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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 444
जिज्ञासा ::: भगवान् की सबसे बड़ी कृपा कौन सी है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: देखिये कृपा तीन प्रकार की होती है। एक सामान्य कृपा, एक विशेष कृपा, एक अद्भुत कृपा। तो सामान्य कृपा तो सब पर है - 'अग जग सब जग मम उपजाए'। 'सब पर मोरि बराबर दाया'। सब पर बराबर कृपा है भगवान् की।
भगवान् के महोदर में हम लोग पैण्डिंग में पड़े थे। हमको बाहर निकाला, हमारे लिये संसार बनाया और हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का हिसाब रखा। उस हिसाब से हमको शरीर दिया और हमारे साथ बैठ गये सदा के लिये। अन्दर।
एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा।कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-11)तीन बात, एक तो सर्वव्यापक हो गये;
तत्सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशत्।(तैत्तिरीयोपनिषद)
दूसरे सबके हृदय में बैठ गये। उसके वर्तमान कर्म को नोट करते हैं। पूर्वजन्म के कर्मों का फल देते हैं। ये सब विशेष कृपा। हम कोई मेहनताना देते हैं? देखो बड़े बड़े करोड़पतियों के यहाँ मुनीम होते हैं तनख्वाह लेते हैं तब हिसाब किताब रखते हैं। और भगवान् बिना हमारे कहे सब करते हैं। ये देखिये आप लोग जो यहाँ बैठे हैं मनगढ़ में, ये हँसी मजाक नहीं है। ये हजारों जन्म आपने बड़ी साधनायें की हैं उसका फल भगवान् ने दिया है। नहीं, कोई ऐरे गैरे नत्थू खैरे के चक्कर में पड़ जाते और वो कह देता कि माला का जप कर लो, सुन्दरकाण्ड का पाठ कर लो, चारों धाम की मार्चिंग कर लो और गोलोक पहुँच जाओगे। और तुम लोग बेवकूफ बनकर वैसे करते रहते। और क्या करते? कोई व्यक्ति अपने आप तो ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकता। दूसरे से ही तो ज्ञान लेगा। आज आप लोग कहाँ पहुँच गये हैं? अगर आप बस में बैठे हों, ट्रेन में बैठे हों, और हवाई जहाज में बैठे हों और आपके बगल वाला 'राधे' कह दे, अंगड़ाई लेकर के ही सही। तो आप चौंक जायेंगे न। अहा! ये बड़ा अच्छा आदमी है, 'राधे' बोला। हमारे मिलने के पहले 'राधा' नाम कुछ है भी, कहीं पता है उसका, कुछ जानते ही नहीं थे। अब 'राधे' नाम में इतना प्यार करा दिया मैंने कि बगल वाले के बोलने पर ही ये बुद्धि हो गई बड़ा अच्छा आदमी है। भले ही वो डाकू हो।
तो ये बड़ी भगवत्कृपा है।
जन्मान्तर सहस्रेषु तपोध्यान समाधिभिः।नराणां क्षीण पापानां कृष्णे भक्ति प्रजायते।।
तमाम जन्मों की साधना से ये फल भगवान् ने दिया। हमको क्या पता था कि हम पूर्वजन्म में क्या थे, कहाँ थे? ये सब विशेष कृपा है। फिर अन्दर बैठे हिसाब कर रहे हैं फल दे रहे हैं। फिर सन्त से मिला दें अगर तो 'बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं सन्ता'।
अपनी बुद्धि से हम सन्त का पता नहीं लगा सकते। क्यों? अपनी बुद्धि से तो हम रोज बाहरी त्याग देखकर धोखा खाते। हम जहाँ देखते कि ये बाहर से त्यागी है, पेड़ के नीचे रहता है फलाहार करता है, पत्ता खाता है, खाली पानी पीकर रहता है। इतना बड़ा महात्मा है ल। हम ऐसे लोगों के चक्कर में पड़े रहते। क्या ऐसे लोग महात्मा होते हैं? अगर होते हैं तो जंगल में जितने जानवर हैं, ये सब महापुरुष हैं। उनके न तो घर है, न खाने का ठिकाना है, न तो पानी का ठिकाना है, कहाँ पानी मिलेगा उनको। सोचो, वो लोग कैसे जीवित हैं? उनके भी बच्चे पैदा हो रहे हैं। कौन सा डॉक्टर वहाँ जाता है। सब काम हो रहा है उनका।
तो मानव देह मिला ये भी भगवत्कृपा। ये केवल ऐसा नहीं है कि हमारे पूर्वजन्म के फल से मिल गया। अरे कर्म तो जड़ होता है। पुण्य-पाप, ये कर्म है न। ये तो जड़ है। हमने पूर्वजन्म में जो कुछ किया वो तो जड़ पदार्थ हैं। हमने एक करोड़ दान किया। तो क्या वो दान आकर बोलेगा अगले जन्म में? ये तो भगवान् फल देंगे तभी तो हमको फल मिलेगा उसका। तो ये मानव देह दिया ये भी भगवत्कृपा।
कबहुँक करि करुणा नर देही।देत ईश बिनु हेतु सनेही।।
तो मानव देह भी भगवत्कृपा, सन्त से मिलना भी भगवत्कृपा, भारत में जन्म होना भी भगवत्कृपा - 'धन्यास्तु ये भारतभूमि भागे'। जहाँ मरने पर भी 'राम नाम सत्य' बोला जाता है। हाँ, ये तमाम कृपायें हैं - सामान्य कृपा, विशेष कृपा। और सबसे विशेष कृपा क्या है?
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।(गीता 9-29)
देखिये एक श्लोक में भगवान् ने दोनों कृपायें बता दीं । सामान्य कृपा क्या?
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।(गीता 9-29)
अर्जुन! मैं समदर्शी हूँ, न मेरा कोई दुश्मन न मेरा कोई दोस्त। मैं तो जज की हैसियत से कर्म का फल दे देता हूँ।
पुण्येन पुण्यं लोकं नयति पापेन पापमुभाभ्यामेव मनुष्यलोकम्।।(प्रश्नोपनिषद 3-7)
ये मैं बिना पैसे के सेवा करता हूँ अपने बच्चों की। लेकिन संसारी कानून में भी सब्सेक्शन होता है , ऐसे वहाँ भी होता है। लेकिन अगर कोई कम्पलीट सरेन्डर करता है; न पुण्य करता है, न पाप करता है, मेरे शरणागत हो जाता है भक्ति के द्वारा तो फिर मैं विशेष कृपायें करता हूँ। वो बहुत सारी हैं। उसी में अद्भुत कृपायें भी हैं - नम्बर एक, अद्भुत कृपा। हम लोग साधना करके क्या कर सकते हैं। सोचो। मायिक मन से हम साधना करेंगे। तो मायिक मन की साधना मायिक होगी। जैसे हम भगवान् का ध्यान करेंगे। भगवान् को तो देखा नहीं और नहीं देखा है ये बड़ा अच्छा है। अगर देख लें तो नास्तिक हो जायें। क्यों? इसलिये कि हमारी आँख प्राकृत है। वो प्राकृत भगवान् को देख पायेगी। जहाँ जायेगी ये प्राकृत अनुभव करेगी। और भगवान् का शरीर दिव्य है। वो तो देखेगी नहीं। और अगर कोई सन्त कह देगा कि ये भगवान् हैं और हम देख रहे हैं कि ये भगवान् वगवान् क्या हैं? हम तो अपने बेटे को, बाप को, बीबी को देख कर जितना सुख पाते हैं उतना भी नहीं पा रहे हैं इनको देखकर। ये काहे के भगवान् हैं? भगवान् तो अनन्तकोटि कन्दर्प लावण्य युक्त होते हैं। अब हमको जब तक कोई समझावे न कि देखो जी तुम्हारी आँख प्राकृत है इसलिये तुम सब जगह प्राकृत देखोगे । दिव्य को भी प्राकृत। भगवान् के शरीर में ऐसा वैचित्र्य है कि जो जैसी भावना वाला है वैसे ही दिखाई पड़ेगा। जब तक दिव्य दृष्टि न मिले, इन्द्रियाँ दिव्य न हों, मन दिव्य न हो, तब तक दिव्य भगवान् का दर्शन, मनन, चिन्तन हो ही नहीं सकता। लेकिन भगवान् कृपा करके उस मायिक ध्यान को भी दिव्य मान लेते हैं और फल दे देते हैं। स्वरूप शक्ति से दिव्य बना देते हैं और फल दे देते हैं। उसी आधार पर अनन्त जीवों ने भगवत्प्राप्ति की अपनी कमाई से तो अन्त: करण शुद्धि कर लेंगे बस। शुद्धि कर लिया, दिव्य नहीं कर सकते। कूड़ा कचरा साफ कर दिया लेकिन दिव्य नहीं बना सकते हम अपनी साधना से। दिव्य तो वो भगवान् ही गुरु के द्वारा स्वरूप शक्ति देकर बनवाते हैं। ये अद्भुत कृपा।
तो उसके द्वारा फिर भगवान् और अद्भुत कृपायें करते हैं - नम्बर एक, अनन्त जन्मों के अनन्त पाप माफ कर देते हैं। देखो हमारी दुनियाबी गवर्नमेन्ट में किसी जज के आगे कोई मुलजिम कहे कि हुजूर बस एक बार माफ कर दीजिये हमारे मर्डर के अपराध को, दोबारा मैं कभी नहीं करूँगा। अगर दफा तीन सौ तेईस वाला अपराध भी करूँ तो फाँसी दे दना। जज कहेगा ठीक है लेकिन ये अपराध का दण्ड तो भोगना पड़ेगा। हम इसीलिये तो दण्ड देते हैं कि ये अपराध दूसरा आदमी न करे। तो जो किया है उसका फल तो भोगना पड़ेगा। अरे यहाँ तक नाटक होता है हमारी दुनियाबी गवर्नमेन्ट में कि फाँसी प्लस 22 साल की सजा प्लस इतना जुर्माना। वो कहता है जब फाँसी ही की सजा लिख दिया तो ये सब क्या लिख रहे हो। अरे वो कायदा है लिखने का। उसमें ये भी लिख देंगे कि पहले कौन सजा दी जाय। ये संसार में नाटक होता है इस तरह का। तो भगवान् के यहाँ सब माफ। शरणागत हुआ;
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।(गीता 18-66)
अर्जुन! छुट्टी। वो फाइल जला दी गई। सब खतम। उसमें तीन गुण हैं, तीन कर्म हैं, तीन शरीर हैं, पंचक्लेश हैं, पंचकोश हैं। जितनी गड़बड़ियाँ हैं सब जीरो बटे सौ। उनकी जननी जो माँ है वो भी गई। और;
सदा पश्यन्ति सूरयः। तद्विष्णोः परमं पदम्।(सुबालोपनिषद 6-7)
ये सब गड़बड़ियाँ सदा को गईं और भगवान् का सारा सामान सदा को मिल गया। ये अन्तिम कृपा। ये कृपा का संक्षिप्त रहस्य है।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 3, प्रश्न संख्या - 2
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सूर्य देव को ज्योतिष शास्त्र में सभी राशियों का राजा माना गया है। कुंडली में सूर्य के प्रबल होने पर व्यक्ति को सभी तरह के सुखों का अनुभव होता है। ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह भी कहा जाता है। सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं और मेष सूर्य की उच्च राशि है जबकि तुला इनकी नीच राशि है। चंद्रमा, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र ग्रह हैं और शुक्र, शनि सूर्य के शत्रु ग्रह हैं। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बता रहें हैँ कि सूर्य देव की सबसे ज्यादा कृपा किस राशि पर रहती है और सूर्य पूजा के लाभ व सूर्य पूजा विधि-सिंह राशि पर रहती है सूर्य देव की कृपा :सिंह राशि के जातकों पर सूर्य देव की विशेष कृपा रहती है। सूर्य इस राशि के स्वामी ग्रह हैं, जिस वजह से सूर्य की इस राशि पर विशेष कृपा रहती है। लेकिन बाकी राशियों के जातक भी भगवान भास्कर की पूजा-उपासना कर उनकी कृपा का प्रसाद प्राप्त कर सकते हैं।सूर्य की पूजा करने की विधि:रविवार के दिन स्नानादि के बाद सबसे पहले भगवान सूर्य को तांबे के लोटे में रोली और अक्षत डालकर ‘ॐ घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का जप करते हुए अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद लाल रंग के आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान सूर्य के इसी मंत्र का कम से कम एक माला जाप भी कर सकते हैं। सूर्य देव को जलार्पण करने के दौरान मंत्र- ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आ सुव।।