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- ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक, जब शनि देव किसी पर प्रसन्न होते हैं तो उनके सभी कष्टों को दूर कर लेते हैं। शनि महाराज का आशीर्वाद पाने के लिए शनि चालीसा का पाठ बहुत ही कारगर उपाय है। शानि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि चालीसा या पाठ किया जाता है। इसे करने से घर में सुख- समृद्धि आती है। साथ ही घर में धन की कमी नहीं होती है। इस पाठ को करने से सभी परेशानियां दूर हो जाती है। शनि चालीसा का पाठ इस प्रकार है -|| अथ श्री शनिदेव चालीसा पाठ |||| दोहा ||जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥|| चौपाई ||जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥|| दोहा ||पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
- शुभ रक्षाबन्धन 2021Happy Raksha-Bandhan 2021
(भूमिका - आज रक्षाबन्धन का पावन पर्व है, अतः आप सभी नियमित सुधी पाठक समुदाय को अनंत अनंत शुभकामनायें. विगत एक वर्ष से 'धर्म-अध्यात्म' के इस स्तम्भ में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा कलिमलग्रसित हम दुःख-संतप्त जीवों के कल्याण के लिये दिये गये दिव्य उपदेशों का, प्रवचनों एवं उनके रस-साहित्यों का पठन-चिन्तन करते आ रहे हैं। भविष्य में भी भगवत्कृपा के आश्रय में रहते हुये उनकी प्रेरणा से इस श्रृंखला को निरन्तर बनाये रखने का प्रयास किया जायेगा। इसके 374-वें अंक में आइये आज 'रक्षाबन्धन' के अवसर पर उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत इस उपदेश का चिन्तन करें कि वास्तविक 'रक्षाबन्धन' क्या है, वास्तविक 'रक्षक' आखिर कौन है..?)....
"'आजु रक्षा बंधन गोविंद राधे,रक्ष रक्ष रक्ष दोउ गलबहियाँ दे..'
'रक्षा करे हरि गुरु गोविंद राधे,मायाधीन भैया रक्षा करे ना बता दे..'
रक्षा तो वो करे जो हमेशा साथ रहे. किस बेटे के साथ बाप हमेशा रहेगा? किस बीबी के साथ उसका पति हमेशा रहेगा? किस बहिन के साथ भाई हमेशा रहेगा? लेकिन भगवान् हमारा बाप, हमारा भाई, हमारा बेटा, ऐसा है जो सदा हमारे साथ रहता है. एक बटा सौ सेकंड को भी हमसे अलग नहीं जाता :
सयुजा सखाया समानं वृक्षम् परिषस्वजाते. (श्वेताश्वेतरोपनिषद 4-6)
समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोनिशया शोचति मुह्यमानः. (श्वेताश्वतरोपनिषद 4-7)
प्रतिक्षण,
एको देवः सर्वभूतेषु गूढ़: सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा. (श्वेताश्वतरोपनिषद 7-11)
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्येशेर्जुन तिष्ठति. (गीता 18-61)
वो बैठा है वहाँ. आता जाता है? नहीं. जीव उसी में रहता है. 'य आत्मनि तिष्ठति' (वेद)
वेद कहता है, ये जीव परमात्मा में रहता है. देखो ! ये जो आप लोगों के यहाँ ये लाइट हो रही है, ये पंखें चल रहे हैं. ये क्या है? इलैक्ट्रिसिटी, बिजली. ये बिजली जो है, पॉवर हाउस से लगी है न. हाँ ! आती जाती है. न न न. आती जाती होगी तो जलती बुझती रहेगी. उससे लगी है तब तक लाइट है. लगना बंद हो गया पॉवर हाउस से, बस अंधेरा हो गया.
चेतनश्चेतनानामेको बहूनां यो विदधति कामान्.(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-13)
वेद कहता है - ये चेतन जो है जीव, इसमें चेतना देता रहता है प्रतिक्षण. तब ये हम चेतन हैं. वो अगर चेतना देना बंद करे तो हम जीरो बटे सौ हो जायें. जैसे ये तकिया ऐसे हो जायें (दिखाते हुए). तो वो (भगवान्) हमारी रक्षा करता है. मां के पेट में हम उल्टे टंगे रहे, उल्टे. अगर उसी तरह उल्टा आपको कोई टाँग दे, दो हफ्ते को उल्टा, पैर ऊपर सिर नीचे, तो पहलवान भी जीरो बटे सौ हो जाय. इतना कोमल हमारा शरीर था माँ के पेट में, उल्टे टंगे रहे, लेकिन वो रक्षा करता रहा. रक्षा किया उसने पैदा होते ही, उसने फिर रक्षा किया, माँ के स्तन में दूध बना दिया, फिर संसार बना दिया. फिर रक्षा किया, खाने-पीने का सामान और हर क्षण हमारे साथ चेतना दे रहा है, हमारे पूर्व जन्म के कर्मों के हिसाब का फल दे रहा है. वर्तमान काल के कर्मों को नोट करके जमा कर रहा है. इतनी रक्षा करता है वो (भगवान्)......
...तो रक्षाबंधन के दिन हरि-गुरु से रक्षा की आशा करके और उनके शरणागत होकर के हमको अपनी रक्षा करवानी चाहिए...."
--- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कई बार कड़ी मेहनत करने के बावजूद हमें वो परिणाम नहीं मिल पाते जिसके हम हकदार हैं. आमतौर पर लोग इसको भाग्य से जोड़कर देखते हैं. ये सच है कि सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत और भाग्य दोनों का कॉम्बिनेशन जरूरी है. लेकिन कई बार हमारे नुकसान का जिम्मेदार भाग्य नहीं, बल्कि हमारी कुछ गलतियां होती हैं, जो हम अनजाने में करते हैं.वास्तु शास्त्र के मुताबिक कुछ चीजें ऐसी हैं, जिन्हें घर में रखने मात्र से ही नकारात्मकता आती है. इससे हमारे कामों में विघ्न आने लगता है. मेहनत के बावजूद सफलता नहीं मिल पाती और आर्थिक नुकसान बहुत होता है. यहां जानिए उन चीजों के बारे में और अगर ये चीजें आपके भी घर में हैं तो इन्हें आज ही घर से बाहर कर दें.1. अगर आपके घर में टूटे बर्तन, चटका शीशा, बंद घड़ी, टूटे दीपक, खराब इलेक्ट्रॉनिक आइट्म और पुरानी झाड़ू है तो इन्हें आज ही घर से बाहर कर दें. इन चीजों से हमारी तरक्की बाधित होती है. ऐसे में मां लक्ष्मी घर में ठहर नहीं पातीं और आर्थिक नुकसान होता है.2. अगर आप अपने पास फटा पर्स रखते हैं या पर्स में भगवान की फटी तस्वीर है तो इसे हटा दें. इससे आपको पैसों का नुकसान होता है. आर्थिक तरक्की के लिए अपने पर्स में 5 इलाएची रखें. इन्हें शुभ माना जाता है. इसके अलावा घर में अगर टूटी तिजोरी हो, तो उसे भी हटा दें.3. घर में कांटेदार पौधे या ऐसे पौधों की तस्वीर, ताजमहल की मूर्ति या तस्वीर, महाभारत या किसी युद्ध की तस्वीर, जंगली हिंसक जानवर या डूबती नाव आदि की तस्वीर नहीं रखनी चाहिए. ये चीजें घर में नकारात्मकता लाती हैं और व्यक्ति को असफलता के मार्ग की ओर धकेलती हैं. इससे घर में क्लेश और झगड़े बढ़ते हैं.4. छत पर कबाड़ इकट्ठा करने और छत को गंदा रखने से भी बरकत नहीं आती है. इससे मानसिक उलझनें खत्म होने का नाम नहीं लेतीं और आर्थिक नुकसान होता है.
