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- चीन के वास्तु शास्त्र फेंगशुई को घर से निगेटिव एनर्जी को दूर करके पॉजिटिव एनर्जी लाने में बहुत कारगर माना जाता है। फेंगशुई में फेंग का अर्थ होता है वायु और शुई जल को कहते हैं। फेंगशुई के नियम इसी जल और वायु के आधार पर बने हुए हैं। वास्तुशास्त्र की तरह फेंगशुई में भी घर के सामानों को सही जगह पर रखने के तरीके बताए गए हैं। घर के इन सामान में आईना बेहद अहम है। कहा जाता है कि अगर आईना गलत जगह पर रखा हो तो घर की तरक्की रुक जाती है। वहीं आईना सही जगह पर हो तो समृद्धि मिलती है। साथ ही घर के लोगों की सेहत और आर्थिक स्थिति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। आईये जानते हैं घर में आईना रखने का सही तरीका--फेंगशुई के अनुसार घर में आईने को हमेशा जमीन से कुछ इंच ऊपर लगाना चाहिए। कहा जाता है कि जमीन से कुछ इंच ऊपर आईना लगाने से बिजनेस में बहुत लाभ होता है। इसके अलावा जिस अलमारी में आप पैसा और गहने रखते हैंं, उसमें आईना जरूर लगाएं। इससे घर में खूब धन-समृद्धि बढ़ती है।-अगर आपके बेडरूम में आईना लगा हो तो उसे तुरंत हटा दें। या फिर ऐसी जगह लगाएं जहां से सोने वालों को प्रतिबिंब न दिखे। इसके अलावा सीढ़ी के नीचे कभी भी आईना न रखें। ऐसा करने से घर के सदस्यों के बीच झगड़े-कलह होते हैं। सिर्फ यही नहीं अगर घर का आईना टूटा-फूटा हो तो उसे तुरंत हटा दें, क्योंकि यह बहुत ही अशुभ होता है। कहा जाता है कि टूटा हुआ आइना जिंदगी पर संकट लाता है और घर में नाकारात्मक उर्जा का वास होने लगता है।
- दीपावली के ठीक बाद देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है. देवउठनी एकादशी का हिंदू धर्म में एक खास महत्व है. इस साल 14 नवंबर 2021 को देवउठनी एकादशी है, जिसे देवोत्थान एकादशी, देव प्रभोदिनी एकादशी, देवउठनी ग्यारस ( dev uthani gyaras 2021 date ) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश, जातकर्म संस्कार आदि सभी कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी के लिए कहते हैं कि सोए हुए भगवान इसी दिन जागते हैं. इतना ही नहीं भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखा जाता है.इस एकादशी तिथि के साथ, चतुर्मास अवधि, जिसमें श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं, समाप्त हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सोते हैं और इस दिन जागते हैं. इस प्रकार, इसे देवउठना या प्रबोधिनी कहा जाता है.देव उठानी एकादशी शुभ मुहूर्तएकादशी तिथि 14 नवंबर 2021 – सुबह 05:48 बजे शुरू होगीएकादशी तिथि 15 नवंबर 2021 – सुबह 06:39 बजे खत्म होगीपाप हो जाते हैं नष्टकहते हैं जो भी लोग एकादशी के व्रत को श्रद्धा भाव से करता है उसके सभी अशुभ संस्कार नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है.तुलसी पूजासबसे अहम बात है कि इसी दिन भगवान शालीग्राम के साथ तुलसी मां का आध्यात्मिक विवाह भी होता है. लोग घरों में और मंदिरों में ये विवाह करते हैं.इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है. शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है.विष्णु पूजाइस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. अगर इस दिन कोई पूजा पाठ ना करके केवल “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः “मंत्र का जाप करते हैं तो भी लाभ मिलता है.चंद्र दोष दूर होता हैजिन भीलोगों की कुंडली में चंद्रमा की कमजोर होती है, उनको जल और फल खाकर या निर्जल एकादशी का उपवास जरूर रखना चाहिए. इससे चंद्र देव प्रसन्न होते हैं, और उसका चंद्र सही होकर मानसिक स्थिति भी सुधर जाती है.गन्ने का महत्वइस दिन रात में घरों में चावल के आटे का चौक बनाकर उसपर गन्ने से पूजा की जाती है. कहते हैं जिस घर में ये पूजा होती है उस पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है.
- कार्तिक महीने की अमावस्या पर दीप पर्व मनाते ही देवउठनी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा का इंतजार शुरू हो जाता है. कार्तिक पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा में सबसे ज्यादा पवित्र और अहम माना गया है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान किया जाता है. विष्णु पुराण के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. इसके अलावा भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है....इसलिए कहलाती है त्रिपुरारी पूर्णिमा ..कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन दान-पुण्य करना बेहद फलदायी माना जाता है. इस साल 19 नवंबर 2021 को कार्तिक पूर्णिमा है. कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने का शुभ मूहूर्त 19 नवंबर 2021, शुक्रवार को ब्रम्ह मुहूर्त से दोपहर 02:29 तक रहेगा.कार्तिक पूर्णिमा पर न करें ये गलतियां....धर्म और ज्योतिष के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करके उगते सूर्य को अर्ध्य देना बेहद फलदायी होता है. इसके अलावा इस दिन दान-पुण्य करना कई पापों का नाश करता है. यदि कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन चावल का दान करने से बहुत लाभ होता है. इसके अलावा इस दिन दीपदान और तुलसी पूजा जरूर करें. कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए यह जानने के साथ-साथ ये भी जानना जरूरी है कि इस दिन क्या नहीं करना चाहिए. इसके लिए भी धर्म और ज्योतिष में कुछ महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं.- कार्तिक पूर्णिमा जैसे पवित्र दिन किसी से बहस न करें. साथ ही किसी को अपशब्द कहने की गलती न करें.- इस दिन नॉनवेज और शराब का सेवन करना जीवन में संकटों का बुलावा देना है.-इस दिन किसी असहाय या गरीब व्यक्ति का अपमान करना पुण्यों को नष्ट करने के लिए काफी है.- इस दिन नाखून और बाल काटने से भी बचना चाहिए.-
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वास्तु शास्त्र में हर दिशा का अपना एक अलग महत्व और देवता बताए गए हैं, जिसके अनुसार, कुबेर देव को उत्तर दिशा का स्वामी बताया जाता है, इसलिए इसे धन दायक दिशा कहा गया है। वास्तु में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है जिन्हें उत्तर दिशा में रखने से धन लाभ होता है और धन संबंधित समस्याओं से निजात मिलती है।
उत्तर दिशा में आईनावास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की उत्तर दिशा में हमेशा हल्का नीला रंग करवाना चाहिए। इसके अलावा घर की उत्तर दिशा में आईना लगाना शुभ माना जाता है। इससे आपके घर में सुचारू रूप से धन का आगमन बना रहता है, और धन संबंधित समस्याओं से निजात मिलती है। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उत्तर दिशा का कोई कोना कटा हुआ नहीं होना चाहिए और न ही इस दिशा की दीवारों में किसी तरह की दरार होनी चाहिए। यदि इस दिशा में किसी तरह की कोई दरार आदि है तो उसे तुरंत ठीक करवाना चाहिए।उत्तर दिशा में तुलसीवास्तु के अनुसार घर की उत्तर दिशा में तुलसी लगाना शुभ रहता है। इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे आपके घर में समृद्धि और शांति बनी रहती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भी घर में तुलसी लगाने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है जिससे आपके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती है।उत्तर दिशा की ओर तिजोरी का मुखवास्तु के अनुसार, तिजोरी या फिर धन रखने की अलमारी को अपने घर में दक्षिण दिशा की दीवार से इस तरह लगाकर रखना चाहिए कि अलमारी की दरवाजा उत्तर दिशा की ओर खुले। इस तरह से तिजोरी रखने से आपके घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है लेकिन इस दिशा में और तिजोरी के आस-पास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।धातु का कछुआवास्तु के अनुसार, घर में समृद्धि के लिए उत्तर दिशा में धातु का कछुआ रखना चाहिए लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि कछुए का मुख घर के भीतर की ओर होना चाहिए। - रायपुर। चार माह बाद 14 जुलाई को देव एकादशी के दिन भगवान उठेंगे। इसी दिन से मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। कोविड के प्रभाव से दूर इस बार शादी-विवाह की धूम रहेगी। नवंबर में सात तो दिसंबर में 06 शादी के मुहूर्त हैं। अगले साल 37 दिनों तक शहनाई बजेगी। पिछले दो साल से कोविड के चलते शादी टाल रहे लोगों के लिए इस बार शादी की ढेरों मुहूर्त हैं। हर महीने शादी के शुभ मुहूर्त हैं।पंडित सुरेंद्र दुबे के मुताबिक 14 नवंबर को देव एकादशी है। मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीने के शयन के बाद कार्तिक माह की एकादशी के दिन जागते हैं। देव एकादशी के बाद से ही रुके हुए मांगलिक कार्य प्रारंभ होंगे। 15 नवंबर को शादी का पहला मुहूर्त है। 15 नवंबर से 14 जुलाई 2022 के बीच कुल 50 शादी के मुहूर्त हैं। सबसे कम मार्च में दो दिन तो सबसे अधिक जनवरी में 8 दिन शहनाई बजेगी।शादी के पंडित सुरेंद्र दुबे के मुताबिक 14 जुलाई तक 50 मुहूर्तनवंबर- 15, 16, 20, 21, 28, 29 व 30दिसंबर- 01, 02, 06, 07, 11 व 13जनवरी- 15, 20, 23, 24, 27, 27, 29 व 30फरवरी- 05, 06, 11, 12, 18, 19 व 22मार्च- 04 व 09अप्रैल- 14, 17, 21 व 22मई- 11, 12, 18, 20 व 25जून- 10, 12, 15 व 16जुलाई- 03, 06, 08, 10, 11 व 14--
