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- भगवान विष्णु को समर्पित कार्तिक के महीने की शुरुआत 21 अक्टूबर से होने जा रही है. इसी माह में भगवान विष्णु देवोत्थान एकादशी के दिन चार महीने की निद्रा से जागते हैं. इसके साथ चातुर्मास की समाप्ति हो जाती है और शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. मौसम के लिहाज से भी ये महीना काफी अच्छा होता है. इसमें न ज्यादा सर्दी होती है और न ही ज्यादा गर्मी.इसके अलावा कार्तिक के महीने में सालभर के कई बड़े त्योहार जैसे करवाचौथ, अहोई अष्टमी, दीवाली, भाईदूज आदि पड़ते हैं. इस कारण भी कार्तिक माह काफी विशेष माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पढ़ाई के लिहाज से भी इस महीने को काफी उत्तम माना गया है? ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि कार्तिक के महीने में अगर छात्र कुछ आदतों का त्याग करके अध्ययन करें, तो उनकी एकाग्रता बढ़ने लगती है और वे तेजी से आगे बढ़ते हैं.सफलता की प्रबल संभावनाएं होतीं हैंज्योतिषाचार्य के अनुसार कार्तिक का महीना सद्बुद्धि, लक्ष्मी और मुक्ति प्राप्त कराने वाला मास भी कहा जाता है. इस महीने को रोगनाशक माह भी कहा जाता है. कार्तिक मास में मौसम और अन्य परिस्थितियां हर किसी के लिए अनुकूल होती हैं, इसका छात्रों को लाभ लेना चाहिए. यदि आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो कुछ आदतों को त्यागकर कड़ी मेहनत के साथ तैयारी में जुट जाएं. ऐसा करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की कृपा तो होती ही है, साथ ही माता सरस्वती भी प्रसन्न होती हैं और छात्र बीमारी, परेशानी और तमाम विघ्नों से दूर होकर पूरा फोकस करके अपना काम कर पाते हैं. ऐसे में उनके सफल होने की संभावना काफी प्रबल हो जाती है.सफल होने के लिए अनुशासन के साथ कुछ आदतों का त्याग करना जरूरी होता है…इन आदतों का करें त्याग1. कार्तिक का महीना पूजा पाठ का महीना है, इसमें मांस का सेवन नहीं करना चाहिए. साथ ही धूम्रपान और शराब से भी दूर रहना चाहिए. वैसे भी ये चीजें किसी भी लिहाज से अच्छी नहीं मानी जातीं. छात्रों को तो खासतौर पर इनसे दूर ही रहना चाहिए.2. मालिश से शरीर हष्ट पुष्ट होता है, लेकिन कार्तिक मास में शरीर में मालिश करने की मनाही है. हालांकि नरक चतुर्दशी यानी छोटी दीपावली के दिन तेल से मालिश करना शुभ माना जाता है.3. अगर आपको दाल पसंद है, तो इस महीने दाल का त्याग करना होगा. कार्तिक के महीने में उड़द, मूंग, मसूर, चना और मटर की दाल नहीं खानी चाहिए. अरहर की दाल खा सकते हैं. साथ ही राई राई खाने से भी परहेज करना चाहिए.4. ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करें. ऐसे में उनका मन नहीं भटकता और वे पूरी निष्ठा से परिश्रम कर पाते हैं. इससे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होते हैं.5. इस एक माह में अपनी विलासिताओं को त्यागने की बात कही गई है. मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु पृथ्वीलोक में आकर लोगों का हाल देखते हैं. ऐसे में छात्र को अपने लक्ष्य के प्रति गंभीरता दिखानी चाहिए और सात्विक जीवन बिताना चाहिए.
- दिवाली 2021 आने में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, दिवाली या दीपावली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इस साल दिवाली 4 नवंबर 2021, गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस साल ग्रहों के दुर्लभ संयोग दिवाली के दिन बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, दिवाली के दिन चार ग्रह एक ही राशि पर विराजमान रहेंगे। जिसके कारण इस साल की दिवाली अत्यंत शुभ मानी जा रही है। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होगा।चार ग्रहों की युति-दिवाली के दिन चार ग्रहों की युति बन रही है। दीपावली के दिन तुला राशि में सूर्य, बुध, मंगल और चंद्रमा मौजूद रहेंगे। तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं। शुक्र को सुख-सुविधाओं का कारक माना जाता है। सूर्य को ग्रहों का राजा, मंगल को ग्रहों का सेनापति और बुध को ग्रहों का राजकुमार कहते हैं। चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है।दिवाली 2021 शुभ मुहूर्त-अमावस्या तिथि 04 नवंबर को सुबह 06 बजकर 3 मिनट से प्रारंभ होकर 05 नवंबर की सुबह 02 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। दिवाली लक्ष्मी पूजन का समय शाम 06 बजकर 09 मिनट से रात 08 बजकर 20 मिनट तक है। लक्ष्मी पूजन की कुल अवधि 1 घंटे 55 मिनट की है।धनतेरस 2021 कब है?धनतेरस इस साल 2 नवंबर 2021 को है। हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस का त्योहार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इसे धन त्रयोदशी या धनवंतरी जयंती भी कहते हैं।छोटी दिवाली 2021 कब है?छोटी दिवाली इस साल 3 नवंबर 2021 को है। इस दिन को रूपचौदस भी कहा जाता है।गोवर्धन पूजा 2021 कब है?इस साल गोवर्धन पूजा 5 नवंबर 2021, शुक्रवार को है।भाई दूज 2021 कब है?भाई-दूज त्योहार भाई-बहन को समर्पित होता है। इस साल भाई दूज 6 नवंबर 2021, शनिवार को है।
- हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र का विशेष महत्व है। हमारे आसपास की चीजें जीवन पर पॉजिटिव और नेगेटिव प्रभाव डालती हैं। आमतौर पर लोग अपने पर्स में पैसों के अलावा कई तरह की चीजें रखते हैं। वास्तु शास्त्र में ऐसी कई चीजों का वर्णन किया गया है जिन्हें रखने से व्यक्ति को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। पर्स में इन चीजों को रखना अशुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र में वर्णित मान्यता के अनुसार, पर्स में पैसों के अलावा कई चीजों को रखने से आर्थिक तंगी का सामना भी करना पड़ सकता है। इसके अलावा जीवन में मुश्किलें भी आती हैं।जानिए पर्स में किन चीजों को रखना माना जाता है अशुभ-----1. भगवान की फोटो- वास्तु शास्त्र के अनुसार, पर्स में किसी भगवान की फोटो नहीं रखनी चाहिए। मान्यता है कि भगवान की फोटो पर्स में रखने से व्यक्ति को कर्ज का बोझ उठाना पड़ सकता है और जीवन में कई बाधाएं आती हैं।2. मृत परिजनों की तस्वीरें- पर्स में कभी भी मृत रिश्तेदार या परिजनों की फोटो नहीं रखनी चाहिए। वास्तु शास्त्र में इसे अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।3. चाबी- पर्स के अंदर कभी भी चाबी को नहीं रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार, चाबी को पर्स में रखने से जीवन में नकारात्मकता आती है। इससे आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।4. पुराने बिल- अक्सर लोग खरीदारी करने के बाद बिल अपनी पर्स में रख लेते हैं। वास्तु शास्त्र में पुराने बिल को पर्स में रखना अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने वाले व्यक्ति के ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा नहीं होती है।
- करवाचौथ के दिन व्रत खोलते समय पति का मुंह मीठा करवाने के लिए महिलाएं अक्सर बाजार से मिठाई खरीदकर ले आती हैं। लेकिन इस करवाचौथ को खास बनाने के लिए कुछ अलग और टेस्टी ट्राई कीजिए। जी हां इस करवाचौथ पति का मुंह मीठा करवाने के लिए बनाएं गुजरात और महाराष्ट्र का लोकप्रिय डिज़र्ट श्रीखंड। दही, चीनी, इलाइची और केसर फ्लेवर के साथ तैयार किया जाने वाला ये डिजर्ट खाने में जितना टेस्टी होता है बनने में उतना ही आसान भी है। इस डिजर्ट को आप किसी भी त्योहार पर घर आए मेहमनों को भी सर्व कर सकते हैं। तो देर किस बात की आइए जानते हैं कैसे बनाया जाता है यह टेस्टी डिज़र्ट श्रीखंड।श्रीखंड बनाने की सामग्री--500 ग्राम गाढ़ा दही या लटका हुआ दही-150 ग्राम आइसिंग शुगर-3 ग्राम इलाइची पाउडर-5 ग्राम केसर-2 बूंद गुलाब जल-10 ml (वैकल्पिक) दूध-ड्राई फ्रूटस , टुकड़ों में कटे हुएश्रीखंड बनाने की विधि-श्रीखंड बनाने के लिए सबसे पहले 10 ml दूध में केसर को भिगो दें। इसके बाद सारी सामग्री को एक साथ मिलाकर फेंट लें और एक बाउल में रख दें। अब नट्स और ड्राई फ्रूट्स से गार्निश करें। आपका टेस्टी श्रीखंड बनकर तैयार है।
- हिन्दू धर्म में दान पुण्य का अपना एक अलग ही महत्व है। वैसे तो दान-पुण्य करने का कोई वक्त नहीं होता। ये सच्चाई भी है कि पुण्य कार्य करने का कोई वक्त नहीं होता, परन्तु दान करने का वक्त जरूर होता है। अक्सर हम बड़े बुजुर्गों से यह कहते भी सुनते हैं कि सूर्यास्त के बाद दान करने से भाग्य बिगड़ सकता है। तो आइये जानें कि सूर्यास्त के बाद किन चीजों का दान नहीं करना चाहिए।लहसुन और प्याजसूर्यास्त के बाद लहसुन और प्याज का दान नहीं करना चाहिए। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, इसका संबंध केतु ग्रह से है। केतु ग्रह नकारात्मक शक्तियों का स्वामी होता है। कहा जाता है इसी वक्त जादू-टोना जैसे कार्य किए जाते हैं। यही कारण सूर्य ढलने के बाद लहसुन और प्याज किसी को भी नहीं देना चाहिए।पैसा देनाअक्सर हम लोग अपने बड़े बुर्जुगों से सुनते हैं कि सूर्य ढलने के बाद किसी को पैसा नहीं देना चाहिए और मना करने की बात कही जाती है। दरअसल, माना जाता उस वक्त घर में मां लक्ष्मी प्रवेश करती हैं। अगर हम शाम के समय किसी को पैसे-रुपये देते हैं तो लक्ष्मी जी दूसरे के घर चली जाती हैं। इस समय उधारी भी किसी को नहीं लौटानी चाहिए।हल्दीज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्यास्त के बाद हल्दी किसी को नहीं देना चाहिए। शास्त्र के अनुसार, अगर सूर्यास्त के बाद हम किसी को हल्दी देते हैं तो गुरु ग्रह कमजोर पड़ता है। ऐसा करने से परेशानी बढ़ सकती है।दूधसूर्यास्त होने के बाद चाहे कोई भिखारी आपके घर पर आकर खड़ा क्यों ना हो जाए उसे आप भूल कर भी कभी दूध मत देना वरना आपकी हंसती खेलती जिंदगी में आग लग जाएगी।दहीआपने दही कई मंदिरों में ले जाकर भिखारियों को दिया होगा लेकिन सूर्यास्त होने के बाद आप ऐसी गलती बिल्कुल भी ना करें। दूध के साथ साथ दही भी सूर्यास्त होने के बाद किसी को दान नहीं करना चाहिए।
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Happy Sharad Purnima
& Happy JAGADGURUTTAM JAYANTI
- 'जगदगुरुत्तम जयंती' और 'शरद पूर्णिमा' के महापर्व की आप सभी सुधी पाठक समुदाय को हार्दिक शुभकामनायें!!
