ठ ढंग यही है कि रूपध्यान युक्त श्री राधा कृष्ण नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन का गुणगान करुणक्रन्दन करते हुये किया जाय। अहर्निश भगवन्नाम संकीर्तन ही होली महोत्सव है। यही कलयुग में भगवत्प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है..'
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - ज्योतिष में नवग्रहों में से सूर्यदेव को राजा का दर्जा दिया गया है। सूर्य के प्रकाश से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। भगवान सूर्य नारायण प्रकृत्ति के संचालक हैं। रविवार का दिन सूर्य उपासना के लिए सबसे उत्तम माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में मजबूत सूर्य से जहां जातक को समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है तो वहीं कुंडली में सूर्य की कमजोर स्थिति के कारण जातक को समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसस मान-प्रतिष्ठा को ठेस लग सकती है, पिता के साथ आपके संबंधों में दरार आ सकती है। इसके साथ ही व्यक्ति को कमजोर सूर्य के कारण उच्च पद पर बैठे लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है, इसलिए कुंजली में सूर्य का मजबूत होना आवश्यक होता है। यदि कुंडली में सूर्य कमजोर है तो उसे मजबूत बनाने के लिए रविवार के दिन जल देने के साथ ही कुछ चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।मसूर की दालमसूर की दाल का रंग लाल होता है इसमें मांस से अधिक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। यही कारण है कि लोगों इस दाल को कभी भी देवी-देवताओं को अर्पित नहीं करते हैं। रविवार के दिन भी मसूर की दाल का सेवन वर्जित माना जाता है।प्याज-लहसुनभारतीय व्यंजनों में प्याज और लहसुन का प्रयोग खूब किया जाता है, लेकिन इन दोनों ही चीजों तामसिक माना गया है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक कार्य के लिए सात्विक भोजन बनाते समय उसमें लहसुन प्याज का उपयोग नहीं किया जाता है। यदि आपकी कुंडली में सूर्य कमजोर है तो रविवार को लहसुन प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि रविवार के दिन लहसुन प्याज का सेवन करने से जातक सूर्यदेव के क्रोध के भागी बन सकता है। जिससे आपके पिता के साथ रिश्ते में कटुता आने के साथ ही समाज में सम्मान को हानि पहुंच सकती है।लाल रंग का सागरविवार के दिन दिन लाल रंग का साग खाना वर्जित माना गया है, क्योंकि वैष्णव धर्म में इस तरह के मिश्रित अल्पकालिक बारहमासी पौधे को मृत्यु का प्रतीक माना गया है। इसके साथ ही यदि किसी की कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो उसे रविवार के नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
- 'श्री चैतन्य-महाप्रभु जयंती'गौर पूर्णिमा, 28 मार्च 2021(पावन स्मरण-लेख)
धनि गौरांग धनि उन परिजन,धनि धनि नदिया ग्राम रे..भजु गौरांग भजु गौरांग, भजु गौरांगेर नाम रे..(श्री कृपालु महाप्रभु विरचित 'ब्रज रस माधुरी' ग्रंथ में)
आज कलियुग में अवतरित हुये प्रेमावतार श्री चैतन्य महाप्रभु जी की जयन्ती है। आप सभी को इस महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये इस परम पुनीत पर्व पर उन श्री चैतन्य महाप्रभु जी के श्रीचरणों में प्रेम भरा प्रणाम अर्पित करें..
- जो स्वयं श्रीराधाकृष्ण के मिलित अवतार हैं और 'गौरांग' के नाम से जाने गये..
- जिन्होंने बंगाल के 'नदिया' ग्राम में शचीमाता की गोद में लगभग 500 वर्ष पूर्व अवतार ग्रहण किया (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, सन 1486)
- श्री अद्वैताचार्य जी की प्रार्थना पर जिन्होंने अवतार लेकर राधाभाव को अंगीकार किया और कलियुग में 'हरिनाम संकीर्तन' का आविष्कार किया..
- समस्त भारतवर्ष में 'हरे राम महामंत्र' और 'हरि बोल' संकीर्तन के माध्यम से सभी को कृष्णप्रेम में सराबोर किया..
- जिन्होंने अपने अन्य समस्त परिकरों यथा; रुप-जीव तथा सनातन गोस्वामी सहित षड्गोस्वामी तथा हरिदास आदि भक्तों के माध्यम से ब्रज-वृन्दावन के विलुप्तप्राय लीलास्थलों को खोजा..
- जिन्होंने सदैव समस्त जीवों से एकमात्र 'हरिनाम' की भिक्षा माँगी, 'हरि बोल' 'हरि बोल' के दिव्य संकीर्तन तथा नृत्य के द्वारा सभी के हृदयों में बरबस भगवत्प्रेम का संचार किया..
- जिन्होंने अपने अवतार काल में शस्त्र नहीं उठाया अपितु एकमात्र 'प्रेम' के द्वारा दुष्टों तथा महापापियों को भी भगवत्प्रेमरस प्राप्ति का अधिकारी बनाया..
- 'अष्टपदी' आदि ग्रंथों में जिन्होंने जीवों को कृष्णप्रेम प्राप्ति के अनमोल सिद्धान्त दिये और स्वयं अपने जीवन के पग-पग पर उसका आचरण करके सिखाया भी..