--अर्थात ये विश्वानि देव (सूर्य देव) आप हमारे सभी दुर्गणों व दुखों को दूर कीजिए। जो हमारे लिए कल्याणकारी हो वह प्रदान कीजिए।} का मनन कर सकते हैं। ध्यान रहे कि प्रात: स्नान के बाद बिना कुछ खाए-पिए ही सूर्य को जल दिया जाता है। सूर्य को जल देने से सूर्योदय से एक घंटे बाद तक का समय ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है।सूर्य पूजा के लाभ-ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, जातक की कुंडली में सूर्य प्रबल होने पर मान-सम्मान, नेतृत्व क्षमता में वृद्धि और सरकारी नौकरी के अवसर प्राप्त होते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्यदेव की आराधना का अक्षय फल मिलता है। सच्चे मन से की गई साधना से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि एवं अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। सूर्यदेव की कृपा होने पर कुंडली में नकारात्मक प्रभाव देने वाले ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है।कुछ लोगों का मानना है कि नियमित रूप से रविवार को सूर्य उपासना करने से कुष्ट रोग जैसी असाध्य बीमारी का असर भी कम किया जा सकता है।सिंह राशि वालों के गुण :सिंह राशि के जातक आत्मविश्वास से भरे रहते हैं।ये लोग मेहनती स्वभाव के होते हैं।ये लोग किसी भी काम को करने से डरते नहीं है।ये लोग हर किसी को खुश रखते हैं।सिंह राशि वाले दयालु स्वभाव के होते हैं।ये लोग जीवन में कुछ न कुछ नया करते हैं।ये लोग दिल के साफ होते हैं।सिंह राशि वाले ईमानदार और भरोसेमंद होते हैं।इन लोगों पर आंख बंद कर भरोसा किया जा सकता है।सिंह राशिवाले लोग हर कार्य में माहिर होते हैं।सूर्य देव की कृपा से ये लोग जीवन में खूब मान- सम्मान प्राप्त करते हैं।सिंह राशि के लोगों को जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है।सिंह राशि के लोगों का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है।इन लोगों की नेतृत्व क्षमता काफी अच्छी होती है।ये लोग उच्च पदों पर आसीन होते हैं।सिंह राशि वाले नौकरी और व्यापार में खूब तरक्की करते हैं।
- उन्नति के लिए जरूरी है कि घर-परिवार के सदस्यों के बीच हमेशा प्रेमभाव बना रहे। जहां कलह का वातावरण रहता है माना जाता है कि वहां नकारात्मक शक्तियां निवास करने लगती हैं और वहां रहने वालों की हर प्रकार की उन्नति के मार्ग थम जाते हैं। वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं जो परिवार में प्रेम तो बढ़ाएंगे ही साथ ही नकारात्मक शक्तियों और नकारात्मक विचारों को जीवन से दूर करने में सहायक होंगे। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में।अगर हाथ में धन नहीं ठहरता है या फिजूल खर्च अधिक होता है तो शनिवार के दिन घर के पास किसी मंदिर में हलवे और खिचड़ी का दान करें। अगर परिवार के सभी सदस्य जमीन पर बैठकर एक साथ भोजन करें तो कारोबार या कार्यक्षेत्र में बरकत होने लगती है।आर्थिक संकटों से मुक्ति के लिए शनिवार के दिन बहते पानी में अखरोट या नारियल को प्रवाहित कर दें।शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सामने सोने के आभूषण रखें और इन पर केसर का तिलक लगाएं।कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। हर जरूरतमंद की सहायता करने का प्रयास करें।परिवार में पति के भोजन कर लेने के बाद पत्नी को भोजन करना चाहिए।पति हमेशा अपनी पत्नी का सम्मान करें। सुखी दांपत्य जीवन के लिए पीपल और केले के पेड़ की पूजा करें।अपने वेतन को प्रतिमाह अपनी पत्नी को दें। पत्नी द्वारा ही उस वेतन को तिजोरी में रखा जाए। कभी भी अपने साथी को कम वेतन के लिए उलाहना नहीं देना चाहिए।घर में चींटी, पक्षी, गाय, कुत्ता, कौवा के लिए अन्न-जल की व्यवस्था करें।बुधवार के दिन कन्याओं को हरे वस्त्र या हरी चूड़ियों का दान करें।शिक्षक या मंदिर के पुजारी को पीला वस्त्र, धार्मिक पुस्तक, पीले खाद्य पदार्थ दान करें।घर में सुख शांति के लिए सुबह-शाम कर्पूर जलाएं। घर में सदैव सुगंधित वातावरण रखें।-
- ज्योतिष में बुध और सूर्य की युति को शुभ माना जाता है। इस समय बुध धनु राशि में विराजमान हैं। 16 दिसबंर को सूर्य भी धनु राशि में विराजमान हो जाएंगे। सूर्य और बुध के एक ही राशि यानी धनु राशि में रहने से बुधादित्य योग का निर्माण हो जाएगा। बुधादित्य योग कुछ राशियों के लिए बेहद फलदायी रहने वाला है। आइए जानते हैं सूर्य और बुध की युति से बनने वाला बुधादित्य योग किन राशियों के लिए शुभ रहने वाला है।मेष राशिकार्यों में सफलता मिलेगी।पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।धन- लाभ होगा।दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा।आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातकों को धन- लाभ हो सकता है।लेन- देन और निवेश से फायदा होगा।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करेंगे।नया वाहन या मकान ले सकते हैं।कार्यों में सफलता मिलने के योग भी बन रहे हैं।कर्क राशिआर्थिक पक्ष मजबूत होगा।आय के स्रोत में वृद्धि के योग बन रहे हैं।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे।शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं रहने वाला है।कार्यस्थल पर आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।व्यापार के लिए समय शुभ रहने वाला है।सिंह राशिसिंह राशि के जातकों को शुभ फल की प्राप्ति होगी।धन- लाभ होगा।दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।कार्यों में सफलता के योग भी बन रहे हैं।आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।
- जब-जब शनिदेव एक राशि छोड़कर किसी दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तब-तब कई लोगों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। शनि के राशि परिवर्तन का ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्व होता है। शनि का राशि परिवर्तन सभी राशियों के जातकों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शनि प्रत्येक ढाई वर्षों के बाद अपनी राशि बदलते हैं। अब नया साल जल्द ही शुरु होने वाला है। ऐसे में साल 2022 में शनि अपनी राशि बदलने वाले हैं। शनिदेव 29 अप्रैल 2022 को मकर राशि को छोड़ते हुए कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शनि का कुंभ राशि में प्रवेश 30 वर्षों के बाद हो रहा है। क्योंकि शनि किसी एक राशि में ढाई वर्षों तक रहते है इस कारण से उन्हें सभी 12 राशियों में दोबारा से आने के लिए तीस वर्षों का समय लेते हैं। शनि के राशि परिवर्तन से कुछ राशि के जातकों को राहत मिलती है तो कुछ की परेशानियां बढ़ जाती हैं।आइए जानते हैं शनि के कुंभ राशि में गोचर करने पर किन-किन राशि वालों की मु्श्किलें बढ़ने वाली हैं।कर्क राशिसाल 2022 में शनि का राशि परिवर्तन कुंभ राशि में होने से कर्क राशि के जातकों पर इसका प्रभाव शुभ नहीं होगा। आर्थिक परेशानियां बढ़ने के संकेत हैं। नौकरी और बिजनेस में छोटी-मोटी कठिनाइयों का सामना करने को मिल सकता है। निवेश संबंधी बातों का विशेष ध्यान रखने की जरूर है। बिना सोचे-समझें कहीं भी निवेश करना आपके लिए अच्छा नहीं रहने वाला है। कोई नया कार्य जल्दी में शुरू न करें हानि उठानी पड़ सकती है।कुंभ राशिकोई बड़ा फैसला आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। बीमारियां आपको ज्यादा सताएंगी। जिसका आपको ख्याल रखना होगा। पैसों की परेशानियां बढ़ सकती है इसलिए खर्चों पर लगाम लगाने की जरूर होगी। परिवार में विवाद बढ़ सकता है। नौकरीपेशा जातकों के लिए कार्यक्षेत्र में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।वृश्चिक राशिसाल 2022 में शनि आपको कष्ट देंगे। किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए आपको काफी समय लगेगा। कठिन परिश्रम करने के बावजूद आपको उसका उतना फल प्राप्त नहीं होगा जितना होना चाहिए। नौकरी में मन नहीं लगेगा जिसकी वजह से आपको मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। खर्चो में बेहताशा वृद्धि होगी। जीवनसाथी से मनमुटाव बढ़ सकता है।तुला राशिशनि का राशि परिवर्तन तुला राशि के जातकों के लिए अच्छा नहीं रहने वाला है। धन हानि की संभावना ज्यादा है और पैतृक संपत्ति को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव हो सकता है। व्यापार और नौकरी करने वाले जातको के लिए साल के शुरुआती कुछ महीने बहुत ही परेशानियों से बीतेगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 443
जिज्ञासा ::: ब्रह्म को निःशक्तिक् ब्रह्म या अल्पशक्तिक् ब्रह्म कहा गया है। उसके पास 'कर्तुम् अकर्तुम् अन्यथाकर्तुंसमर्थः' योगमाया की शक्ति होते हुए भी, क्या वह कृपा नहीं कर सकता? क्या निराकार ब्रह्म कृपा नहीं कर सकता?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: नि:शक्तिक् नहीं होता कोई ब्रह्म वेद में। ये तो शंकराचार्य के सिद्धान्त में निःशक्तिक् ब्रह्म है, जिसकी हम लोग बुराई करते हैं। ब्रह्म में सब शक्तियाँ हैं, उसी शक्ति के बल पर वो निराकार भी रहता है, साकार भी हो जाता है और 'कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ' भी रहता है। लेकिन जब वह निराकार रूप में रहता है, तब शक्तियाँ प्रकट नहीं करता है। इसलिए कृपा भी नहीं करता है, उस रूप में। जैसे जज है, वह कोर्ट में जब बैठता है, तभी जजमेन्ट दे सकता है, फैसला कर सकता है। घर पर कोई उसका बयान लेने आवे या कोई कुछ कहे, तो उस पर एक्शन नहीं ले सकता है, वो लीगल नहीं है।