समस्त पाठक-समुदाय सहित समस्त विश्व को परमाचार्य भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के अवतरण-दिवस की अनंत-अनंत शुभकामनायें, आइये आज उनके माहात्म्य के विषय में कुछ स्मरण करते हुये अपने मन की पावन भावनाओं को उनके श्रीचरणों में अर्पित करते हुये उनसे कृपा की याचना करें कि वे अपने ज्ञान, अपनेपन, प्रेम की छाया हम पर रखें, जिससे अज्ञान के अंधकार से निकलकर हम भगवत्प्रेम तथा रस के समुद्र में अवगाहन के अधिकारी बन सकें। आप सभी पाठकों के प्रति शुभेच्छाओं सहित........
...शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि..
जिनका पावन अवतरण-दिवस है!!
'शरद पूर्णिमा | | जगदगुरुत्तम जयंती'
• अलौकिक विभूति :::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज!!!
...1922 की शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि में उत्तर-प्रदेश में इलाहाबाद के निकट 'मनगढ़' नामक छोटे से ग्राम में माँ भगवती की गोद में प्राकट्य, वही रात्रि, जब श्रीराधारानी की अनुकंपा से श्रीकृष्ण ने अनंतानंत गोपियों को महारास का रस प्रदान किया था। यही 'मनगढ़' आज 'भक्तिधाम' के नाम से सुविख्यात है!
...बाल्यावस्था से अलौकिक गुणों से सम्पन्न, चित्रकूट के सती अनुसुइया आश्रम तथा शरभंग आश्रमों के बीहड़ जंगलों में परमहंस अवस्था में वास। निरंतर 'हा राधे!' 'हा कृष्ण' का क्रंदन एवं प्रेमोन्मत्त विचित्र अवस्था। चित्रकूट; जो आपके विद्यार्थी, साधक, सिद्ध अवस्था तीनों की साक्षी और 'जगदगुरुत्तम' बनने की भी आधार बनी।
...परमहंस अवस्था से सामान्यावस्था में आकर जीव-कल्याण के लिये 'श्रीराधाकृष्ण भक्ति' का प्रचार प्रारंभ किया और अपने भीतर छिपे ज्ञान के अगाध भंडार को प्रगट किया।
...1957 में 34 वर्ष की आयु में भारतवर्ष की 500 मूर्धन्य विद्वानों की सर्वमान्य सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 'पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम' की उपाधि से विभूषित हुये। आदि जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य एवं माध्वाचार्य जी के बाद पंचम मौलिक जगद्गुरु हुये।
...श्रीराधाकृष्ण प्रेम के जो स्वयं ही मूर्तिमान स्वरुप हैं, दिव्य महाभावधारी; आपके विलक्षण प्रेमोन्मत्त स्वरुप जिन्हें स्वयं ही 'भक्तियोगरसावतार' सिद्ध करता है। श्री गौरांग महाप्रभु द्वारा प्रचारित संकीर्तन पद्धति का अपूर्व विस्तार करते हुये जिन्होंने समस्त प्रेमपिपासुओं को 'राधाकृष्ण' के मधुर नाम, धाम, गुण एवं लीला के संकीर्तनों एवं पदों के रस में सराबोर कर दिया।
...ज्ञान का ऐसा अगाध समुद्र जिसमें कोई जितना अवगाहन करे, पर थाह नहीं पा सकता। बिना खंडन के जिन्होंने समस्त शास्त्रों एवं अन्यान्य धर्मग्रंथों के सिद्धांतों का समन्वय कर दिया और अंधविश्वासों एवं कुरुतियों का उन्मूलन/सुधार किया। आप समस्त विद्वानों द्वारा 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' के रुप में सुशोभित हुये। और आपके लिये संत-समाज ने कहा है 'न भूतो न भविष्यति!!'
...समस्त विश्व को जिसने श्रीराधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी ब्रजरस अर्थात गोपीप्रेम का रस प्रदान किया, जिन्होंने उस रस की प्राप्ति का सरल, सुगम एवं अत्यंत व्यवहारिक सिद्धान्त दिया। समस्त साधनाओं के प्राण 'ध्यान' को जिन्होंने 'रुपध्यान' नाम देकर अधिक सुस्पष्ट किया। और अपने आचरणों से स्वयं भक्ति साधना का मार्गदर्शन किया। इस महादान में क्या जाति-पाति, क्या देश-धर्म, क्या छोटे-बड़े - सब ही भागी बने हैं।
...जिनके कोई गुरु नहीं, फिर भी स्वयं जगदगुरुत्तम हैं। जिन्होंने कभी कोई शिष्य नहीं बनाया परन्तु जिनके लाखों करोड़ों अनुयायी हैं। सुमधुर 'राधा' नाम को विश्वव्यापी बनाया और पहले ऐसे जगद्गुरु जो विदेशों में भक्ति के प्रचारार्थ गये।
...अपने शरणागत जीवों के सँग जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से सदैव सँग हैं और अबोध जानकर जो हमेशा सुधार की 'महान आशा' लिये अपराधों पर निरंतर क्षमादान देते रहे हैं। पल भर को जिनका विछोह कभी अनुभूत नहीं हुआ। आज भी उनकी शरण आने वालों को उनके नित्य सँग की अनुभूति सहज है।
...समस्त विश्व पर जिनका अनंत उपकार है। वृन्दावन का 'प्रेम मंदिर', बरसाना का 'कीर्ति मैया मंदिर' और भक्तिधाम मनगढ़ का 'भक्ति मंदिर'; इसके अलावा इन्हीं तीनों धामों में 'प्रेम भवन', 'भक्ति भवन' एवं 'रँगीली महल' के साधना हॉल जिनकी कीर्ति और उपकार का चिरयुगीन यशोगान करेंगे और अनंतानंत प्रेमपिपासु जीवों को भक्तिरस का पान कराते रहेंगे। उनके द्वारा रचित एवं प्रगटित ब्रजरस साहित्य एवं प्रवचन हृदयों में भगवत्प्रेम की सृष्टि करते रहेंगे।
........और अधिक क्या कहें? संत के उपकार कहने का सामर्थ्य किस वाणी में है? स्वयं भगवान तक तो असमर्थ हैं, फिर कोई जीव क्या गिनावे? सत्य तो यही है कि 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु' न केवल नाम से अपितु अपने रोम-रोम से 'कृपालु' रहे, हैं और रहेंगे!
वही श्री गौरांग महाप्रभु, वही श्री कृपालु महाप्रभु!! यह भी कहना अतिश्योक्ति न होगी। कह सकते हैं;
...अद्यापिह सेइ लीला करे गौर राय,
.....कोन कोन भाग्यवान देखिवारे पाय..
'शरद-पूर्णिमा' (30 अक्टूबर) उनका अवतरण दिवस है। जिन्होंने भी उनकी शरण ग्रहण की है, वे अपने ऊपर उड़ेले गये उनके प्रेम, कृपा, अपनेपन, सान्निध्य और मार्गदर्शन के साक्षी हैं। फिर वे तो समस्त विश्व के गुरु हैं। समस्त विश्व इतना ही तो कर सकता है कि 'उनके द्वारा दिये गये सिद्धान्त को आत्मसात कर ले और उनकी बताई साधना द्वारा भगवत्प्रेम बढ़ाते हुये अंतःकरण शुद्ध करके अपने प्राणाराध्य राधाकृष्ण के प्रेम और सेवा को पाकर धन्य हो जाय'....
....यही देने और दिलाने तो वे आये, हम वह प्राप्त कर लें, अथवा प्राप्त करने के लिये तैयार हो जायँ, व्याकुल हो जायँ तो उनको कितनी ही प्रसन्नता होगी!! आओ, शरद-पूर्णिमा पर क्रंदन करें, उनकी कृपाओं के लिये, उनके परिश्रम के लिये, उनके क्षमादान के लिये.. उनकी सेवा, सँग और मार्गदर्शन पाने के लिये।
हे जगदगुरुत्तम!! अनंतानंत हृदयों में आप सदैव विराजमान हो। आपकी सन्निधि प्राप्त कर यह धरा अत्यन्त पावनी बन गई है. आपको कोटिशः प्रणाम!!!
★★★
ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
- हिंदू धर्म में पूजा के वक्त ज्यादातर कपूर का उपयोग किया ही जाता है। कपूर जलाने से न केवल धार्मिक फायदे होते हैं बल्कि इसका वैज्ञानिक व आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्रतिदिन कपूर जलाने से हवा में मौजूद आस-पास के बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे हम उनके संपर्क में नहीं आते । स्वास्थय संबंधी कई समस्याओं से निजात के लिए भी कई बार कपूर का प्रयोग किया जाता है।कपूर के प्रयोग से नकारात्मक ऊर्जा दूर की जा सकती है व साथ ही सकारात्मक ऊर्जा को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे आपके जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और आपके जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का वास है। यदि आपके घर में पैसों को लेकर किसी भी तरह की तंगी है या फिर किसी भी तरह के क्लेश की स्थिति बनी रहती है तो कपूर लेकर कुछ बेहद ही आसान उपाय करके आप इन सभी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय भी बनाने की का प्रयास कर सकते हैं।अगर आप घर में रोज़ाना रामायण या गीता का पाठ करते हैं तो पाठ पूरा करने के बाद भी एक दिए में कपूर लेकर उसे प्रज्ज्वलित करें।आज जानते हैं कि कपूर से क्या - क्या उपाय किए जा सकते हैं---हर रोज जब रात को सभी लोग खाना खा लें तो पूरी रसोई की साफ-सफाई करने के बाद एक चांदी की छोटी सी कटोरी में कपूर के साथ लौंग का एक जोड़ा डालकर जलाना चाहिए। चांदी की कटोरी न भी हो तो स्टील या पीतल की कटोरी का उपयोग करलें । इससे आपके घर में बरकत बनी रहती है व धन संबंधित समस्याओं का अंत भी होता है। मान्यता है कि यह कार्य यदि रोज किया जाए तो कभी भी धन की कमी नहीं होती व धन लाभ होता रहता है। व इस उपाय से कर्ज से भी जल्द मुक्ति मिलती है ।पति-पत्नी के बीच प्रेम के लिए कपूर का उपाय:-यदि आपके दांपत्य जीवन में समस्याएं बनी रहती हैं या फिर जीवन साथी से मनमुटाव की स्थिति रहती है तो शयनकक्ष की सफाई करके कपूर जलाना चाहिए इससे वहां मौजूद नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और संबंध में मधुरता आती है। इसके अलावा स्त्री रात को अपने पति की तकिए के नीचे कपूर रख दें और सुबह उठकर उस कपूर को चुपचाप बिना किसी रोक टोक के जला दें । मान्यता है कि इससे पति-पत्नी के बीच होने वाली सारी समस्याएं दूर होती है और दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है।घी में डुबोकर कपूर:-प्रतिदिन अपने घर में सुबह-शाम देसी घी में कपूर को डुबोकर जलाना चाहिए। इसकी धूप अपने पूरे घर के हर कमरे, हॉल व आंगन सभी में दिखाना चाहिए। इससे आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है व परिवार के सदस्यों में प्रेम भावना बनी रहती है। व आपके घर परिवार में सुख व शांति का वातावरण बना रहता है। व ये उपाय संतान प्राप्ति में भी सहायक माना जाता है।देवताओं के समक्ष कपूर:-शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन देवी-देवताओं के समक्ष कपूर जलाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। व देवी देवता हमेशा प्रसन्न रहते हैं व उनकी ही कृपा से आपके घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। यदि घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष हो तो कपूर जलाने से उसके प्रभावों से भी मुक्ति प्राप्त होती है। व गृह शांति बनी रहती है। इस वक़्त कपूर जलाने के दौरान बोले जाने वाला मंत्र:-कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।इसी मंत्र को कपूर व घी का धूप करते वक़्त भी दोहराएं!अगर आप घर में रोज़ाना रामायण या गीता का पाठ करते हैं तो पाठ पूरा करने के बाद भी एक दिए में कपूर लेकर उसे प्रज्ज्वलित करें!
