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- -जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 409
• साधक का प्रश्न : आप कहते हैं कि अंतःकरण शुद्धि के लिए आँसू आना आवश्यक है। वह तो कभी आते नहीं ?• जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: आँसू बहाने के लिए दीनता का भाव लाओ। अपने को पतित, निराश्रित महसूस करो, आँसू अवश्य आयेंगे। आँसू का न आना ही सिद्ध करता है कि हमारे अन्दर अभिमान छिपा है जो हमें पतित अनुभव नहीं करने देता।
बार-बार प्रयास करो, भगवान् के दिव्य दर्शन की परम व्याकुलता पैदा करो। जब भगवान् की याद में अंतःकरण पिघलेगा, आँसू बहाये जायेंगे, मन की कलुषता निकलेगी तो भगवान् उसमें सदा के लिए विराजमान हो जायेंगे।
आँसू आने पर भी अभिमान न आने पाये, नहीं तो वे भी छिन जायेंगे। जब तक श्यामा-श्याम न मिल जायँ तब तक सब आँसू बेकार ही हैं। जब असली आँसू आवेंगे तो भगवान् को उन्हें पोंछने के लिए स्वयं आना पड़ेगा।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 408
प्रश्न ::: महाराज जी! आमदनी का कितना परसेन्ट दान करना चाहिये?जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर ::: परसेन्ट का सवाल नहीं है।यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्।अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।।(भागवत 7-14-8)वेदव्यास ने कहा है कि जितने पैसे से तुम्हारा शरीर चल जाये। चल जाये। 'भ्रियेत' पेट भर जाये 'तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्', ये भगवान की सृष्टि है, भगवान का संसार है। अगर जैसे बैंक में किसी को बना दिया गया कोषाध्यक्ष तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो रुपया लेकर चला जाये अपने घर। उसका रुपया कुछ नहीं है। उसको तो पे (वेतन) मिलेगी केवल।वो रुपया जो है, कैश जो है बैंक का वो तो बाँटने के लिये है जिसका जितना-जितना जमा है, पब्लिक का, उसको दो। उसको छुओ मत। ऐसे ही वेदशास्त्र कहता है कि जितने में तुम्हारे शरीर का, तुम्हारे परिवार के शरीर का पालन हो जाये। इच्छाओं की पूर्ति नहीं, पालन। जैसे एक मकान है। हमने एक अपने रहने के लिये मकान लिया और एक दस अरब का मकान बनाया। हमने एक मामूली कपड़ा पहन लिया हमारा काम चल रहा है शरीर का और एक वो सबसे महँगा वाला कपड़ा लिया। वो इच्छा की बात है। वो इच्छा वाली बात नहीं कह रहा है।शास्त्र वेद कह रहा है कि जितने में तुम्हारा काम चल जाये। रोटी, दाल, चावल, तरकारी जो कुछ खाने का सामान आवश्यक है शरीर को वो दो, जो कपड़ा पहनना जरूरी है वो कपड़ा पहनो, मकान में रहो। ये जो रोटी, कपड़ा, मकान आदि का विषय है शरीर का, इसके बाद जो भी बचे दान करो। वो तो तुम्हारा नहीं है। मरने के बाद भी नहीं रहेगा। मरने के पहले ही उसको तुम अपना मत मानो, उसको दान करो, तो तुम्हें भगवत्कृपा का जो फल है वो मिलेगा। भगवान के निमित्त करो। उसको किसी सांसारिक स्वार्थ के लिये दान न करो। हम वहाँ दान कर दें तो मिनिस्टर खुश हो जायेगा। तो हमारी आमदनी बढ़ जायेगी। आजकल ये होता है न टाटा, बिरला आदि बड़े बड़े उद्योगपतियों के यहाँ दान बिजनेस हो गया है।जहाँ तुमसे दान करने की बात करता है कोई महात्मा तो कहते हो कि ये तो पैसे के लोभी हैं, तुरन्त खोपड़ी में आप लोगों के आता है ये। अरे वो पैसे के लोभी नहीं हैं। तुमसे पैसे की जो आसक्ति है तुम्हारी वो निकलवाना चाहते हैं, कृपा है उनकी। जब कोई फोड़ा हो जाता है बच्चे को तो माँ डॉक्टर के पास ले जाती है, जोर से पकड़ती है उसके हाथ को, पैर को, हाँ डॉक्टर साहब चीर दो। वो चिल्लाता है कैसी माँ है ये, मारता है छोटा बच्चा माँ को। वो कहती है मार ले कुछ कर ले, गाली दे ले लेकिन मैं तेरे इस रोग को समाप्त करवाऊंगी।तो महात्मा लोग भी सब सह लेते हैं, इनके दुर्वचन, इनकी दुर्भावनायें, लेकिन पीछे लगे रहते हैं। अरे कुछ तो करेगा, चलो नथिंग से समथिंग अच्छा है। ये सब दान नहीं करेगा, थोड़ा तो करेगा। कुछ तो कल्याण हो। इतना तो हो जाय कि फिर ये मानव देह मिले।
• सन्दर्भ ::: 'द द द' पुस्तक (दान-विज्ञान पर आधारित)
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है। इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है। अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं।ऐसा कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी, अर्थात् बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। आठवें दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है तो उन्होंने सभी व्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा। तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और मैया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ। भगवान के प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने सात दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 7 & 8=56 व्यंजनों का भोग बाल कृष्ण को लगाया।श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हों। श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी। व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया। ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतें होती हैं। प्रथम परत में "आठ", दूसरी में "सोलह" और तीसरी में "बत्तीस पंखुडिय़ा" होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं। इस तरह कुल पंखुडिय़ों संख्या भी छप्पन होती है।छप्पन भोग इस प्रकार है:भक्त (भात),सूप (दाल),प्रलेह (चटनी),सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), सिखरिणी (सिखरन), अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी), फेणिका (फेनी), परिष्टïश्च (पूरी), शतपत्र (खजला), सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू), वायुपूर (रसगुल्ला), चन्द्रकला (पगी हुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), खंड मंडल (खुरमा),गोधूम (दलिया), परिखा, सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), दधिरूप (बिलसारू), मोदक (लड्डू) शाक (साग) सौधान (अधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), दधि (दही), गोघृत , हैयंगपीनम (मक्खन), मंडूरी (मलाई), कूपिका (रबड़ी), पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय (मोहन), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु और अम्ल।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 408
(भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 12-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि वैराग्य और अनुराग की उत्पत्ति कैसे होती है?.....)
जग विराग हो तितनोइ, जितनोइ हरि अनुराग।तब हो हरि अनुराग जब, गुरु चरनन मन लाग।।12।।
• भावार्थ - वास्तविक गुरु की शरणागति से ही श्री कृष्ण में अनुराग उत्पन्न होता है। जितनी मात्रा में यह अनुराग होता है उतनी ही मात्रा में संसार से वैराग्य भी होता है।
• व्याख्या - कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम संसार से ही वैराग्य करो। कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम श्री कृष्ण से ही अनुराग करो। यह विरोधाभास है। मेरी राय में इन दोनों से पूर्व गुरु का कार्य है। प्रथम गुरु द्वारा तत्वज्ञान प्राप्त करना होगा। उस तत्वज्ञान द्वारा गुरु, श्रीकृष्ण, वैराग्य, अनुरागादि का विज्ञान हृदयंगम करना होगा। हम जितना समझते हैं, उसे सही मान लेना सही नहीं है। हमने 'क' ज्ञान भी स्वयं नहीं प्राप्त किया। फिर परोक्ष तत्व जीव , ब्रह्म , माया आदि का ज्ञान कैसे प्राप्त कर लेंगे। जब तत्वज्ञान हो जायगा , तब हम जानेंगे कि एक जीव है एवं उसका एक मन है। वह मन ही बंधन एवं मोक्ष का कारण है। उस मन को मायिक जगत् से हटाकर दिव्य श्री कृष्ण में लगाना है। क्योंकि श्री कृष्ण ही हमारे माता , पिता , भ्राता , भर्ता , अंशी आदि सब कुछ हैं। उन श्री कृष्ण को प्राप्त करने के हेतु साधनों का भी ज्ञान प्राप्त करना होगा। और वह ज्ञान यही होगा कि केवल भक्ति के द्वारा ही श्री कृष्ण की प्राप्ति होगी । अन्य कोई उपाय नहीं है। अपने गुरु द्वारा भक्ति का भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना होगा। गुरु से यही ज्ञान मिलेगा कि श्री कृष्ण भक्ति में कोई भी नियम नहीं है। सभी जीव अधिकारी हैं। यद्यपि श्रद्धा की शर्त बताई गई है। यथा;
आदौ श्रद्धा ततः ........।
किंतु भागवत में इसकी भी आवश्यकता नहीं बताई गई । यथा
सतां प्रसंगान्मम वीर्य संविदो .......।
अर्थात् गुरु की शरणागति में रहकर उन्हीं की सेवा करते हुये निरंतर सत्संग किया जाय, तो श्रद्धा भी स्वयं उत्पन्न हो जायगी। फिर श्री कृष्ण में अनुराग भी स्वयं होने लगेगा । फिर उसी अनुराग की मात्रा से ही स्वयं वैराग्य भी होगा। सारांश यह कि प्रथम गुरु की शरणागति। फिर श्री कृष्ण की नवधा भक्ति रूपी साधना। फिर संसार से वैराग्य। यही क्रम बढ़ते बढ़ते जब भक्ति परिपूर्ण हो जायगी तो संसार से पूर्ण सहज वैराग्य स्वयं हो जायगा। इतना ही नहीं अन्य ज्ञानादि सब कुछ अनचाहे ही मिल जायगा। यहाँ तक कि सभी प्राप्तव्य पुरुषार्थों का स्वामी श्रीकृष्ण भी उस भक्त के आधीन हो जायगा। फिर जीव कृतकृत्य हो जायगा। अतः उपर्युक्त क्रम से ही लक्ष्य की प्राप्ति के हेतु प्रयत्न करना चाहिये। शेष सब गुरु दे देगा।
• सन्दर्भ : 'भक्ति शतक' दोहा संख्या - 12