- वास्तुशास्त्र के अनुसार घर पर रखी हुई कई चीजों और घर की बनावट से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की ऊर्जाएं प्राप्त होती हैं। जहां एक तरफ सकारात्मक ऊर्जा से हमारा मन प्रसन्न रहता है और घर में सुख समृद्धि का वास होता है, तो वहीं नकारात्मक ऊर्जा से आर्थिक परेशानियां और बीमारियां आती हैं। घर में वास्तुदोष होने पर काम में हमेशा असफलता प्राप्त होती है और मानसिक पीड़ा पीछा नहीं छोड़ती हैं। वास्तुशास्त्र में कुछ उपाय बताए गए हैं जिनको अपनाकर हम घर के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं और घर पर समृद्धि ला सकते हैं।धन लाभ के लिएअगर आपके घर में हमेशा आर्थिक तंगी बनी रहती है तो अपने घर में मां लक्ष्मी और कुबेर की प्रतिमा जरूर रखें। ध्यान रखें आप इन तस्वीरों को हमेशा घर के उत्तर दिशा में लगाएं। धन प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा वास्तु शास्त्र में अच्छी मानी गई है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा में इन तस्वीरों को लगाने पर आर्थिक तंगी से निजात मिल जाती है।सुंदर तस्वीरेंघर की दीवारों पर जहां सुंदर तस्वीरें लगाने पर घर की खूबसूरती बढ़ जाती है वहीं यह धन दौलत में वृद्धि होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के दक्षिण और पूर्व दिशा की दीवारों में प्रकृति से जुड़ी चीजें की तस्वीर लगानी चाहिए।हंसते हुए बच्चे की तस्वीरवास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर हंसते हुए छोटे बच्चों की तस्वीर लगाने से घर पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती रहती है। बच्चों की तस्वीरों को पूर्व और उत्तर की दिशा में लगाना शुभ रहता है।नदी और झरने की तस्वीरघर के उत्तर-पूर्वी दिशा में नदियों और झरनों की तस्वीर लगाने से घर पर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है। यदि आपने घर में पूजा घर बना रखा है तो शुभ फलों की प्राप्ति के लिए उसमें नियमित रूप से पूजा होनी चाहिए एवं दक्षिण-पश्चिम की दिशा में निर्मित कमरे का प्रयोगपूजा-अर्चना के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
- लोक आस्था के महापर्व की शुरुआत आज से हो गई है। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पूजा बिहार और झारखंड के निवासियों का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसका उत्सव पूरे उत्तर भारत में देखने को मिलता है। सूर्य देव की उपासना के छठ पूजा पर्व को प्रकृति प्रेम और प्रकृति पूजा का सबसे उदाहरण भी माना जाता है। छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाय के साथ शुरू होता है। आज व्रती नहाय-खाय के दौरान चावल, चने की दाल और लौकी (घीया) की सब्जी खा कर व्रत को शुरू करने के साथ दूसरे दिन खरना की तैयारी भी शुरू करेंगे। नहाय खाय के अगले दिन उपवास रख व्रती खरना पूजन करती हैं। इसके अगले दिन भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य शाम को दिया जाता है। छठ के अंतिम दिन प्रात:काल उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसके साथ ही चार दिवसीय अनुष्ठान पूरा हो जाता है।नहाए खाए के साथ शुरु होने वाला छठ पूजा का पहला दिन 8 नवंबर, 2021 को है। छठ का दूसरा दिन खरना 9 नवंबर को है। छठ पूजा में खरना का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और रात में खीर का प्रसाद ग्रहंण किया जाता है। छठ का तीसरा दिन छठ पूजा या संध्या अध्र्य 10 नवंबर 2021, दिन बुधवार को है। षष्ठी तिथि 9 नवंबर 2021 को शुरु होकर 10 नवंबर को 8:25 पर समाप्त होगी।छठ पूजा की विधिछठ पूजा की शुरुआत षष्ठी तिथि से दो दिन पूर्व चतुर्थी से हो जाती है जो आज है। आज चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय मनाई जा रही है। नहाय-खाय के दिन लोग घर की साफ-सफाई और पवित्र करके पूरे दिन सात्विक आहार लेते हैं। इसके बाद पंचमी तिथि को खरना शुरू होता है जिसमें व्रती को दिन में व्रत करके शाम को सात्विक आहार जैसे- गुड़ की खीर या कद्दू की खीर आदि लेना होता है। पंचमी को खरना के साथ लोहंडा भी होता है जो सात्विक आहार से जुड़ा है।छठ पूजा के दिन षष्ठी को व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है। ये व्रत खरना के दिन शाम से शुरू होता है। छठ यानी षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते सूर्य को अध्र्य देकर अगले दिन सप्तमी को सुबह उगते सूर्य का इंतजार करना होता है। सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही करीब 36 घंटे चलने वाला निर्जला व्रत समाप्त होता है। छठ पूजा का व्रत करने वालों का मानना है कि पूरी श्रद्धा के साथ छठी मइया की पूजा-उपासना करने वालों की मनोकामना पूरी होती है।छठ पूजा से जुड़ी मान्यताएंइस व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं। नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत काल से ही हो गई थी। एक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने चार दिनों के इस व्रत को किया था।इस पर्व पर भगवान सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था। इसके साथ ही एक और मान्यता प्रचलित है कि इस छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वे पानी में घंटो खड़े रहकर सूर्य की उपासना किया करते थे। जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें महान योद्धा बनने का आशीर्वाद दिया था।
- अगर आपकी लाइफ में प्रॉब्लम खत्म होने का नाम नहीं लेती तो हम आपको कुछ आसान टिप्स बता रहे हैं. ये टिप्स फेंगशुई से जुड़े हुए हैं. फेंगशुई में ऐसे कई टिप्स हैं जो आपकी प्रॉब्लम्स तो दूर करते ही हैं साथ में इन्हें करना काफी आसान भी होता है. जानिए कैसेजानें क्या होता है फेंगशुईआपको बता दें कि कि आजकल घर पर चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई के सामान रखने का चलन धीरे- धीरे बढ़ता ही जा रहा है. फेंगशुई दो शब्दों से मिलकर बना है. फेंग यानी वायु और शुई यानी जल. फेंगशुई शास्त्र जल और वायु पर आधारित है. फेंगशुई के उपाय करने पर घर से वास्तु दोष संबंधी तमाम तरह की परेशानियों का अंत हो जाता है. घर पर सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिए बाजार में इस समय कई तरह के फेंगशुई की वस्तुएं मिलती हैं जिसको घर पर लाने से शुभ फल की प्राप्ति होता है. आप फेगुशुई के इन टिप्स को फॉलो कर सकते हैं.अपनाइए ये टिप्स1.फेंगशुई के अनुसार अगर आपकी लाइफ में जॉब या बिजनेस से जुड़ी हुई कोई प्रॉब्लम हो तो आप घर में लाफिंग बुद्धा ले आइए. इस बात का ख्याल रखें कि ऐसा लाफिंग बुद्धा रखें जिसके हाथ ऊपर की ओर खड़े हुए हों.2.वहीं अगर आपकी किस्मत साथ न दे रही हो, ऑफिस और बिजनेस में केवल लॉस ही लॉस हो रहा हो या फिर क्लेश बढ़ रहा हो तो आप लाफिंग बुद्धा की लेटी हुई मुद्रा वाली मूर्ति ले आइए. इससे आपका बैड लक गुड लक में बदल जाएगा.3.अगर आपके घर-गृहस्थी में कोई दिक्कत हो या फिर अक्सर कोई बीमार रहता हो तो इसका सॉल्यूशन भी फेंगशुई में है. फेंगशुई के मुताबिक ऐसे जातकों को अपने घर पर नाव पर बैठे हुए लाफिंग बुद्धा की मूर्ति रखनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी सेहत अच्छी रहती है और घर में चल रही दिक्कतें भी दूर हो जाती हैं.
- दिवाली का त्योहार अभी-अभी बीता है. दिवाली को लोगों ने बहुत ही खुशी और सौहार्द से बिताया है. इस त्योहार का लोग पूरे वर्ष प्रतीक्षा करते हैं. रौशनी से जगमग पूरा देश बहुत ही सुंदर दिखाई देता है. इस दिन सबके घरों में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती है. परंपरा का ये अनोखा संगम भारत में ही नजर आ सकता है.इस दिन, भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा सुख और समृद्धि के लिए की जाती है.लाभ पंचमी का दिन हिंदुओं में एक शुभ दिन है जो लाभ और सौभाग्य से जुड़ा है. ये त्योहार गुजरात राज्य में लोकप्रिय है और दिवाली समारोह के अंतिम दिन का प्रतीक है. ये पारंपरिक गुजराती कैलेंडर के कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है.लाभ पंचमी 2021: तिथि और समयलाभ पंचमी मंगलवार, नवंबर 9,2021प्रथम कला लाभ पंचमी, पूजा मुहूर्त 06:39 से 10:16पंचमी तिथि 08 नवंबर, 2021 – 13:16 . से शुरू हो रही हैपंचमी तिथि 09 नवंबर, 2021 को समाप्त – 10:35लाभ पंचमी 2021: महत्वलाभ पंचमी को सौभाग्य पंचमी, ज्ञान पंचमी और सौभाग्य- लाभ पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. सौभाग्य का अर्थ है सौभाग्य और लाभ है, इसलिए ये दिन सौभाग्य और लाभ से जुड़ा है.इस दिन नए उद्यम शुरू करना अत्यधिक फायदेमंद माना जाता है. गुजरात में लाभ पंचमी नए साल का पहला कार्य दिवस है इसलिए व्यवसायी इस दिन नया खाता बही या ‘खाटू’ खोलते हैं. पृष्ठ के मध्य में वो बाईं ओर ‘साथिया’ बनाते हैं ‘शुभ’ और दाईं ओर ‘लाभ’ लिखा होता है.लाभ पंचमी 2021: अनुष्ठान– जो लोग दिवाली पर नहीं कर पाते हैं, वो लाभ पंचमी के दिन शारदा पूजन करते हैं.– व्यवसायी समुदाय के लोग अपने कार्य स्थल खोलकर अपनी नई खाता बही की पूजा करते हैं.– माता लक्ष्मी पूजा समृद्धि और दिव्य आशीर्वाद के लिए की जाती है.– कुछ लोग अपनी बुद्धि को बढ़ाने के लिए उनकी पुस्तकों की पूजा करते हैं.– लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाते हैं और बधाई और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं.– इस दिन दान और चैरिटी का काम बहुत फलदायी माना जाता है.– कुछ जगहों पर गणपति मंदिरों को सजाया जाता है और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है.