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जगदगुरुत्तम जयन्ती विशेष' • 20 अक्टूबर(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के पावनातिपरम दिव्य चरित एवं उनके द्वारा प्रदत्त दिव्योपहारों, उपकारों का संस्मरण..)
भाग (2)• 'शरत्पूर्णिमा' का महत्त्व | 20 अक्टूबर 2021
...हमारे देश में, हमारे सनातन धर्म में साल का प्रत्येक दिन ही कोई न कोई पर्व होता है. किसी न किसी देश में, किसी न किसी जाति में, यदि सबका हिसाब लगाया जाय तो साल का प्रत्येक दिन ही पर्व है. क्योंकि हमारे यहाँ भगवान् के सब अवतार हुए और अनतानंत महापुरुष भी हमारे देश ने ही आये इसलिए पर्वों की भरमार है. किन्तु जितने भी पर्व मनाये जाते हैं उन सबमें सर्वश्रेष्ठ पर्व है : शरत्पूर्णिमा. वैसे कुछ लोग जन्माष्टमी को कहते हैं, कुछ होली को, अनेक लोग अपनी अपनी भावना से पर्वों की इम्पोर्टेंस बताते हैं किन्तु माधुर्य भाव से श्रीकृष्ण की उपासना करने वालों के लिए शरत्पूर्णिमा ही सबसे बड़ा पर्व है क्योंकि शरत्पूर्णिमा के दिन ही लगभग 5000 वर्ष पूर्व पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रम्ह श्रीकृष्ण ने भाग्यशाली जीवात्माओं के साथ 'महारास' किया था अर्थात् आनंद की जो अंतिम सीमा है, उस अंतिम सीमा वाले आनंद को राधाकृष्ण ने जीवों को दिया था.
'रस' शब्द से बना है 'रास'. 'रसानां समूहो रासः'. रस ही अनंतमात्रा का होता है फिर दिव्यानंदो में सबसे उच्च कक्षा का रस, समर्था रति वालों का, उसका कहना ही क्या है ! उस रस का भी जो समूह है उसको रास कहते हैं. वैसे तो भगवान् का एक नाम है रस -
'रसो वै सः. रसङ्होवायं लब्ध्वानन्दी भवति.'(तैत्तिरियोपनिषद् 2-7)
उसी का पर्यायवाची है - 'आनन्दो ब्रम्हेति व्यजानात्'.
'आनंदाद्धेयव खल्विमानि भूतानि जायन्ते. आनन्देन जातानि जीवन्ति. आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति ।'(तैत्तिरियोपनिषद् 3-6)
लेकिन रस में भी कई कक्षाएँ होती हैं इसलिए पुनः वेद कहता है -
'स एष रसानां रसतमः'. (छान्दोग्योपनिषद् 1-1-3)
यहाँ पर कहा है रसतम: परम:. पहले तो कह दिया 'रसो वै सः' वो रस है. ठीक है लेकिन वह परम रसतम भी है. देखो यह रस ब्रम्हानंद वाले भी पा चुके इसलिए ये लोग कहते हैं 'रसो वै सः'. आनंद मिल गया इनको, आनन्दो ब्रम्ह. लेकिन जिनको महारास मिला, वो 'रसो वै सः' से संतुष्ट नहीं है तो उनके लिए वेद की ऋचा ने कहा 'स एव रसानां रसतम: परम:'. वही ब्रम्ह जो रसरूप है, आनंद रुप है वही रस का समूह, एक 'तम' प्रत्यय होता है संस्कृत में, उसका मतलब होता है सर्वोच्च रस. गुह्य, गुह्यतर, गुह्यतम. तो तम जहाँ आ जाए उसका मतलब होता है सर्वोच्च रस. आगे और कुछ नहीं. जैसे पुरुषोत्तम. पुरुष जीव भी है, पुरुष ब्रम्ह भी है. पुरुष सब अवतार हैं, लेकिन श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम हैं, उत्तम, अंतिम. उच्च में तम् प्रत्यय हुआ 'उत्' ऊँचाई में, 'तम्' सर्वश्रेष्ठ. सर्वोच्च. तो ये रास का अर्थ हुआ.
आनंद में भी अनेक स्तर हैं. जैसे माया के क्षेत्र में अनेक स्तर हैं - तमोगुण, रजोगुण, सत्वगुण. ऐसे ही आनंद के क्षेत्र में भी अनेक स्तर हैं - जैसे ज्ञानियों का ब्रम्हानंद. आनंद जो है वह अनंत मात्रा का होता है दिव्य होता है, सदा के लिए होता है. तो वो आनंद जिसे परमानंद, दिव्यानंद, ईश्वरीय आनंद कहते हैं, वह ज्ञानियों को मिलता है. वो सबसे निम्न कक्षा का आनंद है. आनंद और निम्न कक्षा ये दो विरोधी बातें लगती हैं. ईश्वरीय आनंद अनंत मात्रा का होता है, अनिर्वचनीय होता है, शब्दों में उसका निरुपण नहीं हो सकता. न कोई कल्पना कर सकता है मन, बुद्धि से. इन्द्रिय, मन, बुद्धि की वहाँ गति नहीं है. वो भूमा है. फिर भी आनंद के जितने स्तर हैं उनमे सबसे निम्न स्तर है ज्ञानियों का ब्रम्हानंद - निर्गुण, निर्विशेष, निराकार ब्रम्हानंद. इसके बाद फिर सगुण साकार का आनंद प्रारम्भ होता है. उसमें भी अनेक स्तर हैं - शान्त भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा दास्य भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा सख्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस वात्सल्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस माधुर्य भाव का प्रेमानंद.
माधुर्य भाव में भी 3 स्तर हैं. सकाम माधुर्यभाव के प्रेमानंद का स्तर उन तीनों में निम्न कक्षा का है. उसे साधारणी रति (जिसमें श्रीकृष्ण से अपने ही सुख के लिए प्यार किया जाय, उन्हें मिलने वाला आनंद) का प्रेमानंद कहते हैं और समञ्जसा रति (जिसमें अपने और श्रीकृष्ण दोनों के सुख का ध्यान रखा जाय, उन्हें मिलने वाला आनंद) का प्रेमानंद उससे उच्च कक्षा का है और समर्था रति (जिसमें एकमात्र श्रीकृष्ण के सुख के लिए उनसे प्यार किया जाय, जैसे बृज की गोपियाँ, उन्हें मिलने वाला आनंद) का आनंद सर्वोच्च कक्षा का है. तो समर्थारति का प्रेमानंद जिनको मिलता है, सिद्ध महापुरुषों में भी अरबों खरबों में किसी एक को मिलता है वो. उस रस को महारास के रुप में 'शरत्पूर्णिमा' के दिन 5000 हजार वर्ष पहले राधाकृष्ण ने जीवों को वितरित किया था. इसलिए यह पर्व सर्वोत्कृष्ट पर्व है.
- जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन से.
★ शरद पूर्णिमा जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी का अवतरण दिवस भी है!!
'जगदगुरुत्तम जयन्ती'
हम बड़भागी जीवों के लिए इस पर्व का महत्त्व और बढ़ गया है क्योंकि सन् 1922 शरत्पूर्णिमा की शुभ रात्रि में ही एक ऐसे अलौकिक महापुरुष का अवतरण इस धराधाम पर हुआ जिसने भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को अपनी दिव्य प्रतिभा एवं स्नेहमय व्यक्तित्त्व से आश्चर्यचकित किया है. यह हमारे आचार्य जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज ही हैं जो आज विश्व में धार्मिक क्रान्ति ला रहे हैं. भारत की अमूल्य सम्पदा शास्त्रों वेदों के दुर्लभ ज्ञान को साधारण भाषा में जन जन तक पहुँचाने के लिए उन्होंने अहर्निश प्रयत्न किया है. भारत जिन कारणों से सदा से विश्वगुरु के रुप में प्रतिष्ठित रहा है उसके मूलाधार में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ही हैं. राधाकृष्ण भक्ति के मूर्तिमान स्वरुप गुरुवर ने अपने दिव्य सन्देश द्वारा दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से तप्त भगवद् बहिर्मुख जीवों को श्रीकृष्ण सन्मुख करने का भरसक प्रयास किया है जिससे वे श्रीकृष्ण भक्ति द्वारा उस सर्वोच्च रस के अधिकारी बन सकें जो शरत्पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण ने सौभाग्यशाली अधिकारी जीवों (बृजगोपियों) को प्रदान किया था.
ऐसे परम कृपामय, प्रेममय भक्तिरस के अवतार जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज का यह प्राकट्य दिवस शरत्पूर्णिमा ही 'जगद्गुरुत्तम् जयंती' के रुप में मनाया जाता है. शरत्पूर्णिमा तो सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है ही, आचार्य श्री ने इस दिन अवतार लेकर इसकी महत्ता को अनंताधिक कर दिया है.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नियमित रूप से तुलसी पूजन करने से घर में मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है लेकिन तुलसी पूजा को करते समय नियमों को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक होता है। माना जाता है कि यदि आप गलत तरह से पूजन करते हैं या पूजा करते समय कुछ गलतियां करते हैं तो आपको धन हानि का सामना करना पड़ सकता है। यहां जानिए तुलसी पूजन के नियम और विधि।तुलसी पूजन करते समय न करें ये गलतियां--यदि आप प्रतिदिन तुलसी पूजन करते हैं और जल चढ़ाते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि रविवार के दिन तुलसी में जल नहीं चढ़ाना चाहिए।-यदि आप संध्याकाल में पूजन कर रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि तुलसी को दूर से ही प्रणाम करें, भूलकर भी शाम को तुलसी के पौधे को स्पर्श नहीं करना चाहिए।-अक्सर हम लोग तुलसी में जब दीपक जलाते हैं तो आसन नहीं देते हैं, लेकिन तुलसी में दीपक जलाते समय अक्षत (चावल) का आसन देना चाहिए।-मान्यता के अनुसार महिलाओं को तुलसी पूजन करते समय बालों को खुला नहीं रखना चाहिए, अन्य पूजा अनुष्ठानों की तरह तुलसी पूजा करते समय भी बालों को बांधकर रखना चाहिए।-कई बार देखने में आता है कि घर के सभी सदस्य एक-एक करके तुलसी में जल अर्पित करते हैं लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। अधिक जल से तुलसी की जड़ को नुकसान पहुंचता है जिससे वे सूख जाती हैं और तुलसी का सूखना शुभ नहीं माना जाता है।-अक्सर लोग तुलसी को चुनरी ओढ़ाने के बाद उसे बदलते नहीं हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। अन्य देवी-देवताओं की तरह तुलसी के वस्त्र भी बदलते रहना चाहिए।-तुलसी के पौधे को संध्या काल में छूना वर्जित बताया गया है। यदि आपको पूजन या अन्य की काम के लिए तुलसी तोडऩा हो तो सुबह का समय ही सही रहता है।-तुलसी तोड़ते समय ध्यान रखें कि पहले प्रणाम करने के बाद ही पत्ते तोड़े इसके साथ ही इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि तुलसी कभी भी नाखून से खींचकर नहीं तोडऩा चाहिए।-प्रतिदिन प्रात: जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजाघर में पूजन के साथ तुलसी का भी पूजन करना चाहिए।-तुलसी के नीचे हमेशा गाय के शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए, इसी के साथ नियमित रुप से संध्या के समय भी तुलसी में दीपक जरूर जलाना चाहिए।-तुलसी का पौधा गुरूवार के दिन लगाना चाहिए, इसी के साथ कार्तिक का महीना तुलसी लगाने के लिए बेहद शुभ माना गया है.-शरद पूर्णिमा से कार्तिक मास आरंभ हो जाएगा। यह पूरा माह तुलसी नियमित रुप से तुलसी पूजा के लिए बेहद ही शुभ होता है।
- फेंगशुई चीन का वास्तु शास्त्र है। इस में भवन निर्माण और भवन में रखी जाने वाली पवित्र वस्तुओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है। फेंग और शुई का शाब्दिक अर्थ है वायु और जल। यह शास्त्र भी पंचतत्वों पर ही आधारित है। वास्तु शास्त्र की ही तरह फेंगशुई में भी घर और आस-पास की चीजों के बारे में बताा जाता है। इसमें उन चीजों के बारे में बताया जाता है जिन्हें घर पर रखने से गुड लक आ सकता है। ऐसे में फेंगशुई में घर के अंदर चौड़े पत्ते वाले पौधे को रखने के फायदों के बारे में बताया गया है।बहुत से लोग इस पौधे को घर के अंदर सजावट के तौर पर रखते हैं। लेकिन इस पौधे के कुछ फायदे भी होते हैं। आइए जानते हैं इस पौधे के फायदों के बारे में--फेंगशुई के अनुसार घर में चौड़े पत्ते वाले पौधों को घर पर लगाने से घर में सकारात्मकता का माहौल रहता है ।-चौड़े पत्ते वाले पौधों से घर में खुशियां आती हैं। इससे घर का हर कोना उत्साह से भर जाता है।-चौड़े पत्ते वाले पौधे घर की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करते हैं।-फेंगशुई के अनुसार घर में पेड़-पौधे नकारात्मक ध्वनि और विकिरणों को भी प्रभावशाली ढंग से अवशोषित कर लेते हैं।-घर के दक्षिण-पूर्व कोने को धन और समृद्धि का कोना माना जाता है, इसलिए यहां चौड़े पत्तियों वाले पौधे लगाना चाहिए।-चौड़े पत्ते वाले पौधे घर में लगाने से तरक्की की संभावना बढ़ जाती है।-इस पौधे को घर पर लगाने से मन और दिमाग शांत रहता है. इसे गुड लक के लिए भी रखा जाता है।
- 'जगदगुरुत्तम जयन्ती विशेष' • 20 अक्टूबर(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के पावनातिपरम दिव्य चरित एवं उनके द्वारा प्रदत्त दिव्योपहारों, उपकारों का संस्मरण..)