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म शास्त्र में मां लक्ष्मी को धन की देवी बताया गया है। इनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से मानी गई है और ये श्री हरि भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं। इनकी पूजा से आपके जीवन धन-वैभव और ऐश्वर्य का आगमन होता है। प्रत्येक वर्ष भादप्रद में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत आरंभ होते हैं और 16 दिनों तक चलने वाले इस व्रत का समापन अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन होता है। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजन करके 16 दिनों के महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन किया जाता है। इस दिन को गजलक्ष्मी व्रत के रुप में जाना जाता है। गजलक्ष्मी व्रत में मां महालक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरूप की पूजा होती है। इस स्वरुप में मां लक्ष्मी गज यानी हाथी के आसन पर विराजमान होती हैं। मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए यह दिन बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन और मंत्र जाप से उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं मां लक्ष्मी को प्रसन्न करे के लिए मंत्र जाप और गजलक्ष्मी व्रत की तिथि।गजलक्ष्मी व्रत का महत्व-गजलक्ष्मी व्रत को करने के साथ ही 16 दिनों तक चलने वाले महालक्ष्मी व्रत का समापन भी हो जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां गज लक्ष्मी का व्रत और पूजन से घर की आर्थिक तंगी दूर होती है। व्यक्ति के जीवन में धन-संपदा का आगमन होता है और कभी रुपए-पैसों की तंगी नहीं होती है। भक्तों को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है और जीवन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती है।कब है गजलक्ष्मी व्रत, जानिए तारीखहिंदी पंचांग के अनुसार, इस बार गजलक्ष्मी व्रत 29 सितंबर 2021 दिन बुधवार को रखा जाएगा।अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि आरंभ- 28 सितंबर 2021 दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 16 मिनट सेअश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि समाप्त- 29 सिंतबर 2021 दिन बुधवार रात 08 बजकर 29 मिनट परमां महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए करें इन मंत्रो का जाप-गजलक्ष्मी व्रत के दिन प्रातः उठकर स्नानादि करने के पश्चात व्रत का संकल्प करें। अब इत्र, फल, फूल आदि से मां लक्ष्मी का पूजन करें और इन मंत्रो में से किसी एक का 108 बार जाप करें। मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करने के लिए कमलगट्टे की माला का प्रयोग करें। मान्यता है कि इन मंत्रों के जाप से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं व अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। मां महालक्ष्मी की कृपा से जीवन में कभी रुपए-पैसों की कमी नहीं होती है और व्यक्ति आर्थिक रुप से संपन्न होता है।मां लक्ष्मी के मंत्रःऊं ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:ऊं नमो भाग्य लक्ष्म्यै च विद्महे अष्ट लक्ष्म्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोद्यातऊं मां लक्ष्मी मंत्रःऊं विद्या लक्ष्म्यै नम:ऊं आद्य लक्ष्म्यै नम:ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:--
- हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। पितृपक्ष में पड़ने के कारण इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है एवं इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा एवं व्रत किए जाते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के कारण दंड भोग रहा होता है तो इस दिन विधि-विधान से व्रत कर उनके नाम से दान-दक्षिणा देने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। पद्म पुराण में तो यह भी कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष में आने वाली इस एकादशी का पुण्य अगर पितृगणों को दिया जाए तो नरक में गए पितृगण भी नरक से मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते है। इस व्रत को करने से सभी जीवत्माओं को उनके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को यमलोक की यातना का सामना नहीं करना पड़ता एवं इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं एवं व्रत करने वाला भी स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है।शालिग्राम की पूजा करेंउपनिषदों में भी कहा गया है कि भगवान विष्णु की पूजा से पितृ संतुष्ट होते हैं। इस एकादशी के व्रत और पूजा की विधि अन्य एकादशियों की तरह ही है, लेकिन सिर्फ अंतर ये है कि इस एकादशी पर शालिग्राम की पूजा की जाती है। भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान करवाएं। पूजा में अबीर,गुलाल, अक्षत, यज्ञोपवित, फूल, तुलसी पत्र होने चाहिए। इसके बाद तुलसी पत्र के साथ भोग लगाएं। फिर एकादशी की कथा पढ़कर आरती करनी चाहिए। इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है, फलाहार लेकर व्रत रख सकते हैं। जितना हो सके 'ॐनमो भगवते वासुदेवाय ' का जप करें एवं विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करें। एकादशी पर आंवला, तुलसी, अशोक, चंदन या पीपल का पेड़ लगाने से भगवान विष्णु के साथ हमारे पितर भी प्रसन्न होते हैं।ये है कथामहिष्मतीपुरी के राजा इन्द्रसेन धर्मपूर्वक प्रजा के उद्धार के लिए कार्य करते थे साथ ही भगवान विष्णु के भक्त भी थे। एक दिन देवर्षि नारद उनके दरबार में आए। राजा ने बहुत प्रसन्न होकर उनकी सेवा की और उनके आने का कारण पूछा। देवर्षि ने बताया कि मैं यम से मिलने यमलोक गया, वहां मैंने तुम्हारे पिता को देखा।उन्होंने बताया कि व्रतभंग होने के दोष से वो यमलोक की यातनाएं झेलने को मजबूर है। इसलिए उन्होंने तुम्हारे लिए यह संदेश भेजा है कि तुम उनके लिए इन्दिरा एकादशी का व्रत करो जिससे वो स्वर्गलोक को प्राप्त कर सकें।राजा ने पूछा कि हे मुनिवर ! कृपा करके इंदिरा एकादशी के संदर्भ में बताएं। देवर्षि ने बताया कि आश्विन मास की यह एकादशी पितरों को सद्गति देने वाली है। व्रत में अपना पूरा दिन नियम-संयम के साथ बिताएं। व्रती को इस दिन आलस्य त्याग कर भजन करना चाहिए। पितरों का भोजन निकाल कर गाय को खिलाएं। फिर भाई-बन्धु, नाती और पु्त्र आदि को खिलाकर स्वयं भी मौन धारण कर भोजन करना। इस विधि से व्रत करने से आपके पिता की सद्गति होगी।राजा ने इसी प्रकार इंदिरा एकादशी का व्रत किया। व्रत के फल से राजा के पिता को हमेशा के लिए बैकुण्ठ धाम का वास मिला और राजा भी मृत्योपरांत स्वर्गलोक को गए।-
- हिंदी पंचांग के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्रि पड़ती हैं लेकिन साधारण जन के लिए वर्ष में छह माह के अंतराल पर दो नवरात्रि आती हैं। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो जाती हैं। पूरे नौ दिनों तक मां आदिशक्ति के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी का पूजन किया जाता है। इन नौ स्वरूपों की अपनी अलग-अलग विशिष्टता है। इनके पूजन से भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों तक मां दुर्गा देवलोक से धरती लोक पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों के कष्टों को हरकर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी का पूजन किया जाता है और इस दिन को दुर्गा महाअष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसके अगले दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन करने के साथ ही नवरात्रि का समापन हो जाता है। नवरात्रि में ये दोनों ही दिन बहुत महत्वपूर्ण मानें जाते हैं। कई बार भक्तों को अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर असमंजस रहती है। तो चलिए जानते हैं कि कब से है नवरात्रि आरंभ, महाअष्टमी और नवमी यानी नवरात्रि समापन।नवरात्रि आरंभ तिथि वह घटस्थापना मुहूर्त-इस बार शारदीय नवरात्रि 07 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार से आरंभ हो रही हैं।अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि आरंभ- 06 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार शाम 04 बजकर 34 मिनट से।अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि समापन- 07 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को दोपहर 01 बजकर 46 मिनट परघटस्थापना मुहूर्त- 07 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 17 मिनट से 07 बजकर 07 मिनट तक रहेगा।शारदीय नवरात्रि में इस दिन है महाअष्टमी-इस बार शारदीय नवरात्रि की दुर्गा अष्टमी 13 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को पड़ रही है। इस दिन लोग अपने घरों में हवन अनुष्ठान करवाते हैं।अश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि आरंभ- 12 अक्टूबर 2021 दिन मंगलवार रात 09 बजकर 47 मिनट सेअश्विन मास शुक्ल पक्ष अष्टमी समाप्त- 13 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को रात 08 बजकर 07 मिनट परइस दिन है नवरात्रि समापन जानिए नवमी की तिथि-इस बार नवरात्रि का समापन यानी नवमी तिथि को कन्या पूजन 14 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार को किया जाएगा।अश्विन मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि आरंभ- 13 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को रात 08 बजकर 07 मिनट सेअश्विन मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि समाप्त- 14 अक्टूबर 2021 दिन बृहस्पतिवार को शाम 06 बजकर 52 मिनट पर
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ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रह बताए गए हैं, इनमें से राहु केतु को छोड़कर सभी ग्रहों को किसी न किसी राशि का आधिपत्य प्राप्त है। इन ग्रहों के नाम पर ही सप्ताह के दिनों के नाम रखें गए हैं और ये दिन उससे संबंधित ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ग्रह अलग-अलग फल प्रदान करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रेम और भौतिक सुखों व धन वैभव का ग्रह माना गया है। यदि शुक्र ग्रह की स्थिति प्रतिकूल हो तो इससे भौतिक सुखों में आने लगती है, व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। जिन लोगों की कुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर होता है उनके प्रेम संबंधों में अड़चनें बनी रहती हैं या फिर वैवाहिक जीवन में समस्याएं आने लगती हैं। शुक्रवार के दिन यदि कुछ उपाय कर लिए जाएं तो इससे आपका शुक्र ग्रह मजबूत होता है वह जीवन में संपन्नता व खुशहाली आती है।
आइए जानते हैं कि शुक्र ग्रह को मजबूत करने के लिए क्या उपाय करने चाहिए।
शुक्र को मजबूत करने के लिए मंत्र जाप
यदि शुक्र ग्रह के कारण आपके जीवन में आर्थिक तंगी उत्पन्न हो रही है तो प्रत्येक शुक्रवार और पूर्णिमा के दिन शुक्र के इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे शुक्र मजबूत होता है और आपकी रुपए-पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।
शुक्र ग्रह को मजबूत करने के लिए मंत्र- "ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:"
खाने में करें सफेद चीजों का प्रयोग-
सफेद चीजों को शुक्र ग्रह से संबंधित माना जाता है। शुक्र ग्रह को मजबूत करने के लिए खाने में सफेद चीजों जैसे, चावल की खीर, दूध, दही आदि का सेवन करना चाहिए। इससे शुक्र मजबूत होता है और शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है।
शुक्र ग्रह को मजबूत बनाने के लिए इन बातों का रखें ध्यान-
-यदि आप शुक्र ग्रह को मजबूत बनाना चाहते हैं तो साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
-इसके अलावा इत्र का प्रयोग न दान करना चाहिए।
- सफेद रंग के वस्त्रों व सफेद वस्तुओं को दान करना चाहिए।
-शुक्र ग्रह को मजबूत बनाने के लिए हमेशा महिलाओं का सम्मान करना चाहिए। - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 406
(भूमिका - साधक के भगवत्प्रेमोन्नति के विषय में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रवचन अंश, यह अंश उनके द्वारा निःसृत प्रवचन श्रृंखला 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या से लिया गया है..)