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भाई-बहन के स्नेह का पर्व रक्षाबंधन पर 22 अगस्त को शोभन योग और धनिष्ठा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। सुबह शोभन योग और शाम को धनिष्ठा नक्षत्र होने से यह शुभ फलदायी होगा। सुबह से लेकर शाम तक बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध सकेंगी। सुरेश्वर महादेव पीठ के संस्थापक पंडित राजेश्वरानंद सरस्वती के अनुसार 21 अगस्त को शाम 3.45 बजे से पूर्णिमा तिथि शुरू होकर 22 अगस्त को शाम 5.58 बजे तक रहेगी।
रक्षाबंधन के दिन सुबह 6.15 से लेकर 10.34 बजे तक शोभन योग है और धनिष्ठा नक्षत्र 7.39 बजे तक रहेगा। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक राखी बांधी जा सकेगी। सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त दोपहर 12.04 से 12.58 बजे तक अभिजीत मुहूर्त और 1.44 से 4.03 बजे तक शुभ मुहूर्त है।
भाई को उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बिठाएं। माथे पर तिलक लगाकर आरती उतारें। बड़े भाई के चरण स्पर्श करके मंत्र पढ़ें। यह मंत्र पढ़कर बहनें, भाई को रक्षा सूत्र बांध सुख समृद्धि की कामना करें।
भाई की राशि अनुसार रक्षा सूत्र
मेष - लाल रंग की राखी बांधकर मालपुआ खिलाएं, मानसिक शांति मिलेगी।
वृषभ - सफेद रेशमी डोरी वाली राखी बांध रसमलाई खिलाने से नौकरी व्यापार में लाभ।
मिथुन - हरे रंग की राखी बांध हरी बर्फी, गुलाब जामुन खिलाएं। विचार शक्ति बढ़ेगी।
कर्क - सफ़ेद रेशम वाली राखी बांध कलाकंद, बादाम कतली खिलाने से मान-सम्मान बढ़ेगा।
सिंह - नारंगी राखी बांध घेवर, बालुशाही खिलाने से नौकरी, शिक्षा में लाभ।
कन्या - गणेशजी के प्रतीक वाली राखी बांध, मोतीचूर के लड्डू खिलाने से वैवाहिक जीवन सुखदायी।
तुला - रेशमी हल्के गुलाबी डोरे वाली राखी बांध काजू कतली, मावा बर्फी खिलाएं। व्यवसाय में लाभ।
वृश्चिक - चमकीला लाल रंग की राखी बांधें। पंचमेवा बर्फी, अंजीर कतली खिलाएं। बीमारी में राहत।
धनु - पीले धागे की राखी बांधें। बेसन चक्की, जलेबी खिलाएं। नौकरी, व्यापार में लाभ
मकर - बैंगनी राखी बांधकर गुलाब जामुन खिलाने से बाधा निवारण।
कुंभ - नीले धागे वाली राखी बांध हलवा, सोन पपड़ी खिलाएं। धन संपत्ति लाभ।
मीन - पीले धागे वाली राखी बांध, केसर बाटी खिलाएं। मन पवित्र रहेगा।
== - गरुड़ पुराण में बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति के जन्म मरण का सिलसिला तब तक खत्म नहीं होता, जब तक आत्मा को मोक्ष नहीं मिल जाता। मरने के बाद व्यक्ति के कर्मों के हिसाब से आत्मा स्वर्ग, नर्क या पितृलोक में जाती है और कर्मफल को भोगती है। वहां की अवधि समाप्त होने के बाद आत्मा फिर से नया शरीर धारण करके धरती पर जन्म लेती है।धरती पर पुनर्जन्म लेने के बाद व्यक्ति को ये याद नहीं रहता कि जन्म से पहले वो किस लोक में था, लेकिन गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति स्वर्ग लोक के सुख भोगकर आया है, तो उसके अंदर जन्म लेने के बाद कुछ विशेष गुण पाए जाते हैं। उन गुणों से आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि उस व्यक्ति की आत्मा इस जन्म से पहले स्वर्ग लोक में थी। यहां जानिए उन विशेष गुणों के बारे में.....-स्वर्ग से लौटने वाली आत्मा में दूसरों के प्रति दयाभाव होता है। वो हमेशा दूसरों के हित में सोचते हैं और गरीब, असहायों की नि:स्वार्थ मदद करते हैं। कहा जाता है कि ऐसे कर्म करने वालों के घर पर परमेश्वर हमेशा वास करते हैं, क्योंकि भगवान ने भी जब भी धरती पर जन्म लिया है तो जनहित के ही कार्य किए हैं।- दान से बड़ा कोई धर्म नहीं है। जो व्यक्ति स्वर्ग से लौटकर धरती पर आता है, उसमें दान करने की भावना निहित होती है। वो किसी लाभ के लिए दान नहीं करता, बल्कि लोगों की मदद के लिए ऐसा करता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है और ये सब करने से उसे मानसिक शांति प्राप्त होती है।-स्वर्ग से लौटा व्यक्ति का लोगों के साथ व्यवहार काफी अच्छा होता है। वो सभी का प्रिय होता है और उनके हित के विषय में सोचता है। अपनी वाणी से वो लोगों का मन जीत लेता है और जहां भी जाता है, वहां सम्मान प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा लोगों को प्रोत्साहित करता है और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।- स्वर्ग से धरती पर जन्म लेने वाले व्यक्ति की आत्मा पवित्र होती है। ऐसा व्यक्ति बहुत मिलनसार होता है। अपने कर्मों से वो अपना स्थान स्वयं बनाता है। उसके दांत बहुत सुंदर होते हैं और उसके कर्मों का प्रताप उसके दांतों पर भी नजर आता है।-स्वर्ग से आए व्यक्ति पर हमेशा भगवान की कृृपा रहती है। उसकी सेहत अच्छी रहती है और वो बड़े से बड़े संकट से बाहर निकलने का हौसला रखता है। ऐसा व्यक्ति समाज की सेवा करने का हर संभव प्रयास करता है और तमाम पुण्य करके अपना कीर्तिमान स्थापित करता है।
- संकटमोचन हनुमान जी के चित्र या प्रतिमा को ध्यान में रखते हुए वास्तु में कई नियम बताए गए हैं -संकटमोचन हनुमान भगवान की शरण जो मनुष्य आता है उसके सारे दुख दर्द दूर हो जाते हैं। उस पर भगवान संकटमोचन की कृपा के साथ-साथ भगवान राम और भगवान शंकर की कृपा भी बन जाती है। हर मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा या फिर चित्र जरूर देखने को मिलता है। वास्तुशास्त्र में घर में देवी देवताओं के चित्र को लगाने की सही दिशा होती है जिससे घर में सुख शांति बनी रहती है। वास्तु के नियमों के अनुसार सही दिशा में सही तरह से संकटमोचन हनुमान की तस्वीर लगाई जाए तो कई लाभ हो सकते हैं।1. हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं इसीलिए उनका चित्र या प्रतिमा अपने शयनकक्ष में भूलकर भी ना रखें। उसे अपने घर के मंदिर में या फिर किसी अन्य पवित्र स्थान पर ही रखें।2. हनुमान जी का चित्र दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए लगाना चाहिए यह चित्र बैठी मुद्रा में और लाल रंग का होना चाहिए। हनुमानजी का प्रभाव अधिकतर इसी दिशा में दिखाया जाता है- जैसे लंका दक्षिण में थी, सीता माता की खोज दक्षिण से आरंभ हुई और लंका दहन और राम रावण का युद्ध भी दक्षिण दिशा में ही हुआ।3. दक्षिण दिशा में हनुमान जी को विशेष बलशाली दिखाया गया है। इसी प्रकार माना जाता है कि उत्तर दिशा में हनुमान जी का चित्र या प्रतिमा लगाने पर दक्षिण दिशा से आने वाली प्रत्येक दुर्घटना और परेशानियों को हनुमान जी रोक देते हैं .। वास्तु शास्त्र के अनुसार इससे घर में सुख और समृद्धि का समावेश होता है और दक्षिण दिशा से आने वाली हर बुरी ताकत को हनुमान जी रोक देते हैं।4. कहते हैं जिस रूप में संकटमोचन अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं, ऐसे चित्र या प्रतिमा को लगाने से किसी भी तरह की बुरी शक्ति आपके घर में प्रवेश नहीं कर सकती।
- रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र प्रेम का त्यौहार है। इस दिन बांधा गया राखी का यह सूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि यह भाई को अकाल मृत्यु के भय से भी बचाता है और उसके जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा दिलाता है। रक्षाबंधन को सलोनो नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद सूर्य को अध्र्य देने से सभी पापों का नाश हो जाता है। इस पवित्र दिन पंडित और ब्राह्मण पुरानी जनेऊ का त्याग कर नई जनेऊ धारण करते हैं। इस मंगलमय पावन और पवित्र त्योहार को मनाते हुए हमें कुछ बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए ....राखी बांध के वक्त बहन कुछ बातों का ध्यान रखें*1*रक्षाबंधन के दिन बहन को सूर्योदय होने से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए और स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना चाहिए ।2*इसके बाद अपने इष्ट देव की पूजा करनी चाहिए ।3*बहन जो राखी अपने भाई के कलाई में बांधनी है उसकी भी पूजा स्वर्ण, केसर, चन्दन, अक्षत और दूर्वा रख कर करनी चाहिए ।4*राखी की खाली सजाते समय थाली के अंदर बहन को रोली, कुमकुम, अक्षत, पीली सरसों के बीज, दीपक और राखी रखनी चाहिए।5*राखी की पूजा के बाद बहन भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में रक्षा का पवित्र सूत्र यानी कि राखी बांधें ।6*भाई को तिलक करने के बाद टीके पर अक्षत जरूर लगाएं फिर भाई को मिठाई खिलाएं ।7*भाई को अपनी बहन के पैर छुकर उसका आर्शीवाद लेना चाहिए और अपने सामथ्र्य के अनुसार भाई को अपनी बहन को कुछ भी उपहार भी करना चाहिए ।8*भाई को राखी बांधने से पहले बहनों को कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए ।रक्षाबंधन पर भाई क्या ना करें*1*रक्षाबंधन के दिन मास या मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए ।2* भाई को किसी भी प्रकार का झूठ अपनी बहन से नहीं बोलना चाहिए ।3*रक्षाबंधन के दिन बहन को नाराज न करें और न हीं किसी भी स्त्री का अपमान करें ।4*भाई को चाहिये की वह अपनी बहन को राखी के लिए इंतजार न कराएं ।5*भाई को रक्षाबंधन के दिन बहन पर गुस्सा नहीं करना चाहिए औरअगर बहन से कोई गलती भी हो जाए तो उसे माफ कर देना चाहिए ।6.रक्षाबंधन पर भाई को अपनी बहन और अपने से बड़ों का आर्शीवाद लेना चाहिए ।