भाग (1)• जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त विश्व-प्रेमोपहार
सनातन वैदिक धर्म के अनुसार, यद्यपि भगवान् सर्वव्यापक है तथापि हम साधारण मायिक मनुष्यों को उनका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता किन्तु मंदिरों एवं विग्रहों में श्री सच्चिदानंदघन प्रभु की उपस्थिति में हमारा विश्वास हो ही जाता है। इसी कारण जीवों के आध्यात्मिक कल्याणार्थ और वास्तविक सिद्धांत के प्रचार हेतु रसिकाचार्यों ने ऐसे भव्य मंदिरों की स्थापना की है। बस इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सम्पूर्ण जगत में भक्ति तत्व को प्रकाशित करने के लिए पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने कुछ दिव्योपहार विश्व को समर्पित किये हैं, यथा; वृन्दावन स्थित श्री प्रेम मंदिर, बरसाना स्थित श्री कीर्ति मंदिर तथा अपनी जन्मस्थली मनगढ़ स्थित श्री भक्ति मंदिर। इनमें से एक है, आज हम उनकी जन्मस्थली मनगढ़ जो कि भक्तिधाम के नाम से विख्यात है, वहाँ के 'श्री भक्ति मन्दिर' तथा 'भक्ति भवन' और 'कृपालुं वंदे जगदगुरुं (गुरुधाम) मंदिर' के विषय में जानेंगे :::::::
★ (1) भक्ति मंदिर, श्री भक्तिधाम मनगढ़
० शिलान्यास समारोह : 26 अक्टूबर 1996० कलश स्थापना : 14 अगस्त 2005० उदघाटन समारोह : 16-17 नवम्बर 2005
भूतल पर श्री राधाकृष्ण एवं आठ दिशाओं में अष्ट महासखियों के विग्रह, जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज एवं उनके पूज्यनीय माता-पिता जी के विग्रह। प्रथम तल में श्री सीताराम तथा श्री हनुमान जी के विग्रह, साथ ही श्री राधा रानी एवं श्री कृष्ण-बलराम जी के विग्रह। मंदिर के दोनों ओर बने स्मारकों में एक ओर श्रीकृष्ण की प्रमुख लीलाओं की झाँकी है तो दूसरी ओर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के जीवन की प्रमुख घटनाओं की झाँकी है।
धन्यातिधन्य है मनगढ़ भूमि! जिसे गुरुदेव ने अपनी लीलास्थली बनाया. केवल 9 वर्षों में यहाँ इस प्रकार के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा हो गया। मंदिर की भव्यता, शिल्पकला तथा पच्चीकारी के काम को देखकर दर्शनार्थी आश्चर्य चकित हो जाते हैं। निःसंदेह यह किसी अलौकिक शक्ति का ही कार्य है. अन्यथा इस प्रकार के भव्य मंदिर का निर्माण छोटे से ग्राम में इतने कम समय में असंभव ही है।
इस भक्तिधाम में भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित होती रहती है। एक ओर तीर्थराज प्रयाग परम पावनी गंगा के जल से तो दूसरी ओर श्रीराम जी की लीलास्थली अयोध्या नगरी सरयू के पवित्र जल से प्रक्षालित करके इस मनगढ़ धाम की महिमा व पवित्रता को द्विगुणित करती रहती है। यहाँ का यह भक्ति मन्दिर कलियुग में दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से संतप्त जीवों के लिए एक अनुपम आध्यात्मिक केंद्र है। गुलाबी सफ़ेद पत्थर से निर्मित भक्ति मंदिर में काले ग्रेनाइट के खम्भे बनाये गए हैं। मंदिर की दीवारों पर बहुमूल्यवान पत्थर से श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'भक्ति-शतक' के सौ दोहे लिखे गए हैं, इस ग्रन्थ का एक एक दोहा इतना मार्मिक है कि इस ग्रन्थ रूपी मानसरोवर में अवगाहन करने वाला बरबस प्रेमरस में सराबोर हो जाता है। इसके अलावा 'प्रेम रस मदिरा' के भी कुछ पद अंकित किये गए हैं। यह भक्ति मंदिर श्री राधाकृष्ण एवं श्री कृपालु महाप्रभु का साक्षात् स्वरुप ही है।
★ (2) 'कृपालुं वंदे जगदगुरुं - भक्ति मंदिर (गुरुधाम)'
० उदघाटन समारोह : 13-15 मार्च 2021
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के सर्वधर्म समन्वयाचार्य भक्तियोगरसावतार स्वरूप को प्रकाशित करता हुआ यह भव्यातिभव्य ऐतिहासिक दिव्य मन्दिर, उनके ही श्रीचरणों में उनकी तीनों सुपुत्रियों द्वारा हार्दिक समर्पित है। उनके अनगिनत अनुयायियों के लिये यह स्मारक, केवल स्मारक ही नहीं, वरन अपने परमाराध्य प्रिय गुरुवर के अनन्त उपकारों, उनके दिव्य नाम, रूप, लीला, गुण, धाम के सतत स्मरण का दिव्य आधार है।
★ (3) भक्ति-भवन, भक्तिधाम मनगढ़
० 270 फुट व्यास गोलाकार० 10000 साधकों के लिए बैठने का स्थान० बाहर की दीवारों पर भागवत में वर्णित श्री कृष्ण लीलाओं के दर्शन० भीतर के प्रमुख मंच पर श्री राधाकृष्ण एवं श्री सीताराम जी के विग्रह तथा अष्ट महासखियों के विग्रह
भक्तिधाम में स्थित इस भवन का शिलान्यास 27 फरवरी 2009 एवं उदघाटन 29 अक्टूबर 2012 को हुआ था। इस वातानुकूलित गुम्बदाकार भवन में लगभग 10000 साधक एक साथ बैठकर साधना कर सकते हैं। भारत में शायद इस प्रकार का भवन कहीं भी नहीं है। इसका निर्माण किस प्रकार हुआ? यह आजकल के इंजीनियरिंग कॉलेज में विद्यार्थियों के लिए एक जिज्ञासा का विषय बन गया है।
गुरु पूर्णिमा इत्यादि विशेष पर्वों पर या खचाखच भर जाता है। यहाँ 'राधे' नाम का संकीर्तन इस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर देता है मानो ब्रज रस सिंधु में ज्वार आ गया हो, ऐसा प्रतीत होता है मानों समस्त दैवी शक्तियाँ श्री राधा सुमधुर नाम सुनने के लिए एकत्र हो गई हों। श्री महाराज जी ने कलियुग में भगवन्नाम संकीर्तन को ही भगवत्प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ सर्वसुगम साधन बताया है। उनके अनुसार साधना पद्धति को उजागर करने वाला यह भक्ति भवन उनके सभी साधकों को भक्तियोगरसावतार परम प्रिय गुरुवर की मधुर स्मृतियों के साथ उनके कठिन प्रयास की याद दिलाता है।
श्री कृपालु महाप्रभु जी ने समस्त साधकों की आध्यात्मिक उन्नति के लिये महीने भर की अखण्ड साधना का प्रारम्भ सन 1964 में ब्रजधाम के ब्रम्हाण्ड घाट में किया था। तब वह स्थल अत्यन्त घनघोर जंगल था। तब कहाँ ब्रम्हांड घाट का जंगल और अब कहाँ यह वातानुकूलित भक्ति भवन !! यह सब साधन श्री कृपालु महाप्रभु जी ने साधकों की सुविधा आदि को ध्यान में रखकर अपने कृपालु स्वभाव के वशीभूत होकर इस विश्व को प्रदान किये हैं। भक्ति को जन जन के घर में स्थापित करने वाले जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त भक्ति-भवन एवं भक्ति-मंदिर जैसे उपहारों के लिए सभी साधक उनके चिरकाल तक ऋणी रहेंगे।
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिन्दू धर्म में उपनिषदों का बड़ा महत्व है। महर्षि वेदव्यास ने महाभारत और महापुराणों के अतिरिक्त उपनिषदों की भी रचना की। बाद में चलकर अदि शंकराचार्य ने सभी उपनिषदों पर भाष्य लिखे। सभी उपनिषद चारों वेद एवं किसी पंथ एवं संप्रदाय से सम्बंधित हैं। मूल उपनिषदों की संख्या 10 मानी गयी है किन्तु इनके अतिरिक्त भी कई उपनिषद हैं जिनकी कुल संख्या 108 है। आइये जानते हैं कि उन सभी के नाम क्या हैं और वे किस वेद एवं पंथ/समुदाय से सम्बंधित हैं।ईश उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> मुख्य उपनिषद्केन उपनिषद् : साम वेद -> मुख्य उपनिषद्कठ उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> मुख्य उपनिषद्प्रश्नि उपनिषद् : अथर्व वेद -> मुख्य उपनिषद्मुण्डक उपनिषद् : अथर्व वेद -> मुख्य उपनिषद्माण्डुक्य उपनिषद् : अथर्व वेद -> मुख्य उपनिषद्तैत्तिरीय उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> मुख्य उपनिषद्ऐतरेय उपनिषद् : ऋग् वेद -> मुख्य उपनिषद्छान्दोग्य उपनिषद् : साम वेद -> मुख्य उपनिषद्बृहदारण्यक उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> मुख्य उपनिषद्ब्रह्म उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्कैवल्य उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> शैव उपनिषद्जाबाल उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्श्वेताश्वतर उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्हंस उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> योग उपनिषद्आरुणेय उपनिषद् : साम वेद -> संन्यास उपनिषद्गर्भ उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्नारायण उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> वैष्णव उपनिषद्परमहंस उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्अमृत-बिन्दु उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्अमृत-नाद उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्अथर्व-शिर उपनिषद् : अथर्व वेद -> शैव उपनिषद्अथर्व-शिख उपनिषद् :अथर्व वेद -> शैव उपनिषद्मैत्रायणि उपनिषद् : साम वेद -> सामान्य उपनिषद्कौषीतकि उपनिषद् : ऋग् वेद -> सामान्य उपनिषद्बृहज्जाबाल उपनिषद् : अथर्व वेद -> शैव उपनिषद्नृसिंहतापनी उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्कालाग्निरुद्र उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> शैव उपनिषद्मैत्रेयि उपनिषद् : साम वेद -> संन्यास उपनिषद्सुबाल उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्क्षुरिक उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्मान्त्रिक उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्सर्व-सार उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्निरालम्ब उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्शुक-रहस्य उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्वज्रसूचि उपनिषद् : साम वेद -> सामान्य उपनिषद्तेजो-बिन्दु उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्नाद-बिन्दु उपनिषद् : ऋग् वेद -> योग उपनिषद्ध्यानबिन्दु उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्ब्रह्मविद्या उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्योगतत्त्व उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्आत्मबोध उपनिषद् : ऋग् वेद -> सामान्य उपनिषद्परिव्रात् (नारदपरिव्राजक) उपनिषद् : अथर्व वेद -> संन्यास उपनिषद्त्रिषिखि उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> योग उपनिषद्सीता उपनिषद् : अथर्व वेद -> शाक्त उपनिषद्योगचूडामणि उपनिषद् : साम वेद -> योग उपनिषद्निर्वाण उपनिषद् : ऋग् वेद -> संन्यास उपनिषद्मण्डलब्राह्मण उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> योग उपनिषद्दक्षिणामूर्ति उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> शैव उपनिषद्शरभ उपनिषद् : अथर्व वेद -> शैव उपनिषद्स्कन्द (त्रिपाड्विभूटि) उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्महानारायण उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्अद्वयतारक उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्रामरहस्य उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्रामतापणि उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्वासुदेव उपनिषद् : साम वेद -> वैष्णव उपनिषद्मुद्गल उपनिषद् : ऋग् वेद -> सामान्य उपनिषद्शाण्डिल्य उपनिषद् : अथर्व वेद -> योग उपनिषद्पैंगल उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्भिक्षुक उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्महत् उपनिषद् : साम वेद -> सामान्य उपनिषद्शारीरक उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्योगशिखा उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्तुरीयातीत उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्संन्यास उपनिषद् : साम वेद -> संन्यास उपनिषद्परमहंस-परिव्राजक उपनिषद् : अथर्व वेद -> संन्यास उपनिषद्अक्षमालिक उपनिषद् : ऋग् वेद -> शैव उपनिषद्अव्यक्त उपनिषद् : साम वेद -> वैष्णव उपनिषद्एकाक्षर उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्अन्नपूर्ण उपनिषद् : अथर्व वेद -> शाक्त उपनिषद्सूर्य उपनिषद् : अथर्व वेद -> सामान्य उपनिषद्अक्षि उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्अध्यात्मा उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्कुण्डिक उपनिषद् : साम वेद -> संन्यास उपनिषद्सावित्रि उपनिषद् : साम वेद -> सामान्य उपनिषद्आत्मा उपनिषद् : अथर्व वेद -> सामान्य उपनिषद्पाशुपत उपनिषद् : अथर्व वेद -> योग उपनिषद्परब्रह्म उपनिषद् : अथर्व वेद -> संन्यास उपनिषद्अवधूत उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्त्रिपुरातपनि उपनिषद् : अथर्व वेद -> शाक्त उपनिषद्देवि उपनिषद् : अथर्व वेद -> शाक्त उपनिषद्त्रिपुर उपनिषद् : ऋग् वेद -> शाक्त उपनिषद्कठरुद्र उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्भावन उपनिषद् : अथर्व वेद -> शाक्त उपनिषद्रुद्र-हृदय उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> शैव उपनिषद्योग-कुण्डलिनि उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> योग उपनिषद्भस्म उपनिषद् : अथर्व वेद -> शैव उपनिषद्रुद्राक्ष उपनिषद् : साम वेद -> शैव उपनिषद्गणपति उपनिषद् : अथर्व वेद -> शैव उपनिषद्दर्शन उपनिषद् : साम वेद -> योग उपनिषद्तारसार उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> वैष्णव उपनिषद्महावाक्य उपनिषद् : अथर्व वेद -> योग उपनिषद्पञ्च-ब्रह्म उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> शैव उपनिषद्प्राणाग्नि-होत्र उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद्गोपाल-तपणि उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्कृष्ण उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्याज्ञवल्क्य उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्वराह उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्शात्यायनि उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> संन्यास उपनिषद्हयग्रीव उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्दत्तात्रेय उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्गारुड उपनिषद् : अथर्व वेद -> वैष्णव उपनिषद्कलि-सन्तारण उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> वैष्णव उपनिषद्जाबाल उपनिषद् : साम वेद -> शैव उपनिषद्सौभाग्य उपनिषद् : ऋग् वेद -> शाक्त उपनिषद्सरस्वती-रहस्य उपनिषद् : कृष्ण यजुर्वेद -> शाक्त उपनिषद्बह्वृच उपनिषद् : ऋग् वेद -> शाक्त उपनिषद्मुक्तिक उपनिषद् : शुक्ल यजुर्वेद -> सामान्य उपनिषद
- सूर्य देव कल कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सूर्य को ज्योतिष में विशेष स्थान प्राप्त है। सूर्य के राशि परिवर्तन करने से सभी राशियों पर शुभ- अशुभ प्रभाव पड़ता है। सूर्य एक राशि में करीब एक महीना रहते हैं और इसके बाद राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं सूर्य के राशि परिवर्तन से कैसा रहेगा सभी राशियों का हाल--मेष राशिइस समय सावधान रहने की आवश्यकता है।धन का खर्च सोच- समझकर ही करें।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करें नहीं तो वैवाहिक जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।व्यापार में किसी बाहरी व्यक्ति पर भरोसा करने से नुकसान हो सकता है।वाद- विवाद से दूर रहें।वृष राशि-इस राशि के जातकों को मिला जुला फल मिलेगा।इस दौरान आपको शत्रुओं से सावधान रहने की जरूरत है।गोचर काल में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ सकते हैं।रिश्तों में टकराव हो सकता है।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करें।धन- हानि हो सकती है।मिथुन राशिदांपत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ कहा जा सकता है।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करें, नहीं तो मनमुटाव हो सकता है।नौकरी और व्यापार के लिए समय शुभ कहा जा सकता है।धन का खर्च अधिक न करें।कर्क राशिइस दौरान आपके जीवन में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।भाई-बहन के रिश्ते में दरार आ सकती है।कार्यक्षेत्र में सावधानी बरतें।गोचर काल में आलोचनाओं का सामना करना पड़ सकता है।मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं।वाद- विवाद से दूर रहें।सिंह राशिसाहस और पराक्रम में वृद्धि होगी।कार्यक्षेत्र में सहयोगियों का पूरा साथ मिलेगा।मेहनत का फल जरूर मिलेगा।मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि के योग भी बन रहे हैं।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ रहेगा।कन्या राशियात्रा का योग बनेगा।धन- लाभ होगा।यह समय लेन- देन के लिए शुभ कहा जा सकता है।शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे।दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे।तुला राशिसूर्य का राशि परिवर्तन तुला राशि में ही हो रहा है।इस दौरान आपकी राशि पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा।सूर्य गोचर काल में आपको शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।मन प्रसन्न रहेगा।मान-सम्मान में वृद्धि होगी।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।वृश्चिक राशिसूर्य के राशि परिवर्तन से विदेशी कंपनियों से जुड़े लोगों को लाभ प्राप्त हो सकता है।व्यापार में मुनाफा होगा।मानसिक तनाव कम होगा।स्थान परिवर्तन या प्रमोशन के योग बन सकते हैं।शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं कहा जा सकता है।पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।धनु राशिधनु राशि वालों को इस दौरान मिले-जुले परिणाम प्राप्त होंगे।गोचर काल में खुद पर विश्वास रखें।किसी भी तरह के मानसिक तनाव से दूर रहें।कार्यस्थल पर आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है।मकर राशिस्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।आर्थिक पक्ष कमजोर हो सकता है।माता- पिता के साथ समय व्यतीत करें।कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत अधिक करनी होगी।मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्दि के योग भी बन रहे हैं।जीवनसाथी का पूरा सहयोग मिलेगा।कुंभ राशिकुंभ राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर उतार-चढ़ाव भरा रहने वाला है।इस दौरान आपको निवेश से बचना होगा।जीवनसाथी के साथ अनबन से बचें।गोचर काल में छात्रों का मन पढ़ाई में कम ही लगेगा।इस दौरान वाद- विवाद से दूर रहें।मीन राशिसूर्य का राशि परिवर्तन मीन राशि के जातकों के लिए सामान्य रहेगा।इस दौरान लेन- देन न करें।इस समय निवेश करने से नुकसान हो सकता है।परिवार में किसी से मतभेद हो सकता है।दांपत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
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मान्यता है कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर आसमान से अमृत वर्षा होती है, जिसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति विधि-विधान से शरद पूर्णिमा का व्रत रखता है. शरद पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस रात चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट एवं अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. हर तरफ सफेद रोशनी से प्रकृति नहा उठती है. आइए जानते हैं इस पावन पर्व की पूजा विधि और महत्व.
इस रात भ्रमण के लिए निकलती हैं मां लक्ष्मी
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. जिसका अर्थ है कि कौन जाग रहा है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की सफेद रोशनी में धन की देवी माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवारी करते हुए घूमने के लिए निकलती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है. यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लक्ष्मी के साधक सारी रात जगकर उनकी साधना-आराधना करते हैं.
आसमान से होती है अमृत वर्षा
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से अमृत की वर्षा होती है. चंद्रदेव अपनी अमृत किरणों से पृथ्वी पर अपनी शीतलता और पोशक शक्ति की अमृत वर्षा करते हैं. ऐसे में लोग चांदनी रात में विशेष रूप से खीर का प्रसाद बनाते हैं और उसे चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं. खीर बनाने के पीछे भी कारण यह है कि इसमें मिलाया गया दूध, चीनी और चावल का संबंध भी चंद्रदेव से ही जुड़ा हुआ है. ऐसे में यह पूरी तरसे चंद्रमा की रोशनी से निकलने वाले अमृत तत्व से परिपूर्ण होकर दिव्य प्रसाद में परिवर्तित हो जाता है और उसे ग्रहण करके व्यक्ति साल भर सुखी, समृद्धि और निरोगी रहता है.
शरद पूर्णिमा के उपाय
धन-धान्य की कामना रखने वाले लोगों को शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए. इस दिन श्री सूक्त का पाठ, कनकधारा स्त्रोत, विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने पर माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के साथ चंद्रदेव की विशेष रूप से पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन कुआंरी कन्याएं प्रात:काल सूर्यदेव और रात्रि को चन्द्रदेव की पूजा करें तो मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना पूरी होती है. - Happy Dussehra(दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!)