- 19 नवंबर को होगा ग्रहणइस साल का दूसरा और आखिरी चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को लगने जा रहा है. इस दिन कार्तिक पूर्णिमा भी होगी. कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है. ज्योतिष मुताबिक 19 नबंवर 2021 को लगने वाला चंद्र ग्रहण भारतीय समय के अनुसार दोपहर लगभग 11 बजकर 30 मिनट पर लगेगा. इस ग्रहण का समापन शाम 05 बजकर 33 मिनट पर होगा. कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला यह चंद्र ग्रहण आंशिक रहेगा. अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ हिस्सों को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में इस ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा.भारत में लगेगा आंशिक चंद्र ग्रहणआंशिक चंद्र ग्रहण होने की वजह से उस दौरान सूतक नहीं लगेगा. मान्यता है कि सूतक काल में शुभ कार्य नहीं किए जाते और गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है. हालांकि आंशिक ग्रहण होने की वजह से लोग सूतक काल के प्रभावों से मुक्त रहेंगे. ये चंद्र ग्रहण वृष राशि में लगेगा, जिस कारण वृष राशि वालों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है.ग्रहण के पीछे की ये है पौराणिक कथापौराणिक कथाओं के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान स्वर्भानु नामक एक दैत्य ने छल से अमृत पीने की कोशिश की थी. तभी चंद्रमा और सूर्य ने उसे देख लिया. उन्होंने इस बात की जानकारी भगवान विष्णु को दी तो अपने सुर्दशन चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया. हालांकि तब तक अमृत की कुछ बूंद गले से नीचे उतरने के कारण वह दैत्य दो दैत्यों में बंट गया. धड़ वाले हिस्से को केतु और सिर वाले हिस्से राहु कहा गया.सूर्य- चंद्रमा पर करते रहते हैं हमलामान्यता है कि इस घटना के बाद से बदला लेने के लिए राहु-केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा पर हमला करते रहते हैं. उनके प्रभाव की वजह से सूर्य और चंद्रमा कुछ देर के लिए अपनी शक्ति खो बैठते हैं. इसी घटना को ग्रहण कहा जाता है. चूंकि धर्म शास्त्रों में इस घटना को अशुभ घटना माना जाता है. इसलिए उस दौरान शुभ कार्य पूरी तरह वर्जित रहते हैं.
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हिंदू धर्म में पूजा-पाठ में शंख के उपयोग का बहुत महत्व है. कई घरों में तो पूजा के बाद रोजाना शंख बजाया जाता है. शंख बजाने से पूरे माहौल में सकारात्मकता आती है. लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि शंख के और भी कई फायदे हैं, जो कि न केवल पूजा-पाठ बल्कि हमारी सेहत और धन से भी जुड़े हुए हैं. यहां तक कि कुछ फायदे तो चमत्कारिक हैं. आइए जानते हैं समुद्र मंथन से निकले शंख को घर में रखने से कितने फायदे होते हैं.
बहुत काम का है शंख
- शंख एक ऐसी चीज है जिसे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों ही धारण करते हैं. जिस घर में शंख होता है, वहां इन दोनों भगवान की कृपा रहती है.
- धनवान बनने के लिए तो शंख बहुत काम का है क्योंकि माता लक्ष्मी को शंख बेहद प्रिय है शुक्रवार के दिन लक्ष्मी जी की पूजा करके शंख बजाने से घर में सुख-समृद्धि आती है
- शंख में जल भरकर माता लक्ष्मी और शिवलिंग का अभिषेक करने से वे प्रसन्न होते हैं और सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
- घर की नकारात्मकता दूर करने के लिए शंख में जल भरकर पूरे घर में छिड़कें.
- शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं. यदि अस्थमा के मरीज रोजाना शंख बजाएं तो उन्हें बहुत लाभ होता है.
- जिन लोगों को हड्डियों संबंधी समस्या हो उन्हें शंख में रखा हुआ पानी पीना चाहिए. इससे बहुत राहत मिलती है. इस पानी में कैल्शियम, फास्फोरस और गंधक होता है जो हड्डियों को मजबूत करता है.
- जिन घरों में वास्तु दोष हों, वहां रोजाना शंख बजाने से वास्तु दोष नष्ट होते हैं और घर में रहने वाले लोगों के सुख में वृद्धि होती है. - वास्तु शास्त्र बहुत ही प्राचीन शास्त्र है। इसमें जीवन को सुखी और संपन्न बनाने के लिए बहुत से नियम व महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। वास्तु में दिशाओं और ऊर्जा का बहुत महत्व बताया गया है। वास्तु कहता है कि यदि घर में की किसी दिशा में दोष हो या गलत निर्माण किया गया हो तो घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। इसका प्रभाव आपके पारिवारिक जीवन से लेकर कार्यक्षेत्र तक पर पड़ने लगता है। जिसके कारण आपके घर में कलह-क्लेश और आर्थिक तंगी जैसी समस्याएं होने लगती हैं। वास्तु शास्त्र में कई उपाय बताए गए हैं जिनको करने से रूपये-पैसों से संबंधित समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं उपाय।आज के समय में लोगों का रहन-सहन व घरों का आकार बदल गया है लेकिन पहले के समय में हिंदू धर्म को मानने वाले ज्यादातर लोगों के घरों के आंगन में तुलसी का पौधा जरूर लगा होता था। महिलाएं प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर नियमित रूप से तुलसी की पूजा करती थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी का पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इसी के साथ वास्तु में भी तुलसी का बहुत महत्व माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि तुलसी को सही स्थान और सही दिशा में लगाया जाए तो घर में सकारात्मकता का वास होता है व वास्तु दोष दूर करने में भी तुलसी सहायक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की बालकनी की उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में तुलसी के पांच पौधे लगाने चाहिए। इससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। आज के समय में जगह की कमी होने के कारण लोग अपनी छत के सबसे ऊपर तुलसी लगा देते हैं लेकिन वास्तु के अनुसार यह सही नहीं माना जाता है, इससे आपको धन हानि उठानी पड़ सकती है।यदि आपके घर में कोई खराब नल है जिससे हर समय पानी टपकता रहता है तो उसे तुरंत ठीक करवाना चाहिए, क्योंकि उससे पानी की बर्बादी तो होती ही है इसी के साथ आपके घर में रूपये-पैसों की कमी भी होने लगती है।वास्तु शास्त्र में हरे-भरे पौधे लगाना बहुत अच्छा माना जाता है क्योंकि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है, लेकिन घर में कांटेदार या फिर दूध निकलने वाले पौधे नहीं लगाने चाहिए। इसी के साथ नकली पौधे भी लगाने से बचें।घर में हवा और सूर्य की रोशनी का उचित प्रबंध होना चाहिए, इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, साथ ही रोगों के पनपने की आशंका भी बहुत कम हो जाती है।
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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdashi) का त्योहार होता है. इसे नरक चौदस और छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराया था. इसीलिए इस दिन को नरक चौदस (Narak Chaudas) के नाम से जाना जाता है. इस बार रूप चतुर्दशी 3 नवंबर को बुधवार के दिन होगी. इस दिन सुबह के समय शरीर पर उबटन लगाने और तेल मालिश करने का विशेष महत्व है. इसके बाद शाम को यमदीप जलाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से सौंदर्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है और नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है. यहां जानिए कैसे शुरू हुआ शरीर पर उबटन और तेल मालिश का चलन.
ये है पौराणिक कथा
द्वापरयुग में नरकासुर नामक राक्षस ने चारों ओर हाहाकार मचा रखा था. उसने इस दौरान 16100 रानियों को बंधक बना लिया था और ऋषि मुनियों को प्रताड़ित करता था. उसके घोर आतंक से मुक्ति पाने के लिए सभी देवता भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए. चूंकि नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण उसका वध करने के लिए अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गए. इसके बाद उसका वध किया और 16100 स्त्रियों को वहां से मुक्त कराया. मुक्त होने के बाद वे सभी महिलाएं श्रीकृष्ण से हाथ जोड़कर कहने लगीं कि अब समाज में उन्हें कोई स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए प्रभु अब आप ही बताएं कि हम कहां जाएं. उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण भगवान ने उन 16100 रानियों से विवाह करके उनका उद्धार किया. इसके बाद इन सभी स्त्रियों को कृष्ण की पटरानियों के तौर पर जाना जाने लगा.