तो भगवान् की सब शक्तियाँ हैं। लेकिन जैसे गेहूँ का बीज है, वो बोरे में बन्द है, उसमें सब शक्तियाँ हैं, लेकिन प्रकट तब होंगी जब वो खेत में डाला जायेगा। तब उससे पेड़ पैदा होगा और फल लगेंगे। तो भगवान् का जो स्वरूप, शक्ति नहीं प्रकट करने का है, वो कृपा भी नहीं करता, वो कोई कार्य नहीं करता। दो तीन कार्य करता है, बस। एक तो अपनी सत्ता की रक्षा, एक आनन्द स्वरूप का रखना (सच्चिदानंद का) और कुछ काम नहीं करता। तो शक्तियाँ सब हैं, एक भी शक्ति कम नहीं है। श्रीकृष्ण और ब्रह्म एक हैं। वही तो ब्रह्म है, शक्तियाँ कहाँ जायेंगी। शक्तियाँ सब हैं, लेकिन प्रकट नहीं होती, इसलिए कृपा नहीं करता। वो कृपा करने के लिए उन्होंने अपना भगवान् का स्वरूप बना रखा है। जो अल्पज्ञ हैं, वो समझते हैं, ब्रह्म अलग है, श्रीकृष्ण अलग हैं। वो श्रीकृष्ण की शरणागति में फेथ करते हैं या नहीं करते, लेकिन जो तत्वज्ञ हैं वो जानते हैं श्रीकृष्ण ही ब्रह्म हैं, उन्हीं का वो रूप है। तो हम जब ब्रह्म के उपासक हैं, तो श्रीकृष्ण के भी उपासक हैं तो हम कृपा के लिए श्रीकृष्ण की शरणागति क्यों न करें? सब करते हैं, शंकराचार्य ने भी आखिर में किया ही। किताब में कुछ भी लिखा, लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में तो श्रीकृष्ण भक्ति किया ही। रोये श्रीकृष्ण के आगे, हमारे ऊपर कृपा करो, हमारा उद्धार करो। निःशक्तिक् कोई नहीं होता। ये जीव नहीं होता तो ब्रह्म क्या होगा। अरे! हम लोगों के पास भी शक्तियाँ हैं, छोटी छोटी हैं। ज्ञान शक्ति भी है, क्रिया शक्ति भी है, सब कुछ है, अणुचित् और वो विभुचित् है।
जैसे प्रत्येक देहधारी में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, सब दोष हैं। लेकिन जैसे काम है, तो एक उमर में प्रकट होता है, वो पाँच साल के बच्चे में प्रकट नहीं होता, है तो लेकिन प्रकट नहीं होता। क्रोध प्रकट हो रहा है, छोटे से बच्चे से कोई चीज़ छीन लो ऐं ! ऐं ! करके लड़ जाय, ऐसे ही जिस स्वरूप में शक्तियों को प्रकट नहीं करते भगवान्, उसमें शक्तियाँ तो हैं, एक भी शक्ति कम नहीं है, लेकिन समय पर प्रकट होता है, तब उसका नाम भगवान् हो जाता है।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 3, प्रश्न संख्या - 4
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - धर्म-पुराणों में अच्छे-बुरे कर्मों के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही कर्मों के आधार पर मिलने वाले स्वर्ग-नर्क के बारे में भी बताया गया है. जो लोग बुरे कर्म करते हैं उन्हें नर्क मिलता है और अपने कर्मों के मुताबिक यातनाएं भुगतनी पड़ती हैं। इसी तरह अच्छे कर्म करने वाले लोगों को स्वर्ग मिलता है। वहीं ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहने वाले लोग बैकुंठ (मोक्ष) में स्थान पाते हैं। गरूड़ पुराण में इन तीनों ही जगहों के बारे में बताया है और उनके लिए कर्मों की व्याख्या भी की गई है। आइए जानते हैं कि गरूड़ पुराण के मुताबिक वो कौन-से कर्म हैं जो व्यक्ति को स्वर्ग दिलाते हैं।ये कर्म दिलाते हैं स्वर्गभगवान विष्णु और पक्षीराज गरुड़ के बीच हुई चर्चा को गरूड़ पुराण में समाहित किया गया है। इसमें भगवान विष्णु बताते हैं कि जिन आत्माओं को स्वर्ग में स्थान मिलता है उन्हें यमराज स्वयं अपने भवन से स्वर्ग के द्वार तक छोडऩे के लिए आते हैं। वहां द्वार पर अप्सराएं उनका स्वागत करती हैं। मरने के बाद ऐसे सुख उन्हीं लोगों को मिलते हैं जो अपने जीवनकाल में बहुत अच्छे कर्म करते हैं।- ऐसे लोग जो दूसरों के पानी पीने के लिए इंतजाम कराते हैं, उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है। जैसे कुएं, तालाब और प्याऊ बनवाना। जानवरों के लिए भी पीने के पानी की व्यवस्था करने वाले लोग स्वर्ग में जाते हैं।- ऐसे लोग जो हमेशा महिलाओं का सम्मान करते हैं और उनके उद्धार के लिए काम करते हैं, उन्हें भी स्वर्ग में स्थान मिलता है।- जो लोग अपनी मेहनत और ईमानदारी से पैसा कमाते हैं और उसका एक हिस्सा गरीबों की मदद में उपयोग करते हैं, वे भी बहुत पुण्यशाली होते हैं। उन्हें भी स्वर्ग में जगह मिलती है।- ऐसे लोग जो ऋषि-मुनियों का आदर करते हैं। उनके लिए भोजन और अन्य सुविधाओं का इंतजाम करते हैं, उनकी सेवा करते हैं। मंदिर का निर्माण कराते हैं, वेद-पुराणों का अध्ययन करते हैं। वे मरने के बाद स्वर्ग में खूब आनंद पाते हैं।- जो लोग पूरी जिंदगी अच्छे कर्म करते हैं और स्वभाविक मृत्यु प्राप्त करते हैं, वे भी स्वर्ग पाने योग्य होते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 442
जिज्ञासा ::: अगर भगवान् अकारण करुण हैं तो फिर हम सब जीवों पर कृपा क्यों नहीं कर देते?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: कुछ लोगों का प्रश्न है कि शास्त्रों वेदों में भगवान् को अकारण करुण कहा गया। अकारण करुण अर्थात् बिना कारण के कृपा करने वाले, दया करने वाले। लेकिन ये बात लॉजिक से तर्क से जँचती नहीं। क्यों? अगर भगवान् अकारण करुण हैं तो फिर हम सब जीवों पर कृपा क्यों नहीं कर देते। सब जीव आनन्दमय हो जायें, मायातीत हो जायें। ये वेदों से लेकर रामायण तक सभी ग्रन्थों में साधना बताई जाती है। जीवों के लिये उपदेश दिये जाते हैं ऐसा करो, ऐसा करो, तो भगवान् करुणा करेंगे, कृपा करेंगे। फिर अकारण करुण कहाँ रहे फिर तो बिजनिस मैन हो गये भगवान् भी। हमने कुछ किया तो भगवान् ने कृपा किया। ये तो ऐसी बात हो गई जैसे कोई दुकानदार अपना दुकान कपड़े की खोले है हमने रुपया दिया उसने कपड़ा दिया। ये तो लेन देन है।अकारण कृपा तो उसे कहते हैं हम कुछ न करें और वो कपड़ा दे दे, कृपा कर दे। ऐसी कृपा तो भगवान् ने कभी की नहीं। अन्यथा भगवान् में एक गुण है वेद कहता है-
अपहतपाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोकोऽविजिघत्सोऽपिपासः सत्यकामः सत्यसंकल्पः।(छान्दोग्योपनिषद)
ये दो बार आया है मंत्र। इसका अर्थ है कि भगवान् में आठ गुण हैं अलौकिक उसमें एक गुण का नाम है सत्यसंकल्प। यानी जो सोचा हो गया। करना वरना नहीं है। बस सोचा संसार बन जाओ, बन गया। संसार का प्रलय हो जा। सोचा और हो गया। जैसे हम लोग सोचते हैं फिर प्रैक्टिकल वर्क करते हैं फिर भी सफलता मिले न मिले, डाउट। और भगवान् ! ये सब कुछ नहीं है, बस सोचा और हो गया। और कोई चीज़ भगवान् के लिये असम्भव भी नहीं। हाँ-
अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स श्रृणोत्यकर्णः।स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्रयं पुरुषं महान्तम्॥(श्वेताश्वतरोपनिषद 3-19)
ये वेद मंत्र कहता है भगवान् बिना हाथ के पकड़ लेते हैं, बिना पैर के दौड़ लेते हैं, बिना आँख के सब कुछ देखते हैं, बिना कान के सुन लेते हैं और कान से देख लेते हैं, सूंघ लेते हैं, सोच लेते हैं, जान लेते हैं। यानी एक इन्द्रिय से सब इन्द्रियों का काम भी कर लेते हैं। यानी इम्पॉसीबिल को पॉसीबिल करते हैं। सर्वसमर्थ भगवान्। तो फिर क्या बात है। एक संकल्प कर लो अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड के समस्त जीव माया से उत्तीर्ण होकर आनन्दमय हो जायें। बस हम लोगों का काम बन जाय। चौरासी लाख की चक्की पीस रहे हैं हम लोग छुट्टी मिले पर ऐसा आज तक हुआ नहीं। और कुछ जीव आनन्दमय हो गये। ये भी इतिहास कहता है। ये ब्रह्मा हैं, शंकर हैं, विष्णु हैं, नारद हैं, सनकादिक, जनकादिक, शुकादिक, व्यासादिक, शंकराचार्यादिक, तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, नानक, तुकाराम, तमाम सन्त आनन्दमय हो गये। क्यों हो गये? अगर अकारण कृपा करते तो उन पर किया तो हम पर भी करते। नहीं नहीं, उन लोगों ने साधना की तब कृपा किया। और हम लोगों ने साधना नहीं की, सरैण्डर नहीं किया, भक्ति नहीं किया।
तो ये सरेन्डर और भक्ति की शर्त जो लगा दिया तो ये अकारण कैसे हुआ? ये प्रश्न है। हाँ बात ठीक है लेकिन गलत है। क्या मतलब? मतलब ये कि भक्ति से कृपा नहीं होती। भक्ति से भगवान् मिलते हैं ये बोला जाता है। लेकिन ये फैक्ट नहीं है। क्यों? क्योंकि हम भक्ति किससे करेंगे? मन से, इन्द्रियों से। हाँ। तो इन्द्रियों की भक्ति तो भगवान् नोट ही नहीं करते। अर्जुन करोड़ों मर्डर करता है भगवान् नोट ही नहीं करते। क्यों? उसका मन भगवान् के पास है। तो मन का जो कर्म है वो भगवान् नोट करते हैं। ठीक है मन का कर्म नोट करते हैं। मन से भक्ति करे कोई तो भगवान् कृपा करते हैं। यही तो हुआ। नहीं नहीं। मन से भक्ति करने से क्या होता है ? ये समझिये।
मन से भक्ति करने से मन का मैल धुलता है। मन निर्मल होता है। निर्गुण होता है यानी शुद्ध होता है। जो संसार का अटैचमेन्ट है वो चला जाता है। बस। यानी मन का बर्तन खाली हो गया। उसमें कूड़ा कचरा जो था माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, धन, प्रतिष्ठा ये सब वासनायें, ये खतम हो गईं। वो बिल्कुल नॉर्मल हो गया मन। क्लीन कहते हैं उसको। बस, भक्ति ने इतना किया। अब इसके आगे भगवान् का दर्शन वगैरह ये नहीं कर सकती भक्ति। क्योंकि भक्ति जिससे करते हैं वो मन मायिक है। माया का बना हुआ है और भगवान् दिव्य हैं। तो मायिक मन से दिव्य भगवान् का ग्रहण नहीं हो सकता। मायिक आँख से दिव्य भगवान् को हम नहीं देख सकते। हमारे बगल में बैठे हों और हम देख रहे हैं। हाँ। ये तो हमारी तरह है। और वो भगवान् बैठे हैं।
जाकी रही भावना जैसी।प्रभु मूरति देखी तिन तैसी॥