....भगवान् सम्बन्धी कामना निन्दनीय नहीं है लेकिन वन्दनीय भी नहीं है, ऐसा हमारा खयाल है। साधक के लिये डेन्जर है क्योंकि अगर हमने कोई कामना बना ली, उनका (भगवान) दर्शन हो जाय, चलो और कुछ नहीं चाहते, स्पर्श भी नहीं चाहते, लेकिन दर्शन हो जाय और नहीं हुआ, रोते रहे एक दिन, दो दिन, एक महीना, एक साल, दस साल, हजार साल, करोड़ साल। हमारे रोने से भगवान् आ जायेंगे ये अगर अहंकार है तो रोने से नहीं आयेंगे। भगवान् तो अपनी इच्छा से आते हैं, हमारी किसी साधना के चाबुक से नहीं आ सकते वो।
अरे! रोने का मतलब क्या है? रोने का मतलब ये है माँगना। माँगना? माँगना दो प्रकार से होता है न। आप लोग टिकट माँगते हैं रेलवे का, रुपया हाथ में लेकर डालते हैं.. ऐ... टिकट बम्बई का। वो रुपया दिया, उसने टिकट दिया। एक तो ये माँगना है, इसमें किसी का कोई एहसान नहीं क्योंकि तुमने रुपया दिया, उसने टिकट दिया। और एक माँगना होता है, बाबूजी भूख लगी है, चार पैसा दे दो, एक माँगना ये होता है। इसमें तो हमने उसके लिये कुछ किया-विया नहीं। केवल माँगा और अगर उसने दे दिया, तो फिर क्या बात है, थैंक्यू।
तो भगवान् से हम माँग रहे हैं - स्प्रिचुअल सामान, स्प्रिचुअल प्रेम, स्प्रिचुअल हैप्पीनेस। दे नहीं रहे कुछ। आँसू दे रहे हैं। आँसू दे रहे हैं? आँसू कोई देने की वस्तु है? अरे! ये बोलो माँग रहे हैं, और वह भी अभी माँगने में मिलावट है। अभी क्लीन स्लेट हार्ट होकर के विशुद्ध हृदय से नहीं माँग रहे हैं। अभी कुछ गड़बड़ है। इसलिये हमारे माँगने से उन्होंने दिया, ये अहंकार नहीं होना चाहिये। हमने भी तो साधना की है। क्या साधना की है? अरे, कीर्तन किया है, आँसू बहाये हैं। अरे! तो कीर्तन और आँसू का मतलब क्या होता है - माँगना। तुमने दिया क्या? अरे! देते क्या, अभी तो मिले ही नहीं वो, और अगर मिल भी जायें तो हम देंगे क्या? हमारे पास जो कुछ है वो तो उनके काम का है नहीं कुछ शरीर, मन, बुद्धि संसार का सामान और फिर ये तो उन्हीं का है। अगर हम यह भी सोच लें कि हमने दे दिया, तो हमसे पूछा जायेगा ये किसका था? ये सारा विश्व उनका है। उस विश्व में भी भारत, भारत में भी एक छोटा-सा शहर लखनऊ, लखनऊ में भी एक मुहल्ला, मुहल्ले में भी दो-तीन मकान हमारे थे, उसको हमने दान कर दिया। बड़ा कमाल किया आपने। अरे, ये तो उसी का सामान है। इसमें अहंकार क्यों आया? तो अगर अहंकार युक्त होकर के हमने याचना भी की तो स्वीकार नहीं होगी।
लेकिन अगर ठीक-ठीक याचना करेगा तो उसको वो वस्तु मिलेगी। लेकिन, एक बड़ी गड़बड़ बात ये होगी कि वस्तु मिलने के बाद तुरन्त कामना बढ़ती है आगे, वो चाहे संसारी कामना हो चाहे पारमार्थिक हो। तुरन्त उसके आगे वाली कामना पैदा हो जाती है, अपने आप हो जाती है, तो जैसे संसार में तमाम स्तर हैं, ये साइकिल से जा रहा है, ये स्कूटर से जा रहा है, ये मोटर साइकिल से जा रहा है, ये एम्बेसेडर से जा रहा है, ये अम्पाला से जा रहा है, एक से एक ऊँचा स्तर है न? तो जब किसी को साइकिल मिल जाती है - ए! साइकिल तो मिल गयी लेकिन वो मोटर साइकिल होती तो जरा अच्छा रहता। अब चलाओ उसको, मेहनत करो, तुरन्त कामना बढ़ गयी। मोटर साइकिल हो गयी, ए! ये मोटर साइकिल क्या खोपड़ा खा लेती है, ये भी कोई गाड़ी है, कार हो तो उसमें साहब बनकर चलें। कार भी हो गयी, हाँ कार है, फटीचर कार है, कोई कार है? वो लम्बी वाली गाड़ी हो, दस लाख वाली। यानी ये बीमारी ऐसी है कि;
यत् पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः।न दुह्यन्ति मनः प्रीतिं पुंसः कामहतस्य ते॥(भागवत 9-19-13)
नालमेकस्य पर्याप्तं तस्मात्तृष्णां परित्यजेत्।।(विष्णु पुराण)
अनन्त ब्रह्माण्ड की साम्राज्य श्री मिल जाय तो भी उसके आगे प्लानिंग होगी। और यही बात ईश्वरीय जगत् में भी है। वहाँ भी अनेकों स्तर हैं, जैसे मैंने बताया था न, ये ब्रह्मानन्द है, ये बैकुण्ठानन्द है, ये द्वारिकानन्द है, ये मथुरानन्द है, ये ब्रजानन्द है, वृन्दावनानन्द है, कुंजानन्द है, निकुंजानन्द है, तमाम आनन्द वहाँ भी होते हैं। तो कामना बनायेंगे अगर हम तो उसके पूरी होने के बाद फिर कामना आगे बढ़ेगी और साधनावस्था में कामना पूरी हो जाय ये कम्पल्सरी नहीं। इसलिए अगर साधनावस्था में कामना पूरी ना हुई तो निराशा आयेगी और निराशा आयेगी तो अबाउट टर्न हो जायेगा। अरे यार, इतने दिन तक रोये-गाये, सब कुछ, वो सब बकवास है। न कहीं भगवान् है न कहीं कुछ है। लोगों ने खामखां फैला रखा है बवाल, एक बिना वजह खोपड़ा भंजन करने के लिये। ये भगवान्-वगवान् जो है ये तो जिनके दिमाग खराब हो गये बुढ़ापे में, ऐसे लोग जंगलों में पड़े रहते थे, खाने-पीने को ढंग से मिलता नहीं था, हाफ मैड हो गये थे। तो उन्होंने कहा हम तो बरबाद हुए ही हैं, ये दुनियाँ वालों को भी ऐसी बीमारी लगा दो भगवान् की, कि ये भी टेन्शन में पड़े रहें।
जब निराशा आती है मनुष्य में तो इतनी निम्न कक्षा की बात सोच जाता है। उसको होश-हवाश नहीं रहता कि मैं क्या सोच रहा हूं भगवान् के लिये भी, गुरु के लिये भी, पाताल में पहुँच जाता है। इसलिये कामना रखकर भक्ति तो करनी ही नहीं है। साधक को तो बहुत ही डेन्जर है, अगर सिद्ध हो जाय कोई तो पृथक् बात है, उसका पतन होने का सवाल ही नहीं रहेगा कोई। लेकिन अभी ये सोचना है जो नारद जी कहते हैं;
यत्प्राप्य न किंचिद् वाञ्छति।
वो कुछ नहीं चाहता। अरे! आनन्द तो चाहता होगा? आनन्द, सबसे कठिन परीक्षा यही है। जहाँ बड़े-बड़े जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस भी फेल हो जाते हैं, वे भी सकाम हो गये। भगवान् से ब्रह्मानन्द माँगते हैं, मोक्ष माँगते हैं। ये मोक्ष माँगना क्या है? कामना। आनन्द माँगना क्या है? कामना। अरे! हम संसार की जो वस्तु चाहते हैं वो भी तो आनन्द के लिये ही तो चाहते हैं। अगर आनन्द माँगना सही है तो हम जो संसारी आनन्द चाहते हैं वो भी सही होना चाहिये। तो मोक्ष की कामना भी सकामता है।
लेकिन निष्कामता और सकामता में जो बारीक अन्तर है, वो क्या है? हम भगवान् की सेवा चाहते हैं। सेवा चाहते हैं - ये भी कामना है। वाह! वाह! वाह! बड़े आप अच्छे हुए, सेवा चाहते हैं और कहते हैं हम निष्काम हैं। अरे! आपका एम (लक्ष्य) तो है कुछ, सेवा चाहते हैं न? हाँ, लेकिन हम सेवा चाहते हैं अपने प्रियतम की, सेव्य की। हाँ, हाँ, सेव्य की सेवा चाहते हो, जैसे माँ बच्चे की सेवा करती है, उसे खुशी होती है, ऐसे ही न? नहीं, नहीं, हम श्यामसुन्दर की सेवा इसलिये चाहते हैं कि श्यामसुन्दर को सुख मिले। अब आनन्द की हमारी कामना भी समाप्त, अब हम निष्काम होंगे। श्यामसुन्दर को सुख मिले, इस उद्देश्य से उनकी सेवा माँगते हैं। उस सेवा के लिये उनका दिव्य निष्काम प्रेम माँगते हैं। यहाँ से चलो। निष्काम प्रेम चाहिये, क्यों? उनकी सेवा करेंगे, क्यों? उनके सुख के लिये। इसके लिये नारदजी ने एक सूत्र बनाया है;
तत्सुखसुखित्वम्।
तो क्यों जी, फिर हमको आनन्द कहाँ मिला? ऐसा लेबर इतना लम्बा चौड़ा हमने किया, बेकार हो गया। नहीं, जब श्यामसुन्दर को आप सुख देंगे सेवा से, तो श्यामसुन्दर उसको और मधुर बनाकर लौटा देंगे आपको। तब आपको वो उससे अधिक आनन्द मिलेगा। फिर आप उसको श्यामसुन्दर को दे देंगे। फिर वो आपको लौटा देंगे, फिर आप उनको दे देंगे - ये क्रम अनन्तकाल तक चलता जायगा। इसलिये आनन्द बढ़ता जायगा।
• सन्दर्भ : 'नारद भक्ति दर्शन' पुस्तक (जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा व्याख्या)
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
एक जमाना था जब लड़का-लड़की एक दूसरे को देखे बिना ही शादी कर लेते थे, लेकिन आज के समय में हर कोई अपने जीवन का ये फैसला सोच समझकर लेता है। लड़का हो या लड़की, इस बारे में वे अपने पैरेंट्स से खुलकर बात करते हैं और मन मुताबिक जीवनसाथी चुनते हैं। हालांकि आपकी शादी अरेंज होगी या लव, इसके बारे में कोई नहीं जानता, लेकिन ज्योतिष में राशि और कुंडली के जरिए इसका संभावित अनुमान लगाया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो 4 राशियों के लोग अरेंज मैरिज से कहीं ज्यादा यकीन लव मैरिज में रखते हैं.. जानिए कहीं ये आपकी राशि तो नहीं है....