चौदस तिथि के दिन नरकासुर की मृत्यु के बाद सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस दिन को एक पर्व के रूप में मनाया. इसके बाद से इस दिन को नरक चौदस और नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा. नरक नरकासुर की कैद में रहकर उन सभी स्त्रियों का रूप खो चुका था, ऐसे में उन स्त्रियों ने उबटन लगाकर और तेल मालिश करके अपने शरीर को स्वच्छ किया और 16 श्रंगार किया था. इस उबटन से उनका रूप निखर आया था. तब से रूप चतुर्दशी के दिन सरसों के तेल की मालिश और उबटन लगाने का चलन शुरू हो गया. मूाना जाता है कि जो महिलाएं इस दिन उबटन लगाती हैं और तेल से शरीर की मसाज करती हैं, उन्हें श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मणी से आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है. - भगवान विष्णु की प्रिया महालक्ष्मी जी के स्वागत में कई-कई दिनों पहले से ही हम तैयारियों में जुट जाते हैं। घरों और व्यापारिक संस्थानों की साफ-सफाई, रंग-रोगन के उपरांत खूब सजाया जाता है। धन-वैभव, ऐश्वर्य और सौभाग्य की कामना से दीपावली पर मां लक्ष्मी, रिद्धि-सिद्धि के प्रदाता श्रीगणेश जी और धन के देवता कुबेर का पूजन अन्य देवी-देवताओं सहित किया जाता है। दीपावली की सजावट में शुभता का प्रतीक मानी जाने वाले तोरण और दीए इनका भी अपना विशेष महत्व होता है। यदि वास्तु नियमों के अनुसार दिशाओं और रंगों को ध्यान में रखकर कार्यस्थल या घर की सजावट की जाए तो निश्चित रूप से हमें शुभ परिणाम प्राप्त होंगे एवं खुशियां, सफलता और समृद्धि हमारे जीवन में दस्तक देंगी।मुख्य द्वार पर बाँधने वाले तोरण को बंधनवार भी कहा जाता है। मां लक्ष्मीजी के स्वागत में व इन्हें प्रसन्न करने के लिए दरवाजे पर इसे बांधना शुभ माना गया है। तोरण का चयन घर की दिशा अनुसार, रंगों और आकार को ध्यान में रखकर करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि आपके घर का मुख्य द्वार पूर्व में है तो हरे रंग के फूलों और पत्तियों का तोरण लगाना सुख-समृद्धि को आमंत्रित करता है। धन की दिशा उत्तर के मुख्य द्वार के लिए नीले या आसमानी रंग के फूलों का तोरण लटकाना चाहिए।यदि घर का प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में है तो लाल, नारंगी या इससे मिलते-जुलते रंगों से द्वार को सजाना चाहिए। पश्चिम के मुख्य द्वार के लिए पीले रंग के फूलों के तोरण लाभ और उन्नति में सहायक होंगे। ध्यान रहे पूर्व और दक्षिण के द्वार पर किसी भी धातु से बने तोरण को नहीं लगाना चाहिए।पश्चिम और उत्तर दिशा के द्वार पर धातु का तोरण लगाया जा सकता है। इसी प्रकार उत्तर, पूर्व और दक्षिण दिशा में बने प्रवेश द्वार पर लकड़ी का तोरण लगाया जा सकता है,लेकिन पश्चिम दिशा में लकड़ी से बने तोरण को लगाने से बचना चाहिए।आम और अशोक के ताज़ा पत्तों से बनी बंधनवार आप किसी भी दिशा में लगा सकते हैं,पर ध्यान रहे कि ताजा फूलों अथवा पत्तियों के बंधनवार जब सूखने लगे तो उसे हटा देना चाहिए। सूखी या मुरझाई हुई हुई बंधनवार नकारात्मक ऊर्जा फैलाती है।दीपावली की पूजा में गाय का घी,सरसों या तिल के तेल से दीपक जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा दूर होकर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, घर में समृद्धि आती है एवं परिवार के लोगों को यश एवं प्रसिद्धि मिलती है। वास्तु नियमों के अनुसार अखंड दीपक पूजा स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए,इस दिशा में दीपक रखने से धन का आगमन होता है एवं शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।दीपावली के दिन लक्ष्मीजी की पूजा के दीपक उत्तर दिशा में रखने से घर धन-धान्य से संपन्न रहता है। दीपक जलाने के बारे में कहा जाता है कि सम संख्या में जलाने से ऊर्जा का संवहन निष्क्रिय हो जाता है,जब कि विषम संख्या में दीपक जलाने पर वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। यही वजह है कि धार्मिक कार्यों में हमेशा विषम संख्या में दीपक जलाए जाते हैं।ध्यान रखें कि यदि मिटटी का दीप जला रहें हैं तो दीप साफ हो और कहीं से टूटे हुए न हो।किसी भी पूजा में टूटा हुआ दीपक अशुभ और वर्जित माना गया है। गाय के घी का का दीपक जलाने से आस-पास का वातावरण रोगाणुमुक्त होकर शुद्ध हो जाता है। दीपक से हमें जीवन के उर्ध्वगामी होने, ऊँचा उठने और अज्ञानरूपी अन्धकार को मिटा डालने की प्रेणना मिलती है। दीपक की लौ के संबंध में मान्यता है कि उत्तरदिशा की ओर लौ रखने से स्वास्थ्य और प्रसन्नता बढ़ती है,पूर्व दिशा की ओर लौ रखने से आयु की वृद्धि होती है।
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डॉ विनीत शर्मा
नरक चतुर्दशी का पावन पर्व धनतेरसके अगले दिन यानी छोटी दीबपावली को मनाया जाता है. इस बार नरक चतुर्दशी 3 नवंबर 2021, बुधवार को है.।
धनतेरस के दूसरे दिन नरक चौदस का पर्व है. इसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है. यह दीपावली महापर्व (Diwali Festival) का दूसरा शुभ दिन है. आज के दिन हस्त नक्षत्र विष्कुंभ योग आनंद योग अवकरण का सुंदर संयोग बन रहा है. शुभ द्वार के दोनों तरफ लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए दीपक जलाए जाते हैं. घर अथवा दुकान के सभी कोनों में दीपक जलाने का विधान है. इस दिन मुख्य रूप से यम की पूजा (Worship of yama) की जाती है. आज पंच देवों के साथ यम देवता की भी पूजा होती है।.
नरक चतुर्दसी और रूप चौदस पर कैसे करें पूजायह भी पढ़ें: Narak Chaturdashi 2021: इस दिन रूप के निखार से जुड़ी हैं कई मान्यताएंरूप चौदस के दिन कृष्ण की पूजा आरती व्रत करने पर जीवन में निखार आता है और सौंदर्य में भी वृद्धि होती हैं. इसलिए इसे रूप चतुर्दशी का पर्व भी मानते हैं. इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर अभ्यंग अर्थात पूरे शरीर में मालिश करने का विधान है. सरसों अथवा तिल के तेल से विधि पूर्वक आस्था के साथ संपूर्ण शरीर को मालिश किया जाता है. इसके बाद सरोवर आदि में जाकर स्नान करने का विधान है. सूर्योदय के पूर्व स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. ऐसी मान्यता है.
आज के दिन यमराज की भी विशेष पूजा की जाती है. आज दक्षिण दिशा में विशेष रुप से दीपक जलाकर प्रकाशित किया जाता है. द्वार के दोनों ओर घी का दीपक लगाने के बाद द्वार के बाहर चतुर्मुख यम का दीपक लगाने का विधान है. इस चतुर्मुख दीपक को भवन या व्यापारिक प्रतिष्ठान के चारों कोनों में भी लगाया जाता है. जिससे पितरों का आशीष मिलता है. आज के दिन पितरों की भी पूजा की जाती है. आज के शुभ पर्व पर राम भक्त हनुमान जी की भी पूजा की जाती है. जो लोग हनुमान की पूजा करते हैं उनके रूप सौंदर्य पराक्रम और तेज में वृद्धि होती है. आज के शुभ दिन अपामार्ग या चिरचिरा को शरीर में तीन बार घुमाने का भी विधान है. इससे संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं.
कब है नरक चतुर्दशी या रूप चौदस 2021हिंदू पंचांग के अनुसार नरक चतुर्दशी का पावन पर्व 3 नवंबर 2021, बुधवार को है. इस दिन यम देव की पूजा अर्चना करने से नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है और अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है.नरक चतुर्दशी 2021 का शुभ मुहूर्त
सुबह 5:02 से लेकर सुबह 5:50 तक अमृत कालदोपहर 1:55 से लेकर दोपहर 3:22 तक गोधूलि बेला मुहूर्तशाम 5:05 से लेकर शाम 5:29 तक विजय मुहूर्तरात 11:16 से लेकर रात 12:07 यमराज पूजन का विशेष महत्व है.
नरक चतुर्दशी या काली चौदस की पूजा विधिसूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इस उस दिन पंच देवों के साथ छठ में देवता यम की भी पूजा करने का बहुत विधान है आज के दिन दक्षिण दिशा में विशेष रूप से दीपक जलाने का विधान हैआज के दिन व्रत उपवास स्नान और ध्यान करने से यम देवता प्रसन्न होते हैं। - दिवाली के मौके पर घर-दुकानों, ऑफिस आदि की जमकर सजावट की जाती है। सजावट में बंदनवार, लाइटिंग, फूलों आदि कई चीजों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इस दौरान मुख्य द्वार पर कुछ खास चीजें लगा ली जाएं तो पूरे साल घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। घर के सदस्य पूरे साल तरक्की और धन लाभ पाते हैं। लिहाजा दिवाली के मौके पर मां लक्ष्मी के आगमन के लिए घर की सजावट करते समय इन चीजों का उपयोग जरूर करें। इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।सजावट में इन चीजों का करें इस्तेमालस्वास्तिकघर के मुख्य दरवाजे पर स्वास्तिक होना बहुत शुभ होता है। यह पूरे साल घर में सुख-समृद्धि बनाए रखता है। संभव हो तो चांदी का स्वास्तिक दरवाजे पर लगाए़ं। यदि ऐसा न हो सके तो रोली से स्वास्तिक बना लें। इससे घर में नकारात्मकता भी प्रवेश नहीं करती है।लक्ष्मी जी के चरणदिवाली के मौके पर घर के मैन गेट पर लक्ष्मी जी के चरण जरूर लगाएं। ख्याल रखें कि चरण घर के अंदर की ओर आते हुए हों। ऐसा करना बहुत शुभ होता है और पूरे साल मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं।चौमुखा दीपकदिवाली के समय घर के दरवाजे पर चौमुखा दीपक जरूर जलाएं। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होगी और घर में खुशहाली रहेगी।तोरणभले ही सजावट के लिए ताजे फूलों या प्लास्टिक के फूलों का इस्तेमाल कर रहे हों लेकिन घर के मैन गेट पर आम और केले के पत्तों का तोरण लगाना न भूलें। संभव हो तो पांचों दिन ये तोरण लगा रहने दें।रंगोलीघर के बाहर सजावट और सुंदरता के लिए रंगोली बनाई जाती है लेकिन इसका महत्व सुंदरता से कहीं ज्यादा है। घर में सुख-समृद्धि लाने के लिए रंगोली के पास एक कलश में पानी भी भरकर रख दें।
- दीपावली को खास रूप से मां लक्ष्मी और गणेशजी की पूजा अर्चना की जाती है. कहते हैं कि दिवाली पर मां लक्ष्मी घरों में आती है, यही कारण है कि कई दिन पहले से ही लोग इस त्योहार की तैयारियों में जुट जाते हैं. इस कारण से घर में साफ-सफाई, रंग-रोगन आदि को महत्व दिया जाता है. कहते हैं कि जिस घर में सफाई और साज सज्जा जैसी चीजे होती हैं, मां लक्ष्मी वहीं वास करती हैं.दीपावली का हिंदू धर्म में खास महत्व होता है. इस त्योहार को देश के हर एक कोने में मनाया जाता है. आपको बता दें कि दीपावली की सजावट में शुभता का प्रतीक तोरण और दीए को माना जाता है, इनका एक अपना विशेष महत्व होता है.वास्तु नियमों के अनुसार तोरण घर में शुभता का रूप होती है, जिससे खुशियां, सफलता और समृद्धि हमारे जीवन में दस्तक देती है.ऐसे बांधें बंधनवारमुख्य द्वार पर बाँधने वाले तोरण को बहुत से लोग बंधनवार भी कहते हैं. कहते हैं कि बंधनवार को मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए लगाया जाता है.यही कारण है लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए दरवाजे पर इसे बांधना शुभ माना गया है.कैसे तोरण को द्वार पर लगाएंजब भी आप अगर बाजार से तोरण खरीदें तो इसके रंगों आदि पर खास ध्यान दें. यदि आपके घर का मुख्य द्वार पूर्व में है तो आपको हरे रंग के फूलों और पत्तियों का तोरण लगाना चाहिए इससे जीवन में खुशियां आती हैं. उत्तर के मुख्य द्वार के लिए नीले या आसमानी रंग के फूलों का तोरण लगाना चाहिए.दक्षिण दिशा में अगर घर का प्रवेश द्वार है तो लाल, नारंगी या इससे मिलते-जुलते रंगों का ही तोरण होना चाहिए. जबकि पश्चिम दिशा के द्वार पर पीले रंग के फूलों के तोरण लाभ शुभ होता है. वहीं अगर आप चाहें तो केवल आम के पत्तों का तोरण भी लगा सकते हैं ये काफी शुभ और लाभदाक होता है. एक बात याद रखें कि ताजा फूलों अथवा पत्तियों के बंधनवार जब भी सूख जाए तो हटा देना चाहिए. सूखी या मुरझाई हुई हुई बंधनवार नकारात्मक ऊर्जा पैदा करती है, और जीवन में शारीरिक परेशानी का सामना करना पड़ता है.सकारात्मक ऊर्जा देता है दीपकदीपावली की पूजा में गाय का घी दीपक जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, इससे घर में सुख, समृद्धि आती है. जबकि वास्तु नियमों के अनुसार अखंड दीपक भी आप अगर आप पूजा घर में जलाती हैं तो जीवन में खुशियों का आगम होता है और मां लक्ष्मी की कृपा होती है.दीपावली के दिन लक्ष्मीजी की पूजा के लिए उत्तर दिशा में दीपक जलाने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है. दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा की समाप्ति होती है और सकारात्मक ऊर्जा के साथ सुख समृद्धि का घर में आगमन होता है.अगर आप पूजा में मिट्टी की दीपक जलाते हैं तो वह टूटा हुआ नहीं होना चाहिए. टूटा हुई दीपक घर में अशुभ माना जाता है. गाय के घी का का दीपक जलाने से आस-पास का वातावरण रोगाणुमुक्त होकर शुद्ध हो जाता है.