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दशहरा अर्थात विजया दशमी के सम्बन्ध में दिया गया प्रवचन नीचे उद्धृत है :::::
....भगवान का अवतार क्यों होता है, अधिकतर लोग यही समझते हैं कि भगवान का अवतार राक्षसों का संहार करने के लिये और धर्म की संस्थापना के लिये होता है,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।(गीता 4-6, 7)
किन्तु जो सर्वशक्तिमान है, सबके हृदय में बैठा है, चाहे राक्षस हो चाहे साधु हो तो क्या वह राक्षसों का संहार अपने दिव्य धाम में रहकर नहीं कर सकता, वह तो सर्वसमर्थ है, सत्यसंकल्प है। बस संकल्प कर ले, सब काम अपने आप ही जाये। फिर यहाँ अवतार लेकर आने की क्या आवश्यकता है? इसका मतलब है कोई और कारण है।
केवल एक कारण है - जीव कल्याण। अवतार लेने से पहले मीटिंग हुई भगवान के सब पार्षदों की भगवान के साथ। तो भगवान ने कहा कि भई पृथ्वी पर जाना है, वहाँ अपना नाम, रुप, लीला, गुण छोड़कर आना है जिसका सहारा लेकर जीव मुझे आसानी से प्राप्त कर सकें। 'दशरथ का रोल (अभिनय) कौन करेगा', कौशल्या, सुमित्रा, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सबका निश्चित हो गया। 'अरे रावण का रोल कौन करेगा, कैकेयी का रोल कौन करेगा, बदनामी होगी लोग गाली देंगे।' 'कोई बात नहीं हमारे प्रभु का काम होना चाहिये बस हमें उनकी इच्छा में इच्छा रखना है।' (उनके भक्तों की सोच इस प्रकार होती है, वे उनकी लीला की पूर्ति के लिये बदनामी भी मोल लेने को तैयार हो जाते हैं।) यानी भगवान अपने परिकरों, पार्षदों को लेकर आते हैं और यहाँ लीला करते हैं। जितने भी उस लीला में सम्मिलित होते हैं, वे सब महापुरुष ही होते हैं अर्थात सब मायातीत होते हैं। उनके समस्त कार्यों का कर्ता भगवान ही होता है अतः उन्हें अपने कर्म का फल नहीं मिलता।
रावण भी भगवान का पार्षद ही था। भगवान ने सोचा लड़ना चाहिये, लेकिन लड़ें किससे? सब तो हमसे कमजोर हैं और कमजोर से लड़ना ये तो मजा नहीं आयेगा। अपने बराबर वाले से लड़ना चाहिये। भगवान के बराबर कौन है? महापुरुष में भगवान की सारी शक्तियाँ होती हैं। लेकिन कोई महापुरुष भगवान से क्यों लड़ेगा? अगर भगवान कहते भी हैं लड़ने के लिये तो कह देगा महाराज मैं तो शरणागत हूँ, अगर आप शरीर चाहते हैं तो मैं पहले ही दे रहा हूँ। फिर क्या किया जाये, तो भगवान ने कहा कि भई ऐसा करो कि किसी महापुरुष का श्राप दिलवाओ और उसको राक्षसी कर्म के लिये मृत्युलोक भेजो, फिर मैं वहाँ जाऊँ और उसको मारूँ तो जमकर युद्ध होगा।
तो गोलोक के दो पार्षद थे नित्य सिद्ध सदा से महापुरुष, भगवान के गेट कीपर, उनको श्राप दिला दिया सनकादि परमहंसों से जबरदस्ती। उनको प्रेरणा किया तुम हमसे मिलने आओ और गेट कीपर्स को आर्डर दे दिया कि कोई अन्दर न आने पाये। सनकादि चल पड़े भगवान से मिलने तो जय विजय ने रोक दिया, इन्होंने कहा आज तक तो किसी ने रोका नहीं था, आज क्या हो गया, श्राप दे दिया, जाओ मृत्युलोक में जाओ राक्षस बन जाओ। फिर प्रेरणा किया सनकादि को कि हमेशा के राक्षस न बनाओ बस तीन जन्म के लिये राक्षस बनकर पृथ्वी पर रहें, फिर यहाँ आ जायें। हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिपु, रावण-कुम्भकर्ण, कंस-शिशुपाल ये थे जय-विजय। अतः रावण वास्तव में भगवान का पार्षद था, राक्षस नहीं था, भगवान की इच्छा से ही उसने यह सब किया। अतः दुर्भावना नहीं करना उसके प्रति। हमारी रावण से कोई दुश्मनी नहीं है और न राम की दुश्मनी रावण से थी। वो तो राम को केवल ये जनता को दिखाना था कि जो भी गलत काम है उससे ऐतराज करो, गलत काम करो उसका परिणाम हानिकारक है।
मायिक जो भी वर्क है चाहे सात्विक हो चाहे राजसिक हो चाहे तामसिक हो तीनों हानिकारक हैं। सात्विक भी निन्दनीय है, उससे अधिक निन्दनीय राजस है और तामस सबसे अधिक निन्दनीय है। केवल राम की भक्ति करने वाला ही तीनों गुणों से परे होकर परमानन्द प्राप्त कर सकता है इसलिये रावण दहन का अर्थ ये नहीं है कि रावण नाम का जो राक्षस था वो जला दिया गया, छुट्टी मिली। रावण जलाने से तात्पर्य है कि रावण से जो गलत काम कराया गया था उस कर्म को छोड़ना है। भले ही हम शास्त्र वेद के ज्ञाता हो जायें, निन्दनीय कर्म किसी भी प्रकार क्षम्य नहीं है जब तक उस अवस्था पर न पहुँच जायँ कि हमारा कर्ता भगवान हो जाय अर्थात भगवत्प्राप्ति से पहले कोई भी आचरण जो शास्त्र-विरुद्ध है, वह निन्दनीय है। दशहरे वाले दिन जो रावण का पुतला जलाया जाता है वह इसी बात का द्योतक है कि सात्विक, राजसिक, तामसिक सब कर्म बन्धन कारक हैं, निन्दनीय हैं। केवल भगवान की भक्ति ही वन्दनीय है। भगवान के नाम, रुप, लीला, गुण, धाम, जन में ही निरंतर मन को लगाना, यही दशहरे पर्व का मनाने का मुख्य उद्देश्य है।
• सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2008 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - करवाचौथ व्रत महिलाओं का खास त्योहार है ।इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखकर अपने पति के लिए लंबी आयु की कामना करती हैं ।अगर आप भी इस करवाचौथ पर निर्जल व्रत रखने की तैयारी में हैं तो अपनी सरगी में इन चीजों को जरूर शामिल करें ।हर साल कार्तिक के महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवाचौथ रखा जाता है। इसे महिलाओं का खास पर्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। महिलाएं सालभर इस व्रत की प्रतीक्षा करती हैं।जोर शोर से इस दिन की तैयारियां करती हैं। इस बार करवाचौथ 2021 का व्रत (Karwa Chauth 2021) का व्रत 24 अक्टूबर को रखा जाएगा।करवाचौथ के व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले सरगी खाकर की जाती है,ताकि करवाचौथ वाले दिन महिलाओं के शरीर में एनर्जी बनी रहे। अगर आप पहली बार करवाचौथ का व्रत रखने जा रही हैं, तो आपके लिए निर्जल व्रत रख पाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसलिए यहां हम आपको बताने जा रहे हैं, उन चीजों के बारे में जिन्हें सरगी में शामिल करने से करवाचौथ वाले दिन आपकी भूख-प्यास नियंत्रित रहेगी और आप आसानी से अपने व्रत को पूर्ण कर पाएंगी।इन चीजों को सरगी में करें शामिल– दूध से बनी मिठाईसरगी में आप दूध से बनी कोई मिठाई जैसे सेवई, खीर या रबड़ी आदि को जरूर शामिल करें। दूध में भरपूर प्रोटीन होता है। प्रोटीन आपके शरीर में एनर्जी को मेंटेन रखता है। सलिए दूध से बनी कोई चीज जरूर खाएं। कुछ न समझ आए तो एक गिलास दूध ही पी लें।– ड्राई फ्रूट्सव्रत रखने से पहले ड्राई फ्रूट्स जैसे बादाम, किशमिश, काजू आदि को जरूर खाएं। ये आपके शरीर में दिन भर की एनर्जी को स्टोर करने का काम करेंगे और शुगर लेवल को कंट्रोल रखेंगे। इससे आपको दिनभर पेट भरा हुआ महसूस होगा और शरीर में एनर्जी भी रहेगी।– खिचड़ी या मल्टीग्रेन चपातीपौष्टिक आहार के तौर पर आप खिचड़ी, वेजिटेबल उपमा या पोहा ले सकती हैं या सब्जी के साथ मल्टीग्रेन चपाती भी खा सकती है। इससे आपके शरीर को पोषण मिलेगा और पेट लंबे समय तक भरा रहेगा,लेकिन कोई भी फ्राई चीज खाने से बचें वरना आपको प्यास बहुत लगेगी।– फलफल जल्दी पच जरूर जाते हैं, लेकिन ये आपको काफी मिनरल्स देते हैं, जिनके सहारे आप करवाचौथ का दिन बगैर कुछ खाए पीए भी आसानी से व्यतीत कर सकती हैं। आप केला, पपीता, अनार, बेरिज, सेब जैसे फलों को शामिल कर सकती हैं।– नारियल पानीनारियल पानी पोषक तत्वों का खजाना होता है। प व्रत वाले दिन पानी नहीं पी सकतीं, इसलिए सूर्योदय से पहले नारियल पानी पीएं। इससे शरीर को पोषण भी मिलेगा और प्यास भी कंट्रोल होगी।
- दशहरा के दिन घर पर कुछ स्पेशल बनाना चाहते है तो पनीर की एक नई रेसिपी ट्राई करें। लंच हो या डिनर पनीर की सब्जी खाने का स्वाद डबल कर देती है। हालांकि अधिकतर लोग खाने में दो तीन तरह की पनीर की सब्जी ही बनाते हैं। लेकिन इस बार अगर आप पनीर की सब्जी में वैरायटी चाहते हैं या स्वाद में बदलाव चाहते हैं तो पनीर की ऐसी रेसिपी ट्राई करें जो नई भी हो और आसान भी। हम पनीर की जिस डिश की बात कर रहे हैं उसका नाम है पनीर कुंदन कलियां। आज की रसोई में दशहरा के मौके पर बनाइये खास पनीर कुंदन कलियां। इस रेसिपी का स्वाद इतना लाजवाब है कि हर कोई उंगलियां चाटता रह जायेगा। इस रेसिपी के लिए आपको अधिक सामग्री की जरूरत भी नहीं होती। आपके किचन में मौजूद सामान से ही आप पनीर की लजीज नई डिश बना सकते हैं। तो चलिए जान लीजिए स्वादिष्ट पनीर कुंदन कलियां बनाने की आसान रेसिपी।पनीर कुंदन कलियां बनाने की सामग्री250 ग्राम पनीर, कश्मीरी लाल मिर्च, लाल मिर्च पाउडर, साबुत धनिया, हल्दी पाउडर, प्याज (बारीक कटा हुआ), टमाटर (बारीक कटा हुआ), हरी इलायची, लौंग, गरम मसाला, दही, क्रीम, नमक स्वादानुसार, तेल।पनीर कुंदन कलियां बनाने की रेसिपीस्टेप 1- सबसे पहले पनीर को टुकड़ों में काट लें।स्टेप 2- एक बर्तन में पनीर के टुकड़ों पर हल्दी और लाल मिर्च पाउडर डालें। फिर पनीर को मैरीनेट कर 15 मिनट के लिए रख दें।स्टेप 3- मीडियम आंच पर पैन में घी गरम करके उसमें कश्मीरी लाल मिर्च, धनिया, इलायची और लौंग डालकर हल्का भून लें।स्टेप 4- जब खड़ा मसाला भून जाए तो प्याज डालकर हल्का गुलाबी होने तक भूने।स्टेप 5- अब टमाटर डालकर नरम होने तक पकाएं। फिर दही और गरम मसाला डालकर पका लें।स्टेप 6- अच्छे से पकने पर ग्रेवी से तेल अलग होने लगेगा, तब उसमें पनीर और नमक डालकर मिक्स कर लें।स्टेप 7- इस मिश्रण को लगभग 5 मिनट तक पकाएं। उसके बाद गैस बंद करके ऊपर से क्रीम डालकर मिला लें।आपका लजीज पनीर कुंदन कलियां तैयार है। इसे नान या रोटी के साथ सर्व करें।