- जिन्होंने नित्यानंद, श्रीवास आदि भक्तवृन्दों के मध्य हरिनाम संकीर्तन, तथा श्रीजगन्नाथ जी के रथयात्रा में दिव्य महाभाव स्वरुप के दर्शन कराये..
- अवतारकाल के अंतिम 12 वर्ष जो जगन्नाथपुरी धाम के 'गम्भीरा' नामक छोटे से संकरे स्थल (कमरा) में दिव्य 'राधाभाव' में विरहाकुल होकर रोते रहे और श्रीजगन्नाथ जी में ही सशरीर समाकर अपनी 'प्रेमावतार' लीला को विराम दिया..
- सत्य यह है..अद्यापिह सेइ लीला करे गौर राय,कोन कोन भाग्यवान देखिवारे पाय..उनकी लीला तो आज भी और अनंतकाल तक अहर्निश चलती रहेगी, प्रेमी-हृदय और रसिक-मन ही उन लीलाओं के दिव्य-दर्शन पा सकता है..
- 'हरि अनंत हरि कथा अनंता' के अनुसार उनकी महिमा अनंत है. सार बात यह है कि उनके पावन प्रेममय चरित्र का स्मरण करके अपने हृदयों में राधाकृष्ण की प्रेम और सेवाप्राप्ति का संकल्प जगायें...
...श्री गौरांग महाप्रभु तथा उनके परिकर धन्य हैं, उन सबकी बारंबार वंदना है, जय है, जय है, जय है.. जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने साहित्यों तथा संकीर्तनों में श्री गौरांग महाप्रभु जी की स्तुति की है तथा उनके गुणों व कृपाओं का भी सरस वर्णन किया है। जिस संकीर्तन परम्परा को गौरांग महाप्रभु ने आरम्भ किया, उसी महान परम्परा को जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने भी आगे बढ़ाया तथा भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि युक्त सरस पद-संकीर्तनों द्वारा प्रेम-पिपासु जीवात्माओं को आनन्द प्रदान किया।
धन्य है यह भारतभूमि!! जहाँ भगवान तथा उनके अनन्य प्रेमीजनों के चरणों का स्पर्श है। हम उन प्रेमीजनों के पथ का अनुगमन करें, उनके आदेशों तथा निर्देशों का पालन करें और अपने हृदयों में भगवान के प्रति अनन्य निष्काम प्रेम विकसित करने का अभ्यास करें और उनसे प्रेम करते हुये उनकी नित्य सेवा प्राप्त कर लें, यही समस्त भगवत्प्रेमियों की हमसे महान आशा है!!
०० स्मरण लेख (पर्व-विशेष)०० सन्दर्भ ::: 'ब्रज रस माधुरी' भाग - 1०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - आज के भौतिकवादी युग में धन व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से लेकर हर दूसरी चीज के लिए धन की आवश्यकता होती है। इसलिए हर व्यक्ति अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है ताकि वह स्वयं और परिवार को एक अच्छा उच्च जीवन प्रदान कर सके। धन कमाने के लिए व्यापार का चलना जरूरी होता है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसके व्यापार दुकान में दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की हो। यदि आप किसी भी तरह का व्यापार करते हैं और आपकी भी कोई दुकान है, तो वास्तु में बताई गई इन महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर आप अपने व्यापार में तरक्की प्राप्त कर सकते हैं।पूर्व दिशा की दुकान के वास्तु टिप्सयदि आपकी दुकान पूर्व दिशा में है तो वास्तु के अनुसार यह बहुत ही अच्छा माना जाता है। पूर्व दिशा की दुकान को प्रतिदिन अपनी दुकान को ठीक समय पर खोलें। यदि आपने अपनी दुकान ईशान कोण में है तो ध्यान रखें कि दुकान के मुख्य द्वार पर किसी भी तरह का भारी सामान नहीं पड़ा होना चाहिए। इससे धन की आवक रूकने लगती है। वास्तु में उत्तर दिशा के बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिशा में दुकान होना आपकी तरक्की और धन लाभ में सहायक रहती है।पश्चिम दिशा की दुकानवास्तु के अनुसार पश्चिम दिशा की दुकान भी सही रहती है। यदि आपकी दुकान पुश्तैनी है तो यह और भी ज्याद अच्छी मानी जाती है। आपकी दुकान इस दिशा में है तो एक इंसान को दुकान खोलनी चाहिए और दूसरे व्यक्ति को दुकान बंद करनी चाहिए। इसके साथ ही दरवाजे को थोड़ा भारी बनाना चाहिए।