मेष राशि
मेष सबसे पहली राशि है और इस सोच के मामले में भी ये सबसे पहले आती है। माना जाता है कि मेष राशि के लोग काफी भावुक होते हैं। अगर एक बार ये किसी से जुड़ जाएं, तो आसानी से उन्हें भूल नहीं पाते। इनका ये स्वभाव किसी न किसी से इनको अटैच जरूर करवाता है। इसके बाद ये पूरी कोशिश करते हैं कि इनकी लव मैरिज हो। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इनकी शादी सफल भी होती है क्योंकि ये अपने रिश्ते में अपना 100 फीसदी देने पर विश्वास रखते हैं।
वृषभ
माना जाता है कि वृषभ राशि के लोग काफी जिद्दी होते हैं। इन्हें अक्सर डॉमिनेट करने की आदत होती है। अपनी इस आदत को ये भी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। इस कारण ये हमेशा उसी व्यक्ति से शादी करना चाहते हैं, जो इनके इस व्यवहार के साथ मैनेज कर सके। इसलिए ज्यादातर मामलों में इनकी लव मैरिज होती है।
मिथुन राशि
ज्योतिष में माना गया है कि मिथुन राशि के लोग काफी सोशल होते हैं, इसी स्वभाव के कारण इनके कभी कभी कई अफेयर भी हो जाते हैं। हालांकि जब ये किसी से शादी कर लेते हैं तो रिश्ते को पूरी ईमानदारी से निभाते हैं। ज्यादातर मामलों में ये लव मैरिज ही करते देखे जाते हैं।
धनु राशि
माना जाता है कि धनु राशि के लोग काफी विद्रोही स्वभाव के होते हैं और अपनी शर्तों पर ही जीना पसंद करते हैं। इनकी जिंदगी का फैसला ये किसी और को नहीं लेने देत। इन्हें अपनी ही तरह बेबाक, उत्साही और समझदार लोग पसंद आते हैं। ज्यादातर ये लोग अपने टाइप का व्यक्ति मिलने पर ही उसके साथ शादी का फैसला करते हैं।
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सनातन धर्म में अक्षत यानी पीले चावल के बिना कोई भी पूजा या शुभ कार्य संपन्न नहीं होता है, लेकिन यह बात कम ही लोग जानते हैं कि पूजा के अलावा भी अक्षत बहुत उपयोगी हैं। चावल के दानों से किए गए उपाय बेहद प्रभावी होते हैं और यह पैसों की तंगी दूर कर देते हैं। इसके लिए पीले चावलों के कुछ आसान उपाय ही करने होते हैं।
अक्षत के कारगर उपाय
- चावल के 21 दाने लें और ध्यान रखें कि वे टूटे हुए न हों। इन्हें हल्दी में थोड़ा सा पानी डालकर पीले कर लें और फिर सुखा लें। अब सुबह स्नान करके शुभ मुहूर्त में पूजा करें। इसके लिए लाल रंग के रेशमी कपड़े में पीले चावलों के 21 दाने बांध लें। फिर विधि-विधान से धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में चावल के दानों की पोटली भी रखें। पूजा के बाद इन चावलों को अपने पर्स में संभालकर रख लें। माना जाता है कि ऐसा करने से पैसों की तंगी खत्म होने लगती है।
- जब भी पूजा करें तो पूजन से पहले देवी-देवता को आमंत्रित करने के लिए पीले चावलों का उपयोग करें। मान्यता है कि ऐसा करने भगवान जरूर आते हैं और उनकी कृपा से सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।
- पूजा में चावल का उपयोग करने के बाद बचे हुए चावलों को सोमवार के दिन किसी गरीब को दे दें या मंदिर में दान कर दें। माना जाता है कि कुछ सोमवार तक ये उपाय करने से आर्थिक स्थिति में सुधार नजर आने लगता है। - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 405
(भूमिका - किसी साधक/जिज्ञासु ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से यह प्रश्न किया था कि... 'वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी स्थलों में बताया गया है कि ये संसार भगवान् से निकला है, भगवान् ने बनाया। तो भगवान् ने ये दुःखमय संसार क्यों बनाया?' नीचे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वेदादिक सम्मत दिया गया समाधान प्रकाशित किया जा रहा है। चूँकि यह उत्तर अधिक विस्तार में है, अतएव इसे 3 या 4 भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। विगत 22 से 24 सितम्बर तक श्रृंखला के 402-रे से 404-वें भाग में इस उत्तर के तीन भाग प्रस्तुत किया गये थे। कृपया आप सभी पिछले भाग से ही इसे पढ़ें, ताकि सम्पूर्ण समाधान से लाभान्वित हो सकें...)
(अंतिम भाग - 4, पिछले भाग से आगे)
........देखो, भगवान् के कितने विरोधी नाम - 'विश्वकृत' माने संसार बनाने वाला, 'विश्ववित्' इसमें सर्वव्यापक है इसलिये जानने वाला। विश्वकृत, विश्ववित् और विश्वरूप यानी जैसे भगवान् था वैसे ही भगवान् बन गया। कुछ बनाया नहीं । जो कुछ भगवान् था पहले, वही भगवान् प्रकट हो गया -
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्।दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्ष मथोस्वः।।(नारायणोपनिषद् 5-7)
ससर्जेदं स पूर्ववत्।(भागवत 2-9-38)
प्रजाः सृज यथापूर्वं याश्च मय्यनुशेरते।(भागवत 3-9-43)
यानी, जैसे संसार था प्रलय के पहले और भगवान् में सब लीन हो गया था; वैसे ही फिर प्रकट हो गया। तो भगवान् के अन्दर ये संसार था। और संसार माने क्या? तीन का मिक्श्चर- एक भगवान्, एक जीव, एक माया। बस इसी का नाम भगवान।
अस्मान्मायी सृजते विश्वमेतत् तस्मिंश्चान्यो मायया संनिरुद्धः।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 4-9)
इस संसार में आप क्या देखते हैं? एक तो जड़ वस्तु है, ये माया और एक चेतन हम लोग और महा चेतन भगवान् सर्वव्यापक। ये तीन का मिक्श्चर संसार है। इसी संसार में हम लोग जड़ देखते हैं। इसी संसार में ज्ञानी लोग ब्रह्म को देखते हैं। इसी संसार में भक्त लोग भगवान् को देखते हैं। संसार एक है।
उमा जे राम चरण रत विगत काम मद क्रोध।निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं विरोध।।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।(गीता 7-19)
अतएव भगवान् सर्वव्यापक है तो ये संसार भी वैसे ही है। एक शब्द का अन्तर है। ध्यान दो। श्रीकृष्ण निरावरण ब्रह्म हैं। और संसार सावरण ब्रह्म है। बस। तो निरावरण ब्रह्म से चाहे जानकर प्यार करें, चाहे अनजाने में करें, भगवत्प्राप्ति होगी और सावरण ब्रह्म में बिना जाने भगवत्प्राप्ति नहीं हो सकती। जरा बुद्धि लगाओ। भगवान् को भगवान् जानकर कोई प्यार करे भगवत्प्राप्ति हो जायेगी? हाँ वो तो हो ही जायेगी। और अगर भगवान् को भगवान् नहीं जानता इन्सान जानता है - अपना बाप मान लिया, अपना बेटा मान लिया, पति मान लिया वो भी भगवत्प्राप्ति करेगा। क्यों? इसलिये कि किसी ने किसी को जहर पिला दिया तो वो मर गया। किसी ने आत्महत्या करने के लिये अपने आप पी लिया वो भी मर गया। यानी जहर अपना काम करेगा। चाहे जान कर पियो, चाहे अनजाने में पिओ। चाहे कोई स्त्री सती होने जाय वो भी जलेगी। किसी को आग में पटक दो वो भी जलेगी। यानी वस्तु का फल मिलता है भावना से कोई मतलब नहीं। इसीलिये भागवत में कहा गया -
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥(भागवत 10-29-15)
भगवान् के प्रति कैसे ही प्यार हो जाय मन का भगवत्प्राप्ति का फल मिलेगा। कंस को भी मिला, शिशुपाल को भी मिला, गोपियों को भी मिला। लेकिन संसार में क्या है? देखो संसार में भगवान् की भावना करके प्यार करने वाले भी तर गये। संसार में भगवान् की भावना। ये मूर्ति क्या है? पत्थर की मूर्ति, मिट्टी की मूर्ति, सोने की मूर्ति, लोहे की मूर्ति। मूर्तियाँ होती है न आठ प्रकार की। अरे, मन की भी मूर्ति होती है।
मनोमयी मणिमयी प्रतिमाष्ट विधास्मृता।(भागवत 11-27-12)
ये मूर्ति तो जड़ है न। हाँ, पत्थर की बनी है। चट्टान को तोड़ा वोड़ा, हथौड़ी चला कर नाक मुँह बना दिया। हाँ। लेकिन अगर उसमें आपने भगवान् की भावना कर ली तो भगवत्प्राप्ति का फल होगा। अनन्त जीव भगवत्प्राप्ति कर लिये मूर्ति के द्वारा या मन से ही बना लो। वो भी मायिक है। ये भी गया भगवान् के पास। और जिसने ये संसार में संसार की भावना की बस वो मर गया। वही हम लोग कर रहे हैं। हम लोग जो प्यार कर रहे हैं मायाबद्ध या मायिक वस्तु से; ये संसार में संसार की भावना वाला प्यार है।
एक पत्थर की मूर्ति बनाओ अपने बाप की, अपनी माँ की , अपने बेटे की। हाँ बनाया। अब उसमें भावना बनाओ बाप की, माँ की, बेटे की। हाँ बनाया। तो क्या मिलेगा? जीरो बटे सौ। क्यों, भगवान् का फल तो मिल जाता है मूर्ति से। भगवान् का फल इसलिये मिल जाता है नम्बर एक, भगवान् सर्वव्यापक है, वो पत्थर में भी व्याप्त है। आपका बाप पत्थर में व्याप्त नहीं है वो तो इंग्लैण्ड में बैठा है। नम्बर दो , भगवान् सर्वज्ञ है वो आपके हृदय की भावना को जानता है। इसलिये वो भगवान् का फल दे देता है। आपका बाप क्या जाने। आप रो- रोकर मर गये उसको पता ही नहीं है। आपको जला भी दिया गया उसको पता ही नहीं है। जब कोई चिट्ठी जाय, तार जाय, फोन जाय- ऐ! मेरा बेटा मर गया!