- रक्षाबंधन एक अति प्राचीन पर्व है जो हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व में बहनें अपने भाइयों के हाथ में रेशम के धागों का एक सूत्र बांधती है और उसकी रक्षा की कामना करती है। किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सर्वप्रथम रक्षाबंधन का प्रसंग पति और पत्नी के सन्दर्भ में आता है। जब प्रथम देवासुर संग्राम में दैत्य देवों पर भारी पडऩे लगे और देवों की पराजय सामने थी तब देवराज इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा बताई। उनकी पत्नी इन्द्राणी भी वहीं बैठी थी। उन्होंने अपने वस्त्र से रेशम का एक धागा अलग किया और उसे अभिमंत्रित कर इंद्र की रक्षा हेतु उनकी कलाई पर बांध दिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। उस रक्षा कवच के कारण इंद्र उस संग्राम में विजय हुए। तब से ही रक्षाबंधन के इस पवित्र पर्व का आरम्भ हुआ।रक्षाबंधन हो लेकर कई धार्मिक कहानियां प्रचलित हैं....जैसे--प्राचीन काल में जब हयग्रीव नामक राक्षस ने वेदों का अपहरण कर लिया तब आज ही के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार लेकर उसका वध किया और वेदों की रक्षा की। तब से आज के दिन को रक्षा दिवस के नाम से जाना जाता है।-सूर्यदेव की पुत्री यमुना द्वारा भी यमराज को राखी बांधने का प्रसंग हमें पुराणों में मिलता है। भाईदूज की शुरुआत भी यही से हुई।-भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि का मान मर्दन किया और उन्हें पाताल का राज्य दे दिया। उनकी आज्ञा का पालन करते हुए दैत्यराज बलि पाताल तो चले गए किन्तु वहां जाकर उन्होंने नारायण की घोर तपस्या की। जब श्रीहरि प्रसन्न हुए तब बलि ने वरदान माँगा कि वे वही पाताल में रहें। तब भगवान विष्णु वहीं पाताललोक में स्थित हो गए। जब माँ लक्ष्मी को इस बात की जानकारी हुई तब वे घबरा कर पाताललोक पहुँची और दैत्यराज बलि की कलाई में रेशम की डोर बांध कर अपनी रक्षा की गुहार लगाई। इससे बलि ने देवी लक्ष्मी को अपनी भगिनी मानते हुए उन्हें उनकी रक्षा का वचन दिया। तब देवी लक्ष्मी ने दैत्यराज बलि से अपने पति को वापस मांग लिया। तब से भाइयों द्वारा बहनों को वचन के साथ-साथ कुछ उपहार देने की प्रथा भी चली और दैत्यराज बलि के नाम पर इस पर्व का एक नाम "बलेव" भी पड़ा। यही कारण है कि रक्षासूत्र बांधते हुए हम इस मन्त्र का उच्चारण करते हैं: येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥ - अर्थात: जिस सूत्र से महान दानवेन्द्र बलि को बांधा गया था, उसी रक्षासूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ। अत: हे रक्षे (राखी) तुम अपने संकल्प से कभी विचलित ना होना। तभी से आज तक ये मन्त्र किसी भी प्रकार के सूत्र को बांधते समय बोला जाता है।-एक बार श्रीगणेश के पुत्रों शुभ एवं लाभ ने अपने पिता को कहा कि उनकी कोई बहन नहीं है। उन्होंने अपने पिता से उन्हें एक बहन देने का अनुरोध किया। तब श्रीगणेश ने अपनी पत्नी रिद्धि एवं सिद्धि के सतीत्व के ताप से "संतोषी माता" को प्रकट किया। तब संतोषी मां द्वारा शुभ एवं लाभ को राखी बांधने का प्रसंग आता है।-रक्षाबंधन का एक प्रसंग महाभारत में तब आता है जब राजसु यज्ञ में शिशुपाल का वध करने के पश्चात सुदर्शन की धार से श्रीकृष्ण का रक्त बह निकला। तब द्रौपदी ने अपनी रेशमी साड़ी को चीर कर श्रीकृष्ण के घाव पर बांधा। तब श्रीकृष्ण ने सदैव द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया और चीरहरण के समय अपने इस वचन का पालन भी किया।-महाभारत में ही जब युधिष्ठिर जब श्रीकृष्ण से संकटों से बचने का उपाय पूछते हैं तो श्रीकृष्ण उन्हें राखी का पर्व मनाने की सलाह देते हैं। यशोदा की पुत्री एकानंगा एवं सुभद्रा द्वारा श्रीकृष्ण एवं बलराम को रक्षासूत्र बांधने का प्रसंग भी आता है। इसके अतिरिक्त एक प्रसंग आता है जब युद्ध से पहले कुंती अभिमन्यु की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हंै।-कम्ब एवं तमिल भाषा में रचित रामायण में भी ऋष्यश्रृंग की पत्नी और श्रीराम की बड़ी बहन शांता द्वारा चारों भाइयों को रक्षासूत्र बांधने का वर्णन भी है।-प्राचीन काल में जब विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी कर गुरुकुल से निकलता था तब उसके गुरु उसकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधते थे ताकि वो उनके द्वारा प्राप्त की गयी विद्या का सदुपयोग कर सके।इसके अतिरक्त राखी का ऐतिहासिक महत्वव भी है। जब राजपूत युद्ध को जाते थे तब स्त्रियां उन्हें कुमकुम लगाने के साथ उनकी कलाई पर रेशमी रक्षासूत्र भी बांधती थी। एक ऐसा वर्णन है कि सिकंदर की पत्नी ने पोरस को अपनी पति की रक्षा के लिए राखी बंधी थी। यही कारण था कि पोरस सिकंदर पर प्रहार नहीं कर सका और पराजित हुआ। बाद में उसी रक्षासूत्र के कारण सिकंदर ने पोरस को सम्मानसहित उसका राज्य लौटा दिया।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 373(आज से यह श्रृंखला नये रूप में प्रस्तुत की जा रही है!)
भारतवर्ष के 500 शीर्षस्थ शास्त्रज्ञ विद्वानों की सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 14 जनवरी 1957 को 'पंचम मूल जगदगुरु' की उपाधि से विभूषित परमाचार्य जगदगुरु 1008 स्वामी श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन हम सभी कलिमलग्रसित दुःखी जीवों के लिये महौषधि के समान है। अत्यंत सरल, सुगम शैली में आचार्यश्री ने गूढ़तम वैदिक ज्ञान का सार हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है, वह निश्चय ही अद्वितीय तथा भगवत्प्रेमपिपासु व सर्व साधारण जनों के लिये अति उपयोगी है। आइये आज के अंक में प्रकाशित उनके दिव्य वचनों पर विचार करें....
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
धीरे धीरे शिशु बने युवा कह बामा।ऐसे ही माँगो सदा देंगी प्रेम श्यामा।।35।।
अर्थ ::: जैसे एक बालक धीरे धीरे ही युवा बनता है, ऐसे ही श्री किशोरी जी की शरण में जाकर उनसे सदा उनका दिव्य प्रेम माँगते रहो, अभ्यास करते करते जिस क्षण तुम्हारी याचना शत-प्रतिशत शरणागतियुक्त हो जायेगी, उसी क्षण किशोरी जी तुम्हें दिव्य प्रेम दे देंगी।
• सन्दर्भ ग्रन्थ ::: 'श्यामा श्याम गीत' दोहा संख्या 35---------------★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...भगवान की भक्ति जितनी बढ़ाएगा, उतनी ही दुखों की फीलिंग कम होगी। इस प्वाइन्ट को नोट करो सब लोग। प्रारब्ध काटा नहीं जा सकता। बेटे को मरना है, बाप को मरना है, पति को मरना है, वो मरेगा अपने टाइम पर। तुम भगवान की भक्ति बढ़ाओ तो उसके मरने के दुःख की फीलिंग उतनी ही लिमिट में कम होगी। बस, ये तुम्हारी ड्यूटी है, तुम इतना कर सकते हो। तुम उसको बचा नहीं सकते हो। जो मरेगा, मरेगा। धन समाप्त होना है, दिवालिया बनना है, बनेगा...
• संदर्भ पुस्तक ::: प्रश्नोत्तरी (भाग - 2), पृष्ठ संख्या 81
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कुशल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, समाजशास्त्री और प्रकांड अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य की बातों को आज के समय में भी याद किया जाता है. उनकी क्षमता और दूरदर्शिता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लोगों के बीच आज भी उनकी छवि एक मैनेजमेंट गुरू की तरह है जो जीवन की तमाम स्थितियों से सरलता से निपटने के तरीके बताते हैं. आचार्य की बातों का अनुसरण करके व्यक्ति तमाम मुसीबतों को आने से रोक सकता है और उनमें फंसने पर सरलता से बाहर निकल सकता है.आचार्य ने अपने नीति शास्त्र में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए करीब करीब हर विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं. आचार्य ने आहार से जुड़े तमाम नियमों के बारे में भी बताया है ताकि लोग सेहतमंद रहकर अपना जीवन गुजार सकें. जानिए आहार को लेकर आचार्य द्वारा कही गईं खास बातें.गुरच औषधि सुखन में भोजन कहो प्रमान,चक्षु इंद्रिय सब अंश में, शिर प्रधान भी जान.इस श्लोक के माध्यम से आचार्य ने गुरच यानी गिलोय के गुणों का बखान किया है और इसे सर्वश्रेष्ठ औषधि बताया है. श्लोक में आचार्य कहते हैं कि औषधियों में गुरच सर्वश्रेष्ठ है और सभी सुखों में भोजन परम सुख होता है. सभी इंद्रियों में आंखें सबसे महत्वपूर्ण हैं और मस्तिष्क सबसे प्रमुख है. इसलिए सेहतमंद भोजन करें, गुरच का सेवन करें, आंखों का खयाल रखें और दिमाग को तनावमुक्त रखें.राग बढत है शाकते, पय से बढत शरीर,घृत खाये बीरज बढे, मांस मांस गम्भीर.इस श्लोक में आचार्य ने कहा है कि शाक खाने से रोग बढ़ते हैं और दूध पीने से शरीर बलवान होता है. घी खाने से वीर्य में वृद्धि होती है और मांस आपके शरीर में मांस को ही बढ़ाता है.चूर्ण दश गुणो अन्न ते, ता दश गुण पय जान,पय से अठगुण मांस ते तेहि दशगुण घृत मान.इस श्लोक के माध्यम से आचार्य कहते हैं कि खड़े अनाज की तुलना में पिसा हुआ अन्न 10 गुना ज्यादा पौष्टिक होता है. पिसे अन्न से दस गुना ज्यादा पौष्टिक दूध होता है. दूध से आठ गुना पौष्टिक मांस होता है और मांस से भी 10 गुना पौष्टिक घी होता है.
