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- देवगुरु बृहस्पति इस समय अपने नक्षत्र पुनर्वसु नक्षत्र के गोचर में हैं। गुरु के नक्षत्र परिवर्तन के चार चरण होते हैं। 19 सितंबर 2025 को गुरु पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश करेंगे और इस चरण में 17 अक्टूबर तक रहेंगे। गुरु के स्व नक्षत्र पुनर्वसु के तीसरे चरण में गोचर करने का कुछ राशियों को सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। ज्योतिष शास्त्र में गुरु को शुभ ग्रह माना गया है। गुरु के प्रभाव से कुछ भाग्यशाली राशियों को नक्षत्र पद परिवर्तन की अवधि में जीवन में अच्छे फल मिलेंगे। जानें गुरु नक्षत्र पद गोचर से किन राशियों को होगा लाभ।1. मेष राशि- मेष राशि वालों को इस समय आर्थिक लाभ हो सकता है। घरेलू परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है। करियर में तरक्की मिल सकती है। नौकरी के नए प्रस्ताव सामने आ सकते हैं। परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। अटके हुए धन की वापसी संभव है।2. कर्क राशि- कर्क राशि वालों के लिए गुरु का नक्षत्र पद गोचर लाभकारी रहने वाला है। इस समय आपको आकस्मिक धन लाभ हो सकता है। व्यापारियों को नई डील से मुनाफा हो सकता है। घरेलू सुख बढ़-चढ़कर रहेगा। करियर में नई सफलता प्राप्त कर सकते हैं।3. कन्या राशि- कन्या राशि वालों के लिए गुरु का नक्षत्र पद परिवर्तन अनुकूल रहने वाला है। इस समय आप परिवार की समस्याओं से बाहर निकलने में सफल रहेंगे। विद्यार्थियों के लिए यह समय अच्छा रहने वाला है। व्यावसायिक सफलता मिलने के पूर्ण योग हैं। रिश्तों में अपनापन बना रहेगा। धन की स्थिति पहले से बेहतर होगी।4. कुंभ राशि- कुंभ राशि वालों को धन लाभ के संकेत हैं। नौकरी पेशा में तरक्की मिल सकती है। रोजी-रोजगार में तलाश करने वालों को शुभ समाचार की प्राप्ति हो सकती है। परिवारिक समस्याएं खत्म होंगी। सेहत अच्छी रहेगी। जीवनसाथी के साथ अच्छा समय बिताने का मौका मिलेगा। आर्थिक स्थिरता मिल सकती है।5. मीन राशि- मीन राशि वालों के लिए गुरु का नक्षत्र पद गोचर अच्छा रहने वाला है। इस समय आपको करियर में आगे बढ़ने के अवसर मिलेंगे। कार्यस्थल पर किसी बड़ी प्लानिंग का हिस्सा बन सकते हैं। वैवाहिक जीवन शांति पूर्ण रहेगा। नौकरी पेशा करने वालों को नई जिम्मेदारियां मिल सकती हैं। आर्थिक रूप से लाभ के अवसर सामने आएंगे।
- श्री कृष्ण जन्माष्टमी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण की लीलाओं की याद दिलाने वाला पावन दिन है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, झांकियां सजाते हैं और रात 12 बजे बाल कृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे मन से व्रत करता है और भगवान को उनकी प्रिय वस्तुओं का दान करता है, उसके जीवन से दुख-दरिद्रता दूर हो जाती है और सौभाग्य आता है।जन्माष्टमी पर दान क्यों होता है खास?धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जन्माष्टमी का दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन है, जो अंधकार से प्रकाश और अधर्म से धर्म की जीत का प्रतीक है। इस दिन किया गया दान बहुत फलदायी होता है और जीवन से दुख, दरिद्रता दूर करता है। भगवान कृष्ण को प्रिय चीजों जैसे माखन, मिश्री, फल, वस्त्र और अनाज का दान करने से उसका फल कई गुना बढ़ जाता है।यह दान न केवल घर में सुख-समृद्धि लाता है, बल्कि मन में शांति, प्रेम और भक्ति की भावना भी जगाता है। जन्माष्टमी पर दान करने से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यह दान हमारे जीवन में भगवान कृष्ण की कृपा और आशीर्वाद लेकर आता है। इसलिए इस पावन दिन दान करना बेहद शुभ माना जाता है।अनाज का दानजन्माष्टमी जैसे पावन अवसर पर अनाज का दान करना अत्यंत शुभ और पुण्यकारी माना जाता है। अनाज जीवन का मूल आधार है और यह हर परिवार की जरूरत होती है। जरूरतमंदों को अनाज दान करने से न केवल उनकी भूख मिटती है, बल्कि उनके जीवन में स्थिरता और सुरक्षा का संचार होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अनाज दान करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और घर-परिवार में समृद्धि आती है।माखन और मिश्री का दानभगवान कृष्ण को माखन और मिश्री बेहद प्रिय हैं। माखन, जो गाय के दूध से बनता है, उनकी बाल लीलाओं का प्रमुख हिस्सा रहा है। जन्माष्टमी के दिन माखन और मिश्री दान करना भगवान को खुश करने का खास तरीका है। इसे दान करने से हमारे जीवन में मिठास और खुशी आती है, साथ ही मनोकामनाएं पूरी होने की भी कामना होती है। यह दान हमारे रिश्तों और परिवार में प्रेम और सौहार्द बढ़ाता है।फल या मिठाई का दानजन्माष्टमी के पावन दिन गरीबों और जरूरतमंदों को फल या मिठाई दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दान हमारे घर में बरकत और समृद्धि लेकर आता है। साथ ही, फल और मिठाई का दान बच्चों और बुजुर्गों के लिए भी खुशी का कारण बनता है, जिससे उनकी खुशहाली बनी रहती है।मोर पंख का दानमोरपंख भगवान कृष्ण के मुकुट की शोभा बढ़ाने वाला प्रतीक है। मोरपंख का दान करने से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नजर से सुरक्षा मिलती है। इसे मंदिरों या ब्राह्मणों को देने से घर में सकारात्मकता बनी रहती है और वातावरण स्वच्छ होता है। मोरपंख का दान आध्यात्मिक शुद्धता और मानसिक शांति का भी संकेत माना जाता है।वस्त्र और चरण पादुका का दाननए वस्त्र और चरण पादुका (चप्पल या जूते) दान करना भी बहुत पुण्य का काम है। विशेष रूप से बच्चों को वस्त्र या चरण पादुका भेंट करने से उनके जीवन में शुभता आती है। यह दान दाता के जीवन में सुख-शांति और आर्थिक समृद्धि का मार्ग खोलता है। वस्त्र दान करने से गरिमा और सम्मान की वृद्धि होती है, जबकि चरण पादुका का दान भगवान के चरणों की सेवा के समान माना जाता है।
- वैदिक पंचांग के अनुसार ग्रह त्योहार और पर्व पर अपनी चाल में बदलाव करते हैं, जिसका प्रभाव मानव जीवन के साथ देश- दुनिया पर पड़ता है। आपको बता दें कि इस साल जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त को मनाया जाएगा। वहीं इस दिन शनि और राहु- केतु वक्री अवस्था में रहेंगे। आपको बता दें कि 30 साल बाद शनि और राहु- केतु जन्माष्टमी पर उल्टी चाल में संचऱण करेंगे। ऐसे में कुछ राशियों का भाग्य चमक सकता है। साथ ही इस समय आपको आकस्मिक धनलाभ और भाग्योदय के योग बन रहे हैं। वहीं देश- विदेश की यात्रा कर सकते हैं। वहीं फंसा हुआ धन मिल सकता है। आइए जानते हैं ये लकी राशियां कौन सी हैं…वृष राशिआप लोगों के लिए शनि और राहु- केतु का दुर्लभ संयोग लाभकारी साबित हो सकता है। इस समय आपको समय- समय पर आकस्मिक धनलाभ हो सकता है। साथ ही इस दौरान आपको किस्मत का साथ मिलेगा। वहीं आपके रुके हुए कार्य पूरे होंगे। साथ ही पिता या गुरु से सहायता मिल सकती है और प्रेम व वैवाहिक जीवन में मधुरता आएगी। धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी। वहीं इस दौरान आपकी सोची हुई योजनाएं सफल होंगी।सिंह राशिशनि और राहु-केतु का वक्री होना सकारात्मक सिद्ध हो सकता है। इस दौरान नौकरीपेशा लोगों को कार्यस्थल पर जूनियर और सीनियर का साथ मिलेगा। साथ ही विद्यार्थियों के लिए यह समय पढ़ाई में सफलता और नए कौशल सीखने के लिए अनुकूल रहेगा। लव लाइफ में रोमांस का नया रंग चढ़ेगा। वहीं इस समय बेरोजगार लोगों नौकरी मिल सकती है। आर्थिक रूप से यह समय रचनात्मक या टेक्नोलॉजी से जुड़े क्षेत्रों में निवेश के लिए अच्छा है।तुला राशिआप लोगों के लिए शनि और राहु- केतु का वक्री होना लाभप्रद साबित हो सकता है। इस अवधि में आप कोई वाहन या प्रापर्टी खरीद सकते हैं। साथ ही बिजनेसमैन के प्रोफेशन रिश्ते मजबूत होंगे, जिसका सकारात्मक प्रभाव बिजनेस के काम पर भी पड़ेगा। इसके अलावा नए व्यावसायिक समझौते भी आपके हित में रहेंगे। नौकरी कर रहे जातकों को किसी प्रभावशाली व्यक्ति का साथ मिलेगा। वहीं इस समय आफकी सोची हुई योजनाएं सफल होंगी। साथ ही आप धन की सेविंग करने में सफल रहेंगे।
