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- वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसी वस्तुओं को बताया गया है ,जिन्हें घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है ऐसे ही वास्तु चिन्हों का प्रयोग हम आज आपको बताने जा रहे हैं।वास्तु चिन्हों का प्रयोगवास्तु चिन्हों को घर में रखने से आपके घर की नकारात्मक उर्जा खत्म होगी और सकारात्मक ऊर्जा वास्तु दोष को खत्म करके शुभ फल प्रदान करेगी ।मंगल कलश-मंगल कलश या तो मिट्टी का हो सकता है या किसी भी पवित्र धातु का हो सकता है ,जिसमें जल भरकर उस पर अशोक या आम की पत्तियों के ऊपर नारियल रखा जाता है तथा कलश को लाल कलावा से बांधा जाता है इसे घर के मंदिर में स्थापित करना चाहिए ।हाथ के निशान-घर के प्रमुख दरवाजे पर या फिर उसके साथ लगी हुई दीवार पर महिलाओं के हाथ में हल्दी लगाकर उसे छापना चाहिए । यह निशान वास्तु के हिसाब से बेहद शुभ माने जाते हैं । कहा जाता है सृष्टि के पांच तत्व हमारे हथेलियों में समाए हैं, इसीलिए यह निशान घर में सुख और समृद्धि लाते हैं ।मछली-वास्तुशास्त्र में मछली खुशहाली का प्रतीक माना जाता है और यदि यह मछली का जोड़ा है तो और भी अच्छा । मछली के इस प्रतीक चिन्ह को घर के उत्तर दिशा में रखना चाहिए जिससे धन लाभ होता है । अगर आप यह चिन्ह घर में नहीं रख सकते तो फिश एक्वेरियम रख सकते हैं ।ओम-ओम घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है जो घर से रोगों को निकालकर घर में स्वास्थ्य संबंधित सकारात्मक ऊर्जा का निवास करता है । आप ओम चिन्ह को घर के प्रवेशद्वार , घर के मध्य में या घर के किसी भी कोने में रख सकते हैं ।स्वस्तिक-यदि आपके घर में धन से संबंधित कोई परेशानी है, धन आता है टिक नहीं पाता या फिर घर के सदस्य बार-बार बीमार पड़ जाते हैं तो आप स्वास्तिक चिन्ह अपने घर में जरूर लगाएं। इस स्वास्तिक को घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ लगा सकते हैं ।-----
- शिव भगवान देवों के देव महादेव हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से जाना जाता है। शिव भगवान हिन्दू शिव-धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। इनकी अर्धांगिनी का नाम पार्वती है। पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं।जानें भगवान शिव के 108 नाम और उनका अर्थ1.शिव - कल्याण स्वरूप2.महेश्वर - माया के अधीश्वर3.शम्भू - आनंद स्वरूप वाले4.पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले5.शशिशेखर - चंद्रमा धारण करने वाले6.वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले7.विरूपाक्ष - विचित्र अथवा तीन आंख वाले8.कपर्दी - जटा धारण करने वाले9.नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले10.शंकर - सबका कल्याण करने वाले11.शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले12.खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले13.विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अति प्रिय14.शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले15.अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति16.श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले17.भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले18.भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले19.शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले20.त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी21.शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले22.शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय23.उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले24.कपाली - कपाल धारण करने वाले25.कामारी - कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले26.सुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले27.गंगाधर - गंगा को जटाओं में धारण करने वाले28.ललाटाक्ष - माथे पर आंख धारण किए हुए29.महाकाल - कालों के भी काल30.कृपानिधि - करुणा की खान31.भीम - भयंकर या रुद्र रूप वाले32.परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले33.मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले34.जटाधर - जटा रखने वाले35.कैलाशवासी - कैलाश पर निवास करने वाले36.कवची - कवच धारण करने वाले37.कठोर - अत्यंत मजबूत देह वाले38.त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले39.वृषांक - बैल-चिह्न की ध्वजा वाले40.वृषभारूढ़ - बैल पर सवार होने वाले41.भस्मोद्धूलितविग्रह - भस्म लगाने वाले42.सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले43.स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले44.त्रयीमूर्ति - वेद रूपी विग्रह करने वाले45.अनीश्वर - जो स्वयं ही सबके स्वामी है46.सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले47.परमात्मा - सब आत्माओं में सर्वोच्च48.सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले49.हवि - आहुति रूपी द्रव्य वाले50.यज्ञमय - यज्ञ स्वरूप वाले51.सोम - उमा के सहित रूप वाले52.पंचवक्त्र - पांच मुख वाले53.सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाले54.विश्वेश्वर- विश्व के ईश्वर55.वीरभद्र - वीर तथा शांत स्वरूप वाले56.गणनाथ - गणों के स्वामी57.प्रजापति - प्रजा का पालन- पोषण करने वाले58.हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले59.दुर्धुर्ष - किसी से न हारने वाले60.गिरीश - पर्वतों के स्वामी61.गिरिश्वर - कैलाश पर्वत पर रहने वाले62.अनघ - पापरहित या पुण्य आत्मा63.भुजंगभूषण - सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले64.भर्ग - पापों का नाश करने वाले65.गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले66.गिरिप्रिय - पर्वत को प्रेम करने वाले67.कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले68.पुराराति - पुरों का नाश करने वाले69.भगवान् - सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न70.प्रमथाधिप - प्रथम गणों के अधिपति71.मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले72.सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले73.जगद्व्यापी- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले74.जगद्गुरू - जगत के गुरु75.व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले76.महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता77.चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले78.रूद्र - उग्र रूप वाले79.भूतपति - भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी80.स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले81.अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी- धारण करने वाले82.दिगम्बर - नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले83.अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले84.अनेकात्मा - अनेक आत्मा वाले85.सात्त्विक- सत्व गुण वाले86.शुद्धविग्रह - दिव्यमूर्ति वाले87.शाश्वत - नित्य रहने वाले88.खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले89.अज - जन्म रहित90.पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले91.मृड - सुखस्वरूप वाले92.पशुपति - पशुओं के स्वामी93.देव - स्वयं प्रकाश रूप94.महादेव - देवों के देव95.अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले96.हरि - विष्णु समरूपी97.पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाडऩे वाले98.अव्यग्र - व्यथित न होने वाले99.दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले100.हर - पापों को हरने वाले101.भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोडऩे वाले102.अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले103.सहस्राक्ष - अनंत आँख वाले104.सहस्रपाद - अनंत पैर वाले105.अपवर्गप्रद - मोक्ष देने वाले106.अनंत - देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित107.तारक - तारने वाले108.परमेश्वर - प्रथम ईश्वर
- आज सावन का अंतिम सोमवार है। पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के कई उपाय बताए गए हैं। माना जाता है कि इन उपायों से हमेशा भोलेनाथ की कृपा बनी रहती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।1*भोलेभंडारी भगवान शिव को भांग-धतूरा अति प्रिय है इसलिए शिवलिंग पर भांग धतूरा चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।2* मोक्ष की प्राप्ति के लिए शिवलिंग पर लाल या सफेद आंकड़े के फूल चढ़ाने चाहिए।3* प्रतिदिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ओम नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्वपत्र अर्पित करते समय ध्यान रखें वह कहीं से भी खंडित नहीं होने चाहिए और बिल्वपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए मतलब पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग को स्पर्श करना चाहिए ऐसा करने से भगवान शिव आपकी सब मनोकामनाएं पूर्ण कर देंगे।4*भोलेभंडारी भगवान शिव का वाहन नंदी है इसलिए सांड को गुड़ खिलाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और सोमवार के दिन बैल को हरा चारा खिलाएं ऐसा करने से सुख समृद्धि का आगमन होता है।5*सोमवार के दिन प्रात: काल उठकर स्नान के पश्चात भगवान शिवमंदिर में जाकर भगवान शिव पर जल अभिषेक करें और काला तिल अर्पित करें,मन ही मन में ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें ,ऐसा करने से हर समस्या दूर हो जाती है।6* भगवान भोलेनाथ को जल्दी प्रसन्न करने के लिए गंगाजल से अभिषेक करें। अभिषेक में फिर आप दूध में चीनी मिलाकर शिवलिंग को स्नान कराएं।7*पापों को नष्ट करने के लिए शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने चाहिए।8* सोमवार के दिन शक्कर,गेहूं के आटे से बने प्रसाद से भगवान शिव को भोग लगाना चाहिए और इसके पश्चात धूप दीप से आरती करें।9*भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक सोमवार को महामृत्युंजय मंत्र का जाप 108 बार अवश्य करना चाहिए।10* मोक्ष की प्राप्ति के लिए शमी वृक्ष के पत्तों से शिवलिंग का पूजन करना चाहिए।11*सावन के महीने में शिवलिंग पर प्रतिदिन केसर मिला हुआ कच्चा दूध चढ़ाएं ऐसा करने से अगर आपके विवाह में कोई भी परेशानी आ रही है तो वह दूर हो जाएगी।12* बेला के फूल से शिवलिंग का पूजन करने से सुयोग्य,सुंदर और सुशील पत्नी आपके जीवन में प्रवेश करती है।13* शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।14*पितरों की आत्मा की शांति के लिए सोमवार के दिन गरीबों को भोजन कराएं ऐसा करने से घर में अन्न के भंडार भरे रहते हैं।15*संतान सुख की प्राप्ति के लिए शिवलिंग पर धतूरे का फूल चढ़ाएं।16* भोलेभंडारी भगवान शिव के लिये सोमवार का व्रत रखने से वैवाहिक सुख प्राप्त होता है।17*रोगों से छुटकारा पाने के लिए शिवलिंग पर गाय के कच्चे दूध से अभिषेक करें और काले तिल अर्पित करें।18*समाज में मान-सम्मान और यश प्राप्त करने के लिए शिवलिंग पर चंदन का तिलक करें।
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जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त 2021 को मनाया जाएगा
हिंदू धर्म में हर महीने का अपना खास महत्व होता है. चतुर्मास के समय में भगवान विष्णु की विभिन्न अवतारों में पूजा होती है. भाद्र मास में भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया था. इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी कहा जाता है. भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में ये त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. ये त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त 2021 को मनाया जाएगा. इस दिन कृष्ण मंदिरों में झांकियां सजाते हैं. कई लोग अपने घर में लड्डू गोपाल का जन्म मनाते हैं. माना जाता है कि निसंतान दंपती अगर जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं जल्द पूरी होती है. आइए जानते हैं जन्माष्टमी के दिन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रमास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. इस बार 29 अगस्त को रविवार रात 11 बजकर 25 मिनट पर होगा और 30 अगस्त को रात 01 बजकर 59 मिनट पर रहेगा. उदया तिथि की वजह से 30 अगस्त 2021 को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी. इस बार कृष्ण जन्माष्टमी पर चंद्रमा वृष राशि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है.