- हीरा स्टेटस सिंबल भी होता है और इसकी ज्वेलरी भी देखने में काफी आकर्षक लगती है. ज्योतिष के अनुसार हीरा शुक्र ग्रह का रत्न होता है. शुक्र ग्रह मजबूत होने से जीवन विलासितापूर्ण गुजरता है. लेकिन ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है कि हीरा हर किसी को नहीं पहनना चाहिए क्योंकि ये हर व्यक्ति के लिए शुभ फलदायी नहीं होता. अगर आप बगैर किसी परामर्श के हीरा धारण करते हैं तो आपको इसके अशुभ फल प्राप्त हो सकते हैं. ज्योतिष के मुताबिक इन 5 राशियों इन स्थितियों में बगैर ज्योतिषीय परामर्श के हीरा नहीं पहनना चाहिए.मेष : अगर आप मेष राशि के हैं और आपका शुक्र दूसरे या सातवें भाव का स्वामी है तो आपको हीरा नहीं पहनना चाहिए. ऐसे में ये रत्न आपके लिए काफी मुश्किलें पैदा कर सकता है.कर्क : कर्क राशि के लोगों को सामान्य रूप से हीरा धारण नहीं करना चाहिए. लेकिन अगर आप पर शुक्र की महादशा चल रही है तो हीरा आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है. इसलिए किसी ज्योतिषाचार्य से परामर्श के बाद ही इसे पहनें.सिंह : इस राशि के लोगों के लिए शुक्र ग्रह शुभ नहीं माना जाता, इसलिए इन्हें हीरा नहीं पहनना चाहिए. इन्हें कभी भी बगैर परामर्श के हीरा नहीं पहनना चाहिए वर्ना अशुभ फल प्राप्त होते हैं.वृश्चिक : इस राशि के लग्न के स्वामी मंगल हैं और मंगल व शुक्र में शत्रुता होती है. इसलिए इन लोगों के लिए भी हीरा अशुभ फल देने वाला होता है. यदि ये हीरा पहन लें तो इनके जीवन में ढेरों समस्याएं आ सकती हैं.धनु : इस राशि के लोग अगर हीरा पहनें तो इनके जीवन में स्वास्थ्य सबन्धी कई तरह की समस्याएं सामने आती हैं. इसलिए इन्हें हीरा नहीं पहनना चाहिए.मीन : मीन राशि शुक्र ग्रह तीसरे व आठवें भाव के स्वामी हैं. इसके अलावा मीन राशि के लग्न के स्वामी बृहस्पति हैं जो देव गुरू हैं, जबकि शुक्र दैत्य गुरू हैं. इनके बीच शत्रुता होती है. इसलिए मीन राशि के लोग अगर हीरा पहनें तो अशुभ फल प्राप्त होते हैं और तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 372
(भूमिका - साधक को सदा गुरु के सिद्धान्त के अनुकूल ही सोचना, चलना चाहिये. इसके अतिरिक्त और कुछ महत्वपूर्ण मार्गदर्शन, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की श्रीवाणी में...)...मनुष्य में एक ही विशेषता है, वह यह कि वह किसी तत्व का सत्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब तक उस तत्व के अनुकूल बार-बार विचार न किया जाय, वह ज्ञान मिट जाता है एवं मनुष्य को और भी पतन के गर्त में गिरा देता है।बार-बार विचार हो और सदा हो, और अनुकूल ही हो, बस, यदि यह समझ में कभी आ जायेगा तो भविष्य बन जायेगा। इसके साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि इष्टदेव एवं गुरु के प्रति निष्ठा करता रहे। यदु वहीं गड़बड़ हुई तो सब महल ढह जायेगा। और ऐसे व्यवहार से इष्टदेव अथवा गुरु को और भी दुःख देने के हम कारण बन जायेंगे। भावार्थ यह कि चार पैसे की खोपड़ी को उधर न लगाया जाए, सदा अनुकूल चिन्तन एवं कृपा को ही सोचा जाय। संसारी जीवों से कम से कम व्यवहार किया जाय, कम से कम सोचा जाय, कम से कम सुना जाय, कम से कम बोला जाय।केवल गुरु के मिलन का महत्व सोच-सोचकर ही जीव का परम कल्याण हो सकता है क्योंकि वह प्रत्यक्ष है। यदि बुद्धि का व्यापार बंद न होगा तो अनन्त जन्म में भी कुछ न मिलेगा। यही एकमात्र विचारणीय है।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, नवम्बर 1999 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
जीवन में अपने घर के लिए व्यक्ति दिन-रात जुटा रहता है। वर्तमान में जमीन की कमी और अधिक लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिए फ्लैट का चलन बढ़ा है। शहरों में मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बन रही हैं। आवास में सुख-शांति और समृद्धि के लिए वास्तु के नियमों का पालन करना बहुत जरुरी है। मकान केवल चार दीवारों से घिरी हुई आकृति नहीं है। यदि घर में शांति नहीं है तो सब बेकार है। ऐसे में यदि आप भी फ्लैट लेने का विचार कर रहे हैं तो वास्तु के नियमों का आकलन अवश्य कराएं। जानिए फ्लैट खरीदते वक्त किन बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
-भूमि के बारे में पूरी जानकारी अवश्य लें। जमीन कैसी है, भवन निर्माण से पहले भूमि किस काम के लिए प्रयुक्त होती थी, इसका पता करें। बिल्डिंग बनाने से पहले जमीन पर कोई क्रब या कब्रिस्तान तो नहीं था। वास्तु नियमों के अनुसार बिल्डिंग के नीचे दबी वस्तु सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं। हालांकि तीन मंजिल से ऊपर फ्लैट पर इस तरह के दोष का असर नहीं होता। यानी तीन मंजिल से ऊपर का फ्लैट है तो फिर बिल्डिंग की जमीन की पूर्व स्थिति अधिक मायने नहीं रखती।
-घर में रसोई सबसे महत्वपूर्ण है। फ्लैट में रसोई की स्थिति को अवश्य जांच लें। आग्नेय कोण में बनी रसोई सबसे श्रेष्ठ होती है। इस दिशा में बिजली के उपकरण रखने में भी कोई परेशानी नहीं होती है। यदि फ्लैट वास्तु के अनुसान निर्मित है तो इस दिशा के स्वामी ग्रह प्रसन्न रहते हैं। इससे घर में सुख-समृद्धि और प्रसन्नता बनी रहती है।
-फ्लैट में ध्यान रखें बाथरूम और टॉयलेट नैऋत्य दिशा यानी दक्षिण-पश्चिम और ईशान कोण में नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा है तो घर में कलह और तनाव बना रहेगा। उत्तर-पूर्वी यानी ईशान कोण जल का प्रतीक है। यहां पीने के पानी का स्रोत होना चाहिए। वायव्य कोण में सेप्टिक टैंक एवं शौचालय हेाना उत्तम रहता है।
-भवन में बेडरूम पूर्व-दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खुशियां प्रभावित होने लगती हैं। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 371
(भूमिका - परमार्थ के विषय में विचार करते हुये हमें इस निष्कर्ष पर पहुँचकर कि हरि और गुरु ही हमारे वास्तविक हितैषी हैं; इसे दृढ़तापूर्वक बुद्धि में बिठा लेना है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत इस प्रवचन में इसी सत्य को सरलतम रूप में निरुपित किया गया है। आचार्यश्री ने यह प्रवचन 13 नवम्बर 2006 को भक्तिधाम मनगढ़ में दिया था....)