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दिवाली का महापर्व अपने साथ एक नहीं 5 पर्व लेकर आता है. इस महापर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है और भाईदूज पर समापन होता है. इन पांचों दिनों का अपना-अपना महत्व है और हर दिन के लिए पूजा-उपाय बताए गए हैं. यदि इन पांचों दिन विधिवत पूजा की जाए और कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो जिंदगी से सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं. साथ ही पूरे साल घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इस साल 4 नवंबर 2021 को दिवाली मनाई जाएगी. चंडीगढ़ के ज्योतिषाचार्य से जानते हैं पांचों दिन का महत्व और पूजा के शुभ मुहूर्त---
पांचों दिन की पूजा के शुभ मुहूर्त
धनतेरस (2 नवंबर 2021): धनतेरस का पर्व कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाते हैं. इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और आरोग्य का आशीर्वाद देने वाले भगवान धनवंतरि की विशेष पूजा की जाती है. यह दिन खरीदी करने के लिए अत्यंत ही शुभ माना जाता है. धनतेरस पर प्रदोषकाल में यमराज के लिए चौमुखा दीपक मुख्य द्वार पर जलाया जाता है. इस साल यह पावन पर्व 2 नवंबर 2021 को पड़ रहा है. साथ ही पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 06:18 बजे से रात के 08:11 बजे तक रहेगा.
नरक चतुर्दशी (3 नवंबर 2021): दीपावली महापर्व का दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का होता है, इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है. इस साल 3 नवंबर 2021 को यह पर्व मनाया जाएगा. इस दिन नरक से जड़े दोष से मुक्ति पाने के लिए शाम के समय द्वार पर दिया जलाया जाता है. साथ ही घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति पाने की कामना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर उबटन लगाकर स्नान करने से रुप एवं सौंदर्य में वृद्धि होती है. इस साल उबटन और तेल लगाने का शुभ समय सुबह 06:06 बजे से 06:34 तक है.
दीपावली (4 नवंबर 2021): दीपों से जुड़ा महापर्व दीपावली इस साल 4 नवंबर 2021 को मनाया जायेगा. इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी, ऋद्धि-सिद्धि के देवता गणपति, धन के देवता कुबेर के साथ महाकाली की पूजा का विधान है. सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए इन सभी देवी-देवताओं की रात्रि में साधना-आराधना की जाती है और उनके स्वागत में विशेष रूप से दीप जलाए जाते हैं. दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम 06:10 से रात के 08:06 बजे तक है.
गोवर्धन पूजा (5 नवंबर 2021): दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पावन पर्व मनाया जाता है. इस साल यह पर्व 5 नवंबर 2021 को है. इसे अन्नकूट उत्सव भी कहते हैं. इस दिन घर की गाय और अन्य जानवरों के साथ गोवर्धन की पूजा का बहुत महत्व है. इस दिन घरों एवं मंदिरों आदि में गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजे जाते हैं. इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं. इस साल गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06:35 से 08:47 मिनट तक है.
भाई दूज (6 नवंबर 2021): दिवाली महापर्व के आखिरी दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई की आरती उतारकर उनका तिलक करती हैं. भाई उन्हें उपहार देता है. मान्यता है कि इस दिन यमुना नदी में स्नान करने या यमुना जल मिले पानी से स्नान करने से बहुत पुण्य मिलता है. इस पर्व को यम द्वितीया भी कहते हैं. 6 नवंबर को भाई दूज मनाने का शुभ समय दोपहर 01:10 से 03:21 बजे तक है. -
साल के महापर्व दिवाली के लिए अब उल्टी गिनती शुरू हो गई है. कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाई जाने वाली दिवाली 4 नवंबर 2021, गुरुवार को है. इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश और मां सरस्वती की पूजा की जाती है. दिवाली के दिन को धर्म-शास्त्र से लेकर ज्योतिष और वास्तु शास्त्र आदि में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इस दिन किए गए उपाय बहुत प्रभावी नतीजे देते हैं. दिवाली के दिन उपाय करके पूरे साल सुख-समृद्धि, सेहत पा सकते हैं, साथ ही अपने परिवार की तमाम परेशानियों से रक्षा भी कर सकते हैं.
बुरी नजर से बचाएगा सिंदूर-सरसों का उपाय
दिवाली के दिन सिंदूर और सरसों के तेल का एक उपाय करके घर के कई वास्तु दोष दूर कर सकते हैं. साथ ही आने वाली मुसाबतों से बचाव कर सकते हैं. इसके अलावा यह उपाय करने से मां लक्ष्मी और शनि देव की कृपा भी बनी रहती है. इसके लिए दिवाली के दिन सरसों के तेल और सिंदूर को मिलाकर घर के मैन गेट पर तिलक लगाएं. चाहें तो इससे स्वास्तिक बनाएं. ऐसा करना घर को बुरी नजर से बचाता है. साथ ही घर में सौभाग्य लाता है.
घर के लोगों की होती है तरक्की
सिंदूर और सरसों के तेल का यह एक उपाय घर के सदस्यों को तरक्की दिलाता है. वहीं शनि के बुरे असर से बचाते हैं. खासकर जिन जातकों पर शनि की ढैय्या या साढ़े साती चल रही हो, उन्हें यह उपाय जरूर कर लेना चाहिए. शनि की महादशा के दौरान जातकों को करियर, आर्थिक स्थिति, वैवाहिक जीवन, सेहत संबंधी कई परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. यह उपाय उनके इन संकटों को कम करेगा. शनि की महादशा झेल रहे जातक इस दिन हनुमान मंदिर में भी सरसों के तेल का दीपक लगाएं तो उन्हें बहुत राहत मिलेगी. शनि के बुरे असर को कम करने में हनुमान जी की आराधना बहुत असर दिखाती है. -
गरुड़ पुराण में जिंदगी और मौत से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में बताया गया है. धर्म-शास्त्रों के मुताबिक गरुड़ पुराण (Garuda Purana) में बताई गईं बातें भगवान विष्णु द्वारा कही गईं हैं, जिस तरह गीता में लिखी बातें भगवान श्रीकृष्ण के मुखारबिंद से निकली हैं.
गरुड़ पुराण के मुताबिक व्यक्ति अपने कर्मों के हिसाब से फल पाता है और यदि वह कोई ऐसा काम करे जो महापाप (Sins) हो तो वह न केवल जीते जी नर्क जैसी जिंदगी जीता है, बल्कि मरने के बाद भी नर्क में कष्ट-यातनाएं भोगता है. लिहाजा किसी भी इंसान को गरुड़ पुराण में बताए गए ये 6 महापाप (MahaPaap) गलती से भी नहीं करना चाहिए.
महापाप हैं ये काम
- वैसे तो किसी भी महिला का अपमान करना पाप है लेकिन गर्भवती स्त्री का अपमान करना या उसके साथ अनैतिक काम करना महापाप है. ऐसे लोगों की जिंदगी जीते जी ही नर्क बन जाती है.
- कोख में पल रहे बच्चे, गर्भवती महिला या नवजात बच्चे की हत्या करना भी महापाप है. ऐसे लोग नर्क में बहुत बुरी यातनाएं भोगते हैं.
- अपने करीबी संबंधी, मित्र की पत्नी के साथ अनैतिक काम करना भी महापाप की श्रेणी में आता है. इन लोगों को भी नर्क में बहुत कष्ट भोगने पड़ते हैं.
-बुजुर्ग, असहाय, विकलांगों का मजाक उड़ाने वाले, उन्हें कष्ट देने वाले या उनके साथ गलत काम करने वालों को भी नर्क में कठोर सजाएं भुगतनी पड़ती हैं. लिहाजा कभी भी ऐसे लोगों और विधवा महिला का अपमान न करें.
- किसी भी धर्म ग्रंथ, मंदिर या भगवान का अपमान करने वाला व्यक्ति नर्क में जगह पाता है. ये चीजें लोगों को अच्छा और उचित जीवन जीने का रास्ता दिखाती हैं. इनका अपमान करना कई पाप करने जैसा है.