इसलिये संसार में संसार की भावना करने वाले को चौरासी लाख में घूमना पड़ता है और बाकी तीन, कृतार्थ हो गये।
तो भगवान् के अवतार काल में दो बातें होती हैं- भगवान् जानकर के भी लोगों ने उस समय प्यार किया, महापुरुषों ने और बिना जाने अपना बाप मान लिया, बेटा मान लिया और पति मान लिया और प्यार हो गया मन का बस, वो भी गया। अब अवतार नहीं है तो ? तो फिर हम जड़ वस्तु में भगवान् की भावना करके भगवत्प्राप्ति करते हैं अथवा बिना वस्तु के। मन भी तो जड़ है इससे चिन्तन बना करके भगवत्प्राप्ति कर लेते हैं। जब अघासुर का भगवान् में प्रवेश होने की बात शुकदेव परमहंस ने कही तो परीक्षित का माथा ठनका। उसने कहा गुरु जी ! इतना बड़ा पापी अघासुर, सारे ग्वालों को अपने अन्दर कर लिया उसने कि सब को खा जाय। मुँह बन्द कर सब मर जायें। तो भगवान् ने कहा- 'अरे रे! ये क्या कर रहा है? हमारे सारे सखाओं को खा जा रहा है।' तो भगवान् भी घुस गये उसके मुँह में। उसने कहा- 'बड़ा अच्छा हुआ, आओ - आओ तुम भी आ गये। अब आज तो छुट्टी मिली पूरे परिवार की। हम तो यह ही चाहते थे कि वो नेता भी आ जाय।' तो भगवान् ने कहा - 'अच्छा बच्चू मैं बताता हूँ।' तो भगवान् बड़े होते गये। होते-होते, होते-होते उसका मुँह फट गया और वो मर गया। वो भगवान् में लीन हो गया। तो परीक्षित ने कहा, 'अरे ! उसको नरक मिलना चाहिये!' तो शुकदेव परमहंस ने कहा-
सकृद् यदङ्ग प्रतिमान्तराहिता मनोमयी भागवतीं ददौ गतिम्।(भागवत 10-12-39)
अरे गधे ! जब मन से बनाई हुई मूर्ति की उपासना, भगवद् भावना करने से भगवत्प्राप्ति किया या अनन्त महापुरुष बने; तो वो तो साक्षात् भगवान् उसके मुँह में घुस गये थे। फिर भी वो न तरे!
तो इसलिये संसार में संसार की भावना करने वाला नहीं तरेगा। उसको संसार ही मिलेगा। इसलिये भगवान् ने अर्जुन से कहा-
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।(गीता 8-7)
अर्जुन ! निरन्तर मेरा स्मरण कर। ताकि अन्त समय में मेरा स्मरण हो। अंत समय में अगर मेरा स्मरण होगा तो मेरा लोक प्राप्त होगा -
मद्भक्ता यान्ति मामपि।(गीता 7-23)
एतावान् सांख्ययोगाभ्यां स्वधर्मपरिनिष्ठया।जन्मलाभः परः पुंसामन्ते नारायणस्मृतिः॥(भागवत 2-1-6)
कर्म, धर्म, ज्ञान, योग किसी भी साइड से; किसी भी मार्ग से जाओ निरन्तर चिन्तन करो कि अन्तिम समय में भगवान् का स्मरण हो। तब भगवत्प्राप्ति होगी। इसलिये भगवान् के विषय में;
तर्काप्रतिष्ठानात्।(ब्र.सू. 2-1-11)
वेदान्त सूत्र कहता है कि वहाँ तर्क मत ले जाओ। ये तर्क वाली तुम्हारी मायिक बुद्धि है। अरे जब इण्डिया का कानून इंग्लैण्ड में लागू नहीं होता तो फिर तुम्हारा ये मायिक तर्क भगवान् के एरिया में कैसे लागू होगा? वहाँ न ले जाना बुद्धि को। वो बुद्धि से परे है। ये भावार्थ है।(समाप्त)
• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 4
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 404
(भूमिका - किसी साधक/जिज्ञासु ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से यह प्रश्न किया था कि... 'वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी स्थलों में बताया गया है कि ये संसार भगवान् से निकला है, भगवान् ने बनाया । तो भगवान् ने ये दुःखमय संसार क्यों बनाया?' नीचे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वेदादिक सम्मत दिया गया समाधान प्रकाशित किया जा रहा है। चूँकि यह उत्तर अधिक विस्तार में है, अतएव इसे 3 या 4 भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। कल 23 सितम्बर को श्रृंखला के 402-रे व 403-रे भाग में इस उत्तर का प्रथम भाग प्रस्तुत किया गया था। कृपया आप सभी पिछले भाग से ही इसे पढ़ें, ताकि सम्पूर्ण समाधान से लाभान्वित हो सकें...)(भाग - 3, पिछले भाग से आगे)........कालात्मा, केवल एक भगवान् निर्भय है। काल के भी काल। बाकी सब काल के अण्डर में हैं। लेकिन वो जरासन्ध के भय से ऐसे भागे, ऐसे भागे कि इण्डिया क्रॉस कर गये। समुद्र में जाकर एक द्वीप में अपना निवास बनाया। द्वारिका बसाया। और भक्तों ने नाम धर दिया रणछोर। हमारे श्यामसुन्दर रणछोर हैं। ये भी कोई तारीफ है! लड़ाई के मैदान को छोड़ कर भागने वाले। अरे! ये तो बुराई है। अरे! ये ही तो लीला है। कालात्मा होकर भागना। आत्माराम होकर के इतनी स्त्रियों से प्यार करना। तो भगवान् के पास अनन्त शक्तियाँ हैं। इसलिये वो 'कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थः' हैं। जो चाहें सो करें, जो चाहें न करें, जो चाहें उल्टा करें।अंगानि यस्य सकलेन्द्रियवृत्तिमन्ति पश्यन्ति पान्ति कलयन्ति चिरं जगन्ति । आनन्दचिन्मय सदुज्वलविग्रहस्य गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।(ब्रह्म संहिता 5-32)उनके एक अंग से सब इन्द्रियों का वर्क हो जाता है। क्या मतलब? एक नाक है, नाक का काम क्या? सूंघना। नाक सुन सकती है? नहीं। देख सकती है? नहीं। केवल सूंघने का काम करती है। कान केवल सुनने का काम करता है। मन केवल सोचने का काम करता है। लेकिन भगवान् के यहाँ ऐसा नहीं होता। एक नाक से वो देखते भी हैं, सुनते भी हैं, सूंघते भी हैं, रस लेते हैं, स्पर्श करते हैं, सोचते हैं, डिसीजन लेते हैं, भागते हैं, पकड़ते हैं, सब कर लेते हैं। और बिना किसी इन्द्रिय के भी सब कर्म कर लेते हैं।अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स श्रृणोत्यकर्णः।स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्रयं पुरुषं महान्तम्।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 3-19)बिनु पग चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु कर्म करइ विधि नाना।आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु जिह्वा वक्ता बड़ जोगी।तन बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्राण बिनु वास असेखा।असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाई नहिं बरनी।।अलौकिक माने जो हमारी बुद्धि में न आवे क्योंकि हम ऐसा नहीं कर सकते। बिना नाक के सूंघे, बिना रसना के बोलें और वो ऐसा करता है। तो भगवान् ने, जिसको सर्वकर्मा कहते हैं, सर्वसमर्थ कहते हैं, सर्वशक्तिमान् कहते हैं;मनोमयः प्राणशरीरो भारूपः सत्यसंकल्प आकाशात्मा सर्वकर्मा सर्व कामः सर्व गन्धः सर्वरस सर्वमिदमभ्यातोऽवाक्यनादरः।(छान्दोग्योपनिषद 3-14-2)वेद कहता है। वो तो सर्वशक्तिमान् और विपरीत विरोधी शक्तियों का अधिष्ठान है भगवान्। यदि ऐसा कार्य करता है यानी उससे जड़ जगत् पैदा हुआ और आनन्दहीन पैदा हुआ तो इसमें आश्चर्य क्या? और कोई कहे फिर ये क्यों कहा गया कि 'जगच्च यः' ये संसार भगवान् ही है।न चान्तर्न बहिर्यस्य न पूर्वं नापि चापरम्।पूर्वापरं बहिश्चान्तर्जगतो यो जगच्च यः॥(भागवत 10-9-13)वो जगत् स्वरूप है । विश्वरूप उसका नाम ही है। देखो, भगवान् के कितने विरोधी नाम- विश्वकृत माने संसार बनाने वाला, विश्ववित् इसमें सर्वव्यापक है इसलिये जानने वाला। विश्वकृत, विश्ववित् और विश्वरूप यानी जैसे भगवान् था वैसे ही भगवान् बन गया। कुछ बनाया नहीं । जो कुछ भगवान् था पहले, वही भगवान् प्रकट हो गया;सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्।दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्ष मथोस्वः॥(नारायणोपनिषद् 5-7)ससर्जेदं स पूर्ववत्।(भागवत 2-9-38)प्रजाः सृज यथापूर्वं याश्च मय्यनुशेरते।(भागवत 3-9-43)यानी, जैसे संसार था प्रलय के पहले और भगवान् में सब लीन हो गया था; वैसे ही फिर प्रकट हो गया।(Note - शेष प्रवचन कल चौथे भाग में प्रकाशित किया जायेगा)• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 4★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 403
(भूमिका - किसी साधक/जिज्ञासु ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से यह प्रश्न किया था कि... 'वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी स्थलों में बताया गया है कि ये संसार भगवान् से निकला है, भगवान् ने बनाया । तो भगवान् ने ये दुःखमय संसार क्यों बनाया?' नीचे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वेदादिक सम्मत दिया गया समाधान प्रकाशित किया जा रहा है। चूँकि यह उत्तर अधिक विस्तार में है, अतएव इसे 3 या 4 भागों में प्रकाशित किया जा रहा है। कल 23 सितम्बर को श्रृंखला के 402-वें भाग में इस उत्तर का प्रथम भाग प्रस्तुत किया गया था। कृपया आप सभी पिछले भाग से ही इसे पढ़ें, ताकि सम्पूर्ण समाधान से लाभान्वित हो सकें...)