हरि गुरु सोइ तेरा गोविन्द राधे।स्वार्थ सिद्ध होगा यह मन में बिठा दे।।(स्वरचित दोहा)
परमार्थ के लाभ के लिये केवल एक बात बुद्धि में बैठाना है, बैठाना है, उठने न पावे ऐसा बैठाओ अर्थात सदा सर्वत्र ये ज्ञान बना रहे कि हमारा स्वार्थ हरि-गुरु से 'ही' सिद्ध होगा, 'भी' नहीं। हरि, गुरु से 'ही' हमारा स्वार्थ सिद्ध होगा। वेद कहता है;
न वा अरे पत्यु: कामाय पतिः प्रियो भवात्यात्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति। न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवात्यात्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति। आत्मा वा अरे द्रष्टव्य: श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैत्रेयी।(बृहदारण्यकोपनिषद 4-5-6)
अर्थात संसार में सब जीव स्वार्थ से ही प्यार करते हैं। जहाँ उनकी बुद्धि ने बताया, यहाँ स्वार्थ सिद्ध होगा बस वहाँ प्यार हो गया। हो गया, करना नहीं पड़ता, प्रैक्टिस नहीं करना और वो भी जितनी मात्रा में स्वार्थ सिद्ध होने की बात बुद्धि में बैठी उतनी मात्रा का प्यार होगा, जैसे पड़ोसी से थोड़ा सा स्वार्थ सिद्ध होगा, तो थोड़ा सा प्यार होगा, नौकर से ज्यादा स्वार्थ सिद्ध होगा तो उससे अधिक प्यार होगा, दोस्त से और स्वार्थ सिद्ध होगा, बेटा-बेटी से और अधिक स्वार्थ सिद्ध होगा, स्त्री-पति से और अधिक स्वार्थ सिद्ध होगा, ऐसा संसार में हम अनुभव करते हैं और उसी के आधार पर हम प्यार करते हैं।
नम्बर दो; जिस सेकण्ड में उसी स्त्री, पति या बेटे किसी से भी हमारी बुद्धि में आया कि नहीं वो जो हमने सोचा था इससे सेन्ट परसेन्ट स्वार्थ सिद्ध होगा, गलत था। फिफ्टी परसेन्ट होगा, वो डाउन हो गया आपका प्यार। अरे! नहीं बिल्कुल नहीं होगा, ये तो हमारा दुश्मन है बस एबाउट टर्न हो गया। रोज डेली दिन भर आप लोग ये अनुभव करते हैं, हर जगह। यह बृहदारण्यकोपनिषद का बड़ा इम्पोर्टेन्ट मंत्र है ये। सब अपनी आत्मा से प्यार करते हैं, अपने स्वार्थ से प्यार करते हैं, जहाँ कहीं भी, ये बुद्धि ने बता दिया। सारा दारोमदार बुद्धि पर है और परिवर्तन करती रहती है बुद्धि। एक ही पति, एक ही बीबी, एक ही बेटे से दिन में दस बार बदलता रहता है बुद्धि का ज्ञान। उसी हिसाब से हमारा प्यार भी बदलता रहता है।
सर्व: स्वार्थम् समीहते।(अध्यात्म रामायण)
जाते कछु निज स्वारथ होई। तापर ममता करै सब कोई।।सुर नर मुनि सबकी यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।
ऐ तीन बजे रात को उठ करके हम आप लोगों की ये जो सेवा करते हैं, इसमें स्वार्थ है, ऐसे ही पागल थोड़े ही हैं हम। हमारा ये स्वार्थ है कि आप लोग भगवान की ओर चलें। चले, बहुत खुशी हुई, अब कम चले, खुशी कम हो गई। अब आप संसार में चले गये। अरे राम-राम! अच्छा-खासा चल रहा था, मर गया। अपना-अपना व्यापार है। जब किसी को व्यापार में अधिक लाभ होता है तो खुशी होती है और जब कभी कहता है कि आजकल ठण्डा है, ठण्डा है आजकल, बिजनैस डाउन है। ऐसे हमारा भी होता रहता है क्योंकि हमारे हाथ में तो है नहीं, ये तो आप लोगों के हाथ में है।
तो सब स्वार्थ से ही प्यार करते हैं। ये नियम है, ये अकाट्य नियम है। लेकिन हमारी बुद्धि में ये ज्ञान गलत बैठ गया है कि हम शरीर हैं। बस इसी से सब गड़बड़ हो गई। हम आत्मा हैं, हमारा स्वार्थ हरि-गुरु से ही पूरा होगा। नम्बर एक; सच तो ये है कि गुरु से ही हमारा सिद्ध होगा, हरि से तो जब होगा, तब होगा। प्रारम्भ में भी गुरु, मध्य में भी गुरु, अन्त में भी गुरु, वही हमारे साथ लेबर करेगा, परिश्रम करेगा और हमको वास्तविक स्वार्थ का ज्ञान कराने से लेकर वास्तविक स्वार्थ सिद्ध कराने तक साथ देगा। वही हमारा असली मित्र है, हितैषी है ये बात बुद्धि में बैठा दो और बैठी रहे, चौबीस घण्टे ऐसा बैठाओ यानी बार-बार सोचो, बार-बार सोचो, बार-बार। तो गड़बड़ी न करोगे, संसार में अटैचमेंट नहीं करोगे, तो बात बन जायेगी और दो मिनट को सोचा, बाकी टाइम में सोचा कि यहाँ स्वार्थ सिद्ध होगा जगत में, तो वो फिर दो मिनट का सोचना क्या काम देगा?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'कृपालु भक्ति धारा' (भाग - 3, प्रवचन - 32)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - रक्षा बन्धन का पर्व हर साल सावन महीने की पूर्णिमा पर मनाया जाता है जो इस बार 22 अगस्त, रविवार को है. यह दिन सावन महीने का अंतिम दिन होता है और अगले दिन से भाद्रपद महीना शुरु हो जाता है. इस बार राखी का त्योहार कई कारणों से अद्वितीय रहेगा. ज्योतिषाचार्य मदन गुप्ता सपाटू के मुताबिक इस बार रक्षा बंधन के दिन भद्रा (Bhadra) जैसा अशुभ काल नहीं है. साथ ही इस दिन चंद्रमा, मंगल के नक्षत्र और कुंभ राशि में होगे. इसके अलावा इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र और शोभन योग है जो कि भाई-बहन दोनों के लिए बेहद शुभ साबित होगा. ये शुभ संयोग भाई-बहनों के भाग्य में वृद्धि करेंगे. आमतौर पर शादीशुदा बहनें रक्षा बंधन के मौके पर अपने मायके आती हैं और भाई को राखी बांधती हैं. हालांकि इस साल कोरोना के चलते ऐसा करना सभी के लिए शायद संभव न हो पाए. ऐसे में भाई को कुरियर आदि से राखी भेज दें. यदि यात्रा करें तो कोरोना प्रोटोकॉल का ध्यान रखें.इस विधि से बांधें राखीजो बहन-भाई साथ हैं, वे इस त्योहार का साथ में आनंद ले सकेंगे. बहनें भाई को राखी बांध पाएंगी. इस दौरान ध्यान रखें कि राखी सही विधि से बांधें. इसके लिए पहले भाई को लाल रोली या कुमकुम से तिलक लगाएं. अक्षत लगाएं. उसकी आरती करते हुए लंबी उम्र की कामना करें. उसे मिठाई खिलाएं और फिर उसे राखी बांधें. भाई अपनी सामर्थ्य के अनुसार बहन को शगुन या उपहार जरूर दें.
- मेडिटेशन यानी ध्यान लगाना काफी फायदेमंद है. मेडिटेशन के अनेक तरीके हैं, जो अलग-अलग लक्ष्यों के मुताबिक अपनाए जाते हैं. ऐसी ही एक तरीका वॉल्किंग मेडिटेशन यानी चलते हुए ध्यान लगाना है. ध्यान लगाने का यह तरीका बिल्कुल अलग और दिलचस्प है, जो कि कई फायदे देता है. आइए ध्यान लगाने के इस दिलचस्प तरीके के बारे में जानते हैं.कैसे करते हैं वॉल्किंग मेडिटेशन --कैलिफोर्निया विश्वविद्यायल के द ग्रेटर गुड साइंस सेंटर के मुताबिक वॉल्किंग मेडिटेशन करते हुए धीमी गति से चलना होता है. इसमें हम चलने की प्रक्रिया पर बहुत बारीकी से ध्यान लगाते हैं. जैसे कि मुड़ना, पैर उठाना, जमीन से पैर उठना, जमीन पर पैर रखना व शरीर को आगे की तरफ ले जाना. हम रोजाना यह कार्य करते हैं, लेकिन इसके प्रति सजग नहीं होते हैं.वॉल्किंग मेडिटेशन करने के लिए सबसे पहले शांत जगह चुनें और एक रास्ते या जगह का चुनाव करें. जहां कोई आपको डिस्टर्ब ना कर सके और आप 10 से 15 कदम सीधा चल सकें.अब गहरी सांस लीजिए और धीरे-धीरे 10 से 15 कदम चलिए.इसके बाद जितनी हो सके, उतनी गहरी सांस लीजिए.अब वापिस मुड़िए और शुरुआती पोजीशन तक वापिस जाइए.अब दोबारा जितनी गहरी और लंबी सांस ले सकते हैं, लीजिए.इस दौरान आपको कदमों और प्रक्रिया को धीमा रखना है और हर चीज को महसूस करना है.आपके दिमाग में जो भी विचार आएं, उन्हें आने और जाने दीजिए.इसी तरह 10 से 15 मिनट करिए.वॉल्किंग मेडिटेशन के फायदे --शरीर शांत और आरामदायक बनता है.एकाग्रता बढ़ती है.शारीरिक संतुलन बनता है.शरीर के प्रति सजग होते हैं.पाचन तंत्र बेहतर होता है.ऊर्जा प्राप्त होती है.तनाव कम होता है.