- जन्माष्टमी पर अलग ही रौनक होती है। नंद के लाल श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की तैयारी शुरू हो चुकी है। मंदिर और गृहस्थ वाली पूजा दो दिन होगी। 15 को मंदिर में पूजा होगी तो वहीं 16 तारीख को घरों में नंद लाला का जन्मदिन मनाया जाएगा। सुंदर झांकियों के साथ-साथ लोग भगवान कृष्ण के लिए दूध, दही, मक्खन और मेवे से बने हुए भोग को तैयार करते हैं। वहीं व्रत को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं कि रखा जाए या ना रखा जाए। रखा जाए तो फिर कैसे रखा जाए? बता दें कि वृंदावन के महान संत प्रेमानंद महाराज ने अब जन्माष्टमी के व्रत का सही नियम बताया है। उनका कहना है कि अगर सही तरीके से जन्माष्टमी का व्रत ना रखी जाए तो इसका पूरा फल नहीं मिलता है।जन्माष्टमी की पूजा और व्रत का सही नियमप्रेमानंद महाराज के अनुसार जन्माष्टमी वाले दिन नए वस्त्र और आभूषणों से श्री कृष्ण का श्रृंगार करना चाहिए। इसी के साथ श्रीकृष्ण के 108 नाम का जाप करना चाहिए। साथ ही इस दिन कृष्ण लीला की कथाएं सुननी चाहिए और घर में ही रहकर श्रद्धापूर्वक कीर्तन करना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि जन्माष्टमी वाले दिन ब्रह्मचर्य का पालने करने के साथ-साथ तामसिक खाने (नॉनवेज और प्याज-लहसुन) से दूर रहना है। श्रीकृष्ण के जन्म के बाद ही भोग के प्रसाद के साथ ही अपना व्रत खोल लेना चाहिए।जन्माष्टमी पर मंदिर जाना है या नहीं?प्रेमानंद महाराज ने इस सवाल का भी जवाब दिया है। उनके अनुसार जन्माष्टमी वाले दिन कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करने से लाभ मिलता है। जन्माष्टमी पर विधि-विधान से की गई पूजा से खूब लाभ मिलते हैं। इसके अलावा प्रेमानंद महाराज ने ये भी कहा कि भगवान कृष्ण को जन्माष्टमी पर चावल से बने मालपुए और घर में बने मक्खन का भोग जरूर लगाना चाहिए क्योंकि उन्हें ये काफी पसंद है।100 एकादशी व्रत के बराबर जन्माष्टमी का व्रत?हिंदू धर्म के शास्त्रों में ये बात लिखी है कि एकादशी का व्रत का बहुत महत्व होता है। मान्यता है कि इस व्रत से पापों से मुक्ति मिलती है। वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि जन्माष्टमी का व्रत 100 एकादशी व्रत के बराबर होता है। इस दिन व्रत रखने से 100 पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को रखने से इंसान के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।धर्मशास्त्रों में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण 64 कलाओं में पूर्ण निपुण थे, चाहे वह संगीत हो, नृत्य, या अन्य विद्या। आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने इन सभी कलाओं का ज्ञान केवल 64 दिनों में प्राप्त कर लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण ने अपनी शिक्षा उज्जैन स्थित गुरु संदीपनि के आश्रम में प्राप्त की। उनके साथ भाई बलराम और सखा सुदामा भी वहां विद्या अध्ययन के लिए उपस्थित थे। माना जाता है कि यह स्थान विश्व का सबसे प्राचीन गुरुकुल माना जाता है। गुरु संदीपनि के मार्गदर्शन में श्रीकृष्ण ने कम समय में ही 64 कलाओं का गहन ज्ञान अर्जित कर लिया, जो आज भी अद्वितीय माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि यह 64 कलाएं कौन सी हैं...क्या हैं वो 64 कलाएंश्रीमदभागवतपुराण के दशम स्कन्द के 45 वें अध्याय के अनुसार श्री कृष्ण निम्न 64 कलाओं में पारंगत थे-1- नृत्य – नाचना2- वाद्य- तरह-तरह के बाजे बजाना3- गायन विद्या – गायकी।4- नाट्य – तरह-तरह के हाव-भाव व अभिनय5- इंद्रजाल- जादूगरी6- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना7- सुगंधित चीजें- इत्र, तेल आदि बनाना8- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना9- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या10- बच्चों के खेल11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या12- मन्त्रविद्या13- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना14- रत्नों को अलग-अलग प्रकार के आकारों में काटना15- कई प्रकार के मातृका यन्त्र बनाना16- सांकेतिक भाषा बनाना17- जल को बांधना।18- बेल-बूटे बनाना19- चावल और फूलों से पूजा के उपहार की रचना करना। (देव पूजन या अन्य शुभ मौकों पर कई रंगों से रंगे चावल, जौ आदि चीजों और फूलों को तरह-तरह से सजाना)20- फूलों की सेज बनाना।21- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना – इस कला के जरिए तोता-मैना की तरह बोलना या उनको बोल सिखाए जाते हैं।22- वृक्षों की चिकित्सा23- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति24- उच्चाटन की विधि25- घर आदि बनाने की कारीगरी26- गलीचे, दरी आदि बनाना27- बढ़ई की कारीगरी28- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना यानी आसन, कुर्सी, पलंग आदि को बेंत आदि चीजों से बनाना।29- तरह-तरह खाने की चीजें बनाना यानी कई तरह सब्जी, रस, मीठे पकवान, कड़ी आदि बनाने की कला।30- हाथ की फूर्ती के काम31- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना32- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना33- द्यू्त क्रीड़ा34- समस्त छन्दों का ज्ञान35- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या36- दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण37- कपड़े और गहने बनाना38- हार-माला आदि बनाना39- विचित्र सिद्धियां दिखलाना यानी ऐसे मंत्रों का प्रयोग40-कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना – स्त्रियों की चोटी पर सजाने के लिए गहनों का रूप देकर फूलों को गूंथना।41- कठपुतली बनाना, नाचना42- प्रतिमा आदि बनाना43- पहेलियां बूझना44- सूई का काम यानी कपड़ों की सिलाई, रफू, कसीदाकारी करना।45 – बालों की सफाई का कौशल46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना47- कई देशों की भाषा का ज्ञान48 – मलेच्छ-काव्यों का समझ लेना – ऐसे संकेतों को लिखने व समझने की कला जो उसे जानने वाला ही समझ सके।49 – सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा50 – सोना-चांदी आदि बना लेना51 – मणियों के रंग को पहचानना52- खानों की पहचान53- चित्रकारी54- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना55- शय्या-रचना56- मणियों की फर्श बनाना यानी घर के फर्श के कुछ हिस्से में मोती, रत्नों से जड़ना।57- कूटनीति#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||58- ग्रंथों को पढ़ाने की चातुराई59- नई-नई बातें निकालना60- समस्यापूर्ति करना61- समस्त कोशों का ज्ञान62- मन में कटक रचना करना यानी किसी श्लोक आदि में छूटे पद या चरण को मन से पूरा करना।63-छल से काम निकालना64- शंख, हाथीदांत सहित कई तरह के कान के गहने तैयार करना।
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हर वर्ष भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र होता है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन की पूजा और भक्ति से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर की जाने वाली पूजा में कुछ खास नियम और विधियां होती हैं, जिनका पालन करने से पूजा का प्रभाव बढ़ जाता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।इस दिन व्रत रखना, भगवान की प्रतिमा या चित्र की आराधना करना, और श्रद्धा से भजन-कीर्तन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। साथ ही पूजा के दौरान शुद्धता और सादगी का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जन्माष्टमी के ये नियम न केवल पूजा को सफल बनाते हैं, बल्कि मन और आत्मा को शुद्ध कर अगले साल तक सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं। ऐसे में इन नियमों का सही तरीके से पालन करना हर भक्त के लिए जरूरी है।बालगोपाल पर न चढ़ाएं मुरझाए हुए फूलश्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान बालगोपाल की पूजा करते समय ध्यान रखें कि आप कभी भी मुरझाए हुए, सूखे या बासी फूल चढ़ाएं नहीं। फूल भगवान् की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं और ताजगी उनके प्रति श्रद्धा को दर्शाती है। यदि आप मुरझाए फूल चढ़ाते हैं, तो यह अपमान समझा जाता है और भगवान को यह पसंद नहीं आता। इसके अतिरिक्त, अगस्त के फूल, जिन्हें सेसबानिया ग्रैंडिफ्लोरा कहते हैं, भगवान कृष्ण को विशेष रूप से अप्रिय हैं। इसलिए, इन फूलों का उपयोग जन्माष्टमी की पूजा में बिल्कुल न करें।गाय को न सताएंभगवान श्रीकृष्ण का गायों से बहुत गहरा प्रेम और लगाव है। वे स्वयं एक ग्वाल (गाय चराने वाले) थे और गायों को अपना माता-पिता समान मानते थे। जन्माष्टमी के दिन गोवंश की सेवा करना, उनका सम्मान करना और कभी भी उनका अपमान या सत्कार न करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यदि इस दिन गायों को सताया या परेशान किया गया, तो पूजा और व्रत का फल अधूरा रह सकता है। इसके अलावा, ऐसी क्रिया से भगवान कृष्ण नाराज हो सकते हैं, जिससे भक्त को उनकी कृपा प्राप्त नहीं होती। इसलिए जन्माष्टमी के दिन गोवंश की रक्षा और सेवा करें।तुलसी की पत्तियां न तोड़ेंतुलसी का पौधा भगवान् विष्णु और उनके अवतार कृष्ण की अति प्रिय वनस्पति है। इसलिए जन्माष्टमी के दिन तुलसी के पौधे की पत्तियां तोड़ना वर्जित होता है। पूजा में तुलसी की पत्तियां इस्तेमाल करने के लिए उन्हें एक दिन पहले ही तोड़कर साफ-सुथरा और ताजा रख लेना चाहिए। तुलसी के प्रति सम्मान भाव रखने से भगवान की प्रसन्नता होती है और पूजा का फल बढ़ता है।