- दिव्यांग या विधवा का धन लूटना भी महापाप है. ऐसा करने वाले लोग जिंदगी पर दुख-मुसीबतें झेलते हैं और मरने के बाद नर्क में जाते हैं. - कौरवों और पांडवों की आयु के विषय में बहुत संशय है। इसका कारण ये है कि मूल व्यास महाभारत में पांडवों या कौरवों की आयु का कोई सटीक विवरण नहीं दिया गया है। यदि अन्य ग्रंथों की बात की जाए तो भी उनमें दी गयी जानकारियों में बहुत असमानता दिखती है। कहीं कहा गया है कि युद्ध के समय युधिष्ठिर 91 वर्ष के थे, कहीं ये आयु 49 वर्ष की बताई गई है तो कहीं कुछ और। किंतु हरिवंश पुराण में केवल एक स्थान पर ऐसा वर्णन है कि महाभारत युद्ध के समय श्रीकृष्ण 72 वर्ष के थे। इस एक तथ्य के आधार पर अन्य योद्धाओं की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। महाभारत में ऐसा वर्णन है कि श्रीकृष्ण एवं अर्जुन समान आयु के थे। अर्थात अर्जुन की आयु भी युद्ध के समय 72 वर्षों की ही रही होगी।बलराम श्रीकृष्ण से 1 वर्ष बड़े थे तो उनकी आयु 73 वर्षों की होगी। सुभद्रा श्रीकृष्ण से 22 वर्ष छोटी थी इसी कारण युद्ध के समय उनकी आयु 50 वर्ष के आस पास रही होगी। श्रीकृष्ण के भाई और सखा उद्धव भी उनकी ही आयु के थे, तो युद्ध के समय उनकी आयु भी लगभग 72 वर्ष के आस पास होगी। उनके मित्र सात्यिकी और कृतवर्मा श्रीकृष्ण से आयु में कुछ बड़े ही होंगे। इस आधार पर युद्ध के समय उनकी आयु हम 74-75 वर्ष के आस पास मान सकते हैं।महाभारत में ऐसा भी वर्णन है कि सभी पांडवों की आयु के मध्य 1-1 वर्ष का अंतर था। हालांकि कई जगह नकुल और सहदेव को यमज (जुड़वा) बताया गया है किंतु ये निश्चित है कि नकुल सहदेव से बड़े थे। तो यदि 1-1 वर्ष की आयु का अंतराल भी मानें तो उस हिसाब से महाभारत युद्ध के समय युधिष्ठिर 74, भीम 73, नकुल 71 एवं सहदेव 70 वर्ष के रहे होंगे।महाभारत के अनुसार कर्ण के जन्म के लगभग तुरंत बाद ही कुंती का स्वयंवर हुआ था जहां उन्होंने महाराज पाण्डु का वरण किया। इस अनुसार कर्ण की आयु युधिष्ठिर बहुत अधिक नहीं रही होगी। यदि 2-3 वर्ष का अंतर मानें तो उनकी आयु युद्ध के समय लगभग 77 वर्ष के आस पास रही होगी। कुंती स्वयं कर्ण से 15-16 वर्ष ही बड़ी होंगी। अर्थात युद्ध के समय उनकी आयु 93 के आस-पास होगी। गांधारी उनसे 1-2 वर्ष बड़ी होंगी, अर्थात लगभग 95 वर्ष के आस पास।माना जाता है कि महाभारत युद्ध के समय द्रौपदी के आयु लगभग 70 वर्ष के आस-पास रही होगी। इस अनुसार धृष्टधुम्न की आयु भी युद्ध के समय लगभग 70-71 वर्ष की ही रही होगी। महाभारत के अनुसार जिस दिन भीम का जन्म हुआ उसी दिन दुर्योधन भी जन्मे थे, उस हिसाब से दुर्योधन की आयु भी युद्ध के समय 73 वर्ष की रही होगी। दुर्योधन और उनके 99 भाइयों की आयु के बीच में बहुत कम अंतर था किंतु इसके विषय में महाभारत में कोई सटीक वर्णन नहीं मिलता । अश्वत्थामा की आयु पांडवों एवं कौरवों से कुछ अधिक थी।कुछ ग्रंथों में ये भी वर्णन मिलता है कि युद्ध के समय पितामह भीष्म 169 वर्ष के थे। ये भी कई स्थानों पर वर्णित है कि भीष्म की विमाता सत्यवती उनसे कुछ छोटी ही थी। तो महाभारत के कालखंड के अनुसार हम ये मान सकते हैं कि महर्षि वेदव्यास की आयु उनसे लगभग 20 वर्ष वर्ष कम होगी। अर्थात युद्ध के समय महर्षि व्यास 150 वर्षों के आस-पास रहे होंगे। कृपाचार्य और उनकी बहन कृपी को पितामह भीष्म के पिता शांतनु ने वृद्धावस्था में पाला था। तो उनकी आयु भी भीष्म से कम से कम 50-60 वर्ष अवश्य कम होनी चाहिए, अर्थात लगभग 110 वर्ष के आस पास। द्रोणाचार्य, पांचाल नरेश द्रुपद एवं मत्स्यराज विराट एवं धृतराष्ट्र भी लगभग उतनी ही आयु के होंगे। विदुर धृतराष्ट्र से केवल 1-2 वर्ष ही छोटे होंगे। संजय की आयु उनसे काफी कम होगी।पितामह भीष्म निश्चय ही वयोवृद्ध थे किंतु सबसे वृद्ध नहीं। उस युद्ध मे उनके चाचा बाह्लीक ने भी भाग लिया था। बाह्लीक भीष्म के पिता शांतनु के बड़े भाई थे। उन दोनों के एक और बड़े भाई थे देवापि किन्तु उनका अधिक वर्णन कहीं नहीं मिलता। यदि बाह्लीक की आयु भीष्म से 30 वर्ष भी अधिक मानी जाये तो भी युद्ध के समय बाह्लीक की आयु लगभग 200 वर्ष के आस-पास होगी।उप-पांडवों एवं अभिमन्यु का जन्म पांडवों के वनवास से पहले हो चुका था। ऐसा कहा जाता है कि अर्जुन के पुत्र श्रुतकर्मा को छोड़ कर द्रौपदी के अन्य चारों पुत्रों में भी पांडवों के समान ही 1-1 वर्ष का अंतर था। प्रण भंग करने के बाद अर्जुन के वनवास के कारण श्रुतकर्मा का जन्म सबसे अंत में हुआ। युद्ध के समय अभिमन्यु की आयु 16 वर्ष से अधिक की नहीं होगी। उसी अनुपात में उसके आस-पास ही अन्य पांडवों के अन्य पुत्रों की आयु भी होगी। पांडवों के अतिरिक्त लगभग सभी की मृत्यु उस युद्ध में हो गयी। महाभारत में वर्णित है कि युधिष्ठिर ने युद्ध के बाद 36 वर्षों तक राज्य किया। अर्थात स्वर्गारोहण के समय उनकी आयु 110 वर्ष, भीम की 109 वर्ष, अर्जुन की 108 वर्ष, नकुल की 107 वर्ष एवं सहदेव की 106 वर्षों की होगी। श्रीकृष्ण ने भी 108 वर्ष की आयु में निर्वाण लिया एवं बलराम ने 109 वर्ष की आयु में।माना जाता है कि भगवान परशुराम, महाबली हनुमान, महर्षि व्यास, कुलगुरु कृपाचार्य एवं अश्वथामा तो चिरंजीवी हैं, सो वे आज भी जीवित हैं और कल्प के अंत तक जीवित रहेंगे।
- माता लक्ष्मी की पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। दीपावली में खास तौर से माता लक्ष्मी की पूजा का विधान रहता है। आज हम बता रहे हैं कि मां लक्ष्मी की कौन सी तस्वीर को पूजना नहीं चाहिए, नहीं तो वह तस्वीरें आपको धनवान से कंगाल बना देंगी। वैसे तो मां का हर रूप मंगलकारी होता है । लक्ष्मी का वाहन उल्लू है। उल्लू रात के समय ही क्रियाशील होता है जब मां लक्ष्मी किसी सूने स्थान ,अंधेरे खंडर, पाताल लोक आदि जगहो पर जाती हैं, तब यह उल्लू पर सवार होती हैं । माना जाता है कि महालक्ष्मी काला धन कमाने वालों के घर उल्लू पर सवार होकर जाती हैं।1* मां की ऐसी किसी भी तस्वीर की आराधना ना करें जिस पर वह उल्लू पर सवार हैं । ऐसे रूप की उपासना करने से धन आने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं और अगर कहीं से धन आ भी रहा है तो वह टिकेगा नहीं खर्च हो जाएगा ।मां लक्ष्मी को आप इस तरीके से अपने घर में बुला सकते हैं ।1* जो लोग गृहस्थी वाले हैं वह मां लक्ष्मी की बैठी तस्वीर रखें जिससे समृद्धि संपन्नता आती है।2* ऑफिस और दुकानों पर खड़ी लक्ष्मी का पूजन करने से दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है।3* अगर आप लक्ष्मी मां को प्रसन्न करना चाहते हैं ,तो ऐसे स्वरूप का पूजन करें जिसमें मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के चरणों को दबा रही हैं।4* मां लक्ष्मी के साथ-साथ धन देवता कुबेर का पूजन करने से पैसों से जुड़ी हर समस्या का समाधान होता है।5* भगवान विष्णु- देवी लक्ष्मी जो गरुड़ पर सवारी कर रहे हैं ऐसे स्वरूप को घर में रखने से प्रतिदिन विधि -विधान से पूजा करने से मां लक्ष्मी का निवास आपके घर में सदा रहेगा।6* पूजा घर में कलावा डालकर दीप जलाने से लक्ष्मी का आगमन नियमित होने लगता है ,कलावे का लाल रंग लक्ष्मी जी को बहुत प्रिय है।7* आपके घर के दरवाजे से कोई भी आवाज नहीं आनी चाहिए इसका ध्यान रखें अगर घर के दरवाजों में से किसी भी तरह की कोई आवाज आती है तो वहां महालक्ष्मी प्रवेश नहीं करती हैं ।8* महालक्ष्मी उत्तर दिशा से आपके घर में आती हैं इसीलिए मां लक्ष्मी की पूजा उत्तर दिशा की तरफ करें । माना जाता है कि अगर मां लक्ष्मी आपसे प्रसन्न हो जाएंगी तो आपके घर छप्पर फाड़ कर धन बरसने लगेगा।-----
- • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 432
साधक का प्रश्न ::: सौभरि मुनि ने जब पचास शरीर धारण किये तो मन उनका एक ही रहा या मन भी पचास बन गये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: सब, शरीर मन सब। बिना मन के शरीर कैसे काम करेगा? फरक ये है कि एक तो योगमाया का शरीर है जैसे श्रीकृष्ण ने रास में बनाया या द्वारिका में बनाया या राम ने अनेक रूप धारण करके सबसे एक क्षण में मिल लिया।