इस दिशा में दुकान होना नहीं माना गया है शुभवास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा की दुकान शुभ नहीं मानी जाती है, परंतु यदि आपकी दुकान दक्षिण दिशा में बनी हुई है परेशान होने की आवश्यकता नहीं है,बस कुछ विशेष बातों को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक होता है। यदि आपकी दुकान दक्षिण दिशा में है तो ग्राहको के लिए दुकान का दरवाजा खोलने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करना चाहिए। इसके साथ ही दुकान में ग्राहकों के बैठने की भी उचित व्यवस्था करनी चाहिए। ग्राहकों के खड़े होने के लिए पश्चिम का स्थान होना चाहिए।दुकान का ऐसा आकार रहता है अच्छायदि दुकान आगे की ओर से बड़ी और पीछे की ओर से छोटी हो तो यह बहुत शुभ मानी जाती है। चारों कोनों से एक समान लंबाई चौड़ाई वाली दुकान भी शुभ रहती है। आयताकार दुकान भी सही रहती है। लेकिन जो दुकान आगे से छोटी और पीछे की ओर से बड़ी होती हैं वे दुकान अच्छी नहीं मानी जाती हैं।इन बातों का भी रखें ध्यानध्यान रखें कि दुकान खोलने के बाद अच्छी तरह साफ-सफाई करके दुकान में पूजा अर्चना जरूर करें।धूप-दीप जलाकर पूरी दुकान में दिखाएं।दुकान के आगे कभी भी कचरा नहीं पड़ा होना चाहिए।इसके साथ ही अपनी दुकान की सफाई करके कचरे को कभी दूसरे की दुकान के सामने भी नहीं डालना चाहिए।-File photo
- हाथी को एक पवित्र जीव माना गया है। इसी प्रकार वास्तु और फेंगशुई विज्ञान में भी हाथी की मूर्ति, पेंटिंग या चित्र रखना बहुत शुभ बताया गया है। हिन्दू मान्यता के अनुसार हाथी धन की देवी लक्ष्मी के दोनों तरफ खड़े होकर उनकी सेवा में रहते हैं। यदि हम स्वर्ग के राजा इंद्र की बात करें, तो ऐरावत हाथी उनका वाहन है।वास्तु के अनुसार उत्तर और दक्षिण दिशा में लाल रंग का हाथी रखने से आपको समाज में मान-सम्मान और यश प्राप्त होता है। यदि आप अपने कार्यस्थल या व्यक्तिगत यश के लिए यह उपाय करना चाहते हैं तो आप दक्षिण दिशा में लाल हाथी रखें लाभ होगा लेकिन अगर आप अपनी फर्म की यश और प्रतिष्ठा को बढ़ाना चाहते हैं तो उसके लिए उत्तर दिशा को लाल हाथी लगाने के लिए चुनें,आपको अपने उद्देश्य में सफलता मिलेगी।चांदी से बना हाथी ज्योतिष एवं वास्तु की दृष्टि में बहुत ही शुभ माना गया है। वास्तु के अनुसार, चांदी और हाथी दोनों ही नकारात्मकता को खत्म कर सकारात्मकता बढ़ाने में मदद करते हैं। चांदी से बना हाथी घर या ऑफिस की टेबल पर रखने से रुके हुए कामों में गति आती है और प्रमोशन के योग भी बनते हैं। चांदी का हाथी उत्तर दिशा में रखना बहुत ही शुभ होता है। इसे लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी या गल्ले में रखने से आय के स्रोत बढ़ते हैं।यदि किसी विद्यार्थी को अपने करियर में बार-बार असफलता या बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है और लगातार प्रयास करने के वाबजूद सफलता प्राप्त नहीं हो रही है,तो अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए वह अपने स्टडीरूम में ऊपर की ओर सूंड किए हाथी की मूर्ति को लगाकर शुभ परिणाम प्राप्त कर सकता है।
- ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, राशियां हमारे स्वभाव और व्यक्तित्व के बारे में बहुत सी बातें बताती हैं। कुछ राशि के जातक बहुत भाग्यशाली माने जाते हैं। ये जातक अपने जीवन में उच्च पद, प्रतिष्ठा और बहुत सम्मान प्राप्त करते हैं। अन्य राशि के जातकों के मुकाबले इन्हें शीघ्र ही सफलता, धन-दौलत और शौहरत मिलती है। आइए जानते हैं कौनसी चार राशियों के जातक होते हैं बेहद भाग्यशाली।वृषयह राशि चक्र में दूसरी राशि है। इस राशि के स्वामी शुक्र हैं। स्वामी शुक्र का प्रभाव हमेशा इन राशि के जातकों पर रहता है। इस राशि के जातक सुंदर, आकर्षक और किसी कला के गुणी होते हैं। वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह को सुख, धन, वैभव और ऐश्वर्य का कारक माना जाता है। इस राशि के स्वामी शुक्र के शुभ प्रभाव का असर इस राशि पर रहता है। वृष राशि के जातकों को हमेशा किस्मत का साथ मिलता है। इस राशि के लोग कभी भी धन की कमी महसूस नहीं करते हैं।सिंहसिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है, जिसे सौरमंडल का राजा भी कहा जाता है। स्वाभाविक है कि सूर्य के प्रभाव के कारण इस राशि वालों में भी नेतृत्व की अच्छी क्षमता देखी जाती है। इस राशि का तत्व अग्नि है इसलिए सिंह राशि वालों में गजब की ऊर्जा भी देखने को मिलती है। सूर्य को आत्मविश्वास प्रदान करने वाला ग्रह माना गया है, जिस व्यक्ति की सिंह राशि होती है, उसमें आत्मविश्वास की अधिकता होती है। सूर्य के प्रभाव में आने के कारण ऐसे जातक बेहद भाग्यशाली माने जाते हैं। ऐसे जातकों को जीवन धन-दौलत, अपार सफलता प्राप्त होती है।धनुधनु राशिचक्र की नवम राशि है। इस राशि के जातक ज्ञानी होते हैं। इस राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति इन्हें बहुमुखी प्रतिभा का धनी बनाता है, वहीं अग्नि तत्व के प्रभाव के कारण इस राशि वाले ऊर्जावान भी होते हैं। इस राशि के जातक जो ठान लेते हैं उसे करके दिखाने की क्षमता रखते हैं। इन्हें नेतृत्व करने में आनंद आता है और इसलिए शीर्ष पर पहुंचने के लिए यह कड़ी मेहनत भी करते हैं। यह समाज और अपने प्रति ईमानदार होते हैं जिसके कारण लोग इनकी ओर आकर्षित होते हैं। इस राशि से संबंधित लोग अच्छे सलाहकार भी होते हैं। इनका आशावादी रवैया, वाणी की मिठास, ईमानदारी, साहसी प्रवृति और ऊर्जा इन्हें जबरदस्त लीडर बनाती है।कुंभकुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि है। शनि को न्याय का देवता भी कहा जाता है। शनि के प्रभाव के कारण कुंभ राशि वाले जातक भी न्यायप्रिय होते हैं, इस राशि वाले कभी भी किसी के साथ गलत व्यवहार या धोखा नहीं करते हैं। इस राशि के लोगों में समाज कल्याण की भावना भी इस राशि के लोगों में देखने को मिलती है। संवेदनशीलता, आकर्षक स्वभाव, मजबूत इच्छाशक्ती, न्यायप्रियता, दूरर्दर्शिता और एक अच्छे मार्गदर्शक के गुण इन्हें श्रेष्ठ लीडर बनाते हैं। शनिदेव की कृपा होने के कारण इस राशि के जातकों को कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है।
- रंगों के त्योहार होली का इंतजार अब खत्म हो गया है और रविवार 28 मार्च को शाम के समय होलिका दहन होगा और उसके अगले दिन 29 मार्च सोमवार को रंगों वाली होली खेली जाएगी. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है. होली के मौके पर रंगों के साथ मौज-मस्ती करने के साथ ही धार्मिक दृष्टि से भी होली का त्योहार बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि होली के दिन हनुमान जी की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से छुटकारा मिलता है.होली की रात हनुमान जी की पूजा करना होगा शुभहोली से एक दिन पहले होलिका दहन की रात होलिका जलाने के साथ ही अगर कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो साल भर कष्टों से मुक्ति मिलती है. इन्हीं में से एक उपाय है होलिका दहन की रात हनुमान जी की पूजा करना. ज्योतिष एक्सपर्ट्स की मानें तो नए संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों ही मंगल हैं और मंगल के कारक देव हनुमान जी हैं. ऐसे में होली की रात हनुमान जी पूजा करना बेहद शुभ और कल्याणकारी होगा.ऐसे करें हनुमान जी की पूजा1. होलिका दहन की रात को स्नान करें और फिर हनुमान मंदिर जाकर या फिर घर में ही हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर उनकी पूजा करें.2. हनुमान जी को सिंदूर, चमेली का तेल, फूलों का हार, प्रसाद और चोला अर्पित करें.3. इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ हनुमान जी की पूजा करें.4. इसके बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें और आरती करें.5. होली की रात बजरंग बाण का जाप करना भी बेहद शुभ माना जाता है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 236
साधक का प्रश्न ::: साधना की जो स्पीड है हमारी उसे कैसे और तेज़ करें?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: वही उपाय है जो थोड़े से का होता है, वही अधिक का होता है। अधिक समय सावधान रहे, अधिक समय भगवद् चिंतन करे। अधिक समय दोषों से बचे। काम, क्रोध, लोभ, मोह से बचे। ये हर समय सावधान रहने से साधना बनती है। हर समय भगवान् हमारे साथ हैं इस रियलाइज़ेशन का अभ्यास कि कभी हम अकेले नहीं हैं, ये सबसे पहला और सबसे इम्पॉर्टेन्ट अभ्यास है।