- नींद हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है। अच्छी नींद का हमारे स्वास्थ्य के ऊपर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह तंदुरुस्त जीवन का कारण मानी जाती है। अगर रात में 8 घंटे की चैन की नींद ली जाए, तो अगले दिन शरीर और मस्तिष्क पूरी तरह तरोताजा रहते हैं। अच्छी नींद लेने से शरीर के भीतर की थकान पूरी तरह दूर हो जाती है और उसमें ऊर्जा का संचार होता है। मान्यता है कि नींद के दौरान इंसान के भीतर लौकिक ऊर्जा आती है। वहीं जो लोग रात में अच्छी नींद नहीं लेते, ऐसे व्यक्तियों को थकान, आलस्य, चिड़चिड़ापन जैसा अनुभव होता है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक ठीक से नींद ना ले पाने की वजह व्यक्ति के सोने की दिशा और उसकी आदतें हैं। अगर व्यक्ति वास्तु शास्त्र में बताए गए नियमों के आधार पर सोए तो रात में वह चैन की नींद ले सकता है। इसी सिलसिले में आइए जानते हैं कि वह कौन-कौन से नियम हैं? जिनका सोते वक्त सदा पालन करना चाहिए।वास्तु शास्त्र के मुताबिक हमें पूर्व दिशा में सोना चाहिए। पूर्व दिशा में सिर करके सोने से व्यक्ति के ऊपर सकारात्मक प्रभाव पड़ता। इससे उसकी कार्य करने की क्षमता और ध्यान की शक्ति में वृद्धि होती है। वास्तु कहता है कि आप पश्चिम दिशा में भी सिर करके सो सकते हैं। मान्यता है कि इस दिशा में सोने से व्यक्ति का यश बढ़ने लगता है।उत्तर दिशा में सिर रखकर कभी भी सोना नहीं चाहिए। ऐसा करने से दिमाग में कई प्रकार के नकारात्मक विचार आते हैं। इसके अलावा व्यक्ति कई तरह की बीमारियों से ग्रसित भी हो सकता है। हालांकि आप दक्षिण दिशा में सिर रखकर सो सकते हैं। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से घर में सुख-समृद्धि आती है।वास्तुशास्त्र के मुताबिक गंदे बिस्तर और टूटे हुए बेड पर कभी भी सोना नहीं चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना गया है। गंदे बिस्तर पर सोने से व्यक्ति बीमार हो जाता है। इस बात का जरूर ध्यान रखें कि निर्वस्त्र होकर कभी ना सोएं।सोने से पहले अपने हाथ मुंह को धोकर जरूर कुल्ला करें। वास्तुशास्त्र के अनुसार बिस्तर पर जूठे मुंह नहीं सोना चाहिए। जूठे मुंह बिस्तर पर सोने से व्यक्ति को अच्छी नींद नहीं आती है। रात में सोते वक्त उसकी नींद कई बार टूटती है।
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हस्तरेखा विज्ञान प्राचीनतम ज्योतिष विधाओं में से एक है। ज्योतिष विद्या का मानना है कि व्यक्ति की हस्तरेखाएं उसके भाग्य को बताती हैं। अमूमन हाथ पर बनी ये रेखाएं शाश्वत नहीं होती। ये समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। कई बार हाथों की लकीरों में ऐसे शुभ योग बनते हैं, जिसके चलते व्यक्ति को कारोबार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ होता है। उसके घर में मां लक्ष्मी की कृपा बरसने लगती है। घर के भीतर बड़े पैमाने पर धन संपत्ति का आगमन होता है।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ऐसे योग को काफी शुभ माना गया है। इस तरह के योग के चलते व्यक्ति जीवन में खूब तरक्की करता है। मां लक्ष्मी की कृपा इन लोगों के ऊपर सदा बनी रहती है और उनका दांपत्य जीवन भी काफी खुशहाल रहता है। इस कड़ी में आज हम हस्तरेखाओं में बने ऐसे खास योग के बारे में जानेंगे, जो व्यक्ति को जिंदगी में खूब कामयाबी दिलाते हैं।
लक्ष्मी योग
यदि हस्तरेखाओं में बुध, गुरु, शुक्र और चंद्रमा पर्वत अच्छी तरह से लालिमा लिए हुए विकसित हो गए हैं, तो ये लक्ष्मी योग कहलाता है। इसे काफी शुभ योग माना गया है, जिस व्यक्ति की हस्त रेखाओं में ये योग बनता है। वह जो भी काम करता है, उसमें उसे जरूर सफलता मिलती है। ऐसे लोगों की जिंदगी काफी खुशहाल होती है। इन लोगों को जीवन में खूब सारा आर्थिक लाभ होता है।
गजलक्ष्मी योग
यदि आपके हाथों की भाग्य रेखा मणिबंध से शुरू होकर शनि पर्वत तक जाती है। वहीं सूर्य रेखा बिना किसी कट-पिट के एकदम स्पष्ट दिखती हो और सूर्य पर्वत लालिमा लिए विकसित हो रखा है तो इस योग को गजलक्ष्मी योग कहा जाता है। इस योग को भी काफी शुभ माना गया है। ऐसा योग जिस किसी भी इंसान के हाथों पर होता है उसे दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की मिलती है। ये लोग व्यापार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ अर्जित करते हैं। ऐसे लोगों का व्यक्तित्व काफी आकर्षक होता है।
शुभ कर्तरी योग
अगर आपकी हथेली का बीच का हिस्सा दबा हुआ है और सूर्य और गुरु पर्वत अच्छी तरह से विकसित हो गए हैं। वहीं भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाए तो ऐसे में शुभ कर्तरी योग बनता है। शुभ कर्तरी योग जिस किसी भी इंसान की हस्त रेखाओं में होता है। वह जीवन में खूब सारा धन अर्जित करता है। मां लक्ष्मी की कृपा ऐसे इंसानों के ऊपर सदा बनी रहती है।
भाग्य योग
यदि दोनों हाथों में भाग्य रेखा लंबी और स्पष्ट है तथा चंद्र पर्वत या फिर गुरु पर्वत से शुरू होती है, तो ऐसे में भाग्य योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति के हाथ में होता है, उसे जीवन में आपार सफलता मिलती है। कारोबार के क्षेत्र में वह खूब सारा लाभ अर्जित करता है। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति का दांपत्य जीवन भी खुश रहता है। - रक्षा बंधन आने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं. इस बार यह पर्व 22 अगस्त को मनाया जाएगा. रक्षा बंधन पर 474 साल बाद एक खास महासंयोग भी बन रहा है.धनिष्ठा नक्षत्र में मनेगा रक्षा बंधन का त्योहारज्योतिषियों के मुताबिक आमतौर पर रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2021) का त्योहार श्रवण नक्षत्र में मनाया जाता है. हालांकि इस बार यह सावन पूर्णिमा पर धनिष्ठा नक्षत्र के साथ मनाया जाएगा. ज्योतिषियों के अनुसार इस बार राखी पर भद्रा का साया भी नहीं रहेगा जिसके कारण बहनें पूरे दिन भाई को राखी बांध सकेंगी. इस दौरान कुंभ राशि में गुरु की चाल वक्री रहेगी और इसके साथ चंद्रमा भी वहां मौजूद रहेगा.ये रहेगा राखी का शुभ मुहूर्तइस बार रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2021) पर सुबह 5.50 से लेकर शाम 6.03 तक शुभ मुहूर्त (Rakhi Shubh Muhurta ) है यानी आप इस दौरान कभी भी राखी बांध या बंधवा सकते हैं. जबकि भद्रा काल 23 अगस्त को सुबह 5 बजकर 34 मिनट से 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा. इस दिन शोभन योग सुबह 10 बजकर 34 मिनट तक तक रहेगा और धनिष्ठा नक्षत्र शाम 7 बजकर 40 मिनट तक रहेगा. ऐसा कहते हैं कि धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा होने वाले लोगों का भाई-बहन से रिश्ता बहुत खास होता है.474 साल बाद बन रहा संयोगज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार रक्षा बंधन पर सिंह राशि में सूर्य, मंगल और बुध ग्रह एक साथ विराजमान होंगे. सिंह राशि का स्वामी सूर्य है. इस राशि में मित्र मंगल भी उनके साथ रहेगा. जबकि शुक्र कन्या राशि में होगा. ग्रहों का ऐसा योग बेहद शुभ और फलदायी रहने वाला है. ज्योतिषियों का कहना है कि रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2021) पर ग्रहों का ऐसा दुर्लभ संयोग 474 साल बाद बन रहा है. इससे पहले 11 अगस्त 1547 को ग्रहों की ऐसी स्थिति बनी थी. ज्योतिषियों का कहना है कि इस वर्ष शुक्र बुध के स्वामित्व वाली राशि कन्या में स्थित रहेंगे. रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2021) पर ऐसा संयोग भाई-बहन के लिए अत्यंत लाभकारी और कल्याणकारी रहेगा. खरीदारी के लिए राजयोग भी बेहद शुभ माना जाता है.भाग्यशाली बनाता है ये योगगुरु और चंद्रमा की इस युति से रक्षा बंधन पर गजकेसरी योग बन रहा है. जब चंद्रमा और गुरु केंद्र में एक दूसरे की तरफ दृष्टि कर बैठे हों तो यह योग बनता है. यह योग लोगों को भाग्यशाली बनाता है. इससे लोगों की धन संपत्ति, मकान, वाहन जैसे सुखों की प्राप्ति होती है. गज केसरी योग बनने से राजसी सुख और समाज में मान-सम्मान की भी प्राप्ति होती है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 370
(भूमिका - विवाद से कभी कुछ हासिल नहीं होता, पुनः भक्तिमार्ग में विवाद तो महान हानि करने वाला है. जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से जानिये यह क्यों हानिकारक है...)