- हस्तरेखा शास्त्र ज्योतिष शास्त्र की ही एक शाखा है। इसमें हथेलियों में बनी रेखाओं और चिन्हों का आकलन करके व्यक्ति जीवन के विषय में जानकारी दी जाती है। हस्तरेखा शास्त्र में रेखाओं और हाथों में बने चिन्हों को देखकर उसके भविष्य या जीवन के बारे में केवल मूल्यांकन किया जा सकता है, भविष्य को लेकर इसकी सटीकता प्रमाणित नहीं होती है क्योंकि हाथ की रेखाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। जीवन में कोई भी लक्ष्य हासिल करने के लिए कर्मों का प्रभाव सबसे अधिक मायने रखता है। हस्तरेखा शास्त्र में हमारे हाथों में बनी रेखाएं देखकर जीवन में आने वाले शुभ और अशुभ प्रभावों के बारे में बताया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में कुछ बहुत शुभ रेखाओं के बारे में बताया गया है तो वहीं कुछ रेखाएं ऐसी भी होती हैं जिनकी वजह से आपके जीवन में एक के बाद एक परेशानियां बनी रहती हैं। हस्तरेखा शास्त्र में ऐसी कुछ रेखाएं और चिन्हों के बारे में बताया गया है, जिन्हें दुर्भाग्य का कारण माना जाता है। तो चलिए जानते हैं कौन सी हैं वे रेखाएं और चिन्ह।जीवन रेखा को काटती हुई रेखाएंअगर किसी की हथेली में कई छोटी-छोटी रेखाएं जीवन रेखा को काटती हैं, तो इन्हें शुभ नहीं माना जाता है। इन रेखाओं के संबंध में कहा जाता है कि जिस स्थान पर ये रेखाएं जीवन रेखा को काटती हैं, उसी आयु में व्यक्ति को रोग-व्याधि और दुर्घटना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इन्हें दुर्भाग्य का सूचक माना जाता है।द्वीप का निशान होनायदि किसी व्यक्ति की हथेली में पर्वत या फिर रेखा पर द्वीप का निशान बना हुआ है तो यह शुभ नहीं माना जाता है लेकिन प्रत्येक रेखा और पर्वत पर बने हुए द्वीप का अलग-अलग अर्थ होता है। जिस रेखा या पर्वत पर द्वीप का चिन्ह बनता है यह उसके प्रभाव को कमजोर करता है। जिसके कारण आपको अपने जीवन में धन, स्वास्थ, मान-प्रतिष्ठा आदि से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।अनामिका उंगली पर क्षैतिज रेखाएंयदि किसी व्यक्ति की अनामिका उंगली पर बहुत सारी क्षैतिज रेखाएं बनी हुई हैं तो इन्हें दुर्भाग्य का संकेत माना जाता है। इससे व्यक्ति के मान-सम्मान की हानि का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति के हाथ में काले धब्बे हो तो यही भी शुभ संकेत नहीं माना जाता है।
- हिंदू पंचाग के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा या विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार 15 अक्टूबर के दिन विजयादशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन रावण और महिषासुर का वध हुआ था, इसके बाद से ही आज के दिन ये पर्व मनाने की परंपरा है। ये पर्व हिंदू धर्म में बहुत शुभ माना गया है और इसे काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन विजय मुहूर्त में किया गया कोई भी कार्य हमेशा लाभदायक होता है। वास्तु शास्त्र में भी दशहरा के दिन को काफी शुभ माना गया है। कहते हैं कि अगर इस दिन कुछ खास उपाय आजमा लिए जाएं, तो घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही सफलता के मार्ग खुल जाते हैं। वास्तु के अनुसार दशहरा के दिन विजय मुहूर्त में अस्त्र-शस्त्र की पूजा करने से शत्रुओं का नाश होता है। मान्यता है कि यदि वास्तु का यह उपाय किया जाए तो शत्रु पर विजय सुनिश्चित है।वास्तु शास्त्र के अनुसार दशहरा के दिन घर के ईशान कोण मतलब उत्तर-पूर्व दिशा में रोली, कुमकुम या लाल रंग के फूलों से रंगोली बनाना शुभ होता है। माना जाता है कि घर के कोने में अष्टकमल या रंगोली बनाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन सपंदा आती है।दशहरा के दिन शमी-वृक्ष का पूजन भी विशेष महत्व रखता है। इस दिन पूजन में शमी के पत्ते अर्पित करने से आर्थिक लाभ होता है। इतना ही नहीं, शमी-वृक्ष की मिट्टी पूजा स्थान पर रखने से घर में बुरी शक्तियों का प्रभाव खत्म हो जाता है.घर में से नकारात्मकता और बुरी शक्तियों को दूर करने के लिए दशहरा के दिन रावण दहन की राख को सरसों के तेल में मिलाकर घर की हर दिशा में छिड़कने से लाभ होगा।
- वैदिक ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की चाल का विशेष महत्व होता है। ग्रह-नक्षत्रों की चाल का सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। इस समय सूर्य देव कन्या राशि में विराजमान हैं। सूर्य हर माह में राशि परिवर्तन करते हैं। 17 अक्टूबर को सूर्य देव राशि परिवर्तन करेंगे। सूर्य देव राशि परिवर्तन करने से पहले कुछ राशियों की किस्मत बदल देंगे। ज्योतिष में सूर्यदेव को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्य के शुभ होने पर व्यक्ति को सभी तरह के सुखों का अनुभव होता है। आने वाले 3 दिन कुछ राशियों के लिए वरदान के समान हैं। इन राशियों को भाग्य का पूरा साथ मिलेगा।मेष राशि-इस दौरान आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे।-कार्यस्थल पर आपको मान-सम्मान प्राप्त होगा।- आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होगी।- स्वास्थ्य में सुधार होगा।- वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।- पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।मिथुन राशि- इस दौरान पारिवारिक रिश्तों में मधुरता बढ़ेगी।- नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को शुभ परिणाम मिल सकता है।- आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी।- दांपत्य जीवन सुखद रहेगा।- धन लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।सिंह राशि- धन से जुड़े मामलों में सफलता हासिल होगी।- समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा।-पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।- निवेश करने का प्लान बना रहे हैं तो यह आपके लिए लाभकारी साबित होगा।- लेन- देन के लिए समय शुभ है।वृश्चिक राशि- इस दौरान आपका मान-सम्मान बढ़ेगा।- कार्यक्षेत्र में लाभ होगा।- सूर्य गोचर काल में आपको सफलता हासिल होगी।- धन आगमन के नए अवसर प्राप्त होंगे।- व्यापारियों को मुनाफा हो सकता है।-17 अक्टूबर तक का समय आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है।धनु राशि-इस दौरान आपको नौकरी व व्यापार में शुभ फलों की प्राप्ति होगी।- नौकरी में प्रमोशन के योग बनेंगे।-खर्च पर कंट्रोल रखें।-पारिवारिक जीवन खुशहाल रहेगा।- आर्थिक मोर्चे पर भी सूर्य का राशि परिवर्तन आपके लिए लाभकारी साबित होगा।
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- कल्चुरी शासक ने नागर शैली में कराया था मंदिर का निर्माण
आलेख-सुस्मिता मिश्राछत्त्तीसगढ़ के तीनों महामाया मंदिर रतनपुर, अंबिकापुर और रायपुर, प्राचीन काल से लोगों की आस्था का केंद्र रहे हैं। नवरात्रि पर्व के दौरान यहां पर खूब रौनक हुआ करती है।रियासतकालीन राजधानी व संभाग मुख्यालय अंबिकापुर में मां महामाया व विंध्यवासिनी देवी विराजमान हैं। मां महामाया को अंबिका देवी भी कहा गया है। मान्यता है कि इनके नाम पर ही रियासतकालीन राजधानी का नामकरण विश्रामपुर से अंबिकापुर हुआ।प्रचलित दंत कथा के अनुसार अंबिकापुर में मां महामाया का धड़ जबकि बिलासपुर के रतनपुर में उनका सिर स्थापित है। सरगुजा महाराजा बहादुर रघुनाथशरण सिंहदेव ने जहां विंध्यासिनी देवी की मूर्ति को विंध्याचल से लाकर मां महामाया के साथ स्थापित कराया, तो वहीं मां महामाया की मूर्ति की प्राचीनता के संबंध में अलग-अलग दंत कथा प्रचलित हंै। कहा जाता है कि आदिकाल से ही यह क्षेत्र सिद्ध तंत्र कुंज के नाम से विख्यात था। यहां पर भी असम की कामाख्या देवी के मंदिर जैसी तंत्र पूजा हुआ करती थी।कहा जाता है कि मंदिर के निकट ही श्रीगढ़ पहाड़ी पर मां महामाया व समलेश्वरी देवी की स्थापना की गई थी। समलेश्वरी देवी की प्रतिमा को उड़ीसा के संबलपुर से श्रीगढ़ के राजा साथ लेकर आए थे। उसी दौरान सरगुजा क्षेत्र में मराठा सैनिकों का आक्रमण हुआ। दहशत में आए दो बैगा में से एक ने महामाया देवी तथा दूसरे ने समलेश्वरी देवी की प्रतिमा को कंधे पर उठाया और भागने लगे। इसी दौरान घोड़े पर सवार सैनिकों ने उनका पीछा किया। एक बैगा महामाया मंदिर स्थल पर तथा दूसरा समलाया मंदिर स्थल पर पकड़ा गया। इस कारण महामाया मंदिर व समलाया मंदिर के बीच करीब 1 किलोमीटर की दूरी है। वहीं प्रदेश के जिन स्थानों पर महामाया मां की मूर्ति स्थापित की गई है उसके सामने ही समलेश्वरी देवी विराजमान हैं। इसके बाद मराठा सैनिकों ने दोनों की हत्या कर दी। दंत कथा के अनुसार मराठा सैनिकों ने माता रानी की मूर्तियों को अपने साथ ले जाना चाहा, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाए। अंत में उन्होंने मूर्ति का सिर काट लिया और रतनपुर की ओर चल पड़े, लेकिन दैवीय प्रकोप से उन सब सैनिकों का संहार हो गया। इसलिए अंबिकापुर में माता का धड़ और रतनपुर में माता का सिर विराजमान है।ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि 17वीं सदी तक मराठों का अभ्युदय हो चुका था। सन् 1758 में बिंबाजी भोसले के नेतृत्व में सरगुजा में मराठा आक्रमण का उल्लेख है। मराठों की सेना गंगा की तरफ जाते हुए इस राज्य में आई। मराठों का उद्देश्य केवल नागपुर से काशी और गया के तीर्थ मार्ग को निष्कंटक बनाना था। संभावना व्यक्त की जाती है कि आक्रमण अंबिकापुर के श्रीगढ़ में भी हुआ हो।शारदीय नवरात्र पर सिर होता है प्रतिस्थापितअंबिकापुर स्थित मां महामाया देवी व समलेश्वरी देवी का सिर हर वर्ष परंपरानुरूप शारदीय नवरात्र की अमावस्या की रात में प्रतिस्थापित किया जाता है। नवरात्र पूजा के पूर्व कुम्हार व चेरवा जनजाति के बैगा विशेष द्वारा मूर्ति का जलाभिषेक कराया जाता है। अभिषेक से मूर्ति पूर्णता को प्राप्त हो जाती है और खंडित होने का दोष समाप्त हो जाता है। आज भी यह परंपरा कायम है। माता का सिर बनाकर उस पर मोम की परत चढ़ाई जाती है और फिर माता के धड़ के ऊपर इसे स्थापित किया जाता है। बाद में पुराने सिर का विसर्जन कर दिया जाता है। वहीं पुरातन परंपरा के अनुसार शारदीय नवरात्र को सरगुजा महाराजा महामाया मंदिर में आकर पूजा अर्चना करते हैं। जागृत शक्तिपीठ के रूप में मां महामाया सरगुजा राजपरिवार की अंगरक्षिका के रूप में पूजनीय हैं।महामाया मंदिर का वर्तमान स्वरूपवर्ष 1879 से 1917 के मध्य में कल्चुरीकालीन शासक बहादुर रघुनाथ शरण सिंहदेव ने नागर शैली में ऊंचे चबूतरे पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। चारों तरफ सीढ़ी और स्तंभ युक्त मंडप बना है। बीचो बीच एक कक्ष है जिसे गर्भगृह कहते हैं। यहीं पर मां महामाया विराजमान हैं। गर्भगृह के चारों ओर स्तंभयुक्त मंडप बनाया गया है। मंदिर के सामने एक यज्ञशाला व पुरातन कुआं भी है। समय के साथ यहां पर भक्तों के लिए काफी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।मां महामाया, विंध्यवासिनी व समलेश्वरी देवी की कृपा इस अंचल के लोगों को पुरातन समय से ही प्राप्त हो रही है। मां महामाया के दर्शन के बाद समलेश्वरी देवी की के दर्शन से ही पूजा की पूर्णता होती है। इसलिए श्रद्धालु महामाया मंदिर के बाद समलाया मंदिर में भी मां के दर्शन करते हैं। वहीं अंबिकापुर में यहां मां महामाया के दर्शन करने के पश्चात रतनपुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थापित भैरव बाबा के दर्शन करने पर ही पूजा पूर्ण मानी जाती है। - • जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 421
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों से निःसृत साधना-स्मरण सम्बन्धी 5-सार बातें :::::
(1) भगवान कहते हैं विश्वास करो, मेरा स्मरण करो और कुछ न करो. बस. मैं सब कुछ करुँगा तुम्हारा. तुम खाली स्मरण करो, बाकी सब काम मैं करुँगा और सदा के लिए अपना बना लूँगा. बस तुम उनको न भूलो.