हम तुरंत भूल जाते हैं कि हम अकेले नहीं हैं। जो सोच रहे हैं कोई नहीं जानता - ये बहुत बुरी आदत है। दो ('हमारे साथ हरि-गुरु सर्वदा हैं' की भावना) की फीलिंग सदा रहे। इसका जितना अधिक अभ्यास कर ले उतना ही शांत हो जायेगा, निश्चिन्त रहेगा हमेशा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
भगवान कृष्ण को कुछ लोग प्रेम के रूप में पूजते हैं तो कुछ उन्हें शिशु के रूप में पूजते हैं। भगवान कृष्ण के सभी रूप बहुत ही मनोहारी लगते हैं। इनके रूप को देखकर ही भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। लोग अपने घर में लड्डू गोपाल और राधारानी के संग कृष्ण जी की पूजा करते हैं। यदि आपने अपने घर में कृष्ण जी विराजमान किए हैं तो उनके श्रृंगार से लेकर उनके प्रिय खाद्य पदार्थ तक का ध्यान रखना चाहिए। कुछ चीजें हैं जिन्हें कृष्ण जी के साथ अवश्य रखना चाहिए। इन चीजों के बिना कान्हा का स्वरूप अधूरा माना जाता है।
बांसुरीभगवान कृष्ण सदैव बांस की बांसुरी धारण करते थे, इसलिए इन्हें वंशी बजैया भी कहा जाता है। बांसुरी के बिना इनका स्वरूप अधूरा रहता है। यदि आपके घर में कृष्ण जी की प्रतिमा हो तो उसके साथ बांसुरी अवश्य रखनी चाहिए। यदि बांस की बांसुरी रखते हैं तो और भी अच्छा रहता है। वास्तु के अनुसार भी घर में बांसुरी रखना बहुत शुभ माना जाता है। बांसुरी रखने से परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम भाव बना रहता है।मोर पंखमाथे पर मोरपंख लगे हुए श्याम सुंदर का स्वरूप बहुत ही मनोहारी प्रतीत होता है। माता यशोदा बालपन से ही भगवान कृष्ण के माथे पर मोरपंख लगाती थी। मोर पंख के बिना कृष्ण जी का श्रंगार अधूरा रहता है। इसलिए भगवान के साथ मोरपंख अवश्य रखना चाहिए। इसके अलावा घर में मोरपंख रखने से कीड़े मकौड़े और नकारात्मकता भी दूर रहती है।वैजयंती मालाकृष्ण जी अपने गले में वैजयंती माला धारण करते थे। इसका उल्लेख भगवान कृष्ण की आरती में भी मिलता है। वैजयंती के फूल और माला, कृष्ण जी के साथ भगवान विष्णु और लक्ष्मी को यह अति प्रिय है। घर में वैयजंती माला रखना बहुत शुभ माना जाता है। इसके अलावा माना जाता है कि वैजयंती माला धारण करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।गायभगवान कृष्ण को गायों और बछड़ों से अत्यधिक प्रेम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कृष्ण जी बचपन से ही गाय चराने जाया करते थे। यही कारण है कि उन्हें ग्वाला भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण की प्रतिमा के साथ एक छोटी सी गाय की प्रतिमा भी अवश्य रखनी चाहिए। हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पूजनीय माना गया है। माना जाता है कि गाय में 33 कोटि देवी-देवता वास करते हैं।माखन-मिश्री का लगाएं भोगयदि आपने अपने घर में कृष्ण जी को विराजमान किया है तो उन्हें प्रतिदिन माखन-मिश्री का भोग अवश्य लगाना चाहिए। भगवान कृष्ण को माखन अत्यंत प्रिय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बचपन में वे अपने सखाओं के साथ गोपियों की मटकियों से माखन चुराकर खाया करते थे। यदि माखन ताजा हो तो और भी अच्छा रहता है। प्रतिदिन माखन का भोग नहीं लगा सकते तो मिश्री का भोग लगाना चाहिए। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 235
( भूमिका : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज का निम्नांकित प्रवचन अंश उनके नारद-भक्ति-दर्शन पर दी गई प्रवचन श्रृंखला से है। यह प्रवचन श्रृंखला उन्होंने वर्ष 1990 में भक्तिधाम मनगढ़ (उ.प्र.) में दिया था। इस अंश में श्री कृपालु महाप्रभु जी संसार में छह प्रकार के लोगों के विषय में संक्षिप्त में बता रहे हैं। छठे प्रकार में महापुरुष, संत-महात्माओं के स्वभाव का निरुपण किया गया है। आइये इस संक्षिप्त अंश से हम अपने आत्मिक-लाभ का कुछ आधार प्राप्त करें..)