दिव्य भगवान् को देखने के लिये दिव्य नेत्र चाहिये, दिव्य कान चाहिये, दिव्य नासिका चाहिये, दिव्य रसना चाहिये, दिव्य त्वचा चाहिये, दिव्य मन चाहिये, दिव्य बुद्धि चाहिये। वो हमारे पास नहीं है। भक्ति से भी नहीं आयेगी वो। शुद्ध हो गया मन, बस। इससे न भगवान् मिलेंगे न भगवान् की कोई दिव्य वस्तु मिलेगी। शुद्ध किए बैठे रहो। फिर क्या होगा इसके बाद? मन शुद्ध होने के बाद फिर भगवान् महापुरुष के द्वारा उसमें दिव्य शक्ति भर देते हैं ये कृपा। अब आई अकारण कृपा यानी अपनी शक्ति से भगवान् आँख में दिव्य आँख, कान में दिव्य कान अपनी पॉवर को भर देते हैं। यानी इन्द्रियों को, मन को, बुद्धि को दिव्य बना देते हैं। ये हमारी साधना का फल नहीं है। हमारी साधना से, भक्ति से तो खाली मन शुद्ध हुआ। अब उसको दिव्य बनाने के लिये भगवान् की अकारण कृपा चाहिये। अगर वो नहीं तो हम बैठे रहते हम भगवान् का दर्शन नहीं कर सकते। माया समाप्त नहीं होती। चौरासी लाख में घूमते रहते। और अनन्त जन्मों के जो हमारे पाप पुण्य हैं वो भी भस्म नहीं होते। तो अकारण कृपा से भगवान् हमारी इन्द्रिय, मन, बुद्धि को दिव्य बना देते हैं। तब हम भगवान् का दर्शन करते हैं। ये जो बड़े बड़े सन्त हुये उन्होंने तब देखा भगवान् को उनसे बात की, उनका स्पर्श किया, उनको अपना बेटा बनाया, बाप बनाया, सखा बनाया, उनको घोड़ा बनाया सखाओं ने। जैसे हम संसार वाले करते हैं आपस में। क्योंकि उनके पास दिव्य सामान हो गया। ये दिव्य सामान के लिये भगवान् की अकारण कृपा आवश्यक है। तो भगवान् अकारण करुण हैं लेकिन वो अकारण करुण का उनका फल अन्त:करण के शुद्ध होने पर मिलता है। तो जिसने अन्तःकरण शुद्ध कर लिया, भक्ति के द्वारा उस पर कृपा हो गई। वो हो गया सन्त। इसलिये दोनों आवश्यक हैं। जैसे एक सामान देखना है हमको। हमारे सामने क्या रखा है? कैसे देखेंगे? आँख से। अच्छा? बड़ी अच्छी आँख है तो भी देख लेंगे। हाँ हाँ। और अगर लाइट ऑफ कर दें तो? अंधेरे में। अब नहीं देख सकते। क्यों आँख तो है उसके, अटक कर गिर गया। अरे क्यों रे कैसे गिर गया, अन्धा है क्या? नहीं नहीं अन्धा नहीं हूँ जी, अभी नई आँख है। फिर? अरे अंधेरा था जी, वो सामान रखा था वहाँ। यानी उस सामान के ऊपर लाइट भी चाहिये और आँख भी सही चाहिये। नहीं सूरदास को २५ जून के दोपहर को भी नहीं दिखाई पड़ेगा। दोनों कम्पलसरी है। ऐसे ही साधना भी कम्पलसरी है, उससे अन्तःकरण शुद्ध करो फिर भगवत्कृपा भी कम्पल्सरी है, उससे वो दिव्य बने, तब भगवत्प्राप्ति हो, माया निवृत्ति हो, आनन्द प्राप्ति हो। ये समाधान है।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 3, प्रश्न संख्या - 5
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिषशास्त्र की तरह अंक ज्योतिष से भी जातक के भविष्य, स्वभाव और व्यक्तित्व का पता लगता है। जिस तरह हर नाम के अनुसार राशि होती है उसी तरह हर नंबर के अनुसार अंक ज्योतिष में नंबर होते हैं। अंकशास्त्र के अनुसार अपने नंबर निकालने के लिए आप अपनी जन्म तिथि, महीने और वर्ष को इकाई अंक तक जोड़ें और तब जो संख्या आएगी, वही आपका भाग्यांक होगा। उदाहरण के तौर पर महीने के 2, 11 और 20 तारीख को जन्मे लोगों का मूलांक 2 होगा।मूलांक 2-बौद्धिक कार्यों में सफलता दिलाएगा।निश्चित रूप से लेखन के क्षेत्र में कार्यरत लोगों को सफलता के नए पायदान पर ले जाएगी।प्यार से जुड़े मामलों में सफलता मिलेगी।कोई पुरस्कार या अवॉर्ड मिलने की संभावना बनेगी।जो छात्र क्रिएटिव क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं, उन्हें भी सफलता मिलेगी।मां के स्वास्थ्य में सुधार होगा।कला और बैंकिंग से जुड़े लोगों को विशेष लाभ होगा।ससुराल पक्ष से आर्थिक सहयोग प्राप्त होगा।पुत्री के स्वास्थ्य को लेकर चली आ रही चिंता समाप्त होगी।मूलांक 4-मान-सम्मान, धन और सुख-सुविधा में वृद्धि होगी।प्रेम संबंधों या वैवाहिक जीवन में चला आ रहा मतभेद समाप्त होगा।सरकार व राजनीति से जुड़े लोगों के लिए यह वर्ष शुभ है।कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है।समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा और लोग आपके फैसलों की प्रशंसा करेंगे।पुत्र के करियर में बेहतर परिवर्तन का समाचार प्राप्त होगा।परिवार में नए सदस्य का आगमन होगा।मूलांक 6-यह साल समृद्धि प्रदान करने वाला होगा।नए वाहन का योग बनेगा।सुख-सुविधा में वृद्धि होगी।कार्यस्थल पर स्थिति मजबूत होगी और प्रोन्नति का योग बनेगा।प्रेम संबंध में पूर्णत: सफल होंगे।वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।परिवार में नए सदस्य का आगमन होगा।घर में कोई शुभ आयोजन होगा।करियर में उत्कृष्ट सफलता प्राप्त होगी।संतान के विवाह से संबंधित प्रयास सफल होंगे।मूलांक 7-यह साल कई चौंकाने वाले परिणाम लाएगा, जिसमें अचानक मनचाहा स्थान परिवर्तन, प्रेम प्रसंग में सफलता, जमीन-जायदाद के मामले में सफलता आदि शामिल हैं।कोई मित्र या परिवार का सदस्य, जिससे संवाद रुक सा गया है, उससे अचानक संबंध बेहतर हो जाएगा।कार्यस्थल पर और निजी जीवन में थोड़ी भ्रम की स्थिति भी हो सकती है।नए रिश्ते की शुरुआत होगी।अध्यात्म में रुचि बढ़ेगी।वाहन खरीदेंगे।यह वर्ष एक नई दिशा और संभावना लाएगा।कई लाभ अचानक होंगे और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 441
• जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने 'भगवन्नाम' के महात्म्य के विषय में कुछ महत्वपूर्ण रहस्य हमारे समक्ष रखें हैं, आइये उन रहस्यों पर हम सभी विचार करें :::
(1) भगवान के नाम में पाप को समाप्त करने की इतनी बड़ी शक्ति है कि किसी पापी में इतनी शक्ति नहीं है कि वह पाप कर सके। वेदव्यास कहते हैं कि जो यह पापाग्नि हमारे अंदर है, उससे मत डरो। क्यों? क्योंकि भगवान का नाम इतना बड़ा मेघ है कि कितनी ही तेज अग्नि हो, उससे समाप्त हो जायेगी।
(2) देखिये नाम में क्या कमाल है? भगवान में यह शक्ति नहीं है कि किसी को नाम का विरही बना दें। दूसरे, नाम में नामी सदा ही व्याप्त है। संसार में नाम, नामी अलग-अलग रहते हैं लेकिन ईश्वर और ईश्वर का नाम एक है।
(3) जितने भी नाम भगवान के हैं, सब जीरो बटे सौ हैं, यदि उन नामों में आप नामी का विश्वास न करें। इस वाक्य को नोट कीजिये। जितने नाम भगवान के हैं वे सब बेकार हैं जब तक आप उस नाम में आप भगवान का निवास नहीं मानते।
(4) केवल नाम लेने से कल्याण हो जायेगा, यह धोखे की बात है। बिना नामी (भगवान) को नाम में समझे, अर्थात बिना विश्वास किये, काम नहीं बन सकता।
(5) यदि उस भगवन्नाम मेम इतना सुख माना होता, अगर आपने यह माना होता कि भगवन्नाम में भगवान बैठे हुये हैं, ऐसा मानकर भगवन्नाम लिया होता तो भगवत्प्राप्ति में एक क्षण भी आपको नहीं लगता। अगर भगवान के नाम को आप भगवान के बराबर भी मान लें तो फिर आपको क्या पाना बाकी रहे, फिर क्यों आप होश में रहें। क्यों नहीं माना? भगवान ने स्वयं वेद में लिखा है और संतों ने कहा है तो भी आपको विश्वास क्यों नहीं होता? विश्वास नहीं होता, यह कहने से काम नहीं चलेगा। विश्वास आपको करना पड़ेगा।
• सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2017 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - मौत के बाद सहनी पड़ती हैं यातनाएंअच्छी जिंदगी, आसान मौत और उसके बाद स्वर्ग पाने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिए. इसीलिए धर्म, ज्योतिष और खासतौर पर गरुड़ पुराण में कर्मों को लेकर बहुत विस्तार से बताया गया है कि किस तरह के कर्म व्यक्ति को नर्क में ले जाते हैं और कौन से कर्म उसे स्वर्ग दिलाते हैं. यही वजह है गरुड़ पुराण को महापुराण कहा गया है क्योंकि यह जिंदगी, मौत और मौत के बाद आत्मा के सफर के बारे में भी बताता है. आइए उन कर्मों के बारे में जानते हैं जिन्हें गरुड़ पुराण में महापाप का दर्जा दिया गया है.भ्रूण हत्याकोख में ही बच्चे को मार देने से बड़ा कोई पाप नहीं है. गरूड़ पुराण में इसे महापाप का दर्जा दिया गया है. ऐसा करने वालों को नर्क में बेहद कष्टदायी यातनाएं सहनी पड़ती हैं. लिहाजा ऐसी गलती भूलकर भी न करें.महिला का अपमानसनातन धर्म में महिला का अपमान करने को बहुत ही बुरा माना गया है. उस पर असहाय, विधवा महिला का अपमान करने वालों को नर्क में भी जगह नहीं मिलती है. ऐसे लोगों की आत्मा भटकती रहती है और बहुत यातनाएं सहती है.असहायों का अपमानकिसी भी विकलांग, बुजुर्ग या असहाय व्यक्ति का अपमान करना, उनका मजाक उड़ाना नर्क में जाने का इंतजाम करना है. ऐसे लोगों को नर्क में बहुत दुख भोगने पड़ते हैं.धर्म-ग्रंथ का अपमानगरुड़ पुराण में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपने मनमुताबिक धर्म मानना चाहिए लेकिन गलती से भी उसे किसी दूसरे धर्म या ग्रंथ का अपमान नहीं करना चाहिए. ऐसा करना उन्हें नर्क में जगह दिलाने के लिए काफी है.पराई महिला को बुरी नजर से देखनापराई महिला को बुरी नजर से देखना, उसके साथ जबरदस्ती करना महापाप है. यह उस महिला का अपमान है. ऐसा करने वाले लोगों को नर्क में बहुत यातनाएं दी जाती हैं.==
- एक कहावत है कि घर वह स्थान है जहां आपका दिल बसता है और इस सत्यता से शायद आप सभी लोग सहमत हैं। दिन की शुरुआत हो या अंत सभी को अपना घर प्रिय होता है, चूंकि हमारा घर इतना महत्वपूर्ण है, हम इसे अपने आसपास की बुरी नजर या नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिए लगातार तनाव में रहते हैं। वास्तु के अनुसार कुछ ऐसी चीजें हैं जिसे आप अपने घर को किसी भी प्रकार के नकारात्मक वाइब्स से सुरक्षित रखने के लिए कर सकते हैं। वास्तु शास्त्र कहता है कि अक्सर कई ऐसी बातें होती हैं जिससे घर को नजर लग जाती हैं। इससे बचने के लिए अपनाएं ये उपाय...1. शुभता का प्रतीक बांस का पौधाशुभता का प्रतीक बांस का पौधा सबसे लोकप्रिय पौधों में से एक है जो घर में सौभाग्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए जाना जाता है। इस कारण से, यह भारत में सबसे लोकप्रिय इनडोर प्लांट है। यह न केवल एक वास्तु पौधा है बल्कि एक फेंगशुई पौधा भी है। वास्तु के अनुसार, यह घर में सौभाग्य लाता है और निवासियों को बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है। वैसे तो बांस के इस पौधे को आप अपने घर में कहीं भी रख सकते हैं लेकिन इसे अलग-अलग कोनों में रखने से अलग-अलग फायदे होते हैं। यदि आप अपने घर के पूर्वी कोने में बांस का पौधा लागते हैं तो यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करेगा। यदि आप इसे दक्षिण-पूर्व में रखते हैं तो यह वित्तीय स्थिरता और परिवार में समृद्धि लाने में मदद करेगा।