(2) अपने को अच्छा कहलवाना, उसको बंद करना होगा. अच्छा बनने का प्रयत्न करना होगा, अच्छा कहलवाने का नहीं. अच्छा बनने का प्रयत्न करो और किसी के किसी वाक्य को फील न करने का अभ्यास करो.
(3) दान करना बहुत आवश्यक है. अगर दान नहीं करोगे तो अगले जन्म में दरिद्री बनोगे. दरिद्र बनकर पेट के लिये पाप करोगे. तो जब पाप करोगे तो मरने के बाद फिर दरिद्री बनोगे, फिर पाप करोगे, ये लिंक बन जाती है उसकी दुःख भोगने की.
(4) कोई सेवा कार्य हो, तो सेवा कार्य को करो लेकिन उसमें भावना सब वही भरी रहे, जो तुम्हारे लक्ष्य की है कि हम श्यामसुन्दर की प्रसन्नता के लिये कर रहे हैं.
(5) चाहे अनंतकोटि काल तक तुम साधक बने रहो, एक क्षण को भी अगर तुमने ये भुला दिया हमारे श्रीकृष्ण नहीं है, गुरु नहीं है, बस अपराध कर जाओगे. बच नहीं सकते.
• सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिका
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - नवरात्रि के आठ दिनों के पूजन के बाद आज नवरात्रि की नवमी तिथि का पूजन करने के साथ ही नवरात्रि का समापन हो जाएगा। इस दिन मां दुर्गा की नौवीं शक्ति देवी सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। इनके पूजन से जातक को समस्त सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। नवमी तिथि को जातक का मन निर्वाण चक्र में अवस्थित रहता है। इसी के साथ नवरात्रि की नवमी तिथि को कन्या पूजन का भी विधान है। इस दिन मां दुर्गा के नौ स्वरुपों का प्रतीक मानकर नौं कन्याओं का पूजन किया जाता है। नौ कन्याओं के साथ एक बालक के पूजन का भी विधान है। बालक को बटुक भैरव का स्वरुप माना जाता है। इस दिन नवरात्रि का समापन होता है इसलिए यह तिथि भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। तो चलिए जानते हैं मां सिद्धिदात्री का प्रिय भोग,आराधना मंत्र व कन्या पूजन विधि।मां सिद्धिदात्री का स्वरूप-मां सिद्धिदात्री महालक्ष्मी कमल पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजाएं है। मां के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में गदा है और ये नीचे वाले हाथ में चक्र धारण करती हैं। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ में मां शंख धारण करती हैं तो नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित है।मां सिद्धिदात्री आराधना मंत्र-या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।मां सिद्धिदात्री व कन्या पूजन विधि--प्रात: स्नानादि करने के पश्चात सर्वप्रथम कलश पूजन करें व उसमें स्थापित सभी देवी-देवताओं का ध्यान करें।-इसके बाद मां सिद्धिदात्री के आराधना मंत्र का जाप करते हुए मां सिद्धिदात्री का पूजन करें।-मां को फल-फूल व मिष्ठान अर्पित करें।-इस दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन करते समय हलवा-चना का भोग लगाना चाहिए और प्रसाद स्वरुप कन्याओं को भी खिलाना चाहिए।-कन्या पूजन के लिए सर्वप्रथम आमंत्रित की गई कन्याओं और बटुक भैरव (लड़का) के पैर धोएं और उन्हें आसन पर बिठाएं।-इसके बाद सभी कन्याओं का तिलक करें।-अब बनाए गए भोजन में से थोड़ा सा भोजन भगवान को अर्पित करें और कन्याओं के लिए भोजन परोसें।-भोजन करने लेने के पश्चात कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लें।-इसके बाद फल, भेंट व दक्षिणा देकर कन्याओं को विदा करें।
- दशहरा को बहुत शुभ और सर्वसिद्ध मुहूर्त माना जाता है. इस दिन को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग परंपराएं हैं. जैसे- महाराष्ट्र में दशहरा के दिन सोना या चांदी की पत्ती खरीदी जाती है ताकि पूरे साल संपन्नता बनी रही. वहीं इस दिन को यात्रा के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है क्योंकि इस दिन मां दुर्गा धरती से वापस अपने लोक में प्रस्थान करती हैं. ज्योतिष और तंत्र-मंत्र के लिहाज से भी दशहरा को उपाय और टोटके करने के लिए उत्तम दिन माना गया है. इस दिन किए गए उपाय और टोटकों का कई गुना ज्यादा फल मिलता है.दशहरे पर जरूर करें यह कामयदि आप भी पूरे साल संपन्नता और सुख से जीवन बिताना चाहते हैं तो 15 अक्टूबर 2021 को दशहरे के दिन कुछ काम जरूर कर लें.- दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन करें. ऐसा करना बहुत शुभ होता है. नीलकंठ देखने से पूरे साल जिंदगी खुशहाल रहती है.- दशहरे के दिन शमी के पेड़ की पूजा करें. इससे घर में बरकत बनी रहेगी. वहीं शमी का पेड़ लगाने के लिए दशहरे के दिन को सबसे ज्यादा शुभ माना गया है क्योंकि इसी दिन कुबेर ने राजा रघु को सोने की मुद्राएं देने के लिए शमी के पेड़ के पत्तों को सोने का बना दिया था. इसीलिए दशहरे के दिन सोने की पत्ती खरीदी जाती है.- दशहरे के दिन थोड़ी दूरी की ही सही लेकिन यात्रा जरूर करें. इससे पूरे साल यात्रा करने में बाधा नहीं आती है.- दशहरे के दिन नए रुमाल से मां दुर्गा के चरण पोंछें और उसे तिजोरी या पैसे रखने की जगह पर रख दें. पूरे साल मां के आशीर्वाद से घर में संपन्नता रहेगी. याद रखें कि कपड़ा या रुमाल लाल रंग का ही हो.-
- दशहरा हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है क्योंकि ये लंका नरेश रावण पर भगवान राम की जीत का प्रतीक है. आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा मनाया जाता है. दशहरे के दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुर महिषासुर ने देवताओं के बीच आतंक पैदा किया था, इसलिए उन्होंने भगवान महादेव की मदद मांगी, जिन्होंने तब माता पार्वती को प्रबुद्ध किया और उनके पास असुर को समाप्त करने की शक्ति थी. ये नवरात्रि के आखिरी दिन था, माता दुर्गा (Durga Mata) ने महिषासुर का वध किया और देवताओं को उसके प्रकोप से बचाया. वहीं ये दिन रावण पर भगवान राम की जीत का प्रतीक भी है, जैसा कि पवित्र पुस्तक रामायण (Ramayan) में भी लिखा है कि प्रभु श्रीराम के हाथों रावण का वध होने के बाद से ही दशहरे को मनाने की परंपरा शुरू हुई थी.कब है दशहरा?इस साल दशहरा 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा. इस बार नवरात्रि 7 अक्टूबर को शुरू हुए थे. इस बार दो तिथियां एक साथ पड़ी थीं जिस वजह से नवरात्रि आठ दिन के ही हैं. इस हिसाब से 14 अक्टूबर को महानवमी है और इसके अगले दिन यानी 15 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा. खास बात ये है कि इस बार दशहरा के दिन 3 शुभ योग बन रहे हैं. शुभ मुहूर्त में पूजा करने से लोगों को लाभ मिलेगा.दशहरा 2021: तिथि और शुभ मुहूर्तदिनांक: 15 अक्टूबर, शुक्रवारविजय मुहूर्त – दोपहर 02:02 से दोपहर 02:48 तकअपर्णा पूजा का समय – दोपहर 01:16 बजे से दोपहर 03:34 बजे तकदशमी तिथि प्रारंभ – 14 अक्टूबर 2021 को शाम 06:52 बजेदशमी तिथि समाप्त – 15 अक्टूबर 2021 को शाम 06:02श्रवण नक्षत्र प्रारंभ – 14 अक्टूबर 2021 को सुबह 09:36 बजेश्रवण नक्षत्र समाप्त – 15 अक्टूबर 2021 को सुबह 09:16 बजेदशहरे पर बन रहे हैं 3 शुभ योगदशहरा के दिन इस बार 3 शुभ योग बन रहे हैं. पहला योग रवि योग है जो कि 14 अक्टूबर को शाम 9 बजकर 34 मिनट पर शुरू होगा और 16 अक्टूबर की सुबह 9 बजकर 31 मिनट तक रहेगा. वहीं दूसरा योग सर्वार्थ सिद्ध योग है जो 15 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 2 मिनट से शुरू होकर 9 बजकर 15 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा तीसरा योग कुमार योग है जो कि सुबह सूर्योदय से शुरू होकर 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगा. माना जा रहा है कि इस तीनों शुभ योगों के एक साथ बनने से दशहरा पर पूजन काफी शुभ रहेगा.दशहरे पर कैसे करें पूजनदशहरे के दिन (Dussehra) चौकी पर लाल रंग के कपड़े को बिछाकर उस पर भगवान श्रीराम और मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद हल्दी से चावल पीले करने के बाद स्वास्तिक के रूप में गणेश जी को स्थापित करें साथ ही नवग्रहों की स्थापना करें और अपने ईष्ट की आराधना करें. अपने ईष्टों को स्थान दें और लाल फूलों से पूजा करें, गुड़ के बने पकवानों से भोग लगाएं. इसके बाद अपनी इच्छा अनुसार दान-दक्षिणा दें और गरीबों को भोजन कराएं. धर्म ध्वजा के रूप में विजय पताका अपने पूजा स्थान पर लगाएं. दशहरे का त्योहार हमें प्रेरणा देता है कि हमें अनीति के खिलाफ लड़ना चाहिए.