जन्माष्टमी का महत्व
हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व होता है. इस दिन कई लोग व्रत करते हैं. माना जाता है कि जो भी पूरी भक्ति विधि- विधान से पूजा और उपवास करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. वहीं ज्योतिष शास्त्र में भी इस दिन खास का महत्व होता है. जिनकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर स्थिति में उनके लिए ये व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस व्रत को दंपति विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए करते हैं. इसके अलावा अविवाहित लड़कियां व्रत रखकर झुला झुलाती हैं उनके विवाह के संयोग जल्द बनते हैं. जन्माष्टमी से पहले लोग इस खास दिन की तैयारी कर देते हैं. बाजारों में उनके विशेष वस्त्र मिलते हैं. -
17 अगस्त, 2021 को सूर्य देव राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। सूर्यदेव को ज्योतिष में विशेष स्थान प्राप्त है। सूर्यदेव सभी ग्रहों के राजा हैं। सूर्य की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों का अनुभव होता है। सूर्य देव 17 अगस्त, 2021 को कर्क राशि से सिंह राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति भी कहा जाता है। सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं, इसलिए इसे सिंह संक्रांति कहा जाएगा। इस संक्रांति को घी संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घी का सेवन करना चाहिए। आइए जानते हैं सूर्य देव किन राशियों का भाग्य बदलने जा रहे हैं...
मेष राशि-
सूर्य का गोचर आपके पंचम भाव में हो रहा है।
पंचम भाव को ज्योतिष में प्रेम का भाव कहा जाता है।
सूर्य का गोचर आपके लिए शुभ रहने वाला है।
यह आपके पारिवारिक जीवन में शुभ फल प्रदान करेगा।
आपको संतान की ओर से कोई शुभ समाचार मिल सकता है।
दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।
परिवार के सदस्यों का सहयोग प्राप्त होगा।
धन- लाभ होगा।
मिथुन राशि-
सूर्य का गोचर आपके तृतीय भाव में हो रहा है।
सूर्य गोचर के प्रभाव से आपको व्यवसाय में लाभ के योग बनेंगे।
भाई-बहन से मदद मिल सकती है।
साहस और पराक्रम में वृद्धि होगी।
मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
हर कार्य में सफलता प्राप्त करेंगे।
जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।
- घर, दुकान या किसी भी चीज का निर्माण करने के दौरान वास्तु शास्त्र का खास ध्यान रखना चाहिए। ऐसा करने से कारोबार और जीवन की गतिविधि में खूब बरकत होती है। हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र का एक खास महत्व है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में वास्तु शास्त्र प्राचीनतम वैज्ञानिक विधाओं में से एक है। वास्तु में इस बात का खास ध्यान दिया जाता है कि भवन या दुकान का निर्माण करते वक्त उसके आसपास के वातावरण के साथ ठीक ढंग से तालमेल स्थापित हो। वास्तु में ऐसे कई सिद्धांतों का जिक्र किया गया है, जिसे ध्यान में रखकर भवन और दुकान का निर्माण किया जाए तो जीवन में खूब तरक्की होती है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक दुकान के मुख की दिशा इस बात को निश्चित करती है कि व्यापार में फायदा होगा या घाटा। अगर आपकी दुकान का मुख पूर्व दिशा में है तो आपको ये वास्तु टिप्स जरूर अपनाना चाहिए।-अगर आपकी कोई दुकान है और उसके मुख की दिशा पूर्व में है तो आपको दुकान के काउंटर को दक्षिण दिशा में रखना चाहिए और अपने मुख को उत्तर दिशा में करके बैठें। इससे व्यापार में खूब तरक्की होगी और आपको ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त होगा। वास्तु शास्त्र के मुताबिक ऐसी दुकानों के सामने का फेस थोड़ा चौड़ा होना चाहिए और पीछे से थोड़ा संकरा। अर्थात दुकान के आगे का हिस्सा चौड़ा होना जरूरी है बजाए पीछे के। इसे ही सिंह मुखी दुकान कहते हैं। ऐसे में कारोबार में खूब सारा लाभ अर्जित होता है।-वास्तु शास्त्र में इस बात का उल्लेख है कि जिन दुकानों का मुख पूर्व दिशा में खुलता है, उन्हें उत्तर दिशा में अपने इष्ट देव की तस्वीर को जरूर रखना चाहिए। ऐसा करने से दुकान में सदा बरकत बनी रहती है।-पूर्व मुखी दुकान के मालिक को अपनी दुकान सुबह जल्दी खोलनी चाहिए। इसके अलावा दुकान में ऐसे उत्पादों को रखना चाहिए जो जल्द से जल्द बिक सके। अगर इन वास्तु के उपायों को अपनाया जाए तो दुकान खूब तेजी से चलती है और आमदनी भी काफी ज्यादा होती है।
- आदर्श रूप से, एक स्वस्थ जीवन शैली के लिए किसी इंसान को रात को कम से कम 7 से 8 घंटे की अच्छी नींद लेनी चाहिए, लेकिन सबके साथ ऐसा नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुछ राशियां ऐसी हैं जिसके जातक कम सोते हैं या फिर वे अनिद्रा से पीडि़त होते हैं। आइये जानें ऐसी कौन सी राशियां हैं, जो अनिद्रा से पीडि़त हैं और पर्याप्त नींद नहीं लेती हैं....मेष राशिमेष राशि वाले हमेशा ऊर्जा से भरपूर होते हैं और नींद की कमी के बावजूद वो सक्रिय रहते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि उन्हें रिचार्ज करने की भी जरूरत नहीं है और वो चलते रहते हैं। मेष राशि वालों की सोच है कि व्यस्त रहना सबसे अच्छा है और इसी सोच में वो कई बार सोना तो क्या झपकी लेना भी भूल जाते हैं।धनु राशिधनु राशि वाले लोगों को हमेशा इस बात का डर रहता है कि कहीं कुछ छूट न जाए और इसलिए वो ज्यादा नींद नहीं लेते। वो पहले अपने काम को महत्व देते हैं और फिर सोने को। धनु राशि वाले लोग जानते हैं कि नींद कितनी महत्वपूर्ण है, लेकिन उनके लिए काम पहले महत्वपूर्ण है।कुंभ राशिकुंभ राशि वाले लोग रात में जागकर समस्याओं का समाधान खोजने की कोशिश करते हैं, या सोचते हैं कि वो अगले दिन और कैसे काम कर सकते हैं। कुंभ राशि के लोग जताते हैं कि नींद पर उनका कितना नियंत्रण है और वो सुबह बहुत जल्दी उठते हैं। वो नींद से उसी तरह लड़ते हैं जैसे कुछ लोग उम्र बढऩे से लड़ते हैं।मिथुन राशिमिथुन राशि वाले लोग सोते तो हैं, लेकिन उन्हें एक बार में पूरी नींद नहीं आती। उन्हें सोना अच्छा लगता है, लेकिन उनका ध्यान हमेशा सोने के अलावा किसी और चीज में ही लग जाता है। अगर वो एक या दो झपकी ले सकते हैं, तो ये सबसे अच्छा है।तुला राशिकम सोने पर भी तुला राशि के लोग अच्छा काम करते हैं, हालांकि, वो बहुत कम नींद पर नहीं चल सकते। अगर उन्हें एक रात अच्छी नींद नहीं आती है, तो वो अगली रात को पूरा कर लेते हैं। खोई हुई नींद की भरपाई के लिए वो एक घंटे पहले सो जाते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 368
(भूमिका - अपना उत्थान-पतन स्वयं अपने हाथ में है, संसार का यह दृष्टांत आध्यात्मिक उत्थान के लिये सहायक होगा, आइये जानें वह क्या है?..)
..आलस्य, लापरवाही, दूसरे में दोष देखना, परनिन्दा सुनना - ये सब गड़बड़ी जो हम करते हैं, इसको बन्द करके कमाने-कमाने (आध्यात्मिक कमाई) की बात सोचो।
सावधान होकर के कमाई पर ध्यान दो। गँवाना न पड़े। बचे रहो। कम से कम खर्चा करो तब लखपति, करोड़पति बनोगे। कम से कम संसार में व्यवहार करो और गलत व्यवहार तो होने ही मत दो। अहंकार बढ़ेगा, दीनता छिन जायेगी, भक्ति समाप्त हो जायेगी, मन गन्दा हो जायेगा। क्या करेगा गुरु? भगवान् अन्दर बैठे हैं। क्या करेंगे? जब हम ही नहीं सँभलेंगे तो कोई क्या करेगा? अतः आप लोगों को स्वयं समझ लेना चाहिये हमारा उत्थान-पतन कहाँ है? और आगे के लिये भी सावधान रहना चाहिये।
कथावाचक लोग कहते हैं एक सेठ जी रात को हिसाब कर रहे थे दिन भर की कमाई का तो वो हिसाब बैठ नहीं रहा था, उसमें देर हो गई। तो बार-बार खाना खाने के लिये नौकरानी जाये कि सेठानी जी बैठी हैं खाने के लिये, चलो सेठजी खाना खा लो। अरे चलते हैं भई! हिसाब नहीं बैठ रहा है। फिर हिसाब करें, फिर हिसाब करें, बस बारह बज गये। तो सेठानी ने कहा ऐसा करो कि थोड़ी सी खीर ले जाओ, मुँह में लगा दो उनके। फिर जब मीठा लगेगा तब याद आयेगी खाना खाना चाहिये। तो नौकर गया उसने सेठ के मुँह में थोड़ी सी खीर लगा दिया, उन्होंने चाटा खीर को और जाकर हाथ धो लिया, मतलब खा चुके। जाओ जाओ, तुम लोग जाओ, हमारा हिसाब नहीं ठीक हो रहा है। ऐसे वो लोभी व्यक्ति लखपति, करोड़पति बनता है।