क्षण मँह मिले सबहिं भगवाना।
तो ये तो योगमाया से दिव्य चिन्मय शरीर होता है भगवान् का। वह अनन्त शरीर बना लें। और योगी लोगों का शरीर जो है वह मायिक होता है लेकिन देखने में तो अलौकिक है ही है वह भी, क्योंकि हम लोग तो नहीं कर सकते ऐसा लेकिन वह शरीर नश्वर होता है। जितने दिन तक वह शरीर रहेगा योगशक्ति कम होती जायेगी।
एक योगी, एक महात्मा दोनों को प्यास लगी। तो कुएँ के पास गये लेकिन पानी निकालने का कोई जरिया नहीं था। तो योगी तो अपने योग के बल से चले गये नीचे और पानी पी आये। भक्त बाहर बैठा भगवान् का स्मरण कर रहा है। पानी ऊपर आ गया। उसने पी लिया। अब भक्त का कुछ घटा नहीं और योगी की उतनी देर की तपस्या खतम हो गयी। वह लिमिटेड पैसा है। जैसे - सोना है, चाँदी है वह लिमिटेड है और पारस अनलिमिटेड है। लोहे में छुआते जाओ सोना बनता जायेगा। पारस अपनी जगह रहेगा। बहुत बारीक बातें हैं।
• सन्दर्भ - प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 39
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 431
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! किसी साधक के बाहरी व्यवहार को देखकर कई बार दुर्भावना हो जाती है जबकि वह उच्च साधक होता है, इसका क्या उपाय है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भगवान् की सब बातें अनन्त मात्रा की हैं। पूर्ण माने अनन्त मात्रा की हर बात। उनके संसार (ब्रह्माण्ड) अनन्त, नाम अनन्त, रूप अनन्त, गुण अनन्त, लीला अनन्त, धाम अनन्त और सन्त अनन्त। और ऐसे अनन्त हैं कि अनन्त से अनन्त निकालो तो भी अनन्त बचेगा;
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।(वृहदारण्यक उप. 5-1-1)
पूर्ण से पूर्ण निकालो तो भी पूर्ण बचेगा। संसार में पूर्ण से पूर्ण निकालो तो जीरो बचेगा।
कौन जानता है? जब तक कोई पूर्ण न हो जाए तब तक कौन अधूरा है, कौन पूर्ण है यह जानना असम्भव है। बेपढ़ी लिखी अँगूठा छाप और चार-चार, छह-छह, बच्चे वाली गोपियाँ और ब्रह्मा, शंकर चरणधूलि चाहते हैं। जब ये कहो, तो लोग कहते हैं - 'क्या गपोड़े हैं आप भी!! हम जानते हैं उन गोपियों को, कब ब्याह हुआ और कब क्या हुआ। संसार में आसक्त हैं और आप कहते हैं कि उद्धव, ब्रह्मा, शंकर सब चरणधूलि माँगते हैं!!' इसलिए किसी के बारे में कभी कोई राय बनानी ही नहीं चाहिए।
अगर दोष देखा तो उसमें कमी मानेगा। उसकी बुद्धि उसमें दोष देखगी। ये हमसे कम अकल है, हमसे कम सुंदर है, हमसे कम पैसा है, हमसे कम नॉलिज है। ये सब विचार आयेगा, बस पतन हो गया। भीतर क्या उसके पास यह जानने की शक्ति नहीं है। तो ये बाहरी चीजों को देख कर क्या निर्णय करोगे? पता नहीं कौन कितना प्यार करता है भगवान् से, गुरु से? ये नापने का पैमाना तो किसी के पास है ही नहीं। तो बाहर की चीजों से क्या तुलना करेगा कोई।
एक संत थे। अभी पाँच सौ वर्ष पहले की बात है, गौरांग महाप्रभु के जमाने में। उनका नाम पुंडरीक विद्यानिधि था। वह बड़े ऐशो आराम के सामान में रहते थे। सोने का तो पलंग, कोई राजा महाराजा भी ऐसा नहीं रह सकता था जैसे वो रहते थे। गौरांग महाप्रभु ने कहा, 'भई! एक बहुत बड़े भक्त से मिलने जाना है हमको स्वयं।'
लोगों ने पूछा, 'महाराज जी! किसका मिलने जाना है?' तो उन्होंने कहा 'पुंडरीक विद्यानिधि से'। सब चौके। अरे! वह तो घोर संसारी है। कोई राजा महाराजा भी वैसा नहीं होगा। आपस में कहने लगे। महाप्रभु जी मुस्कराकर चल दिए। पीछे-पीछे सब गये कि मामला क्या है? महाप्रभु जी मजाक कर रहे हैं? क्या बात है, क्यों जा रहे हैं वहाँं? उसको आना चाहिए महाप्रभु जी के पास। गये। महाप्रभु जी को देख कर वो पलंग से उठ गए। दोनों गले मिले। ये सब दृश्य देख रहे हैं लोग। फिर उसी के पलंग पर वो भी बैठे और महाप्रभु जी भी बैठे उसी पर। ये भी लोगों ने देखा। ये कैसे बाबा जी हैं! और हमारे महाप्रभु जी के बराबर में बैठे हैं! तो गदाधर भट्ट थे, उनका ज्यादा दिमाग खराब हुआ। वो खास थे गौरांग महाप्रभु के, विद्वान् भी थे, शास्त्र वेद के।
खैर, वहाँ से महाप्रभु जी लौट आये और सब साथ चले आये। फिर अकेले में उन्होंने पूछा कि महाराज! ये आप वहाँ क्यों गए? और फिर गए तो ऐसी असभ्यता किया उन्होंने, उसी पलंग पर खुद बैठ गए और उसी पर आपको बिठा दिया? तो महाप्रभु जी ने भौंहे टेढ़ी की। उन्होंने कहा कि तुम सर्वज्ञ हो? नहीं महाराज! सर्वज्ञ तो आप हैं। फिर तुमने कैसे निश्चय किया? चले जाओ हमारे सामने से और जाकर के पुंडरीक विद्यानिधि की शरण में जाओ और उन्हें गुरु मानो और उनकी बताई साधना करो। अब आंख खुली उनकी। हा! महाराज जी सीरियस हो के कह रहे हैं। हम तो समझ रहे थे कि ये सब महाराज जी जोक कर रहे हैं आज? तो उन्हें जाना पड़ा।
तो कौन जान सकता है? बड़े-बड़े सम्राट हुए हमारे देश में ध्रुव, प्रह्लाद, अम्बरीष बड़े-बड़े वैभव स्वर्ग से भी बड़े और सब गृहस्थ। अम्बरीष हों, चाहे वशिष्ठ हों, सब स्त्री बच्चे वाले। अब उनको भी हम लोगों ने देखा होगा उस जमाने में। अरे तब भी तो हम थे। हमने कहा ये प्रह्लाद!, इनको महापुरुष कहते हैं लोग!!
इसलिए कोई महापुरुष हो, चाहे राक्षस हो अपने मन में दूसरे के प्रति हमेशा अच्छी भावना होनी चाहिए, जिससे अच्छा विचार अंतःकरण मे आवे। वो जो है वो ही रहेगा ही। वह राक्षस होगा तो राक्षस रहेगा। महापुरुष होगा तो महापुरुष रहेगा। हम अपने अंदर की दुर्भावना अगर लाते हैं, तो हमने तब अपना अंतःकरण बिगाड़ दिया। अब भगवान् जो थोड़ा पैर रखे थे आने के लिए, एबाउट टर्न चल दिए। क्योंकि तुम तो औरों को बुलाते हो। मैं ऐसे घर में नहीं रहता। इसलिए कहीं भी छोटापन नहीं देखना चाहिए। ये हमसे बड़ा है। हर एक के प्रति - 'सबहिं मानप्रद आप अमानी'।
एक उच्च साधक का लक्षण है किसी में भी दुर्भावना नहीं, पता नहीं कौन क्या है, किस-किस भाव से कौन उपासना करता है। सबके तरीके अलग-अलग हैं। आज कोई सचमुच भी मक्कार है तो क्यों है? प्रारब्ध के कारण है। वो 25 तारीख को उसका प्रारब्ध खतम हो जाएगा। तो फिर वो सदाचारी हो जाएगा पहले की तरह। और हम दुर्भावना किए बैठे हैं उसके ऊपर। हमारा तो सत्यानाश हो गया और वो तो बन गया। उसमें बहुत रहस्य हैं। इसलिए साधक को दूसरे की ओर देखना ही नहीं चाहिए। और देखे भी कभी या बुद्धि लग भी जाय तो पता नहीं कौन क्या है भैया, अपन झगड़े में न पड़ो। बीबी पति के, पति बीबी के अंदर की बात को नहीं जान सकता।
एक सेठ जी कभी भगवान् का नाम न ले और न मन्दिर जायें। सेठानी परेशान थी कि यह नास्तिक पति मिला। एक दिन सोते समय, अंगड़ाई लेते समय उन्होंने कहा 'राधे'। तो सबेरे स्त्री ने सब दान-पुण्य करना शुरू कर दिया। ब्राह्मण भोजन का इन्तजाम किया। खुशी मना रही थी। सेठ जी ने कहा- क्यों री, आज तो न जन्माष्टमी है, न रामनवमी है, कुछ त्यौहार तो नहीं! उन्होंने कहा आज बहुत बड़ा त्यौहार है पतिदेव! क्या? आपने आज सोते समय करवट बदलने लगे तो 'राधे' कहा। हा! राधे नाम निकल गया बाहर!!! भक्ति के तरीके अपने-अपने सबके हैं। स्त्री नहीं समझ पाई इतने दिन से।
और फिर एक बात सबसे बड़ी और है वह हमेशा ध्यान में रखो सब लोग कि कोई व्यक्ति खराब हो, राक्षस हो, भगवान् का निन्दक, सन्तों का निन्दक, सबसे बड़ा पाप ये ही है। ये लगातार करता हो। लेकिन एक बात बताओ कि ऐसा कोई पापी विश्व में है जिसके अंत:करण में भगवान् न बैठे हों? अरे! कुत्ता, बिल्ली, गधा कोई भी ऐसा प्राणी है जिसके भीतर भगवान् श्रीकृष्ण न बैठे हों? तो फिर तो बराबर हो ही गया तुम्हारे। और सब चीज़ का मूल्य कुछ नहीं है। एक तराजू में सोना भी रखा गया, चांदी भी रखा, हीरा भी रखा है और पारस भी रखा है और एक तराजू के पलड़े में खाली पारस रखा है। तो तोलोगे तो क्या बराबर ही निकलेगा। क्योंकि पारस दोनों में है। अब हीरे मोती की क्या कीमत है, हो न हो? पारस दोनों में है। तो भगवान् तो सब प्राणियों में हैं। इसीलिये वेदव्यास और तुलसीदास सब संतों ने कहा कि - 'पर पीडा सम नहिं अधमाई'।
सबसे बड़ा पाप है दूसरे को दुःख देना, ये न सोचना हैं कि इसके अंदर भी श्रीकृष्ण बैठे हैं। जैसे हम आज एस.पी. हैं, कलेक्टर हैं और हमारा कोई नौकर है, चपरासी है और हमने अपनी सीट के कारण डाँटा, फटकारा, दण्ड दिया। ये भूल गए कि इसके अंदर भी वही बैठे हैं जो हमारे अंदर हैं। तो ये सब सोचने की बात है। इसका अभ्यास करे धीरे-धीरे तो हृदय में कोई गलत चीज न आने पावे।