पीले वस्त्र पहनेंबालगोपाल को पीले रंग के वस्त्र पहनाना शुभ माना जाता है क्योंकि पीला रंग आनंद, उल्लास और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। इसी कारण जन्माष्टमी के दिन स्वयं और पूरे परिवार के सदस्य पीले रंग के वस्त्र धारण करें। इसके विपरीत, काले रंग के वस्त्र पहनना इस दिन अशुभ माना जाता है और इससे पूजा की सफलता पर असर पड़ सकता है। इस प्रकार पीले वस्त्र पहनकर आप पूजा में एकाग्रता और भक्तिभाव बढ़ा सकते हैं।चावल, प्याज, लहसुन आदि न खाएंजन्माष्टमी के दिन व्रत रखने वाले भक्तों को चावल, प्याज, लहसुन और अन्य तीखे तथा भारी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शरीर और मन दोनों को शुद्ध रखना आवश्यक है। अधिक से अधिक ताजे फल, हल्का भोजन और जल का सेवन करें। साथ ही अपने मन को भी बुरे विचारों से दूर रखें, क्योंकि शुद्ध मन से की गई पूजा में भगवान की कृपा अधिक होती है।बुजुर्गों का सम्मान करेंघर के बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना सभी पर्वों में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन जन्माष्टमी के दिन यह और भी ज़्यादा आवश्यक हो जाता है। यदि इस दिन किसी भी तरह से बड़े-बुजुर्गों का अपमान होता है तो व्रत का फल अधूरा रह जाता है और बालगोपाल की कृपा नहीं मिलती। इसलिए प्रयास करें कि पूजा का नेतृत्व घर के बड़े सदस्य ही करें और परिवार के सभी सदस्य उनका सम्मान करें। इससे घर में सुख-शांति और भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है।
- 16 अगस्त को जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाया जाएगा। कहते हैं इस शुभ दिन पर जो कोई भगवान कृष्ण के इन 5 शक्तिशाली मंत्रों का जाप करता है उसके जीवन के समस्त दुखों का नाश हो जाता है। इन मंत्रों को जपने के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सबसे शुभ माना गया है। 16 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:24 से 05:07 बजे तक रहेगा। चलिए जानते हैं ये कौन से मंत्र हैं।'ॐ कृष्णाय नमः' कहते हैं इस मंत्र के जाप से सभी तरह की आंतरिक चिंताओं से छुटकारा मिल जाता है। इस मंत्र का अर्थ है हे श्री कृष्ण, मेरा नमन स्वीकार करो।'हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे||' इस मंत्र का अर्थ है- श्री कृष्ण और भगवान राम को प्रणाम। वे दो शरीर हैं लेकिन श्री हरि विष्णु के अवतार होने के कारण दोनों एक ही हैं। यह मंत्र आपकी आत्मा और भगवान कृष्ण के बीच एक संबंध स्थापित करने में मदद करता है। इस मंत्र के जाप से मानसिक शांति मिलती है।'ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।' ये कृष्ण गायत्री मंत्र है। कहते हैं इसके जाप से भगवान कृष्ण की कृपा शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है। ये मंत्र सारे दुखों का नाश कर देता है।'ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः' भक्त इस मंत्र के जरिए भगवान श्री कृष्ण का आह्वान करते हैं। यह मंत्र शांति प्रदान करता है और दुखों को दूर करता है। साथ ही कार्यों में सफलता दिलाता है।“हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन । आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन” कहते हैं इस मंत्र का जाप करने से बड़ी से बड़ी परेशानी का अंत हो जाता है।
- भगवान कृष्ण को कोई नंदलाला कहकर पुकारता है, तो कोई कृष्ण कन्हैया के नाम से याद करता है। किसी के लिए वे लड्डू गोपाल हैं, कुछ लोग उन्हें मुरारी कह कर पुकारते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्येक नाम में शुभता समाई हुई है और ये सभी नाम भक्तों के हृदय को अत्यंत प्रिय हैं। मान्यता है कि जन्माष्टमी के अवसर पर यदि भक्त पूरे श्रद्धा भाव से भगवान के 108 नामों का जाप करते हैं, तो श्रीकृष्ण शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यहां से आप लड्डू गोपाल के 108 पवित्र नाम देख सकते हैं।भगवान श्रीकृष्ण के 108 नाम1. कृष्ण2. कमलनाथ3. वासुदेव4. सनातन5. वसुदेवात्मज6. पुण्य7. लीलामानुष विग्रह8. श्रीवत्स कौस्तुभधराय9. यशोदावत्सल10. हरि11. चतुर्भुजात्त चक्रासिगदा12. सङ्खाम्बुजा युदायुजाय13. देवाकीनन्दन14. श्रीशाय15. नन्दगोप प्रियात्मज16. यमुनावेगा संहार17. बलभद्र प्रियनुज18. पूतना जीवित हर19. शकटासुर भञ्जन20. नन्दव्रज जनानन्दिन21. सच्चिदानन्दविग्रह22. नवनीत विलिप्ताङ्ग23. नवनीतनटन24. मुचुकुन्द प्रसादक25. षोडशस्त्री सहस्रेश26. त्रिभङ्गी27. मधुराकृत28. शुकवागमृताब्दीन्दवे29. गोविन्द30. योगीपति31. वत्सवाटि चराय32. अनन्त33. धेनुकासुरभञ्जनाय34. तृणी-कृत-तृणावर्ताय35. यमलार्जुन भञ्जन36. उत्तलोत्तालभेत्रे37. तमाल श्यामल कृता38. गोप गोपीश्वर39. योगी40. कोटिसूर्य समप्रभा41. इलापति42. परंज्योतिष43. यादवेंद्र44. यदूद्वहाय45. वनमालिने46. पीतवससे47. पारिजातापहारकाय48. गोवर्थनाचलोद्धर्त्रे49. गोपाल50. सर्वपालकाय51. अजाय52. निरञ्जन53. कामजनक54. कञ्जलोचनाय55. मधुघ्ने56. मथुरानाथ57. द्वारकानायक58. बलि59. बृन्दावनान्त सञ्चारिणे60. तुलसीदाम भूषनाय61. स्यमन्तकमणेर्हर्त्रे62. नरनारयणात्मकाय63. कुब्जा कृष्णाम्बरधराय64. मायिने65. परमपुरुष66. मुष्टिकासुर चाणूर मल्लयुद्ध विशारदाय67. संसारवैरी68. कंसारिर69. मुरारी70. नाराकान्तक71. अनादि ब्रह्मचारिक72. कृष्णाव्यसन कर्शक73. शिशुपालशिरश्छेत्त74. दुर्यॊधनकुलान्तकृत75. विदुराक्रूर वरद76. विश्वरूपप्रदर्शक77. सत्यवाचॆ78. सत्य सङ्कल्प79. सत्यभामारता80. जयी81. सुभद्रा पूर्वज82. विष्णु83. भीष्ममुक्ति प्रदायक84. जगद्गुरू85. जगन्नाथ86. वॆणुनाद विशारद87. वृषभासुर विध्वंसि88. बाणासुर करान्तकृत89. युधिष्ठिर प्रतिष्ठात्रे90. बर्हिबर्हावतंसक91. पार्थसारथी92. अव्यक्त93. गीतामृत महोदधी94. कालीयफणिमाणिक्य रञ्जित श्रीपदाम्बुज95. दामोदर96. यज्ञभोक्त97. दानवेन्द्र विनाशक98. नारायण99. परब्रह्म100. पन्नगाशन वाहन101. जलक्रीडा समासक्त गोपीवस्त्रापहाराक102. पुण्य श्लॊक103. तीर्थकरा104. वेदवेद्या105. दयानिधि106. सर्वभूतात्मका107. सर्वग्रहरुपी108. परात्पराय
- हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 का बहुत बड़ा महत्व माना गया है। इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई जा रही है। बता दें, श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि में होने की वजह से कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा भी रात 12 बजे की जाती है। इस दिन श्रीकृष्ण भक्त पूजा और व्रत रखकर अपने आराध्य को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन एक और चीज बेहद खास होती है और वो है आधी रात को खीरा काटना। क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन आधी रात को डंठल वाला खीरा क्यों काटा जाता है? , कृष्ण जन्म का खीरे से क्या है सम्बन्ध और खीरे से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कैसे करवाया जाता है? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के रहस्य।जन्माष्टमी पर खीरे का क्या है महत्व?जन्माष्टमी की पूजा में खीरे का बहुत खास महत्व माना गया है। जन्माष्टमी की पूजा खीरा काटे बिना पूरी नहीं मानी जाती है। लेकिन क्या आप इसके पीछे का रहस्य जानते हैं? अगर नहीं तो आपको बता दें, कि खीरा काटने की परंपरा श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी हुई है। दरअसल, जिस तरह बच्चे के जन्म के समय उसकी गर्भनाल काटी जाती है, उसी तरह जन्माष्टमी की रात खीरे का तना काटा जाता है। हिंदू धर्म में यह परंपरा श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीक मानी जाती है। जिसे कई जगह 'नल छेदन' के नाम से भी जाना जाता है।कृष्ण जन्म पर डंठल वाला खीरा ही क्यों काटा जाता है?अकसर कई बार लोग इस सवाल का जवाब नहीं दे पाते हैं कि कृष्ण जन्म के दौरान डंठल वाला खीरा ही क्यों काटा जाता है। अगर आप भी इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो आपको बता दें कि जिस तरह बच्चे के जन्म के समय उसकी गर्भनाल को मां के गर्भ से काटकर अलग किया जाता है, ठीक उसी तरह हिंदू मान्यताओं के अनुसार डंठल वाले खीरे को भगवान श्री कृष्ण का गर्भनाल माना जाता है और खीरे के डंठल को खीरे से काटकर अलग करना, उसे श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने की रस्म के तौर पर मनाया जाता है। इस खीरे के डंठल को काटने की रस्म को नाल छेदन के नाम से जाना जाता है। जो रात के 12 बजे की जाती है।संतान प्राप्ति का आशीर्वाद है खीराखीरे का नाल छेदन करने के बाद श्रीकृष्ण आरती होती है। जिसके बाद खीरे को भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। थोड़ी देर बाद वही खीरा प्रसाद के रूप में भक्तों में बांट दिया जाता है। खीरे को पवित्र फल माना जाता है, जिसे जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को अर्पित करने से शुभ फल मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से भक्तों को प्रजनन क्षमता और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इतना ही नहीं जन्माष्टमी पर प्रसाद के रूप में खीरा खाने से संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपत्तियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद भी मिलता है। गर्भवती महिलाओं के लिए, खीरा सौभाग्य और ईश्वर की सुरक्षा का प्रतीक भी माना जाता है।