ऐसे ही क्षण-क्षण हरि गुरु का चिन्तन करना है। उनके लिये तन-मन-धन से सेवा करने की प्लानिंग प्रैक्टिस ये असली कमाई है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में सभी देवों से पहले श्री गणेश जी की पूजा की जाती है. रिद्धि-सिद्धि के दाता गणपति की पूजा करने से हमारे ज्ञान, यश, धन आदि में वृद्धि होती है. भगवान गणपति शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले और इच्छानुकूल वर देने वाले देवता हैं. इन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी कठिन तपस्या से नहीं गुजरना पड़ता है. जीवन से जुड़ी बाधाओं को दूर करके कार्य को सफल बनाने वाले श्री गणेश जी को हम बालगणपति, एकदंत, गजानन, गणपति, लंबोदर, विघ्नहर्ता, विनायक आदि नामों से पूजते और सुमिरन करते हैं.गणपति के तमाम स्वरूपों की तरह उनकी स्फटिक, संगमरमर, काले पत्थर, श्वेतार्क आदि से बनी मूर्ति का विशेष महत्व है. गणपति की तमाम तरह की मूर्तियों में नीम से बने गणपति की साधना करने से बहुत ज्यादा महत्व है क्योंकि नीम का पेड़ शुभता का प्रतीक होता है. जिस घर में अथवा उसके आस-पास नीम होता है, वहां पर रहने वाले लोगों के सारे रोग-शोक दूर हो जाते हैं. ऐसे में यदि कोई नीम से बनी गणपति की मूर्ति की पूजा करता है तो फिर सोने पर सुहागा वाली बात होगी. वैसे नीम के बने गणपति की पूजा करने पर विशेष रूप से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन से जुड़ी तमाम बड़ी विपत्तियां दूर होती हैं.नीम के गणपति की पूजा के लाभनीम के गणपति की पूजा के लिए किसी भी शुभ दिन, शुभ मुहूर्त अथवा गणेश चतुर्थी के दिन नीम की लकड़ी से बने प्राण-प्रतिष्ठित गणपति की प्रतिमा की पूजा करने से पर शत्रु वश में आ जाते हैं और गणपति हमें तमाम विपदाओं से बाहर निकालकर तमाम तरह के सुख प्रदान करते हैं.नीम के गणपति की पूजा करके घर से निकलने पर व्यक्ति को संतरी से लेकर मंत्री तक का पूरा सहयोग मिलता है और उसके सभी कार्य आसानी से बन जाते हैं.नीम से बनी गणपति की प्रतिमा को घर में विधि-विधान से स्थापित करके पूजा करने से शत्रु भय दूर होता है. गणपति के आशीर्वाद से साधक को जीवन में कभी भी शत्रुओं से कोई खतरा नहीं रहता है.नीम की प्रतिमा से बने गणपति की लाल चंदन एवं लाल फूलों से विशेष पूजा करने पर शत्रुओं द्वारा मचाया गया उत्पात शांत होता है. गणपति की कृपा से गुप्त शत्रुओं से होने वाले खतरे टल जाते हैं.-
- ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति का संबन्ध 12 राशियों में से किसी राशि से जरूर होता है. इन राशियों का स्वामी एक ग्रह होता है. इस ग्रह के प्रभाव राशि से संबन्धित लोगों पर भी पड़ते हैं. इसकी वजह से व्यक्ति अपने जन्म से ही कुछ आदतों को साथ लेकर आता है और जीवनभर राशि के स्वामी ग्रह की कृपा राशि से संबन्धित व्यक्ति पर पड़ी रहती है.ज्योतिष के अनुसार दो राशियां धनु और मीन के स्वामी बृहस्पति होते हैं इसलिए इन दो राशियों पर गुरु बृहस्पति की हमेशा कृपा बनी रहती है. बृहस्पति को देवगुरु माना जाता है, ऐसे में उनकी राशि से जुड़े लोगों में भी स्वामी ग्रह का प्रभाव देखने को मिलता है और ये लोग काफी कुशाग्र बुद्धि के होते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में खूब नाम कमाते हैं. जानिए इन दो राशियों के व्यक्तित्व के बारे में.धनु राशिधनु राशि के लोग धार्मिक और शांत स्वभाव के होते हैं. इनके अंदर हर वक्त कुछ न कुछ जानने की उत्सुकता होती है. यदि ये किसी विषय पर पढ़ने बैठें तो तमाम सवाल इनके दिमाग को परेशान करने लगते हैं और ये उनके जवाब ढूंढने के लिए उत्सुक हो जाते हैं. जब तक ये जवाब ढूंढ नहीं लेते, इन्हें चैन नहीं मिलता. स्वभाव से ये काफी निडर होते हैं और ईमानदार होते हैं. पढ़ाई लिखाई में ये लोग काफी होशियार होते हैं और काफी नाम कमाते हैं. ये लोग खुद भी अपना काम ईमानदारी से करना पसंद करते हैं और ऐसे ही लोग इन्हें पसंद आते हैं. धोखेबाजी इन्हें बर्दाश्त नहीं होती. जीवन को ये कुछ उसूलों के साथ जीते हैं और अपनी बात के पक्के होते हैं. एक बार अगर ये कुछ कह दें तो उसे पूरा करने की हर संभव कोशिश करते हैं. अपनी दोस्ती भी ये लोग पूरे दिल से निभाते हैं. हालांकि इन्हें बहुत ज्यादा चिपकू टाइप के लोग पसंद नहीं होते क्योंकि ये संतुलित होकर जीवन जीना पसंद करते हैं.मीन राशिदेवगुरु बृहस्पति की मीन राशि वालों पर भी विशेष कृपा होती है. ये लोग भी काफी ईमानदार होते हैं और इन पर आसानी से भरोसा किया जा सकता है. ये लोग दिल से सच्चे होते हैं, जिससे भी प्यार करते हैं तो पूरे दिल से करते हैं, इन्हें दिखावा पसंद नहीं होता. इसलिए दिखावटी लोग भी इन्हें पसंद नहीं आते. ये लोग पढ़ाई में काफी तेज होते हैं और जिस क्षेत्र में भी जाते हैं, सफलता प्राप्त जरूर करते हैं. इन्हें अनुशासित जीवन जीना पसंद होता है. मीन राशि वाले अपने इस व्यवहार के कारण समाज में खूब नाम और प्रतिष्ठा कमाते हैं.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 367
(भूमिका - प्रत्येक साधक और साधारण व्यक्ति के लिये भी नीचे उद्धरण में दिये गये एक-एक शब्द पर बारम्बार चिन्तन परमावश्यक है। क्योंकि इसमें छिपे रहस्य से अनजान हम सभी जाने-अनजाने एक महान अपराध के भँवर में फँस जाते हैं, जिसकी हमको बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत इस उद्धरण पर आइये हम गंभीरतापूर्वक मनन करें...)
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! किसी साधक के बाहरी व्यवहार को देखकर कई बार दुर्भावना हो जाती है जबकि वह उच्च साधक होता है, इसका क्या उपाय है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भगवान् की सब बातें अनन्त मात्रा की हैं। पूर्ण माने अनन्त मात्रा की हर बात। उनके संसार (ब्रह्माण्ड) अनन्त, नाम अनन्त, रूप अनन्त, गुण अनन्त, लीला अनन्त, धाम अनन्त और सन्त अनन्त। और ऐसे अनन्त हैं कि अनन्त से अनन्त निकालो तो भी अनन्त बचेगा;
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।(वृहदारण्यक उप. 5-1-1)
पूर्ण से पूर्ण निकालो तो भी पूर्ण बचेगा। संसार में पूर्ण से पूर्ण निकालो तो जीरो बचेगा।
कौन जानता है? जब तक कोई पूर्ण न हो जाए तब तक कौन अधूरा है, कौन पूर्ण है यह जानना असम्भव है। बेपढ़ी लिखी अँगूठा छाप और चार-चार, छह-छह, बच्चे वाली गोपियाँ और ब्रह्मा, शंकर चरणधूलि चाहते हैं। जब ये कहो, तो लोग कहते हैं - 'क्या गपोड़े हैं आप भी!! हम जानते हैं उन गोपियों को, कब ब्याह हुआ और कब क्या हुआ। संसार में आसक्त हैं और आप कहते हैं कि उद्धव, ब्रह्मा, शंकर सब चरणधूलि माँगते हैं!!' इसलिए किसी के बारे में कभी कोई राय बनानी ही नहीं चाहिए।
अगर दोष देखा तो उसमें कमी मानेगा। उसकी बुद्धि उसमें दोष देखगी। ये हमसे कम अकल है, हमसे कम सुंदर है, हमसे कम पैसा है, हमसे कम नॉलिज है। ये सब विचार आयेगा, बस पतन हो गया। भीतर क्या उसके पास यह जानने की शक्ति नहीं है। तो ये बाहरी चीजों को देख कर क्या निर्णय करोगे? पता नहीं कौन कितना प्यार करता है भगवान् से, गुरु से? ये नापने का पैमाना तो किसी के पास है ही नहीं। तो बाहर की चीजों से क्या तुलना करेगा कोई।
एक संत थे। अभी पाँच सौ वर्ष पहले की बात है, गौरांग महाप्रभु के जमाने में। उनका नाम पुंडरीक विद्यानिधि था। वह बड़े ऐशो आराम के सामान में रहते थे। सोने का तो पलंग, कोई राजा महाराजा भी ऐसा नहीं रह सकता था जैसे वो रहते थे। गौरांग महाप्रभु ने कहा, 'भई! एक बहुत बड़े भक्त से मिलने जाना है हमको स्वयं।'
लोगों ने पूछा, 'महाराज जी! किसका मिलने जाना है?' तो उन्होंने कहा 'पुंडरीक विद्यानिधि से'। सब चौके। अरे! वह तो घोर संसारी है। कोई राजा महाराजा भी वैसा नहीं होगा। आपस में कहने लगे। महाप्रभु जी मुस्कराकर चल दिए। पीछे-पीछे सब गये कि मामला क्या है? महाप्रभु जी मजाक कर रहे हैं? क्या बात है, क्यों जा रहे हैं वहाँं? उसको आना चाहिए महाप्रभु जी के पास। गये। महाप्रभु जी को देख कर वो पलंग से उठ गए। दोनों गले मिले। ये सब दृश्य देख रहे हैं लोग। फिर उसी के पलंग पर वो भी बैठे और महाप्रभु जी भी बैठे उसी पर। ये भी लोगों ने देखा। ये कैसे बाबा जी हैं! और हमारे महाप्रभु जी के बराबर में बैठे हैं! तो गदाधर भट्ट थे, उनका ज्यादा दिमाग खराब हुआ। वो खास थे गौरांग महाप्रभु के, विद्वान् भी थे, शास्त्र वेद के।
खैर, वहाँ से महाप्रभु जी लौट आये और सब साथ चले आये। फिर अकेले में उन्होंने पूछा कि महाराज! ये आप वहाँ क्यों गए? और फिर गए तो ऐसी असभ्यता किया उन्होंने, उसी पलंग पर खुद बैठ गए और उसी पर आपको बिठा दिया? तो महाप्रभु जी ने भौंहे टेढ़ी की। उन्होंने कहा कि तुम सर्वज्ञ हो? नहीं महाराज! सर्वज्ञ तो आप हैं। फिर तुमने कैसे निश्चय किया? चले जाओ हमारे सामने से और जाकर के पुंडरीक विद्यानिधि की शरण में जाओ और उन्हें गुरु मानो और उनकी बताई साधना करो। अब आंख खुली उनकी। हा! महाराज जी सीरियस हो के कह रहे हैं। हम तो समझ रहे थे कि ये सब महाराज जी जोक कर रहे हैं आज? तो उन्हें जाना पड़ा।
तो कौन जान सकता है? बड़े-बड़े सम्राट हुए हमारे देश में ध्रुव, प्रह्लाद, अम्बरीष बड़े-बड़े वैभव स्वर्ग से भी बड़े और सब गृहस्थ। अम्बरीष हों, चाहे वशिष्ठ हों, सब स्त्री बच्चे वाले। अब उनको भी हम लोगों ने देखा होगा उस जमाने में। अरे तब भी तो हम थे। हमने कहा ये प्रह्लाद!, इनको महापुरुष कहते हैं लोग!!