(भाग - 2, पिछले भाग से आगे).......भगवान् का एक नाम है - आनन्द। और चित् माने ज्ञान स्वरूप, सत् माने नित्य ये तीन बाते हैं भगवान् में। नित्य है भगवान् , सर्वज्ञ है भगवान् और आनन्द स्वरूप है। आनन्द रूप है। उसमें आनन्द है ऐसा नहीं। वो आनन्द है। अनलिमिटेड आनन्द।यो वै भूमा तत्सुखम्।(छान्दोग्योपनिषद 7-23-1)हाँ जी, तो जब भगवान् नित्य है, ज्ञानयुक्त है और आनन्द है तो उससे पैदा हुआ ये संसार इसका उल्टा क्यों है? उल्टा माने नश्वर। वो नित्य, नित्य का उल्टा अनित्य, नश्वर। वो ज्ञान स्वरूप, ये अज्ञान स्वरूप, वो आनन्द स्वरूप, यहाँ दुःख ही दु:ख। कहीं आनन्द नहीं। किसी पदार्थ में आनन्द नहीं। न चेतन में, न जड़ में। इस मृत्युलोक में तो क्या आनन्द होगा स्वर्गलोक में भी नहीं।आब्रह्मभुवनाल्लोकाः।(गीता 8-16)तो भगवान् आनन्द है तो उससे ये दुःख कैसे पैदा हुआ? भगवान् चित् स्वरूप है और ये अचित् जड़ संसार कैसे पैदा हुआ? भगवान् नित्य है तो ये अनित्य संसार कैसे पैदा हुआ? ये प्रश्न है। बार-बार कहा शास्त्रों वेदों ने कि भगवान् आनन्द रूप है।आनन्दमात्रमविकल्पमविद्धवर्चः।(भागवत 3-9-3)आनन्दमूर्तिमजहादतिदीर्घतापम्॥(भागवत 10-48-7)और वेद भी कहता है ।रसो वै सः।(तैत्तिरीयोपनिषद 2-7)वो आनन्द स्वरूप है। हाँ हाँ ठीक है, आपको आश्चर्य है। हाँ, हमारे संसार में ऐसा नहीं होता। हाथी से घोड़ा नहीं पैदा होता। आदमी से ऊँट नहीं पैदा होता। जैसा पिता होता है वैसा ही पुत्र होता है। डार्विन का सिद्धान्त तो खण्डित हो गया कब का। जो कहता था कि बन्दर से मनुष्य बने हैं। उत्तर दिया वेद ने;यथोर्णनाभिः सृजते गृह्णते च यथा पृथिव्यामोषधयः सम्भवन्ति।यथा सतः पुरुषात्केशलोमानि तथाक्षरात्सम्भवतीह विश्वम्॥(मुण्डकोपनिषद 1-1-7)अरे! तुमको आश्चर्य हो रहा है? अच्छा, एक बात बताओ । तुम्हारा शरीर चेतन है? हाँ है। उससे जड़ क्यों पैदा हुआ? कहाँ? ये बाल। बाल को काट दो, दर्द हुआ? नहीं। क्यों, ये बाल क्या चिपकाये गये हैं बाहर से? चेतन से निकले हैं। हाँ। और जड़ हैं? हाँ। अरे! नाखून चेतन से निकला? हाँ। और आप हर हफ्ते काटते रहते हैं' हँसते हुये। यानी दो प्रकार के नाखून - एक जड़, एक चेतन। अगर चेतन कट गया तो 'हू हू' करते हैं। एक ही नाखून में दो विरोधी बात। फिर आप ही के शरीर में ये आश्चर्य की बात है। और वो तो;आत्मनि चैवं विचित्राश्च हि।(ब्र. सू. 2-1-28)भगवान् के पास अनन्त विचित्र उलटी पुलटी दोनों प्रकार की शक्तियाँ हैं। योगमाया भी, माया भी। माया जड़ है, योगमाया चेतन है। वसुदेव ने भगवान् की स्तुति की;त्वत्तोऽस्य जन्मस्थिति संयमान् विभोवदन्त्यनीहादगुणादविक्रियात्।त्वयीश्वरे ब्रह्मणि नो विरुध्यते त्वदाश्रयत्वादुपचर्यते गुणैः॥(भाग. 10-3-19)हे श्रीकृष्ण! तुम्हारे कोई इच्छा नहीं है। गधा भी जानता है। इच्छा तो उसको होती है जो अपूर्ण हो, कुछ पाना बाकी हो। अज्ञानी हो, ज्ञान पाना है; दुःखी हो, आनन्द पाना है। कुछ पाना है। और जो सदा;आत्मरतिरात्मक्रीड आत्ममिथुन आत्मानन्दः।(छान्दोग्योपनिषद 7-25-2)जो ऐसा भगवान् है उसके इच्छा क्या होगी, क्यों होगी, लेकिन आप कर्म करते हैं। बिना इच्छा के कर्म कैसे होगा जी? हम लोग कोई कर्म करते हैं तो पहले इच्छा होती है। हाँ, वहाँ चलना चाहिये। अब चलेंगे। पहले इच्छा होगी। फिर क्रिया होगी।स यथाकामो भवति तत्क्रतुर्भवति यत्क्रतुर्भवति तत् कर्म कुरुते यत् कर्म कुरुते तदभिसम्पद्यते।(वृहदारण्यक उपनिषद 4-4-5)तो पहले तो इच्छा ही होगी;ज्ञानजन्या भवेदिच्छा हीच्छाजन्या भवेत्कृतिः।कृतिजन्या भवेच्चेष्टा चेष्टाजन्या क्रियोच्यते ॥कृति कैसे हो जायेगी बिना इच्छा के। लेकिन आप तो बड़ा कर्म करते हैं। अरे! सबसे बड़ा कर्म यही, सृष्टि;जन्मस्थिति संयमान्।(भागवत 10-3-19)फिर उसमें व्याप्त होना, फिर सारे संसार का नियामन करना, फिर सब जीवों के हृदय में अलग- अलग रूप से बैठना, फिर उसके अनन्त जन्मों के कर्मों का बहीखाता लेकर बैठना, उसको कर्मफल देना, उसके इन्द्रिय मन बुद्धि में तत्तत् कर्म करने की शक्ति देना। अरे ! कितने कर्म करते हैं। फिर अवतार लेना, किसी को बाप, माँ, बीबी बनाना और बेटा बनाना। सोलह हजार एक सौ आठ श्रीमती, एक एक श्रीमती के दस-दस बच्चे इतनी बड़ी फैमिली फिर सबको मरवा देना। बिना बात। और इच्छा नहीं है। और 'अगुणाद्' - ये सात्त्विक, राजस, तामस ये गुण भी नहीं हैं आप में। जब गुण नहीं हैं तो गुण के काम कैसे करते हैं? ये बच्चा पैदा होता है बिना गुण के? ये तो तीन गुण का काम है। अरे! ये गुस्सा भगवान् का, रथ का पहिया लेकर दौड़े मारने भीष्मपितामह को। आँख निकाल कर, भौंह तानकर, दाँत पीस के। ये गुस्सा कैसे आ गया? भगवान् को भी गुस्सा! ये गुण के काम हैं सब। ये राम ने इतने राक्षसों को मारा; श्रीकृष्ण ने अघासुर, बकासुर , खोपड़ासुर कितनो को मारा। हाँ, हाँ समझ गये। क्या समझ गये?त्वयीश्वरे ब्रह्मणि नो विरुध्यते।(भागवत 10-3-19)आप में अनेक विरोधी शक्तियाँ हैं। इसलिये आप सब प्रकार का कार्य कर लेते हैं।न तेऽभवस्येश भवस्य कारणम्।(भागवत 10-2-39)आप अभव हैं फिर भी जन्म लेते हैं। अनन्त जन्म, एक दो जन्म नहीं।जन्मकर्माभिधानानि सन्ति मेSङ्ग सहस्रशः।न शक्यंतेनु संख्यातुमनन्तत्वान्यापि हि।।(भागवत 10-51-37)अनन्त जन्म हो चुके हैं मेरे, मैं भी नहीं बता सकता उनकी संख्या। अरे ! जन्म तो कर्म से होता है । बिना कर्म के जन्म कैसे हो सकता है? पुण्य करोगे तो जन्म होगा, पाप करोगे तो जन्म होगा। जब कोई कर्म ही नहीं तो जन्म कैसे? लेकिन हो रहा है;बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।(गीता 4-5)
कालात्मा, केवल एक भगवान् निर्भय है। काल के भी काल। बाकी सब काल के अण्डर में हैं।(Note - शेष प्रवचन कल तीसरे भाग में प्रकाशित किया जायेगा)
• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 4
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है जो 6 अक्टूबर तक रहेगा। पितृ पक्ष में पितरों को खुश करने के लिए और उनका आर्शीवाद पाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं। सनातन मान्यता के मुताबिक, जो लोग अपना देह त्याग कर चले गए हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। सनातन धर्म में श्राद्ध महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य है।कहा जाता है कि तर्पण और पिंडदान से पितरों को बल मिलता है। वो शक्ति प्राप्त करके परलोक जाते हैं और अपने परिवार का कल्याण करते हैं। जो मनुष्य अपने पितरों के प्रति उनकी तिथि पर अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, उन पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। पितृपक्ष में लोग बिहार के गया में तर्पण और पिंडदान करते हैं। कहते हैं कि गया में बालू से पिंडदान किया जाता है। लेकिन यह पिंडदान क्यों किया जाता है? आज हम आपको इसका रहस्य बताते हैं।क्यों किया जाता है पिंड दानमान्यता है कि श्राद्ध के दौरान परलोक गए पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और उनको अपने परिवार से मिलने का मौका मिलता है। पूर्वज पिंडदान, अन्न एवं जल ग्रहण करने की इच्छा से अपनी संतानों के पास रहते हैं। पितृ पक्ष में मिलने वाले अन्न और जल से पितरों को शक्ति मिलती है और इसी से वह परलोक के अपने सफर को तय करते हैं। इनसे मिलने वाली शक्ति से वह अपने परिवार का कल्याण भी करते हैं।बालू से क्यों करते हैं पिंडदानगया में बालू से पिंडदान किया जाता है जिसका वाल्मीकि रामायण में भी वर्णन है। इसके मुताबिक, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए गया गए थे। इसके बाद भगवान श्रीराम श्राद्ध के लिए कुछ सामान लेने के लिए बाजार गए। इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकल रहा है।इसी दौरान माता सीता को दशरथजी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए। दशरथजी की आत्मा ने उनसे पिंडदान के लिए कहा। इसके बाद माता सीता ने फल्गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर दशरथजी महाराज का फल्गू नदी केज किनारे पिंडदान कर दिया। इसके बाद दशरथजी की आत्मा प्रसन्न होकर सीताजी को आशीर्वाद देकर चली गई। मान्यता है कि तब से ही गया में बालू से पिंडदान करने की परंपरा है।
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शुक्र राशि परिवर्तन का सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। कुछ राशियों के लिए शुक्र गोचर शुभ परिणाम लेकर आएगा। शुक्र को सुख-समृद्धि का कारक माना जाता है। शुक्र तुला और वृषभ राशि के स्वामी हैं। ये मीन राशि में उच्च और कन्या राशि में नीच के होते हैं। शुक्र का राशि परिवर्तन 2 अक्टूबर को होगा। इस दौरान ये वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे और 30 अक्टूबर तक इसी राशि में रहेंगे। शुक्र राशि परिवर्तन से 4 राशि वालों के आएंगे अच्छे दिन-
मिथुन- शुक्र गोचर काल में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को शुभ समाचार मिल सकता है। इस दौरान नौकरी पेशा करने वाले जातकों को प्रमोशन मिल सकता है। कारोबारियों को मुनाफा हो सकता है। कार्यक्षेत्र का माहौल अच्छा रहेगा। शुक्र गोचर काल में आपको कार्यों में सफलता हासिल होगी। जीवनसाथी के साथ रिश्ते मजबूत होंगे।
कन्या- कन्या राशि वालों के आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। इस दौरान आपको मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। नए मित्र बनेंगे। कार्यों में सफलता हासिल होगी। धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी। यात्रा से लाभ के योग बन रहे हैं।
कर्क- कर्क राशि वालों के लिए समय अनुकूल है। इस दौरान आपको धन लाभ हो सकता है। कार्यक्षेत्र में मान-सम्मान प्राप्त हो सकता है। इस दौरान मेहनत का पूरा फल मिलेगा। जीवन में खुशहाली और समृद्धि आएगी। परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत होगा।
सिंह- ये गोचर काल आपके लिए लाभकारी साबित होगा। आपके निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी। वाहन सुख प्राप्त हो सकता है। परिवार का माहौल खुशनुमा रहेगा। करियर के लिहाज से यह समय अनुकूल है। निवेश से लाभ के आसार बन रहे हैं। - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 402
(भूमिका - किसी साधक/जिज्ञासु ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से यह प्रश्न किया था कि... 'वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी स्थलों में बताया गया है कि ये संसार भगवान् से निकला है, भगवान् ने बनाया । तो भगवान् ने ये दुःखमय संसार क्यों बनाया?' नीचे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वेदादिक सम्मत दिया गया समाधान प्रकाशित किया जा रहा है। चूँकि यह उत्तर अधिक विस्तार में है, अतएव इसे 3 या 4 भागों में प्रकाशित किया जायेगा। कृपया आप सभी नियमित रूप से इन भागों का पठन एवं मनन कीजियेगा...)