अश्रद्धालु एवं अनधिकारी से अपने मार्ग अथवा साधनादि के विषय में वाद-विवाद करना भी कुसंग है। क्योंकि जब अनधिकारी को सर्वसमर्थ महापुरुष ही आसानी के साथ बोध नहीं करा पाता, तब वह साधक भला किस खेत की मूली है। यदि कोई परहित की भावना से भी समझाना चाहता है, तब भी उसे ऐसा न करना चाहिये, क्योंकि अश्रद्धालु होने के कारण उसका विपरीत ही परिणाम होता है, साथ ही उस अश्रद्धालु के न मानने पर साधक का चित्त अशांत हो जाता है। शास्त्रानुसार भी भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवाद करना घोर पाप है। भरत जी कहते हैं,
भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यतः तेन पापेन्।
अर्थात् भरत जी कहते हैं कि भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवादकर्म सरीखा महान पाप मुझे लग जाय यदि राम के वन जाने के विषय में मेरी राय रही हो।
अतएव न तो वाद-विवाद सुनना चाहिये, न तो स्वयं ही करना चाहिये। यदि अनधिकारी जीव, इन विषयों को नहीं समझता, तो इसमें आश्चर्य या दुःख भी न होना चाहिये, क्योंकि कभी तुम भी तो नहीं समझते थे। यह तो परम सौभाग्य, महापुरुष एवं भगवान की कृपा से प्राप्त होता है कि जीव, भगवद्विषय को समझ कर उनकी ओर उन्मुख हो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
शास्त्रों में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा या पवित्रा एकादशी बताया गया है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ जगत के पालनहार भगवान श्री विष्णुजी की विधि-विधान से पूजा करने का विधान है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से वाजपेयी यज्ञ का फल मिलता है एवं भगवान विष्णु अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत को अमोघ माना गया है। इस व्रत को करने वाले भक्तों को न केवल स्वस्थ तथा दीर्घायु संतान प्राप्त होती है बल्कि उनके सभी प्रकार के कष्ट भी दूर हो जाते हैं। इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 18 अगस्त,बुधवार को मनाया जाएगा। पवित्रा एकादशी की कथा का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है, वंश वृद्धि होती है तथा समस्त सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
श्रीनारायण की करें पूजा
श्रावण पवित्रा एकादशी सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है। इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए। इस दिन '? नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। योग्य संतान के इच्छुक दंपत्ति प्रात: स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच, द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
पवित्रा एकादशी की कथा
कथा के अनुसार द्वापर युग के प्रारंभ का समय था, महिष्मतीपुर में राजा महिजित अपने राज्य का पालन करते थे।नि:संतान होने के कारण राजा बहुत दु:खी रहते थे। प्रजा से राजा का दु:ख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गये एवं ऋषि से राजा के नि:संतान होने का कारण और उपाय पूछा। लोमश ऋषि ने बताया कि राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था।एक दिन जेठ के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को,जब दोपहर का सूर्य तप रहा था,वह एक जलाशय पर पानी पीने पहुंचा।तभी एक गाय अपने बछड़े सहित वहां पानी पीने आ गई। वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हांककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई।उसी पापकर्म के कारण राजा को नि:संतान रहना पड़ रहा। लोमश ऋषि ने उन लोगों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को संतान की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपने व्रत का पुण्य राजा को दान कर दें। राजा के शुभचिंतकों ने ऋषि के बताए विधि के अनुसार व्रत किया और व्रत के पुण्य को दान कर दिया। इससे राजा को सुंदर एवं स्वस्थ्य पुत्र की प्राप्ति हुई।मान्यता है कि जो भी व्यक्ति नि:सन्तान है, वो व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से पूरा करे तो अवश्य ही उसकी इच्छा पूरी होती है और उसे संतान की प्राप्ति होती है। -
सूर्य देव कर्क राशि की यात्रा समाप्त करके 16 अगस्त की मध्यरात्रि 1 बजकर 14 मिनट पर अपनी स्वयं की राशि सिंह में प्रवेश कर चुके हैं। आदिकाल में इनके पास सभी बारह राशियों का आधिपत्य किंतु, कालांतर में इन्होंने कर्क राशि चंद्रमा को और बाकी अन्य ग्रहों को दो-दो राशियां प्रदान करके अपने पास केवल सिंह राशि रखी। इस राशि में सूर्य अत्यधिक प्रभावशाली माने जाते हैं। मेष राशि इनकी उच्चराशि तथा तुला राशि नीच राशिगत संज्ञक मानी गई है किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यदि सूर्य अत्यधिक बलवान हो तो वह जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचता है। कामयाबियां उसके कदम चूमती हैं। सूर्य कमजोर हों तो काफी संघर्ष के बाद ही सफलता का संयोग बनता है। इनके राशि परिवर्तन का अन्य सभी राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं।
मेष राशि
राशि से पंचम विद्याभाव में अपने मूलत्रिकोण में पहुंचते हुए सूर्य देव का शुभ प्रभाव आपके लिए वरदान से कम नहीं है विशेषकर के विद्यार्थियों अथवा प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए तो यह एक तरह का नया अवसर है। शिक्षा प्रतियोगिता में अच्छी सफलता मिलेगी। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नवदंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी इसलिए कार्य-व्यापार पर अधिक ध्यान देना समझदारी रहेगी।
वृषभ राशि
राशि से चतुर्थ सुख भाव में अपने ही घर में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। किसी कारण से पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है। मित्रों तथा संबंधियों से भी अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। यात्रा सावधानीपूर्वक करें। सामान चोरी होने से बचाएं। आपके अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे। जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। सरकारी सर्विस के लिए आवेदन करना अच्छा परिणाम देगा।
मिथुन राशि
राशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके साहस और पराक्रम के वृद्धि करेगा। अपनी ऊर्जा शक्ति के बल पर कठिन हालात को भी आसानी से नियंत्रित कर लेंगे। आपके द्वारा लिए गए निर्णय की सराहना होगी। योजनाओं को गोपनीय रखें और जब तक पूर्ण न हो जाए उसे सार्वजनिक न करें। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों तथा भाइयों से मतभेद बढऩे न दें। विदेशी कंपनियों में सर्विस एवं नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहने के योग।
कर्क राशि
राशि से द्वितीय धन भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आर्थिक पक्ष मजबूत करेगा। दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। अपनी वाणी कुशलता के बल पर बिगड़ते हुए हालात को भी संभाल लेने में सफल रहेंगे। जमीन जायदाद से जुड़े कार्य संपन्न होंगे। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में प्रतीक्षित कार्यो का निपटारा होगा। किसी भी तरह के सरकारी टेंडर में भी आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा। स्वास्थ्य के प्रति भी अधिक सावधान रहें।
सिंह राशि
अपनी ही राशि में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए बेहतरीन सफलता दिलाने वाला रहेगा। मान-सम्मान की वृद्धि होगी। नौकरी में भी पदोन्नति तथा नए अनुबंध के प्राप्ति के योग। धर्म एवं अध्यात्म के प्रति भी गहरी रूचि रहेगी शादी-विवाह से संबंधित वार्ता सफल रहेगी। किसी भी तरह की सरकारी संस्था में नौकरीके लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल है। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नवदंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग।
कन्या राशि
राशि से बारहवें में हानि भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। अत्यधिक भागदौड़ तथा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा। दूर देश की कष्टकर यात्राओं का भी योग बनेगा। स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दें। कोर्ट-कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए प्रयास करना सफल रहेगा। जो छात्र विदेश में पढ़ाई करने जाना चाह रहे हों उनके लिए अवसर अनुकूल रहेगा।
तुला राशि
राशि से एकादश लाभ भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना चाहें अथवा नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहें तो उस दृष्टि से भी अवसर अनुकूल रहेगा। आर्थिक पक्ष और मजबूत होगा। संतान संबंधी चिंता परेशान कर सकती है। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों तथा बड़े भाइयों से मतभेद न पैदा होने दें। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए भी समय और अनुकूल रहेगा।
वृश्चिक राशि
राशि से दशम कर्म भाव में गोचर करते हुए सूर्य अत्यधिक प्रभावशाली भूमिका निभाएंगे। नौकरी में पदोन्नति तथा मान-सम्मान की वृद्धि तो होगी ही सामाजिक जिम्मेदारियां बढ़ेंगी। सरकारी विभागों में किसी भी तरह के टेंडर का आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा। उच्चाधिकारियों से सहयोग मिलेगा। अपनी ऊर्जाशक्ति एवं अदम्य साहस के बल पर कठिन परिस्थितियों को भी आसानी से नियंत्रित कर लेंगे। जो भी निर्णय लेंगे उसी में पूर्व सफल रहेंगे।
धनु राशि
राशि से नवम भाग्य भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव धर्म एवं अध्यात्म के प्रति अत्यधिक उन्नति प्रदान करेगा यह भी संभव है कि आपका अपने इष्ट से साक्षात्कार हो। भाग्योन्नति तो होगी ही नौकरी में भी पदोन्नति तथा नए अनुबंध प्राप्ति के योग। कोर्ट-कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। यात्रा-देशाटन का लाभ मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग यदि विदेश में पढ़ाई के लिए प्रयास करना चाह रहे हों तो उनके लिए सूर्य का गोचर अच्छा फल प्रदान करेगा।
मकर राशि
राशि से अष्टम आयु भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। मान-सम्मान तथा सामाजिक पद प्रतिष्ठा बढ़ेगी किंतु आपके अपने ही लोग षड्यंत्र करते रहेंगे इसलिए बेहतर रहेगा कि झगड़े विवाद से दूर ही रहें। कोर्ट कचहरी से जुड़े मामले भी आपस में सुलझाएं। स्वास्थ्य के प्रति भी चिंतनशील रहें। अग्नि, विष तथा दवाओं के रिएक्शन से बचें। जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। अपनी रणनीतियों को जब तक पूर्ण कर लें उसे सार्वजनिक न करें।
कुंभ राशि
राशि से सप्तम दाम्पत्य भाव में अपने ही घर में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। दांपत्य जीवन में कड़वाहट आ सकती है। विवाह संबंधित वार्ता में थोड़ा विलंब होगा। व्यापारीवर्ग के लिए समय अनुकूल रहेगा। साझा व्यापार करने से बचें। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहेगा। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। झगड़े विवाद से बचें और कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझाएं।
मीन राशि
राशि से छठे शत्रु भाव में गोचर करते हुए सूर्यका प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है इसलिए जैसी सफलता चाहें हासिल कर सकते हैं। कार्य व्यापार की दृष्टि से भी समय अति अनुकूल रहेगा। किसी नए अनुबंध हस्ताक्षर करना चाह रहे हैं तो भी अवसर अनुकूल रहेगा। इस अवधि में कर्जके लेन-देन से बचें। न्यायालय से संबंधित सभी मामलों में भी विजय श्री मिलेगी। अत्यधिक यात्रा के कारण थकान का अनुभव करेंगे स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 369
(भूमिका - एकान्त में बैठकर साधना सरल है, किन्तु संसार में कर्मरत रहते हुये साधना में कठिनाई आती है. इस कठिनाई को सरल कैसे करना है और कर्मयोग की साधना का अभ्यास कैसे करना है, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी समझा रहे हैं...)