महापुरुष लोग अपना अनिष्ट करके हम लोगों का इष्ट करते हैं -
भुर्ज तरु सम सन्त कृपाला।
भोजपत्र का पेड़ होता है, उस पेड़ की छाल होती है तो एक के ऊपर एक, एक के ऊपर एक। सब निकाल लो तो पेड़ जीरो बटा सौ, वो छालों का लिपटा हुआ एक पुंज ही पेड़ होता है। देखिये! छः प्रकार के लोग होते हैं। हाँ, जल्दी समझियेगा ध्यान देकर, अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना। आप लोग सोचते तो हैं और बोलते भी हैं, अपने छोटों के आगे - हैं, हैं, हैं, मैं भी कुछ अकल रखता हूँ और छोटी सी बात जल्दी नहीं समझते, हमको डिटेल करना पड़ता है। अपना अनिष्ट करके भी दूसरे का अनिष्ट करना, ये सबसे निम्न क्लास के लोग होते हैं। हमारा नुकसान हो जाय तो हो जाय लेकिन उसका नुकसान जरुर करना है।
अरे! ये कौन सी समझदारी की बात है कि अपना नुकसान कर रहे हो, उसके नुकसान करने के चक्कर मे। लेकिन होते हैं ऐसे -
जे बिनु काज दाहिने बाएँ।
तो अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना, सबसे खराब, नम्बर एक। इससे अच्छा, अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट करना यानी अपने फायदे के लिये दूसरे का नुकसान कर देना। ये पहले वाले से कुछ अच्छे हैं, नम्बर दो और तीसरा अपने इष्ट के लिये दूसरे का इष्ट करना यानी अपना भी लाभ हो इसका भी हो, फिफ्टी-फिफ्टी, ये उससे भी अच्छा है, नम्बर तीन और नम्बर चार अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट न करना। नम्बर पाँच, दूसरे का ही इष्ट करना और नम्बर छः, अपना अनिष्ट करके दूसरे का इष्ट करना। अपना नुकसान भले ही हो जाय लेकिन इसका लाभ हो जाय। महाराज! हमको नरक में वास दे दो लेकिन इन जीवों का कल्याण करो, ये महापुरुषों का सिद्धान्त है। आप लोग इसको सोच नहीं सकते, समझ भी नहीं सकते।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नारद-भक्ति-दर्शन की 11-दिवसीय व्याख्या के 9 वें दिन के प्रवचन से (1990)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - मां लक्ष्मी धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी हैं। यही कारण है, हर व्यक्ति चाहता है कि उसके ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। कभी कभार देखने में आता है कि तमाम प्रयास करने के बाद भी कुछ लोगों के पास सदैव धन की कमी बनी रहती है। धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिष की मानी जाए तो इसके पीछे कई कारण होते हैं। जिसकी वजह से घर में पूजा-पाठ और हर तरह के प्रयास करने के बाद भी मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। तो चलिए जानते हैं कि किन कारणों की वजह से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है।-महिलाओं और बुजुर्गों का अपमान करने वालों के यहां कभी मां लक्ष्मी का वास नहीं होता है। सनातन धर्म में स्त्री को मां अन्नपूर्णा और लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। जो लोग अपने घर या बाहर की स्त्रियों का सम्मान नहीं करते हैं, उनके यहां दरिद्रता का वास होता है। जहां पर बुजुर्गों का सम्मान नहीं किया जाता है,वहां कभी देवी-देवताओं की कृपा नहीं होती है। जहां पर बुजुर्गों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है, वहां की सुख समृद्धि नष्ट हो जाती है।-जिस घर में सदैव शोर-शराबा और कलह का वातावरण रहता है। लोग एक दूसरे से चिल्लाकर और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए बात करते हैं। ऐसे घरों में कभी मां लक्ष्मी वास नहीं करती हैं। घर में हमेशा शांति पूर्ण और सकारात्मक वातावरण बनाकर रखना चाहिए। जो लोग मधुर वाणी बोलते हैं और सदैव दूसरों की मदद करने के तत्पर रहते हैं ऐसे लोगों पर मां लक्ष्मी अपनी कृपा बनाएं रखती हैं।-जिन घरों में साफ-सफाई नहीं रहती है। लोग देर तक सोते रहते हैं और सुबह के समय पूजा वंदन नहीं किया जाता है। ऐसे घरों में भी हमेशा पैसों की किल्लत बनी रहती हैं। इसके अलावा जो लोग आलस करते हैं वे कभी तरक्की नहीं कर पाते हैं। इसलिए मनुष्य को अपने अंदर के इन अवगुणों का त्याग कर देना चाहिए। रात को कभी भी रसोई में जूठे बर्तन छोड़कर नहीं सोना चाहिए। इससे भी आपके घर में धन संबंधित समस्याएं आने लगती हैं। जिस घर में साफ-सफाई रहती है, प्रतिदिन सुबह शाम पूजन वंदन किया जाता है वहां पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 234
(भूमिका - नीचे का उद्धरण अंश जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित 103-प्रवचनों की ऐतिहासिक श्रृंखला 'मैं कौन? मेरा कौन?' के 56-वें प्रवचन से है, जो कि उन्होंने 11 अगस्त सन 2010 को श्री बरसाना धाम में दी थी।)
...प्राचीनकाल में ऐसे अंजन बनाये जाते थे कि जो मोतियाबिंद के मरीजों को आँख में देने से उसी अंजन से धीरे धीरे मैल कटता था। आजकल उसे काटकर निकाल देते हैं, पहले वो अंजन से कटता था, धीरे धीरे। तो जैसे जैसे वो कटता था वैसे वैसे पहले मोटी चीज दिखाई पड़ने लगी फिर और पतली चीज फिर और पतली चीज फिर एकदम ठीक हो गई।
(भगवान कहते हैं) ऐसे ही जो मेरी भक्ति करता है तो ज्यों-ज्यों भक्ति करता जाता है त्यों-त्यों संसार से वैराग्य और मुझमें प्यार नैचुरल, नैचुरल स्वाभाविक प्यार, होने लगता है, रहा नहीं जाता। आज कुछ भगवान संबंधी बात नहीं हुई दिन भर, खराब हो गया, बेचैनी हो रही है। वो आ गया था, खोपड़ा खाता रहा, वो आ गई थी ए दिमाग खराब हुआ और सबसे अन्त में भगवान ने उद्धव से कहा कि देखो मैं सारांश बताता हूँ अब और सब ज्ञान भुला दो तो भी चलेगा। क्या सारांश?