(भाग - 1)
...भगवान् की परिभाषा पूछा भृगु ने अपने पिता ब्रह्मज्ञानी वरुण से;
भृगुर्वैः वारुणिः वरुणं पितरमुपससार अधीहि भगवो ब्रह्म।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-1)
पिताजी! ब्रह्म क्या होता है? भगवान् किसे कहते हैं? क्या परिभाषा है? तो उन्होंने कहा;
यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति। यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। तद्विजिज्ञासस्व तद् ब्रह्म।।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-1)
जिससे संसार पैदा हो, जिससे संसार की रक्षा हो, जिसमें संसार का लय हो उसका नाम ब्रह्म, भगवान्, परमात्मा।
'पिताजी! किससे ये संसार पैदा होता है? मैं उसका परिचय जानना चाहता हूँ।' तो उन्होंने कहा - 'बेटा! ये तो साधना करना पड़ेगा। ऐसे ही मेरे बोलने से तुमको बोध नहीं होगा।' गये, साधना किया, लौट कर आये। 'पिताजी! हम समझ गये।' 'क्या समझ गये?'
अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्। अन्नाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। अन्नेन जातानि जीवन्ति। अन्नं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-2)
अन्न; ये गेहूँ, चावल, आटा, दाल जो आप लोग खाते हैं, ये ब्रह्म है। इसी से शरीर बनता है। फिर एक शरीर से दूसरा शरीर पैदा होता है। तो वरुण हँसे, उन्होंने कहा, नहीं बेटा! तुम नहीं समझे, जाओ फिर साधना करो। फिर गये। लौट कर आये। उन्होंने कहा पिताजी अब समझ गये। क्या समझ गये?
प्राणो ब्रह्मेति व्यजानात्। प्राणाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते।प्राणेन जातानि जीवन्ति। प्राणं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-3)
प्राण ब्रह्मा है। वायु। हम लोग साँस लेते हैं न। नहीं समझे। फिर जाओ।
मनो ब्रह्मेति व्यजानात्।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-4)
मन, ये ब्रह्म है। नहीं समझे फिर जाओ।
विज्ञानं ब्रह्मेति व्यजानात्। विज्ञानाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। विज्ञानेन जातानि जीवन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-5)
आत्मा ब्रह्म है। आत्मा। ये जीव, 'मैं'। नहीं समझे अभी। जीव ब्रह्म नहीं हुआ करता। ये तो ब्रह्म का अंश है, शक्ति है। फिर गये साधना किया। अब की लौट कर आये तो उन्होंने कहा अब समझ में आ गया।
आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्। आनंदोद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। आनंदेन जातानि जीवन्ति। आनंदं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-6)
आनन्द ब्रह्म है। हाँ बेटा! अब समझे। आनन्द। आप लोगों ने भगवान् का एक नाम सुना होगा सच्चिदानन्द। सत् चित् आनन्द। तो चाहे सच्चिदानन्द कहो और चाहे चिदानन्द कहो। सत् को छोड़ दो। सत् का लय चित् में होता है और सत् चित् का लय आनन्द में होता है। तो चाहे केवल आनन्द कह दो, तो उसका मतलब सत् चित् उसमें है।
तो भगवान् का एक नाम है - आनन्द। और चित् माने ज्ञान स्वरूप, सत् माने नित्य ये तीन बाते हैं भगवान् में। नित्य है भगवान् , सर्वज्ञ है भगवान् और आनन्द स्वरूप है। आनन्द रूप है। उसमें आनन्द है ऐसा नहीं। वो आनन्द है। अनलिमिटेड आनन्द।(शेष प्रवचन कल अगले भाग में प्रकाशित होगा)
• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 4
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 401
(भूमिका - क्या है संत-चरणों में शीश झुकाने का तात्पर्य, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु की वाणी में इस प्रकार है...)
...अगर तुम एक बार भी संत के चरणों में प्रणाम कर लो तो फिर कुछ करना न रहे, उसके आगे बात खतम, भगवत्प्राप्ति हो गई, माया-निवृत्ति हो गई, सब काम खतम। अगर तुम समझ लो कि ये चरण क्या हैं? इन चरणों की धूलि भगवान चाहता है;
अनुब्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यंघ्रिरेणुभिः।(भागवत 11-14-16)
भगवान पीछे-पीछे चलता है भक्तों के कि उनकी चरण धूलि मेरे ऊपर पड़े और मैं पवित्र हो जाऊँ, उन चरणों पर आज मुझ अभागे का मस्तक पड़ रहा है। अनन्त पाप किये हुये एक नगण्य जीव का, कितना बड़ा सौभाग्य है हमारा। तो उन चरणों पर अगर सिर को झुका दें, छू लें उन चरणों को फिर वो होश में रहेगा नहीं। उसने समझा ही नहीं उन चरणों का महत्व क्या है? हाँ, ठीक है, सब छू रहे हैं तो अपन भी पटक दो। वन परसेन्ट, टू परसेन्ट, टेन परसेन्ट कुछ भावना होगी आप लोगों की लेकिन प्रणाम माने सेन्ट परसेन्ट भावना, बुद्धि का सरेंडर, बुद्धि को दे देना गुरु के चरणों में, इसी का नाम शरणागति है। यही वास्तविक प्रणाम है।
• सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आप सिंह राशि वाले व्यक्ति को डेट कर रहे हैं, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि आपको हर चीज में प्राथमिकता दी जाएगी। चाहे वो उनका कठिन कार्यक्रम हो या अत्यधिक मांग वाली नौकरी। सिंह राशि वाले लोग किसी भी कीमत पर आपके लिए समय निकालने में विफल नहीं होंगे। वो हर परिस्थिति में आपके साथ खड़े रहेंगे।उनकी आभा कभी फीकी नहीं पड़ेगीमाना जाता है कि सिंह राशि वाले ये सुनिश्चित करेंगे कि आपके रिश्ते में कभी भी उस चिंगारी को खत्म न होने दें। उनकी आभा ऐसी है कि ये आपको उनके साथ फिर से प्यार करने पर मजबूर कर देगी। सिंह राशि वालों से अलग होने के लिए आप चाहे जितनी मेहनत कर लें, लेकिन बार-बार आपको उनकी कीमत का अहसास होगा।वो रखवाले हैंएक बार जब आप सिंह राशि वाले व्यक्ति के साथ रिश्ते में होते हैं, तो वो आपको कभी जाने नहीं देने का हर संभव प्रयास करेंगे। वो स्वभाव से क्षमाशील हैं, लेकिन निश्चित रूप से नहीं अगर आप उन्हें हल्के में ले रहे हैं। सिंह राशि वाले आपके लिए पहाड़ तक हिलाने को तैयार हैं। वो आपको प्रोत्साहित, समर्थन और प्रेरित करेंगे। वो रिश्ते को बचाने और आपको बनाए रखने के लिए किसी भी ऊंचाई पर जाएंगे।वो अहंकारी नहीं हैंसिंह राशि वाले लोग कभी-कभी एरोगैंट और अहंकारी लग सकते हैं, लेकिन जब रिश्तों की बात आती है, तो वो हमेशा पहला कदम उठाने के लिए तैयार रहते हैं। चाहे वो आपसे पूछने के बारे में हो, या माफी मांगने के बारे में हो। जब प्यार की बात आती है तो वो आपको पूरी शक्ति और नियंत्रण लेने की अनुमति देते हैं, बशर्ते आप उनकी उम्मीदों पर खरा उतर रहे हों।वो सीधे हैंसिंह राशि वाले अक्सर सीधे-सादे लोग होते हैं और चीजों को वास्तविक रखने में विश्वास करते हैं। इसलिए, अगर कोई सिंह राशि वाला व्यक्ति आपको अपने प्यार के बारे में बताता है, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि ये सच्चा और शुद्ध हो. कभी-कभी चीजें थोड़ी कड़वी हो सकती हैं, क्योंकि सिंह राशि वाले लोग आपको ये बताने में संकोच नहीं करेंगे कि आप कहां गलत हो रहे है। इस राशि के लोग चापलूसी में विश्वास नहीं करते हैं, और इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि उनके शब्द आपको तलवार की तरह चोट पहुंचा सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे, वो जानबूझकर ऐसा नहीं करेंगे। इसके पीछे सारा विचार आपको सही रास्ता दिखाने का है, क्योंकि वो आपको पीडि़त नहीं देख सकते।
- वास्तु शास्त्र में जीवन को सुखमय और संपन्न बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। वास्तु के अनुसार प्रत्येक वस्तु से नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा निकलती है। जहां सकारात्मक ऊर्जा से जीवन में सुख समृद्धि और तरक्की होती है तो वहीं नकारात्मक ऊर्जा के कारण घर में क्लेश बिमारियां और आर्थिक तंगी उत्पन्न होने लगती है। कहता है कि घर को हमेशा व्यवस्थित तरह से रखना चाहिए। घर में इधर-उधर बिखरी हुई बेकार पड़ी चीजों से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसके कारण आपके घर में आर्थिक तंगी होने लगती है। वास्तु में ऐसी कुछ चीजों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में एकत्रित नहीं करना चाहिए। अन्यथा आपकी तरक्की और खुशहाली में बाधा आने लगती है और रुपए-पैसों की किल्लत होने लगती है। तो आइए जानते हैं कि कौन सी हैं वे चीजें, जिनको घर से तुरंत हटा देना चाहिए।पुराने अखबार की रद्दीज्यादातर लोगों के घर में अखबार तो आता ही है जिसके कारण कई बार घर में रद्दी इकठ्ठा होती रहती है। वास्तु के अनुसार यदि आपके घर में पुरानी बेकार रद्दी इकठ्ठा हो तो उसे तुरंत घर से बाहर निकाल देना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ने लगता है परिणाम स्वरूप आपके घर में क्लेश और आर्थिक तंगी बढ़ने लगती है।पुराने बंद पड़े हुए तालेवास्तु कहता है कि घर में पुराने बंद पडे़ तालों को रखना शुभ नहीं रहता है। यदि आपके घर में ऐसे ताले पड़े हैं जो किसी काम के नहीं हैं या बंद पड़े हुए हैं तो उनको तुरंत अपने घर से बाहर निकाल दें। माना जाता है कि बंद पड़े ताले की तरह आपकी किस्मत भी बंद हो जाती है। आपकी तरक्की रुकने लगती है।बंद पड़ी बेकार घड़ियांघड़ी समय का सूचक होती है जिस तरह घड़ी निरंतर चलती रहती है उसी तरह हमारा जीवन भी आगे बढ़ता रहता है। घड़ी को आपके जीवन की तरक्की से जोड़कर देखा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपके घर में बंद पड़ी घड़ियां हैं तो उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए। इससे आपकी तरक्की रुकती है और आपके हर कार्य में बाधा आने लगती है। आपकी आर्थिक संपन्नता में भी रुकावटें आने लगती हैं।