2. नमक से दूर होती है नकारात्मक ऊर्जाऐसा माना जाता है कि कमरे के कोनों और कालीनों में नमक छिड़कने से भीघर में से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। दो घंटे बाद इसे साफ कर लें। माना जाता है कि नमक के क्रिस्टल में नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने की प्राकृतिक क्षमता होती है। इसके अलावा, प्रवेश द्वार के पास कुछ समुद्री नमक रखकर और इसे कपड़े या डोरमैट से ढंकने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है।3. ताजे फूल बुरी ऊर्जा को करते हैं दूरहम अक्सर घर में रखे फूलदान में ताजे फूल लगाते हैं, लेकिन दो तीन दिन बाद फूल सूखने लगते हैं। ऐसे में आपको उन सूखे फूलों को तुरंत हटा देना चाहिए। घर हो या ऑफिस, कभी भी सूखे फूल नहीं रखने चाहिए क्योंकि ये नकारात्मकता फैलाते हैं। अच्छी ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखने के लिए उनके स्थान पर ताजे फूल लगाएं। ऐसा माना जाता है कि चारों ओर ताजे फूल रखने से वे अपने आस-पास के लोगों को सकारात्मक ऊर्जा देते हैं। अगर कोई सूखा फूल हो तो नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव उन लोगों पर पडऩे लगता है जो उनके करीब होते हैं।4. सफेद मोमबत्तियां काटती हैं नेगटिव एनर्जीअपने घर में सफेद मोमबत्तियां जलाएं, यह घर के माहौल खुशनुमा माहौल बनाता है। मोमबत्तियां लगाने से घर में ऊर्जा का संतुलन बना रहता है। वे नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर उसे सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार मोमबत्ती से निकलने वाली ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा को काटती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन मोमबत्ती लगाने के लिए जगह का चुनाव करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। घर की पूर्व, उत्तर-पूर्व और दक्षिण दिशा में मोमबत्ती जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है।5. पानी का फव्वारा बुरी शक्तियों का प्रवेश रोकता हैपानी बुरी ऊर्जाओं को सोख लेता है, और वे बहते पानी से बह जाते हैं। जब आप पर्यावरण को शुद्ध करते हुए शांति चाहते हैं, तो सबसे अच्छा विकल्प अपने घर में एक फव्वारा लगाएं, हो सके तो अपने घर के मुख्य द्वार के पास फव्वारा लगाएं। यह प्रवेश द्वार पर नकारात्मक ऊर्जा को रोकने में मदद करेगा और इसे आपके घर में प्रवेश करने से रोकेगा। फव्वारे को सही दिशा में लगाना महत्वपूर्ण है ताकि यह मुख्य द्वार पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कर सके। फाउन्टेन में पानी का प्रवाह निरंतर होना चाहिए।6. एससेंशियल ऑइल देता है मन का सुकूनविशेष रूप से एससेंशियल ऑइल सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देने का कार्य करता है। जब भी हमें एक कायापलट की आवश्यकता होती है और घर में सकर्तमाक ऊर्जा की छह होती है तो हम स्वीट ऑरेंज जैसे एससेंशियल ऑइल इस्तेमाल में ल सकते हैं। वातावरण में शांति लाने के लिए एससेंशियल ऑइल सहयोगी हैं, और उनकी सुगंध अच्छे स्वास्थ्य या भाग्य जैसी सकारात्मक चीजों को आकर्षित कर सकते हैं। एससेंशियल ऑइल इस्तेमाल करने वाले लोगों के जीवन में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है।7. अगरबत्ती जलानाहमारे वातावरण में नकारात्मक ऊर्जाओं को शुद्ध करने और सकारात्मक ऊर्जाओं को आकर्षित करने का एक और तरीका है धूप जलाना। माना जाता है कि सफेद धुएं से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं। सुगंध एक आध्यात्मिक और ध्यानस्थ स्थिति को प्राप्त करने में भी मदद करती है। अगरबत्ती की सुगंध ऊर्जा को बढ़ाती है और चारों ओर शांति की भावना फैलाती है।8. सिरका बुरी ऊर्जा को रखता है दूरनींबू, सिरका और सोडियम बाइकार्बोनेट (बेकिंग सोडा) को मिलाकर आप अपने घर को बुरी नजर से बचाने और साफ करने के लिए एक प्रभावी रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं। इन तीन सामग्रियों से प्राप्त मिश्रण का उपयोग फर्श और अन्य सभी सतहों को साफ करने के लिए किया जा सकता है। यह आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश रोकेगा।
- हस्तरेखा विज्ञान का सबसे अच्छा उपयोग जीवन में बीमारियों और अप्रत्याशित घटनाओं की भविष्यवाणी करने के लिए पहले इस्तेमाल किया जाता था। केवल एक विद्वान हस्तरेखाविद् ही प्रत्येक को सटीक रूप से भेद करने में सक्षम होगा। हस्तरेखा विज्ञान में आपको हाथ की रेखाओं के जरिए अपने भविष्य की बहुत सी जानकारी प्राप्त हो जाती है। जैसे विवाह, करियर, आयु, संतान आदि। हर नवविवाहित दंपति की तमन्ना होती है कि उनको जल्द ही संतान की प्राप्ति हो। किसी भी ज्योतिषी से नवविवाहितों का पूछा जाने वाला पहला प्रश्न संतान के बारे में ही होता है। आपके इन सभी सवालों के जवाब जन्म कुंडली के अतिरिक्त हस्तरेखाओं में भी मिलेगा। आइए जानते हैं कहां होती है हथेली पर संतान रेखा और कैसे संकेत देती हैं ये रेखाएं।हथेली में कहां होती है संतान रेखासामुद्रिक शास्त्र के अनुसार हथेली में कनिष्ठिका अंगुली के मूल में बुध पर्वत पर ऊपर की ओर स्थित रेखा को संतान रेखा कहा जाता है। यह रेखा स्पष्ट होनी चाहिए। आपके हाथ में जिनती संतान रेखा होंगी, भविष्य में आपके उतने ही बच्चे होंगे। संतान का विचार शुक्र पर्वत पर स्थित रेखाओं से भी किया जाता है। हथेली के बाहर की ओर से भीतर आने वाली हॉरिजेंटल लाइन विवाह रेखा कहलाती है।हथेली पर स्थित संतान रेखा क्या संकेत देती हैसमुद्र शास्त्र के अनुसार रेखाएं जितनी सीधी और गहरी होती हैं, वे पुत्र संतान का प्रतीक होती है वहीं रेखाएं जितनी हल्की या बारीक होती हैं वो कन्या संतान की संख्या दिखती हैं। हस्तरेखा विशेषज्ञ की मानें तो संतान रेखाएं साफ, स्पष्ट, बिना कटी-फटी होनी चाहिए। ऐसी रेखाएं उत्तम संतान का प्रतिनिधित्व करती हैं। समुद्राशास्त्र कहता है यदि हथेली में स्थित संतबन रेखा पर द्वीप चिह्न होता है, वां संतान के खराब स्वास्थ्य को दर्शाती हैं। यदि आपकी हथेली में संतान रेखा पर तिल है तो ऐसा होने से संतान प्राप्ति में समस्या उत्पन्न होती है। यदि आपकी हथेली में संतान रेखाएं कटी फटी है तो संतान सुख प्राप्त नहीं होता। समुद्रशास्त्र के अनुसार हथेली में जो संतान रेखाएं स्थित हा वो नीचे से ऊपर जाता है और यदि यह अंत में जाकर 2 भागों में विभक्त हो जाती हैं तो संतान को भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है।हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि संतान रेखा पर लाल तिल है तो जातक की संतान अल्पायु हो सकती है। जिन लोगों का बुध पर्वत उभरा हुआ होता है उनकी चार संतानें होती है। वहीं जिन लोगों का शुक्र पर्वत उभरा हुआ होता है उन्हें एक संतान प्राप्त होती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 439
महत्वपूर्ण बिन्दु :• प्रेम का स्वरूप कैसा हो?• प्रेम मार्ग की अनिवार्य शर्तें क्या हैं?• भक्ति शब्द का अर्थ क्या है?....आदि प्रश्नों पर जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा मार्गदर्शन!!
प्रेम की परिभाषा में दो बातें खास हैं। एक तो निरंतर हो, और एक, निष्काम हो। अपने सुख की कामना न हो। अपने सुख की कामना आई तो अपना सुख पूरा हुआ सेंट परसेन्ट, तो प्यार सेंट परसेन्ट। अपना सुख अगर उससे कम सिद्ध हुआ, तो प्रेम कम। बिल्कुल नहीं सिद्ध हुआ स्वार्थ उससे, प्रेम कम। यह तो संसार में होता है, यह तो व्यापार है। हम चाय में, दूध में एक चम्मच चीनी डालें, थोड़ी मीठी। दो चम्मच डाला, और मीठी हो गई। तीन चम्मच डाला, और मीठी हो गई। यह तो ऐसा बिजनेस है। यह प्रेम नहीं। इसलिये एक दिन में दस बार आपका प्रेम स्त्री से, पति से, बाप से, बेटे से, अप-डाउन, अप-डाउन होता रहता है। स्वार्थ की लिमिट के अनुसार।
तो सबसे पहली शर्त है, अपने सुख को छोड़ना होगा। यहीं हम फेल हो जाते हैं। अनंत बार भगवान मिले हमको, अनंत बार संत मिले हमको। हम उनके पास गये लेकिन अपने सुख की कामना, अपने स्वार्थ की कामना लेकर गये।
आज हमारे संसार में करोड़ों लोग भगवान के भक्त दिखाई पड़ते हैं। वो चाहे खुदा को मानें, चाहे गॉड को मानें, चाहे राम-श्याम को मानें, लेकिन 99.9 परसेन्ट लोग अपनी कामना ले के जाते हैं भगवान के मन्दिर में।
हमारे इण्डिया में एक तिरुपति मन्दिर है। ओ, वहाँ करोड़ों की भेंट चढ़ती है। एक-एक आदमी करोड़-करोड़ रुपया दान करता है। क्यों? यह हल्ला मचा हुआ है कि यह हमारे संसार की जो भी हमारी कामना होगी, उसको पूरा कर देंगे। बस, भीड़ चली आ रही है। अरे जो लोग मर जाते हैं बाबा लोग, फ़क़ीर लोग, और कहीं उनकी हड्डी है गड़ी हुई, वहाँ जाते हैं लोग। ये हमारी इच्छा पूरी कर देंगे। सब सकाम। और वह कामना भी भगवान सम्बन्धी हो, तो कोई बात नहीं। संसार माँगने के लिये। धन मिले, प्रतिष्ठा मिले, वैभव मिले, इसके लिये जाते हैं। यही सबसे बड़ी रुकावट है प्रेम पाने में। अपनी कामना छोड़ना होगा। नारद जी ने प्रेम की परिभाषा की;
न सा कामयमाना।
नारद भक्ति का सातवाँ सूत्र। कामना-रहित होना चाहिये। कामना आई, तो उसका नाम भक्ति नहीं। उल्टा हो गया यह तो। भक्ति शब्द का अर्थ है, सेवा। सेवा माने क्या होता है? जैसे एक माँ छोटे से बच्चे की सेवा करती है। इस समय बच्चा कुछ नहीं सेवा करता माँ की, माँ सेवा करती है। ऐसे ही, हम अगर दास हैं शास्त्र वेद के अनुसार भगवान के, तो हम भगवान की सेवा करना चाहते हैं न। तो सेवा में भगवान को सुख देने की भावना होनी चाहिये, अपने सुख देने की नहीं। अपने को सुख देने की भावना कर-करके अनन्त जन्म दुःखी रहे। अगर भगवान के सुख देने की भावना करके भगवान से प्यार करते, तो अनन्त बार भगवत्प्राप्ति हो गई होती!!
• सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अक्टूबर 2013 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -*(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 438
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 17-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम एवं उनके संत सभी भगवान के ही स्वरूप हैं और सबमें सबका नित्य वास रहा करता है...