विषयान् ध्यायतश्चित्तम् विषयेषु विषज्जते।मामनुस्मरतश्चित्तम् मय्येव प्रविलीयते।।(भागवत 11-14-27)
जैसे संसारी पदार्थों में सुख मान मान करके तुमने उसमें अटैचमेंट किया था, मान मान करके, जबरदस्ती और मैं तो आनन्दसिन्धु हूँ फैक्ट में। जो मुझमें सुख मानकर के बार बार बार बार बार बार चिन्तन करेगा उसका मुझमें अटैचमेंट हो जायेगा। हो गई भक्ति, बस। बार बार चिन्तन से अटैचमेंट होता है। संसार में भी ऐसे ही होता है।
दो भाई बैठे थे, एक लड़की जा रही थी। दोनों ने देखा। एक ने कहा कि बड़ी सुन्दर लड़की है, दूसरे ने कहा, हाँ हाँ। दूसरा भाई चला गया अपना कहीं। इस भाई ने सोचा कि इससे मिलना चाहिये। कौन है? कहाँ रहती है? इसका बाप क्या करता है? लग गया पीछे। एक दिन हुआ, दो दिन हुआ, मौका नहीं लगा बात करने का। मिलना है, कैसे नहीं करेगी बात? कोई तरकीब कोई बहाना। एक दिन ऐसा चांस आ गया। आप कहाँ रहती हैं? बहन जी! पहले बहन जी कहता है और भावना है श्रीमती जी बनाने की। वो भी भोली भाली लड़की है। उसने कहा भाई साहब! मैं वहाँ रहती हूँ। तुम्हारे डैडी क्या करते हैं? हमारे डैडी इन्स्पेक्टर हैं। मैं यहाँ रहता हूँ। मेरे डैडी अरबपति हैं। झूठ बोला। अब लड़की को, सोचने को मजबूर कर दिया। अरबपति है, शकल वकल तो ठीक है। लेकिन अब इससे बात कैसे करें? हटाओ। फिर वो पीछे पड़ा।
अब वो चिन्तन चिन्तन चिन्तन चिन्तन, रात दिन। उसका भाई कहे कि तू कहाँ खोया रहता है, आजकल। कुछ नहीं भइया ऐसे ही। झूठ बोल रहा है ऐसे ही ऐसे ही। आखिरकार एक दिन ऐसा मौका आ ही गया कि साफ साफ उसने कह दिया, 'मुझसे शादी करोगी?' तो उसने एक झापड़ लगाया। लौट कर आया, उसने खरीदा पॉइज़न और खाकर सो गया, सदा को छुट्टी। ये क्यों हुआ? चिन्तन से, लगातार चिन्तन से।
ऐसे ही लगातार चिन्तन करने से तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, जगद्गुरु लोग, भगवान के पास पहुँचे थे। और कुछ नहीं। ये शास्त्र वेद तो केवल विश्वास के लिये और वैराग्य के लिये जरूरी है। यहाँ नफरत हो जाय इससे। ये संसार क्या है? फैक्ट इसका मालूम हो जाय कि ये धोखा देने वाला है। ये मन दुश्मन है, इसको हम दोस्त माने बैठे हैं। ये सब ज्ञान के लिये, गुरु की आवश्यकता है। भगवान को पाने के लिये मेहनत नहीं है। बस वो (भगवान) 'मेरा' है, वो 'मेरा' है, वो 'मेरा' है। ये संसार 'मेरा' है, ये एबाउट टर्न हो जाओ, वो 'मेरा' है, वो 'मेरा' है। ये चिन्तन जितना तेज होगा, उतने ही पास पहुँचते जायेंगे आप (भगवान के)।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ ::: 'मैं कौन? मेरा कौन?' प्रवचन श्रृंखला, 56-वाँ प्रवचन०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिंदु धर्म में होली के त्योहार का विशेष महत्व होता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन रंग वाली होली खेली जाती है। इस साल होलिका दहन 28 मार्च को किया जाएगा, जबकि रंग वाली होली 29 मार्च को खेली जाएगी। होलिका दहन के दिन लोग होली पूजा करने के साथ ही एक-दूसरे को गुलाल-अबीर लगाकर होली की बधाई देते हैं। इस साल होली पर ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र में ध्रुव योग को शुभ माना जाता है।होलिका दहन के दिन कब से कब तक रहेगी पूर्णिमा तिथि-पूर्णिमा तिथि 28 मार्च को सुबह 03 बजकर 30 मिनट से शुरू होगी जो कि 29 मार्च की रात 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। होली के दिन मकर व गुरु एक ही राशि मकर में विराजमान रहेंगे। शुक्र व सूर्य मीन राशि पर संचार करेंगे। चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करेगा।होलिका दहन पर करें ये 5 उपाय मिलेगी शनि-राहु-केतु और नजर दोष से मुक्ति-1. मान्यता है कि होलिकादहन करने या फिर उसके दर्शन मात्र से भी व्यक्ति को शनि-राहु-केतु के साथ नजर दोष से मुक्ति मिलती है।2. माना जाता है कि होली की भस्म का टीका लगाने से नजर दोष तथा प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है।3. धार्मिक मान्यता के अनुसार, किसी मनोकामना को पूरा करना चाहते हैं तो जलती होली में 3 गोमती चक्र हाथ में लेकर अपनी इच्छा को 21 बार मन में बोलकर तीनों गोमती चक्र को अग्नि में डालकर अग्नि को प्रणाम करके वापस आ जाएं।4. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि कोई व्यक्ति घर में भस्म चांदी की डिब्बी में रखता है तो उसकी कई बाधाएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं।5. अपने कार्यों में आने वाली बाधा को दूर करने के लिए आटे का चौमुखा दीपक सरसों के तेल से भरकर उसमें कुछ दाने काले तिल,एक बताशा, सिन्दूर और एक तांबे का सिक्का डालकर उसे होली की अग्नि से जलाएं। अब इस दीपक को घर के पीड़ित व्यक्ति के सिर से उतारकर किसी सुनसान चौराहे पर रखकर बगैर पीछे मुड़े वापस आकर अपने हाथ-पैर धोकर घर में प्रवेश कर लें।
- दहन के समय नहीं रहेगा भद्रा का सायाहिंदू धर्म में होली के त्योहार का बड़ा महत्व है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। वहीं अगले दिन रंगोत्सव मनाया जाता है। ज्योतिर्विद पं. कृष्ण कुमार शर्मा ने बताया होलिका दहन से पहले विधि-विधान से पूजा की जाती है। फिर शुभ मुहूर्त में ही होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन भद्रा काल में नहीं किया जाता। उन्होंने बताया कि इस बार होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा यानि 28 मार्च को किया जाएगा। वहीं 29 मार्च को धूल्हेंडी का पर्व मनाया जाएगा। शर्मा नांवा ने बताया कि भद्रा काल के पश्चात ही होलिका का पूजन व दहन करना श्रेष्ठ माना गया है। इस बार खास बात यह है कि होली दहन के समय भद्रा का साया नहीं है। क्योंकि इस बार भद्राकाल दोपहर 1:52 तक ही रहेगी। अत: भद्रा काल के पश्चात ही होलिका का पूजन करना व शाम के समय प्रदोषकाल की अवधि में होलिका दहन शुभ फल देने वाला माना गया है। इसके अलावा शुभ मुहूर्त पद्धति के अनुसार सांय 6:37 से रात्रि 9:02 बजे के मध्य होलिका दहन करना श्रेयकर रहेगा।पर्व पर बन रहे हैं कई खास और दुर्लभ योगपंडित शर्मा ने बताया कि इस बार होली पर शनि अपनी राशि में विराजमान रहेंगे जो शुभ संयोग है। वहीं इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग के साथ ही अमृत सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है। अर्थात इस बार होली सर्वार्थसिद्धि योग के साथ- साथ अमृत सिद्धियोग में मनाई जायेगी। होली पर चंद्रमा कन्या राशि में गोचर कर रहे हैं तो गुरु और शनि मकर राशि में है। वहीं इस दिन शुक्र और सूर्य मीन राशि में विराजमान होंगे। इसके अलावा अन्य ग्रहों की स्थिति मंगल और राहु वृषभ राशि में, बुध कुंभ राशि और मोक्ष के कारण केतु वृश्चिक राशि में विराजमान होंगे। उन्होंने बताया कि ग्रहों की इस तरह स्थिति के चलते ध्रुव योग का निर्माण होगा। इसके अलावा दशकों बाद होली पर सूर्य, ब्रह्मा और अर्यमा के साक्षी रहेंगे जो दूसरा दुर्लभ योग है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 233
(भूमिका - सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति से अलग है जीवात्मा के आनन्द की प्राप्ति का उपाय - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के संक्षिप्त प्रवचन अंश में इसी की ओर संकेत है। आइये उनके शब्दों पर हम गंभीरतापूर्वक मनन करें...)
संसार के सामान से जो क्षणिक शान्ति मिलती है वो शारीरिक होती है, मानसिक होती है, बौद्धिक होती है बस। ये सब माया के बने हैं - शरीर माया का बना है, मन माया का बना है, बुद्धि भी माया की बनी है; इसलिए इन तीनों की जो शान्ति होती है (संसार के पदार्थ पाने पर) ये क्षणिक है। ये कोई शान्ति नहीं, इसका परिणाम तो बहुत बड़ी अशान्ति है। और हम लोग जो शान्ति चाहते हैं वो केवल जीव की चाहते हैं। जब जीव की हम शान्ति चाहते हैं तो जीव और शरीर को अलग-अलग रखना है। अगर शरीर की शान्ति को हम जीव की शान्ति का अर्थ लगा लेंगे तो हमें कभी शान्ति नहीं मिल सकती। जीव की शान्ति भगवान् को प्राप्त करके हो सकती है क्योंकि जीव भगवान् का सनातन अंश है। अतः आध्यात्मिक उन्नति से ही शान्ति हो सकती है। ये जो आत्मा की शान्ति है, यह परमात्मा की प्राप्ति से ही होगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'विश्व-शान्ति' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।