- घर में वास्तु दोष हो तो उसका नेगेटिव इफेक्ट वहां रहने वाले परिवार के हर सदस्य पर पड़ता है। फेंगशुई में विंड चाइम्स को बेहद शुभ, समृद्धिकारक और वास्तुदोष दूर करने वाला माना गया है। माना जाता है कि विंड चाइम से निकली मधुर ध्वनि एवं ऊर्जा भवन की नकारात्मक ऊर्जा को शांत कर दुर्भाग्य को दूर करती है। अगर आप चाहते हैं कि विंड चाइम आपके लिए गुडलक और तरक्की लेकर आए तो ध्यान रखें कि इससे निकलने वाली आवाज सुमधुर हो जो घर के सभी सदस्यों को अच्छी लगे।कहां, कैसी पवन घंटी लगाएंबाज़ार में मिलने वाली विंड चाइम्स कई प्रकार की होती हैं जैसे लकड़ी, मेटल, मिट्टी इत्यादि। लेकिन दिशा के तत्व के अनुसार इन्हें लगाना लाभदायक होता है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व(आग्नेय) एवं दक्षिण दिशा काष्ठ तत्व से संबंध रखती है इसलिए इन दिशाओं में पॉजिटिव एनर्जी को एक्टिव करने के लिए वुडन विंड चाइम लगाना अधिक प्रभावशाली रहेगा। घर की पश्चिमी,उत्तर-पश्चिम(वायव्य) और उत्तर दिशा में टांगने के लिए धातु से बने विंड चाइम घर के वातावरण में सौहार्द एवं शांति बनाए रखने में सहायक होंगे इसी प्रकार उत्तर-पूर्व(ईशान) तथा मध्य स्थान के लिए मिट्टी, क्रिस्टल या सिरेमिक से बनी विंड चाइम लगाने से परिवार के सदस्यों को कामयाबी हासिल करने में मदद मिलती है। घर के दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य) क्षेत्र में इन्हें टांगने से आपसी संबंधों में मजबूती व मधुरता आती है। इस दिशा में आप लकड़ी, मिट्टी या धातु से बनी पवन घंटी लगा सकते हैं।कहां कितनी छड़ वाली हो विंडचाइममुख्य द्वारयदि प्रवेश द्वार के पास कोई वास्तुदोष है तो उसके निवारण के लिए चार छड़ी वाली विंड चाइम मेनगेट पर लगानी चाहिए। इसे दरवाज़े पर परदे के पास इस प्रकार लटकाना चाहिए ताकि आने-जाने से हिलकर यह मधुर ध्वनि उत्पन्न कर सके। इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है।स्टडी रूमबीमारियों से बचने के लिए एवं अध्ययन कक्ष के वास्तु दोष को दूर करने के लिए पांच छड़ वाली विंडचाइम लगाना बेहतर विकल्प है इससे हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। इसी प्रकार यदि आपके बच्चे लापरवाह हैं और मनमर्ज़ी करते हों तो उनके कमरे में छह रॉड वाली विंड चाइम लटकाने से लाभ मिलेगा।ड्राइंग रूमयहां पर छह रॉड वाली विंड चाइम उस स्थान पर लगानी चाहिए जहां से मेहमानों का प्रवेश होता हो। आगंतुकों का प्रवेश होने से जब विंड चाइम के टकराने से जो ध्वनि उत्पन्न होगी उससे आने वाले अतिथि का व्यवहार आपके अनुकूल हो जाएगा।कार्यालय मेंआठ छड़ी वाली विंड चाइम का प्रयोग आप अपने ऑफिस में कर सकते हैं, यदि काम में मन नहीं लगता है या रुकावटें बहुत आती हों तो आठ छड़ी वाली विंड चाइम आपकी इस समस्या को दूर करने में सहायक हो सकती है।रिश्तों को बनाएं मजबूतपरिवार में प्यार और अपनापन बढ़ाने के लिए नौ छड़ वाली विंड चाइम का प्रयोग आपको लाभ देगा। इससे न केवल घर में ऊर्जा का प्रवाह बना रहेगा बल्कि निराशा और उदासीनता भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 400
(आध्यात्म तथा भौतिक, दोनों प्रकार के लोगों के लिये मार्गदर्शन, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी की वाणी में...)
...नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में हम सत्वगुण में भी जा सकते हैं, रजोगुण में भी जा सकते हैं, तमोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है, वो प्योर तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओगे तो भी शारीरिक हानि होती है और बिल्कुल न सोना भी शरीर के लिये ठीक नहीं है। आपके शरीर के जो पार्ट्स हैं उनको खराब करेगा अधिक सोना या अधिक जागना। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाये, या कोई बात हो जाये, या कोई तुम्हारा प्रिय मिले, तब नींद नहीं आती। इसलिये कोई फिजिकल रीजन नहीं है कि नींद कन्ट्रोल नहीं होती, केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही है। हर क्षण यही सोचो कि अगला क्षण मिले न मिले, अतएव भगवद-विषय में उधार न करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, जुलाई 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
हिंदू धर्म में महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। महालक्ष्मी व्रत 16 दिनों तक चलते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक महालक्ष्मी व्रत रखा जाता है। इस साल महालक्ष्मी व्रत का आरंभ 14 सितंबर से हुआ है, जो कि 29 सितंबर को संपन्न होंगे। मान्यता है कि इस दौरान मां लक्ष्मी भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। जिसके प्रभाव से आर्थिक दिक्कतों के दूर होने की मान्यता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, महालक्ष्मी व्रत के दौरान मां लक्ष्मी की कुछ राशियों पर विशेष कृपा रहने वाली है।
1. कर्क- कर्क राशि वालों के लिए 16 दिनों की अवधि लाभकारी साबित हो सकती है। आर्थिक जीवन में सुधार होने के योग बनेंगे। आय में वृद्धि की संभावना है। मां लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक मोर्चे पर आप अच्छा प्रदर्शन करेंगे। अचानक धन लाभ हो सकता है। नौकरी में बदलाव के अवसर प्राप्त होंगे।
2. सिंह- मां लक्ष्मी की सिंह राशि वालों पर कृपा रहने के आसार दिखाई दे रहे हैं। आर्थिक मोर्चे पर आपके लिए 16 दिन वरदान साबित होंगे। आय के नए रास्ते खुलेंगे। व्यापारियों को मुनाफा हो सकता है। नए काम की शुरुआत के लिए समय उत्तम है।
3. कन्या- कन्या राशि वालों के लिए 14-29 सितंबर तक का समय किसी वरदान से कम नहीं है। इस दौरान आप जिस काम में हाथ डालेंगे, उसमें सफलता हासिल करेंगे। नौकरी में तरक्की मिलने के योग बनेंगे। आय में वृद्धि की संभावना है। व्यापार में गति आएगी। धन संचय में सफल रहेंगे।
4. वृश्चिक- आपके लिए यह समय बेहद लकी साबित हो सकता है। धन लाभ के योग बनेंगे। कारोबार में मुनाफा हो सकता है। नए वाहन की खरीदारी कर सकते हैं। रुका हुआ धन प्राप्त होगा।
5. धनु- रुका हुआ धन प्राप्त हो सकता है। धन संचय करने में सफल रहेंगे। नौकरी पेशा वालों को तरक्की मिल सकती है। कारोबारियों को मुनाफा हो सकता है। -
हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा को समर्पित होता है। नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा और उपासना की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि पर मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दिनों में माता रानी के भक्त मां उनकी विशेष कृपा पाने के लिए व्रत भी रखते हैं।
नवरात्रि कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, नवरात्रि का पर्व 07 अक्टूबर से आरंभ होगा। इसे शरद या शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं। शरद नवरात्रि का पर्व 15 अक्टूबर को समाप्त होगा।
सोमवार के दिन इन राशियों को मिलेगा किस्मत का साथ, पढ़ें मेष से लेकर मीन राशि तक का हाल
दुर्गा पूजा कलश स्थापना 2021 कब है?
नवरात्रि का त्योहार कलश स्थापना से आरंभ होता है। शरद नवरात्रि में कलश स्थापना प्रतिपदा तिथि यानी 07 अक्टूबर को होगी। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के त्योहार की विधि-विधान शुरुआत मानी जाती है।
नवरात्रि 2021 की प्रमुख तिथियां-
नवरात्रि प्रारंभ- 07 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि नवमी तिथि- 14 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि दशमी तिथि- 15 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
घटस्थापना तिथि- 07 अक्टूबर 2021, गुरुवार
क्यों करते हैं कलश स्थापना-
पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है। जिसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है। जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करते हैं। कलश में अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। - जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 399
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत 'शरणागति' तत्व पर 2 महत्वपूर्ण प्रवचन अंश :::
(1) संत और भगवान दया के सिवाय और कुछ कर ही नहीं सकते। अपनी बुद्धि को संत की बुद्धि में जोड़ दो। बस पूर्ण शरणागति यही है। प्रत्येक अवस्था में दया कौन सी है, यह समझ में नहीं आता। कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है। संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकते जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।
(2) भटकना भगवद-शरणागति की आवश्यकता जानने तक ही है। पश्चात शरणागत जीव को अपने गुरु द्वारा बताये गये साधन और सिद्धान्त के सिवा अन्य कुछ भी पढ़ना, सुनना एक विघ्न ही है और अनन्यता का विरोधी है क्योंकि शरणागति ही साधना और सिद्धि है। इसलिये शरणागति (समर्पण) मार्ग अन्य मार्गों से विलक्षण और विचित्र सा प्रतीत होता है। यहाँ बुद्धि का उपयोग सिर्फ शरणागति के द्वार तक पहुँचाने तक ही सीमित है। बाद में शरण्य की सत्ता मात्र रहती है।
• सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, मार्च 1998 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)