...एक गाय, जानवर, दिन भर चारा चरती है। लेकिन अपने बछड़े को याद करती रहती है। ये कर्मयोग की साधना है उसकी, और जब शाम को लौटती हैं, चारा चरने के बाद, और गौशाला के पास आती है तो वो जो चोरी-चोरी प्यार कर रही थी थोड़ा-थोड़ा वह कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तो रम्भाती है। बड़े जोर से बोलती है, चिल्लाती है, अपने बच्चे को पुकारती है और बच्चा भी उसका माँ की आवाज पहचानता है तो खूँटे में बँधा हुआ, उसका बच्चा भी आवाज देता है, मम्मी जल्दी आ जाओ। ये देखो पशुओं मे भी इस प्रकार का विषय है। तो मनुष्य की कौन कहे। हाँ तो हमें इस प्रकार कर्मयोग की साधना करना है अर्थात हम कार्य करते हुए भी बार-बार एक बात का तो अभ्यास करें कि हम अकेले नहीं हैं कभी भी एक क्षण को भी। इसका आप लोग घण्टे-घण्टे भर में पहले अभ्यास कीजिये।
हम अधिक समय नहीं ले रहे हैं आपका। एक घण्टे में, एक सेकेण्ड बस, एक मिनट नहीं, जितनी देर में आप यों यों खुजला लेते हैं, यों यों कर लेते हैं। कोई भी वर्क आपका संसार में ऐसा नहीं है कि समाधि लग जाय।
अरे भाई हर काम करते समय ऑफिस वर्क करते समय भी आप देख लेतें है, कभी इधर को कभी उधर को, कभी कुछ सोच लेते हैं, कभी छींक आ गई, कभी खाँसी आ गई, ये होता ही रहता है आपको संसार में भी वर्क करते समय भी। तो आप घण्टे भर में एक सेकेण्ड को, जैसे मेज आपके सामने है, कुर्सी पर बैठे हैं, मेज के एक किनारे पर आप मन से श्यामसुन्दर को बैठा दीजिये, हाँ बैठ गये, अब तुम देखो मैं वर्क करता हूँ। एक घण्टा हो गया बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। एक-एक घण्टे पर रियलाइज किया कि श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं हमारे पास हैं, हम अकेले नही हैं। हाँ हमारी प्राइवेसी आज से खत्म। हम कोई बात प्राईवेट सोच नहीं सकते, हमें अधिकार नहीं सोचने का, क्योंकि वो हमारे अन्दर बैठे सब नोट कर रहे हैं। फिर आधे घण्टे पर किया एक सेकेण्ड को कि वो हमारे साथ हैं, फिर पन्द्रह मिनट पर किया।
जब आप यहां तक पहुँच जायेंगे तब आप अनुभव करेगें कि अब ऐसा लग रहा है कि वो हर समय हमारे साथ हैं हर समय वो साथ हैं। उनका रुप ध्यान नहीं लाना है, केवल फीलिंग लाना है कि मेरे प्राण वल्लभ मेरे साथ हैं मैं अकेला नहीं हूँ। हर समय इतना आत्मबल होगा आपको, कितनी खुशी होगी आपको, मेरे श्यामसुन्दर सदा हमारे साथ हैं, मेरे गुरु सदा मेरे साथ हैं, ये इन दोनों को हमको हर समय अपने साथ महसूस करने का अभ्यास करना है। फिर कुछ दिनों बाद आपको करना नहीं पड़ेगा, स्वत: होने लगेगा, यही कर्मयोग की साधना है जो आप अपने सांसारिक कार्य करते हुये साधना पथ पर बढ़ते-बढ़ते अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगें, दिव्यानन्द की प्राप्ति कर पायेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'कामना और उपासना' भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं. - हिन्दू धर्म में जन्माष्टमी के पर्व का खास महत्व माना जाता है और कृष्ण भक्त धूमधाम के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. इस साल जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा. धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और उन्हीं के जन्मदिवस को जन्माष्टमी कहा जाता है.30 अगस्त को है जन्माष्टमीजन्माष्टमी के दिन भक्त आधी रात तक जगराता करते हैं जिसमें कृष्ण की लीलाओं का मंचन और भजन कीर्तन किया जाता है. रात के 12 बजे तक यह कार्यक्रम चलता है क्योंकि भगवान कृष्ण का जन्म भी रात 12 बजे हुआ था. इस साल सोमवार के दिन 30 अगस्त को यह पर्व मनाया जाएगा. इससे पहले हम आपको भगवान कृष्ण का मंदिर सजाने के कुछ उपाय बताने जा रहे हैं जिससे आपको जरूर ही विष्णु के अवतार कहे जाने वाले श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होगा.वैसे तो सुबह से ही कृष्ण जन्माष्टमी की धूम रहती है और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है लेकिन भक्तगण रात के वक्त भी अपने घरों में श्रीकृष्ण की मूर्ति और उनके मंदिर को सजाते हैं ताकि भगवान का जन्मदिन धूमधाम के साथ मनाया जा सके.संपूर्ण श्रृंगार से खुश होंगे कृष्णऐसा माना जाता है कि जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण भगवान का संपूर्ण श्रृंगार करना चाहिए और इससे आपको ईश्वर की कृपा मिलती है. अपने घर के किसी बच्चे के लिए आप जन्मदिन पर जैसी तैयारियां करते हैं, वैसी ही तैयारियां श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर भी आम तौर पर घरों में की जाती हैं. लेकिन इससे लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है.श्रीकृष्ण का बालरूप लड्डू गोपालअगर आप भी जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का मंदिर सजाने की तैयारी कर रहे हैं तो सबसे पहले लड्डू गोपाल का झूला या पालना बाजार से ले आइये. भगवान बाल काल में इसी पालने का आनंद लेते थे और ऐसा करने से आपको श्रीकृष्ण का आशीर्वाद हासिल हो सकता है.इन चीजों का करें इस्तेमालइसके अलावा भगवान के लिए पीताम्बर वस्त्र का चलन भी है. जन्मदिन के मौके पर श्रीकृष्ण को मुकुट, बांसुरी, सुदर्शन चक्र, मोर पंख से सजाना लाभकारी रहेगा. यही सब भगवान कृष्ण धारण करते थे और आप भी अपने लड्डू गोपाल को सजाने के लिए इस वस्तुओं का इस्तेमाल कर सकते हैं.भगवान के लिए कुंडल, शंख, माला, पायल भी बाजार से खरीदकर ले आइये. इसके अलावा धनुष और गदा धारण किए हुए श्रीकृष्ण भी आपके मंदिर की शोभा बढ़ा सकते हैं. कन्हैया के मंदिर में गाय, मक्खन का प्रसाद, मिश्री भी रख सकते हैं, यह सभी वह चीजें हैं जो श्रीकृष्ण को सबसे ज्यादा पसंद हैं. इन सभी सामानों से अगर आप जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का श्रृंगार करते हैं तो यह उपाय आपके लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकते हैं.
- सनातन परंपरा में तमाम तरह की कामनाओं को पूरा करने के लिए अलग-अलग मंत्र बताए गये हैं. उन सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र – ‘ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्’ का विशेष स्थान है. माँ गायत्री को ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों स्वरुप माना जाता है. मान्यता है कि चारों वेद, पुराण, श्रुतियाँ सभी गायत्री से उत्त्पन हुए हैं, इसलिए इन्हें वेदमाता भी कहा गया है. माता गायत्री के मंत्र की महिमा का बखान अनेक ऋषि-मुनियों ने किया है. गायत्री महामंत्र में तीन वेदों का सार है. जिसका जप करने से बड़े से बड़े पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस मंत्र की दिव्य शक्ति नर्क रूपी सागर में पड़े व्यक्ति को भी हाथ पकड़कर बाहर निकाल लेती है. आइए गायत्री मंत्र से जुड़े उन उपायों के बारे में जानते हैं, जिन्हें करते ही मनुष्य के जीवन में चमत्कारिक बदलाव आता है –यदि आप सत्ता या सरकार से कोई लाभ की प्राप्ति की उम्मीद लगाए हुए हैं तो अपनी कामना को पूरा करने के लिए आप किसी बेल के पेड़ के नीचे गायत्री मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप जरूर करें. इस उपाय से आपको राजकीय सेवा से लाभ प्राप्त होगा.लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति के लिए दो महीने तक प्रतिदिन एक हजार बार गायत्री मंत्र का जप प्रतिदिन करना चाहिए. यदि इसके साथ आपको धन की देवी का भी आशीर्वाद पाना हो तो आपको इसी मंत्र को तीन महीने तक लगातार जप करना चाहिए.यदि आप आर्थिक तंगी से जूझ रहे हों और आपको मां लक्ष्मी की कृपा पानी हो तो आपके लिए गायत्री मंत्र का जप वरदान साबित हो सकता है. माता लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए लाल फूलों से 108 बार गायत्री मंत्र जपते हुए हवन कुंड में आहुति देनी चाहिए.शनिवार के दिन किसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर 108 बार गायत्री मंत्र का जप करने से सभी प्रकार के भय, भूत बाधा से मुक्ति मिलती है.यदि आप किसी रोग से बहुत पीड़ित चल रहे हैं और काफी इलाज के बाद आपको उस रोग से मुक्ति नहीं मिल पा रही है तो आप गिलोय के अंगूठे के बराबर टुकड़े लेकर उसे गाय के दूध में मिला लें. इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करते हुए इस गिलोय के टुकड़े की हवन कुंड में 108 आहुति दें. अपने इलाज के साथ गायत्री मंत्र के इस उपाय को करने से शीघ्र ही आपको स्वास्थ्य लाभ मिलेगा.