हरि को नाम रूप गुन, हरिजन नित्य निवास।सबै एक हरि रूप हैं, सब में सब को वास।।17।।
भावार्थ - श्री कृष्ण एवं उनके नाम, रूप, गुण एवं धाम तथा भक्त सब एक ही हैं। क्योंकि सब में सब का नित्य निवास है।
व्याख्या - श्री कृष्ण स्वयं सच्चिदानंद ब्रह्म हैं। उनकी सभी वस्तुओं का स्वरूप भी तद्रूप है। साधारण लोग समझते हैं कि संसार की भाँति उनके धामादि जड़ हैं किंतु ऐसा नहीं है। उनकी लकुटी , मुरली आदि सभी चेतन एवं श्रीकृष्ण स्वरूप हैं। जो कार्य श्रीकृष्ण कर सकते हैं , वही कार्य उनकी लकुटी एवं मुरली आदि भी करने में समर्थ हैं। अत: इनमें कोई छोटा - बड़ा नहीं है। जब दो ही नहीं है तो छोटे बड़े का प्रश्न ही कहाँ? विनोद में तो कोई श्री कृष्ण को, कोई उनके नाम को , कोई उनके भक्त को बड़ा कह देता है। किंतु वास्तव में भेदभाव मानना नामापराध है। आप कहेंगे कि यदि सब एक हैं तो उनके नामादि से हमारा काम क्यों नहीं बनता? इसका कारण हमारी इंद्रिय मन बुद्धि का मायिक होना है। हम विश्वास ही नहीं कर पाते। सभी जीवों के भीतर भी श्री कृष्ण सदा हैं। एवं अवतार काल में भी सब ने साकार रूप से भी अनंत बार देखा है। किंतु कभी विश्वास नहीं किया।
कवनिउ सिद्धि कि बिनु विश्वासा।
यदि सही गुरु मिल जाय और हम उस पर विश्वास कर लें, तभी हमारा लक्ष्य प्राप्त होगा। अन्यथा असंभव है।
• सन्दर्भ ::: 'भक्ति शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या 17
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - घर से लेकर व्यापार तक हर एक चीज में वास्तु का हाथ होता है। इतना ही नहीं घर की घड़ी, सीढिय़ां, अलमारी, घर का रंग, पूजा घर, मूर्तियां आदि सभी चीजों का वास्तु के हिसाब से अलग-अलग महत्व है और सबकी एक खास दिशा निर्धारित है। अगर वास्तु के अनुसार हर एक दिशा का सही से पालन किया जाए तो फायदा होता है। ऐसे ही एक चीज है कैलेंडर, जिसका भी वास्तु में काफी महत्व है और इसकी भी वास्तु के अनुसार एक दिशा निर्धारित है और अगर गलत दिशा में इसे लगाया गया तो इसका नुकसान भुगतना पड़ सकता है। अगर सही दिशा में कैलेंडर लगाया गया तो घर में सुख-शांति रहती है।वास्तु के अनुसार किस दिशा में कैलेंडर लगाना सही रहता है?वास्तु के अनुसार कैलेंडर को हमेशा उत्तर, पूर्व या पश्चिम की दीवार पर लगाना सही रहता है। अगर आप सामाजिक कार्यों से जुड़े रहना चाहते है तो कैलेंडर को पूर्व दिशा में लगायें। नए अवसरों को प्राप्त करने के लिए और बिजऩस में प्रोमोशन पाने के लिए कैलेंडर को उतर दिशा में लगाना चाहिए। घर में धन को बढाने के लिए और पैसे की सेविंग करने के लिए कैलेंडर को पश्चिम दिशा में लगाना चाहिए।वास्तु के अनुसार इस दिशा में भूलकर भी कैलेंडर ना लगायेंकैलेंडर को कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं लगाना चाहिए। अगर आपने गलती से भी कैलेंडर को दक्षिण दिशा की दीवार पर लगा दिया है तो उसे तुरंत हटा दें। माना जाता है कि इससे इंसान का बुरा वक्त शुरू हो सकता है। वास्तु के अनुसार कैलेंडर और घड़ी को कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं लगाना चाहिये।वास्तु के अनुसार कैलेंडर से जुडी कुछ ख़ास बातें-कैलेंडर को कभी भी दरवाजे के आगे या पीछे नहीं टांगना चाहिए, इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा आती है जिससे घर में तनाव का माहौल रहता है।-कैलेंडर में दिन या तारीख देखते समय आपका मुंह हमेशा उत्तर, पूर्व और पश्चिम दिशा में ही होना चाहिए। ध्यान रहे दक्षिण दिशा में मुंह होना वास्तु के हिसाब से अशुभ माना जाता है।-कैलेंडर खरीदते समय इस बात का ख़ास ध्यान रखें की इस पर किसी जंगली जानवर और किसी तरह की हिंसक तस्वीर ना हो।-कैलेंडर पर कभी भी रोते हुए लोगों की और उदास लोगों की तस्वीर नहीं होनी चाहिए। ऐसा कैलेंडर घर में वास्तुदोष उत्पन्न करता है जिसे घर में नकारात्मकता फैलती है और घर में तनाव का माहौल रहता है।-सही दिशा में ही कैलेंडर टांगना चाहिए, इससे आपके जीवन में सुख-शांति रहती है और पॉजिटिव ऊर्जा मिलती है। कैलेंडर को गलत दिशा में लगाने से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।-फटा हुआ कैलेंडर कभी भी घर में नहीं रखना चाहिए। इससे घर में वास्तुदोष उत्पन्न होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 437
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ के 'धाम माधुरी' का यह पद है, जिसमें रसिकवर श्री कृपालु महाप्रभु श्रीकृष्ण की ठकुरानी महारानी श्रीराधारानी के दिव्य चिन्मय बरसाना धाम की माधुर्यता का वर्णन कर रहे हैं। यह बरसाना धाम किस प्रकार रसिकजनों सहित भगवान श्रीकृष्ण के लिये आराध्य है, आइये इस रसमय पद का चिंतन करते हुये स्मरण करें......
हमारो माई, श्री बरसानो गाम ।महरानी राधा ठकुरानी, सरस सुखद अभिराम ।गहवर-वन वृषभानुकुंड वर, प्रेमसरोवर ठाम ।विधि हरि हर दुर्लभ रजधानी, श्री वृन्दावन धाम ।विहरत निज स्वामिनि सँग कुंजनि, पुंजनि आठों याम ।डगर बुहारत पंथ निहारत, रहत ब्रम्ह घनश्याम ।छके 'कृपालु' प्रेम रस डोलत, लै लै राधे नाम ।।
भावार्थ ::: अरी माई ! मेरा तो ग्राम बरसाना है. राधा ठकुरानी जो प्रेम की निधि एवं आनंद की खान हैं, वे ही हमारी महारानी हैं. यहाँ गहवर वन, वृषभानुकुण्ड एवं प्रेम सरोवर आदि दिव्य स्थान हैं. ब्रम्हा, विष्णु, शंकर से भी अप्राप्य श्री वृन्दावन धाम हमारी राजधानी है. जहाँ हम किशोरी जी के साथ दिन-रात विविध कुंजों में रास का रसास्वादन करते रहते हैं. ब्रम्ह श्रीकृष्ण ही वहाँ किशोरी जी के लिए झाड़ू लगाते हुए मार्ग साफ़ करते हैं तथा उनकी प्रतीक्षा करते हैं. 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि हम भी 'राधे, राधे' कहते हुए प्रेम-रस-मदिरा में उन्मत्त वहाँ डोला करते हैं..
• सन्दर्भ ::: प्रेम रस मदिरा, धाम माधुरी, पद 5)जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज विरचित
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कार्यक्षेत्र या व्यापार में पूरी मेहनत और पूरे प्रयास करने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही या फिर साथियों से अनबन, अधिकारियों से तकरार की स्थिति अक्सर बन जाती है तो ऐसे में सावधान हो जाएं। करियर में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए कुछ आसान से वास्तु उपाय अपना जा सकते हैं।कार्यक्षेत्र या व्यापार में उन्नति का संबंध सूर्यदेव से जुड़ा माना जाता है। इससे आपका सूर्य मजबूत होगा और नौकरी में आ रही सभी विघ्न बाधाएं दूर होंगी। सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना तांबे के लोटे में रोली और लाल फूल डालकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें लेकिन ध्यान रखें कि जल के छींटे पैरों पर न पड़ें। गुरुवार के दिन बेसन के लड्डू, चने की दाल और पीले रंग के वस्त्रों का दान करें। रविवार के दिन मसूर की दाल का दान करें। कहीं भी काम पर जाने से पहले हल्दी का टीका अपने माथे पर लगाएं।नौकरी में स्थिरता के लिए सौंफ का दान करें। दफ्तर में काम करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। लगातार तीन शनिवार पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। रविवार को भगवान सूर्य को तांबे के लोटे से जल अर्पित करें। जल में अक्षत, काला तिल और लाल फूल अर्पित करें। करियर में तरक्की के लिए हरा रंग शुभ माना जाता है। कार्यस्थल पर हरे रंग के कपड़े का अधिक इस्तेमाल करें। रोजाना गाय को हरा चारा या गुड़ घी और चना खिलाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं रोजाना गायत्री मंत्र का जाप करें। घर के सभी सदस्यों को धरती पर बैठकर एक साथ भोजन करना चाहिए। इससे परिवार के सभी सदस्यों की उन्नति होती है। कार्यक्षेत्र की परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- --हाथों में अनेक रेखाएं और इनसे बनने वाले निशान होते हैं। रेखाओं के साथ-साथ पर्वतों की स्थिति और उनका उभार भी भाग्य को प्रभावित करते हैं। यदि पर्वत और रेखाएं दोनों अच्छी स्थिति में हों तो इसका असर पूरे जीवन में पड़ता है। जानिए हाथों की रेखाओं की अच्छी स्थिति में होने का प्रभाव और जीवन में उसका फल।--यदि हाथ में जीवन रेखा अच्छी और पुष्ट स्थिति में है तो जीवन भी अच्छा रहता है। दोष रहित और लंबी जीवन रेखा दीर्घायु होने का संकेत देती है। यदि जीवन रेखा को अत्यधिक रेखाएं काट रही होती हैं तो यह परेशानियों का संकेत देती हैं। गहरी जीवन रेखा रोमांच का संकेत देती है।-लंबी हृदय रेखा भी अच्छी मानी गई है। लेकिन यदि हृदय रेखा बहुत लंबी होकर हथेली के दोनों किनारों को स्पर्श करे तो ऐसा व्यक्ति अपनी जीवनसाथी पर ज्यादा निर्भर रहता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार बहुत छोटी हृदय रेखा व्यक्ति को स्वार्थी बनाती है।-स्पष्ट और लंबी मस्तिष्क रेखा व्यक्ति को प्रतिभाशाली बनाती है। ऐसा व्यक्ति हर काम को सोच-समझकर करने वाला होता है। अधिक लंबी मस्तिष्क रेखा व्यक्ति को सफल और साहसी बनाती है। अगर मस्तिष्क रेखा थोड़ा घुमाव लिए हो तो व्यक्ति रचनात्मक प्रवृत्ति का होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 436
महत्वपूर्ण बिन्दु :• भाव भक्ति के 7 लक्षण• भक्ति मार्ग की सर्वोत्कृष्टता• सम्पूर्ण शरणागति का स्वरूप....आदि प्रश्नों पर जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा मार्गदर्शन!!