इसलिए कोई महापुरुष हो, चाहे राक्षस हो अपने मन में दूसरे के प्रति हमेशा अच्छी भावना होनी चाहिए, जिससे अच्छा विचार अंतःकरण मे आवे। वो जो है वो ही रहेगा ही। वह राक्षस होगा तो राक्षस रहेगा। महापुरुष होगा तो महापुरुष रहेगा। हम अपने अंदर की दुर्भावना अगर लाते हैं, तो हमने तब अपना अंतःकरण बिगाड़ दिया। अब भगवान् जो थोड़ा पैर रखे थे आने के लिए, एबाउट टर्न चल दिए। क्योंकि तुम तो औरों को बुलाते हो। मैं ऐसे घर में नहीं रहता। इसलिए कहीं भी छोटापन नहीं देखना चाहिए। ये हमसे बड़ा है। हर एक के प्रति - 'सबहिं मानप्रद आप अमानी'।
एक उच्च साधक का लक्षण है किसी में भी दुर्भावना नहीं, पता नहीं कौन क्या है, किस-किस भाव से कौन उपासना करता है। सबके तरीके अलग-अलग हैं। आज कोई सचमुच भी मक्कार है तो क्यों है? प्रारब्ध के कारण है। वो 25 तारीख को उसका प्रारब्ध खतम हो जाएगा। तो फिर वो सदाचारी हो जाएगा पहले की तरह। और हम दुर्भावना किए बैठे हैं उसके ऊपर। हमारा तो सत्यानाश हो गया और वो तो बन गया। उसमें बहुत रहस्य हैं। इसलिए साधक को दूसरे की ओर देखना ही नहीं चाहिए। और देखे भी कभी या बुद्धि लग भी जाय तो पता नहीं कौन क्या है भैया, अपन झगड़े में न पड़ो। बीबी पति के, पति बीबी के अंदर की बात को नहीं जान सकता।
एक सेठ जी कभी भगवान् का नाम न ले और न मन्दिर जायें। सेठानी परेशान थी कि यह नास्तिक पति मिला। एक दिन सोते समय, अंगड़ाई लेते समय उन्होंने कहा 'राधे'। तो सबेरे स्त्री ने सब दान-पुण्य करना शुरू कर दिया। ब्राह्मण भोजन का इन्तजाम किया। खुशी मना रही थी। सेठ जी ने कहा- क्यों री, आज तो न जन्माष्टमी है, न रामनवमी है, कुछ त्यौहार तो नहीं! उन्होंने कहा आज बहुत बड़ा त्यौहार है पतिदेव! क्या? आपने आज सोते समय करवट बदलने लगे तो 'राधे' कहा। हा! राधे नाम निकल गया बाहर!!! भक्ति के तरीके अपने-अपने सबके हैं। स्त्री नहीं समझ पाई इतने दिन से।
और फिर एक बात सबसे बड़ी और है वह हमेशा ध्यान में रखो सब लोग कि कोई व्यक्ति खराब हो, राक्षस हो, भगवान् का निन्दक, सन्तों का निन्दक, सबसे बड़ा पाप ये ही है। ये लगातार करता हो। लेकिन एक बात बताओ कि ऐसा कोई पापी विश्व में है जिसके अंत:करण में भगवान् न बैठे हों? अरे! कुत्ता, बिल्ली, गधा कोई भी ऐसा प्राणी है जिसके भीतर भगवान् श्रीकृष्ण न बैठे हों? तो फिर तो बराबर हो ही गया तुम्हारे। और सब चीज़ का मूल्य कुछ नहीं है। एक तराजू में सोना भी रखा गया, चांदी भी रखा, हीरा भी रखा है और पारस भी रखा है और एक तराजू के पलड़े में खाली पारस रखा है। तो तोलोगे तो क्या बराबर ही निकलेगा। क्योंकि पारस दोनों में है। अब हीरे मोती की क्या कीमत है, हो न हो? पारस दोनों में है। तो भगवान् तो सब प्राणियों में हैं। इसीलिये वेदव्यास और तुलसीदास सब संतों ने कहा कि - 'पर पीडा सम नहिं अधमाई'।
सबसे बड़ा पाप है दूसरे को दुःख देना, ये न सोचना हैं कि इसके अंदर भी श्रीकृष्ण बैठे हैं। जैसे हम आज एस.पी. हैं, कलेक्टर हैं और हमारा कोई नौकर है, चपरासी है और हमने अपनी सीट के कारण डाँटा, फटकारा, दण्ड दिया। ये भूल गए कि इसके अंदर भी वही बैठे हैं जो हमारे अंदर हैं। तो ये सब सोचने की बात है। इसका अभ्यास करे धीरे-धीरे तो हृदय में कोई गलत चीज न आने पावे।
देखो, आप लोग दाल चावल सब खाते हैं। खाते-खाते कोई कंकड़ आ गया तो ऐसे मुँह बनाकर उसको हाथ से निकाल कर बाहर कर देते हैं। निगल नहीं जाते। धोखेे में चला जाय तो बात अलग है। ऐसे ही कोई भी अच्छी चीज आवे ठीक है। किसी का गुण आवे बहुत अच्छा है। अरे! चौबीस गुरु बनाये दत्तात्रेय ने। कुत्ते को गुरु बनाया, गधे को गुरु बनाया। भगवान् के अवतार थे दत्तात्रेय। लेकिन उन्होंने कहा - भई! इसमें भी ऐसे गुण है जो मनुष्यों से अधिक बलवान है। वो आदमी में नहीं है। किसी आदमी की नाक ऐसी है, जो बता दे कि इधर से गया है चोर? कोई आई. ए. एस. ऐसा हुआ आज तक? और कुत्ता बता देता है इधर से गया है, बारह घण्टे पहले, वह चलता है उसी-उसी रास्ते से, आगे-आगे। इसीलिये सब जगह अच्छी चीज जहाँ दिखाई पड़े, ले लो और जहां खराब चीज दिखाई पड़े वहाँ सोच लो कि पता नहीं क्या रहस्य है ऊपर-ऊपर से एक्टिंग कर रहा है खराबी की।
अरे! गोपियाँ कितनी गालियाँ देती थीं भगवान् को। हम लोग अगर वहाँ होते या रहे हों, तो सुने होंगे और कहा होगा, ये भगवान् की भक्त है! क्या अंडबंड बोल रही है।
एक सखी ने किशोरी जी से कहा कि तुम नन्दनन्दन से क्यों प्यार करती हो? वो तो बड़ा लम्पट है, हर लड़की के पीछे घूमता रहता है और सबको धोखा देता है। तो किशोरी जी ने कहा, सखी ! तू नहीं जानती वो ऐसा क्यो करतें हैं? वो ऐसा इसलिए करते हैं कि हमारा उनका प्यार पब्लिक में आउट न हो। यानी एक दोष को भी गुण के रूप में ले लेना। प्रेमी की पहचान है। वेद की ऋचायें कहती हैं, अरे! मैं जानती हूँ अनादिकाल से। राजा बलि को ठगा और शूर्पणखा के नाक कान कटवा दिये, बाली को छिप कर मारा, मुझे सब मालूम है इसका पुराना चिट्ठा पहले का। तो सखी कहती है फिर छोड़ो! हटाओ। अरे! ये नहीं हो सकता। उसका चिन्तन, उससे प्यार, वह कम नहीं होगा। हम उस व्यवहार पर भी लट्टू हैं। देखो, सर्वसमर्थ हो कर भी और बाली को छिप कर मारा, ये कलंक मोल लिया। सभी संसार में बदनामी कि उसकी पीठ में मार रहे हैं। उसको माला पहना कर मार रहे हैं। मथुरा से भागकर द्वारिका चले गए, रणछोर की डिग्री लेने के लिए। सारी दुनियाँ में बदनामी हो गई। तुम्हारे भगवान कैसे हैं? तो कौन समझ सकता है? भगवान् का रहस्य तो खैर समझने की बात नहीं है। मनुष्यों में कौन उच्च कोटि का साधक है, कौन निम्न कोटि का है और कौन कब किसका पतन हो जाय ये भी एक स्ट्रांग पॉइन्ट है। समझे रहना चाहिए। एक क्षण के कुसंग ने अजामिल को इतना बड़ा पापी बना दिया। एक क्षण का, एक मिनिट का भी नहीं।हृदय के अंदर अच्छी अच्छी चीजों का, अच्छे अच्छे गुणों का, अच्छी-अच्छी बातों का चिन्तन हो। खराब बात कोई कहे तो सुनो नहीं, पढ़ो नहीं, सोचो नहीं। तुरन्त सँभल जाओ। जैसे कोई मच्छर काट लेता है तो होशियार हो जाता है। इसने काट लिया। किसी के ड्राइंग रुम में कोई अपने घर का कूड़ा कचरा फेंके तो कौन पसन्द करेगा, कौन स्वीकार करेगा, पचास गाली दे देगा वह घर वाला। ऐसे ही दिल तो ड्राइंग रूम है भगवान् के लिए। इसमें गंदी चीज कहीं से भी, कैसे भी तुम लाए तो गन्दा हो गया। भगवान् तो कहते हैं जो ला चुके हैं उसे निकालो। साफ करो। माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, का प्यार ये सब संसार का, विषय भोग का, ये सब निकालो। और तुम ला रहे हो। तो भगवान् कहते हैं हमसे कहते हो आ जाओ, कहाँ आऊँ? कहीं जगह भी है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर व्यक्ति अपने करियर में खूब तरक्की करना चाहता है, ताकि वह ढेर सारा पैसा कमा सके और उसके टैलेंट का भी सही इस्तेमाल हो सके. हस्तरेखा शास्त्र के जरिए यह बहुत आसानी से जाना जा सकता है कि व्यक्ति अपने जीवन में किस क्षेत्र में और कितनी तरक्की करेगा. इसके लिए हथेली में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत की अच्छी स्थिति होना बहुत जरूरी होता है. ये दोनों ही जातक की जॉब या बिजनेस में सफलता-विफलता के बारे में बताते हैं.गुरु पर्वत पर शुभ निशान दिलाते हैं तरक्कीतर्जनी उंगली के नीचे के उठे हुए हिस्से को गुरु पर्वत कहते हैं. यह पर्वत जितना ज्यादा उभरा हुआ रहता है, उतना ही अच्छा होता है. इस पर बने शुभ निशान व्यक्ति को खूब सफलता दिलाते हैं. जैसे - यदि गुरु पर्वत पर तारे का या त्रिभुज का निशान हो तो व्यक्ति को ऊंचा पद मिलता है. साथ ही वह खूब मान-सम्मान भी पाता है. वहीं गुरु पर्वत पर एक से ज्यादा रेखाओं का होना भी व्यक्ति को अच्छी पोस्ट दिलाता है.सूर्य रेखा बताती है भाग्यरिंग फिंगर यानी की हाथ की तीसरी सबसे बड़ी उंगली के नीचे एक खड़ी लाइन होती है, उसे सूर्य रेखा कहते हैं. यदि हाथ में सूर्य रेखा की स्थिति अच्छी हो तो जातक को जॉब हो या बिजनेस दोनों में किस्मत का अच्छा साथ मिलता है. इसके लिए सूर्य रेखा का लंबा और स्पष्ट होना जरूरी होता है. जिस जातक के हाथ में बड़ी सूर्य रेखा हो उसे करियर के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत सफलता मिलती है. ऐसे लोग समाज में भी बड़ा पद पाते हैं. यदि गुरु पर्वत पर शुभ निशान होने के साथ-साथ सूर्य रेखा भी स्पष्ट हो और भाग्यरेखा की लंबाई भी ज्यादा हो तो ऐसे लोग कम उम्र में ही सफल हो जाते हैं.
- ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियां होती हैं और इन सभी राशियों का अपना भिन्न स्वभाव होता है। दरअसल इन सभी राशियों के स्वामी 9 ग्रह हैं और इन्हीं ग्रहों का प्रभाव इन राशियों के ऊपर देखने को मिलता है। ऐसे में हर व्यक्ति का स्वभाव, चरित्र और कार्य क्षमता भी भिन्न होती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुछ विशेष राशियों के जातक होते हैं जो जमकर पैसा खर्च करते हैं। ये अपनी शान-ओ-शौकत को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ये ऐसी लाइफस्टाइल जीते हैं जिसमें पैसे अधिक खर्च होते हैं। ये भौतिक सुखों में अपना पैसा खर्च करते हैं। साधारण फिजूलखर्ची इनके लिए न के बराबर होती है। ऐसे जातकों के पास पैसा तो खूब आता है लेकिन इनके खर्चीले स्वभाव के कारण पैसा इनके पास टिक नहीं पाता है। यदि इनकी आर्थिक स्थिति ठीक भी न हो बावजूद इसके ये पैसे खर्च करने में आगे रहते हैं। महंगी चीजों को शौक इन्हें और भी खर्चीला बनाता है। आइए जानते हैं किन राशियों के जातक होते बेहद खर्चीले।मिथुन राशिमिथुन बुध ग्रह की राशि है। इस राशि के जातक चतुर और बाचाल होते हैं और पैसे खर्च करने के मामले में भी आगे होते हैं। ये लोग अपने रहन- सहन और खान- पान पर बहुत पैसा खर्च करते हैं। इनके पास पैसे आने की देर होती है लेकिन उसे खर्च करने की देर नहीं होती है। इस कारण इनके पास पैसे बच नहीं पाते हैं।सिंह राशिसिंह सूर्य ग्रह की राशि है, जो राजसी ठाठ का परिचायक है। इस राशि के जातक जमकर पैसा खर्च करते हैं। अपने राजसी जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए ये धन खर्च करते हैं। हालांकि कई बार इनकी यही आदत इन्हें कर्जदार बना देती है। पैसा कहां खर्च करना है ये इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते हैं।तुला राशितुला शुक्र ग्रह की राशि है जो भौतिक सुखों का कारक ग्रह है। इस राशि के जातक महंगे शौक रखते हैं। ये अपने खान-पान, रहन-सहन में खूब पैसा खर्च करते हैं। इस राशि के जातक धन खर्च करने के मामले में एक नंबर के होते हैं। इनके पास पैसा तो खूब आता है। लेकिन इनकी खर्च करने की आदत से वह पैसा बच नहीं पाता है। ऐसे में इन्हें कई बार आर्थिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।वृश्चिक राशिवृश्चिक मंगल ग्रह की राशि है। इस राशि के जातक धन खर्च करने के मामले में आगे होते हैं। ये अपनी लाइफ स्टाइल में काफी पैसा खर्च करते हैं। दूसरों की परवाह किए वगैर ये खुलकर जीते हैं। जहां बात पैसे खर्च करने की आती हैं ये कतई पीछे नहीं हटते हैं। इस राशि के जातक वर्तमान में जीना पसंद करते हैं।
- देखा जाए तो कांच का टूटना एक सामान्य घटना है, ठीक वैसे ही, जैसे असावधानी बरतने पर अन्य चीजें टूट जाती हैं, कांच भी एक वस्तु है जो टूट सकती है, लेकिन पुरानी मान्यताओं के अनुसार लोग कांच या शीशे के टूटने को अशुभ घटना मानते हैं और इसे आने वाले समय में बुरे समाचार से जोड़ते हैं। वास्तु के हिसाब से देखा जाए तो कांच या शीशे का टूटना अशुभ नहीं होता, बल्कि शुभ होता है, लेकिन टूटे कांच को घर में रखना जरूर अशुभ हो सकता है। यहां जानिए कांच और शीशे के टूटने को लेकर वास्तु शास्त्र में क्या कहा गया है और इस मामले में विज्ञान क्या कहता है?शुभ होता है कांच या शीशे का टूटनावास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर पड़ी कांच की कोई चीज या शीशा अगर किसी कारणवश टूट जाए, तो इसका मतलब है कि आपके घर पर कोई बड़ा संकट आने वाला था, जिसे कांच या शीशे ने अपने ऊपर ले लिया है। यानी अब मुसीबत टल चुकी है और आपका परिवार सुरक्षित हो गया है। इसके अलावा अचानक कांच या शीशे के टूटने का मतलब ये भी होता है कि आपके घर का कोई पुराना मसला अब समाप्त हो गया है। कुछ लोग कांच को लोगों की सेहत से भी जोड़ते हैं, ऐसे में कांच का चटकना या टूटना सेहत ठीक होने का संकेत हो सकता है। इन सभी बातों पर गौर किया जाए तो कांच या शीशे का टूटना एक शुभ संकेत माना जाना चाहिए।घर में रखना अशुभकांच का टूटना बेशक शुभ संकेत है, लेकिन टूटे या चटके कांच या शीशे को घर में रखना वास्तु के अनुसार अशुभ माना जाता है। ठीक उसी तरह जैसे टूटे बर्तनों में भोजन न करने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि टूटे कांच से सकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होता है और घर में नकारात्मकता फैलने लगती है। ऐसे में तमाम परेशानियां घर में आती हैं. इसलिए अब कि बार घर में कभी अचानक से कांच टूट जाए तो बिना शोरशराबा किए, उस कांच को चुपचाप घर से बाहर फेंक दें।क्यों माना गया अशुभ जानिए वैज्ञानिक वजहकांच बहुत नाजुक होता है और शुरुआती समय में इसे दूर देशों से मंगाया जाता था। तब ये बहुत महंगा हुआ करता था। इसकी उपलब्धता के लिए काफी रकम खर्च करनी होती थी और इसे मंगाने में समय भी अधिक लगता था। ऐसे में कांच को लोग संभालकर रखें और इसकी देखरेख में सावधानी बरतें, इसलिए इसके टूटने को लेकर तमाम तथ्यों को धर्म और सेहत से जोड़ दिया गया। या यूं कहें कि लोगों के बीच इसे मान्यता के रूप में बिठा दिया गया। चूंकि धर्म को लेकर लोगों के मन में हमेशा से ही आस्था रही है और सेहत के प्रति तब लोग काफी सजग हुआ करते थे, इसलिए वे इन तथ्यों में विश्वास करने लगे और समय के साथ ये विश्वास और मजबूत हो गया।--
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 367
(भूमिका - 'चैतन्य-चरितामृत' एवं 'चैतन्य-चरितावली' आदि ग्रन्थों में श्री चैतन्य महाप्रभु एवं राय रामानंद जी के मध्य भक्तितत्त्व पर किये गई अति महत्वपूर्ण संवाद का वर्णन है, जिसमें श्रीराधाकृष्ण की माधुर्यमयी अनन्य निष्काम भक्ति की सर्वश्रेष्ठता का निरुपण है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत यह प्रवचन इसी संवाद पर आधारित है। आइये हम सभी इस पर विचार करें....)
...साधन-साध्य के सम्बन्ध में चैतन्य महाप्रभु एवं राय रामानंद का वार्तालाप अत्यधिक महत्वपूर्ण है। चैतन्य महाप्रभु ने राय रामानंद से पूछा - साध्य को पाने का साधन क्या है? उन्होंने उत्तर दिया;
स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विदन्ति तच्छ्रीणु।।(गीता 18-45)
अपने अपने वर्णाश्रम धर्म का पालन करने से साध्य मिल जाता है। वर्णाश्रम धर्म यानि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ये चार वर्ण; ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास ये चार आश्रम; इनके लिये वेद में जो लिखा है ऐसा करो, ऐसा न करो, ऐसा न करो। उसका जो पालन करें सेंट परसेंट वो वर्णाश्रम धर्म का धर्मी है, कर्मी है। महाप्रभु जी ने कहा - अरे! तुम भी क्या बोले रामानंद? इससे तो स्वर्ग मिलता है बस, वो भी चार दिन का, वहाँ तो माया है। रामानंद ने कहा, अच्छा-अच्छा। इसके आगे बोलो। उन्होंने कहा -
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।यत्तपस्यसि कौन्तेय ततकुरुष्व मदर्पणम्।।(गीता 9-27)
स्वकर्मणा तमभ्यच्-र्य सिद्धिं विदन्ति मानवः।(गीता 18-46)
जो कुछ कर्म करो भगवान को अर्पित करो। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ, उससे तो ये बहुत अच्छा तुमने बताया लेकिन ये साध्य नहीं है, इससे तो अंतःकरण शुद्ध होता है। इसके आगे कुछ बताओ। तो उन्होंने कहा -
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।(गीता 18-66)
सब धर्मों को छोड़ दो और केवल मेरी भक्ति करो, मैं सब पापों से छुटकारा दिला दूँगा। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ हाँ! ये तो उससे भी अच्छा है लेकिन इसमें तो पाप नाश कहा है और जिसके पाप ही न हों कुछ, उसके लिये क्या है? तो कुछ सोचकर फिर बोले....
...महाप्रभु जी ने कहा - हाँ-हाँ! ये तो उससे भी अच्छा है लेकिन इसमें तो पाप नाश कहा है और जिसके पाप ही न हों कुछ, उसके लिये क्या है? तो कुछ सोचकर फिर बोले,
ब्रम्हभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिम् लभते पराम्।।(गीता 18-54)
भक्त्या मामभिजानाति यावन्याश्चास्मि तत्त्वतः।ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदन्तरं।।(गीता 18-55)
मेरी भक्ति, परा भक्ति से ब्रम्ह का ज्ञान होगा तब शान्ति मिलेगी। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ-हाँ! ये तो ज्ञानयुक्त भक्ति है, मिक्श्चर है, और आगे बोलो। तो रामानंद राय ने कहा,
ज्ञाने प्रयासमुदपास्य नमन्त एव जीवन्ति सन्मुखरितां भवदीयवार्ताम्।स्थाने स्थिताः श्रुतिगतां तनुवाङ्मनोभिर्ये प्रायशोजित जितोप्यसि तैस्त्रिलोक्याम्।।(भागवत 10-14-3)
सब कुछ छोड़कर जो केवल अनन्य भाव से निरंतर राधाकृष्ण की भक्ति करते हैं, बस उनको ही वो सबसे बड़ा साध्य मिलता है - भगवत्प्रेम। महाप्रभु जी ने सिर हिलाया, हाँ अब बोले ठीक-ठीक। लेकिन अब जरा महल में घुसो। आ तो गये महल के पास तुम लेकिन अंदर घुसो। खाली महल के पास बाहर से महल को देखा तो ये तो अभी पूरा नहीं है रस। देखो, अंदर क्या है?