देखो, आप लोग दाल चावल सब खाते हैं। खाते-खाते कोई कंकड़ आ गया तो ऐसे मुँह बनाकर उसको हाथ से निकाल कर बाहर कर देते हैं। निगल नहीं जाते। धोखेे में चला जाय तो बात अलग है। ऐसे ही कोई भी अच्छी चीज आवे ठीक है। किसी का गुण आवे बहुत अच्छा है। अरे! चौबीस गुरु बनाये दत्तात्रेय ने। कुत्ते को गुरु बनाया, गधे को गुरु बनाया। भगवान् के अवतार थे दत्तात्रेय। लेकिन उन्होंने कहा - भई! इसमें भी ऐसे गुण है जो मनुष्यों से अधिक बलवान है। वो आदमी में नहीं है। किसी आदमी की नाक ऐसी है, जो बता दे कि इधर से गया है चोर? कोई आई. ए. एस. ऐसा हुआ आज तक? और कुत्ता बता देता है इधर से गया है, बारह घण्टे पहले, वह चलता है उसी-उसी रास्ते से, आगे-आगे। इसीलिये सब जगह अच्छी चीज जहाँ दिखाई पड़े, ले लो और जहां खराब चीज दिखाई पड़े वहाँ सोच लो कि पता नहीं क्या रहस्य है ऊपर-ऊपर से एक्टिंग कर रहा है खराबी की।
अरे! गोपियाँ कितनी गालियाँ देती थीं भगवान् को। हम लोग अगर वहाँ होते या रहे हों, तो सुने होंगे और कहा होगा, ये भगवान् की भक्त है! क्या अंडबंड बोल रही है।
एक सखी ने किशोरी जी से कहा कि तुम नन्दनन्दन से क्यों प्यार करती हो? वो तो बड़ा लम्पट है, हर लड़की के पीछे घूमता रहता है और सबको धोखा देता है। तो किशोरी जी ने कहा, सखि! तू नहीं जानती वो ऐसा क्यो करतें हैं? वो ऐसा इसलिए करते हैं कि हमारा उनका प्यार पब्लिक में आउट न हो। यानी एक दोष को भी गुण के रूप में ले लेना। प्रेमी की पहचान है। वेद की ऋचायें कहती हैं, अरे! मैं जानती हूँ अनादिकाल से। राजा बलि को ठगा और शूर्पणखा के नाक कान कटवा दिये, बाली को छिप कर मारा, मुझे सब मालूम है इसका पुराना चिट्ठा पहले का। तो सखि कहती है फिर छोड़ो! हटाओ। अरे! ये नहीं हो सकता। उसका चिन्तन, उससे प्यार, वह कम नहीं होगा। हम उस व्यवहार पर भी लट्टू हैं। देखो, सर्वसमर्थ हो कर भी और बालि को छिप कर मारा, ये कलंक मोल लिया। सभी संसार में बदनामी कि उसकी पीठ में मार रहे हैं। उसको माला पहना कर मार रहे हैं। मथुरा से भागकर द्वारिका चले गए, रणछोर की डिग्री लेने के लिए। सारी दुनियाँ में बदनामी हो गई। तुम्हारे भगवान कैसे हैं? तो कौन समझ सकता है? भगवान् का रहस्य तो खैर समझने की बात नहीं है। मनुष्यों में कौन उच्च कोटि का साधक है, कौन निम्न कोटि का है और कौन कब किसका पतन हो जाय ये भी एक स्ट्रांग पॉइन्ट है। समझे रहना चाहिए। एक क्षण के कुसंग ने अजामिल को इतना बड़ा पापी बना दिया। एक क्षण का, एक मिनिट का भी नहीं।
एक वेश्या को एक शूद्र दासी के लड़के ने चिपटा करके, नंगे होकर के प्यार किया, वो दृश्य एक सेकिण्ड को देखा और आँख बन्द करके भागा अजामिल, घर आया, लेकिन वो चिन्तन धंस गया था उसकी खोपड़ी में। अब फिर उस वेश्या के पीछे अपनी स्त्री को छोड़ दिया और सारा धन घर का बेच दिया और बुढ़ापे तक पड़ा रहा वहीं वेश्या के घर। तो इसलिए कौन कब उठेगा, कौन कब गिर जाएगा, कोई कह नहीं सकता। इस पर विश्वास नहीं करना है मन के ऊपर, कि हाँ हम तो समझते हैं। बड़े-बड़े योगी लोग गिर गए। इसलिए कभी, कभी भी दूसरे के प्रति दुर्भावना नहीं करना चाहिए। भले ही आपकी दुर्भावना सही हो उसके प्रति। एक तो सही है कि नहीं ये ही नहीं जान सकते तुम और जान भी लो तो इस क्षण में दुर्भावना है और अगले क्षण में उल्टा हो गया सब वो। उसका प्रारब्ध खतम हो गया। यही सब गड़बड़ियाँ तो हम करते हैं जो साधना करते हुए भी आगे नहीं बढ़ते। जिसको देखा ऐं! ये क्या है? ऐं! ये क्या है? ऐं! मैं-मैं बड़ा भक्त हूँ, मैं बड़ा सेवक हूँ, मैं बड़ा दानी हूँ; दिमाग में ऐसा रोग पैदा करके और सब जगह छोटी भावना कर लिया, तुच्छ भावना। इससे बचना चाहिए। बस कमाने पर ध्यान रखें।
हृदय के अंदर अच्छी अच्छी चीजों का, अच्छे अच्छे गुणों का, अच्छी-अच्छी बातों का चिन्तन हो। खराब बात कोई कहे तो सुनो नहीं, पढ़ो नहीं, सोचो नहीं। तुरन्त सँभल जाओ। जैसे कोई मच्छर काट लेता है तो होशियार हो जाता है। इसने काट लिया। किसी के ड्राइंग रुम में कोई अपने घर का कूड़ा कचरा फेंके तो कौन पसन्द करेगा, कौन स्वीकार करेगा, पचास गाली दे देगा वह घर वाला। ऐसे ही दिल तो ड्राइंग रूम है भगवान् के लिए। इसमें गंदी चीज कहीं से भी, कैसे भी तुम लाए तो गन्दा हो गया। भगवान् तो कहते हैं जो ला चुके हैं उसे निकालो। साफ करो। माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, का प्यार ये सब संसार का, विषय भोग का, ये सब निकालो। और तुम ला रहे हो। तो भगवान् कहते हैं हमसे कहते हो आ जाओ, कहाँ आऊँ? कहीं जगह भी है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - आम इंसान खुद का घर खरीदने का सपना देखता है. ऐसे में अपने सिर के ऊपर खुद के पैसों की एक छत हो इसलिए हर व्यक्ति जी जान से मेहनत भी करता है. जीवन में सफलता प्राप्त करने के सकारात्मक ऊर्जा कि बहुत आवश्यकता होती है और यह ऊर्जा आपको आपके निवास स्थान से प्राप्त होती है.अगर आप कभी कोई घर किराये पर या खरीदने के लिए देखने जाते जाते हैं तो आपके लिए उस घर की सकारातमक ऊर्जा का खास ध्यान रखना होगा. ऐसे में हम आज आपको बताएंगे कि अपनी राशि के अनुसार कैसे घर को आपको खरीदना चाहिए. क्योंकि अगर आप राशि के अनुसार अपने घर का चयन करते हैं तो इससे आपके जीवन में हमेशा खुशियां ही रहेंगी.आइए जानते हैं कि आपकी राशि के अनुसार किस दिशा के मुख वाला घर आपके लिए उत्तम रहेगा.मेष राशिमेष राशि के लोगों के दक्षिण मुखी घर में रहना अत्यंत शुभ होता हैं. ऐसे घर में रहने से आप सुखी जीवन जीते हैं. इसके साथ ही ऐसे लोगों को घर में ब्राइट रंगों का इस्तेमाल करना चाहिए.वृषभवृषभ राशि के जातकों के लिए दक्षिण-पूर्व मुखी घर शुभ होता है. अगर आप इस तरह का घर लेते हैं तो आपके वैवाहिक जीवन में स्नेहशीलता बनाए रखेगा. ऐसे लोगों को घर में लाइट कलर का यूज करना चाहिए.मिथुनमिथुन राशि के जातकों के लिए उत्तर मुखी भवन सबसे खास होता है. इस राशि के लोग ऐसे घर का चयन करते हैं तो उनके लिए यह उन्नतिकारक और शुभप्रदायक रहेगा. आप घर में हल्का हरा व हल्के नीले रंग का इस्तेमाल कर सकते हैं.कर्ककर्क राशि के जातकों के लिए उत्तर-पश्चिम दिशा का घर सुखदायी होता है. इसके साथ आपको अपने घर में सफेद या क्रीम रंग करवाना चाहिए, इससे जीवन में खुशियां बनी रहती हैं.सिंहसिंह राशि के लोगों के लिए पूर्व मुखी घर उत्तम होता है. ऐसे जातकों को घर में नारंगी, सिल्वर और गोल्डन येलो रंग का प्रयोग करना चाहिए. ऐसे घर में रसोई दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा में होनी चाहिए.कन्याकन्या राशि के जातकों के लिए उत्तर मुखी घर शुभ होता है. अगर ऐसे घर में कन्या राशि के जातक निवास करते हैं तो उनके जीवन में सुख-सौभाग्य, धन, धान्य और जीवन में बढ़ोतरी रहती है.यह आपको आर्थिक क्षेत्रों, वाणी और शिक्षा-अध्ययन कार्यों में शुभता देगा.तुलातुला राशि के जातक दक्षिण-पूर्व मुखी घर का चयन करें. इनको भी हल्के रंग का यूज घर में करना चाहिए. लेकिन पूजन कक्ष की दीवारों पर हरा रंग करवाना शुभ रहेगा.वृश्चिकवास्तु शास्त्र की मानें तो वृश्चिक राशि के लोगों को दक्षिण दिशा मुखी घर में निवास करना चाहिए.ऐसे घर के दक्षिण कोने में भारी फर्नीचर रखने से सुख और समृद्धि की बरसात होती है.धनुउत्तर-पूर्व मुखी घर धनु राशि के जातकों के लिए विशेष शुभ रहेगा. ऐसे लोगों को अपने घर को पीले, लाल व नारंगी रंग से रंगवाना चाहिए.मकरमकर राशि के जातकों को पश्चिम मुखी घर में निवास करना चाहिए. इस राशि के लोगों के लिए इस दिशा में बना घर आपको उन्नति, सफलता, सुख-शान्ति देगा.कुंभकुंभ राशि के जातकों के स्वामी ग्रह शनि होता है जिस हिसाब से पश्चिम दिशा का घर इनके लिए बेस्ट होता है. अपने घर में आसमानी व हल्का भूरा रंग कराते है तो यह अति शुभ रहेगा.मीनमीन राशि के जातकों को उत्तर-पूर्व मुखी घर में रहना चाहिए. यह दिशा आपके लिए शुभ व भाग्यशाली रहेगा.