- भगवान श्रीकृष्ण का नाम आते ही मन में उनकी मधुर बांसुरी की धुन गूंज उठती है। यह बांसुरी केवल संगीत और प्रेम का प्रतीक ही नहीं, बल्कि सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का माध्यम भी मानी जाती है। जन्माष्टमी के अवसर पर जहां एक ओर श्रीकृष्ण की पूजा से जीवन में आनंद और समृद्धि आती है, वहीं धार्मिक और वास्तु शास्त्र की मान्यता के अनुसार घर में बांसुरी रखने से वास्तु दोष भी दूर होते हैं। माना जाता है कि बांसुरी में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की ऊर्जा का आशीर्वाद होता है, जो घर में सकारात्मक कंपन फैलाती है और नकारात्मकता को खत्म करती है। आइए जानते हैं जन्माष्टमी पर बांसुरी के 7 ऐसे उपाय, जिनसे घर का वास्तु दोष दूर हो सकता है।1. मुख्य द्वार पर बांसुरी लगानाअगर घर में बार-बार नकारात्मक ऊर्जा का अनुभव हो या घर में प्रवेश करने पर भारीपन लगे, तो मुख्य द्वार के ऊपर पीतल या बांस की बांसुरी को लाल धागे से बांधकर लगाएं। यह उपाय बुरी शक्तियों को घर में प्रवेश करने से रोकता है।2. शयनकक्ष में बांसुरी रखनापति-पत्नी के रिश्ते में खटास या अनबन हो तो शयनकक्ष की पूर्व दिशा में दो बांसुरियां लाल या पीले रेशमी धागे से बांधकर रखें। यह उपाय प्रेम, सामंजस्य और आपसी विश्वास बढ़ाता है।3. आर्थिक तंगी दूर करने के लिएअगर घर में पैसों की कमी बनी रहती है तो तिजोरी या अलमारी, जहां आप धन रखते हैं, वहां पर छोटी चांदी की बांसुरी रखें। यह उपाय लक्ष्मी कृपा पाने और धन वृद्धि में सहायक होता है।4. बच्चों की पढ़ाई में प्रगति के लिएबच्चों का पढ़ाई में मन न लगे या एकाग्रता की कमी हो, तो उनकी पढ़ाई की मेज पर छोटी बांसुरी रखें। यह बुद्धि और स्मरण शक्ति को बढ़ाती है तथा पढ़ाई में बाधाएं दूर करती है।5. रोग और मानसिक तनाव से मुक्ति के लिएघर के मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ पीली बांसुरी रखें और रोज सुबह-शाम आरती के समय बांसुरी पर हल्का-सा फूंक मारें। माना जाता है कि यह उपाय घर के वातावरण को शुद्ध करता है और स्वास्थ्य लाभ देता है।6. वास्तु दोष दूर करने के लिए जल उपायअगर घर में लगातार कलह रहती है, तो घर के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में एक पात्र में जल भरकर रखें और उसमें पीली बांसुरी डाल दें। जल को रोज बदलें। यह उपाय ईशान कोण के दोष को दूर करता है।7. व्यापार में तरक्की के लिएदुकान या ऑफिस में, जहां आप कैश काउंटर रखते हैं, वहां पर पीतल की बांसुरी रखें। इससे ग्राहकों की संख्या बढ़ती है और कारोबार में प्रगति होती है।
- हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का फर्व अत्यंत पवित्र और विशेष माना जाता है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन देशभर में भक्ति, उत्साह और श्रद्धा के साथ उनके जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है। मंदिरों में लड्डू गोपाल की विशेष पूजा होती है, और भक्त पूरे दिन व्रत रखकर मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का अभिषेक और आरती करते हैं।शास्त्रों में बताया गया है कि जन्माष्टमी के दिन किया गया दान-पुण्य सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना फलदायी होता है। यह दिन केवल उपवास और पूजा का ही नहीं, बल्कि सेवा और दान का भी है। माना जाता है कि यदि इस दिन जातक अपनी राशि के अनुसार विशेष वस्तुओं का दान करें, तो उन्हें पूरे वर्ष भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।मेष राशि- इस राशि के लोगों को गेहूं और गुड़ का दान करना शुभ माना जाता है। इससे जीवन में ऊर्जा और उत्साह बना रहता है।वृषभ राशि- जन्माष्टमी के दिन माखन, मिश्री और चीनी का दान करने से सौभाग्य और समृद्धि में वृद्धि होती है।मिथुन राशि- इस राशि के जातकों के लिए अन्नदान अत्यंत फलदायी है। किसी जरूरतमंद को भोजन सामग्री देना श्रेष्ठ कर्म है।कर्क राशि- दूध, दही, चावल और मिठाई का दान करने से मानसिक शांति और पारिवारिक सुख प्राप्त होता है।सिंह राशि- गुड़, शहद और मसूर की दाल का दान करने से नेतृत्व क्षमता और आत्मबल में वृद्धि होती है।कन्या राशि- इस राशि के जातकों के लिए गौ सेवा विशेष पुण्य प्रदान करती है। गौ माता को चारा खिलाना या उनकी देखभाल करना शुभ होता है।तुला राशि- लंबे समय से चली आ रही आर्थिक समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए इस दिन श्वेत और नीले रंग के वस्त्र का दान करना चाहिए।वृश्चिक राशि- गेहूं, गुड़ और शहद का दान करने से जीवन में सकारात्मकता और उन्नति आती है।धनु राशि- गीता या अन्य धार्मिक पुस्तकों का दान करने से ज्ञान, धर्म और आस्था में वृद्धि होती है।मकर राशि- किसी गरीब को मध्य नीले रंग का वस्त्र दान करना शुभ माना गया है, जिससे कर्मफल में सुधार होता है।कुंभ राशि- इस राशि के जातक धन का दान करके आर्थिक स्थिरता और ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।मीन राशि- केले, बेसन के लड्डू, मिश्री और माखन का दान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- जन्माष्टमी का पर्व बेहद पावन और शुभ माना जाता है। इस साल यह पर्व 15 अगस्त को मनाया जाएगा। यह भगवान कृष्ण के जन्मदिन का प्रतीक है। इस दिन साधक उपवास रखते हैं और रात में कृष्ण जन्म के बाद व्रत खोलते हैं। वहीं, जन्माष्टमी की रात को लेकर कई सारे उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से जीवन की मुश्किलों का अंत होता है/आइए इस आर्टिकल में इस दिन से जुड़े कुछ प्रमुख उपाय के बारे में जानते हैं....तुलसी की माला - रात में भगवान कृष्ण का शृंगार करें और उन्हें तुलसी की माला अर्पित करें। इसके बाद, तुलसी के पौधे के सामने 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से कारोबार में वृद्धि होगी।माखन-मिश्री भोग - रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद उन्हें माखन-मिश्री का भोग लगाएं। इस उपाय को करने से रिश्ते मधुर होते हैं। साथ ही जीवन में शुभता का आगमन होता है।मोर पंख - भगवान कृष्ण को मोर पंख बहुत प्रिय है। ऐसे में जन्माष्टमी की रात, मोर पंख को अपने घर के प्रमुख स्थानों पर रखें। इससे जीवन में नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इसके साथ ही तरक्की होती है।शंख - रात में भगवान कृष्ण की पूजा करते समय शंख बजाएं। शंख की ध्वनि से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। पूजा के बाद इस शंख को अपनी दुकान या दफ्तर में रखें। ऐसा करने से व्यापार में वृद्धि होती है।गीता का पाठ - जन्माष्टमी की रात को भगवान कृष्ण के सामने बैठकर भगवत गीता के 11वें अध्याय का पाठ करें। इस अध्याय में भगवान ने अपने विराट स्वरूप का वर्णन किया है। ऐसा करने से जीवन में सफलता और मान-सम्मान बढ़ता है।गाय की सेवा - रात में व्रत खोलने के बाद किसी गाय को हरा चारा खिलाएं। गाय की सेवा करने से भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं, जिससे जीवन में मान-सम्मान और यश बढ़ता है।पीपल के पेड़ की पूजा - रात में पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं। पीपल में सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है। ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।गरीबों को दान - जन्माष्टमी की रात गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें। दान-पुण्य करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में खुशहाली आती है।
- भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी पर यदि पूजा सोलह विधि-विधानों के साथ की जाए तो उसे षोडशोपचार पूजा विधि कहा जाता है। यह पूजा विशेष रूप से मंदिरों में विधिपूर्वक संपन्न की जाती है, लेकिन घरों में भी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार पंचोपचार विधि से पूजन किया जा सकता है। इस वर्ष 16 अगस्त 2025 को गृहस्थ लोग बालकृष्ण की मूर्ति का पंचामृत स्नान कराकर, उन्हें पालने में विराजमान कर वस्त्र धारण करवाएं और सुगंधित इत्र लगाएं। पूजा के अंत में उन्हें फल, मिठाई, धनिया, चावल, आटे या पंचमेवे से बनी पंजीरी का नैवेद्य अर्पित करें।मंदिरों में जब श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है, तो षोडशोपचार विधि से पूजन होता है जिसमें भगवान को वस्त्र, आभूषण, पुष्प, धूप-दीप समर्पित किए जाते हैं और विशेष प्रकार के मिष्ठान्न जैसे सेठौरा, नारियल, छुहारा आदि का भोग लगाया जाता है। पूजन के सभी सोलह चरणों के लिए अलग-अलग मंत्र होते हैं, और पूजा का अंतिम चरण आरती होती है, जो सोलहवां मंत्र माना जाता है। इस दिव्य रात्रि में भक्तजन जागरण कर श्रीकृष्ण की स्तुति और भजन करते हैं, जिससे वातावरण पूर्णतः भक्तिमय हो उठता है।षोडशोपचार पूजा का पहला चरणषोडशोपचार पूजन की शुरुआत ध्यान से होती है, जिसमें भक्त भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य मूर्ति के सामने बैठकर उन्हें अपने मन में आह्वान करते हैं और उनकी छवि का स्मरण करते हैं। यह पूजा का पहला और अत्यंत महत्वपूर्ण चरण होता है।इस चरण में भगवान के स्वरूप का मन ही मन ध्यान करते हुए यह मंत्र बोला जाता है:"ॐ तम अद्भुतं बालकं अम्बुजेक्षणं, चतुर्भुजं शंख गदा आयुध धारिणम्। श्रीवत्स लक्ष्म्यं, गले शोभित कौस्तुभं, पीतांबरं घने मेघ जैसे श्यामवर्ण। बहुमूल्य वैढूर्य मुकुट और कुंडल से सुशोभित, स्वर्ण कंगनों से चमकते हुए, ऐसे श्रीकृष्ण का वसुदेव ने दर्शन किया।चतुर्भुज भगवान कृष्ण का ध्यान करें, जो शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं, पीतांबर पहने हैं, गले में माला और कौस्तुभ मणि सुशोभित है।ॐ श्रीकृष्णाय नमः।इसके बाद कहा जाता है:"ध्यानात् ध्यानं समर्पयामि" अर्थात मैं भगवान श्रीकृष्ण को ध्यान अर्पित करता हूँ।इस प्रकार ध्यान करके पूजन की शुरुआत होती है, जिससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है और मन स्थिर होकर पूजा के आगे के चरणों के लिए तैयार होता है।षोडशोपचार श्रीकृष्ण पूजन विधिदूसरा चरण – आवाहनहाथ जोड़कर भगवान श्रीकृष्ण का आवाहन करें और प्रार्थना करें कि वे अपने बंधु-बांधवों सहित पधारें और यहीं विराजें।मंत्र:"ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्। स-भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्यशाङ्गुलम्। आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव। ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नमः। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।"तीसरा चरण – आसनभगवान को सुंदर रत्नजड़ित आसन अर्पित करें।मंत्र:"ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-संयुक्तम्। स्वर्ण-सिंहासन चारू गृह्यताम् भगवन् कृष्ण पूजितः। ॐ श्री कृष्णाय नमः। आसनम् समर्पयामि।"चौथा चरण – पाद्यभगवान के चरण धोने के लिए पंचपात्र से जल अर्पित करें।मंत्र:"अच्युतानन्द गोविंद प्रणतार्ति विनाशन। पाहि मां पुण्डरीकाक्ष प्रसीद पुरुषोत्तम। ॐ श्री कृष्णाय नमः। पादयोः पाद्यम् समर्पयामि।"पांचवां चरण – अर्घ्यगंध, फूल और अक्षत मिश्रित अर्घ्य भगवान को अर्पित करें।मंत्र:"ॐ पालनकर्ता नमस्ते स्तु गृहाण करुणाकरः। अर्घ्यं च फलसंयुक्तं गन्धमाल्याक्षतैर्युतम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः। अर्घ्यम् समर्पयामि।"छठा चरण – आचमनभगवान को आचमन के लिए जल दें।मंत्र:"नमः सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञानरूपिणे। गृहाणाचमनं कृष्ण सर्वलोकैक नायक। ॐ श्री कृष्णाय नमः। आचमनीयं समर्पयामि।"सातवां चरण – स्नानभगवान की मूर्ति को क्रम से जल, दूध, दही, मक्खन, घी, शहद और अंत में फिर से जल से स्नान कराएं।मंत्र:"गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा। सरस्वत्यादि तीर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः। स्नानं समर्पयामि।"आठवां चरण – वस्त्रभगवान को नए वस्त्र पहनाएं और पालने में विराजमान करें।मंत्र:"देहालंकारणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे। ॐ श्री कृष्णाय नमः। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।"नवां चरण – यज्ञोपवीतभगवान को यज्ञोपवीत अर्पित करें।मंत्र:"ॐ श्री कृष्णाय नमः। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।"दसवां चरण – चंदनभगवान को चंदन का लेप अर्पित करें।मंत्र:"ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"ग्यारहवां चरण – गंध/धूपभगवान को धूप या अगरबत्ती दिखाएं।मंत्र:"गन्धो ढ्यः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"बारहवां चरण – दीपकघी का दीपक प्रज्वलित कर भगवान के सामने रखें।मंत्र:"भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने। त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते। ॐ श्री कृष्णाय नमः। दीपं समर्पयामि।"तेरहवां चरण – नैवेद्यभगवान को मिठाई, फल, दूध-दही-घी आदि का भोग अर्पित करें।मंत्र:"शर्कराखण्ड खाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च। नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"चौदहवां चरण – ताम्बूलपान के पत्ते में सुपारी, लौंग, इलायची और मीठा रखकर अर्पित करें।मंत्र:"ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्। ॐ श्री कृष्णाय नमः।"पंद्रहवां चरण – दक्षिणाअपनी सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा अर्पित करें।मंत्र:"ॐ श्री कृष्णाय नमः। दक्षिणां समर्पयामि।"सोलहवां चरण – आरतीअंत में घी का दीपक लेकर भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें और प्रिय कृष्ण भजन/आरती गाएं।
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देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन वृंदावन की बात ही कुछ और है। जहां नटखट कान्हा ने अपना बचपन बिताया, लीला रची और गोपियों संग रास रचाया, वहां जन्माष्टमी पर भक्ति की छटा देखते ही बनती है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को लेकर भक्तों में जबरदस्त उत्साह होता है। मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
खासकर वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व अत्यंत भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर पूरे वृंदावन में दिव्य ऊर्जा और आनंद की अनुभूति होती है। आइए जानते हैं कि इस बार 2025 में वृंदावन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब और कैसे मनाई जाएगी।भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और उनकी लीलाओं की भूमि वृंदावन, दोनों ही स्थान जन्माष्टमी के पर्व पर विशेष महत्व रखते हैं। हालाँकि पूरे देश में जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन ब्रज की रौनक और भक्ति का माहौल अलग ही नजर आता है। इस वर्ष 2025 में मथुरा और वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी का उत्सव 16 अगस्त (शनिवार) को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस पावन अवसर पर मंदिरों को सजाया जाएगा, भजन-कीर्तन होंगे और हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के दर्शन के लिए उमड़ेंगे।बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी की खास परंपरावृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी का उत्सव बेहद खास होता है। इस दिन रात 12 बजे ठाकुर जी की मंगला आरती की जाती है, जो पूरे साल में सिर्फ एक बार, इसी शुभ अवसर पर होती है। इस मौके पर लड्डू गोपाल का विधिपूर्वक महाभिषेक किया जाता है और विशेष पूजन होता है। यही कारण है कि जन्माष्टमी की रात बांके बिहारी मंदिर में एक बार होने वाली मंगला आरती पूरे वर्ष में सबसे खास मानी जाती है। इस दुर्लभ दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से वृंदावन आते हैं।बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी पर क्यों होती है मंगला आरती?बांके बिहारी मंदिर की एक खास परंपरा है कि वहां रोजाना मंगला आरती नहीं होती। पूरे साल में केवल एक ही बार जन्माष्टमी के दिन ठाकुर जी की मंगला आरती की जाती है। इसके पीछे गहरी धार्मिक मान्यता और परंपरा जुड़ी हुई है।कहा जाता है कि स्वामी हरिदास जी की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर बांके बिहारी जी का प्राकट्य निधिवन में हुआ था। यही वजह है कि यह स्थान अत्यंत पावन माना जाता है। मान्यता है कि आज भी भगवान श्रीकृष्ण, राधा रानी और गोपियों के साथ रात्रि में रास रचाते हैं और फिर तृतीय प्रहर में विश्राम करते हैं। इसी कारण से उन्हें प्रातःकाल मंगला आरती के लिए नहीं उठाया जाता।लेकिन जन्माष्टमी का दिन विशेष होता है, क्योंकि यह भगवान कृष्ण के प्राकट्य का पर्व है। इसी शुभ अवसर पर एकमात्र दिन के लिए बांके बिहारी जी की मंगला आरती की जाती है, जो पूरे वर्ष में केवल एक बार होने वाली दुर्लभ और दिव्य आरती मानी जाती है। -
घर में हाल ही में बच्चे की किलकारी गूंजी है और आप उसका नाम रखने की सोच रहे हैं, तो जन्माष्टमी से बेहतर मौका और क्या हो सकता है. 16 अगस्त 2025 को जन्माष्टमी है – वो दिन जब भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर जन्म लिया था. भगवान कृष्ण को बचपन से ही बहुत प्यार मिला, चाहे वो यशोदा मां हों या गोकुल की गोपियां. उनकी लीलाएं आज भी लोगों के दिल को छूती हैं. इसलिए अगर आप अपने बच्चे का नाम उनके नामों पर रखें, तो उसमें आशीर्वाद और संस्कार दोनों मिलते हैं. आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य अंशुल त्रिपाठी से.