भाव भक्ति का पहला लक्षण है - सहनशीलता। अर्थात क्रोध का कारण हो पर क्रोध न आये। कोई हमारा अपमान की और हमारे ऊपर कोई प्रभाव न हो, तो समझना चाहिये कि हम भाव भक्ति में प्रवेश कर रहे हैं। भाव भक्ति का दूसरा लक्षण है - एक क्षण को भी संसारी विषयों में रुचि न उत्पन्न हो, एक क्षण भी व्यर्थ न हो, भगवान और गुरु का ही चिंतन रहे। एक क्षण को भी मन भगवान के क्षेत्र से बाहर न जाये। संसार में अपना कर्तव्य करो, पर मन का लगाव केवल भगवान और गुरु में रहना चाहिये। समय का मूल्य हृदय से मानना चाहिये।
भाव भक्ति का तीसरा गुण है - विरक्ति। अर्थात संसार के समस्त विषयों की रुचि समाप्त हो जाये। उद्धव परमहंस भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि आपका प्रसाद रूप, सब कुछ सेवन करके मैं आपकी माया को चुनौती दूँगा, वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अर्थात संसार के पदार्थों का उपभोग करने पर भी उनमें मन की आसक्ति न हो। भक्तों में भी सर्वश्रेष्ठ भक्त वो है जो संसार के विषयों का भगवान का प्रसाद रूप मानकर ग्रहण करे और मन में उन संसारी विषयों के प्रति रुचि या आनंद की भावना न हो। शरीर को भोजन देना अनिवार्य है, अन्यथा साधना में विघ्न उत्पन्न होगा। विरक्ति अर्थात संसार के विषयों में मन की आसक्ति न हो।
भाव भक्ति का चौथा गुण है - मानशून्यता। अर्थात सम्मान में विभोर न हो, अपमान में विभोर हो जाओ, जब ये अवस्था आ जाये तब समझो हम भाव भक्ति में गये। हमारा अपमान हो, ये भीतर से शौक पैदा हो और जब अपमान मिले तो विभोर हो जाओ। पाँचवाँ गुण है - आशाबन्ध; अन्तःकरण में निराशा न आने पाये, पूर्ण विश्वास होना चाहिये कि सफलता अवश्य मिलेगी। भाव भक्ति का छठा गुण है - समुत्कण्ठा, अर्थात हमारी आशा आगे की ओर बलवती होनी चाहिये और सातवाँ गुण है - नामगानेसदारुचि:। अर्थात भगवान के नाम में इतना माधुर्य का अनुभव हो कि लगातार उसको पीने पर भी तृप्ति न हो। इसी प्रकार भगवान के गुण में आसक्ति, उनके धाम में अनुराग अर्थात भगवान, उनका नाम, उनका रूप, उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम और उनके संत हमारा मन इतना अनुरक्त हो कि यदि निराशा का कारण भी हो तो निराशा न आने पाये। ये सब जब स्वतः होने लगे तो समझो कि भाव भक्ति पर हम पहुँच रहे हैं, पहुँच गये नहीं, अभी प्रवेश हो रहा है। अब अन्तःकरण शुद्ध होने लगा इसलिये ये सब बातें हो रही हैं।
इस प्रकार आगे बढ़ते हुये जब अन्तःकरण पूर्ण शुद्ध हो जायेगा, तब इन सब भाव भक्ति के अनुभावों में इतनी दृढ़ता आ जाती है कि फिर कोई इनको टस से मस नहीं करा सकता। जब भाव भक्ति की वो परिपक्व अवस्था आ जायेगी, तब उसी समय अन्तःकरण की शुध्दि हो जायेगी, उसी को कहते हैं सम्पूर्ण शरणागति। उस अवस्था में को अलौकिक प्रेम, दिव्य प्रेम मिलेगा जो ह्लादिनी शक्ति का सारभूत तत्व है, जिसके अधीन भगवान रहते हैं। मायाधीन जीव कर्म के बंधन में होता है, कर्म से परे ज्ञान, ज्ञान से परे मोक्ष, मोक्ष से परे भगवान, भगवान से परे प्रेम। प्रेम के अधीन भगवान, भगवान के अधीन मोक्ष, मोक्ष के अधीन ज्ञान, ज्ञान के अधीन कर्म, कर्म के अधीन जीव। सर्वोच्च कक्षा है, वो प्रेम की जो भगवान की भगवत्ता को समाप्त कर देती है।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, जुलाई 2012 अंक.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 435
महत्वपूर्ण बिन्दु :• किन कामनाओं को त्यागना होगा?• रागानुगा भक्ति या नवधा भक्ति• कलियुग के लिये सर्वसुगम साधना....आदि पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन!!
...भक्ति में सर्वाभिलाषिता शून्यं की शर्त है, अर्थात सब प्रकार की कामनाएँ त्याज्य हैं। सब प्रकार की कामनाएँ अर्थात दो ही कामनाएँ प्रमुख हैं - (1) भुक्ति और (2) मुक्ति। जितना संसार अर्थात माया का सुख एवं ऐश्वर्य है, इनकी कामना का नाम भुक्ति और संसार की बीमारी से मुक्त हो जाना मुक्ति।
इन दोनों कामनाओं को छोड़ दो तो आ गई भक्ति। सब प्रकार की कामनाओं से रहित होना है। वैधी भक्ति में ज्ञान, कर्म आदि सब दास बनकर रहेंगे, अनुगत बनकर रहेंगे, परंतु रागानुगा भक्ति में ज्ञान, कर्म आदि का स्पर्श भी नहीं रहेगा। वैधी भक्ति, गीता का सिद्धान्त है और रागानुगा भक्ति भागवत का सिद्धान्त है, भागवत परमहंस संहिता कहलाती है, परमहंस लोग जहाँ खड़े हैं, वहाँ से भागवत प्रारंभ होती है और गीता तो जहाँ अर्जुन आसक्तिवश अज्ञान अवस्था में खड़ा है, वहाँ से प्रारंभ होती है। अज्ञानी के लिये गीता और ज्ञानियों की अंतिम सीमा पर पहुँचे हुए जीवन्मुक्त शुकदेव परमहंस के लिये भागवत।
रागानुगा भक्ति में कोई विधि, कोई निषेध, कोई वैदिक कायदे-कानून नहीं। रागानुगा भक्ति वालों के लिये ज्ञान, कर्म, योग, तपश्चर्या सब त्याज्य है, इनका स्पर्श भी न होने पाये। शास्त्र वेद को समझना, फिर उसके अनुसार चलना, ये कलियुग में तो असंभव है। जो अपने को भीतर से निर्बल, असहाय, अकिंचन, निराधार स्वीकार कर ले, बस! उस पर कृपा हो जाती है। जब कभी ये संयोग बनेगा, कोई महापुरुष मिलेगा और उसके प्रति अनुकूल ही चिंतन होगा, तब शरणागति का अध्याय प्रारंभ होगा। तब उसके आदेश के अनुसार हम साधना करेंगे, तब हमारा अंतःकरण शुद्ध होगा, तब अपने लक्ष्य की प्राप्ति होगी। रागानुगा भक्ति में मोक्ष पर्यन्त की कामनाएँ न हो और ज्ञान, कर्म, योग, तपश्चर्या किसी प्रकार के साधन का हस्तक्षेप न हो।
नवधा भक्ति में भी स्मरण भक्ति है और साथ में कीर्तन भी महत्वपूर्ण है। जब हम महापुरुषों द्वारा रचित पदों को बार बार कहेंगे तो उनमें वर्णित लीला, गुण आदि का चिंतन कुछ न कुछ मात्रा में तो अवश्य होगा। इसलिये शास्त्रों वेदों में संकीर्तन का विशेष महत्व बताया गया है, परन्तु स्मरण प्रमुख है। इस प्रकार साधना भक्ति करने के पश्चात हम भाव भक्ति पर पहुँचते हैं। प्रेमाभक्ति और साधना भक्ति के बीच में है - भाव भक्ति। भाव भक्ति उसे कहते हैं जिसमें भगवान में मन लगने लगे। जिस दिन वो कीर्तन, भजन, स्मरण हमको न मिले, हम न करें तो परेशान हों कि आज का दिन तो व्यर्थ गया। मन लगाने का अभ्यास करना, ये साधना भक्ति और मन लगने लगना, ये भाव भक्ति और मन लग गया तो भाव भक्ति सम्पूर्ण हो गई, तब गुरुकृपा से वो प्रेमाभक्ति मिलती है। प्रेम कृपा साध्य ही है।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, जून 2012 अंक.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - नए साल 2022 से हर किसी को अनेक उम्मीदें हैं। अब जब नए साल में कुछ ही दिन बचे हैं तो अभी से हर कोई सोचने लगा है कि आने वाले साल में वह क्या नया करें। आइए जानते हैं कि 2022 में घर और वाहन के मामले में भाग्य आपका कितना साथ देगा-मेषइस राशि के लिए वाहनों के लिए कारक शुक्र है। ऐसे में 2022 की शुरुआत में आपके लिए वाहन खरीदने की संभावना प्रबल है। इसके साथ ही वृहस्तपति 11वें घर में है जिस कारण से आप संपत्ति या घर खरीद सकते हैं।वृषभवृषभ राशि के जातकों के लिए यह वर्ष संपत्ति और वाहन के लिए शुभ रहने वाला है। इसके अलावा आप परिवार या रिश्तेदारों के समारोह में काफी खर्चा करने वाले हैं। हालांकि कोई बड़ा निवेश करने से पहले बहुत बार सोच लें। अगर संपत्ति को लेकर कोई बड़ा निर्णय लें तो किसी जानकार से सलाह जरूर ले लें।मिथुनइस राशि के जातकों के 11वें भाव पर शनि की दृष्टि होने के कारण इस वर्ष आपके पास सभी सुख-सुविधाएं होंगी। अप्रैल के बाद से गुरु की दिशा बदलने से आपकी किस्मत भी बदलने वाली है। जिस कारण से भवन और वाहन प्राप्ति की भी प्रबल संभावना बन रही है।कर्ककर्क राशि के जातक अपनी अधिकांश जरूरतों को अच्छी वित्तीय स्थिति से पूरा कर सकते हैं। आने वाले साल में भवन और वाहन खरीदने की प्रबल संभावना बन रही है। निवेश के लिए यह समय इन जातकों के लिए सबसे खास है।सिंहसिंह राशि के जातक काफी दिग्गज होते हैं जो अपने जीवन में अपने दिमाग में एक लक्ष्य बनाकर चलते हैं। ऐसे में अगर 2022 में ये संपत्ति और वाहनों को लेकर कोई निर्णय लेते हैं, तो शुभ साबित होगा।कन्याकन्या राशि के जातकों के लिए 2022 काफी शुभ रहेगा। दूसरे भाव में बृहस्पति और शनि की युति होने से आप काफी जगहों पर बचत करेंगे। जिससे आर्थिक स्थित मजबूत होगी। साल के अंत में आप संपत्ति को लेने का कोई भी फैसला लें।तुलातुला राशि के जातकों के लिए वाहन खरीदने और बेचने के लिए ये साल फलदायी साबित हो सकता है। हालांकि विरासत में मिली हुई संपत्ति को आप इस साल ना बेचें। इससे आपको सौदे में काफी तगड़ा नुकसान हो सकता है।वृश्चिकवृश्चिक राशि के जातकों के लिए वर्ष 2022 संपत्ति के मामले में शानदार वर्ष होगा। आप वाहन और घर दोनों को सही समय पर ले सकते हैं। आपके लिए घर या भवन खरीदने के लिए यह एक अच्छा वर्ष है। जो लोग कोई डील करना चाहते हैं, उन्हें साल के दूसरे भाग में सफलता मिलने की संभावना है।धनुधनु राशि के जातकों को गुरु के चौथे भाव में होने से संपत्ति अर्जित करने का बहुत बढिय़ा मौका है। आप पैतृक संपत्ति का लाभ प्राप्त हो सकता है। आप पूरी साल में कभी भी नया घर खरीद सकते हैं।मकरमकर राशि के जातकों के लिए संपत्ति खरीदने के दृष्टिकोण से साल 2022 अनुकूल रहने की संभावना है। हालांकि अप्रैल के बाद इनके लिए सभी स्थितियां अनुकूल होंगी। पैतृक संपत्ति से जुड़ी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी।कुंभकुंभ राशि के जातकों के लिए संपत्ति के दृष्टिकोण से साल 2022 अच्छा रह सकता है। हालांकि इस राशि के जातकों को कुछ मामलों में थोड़ी परेशानी होने वाली है। जिस कारण से खर्च सोच समझकर ही करें। इस साल आपको सलाह दी जाती है कि हड़बड़ी में कोई संपत्ति न खरीदें अन्यथा नुकसान हो सकता है।मीनवर्ष 2022 मीन राशि के जातकों के लिए वाहन या संपत्ति खरीदने या बेचने के दृष्टिकोण से बेहद लाभदायक रहने की संभावना है। अप्रैल से लेकर सितंबर तक का महीना क्रय-विक्रय के कार्य हेतु अनुकूल रह सकता है।
- सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए अपने परिवेश में वास्तु स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है, जो हमारे जीवन में समृद्धि, विकास और खुशी लाने की शक्ति रखता है। आइये जानते हैं कि घर में सुख समृद्धि बनाए रखने के लिए आपको अपने घर में किन वस्तुओं को रखने से बचना चाहिए।-वास्तु के अनुसार आपके घर का मुख्य द्वार घर के बाहर मुख्य सड़क के समान स्तर या उससे ऊंचा होना चाहिए। यह मुख्य सड़क के निचले स्तर पर नहीं होना चाहिए। यदि आपका मुख्य द्वार वास्तु के इस सिद्धांत का पालन नहीं करता है तो इसे ठीक कर लें या आपको अपने घर और जीवन में बहुत सारी परेशानियों और उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा।-विशेष रूप से भारत में घर के बाहर बिजली के खंभे और तारों का चलना एक आम बात है। यह खतरनाक ही नहीं आंखों के लिए भी खतरनाक है। इसके अलावा इन्हें खराब वास्तु भी माना जाता है। बिजली के खंभों के उलझे तारों की तरह आपका जीवन भी जीवन की समस्याओं और मुश्किलों में उलझा रहेगा। तारों और खंभों को अपने घर से दूर रखें या ऐसा घर लें जो बिजली के तारों और खंभों से दूर हो।-हम अपने घर के आसपास हरियाली रखना पसंद करते हैं। आपके आस-पास प्रकृति होना अच्छा है। लेकिन अपने घर के आसपास बड़े और घने पेड़ों से बचें। वास्तु के अनुसार यह ठीक नहीं है। बड़े और घने पेड़ धूप और ताजी हवा के प्रवाह में बाधा डालते हैं और इसके साथ ही सकारात्मक ऊर्जा और ताजी ऊर्जा का प्रवाह भी अवरुद्ध हो जाता है। अपने घर और उसके आस-पास छोटे-छोटे पेड़ लगाएं लेकिन यह सुनिश्चित करें कि यह ज्यादा मोटा न हो।-कांटेदार पौधे और कैक्टस आकर्षक लगते हैं लेकिन इसकी सुंदरता से मोहित नहीं होते हैं। घर के अंदर कभी भी कांटेदार पौधे न लगाएं, यहां तक कि बगीचे में भी नहीं। अगर आप वाकई इन्हें रखना चाहते हैं तो इसे घर के बाहर रख दें। माना जाता है कि कांटेदार पौधे परिवार में खराब स्वास्थ्य और संघर्ष लाते हैं।-अपने घर के बाहर गंदा पानी जमा न होने दें। यदि आपके पास एक पूल या टैंक है, तो सुनिश्चित करें कि पानी साफ और साफ है। वास्तु के अनुसार घर के अंदर और आसपास गंदा पानी नकारात्मकता को आकर्षित करता है और घर के लोगों में अपमान लाता है।-वास्तु के अनुसार, पत्थर रास्ते में परेशानी और रुकावट का संकेत देते हैं। घर के अंदर और बाहर पत्थर रखने से परिवार की सफलता के मार्ग में रुकावट आएगी। इससे आपको भी अपने जीवन में परेशानियों और समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। कोई कसर न छोड़ें और सफलता का रास्ता साफ करें।-अपने घर के अंदर और बाहर लताओं को उगाने से बचें। वास्तु का मानना है कि यह आपके शत्रुओं को जोड़ता है। हम स्पष्ट रूप से अपने जीवन में दुश्मन और दुश्मनी नहीं चाहते हैं। अपने घर और जीवन को लताओं से साफ रखें और शत्रुओं को दूर रखें।-हमारे घर में पुरानी वस्तुओं को रखने की प्रवृत्ति होती है। या तो यह एक स्मृति है जिसे हम उनसे जुड़े भावनात्मक मूल्यों के लिए संजोना चाहते हैं या हम यह मानते रहते हैं कि किसी दिन हमें उनकी आवश्यकता होगी। लेकिन वास्तव में वे हमारे घर का कचरा मात्र हैं जिनका हम कभी उपयोग नहीं करते हैं। यह हमारे घर में नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करेगा जो जल्द ही वित्तीय परेशानी का कारण बन सकती है। अगर आप कर्ज और आर्थिक समस्याओं से बचना चाहते हैं तो इससे बचें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 434
महत्वपूर्ण बिन्दु :• साधन भक्ति के प्रकार• भक्ति की अनिवार्य शर्त• भक्ति किसे करनी है?...आदि प्रश्नों पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन!
...साधन भक्ति 2 प्रकार से की जाती है - (1) वैधी भक्ति और (2) रागानुगा भक्ति। शास्त्र वेद की विधि के अनुसार जो भक्ति की जाती है उसे वैधी भक्ति कहते हैं, अर्थात वर्णाश्रम धर्म का पालन भी करे और भक्ति भी करे। वैधी अर्थात विधि से युक्त; वेद के संविधान के अनुसार कर्म करना, ये वैधी भक्ति है। इसमें नरक और शास्त्र आदि का भय रहता है।
रागानुगा भक्ति में शास्त्र वेद के कायदे-कानून, वर्णाश्रम धर्म के विधि-निषेधात्मक कायदे-कानून, ये सब कुछ लागू नहीं होता। रागानुगा भक्ति, केवल भक्ति है। रागानुगा भक्ति में दो बातें प्रमुख हैं, (1) सर्वाभिलाषिता शून्यं, (2) ज्ञानकर्मद्यनावृतं।
सर्वाभिलाषिता शून्यं, अर्थात सभी कामनाओं रहित भक्ति। अर्थात अपने सुख की कामनाओं का त्याग। अपने सुख के लिये प्रेम करना, जो जीव का स्वभाव है, इसको बदलना होगा, इसके विपरीत अपने प्रेमास्पद के सुख के लिये ही प्रेम करना होगा। आनंद की कामना करना, ये जीव का स्वभाव है, परन्तु प्रियतम की सेवा करने से उनको जो आनंद प्राप्त हो, उसे देखकर हम आनन्दमय हों, ऐसा आनंद चाहना है। इस प्रकार का आनंद प्राप्त करने के लिये पाँचों मुक्तियाँ त्याज्य हैं।
सनकादिक परमहंसों ने भगवान से कहा कि हमें नरकवास प्रदान कर दीजिये, परन्तु मेरा मन आपके चरणारविन्द मकरन्द का मिलिन्द बना रहे, आपकी भक्तियुक्त नरक अनंतकोटि ब्रम्हानंद के बराबर है। कामनाओं को छोड़ना होगा, क्योंकि ये कामनाएँ अंतःकरण में रहती हैं और उस अंतःकरण से सेवा भावना पैदा करनी है तो जब तक कामनाओं का त्याग करके सेवा की कामना नहीं लाई जाएगी, तब तक साधना का स्वरूप ही नहीं बनेगा, साधना भक्ति प्रारंभ ही नहीं होगी।
साधना भक्ति मन से करनी है, वो वैधी भक्ति हो या रागानुगा भक्ति। नवधा भक्ति रागानुगा भक्ति वालों के लिये है और वही वैधी भक्ति वालों के लिये भी है। नवधा भक्ति में सबसे प्रमुख है - स्मरण। स्मरण के साथ चाहे जप करो, चाहे कीर्तन करो, चाहे श्रवण करो, जो चाहे करो, परन्तु स्मरण परमावश्यक है। मन ही भगवान का स्मरण करेगा और यदि स्मरण नहीं किया तो मन संसार में आसक्त रहेगा और इंद्रियों से कीर्तन आदि करने का कोई लाभ नहीं। मन की आसक्ति को ही भगवान देखते हैं, शारीरिक कर्म को देखा ही नहीं जाता। यदि मन का लगाव भगवान में है तो अर्जुन द्वारा करोड़ों हत्यायें करने को भी भगवान नहीं देखते। नवधा भक्ति में मन ही प्राण है, स्मरण साधना का प्राण है। नवधा भक्ति में स्मरण ही एकमात्र वास्तविक भक्ति है, उसके साथ जो करो। नवधा भक्ति को वैधी भक्ति वाला भी स्वीकार करेगा, इसी को रागानुगा भक्ति वाला भी स्वीकार करेगा, दोनों के लिये यही साधना है। यदि कामना रखकर भक्ति की तो फिर कामना की भक्ति हो रही ही, श्रीकृष्ण की भक्ति नहीं हो रही है।
यदि हम भगवान के समक्ष आँसू बहाकर संसार माँगते हैं, तो वो संसार की भक्ति है। भक्ति अर्थात मन का लगाव भगवान में हो। वेद कहता है कि कामनाओं को छोड़कर उपासना करनी है। मन से ही भगवान की उपासना करनी है और मन से ही संसार की कामना होती है, परन्तु मन एक है, चाहे संसार की कामना बना लो, चाहे भगवान की कामना बना लो। कामना बनाना, यही उपासना है, भक्ति है। भगवान की भक्ति अर्थात भगवान की कामना बनाना। वेद कहता है जो कामना होगी, उसी का संकल्प होगा, बार-बार उसी का चिंतन, मनन होगा और जितना चिंतन होगा, उतनी आसक्ति होगी, वही भक्ति है।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, मई 2012 अंक.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - दिसंबर माह की पहली मासिक शिवरात्रि 2 तारीख को है. मासिक शिवरात्रि हर माह की कृष्णपक्ष का चतुर्दशी को पड़ती है. इस अवसर पर पार्वती और शिव की पूजा साथ में की जाती है. मान्यता है कि शिव और पार्वती की विशेष कृपा पाने के लिए मासिक शिवरात्रि बहुत खास है. इसके अलावा विवाह से संबंधित परेशानियां दूर करने के लिए भी मासिक शिवरात्रि विशेष है. जिन लोगों की शादी नहीं हो पा रही है या शादीशुदा लाइफ में कष्ट है, उनके लिए शिवरात्रि का व्रत खास है. मासिक शिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की पूजा के साथ-साथ कुछ खास उपाय करके शादी से जुड़ी तमाम समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.मनचाहा वर पाने के लिएअगर शादी के लिए योग्य वर की तलाश पूरी नहीं हो रही है तो ऐसे में शिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की पूजा करें. इसके बाद रुद्राक्ष की माला से 'ओम् गौरी शंकराय नमः' का 108 बार जाप करें. जाप पूरा होने के बाद रुद्राक्ष को गंगाजल से साफ करकेलाल धागे में पिरोकर गले में धारण करें. जल्द शादी की बात बन सकती है.मैरिड लाइफ की समस्या दूर करने के लिएअगर वैवाहिक जीवन में बराबर समस्या आती रहती है तो उसे दूर करने के लिए शिव और पार्वती की तस्वीर पूजा स्थान पर रखें. इस तस्वीर की रोज पूजा करें. साथ ही रुद्राक्ष माला से "हे गौरी शंकर अर्धागिंनी यथा त्वं शंकर प्रिया तथा माम कुरू कल्याणी कान्त कान्ता सुदुर्लभम्" मंत्र का 108 बार जाप करें. नियमित तौर पर ऐसा करने से धीरे-धीरे वैवाहिक जीवन की समस्या दूर होने लगती है.शादी की अड़चन को दूर करने के लिएअगर शादी में किसी प्रकार की अड़चनें आ रही हैं तो इससे छुटकारा पाने के लिए किसी शिव मंदिर में 5 नारियल साथ लेकर जाएं. शिवलिंग के सामने आसन बिछाकर बैठें. शिव को जल आर्पित करने के बाद धतूरा, बेलपत्र आदि चाढ़ाएं. इसके बाद 'ओम् श्रीं वर प्रदाय श्रीं नमः' का पांच माला जाप करें. इसके बाद 5 नारियल शिवलिंग पर चढ़ाएं. इससे विवाह में आ रही अड़चनें दूर हो जाएंगी.












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