शान्त भाव के महापुरुषों को तो बैकुण्ठ का ऐश्वर्य मिलता है, उसमें रस कम है, ऐश्वर्य बहुत है। तो उन्होंने कहा, दास्य भाव से राधाकृष्ण की भक्ति करे। मैं दास हूँ, वे स्वामी हैं। हाँ, अब आये रास्ते पर। लेकिन दास और स्वामी में दूरी तो रहती है? मान लो, दास की इच्छा हुई कि स्वामी का कान पकड़ूँ। अरे! नहीं-नहीं, नाराज हो जायेंगे, सर्विस से निकाल देंगे। इसके आगे बताओ। तो उन्होंने कहा, सख्य भाव से भक्ति करें। वो हमारे सखा हैं, अब तो कान पकड़ सकते हैं। अरे, घोड़ा बनाया ग्वालों ने ठाकुर जी को, कन्धे पर बैठे। सखाओं को इतना बड़ा अधिकार है। उन्होंने कहा, ठीक है, लेकिन फिर भी अभी और अंदर के कमरे में चलो।
तो उन्होंने कहा, सख्य भाव से भक्ति करें। वो हमारे सखा हैं, अब तो कान पकड़ सकते हैं। अरे, घोड़ा बनाया ग्वालों ने ठाकुर जी को, कन्धे पर बैठे। सखाओं को इतना बड़ा अधिकार है। उन्होंने कहा, ठीक है, लेकिन फिर भी अभी और अंदर के कमरे में चलो।
तो उन्होंने कहा, फिर तो वात्सल्य भाव है जैसे मैया यशोदा ने रस पाया ठाकुर जी का। और चलो अंदर एक दम। तो उन्होंने कहा कि ठाकुर जी को प्रियतम मान लें। हाँ, अब आ गये ठिकाने पर, यही सर्वोच्च भाव है। प्रियतम माने क्या होता है? सब कुछ, सब कुछ माने नम्बर एक पति, नम्बर दो बेटा, नम्बर तीन सखा, नम्बर चार स्वामी। जब जो चाहे बना लो। रिश्ते बदलते जायें, डरें नहीं कि अब जब पति मान लिया है तो बेटा कैसे मानें? ये संसार में बीमारी है कि पति को बेटा मत मानो, बोलो भी नहीं, मानना तो दूर की बात। नहीं पिट जाओगे, लोग पागलखाने में बन्द कर देंगे। लेकिन भगवान के यहाँ ऐसा नहीं है। वो कहते हैं, मैं सब कुछ बनने को तैयार हूँ। एक-एक सेकण्ड में चेंज करो। ये सर्वश्रेष्ठ भाव है और सबसे सरल।
कोई नियम नहीं है इसमें। कायदा-कानून नहीं है। अब देखो, दास अगर हम बनते हैं और भगवान को स्वामी मानते हैं तो कितनी बड़ी समस्या है? भरत ने क्या कहा था,
सिर बल चलउँ धरम अस मोरा।सब ते सेवक धरम कठोरा।।
जहाँ स्वामी का चरण पड़े, गुरु का चरण पड़े, वहाँ हमारा सिर पड़ना चाहिये। तो क्या हम सिर के बल चलेंगे? ये पॉसिबल कहाँ है? जब राम-सीता वनवास को जा रहे थे तो पीछे-पीछे लक्ष्मण चलते थे। तो दोनों चरण-चिन्हों को बचा-बचा कर चलते थे। कितना कठिन है -
सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य:। (भतृहरि)
इससे कम परिश्रम सख्य भाव में है, उससे कम वात्सल्य भाव में है लेकिन माधुर्य भाव में कोई नियम नहीं।
एक बार ऐसे ही भगवान ने एक्टिंग किया था द्वारिका में कि हमको बहुत दर्द है, अब हम मर जायेंगे, बचेंगे नहीं। ऐसी एक्टिंग किया। 16108 स्त्रियाँ, सब घबड़ा गईं कि हम विधवा हो जायेंगे, क्या बोल रहे हैं? उसी समय अचानक नारद जी आ गये।
उन्होंने देखा, गुरुजी ये क्या कर रहे हैं आज? कुछ मामला सीरियस है। उन्होंने कहा, महाराज! क्या आपको तकलीफ है कुछ, सुना है। अरे! बहुत तकलीफ है नारद जी। तो फिर क्या करें? अरे क्या करें क्या, दवा लाओ और क्या करोगे? महाराज! दवा क्या है? वो भी बता दो। तुमने अपनी बीमारी खुद पैदा की है तो दवा भी तुम ही बताओ। उन्होंने कहा कि कोई वास्तविक संत की चरणधूलि मिल जाय तो मैं ठीक हो सकता हूँ। नारद जी ने कहा, संत? मैं भी तो संत हूँ। अरे भगवान के अवतार भी हैं और वैष्णवों में टॉप करने वाले नारद जी।
फिर उन्होंने कहा, पता नहीं कि ये गुरु घंटाल का क्या नाटक है? अपन झगड़े में नहीं पड़ते। एक बार बंदर बन चुके हैं। लेकिन ये मातायें जो हैं इनकी सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ, ये तो महापुरुषों की दादी हैं। इनकी स्त्री बनने का सौभाग्य किसको मिलेगा? इनसे कहते हैं। रानियों ने कहा, नारद जी! आज क्या बात है, शास्त्र-वेद का ज्ञान समाप्त हो गया तुम्हारा? कोई स्त्री पति को चरण धूलि देकर नरक जायेगी? वेदमंत्र कोट कर दिया। नारद जी चुप हो गये कि बात तो ठीक कहती हैं। फिर अब क्या करें? जहाँ जायेंगे, सब महात्मा यही कह देंगे कि तुम्हारा दिमाग खराब है, तुम ही दे दो न, अपने चरण की धूलि?
तो भगवान के पास फिर गये और कहा, महाराज! वो डॉक्टर भी बता दो जिसकी चरण धूलि ले आवें। तो उन्होंने कहा कि चले जाओ ब्रज में, वहाँ तमाम करोड़ों गोपियाँ हैं, उनसे कहना। उन्होंने सोचा कि ब्रज में ऐसा कौन सा महात्मा है? वहाँ तो सब गृहस्थी हैं स्त्रियाँ। उनके बाल-बच्चे हैं, पति हैं और सब बेपढ़ी-लिखी घूँघट वाली। ये क्या कह रहे हैं गुरु-घंटाल। गये वहाँ पर। तो नाटक किया, बूढ़े बन गये नारद जी, अपने को छिपाकर कि देखें ये पहचानती हैं कि नहीं हमको? दूर से सबने पहचान लिया? नारद जी आश्चर्य चकित रह गये। उन्होंने गोपियों से कहा, तुम्हारे प्राण-वल्लभ को कष्ट है, अपनी चरण धूलि दे दो।
उन्होंने कहा, अरे लो। सब लोगों ने पैर फैला दिया। जल्दी ले जाओ। सन्न, नारद जी। तुम लोग चरण धूलि दे रही हो, इसका फल समझती हो? नारद जी फल-वल बाद में बताना, पहले ले जाओ जल्दी से, उनको आराम हो। फल-वल नरक की बात, अरे नरक मिलेगा और क्या होगा इससे अधिक? अरे, कोई आदमी जब मर्डर करता है तो क्या सोचता है? फाँसी होगी। हो जाय फाँसी लेकिन इनको मारेंगे। अब नारद जी की आँख खुली। अब उन्होंने कहा, पहले मैं पवित्र हो जाऊँ। तो पति-स्त्री में भी बन्धन होता है, नियम होते हैं लेकिन माधुर्य भाव में कोई नियम नहीं। भगवान दास बन जाता है, भक्त स्वामी बन जाता है। तो ये अंतिम भाव है। इसमें निष्काम भाव से, माधुर्य भाव से, अनन्य भाव से निरंतर भक्ति करने से तो सबसे बड़ा साध्य ब्रज रस मिलता है। ये साधन-साध्य का सारांश है।
०० प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ : साधन-साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 366
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 68-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि पाप और पुण्य दोनों ही नश्वर और बन्धनकरक हैं और इन दोनों को त्यागकर एकमात्र हरिभक्ति की शरण ग्रहण करके ही मनुष्य बंधनों से मुक्त होकर परमपद प्राप्त कर सकता है...
पुण्य देत फल नश्वर, पाप नरक लै जाय।दोउन तजि जो हरि भजे, सोइ परम पद पाय।।68।।
भावार्थ ::: विधिवत् किया हुआ पुण्य कर्म नश्वर स्वर्ग देता है। पाप कर्म नरक देता है। इन दोनों का परित्याग कर जो श्रीकृष्ण भक्ति करता है, उसे भगवान् का लोक प्राप्त होता है।
व्याख्या ::: इस दोहे में सम्पूर्ण गीता का आशय है । यथा - अर्जुन ने प्रारम्भ में कहा कि मैं गुरुजनों की हत्या करके राज्य सुख भोग नहीं चाहता। श्रीकृष्ण ने समझाया कि हे अर्जुन! अगर तू युद्ध करेगा तो मृत्यु होने पर स्वर्ग एवं जीतने पर राज्य मिलेगा। यथा;
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।(गीता 2-37)
यदि युद्ध न करेगा तो पाप होगा एवं परिणामतः नरक मिलेगा। अब तू सोच ले कि स्वर्ग अथवा पृथिवी श्रेष्ठ है या नरक? अर्जुन ने कहा कि स्वर्ग भी नश्वर है। पृथिवी भी नश्वर है। नरक भी नश्वर है। अतः मैं इन सब को नहीं चाहता। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि 'युद्ध कर' ऐसा भी न कर, क्योंकि स्वर्ग या पृथिवी तो मिलेगी और ये दोनों ही क्षणभंगुर हैं। तथा 'युद्ध न कर', ऐसा भी न कर, क्योंकि ऐसा करने से नरक मिलेगा। जो स्वर्ग से भी निकृष्ट है। अर्जुन यह सुनकर सोच में पड़ गया कि दोनों में एक तो करना ही पड़ेगा। श्रीकृष्ण ने कहा एक मार्ग और है, उसे समझ एवं पालन कर।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।(गीता 8-7)
अर्थात् मन से मेरी भक्ति ही कर एवं शरीर से युद्ध कर। मैंने पूर्व में बताया है कि कोई भी कर्म मन की आसक्ति से ही सम्बन्ध रखता है। यदि मन का अनुराग निरन्तर श्रीकृष्ण में रखा जायगा तो न पाप का फल मिलेगा, न पुण्य का फल मिलेगा केवल श्रीकृष्ण भक्ति का ही फल मिलेगा - यही 'कर्मयोग' है। अर्जुन समझ तो गया किंतु पुनः सोचने लगा कि जब पुण्य एवं पाप दोनों का फल उपर्युक्त प्रकार से नहीं मिलना है तो कर्म धर्म का पालन ही क्यों किया जाय? फिर तो युद्ध त्याग कर केवल भक्ति ही करना बुद्धिमत्ता है। कर्मयोग के श्रम से तो कर्म संन्यास युक्त भक्ति सुगम है। इसका उत्तर भी श्रीकृष्ण ने दिया। यथा;
संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते॥(गीता 5-2)
अर्थात् तेरा सोचना भी ठीक है किंतु कर्म करने में एक परोपकार भी है। वह यह कि लोग तेरे कर्म का अनुकरण करेंगे। अर्थात् धर्म का पालन करेंगे। यदि तू केवल भक्ति करेगा तो लोग धर्म के त्याग मात्र का ही अनुकरण करेंगे। अतः जैसे मैं कर्मयोग का पालन कर रहा हूँ, ऐसे ही तू भी कर। ताकि अनुकरणकर्ता नास्तिक न बनें। सारांश यह कि धर्म एवं अधर्म बन्धनकारक है। केवल भक्ति ही ग्राह्य है। फिर लोक आदर्श के लिये कर्म करे या न करे।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या - 68०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - भारतीय संस्कृति के प्रमुख प्रतीकों में तिलक का प्रमुख स्थान है. प्राचीन काल में जब लोग युद्ध के लिए जाया करते थे तो तिलक से अभिषेक करके उनके लिए मंगलकामनाएं की जाती थीं. वर्तमान में भी हम तमाम शुभ अवसरों और पूजा–पाठ के दौरान इस पावन तिलक को अपने माथे पर लगाते हैं. हमारे यहां इसे टीका, बिंदी, आदि के नाम से तिलक को जाना जाता है. सनातन परंपरा में बगैर माथे पर तिलक लगाए कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है. मूलत: तिलक तीन प्रकार का होता है.एक रेखाकृति तिलक, द्विरेखा कृति तिलक और त्रिरेखाकृति तिलक.इन तीनों प्रकार के तिलकर के लिए चंदन, केशर, गोरोचन और कस्तूरी का प्रयोग किया जाता है.जिनमें कस्तूरी का तिलक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.दिन के हिसाब से लगाएं तिलकप्रत्येक दिन के एक देवता और ग्रह निश्चित हैं. ऐसे में देवता विशेष का आशीर्वाद पाने के लिए दिन के हिसाब से तिलक लगा सकते हैं. जैसे सोमवार का दिन भगवान शिव और चंद्रदेव को समर्पित है. इस दिन सफेद चंदन का तिलक लगाना चाहिए. मंगलवार का दिन श्री हनुमान जी और मंगल ग्रह को समर्पित है, इसलिए इस दिन लाल चंदन अथवा चमेली के तेल में सिंदूर का तिलक लगाएं. बुधवार को सूखे सिंदूर का तिलक लगाकर गणपति की कृपा प्राप्त करें. चूंकि गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति और भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए इस दिन मस्तक पर पीले चंदन या फिर हल्दी का तिलक लगाएं. शुक्रवार को लाल चंदन अथवा सिंदूर का तिलक और शनिवार के दिन भस्म का तिलक लगाएं. रविवार का दिन प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य को समर्पित है और इस दिन शुभता एवं मंगल की कामना लिए लाल चंदन का तिलक लगाएं.मस्तक पर तिलक लगाने का लाभतिलक हमारे पूरे शरीर को संचालित करने का केंद्र बिंदु है. मान्यता है कि मस्तक पर लगाये जाने वाले तिलक से चित्त की एकाग्रता बढ़ती है और मस्तिष्क में पैदा होने वाले विचारों से जुड़ा तनाव दूर होता है. तिलक लगाने व्यक्ति के शरीर में एक आभा उत्पन्न होती है और यही आभा व्यक्तित्व के विकास की ओ अग्रसर करती है. धीरे–धीरे यह आभा व्यक्ति को परमानंद की ओर ले जाती है. देश में विभिन्न पंरपरा और संप्रदाय से जुड़े लोग लंबा, गोल, आड़ी तीन रेखाओं वाला आदि तरीके से तिलक लगाते हैं.
- ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियां होती हैं और इन राशियों का भिन्न-भिन्न स्वभाव होता है। दरअसल इन सभी राशियों के स्वामी 9 ग्रह हैं और इन्हीं ग्रहों का प्रभाव राशियों के ऊपर देखने को मिलता है। ऐसे में हर व्यक्ति का स्वभाव, चरित्र और कार्य क्षमता भी भिन्न होती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुछ विशेष राशियों की लड़कियां शादी के बाद अपने पति के लिए बेहद ही भाग्यशाली मानी जाती हैं। जिस किसी पुरुष की शादी इन राशियों की कन्याओं से होती हैं उनका जीवन धन्य हो जाता है। ये लड़कियां शादी करके जिस घर में भी जाती हैं, उस घर को रौशन कर देती हैं। इनके जाने से वहां धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती है। आइए जानते हैं ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, किन-किन राशियों की लड़कियां अपने पति के लिए होती हैं बेहद भाग्यशाली-कर्क राशिइस राशि की कन्याएं अपने जीवनसाथी के लिए भाग्यशाली होती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस राशि की लड़कियां शादी करके जिस घर में जाती हैं, उस घर को ख़ुशियों से रौशन कर देती हैं। इनके आगमन के बाद ससुराल में धन्य-धान्य की कोई कमी नहीं रहती है। इस राशि की लड़कियां अपने पति को बेहद प्रेम करती हैं और उन्हें हर संभव सुखी देखना चाहती हैं। ये अपने जीवनसाथी का हर सुखदुख में साथ निभाती हैं। ये अपने स्वभाव से अपने ससुराल वालों का दिल जीत लेती हैं।मकर राशिमकर राशि की कन्या अपने जीवनसाथी के भाग्य को चमका देती हैं। इस राशि की कन्याएं ससुराल में खूब कामकाज करती हैं। इनकी तार्किक शक्ति एवं समझदारी पति के लिए काफी कारगर साबित होती है। इस राशि की लड़कियां अपने पति के जीवन को सुखी और समृद्धशाली बना देती हैं। इस राशि की कन्याएं स्वयं तो खुश रहती हैं साथ ही अपने ससुराल वालों के चेहरे की भी मुस्कान बनती हैं।कुंभ राशिकुंभ राशि की लड़कियां खूब मेहनती होती हैं। ये अपने जीवनसाथी और अपने ससुराल की तरक्की में बढ़-चढ़कर हाथ बंटाती हैं। इस राशि की लड़कियां अपनी पति का बहुत ध्यान रखती हैं। इनका आत्मविश्वास कम नहीं होता है। ये अपने पति की हिम्मत होती हैं। चाहें कैसी भी परिस्थितियां हों ये अपने पति का साथ नहीं छोड़ती हैं। ये अपने परिवार की खुशियों के बारे में ही सोचती हैं।मीन राशिइस राशि की लड़कियां बेहद ही संवेदनशील होती हैं। ये अपने ससुराल वालों की खूब देखभाल करती हैं। ये अपने पति को हमेशा खुश रखना चाहती हैं। ये अपने पति के भाग्य में वृद्धि करती हैं। इस राशि की कन्याएं जिस किसी से भी शादी करती हैं, उनकी जिदंगी बना देती हैं। वे अपने जीवन में खूब तरक्की करते हैं।
- आज हरियाली अमावस्या है। श्रावण मास में पडऩे वाली इस अमावस्या को श्रावणी अमावस्या भी कहते हैं। श्रावणी किसानों के लिए हरियाली अमावस्या विशेष होती है। किसान इस दिन एक-दूसरे को गुड़ और धानी की प्रसाद देकर अच्छे मानसून की शुभकामना संदेश देते हैं। साथ ही वे अपने कृषि यंत्रों का पूजन भी करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, हरियाली अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए पिंडदान और दान-धर्म करने का महत्व है। इस दिन दिन वृक्षारोपण का कार्य विशेष रूप से किया जाता हैं। कहते हैं श्रावणी अमावस्या के दिन एक नया पौधा लगाना शुभ माना जाता हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, ग्रह और व्यक्ति की राशियों के बीच गहरा संबंध होता है। इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन अपनी राशि के अनुसार पौधे रोपने से व्यक्ति की परेशानियां दूर हो जाती हैं। आप अपनी राशि के अनुसार ये पेड़-पौधे लगा सकते हैं--मेष राशि-हरियाली अमावस्या के दिन मेष राशि वाले जातकों को आंवला का वृक्ष लगाना चाहिए।- वृष राशि- श्रावणी अमावस्या के दिन वृष राशि के जातकों को जामुन का पेड़ लगाना चाहिए।-मिथुन राशि-हरियाली अमावस्या के दिन मिथुन राशि के जातकों को चंपा का पौधा लगाना चाहिए।-कर्क राशि- हरियाली अमावस्या के दिन कर्क राशि के जातकों को पीपल का पेड़ लगाना चाहिए।-सिंह राशि-हरियाली अमावस्या पर सिंह राशि के जातकों को वटवृक्ष अथवा अशोक का वृक्ष लगाना चाहिए।-कन्या राशि-हरियाली अमावस्या के दिन कन्या राशि के जातकों को जूही और बेलपत्र का पेड़ लगाना चाहिए।- तुला राशि-हरियाली अमावस्या के दिन तुला राशि के जातकों को अर्जुन या नांग केसर का पेड़ लगाना चाहिए।-वृश्चिक राशि- हरियाली अमावस्या के दिन वृश्चिक राशि के जातकों को नीम का वृक्ष लगाना चाहिए।-धनु राशि-श्रावणी अमावस्या के दिन धनु राशि के जातकों को कनेर का पेड़ लगाना चाहिए।-मकर राशि- हरियाली अमावस्या के दिन मकर राशि के जातकों को नारियल अथवा शमी का पेड़ लगाना चाहिए।- कुंभ राशि-हरियाली अमावस्या के दिन कुंभ राशि के जातकों को आम या फिर कदंब का पेड़ लगाना चाहिए।-मीन राशि- हरियाली अमास्या के दिन मीन राशि वाले जातकों को बेर का पेड़ लगाना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 365
साधक का प्रश्न ::: भगवान और महापुरुष स्वयं अपनी भगवत्ता को भूल जाते हैं या जानबूझकर के भूलते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: वे जानबूझकर भूलते हैं। योगमाया के द्वारा वे नीचे उतरते हैं संसारियों के साथ क्योंकि कल्याण करना है उनका। सब मालूम है उनको। देखो अपने बच्चे को पढ़ाना है। बच्चा दर्जा एक में है। वो प्रोफेसर जो यूनिवर्सिटी में पढ़ाता है उसको मालूम है मैं प्रोफेसर हूँ और एम. ए. पढ़ाता हूँ। लेकिन बच्चे को तो दर्जा एक पढ़ाना है शुरुआत है। वो उसी तरह नीचे आयेगा और बोलेगा बेटा बोलो 'क', कहेगा 'क', अब बोलो 'म' म। अब बोलो 'ल' ल। अब मिला कर बोलो 'कमल' तो वो बोलेगा 'कमल'। अब देखने वाला देखता है कि ये बोलने वाला कमल ऐसे बोल रहा है और लोग कहते हैं कि ये एम. ए. पढ़ाता है? लेकिन अगर ऐसे न पढ़ाये वो तो बच्चा पढ़ेगा कैसे? लेक्चर देगा वो एम. ए. का!!