क्यों खास होता है जन्माष्टमी पर नामकरण करना?हिंदू परंपरा में जन्म के बाद बच्चे का नाम रखने को बेहद अहम माना जाता है. नाम सिर्फ एक पहचान नहीं होती, बल्कि उसमें भाव और ऊर्जा भी होती है. अब अगर ये नाम भगवान श्रीकृष्ण के नामों में से कोई हो, तो मान्यता है कि बच्चा उनका आशीर्वाद लेकर बड़ा होता है.श्रीकृष्ण को बचपन से ही अलग-अलग नामों से बुलाया गया – जैसे कान्हा, गोपाल, मुरलीधर, श्याम, वासुदेव आदि. हर नाम के पीछे एक कहानी, एक भाव और एक पहचान जुड़ी है. जब आप अपने बच्चे को ऐसा नाम देते हैं, तो उसका जुड़ाव खुद-ब-खुद संस्कारों से हो जाता है.भगवान श्रीकृष्ण के 30 सुंदर नाम, जो आप अपने बच्चे के लिए चुन सकते हैंजन्माष्टमी के मौके पर अगर आप अपने लाडले का नाम रखने की सोच रहे हैं, तो नीचे दिए गए श्रीकृष्ण के 30 नामों में से कोई एक चुन सकते हैं, ये नाम ना सिर्फ धार्मिक रूप से शुभ हैं, बल्कि मॉडर्न जमाने के हिसाब से भी ट्रेंडी और प्यारे लगते हैं.श्रीकृष्ण के 30 लोकप्रिय नाम:1. अच्युत2. आरिव3. अदित्या4. अजया5. अमृत6. ईशान7. कान्हा8. कन्हैया9. कृष्णा10. केशव11. कमलनयन12. करुणानिधि13. गोविंद14. गोपाल15. गोपेश16. गोपालप्रिय17. जगदीश18. जनारधन19. जगन्नाथ20. ज्योतिरादित्य21. मदन22. मुरलीधर23. माधव24. मधुसूदन25. मुकुंद26. सुमेध27. सारथी28. श्याम29. पार्थ30. वासुदेवनाम चुनते वक्त किन बातों का ध्यान रखें?1. नाम छोटा, साफ और उच्चारण में आसान होना चाहिए2. उसमें कोई अच्छा अर्थ होना चाहिए3. नाम ऐसा हो जिसे बच्चा गर्व से बोले4. परिवार की आस्था और पसंद भी जरूर ध्यान में रखेंअगर आपने किसी नाम को चुन लिया है, तो उसका सही उच्चारण और स्पेलिंग भी जरूर जांच लें. आजकल कई लोग यूनिक नाम रखने की चाह में उसकी स्पेलिंग बिगाड़ देते हैं, जिससे आगे चलकर दस्तावेज़ों में परेशानी हो सकती है. - श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष देशभर में बड़े हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में विशेष रूप से मनाया जाता है, जब भक्तगण व्रत रखते हैं, झांकियां सजाते हैं, मंदिरों में भजन-कीर्तन होते हैं और रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म की पूजा कर उनका स्वागत किया जाता है। हर कोना भक्ति और प्रेम के रंग में रंग जाता है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जन्माष्टमी से पहले कुछ खास और पवित्र चीजों को घर लाना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से न केवल भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास भी होता है। यदि आप भी इस बार जन्माष्टमी को खास और शुभ बनाना चाहते हैं, तो इन वस्तुओं को पहले से घर लाकर तैयारियां शुरू कर सकते हैं। आइए जानते हैं वे कौन-कौन सी चीजें हैं।लड्डू गोपाल की बाल स्वरूप मूर्तिभगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की एक सुंदर मूर्ति को जन्माष्टमी से पहले घर लाना बहुत शुभ माना जाता है। इसे घर के मंदिर में स्थापित कर अगर विधि-विधान से पूजा की जाए, तो घर में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।बांसुरीकृष्ण भगवान की पहचान उनकी प्रिय बांसुरी से भी होती है। जन्माष्टमी से पहले एक सुंदर बांसुरी घर लाकर पूजा स्थान पर रखना अत्यंत शुभ माना गया है। इससे न केवल मन को शांति मिलती है बल्कि घर में भी सकारात्मकता और मधुरता बनी रहती है। चांदी या पीतल की बांसुरी विशेष शुभ मानी जाती है।मोर पंखमोर पंख श्रीकृष्ण के मुकुट का हिस्सा होता है और उन्हें अत्यंत प्रिय है। इसे घर में लाकर पूजा स्थल या मुख्य द्वार पर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर का वास्तु दोष भी समाप्त होता है।गाय और बछड़े की मूर्तिकृष्ण जी का गहरा संबंध गायों से रहा है। जन्माष्टमी के अवसर पर गाय और बछड़े की मूर्ति लाना शुभ संकेत माना जाता है। इसे घर में रखने से समृद्धि आती है और संतान सुख की प्राप्ति का मार्ग खुलता है। धातु की मूर्ति को पूजा स्थान पर रखना श्रेष्ठ होता है।माखन-मिश्रीमाखन और मिश्री श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। जन्माष्टमी से पहले इन्हें घर में लाकर भोग की तैयारी करनी चाहिए। यह प्रेम, मिठास और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। पूजा में इसका उपयोग करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।वैजयंती मालावैजयंती माला भगवान कृष्ण के गले का एक अहम आभूषण मानी जाती है। इसे घर लाकर कान्हा जी को पहनाने से धन और समृद्धि की वृद्धि होती है। ऐसी मान्यता है कि इसे धारण करने या पूजा में उपयोग करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।पीले वस्त्रभगवान श्रीकृष्ण को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। जन्माष्टमी से पहले घर में पीले वस्त्र जैसे कि पर्दे, चादरें या पूजा की पोशाक लाना शुभ माना जाता है। इससे मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है और घर में आर्थिक समृद्धि आती है।तुलसी का पौधातुलसी बिना श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है। इस पर्व से पहले तुलसी का नया पौधा लगाना या पुराने पौधे की सेवा करना पुण्यदायी होता है। तुलसी की पत्तियों के बिना श्रीकृष्ण को भोग भी नहीं लगाया जाता।शंखशंख की ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने वाली मानी जाती है। जन्माष्टमी से पहले घर में शंख लाकर पूजा स्थल पर स्थापित करें और नियमित रूप से उसका उपयोग करें। इससे घर का वातावरण पवित्र और ऊर्जावान बना रहता है।
- 12 अगस्त को उत्तर भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से रचा-बसा एक महत्वपूर्ण पर्वकजरी तीज उत्तर भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से रचा-बसा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से महिलाएं पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाती हैं। यह त्योहार सावन की रिमझिम फुहारों के बीच सुहागिनों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन वे अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए व्रत रखती हैं। पारंपरिक वेशभूषा, कजरी गीतों की मधुर धुन और झूला झूलने की परंपरा इस पर्व की सुंदरता को और भी बढ़ा देती है।कजरी तीज का एक विशेष पक्ष है नीमड़ी पूजन, जिसमें महिलाएं नीम की डाली को देवी रूप में पूजती हैं। नीम को शास्त्रों में रोग नाशक और वातावरण को शुद्ध करने वाला वृक्ष माना गया है। इस पूजा से न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है, बल्कि यह प्रकृति से जुड़ाव और स्त्री सशक्तिकरण का भी संदेश देती है। यह पर्व पारिवारिक एकता, प्रेम और सामूहिक उल्लास का प्रतीक है, जो समाज में सकारात्मकता और शांति का संचार करता है।क्या है कजरी तीज और इसका महत्व?कजरी तीज उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक पावन पर्व है, जो हरियाली तीज के लगभग पंद्रह दिन बाद आता है। यह त्योहार खासतौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र, पारिवारिक सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति की कामना के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं, पारंपरिक कजरी गीत गाती हैं और रात को पूजा कर धार्मिक कथा सुनती हैं। कजरी तीज की सबसे खास परंपरा है निमड़ी पूजन, जिसमें नीम को देवी के रूप में पूजने की परंपरा है।क्या होती है नीमड़ी पूजन की परंपरा?नीमड़ी पूजन में महिलाएं नीम के पेड़ या उसकी टहनी को प्रतीक रूप में स्थापित करके उसे माता का स्वरूप मानती हैं। कुछ स्थानों पर नीम की पत्तियों के ऊपर मिट्टी से बनी देवी की प्रतिमा रखकर पूजा की जाती है। महिलाएं हल्दी, चूड़ी, सिंदूर, रोली और सुहाग की अन्य सामग्रियों से नीमड़ी माता की पूजा करती हैं। यह पूजन सौभाग्य, संतान सुख और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने का प्रतीक माना जाता है।व्रत और पूजन विधिसुबह महिलाएं स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और दिनभर निर्जल उपवास करती हैं। शाम को नीम की टहनी या उसकी प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। कजरी माता की कथा सुनी जाती है, जिसमें एक ब्राह्मणी के व्रत और उसकी परीक्षा की कहानी होती है। अंत में चावल और गुड़ का भोग लगाकर सुखद वैवाहिक जीवन और पारिवारिक सुख की प्रार्थना की जाती है।नीमड़ी पूजन से जुड़ी मान्यताऐसा माना जाता है कि नीम में देवी दुर्गा का वास होता है और उसका पूजन करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। नीम की शीतलता और औषधीय गुण तन और मन दोनों को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं कजरी गीत गाते हुए नीम के पेड़ के नीचे झूला झूलती हैं और नीमड़ी माता से सुख, समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं।कजरी तीज के पर करें ये उपायकजरी तीज के दिन कुछ विशेष और आसान उपाय करके महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को और भी सुखमय बना सकती हैं। इन उपायों से न केवल देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि घर में शांति, प्रेम और समृद्धि भी बनी रहती है।पूजन के बाद नीम की टहनी पर चूड़ियां, बिंदी, कंघी, सिंदूर जैसी सुहाग की सामग्री चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में मधुरता आती है और आपसी समझ मजबूत होती है।गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल को मिलाकर नीम की डाली का अभिषेक करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा आती है और जीवन में पवित्रता बनी रहती है।कुआं, नदी या तालाब की मिट्टी से शिव और पार्वती की छोटी मूर्ति बनाकर उनका पूजन करना इस दिन बहुत फलदायी होता है। यह उपाय अखंड सौभाग्य बनाए रखने में सहायक होता है।कजरी तीज की कथा सुनने के बाद किसी सुहागिन महिला को साड़ी, चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर आदि दान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है। इससे घर में चल रहे संकट और तनाव कम होते हैं।जब रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें, तो मन में यह भाव रखें। "हे चंद्र देव, जैसे आप अपने प्रकाश से पूरे संसार को रोशन करते हैं, वैसे ही मेरे घर को सुख, शांति और सौभाग्य से भर दें।" इस भावना के साथ दिया गया अर्घ्य बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
- श्रावण मास यानी सावन, भगवान शिव की आराधना और आत्मिक शुद्धि का महीना माना जाता है। इस महीने में केवल व्रत-पूजा ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा और ध्यान साधना का विशेष महत्व है। ऐसे में अगर आप शोर-शराबे से दूर कुछ शांत, शक्तिशाली और सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थानों की तलाश में हैं, तो भारत के कुछ प्रसिद्ध आश्रम आपकी आत्मा को संपूर्ण विश्राम दे सकते हैं।इस लेख में आपको भारत के 5 ऐसे आध्यात्मिक आश्रमों के बारे में बताया जा रहा है, जहां आप ना केवल ध्यान और योग का अभ्यास कर सकते हैं, बल्कि अपने भीतर के "मैं" से भी जुड़ सकते हैं। सावन के पावन महीने में इन स्थानों की यात्रा एक जीवन बदलने वाला अनुभव बन सकती है।परमार्थ निकेतन, ऋषिकेशउत्तराखंड के ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन नाम का आश्रम है। गंगा किनारे स्थित यह आश्रम विश्वविख्यात है। यहां योग, ध्यान और गंगा आरती का दिव्य अनुभव मिलता है। इस आश्रम में सावन माह में शिवभक्तों के लिए विशेष कार्यक्रम और मंत्र साधना का आयोजन होता है।ईशा योग केंद्र, कोयंबटूरतमिलनाडु के कोयंबटूर में ईशा योग केंद्र स्थित है। यह आश्रम सद्गुरु द्वारा स्थापित किया गया है। ईशा योग केंद्र में ध्यान और विज्ञान का समागम है। यहां स्थित 112 फीट ऊंची आदियोगी शिव प्रतिमा बेहद प्रसिद्ध है। सावन के समय विशेष ध्यान सत्र और शिव साधना का आयोजन किया जाता है।ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट, पुणेमहाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में भी एक आश्रम है, जिसका नाम ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसाॅर्ट है। अगर आप ध्यान को नए दृष्टिकोण से अनुभव करना चाहते हैं तो यह आश्रम उपयुक्त है। यहां ओशो की डायनामिक मेडिटेशन टेक्निक सिखाई जाती है। सावन में यहां गहन ध्यान रिट्रीट्स आयोजित होते हैं।रामकृष्ण मिशन आश्रम, बेलूर मठपश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन आश्रम है। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित यह आश्रम गंगा नदी के किनारे स्थित है। यहां ध्यान, भजन और सामाजिक सेवा के साथ-साथ आध्यात्मिक अध्ययन भी कराया जाता है। सावन में शिव को समर्पित मंत्रोच्चारण और विशेष पूजा होती है।श्री अरविंद आश्रम, पुदुचेरीपुदुचेरी में स्थित इस आश्रम में श्री अरविंद और मां की शिक्षाओं के अनुसार ध्यान और साधना करवाई जाती है। यह आश्रम शांति और चित्त की स्थिरता का प्रतीक है। सावन के दौरान यह स्थान श्रद्धालुओं और साधकों के लिए ऊर्जा का केंद्र बन जाता है।
- पहली राशि मेष का गृह स्वामी मंगल ग्रह होता है। मंगल काफी उग्र ग्रह होता है और इसका प्रभाव मेष राशि वालों पर हमेशा दिखता है। रत्न शास्त्र के हिसाब से हर राशि वालों के लिए कोई ना कोई ऐसा रत्न जरूर होता है जो उनके जीवन के हर पहलू के लिए मददगार साबित होता है। रत्नों की मदद से कुंडली में कमजोर पडऩे वाले ग्रहों की स्थिति को ठीक किया जा सकता है। वहीं अगर मेष राशि वालों में कॉन्फिडेंस की कमी है तो ज्योतिषियों के अनुसार उन्हें तीन रत्नों को धारण करना चाहिए। नीचे विस्तार से जानिए कि आखिर ये रत्न कौन-कौन से हैं?रूबीमाणिक को रुबी कहा जाता है। इसे रत्नों का राजा भी कहा जाता है। इसकी एनर्जी काफी तेज होती है जोकि मेष राशि वालों से मेल भी खाती है। इस रत्न की मदद से लोग साहसी और मजबूत इच्छाशक्ति वाले बनते हैं। मेष राशि वालों को ये रत्न सबसे ज्यादा सूट करता है। इस रत्न की मदद से लोग आसानी से अपने सपनों को पूरा कर लेते हैं।जैस्परलाल जैस्पर की गिनती विशेष रत्नों में होती है। अगर मेष राशि के लोग इस रत्न को धारण करते हैं तो उनकी जिंदगी में स्थिरता आती है। साथ ही उनकी धैर्य करने की क्षमता आ जाती है। सेल्फ कंट्रोल के लिए भी ये रत्न काफी अच्छा माना जाता है। साथ ही इसे धारण करने से क्लैरिटी भी आती है।हीराडायमंड की ऊर्जा अपने आप में ही खास होती है। अगर मेष राशि वालों को अपने कॉन्फिडेंस को बूस्ट करना है तो उनके लिए हीरे की अंगूठी पहनना सबसे लाभदायक होता है। इसे धारण करने से सोच में क्लैरिटी आती है। इसके जरिए मेष राशि वालों की पर्सनैलिटी में निखार भी आता है।
- सावन का महीना शिव भक्ति के लिए विशेष समय माना जाता है। इस वर्ष 4 अगस्त को सावन का अंतिम सोमवार मनाया जाएगा। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जैसे सर्वार्थ सिद्धि योग, ब्रह्म योग और इंद्र योग। साथ ही चंद्रमा, वृश्चिक राशि में अनुराधा और चित्रा नक्षत्रों में गोचर करेंगे। इन विशेष योगों के चलते इस दिन किया गया पूजा-पाठ और दान-पुण्य अत्यंत फलदायी सिद्ध होगा।सावन के आखिरी सोमवार पर करें ये सरल उपायरुद्राभिषेक कराएंभगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे प्रभावशाली उपाय है रुद्राभिषेक। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और जीवन में शुभता लाता है। कहा जाता है कि रुद्राभिषेक से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।चंद्र से जुड़ी वस्तुओं का दानयदि आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर स्थिति में है, तो आप इस दिन दूध, दही, चावल, चीनी और सफेद वस्त्र जैसे चंद्रमा से संबंधित चीजें दान करें। इससे चंद्रमा की स्थिति बेहतर होगी और मानसिक तनाव से राहत मिलेगी।108 बेलपत्रों पर लिखें "ॐ नमः शिवाय"सफेद चंदन से 108 बेलपत्रों पर "ॐ नमः शिवाय" लिखें और उन्हें भगवान शिव को अर्पित करें। साथ ही शमी के पत्तों पर शहद लगाकर शिवलिंग पर अर्पण करें। यह उपाय अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
- सावन का महीना चल रहा है। इस दौरान श्रद्धालु भगवान शिव की उपासना करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत और जलाभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा के बाद उनके वाहन और प्रिय सेवक नंदी की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि नंदी के कानों में अपनी मनोकामना कहने से वह इच्छा भगवान शिव तक पहुंचती है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस मान्यता के पीछे की वजह क्या है? ऐसा क्यों किया जाता है और इसके नियम क्या हैं? आइए इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं....इस परंपरा के पीछे क्या है पौराणिक कथा?एक कथा के अनुसार भगवान शिव ने नंदी को यह आशीर्वाद दिया था कि जो भी व्यक्ति तुम्हारे कान में अपनी इच्छा कहेगा, वह मुझ तक जरूर पहुंचेगी और उसे पूर्ण भी किया जाएगा। इसीलिए आज भी भक्त नंदी के कान में अपनी मन की बात कहते हैं। एक अन्य कथा में बताया गया है कि एक ऋषि ने नंदी से पूछा कि वह भगवान शिव से अपनी मनोकामनाएं कैसे साझा करते हैं। नंदी ने उत्तर दिया कि वह तो सिर्फ भगवान की सेवा करते हैं और कुछ नहीं कहते। तब ऋषि ने कहा कि जो भी व्यक्ति अपनी इच्छा शिवजी तक पहुंचाना चाहता है, वह उसे नंदी के कान में कहे, और नंदी स्वयं उसे भगवान तक पहुंचा देंगे। तभी से यह परंपरा शुरू हुई।नंदी के कानों में अपनी मनोकामना कहने से वह इच्छा पूर्ण होती है, लेकिन इससे पहले "ॐ" का उच्चारण करना आवश्यक होता है, ताकि नंदी ध्यान से आपकी बात सुनें और उसे शिवजी तक पहुंचाएं।नंदी के कान में कैसे कहें अपनी इच्छा?सबसे पहले नंदी का विधिवत पूजन करें, दीपक जलाएं और भोग अर्पित करें। इसके बाद "ॐ" का उच्चारण करते हुए अपनी मनोकामना नंदी के बाएं कान में कहें। ऐसा माना जाता है कि बाएं कान में कही गई बात जल्दी शिवजी तक पहुंचती है और पूरी भी होती है।
- अगस्त का महीना हर मायने में खास होता है। पॉजिटिविटी से भरे इस महीने में जन्म लेने वाले लोग दूसरों को खूब आकर्षित करते हैं। अंकशास्त्र और ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अगस्त महीने में जन्म लेने वाले लोग सिंह और कन्या राशि के अंदर आते हैं। जो लोग 23 जुलाई से 22 अगस्त के बीच जन्म लेते हैं, वो सिंह राशि के होते हैं। इसके बाद जन्मे लोग कन्या राशि के होते हैं। ऐसे में अगस्त में जन्म लेने वाले लोगों को में सिंह और कन्या राशि के कुछ-कुछ गुण होते हैं। साहसी और कॉन्फिडेंट होने के साथ-साथ ये लोग काफी इमोशनल और केयरिंग भी होते हैं। नीचे विस्तार से जानें अगस्त महीने में जन्म लेने वालों के गुण...आसानी से शेयर नहीं करते दिल की बातअगस्त में जन्म लेने वाले लोग कभी भी आसानी से अपने दिल की बात शेयर नहीं करते हैं। अपनी पर्सनल बातों को शेयर करने में इन्हें थोड़ा समय लगता है। ये जल्दी किसी पर भरोसा नहीं कर पाते हैं। ऐसे में धीरे-धीरे ये लोग अपनी प्रॉब्लम का हाल खुद ही निकाल लिया करते हैं।होते हैं करियर फोकस्डअगस्त में जन्मे हुए लोग महत्वाकांक्षी होते हैं। ये हमेशा बड़े सपने ही देखते हैं। उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं होता है कि उनके लिए गए फैसलों पर कोई सवाल उठाएं। ऐसे में ये लोग जिस काम को शुरू करते हैं, उसे स्मार्ट तरीके से पूरा करके ही दम लेते हैं। अगस्त में जन्मे लोग कॉन्फिडेंट भी होते हैं और यही वजह है कि उन्हें हर काम में सफलता मिल ही जाती है। ये लोग मजबूत इच्छाशक्ति वाले होते हैं।सकारात्मक होते हैं अगस्त में जन्मे लोगअगस्त के महीने में जन्म लेने वालों की सोच काफी पॉजिटिव होती है। अपनी पॉजिटिव बॉडी लैग्वेंज और प्रभावशाली आवाज के चलते ये दूसरों से अलग दिखते हैं। इनकी पर्सनैलिटी मैग्नेट की तरह होती है। ये पॉजिटिव सोच वाले लोगों को अपनी ओर जल्दी से अट्रैक्ट कर लेते हैं। इनका फ्रेंड सर्कल छोटा होता है। ये लोग भरोसेमंद दोस्त होते हैं।
- पूजा के दौरान खास चीजों का धुआं हिंदू धर्म में जरूर दिया जाता है। जैसे आरती के लिए कपूर जलाना। कपूर जलाने के कई सारे फायदे हैं। लेकिन केवल कपूर ही नहीं पूजा में कपूर के साथ दो और चीजों को धुआं किया जाता है। जो घर से केवल निगेटिविटी ही नहीं निकालता बल्कि इसके कई सारे हेल्थ बेनिफिट्स भी है। अक्सर पूजा के बाद घरों में लोबान और गुग्गल का धुआं किया जाता है। अगर कपूर के साथ लोबान या लोहबान का धुआं या फिर कपूर में गुग्गल मिलाकर धुआं किया जाता है। तो इससे हेल्थ को कई सारे बेनिफिट्स होते हैं। जानें घर में लोबान और गुग्गल को कपूर में मिलाकर जलाने के फायदे।घर में आती है पॉजिटिव एनर्जीअक्सर पूजा के बाद घर में मौजूद देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और घर में वास करने के लिए उनके सामने कपूर में गुग्गल और लोबान का धुआं किया जाता है। इससे पॉजिटिव एनर्जी आती है और धुएं की मदद से निगेटिव एनर्जी बाहर निकल जाती है।सांस की समस्या कम करेधुआं करने से सांस में समस्या नहीं होगी। अगर लोबान को गोबर के उपलों में डालकर और देसी घी मिलाकर जलाया जाता है तो इससे सांस फूलने और अस्थमा की समस्या में राहत मिलती है।मिलती है मानसिक शांतिघर में गुग्गल को कपूर के साथ मिलाकर जलाने से मन शांत होता है। इसकी मीठी महक घर के वातावरण को प्योर करती है और निगेटिव थाट्स से छुटकारा दिलाती है।बैक्टीरिया मरते हैंलोबान को गोबर के उपले और कपूर के साथ मिलाकर जलाने से घर में पनप रहे बैक्टीरिया मरते हैं। जिससे ना केवल पेट की बीमारी बल्कि बुखार और इंफेक्शन के बैक्टीरिया भी खत्म होते हैं।हवा को शुद्ध करता हैगुग्गल को कपूर के साथ मिलाकर जलाया जाता है तो घर की हवा में मौजूद बैक्टीरिया को मारने में मदद मिलती है। एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टी की वजह से ये घर के पॉल्यूशन को खत्म करता है और घर की हवा को शुद्ध बनाता है।
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पॉकेट हमेशा पैसों से भरा रहे...ये कौन नहीं चाहता है? कई बार ऐसा होता है ना कि अच्छी खासी कमाई के बाद भी तंगी की स्थिति बनी रहती है। आपको भी महीने के खत्म होते-होते ऐसा लगने लगता है कि आखिर सारा पैसा गया तो गया कहां? अगर आपको भी ऐसा ही कुछ फील होता है तो इस स्थिति को कुछ आसान उपायों से दूर कर सकते हैं। फेंगशुई में ऐसे कई टिप्स हैं जिन्हें अगर मान लिया जाए तो जिंदगी में सकारात्मक ऊर्जा की कमी कभी नहीं रहेगी। वहीं पैसों का फ्लो भी अच्छा रहेगा। अपनी पॉकेट में आप कुछ चीजों को रखकर ऐसी स्थिति से बच सकते हैं। जानिए आखिर वो कौन सी चीजें हैं...
ग्रीन एवेंच्यूरिनये खास किस्म का एक स्टोन है जोकि भाग्य और समृद्धि ले आता है। ये आपके सपनों को जल्दी अट्रैक्ट करने की क्षमता रखता है। इस स्टोन के जरिए किसी भी व्यक्ति का इमोशनल बैलेंस भी बढ़िया रहता है। पॉकेट में इसे रखने से आपकी जिंदगी में सकारात्मकता आएगी और पैसों का फ्लो भी धीरे-धीरे अच्छा होने लगेगा।सिट्रीन क्रिस्टलये भी एक स्टोन है जोकि पीले रंग का होता है। इसमें सूर्य की शक्ति होती है। इस वजह से इसे रखने वालों की एनर्जी हमेशा अच्छी रहती है। ये क्रिस्टल हमेशा अच्छी चीजों को अटैक्ट करता है। इसकी मदद से सफलता जल्दी हासिल होती है और समृद्धि भी खूब अट्रैक्ट होती है। ऐसे में इस क्रिस्टल को पॉकेट में रखना सही होता है।फेंगशुई सिक्केलाल रंग के धागे से बंधे हुए सिक्के अगर आप अपनी पॉकेट रखेंगे तो ये शुभ होगा। ध्यान रखें कि इस धागे में सिक्कों की संख्या 6 हो। बता दें कि न्यूमेरेलॉजी में 6 नंबर काफी लकी माना जाता है। वहीं फेंगुशुई के सिक्कों का मेटल पैसों और सुख समृद्धि को अट्रैक्ट करता है।तेजपत्तापॉकेट में तेजपत्ता रखने से भी कई लाभ मिलते हैं। आप अपनी इच्छा को पेंसिल के माध्यम से तेजपत्ते पर लिख दें। इसे मोड़कर फेंगशुई वाले सिक्के के बगल ही रख दें। ध्यान रहे कि हर हफ्ते आपको ये काम करना है। पुराने वाले तेजपत्ते को अच्छी इंटेंशन के साथ जला दें ताकि किसी भी तरह की ब्लॉकेज और निगेटिव एनर्जी दूर हो जाए। -
नई दिल्ली। देशभर के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक महाकाल नगरी उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के कपाट सोमवार रात ठीक 12 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोले गए। यह मंदिर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की तीसरी मंजिल पर स्थित है और खास बात यह है कि इसके पट पूरे वर्ष में केवल एक दिन, नागपंचमी के शुभ अवसर पर ही खोले जाते हैं। मंदिर के खुलने के साथ ही 24 घंटे तक श्रद्धालु यहां दर्शन कर सकते हैं।
हिंदू धर्म में नागों की पूजा का विशेष महत्व है। इन्हें भगवान शिव का आभूषण और उनका रक्षक माना जाता है।नागचंद्रेश्वर मंदिर भी इसी परंपरा का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यहां दर्शन मात्र से नागदोष, कालसर्प दोष और अन्य बाधाएं दूर हो जाती हैं। महाकाल मंदिर के गर्भगृह के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है, जिसे देखने का दुर्लभ अवसर केवल नागपंचमी पर ही मिलता है। मंदिर में स्थित प्रतिमा अद्वितीय है, जिसे नेपाल से लाया गया था। इसमें भगवान शिव शेषनाग की शैय्या पर विराजमान हैं और उनके साथ माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी, सिंह, सूर्य और चंद्रमा की सुंदर मूर्तियां भी स्थापित हैं। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है, जहां भोलेनाथ इस रूप में विराजते हैं।मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज द्वारा करवाया गया था। बाद में 1732 में मराठा सरदार राणोजी सिंधिया ने इसका पुनर्निर्माण कराया। नागचंद्रेश्वर की मूर्ति भी तभी नेपाल से मंगाकर तीसरी मंजिल पर स्थापित की गई थी।धार्मिक कथा के अनुसार, नागराज तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद तक्षक देव ने शिवजी के साथ ही रहना शुरू किया, लेकिन शिवजी को यह प्रिय नहीं था, क्योंकि वह एकांत और ध्यान के प्रेमी थे। तक्षक ने शिव की भावना को समझा और तभी से तय किया कि वह साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी के दिन ही उनके दर्शन करने आएंगे। इसी परंपरा के कारण मंदिर के कपाट केवल इसी दिन खोले जाते हैं। प्रशासन की ओर से अनुमान है कि इस एक दिन में करीब 10 लाख श्रद्धालु नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन करेंगे। हर श्रद्धालु को लगभग 40 मिनट के भीतर दर्शन कराने की योजना बनाई गई है। दर्शन व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए विशेष सुरक्षा और मार्गदर्शन की व्यवस्था की गई है।