देखो रामायण में तुम पढ़ते हो जगह जगह कि राम ने पूछा तब उनको मालूम हुआ कि विभीषण ने बताया तब उनको मालूम हुआ, लक्ष्मण को ऐसा हुआ यानी सबको अज्ञान था। अगर रामायण की पुस्तक को कोई पढ़ करके ये न जानें कि राम ब्रह्म हैं, लक्ष्मण ब्रह्म हैं तो वो सोचेगा कि राम संसारी आदमी हैं और संसारी आदमी की तरह किया बल्कि उनसे और चार कदम आगे सीता के लिये विलाप जो किया है वैसा संसार में कोई नहीं कर सकता अपनी श्रीमती के लिये। संसारियों की तरह नहीं करेंगे तो लीला कैसे बनेगी! अपनी पर्सनैलिटी में रहेंगे तो क्षीरसागर में सोते रहेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2018 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! केवल धन की सेवा से भी लक्ष्य प्राप्ति हो सकती है। यानी गुरु की धन की सेवा की जो आज्ञा है और वो पूरी जी जान से आदमी करता रहे, तो उससे भी भगवत्प्राप्ति हो सकती है केवल अगर वही आज्ञापालन कर ली जाय तो?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: नहीं, मेन बात तो शरणागति की है। बिना मन की शरणागति के तन और धन से काम नहीं चलेगा। मन की शरणागति मेन प्वाइंट। उसके बाद हैं ये सब।
चेतस्तत् प्रवणं सेवा।
यानी मन का पूर्ण सरेण्डर, पूर्ण शरणागति - यह नम्बर एक।
तत् सिद्धयै तनु वित्तजा।
उसके हैल्पर हैं शरीर से सेवा, धन से सेवा और फिर एक रीजन ये भी है कि तन की सेवा सबको नहीं मिल सकती हमेशा। धन की सेवा सब नहीं कर सकते। बहुत से हैं उनको रोटी दाल का ही ठिकाना नहीं है अपना, वो कैसे करेंगे? लेकिन मन की शरणागति सब कर सकते हैं, वो प्रमुख है उसके बिना काम नहीं चलेगा। इतने सारे मन्दिर बनवा दिये हैं सेठ जी ने, धन से। लेकिन इससे कुछ नहीं होता। पाप से पैसा इकट्ठा करके मंदिर खड़ा कर दिया और उसमें अपना नाम लिख दिया। वह सेठ जी का मंदिर है कि भगवान का मंदिर है। ऐसे लोगों को नरक के सिवाय क्या मिलेगा। तो धन की सेवा क्या हुई? सेवा में श्रद्धा, भगवद-भावना का मिक्स्चर होना चाहिये और जहाँ अपनी प्रतिष्ठा का सवाल है वह सेवा कहाँ है? वह तो इनकम-टैक्स से बचने का उपाय है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2008 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 363
साधक का प्रश्न ::: मीराबाई द्वारिकानाथ में समा गईं ऐसा कहा जाता है। क्या ये सत्य है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: कहाँ द्वारिका में समा गई? द्वारिकानाथ नहीं द्वारका जी में। द्वारिकानाथ वहाँ खड़े थे क्या? कौन हैं द्वारिकानाथ? द्वारिकानाथ भगवान श्रीकृष्ण हैं न। तो कृष्ण वहाँ पत्थर में हैं क्या? श्रीकृष्ण तो गोलोक में रहते हैं। वो गोलोक चली गई मीरा। बात खतम।
पत्थर की मूर्ति में कोई नहीं समाता। वो तो भगवान के लोक चले जाते हैं महापुरुष लोग और भगवान भी अपने लोक को जायेंगे जब लीला समाप्त हो जायेगी। बस हो गया। अब वो पैदल गये, कि साइकिल से गये, कि मोटर साइकिल से गये इससे क्या मतलब है। भगवान को जाना है चाहे जिस तरह से जायें। ये सवाल करने वाले बेवकूफ हैं। तुमको इन बातों से क्या मतलब पड़ा था।
कभी ये प्रश्न नहीं करना। किसी अवतार में किस प्रकार अन्तर्धान होते हैं, किसी अवतार में कैसे! बाण मारा बहेलिये ने श्रीकृष्ण को और अन्तर्धान हो गये। बाण मारने की जरूरत क्या थी ऐसे ही अन्तर्धान हो जाते। लीला करना है जैसे भी लीला करें। उन पर प्रतिबन्ध नहीं। गौरांग महाप्रभु के लिये कोई बता दे कि वो ऐसे गये थे। तो उसको जानकर फायदा क्या हुआ तुम्हारा? वो तो चले गये।
उनके सिद्धान्त का पालन करो जो कुछ उन्होंने बताया है जीवों के लिये वो करो तो उससे लाभ हो। भगवान के अवतार हुये हैं या होंगे सब समझे रहो कि वो अंतिम समय में वो अपने लोक को जायेंगे। जाने का तरीका वो चाहे संसार को दिखा दें। मूर्ति में लीन हो गये ये दिखा दें, समुद्र में लीन हो गये ये दिखा दें, गायब हो गये ये दिखा दें। वो तो अनेक नाटक कर सकते हैं, इसमें क्या है, वो तो खेल करने आये ही हैं। भगवान बन करके तो भगवान आ नहीं सकते। वो तो लीला करने आये हैं। लीला में तो सभी बातें हो सकती हैं। लीला में रस लेना चाहिये बस। ये कहते हैं वो भी ठीक है। एक आदमी कहता है कि नहीं नहीं हमने सुना है कि पेड़ पर चढ़कर गायब हुये थे, वो भी ठीक है। क्या बात है आपको एतराज क्या है। वे चले गये बस हो गया। तो आप पूछेंगे कि क्या सबूत। आप खड़े थे वहाँ? तो ऐसी बहस में क्यों पड़ा जाय। बात समझो। वो कैसे भी जा सकते हैं जैसी उनकी इच्छा हो वैसे जा सकते हैं। उनके ऊपर कोई कायदा कानून नहीं है। कोई यमराज उनसे नहीं कहेगा कि ऐसा करो।
ध्रुव जी जब भगवान के लोक को गये तो यमराज आया, अपना सिर झुका करके उनके आगे खड़ा हो गत पुष्पक विमान के साथ। उसके ऊपर पैर रख कर के ध्रुव जी चढ़ गये विमान के ऊपर। तो यमराज आता है महापुरुष के पास भी लेकिन उनके चरण स्पर्श चाहने के लिये आता है। वो ये नहीं कह सकता कि ऐसा करना होगा तुमको। तो भगवान को क्या कहेगा वो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2017 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कहा जाता है कि हाथों में बनी लकीरों में व्यक्ति का भाग्य छिपा होता है। हस्तरेखा शास्त्र एक बहुत ही प्राचीन विधा है, जिसमें हथेली में बनी रेखाओं का आकलन करके व्यक्ति के भविष्य के संबंध में जानकारी दी जाती है। हथेली की रेखाएं सदैव एक जैसी नहीं रहती हैं। ये समय समय पर बदलती रहती हैं। जिसके कारण हथेली में कई प्रकार के चिन्हों का निर्माण होता है। कई बार ये चिन्ह अशुभ होते हैं तो कई बार ये चिन्ह व्यक्ति का भाग्य चमका देते हैं। हस्तरेखा में एक ऐसे ही चिन्ह का जिक्र किया गया है। यदि यह चिन्ह किसी के हाथ में बनता है तो बेहद ही शुभ माना जाता है। हस्तरेखा शास्त्र कहता है कि यह चिन्ह व्यक्ति को जीवन में लोकप्रियता दिला सकता है। हथेली में यह चिन्ह जिस स्थान पर बना होता है, उसी के अनुसार फल भी प्रदान करता है।ज्योतिषशास्त्र में माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि ग्रह शुभ भाव में विराजमान हैं, तो शनिदेव उस पर बहुत ही मेहरबान होते हैं। शनि की कृपा पड़ने से व्यक्ति के जीवन में खुशी और ढ़ेर सारा धन आता है और व्यक्ति तरक्की करते हुए सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ता चला जाता है। शनि की शुभ स्थिति देखने के लिए न सिर्फ कुंडली में शनि का अच्छे भाव में होना देखा जाता है, बल्कि हथेली में भी शनि पर्वत और शनि रेखा को देखकर जाना जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति की हथेली में शनि रेखा मणिबंध से आरंभ होकर सीधे चलकर उंगली के नीचे वाले हिस्से जिसे शनि पर्वत कहा जाता है वहां पर आकर मिले तो व्यक्ति बहुत ही सफलता प्राप्त करता है। यह रेखा सीधे बिना रुकावट के आने पर व्यक्ति अपने जीवन में बहुत धन कमाता है।अगर किस व्यक्ति की हथेली में शनि पर्वत पर कोई तिल बना हुआ होता तो भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में खूब पैसे बनाता है और समाज में उसकी अच्छी मान-प्रतिष्ठा बनती है। ऐसे व्यक्ति बहुत ही कम समय में मुकाम हासिल कर लेते हैं।वहीं दूसरी तरफ अगर किसी व्यक्ति की हथेली में शनि पर्वत पर एक से ज्यादा रेखाएं बनी हुई होती हैं या जालनुमा कोई आकृति हो तो इसे शनि की दशा माना जाता है। शनि पर्वत पर कई रेखाओं का अच्छा नहीं माना जाता है। यह इस बात का संकेत करती है कि व्यक्ति के जीवन में परेशानियां बनी रहती है। अगर किसी व्यक्ति की हथेली में मणिबंध से होते हुए को रेखा निकलकर शनि पर्वत पर जाने से पहले ही बीच में रुक जाती हो तो या नौकरी और व्यापार में आने वाली कई तरह की परेशानियों का संकेत है।अगर किसी व्यक्ति के हथेली पर शनि पर्वत ऊंचा उठा हुआ है और उस पर्वत पर कोई रेखा एकदम साफ और स्पष्ट रूप से बनी है तो यह राजयोग का संकेत माना जाता है। ऐसे व्यक्तियों की गिनती धनवान लोगों में होती है।
- हस्तरेखा शास्त्र ज्योतिष की ही एक शाखा है। इसमें व्यक्ति के हाथों में बनी लकीरों को देखकर व्यक्ति के बारे में बताया जाता है। हथेली पर कई आड़ी-तिरछी रेखाएं होती हैं, जिनमें से हृदय रेखा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हथेली में बुध पर्वत के नीचे से शुरू होकर गुरु पर्वत की ओर बढ़ने वाली रेखा को हृदय रेखा कहते हैं। इस रेखा से व्यक्ति के व्यवहार के बारे में बहुत सी जानकारी दी जा सकती है। इस रेखा का संबंध व्यक्ति की भावनाओं से होता है। जानते हैं कि कैसी हृदय रेखा वाले लोग होते हैं दयावान और अच्छे प्रेमी होते हैं और कैसी हृदय रेखा के लोग होते हैं मतलबी।जब किसी जातक की हथेली पर में रेखा बुध पर्वत से शुरू होकर गुरु और शनि पर्वत के बीच अंगुलियों के मिलने वाले भाग तक जाती है उसे सबसे सुंदर हृदय रेखा माना जाता है। ऐसे लोग सच्चे प्रेमी साबित होते हैं। ये लोग छोटी छोटी बातों को नजरंदाज कर देते हैं और रिश्तों की अहमियत रखते हैं। ये लोग सभी का ख्याल रखते हैं।किसी व्यक्ति की हथेली में जब हृदय रेखा सीधी शनि पर्वत के नीचे तक जाती है तो ऐसे व्यक्ति को पैसे से मोह होता है। ऐसा व्यक्ति धन कमाने के लिए विभिन्न प्रकार के समझौते करने के लिए भी तैयार होता जाता है। ये लोग मतलबी किस्म के होते हैं इनका काम निकलने के बाद ये किसी से मतलब नहीं रखते हैं।जब हृदय रेखा बुध पर्वत से निकलकर सीधा गुरु पर्वत पर जाती है तो वह व्यक्ति को स्पष्टवादी और ज्ञानी बनाती है। ऐसे लोग अनुशासन प्रिय होते हैं साथ ही दूसरों को भी अनुशासन में रखना पसंद करते हैं। अनुशासन में रहने के कारण ये लोग कुशल प्रबंधक होते हैं। इन लोगों की अध्ययन अध्यापन में खूब रुचि रहती है।हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार जिनके हाथ में हृदय रेखा जितनी अधिक लंबी और गहरी होती है उतनी अधिक प्रभावी रहती है। जिन लोगों की हृदय रेखा गहरी और स्पष्ट होती है वे लोग सेवा और सत्कार करने में विश्वास रखते हैं। ये लोग भावनात्मक तौर पर भी बहुत मजबूत होते हैं।